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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–37






नागपुर शहर.... मीटिंग खत्म होने के ठीक एक दिन बाद…..


सुकेश की बुलावे पर बड़ी सी महफिल सजी हुई थी। जहां प्रहरी और आर्यमणि दोनो साथ बैठे थे। जिस गरज के साथ पलक प्रहरी सभा में बरसी थी, उसपर पुरा घर रह-रह कर गर्व महसूस कर रहा था। लेकिन बोलने के बाद अब करने का वक्त था और जरूरी था पलक खुद को साबित करके दिखाये। पलक की अगुवाई में चल रही रीछ स्त्री की खोज भी पूरी हो चुकी थी, और उसे धर–दबोचने की तैयारी में यह सभा रखी गयि थी।


सुकेश:– बहुत ज्यादा वक्त न लेते हुये मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं। वाकी वुड्स में क्या हुआ था इस बात से सभी भली भांति परिचित होंगे। पलक जब विशेष जीव साखा की अध्यक्ष बनी, तभी उसने मुझे रीछ स्त्री को दूंढने का काम सौंपा। मैने इस काम में अपने कुछ खास सहयोगियों को लगाया था और अब हमारे पास रीछ स्त्री की पक्की खबर है...


पूरी सभा लगभग एक साथ... "कहां है वह अभी"…


सुकेश:– खबरों की माने तो वह रीछ स्त्री सतपुरा के घने जंगलों के बीच, वहां स्थित पर्वत श्रृंखला के एक मांद में छिपी है। आसपास के लगभग 5 किलोमीटर का दायरा उसका विचरण क्षेत्र है, जिसके अंदर कोई नही जा सकता।


भूमि:– कोई नही जा सकता, यह कैसे पता चला? क्या अंदर घुसने की कोशिश में किसी पर हमला हुआ या जान से मार दिया गया?


सुकेश:– पूरी जानकारी तो मुझे भी नही। खबरियों द्वारा जो खबर मिली उसे बता रहा हूं। जबतक वहां छानबीन के लिये नही जायेंगे, पूरी बात पता नही चल सकती। हां पर खबर पक्की है कि रीछ स्त्री वहीं है।


भूमि:– हां तो देर किस बात की है। हम कुछ टुकड़ी के साथ चलते हैं और उस रीछ स्त्री को पकड़ कर ले आते हैं।


पलक:– भूमि दीदी जाने से पहले थोड़ा यह जान ले की हम किसके पीछे जा रहे। यह कोई साधारण सुपरनेचुरल नही बल्कि काफी खरनाक और दीर्घायु सुपरनैचुरल है। सोचो कितना उत्पात मचाया होगा, जो इसे विष मोक्ष श्राप से बंधा गया था। इसका दूसरा मतलब यह भी निकलता है कि उस दौड़ में विकृत रीछ स्त्री को मार नही पाये होंगे इसलिए मजबूरी में कैद करना पड़ गया होगा।


भूमि:– ठीक है तुम इंचार्ज हो, तुम्ही फैसला करो...


पलक:– पैट्रिक और रिचा की टीम तेजस दादा के नेतृत्व में काम करेगी। सुकेश काका, बंगाल की मशहूर जादूगरनी ताड़का और उसके कुछ चेलों के साथ अपनी एक टुकड़ी लेकर जायेंगे। आर्यमणि के अल्फा पैक के साथ मैं एक टुकड़ी लेकर जाऊंगी। आज शाम ही हम सब सतपुरा जंगल के लिये निकलेंगे। हम सबसे पहले सतपुरा के पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचेंगे और वहां से अलग–अलग दिशाओं से जांच करते हुये, ठीक 7 दिन बाद, चंद्र ग्रहण से ठीक एक दिन पूर्व, रीछ स्त्री के उस 5 किलोमीटर वाले दायरे के पास एकत्रित होंगे। वहां हम पूरी रणनीति बनायेंगे और चंद्र ग्रहण की रात उस रीछ स्त्री को बांधकर नागपुर प्रहरी कार्यालय में कैद करेंगे।


भूमि:– मेरी नेतृत्व वाली सभी टुकड़ी को ले जा रहे और मुझे ही अगुवाई का मौका नहीं मिल रहा...


पलक:– दीदी आप यहां आराम करें और आपकी टुकड़ी में जो बेहतरीन शिकारी है उसे भी ऊपर आने का मौका दें।


भूमि, पलक के इस जवाब पर केवल मुस्कुरा कर अपनी प्रतिक्रिया दी। सभा में सभी फैसले लेने के बाद सभा स्थगित हो गया और सब शाम में निकलने की तैयारी करने लगे। तैयारी में तो आर्यमणि भी लग गया। जहां एक ओर लोगों को शिकारी होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था, वहीं आर्यमणि और निशांत २ ऐसे नाम थे जो पैदा ही शिकारियों के गुण के साथ हुये थे। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण तो लोपचे का खंडहर था, जहां कई माहिर शिकारी को दोनो चकमा देकर सुहोत्र को ले उड़े। आर्यमणि भला जंगल के इस मिशन में निशांत को साथ क्यों नही लेता। बाकी सब अपनी रणनीति में और दोनो दोस्त अपनी...


निशांत:– मजा आयेगा आर्य, लेकिन ये तो बता की हमे वहां करना क्या होगा?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नही। शायद जंगल के अंदर कुछ छानबीन और उस विकृत रीछ स्त्री को पकड़े कैसे?



निशांत, थोड़ा आश्चर्य में... "यानी जिसे पकड़ने जा रहे उसके विषय में कोई ज्ञान नहीं?"


आर्यमणि:– इतना चौंक क्यों रहा है?


निशांत:– यार ये तो आत्महत्या करने जैसा है। इतिहास के सबसे शक्तिशाली मानव प्रजाति जो हजारों वर्ष तक जिंदा रह सकते थे। जिनके शक्तियों का विस्तृत उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक है। जिसका एक योद्धा जम्बत जी का उल्लेख सतयुग से लेकर द्वापरयुग तक मिलता है। और यदि इस रीछ स्त्री की बात करे तो वह गवाह होगी द्वापर युग की। जो स्त्री महाभारत के समकालीन है और कलयुग में आज तक जिंदा है। उसे बस ऐसे हवा–हवाई रणनीति से पकड़ने जा रहे। उसे पकड़ने भी जा रहे हो या उसके पैरों में गिड़कर उसका चेला बनना है? क्योंकि ऐसी रणनीति का तो यही निष्कर्ष निकलता है कि किसी तरह पता करो की वह शक्तिशाली रीछ स्त्री कहां है ताकि उसके पैरों में गिरकर उसे अपने ओर मिला ले और अपनी भी मनचाही मनोकामना पूर्ण हो जाए...


आर्यमणि:– तो क्या करे, न जाएं...


निशांत:– हम जायेंगे लेकिन इन फालतू प्रहरी के भरोसे नहीं जायेंगे... हमे अपने जंगल (गंगटोक के जंगल) के बारे में पता था कि वहां हमारा सामना किस जानवर और किन–किन विषम परिस्थितियों से हो सकता था। इसलिए संकट कितना भी अचानक क्यों न आये हमे समस्या नहीं होती। हम यहां भी ठीक वैसा ही करेंगे...


आर्यमणि:– हम्मम.. ठीक है हम खरीदारी करते हुये डिस्कस कर लेंगे, लेकिन सबसे पहले मैं तुम्हे कुछ दिखाना चाहता हूं...


इतना कहकर आर्यमणि अपने कमरे का दरवाजा बंद किया। बिस्तर के नीचे पड़ा अपना बैग निकाला। यह लाइफ सपोर्टिंग बैग था। ऐसा ही एक बैग निशांत के पास भी हमेशा रहता है। आर्यमणि उसके अंदर से सभी समान बाहर निकलने के बाद आखरी में सबसे नीचे से एक पोटली निकाला... पोटली को देखते ही निशांत की आंखें बड़ी हो गई... "लोपचे का भटकता मुसाफिर। आर्य, इसे साथ लेकर घूम रहे"…


आर्यमणि:– ऐडियाना का मकबरा कहां है...


निशांत:– मध्य भारत के जंगल में..


आर्यमणि:– मैप में देखकर बताओ की मध्य भारत का जंगल कहां है?


निशांत:– बताना क्या है... वही सतपुरा का जंगल.. लेकिन तुम दोनो बातों में क्या समानता ढूंढ रहे हो?..


आर्यमणि:– लोपचे के भटकते मुसाफिर की माने तो एडियाना के मकबरे में 3 चीजों का उल्लेख है, जो हर किसी को पता है... पुर्नस्थापित अंगूठी (restoring ring), बिजली की खंजर और...


निशांत उसे बीच में ही रोकते.… "और बहरूपिया चोगा... यानी वो रीछ स्त्री मध्य भारत के जंगल में इन्हे ही ढूंढने निकली है।"..


आर्यमणि:– दोनो ही बातें है, हो भी सकता है और नही भी। रीछ स्त्री अपने कैद से बाहर निकलने के बाद जो भी अपना लक्ष्य रखे, उसके लिए सबसे पहले उसे खुद के अंदर क्षमता विकसित करनी होगी। जिसके लिए उसे कम से कम 500–600 दिन तो चाहिए। यदि उसे ये सब जल्दी निपटाना हो तब...


निशांत:– तब तो उसे कोई जादू ही चाहिए। और ऐसा ही एक जादू वहां के जंगल में भी है... पुर्नस्थापित अंगूठी... हाहाहाहाहा..


आर्यमणि:– हाहाहाहाहा.. और उस गधी को पता नही होगा की वहां तो लोपचे के भटकते मुसाफिर ने लोचा कर दिया था...


लोपचे के भटकते मुसाफिर यानी की पारीयन लोपचे, सुपरनैचुरल के बीच काफी प्रसिद्ध नाम है। इसे खोजी वुल्फ भी कहा जाता है। पहला ऐसा लोन वुल्फ, जो अपनी मर्जी से ओमेगा था। कई साधु, संत, महात्मा, और न जाने कितने ही दैत्य दानव से वह मिला था। उस दौड़ के योगियों का चहेता था और किसी भी प्रकार के खोज में, खोजी टुकड़ी के अगुवाई पारीयान लोपचे ही करता था। उसके इसी गुण के कारण से पारीयान लोपचे को लोपचे का भटकता मुसाफिर कहा जाता था। अपने खोज के क्रम में वह साधु, योगियों और आचार्य का इतना चहेता हो चुका था कि गुरुओं ने उसे सिद्ध की हुई भ्रमित अंगूठी (illiusion ring) दिया था।


सुनने में भले ही यह जादू कला की छोटी सी वस्तु लगे लेकिन यह वस्तु उस चींटी के भांति थी, जो किसी हांथी के सूंड़ में घुसकर उसे धाराशाही कर सकती थी। कहने का अर्थ है, बड़े से बड़ा दैत्य, काला जादूगर, शिकारी, वीर, फौज की बड़ी टुकड़ी, कोई भी हो.… उन्हे किसी को मारने के लिए सबसे जरूरी क्या होता है, उसका लक्ष्य। सामने लक्ष्य दिखेगा तभी उसको भेद सकते हैं। यह भ्रमित अंगूठी लक्ष्य को ही भटका देती थी। यदि सामने दिख रहे पारीयान पर कोई तीर चलता तो पता चलता की वह तीर जैसे किसी होलोग्राफिक इमेज पर चली। कोई काला जादूगर यदि उसके बाल को लेकर, किसी छोटे से प्रतिमा में डालकर, उसका जादुई स्वरूप तैयार करके मारने की कोशिश करता, तब पता चलता की यह काला जादू भी बेअसर। क्योंकि भ्रमित अंगूठी पारीयान के अस्तित्व तक को भ्रमित कर देती थी।


