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Adultery प्रीत +दिल अपना प्रीत पराई 2

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Bhai mere tere jee ka janjala hain yeh, abhi bhi kehta hooon kaan band kar le, mandir jana chhor de, ghar se bhaag jaa, phir na kahio kahan fas gaya. Aur kameene kitna bara tharkee hain, mandir mein jaa ke nain matakka karta hain, aur ghar aa ke chachi ke angvalokan karta hain.

Phir bolega pyar ho gaya usse bhi, aur bhabhi toh hain hee.

Jokes A-fart, saral sabdo mein jaado karte ho, hamesha adhura chhor dete ho jaise arman jaga kee wo larki chali gayee.
jaroor iska bhai bhi iske tarah tharkee hain kaheen muh mar raha hoga, aur isne dekh liya hoga. Ab kameena maa ke samne bara achha ban raha hain, aur yeh bolega nahin.

mujhe phir iss chachi pe bhi shaq ho raha hain, kuchh jyada hi close ho rahi hain. Ab kya dekh liya, churi khanakna wo bhi raat mein, yaar mera mind dirty haain hamesha galat hi sochta hain, jaroor yoga kar rahi hogi. haan aisa hee hain.
आपकी सब बाते सही है मित्र, परंतु क्या ही करे अब इस दिल का जो चैन नहीं लेने देता है, अभी से शक ना कीजिए अभी तो शुरुआत है
 

aalu

Well-Known Member
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143
#4

मैं नहीं जानता था की मेरी तक़दीर मेरे लिए कुछ ऐसा लिख रही है जो नहीं होना था , बल्ब की पीली रौशनी में मैंने देखा चाची बिस्तर पर अकेली , लहंगा पेट तक उठा हुआ, छाती खुली हुई , एक हाथ में वो कोई किताब लिए थी जिसे पढ़ते हुए वो दुसरे हाथ को जोर जोर से हिला रही थी जो उनकी जांघो के बीच था . बेशक कमरे में पंखा पूरी रफ़्तार से चल रहा था पर गर्मी कुछ बढ़ सी गयी हो ऐसा मुझे महसूस हो रहा था . जांघो के बीच वो हाथ अजीब सी हरकते कर रहा था और तब मुझे मालूम हुआ की वो दरअसल वो चाची की उंगलिया थी जो तेजी से उनकी योनी के अन्दर बाहर हो रही थी .

बेशक मैं योनी को ठीक से नहीं देख पा रहा था परन्तु बालो की उस काली घटा को जरुर महसूस कर रहा था , चाची का पूरा ध्यान उस किताब को पढने में था . मेरी साँसे फूलने लगी थी . दो दिन में ये तीसरी बार हुआ था जब मैं चाची के बदन को इस तरह महसूस कर पा रहा था . मैंने अपने सीने पर पसीने की बूंदों को दौड़ते हुए महसूस किया .

ये सब देखने में बड़ा अच्छा लग रहा था पर अचानक से चाची बिस्तर पर गिर गयी . और लम्बी लम्बी साँसे भरने लगी . जैसे की बेहोशी छा गयी हो उनपर, पर फिर वो उठी, अपने ब्लाउज को बंद किया और उस किताब जिसे वो पढ़ रही थी तकिये के निचे रखा और बिस्तर से उठ गयी . मैं तुरंत वहा से हट गया क्योंकी अगर वो मुझे वहां पर देख लेती तो शायद हम दोनों ही शर्मिंदा हो जाते.



सुबह मैं उठा तो चाची ने मुझे चाय पिलाई, ऐसा लग ही नहीं रहा था की रात को यही औरत आधी नंगी होकर कुछ कर रही थी . खैर, मेरे दिमाग में बस यही था की उस किताब को देखूं की चाची क्या पढ़ रही थी , पर अफ़सोस तकिये के निचे अब वो किताब नहीं थी, शायद चाची ने उसे कहीं और रख दिया था .

घर जाते ही मेरा सामना मेरे पिता से हुआ. जो नाश्ता कर रहे थे .उन्होंने मुझे पास रखी कुर्सी पर बैठने को कहा .

“एक ही घर में रहते हुए , हम आपस में मिल नहीं पाते है , थोडा अजीब है न ये ” उन्होंने कहा.

मैं- ऐसी बात नहीं है जी

पिताजी- तुमने मोटर साइकिल लेने से मना कर दिया , गाड़ी तुम्हे नहीं चाहिए , घर वालो से तुम घुल मिल नहीं पाते हो , दोस्त तुम्हारे नहीं है , बेटे हमें तुम्हारी फ़िक्र होती है , कोई समस्या है तो बताओ, हम है तुम्हारे लिए तुम्हारे साथ .

