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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Tiger 786

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#45

आँख खुली तो मैंने खुद को काली मंदिर में पड़े हुए पाया. भोर हो चुकी थी पर धुंध पसरी हुई थी . मैं घर आया आते ही मैंने भाभी को सारी बात बता दी की दोपहर में निशा उस से मिलेगी तय स्थान पर . मैं कुछ खाने के लिए चाची के घर में घुसा ही था की चंपा मिल गयी मुझे

चंपा- कहाँ गायब था तू

मैं- तू तो पूछ ही मत,

चंपा- मैं नहीं तो और कौन पूछेगी .

मैं- मैं पूछने का हक़ खो दिया है तूने , तूने मुझसे झूठ बोला .

चंपा- भला मैं क्यों झूठ बोलने लगी तुझसे

मैं- तो फिर बता उस रात तू घर से बाहर क्या कर रही थी .

चंपा- बताया तो सही

मैं- मुझे सच जानना है , हर बात का दोष मंगू पर नहीं डाल सकती तू

मेरी बात सुन कर चंपा खामोश हो गयी .

मैं- दरअसल दोष तेरा नहीं है दोष मेरा है जो मैं इस काबिल नहीं बन पाया की तू अपना मन खोल सके मेरे आगे. कोई नहीं मैं नहीं पूछता

मैंने कहा और रसोई की तरफ चल दिया. चंपा की ख़ामोशी मेरा दिल तोड़ रही थी . इस सवाल का जवाब मुझे ही तलाशना था .

खैर, अब इंतज़ार दोपहर का था मैंने व्यवस्था कर ली थी की छिप कर दोनों में क्या बात हुई सुन सकू. भाभी चूँकि, राय साब के परिवार की बहु थी मंदिर खाली करवाना उसके लिए कोई बड़ी बात थोड़ी न थी . तय समय पर भाभी मंदिर में पहुँच गयी . थोड़ी देर बीती, फिर और देर हुई और देर होती गयी . भाभी को भी अब खीज होने लगी थी . और मैं भी निशा के न आने से परेशां हो गया था .



“मैं जानती थी कोई नहीं आने वाला ” भाभी ने खुद से कहा .



तभी मंदिर के बाहर लगा घंटा जोर से गूँज उठा . अचानक से ही मेरी धडकने बढ़ सी गयी .मैंने देखा निशा सीढिय चढ़ कर उस तरफ आ रही थी जहा भाभी खड़ी थी . सफ़ेद घाघरा-चोली में निशा सर्दियों की खिली धुप सी जगमगा रही थी . माथे से होते हुए गालो को चूमती उसकी लटे अंधेरो में मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया था . उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था . ना सुख की शान न दुःख की फ़िक्र.

कोई और लम्हा होता तो मैं थाम लेता उसके हाथ को अपनेहाथ में . निशा किसी बिजली सी भाभी के नजदीक से निकली और माता की प्रतिमा के पास जाकर बैठ गयी .

“ ए लड़की किसी ने तुझे बताया नहीं की मंदिर में प्रवेश को हमने मना किया है थोड़े समय बाद आना तू ” भाभी ने कहा



“मैंने सुना है ये इश्वर का घर है और इश्वर के घर में कोई कभी भी आ जा सकता है ” निशा ने बिना भाभी की तरफ देखे कहा

भाभी- कोई और दिन होता तो मैं सहमत होती तुझसे पर आज मेरा कोई काम है तू बाद में आना

निशा- हमारे ही दीदार को तरफ रही थी आँखे तुम्हारी और हम ही से पर्दा करने को कह रही हो तुम

जैसे ही निशा ने ये कहा भाभी की आँखे हैरत से फ़ैल गयी .

“तो.... तो...... तो तुम हो वो ” भाभी बस इतना बोल पायी

निशा- तुम्हे क्या लगा , और किस्मे इतनी हिम्मत होगी की राय साहब की बहु के फरमान के बाद भी यहाँ पैर रखेगा.

भाभी ने ऊपर से निचे तक निशा का अवलोकन किया

निशा- अच्छी तरह से देख लो. मैं ही हूँ

भाभी- पर तुम ऐसी कैसे हो सकती हो

निशा- तुम ही बताओ फिर मैं कैसी हो सकती हूँ

भाभी के पास कोई जवाब नहीं था निशा की बात का .

निशा- तुमने कभी इसे भी साक्षात् नहीं देखा फिर भी इस पत्थर की मूर्त को तू पूजती है न मानती है न जब तू इसके रूप पर कोई सवाल नहीं करती तो मेरे रूप पर आपति कैसी . खैर मुद्दा ये नहीं है मुद्दा ये है की तुम क्यों मिलना चाहती थी मुझसे. आखिर ऐसी क्या वजह थी जो मुझे इन उजालो में आना पड़ा

भाभी- वजह थी , वजह है. वजह है कबीर. तुम ने न जाने क्या कर दिया है कबीर पर . वो पहले जैसा नहीं रहा .

