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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
लगता हैं युद्ध का नगाड़ा बज गया हैं
एक तरफ ऋषि हैं तो दूसरी तरफ विकृत मानसिकता वाले सिद्ध पुरुष
देखते हैं क्या होता हैं आगे आगे
भाग:–41





निशांत ने भी उसे देखा और देखकर अपने मुंह पर हाथ रखते.… "वेंडिगो सुपरनैचुरल"

आर्यमणि:– इंसानी मांस के दीवाने, वेंडीगो.…

निशांत:– मुझे लगा किसी वेयरवोल्फ का अति–कुपोषित रूप है। ओओ आर्य, लगता है इनके इरादे कुछ ठीक नही...


दोनो बात कर ही रहे थे, इतने ने दोनों को कई सारे वेंडिगो ने घेर लिया।…. "निशांत, इनके पतले आकार पर मत जाना, ये एक अल्फा से ज्यादा खतरनाक होते है।"


निशांत:– हां मैंने भी पढ़ा था। मुझे तो ये बता की इसका दिल कैसे बाहर निकलेंगे...


(वेंडिगो को मारने की एकमात्र विधि, उसका दिल निकालकर नींबू की तरह निचोड़ देना)


आर्यमणि, लंबा छलांग लगाते एक वेंडिगो को पकड़कर उसकी छाती चीड़ दिया। छाती चिड़कर उसके दिल को अपने हाथ से मसलते… "फिलहाल तो इनका दिल ऐसे ही निकाल सकते हैं।"…. निशांत वह नजार देखकर... "तू दिल निकलता रह छोड़े, मैं आराम से ट्रैप वायर लगता हूं।"…. "पागल है क्या, तू मुझे तो मारना नही चाहता। कहीं तेज दौड़ते मैं फंस गया तो"…. "फिर इतने ट्रैप वायर का इस्तमाल कहां इनके पिछवाड़े में डालने के लिए करूं"….. "तू कुछ मत कर। यहां तो आमने–सामने की लड़ाई है। ट्रैप वायर आगे कहीं न कहीं काम आ ही जायेगी"…


विंडिगो की गतिसीलता, उसकी चूसती–फुर्ती और उसके तेज–धारदार क्ला, आर्यमणि को काफी परेशान कर रहे थे। जब तक वह 1 वेंडिगो की छाती चिड़ता उसके पीठ पर १००० तलवार चलने जितने क्ला के वार हो चुका होते। ऐडियाना का सेवक मानो पागलों की तरह हमला कर रहा था।


वैसे इसी क्षेत्र में अब से थोड़ी देर पहले योगी और संन्यासियों की पूरी एक टोली पहुंची थी। 2 सिद्ध पुरुष, 5 सन्यासी और 30 सहायकों के साथ ये सभी पहुंचे थे। ये सभी अपनी मंजिल के ओर बढ़ रहे थे। उस टोली के मुखिया ओमकार नारायण कुछ महसूस करते... "इस शापित जगह का दोषी पारीयान पहुंच चुका है। उसे सुरक्षित लेकर पहुुंचो। सिद्ध पुरुष के आदेश पर 1 सन्यासी अपने 20 सहायकों के साथ इस जगह के दोषी को लेने चल दिये और बाकी सभी आगे बढ़ गये।


इधर आर्यमणि लागातार छाती चिड़कर, वेंडिगों के हृदय को मसलकर मार रहा था। किंतु एक तो उनकी तादात और ऊपर से उनके तेज हमले। आर्यमणि धीमा पर रहा था और वेंडिगो अब भागकर हमला करने के बदले आर्यमणि के शरीर पर कूदकर जोंक की तरह चिपक जाते, और अपने क्ला से उसके शरीर पर हमला कर रहे थे। आर्यमणि किसी को पकड़े तो न छाती चीड़ दे। अब हालात यह था कि १००० वेंडिगो एक साथ उसके शरीर पर कूद जाते। आर्यमणि अपने शरीर से जब तक उन्हे जमीन पर पटकता, तब तक एक साथ २००–३०० क्ला उसके शरीर पर चल चुके होते।


देखते ही देखते वेंडिगो ने आर्यमणि को पूरा ढक ही दिया। आर्यमणि तो दिखना भी बंद हो गया था, बस ऊपर से वेंडिगो के ऊपर वेंडिगो ही नजर आ रहे थे। तभी उस जगह जैसे विस्फोट हुआ हो। ६ फिट का आर्यमणि 9 फिट का बन चुका था। अपने बदन को इस कदर झटका की शरीर के ऊपर जोंक जैसे चिपके वेंडिगो विस्फोट की तरह चारो ओर उड़ चुके थे। लागातार हमले और बहते खून से आर्यमणि भले ही धीमा हो गया था, लेकिन यह मात्र एक मानसिक धारणाएं थी, वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी का ख्याल होता तो आर्यमणि खुद को धीमा मेहसूस नही करता।


फिलहाल तो आर्यमणि अपने भव्य रूप में खड़ा था। हैवी मेटल वाला उजला चमकता शरीर और गहरी लाल आंखे। चौड़ी भुजाएं, चौड़े पंजे और क्ला तो स्टेनलेस स्टील की भांति चमक रहे थे। अब परवाह नहीं की शरीर पर कितने वेंडिगो कूद रहे। बस सामने से उड़ता हुआ वेंडिगो निशाने पर होता। बाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो आता, उसका सामना लोहे के मुक्के से हो जाता। फिर तो देखने में ऐसा लगता मानो हड्डियों के अंदर जमे मांस और खून (दरसल हड्डियों के ढांचों के अंदर वाइटल ऑर्गन के विषय में लिखा गया है) पर किसी ने वजनी हथौड़ा मार दिया। ठीक वेंडिगो के सीने पर भी ऐसा ही हथौड़ा चल रहा था। मुक्का वेंडिगो के छाती फाड़कर इस पार से घुसकर उस पार निकल जाता और विस्फोट के साथ हड्ढियों और दिल के चिथरे हवा में होते।


वहीं दाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो कूदता उसका सामने चौड़े पंजे और चमकते धारदार क्ला से होता। बिजली की गति से आर्यमणि अपना दायां पंजा चलता। पूरा क्ला सीने की हड्डी को तोड़ते हुए सीधा सीने में घुसता। और मुट्ठी में उसका दिल दबोचकर बाहर खींच लेता। और इस बेदर्दी से दिल को मुट्ठी को दबोचता कि जब पंजे खुलते तो केवल रस ही हाथ में रहता।


देखने वाला यह नजारा था। आंखों के आगे जैसे कल्पनाओं से पड़े दृश्य था। जैसा पुराने जमाने की लड़ाई के किसी दृश्य में, कई तीरंदाज एक साथ जब तीर छोड़ते थे, तब जैसे आकाश तीर से ढक जाता था, ठीक उसी प्रकार वेंडिगो इतनी तादात में कूद रहे थे की पूरी जगह ही हड्डी के ढांचों से बने, सड़े हुए इस सुपरनैचुरल वेंडिगो से ढक जाती। और उसके अगले ही पल आर्यमणि इस तेजी से अपने बदन को झटकता की वापस से आकाश ढक जाता। इन प्रक्रिया के बीच कुछ वेंडिगो, आर्यमणि के दोनो हाथ का स्वाद भी चख लेते।


अब ऐसा तो था नही की वहां सिर्फ आर्यमणि था। उसके साथ निशांत भी आया था। हमला निशांत पर भी होता लेकिन उसके पास भ्रमित अंगूठी थी, और एक भी वेंडिगो उसे छू नही पा रहा था। निशांत तो बस पूरे एक्शन का मजा लेते अपने मोबाइल पर ढोल–नगाड़ा वाला म्यूजिक बजाकर मजा लूट रहा था। साथ ही साथ निशांत अपनी गला फाड़ आवाज से आर्यमणि का जोश बढ़ाते… "महाकाल का रूप लिए रह आर्य... फाड़–फाड़.. फाड़... साले को... चिथरे कर दे... परखच्चे उड़ा दे... रौद्र रूप धारण कर ले... मार आर्य मार"…


निशांत की जोश भरी हुंकार... आर्यमणि की भीषण और हृदय में कंपन करने वाली दहाड़ और चुंबकीय भीड़ को बिखेड़ कर बिजली के रफ्तार से चलने वाले हाथ... काफी रोमांचक दृश्य था। सड़े हुए लाशों के ढेर पहाड़ बन रहे थे। दाएं पंजे ने न जाने कितने जीवित वेंडिगो के दिल खींचकर निकाल लिए थे। वहीं बाएं हाथ का लौह मुक्का न जाने कितने वेंडिगो के छाती के पार कर गये थे। समा पूरा बंधा था। निशांत लगातार हुंकार पर हुंकार भरते, जोश दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था।


तभी वहां कुछ लोग पहुंचे। सभी के बदन पर गेरुआ वस्त्र। १ के हाथ में दंश तो कई लोग कंधे पर बड़े–बड़े झोला टांग रखे थे। निशांत पूरा जोश दिलाता भीषण लड़ाई के मजे ले रहा था तो वहीं आर्यमणि वेंडिगो के चीथरे उड़ा रहा था। संन्यासी और उसके सहायकों के पहुंचते ही माहोल ही पूरा बदल गया हो। वेंडिगो अब कूद तो रहे थे लेकिन आर्यमणि, निशांत और बाकी के जो संन्यासियों की जितनी टोली थी, सबके आगे अदृश्य दीवार सी बन गई थी। वेंडिगो कूदते और अदृश्य किसी दीवार से टकराकर वहीं नीचे गिर जाते।


हैरतंगेज नजारा था जिसे देखकर निशांत चिल्लाने लगा... "आर्य तंत्र–मंत्र और तिलिस्म करने वाले कुछ लोग हमे मिल गए। कहां थे आप लोग... बचपन में चर्चा किया था, आज जाकर मिले हो"…निशांत की बात सुनकर आर्यमणि भी विश्राम की स्थिति में आया।


संन्यासी मुस्कुराते हुए.… "कोई बात नही बस एक बार परिचित होने की देर थी, अब तो मिलना–जुलना लगा रहेगा।"


आर्यमणि:– आप लोग जादूगरनी ताड़का (वही जादूगरनी जिसके साथ सुकेश आया है) के चेले हैं।


संन्यासी:– नही हम उनके चेले नही और ना ही तुम्हारे दूसरे अवतार (प्योर अल्फा) की पहचान को हमसे कोई खतरा है। हां लेकिन जल्दी साथ चलो, वरना जिसके लिए हम यहां आए है, वह कहीं भाग ना जाए...


आर्यमणि और निशांत उनके साथ कदम से कदम मिलाते हुए चल दिये। निशांत पूरी जिज्ञासा के साथ... "ये आपने कौन सा मंत्र पढ़ा है जो पीछे से ये मुर्दे (वेंडिगी) हमला तो कर रहे, लेकिन हवा की दीवार से टकरा जा रहे।"


संन्यासी:– यह एक प्रकार का सुरक्षा मंत्र है... छोटा सा मंत्र है, भ्रमित अंगूठी के साथ ये मंत्र तुम पढ़ोगे तो असर भी होगा...


निशांत:– क्या बात कर रहे है? क्या सच में ऐसा होगा..


संन्यासी:– संपूर्ण सुरक्षा–वायु आवाहन.. इसे किसी सजीव को देखकर 6 बार पढ़ो।


निशांत ट्राई मारने चल दिया, इधर आर्यमणि, बड़े ही ध्यान से पूरे माहोल को समझने की कोशिश कर रहा था। संन्यासी आर्यमणि के ओर देखकर मुस्कुराते हुए... "यदि मेरी भावनाओं को तुम पढ़ नही सकते, इसका मतलब यह नहीं की तुम मेरी तुलना उनसे करने लग जाओ, जिनकी भावना तुम पढ़ने में असफल हो"..


आर्यमणि:– मतलब..


