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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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nain11ster

Prime
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Mai abhi bhi vichaar mai hu
Ki sala ye last update kyaa thaa
Ruhi ka maa healer beti ka dimaag killer
Ye to mere sir ke upar se na jaye isliye fuk maarke fir padh raha hun
Arya ne shilpkari dikhate hue a66a udaharan de aaye black forest mai
Supernatural kuch a66e aut kuch bure hote hain
Par
Ye ruhi ne pura bomb phaad di diwali ke badle abhi le li
Ab next update ke baad hi kuch samajh aane hai nain sir mujhe
Thanks saare malal hata kara dimag ki dahi wali shaandaar update
Bus aaj sab dimag ke tar apni jagah aa jayenge Ali bhai
 

@09vk

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भाग:–89





रूही अपनी बात समाप्त कर वहां से उठ गयी। आर्यमणि, उसका हाथ थामकर….. "ठहरो रूही"...


रूही:– क्या हुआ, फिर कोई नई कहानी दिमाग में है क्या?


आर्यमणि:– इतना धैर्य क्यों खो रही हो। तुम्हारे इतने लंबे चौड़े सवालों की सूची का आधार केवल एक ही है, मैं नागपुर किस उद्देश्य से पहुंचा था? इसी सवाल के जवाब में मैं फिसला और तुम्हारे इतने सारे सवाल खड़े हो गये। ठीक है तो ध्यान से सुनो मैं नागपुर क्यों पहुंचा था.…

मुझे पता लगाना था कि सात्विक आश्रम के तत्काल गुरु निशी ने मुझे तीन बिंदु क्यों दिखाए.. अनंत कीर्ति की किताब, रीछ स्त्री का नागपुर में होना और पलक सात्विक आश्रम में क्या कर रही थी? इसके अलावा मेरी अपनी समीक्षा थी कि एक महान अल्फा हिलर फेहरीन को नागपुर लाने वाला प्रहरी कैसे एक अच्छा संस्था हो सकती है। गंदे और घटिया लोगों की संस्था है ये प्रहरी जिसका मुखौटा मुझे हटाना था। बस यही सब सवाल लेकर मैं नागपुर पहुंचा था।

रूही:– वाह बॉस वाह !!! अब अचानक से कहानी में सात्विक आश्रम भी आ गया। तो फिर उस दिन क्या सब नाटक नाटक खेल रहे थे जब अपस्यु से आपकी मुलाकात हुई थी?

आर्यमणि:– इसलिए तो नागपुर आने की सच्ची कहानी किसी को नही बता सकता था। यह अपने आप में एक बेहद उलझी कहानी थी जिसके तार अतीत से जुड़े थे। मेरे दादा वर्धराज कुलकर्णी से जुड़े। मैं बहुत से सवाल लेकर नागपुर पहुंचा था। अब किस सवाल को मुख्य बता दूं और किस सवाल को साधारण मुझे नही पता, हां लेकिन उन सबका केंद्र एक ही था प्रहरी। और जब केंद्र प्रहरी था फिर मेरे लिये सब बराबर थे, फिर चाहे प्रहरी में भूमि दीदी ही क्यों न हो।

रूही:– बॉस तुम फिर गोल–गोल घुमाने लगे। नागपुर क्यों आये क्या ये बताना इतना मुश्किल है या तुम बताना ही नही चाहते। बताओ नई–नई बात पता चल रही है। आश्रम का एक गुरु ने तुम्हे तीन बिंदु दिखाए थे...

आर्यमणि:– अब जब सच कह रहा हूं तो भी यकीन नही। तुम ही बताओ की कैसे तुम्हे एक्सप्लेन करूं...

रूही:– पहले अपने भागने को लेकर ही कहानी बता दो। क्या यूरोप में तुम्हारे परिवार ने तुम्हे नही ढूंढा या बात कुछ और थी?


