Thriller मिस्टर चैलेंज by वेद प्रकाश शर्मा

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Rakesh1999

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ठहाकों के बाद आवाज गूंजी ---- " देखा इस्पक्टर ! देखा ? इसे कहते हैं चमत्कार ! अपने अगले शिकार की हत्या मैंने तेरे हाथों से करा दी । सबके सामने करा दी । और करना क्या पड़ा मुझे ? सिर्फ तेरे रिवाल्वर से छेड़छाड़ ! उसमें तेरे द्वारा डाली गयीं नकली गोलियां निकालकर असली गोलियां डालना कितना आसान था । मुझे पकड़ने के लिए साजिश रचने चला था । मुझे पकड़ने के लिए गुल्लू को मृत घोषित करके उसे मेरी खोज में लगाना चाहता था । चाल तो अच्छी सोची तूने ! आदमी खुद को जिन्दा लोगों की नजरों से छुपाने का प्रयत्न करता है , मरे हुए लोगों की नजरों से नहीं ! तेरी चाल कामयाब हो जाती तो मुमकिन है गुल्लू के हाथ मेरे नकाब तक पहुंच जाते । मगर देख ---- वो बेचारा तो खुद मरा पड़ा है । सचमुच मर गया वह।


इस उपन्यास के लिखे गए हर शब्द के पीछे मि . चैलेंज छुपा है , इसके बावजूद वेद प्रकाश शर्मा का दावा है कि मेरा कोई भी पाठक अंतिम पृष्ट पढ़ने से पूर्व मि . चैलेंज को नहीं पहचान सकता ! दावे में कितना दम है , इसे आप उपन्यास पढ़ना शुरू करके खुद जान सकते है ।
 

Rakesh1999

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जब मै लेखक नहीं था . आपकी तरह केवल एक पाठक था , तब मर्डर मिस्ट्री वाले उपन्यास बहुत पसंद करता था , परन्तु उन उपन्यासों का ' अंत ' पढ़कर अक्सर झुंझला उठता था । कारण था ---- अंत में लेखक द्वारा किसी भी ऐसे किरदार को अपराधी बता देना जिसका मुख्य कहानी से कुछ लेना - देना नहीं होता था । अन्त में एक नई ही कहानी पाठकों को पढ़ा दी जाती थी ! उस वक्त मैं सोचता --- यह तो लेखक द्वारा पाठकों को बेवकूफ बनाना हो गया । जब कहीं कोई ' क्लू ' ही नहीं छोड़ा गया । असली कहानी ही कुछ और थी तो पाठक अपराधी को पहचानता कैसे ? केवल चौंकाने की गर्ज से लेखक द्वारा किसी ऐसे किरदार को अपराधी खोल देना मुझमें हमेशा खीझ भर देता था जिसके खिलाफ उपन्यास में कहीं कोई इशारा तक न किया गया हो । मैं नहीं चाहता वह खीझ आपमें पैदा हो । भरपूर तौर पर कोशिश मेरी भी यही रहती है कि जब अपराधी खुले तो पाठक चौंके परन्तु खिंझे नहीं । अंत पढ़कर उन्हें लगे ---- ' हा . उपन्यास में जगह - जगह ऐसे पॉइंट छोड़े गए हैं जिन पर ध्यान देने पर अपराधी को पहचाना जा सकता था , नहीं पहचान पाये तो ये हमारी चूक है । जो पकड़ लेते है , उन्हें खुशी होती है कि हां , हमने उपन्यास ध्यान से पढ़ा है । तो मि ० चैलेंज को ध्यान से पढ़ें ! अपराधी की तरफ इशारे किए गए हैं , क्लू छोड़े गए हैं । अगर आप रहस्य खुलने से पहले रहस्य को पकड़ सके तो मुझे खुशी होगी । आप उसी प्यार , विश्वास और सहयोग का इच्छुक जो पैंतीस साल से लगातार मिल रहा है । वहीं मेरी असली ताकत है ।
 

