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Incest माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना

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Premkumar65

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Update 3



इसी तरह लाइफ चलति रही। और में इंजीनियरिंग की लास्ट सेमेस्टर में पहुच गया। मेरा रिजल्ट अच्चा हो रहा था। पढाई में में कोई ढील नहीं दि। जब नाना नानी और माँ मेरा इतना ख्याल रखते है, इतना प्यार देते है, तोह में क्यों न उन लोगों को खुश होने का मौका न दू !! मेरी पढाई से सब खुश थे।
पढाई का प्रेशर और रात का फैंटसी सेक्स वर्ल्ड के कारन में बाकि स्टूडेंट से थोड़ा मेचुरड लगता था। एकबार में माँ के साथ घर का कुछ शॉपिंग में माँ को हेल्प करने के लिए उनके साथ एक सुपर मार्किट गया था । वहाँ मेरा एक क्लास मैट मेरी माँ को मेरा बेहन समझ के बात कर रहा था।

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जब उस्को बताया की यह मेरी माँ है, तोह उसके मुह की हालत क्या हुआ था , आज भी मुझे याद है। मेरा अच्चा ख़ासा एक मेनली अपीयरेंस के कारण कॉलेज में कुछ लड़की क्लास मैट मेरे साथ क्लोज होने की कोशिश करती थी। मुझे अपनि माँ छोड़के कोई भी अच्छी नहीं लगती थी। इस्स लिए शायद में अपनि माँ के ही प्यार में पडा। पर ये मेरे मन की बात मन में ही रहती थी।

मुझे यह भी मालूम था की मुझे एक दिन ऐसे ही एक दूसरी कोई लड़की से शादी करनी पडेगी। नाना नानी का एक मात्र पोता और माँ का एक बेटा होने के कारन मुझे मालूम था, में मन में जो भी सोच के रोज खुश क्यों न हु, मुझे एकदिन एक लड़की को चुनना पड़ेगा मेरी बीवी बनाने के लिये। तब मुझे एक डर भी आता था। क्यूँ की में जानता था मेरा पेनिस और बाकि सब के जैसा नहि। यह बहुत मोटा और आगे का कैप बहुत बड़ा राउंड शेप का है। फिर स्कलन के टाइम तो वह कैप फूल के और भी बड़ा हो जाता है। मैं कैसे अपने बीवी के साथ सेक्स करूँगा। यह सोच के में कभी कभी मायुस हो जाता था।


मेरे फाइनल एग्जाम से पहले मुझे काम्पुसिंग में ही जॉब मिल गया। एम पी में। एक बहुत बड़ा इंजिनेअरिंग कंस्ट्रक्शन कम्पनी। भारत की पुरानी कंपनी में से एक है। उस दिन घर में जब यह न्यूज़ दिया , तोह सब ख़ुशी से झूम उठे। इस्स लिए नहीं की मुझे सैलरी मिलेगी, वह लोग खुश था इस लिए की एक लडका, जिसका बाप बचपन में चल बसा, उसको उसके नाना नानी और माँ पालके एक इंडिपेंडेंट आदमी बना दिया। नाना का पैर छुआ तो वह मुझे गले लगा लिया। नानी का पैर छुए तो वह मेरा सर पकड़ के सर पे हाथ रख के अशीर्वाद देणे लगी। नाना नानी बहुत भावूक बन चुके थे। ख़ुशी से आँख नम्म होक छल छल करने लगी। और दोनों बहुत सारी बाते करे जा रहे थे। माँ एक साइड में खड़ी होके यह सब देख रही थी। जब में माँ के पास गया, माँ कुछ बोली नहि। लेकिन उनके आँखों में में जो प्यार और ख़ुशी देखि,

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वह उनके पास बरक़रार रखने के लिए में ख़ुशी से जान भी दे सकता हू। मैं उनका पैर छुए तो वह मुझे पकड के गले मिलने गई पर में ५'११'' का था , वह ५' ५'' कि, तोह उनका सर मेरे गले के पास कंधे में टिक गया।

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वह मुझे पकड़ के रखि कुछ मोमेन्ट्स। फिर छोड़ के मेरे दोनों गाल को दोनों हाथ से पकड के, आँखों में बहुत सारा प्यार लेके और होठो में ख़ुशी का स्माइल लेके मुझे देखा । फिर मुझे नाना बुलाये तो में उनके पास गया। माँ और नानी किचन में चलि गयी मेरे लिए खीर बनाने के लिये। यह एक चीज़ हमारे घर में होता था। जब भी कुछ ख़ुशी की बात होती थी तो घर में खीर बनती थी। मैं खीर बहुत पसंद करता हू। आज भी मेरे घर में खीर की परंपरा जारी है।
Woww the love story will start now............!
 

Esac

Maa ka diwana
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Update 6


3 महिने भी कट गए । मैं लगभग रोज़ मां को याद करके मूठ मरता था इसी बीच मेरा फाइनल एग्जाम का रिजल्ट भी आगया। और मेरा जॉब ज्वाइन करने का टाइम भी आगया।