निशा- वक्त सब को बदल देता है इसमें दोष समय का है मेरा क्या कसूर

भाभी- जब से कबीर तुझ से मिला है, वो पहले जैसा नहीं रहा . उसे तलब लगी है रक्त की , कितनी ही बार उसे पकड़ा गया है उन हालातो में जहाँ उसे बिलकुल भी नहीं होना चाहिए . ये उस पर तेरा सुरूर नहीं तो और क्या है.

निशा के चेहरे पर एक मुस्कराहट आ गयी .

निशा- तो फिर रोक लो न उसे, मुझसे तो वो कुछ समय पहले मिला है तेरे साथ तो वो बचपन से रहा है . क्या तेरा हक़ इतना कमजोर हो गया ठकुराइन .

निशा की बात भाभी को बड़ी जोर से चुभी .

भाभी- दाद देती हूँ इस गुस्ताखी की ये जानते हुए भी की तू कहाँ खड़ी है

निशा- समझना तो तुम्हे चाहिए . जब तुमने यहाँ मिलने की शर्त राखी थी मैं तभी तुम्हारे मन के खोट को जान गयी थी पर देख लो मैं यहाँ खड़ी हु.

भाभी- यही तो एक डाकन का यहाँ होना अनोखा है

निशा- मुझे हमेशा से इंसानों की बुद्धिमता पर शक रहा है . तुम्हे देख कर और पुख्ता हो गया .

निशा ने जैसे भाभी का मजाक ही उड़ाया

निशा- जानती है तेरा देवर क्यों साथ है मेरे. क्योंकि उसका मन पवित्र है उसने मेरी हकीकत जानने के बाद भी मुझसे घृणा नहीं की. उसे मुझसे कोई डर नहीं है जैसा वो तेरे साथ है वैसे ही मेरे साथ . वो उस पहली मुलाकात से जानता था की मैं डाकन हु. न जाने वो मुझमे क्या देखता है पर मैं उसमे एक सच्चा इन्सान देखती हूँ . तुझे तो अभिमान होना चाहिए तेरी परवरिश पर , पर तू न जाने किस भाव से ग्रसित है

भाभी- मैं अपनी परवरिश को संभाल लुंगी . तुझसे मैं इतना चाहती हूँ तू कबीर को अपने चंगुल से आजाद कर . कुछ ऐसा कर की वो भूल जाये की कभी तुझसे मिला भी था वो . बदले में तुझे जो चाहिए वो दूंगी मैं तू चाहे जो मांग ले .

भाभी की बात सुन कर निशा जोर जोर से हंसने लगी. उसकी हंसी मंदिर में गूंजने लगी .

निशा- क्या ही देगी तू मुझे . हैं ही क्या तेरे पास देने को. ठकुराइन , मै अच्छी तरह से जानती हूँ एक डाकन और इन्सान का कोई मेल नहीं . मैं अपनी सीमाए समझती हूँ और तेरा देवर अपनी हदे जानता है . तू उसकी नेकी पर शक मत कर . ये दुनिया इस पत्थर की मूर्त को पुजती है वो तुझे पूजता है . इसके बराबर का दर्जा है उसके मन में तेरा .



भाभी- फिर भी मैं चाहती हूँ की तू उसकी जिन्दगी से निकल जा. दूर हो जा उस से.

निशा- इस पर मेरा कोई जोर नहीं ये नियति के हाथ में है

भाभी- कबीर की नियति मैं लिखूंगी

निशा- कर ले कोशिश कौन रोक रहा है तुझे.

भाभी- तू देखेगी, मैं देखूंगी और ये सारी दुनिया देखेगी .

निशा- फ़िलहाल तो मुझे तेरी झुंझलाहट दिख रही है ठकुराइन

भाभी- मेरे सब्र का इम्तिहान मत ले डाकन

निशा- मुद्दत हुई मेरा सब्र टूटे तेरी अगर यही जिद है तो तू भी कर ले अपने मन की , मुझे चुनोती देने का अंजाम भी समझ लेना . डायन एक घर छोडती है वो घर कबीर का था ........... सुन रही है न तू वो घर कबीर का था .

भाभी- मुझे चाहे को करना पड़े. एक से एक तांत्रिक, ओझा बुला लाऊंगी . पर इस गाँव और मेरे देवर पर आये संकट को जड से उखाड़ फेंकुंगी मैं


निशा- मैं इंतज़ार करुँगी .और तुम दुआ करना की दुबारा मुझे अंधेरो से इन उजालो की राह न देखनी पड़े................
Bhabhi or Nisha ka Amna samna ho hi gaya.
Superb update
 

Avinashraj

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#44

मुझे शिद्दत से मंगू का इंतज़ार था और जब वो आया तो उसके कपडे सने हुए थे कीचड़ से . हालत पस्त थी उसकी.