मैं- कोई समस्या नहीं है पिताजी , और मैं बस यही आस पास ही तो आता जाता हूँ, उसके लिए साइकिल ठीक है गाड़ी मोटर की क्या ही जरुरत है .

पिताजी- चलो मान लिया , पर बेटे हमें मालूम हुआ तुम कीचड़ में उतर गए एक बैल गाड़ी को निकालने के लिए, तुम हमारे बेटे हो तुम्हे समझना चाहिए .

मैं- किसी की मदद करना अच्छी बात होती है आप ने ही तो सिखाया है

पिताजी- बेशक हमें दुसरो की मदद करनी चाहिए पर आम लोगो में और हम में थोडा फर्क है , इस बात को तुम्हे समझना होगा . खैर, हम चाहते है की तुम आगे की पढाई करने बम्बई या दिल्ली जाओ .

मैं- क्या जरुरत है पिताजी वहां जाने की जब अपने ही शहर में पढ़ सकता हूँ मैं

पिताजी- हम तुम्हारी राय नहीं पूछ रहे तुम्हे बता रहे है

मैं- मैं नहीं जाऊंगा कही और

ये कहकर मैं उठ गया और आँगन में आ गया . मैंने इस घर को देखा , इसने मुझे देखा और देखते ही रहे . खैर मैंने भाभी के साथ नाश्ता किया और अपनी साइकिल उठा कर बाहर आया ही था की चाची मिल गयी .

चाची- किधर जा रहा है

मैं- और कहा जाना बस उधर ही जहाँ अपना ठिकाना है

चाची- दो मिनट रुक फिर मुझे भी साथ ले चलना

“नहीं खुद ही आना ” मैंने कहा और उन्हें वही छोड़ कर चल दिया. गलियों को पार करते हुए मैं बड़े मैदान की तरफ जा रहा था की तभी मैंने सामने से उसे आते हुए देखा .केसरिया सूट में क्या गजब ही लग रही थी . वो नजदीक आई , उसने मुझे देखा, उसके होंठो पर जो मुस्कान थी उसका रहस्य अजीब लगा . बस हलके से उसकी उडती चुन्नी मुझे छू भर सी गयी और न जाने मुझे क्या हो गया . एक रूमानी अहसास , उसके गीले बालो से आती क्लिनिक प्लस शम्पू की खुशबु मुझे पागल कर गयी .



मैं उस से बात करना चाहता था , पर वो बस आगे बढ़ गयी , हमेशा की तरह उसने पलट कर नहीं देखा, इसके बारे में मालूम करना होगा , दिल ने संदेसा भेजा और मैंने कहा , हाँ जरुर. दिन भर मैं क्रिकेट खेलता रहा पर दिल दिमाग में बस उसका ही अक्स छाया रहा . और फिर कुछ सोचकर मैं जंगल में उस तरफ गया जहाँ पहली बार मैं उस से मिला था .

यकीं मानिए, उस दिन मैंने जाना था की किस्मत भी कोई चीज़ होती है , थोड़ी ही दूर वो मुझे लकडिया काटते हुए दिखी, लगभग दौड़ते हुए मैं उसके पास गया .

“क्या ” उसने मुझे हांफता देख पर पूछा

मैं- आपसे बात करनी थी .

वो-क्या बात करनी है

मैं- वो तो मालूम नहीं जी,

मेरी बात सुनकर उसने कुल्हाड़ी निचे रखी और लगभग हंस ही पड़ी .

“तो क्या मालूम है तुम्हे ” उसने शोखी से पूछा

मैं- पता नहीं जी

वो- चलो, मेरी मदद करो लकडिया काटने में एक से भले दो , अब तुम मिल ही गए हो तो मेरा काम थोडा आसान हो जायेगा.

मैंने कुल्हाड़ी उठाई और लकड़ी काटने लगा. करीब आधे घंटे में ही अच्छा ख़ासा गट्ठर हो गया .

“तुम्हारा मुझसे बार बार यूँ मिलना क्या ये इत्तेफाक है “ उसने पूछा

मैं- आपको क्या लगता है

वो- मुझे क्या लगेगा कुछ भी तो नहीं .

मैंने गट्ठर साइकिल पर रखा और बोला- चले

वो - हाँ, पर उठने दो मुझे जरा

उसने अपना हाथ आगे किया तो मैंने उसे थाम कर उठाया. ये हमारा पहला स्पर्श था.उसको क्या महसूस हुआ वो जाने , पर मैं बिन बादल झूम ही गया था .

