आपकी सब बाते सही है मित्र, परंतु क्या ही करे अब इस दिल का जो चैन नहीं लेने देता है, अभी से शक ना कीजिए अभी तो शुरुआत हैBhai mere tere jee ka janjala hain yeh, abhi bhi kehta hooon kaan band kar le, mandir jana chhor de, ghar se bhaag jaa, phir na kahio kahan fas gaya. Aur kameene kitna bara tharkee hain, mandir mein jaa ke nain matakka karta hain, aur ghar aa ke chachi ke angvalokan karta hain.
Phir bolega pyar ho gaya usse bhi, aur bhabhi toh hain hee.
Jokes A-fart, saral sabdo mein jaado karte ho, hamesha adhura chhor dete ho jaise arman jaga kee wo larki chali gayee.
jaroor iska bhai bhi iske tarah tharkee hain kaheen muh mar raha hoga, aur isne dekh liya hoga. Ab kameena maa ke samne bara achha ban raha hain, aur yeh bolega nahin.
mujhe phir iss chachi pe bhi shaq ho raha hain, kuchh jyada hi close ho rahi hain. Ab kya dekh liya, churi khanakna wo bhi raat mein, yaar mera mind dirty haain hamesha galat hi sochta hain, jaroor yoga kar rahi hogi. haan aisa hee hain.
yaar yeh chachi ne yoga bara hi ajeeb hi kar rahi thee, bhala yeh kaun sa aasan tha, unglasan. khair jaane do yeh bhi seekhne chahta hain lekin chachi abhi seekhayengi nahin. Bhai chachi mastram padh rahi hongi, jyada tension na le, jald hi tera bhi no aayega.#4
मैं नहीं जानता था की मेरी तक़दीर मेरे लिए कुछ ऐसा लिख रही है जो नहीं होना था , बल्ब की पीली रौशनी में मैंने देखा चाची बिस्तर पर अकेली , लहंगा पेट तक उठा हुआ, छाती खुली हुई , एक हाथ में वो कोई किताब लिए थी जिसे पढ़ते हुए वो दुसरे हाथ को जोर जोर से हिला रही थी जो उनकी जांघो के बीच था . बेशक कमरे में पंखा पूरी रफ़्तार से चल रहा था पर गर्मी कुछ बढ़ सी गयी हो ऐसा मुझे महसूस हो रहा था . जांघो के बीच वो हाथ अजीब सी हरकते कर रहा था और तब मुझे मालूम हुआ की वो दरअसल वो चाची की उंगलिया थी जो तेजी से उनकी योनी के अन्दर बाहर हो रही थी .
बेशक मैं योनी को ठीक से नहीं देख पा रहा था परन्तु बालो की उस काली घटा को जरुर महसूस कर रहा था , चाची का पूरा ध्यान उस किताब को पढने में था . मेरी साँसे फूलने लगी थी . दो दिन में ये तीसरी बार हुआ था जब मैं चाची के बदन को इस तरह महसूस कर पा रहा था . मैंने अपने सीने पर पसीने की बूंदों को दौड़ते हुए महसूस किया .
ये सब देखने में बड़ा अच्छा लग रहा था पर अचानक से चाची बिस्तर पर गिर गयी . और लम्बी लम्बी साँसे भरने लगी . जैसे की बेहोशी छा गयी हो उनपर, पर फिर वो उठी, अपने ब्लाउज को बंद किया और उस किताब जिसे वो पढ़ रही थी तकिये के निचे रखा और बिस्तर से उठ गयी . मैं तुरंत वहा से हट गया क्योंकी अगर वो मुझे वहां पर देख लेती तो शायद हम दोनों ही शर्मिंदा हो जाते.
सुबह मैं उठा तो चाची ने मुझे चाय पिलाई, ऐसा लग ही नहीं रहा था की रात को यही औरत आधी नंगी होकर कुछ कर रही थी . खैर, मेरे दिमाग में बस यही था की उस किताब को देखूं की चाची क्या पढ़ रही थी , पर अफ़सोस तकिये के निचे अब वो किताब नहीं थी, शायद चाची ने उसे कहीं और रख दिया था .
घर जाते ही मेरा सामना मेरे पिता से हुआ. जो नाश्ता कर रहे थे .उन्होंने मुझे पास रखी कुर्सी पर बैठने को कहा .
