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Tony269

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Review for Story: Manhoos Gaon
By - Tony269

A Dark themed story where the antagonist is in the lead role. I must say the story had a lot of potential if you had focused on its presentation. The way you have presented it and described the details, gave the hint that Pratap was the main villain. Maybe you could have shown us more about the incidents as a chain of events.

Alas! A very good plot for the story but couldn't be executed well enough. One more thing don't change paragraphs in the middle of a sentence. You have potential, just need to work on it. Hoping your other story will be better.

Good luck with the contest.
Thank you for your review.
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Story: ------ वफा का वादा ----------
Writer: Rekha rani

Story Line: एडल्ट्री पर आधारित ये कहानी एक अच्छा संदेश देती है। जिसमें एक शादी शुदा जोड़े की मर्यादा की बात की गई है, हां लेखिका ने इसे बस औरत के दृष्टिकोण से बताया है, लेकिन ये दोनो पर बराबर लागू होता है।

Treatment: रेखा जी ने हमेशा की तरह इस कहानी को effortlessly लिखा है, वैसे भी एडल्ट्री लिखने में रेखा जी सिद्धहस्त हैं। कहानी से कनेक्टेड महसूस होता है। सारे किरदारों को अच्छे से डेवलप किया है।

positive points: विकास और रेखा का संवाद, जब रेखा शादी के लिए कहती है, और संजय और रेखा का संवाद जब संजय को सच्चाई का पता चलता है, बेहतरीन हैं। कहानी से जुड़ाव महसूस होता है।

negative points: ऐसे तो कुछ भी नेगेटिव जैसा नही है, लेकिन जब विकास रेखा को नैतिकता का पाठ पढ़ा रहा था, तब रेखा का मौन रहना थोड़ा अखरा मुझे। और अंत में जो मर्यादा की बात हुई वो भी एकतरफा लगी, हालांकि वो सिर्फ स्त्री के दृष्टिकोण से लिखी बात है।

sugesstion: रेखा जी जैसी मंझी हुई लेखिका को सुझाव देना सूरज को दिए दिखाने समान है, पर फिर भी मैं इनको कुछ अलग विधाओं में देखना चाहता हूं, क्योंकि इसमें आप खुद को रिपीट कर रही हैं।

rating: 9/10
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Story: Motherly love - Limitless

writer: The Kumar




Story Line: इंसेस्ट पर आधारित ये कहानी एक ऐसी पत्नी की है जो खुद ही अपने पति के संबंध अपनी सास से बनवा देती है।



Treatment: कहानी की शुरुवात, और बिल्ट अप बेहतरीन किया है आपने, लेकिन आपकी कहानी अगर जो इंसेस्ट के दृष्टि से देखा जाय तो कुछ कर नही पाई, और अगर जो सामाजिक कहानी के रूप में लें तो उसका अंत बड़ा ही अजीब था।



Positive Points: कहानी का बिल्ट अप सही था और अगर जो लेखक का इरादा इसे सेक्स से परे कुछ और दिखाने का होता तो बहुत ही जबरदस्त प्लॉट पान सकता था, क्योंकि बच्चा ना होना किसी भी जोड़े के लिए बहुत ही दुखदाई होताहै।



Negative Points: कहानी अपने किसी भी पर्पज को पूरा नहीं करती। शब्दों की भरपूर गलतियां हैं और इस कहानी का सबसे बेसिक शब्द कंसिव है जगह गलत convince लिखा है।



Sugesstion: आपने पोटेंशियल है, लेकिन सेक्स से परे होकर लिखिए। और कहानी के उद्देश्य के प्रति सही दृष्टिकोण रखिए। उसे उलझाइए नही।



Rating: 5.5/10
 
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Reactions: Black and Shetan

Black

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गलती किसकी


"सिगरेट से उड़ते धुएं और हाथ में पकड़े वोदका के ग्लास के साथ, मैं रूबी। रूबी मैडम या रूबी डार्लिंग, जिसको बाहों में सामने की हसरत हर मर्द में देखते ही आ जाए, जिसकी बाहों में हर मर्द पिघल कर जिस्मानी सकून में डूब जाता है, फिर जिसे अपनी बीवी की याद भी नहीं आती जब तक वो इन बाहों में पड़ा रहे। हां एक बार दूर जाते ही वो मुझे हिकारत भरी नजर से जरूर देख कर मन में "साली रण्डी" जरूर बोलता होगा।


आज मैं इस शानदार होटल के सबसे महंगे कमरे की बालकनी से अपने उस शहर को निहार रही हूं, जहां बचपन बीता, लड़कपन बीता जवानी की दहलीज आई, जन्म हुआ।


नही, यहां रूबी का जन्म नही हुआ, यहां तो रिया का जन्म हुआ था। वो रिया जिसके आने से उसके मां बाप की अपूर्ण जिंदगी पूर्ण हो गई। वो रिया जो चंचल और मासूम थी, जिसकी हंसी से ही उसके मां बाप का दिन और रात होती थी। दुनिया के सारे रिश्ते उसे इसी शहर में मिले, हां प्यार भी, या वो गलती जिसने रिया को रूबी बना दिया। रूबी, जिसे दुनिया भर की चालाकी आती है और जो एक नंबर की रांड है दुनिया की नजर में, लेकिन आज भी वो रूबी, रिया को मार नही पाई है..."


ग्लास का आखिरी घूंट पी कर रूबी सिगरेट को ऐश ट्रे में मसल कर कमरे में जाती है और फोन उठा कर रिसेप्शन से बात करके अपने रुकने का प्लान और बढ़ा लेती है। और बेड पर लेट कर अपनी पिछली जिंदगी की यादों में खो जाती हैं।


साल 1995 में रोहित माथुर और राधा माथुर को एक बेटी पैदा हुई, दोनो की ये पहली संतान थी जो उनके दांपत्य जीवन के नौवें वर्ष में हुई थी, इतने दिनो तक दोनो पूरे परिवार का हर ताना सह चुके थे, हर दरबार में माथा टेक चुके थे, डॉक्टरों ने भी कहा था कि दोनो में ही कोई दिक्कत नही, फिर भी इतने वर्षों तक भगवान ने उनकी न सुनी। आखिरकार 8 वर्ष पश्चात खुशियों ने उनका द्वार खटखटाया और एक बहुत ही सुंदर और प्यारी बेटी ने उनके जीवन में कदम रखा। दोनो ने उसका नाम रिया रखा। रिया जितनी सुंदर थी, वहीं उसमे बालसुलभ चंचलता कूट कूट कर भरी हुई थी। लेकिन सबसे बड़ा जो बदलाव माथुर दंपति के जीवन में आया था कि रिया के जन्म के साथ ही सौभाग्य ने भी उनके जीवन में लगभग घर ही बसा लिया था। रोहित माथुर का बिजनेस जहां दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगा था। रिया के जन्म के दूसरे ही साल उनको एक बेटा भी हुआ, जिसका नाम उन्होंने राहुल रखा। रिया भी राहुल से बहुत प्यार करती थी।


धीरे धीरे वो दोनो भाई बहन बड़े होने लगे और चारों का स्नेह भी बढ़ता गया। भगवान ने भले ही समृद्ध कर दिया हो उनको, लेकिन माथुर दंपति का दिमाग हमेशा धरातल पर रहा, और उन्होंने भी अपने बच्चो को अच्छे संस्कार ही दिए। ऐसे ही कुछ वर्षों के बाद रिया कॉलेज पहुंच कर जवानी की दहलीज पर आ गई।


और जैसा होता है, इस उम्र में, उसे भी कोई अच्छा लगने लगा। ये उसका सीनियर था, जो उसके ही शहर का रहने वाला था, आदित्य, जो उससे एक साल सीनियर था।जानती तो वो आदित्य को पहले से थी, क्योंकि दोनो एक ही स्कूल से ही कॉलेज में आए थे। कॉलेज के पहले ही दिन रिया को आदित्य ने कॉलेज में होने वाली रैगिंग से बचा लिया था, तो दोनो में बातचीत भी होने लगी, और धीरे धीरे दोनो ने एक दूसरे को अपना दिल दे दिया। जीन मरने की कसमें खाई जाने लगी। लेकिन फिर भी दोनो ने कभी कोई मर्यादा पार नही की, क्योंकि दोनो की ही परवरिश उनके परिवारों ने अच्छे से की थी। दोनो का पहला लक्ष्य पहले पढ़ाई पूरी करके अपने कैरियर को पूरा करने का था, और दोनो ने ही आईएएस अफसर बनने का ख्वाब देखा था।


सब कुछ अच्छा जा रहा था, लेकिन हर वक्त कहां वक्त एक सा रहता है। रिया के मामा के घर में एक कांड हो गया। उनकी इकलौती बेटी निशा की शादी आनन फानन में एक बड़ी उम्र के लड़के से कर दी गई। ये जान कर रिया को एक धक्का सा लगा, क्योंकि वो और निशा बहन ही नही बल्कि सहेलियां थी, बचपन से ही दोनो एक दुसरे से सारी बातें बताती आएं थी। दोनो के बीच कोई बात छिपी नहीं थी, यहां तक कि निशा को आदित्य के बारे में सब पता था, और वहीं रिया को दिवाकर के बारे में, जो निशा का ब्वॉयफ्रेंड था, और दोनो का ही इरादा आगे चल कर शादी करने का था।


निशा की शादी की खबर सुन कर पूरा माथुर परिवार मामा के घर चला गया, क्योंकि ये उनके घर के लिए बड़े ही आश्चर्य का विषय था। उनका पूरा खानदान ही खुले विचारों वाला था, और इस तरह की घटना होना सबके लिए अजीब ही था। वहां पहुंचते ही रोहित और राधा ने पहले तो निशा के मां बाप को लताड़ा उनकी इस अजीब सी हरकत के लिए। लेकिन राजीव (रिया के मामा) ने फौरन ही दोनो को एक कमरे में चलने का इशारा किया और रिया और राहुल को बच्चो के कमरे में जाने को कहा।


इधर रिया सीधे निशा के कमरे में गई, और निशा उसको देखते ही उसे लिपट कर रोने लगी। रिया ने निशा को बाहों में भर कर सांत्वना देने लगी। कुछ देर बाद निशा के शांत होने पर रिया ने पूछा: "ऐसा क्या हुआ निशा, मामा ने अचानक से ऐसा क्यों किया?"


निशा: "रिया उनको दिवाकर के बारे में पता चल गया था, और इसी कारण से मेरी शादी इतनी जल्दी में करवा दी। मेरी तो जिंदगी बरबाद हो गई है।" इतना बोल कर निशा फिर से रो पड़ी।


रिया: " तो तुमने मामा को मानने की कोशिश नही की?"


निशा: "बहुत कोशिश की, लेकिन पापा को तो मेरी ही गलती दिखी इसमें। और ज्ञानेंद्र, जो पापा के ऑफिस में उनका सीनियर है, वो भी पापा को बड़ा भला दिखा। बांध दिया मुझे उसके साथ।"


कुछ देर बाद निशा में मां ने रिया को बाहर बुला लिया, जहां ज्ञानेंद्र आया हुआ था। देखने में वो भला ही था, और रोहित जी भी उससे बड़े प्यार से ही बात कर रहे थे।


राधा: "बेटा इनसे मिलो, ये हैं तुम्हारे जीजाजी।"


रिया को अपनी मां का ये रूप देख भी थोड़ा धक्का लगा, अब उसे अपने प्यार की चिंता घर कर गई थी, कि अगर जो उसके मां बाप का ये हाल है तो वो आदित्य के साथ उसके रिश्ते को कैसे स्वीकार करेंगे।


इसी उधेड़बुन में रिया जब कुछ दिन बाद कॉलेज में आदित्य से मिली, तो सबसे पहले उसने आदित्य से ये बात बताई, और अपने अपने रिश्ते की भविष्य की चिंता करने लगी।


रिया: " आदि, जैसे मां पापा ने मामा के घर में किया उससे तो मुझे लगता है कि वो हमारा रिश्ता कभी स्वीकार नहीं करेंगे।"


आदित्य: "रिया अभी से दिल छोटा मत करो, हमें पहले अपने लक्ष्य पर ध्यान देना होगा। और मुझे नही लगता कि जैसा निशा के साथ हुआ वो हमारे साथ भी हो। हो सकता हो कि कुछ ऐसी बात हो जो तुमको अभी नही पता हो। फिलहाल शांत करो अपने आप को, और पढ़ाई पर ध्यान दो।"


आदित्य ने हर तरह से रिया को समझाने की कोशिश की, लेकिन रिया के मन में डर सा बैठ गया था। और वो रोज आदित्य को भागने के लिए उकसाती रहती थी। आखिर एक दिन आदित्य भी मान गया और दोनो ने उस शहर से भाग कर दिल्ली जाने का प्लान बनाया।


फिर एक दिन दोनो बिना किसी को बताए घर छोड़ कर दिल्ली चले गए। दोनो ने घर से थोड़े थोड़े पैसे चुराए थे। हालांकि भागते समय भी आदित्य ने कई बार फिर से रिया को समझाने की कोशिश की। लेकिन अब तो बात बहुत आगे निकल चुकी थी।


दिल्ली में पहुंच कर दोनो ने सबसे पहले एक सस्ते से होटल को ढूंढा जो कि पहाड़गंज की गलियों के बीच था। वहां उनको एक कमरा मिल गया था। कमरे के किराए को देखते हुए आदित्य को टेंशन हो गई क्योंकि उनके पास बहुत ही कम पैसे थे, और अभी तो उन्होंने बाहर की दुनिया में कदम ही रखा था। खैर नए पंछियों का नया आशियाना था तो कुछ दिन तो हवा की तरह बीत गए। लेकिन एक दिन आदित्य ने देखा की कुल पैसों में अब वो बस 4 5 दिन और गुजर सकते हैं।


ये देख आदित्य ने फिर एक बार रिया को वापस चलने को बोला, लेकिन रिया अब भी नही मानी। अगले दिन आदित्य सुबह जल्दी उठा और रिया के जागने से पहले ही होटल से निकल गया।


सो कर उठने पर रिया ने खुद को अकेला पाया और वो परेशान हो कर होटल के रिसेप्शन पर पहुंच कर आदित्य के बारे में पूछने लगी। होटल का मालिक उस समय वहीं पर था, और उसने अपने स्टाफ से धीरे से रिया की जानकारी ली। स्टॉफ को भी आदित्य के बारे में कुछ मालूम नही था कि वो कहां गया है।


होटल के मालिक को रिया बहुत पसंद आ गई थी, इसीलिए उसने पहले बड़े प्यार से उससे बात की, और कहा कि वो परेशान न हो, आदित्य यहीं कहीं आस पास होगा और जल्दी ही वापस आ जायेगा। अपने स्टाफ से बोल कर उसने रिया के कमरे में कुछ खाने पीने को भी भिजवा दिया।


खाना खाने के कुछ समय के बाद रिया को नींद आ गई, और जब वो सो कर उठी तब वो कहीं और थी। उसे कुछ समझ नही आया। कुछ समय बाद दरवाजा खुला और उसमे से होटल का मालिक अंदर आया। उसको देखते ही रिया चिल्लाते हुए बोली: "मुझे यहां क्यों लाए हो?"


होटल मालिक, एक कुटिल मुस्कान के साथ: "तेरा आशिक तुझे मुझे बेच कर चला गया है पूरे एक लाख में। अब तू मेरी है और मैं तेरी इस जवानी का रस लूटूंगा।"


इतना बोल कर उसने रिया के साथ जबरदस्ती की, वो चिल्लाती रही चीखती रही, लेकिन कोई नही था सुनने वाला।


अब रोज ही वो किसी न किसी के हवस का शिकार बनती। धीरे धीरे उसे इनकी आदत पड़ने लगी, सेक्स सिगरेट और शराब उसकी जिंदगी का हिस्सा बन गए थे। उसे शहर की बदनाम गलियों में भेज दिया गया।


रिया बुद्धि की तेज थी, और उसे ये भी पता था कि अब यही उसकी जिंदगी है। इसीलिए जल्दी ही उसने अपने दिमाग से उस जगह पर अपनी पहचान बना ली। अब रिया, रूबी मैडम बन चुकी थी, और उसके नीचे कितनी ही लड़कियां इस धंधे में आ गई थी।


आज उसके पास पैसों को कोई कमी नही थी, बड़े बड़े लोगों से उसके कॉन्टैक्ट बन गए थे। लेकिन आज भी एक कसक उसके अंदर थी, अपने परिवार से मिलने की, और आदित्य से ये पूछने कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया?


ये सब सोचते सोचते रिया सो गई। सुबह उठने पर उसने किसी को कॉल लगा कर 25 लाख का इंतजाम करने बोला। आधे घंटे में एक बैग उसके कमरे में पहुंच चुका था। थोड़ी देर बाद वो अपने ड्राइवर के साथ कार में होटल से निकल गई, और अपने घर से कुछ दूर कर रुकवा कर अपने उस घर को देखने लगी जिसमें उसने अपनी जिंदगी के सबसे खुशियों वाले दिन बिताए थे।


उसने अपने ड्राइवर को बैग दिया और कहां कि उस घर की बेल बजा कर बैग रख कर भाग आए। ड्राइवर ने वैसा ही किया।


कुछ देर बाद घर का दरवाजा खुला, और उसमे से उसके पिता रोहित बाहर निकले। देखने से काफी थके और बूढ़े दिखने लगे थे वो, ऐसा लग रहा था कि जैसे जीने की चाह ही नही रह गई हो उनको।


दरवाजा खोल कर कुछ देर इधर उधर देखने के बाद उनकी नजर बैग पर पड़ी, उसे खोल कर देखते ही वो उसको अंदर ले कर चले गए। जैसे ही वो अंदर गए, रिया ने गाड़ी वहां से बढ़वा दी।


कुछ देर बाद रिया एक होटल के एक कोने में बैठी थी। ये वही होटल था जहां वो और आदित्य अक्सर आया करते थे। रिया वहां बैठी अपनी काफी पी रही थी, कि तभी वहां एक फैमिली आई, एक आदमी, औरत और एक बच्ची थी साथ में। तीनों को देख कर दिमाग में बस यही आता कि कितना खुशहाल परिवार है ये।


वो परिवार रिया की टेबल से उल्टी साइड बैठ गया जहां से रिया तो उनको देख पा रही थी, लेकिन वो रिया को नही देख सकते थे।उनको देख रिया की आंखें भर आई, लेकिन काले चश्मे के पीछे क्या है ये कोई जान नही पाया।


वो आदमी आदित्य था। रिया उनको ही देख रही थी, तभी आदित्य के फोन पर किसी का फोन आया। कुछ देर बात करके उसने चारो ओर देखा, और उसकी नजर रिया पर पड़ी, और वो खुशी से उछल कर खड़ा हो गया। उसको ऐसे देख साथ वाली औरत ने भी आदित्य की नजरों का पीछा किया और वो भी रिया को देख कर बहुत खुश हो गई।


ये देख रिया को बड़ा आश्चर्य हुआ, तभी उसी होटल में एक और आदमी आया, जिसे देख वो औरत बड़ी खुशी से उसके गले लगी। तब तक आदित्य रिया के पास आ चुका था, और उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे।


आदित्य: " कहां कहां नही ढूंढा तुमको रिया, कहां थी तुम इतने दिनो से?"