पहली बार में घर से दूर जाके रहने वाला हू। आज तक कभी नाना नानी और माँ को छोड़ के कहीं नही गया । लेकिन मुझे डर नहीं लगा। पर एक दुःख मुझे खाये जा रहा है..की मुझे मेरी माँ को बिना देखे वहां रहना पडेगा। नानाजी का स्ट्रिक्ट इंस्ट्रक्शन है की हर शनिवार वापस आना पड़ेगा और फिर मंडे ऑफिस ज्वाइन करना है। लेकिन बीच का 6 दिन मेरे पास 6 साल लगने लगा। जब माँ हर रात सोने से पहले मेरे पास आके मेरे बालो में उगलियाँ फिराती है, और मेरे तरफ प्यार भरी नज़र से देख के स्माइल करती है वह पल के लिए मै बेताब रहता था रोज। पर अब वह चीज़ से मुझे दूर हो गई है। माँ ऐसे तो बोलती कम है बस देखती ऐसे है की जैसे आँखों में ही सब को कुछ बोल देती है।
अब मेरा जाने का वक़्त नज़दीक आने लगा तो वह और भी चुप हो गई। बस नानीजी को किचन में हेल्प कर रही है, घर का बाकि काम कर रही है, टीवी देख रही है, मेरा जाने के लिए सब ज़रूरी चीज़ों को रेडी करके मेरे रूम में रख रही है। पर कभी कभी मायुस नज़र से मुझे एक पल देख के फिर चली जाती है।

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उनको भी तकलीफ हो रही होगी। मां मेरे बगैर कभी नही रही । मेरे लिए ही उन्होंने ज़िन्दगी की सब खुशियां विसर्जित कर दी थी। पिछले कई साल से मैं उनसे और वो मुझसे अटैच है । उनके प्यार मे मेने मेरे अंदर एक अलग ही आदमी को जनम दे दिया है. जो आदमी माँ से प्यार करता है. उनके साथ एक अलग दुनिया में ही जीता है. लेकिन उसको भी मालूम है की शायद यह मन की बात केवल मन में ही रहेगी पूरी ज़िंदगी.


देखते देखते वह दिन भी आगया जिस दिन में कंपनी जाने के लिए ट्रैन स्टेशन पे खड़ा था। माँ, नानाजी, नानीजी सब आये है. कंपनी मुझे वहां रहने के लिए फिलहाल एक जगह प्रोवाइड कर रहा है. ज्वाइन करने के बाद में धीरे धीरे अपना रहने का बंदोबस्त खुद की करूंगा. इस लिए नानाजी मेरे साथ चल रहे है. नानीजी बार बार नानाजी को क्या क्या करना है वह याद दिला रही है. मुझे वहां कोई तकलीफ न हो, इस लिए सब बंदोबस्त सही तरीके से करने के लिए उनको बार बार सब चीज़ों को एक एक करके बता रही है. माँ मेरे पास मेरी सीट पे बैठ के मेरा एक हाथ उनके दोनों हाथो में थाम के चुप चाप बैठी है और नाना नानी की बाते सुन रही है. माँ ने एक बार मेरी तरफ देखा. उनकी आंखे नम है.

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मन में कष्ट हो रहा है उनको . वह उस फीलिंग को दबा रही है सब के सामने. मुझे मालूम है माँ घर जाके रूम लॉक करके बहुत रोयेगी. मैं इतने सालों से उनको थोड़ा बहुत जानता तो था. उनकी हर हरकत, हर अदा का क्या मीनिंग है वह मैं साफ समझ सकता था मैने भी माँ को देखा. उनका मासूम फेस मुझे हमेशा से अजीब फीलिंग्स देता है. वह मुझ से धीरे से बोली ' तुम मुझे रोज फ़ोन करना'. मेने स्माइल करके धीरे से गर्दन हाँ में हिलाई . अचानक ट्रैन ने एक झटका खाया. टाइम हो चुका है. इस लिए सब उतरने लगे. नानीजी ने मेरा सर चूमा और उतरने लगी. माँ ने मेरा हाथ जो उनके हाथों में था वह मुह के सामने लाक़े चुमा और मेरे गाल पे उनका दाया हाथ रख के एक बार फिराया और गिली आँखों से स्माइल किया. इस का मतलब मुझे मालूम है. मुझे ठीक से रहना है, ठीक टाइम पे खाना है, सोना है, ठीक से काम करना है, अपना ख्याल रखना है ..यह सब बाते वह बिना कुछ बोले मुझे समझा गयी. . वह बाहर जाके खिड़की के पास खड़ी हो गयी. और ट्रैन चलने लगी. नानी और माँ धिरे धिरे दूर होने लगी. ऐसा लगा की मेरा कुछ यहाँ रह गया और. क्या रह गया वह कह नहीं सकता. मेरा मन भारी हो गया. और ट्रैन रफ़्तार पकड़ने लगी.
 
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Esac

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Update 7


ऑफिस में पहला दिन थोड़ा डर लग रहा था सब बड़े बड़े इंजिनिअर्स और ऑफिसर्स के साथ परिचय हुआ. सब के बीच मुझे नर्वस फील हुआ. सब मेरे हालत समझ गये थे इस लिए वह लोग मेरे साथ कम्फर्टेबले तरीके से घुलने मिलने लगे की एक ही दिन में मुझे इनिशियल हेसिटेशन और डर भूल के कॉन्फिडेंस आने लगा. लेकिन एक बात है.. कोई यकीन नहीं कर रहा था की में 20 साल का था और जस्ट कॉलेज से पास आउट हुआ हूं. मुझे देख के इतना मचुर्ड समज रहे थे।

