" कहते है जब घर में पत्नी की जवानी करोडो की हो और नौकरी लाखों की तो नौकरी में लात मारकर पत्नी की जवानी पर ध्यान लगाना चाहिए " शायद इसके मायने मेरे पति को उस वक्त समझ आ गये होते....!!!
मै रेखा 35 वर्षीय एक शादीशुदा महिला हू।
मेरे पति संजय उम्र 42 साल, और मेरे दो जुड़वा बच्चे एक लड़का एक लड़की है मेरे परिवार में मेरे साथ मेरी सास ससुर, जेठ जेठानी, उनकी एक बेटी, हम सभी एक साथ एक दो मंजिला मकान, जिला हिसार हरियाणा में रहते है। मेरे ससुर नगर निगम में सरकारी मुलाजिम है, मेरे पति और जेठ जी मिलकर एक साड़ी का कारखाना चलाते हैं। जरूरी सुख सुविधाओ से सपंन मेरा भरा पूरा मध्यम वर्गीय परिवार है।
12-12-2014 ये तारीख मुझे आज भी याद है जिस दिन मै दुल्हन के रूप में पहली बार अपनी ससुराल आई थी। खूबसूरत हसीन सुहागरात और पांच रात - छे दिन का यादगार हनीमून आज भी मेरे जेहन में बसा हुआ है। शादी के एक साल पूरे होने से पहले ही मैने दो प्यारे जुड़वा बच्चों को जनम दिया। जुड़वा बच्चों की दोगुनी खुशी में मेरा घर आंगन खुशियों से भर गया।
जुड़वा बच्चो को संभालना कोई आसान काम नही था, एक को दूध पिला कर सुलाओ तो दूसरा जाग जाता, दूसरे को दूध पिला कर सुलाओ तो पहला जाग जाता.... जैसे तैसे दोनों को सुलाओ तो बच्चो के पापा जाग जाते फिर उन्हे दूध पिला कर सुलाओ तब तक फिर पहला जाग जाता आखिर बच्चो की माँ कब सोये....??? यही क्रम करीब तीन साल तक चलता रहा।
तीन साल बाद जब बच्चो ने परेशान करना कम किया तो हम पति पत्नी की सेक्स लाइफ दोबारा पटरी पर चलना शुरु हुयी अब हमारे बीच हफ्ते में दो तीन बार और थोड़ा लंबा सेक्स होने लगा।
"मैं खुश थी अपनी दुनिया में, अपने पति, अपने घर व अपने बच्चो के साथ. फिर क्यों, कब, कैसे 'विकास' मेरे अस्तित्व पर छाता गया और मैं उस के प्रेमजाल में उलझती चली गई. मैं मजबूर थी अपने दिल के चलते. विकास चमकते सूरज की तरह आया और मुझ पर छा गया.....!"
साल 2017 नोवम्बर का महिना मेरे पति और जेठ ने दिसंबर में होने वाली शादियों के सीजन को देखते हुए 15 लाख की बीसी (बीसी व्यापारियों द्वारा अवैध रूप से चलाई जाने वाली लॉटरी लोन योजना होती हैं) उठा ली । शाम छे बजे मेरे पति और जेठ नगद 15 लाख रुपए चार हिस्सों में बाटकर रात को दस बजे की ट्रेन से गुजरात के लिए रवाना होने वाले थे तभी अचानक मेरे जेठ के मोबाइल पर एक फोन आया।
जेठ : हैलो.. सैनी साहब
जल्दी से टीवी खोल कर न्यूज़ देखो।
जेठ : क्यों क्या हुआ..???