मैं- कहाँ गायब था बे

मंगू- भाई , खेतो की परली तरफ नहर का एक किनारा टूट गया काफी पानी भर गया है बहुत नुक्सान हो गया . किनारे की मरम्मत करने में देर हो गयी .

मैं- तू अकेला गया , मुझे बता तो सकता था न

मंगू- अकेला नहीं था उस तरफ जिनके भी खेत है सब लोग थे. तुझे इसलिए नहीं बताया की पहले ही चोट लगी है. पानी का बहाव फ़िलहाल के लिए तो रोक दिया है पर मुझे लगता नहीं की ज्यादा देर ये कोशिश कामयाब होगी , अभिमानु भाई ही मदद करेंगे अभी . मैं नहा लेता हु फिर भैया को बुलाने जाऊंगा.

मंगू के रात भर गायब होने की वजह ये थी . मैंने तस्दीक कर ली थी मंगू गाँव के और लोगो के साथ नहर के किनारे को ठीक करने में ही जुटा था . एक बार फिर से मैं घूम कर वहीँ पर आ गया था जहां से चला था . दोपहर में भाभी ने मुझसे कहा की डायन अगर मिलने को तैयार हो जाये तो वो गाँव के मंदिर में मिलना चाहेगी उस से. भाभी ने अपना दांव खेल दिया था उसने जान बुझ कर ऐसी जगह चुनी थी . पहली बार मुझे लगा की भाभी कितनी कुटिल है .



खैर उस रात को ये सुनिश्चित करने के बाद की कोई भी मेरा पीछा नहीं कर रहा मैं काले मंदिर के तालाब के पास पहुँच गया. पानी एकदम शांत था इतना शांत की जैसे तालाब था ही नहीं . सीली दिवार का सहारा लेते हुए मैं काली मंदिर की सीढिया चढ़ कर ऊपर पहुँच गया .



“माना के मेरे मुक्कद्दर में लिखे है ये अँधेरे , पर तुम क्यों अपनी राते काली करते हो ” निशा ने बिना मेरी तरफ देखे कहा. वो आज भी वैसे ही पीठ किये बैठी थी जैसा हमारी पहली मुलाकात में .

मैं- अंधियारों में तू एक जोगन और मेरा मन रमता जोगी.

निशा- जोग का रोग जो लगा बैठे न तो फिर सब से बेगाने हो जाओगे.

मैं- तू ही जाने क्या अपना क्या पराया

निशा- तू सबका तेरा कोई नहीं

मैं- तू तो है मेरी

निशा- मैं हूँ तेरी

वो हंसने लगी .

“मैं हूँ तेरी , क्या हूँ मैं तेरी मैं कुछ भी तो नहीं राख के एक ढेर के सिवा जिसे तू चिंगारी दे रहा है ” बोली वो

मैं- बस इतना जानता हूँ ये अंधियारे जितने तेरे है उतने मेरे

निशा- मत कह ऐसा . मेरी तो नियति है तू अपने उजालो से दगा मत कर

वो उठ कर मेरे पास आई . अँधेरी रात में उसकी मर्ग्नय्नी आँखे मेरे मन को टटोलने लगी.

निशा- बता क्या है मन में

मैं- बहुत कुछ , कुछ कहना है है कुछ छिपाना है .

निशा- आ बैठ पास मेरे .

निशा ने अपना सर मेरे काँधे पर रखा

मैं- आहिस्ता से, दर्द होता है .

निशा- कैसा दर्द

मैं- घाव लगा है

निशा- देखू जरा

मैं- तेरी मर्जी

निशा ने मेरा कम्बल एक तरफ किया और पट्टियों को तार तार कर दिया . उसकी सर्द सांसो ने घाव के रस्ते होते हुए दिल पर दस्तक दे दी.

निशा- कब हुआ ये

मैं- थोड़े दिन बीते

निशा- दो मिनट रुक

वो उस तरफ गयी जहाँ वो बैठी थी वापसी में एक झोला लेकर आई . उसमे से कुछ निकाला और बोली- दर्द होगा सह पायेगा .

मैं- मर्द को दर्द नहीं होता जाना

निशा- ठीक है फिर

उसने मेरे कंधे में कुछ नुकीली छुरी सा घुसा दिया और मैं लगभग चीख ही पड़ा था की उसने अपना हाथ मेरे मुह पर रखा और बोली- मर्द जी , ये तो शुरुआत है .

मुझे लगा की वो मेरे मांस को काट रही है . दर्द बहुत हो रहा था पर मैं कमजोर नहीं पड़ा . उसने झोले से एक शीशी निकाली और मेरे घाव के छेद में उड़ेलने लगी. मैंने महसूस किया की मेरे तन में आग लग गई हो.

