• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
23,615
80,410
189
Last edited:

nain11ster

Prime
23,615
80,410
189
भाग:–90




"आध्यत को जैसे ही यह ज्ञात हुआ की सात्विक आश्रम के गुरु ने रीछ स्त्री को ढूंढ निकाला, उसके होश उड़ गये थे। वह आध्यत ही था जिसने फिर एलियन प्रहरी तक यह संदेश पहुंचाया था कि गुरु निशी वाकई एक सिद्धि प्राप्त सात्विक आश्रम के गुरु है, जो अनंत कीर्ति की पुस्तक के पीछे है और वर्धराज कुलकर्णी भी इसी गुरु निशी का अनुयाई है। बात खुल चुकी थी और अब किसी को भी जिंदा रखने का कोई मतलब नहीं था। हां लेकिन गुरु निशी और मेरे दादा जी दोनो इस बात से बेखबर थे कि आश्रम के दुश्मनों तक उनकी खबर पहुंच चुकी थी।"

"एलियन प्रहरी मेरे दादा जी के नजरों में एक अलग प्रकार के सुपरनैचुरल थे, जो अपनी असलियत छिपा कर रहते थे। उन्हे जरा भी अंदाजा नहीं था कि ये वही लोग थे जो सदियों से सिद्ध पुरुष का शिकार करते आये है। नित्या को भी सतपुरा के जंगल में रहने की सजा इसी वजह से मिली थी। उसके कारण एलियन का भेद लगभग खुलने ही वाला था।"

"एक ही वक्त में थोड़ा आगे पीछे चारो ओर से इतनी कहानियां चल रही थी। जब मैंने सुहोत्र लोपचे का पाऊं तोड़ा तब वह हील नही हुआ। एक साढ़े 8 साल के लड़के ने 12–13 साल के टीनएजर वुल्फ को मारकर घायल कर दिया, फिर ये एलियन प्रहरी के नजर में आना ही था। उन्हे शक हो गया था कि 7 सालों में मेरे दादा ने मुझे कोई सुद्ध ज्ञान दिया गया है। शुद्ध ज्ञान एक प्रकार का विशेष ज्ञान होता है, जिसे गर्भ में पल रहे शिशु को दिया जाता है। मैं एलियन के शक के घेरे में आ गया और राकेश नाईक इन सब विषय की जानकारी देने में विफल रहा था, इसलिए जाल बुना गया। प्रहरियों का जाल।"

"उसी रात लोपचे कॉटेज को आग लगा दिया गया और लोपचे से सुरक्षा के नाम पर तेजस हमारे साथ करीब 2 महीने रुक था। जिस दिन तेजस गंगटोक छोड़कर गया, ऊसके तीसरे दिन मेरे दादा जी की अकस्मात मृत्यु हो गयी। चूंकि मुझे शुद्ध ज्ञान दिया गया था इसलिए जब गुरु निशी मरे तब जाते–जाते मेरे लिये कुछ छोड़ गये थे, जो मुझे उस वक्त मिला जब मैं खुद के दिमाग में झांक रहा था। अतीत की गड़ी यादों ने मुझे झकझोर दिया। शायद दादा जी की तरह मेरे लिये भी एलियन प्रहरी कोई अलग प्रकार सुपरनेचुरल ही रहता। किंतु गुरु निशी अपने मृत्यु के पूर्व के महीने दिन की स्मृति मुझे भेज चुके थे, और उन स्मृति में मुझे एक चेहरा दिख गया, जो काफी चौकाने वाला था। वहां गुरु निशी के आश्रम में पलक थी।"

"न्यूरो सर्जन के दिमाग ने जैसे मेरे दिमाग के परदे खोल दिये थे। बॉब से विदा लेने के बाद मैं सीधा भारत ही आया था। लेकिन जिन डेढ़ साल का हिसाब तुम्हे नही मिला, उस अवधि में मैं अपने स्किल को निखारता रहा और अपने अंदर टॉक्सिक को भरता रहा। मैने बचे डेढ़ साल में तकरीबन रोजाना 150 से 200 पेड़ों को हील करता था। मेरे लिये पेड़ कम न पड़ जाये इसलिए मैं पूर्वी भारत के घने जंगलों में अपना अभ्यास करता रहा। मेरे पास कुछ घातक स्किल थे और मैं अपने उन सभी स्किल को पूरी ऊंचाई देने में लगा हुआ था। एक ड्रग देकर बॉब मेरा शेप शिफ्ट करवा चुका था, इसलिए खुद पर न जाने मैने कितने ड्रग के टेस्ट किये थे और उनसे पार पाना सीखा था।"

बीते वक्त की सबसे बड़ी सच्चाई तो यह भी थी कि नागपुर पहुंचने से पहले मेरे पास कोई भी डेटा नही था। मुझे नही पता था कि मेरे दादा जी की अकस्मात मृत्यु एक कत्ल थी। मुझे नही पता था कि गुरु निशी के कत्ल में प्रहरी का हाथ था। मुझे तांत्रिक आध्यत और उसके साजिसों के बारे में भी नही पता था। मुझे पता था तो बस मेरा पूरा परिवार किन कारणों से नागपुर छोड़ा। फेहरीन के पैक को खत्म करके ले जाने वाले कभी अच्छे समुदाय नही हो सकते। एक अज्ञात प्रकार का सुपरनैचुरल के नागपुर में होने की संभावना थी, इसलिए मैंने अपने स्किल को नई ऊंचाई दी थी। और जो मैं सही में पता लगाने आया था वह था गुरु निशी की स्मृति में पलक का दिखना, विकृत रीछ स्त्री का स्थान और दादा जी के साथ गुरु निशी का अनंत कीर्ति पुस्तक पर चर्चा करते हुये यह बताना की पुस्तक सुकेश के घर पर है।"

"मेरे लिये सबसे पहला टारगेट पलक ही थी। मैं उस से बस जानना चाह रहा था की आखिर वो गुरु निशी के आश्रम में कर क्या रही थी? मुझे कॉलेज के रैगिंग के दौरान यह पता करने का मौका भी मिला, जब पलक अकेले में मुझसे रैगिंग को लेकर बात करने पहुंची। मैने बॉब की ही ट्रिक को अपनाया और ड्रग को हवा में उड़ा दिया। लेकिन मेरे लिये यह घोर आश्चर्य का विषय हो गया, जब पलक पर उस ड्रग का असर ही नही हुआ। और भेद खुल न जाये इसलिए मैं बेहोश हो गया।"

"नागपुर मेरे लिये किसी उलझे पहली जैसा था, जहां मेरे पहला ट्रिक इतनी बुरी तरह से विफल रहा की मुझे सोचने पर मजबूर कर गया... "यहां चल क्या रहा है।" खैर चलते रैगिंग को मैने छेड़–छाड़ नही किया और उसे चलने दिया, क्योंकि मुझे दूसरा मौका चाहिए था। मैं पलक और अपने दोस्तों के आस पास रहना छोड़कर सहानुभूति बटोरने लगा। मेरे लिये आश्चर्य का सबब यह भी था कि पलक खुद मुझसे नजदीकियां बढ़ा रही थी। खैर मेरे लिये इस सवाल का जवाब जरूरी नहीं था कि पलक नजदीकियां क्यों बढ़ा रही, क्योंकि आज न कल तो मैं पता लगा ही लेता। लेकिन जरूरी था यह पता लगाना की वह आश्रम में क्या कर रही थी? और मेरे पास पता लगाने का अपना ही तरीका था।"

"सुरक्षित तरीके से पलक के गले में मुझे क्ला घुसाने का मौका भी मिला। और जब मैने उसके गले में क्ला घुसाया फिर पता चला की मेरे दादा जी जिस सुपरनैचुरल नित्या को पकड़े थे, प्रहरी समुदाय में उन जैसों की भरमार थी। पलक के गर्दन में क्ला घुसाते ही ऐसा लगा जैसे मैं किसी करेंट सप्लाई के अंदर अपने क्ला को घुसा दिया, जो मेरे नाखून तक में करंट प्रवाह कर रहे थे। दरअसल वो करेंट प्रवाह हाई न्यूरो ट्रामिशन का नतीजा था, जो किसी विंडो फायर वॉल की तरह काम करते हुये पलक के दिमाग का एक भी डेटा नही लेने दे रहा था। जो तकनीकी और मेडिकल की भाषा नही जानते उनके लिये बस इतना ही की मैं पलक के दिमाग में नही झांक सकता था। मुझे पता चल चुका था कि पलक एक सुपरनैचुरल है, लेकिन उसके जैसे और कितने थे, ये पता लगाने में मुझे कोई देर न लगी।"

"ये इन एलियन का ब्रेन मोटर फंक्शन ही था जो इनके शरीर के गंध को मार रहा था। इनकी भावनाओ को पढ़ने से रोक रहा था। और एक बार जब इस बात खुलासा हुआ फिर तो मुझे एलियन को छांटने में कोई परेशानी ही नही हुई। रैगिंग के मामले से मुझे कोई फायदा नही मिला और मुझे पूरी बात का पता लगाने के लिये एलियन प्रहरी के बीच रहना अत्यंत आवश्यक हो चुका था, इसलिए बिना देर किये मैने पलक को प्रपोज कर दिया। मैं जानता था कि जिस हिसाब से पलक मुझसे नजदीकियां बढ़ा रही है वह भी मेरे प्रस्ताव को नही ठुकराती। मेरा तीर निशाने पर लग चुका था।"

"किंतु केवल पलक की नजदीकियों के वजह से मुझे सभी सवालों का जवाब नही मिलता इसलिए मैं बस मौके की तलाश में था। खैर, केवल नागपुर में एक ही काम तो नही था इसलिए मैंने सभी कामों पर अपना ध्यान लगाया। न सिर्फ अनंत कीर्ति की पुस्तक तक पहुंचना बल्कि रीछ स्त्री का भी पता लगाना। एक बात जो कोई नही जानता वो मैं बता दूं, मेरे क्ला ही काफी है जमीन में दफन किसी भी चीज का पता लगाने के लिये।"

"फिर रीछ स्त्री का जब मामला उठा तब इस एक मामले के कारण मैं प्रहरी में इतना अंदर घुसा की इन एलियन की करतूत छिपी नही रही। मैं न सिर्फ प्रहरी मुख्यालय पहुंच चुका था बल्कि सुकेश के सीक्रेट चेंबर में भी घुस चुका था। फिर मुझे पता लगाने के लिये न तो किसी कमरे का दरवाजा तोड़ना था और न ही प्रहरी मुख्यालय में चोरी से घुसने की जरूरत पड़ी। मुझे जगह का ज्ञान हो गया और वहां पर क्या सब रखा है वह मुझे जड़ों की रेशों से पता चल गया। हां सही सुना... मैं जो रेशे फैलता हूं वह जिस चीज को भी छूते है उन्हे मैं देख सकता हूं।"

"एक के बाद एक सभी राज पर से पर्दा उठता चला गया और रही सही कसर स्वामी के लूट ने कर दिया। तुमने सही थी रूही। स्वामी का मेरे पास आना कोई संयोग नहीं था बल्कि उसके दिमाग से मैने ही छेड़–छाड़ की थी। एक बार नही बल्कि कई बार। पहले मैंने ही स्वामी के दिमाग के अंदर यह ख्याल डाले की यदि अनंत कीर्ति किताब गायब तो सुकेश खत्म। वहीं मैने दूसरा ख्याल भी डाल दिया की अनंत कीर्ति की किताब के सबसे ज्यादा करीबी आर्यमणि ही है। मुझे लगा अनंत कीर्ति की किताब तो स्वामी को मिलेगी नही इसलिए स्वामी, सुकेश के सीक्रेट चेंबर की दूसरी रखी किताब जरूर चोरी करेगा। दूसरी किताबे चोरी करने के बाद स्वामी अनंत कीर्ति की किताब का पता लगाने मेरे पास जरूर पहुंचेगा और वहीं से मैं सुकेश के सीक्रेट चेंबर के सारे किताब ले उडूंगा।"


"सुकेश के सीक्रेट चेंबर में किताब का होना ही मुझे खटक रहा था क्योंकि बाहर एक बड़ा सा लाइब्रेरी होने के बावजूद उन किताबों को छिपाकर क्यों रखा था? मन में जिज्ञासा तो जाग ही चुकी थी और मुझे सभी किताब को इत्मीनान से पढ़ना था। लेकिन स्वामी ने तो जैसे कुबेर का खजाना ही लूट लिया था। प्रहरी के बारे में बहुत कुछ मैं पता कर चुका था, रही सही कसर तब मिट गई जब मैं इनकी क्लासिफिकेशन की किताब देख रहा था। मुझे तभी समझ में आ गया की ये लोग पृथ्वी के कोई सुपरनेचुरल नही बल्कि किसी दूसरे ग्रह के इंसान है।"

"लूट के 2 समान जादूगर का दंश और एक पतला अनोखा चेन को मैने कॉटेज के पीछे वाले जंगल में जमीन के अंदर दफन करके रखा है। उसपर हम साथ मिलकर अभ्यास करेंगे। अभी मैं बस उन दोनो वस्तुओं को पूर्ण रूप से समझने की कोशिश कर रहा हूं। पलक के दिमाग में जिस दिन क्ला घुसाया था उसी दिन मैने सोच लिया की मुझे क्या करना है? अभी ये एलियन सुपरनैचुरल मेरे लिये टेढ़ी खीर थे। मुझे जिस दुश्मन के बारे में पता ही नही उस से मैं लडूंगा कैसे? इसलिए मैं सोच चुका था कुछ बड़ा डंडा करके निकलूंगा ताकि ये लोग मेरे पीछे आने पर मजबूर हो जाये। वर्धराज के पोते को मारने का उतावलापन देखकर इनकी बुद्धि तो समझ में आ चुकी थी, अब बस इनकी शक्तियों का पता लगाना था।"

"मैं अपने कैलिफोर्निया पहुंचने तक का प्लान पहले से बना चुका था। मैने हर पॉइंट पर इतने जाल फैलाये थे की मुझे पता है कि इन एलियन की टीम मेरी जानकारी जुटाने कहां–कहां पहुंच रहे होंगे। मैने उनके चोरी के समान को भी एक जाल के तहत गायब किया था। बस थोड़ा इंतजार करो फिर हम वहां चलेंगे जहां ये हमारा पता लगाने पहुंचे होंगे। वहीं इन एलियन की छोटी–छोटी टुकड़ी से भिरकर उनके शक्तियों का पता लगाएंगे।"

"तो ये थी नागपुर की पूरी कहानी। अब मैं किसको क्या बताता की मैं नागपुर क्यों पहुंचा? ये मेरे लिये काफी उलझाने वाला सवाल था। क्योंकि गुरु निशी ने मुझे 3 हिंट दिये थे। पूरी बात बताने का मतलब होता की पहले अपने क्ला की शक्ति बताओ। उस शक्ति से मैने खुद के दिमाग में झांका और अतीत के पन्नो से गुरु निशी और वर्धराज कुलकर्णी को ढूंढ निकाला ये बताता। फिर मुझे गुरु निशी की तीन यादें बतानी होती जो मरने से पहले उन्होंने मेरे दिमाग तक पहुंचाया था। उन तीन यादों के तहत मैंने इंसानियत और आश्रम के बहुत पुराने दोषी एक एलियन प्रहरी को ढूंढ निकाला। नागपुर आने की सच्चाई मैं किसी को चाहकर भी एक्सप्लेन नही कर सकता था इसलिए बस टालने के इरादे से झूठ बोलता था, और कोई बड़ी वजह नही थी। उम्मीद है तुम्हे सब समझ में आ गया होगा।"


रूही:– उफ्फ क्या मकड़जाल में तुम खुद ही उलझे थे बॉस। खैर कहानी तो पूरी समझ में आ गयी बस घटना क्रमबद्ध नही था इसलिए थोड़ी उलझन है। तो बॉस तुम ये कहना चाह रहे हो की तुम वाकई कुछ सवालों के साथ आये थे, लेकिन वह सभी सवाल प्रहरी से जुड़े थे। नागपुर आने से पहले तुम्हारे नजरों में प्रहरी एक करप्ट संस्था थी, बस इतना ज्ञान था?


आर्यमणि:– नही एक खास प्रकार का सुपरनेचुरल भी मिलेगा नागपुर में, यह बात भी दिमाग में थी। सच्चाई पता लगने के बाद कड़ियां जुड़ती चली गयी। फिर अतीत से लेकर वर्तमान की हर कड़ी जैसे मेरे नजरों के सामने थी।


रूही:– मतलब वो मैत्री के दादा मिकू लोपचे और उसकी पत्नी का कत्ल जिसमे दोषी प्रहरी थे, वो भी तुम्हे नागपुर आने के बाद पता चला...


आर्यमणि:– हां बिलकुल सही...


रूही:– फिर पलक जो गुरु निशी के आश्रम में थी, क्या वो अपस्यु के बारे में जानती थी, या अपस्यु उसके बारे में?


आर्यमणि:– नही पलक छोटी थी, यानी जब अपस्यु आश्रम पहुंचा होगा तब पलक गुरु निशी के बारे में पता करके निकल चुकी होगी। प्रहरी पर शक न हो इसलिए पलक के निकलने के कई साल बाद गुरु निशी को मारा गया था।


रूही:– सात्विक आश्रम के लोग तुम्हारे पीछे आये, ये महज इत्तीफाक था या उसमे भी तुम्हारी करस्तनी है।


आर्यमणि:– सात्विक आश्रम का मेरे साथ होना बस किस्मत की बात थी जो रीछ स्त्री के पीछे जाने से मेरी उनसे मुलाकात हो गयी। वह आश्रम तो खुद टूटा था और जोड़ने की यात्रा में उनकी पूरी टीम लगी थी। बस यात्रा के दौरान ही हम बिछड़े मिले। इसमें मेरा कोई योगदान नहीं।


रूही:– सारी बातों में आर्म्स फैक्ट्री की बात कहां गोल कर गये? वो भी बता दो.…


आर्यमणि:– वो तो बॉब ही बतायेगा...


बॉब:– मुझे मत घसीटो... तुम ही कह दो तो ज्यादा अच्छा रहेगा। वैसे भी कुछ तो किस्मत तुम लेकर आये हो आर्य.…


आर्यमणि:– अच्छा... लेकिन ये न कबूल करो की बोरियाल, रसिया का जंगल में कई गैर कानूनी काम होते है। और उन्ही गैर कानूनी काम में से एक था इलीगल वेपन फैक्ट्री, जिसे एक होनहार क्रिमिनल चला रहा था। हम कुछ नया ट्राई करते हुये अपनी जगह से काफी दूर निकल आये थे और वेपन फैक्ट्री में काम कर रहे क्रिमिनल ने हमे घर दबोचा था। बस फिर क्या होना था, पूरी फैक्ट्री किसी भूतिया लताओं में फंस गयी और सारे क्रिमिनल्स आर्मी के हत्थे चढ़ गये। हां लेकिन इस बीच मैंने उनका सारा प्रोजेक्ट चुरा लिया।


रूही:– चलो, सच्चाई जानकर अब कुछ अच्छा लग रहा है। वाकई नागपुर क्यों पहुंचे उसका जवाब देना तुम्हारे लिये काफी मुश्किल होता बॉस। खैर, बॉस हमारा एक्शन टाइम कब आयेगा? कब हम उन एलियन प्रहरी के टीम के पीछे जायेंगे?


आर्यमणि:– बहुत जल्द... उसके लिये ज्यादा इंतजार नही करना पड़ेगा.…


रूही:– और बॉस आपके और बॉब के बीच क्या चल रहा है? इतने दिनो बाद मिल रहे थे और कोई गर्मजोशी नही।


बॉब:– "आर्यमणि मुझसे मिल चुका है। हम दोनो मिलने की गर्म जोशी भी दिखा चुके। तुम्हारा कहना सही था कि ये जगह आर्यमणि लिये नया नही था। जिस विकृत रीछ स्त्री के आत्मा को विपरीत दुनिया से मूल दुनिया में लाया गया था उसके द्वार यहीं से खोले गये थे। करीब 3 महीने पहले ही आर्यमणि से जब मेरी बात हुई थी तभी उसने मुझे इस जगह का कॉर्डिनेट्स भेजा था। इसके क्ला क्या–क्या कारनामे कर सकते है, शायद ही कोई जानता हो।"

"वहां की मिट्टी में क्ला डालकर आर्यमणि ने इस जगह का कनेक्शन ढूंढा था। इसी जगह से विपरीत दुनिया का द्वार खोलकर महाजनिका के आत्मा को खींचा गया था। 3 महीने के परिश्रम के बाद मैं अंदर तक घुसा और यहां ओशुन को देखकर काफी हैरान रह गया। मैने आर्य को ओशुन के बारे में नही बताया। यहां आने की प्लानिंग भी हो चुकी थी। उस रात तुम दोनो यूं ही नहीं रात में घूमने निकले थे बल्कि उस डॉक्टर के प्राण बचाने की योजना के कारण ही घूमने निकले थे। सामने जो ओशुन पड़ी हुई है, उसके जिम्मेदार भी कहीं ना कहीं वही प्रहरी है... अब मै ओशुन को लेकर तुमसे कुछ बोल सकता हूं आर्य...


आर्यमणि:- हां बॉब...


बॉब:- ओशुन भी तुम्हे चाहने लगी थी बस वो तुम्हे कैसे फेस करती जब वो अपनी सच्चाई तुम्हे बताती। इसलिए वो तुमसे नहीं मिली। प्लीज उसे माफ कर दो।


आर्य:- मै उसकी परेशानी समझ सकता हूं। खैर छोड़ो भी इस बात को, और ओशुन को जगाया कैसे जाए उसपर बात करते है।


बॉब:- ये कोई ब्लैक मैजिक है आर्य। ये बात तो अब तक तुम्हे भी पता चल चुका होगा। जबतक तुम उस जगह नहीं पहुंच जाते जहां ओशुन की आत्मा दो दुनिया के बीच कैद है, इसे जगाया नहीं जा सकता।


आर्यमणि:- इसके लिए मुझे क्या करना होगा?


