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Incest माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना

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Esac

Maa ka diwana
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Update 15



जैसे ही मैंने ये कहा, मैं फ़ोन के उसपार से माँ की तेज़ सांसों की आवाज़ सुनने लगा. मेरे इस तरह इमोशन्स के साथ वो शब्द कहने से शायद माँ कांप उठी. इसलिए कुछ टाइम तक वह चुप ही रही. हम दोनों ही फ़ोन पकड़ के बैठे थे. जैसे वो मेरे प्यार को महसूस कर रही हो. थोडे टाइम बाद वह खुद को थोड़ा कंट्रोल में लाकर धीरे धीरे अपने दिल का दरवाजा भी खोलने लगी और यह मुझे तब पता चला, जब उन्होंने अपनी कपकपाती आवाज़ से फुसफुसाते हुए कहा.

" I Love You 2"

माँ ने पहली बार खुद से मेरे लिए प्यार जताया और ये सुनके मैं ख़ुशी से पागल हो गया. मेरा खुन तेजी से दौड़ने लगा. मैं इमोशनल होकर आँख बंद करके थोड़ा पीछे होकर अपने सिर को दिवार पर टेक लगा दिया. ऐसे फील हुआ जैसे की मैं हवा में बादलो के साथ भागे जा रहा हु. मैं प्यार भरी आवाज़ से धीरे धीरे, लगभग फुसफुसाके बोलने लगा.
"मैं हमेशा से ये विश करता आया हूं की मुझे एक खूबसूरत बीवी मिले.... और आज दुनिया की सबसे खुबसुरत, सबसे प्यारी लड़की..... मेरी बीवी बनने जा रही है. इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं चाहिए"
और मैं चुप हो गया. थोड़ी देर बाद माँ ने रुक रुक के कहा.

"इससे पहले.... और एक बार.......सोच लेना चाहिए"

" क्या?.....किस बारे में?"

" पापा मम्मी हमारे बीच......जो रिश्ता चाहते है"

" क्यों?"

इस बार मां थोड़ा टाइम चुप रही. फिर कहने लगी

" हर जवान लड़का एक जवान लड़की को ही पसंद करता है"

अब मुझे समझ आया माँ की दुविधा क्या है. वह सोच रही है की मैं इस रिश्ते के लिए नाना नानी की बातों में आके राज़ी हुआ हूं. लेकिन मैं उनको कैसे समझाऊं की मैं कब से उनसे प्यार करते आ रहा हुँ, उनको चाहता आ रहा हुँ. तो मैंने अपनी आवाज़ में प्यार भर के कहा.
" मुझे ना कभी कोई जवान लड़की दिखी, जिसको मैं चाहूं, न कोई है, जो तुम जैसी प्यारी और खुबसुरत हो. मेरे दिल में बस एक ही लड़की है...और हमेशा वो ही रहेगी.........वो हो..तुम"
वह कुछ सोच के बोली

" लेकिन ...मुझमे भी .....बहुत सारी खामियां है"

" मतलब... क्या?"

मैं सुनने के लिए बेताब हुँ की वह क्या बोलना चाहती है. कुछ वक्त बाद वह धीरे से बोली

" मैं 36 की हुँ......."

मैं तुरंत जवाब दिया

" तो भी मैं आपको प्यार दूंगा, ख़ुशी दूंगा, जो देना चाहता हुँ और जिंदगी भर चाहूंगा."

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शायद मेरी बात उनको अच्छा लगी. लेकिन फिर वह बिलकुल खोई हुई आवाज़ से संकोच करते करते बोली

"और अब.......अगर....अगर....मैं दोबारा माँ नहीं बन पाई तो!!"

मैंने जैसे ही इस बात का मतलब समझा, अचानक मेरे प्राइवेट एरिया में एक अद्भुत सनसनी होने लगी. जिसके फल स्वरुप मेरे लोड़े के अंदर खुन दौड़ने लगा पर यह परिस्थिति उसके लिए नहीं है इसलिए मैने खुद को कंट्रोल किया.

मां नहीं चाहती है उनके प्यारे बेटे की लाइफ कुछ गलत डिसीजन से ख़तम हो जाए. इस रिश्ते को अपनाने के बाद किसी भी कारण से पछतावा न हो.
मैने बोलना शूरु किया.

