रेखा एक 38 साल की शादीशुदा महिला, पेशे से वकील अपने इक्लौते 18 साल के बेटे मनिश के साथ रोहतक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट
परिसर में दाखिल हुयी और कोर्ट में बने चैंबर में जाकर उसने अपने बदन पर काला कोट डाला और अपने हाथो में case फाइल लेकर कोर्ट रूम की ओर जाने लगी। अगली सुनवाई मनीष की ही थी।
कोर्ट रूम के बाहर एक लड़की और एक आदमी वकील (जैन साहब) के साथ खड़ी थी।
अंदर से एक आदमी आवाज लगाता है.... Case no. 420/2022 मनीष बनाम मानशी हाजिर हो।
जज साहब -- शुरु कीजिये.....??
वकील (जैन साहब) -- जनाब मासूम सा दिखने वाला कटघरे में खड़ा लड़का मनीश जिसने भोली भाली लड़की को अपने प्रेम जाल में फँसाया, उसे होटल में बुलाकर उसके साथ रेप किया, और उसकी नंगी फिल्म बनाकर उसे बदनाम किया। मेरी आपसे गुजारिश है इसको कड़ी से कड़ी सजा दी जाये।
रेखा खामोश थी, उसके बेटे पर लगाई गयी धारा संगीन थी सजा होनी निश्चित थी। उसकी नजरे कभी कटघरे में खड़े अपने बेटे के ऊपर कभी कोर्ट रूम के दरवाजे पर जा रही थी, उसे किसी का इंतजार था, किसी सबूत का जो उसके बेटे को इंसाफ दिला सके।
जज-- रेखा जी आपको कुछ कहना है??
वकील (जैन साहब)-- चुटकी लेते हुए बोले जनाब रेखा जी क्या बोलेगी... वो तो खुद आपके फैसले का इंतजार कर रही है।
तभी रेखा के असिटेंट एडवोकेट गुप्ता एक लिफ़ाफ़े में कुछ एविडेंस लेकर रेखा के पास आये और उन्हे देते हुए उनके कान में कुछ खुसर फुसर करने लगे।
तत्पश्चात रेखा -- जनाब मै उस घटना असली वीडियो फोर्नसिक रिपोर्ट के साथ आपको एक बार देखने का आग्रह करती हूँ।
जज-- परमिशन ग्रांटेड।
रेखा अपने सगे बेटे का संभोगरत वीडियो लैपटॉप में देखने लगी। रेखा खड़ी होकर के वीडियो के दृश्य को बड़े ही रोमांच के साथ निहार रही थी एक एक दृश्य उसे कामुकता का एहसास करा रहा था। लेकिन जैसे ही उसकी नजर मनीष के कमर के नीचे वाले हिस्से पर गई तो वहां का नजारा देखकर वह दंग रह गई उसके बदन में एकाएक उत्तेजना का संचार बड़ी तेजी से होने लगा। उसके मुंह से दबी आवाज में सिसकारी के साथ बस इतना ही निकल पाया।
बाप रे बाप,,,,,,,,,
( रेखा के मुंह से यह अचानक निकला था उसे खुद समझ में नहीं आया कि उसके मुंह से आखिर ऐसा क्यों निकल गया)
वीडियो में उसका बेटा मनीश कमरे के बेड पर नंगा लेट गया, और एक 18-19 साला निहायत ही खूबसूरत लड़की उसके लंड को अपनी चूत में डाले ज़ोर-ज़ोर से ऊपर नीचे हो कर अपनी फुद्दि की प्यास बुझा रही थी।
लड़की मुंह से तो सिसकारीयो की जैसे की फुहार छूट रही थी,,,,, ससससहहहहह,,,,, आााहहहहहह,,,,,, मेरे राजा और जोर जोर से चोदो मुझे,,,,, अपने लंड को मेरी बुर में पेलो,,,,आहहहहहहह,,,,,
रेखा यह मंज़र देख कर समझ गयी कि उसका शिकार कमरे के अंदर मौजूद है।
वीडियो बंद कर रेखा जिरह के लिए अब पूरी तरह से तैयार थी।
रेखा--- जनाब इस वीडियो में संभोग करती हुयी लड़की की सिसकारियो से साफ पता चलता है, कि ये संभोग जोर जबरदस्ती से नही बल्कि दोनों की मर्जी से हुआ है, संभोगरत् लड़की संभोग के दोरान परमानंद से गुजरती है तभी ऐसी आवाज निकलती है। कामोतजना जब सर चढ़ कर बोलती है, तभी एक औरत ऐसी आवाजे निकालती है।
वीडियो में लड़की साफ साफ कह रही है......मेरे राजा और जोर जोर से चोदो मुझे,,,,, आहहहह जोर से,,,,,,
ये कोई जबरदस्ती की आवाज नही है, बल्कि ये मस्ती की आवाजें है, ये हर स्त्री/औरत का वो मीठा दर्द है जिसे पाने के लिए वो हर रात तरसती है। ऐसे लिंग का स्पर्श हर औरत के नसीब में नही होता हैं, (आखिर लाइन बोलते हुए रेखा थोड़ी झिझकी और मेज पर से बोतल उठा कर पानी पीने लगी।)
"कटघरे में खड़ा मनीष अपनी मम्मी की बातें कोई जानबूझकर नही सुन रहा था वो तो अपनी पेशी कर रहा था मगर कुछ अल्फ़ाज़ ऐसे होते हैं कि आदमी चाह कर भी उन्हे नज़रअंदाज़ नही कर सकता, खास कर अगर वो अल्फ़ाज़ अपनी सग़ी माँ के मुँह से सुन रहा हो तो. "ये हर स्त्री/औरत का वो मीठा दर्द है जिसे पाने के लिए वो हर रात तरसती है। ऐसे लिंग का स्पर्श हर औरत के नसीब में नही होता हैं," ऐसे लफ़्ज थे जो इस ओर इशारा कर रहे थे कि उसकी मम्मी के पास भी एक चूत है जो लंड के लिए तड़प रही है. बस..
जज-- रेखा जी आप ठीक है... तो शुरु कीजिये।
रेखा-- जी जनाब. "इस दर्द का मजा मर्द के नसीब में नही...." हा कुछ मर्दो (गे) को छोड़कर क्यो जैन साहब सही कहा ना... रेखा जैन वकील को व्यंग भरा कटाक्ष कर हस्ती हुई बोली। हाहा हाहा हाहा
दूसरा आरोप जो ये वीडियो बनाने का लगाया गया है वो भी बिल्कुल गलत है क्योकि बिस्तर पर लड़के और लड़की के मोबाइल रखे है तो वीडियो किसके कैमरे से बनाया गया और पूरे वीडियो में हर दृश्य में लड़की कैमरे की ओर देखकर कुछ इशारे कर रही है, जिससे साफ पता चलता है कि वीडियो बनाकर लड़के को बदनाम करने वाला शक्स और इस लड़की का आपस में कोई कनेशन है, और जिसे मेरे काबिल दोस्त जैन साहब रेप कह रहे है वो रेप नही हनी ट्रैप (पैसे उगाही का धंधा) है।
That's solve.
