• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Thriller The cold night (वो सर्द रात) (completed)

Shekhu69

Active Member
546
1,366
138
#10

विजय के तो छक्के छूट गये। रोमेश जिस आत्मविश्वास से कह रहा था, उससे साफ जाहिर था कि वह जो कह रहा है, वही होगा।

''तो फिर तुम ही बताओ, असली कातिल कौन है?"

"तुम्हारा सी.एम. ! जे.एन. है उसका कातिल।"

विजय उछल पड़ा। वह इधर-उधर इस प्रकार देखने लगा, जैसे कहीं किसी ने कुछ सुन तो नहीं लिया।

"एक मिनट।'' वह उठा और दरवाजा बंद करके आ गया।

''अब बोलो।'' वह फुसफुसाया।

''तुम इस केस से हाथ खींच लो।'' रोमेश ने भी फुसफुसा कर कहा।

''य...यह नहीं हो सकता।''

''तुम चीफ कमिश्नर को गिरफ्तार नहीं कर सकते। नौकरी चली जायेगी। इसलिये कहता हूँ, तुम इस तफ्तीश से हाथ खींच लोगे, तो जांच किसी और को दी जायेगी। वह
चंदन को ही पकड़ेगा और मैं चंदन को छुड़ा लूँगा। तुम्हारा ना कोई भला होगा, ना नुकसान।''

''यह हो ही नहीं सकता।'' विजय ने मेज पर घूंसा मारते हुए कहा।

''नहीं हो सकता तो वर्दी की लाज रखो, ट्रैक बदलो और सी एम को घेर लो। मैं तुम्हारासाथ दूँगा और सबूत भी। जैसे ही तुम ट्रैक बदलोगे, तुम पर आफतें टूटनी शुरू होंगी।
डिपार्टमेंटल दबाव भी पड़ सकता है और तुम्हारी नौकरी तक खतरे में पड़ सकती है।

परंतु शहीद होने वाला भले ही मर जाता है, लेकिन इतिहास उसे जिंदा रखता है और जो इतिहास बनाते हैं, वह कभी नहीं मरते। कई भ्रष्ट अधिकारी तुम्हारे मार्ग में रोड़ा बनेंगे,
जिनका नाम काले पन्नों पर होगा।"

''मैं वादा करता हूँ रोमेश ऐसा ही होगा। परंतु ट्रैक बदलने के लिए मेरे पास सबूत तो होना चाहिये।''

"सबूत मैं तुम्हें दूँगा।"

"ठीक है।" विजय ने हाथ मिलाया और उठ खड़ा हुआ।

रोमेश ने अगले दिन दिल्ली फोन मिलाया। कैलाश वर्मा को उसने रात भी फोन पर ट्राई किया था, मगर कैलाश से बात नहीं हो पायी। ग्यारह बजे ऑफिस में मिल गया।

"मैं रोमेश ! मुम्बई से।"

"हाँ बोलो। अरे हाँ, समझा।
मैं आज ही दस हज़ार का ड्राफ्ट लगा दूँगा। तुम्हारी पेमेंट बाकी है।''

"मैं उस बाबत कुछ नहीं बोल रहा। ''

"फिर खैरियत?"

"अखबार तो तुम पढ़ ही रहे होगे।"

''पुलिस की अपनी सोच है, हम क्या कर सकते हैं? जो हमारा काम था, हमने वही करना होता है, बेकार का लफड़ा नहीं करते।"

"लेकिन जो काम तुम्हारा था, वह नहीं हुआ।"

''तुम कहना क्या चाहते हो?"

"तुमने सावंत को …।"

"एक मिनट! शार्ट में नाम लो।

यह फोन है मिस्टर! सिर्फ एस. बोलो।"

"मिस्टर एस. को जो जानकारी तुमने दी, उसमें उसी का नाम है, जिस पर तर्क हो रहा है। तुमने असलियत को क्यों छुपाया? जो सबूत मैंने दिया, वही क्यों नहीं दिया, यह दोगली हरकत क्यों की तुमने?"