पर ये तो शुरुआत थी . उसने आग जलाई और एक चाक़ू को गर्म करने लगी.

निशा- शोर मत करना . मुझे पसंद नहीं है .

मैं- क्या करने वाली है तू

निशा- जान जायेगा उसने अपनी चुनर उतारी और बोली- मुह में दबा ले .

मेरे वैसा करते ही उसने सुलगते चाकू को मेरे काँधे में धंसा दिया . उफफ्फ्फ्फ़ कसम से मर ही गया था मैं तो . निशा ने जख्म को दाग दिया था.

“बस हो गया ” उसने बेताक्लुफ्फी से कहा और कम्बल वापिस ओढा दिया मुझे .

मैं- जान लेनी थी तो वैसे ही ले लेती .

निशा- क्या करुँगी मैं इतनी सस्ती जान का

मैं- ये तेरी कमी हुई जो तूने सस्ती जान का सौदा किया

निशा- छोड़ इन बातो को मुझे मालूम हुआ कुछ परेशानी है तुझे

मैं- परेशानी तो जिन्दगी भर रहनी ही हैं .तुझे तो मालूम है की मेरी भाभी ने मेरा जीना मुश्किल किया हुआ है . उसे लगता है की गाँव में जो भी ये हो रहा है मैं कातिल हूँ

निशा- सच कहती है तेरी भाभी कातिल तो तू है

मैं- मैं कातिल हूँ ये तू समझती है वो नहीं

निशा- तो समझा उसे

मैं- मैंने उसे बताया सब कुछ बताया अब उसकी जिद है की वो तुझसे मिलेगी .

निशा-डाकन से मिल कर क्या करेगी वो

मैं- मैंने भी यही कहा उसे पर वो जिद किये हुई है

निशा- ठीक है फिर तेरी भाभी की जिद पूरी कर देती हूँ उस से कहना की तेरे कुवे पर मिलूंगी मैं उस से पर वो अकेली आयेगी.

मैं- तुझे कोई जरुरत नहीं है उसके सामने आने की

निशा- तू साथी है मेरा इन अधियारो में जब कोई नहीं था तू ही तो था . मेरी वजह से तुझे परेशानी हो . तू तकलीफ में होगा तो मैं चैन कैसे पाऊँगी . और फिर एक मुलाकात की ही तो बात है

मैं- तू समझ नहीं रही है

निशा- समझा फिर

मैं- भाभी तुझसे गाँव के मंदिर में मिलना चाहती है

मेरी बात सुन कर निशा थोड़ी देर के लिए खामोश हो गयी मैं उसके चेहरे की तरफ देखता रहा .

निशा- बस इतनी सी बात , चलो ये भी सही . भाभी से कहना की मैं उसकी हसरत जरुर पूरी करुँगी पर मेरी भी एक शर्त है की मैं उस से निखट दुपहरी में मिलने आउंगी और जब ये मुलाकात होगी तो मंदिर में उसके और मेरे सिवा कोई तीसरा नहीं होगा. यदि उस समय किसी और की आमद हुई तो फिर ठीक नहीं रहेगा

मैं- तुझे ऐसा कुछ भी करने की जरूरत नहीं है, मेरी वजह से तू मंदिर में कदम नहीं रखेगी .

निशा- ये तो शुरआत है दोस्त . रास्ता बड़ा लम्बा है ......

निशा ने मेरे कंधे पर सर रखा थोडा कम्बल खुद ओढा और आँखों को बंद कर लिया .........
Nyc update bhai
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Wah.. Wah wah. Kya khoobsurati se sabdo ko piroya hai foji bhai aapne.
Mai aise hi aapka mukabla babu devki nandan khatri se nahi karta hu.
"Kuch baat hai ki hasti mit ti nahi hamari, sadiyon se raha hai dushman sara jaha hamara"

:applause:
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Avinashraj

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आँख खुली तो मैंने खुद को काली मंदिर में पड़े हुए पाया. भोर हो चुकी थी पर धुंध पसरी हुई थी . मैं घर आया आते ही मैंने भाभी को सारी बात बता दी की दोपहर में निशा उस से मिलेगी तय स्थान पर . मैं कुछ खाने के लिए चाची के घर में घुसा ही था की चंपा मिल गयी मुझे

चंपा- कहाँ गायब था तू

मैं- तू तो पूछ ही मत,

चंपा- मैं नहीं तो और कौन पूछेगी .

मैं- मैं पूछने का हक़ खो दिया है तूने , तूने मुझसे झूठ बोला .

चंपा- भला मैं क्यों झूठ बोलने लगी तुझसे

मैं- तो फिर बता उस रात तू घर से बाहर क्या कर रही थी .

चंपा- बताया तो सही

मैं- मुझे सच जानना है , हर बात का दोष मंगू पर नहीं डाल सकती तू

मेरी बात सुन कर चंपा खामोश हो गयी .