जज--- हा जी जैन साहब आपको कुछ कहना है....???
जैन साहब -- बस एक लाइन जनाब
"" मां से बड़ा योध्दा दुनिया में कोई नही होता ""
जज साहब--- आखिरी फैसला पढ़ते हुए "" ये कोर्ट आदेश देती है कि मनीष पर लागाये गये सारे आरोप बेबुनियाद है, और उसके लिए वो मान हानि का case दाखिल कर सकता है।
मानशी जो case की फरियादी है कोर्ट उसे झूठे आरोप लगाने और हनी ट्रैप में फंसाने के लिए दस हजार का जुर्माना और एक साल की सजा देती।
होटल शेल्टर जिसमें ये वीडियो बनाया गया उसके खिलाफ जाँच के आदेश देती हैं।
रेखा अपने बेटे के साथ खुशी खुशी कोर्ट रूम से निकलती हुई अचानक रुक गई और मानशी के पास जाकर बोली...
"जिस्म के सौदे में अक्सर सजाये मिलती है"
इधर जैन साहब रेखा के पास आकर...
बधाई हो रेखा जी मै आपको एक सलाह देता हूँ क्योकि आप अपने क्लाइंट कि माँ भी है तो उस पर थोड़ा ध्यान दीजिये पढाई की उम्र में चुदाई करेगा तो दोबारा यहाँ आना पड़ेगा जैन साहब रेखा को व्यंग मारते हुए हँसकर बोले...... हाहा हाहहाहा
कुछ देर बाद दोनों माँ बेटे पार्किंग परिसर में खड़ी मोटर साइकिल के पास पहुँच गए।
मनीष ने ज्यों ही अपना मोटर साइकल को स्टार्ट किया। तो उस की मम्मी रेखा खामोशी से अपने बेटे के पीछे उस की मोटर साइकल पर आन बैठी।
रेखा ज्यों ही मोटर साइकल पर बैठी। तो उस का एक पावं तो मोटर साइकल के पायदान (फुट रेस्ट) पर रख लिया और दूसरा पावं हवा में झूलने लगा। और अपने हाथ को अपने बेटे की कमर में लपेट दिया।
इस तरह अपना हाथ लपेटने से रेखा का जिस्म पीछे से अपने बेटे की कमर के साथ चिपकता चला गया।
जिस की वजह से रेखा के तरबूज़ की तरह बड़े बड़े मम्मे उस के बेटे की पीठ से लग कर चिपक गये।
"उफफफफफफफफफफ्फ़ मेरी मम्मी का बदन कितना नरम है और उन के जिस्म में
जिस्म में कितनी गर्मी भरी हुई है" ज्यों ही रेखा पीछे से अपने जवान बेटे से टकराई। तो मनीष के दिल में पहली बार अपनी मम्मी के मुतलक इस तरह की बात आई।
"मनीष कुछ तो शरम कर ये तुम्हारी सग़ी मम्मी हैं " दूसरे ही लम्हे मनीष की इस गंदी सोच पर उस के ज़मीर ने उसे शर्मिंदा किया।
आम हालत में मनीष अपनी मम्मी के लिए इस तरह की बात अपने ज़हन में लाने की सोच भी नही सकता था।
मगर कुछ देर पहले अदालत में कही हुई अपनी अम्मी की बात ने उस के लंड को उस की पॅंट में खड़ा कर दिया था।
उधर रेखा भी ज्यों ही अपने जवान बेटे की कमर में अपना हाथ डाल उस के साथ पीछे से चिपकी। तो उसे भी अपने बेटे के जिस्म की मज़बूती और उस के जिस्म में मौजूद जवानी की गर्मी का फॉरन ही अहसास हो गया। जिस की वजह से रेखा की चूत में अपने बेटे के लंड की लगी हुई आग फिर से सुलगने लगी।
अभी दोनो माँ बेटा एक दूसरे के जज़्बात से बे खबर हो कर अपने अपने जिस्मो की आग को संभालने की ना काम कोशिश कर रहे थे। कि इतनी देर में वो अपनी कॉलोनी के अंदर दाखिल हो गये।
कॉलोनी की सेक्यूरिटी गेट से रेखा के घर का फासला कुछ ज़्यादा तो नही था। मगर सोसाइटी की रोड्स पर जगह जगह बने हुए स्पीड ब्रेकर्स की वजह से मनीष को अपनी मोटर साइकल बहुत ही आहिस्ता स्पीड में चलानी पड़ रही थी।
मनीष अभी अपनी गली से कुछ दूर ही था। कि वो रोड पर माजूद आख़िरी स्पीड ब्रेक पर ध्यान नही दे पाया।
बे शक मनीष की मोटर साइकल की स्पीड बहुत कम थी। लेकिन इस के बावजूद मोटरो साइकल को एक झटका लगा।
इस अचानक झटके की वजह से अपने बेटे के पीछे सीट पर बैठी रेखा एक दम से अनबॅलेन्स हुई। तो मनीष की कमर के गिर्द लिपटा हुआ रेखा का हाथ एक दम से स्लिप हो हर मनीष की पॅंट के अंदर उस की टाँगों के दरमियाँ, मनीष के अभी तक सख़्त और खड़े हुए लंड पर आ पहुँचा।
यूँ अचानक अपने बेटे के लंड से अपना हाथ टच करते ही रेखा के होश उड़ गये । और उस ने एक दम से अपने हाथ को पीछे खैंच लिया।
हालाकी रेखा के हाथ ने अपने बेटे के जवान लंड को एक ही सेकेंड के लिए यूँ पहली बार छुआ था।
मगर रेखा के तजुर्बेकार हाथों ने इस एक ही लम्हे में अपने बेटे के लंड की सख्ती और गर्मी का ब खूबी अंदाज़ा लगा लिया था।
उधर दूसरी तरफ अपनी अम्मी के हाथ का आभास अपने मोटे और बड़े लंड पर महसूस करते ही मनीष की तो बोलती ही जैसे एक दम से बंद हो गई। और उस ने भी घबरा कर एक दम से मोटर साइकल का आक्सेलरेटर दबा दिया।
मनीष का घर चूँकि अगली ही गली में था। इसीलिए दूसरे ही लम्हे दोनो माँ बेटा अपने घर के गेट तक पहुँच गये।
रेखा अपने बेटे के लंड से अपने हाथ के यूँ अचानक छू जाने से इतनी शर्मिंदा हुई। कि उस में अपने बेटे से आँख मिलाने की हिम्मत ना रही। और ज्यों ही मनीष ने घर के बाहर मोटर साइकल को रोका। तो रेखा जल्दी से सीट से उतर कर घर के गेट की तरफ चल पड़ी।
रात के 10:30 बज रहे थे रेखा डाइनिंग टेबल पर खाना लगा कर पत्नी धर्म निभाते हुए अपने पति संजय (पुलिस इंस्पेक्टर) का इंतजार कर रही थी,,, मनीष खाना खाकर अपने रुम में जा चुका था।
रेखा को संजय का इंतजार करते करते 11:00 बज गए उसे नींद की झपकी भी आ रही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी,,,,,, रेखा उठकर दरवाजा खोली तो संजय ही था,,,,, रेखा दरवाजे को बंद करते हुए बोली,,,,,,,
आप हाथ मुंह धो लीजिए मैं खाना लगा चुकी हूं जल्दी से खाना खा लीजीए,,,,,,