"मेरे ख्याल से इस किस्म के उल्टे सीधे सवाल न तो फोन पर होते हैं, न फोन पर उनका जवाब दिया जाता है। बाई द वे, अगर तुम दस की बजाय बीस बोलोगे, वो भेज दूँगा, मगर अच्छा यही होगा कि इस बाबत कोई पड़ताल न करो।"

"मुझे तो अब तुम्हारा दस हज़ार भी नहीं चाहिये और आइंदा मैं कभी तुम्हारे लिए काम भी नहीं करने का।"

"यार इतना सीरियस मत लो, दौलत बड़ी कुत्ती शै होती है। हम वैसे भी छोटे लोग हैं।
बड़ों की छाया में सूख जाने का डर होता है ना, इसलिये बड़े मगरमच्छों से पंगा लेना ठीक नहीं होता। तुम भी चुप हो जाना और मैं बीस हज़ार का ड्राफ्ट बना देता हूँ।"

''शटअप ! मुझे तुम्हारा एक पैसा भी नहीं चाहिये और मुझे भाषण मत दो।
तुमने जो किया, वह पेशे की ईमानदारी नहीं थी। आज से तुम्हारा मेरा कोई संबंध नहीं रहा।"

इतना कहकर रोमेश ने फोन काट दिया। करीब पन्द्रह मिनट बाद फोन की घंटी फिर बजी।रोमेश ने रिसीवर उठाया ।

''एडवोकेट रोमेश ''

''मायादास बोलते हैं जी। नमस्कार जी।"

"ओह मायादास जी , नमस्कार।"

"हम आपसे यह बताना चाहते थे कि फिलहाल जे.एन. साहब के लिए कोई केस नहीं
लड़ना है, प्रोग्राम कुछ बदल गया है।
हाँ , अगर फिर जरूरत पड़ी , तो आपको याद किया जायेगा। बुरा मत मानना ।"

''नहीं-नहीं । ऐसी कोई बात नहीं है।
वैसे बाई द वे जरूरत पड़ जाये, तो फोन नंबर आपके पास है ही ।''

"आहो जी ! आहो जी ! नमस्ते ।'' माया-दास ने फोन काट दिया ।

रोमेश जानता था कि दो-चार दिन में ही मायादास फिर संपर्क करेगा और रोमेश को अभी उससे एक मीटिंग और करनी थी, तभी जे.एन. घेरे में आ सकता था।

तीन दिन बाद विजय ने चंदन को चार्ज से हटा लिया और अखबारों में बयान दिया कि चंदन को शक के आधार पर तफ्तीश में लिया गया था किंतु बाद की जांच के मामले ने
दूसरा रूप ले लिया और इस कत्ल की वारदात के पीछे किसी बहुत बड़ी हस्ती का हाथ होने का संकेत दिया ।

सावंत कांड अभी भी समाचार पत्रों की सुर्खियों में था। विजय ने इसे एक बार फिर नया मोड़ दे दिया था।
उसी दिन शाम को मायादास का फोन आ गया।

''आपकी जरूरत आन पड़ी वकील साहब।"

"आता हूँ।"

"उसी जगह, वक्त भी आठ।“

"ठीक है ।"

रोमेश ठीक वक्त पर होटल जा पहुँचा। मायादास के अलावा उस समय वहाँ एक और आदमी था।
वह व्यक्ति चेहरे से खतरनाक दिखता था और उसके शरीर की बनावट भी
वेट-लिफ्टिंग चैंपियन जैसी थी। उसके बायें गाल पर तिल का निशान था और सामने के दो दांत सोने के बने थे। सांवले रंग का वह लंबा तगड़ा व्यक्ति गुजराती मालूम पड़ता था ,
उम्र होगी कोई चालीस वर्ष ।

"यह बटाला है।" मायादास ने उसका परिचय कराया ।

"वैसे तो इसका नाम बटाला है, लेकिन अख्तर बटाला के नाम से इसे कम ही लोग जानते हैं। पहले जब छोटे-मोटे हाथ मारा करता था, तो इसे बट्टू चोर के नाम से जाना जाता था। फिर यह मिस्टर बटाला बन गया और कत्ल के पेशे में आ गया, इसका निशाना सधा हुआ है। जितना कमांड इसका राइफल, स्टेनगन या पिस्टल पर है, उतना ही भरोसा रामपुरी पर है। जल्दी ही हज करने का इरादा रखता है, फि र तो हम इसे हाजी साहब कहा करेंगे ।''

बटाला जोर-जोर से हंस पड़ा ।

''अब जरा दांत बंद कर।" मायादास ने उसे जब डपटा, तो उसके मुंह पर तुरंत ब्रेक का जाम लग गया।

''वकील लोगों से कुछ छुपाने का नहीं मांगता।" वह बोला !

