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Great hand job thinking of Mom.Update 7
ऑफिस में पहला दिन थोड़ा डर लग रहा था सब बड़े बड़े इंजिनिअर्स और ऑफिसर्स के साथ परिचय हुआ. सब के बीच मुझे नर्वस फील हुआ. सब मेरे हालत समझ गये थे इस लिए वह लोग मेरे साथ कम्फर्टेबले तरीके से घुलने मिलने लगे की एक ही दिन में मुझे इनिशियल हेसिटेशन और डर भूल के कॉन्फिडेंस आने लगा. लेकिन एक बात है.. कोई यकीन नहीं कर रहा था की में 20 साल का था और जस्ट कॉलेज से पास आउट हुआ हूं. मुझे देख के इतना मचुर्ड समज रहे थे।
जब मेने असलियत बताई तब सब हसके मुझे गले लगाने लगे. मैं गुजरात से हू पर वह लोग मेरी अच्छी हिंदी सुनके मेरी तारीफ भी करने लगे. एक दिन ऐसे ही बीत गया पर मेरे मन में मेरे हर वक़्त की ख़ुशी की ज्योति मां की तस्वीर के रूप में, हमेशा के लिए जल रही थी. आँख बंध करते ही वह पूरे तन मन में छा जाती थी. पर कुछ कर नहीं सकते क्यों की मैं बाथरूम में जाके नही हिलाता था. मुझे तो मेरा कम्फर्टेबल प्लेस ही चाहिए होता है.
उपर से मैं रोज की तरह माँ की उंगलिया फ़िरने का सुख, प्यार भरी नज़र और उनकी स्वीट स्माइल बहुत मिस कर रहा था. मैं चेयर पे बैठ के आँख बंध कर के मेरी प्यारी माँ को याद कर रहा था, अचानक याद आया की माँ ने मुझे रोज फ़ोन करने के लिए कही था.
मैं झट से चेयर छोड़ के उठा और मेरा मोबाइल उठाया. अब रात 11 बज चुके है. माँ इस टाइम तक सो जाती है. फिर भी मेने एकबार ट्राय करने के लिए सोचा.
बालकनी में आया और माँ को फ़ोन लगाया. एक बार रिंग होते ही उन्होंने फ़ोन उठा लिया. मेरे दिमाग में फ्रैक्शन ऑफ़ सेकंड में ये खयाल आया की माँ जरूर मेरे फ़ोन के इंतज़ार में बैठी थी. इस लिए इतनी जल्दी रिसीव कर लिया और इतनी रात को भी जागी हुई है. मैंने बोला
'' हल्लो...माँ...''.
माँ के तरफ से कुछ रिप्लाई नहीं आई. मैं फिर से बोला
'' माँ...कैसी हो .
फिर से सन्नाटा. मैं भी चुप होकर समझने की कोशिश कर रहा था की आखिर हुआ क्या. मैं फिर बोला
'' क्या हुआ माँ...आप ठीक तो होना?'' मेरा आवाज़ में चिंता थी अब माँ थोड़ी देर बाद बोली
" कल तुमने फ़ोन क्यों नहीं किया?"
माँ की आवाज़ में न जाने क्या था जो मेरे कान में आते ही मेरा पूरा बदन एक अनजानी फीलिंग से कांप उठा. दिल की धड़कन तेज हो गई. मुझे यह भी तसल्ली मिली की वह सही सलामत है. मेने खुद को संभाल कर जबाब दिया
" सॉरी माँ..कल सब कुछ करते करते बहुत रात हो गई थी और आज ऑफिस में पहला दिन......"
मेरी बात ख़तम होने से पहले ही उन्होंने मुझे रोक दिया और बोल ने लगी
" बस बेटा...इतनी सफाई की जरुरत नही"
फिर थोड़ा रुक के बोलने लगी
"यह बताओ ..वहां तुम्हे कुछ प्रॉब्लम तो नहीं हो रही है ना?
"नही माँ...नानाजी साथ में है ना.. . आप तो उनको जानती हो. सब वही देख रहे है"
लेकिन में यह बता नहीं सकता की माँ आप से दूर रहके मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा है.