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जब मेने असलियत बताई तब सब हसके मुझे गले लगाने लगे. मैं गुजरात से हू पर वह लोग मेरी अच्छी हिंदी सुनके मेरी तारीफ भी करने लगे. एक दिन ऐसे ही बीत गया पर मेरे मन में मेरे हर वक़्त की ख़ुशी की ज्योति मां की तस्वीर के रूप में, हमेशा के लिए जल रही थी. आँख बंध करते ही वह पूरे तन मन में छा जाती थी. पर कुछ कर नहीं सकते क्यों की मैं बाथरूम में जाके नही हिलाता था. मुझे तो मेरा कम्फर्टेबल प्लेस ही चाहिए होता है.
उपर से मैं रोज की तरह माँ की उंगलिया फ़िरने का सुख, प्यार भरी नज़र और उनकी स्वीट स्माइल बहुत मिस कर रहा था. मैं चेयर पे बैठ के आँख बंध कर के मेरी प्यारी माँ को याद कर रहा था, अचानक याद आया की माँ ने मुझे रोज फ़ोन करने के लिए कही था.
मैं झट से चेयर छोड़ के उठा और मेरा मोबाइल उठाया. अब रात 11 बज चुके है. माँ इस टाइम तक सो जाती है. फिर भी मेने एकबार ट्राय करने के लिए सोचा.
बालकनी में आया और माँ को फ़ोन लगाया. एक बार रिंग होते ही उन्होंने फ़ोन उठा लिया. मेरे दिमाग में फ्रैक्शन ऑफ़ सेकंड में ये खयाल आया की माँ जरूर मेरे फ़ोन के इंतज़ार में बैठी थी. इस लिए इतनी जल्दी रिसीव कर लिया और इतनी रात को भी जागी हुई है. मैंने बोला
'' हल्लो...माँ...''.
माँ के तरफ से कुछ रिप्लाई नहीं आई. मैं फिर से बोला
'' माँ...कैसी हो .
फिर से सन्नाटा. मैं भी चुप होकर समझने की कोशिश कर रहा था की आखिर हुआ क्या. मैं फिर बोला
'' क्या हुआ माँ...आप ठीक तो होना?'' मेरा आवाज़ में चिंता थी अब माँ थोड़ी देर बाद बोली
" कल तुमने फ़ोन क्यों नहीं किया?"
माँ की आवाज़ में न जाने क्या था जो मेरे कान में आते ही मेरा पूरा बदन एक अनजानी फीलिंग से कांप उठा. दिल की धड़कन तेज हो गई. मुझे यह भी तसल्ली मिली की वह सही सलामत है. मेने खुद को संभाल कर जबाब दिया
" सॉरी माँ..कल सब कुछ करते करते बहुत रात हो गई थी और आज ऑफिस में पहला दिन......"
मेरी बात ख़तम होने से पहले ही उन्होंने मुझे रोक दिया और बोल ने लगी
" बस बेटा...इतनी सफाई की जरुरत नही"
फिर थोड़ा रुक के बोलने लगी
"यह बताओ ..वहां तुम्हे कुछ प्रॉब्लम तो नहीं हो रही है ना?
"नही माँ...नानाजी साथ में है ना.. . आप तो उनको जानती हो. सब वही देख रहे है"
लेकिन में यह बता नहीं सकता की माँ आप से दूर रहके मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा है.
तभी माँ बोली
" और आज पहला दिन ऑफिस में कैसा रहा..?"
" ठीक था माँ. सब ने मुझसे अच्छे से बात कि और मेरा जो बॉस है मुझसे अपने कोई पहचान वाले जैसे बात कर रहा था. सब बहुत अच्छे लोग है. लेकिन...."
मैन चुप हो गया तो माँ ले पूछा
"लेकिन क्या?"
"सब मुझे देख के मेरी उम्र ज़ादा सोच रहे थे. पर मेरी सही उम्र जान के सब हस पडे." ऐसी बहुत सारी बाते माँ से होती रही.
एक प्यारी माँ अपने बेटे के लिए ढेर सारा प्यार उड़ेल रही थी. अंत में माँ ने गुड नाईट बोलके फ़ोन काट दिया. मैं कभी माँ से बत्तमीजी से पेश नहीं आया, ना ही माँ के साथ कभी लूस टॉक कि, ना हीं कभी उनको ज़बर्दस्ती पकड़के हग किया या गाल चुम कर प्यार दिखाया. मेरा परवरिश ही ऐसा था हमारे घर में हम सब के बीच गहरे प्यार का बंधन है . मेरे मन में माँ के लिए पिछले 6 साल से एक अजीब और अद्भुत फीलिंग है, पर मेने कभी उनसे सेक्स रिलेटेड या डबल मीनिंग बात या बिना कारण उनको टच करने की कोशिश नही की.... मैं उनसे प्यार करता हूं रेस्पेक्ट भी करता हू पर वह प्यार मैं भाषा में बयां नहीं कर पाऊंगा. जो इंसान ये फील करता है, केवल वो ही उसको समझ सकता है.

एक हफ्ता गुजर गया. ऑफिस में मै थोड़ा खुल चुका था मुझे काम करने के लिए रिस्पांसिबिलिटी भी सौपा गया. और मेने ख़ुशी से वह करना भी शूरु कर दिया. इधर नानाजी ने मेरे लिए एक घर किराये पर ले लिया फिर नानाजी अहमदाबाद जाने के लिए निकल पड़े और मैं ऑफिस के लिये. उस दिन ऑफिस में एक कलीग की शादी थी सब लोग शाम को वहां जाने वाले थे. मुझे भी जाने के लिए कहा, मेने मना किया तो उन लोग ने बताया की मेरा भी इनविटेशन है.

