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Trinity

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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
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यादें..

फेस्टिवल और शादी-ब्याह के सीजन होने की वजह से दिल्ली से यू पी और बिहार जाने वाली ट्रेन मे काफी रश था। पुरा फ्लैट फार्म खचाखच भरा हुआ था। रिजर्वेशन कन्फर्म नही होने के कारण मेरा दिल काफी घबराया हुआ था। मुझे समझ नही आ रहा था कि मै क्या करूं ! कैसे ट्रेन मे चढूं और कैसे कोई सीट पाऊं ! मेरे लड़के की तबीयत खराब न होती तो मै जाती ही नही। यहीं से वापस डैड और भाई के घर चली जाती।
ट्रेन फ्लैट फार्म पर लग चुकी थी लेकिन दरवाजे अभी तक खोले नही गए थे। जनरल कम्पार्टमेंट के सामने पैसेंजर की काफी लम्बी कतार लगी हुई थी। मै यह जानते हुए भी कतार मे खड़ी हो गई कि सीट तो किसी हाल मे भी नही मिलना है।
लाइन मे लगे कुछ देर ही हुए थे कि एक कुली मेरे पास आया और कहा - " सीट चाहिए "
मै आशा भरी नजरो से उसे देखते हुए कही - हां , प्लीज "
" आप वहां बैठो , आप को सीट मिल जाएगा " - एक खाली चेयर की तरह इशारे करते हुए वो बोला।

कुछ समय बाद वो आया और मुझे अपने साथ ले ट्रेन के जनरल कम्पार्टमेंट मे प्रवेश किया। यह देखकर चैन मिला कि उसने मेरे लिए खिड़की के बगल वाला सीट का जुगाड़ किया है। मैने उसे पांच सौ रुपए के नोट पकड़ाते हुए " थैंक्यू " कहा। वो नोट लेकर मेरे ठीक बगल वाले सीट पर एक रूमाल रखा और वहां से चलते बना।
मुझे लगा कि किसी और ने भी सीट के लिए उससे मदद मांगी होगी।
कुछ देर बाद जब ट्रेन चलने लगी तभी एक अच्छे कद काठ का इंसान भीड़ से रास्ते बनाते हुए वहां आया और मेरे बगल मे रखी रूमाल को हटाकर बैठ गया।
मैने सरसरी तौर पर उसपर निगाह फेरी। और उसे देखते ही मै हक्की बक्की हो गई। मेरे दिल की धड़कनो ने जैसे धड़कना ही बंद कर दिया। मै बिना पलक झपकाए आश्चर्यचकित नजरो से उसे देखे ही जा रही थी।

वो चुपचाप बैठा मोबाइल पर खोया हुआ था। शायद बीस साल बाद देखा था मैने उसे। कमबख्त आज भी वैसा ही दिखता था जितना बीस साल पहले लगता था। वही खुबसूरती , वही घुंघराले बाल , वही स्मार्टनेस , वही पर्सनलटी । और और वही अरमान।
लेकिन इस ने मुझे पहचाना क्यो नही ! क्या मेरी सूरत बदल गई है ! क्या मै मोटी हो गई हूं !
नही नही , हां थोड़े-बहुत चेंजेज आए है और थोड़ी भारी भी हो गई हूं , चेहरे मे थोड़ा-बहुत बदलाव भी आया है लेकिन फिर भी ऐसा नही कि मुझे पहचाना ही न जा सके !
वो यह कैसे भूल सकता है कि कभी हम एक दूसरे से बेइंतहा प्यार करते थे। कभी हमने कालेज के कैंटीन मे तो कभी बाग बगीचे मे तो कभी रेस्टोरेंट मे कितने हसीन दिन बिताए है ! कितने अच्छे अच्छे गाने गाए थे मेरे लिए।

मै खिड़की से बाहर देखती यादों मे खो गई ।

कालेज मे वर्षा अपनी कार पार्क कर रही होती है कि कोई आकर कार को ठोक देता है।
वर्षा गुस्से से बिफरते हुए - " कौन है बे , दिख नही रहा " - यह बोलते हुए पीछे पलटती है तो देखती है कि फिर से किसी ने उसकी गाड़ी ठोक दी।
वो चिल्लाते हुए कहती है - " अंधे हो क्या ? दिख नही रहा है ?"
लड़का - " अरे गलती से हो गया। "
वर्षा - " तुम लड़कों को बाइक चलाना नही आता तो फिर चलाते क्यों हो ?"
लड़का मोबाइल पर अपने किसी दोस्त से बातें कर रहा था - " रूक अरूण , मै बात करता हूं। देखिए मिस.."
वर्षा गुर्राते हुए - " क्या देखू मै ! हैं , नही , क्या देखूं , जरा बताना , एक तो मेरी गाड़ी का नुकसान कर दिया , ऊपर से बात ऐसे कर रहे है जैसे कुछ हुआ ही नही है "
लड़का - " देखो मिस , मै कह रहा हू न गलती से हो गया ।क्यों बात का बतंगड़ कर रही हो ?"
वर्षा - " बत..बतंगड़ कर रही हूं , चपड़गंजू , ज्यादा जबान नही चल रही है तुम्हारी ! एक तो गलती करो और ऊपर से कहते हो बात को बतंगड़ बना रही हूं। "
लड़का - " ऐ चपड़गंजू किसे बोल रही हो , तुम छिपकली कहीं की , ज्यादा जुबान तुम्हारी चल रही है। इन्फैक्ट कैंची से भी ज्यादा। और हां , गलती नही है मेरी। "
वर्षा - " तुम्हारी ही गलती है। सड़े बैगन के भरते। "
लड़का - " तुम क्या हो , छिपकली और मेंढकी ।"
वर्षा - " तुम कनकजूरे कहीं के। तुम्हारी आवाज से लगता है मेरी कान के पर्दे फट जाएंगे। "
लड़का कुछ बोलने ही वाला था कि इतने मे कालेज के प्रिसिंपल की आवाज आती है।
प्रिसिंपल - " क्या हो रहा है यहां , और यहां पर इतनी भीड़ क्यों है ?"
प्रिसिंपल संदिग्ध भाव से दोनो को देखते बोली - " तुम दोनो ऐसा क्या कर रहे थे कि इतने लोगो की भीड़ इकठ्ठा हो गई है ?"
लड़का वर्षा को गले लगाकर - " सर , यह मेरी बचपन की फ्रैंड है। और हम आपस मे मिले तो इतने एक्साइटेड हो गए कि लोग हमे ऐसे घूरने लगे। "
वर्षा घबराते हुए - " यस सर , यह बिल्कुल सही बोल रहा है। "

अचानक पानी के चंद बूंद चेहरे पर पड़ते ही वो ख्यालों से बाहर आई। मौसम ने रूख बदल लिया था। हल्की हल्की बूंदा बांदी शुरू हो गई थी।

उसी वक्त टीटी वहां आया और सभी की टीकटें चेक करने लगा। मेरा टीकट देखने के बाद वो अरमान से मुखातिब हुआ - " आप की टीकट ?"
" सर , जल्दबाजी मे टीकट लेने का समय नही मिला। आप मेरी टीकट बना दो " - अरमान खड़े होते हुए बोला।
" फाइन भी देना होगा ।"
" कोई बात नही , आप टीकट बनाओ। "
टीटी ने अपनी बुक्स और कलम निकालते हुए पुछा - " कहां की टीकट बनाऊं?"
" ट्रेन कहां तक जायेगी ?"
" ये ट्रेन पटना तक जायेगी। "
" आप पटना तक का टीकट बना दो। "
टीटी ने उसे अचरज भरी दृष्टि से देखा और फिर टीकट बनाकर एवं पैसे लेकर दूसरे पैसेंजर की ओर बढ़ चला।
तभी ट्रेन झटका खाकर रूक गई। मैने खिड़की के बाहर देखा। कोई स्टेशन था। स्टेशन देखकर मुझे याद आया कि मैने न तो पीने के लिए पानी का बोतल लिया है और न ही खाने की कोई चीज। मै अपना पर्स उठा कर खड़ी होने ही वाली थी कि वो बोल उठा - " आप बैठिए , मै पानी ले आता हूं। "
वो बाहर चला गया और मै फिर से यादों मे खो गई।

उस घटना के बाद धीरे धीरे हमारे बीच दोस्ती हुई और फिर यह दोस्ती कब प्यार मे बदल गई हमे पता ही न चला। साथ जीने और साथ मरने की कसमे खाई हमने। घंटो एक साथ वक्त बिताते। उसके घर मे बिधवा मां के सिवाय और कोई भी नही था। मरहूम पिता जी का पेंशन और अरमान के पार्ट टाइम ट्यूशन की कमाई ही उनके जीवन का सहारा थी। उसकी मां बहुत ही अच्छी और भोली भाली महिला थी। उनसे मै कुछेक बार मिल चुकी थी।
लेकिन हमारी प्रेम कहानी भी हैसियत मे फर्क की वजह से बली चढ़ा दी गई। पिता और भाईयों की झूठी अहंकार और धन दौलत की गुमान ने एक और प्रेम कहानी को जमीन मे दफन कर दिया। मेरे डैड और भाई नही चाहते थे कि उनकी रइस लाड़ली की शादी उस लड़के से हो जो दो वक्त की भोजन का भी जुगाड़ नही कर सकता। डैड ने मेरी शादी अपने एक दोस्त के बेटे से तय कर दी।
मुझे याद है , जब मै ब्याह कर अपने घर से विदा हो रही थी और वो थोड़ी दूर एक नीम के पेड़ के पीछे खड़ा मुझे हसरत भरी नजरो से निहारे जा रहा था। उसकी आंखे नम थी और मै गाड़ी मे बेठे घूंघट की आड़ मे बिलखते हुए अपने अधूरे प्रेम का मातम मना रही थी।


ट्रेन के चलते चलते वो पानी का बोतल , स्नैक्स , केक , थोड़े स्विट्स और कोल्ड ड्रिंक लेकर आ गया ।

" बड़ी देर से पहचाना ! " - मैने व्यंग्यपूर्ण कहा।
" पहचान तो देहली स्टेशन पर ही गया था " - पहली बार वो मुस्कराया था लेकिन उसकी मुस्कान फिकी ही लगी मुझे।
तभी मेरे ज्ञान चक्षु खुले। इसका मतलब वो मुझे फ्लैट फार्म पर कतार मे लगे हुए भी देख चुका होगा। इसका मतलब कुली का मेरे पास आना और सीट का बंदोबस्त करना अरमान का ही काम था।

" कुली को तुमने भेजा था मेरे पास ?"
" हां , मै एक दोस्त को छोड़ने आया था। तुम्हे जनरल कम्पार्टमेंट के सामने खड़े देखा तो अपने आप को रोक न पाया। "

हमने नास्ता करना शुरू किया। रात हो चुकी थी। बाहर बारिश जोर पकड़ ली थी।
" मां कैसी है ?" - मैने नाश्ते के दरम्यान पूछा।
" तुम्हारी शादी के छ महिने बाद ही वो चल बसी। "

" ओह! " यह सुनकर मै काफी दुखित हुई।
" बाल बच्चे ?" - मैने फिर अगला सवाल पूछ दिया।
" शादी होती तो न बच्चे होते ! " - वो मुस्कराते हुए कहा।
मै हैरान उसे देखते रही।
" शादी नही की लेकिन क्यों ?"
" शादी कर के क्या फायदा जब पत्नी को अपने दिल मे जगह ही नही दे सकता " - वो अपनी नजरे चुराते हुए बोला।
मेरा दिल भर आया। एक मै थी जो शादी कर के अपने परिवार और गृहस्थी मे व्यस्त हो गई हूं और एक ये है कि अपनी सारी जवानी मेरे नाम कर गया। "
" तुम्हारी शादी के बाद मां भी हमेशा के लिए चली गई। जीवन से कोई लोभ रहा ही नही। फिर बाद मे सोचा क्यों न अपनी बाकी जीवन देश के नाम लिख दूं। इसलिए फौज ज्वाइन कर लिया। "

मेरे मुंह से एक शब्द भी न निकल सका। मै खुद को उसकी गुनाहगार मान रही थी।

" तुमने अपने बारे मे कुछ नही बताया ! " - मेरी आंखो मे देखते हुए वो बोला।
" शादी के बाद हाउस वाइफ बनकर जिंदगी कट रही है। डैड और भाई गांव छोड़कर दिल्ली बस गए और मै बनारस ब्याह कर चली गई। एक लड़का और एक लड़की है। लड़का बी टेक कर रहा है और लड़की अभी हायर सेकंडरी मे है। "
" वाह , लड़की जरूर तुम्हारी तरह नकचढ़ी और छिपकली होगी ।"
मैने देखा , वो मुस्करा रहा था। उसकी बाते सुन मुझे हंसी आ गई।
" क्या मै नकचढ़ी और छिपकली जैसी हूं " - मैने बनावटी गुस्से से कहा और मेरी आंखे डबडबा गई - " आज भी पुरानी बातें याद है , है न ।"
" यह यादें ही तो मेरी सम्पति है , धरोहर है। "
मेरा दिल लरजने लगा था। आंखे भारी होती जा रही थी। मै चाहकर भी उसके लिए कुछ नही कर सकती थी। काश , वो शादी-ब्याह करके अपने बीबी बच्चो के साथ खुश रहा होता।


लगातार बारिश ने मौसम को सर्द कर दिया था। मेरे शरीर मे सिहरन सी दौड़ने लगी थी। यह देख वो तुरंत खड़ा हुआ और अपना कोट निकाल कर मुझे देते हुए कहा - " पहन लो , ठंड ज्यादा बढ़ गया है और मै जानता हूं तुम्हे ठंड बर्दाश्त नही होता। "
मै कोट पहनते हुए बोली - " पटना मे कहां जाना है ? "
" तुम कहां तक जाओगी ?" - वो बोला।
" बोला तो , बनारस ।"
" ओके , मै तुम्हे तुम्हारे घर तक छोड़कर वहीं से वापस दिल्ली लौट जाऊंगा। मुझे दो दिन बाद काश्मीर ड्युटी पर जाना है। "

कुछ देर तक बातें करने के बाद मुझे नींद आने लगी। मैने अपने सर को उसके कंधो पर टिका दिया और आंखे बंद कर ली।
थोड़ी देर बाद उसने मेरे सिर को अपने कंधे से हटाकर अपने चौड़े सिने पर रख दिया और मेरे बालों को धीरे धीरे सहलाने लगा।
ऐसा शकुन मुझे कभी अपने पति के सानिध्य मे नही महसूस हुआ। ऐसी शांति कभी महसूस ही नही हुई मुझे। ऐसा सुरक्षा होने का एहसास कभी न तो मायके मे महसूस किया था और न ही अपने ससुराल मे। काश , ऐसे ही अरमान के सिने से लगे शकुन की नींद सोती रहूं।

जब नींद खुली उस वक्त सुबह के चार बज गए थे। ट्रेन बनारस पहुंचने वाली थी। मैने अरमान के चेहरे पर नजर फेरी। वो जगा हुआ था। शायद पुरी रात ही वो जगा हुआ था। बिना करवट लिए मुझे अपने सिने से लगाए ऊपर की ओर नजरे किए हुए।


बनारस , ससुराल से चंद फासले पूर्व उसे मैने अपना घर दिखाया तो वो वहीं खड़ा हो गया और बोला - " अब तुम घर जाओ , मै भी निकलता हूं ।"
मैने कातर दृष्टि से उसे देखते हुए कहा - " क्यों , घर नही चलोगे?"
" क्या परिचय दोगी मेरा ? मेरा सफर यहीं तक का है " और वो मुझे वहीं छोड़ पलटकर जाने लगा।
" अरमान ! " - मैने उसे आवाज लगाई।
वो पलटकर मुझे प्रश्न भरी नजरों से देखा। मै उसके पास गई और धीरे से बोली - " प्लीज अरमान , मेरे एक बात मान लो। शादी कर लो। "
यह सुनकर वह धीरे से हंसा और कहा - " इस उम्र मे शादी ! वैसे मेरी शादी तो हो चुकी है। एक यादों से और एक वतन से। तुम खुश हो , मेरे लिए इससे बढ़कर और क्या होगी !"

