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Thriller The cold night (वो सर्द रात) (completed)

parkas

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# 23

फ्लैट से जो वस्तुएं बरामद हुईं, वह सील कर दी गयीं । खून से सना ओवरकोट, पैंट, जूते, हैट, मफलर, कमीज, यह सारा सामान सील किया गया। रोमेश का फ्लैट भी सील कर दिया गया था। सुबह तक सारे शहर में हलचल मच चुकी थी। यह समाचार चारों तरफ फैल चुका था कि एडवोकेट रोमेश सक्सेना ने जे.एन. का मर्डर कर दिया है।

मीडिया अभी भी इस खबर की अधिक-से-अधिक गहराई तलाश करने में लग गया था। रोमेश से जे.एन. की शत्रुता के कारण भी अब खुल गये थे।

मीडिया साफ-साफ ऐसे पेश करता था कि सावंत का मर्डर जे.एन. ने करवाया था। कातिल होते हुए भी रोमेश हीरो बन गया था। घटना स्थल पर पुलिस ने मृतक के पेट में धंसा चाकू, मेज पर रखी दोनों बियर की बोतलें बरामद कर लीं। माया ने बताया था कि उनमें से एक बोतल रोमेश ने पी थी। फिंगर प्रिंट वालों ने सभी जगह की उंगलियों के निशान उठा लिए थे।

“रोमेश ने जिन तीन गवाहों को पहले ही तैयार किया था, वह खबर पाते ही खुद भागे- भागे पुलिस स्टेशन पहुंच गये।“

"मुझे बचा लो साहब ! मैंने कुछ नहीं किया बस कपड़े दिये थे, मुझे क्या पता था कि वह सचमुच कत्ल कर देगा। नहीं तो मैं उसे काले कपड़ों के बजाय सफेद कपड़े देता। कम-से-कम रात को दूर से चमक तो जाता।"

''अब जो कुछ कहना, अदालत में कहना।" विजय ने कहा।

"वो तो मेरे को याद है, क्या बोलना है। मगर मैंने कुछ नहीं किया।"

"हाँ-हाँ ! तुमने कुछ नहीं किया।"

राजा और कासिम का भी यही हाल था। कासिम तो रो रहा था कि उसे पहले ही पुलिस को बता देना चाहिये था कि रोमेश, जे.एन. का कत्ल करने वाला है।

उधर रोमेश फरार था। दिन प्रति दिन जे.एन. मर्डर कांड के बारे में तरह-तरह के समाचार छप रहे थे। इन समाचारों ने रोमेश को हीरो बना दिया था।

"ऐसा लगता है वैशाली, वह दिल्ली से फ्लाइट द्वारा यहाँ पहुंच गया था।" विजय ने वैशाली को बताया,

"और यह केस मैं ही इन्वेस्टीगेट कर रहा हूँ। हालांकि इसमें इन्वस्टीगेट को कुछ रहा नहीं, बस रोमेश को गिरफ्तार करना भर रह गया है।"

"क्या सचमुच उन्होंने…?"

"हाँ, वैशाली ! उसने मुझ पर भी गोली चलाई थी।"

वैशाली केवल गहरी साँस लेकर रह गई। वह जानती थी कि विजय भी एक आदर्श पुलिस ऑफिसर है। वह कभी किसी निर्दोष को नहीं पकड़ता और अपराधी को पकड़ने के लिए वह अपनी नौकरी भी दांव पर लगा सकता है। रोमेश भी उसका आदर्श था। आदर्श है। परन्तु अब यह अजीब-सा टकराव दो आदर्शों में हो रहा था। रोमेश अब हत्यारा था और कानून उसका गिरेबान कसने को तैयार था।

वैशाली की स्थिति यह थी कि वह किसी के लिए साहस नहीं बटोर सकती थी। रोमेश की पत्नी के साथ होने वाले अत्याचारों का खुलासा भी अब समाचार पत्रों में हो चुका था। सबको जे.एन. से नफरत थी। परन्तु कानून जज्बात नहीं देखता, केवल अपराध और सबूत देखता है।
जे.एन ने क्या किया, यह कानून जानने की कौशिश नहीं करेगा। रोमेश अपराधी था, कानून सिर्फ उसे ही जानता था।

जे.एन. की मृत्यु के बाद मंत्री मंडल तक खलबली मच गई थी। परन्तु न जाने क्यो मायादास अण्डरग्राउण्ड हो गया था। शायद उसे अंदेशा था कि रोमेश उस पर भी वार कर सकता है या वह अखबार वालों के डर से छिप गया था।

बटाला भी फरार हो गया था। पुलिस को अब बटाला की भी तलाश थी। उस पर कई मामले थे। वह सारे केस उस पर विजय ने बनाये थे।

किन्तु अभी मुम्बई पुलिस का केन्द्र बिन्दु रोमेश बना हुआ था। हर जगह रोमेश की तलाश हो रही थी। विजय ने टेलीफोन रिसीव किया। वह इस समय अपनी ड्यूटी पर था।

"मैं रोमेश बोल रहा हूँ।"
दूसरी तरफ से रोमेश की आवाज सुनाई दी। आवाज पहचानते ही विजय उछल पड़ा,

"कहाँ से ?"

"रॉयल होटल से, तुम मुझे गिरफ्तार करने के लिए बहुत बेचैन हो ना। अब आ जाओ। मैं यहाँ तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूँ।"

विजय ने एकदम टेलीफोन कट किया और रॉयल होटल की तरफ दौड़ पड़ा। बारह मिनट के भीतर वह रॉयल होटल में था।

विजय दनदनाता हुआ होटल में दाखिल हुआ, सामने ही काउन्टर था और दूसरी तरफ डायनिंग हॉल।

"यहाँ मिस्टर रोमेश कहाँ हैं ?" विजय ने काउंटर पर बैठे व्यक्ति से पूछा।

''ठहरिये।"
काउन्टर पर बैठे व्यक्ति ने कहा,

"आपका नाम इंस्पेक्टर विजय तो नहीं ? यह लिफाफा आपके नाम मिस्टर रोमेश छोड़ गये हैं, अभी दो मिनट पहले गये हैं।"

"ओह माई गॉड !" विजय ने लिफाफा थाम लिया। वह रोमेश की हस्तलिपि से वाकिफ था। उस पर लिखा था,


"मैं कोई हलवे की प्लेट नहीं हूँ, जिसे जो चाहे खाले। जरा मेहनत करके खाना सीखो। मुझे पकड़कर तो दिखाओ, इसी शहर में हूँ। कातिल कैसे छिपता है? पुलिस कैसे पकड़ती है? जरा इसका भी तो आनन्द लो रोमेश !"