लेकिन संजय रेखा को ताना मारते हुए आखिर बरी (आजाद) करवा ही दिया अपने बलात्कारी बेटे को जिसने पूरे खानदान की इज्जत मिट्टी में मिला दी।
खाना लग गया है, रेखा संजय की बात काटते हुए बोली।
देखो मैं थक चुका हूं और वैसे भी मैं बाहर से खाना खाकर ही आया हूं मुझे भूख नहीं है तुम खा लो। रेखा की आंख भर आई अपने पति के द्वारा इस तरह के व्यवहार उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी,,, और वह अपने पति को कमरे की तरफ जाते हुए देखती रह गई,,,,,, उसकी भूख मर चुकी थी,,,, वह भी बिना कुछ खाए थोड़ी देर डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठी रहीं और बैठे-बैठे अपनी किस्मत को कोसते रहि। वह मन ही मन हे भगवान मैं तंग आ गई हूं अपनी जिंदगी से जल्द से जल्द इसका कोई उपाय दिखाओ भगवान् या तो मुझे अपने पास बुला लो,,,,,,
थोड़ी देर बाद अपने आप को शांत करके वह अपने कमरे की तरफ जाने लगी,,,, इतना कुछ होने के बावजूद भी मन में ढ़ेर सारी आशाएं लेकर के वह अपने कमरे में दाखिल हुई,,,
रेखा कमरे का दरवाजा बंद करके धीरे धीरे चलते हुए आईने के सामने जाकर खड़ी हो गई,, कुछ पल के लिए अपने रुप को निहारने लगी, आईना ऐसी जगह पे लगा हुआ था कि जहां से बिस्तर पर बैठा हुआ इंसान आईने में नजर आता था और बिस्तर पर बैठ कर भी आईने में सब कुछ देख सकता था।
रेखा जानबूझकर अपनी कलाइयों में पहनी हुई रंग बिरंगी चूड़ियां खनका रही थी कि शायद चूड़ियों की खनखनाहट से संजय का ध्यान इधर हो,,, और सच में ऐसा हुआ अभी संजय का ध्यान माफियाओं की फाइल से हटकर एक पल के लिए आईने पर चला गया, संजय की नजर आईने पर देखते ही रेखा एक पल भी गंवाएं बिना वह धीरे-धीरे अपने साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट को खोलने लगी,, फिर अपने दोनों हाथों को पीछे ले जाकर अपनी ब्रा की हुक को खोलने लगी,,,, और अगले ही पल उसकी ब्रा भी उसकी दोनों चुचियों को आजाद करते हुए टेबल पर पड़ी थी।
संजय को रिझाने के लिए वह अपने दोनों हाथों से एक बार अपनी बड़ी बड़ी छातियों को हथेली में भरकर हल्के से दबाई और फिर छोड़ दी। संस्कारी रेखा की यह हरकत बड़ी ही कामुक थी और इसका असर संजय पर भी हुआ वह एकटक अपनी नजरें आईने पर गड़ाए हुए था।
रेखा का दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था। उत्तेजना और उन्माद के मारे उसका गला सूख रहा था। अगले ही पल रेखा ने धीरे-धीरे पैंटी को घुटनों से नीचे सरका दी,,,, और पैरों से बाहर निकाल दी। अब रेखा के बदन पर कपड़े का एक रेशा भी नहीं था वह पूरी तरह से निर्वस्त्र हो चुकी थी। पूरी तरह से नंगी,, ट्यूबलाइट की दुधीया प्रकाश में उसका गोरा बदन और भी ज्यादा निखरकर सामने आ रहा था जिसकी चकाचौंध में संजय की आंखें चौंधिया जा रही थी।
आज उसे लगने लगा था कि दबी हुई प्यास आज जरूर बुझेगी,,,,, इसलिए वह मदमस्त अंगड़ाई लेते हुए बालों के जुड़े को खोल दी जिससे उसके रेशमी काले घने बाल खुलकर हवा में लहराने लगे। खुले बालों की वजह से उसकी खूबसूरती में चार चांद लग रहे थे।
आईने में अपने रूप और नंगे बदन की खूबसूरती को देखकर खुद से रेखा शर्मा गयी और ज्यादा देर तक इस अवस्था में खड़ी ना रह सकी,,,, और वह बिस्तर पर जाकर करवट लेकर के लेट गई। रेखा की पीठ संजय की तरफ थी। और वह इंतजार कर रही थी कि संजय कब ऊसके बदन को स्पर्श करता है। और इसी उम्मीद की वजह से उसके बदन में अजीब प्रकार की गुदगुदी हो रही थी,,,,।
रेखा की नंगी जांघ को देख कर संजय से रहा नहीं गया और उसकी जांघों को फैला कर बिना प्यार कीए ही अपने खड़े लंड को सीधे रेखा की बुर पर रखकर अंदर ही डाल दिया। संजय रेखा की प्यासी और दहकती हुई गरम बुर की दीवारों की रगड़ को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पाया और एक बार फिर से अपना हथियार नीचे रख दिया।
रेखा के अरमान की स्याही जो की बुर से बह रही थी वह सुख चुकी थी,,, इसलिए संजय की इस हरकत की वजह से इस बार भी बिना कुछ बोले आंखों से आंसू बहाते हुए और अपने किस्मत को कोसते हुए सो गयी।
अगली सुबह रेखा जल्दी से बिस्तर पर से उठ कर सीधे बाथरूम में चली गई वहां जाकर के ठंडे पानी से स्नान करके अपने मन को कुछ हद तक हल्का कर ली ।
नहाने के तुरंत बाद संजय को रसोई घर से बाहर आता हुआ दिखा तो रेखा उससे बोली।
इस तरह से आप अपने हाथ से लेकर के खाते हैं अच्छा नहीं लगता आखिर मेरे होते हुए आप अपने हाथ से काम करें।
हा,,,,,, हां,,,,,,, ठीक है मुझे जल्दी जाना था तो,,,,,, इसलिए अपने हाथ से ले लिया।
ऐसा आपको क्या जरूरी काम है,रेखा बोली।
देखो क्या जरूरी है क्या नहीं जरूरी है मैं तुम्हें बताना उचित नहीं समझता और दो दिन के लिए मै बाहर जा रहा हूँ, संजय शर्ट की बटन को बंद करते हुए बोला, रेखा उदास होकर के रसोईघर में चली गई और संजय कोतवाली के लिए निकल गया।
"खूबसूरत औरत सारे मर्दों को इग्नोर करके
अपने पसंदीदा मर्द से इग्नोर होती है"
इधर जब मनीष ने रेखा को रसोई में देखा तो उसे उसकी उपस्थिती में बेचैनी सी महसूस होने लगी. उसे थोड़ा अपराध बोध भी महसूस हो रहा था, कि उसका बेटा उसकी अंतरंग दूबिधा को जान गया था और उसे इस बात की कोई जानकारी नही थी. वो शायद इसे सही ढंग से बता तो नही सकता मगर उसके अंदर कुछ अहसास जनम लेने लग थे.