बॉब:- ओशुन की तरह तुम्हे भी मरना होगा और उसकी आत्मा जहां फसी है वहां से उसे खींचकर लाना होगा। बाकी अंदर वहां क्या चल रहा है और किन हालातों से सामना होता है, वो वहां पहुंचने पर ही पता चलेगा।


रूही:- ये कैसी बहकी–बहकी बातें कर रहे हो बॉब।


आर्यमणि:- मुझे कुछ नहीं होगा रूही, तुम चिंता मत करो। मुझे यहां कुछ दिन वक़्त लग जाएगा इसलिए तुम अलबेली और ट्विंस को लेकर निकल जाओ। बाकी यहां बॉब और लॉस्की (लॉस्की पहला मिला वो वेयरवुल्फ जो मैक्सिको में इस फार्म में शिकारियों के साथ था) रुक रहे है।


रूही:- और यहां के फंसे वेयरवुल्फ?


आर्यमणि:- रूही तुम लॉस्की को बोलो सभी फंसे वेयरवुल्फ को सुरक्षित वापस भेज दे। यहां मै और बॉब पहले कुछ दिनों तक किताब की खाक छान कर देखेंगे और सोचेंगे की ओशुन को कैसे जगाया जाये।


बॉब:- मैंने पहले ही सारी पुस्तक अलग कर ली है। तुम इन सब को देखना शुरू करो, जबतक मै तुम्हारे पैक को वापस भेजता हूं।


आर्यमणि:- रुको बॉब अभी नहीं। क्या तुम हम दोनों (रूही और आर्यमणि) को कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दोगे, हमे कुछ बातें करनी है।


बॉब मुस्कुराकर वहां से चला गया। उसके जाते ही आर्यमणि रूही का हाथ थामते… "मुझे माफ़ कर दो, तुम्हारी आई के बारे में बहुत कुछ पता होते हुए भी मैंने तुमसे छिपाया। नागपुर की पूरी सच्चाई नही बताई।"


रूही:- जबसे तुमसे मिली हूं ना आर्य, बीते दिनों का दर्द और गुस्सा दिल से कहीं गायब हो गया है। बस तुम यहां अपना ध्यान रखना और जल्दी लौटने कि कोशिश करना। वैसे भी जल्द से जल्द एक्शन करने के लिये बेकरार हूं।


आर्यमणि:- अभी ही कर लो, इतनी भी बेकरारी क्यों?


रूही:- तुम तो घर के माल हो बॉस, तुम्हारे साथ तो कभी भी एक्शन कर सकती हूं, फिलहाल तो तड़प उन एलियन के लिये है। चलो अब मै चलती हूं। तुम यहां पुरा फोकस करो जब तक मै उन मुसीबतों को संभालती हूं।


रूही आर्यमणि से खुशी-खुशी विदा ली। बॉब और लॉस्की ने उनका वापस पहुंचने का इंतजाम कर दिया था और कुछ ही घंटो में ये लोग बर्कले, कार्लीफिर्निया में थे। और इधर आर्यमणि ओशुन को छुड़ाने के काम में लग गया।
 

andyking302

Well-Known Member
6,024
14,252
174
भाग:–86




कुछ भी कहो बॉब एक जीनियस से कम नही। उसी ने सबसे पहले लुथिरिया वोलुपिनी के साइड इफेक्ट को एक उपचार के रूप में प्रयोग किया था और वो सफल भी रहा। लूथरिया वुलुपिनी न सिर्फ वेयरवोल्फ के लिये एक जहर है बल्कि दावा का काम भी करता है। यदि एंटीडॉट है तो लुथीरिया वुलुपिनि से किसी भी वुल्फ को कंट्रोल किया जा सकता है, खासकर न्यू वेयरवोल्फ को। एंटीडोट है तो लुथीरिया वुलुपिनी का इस्तमाल फेंग और क्ला से घायल इंसान को ठीक करने तथा वेयरवोल्फ में न तब्दील होने के लिये भी कर सकते है। बॉब ने वुल्फ के जितने भी मारने के तरीके थे, उन सब से बचने के उपाय मुझे बताया था।


खैर बॉब टेस्ट के लिये तैयार था और मैं क्ला घुसाकर उसकी यादें लेना शुरू किया। उसके ताज़ा यादों में ही मुझे ओशुन दिख गयी। ओशुन का चेहरा सामने आते ही मैं ख्यालों की गहराई में चला गया। एक–एक करके उसके साथ बिताये हर पल की तस्वीर दिखने लगी। फिर मुझे बॉब का ध्यान आया और मैंने उसकी याद वापस देखन शुरू किया। उसके बाद मैं न तो रुका और न ही भटका। 10 मिनट में उसकी पूरी याद खंगालने के बाद अपना क्ला बाहर निकाला।


बॉब ने आंख खोलते ही सबसे पहले समय देखा और मुझसे, अपने बचपन के बारे में कुछ पूछा। उसे मैंने बता दिया। फिर बॉब ने थिया के बारे में कुछ पूछा। वो भी मैने बता दिया। फिर बॉब ने एनिमल बिहेवियर से संबंधित एक जटिल प्रश्न किया, जिसका जवाब मैं नही दे सका। इतनी पूछताछ के बाद बॉब ने मुझसे कहा... "जैसे टीवी पर कोई मूवी देखने के बाद कुछ अच्छे चीजें दिमाग में छप जाति है और बहुत से चलचित्र पर हम जैसे ध्यान नहीं देते ठीक वैसा ही याद देखने का अनुभव होता है। मेरे जिंदगी की कुछ खास घटना तुम्हे याद है लेकिन पूरी याद देखने के बाद तुम्हे मेरे जिंदगी की सारी घटना याद नहीं। अब तुम ओशुन के बारे में मुझसे कुछ कुछ पूछो?"


मैं, भद्दा सा चेहरा बनाते... "उसकी बात नही करनी।"


बॉब:– अच्छा इसलिए ओशुन की सारी विजुअल इमेज मेरे दिमाग में डाल दिये। तुम्हारे दिमाग में ओशुन से जुड़ी जितनी भी याद है उसे मेरे दिमाग में ऐसे छाप दिये की वो मेरी जिंदगी का हिस्सा लग रहा है।


मैं:– क्या मतलब मैने ओशुन के विजुअल इमेज तुम्हारे दिमाग में डाले...


फिर बॉब ने मुझे हर वो बात बताई जिसे मैं क्ला घुसने के बाद सोचा था। मैं अचंभित और बॉब तो मुझसे भी कई गुणा ज्यादा अचंभित। यादों के साथ ऐसी छेड़–छाड़ न तो कहीं वर्णित था और न ही किसी मौखिक दंत कथाओं में उल्लेख मिलता था। हम दोनो ही इस विषय में और ज्यादा जानने के लिये उत्साहित थे। इस शक्ति के बारे में पता चलते ही फिर बॉब रुका ही नहीं।


आगे यादों से छेड़–छाड़ पर प्रयोग शुरू करने से पहले बॉब बेतुकी सी जिद पर बैठ गया। दुनिया के बेस्ट न्यूरो सर्जन की यादों को ध्यान से देखना। मुझे तो कभी–कभी ऐसा भी लगता था कि बॉब के दिमाग में कहीं चोट लगी थी और कभी–कभी दिमागी संतुलन उसका हिल जाता है। न्यूरो सर्जन की याद देखना? खैर उसकी बात न कैसे मानता। मैं भी राजी हो ही गया।


हमलोग वहां से सीधा पहुंचे स्पेन। स्पेन दुनिया में सबसे बेहतरीन न्यूरोसर्जन देने के लिये काफी प्रसिद्ध देश है। हम लोग दुनिया के सबसे चर्चित और टॉप क्लास नंबर 1 न्यूरोसर्जन का पता लगाया। काफी व्यस्त मानस था और पहले कभी भी किसी मरीज को नहीं देखता। पहले उसके चेले इलाज के लिये आते और जब केस नही संभालता तब शीर्ष वाला डॉक्टर। ऊपर से उनकी फी। आम लोग खुद को बेचकर भी उनकी फी पूरी न दे पाये।


जैसा की बॉब के विषय में मैं पहले भी बता चुका हूं, था तो वो बहुत बड़ा कमिना। उसने पेड़ और पौधों से लिये टॉक्सिक को ब्रेन की नसों में दौड़ाने के लिये कहने लगा। कह तो ऐसे रहा था जैसे सामने हलवा परोस कर खाने कह रहा हो। मुझसे हुआ ही नहीं। एक हफ्ते लग गये टॉक्सिक फ्लो को इच्छा अनुसार बहाव देने में। अभी तो इच्छा अनुसार बहाव दिया था। इसके बाद तो जैसे बॉब का मैं कोई साइंस प्रोजेक्ट हूं। पहले उसने सिखाया टॉक्सिक को ब्लड के साथ बहने दो। मैने ध्यान लगाया और टॉक्सिक को ब्लड का हिस्सा समझा। कमाल हो गया, रगों में टॉक्सिक बहने लगा। हां वो अलग बात थी की मेरा हर वेन शरीर से कुछ सेंटीमीटर उभरा हुआ नजर आता।


इसके बाद बॉब ने जैसे न्यूरोसर्जन को पागल करने की ठान रखी हो। उसने फिर टॉक्सिक को किसी न्यूरो ट्रैमिशन की तरह पूरे शरीर में फैलाने के लिये कहने लगा। अब न्यूरो ट्रासमिशन होता क्या है उसे समझने में पूरा एक दिन गुजर गया। उसके बाद ये काम भी मैने बॉब की मदद से किया। जब मैं न्यूरो ट्रांसमिशन से टॉक्सिक को अपने शरीर में फैला रहा था तब मानो मेरे पूरे शरीर पर नर्व के जाल खुली आंखों से दिख रहा था। मेरा शरीर कोई देख ले तो ऐसा लगता जैसे किसी ने मेरे ऊपर की चमरी को छीलकर हटा दिया और अंदर के पूरे नर्व को दिखा रहा, जो टॉक्सिक के बहाव के कारण दिखने में बिलकुल काला था।


बॉब को पता था कि फ्री में उस डॉक्टर तक कैसे पहुंचना है। हम गये स्पेन के सरकारी हॉस्पिटल। वहां मैने दिमाग से संबंधित दिक्कत बताया। उन लोगों ने ब्लड सैंपल लेकर मुझे एमआरआई (MRI) के लिये भेज दिया। एमआरआई हुआ और डॉक्टर पागल। एमआरआई कर रहे डॉक्टर ने तुरंत एक मेडिकल टीम बुलवा लिया। वो लोग भी मेरा दिमाग देखकर चक्कर खा गये। दिमाग की नशों में खून की जगह जैसे ट्यूमर बह रहा हो। और ये बहाव केवल दिमाग की नशों में ही था बल्कि न्यूरो ट्रांसमिशन देखकर तो जैसे पसीने ही आ गये।


सरकारी हॉस्पिटल का ये केस सीधा पहुंच गया दुनिया के नंबर 1 न्यूरो सर्जन की टीम के पास। उनकी पूरी टीम और शीर्ष पर बैठा डॉक्टर चैलेंज लेने पहुंच गया। उनकी दिमाग की नशों को और भी ज्यादा हिलाने के लिये बॉब ने खास प्रबंध कर रखा था। हर मिनट पर मेरी बीमारी पूरी तरह से ठीक और फिर पूरी तरह से वापस आ जाती। मैं उनके बीच चर्चा का विषय बन गया और मुझ पर एक्सपेरिमेंट करने के लिये उन्होंने मुझे 50 हजार यूरो में साइन कर लिया। हां वो अलग बात है कि पहले मुझे भयभीत किया गया। मरने का डर दिखाया गया। और बाद में उनके मदद के बदले मेरे परिवार के लिये उन्होंने 50 हजार यूरो मुझे दिये।


मुझे क्या करना था मैं भी उनके रिसर्च का हिस्सा बन गया। जिस दिन मैं उनके हॉस्पिटल पहुंचा। उसी दिन से सब काम पर लग गये। टेस्ट के नाम पर मेरे शरीर से न जाने क्या–क्या निकाल लिये, लेकिन कहीं कोई बीमारी निकल ही नहीं रही थी। एक ही टेस्ट को स्पेन के 10 लैब से इन लोगों ने करवाया। सबका नतीजा एक जैसा। जबकि एमआरआई की रिपोर्ट उन्हे चकराने पर मजबूर कर देते। अंत में शीर्ष पर खड़ा टॉप न्यूरोसर्जन अपनी टीम के साथ मेरी सर्जरी का प्लान बनाया।


यहां तक तो सब कुछ मेरे और बॉब के सोच अनुसार ही हुआ। लेकिन आगे जो होने वाला था, उसके बारे में मैं कुछ नही जानता था। पर बॉब से भी चूक हो गयी। हमने सोचा था ऑपरेशन थिएटर में जाने के बाद सभी डॉक्टर को बेहोश करके मैं न्यूरोसर्जन के दिमाग में क्ला घुसा दूंगा। लेकिन वो प्लान ही क्या जो आखरी समय में फेल न हो जाये। सालो ने ऐसा ऑपरेशन थिएटर चुना जिसे देखकर मैने माथा पीट लिया। उस ऑपरेशन थिएटर के ऊपर का छत.…


ये सबसे ज्यादा कमाल का था क्योंकि उसके ऊपर कोई छत ही नही था। आंख उठाकर ऊपर देखो तो सीधा सेकंड फ्लोर का छत नजर आता था और फर्स्ट फ्लोर के छत की जगह बालकोनी टाइप थोड़ा सा छज्जा चारो ओर से निकाले थे। छज्जे के किनारे से 4 फिट की स्टील रॉड की प्यारी सी फेंसिंग थी, जिसे पकड़कर नीचे ऑपरेशन का पूरा नजारा एचडी में खुली आंखों से ले सकते थे। और जिन्हे 12–13 फिट नीचे देख कर कुछ समझ में न आये, उनके लिये 60 इंच का स्क्रीन लगाया गया था। जहां दिमाग का छोटा सा पुर्जा भी 10 इंच से कम का न दिखता। लाइव क्रिकेट मैच जैसे पूरी वयवस्था थी।



ऊपर से तकरीबन 50–60 आमंत्रित डॉक्टर देख रहे थे और नीचे पूरी टीम मेरा ऑपरेशन करने के लिये मरी जा रही थी। मैं करूं तो क्या करूं। बॉब भी साथ में नही था, उसे तो प्रतीक्षालय में इंतजार करने कहा गया था। मैं बड़ी दुविधा में। ऊपर से इन डॉक्टर्स ने एक छोटा बटन दबाया नही की पूरा स्टाफ ओटी में पहुंच जाता। मुझे कुछ सूझ नही रहा था और ये लोग इंजेक्शन लगाकर मुझे बेहोश करने वाले थे।


जब समझदारी काम न आये तब बेवकूफ बनने में ही ज्यादा समझदारी है। ऊपर से मुझे तो वैसे भी दिमागी बीमारी लगी थी। सो मैंने आव देखा न ताव सीधा बेड से कूद गया। मेरे बदन पर न जाने कितने वायर लगे थे और नब्ज में नीडल। सबको नोच खरोच कर गिराते मैं ऑपरेशन थिएटर से बाहर भागा। मेरे पीछे कुछ जूनियर डॉक्टर और नर्स की टीम भागी। मैं तो ओटी के बाहर चला आया और कुछ ही देर में पूरा हॉस्पिटल प्रबंधन मेरे पीछे दौड़ रहा था।


5 मिनट तक इधर–उधर भागने के बाद मैं थोड़ा तेजी दिखाते हुये वापस ऑपरेशन थिएटर में भागा। ऑपरेशन थिएटर में कम से कम 15 लोग रहे होंगे। हां। लेकिन शुक्र था कि कोई ऊपर खड़ा नही था। मुझे कुछ नही सूझा इसलिए मैंने एक बेडशीट में आग लगाकर उसके ऊपर गीला बेडशीट डाल दिया। चारो ओर तेज धुवां उठा और उस धुवां की आड़ में नंबर 1 न्यूरो सर्जन को लूथरिया वुलुपिनी का इंजेक्शन देकर उसके गर्दन में क्ला घुसा दिया।


जब मैंने उस डॉक्टर की यादों में झांका फिर मुझे पता चला की बॉब इस डॉक्टर की यादें देखने के लिये क्यों इतना जोर दे रहा था। किसी की यादें खुद के दिमाग में लेना। दूसरों के दिमाग में यादें डालने तथा भ्रम और सच्चाई बीच की लकीर के बीच कैसे उलझन पैदा करनी है। कौन सी यादें कहां मिलेगी। भूली यादें कहां होती है। यादों को एक दिमाग में कितने तरह से डाला जा सकता है। यादों को किस प्रकार से मिटाया जा सकता है। या फिर अपनी काल्पनिक याद को किसी के दिमाग के अंदर कैसे वास्तविक बना सकते है, मुझे सब पता चल चुका था। मुझे पता चल चुका था कि कहां ध्यान लगाने से क्या सब हो सकता है। मैं दिमाग और नर्वस सिस्टम से जुड़े इतने बातों को समझ चुका था की मैं किसी के दिमाग से यादों का कोई खास हिस्सा बिना किसी परेशानी के उठा सकता था।


फिर तो धुएं की आड़ में मैने बचे 14 लोगों की यादें भी देख ली। सबकी यादें काम की नही थी, इसलिए उन्हे स्टोर नही किया सिवाय 3 और लोगों के। जिसमे से एक प्लास्टिक सर्जन था तो दूसरा कॉस्मेटिक सर्जन। ये दोनो उस न्यूरो सर्जन के दोस्त थे और कई मामलों में न्यूरो सर्जन को सलाह भी दिया करते थे। आखरी में था एनेस्थीसिया। मैने न्यूरो सर्जन के साथ उन तीनो को भी लपेट लिया। सभी डॉक्टर के कुछ देर पहले की यादें मिटा दी और मैं जाकर आराम से लेट गया।


उन डॉक्टर में से जिसकी आंख पहले खुली हो। उसने जाकर दरवाजा खोला। कई लोग अंदर पहुंचे। ऑपरेशन थिएटर को खाली करवाया गया और फिर मुझे लेकर एक प्राइवेट रूम में सुला दिया गया। उस दिन ऑपरेशन होने से रहा और अगली बार ऑपरेशन हो, ऐसा मौका मैने दिया ही नहीं। मेरे जितने भी टेस्ट हुये सबके परिणाम पोस्टिव आये। चूंकि मैं एक एक्सपेरिमेंट सब्जेक्ट था और मेडिकल काउंसिल के लोग मेरी रिपोर्ट्स देख रहे थे, इसलिए मुझे डिस्चार्ज करने के अलावा उनके पास और कोई ऑप्शन ही नही था।


हम फिर यूरोप भ्रमण के लिये निकले। हां लेकिन हमारे पास पैसों की काफी तंगी हो चुकी थी, इसलिए वुल्फ हाउस को लूटने के इरादे से हम दोनो सबसे पहले जर्मनी ही पहुंचे। बॉब, मैक्स और बाकी रेंजर को वुल्फ हाउस की दास्तान सुनाने निकल गया और मैं वुल्फ हाउस चला आया। दरवाजे पर ईडन के मांस का लोथड़ा तो नही था लेकिन खून के दाग वैसे ही लगे हुये थे। अंदर घुसते ही बड़ा सा हॉल अब भी लड़ाई की दास्तान सुना रहा था। लाशें एक भी नही थी, लेकिन खून के धब्बे और गंदी सी बदबू चारो ओर थी।


वुल्फ हाउस में मैने अपना काम शुरू कर दिया। पैसों का पता लगाते मैं ईडन के तहखाने पहुंच गया, जहां पर पैसों और बाउंड का भंडार छिपा था। कुल संपत्ति लगभग 50 मिलियन यूरो थी। मैने ईडन का पूरा लॉकर ही साफ कर दिया। पूरे पैसे, बैंक लॉकर की चाबियां, कुछ बॉन्ड्स और शेयर अपने बैग में समेटकर डाल लिया। मैं जब तक वापस हॉल में पहुंचा, बॉब कुछ लोगों को लेकर वुल्फ हाउस पहुंच चुका था। ब्लैक फॉरेस्ट का रेंजर मैक्स और उसकी बीवी थिया को देखकर मैं खुश हो गया। हां लेकिन थिया मुझे देखकर जरा भी खुश न थी। उसने भरी सभा में जोर से चिंखते हुये मुझे वेयरवोल्फ पुकार रही थी।


मामला ठन गया। थिया की बातों पर किसी को यकीन नही हुआ, लेकिन सभी शिकारियों की संतुष्टि के लिये मेरा टेस्ट लिया गया। पहला करेंट और दूसरा वोल्फबेन। मैं दोनो ही टेस्ट 100% मार्क के साथ पास कर गया। थिया को लेकिन जरा भी यकीन नहीं था और वो मुझे पूरी तरह से फसाने का ठान चुकी थी। उसे सेक्स टेस्ट चाहिए था। सबके सामने उसने कह दिया, यदि मैं वुल्फ नही तो किसी स्त्री के साथ सबके सामने संबंध बनाये।


मैं फंसा। थिया के चेहरे पर कुटिल मुस्कान और मैं चिंता में। सभी शिकारी हंसते हुये थिया को ही कपड़े उतारने कह दिये। मैक्स भी उनमें से एक था जो इस अजीब सी शर्त की मेजबानी थिया को करने ही कह दिया। कामिनी औरत मुझे पूरी तरह से फसा चुकी थी। वह उसी वक्त अपने ऊपर के कपड़े को फर्श पर गिराकर अंतः वस्त्र में खड़ी हो गयी और मेरे पास कोई रास्ता ही नही छोड़ी। बॉब ने मुख्य दरवाजा बंद किया और मैंने आतंक मचाने शुरू किया। बॉब के पास जानवरों को लिटाने वाले कई तरह के साधन थे। उन्ही साधनों को संसाधन में बदलकर सबको बेहोश किया और उनके जहन से मेरे वेयरवोल्फ होने की पूरी कहानी ही गायब करनी पड़ी।


