भाग:–44
"टेलीपोर्टेशन (teleportation) और टेलीपैथी (telepathy) एक ऐसी विधा है जो सभी कुंडलिनी चक्र जागृत होने के बाद भी उनपर सिद्धि प्राप्त करना असंभव सा होता है। आज के वक्त में टेलीपोर्टेशन विद्या तो विलुप्त हो गयि है, हां टेलीपैथी को हम संभाल कर रखने में कामयाब हुये। महाजनिका पूरे ब्रह्मांड में इकलौती ऐसी है, जो टेलीपोर्टेशन कर सकती है। जिस युग में सिद्ध पुरुष टेलीपोर्टेशन भी किया करते थे, तो भी कोई अंधकार की दुनिया में रास्ता नहीं खोल सकता था। महाजनिका ने वह सिद्धि हासिल की थी जिससे वो दोनो दुनिया में टेलीपोर्टेशन कर सकती थी।
निशांत:– माफ कीजिएगा, मेरा एक सवाल है। ये जो अभी पोर्टल खुला था, क्या वह टेलीपोर्टेशन नही हुआ...
संन्यासी शिवम:– हां ये भी आज के युग का टेलीपोर्टेशन है। इसे कुपोषित टेलीपोर्टेशन भी कह सकते हो। टेलीपोर्टेशन में कभी कोई द्वार नही खुलता, वहां किसी भी प्रकार के मार्ग को देखा नही जा सकता। हालांकि एक जगह से दूसरे जगह पहुंचने के लिए जो पोर्टल अर्थात द्वार खोलते है, वह होता तो काल्पनिक ही है, किंतु द्वार दिखता है। इसलिए सही मायने में यह टेलीपोर्टेशन नही। हालांकि पोर्टल बनाने की सिद्धि भी आसान नहीं होती। इसकी भी सिद्धि अब तक गिने चुने सिद्ध पुरुष के पास ही है। और हां तांत्रिक अध्यात के पास भी है। तांत्रिक के विषय में इतना ही कहूंगा की हो सकता है उनके पास टेलीपोर्टेशन की पूर्ण सिद्धि भी हो। क्योंकि उनके पीछे पूरा एक वंश वृक्ष था, जो पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी सिद्धि गुप्त रूप से आगे बढाते रहे हैं। लेकिन इसपर भी संदेह मात्र है, क्योंकि आज से पहले इन तांत्रिकों के बारे में केवल सुना ही था। हम लोग भी पहली बार आमने–सामने होंगे...
आर्यमणि:– आपकी बात और रीछ स्त्री को जानने के बाद मन विचलित सा हो गया है। क्यों है ये ताकत की होड़? इतनी ताकत किस काम कि जिससे पूरे मानव संसार को ही खत्म कर दो? फिर तुम्हारी ये ताकत देखेगा कौन?... क्यों करते है लोग ऐसा? आराम से हंसी खुशी नही रह सकते क्या? जिसे देखो अपना प्रभुत्व स्थापित करने में लगा है। कैसे हो गये है हम?...
संन्यासी शिवम:– तुम ज्यादा विचलित न हो। जैसा मैंने कहा, खुद को थोड़ा वक्त दो। बस एक ही सत्य है, मृत्यु। जब तक मृत्यु नही आती, तब तक मुस्कुराते हुए अपने कर्म किये जाओ।
आर्यमणि:– आप यहां से जाने के बाद क्या करेंगे संन्यासी जी...
संन्यासी शिवम:– पुर्नस्थापित अंगूठी मिल चुकी है इसलिए यहां से सीधा पूर्वी हिमालय जाऊंगा, कमचनजंघा की गोद में। हमारे तात्कालिक गुरुजी अभी जोड़ने के काम में लगे हैं। इसी संदर्व में हम कंचनजंघा स्थित अपने शक्ति के केंद्र वाले गांव को लगभग पुनर्स्थापित कर चुके थे। तभी तो खोजी पारीयान के तिलिस्म के टूटते ही हम तुम्हारे पीछे आये। क्योंकि गांव बसाने की लिए हमे बस वो आखरी चीज, पुर्नस्थापित अंगूठी चाहिए थी।
निशांत:– यदि ये अंगूठी इतनी जरूरी थी, फिर आप लोग ने क्यों नही ढूंढा...