तभी माँ बोली
" और आज पहला दिन ऑफिस में कैसा रहा..?"
" ठीक था माँ. सब ने मुझसे अच्छे से बात कि और मेरा जो बॉस है मुझसे अपने कोई पहचान वाले जैसे बात कर रहा था. सब बहुत अच्छे लोग है. लेकिन...."
मैन चुप हो गया तो माँ ले पूछा
"लेकिन क्या?"
"सब मुझे देख के मेरी उम्र ज़ादा सोच रहे थे. पर मेरी सही उम्र जान के सब हस पडे." ऐसी बहुत सारी बाते माँ से होती रही.
एक प्यारी माँ अपने बेटे के लिए ढेर सारा प्यार उड़ेल रही थी. अंत में माँ ने गुड नाईट बोलके फ़ोन काट दिया. मैं कभी माँ से बत्तमीजी से पेश नहीं आया, ना ही माँ के साथ कभी लूस टॉक कि, ना हीं कभी उनको ज़बर्दस्ती पकड़के हग किया या गाल चुम कर प्यार दिखाया. मेरा परवरिश ही ऐसा था हमारे घर में हम सब के बीच गहरे प्यार का बंधन है . मेरे मन में माँ के लिए पिछले 6 साल से एक अजीब और अद्भुत फीलिंग है, पर मेने कभी उनसे सेक्स रिलेटेड या डबल मीनिंग बात या बिना कारण उनको टच करने की कोशिश नही की.... मैं उनसे प्यार करता हूं रेस्पेक्ट भी करता हू पर वह प्यार मैं भाषा में बयां नहीं कर पाऊंगा. जो इंसान ये फील करता है, केवल वो ही उसको समझ सकता है.
एक हफ्ता गुजर गया. ऑफिस में मै थोड़ा खुल चुका था मुझे काम करने के लिए रिस्पांसिबिलिटी भी सौपा गया. और मेने ख़ुशी से वह करना भी शूरु कर दिया. इधर नानाजी ने मेरे लिए एक घर किराये पर ले लिया फिर नानाजी अहमदाबाद जाने के लिए निकल पड़े और मैं ऑफिस के लिये. उस दिन ऑफिस में एक कलीग की शादी थी सब लोग शाम को वहां जाने वाले थे. मुझे भी जाने के लिए कहा, मेने मना किया तो उन लोग ने बताया की मेरा भी इनविटेशन है.
ऑफिस कलीग्स सब एक जगह बैठे है. दूल्हा यानि की मेरे कलीग ने दुलहन से परिचय कराया वापसी के समय ऑफिस के एक दूसरे कलीग ने उसकी गाड़ी में मुझे घर छोड़ दिया. मुझे अंदर आते ही एक अजीब फीलिंग् हुई. यह घर आज से मेरा है. यहां मेरा ही रूल चलेगा. जो भी करु, जैसे भी करू, कोई नहीं है रोकने के लिये. किसी से डरके कुछ करने की भी जरुरत नही. मेरे दिमाग में आया की मैं भी इस तरह एक दिन शादी करूंगा. मुझे ऐसी एक लड़की दुल्हन के रूप में मिलेगी. सब मेरी शादी पे आयेंगे. फिर मेरी खुद की फॅमिली बनेगी. यह सब सोचते सोचते मेने फ्रेश होके , कपड़े चेंज करके मेरा कम्प्यूटर ऑन किया. एक हफ्ते बाद मुझे आज एकांत में मेरे पीसी के साथ टाइम मिला. मैं मोबाइल उठाके माँ से बात करने लगा और आज का दिन कैसे गया बताया. शादी पे गया था , वह बात भी बताया.. माँ भी ऐसे ही इधर उधर की बात पूछ रही थी. मैं मेरे पीसी का सीक्रेट फोल्डर खोल के माँ की तस्वीर देख रहा था और साथ में माँ से बात कर रहा था. मुझे अच्छा लग रहा था. जैसे उनसे में फेस टू फेस बात कर रहा हू. कुछ भी बोलते समय कैसे उनकी अदा या पोस्चर होता है, मुह, आंख, नाक कैसे रियेक्ट करते है , मैं सब जनता था और उनकी बात सुनते सुनते में वैसे पिक्स देख रहा था. इस लिए मुझे लाइव कन्वर्सेशन जैसा महसुस हुआ. मैं एक सकुन और ख़ुशी की फीलिंग में डुबा हुआ था. थोड़ी देर बाद मेरे मन में एक अजीब प्यार आने लगा माँ के लिए पर मैं उस को दबा के माँ से बात कंटिन्यू करने लगा. उनके सामने वह ज़ाहिर नहीं कर सकता था किसी भी हाल में. सो मेरा बदन सिरसिर करने लगा और तभी माँ ने बात ख़तम करके गुड नाईट कहके फोन काट दिया.