संन्यासी:– मतलब जाने दो। मै पिछले कुछ दिनों से तुम्हे देख रहा हूं। तुमसे एक ही बात कहूंगा... तुम सत्य के निकट हो, लेकिन उन चीजों को समझने के लिए तुम्हे पहले अपने आप को थोड़ा वक्त देना होगा। तुमने खुद को बहुत उलझा रखा है... जिस दुनिया को तुम समझने की कोशिश कर रहे हो, उस से पहले थोड़ी अपनी दुनिया भी समझ लो..


आर्यमणि:– आप तो उलझाने लगे..


संन्यासी:– माफ करना.. मैं तुम्हे और उलझाना नही चाहता था। मेरे कहने का अर्थ है कि जैसा तुम नागपुर में कुछ ऐसे लोगों से मिले हो जिनकी भावना तुम नही पढ़ सकते। उन्ही के विषय में तुम्हे जानकारी जुटानि है.. मैं गलत तो नहीं..


आर्यमणि:– हां बिलकुल सही कह रहे...


संन्यासी:– तुम कितने भी उत्सुक क्यों न हो, उनके विषय में मैं कोई जवाब नही दूंगा। मैं बस रास्ता बता रहा हूं ध्यान से सुनो... जिस सवाल का जवाब तुम यहां आने के बाद ढूंढ रहे, उसके लिए तुम्हे इतनी जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए... बस जल्दी जानने की जिज्ञासा को थोड़ा दरकिनार कर दो, हर सवाल का जवाब मिल जायेगा। कुछ इतिहास को अपने हिसाब से बनाया गया था और मुझे खुशी है कि तुम हर इतिहास पर आंख मूंदकर भरोसा नही करते...


"साधु जी, साधु जी, मैने तो एक वेंडिगो को ही गोला में पैक करके हवा में उड़ा दिया... क्या मैने गलत मंत्र पढ़ा"… निशांत दौड़ता, भागता उत्सुकता के साथ पहुंचा और अपनी बात कहने लगा..


संन्यासी:– नही मंत्र तो सही पढ़ा लेकिन तुमने एक नरभक्षी को सुरक्षा चक्र में बांधकर छोड़ दिया। चूंकि वह छलांग लगा रहा था इसलिए हवा में उड़ा। अब जरा सोचो की वह इंसानों की बस्ती में पहुंच गया फिर क्या होगा...


निशांत:– हे भगवान !! क्या होगा अब.. मेरे वजह से निर्दोष लोग मारे जायेंगे...


सन्यासी मुस्कुराते हुए.… चिंता मत करो हम उन्हे देख लेंगे... वैसे क्या तुम्हे भी मंत्र और उनके प्रयोग में रुचि है...


निशांत:– सीखा दो सर १०–१२ मंत्र अभी सीखा दो।


संन्यासी, मुस्कुराते हुए.… "अंगूठी के बिना तुम मंत्र से कोई लाभ नहीं ले सकते।"..


निशांत:– हां लेकिन ये अंगूठी मुझे लेगा कौन... रहेगा तो मेरे पास ही...


निशांत की इस बात पर सन्यासी मुस्कुराते हुए अपनी मुट्ठी खोले... "क्या इसी अंगूठी के विषय में तुम कह रहे थे।"


निशांत:– ओय ढोंगी साधु, तुम यहां हमारे अंगूठी के लिए आये हो...


संन्यासी:– तुम्हे पारीयान की पांडुलिपि में कहीं भी कैलाश मठ नही मिला था क्या? खैर जाने दो। तुम ये अंगूठी अपने पास एक शर्त पर रख सकते हो..


निशांत:– कौन सी..


संन्यासी:– हमारे खोजी दल का नेतृत्व करो। कुछ साल तप और कठिन मेहनत के बाद एक बार तुमने योग्यता सिद्ध कर दी, फिर बिना इस अंगूठी के भी मंत्र का प्रयोग कर सकते हो। और अंगूठी को तुम्हारी उंगली से हमारे मठाधीश आचार्य जी भी नही निकाल पायेंगे...


निशांत मायूस होते... "फिर मुझे बहुत सारे रोक–टोक झेलने होंगे। अपनी दुनिया छोड़कर आप लोगों की तरह रहना होगा। बहुत सारे प्रतिबंध तो आप लोग लगा देंगे। फिर मुझे पहचान छिपाकर रहना होगा।"


संन्यासी:– इतनी सारी बातें नही होती है। पहचान हम छिपाते नही, बल्कि हम सबके सामने रहे तो हाल वैसा ही होना है... अपना दरवाजा गंदा हो तो भी उसे साफ करने के लिए नगर–निगम के कर्मचारी का इंतजार करते हैं। हां कुछ प्रतिबंध होते है, लेकिन वो तो हर जगह होते है। क्या तुम जिस कॉलेज में हो उस कॉलेज की अपनी कानून व्यवस्था नहीं। क्या जिले की कानून व्यवस्था नहीं या फिर राज्य या देश की। खैर मैं तुम्हे अपने साथ आने के लिए प्रेरित नही कर रहा। बस तुम्हारे सवालों का जवाब दे रहा। बेशक यदि मेरी तरह संन्यासी बनना है फिर संसार त्याग कर हमारे साथ आ जाओ, वरना यदि तुम्हे पारीयान की तरह खोजी बनना है, फिर तुम्हारी जरूरी शिक्षा तुम्हारे कमरे में हो जायेगी...


निशांत पूरे उत्साह से... "क्या यह सच है?"..


संन्यासी:– हां सच है... अब तैयार हो जाओ हम पहुंच गये...


बात करते हुए सभी लगभग २ किलोमीटर आगे चले आये थे।संन्यासी एक बड़े से मांद के आगे खड़ा था। मानो पत्थर का 50 फिट का दरवाजा खड़ा हो। संन्यासी उसी दरवाजे के आगे खड़े होते.… "अंदर तुम्हारे खोज की मंजिल है आर्यमणि। बाकी अंदर जाने से पहले मैं बता दूं कि जिस किताब के उल्लेख की वजह से तुमने रीछ स्त्री को जाना, उसमे केवल कैद करने के स्थान को छोड़ दिया जाए तो बाकी सब झूठ लिखा था। उस किताब को छापा ही गया था भरमाने के लिये।

आर्यमणि:– मेरे बहुत से सवाल है...


निशांत:– इस दरवाजे के पार बवाल है, पहले उसे देख ले... एक्शन टाइम पर सवाल जवाब नही करते...


निशांत की बात सुनकर सभी हंसते हुए उस मांद के अंदर घुस गये। अंदर पूरा हैरतंगेज नजारा था। मांद की दरवाजा ही केवल पत्थर का बना था, बाकी उस पार तो खुला बर्फीला मैदान था। चारो ओर बर्फ ही बर्फ नजर आ रहा था। एक मकबरा के दोनो ओर लोग थे। एक ओर सिद्ध पुरुष और संन्यासियों के साथ सहायक थे। तो दूसरे ओर साए की तरह लहराती रीछ स्त्री जिसके पाऊं जमीन से 5 फिट ऊपर होंगे। उसके साथ कई सारे विकृत सिद्ध पुरुष काला वस्त्र पहने थे। और उन सबके पीछे जहां तक नजर जाय, केवल वेंडिगो ही वेंडिगो... ऐसा लग रहा था कब्र का बॉर्डर हो और दोनो ओर से लोग युद्ध के लिए तैयार...


रीछ स्त्री महाजनिका के भी दर्शन हो गए... स्त्री की वह भव्य स्वरूप थी, जिसकी शक्ल लगभग भालू जैसी थी। शरीर का आकार भी लगभग भालू जितना ही लंबा चौड़ा और वह हवा में लहरा रही थी। दोनो ओर के शांति को रीछ स्त्री महाजनिका तोड़ती... "साधु हमारे कार्य में विघ्न न डालो। वरना मेरे प्रकोप का सामना करना पड़ेगा..."


साधु ओमकार नारायण:– हमारे संन्यासी और सहायकों को पिछले 8 दिन से चकमा दे रही थी और आज तुमने द्वार (portal) भी खोला तो जादूगरनी (ऐडियाना) के क्षेत्र में। बचकाना सी चाल..


तांत्रिक उध्यात (वह तांत्रिक जिसने रीछ स्त्री को छुड़ाया)… सुनो ओमकार हम कोई युद्ध नही चाहते। एक बार देवी महाजानिका की शक्ति पुर्नस्थापित हो जाए फिर हम दूसरी दुनिया में चले जायेंगे... मत भूलो की अभी सिर्फ हमने जादूगरनी (ऐडियाना) की आत्मा को बंधा है, न तो उसको इच्छा से तोड़ा है और न ही उसकी आत्मा को मुक्त किया है..


ओमकार नारायण:– क्या इस बात से मुझे डरना चाहिए? या फिर तुम्हारी महत्वकांछा ने एक घोर विकृत अति शक्तिशाली जीव को उसके नींद से जगा दिया, इसलिए तुम्हे मृत्यु दण्ड दूं।


तांत्रिक उध्यात:– देवी तुम्हे जीव दिख रही। मुझे मृत्यु दण्ड दोगे... तो फिर देकर दिखाओ मृत्यु दण्ड..


अपनी बात समाप्त करने के साथ ही बिजली गरजे, बर्फीला तूफान सा उठा और उस तूफान के बीच आसमान से ऊंची ऐडियाना की आत्मा दिखना शुरू हो गयि। बर्फीले तूफान के बीच से कभी अग्नि तो कभी बिलजी किसी अस्त्र की तरह प्राणघाती हमला करने लगे। उसी तूफान के बीच चारो ओर से काले धुएं उठने लगे। उन काले उठते धुएं और बर्फीले तूफान के बीच से अनगिनत वेंडीगो उछलकर हमला करने लगे।
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–44






"टेलीपोर्टेशन (teleportation) और टेलीपैथी (telepathy) एक ऐसी विधा है जो सभी कुंडलिनी चक्र जागृत होने के बाद भी उनपर सिद्धि प्राप्त करना असंभव सा होता है। आज के वक्त में टेलीपोर्टेशन विद्या तो विलुप्त हो गयि है, हां टेलीपैथी को हम संभाल कर रखने में कामयाब हुये। महाजनिका पूरे ब्रह्मांड में इकलौती ऐसी है, जो टेलीपोर्टेशन कर सकती है। जिस युग में सिद्ध पुरुष टेलीपोर्टेशन भी किया करते थे, तो भी कोई अंधकार की दुनिया में रास्ता नहीं खोल सकता था। महाजनिका ने वह सिद्धि हासिल की थी जिससे वो दोनो दुनिया में टेलीपोर्टेशन कर सकती थी।


निशांत:– माफ कीजिएगा, मेरा एक सवाल है। ये जो अभी पोर्टल खुला था, क्या वह टेलीपोर्टेशन नही हुआ...


संन्यासी शिवम:– हां ये भी आज के युग का टेलीपोर्टेशन है। इसे कुपोषित टेलीपोर्टेशन भी कह सकते हो। टेलीपोर्टेशन में कभी कोई द्वार नही खुलता, वहां किसी भी प्रकार के मार्ग को देखा नही जा सकता। हालांकि एक जगह से दूसरे जगह पहुंचने के लिए जो पोर्टल अर्थात द्वार खोलते है, वह होता तो काल्पनिक ही है, किंतु द्वार दिखता है। इसलिए सही मायने में यह टेलीपोर्टेशन नही। हालांकि पोर्टल बनाने की सिद्धि भी आसान नहीं होती। इसकी भी सिद्धि अब तक गिने चुने सिद्ध पुरुष के पास ही है। और हां तांत्रिक अध्यात के पास भी है। तांत्रिक के विषय में इतना ही कहूंगा की हो सकता है उनके पास टेलीपोर्टेशन की पूर्ण सिद्धि भी हो। क्योंकि उनके पीछे पूरा एक वंश वृक्ष था, जो पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी सिद्धि गुप्त रूप से आगे बढाते रहे हैं। लेकिन इसपर भी संदेह मात्र है, क्योंकि आज से पहले इन तांत्रिकों के बारे में केवल सुना ही था। हम लोग भी पहली बार आमने–सामने होंगे...