मनीश को अपनी मम्मी के ख़याल बैचैन कर रहे थे और वो ठीक से कह नही सकता कि उसे किस बात से ज़यादा परेशानी हो रही थी, इस बात से कि मम्मी को मात्र एक मम्मी की तरह देखने की वजाय एक सुंदर, कामनीय नारी के रूप में देखने का बदलाव उसके लिए अप्रत्याशित था . ऐसा लगता था जैसे एक परदा उठ गया था और जहाँ पहले एक धुन्ध था वहाँ अब वो एक औरत की तस्वीर सॉफ सॉफ देख सकता था.
मनीष को लग रहा था उसकी माँ की कुछ इच्छाएँ मन की गहराइयों में कहीं दबी हुई थीं जो कोर्ट मे यह सुनने के बाद उभर कर सामने आ गयी थी कि "ऐसे लंड का स्पर्श हर औरत के नसीब में नही होता". मम्मी जैसे बदल कर कोई और हो गयी थी । जहाँ पहले उसे उसके मम्मो और उसकी जाँघो के जोड़ पर देखने से अपराधबोध, झिजक महसूस होती थी, अब आज गुजर रहे दिन के साथ वो उन्हे आसानी से बिना किसी झिजक के देखने लगा था बल्कि जो भी वो देखता उसकी अपने मन में खूब जम कर उसकी तारीफ भी करता. उसे नही मालूम उसकी मम्मी ने इस बदलाव पर कोई ध्यान दिया था या नही।
जेठ का महिना रात के 11 का वक्त था मनीष टीवी देख रहा था, उसे मम्मी के कदमो की आहट सुनाई दी. उस समय उसे सोते होना चाहिए था मगर वो जाग रही थी. वो ड्रॉयिंग रूम में उसके पास आई. उसके हाथ में जूस का ग्लास था.
"मैं भी तुम्हारे साथ टीवी देखूँगी?" वो छोटे सोफे पर बैठ गयी जो बड़े सोफे से नब्बे डिग्री के कोने पर था जिस पे मनीष बैठा हुआ था. रेखा नाइटी पहनी हुई थी जिसका मतलब था वो सोई थी मगर फिर उठ गई थी.
"नींद नही आ रही" मनीष ने पूछा. उसके दिमाग़ में उसकी मम्मी की अदालत वाली बातचीत गूँज उठी जिसमे उसने कहा था कि
"ऐसे लंड का स्पर्श हर औरत के नसीब में नही होता". मनीष सोचने लगा क्या इस समय भी उसकी मम्मी की वो ही हालत है, कि शायद वो काम की आग यानी कामाग्नी में जल रही है और उसे नींद नही आ रही है, इसीलिए वो टीवी देखने आई है. इस बात का एहसास होने पर कि मैं अती कामोत्तेजित नारी के साथ हूँ उसका बदन सिहर उठा.
रेखा वहाँ बैठकर आराम से जूस पीने लगी , उसे देखकर लगता था जैसे उसे कोई जल्दबाज़ी नही थी, जूस ख़तम करके वापस अपने बेडरूम में जाने की. जब उसका ध्यान टीवी की ओर था तो मनीष चोरी चोरी उसके बदन का मुआइना कर रहा था. उसके मोटे और ठोस मम्मों की ओर मनीष का ध्यान पहले ही जा चुका था मगर इस बार उसने गौर किया उसकी मम्मी की टाँगे भी बेहद खूबसूरत थी. सोफे पे बैठने से उसकी नाइटी थोड़ी उपर उठ गयी थी और उसके घुटनो से थोड़ा उपर तक उसकी जाँघो को ढांप रही थी.
शायद रात बहुत गुज़र चुकी थी, या टीवी पर आधी रात को विद्या बालन के दिलकश जलवे देखने का असर था, मगर मनीष को माँ की जांघे बहुत प्यारी लग रहीं थी. बल्कि सही लफ़्ज़ों में बहुत सेक्सी लग रही थी. सेक्सी, यही वो लफ़्ज था जो उसके दिमाग़ में गूंजा था जब वो दोनो टीवी देख रहे थे या टीवी देखने का नाटक कर रहे थे.
असलियत में उसकी मम्मी का यह ख़याल उसके दिमाग़ में घूम रहा था कि वो इस समय शायद वो बहुत कामोत्तेजित है.
रेखा काफ़ी समय वहाँ बैठी रही, अंत में बोलते हुए उठ खड़ी हुई "ओफफ्फ़! रात बहुत गुज़र गयी है. मैं अब सोने जा रही हूँ"
मनीष कुछ नही बोला. क्योंकि उसके दिमाग़ में रेखा के कामुक अंगो की धुंधली सी तस्वीरें उभर रही थीं. वो एक हल्का सा अच्छी महक वाला पर्फ्यूम डाले हुए थी जिसने मनीष की दिशा, दशा और भी खराब कर दी. वो उत्तेजित होने लगा था.
