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कर्जदारों के आतंक से घिरा मैं खारी बावली पहुंचा—मैं एक मकान के बाहरी हिस्से में बनी छोटी-सी बैठक में रहता हूं। बैठक का दरवाजा गली में ही था और अभी मैं उस पर लटका ताला खोल रहा था कि जाने कहां से मकान मालिक टपक पड़ा, बोला— "कमरा बाद में खोलना मिक्की, पहले मेरा किराया दो।"
मैंने उसे खा जाने वाली नजरों से घूरा।
एक तो पहले ही अपनी एक महीने की मेहनत पर पानी फिर जाने और फिर सुदेश द्वारा जमानत दिए जाने पर मैं भिन्नाया हुआ था, ऊपर से मकान मालिक के किराए वाला राग अलापने ने मेरा खून खौला दिया—हालांकि वह मुझसे डरता था और मेरे घूरने ने उसे सहमा भी दिया, परन्तु पैसा बड़ी चीज होती है। उसे पाने की इच्छा ने ही उसे मेरे सामने खड़ा रखा।
"तू यहां से जाता है या नहीं?" मैं गुर्राया।
"य.....य़े तो कोई बात नहीं हुई मिक्की।" उसने हिम्मत की—"चार महीने का किराया चढ़ गया है तुम पर, आज एक महीने बाद शक्ल दिखा रहे हो—बिजली और पानी तक के पैसे नहीं दिए, ऐसा कब तक चलेगा?"
"जब तक मेरे पास पैसे नहीं आएंगे।"
"इस तरह काम नहीं चलेगा मिक्की, आज फैसला हो ही जाना चाहिए—किराया दो या कमरा खाली कर दो—वर्ना आज मैं मौहल्ले के लोगों को इकट्ठा करके.....।"
"बुला.....किसे बुलाएगा, हरामजादे?" झपटकर मैंने दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़ लिया—"देखूं तो सही तेरे हिमायती को।"
"अरे, मिक्की.....कब आया तू.....कहां गुम हो गया था, छाकटे?" चहकने के साथ ही लहकती हुई अलका हमारे नजदीक आई और मकान मालिक के गिरेबान पर मेरे हाथ देखते ही बोली— "अरे, आते ही फिर मारा-मारी शुरू कर दी—छोड़ इसे।"
मैंने पलटकर अलका की तरफ देखा।
पूरे अधिकार के साथ उसने मेरी कलाइयां पकड़ीं और उन्हें सेठ के गिरेबान से हटाती हुई बोली— "अरे छोड़ भी, क्यों उसकी जान को आ रहा है?"
"तू बीच में से हट जा, अलका!" मैं चीखा।
उसने दायां हाथ हवा में नचाया—"वाह, क्यों हट जाऊं?"
"आज मैं इसे देख ही लूं—मौहल्ला इकट्ठा करने की धमकी देता है।"
"मगर क्यों?"
मुझसे पहले मकान मालिक बोल पड़ा—"एक तो किराया नहीं देता, ऊपर से गुण्डागर्दी दिखाता है—ये कोई शराफत है?"
"म.....मैं शरीफ हूं ही कहां कुत्ते?" मैंने एक बार फिर उस पर लपकना चाहा, मगर अलका बीच में आ गई, जबकि वह इस तरह बोला जैसे अलका के रूप में बहुत बड़ा हिमायती मिल गया हो—"द.....देखो.....देखो, किस कदर उफना जा रहा है—अपने मकान का किराया मांगकर क्या गुनाह कर रहा हूं?"
"क्यों रे, छाकटे?" अलका ने सीधे मेरी आंखों में झांका—"इसका किराया क्यों नहीं देता?"
"तू यहां से चली जा, अलका।" मैं झुंझला-सा रहा था—"वर्ना.....।"
"वर्ना क्या करेगा?" वह झट अपने दोनों हाथ कूल्हों पर रखकर मेरे सामने अड़ गई।
बेबस-सा मैं बोला—"वर्ना ठीक नहीं होगा।"
"क्या ठीक नहीं होगा, जरा बता तो सही—सुनूं तो कि मेरा छाकटा क्या कर रहा है?"