उसी दौड़ में कुख्यात जादूगर महाकाश्वर और एडियाना की जोड़ी काफी प्रचलित हुई थी। इन्होंने अपने तंत्र–मंत्र और शातिर दिमाग से सबको परेशान कर रखा था। लेकिन कहते हैं ना आस्तीन का सांप सबसे पहले अपने को ही डस्ता है। जादूगर महाकाश्वर ने भी एडियाना के साथ वही किया। पहले छला... फिर उसकी ताकत हासिल की और एडियाना की ताकत हासिल करने के बाद, उसकी तीन इच्छाओं के साथ उसके मकबरे में दफन कर दिया। ये वही तीन इच्छा थी जिसके छलावे में एडियाना फंसी थी। एडियाना बर्फीले रेगिस्तान (रूस के बर्फीला इलाका) की खौफनाक शैतान कही जाती थी, जो अपने लाखों सेवक विंडीगो सुपरनेचुरल के साथ राज करती थी। ऐडियाना एक कुशल जादूगर तो थी लेकिन मध्य भारत के जादूगर महाकाश्वर की उतनी ही बड़ी प्रशंसक भी।


अभी के वक्त में जो तात्कालिक मंगोलिया है, उस जगह पर जादूगर की एक सभा लगी थी। उसी सभा मे महाकाश्वर की मुलाकात एडियाना से हुई थी। यूं तो जादूगरों की यह सभा साथ मिलकर काम करने के लिए बुलाई गई थी, लेकिन जहां एक ओर एडियाना अपनी बहन तायफा से मिलने पहुंची थी। वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसी तायफ़ा को मारने पहुंचा था। जीन–जिन को भ्रम था कि वह दिग्गज जादूगर है, वह सभी २ पाटन के बीच में पिस गए। एक ओर एडियाना अपनी बहन को बचा रही थी, वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसे मारने का प्रयास कर रहा था।


जादूगरों का गुट २ विभाग में विभाजित हो गया, जहां मेजोरिटी लेडीज के पास ही थी। लेकिन महाकाश्वर के लिए तो भाड़ में गए सब और ठीक वैसा ही हाल एडियाना का भी था। दोनो लगातार लड़ते रहे। उस लड़ाई में वहां मौजूद सभी जादूगर मारे गए फिर भी लड़ते रहे। जिसके लिए लड़ाई शुरू हुई, तायफा, वो भी कब की मर गई। लेकिन इनका लड़ाई जारी रहा। एडियाना बर्फ की रानी थी, तो महाकाश्वर आग का राजा। एडियाना भंवर बनाती तो महाकाश्वर पहाड़ बन जाता। कांटे की टक्कर थी। मंत्र से मंत्र भीड़ रहे थे और आपसी टकराव से वहां के चारो ओर विस्फोट हो रहा था, लेकिन दोनो पर कोई असर नहीं हो रहा था।


एडियाना ने फिर एक लंबा दाव खेल दिया। अपने सुपरनैचुरल विंडिगो की पूरी फौज खड़ी कर दी। लाखों विंडिगों एक साथ महाकाश्वर पर हमला करने चल दिए। किसी भी भीड़ को साफ करना महाकाश्वर के लिए चुटकी बजाने जितना आसान था। लेकिन एडियाना के अगले दाव ने महाकाश्वर के होश ही उड़ा दिए। महाकाश्वर ने विंडिगो की भीड़ को साफ करने के लिए जितने भी मंत्र को उनपर छोड़ा, विंडिगो उन मंत्रो के काट के साथ आगे बढ़ रहे थे। महाकाश्वर को ऐसा लगा जैसे एडियाना एक साथ सभी विंडिगो में समा गई है, जो मंत्र काटते आगे बढ़ रहे। कमाल की जादूगरी जिसके बारे में महाकाश्वर को पता भी नही था। हां लेकिन वो विंडिगो से खुद की जान तो बचा ही सकता था। महाकाश्वर ने तुरंत पहना बहरूपिया चोगा और अब हैरान होने की बारी एडियाना की थी।


बहरूपिया चोगा से भेष बदलना हो या फिर किसी रूप बदल मंत्र से, लेकिन जो महाकाश्वर ने किया वह अद्भुत था। जादू से किसी का रूप तो ले सकते थे लेकिन जिसका रूप लिया हो, खुद को उसकी आत्मा से ही जोड़ लेना, यह असंभव था। और यह असंभव होते एडियाना देख रही थी। एडियाना पहले तो बहुत ही आशस्वत थी, और रूप बदलने जैसे छल पर हंस रही थी। लेकिन जैसे ही पहले विंडिगो का निशान महाकाश्वर के शरीर पर बना, ठीक वैसा ही निशान, उसी जगह पर एडियाना के शरीर पर भी बना। अगले ही पल दोनो की लड़ाई रुक गई और दोस्ती का नया दौड़ चालू हो गया।


अब इच्छाएं किसकी नही होती। ठीक वैसी ही इच्छाएं एडियाना की भी थी। उसे एक चीज की बड़ी लालसा थी... बिजली का खंजर। महाकाश्वर भी यह पहली बार सुन रहा था, लेकिन जब उसने सुना की यह खंजर किसी भी चीज को चीड़ सकती है, तब वह अचरज में पड़ गया।


थोड़े विस्तार से यदि समझा जाए तो कुछ ऐसा था.… सबसे मजबूत धातु जिसे तोड़ा न जा सकता हो, उसका एक अलमीरा बना लिया जाए। अलमीरा के दीवार की मोटाई फिर चाहे कितनी भी क्यों न हो, 20 फिट, 40 फिट... और उस अलमीरा के अंदर किसी इंसान को रखकर उसे चिड़ने कहा जाए। तब इंसान को चिड़ने के लिए अलमीरा खोलकर उस आदमी को निकालने की जरूरत नहीं, क्योंकि बिजली की यह खंजर उस पूरे अलमीरा को ऐसे चीड़ देगी जैसे किसी ब्लेड से कागज के 1 पन्ने को चीड़ दिया जाता है। अलमीरा तो एक दिखने वाला उधारहन था। लेकिन अलमीरा की जगह यदि मंत्र को रख दे, तब भी परिणाम एक से ही होंगे। कितना भी मजबूत मंत्र से बचाया क्यों न जा रहा हो, यह खंजर इंसान को मंत्र सहित चीड़ देगी।


एडियाना की दूसरी सबसे बड़ी ख्वाइश थी कि यदि कोई ऐसा विस्फोट हो, जिसमे उसके चिथरे भी उड़ जाए तो भी वह जीवित हो जाय। जबकि दोनो को ही पता था कि एक बार मरने के बाद कोई भी मंत्र शरीर में वापस प्राण नही डाल सकती। और एक नई ख्वाइश तो एडियाना को महाकाश्वर से मिलने के बाद हुई, वह था बहरूपिया चोगा।

महाकाश्वर कुछ दिन साथ रहकर एडियाना की इच्छाएं जान चुका था। और उसकी जितनी भी इच्छाएं थी, कमाल की थी। महाकाश्वर ने एडियाना से कमाल के शस्त्र, "बिजली का खंजर" के बारे पूछा, "की अब तक वह इस शस्त्र को हासिल क्यों नही कर पायि"। जवाब में यही आया की इस शस्त्र के बारे में तो पता है, लेकिन वह कहां मिलेगा पता नही। महाकाश्वर ने एडियाना से सारे सुराग लिए और बड़ी ही चतुराई से पूरी सूचना लोपचे के भटकते मुसाफिर तक पहुंचा दिया। फिर क्या था, कुछ सिद्ध पुरुष और क्षत्रिय के साथ पारीयान निकल गया खोज पर। महाकाश्वर और एडियाना को तो छिपकर बस इनका पिछा करना था।


लगभग ३ वर्ष की खोज के पश्चात लोपचे के भटकते मुसाफिर की खोज समाप्त हुई। वह खंजर यांग्त्जी नदी के तट पर मिली जो वर्तमान समय में संघाई, चीन में है। जैसे ही यह खंजर मिली, एडियाना के खुशी का ठिकाना नहीं रहा। महाकाश्वर ने अपने छल से वह खंजर तो हासिल कर लिया, लेकिन इस चक्कर में एडियाना और महाकाश्वर दोनो घायल हो गए। घायल होने के बाद तो जैसे एडियाना पागल ही हो गई थी। वह तो सबको मारने पर उतारू थी, लेकिन महाकाश्वर उसे लेकर निकल गया। लोपचे के भटकते मुसाफिर से लड़ाई करना व्यर्थ था, यह बात महाकाश्वर जनता था। बस उसे डर था कि कहीं एडियाना भ्रमित अंगूठी के बारे में जान जाती, तो उसे अपनी तीव्र इच्छाओं में न सामिल कर लेती। यदि ऐसा होता फिर तो इन दोनों की जान जानी ही थी। क्योंकि पारीयान इन दोनो (महाकाश्वर और एडियाना) के अस्त्र और शस्त्र से मरता नही, उल्टा योगी और सिद्ध पुरुष के साथ मिलकर इनके प्राण निकाल लेता।


एडियाना की दूसरी इच्छा का उपाय तो महाकाश्वर पहले से जानता था। उसे हासिल कैसे करना है वह भी जनता था। लेकिन उसे हासिल करने के लिए महाकाश्वर को अपने जैसा ही एक कुशल जादूगर चाहिए था। हिमालय के पूर्वी क्षेत्र में एक अलौकिक और दिव्य गांव बसा था। हालांकि उस गांव को तो किसी ने पहले ही पूरा ही उजाड़ दिया था, लेकिन उस गांव के गर्भ में एक पुर्नस्थापित अंगूठी थी, जो उस पूरे गांव के ढांचे की शक्ति संरचना थी। इसके विषय में खुद गांव के कुछ लोगों को ही पता था। ऊपर से इतनी सिद्धियों के साथ उसके गर्भ में स्थापित किया गया था कि २ सिद्ध जादूगर मिलकर भी कोशिश करते तो भी एक चूक दोनो की जान ले लेती।


लेकिन महाकाश्वर आश्श्वत था। इसलिए खतरों को बताए बिना वह एडियाना के साथ उस गांव में घुसा और कड़ी मेहनत के बाद दोनो पुर्नस्थापित अंगूठी को हासिल कर चुके। सबसे पहला प्रयोग तो महाकाश्वर ने खुदपर किया। एडियाना ने अपने मंत्र से महाकाश्वर के चिथरे उड़ा दिए, लेकिन अगले ही पल एक हैरतअंगेज कारनामे आंखों के सामने था। महाकाश्वर के शरीर का एक–एक कण देखते ही देखते जुड़ गया।