ऑफिस कलीग्स सब एक जगह बैठे है. दूल्हा यानि की मेरे कलीग ने दुलहन से परिचय कराया वापसी के समय ऑफिस के एक दूसरे कलीग ने उसकी गाड़ी में मुझे घर छोड़ दिया. मुझे अंदर आते ही एक अजीब फीलिंग् हुई. यह घर आज से मेरा है. यहां मेरा ही रूल चलेगा. जो भी करु, जैसे भी करू, कोई नहीं है रोकने के लिये. किसी से डरके कुछ करने की भी जरुरत नही. मेरे दिमाग में आया की मैं भी इस तरह एक दिन शादी करूंगा. मुझे ऐसी एक लड़की दुल्हन के रूप में मिलेगी. सब मेरी शादी पे आयेंगे. फिर मेरी खुद की फॅमिली बनेगी. यह सब सोचते सोचते मेने फ्रेश होके , कपड़े चेंज करके मेरा कम्प्यूटर ऑन किया. एक हफ्ते बाद मुझे आज एकांत में मेरे पीसी के साथ टाइम मिला. मैं मोबाइल उठाके माँ से बात करने लगा और आज का दिन कैसे गया बताया. शादी पे गया था , वह बात भी बताया.. माँ भी ऐसे ही इधर उधर की बात पूछ रही थी. मैं मेरे पीसी का सीक्रेट फोल्डर खोल के माँ की तस्वीर देख रहा था और साथ में माँ से बात कर रहा था. मुझे अच्छा लग रहा था. जैसे उनसे में फेस टू फेस बात कर रहा हू. कुछ भी बोलते समय कैसे उनकी अदा या पोस्चर होता है, मुह, आंख, नाक कैसे रियेक्ट करते है , मैं सब जनता था और उनकी बात सुनते सुनते में वैसे पिक्स देख रहा था. इस लिए मुझे लाइव कन्वर्सेशन जैसा महसुस हुआ. मैं एक सकुन और ख़ुशी की फीलिंग में डुबा हुआ था. थोड़ी देर बाद मेरे मन में एक अजीब प्यार आने लगा माँ के लिए पर मैं उस को दबा के माँ से बात कंटिन्यू करने लगा. उनके सामने वह ज़ाहिर नहीं कर सकता था किसी भी हाल में. सो मेरा बदन सिरसिर करने लगा और तभी माँ ने बात ख़तम करके गुड नाईट कहके फोन काट दिया.

मुझे एक नशा लग गया. आज इतने दिन बाद मेरी माँ के सुन्दर चेहरे का फोटोज और हर पोज़ में उनकी अलग अलग अदा देख के में धीरे धीरे उत्तेजित होने लगा. 7 दिन का इमोशन आज भर भर के रोम रोम में छाने लगा. मैं सपनो की एक दुनिया में पहुंच गया और माँ की तस्वीर गौर से देखने लगा. अचानक शाम को देखी हुई दुल्हन का चेहरा मेरी नज़र के सामने आने लगा. मैं माँ को देखते देखते उस दुल्हन की कल्पना करने लगा।

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मेरा पूरा बदन कापने लगा. मैं जोर जोर से सांस छोड़ने लगा. मेरे राईट हैंड ने न जाने कब मेरे लन्ड को हिलना शुरू कर दिया. मैं माँ की एक मुस्कुराती हुई फोटो को नज़दीक जाके देखने लगा और ऐसे लगा की मेरी माँ ही उस दुल्हन के रूप में है. वह दुल्हन की तरह सज धज के मेरी तरफ देख के मुस्कुरा रही है.

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मेरे लोड़े का टोपा अभी से एकदम फूल के गोल हो गया. मेने चेयर पर सीधे बैठ दोनों पेरो को फैला. सामने माँ की फोटो और दिमाग में दुल्हन के रूप में माँ की कल्पना करके मेरा ओर्गास्म चरम सीमा पर आ गया. मेने आँख बांध कर लि और गरम सांसे छोड़ने लगा. मैं माँ को दुल्हन के रूप में कल्पना करके मेरे ओर्गास्म तक पहूंच गया और मैं फुल स्ट्रोक के साथ साथ फूले हुये टोपे को मुठ्ठी में ले लेके जोर जोर से हिलने लगा. जब मेरा सीमेन निकलने वाला था तब मेरे मुह से केवल ''मंजू.....मंजू...मंजू..." शब्द निकलने लगा. और अचानक मेरा दिमाग में अँधेरा हो गया मेरा गरम गरम सीमेन चिरक चिरक के निकलने लगा.

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Esac

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Update 8


१५ दिन बाद २ण्ड वीकेंड में में अहमदाबाद गया. माँ बेसब्री से मेरा इंतज़ार कर रही थी. कल रात फ़ोन पे वह मुझे बार बार पूछ रही थी की में कितने बजे का ट्रैन से आउंगा. कब पहुँचूंगा अहमदाबाद और ढेर सारे सवाल. तभी मुझे एह्सास हुआ की ज़िन्दगी में पहली बार १५ दिन तक में माँ से और माँ मुझसे दूर है. नानी जी ने दरवाजा खोलके मुझे वहीं गले लगा लिया. पीछे नाना जी खड़े थे. वह भी ख़ुश होकर मुझसे बात करने लगे. मैं अंदर आया. और अपना बैग कन्धे से उतार के नीचे रखा. माँ उन सब के पीछे खड़े होक मुझे देख रही थी. उनकी प्यार भरी नज़रों से जो अपना बेटे के लिए उदबेग और ख़ुशी नज़र आया, वह देख के मेरा दिल पिघल ने लगा. वह ऐसी एक सुंदरता और शान्ति की मूर्ति है, जिसको में ज़िन्दगी भर बिना पलक झपकाये देख सकता हू. माँ हमेशा घर पे साड़ी ही पहनती है.

