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Thanks...बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
Bahut pichhe ho mitra....
Thanks...बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
Is story ke starting me logo ko mutth maarne ka masala mil raha tha, uske baad jab band ho gaya to log dusri kahani me maa bahan beti khojne lageदेवनागरी पढ़ते ही कितने हैं भाई।
सब अंग्रेजी के चोदे हो रहे हैं आजकल
देवनागरी पढ़ते ही कितने हैं भाई।
सब अंग्रेजी के चोदे हो रहे हैं आजकल
सब जगह यही हाल है भाई जी।अंग्रेजी के ऐसे चोदे हैं, कि असल की अंग्रेजी तो झांट बराबर नहीं समझ पाते। देवनागरी में लिखी हिंदी पढ़ नहीं पाते, वो रोमन में लिखी चाहिए। गज़ब के चूतड़ हैं इधर
अच्छा सबसे भयंकर बात ये है कि लोगों को मां बहन पढ़ कर ज्यादा मजा आता है। मतलब कितने गर्त में गिरते जा रहे हैं हम सब।Is story ke starting me logo ko mutth maarne ka masala mil raha tha, uske baad jab band ho gaya to log dusri kahani me maa bahan beti khojne lage
सब जगह यही हाल है भाई जी।
एक बार अपने घर गया हुआ था, वहां एक दुकान में एक आदमी अपनी बेटी के साथ आया हुआथा, बेटी 10th में थी, ऐसे ही बात बात में दुकानदार ने उनको 359/ का बिल बताया, अब उसकी बेटी जो उस छोटे शहर में पढ़ रही थी, उसे उनसठ का मतलब नहीं पता था।
उस आदमी ने बड़ी खुशी से बताया कि स्कूल में हिंदी की गिनती नहीं सीखते। तो मैंने कहा घर में आप क्यों नही सीखा पाए?
इस पर दुकानदार बोला, भैया यहां लोग खुद बच्चों से अंग्रेजी ही सुनना चाहते हैं, ये कोई अलग थोड़े ही होंगे।
अध्याय - 136
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"दरोगा धनंजय का क्या मामला था?" कुछ देर बाद पिता जी ने चाची से पूछा_____"हमारा मतलब है कि उसे किस मकसद के तहत जगताप ने अपना मोहरा बनाया था?"
"वो हमारे लिए ख़तरा बन रहा था।" चाची ने खुद को सम्हालते हुए कहा____"मुरारी की हत्या के बाद जब जगन ने उसकी हत्या में वैभव को फंसाया था तो वो मामले की तहक़ीकात करने लगा था। यूं तो इससे हमें कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि हम तो चाहते ही यही थे कि वैभव मुरारी की हत्या में फंसने के बाद जेल चला जाए और उसके माथे पर जेल जाने का भी बदनामी रूपी कलंक लग जाए किंतु तभी हमें पता चला कि दरोगा स्वाभाविक रूप से मामले की तहक़ीकात नहीं कर रहा है बल्कि आपके कहने पर कर रहा है। यानि आपने गुप्त रूप से उसको इस मामले के बारे में पता करने के लिए नियुक कर दिया था। हम समझ गए कि इससे हमारे लिए भारी संकट पैदा हो सकता है। मतलब कि वो अपनी तहक़ीकात से असलियत का पता तो लगा ही लेता किंतु संभव था कि वो हम तक भी पहुंच जाता। अगर ऐसा होता तो ज़ाहिर है कि हम बेनक़ाब हो जाते जोकि हम किसी भी कीमत पर नहीं चाहते थे। इस लिए उसका पूरी तरह से संतुलन बिगाड़ने के लिए हमने उसको अपने जाल में फंसाया। वो पुलिस वाला तो था ही किंतु इसके साथ ही उसे आपकी सर परस्ती भी प्राप्त हो गई थी जिसके तहत उसे किसी का भय ही नहीं था। इस लिए उसके तेवर को ठंडा करने के लिए हमने सबसे पहले उसकी मां का अपहरण करवाया। हम जानते थे कि वो अपनी मां से बहुत लगाव रखता है और जब उसकी मां पर ही कोई संगीन बात आ जाएगी तो वो फिर वही करेगा जो करने को हम कहेंगे।"
"तो क्या करवाना चाहते थे उससे?" पिता जी पूछे बिना न रह सके____"हमारे द्वारा पकड़े जाने पर उसने हमें जो कुछ बताया था वो निहायत ही बेतुका था। आख़िर उसके द्वारा ऐसा करवाने का क्या मतलब था जगताप का?"