रिया हड़बड़ाते हुए, "कौन हो आप? और कौन रिया?"


आदित्य, "रिया अभी पापा का फोन आया था, वहां तुमने ही पैसे पहुंचाए हैं न?"


ये सुन कर रिया उससे आंख चुराने लगी।


आदित्य, पीछे मुड़ कर, "भाभी, भैया, ये रिया ही है।"


आदित्य की आवाज में खुशी छलक रही थी। और रिया खुद में सिमटी जा रही थी।


तभी वो आदमी और औरत पास आ गए।


आदमी, "रिया ये तुम ही हो न?"


औरत ने उसे अपनी बाहों में भर लिया, "जब से शादी हुई है आदि भैया को बस तुम्हारे नाम पर तड़पते देखा है मैंने। रिया कहां थी तुम अब तक आखिर?"


रिया उस औरत से छूटते हुए, "आदित्य पहले मुझे मेरे सवालों का जवाब चाहिए।"


अब रिया की आंखें अंगारे बरसा रही थी।


आदित्य, सर झुकाए हुए: "जनता हूं रिया, तुम्हारा गुनहगार हूं मैं, बिना बताए चला आया था वहां से, लेकिन बीच रास्ते से वापस पहुंचा तो तुम वहां से चली गई थी।"


रिया: " मैं चली गई थी या तुमने मुझे उस होटल मालिक को बेच दिया था?"


"ये क्या कह रही हो रिया?" आदित्य के भैया ने कहा, "आदित्य भला ऐसा सोच भी कैसे सकता है?"


रिया की बात सुन कर आदित्य और उसकी भाभी भी उसे हैरानी से देख रहे थे।


"पहले सब लोग चलो यहां से और कहीं।" आदित्य की भाभी ने कहा।


सब लोग एक मंदिर में पहुंचे जहां शांति और एकांत था।


आदित्य ने कहा, "पता है रिया तुम कितनी बड़ी गलतफहमी का शिकार हुई थी? निशा के ब्वॉयफ्रेंड ने चुपके से उसकी अंतरंग फोटो और वीडियो निकाल लिया था और निशा के पापा से पैसे ऐंठना चाहता था, वो तो भला हो उनके बॉस का जिन्होंने न सिर्फ निशा को बदनाम होने से बचाया, बल्कि उससे शादी करके निशा के परिवार को भी सहारा दिया।"


अब रिया आश्चर्य से आदित्य को देख रही थी।


आदित्य, "ये बात निशा को शादी के कुछ दिन बाद बताई गई थी, जब दिवाकर को सबूत के साथ गिरिफ्तार कर लिया गया था। और ये बात दबी रहे इसीलिए उस समय किसी को नही बताया गया था उसे। तुम एक बार इस बारे में पापा से बात तो करती, शायद फिर भागने का खयाल भी नही आता तुम्हारे दिमाग में।"


भाभी, " आदि भैया ने तुम्हारे जाने के बाद कहां कहां नही ढूंढा तुम्हे, और साथ में तुम्हारे पापा भी दर दर की ठोकरें खाते रहे। सदमे से तुम्हारी मां ने बिस्तर पकड़ लिया था, और 2 साल वो सबको छोड़ कर चली गईं। आज भी तुम्हारे पापा और भाई भाभी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।"


आदित्य, "रिया तुम थी कहां?"


ये बातें सुन कर रिया फूट फूट कर रोने लगी, और अपनी आप बीती बताती गई।


सारी बातें सुन कर आदित्य ने उसे अपने गले लगा लिया और कहा, "भूल जाओ जो भी हुआ, चलो अब हम अपना अलग संसार बसा लेते हैं।"


इस पर रिया कुछ नही कहती और बात को बदल कर अपने परिवार के बारे में पूछती है। वो सब कुछ और बातें करते हैं।


आदित्य फिर रिया से साथ चलने को कहता है।


रिया उससे कहती है, "कल सुबह तुम आ कर मुझे *** होटल के रूम नंबर 916 से ले जाना। और अभी घर पर कुछ बताना नही। मैं सबसे कल ही मिलूंगी, सरप्राइज़ दूंगी।"



अगले दिन आदित्य सुबह ही उस होटल में पहुंच गया, और सीधे रिया के कमरे के बाहर पहुंच कर बेल बजने लगा, मगर दरवाजा नही खुला। आदित्य ने होटल स्टाफ की भी मदद ली और डुप्लीकेट चाबी से दरवाजा खोल कर अंदर गया। कमरे में रिया का बेजान शरीर बेड पर पड़ा था, और उसके हाथ में उसके परिवार की और आदित्य की फोटो थी, जिसे वो घर से भागते समय अपने साथ ले आई थी, और एक तरफ एक चिट्ठी.....
Ricky Bhai
Ham sone Jaa rahe the
Tabhi socha aapki kahani padh leta hoon
Ab neend nahi aarahi hai
Iska matlab hai kahani mein depth thi
Achchi kahani hai
Naya Naya Prem jab hota hai
Toh Aisa lagta hai hawa mein udd rahe ho
Aur phir premi joda sachmein udne ki koshish karta hai
Aur jab unhein pata chalta hai
Ki woh pankh nakli the
Tab ehsaas hota hai
Ki unhone kitni badi galti kar di
Upar se ladkiyo ka samajh nahi aata
Ya toh jeevan swarg bana de
Ya phir nark
Apni bhi aur dusre ki bhi
Upar se ladke
Thaali ke baingan pata hi nahi hota hai
Jeevan mein kya karna hai
Mata pita seene se lagake bachcho ko paalte hain
Lekin ek do saal ke attraction ko Prem ka naam de dete hain
Isi liye soch samajh ke qadam uthana chahiye
Aapki kahani padhke yahi mehsus hua
Ki zindagi mein soch samajh ke faisla karna chahiye
Aur kitni bhi mushkil kyun na ho
Haar nahi maan ni chahiye
Ab main rating toh nahi de sakta
Lekin mere se achchi kahani likhi Hai aapne...
 

Black

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---------- वफा का वादा ----------



" कहते है जब घर में पत्नी की जवानी करोडो की हो और नौकरी लाखों की तो नौकरी में लात मारकर पत्नी की जवानी पर ध्यान लगाना चाहिए " शायद इसके मायने मेरे पति को उस वक्त समझ आ गये होते....!!!


मै रेखा 35 वर्षीय एक शादीशुदा महिला हू।
मेरे पति संजय उम्र 42 साल, और मेरे दो जुड़वा बच्चे एक लड़का एक लड़की है मेरे परिवार में मेरे साथ मेरी सास ससुर, जेठ जेठानी, उनकी एक बेटी, हम सभी एक साथ एक दो मंजिला मकान, जिला हिसार हरियाणा में रहते है। मेरे ससुर नगर निगम में सरकारी मुलाजिम है, मेरे पति और जेठ जी मिलकर एक साड़ी का कारखाना चलाते हैं। जरूरी सुख सुविधाओ से सपंन मेरा भरा पूरा मध्यम वर्गीय परिवार है।


12-12-2014 ये तारीख मुझे आज भी याद है जिस दिन मै दुल्हन के रूप में पहली बार अपनी ससुराल आई थी। खूबसूरत हसीन सुहागरात और पांच रात - छे दिन का यादगार हनीमून आज भी मेरे जेहन में बसा हुआ है। शादी के एक साल पूरे होने से पहले ही मैने दो प्यारे जुड़वा बच्चों को जनम दिया। जुड़वा बच्चों की दोगुनी खुशी में मेरा घर आंगन खुशियों से भर गया।


जुड़वा बच्चो को संभालना कोई आसान काम नही था, एक को दूध पिला कर सुलाओ तो दूसरा जाग जाता, दूसरे को दूध पिला कर सुलाओ तो पहला जाग जाता.... जैसे तैसे दोनों को सुलाओ तो बच्चो के पापा जाग जाते फिर उन्हे दूध पिला कर सुलाओ तब तक फिर पहला जाग जाता आखिर बच्चो की माँ कब सोये....??? यही क्रम करीब तीन साल तक चलता रहा।


तीन साल बाद जब बच्चो ने परेशान करना कम किया तो हम पति पत्नी की सेक्स लाइफ दोबारा पटरी पर चलना शुरु हुयी अब हमारे बीच हफ्ते में दो तीन बार और थोड़ा लंबा सेक्स होने लगा।


"मैं खुश थी अपनी दुनिया में, अपने पति, अपने घर व अपने बच्चो के साथ. फिर क्यों, कब, कैसे 'विकास' मेरे अस्तित्व पर छाता गया और मैं उस के प्रेमजाल में उलझती चली गई. मैं मजबूर थी अपने दिल के चलते. विकास चमकते सूरज की तरह आया और मुझ पर छा गया.....!"

साल 2017 नोवम्बर का महिना मेरे पति और जेठ ने दिसंबर में होने वाली शादियों के सीजन को देखते हुए 15 लाख की बीसी (बीसी व्यापारियों द्वारा अवैध रूप से चलाई जाने वाली लॉटरी लोन योजना होती हैं) उठा ली । शाम छे बजे मेरे पति और जेठ नगद 15 लाख रुपए चार हिस्सों में बाटकर रात को दस बजे की ट्रेन से गुजरात के लिए रवाना होने वाले थे तभी अचानक मेरे जेठ के मोबाइल पर एक फोन आया।


जेठ : हैलो.. सैनी साहब


जल्दी से टीवी खोल कर न्यूज़ देखो।


जेठ : क्यों क्या हुआ..???


सभी व्यापारी बर्बाद हो गये न्यूज़ देखो सब पता चल जायेगा।


जैसे ही टीवी ऑन कर न्यूज़ चैनल लगाया तो सामने प्रधानमंत्री जी के दिये गये संबोधन की ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी। नोट बंदी का ऐलान हो चुका था। मेरे जेठ और पति मेज पर रखे 500-1000 के नोटों की गड्डियों को आँसू भर देख कर रहे थे। वो दोनों समझ चुके थे कि हम बर्बाद हो गये क्योकि ये मेज पर पड़ा पैसा अब किसी काम का नही।


दुनिया की पांचवी अर्थ व्यवस्था बनने के चक्कर में हमारे प्रधान ने देश के लगभग 90% परिवारों की अर्थ व्यवस्था के पकौड़े (लो...) लगा दिये। व्यापार में पड़े इस अक्समात् आर्थिक संकट की वजह से मेरे पति अब अवसाद में रहने लगे, बीसी की रकम वसूलने वाले आये दिन हंगामा खड़ा करते, उनके इस हंगामा को मेरे ससुर ने अपने प्रोविडेंट फंड की रकम को गिरवी रख जैसे तैसे खतम किया। दिन महीने गुजरने लगे, मेरी सेक्स लाइफ भी प्रभावित होने लगी, हमारे बीच अब बातें कम होती।


" पति के चरित्र की पहचान पत्नी की बीमारी में और पत्नी के चरित्र की पहचान पति की गरीबी में होती है"


मुझसे बुरा हाल मेरी जेठ की फैमिली का था... जेठानी मेरी इस आर्थिक संकट की वजह से लगाई गई अनावश्यक, बेफिजूल के खर्चो पर रोक को बर्दाश्त नही कर पाई और जेठ से लड़ झगड़ कर अपने मायके में रहने लगी। और जेठ, ससुर के खिलाफ 498, 498A का मुकदमा दर्ज करवा दिया जेठ जी, जेल जाने के डर से मानसिक संतुलन खो बैठे और दिन भर पागलो की तरह घूमते रहते।


इसी तरह तीन साल गुजर गये मेरे ससुर, मेरे पति को होंसला देते कि ज्यादा चिंता मत करो सब कुछ ठीक हो जाएगा लेकिन ये उनका 'भ्रम' था क्योकि अब हमारी आर्थिक हालत ठीक नहीं इससे अधिक बुरी होने वाली थी।


साल 2020 पहला लॉक डाउन जिसने मेरे ससुर का 'भ्रम' तोड़ कर उन्हे सत्यता से परिचय करवा दिया और उनको अंदर से इतना घायल कर दिया कि उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया, जिससे वक्त से पहले VRS रिटरमेंट लेना पड़ा। अब पूरे घर की जिम्मेदारी मेरे पति के कंधे पर आ गयी। कारखाना तो बंद हो ही चुका था अब बंद कारखाने को बेंचने के अलावा कोई रास्ता नही बचा।


जैसे तैसे ये साल निकला तो अगले साल दूसरा लॉक डाउन, पहले लॉक डाउन ने ससुर को बिस्तर पर पटक दिया था लेकिन दूसरे लॉक डाउन ने उन्हे बिस्तर से उठा कर चिता पर लिटा दिया। आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो गयी और मेरी शादीशुदा जिंदगी भी।


कमाई का जरिया सिर्फ मेरी सास को मिलने वाली ससुर की पेंशन थी, मेरे पति और ज्यादा डिप्रेशन में रहने लगे और हमारे बीच कम हो चुकी बातचीत पूर्ण रूप से खतम हो गयी, एक कमरे, एक बिस्तर पर साथ साथ सोते हुए भी हम दोनों एक दूसरे की तरफ देखते तक नहीं थे। बेमतलब की छोटी छोटी सी बातों जैसे रात को 'पाद' मारने पर हमारे बीच झगड़े शुरु हो गये।

ऐसे ही दिन कट रहे थे मेरे पति सुबह से निकल जाते और देर रात तक घर आते। और एक सुबह जब मै सोकर उठी तो देखा मेरे पति मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे, मै भी उन्हे देख मुस्करा कर सुबह के नित्य कर्म से मुक्त होने बाथरूम में चली गई। नहा धोकर जब वापिस कमरे में आई तो मेरे पति वही बिस्तर पर बैठे हुए थे, उन्हे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरा ही इंतजार कर रहे हो और शायद कुछ कहना चाहते है।

बातचीत तो हमारे बीच खतम ही हो गयी थी तो मसला ये था कि बात की शुरवात कौन, कब और कैसे शुरु करे... मै अपने साड़ी ब्लाउस पहनने के बाद बिना अपने पति की ओर देखे, तोलिया से अपने बाल सुखाने लगी।

'पुरुष प्रधान समाज में पत्नियों का पति के सामने झुकना या हार मान लेना कोई नयी बात नही है।'

मै अपने पति से कहना तो चाहती थी कि ताल्लुक रखना है तो, झगडा कैसा..? ताल्लुक रखना ही नही, तो झगडा कैसा.." पत्नियों ने कभी नहीं मांगा अथाह प्रेम, उन्होंने बस ये चाहा है कि उनके हिस्से में आये प्रेम को बस प्रेम से उन्हें सौंप दिया जाये " लेकिन शायद मेरे होंठ ये कहने से डर रहे थे कि कही सुबह सुबह झगडा ना शुरू हो जाये।

कमरे में मौजूद पति पत्नी की खामोशी को बच्चो ने आकर खतम किया, दोनों बच्चे एक साथ कमरे में आये, बेटी बाप से और बेटा माँ से आकर चिपक गया ....।

बेटा शौर्य मै आज रात को 'दुबई' जा रहा हु

अपने पति के बेटे से कहे गये शब्दो को सुनकर मुझे जोर का झटका लगा.... मैने पलट कर उनकी ओर देखा वो मेरी ओर ही देख रहे थे, उनकी आँखों में आँसू थे। मैने अपने बच्चो से कहा तुम दोनों जाओ चाय नाश्ता करो।

साल डेढ़ साल की चुप्पी को मैने पल भर में तोड़ दिया..!इन शब्दो के साथ मेरा मौन व्रत टूटा

सुनो अब हमारे बीच क्या कुछ भी नही....??

वो बोले... है ना, गिले शिकवे, शिकायते और बिछड़ने का गम.....???

क्या मै इतनी बुरी हू जो मुझे छोड़कर जा रहे हो...?? बरसती आँखों से मैने सवाल किया।

नही;...रेखा, मै तुम्हे छोड़कर नही जा रहा हूँ, मै जिंदगी भर तुम्हारे साथ रहने के लिए ही तुम्हे छोड़कर जा रहा हूँ। मेरी आँखों के आँसू पौछते हुए वो बोले।

मतलब... मै समझी नही. . ???!

रेखा घर की हालत तो तुम्हे पता ही है, तीन चार साल से, मै बेकार घर पर बैठा रहता हूँ या फिर इधर उधर चप्पल चटकाता फिरता हूँ..... एक साल से ज्यादा हो गया हमारे बीच एक बात नही हुयी, हमारे झगड़े इतने बढ़ गये है कि मुझे डर लगता हैं कि जैसे भाभी, 'भाई साहब' को छोड़ गयी, तुम भी मुझे 'भाभी' की तरह छोड़ कर नही चली जाओ....?? बोलते बोलते मेरे पति का गला रुंध गया और वो सिसकने लगे।

मै : तो तुम यही रहकर कोई छोटा-मोटा काम शुरु क्यो नहीं कर लेते...???


मुझे नया व्यापार करने के लिए ज्यादा रुपए चाहिए। अभी दुबई में नौकरी कर पैसा कमाने के लिए ही मै जा रहा हूँ, छे महीने से एजेंट को बोल कर रखा था। कल रात ही उसने मुझे बताया कि एक कंपनी में नौकरी और वीज़ा मिल गया है, आज की दिल्ली से flight है।


मै : तुम यहाँ रहकर ही कोई नौकरी क्यों नही कर लेते..??


वो : इस शहर में रहकर, मै नौकरी नहीं कर सकता???


क्यों. . ???


वो : जिसके कारखाने में 25-30 लोग नौकरी करते थे, वो खुद अब किसी और के कारखाने में नौकरी करे, बस यही बात मेरे दिल में दर्द पैदा कर देती हैं।


मेरे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था आखिर में क्या बोलू, मेरे पति की कही बात सच थी,


फिर भी आप....... इतनी दूर इंडिया के बाहर जाने की क्या जरूरत है.. यही बंबई, दिल्ली में भी नौकरी मिलती होगी।


मिलती है लेकिन पैसे दुबई जितने नही मिलते मुझे ज्यादा और जल्द से जल्द पैसा कमाना है, दुबई की एक दीनार यहाँ के 28 रु के बराबर है। वैसे भी दुबई, बंबई से पास है, हिसार से दिल्ली तीन घंटे, दिल्ली से दुबई दो घंटे का रास्ता है, वो समझाते हुए मुझसे बोले।


उनकी बातों से मेरा मन हल्का तो हुआ था लेकिन दिल में एक डर था।


मै तुम्हारे बिना कैसे जिंदा रहूँगी..???


मेरे गाल को प्यार से चूमते हुये वो बोले रेखा बस एक साल की बात है, एक साल की जुदाई और जिंदगी भर का साथ...!


उसी शाम को मेरे पति दुबई चले गए, दिन बीतने लगे हमारी फोन पर 'व्हाट्स अप' मे रोज बात होती थी, उनका बीच में आना संभव नहीं था. हर रात पति के आलिंगन को तरसती, मैं अपने को रोकती, संभालती रही. फिर बातचीत का सिलसिला थमने लगा अब हफ्ते में एक दो बार ही बात होती..... एक शादीशुदा स्त्री का अकेलापन एक कुंवारी लड़की से ज्यादा खतरनाक होता है, रात को बिस्तर पर तन्हा करवट बदलते हुए अपने को जीवन के अन्य कामों में व्यस्त रखते हुए समझाती रही कि यह तन, यह मन पति के लिए है. किसी की छाया पड़ना, किसी के बारे में सोचना भी गुनाह है. लेकिन यह गुनाह कर गयी मै...!