तीनों इच्छाओं को तो महाकाश्वर मूर्त रूप दे चुका था। अब बारी थी एक बहुत बड़े चाल कि। इसके लिए स्थान पहले से तय था, जरूरी सारे काम किए जा चुके थे। एडियाना भी पूरे झांसे में आ चुकी थी। पहले तो कुछ दिनों तक उसे आतंक मचाने के लिए छोड़ दिया गया। कुछ ही वक्त में सकल जगत को महाकाश्वर और एडियाना का नाम पता चल चुका था। हर कोई जानता था कि महाकाश्वर और एडियाना कौन सी शक्तियां हासिल कर चुके। मंत्रों से कोई भी योगी अथवा सिद्ध पुरुष संरक्षित हो नही रहे थे। उसे बिजली की खंजर का स्वाद मिल ही जाता। कितना भी दोनो को मंत्र से बेजान करने की कोशिश क्यों न करो, उनका शरीर पहले जैसा ही हो जाता। उल्टा बहरूपिया चोगा के प्रयोग से एडियाना पर प्राणघाती हमला उल्टा चलाने वाले पर भी हो जाता। एडियाना पुर्नस्थापित अंगूठी से तो बच जाती लेकिन उनके प्राण अपने ही मंत्र ले चुके होते।


एडियाना, महाकाश्वर के पूरे झांसे में आ चुकी थी और अब वक्त था आखरी खेल का। महाकाश्वर, एडियाना के साथ सतपुरा के जंगल में चला आया। थोड़े भावनात्मक पल उत्पन्न किए गए। एडियाना के हाथ को थाम नजरों से नजरें चार हुई। महाकाश्वर के बातों में छल और बातों के दौरान ही उसने एडियाना के मुंह से उगलवाया उसकी इच्छाएं, जिसे महाकाश्वर ने पूरे किये थे। एडियाना ने अपनी इच्छाएं बताकर जैसे ही स्वीकार कर ली कि उसकी सारी इच्छाएं महाकाश्वर ने पूरी कि है, ठीक उसी पल एडियाना का शरीर बेजान हो गया और उसकी सारी सिद्धियां महाकाश्वर के पास पहुंच गई। अब या तो महाकाश्वर, एडियाना को उसकी इच्छाओं के साथ दफना दे या फिर 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाओं को उस से अलग कर दे। अपनी पूरी शक्ति और साथ में जान खोने के बाद, एडियाना अपने मकबरे में दफन हो गई। और उसे दफनाने वाला महाकाश्वर ने उसके तीन इच्छाएं, पुर्नस्थापित अंगूठी, बिजली की खंजर और बेहरूपिया चोगा के साथ एडियाना को दफना दिया।


जादूगर महाकाश्वर अपने 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाएं वापिस हासिल कर लेता। लेकिन अनुष्ठान पूर्ण होने के पहले ही लोपचे का भटकता मुसाफिर जादूगर महाकाश्वर तक पहुंच चुका था। उस जगह भीषण युद्ध का आवाहन हुआ। एक लड़ाई जादूगर महाकाश्वर और योगियों के बीच। एक लड़ाई एक लाख की सैन्य की टुकड़ी के साथ अगुवाई कर रहे सुपरनैचुरल वेयरवोल्फ पारीयान और विंडिगो सुपरनेचुरल के बीच। 2 किलोमीटर के क्षेत्र को बांध दिया गया था। केवल जितने वाला ही बाहर जा सकता था और सामने महायुद्ध। बिना खाये–पिये, बिना रुके और बिना थके 4 दिनो के तक युद्ध होता रहा। 4 दिन बाद ऐडियाना के मकबरे से पुर्नस्थापित अंगूठी लेकर केवल एक शक्स बाहर निकला, वो था लोपचे का भटकता मुसाफिर।


पारीयान ने पूरे संवाद भेजे। युद्ध की हर छोटी बड़ी घटना की सूचना कबूतरों द्वारा पहुंचाई गई। एडियाना का मकबरा और वहां दफन उसकी 3 इच्छाओं का ज्ञान सबको हो चुका था। पारीयान के लौटने की खबर भी आयि लेकिन फिर दोबारा कभी किसी को पारीयान नही मिला। न ही कभी किसी को एडियाना का मकबरा मिला। न जाने कितने खोजी उन्हे मध्य भारत से लेकर हिमालय के पूर्वी जंगलों में तलासते रहे, किंतु एक निशानी तक नही मिली। खोजने वालों में एक नाम सरदार खान का भी था जिसे सबसे ज्यादा रुचि बिजली के खंजर और पुर्नस्थापित अंगूठी में थी।


किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 
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भाग:–7


जैसे ही वो घर पहुंचे राजदीप समेत उसकी दोनो बहने जाकर उनके पाऊं छू ली। इधर राकेश और उसकी पत्नी निलांजना भी जाकर राजदीप के माता पिता से मिलने लगे। राजदीप की मां और राकेश की पत्नी दोनो सगी बहने थी और कमिश्नर साहब राजदीप के मौसा जी। पुलिस का काम ऐसा था कि पूरे परिवार का मिल पाना नहीं हो पता था, हां लेकिन फोन पर अक्सर ही बातें हुआ करती थी। राजदीप अपने मौसा से ही इंस्पायर्ड होकर आईपीएस को तैयारी करने गया था। बड़े से डाइनिंग टेबल पर दोनो परिवार बैठा हुए था। चित्रा और निशांत भी वहीं बैठे हुए थे और खामोशी से सबकी बातें सुन रहे थे।…


नम्रता, खाने का प्लेट लगाती…. "दादा फोन पर तो ये निशांत और चित्रा आधा घंटा कान खा जाते थे, आज दोनो मूर्ति बनकर बैठे है। चित्रा, निशांत सब ठीक तो है ना।"…


राकेश:- इन दोनों को कुलकर्णी कीड़े ने काटा है, इसलिए कुछ नहीं बोल रहे।


राजदीप:- कौन वो डीएम केशव कुलकर्णी।


राकेश:- हां उसी का नकारा बेटे के सोक में दोनो सालों से पागल हुए जा रहे है।


राजदीप की मां अक्षरा भारद्वाज…. "छी छी, उस घटिया परिवार से तुमलोग रिश्ता भी कैसे रख सकते हो।"


"पापा हमे ये सब सुनाने के लिए लाए थे। तुझे मटन का स्वाद लेना है तो लेते रह निशांत, मै जा रही।"… चित्रा गुस्से में अपनी बात कहकर खाने के टेबल से उठ गई। उसी के साथ निशांत भी खड़ा होते.… "रुक चित्रा मै भी चलता हूं।"..


पलक:- "बैठ जाओ दोनो आराम से। जिस बात की वजह नहीं जानते उस बात को पहले पूछ लो। पीछे की कहानी जान लो, ताकि तुम्हे उसमे अपना कुछ विचार देना हो तो विचार दे दो और फिर ये कहकर उठो की आप बड़े है, मै उल्टे शब्दों में आपको जवाब नहीं दे सकता इसलिए मजबूरी में उठकर जाना पड़ रहा है।"

"देखा जाए तो तुमने आई की बात का जवाब इसलिए नहीं दिया, क्योंकि तुम्हे रिश्ते ने खटास नहीं चाहिए, लेकिन ऐसे उठकर चले गए तो तुम्हारे पापा को बेज्जती झेलनी होगी। उनसे सवाल किए जाएंगे कि कैसे संस्कार दिए अपने बच्चो को। तुमने इज्जत के कारण उठकर जाने का निर्णय लिया, किन्तु यहां बात कुछ और हो जाएगी। इसलिए आराम से बैठ जाओ और सवाल करो, जवाब दो, फिर विनम्रता से उठकर चले जाना।"


पलक की बात सुनकर दोनो भाई बहन बैठ गए। और निशांत अपनी मासी को सॉरी कहते हुए कहते पूछने लगा… "मासी आप उस परिवार के बारे में क्या जानते है।"..


अक्षरा भारद्वाज:- "बेटा उस केशव कुलकर्णी की पत्नी जो है ना जया, उसकी एक बड़ी बहन है यहीं नागपुर में रहते है, मीनाक्षी भारद्वाज और उसके पति का नाम है सुकेश भारद्वाज। सुकेश भारद्वाज जो है वो और राजदीप के बाबा उज्जवल दोनो खास चचेरे भाई है।"

"तेरे 3 मामा है। जिसमें से तेरे जो सबसे छोटे वाले मामा थे, उनकी मौत का कारण वही उसकी बहन जया है। तेरे छोटे मामा और जया का लगन तय हो गया था, लेकिन शादी के एक दिन पहले उसकी बड़ी बहन मीनाक्षी ने अपनी बहन जया को भगा दिया। तेरे छोटे मामा बेज्जती का ये घूंट पी नहीं पाए और उन्होंने आत्महत्या कर ली। नफरत है हमे उस परिवार से। उसका नाम सुनती हूं तो तेरे छोटे मामा याद आ जाते है।"


चित्रा:- पलक तुम्हारा धन्यवाद, तुमने सही वक़्त पर बिल्कुल सही बातें बताई। मासी आपको जो मानना है वो आप मानती रहे, और यहां बैठे जितने भी लोग है। मै इसपर कुछ नही कहूंगी, नहीं तो आप सबकी भावनाओ को ठेस पहुंचेगा। आर्यमणि हमारा दोस्त है और जिंदगी भर हमारा दोस्त रहेगा।


राजदीप:- सिर्फ दोस्त ही है ना..


चित्रा:- हमे साथ देखकर शायद आपको कन्फ्यूजन हो सकता है लेकिन हम दोनों के बीच कोई कन्फ्यूजन नहीं है भईया। वैसे हमने एक बार सोचा था रिलेशनशिप स्टेटस बदलने का। लेकिन फिर समझ में आया, हम पहले ही अच्छे थे।


राजदीप:- अच्छा हम से तो वजह जान लिए तुम बताओ कि तुम दोनो उसके लिए इतने मायूस क्यों हो?


निशांत:- मेरे पापा गंगटोक के अस्सिटेंट कमिश्नर रह चुके है, उनसे पूछ लीजिएगा डिटेल कहानी आपको पता चल जाएगा। हमारा दोस्त आर्यमणि बोलने में विश्वास नहीं रखता, केवल करने में विश्वास रखता है।


खाने के टेबल पर फिर बातों का दौड़ चलता रहा। काफी लंबे अरसे के बाद दोनो परिवार मिल रहे थे। सब एक दूसरे से घुलने मिलने लगे। चित्रा और निशांत के मन का विकार भी लगभग निकल चुका था, वो भी अपने मौसेरे भाई बहन से मिलकर काफी खुश हुए।


बातों के दौरान यह भी पता चला की पलक, निशांत और चित्रा तीनों एक ही कॉलेज में एडमिशन लिए है। जहां पलक और निशांत दोनो मैकेनिकल इंजिनियरिंग कर रहे है वहीं चित्रा कंप्यूटर साइंस पढ़ रही थी।


रात के लगभग 12 बज रहे थे। चित्रा, निशांत के कमरे में आकर उसके बिस्तर पर बैठ गई… "सालों बित गए, आर्यमणि ने एक बार भी फोन नहीं किया।"


निशांत:- कल अंकल (आर्यमणि के पापा) ने फोन किया था, रो रहे थे। आर्यमणि जबसे गया, किसी से एक बार भी संपर्क नहीं किया।


चित्रा:- कमाल की बात है ना निशांत, आर्य नहीं है तो हम सालों से झगड़े भी नहीं।


निशांत:- मन ही नहीं होता तुझे परेशान करने का चित्रा। अंकल बता रहे थे मैत्री के मरने का गहरा सदमा लगा था उसे।


चित्रा:- कहीं वो सारे रिश्ते नाते तोड़कर विदेश में सैटल तो नहीं हो गया। निशांत एफबी प्रोफाइल चेक कर तो आर्य की। कहीं कोई तस्वीर पोस्ट तो नहीं किया वो?


