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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–44






"टेलीपोर्टेशन (teleportation) और टेलीपैथी (telepathy) एक ऐसी विधा है जो सभी कुंडलिनी चक्र जागृत होने के बाद भी उनपर सिद्धि प्राप्त करना असंभव सा होता है। आज के वक्त में टेलीपोर्टेशन विद्या तो विलुप्त हो गयि है, हां टेलीपैथी को हम संभाल कर रखने में कामयाब हुये। महाजनिका पूरे ब्रह्मांड में इकलौती ऐसी है, जो टेलीपोर्टेशन कर सकती है। जिस युग में सिद्ध पुरुष टेलीपोर्टेशन भी किया करते थे, तो भी कोई अंधकार की दुनिया में रास्ता नहीं खोल सकता था। महाजनिका ने वह सिद्धि हासिल की थी जिससे वो दोनो दुनिया में टेलीपोर्टेशन कर सकती थी।


निशांत:– माफ कीजिएगा, मेरा एक सवाल है। ये जो अभी पोर्टल खुला था, क्या वह टेलीपोर्टेशन नही हुआ...


संन्यासी शिवम:– हां ये भी आज के युग का टेलीपोर्टेशन है। इसे कुपोषित टेलीपोर्टेशन भी कह सकते हो। टेलीपोर्टेशन में कभी कोई द्वार नही खुलता, वहां किसी भी प्रकार के मार्ग को देखा नही जा सकता। हालांकि एक जगह से दूसरे जगह पहुंचने के लिए जो पोर्टल अर्थात द्वार खोलते है, वह होता तो काल्पनिक ही है, किंतु द्वार दिखता है। इसलिए सही मायने में यह टेलीपोर्टेशन नही। हालांकि पोर्टल बनाने की सिद्धि भी आसान नहीं होती। इसकी भी सिद्धि अब तक गिने चुने सिद्ध पुरुष के पास ही है। और हां तांत्रिक अध्यात के पास भी है। तांत्रिक के विषय में इतना ही कहूंगा की हो सकता है उनके पास टेलीपोर्टेशन की पूर्ण सिद्धि भी हो। क्योंकि उनके पीछे पूरा एक वंश वृक्ष था, जो पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी सिद्धि गुप्त रूप से आगे बढाते रहे हैं। लेकिन इसपर भी संदेह मात्र है, क्योंकि आज से पहले इन तांत्रिकों के बारे में केवल सुना ही था। हम लोग भी पहली बार आमने–सामने होंगे...


आर्यमणि:– आपकी बात और रीछ स्त्री को जानने के बाद मन विचलित सा हो गया है। क्यों है ये ताकत की होड़? इतनी ताकत किस काम कि जिससे पूरे मानव संसार को ही खत्म कर दो? फिर तुम्हारी ये ताकत देखेगा कौन?... क्यों करते है लोग ऐसा? आराम से हंसी खुशी नही रह सकते क्या? जिसे देखो अपना प्रभुत्व स्थापित करने में लगा है। कैसे हो गये है हम?...


संन्यासी शिवम:– तुम ज्यादा विचलित न हो। जैसा मैंने कहा, खुद को थोड़ा वक्त दो। बस एक ही सत्य है, मृत्यु। जब तक मृत्यु नही आती, तब तक मुस्कुराते हुए अपने कर्म किये जाओ।


आर्यमणि:– आप यहां से जाने के बाद क्या करेंगे संन्यासी जी...


संन्यासी शिवम:– पुर्नस्थापित अंगूठी मिल चुकी है इसलिए यहां से सीधा पूर्वी हिमालय जाऊंगा, कमचनजंघा की गोद में। हमारे तात्कालिक गुरुजी अभी जोड़ने के काम में लगे हैं। इसी संदर्व में हम कंचनजंघा स्थित अपने शक्ति के केंद्र वाले गांव को लगभग पुनर्स्थापित कर चुके थे। तभी तो खोजी पारीयान के तिलिस्म के टूटते ही हम तुम्हारे पीछे आये। क्योंकि गांव बसाने की लिए हमे बस वो आखरी चीज, पुर्नस्थापित अंगूठी चाहिए थी।


निशांत:– यदि ये अंगूठी इतनी जरूरी थी, फिर आप लोग ने क्यों नही ढूंढा...


संन्यासी शिवम:– कुछ वर्ष पहले कोशिश हुयि थी, तब कोई और गुरुजी थे। किंतु किसी ने छिपकर ऐसा आघात किया कि हम वर्षो पीछे हो गये। हमारे तात्कालिक गुरुजी पहले सभी आश्रम और मठ को जोड़ते। तत्पश्चात अंगूठी ढूढने निकलते। उस से पहले ही तुम दोनो ने ढूंढ लिया। हमारी मेहनत और समय दोनो बचाने के लिये आभार व्यक्त करते है।


निशांत:– वैसे एक सवाल बार–बार दिमाग में आ रहा है?


संन्यासी शिवम:– क्या?


निशांत:– इतना तो समझ गया की ये झोलर प्रहरी को रीछ स्त्री के यहां होने की खबर कैसे लगी। लेकिन एक बात समझ में नही आयि की वो प्रहरी यहां तांत्रिक के साथ लड़ाई में क्यों नही सामिल थे? सतपुरा आने से पहले जब मीटिंग हुई थी, तब हमे बताया गया था कि 5 किलोमीटर का क्षेत्र बांध दिया गया है, इसका क्या मतलब निकलता है?


आर्यमणि:– "यहां का पूरा माहोल और संन्यासी शिवम जी को सुनने के बाद तो पूरी कहानी ही कनेक्ट हो चुकी है। इसका जवाब मैं दे देता हूं। हर अनुष्ठान की अपनी एक विधि और खास समय होता है। रीछ स्त्री महाजनिका कैद से छूट तो गयि, लेकिन ऐडियाना के मकबरे को खोलने के लिए उसे इंतजार करना पड़ा। कुछ प्रहरी को पूरी बात पहले से पता थी, लेकिन ना तो तांत्रिक और न ही प्रहरी को, साधुओं और संन्यासियों का जरा भी भनक था।"

"प्रहरी तो सही समय पर यहां पहुंचे थे। आज से 4 दिन पहले जब ऐडियाना का मकबरा खोला जाता और अंदर का समान बांटकर, रीछ स्त्री के हाथों मेरी और कुछ लोगों की बलि चढ़ाई जाती। हां तब ये क्षेत्र भी 5 किलोमीटर तक बांधा गया था, वो भी तांत्रिकों द्वारा। लेकिन प्रहरी और तांत्रिक तब मात खा गये, जब उन्हें यह क्षेत्र किसी और के द्वारा भी बंधा हुआ मिला। एडियाना का मकबरा खुलने की विधि में बाधा होने लगी और तब तांत्रिक और उसके चेलों ने पोर्टल की मदद ली।"

"यहां पर तांत्रिक और प्रहरी का सीधा शक मुझपर गया। इसलिए 4 रात पहले मुझे मारने की योजना बनाई गयि।उन्हे लगा सरदार खान मुझे मार देगा। खैर आज जबतक सिद्ध पुरुष और संन्यासी का सामना तांत्रिक से नही हुआ था, तबतक ये लोग भी यही समझते रहे कि मैं ही कोई सिद्ध पुरुष हूं, जिसने ये पूरा खेल रचा है। अब मैं सिद्ध पुरुष हूं इसलिए प्रहरी सामने से मुझे मारने नही आये क्योंकि उनका भेद खुल जाता। उन प्रहरी को यही लग रहा की आर्यमणि तो रीछ स्त्री के पीछे नागपुर आया है। प्रहरी को यह भी विश्वास था कि मैं सरदार खान से बच गया तो क्या हुआ, तांत्रिक और रीछ स्त्री से नही बच पाऊंगा"...

"प्रहरी की एक खतरनाक प्लानिंग का खुलासा तो तुमने ही कर दिया था निशांत। जब कहे थे कि बहुत से शिकारी की जान जाने वाली है। और वो सही भी था क्योंकि भूमि दीदी को भी प्रहरी समुदाय में अलग ही लेवल का शक है। गुटबाजी तो हर संस्था में होती है। किंतु प्रहरी में उस से भी ज्यादा कुछ हो रहा है, इसका अंदेशा था शायद उन्हें। इसलिए भूमि दीदी को कमजोर करने के लिये उनके सभी खास लोगों को यहां ले आया।"


निशांत:– ओह अब मैं समझा की तू उस वक्त क्या समझाना चाह रहा था...


आर्यमणि:– क्या?


निशांत:– तेजस और सुकेश २ टॉप क्लास के प्रहरी, और पलक जो सबको यहां लेकर आयि। बिजली का खंजर इन्ही ३ लोगों में से कोई एक ले जाता और जिस तरह का संग्रहालय तेरे मौसा (सुकेश) ने अपने घर में बना रखा है। जिस विश्वास से सुकेश के सहायक ने रीछ स्त्री का पता बताया और वह सबको यहां ले आया। सुकेश ही शायद तांत्रिक के साथ मिला हुआ प्रहरी होगा। अगर सुकेश नही तो फिर तेजस या पलक। या फिर तीनों ही, या तीनों में से कोई २… क्योंकि यहां आये प्रहरी में से ही कोई प्रहरी खंजर लेकर जाता।


आर्यमणि:– बस कर ज्यादा गहराई में मत जा, वरना मेरी तरह ही तेरा हाल होगा।


निशांत:– मूर्ख समझा है क्या? तू मुझसे ज्यादा जानता है, इसलिए ज्यादा कन्फ्यूज है। मुझे यहां ३ प्रहरी करप्ट दिखे। यदि मुझसे पूछो तो ये लोग ताकत के भूखे है। जो की एक बच्चा भी समझ सकता है। पर जैसे कुछ सवाल तेरे ऊपर है न, तू ताकतवर तो है, लेकिन है क्या? यहां आने के पीछे मकसद क्या है? ठीक वैसे ही उनके लिए तेरे मन में है... ये लोग है क्या? और ताकत पाने के पीछे का मकसद क्या है? क्या मात्र ताकतवर बनना है, या पीछे कोई बहुत बड़ी योजना है?