वो उसे मूड कर रूम की ओर जाते देखता रहा. उसका सिल्की, सॉफ्ट नाइट्गाउन उसके बदन के हर कटाव हर मोड़ हर गोलाई का अनुसरण कर रहा था. वो उसकी गान्ड के उभार और ढलान से चिपका हुआ उसके चुतड़ों के बीच की खाई में हल्का सा धंसा हुआ था.
"मम्मी कितनी सुंदर है, कितनी सेक्सी है" वो खुद से दोहराता जा रहा था. मगर उसकी सुंदरता किस काम की! वो आकर्षक और कामनीय नारी हर रात मेरे पापा के पास उनके बेड पर होती थी मगर फिर भी उनके अंदर वो इच्छा नही होती थी कि उस कामोत्तेजित नारी से कुछ करें. उसे पापा के इस रवैये पर वाकाई में बहुत हैरत हो रही थी.
मनीष को इस बात पर भी ताज्जुब हो रहा था कि मम्मी अचानक से मुझे इतनी सुंदर और आकर्षक क्यों लगने लगी थी. वैसे ये इतना भी अचानक से नही था मगर यकायक मम्मी मेरे लिए इतनी खूबसूरत, इतनी कामनीय हो गयी थी इस बात का कुछ मतलब तो निकलता था. क्यों मुझे वो इतनी आकर्षक और सेक्सी लगने लगी थी? मुझे एहसास था कि इस सबकी शुरुआत मुझे मम्मी की अपूर्ण जिस्मानी ख्वाहिशों की जानकारी होने के बाद हुई थी, लेकिन फिर भी वो मेरी मम्मी थी और मैं उसका बेटा और एक बेटा होने के नाते मेरे लिए उन बातों का ज़्यादा मतलब नही होना चाहिए था. मम्मी की हसरतें किसी और के लिए थीं, मेरे लिए नही, मेरे लिए बिल्कुल भी नही.
मगर फिर वो मम्मी की ख्वाहिश क्यों कर रहा था? क्या वाकाई वो मेरी खावहिश बन गयी थी? उसके पास किसी सवाल का जवाब नही था. यह बात अलग है कि वो कभी कभी बहुत उत्तेजित हो जाती थी और यह बात कि उसकी जिस्मानी हसरतें पूरी नही होती थीं,
इसी बात ने मम्मी के प्रति मनीष के अंदर कुछ एहसास जगा दिए थे. यह बात कि वो चुदवाने के लिए तरसती है, मगर उसका पिता उसे चोदता नही है, इस बात से मनीष के दिमाग़ में यह विचार आने लगा कि शायद इसमे मैं उसकी कुछ मदद कर सकता था. मगर हमारा रिश्ता रास्ते में एक बहुत बड़ी बाधा थी, इसलिए वास्तव में उसके साथ कुछ कर पाने की संभावना उसके लिए ना के बराबार ही थी. मगर दिमाग़ के किसी कोने में यह विचार ज़रूर जनम ले चुका था कि कोशिस करने में कोई हर्ज नही है. उस संभावना ने एक मर्द होने के नाते मम्मी के लिए उसके जज़्बातों को और भी मज़बूत कर दिया था चाहे वो संभावना ना के बराबर थी.
वहाँ कुछ देर खड़ा रहने के पश्चात मनीष अपने कमरे में चला गया. बत्ती बंद की और चादर लेकर बेड पर सोने की कोशिश में करवटें बदलने लगा. उसकी आँखो मैं नींद का कोई नामोनिशान नही था मगर वो जागना भी नही चाहता था.
उस वक़्त रात काफ़ी गुज़र चुकी होगी जब मनीष ने दरवाजे पर हल्की सी दस्तक सुनी. पहले पहल तो उसने ध्यान नही दिया, मगर तीसरी बार दस्तक होने पर उसे जबाब देना पड़ा. उसे नही मालूम था उसे कमरे में अंधेरा ही रहने देना चाहिए या बेड के साथ लगे साइड लंप को जला देना चाहिए. वो उठ गया और बोला, "हां मम्मी, आ जाओ"
रेखा ने धीरे से दरवाजा खोला और धीरे से फुसफसाई " अभी तक जाग रहे हो?"
"हां मम्मी, मैं जाग रहा हूँ. अंदर आ जाओ" उसे लगा उन हालातों में लाइट्स बंद रखना मुनासिब नही था. इसीलिए उसने बेड की साइड स्टॅंड की लाइट जला दी.
रेखा एक गाउन पहने थी जो उसे सर से पाँव तक ढके हुए था--- शायद मनीष के लिए उसमे एक गेहन इशारा, एक ज़ोरदार संदेश छिपा हुया था.
रेखा ने कंप्यूटर वाली कुर्सी ली और उस पर थोड़े वक़्त के लिए बैठ गयी. उसकी नज़रें उसके पाँवो पर जमी हुई थी, वो उन अल्फाज़ों को ढूँढने का प्रयास कर रही थी जिनसे वो अपनी बात की शुरूआर् कर सकती. मनीष चुपचाप उसे देखे जा रहा था, इस विचार से ख़ौफज़दा कि वो मुझे क्या बताने आई है..?
वो खामोशी आसेहनीय थी.
अंततः, बहुत लंबे समय बाद, मनीष ने खांस कर अपना गला सॉफ किया और बोला : "मम्मी क्या तुम मुझसे नाराज़ हो?"
रेखा असल में उसके सवाल से थोड़ा हैरत में पड़ गयी थी मगर जवाब देने से पहले वो सोचने के लिए एक पल रुकी.
आख़िरकार वो बोली : "नाराज़? नही मैं तुमसे बिल्कुल भी नाराज़ नही हूँ" इसके साथ ही उसने यह भी जोड़ दिया "भला मैं तुमसे नाराज़ क्यों होउँगी ?"
"मुझे लगा, मुझे लगा शायद .........." मनीष ने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया. वो मम्मी की परेशानी की वजह समझ गया था. उनके मन मैं ज़रूर कुछ और भी था और वो जानना चाहता था कि वो क्या था.
"शायद क्या .....?" रेखा ने उसे उकसाया.
वो दूबिधा में था. उसे अच्छी तरह से मालूम था वो किस बारे में बात कर रही है मगर वो मम्मी के मुख से सुनना चाहता था कि उसका इशारा किस ओर है.
खामोशी के वो कुछ पल कुछ घंटो के बराबर थे, रेखा ने अपना चेहरा उपर उठाया और मनीष की ओर देखा; “क्या यह संभव है कि तुम वाकाई में नही जानते मैं किस बारे में बात कर रही हूँ?!” उसकी आँखे में बहुत गंभीरता थी. बल्कि उसकी आँखो मैं एक अंजना डर भी था कि वो उस बात को बहुत बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रही है,
जबकि मनीष इस बात से अंजान था दूसरे लफ़्ज़ों में कहिए तो, वो उस मुद्दे को तूल दे रही थी जिसे छेड़ने की उसे कोई आवश्यकता नही थी. उसे अपनी सांसो पर काबू रखने में दिक्कत हो रही थी.