आर्यमणि:– आपकी बात और रीछ स्त्री को जानने के बाद मन विचलित सा हो गया है। क्यों है ये ताकत की होड़? इतनी ताकत किस काम कि जिससे पूरे मानव संसार को ही खत्म कर दो? फिर तुम्हारी ये ताकत देखेगा कौन?... क्यों करते है लोग ऐसा? आराम से हंसी खुशी नही रह सकते क्या? जिसे देखो अपना प्रभुत्व स्थापित करने में लगा है। कैसे हो गये है हम?...


संन्यासी शिवम:– तुम ज्यादा विचलित न हो। जैसा मैंने कहा, खुद को थोड़ा वक्त दो। बस एक ही सत्य है, मृत्यु। जब तक मृत्यु नही आती, तब तक मुस्कुराते हुए अपने कर्म किये जाओ।


आर्यमणि:– आप यहां से जाने के बाद क्या करेंगे संन्यासी जी...


संन्यासी शिवम:– पुर्नस्थापित अंगूठी मिल चुकी है इसलिए यहां से सीधा पूर्वी हिमालय जाऊंगा, कमचनजंघा की गोद में। हमारे तात्कालिक गुरुजी अभी जोड़ने के काम में लगे हैं। इसी संदर्व में हम कंचनजंघा स्थित अपने शक्ति के केंद्र वाले गांव को लगभग पुनर्स्थापित कर चुके थे। तभी तो खोजी पारीयान के तिलिस्म के टूटते ही हम तुम्हारे पीछे आये। क्योंकि गांव बसाने की लिए हमे बस वो आखरी चीज, पुर्नस्थापित अंगूठी चाहिए थी।


निशांत:– यदि ये अंगूठी इतनी जरूरी थी, फिर आप लोग ने क्यों नही ढूंढा...


संन्यासी शिवम:– कुछ वर्ष पहले कोशिश हुयि थी, तब कोई और गुरुजी थे। किंतु किसी ने छिपकर ऐसा आघात किया कि हम वर्षो पीछे हो गये। हमारे तात्कालिक गुरुजी पहले सभी आश्रम और मठ को जोड़ते। तत्पश्चात अंगूठी ढूढने निकलते। उस से पहले ही तुम दोनो ने ढूंढ लिया। हमारी मेहनत और समय दोनो बचाने के लिये आभार व्यक्त करते है।


निशांत:– वैसे एक सवाल बार–बार दिमाग में आ रहा है?


संन्यासी शिवम:– क्या?


निशांत:– इतना तो समझ गया की ये झोलर प्रहरी को रीछ स्त्री के यहां होने की खबर कैसे लगी। लेकिन एक बात समझ में नही आयि की वो प्रहरी यहां तांत्रिक के साथ लड़ाई में क्यों नही सामिल थे? सतपुरा आने से पहले जब मीटिंग हुई थी, तब हमे बताया गया था कि 5 किलोमीटर का क्षेत्र बांध दिया गया है, इसका क्या मतलब निकलता है?


आर्यमणि:– "यहां का पूरा माहोल और संन्यासी शिवम जी को सुनने के बाद तो पूरी कहानी ही कनेक्ट हो चुकी है। इसका जवाब मैं दे देता हूं। हर अनुष्ठान की अपनी एक विधि और खास समय होता है। रीछ स्त्री महाजनिका कैद से छूट तो गयि, लेकिन ऐडियाना के मकबरे को खोलने के लिए उसे इंतजार करना पड़ा। कुछ प्रहरी को पूरी बात पहले से पता थी, लेकिन ना तो तांत्रिक और न ही प्रहरी को, साधुओं और संन्यासियों का जरा भी भनक था।"

"प्रहरी तो सही समय पर यहां पहुंचे थे। आज से 4 दिन पहले जब ऐडियाना का मकबरा खोला जाता और अंदर का समान बांटकर, रीछ स्त्री के हाथों मेरी और कुछ लोगों की बलि चढ़ाई जाती। हां तब ये क्षेत्र भी 5 किलोमीटर तक बांधा गया था, वो भी तांत्रिकों द्वारा। लेकिन प्रहरी और तांत्रिक तब मात खा गये, जब उन्हें यह क्षेत्र किसी और के द्वारा भी बंधा हुआ मिला। एडियाना का मकबरा खुलने की विधि में बाधा होने लगी और तब तांत्रिक और उसके चेलों ने पोर्टल की मदद ली।"

"यहां पर तांत्रिक और प्रहरी का सीधा शक मुझपर गया। इसलिए 4 रात पहले मुझे मारने की योजना बनाई गयि।उन्हे लगा सरदार खान मुझे मार देगा। खैर आज जबतक सिद्ध पुरुष और संन्यासी का सामना तांत्रिक से नही हुआ था, तबतक ये लोग भी यही समझते रहे कि मैं ही कोई सिद्ध पुरुष हूं, जिसने ये पूरा खेल रचा है। अब मैं सिद्ध पुरुष हूं इसलिए प्रहरी सामने से मुझे मारने नही आये क्योंकि उनका भेद खुल जाता। उन प्रहरी को यही लग रहा की आर्यमणि तो रीछ स्त्री के पीछे नागपुर आया है। प्रहरी को यह भी विश्वास था कि मैं सरदार खान से बच गया तो क्या हुआ, तांत्रिक और रीछ स्त्री से नही बच पाऊंगा"...

"प्रहरी की एक खतरनाक प्लानिंग का खुलासा तो तुमने ही कर दिया था निशांत। जब कहे थे कि बहुत से शिकारी की जान जाने वाली है। और वो सही भी था क्योंकि भूमि दीदी को भी प्रहरी समुदाय में अलग ही लेवल का शक है। गुटबाजी तो हर संस्था में होती है। किंतु प्रहरी में उस से भी ज्यादा कुछ हो रहा है, इसका अंदेशा था शायद उन्हें। इसलिए भूमि दीदी को कमजोर करने के लिये उनके सभी खास लोगों को यहां ले आया।"


निशांत:– ओह अब मैं समझा की तू उस वक्त क्या समझाना चाह रहा था...


आर्यमणि:– क्या?


निशांत:– तेजस और सुकेश २ टॉप क्लास के प्रहरी, और पलक जो सबको यहां लेकर आयि। बिजली का खंजर इन्ही ३ लोगों में से कोई एक ले जाता और जिस तरह का संग्रहालय तेरे मौसा (सुकेश) ने अपने घर में बना रखा है। जिस विश्वास से सुकेश के सहायक ने रीछ स्त्री का पता बताया और वह सबको यहां ले आया। सुकेश ही शायद तांत्रिक के साथ मिला हुआ प्रहरी होगा। अगर सुकेश नही तो फिर तेजस या पलक। या फिर तीनों ही, या तीनों में से कोई २… क्योंकि यहां आये प्रहरी में से ही कोई प्रहरी खंजर लेकर जाता।


आर्यमणि:– बस कर ज्यादा गहराई में मत जा, वरना मेरी तरह ही तेरा हाल होगा।


निशांत:– मूर्ख समझा है क्या? तू मुझसे ज्यादा जानता है, इसलिए ज्यादा कन्फ्यूज है। मुझे यहां ३ प्रहरी करप्ट दिखे। यदि मुझसे पूछो तो ये लोग ताकत के भूखे है। जो की एक बच्चा भी समझ सकता है। पर जैसे कुछ सवाल तेरे ऊपर है न, तू ताकतवर तो है, लेकिन है क्या? यहां आने के पीछे मकसद क्या है? ठीक वैसे ही उनके लिए तेरे मन में है... ये लोग है क्या? और ताकत पाने के पीछे का मकसद क्या है? क्या मात्र ताकतवर बनना है, या पीछे कोई बहुत बड़ी योजना है?


सन्यासी शिवम:– हाहाहा, दोनो ही प्रतिभा के धनी हो। तुम दोनो साथ हो तो हर उस बिन्दु को देख सकते हो, जो दूसरे को १००० बार देखने से ना मिले।


आर्यमणि:– वैसे एक झोल तो आप लोगों ने भी किया है।


संन्यासी शिवम:– क्या?


आर्यमणि:– ठीक उसी रात क्षेत्र को बांधे जब मैं यहां पहुंचा। न तो कोई अंदर आ सकता था न ही कोई बाहर। फिर सिर्फ मुझे और निशांत को ही बंधे हुए क्षेत्र के अंदर घुसने दिया होगा। बाकी मुझे विश्वास है कि बहुत से लोग बांधे हुए क्षेत्र की सीमा के पास होंगे, लेकिन अंदर नही आ पा रहे। रीछ स्त्री कुछ बताने आयेगी नही और तांत्रिक के पूरे समूह को ही गायब कर दिया। देखा जाय तो आप लोगों ने भी ये पूरा खेल परदे के पीछे रहकर ही खेल गये। उल्टा मुझे हाईलाइट कर दिया...


संन्यासी शिवम:– मुझे लगा इस ओर तुम्हारा ध्यान नहीं जायेगा। सबसे पहले तो माफी चाहूंगा जो तुम्हे फसाते हुये हम आगे बढ़े। विश्वास मानो हम अभी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे, जिसमे हमारे तात्कालिक गुरु जी और आचार्य जी, आश्रम के सभी इकाई को जोड़ने में लगे है। इस वक्त हम किसी के सामने अपने होने का भेद नहीं खोल सकते। वैसे अब चिंता मत करो, हमने दोनो ही शंका को दूर कर दिया।


आर्यमणि:– कौन सी..


संन्यासी शिवम:– पहली की तुम हमारे बंधे क्षेत्र में घुसे ही नही। लोगों ने यही देखा की तुम भी उन्ही की तरह जूझ रहे। क्योंकि हमने तुम्हारी होलोग्राफिक इमेज को अब भी सीमा के बाहर रखा है। अब चूंकि तुम भी उन लोगों की तरह बाहर घूम रहे, इसलिए तुम एक सिद्ध पुरुष कैसे हो सकते? प्रहरी को यकीन हो गया है कि रीछ स्त्री के बंधे क्षेत्र में कोई नही घुसा इसलिए दिमाग में एक ही बात होगी, "शायद तांत्रिक के मन में ही बईमानि आ गयि हो।"


निशांत:– होलोग्राफिक इमेज.. क्या ऐसा भी कोई सिद्ध किया हुआ मंत्र है?...


संन्यासी शिवम:– हां है न, विज्ञान। हमारे पास कमाल के प्रोग्राम डिजाइनर और सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।


निशांत:– क्या सच में?....


संन्यासी शिवम:– हां बिलकुल। वैसे भी अब तो हमारे साथ हो, जल्द ही सबको जान जाओगे...


आर्यमणि:– चलो मेरा बोझ तो घटा। वैसे यहां से मैं एक बात सीखकर जा रहा...


निशांत:– क्या?


आर्यमणि:– हम जैसे लोगों के लिए भटकना ज्यादा प्रेरणादायक है। हम गंगटोक में भटके, क्या कुछ नही सीखा... मैं 3–4 साल घुमा क्या कुछ नही सीखा। जबकि उस दौड़ में तू नागपुर में ही रहा और क्या सीखा..


निशांत:– प्रहरी के लौड़ा–लहसुन सीखा। इस से ज्यादा कुछ नहीं...


आर्यमणि:– अब देख, सतपुरा के जंगल हम घूमने आये, फिर क्या हुआ...


निशांत:– पूरी सृष्टि ही हैरतंगेज चीजों से भरी है जिसका हमने बूंद ही देखा हो शायद...


फिर दोनो दोस्त एक साथ एक सुर में... "माफ करना संन्यासी जी जो हम कहने वाले है... इतना कहकर दोनो ने हाथ जोड़ लिये और चिल्लाकर कहने लगे... "मां चुदाये दुनिया, हम तो उम्र भर भटकते रहेंगे।"..


संन्यासी हंसते हुए... "तुम दोनो ऐसी भाषा का भी प्रयोग करते हो?"


