#15
“क्यों नहीं समझते तुम, ये जमाना कभी तुम्हारा नहीं हो सकता , क्यों बार बार उस नींव को हिलाने की कोशिश करते हो जिसकी चोखट तुमहरा सर फोडती है . ” भाभी ने मुझे अपने आगोश में लिए कहा .
“क्या ही फरक पड़ता है भाभी , जमाना मुझसे है मैं इस ज़माने से नहीं , सच और झूठ की जंग तो सदा चलती आई है . आज मैंने आवाज उठाई है कल कोई और उठाएगा ” मैंने कहा
भाभी- बस तुम्हारी ये बाते ही सब फसाद की जड़ है
भाभी ने मुझे सहारा दिया और सीढियों के पास ले आई ऊपर चोबारे में ले जाने को .
“अभी के लिए यहाँ चैन नहीं मिलेगा , थोडा पानी पिला दीजिये ” मैंने कहा
भाभी- कहाँ जाओगे , और कब तक भागोगे यूँ इस तरह
मैं- कौन कमबख्त भाग रहा है भाभी, फिलहाल तो यूँ है की इन ज़ख्मो का मजा लेने दीजिये मुझे.
भाभी- मुझे मलहम लगाने दो फिर चाहे मर्जी चले जाना
मैं- इस दर्द के मजे से रुसवा करना चाहती है आप मुझे
भाभी- इतना तो हक़ है मेरा तुम पर , इतना तो कर्म करने दो मुझे .
मैंने हाथ से पानी के मटके की तरफ इशारा किया भाभी पानी लेने दौड़ पड़ी. मैं सीढियों पर ही बैठ गया . पीठ दिवार से जो टिकी बड़ा तेज दर्द हुआ और उसी दर्द की परछाई में एक पल के लिए आँख बंद सी हो गयी .
“इतना तो करम करने दो मुझे, इतना तो हक़ है मेरा ” ये फुसफुसाहट सी हुई, हवा जैसे इन शब्दों को घोल गयी थी मेरे कानो में .
“पानी ” भाभी की आवाज ने ध्यान तोडा मेरा.
कुछ तो ऐसा हो रहा था मेरे साथ जो समझ नहीं आ रहा था . हडबडाहट में मैं उठा और घर से बाहर निकल गया भाभी आवाज देते रह गयी . रात अपने परवान चढ़ रही थी . कुछ घर जागे थे कुछ सोये थे . पैदल ही मैं खेतो की तरफ जा रहा था . गाँव की पक्की सड़क छोड़ मैं कच्चे रस्ते से अपने कुवे का रस्ता पकड़ ही रहा था की मैंने मीता को एक खेत के डोले पर बैठे देखा .
“आप यहाँ ” मैंने पूछा उस से
वो- तुम भी तो हो यहाँ
मैं- अंधेरो से लगाव सा होने लगा है
वो- ये अँधेरे अक्सर लोगो को निगल जाते है . ये अँधेरे अपने अन्दर न जाने क्या क्या दबाये बैठे है .
मैं- जरा सहारा दो मुझे, बैठने दो . सांस कुछ भारी सी है
उसने अपना हाथ दिया मुझे. मैं डोले पर बैठा तो मेरी आह निकल गयी .
“क्या हुआ , सब ठीक तो हैं न ” उसने पूछा
मैं- हाँ सब ठीक ही है
मैंने कहा
“तुम भी न ” उसने मेरी पीठ पर धौल जमाई और उसका हाथ सन गया लहू में
मीता- ये क्या है गीला गीला , एक मिनट तुम्हे तो चोट लगी है , देखने दो जरा
मैं- कुछ नहीं है आप बैठो साथ मेरे
मीता- क्या कुछ नहीं है , क्या हुआ सच सच बताओ मुझे .
न चाहते हुए भी मीता को मुझे पूरी बात बतानी पड़ी
मीता ने अपना हाथ मेरे हाथ पर रखा , उसकी आँख से निकला गर्म आंसू मैंने हथेली पर महसूस किया
वो- फिलहाल तो तुम मेरे साथ चलो . मैं मरहम पट्टी कर देती हूँ .