सभी व्यापारी बर्बाद हो गये न्यूज़ देखो सब पता चल जायेगा।
जैसे ही टीवी ऑन कर न्यूज़ चैनल लगाया तो सामने प्रधानमंत्री जी के दिये गये संबोधन की ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी। नोट बंदी का ऐलान हो चुका था। मेरे जेठ और पति मेज पर रखे 500-1000 के नोटों की गड्डियों को आँसू भर देख कर रहे थे। वो दोनों समझ चुके थे कि हम बर्बाद हो गये क्योकि ये मेज पर पड़ा पैसा अब किसी काम का नही।
दुनिया की पांचवी अर्थ व्यवस्था बनने के चक्कर में हमारे प्रधान ने देश के लगभग 90% परिवारों की अर्थ व्यवस्था के पकौड़े (लो...) लगा दिये। व्यापार में पड़े इस अक्समात् आर्थिक संकट की वजह से मेरे पति अब अवसाद में रहने लगे, बीसी की रकम वसूलने वाले आये दिन हंगामा खड़ा करते, उनके इस हंगामा को मेरे ससुर ने अपने प्रोविडेंट फंड की रकम को गिरवी रख जैसे तैसे खतम किया। दिन महीने गुजरने लगे, मेरी सेक्स लाइफ भी प्रभावित होने लगी, हमारे बीच अब बातें कम होती।
" पति के चरित्र की पहचान पत्नी की बीमारी में और पत्नी के चरित्र की पहचान पति की गरीबी में होती है"
मुझसे बुरा हाल मेरी जेठ की फैमिली का था... जेठानी मेरी इस आर्थिक संकट की वजह से लगाई गई अनावश्यक, बेफिजूल के खर्चो पर रोक को बर्दाश्त नही कर पाई और जेठ से लड़ झगड़ कर अपने मायके में रहने लगी। और जेठ, ससुर के खिलाफ 498, 498A का मुकदमा दर्ज करवा दिया जेठ जी, जेल जाने के डर से मानसिक संतुलन खो बैठे और दिन भर पागलो की तरह घूमते रहते।
इसी तरह तीन साल गुजर गये मेरे ससुर, मेरे पति को होंसला देते कि ज्यादा चिंता मत करो सब कुछ ठीक हो जाएगा लेकिन ये उनका 'भ्रम' था क्योकि अब हमारी आर्थिक हालत ठीक नहीं इससे अधिक बुरी होने वाली थी।
साल 2020 पहला लॉक डाउन जिसने मेरे ससुर का 'भ्रम' तोड़ कर उन्हे सत्यता से परिचय करवा दिया और उनको अंदर से इतना घायल कर दिया कि उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया, जिससे वक्त से पहले VRS रिटरमेंट लेना पड़ा। अब पूरे घर की जिम्मेदारी मेरे पति के कंधे पर आ गयी। कारखाना तो बंद हो ही चुका था अब बंद कारखाने को बेंचने के अलावा कोई रास्ता नही बचा।
जैसे तैसे ये साल निकला तो अगले साल दूसरा लॉक डाउन, पहले लॉक डाउन ने ससुर को बिस्तर पर पटक दिया था लेकिन दूसरे लॉक डाउन ने उन्हे बिस्तर से उठा कर चिता पर लिटा दिया। आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो गयी और मेरी शादीशुदा जिंदगी भी।
कमाई का जरिया सिर्फ मेरी सास को मिलने वाली ससुर की पेंशन थी, मेरे पति और ज्यादा डिप्रेशन में रहने लगे और हमारे बीच कम हो चुकी बातचीत पूर्ण रूप से खतम हो गयी, एक कमरे, एक बिस्तर पर साथ साथ सोते हुए भी हम दोनों एक दूसरे की तरफ देखते तक नहीं थे। बेमतलब की छोटी छोटी सी बातों जैसे रात को 'पाद' मारने पर हमारे बीच झगड़े शुरु हो गये।
ऐसे ही दिन कट रहे थे मेरे पति सुबह से निकल जाते और देर रात तक घर आते। और एक सुबह जब मै सोकर उठी तो देखा मेरे पति मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे, मै भी उन्हे देख मुस्करा कर सुबह के नित्य कर्म से मुक्त होने बाथरूम में चली गई। नहा धोकर जब वापिस कमरे में आई तो मेरे पति वही बिस्तर पर बैठे हुए थे, उन्हे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरा ही इंतजार कर रहे हो और शायद कुछ कहना चाहते है।