"पहला तो यही कि उसके द्वारा इस तरह की बयानबाज़ी से आपको बुरी तरह उलझा देना।" चाची ने कहा____"और दूसरी असल वजह थी उसको अपने रास्ते से हमेशा के लिए हटा देना। पहले तो हमने उसे उसकी मां को जान से मार देने की कोरी धमकी ही दी थी। हमें लगा था कि इससे डर कर वो मामले की तहक़ीकात करना छोड़ वापस शहर लौट जाएगा किंतु जब वो धमकी देने पर भी न माना तो हमें धमकी को सच का रूप देना पड़ा। उसे क्योंकि आपकी सर परस्ती प्राप्त थी इस लिए वो धमकियों से डर नहीं रहा था किंतु जब सच में ही उसकी मां मर गई तो उसके होश ठिकाने पर आ गए। इतना ही नहीं आप भी उसकी मौत से हिल गए थे। यही वजह थी कि आपने भी उसे मामले को छोड़ देने को कहा और उसे वापस चले जाने को भी। अपनी मां की मौत के बाद तो वो वैसे भी अब कुछ करने वाला नहीं था क्योंकि मां के बाद वो अपनी उस छोटी बहन को नहीं खोना चाहता था जिसका उसके सिवा दूसरा कोई सहारा ही नहीं था। बहरहाल, उसके चले जाने के बाद हम निश्चिंत हो गए थे।"
"बात कुछ समझ में नहीं आई।" पिता जी ने उलझन पूर्ण भाव से कहा____"अगर जगताप का इरादा उस दरोगा को अपने रास्ते से हटा देना ही था तो इसके लिए उसे पहले ही वो रास्ता चुन लेना था जिसे उसने आख़िर में उसकी मां की हत्या कर देने के रूप में चुना था। बेमतलब उसको अपने जाल में फांस कर इतना झमेला फ़ैलाने की क्या ज़रूरत थी?"
"ऐसा झमेला बेवजह नहीं फैलाया गया था जेठ जी बल्कि ऐसा करने के पीछे भी एक ख़ास वजह थी।" चाची ने कहा____"और वो वजह थी आपको सही दिशा से भटकाए रखना और साथ ही आपके दिमाग़ को उलझाए रखना। शुरू में ही हमने सोच लिया था कि आख़िर में जो कुछ भी हमारे द्वारा होगा उसका सारा इल्ज़ाम हमें साहूकारों पर ही थोपना है। आपके साथ साथ हर कोई यही समझता कि जो कुछ भी हुआ है उसको अंजाम देने वाले साहूकार ही हैं। सब जानते थे कि साहूकार हमें अपना दुश्मन समझते हैं और उनकी एक ही ख़्वाईश है, यानि हमें मिट्टी में मिला देना। खैर, तो जैसा कि मैंने कहा हमारा ऐसा करने का यही मकसद था....मतलब आपको सही दिशा से भटकाए रखना और उलझाए रखना। याद कीजिए, जब भी बैठक में इस मामले की चर्चा होती थी तो अंततः यही निष्कर्ष निकलता था कि ये सब करने वाले साहूकार ही हैं। अब उस समय क्योंकि आप में से किसी के भी पास साहूकारों के खिलाफ़ कोई प्रमाण नहीं होता था इस लिए आप खुल कर उन पर कोई कार्यवाही नहीं करते थे और यही हमारे लिए फ़ायदेमंद होता था। यानि आप हमेशा साहूकारों पर ही अटके रहते थे और किसी दूसरे की तरफ आपका ध्यान ही नहीं जाता था। वैसे आपके छोटे भाई पर शक ज़रूर किया जाता था किंतु आप ख़ुद इस बात का यकीन नहीं करते थे कि आपका छोटा भाई ऐसा कुछ सोच भी सकता है, करने की तो बहुत दूर की बात है।"
"चलो ये तो समझ आ गया।" पिता जी ने गहरी सांस ली____"किंतु ये भी तो सच है कि साहूकार लोग भी हमारे खिलाफ़ षड्यंत्र रच रहे थे तो उनके बारे में जगताप को कैसे पता नहीं चला? तुम्हारी अब तक की बातों से तो यही ज़ाहिर हुआ है कि जगताप को भी नहीं पता था कि साहूकार लोग क्या करने की फ़िराक में थे? हमारा सवाल ये है कि जब जगताप ने इतना बड़ा खेल रचा और फिर उसे शुरू भी किया तो वो साहूकारों की मानसिकता से कैसे अंजान रहा? मान लो उस रात अगर जगताप ने उनके बाग़ में उनकी बात न सुनी होती तो क्या होता? क्या अगले दिन चंदनपुर में जगताप का उनसे सामना न हो जाता? ज़ाहिर है जब सामना होता तो जगताप उनके सामने बेनक़ाब भी हो जाता। ऐसे में क्या करता जगताप?"