सन्यासी शिवम:– हाहाहा, दोनो ही प्रतिभा के धनी हो। तुम दोनो साथ हो तो हर उस बिन्दु को देख सकते हो, जो दूसरे को १००० बार देखने से ना मिले।


आर्यमणि:– वैसे एक झोल तो आप लोगों ने भी किया है।


संन्यासी शिवम:– क्या?


आर्यमणि:– ठीक उसी रात क्षेत्र को बांधे जब मैं यहां पहुंचा। न तो कोई अंदर आ सकता था न ही कोई बाहर। फिर सिर्फ मुझे और निशांत को ही बंधे हुए क्षेत्र के अंदर घुसने दिया होगा। बाकी मुझे विश्वास है कि बहुत से लोग बांधे हुए क्षेत्र की सीमा के पास होंगे, लेकिन अंदर नही आ पा रहे। रीछ स्त्री कुछ बताने आयेगी नही और तांत्रिक के पूरे समूह को ही गायब कर दिया। देखा जाय तो आप लोगों ने भी ये पूरा खेल परदे के पीछे रहकर ही खेल गये। उल्टा मुझे हाईलाइट कर दिया...


संन्यासी शिवम:– मुझे लगा इस ओर तुम्हारा ध्यान नहीं जायेगा। सबसे पहले तो माफी चाहूंगा जो तुम्हे फसाते हुये हम आगे बढ़े। विश्वास मानो हम अभी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे, जिसमे हमारे तात्कालिक गुरु जी और आचार्य जी, आश्रम के सभी इकाई को जोड़ने में लगे है। इस वक्त हम किसी के सामने अपने होने का भेद नहीं खोल सकते। वैसे अब चिंता मत करो, हमने दोनो ही शंका को दूर कर दिया।


आर्यमणि:– कौन सी..


संन्यासी शिवम:– पहली की तुम हमारे बंधे क्षेत्र में घुसे ही नही। लोगों ने यही देखा की तुम भी उन्ही की तरह जूझ रहे। क्योंकि हमने तुम्हारी होलोग्राफिक इमेज को अब भी सीमा के बाहर रखा है। अब चूंकि तुम भी उन लोगों की तरह बाहर घूम रहे, इसलिए तुम एक सिद्ध पुरुष कैसे हो सकते? प्रहरी को यकीन हो गया है कि रीछ स्त्री के बंधे क्षेत्र में कोई नही घुसा इसलिए दिमाग में एक ही बात होगी, "शायद तांत्रिक के मन में ही बईमानि आ गयि हो।"


निशांत:– होलोग्राफिक इमेज.. क्या ऐसा भी कोई सिद्ध किया हुआ मंत्र है?...


संन्यासी शिवम:– हां है न, विज्ञान। हमारे पास कमाल के प्रोग्राम डिजाइनर और सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।


निशांत:– क्या सच में?....


संन्यासी शिवम:– हां बिलकुल। वैसे भी अब तो हमारे साथ हो, जल्द ही सबको जान जाओगे...


आर्यमणि:– चलो मेरा बोझ तो घटा। वैसे यहां से मैं एक बात सीखकर जा रहा...


निशांत:– क्या?


आर्यमणि:– हम जैसे लोगों के लिए भटकना ज्यादा प्रेरणादायक है। हम गंगटोक में भटके, क्या कुछ नही सीखा... मैं 3–4 साल घुमा क्या कुछ नही सीखा। जबकि उस दौड़ में तू नागपुर में ही रहा और क्या सीखा..


निशांत:– प्रहरी के लौड़ा–लहसुन सीखा। इस से ज्यादा कुछ नहीं...


आर्यमणि:– अब देख, सतपुरा के जंगल हम घूमने आये, फिर क्या हुआ...


निशांत:– पूरी सृष्टि ही हैरतंगेज चीजों से भरी है जिसका हमने बूंद ही देखा हो शायद...


फिर दोनो दोस्त एक साथ एक सुर में... "माफ करना संन्यासी जी जो हम कहने वाले है... इतना कहकर दोनो ने हाथ जोड़ लिये और चिल्लाकर कहने लगे... "मां चुदाये दुनिया, हम तो उम्र भर भटकते रहेंगे।"..


संन्यासी हंसते हुए... "तुम दोनो ऐसी भाषा का भी प्रयोग करते हो?"


आर्यमणि:– हां जब अकेले होते हैं... वैसे हमने 8 साल की उम्र से 16–17 साल तक ज्यादातर वक्त एक दूसरे के साथ अकेले ही बिताया है।


निशांत:– हां लेकिन ये भी है, ऐसी बातें किसी और के सामने निकलती भी नही... संन्यासी सर मुझे भी अब आपके साथ कुछ दिन भटकना है...


आर्यमणि:– क्यों तू मेरे साथ नही भटकेगा...


निशांत:– अभी बिलकुल नहीं... तू भटक कर अपना ज्ञान अर्जित कर और मैं भटक कर अपना ज्ञान अर्जित करूंगा... और जब दोनो भाई मिलेंगे तब पायेंगे की हमने दुगनी दुनिया देखी है...


आर्यमणि, निशांत के गले लगते... "ये हुई न असली खोजी वाली बात"…


संन्यासी शिवम:– अभी तुम्हे अपने साथ बहुत ज्यादा भटका तो नही सकता, लेकिन हां कुछ अच्छा सोचा है तुम्हारे बारे में...


निशांत:– क्या..


संन्यासी दोनो के हाथ में एक–एक पुस्तक देते... "जल्द ही पता चल जायेगा। अब मैं चलता हूं।"… सन्यासी अपनी बात कहकर वहां से निकल गये। आर्यमणि और निशांत भी बातें करते हुये कैंप की ओर चल दिये। पीछले कुछ घंटों की बातो को दिमाग से दूर करने के लिये इधर–उधर की बातें करते हुये पहुंचे।


दोनो कैंप के पास तो पहुंचे लेकिन वहां का नजारा देखते ही समझ चुके थे कि वहां क्या हो चुका था? वहां का माहोल देखकर आर्यमणि और निशांत को ज्यादा आश्चर्य नही हुआ, बस अफसोस हो रहा था। चारो ओर कई शिकारियों की लाश बिछी थी। जिसमे २ मुख्य नाम थे, पैट्रिक और रिचा। पैट्रिक और रिचा के साथ लगभग 30 शिकारी मारे गये थे। बचे हुये शिकारी फुफकार मारते अपने गुस्से का परिचय दे रहे थे। उन्ही के बीच से पलक भागती हुई पहुंची और आर्यमणि के गले लगती... "ऊपर वाले का शुक्र है कि तुम सुरक्षित हो"…


आर्यमणि:– पलक यहां हुआ क्या था?


पलक:– वह रीछ स्त्री महाजनिका अचानक ही यहां पहुंची और उसने हम पर हमला कर दिया।


निशांत, लाश के ऊपर लगे तीर और भला को देखते... "तीर और भला से हमला किया?"


रिचा के ही टीम का एक साथी तेनु.… "घटिया वेयरवोल्फ और उसका मालिक दोनो ही लड़ाई के वक्त नदारत थे। साले फट्टू तू आया ही क्यों था। चल भाग यहां से।


पलक:– तेनु जुबान संभाल कर..


तेनु पलक को आंखें दिखाते... "तेजस यहां मुझे सब संभालने के लिये कह कर गया है। अपनी जुबान मीटिंग में ही खोलना। और तू निष्कासित वर्धराज का पोते, अपने वुल्फ की तरह तू भी निकल फट्टू"…


निशांत तो २–२ हाथ करने में मूड में आ गया लेकिन आर्यमणि ने उसे शांत करवाया और अपने साथ लेकर निकल गया। कुछ घंटों के सफर के बाद रास्ते में अलबेली और रूही भी मिली, जिन्हे उठाते दोनो आगे बढ़ गये।..


आर्यमणि:– क्या खबर...


रूही:– शायद उसका नाम नित्या था।


आर्यमणि:– किसका..


