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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,744
354
अध्याय - 135
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



"तो ऐसे पता चला तुझे और इसी लिए तूने मुझे बचाने के लिए सफ़ेदपोश बन कर अपनी बली देनी चाही?" मेनका चाची का गला भर आया, आंखों से आंसू छलक पड़े, बोलीं____"तुझे मुझ जैसी मां के लिए अपना बलिदान देने की कोई ज़रूरत नहीं थी मेरी बच्ची। मैंने और तेरे पिता ने जो किया है वो माफ़ी के लायक नहीं है।"

बड़ा गमगीन माहौल हो गया था। समझ नहीं आ रहा था कि किसको क्या कहें किंतु अभी भी बहुत कुछ ऐसा था जिसे जानना बाकी था। इतना तो समझ आ गया था कि ये सब अपने और अपने बच्चों के लिए किया था उन्होंने लेकिन ये कब शुरू हुआ और कैसे शुरू हुआ ये जानना बाकी था।



अब आगे....


हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि ये दिन भी देखना पड़ेगा। एक ऐसी कड़वी सच्चाई से रूबरू होना पड़ेगा जो हम सबको अंदर से तोड़ कर रख देगी। आज ऐसा लग रहा था कि वक्त अगर मरहम होता है तो वो बहुत बेरहम भी होता है। वक्त ये नहीं देखता कि जिस सच से वो सामने वाले को रूबरू कराने वाला है, सामने वाला उस सच को सहन कर भी पाएगा या नहीं? वक्त के सीने में कोई दिल नहीं होता। शायद यही वजह है कि उसे किसी के दुख सुख अथवा किसी की भावनाओं से कोई मतलब नहीं होता है।

"क़रीब साल भर पहले की बात है।" मेनका चाची ने पिता जी के पूछने पर बताना शुरू किया____"कुसुम के पिता जी कुंदनपुर यानि मेरे मायके और अपनी ससुराल गए हुए थे। मेरे मझले भैया से उनकी खूब पटती थी। उनकी आपस में दुनिया जहान की बहुत सी बातें होती थीं। जब वो कुछ दिनों बाद वापस यहां आए तो मुझे कुछ बदले हुए से नज़र आए। मेरे बहुत ज़ोर देने पर उन्होंने अपने अंदर की बात बताने से पहले मुझे हमारे बच्चों की क़सम दी और कहा कि वो मुझे जो कुछ बताने वाले हैं उसका ज़िक्र मैं हवेली में कभी किसी से न करूं, यहां तक कि अपने बच्चों से भी नहीं। उनके क़सम देने पर मैं बड़ा हैरान हुई और सोचने पर मजबूर हो गई कि आख़िर ऐसी कौन सी बात हो सकती है जिसके लिए उन्होंने बिना किसी भूमिका के सीधा मुझे मेरे बच्चों की क़सम ही दे दी? हालाकि वो अगर क़सम ना भी देते तो मैं उनकी कोई भी बात कभी किसी से ना कहती, क्योंकि एक पत्नी होने के नाते ये मेरा धर्म था कि मैं अपने पति की ऐसी किसी भी बात का ज़िक्र किसी से ना करूं जिसके लिए मेरे पति ने मुझे मना किया हो। ख़ैर, उन्होंने क़सम दी थी तो मैं समझ सकती थी कि कोई गंभीर बात ज़रूर है अन्यथा वो मुझे कभी हमारे बच्चों की क़सम न देते। मैंने जब क़सम खा ली तो उन्होंने मुझे बताया कि उनके मन में क्या है और वो हमारे व हमारे बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए क्या करना चाहते हैं? उन्होंने मुझे बताया कि इस बार कुंदनपुर में मेरे मझले भैया अवधराज से उनकी किस सिलसिले में बातें हुई है और उन्होंने उन्हें क्या सुझाव दिया है। मेरे भैया से उनकी जो बातें हुईं थी वो यही थीं कि उन्हें अपने बड़े भाई के आधीन हो कर अपना जीवन नहीं जीना चाहिए, क्योंकि ऐसे में आगे चल कर उनके बच्चों को भी आधीनता के साथ ही जीवन जीना पड़ेगा। इस सबके चलते उनकी तरह ही उनके अपने बच्चों का भी कोई नाम नहीं होगा। जिस तरह आज दादा ठाकुर का नाम और उनकी शोहरत हर तरफ फैली हुई है उसी तरह उनके बेटों का भी नाम फैलेगा....और वैभव का तो फैलने भी लगा था। वैभव तो वैसे भी अपने दादा जी यानि बड़े दादा ठाकुर पर गया है जिसके चलते दूर दूर तक उसके नाम और उसके ख़ौफ का साम्राज्य फैलता जा रहा है। भैया ने उन्हें समझाया कि वो दिन दूर नहीं जब वैभव दादा ठाकुर की गद्दी पर बैठ जाएगा और फिर अपने दादा जी की तरह ही सब पर हुकूमत करेगा। जब ऐसा हो जाएगा तो वो और उनके बच्चे भी उनकी तरह जीवन भर वैभव की सेवा करते रहेंगे। वो हमेशा वैभव के हुकुम पर ही कोई कार्य कर सकेंगे। ऐसे में ना तो उनकी अपनी कोई इच्छाएं रह जाएंगी और ना ही गुलाम बन जाने से कभी उनका नाम हो सकेगा। इस लिए अगर वो चाहते हैं कि उनके बच्चे उनकी तरह किसी के हुकुम के गुलाम न बनें तो उन्हें वैभव को दादा ठाकुर बनने से रोकना होगा। मेरे भैया ने इसके दो रास्ते बताए उन्हें। पहला ये कि वो दादा ठाकुर से अपना हिस्सा मांग लें और अपने परिवार के साथ उनसे अलग रहें, ताकि उन्हें या उनके बच्चों को कभी किसी की सेवा अथवा गुलामी न करनी पड़े। दूसरा ये कि पूरी हवेली तथा पूरी ज़मीन जायदाद पर अपना कब्ज़ा जमा लें। कहने का मतलब ये कि मेरे भैया ने कुसुम के पिता जी का दो चार दिनों में इतना दिमाग़ घुमा दिया था कि वो सच में ऐसा ही करने पर उतारू हो गए थे और पूरा निश्चय कर लिया था कि वो और उनके बच्चे कभी किसी के हुकुम का गुलाम नहीं बनेंगे। उसके बाद उन्होंने कई बार आपसे अपना हक़ मांगने का सोचा किंतु हर बार उनकी हिम्मत जवाब दे जाती। इतना तो वो जानते थे कि अपना हक़ मांगने पर आप उन्हें उनका हक़ देने से बिल्कुल भी इंकार नहीं करेंगे लेकिन आपसे हक़ मांगने की उनमें हिम्मत ही नहीं होती थी। रात में जब वो कमरे में आते तो अक्सर हताश हो कर मुझसे यही कहते कि भैया से अपना हिस्सा मांगने की हिम्मत ही नहीं होती। हर बार ज़हन में बस यही ख़याल आ जाता है कि आज तक हमारे खानदान के इतिहास में ऐसा कभी भी नहीं हुआ तो फिर वो कैसे इस तरह का काम कर सकते हैं? ऐसे ही दिन गुज़रने लगे। वो हर रोज़ हक़ मांगने का निश्चय करते मगर ऐन वक्त पर उनकी हिम्मत जवाब दे जाती। अपनी इस हालत से वो बुरी तरह हतोत्साहित हो उठे थे। दिन भर उनके मन में अपने लिए गुस्सा और एक चिड़चिड़ापन भरा रहता था। एक दिन अपनी इसी समस्या से परेशान हो कर वो कुंदनपुर मेरे भैया से मिलने पहुंच गए। दूसरे दिन जब वो वापस आए तो ऐसा लगा जैसे उनकी सारी समस्या हल हो गई है। मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्होंने दूसरा रास्ता चुन लिया है। यानि हवेली और पूरी धन संपत्ति पर कब्ज़ा कर लेने का रास्ता। इसके लिए उन्होंने जो कुछ करने की बात मुझे बताई उसे सुन कर मेरी रूह थर्रा गई। इतने समय में मेरे मन में भी उनकी तरह ये बात बैठ गई थी कि अपने और अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए ये सब करना ही उचित है। यही वजह थी कि उस वक्त जब उन्होंने रूह को थर्रा देने वाली बातें बताई तो एक बार भी मेरे मन में ये ख़याल नहीं आया कि ऐसा करना सरासर ग़लत ही नहीं बल्कि हद दर्जे का गुनाह भी है।"

"इंसान जब सिर्फ अपने हितों की बातें सोचने लगता है तो फिर उसे दूसरे की किसी भी बात से कोई मतलब नहीं रह जाता।" एक लंबी सांस लेने के बाद मेनका चाची ने पुनः बोलना शुरू किया____"उसे सिर्फ अपना भला और सिर्फ अपना सुख ही नज़र आता है। अपने भले और सुख के लिए वो इंसान किसी भी हद तक गुज़र जाता है। फिर भले ही हद पार करते हुए उसे कितने ही बड़े अपराध क्यों न करने पड़ें। जब ये निश्चित हो गया कि उन्हें हवेली और पूरी धन संपत्ति पर कब्ज़ा करने का रास्ता ही अपनाना है तो फिर ये सोच विचार भी शुरू हो गया कि ये सब कैसे हो सकेगा? इतना तो हम भी जानते थे कि इतना कुछ हासिल कर लेना बिल्कुल भी आसान नहीं है। एक तरफ उनके बड़े भाई साहब यानि दादा ठाकुर थे तो दूसरी तरफ उनका भतीजा वैभव जो दादा ठाकुर से भी कहीं ज़्यादा पहुंची हुई चीज़ था। छोटी सी उमर में ही उसके ऐसे ऐसे लोगों से संबंध थे जिनके बारे में आम इंसान कल्पना भी नहीं कर सकता था। ख़ैर हमारे लिए सबसे ज़्यादा ध्यान रखने वाली बात यही थी कि हमारे मंसूबों के बारे में ग़लती से भी हवेली में रहने वालों को पता न चल सके और सिर्फ हवेली वालों को ही क्यों बल्कि किसी को भी पता नहीं चलना चाहिए। क्योंकि आपके चाहने वाले हर क़दम पर मौजूद थे जो ऐसी किसी भी बात की भनक लगते ही इस बात की ख़बर आप तक पहुंचा देते और फिर एक ही पल में हमारा खेल ख़त्म।"

"तो फिर तुम दोनों ने ये सब शुरू कैसे किया?" पिता जी पूछे बग़ैर न रह सके।

"गांव के साहूकार लोग हमें अपना दुश्मन समझते थे।" मेनका चाची ने बताना शुरू किया____"उनका तो जीवन में जैसे एक ही ख़्वाब था....हमारा नामो निशान मिटा देना। कुसुम के पिता जी ने साहूकारों की इसी मानसिकता को आधार बनाया और उनकी दुश्मनी को अपनी कामयाबी का माध्यम बनाया। ख़ैर, खेल शुरू हुआ किन्तु ज़ाहिर सी बात है कि खुल कर वो कुछ भी नहीं कर सकते थे इस लिए कुछ करने के लिए उन्हें एक ऐसा व्यक्ति बनना पड़ा जो हर किसी के लिए रहस्य ही बना रहे। यानि एक रहस्यमय व्यक्ति, जिसे बाद में आप सबने सफ़ेदपोश का नाम दिया। ख़ैर बहुत सोच विचार करने के बाद ही खेल शुरू किया गया। सबसे पहले वो शहर गए और वहां से दो ऐसे लोगों को अपने लिए काम करने के लिए चुना जो हर तरह के काम में माहिर थे। उन दो लोगों से वो सफ़ेदपोश के रूप में ही मिले। खुद की पहचान छुपाए रखना सबसे महत्वपूर्ण था क्योंकि अगर पहचान ही खुल गई तो इतने बड़े खेल में मात खाने और पकड़े जाने की संभावना बहुत ही ज़्यादा हो जानी थी। उन दो लोगों का शुरू में यही काम था कि वो वैभव के बारे में हर चीज़ पता करें। इसी बीच एक घटना ये घटी कि आपने वैभव को गांव से निष्कासित कर दिया जिसके चलते ये गांव से दूर हमारी बंज़र ज़मीन पर झोपड़ा बना कर रहने लगा। उन दो नक़ाबपोशों से पता चला कि वहां पर इसकी मदद दूसरे गांव का मुरारी नाम का एक किसान करने लगा है। उस मुरारी के परिवार के बारे में पता किया तो पता चला कि उसका भाई भी वैसी ही मानसिकता का था जैसे कि हम थे। यानि अपने ही बड़े भाई की धन संपत्ति और ज़मीन जायदाद को हड़पना लेकिन ऐसा करना उसके अकेले बस का नहीं था इस लिए सफ़ेदपोश के रूप में कुसुम के पिता जी ने जगन को अपने नक़ाबपोशों के द्वारा अपने पास बुलवाया और फिर उससे एक सौदा किया। सौदा यही था कि वो वैभव को बदनाम करने के लिए जो कुछ कर सकता है कर डाले, बदले में उसे इतना पैसा दे दिया जाएगा जिससे कि वो अपना सारा कर्ज़ चुका सकता है। जगन राज़ी तो हो गया लेकिन हिचकिचाया भी। असल में उसे सिर्फ कर्ज़ से ही मुक्ति नहीं चाहिए थी बल्कि अपनी गिरवी रखी हुई ज़मीनें भी वापस चाहिए थी। तब उससे कहा गया कि उसे उसकी ज़मीनों के साथ साथ मुरारी की ज़मीनें भी मिल जाएंगी लेकिन इसके लिए उसे अपने ही भाई की हत्या करनी होगी और उसकी हत्या में वैभव को फंसाना होगा। जगन ऐसी ख़तरनाक बात सुन कर अंदर तक कांप गया था। काफी देर तक उसके मुख से बोल ना फूटा था लेकिन फिर जाने कैसे मान गया? शायद अपने भाई की ज़मीनों का कुछ ज़्यादा ही लालच था उसे। ख़ैर उसके बाद तो आपको पता ही है कि कैसे उसने अपने भाई की हत्या की और फिर कैसे उसने वैभव को उसकी हत्या में फंसाया?"