" मैं बचपन से जिनके साथ खुशियां बाटता आ रहा हु, जिनके साथ मेरा हर ग़म शेयर करता हुँ. मेरा हर सुख, दुख, हंसी, आनंद, शान्ति सब कुछ उनके साथ ही जुड़ा हुआ है. मेरे लिए जो मेरी दोस्त, मेरी प्रेरणा स्त्रोत है, उनको अपना जीवन साथी बनाकर ज़िन्दगी गुजार ने में जो ख़ुशी है, उससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं चाहिए."

मैं कुछ पल रुक के फिर से बोलने लगा
"अगर हमारे नसीब में होगा, तो उसका हँसते हुए स्वागत करेंगे, अगर कुछ नहीं लिखा है तो भी उसे हँसते हुए स्वीकार करेंगे."
मैं चुप हो गया. मुझे खुद भी मालूम नहीं था मैं इतनी सारी बातें बोल पाऊंगा. पर ये बोलके दिल को सुकून मिल रहा था. मैं कभी किसी से प्यार का इज़हार नहीं किया और आज मेरी होने वाली बीवी को बोल दिया. मैं उस तरफ़ की भावनाएं जानने के लिए गौर से सुनने लगा की वह क्या कहती है. लेकिन वो सब चुप है. अचानक मुझे सिसकी लेने की आवाज़ मिली. मैं समझ नहीं पाया. मैं परेशान सा होने लगा. कुछ समझ नहीं आ रहा था पर थोड़े टाइम बाद जैसे ही सब कुछ क्लियर हुआ, मेरी छाती में पानी की तरंग दौड़ गई. मेरा दिल पिघलना शुरू हो गया. माँ उस तरफ रो रही है. मुझे मालूम है, मेरी बातों से उनको यह आँसू बहाने पड़ रहे है.

मैंने उनको कुछ कहना चाहा. पर कुछ समझ नहीं आ रहा था. केवल एक इच्छा मन में दौड़ने लगी
मन कर रहा है इस वक़्त मैं उनके पास जाकर, उनको बाँहों में लेके, अपने शरीर के साथ मिलाके, उनकी जिन प्यार भरी सुन्दर नाज़ुक आँखों से आंसू आ रहा है, उसको चूमता रहूं और उन आंसुओ को मैं पी जाऊ. मैने धीरे से बोलना चाहा और मेरी ग़लती के लिए माफ़ी माँगना चाही. पर मैं हमेशा उनको माँ कहके पुकारता था अब इस परिस्थिति में क्या और कैसे बुलाना है, यह सोच कर भी कुछ फैसला नहीं कर पा रहा था. पति अगर पत्नी को नाम से बुलाए तो स्वाभाविक है. पर यहाँ पत्नी उमर में भी बडी और रेस्पेक्ट से भी. इसलिए उनको नाम से बुलाना थोड़ा अजीब लगा. जब उस तरफ थोड़ी शांति हुई, कुछ न पुकार धीरे से उनको बोला

" मुझे माफ़ कर दो"

वो जान गयी की मैं समझ गया उस तरफ क्या हो रहा है. सो वह खुद को संभालते हुए आवाज़ में थोडी हंसी के साथ प्यार से कहने लगी.

" क्यों?"

मैं चुप था उनके मन की भवनाओ को समझने की कोशिश कर रहा था. फिर अपनी ग़लती को सुधारने का प्रयास करते हुए कहा

" मैं आयिंदा कभी नहीं रुलाऊंगा"

मां इस बार थोडी हंस पडी और एक परम तृप्ति के साथ कहा.


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" बुद्धु....कोई भी लड़की ऐसे आंसू बार बार बहाने के लिए खुद को सौभाग्यशाली मानेगी. मैं आज इतने दिन बाद खुद को सौभाग्यशाली महसुस कर रही हुं...क्यों की....."

"क्यों की?"

वह कपकपाती हुई मीठी स्वर में बोली

" मुझे तु... मुझे आप जैसा पति मिल रहा है"
 

Esac

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Update 16

यह सुनके मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगा. अब तो यह लग रहा है कि, उनसे ज्यादा में भाग्यवान हुँ. मां ने हमारे होने वाले नए रिश्ते को अभी से इस तरह अपना लिया है और उनके दिल का दरवाजा मेरे लिए पूरा खुल चुका है. उनके आखरी शब्द मेरे मन में एक घंटी की तरह बार बार बजने लगे. फिर मैं खुश होकर एक चीज़ जो मेरे कान में खटक गई, वही कह दिया

"तुमने मुझे ग़लती से 'आप' कह दिया."

