• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery प्रीत +दिल अपना प्रीत पराई 2

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,053
83,847
259
first of all :congrats: for new story...

.....
So hero ki jindagi mein ek badlav aane ko hai.. aur wo bhi kis wajah se.. uski khud ki chachi ki wajah se :D
udhar bina kapdon ke Kya dekha idhar ek aash, ek tharak jaga :buttkick:
Btw yeh hero aur uske bade bhai ke bich ka kya matter hain, jo ek dusre se baat tak nahi karte... I think uske bade bhai ne jarur kuch kand kiya hoga past mein, jiske chalte ye haalat paida huyi hai....
Btw hero ka naam kundan hi rakhna... :D
aur bhabhi ka naam jashpreet :respekt:
Khair....
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills franky :applause: :applause:
जैसा मैंने तुमसे कहा था 💡, बस मिल गया
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,620
92,259
189
#4

मैं नहीं जानता था की मेरी तक़दीर मेरे लिए कुछ ऐसा लिख रही है जो नहीं होना था , बल्ब की पीली रौशनी में मैंने देखा चाची बिस्तर पर अकेली , लहंगा पेट तक उठा हुआ, छाती खुली हुई , एक हाथ में वो कोई किताब लिए थी जिसे पढ़ते हुए वो दुसरे हाथ को जोर जोर से हिला रही थी जो उनकी जांघो के बीच था . बेशक कमरे में पंखा पूरी रफ़्तार से चल रहा था पर गर्मी कुछ बढ़ सी गयी हो ऐसा मुझे महसूस हो रहा था . जांघो के बीच वो हाथ अजीब सी हरकते कर रहा था और तब मुझे मालूम हुआ की वो दरअसल वो चाची की उंगलिया थी जो तेजी से उनकी योनी के अन्दर बाहर हो रही थी .

बेशक मैं योनी को ठीक से नहीं देख पा रहा था परन्तु बालो की उस काली घटा को जरुर महसूस कर रहा था , चाची का पूरा ध्यान उस किताब को पढने में था . मेरी साँसे फूलने लगी थी . दो दिन में ये तीसरी बार हुआ था जब मैं चाची के बदन को इस तरह महसूस कर पा रहा था . मैंने अपने सीने पर पसीने की बूंदों को दौड़ते हुए महसूस किया .

ये सब देखने में बड़ा अच्छा लग रहा था पर अचानक से चाची बिस्तर पर गिर गयी . और लम्बी लम्बी साँसे भरने लगी . जैसे की बेहोशी छा गयी हो उनपर, पर फिर वो उठी, अपने ब्लाउज को बंद किया और उस किताब जिसे वो पढ़ रही थी तकिये के निचे रखा और बिस्तर से उठ गयी . मैं तुरंत वहा से हट गया क्योंकी अगर वो मुझे वहां पर देख लेती तो शायद हम दोनों ही शर्मिंदा हो जाते.



सुबह मैं उठा तो चाची ने मुझे चाय पिलाई, ऐसा लग ही नहीं रहा था की रात को यही औरत आधी नंगी होकर कुछ कर रही थी . खैर, मेरे दिमाग में बस यही था की उस किताब को देखूं की चाची क्या पढ़ रही थी , पर अफ़सोस तकिये के निचे अब वो किताब नहीं थी, शायद चाची ने उसे कहीं और रख दिया था .

घर जाते ही मेरा सामना मेरे पिता से हुआ. जो नाश्ता कर रहे थे .उन्होंने मुझे पास रखी कुर्सी पर बैठने को कहा .

“एक ही घर में रहते हुए , हम आपस में मिल नहीं पाते है , थोडा अजीब है न ये ” उन्होंने कहा.

मैं- ऐसी बात नहीं है जी

पिताजी- तुमने मोटर साइकिल लेने से मना कर दिया , गाड़ी तुम्हे नहीं चाहिए , घर वालो से तुम घुल मिल नहीं पाते हो , दोस्त तुम्हारे नहीं है , बेटे हमें तुम्हारी फ़िक्र होती है , कोई समस्या है तो बताओ, हम है तुम्हारे लिए तुम्हारे साथ .

मैं- कोई समस्या नहीं है पिताजी , और मैं बस यही आस पास ही तो आता जाता हूँ, उसके लिए साइकिल ठीक है गाड़ी मोटर की क्या ही जरुरत है .

पिताजी- चलो मान लिया , पर बेटे हमें मालूम हुआ तुम कीचड़ में उतर गए एक बैल गाड़ी को निकालने के लिए, तुम हमारे बेटे हो तुम्हे समझना चाहिए .