विजय झल्ला कर रह गया। रोमेश शहर से फरार नहीं हुआ था, वह पुलिस से आंख-मिचौली खेल रहा था। विजय ने गहरी सांस ली और होटल से चलता बना।

सात दिन गुजर चुके थे, रोमेश गिरफ्तार नहीं हो पा रहा था। आठवें दिन भी रोमेश का फोन चर्चगेट से आया। यहाँ भी वह धता बता गया। अब स्थिति यह थी कि रोमेश रोज ही विजय को दौड़ा रहा था, दूसरे शब्दों में पुलिस को छका रहा था।


"कब तक दौड़ोगे तुम ?" विजय ने दसवें दिन फोन पर कहा,

"एक दिन तो तुम्हें कानून के हाथ आना ही पड़ेगा। कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं रोमेश ! उनसे आज तक कोई बच नहीं पाया।"

ग्यारहवें दिन पुलिस कमिश्नर ने विजय को तलब किया।

"जे.एन. का हत्यारा अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ ?"

"सर, वह बहुत चालाक हत्यारा है। हम उसे हर तरफ तलाश कर रहे हैं।"

"तुम पर आरोप लगाया जा रहा है कि वह तुम्हारा मित्र है। इसलिये तुम उसे गिरफ्तार करने की बजाय बचाने की कौशिश कर रहे हो।"

"ऐसा नहीं है सर ! ऐसा बिल्कुल गलत है, बेबुनियाद है।"

"लेकिन अखबार भी छापने लगे हैं यह बात।" कमिश्नर ने एक अखबार विजय के सामने रखा। विजय ने अखबार पढ़ा।

"यह अखबार वाले भी कभी-कभी बड़ी ओछी हरकत करते हैं सर ! आप यकीन मानिए, इस अखबार का रिपोर्टर मेरे थाने में कुछ कमाई करने आता रहा है। मेरे आने पर इसकी कमाई बन्द हो गई।"

"मैं यह सब नहीं सुनना चाहता। अगर तुम उसे अरेस्ट नहीं कर सकते, तो तुम यह केस छोड़ दो।"

"केस छोड़ने से बेहतर तो मैं इस्तीफा देना समझता हूँ। यकीन मानिए, मुझे एक सप्ताह की मोहलत और दीजिये। अगर मैं उसे गिरफ्तार न कर पाया, तो मैं इस्तीफा दे दूँगा।"

"ओ.के. ! तुम्हें एक सप्ताह का वक़्त और दिया जाता है।"

विजय वापिस अपनी ड्यूटी पर लौट आया। यह बात वैशाली को भी मालूम हुई।

''इतना गम्भीर होने की क्या जरूरत है ? ऐसे कहीं इस्तीफा दिया जाता है ?"

"मैं एक अपराधी को नहीं पकड़ पा रहा हूँ, तो फिर मेरा पुलिस में बने रहने का अधिकार ही क्या है ? अगर मैं यह केस छोड़ता हूँ, तब भी तो मेरा कैरियर चौपट होता है। यह मेरे लिए चैलेंजिंग मैटर है वैशाली।"

वैशाली के पास कोई तर्क नहीं था। वह विजय के आदर्श जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहती थी और अभी तो वह विजय की मंगेतर ही तो थी, पत्नी तो नहीं !
पत्नी भी होती, तब भी वह पति की भावनाओं का आदर ही करती।


"नौकरी चली भी गई, तो क्या फर्क पड़ता है। मैं ग्रेजुएट हूँ। हट्टा-कट्टा हूँ। कोई भी काम कर सकता हूँ। तुम इस बात से निश्चिन्त रहो, मैं गृहस्थी चला लूँगा, पुलिस की नौकरी के बिना भी।"

"मैं यह कब कह रही हूँ विजय ! मेरे लिए आपका हर फैसला उचित है।"

"थैंक्यू वैशाली ! कम-से-कम तुम मेरी भावनाओं को तो समझ ही लेती हो।"

"काश ऐसी समझ सीमा भाभी में भी होती, तो यह सब क्यों होता ?"

"छोड़ो, इस टॉपिक को। रोमेश अब सिर्फ एक मुजरिम है। इसके अलावा हमारा उससे कोई रिश्ता नहीं। मैं उसे अरेस्ट कर ही लूँगा और कोर्ट में सजा करा कर ही दम लूँगा।"

विजय ने संभावित स्थानों पर ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू किए, परन्तु रोमेश हाथ नहीं आया। अब रोमेश के फोन आने भी बन्द हो गये थे। विजय ने टेलीफोन एक्सचेंज से मिलकर ऐसी व्यवस्था की हुई थी कि रोमेश अगर एक भी फोन करता, तो पुलिस वहाँ तुरन्त पहुँच जाती। इस मामले को लेकर पूरा कंट्रोल रूम और प्रत्येक थाना उसे अच्छी तरह सहयोग कर रहा था।

शायद रोमेश को भी इस बात की भनक लग गई थी कि उसे पकड़ने के लिए जबरदस्त जाल बिछा दिया गया है। इसलिये वह खामोश हो गया था।





जारी रहेगा…....✍️✍️
Bahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and beautiful update....
 

kas1709

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13,114
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# 23