मैं- दरअसल दोष तेरा नहीं है दोष मेरा है जो मैं इस काबिल नहीं बन पाया की तू अपना मन खोल सके मेरे आगे. कोई नहीं मैं नहीं पूछता

मैंने कहा और रसोई की तरफ चल दिया. चंपा की ख़ामोशी मेरा दिल तोड़ रही थी . इस सवाल का जवाब मुझे ही तलाशना था .

खैर, अब इंतज़ार दोपहर का था मैंने व्यवस्था कर ली थी की छिप कर दोनों में क्या बात हुई सुन सकू. भाभी चूँकि, राय साब के परिवार की बहु थी मंदिर खाली करवाना उसके लिए कोई बड़ी बात थोड़ी न थी . तय समय पर भाभी मंदिर में पहुँच गयी . थोड़ी देर बीती, फिर और देर हुई और देर होती गयी . भाभी को भी अब खीज होने लगी थी . और मैं भी निशा के न आने से परेशां हो गया था .



“मैं जानती थी कोई नहीं आने वाला ” भाभी ने खुद से कहा .



तभी मंदिर के बाहर लगा घंटा जोर से गूँज उठा . अचानक से ही मेरी धडकने बढ़ सी गयी .मैंने देखा निशा सीढिय चढ़ कर उस तरफ आ रही थी जहा भाभी खड़ी थी . सफ़ेद घाघरा-चोली में निशा सर्दियों की खिली धुप सी जगमगा रही थी . माथे से होते हुए गालो को चूमती उसकी लटे अंधेरो में मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया था . उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था . ना सुख की शान न दुःख की फ़िक्र.

कोई और लम्हा होता तो मैं थाम लेता उसके हाथ को अपनेहाथ में . निशा किसी बिजली सी भाभी के नजदीक से निकली और माता की प्रतिमा के पास जाकर बैठ गयी .

“ ए लड़की किसी ने तुझे बताया नहीं की मंदिर में प्रवेश को हमने मना किया है थोड़े समय बाद आना तू ” भाभी ने कहा



“मैंने सुना है ये इश्वर का घर है और इश्वर के घर में कोई कभी भी आ जा सकता है ” निशा ने बिना भाभी की तरफ देखे कहा

भाभी- कोई और दिन होता तो मैं सहमत होती तुझसे पर आज मेरा कोई काम है तू बाद में आना

निशा- हमारे ही दीदार को तरफ रही थी आँखे तुम्हारी और हम ही से पर्दा करने को कह रही हो तुम

जैसे ही निशा ने ये कहा भाभी की आँखे हैरत से फ़ैल गयी .

“तो.... तो...... तो तुम हो वो ” भाभी बस इतना बोल पायी

निशा- तुम्हे क्या लगा , और किस्मे इतनी हिम्मत होगी की राय साहब की बहु के फरमान के बाद भी यहाँ पैर रखेगा.

भाभी ने ऊपर से निचे तक निशा का अवलोकन किया

निशा- अच्छी तरह से देख लो. मैं ही हूँ

भाभी- पर तुम ऐसी कैसे हो सकती हो

निशा- तुम ही बताओ फिर मैं कैसी हो सकती हूँ

भाभी के पास कोई जवाब नहीं था निशा की बात का .

निशा- तुमने कभी इसे भी साक्षात् नहीं देखा फिर भी इस पत्थर की मूर्त को तू पूजती है न मानती है न जब तू इसके रूप पर कोई सवाल नहीं करती तो मेरे रूप पर आपति कैसी . खैर मुद्दा ये नहीं है मुद्दा ये है की तुम क्यों मिलना चाहती थी मुझसे. आखिर ऐसी क्या वजह थी जो मुझे इन उजालो में आना पड़ा

भाभी- वजह थी , वजह है. वजह है कबीर. तुम ने न जाने क्या कर दिया है कबीर पर . वो पहले जैसा नहीं रहा .

निशा- वक्त सब को बदल देता है इसमें दोष समय का है मेरा क्या कसूर

भाभी- जब से कबीर तुझ से मिला है, वो पहले जैसा नहीं रहा . उसे तलब लगी है रक्त की , कितनी ही बार उसे पकड़ा गया है उन हालातो में जहाँ उसे बिलकुल भी नहीं होना चाहिए . ये उस पर तेरा सुरूर नहीं तो और क्या है.

निशा के चेहरे पर एक मुस्कराहट आ गयी .

निशा- तो फिर रोक लो न उसे, मुझसे तो वो कुछ समय पहले मिला है तेरे साथ तो वो बचपन से रहा है . क्या तेरा हक़ इतना कमजोर हो गया ठकुराइन .

निशा की बात भाभी को बड़ी जोर से चुभी .

