चाची का जोबन
भेष जेठानी सा रचकर, पहुंची मैं जेठ के घर।
शगुन था भतीजी का, सजी मैं जैसे मेरा हो स्वयंवर।
ब्लाउज था छोटा ना संभाल पाया चूचियों का भार।
जिन्हें देख देख जेठ जी ने खूब टपकाई लार।
हुई शगुन की बात पक्की, पर चूत में मूत का हाहाकार।
टंकी खाली कर जो निकली, पिछवाड़े पर हुआ लोड़े का वार।
चौंकी में पलटी तुरंत, तो पाया जेठ ने ली बाजी मार।
समझ जेठानी मसल गया रे, मारे शर्म हुई लाचार।
भतीजा भी कुछ जेठ जैसा, जो मौके पर दे चौका मार,
आई थी जब भतीजा था, अब बन गया मेरा यार।
नई ब्रा से ललचाकर, ले गयो दुकान पीछे के द्वार।
होंठ चूसे ऊपर नीचे के, पियो दूध मेरो ब्लाउज उतार,
खूब चूस वायो गन्ना अपना, फिर मुंह पे मेरे मारी धार।
सबक सीख लिया मैंने, जेठ घर जाकर इस बार।
गांड और दूध ढक कर जाओ, जब ठरकी हों रिश्तेदार।
बहुत मनमोहक अपडेट दोस्त, रिश्ता सोनल का होने गया था और बन गया राज और चाची का और तो और चाची का मुंह मीठा भी करा दिया राज ने, वैसे रंगीलाल ने गलती से तो नहीं पकड़ा होगा पीछे से तो चाची की ज्यादा दिन खैर नहीं।
आगे के इंतज़ार में।।