"वैभव को उसकी हत्या में फंसाने का और उसे बदनाम करने के पीछे क्या उद्देश्य था जगताप का?" पिता जी ने पूछा____"आख़िर इससे हासिल क्या होता उसे?"

"शायद आपने अभी तक ठीक से किसी इंसान के हद से ज़्यादा बदनाम होने पर उसके परिणाम का अंदाज़ा नहीं लगाया है जेठ जी।" मेनका चाची ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा____"बदनाम होने वाला अगर वैभव हो तो सोचिए उससे क्या होता? क्या आप एक ऐसे इंसान को दादा ठाकुर की गद्दी सौंपते जो ज़माने भर में हर तरह के गंदे कामों के लिए बदनाम हो? एक पल के लिए अगर ये मान भी लें कि आप इसके बावजूद उसे दादा ठाकुर की गद्दी सौंपने का सोच लेते तो क्या लोग वैभव को वैसे ही स्वीकार करते जैसा आपको कर रखे थे? मेरा ख़याल है कि हर्गिज़ नहीं। आप तो ऐसे इंसान हैं जिन्हें लोग देवता की तरह मानते हैं और पूजते हैं। ऐसे में गांव के लोग आपसे क्या ये उम्मीद नहीं करेंगे कि आपके बाद आपकी गद्दी पर आपके जैसा ही कोई धर्मात्मा व्यक्ति बैठे जो लोगों का आपकी ही तरह भला करे? आप हमेशा दूसरों के सुख दुख का ख़याल रखने वाले इंसान हैं, तो क्या आप खुद वैभव जैसे बदनाम लड़के को लोगों का मसीहा बना देते? अब शायद आप समझ गए होंगे कि वैभव को बदनाम करने के पीछे हमारा क्या उद्देश्य था।"

"इसका तो ये भी मतलब हुआ कि तुम इसे जान से नहीं मारना चाहते थे।" पिता जी ने कहा____"अगर ऐसा था तो फिर अपने दोनों नक़ाबपोशों के द्वारा जगताप ने इस पर जान लेवा हमला क्यों करवाया था?"

"ऐसा मैंने कब कहा कि हम वैभव को जान से नहीं मारना चाहते थे?" चाची ने कहा____"आप ग़लत सोच रहे हैं जेठ जी। योजना के अनुसार पहले वैभव को हद से ज़्यादा बदनाम करना था ताकि लोगों के मन में उसके प्रति कोई सहानुभूति बाकी न रहे। आगे चल कर अगर उसकी जान भी चली जाए तो लोग उसके लिए ज़्यादा दुखी न हों। और ऐसा तो तभी होता है ना जब लोगों के अंदर ऐसे व्यक्ति के प्रति कोई लगाव अथवा कोई सहानुभूति ही न रहे। हमारी योजना यही थी कि पहले उसे बदनाम करना है और फिर उसे जान से मार देना है।"

मैं मेनका चाची की बातें सुन तो रहा था किंतु ये सोच कर दुखी भी हो रहा था कि जिन चाचा चाची को मैं इतना मानता था, इतना प्यार करता था वो असल में मुझसे कितना नफ़रत करते थे। मेरे प्रति कैसी सोच रखे हुए थे वो।

"अभिनव पर तंत्र मंत्र करवाने के पीछे क्या मकसद था तुम्हारा?" उधर पिता जी ने चाची से पूछा____"अगर तुम्हारी मंशा उसकी भी जान लेना ही थी तो उसे इस तरह तंत्र मंत्र द्वारा मारने की क्या ज़रूरत थी?"

"आपका मानसिक संतुलन भी तो बिगाड़ना था हमें।" मेनका चाची ने कहा____"और आपके साथ साथ दीदी व रागिनी बहू का भी। अभिनव पर तंत्र मंत्र करवाया और फिर कुल गुरु को धमका कर उनसे अभिनव के बारे में भविष्यवाणी करवाई। मकसद यही था कि आपको ऐसी हौलनाक बात पता तो चले लेकिन आप अपने बेटे को बचाने में खुद को असमर्थ समझें।"

"ऐसा करने से क्या हासिल होता तुम्हें?" पिता जी ने पूछा।

"सोचिए जेठ जी।" मेनका चाची ने अजीब भाव से कहा____"ज़रा कल्पना कीजिए अपनी उस बेबसी की जिसमें आप सब कुछ जानते हुए चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे होते। आपके जैसा महान व्यक्ति जिसके पास इतनी दौलत है और इतनी ताकत है इसके बावजूद जब आप अपने बेटे की जान नहीं बचा पाते तो क्या दशा हो जाती आपकी? हालाकि तंत्र मंत्र ऐसी चीज़ है जिसका वक्त रहते अगर उपचार किया जाए तो प्राणी यकीनन ठीक हो जाता है और उसके प्राण भी बच जाते हैं लेकिन आपके जैसा व्यक्ति जो कुल गुरु की भविष्यवाणी को ही अंतिम सत्य मान लेता हो वो भला तंत्र मंत्र का इलाज़ कराने का कैसे सोच सकता था? ज़ाहिर है ऐसी सूरत में आपका अपने बेटे से हाथ धो लेना निश्चित था। उसके बाद आप खुद सोचिए कि क्या आप इस तरह से अपने बेटे के गुज़र जाने पर खुद को सम्हाल पाते? मेरा ख़याल है बिल्कुल भी नहीं। यही सब सोच कर तंत्र मंत्र जैसा तरीका अपनाया था अभिनव को जान से मारने के लिए। वो तो वैभव था जिसने अपनी सूझ बूझ और ज़िद से अपने भाई का इलाज़ करवाने का सोच लिया था। उसके बाद क्या हुआ आप भी जानते हैं।"

"और फिर जगन के हाथों तुमने उस तांत्रिक को मरवा दिया जिसने अभिनव पर तंत्र मंत्र का प्रभाव डाला था, है ना?" पिता जी ने पूछा।

"उसे मज़बूरी में मरवाना ही पड़ा।" चाची ने गहरी सांस ली____"वैभव के चलते जब अभिनव का उपचार शुरू हुआ तो हम समझ गए कि देर सवेर आप उस व्यक्ति का भी पता लगाने का सोचेंगे जिसने अभिनव पर तंत्र मंत्र किया था। अब इससे पहले कि आप उस तांत्रिक के पास पहुंचते हमने जगन के हाथों उसे मरवा दिया। आख़िर हम ये कैसे चाह सकते थे कि तांत्रिक के द्वारा आपको जगन के बारे में पता चल जाए और फिर उसके द्वारा आपको ये पता चले कि ये सब किसी सफ़ेदपोश के द्वारा करवाया गया है। शुरू से ही आपका शक साहूकारों पर था और हम तो चाहते ही यही थे कि आप साहूकारों पर ही अटके रहें।"

"कमाल की बात है।" पिता जी ने गहरी सांस ले कर कहा____"हमारा भाई सफ़ेदपोश के रूप में ये सब कुछ कर रहा था और हमारे सामने हमेशा यही ज़ाहिर करता रहा कि वो भी हमारे जैसे ही मानसिक अवस्था का शिकार है। ख़ैर, उसके बाद क्या करना चाहते थे तुम दोनों?"

"हमारी योजना बेहद पुख़्ता थी।" चाची ने फिर से बताना शुरू किया____"हम जानते थे कि अभिनव और वैभव के न रहने से आप, दीदी और रागिनी बहू हद से ज़्यादा टूट जाएंगे और यकीनन दुनिया से मोह भंग हो जाएगा आप सबका। उस सूरत में बहुत मुमकिन था कि आप दादा ठाकुर के रूप में अपना काम काज करना भी बंद कर देते। ज़ाहिर है ऐसे में आपका सारा काम काज कुसुम के पिता जी ही सम्हालते। उसके बाद ऐसा भी हो सकता था कि आप अपनी ऐसी मानसिक अवस्था के चलते एक दिन आधिकारिक तौर पर उन्हें (जगताप) ही दादा ठाकुर की गद्दी सौंप देते। हालाकि हमें ये भी मंज़ूर नहीं था क्योंकि हम तो यही चाहते थे कि हवेली में सिर्फ और सिर्फ हम और हमारे बच्चे ही रहें। एक तरह से ये समझिए कि हम आपको कहीं पर भी मौजूद होना नहीं देखना चाहते थे। ख़ैर, क्योंकि ऐसा हो ही नहीं सका इस लिए वैभव और अभिनव को मारने के लिए फिर से एक दूसरी योजना बनानी पड़ी। आपको याद होगा कि उस समय वैभव रागिनी बहू को ले कर उसके मायके चंदनपुर गया हुआ था। हमने योजना बनाई कि अपने कुछ विश्वास पात्र आदमियों को चंदनपुर भेज कर वहीं पर वैभव को मरवा देंगे। उसके बाद अभिनव को भी ऐसे ही किसी प्रकार से मरवा देंगे। इस योजना को जैसे ही उन्होंने (जगताप) अमल करने का इरादा किया तो पता चला कि ऐसी ही योजना साहूकार लोग भी बनाए हुए हैं।"

"क्या तुम लोगों को पहले से उनके मंसूबों के बारे में कुछ नहीं पता था?" पिता जी ने सहसा बीच में ही चाची की बात को काटते हुए पूछा।

"पहले नहीं पता था।" चाची ने बताया____"किंतु हां ये आभास ज़रूर हो रहा था कि हमारे अलावा भी कहीं कोई कुछ कर रहा है।"

"ऐसा आभास कैसे हुआ तुम्हें?" पिता जी ने पूछा____"और फिर तुमने क्या किया उसके लिए?"

"रूपचंद्र की वजह से पता चला था।" चाची ने कहा____"सफ़ेदपोश के रूप में एक दिन कुसुम के पिता जी जगन से मिले। जगन ने बताया कि आज कल रूपचंद्र कुछ ज़्यादा ही वैभव पर नज़र रख रहा है। इन्हें भी पहले से पता था कि रूपचंद्र वैभव पर नज़र रखता है किंतु ये इस बात को ज़्यादा तवज्जो इस लिए नहीं देते थे क्योंकि जानते थे कि रूपचंद्र वैभव को पसंद नहीं करता है। कारण यही था कि रूपचंद्र की बहन से वैभव का संबंध था और इस बात से रूपचंद्र वैभव से बहुत घृणा करता था। ख़ैर, एक दिन उन्होंने (जगताप) चंद्रकांत को मणि शंकर से बात चीत करते देख लिया। चंद्रकांत को मणि शंकर से मिलते देख ये चौंक गए थे क्योंकि हम सब जानते थे कि चंद्रकांत का साहूकारों से छत्तीस का आंकड़ा था। दोनों का मिलना गहरा संदेह पैदा कर गया था इस लिए उन्होंने दोनों पर नज़र रखी। जल्दी ही पता चल गया कि मामला क्या है? एक रात कुसुम के पिता जी चंद्रकांत पर नज़र रखे हुए थे तो उन्होंने देखा कि उसका बेटा रघुवीर रात के अंधेरे में चोरी छुपे कहीं बढ़ा चला जा रहा है। जब उन्होंने उसका पीछा किया तो देखा कि वो साहूकारों के बगीचे में जा पहुंचा है। उन्हें ये देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि रघुवीर रात के वक्त साहूकारों के बगीचे में भला क्या करने आया होगा? कुछ ही समय में उन्होंने देखा कि दो तीन लोग अंधेरे में उसके पास पहुंच गए और आपस में बातें करने लगे। (ये वही दृश्य था जहां पर रूपा ने भी बगीचे में बातें सुनी थी) थोड़ा पास जा कर जब उन्होंने उनकी बातें सुनी तो उनके पैरों तले से ज़मीन ग़ायब हो गई। तभी उसी वक्त किसी की आहट के चलते उन्हें वहां से फ़ौरन ही चले आना पड़ा किंतु जितना उन्होंने सुना था उससे ये पता चल गया था कि साहूकार भी वैभव को जान से मारने के लिए मरे जा रहे हैं। इसके लिए उन्होंने भी वही योजना बनाई है जो कुसुम के पिता जी ने बनाई थी। रात में उन्होंने मुझे भी इस बारे में सब कुछ बताया। हमने फ़ैसला किया कि जब हमारा काम साहूकार लोग ही करने वाले हैं तो हमें कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं है। बस यही सोच कर हम बस वक्त के गुज़रने का इंतज़ार करने लगे।"

"अगर जगताप को उस शाम उन लोगों की बातों से ये सब पता चल ही गया था।" पिता जी ने पूछा____"तो ये भी तो पता चल ही गया रहा होगा कि साहूकार लोग चंद्रकांत से मिले हुए हैं और वो लोग सिर्फ वैभव को ही नहीं बल्कि उसके साथ साथ अभिनव और जगताप को भी जान से मार देना चाहते थे।"

"यही तो दुर्भाग्य की बात हुई थी।" मेनका चाची ने कहा____"कुसुम के पिता जी उन लोगों की पूरी बात सुन ही नहीं पाए थे। किसी की आहट के चलते उन्हें फ़ौरन ही वहां से वापस आना पड़ गया था। इस वजह से उन्हें ये पता ही नहीं चल सका था कि साहूकारों का पूरा षड्यंत्र क्या था? हालाकि उनके लिए भी हमने बहुत कुछ सोच रखा था। वैभव की मौत के बाद वो (जगताप) आपके सामने साहूकारों पर ही सारा आरोप लगाते और आपको उनका वो आरोप सच ही लगता। क्योंकि बेटे की मौत के बाद आप ऐसी मानसिक स्थिति में ही नहीं रहते कि कुछ और सोच सकें, जैसा कि बाद में आप सच में थे भी नहीं।"

"चलो यहां तक तो समझ आ गया।" पिता जी ने कहा____"अब ये बताओ कि अगली सुबह जगताप अचानक से चंदनपुर जाने की ज़िद क्यों करने लगा था? क्या ये भी योजना का ही हिस्सा था?"