भाभी- दाद देती हूँ इस गुस्ताखी की ये जानते हुए भी की तू कहाँ खड़ी है

निशा- समझना तो तुम्हे चाहिए . जब तुमने यहाँ मिलने की शर्त राखी थी मैं तभी तुम्हारे मन के खोट को जान गयी थी पर देख लो मैं यहाँ खड़ी हु.

भाभी- यही तो एक डाकन का यहाँ होना अनोखा है

निशा- मुझे हमेशा से इंसानों की बुद्धिमता पर शक रहा है . तुम्हे देख कर और पुख्ता हो गया .

निशा ने जैसे भाभी का मजाक ही उड़ाया

निशा- जानती है तेरा देवर क्यों साथ है मेरे. क्योंकि उसका मन पवित्र है उसने मेरी हकीकत जानने के बाद भी मुझसे घृणा नहीं की. उसे मुझसे कोई डर नहीं है जैसा वो तेरे साथ है वैसे ही मेरे साथ . वो उस पहली मुलाकात से जानता था की मैं डाकन हु. न जाने वो मुझमे क्या देखता है पर मैं उसमे एक सच्चा इन्सान देखती हूँ . तुझे तो अभिमान होना चाहिए तेरी परवरिश पर , पर तू न जाने किस भाव से ग्रसित है

भाभी- मैं अपनी परवरिश को संभाल लुंगी . तुझसे मैं इतना चाहती हूँ तू कबीर को अपने चंगुल से आजाद कर . कुछ ऐसा कर की वो भूल जाये की कभी तुझसे मिला भी था वो . बदले में तुझे जो चाहिए वो दूंगी मैं तू चाहे जो मांग ले .

भाभी की बात सुन कर निशा जोर जोर से हंसने लगी. उसकी हंसी मंदिर में गूंजने लगी .

निशा- क्या ही देगी तू मुझे . हैं ही क्या तेरे पास देने को. ठकुराइन , मै अच्छी तरह से जानती हूँ एक डाकन और इन्सान का कोई मेल नहीं . मैं अपनी सीमाए समझती हूँ और तेरा देवर अपनी हदे जानता है . तू उसकी नेकी पर शक मत कर . ये दुनिया इस पत्थर की मूर्त को पुजती है वो तुझे पूजता है . इसके बराबर का दर्जा है उसके मन में तेरा .



भाभी- फिर भी मैं चाहती हूँ की तू उसकी जिन्दगी से निकल जा. दूर हो जा उस से.

निशा- इस पर मेरा कोई जोर नहीं ये नियति के हाथ में है

भाभी- कबीर की नियति मैं लिखूंगी

निशा- कर ले कोशिश कौन रोक रहा है तुझे.

भाभी- तू देखेगी, मैं देखूंगी और ये सारी दुनिया देखेगी .

निशा- फ़िलहाल तो मुझे तेरी झुंझलाहट दिख रही है ठकुराइन

भाभी- मेरे सब्र का इम्तिहान मत ले डाकन

निशा- मुद्दत हुई मेरा सब्र टूटे तेरी अगर यही जिद है तो तू भी कर ले अपने मन की , मुझे चुनोती देने का अंजाम भी समझ लेना . डायन एक घर छोडती है वो घर कबीर का था ........... सुन रही है न तू वो घर कबीर का था .

भाभी- मुझे चाहे को करना पड़े. एक से एक तांत्रिक, ओझा बुला लाऊंगी . पर इस गाँव और मेरे देवर पर आये संकट को जड से उखाड़ फेंकुंगी मैं


निशा- मैं इंतज़ार करुँगी .और तुम दुआ करना की दुबारा मुझे अंधेरो से इन उजालो की राह न देखनी पड़े................
Awesome update
 

avsji

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दो दो जोगनी के बीच अकेला लांगुरिया 🤣🤣🤣👏👌

ये भाभी न कुँवर की अम्मा जैसा बर्ताव कर रही है। बहुत possessive अम्मा की अपने बेटे की बहू / प्रेमिका देखते ही फ़टने लगती है। वही हो रहा है उसके साथ।

मैं- दरअसल दोष तेरा नहीं है दोष मेरा है जो मैं इस काबिल नहीं बन पाया की तू अपना मन खोल सके मेरे आगे. कोई नहीं मैं नहीं पूछता

गज़ब का चूतिया आदमी है ये तो। खुद तो किसी को सीधी सच्ची बात नहीं बताता, लेकिन दूसरों से ऐसी बातें करने की हिम्मत!! 😂

मनोरंजक कहानी 👌
 

Naik

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#43

सियार को देख कर सारे घर वालो में अफरा तफरी मच गयी . भैया ने उसे मारने के लिए लट्ठ उठा लिया पर मैंने उन्हें रोका. सियार मेरी गोद में चढ़ गया और मेरे कानो को चाटने लगा.

मैं- भैया, ये मेरा दोस्त है .