रूही:– वो औरत...उसके पूरे बदन पर मैले कपड़े थे जो जगह–जगह से फटे थे। मानो बरसों से उसने अपने बदन पर कोई दूसरा कपड़ा न पहना हो। बदन का जो हिस्सा दिख रहा था सब धूल में डूबा। ऐसा लग रहा था धूल की चमरी जमी है। उसके होंटों पर भी धूल चढ़ा था, और जब वो बोलने के लिए होंठ खोली, उसके धूल जमी खुस्क होंठ पूरा फटकर लाल–लाल दिखने लगे। चेहरा ऐसा झुलसा था मानो भट्टी के पास उसके चेहरे को रखा गया था। हवा की भांति वो लहराती थी। किसी धूवें की प्रतिबिंब हो जैसे। तेजस उसे नित्या कहकर पुकार रहा था, इस से ज्यादा उसकी नई भाषा मुझे समझ में नही आयि। वह क्या थी पता नही, लेकिन इंसान तो बिलकुल भी नहीं थी। तेजस ने उससे कुछ कहा और वो सबसे पहले तुम दोनो पर ही हमला करने पहुंची।"

"बॉस वो तुम्हे मारने की कोशिश करती रही लेकिन तुम और निशांत तो धुवें के कोहरे में घुसकर बचते रहे। जब वह तुम दोनो को नही मार पायि, फिर सीधा कैंप पहुंची और वहां हमला कर दिया। वह अकेली थी और शिकारियों से घिरी। उसकी अट्टहास भरी हंसी और खुद का परिचय रीछ स्त्री महाजनिका के रूप में बताकर हमला शुरू कर दी। उसके बाद जो हुआ वह हैरतंगेज और दिल दहला देने वाला था। मानो वो औरत बंदूक की गोली से भी तेज लहराती हो। एक साथ 30–40 बुलेट चले होंगे और ऐसा भी नही था की वह एक जगह से भागकर दूसरे जगह पर गयि हो। अपनी जगह पर ही थी और १ फिट के दायरे में रहकर वह हर बुलेट को चकमा दे रही थी।"

हर एक शिकारी ने वेयरवोल्फ पकड़ने वाले सारे पैंतरे को अपना लिया। सुपर साउंड वेव वाली रॉड हो या फिर करेंट गन फायर। ऐसा लग रहा था १० मिनट तक खुद को मारने का एक मौका दे रही हो। फिर उसके बाद तो क्या ही वो कहर बनकर बरसी। वहां न तो धनुष–बाण थी, और ना ही भाला। लेकिन जब वह अपने दोनो हाथ फैलायी तब चारो ओर बवंडर सा उठा था। वह नित्या दिखना बंद हो गयि। बस चारो ओर गोल घूमता बवंडर। और फिर उसी बवंडर से बाण निकले। भाले निकले। सभी जाकर सीधा सीने में घुस गये और जब हवा शांत हुई तब वहां नित्या नही थी। बस चारो ओर लाश ही लाश।


निशांत:– वाउ!!! प्रहरियों का एक और मजबूत किरदार जो प्रहरी को मार रहा। और इसी के साथ ये भी पता चल गया की ३ में से एक कौन था जो खंजर लेने पहुंचा था।


रूही:– कौन सा खंजर...


आर्यमणि:– ऐडियाना के मकबरे का खंजर। पूरी घटना में सुकेश भारद्वाज और पलक कहां थे?


रूही:– माहोल शांत होने तक पलक वहीं थी लेकिन उसके बाद कुछ देर के लिये वह कहीं गयि थी। सुकेश और तेजस तो पहले से गायब थे, जिन्हे ढूंढने मैंने अलबेली को भेजा था।


आर्यमणि:– बकर–बकर करने वाली इतनी शांत क्यों है?..


अलबेली:– क्योंकि आज जान बच गयि वही बहुत है। सुकेश और तेजस कैंप से २ किलोमीटर दूर थे। दोनो में कोई बातचीत नहीं हो रही थी, केवल एक ही दिशा में देख रहे थे। थोड़ी देर बाद वह नित्या पहुंची। सुकेश के सीधे पाऊं में ही गिर गयि। तीनों की कुछ बातें हो रही थी तभी पलक भी वहां पहुंची... तीनों अजीब सी भाषा में बात कर रहे थे, समझ से परे। शायद मैं कच्ची हूं, इसलिए मैं उन तीनो में से किसी की भावना पढ़ नही पायि। बहुत कोशिश की, कि मैं उनकी भावना समझ सकूं, लेकिन कुछ पता न चला।"

"लेकिन तभी नित्या ने मेरी ओर देखा। मैं 500–600 मीटर दूर बैठी, उनकी बातें सुन रही थी। पेड़ों के पीछे जहां से न वो मुझे देख सकती थी और ना मैं उन्हे। लेकिन मुझे एहसास हुआ की मेरी ओर कुछ तो खतरा बढ़ रहा है। मै बिना वक्त गवाए एक जंगली सूअर के पीछे आ गयि और एक भला सीधा जंगली सूअर के सीने में। जैसे किसी ने उस भाले पर जादू किया हो। रास्ते में पड़ने वाले सभी पेड़ों के दाएं–बाएं से होते हुये सीधा एक जीव के सीने में घुस गया। मैं तो जान बचाकर भागी वहां से। बॉस अभी मेरी उम्र ही क्या है। जिंदगी तो कुछ वक्त पहले से ही शुरू हुई है लेकिन उसे भी वो डायन नित्या छीन लेना चाहती थी। बॉस बहुत खतरनाक थी वो।


अलबेली की बात सुनकर आर्यमणि निशांत को देखने लगा। निशांत अपने हाथ जोड़ते... "मुझे नहीं पता की खंजर लेने कौन प्रहरी पहुंचा था। तीनो ही साथ है, या केवल तेजस या फिर जो भी नए समीकरण हो। मुझे माफ करो।"


आर्यमणि हंसते हुये... "अब सब थोड़ा शांत हो जाओ और चलो सीधा वापस नागपुर।"..


अलबेली:– मुझे तो लगा अपने पैक की सबसे छोटी सदस्य के लिये अभी आप उस नित्या से लड़ने चल देंगे...


आर्यमणि:– लड़ाई छोड़ो और पहले ट्रेनिंग में ध्यान दो। पड़ी लकड़ी उठाने का शौक न रखो।


निशांत:– अनुभव बोलता है। एक पड़ी लकड़ी उठाने वाला ही समझ सकता है आगे का दर्द..


आर्यमणि:– और कौन सी पड़ी लकड़ी उठाई है मैंने..


निशांत:– कहां–कहां की नही उठाया, फिर वो मैत्री के चक्कर में... (तभी आर्य ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया। निशांत किसी तरह अपना मुंह निकलते).. अबे बोलने तो दे...


आर्यमणि:– नही तू नही बोलेगा.."….


निशांत:– क्यों न बोलूं, इन्हे भी अपने बॉस के बारे में जानने का हक है। क्यों टीम, क्या कहती हो...


रूही और अलबेली चहकी ही थी कि बॉस की घूरती नजरों का सामना हो गया और दोनो शांत...


"साले डराता क्यों है। पैक का मुखिया हो गया तो क्या इन्हे डरायेगा।"…… "अच्छा !!! तो फिर खोल पड़ी लकड़ी के किस्से। मैं तो नफीसा से शुरू करूंगा।"… "आर्य तू नफीसा से शुरू करेगा तो मैं भी नफीसा से शुरू करूंगा।"…. "वो तो तेरे साथ थी न"….. "मैं कहता हूं तेरे साथ थी। बुला पंचायत देखते है उसकी शक्ल देखकर किसपर यकीन करते है।"…


रूही:– थी कौन ये नफीसा ..


दोनो के मुख से अनायास ही निकल गया... "शीमेल (shemale) कमिनी"…


अलबेली तो समझ ही नही पायि। लेकिन जब रूही ने उसे पूरा बताया तब वह भी खुलकर हंसने लगी। और रह–रह कर एक ही सवाल जो हर २ मिनट पर आ रहा था... "पता कब चला की वो एक..."


अगले २ दिनो तक चुहुलबाजी चलती रही। चारों सफर का पूरा आनंद उठाते नागपुर पहुंच गये। नागपुर में भूमि का पारा देखने लायक था। जबसे उसने सुना था कि रिचा और पैट्रिक नही रहे, तबसे वह सो नहीं पायि थी। दिल और दिमाग पर बस एक ही नाम छाया था, रीछ स्त्री। और भूमि को किसी भी कीमत पर अपने साथियों का बदला चाहिये था। आर्यमणि कोई भी बात बता नही सकता था और भूमि कोई भी दिल लुभावन बात से शांत नहीं हो रही थी। उसे तो बस बदला ही चाहिये था। जब बात नही बनी तब आर्यमणि ने भूमि को कुछ दिनों के लिये अकेले छोड़ना ही उचित समझा। इधर आर्यमणि ने भूमि को अकेले छोड़ना उचित समझा, उधर रूही और अलबेली को भी सबने छोड़ दिया। या यूं कहे कि सबने घर से धक्के देकर निकाल दिया।
 

Tiger 786

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भाग:–11



आश्चर्य से उसकी आंखें फैल चुकी थी। चेहरे के भाव ऐसे थे मानो जिंदगी की कितनी बड़ी खुशी आंखों के सामने खड़ी हो। भूमि की नम आंखें एक टक आर्यमणि को ही देख रही थी और आर्यमणि अपनी प्यारी दीदी को देखकर, खड़ा बस मुस्कुरा रहा था।


भूमि, आर्यमणि को देखती ही उससे लिपट गई, कभी उसके गाल चूमती तो कभी, उसका चेहरा छूती। आखों से आंसू सराबोर थे। वो लगातार रोए ही जा रही थी।…. "दीदी चूमकर मेरा पूरा चेहरा गीला कर दी, ऊपर से आशु से भी भिगो रही। जीवन को तो बोल दो की तुम मेरी गर्लफ्रेंड हो।


"हां वो समझ गया, तू चल अंदर।"..