"और हम यह भी पसंद नहीं करते कि हमारा कोई आदमी तड़ी पार चला जाये । अगर बटाला को जुम्मे की नमाज जेल में पढ़नी पड़ गई, तो लानत है हम पर ।''

"पण जो अपुन को तड़ी पार करेगा, हम उसको भी खलास कर देगा" बटाला ने फटे बास की तरह घरघराती आवाज निकाली।"

"तेरे को कई बार कहा, सुबह-सुबह गरारे किया कर, वरना बोला मत कर।"
मायादास ने उसे घूरते हुए कहा । बटाला चुप हो गया।

''सावंत का कत्ल करते वक्त इस हरामी से कुछ मिस्टेक भी हो गयी। इसने जुम्मन की टैक्सी को इस काम के लिये इस्तेमाल किया और जुम्मन उसी दिन से लापता है। उसकी टैक्सी गैराज में खड़ी है। यह जुम्मन इसके गले में पट्टा डलवा सकता है।

मैंने कहा था- कोई चश्मदीद ऐसा ना हो, जो तुम्हें पहचानता हो। जुम्मन की थाने में हिस्ट्री शीट खुली हुई है और अगर वह पुलिस को बिना बताए गायब होता है, तो पुलिस उसे रगड़ देगी।
ऐसे में वह भी मुंह खोल सकता है। जुम्मन डबल क्रॉस भी कर सकता है, वह भरोसे का आदमी नहीं है।"

बटाला ने फिर कुछ बोलना चाहा, परंतु मायादास के घूरते ही केवल हिनहिना कर रह गया।

''तो सावंत का मुजरिम ये है।'' रोमेश बोला ।

''आपको इसे हर हालत में सेफ रखना है वकील साहब, बोलो क्या फीस मांगता ?"

"फीस में तब ले लूँगा, जब काम शुरू होगा। अभी तो कुछ है ही नहीं , पहले पुलिस को बटाला तक तो पहुंचने दो, फिर देखेंगे।"


जारी रहेगा……..✍️✍️
Ati uttam utkrisht adhbhut lekhni or update romanchak Jabardast superb mast ekdum dhasu :tantrum::ban:
 

Ufaq saba

Active Member
1,099
2,259
144
#10

विजय के तो छक्के छूट गये। रोमेश जिस आत्मविश्वास से कह रहा था, उससे साफ जाहिर था कि वह जो कह रहा है, वही होगा।

''तो फिर तुम ही बताओ, असली कातिल कौन है?"

"तुम्हारा सी.एम. ! जे.एन. है उसका कातिल।"

विजय उछल पड़ा। वह इधर-उधर इस प्रकार देखने लगा, जैसे कहीं किसी ने कुछ सुन तो नहीं लिया।

"एक मिनट।'' वह उठा और दरवाजा बंद करके आ गया।

''अब बोलो।'' वह फुसफुसाया।

''तुम इस केस से हाथ खींच लो।'' रोमेश ने भी फुसफुसा कर कहा।

''य...यह नहीं हो सकता।''

''तुम चीफ कमिश्नर को गिरफ्तार नहीं कर सकते। नौकरी चली जायेगी। इसलिये कहता हूँ, तुम इस तफ्तीश से हाथ खींच लोगे, तो जांच किसी और को दी जायेगी। वह
चंदन को ही पकड़ेगा और मैं चंदन को छुड़ा लूँगा। तुम्हारा ना कोई भला होगा, ना नुकसान।''

''यह हो ही नहीं सकता।'' विजय ने मेज पर घूंसा मारते हुए कहा।

''नहीं हो सकता तो वर्दी की लाज रखो, ट्रैक बदलो और सी एम को घेर लो। मैं तुम्हारासाथ दूँगा और सबूत भी। जैसे ही तुम ट्रैक बदलोगे, तुम पर आफतें टूटनी शुरू होंगी।
डिपार्टमेंटल दबाव भी पड़ सकता है और तुम्हारी नौकरी तक खतरे में पड़ सकती है।

परंतु शहीद होने वाला भले ही मर जाता है, लेकिन इतिहास उसे जिंदा रखता है और जो इतिहास बनाते हैं, वह कभी नहीं मरते। कई भ्रष्ट अधिकारी तुम्हारे मार्ग में रोड़ा बनेंगे,
जिनका नाम काले पन्नों पर होगा।"

''मैं वादा करता हूँ रोमेश ऐसा ही होगा। परंतु ट्रैक बदलने के लिए मेरे पास सबूत तो होना चाहिये।''

"सबूत मैं तुम्हें दूँगा।"

"ठीक है।" विजय ने हाथ मिलाया और उठ खड़ा हुआ।

रोमेश ने अगले दिन दिल्ली फोन मिलाया। कैलाश वर्मा को उसने रात भी फोन पर ट्राई किया था, मगर कैलाश से बात नहीं हो पायी। ग्यारह बजे ऑफिस में मिल गया।

"मैं रोमेश ! मुम्बई से।"

"हाँ बोलो। अरे हाँ, समझा।
मैं आज ही दस हज़ार का ड्राफ्ट लगा दूँगा। तुम्हारी पेमेंट बाकी है।''

"मैं उस बाबत कुछ नहीं बोल रहा। ''

"फिर खैरियत?"