"ऐसा नहीं था कि वो साहूकारों की तरफ से पूरी तरह बेफिक्र थे।" चाची ने कहा____"हर किसी की तरह वो भी ये जानते थे कि साहूकारों की हसरत हम सबको मिट्टी में मिला देना ही है। इसी लिए वो इस बात को ध्यान में रखते हुए साहूकारों पर भी नज़र रखते थे किंतु शायद वो इस बात की कल्पना भी नहीं किए थे कि साहूकारों ने हमें मिट्टी में मिलाने के लिए कितना बड़ा षडयंत्र बनाया हुआ है। उनकी ख़ास बात यही थी कि वो लोग बुरी नीयत से अपना कोई भी काम खुल कर नहीं कर रहे थे बल्कि उनकी सारी कार्यविधि पूरी तरह से गुप्त थी। आप खुद भी तो उनकी कार्यविधि का कभी पता नहीं लगा पाए। वो तो उस दिन उन्होंने इत्तेफ़ाक से चंद्रकांत को मणि शंकर से बातें करते देख लिया था इस लिए उनके ज़हन में ये बात आई थी कि जिनके बीच छत्तीस का आंकड़ा है वो इस तरह कैसे एक दूसरे से बातें कर रहे थे? जब संदेह हुआ तो संदेह की पुष्टि के लिए उन्होंने क़दम भी उठाया और तभी इत्तेफ़ाक से उन्हें वो सब पता चला था।"
"यानि अगर हम ये कहें तो ग़लत न होगा कि यहां पर जगताप का खेल कमज़ोर था।" पिता जी ने कहा____"जबकि इतना बड़ा खेल खेलने वाले को अपने आस पास की ही नहीं बल्कि दूर दूर तक के लोगों की भी ख़बर रखनी चाहिए थी। ख़ैर ये तो संयोग की बात थी कि उसने बाग़ में पहुंच कर साहूकारों की बातें सुन ली और जान गया कि वो क्या करने वाले हैं। अगर उसे ये सब पता न चलता तो यकीनन आगे चल कर उसे बुरी तरह मात ही खा जाना था।"
"इंसान की जितनी समझ होती है उतना ही तो कर पाता है जेठ जी।" चाची ने कहा____"और मज़े की बात देखिए कि वो उतने को ही पूरी तरह सुदृढ़ और सुनियोजित समझ लेता है। वो समझता है कि उसकी योजना में अब कहीं कोई चूक अथवा ख़राबी नहीं है। अपनी होशियारी के नशे में चूर वो भूल जाता है कि हर इंसान की अपनी एक अलग ही सोच और कल्पना शक्ति होती है जिसके तहत वो उससे भी आगे की सोच सकता है।"
"ख़ैर, एक बात समझ नहीं आई।" पिता जी ने सोचने वाले भाव से कहा____"सफ़ेदपोश के रूप में जगताप ने अपने ही नक़ाबपोश की हत्या क्यों की थी?"
"इसकी दो वजह थीं।" चाची ने कहा____"पहली तो यही कि वो उनकी नाकामियों से बहुत ज़्यादा गुस्सा थे। दूसरे, वो दोनों मना करने के बाद भी उनके (सफ़ेदपोश) बारे में जानने की कोशिश करने से बाज नहीं आ रहे थे। इसी लिए उन्होंने गुस्से में आ कर एक को मार डाला और दूसरे को आख़िरी मौका दे कर छोड़ दिया था।"
"और जब वो दूसरा नक़ाबपोश शेरा के द्वारा पकड़ा गया और हमने उसे हवेली के एक कमरे में बंद करवाया।" पिता जी ने पूछा____"तो सुबह वो कमरे में हमें मरा हुआ मिला, क्यों? हालाकि हमने देखा था कि उसने खुरपी से खुद की जान ले ली थी किंतु अब हमें ये संदेह हो रहा है कि कहीं जगताप ने ही तो खुरपी से उसकी जान नहीं ली थी?"
"नहीं, उन्होंने उसे नहीं मारा था।" चाची ने बताया____"उसने उनके (सफ़ेदपोश) ख़ौफ के चलते ही अपनी जान ले ली थी। वैसे भी वो उस समय उसे वहां नहीं मार सकते थे क्योंकि ऐसा करने से उन पर संदेह जाता, जैसा कि बैठक में विचार विमर्श करते समय आपके मन में पैदा भी हुआ था। ये अलग बात है कि आपका मन उस समय भी ये नहीं मान रहा था कि आपका छोटा भाई ऐसा कुछ करने का सोच भी सकता है।"
"मुरारी के भाई जगन को हमारी क़ैद से भगा ले जाने वाला वो सफ़ेदपोश तुम ही थी।" पिता जी ने कुछ सोचते हुए पूछा____"हम जानना चाहते हैं कि तुम्हें इतना बड़ा ख़तरा उठा कर जगन को क़ैद से निकालने की क्या ज़रूरत थी? आख़िर उसके द्वारा क्या करवाना चाहती थी तुम?"