भूमि उसे लेकर घर में पहुंची। जैसे ही भूमि अंदर आयी, एक लड़की उसके करीब पहुंचती… "मैम, 10 मिनट बाद.." इतना ही कही थी वो, तभी भूमि उसे हाथ दिखती… "छाया, तुम ऑफिस चली जाओ और जय से कहना सारे क्लाइंट के साथ ऑफिशियल मीटिंग कर लो। मैं एक वीक हॉलिडे पर हूं।"..


छाया:- लेकिन मैम वो कल तो टेंडर होने वाला है।


आर्यमणि:- ये पागल हो गई है। आज आप काम संभाल लीजिए। दीदी कल से सारे ऑफिशियल मीटिंग अटेंड करेगी।


भूमि:- छाया जो मै बोली वो करो। जरूरी काम के लिए मै आ जाऊंगी। अब तुम ऑफिस जाओ और जय से मिल लेना।


जैसे ही वो लड़की गई… "ये क्या नाटक किया आर्य। सबको कितना परेशान किया है। मै क्या रिएक्ट करूं, इतने साल बिना किसी से कॉन्टैक्ट किए तू गायब कैसे रह सकता है?"


आर्यमणि:- मासी के पास चलो ना। एक हफ्ते कि छुट्टी तो ले ही ली हो ना।


भूमि:- मै पागल हूं क्या जो इतनी देर से तुमसे कुछ कह रही हूं, उसपर जवाब ना देकर, इधर-उधर की बात कर रहा है।


आर्यमणि:- सॉरी दीदी, अब दोबारा नहीं होगा।


भूमि:- मुझे ये जानने में इंट्रेस्ट नहीं की क्या होगा, मुझे अभी जानना है कि ऐसा हुआ क्या था जो तुमने एक फोन करना, एक मेल करना, या छोटा सा भी संदेश देना जरूरी नहीं समझा। 2.5 महीने मैं यूरोप और अमेरिका के चक्कर काटती रही.. जनता है तू, जो दर्द तेरे जाने का पहले दिन था वो कभी घटा नहीं, उल्टा वक्त के साथ बढ़ता रहा है...



आर्यमणि, एक झूठी कहानी बनाते…. "दीदी यूएस में एक टूर कॉर्डिनेटर ने मुझे 2 दिन के एडवेंचर टूर का झांसा दिया और मुझे टोंगास नेशनल फॉरेस्ट, अलास्का लेकर गया। बहुत बड़ा टूर ग्रुप था। रात को मै पूरे ग्रुप के साथ सोया था और सुबह जागने जैसा कुछ भी नहीं था। बदन में बिल्कुल भी जान नहीं थी, ऐसा लग रहा था शरीर कटे-फटे थे और शरद हवा मुझे जमा रही थी। धुंधली सी आखें खुली, फिर बंद। फिर खुली, फिर बंद। मुझे जब होश आया तो मै जंगलों के बीच बसे कुछ आदिवासी के बीच था। जिसकी भाषा मुझे समझ में नहीं आती और उनको मेरी भाषा।"

"मैं उनके लिए लकी था। वो मुझे रोज चारे की तरह जंगल में बांध देते और छिपकर जंगली भालू का शिकार करते थे। काफी खौफनाक मंजर था। कभी–कभी तो ऐसा महसूस होता की आज ये भालू मुझे फाड़कर यहीं मेरी कहानी समाप्त कर देगा। हां लेकिन शुक्र है भगवान का हर बार मैं बच गया। मैं धीरे–धीरे ठीक हो रहा था, साथ ही साथ उनसे कैसे पिछा छूटे उस पर काम भी कर रहा था। मेरी चोट ठीक होने के बाद, जैसे ही मुझे पहला मौका मिला, वहां से भाग गया। दीदी एक गाड़ी नहीं, एक इंसान नहीं। ऐसा लग रहा था मै किसी दूसरे ग्रह पर हूं, बिल्कुल ठंडा और जंगल से घिरा।"

"चलते गया, चलते गया और जब पहली बार किसी कार को देखा तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। ऐसा लगा जैसे अब मै जिंदा बच जाऊंगा। ऐसा लगा जैसे अब मै सबसे मिल पाऊंगा। उस आदमी से मुझे पता चला कि मै रशिया के बोरियल जंगल में हूं और जब उसने तारीख बताई तो पता चला मै पिछले 8 महीने से केवल और केवल चल रहा हूं।"

"अच्छा आदमी था वो। उसने मुझे सरण दी। फिर मै कैसा पहुंचा उसके बारे में बताया। उसे भी हैरानी हुई मैं 8 महीनों से चल रहा था। फिर उसी ने मुझसे कहा कि मै जंगल के मध्य से पश्चिम दिशा में चला था, जो शहरी क्षेत्र से दूर ले जा रहा था। इसी वजह से कोई नहीं मिला। ना पासपोर्ट ना ही कोई लीगल डॉक्यूमेंट। और जानती हो दीदी, पैसा क्या चीज होती है ये भी मुझे एहसास हो गया। फिर उस आदमी बॉब के साथ मैं काम करके पैसे जमा करता रहा। जब फर्जी पासपोर्ट और टिकट के लिए पूरे पैसे जमा हो गए तब पहली फुरसत में वापस लौट आया।"


भूमि:- मै ज़िन्दगी में किसी के लिए इतना नहीं रोई, लेकिन तेरी लिए बहुत रोई। तुझे जहां जाना है, वहां जा। दुनिया का जो कोना घूमना है, घूम। नहीं आने का मन हो मत आ, पर अपनी खबर तो देते रह ताकि हम सब सुकून में रहे। अब जारा मुझे उस आदमी की डिटेल दे जो तुझे अलास्का ले गया था।


आर्यमणि:- दीदी उसका नाम एड्रू रॉबर्ट था, कोई "न्यू रेड फील्ड एडवेंचर ट्रिप" करके उसकी कंपनी थी।


भूमि:- तेरे साथ और कोई था क्या? या तू जिस फ्लाइट में था, वहां कोई ऐसा जो संदिग्ध लगे।


आर्यमणि:- याद नहीं दीदी। पता नहीं कैसे लेकिन जिंदा बच गया। और दीदी मुझे थैंक्स तो कह दो। मेरे बहाने कम से कम ढाई महीने आप यूरोप और अमेरिका तो घूमी।


भूमि:- कुता तू मुझसे चप्पल खाएगा, समझा। मेरी एरिया घिस गई तुझे ढूंढ़ते-ढूंढ़ते। लेकिन तू यूरोप या अमेरिका में होता तो ना मिलता। वैसे तेरी मेहनत का फल दिख रहा है । चल जारा कपड़े उतार के दिखा कैसी बॉडी बनी है तेरी।


आर्यमणि अपना शर्ट उतारकर दिखाने लगा। भूमि उसके बदन को देखती… "इसे कहते है ना मेहनत वाली एथलीट बॉडी। गधे जिम जाकर लड़कियों कि तरह छाती फुला लेते है और बैल की तरह पुरा बदन। ये बॉडी सबसे तंदरुस्त और एक्टिव लोगो की होती है, इसे मेंटेन करना।


आर्यमणि:- बिल्कुल दीदी। दीदी एक बात और है।


भूमि:- क्या ?


आर्यमणि:- दीदी मैंने कोई इंजिनियरिंग इंट्रेस एग्जाम नहीं दिया लेकिन मुझे नेशनल कॉलेज में एडमिशन लेना है।


भूमि:– बहरवी कब पास किए जो इंजीनियरिंग में तुझे एडमिशन चाहिए।


आर्यमणि:– मेरे पास बारहवी के समतुल्य सर्टिफिकेट है। हां लेकिन वो रसियन सर्टिफिकेट है, चलेगा न...


भूमि:- वो मासी (आर्य की मां जया) ने जब मुझे बताया कि तू आ गया है, तभी मैंने तेरे लिए उस कॉलेज में एडमिशन का बंदोबस्त कर दिया था, बस सर्टिफिकेट को लेकर ही रुकी थी। अभी चलकर बस एक आदमी से मिलेंगे और आराम से तू सोमवार से कॉलेज जाना।


"किसे कॉलेज भेज रही हो दीदी"… भूमि का चचेरा भाई एसपी राजदीप पीछे से आते हुए कहने लगा।


भूमि:- आर्य के एडमिशन की बात कह रही थी। अब चित्रा और निशांत नेशनल कॉलेज में है तो ये कहीं और कैसे पढ़ सकता है।


राजदीप ने जैसे ही आर्य सुना वो हैरानी से देखते हुए उसे गले से लगा लिया। काफी टाईट हग करने के बाद…. "इसका बदन तो सॉलिड है दीदी। सुनो आर्य वैसे मेरी आई जानेगी की मै तुम्हारे गले लगा हूं तो हो सकता है वो मेरा गला काट दे।"..


आर्य:- ओह आप अक्षरा आंटी के बेटे राजदीप है।


राजदीप:- तुम मुझे कैसे जानते हो।


आर्य:- नीलांजना आंटी आप सबके बारे में बात करते रहती थी।


राजदीप:- और राकेश मौसा वो कुछ नहीं कहते थे मेरे बारे में।


आर्य:- गुलाब के साथ कितने काटें है उन पर कौन ध्यान देता है सर। कभी अच्छा या बुरा आपके बारे में कहा भी हो, लेकिन मै नहीं जानता।


राजदीप:- दीदी ये आपका पुरा भक्त है और शागिर्द भी। अब ये आ गया है तो आप कुछ सुनने से रही। मै आराम से कुछ दिन बाद मिलता हूं।


भूमि:- हम्मम ! थैंक्स राजदीप। कुछ दिन इसके साथ वक़्त बिताने के बाद मै मिलती हूं। आर्य सुन नीचे का वो दूसरा कमरा तेरा है। मासी ने तुझे वहां नहीं बताया, कहीं तू हंगामा ना करे। यहां तू मेरे साथ रहेगा।


आर्यमणि:- नहीं, मै तो अपनी मासी के साथ ही रहूंगा।


भूमि:- लेकिन मेरे साथ रहने में क्या बुराई है?