मैं- किसी की मदद करना अच्छी बात होती है आप ने ही तो सिखाया है

पिताजी- बेशक हमें दुसरो की मदद करनी चाहिए पर आम लोगो में और हम में थोडा फर्क है , इस बात को तुम्हे समझना होगा . खैर, हम चाहते है की तुम आगे की पढाई करने बम्बई या दिल्ली जाओ .

मैं- क्या जरुरत है पिताजी वहां जाने की जब अपने ही शहर में पढ़ सकता हूँ मैं

पिताजी- हम तुम्हारी राय नहीं पूछ रहे तुम्हे बता रहे है

मैं- मैं नहीं जाऊंगा कही और

ये कहकर मैं उठ गया और आँगन में आ गया . मैंने इस घर को देखा , इसने मुझे देखा और देखते ही रहे . खैर मैंने भाभी के साथ नाश्ता किया और अपनी साइकिल उठा कर बाहर आया ही था की चाची मिल गयी .

चाची- किधर जा रहा है

मैं- और कहा जाना बस उधर ही जहाँ अपना ठिकाना है

चाची- दो मिनट रुक फिर मुझे भी साथ ले चलना

“नहीं खुद ही आना ” मैंने कहा और उन्हें वही छोड़ कर चल दिया. गलियों को पार करते हुए मैं बड़े मैदान की तरफ जा रहा था की तभी मैंने सामने से उसे आते हुए देखा .केसरिया सूट में क्या गजब ही लग रही थी . वो नजदीक आई , उसने मुझे देखा, उसके होंठो पर जो मुस्कान थी उसका रहस्य अजीब लगा . बस हलके से उसकी उडती चुन्नी मुझे छू भर सी गयी और न जाने मुझे क्या हो गया . एक रूमानी अहसास , उसके गीले बालो से आती क्लिनिक प्लस शम्पू की खुशबु मुझे पागल कर गयी .



मैं उस से बात करना चाहता था , पर वो बस आगे बढ़ गयी , हमेशा की तरह उसने पलट कर नहीं देखा, इसके बारे में मालूम करना होगा , दिल ने संदेसा भेजा और मैंने कहा , हाँ जरुर. दिन भर मैं क्रिकेट खेलता रहा पर दिल दिमाग में बस उसका ही अक्स छाया रहा . और फिर कुछ सोचकर मैं जंगल में उस तरफ गया जहाँ पहली बार मैं उस से मिला था .

यकीं मानिए, उस दिन मैंने जाना था की किस्मत भी कोई चीज़ होती है , थोड़ी ही दूर वो मुझे लकडिया काटते हुए दिखी, लगभग दौड़ते हुए मैं उसके पास गया .

“क्या ” उसने मुझे हांफता देख पर पूछा

मैं- आपसे बात करनी थी .

वो-क्या बात करनी है

मैं- वो तो मालूम नहीं जी,

मेरी बात सुनकर उसने कुल्हाड़ी निचे रखी और लगभग हंस ही पड़ी .

“तो क्या मालूम है तुम्हे ” उसने शोखी से पूछा

मैं- पता नहीं जी

वो- चलो, मेरी मदद करो लकडिया काटने में एक से भले दो , अब तुम मिल ही गए हो तो मेरा काम थोडा आसान हो जायेगा.

मैंने कुल्हाड़ी उठाई और लकड़ी काटने लगा. करीब आधे घंटे में ही अच्छा ख़ासा गट्ठर हो गया .

“तुम्हारा मुझसे बार बार यूँ मिलना क्या ये इत्तेफाक है “ उसने पूछा

मैं- आपको क्या लगता है

वो- मुझे क्या लगेगा कुछ भी तो नहीं .

मैंने गट्ठर साइकिल पर रखा और बोला- चले

वो - हाँ, पर उठने दो मुझे जरा

उसने अपना हाथ आगे किया तो मैंने उसे थाम कर उठाया. ये हमारा पहला स्पर्श था.उसको क्या महसूस हुआ वो जाने , पर मैं बिन बादल झूम ही गया था .