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उनकी इनोसेंट फेस और नाक, पीछे का सुडौल गर्दन, एल्बो से नीचे का हाथ का हिसा, दोनों हाथ में दो सोने का चूडि, और लंबी लंबी गोल गोल उँगलियाँ , उन्होंने लेफ्ट हाथ की उँगलियाँ में हल्का सा लाइट कलर नेल पोलिश,पेट् नीचे जाके पतली कमर और साथ में स्लिम बॉडी होने के कारन उनका उम्र कभी पता नहीं लगता था. कोई भी देखता था तोह उनको २० - २२ साल की लड़की सोचता था. कोई नहीं बिस्वास करता था की वह मेरा माँ है . उनका पैर मुझे सबसे ज़ादा आकर्षित करता था.

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ऐसा सुन्दर छोटी छोटी मुलायम पैर और हल्का नेल पोलिश वाली उंगलिया देखके मुझे हमेशा एक नशा आजाता है. इस औरत को में जितना देखता हू, उतना कम है .यह सबकुछ उनके लिए मेरे दिल में प्यार और रेस्पेक्ट बढा देता है. हमेशा उनके लिए एक अलग अनुभुति मेरे मन में छा जाता है. नाना-नानी पैर पढ़ने के बाद में माँ के पास गया . मैं भी उनसे मिलने के लिए बेताब था. मैं उनके पैर छुये. मैं जैसे ही खड़ा हुआ वह मुझको पकड़ के मेरे गले लगना चाही . पर उनका सर मेरे शोल्डर पे टिक गया. और दोनों हाथ से वह मुझे पीछे से बेडी लगाके कसके पकड़ली.

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वह इतने दिन की दूरि मुझसे ऐसे गले लगा के पूरी कर रही है. नाना - नानी हास्के बोलने लगे की "क्य मंजू...बेटे को और जाने नहीं देगी क्या?" माँ मेरे नज़्दीक रहकर, उनका ही हिस्सा, उनका ही खून, जो आज एक नौजवान पुरुष बन गया, उस को मेहसुस कर रही है एक अपने स्नेह के साथ.

रात को डिनर के टाइम हमेशा की तरह सब लोग खाने बैठे. हमारे परिवार में सब डिनर एकसाथ करते थे. माँ जनरली सर्व करती है पर कभी कभी वह भी साथ में बैठ जाती थी और सेल्फ सर्विस चलता था. सब हसि मज़ाक़ और मस्ती के साथ वह पल बिताते है. आज भी सब लोग बैठे. माँ सर्व कर रही है. मैं पिछला ५ घंटे से आया. तब से सब लोग मेरे पीछे पड़ गये. मेरा शरीर और हालत १५ दिन में सुख सा गया, ऐसा लगा उन लोगों को. उनको लगता है में खाना नहीं खाया इन १५ दिन. बार बार पूछ रहे है ऑफिस में क्या खता हूण. वह खाना सप्लाई करनेवाला आदमी ठीक से खाना देता है क्य, में उसको ठीक से खाता हुन या नही. एक लौता पोता और एक लौते बेटे के लिये.. सब चिन्ता थी, यह में मेहसुस कर रहा था.

ऐसेही ही ज़िन्दगी चल्ने लगा. वीकडेस में सब से दूर रहके काम करना. अपनी देख भाल खुद ही करना. माँ से फोन पे बात करना ..यह सब एक रूटीन बन रहा था. फिर वीकेंड में घर जाने में एक ख़ुशी महल बन जाता था. फिर सब का प्यार , सनेह और मेरे बारे में उनलोगों का चिंता के साथ दो दिन बिताके फिर वापस आना. ऑफिस में धीरे धीरे काम का प्रेशर बढ़ ने लगा. इस्स लिए शायद सच मुछ मेरे शरीर पे इस का प्रभाव पड़ने लगा. फिर से वीकेंड आया और में घर वापस आया. मेरी हालत देखके सब परेशान हो गए. माँ केवल पूछा में खाना खता हु क्या टाइम पे. उनके आँखों में एक चिन्ता दिखा. नाना नानी ज़ादा सोच में पड़ गये.
नाना नानी इतना परेशान था मेरा हालत को लेके की उन लोगों ने मेरा इस प्रॉब्लम का सलूशन ढूँढ़ना सुरु कर दिया. वह दोनों रात में सोटे टाइम आपस में बात करने लगा. पहले यह तय किया की मेरी माँ मेरा पास जायेगी और मेरे साथ रहके मेरा देख भाल करेंगे. माँ को भी प्रॉब्लम नहीं होना चाहिए क्यों की वह हमेशा अपने बेटे के लियेही सब कुछ छोड़के आज ऐसा एक ज़िन्दगी चुना. तोह वह भी इस में खुश होके मेरे पास रहना पसंद करेंगे. फिर वह लोग सोचे की में अब २० साल का हो गया. बाकि सेम उम्र के लड़कों से में थोड़ा म्याचूर्ड भी दीखता हूण. साथ में जॉब करता हूण. अच्छा सैलरी भी मिल रहा है. साथ में नानाजी का सब कुछ मेरा ही है. और कोई वारिस नहीं मेरी माँ छोडकर. सो आखिर सब कुछ मेरे पास ही आयेगा. सो यह सब काउंट करेंगे तोह मेरे लिए आच्छे घर की एक अच्छी सुन्दर सुशिल लड़की मिल जाएगी. नाना नानी यह सोचे की जब ज़िन्दगी में शादी करवाना है और अब इस प्रॉब्लम का हल ढूँढ़ना है , तब क्यों ना अभी उसके लिए लड़की ढुंडके शादी न करवा दिया जाए. यह तरीका उनको सही लगा. पर जब नानी जी थोड़ा टाइम चुप रह, कुछ बोल नहीं रही थी तब नाना जी पूछे उनको की क्या कोई गलत सोचा वह लोग? नानी जी तब बोलने लगी की नहीं गलत कुछ नही. पर आज हीतेश का शादी करवाके उसका लाइफ सेट हो तो जाएगा. पर हम और कितने दिन जियेंगे? नानाजी ६० क्रॉस कर चुके है और नानीजी भी दो चार साल में ६० टच कर लेगी. वह लोग और जीतना दिन है, तब तक ठीक है. पर वह लोग जानेके बाद उनकी बेटी मंजु बिलकुल अकेली हो जाएगी. हीतेश है एक सहारा. पर बीवी आनेके बाद सब बेटा बीवी का ही हो जाता है. बीवी की ही सुनता है. तब माँ का प्यारा , माँ का ओबीडियन्ट बेटा बनके रहने में बहुत सारा झमेला आजाता है. बीवी अपने पति के ऊपर और किसी का अधिकार सह नहीं सकती. बीवी हमेशा अपनी फॅमिली की लग़ाम अपनेहि हाथ में रखना चाहती है. अपनी सास, जो उसका पति को पाल पोश के आज इस लायक बनाया, उनको भी वहां घुसना पसंद नहीं करती. बेटा कितना भी चाहे, अपनी बीवी के खिलाफ जाना मतलब अपनी ही पैर में कुल्हाड़ी मारना यह समझ जाता है. पर जो औरत अपने बेटे के लिए पूरी ज़िन्दगी विसर्जन दि, दोबारा अपनी ज़िन्दगी में सब कुछ पाने के मौके को अपने ही हाथ से गवाया केवल अपने बेटे का मुह देखके, जो अपनि पूरी जिंदगी की ख़ुशी अपने बेटे में ही ढूंडा--उस औरत के साथ अगर ऐसा होगा तोह इस दुनिया में अकेली कैसे जी पाएंगी?