निशांत:- कर चुका हूं, नहीं है कोई पिक शेयर। वैसे एक बात बता, केमिकल इंजीनियरिंग के लिए तुमने आर्य का माइंड डायवर्ट किया था ना?


चित्रा:- नहीं मै तो केमिकल इंजिनियरिंग लेने वाली थी, उसी ने मुझसे कहा कि कंप्यूटर साइंस करते है। तकरीबन 5 महीने तक मुझे समझता रहा मै फिर भी नहीं मानी।


निशांत:- फिर क्यों ले ली..


चित्रा:- एक छोटा सा सरप्राइज। बस इसी खातिर ले ली।


निशांत:- तू भी ना पूरे पागल है।


चित्रा:- हां लेकिन तुम दोनो से कम… वो अजगर वाला वीडियो लगा ना.. उसका एक्शन देखते है।


दोनो भाई बहन फिर एक के बाद एक ड्रोन कि रेकॉर्डेड वीडियो देखने लगे। वीडियो देखते देखते दोनो को कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। दोनो भाई बहन सुबह-सुबह उठे और आराम से नेशनल कॉलेज के ओर चल दिए। कैंपस के अंदर कदम रखते ही चारो ओर का नजारा देखकर… "हाय इतनी सारी तितलियां.. सुन ना चित्रा एक हॉट आइटम को अपनी दोस्त बना लेना और उससे मेरा इंट्रो करवा देना।"


चित्रा:- मै भी उस आइटम से पहले इंक्वायरी कर लूंगी उसका कोई भाई है कि नहीं जिसने उससे भी ऐसा ही कुछ कहा हो। थू, कमीना…


निशांत:- जा जा, मत कर हेल्प, वैसे भी यहां का माहौल देखकर लगता नहीं कि तेरे हेल्प की जरूरत भी होगी।


चित्रा:- अब किसी को हर जगह जूते खाने के शौक है तो मै क्या कर सकती हूं। बेस्ट ऑफ लक।


दोनो भाई–बहन बात करने में इतने मशगूल थे कि सामने चल रहे रैगिंग पर ध्यान ही नहीं गया, और जब ध्यान गया तो वहां का नजारा देखकर… "ये उड़ते गिरते लोग क्या कर रहे है यहां।"..


निशांत:- इसे रैगिंग कहते है।


चित्रा, निशांत का कांधा जोर से पकड़ती… "भाई मुझे ये सब नहीं करना है, प्लीज मुझे बचा ले ना।"..


निशांत:- अब तू आज इतने प्यार से कह रही है तो तेरी हेल्प तो बनती है। चल..


चित्रा:- नहीं तू आगे जाकर रास्ता क्लियर कर मै पीछे से आती हूं।


निशांत:- चल ठीक है मै आगे जाता हूं तू पीछे से आ।


निशांत आगे गया, वहां खड़े लड़के लड़कियों से थोड़ी सी बात हुई और उंगली के इशारे से चित्रा को दिखाने लगा। चित्रा को देखकर तो कुछ सीनियर्स ध्यान मुद्रा में ही आ गए। निशांत, चित्रा को प्वाइंट करके फिर आगे निकल गया। जैसे ही चित्रा, निशांत को वहां से निकलते देखी… "कितना भी झगड़ा कर ले, लेकिन निशांत मेरे से प्यार भी उतना ही करता है।"… चित्रा खुद से बातें करती हुई आगे बढ़ी। तभी वहां खड़े लड़के लड़कियां उसका रास्ता रोकते… "फर्स्ट ईयर ना"..


चित्रा:- येस सर


एक लड़का:- चलो बेबी अब जारा बेली डांस करके दिखाओ..


"हांय.. बेली डांस, लेकिन निशांत ने तो सब क्लियर कर दिया था यहां"… चित्रा अपने मन में सोचती हुई, सामने खड़े लड़के से कहने लगी… "सर जरूर कोई कन्फ्यूजन है, अभी-अभी जो मेरा भाई गया है यहां से, उसने आपसे कुछ नहीं कहा क्या?"


एक सीनियर:- कौन वो चिरकुट। हम तो उससे भी रैगिंग करवा लेते लेकिन बोला मै यहां थोड़े ना पढ़ता हूं, अपनी बहन को छोड़ने आया हूं। वो तुम्हारे क्लास वाइग्रह देखने गया है अभी। चल अब बेली डांस करके दिखा।


चित्रा अपनी आखें बड़ी करती… "कुत्ता कहीं का, इसे तो घर पर देखूंगी।"..


सीनियर:- क्या सोच रही है, चल बेली डांस कर।


चित्रा, नीचे से अपनी जीन्स 4 इंच ऊपर करती…. "सर नकली पाऊं से बेली डांस करूंगी तो मै गिर जाऊंगी, फिर लोग क्या कहेंगे। देखो पहले ही दिन कॉलेज में गिर गई।"..


एक लड़की:- तो क्या दूसरे दिन गिरेगी।


चित्रा:- मिस क्या पहला, क्या दूसरा, अब जब पाऊं ही नहीं है तो कभी भी गिरा दो क्या फर्क पड़ता है। जिस बाप को अपना सरनेम देना था उसने अनाथालय की सीढ़ियां दे दी, सिर्फ इस वजह से कि मेरा एक पाऊं है ही नहीं। जब अपना खुद का बाप एक अपाहिज का दर्द नहीं समझा तो तुम लोग क्या समझोगे। अकेला छोड़ दिया ऐसे दुनिया में जहां किसी अनाथ और खुस्बसूरत लड़की को हर नजर नोचना चाहता हो। बेली डांस के बदला ब्रेक डांस ही करवा लो, जब मेरे नकली पाऊं बाहर निकल आएंगे तो तुम सब जोड़-जोड़ से हंसना।


सामने से एक लड़का फुट फुट कर रोते हुए… "सिस्टर, दबाकी मेरा नाम है, यहां मै सबको दबा कर रखता हूं। तुम बिंदास अपने क्लास जाओ, तुम्हे पूरे कॉलेज में कोई आंख उठाकर भी नहीं देखेगा।"


इधर निशांत उन लड़कों को झांसा देकर जैसे ही आगे बढ़ा, उसे पलक मिल गईं… "कैसी हो पलक"


पलक:- अच्छी हूं।


निशांत:- तुम्हारी रैगिंग नहीं हुई क्या?


पलक:- शायद दादा ने यहां सबको पहले से वार्निग दे दिया हो। कॉलेज के गेट से लेकर यहां तक सब सलाम ठोकते ही आए है।


निशांत:- हा हा हा हा.. सुप्रीटेंडेंट साहब की बहन आयी है। वो भी कोई ऐसा वैसा पुलिस वाला नहीं बल्कि सिंघम के अवतार है राजदीप भारद्वाज।


पलक:- हेय वो तुम्हारी बहन के साथ रैगिंग कर रहे है।


निशांत:- कास रैगिंग कर पाए, मै तो विनायक को पूरे 101 रुपए की लड्डू चढ़ाऊंगा।


पलक:- ऐसा क्यों कह रहे हो, वो तुम्हारी बहन है।


निशांत:- मेरी तो बहन है लेकिन इन सबकी मां निकलेगी। इसकी रैगिंग कोई लेकर तो दिखाए।


पलक, निशांत की बातें सुनकर जिज्ञासावश सबकुछ देखने लगी। जैसे-जैसे चित्रा का एक्ट आगे बढ़ रहा था, उसकी हसी ही नहीं रुक रही थी। निशांत पीछे से पलक के दोनो कंधे पर हाथ देकर अपना चेहरा आगे लाते हुए… "देखी मैंने क्या कहा था।"..


पलक ने जैसे ही देखा की निशांत उसके कंधे पर हाथ रखे हुए है वो हंसते हंसते ख़ामोश हो गई और अपनी नजरे टेढ़ी करके निशांत की बातें सुनने लगी। निशांत को ख्याल आया कि उसने पलक के कंधे पर हाथ दिया है… "सॉरी मैंने कैजुअली कंधे पर हाथ रख दिया।"..


पलक:- कोई बात नहीं, बस मुझे दादा का ख्याल आ गया।


तभी इनके पास चित्रा भी पहुंच गई… "कमिने खुद तो मुझे छोड़ने का बहाना बनाकर बच गया, और मुझे फसा दिया। तू देख लेना यहां किसी भी लड़की से तूने बात तक की ना तो तेरी ठरकी देवदास की डीवीडी ना रिलीज कर दी तो तू देख लेना।"


पलक:- क्यों दोनो झगड रहे हो, चलो क्लास अटेंड करने। अभी तो शायद हम सब की क्लास साथ ही होगी ना।


चित्रा:- क्लास साथ हो या अलग पलक, लेकिन इसके साथ मत रहना। भाई के नाम पर कलंक है ये।


निशांत:- वो तो पलक ने भी सुना क्या-क्या साजिशें तुम कर रही। जलकुकड़ी कहीं की। तुझे इस बात से दिक्कत नहीं थी कि तेरा रैगिंग के लिए इन लोगो ने रोका। इनसे निपटने की तैयारी तो तू घर से करके आयी थी। तुझे तो इस बात का गुस्सा ज्यादा आया की मुझे क्यों नहीं रोका, मेरी रैगिंग क्यों नहीं ली?


पलक:- क्लास चले, बाकी बातें क्लास के बाद पूरी कर लेना।


तीनों ही क्लास में चले गए। पलक इन दोनों से मिलकर काफी खुश नजर आ रही थी। अंदर से मेहसूस हो रहा था चलो फॉर्मल लोग नहीं है। हालांकि एक खयाल पलक के मन में बार-बार आता रहा की आखिर मेरा भाई तो केवल एसपी है फिर किसी ने नहीं रोका, और इसके पापा तो कमिश्नर है, फिर क्यों इनकी रैगिंग हो रही है।"..
Superb update
 
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nain11ster

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Mota bhaaai I love youuuu. Ek or jag mag jag mag update dene ke liye...

Iske revo me Mai bs itna kah sakta hu Bhai ki mera dil or dimag abhi bhi usi Kalpana me anand ke hilore le rha hai full to imagination chal rhi hai, mera man mind blowing ho gya padh kr bhai superb update jabarjast sandar awesome Nainu bhaya

Ye site ne to us dard ki yaad dila di jo pahli baar back door me intry karte huye apne anaconda ko hota hai...

Baki details Aap death king Bhai ya sanju bhai ke revo se padh lena...
Hahahaha.... Kyaa baat hai.. aap kahani se kuch jyada hi attach feel karne lage hain... Koi na aapka josh hi kafi hai revoo ke liye jiske hum kayal bhi hai... Aur sach puchiye to ye dil se likha gaya revoo hai jo dil tak pahunch raha ... Dhak dhak ... Dhak dhak
 

nain11ster

Prime
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Aisa Kahe nhi karte aap vo nishchal ka khanjar ya fir mahajanika ke khanjar se mera sina chir do, sala dimag ko process karne ka bhi time nhi mila, Mai revo dene ke baad 2 baar or padhunga isko, sala excitement itni jyada badh gyi hai ki Tahal Tahal ke padhna or likhna pad rha hai, Mai kah de rha hu Yadi aisa hi mind blowing excitement continue rha to thik varna bhabhi ji ko steel ka belan gift karunga dekh lena aap...