आर्यमणि:– हां जब अकेले होते हैं... वैसे हमने 8 साल की उम्र से 16–17 साल तक ज्यादातर वक्त एक दूसरे के साथ अकेले ही बिताया है।


निशांत:– हां लेकिन ये भी है, ऐसी बातें किसी और के सामने निकलती भी नही... संन्यासी सर मुझे भी अब आपके साथ कुछ दिन भटकना है...


आर्यमणि:– क्यों तू मेरे साथ नही भटकेगा...


निशांत:– अभी बिलकुल नहीं... तू भटक कर अपना ज्ञान अर्जित कर और मैं भटक कर अपना ज्ञान अर्जित करूंगा... और जब दोनो भाई मिलेंगे तब पायेंगे की हमने दुगनी दुनिया देखी है...


आर्यमणि, निशांत के गले लगते... "ये हुई न असली खोजी वाली बात"…


संन्यासी शिवम:– अभी तुम्हे अपने साथ बहुत ज्यादा भटका तो नही सकता, लेकिन हां कुछ अच्छा सोचा है तुम्हारे बारे में...


निशांत:– क्या..


संन्यासी दोनो के हाथ में एक–एक पुस्तक देते... "जल्द ही पता चल जायेगा। अब मैं चलता हूं।"… सन्यासी अपनी बात कहकर वहां से निकल गये। आर्यमणि और निशांत भी बातें करते हुये कैंप की ओर चल दिये। पीछले कुछ घंटों की बातो को दिमाग से दूर करने के लिये इधर–उधर की बातें करते हुये पहुंचे।


दोनो कैंप के पास तो पहुंचे लेकिन वहां का नजारा देखते ही समझ चुके थे कि वहां क्या हो चुका था? वहां का माहोल देखकर आर्यमणि और निशांत को ज्यादा आश्चर्य नही हुआ, बस अफसोस हो रहा था। चारो ओर कई शिकारियों की लाश बिछी थी। जिसमे २ मुख्य नाम थे, पैट्रिक और रिचा। पैट्रिक और रिचा के साथ लगभग 30 शिकारी मारे गये थे। बचे हुये शिकारी फुफकार मारते अपने गुस्से का परिचय दे रहे थे। उन्ही के बीच से पलक भागती हुई पहुंची और आर्यमणि के गले लगती... "ऊपर वाले का शुक्र है कि तुम सुरक्षित हो"…


आर्यमणि:– पलक यहां हुआ क्या था?


पलक:– वह रीछ स्त्री महाजनिका अचानक ही यहां पहुंची और उसने हम पर हमला कर दिया।


निशांत, लाश के ऊपर लगे तीर और भला को देखते... "तीर और भला से हमला किया?"


रिचा के ही टीम का एक साथी तेनु.… "घटिया वेयरवोल्फ और उसका मालिक दोनो ही लड़ाई के वक्त नदारत थे। साले फट्टू तू आया ही क्यों था। चल भाग यहां से।


पलक:– तेनु जुबान संभाल कर..


तेनु पलक को आंखें दिखाते... "तेजस यहां मुझे सब संभालने के लिये कह कर गया है। अपनी जुबान मीटिंग में ही खोलना। और तू निष्कासित वर्धराज का पोते, अपने वुल्फ की तरह तू भी निकल फट्टू"…


निशांत तो २–२ हाथ करने में मूड में आ गया लेकिन आर्यमणि ने उसे शांत करवाया और अपने साथ लेकर निकल गया। कुछ घंटों के सफर के बाद रास्ते में अलबेली और रूही भी मिली, जिन्हे उठाते दोनो आगे बढ़ गये।..


आर्यमणि:– क्या खबर...


रूही:– शायद उसका नाम नित्या था।


आर्यमणि:– किसका..


रूही:– वो औरत...उसके पूरे बदन पर मैले कपड़े थे जो जगह–जगह से फटे थे। मानो बरसों से उसने अपने बदन पर कोई दूसरा कपड़ा न पहना हो। बदन का जो हिस्सा दिख रहा था सब धूल में डूबा। ऐसा लग रहा था धूल की चमरी जमी है। उसके होंटों पर भी धूल चढ़ा था, और जब वो बोलने के लिए होंठ खोली, उसके धूल जमी खुस्क होंठ पूरा फटकर लाल–लाल दिखने लगे। चेहरा ऐसा झुलसा था मानो भट्टी के पास उसके चेहरे को रखा गया था। हवा की भांति वो लहराती थी। किसी धूवें की प्रतिबिंब हो जैसे। तेजस उसे नित्या कहकर पुकार रहा था, इस से ज्यादा उसकी नई भाषा मुझे समझ में नही आयि। वह क्या थी पता नही, लेकिन इंसान तो बिलकुल भी नहीं थी। तेजस ने उससे कुछ कहा और वो सबसे पहले तुम दोनो पर ही हमला करने पहुंची।"

"बॉस वो तुम्हे मारने की कोशिश करती रही लेकिन तुम और निशांत तो धुवें के कोहरे में घुसकर बचते रहे। जब वह तुम दोनो को नही मार पायि, फिर सीधा कैंप पहुंची और वहां हमला कर दिया। वह अकेली थी और शिकारियों से घिरी। उसकी अट्टहास भरी हंसी और खुद का परिचय रीछ स्त्री महाजनिका के रूप में बताकर हमला शुरू कर दी। उसके बाद जो हुआ वह हैरतंगेज और दिल दहला देने वाला था। मानो वो औरत बंदूक की गोली से भी तेज लहराती हो। एक साथ 30–40 बुलेट चले होंगे और ऐसा भी नही था की वह एक जगह से भागकर दूसरे जगह पर गयि हो। अपनी जगह पर ही थी और १ फिट के दायरे में रहकर वह हर बुलेट को चकमा दे रही थी।"

हर एक शिकारी ने वेयरवोल्फ पकड़ने वाले सारे पैंतरे को अपना लिया। सुपर साउंड वेव वाली रॉड हो या फिर करेंट गन फायर। ऐसा लग रहा था १० मिनट तक खुद को मारने का एक मौका दे रही हो। फिर उसके बाद तो क्या ही वो कहर बनकर बरसी। वहां न तो धनुष–बाण थी, और ना ही भाला। लेकिन जब वह अपने दोनो हाथ फैलायी तब चारो ओर बवंडर सा उठा था। वह नित्या दिखना बंद हो गयि। बस चारो ओर गोल घूमता बवंडर। और फिर उसी बवंडर से बाण निकले। भाले निकले। सभी जाकर सीधा सीने में घुस गये और जब हवा शांत हुई तब वहां नित्या नही थी। बस चारो ओर लाश ही लाश।


निशांत:– वाउ!!! प्रहरियों का एक और मजबूत किरदार जो प्रहरी को मार रहा। और इसी के साथ ये भी पता चल गया की ३ में से एक कौन था जो खंजर लेने पहुंचा था।


रूही:– कौन सा खंजर...


आर्यमणि:– ऐडियाना के मकबरे का खंजर। पूरी घटना में सुकेश भारद्वाज और पलक कहां थे?


रूही:– माहोल शांत होने तक पलक वहीं थी लेकिन उसके बाद कुछ देर के लिये वह कहीं गयि थी। सुकेश और तेजस तो पहले से गायब थे, जिन्हे ढूंढने मैंने अलबेली को भेजा था।


आर्यमणि:– बकर–बकर करने वाली इतनी शांत क्यों है?..


अलबेली:– क्योंकि आज जान बच गयि वही बहुत है। सुकेश और तेजस कैंप से २ किलोमीटर दूर थे। दोनो में कोई बातचीत नहीं हो रही थी, केवल एक ही दिशा में देख रहे थे। थोड़ी देर बाद वह नित्या पहुंची। सुकेश के सीधे पाऊं में ही गिर गयि। तीनों की कुछ बातें हो रही थी तभी पलक भी वहां पहुंची... तीनों अजीब सी भाषा में बात कर रहे थे, समझ से परे। शायद मैं कच्ची हूं, इसलिए मैं उन तीनो में से किसी की भावना पढ़ नही पायि। बहुत कोशिश की, कि मैं उनकी भावना समझ सकूं, लेकिन कुछ पता न चला।"

"लेकिन तभी नित्या ने मेरी ओर देखा। मैं 500–600 मीटर दूर बैठी, उनकी बातें सुन रही थी। पेड़ों के पीछे जहां से न वो मुझे देख सकती थी और ना मैं उन्हे। लेकिन मुझे एहसास हुआ की मेरी ओर कुछ तो खतरा बढ़ रहा है। मै बिना वक्त गवाए एक जंगली सूअर के पीछे आ गयि और एक भला सीधा जंगली सूअर के सीने में। जैसे किसी ने उस भाले पर जादू किया हो। रास्ते में पड़ने वाले सभी पेड़ों के दाएं–बाएं से होते हुये सीधा एक जीव के सीने में घुस गया। मैं तो जान बचाकर भागी वहां से। बॉस अभी मेरी उम्र ही क्या है। जिंदगी तो कुछ वक्त पहले से ही शुरू हुई है लेकिन उसे भी वो डायन नित्या छीन लेना चाहती थी। बॉस बहुत खतरनाक थी वो।


अलबेली की बात सुनकर आर्यमणि निशांत को देखने लगा। निशांत अपने हाथ जोड़ते... "मुझे नहीं पता की खंजर लेने कौन प्रहरी पहुंचा था। तीनो ही साथ है, या केवल तेजस या फिर जो भी नए समीकरण हो। मुझे माफ करो।"


आर्यमणि हंसते हुये... "अब सब थोड़ा शांत हो जाओ और चलो सीधा वापस नागपुर।"..


अलबेली:– मुझे तो लगा अपने पैक की सबसे छोटी सदस्य के लिये अभी आप उस नित्या से लड़ने चल देंगे...


आर्यमणि:– लड़ाई छोड़ो और पहले ट्रेनिंग में ध्यान दो। पड़ी लकड़ी उठाने का शौक न रखो।


निशांत:– अनुभव बोलता है। एक पड़ी लकड़ी उठाने वाला ही समझ सकता है आगे का दर्द..


आर्यमणि:– और कौन सी पड़ी लकड़ी उठाई है मैंने..


निशांत:– कहां–कहां की नही उठाया, फिर वो मैत्री के चक्कर में... (तभी आर्य ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया। निशांत किसी तरह अपना मुंह निकलते).. अबे बोलने तो दे...


आर्यमणि:– नही तू नही बोलेगा.."….


निशांत:– क्यों न बोलूं, इन्हे भी अपने बॉस के बारे में जानने का हक है। क्यों टीम, क्या कहती हो...


रूही और अलबेली चहकी ही थी कि बॉस की घूरती नजरों का सामना हो गया और दोनो शांत...


"साले डराता क्यों है। पैक का मुखिया हो गया तो क्या इन्हे डरायेगा।"…… "अच्छा !!! तो फिर खोल पड़ी लकड़ी के किस्से। मैं तो नफीसा से शुरू करूंगा।"… "आर्य तू नफीसा से शुरू करेगा तो मैं भी नफीसा से शुरू करूंगा।"…. "वो तो तेरे साथ थी न"….. "मैं कहता हूं तेरे साथ थी। बुला पंचायत देखते है उसकी शक्ल देखकर किसपर यकीन करते है।"…


रूही:– थी कौन ये नफीसा ..


दोनो के मुख से अनायास ही निकल गया... "शीमेल (shemale) कमिनी"…


अलबेली तो समझ ही नही पायि। लेकिन जब रूही ने उसे पूरा बताया तब वह भी खुलकर हंसने लगी। और रह–रह कर एक ही सवाल जो हर २ मिनट पर आ रहा था... "पता कब चला की वो एक..."