“अब छोड़ भी दो न ”
उसने उसी शोखी से कहा तो मैं थोडा लाज्जित हो गया और हम थोड़ी बहुत बाते करते हुए वापिस गाँव की तरफ चल पड़े. पिछली जगह पर हम अलग हुए ही थे की मैंने प्रोफेसर साहब की गाड़ी को खड़े देखा. चाचा की गाडी इस वक्त यहाँ जंगल की तरफ क्या कर रही थी मैं सोचने को मजबूर हो गया . और गाड़ी की तरफ बढ़ गया .
yaar yeh chachi ne yoga bara hi ajeeb hi kar rahi thee, bhala yeh kaun sa aasan tha, unglasan:what1::what1::what1:. khair jaane do yeh bhi seekhne chahta hain lekin chachi abhi seekhayengi nahin. Bhai chachi mastram padh rahi hongi, jyada tension na le, jald hi tera bhi no aayega.

Baap raub jharna nahin chhorega, (hum puchh nahin rahe hain bata rahe hain) halwa hain kya, kuchh bhi. Bachha nhina hoon main haan.

Ab yeh chachi kee kya chool machi hui hain, bhai bari garam ho rahi hain isliye tere peeche pari hui hain, samajh le, kab tak haath gari chalayega. yeh lo phir nikal diye, chachi ke saath cricket khelta toh jyada maza aata tujhe bhi aur hame bhi.

Phir se aa gayee, chunni laharte hue, yaar yeh clinic plus shampoo, sahi hain bhai iski khusboo ne hame bhi bachpan mein bara pareshan kiiya hain, khoob lagaye hain hum bhi lekin kisi ne dhyan hi na diya. Chal diya free fund mein mehnat karne, aaj kal kee larkiya paise kharch karwati hain aur yeh, larkiya-lakriya katwati hain. bari chalu hain kaam karwa ke nikal di, isliye kuchh bolo to larkiya bura maan jaati hain.

Jaroor chach jee dancing car mein jungal mein mangal kar rahe honge.
 

Naik

Well-Known Member
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#3

इस से बेहतरीन सुबह और भला क्या होती , अचानक ही मेरी नजर उस पर पड़ी. और लगा की दिल साला कहीं ठहर से गया . लहराते आँचल से बेखबर वो दनदनाती हुई हाथो में थाली लिए सीढिया उतर कर मेरी तरफ ही आ रही थी . माथे पर बड़ा सा तिलक , हाथो में खनकती चूडिया . जी करे बस देखता ही रहूँ, और अचानक से ही हमारी नजरे मिली ,हमने इक दुसरे को देखा, मुस्कराहट को छुपाते हुए वो मेरे पास आई और बोली-”हाथ आगे करो ”

मैंने हथेली आगे की .

“ऐसे नहीं दोनों हाथ ” उसने जैसे आदेश दिया.

उसने एक लड्डू मेरे हाथ पर रखा और बोली- तुम यहाँ

मैं- वो भाभी आई है पूजा के लिए तो साथ आना पड़ा

वो- तो अन्दर क्यों नहीं गए.

मैं- अन्दर जाने की क्या जरुरत मुझे अब ,

अचानक ही वो हंस पड़ी .

“अच्छा रहता है यहाँ आना , आया करो ” उसने कहा

मैं- अब तो आना ही पड़ेगा

वो- खैर, मैं चलती हूँ देर हो रही है

मैं- मैं छोड़ दू आपको

वो- अरे नहीं,

उसने मेरी गाड़ी की तरफ देखते हुए कहा .

मैं- मुझे अच्छा लगेगा

वो- पर आदत तो मेरी बिगड़ जाएगी न

बेशक उसने बिना किसी तकल्लुफ के कहा था पर वो बात दिल को छू गयी .

“कुछ चीजों की आदत ठीक रहती है ” मैंने कहा

वो- और बाद में वहीँ आदते जंजाल बन जाती है , खैर फिर मुलाकात होगी अभी जाना होगा मुझे.

इतना कहकर उसने अपना रास्ता पकड़ लिया मैं बस उसे जाते हुए देखता रहा . मुझे लगा वो पलट कर देखेगी पर ऐसा नहीं हुआ. अब और करता भी क्या बस इंतज़ार ही था भाभी के आने का . थोड़ी देर बाद वो भी आ गयी . और हम घर की तरफ चल पड़े.

“क्या बात है देवर जी , चेहरे पर ये मुस्कान कैसी ” भाभी ने कहा

उनकी बात सुनकर मैं थोडा सकपका गया .

“नहीं भाभी कुछ भी तो नहीं ” मैंने कहा

भाभी- कुछ होना था क्या .

उन्होंने हँसते हुए कहा .

मैं- क्या भाभी आप भी , ऐसा करेंगी तो मैं फिर साथ नहीं आऊंगा.

भाभी- अच्छा बाबा,

हंसी ठिठोली करते हुए हम घर पहुंचे . मैंने देखा भाई आँगन में कुर्सी पर बैठा था . मैं उसे नजरंदाज करते हुए चोबारे में जाने लगा.