"वैभव को जान से मारने की एक आख़िरी कोशिश करना चाहती थी मैं।" चाची ने धीमें स्वर में कहा____"इसी लिए इतना बड़ा ख़तरा मोल ले कर मैं सफ़ेदपोश के रूप में हवेली के उस कमरे से जगन को निकाल ले गई थी। उसके बाद उसे वैभव को जान से मारने का हुकुम दिया था। वैभव को मारने में उसे कोई कठिनाई न हो इसके लिए मैंने उसको एक रिवॉल्वर भी दिया था। हालाकि मैं जानती थी कि वैभव को जान से मार देना जगन के बस का नहीं था लेकिन फिर भी एक आख़िरी कोशिश में वो सब किया मैंने।"
"आख़िर में क्या होता?" पिता जी ने पूछा____"हमारा मतलब है कि जगताप का अंतिम पड़ाव क्या था? आख़िर इतना कुछ करने के बाद वो हमारी नज़रों में ख़ुद को कैसे निर्दोष साबित करता? या फिर इसके बारे में भी उसकी कोई ऐसी योजना थी जिससे कि हम आख़िर में भी ये न सोच सकते कि ये सब हमारे भाई ने ही किया है?"
"इसके बारे में अगर योजना की बात बताऊं तो वो यही थी कि वो इस सारे फ़साद को साहूकारों के सिर मढ़ते।" चाची ने कहा____"उस समय तक आप क्योंकि इस सबके चलते अपना मानसिक संतुलन खो चुके होते इस लिए साहूकारों पर क़हर बन कर टूट पड़ते, जिसमें वो (जगताप) भी आपका साथ देते हुए साहूकारों को मारते। आप ये सोचते ही नहीं कि साहूकारों से कहीं ज़्यादा दोषी और अपराधी तो आपका अपना ही छोटा भाई है। ख़ैर आपके क़हर का शिकार होने से साहूकारों का नामो निशान मिट जाता और एक तरह से हमेशा के लिए उनका किस्सा भी ख़त्म हो जाता। उसके बाद वही होता जिसके बारे में मैंने शुरुआत में ही बताया था। ये तो थी योजना के अनुरूप बात किंतु हम ये भी जानते थे कि आख़िर तक वैसा ही नहीं होता चला जाएगा जैसा कि हमने सोच रखा है। यानि संभव है कि कहीं किसी मोड़ पर हालात बदल भी जाएं। ऐसे में अपने मंसूबों को परवान चढ़ाने के लिए यही सोचा था कि आगे जो भी हालत बनेंगे उस हिसाब से आगे की योजना बनाएंगे।"
"एक सवाल हम अपनी बेटी से भी पूछना चाहते हैं।" पिता जी सहसा कुसुम से मुखातिब हुए____"शेरा ने हमें बताया कि उसने सफ़ेदपोश को साहूकारों के खेतों की तरफ से आते देखा था। उसके बाद वो चंद्रकांत के घर पहुंचा। हम ये जानना चाहते हैं कि तुम सफ़ेदपोश बन कर चंद्रकांत के घर किस लिए गई थी?"
"वो मैंने एक दिन बैठक में आप लोगों की बातें सुनी थी।" कुसुम ने धीमें स्वर में कहा____"आप लोगों से ही मुझे पता चला था कि सफ़ेदपोश हर बार हमारे आमों के बाग़ की तरफ जाता है और फिर वहीं पर ग़ायब हो जाता है। यही सोच कर मैंने मां के कमरे में जा कर पहले सफ़ेदपोश के ये कपड़े पहने और फिर वैसे ही कमरे की खिड़की से बाहर निकल गई जैसे उस रात मैंने मां को जाते देखा था। इतना तो मैं भी समझ गई थी कि मां सफ़ेदपोश बन कर गांव के रास्ते से तो कहीं जाती नहीं रहीं होंगी, क्योंकि ऐसे में उन्हें कोई भी देख सकता था। मैं समझ गई कि मां गांव की आबादी से दूर दूर हो कर ही कहीं जाती रहीं होंगी। मैंने भी ऐसा ही किया। उधर साहूकारों के खेत थे तो वहीं से जाना पड़ा और फिर घूम कर चंद्रकांत के घर के सामने पहुंच गई। उसके घर के सामने जाने का सिर्फ यही मतलब था कि अगर आपके आदमी सफ़ेदपोश की खोज में कहीं छुपे हों तो वो मुझे देख लें। कुछ देर में ऐसा ही हुआ। मैंने एक आहट सुनी तो समझ गई कि शायद आस पास ही कहीं पर आपके आदमी मौजूद हैं। उस समय डर तो बहुत लग रहा था मुझे लेकिन सोच लिया था कि अब चाहे जो हो जाए वही करूंगी, यानि अपनी मां को बचाने के लिए अपनी जान दे दूंगी। मैं वहां से हमारे बाग़ की तरफ भागने लगी। सोचा था कि पीछे से मेरा पीछा करने वाले लोग मुझ पर गोली चलाएंगे मगर ऐसा नहीं हुआ। मुझे नहीं पता था कि वो लोग मुझे यहां बाग़ में घेरने के लिए गोली नहीं चला रहे थे।"