"अखबार तो तुम पढ़ ही रहे होगे।"

''पुलिस की अपनी सोच है, हम क्या कर सकते हैं? जो हमारा काम था, हमने वही करना होता है, बेकार का लफड़ा नहीं करते।"

"लेकिन जो काम तुम्हारा था, वह नहीं हुआ।"

''तुम कहना क्या चाहते हो?"

"तुमने सावंत को …।"

"एक मिनट! शार्ट में नाम लो।

यह फोन है मिस्टर! सिर्फ एस. बोलो।"

"मिस्टर एस. को जो जानकारी तुमने दी, उसमें उसी का नाम है, जिस पर तर्क हो रहा है। तुमने असलियत को क्यों छुपाया? जो सबूत मैंने दिया, वही क्यों नहीं दिया, यह दोगली हरकत क्यों की तुमने?"

"मेरे ख्याल से इस किस्म के उल्टे सीधे सवाल न तो फोन पर होते हैं, न फोन पर उनका जवाब दिया जाता है। बाई द वे, अगर तुम दस की बजाय बीस बोलोगे, वो भेज दूँगा, मगर अच्छा यही होगा कि इस बाबत कोई पड़ताल न करो।"

"मुझे तो अब तुम्हारा दस हज़ार भी नहीं चाहिये और आइंदा मैं कभी तुम्हारे लिए काम भी नहीं करने का।"

"यार इतना सीरियस मत लो, दौलत बड़ी कुत्ती शै होती है। हम वैसे भी छोटे लोग हैं।
बड़ों की छाया में सूख जाने का डर होता है ना, इसलिये बड़े मगरमच्छों से पंगा लेना ठीक नहीं होता। तुम भी चुप हो जाना और मैं बीस हज़ार का ड्राफ्ट बना देता हूँ।"

''शटअप ! मुझे तुम्हारा एक पैसा भी नहीं चाहिये और मुझे भाषण मत दो।
तुमने जो किया, वह पेशे की ईमानदारी नहीं थी। आज से तुम्हारा मेरा कोई संबंध नहीं रहा।"

इतना कहकर रोमेश ने फोन काट दिया। करीब पन्द्रह मिनट बाद फोन की घंटी फिर बजी।रोमेश ने रिसीवर उठाया ।

''एडवोकेट रोमेश ''

''मायादास बोलते हैं जी। नमस्कार जी।"

"ओह मायादास जी , नमस्कार।"

"हम आपसे यह बताना चाहते थे कि फिलहाल जे.एन. साहब के लिए कोई केस नहीं
लड़ना है, प्रोग्राम कुछ बदल गया है।
हाँ , अगर फिर जरूरत पड़ी , तो आपको याद किया जायेगा। बुरा मत मानना ।"

''नहीं-नहीं । ऐसी कोई बात नहीं है।
वैसे बाई द वे जरूरत पड़ जाये, तो फोन नंबर आपके पास है ही ।''

"आहो जी ! आहो जी ! नमस्ते ।'' माया-दास ने फोन काट दिया ।

रोमेश जानता था कि दो-चार दिन में ही मायादास फिर संपर्क करेगा और रोमेश को अभी उससे एक मीटिंग और करनी थी, तभी जे.एन. घेरे में आ सकता था।

तीन दिन बाद विजय ने चंदन को चार्ज से हटा लिया और अखबारों में बयान दिया कि चंदन को शक के आधार पर तफ्तीश में लिया गया था किंतु बाद की जांच के मामले ने
दूसरा रूप ले लिया और इस कत्ल की वारदात के पीछे किसी बहुत बड़ी हस्ती का हाथ होने का संकेत दिया ।

सावंत कांड अभी भी समाचार पत्रों की सुर्खियों में था। विजय ने इसे एक बार फिर नया मोड़ दे दिया था।
उसी दिन शाम को मायादास का फोन आ गया।

''आपकी जरूरत आन पड़ी वकील साहब।"

"आता हूँ।"

"उसी जगह, वक्त भी आठ।“

"ठीक है ।"

