• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance फ़िर से

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,392
24,538
159
दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)

अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40; अपडेट 41; अपडेट 42; अपडेट 43; अपडेट 44; अपडेट 45; अपडेट 46; अपडेट 47; अपडेट 48; अपडेट 49; अपडेट 50; अपडेट 51; अपडेट 52; अपडेट 53; अपडेट 54; अपडेट 55; अपडेट 56; अपडेट 57; अपडेट 58; अपडेट 59; अपडेट 60; अपडेट 61; अपडेट 62; अपडेट 63; अपडेट 64; अपडेट 65; अपडेट 66; अपडेट 67; अपडेट 68; अपडेट 69; अपडेट 70; अपडेट 71; अपडेट 72; अपडेट 73; अपडेट 74; अपडेट 75; अपडेट 76; अपडेट 77; अपडेट 78; अपडेट 79; अपडेट 80; अपडेट 81; अपडेट 82; अपडेट 83; अपडेट 84;
 
Last edited:

Ajju Landwalia

Well-Known Member
3,935
15,127
159
अपडेट 46


जब खुशियाँ मन में होती हैं, तो उनको दिखाने के लिए त्यौहारों का मुँह नहीं ताकना पड़ता। वैसे भी त्यौहार मन की प्रसन्नता दिखाने का बहाना ही हैं! दोनों परिवारों में सभी लोग बहुत ख़ुश थे, इसलिए दोनों परिवारों के लिए इस बार दीपावली भी समय से पहले ही आ गई। घर की साज सज्जा त्यौहार के एक सप्ताह पहले से ही पूरी कर दी गई थी। कमोवेश यही हाल राणा परिवार के घर का था। वहाँ भी यही सब चल रहा था। शादी के लिए कपड़ों, गहनों की ख़रीद फ़रोख़्त, न्यौता, बंदोबस्त इत्यादि अनगिनत आवश्यक कार्य सब चल रहे थे। अनगिनत कार्य अवश्य थे, लेकिन दुःसाध्य नहीं।

इन सभी कामों की व्यस्तता के बीच अशोक और किरण जी ने एक अन्य महत्वपूर्ण परिवार को भुलाया नहीं था। एक बार रूचि के माता पिता को अशोक जी ने दिन में घरों से बाहर मिलने के लिए आमंत्रित किया। किरण जी भी वहाँ मौजूद थीं। दरअसल वो चाहते थे कि बच्चों की अनुपस्थिति में एक बार रूचि के माँ बाप से बात हो सके। इसीलिए सप्ताह के बीच का एक दिन चुना गया जब रूचि और अजय कॉलेज में रहें। दिल्ली के एक पाँच सितारा होटल में वो चारों मिले। सामान्य शिष्टाचार की बातों के बाद रूचि के पिता जी ने अशोक जी से कहा,

“भाई साहब, ऐसे अचानक से... हमको बाहर मिलने को क्यों कहा आपने?”

“भाई साहब... भाभी जी... बात थोड़ी सेंसिटिव है।” अशोक जी ने बताया, “आपको न जाने कैसा लगे... लेकिन यह बात करनी ज़रूरी थी।”

“हाँ हाँ भाई साहब,” रूचि की माँ बोलीं, “कहिए न?”

अब तक वो दोनों भी समझ गए थे कि क्या बातें होने वाली हैं। लेकिन अति-उत्साह में आ कर वो कोई ऐसी बात नहीं कहना चाहते थे कि स्वयं से बनती हुई बात बिगड़ जाए।

“जी वो,” अशोक जी ने किरण जी की तरफ़ देखा, तो उन्होंने धीरे से, एक बार ‘हाँ’ में सर हिला कर जैसे उनको अपनी बात कहने की इजाज़त दी हो, “हमको आपकी बिटिया रूचि बहुत पसंद है... हम चाहते हैं कि अपने बेटे के लिए उसको फ़िक्स कर लें!”

“क्या सच में भाई साहब?” रूचि की माँ इस प्रस्ताव पर चहक उठीं।

उनको उम्मीद तो थी कि शायद आज ऐसी कोई बात उठ सकती है। लेकिन फिर भी, जब यह बात उठी, तो उनकी प्रसन्नता की कोई सीमा न रही। लोग बड़ी बड़ी ख़ुशियों के इंतज़ार में पूरी उम्र गुज़ार देते हैं, और यहाँ उनको सब कुछ यूँ अनायास ही मिल रहा था! अपनी एकलौती बेटी के लिए जिस तरह का बढ़िया पति और अच्छे प्यार करने वाले सास ससुर जैसे उनको चाहिए थे, वो उनको मिल गए थे!

रूचि की माँ उसकी केवल माँ ही नहीं थीं - वो उसकी एक समझदार गाइड भी थीं। वो न केवल उसका मार्गदर्शन करती रहती थीं, बल्कि जीवन की महत्वपूर्ण बातें वो रूचि को सिखाती रहती थीं। उनका मानना था कि लड़के लड़कियों दोनों को ही अपना जीवन जीने के लिए हर आवश्यक कौशल का ज्ञान होना चाहिए। पढ़ाई-लिखाई आवश्यक है धनोपार्जन के लिए; गृह-कार्य कौशल आवश्यक है अपना घर सम्हालने के लिए; और सेक्स के बारे में समुचित ज्ञान आवश्यक है एक स्वस्थ विवाहित जीवन जीने के लिए। पोर्नोग्राफी पढ़ कर या देख कर बच्चे अपने साथी से सेक्स को ले कर अनुचित अपेक्षाएँ न रखने लगें। वो रूचि को अच्छा भोजन और व्यायाम करने को प्रोत्साहित करती रहती थीं, जिससे उसका स्वास्थ्य अच्छा रहे। रूचि भी यह सब बातें समझती थी और अपनी माँ की हर बात मानती थी। उनसे कुछ छुपाती नहीं थी।

उस दिन जब रूचि और अजय के बीच में अंतरंगता बहुत तेजी से बढ़ी थी, तो रूचि ने अपनी माँ को उन दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ, वो सब कुछ सच सच बता दिया। प्यार के इज़हार के साथ ही रूचि का अजय के सामने पूरी तरह से नग्न होना... उनको सही नहीं लगा। सब सुन कर उनको चिंता तो बहुत हुई, लेकिन उनको यह जान कर अच्छा भी लगा कि अजय ने इस बात का कोई गलत फ़ायदा नहीं उठाया। बल्कि उसने रूचि को ओरल प्लेज़र दे कर उसको उस सुख के अवगत कराया था, जो उसको भविष्य में शायद कभी मिलता। इतनी कम उम्र में कोई लड़का अपनी प्रेमिका को ले कर इतना संवेदनशील हो सकता है, यह जान कर उनको अजय और भी पसंद आने लगा। उनको अपने पति के साथ अकेले होने का पहला मौका याद आ गया। दोनों ने प्रेम विवाह किया था, और अजय का व्यवहार भी उनके पति जैसा ही था। अजय के लिए रूचि का आनंद पहले था, और खुद का बाद में! ठीक उनके पति की ही तरह!

उनको इस बात से बहुत तसल्ली भी हुई कि उस दी के बाद से अजय और रूचि की ‘दोस्ती’ और गाढ़ी हो गई थी, और साथ ही उन दोनों की अपनी अपनी ज़िम्मेदारियों को ले कर गंभीरता में कोई अंतर नहीं आया था! नहीं तो ऐसा होता है न कि किसी अप्राप्य वस्तु को पा लेने के बाद उससे मन उचट जाता है। अजय और रूचि को देख कर ऐसा नहीं लगता था कि दोनों का सम्बन्ध केवल शारीरिक आकर्षण पर टिका हुआ था। दोनों युवा थे, तो जाहिर सी बात है कि इतना समय साथ में बिताने के बाद दोनों में आकर्षण होगा ही। लेकिन वो दोनों एक दूसरे का साथ बहुत पसंद भी करते थे। अजय भी उसके संग ख़ुश दिखता था। पिछले कुछ दिनों में रूचि की माँ ने नोटिस किया था - अब उनके साथ आमना सामना होने पर अजय थोड़ा शर्मा जाता था। उसको ऐसे देख कर उनको अजय बहुत क्यूट लगता।

उन्होंने महसूस किया था कि रूचि में कुछ कुछ बदल गया था... रूचि अब अधिक खुश लगती थी और उसमें अब पहले से भी कहीं अधिक आत्मविश्वास दिखाई देने लगा था। वो अब सुरुचिपूर्ण कपड़े पहनने लग गई थी। वो अब हल्के रंग की लिपस्टिक, काजल और परफ़्यूम का हल्का इस्तेमाल भी करने लग गई थी। उसका यह बदलाव उसकी माँ को अच्छा लगता। ‘अच्छी बात है,’ उन्होंने सोचा, ‘बेटी अब सयानी भी तो हो गई है... ऐसे चेंजेस तो आने ही चाहिए’! उन्होंने मन ही मन सोचा कि रूचि के लिए मनोहर अधोवस्त्र ख़रीदने हैं। अंतरंगता के क्षणों में वो अजय को पसंद आनी चाहिए। अपनी इस सोच पर वो मन ही मन मुस्कुरा उठीं थीं...

दोनों को साथ में देखना अब रूचि के माँ बाप दोनों को सुहाता था। इसी बीच किरण जी ने रूचि के मम्मी पापा से रूचि को छोटी दीपावली पर उनके घर रुकने के लिए निवेदन भी किया था, जिसका इंकार वो न कर सके! लेकिन आज की बात से दोनों परिवारों के बीच का सम्बन्ध ही बदल गया था।

“भाभी जी, अगर रूचि हमारे घर की बेटी बनेगी, तो हमको बहुत संतोष होगा... बहुत ख़ुशी मिलेगी!”

“अहोभाग्य हमारे!” रूचि की माँ ने हाथ जोड़ दिए, “कि आपने हमारी बेटी को अपने बेटे के लिए पसंद किया!”

“अरे ऐसे न कहिए...” अशोक जी ने हाथों को जोड़ कर कहा, “बेटियाँ तो घरों की रौनक होती हैं!”

“आपको कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं?” किरण जी ने बड़ी उम्मीद से कहा।

“कोई ऑब्जेक्शन नहीं भाभी जी,” रूचि के पिता जी ने कहा, “आपने कह दिया... आपकी इच्छा हमारे सर आँखों पर! अब से रूचि आपकी ही अमानत है!”