फ्लैट से जो वस्तुएं बरामद हुईं, वह सील कर दी गयीं । खून से सना ओवरकोट, पैंट, जूते, हैट, मफलर, कमीज, यह सारा सामान सील किया गया। रोमेश का फ्लैट भी सील कर दिया गया था। सुबह तक सारे शहर में हलचल मच चुकी थी। यह समाचार चारों तरफ फैल चुका था कि एडवोकेट रोमेश सक्सेना ने जे.एन. का मर्डर कर दिया है।

मीडिया अभी भी इस खबर की अधिक-से-अधिक गहराई तलाश करने में लग गया था। रोमेश से जे.एन. की शत्रुता के कारण भी अब खुल गये थे।

मीडिया साफ-साफ ऐसे पेश करता था कि सावंत का मर्डर जे.एन. ने करवाया था। कातिल होते हुए भी रोमेश हीरो बन गया था। घटना स्थल पर पुलिस ने मृतक के पेट में धंसा चाकू, मेज पर रखी दोनों बियर की बोतलें बरामद कर लीं। माया ने बताया था कि उनमें से एक बोतल रोमेश ने पी थी। फिंगर प्रिंट वालों ने सभी जगह की उंगलियों के निशान उठा लिए थे।

“रोमेश ने जिन तीन गवाहों को पहले ही तैयार किया था, वह खबर पाते ही खुद भागे- भागे पुलिस स्टेशन पहुंच गये।“

"मुझे बचा लो साहब ! मैंने कुछ नहीं किया बस कपड़े दिये थे, मुझे क्या पता था कि वह सचमुच कत्ल कर देगा। नहीं तो मैं उसे काले कपड़ों के बजाय सफेद कपड़े देता। कम-से-कम रात को दूर से चमक तो जाता।"

''अब जो कुछ कहना, अदालत में कहना।" विजय ने कहा।

"वो तो मेरे को याद है, क्या बोलना है। मगर मैंने कुछ नहीं किया।"

"हाँ-हाँ ! तुमने कुछ नहीं किया।"

राजा और कासिम का भी यही हाल था। कासिम तो रो रहा था कि उसे पहले ही पुलिस को बता देना चाहिये था कि रोमेश, जे.एन. का कत्ल करने वाला है।

उधर रोमेश फरार था। दिन प्रति दिन जे.एन. मर्डर कांड के बारे में तरह-तरह के समाचार छप रहे थे। इन समाचारों ने रोमेश को हीरो बना दिया था।

"ऐसा लगता है वैशाली, वह दिल्ली से फ्लाइट द्वारा यहाँ पहुंच गया था।" विजय ने वैशाली को बताया,

"और यह केस मैं ही इन्वेस्टीगेट कर रहा हूँ। हालांकि इसमें इन्वस्टीगेट को कुछ रहा नहीं, बस रोमेश को गिरफ्तार करना भर रह गया है।"

"क्या सचमुच उन्होंने…?"

"हाँ, वैशाली ! उसने मुझ पर भी गोली चलाई थी।"

वैशाली केवल गहरी साँस लेकर रह गई। वह जानती थी कि विजय भी एक आदर्श पुलिस ऑफिसर है। वह कभी किसी निर्दोष को नहीं पकड़ता और अपराधी को पकड़ने के लिए वह अपनी नौकरी भी दांव पर लगा सकता है। रोमेश भी उसका आदर्श था। आदर्श है। परन्तु अब यह अजीब-सा टकराव दो आदर्शों में हो रहा था। रोमेश अब हत्यारा था और कानून उसका गिरेबान कसने को तैयार था।

वैशाली की स्थिति यह थी कि वह किसी के लिए साहस नहीं बटोर सकती थी। रोमेश की पत्नी के साथ होने वाले अत्याचारों का खुलासा भी अब समाचार पत्रों में हो चुका था। सबको जे.एन. से नफरत थी। परन्तु कानून जज्बात नहीं देखता, केवल अपराध और सबूत देखता है।
जे.एन ने क्या किया, यह कानून जानने की कौशिश नहीं करेगा। रोमेश अपराधी था, कानून सिर्फ उसे ही जानता था।

जे.एन. की मृत्यु के बाद मंत्री मंडल तक खलबली मच गई थी। परन्तु न जाने क्यो मायादास अण्डरग्राउण्ड हो गया था। शायद उसे अंदेशा था कि रोमेश उस पर भी वार कर सकता है या वह अखबार वालों के डर से छिप गया था।

बटाला भी फरार हो गया था। पुलिस को अब बटाला की भी तलाश थी। उस पर कई मामले थे। वह सारे केस उस पर विजय ने बनाये थे।

किन्तु अभी मुम्बई पुलिस का केन्द्र बिन्दु रोमेश बना हुआ था। हर जगह रोमेश की तलाश हो रही थी। विजय ने टेलीफोन रिसीव किया। वह इस समय अपनी ड्यूटी पर था।

"मैं रोमेश बोल रहा हूँ।"
दूसरी तरफ से रोमेश की आवाज सुनाई दी। आवाज पहचानते ही विजय उछल पड़ा,

"कहाँ से ?"

"रॉयल होटल से, तुम मुझे गिरफ्तार करने के लिए बहुत बेचैन हो ना। अब आ जाओ। मैं यहाँ तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूँ।"

विजय ने एकदम टेलीफोन कट किया और रॉयल होटल की तरफ दौड़ पड़ा। बारह मिनट के भीतर वह रॉयल होटल में था।

विजय दनदनाता हुआ होटल में दाखिल हुआ, सामने ही काउन्टर था और दूसरी तरफ डायनिंग हॉल।

"यहाँ मिस्टर रोमेश कहाँ हैं ?" विजय ने काउंटर पर बैठे व्यक्ति से पूछा।

''ठहरिये।"
काउन्टर पर बैठे व्यक्ति ने कहा,

"आपका नाम इंस्पेक्टर विजय तो नहीं ? यह लिफाफा आपके नाम मिस्टर रोमेश छोड़ गये हैं, अभी दो मिनट पहले गये हैं।"

"ओह माई गॉड !" विजय ने लिफाफा थाम लिया। वह रोमेश की हस्तलिपि से वाकिफ था। उस पर लिखा था,


"मैं कोई हलवे की प्लेट नहीं हूँ, जिसे जो चाहे खाले। जरा मेहनत करके खाना सीखो। मुझे पकड़कर तो दिखाओ, इसी शहर में हूँ। कातिल कैसे छिपता है? पुलिस कैसे पकड़ती है? जरा इसका भी तो आनन्द लो रोमेश !"