"अच्छा ही हुआ कि शेरा ने किसी को भी गोली चलाने को नहीं कहा था।" पिता जी ने कहा____"वरना सचमुच अनर्थ हो जाता।" कहने के साथ ही पिता जी चाची से मुखातिब हुए____"अपने लिए और अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए हमारे भाई ने इतना बड़ा षडयंत्र रचा और उसे अंजाम भी दिया। ईश्वर जानता है कि हमने कभी भी अपने और अपने भाई के बच्चों में कोई भेदभाव नहीं किया है। इसके बावजूद हमारे भाई ने हमारे बारे में ऐसा सोचा और हमारे साथ इतना बड़ा छल किया। तुम दोनों को वो हवेली, धन संपत्ति और ये सारी ज़मीन जायदाद ही चाहिए थी ना तो ठीक है। हम कल ही ये सब तुम्हारे नाम करवा देंगे। इतना ही नहीं हम अपनी पत्नी, बेटे और उस अभागन बहू को ले कर कहीं और चले जाएंगे।"
"नहीं..।" मेनका चाची एकाएक रोते हुए चीख पड़ीं____"ऐसा मत कहिए जेठ जी। मुझे कुछ नहीं चाहिए। ये सब आपका है और आपका ही रहेगा। आपके भाई ने और मैंने बहुत बड़े पाप किए हैं। इसके लिए आप मुझे जो चाहे सज़ा दे दीजिए लेकिन कहीं और जाने की बात मत कीजिए।"
"तुम्हें पता है बहू।" पिता जी ने संजीदगी से कहा____"हमें कभी भी इस धन दौलत का कोई मोह अथवा लालच नहीं था। पिता जी के बाद जब हम दादा ठाकुर की गद्दी पर बैठे तब सिर्फ यही सोचा था कि कभी किसी के साथ ग़लत नहीं करेंगे। हमारे पिता जी के द्वारा जो कुछ तबाह हुआ था उस सबको संवारना ही हमारे जीवन का मूल मकसद था। यहां के लोग ही नहीं बल्कि दूर दूर तक के लोग जाने कैसे कैसे दुखों में डूबे हुए थे जिनका उद्धार करना ही हमारा मकसद था। पिता जी तो अय्याशियों में डूबे रहते थे। अपनी शान और अपनी शाख को बुलंदी पर पहुंचाने के लिए न जाने क्या क्या करते रहते थे जिसके चलते पुरखों द्वारा बनाई गई धन संपत्ति उनके द्वारा पानी की तरह बहाई जा रही थी। दादा ठाकुर की गद्दी पर बैठने के बाद जब हमने पहली बार ख़ज़ाने की तिज़ोरी देखी थी तो सन्न रह गए थे। इतने बड़े खानदान की इतनी बड़ी हवेली में कोई खज़ाना नहीं बचा था। अब तुम खुद सोचो कि उस इंसान की क्या हालत हुई होगी जो खुद खाली पेट था लेकिन दूसरों को भर पेट खाना खिलाने की क़सम खा चुका था। उस हालत में भी हम निराश अथवा हताश नहीं हुए बल्कि ये सोच के मुस्कुरा उठे थे कि शायद ईश्वर यही देखना चाहता है कि हम कैसे खाली पेट दूसरों का पेट भरते हैं? हमने मेहनत की, अपने छोटे भाई को भी यही सिखाया और उसे हमेशा प्रेरित किया। लोगों से मिले उन्हें समझाया बुझाया और भरोसा दिलाया कि हम सब कुछ ठीक कर देंगे। कल्पना करो बहू कि कैसे हमने ये सब कुछ किया होगा? वर्षों लग गए बिखरी हुई चीज़ों को सम्हालने में। लोगों की मानसिकता ऐसी थी कि लोग हमें देख कर अंदर छुप जाते थे, डर की वजह से। उन्हें लगता था कि बड़े दादा ठाकुर का बेटा है तो वो भी उनके जैसा ही अत्याचार करेगा उन पर। किसी को यकीन ही नहीं होता था कि हम उन्हें अपने सीने से लगाने आते हैं। ख़ैर