आर्यमणि:– "कभी–कभी न जानना या सच को दूर रखना, शायद जान बचाने का एक मात्र तरीका बचता है। तुम जो सुनना चाहती हो वो मैं स्वीकार करता हूं। मैंने अपनो के दिमाग के साथ छेड़–छाड़ किया था। हां भूमि दीदी मुझे यूरोप में मिली थी, लेकिन उनके यादों से भी खेला, क्योंकि मैं अपने परिवार को ठीक वैसा ही दिखाना चाहता था जैसा तुम लोग के दिमाग में है। बेटा भाग गया और कोई चिंता ही नही। जबकि सच्चाई तो यह थी कि मैं लगातार अपने मां–पिताजी से बातें करता था लेकिन अपने पीछे आने से मना करता रहा।


बात शुरू ही हुई थी कि ओजल इवान और अलबेली भी वहां पहुंच चुके थे। कुछ पल की खामोशी के बाद आर्यमणि ने फिर बोलना शुरू किया...


"मैत्री और मेरे बीच का लगाव कहो या प्रेम, सब सच था। उसमे कोई दो राय नहीं थी। यदि हम दोनो के बीच कोई अटूट बंधन नहीं होता तो फिर वो मुझसे मिलने भारत आती ही नहीं। बस मैंने अपनी कहानी को फैंटेसी बनाने के लिये थोड़ा बढ़ा कर कह दिया था। जिस वक्त मैं गायब हुआ था, मैं कहां हूं या क्या कर रहा हूं, इस बात से प्रहरी को क्या फर्क पड़ता था। हां मेरे मां–पिताजी और भूमि दीदी को पता था कि मैं कहां हूं।"

"पहली बार जब मैं मैक्स के घर पहुंचा था, तभी मेरी बात सभी लोगों से हुई थी, केवल चित्रा और निशांत को छोड़कर। मां–पिताजी नही चाहते थे कि राकेश नाईक को मेरी कोई भी खबर मिले। इसके बाद जब मैं भारत पहुंचा तब मैने उनकी याद को अपने इच्छा अनुसार बदल दिया। बदलने के पीछे एक साधारण सा कारण यह था कि वो जीतना जानते है, उतना ही सच होगा। और मैं चाहता था कि प्रहरी यह न जाने की जब मैं गायब हुआ था, तब मेरे मां–पिताजी या भूमि दीदी किसी ने भी मुझसे संपर्क किया था।"

"हां लेकिन इस बार जब नागपुर छोड़ने की योजना बनी और जो सच्चाई मेरे घर के लोग या मेरे दोस्त जानते थे, उसे मैंने नही बदला। क्योंकि मुझे आश्रम और संन्यासी शिवम पर यकीन था। उनके लोग मेरे सभी प्रियजनों की रक्षा कर रहे, इसलिए यादों के साथ छेड़–छाड़ करने की जरूरत नहीं थी। ये एक पक्ष की सच्चाई जहां मैंने अपनो के यादों के साथ छेड़–छाड़ किया था। तुम लोगों के दिमाग में कोई सवाल।"..


अलबेली:– हां मेरा एक सवाल है। क्या आपने अपने दिमाग से कभी छेड़–छाड़ करने की कोशिश की है? यदि आप अपने दिमाग का फ्यूज खुद उड़ा लेंगे तो क्या वो अपने आप ठीक हो जायेगा?


ओजल:– बॉस पहले क्ला घुसाकर इस अलबेली का ही फ्यूज उड़ाओ।


इवान:– नाना बॉस अभी वो बच्ची है, कैजुअली पूछी थी।


इस से पहले की कोई और कुछ कहता रूही इतना तेज दहाड़ लगाई की वहां मौजूद तीनो टीन वुल्फ ही नहीं बल्कि उस जगह मौजूद सभी वुल्फ सहमे से अपनी जगह पर दुबक गये। अलबेली, ओजल और इवान तो इतने सहम गये की तीनो आर्यमणि में जाकर दुबक गये। आर्यमणि तीनो के सर पर हाथ फेरते... "कोई सवाल रूही"..


रूही:– अभी तो दिमाग में नही आ रहा लेकिन जब आयेगा तब पूछ लूंगी। चलो ये समझ में आ गया की तुम नही चाहते थे कि तुम्हारे मम्मी–पापा और भूमि दीदी किसी से झूठ कहे और कोई उनका झूठ पकड़ ले, इसलिए उनकी यादों से छेड़–छाड़ कर दिये। तो इसका मतलब ये मान लूं की तुम पूरे योजना के साथ, सभी प्रकार के रिस्क कैलकुलेट करने के बाद नागपुर पहुंचे और नागपुर कब तक छोड़ देना है, ये भी तुम पहले से योजना बनाकर आये थे।