मनीष उस सवाल का जवाब नही देना चाहता था. मगर अब जब मम्मी ने सवाल पूछा था तो उसे जवाब देना ही था. “मैं जानता हूँ तुम किस बारे में बात कर रही हो.” उसने बिना कुछ और जोड़े बात को वहीं तक सीमित रखा.
रेखा चुपचाप बैठी थी, बॅस सोचती जा रही थी. उसके माथे की गहरी शिकन बता रही थी कि वो कितनी गहराई से सोच रही थी. वो किसी विचार को जाँच रही थी मगर उसे कह नही पा रही थी. वो उसे कहने के सही लफ़्ज़ों को ढूँढने की कोशिश कर रही थी. आख़िरकार, उसने एक गहरी साँस ली ताकि अपने दिल की धड़कनो को काबू कर सके और चेहरे पर अपार गंभीरता लिए पूछा: “तो बताओ मैं किस बारे में बात कर रही थी?”
उसने सीधे सीधे मनीष को मौका दिया था अब वक़्त आ गया था कि जो भी चल रहा था उस पर खुल कर बात की जाए क्योंकि उसने बहुत सॉफ सॉफ पूछा था
मनीष को कुछ समय लगा एक उपयुक्त ज्वाब सोचने के लिए, और जब अपना जवाब सोच लिया तो उसकी आँखो में आँखे डाल कर देखा और कहा: “बात पूरी तरह से सॉफ है कि हम दोनो मैं से कोई भी पहल नही करना चाहता.”
रेखा की प्रतिक्रिया स्पष्ट और मनीष की उम्मीद के मुताबिक ही थी: “क्या मतलब तुम्हारा? किस बात के लिए पहल?”
मनीष बेहिचक सॉफ सॉफ लफ़्ज़ों में बयान कर सकता था मगर माँ बेटे के बीच जो चल रहा था उसके साथ एक ऐसा गहरा कलंक जुड़ा हुआ था, वो इतना शरमशार कर देने वाला था कि उस पल भी जब सब कुछ खुले में आ चुका था वो दोनों उसे स्वीकार करने से कतरा रहे थे. इतना ही नही कि माँ बेटे मे से कोई भी पहला कदम नही उठाना चाहता था बल्कि माँ बेटे मे से कोई भी यह भी स्वीकार नही करना चाहता था कि किस बात के लिए पहल करने की ज़रूरत थी.
कमरे मे छाई गंभीरता की प्रबलता अविश्वसनीय थी. माँ बेटे अपनी उखड़ी सांसो पर काबू पाने के लिए अपने मुख से साँस ले रहे थे. माँ बेटे दोनों की दिल की धड़कने भी बेकाबू हो रही थी दोनों ही जवाब के लिए उपयुक्त लफ़्ज़ों का चुनाब कर रहे थे. माँ बेटे दोनो हर बात से पूरी तरह अवगत थे, कि हममें से किसी एक को मर्यादा की उस लक्षमण रेखा को पार करना था, मगर यह करना कैसे था, यह एक समस्या थी.
उसके सवाल का जवाब देने की वजाय मनीष ने अपना एक विचार रखा: “तुम जानती हो मम्मी जब हम दोनो इस बारे में बात नही करते थे तो सब कुछ कितना आसान था, कोई भी परेशानी नही थी”
रेखा ने राहत की लंबी सांस ली और उसके चेहरे पर मुस्कराहट छा गयी. अपना बदन ढीला छोड़ते हुए उसने ज्वाब दिया : “हूँ, तुम्हारी इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ.
एक बात तो पक्की थी कि माँ बेटे के बीच बरफ की वो दीवार पिघल चुकी थी. उनके बीच जो कुछ चल रहा था उस पर अप्रत्याशिस रूप से माँ बेटे दोनो सहमत थे और दोनो जानते थे कि हम अपरिचित और वर्जित क्षेत्र में दाखिल हो चुके हैं.
माँ बेटे वहाँ चुपचाप बैठे थे, मनीष की नज़र उस की मम्मी पर जमी हुई थी और उसकी मम्मी की नज़र फर्श पर जमी हुई थी. माँ बेटे अपने विचारों और भावनाओ में ध्यांमग्न बीच बीच में गहरी साँसे ले रहे थे ताकि खुद को शांत कर सके. दोनों को नही मालूम था अब हमे क्या करना चाहिए.
आख़िरकार कुछ समय पश्चात, जो कि अनंतकाल लग रहा था रेखा धीरे से फुसफसाई: “क्या यह संभव है”
वो इतने धीरे से फुसफसाई थी कि मनीष उसके लफ़्ज़ों को ठीक से सुन भी नही पाया था. वो कुछ नही बोला. वो उस सवाल का जबाब नही देना चाहता था.
फिर से एक चुप्पी छा गयी जब वो बेटे के जबाव का इंतेज़ार कर रही थी. जब बेटे ने कोई जबाव नही दिया तो उसने नज़र उठाकर देखा और इस बार अधीरता से पूछा: “ बेटा क्या हमारे बीच यह संभव है”
रेखा ने लगभग सब कुछ सॉफ सॉफ कह दिया था और अपनी भावनाओं और हसरतों को खुले रूप से जाहिर कर दिया था.
अब मनीष की तरफ से संयत वार्ताव उसके साथ अन्याय होता. उसने मम्मी की आँखो में झाँका और अपनी नज़र बनाए रखी. अपने लफ़्ज़ों में जितनी हसरत भर सकता था, भर कर कहा: “तुम्हे कैसे बताऊ मम्मी, मेरा तो रोम रोम इसके संभव होने के लिए मनोकामना करता है
माँ बेटे दोनो फिर से चुप हो गये थे. उनकी घोसणा और स्वीकारोक्ति की भयावहता माँ बेटे दोनो को ज़हरीले नाग की तरह डस रही थी. दोनों यकायक बहुत गंभीर हो गये थे. सब कुछ खुल कर सामने आ चुका था और माँ बेटे एक दूसरे से क्या चाहते थे इसका संकेत सॉफ सॉफ था मगर फिर भी चुप चाप बैठे थे, दोनो नही जानते थे आगे क्या करना चाहिए.
खामोशी इतनी गहरी थी कि आख़िरकार रेखा ने ही माँ बेटे की दूबिधा को लफ़्ज़ों में बयान कर दिया; “अब?.......अब क्या?” वो बोली.