मैने उदास मन से कहा- " मुझे अच्छा नही लगता है तुम्हे इस हाल मे देख कर ।"
" क्या हुआ ! देख लो भला चंगा हूं और जिंदा भी । मै ठीक हूं। तुम्हे बिल्कुल ही उदास नही होने का मेंढ़की " - वो मुस्कराते हुए और मेरी नाक को दबाते हुए कहा।
" अच्छा जाते जाते एक गीत तो सुना दो। कालेज मे कितना सुंदर गाते थे तुम ! "
" मेरी आवाज और गीत दोनो ही बीस साल पहले दम तोड़ चुकी है। लेकिन तुमने कभी कुछ कहा और मैने ना कहा , ऐसा कभी हुआ ही नही। मै गीत गाने लायक तो रहा नही लेकिन गीत के बोल तो कह ही सकता हूं -
" बिते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी।
ख्वाबो ही मे हो चाहे मुलाकात तो होगी ।।"

और वो चला गया। मै तबतक उसे जाते देखते रही जब तब वो मेरी आंखो से ओझल न हो गया। इस गीत को ही सुनकर तो मै दिवानी हो गई थी उसकी। मै अपनी आंखो से आंसू पोंछते हुए घर की तरफ निकल पड़ी।


शायद सात आठ दिन हो गए थे इस घटना को जब एक दिन सुबह के अखबार मे उसकी तस्वीर नजर आई। मैने तुरंत न्यूज पढ़ा।
न्यूज था ' लेफ्टिनेंट अरमान की आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ मे मौत। '

पढ़ते ही ऐसा महसूस हुआ कि मेरे कलेजे के दो टुकड़े कर दिए गए हों। दिमाग शुन्य हो गया और मै अखबार को हाथों से भिंचे घूटनो के बल जमीन पर आ गिरी। मै चिख चिख कर रोना चाहती थी लेकिन मेरे मुंह ही जैसे बंद हो गए थे। मेरे गले से आवाज नही निकल रही थी।

एक साल बाद -

आज भी मै दिल्ली से बनारस जा रही थी। आज मै जानबूझकर जनरल कम्पार्टमेंट से सफर कर रही थी। खिड़की के पास बैठे बार बार मेरी नजर आसपास ढूंढ रही थी कि वो फिर आएगा और मेरे लिए पानी , स्विट्स , केक , स्नैक्स , कोल्ड ड्रिंक ले आएगा। उससे फिर से घंटो बात करूंगी। फिर से उसके सिने से लगकर सो जाऊंगी। लेकिन इस बार की नींद ऐसी होगी कि फिर कभी खुले ही न।

दूर कहीं एक गीत बज रहा था
" ये लम्हे , ये पल, हम बरसों याद करेंगे
ये मौसम चले गए तो हम फरियाद करेंगे। "

अधूरे प्यार की एक मीठी सी कहानी! लेकिन दुखान्त लिए हुए। क्या SANJU ( V. R. ) भाई, न न कहते प्यार कर ही बैठे 😂😂
चलो अच्छा किया कि कहानी लिख तो दी। अच्छा नेरेशन। समझ में आ रहा था कि क्या होगा, लेकिन अच्छा लगा पढ़ कर। like a breeze
बस एक कमी जो देखी वो यह कि इतने सालों बाद भी अरमान लेफ्टिनेंट ही रहे (जो कि एक जूनियर ऑफिसर पोस्ट है) - अब तक उनको कर्नल या लेफ्टिनेंट कर्नल बन जाना चाहिए था।
 

Destiny

Will Change With Time
Prime
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कहानी- संयोग- कभी भी बन जाए
Writer- Destiny महोदय


बहुत ही बेहतरीन और शानदार कहानी पेश की आपने बिगुल महोदय।
रौनक और रोशनी एक दूसरे से प्यार तो करते हैं लेकिन कभी अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाए। जिनके कारण उन्हें कुछ वक्त बिरह की आग में जलना पड़ा। लेकिन कहते हैं न कि जिनका प्यार पाक साफ हो और जिसमें त्याग करने की भावना वो भगवान भी उसका साथ देता है। तभी तो रोशनी और रौनक को शालिनी के मध्यम से भगवान ने एक दूसरे से मिलाया।

जिस तरह रौनक ने अपने पापा की मौत के बाद अपना घर और अपनी मां को संभाला वो काबिलेतारीफ है। माँ के एक बार कहने पर ही उसने अपने प्यार के ऊपर अपनी मां की बातों को तरजीह दी जो उसके संस्कारों और माँ के प्रति असीम प्रेम का परिचय देता है। कुत्ते वाले दृश्य ने बचपन की यादें ताज़ा कर दी। गाँव देहात में पहले ऐसे दृश्य बहुत देखने को मिल जाते हैं।
बहुत बहुत धन्यवाद माही जी
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Khel Waqt Ka


Sahero ki katti hui wo jindagi kise nhi pasand sab uss jindagi ko apni pahchan se jodne ka sapna tak rakh chalte hai aur kuch ussi saher me apna ek chota sa ghar aur sukh bhari jindagi jine ka aalam rakhte hai par sayad hi kinhi logo ke jindagi se ye sukh aur dukh ka mahtva unhe smjh aaye.Jindagi ki shuruwat dard se yaa khushi ya unn panapti hui unn numayisho se hoti hai jin bhavnao ko hum apne janm lete hi apne dimag aur dil me rakhte chale jate hai aur apne aas pass ke har uss vyakti se ek lagav sa bana lete hai aur hamari badhti hui mahatvakancha hamare umar ke sath hi unn bhavnao ko ek alag hi mod de dalti hai jo jindagi ka ek pahiya saja dalta hai hamare liye.



Khair inhi bato se likhit ek choti rachna ki shuruwat yaha karta hu.........





Chali thi hasrate uss school ke phle din se socha tha ki wo din kuch naye manzar layengi par pata nhi tha ki yahi wo samay tha jo jindagi ki raah ek alag modd ko lejayegi. Dikhne ko sahmati dost ki thi par sayad school ki dosti yahi se thi.Dost milte gaye wo samay bhi thahra nhi chalta chala gaya. Waqt ke sath samay apne aur paraye ka gyan bhi deta chala gaya, din tha wo mere class ka, garmiyo ki wo kankanahat si subah,class ka wo pal jo aaj bhi yaad kar dil ek alag hi muskan bharna chah deta hai,wo pal aa bhi gaye jab uuss nami bhari muskan ko dekh pasij sa gaya dil, dil ka wo har kona bhi jaise aaj likhte waqt uss pal me dubb jata hai njane kyu uss waqt kii numayish har waqt ye dil kar baithta hai.



Wo pyari si mukan ki chahat chalti hui aayi ander jab dil ka dhyan hata nhi ustak se to chutki si awaj uss muskan bhari adaye se aayi jaise hadbada sa gaya wo dil mera, sayad kho sa jata agar usse najar hatne ko chahta na meri ankhe. Uski unn muskan se hi din kata mera jaise taise na chahh kar bhi ghar pohochne par dil laga nhi mera.Agli subah jab school pohoncha mai uss muskan bhari khubsurati ko dekhne ki chahat itni thi ki mai budhu bag tak na le aaya tha saath,iss bewkoofi ko aaj bhi yaad jab karta hu mai to hassi ki kilkilahat gunj jati hai dil me,Wapas lekr aaya bag mai dikhi nhi wo uss waqt ki meri dil ki numaish sayad sun li rab ne wo dikhi aati hui,jaha uski aaj lataye uske kano se hote hue piche latkane ki ada kya hi lamha tha jab uss manzar me kisi ki gungunahate gunj uthi mere zehen me aise ki mano ye pal aur tham jaye yaha par wo pal tuta aise mano jaise shishe par pattharo ki barsaat kar dil ko bhatkane ka kaam kar dala ho kisi ne.Jab nazar gayi bagal me to hadbada sa gaya mera dil mano chori pakdi gayi uski, sangeet ki teacher ka gunguna jari tha mujhe ghurte hue, dastak unki jari thi jinke harkat ne to mano sharm ya kaho chahkna mere dil ka ki wo dil bhi khil sa gaya tha,njane kaisi khushi thi uss dil ki mano jaise dil ka mujhe bahkana tha mujhe.



Class ke ander ghuste hi jab nazre ek baar fir judi uski nazro se to njane kaise meri muskan badh gayi uske uss muskan ko dekh jo usne dekh mujhe bhari thi mano aisa laga uski muskan jaise ki ye uske chehere par aise hi rahe jaise wo chand raat me apni shitalta ke sath rahta hai.Har bitte samay mujhe uski baate aur khilkhilahat uski ore khich si rahi thi mano uska aksh mujhe bula raha tha.Fir aaya wo waqt jab jazbaat khulne ko the mere jab chalti hui wo mere row me ghusi meri dil ki dhadkane mano rukk si gayi ho,jab wo aakar mere pass apni vani ka jadu aisa cheda ki kahne ko to dil kuch na kah raha tha na soch raha tha uss waqt par dimag ki njane kya matbhed thi meri uss se ki usne mujhe chutiya kahne pe utawla ke diya tha jiske manne anusar maine mann hi man uss pal apne aap ko "Chutiya" hi kaha tha haa wo waqt wo lamha mai chutiye ki tarah ghur hi raha tha usse mai pagal tha ki uss nazakat ko khubsurati ki nakshiyate tak na de paa raha tha usse.



"Hii,mai Pragati"

Uski awazz ne mujhe soch se bahar laya



"H-hii !! M-mmai Arush"

Maine haklate hue jald hi bol pada.



Usne dubara bolna shuru kiya

"Mai class me nayi hu aur mujhe help chahiye thi iss liye aayi thi tumhare pass"



Uske sidhe muh baat sun mai kuch 2-second ankho me jhankta raha mai



"M-matlab I mean kaisi H-help ?"



Usne mujhe sawal puchta dekh ek nazar apne piche khade apni dost ko dekha jo usse hath se puchne ka ishara kar rahi thi.



"W-wo wo,mai"



Uske ye bol sunn to mai ghabra raha tha dil me ek tees uthi padi hui thi meri dhadkane raftaar bhai ke gaane ki tarah tezz gati se chal rahi thi mano abhi faad ke bahar aajaegi jo mere bagal me baitha ladka arun ne bhi sunn ki thi usne mujhe aise ghura mano mai koi bp ka patient tha.



"Wo mai....wo baat ye hai ki"



Mai to uski haklahat aur har boli par rukawate sunn to lag raha tha ki abhi mujhe ye heart attack dilwa ke manegi.Jaha meri halat aisi thi wahi mere piche uss row me piche baithe mere dost to aur muh fade aise sunne ka intezar kr rahe the ki bhandare ka timing pata chalne wala ho.



Tabhi uske piche se uski dost shreya aayi aur mujhse bol padi



Shreya :-Arush dekh ye pragati hai naam to bataya hoga aur tu janta bhi hoga to baat ye hai ki isse tujhse help chahiye.



Maine uss nakchadi ki baat sunn chidh gaya par pragati ko dekh mai waha pighal gaya.Uski ankhe mai kya bolu ek tarashi hui moti thi uss samundar me jo mano ek jheel me daal di ho kisi ne aisa pratit ho raha tha mujhe.Idhar shreya bole jaa rahi thi aur mai to bhul jao mai tha kisi ki ankho ki kasti ko pirone me haye iss waqt nazar na lag jaye meri usse.



Ki tabhi shreya ne dekha ki mai kuch response hi na de raha hu usne meri nigahon ka picha kiya to mano usse gussa aur hassi dono aayi ho aisi expression liye usne mujhe awazz diya.



"Oye Arush !! Oye sun raha hai."



Mai kisi mimiati bakri ki awazz se bhatka aur sidha bol pada.



"Kyu mimiya rahi hai."



Apni beizzati sunn to shreya boriya bistar leke wahi baith gayi aur mic lekr aise chilane lagi mano mujhpar ki maine uski vidayi bailgadi se krwayi ho.



Mere piche khade dost jaha khilkhila ke hass rahe the wahi Pragati piche khadi muh daba ke hass rahi thi,wo hassi control karne ki koshish kr rahi thi par bechari ki muskan aur wo labon ki gustakhiya usse inkar kar rahi thi, wo uss samay bohot hi jyada pyari lag rahi thi.



"Tujhe chodunga nhi tere aunty se bolungi mai tu-tu dekh"



Uss shreya ki firing mujhse aur nhi sahi gayi aur mai bol pada



"Are rukk meri maa aunty ke pass nhi school ki bate ghar tak nhi,chal-chal sorry ab bol kya hua bol bhi de."



Shreya:-Anish hai n wo IDS school wala."





Anish ki baat sunn jaha mere piche khade dost jo baithe the wo khade ho gaye the.



Mai:-Kya hua hai baat par aa tu."



Shreya:-Wo Pragati ko pareshan kar raha hai yaar wo bhi kam nhi bohot jyada.Pragati parso shift hui hai yaha hamare colony me hi aur meri cousin hai ye.



"Kyaaaa !?"



Mai aisa shock hua ki khada hi ho gaya bench se mai aur mere chilahat sun to mere dosto ki to halat kharab sayad wo mere achanak awaz aane se shock hogaye the.



Maine khud ko aise shant kiya mano aag me pani aur baithate hue.



Mai:-Puri baat bata.



Shreya:-Wo pahle din jab wo shift hui to sham ko hum park wale jagah golgappe khane gaye the wahi usne mujhe dekh to kuch nhi kaha par pragati ko dekh aakr pareshan karne laga,pahle to halke fulke hi tease kar raha tha jise hamne ignore kar diya par fir kal raat ko market me jab mai,didi aur pragati ke sath mall gayi thi to wo dosto ke sath wahi mila aur ajjib-ajjib comment pass kr raha tha.Aur aaj to usne subah ko bus stop par Double meaning baate pragati par kr rah...!??



Shreya aage bolti ki Pragati ne piche se usse rok liya uska hath pakad ke sayad usse hesitation feel ho raha tha jo mai bhanp gaya tha aur mera gussa aisa badha tha ki meri muthi kaste hi niche bench ke keel me jod se de maari jiski gunj self period ki ending bell se kuch had tak dabb gayi.Kuch second waha shanti rahi ki piche se kaha ek dost ne.



"Tumne ghar par nhi bataya tha kya ?."



Shreya:- maine bataya tha parso hi raat ko jispar dada ne kaha ki kal se sham ko bahar na jau aur unhone anish ke colony walo se complaint bhi ki thi par wo log bole ki anish to bohot acha ladka hai wo aisa nhi kar sakta jispar unki bate dada ko hi sharminda hona pada iss liye unhone hame hi danta ki aisi to koi baat nhi hai ho sakta hai misunderstanding hui hogi hamne dusri din raat wali baat nhi batayi didi ne mana kar diya ki bahar ki baat bahar hi rahane do par aaj subah bohot jyada ho gaya tha uska yaha tak ki pragati ne ro bhi diya th....!!



Ki tabhi piche se students ki good morning sir wagerah bolne ki awaze aane lagi to shreya ne pragati ko leke apne row me chali gayi.



Idhar mera gussa dil dabane ki jagah hadd paar karwa raha tha,mere bagal me baitha dost mujhe mera hath bench par karta dekh mujhe jabardasti khada karwa kar sir se bol mujhe office ke side ke gaya aur first aid krwaya mera.



School ki chuti hui aur mai jald hi apne bagal me baithe dost Arun ke sath ghar ki ore jaa raha tha hum colony me enter hue the ki hume anish ke school bus uske colony me jate dikhayi di,haa anish school bus se hi jata tha.Khair hum ghar pohoche aur mai apne room me jate hi bed par pasar gaya has aaj mai had se jyada frustrated tha jiski limit aise to na kam hogi bilkul na.



Jaha Shreya mere hi colony me mere ghar ke just samne uska ghar tha hum dost the bohot ache aur arun isi colony me antim ghar tha uska.



Mai sham me utha fresh hua kapde badle aur ek santra lekr khate-khate mai nikal gaya bahar park ki tarf jaha pohoch maine dekha ki Arun kabaddi khel raha tha aur mujhe dekh Arun bhag ke aaya mere pass aur mere hath se se santra ka piece lekr bhag gaya khelne mai bhi wahi baith gaya pass me bench par aur unlogo ko khelte hue dekhne laga.