“एक ही घर में रहते हुए , हम आपस में मिल नहीं पाते है , थोडा अजीब है न ये ” उन्होंने कहा.
मैं- ऐसी बात नहीं है जी
पिताजी- तुमने मोटर साइकिल लेने से मना कर दिया , गाड़ी तुम्हे नहीं चाहिए , घर वालो से तुम घुल मिल नहीं पाते हो , दोस्त तुम्हारे नहीं है , बेटे हमें तुम्हारी फ़िक्र होती है , कोई समस्या है तो बताओ, हम है तुम्हारे लिए तुम्हारे साथ .
मैं- कोई समस्या नहीं है पिताजी , और मैं बस यही आस पास ही तो आता जाता हूँ, उसके लिए साइकिल ठीक है गाड़ी मोटर की क्या ही जरुरत है .
पिताजी- चलो मान लिया , पर बेटे हमें मालूम हुआ तुम कीचड़ में उतर गए एक बैल गाड़ी को निकालने के लिए, तुम हमारे बेटे हो तुम्हे समझना चाहिए .
मैं- किसी की मदद करना अच्छी बात होती है आप ने ही तो सिखाया है
पिताजी- बेशक हमें दुसरो की मदद करनी चाहिए पर आम लोगो में और हम में थोडा फर्क है , इस बात को तुम्हे समझना होगा . खैर, हम चाहते है की तुम आगे की पढाई करने बम्बई या दिल्ली जाओ .
मैं- क्या जरुरत है पिताजी वहां जाने की जब अपने ही शहर में पढ़ सकता हूँ मैं
पिताजी- हम तुम्हारी राय नहीं पूछ रहे तुम्हे बता रहे है
मैं- मैं नहीं जाऊंगा कही और
ये कहकर मैं उठ गया और आँगन में आ गया . मैंने इस घर को देखा , इसने मुझे देखा और देखते ही रहे . खैर मैंने भाभी के साथ नाश्ता किया और अपनी साइकिल उठा कर बाहर आया ही था की चाची मिल गयी .
चाची- किधर जा रहा है
मैं- और कहा जाना बस उधर ही जहाँ अपना ठिकाना है
चाची- दो मिनट रुक फिर मुझे भी साथ ले चलना
“नहीं खुद ही आना ” मैंने कहा और उन्हें वही छोड़ कर चल दिया. गलियों को पार करते हुए मैं बड़े मैदान की तरफ जा रहा था की तभी मैंने सामने से उसे आते हुए देखा .केसरिया सूट में क्या गजब ही लग रही थी . वो नजदीक आई , उसने मुझे देखा, उसके होंठो पर जो मुस्कान थी उसका रहस्य अजीब लगा . बस हलके से उसकी उडती चुन्नी मुझे छू भर सी गयी और न जाने मुझे क्या हो गया . एक रूमानी अहसास , उसके गीले बालो से आती क्लिनिक प्लस शम्पू की खुशबु मुझे पागल कर गयी .
मैं उस से बात करना चाहता था , पर वो बस आगे बढ़ गयी , हमेशा की तरह उसने पलट कर नहीं देखा, इसके बारे में मालूम करना होगा , दिल ने संदेसा भेजा और मैंने कहा , हाँ जरुर. दिन भर मैं क्रिकेट खेलता रहा पर दिल दिमाग में बस उसका ही अक्स छाया रहा . और फिर कुछ सोचकर मैं जंगल में उस तरफ गया जहाँ पहली बार मैं उस से मिला था .
यकीं मानिए, उस दिन मैंने जाना था की किस्मत भी कोई चीज़ होती है , थोड़ी ही दूर वो मुझे लकडिया काटते हुए दिखी, लगभग दौड़ते हुए मैं उसके पास गया .
“क्या ” उसने मुझे हांफता देख पर पूछा
मैं- आपसे बात करनी थी .
वो-क्या बात करनी है
मैं- वो तो मालूम नहीं जी,
मेरी बात सुनकर उसने कुल्हाड़ी निचे रखी और लगभग हंस ही पड़ी .
“तो क्या मालूम है तुम्हे ” उसने शोखी से पूछा
मैं- पता नहीं जी
वो- चलो, मेरी मदद करो लकडिया काटने में एक से भले दो , अब तुम मिल ही गए हो तो मेरा काम थोडा आसान हो जायेगा.
मैंने कुल्हाड़ी उठाई और लकड़ी काटने लगा. करीब आधे घंटे में ही अच्छा ख़ासा गट्ठर हो गया .