बच्चे भी बड़े हो गये थे अपने काम खुद ही कर लेते.... दिन भर घर में अकेली सोने से अच्छा मैने अपनी एक सहेली अर्चना के साथ मिल कर 'स्व सहायता समूह' से लोन लेकर अर्चना के साथ मिलकर उसके घर पर टिफिन सेंटर खोल लिया।

हम बाहर से आये हुये अकेले रहने वाले स्टूडेंट और जॉब वाले लड़के लड़किया को खाने का टिफिन सप्लाई करते कभी कभी लड़के लड़किया सेंटर पर भी आकर खाना खाते।

टिफिन सेंटर अब अच्छा चलने लगा था। एक दिन 'विकास' आया. बैंक में जॉब करता था. अकेला ही रहता था. खूबसूरत बांका जवान, गोरा रंग, 6 फुट के लगभग हाइट. उस की आंखें जब जब मुझ से टकरातीं, मेरे दिल में तूफान सा उठने लगता. रात का खाना वह हमारे टिफिन सेंटर पर आकर ही खाता और दिन का बैंक में.....!

विकास अकसर मुझ से हंसीमजाक करता. मुझे यू ट्यूब में नये नये डिशेज का वीडियो दिखाता। हमेशा मेरे हाथों की उंगलियों की तारिफ करता, कभी कभी खाने में जानबूजकर नुस्ख निकाल कर छेड़छाड़ करता और यही हंसीमजाक, छेड़छाड़ मुझे विकास के बहुत करीब ले आई.

इतवार के दिन टिफिन सप्लाई कम होती थी ज्यादा तर स्टूडेंट और जॉब वाले वीकेंड पर अपने गाँव चले जाया करते थे उसी दिन दोपहर में विकास सेंटर पर ही खाना खाने आया। अर्चना कहीं गई हुई थी काम से. विकास ने खाना खा लिया. ढेर सारी बातें हुईं और बातों ही बातों में विकास ने कह दिया, ‘मैं तुम से प्यार करता हूं.’

मुझे उसे डांटना चाहिए था, मना करना चाहिए था. लेकिन नहीं, मैं भी जैसे बिछने के लिए तैयार बैठी थी. मैंने कहा, ‘विकास, मैं शादीशुदा हूं.’

विकास ने तुरंत कहा, ‘क्या शादीशुदा औरत किसी से प्यार नहीं कर सकती? ऐसा कहीं लिखा है? क्या तुम मुझ से प्यार करती हो?’

मैं ने कहा, ‘हां.’ और उस ने मुझे अपनी बांहों में समेट लिया. फिर मैं भूल गई कि मैं दो बच्चो की मां हूं. मैं किसी की ब्याहता हूं. जिस के साथ जीने मरने की मैंने अग्नि के समक्ष सौगंध खाई थी. लेकिन यह दिल का बहकना, विकास की बांहों में खो जाना, उस ने मुझे सबकुछ भुला कर रख दिया. दिन रात किसी 16 साल की लड़की की तरह हरियांवि रोमांटिक गाने गुनगुनाती।


"मैं तन्नै सूं प्यारी, तू प्यारा मेरा मैं तेरी गिरी, तू छुआरा मेरा मैं तन्नै सूं प्यारी, तू प्यारा मेरा मैं तेरी गिरी तू छुआरा मेरा, जी तो मेरा इसा करै, हाय जणू काच्चे नै खा ल्यूं तनै हाय रै तू छाती कै लाग्या रहिये तावीज बणा ल्यूं तनै हाँ छाती कै लाग्या रहिये तावीज बणा ल्यूं तनै"


मैं और विकास अकसर मिलते. प्यारभरी बातें करते. विकास ने एक कमरा किराए पर लिया हुआ था. जब अर्चना ने पूछताछ करनी शुरू की तो मैं विकास के साथ बाहर मिलने लगी. कभी उस के घर पर, कभी किसी होटल में तो कभी कहीं हिल स्टेशन पर. और सच कहूं तो मैं उसे अपने घर पर भी ले कर आई थी.


यह गुनाह इतना खूबसूरत लग रहा था कि मैं भूल गई कि जिस बिस्तर पर मेरे पति संजय का हक था, उसी बिस्तर पर मैं ने बेशर्मी के साथ विकास के साथ कई रातें गुजारीं. विकास की बांहों की कशिश ही ऐसी थी कि संजय के साथ बंधे विवाह के पवित्र बंधन मुझे बेडि़यों की तरह लगने लगे.


मैं ने एक दिन विकास से कहा भी कि क्या वह मुझ से शादी करेगा? उस ने हंस कर कहा, ‘मतलब यह कि तुम मेरे लिए अपने पति को छोड़ सकती हो. इस का मतलब यह भी हुआ कि कल किसी और के लिए मुझे भी.’


मुझे अपने बेवफा होने का एहसास विकास ने हंसी हंसी में करा दिया था. एक बार विकास के आगोश में मैं ने शादी का जिक्र फिर छेड़ा. उस ने मुझे चूमते हुए कहा, ‘शादी तो तुम्हारी हो चुकी है. दोबारा शादी क्यों? बिना किसी बंधन में बंधे सिर्फ प्यार नहीं कर सकतीं.’


‘मैं एक स्त्री हूं. प्यार के साथ सुरक्षा भी चाहिए और शादी किसी भी स्त्री के लिए सब से सुरक्षित व्यवस्था है.’


यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था.


‘विकास, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम बच्चो को अपने साथ रख लें?’


विकास ने हंसते हुए कहा, ‘क्या तुम्हारे बच्चे, मुझे अपना पापा मानेंगे? कभी नहीं. क्या मैं उन्हे, उन के बाप जैसा प्यार दे सकूंगा? कभी नहीं. क्या तलाक लेने के बाद अदालत बच्चे तुम्हें सौंपेगी? कभी नहीं. क्या वह बच्चे मुझे हर घड़ी इस बात का एहसास नहीं दिलायेगे कि तुम पहले किसी और के साथ…किसी और की निशानी…क्या बच्चो में तुम्हें अपने पति की यादें…देखो रेखा, मैं तुम से प्यार करता हूं. लेकिन शादी करना तुम्हारे लिए तब तक संभव नहीं जब तक तुम अपना अतीत पूरी तरह नहीं भूल जातीं.


‘अपने मातापिता, भाईबहन, सासससुर, जेठ जेठानी, अपनी शादी, अपनी सुहागरात, अपने पति के साथ बिताए पल पल. यहां तक कि अपने बच्चे भी क्योंकि यह बच्चे सिर्फ तुम्हारे नहीं है. इतना सब भूलना तुम्हारे लिए संभव नहीं है.

‘कल जब तुम्हें मुझ में कोई कमी दिखेगी तो तुम अपने पति के साथ मेरी तुलना करने लगोगी, इसलिए शादी करना संभव नहीं है. प्यार एक अलग बात है. किसी पल में कमजोर हो कर किसी और में खो जाना, उसे अपना सबकुछ मान लेना और बात है लेकिन शादी बहुत बड़ा फैसला है. तुम्हारे प्यार में मैं भी भूल गया कि तुम किसी की पत्नी हो. किसी की मां हो. किसी के साथ कई रातें पत्नी बन कर गुजारी हैं तुम ने. यह मेरा प्यार था जो मैं ने इन बातों की परवा नहीं की. यह भी मेरा प्यार है कि तुम सब छोड़ने को राजी हो जाओ तो मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं. लेकिन क्या तुम सबकुछ छोड़ने को, भूलने को राजी हो? कर पाओगी इतना सबकुछ?’ विकास कहता रहा और मैं अवाक खड़ी सुनती रही.

‘यह भी ध्यान रखना कि मुझ से शादी के बाद जब तुम कभी अपने पति के बारे में सोचोगी तो वह मुझ से बेवफाई होगी. क्या तुम तैयार हो?’

‘तुम ने मुझे पहले क्यों नहीं समझाया ये सब?’

‘मैं शादीशुदा नहीं हूं, कुंआरा हूं. तुम्हें देख कर दिल मचला. फिसला और सीधा तुम्हारी बांहों में पनाह मिल गई. मैं अब भी तैयार हूं. तुम शादीशुदा हो, तुम्हें सोचना है. तुम सोचो. मेरा प्यार सच्चा है. मुझे नहीं सोचना क्योंकि मैं अकेला हूं. मैं तुम्हारे साथ सारा जीवन गुजारने को तैयार हूं लेकिन "वफा के वादे के साथ."

मैं रो पड़ी. मैं ने विकास से कहा, ‘तुम ने पहले ये सब क्यों नहीं कहा.’

‘तुम ने पूछा नहीं.’

‘लेकिन जो जिस्मानी संबंध बने थे?’

‘वह एक हम दोनों की तन्हाई का पल था. वह, वह समय था जब तुम कमजोर पड़ गई थीं. मैं कमजोर पड़ गया था. वह पल अब गुजर चुका है. उस तन्हाई के पल में हम प्यार कर बैठे. इस में न तुम्हारी खता है न मेरी. दिल पर किस का जोर चला है. लेकिन अब बात शादी की है.’

विकास की बातों में सचाई थी. वह मुझ से प्यार करता था या मेरे जिस्म से बंध चुका था. जो भी हो, वह कुंआरा था. तनहा था. उसे हमसफर के रूप में कोई और न मिला, मैं मिल गई. मुझे भी उन तन्हाई के पलों को भूलना चाहिए था जिन में, मैंने अपने विवाह को अपवित्र कर दिया. मैं परपुरुष के साथ सैक्स करने के सुख में, देह की तृप्ति में ऐसी उलझी कि सबकुछ भूल गई. अब एक और सब से बड़ा कदम या सब से बड़ी बेवकूफी कि मैं अपने पति से तलाक ले कर विकास से शादी कर लूं. क्या करूं मैं, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था.

हां, मैं एक साधारण नारी हू, मुझ पर भी किसी का जादू चल सकता है. मैं भी किसी के मोहपाश में बंध सकती हूं, ठीक वैसे ही जैसे कोई बच्चा नया खिलौना देख कर अपने पास के खिलौने को फेंक कर नए खिलौने की तरफ हाथ बढ़ाने लगता है.

नहीं…मैं कोई बच्ची नहीं. पति कोई खिलौना नहीं. घरपरिवार, शादीशुदा जीवन कोई मजाक नहीं कि कल दूसरा मिला तो पहला छोड़ दिया. यदि अहल्या को अपने भ्रष्ट होने पर पत्थर की शिला बनना पड़ा तो मैं क्या चीज हूं. मैं भी एक औरत हूं, मेरे भी कुछ अरमान हैं. इच्छाएं हैं. यदि कोई अच्छा लगने लगे तो इस में मैं क्या कर सकती हूं.

मैं ने विकास से पूछा, ‘मेरी जगह तुम होते तो क्या करते?’

विकास हंस कर बोला, ‘ये तो दिल की बातें हैं. तुम्हारी तुम जानो. यदि तुम्हारी जगह मैं होता तो शायद मैं तुम्हारे प्यार में ही न पड़ता या अपने कमजोर पड़ने वाले क्षणों के लिए अपने आप से माफी मांगता. पता नहीं, मैं क्या करता?’

विकास ये सब कहीं इसलिए तो नहीं कह रहा कि मैं अपनी गलती मान कर वापस चली जाऊं, सब भूल कर. फिर जो इतना समय इतनी रातें विकास की बांहों में बिताईं. वह क्या था? प्यार नहीं मात्र वासना थी? दलदल था शरीर की भूख का? कहीं ऐसा तो नहीं कि विकास का दिल भर गया हो मुझ से, अपनी हवस की प्यास बुझा ली और अब विवाह की रीतिनीति समझा रहा हो? यदि ऐसी बात थी तो जब मैं ने कहा था कि मैं ब्याहता हूं तो फिर क्यों कहा था कि किस किताब में लिखा है कि शादीशुदा प्यार नहीं कर सकते?

विकास ने आगे कहा, ‘किसी स्त्री के आगोश में किसी कुंआरे पुरुष का पहला संपर्क उस के जीवन का सब से बड़ा रोमांच होता है. मैं न होता कोई और होता तब भी यही होता. हां, यदि लड़की कुंआरी होती, अकेली होती तो इतनी बातें ही न होतीं. तुम उन क्षणों में कमजोर पड़ीं या बहकीं, यह तो मैं नहीं जानता लेकिन जब तुम्हारे साथ का साया पड़ा मन पर, तो प्यार हो गया और जिसे प्यार कहते हैं उसे गलत रास्ता नहीं दिखा सकते.’

मैं रोने लगी, ‘मैं ने तो अपने हाथों अपना सबकुछ बरबाद कर लिया. तुम्हें सौंप दिया. अब तुम मुझे दिल की दुनिया से दूर हकीकत पर ला कर छोड़ रहे हो.’

‘तुम चाहो तो अब भी मैं शादी करने को तैयार हूं. क्या तुम मेरे साथ मेरी वफादार बन कर रह सकती हो, सबकुछ छोड़ कर, सबकुछ भूल कर?’ विकास ने फिर दोहराया.

इधर, संजय, मेरे पति वापस आ गए. मैं अजीब से चक्रव्यूह में फंसी हुई थी. मैं क्या करूं? क्या न करूं? संजय के आते ही घर के काम की जिम्मेदारी ली. एक पत्नी बन कर रहना. मुझे मां और पत्नी दोनों का फर्ज निभाना था. मैं निभा भी रही थी. और ये निभाना किसी पर कोई एहसान नहीं था. ये तो वे काम थे जो सहज ही हो जाते थे.

लेकिन टिफिन सेंटर पर जाते ही विकास आ जाता या मैं उस से मिलने चल पड़ती, दिल के हाथों मजबूर हो कर.

मैं ने विकास से कहा, ‘‘मैं तुम्हें भूल नहीं पा रही हूं.’’

‘‘तो छोड़ दो सबकुछ.’’

‘‘मैं ऐसा भी नहीं कर सकती.’’

‘‘यह तो दोतरफा बेवफाई होगी और तुम्हारी इस बेवफाई से होगा यह कि मेरा प्रेम किसी अपराधकथा की पत्रिका में अवैध संबंध की कहानी के रूप में छप जाएगा. तुम्हारा पति तुम्हारी या मेरी हत्या कर के जेल चला जाएगा. हमारा प्रेम पुलिस केस बन जाएगा,’’ विकास ने गंभीर होते हुए कहा.

मैं भी डर गई और बात सच भी कही थी विकास ने. फिर वह मुझ से क्यों मिलता है? यदि मैं पूछूंगी तो हंस कर कहेगा कि तुम आती हो, मैं इनकार कैसे कर दूं. मैं भंवर में फंस चुकी थी. एक तरफ मेरा हंसताखेलता परिवार, मेरी सुखी विवाहित जिंदगी, मेरा पति, मेरे बच्चे और दूसरी तरफ उन तन्हाई के पलों का साथी विकास जो आज भी मेरी कमजोरी है.

इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. एक दिन पति को भनक लग ही गयी....!

अब क्या होगा? मै सोच रही थी, क्या कहेगा पति? क्यों किया तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा? क्या कमी थी मेरे प्यार में? क्या नहीं दिया मैं ने तुम्हें? घरपरिवार, सुखी संसार, पैसा, इज्जत, प्यार किस चीज की कमी रह गई थी जो तुम्हें बदचलन होना पड़ा? क्या कारण था कि तुम्हें चरित्रहीन होना पड़ा? मैं ने तुम से प्यार किया. शादी की. हमारे प्यार की निशानी हमारे दो प्यारे बच्चे. अब क्या था बाकी? सिवा तुम्हारी शारीरिक भूख के. तुम पत्नी नहीं वेश्या हो, वेश्या.


और उस रात मेरे पति शाराब पी कर आये गुस्से में कहा " बोलती थी तुम्हारे बिना मर जाऊंगी, मरी तो नही..पर मरवा खूब रही हो.... ।

पापा की तेज आवाज सुनकर बच्चे भी कमरे में झांकने लगे, बच्चो को यू झांकता देख उन्होंने बच्चों के सर पर हाथ फेरते हुए उन्हे वापस कमरे में जाकर सोने के लिए कहा।

मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे वो मेरे करीब आये और बोले " रेखा बफादार बीवी मर्द की सबसे बड़ी दोलत होती है, तुम्हारे अलावा शायद अब मै किसी और से तुम जैसा प्यार कर पाऊ, पर हा, ये यकीन है मुझे, तुम जितना दुखी अब कोई और नही कर पायेगा मुझे...!

इक बार मेरी बात तो सुनिये...!

ना.... तुम मेरी बात सुनो ‘‘रहना है तो तरीके से रहो वरना तलाक लो और जहां मुंह काला करना हो करो. दो में से कोई एक चुन लो, प्रेमी या पति. दो नावों की सवारी तुम्हें डुबो देगी और हमें भी.’’

उन्होंने दोटूक कहा था,

मैं शर्मिंदा थी. मैं गुनाहगार थी. मैं चुप रही. मैं सुनती रही. रोती रही.

अगले दिन मै फिर विकास से मिली...

मै तुम से शादी नहीं कर सकता. मैं एक ऐसी औरत से शादी करने की सोच भी नहीं सकता जो दोहरा जीवन जीए. तुम मेरे लायक नहीं हो. आज के बाद मुझ से मिलने की कोशिश मत करना. वे तन्हाई के पल मेरी पूरी जिंदगी को तन्हा बना कर खतम कर देंगे. आज के बाद आईं तो बेवफा कहलाओगी दोनों तरफ से. उन तन्हाई के पलों को भूलने में ही भलाई है.’’ मैं चली आई. उस के बाद कभी नहीं मिली विकास से.....!

अर्चना ने ही एक बार बताया कि वह शहर छोड़ कर चला गया है. हां, अपनी बेवफाई, चरित्रहीनता पर अकसर मैं शर्मिंदगी महसूस करती रहती हूं. खासकर तब जब कोई वफा का किस्सा निकले और मैं उस किस्से पर गर्व करने लगूं तो पति की नजरों में कुछ हिकारत सी दिखने लगती है. मानो कह रहे हों, तुम और वफा. पति सभ्य थे, सुशिक्षित थे और परिवार के प्रति समर्पित.

कभी कुलटा, चरित्रहीन, वेश्या नहीं कहा. लेकिन अब शायद उन की नजरों में मेरे लिए वह सम्मान, प्यार न रहा हो. लेकिन उन्होंने कभी एहसास नहीं दिलाया. न ही कभी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह छिपाया.

मैं सचमुच आज भी जब उन तन्हाई के पलों को सोचती हूं तो अपनेआप को कोसती हूं. काश, उस क्षण, जब मैं कमजोर पड़ गई थी, कमजोर न पड़ती तो आज पूरे गर्व से तन कर जीती. लेकिन क्या करूं, हर गुनाह सजा ले कर आता है. मैं यह सजा आत्मग्लानि के रूप में भोग रही थी. विकास जैसे पुरुष बहका देते हैं लेकिन बरबाद होने से बचा भी लेते हैं.