विजय झल्ला कर रह गया। रोमेश शहर से फरार नहीं हुआ था, वह पुलिस से आंख-मिचौली खेल रहा था। विजय ने गहरी सांस ली और होटल से चलता बना।

सात दिन गुजर चुके थे, रोमेश गिरफ्तार नहीं हो पा रहा था। आठवें दिन भी रोमेश का फोन चर्चगेट से आया। यहाँ भी वह धता बता गया। अब स्थिति यह थी कि रोमेश रोज ही विजय को दौड़ा रहा था, दूसरे शब्दों में पुलिस को छका रहा था।


"कब तक दौड़ोगे तुम ?" विजय ने दसवें दिन फोन पर कहा,

"एक दिन तो तुम्हें कानून के हाथ आना ही पड़ेगा। कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं रोमेश ! उनसे आज तक कोई बच नहीं पाया।"

ग्यारहवें दिन पुलिस कमिश्नर ने विजय को तलब किया।

"जे.एन. का हत्यारा अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ ?"

"सर, वह बहुत चालाक हत्यारा है। हम उसे हर तरफ तलाश कर रहे हैं।"

"तुम पर आरोप लगाया जा रहा है कि वह तुम्हारा मित्र है। इसलिये तुम उसे गिरफ्तार करने की बजाय बचाने की कौशिश कर रहे हो।"

"ऐसा नहीं है सर ! ऐसा बिल्कुल गलत है, बेबुनियाद है।"

"लेकिन अखबार भी छापने लगे हैं यह बात।" कमिश्नर ने एक अखबार विजय के सामने रखा। विजय ने अखबार पढ़ा।

"यह अखबार वाले भी कभी-कभी बड़ी ओछी हरकत करते हैं सर ! आप यकीन मानिए, इस अखबार का रिपोर्टर मेरे थाने में कुछ कमाई करने आता रहा है। मेरे आने पर इसकी कमाई बन्द हो गई।"

"मैं यह सब नहीं सुनना चाहता। अगर तुम उसे अरेस्ट नहीं कर सकते, तो तुम यह केस छोड़ दो।"

"केस छोड़ने से बेहतर तो मैं इस्तीफा देना समझता हूँ। यकीन मानिए, मुझे एक सप्ताह की मोहलत और दीजिये। अगर मैं उसे गिरफ्तार न कर पाया, तो मैं इस्तीफा दे दूँगा।"

"ओ.के. ! तुम्हें एक सप्ताह का वक़्त और दिया जाता है।"

विजय वापिस अपनी ड्यूटी पर लौट आया। यह बात वैशाली को भी मालूम हुई।

''इतना गम्भीर होने की क्या जरूरत है ? ऐसे कहीं इस्तीफा दिया जाता है ?"

"मैं एक अपराधी को नहीं पकड़ पा रहा हूँ, तो फिर मेरा पुलिस में बने रहने का अधिकार ही क्या है ? अगर मैं यह केस छोड़ता हूँ, तब भी तो मेरा कैरियर चौपट होता है। यह मेरे लिए चैलेंजिंग मैटर है वैशाली।"

वैशाली के पास कोई तर्क नहीं था। वह विजय के आदर्श जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहती थी और अभी तो वह विजय की मंगेतर ही तो थी, पत्नी तो नहीं !
पत्नी भी होती, तब भी वह पति की भावनाओं का आदर ही करती।


"नौकरी चली भी गई, तो क्या फर्क पड़ता है। मैं ग्रेजुएट हूँ। हट्टा-कट्टा हूँ। कोई भी काम कर सकता हूँ। तुम इस बात से निश्चिन्त रहो, मैं गृहस्थी चला लूँगा, पुलिस की नौकरी के बिना भी।"

"मैं यह कब कह रही हूँ विजय ! मेरे लिए आपका हर फैसला उचित है।"

"थैंक्यू वैशाली ! कम-से-कम तुम मेरी भावनाओं को तो समझ ही लेती हो।"

"काश ऐसी समझ सीमा भाभी में भी होती, तो यह सब क्यों होता ?"

"छोड़ो, इस टॉपिक को। रोमेश अब सिर्फ एक मुजरिम है। इसके अलावा हमारा उससे कोई रिश्ता नहीं। मैं उसे अरेस्ट कर ही लूँगा और कोर्ट में सजा करा कर ही दम लूँगा।"

विजय ने संभावित स्थानों पर ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू किए, परन्तु रोमेश हाथ नहीं आया। अब रोमेश के फोन आने भी बन्द हो गये थे। विजय ने टेलीफोन एक्सचेंज से मिलकर ऐसी व्यवस्था की हुई थी कि रोमेश अगर एक भी फोन करता, तो पुलिस वहाँ तुरन्त पहुँच जाती। इस मामले को लेकर पूरा कंट्रोल रूम और प्रत्येक थाना उसे अच्छी तरह सहयोग कर रहा था।

शायद रोमेश को भी इस बात की भनक लग गई थी कि उसे पकड़ने के लिए जबरदस्त जाल बिछा दिया गया है। इसलिये वह खामोश हो गया था।





जारी रहेगा…....✍️✍️
Nice update....
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Raj_sharma