नानीजी ने बोला की जब तक हम इस दुनिया में है तब तक ठीक है. पर हमारे जाने के बाद कौन देखेगा उसको उसके बुढ़ापे मे. वह लोग जानता है हीतेश ऐसा लड़का नही. उसका परवरिश भी उस तरह हुआ नही. बचपन से वह सब कुछ देखते आया. हमारा प्यार, बॉन्डिंग वह अछि तरह से मेहसुस करते आया. वह कभी अपनी माँ को दुःख देगा नही. बिना बाप की ज़िन्दगी में वह अपनी माँ से जो प्यार उसको मिला है उसमे कभी बाप की कमी शायद मेहसुस नहीं किया होगा. पर है तो वह एक लौता. उसी से ही इस खानदान की अगली पीढी आयेगा. इस्स लिए उसको शादी भी करना पडेगा. उसको अपने लिए बीवी भी चुननी पड़ेगी. आज कल की लड़की होते भी सब ऐसेही. अपना पति और अपने बच्चो को ही अपना दुनिया मानता है. परिवार के बाकि सब को लेके जो एक फॅमिली बनता है, और उसमे जो सुख मिलता है , वह सब आज कल की लड़की लोगों की मानसिकता में नहीं है.नाना नानी यह सोच के मायुस हुआ की अगर वह लोग तभी माँ का न सुनके अगर उनका शादी फिर से करवा देते तोह आज यह दुश्चिंता उनलोगो को सताता नहीं . यह सब सोच के उनकी बेटी अपना ज़िन्दगी का सब ख़ुशी अपने ही हाथ से दूर फ़ेक दिया. और आज वह घडी आगया फिर से वैसे एक परिस्थिति आनेका. आज एक लड़की इस फॅमिली में बहु बनके आयेगा. वह आके कैसे बर्ताव करेगी अपने सास से, अपने पति के नाना नानी से, यह सब सोच ते उनको दिल पे काला मेघ छा ने लगता है. लेकिन करे तो करे कया. शायद एहि दुनिया का नियम. आप जीस प्रॉब्लम से दूर भागते हो, वह प्रॉब्लम आगे आपके लिए वेट कर रहा है आपसे गले लगाने के लिये. यह सब चिंता में से वह लोग डूबे रहते थे. और हर रोज सोने के टाइम दो बूढ़ा बूढी एहि डिस्कुस करने लगे. ऐसे ही एक दिन उनलोगों के दिमाग में यह सब के अलावा और एक सोलुशन नज़र आया. पहले वह लोग खुद ही थोड़ा आचर्यचकित हो गए थे. बाद में बातों बातों में सब कुछ सही लगा. लगा के, सब ठीक विचार करके, सब का भलाई सोचके, सब का फ्यूचर का कुछ प्लानिंग ठीक करके धीरे धीरे एक फैसले में पहुच चुके. आखिर में उस बारे में बहुत उँछनिछ बाते होने के बाद नाना नानी एक डिसिशन पे पहुचे. लेकिन तब भी वह लोग भी नहीं जानते थे की सच में यह मुमकीन होगा या नही. और होगा भी तो उस के लिए किसको क्या क्या करना पड़ेगा, क्या सैक्रिफाइस करना पड़ेगा , या किस तरीके से मुमकीन होगा यह वह लोग बिलकुल नहीं जानते थे.
 