संन्यासी शिवम:– कुछ वर्ष पहले कोशिश हुयि थी, तब कोई और गुरुजी थे। किंतु किसी ने छिपकर ऐसा आघात किया कि हम वर्षो पीछे हो गये। हमारे तात्कालिक गुरुजी पहले सभी आश्रम और मठ को जोड़ते। तत्पश्चात अंगूठी ढूढने निकलते। उस से पहले ही तुम दोनो ने ढूंढ लिया। हमारी मेहनत और समय दोनो बचाने के लिये आभार व्यक्त करते है।
निशांत:– वैसे एक सवाल बार–बार दिमाग में आ रहा है?
संन्यासी शिवम:– क्या?
निशांत:– इतना तो समझ गया की ये झोलर प्रहरी को रीछ स्त्री के यहां होने की खबर कैसे लगी। लेकिन एक बात समझ में नही आयि की वो प्रहरी यहां तांत्रिक के साथ लड़ाई में क्यों नही सामिल थे? सतपुरा आने से पहले जब मीटिंग हुई थी, तब हमे बताया गया था कि 5 किलोमीटर का क्षेत्र बांध दिया गया है, इसका क्या मतलब निकलता है?
आर्यमणि:– "यहां का पूरा माहोल और संन्यासी शिवम जी को सुनने के बाद तो पूरी कहानी ही कनेक्ट हो चुकी है। इसका जवाब मैं दे देता हूं। हर अनुष्ठान की अपनी एक विधि और खास समय होता है। रीछ स्त्री महाजनिका कैद से छूट तो गयि, लेकिन ऐडियाना के मकबरे को खोलने के लिए उसे इंतजार करना पड़ा। कुछ प्रहरी को पूरी बात पहले से पता थी, लेकिन ना तो तांत्रिक और न ही प्रहरी को, साधुओं और संन्यासियों का जरा भी भनक था।"
"प्रहरी तो सही समय पर यहां पहुंचे थे। आज से 4 दिन पहले जब ऐडियाना का मकबरा खोला जाता और अंदर का समान बांटकर, रीछ स्त्री के हाथों मेरी और कुछ लोगों की बलि चढ़ाई जाती। हां तब ये क्षेत्र भी 5 किलोमीटर तक बांधा गया था, वो भी तांत्रिकों द्वारा। लेकिन प्रहरी और तांत्रिक तब मात खा गये, जब उन्हें यह क्षेत्र किसी और के द्वारा भी बंधा हुआ मिला। एडियाना का मकबरा खुलने की विधि में बाधा होने लगी और तब तांत्रिक और उसके चेलों ने पोर्टल की मदद ली।"
"यहां पर तांत्रिक और प्रहरी का सीधा शक मुझपर गया। इसलिए 4 रात पहले मुझे मारने की योजना बनाई गयि।उन्हे लगा सरदार खान मुझे मार देगा। खैर आज जबतक सिद्ध पुरुष और संन्यासी का सामना तांत्रिक से नही हुआ था, तबतक ये लोग भी यही समझते रहे कि मैं ही कोई सिद्ध पुरुष हूं, जिसने ये पूरा खेल रचा है। अब मैं सिद्ध पुरुष हूं इसलिए प्रहरी सामने से मुझे मारने नही आये क्योंकि उनका भेद खुल जाता। उन प्रहरी को यही लग रहा की आर्यमणि तो रीछ स्त्री के पीछे नागपुर आया है। प्रहरी को यह भी विश्वास था कि मैं सरदार खान से बच गया तो क्या हुआ, तांत्रिक और रीछ स्त्री से नही बच पाऊंगा"...
"प्रहरी की एक खतरनाक प्लानिंग का खुलासा तो तुमने ही कर दिया था निशांत। जब कहे थे कि बहुत से शिकारी की जान जाने वाली है। और वो सही भी था क्योंकि भूमि दीदी को भी प्रहरी समुदाय में अलग ही लेवल का शक है। गुटबाजी तो हर संस्था में होती है। किंतु प्रहरी में उस से भी ज्यादा कुछ हो रहा है, इसका अंदेशा था शायद उन्हें। इसलिए भूमि दीदी को कमजोर करने के लिये उनके सभी खास लोगों को यहां ले आया।"
निशांत:– ओह अब मैं समझा की तू उस वक्त क्या समझाना चाह रहा था...