Kuch 10 mint. hue the ki idhar bahar se awaze aane lagi shorgul type maine gaur se suna to ye shreya ki thi mai bhaga bahar ki ore aur bahar aaya to dekha to thodi bhid thi aur bache log aur kuch naujavan shreya aur udhar uss anish ko jhadne se rok rahe the.Mera gussa sach me chadha mai waha pohochte hi uss naujavan ladke ko side kar ek punch sidha jadd diya Anish ke jabde pe.



Punch ka pressure itta bhayanak pada ki wo sidha niche *dhabaakk* karte hue gira aur meri chhavi dikhi uss bhid me unn logo ko.



Maine usi hath se mara tha jis hath me chot aayi hui thi mujhe jisme se khun bandage par se bahar ki ore aaraha tha.



Uss naujavan ladke ne mujhe aage badhne se roka aur jaha wo Anish khada ho raha tha apne dost ke sahare.Khade hote hi wo bol utha



Anish:- Bahenchod, teri toh Arush aaj tu gaya bhosdk.



Uski gali sun mera para chadhne ko tha par piche se uss ladke ne mujhe pakad hua tha maine mundi ghuma ke dekhi to ye Shivu bhaiya the pass me hi inka canteen tha sayad apni gf ke sath aaye honge aur maine dekha bhi unki gf wahi Pragati ko kandhe se thami hui thi jaha uski ankhe bhog chuki thi puri mano royi ho wo,uski ankhe dekh meri nazre sakht lahje me pravartit ho rahi thi sach kahu to aisa laga ki mere dil ko kisi ne chata maara ho aur kaha ho ki

"dhikar hai tum par"

Ye sab soch to mera para chadhte hi maine na aav dekha na taav Shivu bhaiya ke pakd ko chudane ke liye unke pair par ek laat maari aur pakd dhili hote hi hath ki kalai pakd side ki ore ghasit di jiska parinam ye hua ki wo piche ki ore ho gaye aur apna hath jhadne lage.



Mai aage badhte hi sidha jaakr Anish ke pet me puncho ki barsaat karni shuru kar di jo abhi kisi ko phone lagane ki koshish kar raha tha.Mere punch bohot jordar pad rahe the uske muh se pani aur thuko ka ghut bahar ki ore uske muh se aaraha tha.Mujhe Anish ke dosto ne piche se pakd ke lejane ki koshish karne lage jisse Arun ne piche se unko last mari aur mujhe churaya aur maine dekha unmen se ek Anish jo niche baith khas aur ulti kar raha tha uske pass jaa raha tha usse mari maine ek elbow apni uske naak par sale ki naak gayi thi aur piche mudte hi arun ke piche se ek ladka jo usse pakd khichne me laga hua tha usse maine dono hathon se gala pakd piche ki ore ghsit te hue pheka jo ludhak kar piche ki ore gira muh ke bal aur abhi mai anish ki ore fir badha hi tha ki udhar Shivu bhaiya aur kuch logo ne mujhe jald liya aur piche ki ore legaya.



Shivu:- Arush shant ho ja bhai shant ho ja dekh uncle ko phone kiya hai maine tu shant rah bhadak mat.



"Are Shivu beta Arun ko dekh uske pass jaa tu"



Ek uncle ne ye baat boli jo sahi bhi thi arun waha khas raha tha sayad pakde jane se hua tha.



Maine dum lagana band kar diya to unn logo ne mujhe aur arun ko bagal me baitha kr ek uncle ko chor Anish ko dekhne chale gaye jiski halat bohot buri thi wo khase hi jaa raha tha aur pani to uss se piya bhi nhi jaa raha tha wahi Shreya Pragati ke pass thi usse sambhal rahi thi jaha jab maine Pragati ke chehre ko dekha to uski nazre mujhpar hi thi wo mujhe hi dekh rahi thi njane wo kya soch rahi thi aur mai kya sayad alag lahje ki soch ek dil se aur dusre ki soch uske lafzo se bayan karna hi thik tha uss waqt mai nhi gaya uske pass tabhi udhar papa aate hue dikhai diye mujhe unke sath arun aur Shreya ke Dada bhi the kyunki shreya ke papa yaha nhi rahte the wo dubai me job par the.



Sari baate jab sab clear hui to Anish ke pita bhi gussa hue Anish par but uss se jyada wo gussa mujhpar the aur wo chehra to nhi par unki ankhe sab bayan kar rahi thi unhone gusse me papa ko bhi bhala bura bola jo mai sah nhi paya aur ek jhanatedar raipat uski kanpati pe sidha jadd diya aisa jada ki pura mahol shant tha jo pahle wo samsaan jaisa ho gaya jaha sirf chidiyon ki awaze arahi thi jo paktu kutte log apne sath park me laye the wo bhi shant pad gaye the.



*Chatakkk*

*Chatakkk*

Aur fir wahi hua uska ulta newton ka third law mere sath papa ne bhi thappad mujhe jadd diya wo aage aur marte mujhe ki shreya ke dada ne unhen rok liya aur unhen samjhane lage khair wo Anish ka baap waha se gusse me tilmilate hue waha se chala gaya aur dhamkate hue bhi gaya khair ghar laute jaha hum sab shreya ki familyArun ke papa aur wo aur meri family shreya ke ghar me hall me baithe the to kuch shant khade the jaha papa aur dada phone pe baat kr rahe the sayad pragati aur shreya ke papa se.



Mai wahi baithe apni soch me gum tha ki kisi ne nimbu-pani lakar mere samne kar diya maine bina upar dekhe bola nhi pina hai shreya jaa tu.



"Nimbu-pani hai pi lo mood thik ho jayega."



Maine awazz sun nazre upar ki to wo masoom sa chehra dikha mujhe jo kuch der pahle murjhaya hua lag raha tha par abhi mano gulab ki pankhudiyon ki tarah jo abhi khul rahe ho mano,kasam uss kudrat ki agar ye waqt aur lamha iss masoomiyat par agar sirf mera ye attraction hai to mai fir bhi iss masoomiyat ko dil me baithane ki chhah nhi chorunga balki iss lamhe ko apni chhah aur mohabbat me apne dil jubani se shamil karna chahunga.



Maine glass liya uski hatho se aur pine laga ki tabhi dadi boli shreya ki



Dadi:- thik kiya Arush beta tune mujhe khushi hai ki uski achi maramat hui aur uske baap ki bhi.



Dada:- are chup kro tum



Dadi:- mai kya chup kru,mai to pahle hi kahti thi ki wo ladka dikhta kuch aur hai kuch aur dekh hi liya n uss Anish ki kartut aur uska baap uske bare me to bolna hi nhi mujhe.



Mujhe aaj yaha kahi Pragati ki maa nhi dikhi I mean unko Pragati ke sath ya waha dekha nhi maine to mujhe laga sayad uncle ke sath bahar job par hi hongi jaha pragati ke papa government job karte hai jaha mujhe ye bhi pata chala ki agale sal uncle aarahe hai transfer idhar lekr.



Khair hum sab ghar laute papa ne kuch nhi kaha mujhse khana hum wahi shreya ke ghar se kar ke aaye the,khair mai jate hi so gaya aur subah utha apne chote bhai ke jagane se jo school ja raha tha,uski life mast thi na koi tension aur na koi padhai ki dikkat mast mauj-masti.



Mai bhi fresh hua,taiyar hua aur Arun ke sath school pohocha aur aaj pragati ne baat ki mujhse jiski khushi meri muskaan saaf bayan kr rahi thi khair har din ab uski bate mujhse badhti gayi aur njane badhti hi chali gayi,hum to class me aise baate karte mano class me teacher ki koi value hi na ho.Hum ek best buddy jaise ho gaye the jiski karta dharta shreya thi.



11 mahine hamari besties ka rukh humne thama hua tha njane uski ore mujhe kyu lagta tha ki mai attract hu sirf na ki pyar par mera dil har bar mujhe chante maar deta tha meri soch par.



Khair ek din hum park me hi the mai aaj kal kuch jyada hi ajib harkate kar raha tha jispar sawal daga tha Pragati ne mujhpar mai hadbada sa gaya tha uske sawali ko sun par dil bhi ek kone me chup kar mujhe galiya dete hue aage kuch kah e ko bol raha tha aur yaha Pragati mujhe.



Mai bich majhadhar me uss mor ki tarah fasa hua tha jab wo mor barish ke mausam me barish ke jagah dhup dekh raha ho aur mausam aur uss kudrat ke iss nazakat ko thukrne se ghabraya hua ho.Meri halat ussi mor ke pankhon jaise the jo mano chahte the ki abhi wo khule aur mai apne lafzo ki jubani samne wali ke dil par chor du par kya wo waqt mera sath dega,kya wo dil mera sath dega jiske kone me baitha wo meri samne khadi uss pankhudi ko apne dil me ek naya bagh ugane ki bhavana bandh rakha hai.Kash mai unn jazabato aur unn lafzo ko apne mukh se usse bayan kr pata par nhi ye waqt mujhe chin sakta tha usse kya pata wo waqt usse mujhse, nhi ye mohabbat ho ya attraction kuch bhi isse apne dil ke diwaron tak hi rakhna sahi tha hamare liye.



Mujhe awazz lagate hue pragati ne soch aur dil ke jazabato se bahar nikala aur mujhse bol uthi fir se



Pragati:-Tum bol rahe ki nhi Arush dekho agar nahi bole to dekh lena mai baat na karne wali"



Mai:-acha bol raha hu yaar mai kaha kuch disturb kuch nhi hua hai mujhe bas tere birthday ke baare me soch raha tha aur kya sochunga.



Pragati apni birthday ki baat sun udaas si ho gayi mano kuch soch rahi thi wo.



Mai:- kya hua ab,pahle hi bol de raha hu jhut bilkul nhi meri kasam tujhe.



Usne mujhe dekha aur fir nazre suraj ke dhalte drishya ko dekhte hue mujhse boli



Pragati:- meri maa ki barsi bhi ussi din hai Arush,mai uss din ko kabhi nhi bhul sakti.



Uske ye bolte hi wo to padi thi itne waqt baad usse mai rote dekh raha tha mere dil par kisi ne khanjar rakh chir diya ho aisa mujhe laga uski ankho me ansu aate dekh.



Achanak mere mukh se nikal pade



Samay hai ye dost,

Sayad tumhe waqif krne me bhul hui ho isse,

Par ye samay ka pahiya hai iss pahiye me har kisi ki jivani basi hai,

Chahe wo tum,mai ya ye tumhara aur mera pariwar,

Har kisi ke dard,pyar,dosti,lamhe,aur wo jazbaat isi samay ke pahiye par tike hai,

Jo har waqt ke sath hamari chize,hamare jazbaat aur hamari kismat hame lautati rahti hai,

Chahe tum ya mai ye kisi ko nhi chorti ye aur na thamti hai,

Kudrat ka karishma ye samay nhi wo kudrat iss samay ki vani hai !!



Jab ye sab mai bolte hue ruka to 2-second ke baad hi wo bol padi.



"Kismat ne mujhse sab china hai, na maa ka pyar mila na pita ka pyar, Bachpan ki ruwashi aaj nhi thamti mere kati hui rato me,wo din wo raat jab mere papa mujhe bas padhayi aur khane se related hi bate karte the.Par ye jindagi jo inn 11 mahino me maine jee hai mine wo mere liye dil ki chhah puri hone jaisi hai aur ye pal,ye lamhe jo maine tumhare sath bitaye hai n Arush ye mai apne antim waqt me bhi kabhi nhi bhulungi bhale tum mujhe bhul jao par mai kabhi nhi."



Mai uski bato me dard ko mahsus karne ko chhah raha tha par mujhe uske jazabaat apne dil ko chirte hue lag rahe the maine kuch nhi bola uski bato par bas apni mundi uski ore ki jo mujhe dekh rahi thi.



Khair humne jyada rona dhona nhi kiya hum frank hue thode fir aur ghar laut aaye aur mai room me jake bas yahi soch raha tha ki

Pragati ne sahi me bohot kuch saha hai,haa sach me bohot kuch uska ek aur sapna tha doctor ka jo wo dil se pura karna chahti thi usne mujhe ek baar bataya bhi tha ki uske papa ka sapna tha ye ki wo doctor bane aur uska bhi lekin uss waqt usne mujhe apni mas ke bare me nhi bataya tha haa sach kahu to shock to bohot hua tha mai par apne jazbaat kholna nhi chahta tha taki wo aur udasi uske chehre par na dekh saku mai.



Ye 2-3 din baad hi pragati ke pita aagaye par unhone transfer nhi liya tha njane kyu khair aaj Pragati ka birthday tha jisse humne bohot ache se celebrate kiya jaha Pragati aaj kuch udaas to lag rahi thi parujhe mauka bilkul nhi mil raha tha usse se baat karne ke liye jispar mujhe khud par gussa aaraha tha par maine usse disturb nhi kiya wo apne pariwar me busy thi mai chup chap ghar aakr so gaya.



Subah utha mai to aaj Monday tha,hamare exams bhi ho chuke the to koi tension mujhe nhi tha.Mai casual dress me ready hua aur niche aaya hi tha ki dekha bahar shreya ke ghar ke pass car lagi hui hai maine Pragati ke pita ji ko waha shreya ke pita se baat karte dekha jo laut aaye the mujhe laga wo aaye honge car se par mai galat nikla jab maine saman ke sath tayaar Pragati ko aate dekha mai kaanp sa gaya uss waqt aisa mano dil bahar kar diya tha kisi ne mera uss waqt mai shant aur stabdh murti bana khada tha ki Pragati ki nazre mujhpar padi aur wo mere pass aate hue meri aankho me jhankte hue boli



"Arush !? Arushhh !!"



Mai hosh me aate hi bol pada



Mai:- t-tum kahi jaa r-rahi ho kya



Pragat:- haa medical college 5 years ke liye aage ki padhayi krne ke liye bataya to tha tumhe pahle hi



Mai abhi kuch kadam piche jane ko tha par maine apne dil par mano jazbato ko hi patak diya ho aisi muskan chhupate hue usse bol pada



Mai:- Congratulation !! Yaar dekh pahle hi bol de raha party chahiye mujhe doctor banne ke baad chahe kuch bhi ho mai to lekr rahunga. Dekh ye himachal hai yaha ki hawa mat bhul jana waha jaakr aur sun nhi-nhi kuch nhi bas apna khyal rakhna aur jab bhi jarurat pade to apne iss dost ko jarur yaad karna aur-aur bhul mat jana hame.



Mai muskan liye ye sab baate bol raha tha jaha meri palke bhig chuki thi aur maine usse saaf bhi kr liya tha chupke se par sayad kisi ke dil ke rukh se wo chup na paya tha wo.



Khair Pragati aur uske papa ko chorne station shreya ke papa aur mere papa gaye the,maine mana kar diya tha jane se.



Mai uske jane bhar se hi ek kamre ki kokh me band ho gaya tha.Meri jindagi bas kat rahi thi meri shanti se ya unn lamho se jo mai lekr jee raha tha par haa inn katte dino aur mahine bhar me hi mai smjh gaya tha ki mai mohabbat ke uss galib ke rup me tha jaha dard aksh ki nhi rukh se hoti thi dilo ke jazbato ki hoti thi aur unn beete lamho ki hoti thi jaha pyar ki khoj karna numayisho se jyada aasan tha.



Inn kuch mahino me maine ek baar bhi phone nhi pick kiya tha uska,haa shreya lekr aati thi call par mai baat krne se mana kar deta kuch na kuch bahane aur betuke bahano se, njane shreya bhi smjh chuki thi mai usse ignore kr raha hu par sayad mai ye jazbaat liye apne dil me tha ki kash ye waqt badh jaye aur uss samay ki drishya uske dil se jodd jaye jaha mai uske khwabon ko pura hue dekh saku uski ankho me khushi ke jazbaat baki unn gum ke jo aaj tak usne dekha tha.



Din bite mahine bite saal se saal bite 5 saal aaj pure hone jaa raha tha jaha mai aaj apne bistar par soya hua tha jaha mere room ki halat kabarkhane se kam nhi thi idhar udhar beer aur vodka ke bottle ludhake hue the.Mai inn beete salo me bewra Ashiq ya pyar ka wo piyakar nhi bana tha jo gum me beeta rahta tha hamesha na bilkul na mai ye sab bas uss samay se rubaru nahi hone ke liye pita raha tha taki wo samay meri palke,mere jazbaat aur mere dil ke uss kone ko kamjor na kar sake jis kone me aaj bhi mai uske khwabon ko apni ankho se pura hota dekhna chahta tha.