“क्या बात है भाई साहब,” कह कर अशोक जी उठे, और उठ कर उन्होंने रूचि के पापा को गले से लगा लिया, “दिल खुश हो गया!”

उसकी माँ भी किरण जी से गले मिलीं।

“बच्चों को कब बताना है?” रूचि के पापा ने पूछा।

“बता देंगे,” रूचि की माँ बोलीं, “वैसे भी, दोनों के लिए सरप्राइज़ रहेगा!”

“हा हा हा हा! हाँ बहन जी! यह अच्छी बात है!” अशोक जी बोले, “वैसे यह अच्छी बात है कि हमारे बच्चों ने हमसे कुछ छुपाया नहीं!”

“क्यों छुपाएँगे?” रूचि के पिता जी बोले, “उनको हम पर विश्वास है और हमारे लिए रिस्पेक्ट भी!”

सभी इस बात पर घमंड से मुस्कुराए! बात तो सही थी।

“एक और बात थी...” अशोक जी बोले।

“वो क्या भाई साहब?”

“दोनों बच्चे बाहर जा कर हायर एजुकेशन लेना चाहते हैं... मैं... हम बस इतना चाहते हैं कि दोनों एक ही कंट्री में रहें... एक ही यूनिवर्सिटी में! साथ में!”

“जी बिल्कुल भाई साहब,” रूचि के पापा बोले, “ये बढ़िया बात है और हमको भी इस बात का पता है।”

“जी भाई साहब,” रूचि की माँ बोलीं, “आप चिंता न करें! हमारा सब कुछ बच्चों के लिए ही तो है!”

अशोक जी मुस्कुराए। वो समझ गए कि रूचि के माता पिता उनकी बात का मर्म नहीं समझ सके।

“हाँ भाई साहब,” रूचि के पापा बोले, “हमने रूचि की पढ़ाई लिखाई और शादी के लिए एनफ जोड़ा हुआ है। लेकिन अजय और रूचि की पढ़ाई पर ख़र्च करना अच्छा है!”

“नहीं नहीं... आप गलत समझ गए,” अशोक जी बोले, “मैं तो ये कह रहा था कि आप बिटिया की पढ़ाई की चिंता न करें! हमारे लिए अजय और उसमें अंतर नहीं है... उसका ख़र्च भी हम ही उठाएँगे!”

यह एक आश्चर्य की बात थी। सच में रूचि के माँ बाप ने सोचा था कि इशारों में अजय के पिता जी ने दहेज़ की बात कह दी थी। लेकिन यह तो पूरी तरह से उलटी बात बोल दी उन्होंने। वो भावुक हो गए।

“भाई साहब,” कहते कहते रूचि के पिता जी का गला भर आया, “कितनी बड़ी बात कह दी आपने! लेकिन नहीं... हमारा सब कुछ हमारे बच्चों का ही है!”

“जी हाँ, बिलकुल है! इसीलिए तो कह रहे हैं हम...”

कुछ देर तक इसी बात पर बहस के बाद रूचि के पिताजी बोले, “... भाई साहब, चलिए... न आपकी और न हमारी... हम मिल कर दोनों बच्चों की पढ़ाई लिखाई, शादी... सबका बंदोबस्त करेंगे! अब ठीक है?”

“हा हा हा! अच्छी बात है!” अशोक जी हँसते हुए बोले, “हम नहीं करेंगे तो और कौन करेगा हमारे बच्चों के लिए!”

“बहन जी,” किरण जी जैसे कुछ याद कर के बोल पड़ीं, “दिवाली पर रूचि बिटिया अगर...”

“अरे बिल्कुल बहन जी,” रूचि की माँ बोलीं, “आपकी ही बेटी है अब वो! ... जब भी आप कहें, उसको आपके यहाँ भेज देंगे!”

“आज?” किरण जी ने हँसते हुए, आशापूर्वक पूछा।

“हा हा हा हा!” उनकी इस बात पर सभी हँसने लगे।

“बहन जी,” रूचि के पापा बोले, “अगर आप यही चाहती हैं, तो आज ही भेज देंगे! ... वैसे भी दो तीन दिनों में बच्चों की छुट्टियाँ शुरू हो जाएँगी!”

**

Bahut hi shandar update he avsji Bhai,

Keep rocking Bro
 

parkas

Well-Known Member
30,629
65,980
303
अपडेट 46


जब खुशियाँ मन में होती हैं, तो उनको दिखाने के लिए त्यौहारों का मुँह नहीं ताकना पड़ता। वैसे भी त्यौहार मन की प्रसन्नता दिखाने का बहाना ही हैं! दोनों परिवारों में सभी लोग बहुत ख़ुश थे, इसलिए दोनों परिवारों के लिए इस बार दीपावली भी समय से पहले ही आ गई। घर की साज सज्जा त्यौहार के एक सप्ताह पहले से ही पूरी कर दी गई थी। कमोवेश यही हाल राणा परिवार के घर का था। वहाँ भी यही सब चल रहा था। शादी के लिए कपड़ों, गहनों की ख़रीद फ़रोख़्त, न्यौता, बंदोबस्त इत्यादि अनगिनत आवश्यक कार्य सब चल रहे थे। अनगिनत कार्य अवश्य थे, लेकिन दुःसाध्य नहीं।

इन सभी कामों की व्यस्तता के बीच अशोक और किरण जी ने एक अन्य महत्वपूर्ण परिवार को भुलाया नहीं था। एक बार रूचि के माता पिता को अशोक जी ने दिन में घरों से बाहर मिलने के लिए आमंत्रित किया। किरण जी भी वहाँ मौजूद थीं। दरअसल वो चाहते थे कि बच्चों की अनुपस्थिति में एक बार रूचि के माँ बाप से बात हो सके। इसीलिए सप्ताह के बीच का एक दिन चुना गया जब रूचि और अजय कॉलेज में रहें। दिल्ली के एक पाँच सितारा होटल में वो चारों मिले। सामान्य शिष्टाचार की बातों के बाद रूचि के पिता जी ने अशोक जी से कहा,

“भाई साहब, ऐसे अचानक से... हमको बाहर मिलने को क्यों कहा आपने?”

“भाई साहब... भाभी जी... बात थोड़ी सेंसिटिव है।” अशोक जी ने बताया, “आपको न जाने कैसा लगे... लेकिन यह बात करनी ज़रूरी थी।”

“हाँ हाँ भाई साहब,” रूचि की माँ बोलीं, “कहिए न?”

अब तक वो दोनों भी समझ गए थे कि क्या बातें होने वाली हैं। लेकिन अति-उत्साह में आ कर वो कोई ऐसी बात नहीं कहना चाहते थे कि स्वयं से बनती हुई बात बिगड़ जाए।

“जी वो,” अशोक जी ने किरण जी की तरफ़ देखा, तो उन्होंने धीरे से, एक बार ‘हाँ’ में सर हिला कर जैसे उनको अपनी बात कहने की इजाज़त दी हो, “हमको आपकी बिटिया रूचि बहुत पसंद है... हम चाहते हैं कि अपने बेटे के लिए उसको फ़िक्स कर लें!”

“क्या सच में भाई साहब?” रूचि की माँ इस प्रस्ताव पर चहक उठीं।

उनको उम्मीद तो थी कि शायद आज ऐसी कोई बात उठ सकती है। लेकिन फिर भी, जब यह बात उठी, तो उनकी प्रसन्नता की कोई सीमा न रही। लोग बड़ी बड़ी ख़ुशियों के इंतज़ार में पूरी उम्र गुज़ार देते हैं, और यहाँ उनको सब कुछ यूँ अनायास ही मिल रहा था! अपनी एकलौती बेटी के लिए जिस तरह का बढ़िया पति और अच्छे प्यार करने वाले सास ससुर जैसे उनको चाहिए थे, वो उनको मिल गए थे!

रूचि की माँ उसकी केवल माँ ही नहीं थीं - वो उसकी एक समझदार गाइड भी थीं। वो न केवल उसका मार्गदर्शन करती रहती थीं, बल्कि जीवन की महत्वपूर्ण बातें वो रूचि को सिखाती रहती थीं। उनका मानना था कि लड़के लड़कियों दोनों को ही अपना जीवन जीने के लिए हर आवश्यक कौशल का ज्ञान होना चाहिए। पढ़ाई-लिखाई आवश्यक है धनोपार्जन के लिए; गृह-कार्य कौशल आवश्यक है अपना घर सम्हालने के लिए; और सेक्स के बारे में समुचित ज्ञान आवश्यक है एक स्वस्थ विवाहित जीवन जीने के लिए। पोर्नोग्राफी पढ़ कर या देख कर बच्चे अपने साथी से सेक्स को ले कर अनुचित अपेक्षाएँ न रखने लगें। वो रूचि को अच्छा भोजन और व्यायाम करने को प्रोत्साहित करती रहती थीं, जिससे उसका स्वास्थ्य अच्छा रहे। रूचि भी यह सब बातें समझती थी और अपनी माँ की हर बात मानती थी। उनसे कुछ छुपाती नहीं थी।

उस दिन जब रूचि और अजय के बीच में अंतरंगता बहुत तेजी से बढ़ी थी, तो रूचि ने अपनी माँ को उन दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ, वो सब कुछ सच सच बता दिया। प्यार के इज़हार के साथ ही रूचि का अजय के सामने पूरी तरह से नग्न होना... उनको सही नहीं लगा। सब सुन कर उनको चिंता तो बहुत हुई, लेकिन उनको यह जान कर अच्छा भी लगा कि अजय ने इस बात का कोई गलत फ़ायदा नहीं उठाया। बल्कि उसने रूचि को ओरल प्लेज़र दे कर उसको उस सुख के अवगत कराया था, जो उसको भविष्य में शायद कभी मिलता। इतनी कम उम्र में कोई लड़का अपनी प्रेमिका को ले कर इतना संवेदनशील हो सकता है, यह जान कर उनको अजय और भी पसंद आने लगा। उनको अपने पति के साथ अकेले होने का पहला मौका याद आ गया। दोनों ने प्रेम विवाह किया था, और अजय का व्यवहार भी उनके पति जैसा ही था। अजय के लिए रूचि का आनंद पहले था, और खुद का बाद में! ठीक उनके पति की ही तरह!