उन्हे जब होश आया तब सभी अलग–अलग कमरों में लेटे थे। शाम के खाने की दावत पर सबको जगाया गया और पूरे रेंजर एक साथ जमा होकर बस ईडन के बारे में जानने के लिये उत्सुक थे। जब उन्हें पता चला की मैने अकेले ईडन का सफाया कर दिया और उसके साथ बाकी के अल्फा का भी, उनका चेहरा देखने लायक था। कुछ देर आश्चर्य से मौन रहे फिर जाम से जाम लहराते हूटिंग करने लगे। मैक्स ने मुझसे पूछा की आखिर मैं कैसे कामयाब रहा। तब मैने बॉब के बारे जिक्र करते कहा की बॉब ने माउंटेन ऐश और वुल्फ मारने का हथियार दिया। मैने उन सभी को ट्रैप करके मार डाला। और बचे हुये जो बीटा भागे उनका फिर पिछा नही किया।
शानदार जबरदस्त भाई लाजवाब update bhai jann superree duperrere update
 
  • Like
Reactions: Xabhi and Tiger 786

andyking302

Well-Known Member
6,024
14,252
174
भाग:–87





दोबारा वो लोग हूटिंग करने लगे। मुझे कंधे पर बिठा लिया। मुझसे वहीं रुकने का आग्रह करने लगे और साथ में शिकार की कुछ ट्रेनिंग भी देने। खैर रुकने और ट्रेनिंग के लिये तो मैं राजी हुआ ही साथ में वुल्फ हाउस और ब्लैक फॉरेस्ट को पूरा मुक्त कराने का क्रेडिट भी शिकारियों को दे दिया। बदले में मैने उनसे वुल्फ हाउस का मालिकाना हक मांग लिया। मैं उस प्रॉपर्टी को नहीं छोड़ना चाहता था, जहां मेरे इवोल्यूशन की कहानी लिखी गयी थी। मैने तो अपना मांग लिया लेकिन बॉब मेरे पीछे अपनी काफी जमा पूंजी उड़ा चुका था, इसलिए उसने 1 लाख यूरो मांग लिया।


बॉब की ख्वाइश तो दुगनी पूरी हुई। शिकारियों ने उसे 2 लाख यूरो दे दिये। मेरे मांग में थोड़ी अर्चन आयी लेकिन मैक्स ने मेरी ख्वाइश पूरी कर दिया। हां लेकिन मुझे वुल्फ हाउस के लिये अलग से 1 लाख यूरो देने पड़े थे। वुल्फ हाउस की पूरी प्रॉपर्टी मेरी हुई। मैं वुल्फ हाउस छोड़ने से पहले अपनी यादें वहां छोड़ना चाहता था, इसलिए मैक्स के प्रस्ताव को मैने स्वीकार कर लिया।


वहां मैं और बॉब कुछ महीनो तक ठहरे। मुझे कुछ यादों को मूर्त रूप देना थे इसलिए जरूरी हो गया था कुछ लोगों की यादें चुराना। फालतू काम था, लेकिन मुझे करना पड़ा। जर्मनी के सबसे बढ़िया शिल्पकार का हमने पता लगाया। पता चला अपना देशी शिल्पकार ही था। राजस्थान का एक शिल्पकार परिवार पलायन करके जर्मनी में बसा था, जिसके पास ऐसा हुनर था कि किसी दुल्हन का घूंघट भी वह पत्थर को तराशकर बनाते थे जो अर्द्ध पारदर्शी होता और घूंघट के पीछे दुल्हन का चेहरा देखा जा सकता था। उसके अलावा मैं एक मेकअप आर्टिस्ट से भी मिला।


दोनो के हुनर मेरे पास थे और दोनो को उसके बदले मैने एक लाख यूरो दिया था। मुझे हुनर सीखाने की कीमत। मेरे और बॉब के बीच की बातें जारी रही साथ में वुल्फ हाउस की बहुत सी यादों को मैं मूर्त रूप दे रहा था। कुछ महीनो में मैने वहां 400 प्रतिमा बना दिया, जिसमे वुल्फ और इंसान दोनो की प्रतिमा थी। पूरी प्रॉपर्टी में प्रतिमा ही नजर आती। पहले दिन की खूनी रस्म से लेकर आखरी दिन की लड़ाई को मैने मूर्त रूप दे दिया था। इसी बीच अमेजन के जंगल की एक अल्फा हीलर फेहरीन के कारनामे की दास्तान बॉब ने शुरू कर दिया। बॉब चाहता था कुछ प्रतिमा जड़ों से ढका रहे। बॉब इकलौता ऐसा था जिसे फेहरीन के एक अप्रतिम कीर्तिमान का ज्ञान था। क्ला को जमीन में घुसाकर जमीन से जड़ों को निकाल देना।


थोड़े दिन की मेहनत और मैं भी फेहरीन की तरह कीर्तिमान स्थापित करने में कामयाब रहा था। कई पत्थरों पर मैने जड़ों को ऐसे फैलाया जैसे सच के कोई इंसान या जानवर खड़े थे। प्रतिमाओं को स्थापित करने के बाद उनके मेकअप का काम मैने शुरू किया। पूरे वुल्फ हाउस को मैने अपनी कल्पना दी थी। प्रतिमाओं के जरिये मैंने शेप शिफ्ट करने की पूरी प्रक्रिया को ही 5–6 प्रतिमाओं में दिखा दिया था। ईडन का बड़ा सा डायनिंग टेबल हॉल के मध्य में बनाया और 80 कुर्सियों पर इंसान और वेयरवॉल्फ को साथ बैठे दिखाया था। कुल मिलाकर मैं अपने इवोल्यूशन की कहानी वहां पूरा दर्शा गया। और अंदर के जंगल में देखने वाले मेहसूस करते की एक वेयरवोल्फ कितना दरिंदे हो सकते थे।


वुल्फ हाउस के दायरे में जितना जंगल पड़ता था, उसमे मैने अपने ऊपर के अत्याचार की कहानी लिखी थी। कई दरिंदे एक असहाय को नोचते हुये। वहां मैने छोटी सी प्रेम कहानी को भी कल्पना की मूर्त रूप दिया था। जिसके आगे मैने एक मतलबी लड़की की कहानी भी दर्शा दिया जिसने मेरे भावनाओं के साथ खेला था। और इन सब चक्र के अंत में मेरा आखरी इवोल्यूशन, एक श्वेत रंग का वेयरवॉल्फ, जो वहां के इंसान और वेयरवॉल्फ के बीच शांति स्थापित करने का कार्य किया था। 6 महीने से ऊपर लगे लेकिन जब मैने पहली बार वुल्फ हाउस का दरवाजा खोलकर लोगों को अंदर आने दिया और वुल्फ हाउस का पूरा प्रांगण घुमाया, तब वह जगह सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बन गया।


मैक्स और उसकी टीम को जब खबर लगी वो लोग भी पूरे जत्थे के साथ घूमने पहुंचे और वहां के प्रतिमाओं को देखकर कहने लगे... "जो सुपरनैचुरल दुनिया को नही जानते है, उनके लिये भी तुमने जीवंत उदाहरण छोड़ दिया है। वेयरवोल्फ के बदलाव से लेकर उनकी पूरी क्रूरता की कहानी। हां लेकिन एक प्रतिमा को तुमने मसीहा दिखाया है। क्या सुपरनैचुरल की दुनिया में भी अच्छे वुल्फ होते है।"… बस मैक्स का ये एक सवाल पूछना था और बॉब के पास तो वैसे भी कहानियों की कमी नही थी। और हर अच्छे वुल्फ के कहानी की शुरवात वो फेहरीन से ही करता था।


उस दिन जब मैक्स कई सैलानियों के साथ वुल्फ हाउस पहुंचा तब उसने मुझे एक बार और फसा दिया। जैसा ही उसने सबको बताया की ये कलाकृतियां मेरी है। कुछ लड़कियां मर मिटी। वो सामने से चूमने और बहुत कुछ करने को बेकरार थी। मैं उनकी भावना समझ तो रहा था लेकिन किसी स्त्री के साथ संभोग.. शायद इसके लिये मुझे बहुत इंतजार करना था। मेरी हालत पतली और कमीना बॉब मजे ले रहा था। किसी तरह जान बचाकर निकला।


वो जगह जंगल प्रबंधन ने मुझसे लीज पर ले लिया और सैलानियों के मनोरंजन के लिये उसे हमेशा के लिये खोल दिया गया था। मैं भी एक शर्त के साथ राजी हो गया की मुझे इस जगह का कोई लाभ नहीं चाहिए, बस ये संपत्ति हमेशा मेरी रहेगी। उन लोगों ने मेरी शर्त पर सहमति जता दी। जर्मन का काम खत्म करके एक बार फिर मैं और बॉब, बोरीयल, रशिया के जंगलों के ओर रुख कर चुके थे।


बॉब और फेहरीन। जैसे वो फेहरीन का भक्त था। बॉब से बातें करते वक़्त फिर वो पहला जिज्ञासा भी सामने आया जो मुझे नागपुर आने पर मजबूर किया था। बॉब अमेजन के जंगलों की ओर निकला था, क्योंकि गुयाना की एक वेयरवुल्फ अल्फा, नाम फेहरिन, हां तुम्हारी आई रूही उन्हीं की बात कर रहा हूं। बॉब उसी अल्फा हीलर से मिलने गया था। उसमे हील करने की अद्भुत क्षमता थी, शायद मेरे जितनी या मुझ से भी कहीं ज्यादा। लेकिन बॉब जबतक मिल पता, वहां शिकारियों का हमला हो गया। उसके पैक को खत्म कर दिया गया और उसे भारत के सबसे ख़तरनाक शिकारी पकड़कर नागपुर, ले आये थे।


बॉब की जानकारी को मैंने तब अपडेट नहीं किया। मैंने उसे नहीं बताया कि मै जानता हूं महान अल्फा हीलर फेहरीन को कौन शिकारी लेकर गये? मैं नागपुर लौटा क्योंकि मेरे मन में एक ऐसे अल्फा हीलर से मिलने की जिज्ञासा थी, जिसने अपना एक मुकाम हासिल किया था। जब भी बॉब तुम्हारी मां की बात करता ना वो बस यही कहता इंसानियत को ज़िंदा रखने का ज़ज़्बा किसी और मे हो नहीं सकता। एक नहीं फिर फेहरीन के हजार किस्से थे बॉब के पास, और हर बार फेहरीन से जुड़े नये किस्से ही होते। हां लेकिन तब ना तो बॉब को पता था और ना ही मुझे की शिकारी और सरदार खान ने मिलकर उसका क्या हाल किया। यदि उसके बचे 3 बच्चों (रूही, ओजल, इवान) के लिए मै कुछ कर रहा हूं तो ये मेरे लिए गर्व कि बात है।


वहीं मेरी दूसरी जिज्ञासा थी अनंत कीर्ति की किताब। बॉब के किताब संग्रह को मै देख रहा था। उसमें एक पुस्तक थी "रोचक तथ्य"। संस्कृत भाषा की इस पुस्तक में काफी रोचक घटनाएं लिखी हुई थी। जिसमे उल्लेखित कई घटनाएं उन सर्व शक्तिमान सुपरनैचुरल के बारे में थे, जो खुद को भगवान कि श्रेणी में मानते थे और कैसे उन तथा कथित भगवान का शिकार किया गया।


ज्यादातर उसमे बीस्ट अल्फा, इक्छाधरी नाग और विष कन्या का जिक्र था, जो किसी राजा के लिए कातिल का काम करते थे। उसी पुस्तक में वर्णित किया गया था तत्काल भारत में जब छुब्द मानसिकता के मजबूत इंसान, जैसे कि सेनापति, छोटे राज्य के मुखिया, लुटेरों का कबीला, सुपरनैचुरल के साथ मिलकर अपना वर्चस्व कायम करने में लगे थे। तब उन्हें रोका कैसे जाये, इस बात पर गहन चिंतन होने लगी।


रोचक तथ्य के लेखक बताते है कि पहली बार मुगलिया सल्तनत और अन्य राज्य जिन्होंने पुरानी सारी जानकारी की पुस्तक अपने पागलपन में मिटा दी थी, उनके पास इन सुपरनैचुरल को रोकने का कोई उपाय नहीं था और अपने कृत्य के लिए सभी अफ़सोस कर रहे थे। ना केवल भारत में बल्कि विकृति सुपरनैचुरल पूरे पृथ्वी पर कहर बरसा रहे थे। उन विकृति सुपरनैचुरल की पहचान करने और उन पर काबू करने के लिए देश विदेश की बड़ी–बड़ी ताकते एक साथ एक बार फिर नालंदा के ज्ञान भण्डार के ओर रुख कर चुकी थी। तकरीबन भारत के 30 राजा, और विदेश के 200 राजा इस सम्मेलन में हिस्सा लेने आये थे।


आचार्य श्रीयुत, अचार्य महानंदा के शिष्य थे और महानंदा शिष्य थे अचार्य श्री हरि महाराज के, जिन्होंने एक विकृति रीछ को विदर्व के क्षेत्र में बंधा था, जिसका उल्लेख उसी रोचक तथ्य के पुस्तक में था। पीढ़ी दर पीढ़ी पूर्ण सिक्षा को आगे बढ़ाने के क्रम में श्री हरि महाराज की सिद्धियां इस वक़्त अचार्य श्रीयुत के पास थी। आचार्य श्रेयुत सभी देशों के मुखिया से मिले और यह कहकर मदद करने से मना कर दिया कि….. "सत्ता और ताकत के नशे में चुड़ राजा खुद ही ऐसे दुर्लभ प्रजाति (सुपरनैचुरल) की मदद लेते है, अपने दुश्मनों के कत्ल के लिये। विषकन्या जैसी कातिलों को तैयार करते हैं। खुद का लगाया वृक्ष जब भूतिया निकल गया तो आज आप सब यहां सभा करने आये है। चले जाएं यहां से।"..


सभी राजा, महराजा, शहंशाह और बादशाह ने जब उनके कतल्ले आम की दास्तां बताई तब अचार्य श्रीयुत का हृदय पिघल गया और उन्होंने आये हुये राजाओं से उनके 10 बुद्धिमान सैनिक मांग लिये। श्रीयुत ने मदद के बदले कुछ शर्तें भी रखी उनके पास। आचार्य श्रीयुत नहीं चाहते कि भविष्य में फिर कोई ऐसी समस्या उत्पन्न हो इसके लिए उनकी शर्त थी….


"वो अपने 12 शिष्यों को दुर्लभ प्रजाति और इंसनो के बीच का द्वारपाल यानी प्रहरी बनाएंगे, जो दोनो दुनिया के बीच में संतुलन स्थापित कर सके।"

"जहां कहीं भी विकृति मानसिकता वाले मनुष्य, विकृति दुर्लभ प्रजाति के साथ मिलकर लोक हानि करेंगे, तो उसे सजा देने मेरे शिष्य या उसके अनुयाई जाएंगे। पहले अनुयाई वो सैनिक होंगे जो आपसे हमने मांगे है। प्रहरी पहुंचेंगे और फिर चाहे दोषी कोई राजा ही क्यों ना हो आप सब को मिलकर उसे सजा देनी होगी।"

"हमारे शिष्य और उसके अनुयाई किसी के भी राज्य में कभी भी छानबीन करने जा सकते है, जिन्हे आपकी राजनीतिक और आर्थिक राज्य नीति में कोई दिलचस्पी नहीं होगी। वह उस राज्य में दुर्लभ प्रजाति की स्तिथि और विकृति मानसिकता के लोगों का उनके प्रति रुझान देखने जाएंगे। जिसके लिये आप सभी को करार करना होगा की उनकी सुरक्षा, और काम में बाधा ना आने की जिम्मेदारी उस राज्य के शासक की होगी।"

"यदि आप सभी ये प्रस्ताव मंजूर है तो ही मै पहले आपके लोगो को प्रशिक्षित करूंगा, फिर अपने 12 सदस्य शिष्यों को तैयार करूंगा।"


आचार्य श्रीयुत की बात पर सभी शासक काफी तर्क करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि उनकी शर्त जायज है, और भविष्य नीति के तहत एक सुदृढ़ कदम भी। हर राजा ने करार पर हस्ताक्षर करके अपनी मुहर लगा दी। उसके बाद तकरीबन 1 साल तक आचार्य श्रीयूत ने अपने गुरु की पुस्तक "अनंत कीर्ति" के 5 अध्याय का प्रशिक्षण उन सभी को 1 वर्ष तक करवाया और प्रशिक्षण पूर्ण होने के उपरांत उन्होंने सबको वापस भेज दिया।


उसके बाद आचार्य श्रीयूत ने अपने 12 प्रमुख शिष्यों को अनंत कीर्ति के 10 अध्याय तक का प्रशिक्षण दिया। उन्हें लगभग 3 साल तक प्रशिक्षित किया गया और जब उनकी प्रशिक्षण पूर्ण हुई, तत्पश्चात अचार्य श्रीयूत ने उन 12 सदस्य में से वैधायन भारद्वाज को सबका मुखिया बाना दिया, और उन्हें राजाओं द्वारा मिली धन, स्वर्ण मुद्रा और आवंटित जमीन के करार सौंप कर उन्हें दो दुनिया का द्वारपाल बनाकर लोकहित कल्याण के लिए संसार के विभिन्न हिस्सों में जाने और अपने अनुयायि बनाने की अनुमति दे दी।


3 वर्ष बाद ही आचार्य श्रीयूत की अकाल मृत हो गयी। उनकी मृत के पश्चात उनके मुख्य शिष्य वैधायन को उनके अनंत पुस्तक का वारिस बनाया गया। हालांकि अनंत कीर्ति की पुस्तक एक अलौकिक पुस्तक थी, जिसमें 25 अध्याय लिखे गये थे। इस पुस्तक को संरक्षित करने का तो वारिस मिल गया, किन्तु उस पुस्तक को पढ़ने की विधि आचार्य श्रीयूत किसी को बताकर नहीं जा सके।


मना जाता था कि अनंत कीर्ति की पुस्तक में काफी हैरतअंगेज जानकारियां थी, जो पिछले कई हजार वर्षों से आचार्य अपने शिष्यों में आगे बढ़ाते हुये जा रहे थे, जिसका सिलसिला आचार्य श्रीयुत की मौत से टूट गया। पुस्तक को खोलने की एक विधि जो प्रचलित है…

"यदि कोई भी व्यक्ति 25 प्रशिक्षित लोगो से एक साथ 25 तरह के हथियार के विरूद्ध लड़े, और बिना अपने रक्त का एक कतरा बहाये यदि वह ये लड़ाई जीत जाता है, तो वो व्यक्ति उस अनंत कीर्ति की पुस्तक को खोल सकता है।"… इसी के साथ रोचक तथ्य का यह अध्याय समाप्त हो गया और मेरे मन की जिज्ञासा शुरू।


मजे की बात यह थी कि रोचक तथ्य में वर्णित इतिहास सच–झूठ का एक अनोखा संगम था, जिसे तत्काल प्रहरी समुदाय के फैलाये झूठ के आधार पर तांत्रिक अध्यात द्वारा लिखा गया था। यही वो किताब जरिया बनी फिर महाजनिका की आजादी का। बहरहाल मुझे उस वक्त भी उस पुस्तक पर पूरा यकीन नही था क्योंकि 25 तरह के हथियार से लड़ने की व्याख्या ही पूरी तरह से गलत थी। हां लेकिन रीछ समुदाय का इतिहास मेरे जहन में था और प्रहरी को तो मैं शुरू से जनता था। इसलिए मेरी दूसरी जिज्ञासा उस अनंत कीर्ति की पुस्तक को देखने की हुई। जिसे खोल तो नही सकता था लेकिन कम से कम देख तो लेता।


मै बॉब से हंसकर विदा ले रहा था और साथ ही ये कहता चला कि अब भविष्य में उससे दोबारा फिर कभी नहीं मिलूंगा। बॉब से विदा भी ले चुका था एक सामान्य जीवन की पूर्ण इक्छा भी थी, क्योंकि मुझे पहचानने वाला कोई नहीं था। एक गलती करके बुरा फंसा था, वो था सुहोत्र लोपचे की जान बचाना। यदि मर जाने दिया होता तो मेरी सामान्य सी जिंदगी होती। इसी को आधार मानकर मै ये भी तय कर चुका था कि भार में गया मदद करना। मैं भी उस भीड़ का हिस्सा हूं जो पूर्ण जीवन काल में बिना एक भी दुश्मनी किये, बिना किसी लड़ाई झगड़े के जीवन बिता देते है। लेकिन ये इंसानों के जानने की जिज्ञासा... मेरे मन की जिज्ञासा में 2 सवाल घर कर गये थे..


एक सुपर हीलर अल्फा फेहरीन को अमेजन के जंगल से नागपुर क्यों लाया गया? वो अनंत कीर्ति की पुस्तक दिखती कैसी होगी? उसपर हाथ रखने का एहसास क्या होगा और क्या जब मै उसपर अपने हाथ रखूंगा तो अपने बारे में कुछ कहानी बयान करेगी?


मेरे लिए बस 2 छोटे से सवाल थे जिसका जवाब मै जनता था कि कहां है, किंतु मुझे तनिक भी एहसास नहीं था कि इन दोनों सवाल के जवाब ढूंढ़ने के क्रम में इतनी समस्या आ जायेगी... सवाल के जवाब तो कोसो दूर थे उल्टा मै खुद ही कई उलझनों में फंस गया। ये थी एक पूरे दौड़ कि कहानी जब मै गायब हुआ था।



आर्यमणि पहली बार अपनी दिल की भावना और अपने साथ हुए घटना को किसी के साथ साझा कर रहा था। रूही को अपने मां के बारे में जितनी जानकारी नहीं थी, उससे कहीं अधिक जानकारी तो आर्यमणि और बॉब के पास थी। हां लेकिन एक बात जो इस वक़्त रूही के अंदर चल रही थी उसके दुष्परिणाम से जल्द ही आर्यमणि अवगत होने वाला था।
शानदार जबरदस्त भाई लाजवाब update bhai jann superree duperrere update
 
  • Like
Reactions: Xabhi and Tiger 786

B2.

New Member
82
231
33
भाग:–85





बॉब एक लेटर बढ़ाते हुए कहने लगा। मैंने वो लेटर अपने हाथ में लिया। चेहरे पर निराशा से भरी एक मुस्कान और लेटर में छोटा सा संदेश।…..