“तुम्हारा मुझसे बार बार यूँ मिलना क्या ये इत्तेफाक है “ उसने पूछा
मैं- आपको क्या लगता है
वो- मुझे क्या लगेगा कुछ भी तो नहीं .
मैंने गट्ठर साइकिल पर रखा और बोला- चले
वो - हाँ, पर उठने दो मुझे जरा
उसने अपना हाथ आगे किया तो मैंने उसे थाम कर उठाया. ये हमारा पहला स्पर्श था.उसको क्या महसूस हुआ वो जाने , पर मैं बिन बादल झूम ही गया था .
“अब छोड़ भी दो न ” उसने उसी शोखी से कहा तो मैं थोडा लाज्जित हो गया और हम थोड़ी बहुत बाते करते हुए वापिस गाँव की तरफ चल पड़े. पिछली जगह पर हम अलग हुए ही थे की मैंने प्रोफेसर साहब की गाड़ी को खड़े देखा. चाचा की गाडी इस वक्त यहाँ जंगल की तरफ क्या कर रही थी मैं सोचने को मजबूर हो गया . और गाड़ी की तरफ बढ़ गया .
Behtareen update bhai#3
इस से बेहतरीन सुबह और भला क्या होती , अचानक ही मेरी नजर उस पर पड़ी. और लगा की दिल साला कहीं ठहर से गया . लहराते आँचल से बेखबर वो दनदनाती हुई हाथो में थाली लिए सीढिया उतर कर मेरी तरफ ही आ रही थी . माथे पर बड़ा सा तिलक , हाथो में खनकती चूडिया . जी करे बस देखता ही रहूँ, और अचानक से ही हमारी नजरे मिली ,हमने इक दुसरे को देखा, मुस्कराहट को छुपाते हुए वो मेरे पास आई और बोली-”हाथ आगे करो ”
मैंने हथेली आगे की .
“ऐसे नहीं दोनों हाथ ” उसने जैसे आदेश दिया.
उसने एक लड्डू मेरे हाथ पर रखा और बोली- तुम यहाँ
मैं- वो भाभी आई है पूजा के लिए तो साथ आना पड़ा
वो- तो अन्दर क्यों नहीं गए.
मैं- अन्दर जाने की क्या जरुरत मुझे अब ,
अचानक ही वो हंस पड़ी .
“अच्छा रहता है यहाँ आना , आया करो ” उसने कहा
मैं- अब तो आना ही पड़ेगा
वो- खैर, मैं चलती हूँ देर हो रही है
मैं- मैं छोड़ दू आपको
वो- अरे नहीं,
उसने मेरी गाड़ी की तरफ देखते हुए कहा .
मैं- मुझे अच्छा लगेगा
वो- पर आदत तो मेरी बिगड़ जाएगी न
बेशक उसने बिना किसी तकल्लुफ के कहा था पर वो बात दिल को छू गयी .
“कुछ चीजों की आदत ठीक रहती है ” मैंने कहा
वो- और बाद में वहीँ आदते जंजाल बन जाती है , खैर फिर मुलाकात होगी अभी जाना होगा मुझे.
इतना कहकर उसने अपना रास्ता पकड़ लिया मैं बस उसे जाते हुए देखता रहा . मुझे लगा वो पलट कर देखेगी पर ऐसा नहीं हुआ. अब और करता भी क्या बस इंतज़ार ही था भाभी के आने का . थोड़ी देर बाद वो भी आ गयी . और हम घर की तरफ चल पड़े.
“क्या बात है देवर जी , चेहरे पर ये मुस्कान कैसी ” भाभी ने कहा
उनकी बात सुनकर मैं थोडा सकपका गया .
“नहीं भाभी कुछ भी तो नहीं ” मैंने कहा
भाभी- कुछ होना था क्या .
उन्होंने हँसते हुए कहा .
मैं- क्या भाभी आप भी , ऐसा करेंगी तो मैं फिर साथ नहीं आऊंगा.
भाभी- अच्छा बाबा,
हंसी ठिठोली करते हुए हम घर पहुंचे . मैंने देखा भाई आँगन में कुर्सी पर बैठा था . मैं उसे नजरंदाज करते हुए चोबारे में जाने लगा.