Mai bed se utha alarm bajane se aur fresh hote hi bahar khadi bike utha kar station pohocha jaha aaj wo aane ko thi.Uske aane ka samay 9:00 bahe ka tha delhi ke train se par mai bewra pagal 4:05 me pohocha hua tha ye pagal panti dil se lagi thi.



Samay wo katte 5 mint. jaise ki salo ka khatinama ho jaise,

Rukh badal gaye saalo me aise ki kuch mint. bhi meri aksh me base the aise mano saanse le raha hu mai,

Waqt ye bada lamba sa lag raha tha aaj,

Jo na badha aur na ghata tha unn 5 salo me aise,

Ki ye waqt jazbato ke khel me ghulne laga tha iss kadar,

Ki aankho ki kasti band na hoti to sayad ye budhape ka sanket hota,

Na chahte hue bhi ankhe band hogayi meri,

Jo sayad waqt bhi meri numayish jaan gaya ho jaise !!(2)



"Didi kaisi ho"

"Thik hu choti"

"Chachi kaisi ho"

"Thik hu meri bachi"

"Shreya tu kaisi hai"



"Uncle aunty kaise hai aap"

" Sab thik hai beta aapko bohot-bohot badhayi ho apki samridhi ke liye"





Pragati:- shreya ye ye A-arush kaha hai



Shreya:- hoga kahi wo bewra,usse kya pata hoga ki tu aa bhi rahi hai



Pragati:- khair chal mai usse mil lungi wahi



Aage jate hue abhi wo badhi hi thi ki tabhi uski nazar platform par side me bench par leta koi jana pahchana chehra dikha wo bhag ke pohoch padi waha aur ghutne par aakr uske chehre tham wo bol uthi



"Haye ye tera dastur tujhe kis mod pe le aaya, Ye samay ka pahiya kis hod me tujhe le chala aaya"





"Meri ankhe uski jubani,

Chahe bhi fir kyu na meri dil ki kurbani,

Aksh bhar jate hai samay ke sath,

Par wo bite lamhe khured se dete hai wo dard bhari raat !!"



Ye awaz waha gunj uthi uss fiza me jo ki mere bol the



Tabhi Pragati ne apne labo ki milavat mere lab se aise ki mano gudd ko chinni me bhigo rahi ho aur kuch seconds me hi wo labon ki bandh tuti aur dono ek sath bol uthe



**Lafz bolne ki chah thi,

Samay ne wo pahiya ghuma rakha tha,

Hamare milne ki chah bana rakhi thi uss kudrat ne,

Tabhi to samay ne hume yaha iss modd par bandh rakha tha !!**



Dono ke lab dubara judd gaye ekdusre ki chasni me.
ये आपकी दूसरी कहानी है इस कांटेस्ट में और दोनो लगभग एक ही तरह की हैं, बस आपकी पहली वाली ज्यादा क्लियर थी अपने कंसेप्ट और शब्दों में, साथ ही साथ उसमे टाइटल के साथ पूरा न्याय भी किया था, इसमें आपने शब्दों के साथ इतना खेला की कई जगह पढ़ने और समझने में उलझने पैदा हो गई। फिर भी कहानी का कंसेप्ट अच्छा था, बस थोड़ा क्लियर करके लिखने की जरूरत थी।

एक बात और,जब हीरो हीरोइन का इंतजार कर रहा था कि वो अपना लक्ष्य प्राप्त करे, और हीरो का लक्ष्य हीरोइन थी, तब भी उससे कुछ क्रिएटिव ही करवा देते, बेवड़ा बनाने की जगह, वैसे ये मेरी सोच है, और आपका या किसी और रीडर का इससे इतेफक न रखना कोई इश्यू नही है।

रेटिंग: 7/10
 
Last edited:

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
43,657
62,940
304
कहानी- आर्किटेक
रचनाकार- Werewolf महोदय


बहुत ही बेहतरीन और शानदार प्रस्तुति। कहानी डरावनी भी है और सस्पेन्स से भरी हुई भी है। हर बढ़ते समय के साथ शरीर के रोंगटे खड़े हो गए। बहुत बहुत मुश्किल होता है सीमित शब्दों में भययुक्त, इमोशनल, सस्पेन्स और कॉमेडी सभी को एक कहानी में पिरोना, लेकिन रचनाकार ने अपनी इस सीमित शब्दों की कहानी में सभी भावों को अच्छे से पिरोया है।

समय एक वास्तुकार था जिसका पेशा ठेकेदार की मदद से पुराने और जीर्ण हो चुके मकानों को नया रूप देना, मगर उसे कहां पता था कि एक रात उसकी पूरी ज़िंदगी बदल देगी।

इंसान की आदत होती है कि वो अक्सर उसी चीज़ के पीछे भागता है जिससे उसका नुकसान होने की संभावना ज्यादा होती है। अगर साल भर पहले वो उस रात साये के पीछे नहीं भगता, उस भूतिया मकान में नहीं आता, उसके बारे में जानने की जिज्ञासा नहीं दिखता तो शायद उसके साथ साल भर बाद जो हुआ वो सब नहीं होता।

ऐसा लग रहा है कि महिला ने साल भर बाद समय से अपनी मौत का बदला लिया। कहीं न कहीं समय उसकी मौत का जिम्मेदार था। भले ही समय की अनजानी गलती में उसकी मौत हुई थी, कहते हैं कि जब किसी की असमय मौत होती है तो उसकी आत्मा बदला लेने के लिए भटकती रहती है। साल भर बाद समय से उसने उसी प्रकार बदला लिया जिस तरह उसकी मौत हुई थी।

कहानी में माँ के इमोशन को अच्छा दिखाया गया है। बीच मे हास्य का भी प्रयोग किया गया है डरावना परिवेश विकसित करने के लिए रात में बादलों की गर्जना और भारी बारिश का रचनाकार ने सफलता से इस्तेमाल किया है।

 

Werewolf

ℌ𝔲𝔫𝔱𝔢𝔯
Supreme
16,218
109,561
259
कहानी- आर्किटेक
रचनाकार- Werewolf महोदय


बहुत ही बेहतरीन और शानदार प्रस्तुति। कहानी डरावनी भी है और सस्पेन्स से भरी हुई भी है। हर बढ़ते समय के साथ शरीर के रोंगटे खड़े हो गए। बहुत बहुत मुश्किल होता है सीमित शब्दों में भययुक्त, इमोशनल, सस्पेन्स और कॉमेडी सभी को एक कहानी में पिरोना, लेकिन रचनाकार ने अपनी इस सीमित शब्दों की कहानी में सभी भावों को अच्छे से पिरोया है।

समय एक वास्तुकार था जिसका पेशा ठेकेदार की मदद से पुराने और जीर्ण हो चुके मकानों को नया रूप देना, मगर उसे कहां पता था कि एक रात उसकी पूरी ज़िंदगी बदल देगी।

इंसान की आदत होती है कि वो अक्सर उसी चीज़ के पीछे भागता है जिससे उसका नुकसान होने की संभावना ज्यादा होती है। अगर साल भर पहले वो उस रात साये के पीछे नहीं भगता, उस भूतिया मकान में नहीं आता, उसके बारे में जानने की जिज्ञासा नहीं दिखता तो शायद उसके साथ साल भर बाद जो हुआ वो सब नहीं होता।

ऐसा लग रहा है कि महिला ने साल भर बाद समय से अपनी मौत का बदला लिया। कहीं न कहीं समय उसकी मौत का जिम्मेदार था। भले ही समय की अनजानी गलती में उसकी मौत हुई थी, कहते हैं कि जब किसी की असमय मौत होती है तो उसकी आत्मा बदला लेने के लिए भटकती रहती है। साल भर बाद समय से उसने उसी प्रकार बदला लिया जिस तरह उसकी मौत हुई थी।

कहानी में माँ के इमोशन को अच्छा दिखाया गया है। बीच मे हास्य का भी प्रयोग किया गया है डरावना परिवेश विकसित करने के लिए रात में बादलों की गर्जना और भारी बारिश का रचनाकार ने सफलता से इस्तेमाल किया है।

जी बहुत बहुत धन्यवाद। ✨

आपने सही कहा हैं। कहानी के ज़रिए भय फैलाना मुश्किल होता हैं। व्यक्ति हॉरर लिख लेता हैं पर ज़रूरी नही उसकी रचना आपके रौंगटे खड़े करने में सफल हो। ये पहला प्रयास था मेरा हॉरर genre में भी और कॉन्टेस्ट की लीगल स्टोरी पोस्ट करने में भी। आपको पसंद आई, ये जान के खुशी हुई।

एक बार पुनः साधुवाद। ✨
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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41,531
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शुरुआत : एक अंत की (एक इंसेस्ट स्टोरी)

रेखा एक 38 साल की शादीशुदा महिला, पेशे से वकील अपने इक्लौते 18 साल के बेटे मनिश के साथ रोहतक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट
परिसर में दाखिल हुयी और कोर्ट में बने चैंबर में जाकर उसने अपने बदन पर काला कोट डाला और अपने हाथो में case फाइल लेकर कोर्ट रूम की ओर जाने लगी। अगली सुनवाई मनीष की ही थी।


कोर्ट रूम के बाहर एक लड़की और एक आदमी वकील (जैन साहब) के साथ खड़ी थी।


अंदर से एक आदमी आवाज लगाता है.... Case no. 420/2022 मनीष बनाम मानशी हाजिर हो।


जज साहब -- शुरु कीजिये.....??


वकील (जैन साहब) -- जनाब मासूम सा दिखने वाला कटघरे में खड़ा लड़का मनीश जिसने भोली भाली लड़की को अपने प्रेम जाल में फँसाया, उसे होटल में बुलाकर उसके साथ रेप किया, और उसकी नंगी फिल्म बनाकर उसे बदनाम किया। मेरी आपसे गुजारिश है इसको कड़ी से कड़ी सजा दी जाये।


रेखा खामोश थी, उसके बेटे पर लगाई गयी धारा संगीन थी सजा होनी निश्चित थी। उसकी नजरे कभी कटघरे में खड़े अपने बेटे के ऊपर कभी कोर्ट रूम के दरवाजे पर जा रही थी, उसे किसी का इंतजार था, किसी सबूत का जो उसके बेटे को इंसाफ दिला सके।


जज-- रेखा जी आपको कुछ कहना है??
वकील (जैन साहब)-- चुटकी लेते हुए बोले जनाब रेखा जी क्या बोलेगी... वो तो खुद आपके फैसले का इंतजार कर रही है।


तभी रेखा के असिटेंट एडवोकेट गुप्ता एक लिफ़ाफ़े में कुछ एविडेंस लेकर रेखा के पास आये और उन्हे देते हुए उनके कान में कुछ खुसर फुसर करने लगे।


तत्पश्चात रेखा -- जनाब मै उस घटना असली वीडियो फोर्नसिक रिपोर्ट के साथ आपको एक बार देखने का आग्रह करती हूँ।
जज-- परमिशन ग्रांटेड।


रेखा अपने सगे बेटे का संभोगरत वीडियो लैपटॉप में देखने लगी। रेखा खड़ी होकर के वीडियो के दृश्य को बड़े ही रोमांच के साथ निहार रही थी एक एक दृश्य उसे कामुकता का एहसास करा रहा था। लेकिन जैसे ही उसकी नजर मनीष के कमर के नीचे वाले हिस्से पर गई तो वहां का नजारा देखकर वह दंग रह गई उसके बदन में एकाएक उत्तेजना का संचार बड़ी तेजी से होने लगा। उसके मुंह से दबी आवाज में सिसकारी के साथ बस इतना ही निकल पाया।


बाप रे बाप,,,,,,,,,


( रेखा के मुंह से यह अचानक निकला था उसे खुद समझ में नहीं आया कि उसके मुंह से आखिर ऐसा क्यों निकल गया)


वीडियो में उसका बेटा मनीश कमरे के बेड पर नंगा लेट गया, और एक 18-19 साला निहायत ही खूबसूरत लड़की उसके लंड को अपनी चूत में डाले ज़ोर-ज़ोर से ऊपर नीचे हो कर अपनी फुद्दि की प्यास बुझा रही थी।

लड़की मुंह से तो सिसकारीयो की जैसे की फुहार छूट रही थी,,,,, ससससहहहहह,,,,, आााहहहहहह,,,,,, मेरे राजा और जोर जोर से चोदो मुझे,,,,, अपने लंड को मेरी बुर में पेलो,,,,आहहहहहहह,,,,,


रेखा यह मंज़र देख कर समझ गयी कि उसका शिकार कमरे के अंदर मौजूद है।
वीडियो बंद कर रेखा जिरह के लिए अब पूरी तरह से तैयार थी।


रेखा--- जनाब इस वीडियो में संभोग करती हुयी लड़की की सिसकारियो से साफ पता चलता है, कि ये संभोग जोर जबरदस्ती से नही बल्कि दोनों की मर्जी से हुआ है, संभोगरत् लड़की संभोग के दोरान परमानंद से गुजरती है तभी ऐसी आवाज निकलती है। कामोतजना जब सर चढ़ कर बोलती है, तभी एक औरत ऐसी आवाजे निकालती है।


वीडियो में लड़की साफ साफ कह रही है......मेरे राजा और जोर जोर से चोदो मुझे,,,,, आहहहह जोर से,,,,,,


ये कोई जबरदस्ती की आवाज नही है, बल्कि ये मस्ती की आवाजें है, ये हर स्त्री/औरत का वो मीठा दर्द है जिसे पाने के लिए वो हर रात तरसती है। ऐसे लिंग का स्पर्श हर औरत के नसीब में नही होता हैं, (आखिर लाइन बोलते हुए रेखा थोड़ी झिझकी और मेज पर से बोतल उठा कर पानी पीने लगी।)


"कटघरे में खड़ा मनीष अपनी मम्मी की बातें कोई जानबूझकर नही सुन रहा था वो तो अपनी पेशी कर रहा था मगर कुछ अल्फ़ाज़ ऐसे होते हैं कि आदमी चाह कर भी उन्हे नज़रअंदाज़ नही कर सकता, खास कर अगर वो अल्फ़ाज़ अपनी सग़ी माँ के मुँह से सुन रहा हो तो. "ये हर स्त्री/औरत का वो मीठा दर्द है जिसे पाने के लिए वो हर रात तरसती है। ऐसे लिंग का स्पर्श हर औरत के नसीब में नही होता हैं," ऐसे लफ़्ज थे जो इस ओर इशारा कर रहे थे कि उसकी मम्मी के पास भी एक चूत है जो लंड के लिए तड़प रही है. बस..


जज-- रेखा जी आप ठीक है... तो शुरु कीजिये।
रेखा-- जी जनाब. "इस दर्द का मजा मर्द के नसीब में नही...." हा कुछ मर्दो (गे) को छोड़कर क्यो जैन साहब सही कहा ना... रेखा जैन वकील को व्यंग भरा कटाक्ष कर हस्ती हुई बोली। हाहा हाहा हाहा


दूसरा आरोप जो ये वीडियो बनाने का लगाया गया है वो भी बिल्कुल गलत है क्योकि बिस्तर पर लड़के और लड़की के मोबाइल रखे है तो वीडियो किसके कैमरे से बनाया गया और पूरे वीडियो में हर दृश्य में लड़की कैमरे की ओर देखकर कुछ इशारे कर रही है, जिससे साफ पता चलता है कि वीडियो बनाकर लड़के को बदनाम करने वाला शक्स और इस लड़की का आपस में कोई कनेशन है, और जिसे मेरे काबिल दोस्त जैन साहब रेप कह रहे है वो रेप नही हनी ट्रैप (पैसे उगाही का धंधा) है।
That's solve.


जज--- हा जी जैन साहब आपको कुछ कहना है....???
जैन साहब -- बस एक लाइन जनाब
"" मां से बड़ा योध्दा दुनिया में कोई नही होता ""


जज साहब--- आखिरी फैसला पढ़ते हुए "" ये कोर्ट आदेश देती है कि मनीष पर लागाये गये सारे आरोप बेबुनियाद है, और उसके लिए वो मान हानि का case दाखिल कर सकता है।


मानशी जो case की फरियादी है कोर्ट उसे झूठे आरोप लगाने और हनी ट्रैप में फंसाने के लिए दस हजार का जुर्माना और एक साल की सजा देती।


होटल शेल्टर जिसमें ये वीडियो बनाया गया उसके खिलाफ जाँच के आदेश देती हैं।


रेखा अपने बेटे के साथ खुशी खुशी कोर्ट रूम से निकलती हुई अचानक रुक गई और मानशी के पास जाकर बोली...