Rakesh1999

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दिन निकलते ही मैं लेखन - कक्ष में बंद हो जाता । सूरज ढलने पर बाहर निकलता तो चेहरा लटका हुआ होता , दिमाग पर सवार होती थी ---- अजीब सी झुंझलाहट । कारण ? पिछले तीन दिन से मैं मि ० चैलेंज लिखने की कोशिश कर रहा था , परन्तु शुरू नहीं कर पा रहा था । ऐसा नहीं कि दिमाग में कोई प्लाट ' न था । प्लॉट एक नहीं कई थे । और शायद मेरी असली समस्या भी यही थी । निश्चय नहीं कर पा रहा था उन कई प्लाटस में से किस पर मि ० चैलेंज के कथानक की इमारत खड़ी करू । कक्ष का दरवाजा खुला । आहट बहुत हल्की थी , इसके बावजूद मेरी तंद्रा भंग कर गयी । पलकें उठाकर देखा । दरवाजे पर मधु खड़ी थी ! मेरी पत्नी । होठों पर मुस्कान , हाथों में शाम का अखबार । उसकी मुस्कान के जवाब में मुस्करा नहीं सका मैं । दिमाग पर चिड़चिड़ाहट सवार थी परन्तु जानता था , वह बगैर ' एमरजेंसी " के मुझे डिस्टर्ब नहीं कर सकती थी । अतः स्वयं को नियंत्रित रखकर पूछा ---- " क्या बात है ? " "

अखबार लाई हूँ । " उसके होठों पर शरारत नाच रही थी । मेरे दिमाग का मानो फ्यूज उड़ गया । लगभग ' गुर्रा ' उठा मैं--- " मधु , क्या तुम नहीं जानती जब मै लिख रहा होता हूँ तो अखबार नहीं पड़ता । " "
देखू तो सही , क्या लिख रहे है जनाब ? " कहती हुई वह अपने करेक्टर के विपरीत आगे बढ़ी और मेज से कोरा कागज उठाकर मेरी आंखों के सामने नचाती बोली --.- " तो ये है चार दिन की सिरखपाई का फल ? " "

ओफो मधु , तुम्हें कैसे समझाऊं कि ... " समझने की जरूरत मुझे नहीं , आपको है पतिदेव । " " मतलब ? " मैंने उसे घुरा । " अच्छा लिखने के लिए अखबार पढ़ते रहना जरूरी है । " " मधु ,क्या पहेलियां बुझा रही हो तुम ? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा।
 

Rakesh1999

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" करेक्ट ! " वह उचककर मेरे सामने टेबल पर बैठ गई ---- " पहेली ही पूछने आई हूं ! अगर एक लड़की का मर्डर हो और मरने से पहले वह चैलेंज ' शब्द लिख जाये तो क्या मतलब हुआ उसके इस अंतिम हरकत का ? " " क्या तुम मुझे मि ० चैलेंज की कहानी बताने आई हो ? " " बात अगर जंची , तो इस उपन्यास की रायल्टी मेरी । " रायलटी तो मैं सभी उपन्यासों की तुम्हें सौंपता आया हू देवी जी मगर , बेसिर - पैर की बकवास पर उपन्यास नहीं लिखा जा सकता ।


साइक्लोजी कहती है मर्डर हुए व्यक्ति को यदि मरने से पूर्व कुछ लिखने का मौका मिल जाये तो सबसे पहले हत्यारे का नाम लिखेगा । नाम नहीं जानता होगा तो हत्या की वजह लिखेगा । ' चैलेंज ' जैसा , निरर्थक शब्द ' मरने वाला ' कभी नहीं लिख सकता । " आपकी सभी दलीलों की हवा निकालने के लिए पेश है ये अखबार । " कहने के साथ मधु ने अखबार खोलकर मेरी आंखों के सामने लहरा दिया । नजर हैडिंग पर चिपकी रह गई ---- आई.ए.एस. कालिज में हत्या मरने वाली ने CHALLENGE लिखा । मैंने मधु के हाथ से इस तरह अखबार झपटा जैसे भूखे ने रोटी झपटी हो । जल्दी - जल्दी खबर पढ़नी शुरू की ।
 