"तुम जिस सच कि तलाश में तड़प रहे थे वो सच मैंने तुम्हे बताया, और मुझे ईडन से मुक्त होना था सो तुमने करवा दिया। हमारी दुनिया अलग है आर्य, तुम अपना ख्याल रखना। माफ करना, तुम्हारा इस्तमाल नहीं करना चाहती थी लेकिन तुम में कुछ तो बात मुझे दिखी, जो मेरे कई वर्षों की कैद से रिहाई का जरिया था। तुम्हारी भावना को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था फिर भी मुझे मजबूरी में करना पड़ा। उम्मीद करती हूं तुम खुद को संभाल लोगे और हो सके तो मुझे माफ कर देना।


मै वो लेटर पढ़कर मुस्कुरा रहा था।… "बॉब जब ईडन मर रही थी, तब दर्द भरी तेज चींख ओशुन के मुंह से सुना था। मुझे वो तब भी हैरान कर गयी की ओशुन ईडन को मरते हुए क्यों नहीं देखना चाहती थी, जबकि लेटर में तो वो कई सालों से छुटकारा पाने की बात कर रही है।"..


बॉब:- ताकत की चाहत सुपरनैचुरल वर्ल्ड की सबसे बड़ी कमजोरी रही है आर्य। इस दुनिया में केवल ताकत हासिल करना ही लक्ष्य होता है। बिना क्ला और फेंग के ईडन को मार डाले, अफ़सोस तो होगा ना उसे। ईडन की पूरी ताकत बर्बाद हो गयी।


जैसे ही मैंने बॉब की वो बात सुनी फिर मै हड़बड़ी में पूछने लगा… "बॉब वहां कितनी लाशें थी।"..


बॉब शायद मेरे सवाल को भांप गया.… "हां ओशुन अब एक अल्फा है। उसके साथ उसके 4 और साथी अजरा, रोज, लिलियन लोरीश और जाइनेप यलविक ये सब भी एक अल्फा है। वुल्फ हाउस में 5 अल्फा की ताकत चुराने के इरादे से उसके बीटा ने मार डाला, जिसके सूत्रधार तुम बने।


मै:- कैसे?


बॉब:- एनिमल कंट्रोंल इंस्टिंक्ट। तुम्हारी आवाज़ अल्फा तक को काबू कर सकती है। फर्स्ट अल्फा तक को शांत कर सकती है। ओशुन और उसके दोस्तों ने उस मौके का फायदा उठा ले गये।


मैं:– मेरी आवाज जब अल्फा को कंट्रोल कर सकते थे तब एक बीटा कंट्रोल में क्यों नहीं रहा।


बॉब:– क्योंकि तुमने ओशुन को कंट्रोल नही किया था। वो तुम्हारे साथ थी, और उसके साथ जो भी होंगे वो तुम्हारे तरफ हुये। सीधी बात है, तुम्हारी दहाड़ से तुम्हारे साथ वाले एग्रेसिव होंगे और विपक्षी शांत।


मैं:– लेकिन ओशुन और बाकी के वोल्फ तो ईडन के साथ ब्लड ओथ में थे न।


बॉब:– ब्लड ओथ में होने से क्या होता है। वफादारी बदल चुकी थी इसलिए अलग असर देखने मिला।


मै:- ओशुन अपना नया पैक बनाकर गयी।


बॉब:- ओशुन अल्फा ग्रुप के साथ निकली थी। ये पैक तो नहीं था, लेकिन आपसी समझौता जरूर था। पहले ओशुन अपनी मां के पैक से मिलती और बाकियों को वो पैक उसकी मंजिल तक पहुंचता।


मै, गहरी श्वास लेते खुद को थोड़ा आराम देते… "तुम मुझे कहां ले आये फिर, और मेरे साथ क्या-क्या हुआ वो तो बता दो?"


बॉब:- एक शर्त पर..


मै:- बॉब अब ये मत कहना कि हमे मिशन पर निकलना है, मिशन इंपॉसिबल। प्लीज तुम मेरी बात को समझो। मै एक आम सा लड़का हूं, किसी वजह से सुपरनैचुरल बन गया। लेकिन आज भी मुझे मेरी मां की गोद याद आती है। मेरी भूमि दीदी को गलत समझा अंदर से सॉरी टाइप फील कर रहा हूं। मेरा बाप मुझे लेकर ही परेशान होगा, उन्हें कहना है पापा मै आपसे बहुत प्यार करता हूं। इतनी सी उम्र में 2 बार लव फेल्योर हो चुका है। खुद के लिए एक प्यारी सी लड़की ढूंढनी है। मुझे चित्रा को तंग करना है। निशांत के साथ रात में घूमकर कुछ मुसीबत में फंसे लोगों को निकालना है। और इस बार कोई खूबसूरत लड़की दिखी तो मै भी कहूंगा जान बचाई उसके बदले हमे प्लीज एक बार सेक्स करने दो, हमारा मेहनताना। बस इतनी सी ख्वाइश है।


बॉब:- "मेरी खुशकिस्मती जो तुमने इतनी बात कर ली। अच्छा मै शुरू से बताता हूं, जो भी अब तक मैंने तुम्हारे बारे में जाना है। तुम एक प्योर अल्फा हो। प्योर अल्फा मतलब बाय बर्थ तुम एक वेयरवुल्फ रहे हो, बस तुम्हारी वो शक्तियां ट्रिगर नहीं हो पायी थी अबतक।"

"तुम्हारा इंसानी पक्ष हर रूप में तुम्हारे साथ रहता है इसलिए जब तुम शेप शिफ्ट करते हो तो आसानी से किसी भी भाषा (जानवर या इंसानी भाषा) को बोल लेते हो। याद करो उस रात की वीडियो जिस रात तुम खुदाई कर रहे थे। एक अनियंत्रित वूल्फ शिकार करता है लेकिन तुम बस खुदाई कर रहे थे और हर जानवरों पर नियंत्रण कर रहे थे.. जबकि.."


मै:- अब ये पॉज की जरूरत है क्या बॉब?


बॉब:- जबकि तुम काली खाल ओढ़े थे। मतलब तुम एक बीस्ट वुल्फ की तरह ही थे, जिसे खुद पर नियंत्रण नहीं था। तुम नहीं जानते थे तुमने शेप शिफ्ट किया है। लेकिन फिर भी तुमने किसी पर हमला नही किया। ये होता है प्योर अल्फा। तुम्हारी जगह यदि ईडन अनियंत्रित होती तो पुरा एक शहर साफ कर देती, और उफ्फ तक नहीं करती।


मै:- फिर बोलते–बोलते रुक गये। अच्छा लग रहा था अपने बारे में अच्छी बातें सुनकर।


बॉब:- टू बी कंटिन्यू..


मै:- इसका क्या मतलब है बॉब और तुम मुझे कहां लेकर आये हो?


बॉब:- टू बी कंटिन्यू का मतलब कल बताऊंगा और इस वक़्त हम दुनिया के सबसे घने और बड़े जंगलों में से एक, रशिया के हिस्से में पड़ने वाले "बोरियल" जंगल में है।


मै:- बॉब देखो सस्पेंस क्रिएट मत करो, जो जानते हो बता दो। वरना भाड़ में गया तुमसे कुछ जानना, मै यहां से भागकर भी भारत वापस जा सकता हूं।


बॉब:- तुम्हारी मर्जी है लेकिन किसी लड़की की जान बचाने के बाद यदि उसके साथ सेक्स करोगे तब पता चलेगा वो चूम किसी इंसान को रही है और सेक्स किसी सैतना में साथ कर रही। और कहीं तुमने उसकी हालत ओशुन जैसी कर दी तब तो वो पक्का स्वर्गवासी भी हो जायेगी।


मै:- बहुत बड़े कमिने हो बॉब....


बॉब किसी सस्पेंस से कम नहीं था। उसने अपने शब्द जाल में ऐसे उलझाया की मैंने भी तय कर लिया चलो इसके साथ भी वक़्त बिताकर देख लिया जाय। वक़्त बीताकर देखा.. शायद मेरे नये बदलाव का बॉब एक ऐसा सहारा था जिसने मुझे मेरी पहचान बताई थी। बॉब मानो सुपरनैचुरल वर्ल्ड का विकिपीडिया था। वो ग्रीक, रोमन, मिस्र, नॉर्थ अमेरिकन और इंडियन सब कॉन्टिनेंट के सारे सुपरनैचुरल के बारे में पढ़ चुका था। उनके अनुसार सभी सभ्यता में सुपरनैचुरल की जितनी ज्यादा जानकारी इंडियन सब कॉन्टिनेंट के माइथोलॉजी हिस्ट्री में मिलती है, वो सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा सटीक है। भारत के इतिहासकारों ने जिस हिसाब से ना सिर्फ जमीन बल्कि महासागर के सुपरनैचुरल को एक्सप्लेन किया था वो अद्भुत है। फिर चाहे वो मत्स्य कन्या हो, या फिर मैन मेड विश कन्या एसासियन, या फिर मीठे पानी के सुपरनैचुरल क्रोकोडायल हो या फिर पृथ्वी पर सबसे विकसित प्रजाति रीछ हो। या फिर बिग फुट के नाम से मशहूर हिमालय की प्रजाति हो या फिर इक्छाधारी नाग हो। या फिर शेषनाग...


बॉब काफी प्रभावित करने वाला व्यक्ति था। मै बस गौर से उसे सुना करता था। उसके पास कई ऐसे दुर्लभ पुस्तकें थी, जो वो मुझे दिखाया करता था। ऐसा नहीं था कि उसने केवल किताबी ज्ञान हासिल की थी, बल्कि बहुत से दुर्लभ सुपरनैचुरल की जानकारी थी। वेयरवुल्फ और उसकी सारी वरायटी तो वो रट्टा मार जनता था।


उसके अनुसार जमीन पर रहने वाले सभी सुपरनेचुरल ताकत बढ़ाने की होड़ में इंसानों के हाथो शिकार होते चले गये। भले ही सुपरनेचुरल खुद को कितना भी सुपीरियर माने, लेकिन इतिहास गवाह था, हर विकृति मानसिकता के लोगो को अंत तक पहुंचना ही पड़ा था, भले ही वो खुद को कितना ही ताकतवर क्यों ना बना ले।


कई दिनों तक हम कई सारे सुपरनैचुरल पर बात करते रहे। ऐसा लग रहा था वो अपना ज्ञान मुझे बांट रहा हो। बॉब के बताने के ढंग और इस विषय से मुझे काफी रुचि हो गई थी। लेकिन बॉब था बहुत बरे वाला कमीना। प्योर अल्फा के विषय में वो कोई चर्चा नहीं करता था। करता भी कैसे वो खुद पहली बार किसी प्योर अल्फा से मिल रहा था।


सुपरनैचुरल के क्लासिफिकेशन का दौर जब खत्म हुआ तब उसने कई अच्छे तो कई बुरे सुपरनैचुरल के बारे में जिक्र किया, जिसकी इतिहास और वर्तमान में चर्चा थी। इसी चर्चा के दौरान मुझे फेहरीन के बारे में पता चला था रूही। तुम्हारी मां के बारे में बॉब पूरा 1 दिन बताते रह गया था। उसके बाद ढेर सारे विकृत वेयरवुल्फ कि चर्चा हुई। मौजूदा हालत में बीस्ट वुल्फ को उसने सबसे मजबूत और खतरनाक बताया। उन्हें रोकने और मारने के उपायों पर भी बात होने लगी।


फिर चर्चा शुरू हुई इतिहास के सर्व शक्तिमान इंसानों की और उनके विकृत प्रभावों को रोकने के लिये उठाये गये कदम। बॉब का एक बात कहना बहुत हद तक सही था, जो प्रकृति से कुछ खास बटोर लिये वो सब सुपरनैचुरल है। फिर हम केवल वेयरवुल्फ कि बात ही क्यूं करे। वेयरवुल्फ भी कई सुपरनैचुरल में से एक है जिसमे कई तरह कि ताकत के साथ शेप शिफ्ट करने कि एबिलिटी होती है। बॉब को वेटनारियन ना कहकर सुपरनैचुरल के डॉक्टर कह दूं तो ज्यादा गलत नहीं होगा। साथ में बहुत ही ज्यादा सेलफिश वाला इंसान भी। ऐसा मै क्यों कह रहा हूं वो भी बताता हूं…


कितने महीने मै उसके साथ रहा मुझे भी याद नहीं। बोरियल, रूस, के जंगल में दिन रोमांच के साथ गुजर रहे थे। बॉब का मानो मै एक रिसर्च सब्जेक्ट बन चुका था क्योंकि एक प्योर अल्फा के बारे में उसे भी पता नहीं था, इसलिए मेरे साथ बिताये अनुभव को वो लिखकर रखता था। मेरी पास किस तरह कि पॉवर है, कितना आक्रमक हो सकता हूं। पूर्णिमा को कैसी हालत रहती है, इसके अलावा प्योर अल्फा में क्या खास बातें होती है सब।


एक तो बॉब अपने आकलन के आधार पर वो मेरी हील पॉवर को परख चुका था। मुझमें अल्फा और फर्स्ट अल्फा के मुकाबले कई गुना ज्यादा हील पॉवर थी। वहीं बहुत बारीकी से छानबीन के बाद उसने मुझे बताया कि हवा, पानी, और आकाश में कहीं भी हुई घटना को मै मेहसूस कर सकता हूं, उसकी झलकियों को मै देख सकता हूं। मुझे उसका ये हवा, पानी और आकाश कि बात पर जोर देकर कहना कुछ समझ में नहीं आया।


तब बॉब अपने अनुभव को साझा करते हुये कहने लगे, बहुत कम ऐसे सुपरनैचुरल होते हैं जिसकी शक्तियां हर मीडियम मे एक जैसी होती है। यह ज्यादातर किसी भी प्योर सुपरनैचुरल में पाया जाता है जो अपनी कुछ शक्तियों को प्रतिकूल मीडियम (विरुद्ध या विपरीत पक्ष वाला मीडियम) में बनाये रख सकते है। हां लेकिन ये सभी प्योर सुपरनैचुरल में देखने मिले ऐसा संभव नहीं।


इसी मे एक बात और बॉब ने जोड़ा था। हर सुपरनैचुरल अलग-अलग मीडियम मे अलग-अलग तरह से रिस्पॉन्ड करता है। इसका ये मतलब नहीं कि मीडियम चेंज होने से केवल शक्तियां जाएंगे ही। हो सकता है दूसरा मीडियम ज्यादा अनुकूल हो। इसी के साथ एक और बात निकलकर आयी। सुपरनैचुरल की शक्तियां अलग-अलग एटमॉस्फियर और क्लाइमेट मे भी बदल सकती है। कहीं के एटमॉस्फियर मे शक्तियां बढ़ेंगी तो कहीं शून्य भी हो सकती है।


बातें थोड़ी अजीब थी लेकिन बॉब के साथ रहकर एक बात तो समझ चुका था, ये पूरी दुनिया ही अजीब चीजों से भरी पड़ी है। तब मुझे ओशुन का वो गांव याद आ गया जहां मैंने हर दरवाजा को छूकर देखा था, और वो मुझे विचलित कर गया था। ऐसा क्यों हुआ था उस वक़्त मै नहीं समझ पाया था, लेकिन आज जब बॉब मुझे प्योर अल्फा को थोड़ा और एक्सप्लोर कर रहा था, तब जाकर समझ में आया।


बस इन्हीं सब बातो में दिन गुजरते गये। बॉब मुझसे तरह-तरह की चीजे करने कहता, जिसमे ज्यादातर नतीजे नहीं निकलते। हां लेकिन कई सारे असफल प्रयोग के बाद, इक्के–दुक्के नई बात भी पता चलती। उसी ने अपने अनुभव के आधार पर आकलन किया था, जितनी ताकत मै शेप शिफ्ट करने के बाद मेहसूस करता हूं, लगभग उतनी ही ताकत मेरी इंसानी शरीर में भी है। बस मै जब भी उन शक्तियों को मेहसूस करता हूं तो अपना शेप शिफ्ट कर लेता हूं।


वो साला अनुभवी व्यक्ति बॉब एक बार और सही था। हमने बहुत से प्रयोग किये इसपर और सफलता भी पाया। बॉब ने हालांकि दिया तो मात्र थेओरी ही था लेकिन जब बॉब की बात सही हुई, सबसे ज्यादा आश्चर्य उसी को हुआ था। मुझे तो कभी–कभी बॉब को देखकर ऐसा लगता था कि साला कोई फेकू है जो 20 तुक्का मारता है, उसमे से 2-4 सही हो जाता है। खैर, तब उसी ने मुझसे कहा था कि जब तक प्योर अल्फा खुद ना चाह ले, कोई जान नहीं पायेगा कि एक वेयरवुल्फ आस पास है। हर किसी को ये तो समझ में आ सकता है कि कुछ है ऐसा जो मेरे ताकत को बढ़ाता है, लेकिन वो चाहकर भी पता नहीं लगा सकता।


मुझ पर वुल्फ को रोकने की सारी तकनीक बेअसर होगी क्योंकि प्योर अल्फा को ना तो अवरुद्ध भस्म यानी माउंटेन एश रोक पायेगी, और ना ही वुल्फबेन से मारा जा सकता है। जहां वेयरवुल्फ करंट लगने से अपने हृदय की गति बढ़ा लेते है, प्योर अल्फा ठीक उसके विपरीत अपनी धड़कन की गति लगातार नीचे ले जाते है। किसी के दिमाग को पढ़ना और उसकी यादों को देखना मेरे अंदर किसी अल्फा की तरह ही थी, बस मै जितनी सरलता से कर सकता था, कोई और शायद ही कर सके।


मैं किसी की पूरी याद देखने के लिये कितना समय लेता हूं, इसका भी टेस्ट बॉब ने किया था। और मजे की बात ये थी कि बोरीयाल के जंगल में जानवर दिखना खुशकिस्मती की बात होती है, इंसान तो भूल ही जाओ। बॉब ने टेस्ट के लिये कह तो दिया, लेकिन बकरा वही था। वेयरवोल्फ के बारे में तो मैं भी जनता था कि उसके क्ला या फेंग से घायल इंसान यदि इम्यून हो गया तब वह भी एक वेयरवॉल्फ बन जायेगा। उस वक्त मेरी विडंबना यही थी कि मैं याद देखूं कैसे?
Awesome update Bhai ❤️
 
  • Like
Reactions: Xabhi and Tiger 786

THE FIGHTER

Active Member
508
1,389
138
Isko usne dhoya usko isne dhoya jordard dhoya Tod tod dhoya patak patak kar dhoya mala mal dhoya
Ye to apne hi nikle apsyu Amy return hogaye Inka copy paste sahi hai re
Dekhte dekhte 2 mahine hogaye
Paisa hi Paisa hai thoda bahot mujhe bhi Dede
 
  • Like
Reactions: Tiger 786

andyking302

Well-Known Member
6,024
14,252
174
भाग:–88




आर्यमणि पहली बार अपनी दिल की भावना और अपने साथ हुए घटना को किसी के साथ साझा कर रहा था। रूही को अपने मां के बारे में जितनी जानकारी नहीं थी, उससे कहीं अधिक जानकारी तो आर्यमणि और बॉब के पास थी। हां लेकिन एक बात जो इस वक़्त रूही के अंदर चल रही थी उसके दुष्परिणाम से जल्द ही आर्यमणि अवगत होने वाला था।


आर्यमणि और रूही दोनो ही लगभग खोये से थे, तभी उस माहौल में ताली बजनी शुरू हो जाती है। बॉब उन दोनों का ध्यान अपनी ओर खिंचते… "आर्य सर ने किसी से लगातार 4-5 घाटों तक बातचीत की। सॉरी बातचीत कहां, लगातार अपनी बात कहता रहा, कमाल है।"


रूही बॉब की बात पर हंसती, आर्य के गाल को चूमती हुई कहने लगी… "बड़ी मुश्किल से मेरा दोस्त सुधरा है बॉब, नजर मत लगाओ। वैसे भी इसकी जिंदगी में भूचाल लाने का श्रेय तुम्हे ही जाता है। वरना ये तो नॉर्मल सी लाइफ जीने गया था नागपुर, जहां इसके 2 प्यारे दोस्त और इसकी सब से क्लोज भूमि दीदी रहती है।"..


बॉब:- क्या वाकई में ये अपने सवालों के कारण फसा है। मुझे नहीं लगता की ऐसा कुछ हुआ होगा। सवालों के जवाब ढूंढ़ने के लिए इसे ज्यादा अंदर तक घुसने कि जरूरत भी नहीं पड़ती, क्यों आर्य?


आर्य:- हां रूही, बॉब सही कह रहा है। मै तो नागपुर बस जिज्ञासावश और अपने लोगों के पास गया था। लेकिन कोई मुझे पहले से निशाने पर लिया था। कुछ लोग नहीं चाहते थे कि मै नागपुर में रहूं, इसलिए तो मेरे नागपुर पहुंचने के दूसरे दिन से ही पागलों कि तरह भगाने में लग गये थे।


रूही:- हां और तुम भी जब भागे तो उन लोगों को पूरा उंगली करके भागे।


आर्य:- हाहाहाहा.. हां तो जैसा किया वैसा भोगे। लेकिन इन सबमें तुम लोग मेरे साथ हो, वही मेरे लिये खुशी की बात है। फेहरिन, जिसने ना जाने अपने हीलिंग एबिलिटी से कितनो कि जान बचाई। मदद करना जिसके स्वभाव में था, उसके 3 बच्चों की मदद मै कर रहा हूं। तुम समझ नहीं सकती ये बात मुझे कितना सुकून दे रही है...


बॉब:- और इसी चक्कर मे खतरनाक टीनएजर अल्फा पैक लिए घूम रहे हो आर्य। हां, लेकिन तीनों ही बहुत प्यारे है। काफी बढ़िया प्रशिक्षण दिया है तुमने। अब जरा काम की बात कर ले।


आर्य:- हां बॉब..