रोमेश ठीक वक्त पर होटल जा पहुँचा। मायादास के अलावा उस समय वहाँ एक और आदमी था।
वह व्यक्ति चेहरे से खतरनाक दिखता था और उसके शरीर की बनावट भी
वेट-लिफ्टिंग चैंपियन जैसी थी। उसके बायें गाल पर तिल का निशान था और सामने के दो दांत सोने के बने थे। सांवले रंग का वह लंबा तगड़ा व्यक्ति गुजराती मालूम पड़ता था ,
उम्र होगी कोई चालीस वर्ष ।

"यह बटाला है।" मायादास ने उसका परिचय कराया ।

"वैसे तो इसका नाम बटाला है, लेकिन अख्तर बटाला के नाम से इसे कम ही लोग जानते हैं। पहले जब छोटे-मोटे हाथ मारा करता था, तो इसे बट्टू चोर के नाम से जाना जाता था। फिर यह मिस्टर बटाला बन गया और कत्ल के पेशे में आ गया, इसका निशाना सधा हुआ है। जितना कमांड इसका राइफल, स्टेनगन या पिस्टल पर है, उतना ही भरोसा रामपुरी पर है। जल्दी ही हज करने का इरादा रखता है, फि र तो हम इसे हाजी साहब कहा करेंगे ।''

बटाला जोर-जोर से हंस पड़ा ।

''अब जरा दांत बंद कर।" मायादास ने उसे जब डपटा, तो उसके मुंह पर तुरंत ब्रेक का जाम लग गया।

''वकील लोगों से कुछ छुपाने का नहीं मांगता।" वह बोला !

"और हम यह भी पसंद नहीं करते कि हमारा कोई आदमी तड़ी पार चला जाये । अगर बटाला को जुम्मे की नमाज जेल में पढ़नी पड़ गई, तो लानत है हम पर ।''

"पण जो अपुन को तड़ी पार करेगा, हम उसको भी खलास कर देगा" बटाला ने फटे बास की तरह घरघराती आवाज निकाली।"

"तेरे को कई बार कहा, सुबह-सुबह गरारे किया कर, वरना बोला मत कर।"
मायादास ने उसे घूरते हुए कहा । बटाला चुप हो गया।

''सावंत का कत्ल करते वक्त इस हरामी से कुछ मिस्टेक भी हो गयी। इसने जुम्मन की टैक्सी को इस काम के लिये इस्तेमाल किया और जुम्मन उसी दिन से लापता है। उसकी टैक्सी गैराज में खड़ी है। यह जुम्मन इसके गले में पट्टा डलवा सकता है।

मैंने कहा था- कोई चश्मदीद ऐसा ना हो, जो तुम्हें पहचानता हो। जुम्मन की थाने में हिस्ट्री शीट खुली हुई है और अगर वह पुलिस को बिना बताए गायब होता है, तो पुलिस उसे रगड़ देगी।
ऐसे में वह भी मुंह खोल सकता है। जुम्मन डबल क्रॉस भी कर सकता है, वह भरोसे का आदमी नहीं है।"

बटाला ने फिर कुछ बोलना चाहा, परंतु मायादास के घूरते ही केवल हिनहिना कर रह गया।

''तो सावंत का मुजरिम ये है।'' रोमेश बोला ।

''आपको इसे हर हालत में सेफ रखना है वकील साहब, बोलो क्या फीस मांगता ?"

"फीस में तब ले लूँगा, जब काम शुरू होगा। अभी तो कुछ है ही नहीं , पहले पुलिस को बटाला तक तो पहुंचने दो, फिर देखेंगे।"


जारी रहेगा……..✍️✍️
Awesome update Raj_sharma 👍👍
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Moderator
40,005
75,717
304
Ati uttam utkrisht adhbhut lekhni or update romanchak Jabardast superb mast ekdum dhasu :tantrum::ban:
Ohh.. thank you.. thank you... thank you.... :D Intni khushi.
Aapko pasand aarahi hai story ye mere liye badi baat hai bhai. Thanks for your amazing support ❤️
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Moderator
40,005
75,717
304

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Moderator
40,005
75,717
304

Sanju@

Well-Known Member
5,149
20,634
188
# 3


एडवोकेट रोमेश सक्सेना ने नवयौवना को ध्यानपूर्वक देखा ।

"इस किस्म का यह पहला केस है ।" रोमेश मे कहा, "एक तरफ तो आप फरमाती हैं कि वह बेकसूर है । दूसरी तरफ उसके खिलाफ खुद सबूत जुटा कर थाने में पहुँचा रही हैं, तीसरी बात यह कि मुझसे मदद भी चाहती हैं, आप आखिर हैं क्या चीज ?"


