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Adultery प्रीत +दिल अपना प्रीत पराई 2

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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good updates ....


ye kahani ko alag andaz main likho......


pichhali wali sabhi kahani o se different to maza aayega...


readers ko kuchh naya chahiye.......
बिल्कुल भाई, मेरा यकीन मानो पृष्ठभूमि ही गांव की है कहानी का विषय नया है
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#7

“पिताजी बुला रहे है तुम्हे निचे ”भाभी ने मुझे उठाते हुए कहा .

“इतनी सुबह भला मुझसे क्या काम उनको, आप जाओ मुझे सोने दो ” मैंने प्रतिकार करते हुए कहा .

भाभी- अभी बुलाया है चलो जल्दी

न चाहते हुए भी एक हसीं नींद का साथ छोड़ कर मैं निचे आया . देखा हमेशा की तरह पिताजी अख़बार पढ़ते हुए नाश्ता कर रहे थे . उन्होंने मुझे देखा और पास बैठने को कहा.

“जैसा हमने कहा था , दाखिले के लिए फॉर्म मंगवा लिए है दिल्ली या बम्बई जहाँ तुमहरा मन करे वहां केलिए फॉर्म भर कर दे दो हम आगे भिजवा देंगे ” पिताजी ने कहा

मैं- पिताजी, मुझे नहीं जाना कहीं भी

पिताजी ने अपना चश्मा उतारा और घुर कर देखा मुझे

“तो क्या करोगे, यहाँ दिन भर आवारागर्दी करोगे, हम चाहते है की अच्छे से पढ़ लिख कर हमारे काम को आगे ले जाओ तुम, तुम्हारा भाई कितनी मेहनत करता है तुम्हे उसके कंधे से कन्धा मिला कर चलना चाहिए पर वो तो उम्मीद ही क्या करे तुमसे. ” पिताजी ने सख्त लहजे में कहा

मैं- पिताजी माफ़ी चाहूँगा , पर ना मुझे इस धंधे में कोई इंटरेस्ट है और न मुझे बाहर पढने जाना है .

“हमें न सुनने की आदत नहीं है , शाम तक इन फॉर्म पर तुम्हारे दस्तखत और मंजूरी हो जानी चाहिए ” पिताजी ने कहा

मैं- ऐसा नहीं होगा .

“सटाक ”

इस से आगे मैं कुछ नहीं कह पाया .

”गुस्ताख तेरी इतनी हिम्मत जो इनके सामने आवाज ऊँची करे ” माँ ने मेरे गाल पर थप्पड़ मारते हुए कहा . ये पहली बार हुआ था जो मेरी माँ ने मुझ पर हाथ उठाया था , सभी लोग एकदम से सकते में आ गए .

माँ- जब इन्होने कहा की तुझे बाहर जाना है तो मतलब जाना है

मेरी आँखों में आंसू आ गए , गला भर आया मैं कहना तो बहुत कुछ चाहता था पर मैंने दिल में बात दबा ली और घर से बाहर निकल आया .



घर से तो निकल आये पर जाए तो कहाँ जाये . कहने को तो सब कुछ था पर मैं जानता था जिंदगी में एक दिन ऐसा आएगा जब मुझे मेरे परिवार के बड़े नाम और मेरे जमीर में से एक को चुनना पड़ेगा. मैं चाहता ही नहीं था उस शान शोकत को , हर उस चीज़ को जो मुझे याद दिलाती थी की मेरा बाप कितना रसूखदार है . मैं बस मैं ही रहना चाहता था

अपने ख्यालो में भटकते हुए मैंने उसी आदमी को देखा जो प्रोफेसर साहब के साथ था उस दिन . अपना झोला टाँगे वो बड़ी जल्दी जल्दी कही जा रहा था , कोतुहलवश मैंने निश्चित दुरी बना कर उसका पीछा करना शुरू कर दिया . और उसकी हरकतों ने मुझे पूरा मौका दिया उसका पीछा करने का . वो ठीक उसी कुवे पर गया जहाँ कल रात मीता ने पानी का घड़ा भरा था . उसने झोले से निकाल कर एक बोतल भरी और जंगल की तरफ जाने लगा .

करीब घंटे भर तक वो आगे मैं पीछे चलता रहा और फिर मैंने वो देखा जो मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था ये बंजारों का टोला था . वो टोले में चला गया पर मैं किनारे पर रुक गया क्योंकि बंजारे अनजान लोगो को ज्यादा पसंद नहीं करते थे .