बातचीत तो हमारे बीच खतम ही हो गयी थी तो मसला ये था कि बात की शुरवात कौन, कब और कैसे शुरु करे... मै अपने साड़ी ब्लाउस पहनने के बाद बिना अपने पति की ओर देखे, तोलिया से अपने बाल सुखाने लगी।
'पुरुष प्रधान समाज में पत्नियों का पति के सामने झुकना या हार मान लेना कोई नयी बात नही है।'
मै अपने पति से कहना तो चाहती थी कि ताल्लुक रखना है तो, झगडा कैसा..? ताल्लुक रखना ही नही, तो झगडा कैसा.." पत्नियों ने कभी नहीं मांगा अथाह प्रेम, उन्होंने बस ये चाहा है कि उनके हिस्से में आये प्रेम को बस प्रेम से उन्हें सौंप दिया जाये " लेकिन शायद मेरे होंठ ये कहने से डर रहे थे कि कही सुबह सुबह झगडा ना शुरू हो जाये।
कमरे में मौजूद पति पत्नी की खामोशी को बच्चो ने आकर खतम किया, दोनों बच्चे एक साथ कमरे में आये, बेटी बाप से और बेटा माँ से आकर चिपक गया ....।
बेटा शौर्य मै आज रात को 'दुबई' जा रहा हु
अपने पति के बेटे से कहे गये शब्दो को सुनकर मुझे जोर का झटका लगा.... मैने पलट कर उनकी ओर देखा वो मेरी ओर ही देख रहे थे, उनकी आँखों में आँसू थे। मैने अपने बच्चो से कहा तुम दोनों जाओ चाय नाश्ता करो।
साल डेढ़ साल की चुप्पी को मैने पल भर में तोड़ दिया..!इन शब्दो के साथ मेरा मौन व्रत टूटा
सुनो अब हमारे बीच क्या कुछ भी नही....??
वो बोले... है ना, गिले शिकवे, शिकायते और बिछड़ने का गम.....???
क्या मै इतनी बुरी हू जो मुझे छोड़कर जा रहे हो...?? बरसती आँखों से मैने सवाल किया।
नही;...रेखा, मै तुम्हे छोड़कर नही जा रहा हूँ, मै जिंदगी भर तुम्हारे साथ रहने के लिए ही तुम्हे छोड़कर जा रहा हूँ। मेरी आँखों के आँसू पौछते हुए वो बोले।
मतलब... मै समझी नही. . ???!
रेखा घर की हालत तो तुम्हे पता ही है, तीन चार साल से, मै बेकार घर पर बैठा रहता हूँ या फिर इधर उधर चप्पल चटकाता फिरता हूँ..... एक साल से ज्यादा हो गया हमारे बीच एक बात नही हुयी, हमारे झगड़े इतने बढ़ गये है कि मुझे डर लगता हैं कि जैसे भाभी, 'भाई साहब' को छोड़ गयी, तुम भी मुझे 'भाभी' की तरह छोड़ कर नही चली जाओ....?? बोलते बोलते मेरे पति का गला रुंध गया और वो सिसकने लगे।
मै : तो तुम यही रहकर कोई छोटा-मोटा काम शुरु क्यो नहीं कर लेते...???
मुझे नया व्यापार करने के लिए ज्यादा रुपए चाहिए। अभी दुबई में नौकरी कर पैसा कमाने के लिए ही मै जा रहा हूँ, छे महीने से एजेंट को बोल कर रखा था। कल रात ही उसने मुझे बताया कि एक कंपनी में नौकरी और वीज़ा मिल गया है, आज की दिल्ली से flight है।
मै : तुम यहाँ रहकर ही कोई नौकरी क्यों नही कर लेते..??
वो : इस शहर में रहकर, मै नौकरी नहीं कर सकता???
क्यों. . ???
वो : जिसके कारखाने में 25-30 लोग नौकरी करते थे, वो खुद अब किसी और के कारखाने में नौकरी करे, बस यही बात मेरे दिल में दर्द पैदा कर देती हैं।
मेरे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था आखिर में क्या बोलू, मेरे पति की कही बात सच थी,
फिर भी आप....... इतनी दूर इंडिया के बाहर जाने की क्या जरूरत है.. यही बंबई, दिल्ली में भी नौकरी मिलती होगी।
मिलती है लेकिन पैसे दुबई जितने नही मिलते मुझे ज्यादा और जल्द से जल्द पैसा कमाना है, दुबई की एक दीनार यहाँ के 28 रु के बराबर है। वैसे भी दुबई, बंबई से पास है, हिसार से दिल्ली तीन घंटे, दिल्ली से दुबई दो घंटे का रास्ता है, वो समझाते हुए मुझसे बोले।
उनकी बातों से मेरा मन हल्का तो हुआ था लेकिन दिल में एक डर था।
मै तुम्हारे बिना कैसे जिंदा रहूँगी..???