उनको इस बात से बहुत तसल्ली भी हुई कि उस दी के बाद से अजय और रूचि की ‘दोस्ती’ और गाढ़ी हो गई थी, और साथ ही उन दोनों की अपनी अपनी ज़िम्मेदारियों को ले कर गंभीरता में कोई अंतर नहीं आया था! नहीं तो ऐसा होता है न कि किसी अप्राप्य वस्तु को पा लेने के बाद उससे मन उचट जाता है। अजय और रूचि को देख कर ऐसा नहीं लगता था कि दोनों का सम्बन्ध केवल शारीरिक आकर्षण पर टिका हुआ था। दोनों युवा थे, तो जाहिर सी बात है कि इतना समय साथ में बिताने के बाद दोनों में आकर्षण होगा ही। लेकिन वो दोनों एक दूसरे का साथ बहुत पसंद भी करते थे। अजय भी उसके संग ख़ुश दिखता था। पिछले कुछ दिनों में रूचि की माँ ने नोटिस किया था - अब उनके साथ आमना सामना होने पर अजय थोड़ा शर्मा जाता था। उसको ऐसे देख कर उनको अजय बहुत क्यूट लगता।

उन्होंने महसूस किया था कि रूचि में कुछ कुछ बदल गया था... रूचि अब अधिक खुश लगती थी और उसमें अब पहले से भी कहीं अधिक आत्मविश्वास दिखाई देने लगा था। वो अब सुरुचिपूर्ण कपड़े पहनने लग गई थी। वो अब हल्के रंग की लिपस्टिक, काजल और परफ़्यूम का हल्का इस्तेमाल भी करने लग गई थी। उसका यह बदलाव उसकी माँ को अच्छा लगता। ‘अच्छी बात है,’ उन्होंने सोचा, ‘बेटी अब सयानी भी तो हो गई है... ऐसे चेंजेस तो आने ही चाहिए’! उन्होंने मन ही मन सोचा कि रूचि के लिए मनोहर अधोवस्त्र ख़रीदने हैं। अंतरंगता के क्षणों में वो अजय को पसंद आनी चाहिए। अपनी इस सोच पर वो मन ही मन मुस्कुरा उठीं थीं...

दोनों को साथ में देखना अब रूचि के माँ बाप दोनों को सुहाता था। इसी बीच किरण जी ने रूचि के मम्मी पापा से रूचि को छोटी दीपावली पर उनके घर रुकने के लिए निवेदन भी किया था, जिसका इंकार वो न कर सके! लेकिन आज की बात से दोनों परिवारों के बीच का सम्बन्ध ही बदल गया था।

“भाभी जी, अगर रूचि हमारे घर की बेटी बनेगी, तो हमको बहुत संतोष होगा... बहुत ख़ुशी मिलेगी!”

“अहोभाग्य हमारे!” रूचि की माँ ने हाथ जोड़ दिए, “कि आपने हमारी बेटी को अपने बेटे के लिए पसंद किया!”

“अरे ऐसे न कहिए...” अशोक जी ने हाथों को जोड़ कर कहा, “बेटियाँ तो घरों की रौनक होती हैं!”

“आपको कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं?” किरण जी ने बड़ी उम्मीद से कहा।

“कोई ऑब्जेक्शन नहीं भाभी जी,” रूचि के पिता जी ने कहा, “आपने कह दिया... आपकी इच्छा हमारे सर आँखों पर! अब से रूचि आपकी ही अमानत है!”

“क्या बात है भाई साहब,” कह कर अशोक जी उठे, और उठ कर उन्होंने रूचि के पापा को गले से लगा लिया, “दिल खुश हो गया!”

उसकी माँ भी किरण जी से गले मिलीं।

“बच्चों को कब बताना है?” रूचि के पापा ने पूछा।

“बता देंगे,” रूचि की माँ बोलीं, “वैसे भी, दोनों के लिए सरप्राइज़ रहेगा!”

“हा हा हा हा! हाँ बहन जी! यह अच्छी बात है!” अशोक जी बोले, “वैसे यह अच्छी बात है कि हमारे बच्चों ने हमसे कुछ छुपाया नहीं!”

“क्यों छुपाएँगे?” रूचि के पिता जी बोले, “उनको हम पर विश्वास है और हमारे लिए रिस्पेक्ट भी!”

सभी इस बात पर घमंड से मुस्कुराए! बात तो सही थी।

“एक और बात थी...” अशोक जी बोले।

“वो क्या भाई साहब?”

“दोनों बच्चे बाहर जा कर हायर एजुकेशन लेना चाहते हैं... मैं... हम बस इतना चाहते हैं कि दोनों एक ही कंट्री में रहें... एक ही यूनिवर्सिटी में! साथ में!”

“जी बिल्कुल भाई साहब,” रूचि के पापा बोले, “ये बढ़िया बात है और हमको भी इस बात का पता है।”

“जी भाई साहब,” रूचि की माँ बोलीं, “आप चिंता न करें! हमारा सब कुछ बच्चों के लिए ही तो है!”

अशोक जी मुस्कुराए। वो समझ गए कि रूचि के माता पिता उनकी बात का मर्म नहीं समझ सके।

“हाँ भाई साहब,” रूचि के पापा बोले, “हमने रूचि की पढ़ाई लिखाई और शादी के लिए एनफ जोड़ा हुआ है। लेकिन अजय और रूचि की पढ़ाई पर ख़र्च करना अच्छा है!”

“नहीं नहीं... आप गलत समझ गए,” अशोक जी बोले, “मैं तो ये कह रहा था कि आप बिटिया की पढ़ाई की चिंता न करें! हमारे लिए अजय और उसमें अंतर नहीं है... उसका ख़र्च भी हम ही उठाएँगे!”

यह एक आश्चर्य की बात थी। सच में रूचि के माँ बाप ने सोचा था कि इशारों में अजय के पिता जी ने दहेज़ की बात कह दी थी। लेकिन यह तो पूरी तरह से उलटी बात बोल दी उन्होंने। वो भावुक हो गए।

“भाई साहब,” कहते कहते रूचि के पिता जी का गला भर आया, “कितनी बड़ी बात कह दी आपने! लेकिन नहीं... हमारा सब कुछ हमारे बच्चों का ही है!”

“जी हाँ, बिलकुल है! इसीलिए तो कह रहे हैं हम...”

कुछ देर तक इसी बात पर बहस के बाद रूचि के पिताजी बोले, “... भाई साहब, चलिए... न आपकी और न हमारी... हम मिल कर दोनों बच्चों की पढ़ाई लिखाई, शादी... सबका बंदोबस्त करेंगे! अब ठीक है?”

“हा हा हा! अच्छी बात है!” अशोक जी हँसते हुए बोले, “हम नहीं करेंगे तो और कौन करेगा हमारे बच्चों के लिए!”

“बहन जी,” किरण जी जैसे कुछ याद कर के बोल पड़ीं, “दिवाली पर रूचि बिटिया अगर...”

“अरे बिल्कुल बहन जी,” रूचि की माँ बोलीं, “आपकी ही बेटी है अब वो! ... जब भी आप कहें, उसको आपके यहाँ भेज देंगे!”

“आज?” किरण जी ने हँसते हुए, आशापूर्वक पूछा।

“हा हा हा हा!” उनकी इस बात पर सभी हँसने लगे।

“बहन जी,” रूचि के पापा बोले, “अगर आप यही चाहती हैं, तो आज ही भेज देंगे! ... वैसे भी दो तीन दिनों में बच्चों की छुट्टियाँ शुरू हो जाएँगी!”

**
Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai....
Nice and lovely update....
 

Surajs13

New Member
18
30
28
Thank you for this update
This is one of the those stories i want to read daily but that's not possible
Still i appreciate your dedication that you give us update whenever possible.

I hope ajay, ruchi, maya and kamal will bring emotions and joy in this story.
Thanks again 👍🏻
 

park

Well-Known Member
12,718
15,007
228
अपडेट 46


जब खुशियाँ मन में होती हैं, तो उनको दिखाने के लिए त्यौहारों का मुँह नहीं ताकना पड़ता। वैसे भी त्यौहार मन की प्रसन्नता दिखाने का बहाना ही हैं! दोनों परिवारों में सभी लोग बहुत ख़ुश थे, इसलिए दोनों परिवारों के लिए इस बार दीपावली भी समय से पहले ही आ गई। घर की साज सज्जा त्यौहार के एक सप्ताह पहले से ही पूरी कर दी गई थी। कमोवेश यही हाल राणा परिवार के घर का था। वहाँ भी यही सब चल रहा था। शादी के लिए कपड़ों, गहनों की ख़रीद फ़रोख़्त, न्यौता, बंदोबस्त इत्यादि अनगिनत आवश्यक कार्य सब चल रहे थे। अनगिनत कार्य अवश्य थे, लेकिन दुःसाध्य नहीं।

इन सभी कामों की व्यस्तता के बीच अशोक और किरण जी ने एक अन्य महत्वपूर्ण परिवार को भुलाया नहीं था। एक बार रूचि के माता पिता को अशोक जी ने दिन में घरों से बाहर मिलने के लिए आमंत्रित किया। किरण जी भी वहाँ मौजूद थीं। दरअसल वो चाहते थे कि बच्चों की अनुपस्थिति में एक बार रूचि के माँ बाप से बात हो सके। इसीलिए सप्ताह के बीच का एक दिन चुना गया जब रूचि और अजय कॉलेज में रहें। दिल्ली के एक पाँच सितारा होटल में वो चारों मिले। सामान्य शिष्टाचार की बातों के बाद रूचि के पिता जी ने अशोक जी से कहा,

“भाई साहब, ऐसे अचानक से... हमको बाहर मिलने को क्यों कहा आपने?”

“भाई साहब... भाभी जी... बात थोड़ी सेंसिटिव है।” अशोक जी ने बताया, “आपको न जाने कैसा लगे... लेकिन यह बात करनी ज़रूरी थी।”

“हाँ हाँ भाई साहब,” रूचि की माँ बोलीं, “कहिए न?”

अब तक वो दोनों भी समझ गए थे कि क्या बातें होने वाली हैं। लेकिन अति-उत्साह में आ कर वो कोई ऐसी बात नहीं कहना चाहते थे कि स्वयं से बनती हुई बात बिगड़ जाए।

“जी वो,” अशोक जी ने किरण जी की तरफ़ देखा, तो उन्होंने धीरे से, एक बार ‘हाँ’ में सर हिला कर जैसे उनको अपनी बात कहने की इजाज़त दी हो, “हमको आपकी बिटिया रूचि बहुत पसंद है... हम चाहते हैं कि अपने बेटे के लिए उसको फ़िक्स कर लें!”