"उफ!" मेरी झुंझलाहट चरम सीमा पर पहुंच गई, दांत और मुट्ठियां भींचे मैं कसमसाता हुआ कह उठा—"म.....मैं तेरा खून कर दूंगा।"
"आहा.....हा.....हा.....खून कर दूंगा, अरे जा छाकटे—वे कोई और होंगे जो तेरी गीदड़ भभकी से डर जाते हैं।" वह मुझे चिढ़ाने वाले अंदाज में कहने के बाद अपने हाथों से इशारा करती हुई बोली—"खून करने वालों का कलेजा इत्ता बड़ा होता है और तुझे मैं जानती हूं—चूहे से भी छोटा है तेरा दिल।"
मैंने उसे खा जाने वाली नजरों से घूरा।
एक तो पहले ही अपनी एक महीने की मेहनत पर पानी फिर जाने और फिर सुदेश द्वारा जमानत दिए जाने पर मैं भिन्नाया हुआ था, ऊपर से मकान मालिक के किराए वाला राग अलापने ने मेरा खून खौला दिया—हालांकि वह मुझसे डरता था और मेरे घूरने ने उसे सहमा भी दिया, परन्तु पैसा बड़ी चीज होती है। उसे पाने की इच्छा ने ही उसे मेरे सामने खड़ा रखा।
"तू यहां से जाता है या नहीं?" मैं गुर्राया।
"य.....य़े तो कोई बात नहीं हुई मिक्की।" उसने हिम्मत की—"चार महीने का किराया चढ़ गया है तुम पर, आज एक महीने बाद शक्ल दिखा रहे हो—बिजली और पानी तक के पैसे नहीं दिए, ऐसा कब तक चलेगा?"
"जब तक मेरे पास पैसे नहीं आएंगे।"
"इस तरह काम नहीं चलेगा मिक्की, आज फैसला हो ही जाना चाहिए—किराया दो या कमरा खाली कर दो—वर्ना आज मैं मौहल्ले के लोगों को इकट्ठा करके.....।"
"बुला.....किसे बुलाएगा, हरामजादे?" झपटकर मैंने दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़ लिया—"देखूं तो सही तेरे हिमायती को।"
"अरे, मिक्की.....कब आया तू.....कहां गुम हो गया था, छाकटे?" चहकने के साथ ही लहकती हुई अलका हमारे नजदीक आई और मकान मालिक के गिरेबान पर मेरे हाथ देखते ही बोली— "अरे, आते ही फिर मारा-मारी शुरू कर दी—छोड़ इसे।"
मैंने पलटकर अलका की तरफ देखा।
पूरे अधिकार के साथ उसने मेरी कलाइयां पकड़ीं और उन्हें सेठ के गिरेबान से हटाती हुई बोली— "अरे छोड़ भी, क्यों उसकी जान को आ रहा है?"
"तू बीच में से हट जा, अलका!" मैं चीखा।
उसने दायां हाथ हवा में नचाया—"वाह, क्यों हट जाऊं?"
"आज मैं इसे देख ही लूं—मौहल्ला इकट्ठा करने की धमकी देता है।"
"मगर क्यों?"
मुझसे पहले मकान मालिक बोल पड़ा—"एक तो किराया नहीं देता, ऊपर से गुण्डागर्दी दिखाता है—ये कोई शराफत है?"
"म.....मैं शरीफ हूं ही कहां कुत्ते?" मैंने एक बार फिर उस पर लपकना चाहा, मगर अलका बीच में आ गई, जबकि वह इस तरह बोला जैसे अलका के रूप में बहुत बड़ा हिमायती मिल गया हो—"द.....देखो.....देखो, किस कदर उफना जा रहा है—अपने मकान का किराया मांगकर क्या गुनाह कर रहा हूं?"
"क्यों रे, छाकटे?" अलका ने सीधे मेरी आंखों में झांका—"इसका किराया क्यों नहीं देता?"
"तू यहां से चली जा, अलका।" मैं झुंझला-सा रहा था—"वर्ना.....।"
"वर्ना क्या करेगा?" वह झट अपने दोनों हाथ कूल्हों पर रखकर मेरे सामने अड़ गई।
बेबस-सा मैं बोला—"वर्ना ठीक नहीं होगा।"
"क्या ठीक नहीं होगा, जरा बता तो सही—सुनूं तो कि मेरा छाकटा क्या कर रहा है?"
"उफ!" मेरी झुंझलाहट चरम सीमा पर पहुंच गई, दांत और मुट्ठियां भींचे मैं कसमसाता हुआ कह उठा—"म.....मैं तेरा खून कर दूंगा।"
"आहा.....हा.....हा.....खून कर दूंगा, अरे जा छाकटे—वे कोई और होंगे जो तेरी गीदड़ भभकी से डर जाते हैं।" वह मुझे चिढ़ाने वाले अंदाज में कहने के बाद अपने हाथों से इशारा करती हुई बोली—"खून करने वालों का कलेजा इत्ता बड़ा होता है और तुझे मैं जानती हूं—चूहे से भी छोटा है तेरा दिल।"