आर्यमणि:– मैं नागपुर छोड़ने के इरादे से तो नहीं पहुंचा था लेकिन कुछ वक्त बिताने के बाद मैं समझ चुका था कि मुझे नागपुर छोड़ना होगा। हां मुझे कब नागपुर छोड़ना है यह मुझे पता था। इस बार मेरे घर के लोग मेरी तलाश में नही आये इसलिए मैंने ही उनके दिमाग ने यह डाला था कि मुझे कहीं बाहर भेज दे, नागपुर में रहा तो मारा जाऊंगा।


रूही:– हम्मम… अब लगे हाथ नागपुर आने का बचा हुआ सच भी बता दो...


आर्यमणि:– कहां से सुनना पसंद करोगी... नागपुर आने के पीछे की मनसा और उसकी पूरी प्लानिंग से, या फिर तुम्हारे सवालों के जवाब देते जाऊं, जिसने सब कवर हो जायेगा।


रूही:– नही मुझे शुरू से सुनना है। अब जो तुम कहोगे उसे मैं याद रखना चाहूंगी...


आर्यमणि…..

"आश्रम, एलियन और मेरी कहानी उस दिन शुरू हुई थी जिस दिन मैंने न्यूरो सर्जन का पूरा ज्ञान अपने अंदर समाहित किया था। मुझे ज्ञान हुआ की भूली यादें दिमाग के किस हिस्से में रहती है। ओशुन मेरे अरमान के साथ खेल चुकी थी और मैत्री जो केवल मेरे लिये मर गयी उसकी तस्वीर मेरे दिमाग से ओझल हो रही थी। मैत्री की बहुत पुरानी यादें थी और मैं देखना चाहता था कि हम पहली बार कैसे मिले थे?"

"मैं यादों की अतीत में खोता चला गया और वहां मेरी याद तब की थी, जब मैं अपनी मां के गर्भ में सातवे महीने का था। मेरी मां की आंखें मेरी आंखें थी। उनकी खुशी मेरी खुशी थी, उनका गम मेरा गम था और उनकी शिक्षा मेरी शिक्षा थी। मेरे दादा जी घंटों मेरी मां के पास बैठकर उन्हे मंत्र सुनाया करते थे। आज भी वो सारे मंत्र जैसे मेरे कान में गूंज रहे है। मेरे जन्म के करीब 45 दिन पूर्व वो लोग यात्रा पर निकले थे। मेरी मां, मेरे पापा, दादाजी, उनके मित्र गुरु निशी और गुरु निशी कुछ अनुयाई। वो सभी हिमालय के किसी विशेष कंदराओं में घुसे थे, जिसके अंदर एक पूरा गांव था। अलौकिक गांव था, जहां कोई रहता नही था।"

"गुरु निशी और मेरे दादा वर्धराज कुलकर्णी ने मिलकर वहां गुरु, ब्रह्मा, विष्णु और महेश की आराधना करते हुये, भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का कोई अनुष्ठान कर रहे थे। 45 दिन बाद मेरा जन्म था और मेरी मां उस अनुष्ठान की एक साधिका थी। आज से कई हजार वर्ष पूर्व दिव्य नक्षत्र में जन्म ली एक महान साधिका ने इस गांव का कायाकल्प किया था। उसके बाद यह गांव कई दिव्य आत्मा और ज्ञानियों के जन्म का साक्ष्य बना था। न जाने कितने सदियों बाद यहां किसी का जन्म होने वाला था, वो भी सभी नौ ग्रह के अति–शुभ विलोम योग में। मेरे दादा और गुरु निशी दोनो बेहद ही खुश थे, और चूंकि नक्षत्र के हिसाब से सभी नौ ग्रहों की स्थिति विलोम थी इसलिए इन्होंने भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को ही साधना का केंद्र बनाया था।"

"लागातार 45 दिन तक हवन होते रहे। एक पल के लिये भी मंत्र जाप बंद नही हुआ। भगवान नरसिंह की पूजा चलती रही। ठीक 45 दिन बाद मेरा जन्म हुआ। जन्म के बाद की यादें काफी ओझल थी। जन्म के बाद जब मैं अपनी आंख से दुनिया देखा, तब कुछ दिनों तक कुछ भी नही दिखा था। जैसे–जैसे दिन बीते तब मेरे दृष्टि साफ होती गयी। 7 वर्ष की आयु तक मुझे उसी गांव में रखा गया था। मेरी मां, दादाजी, कुछ ऋषि, संत और महात्मा वहां रहते थे। सबकी अपनी कुटिया थी और मुझे उन सब के बीच हर अनुष्ठान, सिद्धि और आयोजन में रखा जाता था।"