तो उन्होंने कहा

"वह ग़लती से नही, जान बूझ के जो कहा है."

इस बारे में उनके साथ बात चित होने लगी और उनकी बात मुझे समझ आई. आखिर मैं मुझे एक साफ़ तस्वीर नज़र आई. वह अंदर और बाहर पूरी तरह से एक भारतीय नारी है.


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उन्होंने कहा
"मम्मी पापा ने मेरी परवरिश बहुत अच्छे से कि है. मेरा पति उम्र में बड़ा हो या छोटा, मेरे लिए पति पति है, इसीलिए आप रिश्ते में मुझसे बड़े ही है. तो मैं आपको हमेशा आप कहके ही बुलाना पसंद करूंगी."

ऐसे हम धीरे धीरे अपने दिल का रास्ते एक दूसरे के लिए खोल रहे थे. एक दूसरे को जानने लगे. उस रात बातों ही बातों में हमे वक़्त का पता ही नहीं चला और हम सुबह 4 बजे तक बात करते रहे. जब मैं सोने गया, तब मेरे अंदर बस वो ही छायी हुई थी. अब मैं उनको मेरी बीवी के रूप में हर तरीके से पाने की चाहत में डुबा हुआ हुँ.

ज़िन्दगी खूबसूरत है यह मैंने सुना था और अब महसुस भी कर रहा हुँ. बाप की मौत के बाद , माँ ने अकेले माँ-बाप का किरदार निभाया. एक सिंगल पैरेंट के लिए एक कठिन चैलेंज था और उन्होंने यह चीज़ बखूबी से निभाई. हा..मैं यह भी मानता हु इसमें मेरे नाना जी और नानी जी का बहुत बड़ा हाथ है पर फिर माँ ने हमेशा अपने दोनों हाथों से मुझे संभाल के रखा और इसलिए उनके साथ मेरा लगाव औरों से ज्यादा, बहुत ज्यादा है.

आज कल मैं खुद को एक स्वाधीन , परिपूर्ण आदमी जैसा महसुस कर रहा हुँ. अपनी लाइफ खुद कैसे बनायेंगे, उसके लिए लगा हुँ और अब हर कदम पर मैं जो डिसिजन ले रहा हु, वह सब मेरी होनेवाली बीवी के सपोर्ट और इजाज़त से हो रहा है. जब लाइफ हम दोनों को ही एकसाथ बितानी है, तब हम अभी से एक साथ हमारे घर हमारी फैमली और हमारे फ्यूचर की सारी बाते एक ही साथ सोच रहे है.

माँ मुझे अब पत्नी की तरह प्यार भी करती है, और कभी कभी डाँटती भी है. आज नए रिश्ते में जुड़ने के बाद भी उनके हर बरताव में वह हल्का टच महसुस करता हुँ. बस फर्क यह है की आज कल वो मेरी रेस्पेक्ट भी करती है. उनका इस तरह से मेरे साथ पेश आना मुझे और भी प्यारा लगता है.



आज लंच के कुछ देर पहले उनका फ़ोन आया. मैं तब ऑफिस टॉयलेट में था जैसे ही मोबाइल स्क्रीन पे उनके नाम के साथ उनका स्माइल करता हुआ फोटो आया, मेरे अंदर एक करंट दौड़ गया और उससे मेरे हाथ में पकड़ा हुआ लोड़ा थोड़ा कांप उठा. आज कल उनसे बात करते वक़्त या उनके बारे में सोचते वक़्त यह महसुस कर रहा हु की मेरा लन्ड पहले के साइज़ से थोड़ा ज्यादा फुला हुआ रहता है. पहले की तरह नॉर्मल साइज में रहता ही नहीं है.

मै दूसरे हाथ से फ़ोन कान पे लगाकर बोला

" हाँ माँ...बोलो"

जैसे ही बोला, तुरंत मुझे महसुस हुआ और मैं हंस पडा. और माँ भी उधर से फ़ोन पे ही हंस पड़ी और ये मुझे सुनाई दिया.