हूँ, मैं भी यही सोचे जा रहा था: अब क्या? माँ बेटे नामुमकिन के मुमकिन होने के इच्छुक थे और अब जब वो नामुमकिन मुमकिन बन गया था, माँ बेटे यकीन नही कर पा रहे थे कि यह वास्तविक है, सच है. माँ बेटे समझ नही पा रहे थे कि हम अपने भाग्य का फ़ायदा कैसे उठाएँ, क्योंकि दोनों के पास आगे बढ़ने के लिए कोई निर्धारित योजना नही थी.
अंत में मनीष ने पहला कदम उठाने का फ़ैसला किया. एक गहरी साँस लेकर, अपनी चादर हटाई और द्रड निस्चय के साथ बेड की उस तरफ को बढ़ा जिसके नज़दीक मम्मी की कुर्सी थी. वो संभवत बेटे का ही इंतेज़ार कर रही थी, वो बेड के किनारे पर चला गया और अपने हाथ उसकी ओर बढ़ा दिए. यह बेटे का उसकी मम्मी का “अब क्या?” का जवाब था.
रेखा पहले तो हिचकिचाई, मनीष के कदम का जबाव देने के लिए वो अपनी हिम्मत जुटा रही थी. धीरे धीरे उसने अपने हाथ आगे बढ़ाए और उसके हाथों में दे दिए.
वो माँ बेटे का पहला वास्तविक स्पर्श था।
माँ बेटे का स्पर्श रोमांचक था ऐसा कहना कम ना होगा, ऐसे लग रहा था जैसे एक के जिस्म से विधुत की तरंगे निकल कर दूसरे के जिस्म में समा रही थी. यह स्पर्श रोमांचकता से उत्तेजना से बढ़कर था, यह एक स्पर्श मात्र नही था, उससे कहीं अधिक था.
माँ बेटे ने उंगलियों के संपर्क मात्र से एक दूसरे से अपने दिल की हज़ारों बातें को साझा किया था. माँ बेटे एक दूसरे के सामने खड़े थे; हाथों में हाथ थामे एक दूसरे की गहरी सांसो को सुन रहे थे.
दोनों के होंठ आपस में परस्पर जुड़ गये, माँ बेटे के अंदर कामुकता का जुनून लावे की तरह फूट पड़ने को बेकरार हो उठा.
माँ बेटे एक दूसरे को थामे चूम रहे थे. कभी नर्मी से, कभी मजबूती से, कभी आवेश से, कभी जोश से. माँ बेटे ने इस पल का अपनी कल्पनाओं में इतनी बार अभ्यास किया था कि जब यह वास्तव में हुआ तो यह एकदम स्वाभिवीक था. उनके होंठ एक दूसरे के होंठो को चूस रहे थे और जिभें आपस में लड़ रही थी. बल्कि दोनों ने एक दूसरे की जिव्हा को भी बारी बारी से अपने मुख से मन भर कर चूसा उसे अपनी जिव्हा से सहलाया.
जब माँ बेटे ने अपनी भावुकता, अपनी व्याग्रता, अपने जोश को पूर्णतया एक दूसरे को जता दिया तो खुद को आलिगन से अलग किया और एक दूसरे को देखने लगे. अब मनीष रेखा को एक नारी की तरह देख सकता था ना कि एक मम्मी की तरह. फिर वो धीरे से रेखा के कान में फुसफसाया " मम्मी! मैं तुम्हे नंगी देखना चाहता हूँ"
एक बार फिर से रेखा जवाब देने में हिचकिचा रही थी. मनीष ने उसके गाउन की डोरियाँ पकड़ी और उन्हे धीरे से खींचा. गाउन की डोरियाँ खुल रही थी. एक बार डोरियाँ पूरी खुल गयी तो उसने उन्हे वैसे ही लटकते रहने दिया. वो अपनी बाहें लटकाए अपने बेटे के सामने बड़े ही कामोत्तेजित ढंग से खड़ी थी. उसका गाउन सामने से हल्का सा खुल गया था. अगले पल उसने अपना गाउन अपने कंधो से सरका दिया और उसे फर्श पर गिरने दिया. वो अपने सगे बेटे के सामने खड़ी थी, पूरी नग्न, कितनी मोहक, कितनी चित्ताकर्षक और अविश्वशनीय तौर से मादक लग एही थी.
तब मनीष ने जो देखा........उसे देखकर विस्मित हो उठा. उसे उम्मीद थी मम्मी ने गाउन के अंदर पूरे कपड़े पहने होंगे, मगर
वो उस गाउन के अंदर पूर्णतया नग्न थी. उसने वास्तव में अपने बेटे के कमरे में आने के लिए कपड़े उतारे थे, इस बात के उलट के उसे कपड़े पहनने चाहिए थे. यह विचार अपने आप में बड़ा ही कामुक था कि वो बेटे के कमरे में पूरी तरह तैयार होकर एक ही संभावना के तहत आई थी, और यह ठीक वैसे ही हो भी रहा था जैसी उसने ज़रूर उम्मीद की होगी- या योजना बनाई होगी- कि यह हो.
सबसे पहले मनीष की नज़र उसके सपाट पेट पर गयी. पेट के नीचे उसकी जाँघो के जोड़ पे बिल्कुल छोटे छोटे से बालों का एक त्रिकोना आकर दिखाई दिया उसके बाद उसकी जांघे और उसकी टाँगे पूरी तरह से उसकी नज़र के सामने थी.
मनीष जानता था मम्मी के मम्मे बहुत मोटे हैं, मगर जब वो अपना रूप विखेरते पूरी शानो शौकत में गर्व से तन कर खड़े थे, तो वो उनकी सुंदरता देख आश्चर्यचकित हो उठा. वो भव्य थे, मादकता से लबरेज. वो एकदम से बैसब्रा हो उठा और तेज़ी से हाथ बढ़ा कर उन्हे पकड़ लिया.
उसके मम्मे दबाते ही रेखा ने एक दबी सी सिसकी भरी जिसने मनीष के कानो में शहद घोल दिया. उसे अपने बेटे के स्पर्श में आनंद मिल रहा था और बेटे को मम्मी के मममे स्पर्श करने में आनंद मिल रहा था. जल्द ही उसके हाथ पूरे मम्मों पर फिरने लगे.