स्त्री के लिए सब से महत्त्वपूर्ण होती है घर की दहलीज, अपनी शादी, अपना पति, अपना परिवार, अपने बच्चे. शादीशुदा औरत की जिंदगी में ऐसे मोड़ आते हैं कभी कभी. उन में फंस कर सबकुछ बरबाद करने से अच्छा है कि कमजोर न पड़े और जो भी सुख तलाशना हो, अपने घरपरिवार, पति, बच्चों में ही तलाशे. यही हकीकत है, यही रिवाज, यही उचित भी है.


समाप्त
REKHA DEVI Jee
Bahut achchi kahani likhi hai aapne
Mere ko toh dar lagne laga hai re baba
Ab main saala ek din bhi apni lugai ko akayla nahi chhodunga
Are main toh bhool gaya abhi shaadi nahi Hui hai
Haash

Duniya ka sabse bada murkh Sanjay
Duniya ka sabse bada kameena vikaas
Is vikas ki mkc
Koi iska address do mere ko
Madar
CONTROL
Jab 100 suwwar se ek aurat sambhog karti hai
Toh ek vikas paida hota hai
Aur jab 100 gadho se ek aurat sambhog karti hai
Toh ek Sanjay paida hota hai
Rekha ki koi galti hi nahi hai
Sanjay ki pehli galti
Usne yeh socha ki main naukri kaise kar sakta hoon
Is sheher mein jismein uski factory thi
Aur usmein itne log kaam karte the
Mard ko Shobha hi nahi deta
Khaali baithna
Mard ke khoon mein hai kaam karna

Dusri galti Dubai jaana
Biwi ko chhodke
Kyun gaya Dubai
Aag wohin lagti hai
Jahan dhua uthta hai
Rekha ke andar dhua utha hua tha
Vikas ne petrol daal diya
Lo ab Dubai mein jaake maa
CONTROL
REKHA Devi jee
Kahani achchi hai
Hum kaun hota hoon
Rating dene waala
Hum toh waise hi badnaam hoon
Jitna ho saka utna likh diya
Ab aur nahi likh sakta...
 
Last edited:

Samar_Singh

Conspiracy Theorist
4,548
6,196
144
---------- वफा का वादा ----------



" कहते है जब घर में पत्नी की जवानी करोडो की हो और नौकरी लाखों की तो नौकरी में लात मारकर पत्नी की जवानी पर ध्यान लगाना चाहिए " शायद इसके मायने मेरे पति को उस वक्त समझ आ गये होते....!!!


मै रेखा 35 वर्षीय एक शादीशुदा महिला हू।
मेरे पति संजय उम्र 42 साल, और मेरे दो जुड़वा बच्चे एक लड़का एक लड़की है मेरे परिवार में मेरे साथ मेरी सास ससुर, जेठ जेठानी, उनकी एक बेटी, हम सभी एक साथ एक दो मंजिला मकान, जिला हिसार हरियाणा में रहते है। मेरे ससुर नगर निगम में सरकारी मुलाजिम है, मेरे पति और जेठ जी मिलकर एक साड़ी का कारखाना चलाते हैं। जरूरी सुख सुविधाओ से सपंन मेरा भरा पूरा मध्यम वर्गीय परिवार है।


12-12-2014 ये तारीख मुझे आज भी याद है जिस दिन मै दुल्हन के रूप में पहली बार अपनी ससुराल आई थी। खूबसूरत हसीन सुहागरात और पांच रात - छे दिन का यादगार हनीमून आज भी मेरे जेहन में बसा हुआ है। शादी के एक साल पूरे होने से पहले ही मैने दो प्यारे जुड़वा बच्चों को जनम दिया। जुड़वा बच्चों की दोगुनी खुशी में मेरा घर आंगन खुशियों से भर गया।


जुड़वा बच्चो को संभालना कोई आसान काम नही था, एक को दूध पिला कर सुलाओ तो दूसरा जाग जाता, दूसरे को दूध पिला कर सुलाओ तो पहला जाग जाता.... जैसे तैसे दोनों को सुलाओ तो बच्चो के पापा जाग जाते फिर उन्हे दूध पिला कर सुलाओ तब तक फिर पहला जाग जाता आखिर बच्चो की माँ कब सोये....??? यही क्रम करीब तीन साल तक चलता रहा।


तीन साल बाद जब बच्चो ने परेशान करना कम किया तो हम पति पत्नी की सेक्स लाइफ दोबारा पटरी पर चलना शुरु हुयी अब हमारे बीच हफ्ते में दो तीन बार और थोड़ा लंबा सेक्स होने लगा।


"मैं खुश थी अपनी दुनिया में, अपने पति, अपने घर व अपने बच्चो के साथ. फिर क्यों, कब, कैसे 'विकास' मेरे अस्तित्व पर छाता गया और मैं उस के प्रेमजाल में उलझती चली गई. मैं मजबूर थी अपने दिल के चलते. विकास चमकते सूरज की तरह आया और मुझ पर छा गया.....!"

साल 2017 नोवम्बर का महिना मेरे पति और जेठ ने दिसंबर में होने वाली शादियों के सीजन को देखते हुए 15 लाख की बीसी (बीसी व्यापारियों द्वारा अवैध रूप से चलाई जाने वाली लॉटरी लोन योजना होती हैं) उठा ली । शाम छे बजे मेरे पति और जेठ नगद 15 लाख रुपए चार हिस्सों में बाटकर रात को दस बजे की ट्रेन से गुजरात के लिए रवाना होने वाले थे तभी अचानक मेरे जेठ के मोबाइल पर एक फोन आया।


जेठ : हैलो.. सैनी साहब


जल्दी से टीवी खोल कर न्यूज़ देखो।


जेठ : क्यों क्या हुआ..???


सभी व्यापारी बर्बाद हो गये न्यूज़ देखो सब पता चल जायेगा।


जैसे ही टीवी ऑन कर न्यूज़ चैनल लगाया तो सामने प्रधानमंत्री जी के दिये गये संबोधन की ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी। नोट बंदी का ऐलान हो चुका था। मेरे जेठ और पति मेज पर रखे 500-1000 के नोटों की गड्डियों को आँसू भर देख कर रहे थे। वो दोनों समझ चुके थे कि हम बर्बाद हो गये क्योकि ये मेज पर पड़ा पैसा अब किसी काम का नही।


दुनिया की पांचवी अर्थ व्यवस्था बनने के चक्कर में हमारे प्रधान ने देश के लगभग 90% परिवारों की अर्थ व्यवस्था के पकौड़े (लो...) लगा दिये। व्यापार में पड़े इस अक्समात् आर्थिक संकट की वजह से मेरे पति अब अवसाद में रहने लगे, बीसी की रकम वसूलने वाले आये दिन हंगामा खड़ा करते, उनके इस हंगामा को मेरे ससुर ने अपने प्रोविडेंट फंड की रकम को गिरवी रख जैसे तैसे खतम किया। दिन महीने गुजरने लगे, मेरी सेक्स लाइफ भी प्रभावित होने लगी, हमारे बीच अब बातें कम होती।


" पति के चरित्र की पहचान पत्नी की बीमारी में और पत्नी के चरित्र की पहचान पति की गरीबी में होती है"


मुझसे बुरा हाल मेरी जेठ की फैमिली का था... जेठानी मेरी इस आर्थिक संकट की वजह से लगाई गई अनावश्यक, बेफिजूल के खर्चो पर रोक को बर्दाश्त नही कर पाई और जेठ से लड़ झगड़ कर अपने मायके में रहने लगी। और जेठ, ससुर के खिलाफ 498, 498A का मुकदमा दर्ज करवा दिया जेठ जी, जेल जाने के डर से मानसिक संतुलन खो बैठे और दिन भर पागलो की तरह घूमते रहते।


इसी तरह तीन साल गुजर गये मेरे ससुर, मेरे पति को होंसला देते कि ज्यादा चिंता मत करो सब कुछ ठीक हो जाएगा लेकिन ये उनका 'भ्रम' था क्योकि अब हमारी आर्थिक हालत ठीक नहीं इससे अधिक बुरी होने वाली थी।


साल 2020 पहला लॉक डाउन जिसने मेरे ससुर का 'भ्रम' तोड़ कर उन्हे सत्यता से परिचय करवा दिया और उनको अंदर से इतना घायल कर दिया कि उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया, जिससे वक्त से पहले VRS रिटरमेंट लेना पड़ा। अब पूरे घर की जिम्मेदारी मेरे पति के कंधे पर आ गयी। कारखाना तो बंद हो ही चुका था अब बंद कारखाने को बेंचने के अलावा कोई रास्ता नही बचा।


जैसे तैसे ये साल निकला तो अगले साल दूसरा लॉक डाउन, पहले लॉक डाउन ने ससुर को बिस्तर पर पटक दिया था लेकिन दूसरे लॉक डाउन ने उन्हे बिस्तर से उठा कर चिता पर लिटा दिया। आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो गयी और मेरी शादीशुदा जिंदगी भी।


कमाई का जरिया सिर्फ मेरी सास को मिलने वाली ससुर की पेंशन थी, मेरे पति और ज्यादा डिप्रेशन में रहने लगे और हमारे बीच कम हो चुकी बातचीत पूर्ण रूप से खतम हो गयी, एक कमरे, एक बिस्तर पर साथ साथ सोते हुए भी हम दोनों एक दूसरे की तरफ देखते तक नहीं थे। बेमतलब की छोटी छोटी सी बातों जैसे रात को 'पाद' मारने पर हमारे बीच झगड़े शुरु हो गये।

ऐसे ही दिन कट रहे थे मेरे पति सुबह से निकल जाते और देर रात तक घर आते। और एक सुबह जब मै सोकर उठी तो देखा मेरे पति मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे, मै भी उन्हे देख मुस्करा कर सुबह के नित्य कर्म से मुक्त होने बाथरूम में चली गई। नहा धोकर जब वापिस कमरे में आई तो मेरे पति वही बिस्तर पर बैठे हुए थे, उन्हे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरा ही इंतजार कर रहे हो और शायद कुछ कहना चाहते है।

बातचीत तो हमारे बीच खतम ही हो गयी थी तो मसला ये था कि बात की शुरवात कौन, कब और कैसे शुरु करे... मै अपने साड़ी ब्लाउस पहनने के बाद बिना अपने पति की ओर देखे, तोलिया से अपने बाल सुखाने लगी।

'पुरुष प्रधान समाज में पत्नियों का पति के सामने झुकना या हार मान लेना कोई नयी बात नही है।'

मै अपने पति से कहना तो चाहती थी कि ताल्लुक रखना है तो, झगडा कैसा..? ताल्लुक रखना ही नही, तो झगडा कैसा.." पत्नियों ने कभी नहीं मांगा अथाह प्रेम, उन्होंने बस ये चाहा है कि उनके हिस्से में आये प्रेम को बस प्रेम से उन्हें सौंप दिया जाये " लेकिन शायद मेरे होंठ ये कहने से डर रहे थे कि कही सुबह सुबह झगडा ना शुरू हो जाये।

कमरे में मौजूद पति पत्नी की खामोशी को बच्चो ने आकर खतम किया, दोनों बच्चे एक साथ कमरे में आये, बेटी बाप से और बेटा माँ से आकर चिपक गया ....।

बेटा शौर्य मै आज रात को 'दुबई' जा रहा हु

अपने पति के बेटे से कहे गये शब्दो को सुनकर मुझे जोर का झटका लगा.... मैने पलट कर उनकी ओर देखा वो मेरी ओर ही देख रहे थे, उनकी आँखों में आँसू थे। मैने अपने बच्चो से कहा तुम दोनों जाओ चाय नाश्ता करो।

साल डेढ़ साल की चुप्पी को मैने पल भर में तोड़ दिया..!इन शब्दो के साथ मेरा मौन व्रत टूटा

सुनो अब हमारे बीच क्या कुछ भी नही....??

वो बोले... है ना, गिले शिकवे, शिकायते और बिछड़ने का गम.....???

क्या मै इतनी बुरी हू जो मुझे छोड़कर जा रहे हो...?? बरसती आँखों से मैने सवाल किया।

नही;...रेखा, मै तुम्हे छोड़कर नही जा रहा हूँ, मै जिंदगी भर तुम्हारे साथ रहने के लिए ही तुम्हे छोड़कर जा रहा हूँ। मेरी आँखों के आँसू पौछते हुए वो बोले।

मतलब... मै समझी नही. . ???!

रेखा घर की हालत तो तुम्हे पता ही है, तीन चार साल से, मै बेकार घर पर बैठा रहता हूँ या फिर इधर उधर चप्पल चटकाता फिरता हूँ..... एक साल से ज्यादा हो गया हमारे बीच एक बात नही हुयी, हमारे झगड़े इतने बढ़ गये है कि मुझे डर लगता हैं कि जैसे भाभी, 'भाई साहब' को छोड़ गयी, तुम भी मुझे 'भाभी' की तरह छोड़ कर नही चली जाओ....?? बोलते बोलते मेरे पति का गला रुंध गया और वो सिसकने लगे।

मै : तो तुम यही रहकर कोई छोटा-मोटा काम शुरु क्यो नहीं कर लेते...???


मुझे नया व्यापार करने के लिए ज्यादा रुपए चाहिए। अभी दुबई में नौकरी कर पैसा कमाने के लिए ही मै जा रहा हूँ, छे महीने से एजेंट को बोल कर रखा था। कल रात ही उसने मुझे बताया कि एक कंपनी में नौकरी और वीज़ा मिल गया है, आज की दिल्ली से flight है।


मै : तुम यहाँ रहकर ही कोई नौकरी क्यों नही कर लेते..??


वो : इस शहर में रहकर, मै नौकरी नहीं कर सकता???


क्यों. . ???


वो : जिसके कारखाने में 25-30 लोग नौकरी करते थे, वो खुद अब किसी और के कारखाने में नौकरी करे, बस यही बात मेरे दिल में दर्द पैदा कर देती हैं।


मेरे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था आखिर में क्या बोलू, मेरे पति की कही बात सच थी,


फिर भी आप....... इतनी दूर इंडिया के बाहर जाने की क्या जरूरत है.. यही बंबई, दिल्ली में भी नौकरी मिलती होगी।


मिलती है लेकिन पैसे दुबई जितने नही मिलते मुझे ज्यादा और जल्द से जल्द पैसा कमाना है, दुबई की एक दीनार यहाँ के 28 रु के बराबर है। वैसे भी दुबई, बंबई से पास है, हिसार से दिल्ली तीन घंटे, दिल्ली से दुबई दो घंटे का रास्ता है, वो समझाते हुए मुझसे बोले।


उनकी बातों से मेरा मन हल्का तो हुआ था लेकिन दिल में एक डर था।


मै तुम्हारे बिना कैसे जिंदा रहूँगी..???


मेरे गाल को प्यार से चूमते हुये वो बोले रेखा बस एक साल की बात है, एक साल की जुदाई और जिंदगी भर का साथ...!


उसी शाम को मेरे पति दुबई चले गए, दिन बीतने लगे हमारी फोन पर 'व्हाट्स अप' मे रोज बात होती थी, उनका बीच में आना संभव नहीं था. हर रात पति के आलिंगन को तरसती, मैं अपने को रोकती, संभालती रही. फिर बातचीत का सिलसिला थमने लगा अब हफ्ते में एक दो बार ही बात होती..... एक शादीशुदा स्त्री का अकेलापन एक कुंवारी लड़की से ज्यादा खतरनाक होता है, रात को बिस्तर पर तन्हा करवट बदलते हुए अपने को जीवन के अन्य कामों में व्यस्त रखते हुए समझाती रही कि यह तन, यह मन पति के लिए है. किसी की छाया पड़ना, किसी के बारे में सोचना भी गुनाह है. लेकिन यह गुनाह कर गयी मै...!

बच्चे भी बड़े हो गये थे अपने काम खुद ही कर लेते.... दिन भर घर में अकेली सोने से अच्छा मैने अपनी एक सहेली अर्चना के साथ मिल कर 'स्व सहायता समूह' से लोन लेकर अर्चना के साथ मिलकर उसके घर पर टिफिन सेंटर खोल लिया।

हम बाहर से आये हुये अकेले रहने वाले स्टूडेंट और जॉब वाले लड़के लड़किया को खाने का टिफिन सप्लाई करते कभी कभी लड़के लड़किया सेंटर पर भी आकर खाना खाते।

टिफिन सेंटर अब अच्छा चलने लगा था। एक दिन 'विकास' आया. बैंक में जॉब करता था. अकेला ही रहता था. खूबसूरत बांका जवान, गोरा रंग, 6 फुट के लगभग हाइट. उस की आंखें जब जब मुझ से टकरातीं, मेरे दिल में तूफान सा उठने लगता. रात का खाना वह हमारे टिफिन सेंटर पर आकर ही खाता और दिन का बैंक में.....!

विकास अकसर मुझ से हंसीमजाक करता. मुझे यू ट्यूब में नये नये डिशेज का वीडियो दिखाता। हमेशा मेरे हाथों की उंगलियों की तारिफ करता, कभी कभी खाने में जानबूजकर नुस्ख निकाल कर छेड़छाड़ करता और यही हंसीमजाक, छेड़छाड़ मुझे विकास के बहुत करीब ले आई.

इतवार के दिन टिफिन सप्लाई कम होती थी ज्यादा तर स्टूडेंट और जॉब वाले वीकेंड पर अपने गाँव चले जाया करते थे उसी दिन दोपहर में विकास सेंटर पर ही खाना खाने आया। अर्चना कहीं गई हुई थी काम से. विकास ने खाना खा लिया. ढेर सारी बातें हुईं और बातों ही बातों में विकास ने कह दिया, ‘मैं तुम से प्यार करता हूं.’

मुझे उसे डांटना चाहिए था, मना करना चाहिए था. लेकिन नहीं, मैं भी जैसे बिछने के लिए तैयार बैठी थी. मैंने कहा, ‘विकास, मैं शादीशुदा हूं.’

विकास ने तुरंत कहा, ‘क्या शादीशुदा औरत किसी से प्यार नहीं कर सकती? ऐसा कहीं लिखा है? क्या तुम मुझ से प्यार करती हो?’

मैं ने कहा, ‘हां.’ और उस ने मुझे अपनी बांहों में समेट लिया. फिर मैं भूल गई कि मैं दो बच्चो की मां हूं. मैं किसी की ब्याहता हूं. जिस के साथ जीने मरने की मैंने अग्नि के समक्ष सौगंध खाई थी. लेकिन यह दिल का बहकना, विकास की बांहों में खो जाना, उस ने मुझे सबकुछ भुला कर रख दिया. दिन रात किसी 16 साल की लड़की की तरह हरियांवि रोमांटिक गाने गुनगुनाती।


"मैं तन्नै सूं प्यारी, तू प्यारा मेरा मैं तेरी गिरी, तू छुआरा मेरा मैं तन्नै सूं प्यारी, तू प्यारा मेरा मैं तेरी गिरी तू छुआरा मेरा, जी तो मेरा इसा करै, हाय जणू काच्चे नै खा ल्यूं तनै हाय रै तू छाती कै लाग्या रहिये तावीज बणा ल्यूं तनै हाँ छाती कै लाग्या रहिये तावीज बणा ल्यूं तनै"


मैं और विकास अकसर मिलते. प्यारभरी बातें करते. विकास ने एक कमरा किराए पर लिया हुआ था. जब अर्चना ने पूछताछ करनी शुरू की तो मैं विकास के साथ बाहर मिलने लगी. कभी उस के घर पर, कभी किसी होटल में तो कभी कहीं हिल स्टेशन पर. और सच कहूं तो मैं उसे अपने घर पर भी ले कर आई थी.