"7 वर्ष की आयु के बाद सब उस गांव से यह कहते बाहर निकल रहे थे कि पूर्ण योजन हो चुका है। बालक की शिक्षा–दीक्षा पूर्ण हो चुकी है, अब केवल इसे सही मार्गदर्शन की जरूरत होगी। दादा जी और मां सबसे हाथ जोड़कर विदा लिये और हम गंगटोक चले आये। मेरी सबसे पहली मुलाकात भूमि दीदी से हुई थी। वह मेरी मां से झगड़ा कर रही थी। उन्हे इस बात का मलाल था कि वो मां के डिलीवरी के वक्त गंगटोक अकेली पहुंची, लेकिन यहां तो कोई था ही नही। उन्हे मुझे देखना था लेकिन उसी समकालीन 2 और मेरे करीबी ने जन्म लिया था, भूमि दीदी उन्हे देखने चली गयी, निशांत और चित्रा।"

"तब राकेश नाईक की ताजा पोस्टिंग नॉर्थ सिक्किम में हुई थी। मां, भूमि दीदी को अकेले में ले गयी और मेरे जन्म को लेकर कुछ समझाया हो, उसके बाद से वो यही रट्टा मरती रही की जन्म के बाद मैने सबसे पहले उन्ही की उंगली पकड़ी थी। उस वक्त मेरे मासी के घर से केवल भूमि दीदी ही आना–जाना करती थी। वहीं मैत्री से मेरी पहली मुलाकात 4 दिन बाद मेरे स्कूल के पहले दिन हुई थी। मैं बीच से ज्वाइन किया था और एकमात्र मैत्री की जगह ऐसी थी, जो खाली थी। बाकी सभी बेंच पर 3–4 बच्चे बैठे थे। सुहोत्र ने उस क्लास के सभी बच्चों को डरा रखा था, इसलिए मैत्री के साथ कोई बैठता नही था। आह कितनी प्यारी थी वो। उस दिन जो मैं उसके साथ बैठा फिर कभी हमने एक दूसरे का साथ ही नहीं छोड़ा।"

"ये वाकया मैं भूल चुका था। उसके बाद मेरी यादों में बस मैत्री ही थी। कुछ यादें अपने परिवार की और एक परिवर्तन जो देखने मिला, वो था राकेश नाईक का अचानक हमारे पड़ोस में आ जाना। चूंकि मेरी मां और निलाजना आंटी काफी ज्यादा परिचित और एक दूसरे के दोस्त भी थे, इसलिए मेरा उनके घर और उनका मेरे घर आना जाना लगा रहता था। तब मैं, चित्रा और निशांत बस दोस्त थे और मैत्री मेरी पूरी दुनिया। आगे बढ़ने से पहले मैं उस घटना को प्रकाशित कर दूं जिस वजह से मेरे परिवार को गंगटोक आना पड़ा था।"


"गंगटोक मे लोपचे परिवार का अपना इतिहास रहा था जिसके विख्यात होने का कारण पारीयान लोपचे था। जिसे लोपचे का भटकता मुसाफिर भी कहते थे। इस परिवार का संन्यासियों और सिद्ध पुरुषों के करीबी होने के कारण मेरे दादाजी और लोपचे परिवार के बीच गहरी मित्रता थी। मैत्री के दादा जी मिकु लोपचे और उसकी अर्धांगनी जावरी लोपचे, मेरे दादा जी काफी करीबी लोग थे। उस दौड़ में वर्धराज कुलकर्णी और मीकु लोपचे पूर्वी हिमालय के क्षेत्र में उसी गांव को पुर्नस्थापित करने में जुटे हुये थे, जहां मेरा जन्म हुआ था। उसी सिलसिले में गंगटोक के २ शक्तिशाली महान अल्फा वुल्फ मेरे दादा वर्धराज से मिलने नागपुर पहुंचे थे। प्रहरी ने उन्हें भटका हुआ वुल्फ घोषित कर दिया जो अपने क्षेत्र से हजारों किलोमीटर दूर विकृत मानसिकता से पहुंचा था। लोपचे दंपत्ति लगभग मर ही गये होते लेकिन बीच में दादाजी आ गया। बीच में भी किसके आये तो नित्या के।"