बेटे की इस हरकत से रेखा अपना तवज्जो खो बैठी और बिस्तर पर कमर के बल गिरती चली गईl
उसके यूँ बिस्तर पर गिरते ही मनीष उसके जिस्म के उपर आया और साथ ही साथ उस का एक हाथ मम्मी की नंगी टाँगो के दरमियाँ आया और जिस्म के निचले हिस्से को अपने काबू में कर लिया।
अपने पति से दूरी की सुलगती हुई आग को उसके बेटे के हाथ और जिस्म ने भड़का तो दिया ही था। अब उस आग को शोले की शकल देने में अगर कोई कसर रह गई थी। तो वह रेखा के जिस्म के निचले हिस्से को मसल्ने वाले हाथ ने पूरी कर दी थी।
रेखा मम्मी होने के साथ साथ आख़िर थी तो एक जवान प्यासी औरत। जब उसका बेटा भूखो की तरह चूमे, चूसे जा रहा था, उसका जिस्म इतनी उत्कंठा से उसका छेद ढूँढ रहा था, उसने अपना हाथ नीचे करके अपने बेटे का लंड अपनी उंगलियों में पकड़ लिया और उसे अपनी चूत का रास्ता दिखाया.
और जब रात की गहराई में उसके अपने घर में उसके अपने ही सगे बेटे ने उसके जिस्म के नाज़ुक हिस्सो के तार छेड़ दिए. तो फिर उसके ना चाहने के बावजूद उसका जिस्म उसके हाथ से निकलता चला गया।
मां बेटे को होश उस वक़्त आया। जब मां बेटे अपनी हवस की दास्तान एक दूसरे के जिस्म के अंदर ही रख कर के पसीने से शरा बोर एक दूसरे की बाहों के पहलू में पड़े गहरी साँसे ले रहे थे।
होश आने पर जब मां बेटे को अहसास हुआ कि जवानी के जज़्बात में बह कर हम दोनों कितनी दूर निकल चुके हैं। तो मां बेटे के लिए एक दूसरे से आँख मिलाना भी मुस्किल हो गया।
रेखा अपने इस गुनाह से इतनी शर्मिंदा हुई कि वह खामोशी से अपने कपड़े पहन कर कमरे से बाहर निकल गयी।
मगर जब सुबह माँ बेटे दोनों का फिर आमना सामना हुआ। तो माँ बेटे दोनों ही एक दूसरे को रोक ना पाए और जज़्बात की रूह में बहक कर फिर दुबारा रात वाली ग़लती दुहरा बैठे। उस रात के एक वाकीया ने दोनों माँ बेटे की ज़िन्दगी बदल कर रख दी।
अब तक रेखा ने इतना टाइम अपने पति के साथ नहीं गुज़ारा जितना अपने ही बेटे के साथ गुज़ार चुकी थी।
रेखा के हालातो पर एक शेर याद आ गया कि; " में ख़्याल हूँ किसी और का, मुझे सोचता कोई और है"।
मगर उसके बेटे मनीष के शब्दों में तो वह शायद कुछ यूँ हो गा कि; " तू चूत है किसी और की, तुझे चोदता कोई और है" ।
हाहा हाहा हाहा
माँ बेटे ज़्यादातर अपनी मुलाकात अकेले में मोका मिलने पर अपने घर ही करते थे।
दो महीने बाद रेखा की नन्द और उस के बच्चे घर आए हुए थे। जिस वज़ह से माँ बेटे को आपस में कुछ करने का चान्स नहीं मिल रहा था।
हवस और वासना की आग ने माँ बेटे को अंधा कर दिया, ना चाहते हुए भी अपने बेटे के बहुत मनाने पर मनहूस होटेल शेल्टर में पहली बार जाना पड़ा।
उधर संजय थाने के कमरे में कि इतने में एक सिपाही ने आ कर उसे ख़बर दी। एक क्रिमिनल शेल्टर होटेल में इस वक़्त एक रंडी के साथ रंग रेलियों में मस्त है।
यह ख़बर सुनते ही संजय ने चन्द कोन्सेतबलेस को साथ लिया और होटेल पर रेड करने चल निकला।
क़ानून के मुताबिक़ तो संजय को रेड से पहले लिखित आदेश लेना लाज़िमी था।
मगर हमारे मुल्क में आम लोग क़ानून की पेरवाह नहीं करते।जब कि संजय तो ख़ुद क़ानून था और "क़ानून अँधा होता है"
इसलिए संजय ने डाइरेक्ट ख़ुद ही जा कर होटेल में छापा मारा और अपने मुजरिम को गिरफ्तार कर लिया।
संजय के साथ आए हुए पोलीस वालों ने अपना मुलज़िम पकड़ने के बाद होटेल के बाक़ी कमरों में भी घुसना शुरू कर दिया। ता कि वह कुछ और लोगों को भी शराब और शबाब के साथ पकड़ कर अपने लिए भी कुछ माल पानी बना सके.
संजय ने भी होटेल के कमरों की तलाशी लेने का सोचा और इसलिए वह एक कमरे के दरवाज़े पर जा पहुँचा। और दरवाज़े पर ज़ोर से लात मारी तो कमरे का कमज़ोर लॉक टूट गया और दरवाज़ा खुलता चला गया।
ज्यों ही संजय कमरे का दरवाज़ा तोड़ते हुए कमरे के अंदर दाखिल हुआ। तो उसके साथ साथ कमरे के अंदर मौजूद संभोग करते हुए औरत और लड़के के भी होश उड़ गए...... क्योकि वो दोनों कोई और नही बल्कि संजय की पत्नी रेखा और बेटा मनीष था।
अपने बेटे के लंड पर बैठी हुई रेखा एक दम से चीख मार कर उस के उपर से उतरी और बिस्तर पर लेट कर बिस्तर की चादर को अपने ऊपर लपेट लिया।
संजय को देखते ही रेखा की आँखों में हैरत और डर की एक लहर-सी दौड़ गई.
अपने जिस्म को चादर में छुपाने के बाद वह अभी तक संजय को टकटकी बाँधे देखे जा रही थी। मनीष ने भी अपने तने हुए लंड पर एक दम हाथ रख कर उसे अपने हाथो से छुपाने की कोशिश करते हुए डर से काँप रहा था।
संजय अपने सामने बैठे नग्न पत्नी, बेटे के चेहरों का जायज़ा ले रहा था और उस के दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया था, उसकी आँखों में गुस्सा था...... उसने अपनी कमर में लटकी पिस्टल निकालकर उन दोनों पर तानते हुए बोला बस एक सवाल का जबाब दो...ऐसा क्यो किया...??
रेखा-- " क्योकि.... तुम्हारे जैसा मर्द औरत से अदाये तवायफ् वाली और वफ़ाएँ कुत्तों वाली चाहता है......!!
तीन गोलियों की चलने की आवाज आती है...
धांय धांय धांय...
समाप्त......