"जिस्म के सौदे में अक्सर सजाये मिलती है"

इधर जैन साहब रेखा के पास आकर...
बधाई हो रेखा जी मै आपको एक सलाह देता हूँ क्योकि आप अपने क्लाइंट कि माँ भी है तो उस पर थोड़ा ध्यान दीजिये पढाई की उम्र में चुदाई करेगा तो दोबारा यहाँ आना पड़ेगा जैन साहब रेखा को व्यंग मारते हुए हँसकर बोले...... हाहा हाहहाहा


कुछ देर बाद दोनों माँ बेटे पार्किंग परिसर में खड़ी मोटर साइकिल के पास पहुँच गए।


मनीष ने ज्यों ही अपना मोटर साइकल को स्टार्ट किया। तो उस की मम्मी रेखा खामोशी से अपने बेटे के पीछे उस की मोटर साइकल पर आन बैठी।


रेखा ज्यों ही मोटर साइकल पर बैठी। तो उस का एक पावं तो मोटर साइकल के पायदान (फुट रेस्ट) पर रख लिया और दूसरा पावं हवा में झूलने लगा। और अपने हाथ को अपने बेटे की कमर में लपेट दिया।
इस तरह अपना हाथ लपेटने से रेखा का जिस्म पीछे से अपने बेटे की कमर के साथ चिपकता चला गया।


जिस की वजह से रेखा के तरबूज़ की तरह बड़े बड़े मम्मे उस के बेटे की पीठ से लग कर चिपक गये।


"उफफफफफफफफफफ्फ़ मेरी मम्मी का बदन कितना नरम है और उन के जिस्म में
जिस्म में कितनी गर्मी भरी हुई है" ज्यों ही रेखा पीछे से अपने जवान बेटे से टकराई। तो मनीष के दिल में पहली बार अपनी मम्मी के मुतलक इस तरह की बात आई।


"मनीष कुछ तो शरम कर ये तुम्हारी सग़ी मम्मी हैं " दूसरे ही लम्हे मनीष की इस गंदी सोच पर उस के ज़मीर ने उसे शर्मिंदा किया।

आम हालत में मनीष अपनी मम्मी के लिए इस तरह की बात अपने ज़हन में लाने की सोच भी नही सकता था।

मगर कुछ देर पहले अदालत में कही हुई अपनी अम्मी की बात ने उस के लंड को उस की पॅंट में खड़ा कर दिया था।

उधर रेखा भी ज्यों ही अपने जवान बेटे की कमर में अपना हाथ डाल उस के साथ पीछे से चिपकी। तो उसे भी अपने बेटे के जिस्म की मज़बूती और उस के जिस्म में मौजूद जवानी की गर्मी का फॉरन ही अहसास हो गया। जिस की वजह से रेखा की चूत में अपने बेटे के लंड की लगी हुई आग फिर से सुलगने लगी।

अभी दोनो माँ बेटा एक दूसरे के जज़्बात से बे खबर हो कर अपने अपने जिस्मो की आग को संभालने की ना काम कोशिश कर रहे थे। कि इतनी देर में वो अपनी कॉलोनी के अंदर दाखिल हो गये।

कॉलोनी की सेक्यूरिटी गेट से रेखा के घर का फासला कुछ ज़्यादा तो नही था। मगर सोसाइटी की रोड्स पर जगह जगह बने हुए स्पीड ब्रेकर्स की वजह से मनीष को अपनी मोटर साइकल बहुत ही आहिस्ता स्पीड में चलानी पड़ रही थी।

मनीष अभी अपनी गली से कुछ दूर ही था। कि वो रोड पर माजूद आख़िरी स्पीड ब्रेक पर ध्यान नही दे पाया।

बे शक मनीष की मोटर साइकल की स्पीड बहुत कम थी। लेकिन इस के बावजूद मोटरो साइकल को एक झटका लगा।

इस अचानक झटके की वजह से अपने बेटे के पीछे सीट पर बैठी रेखा एक दम से अनबॅलेन्स हुई। तो मनीष की कमर के गिर्द लिपटा हुआ रेखा का हाथ एक दम से स्लिप हो हर मनीष की पॅंट के अंदर उस की टाँगों के दरमियाँ, मनीष के अभी तक सख़्त और खड़े हुए लंड पर आ पहुँचा।

यूँ अचानक अपने बेटे के लंड से अपना हाथ टच करते ही रेखा के होश उड़ गये । और उस ने एक दम से अपने हाथ को पीछे खैंच लिया।

हालाकी रेखा के हाथ ने अपने बेटे के जवान लंड को एक ही सेकेंड के लिए यूँ पहली बार छुआ था।

मगर रेखा के तजुर्बेकार हाथों ने इस एक ही लम्हे में अपने बेटे के लंड की सख्ती और गर्मी का ब खूबी अंदाज़ा लगा लिया था।

उधर दूसरी तरफ अपनी अम्मी के हाथ का आभास अपने मोटे और बड़े लंड पर महसूस करते ही मनीष की तो बोलती ही जैसे एक दम से बंद हो गई। और उस ने भी घबरा कर एक दम से मोटर साइकल का आक्सेलरेटर दबा दिया।

मनीष का घर चूँकि अगली ही गली में था। इसीलिए दूसरे ही लम्हे दोनो माँ बेटा अपने घर के गेट तक पहुँच गये।

रेखा अपने बेटे के लंड से अपने हाथ के यूँ अचानक छू जाने से इतनी शर्मिंदा हुई। कि उस में अपने बेटे से आँख मिलाने की हिम्मत ना रही। और ज्यों ही मनीष ने घर के बाहर मोटर साइकल को रोका। तो रेखा जल्दी से सीट से उतर कर घर के गेट की तरफ चल पड़ी।

रात के 10:30 बज रहे थे रेखा डाइनिंग टेबल पर खाना लगा कर पत्नी धर्म निभाते हुए अपने पति संजय (पुलिस इंस्पेक्टर) का इंतजार कर रही थी,,, मनीष खाना खाकर अपने रुम में जा चुका था।

रेखा को संजय का इंतजार करते करते 11:00 बज गए उसे नींद की झपकी भी आ रही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी,,,,,, रेखा उठकर दरवाजा खोली तो संजय ही था,,,,, रेखा दरवाजे को बंद करते हुए बोली,,,,,,,

आप हाथ मुंह धो लीजिए मैं खाना लगा चुकी हूं जल्दी से खाना खा लीजीए,,,,,,

लेकिन संजय रेखा को ताना मारते हुए आखिर बरी (आजाद) करवा ही दिया अपने बलात्कारी बेटे को जिसने पूरे खानदान की इज्जत मिट्टी में मिला दी।

खाना लग गया है, रेखा संजय की बात काटते हुए बोली।

देखो मैं थक चुका हूं और वैसे भी मैं बाहर से खाना खाकर ही आया हूं मुझे भूख नहीं है तुम खा लो। रेखा की आंख भर आई अपने पति के द्वारा इस तरह के व्यवहार उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी,,, और वह अपने पति को कमरे की तरफ जाते हुए देखती रह गई,,,,,, उसकी भूख मर चुकी थी,,,, वह भी बिना कुछ खाए थोड़ी देर डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठी रहीं और बैठे-बैठे अपनी किस्मत को कोसते रहि। वह मन ही मन हे भगवान मैं तंग आ गई हूं अपनी जिंदगी से जल्द से जल्द इसका कोई उपाय दिखाओ भगवान् या तो मुझे अपने पास बुला लो,,,,,,

थोड़ी देर बाद अपने आप को शांत करके वह अपने कमरे की तरफ जाने लगी,,,, इतना कुछ होने के बावजूद भी मन में ढ़ेर सारी आशाएं लेकर के वह अपने कमरे में दाखिल हुई,,,

रेखा कमरे का दरवाजा बंद करके धीरे धीरे चलते हुए आईने के सामने जाकर खड़ी हो गई,, कुछ पल के लिए अपने रुप को निहारने लगी, आईना ऐसी जगह पे लगा हुआ था कि जहां से बिस्तर पर बैठा हुआ इंसान आईने में नजर आता था और बिस्तर पर बैठ कर भी आईने में सब कुछ देख सकता था।

रेखा जानबूझकर अपनी कलाइयों में पहनी हुई रंग बिरंगी चूड़ियां खनका रही थी कि शायद चूड़ियों की खनखनाहट से संजय का ध्यान इधर हो,,, और सच में ऐसा हुआ अभी संजय का ध्यान माफियाओं की फाइल से हटकर एक पल के लिए आईने पर चला गया, संजय की नजर आईने पर देखते ही रेखा एक पल भी गंवाएं बिना वह धीरे-धीरे अपने साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट को खोलने लगी,, फिर अपने दोनों हाथों को पीछे ले जाकर अपनी ब्रा की हुक को खोलने लगी,,,, और अगले ही पल उसकी ब्रा भी उसकी दोनों चुचियों को आजाद करते हुए टेबल पर पड़ी थी।

संजय को रिझाने के लिए वह अपने दोनों हाथों से एक बार अपनी बड़ी बड़ी छातियों को हथेली में भरकर हल्के से दबाई और फिर छोड़ दी। संस्कारी रेखा की यह हरकत बड़ी ही कामुक थी और इसका असर संजय पर भी हुआ वह एकटक अपनी नजरें आईने पर गड़ाए हुए था।

रेखा का दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था। उत्तेजना और उन्माद के मारे उसका गला सूख रहा था। अगले ही पल रेखा ने धीरे-धीरे पैंटी को घुटनों से नीचे सरका दी,,,, और पैरों से बाहर निकाल दी। अब रेखा के बदन पर कपड़े का एक रेशा भी नहीं था वह पूरी तरह से निर्वस्त्र हो चुकी थी। पूरी तरह से नंगी,, ट्यूबलाइट की दुधीया प्रकाश में उसका गोरा बदन और भी ज्यादा निखरकर सामने आ रहा था जिसकी चकाचौंध में संजय की आंखें चौंधिया जा रही थी।

आज उसे लगने लगा था कि दबी हुई प्यास आज जरूर बुझेगी,,,,, इसलिए वह मदमस्त अंगड़ाई लेते हुए बालों के जुड़े को खोल दी जिससे उसके रेशमी काले घने बाल खुलकर हवा में लहराने लगे। खुले बालों की वजह से उसकी खूबसूरती में चार चांद लग रहे थे।

आईने में अपने रूप और नंगे बदन की खूबसूरती को देखकर खुद से रेखा शर्मा गयी और ज्यादा देर तक इस अवस्था में खड़ी ना रह सकी,,,, और वह बिस्तर पर जाकर करवट लेकर के लेट गई। रेखा की पीठ संजय की तरफ थी। और वह इंतजार कर रही थी कि संजय कब ऊसके बदन को स्पर्श करता है। और इसी उम्मीद की वजह से उसके बदन में अजीब प्रकार की गुदगुदी हो रही थी,,,,।

रेखा की नंगी जांघ को देख कर संजय से रहा नहीं गया और उसकी जांघों को फैला कर बिना प्यार कीए ही अपने खड़े लंड को सीधे रेखा की बुर पर रखकर अंदर ही डाल दिया। संजय रेखा की प्यासी और दहकती हुई गरम बुर की दीवारों की रगड़ को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पाया और एक बार फिर से अपना हथियार नीचे रख दिया।

रेखा के अरमान की स्याही जो की बुर से बह रही थी वह सुख चुकी थी,,, इसलिए संजय की इस हरकत की वजह से इस बार भी बिना कुछ बोले आंखों से आंसू बहाते हुए और अपने किस्मत को कोसते हुए सो गयी।

अगली सुबह रेखा जल्दी से बिस्तर पर से उठ कर सीधे बाथरूम में चली गई वहां जाकर के ठंडे पानी से स्नान करके अपने मन को कुछ हद तक हल्का कर ली ।
नहाने के तुरंत बाद संजय को रसोई घर से बाहर आता हुआ दिखा तो रेखा उससे बोली।

इस तरह से आप अपने हाथ से लेकर के खाते हैं अच्छा नहीं लगता आखिर मेरे होते हुए आप अपने हाथ से काम करें।

हा,,,,,, हां,,,,,,, ठीक है मुझे जल्दी जाना था तो,,,,,, इसलिए अपने हाथ से ले लिया।

ऐसा आपको क्या जरूरी काम है,रेखा बोली।

देखो क्या जरूरी है क्या नहीं जरूरी है मैं तुम्हें बताना उचित नहीं समझता और दो दिन के लिए मै बाहर जा रहा हूँ, संजय शर्ट की बटन को बंद करते हुए बोला, रेखा उदास होकर के रसोईघर में चली गई और संजय कोतवाली के लिए निकल गया।


"खूबसूरत औरत सारे मर्दों को इग्नोर करके
अपने पसंदीदा मर्द से इग्नोर होती है"


इधर जब मनीष ने रेखा को रसोई में देखा तो उसे उसकी उपस्थिती में बेचैनी सी महसूस होने लगी. उसे थोड़ा अपराध बोध भी महसूस हो रहा था, कि उसका बेटा उसकी अंतरंग दूबिधा को जान गया था और उसे इस बात की कोई जानकारी नही थी. वो शायद इसे सही ढंग से बता तो नही सकता मगर उसके अंदर कुछ अहसास जनम लेने लग थे.


मनीश को अपनी मम्मी के ख़याल बैचैन कर रहे थे और वो ठीक से कह नही सकता कि उसे किस बात से ज़यादा परेशानी हो रही थी, इस बात से कि मम्मी को मात्र एक मम्मी की तरह देखने की वजाय एक सुंदर, कामनीय नारी के रूप में देखने का बदलाव उसके लिए अप्रत्याशित था . ऐसा लगता था जैसे एक परदा उठ गया था और जहाँ पहले एक धुन्ध था वहाँ अब वो एक औरत की तस्वीर सॉफ सॉफ देख सकता था.


मनीष को लग रहा था उसकी माँ की कुछ इच्छाएँ मन की गहराइयों में कहीं दबी हुई थीं जो कोर्ट मे यह सुनने के बाद उभर कर सामने आ गयी थी कि "ऐसे लंड का स्पर्श हर औरत के नसीब में नही होता". मम्मी जैसे बदल कर कोई और हो गयी थी । जहाँ पहले उसे उसके मम्मो और उसकी जाँघो के जोड़ पर देखने से अपराधबोध, झिजक महसूस होती थी, अब आज गुजर रहे दिन के साथ वो उन्हे आसानी से बिना किसी झिजक के देखने लगा था बल्कि जो भी वो देखता उसकी अपने मन में खूब जम कर उसकी तारीफ भी करता. उसे नही मालूम उसकी मम्मी ने इस बदलाव पर कोई ध्यान दिया था या नही।


जेठ का महिना रात के 11 का वक्त था मनीष टीवी देख रहा था, उसे मम्मी के कदमो की आहट सुनाई दी. उस समय उसे सोते होना चाहिए था मगर वो जाग रही थी. वो ड्रॉयिंग रूम में उसके पास आई. उसके हाथ में जूस का ग्लास था.


"मैं भी तुम्हारे साथ टीवी देखूँगी?" वो छोटे सोफे पर बैठ गयी जो बड़े सोफे से नब्बे डिग्री के कोने पर था जिस पे मनीष बैठा हुआ था. रेखा नाइटी पहनी हुई थी जिसका मतलब था वो सोई थी मगर फिर उठ गई थी.


"नींद नही आ रही" मनीष ने पूछा. उसके दिमाग़ में उसकी मम्मी की अदालत वाली बातचीत गूँज उठी जिसमे उसने कहा था कि
"ऐसे लंड का स्पर्श हर औरत के नसीब में नही होता". मनीष सोचने लगा क्या इस समय भी उसकी मम्मी की वो ही हालत है, कि शायद वो काम की आग यानी कामाग्नी में जल रही है और उसे नींद नही आ रही है, इसीलिए वो टीवी देखने आई है. इस बात का एहसास होने पर कि मैं अती कामोत्तेजित नारी के साथ हूँ उसका बदन सिहर उठा.