यह गुनाह इतना खूबसूरत लग रहा था कि मैं भूल गई कि जिस बिस्तर पर मेरे पति संजय का हक था, उसी बिस्तर पर मैं ने बेशर्मी के साथ विकास के साथ कई रातें गुजारीं. विकास की बांहों की कशिश ही ऐसी थी कि संजय के साथ बंधे विवाह के पवित्र बंधन मुझे बेडि़यों की तरह लगने लगे.


मैं ने एक दिन विकास से कहा भी कि क्या वह मुझ से शादी करेगा? उस ने हंस कर कहा, ‘मतलब यह कि तुम मेरे लिए अपने पति को छोड़ सकती हो. इस का मतलब यह भी हुआ कि कल किसी और के लिए मुझे भी.’


मुझे अपने बेवफा होने का एहसास विकास ने हंसी हंसी में करा दिया था. एक बार विकास के आगोश में मैं ने शादी का जिक्र फिर छेड़ा. उस ने मुझे चूमते हुए कहा, ‘शादी तो तुम्हारी हो चुकी है. दोबारा शादी क्यों? बिना किसी बंधन में बंधे सिर्फ प्यार नहीं कर सकतीं.’


‘मैं एक स्त्री हूं. प्यार के साथ सुरक्षा भी चाहिए और शादी किसी भी स्त्री के लिए सब से सुरक्षित व्यवस्था है.’


यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था.


‘विकास, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम बच्चो को अपने साथ रख लें?’


विकास ने हंसते हुए कहा, ‘क्या तुम्हारे बच्चे, मुझे अपना पापा मानेंगे? कभी नहीं. क्या मैं उन्हे, उन के बाप जैसा प्यार दे सकूंगा? कभी नहीं. क्या तलाक लेने के बाद अदालत बच्चे तुम्हें सौंपेगी? कभी नहीं. क्या वह बच्चे मुझे हर घड़ी इस बात का एहसास नहीं दिलायेगे कि तुम पहले किसी और के साथ…किसी और की निशानी…क्या बच्चो में तुम्हें अपने पति की यादें…देखो रेखा, मैं तुम से प्यार करता हूं. लेकिन शादी करना तुम्हारे लिए तब तक संभव नहीं जब तक तुम अपना अतीत पूरी तरह नहीं भूल जातीं.


‘अपने मातापिता, भाईबहन, सासससुर, जेठ जेठानी, अपनी शादी, अपनी सुहागरात, अपने पति के साथ बिताए पल पल. यहां तक कि अपने बच्चे भी क्योंकि यह बच्चे सिर्फ तुम्हारे नहीं है. इतना सब भूलना तुम्हारे लिए संभव नहीं है.

‘कल जब तुम्हें मुझ में कोई कमी दिखेगी तो तुम अपने पति के साथ मेरी तुलना करने लगोगी, इसलिए शादी करना संभव नहीं है. प्यार एक अलग बात है. किसी पल में कमजोर हो कर किसी और में खो जाना, उसे अपना सबकुछ मान लेना और बात है लेकिन शादी बहुत बड़ा फैसला है. तुम्हारे प्यार में मैं भी भूल गया कि तुम किसी की पत्नी हो. किसी की मां हो. किसी के साथ कई रातें पत्नी बन कर गुजारी हैं तुम ने. यह मेरा प्यार था जो मैं ने इन बातों की परवा नहीं की. यह भी मेरा प्यार है कि तुम सब छोड़ने को राजी हो जाओ तो मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं. लेकिन क्या तुम सबकुछ छोड़ने को, भूलने को राजी हो? कर पाओगी इतना सबकुछ?’ विकास कहता रहा और मैं अवाक खड़ी सुनती रही.

‘यह भी ध्यान रखना कि मुझ से शादी के बाद जब तुम कभी अपने पति के बारे में सोचोगी तो वह मुझ से बेवफाई होगी. क्या तुम तैयार हो?’

‘तुम ने मुझे पहले क्यों नहीं समझाया ये सब?’

‘मैं शादीशुदा नहीं हूं, कुंआरा हूं. तुम्हें देख कर दिल मचला. फिसला और सीधा तुम्हारी बांहों में पनाह मिल गई. मैं अब भी तैयार हूं. तुम शादीशुदा हो, तुम्हें सोचना है. तुम सोचो. मेरा प्यार सच्चा है. मुझे नहीं सोचना क्योंकि मैं अकेला हूं. मैं तुम्हारे साथ सारा जीवन गुजारने को तैयार हूं लेकिन "वफा के वादे के साथ."

मैं रो पड़ी. मैं ने विकास से कहा, ‘तुम ने पहले ये सब क्यों नहीं कहा.’

‘तुम ने पूछा नहीं.’

‘लेकिन जो जिस्मानी संबंध बने थे?’

‘वह एक हम दोनों की तन्हाई का पल था. वह, वह समय था जब तुम कमजोर पड़ गई थीं. मैं कमजोर पड़ गया था. वह पल अब गुजर चुका है. उस तन्हाई के पल में हम प्यार कर बैठे. इस में न तुम्हारी खता है न मेरी. दिल पर किस का जोर चला है. लेकिन अब बात शादी की है.’

विकास की बातों में सचाई थी. वह मुझ से प्यार करता था या मेरे जिस्म से बंध चुका था. जो भी हो, वह कुंआरा था. तनहा था. उसे हमसफर के रूप में कोई और न मिला, मैं मिल गई. मुझे भी उन तन्हाई के पलों को भूलना चाहिए था जिन में, मैंने अपने विवाह को अपवित्र कर दिया. मैं परपुरुष के साथ सैक्स करने के सुख में, देह की तृप्ति में ऐसी उलझी कि सबकुछ भूल गई. अब एक और सब से बड़ा कदम या सब से बड़ी बेवकूफी कि मैं अपने पति से तलाक ले कर विकास से शादी कर लूं. क्या करूं मैं, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था.

हां, मैं एक साधारण नारी हू, मुझ पर भी किसी का जादू चल सकता है. मैं भी किसी के मोहपाश में बंध सकती हूं, ठीक वैसे ही जैसे कोई बच्चा नया खिलौना देख कर अपने पास के खिलौने को फेंक कर नए खिलौने की तरफ हाथ बढ़ाने लगता है.

नहीं…मैं कोई बच्ची नहीं. पति कोई खिलौना नहीं. घरपरिवार, शादीशुदा जीवन कोई मजाक नहीं कि कल दूसरा मिला तो पहला छोड़ दिया. यदि अहल्या को अपने भ्रष्ट होने पर पत्थर की शिला बनना पड़ा तो मैं क्या चीज हूं. मैं भी एक औरत हूं, मेरे भी कुछ अरमान हैं. इच्छाएं हैं. यदि कोई अच्छा लगने लगे तो इस में मैं क्या कर सकती हूं.

मैं ने विकास से पूछा, ‘मेरी जगह तुम होते तो क्या करते?’

विकास हंस कर बोला, ‘ये तो दिल की बातें हैं. तुम्हारी तुम जानो. यदि तुम्हारी जगह मैं होता तो शायद मैं तुम्हारे प्यार में ही न पड़ता या अपने कमजोर पड़ने वाले क्षणों के लिए अपने आप से माफी मांगता. पता नहीं, मैं क्या करता?’

विकास ये सब कहीं इसलिए तो नहीं कह रहा कि मैं अपनी गलती मान कर वापस चली जाऊं, सब भूल कर. फिर जो इतना समय इतनी रातें विकास की बांहों में बिताईं. वह क्या था? प्यार नहीं मात्र वासना थी? दलदल था शरीर की भूख का? कहीं ऐसा तो नहीं कि विकास का दिल भर गया हो मुझ से, अपनी हवस की प्यास बुझा ली और अब विवाह की रीतिनीति समझा रहा हो? यदि ऐसी बात थी तो जब मैं ने कहा था कि मैं ब्याहता हूं तो फिर क्यों कहा था कि किस किताब में लिखा है कि शादीशुदा प्यार नहीं कर सकते?

विकास ने आगे कहा, ‘किसी स्त्री के आगोश में किसी कुंआरे पुरुष का पहला संपर्क उस के जीवन का सब से बड़ा रोमांच होता है. मैं न होता कोई और होता तब भी यही होता. हां, यदि लड़की कुंआरी होती, अकेली होती तो इतनी बातें ही न होतीं. तुम उन क्षणों में कमजोर पड़ीं या बहकीं, यह तो मैं नहीं जानता लेकिन जब तुम्हारे साथ का साया पड़ा मन पर, तो प्यार हो गया और जिसे प्यार कहते हैं उसे गलत रास्ता नहीं दिखा सकते.’

मैं रोने लगी, ‘मैं ने तो अपने हाथों अपना सबकुछ बरबाद कर लिया. तुम्हें सौंप दिया. अब तुम मुझे दिल की दुनिया से दूर हकीकत पर ला कर छोड़ रहे हो.’

‘तुम चाहो तो अब भी मैं शादी करने को तैयार हूं. क्या तुम मेरे साथ मेरी वफादार बन कर रह सकती हो, सबकुछ छोड़ कर, सबकुछ भूल कर?’ विकास ने फिर दोहराया.

इधर, संजय, मेरे पति वापस आ गए. मैं अजीब से चक्रव्यूह में फंसी हुई थी. मैं क्या करूं? क्या न करूं? संजय के आते ही घर के काम की जिम्मेदारी ली. एक पत्नी बन कर रहना. मुझे मां और पत्नी दोनों का फर्ज निभाना था. मैं निभा भी रही थी. और ये निभाना किसी पर कोई एहसान नहीं था. ये तो वे काम थे जो सहज ही हो जाते थे.

लेकिन टिफिन सेंटर पर जाते ही विकास आ जाता या मैं उस से मिलने चल पड़ती, दिल के हाथों मजबूर हो कर.

मैं ने विकास से कहा, ‘‘मैं तुम्हें भूल नहीं पा रही हूं.’’

‘‘तो छोड़ दो सबकुछ.’’

‘‘मैं ऐसा भी नहीं कर सकती.’’

‘‘यह तो दोतरफा बेवफाई होगी और तुम्हारी इस बेवफाई से होगा यह कि मेरा प्रेम किसी अपराधकथा की पत्रिका में अवैध संबंध की कहानी के रूप में छप जाएगा. तुम्हारा पति तुम्हारी या मेरी हत्या कर के जेल चला जाएगा. हमारा प्रेम पुलिस केस बन जाएगा,’’ विकास ने गंभीर होते हुए कहा.

मैं भी डर गई और बात सच भी कही थी विकास ने. फिर वह मुझ से क्यों मिलता है? यदि मैं पूछूंगी तो हंस कर कहेगा कि तुम आती हो, मैं इनकार कैसे कर दूं. मैं भंवर में फंस चुकी थी. एक तरफ मेरा हंसताखेलता परिवार, मेरी सुखी विवाहित जिंदगी, मेरा पति, मेरे बच्चे और दूसरी तरफ उन तन्हाई के पलों का साथी विकास जो आज भी मेरी कमजोरी है.

इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. एक दिन पति को भनक लग ही गयी....!

अब क्या होगा? मै सोच रही थी, क्या कहेगा पति? क्यों किया तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा? क्या कमी थी मेरे प्यार में? क्या नहीं दिया मैं ने तुम्हें? घरपरिवार, सुखी संसार, पैसा, इज्जत, प्यार किस चीज की कमी रह गई थी जो तुम्हें बदचलन होना पड़ा? क्या कारण था कि तुम्हें चरित्रहीन होना पड़ा? मैं ने तुम से प्यार किया. शादी की. हमारे प्यार की निशानी हमारे दो प्यारे बच्चे. अब क्या था बाकी? सिवा तुम्हारी शारीरिक भूख के. तुम पत्नी नहीं वेश्या हो, वेश्या.


और उस रात मेरे पति शाराब पी कर आये गुस्से में कहा " बोलती थी तुम्हारे बिना मर जाऊंगी, मरी तो नही..पर मरवा खूब रही हो.... ।

पापा की तेज आवाज सुनकर बच्चे भी कमरे में झांकने लगे, बच्चो को यू झांकता देख उन्होंने बच्चों के सर पर हाथ फेरते हुए उन्हे वापस कमरे में जाकर सोने के लिए कहा।

मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे वो मेरे करीब आये और बोले " रेखा बफादार बीवी मर्द की सबसे बड़ी दोलत होती है, तुम्हारे अलावा शायद अब मै किसी और से तुम जैसा प्यार कर पाऊ, पर हा, ये यकीन है मुझे, तुम जितना दुखी अब कोई और नही कर पायेगा मुझे...!

इक बार मेरी बात तो सुनिये...!

ना.... तुम मेरी बात सुनो ‘‘रहना है तो तरीके से रहो वरना तलाक लो और जहां मुंह काला करना हो करो. दो में से कोई एक चुन लो, प्रेमी या पति. दो नावों की सवारी तुम्हें डुबो देगी और हमें भी.’’

उन्होंने दोटूक कहा था,

मैं शर्मिंदा थी. मैं गुनाहगार थी. मैं चुप रही. मैं सुनती रही. रोती रही.

अगले दिन मै फिर विकास से मिली...

मै तुम से शादी नहीं कर सकता. मैं एक ऐसी औरत से शादी करने की सोच भी नहीं सकता जो दोहरा जीवन जीए. तुम मेरे लायक नहीं हो. आज के बाद मुझ से मिलने की कोशिश मत करना. वे तन्हाई के पल मेरी पूरी जिंदगी को तन्हा बना कर खतम कर देंगे. आज के बाद आईं तो बेवफा कहलाओगी दोनों तरफ से. उन तन्हाई के पलों को भूलने में ही भलाई है.’’ मैं चली आई. उस के बाद कभी नहीं मिली विकास से.....!

अर्चना ने ही एक बार बताया कि वह शहर छोड़ कर चला गया है. हां, अपनी बेवफाई, चरित्रहीनता पर अकसर मैं शर्मिंदगी महसूस करती रहती हूं. खासकर तब जब कोई वफा का किस्सा निकले और मैं उस किस्से पर गर्व करने लगूं तो पति की नजरों में कुछ हिकारत सी दिखने लगती है. मानो कह रहे हों, तुम और वफा. पति सभ्य थे, सुशिक्षित थे और परिवार के प्रति समर्पित.

कभी कुलटा, चरित्रहीन, वेश्या नहीं कहा. लेकिन अब शायद उन की नजरों में मेरे लिए वह सम्मान, प्यार न रहा हो. लेकिन उन्होंने कभी एहसास नहीं दिलाया. न ही कभी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह छिपाया.

मैं सचमुच आज भी जब उन तन्हाई के पलों को सोचती हूं तो अपनेआप को कोसती हूं. काश, उस क्षण, जब मैं कमजोर पड़ गई थी, कमजोर न पड़ती तो आज पूरे गर्व से तन कर जीती. लेकिन क्या करूं, हर गुनाह सजा ले कर आता है. मैं यह सजा आत्मग्लानि के रूप में भोग रही थी. विकास जैसे पुरुष बहका देते हैं लेकिन बरबाद होने से बचा भी लेते हैं.

स्त्री के लिए सब से महत्त्वपूर्ण होती है घर की दहलीज, अपनी शादी, अपना पति, अपना परिवार, अपने बच्चे. शादीशुदा औरत की जिंदगी में ऐसे मोड़ आते हैं कभी कभी. उन में फंस कर सबकुछ बरबाद करने से अच्छा है कि कमजोर न पड़े और जो भी सुख तलाशना हो, अपने घरपरिवार, पति, बच्चों में ही तलाशे. यही हकीकत है, यही रिवाज, यही उचित भी है.


समाप्त

Review
Story - वफा का वादा
Writer - Rekha rani

Plot - एक शादीशुदा महिला रेखा, जिसका वैवाहिक जीवन और परिवार कई तरह की परेशानियों से गुजर रहा है, विशेषतौर पर आर्थिक संकट के कारण परिवार में कई समस्याएं है, ऐसे में उसका पति संजय दुबई जाता है, ताकि उस आर्थिक संकट को खत्म किया जा सके, लेकिन ऐसे समय पर पति से दूर रहकर रेखा के कदम उसे राह पर चल ही पड़ते है, जहां पर नहीं जाने चाहिए। एक नवयुवक विकास के साथ उसके नाजायज संबंध बनते है।

एक बेहतरीन और उम्दा रचना, वैवाहिक और व्यभिचार के रिश्ते पर एक सटीक और स्पष्ट लेखन।

कहानी डेवलप होने में अपना पूरा समय लेती है, एक आदर्श परिवार में जब आर्थिक संकट आता है तो उसका असर रिश्तों पर पड़ता है, एक तरफ रेखा के जेठ जेठानी का रिश्ता टूट जाता है, वही इनके रिश्तों में भी कड़वाहट सी आने लगती है।

रेखा द्वारा किया गया धोखा सिर्फ संजय का दुबई जाना या साल भर की दूरी नहीं बल्कि वो 3-4 सालों की दूरी का परिणाम था, जो एक ही कमरे में रहकर भी पास नहीं थे।

संजय का दुबई जाना और विकास से रेखा का मिलना तो ताबूत में कील जैसा था। हालाकि प्यार और दोस्ती का असली रंग संकट में और दूर जाने पर ही पता चलता है।

विकास एक आजाद पंछी की तरह था, जिसके लिए रेखा एक अवसर की तरह थी, लेकिन रेखा ने शादी की मर्यादा से बाहर जाकर प्यार किया। हालाकि मुझे विकास और रेखा में प्रेम नही दिखता, रेखा अकेलेपन में अपने मन के भटकाव से बच नही पाई और विकास के लिए रेखा एक अवसर थी।

संजय की भूल सिर्फ ये थी की उसने अपने अहंकार में आकर दिल्ली मुंबई की बजाय दुबई जाना चुना, लेकिन उसके परिणाम की उसे आशा नहीं थी। अगर हर मर्द कभी बाहर जाने से पहले ये सोचे की कही उसके पीठ पीछे उसकी पत्नी उसके साथ धोखा कर देगी तो फिर रिश्ते में केवल शक बचेगा।

हालाकि रिश्ते में धोखे के लिए एक साल नही, एक पल काफी होता है, ऐसे में संजय अगर दुबई न जाता तो भी कहना मुश्किल है की ऐसा न होता।

कहानी में कोई कमी मुझे नही लगती, सिवाय इसके कि नोटबंदी नवंबर 2016 में हुई थी ना की 2017 में😁😁

बेहतरीन कहानी।

 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
20,905
44,583
259
Story: "बीते वक्त की छाप"
Writer: Sanki Rajput

Story Line: एक लड़की के पहले प्यार और उससे आगे बढ़ने की कहानी है, जहां एक लड़की एक फौजी को अपना दिल दे बैठती है, और उसी की तरह आजाद और एकाकी जिंदगी जीने की तमन्ना रखती है, और वो फौजी उसके प्यार को अस्वीकार करके, उसे इस एकाकी जीवन से दूर रहने की सलाह दे कर चला जाता है।

Treatment: कहानी अच्छी बन जाती अगर हम स्टोरी से कनेक्ट हो पाते, लेकिन ये हो ना सका, कारण रिशा/प्रिशा का कोई डिस्क्रिप्शन नही दिया गया कि वो कैसी है कितने साल।की है इत्यादि, सीधे कहानी शुरू हो गई उसकी अपने गांव जाने की यात्रा से। गांव की खूबसूरती दिखाने के चक्कर में किरदार की डेवलपमेंट नही हुई।

Positive Point: गांव की खूबसूरती को अच्छे से उकेरने की कोशिश की है। हीरोइन की केयर को, उसके प्रेमी।के प्रति भी अच्छे सा दर्शाने का प्रयास है। सीख अच्छी है, कि एकाकी जीवन नही जीना चाहिए।

Negative points: किरदारों को डेवलप नही किया गया, नाम तक का कन्फ्यूजन हो गया। संदेश में भी चूक हुई, क्योंकि हीरोइन तो हीरो का साथ चाहती थी, न कि एकाकी जीवन।

Suggestion: किसी भी कहानी के किरदारों को अच्छे से उकेरिए, वरना पाठक जुड़ेंगे नही कहानी से।

Rating: 7/10
 

Samar_Singh

Conspiracy Theorist
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"बीते वक्त की छाप"


उत्तराखंड....