“छोटे, रुको, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है ” उसने कहा
मैं- पर मुझे कुछ नहीं कहना सुनना
भाई- बस तेरा ये रवैया ही तेरा दुश्मन है , मैं तेरे लिए एक मोटर साईकिल लाया था सोचा तू खुश होगा ,
मैं- मैं अपनी साइकिल से ही खुश हूँ , दूसरी बात मैं अपनी जरूरतों का ध्यान रख सकता हूँ मेरी चादर इतनी ही फैलती है जितनी मेरी औकात है . तीसरी बात मैं नहीं चाहता की हमारी वजह से इस घर की शान्ति भंग हो तो मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो .
“भाई हो तुम दोनों भाई एक दुसरे पर जान छिडकते है और तुम दोनों हो की जब भी एक दुसरे से बात करते हो , कलेश ही करते हो , आखिर क्या मन मुटाव है तुम्हारे बीच बताते तो भी नहीं . ” माँ ने हमारे बेच आते हुए कहा .
“भाइयो में कैसी नाराजगी माँ, छोटा है इसका हक़ है जो चाहे करे ,कोई बात नहीं इसे मोटर सायकल नहीं लेनी तो नहीं लेगा. छोटा है जिस दिन बड़ा होगा समझ जायेगा ” भाई ने माँ से कहा और अपने कमरे में चला गया .
रह गए मैं , माँ और भाभी .
मैं- ऐसे भाई नसीब वालो को मिलते है , इतना चाहता है तुझे कितनी परवाह करता है तेरी और तू है की ऐसा व्यवहार करता है .
मैं-माँ तू चाहे तो मुझे मार ले , पर इस बात को यही पर रहने दे,
माँ- या तो तुम अपने मसले हल कर लो वर्ना मैं तुम्हारे पिताजी को बता दूंगी फिर वो ही सुलटेंगे तुमसे, मेरी तो कोई सुनता ही नहीं है इस घर में .
मैं- ठीक है माँ, मेरी गलती हुई, मैं चलता हूँ
“देवर जी खाना तो खा लो, ” भाभी ने आँखों से मनुहार करते हुए कहा .
मैं- पेट भरा है भाभी , आजकल भूख ज्यदा नहीं लगती मुझे . वहां से मैं सीधा कुवे पर पहुंचा और जोर आजमाइश करने लगा अपने उसी बंजर टुकड़े के साथ , दोपहर फिर न जाने कब शाम हो गयी . दिन पूरा ही ढल गया था की मैंने चाची को आते देखा .
“आज फिर भाई से झगडा किया ” चाची ने मेरे पास बैठते हुए कहा .
मैं- इस बारे में मैं कोई बात नहीं करना चाहता और माँ ने अगर आपको भेजा है तो बेशक चली जाओ
चाची- तुझे क्या लगता है किसी को जरुरत है मुझे तेरे पास भेजने की .थोड़ी देर पहले ही शहर से आई, आते ही मालूम हुआ की सुबह बिना रोटी खाए तू निकला है घर से तो खाना ले आई . देख सब तेरी पसंद का बना है .
मैं- भूख नहीं है
चाची- मुझसे झूठ बोलेगा इतना बड़ा भी नहीं हुआ है तू.
मैं- मेरा वो मतलब नहीं था चाची
चाची- ठीक है , चल मेरे हाथो से खाना खिलाती हूँ , मेरी तसल्ली के लिए ही थोडा सा खा ले .
चाची ने टिफिन खोला और एक निवाला मेरे मुह में दिया . न जाने क्यों मेरी रुलाई छूट पड़ी . और मैं चाची के सीने से लग कर रोने लगा. चाची ने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और मेरी को सहलाने लगी.
“बस हो गया ,अब खाना खा ले तू नहीं खायेगा तो मैं भी नहीं खाने वाली आज रात ” चाची ने कहा .
मैं- खाता हूँ .
खाने के बाद चाची ने बर्तन समेटे और बोली- घर चले.
मैं- मेरा मन नहीं है
चाची- मेरे घर तो चल , वैसे भी प्रोफेसर साहब आज कही बाहर गए है तो अकेले मुझे डर लगेगा.
मैं- माँ है भाभी है तो सही
चाची- तुझे कोई दिक्कत है क्या , वैसे तो मेरी चाची , मेरी चाची करते रहता है और चाची को ही परेशां देख कर अच्छा लगता है तुझे .
मैं- ठीक है चाची ,चलते है .