“क्या सच में भाई साहब?” रूचि की माँ इस प्रस्ताव पर चहक उठीं।

उनको उम्मीद तो थी कि शायद आज ऐसी कोई बात उठ सकती है। लेकिन फिर भी, जब यह बात उठी, तो उनकी प्रसन्नता की कोई सीमा न रही। लोग बड़ी बड़ी ख़ुशियों के इंतज़ार में पूरी उम्र गुज़ार देते हैं, और यहाँ उनको सब कुछ यूँ अनायास ही मिल रहा था! अपनी एकलौती बेटी के लिए जिस तरह का बढ़िया पति और अच्छे प्यार करने वाले सास ससुर जैसे उनको चाहिए थे, वो उनको मिल गए थे!

रूचि की माँ उसकी केवल माँ ही नहीं थीं - वो उसकी एक समझदार गाइड भी थीं। वो न केवल उसका मार्गदर्शन करती रहती थीं, बल्कि जीवन की महत्वपूर्ण बातें वो रूचि को सिखाती रहती थीं। उनका मानना था कि लड़के लड़कियों दोनों को ही अपना जीवन जीने के लिए हर आवश्यक कौशल का ज्ञान होना चाहिए। पढ़ाई-लिखाई आवश्यक है धनोपार्जन के लिए; गृह-कार्य कौशल आवश्यक है अपना घर सम्हालने के लिए; और सेक्स के बारे में समुचित ज्ञान आवश्यक है एक स्वस्थ विवाहित जीवन जीने के लिए। पोर्नोग्राफी पढ़ कर या देख कर बच्चे अपने साथी से सेक्स को ले कर अनुचित अपेक्षाएँ न रखने लगें। वो रूचि को अच्छा भोजन और व्यायाम करने को प्रोत्साहित करती रहती थीं, जिससे उसका स्वास्थ्य अच्छा रहे। रूचि भी यह सब बातें समझती थी और अपनी माँ की हर बात मानती थी। उनसे कुछ छुपाती नहीं थी।

उस दिन जब रूचि और अजय के बीच में अंतरंगता बहुत तेजी से बढ़ी थी, तो रूचि ने अपनी माँ को उन दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ, वो सब कुछ सच सच बता दिया। प्यार के इज़हार के साथ ही रूचि का अजय के सामने पूरी तरह से नग्न होना... उनको सही नहीं लगा। सब सुन कर उनको चिंता तो बहुत हुई, लेकिन उनको यह जान कर अच्छा भी लगा कि अजय ने इस बात का कोई गलत फ़ायदा नहीं उठाया। बल्कि उसने रूचि को ओरल प्लेज़र दे कर उसको उस सुख के अवगत कराया था, जो उसको भविष्य में शायद कभी मिलता। इतनी कम उम्र में कोई लड़का अपनी प्रेमिका को ले कर इतना संवेदनशील हो सकता है, यह जान कर उनको अजय और भी पसंद आने लगा। उनको अपने पति के साथ अकेले होने का पहला मौका याद आ गया। दोनों ने प्रेम विवाह किया था, और अजय का व्यवहार भी उनके पति जैसा ही था। अजय के लिए रूचि का आनंद पहले था, और खुद का बाद में! ठीक उनके पति की ही तरह!

उनको इस बात से बहुत तसल्ली भी हुई कि उस दी के बाद से अजय और रूचि की ‘दोस्ती’ और गाढ़ी हो गई थी, और साथ ही उन दोनों की अपनी अपनी ज़िम्मेदारियों को ले कर गंभीरता में कोई अंतर नहीं आया था! नहीं तो ऐसा होता है न कि किसी अप्राप्य वस्तु को पा लेने के बाद उससे मन उचट जाता है। अजय और रूचि को देख कर ऐसा नहीं लगता था कि दोनों का सम्बन्ध केवल शारीरिक आकर्षण पर टिका हुआ था। दोनों युवा थे, तो जाहिर सी बात है कि इतना समय साथ में बिताने के बाद दोनों में आकर्षण होगा ही। लेकिन वो दोनों एक दूसरे का साथ बहुत पसंद भी करते थे। अजय भी उसके संग ख़ुश दिखता था। पिछले कुछ दिनों में रूचि की माँ ने नोटिस किया था - अब उनके साथ आमना सामना होने पर अजय थोड़ा शर्मा जाता था। उसको ऐसे देख कर उनको अजय बहुत क्यूट लगता।

उन्होंने महसूस किया था कि रूचि में कुछ कुछ बदल गया था... रूचि अब अधिक खुश लगती थी और उसमें अब पहले से भी कहीं अधिक आत्मविश्वास दिखाई देने लगा था। वो अब सुरुचिपूर्ण कपड़े पहनने लग गई थी। वो अब हल्के रंग की लिपस्टिक, काजल और परफ़्यूम का हल्का इस्तेमाल भी करने लग गई थी। उसका यह बदलाव उसकी माँ को अच्छा लगता। ‘अच्छी बात है,’ उन्होंने सोचा, ‘बेटी अब सयानी भी तो हो गई है... ऐसे चेंजेस तो आने ही चाहिए’! उन्होंने मन ही मन सोचा कि रूचि के लिए मनोहर अधोवस्त्र ख़रीदने हैं। अंतरंगता के क्षणों में वो अजय को पसंद आनी चाहिए। अपनी इस सोच पर वो मन ही मन मुस्कुरा उठीं थीं...

दोनों को साथ में देखना अब रूचि के माँ बाप दोनों को सुहाता था। इसी बीच किरण जी ने रूचि के मम्मी पापा से रूचि को छोटी दीपावली पर उनके घर रुकने के लिए निवेदन भी किया था, जिसका इंकार वो न कर सके! लेकिन आज की बात से दोनों परिवारों के बीच का सम्बन्ध ही बदल गया था।

“भाभी जी, अगर रूचि हमारे घर की बेटी बनेगी, तो हमको बहुत संतोष होगा... बहुत ख़ुशी मिलेगी!”

“अहोभाग्य हमारे!” रूचि की माँ ने हाथ जोड़ दिए, “कि आपने हमारी बेटी को अपने बेटे के लिए पसंद किया!”

“अरे ऐसे न कहिए...” अशोक जी ने हाथों को जोड़ कर कहा, “बेटियाँ तो घरों की रौनक होती हैं!”

“आपको कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं?” किरण जी ने बड़ी उम्मीद से कहा।

“कोई ऑब्जेक्शन नहीं भाभी जी,” रूचि के पिता जी ने कहा, “आपने कह दिया... आपकी इच्छा हमारे सर आँखों पर! अब से रूचि आपकी ही अमानत है!”

“क्या बात है भाई साहब,” कह कर अशोक जी उठे, और उठ कर उन्होंने रूचि के पापा को गले से लगा लिया, “दिल खुश हो गया!”

उसकी माँ भी किरण जी से गले मिलीं।

“बच्चों को कब बताना है?” रूचि के पापा ने पूछा।

“बता देंगे,” रूचि की माँ बोलीं, “वैसे भी, दोनों के लिए सरप्राइज़ रहेगा!”

“हा हा हा हा! हाँ बहन जी! यह अच्छी बात है!” अशोक जी बोले, “वैसे यह अच्छी बात है कि हमारे बच्चों ने हमसे कुछ छुपाया नहीं!”

“क्यों छुपाएँगे?” रूचि के पिता जी बोले, “उनको हम पर विश्वास है और हमारे लिए रिस्पेक्ट भी!”

सभी इस बात पर घमंड से मुस्कुराए! बात तो सही थी।

“एक और बात थी...” अशोक जी बोले।

“वो क्या भाई साहब?”

“दोनों बच्चे बाहर जा कर हायर एजुकेशन लेना चाहते हैं... मैं... हम बस इतना चाहते हैं कि दोनों एक ही कंट्री में रहें... एक ही यूनिवर्सिटी में! साथ में!”

“जी बिल्कुल भाई साहब,” रूचि के पापा बोले, “ये बढ़िया बात है और हमको भी इस बात का पता है।”

“जी भाई साहब,” रूचि की माँ बोलीं, “आप चिंता न करें! हमारा सब कुछ बच्चों के लिए ही तो है!”

अशोक जी मुस्कुराए। वो समझ गए कि रूचि के माता पिता उनकी बात का मर्म नहीं समझ सके।

“हाँ भाई साहब,” रूचि के पापा बोले, “हमने रूचि की पढ़ाई लिखाई और शादी के लिए एनफ जोड़ा हुआ है। लेकिन अजय और रूचि की पढ़ाई पर ख़र्च करना अच्छा है!”

“नहीं नहीं... आप गलत समझ गए,” अशोक जी बोले, “मैं तो ये कह रहा था कि आप बिटिया की पढ़ाई की चिंता न करें! हमारे लिए अजय और उसमें अंतर नहीं है... उसका ख़र्च भी हम ही उठाएँगे!”

यह एक आश्चर्य की बात थी। सच में रूचि के माँ बाप ने सोचा था कि इशारों में अजय के पिता जी ने दहेज़ की बात कह दी थी। लेकिन यह तो पूरी तरह से उलटी बात बोल दी उन्होंने। वो भावुक हो गए।

“भाई साहब,” कहते कहते रूचि के पिता जी का गला भर आया, “कितनी बड़ी बात कह दी आपने! लेकिन नहीं... हमारा सब कुछ हमारे बच्चों का ही है!”

“जी हाँ, बिलकुल है! इसीलिए तो कह रहे हैं हम...”

कुछ देर तक इसी बात पर बहस के बाद रूचि के पिताजी बोले, “... भाई साहब, चलिए... न आपकी और न हमारी... हम मिल कर दोनों बच्चों की पढ़ाई लिखाई, शादी... सबका बंदोबस्त करेंगे! अब ठीक है?”

“हा हा हा! अच्छी बात है!” अशोक जी हँसते हुए बोले, “हम नहीं करेंगे तो और कौन करेगा हमारे बच्चों के लिए!”

“बहन जी,” किरण जी जैसे कुछ याद कर के बोल पड़ीं, “दिवाली पर रूचि बिटिया अगर...”

“अरे बिल्कुल बहन जी,” रूचि की माँ बोलीं, “आपकी ही बेटी है अब वो! ... जब भी आप कहें, उसको आपके यहाँ भेज देंगे!”