आर्यमणि:- बहन के ससुराल में रहने से इज्जत कम हो जाती है। ऐसा मुझे किसी ने सिखाया था।


भूमि:- नालायक कहीं का, भुल गया जब मुझे फोन करता था.. दीदी ट्रैक रोप, दीदी ड्रोन, दीदी, चस्मा.. तब इज्जत कम नहीं हुई, अभी कम हो जाएगी। अच्छा सुन, तू यहां मेरे पास रह, मै तुझे बाइक दिलवा दूंगी।


आर्यमणि:- बाइक, हुंह ! जो बाइक आप दिलवाओगी वो तो मुझे कोई भी दिलवा सकता है, और मुझे फालतू बाइक नहीं चाहिए।


भूमि, मुस्कुराती हुई… "हां ठीक है तुझे जो बाइक चाहिए वही दिलवा दूंगी, जाकर फ्रेश हो जा.. दोनो साथ खाना खाते है, तब तक रिचा भी आ जाएगी, फिर हम सब साथ शॉपिंग के लिए चलेंगे।"


आर्यमणि:- नाह, मै सिर्फ आपके साथ शॉपिंग चलूंगा, और फिर रात को मासी के पास रुकेंगे।


भूमि:- मै इतना प्रेशर लेकर काम नहीं करती। आज हम दोनों शॉपिंग करते है। कल फिर तेरे बाइक पर सवार होकर चलेंगे आई के पास। मंजूर..


आर्यमणि:- हां लेकिन शॉपिंग में दादा को लूटेंगे।


भूमि:- हिहिहीही… हां ये अच्छा है। रुक मै जय को बता देती हूं।


दोनो लगभग 3 बजे के करीब निकले। सबसे पहले पहुंचे एमएलए कृपाशंकर के पास। भले ही वह एमएलए राजदीप को न जनता हो, लेकिन भूमि का नाम सुनकर ही वह खुद बाहर उसे लेने चला आया। आर्यमणि को बाहर बिठाकर दोनो ऑफिस में पहुंचे जहां भूमि, आर्यमणि के इंजीनियर दाखिले की बात करने लगी। छोटा सा पेपर वर्क फॉर्मुलिट हुई और मैनेजमेंट कोटा से एडमिशन। बस कुछ पेपर साइन करने थे जो 2 घंटे बाद आकार कभी भी कर सकते थे।


वहीं भूमि को यह भी पता चला कि राजदीप एमएलए से मिलने पहुंचा था। वहां का काम निपटाकर भूमि, आर्यमणि के साथ सीधा शॉपिंग पर निकल गई। दोनो पहुंचे बिग सिटी मॉल।… "अच्छा सुन आर्य, यहां एसेसरीज सेक्शन में बहुत सारी इलेक्ट्रॉनिक आइटम है, तू अपने काम का देख ले।


आर्यमणि:- दीदी यहां कौन सा जंगल है और जंगली जानवर, जो मुझे वो करंट वाली गन या फिर ड्रोन या अन्य सामानों की जरूरत होगी।


भूमि:- जरूरत वक़्त बताकर थोड़े ना आती है। वैसे भी दुनिया में इंसानों से बड़ा भी कोई जानवर है क्या? जाकर देख तो ले।


आर्यमणि:- दीदी वो दादा कहीं गुस्सा ना हो जाए।


भूमि:- दादा गुस्सा होगा तो पैसे लेगा, तू बस शॉपिंग कर। और सुन मै कुछ अपने पसंद से तेरे लिए ले रही हूं.. यहां से शॉपिंग खत्म करके सीधा कपड़ों के सेक्शन में आ जाना।


भूमि:- ठीक है दीदी।


आर्य एक्सेसरीज सेक्शन में गया और अपने काम की चीजें ढूंढने लगा। वह एक शेल्फ से दूसरे शेल्फ तक नजर दौरा ही रहा था, तभी मानो पीछे से कोई बिलकुल चिपक सा गया हो। वह अपने होंठ आर्यमणि के कान पास लाते.… "मेरी जेब में एक पिस्तौल है, जिसकी नली तुम पर है। बिना कोई होशियारी किए चलो"…


आर्यमणि चुपचाप उनके साथ निकला। वो लोग मॉल से बाहर निकलकर उसके पार्किंग में चले आए, जहां एक गाड़ी के बोनट पर एक आदमी बैठा था और उसके आस–पास 8–10 लोग थे। जैसे ही वह आदमी आर्यमणि को पार्किंग के उस जगह तक लेकर आया जहां गुंडे सरीखे लोग थे.… "इसे ले आया छपड़ी भाई"…


आर्यमणि को जो साथ लेकर आया था वह शायद बोनट पर बैठा उस बॉस से कह रहा था, जिसका नाम छापड़ी था.… छपड़ी हाथ के इशारे से अपने पास बुलाया और आर्यमणि को घुरकर देखते.… "हां यही लड़का है। जल्दी मार कर काम खत्म करो।"


छपड़ी ने हुकुम दिया और पीछे खड़ा आदमी ने तुरंत ही एक राउंड फायर कर दिया। आर्यमणि को कमर के ऊपर गोली लगी और वह दर्द से बिलबिला गया। लेकिन गोली लगने के बावजूद भी आर्यमणि खड़ा रहा। जिसे देख छपड़ी हंसते हुए.… "लड़के में दम है बे, जल्दी से गिरा"… इतना कहना था कि फिर सामने से 2 और राउंड फायर हो गए। आर्यमणि को दर्द तो बेहिसाब हो रहा था लेकिन फिर भी वह खड़ा था।


छपड़ी अपनी बड़ी सी आंखें फाड़े... "अबे ये किसकी सुपाड़ी उठा लिया। कहीं रजनीकांत का फैन तो नही"...


छपड़ी ने जैसे ही अपनी बातें पूर्ण किया तभी फिर से लोग फायरिंग करने को तैयार। लेकिन इस बार छपड़ी उन्हे रोकते.… "अबे 3 राउंड तो मार ही दिए। अब क्या बदन में पूरा छेद ही कर दोगे। रुको जरा इसके स्टेमिना का राज भी पूछ ले। क्यों बे चूजे तू है कौन और ये कैसे कर रहा है?"..


आर्यमणि एक नजर दौड़ाकर चारो ओर देखा और अगले ही पल सामने बोनट पर बैठे छपड़ी को बाल से पकड़ कर बोनट पर ऐसा मारा की उसका सिर ही बोनट को फाड़कर अंदर घुस गया। उसके अगले ही पल अपने पीछे खड़े उस आदमी को गर्दन से पकड़ा और कुछ फिट दूर खड़े किसी दूसरे आदमी के ओर फेंक दिया। ऐसा लगा जैसे काफी तेज गति से 2 तरबूज टकराए हो और टकराने के बाद बिखड़ गए। ठीक वैसा ही हाल उन दोनो के सिर का भी था।


महज चंद सेकेंड में तीन लोग की कुरूरता पूर्ण तरीके से हत्या देखकर, बाकी के लोग भय से मूत दिए। हलख से बचाओ, बचाओ की चीख निकल रही थी। और पार्किंग में जो भी लोग उनकी दर्दनाक चीख सुनते, वह पहले खुद अपनी जान बचाकर भागते। और इधर आर्यमणि उन सबको अपना परिचय देने में व्यस्त था। आखरी का एक लड़का बचा जो हाथ पाऊं जोड़े नीचे जमीन पर बैठा था.…


आर्यमणि:– नागपुर में पहले दिन ही मेरा बड़े ही गर्म जोशी के साथ स्वागत हुआ है। ऐसा स्वागत करने वाला कौन था..


वह लड़का अपने कांपते होटों से.… "अ.. क.. क.. छ.."


आर्यमणि:– ओह तो इन्होंने इतने गर्मजोशी से स्वागत किया गया है... खैर अब तू ध्यान से सुन, तुझे क्या करना है। यहां से जा और अपने मालिक से कहना की उनका पाला किसी भूत से पड़ा है, तैयारी उसी हिसाब से करे। हां लेकिन 2 बात बिलकुल भी नहीं होनी चाहिए...


लड़का:– क… क... कौन सी.. बा... त


आर्यमणि:– पहली मुझे यह बिलकुल भी नहीं पता की तुम लोगों को किसने भेजा और दुसरी पुलिस को मेरे खिलाफ एक भी सबूत न मिले... दोनो में से किसी एक में भी चूक हुई, तो मैं तुम्हे दिखाऊंगा कि कैसा लगता है अपने शरीर की चमड़ी को अपने आंखों से उतरते देखना। कैसा लगता है जब तुम दर्द से 10 दिन तक लगातार बिलबिलाते रहो और हर पल ये सोचो की तुम्हे मौत क्यों नही आती?


लड़का:– स.. समझ.. गया..