"वैसे तो इसकी दो ही वजहें थी और उनमें से एक थी कुसुम के पिता जी का अपनी आंखों से वहां का मंज़र देखना और दूसरी आपको ये दिखाना कि उन्हें अपने भतीजे की कितनी फ़िक्र है।" चाची ने कहा____"किंतु अब सोचती हूं तो यही लगता है कि इसकी एक तीसरी वजह ये भी थी कि उस दिन सुबह उनका दुर्भाग्य उनसे चंदनपुर जाने की ज़िद करवा रहा था।"

"ऐसा भी तो हो सकता है कि वो अभिनव की वजह से चंदनपुर जाने पर ज़ोर दे रहा था।" पिता जी ने मानों संभावना ज़ाहिर की____"आख़िर मारना तो वो अभिनव को भी चाहता था। सुबह जब उसने देखा कि अभिनव अपने छोटे भाई के लिए बहुत ज़्यादा फिक्रमंद हो गया है और छोटे भाई की सुरक्षा के लिए चंदनपुर जाने की बात कह रहा है तो उसने भी मौके का फ़ायदा उठाना चाहा होगा। ये कह कर कि वैभव उसका भतीजा है और उसके रहते कोई उस पर खरोंच भी नहीं लगा सकता। हमें अच्छी तरह याद है कि उस दिन सुबह वो इस सबके बारे में जान कर हमें भी उल्टा सीधा बोलने लगा था। मकसद यही हो सकता था कि हम उसे चंदनपुर जाने की फ़ौरन इजाज़त दे दें। उसने सोचा होगा कि अभिनव को ले कर जाएगा और रास्ते में कोई अच्छा सा मौका देख कर उसे मार देगा।"

"इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकती।" मेनका चाची ने कहा____"क्योंकि उस वक्त वो मुझसे मिले ही नहीं थे। आपकी इजाज़त मिलते ही वो अभिनव और कुछ आदमियों को ले कर चले गए थे। काश! उन्हें पता होता कि हवेली से जाने के बाद उनकी और उनके भतीजे की लाशें ही वापस आएंगी।"

"ये काश ही तो नहीं होता बहू।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"बल्कि वही होता है जो नियति ने लिखा होता है। जगताप की बुरी नीयत की वजह से उस दिन हमने उसे तो खोया ही लेकिन उसके साथ ही हमने अपने निर्दोष बेटे को भी खो दिया। तुम्हें तो तुम्हारे और तुम्हारे पति के कर्मों की वजह से विधवा हो जाना पड़ा लेकिन ज़रा ये बताओ कि रागिनी बहू ने तो कभी किसी के साथ बुरा नहीं किया था, फिर क्यों उसे इतनी छोटी सी उमर में विधवा हो जाना पड़ा? कहना तो नहीं चाहते लेकिन ये सच है कि तुम दोनों प्राणियों से कहीं ज़्यादा बेहतर और महान सोच वाली तुम्हारी बेटी निकली। इसने ये जानते हुए भी कि इसकी मां ने कितना बड़ा अपराध किया है अपनी मां के जीवन को सलामत रखने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे देना सहज ही चुन लिया। इस मासूम को अपने माता पिता के बारे में आज ये सब जान कर कितनी पीड़ा हो रही होगी क्या तुम्हें इसका एहसास है?"

पिता जी की इन बातों से कमरे में सन्नाटा छा गया लेकिन ये सन्नाटा कुछ ही पलों का मेहमान रहा। अगले ही पल दोनों मां बेटी के सिसक सिसक कर रोने की आवाज़ें गूंजने लगीं। मैं तो जाने कब से जड़ सा, असहाय सा एक कोने में बैठा हुआ था। दिलो दिमाग़ में अभी भी धमाके हो रहे थे। दिमाग़ सुन्न पड़ा हुआ था।




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TheBlackBlood

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अध्याय - 136
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"दरोगा धनंजय का क्या मामला था?" कुछ देर बाद पिता जी ने चाची से पूछा_____"हमारा मतलब है कि उसे किस मकसद के तहत जगताप ने अपना मोहरा बनाया था?"

"वो हमारे लिए ख़तरा बन रहा था।" चाची ने खुद को सम्हालते हुए कहा____"मुरारी की हत्या के बाद जब जगन ने उसकी हत्या में वैभव को फंसाया था तो वो मामले की तहक़ीकात करने लगा था। यूं तो इससे हमें कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि हम तो चाहते ही यही थे कि वैभव मुरारी की हत्या में फंसने के बाद जेल चला जाए और उसके माथे पर जेल जाने का भी बदनामी रूपी कलंक लग जाए किंतु तभी हमें पता चला कि दरोगा स्वाभाविक रूप से मामले की तहक़ीकात नहीं कर रहा है बल्कि आपके कहने पर कर रहा है। यानि आपने गुप्त रूप से उसको इस मामले के बारे में पता करने के लिए नियुक कर दिया था। हम समझ गए कि इससे हमारे लिए भारी संकट पैदा हो सकता है। मतलब कि वो अपनी तहक़ीकात से असलियत का पता तो लगा ही लेता किंतु संभव था कि वो हम तक भी पहुंच जाता। अगर ऐसा होता तो ज़ाहिर है कि हम बेनक़ाब हो जाते जोकि हम किसी भी कीमत पर नहीं चाहते थे। इस लिए उसका पूरी तरह से संतुलन बिगाड़ने के लिए हमने उसको अपने जाल में फंसाया। वो पुलिस वाला तो था ही किंतु इसके साथ ही उसे आपकी सर परस्ती भी प्राप्त हो गई थी जिसके तहत उसे किसी का भय ही नहीं था। इस लिए उसके तेवर को ठंडा करने के लिए हमने सबसे पहले उसकी मां का अपहरण करवाया। हम जानते थे कि वो अपनी मां से बहुत लगाव रखता है और जब उसकी मां पर ही कोई संगीन बात आ जाएगी तो वो फिर वही करेगा जो करने को हम कहेंगे।"

"तो क्या करवाना चाहते थे उससे?" पिता जी पूछे बिना न रह सके____"हमारे द्वारा पकड़े जाने पर उसने हमें जो कुछ बताया था वो निहायत ही बेतुका था। आख़िर उसके द्वारा ऐसा करवाने का क्या मतलब था जगताप का?"

"पहला तो यही कि उसके द्वारा इस तरह की बयानबाज़ी से आपको बुरी तरह उलझा देना।" चाची ने कहा____"और दूसरी असल वजह थी उसको अपने रास्ते से हमेशा के लिए हटा देना। पहले तो हमने उसे उसकी मां को जान से मार देने की कोरी धमकी ही दी थी। हमें लगा था कि इससे डर कर वो मामले की तहक़ीकात करना छोड़ वापस शहर लौट जाएगा किंतु जब वो धमकी देने पर भी न माना तो हमें धमकी को सच का रूप देना पड़ा। उसे क्योंकि आपकी सर परस्ती प्राप्त थी इस लिए वो धमकियों से डर नहीं रहा था किंतु जब सच में ही उसकी मां मर गई तो उसके होश ठिकाने पर आ गए। इतना ही नहीं आप भी उसकी मौत से हिल गए थे। यही वजह थी कि आपने भी उसे मामले को छोड़ देने को कहा और उसे वापस चले जाने को भी। अपनी मां की मौत के बाद तो वो वैसे भी अब कुछ करने वाला नहीं था क्योंकि मां के बाद वो अपनी उस छोटी बहन को नहीं खोना चाहता था जिसका उसके सिवा दूसरा कोई सहारा ही नहीं था। बहरहाल, उसके चले जाने के बाद हम निश्चिंत हो गए थे।"

"बात कुछ समझ में नहीं आई।" पिता जी ने उलझन पूर्ण भाव से कहा____"अगर जगताप का इरादा उस दरोगा को अपने रास्ते से हटा देना ही था तो इसके लिए उसे पहले ही वो रास्ता चुन लेना था जिसे उसने आख़िर में उसकी मां की हत्या कर देने के रूप में चुना था। बेमतलब उसको अपने जाल में फांस कर इतना झमेला फ़ैलाने की क्या ज़रूरत थी?"

"ऐसा झमेला बेवजह नहीं फैलाया गया था जेठ जी बल्कि ऐसा करने के पीछे भी एक ख़ास वजह थी।" चाची ने कहा____"और वो वजह थी आपको सही दिशा से भटकाए रखना और साथ ही आपके दिमाग़ को उलझाए रखना। शुरू में ही हमने सोच लिया था कि आख़िर में जो कुछ भी हमारे द्वारा होगा उसका सारा इल्ज़ाम हमें साहूकारों पर ही थोपना है। आपके साथ साथ हर कोई यही समझता कि जो कुछ भी हुआ है उसको अंजाम देने वाले साहूकार ही हैं। सब जानते थे कि साहूकार हमें अपना दुश्मन समझते हैं और उनकी एक ही ख़्वाईश है, यानि हमें मिट्टी में मिला देना। खैर, तो जैसा कि मैंने कहा हमारा ऐसा करने का यही मकसद था....मतलब आपको सही दिशा से भटकाए रखना और उलझाए रखना। याद कीजिए, जब भी बैठक में इस मामले की चर्चा होती थी तो अंततः यही निष्कर्ष निकलता था कि ये सब करने वाले साहूकार ही हैं। अब उस समय क्योंकि आप में से किसी के भी पास साहूकारों के खिलाफ़ कोई प्रमाण नहीं होता था इस लिए आप खुल कर उन पर कोई कार्यवाही नहीं करते थे और यही हमारे लिए फ़ायदेमंद होता था। यानि आप हमेशा साहूकारों पर ही अटके रहते थे और किसी दूसरे की तरफ आपका ध्यान ही नहीं जाता था। वैसे आपके छोटे भाई पर शक ज़रूर किया जाता था किंतु आप ख़ुद इस बात का यकीन नहीं करते थे कि आपका छोटा भाई ऐसा कुछ सोच भी सकता है, करने की तो बहुत दूर की बात है।"

"चलो ये तो समझ आ गया।" पिता जी ने गहरी सांस ली____"किंतु ये भी तो सच है कि साहूकार लोग भी हमारे खिलाफ़ षड्यंत्र रच रहे थे तो उनके बारे में जगताप को कैसे पता नहीं चला? तुम्हारी अब तक की बातों से तो यही ज़ाहिर हुआ है कि जगताप को भी नहीं पता था कि साहूकार लोग क्या करने की फ़िराक में थे? हमारा सवाल ये है कि जब जगताप ने इतना बड़ा खेल रचा और फिर उसे शुरू भी किया तो वो साहूकारों की मानसिकता से कैसे अंजान रहा? मान लो उस रात अगर जगताप ने उनके बाग़ में उनकी बात न सुनी होती तो क्या होता? क्या अगले दिन चंदनपुर में जगताप का उनसे सामना न हो जाता? ज़ाहिर है जब सामना होता तो जगताप उनके सामने बेनक़ाब भी हो जाता। ऐसे में क्या करता जगताप?"