Rakesh1999

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लिखा था ---- मेरठ , 10 नवम्बर । आज दिन - दहाड़े हजारों आंखों के सामने आई.ए.एस. कॉलिज की लोकप्रिय प्रोफेसर कुमारी सत्या श्रीवास्तव की हत्या कर दी गयी मगर , एक भी आंख हत्यारे को नहीं देख सकी । घटना सुबह नौ बजे की है । सत्या श्रीवास्तव आई.ए.एस. कालिज में इंग्लिश की प्रोफेसर थीं । कहते हैं कालिज में स्टूडेन्ट्स के दो ग्रुप है । इनमें से एक ग्रुप को प्रिंसिपल महोदय का वरदहस्त प्राप्त है । यह ग्रुप छोटा परन्तु आवारा किस्म के स्टुडेन्ट्स का है । इस ग्रुप का लीडर का नाम चन्द्रमोहन बताया जाता है । कहते है कालिज के ज्यादातर स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर प्रिंसिपल से चन्द्रमोहन का ' रैस्टीकेशन ' करने की मांग कर रहे थे । परन्तु प्रिसिपल महोदय ने ध्यान नहीं दिया । इस मांग का नेतृत्व सत्या श्रीवास्तव कर रही थीं । आज सुबह साढ़े आठ बजे कालिज प्रांगण में एक मीटिंग होने वाली थी । उसमें विचार किया जाना था कि प्रिंसिपल महोदय चन्द्रमोहन को कालिज से नहीं निकालते हैं तो क्या किया जाये ? सबा आठ बजे से स्टूडेन्टर और प्रोफेसर्स इकट्ठा होना शुरू हो गये । साढ़े आठ बजे तक लगभग सभी लोग कैम्पस में पहुंच चुके थे । मगर सत्या आठ पैतीस तक भी उन लोगों के बीच नहीं पहुंची । स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स में बेचैनी फैलने लगी । कुछ स्टूडेन्ट्स सत्या को देखने हॉस्टल में स्थित उसके कमरे में गये । सत्या वहां भी नहीं थी ।

बेचैनी सवालिया निशानों में तब्दील होने लगी । सत्या को सारे कॉलिज में तलाश किया जाने लगा । उस वक्त हर दिमाग में केवल यही एक सवाल था --- खुद मिटिंग कॉल करके सत्या आखिर चली कहां गयी ? अचानक कैम्पस में मौजूद हजारों कानों ने एक जोरदार चीख की आवाज - सुनी । बदहवास आखें ऊपर की तरफ उठी । कालिज के टैरेस पर सत्या नजर आई । वह लहुलुहान थी । चीख रही थी । अगले पल उसका जिस्म रेस पर लगा रेलिंग तोड़कर हवा में लहरा उठा । एक लम्बी चीख के साथ यह कैम्पस की तरफ आई । वहां मौजूद भीड चीखो के साथ पलक झपकते ही ' काई की तरह फट गयी ! सत्या ' धम्म ' से प्रांगण की कच्ची जमीन पर गिरी । सभी दहशतजदा और हकबकाये हुए थे । एक बार गिरने के बाद सत्या ने उठने की कोशिश की , परन्तु लड़खड़ाकर पुनः गिर गई । स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर्स की भीड़ कर्तव्यविमूढ़ अवस्था में उसे देख रही थी और फिर अपनी अंगुली की नोंक से सत्या ने प्रांगण की जमीन पर कुछ लिखा । लिखने के बाद दम तोड़ दिया । भीड़ की तंग्रा भंग हुई । कुछ स्टूडेन्ट्स लाश की तरफ लपके । कुछ टैरेस की तरफ ! हत्यारा किसी को नजर नहीं आया । सत्या ने प्रांगण की जमीन पर लिखा है ---- CHALLENGE
 

Rakesh1999

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इस अनोखे शब्द का मतलब किसी की समझ में नहीं आ रहा है । हमारे संवाददाता ने जब केस के इन्वेस्टिगेटर इंस्पेक्टर जैकी से बात की तो उन्होंने केवल इतना कहा ---- " हत्यारे अक्सर हम लोगों को चैलेज देते रहे हैं मगर मृतक द्वारा इस शब्द के इस्तेमाल की यह पहली घटना है । अभी तक मैं कुछ नहीं समझ पाया हूँ।