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Update 9


आज नाना जी और नानी जी ड्राइंग रूम में बैठके टीवी देख रेहे थे. माँ नहा के फ्रेश होकर , भीगे बालों में एक टॉवल लपेट के किचन में काम कर रही थी. लंच के लिए सब्जिअं काट रही थी. नाना - नानी टीवी देख रहे थे, फिर देख भी नहीं रहे थे. आज उनलोगों को देख के ऐसा लगने लगा की वह लोग टीवी के तरफ देख के और कुछ सोच रहे थे. एक समय नानाजी नानीजी की तरफ मुड़के देखा. नानीजी उनको देख के कुछ समझि और फिर से दोनों टीवी देखने लगे. थोड़ी देर बाद नानीजी वहां से उठ के किचन के तरफ चली गई. किचन में माँ को काम में हेल्प करने के लिए उनके साथ हाथ बटाने लग गयी
. थोड़ी देर इधर उधर की बात होने के बाद नानी जी मेरा बात लेके वह उनका चिंता जताते रहे. मैं कितना प्रॉब्लम फेस कर रहा हू अकेला रहके. माँ भी समझती थी मेरी प्रॉब्लम क्यों की वह भी कुछ दिन से परेशान थी इस को लेके. सो नानी जी की बातों में माँ भी साथ देणे लगी. तब नानी जी बोलने लगी की अब हीतेश भी बड़ा हो गया है तो उसका शादी करवा देते है. यह सुन के माँ नानी की तरफ देख के हॅसने लागी. माँ हस्ते हस्ते बोली
" अब.....शादी... हीतेश की?"
नानी बोली
" हा...कयूं नहीं?"
" मम्मी ... अब तो वह बच्चा है"
" हीतेश २० साल का हो चुका है... नौकरी भी करता है.... और उसको देख के कौन सा बच्चा लगता है तुझे?"
मां मुस्कुराके सब्जी काटने लगी... उनको भी यह सब मालूम है. तब नानी बोली
" हर माँ को उनके बेटा-बेटी हमेशा बच्चा ही लगता है..जब की वह कितना भी बड़ा हो जाए"
सब्जी काट ते काट ते माँ बोली
" तो अब हीतेश को एकबार पुछ लेते है..."
नानी नमकिन का पैकेट्स काट के छोटा छोटा बरनि में भरते हुए कहा
" उससे क्या पूछना है..."
फिर माँ के ऊपर एक नज़र दाल के देखि. माँ नानी की तरफ बैक होक खडी है सब्जी काट ते हुए किचन स्लैब के पास . फिर अपनी हाथ में पकडे बरनि की तरफ देख के नानी बोली
" घर पे हम उसके बड़े है. क्या हम उसकी भलाई बुराई नहीं समझ ते है क्या?.... और वह भी ऐसा नही... हमेशा हमारी बात सुनता है"
मा का सब्जी काटना ख़त्म हो गया था वह मुड के नानी को देखते हुए किचन का दूसरा तरफ जाने लगी.
वह वहां रखा आटे का डिब्बा खोल रहे थे और बोली
" उसके लिए तो अब एक अच्छी लड़की ढूंढ़नी पड़ेगी मम्मी"
नानी अब बरनि का ढक्कन बंद करते हुए कही
" हाँ... यह एक बड़ा काम है. एक अच्छी लड़की ही तो चहिये"
नानी ढक्कन टाइट करते करते माँ की तरफ देखि और कहने लगी
" जो हीतेश का ठीक से देख भाल कर सके. अकेली हाथों से संसार बांध सके. बच्चे का देख भाल कर सके. और हमारे साथ मिलके हमारी एक फॅमिली जैसी बनके रहे...."
मा थोडी चिंतित दिख रही थी. वह आटा निकालते निकालते नानी को देख के बोली
" सही कहा तुमने मम्मी.."
फिर अपने काम की तरफ नज़र फिराके बोलने लगि
" ऐसी ही लड़की चाहिए हमारे हीतेश के लिये. जो हम सब को अपना सोच के हमारे तरह एक साथ रहे पर...."
नानी ने नोटिस किया माँ कुछ सोच में है. तो उन्होंने चुप्पी तोड़ के बोली
" और तो और देखने में भी अच्छी होनी चहिये...हमारे हीतेश के साथ
बिलकुल मैच हो पाये"
मा उठके एके आटे की थाली किचन स्लैब के ऊपर रखि. और उसमे पाणी ड़ालने लगी और बोली
" ऐसी लड़की मिले तब ना मम्मी...."
नानी को थोड़ा होसला मिला. माँ की साइड प्रोफाइल नानी को नज़र आ रही है. उन्होंने माँ से नज़र ना हटाके बोलते रहि
" हम भी एहि सोच रहे थे. आज कल जो लड़की लोगों को देखती हू, उनसे मन ही उठ जाता है. तेरा पापा के साथ इसको लेके बहुत बात हुइ. हम भी परेशान हो गए थे. कहाँ मिलेगी ऐसी लड़की. कौन खबर करेंगा. बहुत सारि बात चित होने के बाद हम यह तय किये की हम इतना क्यों सोच रहे.क्यों की हम सबकी भलाई के लिए ही चिंतित है. हमारे सब की भविष्य के बारे में सोच के चलना पड़ेगा. सब ठीक विचार करके हम ने सोचा की..हाँ है न... ऐसी ही लड़की है....जैसे हम सब को चहिये"