रूही:- बॉब रुको तुम। इससे पहले कि एक बार और इस बकड़ी की शक्ल वाली लड़की ओशुन को बचाने के लिये आर्य आगे बढ़े, उस से पहले मैं कौन बनेगा करोड़पति खेलना चाहूंगी... बॉस रेडी...


आर्यमणि के उतरे चेहरे पर बहुत देर के बाद हंसी थी और वो हंसते हुए रूही के गर्दन को दबोचकर उसके गाल को काटते हुए... "हां पूछो"..


रूही:- अव्वववव ! बॉस दूध पीती बच्ची की तरह ट्रीट मत करो। सवाल दागुं पहली…


आर्यमणि:- जी..

रूही:– यूरोप से लौटकर नागपुर किन २ सवालों को लेकर पहुंचे थे?

आर्यमणि:– बता तो चुका हूं...

रूही:– एक बार और

आर्यमणि:– अनंत कीर्ति की पुस्तक कैसी दिखती है और एक ट्रू अल्फा हीलर फेहरीन के लिये...


रूही:– तुम्हे क्या लगता है बॉस अनंत कीर्ति की पुस्तक उन ढोंगी प्रहरी के हाथ कैसे लगी होगी?


आर्यमणि:– अनंत कीर्ति की पुस्तक की कहानी इतनी सी है कि उसे कोई अपेक्स सुपरनैचुरल.…


रूही:- बॉस आता हे ( मतलब अब ये) अपेक्स सुपरनैचुरल…


एलियन को एपेक्स सुपरनैचुरल कहना थोड़ा खटक गया इसलिए रूही बीच में ही आर्यमणि को टोक दी।


आर्यमणि:- मान लो ना अभी के लिये की किताब के बारे में जिसने भ्रम फैलाया उसे अपेक्स सुपरनैचुरल कहते है। वरना मैं कैसे समझाउंगा। बॉब के सामने वो शब्द का इस्तमाल नही कर सकता...


(दरअसल बात एलियन कहने की हो रही थी और आर्यमणि ये बात सबके सामने नहीं जाहिर होने देना चाहता था)


रूही:- सॉरी बॉस..


बॉब:– तुम अपने गुरु से बात छिपा रहे। अच्छा ही होता जो तुम्हे काली खाल में रहने देता ..


आर्यमणि, कुछ सोचकर बात को घुमाने के इरादे से... "बॉब मैं नही चाहता की तुम्हे वो सच पता लगे"..


बॉब:– अब इतना सस्पेंस न क्रिएट करो। मैं यदि सस्पेंस क्रिएट करता फिर तुम्हारा क्या होता आर्य...


आर्यमणि:– ठीक है बॉब, मैं बताता हूं, लेकिन तुम खुद को संभालना... फेहरीन को मारने वाले यही एपेक्स सुपरनैचुरल थे। अब चूंकि रूही उसकी बेटी है और उसके मां यानी फेहरीन के कातिलों को एपेक्स कहना उसे अच्छा नहीं लग रहा...


बॉब, आश्चर्य से आंखें बड़ी करते... "क्या तुम्हे फेहरीन के कातिलों के बारे में पता था, और तुमने मुझे बताया नही?"


रूही, बॉब के कंधे पर हाथ रखती.… "बॉब, प्लीज पैनिक न हो। आर्यमणि बस तुम्हे दुखी नही देखना चाहता था। वैसे भी हम तो उनसे हिसाब लेंगे ही, लेकिन अभी हम उन सुपरनैचुरल को पूरी तरह से जानते नही, इसलिए खुद को सक्षम बना रहे।"…


बॉब:– ओह इसलिए आर्य अल्फा पैक लिये घूम रहा और तुम सबको प्रशिक्षण दे रहा।


रूही:– हां बॉब.. अब बॉस को बात पूरी करने दो। चलो एपेक्स सुपरनैचुरल की बात मान ली, आगे...


आर्यमणि:- हां तो अनंत कीर्ति की पुस्तक की सच्चाई इतनी है कि उसके संरक्षक को मारकर वो पुस्तक अपेक्स सुपरनैचुरल के पास पहुंच गयी। उन अपेक्स सुपरनैचुरल ने पूरे प्रहरी सिस्टम को कुछ ऐसे करप्ट किया है, जिनसे वहां काम करने वाले बहुत से अच्छे प्रहरी को लगता है कि वो समाज को सुपरनैचुरल के प्रकोप से बचा रहे है। जबकि सच्चाई ये है कि वो अपेक्स सुपरनैचुरल उनको झांसा देकर अपना निजी मकसद साधने मे लगा है।


रूही:- ओह तो ये बात है। लेकिन बॉस कुछ तो मिसमैच है। आप कुछ और समीक्षा छिपा रहे हो ना... मुझे रोचक तथ्य किताब की बात खटक रही है..


आर्यमणि एक बार फिर मुस्कुराते... "मेरे दादा जी कहते थे कि एक पुस्तक की सच्चाई इस बात पर निर्भर नहीं करती की उसे कितने वर्ष पूर्व लिखा गया है, क्योंकि लिखने वाला कोई ना कोई इंसान ही होता है। आप का बौद्धिक विचार, कल्पना और उस समय के घटनाक्रम की सारी स्थिति को पूर्ण अवलोकन के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए।"

"सभी आकलन के बाद आपका बौद्धिक विकास एक थेओरी को जन्म देता है और वो थियोरी यदि पूर्ण रूप से उस किताब से मैच कर जाये तो वो किताब आपके लिए तथ्य पूर्ण है। और हां कभी भी उस दौर के मौखिक कथा को नजरंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि बहुत सी अंदरुनी बाते एक बाप अपने बेटे को बताता है और बेटा अपने बेटे को लेकिन वो सभी गुप्त बातें उस पुस्तक में नहीं मिलती..."


रूही:- बॉस मैं इंजिनियरिंग की स्टूडेंट थी, फिलॉस्फी की नहीं। और ना ही मेरा मूड है सोने का। सीधा वो रोचक तथ्य के बारे में बताओ।


आर्यमणि:- "इसलिए मैं किसी से बात नहीं करना चाहता मूर्खों। रोचक तथ्य मेरे हिसाब से एक भरमाने वाली किताब थी। श्रेयुत महाराज एक बड़ा नाम होगा उस दौड़ का, इसलिए उस नाम का या तो इस्तमाल हुआ है या फिर उसकी पूरी पहचान ही चुराकर किताब में अपने हिसाब का प्रहरी समाज लॉन्च किया गया था। जहां मदद मांगने आये हर राजा से कहा गया था कि प्रहरी को उसके शहर का बड़ा व्यावसायिक बनाया जाय, ताकि इनके पास धन की कोई कमी ना रहे।"

"जहां तक मुझे लगता है उस रोचक तथ्य मे इस्तमाल होने वाला नाम ही केवल सच था और कुछ भी नहीं। सरदार खान 400 वर्ष पूर्व का था। वो जिस आचार्य के पास गया वो पहले से सिद्धि वाला था। यानी वो प्रहरी का कोई सिद्ध पुरुष सेवक था या फिर अनंत कीर्ति किताब के मालिक का वंसज। वंसज इसलिए कहा क्योंकि अनंत कीर्ति की पुस्तक 1000 सालों से भी पुरानी है और उसका पहला संरक्षक बैधायन भारद्वाज भी उसी दौड़ का होगा।"

"जब कोई रक्षा संस्था बनता है तो वहां क्षत्रिय को रक्षक चुना जाता है। ये प्रहरी मे केवल विशुद्ध ब्राहमण का कॉन्सेप्ट कहां से आ गया। ये सारे लोचे लापाचे उस रोचक तथ्य के ही फैलाए हुये है। वरना भारतीय इतिहास गवाह है कि ज्ञान किसके जिम्मे था और रक्षा करना किसके जिम्मे। इसलिए शुरू से मुझे पता था कि रोचक तथ्य एक भरमाने की किताब थी। बस संन्यासी शिवम से मिलने से पहले मैं समझ नहीं पा रहा था कि आखिर ये किताब किस उद्देश्य से लिखी गयी है। वैसे एक बात बताओ की इतने सारे सवाल रोचक तथ्य के किताब से ही क्यों? जबकि सतपुरा में ही मैने तुम्हे बताया था कि रोचक तथ्य की पुस्तक में सच झूठ का मिश्रण था।"


रूही:– सत्य... बिलकुल सत्य, लेकिन आपके हर सत्य के बीच एक झूठ शुरू से उजागर हो रहा है? बिलकुल उस रोचक तथ्य के पुस्तक की तरह। कहीं तुम्हे झूठ बोलने का ज्ञान रोचक तथ्य के किताब से तो नहीं मिला।


आर्यमणि:– कौन सा झूठ?


रूही:– "बार–बार इस बात पर जोर देना की तुम केवल 2 छोटे सवाल लेकर नागपुर पहुंचे। मुझे एक बात तुम समझा दो बॉस, जिस किताब रोचक तथ्य पर यकीन ही नहीं था, फिर उसके अंदर की कही हर बात इतने डिटेल में कैसे पता? क्या मात्र 2 जिज्ञासा ही थी, फिर वो रीछ स्त्री का जहां अनुष्ठान हो रहा था वहां कैसे पहुंचे?"

"जब मात्र जिज्ञासा वश पहुंचे, फिर तुम हर बार प्रहरी से एक कदम आगे कैसे रहते थे? तुम तो प्योर अल्फा हो न फिर तुम्हे कैसे पता था कि प्रहरी तुम्हे वेयरवॉल्फ ही समझेंगे, कोई जादूगर अथवा सिद्ध पुरुष नही? तुम्हे पता था कि तुम क्या करने वाले हो और उसका नतीजा क्या होगा इसलिए सेक्स के वक्त भी तुम्हे पूर्ण नियंत्रण चाहिए था ताकि थिया के जैसे न मामला फंस जाये?

अनंत कीर्ति के किताब के बारे में भी तुम्हे पहले से पता थी कि कहां रखी है, वरना सीधा सुकेश के घर में घुसकर चोरी करने की न सोचते। बल्कि पहले पता लगाते की अनंत कीर्ति की किताब रखी कहां है? तुम्हे नागपुर में किसी के बारे में कुछ भी पता करने की जरूरत नहीं थी, तुम सब पहले से पता लगाकर आये थे। बॉस मात्र २ छोटे से जिज्ञासा के लिये इतना होमवर्क कैसे कर गये?"

"स्वामी का ऊस रात तुम्हारे पास पहुंचाना और झोली में सुकेश के घर का सारा माल डाल देना महज इत्तफाक नहीं हो सकता। आर्म्स एंड एम्यूनेशन का प्रोजेक्ट हवा में नही आया, उसकी पूरी प्लानिंग यूरोप से करके आये थे। किसी के दिमाग की पूरी उपज और उसका प्रोजेक्ट चुराया तुमने।"

"जादूगर का दंश जो सुकेश के घर से गायब हुआ था, वो मुझे कहीं दिख नही रहा, बड़ी सफाई से तुमने उसे कहीं गायब कर दिया। और न ही अपने घर से गायब होने और लौटकर वापस के आने के बीच का लगभग 18 महीना मिल रहा है? क्योंकि जर्मनी पहुंचने से लेकर बॉब के पास से विदा लेने में तुम्हारे 18 महीने लग गये होंगे, जबकि तुम घर से 36 महीने के लिये गायब हुये थे।"

"7–8 साल की उम्र में जो बच्चे ढंग से सुसु – पोट्टी टॉयलेट में नही करने जा सकते, उस उम्र में तुम्हे सच्चा वाला लव हो गया था। अरे लगाव कह लेते तो भी समझ में आता, सीधा सच्चा वाला लव वो भी जंगल में पेड़ के नीचे बैठ कर गोद में सर रखा करते थे। तुम्हे नही लगता की तुम्हारी ये कहानी बहुत ही बचकाना थी, जिसे हजम करना मुश्किल हो सकता है?"

"तुम्हारा पासपोर्ट यूएसए ट्रैवल कर रहा था और तुम वुल्फ हाउस में थे। उस दौड़ में ताजा तरीन मैत्री का केस हुआ था, तब भी तुम किसी को वुल्फ हाउस में नही मिले? एक पिता जो बेटे के लिये तड़प रहा था। भूमि देसाई जो इतनी बड़ी शिकारी थी, और जिसके इतने कनेक्शन, वो सब तुम्हे ढूंढ नही पायी? जबकि मैं होती तो वुल्फ हाउस के पूरे इलाके को ही पहले छान मरती। ये इतनी सी बात मुझे समझ में आ गयी लेकिन तुम्हे ढूंढने वालों को समझ में नहीं आयी? क्या यह जवाब बचकाना नही था कि तुम्हारे घर के लोग तुम्हे ढूंढना नही चाहते थे? किसके घर का 16–17 साल का लड़का किसी लड़की के वियोग में भाग जाये और उसके घर के लोग ढूंढना नही चाहते हो?

"वापस लौटकर सीधा गंगटोक गये और पारीयान की भ्रमित अंगूठी और पुनर्स्थापित पत्थर उठा लाये। तुम्हारा इसपर जवाब था कि जिस दौड़ मे गायब हुय तब तुम्हे पता चला की बहुत से लोग इन समान के पीछे है, लेकिन आज जब तुम कहानी सुना रहे थे तब तो एक आदमी भी इन समान के पीछे नही दिखा।"

"हम दोनो को पता था कि वो डॉक्टर और उसकी पत्नी हमसे झूठ बोल रही है, फिर भी हम दोनो यहां आये। मुझे पक्के से यकीन है कि तुम पहले से ही यहां आने का मन बना चुके थे। तुम्हे पता था कि तुम यहां क्या तलाश करने आ रहे हो बॉस। नाना मैं ओशुन कि बात नही कर रही। ओशुन की जगह यहां कोई भी लड़की लेटी हो सकती थी। लेकिन वो लड़की जिस हालत में लेटी है वो हालात आपके लिये नया नही है। ये किसी प्रकार का अनुष्ठान ही है ना, जिसका ताल्लुक कहीं न कहीं नागपुर से ही है?

"क्या अदाकारी थी। बॉब को फेहरीन के कातिलों के बारे में नही बताना चाहते थे, लेकिन बॉब जो फेहरीन का भक्त था, उसे ये बात जानकर बहुत ज्यादा आश्चर्य नही हुआ। ऐसा लगा जैसे बस खाना पूर्ति हो रही है। बॉस एक बात सच कहूं, मुझे अब आप पर यकीन ही नहीं। तुम्हारा नागपुर आना और बाद में नागपुर से भागना मुझे सब सुनियोजित योजना लगती है लेकिन तुम थोड़े ना कुछ बताओगे? बस गोल–गोल घुमाते रहो। बॉब अब तुम अपने काम में लग सकते हो।"
शानदार जबरदस्त भाई लाजवाब update bhai jann superree duperrere update is
 
  • Like
Reactions: Xabhi and Tiger 786

[ VILLEN ]

Member
167
423
63
भाग:–90




"आध्यत को जैसे ही यह ज्ञात हुआ की सात्विक आश्रम के गुरु ने रीछ स्त्री को ढूंढ निकाला, उसके होश उड़ गये थे। वह आध्यत ही था जिसने फिर एलियन प्रहरी तक यह संदेश पहुंचाया था कि गुरु निशी वाकई एक सिद्धि प्राप्त सात्विक आश्रम के गुरु है, जो अनंत कीर्ति की पुस्तक के पीछे है और वर्धराज कुलकर्णी भी इसी गुरु निशी का अनुयाई है। बात खुल चुकी थी और अब किसी को भी जिंदा रखने का कोई मतलब नहीं था। हां लेकिन गुरु निशी और मेरे दादा जी दोनो इस बात से बेखबर थे कि आश्रम के दुश्मनों तक उनकी खबर पहुंच चुकी थी।"

"एलियन प्रहरी मेरे दादा जी के नजरों में एक अलग प्रकार के सुपरनैचुरल थे, जो अपनी असलियत छिपा कर रहते थे। उन्हे जरा भी अंदाजा नहीं था कि ये वही लोग थे जो सदियों से सिद्ध पुरुष का शिकार करते आये है। नित्या को भी सतपुरा के जंगल में रहने की सजा इसी वजह से मिली थी। उसके कारण एलियन का भेद लगभग खुलने ही वाला था।"

"एक ही वक्त में थोड़ा आगे पीछे चारो ओर से इतनी कहानियां चल रही थी। जब मैंने सुहोत्र लोपचे का पाऊं तोड़ा तब वह हील नही हुआ। एक साढ़े 8 साल के लड़के ने 12–13 साल के टीनएजर वुल्फ को मारकर घायल कर दिया, फिर ये एलियन प्रहरी के नजर में आना ही था। उन्हे शक हो गया था कि 7 सालों में मेरे दादा ने मुझे कोई सुद्ध ज्ञान दिया गया है। शुद्ध ज्ञान एक प्रकार का विशेष ज्ञान होता है, जिसे गर्भ में पल रहे शिशु को दिया जाता है। मैं एलियन के शक के घेरे में आ गया और राकेश नाईक इन सब विषय की जानकारी देने में विफल रहा था, इसलिए जाल बुना गया। प्रहरियों का जाल।"

"उसी रात लोपचे कॉटेज को आग लगा दिया गया और लोपचे से सुरक्षा के नाम पर तेजस हमारे साथ करीब 2 महीने रुक था। जिस दिन तेजस गंगटोक छोड़कर गया, ऊसके तीसरे दिन मेरे दादा जी की अकस्मात मृत्यु हो गयी। चूंकि मुझे शुद्ध ज्ञान दिया गया था इसलिए जब गुरु निशी मरे तब जाते–जाते मेरे लिये कुछ छोड़ गये थे, जो मुझे उस वक्त मिला जब मैं खुद के दिमाग में झांक रहा था। अतीत की गड़ी यादों ने मुझे झकझोर दिया। शायद दादा जी की तरह मेरे लिये भी एलियन प्रहरी कोई अलग प्रकार सुपरनेचुरल ही रहता। किंतु गुरु निशी अपने मृत्यु के पूर्व के महीने दिन की स्मृति मुझे भेज चुके थे, और उन स्मृति में मुझे एक चेहरा दिख गया, जो काफी चौकाने वाला था। वहां गुरु निशी के आश्रम में पलक थी।"

"न्यूरो सर्जन के दिमाग ने जैसे मेरे दिमाग के परदे खोल दिये थे। बॉब से विदा लेने के बाद मैं सीधा भारत ही आया था। लेकिन जिन डेढ़ साल का हिसाब तुम्हे नही मिला, उस अवधि में मैं अपने स्किल को निखारता रहा और अपने अंदर टॉक्सिक को भरता रहा। मैने बचे डेढ़ साल में तकरीबन रोजाना 150 से 200 पेड़ों को हील करता था। मेरे लिये पेड़ कम न पड़ जाये इसलिए मैं पूर्वी भारत के घने जंगलों में अपना अभ्यास करता रहा। मेरे पास कुछ घातक स्किल थे और मैं अपने उन सभी स्किल को पूरी ऊंचाई देने में लगा हुआ था। एक ड्रग देकर बॉब मेरा शेप शिफ्ट करवा चुका था, इसलिए खुद पर न जाने मैने कितने ड्रग के टेस्ट किये थे और उनसे पार पाना सीखा था।"

बीते वक्त की सबसे बड़ी सच्चाई तो यह भी थी कि नागपुर पहुंचने से पहले मेरे पास कोई भी डेटा नही था। मुझे नही पता था कि मेरे दादा जी की अकस्मात मृत्यु एक कत्ल थी। मुझे नही पता था कि गुरु निशी के कत्ल में प्रहरी का हाथ था। मुझे तांत्रिक आध्यत और उसके साजिसों के बारे में भी नही पता था। मुझे पता था तो बस मेरा पूरा परिवार किन कारणों से नागपुर छोड़ा। फेहरीन के पैक को खत्म करके ले जाने वाले कभी अच्छे समुदाय नही हो सकते। एक अज्ञात प्रकार का सुपरनैचुरल के नागपुर में होने की संभावना थी, इसलिए मैंने अपने स्किल को नई ऊंचाई दी थी। और जो मैं सही में पता लगाने आया था वह था गुरु निशी की स्मृति में पलक का दिखना, विकृत रीछ स्त्री का स्थान और दादा जी के साथ गुरु निशी का अनंत कीर्ति पुस्तक पर चर्चा करते हुये यह बताना की पुस्तक सुकेश के घर पर है।"

"मेरे लिये सबसे पहला टारगेट पलक ही थी। मैं उस से बस जानना चाह रहा था की आखिर वो गुरु निशी के आश्रम में कर क्या रही थी? मुझे कॉलेज के रैगिंग के दौरान यह पता करने का मौका भी मिला, जब पलक अकेले में मुझसे रैगिंग को लेकर बात करने पहुंची। मैने बॉब की ही ट्रिक को अपनाया और ड्रग को हवा में उड़ा दिया। लेकिन मेरे लिये यह घोर आश्चर्य का विषय हो गया, जब पलक पर उस ड्रग का असर ही नही हुआ। और भेद खुल न जाये इसलिए मैं बेहोश हो गया।"

"नागपुर मेरे लिये किसी उलझे पहली जैसा था, जहां मेरे पहला ट्रिक इतनी बुरी तरह से विफल रहा की मुझे सोचने पर मजबूर कर गया... "यहां चल क्या रहा है।" खैर चलते रैगिंग को मैने छेड़–छाड़ नही किया और उसे चलने दिया, क्योंकि मुझे दूसरा मौका चाहिए था। मैं पलक और अपने दोस्तों के आस पास रहना छोड़कर सहानुभूति बटोरने लगा। मेरे लिये आश्चर्य का सबब यह भी था कि पलक खुद मुझसे नजदीकियां बढ़ा रही थी। खैर मेरे लिये इस सवाल का जवाब जरूरी नहीं था कि पलक नजदीकियां क्यों बढ़ा रही, क्योंकि आज न कल तो मैं पता लगा ही लेता। लेकिन जरूरी था यह पता लगाना की वह आश्रम में क्या कर रही थी? और मेरे पास पता लगाने का अपना ही तरीका था।"