“छोटे, रुको, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है ” उसने कहा

मैं- पर मुझे कुछ नहीं कहना सुनना

भाई- बस तेरा ये रवैया ही तेरा दुश्मन है , मैं तेरे लिए एक मोटर साईकिल लाया था सोचा तू खुश होगा ,

मैं- मैं अपनी साइकिल से ही खुश हूँ , दूसरी बात मैं अपनी जरूरतों का ध्यान रख सकता हूँ मेरी चादर इतनी ही फैलती है जितनी मेरी औकात है . तीसरी बात मैं नहीं चाहता की हमारी वजह से इस घर की शान्ति भंग हो तो मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो .



“भाई हो तुम दोनों भाई एक दुसरे पर जान छिडकते है और तुम दोनों हो की जब भी एक दुसरे से बात करते हो , कलेश ही करते हो , आखिर क्या मन मुटाव है तुम्हारे बीच बताते तो भी नहीं . ” माँ ने हमारे बेच आते हुए कहा .

“भाइयो में कैसी नाराजगी माँ, छोटा है इसका हक़ है जो चाहे करे ,कोई बात नहीं इसे मोटर सायकल नहीं लेनी तो नहीं लेगा. छोटा है जिस दिन बड़ा होगा समझ जायेगा ” भाई ने माँ से कहा और अपने कमरे में चला गया .

रह गए मैं , माँ और भाभी .

मैं- ऐसे भाई नसीब वालो को मिलते है , इतना चाहता है तुझे कितनी परवाह करता है तेरी और तू है की ऐसा व्यवहार करता है .

मैं-माँ तू चाहे तो मुझे मार ले , पर इस बात को यही पर रहने दे,

माँ- या तो तुम अपने मसले हल कर लो वर्ना मैं तुम्हारे पिताजी को बता दूंगी फिर वो ही सुलटेंगे तुमसे, मेरी तो कोई सुनता ही नहीं है इस घर में .



मैं- ठीक है माँ, मेरी गलती हुई, मैं चलता हूँ

“देवर जी खाना तो खा लो, ” भाभी ने आँखों से मनुहार करते हुए कहा .

मैं- पेट भरा है भाभी , आजकल भूख ज्यदा नहीं लगती मुझे . वहां से मैं सीधा कुवे पर पहुंचा और जोर आजमाइश करने लगा अपने उसी बंजर टुकड़े के साथ , दोपहर फिर न जाने कब शाम हो गयी . दिन पूरा ही ढल गया था की मैंने चाची को आते देखा .

“आज फिर भाई से झगडा किया ” चाची ने मेरे पास बैठते हुए कहा .

मैं- इस बारे में मैं कोई बात नहीं करना चाहता और माँ ने अगर आपको भेजा है तो बेशक चली जाओ

चाची- तुझे क्या लगता है किसी को जरुरत है मुझे तेरे पास भेजने की .थोड़ी देर पहले ही शहर से आई, आते ही मालूम हुआ की सुबह बिना रोटी खाए तू निकला है घर से तो खाना ले आई . देख सब तेरी पसंद का बना है .

मैं- भूख नहीं है

चाची- मुझसे झूठ बोलेगा इतना बड़ा भी नहीं हुआ है तू.

मैं- मेरा वो मतलब नहीं था चाची

चाची- ठीक है , चल मेरे हाथो से खाना खिलाती हूँ , मेरी तसल्ली के लिए ही थोडा सा खा ले .

चाची ने टिफिन खोला और एक निवाला मेरे मुह में दिया . न जाने क्यों मेरी रुलाई छूट पड़ी . और मैं चाची के सीने से लग कर रोने लगा. चाची ने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और मेरी को सहलाने लगी.

“बस हो गया ,अब खाना खा ले तू नहीं खायेगा तो मैं भी नहीं खाने वाली आज रात ” चाची ने कहा .

मैं- खाता हूँ .

खाने के बाद चाची ने बर्तन समेटे और बोली- घर चले.

मैं- मेरा मन नहीं है

चाची- मेरे घर तो चल , वैसे भी प्रोफेसर साहब आज कही बाहर गए है तो अकेले मुझे डर लगेगा.

मैं- माँ है भाभी है तो सही

चाची- तुझे कोई दिक्कत है क्या , वैसे तो मेरी चाची , मेरी चाची करते रहता है और चाची को ही परेशां देख कर अच्छा लगता है तुझे .

मैं- ठीक है चाची ,चलते है .