घर आने के बाद हमने बहुत देर तक बाते की , रात बहुत बीती तो मैं फिर सोने चला गया . न जाने कितनी देर आँख लगी थी की उन अजीब सी आती आवाजो ने मेरी नींद छीन ली. ऐसा लग रहा था की जैसे चुडिया तेजी से खनक रही थी . मैं उठा और उस तरफ गया दरवाजा खुला था और जो मैंने देखा , बस देखता ही रह गया .
Bahot khoob shaandaar#4
मैं नहीं जानता था की मेरी तक़दीर मेरे लिए कुछ ऐसा लिख रही है जो नहीं होना था , बल्ब की पीली रौशनी में मैंने देखा चाची बिस्तर पर अकेली , लहंगा पेट तक उठा हुआ, छाती खुली हुई , एक हाथ में वो कोई किताब लिए थी जिसे पढ़ते हुए वो दुसरे हाथ को जोर जोर से हिला रही थी जो उनकी जांघो के बीच था . बेशक कमरे में पंखा पूरी रफ़्तार से चल रहा था पर गर्मी कुछ बढ़ सी गयी हो ऐसा मुझे महसूस हो रहा था . जांघो के बीच वो हाथ अजीब सी हरकते कर रहा था और तब मुझे मालूम हुआ की वो दरअसल वो चाची की उंगलिया थी जो तेजी से उनकी योनी के अन्दर बाहर हो रही थी .
बेशक मैं योनी को ठीक से नहीं देख पा रहा था परन्तु बालो की उस काली घटा को जरुर महसूस कर रहा था , चाची का पूरा ध्यान उस किताब को पढने में था . मेरी साँसे फूलने लगी थी . दो दिन में ये तीसरी बार हुआ था जब मैं चाची के बदन को इस तरह महसूस कर पा रहा था . मैंने अपने सीने पर पसीने की बूंदों को दौड़ते हुए महसूस किया .
ये सब देखने में बड़ा अच्छा लग रहा था पर अचानक से चाची बिस्तर पर गिर गयी . और लम्बी लम्बी साँसे भरने लगी . जैसे की बेहोशी छा गयी हो उनपर, पर फिर वो उठी, अपने ब्लाउज को बंद किया और उस किताब जिसे वो पढ़ रही थी तकिये के निचे रखा और बिस्तर से उठ गयी . मैं तुरंत वहा से हट गया क्योंकी अगर वो मुझे वहां पर देख लेती तो शायद हम दोनों ही शर्मिंदा हो जाते.
सुबह मैं उठा तो चाची ने मुझे चाय पिलाई, ऐसा लग ही नहीं रहा था की रात को यही औरत आधी नंगी होकर कुछ कर रही थी . खैर, मेरे दिमाग में बस यही था की उस किताब को देखूं की चाची क्या पढ़ रही थी , पर अफ़सोस तकिये के निचे अब वो किताब नहीं थी, शायद चाची ने उसे कहीं और रख दिया था .
घर जाते ही मेरा सामना मेरे पिता से हुआ. जो नाश्ता कर रहे थे .उन्होंने मुझे पास रखी कुर्सी पर बैठने को कहा .
“एक ही घर में रहते हुए , हम आपस में मिल नहीं पाते है , थोडा अजीब है न ये ” उन्होंने कहा.
मैं- ऐसी बात नहीं है जी
पिताजी- तुमने मोटर साइकिल लेने से मना कर दिया , गाड़ी तुम्हे नहीं चाहिए , घर वालो से तुम घुल मिल नहीं पाते हो , दोस्त तुम्हारे नहीं है , बेटे हमें तुम्हारी फ़िक्र होती है , कोई समस्या है तो बताओ, हम है तुम्हारे लिए तुम्हारे साथ .
मैं- कोई समस्या नहीं है पिताजी , और मैं बस यही आस पास ही तो आता जाता हूँ, उसके लिए साइकिल ठीक है गाड़ी मोटर की क्या ही जरुरत है .
पिताजी- चलो मान लिया , पर बेटे हमें मालूम हुआ तुम कीचड़ में उतर गए एक बैल गाड़ी को निकालने के लिए, तुम हमारे बेटे हो तुम्हे समझना चाहिए .
मैं- किसी की मदद करना अच्छी बात होती है आप ने ही तो सिखाया है
पिताजी- बेशक हमें दुसरो की मदद करनी चाहिए पर आम लोगो में और हम में थोडा फर्क है , इस बात को तुम्हे समझना होगा . खैर, हम चाहते है की तुम आगे की पढाई करने बम्बई या दिल्ली जाओ .