मेरे गाल को प्यार से चूमते हुये वो बोले रेखा बस एक साल की बात है, एक साल की जुदाई और जिंदगी भर का साथ...!
उसी शाम को मेरे पति दुबई चले गए, दिन बीतने लगे हमारी फोन पर 'व्हाट्स अप' मे रोज बात होती थी, उनका बीच में आना संभव नहीं था. हर रात पति के आलिंगन को तरसती, मैं अपने को रोकती, संभालती रही. फिर बातचीत का सिलसिला थमने लगा अब हफ्ते में एक दो बार ही बात होती..... एक शादीशुदा स्त्री का अकेलापन एक कुंवारी लड़की से ज्यादा खतरनाक होता है, रात को बिस्तर पर तन्हा करवट बदलते हुए अपने को जीवन के अन्य कामों में व्यस्त रखते हुए समझाती रही कि यह तन, यह मन पति के लिए है. किसी की छाया पड़ना, किसी के बारे में सोचना भी गुनाह है. लेकिन यह गुनाह कर गयी मै...!
बच्चे भी बड़े हो गये थे अपने काम खुद ही कर लेते.... दिन भर घर में अकेली सोने से अच्छा मैने अपनी एक सहेली अर्चना के साथ मिल कर 'स्व सहायता समूह' से लोन लेकर अर्चना के साथ मिलकर उसके घर पर टिफिन सेंटर खोल लिया।
हम बाहर से आये हुये अकेले रहने वाले स्टूडेंट और जॉब वाले लड़के लड़किया को खाने का टिफिन सप्लाई करते कभी कभी लड़के लड़किया सेंटर पर भी आकर खाना खाते।
टिफिन सेंटर अब अच्छा चलने लगा था। एक दिन 'विकास' आया. बैंक में जॉब करता था. अकेला ही रहता था. खूबसूरत बांका जवान, गोरा रंग, 6 फुट के लगभग हाइट. उस की आंखें जब जब मुझ से टकरातीं, मेरे दिल में तूफान सा उठने लगता. रात का खाना वह हमारे टिफिन सेंटर पर आकर ही खाता और दिन का बैंक में.....!
विकास अकसर मुझ से हंसीमजाक करता. मुझे यू ट्यूब में नये नये डिशेज का वीडियो दिखाता। हमेशा मेरे हाथों की उंगलियों की तारिफ करता, कभी कभी खाने में जानबूजकर नुस्ख निकाल कर छेड़छाड़ करता और यही हंसीमजाक, छेड़छाड़ मुझे विकास के बहुत करीब ले आई.
इतवार के दिन टिफिन सप्लाई कम होती थी ज्यादा तर स्टूडेंट और जॉब वाले वीकेंड पर अपने गाँव चले जाया करते थे उसी दिन दोपहर में विकास सेंटर पर ही खाना खाने आया। अर्चना कहीं गई हुई थी काम से. विकास ने खाना खा लिया. ढेर सारी बातें हुईं और बातों ही बातों में विकास ने कह दिया, ‘मैं तुम से प्यार करता हूं.’
मुझे उसे डांटना चाहिए था, मना करना चाहिए था. लेकिन नहीं, मैं भी जैसे बिछने के लिए तैयार बैठी थी. मैंने कहा, ‘विकास, मैं शादीशुदा हूं.’
विकास ने तुरंत कहा, ‘क्या शादीशुदा औरत किसी से प्यार नहीं कर सकती? ऐसा कहीं लिखा है? क्या तुम मुझ से प्यार करती हो?’