"ऐसा नहीं था कि वो साहूकारों की तरफ से पूरी तरह बेफिक्र थे।" चाची ने कहा____"हर किसी की तरह वो भी ये जानते थे कि साहूकारों की हसरत हम सबको मिट्टी में मिला देना ही है। इसी लिए वो इस बात को ध्यान में रखते हुए साहूकारों पर भी नज़र रखते थे किंतु शायद वो इस बात की कल्पना भी नहीं किए थे कि साहूकारों ने हमें मिट्टी में मिलाने के लिए कितना बड़ा षडयंत्र बनाया हुआ है। उनकी ख़ास बात यही थी कि वो लोग बुरी नीयत से अपना कोई भी काम खुल कर नहीं कर रहे थे बल्कि उनकी सारी कार्यविधि पूरी तरह से गुप्त थी। आप खुद भी तो उनकी कार्यविधि का कभी पता नहीं लगा पाए। वो तो उस दिन उन्होंने इत्तेफ़ाक से चंद्रकांत को मणि शंकर से बातें करते देख लिया था इस लिए उनके ज़हन में ये बात आई थी कि जिनके बीच छत्तीस का आंकड़ा है वो इस तरह कैसे एक दूसरे से बातें कर रहे थे? जब संदेह हुआ तो संदेह की पुष्टि के लिए उन्होंने क़दम भी उठाया और तभी इत्तेफ़ाक से उन्हें वो सब पता चला था।"

"यानि अगर हम ये कहें तो ग़लत न होगा कि यहां पर जगताप का खेल कमज़ोर था।" पिता जी ने कहा____"जबकि इतना बड़ा खेल खेलने वाले को अपने आस पास की ही नहीं बल्कि दूर दूर तक के लोगों की भी ख़बर रखनी चाहिए थी। ख़ैर ये तो संयोग की बात थी कि उसने बाग़ में पहुंच कर साहूकारों की बातें सुन ली और जान गया कि वो क्या करने वाले हैं। अगर उसे ये सब पता न चलता तो यकीनन आगे चल कर उसे बुरी तरह मात ही खा जाना था।"

"इंसान की जितनी समझ होती है उतना ही तो कर पाता है जेठ जी।" चाची ने कहा____"और मज़े की बात देखिए कि वो उतने को ही पूरी तरह सुदृढ़ और सुनियोजित समझ लेता है। वो समझता है कि उसकी योजना में अब कहीं कोई चूक अथवा ख़राबी नहीं है। अपनी होशियारी के नशे में चूर वो भूल जाता है कि हर इंसान की अपनी एक अलग ही सोच और कल्पना शक्ति होती है जिसके तहत वो उससे भी आगे की सोच सकता है।"

"ख़ैर, एक बात समझ नहीं आई।" पिता जी ने सोचने वाले भाव से कहा____"सफ़ेदपोश के रूप में जगताप ने अपने ही नक़ाबपोश की हत्या क्यों की थी?"

"इसकी दो वजह थीं।" चाची ने कहा____"पहली तो यही कि वो उनकी नाकामियों से बहुत ज़्यादा गुस्सा थे। दूसरे, वो दोनों मना करने के बाद भी उनके (सफ़ेदपोश) बारे में जानने की कोशिश करने से बाज नहीं आ रहे थे। इसी लिए उन्होंने गुस्से में आ कर एक को मार डाला और दूसरे को आख़िरी मौका दे कर छोड़ दिया था।"

"और जब वो दूसरा नक़ाबपोश शेरा के द्वारा पकड़ा गया और हमने उसे हवेली के एक कमरे में बंद करवाया।" पिता जी ने पूछा____"तो सुबह वो कमरे में हमें मरा हुआ मिला, क्यों? हालाकि हमने देखा था कि उसने खुरपी से खुद की जान ले ली थी किंतु अब हमें ये संदेह हो रहा है कि कहीं जगताप ने ही तो खुरपी से उसकी जान नहीं ली थी?"

"नहीं, उन्होंने उसे नहीं मारा था।" चाची ने बताया____"उसने उनके (सफ़ेदपोश) ख़ौफ के चलते ही अपनी जान ले ली थी। वैसे भी वो उस समय उसे वहां नहीं मार सकते थे क्योंकि ऐसा करने से उन पर संदेह जाता, जैसा कि बैठक में विचार विमर्श करते समय आपके मन में पैदा भी हुआ था। ये अलग बात है कि आपका मन उस समय भी ये नहीं मान रहा था कि आपका छोटा भाई ऐसा कुछ करने का सोच भी सकता है।"

"मुरारी के भाई जगन को हमारी क़ैद से भगा ले जाने वाला वो सफ़ेदपोश तुम ही थी।" पिता जी ने कुछ सोचते हुए पूछा____"हम जानना चाहते हैं कि तुम्हें इतना बड़ा ख़तरा उठा कर जगन को क़ैद से निकालने की क्या ज़रूरत थी? आख़िर उसके द्वारा क्या करवाना चाहती थी तुम?"

"वैभव को जान से मारने की एक आख़िरी कोशिश करना चाहती थी मैं।" चाची ने धीमें स्वर में कहा____"इसी लिए इतना बड़ा ख़तरा मोल ले कर मैं सफ़ेदपोश के रूप में हवेली के उस कमरे से जगन को निकाल ले गई थी। उसके बाद उसे वैभव को जान से मारने का हुकुम दिया था। वैभव को मारने में उसे कोई कठिनाई न हो इसके लिए मैंने उसको एक रिवॉल्वर भी दिया था। हालाकि मैं जानती थी कि वैभव को जान से मार देना जगन के बस का नहीं था लेकिन फिर भी एक आख़िरी कोशिश में वो सब किया मैंने।"

"आख़िर में क्या होता?" पिता जी ने पूछा____"हमारा मतलब है कि जगताप का अंतिम पड़ाव क्या था? आख़िर इतना कुछ करने के बाद वो हमारी नज़रों में ख़ुद को कैसे निर्दोष साबित करता? या फिर इसके बारे में भी उसकी कोई ऐसी योजना थी जिससे कि हम आख़िर में भी ये न सोच सकते कि ये सब हमारे भाई ने ही किया है?"

"इसके बारे में अगर योजना की बात बताऊं तो वो यही थी कि वो इस सारे फ़साद को साहूकारों के सिर मढ़ते।" चाची ने कहा____"उस समय तक आप क्योंकि इस सबके चलते अपना मानसिक संतुलन खो चुके होते इस लिए साहूकारों पर क़हर बन कर टूट पड़ते, जिसमें वो (जगताप) भी आपका साथ देते हुए साहूकारों को मारते। आप ये सोचते ही नहीं कि साहूकारों से कहीं ज़्यादा दोषी और अपराधी तो आपका अपना ही छोटा भाई है। ख़ैर आपके क़हर का शिकार होने से साहूकारों का नामो निशान मिट जाता और एक तरह से हमेशा के लिए उनका किस्सा भी ख़त्म हो जाता। उसके बाद वही होता जिसके बारे में मैंने शुरुआत में ही बताया था। ये तो थी योजना के अनुरूप बात किंतु हम ये भी जानते थे कि आख़िर तक वैसा ही नहीं होता चला जाएगा जैसा कि हमने सोच रखा है। यानि संभव है कि कहीं किसी मोड़ पर हालात बदल भी जाएं। ऐसे में अपने मंसूबों को परवान चढ़ाने के लिए यही सोचा था कि आगे जो भी हालत बनेंगे उस हिसाब से आगे की योजना बनाएंगे।"

"एक सवाल हम अपनी बेटी से भी पूछना चाहते हैं।" पिता जी सहसा कुसुम से मुखातिब हुए____"शेरा ने हमें बताया कि उसने सफ़ेदपोश को साहूकारों के खेतों की तरफ से आते देखा था। उसके बाद वो चंद्रकांत के घर पहुंचा। हम ये जानना चाहते हैं कि तुम सफ़ेदपोश बन कर चंद्रकांत के घर किस लिए गई थी?"

"वो मैंने एक दिन बैठक में आप लोगों की बातें सुनी थी।" कुसुम ने धीमें स्वर में कहा____"आप लोगों से ही मुझे पता चला था कि सफ़ेदपोश हर बार हमारे आमों के बाग़ की तरफ जाता है और फिर वहीं पर ग़ायब हो जाता है। यही सोच कर मैंने मां के कमरे में जा कर पहले सफ़ेदपोश के ये कपड़े पहने और फिर वैसे ही कमरे की खिड़की से बाहर निकल गई जैसे उस रात मैंने मां को जाते देखा था। इतना तो मैं भी समझ गई थी कि मां सफ़ेदपोश बन कर गांव के रास्ते से तो कहीं जाती नहीं रहीं होंगी, क्योंकि ऐसे में उन्हें कोई भी देख सकता था। मैं समझ गई कि मां गांव की आबादी से दूर दूर हो कर ही कहीं जाती रहीं होंगी। मैंने भी ऐसा ही किया। उधर साहूकारों के खेत थे तो वहीं से जाना पड़ा और फिर घूम कर चंद्रकांत के घर के सामने पहुंच गई। उसके घर के सामने जाने का सिर्फ यही मतलब था कि अगर आपके आदमी सफ़ेदपोश की खोज में कहीं छुपे हों तो वो मुझे देख लें। कुछ देर में ऐसा ही हुआ। मैंने एक आहट सुनी तो समझ गई कि शायद आस पास ही कहीं पर आपके आदमी मौजूद हैं। उस समय डर तो बहुत लग रहा था मुझे लेकिन सोच लिया था कि अब चाहे जो हो जाए वही करूंगी, यानि अपनी मां को बचाने के लिए अपनी जान दे दूंगी। मैं वहां से हमारे बाग़ की तरफ भागने लगी। सोचा था कि पीछे से मेरा पीछा करने वाले लोग मुझ पर गोली चलाएंगे मगर ऐसा नहीं हुआ। मुझे नहीं पता था कि वो लोग मुझे यहां बाग़ में घेरने के लिए गोली नहीं चला रहे थे।"

"अच्छा ही हुआ कि शेरा ने किसी को भी गोली चलाने को नहीं कहा था।" पिता जी ने कहा____"वरना सचमुच अनर्थ हो जाता।" कहने के साथ ही पिता जी चाची से मुखातिब हुए____"अपने लिए और अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए हमारे भाई ने इतना बड़ा षडयंत्र रचा और उसे अंजाम भी दिया। ईश्वर जानता है कि हमने कभी भी अपने और अपने भाई के बच्चों में कोई भेदभाव नहीं किया है। इसके बावजूद हमारे भाई ने हमारे बारे में ऐसा सोचा और हमारे साथ इतना बड़ा छल किया। तुम दोनों को वो हवेली, धन संपत्ति और ये सारी ज़मीन जायदाद ही चाहिए थी ना तो ठीक है। हम कल ही ये सब तुम्हारे नाम करवा देंगे। इतना ही नहीं हम अपनी पत्नी, बेटे और उस अभागन बहू को ले कर कहीं और चले जाएंगे।"

"नहीं..।" मेनका चाची एकाएक रोते हुए चीख पड़ीं____"ऐसा मत कहिए जेठ जी। मुझे कुछ नहीं चाहिए। ये सब आपका है और आपका ही रहेगा। आपके भाई ने और मैंने बहुत बड़े पाप किए हैं। इसके लिए आप मुझे जो चाहे सज़ा दे दीजिए लेकिन कहीं और जाने की बात मत कीजिए।"

"तुम्हें पता है बहू।" पिता जी ने संजीदगी से कहा____"हमें कभी भी इस धन दौलत का कोई मोह अथवा लालच नहीं था। पिता जी के बाद जब हम दादा ठाकुर की गद्दी पर बैठे तब सिर्फ यही सोचा था कि कभी किसी के साथ ग़लत नहीं करेंगे। हमारे पिता जी के द्वारा जो कुछ तबाह हुआ था उस सबको संवारना ही हमारे जीवन का मूल मकसद था। यहां के लोग ही नहीं बल्कि दूर दूर तक के लोग जाने कैसे कैसे दुखों में डूबे हुए थे जिनका उद्धार करना ही हमारा मकसद था। पिता जी तो अय्याशियों में डूबे रहते थे। अपनी शान और अपनी शाख को बुलंदी पर पहुंचाने के लिए न जाने क्या क्या करते रहते थे जिसके चलते पुरखों द्वारा बनाई गई धन संपत्ति उनके द्वारा पानी की तरह बहाई जा रही थी। दादा ठाकुर की गद्दी पर बैठने के बाद जब हमने पहली बार ख़ज़ाने की तिज़ोरी देखी थी तो सन्न रह गए थे। इतने बड़े खानदान की इतनी बड़ी हवेली में कोई खज़ाना नहीं बचा था। अब तुम खुद सोचो कि उस इंसान की क्या हालत हुई होगी जो खुद खाली पेट था लेकिन दूसरों को भर पेट खाना खिलाने की क़सम खा चुका था। उस हालत में भी हम निराश अथवा हताश नहीं हुए बल्कि ये सोच के मुस्कुरा उठे थे कि शायद ईश्वर यही देखना चाहता है कि हम कैसे खाली पेट दूसरों का पेट भरते हैं? हमने मेहनत की, अपने छोटे भाई को भी यही सिखाया और उसे हमेशा प्रेरित किया। लोगों से मिले उन्हें समझाया बुझाया और भरोसा दिलाया कि हम सब कुछ ठीक कर देंगे। कल्पना करो बहू कि कैसे हमने ये सब कुछ किया होगा? वर्षों लग गए बिखरी हुई चीज़ों को सम्हालने में। लोगों की मानसिकता ऐसी थी कि लोग हमें देख कर अंदर छुप जाते थे, डर की वजह से। उन्हें लगता था कि बड़े दादा ठाकुर का बेटा है तो वो भी उनके जैसा ही अत्याचार करेगा उन पर। किसी को यकीन ही नहीं होता था कि हम उन्हें अपने सीने से लगाने आते हैं। ख़ैर संघर्ष करना लिखा था तो किया लेकिन कभी हार नहीं मानी। शुक्र था कि ईश्वर साथ था। परीक्षा तो ली उसने लेकिन आख़िर में सफलता भी दी। वक्त गुज़रा, लोगों के दुख दूर हुए, और वही लोग एक दिन हमें देवता की तरह पूजने लगे। हमने कभी नहीं चाहा था कि लोग हमें पूजें, ये उनकी अपनी सोच थी। हमारे प्रति उनकी आस्था थी इस लिए लोग हमें पूजने लगे थे। ख़ैर लोगों को खुश देख कर हम भी खुश थे लेकिन नहीं जानते थे कि एक दिन ऐसा भी वक्त आएगा जब अपनों के द्वारा हमारे हृदय पर इस तरह की बिजलियां गिरेंगी। समझ नहीं आता कि अपने जीवन में हमने कब ऐसा कोई गुनाह किया था जिसके चलते आज हमें ऐसे ऐसे दुख मिल रहे हैं।"