लड़का वहां से भाग गया। आर्यमणि अपने बड़े से नाखून से अपने शरीर में घुसी गोली को निकाला और वापस शॉपिंग मॉल चला आया। शाम 7 बजे तक आर्यमणि अपने सबसे बड़े भाई तेजस के शॉपिंग मॉल से लाखों का शॉपिंग कर चुका था। बिल देने कि जब बारी आयी तब भूमि जान बूझकर आर्यमणि को बिल काउंटर पर भेज दी, और खुद अपने बड़े भाई तेजस के चेंबर के ओर चल दी। बिल काउंटर पर 11 लाख 22 हजार का बिल बन गया। पेमेंट की जब बारी आयी तब आर्यमणि ने साफ कह दिया, बिल उसके दादा पेमेंट करेंगे। लोग पेमेंट के लिए कहते रहे लेकिन आर्यमणि जिद पर अड़ा रहा।


माहौल बिगड़ता देख मैनेजर, आर्यमणि को अपने साथ ले जाते हुए, केबिन में बिठाया…. "सर, आप अपने दादा की डिटेल दे दीजिए, मै उनसे ही बात कर लूंगा।"..


आर्यमणि एक बार फिर उस मैनेजर के सब्र का इम्तिहान लेते हुए कह दिया.… "मैं अपने दादा की डिटेल मैनेजर को क्यों दूं... मैं केवल यहां के मालिक को हो दूंगा।"


मैनेजर ने लाख मिन्नतें किए। जब बात न बनी तो पुलिस बुलाने अथवा सारा सामान छोड़कर जाने तक की बात भी कह डाली, लेकिन आर्यमणि शायद बड़े से फाइट के बाद थोड़े मस्ती के मूड में था और लगातार मैनेजर को चिढ़ाते हुए एक ही रट लगाए था.… "वह मैनेजर की एक कही बात न मानेगा। जो भी बात होगी अब तो मॉल के मालिक से ही बात होगी"…
Ummdha update
 

Zoro x

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बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
परहरीयों की लगने वाली हैं
जिसे ढ़ुढ़ने आएं वो मिलें या ना मिलें लेकिन प्रहरी होने का उनका घमंड जरुर चकनाचूर होने वाला हैं यहां

भाग:–40





सुबह सबका नाश्ता एक साथ हो रहा था। दल में २ वेयरवोल्फ रूही और अलबेली भी थी, जिन्हे सब बहुत ही ओछी नजरों से देख रहे थे। खैर सुबह के नाश्ते के बाद ही सुकेश से एक रेंजर मिलने पहुंचा, जिसने जंगल के मानचित्र पर उस जगह को घेर दिया जहां रीछ स्त्री के होने की संभावना थी। सतपुरा के उस पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचने में लगभग १२ घंटे का वक्त लगता। सभी दल ने अपना बैग पैक किया और अपने–अपने टीम के साथ निकल गए।


रात के ८ बजे सभी लोग उस जगह पर थे, जहां से छान–बिन करते हुए अगले ६ दिनो में उस सीमा तक पहुंचना था, जिसके आगे कथित तौर पर रीछ स्त्री ने अपना क्षेत्र बांधा था। सभी लोग उसी स्थान पर कैंप लगाकर सो गए। एक बड़े से हिस्से में बड़े–छोटे तकरीबन 20 टेंट लगा हुआ था। उसके मध्य में आग जल रही थी। आग के पास बारी–बारी से कुछ लोग बैठकर पहरा दे रहे थे।


मध्य रात्रि का वक्त था। शरद हवाओं के कारण चारो ओर का वातावरण बिलकुल ठंडा था। काली अंधेरी रात में जंगली जानवरों की आवाज चारो ओर गूंज रही थी। पहरेदार आग के पास बैठकर अपने शिकार के किस्से सुना रहे थे। आर्यमणि और निशांत अपने–अपने टेंट में सो रहे थे, तभी आर्यमणि के टेंट में रूही घुसी... "बॉस उठ जाओ"… हालांकि आर्यमणि तो पहले से जाग रहा था। रूही ने मुंह से जो भी कहा लेकिन अपनी भौह और आंखें सुकोडकर मानो कह रही हो... "क्यों नाटक कर रहे, तुमने सब सुना न"


आर्यमणि अपने पलकें झपका कर शांत रहने का इशारा करते.… "क्या हुआ रूही?"


रूही:– सरदार खान आया है, वो तुमसे मिलना चाहता है।

आर्यमणि:– सरदार खान यहां कैसे आ गया। और उसे मुझसे बात करनी है तो तुम्हारे टेंट में क्यों आया है? क्या उसे किसी प्रहरी ने नही देखा?


वेयरवोल्फ एक खास कम्युनिकेशन कर सकते है। लगभग 1किलोमीटर की दूरी से भी कोई बुदबुदाए तो वेयरवोल्फ सुन सकते हैं। सरदार खान ने ऐसे ही रूही को संदेश भेजा था, जिसे अलबेली और आर्यमणि दोनो ने सुना, लेकिन आर्यमणि अनजान बने हुआ था।


रूही:– एक खास कम्युनिकेशन के जरिए हम बात कर सकते हैं। यहां तक कि हम जो भी यहां बात कर रहे वह दूर बैठे सुन रहा होगा...


आर्यमणि:– ये तो काफी रोचक गुण है। चलो चलकर देखा जाए की क्यों सरदार खान की छाती में मरोड़ उठ रहा।


रूही "बिलकुल बॉस" कहती आगे बढ़ी, पीछे से आर्यमणि चल दिया। रूही, आर्यमणि को लेकर सरदार खान के निर्देशानुसार वाली जगह पर पहुंची। निर्धारित जगह पर रुकने के साथ ही आर्यमणि 10 फिट हवा में ऊपर उछल गया और उसके सीने पर से टप–टप खून टपकने लगा। सरदार खान द्वारा आर्यमणि पर सीधा हमला वह भी प्राणघाती।


आर्यमणि, हवा में ही तेज चिल्लाया... "रूही किनारे हटो"… हालांकि रूही भी तैयार थी और वक्त रहते वह किनारे हट गई। सरदार खान अपने विकराल रूप में चारो ओर के चक्कर लगा रहा था। काली अंधेरी रात में जब अपनी लाल आंखों से रूही और आर्यमणि ने उसे देखा, तब ऐसा प्रतीत हुआ मानो चार पाऊं पर खड़े किसी दानव का विकराल रूप देख रहे हो।


उसकी काली चमड़ी काफी अलग और शख्त दिख रही थी। इतनी शख्त की लोहे के १०० फिट की दीवार से भी टकराए तो उस दीवार को ध्वस्त कर दे। बदन के चारो ओर मानो हल्का काला धुवां सा उठ रहा हो। उसकी चमकती लाल आंखे खौफनाक थी। उसके चारो पंजे इतने बड़े थे कि किसी भी इंसान का मुंह को एक बार में दबोच ले। उन पंजों के आगे के नाखून, बिलकुल किसी धारदार हथियार की तरह तेज, जो एक बार चले तो अपने दुश्मन का सर धर से अलग कर दे। भेड़िए की इतनी बड़ी काली शक्ल की हृदय में कंपन पैदा कर दे। उसके बड़े–बड़े दैत्याकार दांतों की बनावट, सफेद और चमकीली। नथुनों से फुफकार मारती तेज श्वास... कुल मिलाकर एक भयावह जीव बड़ी ही तेजी के साथ आर्यमणि और रूही के चारो ओर चक्कर लगा रहा था और दोनो बस उसे अपने पास से गुजरते हुए महसूस कर रहे थे।


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5–6 बार चारो ओर के चक्कर लगाने के बाद सरदार खान आर्यमणि और रूही के ठीक सामने था। आर्यमणि, रूही को अपने पीछे लिया और हाथों के इशारे से सरदार खान को आने का निमंत्रण देने लगा। मुख पर हल्की मुस्कान, चमकता ललाट और बिना भय के खड़ा आर्यमणि, मानो सरदार खान के दैत्य स्वरूप का उपहास कर रहा हो। बचा–खुचा उपहास आर्यमणि के हाथ के इशारे ने कर दिया। जुबान से तो कुछ न निकला लेकिन आर्यमणि के इशारे ने साफ कर दिया था कि... "आ जा झंडू, तुझे देख लेता हूं।"


जैसे सरदार खान के पीछे किसी ने मिर्ची डाल दी हो जिसका धुवां उसके नाक से निकल रहा हो। ठीक वैसे ही आग लगी फुफकार उसके नथुनों से निकल रही थी और फिर तीव्र वेग से गतिमान होकर सरदार खान हमला करने के लिए हवा का झोंका बन गया। 10 क्विंटल का शैतान 300/350 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ते हुए हवा में छलांग लगा चुका था। उसने अपने पंजों में जैसे बिजली भर रखा हो। चौड़े पंजे जब खुले तब उसके नाखून किसी हीरे की तरह चमक रहे थे। विकराल सा दैत्याकार वुल्फ हवा में आर्यमणि के ठीक सामने से उसके गर्दन पर अपना पंजा चलाया।