मुझे एक नशा लग गया. आज इतने दिन बाद मेरी माँ के सुन्दर चेहरे का फोटोज और हर पोज़ में उनकी अलग अलग अदा देख के में धीरे धीरे उत्तेजित होने लगा. 7 दिन का इमोशन आज भर भर के रोम रोम में छाने लगा. मैं सपनो की एक दुनिया में पहुंच गया और माँ की तस्वीर गौर से देखने लगा. अचानक शाम को देखी हुई दुल्हन का चेहरा मेरी नज़र के सामने आने लगा. मैं माँ को देखते देखते उस दुल्हन की कल्पना करने लगा।
मेरा पूरा बदन कापने लगा. मैं जोर जोर से सांस छोड़ने लगा. मेरे राईट हैंड ने न जाने कब मेरे लन्ड को हिलना शुरू कर दिया. मैं माँ की एक मुस्कुराती हुई फोटो को नज़दीक जाके देखने लगा और ऐसे लगा की मेरी माँ ही उस दुल्हन के रूप में है. वह दुल्हन की तरह सज धज के मेरी तरफ देख के मुस्कुरा रही है.
मेरे लोड़े का टोपा अभी से एकदम फूल के गोल हो गया. मेने चेयर पर सीधे बैठ दोनों पेरो को फैला. सामने माँ की फोटो और दिमाग में दुल्हन के रूप में माँ की कल्पना करके मेरा ओर्गास्म चरम सीमा पर आ गया. मेने आँख बांध कर लि और गरम सांसे छोड़ने लगा. मैं माँ को दुल्हन के रूप में कल्पना करके मेरे ओर्गास्म तक पहूंच गया और मैं फुल स्ट्रोक के साथ साथ फूले हुये टोपे को मुठ्ठी में ले लेके जोर जोर से हिलने लगा. जब मेरा सीमेन निकलने वाला था तब मेरे मुह से केवल ''मंजू.....मंजू...मंजू..." शब्द निकलने लगा. और अचानक मेरा दिमाग में अँधेरा हो गया मेरा गरम गरम सीमेन चिरक चिरक के निकलने लगा.
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Great update.Update 10
नेक्स्ट डे नानीजी खुद घर का सब काम करने लगी. माँ को बिलकुल डिस्टर्ब करना उचित नहीं समझी. उनको थोड़ा टाइम अकेले छोडना सही समझा . लंच में फिर नानीजी ने माँ को बुलाया पर माँ डोर खोल के बाहर नही आई. वह लोग लंच करके अपने रूम में आराम करने चले गए तो माँ किचन में आके अकेली खाना खा लिया. आवाज़ से नाना नानी को मालूम पडता है पर वह लोग भी अब सामने आके माँ को अनवांटेड सिचुएशन में डालना नहीं चाहते थे. ऐसे तीन दिन कट गए अगला दिन थर्सडे था. सुबह सुबह नानीजी नाश्ता बनाने में जुटी हुई थी. अचानक माँ किचन में आके नानी को कहती है " मैं बनाती हूँ " ये बोल कर माँ खुद काम में लग गयी. माँ कि आवाज़ ठण्डी और तेज थी, जिससे नानीजी ने कुछ बोलने का साहस नहीं किया. वह चुप-चाप माँ को देखने लगी .