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Rekha rani

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फ्लैट से जो वस्तुएं बरामद हुईं, वह सील कर दी गयीं । खून से सना ओवरकोट, पैंट, जूते, हैट, मफलर, कमीज, यह सारा सामान सील किया गया। रोमेश का फ्लैट भी सील कर दिया गया था। सुबह तक सारे शहर में हलचल मच चुकी थी। यह समाचार चारों तरफ फैल चुका था कि एडवोकेट रोमेश सक्सेना ने जे.एन. का मर्डर कर दिया है।

मीडिया अभी भी इस खबर की अधिक-से-अधिक गहराई तलाश करने में लग गया था। रोमेश से जे.एन. की शत्रुता के कारण भी अब खुल गये थे।

मीडिया साफ-साफ ऐसे पेश करता था कि सावंत का मर्डर जे.एन. ने करवाया था। कातिल होते हुए भी रोमेश हीरो बन गया था। घटना स्थल पर पुलिस ने मृतक के पेट में धंसा चाकू, मेज पर रखी दोनों बियर की बोतलें बरामद कर लीं। माया ने बताया था कि उनमें से एक बोतल रोमेश ने पी थी। फिंगर प्रिंट वालों ने सभी जगह की उंगलियों के निशान उठा लिए थे।

“रोमेश ने जिन तीन गवाहों को पहले ही तैयार किया था, वह खबर पाते ही खुद भागे- भागे पुलिस स्टेशन पहुंच गये।“

"मुझे बचा लो साहब ! मैंने कुछ नहीं किया बस कपड़े दिये थे, मुझे क्या पता था कि वह सचमुच कत्ल कर देगा। नहीं तो मैं उसे काले कपड़ों के बजाय सफेद कपड़े देता। कम-से-कम रात को दूर से चमक तो जाता।"

''अब जो कुछ कहना, अदालत में कहना।" विजय ने कहा।

"वो तो मेरे को याद है, क्या बोलना है। मगर मैंने कुछ नहीं किया।"

"हाँ-हाँ ! तुमने कुछ नहीं किया।"

राजा और कासिम का भी यही हाल था। कासिम तो रो रहा था कि उसे पहले ही पुलिस को बता देना चाहिये था कि रोमेश, जे.एन. का कत्ल करने वाला है।

उधर रोमेश फरार था। दिन प्रति दिन जे.एन. मर्डर कांड के बारे में तरह-तरह के समाचार छप रहे थे। इन समाचारों ने रोमेश को हीरो बना दिया था।

"ऐसा लगता है वैशाली, वह दिल्ली से फ्लाइट द्वारा यहाँ पहुंच गया था।" विजय ने वैशाली को बताया,

"और यह केस मैं ही इन्वेस्टीगेट कर रहा हूँ। हालांकि इसमें इन्वस्टीगेट को कुछ रहा नहीं, बस रोमेश को गिरफ्तार करना भर रह गया है।"

"क्या सचमुच उन्होंने…?"

"हाँ, वैशाली ! उसने मुझ पर भी गोली चलाई थी।"

वैशाली केवल गहरी साँस लेकर रह गई। वह जानती थी कि विजय भी एक आदर्श पुलिस ऑफिसर है। वह कभी किसी निर्दोष को नहीं पकड़ता और अपराधी को पकड़ने के लिए वह अपनी नौकरी भी दांव पर लगा सकता है। रोमेश भी उसका आदर्श था। आदर्श है। परन्तु अब यह अजीब-सा टकराव दो आदर्शों में हो रहा था। रोमेश अब हत्यारा था और कानून उसका गिरेबान कसने को तैयार था।

वैशाली की स्थिति यह थी कि वह किसी के लिए साहस नहीं बटोर सकती थी। रोमेश की पत्नी के साथ होने वाले अत्याचारों का खुलासा भी अब समाचार पत्रों में हो चुका था। सबको जे.एन. से नफरत थी। परन्तु कानून जज्बात नहीं देखता, केवल अपराध और सबूत देखता है।
जे.एन ने क्या किया, यह कानून जानने की कौशिश नहीं करेगा। रोमेश अपराधी था, कानून सिर्फ उसे ही जानता था।

जे.एन. की मृत्यु के बाद मंत्री मंडल तक खलबली मच गई थी। परन्तु न जाने क्यो मायादास अण्डरग्राउण्ड हो गया था। शायद उसे अंदेशा था कि रोमेश उस पर भी वार कर सकता है या वह अखबार वालों के डर से छिप गया था।

बटाला भी फरार हो गया था। पुलिस को अब बटाला की भी तलाश थी। उस पर कई मामले थे। वह सारे केस उस पर विजय ने बनाये थे।

किन्तु अभी मुम्बई पुलिस का केन्द्र बिन्दु रोमेश बना हुआ था। हर जगह रोमेश की तलाश हो रही थी। विजय ने टेलीफोन रिसीव किया। वह इस समय अपनी ड्यूटी पर था।

"मैं रोमेश बोल रहा हूँ।"
दूसरी तरफ से रोमेश की आवाज सुनाई दी। आवाज पहचानते ही विजय उछल पड़ा,

"कहाँ से ?"

"रॉयल होटल से, तुम मुझे गिरफ्तार करने के लिए बहुत बेचैन हो ना। अब आ जाओ। मैं यहाँ तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूँ।"

विजय ने एकदम टेलीफोन कट किया और रॉयल होटल की तरफ दौड़ पड़ा। बारह मिनट के भीतर वह रॉयल होटल में था।

विजय दनदनाता हुआ होटल में दाखिल हुआ, सामने ही काउन्टर था और दूसरी तरफ डायनिंग हॉल।

"यहाँ मिस्टर रोमेश कहाँ हैं ?" विजय ने काउंटर पर बैठे व्यक्ति से पूछा।

''ठहरिये।"
काउन्टर पर बैठे व्यक्ति ने कहा,

"आपका नाम इंस्पेक्टर विजय तो नहीं ? यह लिफाफा आपके नाम मिस्टर रोमेश छोड़ गये हैं, अभी दो मिनट पहले गये हैं।"

"ओह माई गॉड !" विजय ने लिफाफा थाम लिया। वह रोमेश की हस्तलिपि से वाकिफ था। उस पर लिखा था,

"मैं कोई हलवे की प्लेट नहीं हूँ, जिसे जो चाहे खाले। जरा मेहनत करके खाना सीखो। मुझे पकड़कर तो दिखाओ, इसी शहर में हूँ। कातिल कैसे छिपता है? पुलिस कैसे पकड़ती है? जरा इसका भी तो आनन्द लो रोमेश !"