संघर्ष करना लिखा था तो किया लेकिन कभी हार नहीं मानी। शुक्र था कि ईश्वर साथ था। परीक्षा तो ली उसने लेकिन आख़िर में सफलता भी दी। वक्त गुज़रा, लोगों के दुख दूर हुए, और वही लोग एक दिन हमें देवता की तरह पूजने लगे। हमने कभी नहीं चाहा था कि लोग हमें पूजें, ये उनकी अपनी सोच थी। हमारे प्रति उनकी आस्था थी इस लिए लोग हमें पूजने लगे थे। ख़ैर लोगों को खुश देख कर हम भी खुश थे लेकिन नहीं जानते थे कि एक दिन ऐसा भी वक्त आएगा जब अपनों के द्वारा हमारे हृदय पर इस तरह की बिजलियां गिरेंगी। समझ नहीं आता कि अपने जीवन में हमने कब ऐसा कोई गुनाह किया था जिसके चलते आज हमें ऐसे ऐसे दुख मिल रहे हैं।"
"ऐसा मत कहिए जेठ जी।" मेनका चाची दुखी भाव से बोलीं____"आप तो बहुत महान हैं। आपके जैसा कोई नहीं हो सकता। ये तो...ये तो हमारा दुर्भाग्य था जो धन दौलत के लालच में पड़ कर इतना बड़ा पाप कर बैठे।"
"तुमने सही कहा था बहू कि हम आख़िर में ऐसी मानसिकता में पहुंच जाएंगे कि हमारा मुकम्मल रूप से संतुलन बिगड़ जाएगा।" पिता जी ने आहत भाव से कहा____"यकीन मानों सच में अब हमारा मानसिक संतुलन बिगड़ चुका है। अब शायद ही कभी हमें होश आएगा। जी करता है ये ज़मीन फट जाए और हम रसातल तक उसमें समाते चले जाएं।"
पिता जी की बातें सुन कर चाची कुछ बोल ना सकीं बल्कि वहीं फूट फूट कर रो पड़ीं। दुख, तकलीफ़ से कहीं ज़्यादा आत्म ग्लानि की पीड़ा थी जिसमें अब वो झुलसती जा रहीं थी। अपनी मां की ये हालत देख कुसुम भी सिसक रही थी। मेरा तो दिलो दिमाग़ पहले से ही सुन्न पड़ा हुआ था।
"शेरा।" सहसा पिता जी ने पलट कर शेरा की तरफ देखा____"अपने सभी आदमियों को समझा दो कि वो लोग आज की इस घटना का ज़िक्र जीवन में कभी भी किसी से न करें।"
"जैसी आपकी आज्ञा मालिक।" शेरा ने अदब से सिर झुका कर कहा____"मैं अभी सबको इस बारे में समझा देता हूं।"
"रुक जाओ शेरा।" मेनका चाची ने शेरा को फ़ौरन ही आवाज़ दे कर कहा____"तुम्हें अपने आदमियों को ऐसा कहने की कोई ज़रूरत नहीं है। सफ़ेदपोश का सच सबको पता चलना चाहिए। सबको पता चलना चाहिए कि हमने एक देवता समान इंसान के साथ कितना बड़ा अपराध किया है, कितना बड़ा छल किया है।"
"ये आप क्या कह रही हैं चाची?" मैं एकदम से होश में आते हुए बोल पड़ा____"नहीं नहीं, आप ऐसा नहीं करेंगी।"
"इतना कुछ जानने के बाद भी तुम मुझे बचाना चाहते हो वैभव?" चाची ने दुखी भाव से कहा____"क्या इसके बाद भी तुम्हें मुझसे घृणा नहीं हो रही?"
"नहीं, बिल्कुल नहीं।" मैंने अपनी पीड़ा को सह कर पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"अपनी प्यारी चाची से कभी घृणा नहीं हो सकती मुझे। मैं मानता हूं कि जगताप चाचा ने और आपने जो किया है उससे बहुत तकलीफ़ हुई है मुझे लेकिन मैं ये भी जानता हूं कि दुनिया में ऐसा करने वाले सिर्फ आप ही बस नहीं हैं बल्कि न जाने कितने ही होंगे। आगे भी भविष्य में लोग अपनी खुशी और अपने भले के लिए ऐसा ही करेंगे। मैं बस ये चाहता हूं कि जो गुज़र गया उसे भूल जाइए और सबके साथ एक नई शुरुआत कीजिए।"