माँ बिलकुल एक साइलेंट और फ़ीलिंगलेस फेस लेके काम करे जा रहे थी.. नानीजी चुप चाप वहां से निकल गईं माँ ने घर का काम-काज करना शुरू कर दिया, पर किसी से कोई बात नहीं कर रही थी. माँ अपना काम करके फिर से अपने रूम में जाके लॉक लगा के अंदर रहती थी. रात को नाना नानी सोते टाइम बोलने लगे की शायद उन लोगों की बातों से उनकी बेटी का मन में एक गहरी चोट लगी है. अगले दिन यानि की फ्राइडे के दिन सुबह नानी खुद किचन में आके माँ से बात करने की कोशिश करने लगी. माँ पहले मुंह से जवाब न देके, नानी जो माँगती है या करने को कहती है, वह सब चुप चाप करके एक साइलेंट जवाब दे ने लगी. नानी ने सोचा गम थोड़ा हल्का हो रहा है. नाश्ता करके नाना नानी जब टीवी पे न्यूज़ देख रहे थे , तब उन लोगो ने देखा की माँ पहले की तरह डाइनिंग टेबल पे आके, लेकिन अकेले बैठके नाश्ता कर रही है. जब लंच बनाने में नानी आके माँ का हाथ बटाने लगी , तब माँ बेटी में धीरे धीरे डायरेक्टली बात चित शूरु हुआ. आज माँ की आवाज़ काफी नार्मल थी. लेकिन आज उन्होंने फिर से सब का खाना होने के बाद अकेले टेबल पे बैठके खाना खाया नाना नानी दोपहर के समय अपने रूम में रेस्ट कर रहे थे. आज उन लोगों को थोडी खुश हुई क्यूँकी जो परिस्थिति क्रिएट हुआ था , अब उसका काला मेघ इस घर से हट गया था. शाम के टाइम नानीजी किचन में गई माँ अकेली चुप चाप किचन स्लैब के ऊपर हाथ रख के खड़े खड़े चाय का उबाल देख रही थी. नानी की एंट्री से वह हिली नही जैसे कुछ सोच में है. नानी इधर उधर कुछ करके, माँ को एक टक देखती रही. और फिर माँ के पास आके स्लैब के ऊपर एक हाथ टीका के खड़ी हो गयी.
नानी चुप्पी तोड़के माँ के तरफ देख के बोली
नानीजी -" मंजू.........बेटा...... हर माँ बाप अपने बच्चों की ख़ुशी के बारे में सोचते है. हमने शायद कुछ ज्यादा सोच लिया था........"
माँ -"आप लोग अकेले कैसे रहेंगे!!"
अचानक यह सुन के नानी ने झटके से अपना मुँह उठाके माँ की तरफ देखा. माँ नानी का लुक फील करती है और अपना सर थोड़ा झुका के अपनी पैरों की तरफ देखने लगी
नानी को समझने में थोड़ा वक़्त लगा. फिर उनके होठो पे एक स्माइल खील गयी. उनकी अंख में ख़ुशी झलक उठी, धिरे से माँ के और नज़्दीक आई और माँ का चिन पकड़ के अपनी तरफ मोड़ ने की कोशिस की. माँ जैसे खड़ी थी, उनकी बॉडी की पोजीशन हिली नहीं , लेकिन उनका फेस नानी के तरफ मूड गया. उनकी आँख झुकि ही है. उन्होंने कोशिश करके भी उनके फेस पे शर्म आनी छुपा नहीं पाई नानी पूरी बात समझ गयी फिर भी प्यार से फुसफुसा के पूछी
"सच ?"
माँ नानी की तरफ मुड़के उनके कंधो में अपना मुह छुपा ली.
और उन्होंने नानी को दोनों हाथों से बेडी लगा के पकड़ लिया. नानी हसके उनकी एक हाथ से उनके बाल और पीठ सहलाने लगी एक माँ अपनी बेटी को परम ममता से प्यार कर रही है. नानी हस्ते हस्ते बोली
" अरे पगली....इस में शर्माने का क्या है. हम थोड़ी कोई अन्जान लोग है.....और नहीं तू किसी और घर कहां जा रही है...सब तो तेरे अपने हि लोग है..."
मा ने और शर्मा के नानी की छाती में मुह छूपा लीया.