विजय झल्ला कर रह गया। रोमेश शहर से फरार नहीं हुआ था, वह पुलिस से आंख-मिचौली खेल रहा था। विजय ने गहरी सांस ली और होटल से चलता बना।

सात दिन गुजर चुके थे, रोमेश गिरफ्तार नहीं हो पा रहा था। आठवें दिन भी रोमेश का फोन चर्चगेट से आया। यहाँ भी वह धता बता गया। अब स्थिति यह थी कि रोमेश रोज ही विजय को दौड़ा रहा था, दूसरे शब्दों में पुलिस को छका रहा था।


"कब तक दौड़ोगे तुम ?" विजय ने दसवें दिन फोन पर कहा,

"एक दिन तो तुम्हें कानून के हाथ आना ही पड़ेगा। कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं रोमेश ! उनसे आज तक कोई बच नहीं पाया।"

ग्यारहवें दिन पुलिस कमिश्नर ने विजय को तलब किया।

"जे.एन. का हत्यारा अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ ?"

"सर, वह बहुत चालाक हत्यारा है। हम उसे हर तरफ तलाश कर रहे हैं।"

"तुम पर आरोप लगाया जा रहा है कि वह तुम्हारा मित्र है। इसलिये तुम उसे गिरफ्तार करने की बजाय बचाने की कौशिश कर रहे हो।"

"ऐसा नहीं है सर ! ऐसा बिल्कुल गलत है, बेबुनियाद है।"

"लेकिन अखबार भी छापने लगे हैं यह बात।" कमिश्नर ने एक अखबार विजय के सामने रखा। विजय ने अखबार पढ़ा।

"यह अखबार वाले भी कभी-कभी बड़ी ओछी हरकत करते हैं सर ! आप यकीन मानिए, इस अखबार का रिपोर्टर मेरे थाने में कुछ कमाई करने आता रहा है। मेरे आने पर इसकी कमाई बन्द हो गई।"

"मैं यह सब नहीं सुनना चाहता। अगर तुम उसे अरेस्ट नहीं कर सकते, तो तुम यह केस छोड़ दो।"

"केस छोड़ने से बेहतर तो मैं इस्तीफा देना समझता हूँ। यकीन मानिए, मुझे एक सप्ताह की मोहलत और दीजिये। अगर मैं उसे गिरफ्तार न कर पाया, तो मैं इस्तीफा दे दूँगा।"

"ओ.के. ! तुम्हें एक सप्ताह का वक़्त और दिया जाता है।"

विजय वापिस अपनी ड्यूटी पर लौट आया। यह बात वैशाली को भी मालूम हुई।

''इतना गम्भीर होने की क्या जरूरत है ? ऐसे कहीं इस्तीफा दिया जाता है ?"

"मैं एक अपराधी को नहीं पकड़ पा रहा हूँ, तो फिर मेरा पुलिस में बने रहने का अधिकार ही क्या है ? अगर मैं यह केस छोड़ता हूँ, तब भी तो मेरा कैरियर चौपट होता है। यह मेरे लिए चैलेंजिंग मैटर है वैशाली।"

वैशाली के पास कोई तर्क नहीं था। वह विजय के आदर्श जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहती थी और अभी तो वह विजय की मंगेतर ही तो थी, पत्नी तो नहीं !
पत्नी भी होती, तब भी वह पति की भावनाओं का आदर ही करती।


"नौकरी चली भी गई, तो क्या फर्क पड़ता है। मैं ग्रेजुएट हूँ। हट्टा-कट्टा हूँ। कोई भी काम कर सकता हूँ। तुम इस बात से निश्चिन्त रहो, मैं गृहस्थी चला लूँगा, पुलिस की नौकरी के बिना भी।"

"मैं यह कब कह रही हूँ विजय ! मेरे लिए आपका हर फैसला उचित है।"

"थैंक्यू वैशाली ! कम-से-कम तुम मेरी भावनाओं को तो समझ ही लेती हो।"

"काश ऐसी समझ सीमा भाभी में भी होती, तो यह सब क्यों होता ?"

"छोड़ो, इस टॉपिक को। रोमेश अब सिर्फ एक मुजरिम है। इसके अलावा हमारा उससे कोई रिश्ता नहीं। मैं उसे अरेस्ट कर ही लूँगा और कोर्ट में सजा करा कर ही दम लूँगा।"

विजय ने संभावित स्थानों पर ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू किए, परन्तु रोमेश हाथ नहीं आया। अब रोमेश के फोन आने भी बन्द हो गये थे। विजय ने टेलीफोन एक्सचेंज से मिलकर ऐसी व्यवस्था की हुई थी कि रोमेश अगर एक भी फोन करता, तो पुलिस वहाँ तुरन्त पहुँच जाती। इस मामले को लेकर पूरा कंट्रोल रूम और प्रत्येक थाना उसे अच्छी तरह सहयोग कर रहा था।

शायद रोमेश को भी इस बात की भनक लग गई थी कि उसे पकड़ने के लिए जबरदस्त जाल बिछा दिया गया है। इसलिये वह खामोश हो गया था।




जारी रहेगा…....✍️✍️
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# 23

फ्लैट से जो वस्तुएं बरामद हुईं, वह सील कर दी गयीं । खून से सना ओवरकोट, पैंट, जूते, हैट, मफलर, कमीज, यह सारा सामान सील किया गया। रोमेश का फ्लैट भी सील कर दिया गया था। सुबह तक सारे शहर में हलचल मच चुकी थी। यह समाचार चारों तरफ फैल चुका था कि एडवोकेट रोमेश सक्सेना ने जे.एन. का मर्डर कर दिया है।