आर्यमणि:– क्या?
निशांत:– तेजस और सुकेश २ टॉप क्लास के प्रहरी, और पलक जो सबको यहां लेकर आयि। बिजली का खंजर इन्ही ३ लोगों में से कोई एक ले जाता और जिस तरह का संग्रहालय तेरे मौसा (सुकेश) ने अपने घर में बना रखा है। जिस विश्वास से सुकेश के सहायक ने रीछ स्त्री का पता बताया और वह सबको यहां ले आया। सुकेश ही शायद तांत्रिक के साथ मिला हुआ प्रहरी होगा। अगर सुकेश नही तो फिर तेजस या पलक। या फिर तीनों ही, या तीनों में से कोई २… क्योंकि यहां आये प्रहरी में से ही कोई प्रहरी खंजर लेकर जाता।
आर्यमणि:– बस कर ज्यादा गहराई में मत जा, वरना मेरी तरह ही तेरा हाल होगा।
निशांत:– मूर्ख समझा है क्या? तू मुझसे ज्यादा जानता है, इसलिए ज्यादा कन्फ्यूज है। मुझे यहां ३ प्रहरी करप्ट दिखे। यदि मुझसे पूछो तो ये लोग ताकत के भूखे है। जो की एक बच्चा भी समझ सकता है। पर जैसे कुछ सवाल तेरे ऊपर है न, तू ताकतवर तो है, लेकिन है क्या? यहां आने के पीछे मकसद क्या है? ठीक वैसे ही उनके लिए तेरे मन में है... ये लोग है क्या? और ताकत पाने के पीछे का मकसद क्या है? क्या मात्र ताकतवर बनना है, या पीछे कोई बहुत बड़ी योजना है?
सन्यासी शिवम:– हाहाहा, दोनो ही प्रतिभा के धनी हो। तुम दोनो साथ हो तो हर उस बिन्दु को देख सकते हो, जो दूसरे को १००० बार देखने से ना मिले।
आर्यमणि:– वैसे एक झोल तो आप लोगों ने भी किया है।
संन्यासी शिवम:– क्या?
आर्यमणि:– ठीक उसी रात क्षेत्र को बांधे जब मैं यहां पहुंचा। न तो कोई अंदर आ सकता था न ही कोई बाहर। फिर सिर्फ मुझे और निशांत को ही बंधे हुए क्षेत्र के अंदर घुसने दिया होगा। बाकी मुझे विश्वास है कि बहुत से लोग बांधे हुए क्षेत्र की सीमा के पास होंगे, लेकिन अंदर नही आ पा रहे। रीछ स्त्री कुछ बताने आयेगी नही और तांत्रिक के पूरे समूह को ही गायब कर दिया। देखा जाय तो आप लोगों ने भी ये पूरा खेल परदे के पीछे रहकर ही खेल गये। उल्टा मुझे हाईलाइट कर दिया...
संन्यासी शिवम:– मुझे लगा इस ओर तुम्हारा ध्यान नहीं जायेगा। सबसे पहले तो माफी चाहूंगा जो तुम्हे फसाते हुये हम आगे बढ़े। विश्वास मानो हम अभी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे, जिसमे हमारे तात्कालिक गुरु जी और आचार्य जी, आश्रम के सभी इकाई को जोड़ने में लगे है। इस वक्त हम किसी के सामने अपने होने का भेद नहीं खोल सकते। वैसे अब चिंता मत करो, हमने दोनो ही शंका को दूर कर दिया।
आर्यमणि:– कौन सी..