मै शनिवार को अहमदाबाद पहुच गया. शाम हो गइ थी. नाना नानी ने मेरा हर बार की तरह स्माइल के साथ ही स्वागत किया. लेकिन इस बार माँ वहां दिखाइ नहीं दि. मेंने अंदर आके अपना बैग रखा. पर मुझे समझ नहीं आ रहा था की यह लोग इतने खुश दिख रहे है तो , गड़बड़ तो नहीं है घर पर. फिर माँ मेरे साथ ऐसे क्यों कर रही है. मेरी कौन सी ग़लती पे माँ मुझ पर नाराज हो गयी!! क्या मेंने उनको अन्जाने में दुःख पहुंचाया!!! माँ जनरली घर पर ही रहती है. और आज तो मेरा आने का दिन है. आज तो वह रहती ही है. तोह फिर क्यों वह मुझसे मिलने सामने नहीं आई..
नानाजी मेरे तरफ देख के बोले
" बेटा.. तुमसे कुछ बात करना है." मैं शांति से बोला
" कहिए नानाजी"
उनहोने एक बार नानीजी को देख, फिर मेरी तरफ देख के थोड़ा स्माइल के साथ बोले
" इतना अर्जेंट भी नहीं है. तुम फ्रेश हो जाओ. खाना वाना खाके आराम से बैठ के बाते करेंगे."
मैं मेरे रूम में जाकर फ्रेश होने लगा. नानाजी न जाने क्या बात करना चाहते है. लेकिन में माँ को लेके ज्यादा चिंतित था. बहुत सारी चिंता से मन भरी था, कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. दिल बोल रहा था की दौड़ के जाके से माँ पुछु की क्या गुनाह है मेरा. जैसे ही बाहर ड्राइंग रूम में आया, तब नानी ने डिनर के लिए बुलाया.
मुझे मालूम था की पहले जैसे आज सब कुछ नहीं था. नानी सर्व करने लगी. लेकिन में किचन में माँ की उपस्थिति फील कर रहा था और एक दो बार तो नानी से बात भी करते हुए सुना. मुझे गुस्सा आया, सब तो ठीक ही है. तोह क्या में ही गुन्हेगार हूँ!! और नाना नानी को भी माँ का इस तरह से व्यवहार करना, या इस तरह से मेरे सामने पेश होना, जरूर नज़र आ रहा होगा. फिर भी कोई किसी को कुछ बोल भी नहीं रहा है.
डिनर के बाद नानाजी मुझे टेरेस पे लेके गये. गर्मी का टाइम था. सो टेरेस पे अच्छा फील हो रहा था. थोड़ी हवा भी आ रही थी बीच बीच मे. आस पास के एरिया में ऐसे ही सब प्राइवेट मकान है. नानाजी ने किनारे के तरफ जाकर , टेरेस की फेंसिंग में टेक लगाके एक सिगरेट निकाली. और बोलने लगे " तुम्हारी नानी यहाँ नहीं है अब... तोह ठीक है...." बोलके हॅसने लगे और माचिस निकालकर सिगरेट जला लि. मेंने बोला
" नानाजी... डॉक्टर ने आप को स्मोक करने में मना किया है"
उन्होंने एक कस लगाके धुआं छोड़के बोला
" एक आध पिने से कुछ नहीं होता है..."
नानाजी हस्ते हस्ते ऐसे बाते सुनाने लगे. कुछ समय ऐसे ही बीत गया. पर मेरा मन अभी भी परेशान था . मुझे बार बार यह चिंता सता रही है की नानाजी आखिर मुझे क्या बताना चाहते है. इस सब सोच के बीच नानीजी ने आवाज़ लगाई. हम नीचे गये. मैं नज़र घुमाके माँ को देख नहीं पाया. किचन में लाइट ऑफ है. माँ शायद डिनर करके अपने रूम में चली गयी. मुझे बहुत ग़ुस्सा आया माँ के उपर. मैंने क्या ग़लती कि की वो मुझे ऐसी सजा दे रही है. नानाजी मुझे उनके कमरे में आने को कहे. नानीजी भी आ गई. नानाजी ने आकर दरवाज़ा थोड़ा बंध कर दिया.