पंजा चलाने की रफ्तार ऐसी थी कि उसका हाथ दिखा ही नही। लेकिन आर्यमणि उस विकराल दानव से भी कहीं ज्यादा तेज। आर्यमणि अपने ऊपरी शरीर को इतनी तेजी में पीछे किया मानो बिजली सी रफ्तार रही हो। आर्यमणि कब पीछे हटा और वापस अपनी जगह पर आया कोई देख नहीं पाया। दर्शक की आंखों को भले बिजली की तेजी लगे, किंतु आर्यमणि अपने सामान्य गति में ही था। उसे तो बस सामान्य सी गति में ही एक धारदार पंजे का वार अपने गर्दन पर होता दिखा और वह अपने बचाव में पीछे हटकर अपनी जगह पर आया।


उसके बाद जो हुआ शब्दों में बायां कर पाना मुश्किल। रफ्तार और वार के जवाब में आर्यमणि ने जब अपना रफ्तार और वार दिखाया फिर तो तो सब स्तब्ध ही रह गए। शरदार खान हवा से तेज रफ्तार में दौड़कर छलांग लगाते आर्यमणि के सामने था। उसका पंजा जैसे ही आर्यमणि के गर्दन को छूने वाला था, आर्यमणि अपने रफ्तार का प्रदर्शन करते पीछे हुआ और गर्दन से आगे जा रहे पंजे के ऊपर की कलाई को अपने मुट्ठी में दबोच लिया। उस पंजे को मुट्ठी में दबोचने के बाद, हमला करने के विपरीत दिशा में उसके इस भुजा को इतनी ताकत से खींचा की सरदार खान का 10 क्विंटल का पूरा शरीर ही उसी दिशा में पूरी रफ्तार के साथ खींच गया।


आर्यमणि उस पंजे की कलाई को पकड़ कर पहले दाएं फिर बाएं... फिर दाएं फिर बाएं.. मानो रबर के एक सिरे पर कोई बाल लटका दिया गया हो। जिसे पकड़कर कोई बच्चा धैर–पटक दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, दाएं–बाएं, जमीन पर पटक रहा हो। पूरी रफ्तार के साथ आर्यमणि सरदार खान को दाएं और बाएं पटक रहा था। जमीन से केवल धप–धप की आवाज आ रही थी। जिस कलाई पर आर्यमणि ने अपनी पकड़ बनाई थी, वहां से मांस के जलने की बदबू आ रही थी। सरदार खान इतना तेज चिल्ला रहा था की कैंप में सोए लोग चौंक कर उठ गए। वह सभी लोग तुरंत अपने हथियार तैयार किए, टॉर्च निकाले, और तेजी से आवाज की ओर रवाना हुए। और यहां तो सरदार खान 1 सेकंड में 6 बार जमीन पर पटका जा रहा था।


महज 2 मिनट ही तो आर्यमणि ने पटका था, तभी वहां लोगों की गंध आने लगी, जो उसी के ओर बढ़ रहे थे। आर्यमणि आखरी बार उसे जमीन पर पटक कर छोड़ दिया। फुफकार मार कर दहाड़ने वाला बीस्ट अल्फा किसी कुत्ते की तरह दर्द से बिलबिलाता कुकुकु करते वहां से अपना पिछवाड़ा बचाकर भागा। सरदार खान भागते हुए जब अपना शेप शिफ्ट करके वापस इंसान बना, तब उसके एक हाथ की कलाई का मांस ही गायब था और वहां केवल हड्डियां ही दिख रही थी। शरीर के इतने अंजर–पंजर ढीले हुए थे कि खून हर जगह से निकल रहा था और आंसू आंखों की जगह बदलकर कहीं और से निकलने लगा था।


सरदार खान के गुर्गे वहीं कुछ दूर आगे खड़े तमाशा देखते रह गए। आर्यमणि ने न तो सरदार खान को उन्हे बुलाने का मौका दिया। और जिस हिसाब से आर्यमणि ने एक हाथ से पकड़कर बीस्ट रूपी सरदार खान को जमीन पर धैर–पटक किसी बॉल की तरह पटका था, उसे देख सबकी ऐसी फटी थी कि आगे आने की हिम्मत ही नहीं हुई। सरदार खान के 20 वेयरवोल्फ चेले अपने वुल्फ रूपी आकार में थे। सभी २ लाइन बनाकर खड़े हुए और 2 लाइन के बीच में सभी ने अपने कंधों पर सरदार खान को लोड करके, उसे लेकर भागे।


जबतक शिकारी पहुंचते तबतक तो पूरा माहोल ठंडा हो चुका था। रह गए थे केवल रूही और आर्यमणि। शिकारियों की भीड़ लग गई। सभी शिकारी एक साथ सवाल पूछने में लग गए। सुकेश सबको चुप करवाते... "ये लड़की यहां पर कौन सा कांड कर रही थी आर्य"… अब वेयरवॉल्फ की दर्दनाक आवाज थी तो पूछताछ की सुई भी रूही पर जा अटकी। कुछ शिकारियों के घूरती नजर और रूही के प्रति उनका हवस भी साफ मेहसूस किया जा सकता था।


निशांत, जो एक किनारे खड़ा था... "भाऊ पता लगाना तो शिकारियों का काम है न। ऐसे सवाल पूछकर प्रहरी की बेजजती तो न करो"…


भूमि का सबसे मजबूत सहायक पैट्रिक.… "यहां जो भी हुआ था उसे शायद रूही और आर्यमणि ने हल कर दिया है। हमरी मदद भी चाहिए क्या आर्यमणि?


आर्यमणि:– नही पैट्रिक सर, सब ठीक है यहां।


पलक:– लेकिन यहां हुआ क्या था? रूही ऐसे भीषण दर्द से चीख क्यों रही थी?


निशांत:– शायद कोई बुरा सपना देखकर डर गई। अब वेयरवॉल्फ है तो उसी आवाज में चीख रही थी।


कोई एक शिकारी... "हां जहां इतने प्रहरी हो वहां ऐसे सपने आने लाजमी है।"


पैट्रिक:– प्रहरी और उसके घमंड की भी एक दास्तान होनी चाहिए... एक बात मैं साफ कर दूं.. शिकारियों की अगुवाई मैं कर रहा हूं... अगली बार अपनी गटर जैसी जुबान से किसी को प्रहरी होने का घमंड दिखा तो उसके पिछवाड़े मिर्ची डालकर निकाल दूंगा... चलो सभा खत्म करो यहां से।


प्रहरी होने का अहंकार और रूही को नीचा दिखाने का एक भी अवसर हाथ से जाने नही दे रहे थे। पैट्रिक के लिए भी शायद अब सीमा पार गया हो इसलिए उसे अंत में कहना पड़ गया। खैर सभी वापस चले गए, जबकि निशांत और आर्यमणि जंगल में तफरी करने निकल गए... "तो इसलिए तूने भ्रमित पत्थर नही लिया। तेरे पास तो तिलिस्मी ताकत है।"… आर्यमणि और रूही के पीछे निशांत भी पहुंचा था। और पूरा एक्शन अपनी आंखों से लाइव देख चुका था..


आर्यमणि:– तिलिस्मी ताकत हो भी सकती है या नही भी। वैसे भी किसी को मारने के लिए यदि ताकत सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता, फिर तो हर राष्ट्र में लाठी के जोड़ पर शासन चलता।


निशांत:– अब क्या प्रवचन देगा...


आर्यमणि:– माफ करना...


निशांत:– छोड़ भी.. और ये बता की तू है क्या? क्या तू अब तंत्र–मंत्र की दुनिया का हिस्सा है या केवल एक सुपरनैचुरल है?


आर्यमणि:– हाहाहाहाहा... मतलब मैं क्या हूं वो तू भी जानना चाहता है...


निशांत:– भी का मतलब... कोई और भी है क्या?


आर्यमणि:– हां बहुत सारे लोग... लेकिन मुझे खुद पता नही की मैं क्या हूं...


कुछ आंखों में इशारे हुए और निशांत बात को बदलते... "तू चुतिया है। काम पर ध्यान दे। हमे यहां पता क्या करना है?


आर्यमणि:– कौन सी विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ सकता है और उस से निकले कैसे...


निशांत, अपने मोबाइल की स्क्रीन पर लिख कर स्क्रीन आर्यमणि के सामने कर दिया... "क्या हमे यहां कोई देख और सुन रहा है।"..


आर्यमणि, अपने मोबाइल में लिखकर स्क्रीन निशांत के सामने दिखाते... "माहोल देखकर समझ में नहीं आ रहा क्या? किसी को कुछ पता नही है कि करना क्या है, फिर भी सबको यहां ले आए हैं।


निशांत:– हे भगवान... यानी बहुत से लोग बलि चढ़ेंगे और पीछे रहकर कुछ लोग प्लान बनायेंगे..


आर्यमणि:– हां, भूमि दीदी की पूरी टीम है यहां। और मुझे लगता है कि भूमि दीदी बहुतों को खटकने लगी है..


निशांत:– पूरा फैसला तो पलक का था...


आर्यमणि:– यहां का मकड़जाल समझना थोड़ा मुश्किल है। कौन है वो सामने नहीं आ रहा, लेकिन पूरे खेल इशारों पर ही खेल रहा..


निशांत:– मुझे तो सुकेश भारद्वाज और उज्जवल भारद्वाज पर ही शक है। दोनो के शक्ल पर धूर्त लिखा है।


आर्यमणि:– पता नही..


निशांत:– पता नही का मतलब..


आर्यमणि:– मुझे बहुत सी बातें पता चली है, लेकिन हर बात एक ही सवाल पर अटक जाती है...


निशांत:– कौन सी?


आर्यमणि:– इतना कुछ करने के पीछे का मकसद क्या है?