मैं ने कहा, ‘हां.’ और उस ने मुझे अपनी बांहों में समेट लिया. फिर मैं भूल गई कि मैं दो बच्चो की मां हूं. मैं किसी की ब्याहता हूं. जिस के साथ जीने मरने की मैंने अग्नि के समक्ष सौगंध खाई थी. लेकिन यह दिल का बहकना, विकास की बांहों में खो जाना, उस ने मुझे सबकुछ भुला कर रख दिया. दिन रात किसी 16 साल की लड़की की तरह हरियांवि रोमांटिक गाने गुनगुनाती।
"मैं तन्नै सूं प्यारी, तू प्यारा मेरा मैं तेरी गिरी, तू छुआरा मेरा मैं तन्नै सूं प्यारी, तू प्यारा मेरा मैं तेरी गिरी तू छुआरा मेरा, जी तो मेरा इसा करै, हाय जणू काच्चे नै खा ल्यूं तनै हाय रै तू छाती कै लाग्या रहिये तावीज बणा ल्यूं तनै हाँ छाती कै लाग्या रहिये तावीज बणा ल्यूं तनै"
मैं और विकास अकसर मिलते. प्यारभरी बातें करते. विकास ने एक कमरा किराए पर लिया हुआ था. जब अर्चना ने पूछताछ करनी शुरू की तो मैं विकास के साथ बाहर मिलने लगी. कभी उस के घर पर, कभी किसी होटल में तो कभी कहीं हिल स्टेशन पर. और सच कहूं तो मैं उसे अपने घर पर भी ले कर आई थी.
यह गुनाह इतना खूबसूरत लग रहा था कि मैं भूल गई कि जिस बिस्तर पर मेरे पति संजय का हक था, उसी बिस्तर पर मैं ने बेशर्मी के साथ विकास के साथ कई रातें गुजारीं. विकास की बांहों की कशिश ही ऐसी थी कि संजय के साथ बंधे विवाह के पवित्र बंधन मुझे बेडि़यों की तरह लगने लगे.
मैं ने एक दिन विकास से कहा भी कि क्या वह मुझ से शादी करेगा? उस ने हंस कर कहा, ‘मतलब यह कि तुम मेरे लिए अपने पति को छोड़ सकती हो. इस का मतलब यह भी हुआ कि कल किसी और के लिए मुझे भी.’
मुझे अपने बेवफा होने का एहसास विकास ने हंसी हंसी में करा दिया था. एक बार विकास के आगोश में मैं ने शादी का जिक्र फिर छेड़ा. उस ने मुझे चूमते हुए कहा, ‘शादी तो तुम्हारी हो चुकी है. दोबारा शादी क्यों? बिना किसी बंधन में बंधे सिर्फ प्यार नहीं कर सकतीं.’
‘मैं एक स्त्री हूं. प्यार के साथ सुरक्षा भी चाहिए और शादी किसी भी स्त्री के लिए सब से सुरक्षित व्यवस्था है.’
यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था.
‘विकास, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम बच्चो को अपने साथ रख लें?’
विकास ने हंसते हुए कहा, ‘क्या तुम्हारे बच्चे, मुझे अपना पापा मानेंगे? कभी नहीं. क्या मैं उन्हे, उन के बाप जैसा प्यार दे सकूंगा? कभी नहीं. क्या तलाक लेने के बाद अदालत बच्चे तुम्हें सौंपेगी? कभी नहीं. क्या वह बच्चे मुझे हर घड़ी इस बात का एहसास नहीं दिलायेगे कि तुम पहले किसी और के साथ…किसी और की निशानी…क्या बच्चो में तुम्हें अपने पति की यादें…देखो रेखा, मैं तुम से प्यार करता हूं. लेकिन शादी करना तुम्हारे लिए तब तक संभव नहीं जब तक तुम अपना अतीत पूरी तरह नहीं भूल जातीं.
‘अपने मातापिता, भाईबहन, सासससुर, जेठ जेठानी, अपनी शादी, अपनी सुहागरात, अपने पति के साथ बिताए पल पल. यहां तक कि अपने बच्चे भी क्योंकि यह बच्चे सिर्फ तुम्हारे नहीं है. इतना सब भूलना तुम्हारे लिए संभव नहीं है.
‘कल जब तुम्हें मुझ में कोई कमी दिखेगी तो तुम अपने पति के साथ मेरी तुलना करने लगोगी, इसलिए शादी करना संभव नहीं है. प्यार एक अलग बात है. किसी पल में कमजोर हो कर किसी और में खो जाना, उसे अपना सबकुछ मान लेना और बात है लेकिन शादी बहुत बड़ा फैसला है. तुम्हारे प्यार में मैं भी भूल गया कि तुम किसी की पत्नी हो. किसी की मां हो. किसी के साथ कई रातें पत्नी बन कर गुजारी हैं तुम ने. यह मेरा प्यार था जो मैं ने इन बातों की परवा नहीं की. यह भी मेरा प्यार है कि तुम सब छोड़ने को राजी हो जाओ तो मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं. लेकिन क्या तुम सबकुछ छोड़ने को, भूलने को राजी हो? कर पाओगी इतना सबकुछ?’ विकास कहता रहा और मैं अवाक खड़ी सुनती रही.