“आज?” किरण जी ने हँसते हुए, आशापूर्वक पूछा।

“हा हा हा हा!” उनकी इस बात पर सभी हँसने लगे।

“बहन जी,” रूचि के पापा बोले, “अगर आप यही चाहती हैं, तो आज ही भेज देंगे! ... वैसे भी दो तीन दिनों में बच्चों की छुट्टियाँ शुरू हो जाएँगी!”

**
Nice and superb update....
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,392
24,538
159

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,392
24,538
159
Thank you for this update
This is one of the those stories i want to read daily but that's not possible
Still i appreciate your dedication that you give us update whenever possible.

I hope ajay, ruchi, maya and kamal will bring emotions and joy in this story.
Thanks again 👍🏻

Thank you so much Suraj :)

I understand that some of my readers just LOVE this story, but because of being busy with life and work, it is challenging to keep writing at the pace that satisfies readers. :) This is something that most people now understand and accept.

This actual story has not even started yet. So far, I have only been setting the ground-work.
The real story must begin, I think, after 3-4 more updates. BUT that is the mainstay of my work -- I take a lot of time to come to the story.
Sometimes, my updates are longer than most of the "stories" posted on this forum! Ha ha 😂 😂 😂

Please keep coming back. This story too will complete. :)
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,392
24,538
159
अपडेट 47


वायदे के मुताबिक रूचि को छोटी दिवाली की देर सुबह उसके मम्मी पापा अजय के घर छोड़ने आते हैं और कुछ समय सभी से बातें करने के बाद वापस चले जाते हैं। होली और दीवाली दो ऐसे त्यौहार थे, जिनमें अशोक जी का पूरा परिवार साथ ही रहता था। आज भी अपवाद नहीं था - बस, प्रशांत को छोड़ कर! लेकिन उस बात को लेकर कोई दुःखी नहीं था। कुछ ही दिनों में वो और पैट्रिशिया स्वयं ही आने वाले थे। रूचि ने आज पहली बार साड़ी पहनी हुई थी - गहरे नीले और लाल रंग की साड़ी। बहुत फ़ब रही थी उस पर और वो बेहद सुन्दर भी लग रही थी। अजय ने जब उसको देखा तो एक बार को उसकी साँस ही अटक गई। उस साड़ी में रूचि अपनी उम्र से कुछ अधिक दिख रही थी और बेहद सुन्दर भी! उस रंग में ऐसा लग रहा था कि कोई सौभाग्यशाली लड़की घर आ गई हो!

रूचि की माँ ने उसको अजय के माँ बाप के ‘रिश्ता’ लाने की बात बता दी थी। यह जान कर उसको बहुत ही अधिक ख़ुशी मिली थी। और होती भी क्यों न - अपनी ज़िन्दगी में उसने पहली बार प्यार किया था और उस प्यार को अपना मुक़ाम भी मिलने वाला था। लेकिन उन्होंने उसको यह भी समझाया था कि अजय की माँ और अजय के पापा यह खबर उसको और अजय को साथ में सुनाना चाहते थे। इसलिए वो ऐसा कुछ न कहे या करे कि जिससे यह ‘सरप्राइज़’ टूट जाए! फिर उसके मम्मी पापा ने बताया कि अजय के माँ बाप चाहते थे कि वो दिवाली पर कम से कम एक रात उनके घर गुज़ारे। इस बात पर भी रूचि बहुत खुश थी - रूचि को वहाँ बहुत प्यार मिलता था, और त्यौहार में वहाँ जा कर थोड़ा और अधिक आनंद मिलता। इसलिए उसने अपनी माँ के कहने पर आज साड़ी पहनी थी। रात के लिए उसने एक आरामदायक जाँघों तक लम्बी नाइटी पैक करी हुई थी, और सुबह वापसी के लिए एक शलवार कुर्ता सेट। घर वालों को देने के लिए मिठाईयों और सूखे मेवे के डब्बे उसके मम्मी पापा साथ ही लाए थे।

रूचि ने आते ही सबसे पहले अशोक जी और किरण जी के पैर छुए। दोनों ने उसके सर और माथे को अनेकों बार चूम कर उसको ढेरों आशीर्वाद दिए। माया दीदी के पैर उनके बाद छुए गए। माया ने भी उसको बड़े प्यार से अपने गले से लगा कर खूब आशीर्वाद दिए। उसने एक नज़र अजय पर डाली, लेकिन दोनों ने ही न तो कुछ कहा और न ही कुछ किया! मज़ेदार बात है न - कैसे आपका परिवार आपके निजी रिश्ते को अपना लेता है और उसके कारण आप स्वयं उससे थोड़े वंचित हो जाते हैं!

आज कुछ ख़ास काम नहीं था - छोटी दिवाली पर वैसे भी कोई ख़ास काम नहीं रहता। जो होता है, संध्याकाल के बाद होता है। दोपहर का भोजन पाँचों ने साथ में किया। खाने के बाद अशोक जी ने दोनों को बताया कि दोनों तरफ़ के मम्मी पापा ने मिल कर उन दोनों की शादी पक्की कर दी है। माया यह सुन कर बहुत खुश हुई और उसने दोनों को चूम कर ढेरों बधाइयाँ दीं। रूचि इस बात से बहुत खुश लग रही थी - चेहरे पर ख़ुशी के भाव उसकी सुंदरता को कई गुणा बढ़ा रहे थे।

अजय अभी भी सन्नाटे में बैठा हुआ था - यह सब इतना आशातीत था कि कुछ कह पाना कठिन हो रहा था उसके लिए।

“अज्जू बेटे,” अशोक जी ने अजय से ठिठोली करते हुए कहा, “तुम इतने चुप क्यों हो?”

अजय केवल मुस्कुराया।

“पसंद नहीं है रूचि बिटिया तुमको?” उन्होंने आगे कुरेदा, “शादी नहीं करनी है उससे?”

रूचि ने अशोक जी की इस बात पर अजय की तरफ़ देखा - वो भी हँस रही थी।

“बहुत पसंद है पापा,” अजय के मुँह से निकल ही गया, “सब कुछ इतना जल्दी हो गया, इसलिए, आई ऍम स्टँन्ड!”

“हाँ... तो फिर ठीक है! नार्मल हो जाना कुछ समय में!” फिर वो किरण की की तरफ़ मुखातिब होते हुए बोले, “भाभी, बिटिया को...”

“हाँ हाँ... अभी आई,”

कह कर वो उठ कर अंदर चली गईं और दो मिनट में अपने हाथों में एक ज्यूलरी का डब्बा ले कर बाहर आईं।

“रूचि बेटे,” कहते हुए उन्होंने डब्बा खोला, “भई इस ज़ंजीर से हमने तुमको अपने संग बाँध लिया है,”

उन्होने उसमें से सोने की एक चेन निकाली। उसमें एक लॉकेट भी लगा हुआ था, जिसमें छोटे छोटे अनेकों हीरे जड़ कर दिल का आकार बना हुआ था। वो ज़ंजीर उन्होंने रूचि के गले में पहना दी और हँसते हुए मज़ाक में बोलीं,

“चलो, अब हमारा आशीर्वाद लो,”

रूचि एक आज्ञाकारी लड़की की तरह तुरंत उठ कर उनके पैर छूने लगी।

“आयुष्मति भव... यशस्वी भव... सौभाग्यवती भव...”

फिर उसने अशोक जी के पैर छुए।

“गॉड ब्लेस यू बेटा... खूब खुश रहो!” कहते हुए उन्होंने रूचि को एक लिफ़ाफ़ा थमा दिया।

फिर उसने माया के पैर छुए,

“मेरी भाभी, तुम खूब खुश रहो,” माया ने भी चहकते हुए उसको आशीर्वाद दिया, “... ये प्यार का घर है! तुमको खूब प्यार मिलेगा यहाँ!”

“थैंक यू भाभी,” रूचि बोली।

और अंत में रूचि अजय के सामने आ कर खड़ी हो गई।

इस पर माया ने बोला, “हाँ हाँ, इसके भी छू लो! हस्बैंड है तुम्हारा भाभी!”

इस बात पर सभी हँसने लगे। रूचि और अजय दोनों ही शरमा कर आलिंगनबद्ध हो गए।

“ओये, गेट अ रूम यू बोथ,” माया ने हँसते हुए उनको छेड़ा।

“तू ज़्यादा न छेड़ इन दोनों को,” किरण जी ने अब माया को पकड़ा, “तेरा और कमल का... सरिता ने बताया है मुझको सब!”

माँ के द्वारा इस तरह से सबके सामने छेड़े जाने से माया भी शरमा गई और किरण जी के आलिंगन में आ कर मुँह छुपाने लगी।

“हाँ, अपनी पर आई तो मुँह छुपाने लगी... नहीं तो भाई और भाभी को छेड़ती है!”

अशोक जी ने स्वयं को उस स्थिति से निकालने की सोची, “अच्छा भई, मैं थोड़ा आराम कर लेता हूँ! ... शाम को हम सभी साथ में पूजा करेंगे!”

“हाँ,” किरण जी ने माया के साथ साथ रूचि को भी अपने आलिंगन में भरते हुए कहा, “ये मेरी बिटिया जल्दी ही किसी और की हो जाएगी... लेकिन ख़ुशी भी है कि हमको ये नई बिटिया मिल जाएगी! ... ऐसा ख़ुशी का मौका है... हम सब साथ में आज ही दिवाली मनाएँगे!”

“क्या माँ,” माया ने ठुनकते हुए कहा, “शादी होने पर क्या मेरा इस घर से नाता टूट जाएगा?”

“नहीं रे... लेकिन शादी के बाद तो तू उनके घर की भी शान हो जायेगी न!” किरण जी ने कहा, “केवल हमारा ही हक़ नहीं रहेगा तुझ पर...”

“नो,” माया ने ठुनकना जारी रखा, “आपका हमेशा मुझ पर हक़ रहेगा।”

“अरे भोली बिटिया... वही तो मैं भी कह रही हूँ। तू तो मेरी प्यारी बिटिया रानी है... लेकिन उनकी भी तो हो जाएगी न!”

अजय दोनों माँ बेटी की इस प्यार भरी मान-मनौव्वल देख कर मुस्कुरा रहा था... रूचि भी।

इतनी देर में अशोक जी अपने कमरे में चले गए थे।

“रूचि बेटे,” किरण जी ने रूचि की तरफ़ मुख़ातिब होते हुए कहना शुरू किया।

“जी माँ?”