घर आने के बाद हमने बहुत देर तक बाते की , रात बहुत बीती तो मैं फिर सोने चला गया . न जाने कितनी देर आँख लगी थी की उन अजीब सी आती आवाजो ने मेरी नींद छीन ली. ऐसा लग रहा था की जैसे चुडिया तेजी से खनक रही थी . मैं उठा और उस तरफ गया दरवाजा खुला था और जो मैंने देखा , बस देखता ही रह गया .
Behtareen update bhai
Zaberdast shaandaar lajawab
Bahot khoob superb
 

Naik

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#4

मैं नहीं जानता था की मेरी तक़दीर मेरे लिए कुछ ऐसा लिख रही है जो नहीं होना था , बल्ब की पीली रौशनी में मैंने देखा चाची बिस्तर पर अकेली , लहंगा पेट तक उठा हुआ, छाती खुली हुई , एक हाथ में वो कोई किताब लिए थी जिसे पढ़ते हुए वो दुसरे हाथ को जोर जोर से हिला रही थी जो उनकी जांघो के बीच था . बेशक कमरे में पंखा पूरी रफ़्तार से चल रहा था पर गर्मी कुछ बढ़ सी गयी हो ऐसा मुझे महसूस हो रहा था . जांघो के बीच वो हाथ अजीब सी हरकते कर रहा था और तब मुझे मालूम हुआ की वो दरअसल वो चाची की उंगलिया थी जो तेजी से उनकी योनी के अन्दर बाहर हो रही थी .

बेशक मैं योनी को ठीक से नहीं देख पा रहा था परन्तु बालो की उस काली घटा को जरुर महसूस कर रहा था , चाची का पूरा ध्यान उस किताब को पढने में था . मेरी साँसे फूलने लगी थी . दो दिन में ये तीसरी बार हुआ था जब मैं चाची के बदन को इस तरह महसूस कर पा रहा था . मैंने अपने सीने पर पसीने की बूंदों को दौड़ते हुए महसूस किया .

ये सब देखने में बड़ा अच्छा लग रहा था पर अचानक से चाची बिस्तर पर गिर गयी . और लम्बी लम्बी साँसे भरने लगी . जैसे की बेहोशी छा गयी हो उनपर, पर फिर वो उठी, अपने ब्लाउज को बंद किया और उस किताब जिसे वो पढ़ रही थी तकिये के निचे रखा और बिस्तर से उठ गयी . मैं तुरंत वहा से हट गया क्योंकी अगर वो मुझे वहां पर देख लेती तो शायद हम दोनों ही शर्मिंदा हो जाते.



सुबह मैं उठा तो चाची ने मुझे चाय पिलाई, ऐसा लग ही नहीं रहा था की रात को यही औरत आधी नंगी होकर कुछ कर रही थी . खैर, मेरे दिमाग में बस यही था की उस किताब को देखूं की चाची क्या पढ़ रही थी , पर अफ़सोस तकिये के निचे अब वो किताब नहीं थी, शायद चाची ने उसे कहीं और रख दिया था .

घर जाते ही मेरा सामना मेरे पिता से हुआ. जो नाश्ता कर रहे थे .उन्होंने मुझे पास रखी कुर्सी पर बैठने को कहा .

“एक ही घर में रहते हुए , हम आपस में मिल नहीं पाते है , थोडा अजीब है न ये ” उन्होंने कहा.

मैं- ऐसी बात नहीं है जी

पिताजी- तुमने मोटर साइकिल लेने से मना कर दिया , गाड़ी तुम्हे नहीं चाहिए , घर वालो से तुम घुल मिल नहीं पाते हो , दोस्त तुम्हारे नहीं है , बेटे हमें तुम्हारी फ़िक्र होती है , कोई समस्या है तो बताओ, हम है तुम्हारे लिए तुम्हारे साथ .

मैं- कोई समस्या नहीं है पिताजी , और मैं बस यही आस पास ही तो आता जाता हूँ, उसके लिए साइकिल ठीक है गाड़ी मोटर की क्या ही जरुरत है .

पिताजी- चलो मान लिया , पर बेटे हमें मालूम हुआ तुम कीचड़ में उतर गए एक बैल गाड़ी को निकालने के लिए, तुम हमारे बेटे हो तुम्हे समझना चाहिए .

मैं- किसी की मदद करना अच्छी बात होती है आप ने ही तो सिखाया है

पिताजी- बेशक हमें दुसरो की मदद करनी चाहिए पर आम लोगो में और हम में थोडा फर्क है , इस बात को तुम्हे समझना होगा . खैर, हम चाहते है की तुम आगे की पढाई करने बम्बई या दिल्ली जाओ .

मैं- क्या जरुरत है पिताजी वहां जाने की जब अपने ही शहर में पढ़ सकता हूँ मैं

पिताजी- हम तुम्हारी राय नहीं पूछ रहे तुम्हे बता रहे है

मैं- मैं नहीं जाऊंगा कही और

ये कहकर मैं उठ गया और आँगन में आ गया . मैंने इस घर को देखा , इसने मुझे देखा और देखते ही रहे . खैर मैंने भाभी के साथ नाश्ता किया और अपनी साइकिल उठा कर बाहर आया ही था की चाची मिल गयी .