खबर पढ़ते ही मेरे जिस्म चीटियां सी रेंग गई । जहन में विस्फोट सा हुआ ---- ' क्यों न इस बार मैं सत्य घटना पर उपन्यास लिखू ? ' मुझे मि ० चैलेंज लिखना है और .... मेरे अपने शहर में एक लड़की चैलेंज शब्द लिखकर मर गई है । कैसा अनोखा संयोग है ? मुझे इस मर्डर की तह में जाना चाहिए । मुमकिन है उन सभी कथानकों से बेहतर कथानक हाथ लगे जो लिखने के लिए मेरे जहन में उमड़ रहे हैं । इन्हीं सब विचारों से ग्रस्त मैंने मधु की तरफ देखा । उसने शरारती अंदाज में आंख मारी । मै सकपकाया । उसने कहा ---- " कहिए जनाब ? कैसी रही ? " " मधु ! " मैंने कहा ---- " यह कथानक मि ० चैलेंज के लिए जबरदस्त साबित हो सकता है । " "

ऐसे ही थोड़ी अखबार हाथ में लिए यहाँ घुस आई ? " पूरे मूड में मधु कहती चली गयी ---- " खबर पर नजर पड़ते ही चौंकी ! पड़ी ! सोचा सत्या चैलेंज लिखकर मर गयी और हमारे सैंया मि ० चैलेंज लिखने के लिए मरे जा रहे हैं ... ? दोनों घटनाओं के तार जोड़ दिये जायें तो करेंट जरूर पैदा होगा । उस करेंट को इस वक्त मैं आपके थोबड़े पर देख रही है । " " सच मधु .... सच ! " खुशी की ज्यादती के कारण मैं खुद पर काबू न रख सका । झपटकर बांहों में भर लिया उसे , बोला ---- " तुम ग्रेट हो । हमेशा मेरी ही प्राब्लम हल करने में लगी रहती हो । मुझे पूरा यकीन था वगैर बडी बात के तुम मुझे डिस्टरब नहीं कर सकतीं । "


करेंट कुछ ज्यादा ही आ गया लगता है कहने के साथ उसने खुद को मेरी बाहों से मुक्त कर लिया । बोली ---- " उस पहेला का क्या हुआ जो मरने वाली कॉलिज प्रांगण में जमीन पर लिख गई है ? क्या आप बता सकते हैं सत्या ने चैंलेज क्यों लिखा ? क्या मरने वाला खुद कहना चाहती है कि मेरे हत्यारे का पता लगाओ तो जानूं ? " " ऐसा है तो बड़ी अजीब बात होगी ये । " क्राइम के उपन्यास लिखने वाला मेरा दिमाग सक्रिय हो उठा। आंखे शून्य में स्थिर हो गयी । बड़बड़ा उठा---- " मेरे ख्याल से इस बंद कमरे में कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाते रहने से मेरे हाथ कुछ नहीं लगेगा , बाहर निकलना होगा । एक सुलझे हुए जासूस की तरह इन्वेस्टिगेशन करनी होगी । " " मैं भी यही कह रही हू जनाब ! " मधु के होठो पर मुस्कान थी ---- " मि ० चैलेंज आपको कमरे में बैठकर नहीं , फील्ड में उत्तरकर लिखना चाहिए । " और मैं फील्ड में उतर पड़ा ।
 

Rakesh1999

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सबसे पहले थाने पहुँचा। हट्टे - कटटे इंस्पैक्टर जैकी से मिला । अपना परियय दिया । मुझसे मिलकर उसने खुशी जाहिर की । हाय ---- " मैंने आपके ज्यादा तो नहीं परन्तु कुछ उपन्यास जरूर पढे हैं । " मैंने आने का कारण बताया तो जैकी के पतले होठों पर मुस्कान फैल गयी । बोला ---- “ अच्छा विचार है आपका ! पाठकों को कुछ नया मिलेगा । " " तुम्हारे ख्याल से सत्या ने ऐसे क्यों लिखा ? " " यह गुत्थी सुलझ जाये तो हत्यारे का पता लग जाये । " " नाम तो किसी का चैलेंज हो ही नहीं सकता । " मैंने कहा ---- " लेकिन .... क्या तुमने मालूम किया , कॉलिज में ऐसा कोई शख्स तो नहीं जिसे चैलेंज शब्द के उपनाम से पुकारा जाता हो ? " " मै समझा नहीं " " कई बार ऐसा होता है ---- मजाक में या किहीं और कारणों से लोगों के उपनाम पड़ जाते है और फिर , ज्यादातर लोग उसे उसके वास्तविक नाम की जगह उपनाम से पुकारने लगते हैं । " " गुड ! " जैकी कह उठा ---- " अच्छा पॉइंट है । मैंने इस एंगल से नहीं सोचा । " तब तो इस एंगल से पूछताछ भी नहीं की होगी । क्यों न हम कॉलिज चलकर पता लगाने की कोशिश करे ? " होठो पर मुस्कान लिए जैकी ने कहा ---- " समझ सकता हूँ ---- जब इन्वेस्टिगेटर बनकर आप निकल ही पड़े हैं तो घटनास्थल का निरीक्षण जरूर करना चाहेंगे । मगर उससे पहले आपको कुछ ऐसी बातें बता दूं जो अखबार में नहीं छपी । " " जैसे ? " "