कॉलेज से आने के बाद रिशा ने जब अपने पापा को आया हुआ देखा तो खुशी से गले लग जाती है और ताने मारते हुए कहती है कि "आप तो लगता है कनाडा ही बसने" वाले थे, देख रही हो मां''

तब उसके पिता बताते हैं कि "ये सब छोरो गाव चलना है हमें रिशा,आज शाम को ही"

जो सुनकर वो चिढ़ जाती है और मना करने लगती है लेकिन उसकी छोटी बहन संध्या बहुत खुश होती है। खैर उसके पापा और मां उसको मनाते हैं जिसे वो मान जाती है अपने गांव "सिधारा" जाने के लिए।

शाम को निकल गए वो, जब वे गांव पहुंचने वाले थे तो रिशा के पिता ने उन्हें बताया कि "हम बस पहुंच ही गए है"

तब रिशा का मुंह सिकुड सा गया था मानो छोटे बच्चे से खिलौने छीन लिए हो। जब गाड़ी ने टर्न ली एक नहर की ओर। जिसे पार करते ही वहा की खुबसूरती देख कर वो किसी खिले हुए गुलाब की पंखुड़ियों की तरह मुस्कुराने लगी।

गाँव की ओर जैसे-जैसे गाड़ी बढ़ रही थी पहाड़ और खेतो की ख़ूबसूरत नज़ारों ने वहा गाड़ी में सबकी आँखों में एक ख़ूबसूरत नज़ारों का लहर सा बना दिया हो ऐसा लग रहा था।

गांव के द्वार पर ही जहां एक बस रुकी हुई थी वहां बहुत भिड़ थी जो रिशा के पिता को ही लेने के लिए आए थे।

उनके गाड़ी से उतरने के बाद उनका ढेरो स्वागत हुआ पर प्रीशा की ख़ुशी तो इतनी बढ़ गई थी कि वो अलग खड़े अपने चारों तरफ के नज़ारे को अपनी आँखों में उतार रही थी एक प्यारी मुस्कान के साथ।

खैर उन लोगों की गाड़ी गांव के अंदर पहुचती है और एक घर के बाहर आ कर रुकती है। घर की सजावट जिस तरह से की जा रही थी शायद वो रिशा को बहुत पसंद आई, वो दौर कर अंदर चली गई आंगन में, जिसके पीछे और सब भी आए।
रिशा को ऐसे सजावट होते देख कर सब हस रहे थे और फिर एक दूसरे से मिलना हुआ उन सबका।

परिवार के बड़ो की मीटिंग बाहर चल रही थी और महिलाओ की घर में।
वही छत पर रिशा और बाकी लड़कीयां जिनमे संध्या भी थी वो गांव का नजारा देखते हुए बाते कर रही थी जहां उन लड़कियों की बातों का जवाब सिर्फ संध्या दे रही थी, रिशा तो व्यस्त थी गांव की खूबसूरत खेतो की हरियाली देखने में। तभी रिशा उनसे पूछती है "पीहू दी क्या हम गाव घुमने चले क्या?"


जो सुन एक लड़की उससे कहती है "अरे ये बात तू कह रही है हेहे, मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा"

जिस तरह सब हंसते हैं जो देख रिशा मुंह बनाते हुए बोलती है "दीदी मजाक मत बनाओ" और फिर सामने देखते हुए खेतो की ओर कहती है "पता है दी मैं तो राजी ही नहीं थी आने को, पर यहां आने के बाद ऐसा लग रहा है जैसे किसी स्वर्ग में आ गई हूं, ये जगह बहुत अच्छी लगी बस इस तरह मैं यहां खुल कर घूमना-फिरना और यहां के नज़ारों का मजा लेना चाहती हूं"

ये सुन सब एकटक उसे ही देख रहे थे जिसके बाद जवाब देते हुए पीहू कहती है "अरे क्यों नहीं मेरी बहना और पता है कल मेरा भाई जैसा दोस्त आकाश भी आ रहा है, तो सब चलेंगे साथ।"


नमी भरी किरनों की सुबह से कसमसाते हुए रिशा उठ कर खिड़की से बहार देखती है जहां खेतो में घुमते मोरो पर उसकी नजर पड़ती है जो देख उसकी बेताबी ऐसी बढ़ती है कि वो उठ कर बाहर भागते हुए घर से बाहर निकल जाती है और खेतो में पहुंच कर जब वो अपने सामने इतने सारे मोर को देखती है तो वो उन्हें चकित नजरों से देखते हुए गिनने लगती है और तभी पीछे उसके पिता भागते हुए आ जाते हैं जिनके साथ घर के कुछ और बुजुर्ग और एक लड़का था।

रिशा को ऐसे गिनती करते देख उसके पिता ने अपना माथा पिट लिया जिसे देख साथ आए लोग भी हंसने लगे सिवाए उस लड़के के जो प्रिशा को देख रहा था ऐसी बचकानी हरकतें करते हुए।

सभी नाश्ता करने के बाद सारी लड़कीया कार्ड लेकर रिशा और संध्या के साथ निकल जाते हैं गांव घुमने और उनके साथ वो लड़का भी था जिसे मिलवाते हुए पीहू रिशा और संध्या को बताती है कि यही आकाश है।

गाव घुमते-घुमते वो दूसरे गाव की ओर चल देते हैं जिस गाव में उन्हें कार्ड असल में बटना था, वो गाव में सभी को कार्ड देते हुए एक घर के सामने पहुंचते हैं।

तभी आवाज लगाते हुए पीहू बोलती है "आशु... आशु बहार आ जल्दी"

कुछ देर तक कोई नहीं आया पर तभी आवाज फिर लगाने वाली थी पीहू की अंदर से एक लड़का अपने हाथ को गमछे में साफ करते हुए बाहर आया और बोला
"अरे पीहू दीदी आप हो, माफ करना पीछे खेत में सब्जी तोड़ रहा था"

पीहू आगे आते हुए बोलती है "कोई नहीं, और ये रख शादी का कार्ड और याद रहे मेरी शादी में आना है तुझे जरूर, पिछली बार की तरह तृप्ता की शादी वाला हाल मत करना।"

आशू हस्ते हुए बोलता है "ठीक है दीदी"


सभी फिर उस गांव के मुखिया के घर पहुंचते हैं कार्ड देने, जब वो कार्ड दे रहे थे तब आकाश बोलता है "ये रिशा कहां गई?" जो सुन वाहा हल्ला होने लगता है सभी लड़कीयां रिशा को आवाज लगाते हुए बाहर आती है तो पीहू पूछती है गुस्से से "कहा गई रिशा, हमारे ही साथ तो आई थी यहां तक"

तभी आकाश बोलता है "ढूंढते है। पहले सवाल जवाब बाद में होंगे"

तभी संध्या बोलती है "वो फ़ोन भी नहीं उठा रही है"

जो सुन उन्हें चिंता होने लगती हैऔर भी ज्यादा।

मुखिया जो बाहर आया हुआ तो उन्हें ऐसे देख कर वो बोला "चिंता मत करो गांव में ही कहीं घुमने लगी होगी, मैं सरजू को भेजता हूं, ओए सरजू इधर आ जल्दी"

भाग कर एक आदमी आया तब मुखिया बोला
"इनके साथ जा और इनकी मदद कर ढूढ़ने में लड़की को"

गाव में वो रिशा को ढूंढते-ढूंढते वो गाव के बाहर तक आ गए लेकिन उन्हें कहीं नहीं मिली रिशा जो देख सभी लड़कियों का तो बुरा हाल था ही और संध्या तो रोने लगी थी तब आकाश ने उन्हें संभालते हुए कहा "एक काम करो आप लोग घर पर जाकर बताओ मैं एक बार सरजू काका के साथ फिर से ढूँढता हूँ"


पीहू और लड़की अपने गांव की ओर चली गई थोड़ी ना नुकुर के बाद। वही जब वो रास्ते में थी अपने घर के लिए तब उन्हे खेत में एक छोटा लड़का दिखा जिसके साथ रिशा बाते करते हुए खेत के मोड़ पर चल रही थी।

जो देखा सभी ने आवाज लगाना शुरू कर दिया जो सुनाई देता ही रिशा ने उनकी तरफ देखते ही वो खेतो में से भागते हुए वो सरक पर पहुंच गई जहां उसके आते ही डांटना शुरू कर दिया सबने।

तब छोटे लड़के से पता चला की रिशा को तो ये आशू भैया के घर से लेकर आ रहा है "आशू भैया ने कहा की मैडम को गाव में छोड दु"

तब रिशा से पूछा गया तो महाशय उन्होंने कुछ बोला ही नहीं मानो मुंह में दही जमा लिया हो,जो देख पीहू ने आशु को फोन लगा दिया तब तक आकाश भी दौड़ते हुए आ गया जो हांफ रहा था, जिसको फोन करके बता दिया था।

पीहू को आशु से बात करता देख रिशा मुंह फुलाये कान गड़ाये सुनने की कोशिश कर रही थी उनकी बाते। फ़ोन काटने के बाद पीहू ने बताया "महाशय खेतो में मोर को पकड़ने भागी हुई थी"

जो सुन सभी ने रिशा को घुरना चालू कर दिया और तभी आकाश की हंसी छूट गई जो देख और सबकी भी छूट गई।

तब प्रिशा ने चिढ़ते हुए कहा "तो क्या हुआ,हस क्यों रहे हो इतना"

खैर रास्ते भर वो हंसी मज़ाक और रिशा के ऊपर हस्ते हुए आए। घर पहुंच उन्होने जब सब बताया तो सब हंसी के ठहाके वहा भी शुरू हो गए।

रात में कमरे में बैठ कर सभी परिवार खाना खाने के बाद हंसी मज़ाक कर रहे थे जहां बात छिड़ी फिर से रिशा की आज के कारनामे पर,लेकिन दूसरा कोई उस बात पर बोले रिशा ने उल्टा सवाल करते हुए बोला "ये सब छोरो पहले ये बताओ, ये आशू कौन है?"

जिसका सवाल पर एक बूढ़ी औरत ने कहा "आशु, क्यों तू क्या करेगी जान कर?"

रिशा बोलती है "मुझे जानना है दादी, क्योंकि मैंने उसके घर में किसी को नहीं देखा"

तभी पीहू बोलती है "अरे रिशा आशु सतेंद्र काका का बेटा है, अकेला रहता है"

तभी रिशा बोलने को हुई थी कि उसके पिता बोल उठे "ये वो आर्मी वाला सतेंद्र सिंह नेगी का लड़का है क्या..?"

जो सुन पीहू ने कहा "हा चाचा"

तब रिशा ने बोला "दीदी तुमने बताया नहीं वो अकेला क्यों रहता है?"

तब पीहू बोली "क्योंकि उसके परिवार में कोई नहीं है"

जिसपर आगे रिशा बोलते-बोलते रुक गई जब उसे कुछ समझ आया "लेकिन अभी तो आपने उसके पिता का नाम ली...??!!"
तब उसने लड़खड़ाती जुबान से बोला "मत..मतलब उसके पिता की मृत्यु हो गई है"

कुछ देर बाद वो सब वहां से चले गए सोने कमरे में। रि शा को आज अलग सा लग रहा था मानो वो अपने आप को अंदर से खाली-खाली सा महसूस कर रही थी थी किसी के जीवन को देख कर।

सुबह होते ही घर में तयारी शुरू हो चुकी थी, मेहमान आने शुरू हो गए थे।

"अरे ओ संभू, जल्दी जल्दी हाथ चला, सिर्फ 7 दिन बाकी है और कल पूजा करवाना है"

"अरे चाचा हो जाएगा सब चिंता मत करो"
आकाश ने ये कहते हुए हाथ बटाने लगा सजावट में।

वही दोपहर में रिशा बाहर गाव में घुमते-घुमते आशु के घर पहुंच चुकी थी और उसका गेट खटखटा रही थी "ओए हीरो गेट खोलो" ये कहने के बाद फिर उसने गेट बजाना शुरू कर दिया जोरो से।

गेट खुलते ही आशु बाहर आके अपने सामने रिशा को देख, चौंकते हुए कहता है "तुम यहाँ फिर से?"

रिशा ने उसके सामने से धक्का दे करअंदर घुस गई घर के और देखने लगी चारो तरफ और उसके कमरा दिखते ही वो उसके कमरे में घुस गई जहां जाके उसने कमरे को जो गंदा देखा वो नाक दबाते हुए बोली "कितनी गंदगी है तुम्हें शर्म-वर्म नहीं" आती, घर में एक लड़की आई है और घर गंदा रखा है, क्या असर पड़ेगा हां बोलो?"

जो सुन पहले चुप सा होकर आशू उसे देखने लगा और घुड़ते हुए बोला "मैडम मैंने नहीं बुलाया था आपको ,आप खुद आई हैं"

जो सुन उसने जवाब देते हुए कहा "चुप करो और मदद करो मेरी"

और वो ये बोलते ही वो कपडे सब उठा कर वहा रखे चौकी पर रखने लगी, आशु ने मनाने की कोशिश की पर,वो नहीं मान रही थी अंतिम में हार मानकर उसने अपना माथा पिट लिया और थक कर उसकी मदद करने लगा।

कुछ देर में ही घर साफ हो गया था और पहले से बहुत ज्यादा साफ लग रहा था।
घर में तहलका मचाने के बाद वो खेतो की ओर भाग गई पीछे के गेट से जिसके पीछे आशु भाग के आया तो देखा रिशा मोरो की झुंड जो आगे खेतो में थी उनकी ओर भाग रही थी जिसे देख उसकी मुस्कान ही नहीं रुकी चेहरे पर आने से।
वो भी उसकी ओर बढ़ते हुए उसके साथ मोरो के पीछे भागने लगा।

कुछ देर बाद ही वो दोनों एक नहर के ऊपर पूल पर बैठे हुए थे। डोनो की शांति ने फ़िज़ा में उनके लिए चिड़ियों की चचाहत को खुली छूट दे दी थी मानो, बहती हुई नदी की शीतल धारा की पत्थरों से टकराने की आवाज़ दोनो का ध्यान चिड़ियों से बार-बार अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी तो कभी शीतल और ठंडी हवा के झोंके उनके बदन में कम्पन पैदा कर रही थी। चुप्पी तोड़ते हुए रिशा बोली "आशु तुम अकेले कैसे रह लेते हो?"

आशू ने ये सुनकर उसकी ओर देखा और उसकी आंखें जो ऊपर बादलों को देख रही थीउसकी पलकों को निहारते हुए उसने पूछा "क्यू?"

रिशा ने उसकी ओर देखा और बोला "क्यूकी मैं तुम्हारे जैसे अकेली जीना चाहती हूँ"

जो सुन आशु की पलकें उठ गई और उसको देखते हुए वो बोल पड़ा "इतना अच्छा परिवार है फिर भी ऐसा ख्याल?"

रिशा ने उसकी ओर देखते हुए बोला "पहले मुझे ये गाव नहीं मिला था न, इसलिए"

ये सुन आशु उसे टकटकी लगाए देखने लगा जो भांप कर वो बोली "मुझे मत घूरो बेवकूफ उनको घूरो" हाथ से इशारा करते हुए उसने दो चिड़ियों को एक साथ बैठे हुए दिखाया जो साथ में बैठ कर एक कीड़े को खा रहे थे।

कुछ देर शांति रही और तभी रिशा बोल उठी "अरे मुझे घर भी जाना है यार"

रिशा के साथ आशु उसे गाव तक छोरने साथ आने लगा, गाव तक वो पहुंच ही गए थे तभी आशु बोला "अकेले जीने की तमन्ना कभी मत करना रिशा,बहुत दर्द देगा ये जज़्बात बाद में तुम्हें"

ये कह कर वो मुड़ कर चला गया और इधर रिशा जो उसकी बात सुनने के बाद घर आ गई जहां आते ही उसे डांट सुननी पड़ी थोड़ी क्योंकि उसने पिछली बार की तरह मोबाइल घर पर ही छोड़ दिया था।

पीहू उसे सुनाते हुए बोल रही थी "कहीं गांव घूमने भी जाती है तो मोबाइल लेके जया कर, बेवकूफ"


दूसरे दिन पूजा शुरू हो गई थी घर में, सभी पूजा में बैठे थे।
रिशा अपनी बहनों और अन्य लड़कियों के साथ बैठी बातें कर रही थी जब उसकी नज़र आशु पर पड़ी जो वही फूलो की टोकरी ले जा रहा था।

कथा पूजन दोपहर तक ख़तम हो गया, प्रसाद बटने के समय जब आशु प्रसाद देते हुए रिशा के पास पहुंचा और प्रसाद देते हुए आगे बढ़ा तभी जब एक औरत को प्रसाद दिया उसने तो उसे ध्यान से देखते हुए बोली "अश्वेंद्र सिंह नेगी, तुम हो क्या ये ?"

आशु ने जब उस औरत को ध्यान से देखा तो वो बोला " मैडम आप यहां ?"

औरत बोलती है "हा,वैसे लगता है ऑफ ड्यूटी हो"



और अभी आशु कुछ बोलता उससे पहले, रिशा के पिता वहां आ गए और औरत से बोले "अरे आप मैडम, कैप्टन सुरेश जी नहीं आए"

ये देखते हुए आशु वहां से शांति से चला गया। पूजा खत्म हो गया था। रात में आज रिशा पीहू के पास सोई थी जहां पीहू से सोते समय उसने पूछा "दी आशु कोई काम करता है क्या?"

पीहू ने जवाब देते हुए बोला "आर्मी में है अपने पिता जी के पोस्ट पर"

जो सुन प्रीशा का शरीर सिहर उठा, उसके अंदर जज़्बाते उफान मारने लगी थी जो उससे बेबसी महसूस करा रही थी किसी और के लिए।

रात भर उसे नींद नहीं आई सुबह होते ही वो फ्रेश होकर टहलने का बहाना बना कर आशु के घर पूछ गई जहां उसने देखा कि आशु बाहर सब्जी ठेलो पर रखवा रहा था। जहां रिशा पहुंच कर उसपर हक जमाते हुए पूछती है "क्या कर रहे हो ये साब ?"