उसके मुँह से अपने लिए ‘माँ’ शब्द सुन कर किरण जी यूँ ही आह्लादित हो गईं, “अरे मेरी बच्ची, जीती रह! जीती रह!”

रूचि क्या ही कहती - बस सर थोड़ा नीचे किये, इस अनोखी स्नेह-वर्षा का आनंद लेती रही। उसको भी शर्म आ गई... सब कुछ कितना बदल गया था कुछ ही दिनों में! और यह बदलाव बहुत ही सुन्दर भी था।

“एक बात पूछनी थी,” किरण जी बोलीं, “तुम्हारे रात के सोने का बंदोबस्त कहाँ करूँ? गेस्ट रूम में, या अजय के रूम में?”

“माँ...” कहते कहते वो शरमा गई।

“अच्छा... अजय के रूम में नहीं?” किरण जी उसके मज़े लेती रहीं, “तो ठीक है! गेस्ट रूम में ही सही,”

गेस्ट रूम का नाम सुन कर रूचि का चेहरा थोड़ा उतर गया। उसको अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि इतनी जल्दी सभी मान जाएँगे और इतनी जल्दी से अजय और उसका प्यार परवान चढ़ जायेगा। एक बार परिवार इन्वॉल्व हो जाते हैं तो रिश्तों में एक अलग ही तरह का पुख़्तापन आ जाता है। अजय के परिवार द्वारा यह स्वीकृति उन दोनों के ‘लगभग’ शादी-शुदा होने जैसा ही था।

“हा हा हा,” माया ने हँसते हुए कहा, “इसका चेहरा तो देखो न माँ! कैसे उतर गया गेस्ट रूम का नाम सुन कर!”

फिर रूचि की तरफ़ मुखातिब हो कर, “भाभी, तुम्हारा बैग गेस्ट रूम में रख देंगे... लेकिन भाई के रूम में जब मन करे, तुम जा सकती हो...”

किरण जी भी माया की बात पर मुस्कुराने लगीं।

“उस पर कोई रोक टोक थोड़े ही है! क्यों माँ?” माया कह रही थी।

“हा हा हा! अच्छा बस कर... मेरी छोटी बेटी को ऐसे छेड़ो मत बेटू!” किरण जी बोलीं, “अब हम दोनों खिसक लेते हैं... कबाब में हड्डी नहीं बनेंगे!”

“हाँ माँ! नहीं तो बाबू हमारे सर पर नाचने लगेगा,” माया ने अजय को छेड़ा।
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,392
24,538
159
अपडेट 48


इतनी छेड़खानी के बाद अजय और रूचि दोनों ही शर्मसार हो गए थे। लेकिन फिर भी एक दूसरे के निकट होने की अभिलाषा बहुत बलवती थी। माया दीदी और किरण जी के चले जाने के बाद दोनों अंततः अकेले हो गए।

“कोन्ग्रेचुलेशन्स,” अजय ने धीमे से बोला।

“तुमको भी!” रूचि ने मुस्कुराते हुए कहा।

“तुमको पता है कि तुम आज कितनी सुन्दर लग रही हो?”

अजय ने ‘कितनी’ शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा।

रूचि ने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया, “तुम बता दो?”

“अंदर चलें?”

रूचि ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

अंदर आ कर अजय ने दरवाज़ा भिड़ाया और तत्क्षण रूचि को अपने आलिंगन में भर के उसके होंठों को चूमने लगा। कुछ ही देर में दोनों अपने इस अधीरतापूर्ण चुम्बन के अभिज्ञान पर खुद ही खिलखिला कर हँसने लगे।

“तुमको अभी पता चला?” रूचि ने पूछा।

“किस बारे में?”

“... कि हमारी शादी पक्की हो गई?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “मुझे पता नहीं था कि माँ पापा हमारे पीछे पीछे हमको देने के लिए सरप्राइज़ प्लान कर रहे थे!”

वो मुस्कुराई, “आई लव देम! बहुत अच्छे हैं माँ पापा...”

“द बेस्ट,” अजय गर्व से मुस्कुराया, “एंड आई ऍम सो हैप्पी दैट यू टू लव देम!”

“किस्मत है मेरी...”

“कल का क्या प्लान है?”

“कल तो घर में ही दिवाली है न! ... अगर पॉसिबल हो, तो आ जाओ?”

“कल कैसे...?”

“दिन में आ जाओ... कुछ देर के लिए ही?” रूचि ने मनुहार करी, “मेरी मासी, और उनकी लड़की भी आ रहे हैं... और,” उसने शरमाते हुए आगे जोड़ा, “होने वाले दामाद से मिलना चाहते हैं,”

“हैं! मासी?”

“हाँ... दुबई में रहती हैं दोनों! बहुत समय बाद इंडिया आना हुआ।” रूचि ने बताया, “हमारी खबर सुनी, तो तुमसे मिलने को बेताब हो गईं...”

“हम्म... तो ये बात है? इम्पोर्टेड रिश्तेदार!” अजय ने खिलंदड़े अंदाज़ में कहा, “ठीक है, देखते हैं!”

“आज की रात आपके साथ...” रूचि मुस्कुराई, “और फिर दिवाली की अगली रोज़ हम फिर आपकी बाहों में होंगे,”

“सच में?”

रूचि ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए मुस्कुराई।

“आ जाएँगे फिर...”

रूचि मुस्कुराने को हुई कि अचानक से उसके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव आ गए।

“क्या हुआ?”

“क्या बताऊँ यार...” उसने अपनी आँखों को मसलते हुए कहा, “ये नया नया नज़रबट्टू क्या लग गया... जब देखो तब सर में दर्द रहता है मेरे!”

“उस दिन तुम कह रही थी न डॉक्टर को दिखाने की?”

“हाँ, लेकिन दर्द अपने आप ठीक हो गया तो भूल गई!” रूचि ने झेंपते हुए कहा।

“लापरवाह हो...” अजय ने रूचि को अपने आलिंगन में भरते हुए कहा, “लेकिन कोई बात नहीं! अब मैं हूँ न! सब ठीक कर दूँगा!”

“हाँ... मुझे भी ठीक कर दो!”

रूचि ने ऐसी प्यार भरी अदा से कहा कि अजय का दिल हिल गया।

“अभी किए देते हैं,”

दोनों एक बार फिर से चुम्बन में लिप्त हो गए।

“वैसे,” चुम्बन तोड़ते हुए अजय बोला, “ऐसा नहीं है कि मेरे पास तुमको देने के लिए कोई सरप्राइज़ नहीं है!”

“अच्छा जी!” रूचि की बाँछें खिल गईं, “क्या सरप्राइज़ है? बताईए न ठाकुर साहब!”

“अरे बैठिए तो सही,” कह कर अजय ने रूचि को बिस्तर पर बैठाया और अपनी अलमारी की तरफ़ चल दिया।

रूचि पूर्वानुमान के आवेश के कारण मुस्कुरा रही थी। उसको अजय का अंदाज़ पसंद था - दोनों अंतरंग होते थे, लेकिन अपने परिवारों की मर्यादा बनाए रखते थे। जवानी के जोश को अपने विवेक पर हावी नहीं होने देते थे।

एक मिनट के अंदर अजय वापस उसके सामने था। उसके हाथों में वेलवेट पेपर में लिपटा और रिबन से पैक किया हुआ एक पैकेट था।

“क्या है ये?” रूचि ने पैकेट को ले कर पूछा।

अंदाज़ा तो इसी बात का था कि शायद उसमें कोई कपड़ा होगा, लेकिन कहना कठिन था।

“देखो,” अजय ने सुझाया।

पैकेट खोल कर रूचि ने देखा कि गिफ़्ट के नाम पर अंदर उसी के नाप का एक स्किन कलर का, स्ट्रेच साटन और लेस का एक ब्राइडल लॉन्ज़रे सेट था। उसको छूने पर बेहद कोमल और मखमली एहसास महसूस हो रहा था।

“मेरे लिए?” रूचि ने उत्साहपूर्वक कहा।

“नहीं, पड़ोसन के लिए...”

अजय की इस बात पर रूचि ने बात पलटते हुए कहा,

“मुझे लगा कि जूलरी मिलेगी... लेकिन मेरे होने वाले हब्बी को मेरे लिए सेक्सी कपड़े लेने हैं बस...”

“नहीं लेने चाहिए?”

“ऐसा मैंने कब कहा?” रूचि ने उसको छेड़ा।

अजय मुस्कुराया, “पहन कर दिखाओ?”

“अभी?”

“और कब?”

“यार सब उतारना पड़ेगा,” रूचि ने थोड़ा हिचकते हुए कहा, “और मुझे साड़ी पहननी नहीं आती,”

“कोई बात नहीं,” अजय ने उसकी कमर को थाम कर कहा, “दीदी या माँ पहना देंगी!”

“हाS...”

“अरे! क्या हो गया उसमें! हेल्प ही तो माँग रहे हैं,”

“हम्म्म, ठीक है फिर,” रूचि ने कहा और अपनी साड़ी का पल्लू अपने सीने से हटा कर ब्लाउज़ के बटन खोलने का उपक्रम करने लगी।

“वेट,” अजय ने बड़े उत्साह से उसको रोका, “मैं करूँ?”

“ओके!” रूचि जानती थी कि यह काम अजय ही करना चाहेगा।

जितना उत्साह अजय के मन में रूचि को लेकर था, उतना ही रूचि के मन में अजय को लेकर था। अभी अभी दोनों परिवारों की तरफ़ से उनके रिश्ते को अनुमोदन भी मिल गया था और इस बात से दोनों ही आनंदित थे। अपनी प्रेमिका की ब्लाउज़ के बटन खोलना एक बहुत ही उत्तेजित करने वाला काम होता है। अजय के हाथ काँप रहे थे और अति उत्साह के कारण उसको अधिक समय भी लग रहा था। रूचि उसको इस तरह से देख कर खुश भी हो रही थी, उत्तेजित भी हो रही थी, और लज्जित भी! वो पाँच छोटे छोटे बटन खोलने में पूरा एक मिनट लग गया अजय को! लेकिन अंत में सारे बटन खुल ही गए।

दो दिन पहले ही रूचि की माँ ने उसके लिए दो जोड़ी नए और सुरुचिपूर्ण अधोवस्त्र ख़रीदे थे। आज के लिए उन्होंने उसको इशारे में समझाया भी था कि आज वो यह ‘नई’ वाली ब्रा पैंटीज़ पहने। रूचि भी समझती थी यह बात - और इसीलिए उसने अपनी माँ की बात मान ली थी। यह काले रंग के लेस वाले अधोवस्त्र थे। रूचि के ऊपर वो बहुत फ़ब रहे थे। ‘लेकिन पहनने में बहुत आरामदायक न हों शायद’, यह बात उसके मन में ज़रूर उठी!