मीडिया अभी भी इस खबर की अधिक-से-अधिक गहराई तलाश करने में लग गया था। रोमेश से जे.एन. की शत्रुता के कारण भी अब खुल गये थे।

मीडिया साफ-साफ ऐसे पेश करता था कि सावंत का मर्डर जे.एन. ने करवाया था। कातिल होते हुए भी रोमेश हीरो बन गया था। घटना स्थल पर पुलिस ने मृतक के पेट में धंसा चाकू, मेज पर रखी दोनों बियर की बोतलें बरामद कर लीं। माया ने बताया था कि उनमें से एक बोतल रोमेश ने पी थी। फिंगर प्रिंट वालों ने सभी जगह की उंगलियों के निशान उठा लिए थे।

“रोमेश ने जिन तीन गवाहों को पहले ही तैयार किया था, वह खबर पाते ही खुद भागे- भागे पुलिस स्टेशन पहुंच गये।“

"मुझे बचा लो साहब ! मैंने कुछ नहीं किया बस कपड़े दिये थे, मुझे क्या पता था कि वह सचमुच कत्ल कर देगा। नहीं तो मैं उसे काले कपड़ों के बजाय सफेद कपड़े देता। कम-से-कम रात को दूर से चमक तो जाता।"

''अब जो कुछ कहना, अदालत में कहना।" विजय ने कहा।

"वो तो मेरे को याद है, क्या बोलना है। मगर मैंने कुछ नहीं किया।"

"हाँ-हाँ ! तुमने कुछ नहीं किया।"

राजा और कासिम का भी यही हाल था। कासिम तो रो रहा था कि उसे पहले ही पुलिस को बता देना चाहिये था कि रोमेश, जे.एन. का कत्ल करने वाला है।

उधर रोमेश फरार था। दिन प्रति दिन जे.एन. मर्डर कांड के बारे में तरह-तरह के समाचार छप रहे थे। इन समाचारों ने रोमेश को हीरो बना दिया था।

"ऐसा लगता है वैशाली, वह दिल्ली से फ्लाइट द्वारा यहाँ पहुंच गया था।" विजय ने वैशाली को बताया,

"और यह केस मैं ही इन्वेस्टीगेट कर रहा हूँ। हालांकि इसमें इन्वस्टीगेट को कुछ रहा नहीं, बस रोमेश को गिरफ्तार करना भर रह गया है।"

"क्या सचमुच उन्होंने…?"

"हाँ, वैशाली ! उसने मुझ पर भी गोली चलाई थी।"

वैशाली केवल गहरी साँस लेकर रह गई। वह जानती थी कि विजय भी एक आदर्श पुलिस ऑफिसर है। वह कभी किसी निर्दोष को नहीं पकड़ता और अपराधी को पकड़ने के लिए वह अपनी नौकरी भी दांव पर लगा सकता है। रोमेश भी उसका आदर्श था। आदर्श है। परन्तु अब यह अजीब-सा टकराव दो आदर्शों में हो रहा था। रोमेश अब हत्यारा था और कानून उसका गिरेबान कसने को तैयार था।

वैशाली की स्थिति यह थी कि वह किसी के लिए साहस नहीं बटोर सकती थी। रोमेश की पत्नी के साथ होने वाले अत्याचारों का खुलासा भी अब समाचार पत्रों में हो चुका था। सबको जे.एन. से नफरत थी। परन्तु कानून जज्बात नहीं देखता, केवल अपराध और सबूत देखता है।
जे.एन ने क्या किया, यह कानून जानने की कौशिश नहीं करेगा। रोमेश अपराधी था, कानून सिर्फ उसे ही जानता था।

जे.एन. की मृत्यु के बाद मंत्री मंडल तक खलबली मच गई थी। परन्तु न जाने क्यो मायादास अण्डरग्राउण्ड हो गया था। शायद उसे अंदेशा था कि रोमेश उस पर भी वार कर सकता है या वह अखबार वालों के डर से छिप गया था।

बटाला भी फरार हो गया था। पुलिस को अब बटाला की भी तलाश थी। उस पर कई मामले थे। वह सारे केस उस पर विजय ने बनाये थे।

किन्तु अभी मुम्बई पुलिस का केन्द्र बिन्दु रोमेश बना हुआ था। हर जगह रोमेश की तलाश हो रही थी। विजय ने टेलीफोन रिसीव किया। वह इस समय अपनी ड्यूटी पर था।

"मैं रोमेश बोल रहा हूँ।"
दूसरी तरफ से रोमेश की आवाज सुनाई दी। आवाज पहचानते ही विजय उछल पड़ा,

"कहाँ से ?"

"रॉयल होटल से, तुम मुझे गिरफ्तार करने के लिए बहुत बेचैन हो ना। अब आ जाओ। मैं यहाँ तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूँ।"

विजय ने एकदम टेलीफोन कट किया और रॉयल होटल की तरफ दौड़ पड़ा। बारह मिनट के भीतर वह रॉयल होटल में था।

विजय दनदनाता हुआ होटल में दाखिल हुआ, सामने ही काउन्टर था और दूसरी तरफ डायनिंग हॉल।

"यहाँ मिस्टर रोमेश कहाँ हैं ?" विजय ने काउंटर पर बैठे व्यक्ति से पूछा।

''ठहरिये।"
काउन्टर पर बैठे व्यक्ति ने कहा,

"आपका नाम इंस्पेक्टर विजय तो नहीं ? यह लिफाफा आपके नाम मिस्टर रोमेश छोड़ गये हैं, अभी दो मिनट पहले गये हैं।"

"ओह माई गॉड !" विजय ने लिफाफा थाम लिया। वह रोमेश की हस्तलिपि से वाकिफ था। उस पर लिखा था,


"मैं कोई हलवे की प्लेट नहीं हूँ, जिसे जो चाहे खाले। जरा मेहनत करके खाना सीखो। मुझे पकड़कर तो दिखाओ, इसी शहर में हूँ। कातिल कैसे छिपता है? पुलिस कैसे पकड़ती है? जरा इसका भी तो आनन्द लो रोमेश !"