"सुरक्षित तरीके से पलक के गले में मुझे क्ला घुसाने का मौका भी मिला। और जब मैने उसके गले में क्ला घुसाया फिर पता चला की मेरे दादा जी जिस सुपरनैचुरल नित्या को पकड़े थे, प्रहरी समुदाय में उन जैसों की भरमार थी। पलक के गर्दन में क्ला घुसाते ही ऐसा लगा जैसे मैं किसी करेंट सप्लाई के अंदर अपने क्ला को घुसा दिया, जो मेरे नाखून तक में करंट प्रवाह कर रहे थे। दरअसल वो करेंट प्रवाह हाई न्यूरो ट्रामिशन का नतीजा था, जो किसी विंडो फायर वॉल की तरह काम करते हुये पलक के दिमाग का एक भी डेटा नही लेने दे रहा था। जो तकनीकी और मेडिकल की भाषा नही जानते उनके लिये बस इतना ही की मैं पलक के दिमाग में नही झांक सकता था। मुझे पता चल चुका था कि पलक एक सुपरनैचुरल है, लेकिन उसके जैसे और कितने थे, ये पता लगाने में मुझे कोई देर न लगी।"

"ये इन एलियन का ब्रेन मोटर फंक्शन ही था जो इनके शरीर के गंध को मार रहा था। इनकी भावनाओ को पढ़ने से रोक रहा था। और एक बार जब इस बात खुलासा हुआ फिर तो मुझे एलियन को छांटने में कोई परेशानी ही नही हुई। रैगिंग के मामले से मुझे कोई फायदा नही मिला और मुझे पूरी बात का पता लगाने के लिये एलियन प्रहरी के बीच रहना अत्यंत आवश्यक हो चुका था, इसलिए बिना देर किये मैने पलक को प्रपोज कर दिया। मैं जानता था कि जिस हिसाब से पलक मुझसे नजदीकियां बढ़ा रही है वह भी मेरे प्रस्ताव को नही ठुकराती। मेरा तीर निशाने पर लग चुका था।"

"किंतु केवल पलक की नजदीकियों के वजह से मुझे सभी सवालों का जवाब नही मिलता इसलिए मैं बस मौके की तलाश में था। खैर, केवल नागपुर में एक ही काम तो नही था इसलिए मैंने सभी कामों पर अपना ध्यान लगाया। न सिर्फ अनंत कीर्ति की पुस्तक तक पहुंचना बल्कि रीछ स्त्री का भी पता लगाना। एक बात जो कोई नही जानता वो मैं बता दूं, मेरे क्ला ही काफी है जमीन में दफन किसी भी चीज का पता लगाने के लिये।"

"फिर रीछ स्त्री का जब मामला उठा तब इस एक मामले के कारण मैं प्रहरी में इतना अंदर घुसा की इन एलियन की करतूत छिपी नही रही। मैं न सिर्फ प्रहरी मुख्यालय पहुंच चुका था बल्कि सुकेश के सीक्रेट चेंबर में भी घुस चुका था। फिर मुझे पता लगाने के लिये न तो किसी कमरे का दरवाजा तोड़ना था और न ही प्रहरी मुख्यालय में चोरी से घुसने की जरूरत पड़ी। मुझे जगह का ज्ञान हो गया और वहां पर क्या सब रखा है वह मुझे जड़ों की रेशों से पता चल गया। हां सही सुना... मैं जो रेशे फैलता हूं वह जिस चीज को भी छूते है उन्हे मैं देख सकता हूं।"

"एक के बाद एक सभी राज पर से पर्दा उठता चला गया और रही सही कसर स्वामी के लूट ने कर दिया। तुमने सही थी रूही। स्वामी का मेरे पास आना कोई संयोग नहीं था बल्कि उसके दिमाग से मैने ही छेड़–छाड़ की थी। एक बार नही बल्कि कई बार। पहले मैंने ही स्वामी के दिमाग के अंदर यह ख्याल डाले की यदि अनंत कीर्ति किताब गायब तो सुकेश खत्म। वहीं मैने दूसरा ख्याल भी डाल दिया की अनंत कीर्ति की किताब के सबसे ज्यादा करीबी आर्यमणि ही है। मुझे लगा अनंत कीर्ति की किताब तो स्वामी को मिलेगी नही इसलिए स्वामी, सुकेश के सीक्रेट चेंबर की दूसरी रखी किताब जरूर चोरी करेगा। दूसरी किताबे चोरी करने के बाद स्वामी अनंत कीर्ति की किताब का पता लगाने मेरे पास जरूर पहुंचेगा और वहीं से मैं सुकेश के सीक्रेट चेंबर के सारे किताब ले उडूंगा।"


"सुकेश के सीक्रेट चेंबर में किताब का होना ही मुझे खटक रहा था क्योंकि बाहर एक बड़ा सा लाइब्रेरी होने के बावजूद उन किताबों को छिपाकर क्यों रखा था? मन में जिज्ञासा तो जाग ही चुकी थी और मुझे सभी किताब को इत्मीनान से पढ़ना था। लेकिन स्वामी ने तो जैसे कुबेर का खजाना ही लूट लिया था। प्रहरी के बारे में बहुत कुछ मैं पता कर चुका था, रही सही कसर तब मिट गई जब मैं इनकी क्लासिफिकेशन की किताब देख रहा था। मुझे तभी समझ में आ गया की ये लोग पृथ्वी के कोई सुपरनेचुरल नही बल्कि किसी दूसरे ग्रह के इंसान है।"

"लूट के 2 समान जादूगर का दंश और एक पतला अनोखा चेन को मैने कॉटेज के पीछे वाले जंगल में जमीन के अंदर दफन करके रखा है। उसपर हम साथ मिलकर अभ्यास करेंगे। अभी मैं बस उन दोनो वस्तुओं को पूर्ण रूप से समझने की कोशिश कर रहा हूं। पलक के दिमाग में जिस दिन क्ला घुसाया था उसी दिन मैने सोच लिया की मुझे क्या करना है? अभी ये एलियन सुपरनैचुरल मेरे लिये टेढ़ी खीर थे। मुझे जिस दुश्मन के बारे में पता ही नही उस से मैं लडूंगा कैसे? इसलिए मैं सोच चुका था कुछ बड़ा डंडा करके निकलूंगा ताकि ये लोग मेरे पीछे आने पर मजबूर हो जाये। वर्धराज के पोते को मारने का उतावलापन देखकर इनकी बुद्धि तो समझ में आ चुकी थी, अब बस इनकी शक्तियों का पता लगाना था।"

"मैं अपने कैलिफोर्निया पहुंचने तक का प्लान पहले से बना चुका था। मैने हर पॉइंट पर इतने जाल फैलाये थे की मुझे पता है कि इन एलियन की टीम मेरी जानकारी जुटाने कहां–कहां पहुंच रहे होंगे। मैने उनके चोरी के समान को भी एक जाल के तहत गायब किया था। बस थोड़ा इंतजार करो फिर हम वहां चलेंगे जहां ये हमारा पता लगाने पहुंचे होंगे। वहीं इन एलियन की छोटी–छोटी टुकड़ी से भिरकर उनके शक्तियों का पता लगाएंगे।"

"तो ये थी नागपुर की पूरी कहानी। अब मैं किसको क्या बताता की मैं नागपुर क्यों पहुंचा? ये मेरे लिये काफी उलझाने वाला सवाल था। क्योंकि गुरु निशी ने मुझे 3 हिंट दिये थे। पूरी बात बताने का मतलब होता की पहले अपने क्ला की शक्ति बताओ। उस शक्ति से मैने खुद के दिमाग में झांका और अतीत के पन्नो से गुरु निशी और वर्धराज कुलकर्णी को ढूंढ निकाला ये बताता। फिर मुझे गुरु निशी की तीन यादें बतानी होती जो मरने से पहले उन्होंने मेरे दिमाग तक पहुंचाया था। उन तीन यादों के तहत मैंने इंसानियत और आश्रम के बहुत पुराने दोषी एक एलियन प्रहरी को ढूंढ निकाला। नागपुर आने की सच्चाई मैं किसी को चाहकर भी एक्सप्लेन नही कर सकता था इसलिए बस टालने के इरादे से झूठ बोलता था, और कोई बड़ी वजह नही थी। उम्मीद है तुम्हे सब समझ में आ गया होगा।"


रूही:– उफ्फ क्या मकड़जाल में तुम खुद ही उलझे थे बॉस। खैर कहानी तो पूरी समझ में आ गयी बस घटना क्रमबद्ध नही था इसलिए थोड़ी उलझन है। तो बॉस तुम ये कहना चाह रहे हो की तुम वाकई कुछ सवालों के साथ आये थे, लेकिन वह सभी सवाल प्रहरी से जुड़े थे। नागपुर आने से पहले तुम्हारे नजरों में प्रहरी एक करप्ट संस्था थी, बस इतना ज्ञान था?


आर्यमणि:– नही एक खास प्रकार का सुपरनेचुरल भी मिलेगा नागपुर में, यह बात भी दिमाग में थी। सच्चाई पता लगने के बाद कड़ियां जुड़ती चली गयी। फिर अतीत से लेकर वर्तमान की हर कड़ी जैसे मेरे नजरों के सामने थी।


रूही:– मतलब वो मैत्री के दादा मिकू लोपचे और उसकी पत्नी का कत्ल जिसमे दोषी प्रहरी थे, वो भी तुम्हे नागपुर आने के बाद पता चला...


आर्यमणि:– हां बिलकुल सही...


रूही:– फिर पलक जो गुरु निशी के आश्रम में थी, क्या वो अपस्यु के बारे में जानती थी, या अपस्यु उसके बारे में?


आर्यमणि:– नही पलक छोटी थी, यानी जब अपस्यु आश्रम पहुंचा होगा तब पलक गुरु निशी के बारे में पता करके निकल चुकी होगी। प्रहरी पर शक न हो इसलिए पलक के निकलने के कई साल बाद गुरु निशी को मारा गया था।


रूही:– सात्विक आश्रम के लोग तुम्हारे पीछे आये, ये महज इत्तीफाक था या उसमे भी तुम्हारी करस्तनी है।


आर्यमणि:– सात्विक आश्रम का मेरे साथ होना बस किस्मत की बात थी जो रीछ स्त्री के पीछे जाने से मेरी उनसे मुलाकात हो गयी। वह आश्रम तो खुद टूटा था और जोड़ने की यात्रा में उनकी पूरी टीम लगी थी। बस यात्रा के दौरान ही हम बिछड़े मिले। इसमें मेरा कोई योगदान नहीं।


रूही:– सारी बातों में आर्म्स फैक्ट्री की बात कहां गोल कर गये? वो भी बता दो.…


आर्यमणि:– वो तो बॉब ही बतायेगा...


बॉब:– मुझे मत घसीटो... तुम ही कह दो तो ज्यादा अच्छा रहेगा। वैसे भी कुछ तो किस्मत तुम लेकर आये हो आर्य.…


आर्यमणि:– अच्छा... लेकिन ये न कबूल करो की बोरियाल, रसिया का जंगल में कई गैर कानूनी काम होते है। और उन्ही गैर कानूनी काम में से एक था इलीगल वेपन फैक्ट्री, जिसे एक होनहार क्रिमिनल चला रहा था। हम कुछ नया ट्राई करते हुये अपनी जगह से काफी दूर निकल आये थे और वेपन फैक्ट्री में काम कर रहे क्रिमिनल ने हमे घर दबोचा था। बस फिर क्या होना था, पूरी फैक्ट्री किसी भूतिया लताओं में फंस गयी और सारे क्रिमिनल्स आर्मी के हत्थे चढ़ गये। हां लेकिन इस बीच मैंने उनका सारा प्रोजेक्ट चुरा लिया।


रूही:– चलो, सच्चाई जानकर अब कुछ अच्छा लग रहा है। वाकई नागपुर क्यों पहुंचे उसका जवाब देना तुम्हारे लिये काफी मुश्किल होता बॉस। खैर, बॉस हमारा एक्शन टाइम कब आयेगा? कब हम उन एलियन प्रहरी के टीम के पीछे जायेंगे?


आर्यमणि:– बहुत जल्द... उसके लिये ज्यादा इंतजार नही करना पड़ेगा.…


रूही:– और बॉस आपके और बॉब के बीच क्या चल रहा है? इतने दिनो बाद मिल रहे थे और कोई गर्मजोशी नही।


बॉब:– "आर्यमणि मुझसे मिल चुका है। हम दोनो मिलने की गर्म जोशी भी दिखा चुके। तुम्हारा कहना सही था कि ये जगह आर्यमणि लिये नया नही था। जिस विकृत रीछ स्त्री के आत्मा को विपरीत दुनिया से मूल दुनिया में लाया गया था उसके द्वार यहीं से खोले गये थे। करीब 3 महीने पहले ही आर्यमणि से जब मेरी बात हुई थी तभी उसने मुझे इस जगह का कॉर्डिनेट्स भेजा था। इसके क्ला क्या–क्या कारनामे कर सकते है, शायद ही कोई जानता हो।"

"वहां की मिट्टी में क्ला डालकर आर्यमणि ने इस जगह का कनेक्शन ढूंढा था। इसी जगह से विपरीत दुनिया का द्वार खोलकर महाजनिका के आत्मा को खींचा गया था। 3 महीने के परिश्रम के बाद मैं अंदर तक घुसा और यहां ओशुन को देखकर काफी हैरान रह गया। मैने आर्य को ओशुन के बारे में नही बताया। यहां आने की प्लानिंग भी हो चुकी थी। उस रात तुम दोनो यूं ही नहीं रात में घूमने निकले थे बल्कि उस डॉक्टर के प्राण बचाने की योजना के कारण ही घूमने निकले थे। सामने जो ओशुन पड़ी हुई है, उसके जिम्मेदार भी कहीं ना कहीं वही प्रहरी है... अब मै ओशुन को लेकर तुमसे कुछ बोल सकता हूं आर्य...


आर्यमणि:- हां बॉब...


बॉब:- ओशुन भी तुम्हे चाहने लगी थी बस वो तुम्हे कैसे फेस करती जब वो अपनी सच्चाई तुम्हे बताती। इसलिए वो तुमसे नहीं मिली। प्लीज उसे माफ कर दो।


आर्य:- मै उसकी परेशानी समझ सकता हूं। खैर छोड़ो भी इस बात को, और ओशुन को जगाया कैसे जाए उसपर बात करते है।


बॉब:- ये कोई ब्लैक मैजिक है आर्य। ये बात तो अब तक तुम्हे भी पता चल चुका होगा। जबतक तुम उस जगह नहीं पहुंच जाते जहां ओशुन की आत्मा दो दुनिया के बीच कैद है, इसे जगाया नहीं जा सकता।


आर्यमणि:- इसके लिए मुझे क्या करना होगा?


बॉब:- ओशुन की तरह तुम्हे भी मरना होगा और उसकी आत्मा जहां फसी है वहां से उसे खींचकर लाना होगा। बाकी अंदर वहां क्या चल रहा है और किन हालातों से सामना होता है, वो वहां पहुंचने पर ही पता चलेगा।


रूही:- ये कैसी बहकी–बहकी बातें कर रहे हो बॉब।


आर्यमणि:- मुझे कुछ नहीं होगा रूही, तुम चिंता मत करो। मुझे यहां कुछ दिन वक़्त लग जाएगा इसलिए तुम अलबेली और ट्विंस को लेकर निकल जाओ। बाकी यहां बॉब और लॉस्की (लॉस्की पहला मिला वो वेयरवुल्फ जो मैक्सिको में इस फार्म में शिकारियों के साथ था) रुक रहे है।


रूही:- और यहां के फंसे वेयरवुल्फ?


आर्यमणि:- रूही तुम लॉस्की को बोलो सभी फंसे वेयरवुल्फ को सुरक्षित वापस भेज दे। यहां मै और बॉब पहले कुछ दिनों तक किताब की खाक छान कर देखेंगे और सोचेंगे की ओशुन को कैसे जगाया जाये।


बॉब:- मैंने पहले ही सारी पुस्तक अलग कर ली है। तुम इन सब को देखना शुरू करो, जबतक मै तुम्हारे पैक को वापस भेजता हूं।


आर्यमणि:- रुको बॉब अभी नहीं। क्या तुम हम दोनों (रूही और आर्यमणि) को कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दोगे, हमे कुछ बातें करनी है।


बॉब मुस्कुराकर वहां से चला गया। उसके जाते ही आर्यमणि रूही का हाथ थामते… "मुझे माफ़ कर दो, तुम्हारी आई के बारे में बहुत कुछ पता होते हुए भी मैंने तुमसे छिपाया। नागपुर की पूरी सच्चाई नही बताई।"


रूही:- जबसे तुमसे मिली हूं ना आर्य, बीते दिनों का दर्द और गुस्सा दिल से कहीं गायब हो गया है। बस तुम यहां अपना ध्यान रखना और जल्दी लौटने कि कोशिश करना। वैसे भी जल्द से जल्द एक्शन करने के लिये बेकरार हूं।


आर्यमणि:- अभी ही कर लो, इतनी भी बेकरारी क्यों?


रूही:- तुम तो घर के माल हो बॉस, तुम्हारे साथ तो कभी भी एक्शन कर सकती हूं, फिलहाल तो तड़प उन एलियन के लिये है। चलो अब मै चलती हूं। तुम यहां पुरा फोकस करो जब तक मै उन मुसीबतों को संभालती हूं।


रूही आर्यमणि से खुशी-खुशी विदा ली। बॉब और लॉस्की ने उनका वापस पहुंचने का इंतजाम कर दिया था और कुछ ही घंटो में ये लोग बर्कले, कार्लीफिर्निया में थे। और इधर आर्यमणि ओशुन को छुड़ाने के काम में लग गया।
kya kahe bhai update bawal story bawal writer bawal xforum pr gadar macha diya aapne.........
 
  • Like
Reactions: Xabhi and Tiger 786

andyking302

Well-Known Member
6,024
14,252
174
भाग:–89





रूही अपनी बात समाप्त कर वहां से उठ गयी। आर्यमणि, उसका हाथ थामकर….. "ठहरो रूही"...


रूही:– क्या हुआ, फिर कोई नई कहानी दिमाग में है क्या?


आर्यमणि:– इतना धैर्य क्यों खो रही हो। तुम्हारे इतने लंबे चौड़े सवालों की सूची का आधार केवल एक ही है, मैं नागपुर किस उद्देश्य से पहुंचा था? इसी सवाल के जवाब में मैं फिसला और तुम्हारे इतने सारे सवाल खड़े हो गये। ठीक है तो ध्यान से सुनो मैं नागपुर क्यों पहुंचा था.…

मुझे पता लगाना था कि सात्विक आश्रम के तत्काल गुरु निशी ने मुझे तीन बिंदु क्यों दिखाए.. अनंत कीर्ति की किताब, रीछ स्त्री का नागपुर में होना और पलक सात्विक आश्रम में क्या कर रही थी? इसके अलावा मेरी अपनी समीक्षा थी कि एक महान अल्फा हिलर फेहरीन को नागपुर लाने वाला प्रहरी कैसे एक अच्छा संस्था हो सकती है। गंदे और घटिया लोगों की संस्था है ये प्रहरी जिसका मुखौटा मुझे हटाना था। बस यही सब सवाल लेकर मैं नागपुर पहुंचा था।

रूही:– वाह बॉस वाह !!! अब अचानक से कहानी में सात्विक आश्रम भी आ गया। तो फिर उस दिन क्या सब नाटक नाटक खेल रहे थे जब अपस्यु से आपकी मुलाकात हुई थी?

आर्यमणि:– इसलिए तो नागपुर आने की सच्ची कहानी किसी को नही बता सकता था। यह अपने आप में एक बेहद उलझी कहानी थी जिसके तार अतीत से जुड़े थे। मेरे दादा वर्धराज कुलकर्णी से जुड़े। मैं बहुत से सवाल लेकर नागपुर पहुंचा था। अब किस सवाल को मुख्य बता दूं और किस सवाल को साधारण मुझे नही पता, हां लेकिन उन सबका केंद्र एक ही था प्रहरी। और जब केंद्र प्रहरी था फिर मेरे लिये सब बराबर थे, फिर चाहे प्रहरी में भूमि दीदी ही क्यों न हो।

रूही:– बॉस तुम फिर गोल–गोल घुमाने लगे। नागपुर क्यों आये क्या ये बताना इतना मुश्किल है या तुम बताना ही नही चाहते। बताओ नई–नई बात पता चल रही है। आश्रम का एक गुरु ने तुम्हे तीन बिंदु दिखाए थे...

आर्यमणि:– अब जब सच कह रहा हूं तो भी यकीन नही। तुम ही बताओ की कैसे तुम्हे एक्सप्लेन करूं...

रूही:– पहले अपने भागने को लेकर ही कहानी बता दो। क्या यूरोप में तुम्हारे परिवार ने तुम्हे नही ढूंढा या बात कुछ और थी?


आर्यमणि:– "कभी–कभी न जानना या सच को दूर रखना, शायद जान बचाने का एक मात्र तरीका बचता है। तुम जो सुनना चाहती हो वो मैं स्वीकार करता हूं। मैंने अपनो के दिमाग के साथ छेड़–छाड़ किया था। हां भूमि दीदी मुझे यूरोप में मिली थी, लेकिन उनके यादों से भी खेला, क्योंकि मैं अपने परिवार को ठीक वैसा ही दिखाना चाहता था जैसा तुम लोग के दिमाग में है। बेटा भाग गया और कोई चिंता ही नही। जबकि सच्चाई तो यह थी कि मैं लगातार अपने मां–पिताजी से बातें करता था लेकिन अपने पीछे आने से मना करता रहा।


बात शुरू ही हुई थी कि ओजल इवान और अलबेली भी वहां पहुंच चुके थे। कुछ पल की खामोशी के बाद आर्यमणि ने फिर बोलना शुरू किया...