Viggo sigma ko Pahle hi prathvi ke defender ke sath kandhe se kandhe mila kr ladva diya mahajanika se or kya hi manbhavan rochak tarike se excitement se bharpur sabdo ka prayog karke universal history ki tarah hmare samne prastut kiya hai

Viggo ka main villain surpmarich tha jo prithvivashi tha Vahi mahajanika bhi prithvivashi hai (pr mujhe yah yaad nhi ki jb viggo ka itihash aaya tha tb mahajanika ka ullekh tha bhi ya nhi 🤔 ) sala sare prithvivashi hi villan Kahe ban jate hai vo bhi main...
sale Pahle to hero rahte hai fir achanak se unke dimag ka dahi ho jata hai or vo us dahi ko jmane ke liye nakaratmak shakti ke ghade me duba dete hai or us dahi ki lassi ka swad pure world ko chakhate hai...
Batman ya superman movie me bhi kaha tha ki aap hero tbtk rahte ho jbtk aap villan nhi ban jate.

Nishant ki khoji banne ki training suru hone vali hai ugte suraj ke sath...
Arya ne kitni kitabe jalai ye bhi pta tha sidh purush ko sahi hai unke name na sirf maloom hai Balki un kitabo me kya likha tha yah bhi pta hai...

Mere ko dubara padhna hai to revo Yahi tk han...

Superb update bhai sandar jabarjast lajvab amazing awesome writing skills Bhai
To itna detailed karke kaahe shabdon ke ore dhyan dekar revoo likhte hain jo kahani ka swad chala jata hai... Bilkul apni jitni bavna ho kewal wahi chhap dijiye na... Padhiye.. padhiye.. 6-7 baar aur padhiye ... Aapko itna pasand aayega mujhe pata nahi tha... Aur haan... Apne jajbaat share karne ke liye dil se dhanywad
 

Zoro x

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भाग:–38







किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।


बात शायद 12-13 साल पुरानी होगी। एक के बाद एक कई सारे कांड हो चुके थे। पहले आर्यमणि और उसकी पहली चाहत मैत्री लोपचे का बड़ा भाई सुहोत्र से लड़ाई। लड़ाई के कुछ दिनों बाद ही शिकारियों द्वारा लोपचे के कॉटेज को ही पूरा जला देना। कुछ लोग जो किसी तरह अपनी जान बचा सके, वह गंगटोक से भागकर जर्मनी पहुंच गये, जिनमे से एक मैत्री भी थी। और उसके कुछ वक्त बाद ही वर्धराज कुलकर्णी यानी की आर्यमणि के दादा जी का निधन।


मैत्री और वर्धराज कुलकर्णी, दोनो ही आर्यमणि के काफी करीबी थे। इन सारी घटनाओं ने आर्यमणि को ऐसा तोड़ा था कि उसका ज्यादातर वक्त अकेले में ही कटता था। वो तो निशांत और चित्रा थी, जिनकी वजह से आर्यमणि कुछ–कुछ आगे बढ़ना सिखा था। उन्ही दिनों निशांत की जिद पर सुरक्षा कर्मचारी उन्हे (निशांत और आर्यमणि) घने जंगलों में घुमाने ले जाते थे। आर्यमणि जब भी घायल जानवरों को दर्द से बिलखते देखता, उसकी भावना कहीं न कहीं आर्यमणि से जुड़ जाती। कोई भी घायल जानवर के पास से आर्यमणि तबतक नही हटता था, जबतक रेंजर की बचाव टुकड़ी वहां नही पहुंच जाती।


कुछ वक्त बाद तो जबतक घायल जानवरों का इलाज पूरा नही हो जाता, तबतक आर्यमणि और निशांत पशु चिकित्सालय से घर नही जाते थे। और उसके थोड़े वक्त बाद तो दोनो घायल जानवरों की सेवा करने में भी जुट गये। लगभग १२ वर्ष की आयु जब हुई होगी, तबसे तो दोनो अकेले ही जंगल भाग जाते। उन्ही दिनों इनका सामना एक शेर से हो गया था और आस–पास कोई भी नही। दोनो अपनी जान बचाने के लिये लोपचे के खंडहर में छिप गए। उस दिन जब जान पर बनी, फिर दोनो दोस्त की हिम्मत नही हुई कि जंगल की ओर देखे भी।


लेकिन वक्त जैसे हर मरहम की दवा हो। कुछ दिन बीते तो फिर से इनका जंगल घूमना शुरू हो गया। कई बार कोई रेंजर मिल जाता तो उसके साथ घूमता, तो कई बार सैलानियों के साथ। अब इसमें कोई २ राय नहीं की इन्हे घर पर डांट ना पड़ती हो, वो सब बदस्तूर जारी था, लेकिन इनका अकेले जंगल जाना कभी बंद नहीं हुआ। कुछ रेंजर्स द्वारा सिखाये गए तकनीक, कुछ खुद के अनुभव के आधार पर दोनो जंगल के विषम परिस्थितियों का सामना करना अच्छे से सिख रहे थे।


कुछ और वर्ष बीता। दोनो (आर्यमणि और निशांत) की आयु १४ वर्ष की हो चुकी थी। जंगल के विषम परिस्थिति से निकलने में दोनो ने डॉक्टोरियट डिग्री ले चुके थे। अब तो दोनो किसी खोजकर्ता की तरह कार्य करते थे। उन्ही दिनों एक घटना हुई। यह घटना जंगल के एक प्रतिबंधित क्षेत्र की थी, जहां रेंजर भी जाने से डरते थे। दोनो एक छोटी सी घाटी के नीचे पहुंचे थे और जंगल में कुछ दूर आगे बढ़े ही होंगे, कि आंखों के सामने एक शेर। शेर किसी हिरण पर घात लगाये था और जैसे उसके हाव–भाव थे, वह किसी भी वक्त हिरण पर हमला कर सकता था। आर्यमणि ने जैसे ही यह देखा, पास पड़े पत्थर को हिरण के ऊपर चलाकर हिरण को वहां से भाग दिया। पत्थर के चलते ही हिरण तो भाग गया लेकिन शेर की खौफनाक आवाज वहां गूंजने लगी।


शेर की खौफनाक आवाज सुनकर आर्यमणि और निशांत दोनो सचेत हो गये। निशांत तुरंत ही अपना बैग उठाकर भागा और सबसे नजदीकी पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर चढ़ने के बाद निशांत अपने हाथ में स्टन रोड (एक प्रकार का रॉड जिससे हाई वोल्टेज करेंट निकलता हो) लेकर शेर को करेंट खिलाने के लिए तैयार हो गया। निशांत तो पूरा तैयार था, लेकिन आर्यमणि, वह तो जैसे अपनी जगह पर जम गया था।


शेर दहाड़ के साथ ही दौड़ लगा चुका था और निशांत पेड़ पर तैयार होकर जैसे ही अपनी नजरे आर्यमणि के ओर किया, उसके होश उड़ गये। गला फाड़कर कयी बार निशांत चिल्लाया, लेकिन आर्यमणि अपनी जगह से हिला नही। निशांत पेड़ से नीचे उतरकर भी कुछ कर नही सकता था, क्योंकि शेर दौड़ते हुये छलांग लगा चुका था। एक पल के लिए निशांत की आंखें बंद और अगले ही पल उतनी हैरानी से बड़ी हो गयि। आर्यमणि अब भी अपने जगह पर खड़ा था।


पहला हमला विफल होने के बाद बौखलाए शेर ने दोबारा हमला किया। शेर दहाड़ता हुआ दौड़ा और छलांग लगाकर जैसे ही आर्यमणि पर हमला किया, आर्यमणि अपनी जगह ही खड़ा है और शेर आगे निकल गया। जी तोड़ कोशिशों के बाद भी जब वही सब बार–बार दोहराता रहा, तब अंत में शेर वहां से चला गया। निशांत बड़ी हैरानी से पूछा.… "अरे यहां हो क्या रहा है?"


आर्यमणि:– मुझे भी नही पता निशांत। जब शेर दहाड़ रहा था तब मैंने भी भागा। लेकिन मुड़कर जब शेर को दौड़ लगाते देखा तो हैरान हो गया...


निशांत:– अबे और गोल–गोल चक्कर न खिला... मैं तुझे देखकर हैरान हूं, तू शेर को देखकर हैरान है।


आर्यमणि:– अबे तूने भी तो देखा न। शेर मुझ पर हमला करने के बदले इधर–उधर उछलकर चला गया।


निशांत:– अबे चुतिया तो नही समझ रहा। शेर तेरे ऊपर से होकर गया और तू अपनी जगह से हिला भी नही।


आर्यमणि:– अबे ए पागल शेर का शिकार होने के लिए अपनी जगह खड़ा रहूंगा क्या? मैं तेरे साथ ही भागा था। बस तू सीधा पेड़ पर चढ़ा और मैं पीछे मुड़कर शेर को देखा, तो रुक गया...


निशांत:– अबे ये कन्फ्यूजिंग कहानी लग रही। यहां हो क्या रहा है...


उस दिन दोनो ने बहुत मंथन किया लेकिन कहीं कोई नतीजा नही निकला। दोनो को यह एहसास था की कुछ तो हो रहा था। लेकिन क्या हो रहा था पता नही। न जाने इस घटना को बीते कितने दिन हो गए थे। शेर वाली घटना भी अब जेहन में नही थी। जंगल की तफरी तो रोज ही हुआ करती थी। अजी काहे का प्रतिबंधित क्षेत्र, दोनो की घुसपैठ हर क्षेत्र में हुआ करती थी।


दोनो ही जंगल के प्रतिबंधित क्षेत्र में घुमा करते थे। शेर, चीते, भालुओं के पास से ऐसे गुजरते मानो कह रहे हो... "और भाई कैसे हो, यहां रहने में कोई परेशानी तो नहीं".. वो जानवर भी जम्हाई लेकर बस अपनी नजरें दोनो से हटाकर दूसरी ओर देखने लगते, मानो कह रहे हो... "बोर मत कर, चल आगे बढ़".. ऐसे ही दिन गुजर रहे थे।


एक दिन की बात है, दोनो घूमते हुए फिर से उसी जगह पर थे, जहां कांड हुआ था। आज भी मामला उसी दिन की तरह मिलता जुलता था। बस फर्क सिर्फ इतना था कि उस दिन शेर घात लगाए हमले की फिराक में था और आज हमला करने के लिए दौड़ लगा चुका था। वक्त कम था और आंखों के सामने हिरण को मरने तो नही दिया जा सकता था। आर्यमणि जितना तेज दौड़ सकता था, दौड़ा। बैग से स्टन रोड निकलते भागा। इधर शेर की छलांग और उधर आर्यमणि हाथों में रॉड लिए शेर और हिरण के बीच।


अब एक कदम के आगे–पीछे आर्यमणि और निशांत चल रहे थे। ऐसा तो था नही की निशांत को कुछ दिखा ही न हो। अब सीन को यदि फ्रेम करे तो। शेर किसी दिशा से हिरण के ओर दौड़ा, आर्यमणि ठीक उसके विपरीत दिशा से दौड़ा, और उसके पीछे से निशांत दौड़ा। फ्रेम में तीनों दौड़ रहे। शेर ने छलांग लगाया। आर्यमणि शेर और हिरण के बीच आया, और इधर शेर के हमले से बचाने के लिए निशांत भी आर्यमणि पर कूद गया। मतलब शेर जबतक अपने पंजे मारकर आर्यमणि को गंजा करता, उस से पहले ही निशांत उसे जमीन पर गिरा देता।


लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ। शेर छलांग लगाकर अपने पंजे चलाया और आर्यमणि के आर–पार कूद गया। शेर तो चौपाया जानवर था, लेकिन निशांत... वो तो आर्यमणि के ऊपर उसे गिराने के इरादे से कूदा, किंतु वह भी आर–पार हो गया। निशांत तो २ पाऊं वाला जानवर ठहरा। ऊपर से उसने तो केवल कूदने का प्लान किया था, आर्यमणि के आर–पार होने के बाद खुद को नियंत्रण कैसे करे इसका तो ख्याल भी नही था। वैसे इतने टाइट सिचुएशन में कोई ख्याल भी नही आते वह अलग बात है। और इसी चक्कर में निशांत ऐसा गिरा की उसका नाक टूट गयी।


इधर आर्यमणि की नजरें जो देख रही थी वह कुछ ऐसा था... शेर उस से २ फिट किनारे हवा में हमला करने के लिए छलांग लगाया और वही निशांत भी कर रहा था। निशांत की हालत देख आर्यमणि जोड़–जोड़ से हसने लगा। निशांत चिढ़कर अपने रोड को आर्यमणि के ऊपर खींचकर मारा.… आर्यमणि दोबारा हंसते हुए... "जाहिल निशाना तो सही लगा, मैं यहां हूं और तू रॉड किसपर मार रहा।"

निशांत जोर से चिल्लाते... "आर्य यहां फिर से उस दिन की तरह हो रहा है। तुझे लग रहा है हम तेरे दाएं–बाएं कूद रहे या निशाना लगा रहे और मुझे लग रहा है कि जैसे तेरी जगह तेरी आत्म खड़ी है, और हम उसके आड़–पाड़ निकल रहे।


आर्यमणि:– ये कैसा तिलिस्म है यहां का...


निशांत:– चल जरा चेक करते है कि ये तिलिस्म केवल तेरे साथ हो रहा है या सबके साथ।


आर्यमणि:– ठीक है तू मेरी जगह खड़ा हो जा..


निशांत:– मैं पहले से ही उसी जगह खड़ा हूं, जहां तू दौड़ते हुए रुका था।


आर्यमणि:– तू तैयार है, स्टन रॉड से झटका दूं..


निशांत:– ओ गोबर, यदि तिलिस्म काम नही किया तो मेरे लग जाने है। ढेला फेंककर मार


आर्यमणि ३–४ पत्थर के छोटे टुकड़े बटोरा। अतिहतन पहला धीमा चलाया। पत्थर चलाते ही आर्यमणि की आंखें बड़ी हो गयि। फिर दूसरा पूरा जोड़ लगाकर। उसके बाद तो १०–१२ ढेला फेंक दिया मगर हर बार आर्यमणि को यही लगता ढेला निशांत के पार चली गयि।



आर्यमणि:– तू सही कह रहा था, यहां कोई तिलिस्म है। अच्छा क्या यह तिलिस्म हम दोनो के ऊपर काम करता है या सभी पर?


निशांत:– कुछ कह नहीं सकते। सभी पर काम करता तो फिर शेर यहां घात लगाकर शिकार न कर रहा होता।


आर्यमणि:– मैं भी यही सोच रहा था। एक ख्याल यह भी आ रहा की शायद जानवरों पर यह तिलिस्म काम न करता हो...


निशांत:– कुछ भी पक्का नहीं है... चल इसकी टेस्टिंग करते हैं...


दोनो दोस्त वहां से चल दिए। अगले दिन एक रेंजर को झांसे में फसाया और दोनो उसे लेकर छोटी घाटी से नीचे उतर गए। छोटी घाटी से नीचे तो उतरे, लेकिन चारो ओर का नजारा देखकर स्तब्ध। इसी जगह को जब पहले देखा था और आज जब रेंजर के साथ देख रहे, जमीन आसमान का अंतर था। उस जगह पर पेड़ों की संख्या उतनी ही होगी लेकिन उनकी पूरी जगह बदली हुई लग रही थी। घाटी से नीचे उतरने के बाद जहां पहले दोनो को कुछ दूर खाली घास का मैदान दिखा था, आज वहां भी बड़े–बड़े वृक्ष थे। निशांत ने जांचने के लिए आर्यमणि को एक ढेला दे मारा, और वह ढेला आर्यमणि को लगा भी।


दोनो चुप रहे और जिस तरह रेंजर को झांसा देकर बुलाए थे, ठीक उसी प्रकार से वापस भेज दिया। रेंजर जब चला गया, निशांत उस जगह को देखते.… "कुछ तो है जो ये जगह केवल हम दोनो को समझाना चाहती है।"..


आर्यमणि:– हम्म.. आखिर इतना मजबूत तिलिस्म आया कहां से?


निशांत:– क्या हम एक अलग दुनिया का हिस्सा बनने वाले हैं, जहां तंत्र–मंत्र और काला जादू होगा।


आर्यमणि:– ये सब तो आदि काल से अस्तित्व में है, बस इन्हे जनता कोई–कोई है। समझते तो और भी कम लोग है। और इन्हें करने वाले तो गिने चुने बचे होंगे जो खुद की सच्चाई छिपाकर हमारे बीच रहते होंगे। जैसे प्रहरी और उनके वेयरवोल्फ..


निशांत:– साला लोपचे को भी वेयरवोल्फ कहते है लेकिन इतने वर्षों में हमने देखा ही नहीं की ये वेयरवोल्फ कैसे होते है?


आर्यमणि:– छोड़ उन प्रहरियों को, अभी पर फोकस कर..


निशांत:– तिलिस्म को हम कैसे समझ सकते है?


आर्यमणि:– यदि इसे साइंस की तरह प्रोजेक्ट करे तो..


निशांत:– ठीक है करता हूं... एक ऐसा मशीन है जो यहां के भू–भाग संरचना को बदल सकता है। बायोमेट्रिक टाइप कुछ लगा है, जो केवल हम दोनो को ही स्कैन कर सकता है, उसमे भी शर्तों के साथ, यदि वहां केवल हम २ इंसान हुए तब...


आर्यमणि:– मतलब..

निशांत:– मतलब कैसे समझाऊं...

आर्यमणि:– कोशिश तो कर..


निशांत:– अब यदि यहां पहले शेर और हिरण थे, और हम बाद में पहुंचे। हम जब पहुंचे तब यह पूरा इलाका दूसरे स्वरूप में था, लेकिन जो पहले से यहां होंगे उन्हें अभी वाला स्वरूप दिखेगा, जैसा हम अभी देख रहें। अभी वाला स्वरूप इस जगह की वास्तविक स्थिति है, और हम जो देखते है वो तिलिस्मी स्वरूप।


आर्यमणि:– इसका मतलब यदि वह रेंजर हमसे पहले आया होता तो उसे यह जगह वास्तविक स्थिति में दिखती। और हम दोनो बाद में पहुंचे होते तो हमे इस जगह की तिलिस्मी तस्वीर दिखती...


निशांत:– हां...


आर्यमणि:– साइंस की भाषा में कहे तो बायोमेट्रिक स्कैन तभी होगा, जब केवल हम दोनो में से कोई हो। तीसरा यदि साथ हुआ तो बायोमेट्रिक स्कैन नही होगा और यह जगह हम दोनो को भी अपने वास्तविक रूप में दिखेगी...


निशांत:– एक्जेक्टली..


आर्यमणि:– ठीक है फिर एक काम करते हैं पहले यह समझते हैं कि यह तिलिस्मी इलाका है कितने दूर का..


निशांत:– और इस कैसे समझेंगे..


आर्यमणि:– हम चार कदम चलेंगे और तुम चार कदम वापस जाकर फिर से मेरे पास आओगे…


निशांत:– इसका फायदा...


आर्यमणि:– इसका फायदा दिख जायेगा... कर तो पहले...


दोनो ने किया और वाकई फायदा दिख गया। तकरीबन 1000 मीटर आगे जाने के बाद जब निशांत चार कदम लेकर वापस आया, जगह पूरी तरह से बदल गई थी। दोनो ने इस मशीन की क्रयप्रणाली को समझने के लिए बहुत से प्रयोग किये। हर बार जब दायरे से बाहर होकर अंदर आते, तब यही समझने की कोशिश करते की आखिर इसका कोई तो केंद्र बिंदु होगा, जहां से जांच शुरू होगी। चारो ओर किनारे से देख चुके थे, लेकिन दोनो को कोई सुराग नहीं मिला। फिर अंत में दोनो ने कुछ सोचा। निशांत नीचे बॉर्डर के पास खड़ा हो गया और आर्यमणि घाटी के ऊपर।


आर्यमणि का इशारा हुआ और निशांत उस तिलिस्म के सीमा क्षेत्र में घुस गया। कोई नतीजा नही। तिलस्मी क्षेत्र बदला तो, लेकिन कोई ऐसा केंद्र न मिला जहां से जांच शुरू की जाय। जहां से पता चल सके कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा? नतीजा भले न मिल रहा हो लेकिन इनकी कोशिश जारी रही। लगभग २० दिनो से यही काम हो रहा था। आर्यमणि ऊपर पहाड़ पर, और नीचे निशांत बॉर्डर के पास से उस तिलिस्मी क्षेत्र में घुसता। आर्यमणि ऊपर से हर बारीकी पर ध्यान रखता, लेकिन नतीजा कोई नही।


50 दिन बीते होंगे। अब तो आर्यमणि और निशांत को यह तक पता था कि जब जगह का दृश्य बदलता है, तब कौन सा पेड़ कहां होता है। नतीजा नही आ रहा था और अब तो पहले की तरह कोशिश भी नही हो रही थी। हां लेकिन हर रोज २–३ बार कोशिश तो जरूर करते थे।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 
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jitutripathi00

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Hahaha ....... Portal bhi khol sakte hain aur Nischal ko bhi bula sakte hain... Lekin pichhe mantr kaat karne wale guruji kahan hai... Wo guruji jo teleportation kar de...:D
ढूढ़ने से क्या नही मिल जाता भाई, हिमालय में कोई सिद्ध गुरुजी मिल ही जायेंगे बस खोजने की लगन होना चाहिये।
 
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B2.

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भाग:–43






संन्यासी शिवम:– मेरे ख्याल से जब पारीयान की मृत्यु हुई होगी तब तक वो लोग हिमालय का पूरा क्षेत्र छान चुके होंगे। रीछ स्त्री लगभग 5000 वर्ष पूर्व कैद हुई थी और पारीयान तो बस 600 वर्ष पुराना होगा। हमारे पास पारीयान का तो पूरा इतिहास ही है। तांत्रिक सबसे पहले वहीं से खोज शुरू करेगा जो हमारा केंद्र था। और जिस जगह तुम्हे पारीयान का तिलिस्म मिला था, हिमालय का क्षेत्र, वह तो सभी सिद्ध पुरुषों के शक्ति का केंद्र रहा है। वहां के पूरे क्षेत्र को तो वो लोग इंच दर इंच कम से कम 100 बार और हर तरह के जाल को तोड़ने वाले 100 तरह के मंत्रों से ढूंढकर पहले सुनिश्चित हुये होंगे। इसलिए पारीयान का खजाना वहां सुरक्षित रहा। वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी तांत्रिक मिल गयि होती तो तुम सोच भी नही सकते की महाजनिका क्या उत्पात मचा सकती थी।


निशांत:– क्या होता संन्यासी सर?