"सर आप मेरी मनोस्थिति समझिए, मैं उसकी सगी बहन हूँ, बचपन से उसे जानती हूँ । वह मुझे बेइन्तहा चाहता है, मगर ऐसा नहीं कि वह किसी का कत्ल कर डाले ।"


"तो फिर वह रुपया कहाँ से आ गया ?"

"उसी रुपये ने मुझे दोहरी मानसिक स्थिति में ला खड़ा किया है, इसीलिये तो मैं आपके पास आई हूँ ।
कहीं ऐसा न हो कि वह निर्दोष हो और मेरी एक भूल से उसे फाँसी की सजा हो जाये, फिर तो मैं अपने आपको कभी माफ न कर पाऊँगी ।

सर हो सकता है किसी ने उसे फंसाने के लिए चाल चली हो, और एक लाख रुपया मेरे घर पहुंचाया हो , क्यों कि सोमू ने कभी उस व्यक्ति का जिक्र तक नहीं किया , जो अपने को उसका शुभचिंतक बता रहा है।"


"मिस वैशाली पहले अपना माइण्ड मेकअप करो , एक ट्रैक पर चलो , यह तय करो कि वह निर्दोष है या दोषी , उसके बाद मेरे पास आना , वैसे भी मैं कोई मुकदमा तब तक हाथ में नहीं लेता , जब तक मुझे यकीन नहीं हो जाता कि मुलजिम निर्दोष है ।"


"लेकिन सर, जबतक आप या मैं इस नतीजे पर पहुँचेंगे… ।"


"कुछ नहीं होगा , तब तक के लिए अदालत की कार्यवाही रोकी जा सकती है । आप मुझे अगले सप्ताह इसी दिन मिलना समझी आप, तब तक मैं अपने तौर से भी पुष्टि कर लूँगा,
हाँ उस आदमी का नाम पता नोट कराओ, जिसने एक लाख रुपया दिया है ।"

वैशाली ने उसका नाम-पता नोट करा दिया । अगले सप्ताह उसी दिन एक बार फिर रोमेश सक्सेना के सामने थी।

"अब बताइए आपकी पटरी किसी एक लाइन पर चढ़ी ?" एडवोकेट सक्सेना ने प्रश्न किया ।“

रोमेश सक्सेना की आयु करीब पैंतीस वर्ष थी । उसका आकर्षक व्यक्तित्व था और गोरा चिट्टा छरहरा शरीर । उसकी उजली -सी आँखें, चौड़ा ललाट और बलिष्ट भुजायें, इस कसरती बदन को देखकर कोई भी सहज ही अनुमान लगा सकता था कि वह शख्स एथलीट होगा ।

रोमेश सक्सेना सिगरेट का धुआं छोड़ रहा था और उसकी दूरदृष्टि शून्य में बैलेंस थी । "बोलिए कौन-सा ट्रैक चुना है ?" इस बार रोमेश ने सीधे वैशाली की आँखों में देखते हुए कहा ।


"मैंने उससे जेल में मुलाकात की थी ।" वैशाली बोली ।

"फिर ।"

"उससे मिलने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँची हूँ कि कत्ल उसी ने किया है, आई एम सॉरी सर, मैंने व्यर्थ में आपका समय नष्ट किया ।"

"क्या तुमने उसे यह भी बता दिया था कि तुमने रुपया पुलिस स्टेशन में जमा कर दिया है ।"

"मैंने उससे रुपए का कोई जिक्र नहीं किया , ऐसा इसलिये कि कहीं यह जानकर उसे सदमा न पहुंच जाये,

उसने मुझे साफ-साफ बताया कि मेरी शादी के लिए उसने सेठ से कर्जा माँगा था , सेठ ने देने से इन्कार कर दिया और फिर वह अवसर की ताक में रहा , वह मेरे लिए कुछ भी कर गुजर सकता था बस ।"


"तो आपके दिमाग ने यह तय कर लिया कि सोमू हत्यारा है, इसलिये उसे सजा मिलनी ही चाहिये ।"

"कानून के आगे मैं रिश्तों को महत्व नहीं देती सर ।"

"हम तुम्हारे जज्बे की कद्र करते हैं और हमने यह फैसला किया है कि हम सोमू का मुकदमा लड़ेंगे ।"

"क्या ? मगर सर ?"

"मिस वैशाली , तुम्हारी नजर में सोमू हत्यारा है, मगर मेरी नजर से वह हत्यारा नहीं है! और यह जानने के बाद कि सोमू हत्यारा नहीं है, मैं आँख नहीं मूंद सकता , ऐसे मुकदमों को मैं जरूर लड़ता हूँ ।"

"लेकिन आप यह किस आधार पर कह रहे हैं ?"