संन्यासी शिवम:– पहली की तुम हमारे बंधे क्षेत्र में घुसे ही नही। लोगों ने यही देखा की तुम भी उन्ही की तरह जूझ रहे। क्योंकि हमने तुम्हारी होलोग्राफिक इमेज को अब भी सीमा के बाहर रखा है। अब चूंकि तुम भी उन लोगों की तरह बाहर घूम रहे, इसलिए तुम एक सिद्ध पुरुष कैसे हो सकते? प्रहरी को यकीन हो गया है कि रीछ स्त्री के बंधे क्षेत्र में कोई नही घुसा इसलिए दिमाग में एक ही बात होगी, "शायद तांत्रिक के मन में ही बईमानि आ गयि हो।"
निशांत:– होलोग्राफिक इमेज.. क्या ऐसा भी कोई सिद्ध किया हुआ मंत्र है?...
संन्यासी शिवम:– हां है न, विज्ञान। हमारे पास कमाल के प्रोग्राम डिजाइनर और सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।
निशांत:– क्या सच में?....
संन्यासी शिवम:– हां बिलकुल। वैसे भी अब तो हमारे साथ हो, जल्द ही सबको जान जाओगे...
आर्यमणि:– चलो मेरा बोझ तो घटा। वैसे यहां से मैं एक बात सीखकर जा रहा...
निशांत:– क्या?
आर्यमणि:– हम जैसे लोगों के लिए भटकना ज्यादा प्रेरणादायक है। हम गंगटोक में भटके, क्या कुछ नही सीखा... मैं 3–4 साल घुमा क्या कुछ नही सीखा। जबकि उस दौड़ में तू नागपुर में ही रहा और क्या सीखा..
निशांत:– प्रहरी के लौड़ा–लहसुन सीखा। इस से ज्यादा कुछ नहीं...
आर्यमणि:– अब देख, सतपुरा के जंगल हम घूमने आये, फिर क्या हुआ...
निशांत:– पूरी सृष्टि ही हैरतंगेज चीजों से भरी है जिसका हमने बूंद ही देखा हो शायद...
फिर दोनो दोस्त एक साथ एक सुर में... "माफ करना संन्यासी जी जो हम कहने वाले है... इतना कहकर दोनो ने हाथ जोड़ लिये और चिल्लाकर कहने लगे... "मां चुदाये दुनिया, हम तो उम्र भर भटकते रहेंगे।"..
संन्यासी हंसते हुए... "तुम दोनो ऐसी भाषा का भी प्रयोग करते हो?"
आर्यमणि:– हां जब अकेले होते हैं... वैसे हमने 8 साल की उम्र से 16–17 साल तक ज्यादातर वक्त एक दूसरे के साथ अकेले ही बिताया है।
निशांत:– हां लेकिन ये भी है, ऐसी बातें किसी और के सामने निकलती भी नही... संन्यासी सर मुझे भी अब आपके साथ कुछ दिन भटकना है...
आर्यमणि:– क्यों तू मेरे साथ नही भटकेगा...
निशांत:– अभी बिलकुल नहीं... तू भटक कर अपना ज्ञान अर्जित कर और मैं भटक कर अपना ज्ञान अर्जित करूंगा... और जब दोनो भाई मिलेंगे तब पायेंगे की हमने दुगनी दुनिया देखी है...
आर्यमणि, निशांत के गले लगते... "ये हुई न असली खोजी वाली बात"…
संन्यासी शिवम:– अभी तुम्हे अपने साथ बहुत ज्यादा भटका तो नही सकता, लेकिन हां कुछ अच्छा सोचा है तुम्हारे बारे में...
निशांत:– क्या..
संन्यासी दोनो के हाथ में एक–एक पुस्तक देते... "जल्द ही पता चल जायेगा। अब मैं चलता हूं।"… सन्यासी अपनी बात कहकर वहां से निकल गये। आर्यमणि और निशांत भी बातें करते हुये कैंप की ओर चल दिये। पीछले कुछ घंटों की बातो को दिमाग से दूर करने के लिये इधर–उधर की बातें करते हुये पहुंचे।
दोनो कैंप के पास तो पहुंचे लेकिन वहां का नजारा देखते ही समझ चुके थे कि वहां क्या हो चुका था? वहां का माहोल देखकर आर्यमणि और निशांत को ज्यादा आश्चर्य नही हुआ, बस अफसोस हो रहा था। चारो ओर कई शिकारियों की लाश बिछी थी। जिसमे २ मुख्य नाम थे, पैट्रिक और रिचा। पैट्रिक और रिचा के साथ लगभग 30 शिकारी मारे गये थे। बचे हुये शिकारी फुफकार मारते अपने गुस्से का परिचय दे रहे थे। उन्ही के बीच से पलक भागती हुई पहुंची और आर्यमणि के गले लगती... "ऊपर वाले का शुक्र है कि तुम सुरक्षित हो"…
आर्यमणि:– पलक यहां हुआ क्या था?