"इतने अच्छे मत बनो वैभव।" चाची ने क़रीब आ कर मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा____"आज की दुनिया में अच्छा बन के रहना बहुत घातक होता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण खुद जेठ जी हैं। वैसे भी हमने जो किया है उसके लिए सज़ा तो मिलनी ही चाहिए हमें। मैं खुद दिल से यही चाहती हूं कि देवता समान जिस इंसान के साथ हमने इतना बड़ा विश्वास घात और छल किया है उसके लिए मुझे ऐसी सज़ा मिले जिसे वर्षों तक लोग याद रखें। मेरा और तुम्हारे चाचा का जब भी कहीं ज़िक्र हो तो लोग हमारे नाम पर थूंकें।"
"नहीं नहीं चाची।" मैं बुरी तरह तड़प उठा____"ऐसी भयानक बातें मत कीजिए।"
"तुमने अपने अच्छे कर्म से मेरा हृदय परिवर्तन किया था वैभव।" चाची ने अधीरता से कहा____"वरना आज स्थिति ना जाने कैसी हो चुकी होती। उस दिन से अब तक यही सोचती रही हूं कि कैसी भयानक मानसिक बीमारी लग गई थी हम दोनों को। ऊपर वाले का शुक्र था कि समय रहते उसने मेरा हृदय परिवर्तन कर दिया वरना तुम्हारे चाचा के मरने के बाद भी मैं होश में न आती और जाने क्या क्या करती चली जाती। फिर भले ही उस सबके चलते किसी दिन मैं जेठ जी के आदमियों द्वारा जान से मार दी जाती।"
"जो नहीं हो सका उस सबको भूल जाइए।" मैंने अधीरता से कहा____"मैं बस ये चाहता हूं कि अब से आप सब कुछ भुला कर फिर से एक नई शुरुआत कीजिए।"
"अब ये संभव नहीं हो सकेगा बेटा।" चाची ने दुखी भाव से कहा____"हमारे द्वारा किए गए अपराध चाह कर भी मुझसे भुलाए नहीं जा सकेंगे और जब भुलाए ही नहीं जा सकेंगे तो सब कुछ बेहतर होने का तो सवाल ही नहीं उठता।"
"अच्छा एक बात बताइए।" मैंने कुछ सोचते हुए पूछा____"सफ़ेदपोश के रूप में आप और चाचा जी हमेशा हमारे बाग़ की तरफ ही क्यों जा कर ग़ायब हो जाते थे? आख़िर इतना लंबा रास्ता अपना कर ख़ुद को ख़तरे में क्यों डालते थे?"
"सबको उलझाए रखने के लिए।" चाची ने गंभीरता से कहा____"बाग़ में दाख़िल हो कर हम किसी न किसी पेड़ पर चढ़ जाते थे। इससे होता ये था कि हमारा पीछा करने वाले बुरी तरह चकरा जाते थे और आख़िर में वो इसी नतीजे पर पहुंचते थे कि सफ़ेदपोश किसी जादू की तरह ग़ायब हो गया है। ऐसा सोचने के बाद फिर वो वापस चले जाते थे। उनके जाने के बाद हम आराम से पेड़ से नीचे उतरते और फिर निकल जाते। बाग़ से सीधा साहूकारों के खेतों की तरफ से होते हुए सीधा हवेली पहुंचते थे। हवेली में हमारे कमरे की खिड़की के नीचे रस्सी लटकी हुई होती थी जिसके सहारे हम वापस अपने कमरे में पहुंच जाते थे। हम जानते थे कि देर सवेर बाग़ से हमारे ग़ायब होने का ये राज़ खुल जाएगा और फिर ये भी पता लगा लिया जाएगा कि बाग़ से हम सफ़ेदपोश के रूप में कहां जाते हैं। पता लगाते हुए आप लोग हमारी उस ऊंची मेढ़ पर पहुंचते जहां से साहूकारों की ज़मीनें शुरू होती थीं और कुछ दूरी पर उनके घर भी दिखते थे। ज़ाहिर है इतना सब देखते ही आप लोग यही समझते ही सफ़ेदपोश साहूकारों के घर का ही कोई व्यक्ति है। बस, आप लोगों के मन में यही बैठाए रखना चाहते थे हम ताकि आप लोगों का शक साहूकारों पर ही रहे और इसके अलावा और कुछ सोचें ही नहीं।"
"और मेरे दोनों दोस्त सुनील और चेतन को किस मकसद से अपना मोहरा बनाया था चाचा जी ने?" मैंने पूछा।
"सच कहूं तो उन्हें मोहरा नहीं बनाया था तुम्हारे चाचा जी ने।" मेनका चाची ने कहा____"बल्कि सिर्फ नाम के लिए उनका स्तेमाल करते थे।"
"ये क्या कह रही हैं आप?" मैं बुरी तरह चकरा गया____"सिर्फ नाम के लिए स्तेमाल करते थे? भला ऐसा करने का क्या मतलब था?"