"आधार आपको अदालत में पता चल जायेगा । अब आप निश्चिन्त हो जायें, बेशक आप सबको बता सकती हैं कि आपका ब्रदर बरी हो कर बाहर आयेगा , क्यों कि रोमेश सक्सेना जिस मुकदमे को हाथ में लेता है, दुनिया की कोई अदालत उसमें मुलजिम को सजा नहीं दे सकती ।"

"मेरे लिए वह क्षण बेहद अद्भुत और आश्चर्यजनक होंगे ।"

"नाउ रिलैक्स ।" रोमेश उठ खड़ा हुआ,

"मुझे जरूरी काम से जाना है ।"

वैशाली और रोमेश दोनों साथ-साथ फ्लैट से बाहर निकले और फिर रोमेश ने अपनी मोटरसाइकिल सम्भाली , जबकि वैशाली आगे की तरफ बढ़ गई।

वहीं दूसरी और:


विजय ने घड़ी में समय देखा , वह कोई दस मिनट लेट था । पुलिस स्टेशन में हर काम रूटीन की तरह चल रहा था । इंस्पेक्टर विजय के आते ही पूरा थाना अलर्ट हो गया । उसने आफिस में बैठते ही जी डी तलब की । जी डी तुरंत उसकी मेज पर आ गई । अभी वह जी डी देख रहा था कि टेलीफोन घनघना उठा ।

"नमस्कार ।" उसने फोन पर कहा ,

"मैं गोरेगांव पुलिस स्टेशन से इंस्पेक्टर विजय बोल रहा हूँ ।"

"ओ सांई, यहाँ पहुंचो नी फौरन, संगीता अपार्टमेंट में मर्डर हो गया नी सांई, मेरे फ्रेंड जगाधरी का ।"


"आप कौन बोल रहे हैं ?"

"ओ सांई हम हीरालाल जेठानी बोलता जी , उसका पड़ोसी , फौरन आओ नी।"


"ठीक है, हम अभी पहुंचते हैं ।"

"इंस्पेक्टर विजय ने तुरन्त सब इंस्पेक्टर बलदेव को बुलाया ।

"तुमने संगीता अपार्टमेंट देखा है ।"

"ओ श्योर !" बलदेव ने कहा ,
"क्या हुआ ?"

"रवानगी दर्ज करो , हमें वहाँ एक कत्ल की तफ्तीश के लिए तुरन्त पहुंचना है ।"

बलदेव के अलावा चार सिपाहियों को साथ लेकर इंस्पेक्टर विजय घटना स्थल की ओर रवाना हो गया । संगीता अपार्टमेंट ईस्ट में था , फिर भी घटना स्थल पर पहुंचने में उन्हें दस मिनट से अधिक समय नहीं लगा ।

विजय के पहुंचने से पहले ही अपार्टमेंट के बाहर काफी भीड़ लग चुकी थी । इंस्पेक्टर विजय ने उन लोगों के पास एक सिपाही को छोड़ा और बाकी को लेकर अपार्टमेंट के तीसरे फ्लैट पर जा पहुँचा । इमारत में प्रविष्ट होते ही उसे पता चल चुका था कि वारदात कहाँ हुई है ।

"सांई मेरा मतलब हीरा लाल जेठानी ।"

फ्लैट के दरवाजे पर खड़े एक अधेड़ व्यक्ति ने विजय की तरफ लपकते हुए कहा । हीरालाल कुर्ता -पजामा पहने था , सुनहरी फ्रेम की ऐनक नाक पर झुक-सी रही थी और सिर पर मारवाड़ियों जैसी टोपी थी । तीसरे माले में चार फ्लैट थे ।

"क्या नाम बताया था ?"

"जगाधरी ।" हीरालाल बोला और फिर रूमाल से अपनी आँखें पोंछने लगा ,"मेरा पक्का दोस्त साहब जी , चल बसा ।"


"हूँ ।"

विजय ने फ्लैट का दरवाजा खोला और एक सिपाही को दरवाजे पर खड़े रहने का संकेत करके अन्दर दाखिल हो गया । दो बैडरूम और एक ड्राइंगरूम का फ्लैट था । फ्लैट में कोई नहीं था ।

"किधर ?" विजय ने हीरालाल से पूछा।

हीरालाल ने एक बेडरूम की ओर इशारा कर दिया । विजय बेडरूम की तरफ बढ़ा । उसने बेडरूम को पुश किया , दरवाजा खुलता चला गया। वह सोच रहा था , बेडरूम में बेड पड़ा होगा और लाश या तो बेड पर होगी या नीचे बिछे कालीन पर, किन्तु वहाँ का दृश्य कुछ और ही था ,