“अब छोड़ भी दो न ”
उसने उसी शोखी से कहा तो मैं थोडा लाज्जित हो गया और हम थोड़ी बहुत बाते करते हुए वापिस गाँव की तरफ चल पड़े. पिछली जगह पर हम अलग हुए ही थे की मैंने प्रोफेसर साहब की गाड़ी को खड़े देखा. चाचा की गाडी इस वक्त यहाँ जंगल की तरफ क्या कर रही थी मैं सोचने को मजबूर हो गया . और गाड़ी की तरफ बढ़ गया .
lo ji chachi ki prati kamukta badhani ki koshish writer sahab ki lekin ab sochne wali baat hai ki hero insects lober hai ki hero mein ab bhi insaaniyat baaki hai, ab bhi kuch rishto ki maryada ko samajhta hai..
kahani ki heroine matlab puja hazir jawabi dene mein mahir hai..
bhaiyo ke bich mann mutav jaari hai jiske chalte gharwale pareshan...
Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skill :applause: :applause:
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,053
83,847
259
#8

“जेठ जी के लाकर में चोरी हुई है ” चाची ने मुझे बताया

मैं- किसकी इतनी मजाल होगी जो ततैये के छत्ते में हाथ डालेगा, और पिताजी ने भला लाकर में क्या रखा होगा .

चाची- वो तो मैं नहीं जानती की क्या रखा होगा पर कुछ महत्वपूर्ण ही रहा होगा क्योंकि जेठ जी थोड़े से विचलित थे.

मैं- ठीक है मैं घर जा रहा हूँ चाचा आयेंगे तो आऊंगा

चाची- रुक न मेरे पास,

मैं- अभी नहीं बाद में आता हूँ .

मैंने एक नजर चाची के ब्लाउज से बाहर झांकती चुचियो पर डाली और वहां से निकल गया . घर आया तो मैंने पाया एक गहरी ख़ामोशी छाई हुई थी जैसे की बरसो से यहाँ पर कोई रहता नहीं हो मैं सीधा भाभी के पास गया .

“कहाँ थे तुम ” भाभी ने कहा

मैं- चाची के पास

भाभी- ओह , मुझे फ़िक्र हो रही थी .

मैं- मैंने सुना किसी ने पिताजी के लाकर में चोरी कर ली

भाभी- तुम्हारे भैया लगे है उसी में जल्दी ही मालूम हो जायेगा.

मैं- क्या फर्क पड़ जायेगा और पिताजी को क्या फर्क पड़ जायेगा अगर कोई उनकी दौलत से थोडा बहुत चुरा ले

भाभी- तुम्हे क्या लगता है पिताजी को पैसो की परवाह है , जबकि पैसे की चोरी हुई ही नहीं

मैं- तो क्या चुराया चोर ने

भाभी- एक मुट्ठी राख

“किस किस्म इ बकवास है ये, राख की चोरी और भला लाकर में कोई राख रखता है क्या . ” मैंने कहा

भाभी- पिताजी से ही क्यों नहीं पूछ लेते तुम फिर .

मैं- मुझे क्या लेना देना फिलहाल मुझे भूख लगी है खाना लगा दो मेरे लिए

भाभी- आज खाना नहीं बना घर में ,

मैं- बढ़िया

मैंने कहा और भाभी के कमरे से बाहर निकलने लगा .

भाभी- अब तुम कहाँ चले

मैं- कभी कभी लगता है ये मेरा घर नहीं है

मैं वहां से बाहर आ गया. शाम और धुंधली हो गयी थी . रात दस्तक देने को चोखट पर खड़ी थी . मैंने अपनी साइकिल उठाई और खेतो की तरफ निकल गया . पर मेरे नसीब में कुछ और ही लिखा था .रस्ते में मेरे दोस्त मिल गए उन्होंने बताया की आज पडोसी गाँव में जीमने का न्योता है किसी शादी में और वो वही जा रहे है , मुझे भी भूख लगी थी मैं उनके साथ हो लिया .

काफी दिनों बाद शादी की दावत में मौज उड़ाई थी तो खाना थोडा ज्यादा हो गया . वही पर दस से ऊपर का समय हो गया था जब हम वापिस चले. पर कुछ दूर चलते ही मेरी साइकिल पंक्चर हो गयी . मैंने दोस्तों को आगे बढ़ने को कहा और पैदल ही साइकिल को खींचते हुए गाँव की तरफ बढ़ने लगा. वो कहते है न की जिंदगी जब मारती है तो जोर से मारती है वहीँ कुछ अपनी हालत भी थी .

तनहा रात , गर्म चलती हवा और बेचैन दिल संभाले मैं बस चले जा रहा था , अपने गाँव की सीम में घुसते ही मैंने घर जाने के बजाय कुवे पर जाने का सोचा . पर जैसा मैंने कहा जिन्दगी .........