रेखा वहाँ बैठकर आराम से जूस पीने लगी , उसे देखकर लगता था जैसे उसे कोई जल्दबाज़ी नही थी, जूस ख़तम करके वापस अपने बेडरूम में जाने की. जब उसका ध्यान टीवी की ओर था तो मनीष चोरी चोरी उसके बदन का मुआइना कर रहा था. उसके मोटे और ठोस मम्मों की ओर मनीष का ध्यान पहले ही जा चुका था मगर इस बार उसने गौर किया उसकी मम्मी की टाँगे भी बेहद खूबसूरत थी. सोफे पे बैठने से उसकी नाइटी थोड़ी उपर उठ गयी थी और उसके घुटनो से थोड़ा उपर तक उसकी जाँघो को ढांप रही थी.


शायद रात बहुत गुज़र चुकी थी, या टीवी पर आधी रात को विद्या बालन के दिलकश जलवे देखने का असर था, मगर मनीष को माँ की जांघे बहुत प्यारी लग रहीं थी. बल्कि सही लफ़्ज़ों में बहुत सेक्सी लग रही थी. सेक्सी, यही वो लफ़्ज था जो उसके दिमाग़ में गूंजा था जब वो दोनो टीवी देख रहे थे या टीवी देखने का नाटक कर रहे थे.


असलियत में उसकी मम्मी का यह ख़याल उसके दिमाग़ में घूम रहा था कि वो इस समय शायद वो बहुत कामोत्तेजित है.


रेखा काफ़ी समय वहाँ बैठी रही, अंत में बोलते हुए उठ खड़ी हुई "ओफफ्फ़! रात बहुत गुज़र गयी है. मैं अब सोने जा रही हूँ"


मनीष कुछ नही बोला. क्योंकि उसके दिमाग़ में रेखा के कामुक अंगो की धुंधली सी तस्वीरें उभर रही थीं. वो एक हल्का सा अच्छी महक वाला पर्फ्यूम डाले हुए थी जिसने मनीष की दिशा, दशा और भी खराब कर दी. वो उत्तेजित होने लगा था.


वो उसे मूड कर रूम की ओर जाते देखता रहा. उसका सिल्की, सॉफ्ट नाइट्गाउन उसके बदन के हर कटाव हर मोड़ हर गोलाई का अनुसरण कर रहा था. वो उसकी गान्ड के उभार और ढलान से चिपका हुआ उसके चुतड़ों के बीच की खाई में हल्का सा धंसा हुआ था.


"मम्मी कितनी सुंदर है, कितनी सेक्सी है" वो खुद से दोहराता जा रहा था. मगर उसकी सुंदरता किस काम की! वो आकर्षक और कामनीय नारी हर रात मेरे पापा के पास उनके बेड पर होती थी मगर फिर भी उनके अंदर वो इच्छा नही होती थी कि उस कामोत्तेजित नारी से कुछ करें. उसे पापा के इस रवैये पर वाकाई में बहुत हैरत हो रही थी.


मनीष को इस बात पर भी ताज्जुब हो रहा था कि मम्मी अचानक से मुझे इतनी सुंदर और आकर्षक क्यों लगने लगी थी. वैसे ये इतना भी अचानक से नही था मगर यकायक मम्मी मेरे लिए इतनी खूबसूरत, इतनी कामनीय हो गयी थी इस बात का कुछ मतलब तो निकलता था. क्यों मुझे वो इतनी आकर्षक और सेक्सी लगने लगी थी? मुझे एहसास था कि इस सबकी शुरुआत मुझे मम्मी की अपूर्ण जिस्मानी ख्वाहिशों की जानकारी होने के बाद हुई थी, लेकिन फिर भी वो मेरी मम्मी थी और मैं उसका बेटा और एक बेटा होने के नाते मेरे लिए उन बातों का ज़्यादा मतलब नही होना चाहिए था. मम्मी की हसरतें किसी और के लिए थीं, मेरे लिए नही, मेरे लिए बिल्कुल भी नही.


मगर फिर वो मम्मी की ख्वाहिश क्यों कर रहा था? क्या वाकाई वो मेरी खावहिश बन गयी थी? उसके पास किसी सवाल का जवाब नही था. यह बात अलग है कि वो कभी कभी बहुत उत्तेजित हो जाती थी और यह बात कि उसकी जिस्मानी हसरतें पूरी नही होती थीं,

इसी बात ने मम्मी के प्रति मनीष के अंदर कुछ एहसास जगा दिए थे. यह बात कि वो चुदवाने के लिए तरसती है, मगर उसका पिता उसे चोदता नही है, इस बात से मनीष के दिमाग़ में यह विचार आने लगा कि शायद इसमे मैं उसकी कुछ मदद कर सकता था. मगर हमारा रिश्ता रास्ते में एक बहुत बड़ी बाधा थी, इसलिए वास्तव में उसके साथ कुछ कर पाने की संभावना उसके लिए ना के बराबार ही थी. मगर दिमाग़ के किसी कोने में यह विचार ज़रूर जनम ले चुका था कि कोशिस करने में कोई हर्ज नही है. उस संभावना ने एक मर्द होने के नाते मम्मी के लिए उसके जज़्बातों को और भी मज़बूत कर दिया था चाहे वो संभावना ना के बराबर थी.

वहाँ कुछ देर खड़ा रहने के पश्चात मनीष अपने कमरे में चला गया. बत्ती बंद की और चादर लेकर बेड पर सोने की कोशिश में करवटें बदलने लगा. उसकी आँखो मैं नींद का कोई नामोनिशान नही था मगर वो जागना भी नही चाहता था.

उस वक़्त रात काफ़ी गुज़र चुकी होगी जब मनीष ने दरवाजे पर हल्की सी दस्तक सुनी. पहले पहल तो उसने ध्यान नही दिया, मगर तीसरी बार दस्तक होने पर उसे जबाब देना पड़ा. उसे नही मालूम था उसे कमरे में अंधेरा ही रहने देना चाहिए या बेड के साथ लगे साइड लंप को जला देना चाहिए. वो उठ गया और बोला, "हां मम्मी, आ जाओ"

रेखा ने धीरे से दरवाजा खोला और धीरे से फुसफसाई " अभी तक जाग रहे हो?"

"हां मम्मी, मैं जाग रहा हूँ. अंदर आ जाओ" उसे लगा उन हालातों में लाइट्स बंद रखना मुनासिब नही था. इसीलिए उसने बेड की साइड स्टॅंड की लाइट जला दी.

रेखा एक गाउन पहने थी जो उसे सर से पाँव तक ढके हुए था--- शायद मनीष के लिए उसमे एक गेहन इशारा, एक ज़ोरदार संदेश छिपा हुया था.

रेखा ने कंप्यूटर वाली कुर्सी ली और उस पर थोड़े वक़्त के लिए बैठ गयी. उसकी नज़रें उसके पाँवो पर जमी हुई थी, वो उन अल्फाज़ों को ढूँढने का प्रयास कर रही थी जिनसे वो अपनी बात की शुरूआर् कर सकती. मनीष चुपचाप उसे देखे जा रहा था, इस विचार से ख़ौफज़दा कि वो मुझे क्या बताने आई है..?

वो खामोशी आसेहनीय थी.

अंततः, बहुत लंबे समय बाद, मनीष ने खांस कर अपना गला सॉफ किया और बोला : "मम्मी क्या तुम मुझसे नाराज़ हो?"

रेखा असल में उसके सवाल से थोड़ा हैरत में पड़ गयी थी मगर जवाब देने से पहले वो सोचने के लिए एक पल रुकी.

आख़िरकार वो बोली : "नाराज़? नही मैं तुमसे बिल्कुल भी नाराज़ नही हूँ" इसके साथ ही उसने यह भी जोड़ दिया "भला मैं तुमसे नाराज़ क्यों होउँगी ?"

"मुझे लगा, मुझे लगा शायद .........." मनीष ने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया. वो मम्मी की परेशानी की वजह समझ गया था. उनके मन मैं ज़रूर कुछ और भी था और वो जानना चाहता था कि वो क्या था.

"शायद क्या .....?" रेखा ने उसे उकसाया.

वो दूबिधा में था. उसे अच्छी तरह से मालूम था वो किस बारे में बात कर रही है मगर वो मम्मी के मुख से सुनना चाहता था कि उसका इशारा किस ओर है.

खामोशी के वो कुछ पल कुछ घंटो के बराबर थे, रेखा ने अपना चेहरा उपर उठाया और मनीष की ओर देखा; “क्या यह संभव है कि तुम वाकाई में नही जानते मैं किस बारे में बात कर रही हूँ?!” उसकी आँखे में बहुत गंभीरता थी. बल्कि उसकी आँखो मैं एक अंजना डर भी था कि वो उस बात को बहुत बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रही है,

जबकि मनीष इस बात से अंजान था दूसरे लफ़्ज़ों में कहिए तो, वो उस मुद्दे को तूल दे रही थी जिसे छेड़ने की उसे कोई आवश्यकता नही थी. उसे अपनी सांसो पर काबू रखने में दिक्कत हो रही थी.

मनीष उस सवाल का जवाब नही देना चाहता था. मगर अब जब मम्मी ने सवाल पूछा था तो उसे जवाब देना ही था. “मैं जानता हूँ तुम किस बारे में बात कर रही हो.” उसने बिना कुछ और जोड़े बात को वहीं तक सीमित रखा.

रेखा चुपचाप बैठी थी, बॅस सोचती जा रही थी. उसके माथे की गहरी शिकन बता रही थी कि वो कितनी गहराई से सोच रही थी. वो किसी विचार को जाँच रही थी मगर उसे कह नही पा रही थी. वो उसे कहने के सही लफ़्ज़ों को ढूँढने की कोशिश कर रही थी. आख़िरकार, उसने एक गहरी साँस ली ताकि अपने दिल की धड़कनो को काबू कर सके और चेहरे पर अपार गंभीरता लिए पूछा: “तो बताओ मैं किस बारे में बात कर रही थी?”


उसने सीधे सीधे मनीष को मौका दिया था अब वक़्त आ गया था कि जो भी चल रहा था उस पर खुल कर बात की जाए क्योंकि उसने बहुत सॉफ सॉफ पूछा था


मनीष को कुछ समय लगा एक उपयुक्त ज्वाब सोचने के लिए, और जब अपना जवाब सोच लिया तो उसकी आँखो में आँखे डाल कर देखा और कहा: “बात पूरी तरह से सॉफ है कि हम दोनो मैं से कोई भी पहल नही करना चाहता.”

रेखा की प्रतिक्रिया स्पष्ट और मनीष की उम्मीद के मुताबिक ही थी: “क्या मतलब तुम्हारा? किस बात के लिए पहल?”

मनीष बेहिचक सॉफ सॉफ लफ़्ज़ों में बयान कर सकता था मगर माँ बेटे के बीच जो चल रहा था उसके साथ एक ऐसा गहरा कलंक जुड़ा हुआ था, वो इतना शरमशार कर देने वाला था कि उस पल भी जब सब कुछ खुले में आ चुका था वो दोनों उसे स्वीकार करने से कतरा रहे थे. इतना ही नही कि माँ बेटे मे से कोई भी पहला कदम नही उठाना चाहता था बल्कि माँ बेटे मे से कोई भी यह भी स्वीकार नही करना चाहता था कि किस बात के लिए पहल करने की ज़रूरत थी.

कमरे मे छाई गंभीरता की प्रबलता अविश्वसनीय थी. माँ बेटे अपनी उखड़ी सांसो पर काबू पाने के लिए अपने मुख से साँस ले रहे थे. माँ बेटे दोनों की दिल की धड़कने भी बेकाबू हो रही थी दोनों ही जवाब के लिए उपयुक्त लफ़्ज़ों का चुनाब कर रहे थे. माँ बेटे दोनो हर बात से पूरी तरह अवगत थे, कि हममें से किसी एक को मर्यादा की उस लक्षमण रेखा को पार करना था, मगर यह करना कैसे था, यह एक समस्या थी.

उसके सवाल का जवाब देने की वजाय मनीष ने अपना एक विचार रखा: “तुम जानती हो मम्मी जब हम दोनो इस बारे में बात नही करते थे तो सब कुछ कितना आसान था, कोई भी परेशानी नही थी”


रेखा ने राहत की लंबी सांस ली और उसके चेहरे पर मुस्कराहट छा गयी. अपना बदन ढीला छोड़ते हुए उसने ज्वाब दिया : “हूँ, तुम्हारी इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ.

एक बात तो पक्की थी कि माँ बेटे के बीच बरफ की वो दीवार पिघल चुकी थी. उनके बीच जो कुछ चल रहा था उस पर अप्रत्याशिस रूप से माँ बेटे दोनो सहमत थे और दोनो जानते थे कि हम अपरिचित और वर्जित क्षेत्र में दाखिल हो चुके हैं.

माँ बेटे वहाँ चुपचाप बैठे थे, मनीष की नज़र उस की मम्मी पर जमी हुई थी और उसकी मम्मी की नज़र फर्श पर जमी हुई थी. माँ बेटे अपने विचारों और भावनाओ में ध्यांमग्न बीच बीच में गहरी साँसे ले रहे थे ताकि खुद को शांत कर सके. दोनों को नही मालूम था अब हमे क्या करना चाहिए.

आख़िरकार कुछ समय पश्चात, जो कि अनंतकाल लग रहा था रेखा धीरे से फुसफसाई: “क्या यह संभव है”

वो इतने धीरे से फुसफसाई थी कि मनीष उसके लफ़्ज़ों को ठीक से सुन भी नही पाया था. वो कुछ नही बोला. वो उस सवाल का जबाब नही देना चाहता था.


फिर से एक चुप्पी छा गयी जब वो बेटे के जबाव का इंतेज़ार कर रही थी. जब बेटे ने कोई जबाव नही दिया तो उसने नज़र उठाकर देखा और इस बार अधीरता से पूछा: “ बेटा क्या हमारे बीच यह संभव है”

रेखा ने लगभग सब कुछ सॉफ सॉफ कह दिया था और अपनी भावनाओं और हसरतों को खुले रूप से जाहिर कर दिया था.

अब मनीष की तरफ से संयत वार्ताव उसके साथ अन्याय होता. उसने मम्मी की आँखो में झाँका और अपनी नज़र बनाए रखी. अपने लफ़्ज़ों में जितनी हसरत भर सकता था, भर कर कहा: “तुम्हे कैसे बताऊ मम्मी, मेरा तो रोम रोम इसके संभव होने के लिए मनोकामना करता है

माँ बेटे दोनो फिर से चुप हो गये थे. उनकी घोसणा और स्वीकारोक्ति की भयावहता माँ बेटे दोनो को ज़हरीले नाग की तरह डस रही थी. दोनों यकायक बहुत गंभीर हो गये थे. सब कुछ खुल कर सामने आ चुका था और माँ बेटे एक दूसरे से क्या चाहते थे इसका संकेत सॉफ सॉफ था मगर फिर भी चुप चाप बैठे थे, दोनो नही जानते थे आगे क्या करना चाहिए.

खामोशी इतनी गहरी थी कि आख़िरकार रेखा ने ही माँ बेटे की दूबिधा को लफ़्ज़ों में बयान कर दिया; “अब?.......अब क्या?” वो बोली.

हूँ, मैं भी यही सोचे जा रहा था: अब क्या? माँ बेटे नामुमकिन के मुमकिन होने के इच्छुक थे और अब जब वो नामुमकिन मुमकिन बन गया था, माँ बेटे यकीन नही कर पा रहे थे कि यह वास्तविक है, सच है. माँ बेटे समझ नही पा रहे थे कि हम अपने भाग्य का फ़ायदा कैसे उठाएँ, क्योंकि दोनों के पास आगे बढ़ने के लिए कोई निर्धारित योजना नही थी.


अंत में मनीष ने पहला कदम उठाने का फ़ैसला किया. एक गहरी साँस लेकर, अपनी चादर हटाई और द्रड निस्चय के साथ बेड की उस तरफ को बढ़ा जिसके नज़दीक मम्मी की कुर्सी थी. वो संभवत बेटे का ही इंतेज़ार कर रही थी, वो बेड के किनारे पर चला गया और अपने हाथ उसकी ओर बढ़ा दिए. यह बेटे का उसकी मम्मी का “अब क्या?” का जवाब था.