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मैं परिस्थिति सँभालने के लिए बोलते रहा

" एक्चुअली वो क्या है की....पहले की आदत छूटने में टाइम तो...."

मेरा बात पूरी होने से पहले माँ ने बात काट दि और हस्ते हस्ते बोलने लगी.
" बस बस....और सफाई की जरुरत नही. मैंने आप को कह दिया था की मेरे मम्मी पापा ने मुझे एक अच्छा नाम दे रखा है. और क्या साहब को शायद मेरा वो नाम पसंद ही नही है."

बोलकर झूठा गुस्सा दिखाकर माँ रुक गयी. मैं उनको कैसे समझाऊ की मुझे उनका नाम लेके पुकारने में अजीब लगता है और नाना नानी के सामने तो कभी वैसे बुला भी नहीं पाऊंगा. मैं कोशिश करके भी उनको संमझा नहीं पाया. शायद मुझे ही उनके लिए एक नाम ढूँढ़ना पडेगा. मैं टॉयलेट से बाहर आके ऑफिस के ऊपरी फ्लोर की पीछे की बालकनी में आ गया. यहाँ कोई आता जाता नहीं है. मैं सिचुएशन सहज करके बोला.

" मैंने कब बोला की पसंद नही. तुम्हारे नाख़ून से लेके बाल तक सब कुछ दुनिया की सब चीज़ों से ज्यादा प्यारी है मुझे."

इस पर माँ थोडी खुश हुई और प्यार में पिघलते पिघलते बोली
" ठीक है ठीक है...और झूट बोलने की जरुरत नही. अब आप यह बताइये कहाँ है आप अभी?"

मै बोला
" ऑफिस में, बस अभी लंच करूंगा"

मां तुरंत आवाज़ में विस्मय लेके बोली
"आप अभी भी ऑफिस में!!! और लंच भी नहीं किये!!!"

फिर गले में थोड़ा फेक गुस्सा लेक बोली
"आपने कल भी तो शाम को जाके लंच किया!! और आज अभी भी.....आप मेरी बात कभी सुनेंगे नहीं क्या?.......
अच्छा एक बात बताइये... मैं पहले जब पूछ्ती थी तो आप हमेशा बोलते थे की हाँ आप का खाना समय पर हो रहा है...."

मैं माँ की बात काट के बोला
" नहीं नही... मैं सच बोलता हुँ...पहले समय पर ही खाना खाता था पर....अभी....ऑफिस का काम और घर का काम ...दोनो संभालने में टाइम मैनेजमेंट ठीक से नहीं हो पा रहा है. अभी खाता हूं और ऑफिस से निकल के रानी साहेबा की सारी पसंदीदा चीज़ें खरीद के लाता हुँ. ओके सोना?"

मैं माँ को प्यार से अब बुलाया तो शायद उनको अच्छा भी लगा. वह प्यार से हस्ते हस्ते हुए बोली
" ह्म्मम......ठीक है.... जाइये... जाके पहले खाना खाइये"


फर्नीचर की दुकान में एक ड्रेसिंग टेबल का आर्डर करना है, लम्बी मिरर वाली, जिसमे स्लाइडिंग डोर हो. एक मरून कलर की स्टिल की आलमारी का भी आर्डर करना है. फिर सारे घर के पर्दे खरीद ने है. वो भी ब्राउन और पिंक विथ फ्लोरल डिजाइन. माँ ने मुझे फोन करके समझा दिया. एक चीज़ मैं हर पल महसुस कर रहा था की माँ की सोच पहले से कुछ बदली सी लग रही है. पिताजी की डेथ के बाद उनके लाइफ में सब कुछ बेरंग हो गया था सब चीज़ें लाइट या वाइट रेंज में लिमिटिड थी लेकिन आज कल वो सब कुछ ब्राइट कलर में पसंद कर रही है. अब ज़िन्दगी में रंग लाकर जीना चाहती है. इसलिए अंदर तथा बाहर भी रंगो से सजा रही है. इस नई ज़िन्दगी को वह पूरी तरह हर खुशियों के साथ जीना चाहती है. मैं उनको वह सब कुछ देने के लिए कुछ भी कर सकता हूं.
 
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