"मेरे दादा जी और नित्या के बीच द्वंद छिड़ा था। उस द्वंद में क्या हुआ और कैसे मेरे दादा जी ने नित्या को परस्त किया, उसकी मुझे जानकारी नही। लेकिन नित्या एक अलग प्रकार की सुपरनैचुरल थी, जिसे मेरे दादा जी पकड़कर प्रहरी मुख्यालय जांच के लिये लाये थे। उसके एक, दो दिन बाद नित्या भाग गयी और उसे वेयरवॉल्फ घोषित कर दिया गया। नित्या को भगाने का इल्ज़ाम भी मेरे दादा जी पर ही आया, जिसे मेरे दादा जी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इसके उपरांत पूरे कुलकर्णी परिवार को महाराष्ट्र से बेज्जती करके बाहर निकाल दिया गया। किंतु वर्धराज कुलकर्णी को इसका कोई गम नही था। क्योंकि पूर्वी हिमालय में गांव बसाने का काम अब वो बिना किसी पाबंदी के कर सकते थे, इसलिए मेरे दादा जी आकर पूर्वी हिमालय के क्षेत्र गंगटोक मे अपना निवास बनाया जहां के जंगलों में लोपचे का पैक बसता था।"

"मेरा और मैत्री का साथ अभूतपूर्व था, किंतु लोपचे और हमारे परिवार के बीच उतनी ही गहरी दुश्मनी सी हो गयी थी। मेरे जन्म के दौरान मेरे दादा जी अलौकिक गांव में थे। इसका बात फायदा उठाकर प्रहरी ने मीकू और जावेरी लोपचे का शिकर कर लिया और कारण वर्धराज कुलकर्णी बताया गया। दुश्मनी का बीज बोया जा चुका था, और इसी दुश्मनी की वजह से मैं हमेशा लोपचे की आंखों में चढ़ा रहता था। लगभग डेढ़ साल बाद की बात होगी। मेरा साढ़े 8 वर्ष का हो चुका था, उसी दौरान मेरे और सुहोत्र लोपचे का लफरा हो गया। उस छोटी उम्र में मैने एक बीटा को मारकर उसकी टांगे तोड़ डाली। इस कारनामे के बाद मैं उन एलियन प्रहरी की नजरों में आ चुका था। तेजस और भूमि दीदी दोनो वहीं थे जब मैने सुहोत्र की टांग तोड़ी थी।"


"तेजस ने जब यह नजारा अपनी आंखों से देखा तब उसे शक सा हो गया की वर्धरज कुलकर्णी जरूर हिमालय में बैठकर कुछ कर रहा है। सिद्ध पुरुष तो मेरे दादा जी थे ही। यह बात नित्या के पकड़ में आते ही सिद्ध हो चुकी थी। ऊपर से राकेश का सर्विलेंस जो पिछले 7 साल से मेरे दादा जी को कहीं गायब बता रहा था। राकेश शायद चाह कर भी पता न लगा पाया होगा की दादाजी कहां थे, वरना वो एलियन प्रहरी उस गांव पर हमला कर चुके होते। मेरे दादा जी को जिंदा छोड़ने के पीछे का कारण भी बिलकुल सीधा था, वर्धराज का परिवार आंखों के सामने है, जायेगा कहां? उसके साथ और कितने सिद्ध पुरुष है या वह सिर्फ अकेला है, इस बात का पता लगाने में सब जुटे थे। मेरे दादा जी का 7 साल तक गायब रहना एलियन प्रहरी के शक को यकीन में बदल चुका था कि मेरे दादा जी के साथ और भी कई सिद्ध पुरुष है।"