“अरे यार,” अजय ने उसके अंदरूनी वस्त्र देख कर कहा, “ये भी मस्त हैं!”

“क्या? ब्रा या मेरे ब्रेस्ट्स?”

रूचि खुद भी आश्चर्यचकित थी कि दोनों के बीच कितनी निकटता आ गई थी! उसको आज भी ढाई महीने पहला का वो दिन याद था जब लंच टाइम में अजय ने उसको ‘हाय’ कहा था। उस एक शब्द से आज उन दोनों का रिश्ता बैठ गया था! कैसी कमाल की होती है न ज़िन्दगी? हमको खुद ही नहीं पता होता कि किस बात से जीवन की कौन सी दिशा निकल आये।

“दोनों!” झूठ कैसे कहे वो?

“आहाहाहा... बातें बनानी बहुत आ गई हैं तुमको,” अजय को प्यार से चिढ़ाते हुए रूचि ने लगभग हँसते हुए कहा, “मेरा सीधा सादा अज्जू पूरा बदमाश होता जा रहा है!”

“बदमाश? तुमको बदमाश लड़के पसंद नहीं है?” कहते हुए अजय ने रूचि का ब्लाउज़ उतार दिया।

उसने ‘न’ में सर हिलाया, “लेकिन ये वाला बदमाश मुझे बहुत पसंद है!”

अजय ने शान से मुस्कुराते हुए रूचि की साड़ी उतारी और सम्हाल कर उसको तह कर के एक तरफ़ रख दी। रूचि उसको यह करते देख कर बहुत प्रभावित हुई - इस उम्र में शायद ही कोई इतना सलीके से रहता हो।

“क्या बात है! आपके मैनर्स कितने बढ़िया हैं ठाकुर जी!”

“इसमें मैनर्स का क्या है! माँ की हेल्प तो मैं सालों से कर रहा हूँ,” अजय के मुँह से निकल गया।

फिर उसको भान हुआ कि क्या कह दिया उसने! उसकी कही हुई बात काफ़ी सही थी लेकिन सामयिक नहीं। हाँ, वो किरण जी का हाथ बंटाता आया था लेकिन दूसरे समय काल में... इस समय काल में नहीं।

रूचि मुस्कुराई, “आई ऍम लकी!”

“सो ऍम आई,” कह कर अजय ने उसकी पेटीकोट का नाड़ा भी खोल दिया। हल्के कपड़े का पेटीकोट पल भर में नीचे सरक गया।

“ओह गॉड रूचि... तुम कितनी सुन्दर हो!” अजय रूचि की सुंदरता को देख कर उसकी बढ़ाई करने से स्वयं को रोक न सका और उसको अपनी बाहों में भर कर बोला।

“तुमको पसंद हूँ... बस बहुत है!”

कहते हुए रूचि वो मुस्कुराई ही थी कि अगले ही पल उसके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव आ गये। आँखें मींच कर वो उस पीड़ा को सहन करने की कोशिश करने लगी।

“क्या हुआ रूचि?” अजय ने चिंतित होते हुए पूछा, “फिर वही... सर का दर्द?”

पीड़ा को पीते हुए रूचि ने कहा, “अरे यार! ये सर और आँख दर्द! इस नज़रबट्टू ने बहुत सताया है मुझे!” फिर मुस्कुराती हुई बोली, “अगर तुम्हारी आँखों पर चश्मा चढ़े, तो थोड़ा काशियस रहना...”

“यार ये कॉमन नहीं है!”

“नहीं, लेकिन कुछ लोगों को जब नया नया चश्मा लगता है न, तो उनको दिक्कत होने लगती है!” रूचि ने बताया, “शायद पावर सही नहीं है, या फिर शायद फिटिंग... या फिर दोनों!”

“एक काम करते हैं, हमारे डॉक्टर के पास चलते हैं! तुमसे तो यह छोटा सा काम नहीं हो पाता,” अजय ने शिकायती लहज़े में कहा।

“अरे मेरे स्वामी,” रूचि ने उसको छेड़ते हुए कहा, “लिया है न अपॉइंटमेंट आई स्पेशियलिस्ट से! दिवाली के कारण मिला नहीं समय पर... परसों नहीं, उसके अगले दिन का है!”

“पक्का? प्रॉमिस?”

“हाँ बाबा!” कह कर रूचि मुस्कुराई।

लेकिन अजय को उस मुस्कराहट के पीछे छुपी पीड़ा दिख रही थी।

“लेकिन तुम रुक क्यों गए?” रूचि ने प्यार भरी शिकायत करी, “मुझे मेरा गिफ़्ट कब दोगे?”

“हम्म्म,” अजय समझ रहा था कि रूचि तकलीफ में है लेकिन वो उसको बहला रही थी, “एक काम करें?”

“क्या?”

“सभी लोग सो रहे हैं... हम भी सो जाते हैं! जब उठोगी, तब दूँगा तुमको तुम्हारा गिफ़्ट? ओके?”

“पर...”

“रूचि, अब तो हम हैं न साथ में!” कह कर उसने रूचि को अपनी बाहों में उठा लिया, “सो जाओ कुछ देर... ये सर दर्द भी ख़तम हो जायेगा! माँ और दीदी कुछ न कुछ बढ़िया सा नाश्ता बनाएँगीं! उसको चापेंगे... ठीक है?”

“लेकिन गिफ़्ट?”

“जब उठना, तब!”

रूचि प्यार भरे आनंद से मुस्कुराई - उसको अजय पर गर्व हो आया। कोई अन्य लड़का हो, तो अपनी मंगेतर को ऐसी अवस्था में पा कर टूट पड़े उस पर। लेकिन उसका अज्जू अलग है! उसको रूचि की परवाह है... उसको रूचि से वाक़ई प्यार है!

“ठीक है,” वो मुस्कुराती हुई बोली।

सोने से पहले अजय ने भी अपने कुछ कपड़े उतार दिए, और ऊन के कम्बल में दोनों आपस में लिपट कर सोने की कोशिश करने लगे।

**
 

kas1709

Well-Known Member
11,183
11,763
213
अपडेट 48


इतनी छेड़खानी के बाद अजय और रूचि दोनों ही शर्मसार हो गए थे। लेकिन फिर भी एक दूसरे के निकट होने की अभिलाषा बहुत बलवती थी। माया दीदी और किरण जी के चले जाने के बाद दोनों अंततः अकेले हो गए।

“कोन्ग्रेचुलेशन्स,” अजय ने धीमे से बोला।

“तुमको भी!” रूचि ने मुस्कुराते हुए कहा।

“तुमको पता है कि तुम आज कितनी सुन्दर लग रही हो?”

अजय ने ‘कितनी’ शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा।

रूचि ने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया, “तुम बता दो?”

“अंदर चलें?”

रूचि ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

अंदर आ कर अजय ने दरवाज़ा भिड़ाया और तत्क्षण रूचि को अपने आलिंगन में भर के उसके होंठों को चूमने लगा। कुछ ही देर में दोनों अपने इस अधीरतापूर्ण चुम्बन के अभिज्ञान पर खुद ही खिलखिला कर हँसने लगे।

“तुमको अभी पता चला?” रूचि ने पूछा।

“किस बारे में?”

“... कि हमारी शादी पक्की हो गई?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “मुझे पता नहीं था कि माँ पापा हमारे पीछे पीछे हमको देने के लिए सरप्राइज़ प्लान कर रहे थे!”

वो मुस्कुराई, “आई लव देम! बहुत अच्छे हैं माँ पापा...”

“द बेस्ट,” अजय गर्व से मुस्कुराया, “एंड आई ऍम सो हैप्पी दैट यू टू लव देम!”

“किस्मत है मेरी...”

“कल का क्या प्लान है?”

“कल तो घर में ही दिवाली है न! ... अगर पॉसिबल हो, तो आ जाओ?”

“कल कैसे...?”

“दिन में आ जाओ... कुछ देर के लिए ही?” रूचि ने मनुहार करी, “मेरी मासी, और उनकी लड़की भी आ रहे हैं... और,” उसने शरमाते हुए आगे जोड़ा, “होने वाले दामाद से मिलना चाहते हैं,”

“हैं! मासी?”

“हाँ... दुबई में रहती हैं दोनों! बहुत समय बाद इंडिया आना हुआ।” रूचि ने बताया, “हमारी खबर सुनी, तो तुमसे मिलने को बेताब हो गईं...”

“हम्म... तो ये बात है? इम्पोर्टेड रिश्तेदार!” अजय ने खिलंदड़े अंदाज़ में कहा, “ठीक है, देखते हैं!”

“आज की रात आपके साथ...” रूचि मुस्कुराई, “और फिर दिवाली की अगली रोज़ हम फिर आपकी बाहों में होंगे,”

“सच में?”

रूचि ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए मुस्कुराई।

“आ जाएँगे फिर...”

रूचि मुस्कुराने को हुई कि अचानक से उसके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव आ गए।

“क्या हुआ?”

“क्या बताऊँ यार...” उसने अपनी आँखों को मसलते हुए कहा, “ये नया नया नज़रबट्टू क्या लग गया... जब देखो तब सर में दर्द रहता है मेरे!”

“उस दिन तुम कह रही थी न डॉक्टर को दिखाने की?”

“हाँ, लेकिन दर्द अपने आप ठीक हो गया तो भूल गई!” रूचि ने झेंपते हुए कहा।

“लापरवाह हो...” अजय ने रूचि को अपने आलिंगन में भरते हुए कहा, “लेकिन कोई बात नहीं! अब मैं हूँ न! सब ठीक कर दूँगा!”

“हाँ... मुझे भी ठीक कर दो!”

रूचि ने ऐसी प्यार भरी अदा से कहा कि अजय का दिल हिल गया।

“अभी किए देते हैं,”

दोनों एक बार फिर से चुम्बन में लिप्त हो गए।

“वैसे,” चुम्बन तोड़ते हुए अजय बोला, “ऐसा नहीं है कि मेरे पास तुमको देने के लिए कोई सरप्राइज़ नहीं है!”