‘यह भी ध्यान रखना कि मुझ से शादी के बाद जब तुम कभी अपने पति के बारे में सोचोगी तो वह मुझ से बेवफाई होगी. क्या तुम तैयार हो?’
‘तुम ने मुझे पहले क्यों नहीं समझाया ये सब?’
‘मैं शादीशुदा नहीं हूं, कुंआरा हूं. तुम्हें देख कर दिल मचला. फिसला और सीधा तुम्हारी बांहों में पनाह मिल गई. मैं अब भी तैयार हूं. तुम शादीशुदा हो, तुम्हें सोचना है. तुम सोचो. मेरा प्यार सच्चा है. मुझे नहीं सोचना क्योंकि मैं अकेला हूं. मैं तुम्हारे साथ सारा जीवन गुजारने को तैयार हूं लेकिन "वफा के वादे के साथ."
मैं रो पड़ी. मैं ने विकास से कहा, ‘तुम ने पहले ये सब क्यों नहीं कहा.’
‘तुम ने पूछा नहीं.’
‘लेकिन जो जिस्मानी संबंध बने थे?’
‘वह एक हम दोनों की तन्हाई का पल था. वह, वह समय था जब तुम कमजोर पड़ गई थीं. मैं कमजोर पड़ गया था. वह पल अब गुजर चुका है. उस तन्हाई के पल में हम प्यार कर बैठे. इस में न तुम्हारी खता है न मेरी. दिल पर किस का जोर चला है. लेकिन अब बात शादी की है.’
विकास की बातों में सचाई थी. वह मुझ से प्यार करता था या मेरे जिस्म से बंध चुका था. जो भी हो, वह कुंआरा था. तनहा था. उसे हमसफर के रूप में कोई और न मिला, मैं मिल गई. मुझे भी उन तन्हाई के पलों को भूलना चाहिए था जिन में, मैंने अपने विवाह को अपवित्र कर दिया. मैं परपुरुष के साथ सैक्स करने के सुख में, देह की तृप्ति में ऐसी उलझी कि सबकुछ भूल गई. अब एक और सब से बड़ा कदम या सब से बड़ी बेवकूफी कि मैं अपने पति से तलाक ले कर विकास से शादी कर लूं. क्या करूं मैं, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था.
हां, मैं एक साधारण नारी हू, मुझ पर भी किसी का जादू चल सकता है. मैं भी किसी के मोहपाश में बंध सकती हूं, ठीक वैसे ही जैसे कोई बच्चा नया खिलौना देख कर अपने पास के खिलौने को फेंक कर नए खिलौने की तरफ हाथ बढ़ाने लगता है.
नहीं…मैं कोई बच्ची नहीं. पति कोई खिलौना नहीं. घरपरिवार, शादीशुदा जीवन कोई मजाक नहीं कि कल दूसरा मिला तो पहला छोड़ दिया. यदि अहल्या को अपने भ्रष्ट होने पर पत्थर की शिला बनना पड़ा तो मैं क्या चीज हूं. मैं भी एक औरत हूं, मेरे भी कुछ अरमान हैं. इच्छाएं हैं. यदि कोई अच्छा लगने लगे तो इस में मैं क्या कर सकती हूं.
मैं ने विकास से पूछा, ‘मेरी जगह तुम होते तो क्या करते?’
विकास हंस कर बोला, ‘ये तो दिल की बातें हैं. तुम्हारी तुम जानो. यदि तुम्हारी जगह मैं होता तो शायद मैं तुम्हारे प्यार में ही न पड़ता या अपने कमजोर पड़ने वाले क्षणों के लिए अपने आप से माफी मांगता. पता नहीं, मैं क्या करता?’