मैं- क्या जरुरत है पिताजी वहां जाने की जब अपने ही शहर में पढ़ सकता हूँ मैं
पिताजी- हम तुम्हारी राय नहीं पूछ रहे तुम्हे बता रहे है
मैं- मैं नहीं जाऊंगा कही और
ये कहकर मैं उठ गया और आँगन में आ गया . मैंने इस घर को देखा , इसने मुझे देखा और देखते ही रहे . खैर मैंने भाभी के साथ नाश्ता किया और अपनी साइकिल उठा कर बाहर आया ही था की चाची मिल गयी .
चाची- किधर जा रहा है
मैं- और कहा जाना बस उधर ही जहाँ अपना ठिकाना है
चाची- दो मिनट रुक फिर मुझे भी साथ ले चलना
“नहीं खुद ही आना ” मैंने कहा और उन्हें वही छोड़ कर चल दिया. गलियों को पार करते हुए मैं बड़े मैदान की तरफ जा रहा था की तभी मैंने सामने से उसे आते हुए देखा .केसरिया सूट में क्या गजब ही लग रही थी . वो नजदीक आई , उसने मुझे देखा, उसके होंठो पर जो मुस्कान थी उसका रहस्य अजीब लगा . बस हलके से उसकी उडती चुन्नी मुझे छू भर सी गयी और न जाने मुझे क्या हो गया . एक रूमानी अहसास , उसके गीले बालो से आती क्लिनिक प्लस शम्पू की खुशबु मुझे पागल कर गयी .
मैं उस से बात करना चाहता था , पर वो बस आगे बढ़ गयी , हमेशा की तरह उसने पलट कर नहीं देखा, इसके बारे में मालूम करना होगा , दिल ने संदेसा भेजा और मैंने कहा , हाँ जरुर. दिन भर मैं क्रिकेट खेलता रहा पर दिल दिमाग में बस उसका ही अक्स छाया रहा . और फिर कुछ सोचकर मैं जंगल में उस तरफ गया जहाँ पहली बार मैं उस से मिला था .
यकीं मानिए, उस दिन मैंने जाना था की किस्मत भी कोई चीज़ होती है , थोड़ी ही दूर वो मुझे लकडिया काटते हुए दिखी, लगभग दौड़ते हुए मैं उसके पास गया .
“क्या ” उसने मुझे हांफता देख पर पूछा
मैं- आपसे बात करनी थी .
वो-क्या बात करनी है
मैं- वो तो मालूम नहीं जी,
मेरी बात सुनकर उसने कुल्हाड़ी निचे रखी और लगभग हंस ही पड़ी .
“तो क्या मालूम है तुम्हे ” उसने शोखी से पूछा
मैं- पता नहीं जी
वो- चलो, मेरी मदद करो लकडिया काटने में एक से भले दो , अब तुम मिल ही गए हो तो मेरा काम थोडा आसान हो जायेगा.
मैंने कुल्हाड़ी उठाई और लकड़ी काटने लगा. करीब आधे घंटे में ही अच्छा ख़ासा गट्ठर हो गया .
“तुम्हारा मुझसे बार बार यूँ मिलना क्या ये इत्तेफाक है “ उसने पूछा
मैं- आपको क्या लगता है
वो- मुझे क्या लगेगा कुछ भी तो नहीं .
मैंने गट्ठर साइकिल पर रखा और बोला- चले
वो - हाँ, पर उठने दो मुझे जरा
उसने अपना हाथ आगे किया तो मैंने उसे थाम कर उठाया. ये हमारा पहला स्पर्श था.उसको क्या महसूस हुआ वो जाने , पर मैं बिन बादल झूम ही गया था .
“अब छोड़ भी दो न ” उसने उसी शोखी से कहा तो मैं थोडा लाज्जित हो गया और हम थोड़ी बहुत बाते करते हुए वापिस गाँव की तरफ चल पड़े. पिछली जगह पर हम अलग हुए ही थे की मैंने प्रोफेसर साहब की गाड़ी को खड़े देखा. चाचा की गाडी इस वक्त यहाँ जंगल की तरफ क्या कर रही थी मैं सोचने को मजबूर हो गया . और गाड़ी की तरफ बढ़ गया .