मां आटा गुंथते गुंथते रूक गई..और नानी की तरफ मुड़के आँखों में एक हैरत के साथ और होंठो पे मुस्कराहट लेके पूछि
" क्या मम्मी.... आप लोगों ने लड़की ढूंढ भी निकाली!!"
नानी अब एक स्माइल के साथ उठ के माँ जहाँ खडी थी स्लैब के पास वहां आने लगी. तब माँ फिर से पूछि
" कहाँ से ढुंडके निकाली मम्मी?"
नानी माँ के पास पहुछि और उनके सामने खडी होगई. नानी माँ का चेहरा गौर से देखने लगी. माँ भी थोड़ा एक्साइटेड हो रहे थी. नानी की आँखों में एक ममता और प्यार भरी मुस्कराहट छा गई. माँ फिर से पुछी
" कौन है वह लड़की मम्मी...और कहाँ की है?"
नानी देखा माँ नहाके फ्रेश होकर एक लाइट कलर की प्रिंटेड साड़ी में आज बहुत सुन्दर दिख रही है. उनके सर के बाल पे एक टॉवल लपेटा हुआ है. एक दो बाल टॉवल से निकल के उनकी फोरहेड के ऊपर पड़ा है. नानी अपने दोनो हाथ से माँ का वह बाल प्यार से फोरहेड से हटाके उनका चिन पकड़के बोली
" बाहर कहाँ ढूंढू ऐसी लड़की....जब हमारे ही घर में एक ऐसी सुन्दर लड़की है तो" बोलके नानी एक चौड़ी स्माइल करते रही.

मा इस बात को ठीक से समझ नहीं पाई. वह कोशिश कर रही है समझने की और जैसे की कुछ याद कर रही है. उन्होंने एक बड़ा सा पलक झपका के नानी को पुछी
" मलताब....कोन है मम्मी?"
नानी अपनी स्माइल बरक़रार रख के..आँखोँ में और प्यार और ममता लेके बोली
" क्यूँ !!.... हमारी मंजु सुन्दर नहीं है क्या?"
मा कुछ पल नानी को देखते रही और उनको कुछ समझ के. उनके फेस पे जो चमक थी वह ग़ायब हो गई अचनाक. उनकी आंख स्थिर हो गई ,जगह के उपर. वह बिलकुल स्तब्ध हो गई. वह नानी को एक दृष्टि से देख के बोली
" कैसी बात कर रही हो मम्मी!

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नानी अब एकदम शांत आवाज़ में लेकिन प्यार से कहने लगि
" देख मंजू.. मैं और तेरे पापा इस बारे में बहुत सोचे. हमको यह भी मालूम है इस के लिए हम सब को न जाने क्या क्या सैक्रिफाइस और एडजस्टमेंट करना पड़ेगा. न जाने क्या क्या असुबिधा झेल ना पड़ेगा. लेकिन इस में ही सब का भलाई है. सब का भविष्य हम को ही तो सोचना पड़ेगा मंजू. ......"
नानी इस तरह फिर से वहि सब बात बताने लगी. आज वह है तोह ठीक है. कल जब वह लोग नहीं रहेंगे तब क्या मंजु अकेली जी पायेगी? हीतेश और किसीसे शादी करेगा तोह क्या गारंटी की वह लड़की हमारे जैसी ही होगी. मंजु को वह कैसे ट्रीट करेगी उसकी गारंटी कौन देगा. फिर वहि पुरानी चिंता
नानीजी यह भी बताई की खुद की भलाई और खुद की लाइफ सिक्योर्ड बनाने के लिए अगर समाज से थोड़ा दूर जाके एक अलग दुनिया बनाके हम खुश रहे , तोह इसमें कोई बुराई नहीं है. माँ एकदम हैरत से सब सुन रही थी. जैसे की उनको बिस्वास नहीं हो रहा है की नानी जी कुछ बोल रही है. वह खुद कुछ भी बोल नहीं पा रही थी. असल में उनका मुह तक कुछ आ नहीं रहा है बोलने के लिये. अन्दर ही अंदर एक तूफ़ान मचा हुआ है. भला , बुरा , पाप, पुण्य , न्याय, निती, समाज ,संस्कार सब ने उनके मन में भीड़ कर के उनका बोलना बंध करवाया था. वह केवल नानी को देखे जा रही है. उनकी आँख धीरे धीरे नम होके गिला हो रहा है. बहुत टाइम बाद जब नानी की बात धीरे धीरे कम होने लगा तब वह नानी की आँखों में आँखें डाल के, एक स्थिर दृस्टि होकर, एक शांत और कठिन आवाज़ से पूछि
" क्या यह सब हीतेश को भी बता दिया आप लोगों ने?"

नानी अब एक माँ का प्यार और ममता भरी आवाज़ से बोली
" नहीं बेटा... यह बात तुम्हारे बूढे माँ बाप, अपनी एक लौती बेटी के अपने एक मात्र पोते के, और अपनी फॅमिली की भलाई के लिए ही सोचे है. इस में अब सब कुछ तुम्हारे डिसिशन के ऊपर डेपेंट करता है बेटा."
मा नानी को कुछ पल देख ते रही और जब आँखों से आसूं गिरने का वक़्त आगया तब मुड़के वहां से दौड़के अपने रूम में चलि गयी.

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माँ किचन से दौर के , अपने रूम के जाके डोर लॉक कर दिया. दोपहर लंच करने भी बाहर नहीं आई. नानीजी जाकर बुलाई, दरवाज़ा खटखटायी, पर माँ खाने के लिए स्ट्रैट मना कर दि. जब रात में नाना नानी सब डिनर करके सो गए थे, उसके बाद माँ उठके किचन में गई और फ्रिज से कुछ खाना निकल के चुपचाप खाके फिर से रूम में चले गई. नाना नानी सोच में पड़गये. उनलोगों ने यह एक्सपेक्ट ही किया नहीं की सुरु में ही ऐसा रिएक्शन देखने को मिलेगा उन्को. उनलोग ने सोचा की शायद वह लोग यह एक बिलकुल गलत स्टेप लेने जा रहे थे. इस में उनकी बेटी इतनी हर्ट होगी. न जाने बेचारी को कितना दुःख पंहुचा होगा.
 
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