मैं-नहीं, आपको क्यों परेशां करना मेरी वजह
वो- तुम्हारी वजह से मुझे परेशानी होगी , ये तो नयी सी बात हुई . आओ मेरे साथ .
मैं- इस हसीं रात में आप मेरे साथ हो , इन ज़ख्मो की क्या परवाह मुझे अब
मीता- ये हसीन राते तो आती जाते रहेंगी फिलहाल तुम मेरे साथ चल रहे हो.
लगभग मुझे खींचते हुए वो बैध के पास ले आई. वैध ने कुछ लेप सा लगाया और पट्टी बाँधी तीन दिन बाद फिर आने को कहा .
मीता और मैं एक बार फिर आधी रात को गाँव के गलियारों में थे .
“आपको थोडा आजीब लगेगा पर मुझे भूख लग आई है ” मैंने कहा
मीता- कोई और समय होता तो खाना खिलाती तुम्हे
मैं- अब भी खिला सकती हो मैं मना नहीं करूँगा
मीता मुस्कुरा पड़ी और बोली- कभी कभी भूखे रहना भी ठीक होता है , भूख हमें बहुत कुछ सिखाती है , खैर रात बहुत हुई हमें घर चलना चाहिए .
मैं- किसके घर मेरे या आपके.
मीता- फिलहाल तो मैं मेरे घर जा रही हूँ , खैर मुझे याद आया तुम्हारा कालेज का फार्म रिजेक्ट हो गया है .
“क्यों भला ” मैंने हैरानी से कहा
मीता- मैंने कारन पूछा पर कालेज वालो ने कुछ नहीं बताया , खैर, कल हम प्रिंसिपल से मिलेंगे . वो ही बताएँगे
मैं ठीक है कल मिलते है फिर.
मीता- घर ही जाना
मैंने सर हिलाया और अपनी दहलीज की तरफ मुड गया , दिमाग में सवाल दौड़ रहा था की दाखिले का फॉर्म क्यों रिजेक्ट हो गया . घर पहुंचा तो देखा बत्तिया बुझी थी . धीमे कदमो से मैं चोबारे की तरफ बढ़ा ही था की भाभी मेरे सामने आ गयी .
“अपने ही घर में चोरो की तरह आ रहे हो ” भाभी ने कहा
मैं- आप जाग रही है अभी तक
भाभी- तुम भी तो नहीं सोये
मैं- क्या फर्क पड़ता है
भाभी- फर्क पड़ता है . कम से कम मुझे फर्क पड़ता है . आओ मेरे साथ
भाभी मुझे रसोई में ले आई . लाइट जलाई .
भाभी- खाना खाओ
मैं- भूख नहीं है
भाभी- ठीक है फिर मैं भी अन्न को तभी हाथ लगाऊंगी जब तुम खाओगे तब तक मेरा भी व्रत है
मैं- ये कैसी जिद है
भाभी- जिद तो तुम्हारी है , याद है जब इस घर में आई थी तो तुमने मुझसे एक वादा किया था
भाभी की आँखे भर सी आई . और मैं बिलकुल उन्हें दुखी नहीं करना चाहता था क्योंकि इस घर में बस वो ही थी जो मुझे समझती थी .
“अब क्यों देर करती हो , भूख बहुत है मुझे खाते है ” मैंने भाभी को मानते हुए कहा .
“तुम ही हो बहु जो इसे काबू में रख पाती हो , वर्ना ये किसी को भला क्या समझता है ” हमने दरवाजे की तरफ देखा चाची रसोई में अन्दर आ रही थी .
मैं- आप भी जागी है
चाची- इस घर में सब जागे है . खैर आओ खाना खाते है . हम तीनो ने मिलकर खाना खाया. रात भर हम बैठे बाते करते रहे पर मेरे दिमाग में बस एक ही सवाल चल रहा था की फॉर्म रद्द कैसे हुआ.
और अगली सुबह ठीक ग्यारह बजे मैं मीता के साथ राजकीय कालेज के बड़े से गेट के ठीक सामने खड़ा था .