"वहीं दूसरी ओर गुरु निशी पूर्वी हिमालय से कोषों दूर, दक्षिणी हिमालय के पास बसे नैनीताल में अपना गुरुकुल चला रहे थे। उन्होंने भी भरमाने के लिये अपने 4 बैच के शिष्यों को किसी भी प्रकार की सिद्धि का ज्ञान नही दिया था। गुरु निशी को भी पता था कि कोई तो है जो आश्रम को पनपने नही देता और उसकी नजर हर आश्रम पर बनी रहती है। इसलिए पहले 4 बैच को केवल आध्यात्म और वाचक बनने का ही ज्ञान दिये थे। पांचवे बैच से गुरु निशी ने कुछ शिष्यों का प्रशिक्षण शुरू किया था। लेकिन सब के सब इतने कच्चे थे कि गुरु निशी अपने हिसाब से उन्हे ढाल न सके। लेकिन कोशिश जारी रही और उनका पहला शिष्य संन्यासी शिवम गुरु निशी की कोशिशों का ही नतीजा था। संन्यासी शिवम अपनी मेहनत से कई सैकड़ों वर्ष बाद पोर्टल खोलने में कामयाब रहे। और गुरु निशी का आखरी शिष्य अपस्यु था, जो उनके सभी शिष्यों में श्रेष्ठ और छोटी सी उम्र में अपनी मेहनत से सबको प्रभावित करने वाला।"


"गुरु निशी कोषों दूर दक्षिणी हिमालय के क्षेत्र में थे। मेरे दादा जी पूर्वी हिमालय के क्षेत्र में। दोनो में किसी तरह लिंक ढूंढना लगभग नामुमकिन था। परंतु वह तांत्रिक आध्यात था, जिसने गुरु निशी और वर्धराज कुलकर्णी के बीच का राज खोल दिया था, जिसकी सूत्रधार वह पुस्तक रोचक तथ्य बनी थी। आध्यत को तनिक भी उम्मीद नहीं थी कि आश्रम का कोई गुरु सिद्धि प्राप्त भी हो सकता है। प्रहरी के तरह आध्यत को भी यही लगता था कि गुरु निशी आध्यात्म और वेद–पुराण के पाठ करने वाले कोई गुरु है।"

"गुरु निशी के हाथ वह रोचक तथ्य की पुस्तक लगी थी और तब उन्हें अनंत कीर्ति पुस्तक की वर्तमान स्थान तथा एक विकृत रीछ स्त्री के विषय में भी ज्ञात हुआ था। उन्होंने मात्र 2 दिन में ही विदर्भ क्षेत्र का पूर्ण भ्रमण करने के बाद रीछ स्त्री के शरीर को ढूंढ निकाला था। हालांकि नागपुर में वह केवल एक खोज के लिये नही पहुंचे थे, बल्कि अनंत कीर्ति की किताब को ढूंढने भी आये थे। यह किताब भी सात्विक आश्रम की ही थी जो आचार्य श्रीयूत के बाद कहां गयी किसी को भी नही पता था।"
Nice update 👍
 

nain11ster

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एक बार फ़िर आर्य का इस्तेमाल किया गया ओशुन ने ही आर्य ने इस्तेमाल किया और वर्षों के कैद से मुक्त भी हुआ साथ ही एक अल्फा भी बन गया। विचार आर्य उसके किस्मत में प्यार शायद ही लिखा हो पहले मैत्री मारी गई और अब ओशुन उसका इस्तेमाल करके भाग गई।

बस एक बॉब ही है जो इसके साथ टिका हुआ है और आर्य को उसके शक्तियों से रूबरू करवा रहा हैं। बॉब भी बड़ा ज्ञानी मानुष है। सुपर नेचुरल शक्ति का विस्तृत ज्ञान खुद में समेटा हुआ है बस एक प्योर अल्फा की शक्तियों के बारे में नहीं जानता है जिसे जाने के लिए एक आविष्कारक की तरह, अलग अलग एक्सपेरिमेंट करता जो एक अध ही सफल एक्सप्रीमेंट हों पता।

आर्य एक पैदायसी वुल्फ हैं और बचपन से सात्विक आहार और गुणों को अपनाया है। शायद यही कारण है जब आर्य अनियंत्रित हुआ था तब उत्पात मचाने के जगह सिर्फ अपने नाखूनों का दम खड्डा खोदने में लगाया। अब देखते है आगे कितने राज और सामने आता है।

अदभुत अतुलनीय लेखन कौशल
Yep bilkul sahi pakde hai .... Baki aage dekhiye kahan kaun se raaj ban aur bigad rahe hain
 
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