"ऐसा मत कहिए जेठ जी।" मेनका चाची दुखी भाव से बोलीं____"आप तो बहुत महान हैं। आपके जैसा कोई नहीं हो सकता। ये तो...ये तो हमारा दुर्भाग्य था जो धन दौलत के लालच में पड़ कर इतना बड़ा पाप कर बैठे।"

"तुमने सही कहा था बहू कि हम आख़िर में ऐसी मानसिकता में पहुंच जाएंगे कि हमारा मुकम्मल रूप से संतुलन बिगड़ जाएगा।" पिता जी ने आहत भाव से कहा____"यकीन मानों सच में अब हमारा मानसिक संतुलन बिगड़ चुका है। अब शायद ही कभी हमें होश आएगा। जी करता है ये ज़मीन फट जाए और हम रसातल तक उसमें समाते चले जाएं।"

पिता जी की बातें सुन कर चाची कुछ बोल ना सकीं बल्कि वहीं फूट फूट कर रो पड़ीं। दुख, तकलीफ़ से कहीं ज़्यादा आत्म ग्लानि की पीड़ा थी जिसमें अब वो झुलसती जा रहीं थी। अपनी मां की ये हालत देख कुसुम भी सिसक रही थी। मेरा तो दिलो दिमाग़ पहले से ही सुन्न पड़ा हुआ था।

"शेरा।" सहसा पिता जी ने पलट कर शेरा की तरफ देखा____"अपने सभी आदमियों को समझा दो कि वो लोग आज की इस घटना का ज़िक्र जीवन में कभी भी किसी से न करें।"

"जैसी आपकी आज्ञा मालिक।" शेरा ने अदब से सिर झुका कर कहा____"मैं अभी सबको इस बारे में समझा देता हूं।"

"रुक जाओ शेरा।" मेनका चाची ने शेरा को फ़ौरन ही आवाज़ दे कर कहा____"तुम्हें अपने आदमियों को ऐसा कहने की कोई ज़रूरत नहीं है। सफ़ेदपोश का सच सबको पता चलना चाहिए। सबको पता चलना चाहिए कि हमने एक देवता समान इंसान के साथ कितना बड़ा अपराध किया है, कितना बड़ा छल किया है।"

"ये आप क्या कह रही हैं चाची?" मैं एकदम से होश में आते हुए बोल पड़ा____"नहीं नहीं, आप ऐसा नहीं करेंगी।"

"इतना कुछ जानने के बाद भी तुम मुझे बचाना चाहते हो वैभव?" चाची ने दुखी भाव से कहा____"क्या इसके बाद भी तुम्हें मुझसे घृणा नहीं हो रही?"

"नहीं, बिल्कुल नहीं।" मैंने अपनी पीड़ा को सह कर पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"अपनी प्यारी चाची से कभी घृणा नहीं हो सकती मुझे। मैं मानता हूं कि जगताप चाचा ने और आपने जो किया है उससे बहुत तकलीफ़ हुई है मुझे लेकिन मैं ये भी जानता हूं कि दुनिया में ऐसा करने वाले सिर्फ आप ही बस नहीं हैं बल्कि न जाने कितने ही होंगे। आगे भी भविष्य में लोग अपनी खुशी और अपने भले के लिए ऐसा ही करेंगे। मैं बस ये चाहता हूं कि जो गुज़र गया उसे भूल जाइए और सबके साथ एक नई शुरुआत कीजिए।"

"इतने अच्छे मत बनो वैभव।" चाची ने क़रीब आ कर मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा____"आज की दुनिया में अच्छा बन के रहना बहुत घातक होता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण खुद जेठ जी हैं। वैसे भी हमने जो किया है उसके लिए सज़ा तो मिलनी ही चाहिए हमें। मैं खुद दिल से यही चाहती हूं कि देवता समान जिस इंसान के साथ हमने इतना बड़ा विश्वास घात और छल किया है उसके लिए मुझे ऐसी सज़ा मिले जिसे वर्षों तक लोग याद रखें। मेरा और तुम्हारे चाचा का जब भी कहीं ज़िक्र हो तो लोग हमारे नाम पर थूंकें।"

"नहीं नहीं चाची।" मैं बुरी तरह तड़प उठा____"ऐसी भयानक बातें मत कीजिए।"

"तुमने अपने अच्छे कर्म से मेरा हृदय परिवर्तन किया था वैभव।" चाची ने अधीरता से कहा____"वरना आज स्थिति ना जाने कैसी हो चुकी होती। उस दिन से अब तक यही सोचती रही हूं कि कैसी भयानक मानसिक बीमारी लग गई थी हम दोनों को। ऊपर वाले का शुक्र था कि समय रहते उसने मेरा हृदय परिवर्तन कर दिया वरना तुम्हारे चाचा के मरने के बाद भी मैं होश में न आती और जाने क्या क्या करती चली जाती। फिर भले ही उस सबके चलते किसी दिन मैं जेठ जी के आदमियों द्वारा जान से मार दी जाती।"

"जो नहीं हो सका उस सबको भूल जाइए।" मैंने अधीरता से कहा____"मैं बस ये चाहता हूं कि अब से आप सब कुछ भुला कर फिर से एक नई शुरुआत कीजिए।"

"अब ये संभव नहीं हो सकेगा बेटा।" चाची ने दुखी भाव से कहा____"हमारे द्वारा किए गए अपराध चाह कर भी मुझसे भुलाए नहीं जा सकेंगे और जब भुलाए ही नहीं जा सकेंगे तो सब कुछ बेहतर होने का तो सवाल ही नहीं उठता।"

"अच्छा एक बात बताइए।" मैंने कुछ सोचते हुए पूछा____"सफ़ेदपोश के रूप में आप और चाचा जी हमेशा हमारे बाग़ की तरफ ही क्यों जा कर ग़ायब हो जाते थे? आख़िर इतना लंबा रास्ता अपना कर ख़ुद को ख़तरे में क्यों डालते थे?"

"सबको उलझाए रखने के लिए।" चाची ने गंभीरता से कहा____"बाग़ में दाख़िल हो कर हम किसी न किसी पेड़ पर चढ़ जाते थे। इससे होता ये था कि हमारा पीछा करने वाले बुरी तरह चकरा जाते थे और आख़िर में वो इसी नतीजे पर पहुंचते थे कि सफ़ेदपोश किसी जादू की तरह ग़ायब हो गया है। ऐसा सोचने के बाद फिर वो वापस चले जाते थे। उनके जाने के बाद हम आराम से पेड़ से नीचे उतरते और फिर निकल जाते। बाग़ से सीधा साहूकारों के खेतों की तरफ से होते हुए सीधा हवेली पहुंचते थे। हवेली में हमारे कमरे की खिड़की के नीचे रस्सी लटकी हुई होती थी जिसके सहारे हम वापस अपने कमरे में पहुंच जाते थे। हम जानते थे कि देर सवेर बाग़ से हमारे ग़ायब होने का ये राज़ खुल जाएगा और फिर ये भी पता लगा लिया जाएगा कि बाग़ से हम सफ़ेदपोश के रूप में कहां जाते हैं। पता लगाते हुए आप लोग हमारी उस ऊंची मेढ़ पर पहुंचते जहां से साहूकारों की ज़मीनें शुरू होती थीं और कुछ दूरी पर उनके घर भी दिखते थे। ज़ाहिर है इतना सब देखते ही आप लोग यही समझते ही सफ़ेदपोश साहूकारों के घर का ही कोई व्यक्ति है। बस, आप लोगों के मन में यही बैठाए रखना चाहते थे हम ताकि आप लोगों का शक साहूकारों पर ही रहे और इसके अलावा और कुछ सोचें ही नहीं।"

"और मेरे दोनों दोस्त सुनील और चेतन को किस मकसद से अपना मोहरा बनाया था चाचा जी ने?" मैंने पूछा।

"सच कहूं तो उन्हें मोहरा नहीं बनाया था तुम्हारे चाचा जी ने।" मेनका चाची ने कहा____"बल्कि सिर्फ नाम के लिए उनका स्तेमाल करते थे।"

"ये क्या कह रही हैं आप?" मैं बुरी तरह चकरा गया____"सिर्फ नाम के लिए स्तेमाल करते थे? भला ऐसा करने का क्या मतलब था?"

"ताकि तुम और जेठ जी यही समझते रहें कि सफ़ेदपोश कोई बहुत ही बड़ा खेल खेल रहा है।" चाची ने कहा____"जिसमें उसने तुम्हारे दोस्तों को भी अपना मोहरा बना रखा है। आप लोग सफ़ेदपोश का असल मकसद जानने के लिए बुरी तरह उलझे रहते जबकि समझ में कभी कुछ न आता। तुम्हारे दोस्तों को भी पता नहीं था कि उन्हें सिर्फ नाम के लिए ही स्तेमाल कर रहा था सफ़ेदपोश। ख़ौफ के मारे वैसे ही उनका बुरा हाल रहता था जिसके चलते कुछ सोच ही नहीं पाते थे वो। अगर हमने उन दोनों को सच में मोहरा बनाया गया होता तो उनके द्वारा तुम्हारे चाचा ने कुछ तो ऐसा करवाया ही होता जो उनके बस से बाहर होता, जैसे जगन से करवाया...उसके अपने ही भाई की हत्या और फिर तांत्रिक की हत्या। सुनील और चेतन से हमने कभी ऐसा कुछ नहीं करवाया।"

मैं भौचक्का सा देखता रह गया चाची को। मनो मस्तिष्क में सांय सांय होने लगा था। सच ही तो कह रहीं थी वो। सुनील और चेतन के द्वारा ऐसा कुछ भी तो हुआ नज़र नहीं आया था हमें। इसका मतलब सच में वो दोनों सफ़ेदपोश के नाम मात्र के ही मोहरे थे।

✮✮✮✮

जब काफी देर तक मेनका लौट कर न आई तो सुगंधा देवी को ही नहीं बल्कि हर किसी को बड़ी हैरानी हुई। सबके चेहरों पर चिंता की लकीरें उभर आईं। मां के कहने पर कजरी फ़ौरन ही मेनका और कुसुम का पता लगाने के लिए उनके कमरों की तरफ दौड़ पड़ी। सबसे पहले वो कुसुम के कमरे में पहुंची और जब उसने कुसुम के कमरे में कुसुम और मेनका को न देखा तो वो मेनका के कमरे की तरफ भागी।

कजरी जब दौड़ते हुए मेनका के कमरे में पहुंची तो उसे वहां भी कोई नज़र ना आया। ये देख चकरा सी गई वो। उसे समझ न आया कि दोनों मां बेटी अगर अपने अपने कमरे में नहीं हैं तो कहां हैं? उसने वापस आ कर सुगंधा देवी को सब कुछ बता दिया जिसे सुन कर सबके मानों होश उड़ गए। अगले ही पल वो सब हवेली में मेनका और कुसुम को खोजने लगे। कुछ ही समय में उन सबने पूरी हवेली को छान मारा लेकिन दोनों उन्हें कहीं नज़र ना आईं। सबके सब थक हार कर वापस नीचे वाले बरामदे में आ गए।

सुगंधा देवी के चेहरे पर गहन चिंता के भाव थे और साथ ही किसी अनिष्ट की आशंका के चलते वो भयभीत भी दिखने लगीं थी। किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था कि दोनों मां बेटी अचानक से कहां गायब हो गई हैं?