चन्द्रमोहन को गिरफ्तार कर लिया है । " " कौन चन्द्रमोहन ? " " आपने अखबार में पढ़ा होगा । कालिज में स्टूडेन्ट्स के दो ग्रुप है । " " हाँ.... याद आया । " मै उसकी बात बीच में काटकर बोला -... " चन्द्रमोहन शायद वहीं लड़का है जिसके रेस्टिकेशन के मसले पर मीटिंग बुलाई गई थी । उसे किस बेस पर गिरफ्तार कर लिया तुमने ? " " जब मै घटनास्थल पर पहुंचा तो ज्यादातर स्टूडेन्टस और प्रोफेसर्स उत्तेजित अवस्था में चीख - चीखकर उसे सत्या का हत्यारा बता रहे थे । " मैंने चकित स्वर में कहना चाहा ---- " और तुमने केवल उनके करने पर .... " नहीं ऐसा कोई इंस्पैक्टर नहीं कर सकता । " " फिर चन्द्रमोहन की गिरफ्तारी की वजह ? " " मैंने सारे कॉलिज और हास्टिल की तलाशी ली थी । चन्द्रमोहन के कमरे से उसके बेड पर तकिये के नीचे रखा खून से लथपथ वह चाकू मिला जिससे हत्या की गई है । " " ओह ! इतना बड़ा सुबुत ? " जैकी की मुस्कान गहरी हो गयी । बोला ---- " मगर मै दावे के साथ कह सकता हूँ---- कातिल वह नहीं है ।
 

Rakesh1999

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इस केस में अपने उपन्यास के लिए आपके हाथ भरपुर मसाला लगने वाला है । " " मेरे साथ आइए । " कहने के बाद वह कुर्मी मे खड़ा हो गया । मुझे भी खड़ा होना पड़ा । हाथ में रूल लिए जैकी लम्बे - लम्बे कदमों के साथ दरवाजे की तरफ बढ़ा । ' मैं पीछे लपका । दिमाग में रह - रहकर सवाल कौंध रहा था कि वह क्या दिखाना चाहता है ? जैकी मुझे लॉकअप में ले गया । वहां का दृश्य देखते ही मेरे जिस्म में झुरझुरी दौड़ गयी । बीस - बाइस बरस का एक लड़का लींटर में लगे कुंटे के साथ रस्सीयों से जकड़ा उल्टा लटका हुआ था । उसका जिस्म लहुलुहान था । कपड़े जगह - जगह से फटे हुए थे । मैं समझ सफता था ---- जैकी ने उसे थर्ड डिग्री से गुजारा है । जैकी पर नजर पड़ते ही उसके चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे कसाई को देखकर बकरे के चेहरे पर उभरते है । मिमिया उठा बह --- " म - मुझे और मत मारना इस्पेक्टर साहब ! जो जानता था ... बता चुका हूँ । कह चुका हूँ ... वही करूगा जो आपने कहा है । " " ध्यान से देख इन्हें ! " जैकी ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा ---- " और पहचान । " उल्टे लटके लड़के ने सहमकर मुझे देखा । " पहचाना ? " जैकी ने गुर्राकर पुछा। " स - सारी ! म मै इन्हें नहीं जानता । " और मुझे न जानना जैसे कोई गुनाह था । जैकी के हाथ में दबा रूल ' सांय की आवाज के साथ घूमा । लड़का डकरा उठा । रूल का निशान उसकी पीठ पर पड़ता चला गया । " इन्हें नहीं जानता साले ! ये हिन्दुस्तान के सबसे ज्यादा विकने वाले लेखक हैं । अपने नये उपन्यास के कथानक की तलाश में . इस . केस की इन्वेस्टिगेशन के लिए निकले हैं । " " प्लीज इंस्पैक्टर ! " मै चन्द्रमोहन के कुछ बोलने से पहले कह उठा---- " मेरे सामने यह सब मत करो ! किसी का मुझे न जानना अपराध नहीं है । " " आप नहीं समझ सकते । " जैकी इस तरह हंसा जैसे मेरी अवस्था पर तरस खा रहा हो ---- " अगर निचोड़े कपड़े से पानी नही निकलता । इस मामले में काफी बदनाम हूँ मैं । बड़े - बड़े घुटै खुर्राट मुजरिमों से राज उगलवाये हैं । एक बार मेरे चंगुल में फंसा पत्थर भी सच उगले बगैर नहीं हट सकता । ये बेचारा तो है क्या चीज ! सुबह से इसी हालत में है । काफी खातिरदारी कर चुका हूँ । एक ही बात बके जा रहा है .--- ' सत्या की हत्या मैने नही की और अब .... अपने एक्सपीरियंस के बेस पर कह सकता हूं ---- हत्यारा ये नहीं है । "
 