विकास ये सब कहीं इसलिए तो नहीं कह रहा कि मैं अपनी गलती मान कर वापस चली जाऊं, सब भूल कर. फिर जो इतना समय इतनी रातें विकास की बांहों में बिताईं. वह क्या था? प्यार नहीं मात्र वासना थी? दलदल था शरीर की भूख का? कहीं ऐसा तो नहीं कि विकास का दिल भर गया हो मुझ से, अपनी हवस की प्यास बुझा ली और अब विवाह की रीतिनीति समझा रहा हो? यदि ऐसी बात थी तो जब मैं ने कहा था कि मैं ब्याहता हूं तो फिर क्यों कहा था कि किस किताब में लिखा है कि शादीशुदा प्यार नहीं कर सकते?
विकास ने आगे कहा, ‘किसी स्त्री के आगोश में किसी कुंआरे पुरुष का पहला संपर्क उस के जीवन का सब से बड़ा रोमांच होता है. मैं न होता कोई और होता तब भी यही होता. हां, यदि लड़की कुंआरी होती, अकेली होती तो इतनी बातें ही न होतीं. तुम उन क्षणों में कमजोर पड़ीं या बहकीं, यह तो मैं नहीं जानता लेकिन जब तुम्हारे साथ का साया पड़ा मन पर, तो प्यार हो गया और जिसे प्यार कहते हैं उसे गलत रास्ता नहीं दिखा सकते.’
मैं रोने लगी, ‘मैं ने तो अपने हाथों अपना सबकुछ बरबाद कर लिया. तुम्हें सौंप दिया. अब तुम मुझे दिल की दुनिया से दूर हकीकत पर ला कर छोड़ रहे हो.’
‘तुम चाहो तो अब भी मैं शादी करने को तैयार हूं. क्या तुम मेरे साथ मेरी वफादार बन कर रह सकती हो, सबकुछ छोड़ कर, सबकुछ भूल कर?’ विकास ने फिर दोहराया.
इधर, संजय, मेरे पति वापस आ गए. मैं अजीब से चक्रव्यूह में फंसी हुई थी. मैं क्या करूं? क्या न करूं? संजय के आते ही घर के काम की जिम्मेदारी ली. एक पत्नी बन कर रहना. मुझे मां और पत्नी दोनों का फर्ज निभाना था. मैं निभा भी रही थी. और ये निभाना किसी पर कोई एहसान नहीं था. ये तो वे काम थे जो सहज ही हो जाते थे.
लेकिन टिफिन सेंटर पर जाते ही विकास आ जाता या मैं उस से मिलने चल पड़ती, दिल के हाथों मजबूर हो कर.
मैं ने विकास से कहा, ‘‘मैं तुम्हें भूल नहीं पा रही हूं.’’
‘‘तो छोड़ दो सबकुछ.’’
‘‘मैं ऐसा भी नहीं कर सकती.’’
‘‘यह तो दोतरफा बेवफाई होगी और तुम्हारी इस बेवफाई से होगा यह कि मेरा प्रेम किसी अपराधकथा की पत्रिका में अवैध संबंध की कहानी के रूप में छप जाएगा. तुम्हारा पति तुम्हारी या मेरी हत्या कर के जेल चला जाएगा. हमारा प्रेम पुलिस केस बन जाएगा,’’ विकास ने गंभीर होते हुए कहा.
मैं भी डर गई और बात सच भी कही थी विकास ने. फिर वह मुझ से क्यों मिलता है? यदि मैं पूछूंगी तो हंस कर कहेगा कि तुम आती हो, मैं इनकार कैसे कर दूं. मैं भंवर में फंस चुकी थी. एक तरफ मेरा हंसताखेलता परिवार, मेरी सुखी विवाहित जिंदगी, मेरा पति, मेरे बच्चे और दूसरी तरफ उन तन्हाई के पलों का साथी विकास जो आज भी मेरी कमजोरी है.
इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. एक दिन पति को भनक लग ही गयी....!
अब क्या होगा? मै सोच रही थी, क्या कहेगा पति? क्यों किया तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा? क्या कमी थी मेरे प्यार में? क्या नहीं दिया मैं ने तुम्हें? घरपरिवार, सुखी संसार, पैसा, इज्जत, प्यार किस चीज की कमी रह गई थी जो तुम्हें बदचलन होना पड़ा? क्या कारण था कि तुम्हें चरित्रहीन होना पड़ा? मैं ने तुम से प्यार किया. शादी की. हमारे प्यार की निशानी हमारे दो प्यारे बच्चे. अब क्या था बाकी? सिवा तुम्हारी शारीरिक भूख के. तुम पत्नी नहीं वेश्या हो, वेश्या.