"धीरज से काम लीजिए दीदी।" निर्मला क्योंकि सुगंधा देवी के मायके से थी और रिश्ते में सुगंधा देवी उसकी ननद भी लगती थीं इस लिए वो उन्हें दीदी ही कहती थी, बोली____"उन्हें कुछ नहीं होगा। ज़रूर वो हमें बिना बताए वहीं गई होंगी जहां ठाकुर साहब गए हुए हैं।"

"लेकिन वहां जाने की क्या ज़रूरत थी उन्हें?" सुगंधा देवी ने हताश भाव से कहा____"रात के वक्त हवेली से नहीं जाना चाहिए था उन्हें। वो दोनों ये कैसे भूल गईं कि हमारे हालत ख़राब हैं और ऐसे वक्त में किसी के साथ कुछ भी हो सकता है।"

"शायद वो इस लिए बिना बताए चली गईं हैं ताकि वो ठाकुर साहब से उस सफ़ेदपोश को आपके सामने लाने को कह सकें।" निर्मला ने कहा____"आपने उस समय कहा था ना कि काश! वो सफ़ेदपोश आपके सामने आ जाए ताकि आप भी उसे देख सकें और उससे पूछ सकें कि उसने ये सब क्यों किया है? आपकी बात सुन कर उन्हें लगा होगा कि ठाकुर साहब कहीं वहीं पर न उस सफ़ेदपोश को मार कर फेंक आएं इस लिए वो उसको यहां आपके सामने लाने के उद्देश्य से गईं हो सकती हैं।"

"हां लेकिन इसके लिए उसे कुसुम को अपने साथ ले जाने की क्या ज़रूरत थी?" सुगंधा देवी ने उसी हताशा भरे भाव से कहा____"अपने साथ साथ उसने अपनी बेटी को भी ख़तरे में डाल दिया। हे भगवान! दोनों की रक्षा करना।"

सुगंधा देवी अपनी देवरानी और उसकी बेटी के लिए बहुत ज़्यादा चिंतित और परेशान हो उठीं थी। निर्मला उन्हें धीरज देने की कोशिश में लगी हुई थी। उधर किशोरी लाल ख़ामोश था। उसके चेहरे पर गहन सोचो के भाव उभरे हुए थे।

रात आधे से ज़्यादा गुज़र गई थी। उनमें से किसी की भी आंखों में नींद का नामों निशान तक नहीं था। सबके सब बरामदे में ही बैठे थे और दादा ठाकुर के साथ साथ बाकी सबके आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। पूरी हवेली सन्नाटे में डूबी हुई थी।




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Supreme
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Dosto...
Update 135 & 136 Me safedposh se sambandhit sab kuch bata diya gaya hai. Ummid karta hu ki in dono updates padhne ke baad aap sabke samne sab kuch clear ho jaayega aur koi doubt nahi rah jaayega... :?:

Aap sab log dhyaan se dono updates read kare aur apne apne vichaar detail me vykat kare.... :declare:

Koi compromise nahi chalega....har kisi ko apne vichaar rakhne honge, kyoki safedposh ka ye last chapter hai. Iske aage is kahani me dusra aur aakhiri safar shuru hoga... :declare:
 

avsji

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Supreme
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देवनागरी पढ़ते ही कितने हैं भाई।

सब अंग्रेजी के चोदे हो रहे हैं आजकल

अंग्रेजी के ऐसे चोदे हैं, कि असल की अंग्रेजी तो झांट बराबर नहीं समझ पाते। देवनागरी में लिखी हिंदी पढ़ नहीं पाते, वो रोमन में लिखी चाहिए। गज़ब के चूतड़ हैं इधर 🤣
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अंग्रेजी के ऐसे चोदे हैं, कि असल की अंग्रेजी तो झांट बराबर नहीं समझ पाते। देवनागरी में लिखी हिंदी पढ़ नहीं पाते, वो रोमन में लिखी चाहिए। गज़ब के चूतड़ हैं इधर 🤣
सब जगह यही हाल है भाई जी।

एक बार अपने घर गया हुआ था, वहां एक दुकान में एक आदमी अपनी बेटी के साथ आया हुआथा, बेटी 10th में थी, ऐसे ही बात बात में दुकानदार ने उनको 359/ का बिल बताया, अब उसकी बेटी जो उस छोटे शहर में पढ़ रही थी, उसे उनसठ का मतलब नहीं पता था।


उस आदमी ने बड़ी खुशी से बताया कि स्कूल में हिंदी की गिनती नहीं सीखते। तो मैंने कहा घर में आप क्यों नही सीखा पाए?

इस पर दुकानदार बोला, भैया यहां लोग खुद बच्चों से अंग्रेजी ही सुनना चाहते हैं, ये कोई अलग थोड़े ही होंगे।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Is story ke starting me logo ko :shag: mutth maarne ka masala mil raha tha, uske baad jab band ho gaya to log dusri kahani me maa bahan beti khojne lage :D
अच्छा सबसे भयंकर बात ये है कि लोगों को मां बहन पढ़ कर ज्यादा मजा आता है। मतलब कितने गर्त में गिरते जा रहे हैं हम सब।

सच बोलूं तो आने वाली पीढ़ी का भविष्य मुझे डरा रहा है अब।
 

avsji

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Supreme
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सब जगह यही हाल है भाई जी।

एक बार अपने घर गया हुआ था, वहां एक दुकान में एक आदमी अपनी बेटी के साथ आया हुआथा, बेटी 10th में थी, ऐसे ही बात बात में दुकानदार ने उनको 359/ का बिल बताया, अब उसकी बेटी जो उस छोटे शहर में पढ़ रही थी, उसे उनसठ का मतलब नहीं पता था।


उस आदमी ने बड़ी खुशी से बताया कि स्कूल में हिंदी की गिनती नहीं सीखते। तो मैंने कहा घर में आप क्यों नही सीखा पाए?

इस पर दुकानदार बोला, भैया यहां लोग खुद बच्चों से अंग्रेजी ही सुनना चाहते हैं, ये कोई अलग थोड़े ही होंगे।

वही वाली हाल हुई ये तो : धोबी का कुत्ता, न घर का, न घाट का।
 

R@ndom_guy

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aakhir jis mansikta ka shikar dada thakur ko bnaya jana tha
Anttah wo pohoch gye usme
Isme sbse jyada kisi ka nuksaan hua to wo kusum h

Kusum apni maa ko bachane ke liye safedposh na bnti to bhi andar hi andar ghutti rehti
Khud ko kosti rehti ki wo kaise 2 paksho me se kisi ek ko chune aur kisi ek paksh me jakr dusre ko sada ke liye kho de
Aur ab
Jabki usne apni maa ko bachaya tb bhi yhi prashn h ki kaise dusre paksh ke samne pyar ki, sneh ki, mamta ki guhaar lgayegi

Kintu ye samay or paristhitiyon ka khel hi h
Yadi aaj ke vaibhav me pehle wala vaibhav hota to
Ab bhi itna sneh aur pyar na kr rha hota menka chachi se or syd kuch anarth ho jata

Irshya, lalach, aur dwesh ke karan kisi ko wo sab najar aana bnd ho jata hai h jo sadaiv se unke hit aur unke paksh me hota gya tha

syd kahi na kahi ye chingari menka ke bhai ne lgai thi kintu jagtap ka is trh kch dinon me behak jana uske kamzor vishwas aur bhratra prem ko darsha gya hai
Jis pr apna swarth aur kewal apne parivar ki bhalai ki soch bhari pad gyi

Ab tk sugandha devi ko is baat ka pta nhi chl paya hai or wo apni devrani aur apni ki suraksha ke liye parehan hain
Kintu jb ye raaj unke samne aayega to kya beetegi unpr
Jo apni devrani ko apni behen manti hain
Unke dukh me harpal sath bani rhi hain

Jb unhe ye pta lgega ki unke devar aur devrani unhe barbad karna chahte the unke beto ko khatam krna chahte the
Aur bhale hi jagtap ke dwara unke bde bete ki mrityu na hui ho
Par shadyantra to khela ja chuka hai aur bete ko tantra mantra badha me pahucha kr marne ki vyavastha to kar hi di gyi thi

haveli ke mahaul ke baare me sochne se dil ghabra rha hai ki
Jisme aseem prem aur atoot vishwas ke sath sb ek sath ek parivar bne hue the
Wahan ab kaise ek dusre ke prati wo hi vichar janm le payenge

Aur Abhi menka ke beton ko bhi is baare me pta nhi h
Unki pratikriya kaise hogi q ki jis prakar se wo apne pita aur bde bhai ki maut ke aad vaibhav ke najdeek hue the unke man me vaibhav ke prati koi heen bhavna nhi thi aur syd wo apne mata pita kritya pr sharminda ho jaye
Kintu jb tk wo videsh me hain is baare me socha jana lagbhag vyarth hi hoga
अध्याय - 136
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"दरोगा धनंजय का क्या मामला था?" कुछ देर बाद पिता जी ने चाची से पूछा_____"हमारा मतलब है कि उसे किस मकसद के तहत जगताप ने अपना मोहरा बनाया था?"

"वो हमारे लिए ख़तरा बन रहा था।" चाची ने खुद को सम्हालते हुए कहा____"मुरारी की हत्या के बाद जब जगन ने उसकी हत्या में वैभव को फंसाया था तो वो मामले की तहक़ीकात करने लगा था। यूं तो इससे हमें कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि हम तो चाहते ही यही थे कि वैभव मुरारी की हत्या में फंसने के बाद जेल चला जाए और उसके माथे पर जेल जाने का भी बदनामी रूपी कलंक लग जाए किंतु तभी हमें पता चला कि दरोगा स्वाभाविक रूप से मामले की तहक़ीकात नहीं कर रहा है बल्कि आपके कहने पर कर रहा है। यानि आपने गुप्त रूप से उसको इस मामले के बारे में पता करने के लिए नियुक कर दिया था। हम समझ गए कि इससे हमारे लिए भारी संकट पैदा हो सकता है। मतलब कि वो अपनी तहक़ीकात से असलियत का पता तो लगा ही लेता किंतु संभव था कि वो हम तक भी पहुंच जाता। अगर ऐसा होता तो ज़ाहिर है कि हम बेनक़ाब हो जाते जोकि हम किसी भी कीमत पर नहीं चाहते थे। इस लिए उसका पूरी तरह से संतुलन बिगाड़ने के लिए हमने उसको अपने जाल में फंसाया। वो पुलिस वाला तो था ही किंतु इसके साथ ही उसे आपकी सर परस्ती भी प्राप्त हो गई थी जिसके तहत उसे किसी का भय ही नहीं था। इस लिए उसके तेवर को ठंडा करने के लिए हमने सबसे पहले उसकी मां का अपहरण करवाया। हम जानते थे कि वो अपनी मां से बहुत लगाव रखता है और जब उसकी मां पर ही कोई संगीन बात आ जाएगी तो वो फिर वही करेगा जो करने को हम कहेंगे।"

"तो क्या करवाना चाहते थे उससे?" पिता जी पूछे बिना न रह सके____"हमारे द्वारा पकड़े जाने पर उसने हमें जो कुछ बताया था वो निहायत ही बेतुका था। आख़िर उसके द्वारा ऐसा करवाने का क्या मतलब था जगताप का?"

"पहला तो यही कि उसके द्वारा इस तरह की बयानबाज़ी से आपको बुरी तरह उलझा देना।" चाची ने कहा____"और दूसरी असल वजह थी उसको अपने रास्ते से हमेशा के लिए हटा देना। पहले तो हमने उसे उसकी मां को जान से मार देने की कोरी धमकी ही दी थी। हमें लगा था कि इससे डर कर वो मामले की तहक़ीकात करना छोड़ वापस शहर लौट जाएगा किंतु जब वो धमकी देने पर भी न माना तो हमें धमकी को सच का रूप देना पड़ा। उसे क्योंकि आपकी सर परस्ती प्राप्त थी इस लिए वो धमकियों से डर नहीं रहा था किंतु जब सच में ही उसकी मां मर गई तो उसके होश ठिकाने पर आ गए। इतना ही नहीं आप भी उसकी मौत से हिल गए थे। यही वजह थी कि आपने भी उसे मामले को छोड़ देने को कहा और उसे वापस चले जाने को भी। अपनी मां की मौत के बाद तो वो वैसे भी अब कुछ करने वाला नहीं था क्योंकि मां के बाद वो अपनी उस छोटी बहन को नहीं खोना चाहता था जिसका उसके सिवा दूसरा कोई सहारा ही नहीं था। बहरहाल, उसके चले जाने के बाद हम निश्चिंत हो गए थे।"

"बात कुछ समझ में नहीं आई।" पिता जी ने उलझन पूर्ण भाव से कहा____"अगर जगताप का इरादा उस दरोगा को अपने रास्ते से हटा देना ही था तो इसके लिए उसे पहले ही वो रास्ता चुन लेना था जिसे उसने आख़िर में उसकी मां की हत्या कर देने के रूप में चुना था। बेमतलब उसको अपने जाल में फांस कर इतना झमेला फ़ैलाने की क्या ज़रूरत थी?"