अगले २ दिनो तक चुहुलबाजी चलती रही। चारों सफर का पूरा आनंद उठाते नागपुर पहुंच गये। नागपुर में भूमि का पारा देखने लायक था। जबसे उसने सुना था कि रिचा और पैट्रिक नही रहे, तबसे वह सो नहीं पायि थी। दिल और दिमाग पर बस एक ही नाम छाया था, रीछ स्त्री। और भूमि को किसी भी कीमत पर अपने साथियों का बदला चाहिये था। आर्यमणि कोई भी बात बता नही सकता था और भूमि कोई भी दिल लुभावन बात से शांत नहीं हो रही थी। उसे तो बस बदला ही चाहिये था। जब बात नही बनी तब आर्यमणि ने भूमि को कुछ दिनों के लिये अकेले छोड़ना ही उचित समझा। इधर आर्यमणि ने भूमि को अकेले छोड़ना उचित समझा, उधर रूही और अलबेली को भी सबने छोड़ दिया। या यूं कहे कि सबने घर से धक्के देकर निकाल दिया।


Ha to suru karte hai latest revo...

Nisant or arya ki jo apas me un sidh purush ke samne bakaiti hui hai Man dil atma sab garden garden ho gye hai bhai bs body se hasi ke thahako ki dwani hi nikalti rahi...
Or dono ka vo dialog MA chudaye duniya ham to ghumenge - epic tha us situation pr...
Yha gadi me nafisha ka jikra vo to or bhi mazedar tha, mujhe to soch kr hi hasi aa rhi hai arya or Nishant ka ek shemale ke sath chakkar :hehe::laugh::lotpot::lol: Apki kahaniyo ke nayak ka aisa mazakiya Samband hona ab to comman hi Lagta hai...

Palak or uska bhai sath me dusra banda ye tino kya khichdi pka rhe hai kahi arya ka pta karne to nahi chale gye or vo ladki jo apne aap ko riksh stri kah rhi thi, akhir kya sambandh hai uska, yha Pahle Nishant palak ko bhrast bta rha tha pr ab usne in tino ko hi sak ke ghere me kr diya hai vahi Aaj Albeli marte marte Bachi, akhir Kon si bhasa me bate kr rhe the vo 4ro...
Bhumi Di gusse me badla badla lene ka sochne baithi hai ,arya abhi kuchh bta nhi sakta unhe or vo sach me alava kuchh sunna nhi chahti, Dekhte hai kya hota hai aage...

Superb mind-blowing update awesome writing skills Nainu bhaya Jabardast amazing
 
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B2.

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Nahi apne jiv jo abhi tak ullekhit hai aur jo aage kahani me ullekhit honge wo sare supernatural apni hi duniya ke hain... Alag alag bhogolik parivesh me inki charcha hoti hai... Jis prakar apne yahan ka famous ikchha dhari naag ek supernatural hai....

Ek viggo Sigma ki 2 part ki story to main pahle hi likh chuka hun... "Kaisa Ye Ishq hai... Ajab sa risk hai" aur "kaisa ye ishq hai~ajab sa risk hai~Reload"... Kahin aur se lane ki jaroorat hai kya.. mere pass to pahle se hai :D ..

Waise ye kahani aryamani ki hai aur yahan purely Aryamani hi rahne wala hai... Kyonki ye kahani usi ki hai...

Thankoo soo much for your lovely feedback
Oho mene ye nahi padhi hai isliye confusion thi ab padta hu unhe bhi🙏👍🏻
Thanx new stroy bhi mil gayi padne k liye😂😂
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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Request...
Nainu bhaya Mai Mr. XForum me participate karne vala hu, Ummid hai aap or aapke fans mujhe support karenge... 🙏
 

Zoro x

🌹🌹
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बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
लगता हैं युद्ध का नगाड़ा बज गया हैं
एक तरफ ऋषि हैं तो दूसरी तरफ विकृत मानसिकता वाले सिद्ध पुरुष
देखते हैं क्या होता हैं आगे आगे
भाग:–41





निशांत ने भी उसे देखा और देखकर अपने मुंह पर हाथ रखते.… "वेंडिगो सुपरनैचुरल"

आर्यमणि:– इंसानी मांस के दीवाने, वेंडीगो.…

निशांत:– मुझे लगा किसी वेयरवोल्फ का अति–कुपोषित रूप है। ओओ आर्य, लगता है इनके इरादे कुछ ठीक नही...


दोनो बात कर ही रहे थे, इतने ने दोनों को कई सारे वेंडिगो ने घेर लिया।…. "निशांत, इनके पतले आकार पर मत जाना, ये एक अल्फा से ज्यादा खतरनाक होते है।"


निशांत:– हां मैंने भी पढ़ा था। मुझे तो ये बता की इसका दिल कैसे बाहर निकलेंगे...


(वेंडिगो को मारने की एकमात्र विधि, उसका दिल निकालकर नींबू की तरह निचोड़ देना)


आर्यमणि, लंबा छलांग लगाते एक वेंडिगो को पकड़कर उसकी छाती चीड़ दिया। छाती चिड़कर उसके दिल को अपने हाथ से मसलते… "फिलहाल तो इनका दिल ऐसे ही निकाल सकते हैं।"…. निशांत वह नजार देखकर... "तू दिल निकलता रह छोड़े, मैं आराम से ट्रैप वायर लगता हूं।"…. "पागल है क्या, तू मुझे तो मारना नही चाहता। कहीं तेज दौड़ते मैं फंस गया तो"…. "फिर इतने ट्रैप वायर का इस्तमाल कहां इनके पिछवाड़े में डालने के लिए करूं"….. "तू कुछ मत कर। यहां तो आमने–सामने की लड़ाई है। ट्रैप वायर आगे कहीं न कहीं काम आ ही जायेगी"…


विंडिगो की गतिसीलता, उसकी चूसती–फुर्ती और उसके तेज–धारदार क्ला, आर्यमणि को काफी परेशान कर रहे थे। जब तक वह 1 वेंडिगो की छाती चिड़ता उसके पीठ पर १००० तलवार चलने जितने क्ला के वार हो चुका होते। ऐडियाना का सेवक मानो पागलों की तरह हमला कर रहा था।


वैसे इसी क्षेत्र में अब से थोड़ी देर पहले योगी और संन्यासियों की पूरी एक टोली पहुंची थी। 2 सिद्ध पुरुष, 5 सन्यासी और 30 सहायकों के साथ ये सभी पहुंचे थे। ये सभी अपनी मंजिल के ओर बढ़ रहे थे। उस टोली के मुखिया ओमकार नारायण कुछ महसूस करते... "इस शापित जगह का दोषी पारीयान पहुंच चुका है। उसे सुरक्षित लेकर पहुुंचो। सिद्ध पुरुष के आदेश पर 1 सन्यासी अपने 20 सहायकों के साथ इस जगह के दोषी को लेने चल दिये और बाकी सभी आगे बढ़ गये।


इधर आर्यमणि लागातार छाती चिड़कर, वेंडिगों के हृदय को मसलकर मार रहा था। किंतु एक तो उनकी तादात और ऊपर से उनके तेज हमले। आर्यमणि धीमा पर रहा था और वेंडिगो अब भागकर हमला करने के बदले आर्यमणि के शरीर पर कूदकर जोंक की तरह चिपक जाते, और अपने क्ला से उसके शरीर पर हमला कर रहे थे। आर्यमणि किसी को पकड़े तो न छाती चीड़ दे। अब हालात यह था कि १००० वेंडिगो एक साथ उसके शरीर पर कूद जाते। आर्यमणि अपने शरीर से जब तक उन्हे जमीन पर पटकता, तब तक एक साथ २००–३०० क्ला उसके शरीर पर चल चुके होते।


देखते ही देखते वेंडिगो ने आर्यमणि को पूरा ढक ही दिया। आर्यमणि तो दिखना भी बंद हो गया था, बस ऊपर से वेंडिगो के ऊपर वेंडिगो ही नजर आ रहे थे। तभी उस जगह जैसे विस्फोट हुआ हो। ६ फिट का आर्यमणि 9 फिट का बन चुका था। अपने बदन को इस कदर झटका की शरीर के ऊपर जोंक जैसे चिपके वेंडिगो विस्फोट की तरह चारो ओर उड़ चुके थे। लागातार हमले और बहते खून से आर्यमणि भले ही धीमा हो गया था, लेकिन यह मात्र एक मानसिक धारणाएं थी, वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी का ख्याल होता तो आर्यमणि खुद को धीमा मेहसूस नही करता।


फिलहाल तो आर्यमणि अपने भव्य रूप में खड़ा था। हैवी मेटल वाला उजला चमकता शरीर और गहरी लाल आंखे। चौड़ी भुजाएं, चौड़े पंजे और क्ला तो स्टेनलेस स्टील की भांति चमक रहे थे। अब परवाह नहीं की शरीर पर कितने वेंडिगो कूद रहे। बस सामने से उड़ता हुआ वेंडिगो निशाने पर होता। बाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो आता, उसका सामना लोहे के मुक्के से हो जाता। फिर तो देखने में ऐसा लगता मानो हड्डियों के अंदर जमे मांस और खून (दरसल हड्डियों के ढांचों के अंदर वाइटल ऑर्गन के विषय में लिखा गया है) पर किसी ने वजनी हथौड़ा मार दिया। ठीक वेंडिगो के सीने पर भी ऐसा ही हथौड़ा चल रहा था। मुक्का वेंडिगो के छाती फाड़कर इस पार से घुसकर उस पार निकल जाता और विस्फोट के साथ हड्ढियों और दिल के चिथरे हवा में होते।


वहीं दाएं हाथ के निशाने पर जो वेंडिगो कूदता उसका सामने चौड़े पंजे और चमकते धारदार क्ला से होता। बिजली की गति से आर्यमणि अपना दायां पंजा चलता। पूरा क्ला सीने की हड्डी को तोड़ते हुए सीधा सीने में घुसता। और मुट्ठी में उसका दिल दबोचकर बाहर खींच लेता। और इस बेदर्दी से दिल को मुट्ठी को दबोचता कि जब पंजे खुलते तो केवल रस ही हाथ में रहता।


देखने वाला यह नजारा था। आंखों के आगे जैसे कल्पनाओं से पड़े दृश्य था। जैसा पुराने जमाने की लड़ाई के किसी दृश्य में, कई तीरंदाज एक साथ जब तीर छोड़ते थे, तब जैसे आकाश तीर से ढक जाता था, ठीक उसी प्रकार वेंडिगो इतनी तादात में कूद रहे थे की पूरी जगह ही हड्डी के ढांचों से बने, सड़े हुए इस सुपरनैचुरल वेंडिगो से ढक जाती। और उसके अगले ही पल आर्यमणि इस तेजी से अपने बदन को झटकता की वापस से आकाश ढक जाता। इन प्रक्रिया के बीच कुछ वेंडिगो, आर्यमणि के दोनो हाथ का स्वाद भी चख लेते।


अब ऐसा तो था नही की वहां सिर्फ आर्यमणि था। उसके साथ निशांत भी आया था। हमला निशांत पर भी होता लेकिन उसके पास भ्रमित अंगूठी थी, और एक भी वेंडिगो उसे छू नही पा रहा था। निशांत तो बस पूरे एक्शन का मजा लेते अपने मोबाइल पर ढोल–नगाड़ा वाला म्यूजिक बजाकर मजा लूट रहा था। साथ ही साथ निशांत अपनी गला फाड़ आवाज से आर्यमणि का जोश बढ़ाते… "महाकाल का रूप लिए रह आर्य... फाड़–फाड़.. फाड़... साले को... चिथरे कर दे... परखच्चे उड़ा दे... रौद्र रूप धारण कर ले... मार आर्य मार"…


निशांत की जोश भरी हुंकार... आर्यमणि की भीषण और हृदय में कंपन करने वाली दहाड़ और चुंबकीय भीड़ को बिखेड़ कर बिजली के रफ्तार से चलने वाले हाथ... काफी रोमांचक दृश्य था। सड़े हुए लाशों के ढेर पहाड़ बन रहे थे। दाएं पंजे ने न जाने कितने जीवित वेंडिगो के दिल खींचकर निकाल लिए थे। वहीं बाएं हाथ का लौह मुक्का न जाने कितने वेंडिगो के छाती के पार कर गये थे। समा पूरा बंधा था। निशांत लगातार हुंकार पर हुंकार भरते, जोश दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था।