"ताकि तुम और जेठ जी यही समझते रहें कि सफ़ेदपोश कोई बहुत ही बड़ा खेल खेल रहा है।" चाची ने कहा____"जिसमें उसने तुम्हारे दोस्तों को भी अपना मोहरा बना रखा है। आप लोग सफ़ेदपोश का असल मकसद जानने के लिए बुरी तरह उलझे रहते जबकि समझ में कभी कुछ न आता। तुम्हारे दोस्तों को भी पता नहीं था कि उन्हें सिर्फ नाम के लिए ही स्तेमाल कर रहा था सफ़ेदपोश। ख़ौफ के मारे वैसे ही उनका बुरा हाल रहता था जिसके चलते कुछ सोच ही नहीं पाते थे वो। अगर हमने उन दोनों को सच में मोहरा बनाया गया होता तो उनके द्वारा तुम्हारे चाचा ने कुछ तो ऐसा करवाया ही होता जो उनके बस से बाहर होता, जैसे जगन से करवाया...उसके अपने ही भाई की हत्या और फिर तांत्रिक की हत्या। सुनील और चेतन से हमने कभी ऐसा कुछ नहीं करवाया।"
मैं भौचक्का सा देखता रह गया चाची को। मनो मस्तिष्क में सांय सांय होने लगा था। सच ही तो कह रहीं थी वो। सुनील और चेतन के द्वारा ऐसा कुछ भी तो हुआ नज़र नहीं आया था हमें। इसका मतलब सच में वो दोनों सफ़ेदपोश के नाम मात्र के ही मोहरे थे।
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जब काफी देर तक मेनका लौट कर न आई तो सुगंधा देवी को ही नहीं बल्कि हर किसी को बड़ी हैरानी हुई। सबके चेहरों पर चिंता की लकीरें उभर आईं। मां के कहने पर कजरी फ़ौरन ही मेनका और कुसुम का पता लगाने के लिए उनके कमरों की तरफ दौड़ पड़ी। सबसे पहले वो कुसुम के कमरे में पहुंची और जब उसने कुसुम के कमरे में कुसुम और मेनका को न देखा तो वो मेनका के कमरे की तरफ भागी।
कजरी जब दौड़ते हुए मेनका के कमरे में पहुंची तो उसे वहां भी कोई नज़र ना आया। ये देख चकरा सी गई वो। उसे समझ न आया कि दोनों मां बेटी अगर अपने अपने कमरे में नहीं हैं तो कहां हैं? उसने वापस आ कर सुगंधा देवी को सब कुछ बता दिया जिसे सुन कर सबके मानों होश उड़ गए। अगले ही पल वो सब हवेली में मेनका और कुसुम को खोजने लगे। कुछ ही समय में उन सबने पूरी हवेली को छान मारा लेकिन दोनों उन्हें कहीं नज़र ना आईं। सबके सब थक हार कर वापस नीचे वाले बरामदे में आ गए।
सुगंधा देवी के चेहरे पर गहन चिंता के भाव थे और साथ ही किसी अनिष्ट की आशंका के चलते वो भयभीत भी दिखने लगीं थी। किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था कि दोनों मां बेटी अचानक से कहां गायब हो गई हैं?
"धीरज से काम लीजिए दीदी।" निर्मला क्योंकि सुगंधा देवी के मायके से थी और रिश्ते में सुगंधा देवी उसकी ननद भी लगती थीं इस लिए वो उन्हें दीदी ही कहती थी, बोली____"उन्हें कुछ नहीं होगा। ज़रूर वो हमें बिना बताए वहीं गई होंगी जहां ठाकुर साहब गए हुए हैं।"
"लेकिन वहां जाने की क्या ज़रूरत थी उन्हें?" सुगंधा देवी ने हताश भाव से कहा____"रात के वक्त हवेली से नहीं जाना चाहिए था उन्हें। वो दोनों ये कैसे भूल गईं कि हमारे हालत ख़राब हैं और ऐसे वक्त में किसी के साथ कुछ भी हो सकता है।"
"शायद वो इस लिए बिना बताए चली गईं हैं ताकि वो ठाकुर साहब से उस सफ़ेदपोश को आपके सामने लाने को कह सकें।" निर्मला ने कहा____"आपने उस समय कहा था ना कि काश! वो सफ़ेदपोश आपके सामने आ जाए ताकि आप भी उसे देख सकें और उससे पूछ सकें कि उसने ये सब क्यों किया है? आपकी बात सुन कर उन्हें लगा होगा कि ठाकुर साहब कहीं वहीं पर न उस सफ़ेदपोश को मार कर फेंक आएं इस लिए वो उसको यहां आपके सामने लाने के उद्देश्य से गईं हो सकती हैं।"
"हां लेकिन इसके लिए उसे कुसुम को अपने साथ ले जाने की क्या ज़रूरत थी?" सुगंधा देवी ने उसी हताशा भरे भाव से कहा____"अपने साथ साथ उसने अपनी बेटी को भी ख़तरे में डाल दिया। हे भगवान! दोनों की रक्षा करना।"
सुगंधा देवी अपनी देवरानी और उसकी बेटी के लिए बहुत ज़्यादा चिंतित और परेशान हो उठीं थी। निर्मला उन्हें धीरज देने की कोशिश में लगी हुई थी। उधर किशोरी लाल ख़ामोश था। उसके चेहरे पर गहन सोचो के भाव उभरे हुए थे।
रात आधे से ज़्यादा गुज़र गई थी। उनमें से किसी की भी आंखों में नींद का नामों निशान तक नहीं था। सबके सब बरामदे में ही बैठे थे और दादा ठाकुर के साथ साथ बाकी सबके आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। पूरी हवेली सन्नाटे में डूबी हुई थी।
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