रेखा पहले तो हिचकिचाई, मनीष के कदम का जबाव देने के लिए वो अपनी हिम्मत जुटा रही थी. धीरे धीरे उसने अपने हाथ आगे बढ़ाए और उसके हाथों में दे दिए.

वो माँ बेटे का पहला वास्तविक स्पर्श था।
माँ बेटे का स्पर्श रोमांचक था ऐसा कहना कम ना होगा, ऐसे लग रहा था जैसे एक के जिस्म से विधुत की तरंगे निकल कर दूसरे के जिस्म में समा रही थी. यह स्पर्श रोमांचकता से उत्तेजना से बढ़कर था, यह एक स्पर्श मात्र नही था, उससे कहीं अधिक था.

माँ बेटे ने उंगलियों के संपर्क मात्र से एक दूसरे से अपने दिल की हज़ारों बातें को साझा किया था. माँ बेटे एक दूसरे के सामने खड़े थे; हाथों में हाथ थामे एक दूसरे की गहरी सांसो को सुन रहे थे.

दोनों के होंठ आपस में परस्पर जुड़ गये, माँ बेटे के अंदर कामुकता का जुनून लावे की तरह फूट पड़ने को बेकरार हो उठा.


माँ बेटे एक दूसरे को थामे चूम रहे थे. कभी नर्मी से, कभी मजबूती से, कभी आवेश से, कभी जोश से. माँ बेटे ने इस पल का अपनी कल्पनाओं में इतनी बार अभ्यास किया था कि जब यह वास्तव में हुआ तो यह एकदम स्वाभिवीक था. उनके होंठ एक दूसरे के होंठो को चूस रहे थे और जिभें आपस में लड़ रही थी. बल्कि दोनों ने एक दूसरे की जिव्हा को भी बारी बारी से अपने मुख से मन भर कर चूसा उसे अपनी जिव्हा से सहलाया.

जब माँ बेटे ने अपनी भावुकता, अपनी व्याग्रता, अपने जोश को पूर्णतया एक दूसरे को जता दिया तो खुद को आलिगन से अलग किया और एक दूसरे को देखने लगे. अब मनीष रेखा को एक नारी की तरह देख सकता था ना कि एक मम्मी की तरह. फिर वो धीरे से रेखा के कान में फुसफसाया " मम्मी! मैं तुम्हे नंगी देखना चाहता हूँ"

एक बार फिर से रेखा जवाब देने में हिचकिचा रही थी. मनीष ने उसके गाउन की डोरियाँ पकड़ी और उन्हे धीरे से खींचा. गाउन की डोरियाँ खुल रही थी. एक बार डोरियाँ पूरी खुल गयी तो उसने उन्हे वैसे ही लटकते रहने दिया. वो अपनी बाहें लटकाए अपने बेटे के सामने बड़े ही कामोत्तेजित ढंग से खड़ी थी. उसका गाउन सामने से हल्का सा खुल गया था. अगले पल उसने अपना गाउन अपने कंधो से सरका दिया और उसे फर्श पर गिरने दिया. वो अपने सगे बेटे के सामने खड़ी थी, पूरी नग्न, कितनी मोहक, कितनी चित्ताकर्षक और अविश्वशनीय तौर से मादक लग एही थी.


तब मनीष ने जो देखा........उसे देखकर विस्मित हो उठा. उसे उम्मीद थी मम्मी ने गाउन के अंदर पूरे कपड़े पहने होंगे, मगर
वो उस गाउन के अंदर पूर्णतया नग्न थी. उसने वास्तव में अपने बेटे के कमरे में आने के लिए कपड़े उतारे थे, इस बात के उलट के उसे कपड़े पहनने चाहिए थे. यह विचार अपने आप में बड़ा ही कामुक था कि वो बेटे के कमरे में पूरी तरह तैयार होकर एक ही संभावना के तहत आई थी, और यह ठीक वैसे ही हो भी रहा था जैसी उसने ज़रूर उम्मीद की होगी- या योजना बनाई होगी- कि यह हो.


सबसे पहले मनीष की नज़र उसके सपाट पेट पर गयी. पेट के नीचे उसकी जाँघो के जोड़ पे बिल्कुल छोटे छोटे से बालों का एक त्रिकोना आकर दिखाई दिया उसके बाद उसकी जांघे और उसकी टाँगे पूरी तरह से उसकी नज़र के सामने थी.

मनीष जानता था मम्मी के मम्मे बहुत मोटे हैं, मगर जब वो अपना रूप विखेरते पूरी शानो शौकत में गर्व से तन कर खड़े थे, तो वो उनकी सुंदरता देख आश्चर्यचकित हो उठा. वो भव्य थे, मादकता से लबरेज. वो एकदम से बैसब्रा हो उठा और तेज़ी से हाथ बढ़ा कर उन्हे पकड़ लिया.


उसके मम्मे दबाते ही रेखा ने एक दबी सी सिसकी भरी जिसने मनीष के कानो में शहद घोल दिया. उसे अपने बेटे के स्पर्श में आनंद मिल रहा था और बेटे को मम्मी के मममे स्पर्श करने में आनंद मिल रहा था. जल्द ही उसके हाथ पूरे मम्मों पर फिरने लगे.

बेटे की इस हरकत से रेखा अपना तवज्जो खो बैठी और बिस्तर पर कमर के बल गिरती चली गईl


उसके यूँ बिस्तर पर गिरते ही मनीष उसके जिस्म के उपर आया और साथ ही साथ उस का एक हाथ मम्मी की नंगी टाँगो के दरमियाँ आया और जिस्म के निचले हिस्से को अपने काबू में कर लिया।


अपने पति से दूरी की सुलगती हुई आग को उसके बेटे के हाथ और जिस्म ने भड़का तो दिया ही था। अब उस आग को शोले की शकल देने में अगर कोई कसर रह गई थी। तो वह रेखा के जिस्म के निचले हिस्से को मसल्ने वाले हाथ ने पूरी कर दी थी।


रेखा मम्मी होने के साथ साथ आख़िर थी तो एक जवान प्यासी औरत। जब उसका बेटा भूखो की तरह चूमे, चूसे जा रहा था, उसका जिस्म इतनी उत्कंठा से उसका छेद ढूँढ रहा था, उसने अपना हाथ नीचे करके अपने बेटे का लंड अपनी उंगलियों में पकड़ लिया और उसे अपनी चूत का रास्ता दिखाया.


और जब रात की गहराई में उसके अपने घर में उसके अपने ही सगे बेटे ने उसके जिस्म के नाज़ुक हिस्सो के तार छेड़ दिए. तो फिर उसके ना चाहने के बावजूद उसका जिस्म उसके हाथ से निकलता चला गया।


मां बेटे को होश उस वक़्त आया। जब मां बेटे अपनी हवस की दास्तान एक दूसरे के जिस्म के अंदर ही रख कर के पसीने से शरा बोर एक दूसरे की बाहों के पहलू में पड़े गहरी साँसे ले रहे थे।


होश आने पर जब मां बेटे को अहसास हुआ कि जवानी के जज़्बात में बह कर हम दोनों कितनी दूर निकल चुके हैं। तो मां बेटे के लिए एक दूसरे से आँख मिलाना भी मुस्किल हो गया।


रेखा अपने इस गुनाह से इतनी शर्मिंदा हुई कि वह खामोशी से अपने कपड़े पहन कर कमरे से बाहर निकल गयी।


मगर जब सुबह माँ बेटे दोनों का फिर आमना सामना हुआ। तो माँ बेटे दोनों ही एक दूसरे को रोक ना पाए और जज़्बात की रूह में बहक कर फिर दुबारा रात वाली ग़लती दुहरा बैठे। उस रात के एक वाकीया ने दोनों माँ बेटे की ज़िन्दगी बदल कर रख दी।


अब तक रेखा ने इतना टाइम अपने पति के साथ नहीं गुज़ारा जितना अपने ही बेटे के साथ गुज़ार चुकी थी।


रेखा के हालातो पर एक शेर याद आ गया कि; " में ख़्याल हूँ किसी और का, मुझे सोचता कोई और है"।


मगर उसके बेटे मनीष के शब्दों में तो वह शायद कुछ यूँ हो गा कि; " तू चूत है किसी और की, तुझे चोदता कोई और है" ।
हाहा हाहा हाहा


माँ बेटे ज़्यादातर अपनी मुलाकात अकेले में मोका मिलने पर अपने घर ही करते थे।


दो महीने बाद रेखा की नन्द और उस के बच्चे घर आए हुए थे। जिस वज़ह से माँ बेटे को आपस में कुछ करने का चान्स नहीं मिल रहा था।


हवस और वासना की आग ने माँ बेटे को अंधा कर दिया, ना चाहते हुए भी अपने बेटे के बहुत मनाने पर मनहूस होटेल शेल्टर में पहली बार जाना पड़ा।


उधर संजय थाने के कमरे में कि इतने में एक सिपाही ने आ कर उसे ख़बर दी। एक क्रिमिनल शेल्टर होटेल में इस वक़्त एक रंडी के साथ रंग रेलियों में मस्त है।


यह ख़बर सुनते ही संजय ने चन्द कोन्सेतबलेस को साथ लिया और होटेल पर रेड करने चल निकला।

क़ानून के मुताबिक़ तो संजय को रेड से पहले लिखित आदेश लेना लाज़िमी था।

मगर हमारे मुल्क में आम लोग क़ानून की पेरवाह नहीं करते।जब कि संजय तो ख़ुद क़ानून था और "क़ानून अँधा होता है"

इसलिए संजय ने डाइरेक्ट ख़ुद ही जा कर होटेल में छापा मारा और अपने मुजरिम को गिरफ्तार कर लिया।

संजय के साथ आए हुए पोलीस वालों ने अपना मुलज़िम पकड़ने के बाद होटेल के बाक़ी कमरों में भी घुसना शुरू कर दिया। ता कि वह कुछ और लोगों को भी शराब और शबाब के साथ पकड़ कर अपने लिए भी कुछ माल पानी बना सके.

संजय ने भी होटेल के कमरों की तलाशी लेने का सोचा और इसलिए वह एक कमरे के दरवाज़े पर जा पहुँचा। और दरवाज़े पर ज़ोर से लात मारी तो कमरे का कमज़ोर लॉक टूट गया और दरवाज़ा खुलता चला गया।

ज्यों ही संजय कमरे का दरवाज़ा तोड़ते हुए कमरे के अंदर दाखिल हुआ। तो उसके साथ साथ कमरे के अंदर मौजूद संभोग करते हुए औरत और लड़के के भी होश उड़ गए...... क्योकि वो दोनों कोई और नही बल्कि संजय की पत्नी रेखा और बेटा मनीष था।

अपने बेटे के लंड पर बैठी हुई रेखा एक दम से चीख मार कर उस के उपर से उतरी और बिस्तर पर लेट कर बिस्तर की चादर को अपने ऊपर लपेट लिया।

संजय को देखते ही रेखा की आँखों में हैरत और डर की एक लहर-सी दौड़ गई.

अपने जिस्म को चादर में छुपाने के बाद वह अभी तक संजय को टकटकी बाँधे देखे जा रही थी। मनीष ने भी अपने तने हुए लंड पर एक दम हाथ रख कर उसे अपने हाथो से छुपाने की कोशिश करते हुए डर से काँप रहा था।

संजय अपने सामने बैठे नग्न पत्नी, बेटे के चेहरों का जायज़ा ले रहा था और उस के दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया था, उसकी आँखों में गुस्सा था...... उसने अपनी कमर में लटकी पिस्टल निकालकर उन दोनों पर तानते हुए बोला बस एक सवाल का जबाब दो...ऐसा क्यो किया...??

रेखा-- " क्योकि.... तुम्हारे जैसा मर्द औरत से अदाये तवायफ् वाली और वफ़ाएँ कुत्तों वाली चाहता है......!!

तीन गोलियों की चलने की आवाज आती है...
धांय धांय धांय...

समाप्त......
रेखा जी, आपकी लेखनी तो वैसे ही लाजवाब है, स्त्री की मनोदशा का जिन शब्दों में आप वर्णन करती हैं, वो लाजवाब है। आपकी इस प्रस्तुति में आपने उन्हीं जज्बातों का लाजवाब वर्णन किया है। चाहे वो मां बेटे की के मध्य में पनपते आकर्षण के समय का हो या जब वो दोनो जब वर्जनाओं को तोड़ने आमादा थे तब का हो। हर जगह ये कहानी लाजवाब रही है। कहीं न कहीं मुझे ये कहानी आपकी रनिंग कहानी का ही छोटा वर्जन लगी, बाकी आप ही बेहतर बता सकती हैं।

हां एक बात की कमी खली, संजय और रेखा के मध्य दूरियां किन कारणों से आई थोड़ा उसका जिक्र भी होना चाहिए था।

बाकी कहानी लाजवाब है।

रेटिंग:9/10
 
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Sanki Rajput

Abe jaa na bhosdk
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ये आपकी दूसरी कहानी है इस कांटेस्ट में और दोनो लगभग एक ही तरह की हैं, बस आपकी पहली वाली ज्यादा क्लियर थी अपने कंसेप्ट और शब्दों में, साथ ही साथ उसमे टाइटल के साथ पूरा न्याय भी किया था, इसमें आपने शब्दों के साथ इतना खेला की कई जगह पढ़ने और समझने में उलझने पैदा हो गई। फिर भी कहानी का कंसेप्ट अच्छा था, बस थोड़ा क्लियर करके लिखने की जरूरत थी।

एक बात और,जब हीरो हीरोइन का इंतजार कर रहा था कि वो अपना लक्ष्य प्राप्त करे, और हीरो का लक्ष्य हीरोइन थी, तब भी उससे कुछ क्रिएटिव ही करवा देते, बेवड़ा बनाने की जगह, वैसे ये मेरी सोच है, और आपका या किसी और रीडर का इससे इतेफक न रखना कोई इश्यू नही है।

रेटिंग: 7/10
Pahle to thanx ju ko aur mai ek baat clear ke du bhai ki mai contest ke liye story bilkul nhi likh raha kyu ki mai janta hu ki ju log jaise ache writer ke samne mai kuch nhi hu ,mai iss liye story likh raha kyu ki mai janna chahta hu ki kitne time me meri lekhni ka sudhar hua hai ya wahi hai.Aur mai story isliye yaha post ki taki ache readers yaha aaenge hi padhne aur revo denge bhi to mujhe unn reader ki baate janni thi ki kya maine inmen galtiyan aur kya acha likha khair story me sabdo ka hi khel tha aur ju ne kaha Arush ko bewra bana diya par sayad uss scene ke para ko ju ne thik se padha nhi jaha maine clear kiya tha ki Arush ne waqt ko apne upar havi hona dena nhi chahta tha akhir waqt uski talab aur badha sakti thi issliye ye likha maine khair baat aayi title ki to maine uspe jyada prastuti apni nhi dali :D khair ju ko shukriya itni achi pratikriya ke liye.
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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कमबख्त इश्क
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कालेज के दिन भी क्या थे. वैसे तो कालेज में न जाने कितने दोस्त थे, लेकिन सलीम और रजत के बिना न तो कभी मेरा कालेज जाना हुआ और न ही कभी कैंटीन में कुछ अकेले खाना.

सलीम दूसरे शहर का रहने वाला था. एक छोटे से किराए के कमरे में उस का सबकुछ था जैसे कि रसोईर् का सामान, बिस्तर और चारों तरफ लगीं हीरोइनों की ढेर सारी तसवीरें. हुआ यह कि एक दिन अचानक अपनी पूरी गृहस्थी साइकिल पर लादे मेरे घर आ गया. मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘यार हुआ क्या, मकान मालिक से कहासुनी हो गई. मैं ने कमरा खाली कर दिया. चलो, कोई नया कमरा ढूंढ़ो चल कर,’’ उस ने जवाब दिया तो मैं ने कहा, ‘‘इतनी सुबह किस का दरवाजा खटखटाएं. तुम पहले चाय पियो, फिर चलते हैं.’’

सुबह 10 बजे मैं और सलीम नया कमरा ढूंढ़ने निकले. ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ा, पड़ोसी इरफान चाचा का कमरा खाली था. इरफान चाचा पहले तैयार नहीं हुए तो मैं ने अपने ट्यूशन वाले इफ्तियार सर से कहा, ‘‘सर, मेरे दोस्त को कमरा चाहिए.’’ उन की इरफान चाचा से जान पहचान थी. उन के कहने पर सलीम को इरफान चाचा का कमरा मिल गया.’’