तभी वहां कुछ लोग पहुंचे। सभी के बदन पर गेरुआ वस्त्र। १ के हाथ में दंश तो कई लोग कंधे पर बड़े–बड़े झोला टांग रखे थे। निशांत पूरा जोश दिलाता भीषण लड़ाई के मजे ले रहा था तो वहीं आर्यमणि वेंडिगो के चीथरे उड़ा रहा था। संन्यासी और उसके सहायकों के पहुंचते ही माहोल ही पूरा बदल गया हो। वेंडिगो अब कूद तो रहे थे लेकिन आर्यमणि, निशांत और बाकी के जो संन्यासियों की जितनी टोली थी, सबके आगे अदृश्य दीवार सी बन गई थी। वेंडिगो कूदते और अदृश्य किसी दीवार से टकराकर वहीं नीचे गिर जाते।


हैरतंगेज नजारा था जिसे देखकर निशांत चिल्लाने लगा... "आर्य तंत्र–मंत्र और तिलिस्म करने वाले कुछ लोग हमे मिल गए। कहां थे आप लोग... बचपन में चर्चा किया था, आज जाकर मिले हो"…निशांत की बात सुनकर आर्यमणि भी विश्राम की स्थिति में आया।


संन्यासी मुस्कुराते हुए.… "कोई बात नही बस एक बार परिचित होने की देर थी, अब तो मिलना–जुलना लगा रहेगा।"


आर्यमणि:– आप लोग जादूगरनी ताड़का (वही जादूगरनी जिसके साथ सुकेश आया है) के चेले हैं।


संन्यासी:– नही हम उनके चेले नही और ना ही तुम्हारे दूसरे अवतार (प्योर अल्फा) की पहचान को हमसे कोई खतरा है। हां लेकिन जल्दी साथ चलो, वरना जिसके लिए हम यहां आए है, वह कहीं भाग ना जाए...


आर्यमणि और निशांत उनके साथ कदम से कदम मिलाते हुए चल दिये। निशांत पूरी जिज्ञासा के साथ... "ये आपने कौन सा मंत्र पढ़ा है जो पीछे से ये मुर्दे (वेंडिगी) हमला तो कर रहे, लेकिन हवा की दीवार से टकरा जा रहे।"


संन्यासी:– यह एक प्रकार का सुरक्षा मंत्र है... छोटा सा मंत्र है, भ्रमित अंगूठी के साथ ये मंत्र तुम पढ़ोगे तो असर भी होगा...


निशांत:– क्या बात कर रहे है? क्या सच में ऐसा होगा..


संन्यासी:– संपूर्ण सुरक्षा–वायु आवाहन.. इसे किसी सजीव को देखकर 6 बार पढ़ो।


निशांत ट्राई मारने चल दिया, इधर आर्यमणि, बड़े ही ध्यान से पूरे माहोल को समझने की कोशिश कर रहा था। संन्यासी आर्यमणि के ओर देखकर मुस्कुराते हुए... "यदि मेरी भावनाओं को तुम पढ़ नही सकते, इसका मतलब यह नहीं की तुम मेरी तुलना उनसे करने लग जाओ, जिनकी भावना तुम पढ़ने में असफल हो"..


आर्यमणि:– मतलब..


संन्यासी:– मतलब जाने दो। मै पिछले कुछ दिनों से तुम्हे देख रहा हूं। तुमसे एक ही बात कहूंगा... तुम सत्य के निकट हो, लेकिन उन चीजों को समझने के लिए तुम्हे पहले अपने आप को थोड़ा वक्त देना होगा। तुमने खुद को बहुत उलझा रखा है... जिस दुनिया को तुम समझने की कोशिश कर रहे हो, उस से पहले थोड़ी अपनी दुनिया भी समझ लो..


आर्यमणि:– आप तो उलझाने लगे..


संन्यासी:– माफ करना.. मैं तुम्हे और उलझाना नही चाहता था। मेरे कहने का अर्थ है कि जैसा तुम नागपुर में कुछ ऐसे लोगों से मिले हो जिनकी भावना तुम नही पढ़ सकते। उन्ही के विषय में तुम्हे जानकारी जुटानि है.. मैं गलत तो नहीं..


आर्यमणि:– हां बिलकुल सही कह रहे...


संन्यासी:– तुम कितने भी उत्सुक क्यों न हो, उनके विषय में मैं कोई जवाब नही दूंगा। मैं बस रास्ता बता रहा हूं ध्यान से सुनो... जिस सवाल का जवाब तुम यहां आने के बाद ढूंढ रहे, उसके लिए तुम्हे इतनी जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए... बस जल्दी जानने की जिज्ञासा को थोड़ा दरकिनार कर दो, हर सवाल का जवाब मिल जायेगा। कुछ इतिहास को अपने हिसाब से बनाया गया था और मुझे खुशी है कि तुम हर इतिहास पर आंख मूंदकर भरोसा नही करते...


"साधु जी, साधु जी, मैने तो एक वेंडिगो को ही गोला में पैक करके हवा में उड़ा दिया... क्या मैने गलत मंत्र पढ़ा"… निशांत दौड़ता, भागता उत्सुकता के साथ पहुंचा और अपनी बात कहने लगा..


संन्यासी:– नही मंत्र तो सही पढ़ा लेकिन तुमने एक नरभक्षी को सुरक्षा चक्र में बांधकर छोड़ दिया। चूंकि वह छलांग लगा रहा था इसलिए हवा में उड़ा। अब जरा सोचो की वह इंसानों की बस्ती में पहुंच गया फिर क्या होगा...


निशांत:– हे भगवान !! क्या होगा अब.. मेरे वजह से निर्दोष लोग मारे जायेंगे...


सन्यासी मुस्कुराते हुए.… चिंता मत करो हम उन्हे देख लेंगे... वैसे क्या तुम्हे भी मंत्र और उनके प्रयोग में रुचि है...


निशांत:– सीखा दो सर १०–१२ मंत्र अभी सीखा दो।


संन्यासी, मुस्कुराते हुए.… "अंगूठी के बिना तुम मंत्र से कोई लाभ नहीं ले सकते।"..


निशांत:– हां लेकिन ये अंगूठी मुझे लेगा कौन... रहेगा तो मेरे पास ही...


निशांत की इस बात पर सन्यासी मुस्कुराते हुए अपनी मुट्ठी खोले... "क्या इसी अंगूठी के विषय में तुम कह रहे थे।"


निशांत:– ओय ढोंगी साधु, तुम यहां हमारे अंगूठी के लिए आये हो...


संन्यासी:– तुम्हे पारीयान की पांडुलिपि में कहीं भी कैलाश मठ नही मिला था क्या? खैर जाने दो। तुम ये अंगूठी अपने पास एक शर्त पर रख सकते हो..


निशांत:– कौन सी..


संन्यासी:– हमारे खोजी दल का नेतृत्व करो। कुछ साल तप और कठिन मेहनत के बाद एक बार तुमने योग्यता सिद्ध कर दी, फिर बिना इस अंगूठी के भी मंत्र का प्रयोग कर सकते हो। और अंगूठी को तुम्हारी उंगली से हमारे मठाधीश आचार्य जी भी नही निकाल पायेंगे...


निशांत मायूस होते... "फिर मुझे बहुत सारे रोक–टोक झेलने होंगे। अपनी दुनिया छोड़कर आप लोगों की तरह रहना होगा। बहुत सारे प्रतिबंध तो आप लोग लगा देंगे। फिर मुझे पहचान छिपाकर रहना होगा।"


संन्यासी:– इतनी सारी बातें नही होती है। पहचान हम छिपाते नही, बल्कि हम सबके सामने रहे तो हाल वैसा ही होना है... अपना दरवाजा गंदा हो तो भी उसे साफ करने के लिए नगर–निगम के कर्मचारी का इंतजार करते हैं। हां कुछ प्रतिबंध होते है, लेकिन वो तो हर जगह होते है। क्या तुम जिस कॉलेज में हो उस कॉलेज की अपनी कानून व्यवस्था नहीं। क्या जिले की कानून व्यवस्था नहीं या फिर राज्य या देश की। खैर मैं तुम्हे अपने साथ आने के लिए प्रेरित नही कर रहा। बस तुम्हारे सवालों का जवाब दे रहा। बेशक यदि मेरी तरह संन्यासी बनना है फिर संसार त्याग कर हमारे साथ आ जाओ, वरना यदि तुम्हे पारीयान की तरह खोजी बनना है, फिर तुम्हारी जरूरी शिक्षा तुम्हारे कमरे में हो जायेगी...


निशांत पूरे उत्साह से... "क्या यह सच है?"..


संन्यासी:– हां सच है... अब तैयार हो जाओ हम पहुंच गये...


बात करते हुए सभी लगभग २ किलोमीटर आगे चले आये थे।संन्यासी एक बड़े से मांद के आगे खड़ा था। मानो पत्थर का 50 फिट का दरवाजा खड़ा हो। संन्यासी उसी दरवाजे के आगे खड़े होते.… "अंदर तुम्हारे खोज की मंजिल है आर्यमणि। बाकी अंदर जाने से पहले मैं बता दूं कि जिस किताब के उल्लेख की वजह से तुमने रीछ स्त्री को जाना, उसमे केवल कैद करने के स्थान को छोड़ दिया जाए तो बाकी सब झूठ लिखा था। उस किताब को छापा ही गया था भरमाने के लिये।

आर्यमणि:– मेरे बहुत से सवाल है...


निशांत:– इस दरवाजे के पार बवाल है, पहले उसे देख ले... एक्शन टाइम पर सवाल जवाब नही करते...


निशांत की बात सुनकर सभी हंसते हुए उस मांद के अंदर घुस गये। अंदर पूरा हैरतंगेज नजारा था। मांद की दरवाजा ही केवल पत्थर का बना था, बाकी उस पार तो खुला बर्फीला मैदान था। चारो ओर बर्फ ही बर्फ नजर आ रहा था। एक मकबरा के दोनो ओर लोग थे। एक ओर सिद्ध पुरुष और संन्यासियों के साथ सहायक थे। तो दूसरे ओर साए की तरह लहराती रीछ स्त्री जिसके पाऊं जमीन से 5 फिट ऊपर होंगे। उसके साथ कई सारे विकृत सिद्ध पुरुष काला वस्त्र पहने थे। और उन सबके पीछे जहां तक नजर जाय, केवल वेंडिगो ही वेंडिगो... ऐसा लग रहा था कब्र का बॉर्डर हो और दोनो ओर से लोग युद्ध के लिए तैयार...


रीछ स्त्री महाजनिका के भी दर्शन हो गए... स्त्री की वह भव्य स्वरूप थी, जिसकी शक्ल लगभग भालू जैसी थी। शरीर का आकार भी लगभग भालू जितना ही लंबा चौड़ा और वह हवा में लहरा रही थी। दोनो ओर के शांति को रीछ स्त्री महाजनिका तोड़ती... "साधु हमारे कार्य में विघ्न न डालो। वरना मेरे प्रकोप का सामना करना पड़ेगा..."


साधु ओमकार नारायण:– हमारे संन्यासी और सहायकों को पिछले 8 दिन से चकमा दे रही थी और आज तुमने द्वार (portal) भी खोला तो जादूगरनी (ऐडियाना) के क्षेत्र में। बचकाना सी चाल..


तांत्रिक उध्यात (वह तांत्रिक जिसने रीछ स्त्री को छुड़ाया)… सुनो ओमकार हम कोई युद्ध नही चाहते। एक बार देवी महाजानिका की शक्ति पुर्नस्थापित हो जाए फिर हम दूसरी दुनिया में चले जायेंगे... मत भूलो की अभी सिर्फ हमने जादूगरनी (ऐडियाना) की आत्मा को बंधा है, न तो उसको इच्छा से तोड़ा है और न ही उसकी आत्मा को मुक्त किया है..