संन्यासी शिवम:– "वह आगे तुम खुद आकलन कर लेना। हां तो मैं रीछ स्त्री के ढूंढने की बात कर रहा था। हम कैलाश मठ से जुड़े है और यह भी मात्र एक इकाई है। ऐसे न जाने सैकड़ों इकाई पूरे भारतवर्ष में थी और सबका केंद्र पूर्वी हिमालय का एक गांव था। तांत्रिक की पीढ़ी दर पीढ़ी कि खोज पहले तो हमारे केंद्र से लेकर सभी इकाई के बीच हुई होगी। फिर जब उन्हें रीछ स्त्री इन सब जगहों में नही मिली होगी, तब ये लोग समस्त विश्व में ढूंढने निकले होंगे। आखिरकार उनके भी हजारों वर्षों की खोज समाप्त हुयि, और अध्यात को रीछ स्त्री महाजनिका मिल गयि। अब जो इतने जतन के बाद मिली थी, उसे वापस नींद से जगाने के लिए तांत्रिक और उसके सहयोगियों ने बिलकुल भी जल्दबाजी नही दिखायि। योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़े।"

"वह पुस्तक रोचक तथ्य मैने भी पढ़ी थी। जिस हिसाब से उन लोगों ने रीछ स्त्री को किताब में मात्र छोटी सी जगह देकर विदर्भ में बताया था और प्रहरी इतिहास का गुणगान किया था, हम समझ चुके थे कि यह तांत्रिक कितने दूर से निशाना साध रहा था। प्रहरी ने फिर पहले संपादक से संपर्क किया और उस संपादक के जरिये तांत्रिक और प्रहरी मिले। विष मोक्ष श्राप से किसी को जगाना आसान नहीं होता। जहां से रीछ स्त्री महाजनिका को निकाला गया था, उस जगह पर पिछले कई वर्षों से अनुष्ठान हो रहा था। कई बलि ली गयि। कइयों की आहुति दी गयि और तब जाकर वह रीछ स्त्री अपने नींद से जागी। वर्तमान समय को देखा जाय तो प्रहरी के पास पैसे ताकत और शासन का पूरा समर्थन है। तांत्रिक के अनुष्ठान में कोई विघ्न न हो इसलिए प्रहरी ने पूरे क्षेत्र को ही प्रतिबंधित कर दिया। मात्र कुछ प्रहरियों को पता था कि वहां असल में क्या खेल चल रहा और तांत्रिक अध्यात की हर जरूरत वही पूरी करते थे। बाकी सभी प्रहरी को यही पता था कि वहां कुछ शापित है जो सबके लिए खतरा है।"

"ऐडियाना का मकबरा ढूंढना तांत्रिक के लिए कौन सी बड़ी बात थी। और वहीं मकबरे में ऐसी १ ऐसी वस्तु थी जो महाजनिका को जागने के तुरंत बाद चाहिए थी, पुर्नस्थापित अंगूठी। वैसे एक सत्य यह भी है कि पुर्नस्थापित अंगूठी का पत्थर और बिजली की खंजर दोनो ही महाजनिका की ही खोज है। प्रहरी और तांत्रिक के बीच संधि हुई थी। ऐडियाना का मकबरा खुलते ही वह खंजर प्रहरी का होगा और बाकी सारा सामान तांत्रिक का। इन सबके बीच तुम चले आये और इनके सारी योजना में सेंध मार गये...


आर्य मणि:– सब कुछ तो आपने किया है, फिर मैं कहां से बीच में आया...


संन्यासी शिवम:– हमे तो किसी भी चीज की भनक ही नहीं होती। जिस दिन तुमने पारीयान के भ्रम जाल से उसके पोटली को निकाला, (आर्यमणि जब जर्मनी की घटना के बाद लौटा था, तब सबसे पहले अपने मां पिताजी से मिलने गंगटोक ही गया था), उसी दिन कैलाश मठ में पता चला था कि भ्रमित अंगूठी किसी को मिल गई है। मैं तो भ्रमित अंगूठी लेने तुम्हारे पीछे आया। और जब तुम्हारे पीछे आया तभी सारी बातों का खुलासा हुआ। तुम गंगटोक में अपनी उन पुस्तकों को जला रहे थे जो 4 साल की यात्रा के दौरान तुमने एकत्र किए थे। कुल 6 किताब जलाई थी और उन सभी पुस्तकों को हमने एक बार पलटा था। उन्ही मे से एक पुस्तक थी रोचक तथ्य। उसके बाद फिर हम सारे काम को छोड़कर विदर्भ आ गये।


आर्य मणि:– जब आपको पहले ही सब पता चल चुका था, फिर रीछ स्त्री को जागने ही क्यों दिया।


संन्यासी शिवम:– अच्छा सवाल है। लेकिन क्या पता भी है कि महाजनिका कौन थी और विष–मोक्ष श्राप से उसे किसने बंधा था? और क्या जितना वक्त पहले हमे पता चला, वह वक्त महा जनिका को नींद से न जगाने के लिये पर्याप्त थी?


आर्य मणि ने ना में अपना सर हिला दिया। संन्यासी शिवम अपनी बात आगे बढ़ाते.… "यूं तो रीछ की सदैव अपनी एक दुनिया रही है, जिसमे उन्होंने मानव समाज के लिए सकारात्मक कार्य किये और कभी भी अपने ऊपर अहम को हावी नही होने दिया। कई तरह के योद्धा, वीर और कुशल सेना नायक सिद्ध पुरुष के बताये सच की राह पर अपना सर्वोच्च योगदान दिया है। जहां भी उल्लेख है हमेसा सच के साथ खड़े रहे और धर्म के लिये युद्ध किया।"

"महाजनिका भी उन्ही अच्छे रीछ में से एक थी। वह सिद्धि प्राप्त स्त्री थी। उसकी ख्याति समस्त जगत में फैली थी। शक्ति और दया का अनोखा मिश्रण जिसने अपने गुरु के लिये कंचनजंगा में दो पर्वतों के बीच एक अलौकिक गांव बसाया। वहां का वातावरण और कठिन जलवायु आम रहने वालों के हिसाब से बिलकुल भी नहीं था। इसलिए उसने अपनी सिद्धि से वहां की जलवायु को रहने योग्य बना दी। यश और प्रसिद्धि का दूसरा नाम थी वह।"

"उसके अनंत अनुयायियों में से सबसे प्रिय अनुयायि तांत्रिक नैत्रायण था। तांत्रिक का पूरा समुदाय महाजनिका में किसी देवी जैसी श्रद्धा रखते थे। हर आयोजन का पहला अनुष्ठान महाजनिका के नाम से शुरू होता और साक्षात अपने समक्ष रखकर उसकी आराधना के बाद ही अनुष्ठान को शुरू किया करते थे। महाजनिका जब भी उनके पास जाती वह खुद को ईश्वर के समतुल्य ही समझती थी। किंतु वास्तविकता तो यह भी थी कि तांत्रिक नैत्रायण और उसका पूरा समुदाय अहंकारी और कुरुर मानसिकता के थे। सामान्य लोगों का उपहास करना तांत्रिक और उनके गुटों का मनोरंजन हुआ करता था।"

"उसी दौड़ में एक महान गुरु अमोघ देव हुआ करते थे, जो महाजनिका के भी गुरु थे, किंतु निम्न जीवन जीते थे और लोक कल्याण के लिये अपने शिष्यों को दूर दराज के क्षेत्रों में भेजा करते थे। उन्ही दिनों की बात थी जब गुरु अमोघ देव के एक शिष्य आरंभ्य को एक सामान्य मानव समझ कर तांत्रिक नैत्रायण ने उसका उपहास कर दिया। उसके प्रतिउत्तर में आरंभ्य ने उसकी सारी सिद्धियां मात्र एक मंत्र से छीन लिया और सामान्य लोगों के जीवन को समझने के लिए उसे भटकते संसार में बिना किसी भौतिक वस्तु के छोड़ दिया।"

"तांत्रिक नैत्रायण ने जिन–जिन लोगों का उपहास अपने मनोरंजन के लिए किया किया था, हर कोई बदले में उपहास ही करता। कोई उसकी धोती खींच देता तो कोई उसके आगे कचरा फेंक देता। तांत्रिक यह अपमान सहन नही कर पाया और महाजनिका के समक्ष अपना सिर काट लिया। महाजनिका इस घटना से इतनी आहत हुयि कि बिना सोचे उसने पूरे एक क्षेत्र से सभी मनुष्यों का सर काटकर उस क्षेत्र को वीरान कर दिया। उन सभी लोगों में गुरु अमोघ देव के शिष्य आरंभ्य भी था।"

"गुरु अमोघ देव इतनी अराजकता देखकर स्वयं उस गांव से बाहर आये और महाजनिका को सजा देने की ठान ली। गुरु अमोघ देव और महाजनिका दोनो आमने से थे। भयंकर युद्ध हुआ। हारने की परिस्थिति में महाजनिका वहां से भाग गयि। महाजनिका वहां से जब भागी तब एक चेतावनी के देकर भागी, "कि जब वह लौटेगी तब खुद को इतना ऊंचा बना लेगी कि कोई भी उसकी शक्ति के सामने टिक न पाय। लोग उसके नाम की मंदिर बनाकर पूजे और लोक कल्याण की एकमात्र देवी वही हो और दूसरा कोई नहीं।"

"इस घटना को बीते सैकड़ों वर्ष हो गये। महाजनिका किसी के ख्यालों में भी नही थी। फिर एक दौड़ आया जब महाजनिका का नाम एक बार फिर अस्तित्व में था। जिस क्षेत्र से गुजरती वहां केवल नर्क जैसा माहौल होता। पूरा आकाश हल्के काले रंग के बादल से ढक जाता। चारो ओर केवल लाश बिछी होती जिसका अंतिम संस्कार तक करने वाला कोई नहीं था। उसके पीछे तांत्रिक नैत्रायण के वंशज की विशाल तांत्रिक सेना थी जिसका नेतृत्व तांत्रिक विशेसना करता था। महाजनिका के पास एक ऐसा चमत्कारिक कृपाण (बिजली का खंजर) थी, जिसके जरिये वह मुख से निकले मंत्र तक को काट रही थी। सकल जगत ही मानो काली चादर से ढक गया हो, जो न रात होने का संकेत देती और ना ही दिन। बस मेहसूस होती तो केवल मंहूसियत और मौत।"

"गुरु अमोघ देव के नौवें शिष्य गुरु निरावण्म मुख्य गुरु हुआ करते थे। 8 दिन के घोर तप के बाद उन्होंने ही पता लगाया था कि महाजनिका अपनी शक्तियों को बढ़ाने के लिये, प्रकृति के सबसे बड़े रहस्य के द्वार को खोल चुकी थी... समनंतर दुनिया (parellel world) के द्वार। अपनी ही दुनिया की प्रतिबिंब दुनिया, जहां नकारात्मक शक्तियों का ऐसा भंडार था, जिसकी शक्तियां पाकर कोई भी सिद्ध प्राप्त इंसान स्वयं शक्ति का श्रोत बन जाए। इतना शक्तिशाली की मूल दुनिया के संतुलन को पूर्ण रूप से बिगाड़ अथवा नष्ट कर सकता था।"