पलक:– वह रीछ स्त्री महाजनिका अचानक ही यहां पहुंची और उसने हम पर हमला कर दिया।
निशांत, लाश के ऊपर लगे तीर और भला को देखते... "तीर और भला से हमला किया?"
रिचा के ही टीम का एक साथी तेनु.… "घटिया वेयरवोल्फ और उसका मालिक दोनो ही लड़ाई के वक्त नदारत थे। साले फट्टू तू आया ही क्यों था। चल भाग यहां से।
पलक:– तेनु जुबान संभाल कर..
तेनु पलक को आंखें दिखाते... "तेजस यहां मुझे सब संभालने के लिये कह कर गया है। अपनी जुबान मीटिंग में ही खोलना। और तू निष्कासित वर्धराज का पोते, अपने वुल्फ की तरह तू भी निकल फट्टू"…
निशांत तो २–२ हाथ करने में मूड में आ गया लेकिन आर्यमणि ने उसे शांत करवाया और अपने साथ लेकर निकल गया। कुछ घंटों के सफर के बाद रास्ते में अलबेली और रूही भी मिली, जिन्हे उठाते दोनो आगे बढ़ गये।..
आर्यमणि:– क्या खबर...
रूही:– शायद उसका नाम नित्या था।
आर्यमणि:– किसका..
रूही:– वो औरत...उसके पूरे बदन पर मैले कपड़े थे जो जगह–जगह से फटे थे। मानो बरसों से उसने अपने बदन पर कोई दूसरा कपड़ा न पहना हो। बदन का जो हिस्सा दिख रहा था सब धूल में डूबा। ऐसा लग रहा था धूल की चमरी जमी है। उसके होंटों पर भी धूल चढ़ा था, और जब वो बोलने के लिए होंठ खोली, उसके धूल जमी खुस्क होंठ पूरा फटकर लाल–लाल दिखने लगे। चेहरा ऐसा झुलसा था मानो भट्टी के पास उसके चेहरे को रखा गया था। हवा की भांति वो लहराती थी। किसी धूवें की प्रतिबिंब हो जैसे। तेजस उसे नित्या कहकर पुकार रहा था, इस से ज्यादा उसकी नई भाषा मुझे समझ में नही आयि। वह क्या थी पता नही, लेकिन इंसान तो बिलकुल भी नहीं थी। तेजस ने उससे कुछ कहा और वो सबसे पहले तुम दोनो पर ही हमला करने पहुंची।"
"बॉस वो तुम्हे मारने की कोशिश करती रही लेकिन तुम और निशांत तो धुवें के कोहरे में घुसकर बचते रहे। जब वह तुम दोनो को नही मार पायि, फिर सीधा कैंप पहुंची और वहां हमला कर दिया। वह अकेली थी और शिकारियों से घिरी। उसकी अट्टहास भरी हंसी और खुद का परिचय रीछ स्त्री महाजनिका के रूप में बताकर हमला शुरू कर दी। उसके बाद जो हुआ वह हैरतंगेज और दिल दहला देने वाला था। मानो वो औरत बंदूक की गोली से भी तेज लहराती हो। एक साथ 30–40 बुलेट चले होंगे और ऐसा भी नही था की वह एक जगह से भागकर दूसरे जगह पर गयि हो। अपनी जगह पर ही थी और १ फिट के दायरे में रहकर वह हर बुलेट को चकमा दे रही थी।"
हर एक शिकारी ने वेयरवोल्फ पकड़ने वाले सारे पैंतरे को अपना लिया। सुपर साउंड वेव वाली रॉड हो या फिर करेंट गन फायर। ऐसा लग रहा था १० मिनट तक खुद को मारने का एक मौका दे रही हो। फिर उसके बाद तो क्या ही वो कहर बनकर बरसी। वहां न तो धनुष–बाण थी, और ना ही भाला। लेकिन जब वह अपने दोनो हाथ फैलायी तब चारो ओर बवंडर सा उठा था। वह नित्या दिखना बंद हो गयि। बस चारो ओर गोल घूमता बवंडर। और फिर उसी बवंडर से बाण निकले। भाले निकले। सभी जाकर सीधा सीने में घुस गये और जब हवा शांत हुई तब वहां नित्या नही थी। बस चारो ओर लाश ही लाश।
निशांत:– वाउ!!! प्रहरियों का एक और मजबूत किरदार जो प्रहरी को मार रहा। और इसी के साथ ये भी पता चल गया की ३ में से एक कौन था जो खंजर लेने पहुंचा था।
रूही:– कौन सा खंजर...