"मैत्री और मेरे बीच का लगाव कहो या प्रेम, सब सच था। उसमे कोई दो राय नहीं थी। यदि हम दोनो के बीच कोई अटूट बंधन नहीं होता तो फिर वो मुझसे मिलने भारत आती ही नहीं। बस मैंने अपनी कहानी को फैंटेसी बनाने के लिये थोड़ा बढ़ा कर कह दिया था। जिस वक्त मैं गायब हुआ था, मैं कहां हूं या क्या कर रहा हूं, इस बात से प्रहरी को क्या फर्क पड़ता था। हां मेरे मां–पिताजी और भूमि दीदी को पता था कि मैं कहां हूं।"

"पहली बार जब मैं मैक्स के घर पहुंचा था, तभी मेरी बात सभी लोगों से हुई थी, केवल चित्रा और निशांत को छोड़कर। मां–पिताजी नही चाहते थे कि राकेश नाईक को मेरी कोई भी खबर मिले। इसके बाद जब मैं भारत पहुंचा तब मैने उनकी याद को अपने इच्छा अनुसार बदल दिया। बदलने के पीछे एक साधारण सा कारण यह था कि वो जीतना जानते है, उतना ही सच होगा। और मैं चाहता था कि प्रहरी यह न जाने की जब मैं गायब हुआ था, तब मेरे मां–पिताजी या भूमि दीदी किसी ने भी मुझसे संपर्क किया था।"

"हां लेकिन इस बार जब नागपुर छोड़ने की योजना बनी और जो सच्चाई मेरे घर के लोग या मेरे दोस्त जानते थे, उसे मैंने नही बदला। क्योंकि मुझे आश्रम और संन्यासी शिवम पर यकीन था। उनके लोग मेरे सभी प्रियजनों की रक्षा कर रहे, इसलिए यादों के साथ छेड़–छाड़ करने की जरूरत नहीं थी। ये एक पक्ष की सच्चाई जहां मैंने अपनो के यादों के साथ छेड़–छाड़ किया था। तुम लोगों के दिमाग में कोई सवाल।"..


अलबेली:– हां मेरा एक सवाल है। क्या आपने अपने दिमाग से कभी छेड़–छाड़ करने की कोशिश की है? यदि आप अपने दिमाग का फ्यूज खुद उड़ा लेंगे तो क्या वो अपने आप ठीक हो जायेगा?


ओजल:– बॉस पहले क्ला घुसाकर इस अलबेली का ही फ्यूज उड़ाओ।


इवान:– नाना बॉस अभी वो बच्ची है, कैजुअली पूछी थी।


इस से पहले की कोई और कुछ कहता रूही इतना तेज दहाड़ लगाई की वहां मौजूद तीनो टीन वुल्फ ही नहीं बल्कि उस जगह मौजूद सभी वुल्फ सहमे से अपनी जगह पर दुबक गये। अलबेली, ओजल और इवान तो इतने सहम गये की तीनो आर्यमणि में जाकर दुबक गये। आर्यमणि तीनो के सर पर हाथ फेरते... "कोई सवाल रूही"..


रूही:– अभी तो दिमाग में नही आ रहा लेकिन जब आयेगा तब पूछ लूंगी। चलो ये समझ में आ गया की तुम नही चाहते थे कि तुम्हारे मम्मी–पापा और भूमि दीदी किसी से झूठ कहे और कोई उनका झूठ पकड़ ले, इसलिए उनकी यादों से छेड़–छाड़ कर दिये। तो इसका मतलब ये मान लूं की तुम पूरे योजना के साथ, सभी प्रकार के रिस्क कैलकुलेट करने के बाद नागपुर पहुंचे और नागपुर कब तक छोड़ देना है, ये भी तुम पहले से योजना बनाकर आये थे।


आर्यमणि:– मैं नागपुर छोड़ने के इरादे से तो नहीं पहुंचा था लेकिन कुछ वक्त बिताने के बाद मैं समझ चुका था कि मुझे नागपुर छोड़ना होगा। हां मुझे कब नागपुर छोड़ना है यह मुझे पता था। इस बार मेरे घर के लोग मेरी तलाश में नही आये इसलिए मैंने ही उनके दिमाग ने यह डाला था कि मुझे कहीं बाहर भेज दे, नागपुर में रहा तो मारा जाऊंगा।


रूही:– हम्मम… अब लगे हाथ नागपुर आने का बचा हुआ सच भी बता दो...


आर्यमणि:– कहां से सुनना पसंद करोगी... नागपुर आने के पीछे की मनसा और उसकी पूरी प्लानिंग से, या फिर तुम्हारे सवालों के जवाब देते जाऊं, जिसने सब कवर हो जायेगा।


रूही:– नही मुझे शुरू से सुनना है। अब जो तुम कहोगे उसे मैं याद रखना चाहूंगी...


आर्यमणि…..

"आश्रम, एलियन और मेरी कहानी उस दिन शुरू हुई थी जिस दिन मैंने न्यूरो सर्जन का पूरा ज्ञान अपने अंदर समाहित किया था। मुझे ज्ञान हुआ की भूली यादें दिमाग के किस हिस्से में रहती है। ओशुन मेरे अरमान के साथ खेल चुकी थी और मैत्री जो केवल मेरे लिये मर गयी उसकी तस्वीर मेरे दिमाग से ओझल हो रही थी। मैत्री की बहुत पुरानी यादें थी और मैं देखना चाहता था कि हम पहली बार कैसे मिले थे?"

"मैं यादों की अतीत में खोता चला गया और वहां मेरी याद तब की थी, जब मैं अपनी मां के गर्भ में सातवे महीने का था। मेरी मां की आंखें मेरी आंखें थी। उनकी खुशी मेरी खुशी थी, उनका गम मेरा गम था और उनकी शिक्षा मेरी शिक्षा थी। मेरे दादा जी घंटों मेरी मां के पास बैठकर उन्हे मंत्र सुनाया करते थे। आज भी वो सारे मंत्र जैसे मेरे कान में गूंज रहे है। मेरे जन्म के करीब 45 दिन पूर्व वो लोग यात्रा पर निकले थे। मेरी मां, मेरे पापा, दादाजी, उनके मित्र गुरु निशी और गुरु निशी कुछ अनुयाई। वो सभी हिमालय के किसी विशेष कंदराओं में घुसे थे, जिसके अंदर एक पूरा गांव था। अलौकिक गांव था, जहां कोई रहता नही था।"

"गुरु निशी और मेरे दादा वर्धराज कुलकर्णी ने मिलकर वहां गुरु, ब्रह्मा, विष्णु और महेश की आराधना करते हुये, भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का कोई अनुष्ठान कर रहे थे। 45 दिन बाद मेरा जन्म था और मेरी मां उस अनुष्ठान की एक साधिका थी। आज से कई हजार वर्ष पूर्व दिव्य नक्षत्र में जन्म ली एक महान साधिका ने इस गांव का कायाकल्प किया था। उसके बाद यह गांव कई दिव्य आत्मा और ज्ञानियों के जन्म का साक्ष्य बना था। न जाने कितने सदियों बाद यहां किसी का जन्म होने वाला था, वो भी सभी नौ ग्रह के अति–शुभ विलोम योग में। मेरे दादा और गुरु निशी दोनो बेहद ही खुश थे, और चूंकि नक्षत्र के हिसाब से सभी नौ ग्रहों की स्थिति विलोम थी इसलिए इन्होंने भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को ही साधना का केंद्र बनाया था।"

"लागातार 45 दिन तक हवन होते रहे। एक पल के लिये भी मंत्र जाप बंद नही हुआ। भगवान नरसिंह की पूजा चलती रही। ठीक 45 दिन बाद मेरा जन्म हुआ। जन्म के बाद की यादें काफी ओझल थी। जन्म के बाद जब मैं अपनी आंख से दुनिया देखा, तब कुछ दिनों तक कुछ भी नही दिखा था। जैसे–जैसे दिन बीते तब मेरे दृष्टि साफ होती गयी। 7 वर्ष की आयु तक मुझे उसी गांव में रखा गया था। मेरी मां, दादाजी, कुछ ऋषि, संत और महात्मा वहां रहते थे। सबकी अपनी कुटिया थी और मुझे उन सब के बीच हर अनुष्ठान, सिद्धि और आयोजन में रखा जाता था।"

"7 वर्ष की आयु के बाद सब उस गांव से यह कहते बाहर निकल रहे थे कि पूर्ण योजन हो चुका है। बालक की शिक्षा–दीक्षा पूर्ण हो चुकी है, अब केवल इसे सही मार्गदर्शन की जरूरत होगी। दादा जी और मां सबसे हाथ जोड़कर विदा लिये और हम गंगटोक चले आये। मेरी सबसे पहली मुलाकात भूमि दीदी से हुई थी। वह मेरी मां से झगड़ा कर रही थी। उन्हे इस बात का मलाल था कि वो मां के डिलीवरी के वक्त गंगटोक अकेली पहुंची, लेकिन यहां तो कोई था ही नही। उन्हे मुझे देखना था लेकिन उसी समकालीन 2 और मेरे करीबी ने जन्म लिया था, भूमि दीदी उन्हे देखने चली गयी, निशांत और चित्रा।"

"तब राकेश नाईक की ताजा पोस्टिंग नॉर्थ सिक्किम में हुई थी। मां, भूमि दीदी को अकेले में ले गयी और मेरे जन्म को लेकर कुछ समझाया हो, उसके बाद से वो यही रट्टा मरती रही की जन्म के बाद मैने सबसे पहले उन्ही की उंगली पकड़ी थी। उस वक्त मेरे मासी के घर से केवल भूमि दीदी ही आना–जाना करती थी। वहीं मैत्री से मेरी पहली मुलाकात 4 दिन बाद मेरे स्कूल के पहले दिन हुई थी। मैं बीच से ज्वाइन किया था और एकमात्र मैत्री की जगह ऐसी थी, जो खाली थी। बाकी सभी बेंच पर 3–4 बच्चे बैठे थे। सुहोत्र ने उस क्लास के सभी बच्चों को डरा रखा था, इसलिए मैत्री के साथ कोई बैठता नही था। आह कितनी प्यारी थी वो। उस दिन जो मैं उसके साथ बैठा फिर कभी हमने एक दूसरे का साथ ही नहीं छोड़ा।"

"ये वाकया मैं भूल चुका था। उसके बाद मेरी यादों में बस मैत्री ही थी। कुछ यादें अपने परिवार की और एक परिवर्तन जो देखने मिला, वो था राकेश नाईक का अचानक हमारे पड़ोस में आ जाना। चूंकि मेरी मां और निलाजना आंटी काफी ज्यादा परिचित और एक दूसरे के दोस्त भी थे, इसलिए मेरा उनके घर और उनका मेरे घर आना जाना लगा रहता था। तब मैं, चित्रा और निशांत बस दोस्त थे और मैत्री मेरी पूरी दुनिया। आगे बढ़ने से पहले मैं उस घटना को प्रकाशित कर दूं जिस वजह से मेरे परिवार को गंगटोक आना पड़ा था।"


"गंगटोक मे लोपचे परिवार का अपना इतिहास रहा था जिसके विख्यात होने का कारण पारीयान लोपचे था। जिसे लोपचे का भटकता मुसाफिर भी कहते थे। इस परिवार का संन्यासियों और सिद्ध पुरुषों के करीबी होने के कारण मेरे दादाजी और लोपचे परिवार के बीच गहरी मित्रता थी। मैत्री के दादा जी मिकु लोपचे और उसकी अर्धांगनी जावरी लोपचे, मेरे दादा जी काफी करीबी लोग थे। उस दौड़ में वर्धराज कुलकर्णी और मीकु लोपचे पूर्वी हिमालय के क्षेत्र में उसी गांव को पुर्नस्थापित करने में जुटे हुये थे, जहां मेरा जन्म हुआ था। उसी सिलसिले में गंगटोक के २ शक्तिशाली महान अल्फा वुल्फ मेरे दादा वर्धराज से मिलने नागपुर पहुंचे थे। प्रहरी ने उन्हें भटका हुआ वुल्फ घोषित कर दिया जो अपने क्षेत्र से हजारों किलोमीटर दूर विकृत मानसिकता से पहुंचा था। लोपचे दंपत्ति लगभग मर ही गये होते लेकिन बीच में दादाजी आ गया। बीच में भी किसके आये तो नित्या के।"

"मेरे दादा जी और नित्या के बीच द्वंद छिड़ा था। उस द्वंद में क्या हुआ और कैसे मेरे दादा जी ने नित्या को परस्त किया, उसकी मुझे जानकारी नही। लेकिन नित्या एक अलग प्रकार की सुपरनैचुरल थी, जिसे मेरे दादा जी पकड़कर प्रहरी मुख्यालय जांच के लिये लाये थे। उसके एक, दो दिन बाद नित्या भाग गयी और उसे वेयरवॉल्फ घोषित कर दिया गया। नित्या को भगाने का इल्ज़ाम भी मेरे दादा जी पर ही आया, जिसे मेरे दादा जी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इसके उपरांत पूरे कुलकर्णी परिवार को महाराष्ट्र से बेज्जती करके बाहर निकाल दिया गया। किंतु वर्धराज कुलकर्णी को इसका कोई गम नही था। क्योंकि पूर्वी हिमालय में गांव बसाने का काम अब वो बिना किसी पाबंदी के कर सकते थे, इसलिए मेरे दादा जी आकर पूर्वी हिमालय के क्षेत्र गंगटोक मे अपना निवास बनाया जहां के जंगलों में लोपचे का पैक बसता था।"

"मेरा और मैत्री का साथ अभूतपूर्व था, किंतु लोपचे और हमारे परिवार के बीच उतनी ही गहरी दुश्मनी सी हो गयी थी। मेरे जन्म के दौरान मेरे दादा जी अलौकिक गांव में थे। इसका बात फायदा उठाकर प्रहरी ने मीकू और जावेरी लोपचे का शिकर कर लिया और कारण वर्धराज कुलकर्णी बताया गया। दुश्मनी का बीज बोया जा चुका था, और इसी दुश्मनी की वजह से मैं हमेशा लोपचे की आंखों में चढ़ा रहता था। लगभग डेढ़ साल बाद की बात होगी। मेरा साढ़े 8 वर्ष का हो चुका था, उसी दौरान मेरे और सुहोत्र लोपचे का लफरा हो गया। उस छोटी उम्र में मैने एक बीटा को मारकर उसकी टांगे तोड़ डाली। इस कारनामे के बाद मैं उन एलियन प्रहरी की नजरों में आ चुका था। तेजस और भूमि दीदी दोनो वहीं थे जब मैने सुहोत्र की टांग तोड़ी थी।"


"तेजस ने जब यह नजारा अपनी आंखों से देखा तब उसे शक सा हो गया की वर्धरज कुलकर्णी जरूर हिमालय में बैठकर कुछ कर रहा है। सिद्ध पुरुष तो मेरे दादा जी थे ही। यह बात नित्या के पकड़ में आते ही सिद्ध हो चुकी थी। ऊपर से राकेश का सर्विलेंस जो पिछले 7 साल से मेरे दादा जी को कहीं गायब बता रहा था। राकेश शायद चाह कर भी पता न लगा पाया होगा की दादाजी कहां थे, वरना वो एलियन प्रहरी उस गांव पर हमला कर चुके होते। मेरे दादा जी को जिंदा छोड़ने के पीछे का कारण भी बिलकुल सीधा था, वर्धराज का परिवार आंखों के सामने है, जायेगा कहां? उसके साथ और कितने सिद्ध पुरुष है या वह सिर्फ अकेला है, इस बात का पता लगाने में सब जुटे थे। मेरे दादा जी का 7 साल तक गायब रहना एलियन प्रहरी के शक को यकीन में बदल चुका था कि मेरे दादा जी के साथ और भी कई सिद्ध पुरुष है।"

"वहीं दूसरी ओर गुरु निशी पूर्वी हिमालय से कोषों दूर, दक्षिणी हिमालय के पास बसे नैनीताल में अपना गुरुकुल चला रहे थे। उन्होंने भी भरमाने के लिये अपने 4 बैच के शिष्यों को किसी भी प्रकार की सिद्धि का ज्ञान नही दिया था। गुरु निशी को भी पता था कि कोई तो है जो आश्रम को पनपने नही देता और उसकी नजर हर आश्रम पर बनी रहती है। इसलिए पहले 4 बैच को केवल आध्यात्म और वाचक बनने का ही ज्ञान दिये थे। पांचवे बैच से गुरु निशी ने कुछ शिष्यों का प्रशिक्षण शुरू किया था। लेकिन सब के सब इतने कच्चे थे कि गुरु निशी अपने हिसाब से उन्हे ढाल न सके। लेकिन कोशिश जारी रही और उनका पहला शिष्य संन्यासी शिवम गुरु निशी की कोशिशों का ही नतीजा था। संन्यासी शिवम अपनी मेहनत से कई सैकड़ों वर्ष बाद पोर्टल खोलने में कामयाब रहे। और गुरु निशी का आखरी शिष्य अपस्यु था, जो उनके सभी शिष्यों में श्रेष्ठ और छोटी सी उम्र में अपनी मेहनत से सबको प्रभावित करने वाला।"


"गुरु निशी कोषों दूर दक्षिणी हिमालय के क्षेत्र में थे। मेरे दादा जी पूर्वी हिमालय के क्षेत्र में। दोनो में किसी तरह लिंक ढूंढना लगभग नामुमकिन था। परंतु वह तांत्रिक आध्यात था, जिसने गुरु निशी और वर्धराज कुलकर्णी के बीच का राज खोल दिया था, जिसकी सूत्रधार वह पुस्तक रोचक तथ्य बनी थी। आध्यत को तनिक भी उम्मीद नहीं थी कि आश्रम का कोई गुरु सिद्धि प्राप्त भी हो सकता है। प्रहरी के तरह आध्यत को भी यही लगता था कि गुरु निशी आध्यात्म और वेद–पुराण के पाठ करने वाले कोई गुरु है।"

"गुरु निशी के हाथ वह रोचक तथ्य की पुस्तक लगी थी और तब उन्हें अनंत कीर्ति पुस्तक की वर्तमान स्थान तथा एक विकृत रीछ स्त्री के विषय में भी ज्ञात हुआ था। उन्होंने मात्र 2 दिन में ही विदर्भ क्षेत्र का पूर्ण भ्रमण करने के बाद रीछ स्त्री के शरीर को ढूंढ निकाला था। हालांकि नागपुर में वह केवल एक खोज के लिये नही पहुंचे थे, बल्कि अनंत कीर्ति की किताब को ढूंढने भी आये थे। यह किताब भी सात्विक आश्रम की ही थी जो आचार्य श्रीयूत के बाद कहां गयी किसी को भी नही पता था।"
शानदार जबरदस्त भाई लाजवाब update bhai jann superree duperrere update


Bohot suspence rkhe ho bhai katha mey dimag ka fuse hi udgya apne to ye sab padh ke aisa laga ki koi book padh raha hu aur ye katham hi na ho sirf padte jau
 
  • Love
  • Like
Reactions: Xabhi and Tiger 786

Battu

Active Member
1,294
4,679
144
भाग:–90




"आध्यत को जैसे ही यह ज्ञात हुआ की सात्विक आश्रम के गुरु ने रीछ स्त्री को ढूंढ निकाला, उसके होश उड़ गये थे। वह आध्यत ही था जिसने फिर एलियन प्रहरी तक यह संदेश पहुंचाया था कि गुरु निशी वाकई एक सिद्धि प्राप्त सात्विक आश्रम के गुरु है, जो अनंत कीर्ति की पुस्तक के पीछे है और वर्धराज कुलकर्णी भी इसी गुरु निशी का अनुयाई है। बात खुल चुकी थी और अब किसी को भी जिंदा रखने का कोई मतलब नहीं था। हां लेकिन गुरु निशी और मेरे दादा जी दोनो इस बात से बेखबर थे कि आश्रम के दुश्मनों तक उनकी खबर पहुंच चुकी थी।"

"एलियन प्रहरी मेरे दादा जी के नजरों में एक अलग प्रकार के सुपरनैचुरल थे, जो अपनी असलियत छिपा कर रहते थे। उन्हे जरा भी अंदाजा नहीं था कि ये वही लोग थे जो सदियों से सिद्ध पुरुष का शिकार करते आये है। नित्या को भी सतपुरा के जंगल में रहने की सजा इसी वजह से मिली थी। उसके कारण एलियन का भेद लगभग खुलने ही वाला था।"

"एक ही वक्त में थोड़ा आगे पीछे चारो ओर से इतनी कहानियां चल रही थी। जब मैंने सुहोत्र लोपचे का पाऊं तोड़ा तब वह हील नही हुआ। एक साढ़े 8 साल के लड़के ने 12–13 साल के टीनएजर वुल्फ को मारकर घायल कर दिया, फिर ये एलियन प्रहरी के नजर में आना ही था। उन्हे शक हो गया था कि 7 सालों में मेरे दादा ने मुझे कोई सुद्ध ज्ञान दिया गया है। शुद्ध ज्ञान एक प्रकार का विशेष ज्ञान होता है, जिसे गर्भ में पल रहे शिशु को दिया जाता है। मैं एलियन के शक के घेरे में आ गया और राकेश नाईक इन सब विषय की जानकारी देने में विफल रहा था, इसलिए जाल बुना गया। प्रहरियों का जाल।"

"उसी रात लोपचे कॉटेज को आग लगा दिया गया और लोपचे से सुरक्षा के नाम पर तेजस हमारे साथ करीब 2 महीने रुक था। जिस दिन तेजस गंगटोक छोड़कर गया, ऊसके तीसरे दिन मेरे दादा जी की अकस्मात मृत्यु हो गयी। चूंकि मुझे शुद्ध ज्ञान दिया गया था इसलिए जब गुरु निशी मरे तब जाते–जाते मेरे लिये कुछ छोड़ गये थे, जो मुझे उस वक्त मिला जब मैं खुद के दिमाग में झांक रहा था। अतीत की गड़ी यादों ने मुझे झकझोर दिया। शायद दादा जी की तरह मेरे लिये भी एलियन प्रहरी कोई अलग प्रकार सुपरनेचुरल ही रहता। किंतु गुरु निशी अपने मृत्यु के पूर्व के महीने दिन की स्मृति मुझे भेज चुके थे, और उन स्मृति में मुझे एक चेहरा दिख गया, जो काफी चौकाने वाला था। वहां गुरु निशी के आश्रम में पलक थी।"