मेरी बात सुन कर सब लोगो को हैरत हुई

भैया- पर ये जानवर पालतू नहीं हो सकता

मैं- आपके सामने ही है, दरअसल ये अपने खेतो के आस पास ही रहता है कई बार आ जाता है , फिर मुझे भी इस से लगाव हो गया . ये किसी को नुकसान नहीं करेगा भरोसा करो

मैंने कहा तो था पर मेरी बात का घरवालो को रत्ती भर भी यकीन नहीं था खासकर भाभी को . ऊपर से सियार को यहाँ वो पचा नहीं पा रही थी .

मैने सियार को पुचकारा और कहा - तू जा वापिस मैं जल्दी ही आऊंगा मिलने

भाभी- किस से मिलने की बात कर रहे हो

मैं- इसको ही कह रहा हूँ भाभी

इस से पहले की वो कुछ और कहती वैध जी ने भैया से एक तरफ आने को कहा और न जाने उन दोनों में क्या बात हुई फिर वैध और भैया घर से बाहर चले गए. भाभी की जलती नजरो से मुझे कोफ़्त होने लगी थी . मैंने सियार को इशारा किया और उसके पीछे मैं भी चल दिया .

भाभी- अब कहा चल दिए.

मैं- हम दोनों यहाँ रहेंगे तो आप को परेशानी होगी.

भाभी- मुझे परेशानी होगी , कमबख्त मेरा बस नहीं चल रहा वर्ना मैं पीट देती तुझे .

मैं- भाभी आपका दर्जा बहुत ऊँचा है मेरी नजरो में , मैंने आप से कभी झूठ नहीं बोला मैंने आपको सच बताया की मैं किस से मिलता हूँ , किस से मिलने जाता हूँ ये सियार भी उसका ही है . आप चाहे मानो या न मानो वो वैसी बिलकुल नहीं है जैसा हम किस्से-कहानियो में सुनते आये है . उसे कुछ गलत करना होता तो वो न जाने कब का कर चुकी होती .

भाभी- ये बकवास बंद कर तू मैं बस इतना जानना चाहती हूँ की तू इतनी रात को चंपा के साथ क्या कर रहा था .

मैं- चंपा को होश आये तो उस से ही पूछ लेना . चाची चलो यहाँ से

मैंने चाची का हाथ पकड़ा और उसे लेकर चाची के घर आ गया .

चाची- कबीर , मैं जानती हूँ तू मुझसे कभी झूठ नहीं बोलेगा

मैं- मैंने तुझे भी तो सच ही कहा था न की डायन मेरी दोस्त है

मेरी बात सुन कर चाची के माथे पर बल पड़ गए .

चाची- डाकन की दोस्ती माणूस से असंभव है . अगर ऐसा है भी तो उसने जरुर कुछ किया होगा तेरे ऊपर

मैं- तूने क्या बदलाव देखा मेरे अन्दर क्या मैंने किसी का जरा भी बुरा किया . मेरा बिस्वास कर मेरा कोई अहित नहीं है उसके साथ रहने में

चाची का चेहरा पूरा लाल हो गया था

“सो जा तुझे आराम की जरुरत है ” चाची ने बस इतना ही कहा .

सुबह आँख खुली तो बदन दर्द से टूट रहा था . सामने कुर्सी पर भाभी बैठी थी . मैंने उससे कोई बात नहीं की उठ कर बदन पर एक शाल लपेटा और घर से बाहर निकल ही रहा था की भाभी की आवाज ने मेरे कदम रोक लिए

भाभी- मैं उस डायन से मिलना चाहती हूँ

मैं- उसकी मर्जी होगी तो जरुर मिलेगी आप से

भाभी- तुम लेकर चलो मुझे उस के पास

मैं- मैंने कहा न जब उसका जी करेगा वो जरुर मिलेगी

भाभी- कुंवर, तुम्हे यूँ देख कर मुझे तकलीफ होती है सोचती हूँ की मेरी परवरिश में कहाँ कमी रह गयी

मैं- मुझे गर्व है की आपने मेरी परवरिश की और एक दिन आयेगा जब आप मुझे समझेगी और अपने आँचल तले ले लेंगी .

भाभी- मैं सिर्फ इतना कह रही हूँ की अपनी दोस्त से मुझे मिलवाने में क्या परेशानी है तुझे

मैं- मैंने कहा न उसकी इच्छा होगी तो जरुर मिलेगी

भाभी- और कब होगी उसकी इच्छा

मैं- ये तो वो जाने .

भाभी- कुंवर, ये जो भो षड्यंत्र तुम रच रहे हो न इसका पर्दाफाश मैं जरुर करुँगी , मैंने चंपा से भी पूछा उसने कहा की उसे याद नहीं . मैंने कुछ रोज पहले चंपा को तुम्हारी बाँहों में देखा था . दुआ करना मेरा शक गलत साबित हो .