आर्यमणि:– ऐडियाना के मकबरे का खंजर। पूरी घटना में सुकेश भारद्वाज और पलक कहां थे?
रूही:– माहोल शांत होने तक पलक वहीं थी लेकिन उसके बाद कुछ देर के लिये वह कहीं गयि थी। सुकेश और तेजस तो पहले से गायब थे, जिन्हे ढूंढने मैंने अलबेली को भेजा था।
आर्यमणि:– बकर–बकर करने वाली इतनी शांत क्यों है?..
अलबेली:– क्योंकि आज जान बच गयि वही बहुत है। सुकेश और तेजस कैंप से २ किलोमीटर दूर थे। दोनो में कोई बातचीत नहीं हो रही थी, केवल एक ही दिशा में देख रहे थे। थोड़ी देर बाद वह नित्या पहुंची। सुकेश के सीधे पाऊं में ही गिर गयि। तीनों की कुछ बातें हो रही थी तभी पलक भी वहां पहुंची... तीनों अजीब सी भाषा में बात कर रहे थे, समझ से परे। शायद मैं कच्ची हूं, इसलिए मैं उन तीनो में से किसी की भावना पढ़ नही पायि। बहुत कोशिश की, कि मैं उनकी भावना समझ सकूं, लेकिन कुछ पता न चला।"
"लेकिन तभी नित्या ने मेरी ओर देखा। मैं 500–600 मीटर दूर बैठी, उनकी बातें सुन रही थी। पेड़ों के पीछे जहां से न वो मुझे देख सकती थी और ना मैं उन्हे। लेकिन मुझे एहसास हुआ की मेरी ओर कुछ तो खतरा बढ़ रहा है। मै बिना वक्त गवाए एक जंगली सूअर के पीछे आ गयि और एक भला सीधा जंगली सूअर के सीने में। जैसे किसी ने उस भाले पर जादू किया हो। रास्ते में पड़ने वाले सभी पेड़ों के दाएं–बाएं से होते हुये सीधा एक जीव के सीने में घुस गया। मैं तो जान बचाकर भागी वहां से। बॉस अभी मेरी उम्र ही क्या है। जिंदगी तो कुछ वक्त पहले से ही शुरू हुई है लेकिन उसे भी वो डायन नित्या छीन लेना चाहती थी। बॉस बहुत खतरनाक थी वो।
अलबेली की बात सुनकर आर्यमणि निशांत को देखने लगा। निशांत अपने हाथ जोड़ते... "मुझे नहीं पता की खंजर लेने कौन प्रहरी पहुंचा था। तीनो ही साथ है, या केवल तेजस या फिर जो भी नए समीकरण हो। मुझे माफ करो।"
आर्यमणि हंसते हुये... "अब सब थोड़ा शांत हो जाओ और चलो सीधा वापस नागपुर।"..
अलबेली:– मुझे तो लगा अपने पैक की सबसे छोटी सदस्य के लिये अभी आप उस नित्या से लड़ने चल देंगे...
आर्यमणि:– लड़ाई छोड़ो और पहले ट्रेनिंग में ध्यान दो। पड़ी लकड़ी उठाने का शौक न रखो।
निशांत:– अनुभव बोलता है। एक पड़ी लकड़ी उठाने वाला ही समझ सकता है आगे का दर्द..