जो सुन आशु का ध्यान गया उसकी ओर तो उसने नज़रअंदाज़ कर वापस ठेले पर सब्जिया रखवाते हुए बोला "आंख है न तो देख लो"

जो सुन रिशा ने एक चपेट उसके सर पर पीछे से लगते हुए बोली "जो बोला उसका जवाब दिया करो समझ की नहीं"

ये कहते ही वो घर में चली गई उसके,जो देख उसने सब्जियों के पैसे लिए और अंदर आते हुए देखा तो रिशा रसोई में थी चाय बनाने बैठी थी जो देख आशु ने उसे वहां से हटाने की कोशिश की तो वो बोलने लगी "मैं आज से खाना बनाऊंगी हटो तुम और हां चाय बनाऊंगी अभी मैं पहले" फिर थोड़ा रुक के उसने बोला "दुध कहा है?, चीनी भी नहीं है?" ये कहते हुए उसने ऐसे घूरा आशू को जैसे वो अजूबा हो पर पड़ा इसका उल्टा आशू उसे मासूम दिख रहा था।

खैर चाय का सामान घर में ना देख वो खाना बनाने बैठ गई, उसने प्याज काटते हुए उसे आंख से पानी आने लगा और वो आंख पर हाथ रख कर बैठ गई जिससे और जलन होने लगी उसे जो देख आशु ने जल्दी से पानी लाके दिया उसे और चेहरा धोने के बाद उससे आशु ने पूछा "आज से पहले प्याज नहीं काटा क्या खाने बनाने वक्त?"

जो सुन रिशा ने अपना सर ना में हिलाते हुए कहा "खाना ही नहीं बनाया आजतक"

आशू ने पहले नज़रअंदाज किया लेकिन जब उसने सुना कि उसने क्या बोला तो उसकी हंसी छूट गई बड़ी तेज़, जो देख रिशा ने मुँह बना लिया।

आशू हस्ते हुए "हाहाहा, खाना नहीं बनाया आज तक और खाना बनाना छोरो प्याज काटने चली थी, हाहाहा"

प्रिशा ने उसे दो तीन मुके कंधे पर लगा दिया लेकिन फिर भी हस रहा था वो जिसे देख रिशा उसे देख मुस्कुराने लगी।

कुछ दिन बाद....

इन कुछ दिनों में शादी के बाकी रस्म हो चुके थे अच्छी तरह से और आशु और रिशा के बीच एक डोर भी बंध चुकी थी दोस्ती की।

शादी की सजावट पूरी हो चुकी थी आज बारात आने वाली थी शाम का समय बारात का सभी इंतजार में थे और बाकी बचे छोटे काम सभी घर के लोग संभाल रहे थे।


कुछ ही देर में बारात की ढोल-नगाड़े की आवाज आने लगी, सभी स्वागत के लिए आ गए। ऊपर कमरे में सभी लड़कियाँ, संध्या और रिशा पीहू को छेड़ रही थी। घर की महिला अंदर त्यारी में लगी हुई थी,बाकी रस्मो में। और कुछ महिलाये बाहर पर आरती लेकर स्वागत के लिए खड़ी थी।

दूल्हे का स्वागत धूमधाम से हुआ, करीब सुबह 2 बजे तक शादी और बाकी बचे रस्में पूरे हो चुके थे। आशु थक कर अपने घर की ओर चल दिया था, जिसके पीछे से आवाज आई "आशु रुक्को...आशु"

रिशा दौड़ कर उसके पास आई जो हांफ रही थी तो आशु ने उसका इंतजार किया नॉर्मल होने का, करीब 5 मिनट आशु वहां खड़ा इधर उधर देखता रहा तभी रिशा ने उसे बोला "आशु मैं कल चली जाउंगी शहर"

जो सुन आशु की निगाहे उसकी आँखों में देखने लगी, रिशा ने उसके तरफ से जवाब ना पाते देख
"तू...तुम्हें मेरे साथ समय बिताते हुए कुछ एहसास नहीं हुआ क्या?!"


आशु ने अपनी नज़रे उससे हटाते हुए बोला "कैसा एहसास?"

"वही एहसास जो मुझे हुआ" रिशा ने जवाब दिया

जो सुन आशु कुछ देर शांत रहा और बोला "मैं नहीं सम..." अभी उसकी बात आगे बढ़ पाति उससे पहले उसका कॉलर पकड़ कर रिशा ने उसके लबों पर अपने लब जोड़ दिए और निरंतर उसके आंखों में देखते हुए वो उसके लबों को प्यारी नज़ाकत से चूसने लगी।

आशु की आँखे स्थिर थी, वो बस मूर्ति बना ये होने दे रहा था, उससे विरोध का पर्यास नहीं हो पा रहा था लेकिन कोशिश कर उसने रिशा को धक्का देते हुए कहा "ये सब ठीक नहीं है रिशा"

रिशा फिर उसके पास आते हुए उसके हाथ को थामते हुए बोलती है
"तुमसे कहना बहुत कुछ चाहती हूं, पर अपने दिल के शब्दों का इस्तमाल नहीं कर पा रही हूं। शायद मेरे दिल की गहराइयों से समझो... तुम मेरी एक आखिरी आश बन गयो हो जिसे मैं भगवान से मांगना चाहूंगी आखिरी बार,नजाने कैसे मेरी मुस्कुराहट में भी तुम बस चुके हो और मुझे ये एहसास हुआ है कि मैं तुमसे प्यार करने लगी हूं। तुम मेरे लिए एक खास जगह रखते हो, और मैं चाहती हूं कि ये जिंदगी का सफर हम साथ में तय करे.. .क्या तुम मेरे दिल के जज़्बात को समझोगे कि मैं तुमसे कितना प्यार करने लगी हूँ?"

ये कहते हुए रिशा ने आशु के सीने पे अपने लबों को सटा कर अपनी आंखें बंद कर ली। आशू जो स्थिर हुआ पड़ा था, उसने उसे अपने से अलग किया और एक थप्पड़ लगाते हुए बोला "ये तुम्हारा सिर्फ लगाव है कोई प्यार नहीं"
फिर उसके दिल की ओर इशारा करते हुए बोला "ये सिर्फ एक भ्रम है तुम्हारे दिल का जो तुम्हें प्यार जता रहा है और एक बात और तुम जैसी लड़की से मैं कभी अपनी जिंदगी नहीं बिताऊंगा"

ये कह कर वो तेज़ कदमो के साथ वहा से ओझल हो गया रिशा की आँखों के सामने से। उसकी आँखों में आंसू थे वो घुटने पर आ कर रोये जा रही थी,की तभी उसे आवाज लगाते हुए पीछे से कोई आता हुआ दिखा जो सुन वो अपने आंसू साफ करते हुए खड़ी हुई तो वो आवाज उसकी मां की थी, जिसने उसकी पलकें भीगी देखी तो पूछा
"क्या हुआ बेटा, रो क्यों रही हो"

रिशा ने आँखों को साफ करते हुए कहा "कुछ नहीं माँ, टहलने आई थी बाहर तो आँख में कुछ चला गया"

वो अंदर की ओर चली गई अपनी माँ को पीछे छोड़।

करीब 1 बजे नींद खुली रिशा की घर में, बेमन से वो घुमते हुए बाहर आई और सोफे पर बैठ कर बात कर रहे मेहमानों को और परिवार वालों को देखा, उसे कितने लोगो ने आवाज दे कर बुलाया, किसी की आवाज नहीं सुनी, उसने लेकिन एक आवाज कि बातों ने उसके कानों को सुनने से ना रोक सका।

"अरे जाके आशू को बुला ला वो मदद कर देगा सब सामान भिजवाने में"

"अरे दादू मैं गई थी आशू के घर बुलाने उसका घर बंद था"

ये सुनते ही रिशा हिल सी गई अंदर से, उसके शरीर में मानो ही जान नहीं रही, वो वहीं गिर पड़ी जिसे देख सब उसकी ओर भागे।

**12 साल बाद,उत्तराखंड**

एक टेबल पर जहां नाश्ता कर रहा एक परिवार, जिन्हे नाश्ता परोस रही एक औरत का ध्यान अपने पति की आवाज से आकर्षित हुआ
"रिशा,ये सुनो अखबार की ये खबर, मेजर अश्वेंद्र सिंह नेगी को नवाजा गया वीर चक्र से, उनकी नई पोस्टिंग आसाम में की गई"

"आकाश फिर बोला "ये फोटो देखो ये तुम्हारे गांव वाला ही लड़का है न,आशु?"

रिशा ने उसके अखबार में एक नजर डाली और फिर नाश्ता कर रहे अपने दोनो बच्चो को स्कूल के लिए त्यार करने लेकर चली गई।

उसने वाकई अपने अंदर के गहरे भावों को दबा लिया था शायद, परंतु उन भावों का संघर्ष उसके चेहरे पर प्रत्यक्ष नहीं था। अंदर उसका दिल उस पुराने प्रेम की यादों में डूबा हुआ था, जो उसे बाहर से अस्पष्ट बना रहा था।

जिन शब्दों
को रिशा ने उस दिन नजरअंदाज कर दिया था,उन्ही शब्दो को वो कभी नहीं भूल पाई।

"अकेले जीने की तमन्ना कभी मत करना रिशा, बहुत दर्द देगा ये जज़्बात बाद में तुम्हें"


लेकिन आज वो अकेली नहीं थी, उसका नया जीवन, उसका अपना परिवार उसके साथ था
Review
Story - बीते वक्त की छाप
Writer - Sanki Rajput

Plot - कहानी एक लड़की रिशा की जो एक शादी में अपने गांव जाती है, जहां उसकी मुलाकात आशु से होती है, आशु के अकेलेपन और उसके साथ वक्त बिताने पर रिशा उससे अपने प्यार का इजहार कर देती है, लेकिन अपने जैसे जीवन से बचाने के लिए आशु उसके प्यार को मना कर देता है।

एक सिंपल और सुंदर कहानी, जो अपने पहले प्यार की असफलता के बाद आगे बढ़ना सिखाती है।

रिशा एक शहर की लड़की जब गांव जाती है तो गांव के मनोहर दृश्य और प्रकृति में ही को जाती है, आशु से मिलकर उसका अकेलापन देखकर उसके लिए सहानुभूति महसूस करती है, फिर उसके साथ समय बिताकर उससे प्यार करने लगती है।

लेकिन आशु जिसे अकेले जीने की आदत है, जिसने पिता के बाद फौज में भर्ती ले ली। वह जानता है की अकेले रहना कितना मुश्किल होता है, इसलिए वह नहीं चाहता की रिशा कभी ऐसा जीवन बिताए, शायद इसलिए उसने रिशा के प्यार को ठुकरा दिया।

कहानी काफी अच्छी थी, लेकिन काफी तेजी से कहानी आगे बढ़ती है, इसलिए कैरेक्टर के साथ उतना जुड़ाव नही लगता।

आशु की भी साइड हमे देखने को नहीं मिलती, उसका नजरिया भी लिखा जाना चाहिए था।

कहानी का नैरेशन काफी अच्छा था।



 

Shetan

Well-Known Member
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"बीते वक्त की छाप"


उत्तराखंड....

कॉलेज से आने के बाद रिशा ने जब अपने पापा को आया हुआ देखा तो खुशी से गले लग जाती है और ताने मारते हुए कहती है कि "आप तो लगता है कनाडा ही बसने" वाले थे, देख रही हो मां''

तब उसके पिता बताते हैं कि "ये सब छोरो गाव चलना है हमें रिशा,आज शाम को ही"

जो सुनकर वो चिढ़ जाती है और मना करने लगती है लेकिन उसकी छोटी बहन संध्या बहुत खुश होती है। खैर उसके पापा और मां उसको मनाते हैं जिसे वो मान जाती है अपने गांव "सिधारा" जाने के लिए।

शाम को निकल गए वो, जब वे गांव पहुंचने वाले थे तो रिशा के पिता ने उन्हें बताया कि "हम बस पहुंच ही गए है"

तब रिशा का मुंह सिकुड सा गया था मानो छोटे बच्चे से खिलौने छीन लिए हो। जब गाड़ी ने टर्न ली एक नहर की ओर। जिसे पार करते ही वहा की खुबसूरती देख कर वो किसी खिले हुए गुलाब की पंखुड़ियों की तरह मुस्कुराने लगी।

गाँव की ओर जैसे-जैसे गाड़ी बढ़ रही थी पहाड़ और खेतो की ख़ूबसूरत नज़ारों ने वहा गाड़ी में सबकी आँखों में एक ख़ूबसूरत नज़ारों का लहर सा बना दिया हो ऐसा लग रहा था।

गांव के द्वार पर ही जहां एक बस रुकी हुई थी वहां बहुत भिड़ थी जो रिशा के पिता को ही लेने के लिए आए थे।

उनके गाड़ी से उतरने के बाद उनका ढेरो स्वागत हुआ पर प्रीशा की ख़ुशी तो इतनी बढ़ गई थी कि वो अलग खड़े अपने चारों तरफ के नज़ारे को अपनी आँखों में उतार रही थी एक प्यारी मुस्कान के साथ।

खैर उन लोगों की गाड़ी गांव के अंदर पहुचती है और एक घर के बाहर आ कर रुकती है। घर की सजावट जिस तरह से की जा रही थी शायद वो रिशा को बहुत पसंद आई, वो दौर कर अंदर चली गई आंगन में, जिसके पीछे और सब भी आए।
रिशा को ऐसे सजावट होते देख कर सब हस रहे थे और फिर एक दूसरे से मिलना हुआ उन सबका।

परिवार के बड़ो की मीटिंग बाहर चल रही थी और महिलाओ की घर में।
वही छत पर रिशा और बाकी लड़कीयां जिनमे संध्या भी थी वो गांव का नजारा देखते हुए बाते कर रही थी जहां उन लड़कियों की बातों का जवाब सिर्फ संध्या दे रही थी, रिशा तो व्यस्त थी गांव की खूबसूरत खेतो की हरियाली देखने में। तभी रिशा उनसे पूछती है "पीहू दी क्या हम गाव घुमने चले क्या?"


जो सुन एक लड़की उससे कहती है "अरे ये बात तू कह रही है हेहे, मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा"

जिस तरह सब हंसते हैं जो देख रिशा मुंह बनाते हुए बोलती है "दीदी मजाक मत बनाओ" और फिर सामने देखते हुए खेतो की ओर कहती है "पता है दी मैं तो राजी ही नहीं थी आने को, पर यहां आने के बाद ऐसा लग रहा है जैसे किसी स्वर्ग में आ गई हूं, ये जगह बहुत अच्छी लगी बस इस तरह मैं यहां खुल कर घूमना-फिरना और यहां के नज़ारों का मजा लेना चाहती हूं"

ये सुन सब एकटक उसे ही देख रहे थे जिसके बाद जवाब देते हुए पीहू कहती है "अरे क्यों नहीं मेरी बहना और पता है कल मेरा भाई जैसा दोस्त आकाश भी आ रहा है, तो सब चलेंगे साथ।"


नमी भरी किरनों की सुबह से कसमसाते हुए रिशा उठ कर खिड़की से बहार देखती है जहां खेतो में घुमते मोरो पर उसकी नजर पड़ती है जो देख उसकी बेताबी ऐसी बढ़ती है कि वो उठ कर बाहर भागते हुए घर से बाहर निकल जाती है और खेतो में पहुंच कर जब वो अपने सामने इतने सारे मोर को देखती है तो वो उन्हें चकित नजरों से देखते हुए गिनने लगती है और तभी पीछे उसके पिता भागते हुए आ जाते हैं जिनके साथ घर के कुछ और बुजुर्ग और एक लड़का था।

रिशा को ऐसे गिनती करते देख उसके पिता ने अपना माथा पिट लिया जिसे देख साथ आए लोग भी हंसने लगे सिवाए उस लड़के के जो प्रिशा को देख रहा था ऐसी बचकानी हरकतें करते हुए।

सभी नाश्ता करने के बाद सारी लड़कीया कार्ड लेकर रिशा और संध्या के साथ निकल जाते हैं गांव घुमने और उनके साथ वो लड़का भी था जिसे मिलवाते हुए पीहू रिशा और संध्या को बताती है कि यही आकाश है।

गाव घुमते-घुमते वो दूसरे गाव की ओर चल देते हैं जिस गाव में उन्हें कार्ड असल में बटना था, वो गाव में सभी को कार्ड देते हुए एक घर के सामने पहुंचते हैं।

तभी आवाज लगाते हुए पीहू बोलती है "आशु... आशु बहार आ जल्दी"

कुछ देर तक कोई नहीं आया पर तभी आवाज फिर लगाने वाली थी पीहू की अंदर से एक लड़का अपने हाथ को गमछे में साफ करते हुए बाहर आया और बोला
"अरे पीहू दीदी आप हो, माफ करना पीछे खेत में सब्जी तोड़ रहा था"

पीहू आगे आते हुए बोलती है "कोई नहीं, और ये रख शादी का कार्ड और याद रहे मेरी शादी में आना है तुझे जरूर, पिछली बार की तरह तृप्ता की शादी वाला हाल मत करना।"

आशू हस्ते हुए बोलता है "ठीक है दीदी"


सभी फिर उस गांव के मुखिया के घर पहुंचते हैं कार्ड देने, जब वो कार्ड दे रहे थे तब आकाश बोलता है "ये रिशा कहां गई?" जो सुन वाहा हल्ला होने लगता है सभी लड़कीयां रिशा को आवाज लगाते हुए बाहर आती है तो पीहू पूछती है गुस्से से "कहा गई रिशा, हमारे ही साथ तो आई थी यहां तक"

तभी आकाश बोलता है "ढूंढते है। पहले सवाल जवाब बाद में होंगे"

तभी संध्या बोलती है "वो फ़ोन भी नहीं उठा रही है"

जो सुन उन्हें चिंता होने लगती हैऔर भी ज्यादा।

मुखिया जो बाहर आया हुआ तो उन्हें ऐसे देख कर वो बोला "चिंता मत करो गांव में ही कहीं घुमने लगी होगी, मैं सरजू को भेजता हूं, ओए सरजू इधर आ जल्दी"

भाग कर एक आदमी आया तब मुखिया बोला
"इनके साथ जा और इनकी मदद कर ढूढ़ने में लड़की को"

गाव में वो रिशा को ढूंढते-ढूंढते वो गाव के बाहर तक आ गए लेकिन उन्हें कहीं नहीं मिली रिशा जो देख सभी लड़कियों का तो बुरा हाल था ही और संध्या तो रोने लगी थी तब आकाश ने उन्हें संभालते हुए कहा "एक काम करो आप लोग घर पर जाकर बताओ मैं एक बार सरजू काका के साथ फिर से ढूँढता हूँ"


पीहू और लड़की अपने गांव की ओर चली गई थोड़ी ना नुकुर के बाद। वही जब वो रास्ते में थी अपने घर के लिए तब उन्हे खेत में एक छोटा लड़का दिखा जिसके साथ रिशा बाते करते हुए खेत के मोड़ पर चल रही थी।

जो देखा सभी ने आवाज लगाना शुरू कर दिया जो सुनाई देता ही रिशा ने उनकी तरफ देखते ही वो खेतो में से भागते हुए वो सरक पर पहुंच गई जहां उसके आते ही डांटना शुरू कर दिया सबने।

तब छोटे लड़के से पता चला की रिशा को तो ये आशू भैया के घर से लेकर आ रहा है "आशू भैया ने कहा की मैडम को गाव में छोड दु"

तब रिशा से पूछा गया तो महाशय उन्होंने कुछ बोला ही नहीं मानो मुंह में दही जमा लिया हो,जो देख पीहू ने आशु को फोन लगा दिया तब तक आकाश भी दौड़ते हुए आ गया जो हांफ रहा था, जिसको फोन करके बता दिया था।

पीहू को आशु से बात करता देख रिशा मुंह फुलाये कान गड़ाये सुनने की कोशिश कर रही थी उनकी बाते। फ़ोन काटने के बाद पीहू ने बताया "महाशय खेतो में मोर को पकड़ने भागी हुई थी"

जो सुन सभी ने रिशा को घुरना चालू कर दिया और तभी आकाश की हंसी छूट गई जो देख और सबकी भी छूट गई।

तब प्रिशा ने चिढ़ते हुए कहा "तो क्या हुआ,हस क्यों रहे हो इतना"

खैर रास्ते भर वो हंसी मज़ाक और रिशा के ऊपर हस्ते हुए आए। घर पहुंच उन्होने जब सब बताया तो सब हंसी के ठहाके वहा भी शुरू हो गए।

रात में कमरे में बैठ कर सभी परिवार खाना खाने के बाद हंसी मज़ाक कर रहे थे जहां बात छिड़ी फिर से रिशा की आज के कारनामे पर,लेकिन दूसरा कोई उस बात पर बोले रिशा ने उल्टा सवाल करते हुए बोला "ये सब छोरो पहले ये बताओ, ये आशू कौन है?"