निशांत:– देखा जाए तो यही सवाल तुम्हारे लिए भी है। जैसा मैंने तुझे लड़ते देखा, अब ऐसा तो नहीं है कि नागपुर आने के बाद सीखे हो। हर किसी को लगता है कि तुझमें कुछ खास है, लेकिन तुझमें वह खास क्या है, सबके लिए बड़ा सवाल है? और उस से भी बड़ा सवाल.. तू नागपुर किस मकसद से आया है? देख ये मत कहना की मेरे और चित्रा के लिए आया है। यह एक वजह हो सकती है लेकिन तेरे आने की सिर्फ यह वजह तो बिलकुल भी नहीं...


दोनो ही टेक्स्ट–टेक्स्ट लिख कर बातें कर रहे थे। निशांत के टेक्स्ट पढ़ने के बाद आर्यमणि मुस्कुराते हुए अपने स्क्रीन पर लिखते... "मैं एक वेयरवॉल्फ ही हूं। तुमने उस दिन बिलकुल सही परखा था। लेकिन मुझ पर वेयरवोल्फ या इंसानों के कोई नियम लागू नहीं होते...


निशांत:– तू कौन सा वेयरवोल्फ है, उसका डिटेल लिटरेचर दे।


आर्यमणि एक पेज खोलकर अपना मोबाइल निशांत के हाथ ने थमा दिया। निशांत जैसे–जैसे उस लिटरेचर को पढ़ता गया, आंखें बड़ी और उत्साह पूरे जोश के साथ अंदर से उफान मार रहा था। पूरा पढ़ने के बाद... "मुझे सिटी बजाने का मन कर रहा लेकिन बजा नही सकता"..


आर्यमणि:– हां मैं तुम्हारे इमोशन समझ सकता हूं।


निशांत:– खैर वुल्फ होकर तू प्रहरी के बीच आया, इसके पीछे कोई बहुत बड़ी तो वजह रही ही होगी...


आर्यमणि:– पीछे की वजह जानेगा तो तू मुझे चुतिया कहेगा। बस २ सवाल के जिज्ञासा में आया था.. और यहां आकर वही पुरानी आदत, पूरा रायता फैला दिया..


निशांत:– क्या बात कर रहा है... मतलब तूने किसी की मार रखी है और मुझे बताया तक नही...


आर्यमणि:– अभी धीमा पाइल्स दिया है। रोज सुबह दर्द में गुजरता होगा और पूरा दिन दर्द का एहसास बना रहता होगा...


निशांत:– किसकी...


आर्यमणि:– इन्ही प्रहरियों की, और किसकी... साले नालायक खुद को इंसानों से भी बढ़कर समझते हैं।


निशांत:– लगा–लगा इनकी लंका लगा... एक मिनट कही इन सबके बीच तू मेरे बाप की भी लंका तो नही लगा रहा...


आर्यमणि:– तूने इंसेप्शन मूवी देखी है..


निशांत:– हां..


आर्यमणि:– जैसे वहां सपने के अंदर सपना और उसके अंदर एक और सपना होता है, ठीक वैसा ही है..


निशांत:– मतलब यहां प्रहरी में जितने भी चुतिये है, उनके पीछे भी कोई चुतिया है..


आर्यमणि:– हाहाहाहा... बस यहीं एक जगह लोचा है। हर बॉस के ऊपर एक बिग बॉस होता है ये तो सब जानते हैं लेकिन यहां सब आबरा का डबरा चल रहा है... जल्द ही समझ जायेगा... यहां सभी बिग बॉस ही है.. दिखता ताकत और पैसे का करप्शन ही है.. लेकिन इन सबके बीच कोई बड़ा खेल चल रहा जो दिख रहे प्रहरी करप्शन से कहीं ज्यादा ऊपर है...


निशांत:– सस्पेंस में छोड़ रहा...


आर्यमणि:– मैं खुद सस्पेंस में हूं, तुझे क्यों छोड़ने लगा? ताकत और पैसे के ऊपर क्या हो सकता है?


निशांत:– मतलब तू उन सबके बारे में जानता है कि वो कौन है, लेकिन उनके दिमाग में क्या चल रहा ये नही जानता...

आर्यमणि:– सबके बारे में जानता हूं ऐसा तो नहीं कह सकता लेकिन पहले दिन से बहुत से लोगों के बारे में जानता हूं... तभी तो उसका मकसद जानने में रायता फैल गया है...


निशांत:– चल ठीक है तू जैसा ठीक समझे वैसा कर। लेकिन यहां आए शिकारियों को तो बचा ले। जनता हूं कि यहां भी कुछ प्रहरी साले घमंडी है, लेकिन बहुत से नही...


आर्यमणि:– चल मोबाइल बंद करते हैं। आराम से आज और कल का दिन बिताते है, उसके बाद सबको पीछे छोड़कर हम तीसरे दिन रीछ स्त्री के इलाके में घुस जायेंगे...


प्रहरी के काम करने का तरीका पहली बार कोई बाहर वाला देख रहा था। आर्यमणि, निशांत, रूही और अलबेली इन्हे देखकर ऊब से गए थे। यूं तो ३ टीम, ३ अलग–अलग रास्तों से छानबीन करती, लेकिन तीन दिशा से 40–50 लोगों के फैलने की भी तो जगह हो। हर कोई एक पता लगाते–लगाते एक दूसरे के दिशा में ही पता लगाना शुरू कर देते। हां लेकिन क्या पता लगा रहे थे वह किसे पता। किसी को घंटा पता नही था कि छानबीन में क्या करना है। कहने का अर्थ है कि छानबीन में बहुत कुछ पता लगाया जा सकता था, जैसे की पाऊं के निशान। कपड़े का मिलना, कोई अनुष्ठान, इत्यादि। लेकिन 5–6 किलोमीटर के इलाके को आगे 6–7 दिन तक जांच करना था, फिर होगा क्या?… ये टट्टी फलाना जानवर की। झुंड में टट्टी कर गए.. यहां खून के निशान है, लगता है रीछ स्त्री घायल हो गई.... लगता है यहां वुल्फ भी है... ऐसे–ऐसे लॉजिक जिनका कोई सर–पैर नही था।


सबको आए ३ रात हो चुके थे। कथित तौर पर रीछ स्त्री की सीमा 3 किलोमीटर और दूर था, जिसे बचे २ दिन में पूरा करना था। आर्यमणि और उसकी टीम पूरी तरह से बोर हो चुकी थी। बस एक पलक थी जो सबको अनुशासन और हर बारीकियों पर ध्यान देने कह रही थी। ३ दिन तक तो सभी ने पलक रानी की बात सुनी। चौथे दिन मानो सारे अनुशासन का चौथा कर दिया हो। सुबह कैंप में कोई मिला ही नहीं। मिला तो बस एक नोट... "हम चंद्र ग्रहण की शाम बॉर्डर पर पहुंच जायेंगे... हमारी छानबीन पूरी हुई"… ऐसा सब लिखकर गायब थे।


अलबेली और रूही नए जंगल का भ्रमण करने दूर तक निकल चुकी थी। आर्यमणि और निशांत तो अलग ही फिराक में थे, वो दोनो रीछ स्त्री की कथित सीमा तक पहुंच चुके थे। और अब बातें करते हुए आगे भी बढ़ रहे थे.…


निशांत:– अबे ३ किलोमीटर दूर सीमा थी न.. हम तो ४ किलोमीटर आगे आ गए होंगे... कहीं दिख रही रीछ स्त्री क्या?


आर्यमणि:– कुछ दिख तो रहा है, लेकिन शायद ये रीछ स्त्री नही है...


निशांत ने भी उसे देखा और देखकर अपने मुंह पर हाथ रखते.… "वेंडिगो सुपरनैचुरल"


वह क्षीणता के बिंदु पर था। उसकी सूजी हुई त्वचा उसकी हड्डियों पर कसकर खींची गई थी। उसकी हडि्डयां उसकी खाल से बाहर निकल रही थी। उसका रंग मृत्यु के भस्म सा धूसर हो गया था और उसकी आंखें अंदर गहराइयों में घुसी थी। एडियाना का सेवक सुपरनैचुरल वेंडीगो हाल ही में कब्र से विस्थापित हुए एक कठोर कंकाल की तरह लग रहा था। उसके जो होंठ थे वे फटे हुए और खूनी थे। उसका शरीर अशुद्ध था और मांस के दबाव से पीड़ित था, जिससे सड़न, मृत्यु और भ्रष्टाचार की एक अजीब और भयानक गंध आ रही थी। पास ही पड़े वह किसी इंसान के मांस को नोच–नोच कर खा रहा था।



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Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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Amazing update Bhai ❤️,
Jese ki guru ji ne bataya parallel world vichitra jeev rehte hai to kya apni kahani me jo supernaturals hai vo bhi unhi se connected hai ??
Ar kya esa ho sakta hai ki vo विग्गो सिग्मा maha yodha aaya tha other world se mahajanika se fight krne vo kissi trah kahani me aage chlkr Arya se connect ho jaae ya guru ban jaae Arya ka ya something like that,😅😅😅😅😅

Once again awesome update 👍🏻🙏
Aapko Nainu bhaya ke story collection ko Pahle padhna chahiye, aisa kariye Aap sath sath Pahle Bhanvar padh ligiye fir uske baad isqe risk 1st and uske baad 2nd padh ligiyega, Aapko maza na aaye aisa ho hi nhi sakta...
 
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