और उस रात मेरे पति शाराब पी कर आये गुस्से में कहा " बोलती थी तुम्हारे बिना मर जाऊंगी, मरी तो नही..पर मरवा खूब रही हो.... ।
पापा की तेज आवाज सुनकर बच्चे भी कमरे में झांकने लगे, बच्चो को यू झांकता देख उन्होंने बच्चों के सर पर हाथ फेरते हुए उन्हे वापस कमरे में जाकर सोने के लिए कहा।
मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे वो मेरे करीब आये और बोले " रेखा बफादार बीवी मर्द की सबसे बड़ी दोलत होती है, तुम्हारे अलावा शायद अब मै किसी और से तुम जैसा प्यार कर पाऊ, पर हा, ये यकीन है मुझे, तुम जितना दुखी अब कोई और नही कर पायेगा मुझे...!
इक बार मेरी बात तो सुनिये...!
ना.... तुम मेरी बात सुनो ‘‘रहना है तो तरीके से रहो वरना तलाक लो और जहां मुंह काला करना हो करो. दो में से कोई एक चुन लो, प्रेमी या पति. दो नावों की सवारी तुम्हें डुबो देगी और हमें भी.’’
उन्होंने दोटूक कहा था,
मैं शर्मिंदा थी. मैं गुनाहगार थी. मैं चुप रही. मैं सुनती रही. रोती रही.
अगले दिन मै फिर विकास से मिली...
मै तुम से शादी नहीं कर सकता. मैं एक ऐसी औरत से शादी करने की सोच भी नहीं सकता जो दोहरा जीवन जीए. तुम मेरे लायक नहीं हो. आज के बाद मुझ से मिलने की कोशिश मत करना. वे तन्हाई के पल मेरी पूरी जिंदगी को तन्हा बना कर खतम कर देंगे. आज के बाद आईं तो बेवफा कहलाओगी दोनों तरफ से. उन तन्हाई के पलों को भूलने में ही भलाई है.’’ मैं चली आई. उस के बाद कभी नहीं मिली विकास से.....!
अर्चना ने ही एक बार बताया कि वह शहर छोड़ कर चला गया है. हां, अपनी बेवफाई, चरित्रहीनता पर अकसर मैं शर्मिंदगी महसूस करती रहती हूं. खासकर तब जब कोई वफा का किस्सा निकले और मैं उस किस्से पर गर्व करने लगूं तो पति की नजरों में कुछ हिकारत सी दिखने लगती है. मानो कह रहे हों, तुम और वफा. पति सभ्य थे, सुशिक्षित थे और परिवार के प्रति समर्पित.
कभी कुलटा, चरित्रहीन, वेश्या नहीं कहा. लेकिन अब शायद उन की नजरों में मेरे लिए वह सम्मान, प्यार न रहा हो. लेकिन उन्होंने कभी एहसास नहीं दिलाया. न ही कभी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह छिपाया.
मैं सचमुच आज भी जब उन तन्हाई के पलों को सोचती हूं तो अपनेआप को कोसती हूं. काश, उस क्षण, जब मैं कमजोर पड़ गई थी, कमजोर न पड़ती तो आज पूरे गर्व से तन कर जीती. लेकिन क्या करूं, हर गुनाह सजा ले कर आता है. मैं यह सजा आत्मग्लानि के रूप में भोग रही थी. विकास जैसे पुरुष बहका देते हैं लेकिन बरबाद होने से बचा भी लेते हैं.
स्त्री के लिए सब से महत्त्वपूर्ण होती है घर की दहलीज, अपनी शादी, अपना पति, अपना परिवार, अपने बच्चे. शादीशुदा औरत की जिंदगी में ऐसे मोड़ आते हैं कभी कभी. उन में फंस कर सबकुछ बरबाद करने से अच्छा है कि कमजोर न पड़े और जो भी सुख तलाशना हो, अपने घरपरिवार, पति, बच्चों में ही तलाशे. यही हकीकत है, यही रिवाज, यही उचित भी है.
समाप्त