जिसका सवाल पर एक बूढ़ी औरत ने कहा "आशु, क्यों तू क्या करेगी जान कर?"

रिशा बोलती है "मुझे जानना है दादी, क्योंकि मैंने उसके घर में किसी को नहीं देखा"

तभी पीहू बोलती है "अरे रिशा आशु सतेंद्र काका का बेटा है, अकेला रहता है"

तभी रिशा बोलने को हुई थी कि उसके पिता बोल उठे "ये वो आर्मी वाला सतेंद्र सिंह नेगी का लड़का है क्या..?"

जो सुन पीहू ने कहा "हा चाचा"

तब रिशा ने बोला "दीदी तुमने बताया नहीं वो अकेला क्यों रहता है?"

तब पीहू बोली "क्योंकि उसके परिवार में कोई नहीं है"

जिसपर आगे रिशा बोलते-बोलते रुक गई जब उसे कुछ समझ आया "लेकिन अभी तो आपने उसके पिता का नाम ली...??!!"
तब उसने लड़खड़ाती जुबान से बोला "मत..मतलब उसके पिता की मृत्यु हो गई है"

कुछ देर बाद वो सब वहां से चले गए सोने कमरे में। रि शा को आज अलग सा लग रहा था मानो वो अपने आप को अंदर से खाली-खाली सा महसूस कर रही थी थी किसी के जीवन को देख कर।

सुबह होते ही घर में तयारी शुरू हो चुकी थी, मेहमान आने शुरू हो गए थे।

"अरे ओ संभू, जल्दी जल्दी हाथ चला, सिर्फ 7 दिन बाकी है और कल पूजा करवाना है"

"अरे चाचा हो जाएगा सब चिंता मत करो"
आकाश ने ये कहते हुए हाथ बटाने लगा सजावट में।

वही दोपहर में रिशा बाहर गाव में घुमते-घुमते आशु के घर पहुंच चुकी थी और उसका गेट खटखटा रही थी "ओए हीरो गेट खोलो" ये कहने के बाद फिर उसने गेट बजाना शुरू कर दिया जोरो से।

गेट खुलते ही आशु बाहर आके अपने सामने रिशा को देख, चौंकते हुए कहता है "तुम यहाँ फिर से?"

रिशा ने उसके सामने से धक्का दे करअंदर घुस गई घर के और देखने लगी चारो तरफ और उसके कमरा दिखते ही वो उसके कमरे में घुस गई जहां जाके उसने कमरे को जो गंदा देखा वो नाक दबाते हुए बोली "कितनी गंदगी है तुम्हें शर्म-वर्म नहीं" आती, घर में एक लड़की आई है और घर गंदा रखा है, क्या असर पड़ेगा हां बोलो?"

जो सुन पहले चुप सा होकर आशू उसे देखने लगा और घुड़ते हुए बोला "मैडम मैंने नहीं बुलाया था आपको ,आप खुद आई हैं"

जो सुन उसने जवाब देते हुए कहा "चुप करो और मदद करो मेरी"

और वो ये बोलते ही वो कपडे सब उठा कर वहा रखे चौकी पर रखने लगी, आशु ने मनाने की कोशिश की पर,वो नहीं मान रही थी अंतिम में हार मानकर उसने अपना माथा पिट लिया और थक कर उसकी मदद करने लगा।

कुछ देर में ही घर साफ हो गया था और पहले से बहुत ज्यादा साफ लग रहा था।
घर में तहलका मचाने के बाद वो खेतो की ओर भाग गई पीछे के गेट से जिसके पीछे आशु भाग के आया तो देखा रिशा मोरो की झुंड जो आगे खेतो में थी उनकी ओर भाग रही थी जिसे देख उसकी मुस्कान ही नहीं रुकी चेहरे पर आने से।
वो भी उसकी ओर बढ़ते हुए उसके साथ मोरो के पीछे भागने लगा।

कुछ देर बाद ही वो दोनों एक नहर के ऊपर पूल पर बैठे हुए थे। डोनो की शांति ने फ़िज़ा में उनके लिए चिड़ियों की चचाहत को खुली छूट दे दी थी मानो, बहती हुई नदी की शीतल धारा की पत्थरों से टकराने की आवाज़ दोनो का ध्यान चिड़ियों से बार-बार अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी तो कभी शीतल और ठंडी हवा के झोंके उनके बदन में कम्पन पैदा कर रही थी। चुप्पी तोड़ते हुए रिशा बोली "आशु तुम अकेले कैसे रह लेते हो?"

आशू ने ये सुनकर उसकी ओर देखा और उसकी आंखें जो ऊपर बादलों को देख रही थीउसकी पलकों को निहारते हुए उसने पूछा "क्यू?"

रिशा ने उसकी ओर देखा और बोला "क्यूकी मैं तुम्हारे जैसे अकेली जीना चाहती हूँ"

जो सुन आशु की पलकें उठ गई और उसको देखते हुए वो बोल पड़ा "इतना अच्छा परिवार है फिर भी ऐसा ख्याल?"

रिशा ने उसकी ओर देखते हुए बोला "पहले मुझे ये गाव नहीं मिला था न, इसलिए"

ये सुन आशु उसे टकटकी लगाए देखने लगा जो भांप कर वो बोली "मुझे मत घूरो बेवकूफ उनको घूरो" हाथ से इशारा करते हुए उसने दो चिड़ियों को एक साथ बैठे हुए दिखाया जो साथ में बैठ कर एक कीड़े को खा रहे थे।

कुछ देर शांति रही और तभी रिशा बोल उठी "अरे मुझे घर भी जाना है यार"

रिशा के साथ आशु उसे गाव तक छोरने साथ आने लगा, गाव तक वो पहुंच ही गए थे तभी आशु बोला "अकेले जीने की तमन्ना कभी मत करना रिशा,बहुत दर्द देगा ये जज़्बात बाद में तुम्हें"

ये कह कर वो मुड़ कर चला गया और इधर रिशा जो उसकी बात सुनने के बाद घर आ गई जहां आते ही उसे डांट सुननी पड़ी थोड़ी क्योंकि उसने पिछली बार की तरह मोबाइल घर पर ही छोड़ दिया था।

पीहू उसे सुनाते हुए बोल रही थी "कहीं गांव घूमने भी जाती है तो मोबाइल लेके जया कर, बेवकूफ"


दूसरे दिन पूजा शुरू हो गई थी घर में, सभी पूजा में बैठे थे।
रिशा अपनी बहनों और अन्य लड़कियों के साथ बैठी बातें कर रही थी जब उसकी नज़र आशु पर पड़ी जो वही फूलो की टोकरी ले जा रहा था।

कथा पूजन दोपहर तक ख़तम हो गया, प्रसाद बटने के समय जब आशु प्रसाद देते हुए रिशा के पास पहुंचा और प्रसाद देते हुए आगे बढ़ा तभी जब एक औरत को प्रसाद दिया उसने तो उसे ध्यान से देखते हुए बोली "अश्वेंद्र सिंह नेगी, तुम हो क्या ये ?"

आशु ने जब उस औरत को ध्यान से देखा तो वो बोला " मैडम आप यहां ?"

औरत बोलती है "हा,वैसे लगता है ऑफ ड्यूटी हो"



और अभी आशु कुछ बोलता उससे पहले, रिशा के पिता वहां आ गए और औरत से बोले "अरे आप मैडम, कैप्टन सुरेश जी नहीं आए"

ये देखते हुए आशु वहां से शांति से चला गया। पूजा खत्म हो गया था। रात में आज रिशा पीहू के पास सोई थी जहां पीहू से सोते समय उसने पूछा "दी आशु कोई काम करता है क्या?"

पीहू ने जवाब देते हुए बोला "आर्मी में है अपने पिता जी के पोस्ट पर"

जो सुन प्रीशा का शरीर सिहर उठा, उसके अंदर जज़्बाते उफान मारने लगी थी जो उससे बेबसी महसूस करा रही थी किसी और के लिए।

रात भर उसे नींद नहीं आई सुबह होते ही वो फ्रेश होकर टहलने का बहाना बना कर आशु के घर पूछ गई जहां उसने देखा कि आशु बाहर सब्जी ठेलो पर रखवा रहा था। जहां रिशा पहुंच कर उसपर हक जमाते हुए पूछती है "क्या कर रहे हो ये साब ?"

जो सुन आशु का ध्यान गया उसकी ओर तो उसने नज़रअंदाज़ कर वापस ठेले पर सब्जिया रखवाते हुए बोला "आंख है न तो देख लो"

जो सुन रिशा ने एक चपेट उसके सर पर पीछे से लगते हुए बोली "जो बोला उसका जवाब दिया करो समझ की नहीं"

ये कहते ही वो घर में चली गई उसके,जो देख उसने सब्जियों के पैसे लिए और अंदर आते हुए देखा तो रिशा रसोई में थी चाय बनाने बैठी थी जो देख आशु ने उसे वहां से हटाने की कोशिश की तो वो बोलने लगी "मैं आज से खाना बनाऊंगी हटो तुम और हां चाय बनाऊंगी अभी मैं पहले" फिर थोड़ा रुक के उसने बोला "दुध कहा है?, चीनी भी नहीं है?" ये कहते हुए उसने ऐसे घूरा आशू को जैसे वो अजूबा हो पर पड़ा इसका उल्टा आशू उसे मासूम दिख रहा था।

खैर चाय का सामान घर में ना देख वो खाना बनाने बैठ गई, उसने प्याज काटते हुए उसे आंख से पानी आने लगा और वो आंख पर हाथ रख कर बैठ गई जिससे और जलन होने लगी उसे जो देख आशु ने जल्दी से पानी लाके दिया उसे और चेहरा धोने के बाद उससे आशु ने पूछा "आज से पहले प्याज नहीं काटा क्या खाने बनाने वक्त?"

जो सुन रिशा ने अपना सर ना में हिलाते हुए कहा "खाना ही नहीं बनाया आजतक"

आशू ने पहले नज़रअंदाज किया लेकिन जब उसने सुना कि उसने क्या बोला तो उसकी हंसी छूट गई बड़ी तेज़, जो देख रिशा ने मुँह बना लिया।

आशू हस्ते हुए "हाहाहा, खाना नहीं बनाया आज तक और खाना बनाना छोरो प्याज काटने चली थी, हाहाहा"

प्रिशा ने उसे दो तीन मुके कंधे पर लगा दिया लेकिन फिर भी हस रहा था वो जिसे देख रिशा उसे देख मुस्कुराने लगी।

कुछ दिन बाद....

इन कुछ दिनों में शादी के बाकी रस्म हो चुके थे अच्छी तरह से और आशु और रिशा के बीच एक डोर भी बंध चुकी थी दोस्ती की।

शादी की सजावट पूरी हो चुकी थी आज बारात आने वाली थी शाम का समय बारात का सभी इंतजार में थे और बाकी बचे छोटे काम सभी घर के लोग संभाल रहे थे।


कुछ ही देर में बारात की ढोल-नगाड़े की आवाज आने लगी, सभी स्वागत के लिए आ गए। ऊपर कमरे में सभी लड़कियाँ, संध्या और रिशा पीहू को छेड़ रही थी। घर की महिला अंदर त्यारी में लगी हुई थी,बाकी रस्मो में। और कुछ महिलाये बाहर पर आरती लेकर स्वागत के लिए खड़ी थी।

दूल्हे का स्वागत धूमधाम से हुआ, करीब सुबह 2 बजे तक शादी और बाकी बचे रस्में पूरे हो चुके थे। आशु थक कर अपने घर की ओर चल दिया था, जिसके पीछे से आवाज आई "आशु रुक्को...आशु"

रिशा दौड़ कर उसके पास आई जो हांफ रही थी तो आशु ने उसका इंतजार किया नॉर्मल होने का, करीब 5 मिनट आशु वहां खड़ा इधर उधर देखता रहा तभी रिशा ने उसे बोला "आशु मैं कल चली जाउंगी शहर"

जो सुन आशु की निगाहे उसकी आँखों में देखने लगी, रिशा ने उसके तरफ से जवाब ना पाते देख
"तू...तुम्हें मेरे साथ समय बिताते हुए कुछ एहसास नहीं हुआ क्या?!"


आशु ने अपनी नज़रे उससे हटाते हुए बोला "कैसा एहसास?"

"वही एहसास जो मुझे हुआ" रिशा ने जवाब दिया

जो सुन आशु कुछ देर शांत रहा और बोला "मैं नहीं सम..." अभी उसकी बात आगे बढ़ पाति उससे पहले उसका कॉलर पकड़ कर रिशा ने उसके लबों पर अपने लब जोड़ दिए और निरंतर उसके आंखों में देखते हुए वो उसके लबों को प्यारी नज़ाकत से चूसने लगी।

आशु की आँखे स्थिर थी, वो बस मूर्ति बना ये होने दे रहा था, उससे विरोध का पर्यास नहीं हो पा रहा था लेकिन कोशिश कर उसने रिशा को धक्का देते हुए कहा "ये सब ठीक नहीं है रिशा"

रिशा फिर उसके पास आते हुए उसके हाथ को थामते हुए बोलती है
"तुमसे कहना बहुत कुछ चाहती हूं, पर अपने दिल के शब्दों का इस्तमाल नहीं कर पा रही हूं। शायद मेरे दिल की गहराइयों से समझो... तुम मेरी एक आखिरी आश बन गयो हो जिसे मैं भगवान से मांगना चाहूंगी आखिरी बार,नजाने कैसे मेरी मुस्कुराहट में भी तुम बस चुके हो और मुझे ये एहसास हुआ है कि मैं तुमसे प्यार करने लगी हूं। तुम मेरे लिए एक खास जगह रखते हो, और मैं चाहती हूं कि ये जिंदगी का सफर हम साथ में तय करे.. .क्या तुम मेरे दिल के जज़्बात को समझोगे कि मैं तुमसे कितना प्यार करने लगी हूँ?"

ये कहते हुए रिशा ने आशु के सीने पे अपने लबों को सटा कर अपनी आंखें बंद कर ली। आशू जो स्थिर हुआ पड़ा था, उसने उसे अपने से अलग किया और एक थप्पड़ लगाते हुए बोला "ये तुम्हारा सिर्फ लगाव है कोई प्यार नहीं"
फिर उसके दिल की ओर इशारा करते हुए बोला "ये सिर्फ एक भ्रम है तुम्हारे दिल का जो तुम्हें प्यार जता रहा है और एक बात और तुम जैसी लड़की से मैं कभी अपनी जिंदगी नहीं बिताऊंगा"

ये कह कर वो तेज़ कदमो के साथ वहा से ओझल हो गया रिशा की आँखों के सामने से। उसकी आँखों में आंसू थे वो घुटने पर आ कर रोये जा रही थी,की तभी उसे आवाज लगाते हुए पीछे से कोई आता हुआ दिखा जो सुन वो अपने आंसू साफ करते हुए खड़ी हुई तो वो आवाज उसकी मां की थी, जिसने उसकी पलकें भीगी देखी तो पूछा
"क्या हुआ बेटा, रो क्यों रही हो"

रिशा ने आँखों को साफ करते हुए कहा "कुछ नहीं माँ, टहलने आई थी बाहर तो आँख में कुछ चला गया"

वो अंदर की ओर चली गई अपनी माँ को पीछे छोड़।

करीब 1 बजे नींद खुली रिशा की घर में, बेमन से वो घुमते हुए बाहर आई और सोफे पर बैठ कर बात कर रहे मेहमानों को और परिवार वालों को देखा, उसे कितने लोगो ने आवाज दे कर बुलाया, किसी की आवाज नहीं सुनी, उसने लेकिन एक आवाज कि बातों ने उसके कानों को सुनने से ना रोक सका।

"अरे जाके आशू को बुला ला वो मदद कर देगा सब सामान भिजवाने में"

"अरे दादू मैं गई थी आशू के घर बुलाने उसका घर बंद था"

ये सुनते ही रिशा हिल सी गई अंदर से, उसके शरीर में मानो ही जान नहीं रही, वो वहीं गिर पड़ी जिसे देख सब उसकी ओर भागे।

**12 साल बाद,उत्तराखंड**

एक टेबल पर जहां नाश्ता कर रहा एक परिवार, जिन्हे नाश्ता परोस रही एक औरत का ध्यान अपने पति की आवाज से आकर्षित हुआ
"रिशा,ये सुनो अखबार की ये खबर, मेजर अश्वेंद्र सिंह नेगी को नवाजा गया वीर चक्र से, उनकी नई पोस्टिंग आसाम में की गई"

"आकाश फिर बोला "ये फोटो देखो ये तुम्हारे गांव वाला ही लड़का है न,आशु?"

रिशा ने उसके अखबार में एक नजर डाली और फिर नाश्ता कर रहे अपने दोनो बच्चो को स्कूल के लिए त्यार करने लेकर चली गई।

उसने वाकई अपने अंदर के गहरे भावों को दबा लिया था शायद, परंतु उन भावों का संघर्ष उसके चेहरे पर प्रत्यक्ष नहीं था। अंदर उसका दिल उस पुराने प्रेम की यादों में डूबा हुआ था, जो उसे बाहर से अस्पष्ट बना रहा था।

जिन शब्दों
को रिशा ने उस दिन नजरअंदाज कर दिया था,उन्ही शब्दो को वो कभी नहीं भूल पाई।

"अकेले जीने की तमन्ना कभी मत करना रिशा, बहुत दर्द देगा ये जज़्बात बाद में तुम्हें"


लेकिन आज वो अकेली नहीं थी, उसका नया जीवन, उसका अपना परिवार उसके साथ था
Amezing Sanki. Dill ko chhu lene vali kahani. Amuman kaiyo ke pyar shakar nahi ho pate. Feelings emotions ka kya sangam kiya he. Maza aa gaya.
 

IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
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