मृतक इस अन्दाज में बैठा था जैसे बिल्कुल किसी सस्पेंस मूवी का दृश्य हो । वह एक ऊँचे हत्थे वाली रिवाल्विंग चेयर पर विराजमान था ,

उसके माथे पर खून जमा हो गया था और चेहरे पर लोथड़े झूल रहे थे । नीचे तक खून फैला था । वह रेशमी गाउन पहने हुए था । मेज पर शतरंज की बिसात बिछी हुई थी और सफेद मोहरे वाले बादशाह को काले मोहरे ने मात दी हुई थी ।

तो क्या वह मरने से पहले शतरंज खेल रहा था ? बिसात पर भी खून टपका हुआ था ।

"सर रिवॉल्वर ।"

बलदेव की आवाज ने विजय का ध्यान भंग किया , बलदेव भी विजय के साथ-साथ कमरे में दाखिल हो गया था, अलबत्ता हीरा लाल ड्राइंगरूम में ही था । मेज के पीछे एक चेयर थी जिस पर मृतक विराजमान था , ठीक कुर्सी के पीछे हैण्डलूम के मोटे परदे झूल रहे थे, मेज की दूसरी ओर चार कुर्सियां थी, एक तरफ टेलीफोन रखा था , दो गिलास रखे थे, एक व्हिस्की की बोतल भी मेज पर रखी थी , इसके अलावा एक पेपर वेट, डायरेक्ट्री , ऊपर दो फाइलें । बस इतना ही सामान था मेज की टॉप पर ।

गोली ठीक ललाट के बीचों -बीच लगी थी । बलदेव ने जिधर रिवॉल्वर होने का इशारा किया था , विजय उधर ही मुड़ गया । कमरे के दरवाजे से कोई तीन फुट दूर कालीन पर रिवॉल्वर पड़ी थी । विजय ने रिवॉल्वर को रूमाल में लपेटकर बलदेव को थमा दिया ।

"फिंगरप्रिंट और फोटो डिपार्टमेंट को फोन करो ।"

बलदेव कमरे में रखे फोन की तरफ बढ़ा ।

"इधर नहीं बाहर से, ड्राइंगरूम में फोन की टेबल है, किसी चीज को छूना नहीं, दस्ताने पहन लो ।

विजय ने स्वयं भी दस्ताने लिए । दो सिपाही ड्राइंगरूम के अन्दर हीरालाल के दायें चुपचाप इस तरह खड़े थे, जैसे ऑफिसर का हुक्म मिलते ही उसे धर दबोचेंगे । विजय ने कमरे का निरीक्षण शुरू किया । इस कमरे में कोई खिड़की नहीं थी । ऊपर वेन्टीलेशन था , परन्तु वहीं एग्जास्ट लगा था । कमरे में आने-जाने का एकमात्र रास्ता वही दरवाजा था । जिससे हो कर विजय स्वयं अन्दर आया था । कुछ देर बाद विजय ड्राइंगरूम में आ गया ।

"तुम्हारा नाम हीरालाल है ?"

"हीरालाल जेठानी ।" हीरालाल अपने चश्मे का एंगल दुरुस्त करते हुए बोला।

"जेठानी ।"

"जी ।"

"तुम मृतक के पड़ोसी हो ।"

"बराबर वाला फ्लैट अपना ही है ।"

"पूरी बात बताओ ।" विजय एक कुर्सी पर बैठ गया ।



जारी रहेगा…….✍️
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
वैशाली खुद उलझन में हैं वह खुद डिसाइड नही कर पा रही है कि उसका भाई दोषी है या बेकसूर
रोमेश वैशाली को एक सप्ताह का वक्त देता है और जब तक वह सोमू के बारे में पता कर उसका केस लड़ने के लिए तैयार हो जाता है
एक ओर खून हो गया है क्या इसका संबंध इस केस से है
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Moderator
40,005
75,717
304

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Moderator
40,005
75,717
304
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
वैशाली खुद उलझन में हैं वह खुद डिसाइड नही कर पा रही है कि उसका भाई दोषी है या बेकसूर
रोमेश वैशाली को एक सप्ताह का वक्त देता है और जब तक वह सोमू के बारे में पता कर उसका केस लड़ने के लिए तैयार हो जाता है
एक ओर खून हो गया है क्या इसका संबंध इस केस से है
Thank you very much for your wonderful review bhai Sanju@:thanx:
 
Top