"न्यूरो सर्जन के दिमाग ने जैसे मेरे दिमाग के परदे खोल दिये थे। बॉब से विदा लेने के बाद मैं सीधा भारत ही आया था। लेकिन जिन डेढ़ साल का हिसाब तुम्हे नही मिला, उस अवधि में मैं अपने स्किल को निखारता रहा और अपने अंदर टॉक्सिक को भरता रहा। मैने बचे डेढ़ साल में तकरीबन रोजाना 150 से 200 पेड़ों को हील करता था। मेरे लिये पेड़ कम न पड़ जाये इसलिए मैं पूर्वी भारत के घने जंगलों में अपना अभ्यास करता रहा। मेरे पास कुछ घातक स्किल थे और मैं अपने उन सभी स्किल को पूरी ऊंचाई देने में लगा हुआ था। एक ड्रग देकर बॉब मेरा शेप शिफ्ट करवा चुका था, इसलिए खुद पर न जाने मैने कितने ड्रग के टेस्ट किये थे और उनसे पार पाना सीखा था।"

बीते वक्त की सबसे बड़ी सच्चाई तो यह भी थी कि नागपुर पहुंचने से पहले मेरे पास कोई भी डेटा नही था। मुझे नही पता था कि मेरे दादा जी की अकस्मात मृत्यु एक कत्ल थी। मुझे नही पता था कि गुरु निशी के कत्ल में प्रहरी का हाथ था। मुझे तांत्रिक आध्यत और उसके साजिसों के बारे में भी नही पता था। मुझे पता था तो बस मेरा पूरा परिवार किन कारणों से नागपुर छोड़ा। फेहरीन के पैक को खत्म करके ले जाने वाले कभी अच्छे समुदाय नही हो सकते। एक अज्ञात प्रकार का सुपरनैचुरल के नागपुर में होने की संभावना थी, इसलिए मैंने अपने स्किल को नई ऊंचाई दी थी। और जो मैं सही में पता लगाने आया था वह था गुरु निशी की स्मृति में पलक का दिखना, विकृत रीछ स्त्री का स्थान और दादा जी के साथ गुरु निशी का अनंत कीर्ति पुस्तक पर चर्चा करते हुये यह बताना की पुस्तक सुकेश के घर पर है।"

"मेरे लिये सबसे पहला टारगेट पलक ही थी। मैं उस से बस जानना चाह रहा था की आखिर वो गुरु निशी के आश्रम में कर क्या रही थी? मुझे कॉलेज के रैगिंग के दौरान यह पता करने का मौका भी मिला, जब पलक अकेले में मुझसे रैगिंग को लेकर बात करने पहुंची। मैने बॉब की ही ट्रिक को अपनाया और ड्रग को हवा में उड़ा दिया। लेकिन मेरे लिये यह घोर आश्चर्य का विषय हो गया, जब पलक पर उस ड्रग का असर ही नही हुआ। और भेद खुल न जाये इसलिए मैं बेहोश हो गया।"

"नागपुर मेरे लिये किसी उलझे पहली जैसा था, जहां मेरे पहला ट्रिक इतनी बुरी तरह से विफल रहा की मुझे सोचने पर मजबूर कर गया... "यहां चल क्या रहा है।" खैर चलते रैगिंग को मैने छेड़–छाड़ नही किया और उसे चलने दिया, क्योंकि मुझे दूसरा मौका चाहिए था। मैं पलक और अपने दोस्तों के आस पास रहना छोड़कर सहानुभूति बटोरने लगा। मेरे लिये आश्चर्य का सबब यह भी था कि पलक खुद मुझसे नजदीकियां बढ़ा रही थी। खैर मेरे लिये इस सवाल का जवाब जरूरी नहीं था कि पलक नजदीकियां क्यों बढ़ा रही, क्योंकि आज न कल तो मैं पता लगा ही लेता। लेकिन जरूरी था यह पता लगाना की वह आश्रम में क्या कर रही थी? और मेरे पास पता लगाने का अपना ही तरीका था।"

"सुरक्षित तरीके से पलक के गले में मुझे क्ला घुसाने का मौका भी मिला। और जब मैने उसके गले में क्ला घुसाया फिर पता चला की मेरे दादा जी जिस सुपरनैचुरल नित्या को पकड़े थे, प्रहरी समुदाय में उन जैसों की भरमार थी। पलक के गर्दन में क्ला घुसाते ही ऐसा लगा जैसे मैं किसी करेंट सप्लाई के अंदर अपने क्ला को घुसा दिया, जो मेरे नाखून तक में करंट प्रवाह कर रहे थे। दरअसल वो करेंट प्रवाह हाई न्यूरो ट्रामिशन का नतीजा था, जो किसी विंडो फायर वॉल की तरह काम करते हुये पलक के दिमाग का एक भी डेटा नही लेने दे रहा था। जो तकनीकी और मेडिकल की भाषा नही जानते उनके लिये बस इतना ही की मैं पलक के दिमाग में नही झांक सकता था। मुझे पता चल चुका था कि पलक एक सुपरनैचुरल है, लेकिन उसके जैसे और कितने थे, ये पता लगाने में मुझे कोई देर न लगी।"

"ये इन एलियन का ब्रेन मोटर फंक्शन ही था जो इनके शरीर के गंध को मार रहा था। इनकी भावनाओ को पढ़ने से रोक रहा था। और एक बार जब इस बात खुलासा हुआ फिर तो मुझे एलियन को छांटने में कोई परेशानी ही नही हुई। रैगिंग के मामले से मुझे कोई फायदा नही मिला और मुझे पूरी बात का पता लगाने के लिये एलियन प्रहरी के बीच रहना अत्यंत आवश्यक हो चुका था, इसलिए बिना देर किये मैने पलक को प्रपोज कर दिया। मैं जानता था कि जिस हिसाब से पलक मुझसे नजदीकियां बढ़ा रही है वह भी मेरे प्रस्ताव को नही ठुकराती। मेरा तीर निशाने पर लग चुका था।"

"किंतु केवल पलक की नजदीकियों के वजह से मुझे सभी सवालों का जवाब नही मिलता इसलिए मैं बस मौके की तलाश में था। खैर, केवल नागपुर में एक ही काम तो नही था इसलिए मैंने सभी कामों पर अपना ध्यान लगाया। न सिर्फ अनंत कीर्ति की पुस्तक तक पहुंचना बल्कि रीछ स्त्री का भी पता लगाना। एक बात जो कोई नही जानता वो मैं बता दूं, मेरे क्ला ही काफी है जमीन में दफन किसी भी चीज का पता लगाने के लिये।"

"फिर रीछ स्त्री का जब मामला उठा तब इस एक मामले के कारण मैं प्रहरी में इतना अंदर घुसा की इन एलियन की करतूत छिपी नही रही। मैं न सिर्फ प्रहरी मुख्यालय पहुंच चुका था बल्कि सुकेश के सीक्रेट चेंबर में भी घुस चुका था। फिर मुझे पता लगाने के लिये न तो किसी कमरे का दरवाजा तोड़ना था और न ही प्रहरी मुख्यालय में चोरी से घुसने की जरूरत पड़ी। मुझे जगह का ज्ञान हो गया और वहां पर क्या सब रखा है वह मुझे जड़ों की रेशों से पता चल गया। हां सही सुना... मैं जो रेशे फैलता हूं वह जिस चीज को भी छूते है उन्हे मैं देख सकता हूं।"

"एक के बाद एक सभी राज पर से पर्दा उठता चला गया और रही सही कसर स्वामी के लूट ने कर दिया। तुमने सही थी रूही। स्वामी का मेरे पास आना कोई संयोग नहीं था बल्कि उसके दिमाग से मैने ही छेड़–छाड़ की थी। एक बार नही बल्कि कई बार। पहले मैंने ही स्वामी के दिमाग के अंदर यह ख्याल डाले की यदि अनंत कीर्ति किताब गायब तो सुकेश खत्म। वहीं मैने दूसरा ख्याल भी डाल दिया की अनंत कीर्ति की किताब के सबसे ज्यादा करीबी आर्यमणि ही है। मुझे लगा अनंत कीर्ति की किताब तो स्वामी को मिलेगी नही इसलिए स्वामी, सुकेश के सीक्रेट चेंबर की दूसरी रखी किताब जरूर चोरी करेगा। दूसरी किताबे चोरी करने के बाद स्वामी अनंत कीर्ति की किताब का पता लगाने मेरे पास जरूर पहुंचेगा और वहीं से मैं सुकेश के सीक्रेट चेंबर के सारे किताब ले उडूंगा।"


"सुकेश के सीक्रेट चेंबर में किताब का होना ही मुझे खटक रहा था क्योंकि बाहर एक बड़ा सा लाइब्रेरी होने के बावजूद उन किताबों को छिपाकर क्यों रखा था? मन में जिज्ञासा तो जाग ही चुकी थी और मुझे सभी किताब को इत्मीनान से पढ़ना था। लेकिन स्वामी ने तो जैसे कुबेर का खजाना ही लूट लिया था। प्रहरी के बारे में बहुत कुछ मैं पता कर चुका था, रही सही कसर तब मिट गई जब मैं इनकी क्लासिफिकेशन की किताब देख रहा था। मुझे तभी समझ में आ गया की ये लोग पृथ्वी के कोई सुपरनेचुरल नही बल्कि किसी दूसरे ग्रह के इंसान है।"

"लूट के 2 समान जादूगर का दंश और एक पतला अनोखा चेन को मैने कॉटेज के पीछे वाले जंगल में जमीन के अंदर दफन करके रखा है। उसपर हम साथ मिलकर अभ्यास करेंगे। अभी मैं बस उन दोनो वस्तुओं को पूर्ण रूप से समझने की कोशिश कर रहा हूं। पलक के दिमाग में जिस दिन क्ला घुसाया था उसी दिन मैने सोच लिया की मुझे क्या करना है? अभी ये एलियन सुपरनैचुरल मेरे लिये टेढ़ी खीर थे। मुझे जिस दुश्मन के बारे में पता ही नही उस से मैं लडूंगा कैसे? इसलिए मैं सोच चुका था कुछ बड़ा डंडा करके निकलूंगा ताकि ये लोग मेरे पीछे आने पर मजबूर हो जाये। वर्धराज के पोते को मारने का उतावलापन देखकर इनकी बुद्धि तो समझ में आ चुकी थी, अब बस इनकी शक्तियों का पता लगाना था।"

"मैं अपने कैलिफोर्निया पहुंचने तक का प्लान पहले से बना चुका था। मैने हर पॉइंट पर इतने जाल फैलाये थे की मुझे पता है कि इन एलियन की टीम मेरी जानकारी जुटाने कहां–कहां पहुंच रहे होंगे। मैने उनके चोरी के समान को भी एक जाल के तहत गायब किया था। बस थोड़ा इंतजार करो फिर हम वहां चलेंगे जहां ये हमारा पता लगाने पहुंचे होंगे। वहीं इन एलियन की छोटी–छोटी टुकड़ी से भिरकर उनके शक्तियों का पता लगाएंगे।"

"तो ये थी नागपुर की पूरी कहानी। अब मैं किसको क्या बताता की मैं नागपुर क्यों पहुंचा? ये मेरे लिये काफी उलझाने वाला सवाल था। क्योंकि गुरु निशी ने मुझे 3 हिंट दिये थे। पूरी बात बताने का मतलब होता की पहले अपने क्ला की शक्ति बताओ। उस शक्ति से मैने खुद के दिमाग में झांका और अतीत के पन्नो से गुरु निशी और वर्धराज कुलकर्णी को ढूंढ निकाला ये बताता। फिर मुझे गुरु निशी की तीन यादें बतानी होती जो मरने से पहले उन्होंने मेरे दिमाग तक पहुंचाया था। उन तीन यादों के तहत मैंने इंसानियत और आश्रम के बहुत पुराने दोषी एक एलियन प्रहरी को ढूंढ निकाला। नागपुर आने की सच्चाई मैं किसी को चाहकर भी एक्सप्लेन नही कर सकता था इसलिए बस टालने के इरादे से झूठ बोलता था, और कोई बड़ी वजह नही थी। उम्मीद है तुम्हे सब समझ में आ गया होगा।"


रूही:– उफ्फ क्या मकड़जाल में तुम खुद ही उलझे थे बॉस। खैर कहानी तो पूरी समझ में आ गयी बस घटना क्रमबद्ध नही था इसलिए थोड़ी उलझन है। तो बॉस तुम ये कहना चाह रहे हो की तुम वाकई कुछ सवालों के साथ आये थे, लेकिन वह सभी सवाल प्रहरी से जुड़े थे। नागपुर आने से पहले तुम्हारे नजरों में प्रहरी एक करप्ट संस्था थी, बस इतना ज्ञान था?


आर्यमणि:– नही एक खास प्रकार का सुपरनेचुरल भी मिलेगा नागपुर में, यह बात भी दिमाग में थी। सच्चाई पता लगने के बाद कड़ियां जुड़ती चली गयी। फिर अतीत से लेकर वर्तमान की हर कड़ी जैसे मेरे नजरों के सामने थी।


रूही:– मतलब वो मैत्री के दादा मिकू लोपचे और उसकी पत्नी का कत्ल जिसमे दोषी प्रहरी थे, वो भी तुम्हे नागपुर आने के बाद पता चला...


आर्यमणि:– हां बिलकुल सही...


रूही:– फिर पलक जो गुरु निशी के आश्रम में थी, क्या वो अपस्यु के बारे में जानती थी, या अपस्यु उसके बारे में?


आर्यमणि:– नही पलक छोटी थी, यानी जब अपस्यु आश्रम पहुंचा होगा तब पलक गुरु निशी के बारे में पता करके निकल चुकी होगी। प्रहरी पर शक न हो इसलिए पलक के निकलने के कई साल बाद गुरु निशी को मारा गया था।


रूही:– सात्विक आश्रम के लोग तुम्हारे पीछे आये, ये महज इत्तीफाक था या उसमे भी तुम्हारी करस्तनी है।


आर्यमणि:– सात्विक आश्रम का मेरे साथ होना बस किस्मत की बात थी जो रीछ स्त्री के पीछे जाने से मेरी उनसे मुलाकात हो गयी। वह आश्रम तो खुद टूटा था और जोड़ने की यात्रा में उनकी पूरी टीम लगी थी। बस यात्रा के दौरान ही हम बिछड़े मिले। इसमें मेरा कोई योगदान नहीं।


रूही:– सारी बातों में आर्म्स फैक्ट्री की बात कहां गोल कर गये? वो भी बता दो.…


आर्यमणि:– वो तो बॉब ही बतायेगा...


बॉब:– मुझे मत घसीटो... तुम ही कह दो तो ज्यादा अच्छा रहेगा। वैसे भी कुछ तो किस्मत तुम लेकर आये हो आर्य.…


आर्यमणि:– अच्छा... लेकिन ये न कबूल करो की बोरियाल, रसिया का जंगल में कई गैर कानूनी काम होते है। और उन्ही गैर कानूनी काम में से एक था इलीगल वेपन फैक्ट्री, जिसे एक होनहार क्रिमिनल चला रहा था। हम कुछ नया ट्राई करते हुये अपनी जगह से काफी दूर निकल आये थे और वेपन फैक्ट्री में काम कर रहे क्रिमिनल ने हमे घर दबोचा था। बस फिर क्या होना था, पूरी फैक्ट्री किसी भूतिया लताओं में फंस गयी और सारे क्रिमिनल्स आर्मी के हत्थे चढ़ गये। हां लेकिन इस बीच मैंने उनका सारा प्रोजेक्ट चुरा लिया।


रूही:– चलो, सच्चाई जानकर अब कुछ अच्छा लग रहा है। वाकई नागपुर क्यों पहुंचे उसका जवाब देना तुम्हारे लिये काफी मुश्किल होता बॉस। खैर, बॉस हमारा एक्शन टाइम कब आयेगा? कब हम उन एलियन प्रहरी के टीम के पीछे जायेंगे?


आर्यमणि:– बहुत जल्द... उसके लिये ज्यादा इंतजार नही करना पड़ेगा.…


रूही:– और बॉस आपके और बॉब के बीच क्या चल रहा है? इतने दिनो बाद मिल रहे थे और कोई गर्मजोशी नही।


बॉब:– "आर्यमणि मुझसे मिल चुका है। हम दोनो मिलने की गर्म जोशी भी दिखा चुके। तुम्हारा कहना सही था कि ये जगह आर्यमणि लिये नया नही था। जिस विकृत रीछ स्त्री के आत्मा को विपरीत दुनिया से मूल दुनिया में लाया गया था उसके द्वार यहीं से खोले गये थे। करीब 3 महीने पहले ही आर्यमणि से जब मेरी बात हुई थी तभी उसने मुझे इस जगह का कॉर्डिनेट्स भेजा था। इसके क्ला क्या–क्या कारनामे कर सकते है, शायद ही कोई जानता हो।"

"वहां की मिट्टी में क्ला डालकर आर्यमणि ने इस जगह का कनेक्शन ढूंढा था। इसी जगह से विपरीत दुनिया का द्वार खोलकर महाजनिका के आत्मा को खींचा गया था। 3 महीने के परिश्रम के बाद मैं अंदर तक घुसा और यहां ओशुन को देखकर काफी हैरान रह गया। मैने आर्य को ओशुन के बारे में नही बताया। यहां आने की प्लानिंग भी हो चुकी थी। उस रात तुम दोनो यूं ही नहीं रात में घूमने निकले थे बल्कि उस डॉक्टर के प्राण बचाने की योजना के कारण ही घूमने निकले थे। सामने जो ओशुन पड़ी हुई है, उसके जिम्मेदार भी कहीं ना कहीं वही प्रहरी है... अब मै ओशुन को लेकर तुमसे कुछ बोल सकता हूं आर्य...


आर्यमणि:- हां बॉब...


बॉब:- ओशुन भी तुम्हे चाहने लगी थी बस वो तुम्हे कैसे फेस करती जब वो अपनी सच्चाई तुम्हे बताती। इसलिए वो तुमसे नहीं मिली। प्लीज उसे माफ कर दो।


आर्य:- मै उसकी परेशानी समझ सकता हूं। खैर छोड़ो भी इस बात को, और ओशुन को जगाया कैसे जाए उसपर बात करते है।


बॉब:- ये कोई ब्लैक मैजिक है आर्य। ये बात तो अब तक तुम्हे भी पता चल चुका होगा। जबतक तुम उस जगह नहीं पहुंच जाते जहां ओशुन की आत्मा दो दुनिया के बीच कैद है, इसे जगाया नहीं जा सकता।


आर्यमणि:- इसके लिए मुझे क्या करना होगा?


बॉब:- ओशुन की तरह तुम्हे भी मरना होगा और उसकी आत्मा जहां फसी है वहां से उसे खींचकर लाना होगा। बाकी अंदर वहां क्या चल रहा है और किन हालातों से सामना होता है, वो वहां पहुंचने पर ही पता चलेगा।


रूही:- ये कैसी बहकी–बहकी बातें कर रहे हो बॉब।


आर्यमणि:- मुझे कुछ नहीं होगा रूही, तुम चिंता मत करो। मुझे यहां कुछ दिन वक़्त लग जाएगा इसलिए तुम अलबेली और ट्विंस को लेकर निकल जाओ। बाकी यहां बॉब और लॉस्की (लॉस्की पहला मिला वो वेयरवुल्फ जो मैक्सिको में इस फार्म में शिकारियों के साथ था) रुक रहे है।


रूही:- और यहां के फंसे वेयरवुल्फ?


आर्यमणि:- रूही तुम लॉस्की को बोलो सभी फंसे वेयरवुल्फ को सुरक्षित वापस भेज दे। यहां मै और बॉब पहले कुछ दिनों तक किताब की खाक छान कर देखेंगे और सोचेंगे की ओशुन को कैसे जगाया जाये।


बॉब:- मैंने पहले ही सारी पुस्तक अलग कर ली है। तुम इन सब को देखना शुरू करो, जबतक मै तुम्हारे पैक को वापस भेजता हूं।


आर्यमणि:- रुको बॉब अभी नहीं। क्या तुम हम दोनों (रूही और आर्यमणि) को कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दोगे, हमे कुछ बातें करनी है।


बॉब मुस्कुराकर वहां से चला गया। उसके जाते ही आर्यमणि रूही का हाथ थामते… "मुझे माफ़ कर दो, तुम्हारी आई के बारे में बहुत कुछ पता होते हुए भी मैंने तुमसे छिपाया। नागपुर की पूरी सच्चाई नही बताई।"


रूही:- जबसे तुमसे मिली हूं ना आर्य, बीते दिनों का दर्द और गुस्सा दिल से कहीं गायब हो गया है। बस तुम यहां अपना ध्यान रखना और जल्दी लौटने कि कोशिश करना। वैसे भी जल्द से जल्द एक्शन करने के लिये बेकरार हूं।


आर्यमणि:- अभी ही कर लो, इतनी भी बेकरारी क्यों?


रूही:- तुम तो घर के माल हो बॉस, तुम्हारे साथ तो कभी भी एक्शन कर सकती हूं, फिलहाल तो तड़प उन एलियन के लिये है। चलो अब मै चलती हूं। तुम यहां पुरा फोकस करो जब तक मै उन मुसीबतों को संभालती हूं।


रूही आर्यमणि से खुशी-खुशी विदा ली। बॉब और लॉस्की ने उनका वापस पहुंचने का इंतजाम कर दिया था और कुछ ही घंटो में ये लोग बर्कले, कार्लीफिर्निया में थे। और इधर आर्यमणि ओशुन को छुड़ाने के काम में लग गया।
bhai dono hi updates gazab k the. Ruhi k dwara fode gaye sawalo k bum sahi jagah par fute jiske karan hum sabko sabhi sawalo k jawab mil gaye ki aary kyo nagpur aaya, usme itani shaktiya kese thi, guru nishi uske dada aur maa dwara janm se pahle se laga kar 7 saalo tak diya gaya gyan zarur divya gyan hi raha hoga. Yaha se aapne kahani ko apni purani kahani se bhi jod diya ki kese us kahani k log inse jude he aur aage bhi judte rahenge. Really such a nice update so thanks nain bhai
 
Top