"ऐसा झमेला बेवजह नहीं फैलाया गया था जेठ जी बल्कि ऐसा करने के पीछे भी एक ख़ास वजह थी।" चाची ने कहा____"और वो वजह थी आपको सही दिशा से भटकाए रखना और साथ ही आपके दिमाग़ को उलझाए रखना। शुरू में ही हमने सोच लिया था कि आख़िर में जो कुछ भी हमारे द्वारा होगा उसका सारा इल्ज़ाम हमें साहूकारों पर ही थोपना है। आपके साथ साथ हर कोई यही समझता कि जो कुछ भी हुआ है उसको अंजाम देने वाले साहूकार ही हैं। सब जानते थे कि साहूकार हमें अपना दुश्मन समझते हैं और उनकी एक ही ख़्वाईश है, यानि हमें मिट्टी में मिला देना। खैर, तो जैसा कि मैंने कहा हमारा ऐसा करने का यही मकसद था....मतलब आपको सही दिशा से भटकाए रखना और उलझाए रखना। याद कीजिए, जब भी बैठक में इस मामले की चर्चा होती थी तो अंततः यही निष्कर्ष निकलता था कि ये सब करने वाले साहूकार ही हैं। अब उस समय क्योंकि आप में से किसी के भी पास साहूकारों के खिलाफ़ कोई प्रमाण नहीं होता था इस लिए आप खुल कर उन पर कोई कार्यवाही नहीं करते थे और यही हमारे लिए फ़ायदेमंद होता था। यानि आप हमेशा साहूकारों पर ही अटके रहते थे और किसी दूसरे की तरफ आपका ध्यान ही नहीं जाता था। वैसे आपके छोटे भाई पर शक ज़रूर किया जाता था किंतु आप ख़ुद इस बात का यकीन नहीं करते थे कि आपका छोटा भाई ऐसा कुछ सोच भी सकता है, करने की तो बहुत दूर की बात है।"

"चलो ये तो समझ आ गया।" पिता जी ने गहरी सांस ली____"किंतु ये भी तो सच है कि साहूकार लोग भी हमारे खिलाफ़ षड्यंत्र रच रहे थे तो उनके बारे में जगताप को कैसे पता नहीं चला? तुम्हारी अब तक की बातों से तो यही ज़ाहिर हुआ है कि जगताप को भी नहीं पता था कि साहूकार लोग क्या करने की फ़िराक में थे? हमारा सवाल ये है कि जब जगताप ने इतना बड़ा खेल रचा और फिर उसे शुरू भी किया तो वो साहूकारों की मानसिकता से कैसे अंजान रहा? मान लो उस रात अगर जगताप ने उनके बाग़ में उनकी बात न सुनी होती तो क्या होता? क्या अगले दिन चंदनपुर में जगताप का उनसे सामना न हो जाता? ज़ाहिर है जब सामना होता तो जगताप उनके सामने बेनक़ाब भी हो जाता। ऐसे में क्या करता जगताप?"

"ऐसा नहीं था कि वो साहूकारों की तरफ से पूरी तरह बेफिक्र थे।" चाची ने कहा____"हर किसी की तरह वो भी ये जानते थे कि साहूकारों की हसरत हम सबको मिट्टी में मिला देना ही है। इसी लिए वो इस बात को ध्यान में रखते हुए साहूकारों पर भी नज़र रखते थे किंतु शायद वो इस बात की कल्पना भी नहीं किए थे कि साहूकारों ने हमें मिट्टी में मिलाने के लिए कितना बड़ा षडयंत्र बनाया हुआ है। उनकी ख़ास बात यही थी कि वो लोग बुरी नीयत से अपना कोई भी काम खुल कर नहीं कर रहे थे बल्कि उनकी सारी कार्यविधि पूरी तरह से गुप्त थी। आप खुद भी तो उनकी कार्यविधि का कभी पता नहीं लगा पाए। वो तो उस दिन उन्होंने इत्तेफ़ाक से चंद्रकांत को मणि शंकर से बातें करते देख लिया था इस लिए उनके ज़हन में ये बात आई थी कि जिनके बीच छत्तीस का आंकड़ा है वो इस तरह कैसे एक दूसरे से बातें कर रहे थे? जब संदेह हुआ तो संदेह की पुष्टि के लिए उन्होंने क़दम भी उठाया और तभी इत्तेफ़ाक से उन्हें वो सब पता चला था।"

"यानि अगर हम ये कहें तो ग़लत न होगा कि यहां पर जगताप का खेल कमज़ोर था।" पिता जी ने कहा____"जबकि इतना बड़ा खेल खेलने वाले को अपने आस पास की ही नहीं बल्कि दूर दूर तक के लोगों की भी ख़बर रखनी चाहिए थी। ख़ैर ये तो संयोग की बात थी कि उसने बाग़ में पहुंच कर साहूकारों की बातें सुन ली और जान गया कि वो क्या करने वाले हैं। अगर उसे ये सब पता न चलता तो यकीनन आगे चल कर उसे बुरी तरह मात ही खा जाना था।"

"इंसान की जितनी समझ होती है उतना ही तो कर पाता है जेठ जी।" चाची ने कहा____"और मज़े की बात देखिए कि वो उतने को ही पूरी तरह सुदृढ़ और सुनियोजित समझ लेता है। वो समझता है कि उसकी योजना में अब कहीं कोई चूक अथवा ख़राबी नहीं है। अपनी होशियारी के नशे में चूर वो भूल जाता है कि हर इंसान की अपनी एक अलग ही सोच और कल्पना शक्ति होती है जिसके तहत वो उससे भी आगे की सोच सकता है।"

"ख़ैर, एक बात समझ नहीं आई।" पिता जी ने सोचने वाले भाव से कहा____"सफ़ेदपोश के रूप में जगताप ने अपने ही नक़ाबपोश की हत्या क्यों की थी?"

"इसकी दो वजह थीं।" चाची ने कहा____"पहली तो यही कि वो उनकी नाकामियों से बहुत ज़्यादा गुस्सा थे। दूसरे, वो दोनों मना करने के बाद भी उनके (सफ़ेदपोश) बारे में जानने की कोशिश करने से बाज नहीं आ रहे थे। इसी लिए उन्होंने गुस्से में आ कर एक को मार डाला और दूसरे को आख़िरी मौका दे कर छोड़ दिया था।"

"और जब वो दूसरा नक़ाबपोश शेरा के द्वारा पकड़ा गया और हमने उसे हवेली के एक कमरे में बंद करवाया।" पिता जी ने पूछा____"तो सुबह वो कमरे में हमें मरा हुआ मिला, क्यों? हालाकि हमने देखा था कि उसने खुरपी से खुद की जान ले ली थी किंतु अब हमें ये संदेह हो रहा है कि कहीं जगताप ने ही तो खुरपी से उसकी जान नहीं ली थी?"

"नहीं, उन्होंने उसे नहीं मारा था।" चाची ने बताया____"उसने उनके (सफ़ेदपोश) ख़ौफ के चलते ही अपनी जान ले ली थी। वैसे भी वो उस समय उसे वहां नहीं मार सकते थे क्योंकि ऐसा करने से उन पर संदेह जाता, जैसा कि बैठक में विचार विमर्श करते समय आपके मन में पैदा भी हुआ था। ये अलग बात है कि आपका मन उस समय भी ये नहीं मान रहा था कि आपका छोटा भाई ऐसा कुछ करने का सोच भी सकता है।"

"मुरारी के भाई जगन को हमारी क़ैद से भगा ले जाने वाला वो सफ़ेदपोश तुम ही थी।" पिता जी ने कुछ सोचते हुए पूछा____"हम जानना चाहते हैं कि तुम्हें इतना बड़ा ख़तरा उठा कर जगन को क़ैद से निकालने की क्या ज़रूरत थी? आख़िर उसके द्वारा क्या करवाना चाहती थी तुम?"

"वैभव को जान से मारने की एक आख़िरी कोशिश करना चाहती थी मैं।" चाची ने धीमें स्वर में कहा____"इसी लिए इतना बड़ा ख़तरा मोल ले कर मैं सफ़ेदपोश के रूप में हवेली के उस कमरे से जगन को निकाल ले गई थी। उसके बाद उसे वैभव को जान से मारने का हुकुम दिया था। वैभव को मारने में उसे कोई कठिनाई न हो इसके लिए मैंने उसको एक रिवॉल्वर भी दिया था। हालाकि मैं जानती थी कि वैभव को जान से मार देना जगन के बस का नहीं था लेकिन फिर भी एक आख़िरी कोशिश में वो सब किया मैंने।"

"आख़िर में क्या होता?" पिता जी ने पूछा____"हमारा मतलब है कि जगताप का अंतिम पड़ाव क्या था? आख़िर इतना कुछ करने के बाद वो हमारी नज़रों में ख़ुद को कैसे निर्दोष साबित करता? या फिर इसके बारे में भी उसकी कोई ऐसी योजना थी जिससे कि हम आख़िर में भी ये न सोच सकते कि ये सब हमारे भाई ने ही किया है?"

"इसके बारे में अगर योजना की बात बताऊं तो वो यही थी कि वो इस सारे फ़साद को साहूकारों के सिर मढ़ते।" चाची ने कहा____"उस समय तक आप क्योंकि इस सबके चलते अपना मानसिक संतुलन खो चुके होते इस लिए साहूकारों पर क़हर बन कर टूट पड़ते, जिसमें वो (जगताप) भी आपका साथ देते हुए साहूकारों को मारते। आप ये सोचते ही नहीं कि साहूकारों से कहीं ज़्यादा दोषी और अपराधी तो आपका अपना ही छोटा भाई है। ख़ैर आपके क़हर का शिकार होने से साहूकारों का नामो निशान मिट जाता और एक तरह से हमेशा के लिए उनका किस्सा भी ख़त्म हो जाता। उसके बाद वही होता जिसके बारे में मैंने शुरुआत में ही बताया था। ये तो थी योजना के अनुरूप बात किंतु हम ये भी जानते थे कि आख़िर तक वैसा ही नहीं होता चला जाएगा जैसा कि हमने सोच रखा है। यानि संभव है कि कहीं किसी मोड़ पर हालात बदल भी जाएं। ऐसे में अपने मंसूबों को परवान चढ़ाने के लिए यही सोचा था कि आगे जो भी हालत बनेंगे उस हिसाब से आगे की योजना बनाएंगे।"

"एक सवाल हम अपनी बेटी से भी पूछना चाहते हैं।" पिता जी सहसा कुसुम से मुखातिब हुए____"शेरा ने हमें बताया कि उसने सफ़ेदपोश को साहूकारों के खेतों की तरफ से आते देखा था। उसके बाद वो चंद्रकांत के घर पहुंचा। हम ये जानना चाहते हैं कि तुम सफ़ेदपोश बन कर चंद्रकांत के घर किस लिए गई थी?"

"वो मैंने एक दिन बैठक में आप लोगों की बातें सुनी थी।" कुसुम ने धीमें स्वर में कहा____"आप लोगों से ही मुझे पता चला था कि सफ़ेदपोश हर बार हमारे आमों के बाग़ की तरफ जाता है और फिर वहीं पर ग़ायब हो जाता है। यही सोच कर मैंने मां के कमरे में जा कर पहले सफ़ेदपोश के ये कपड़े पहने और फिर वैसे ही कमरे की खिड़की से बाहर निकल गई जैसे उस रात मैंने मां को जाते देखा था। इतना तो मैं भी समझ गई थी कि मां सफ़ेदपोश बन कर गांव के रास्ते से तो कहीं जाती नहीं रहीं होंगी, क्योंकि ऐसे में उन्हें कोई भी देख सकता था। मैं समझ गई कि मां गांव की आबादी से दूर दूर हो कर ही कहीं जाती रहीं होंगी। मैंने भी ऐसा ही किया। उधर साहूकारों के खेत थे तो वहीं से जाना पड़ा और फिर घूम कर चंद्रकांत के घर के सामने पहुंच गई। उसके घर के सामने जाने का सिर्फ यही मतलब था कि अगर आपके आदमी सफ़ेदपोश की खोज में कहीं छुपे हों तो वो मुझे देख लें। कुछ देर में ऐसा ही हुआ। मैंने एक आहट सुनी तो समझ गई कि शायद आस पास ही कहीं पर आपके आदमी मौजूद हैं। उस समय डर तो बहुत लग रहा था मुझे लेकिन सोच लिया था कि अब चाहे जो हो जाए वही करूंगी, यानि अपनी मां को बचाने के लिए अपनी जान दे दूंगी। मैं वहां से हमारे बाग़ की तरफ भागने लगी। सोचा था कि पीछे से मेरा पीछा करने वाले लोग मुझ पर गोली चलाएंगे मगर ऐसा नहीं हुआ। मुझे नहीं पता था कि वो लोग मुझे यहां बाग़ में घेरने के लिए गोली नहीं चला रहे थे।"

"अच्छा ही हुआ कि शेरा ने किसी को भी गोली चलाने को नहीं कहा था।" पिता जी ने कहा____"वरना सचमुच अनर्थ हो जाता।" कहने के साथ ही पिता जी चाची से मुखातिब हुए____"अपने लिए और अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए हमारे भाई ने इतना बड़ा षडयंत्र रचा और उसे अंजाम भी दिया। ईश्वर जानता है कि हमने कभी भी अपने और अपने भाई के बच्चों में कोई भेदभाव नहीं किया है। इसके बावजूद हमारे भाई ने हमारे बारे में ऐसा सोचा और हमारे साथ इतना बड़ा छल किया। तुम दोनों को वो हवेली, धन संपत्ति और ये सारी ज़मीन जायदाद ही चाहिए थी ना तो ठीक है। हम कल ही ये सब तुम्हारे नाम करवा देंगे। इतना ही नहीं हम अपनी पत्नी, बेटे और उस अभागन बहू को ले कर कहीं और चले जाएंगे।"

"नहीं..।" मेनका चाची एकाएक रोते हुए चीख पड़ीं____"ऐसा मत कहिए जेठ जी। मुझे कुछ नहीं चाहिए। ये सब आपका है और आपका ही रहेगा। आपके भाई ने और मैंने बहुत बड़े पाप किए हैं। इसके लिए आप मुझे जो चाहे सज़ा दे दीजिए लेकिन कहीं और जाने की बात मत कीजिए।"