"उस दौड़ में मानवता दम तोड़ रही और महाजनिका सिद्धि और बाहुबल के दम पर हर राज्य, हर सीमा और हर प्रकार की सेना को मारती हुई अपना आधिपत्य कायम कर रही थी। लोक कल्याण के बहुत से गुरुओं ने मिलकर भूमि, समुद्र तथा आकाश, तीनों मध्यम से वीरों को बुलवाया। इन तीनों मध्यम में बसने वाले मुख्य गुरु सब भी साथ आये। कुल २२ गुरु एक साथ खड़े मंत्रो से मंत्र काट रहे थे, वहीं तीनों लोकों से आये वीर सामने से द्वंद कर रहे थे। लेकिन महाजनिका तो अपने आप में ही शक्ति श्रोत थी। उसका बाहुबल मानो किसी पर्वत के समान था। ऐसा बाहुबल जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। अंधकार की दुनिया (parellel world) से उसने ऐसे–ऐसे अस्त्र लाये जो एक बार में विशाल से विशाल सेना को मौत की आगोश में सुला दिया करती थी।"

महाजनिका विकृत थी। अंधकार की दुनिया से लौटने के बाद उसका हृदय ही नही बल्कि रक्त भी काली हो चुकी थी। वह अपने शक्ति के अहंकार में चूर। उसे यकीन सा हो चला था कि वही एकमात्र आराध्या देवी है। किंतु वह कुछ भूल गयि। वह भूल गयि कि गुरु निरावण्म को समस्त ब्रह्माण्ड का ज्ञान था। ब्रह्मांड की उत्पत्ति जिन शक्ति पत्थरों से हुयि, फिर वह सकारात्मक प्रभाव दे या फिर नकारात्मक, उनको पूरा ज्ञान था। अंत में गुरु निरावण्म स्वयं सामने आये और उनके साथ था समस्त ब्रह्माण्ड का सबसे शक्तिशाली समुदाय का सबसे शक्तिशाली योद्धा, जिसे विग्गो सिग्मा कहते थे।

ब्रह्मांड के कई ग्रहों में से किसी एक ग्रह का वो निवासी था जिसे गुरु निरावण्म टेलीपोर्टेशन की जरिये लेकर आये थे। वह वीर अकेला चला बस शक्ति श्रोत के कयि सारे पत्थर संग जो युद्ध के लिये नही वरन महाजनिका को मात्र बांधने के उपयोग में आती। हर बुरे मंत्रो का काट गुरु निरावण्म पीछे खड़े रहकर कर रहे थे। उस विगो सिग्मा के बाहुबल की सिर्फ इतनी परिभाषा थी कि स्वयं महाजनिका उसके बाहुबल से भयभीत हो गयि। जैसा गुरु निरावण्म ने समझाया उसने ठीक वैसा ही किया। कई तरह के पत्थरों के जाल में महाजनिका को फसा दिया। शक्ति पत्थरों का ऐसा जाल जिसमे फंसकर कोई भी सिद्धि दम तोड़ दे। जो भी उस जाल में फसा वह अपनी सिद्धि को अपनी आखों से धुएं के माफिक हवा में उड़ते तो देखते, किंतु कुछ कर नही सकते थे। उसके कैद होते ही तांत्रिक विशेसना की सेना परास्त होने लगी।"

"महाजनिका और तांत्रिक विशेसना दोनो को ही समझ में आ चुका था की अब मृत्यु निश्चित है। तभी लिया गया एक बड़ा फैसला और तांत्रिक विशेसना के शिष्य विष मोक्ष श्राप से महाजनिका को कैद करने लगे। गुरु निरावण्म पहले मंत्र से ही भांप गये थे कि महाजनिका को कैद करके उसकी जान बचाई जा रही थी। लेकिन विष मोक्ष श्राप मात्र २ मंत्रों का होता है और कुछ क्षण में ही समाप्त किया जा सकता है। गुरु निरावण्म के हाथ में कुछ नही था, इसलिए उन्होंने टेलीपोर्टेशन के जरिये कैद महाजनिका को ही विस्थापित कर दिया।"

"कमजोर तो महाजनिका भी नही थी। उसे पता था यदि उसके शरीर को नष्ट कर दिया गया तब वह कभी वापस नहीं आ सकती। इसलिए जब गुरु निरावण्म उसे टेलीपोर्टेशन के जरिए विस्थापित कर रहे थे, ठीक उसी वक्त महाजनिका ने भी उसी टेलीपोर्टेशन द्वार के ऊपर अपना विपरीत द्वार खोल दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि महाजनिका की आत्मा समानांतर दुनिया (parellel world) के इस हिस्से में रह गयि और शरीर अंधकार की दुनिया में। यूं समझा जा सकता है कि आईने के एक ओर आत्मा और दूसरे ओर उसका शरीर। और दोनो ही टेलीपोर्टेशन के दौरान विष मोक्ष श्राप से कैद हो गये।"

"तांत्रिक विशेसना के सामने २ चुनौतियां थी, पहला अंधकार की दुनिया का दरवाजा खोलकर महाजनिका के शरीर और आत्मा को एक जगह लाकर उसे विष मोक्ष श्राप से मुक्त करना। और दूसरा ये सब काम करने के लिये सबसे पहले महाजनिका को टेलीपोर्ट करके कहां भेजा गया था, उसका पता लगाना... हां लेकिन इन २ समस्या के आगे एक तीसरी समस्या सामने खड़ी थी। अपने और अपने बच्चों की जान बचाना। टेलीपोर्टेशन विद्या आदिकाल से कई सिद्ध पुरुषों के पास रही थी किंतु तंत्रिक के पास वो सिद्धि नही थी जो उसे टेलीपोर्ट कर दे, इसलिए खुद ही उसने आत्म समर्पण कर दिया। इस आत्म समर्पण के कारण उसके बच्चों की जान बच गयि।"


"महाजनिका को विष मोक्ष श्राप उसे किसी गुरु द्वारा नही दी गई थी बल्कि तांत्रिक विशेसना के नेतृत्व में उसी के चेलों ने दी थी। हालाकि रक्त–मोक्ष श्राप से भी बांध सकते थे किंतु रक्त मोक्ष श्राप की विधि लंबी थी और समय बिलकुल भी नहीं था। महाजनिका को जगाने की प्रक्रिया कुछ वर्षों से चल रही थी। हम तो उसके आखरी चरण में पहुंचे थे। मैं आखरी चरण को विस्तार से समझाता हूं। विष–मोक्ष श्राप से जब किसी को वापस लाया जाता है तो वह उसके पुनर्जनम के समान होता है। गर्भ में जैसे बच्चा पलता है, ठीक वैसा ही एक गर्भ होता है, जहां शापित स्त्री या पुरुष 9 महीने के लिये रहते हैं। एक बार जब गर्भ की स्थापना हो जाती है, फिर स्वयं ब्रह्मा भी उसे नष्ट नही कर सकते। उसके जब वह अस्तित्व में आ जाये तभी कुछ किया जा सकता था। और हम तो गर्भ लगभग पूर्ण होने के वक्त पहुंचे।"

"आज जिस महाजनिका से हम लड़े है उसकी शक्ति एक नवजात शिशु के समान थी। यूं समझ लो की अपनी सिद्धि के वह कुछ अंश, जिन्हे हम अनुवांसिक अंश भी कहते हैं, उसके साथ लड़ी थी। यह तो उसकी पूर्ण शक्ति का मात्र १००वा हिस्सा रहा होगा। इसके अलावा वह २ बार मात खाई हुई घायल है, इस बार क्या साथ लेकर वापस लैटेगी, ये मुख्य चिंता का विषय है?"


आर्यमणि:– महाजनिका कहां से क्या साथ लेकर आयेगी? आप लोग इतने ज्ञानी है और महाजनिका इस वक्त बहुत ही दुर्बल। इस वक्त यदि छोड़ दिया तब तो वह अपनी पूरी शक्ति के साथ वापस आयेगी। आप लोगों को इसी वक्त उसे ढूंढना चाहिए...


संन्यासी शिवम:– "कहां ढूंढेंगे... वह इस लोक में होगी तो न ढूंढेंगे। महाजनिका अंधकार की दुनिया (parellel world) में है। अंधकार की दुनिया (parellel world) अपनी ही दुनिया की प्रतिबिंब दुनिया है, जिसका निर्माण प्रकृति ने संतुलन बनाए रखने के लिए किया है। जैसे की ऑक्सीजन जीवन दायक गैस लेकिन उसे बैलेंस करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड बनाया। प्रकृति संतुलन बनाए रखने के लिए दोनो ही तरह के निर्माण करती है।"

"समांनानतर ब्रह्मांड भी इसी चीज का हिस्सा है, बस वहां जीवन नही बसता, बसता है तो कई तरह के विचित्र जीव जो उस दुनिया के वातावरण में पैदा हुए होते हैं। यहां के जीवन से उलट और सामान्य लोगों के लिए एक प्रतिकूल वातावरण जहां जीने के लिए संघर्ष करने के बारे में सोचना ही अपने आप से धोका करने जैसा है। ऐसा नहीं था कि महाजनिका वह पहली थी जो अंधकार की दुनिया (Parellel world) में घुसी। उसके पहले भी कई विकृत सिद्ध पुरुष और काली शक्ति के उपासक, और ज्यादा शक्ति की तलाश में जा चुके हैं। उसके बाद भी कई लोग गये हैं। किंतु वहां जो एक बार गया वह वहीं का होकर रह गया। किसी की सिद्धि में बहुत शक्ति होता तो वह किसी तरह मूल दुनिया में वापस आ जाता। कहने का सीधा अर्थ है उसके दरवाजा को कोई भी अपने मन मुताबिक नही खोल सकता, सिवाय महाजनिका के। वह इकलौती ऐसी है जो चाह ले तो २ दुनिया के बीच का दरवाजा ऐसे खोल दे जैसे किसी घर का दरवाजा हो।"

"टेलीपोर्टेशन (teleportation) और टेलीपैथी (telepathy) एक ऐसी विधा है जो सभी कुंडलिनी चक्र जागृत होने के बाद भी उनपर सिद्धि प्राप्त करना असंभव सा होता है। आज के वक्त में टेलीपोर्टेशन विद्या तो विलुप्त हो गयि है, हां टेलीपैथी को हम संभाल कर रखने में कामयाब हुये। महाजनिका पूरे ब्रह्मांड में इकलौती ऐसी है जो टेलीपोर्टेशन कर सकती है। जिस युग में सिद्ध पुरुष टेलीपोर्टेशन भी किया करते थे तो भी कोई अंधकार की दुनिया में रास्ता नहीं खोल सकता था। महाजनिका ने वह सिद्धि हासिल की थी जिससे वो दोनो दुनिया में टेलीपोर्टेशन कर सकती थी।
Amazing update Bhai ❤️,
Jese ki guru ji ne bataya parallel world vichitra jeev rehte hai to kya apni kahani me jo supernaturals hai vo bhi unhi se connected hai ??
Ar kya esa ho sakta hai ki vo विग्गो सिग्मा maha yodha aaya tha other world se mahajanika se fight krne vo kissi trah kahani me aage chlkr Arya se connect ho jaae ya guru ban jaae Arya ka ya something like that,😅😅😅😅😅

Once again awesome update 👍🏻🙏
 
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