चाची- किधर जा रहा है

मैं- और कहा जाना बस उधर ही जहाँ अपना ठिकाना है

चाची- दो मिनट रुक फिर मुझे भी साथ ले चलना

“नहीं खुद ही आना ” मैंने कहा और उन्हें वही छोड़ कर चल दिया. गलियों को पार करते हुए मैं बड़े मैदान की तरफ जा रहा था की तभी मैंने सामने से उसे आते हुए देखा .केसरिया सूट में क्या गजब ही लग रही थी . वो नजदीक आई , उसने मुझे देखा, उसके होंठो पर जो मुस्कान थी उसका रहस्य अजीब लगा . बस हलके से उसकी उडती चुन्नी मुझे छू भर सी गयी और न जाने मुझे क्या हो गया . एक रूमानी अहसास , उसके गीले बालो से आती क्लिनिक प्लस शम्पू की खुशबु मुझे पागल कर गयी .



मैं उस से बात करना चाहता था , पर वो बस आगे बढ़ गयी , हमेशा की तरह उसने पलट कर नहीं देखा, इसके बारे में मालूम करना होगा , दिल ने संदेसा भेजा और मैंने कहा , हाँ जरुर. दिन भर मैं क्रिकेट खेलता रहा पर दिल दिमाग में बस उसका ही अक्स छाया रहा . और फिर कुछ सोचकर मैं जंगल में उस तरफ गया जहाँ पहली बार मैं उस से मिला था .

यकीं मानिए, उस दिन मैंने जाना था की किस्मत भी कोई चीज़ होती है , थोड़ी ही दूर वो मुझे लकडिया काटते हुए दिखी, लगभग दौड़ते हुए मैं उसके पास गया .

“क्या ” उसने मुझे हांफता देख पर पूछा

मैं- आपसे बात करनी थी .

वो-क्या बात करनी है

मैं- वो तो मालूम नहीं जी,

मेरी बात सुनकर उसने कुल्हाड़ी निचे रखी और लगभग हंस ही पड़ी .

“तो क्या मालूम है तुम्हे ” उसने शोखी से पूछा

मैं- पता नहीं जी

वो- चलो, मेरी मदद करो लकडिया काटने में एक से भले दो , अब तुम मिल ही गए हो तो मेरा काम थोडा आसान हो जायेगा.

मैंने कुल्हाड़ी उठाई और लकड़ी काटने लगा. करीब आधे घंटे में ही अच्छा ख़ासा गट्ठर हो गया .

“तुम्हारा मुझसे बार बार यूँ मिलना क्या ये इत्तेफाक है “ उसने पूछा

मैं- आपको क्या लगता है

वो- मुझे क्या लगेगा कुछ भी तो नहीं .

मैंने गट्ठर साइकिल पर रखा और बोला- चले

वो - हाँ, पर उठने दो मुझे जरा

उसने अपना हाथ आगे किया तो मैंने उसे थाम कर उठाया. ये हमारा पहला स्पर्श था.उसको क्या महसूस हुआ वो जाने , पर मैं बिन बादल झूम ही गया था .

“अब छोड़ भी दो न ”
उसने उसी शोखी से कहा तो मैं थोडा लाज्जित हो गया और हम थोड़ी बहुत बाते करते हुए वापिस गाँव की तरफ चल पड़े. पिछली जगह पर हम अलग हुए ही थे की मैंने प्रोफेसर साहब की गाड़ी को खड़े देखा. चाचा की गाडी इस वक्त यहाँ जंगल की तरफ क्या कर रही थी मैं सोचने को मजबूर हो गया . और गाड़ी की तरफ बढ़ गया .
Bahot khoob shaandaar
Mazedaar lajawab update bhai
Bahot khoob superb
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,053
83,848
259
#5

पर गाडी के पास कोई नहीं था , थोड़ी दूर झाड़ियो में कुछ हलचल हो रही थी मैं दबे पाँव उस तरफ बढ़ा तो मैंने देखा की चाचा किसी आदमी से बात कर रहे थे , मैं थोडा दूर था इसलिए सुन नहीं पा रहा था पर उस अजीब से कपडे पहने आदमी को चाचा शायद कुछ समझाना चाह रहेथे उनके हाथो के इशारे इस प्रकार के ही थे.

फिर चाचा ने जेब से निकाल कर उसे कुछ पैसे दिए . मेरे लिए ये थोडा अजीब था क्योंकि चाचा एक अजीब ही प्रकार का चुतिया टाइप इन्सान था जो कालेज और खुद की लाइब्रेरी के सिवाय कही नहीं आता जाता था , पर फिर उनकी बाते खतम हो गयी और चचा गाड़ी की तरफ आने लगा तो मैं खिसक गया वहां से पर दिमाग में सवाल था की क्या बात कर रहा था .