कुछ दिनों बाद सलीम ने बताया ‘‘यार, इरफान चाचा बड़े भले आदमी है, कभीकभी उन की बेटियां खाना दे जाती हैं.’’ मैं ने उस से कहा, ‘‘यार चक्कर में मत पड़ जाना.’’

‘‘यार मुझे कुछ लेनादेना नहीं, पढ़ाई पूरी हो जाए अपने शहर वापस चला जाऊंगा,’’ सलीम बोला.

महीना भर बीता होगा सलीम को इरफान चाचा के यहां रहते हुए, एक सुबह वह फिर पूरी गृहस्थी साइकिल पर लादे मेरे घर आया. मैं ने पूछा, ‘‘अब क्या हुआ, तुम तो फिर बेघर हो गए?’’

उस ने कहा, ‘‘रुको, पहले मैं साइकिल खड़ी कर दूं, फिर बताता हूं. पिछले हफ्ते इरफान चाचा और उन की बेगम खुसरफुसुर कर रहे थे. मैं ने दरवाजे से सट कर उन की बातचीत सुनी. वे कह रहे थे, ‘लड़का तो अच्छा है अपनी जैनब के लिए सही रहेगा. इसे घर में ही खाना खिला दिया करो. जल्द ही निकाह कर देंगे.‘’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘यार इस में कमरा छोड़ने की कौन सी बात है. तुम्हारी बिना मरजी के कोई भला शादी कैसे कर देगा.’’

सलीम ने कागज का एक टुकड़ा निकाल कर पढ़ा जो कि उर्दू में था, ’आप तो बड़े जहीन हैं. मुझे तो पता ही नहीं चला कि मैं कब आप को दिल दे बैठी. अब्बू कह रहे थे, लड़का बहुत भला है, खयाल रखा करो. कल आप का इंतजार करती रही और आप हैं कि आप को अपने दोस्तों से फुरसत नहीं. वैसे जो आप का बड़े बालों वाला दोस्त है वह तो इसी महल्ले में रहता है. अब्बू कह रहे थे. अपनी शादी में उसे भी बुलाना. आज आप के लिए मेवे वाली खीर बनाऊंगी, मुझे पता है. आप को बहुत पसंद हैं.

‘तुम्हारी जैनब.’

खत पढ़ने के बाद सलीम ने कहा, ‘‘तुम्हें पता है, ये खत किस ने लिखा है.’’ ‘‘जैनब ने लिखा होगा,’’ मैं ने कहा.

‘‘नहीं, यह जैनब ने नहीं लिखा. मुझे पता है कि जैनब को उर्दू लिखनी नहीं आती. मैं ने यह भी पता कर लिया है कि इसे किस ने लिखा है.’’

‘‘अगर तुम्हें पता है तो बताओ किस ने लिखा है,’’ मैं ने अचरज से पूछा.

सलीम ने कहा, ‘‘इसे जैनब के अब्बू ने खुद लिखा है.’’

‘‘वो तुम्हें कैसे पता?’’

सलीम ने बताया, ‘‘इरफान चाचा के 4 बेटियां हैं और उन्होंने एक को भी नहीं पढ़ाया. मैं उन्हें अब हिंदी वर्णमाला सिखा रहा हूं. उर्दू सिर्फ उन की बेटियों को रटी हुई है थोड़ीबहुत लेकिन वे लिख नहीं पातीं.’’

मैं ने कहा, ‘‘तो अब क्या करें?’’

सलीम बोला,’’ कुछ नहीं, पुराने मकान मालिक के पास जा रहा हूं, माफी मांग लूंगा वहीं रहूंगा.’’

पहला साल था हमारा ग्रेजुएशन का. रजत शहर का ही रहने वाला था. एक दिन जैसे ही मैं इकोनौमिक्स की क्लास में घुसा, मेरे होश उड़ गए. ब्लैकबोर्ड पर लिखा था ‘आई लव यू अंजुला.’ नीचे मेरा नाम लिखा था, ‘तुम्हारा राहुल’ और अंजुला नाम की जो लड़की क्लासमेट थी, उस की मेज पर गुलाब का फूल रखा था और साथ में एक लैटर, जिस में लिखा था, ‘अंजुला, आज मैं पूरी क्लास के सामने यह स्वीकार करता हूं कि मैं तुम्हे बेइंतहा प्यार करता हूं.’

ये सब देख कर और लैटर पढ़ कर मेरा हाल बेहाल था. क्लास में रजत मुझे मिला नहीं. वह ये सब कर के निकल चुका था. क्लास में सब से पहले अंजुला ही आई और ये सब देख कर फूटफूट कर रोने लगी. मैं तो मेजों के नीचे से निकल कर कालेज के पिछले दरवाजे से भाग कर घर आ गया. मैं 7 दिनों तक कालेज गया ही नहीं.

ग्रेजुएशन का दूसरा साल था. लंबी छुट्टी के बाद कालेज खुला. सलीम अपने शहर से वापस आ गया. सलीम और मैं हमेशा क्लास की आगे की पंक्ति में बैठते थे. ऐडमिशन चल रहे थे, एक दिन सलमा नाम की लड़की क्लास में आई. उस ने क्लास में पढ़ा रहे सर से कहा, ‘‘सर, मेरा नाम रजिस्टर में लिख लीजिए, मेरे पापा जिला जज हैं. उन का यहां ट्रांसफर हुआ है. सर ने लिख लिया. वह हमारे साथ ही क्लास की अगली पंक्ति में बैठती थी.

सलीम की निगाहें अकसर सलमा की तरफ ही रहती थीं, एक दिन सलीम ने मुझ से कहा, ‘‘तुम ने देखा, सलमा मेरी तरफ देखती रहती है.’’

मैं ने कहा, ‘‘अबे ओए तेरी अक्ल घास चरने गई. कहां राजा भोज कहां गंगू तेली. वह तेरी तरफ नहीं, मुझे देखती है.’’

सलीम ने तुरंत बात काटते हुए कहा, ‘‘नहीं, वह तुम्हारी तरफ बिलकुल नहीं देखती, वह मेरी तरफ ही देखती है और तुम्हें एक बात और बता दूं, अमीर लड़कियों को गरीब लड़कों से ही प्यार होता है. हिंदी फिल्मों में भी तो यही दिखाया जाता है.’’

मैं ने कहा,’’चलो, छोड़ो यार पिछले साल हम लोगों के नंबर कम आए थे, इस बार मेहनत कर लो, पता चले इन बातों के चक्कर में ग्रेजुएशन 3 की जगह 4 साल का हो जाए.’’

एक दिन सलीम का भ्रम टूट ही गया जब उस ने मुझे बताया, ‘‘यार, वह न मेरी तरफ देखती है और न तुम्हारी तरफ. आज मैं कौफी शौप गया तो मैं ने देखा जो अपने क्लास का सुहेल है, उस के साथ सलमा हाथ में हाथ डाले एक ही कप में कौफी पी रही थी.’’

मुझे हंसी आ गई. मैं ने पूछा, ’’फिर तुम्हारी गरीब लड़का और अमीर लड़की वाली फिल्म का क्या होगा?’’

सलीम ने झेंपते हुए कहा, ‘‘मेरी फिल्म फ्लौप हो गई.’’

लेकिन उस ने भी मुझ से पूछ लिया, ‘‘तुम भी तो कह रहे थे, वह तुम्हारी तरफ देखती है. तुम भी तो रेल सी देखते रह गए?’’

मैं ने कहा ‘‘छोड़ो यार, हमारी दोस्ती सब से बढ़ कर है.’’

कुछ दिनों से रजत की अजीब किस्म के शरारती लड़कों से दोस्ती हो गई थी. जब भी कोई सर क्लास में पढ़ाने आते, रजत अपने शरारती दोस्तों के साथ क्लास के बाहर कसरत करने लगता.

एक दिन सर ने चिल्ला कर पूछा, ‘‘यह हो क्या रहा है, तुम पढ़ते समय ये हरकतें क्यों करते हो?’’

रजत अकड़ कर बोला, ’’सर, इसे हरकत मत बोलिए. जैसे आप किसी विषय को क्लास में पढ़ाते हो वैसे ही मैं इन्हें कसरत कर के शरीर हृष्टपुष्ट रखने की ट्रेनिंग देता हूं.’’

रजत की हरकतों से सर गुस्से में पैर पटकते क्लास छोड़ कर चले गए, ‘‘बेकार है पढ़ाना, यह पढ़ाने ही नहीं देगा.’’

मैं ने रजत से कहा, ‘‘यार, कभीकभी तो क्लास लगती है, उस पर भी तुम ड्रामा कर देते हो.’’

रजत बोला, ‘‘तुम्हें ज्यादा पढ़ाई सूझ रही है तो घर पर पढ़ा करो. हमें तो पहले शरीर हृष्टपुष्ट करना है, फिर पढ़ाई.’’

एक दिन तो हद हो गई, सर इकोनौमिक्स पढ़ा रहे थे. रजत और उस के दोस्त शेख की वेशभूषा में क्लास में घुसे और सर से बोले, ’’ए मिस्टर, हमें आप से बात करनी है. हमारे अरब में सौ तेल के कुएं हैं, और हम आप को अपना बिजनैस पार्टनर बनाना चाहते हैं.’’

सर आगबबूला हो गए. उन्होंने प्रिंसिपल से तुरंत शिकायत की. प्रिंसिपल ने पुलिस बुला दी. सभी शेख पिछला दरवाजा फांद कर नौ दो ग्यारह हो गए.

कालेज की लाइब्रेरी में नीचे का फ्लोर लड़कों के बैठने के लिए था और ऊपर का फ्लोर लड़कियों के लिए. लाइब्रेरियन लड़कों से तो बड़े खुर्राट तरीके से बात करता लेकिन जब कोई लड़की बात करने आती तो उस की बातें ही खत्म नहीं होतीं. यह दूसरी बात थी कि लड़कियां ही उस से कम बात किया करती थीं.

एक दिन जब मैं, रजत और सलीम साथ में लाइब्रेरी में घुसे, सलीम ने लाइब्रेरियन से कोई मैगजीन मांगी. उस ने मैगजीन दी ही नहीं और वही मैगजीन जब एक लड़की ने मांगी तो उसे दे दी. सलीम को बड़ा गुस्सा आया. उस ने लाइब्रेरियन से गुस्से में कहा, ‘‘यह बताओ, हमारे में क्या कांटे लगे हैं. तुम्हें सिर्फ लड़कियां ही दिखाई देती हैं.’’

मोनू सिंह और उस की बहन भी हमारे बैचमेट थे. दोस्ती तो नहीं थी, हां, कभीकभार बातचीत हो जाती थी. एक दिन मैं, सलीम, रजत लाइब्रेरी में बैठे पढ़ रहे थे. अचानक ताबड़तोड़ गोलियों की आवाज आनें लगी, बाद में पता चला कि मोनू सिंह की बहन का किसी ने दुपट्टा खींच दिया था. गांव से उस के साथ आए लोगों ने गोलियां चलाई थीं. खैर, मोनू सिंह और उन की बहन सैकंड ईयर में ही घर वापस चले गए.

पता ही नहीं चले कालेज के 2 साल कब फुर्र से उड़ गए. तीसरे साल में सलीम ने मुझे बताया, ‘‘यार, मुझे एक लड़की से प्यार हो गया है.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारी एक मुहब्बत पहले भी फ्लौप हो चुकी है. चुपचाप पढ़ाई करो, वैसे भी यह थर्ड ईयर है.’’ लेकिन सलीम के ऊपर जैसे मुहब्बत का भूत सवार था. मैं ने पूछा, ‘‘बताओ कौन है वह लड़की?’’

‘‘अरे वही गुलनाज जो पीछे बैठती है.’’ गुलनाज कभीकभार सलीम से बात कर लेती थी.

एक दिन मैं कालेज नहीं गया. सलीम शाम को घर आया,’’यार, तुम तो कालेज गए नहीं लेकिन तुम्हारे लिए किसी ने लैटर दिया है. लो, पढ़ लो.’’

लैटर में यों लिखा था-

‘डियर राहुल, मुझे पता है जीसीआर (गर्ल कौमन रूम) के सामने खड़े हो कर तुम सिर्फ मुझे ही देखते हो. बड़ी अच्छी बात है. तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो, लेकिन क्या करूं, मुझे शर्म लगती है तुम से बात करने में. इसीलिए आज तक हम कोई बात नहीं कर पाए. वैसे, मिलना या बातें करने से भी ऊंचा है हमारा प्यार. कल तुम गांधीजी की मूर्ति के पास जो बैंच है, उस के पास अपने हिस्ट्री के नोट्स रख देना, मैं उन्हें उठा लूंगी.

‘ढेर सारा प्यार. तुम्हारी ममता.’

लैटर में ढेर सारी गुलाब की पंखुडि़यां रखी थी. लैटर पढ़ने के बाद सलीम बोला, ‘‘बधाई हो. कालेज जाते कई दिन हो गए, ममता ने कभी उड़ती नजर से भी मेरी तरफ नहीं देखा.’’

मैं ने सलीम से पूछा, ‘‘यार, लैटर लिखने के बाद उस ने एक बार भी मेरी तरफ नहीं देखा.’’ सलीम ने बड़ी गंभीरता से कहा, ’’तुम ने पढ़ा नहीं. लैटर में उस ने खुद लिखा है उसे शर्म लगती है.

कालेज के दिन पता ही नहीं चले, कब वसंत के दिनों में पेड़ों पर आए बौर की तरह चले भी गए. आखिर ग्रेजुएशन के थर्ड ईयर की ऐग्जाम डेट्स आ गई. जब सभी पेपर हो गए, एक दिन शाम को सलीम घर पर मिलने आया. उस ने कहा, ‘‘आज तुम्हें एक राज वाली बात बतानी है.’’

‘‘बताओ.’’

सलीम ने लंबी सांस भरते हुए कहा, ‘‘ममता वाला लैटर मैं ने खुद लिखा था.’’

मैं ने अचरज से पूछा, ‘‘क्यों?’’ तो उस ने कहा, ‘‘मुझे डर था कि कहीं सलमा की तरह हमारीतुम्हारी एकतरफा मुहब्बत की तरह गुलनाज भी कौमन मुहब्बत न बन जाए.’’

मैं ने कहा, ‘‘ओह, तो क्या गुलनाज तुम से प्यार करती है?’’ वह बोला, ‘‘नहीं यार, गुलनाज की सगाई लतीफ से हो गई है.’’ और हमेशा की तरह, गृहस्थी साइकिल पर लादे सलीम ने उसी रात महल्ला नहीं, बल्कि शहर ही छोड़ दिया.
आपकी ये तीसरी एंट्री है, और इस लिहाज से शायद ये रिजेक्ट हो जाय।

खैर ये कहानी आपने कॉलेज के दिनों की याद में लिखा है जो बहुत हद तक हर मिडिल क्लास लड़के की सच्चाई को दर्शाती है जहां प्यार पाने के बस ख्याली पुलाओ बनते रहते हैं, कभी इसके और कभी उसके।

अच्छी कोशिश थी, पर कहानी में तर्म्यता की कमी लगी मुझे।

रेटिंग:8/10
 
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Story- " How I taught Abhi to respect his mom"
Writer- Robbieom.

कहानी पुरी तरह एक सेक्सुअल स्टोरी थी। कहानी का नायक प्रकाश जो एक स्टूडेंट है , अपने ही दोस्त अभि के मम्मी के साथ सेक्सुअल सम्बन्ध बनाता है और वह भी उसकी नजरों के सामने।
और ताज्जुब की बात यह कि अभि इनको सेक्स करते देख एन्जॉय भी करता है। इसे ही cuckold कहा जाता है।

कहानी सिंपल थी। इसमे थोड़ी-बहुत इरोटिका भी थी और कामुकता भी। लिखा भी अच्छा ही है।

लेकिन पुरी कहानी के दौरान अभि के मां का क्या नाम था , आपने लिखा ही नही। वो कहानी की प्रमुख पात्र थी। इनका कोई नाम तो जरूर होना चाहिए था।
सब मिलाकर कहानी ठीक ठाक ही थी।
 
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