मैं बेड के पास रखी कुरसी पे बैठा. नाना नानी बेड पे आराम से बैठे. मेरा टेंशन बढ़ रहा है. आखिर क्या कहेंगे, और उससे माँ का क्या ताल्लुक है. इन सब हज़ारों चिंताओ ने जब मेरे दिमाग में भीड़ किया तब नानाजी ने बोलना शूरु किया.
"बेटा...हमने तुम्हारी परवरिश में कोई कमी नहीं रखी है. बचपन से सब कुछ देते आए और आज तक तुम्हारी सबसे ज्यादा चिंता हम करते है लेकिन अब तुम बड़े हो गये हो. जॉब कर रहे हो. हमे छोड़के दूर जाकर अकेले रहने लगे हो. मालूम है वहां तुमको अकेले रहने में कुछ परेशानी फेस भी करना पडती है. फिर भी... इस सब से हमे बहुत ख़ुशी होती है. तुम अब तुम्हारी जिंदगी खुद जीने जा रहे हो और हम भी और कितना दिन रहेंगे. हमारे जाने के बाद भी तुम को अच्छी तरह ज़िन्दगी जीना है. अपनी फेमिली बनानी है. तो अब हम सोच रहे है की तुम्हारी शादी करवा देनी चाहीये." नानाजी चुप हो गए. शायद मेरा रिएक्शन परख रहे है. मेरे दिमाग में दूसरा कैलकुलेशन चल रहा है. अब मुझे लगा की शायद इस बात से माँ दुखी है और मुझसे शायद नाराज भी है. मेने मन में सोचा की अगर उनकी ख़ुशी के लिए मुझे शादी न भी करनी पडे, तो मुझे कोई खेद नहीं है. उनको ज़िन्दगी भर खुश रखना चाहता हुं.
नानाजी फिर बोले
"देखो बेटे ..तुम्हारी लाइफ में कोई आकर तुम्हारे पास खड़ी हो जाए, तुम्हारे हर इमोशन को समझे, हर उतार चढ़ाव में तुम्हारे साथ रहके ज़िन्दगी की राहों में चलना आसान कर दे. इसलिए सब के लाइफ में बीवी की जरूरत पड़ती है."
" हमने आज तक तुमहारा सब भला बुरा सोच के ही काम किया. अब यह लास्ट ड्यूटी भी ठीक से पूरी हो जाये तो मैं चैन से मर सकता हु."
मैं माँ के बारे में सोच के बोलने लगा
" नानाजी....आपकी बात ठीक है... लेकिन ......."
मै रुक गया. मुझे पहले माँ से जानना है , क्या इस बात को लेके वह दुखी है !!. इस लिए मुझसे गुस्सा होके दूर है!! लेकिन नानाजी शायद मेरी द्विधा समझ गए और मेरी बात पकड़ के बोले.
" बेटा पहले में जो बोल रहा हु ..पुरा सुन लो. फिर तुम आराम से सोच समझ के मुझे बताना. अगर तुमको लगे की यह हमारी भलाई के लिए है, तो सोच के बताना, नहीं तो जो मन में डिसाईड करोगे , हम वो ही करेंगे
यह बोलके नानाजी नानीजी को देखे. नानीजी ने भी सहमत होकर अपना सर हिलके मुझे आश्वसन दिलाया.
नानाजी ने फिर से बोलना शुरू किया
" बेटा...हमने तुम्हे सब चीज़ दिया, जो हर कोई बच्चे को मिलता है, लेकिन एक चीज़ कभी नहीं दे पाये"
मैं नानाजी के तरफ देख के सुनने लगा
" हर बच्चे का नसीब में किसी को 'पापा' कहके बुलाने का सुख है, वह हम कभी तुम्हे प्राप्त करने का सौभाग्य नहीं दे पाए. और अब तुम्हारी शादी हो जाये तो तुम्हे एक नए मम्मी पापा भी मिलेंगे."
" मैं सब का भलाई सोच कर ही यह सब कर रहा हु.........अगर तुम्हे बोलू...मतलब...क्या तुम मुझे 'पापा' बोल कर बुलाना पसंद करोगे?"