सोचते सोचते मैं खेत पर आ पहुंचा , मौसम थोडा ठंडा हो चला था मैंने चारपाई बाहर निकाली और उस पर पसर गया. आस पास गहरा सन्नाटा लिए हवा लहरा रही थी . बस मैं था और ये तमाम जहाँ की तन्हाई , मेरे दिमाग में पिताजी के कहे शब्द गूँज रहे थे , “दिल्ली या बम्बई एक जगह चुन लो जहाँ तुम्हे आगे पढने जाना है ”



ऐसा नहीं था की मुझे पढाई में दिलचस्पी नहीं रही थी बस मैं यहाँ से दूर नहीं जाना चाहता था क्योंकि मैं सोचता था की पढाई के लिए बड़े कालेज का होना जरुरी नहीं है , साधारण सरकारी कालेज की डिग्री का भी उतना ही महत्त्व होता है . पर बाप को कौन समझाए . सोचते सोचते कब अँधेरा हो गया मालूम ही नहीं हुआ. मैंने उठ कर बल्ब जलाया , मन नहाने का था तो पानी की खेली में उतर गया . ठन्डे पानी ने मेरे सुलगते विचारो को राहत दी.

गले तक पानी में डूबा मैं एक बार फिर से उस लहराते आँचल की छाँव को महसूस करने लगा. गीले बालो की उस खुशबु को मैं भूल कर भी नहीं भुला पा रहा था . मेरी आँखों के सामने बार बार वो सांवला चेहरा आकर खड़ा हो जाता था , वो मर्ग नयनी आँखे जैसे सीधा मेरे दिल में झांकती थी , वो होंठ जैसे कुछ कहना चाहते हो .

“किस ख्याल में खोये हो बरखुर दार ” चाची की आवाज ने मेरी तन्द्रा भंग की , मैं चौंक गया .

“आप यहाँ ” मैंने सवाल किया

चाची- क्यों नहीं आ सकती क्या , वैसे मेरा ही खेत है

मैं- हाँ आपका ही है मेरा वो मतलब नहीं था मैं कहना चाहता था की रात घिर आई आप यहाँ क्या कर रही है आपको तो घर होना चाहिए था न .



मेरे यहाँ होने की वजह है घी का पीपा जो मैं दोपहर को भूल गयी थी ले जाना , चली तो शाम को ही थी रस्ते में मेरी एक सहेली के यहाँ बैठ गयी तो देर हो गयी , इधर आई तो रौशनी देख कर समझी तुम यही पर हो

मैं- ठीक है बस चलते है घर थोड़ी देर में



चाची- बेशक, वैसे तुम्हे मालूम तो होगा ही

मैं- क्या हुआ

चाची- अरे वो , बिमला थी न ,हलवाई की घरवाली वो किसी के साथ भाग गयी, गाँव में बड़ा शोर हुआ पड़ा है ,

मैं- शोर किसलिए उसकी मर्जी वो भागे या न भागे

चाची- कितना भोला है तू कब समझेगा तू दुनियादारी

मैं- चाची, उसकी जिन्दगी है वो चाहे कैसे भी जिए

चाची- समाज भी कुछ होता है , समाज के नियमो से दुनिया बंधी है

मैं- कोई और बात करते है

चाची- वैसे बहुरानी बता रही थी पूरी रात चोबारे में गाने बजते है आजकल क्या बात है

चाची ने चुटकी लेते हुए कहा

मैं- गाने सुनते सुनते आँख लग गयी थी तो बजता रहा बाजा , वैसे भी आवाज बेहद धीमी थी तो किसी को परेशानी नहीं हुई

“हाय रे ये लड़का ” चाची ने अपने माथे पर हाथ मारा

चाची- तू नहा ले तब तक मैं अन्दर होकर आती हु,

चाची अन्दर की तरफ जाने को दो कदम चली ही थी की तभी उसका पैर फिसला और वो गीली जमीन पर गिर गयी .

“आह , मैं तो मरी ” चाची चिल्लाई

मैं तुरंत खेली से बाहर निकला और चाची को उठाया

चाची- आह, लगता है टखना मुड गया मेरा तो आह्ह्ह्हह्ह

मैं- रुको जरा , देखने दो .

“मुढे पर बिठा मुझे जरा ” चाची ने कराहते हुए कहा .