विजय झल्ला कर रह गया। रोमेश शहर से फरार नहीं हुआ था, वह पुलिस से आंख-मिचौली खेल रहा था। विजय ने गहरी सांस ली और होटल से चलता बना।

सात दिन गुजर चुके थे, रोमेश गिरफ्तार नहीं हो पा रहा था। आठवें दिन भी रोमेश का फोन चर्चगेट से आया। यहाँ भी वह धता बता गया। अब स्थिति यह थी कि रोमेश रोज ही विजय को दौड़ा रहा था, दूसरे शब्दों में पुलिस को छका रहा था।


"कब तक दौड़ोगे तुम ?" विजय ने दसवें दिन फोन पर कहा,

"एक दिन तो तुम्हें कानून के हाथ आना ही पड़ेगा। कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं रोमेश ! उनसे आज तक कोई बच नहीं पाया।"

ग्यारहवें दिन पुलिस कमिश्नर ने विजय को तलब किया।

"जे.एन. का हत्यारा अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ ?"

"सर, वह बहुत चालाक हत्यारा है। हम उसे हर तरफ तलाश कर रहे हैं।"

"तुम पर आरोप लगाया जा रहा है कि वह तुम्हारा मित्र है। इसलिये तुम उसे गिरफ्तार करने की बजाय बचाने की कौशिश कर रहे हो।"

"ऐसा नहीं है सर ! ऐसा बिल्कुल गलत है, बेबुनियाद है।"

"लेकिन अखबार भी छापने लगे हैं यह बात।" कमिश्नर ने एक अखबार विजय के सामने रखा। विजय ने अखबार पढ़ा।

"यह अखबार वाले भी कभी-कभी बड़ी ओछी हरकत करते हैं सर ! आप यकीन मानिए, इस अखबार का रिपोर्टर मेरे थाने में कुछ कमाई करने आता रहा है। मेरे आने पर इसकी कमाई बन्द हो गई।"

"मैं यह सब नहीं सुनना चाहता। अगर तुम उसे अरेस्ट नहीं कर सकते, तो तुम यह केस छोड़ दो।"

"केस छोड़ने से बेहतर तो मैं इस्तीफा देना समझता हूँ। यकीन मानिए, मुझे एक सप्ताह की मोहलत और दीजिये। अगर मैं उसे गिरफ्तार न कर पाया, तो मैं इस्तीफा दे दूँगा।"

"ओ.के. ! तुम्हें एक सप्ताह का वक़्त और दिया जाता है।"

विजय वापिस अपनी ड्यूटी पर लौट आया। यह बात वैशाली को भी मालूम हुई।

''इतना गम्भीर होने की क्या जरूरत है ? ऐसे कहीं इस्तीफा दिया जाता है ?"

"मैं एक अपराधी को नहीं पकड़ पा रहा हूँ, तो फिर मेरा पुलिस में बने रहने का अधिकार ही क्या है ? अगर मैं यह केस छोड़ता हूँ, तब भी तो मेरा कैरियर चौपट होता है। यह मेरे लिए चैलेंजिंग मैटर है वैशाली।"

वैशाली के पास कोई तर्क नहीं था। वह विजय के आदर्श जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहती थी और अभी तो वह विजय की मंगेतर ही तो थी, पत्नी तो नहीं !
पत्नी भी होती, तब भी वह पति की भावनाओं का आदर ही करती।


"नौकरी चली भी गई, तो क्या फर्क पड़ता है। मैं ग्रेजुएट हूँ। हट्टा-कट्टा हूँ। कोई भी काम कर सकता हूँ। तुम इस बात से निश्चिन्त रहो, मैं गृहस्थी चला लूँगा, पुलिस की नौकरी के बिना भी।"

"मैं यह कब कह रही हूँ विजय ! मेरे लिए आपका हर फैसला उचित है।"

"थैंक्यू वैशाली ! कम-से-कम तुम मेरी भावनाओं को तो समझ ही लेती हो।"

"काश ऐसी समझ सीमा भाभी में भी होती, तो यह सब क्यों होता ?"

"छोड़ो, इस टॉपिक को। रोमेश अब सिर्फ एक मुजरिम है। इसके अलावा हमारा उससे कोई रिश्ता नहीं। मैं उसे अरेस्ट कर ही लूँगा और कोर्ट में सजा करा कर ही दम लूँगा।"

विजय ने संभावित स्थानों पर ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू किए, परन्तु रोमेश हाथ नहीं आया। अब रोमेश के फोन आने भी बन्द हो गये थे। विजय ने टेलीफोन एक्सचेंज से मिलकर ऐसी व्यवस्था की हुई थी कि रोमेश अगर एक भी फोन करता, तो पुलिस वहाँ तुरन्त पहुँच जाती। इस मामले को लेकर पूरा कंट्रोल रूम और प्रत्येक थाना उसे अच्छी तरह सहयोग कर रहा था।

शायद रोमेश को भी इस बात की भनक लग गई थी कि उसे पकड़ने के लिए जबरदस्त जाल बिछा दिया गया है। इसलिये वह खामोश हो गया था।





जारी रहेगा…....✍️✍️
बहुत ही मस्त और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गया
रोमेश ने जे एन का कत्ल कर पुरे शहर में सनसनाटी फैला दी लोगों के सामने मरहुम जे एन का असली चरित्र ला कर रख दिया बहुत से लोग अब रोमेश को हिरो भी समझने लगे वही विजय के साथ भी ऑखमिचौली का खेल खेल रहा है
विजय ने रोमेश को ना पकड पाने पर इस्तिफा देने का कहकर उसको पकडने का पुरा जाल फैला दिया है तो देखते हैं आगे क्या विजय रोमेश को गिरफ्तार कर पाता हैं या नहीं
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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