Rakesh1999

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मैंने पूछा ---- ' तो खून सना चाकू ? " " पता नहीं किसने मेरे तकिये के नीचे रख दिया .... " रोते कलपते चन्द्रमोहन ने कहा । मैंने जैकी से पूछा ---- " क्या तुम भी इसी ढंग से सोच रहे हो ? " " कह चुका हूं ---- इस हालत में यह झूठ नहीं बोल सकता । " " फिर ये टार्चर बंद क्यों नहीं करते ? " " हवलदार का इंतजार है । " जैकी ने कहा ---- " वह फिंगर प्रिन्ट्स डिपार्टमेंट में गया है । मुझे पूरा यकीन है ---- चाकू की मुठ पर इसकी अंगुलियों के निशान नहीं होंगे । " " हवलदार हाजिर है सर । " लाकअप के दरवाजे से आवाज उभरी ---- " आपका यकीन चौबीस कैरेट के सोने की तरह खरा है । चाकू पर इसकी अंगुलियों के निशान नहीं हैं । " हम दोनों ने पलटकर दरवाजे की तरफ देखा। वह धुलथुल तोंद वाला ऐसा हवलदार था जो शक्ल से ही कामेडियन नजर आता था । अपने हाथ में एक कागज लिए बढा और जैकी के नजदीक पहुंचा । जैकी ने कागज लेते हुए पूछा---- " किसके निशान है ? "


किसी के नहीं । " हवलदार ने कहा ---- " रिपोर्ट में लिखा है -- निशान मिटा दिये गये । जैकी ने हवलदार को हुक्म दिया ---- " लड़के को सीधा करके कुर्सी पर बिठाओ । " हवलदार को मानो पसंदीदा हुक्म मिल गया था । वह स्टूल पर खड़ा होकर चन्द्रमोहन के बंधन खोलने लगा । जैकी ने मुझसे पूछा ---- " क्या आपको ये लड़का कुसूरवार लगता है ? " मुझे क्योंकि इंस्पेक्टर को क्रास करना था , इसलिए कहा ---- " मुमकिन है चाकू रखने से पहले इसी ने निशान साफ किये हो ? " " अगर उस वक्त इसका दिमाग इतना काम कर रहा था तो यह भी सोचना चाहिए था कि चाकू अपने नहीं , किसी और के कमरे में छुपाना चाहिए । " चाहकर भी क्रॉस करने के लिए मुझे तर्क न मिला । अतः चुप रहा ।

" ये वो बात है जो खुद को बचाये रखने के लिए हत्यारे ने सोची । " जैकी कहता चला गया ---- " उसने चाकू से अपने निशान मिटाये । उसे किसी और के .... बल्कि उसके कमरे में रखा जिस पर सबको सत्या का हत्यारा होने का शक होना ही होना था । " " सबका शक चंद्रमोहन पर होने का कारण ? " " इस सवाल का जवाब कालिज पहुंचने पर आपको खुद मिल जायेगा।
 

Rakesh1999

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कहानी जारी रहेगी।अगला अपडेट जल्दी ही दूँगा।कहानी के बारे में अपने विचार अवश्य दें।थैंक्स
 
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