मैंने चाची को बिठाया और चाची के कदमो में बैठते हुए उनके पांव को देखने लगा. इसी बीच चाची का लहंगा थोडा सा ऊँचा हो गया . बल्ब की रौशनी में मेरी नजर चाची की दोनों टांगो के बीच पहुँच गयी. बेहद गोरी जांघे मांस से भरी हुई , कांपते हुए हाथो से मैंने चाची के टखने को पकड़ा और कस कर दबाया .

“आईईईइ ” चाची जोर से चिल्लाई

मैं- बस हो गया .

मैंने टखने को घुमाते हुए कहा था . दरअसल मैं मोच देख रहा था पर मेरी आँखे कुछ और देख रही थी , न जाने मुझमे इतनी हिम्मत कहा से आ गयी थी मैंने चाची के पैर को उठा कर खुद के कंधे पर रखा चाची का लहंगा उनके पेट तक उठ गया और मैं उनकी दोनों नंगी जांघो को देख रहा और उस काली जालीदार कच्छी को भी जिसने उनकी योनी को छुपाया हुआ था .

मैंने देखा चाची की आँखे बंद दी. मैंने एक बार फिर से टखने को दबाया .

“आह, बस यही है दर्द ” चाची ने कहा .

मैं- बस हो गया .

मैंने अपना दूसरा हाथ चाची की ठोस जांघ पर रखा और कस कर उस मांसल भाग को दबाया. मैंने अपने निशान चाची की जांघो पर छपते हुए देखा. मेरी धडकने ईस्ट अरह भाग रहीथी जैसे की उन्हें कोई मैडल जीतना हो. पर तभी चाची ने अपनी आँखों को खोला और उनकी नजर मेरे उत्तेजित लिंग पर पड़ी, और दूसरी नजर उनकी अपनी हालत पर पड़ी जिसमे वो निचे से लगभग नंगी थी .

“हाय दैया ” चाची ने शर्म से अपनी आँखे मूँद ली और मैं वापिस बाहर भाग गया . ऐसा लग रहा था की दिल सीना फाड़ कर बाहर गिर जायेगा. उस से भी जायदा मुझे डर था की चाची मुझ पर गुस्सा करेंगी . मैंने जल्दी से गीला कच्छा फेंका और अपने कपडे पहन लिए. बेशक मैं अभी नहाया था पर अब डर से मुझे पसीना आने लगा. कुछ देर बाद चाची ने मुझे अन्दर आने को कहा तो मैं डरते हुए अन्दर गया .

चाची- तेरे दबाने से राहत तो हुई है मुझे लगता है मोच नहीं आई

मैं- घर चल कर मालिश करवा लेना आराम होगा .

चाची- दर्द हो रहा है घर तक कैसे चल पाऊँगी

मैं- साइकिल पर बिठा ले चलूँगा , घी कोई और ले जायेगा

चाची- ठीक है

मैंने चाची को सहारा देकर बाहर तक लाया और कमरे को ताला लगाया. पर चाची को पीछे बैठने में थोड़ी परेशानी हो रही थी .

मैं- एक काम करो आगे बैठ जाओ

चाची- न कोई देखेगा तो क्या कहेगा.

मैं- चारो तरफ अँधेरा है कौन देखेगा और बस्ती से पहले उतर जाना .

कुछ सोचकर चाची ने हाँ कह दी . मैंने चाची को साइकिल के डंडे पर बिठाया इसी बहाने मेरे हाथ उनके कुलहो को छू गए . उनकी आह को मैंने सुना . पैडल मारते हुए मेरे पैर बार बार चाची के कुलहो को छू रहे थे , उनके बदन की पसीने से भरी खुसबू मुझे पागल कर रही थी एक बार फिर मैं उत्तेजित होने लगा था और इसी उत्तेजना में ........ .....

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aalu

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Yaar tharki mind jungle mein car dekh ke kuchh ullul-jullul hi sochta hain, yeh chacha bara ajeeb admi hain udhar chachi tarapti rahti hain aur yeh admio se ishq farma raha hain:wink::wink:. Abe itne paise kisi ko akele mein de kahe raha hain, jo admi kitabo mein ghusa rahne wala hain, wo jungle mein aisa sandeh toh lajmi hain.

Aapki kahani ke saare nayko ko sahar se chidh kyun hoti hain, saare gaon mein hi rahte hain, aur unki lutiya bhi yahee doobti hain lekin phir bhi, nahin chhorenge. Khair hame kya, hame samjhana kaam tha, bhugtega.

Yaar phir se chachi, seedha pap ka dwar ke darshan karwa diye, hame toh nash chadhna bhi ek bahana lagta hain, kya kare pichhla record dekhte hue shaq ho jata hain. Khair uske oopar aur niche ke halat kharab kar ke rakh diya.

Ab aise cycle chalayega toh kuchh garbar toh karega hee... kaheen le ke ulat na jaye, bechari agar sach mein dard mein hogi toh.....
 
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