“अच्छा जी!” रूचि की बाँछें खिल गईं, “क्या सरप्राइज़ है? बताईए न ठाकुर साहब!”

“अरे बैठिए तो सही,” कह कर अजय ने रूचि को बिस्तर पर बैठाया और अपनी अलमारी की तरफ़ चल दिया।

रूचि पूर्वानुमान के आवेश के कारण मुस्कुरा रही थी। उसको अजय का अंदाज़ पसंद था - दोनों अंतरंग होते थे, लेकिन अपने परिवारों की मर्यादा बनाए रखते थे। जवानी के जोश को अपने विवेक पर हावी नहीं होने देते थे।

एक मिनट के अंदर अजय वापस उसके सामने था। उसके हाथों में वेलवेट पेपर में लिपटा और रिबन से पैक किया हुआ एक पैकेट था।

“क्या है ये?” रूचि ने पैकेट को ले कर पूछा।

अंदाज़ा तो इसी बात का था कि शायद उसमें कोई कपड़ा होगा, लेकिन कहना कठिन था।

“देखो,” अजय ने सुझाया।

पैकेट खोल कर रूचि ने देखा कि गिफ़्ट के नाम पर अंदर उसी के नाप का एक स्किन कलर का, स्ट्रेच साटन और लेस का एक ब्राइडल लॉन्ज़रे सेट था। उसको छूने पर बेहद कोमल और मखमली एहसास महसूस हो रहा था।

“मेरे लिए?” रूचि ने उत्साहपूर्वक कहा।

“नहीं, पड़ोसन के लिए...”

अजय की इस बात पर रूचि ने बात पलटते हुए कहा,

“मुझे लगा कि जूलरी मिलेगी... लेकिन मेरे होने वाले हब्बी को मेरे लिए सेक्सी कपड़े लेने हैं बस...”

“नहीं लेने चाहिए?”

“ऐसा मैंने कब कहा?” रूचि ने उसको छेड़ा।

अजय मुस्कुराया, “पहन कर दिखाओ?”

“अभी?”

“और कब?”

“यार सब उतारना पड़ेगा,” रूचि ने थोड़ा हिचकते हुए कहा, “और मुझे साड़ी पहननी नहीं आती,”

“कोई बात नहीं,” अजय ने उसकी कमर को थाम कर कहा, “दीदी या माँ पहना देंगी!”

“हाS...”

“अरे! क्या हो गया उसमें! हेल्प ही तो माँग रहे हैं,”

“हम्म्म, ठीक है फिर,” रूचि ने कहा और अपनी साड़ी का पल्लू अपने सीने से हटा कर ब्लाउज़ के बटन खोलने का उपक्रम करने लगी।

“वेट,” अजय ने बड़े उत्साह से उसको रोका, “मैं करूँ?”

“ओके!” रूचि जानती थी कि यह काम अजय ही करना चाहेगा।

जितना उत्साह अजय के मन में रूचि को लेकर था, उतना ही रूचि के मन में अजय को लेकर था। अभी अभी दोनों परिवारों की तरफ़ से उनके रिश्ते को अनुमोदन भी मिल गया था और इस बात से दोनों ही आनंदित थे। अपनी प्रेमिका की ब्लाउज़ के बटन खोलना एक बहुत ही उत्तेजित करने वाला काम होता है। अजय के हाथ काँप रहे थे और अति उत्साह के कारण उसको अधिक समय भी लग रहा था। रूचि उसको इस तरह से देख कर खुश भी हो रही थी, उत्तेजित भी हो रही थी, और लज्जित भी! वो पाँच छोटे छोटे बटन खोलने में पूरा एक मिनट लग गया अजय को! लेकिन अंत में सारे बटन खुल ही गए।

दो दिन पहले ही रूचि की माँ ने उसके लिए दो जोड़ी नए और सुरुचिपूर्ण अधोवस्त्र ख़रीदे थे। आज के लिए उन्होंने उसको इशारे में समझाया भी था कि आज वो यह ‘नई’ वाली ब्रा पैंटीज़ पहने। रूचि भी समझती थी यह बात - और इसीलिए उसने अपनी माँ की बात मान ली थी। यह काले रंग के लेस वाले अधोवस्त्र थे। रूचि के ऊपर वो बहुत फ़ब रहे थे। ‘लेकिन पहनने में बहुत आरामदायक न हों शायद’, यह बात उसके मन में ज़रूर उठी!

“अरे यार,” अजय ने उसके अंदरूनी वस्त्र देख कर कहा, “ये भी मस्त हैं!”

“क्या? ब्रा या मेरे ब्रेस्ट्स?”

रूचि खुद भी आश्चर्यचकित थी कि दोनों के बीच कितनी निकटता आ गई थी! उसको आज भी ढाई महीने पहला का वो दिन याद था जब लंच टाइम में अजय ने उसको ‘हाय’ कहा था। उस एक शब्द से आज उन दोनों का रिश्ता बैठ गया था! कैसी कमाल की होती है न ज़िन्दगी? हमको खुद ही नहीं पता होता कि किस बात से जीवन की कौन सी दिशा निकल आये।

“दोनों!” झूठ कैसे कहे वो?

“आहाहाहा... बातें बनानी बहुत आ गई हैं तुमको,” अजय को प्यार से चिढ़ाते हुए रूचि ने लगभग हँसते हुए कहा, “मेरा सीधा सादा अज्जू पूरा बदमाश होता जा रहा है!”

“बदमाश? तुमको बदमाश लड़के पसंद नहीं है?” कहते हुए अजय ने रूचि का ब्लाउज़ उतार दिया।

उसने ‘न’ में सर हिलाया, “लेकिन ये वाला बदमाश मुझे बहुत पसंद है!”

अजय ने शान से मुस्कुराते हुए रूचि की साड़ी उतारी और सम्हाल कर उसको तह कर के एक तरफ़ रख दी। रूचि उसको यह करते देख कर बहुत प्रभावित हुई - इस उम्र में शायद ही कोई इतना सलीके से रहता हो।

“क्या बात है! आपके मैनर्स कितने बढ़िया हैं ठाकुर जी!”

“इसमें मैनर्स का क्या है! माँ की हेल्प तो मैं सालों से कर रहा हूँ,” अजय के मुँह से निकल गया।

फिर उसको भान हुआ कि क्या कह दिया उसने! उसकी कही हुई बात काफ़ी सही थी लेकिन सामयिक नहीं। हाँ, वो किरण जी का हाथ बंटाता आया था लेकिन दूसरे समय काल में... इस समय काल में नहीं।

रूचि मुस्कुराई, “आई ऍम लकी!”

“सो ऍम आई,” कह कर अजय ने उसकी पेटीकोट का नाड़ा भी खोल दिया। हल्के कपड़े का पेटीकोट पल भर में नीचे सरक गया।

“ओह गॉड रूचि... तुम कितनी सुन्दर हो!” अजय रूचि की सुंदरता को देख कर उसकी बढ़ाई करने से स्वयं को रोक न सका और उसको अपनी बाहों में भर कर बोला।

“तुमको पसंद हूँ... बस बहुत है!”

कहते हुए रूचि वो मुस्कुराई ही थी कि अगले ही पल उसके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव आ गये। आँखें मींच कर वो उस पीड़ा को सहन करने की कोशिश करने लगी।

“क्या हुआ रूचि?” अजय ने चिंतित होते हुए पूछा, “फिर वही... सर का दर्द?”

पीड़ा को पीते हुए रूचि ने कहा, “अरे यार! ये सर और आँख दर्द! इस नज़रबट्टू ने बहुत सताया है मुझे!” फिर मुस्कुराती हुई बोली, “अगर तुम्हारी आँखों पर चश्मा चढ़े, तो थोड़ा काशियस रहना...”

“यार ये कॉमन नहीं है!”

“नहीं, लेकिन कुछ लोगों को जब नया नया चश्मा लगता है न, तो उनको दिक्कत होने लगती है!” रूचि ने बताया, “शायद पावर सही नहीं है, या फिर शायद फिटिंग... या फिर दोनों!”

“एक काम करते हैं, हमारे डॉक्टर के पास चलते हैं! तुमसे तो यह छोटा सा काम नहीं हो पाता,” अजय ने शिकायती लहज़े में कहा।

“अरे मेरे स्वामी,” रूचि ने उसको छेड़ते हुए कहा, “लिया है न अपॉइंटमेंट आई स्पेशियलिस्ट से! दिवाली के कारण मिला नहीं समय पर... परसों नहीं, उसके अगले दिन का है!”

“पक्का? प्रॉमिस?”

“हाँ बाबा!” कह कर रूचि मुस्कुराई।

लेकिन अजय को उस मुस्कराहट के पीछे छुपी पीड़ा दिख रही थी।

“लेकिन तुम रुक क्यों गए?” रूचि ने प्यार भरी शिकायत करी, “मुझे मेरा गिफ़्ट कब दोगे?”

“हम्म्म,” अजय समझ रहा था कि रूचि तकलीफ में है लेकिन वो उसको बहला रही थी, “एक काम करें?”

“क्या?”

“सभी लोग सो रहे हैं... हम भी सो जाते हैं! जब उठोगी, तब दूँगा तुमको तुम्हारा गिफ़्ट? ओके?”

“पर...”

“रूचि, अब तो हम हैं न साथ में!” कह कर उसने रूचि को अपनी बाहों में उठा लिया, “सो जाओ कुछ देर... ये सर दर्द भी ख़तम हो जायेगा! माँ और दीदी कुछ न कुछ बढ़िया सा नाश्ता बनाएँगीं! उसको चापेंगे... ठीक है?”

“लेकिन गिफ़्ट?”

“जब उठना, तब!”

रूचि प्यार भरे आनंद से मुस्कुराई - उसको अजय पर गर्व हो आया। कोई अन्य लड़का हो, तो अपनी मंगेतर को ऐसी अवस्था में पा कर टूट पड़े उस पर। लेकिन उसका अज्जू अलग है! उसको रूचि की परवाह है... उसको रूचि से वाक़ई प्यार है!

“ठीक है,” वो मुस्कुराती हुई बोली।

सोने से पहले अजय ने भी अपने कुछ कपड़े उतार दिए, और ऊन के कम्बल में दोनों आपस में लिपट कर सोने की कोशिश करने लगे।

**
Nice update....
 
  • Like
Reactions: SANJU ( V. R. )
Top