मैंने जो कच्चा रास्ता लिया था उसी पर कुछ आगे चलते हुए मुझे प्रोफेसर साहब की गाड़ी खड़ी दिखी. और पिछले कुछ दिनों में ऐसा लगातार हो रहा था जब चाचा और मैं एक दुसरे के आस पास ही थे . मैंने साइकिल एक ओर फेंकी और गाड़ी के पास जाकर देखा तो बस वो गाड़ी ही थी वहां पर .मैंने तुरंत चाचा की तलाश की . आगे बढ़ने पर कुछ झुरमुटो के पार मुझे आंच सी जलती दिखी . मैं दबे पाँव उधर बढ़ा तो देखा की आग के पास दो लोग बैठे थे . चाचा और वो ही आदमी



“क्या कर रहे है ये दोनों ” मैंने अपने आप से कहा क्योंकि वो कुछ कर ही नहीं रहे थे वो बस आग के पास बैठे थे. कभी वो ऊपर आसमान में देखते तो कभी आंच को .बहुत देर तक वो बस ऐसा ही करते रहे हाँ जब भी आग बुझने को होती वो और लकडिया उसमे डाल कर उसे सुलगा देते. बहुत देर तक बस ऐसा ही चलता रहा . फिर चाचा ने नोटों की गद्दी उस आदमी को दी और दोनों ने अपना अपना रास्ता पकड़ लिया. उनके जाने के बाद मैं उस आग के पास गया . मैंने भी आग और आसमान को देखा . दिल में अब बड़ी जिज्ञासा थी की आखिर चाचा कर क्या रहा है .

पर ये रात यु ही बीत जाती तो भला क्या खास होती. जब मैं कुवे पर पहुंचा तो रौशनी जल रही थी मतलब यहाँ कोई और भी था . मैंने देखा पिताजी शराब पी रहे थे , ऐसा बहुत कम होता था जब हम उन्हें शराब के नशे में देखते थे पर आज वो दिन नहीं था . मेरा यहाँ से चलना ही ठीक रहता पर तभी उन्होंने मुझे देख लिया

“इधर आओ ” उन्होंने कुछ तेज आवाज में कहा

मैं उनके पास गया .

“आपको कुछ चाहिए ” मैंने कहा

पिताजी- मुझे , मुझे क्या चाहिए कुछ भी तो नहीं

मैं- मैं बस ऐसे ही आ गया था पर अब घर जा रहा हूँ

पिताजी- तुम्हे क्या लगता है तुम्हारा बाप चुतिया है , ये जगह जिस से तुम्हे इतना लगाव है एक दौर था जब मैं भी बस यही रहता था . ये और बात है की जमाना बदल गया और हम भी . तुम, तुम्हारी बहुत बाते हमें दुखी करती है पर तुम्हारी यही खूबी तुम्हे खास बनाती है की इस जगह से तुम्हे भी लगाव है .

“”क्या ये जगह ख़ास है मैंने पूछा

“तुम सोच भी नहीं सकते उस से ज्यादा खास ” पिताजी ने शराब अपने गले से निचे करते हुए कहा .

“खैर, छोड़ो तुमने क्या फैसला किया ” उन्होंने कहा

मैं- किस बारे में

पिताजी- तुम्हरे बम्बई जाने के बारे में

मैं- मुझे मजबूर न कीजिये, आपकी इच्छा का एक बार मान रखा था आज तक उसका मोल चूका रहा हूँ, मुझे जिंदगी जीने दीजिये .

पिताजी- तुम्हारी जिंदगी के लिए ही तो मैं कह रहा हूँ बेटे यहां से दूर चले जाओ .

मैं- मेरी कोई जिंदगी नहीं है पिताजी और मुझे अब चलना चाहिए


मैं उठा और अंधेरे ने मुझे अपने आगोश में भर लिया.
 

aalu

Well-Known Member
3,082
13,028
143
Chori hui toh baapu ke locker mein, churaya kya sala ek muthhi raakh --- kaheen chacha ka iske saath koi sambandh toh nahin.
Sala jab bhi milta hain noto kee gaddi hi deta hain, sala ek professor ho ke itna paisa kahan se lata hain.

Yhe aag aur ashman ka kya chakkar hai --- Aag se jal ke rakh bana sareer, ashman mein bhagwan ke pass.
kisi ke maut se talluk rakhta hain, kaheen wo shampoo waali ka bapu toh nahin. Lekin har baar koi larki hee hoti hai, koi aur hi hoga.

Aur yeh baapu kee masuka kee rakh thee kya, jo daru pe ke kuan pe baitha hua hain.

Ya phir jigri dost ke rakh, jiski yaad mein devdas bana hua hain.
Bapu bhala hi chahta hain bete ka, lekin tarika galat hain, kuchh gehra jakhm diye hain baap ne, bhugta hain bete ne.

Iss chachi ka kalyan kar hi do, professor admi ke pechhe laga hau hain, aur iski khujli badhti jaa rahi hain....
 
Top