मैं- चंपा को गले लगाना गलत है क्या . आप भी जानती है उसे .

भाभी - तो फिर क्यों नहीं बताया उसने की रात में घर से बाहर क्यों थी वो

मैं- शायद उसने जरुरी नहीं समझा होगा.

भाभी - इतनी बड़ी नहीं हुई है वो अभी

मैं- मुझे जाना है बाहर

खुली हवा में आकर मैंने सांस ली तो करार मिला. भैया अखाड़े में थे मैं वही चला गया .

भाई- अरे छोटे, आराम करना चाहिए न

मैं- आराम ही है भैया

भैया- मैं नहा लेता हु फिर तुझे वापिस शहर ले चलता हूँ डॉक्टर के पास

मैं- ठीक है भैया , बस पट्टी ही तो करवानी है वैध कर देगा

भैया- वैसे कल अच्छी बहादुरी दिखाई तूने

मैं- आप न होते तो मामला हाथ से निकल ही गया था

भैया- उठा पटक की आवाज ने नींद तोड़ दी . मैंने खिड़की से देखा की दरवाजा खुला पड़ा है उसे बंद करने ही आया था की तुम लोगो की चीख पुकार सुनी भैया पर वो कारीगर को हुआ क्या था कुछ समझ नही आया

मैं- मुझे भी तलाश है इस सवाल के जवाब की

भैया- तू फ़िक्र मत कर मैं मालूम कर ही लूँगा.

मैं चंपा के पास गया वो लेटी हुई थी उसकी माँ को मैंने एक कप चाय के लिए कहा और चंपा से मुखातिब हुआ

मैं- बस एक ही सवाल है मेरा और सच सुनना चाहता हूँ , इतनी रात को घर से बाहर क्या कर रही थी तू.

चंपा- मैं सोयी पड़ी थी , अचानक से एक आहट से मेरी आँख खुल गयी मैंने देखा की आँगन में एक छाया है . गौर किया तो मालूम हुआ की मंगू था जो घर से बाहर जा रहा था .

मैं- इतनी रात को कहाँ जा रहा था वो .

चंपा- यही सवाल मेरे मन में भी था मैं भी उसके पीछे दबे पाँव हो ली . गली में पहुची इतने वो गायब हो चूका था . मैंने सोचा की इधर उधर देखूं उसे की तभी न जाने कहाँ से वो कारीगर आ गया और मुझे दबोच लिया ये तो शुक्र था की तू मिल गया

मैं- अभी कहा है मंगू.

चंपा मालूम नहीं लौट कर आया नहीं वो .

मैं- भाभी को लगता है की रात में तू मुझसे मिलने आई थी

चंपा- सच में

मैं- तेरी कसम

चंपा- सच तू जानता तो है

मैं- तेरे मेरे कहने से क्या होता है , कल को भाभी ये आरोप लगा दे की तू मुझसे चुदने आई थी रात को तो कोई हैरानी नहीं

चंपा- मैं भाभी से बात करुँगी

मैं- पिछले कुछ दिनों में मंगू के व्यवहार में किसी तरह का परिवर्तन लगा है क्या तुझे

चंपा- कुछ खास नहीं बस आजकल वो तेरे साथ खेतो पर नहीं रहता रातो को

मैं - कहाँ कटती है उसकी राते

चंपा यही घर पर ही . कभी कभी दारु की दूकान पर जरुर जाता है पर समय से ही लौट आता है .


दारू की दुकान का सुन कर मुझे दारा की याद आयी . मुझे लगा की कहीं सूरजभान ने ही तो मंगू को अपने जाल में फंसा लिया हो मुझसे दुश्मनी के चलते . पर क्या ये मेरा वहम हो सकता था जो भी था मुझे सच की तलाश करनी ही थी .
Siyar ko dekh ker sabki hawa tite ho gayi thi vaidh ji or bhayya m kia baat huwi bhabi ka shak abhi.tak khatam nahi huwa champa n bhi kuch nahi bataya isiliye or shak badhta jaa rah h or ab bhabi Nisha se milne ki rat laga ker baith gayi h
Dekhte h kab hoti h mulaqat nisha se bhabi ki
Mangu kis chakker m pad raha h yeh dekhne wali baat hogi
Baherhal dekhte h aage kia hota h
Shaandaar update bhai
 

brego4

Well-Known Member
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Height of super possessiveness shown by both bhabhi and nisha both stood there ground but bhabhi did look bit more jealous. General life n choices ahead for kabir are going to be very narrow n tough. the role of nisha has eclipsed everybody else in the story may be because we are first time reading story of love n friendship between a dayan n human

champa certainly has some secrets she is hiding from everyone. chachi-champa dono hi kisi aur se bhi relation mein ho sakti hai. kanir ko in dono par ab nazar rakhna hogi kuch ka kuch aisa hai jo kabir se chupaya ja raha hai
 
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