ओमकार नारायण:– क्या इस बात से मुझे डरना चाहिए? या फिर तुम्हारी महत्वकांछा ने एक घोर विकृत अति शक्तिशाली जीव को उसके नींद से जगा दिया, इसलिए तुम्हे मृत्यु दण्ड दूं।


तांत्रिक उध्यात:– देवी तुम्हे जीव दिख रही। मुझे मृत्यु दण्ड दोगे... तो फिर देकर दिखाओ मृत्यु दण्ड..


अपनी बात समाप्त करने के साथ ही बिजली गरजे, बर्फीला तूफान सा उठा और उस तूफान के बीच आसमान से ऊंची ऐडियाना की आत्मा दिखना शुरू हो गयि। बर्फीले तूफान के बीच से कभी अग्नि तो कभी बिलजी किसी अस्त्र की तरह प्राणघाती हमला करने लगे। उसी तूफान के बीच चारो ओर से काले धुएं उठने लगे। उन काले उठते धुएं और बर्फीले तूफान के बीच से अनगिनत वेंडीगो उछलकर हमला करने लगे।

भाग:–42





वायु संरक्षण भेदकर हर वेंडिगो हमला कर रहा था। ऐसा लग रहा था हर वेंडिगो काट मंत्र के साथ हमला कर रहा हो। एक–दो सहायक के नाक में काला धुवां घुसा और उसके प्राण लेकर बाहर निकला। वहां पर तांत्रिक उध्यात और ऐडियाना का प्रकोप चारो ओर से घेर–घेर कर हमला शुरू कर चुका था। सिद्ध पुरुष ओमकार नारायण ने भी मोर्चा संभाला। एक साथ 5 संन्यासी और दोनो सिद्ध पुरुष के मुख से मंत्र इस प्रकार निकल रहे थे, जैसे कोई भजन चल रहा हो। हर मंत्र के छंद का अंत होते ही १० सहायक एक साथ अपने झोले से कुछ विभूति निकालते और भूमि पर पटक देते।


भूमि पर विभूति पटकने के साथ ही नाना प्रकार की असंख्य चीजें धुवां का रूप लेकर निकलती। किसी धुएं से असंख्य उजले से साये निकल रहे थे। उनका स्वरूप ऐडियाना के आसमान से ऊंची आकृति को एक साथ ढक रही थी। आस–पास मंडराते काले साये को पूरा गिल जाते। किसी विभूति के विस्फोट से असंख्य उजले धुएं के शेर निकले। अनगिनत शेर एक बार में ही इतनी तेजी से उस बर्फ के मैदान पर फैले, की पूरा मैदान में वेंडिगो उस साये वाले शेर से उलझ गये। देखते ही देखते वेंडिगो की संख्या विलुप्त हो रही थी। रक्त, पुष्प, जल, मेघ, बिजली और अग्नि सब उस विभूति की पटक से निकले और तांत्रिक के अग्नि, बिजली और श्वेत वर्षा को शांत करते उल्टा हमला करने लगे.…


आर्यमणि और निशांत के लिए तो जैसे कोई पौराणिक कथा का कोई युद्ध आंखों के सामने चल रहा हो। दोनो ने अपने हाथ जोड़ लिये। "हमे भी कुछ करना चाहिए आर्य, वरना हमारे यहां होने का क्या अर्थ निकलता है"…. "हां निशांत तुमने सही कहा। उनके पास मंत्र शक्ति है और मेरे पास बाहुबल, हम मिलकर आगे बढ़ते है।"


निशांत:– मेरे पास भ्रमित अंगूठी है, और ट्रैप करने का समान। देखता हूं इनसे क्या कर सकता हूं।


अगले ही पल पर्वत को भी झुका दे ऐसी दहाड़ उन फिजाओं में गूंजने लगी। एक पल तो दोनो पक्ष बिलकुल शांत होकर बस उस दहाड़ को ही सुन रहे थे... दहाड़ते हुए बिजली की तेजी से आर्यमणि बीच रण में खड़ा था और उसके ठीक सामने थी महाजनिका। 1 सिद्ध पुरुष 5 और संन्यासियों को लेकर आर्यमणि के ओर रुख किया।


मंत्र से मंत्र टकरा रहे थे। चारो ओर विस्फोट का माहोल था। वेंडिगो साये के बने शेर के साथ भीड़ रहे थे। हर शेर वेंडिगो को निगलता और विजय दहाड़ के साथ गायब हो जाता। ऐडियाना का भव्य साया, असंख्य उजले साये से बांधते हुये धीरे–धीरे छोटा होने लगा था। तांत्रिक अध्यात और उसके हजार चेले भी डटे हुये थे। मंत्र से मंत्र का काट हो रहा था। इधर सिद्ध पुरुष के १० सहायकों में से एक सहायक की जान जाती तो उधर अध्यात के २०० चेले दुनिया छोड़ चुके होते।


२०० चेलों की आहुति देने के बाद भी तांत्रिक अध्यात अपने पूरे उत्साह में था। क्योंकि उसे पता था कि आगे क्या होने वाला है। उसे पता था कि फिलहाल १० हाथियों की ताकत के साथ जब महाजनिका आगे बढ़ेगी तब यहां सभी की लाश बिछी होगी। और कुछ ऐसा शायद हो भी रहा था। आर्यमणि, महाजनिका के ठीक सामने और महाजनिका मुख से मंत्र पढ़ती अपने सामने आये आर्यमणि को फुटबॉल समझकर लात मार दी। आर्यमणि उसके इस प्रहार से कोसों दूर जाकर गिरा। न केवल आर्यमणि वरन एक सिद्ध पुरुष जो अपने 5 संन्यासियों के साथ महाजनिका के मंत्र काट रहा था। उनका काट मंत्र इतना कमजोर था कि मंत्र काटने के बाद भी उसके असर के वजह वह सिद्ध पुरुष मिलो दूर जाकर गिरा। शायद उस साधु के प्राण चले गये होते, यदि आर्यमणि अपने हाथ की पुर्नस्थापित अंगूठी उसके ऊपर न फेंका होता और वह अंगूठी उस साधु ने पकड़ी नही होती।


सिद्ध पुरुष जैसे ही गिरा मानो वह फट सा गया, लेकिन अगले ही पल वह उठकर खड़ा भी हो गया। एक नजर आर्यमणि और सिद्ध पुरुष के टकराये और नजरों से जैसे उन्होंने आर्यमणि का अभिवादन किया हो। लेकिन युद्ध के मैदान में जैसे महाजनिका काल बन गई थी। एक सिद्ध पुरुष का मंत्र जाप बंद क्या हुआ, अगले ही पल महाजनिका अपने मंत्र से पांचों संन्यासियों को मार चुकी थी। 5 संन्यासियों और 10 सहायकों के साथ ओमकार नारायण दोनो ओर का मोर्चा संभाले थे। लेकिन महाजनिका अपने खोये सिद्धि और कम बाहुबल केl साथ भी इन सब से कई गुणा खतरनाक थी, जिसका परिणाम यह हुआ कि महाजनिका अकेले ही सभी मंत्रो को काटती हुई आगे बढ़ी और देखते ही देखते पर्वत समान ऊंची हो गई। उसका स्वरूप मानो किसी राक्षसी जैसा था। विशाल विकराल रूप और एक ही बार में ऐसा हाथ चलाई की उसकी चपेट में सभी आ गये। जमीन ऐसा कांपा की उसकी कंपन मिलो दूर तक मेहसूस हुई।


आर्यमणि कुछ देख तो नहीं पाया लेकिन वह सिद्ध पुरुष को अपने पीठ पर उठाकर बिजली समान तेजी से दौड़ लगा चुका था। उसने साधु को ऐडियाना के कब्र के पास छोड़ा और दौड़ लगाते हुए महाजनिका के ठीक पीछे पहुंचा। यूं तो आर्यमणि, महाजनिका के टखने से ऊंचा नही था, लेकिन उसका हौसला महाजनिका के ऊंचाई से भी कई गुणा ज्यादा बड़ा था। शेप शिफ्ट नही हुआ लेकिन झटके से हथेली खोलते ही धारदार क्ला बाहर आ गया। और फिर देखते ही देखते क्षण भर में आर्यमणी क्ला घुसाकर पूरे तेजी से गर्दन के नीचे तक पहुंच गया। आगे से तो महाजनिका बहुत हाथ पाऊं मार रही थी। मंत्र उच्चारण भी जारी था। पास खड़ा तांत्रिक अध्यात भी अब अपने मंत्रों की बौछार आर्यमणि पर कर रहा था। आर्यमणि जब ऊपर के ओर बढ़ रहा था तब बिजली बरसे, अग्नि की लपटे उठी, लेकिन कोई भी आर्यमणि की चढ़ाई को रोक न सका। जब आर्यमणि, महाजनिका के गर्दन के नीचे पहुंचा, फिर दोनो मुठ्ठी में महाजनिका के बाल को दबोचकर, एक जोरदार लात उसके पीठ पर मारा। पीठ पर वह इतना तेज प्रहार था कि महाजनिका आगे के ओर झुक गई, वहीं आर्यमणि बालों को मुट्ठी में दबोचे पीछे से आगे आ गया और इस जोड़ का बल नीचे धरातल को ओर लगाया की महाजनिका के गर्दन की हड्डियों से कर–कर–कर कर्राने की आवाज आने लगी। जोर इतना था की गर्दन नीचे झुकते चला गया। शायद टूट गई होती यदि वह घुटनों पर नही आती। महाजनिका घुटनों पर और उसका सर पूरा बर्फ में घुसा दिया।


क्या बाहुबल का प्रदर्शन था। महाजनिका अगले ही पल अपने वास्तविक रूप में आयि और सीधी खड़ी होकर घूरती नजरों से आर्यमणि को देखती... "इतना दुस्साहस".. गुस्से से बिलबिलाती महाजनिका एक बार फिर अपना पाऊं चला दी। पता नही कहां से और कैसे नयि ऊर्जा आर्यमणि में आ गई। आर्यमणि एक कदम नहीं चला। जहां खड़ा था उसी धरातल पर अपने पाऊं को जमाया और ज्यों ही अपने ऊपरी बदन को उछाला वह हवा में था। १० हाथियों की ताकत वाली महाजनिका, आर्यमणि को फुटबॉल की तरह उड़ाने के लिए लात चलायि। लेकिन ठीक उसी पल आर्यमणि एक लंबी उछाल लेकर कई फिट ऊपर हवा में था। और जब वह नीचे महाजनिका के चेहरे के सामने पहुंचा, फिर तो महाजनिका का बदन कोई रूई था और आर्यमणि का क्ला कोई रूई धुनने की मशीन। पंजे फैलाकर जो ही बिजली की रफ्तार से चमरी उधेरा, पूरा शरीर लह–लुहान हो गया। महाजनिका घायल अवस्था में और भी ज्यादा खूंखार होती अपना 25000 किलो वजनी वाला मुक्का आर्यमणि के चेहरे पर चला दी।


आर्यमणि वह मुक्का अपने पंजे से रोका। उसके मुक्के को अपने चंगुल में दबोचकर कलाई को ही उल्टा मरोड़ दिया। कर–कर की आवाज के साथ हड्डी का चटकना सुना जा सकता था। उसके बाद तो जैसे कोई बॉक्सर अपनी सामान्य रफ्तार से १०० गुणा ज्यादा रफ्तार में जैसे बॉक्सिंग बैग पर पंच मारता हो, ठीक उसी प्रकार का नजारा था। हाथ दिख ना रहे थे। आर्यमणि का मुक्का कहां और कब लगा वह नही दिख रहा था। बस हर सेकंड में सैकड़ों विस्फोट की आवाज महाजनिका के शरीर से निकल रही थी।