अब मैं करता भी क्या , बस वापिस लौट ही जाना था पर कहते हैं न जब किस्मत खुद कहानी लिखती है तो अपने अंदाज में लिखती है , कच्ची सड़क पर तेजी से एक गाडी गुजरी जो सीधा टोले में गयी और ये गाड़ी किसी और की नहीं बल्कि चाचा की थी , मेरे प्रोफेसर चाचा, जो अलग ही मिजाज के थे और ये हरकते उनके मिजाज के बिलकुल माफिक नहीं थी . अब मेरी उत्सुकता और बढ़ गयी थी मैंने पक्का इरादा कर लिया की ये चल क्या रहा है,

मैं तुरंत वहां से वापिस हो लिया अब मुझे मिलना था चाची से . पर वो घर पर नहीं थी , न जाने मुझे क्या सुझा मैं उस कमरे की तरफ गया जो चाचा का पुस्तकालय थी पर अफ़सोस उस पर लॉक था .

“चाबी कहाँ होगी ” मैंने अपने आप से पूछा .

खैर मुझे चाची से मिलना था तो मैं यही बैठ गया . अचानक से ही मेरे मन में एक विचार उठा और मैं चाची के कमरे में गया . मैंने तकिये उठाकर देखे पर कुछ नहीं था . और जीवन में मैंने पहली बार ऐसी हरकत की जो किसी भी लिहाज से उचित नहीं थी . मैंने चाची की अलमारी खोली.

ऊपर से निचे तक कपडे ही कपडे भरे पड़े थे . फिर मैंने उसका ऊपर वाला हिस्सा खोला और मेरी आँखों में चमक आ गयी . वहां वो ही किताब रखी थी जो उस रात चाची देख रही थी . कांपते हाथो से मैंने उसके पन्ने पलटने शुरू किये और मेरी आँखों में अजीब सी चमक आ गयी . ढेरो रंगीन पन्ने जिसमे नंगे आदमी औरत तरह तरह के पोज में एक दुसरे संग काम क्रीडा कर रहे थे न जाने क्या सोच कर मैंने वो किताब अपनी पॉकेट में रख ली. और चाची का इंतज़ार करने लगा.

कुछ देर बाद चाची आई मैंने जो उसे देखा देखता ही रहगया . नीली साडी में क्या गजब लग रही थी वो . कसा हुआ ब्लाउज जिसमे से उठे दो पर्वत जैसे कह रहे हो आ नाप हमारी गहराई

“तू कब आया ” चाची ने कहा

मैं- थोड़ी देर हुई

चाची- अच्छा हुआ तू अपने आप आ गया सुबह से तुझे ही ढूंढ रही हूँ एक तो मुझे गिरा दिया. कितनी लगी मुझे और फिर वही छोड़ कर भाग गया तू

मैं- मैं घबरा गया था चाची .

चाची- तब नहीं घबराया जब बुलंद दरवाजा देख रहा था .

मैं क्या कहा आपने

चाची- कुछ नहीं , चाय बनाती हूँ तेरे लिए

मैं- नहीं चाय नहीं . मुझे कुछ किताबे चाहिए थी चाचा की लाइब्रेरी से

चाची- वो आये तब ले जाना , चाबी उनके पास ही रहती है उसकी .

मैं- ठीक है तो फिर चलता हु मैं .

चाची- तुझे मालूम है आज क्या हुआ

मैं- नहीं तो .

चाची- किस दुनिया में रहता है तू , गाँव के बैंक में चोरी हो गयी

मैं- गाँव के बैंक में चोरी, क्या मजाक है चाची, कौन मुर्ख करेगा ये वैसे ही गाँव के बैंक में कहाँ पैसे है , किसानो के कर्जो की फाइल के अलावा और है ही क्या

चाची- ताज्जुब की बात ये है की पैसे या कागज कुछ भी चोरी नहीं हुआ

मैं ये सुनकर हैरान हुआ .

“तो भला कैसी चोरी हुई ये . ” मैंने सवाल किया .

चाची- एक लाकर में चोरी हुई है .

.... चाची की बात ने मुझे और हैरान कर दिया .
 

aalu

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Yaar had hain iss baapu kee toh, baalig ho gaya hain phir bhi iss tarah se vyavhar kar rahe hain, jaise koi chhota bacha ko hostel bheja jata hain.
Aur iss maa kee ankh sidha jhapar maar diya, bhai banda emotional hain thora kasrat wagaira karwao, aree doosra wala nahin , wo dand pelne wala. Tabhi toh thora action karega.

Yeh chacha kasam ghuma ke rakh diya hain, ee batao professor ho ke jungle daura pe jaa raha hain wo bhi ek mard ke peeche, ab iss banjare tole mein koi banjaran toh nahin fasa liya hain.

aye din gaon mein ajeeb ghatnaye hoti rahti hain, kabhi bewi ghar chhor ke bhaag jaati hai, toh bank mein chori jisme kuchh nakad ke naam pe hain hee nahin, aisa karne ka maksad kuchh paiso se bhi jyada jaroori cheej hogi.

ab is chachi ko de hi do bari khujhli ho rahi hain tabhi toh buland darwaja khol ke baithi rahti hain, aur gand turwa ke man nahin bhara.
 
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