आर्यमणि:– और कौन सी पड़ी लकड़ी उठाई है मैंने..
निशांत:– कहां–कहां की नही उठाया, फिर वो मैत्री के चक्कर में... (तभी आर्य ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया। निशांत किसी तरह अपना मुंह निकलते).. अबे बोलने तो दे...
आर्यमणि:– नही तू नही बोलेगा.."….
निशांत:– क्यों न बोलूं, इन्हे भी अपने बॉस के बारे में जानने का हक है। क्यों टीम, क्या कहती हो...
रूही और अलबेली चहकी ही थी कि बॉस की घूरती नजरों का सामना हो गया और दोनो शांत...
"साले डराता क्यों है। पैक का मुखिया हो गया तो क्या इन्हे डरायेगा।"…… "अच्छा !!! तो फिर खोल पड़ी लकड़ी के किस्से। मैं तो नफीसा से शुरू करूंगा।"… "आर्य तू नफीसा से शुरू करेगा तो मैं भी नफीसा से शुरू करूंगा।"…. "वो तो तेरे साथ थी न"….. "मैं कहता हूं तेरे साथ थी। बुला पंचायत देखते है उसकी शक्ल देखकर किसपर यकीन करते है।"…
रूही:– थी कौन ये नफीसा ..
दोनो के मुख से अनायास ही निकल गया... "शीमेल (shemale) कमिनी"…
अलबेली तो समझ ही नही पायि। लेकिन जब रूही ने उसे पूरा बताया तब वह भी खुलकर हंसने लगी। और रह–रह कर एक ही सवाल जो हर २ मिनट पर आ रहा था... "पता कब चला की वो एक..."
अगले २ दिनो तक चुहुलबाजी चलती रही। चारों सफर का पूरा आनंद उठाते नागपुर पहुंच गये। नागपुर में भूमि का पारा देखने लायक था। जबसे उसने सुना था कि रिचा और पैट्रिक नही रहे, तबसे वह सो नहीं पायि थी। दिल और दिमाग पर बस एक ही नाम छाया था, रीछ स्त्री। और भूमि को किसी भी कीमत पर अपने साथियों का बदला चाहिये था। आर्यमणि कोई भी बात बता नही सकता था और भूमि कोई भी दिल लुभावन बात से शांत नहीं हो रही थी। उसे तो बस बदला ही चाहिये था। जब बात नही बनी तब आर्यमणि ने भूमि को कुछ दिनों के लिये अकेले छोड़ना ही उचित समझा। इधर आर्यमणि ने भूमि को अकेले छोड़ना उचित समझा, उधर रूही और अलबेली को भी सबने छोड़ दिया। या यूं कहे कि सबने घर से धक्के देकर निकाल दिया।
Ha to suru karte hai latest revo...
Nisant or arya ki jo apas me un sidh purush ke samne bakaiti hui hai Man dil atma sab garden garden ho gye hai bhai bs body se hasi ke thahako ki dwani hi nikalti rahi...
Or dono ka vo dialog MA chudaye duniya ham to ghumenge - epic tha us situation pr...
Yha gadi me nafisha ka jikra vo to or bhi mazedar tha, mujhe to soch kr hi hasi aa rhi hai arya or Nishant ka ek shemale ke sath chakkar
Apki kahaniyo ke nayak ka aisa mazakiya Samband hona ab to comman hi Lagta hai...
Palak or uska bhai sath me dusra banda ye tino kya khichdi pka rhe hai kahi arya ka pta karne to nahi chale gye or vo ladki jo apne aap ko riksh stri kah rhi thi, akhir kya sambandh hai uska, yha Pahle Nishant palak ko bhrast bta rha tha pr ab usne in tino ko hi sak ke ghere me kr diya hai vahi Aaj Albeli marte marte Bachi, akhir Kon si bhasa me bate kr rhe the vo 4ro...
Bhumi Di gusse me badla badla lene ka sochne baithi hai ,arya abhi kuchh bta nhi sakta unhe or vo sach me alava kuchh sunna nhi chahti, Dekhte hai kya hota hai aage...
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