वहीं कुछ वक्त पूर्व जब दूसरे सिद्ध पुरुष के हाथ में जैसे ही पुनर्स्थापित अंगूठी आयि, उसने सबसे पहले अपने सभी साथियों को ही सुरक्षित किया। जिसका परिणाम यह हुआ कि महाजनिका के चपेट में आने के बाद भी वह सभी के सभी उठ खड़े हुये और इसी के साथ यह भेद भी खुल गया की पुर्नस्थापित अंगूठी कब्र में नही है। तांत्रिक अध्यात समझ चुका था कि वह युद्ध हार चुका है। लेकिन इस से पहले की वह भागता, महाजनिका, आर्यमणि के साथ लड़ाई आरंभ कर चुकी थी। मंत्र उच्चारण वह कर रही थी, लेकिन सिद्ध पुरुष उसके मंत्र को काट रहे थे और आर्यमणि अपने बाहुबल से अपना परिचय दे रहा था। कुछ देर ही उसने महाजनिका पर मुक्का चलाया था और जब आर्यमणि रुका महाजनिका अचेत अवस्था में धम्म से गिरी।


तांत्रिक अध्यात और उसके कुछ साथी पहले से ही तैयार थे। जैसे ही महाजनिका धरातल पर गिरी ठीक उसी पल ऐडियाना के मकबरे से बहरूपिया चोगा और बिजली की खंजर हवा में आ गयि। हवा में आते ही उसे हासिल करने के लिए दोनो ओर से लड़ाई एक बार फिर भीषण हो गयि। सबका ध्यान ऐडियाना की इच्छा पर थी और इसी बीच तांत्रिक अध्यात एक नया द्वार (पोर्टल) खोल दिया। वस्तु खींचने का जादू दोनो ओर से चल रहा था। एक दूसरे को घायल करने अथवा मारने की कोशिश लगातार हो रही थी। ठीक उसी वक्त आर्यमणि थोड़ा सा विश्राम की स्थिति में आया था। तांत्रिक अध्यात का इशारा हुआ और महाजनिका लहराती हुई निकली।


इसके पूर्व निशांत जो इस पूरे एक्शन का मजा ले रहा था, उसे दूर से ही तांत्रिक अध्यात की चालबाजी नजर आ गयि। उसने भी थोड़ा सा दौड़ लगाया और हवा में छलांग लगाकर जैसे ही खुद पर सुरक्षा मंत्र पढ़ा, वह हवा में उड़ गया। तेजी के साथ उसने भागने वाले रास्ते पर छोटे–छोटे ट्रैप वायर के मैट बिछा दिये और जैसे ही नीचे पहुंचा सभी किनारे पर कील ठोकने वाली गन से कील को फायर करते हर मैट को चारो ओर से ठोक दिया।


महाजनिका जब द्वार के ओर भाग रही थी तभी उसे रास्तों में बिछी ट्रैप वायर दिख गई। वह तो हवा में लहराती हुई पोर्टल में घुसी और घुसने के साथ खींचने का ताकतवर मंत्र चला दी। नतीजा यह निकला कि पोर्टल में घुसते समय बिजली की खंजर उसके हाथ में थी और बहरूपिया चोगा दो दिशाओं की खींचा तानी में फट गया। महाजनिका तो भाग गयि लेकिन तांत्रिक और उसके गुर्गे भागते हुए ट्रैप वायर में फंस गये। एक तो गिरते वक्त मजबूत मंत्र उच्चारण टूटा और छोटे से मौके को सिद्ध पुरुष ओमकार नारायण भुनाते हुये एक पल में ही तांत्रिक को उसके घुटने पर ले आये। नुकसान दोनो ओर से हुआ था। कहीं कम तो कहीं ज्यादा। महाजनिका जब भाग रही थी, तब उसके पीछे आर्यमणि भी जा रहा था, लेकिन उसे दूसरे सिद्ध पुरुष ने रोक लिया।


माहोल बिलकुल शांत हो गया था। बचे सभी तांत्रिक को बंदी बनाकर ले जाने की तैयारी चल रही थी। एक द्वार (portal) सिद्ध पुरुष ने भी खोला। वहां केवल एक संन्यासी जो आर्यमणि से शुरू से बात कर रहा था, उसे छोड़कर बाकी सब उस द्वार से चले गये। जाते हुये सभी आर्यमणि को शौर्य और वीरता पर बधाई दे रहे थे और उसकी मदद के लिये हृदय से आभार भी प्रकट कर रहे थे। उस जगह पर अब केवल ३ लोग बचे थे। संन्यासी, आर्यमणि और निशांत।


निशांत:– यहां का माहोल कितना शांत हो गया न...


संन्यासी:– हां लेकिन एक काम अब भी बचा है। जादूगरनी (ऐडियाना) को मोक्ष देना...


निशांत:– क्या उसकी आत्मा अब भी यहीं है।



संन्यासी:– हां अब भी यहीं है और ज्यादा देर तक बंधी भी नही रहेगी। मुझे कुछ वक्त दो, फिर साथ चलते हैं...


संन्यासी अपना काम करने चल दिये। सफेद बर्फीले जगह पर केवल २ लोग बचे थे.… "आर्य क्या तुमने यह जगह पहले भी देखी है?"


आर्यमणि:– नही, ये रसिया का कोई बर्फीला मैदान है, जहां बर्फ जमी है। मैने रसिया का बोरियाल जंगल देखा है। वैसे तूने क्या सोचा...


निशांत:– किस बारे में...


आर्यमणि:– खोजी बनने के बारे में...


निशांत:– अगर मुझे ये लोग उस लायक समझेंगे तब तो मेरे लिए खुशकिस्मती होगी...


"किसी काम की तलाश में गये व्यक्ति को जितनी नौकरी की जरूरत होती है। नौकरी देने वाले को उस से कहीं ज्यादा एक कर्मचारी की जरूरत होती है। और अच्छे कर्मचारी की जरूरत कुछ ऐसी है कि रात के १२ बजे नौकरी ले लो.… क्या समझे"....


निशांत:– यही की आप संन्यासी कम और कर्मचारी से पीड़ित मालिक ज्यादा लग रहे।


सन्यासी:– मेरा नाम शिवम है और कैलाश मठ की ओर से हम, तुम्हे अपना खोजी बनाने के लिए प्रशिक्षित करना चाहते हैं? राह बिलकुल आसन नहीं होगी। कर्म पथ पर चलते हुए हो सकता है कि किसी दिन तुम्हारा दोस्त गलत के साथ खड़ा रहे और तुम्हे उसके विरुद्ध लड़ना पड़े? तो क्या ऐसे मौकों पर भी तुम हमारे साथ खड़े रहोगे?


निशांत:– हां बिलकुल.... आपके प्रस्ताव और आपके व्याख्या की हुई परिस्थिति, दोनो के लिए उत्तर हां है।


संन्यासी:– जितनी आसानी से कह गये, क्या उतनी आसानी से कर पाओगे...


निशांत:– क्यों नही... वास्तविक परिस्थिति में यदि आर्यमणि मेरे नजरों में दोषी होगा, तब मैं ही वो पहला रहूंगा जो इसके खिलाफ खड़ा मिलेगा। यदि आर्य मेरी नजर में दोषी नहीं, फिर मैं सच के साथ खड़ा रहूंगा... क्योंकि गीता में एक बात बहुत प्यारी बात लिखी है...


संन्यासी:– क्या?


निशांत:– जो मेरे लिये सच है वही किसी और के लिये सच हो, जरूरी नहीं… एक लड़का पहाड़ से गिरा... मैं कहूंगा आत्महत्या है, कोई कह सकता है एक्सीडेंट है... यहां पर जो "मरा" वो सच है... लेकिन हर सच का अपना–अपना नजरिया होता है और हर पक्ष अपने हिसाब से सही होता हैं।


संन्यासी शिवम:– और यदि इसी उधारहण में मैं कह दूं की लड़का अपने आत्महत्या के बारे में लिखकर गया था।


निशांत:– मैं कह सकता हूं कि जरूर किसी की साजिश है, और पहाड़ी की चोटी से धक्का देकर उसका कत्ल किया गया है। क्योंकि वह लड़का आत्महत्या करने वालों में से नही था।


संन्यासी:– ठीक है फिर कल से तुम्हारा प्रशिक्षण शुरू हो जायेगा। जब हम अलग हो रहे हो, तब तुम अपनी पुस्तक ले लेना निशांत।


निशांत:– क्यों आप भी हमारे साथ कहीं चल रहे है क्या?


संन्यासी:– नही यहां आने से पहले आर्यमणि के बहुत से सवाल थे शायद। बस उन्ही का जवाब देते–देते जहां तक जा सकूं...


आर्यमणि:– संन्यासी शिवम जी, अब बहुत कुछ जानने या समझने की इच्छा नही रही। इतना तो समझ में आ गया की आपकी और मेरी दुनिया बिलकुल अलग है। और आप सब सच्चे योद्धा हैं, जिसके बारे में शायद ही लोग जानते हो। अब आप सबके विषय में अभी नहीं जानना। मेरा दोस्त है न, वो बता देगा... बस जिज्ञासा सिर्फ एक बात की है... जिस रोचक तथ्य के किताब में मुझे रीछ स्त्री मिली, वह पूरा इतिहास ही गलत था।


संन्यासी शिवम:– "वहां लिखी हर बात सच थी। किंतु अलग–अलग सच्ची घटना को एक मुख्य घटना से जोड़कर पूरी बात लिखी गयि है। और वह किताब भी हाल के ही वर्षों में लिखी गयि थी। जिस क्षेत्र में रीछ स्त्री महाजनिका बंधी थी, उस क्षेत्र को तो गुरुओं ने वैसे भी बांध रखा होगा। एक भ्रमित क्षेत्र जहां लोग आये–जाये, कोई परेशानी नही हो। यदि कोई प्रतिबंधित क्षेत्र होता तब उसे ढूंढना बिलकुल ही आसान नहीं हो जाता"

"तांत्रिक अध्यात, ऐसे घराने से आता है जिसका पूर्वज रीछ स्त्री का सेवक था। महाजनिका को ढूंढने के लिये इनके पूर्वजों ने जमीन आसमान एक कर दिया। हजारों वर्षों से यह तांत्रिक घराना रीछ स्त्री को ढूंढ रहे थे। पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी संस्कृति, अपना ज्ञान और अपनी खोज बच्चों को सिखाते रहे। आखिरकार तांत्रिक अध्यात को रीछ स्त्री महाजनिका का पता चल ही गया।"


आर्यमणि:– बीच में रोकना चाहूंगा... यदि ये लोग खोजी है, तो खोज के दौरान इन्हे अलौकिक वस्तु भी मिली होगी? और जब वो लोग रीछ स्त्री की भ्रमित जगह ढूंढ सकते है, फिर उन्हे पारीयान का तिलिस्म क्यों नही मिला?


संन्यासी शिवम:– मेरे ख्याल से जब पारीयान की मृत्यु हुई होगी तब तक वो लोग हिमालय का पूरा क्षेत्र छान चुके होंगे। रीछ स्त्री लगभग 5000 वर्ष पूर्व कैद हुई थी और पारीयान तो बस 600 वर्ष पुराना होगा। हमारे पास पारीयान का तो पूरा इतिहास ही है। तांत्रिक सबसे पहले वहीं से खोज शुरू करेगा जो हमारा केंद्र था। और जिस जगह तुम्हे पारीयान का तिलिस्म मिला था, हिमालय का क्षेत्र, वह तो सभी सिद्ध पुरुषों के शक्ति का केंद्र रहा है। वहां के पूरे क्षेत्र को तो वो लोग इंच दर इंच कम से कम 100 बार और हर तरह के जाल को तोड़ने वाले 100 तरह के मंत्रों से ढूंढकर पहले सुनिश्चित हुये होंगे। इसलिए पारीयान का खजाना वहां सुरक्षित रहा। वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी तांत्रिक मिल गयि होती तो तुम सोच भी नही सकते की महाजनिका क्या उत्पात मचा सकती थी।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
फाइट शानदार थी तंत्र मंत्र की भी ओर बल की भी
क्या धोया महाजनिका को आर्यमणी ने
तो निशांत भी दिमाग का जलवा दिखाने में पीछे नहीं रहा और सन्याशी उसे सिखाने को तैयार रहें
खोजी बनने के लिए संयासी उसे मंत्र की किताब भी देने वाला हैं
क्या आगे चलकर निशांत भी आगे वेयर वोल्फ बनने वाला हैं
 
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