"तुम्हें पता है बहू।" पिता जी ने संजीदगी से कहा____"हमें कभी भी इस धन दौलत का कोई मोह अथवा लालच नहीं था। पिता जी के बाद जब हम दादा ठाकुर की गद्दी पर बैठे तब सिर्फ यही सोचा था कि कभी किसी के साथ ग़लत नहीं करेंगे। हमारे पिता जी के द्वारा जो कुछ तबाह हुआ था उस सबको संवारना ही हमारे जीवन का मूल मकसद था। यहां के लोग ही नहीं बल्कि दूर दूर तक के लोग जाने कैसे कैसे दुखों में डूबे हुए थे जिनका उद्धार करना ही हमारा मकसद था। पिता जी तो अय्याशियों में डूबे रहते थे। अपनी शान और अपनी शाख को बुलंदी पर पहुंचाने के लिए न जाने क्या क्या करते रहते थे जिसके चलते पुरखों द्वारा बनाई गई धन संपत्ति उनके द्वारा पानी की तरह बहाई जा रही थी। दादा ठाकुर की गद्दी पर बैठने के बाद जब हमने पहली बार ख़ज़ाने की तिज़ोरी देखी थी तो सन्न रह गए थे। इतने बड़े खानदान की इतनी बड़ी हवेली में कोई खज़ाना नहीं बचा था। अब तुम खुद सोचो कि उस इंसान की क्या हालत हुई होगी जो खुद खाली पेट था लेकिन दूसरों को भर पेट खाना खिलाने की क़सम खा चुका था। उस हालत में भी हम निराश अथवा हताश नहीं हुए बल्कि ये सोच के मुस्कुरा उठे थे कि शायद ईश्वर यही देखना चाहता है कि हम कैसे खाली पेट दूसरों का पेट भरते हैं? हमने मेहनत की, अपने छोटे भाई को भी यही सिखाया और उसे हमेशा प्रेरित किया। लोगों से मिले उन्हें समझाया बुझाया और भरोसा दिलाया कि हम सब कुछ ठीक कर देंगे। कल्पना करो बहू कि कैसे हमने ये सब कुछ किया होगा? वर्षों लग गए बिखरी हुई चीज़ों को सम्हालने में। लोगों की मानसिकता ऐसी थी कि लोग हमें देख कर अंदर छुप जाते थे, डर की वजह से। उन्हें लगता था कि बड़े दादा ठाकुर का बेटा है तो वो भी उनके जैसा ही अत्याचार करेगा उन पर। किसी को यकीन ही नहीं होता था कि हम उन्हें अपने सीने से लगाने आते हैं। ख़ैर संघर्ष करना लिखा था तो किया लेकिन कभी हार नहीं मानी। शुक्र था कि ईश्वर साथ था। परीक्षा तो ली उसने लेकिन आख़िर में सफलता भी दी। वक्त गुज़रा, लोगों के दुख दूर हुए, और वही लोग एक दिन हमें देवता की तरह पूजने लगे। हमने कभी नहीं चाहा था कि लोग हमें पूजें, ये उनकी अपनी सोच थी। हमारे प्रति उनकी आस्था थी इस लिए लोग हमें पूजने लगे थे। ख़ैर लोगों को खुश देख कर हम भी खुश थे लेकिन नहीं जानते थे कि एक दिन ऐसा भी वक्त आएगा जब अपनों के द्वारा हमारे हृदय पर इस तरह की बिजलियां गिरेंगी। समझ नहीं आता कि अपने जीवन में हमने कब ऐसा कोई गुनाह किया था जिसके चलते आज हमें ऐसे ऐसे दुख मिल रहे हैं।"

"ऐसा मत कहिए जेठ जी।" मेनका चाची दुखी भाव से बोलीं____"आप तो बहुत महान हैं। आपके जैसा कोई नहीं हो सकता। ये तो...ये तो हमारा दुर्भाग्य था जो धन दौलत के लालच में पड़ कर इतना बड़ा पाप कर बैठे।"

"तुमने सही कहा था बहू कि हम आख़िर में ऐसी मानसिकता में पहुंच जाएंगे कि हमारा मुकम्मल रूप से संतुलन बिगड़ जाएगा।" पिता जी ने आहत भाव से कहा____"यकीन मानों सच में अब हमारा मानसिक संतुलन बिगड़ चुका है। अब शायद ही कभी हमें होश आएगा। जी करता है ये ज़मीन फट जाए और हम रसातल तक उसमें समाते चले जाएं।"

पिता जी की बातें सुन कर चाची कुछ बोल ना सकीं बल्कि वहीं फूट फूट कर रो पड़ीं। दुख, तकलीफ़ से कहीं ज़्यादा आत्म ग्लानि की पीड़ा थी जिसमें अब वो झुलसती जा रहीं थी। अपनी मां की ये हालत देख कुसुम भी सिसक रही थी। मेरा तो दिलो दिमाग़ पहले से ही सुन्न पड़ा हुआ था।

"शेरा।" सहसा पिता जी ने पलट कर शेरा की तरफ देखा____"अपने सभी आदमियों को समझा दो कि वो लोग आज की इस घटना का ज़िक्र जीवन में कभी भी किसी से न करें।"

"जैसी आपकी आज्ञा मालिक।" शेरा ने अदब से सिर झुका कर कहा____"मैं अभी सबको इस बारे में समझा देता हूं।"

"रुक जाओ शेरा।" मेनका चाची ने शेरा को फ़ौरन ही आवाज़ दे कर कहा____"तुम्हें अपने आदमियों को ऐसा कहने की कोई ज़रूरत नहीं है। सफ़ेदपोश का सच सबको पता चलना चाहिए। सबको पता चलना चाहिए कि हमने एक देवता समान इंसान के साथ कितना बड़ा अपराध किया है, कितना बड़ा छल किया है।"

"ये आप क्या कह रही हैं चाची?" मैं एकदम से होश में आते हुए बोल पड़ा____"नहीं नहीं, आप ऐसा नहीं करेंगी।"

"इतना कुछ जानने के बाद भी तुम मुझे बचाना चाहते हो वैभव?" चाची ने दुखी भाव से कहा____"क्या इसके बाद भी तुम्हें मुझसे घृणा नहीं हो रही?"

"नहीं, बिल्कुल नहीं।" मैंने अपनी पीड़ा को सह कर पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"अपनी प्यारी चाची से कभी घृणा नहीं हो सकती मुझे। मैं मानता हूं कि जगताप चाचा ने और आपने जो किया है उससे बहुत तकलीफ़ हुई है मुझे लेकिन मैं ये भी जानता हूं कि दुनिया में ऐसा करने वाले सिर्फ आप ही बस नहीं हैं बल्कि न जाने कितने ही होंगे। आगे भी भविष्य में लोग अपनी खुशी और अपने भले के लिए ऐसा ही करेंगे। मैं बस ये चाहता हूं कि जो गुज़र गया उसे भूल जाइए और सबके साथ एक नई शुरुआत कीजिए।"

"इतने अच्छे मत बनो वैभव।" चाची ने क़रीब आ कर मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा____"आज की दुनिया में अच्छा बन के रहना बहुत घातक होता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण खुद जेठ जी हैं। वैसे भी हमने जो किया है उसके लिए सज़ा तो मिलनी ही चाहिए हमें। मैं खुद दिल से यही चाहती हूं कि देवता समान जिस इंसान के साथ हमने इतना बड़ा विश्वास घात और छल किया है उसके लिए मुझे ऐसी सज़ा मिले जिसे वर्षों तक लोग याद रखें। मेरा और तुम्हारे चाचा का जब भी कहीं ज़िक्र हो तो लोग हमारे नाम पर थूंकें।"

"नहीं नहीं चाची।" मैं बुरी तरह तड़प उठा____"ऐसी भयानक बातें मत कीजिए।"

"तुमने अपने अच्छे कर्म से मेरा हृदय परिवर्तन किया था वैभव।" चाची ने अधीरता से कहा____"वरना आज स्थिति ना जाने कैसी हो चुकी होती। उस दिन से अब तक यही सोचती रही हूं कि कैसी भयानक मानसिक बीमारी लग गई थी हम दोनों को। ऊपर वाले का शुक्र था कि समय रहते उसने मेरा हृदय परिवर्तन कर दिया वरना तुम्हारे चाचा के मरने के बाद भी मैं होश में न आती और जाने क्या क्या करती चली जाती। फिर भले ही उस सबके चलते किसी दिन मैं जेठ जी के आदमियों द्वारा जान से मार दी जाती।"

"जो नहीं हो सका उस सबको भूल जाइए।" मैंने अधीरता से कहा____"मैं बस ये चाहता हूं कि अब से आप सब कुछ भुला कर फिर से एक नई शुरुआत कीजिए।"

"अब ये संभव नहीं हो सकेगा बेटा।" चाची ने दुखी भाव से कहा____"हमारे द्वारा किए गए अपराध चाह कर भी मुझसे भुलाए नहीं जा सकेंगे और जब भुलाए ही नहीं जा सकेंगे तो सब कुछ बेहतर होने का तो सवाल ही नहीं उठता।"

"अच्छा एक बात बताइए।" मैंने कुछ सोचते हुए पूछा____"सफ़ेदपोश के रूप में आप और चाचा जी हमेशा हमारे बाग़ की तरफ ही क्यों जा कर ग़ायब हो जाते थे? आख़िर इतना लंबा रास्ता अपना कर ख़ुद को ख़तरे में क्यों डालते थे?"

"सबको उलझाए रखने के लिए।" चाची ने गंभीरता से कहा____"बाग़ में दाख़िल हो कर हम किसी न किसी पेड़ पर चढ़ जाते थे। इससे होता ये था कि हमारा पीछा करने वाले बुरी तरह चकरा जाते थे और आख़िर में वो इसी नतीजे पर पहुंचते थे कि सफ़ेदपोश किसी जादू की तरह ग़ायब हो गया है। ऐसा सोचने के बाद फिर वो वापस चले जाते थे। उनके जाने के बाद हम आराम से पेड़ से नीचे उतरते और फिर निकल जाते। बाग़ से सीधा साहूकारों के खेतों की तरफ से होते हुए सीधा हवेली पहुंचते थे। हवेली में हमारे कमरे की खिड़की के नीचे रस्सी लटकी हुई होती थी जिसके सहारे हम वापस अपने कमरे में पहुंच जाते थे। हम जानते थे कि देर सवेर बाग़ से हमारे ग़ायब होने का ये राज़ खुल जाएगा और फिर ये भी पता लगा लिया जाएगा कि बाग़ से हम सफ़ेदपोश के रूप में कहां जाते हैं। पता लगाते हुए आप लोग हमारी उस ऊंची मेढ़ पर पहुंचते जहां से साहूकारों की ज़मीनें शुरू होती थीं और कुछ दूरी पर उनके घर भी दिखते थे। ज़ाहिर है इतना सब देखते ही आप लोग यही समझते ही सफ़ेदपोश साहूकारों के घर का ही कोई व्यक्ति है। बस, आप लोगों के मन में यही बैठाए रखना चाहते थे हम ताकि आप लोगों का शक साहूकारों पर ही रहे और इसके अलावा और कुछ सोचें ही नहीं।"

"और मेरे दोनों दोस्त सुनील और चेतन को किस मकसद से अपना मोहरा बनाया था चाचा जी ने?" मैंने पूछा।

"सच कहूं तो उन्हें मोहरा नहीं बनाया था तुम्हारे चाचा जी ने।" मेनका चाची ने कहा____"बल्कि सिर्फ नाम के लिए उनका स्तेमाल करते थे।"

"ये क्या कह रही हैं आप?" मैं बुरी तरह चकरा गया____"सिर्फ नाम के लिए स्तेमाल करते थे? भला ऐसा करने का क्या मतलब था?"

"ताकि तुम और जेठ जी यही समझते रहें कि सफ़ेदपोश कोई बहुत ही बड़ा खेल खेल रहा है।" चाची ने कहा____"जिसमें उसने तुम्हारे दोस्तों को भी अपना मोहरा बना रखा है। आप लोग सफ़ेदपोश का असल मकसद जानने के लिए बुरी तरह उलझे रहते जबकि समझ में कभी कुछ न आता। तुम्हारे दोस्तों को भी पता नहीं था कि उन्हें सिर्फ नाम के लिए ही स्तेमाल कर रहा था सफ़ेदपोश। ख़ौफ के मारे वैसे ही उनका बुरा हाल रहता था जिसके चलते कुछ सोच ही नहीं पाते थे वो। अगर हमने उन दोनों को सच में मोहरा बनाया गया होता तो उनके द्वारा तुम्हारे चाचा ने कुछ तो ऐसा करवाया ही होता जो उनके बस से बाहर होता, जैसे जगन से करवाया...उसके अपने ही भाई की हत्या और फिर तांत्रिक की हत्या। सुनील और चेतन से हमने कभी ऐसा कुछ नहीं करवाया।"

मैं भौचक्का सा देखता रह गया चाची को। मनो मस्तिष्क में सांय सांय होने लगा था। सच ही तो कह रहीं थी वो। सुनील और चेतन के द्वारा ऐसा कुछ भी तो हुआ नज़र नहीं आया था हमें। इसका मतलब सच में वो दोनों सफ़ेदपोश के नाम मात्र के ही मोहरे थे।

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जब काफी देर तक मेनका लौट कर न आई तो सुगंधा देवी को ही नहीं बल्कि हर किसी को बड़ी हैरानी हुई। सबके चेहरों पर चिंता की लकीरें उभर आईं। मां के कहने पर कजरी फ़ौरन ही मेनका और कुसुम का पता लगाने के लिए उनके कमरों की तरफ दौड़ पड़ी। सबसे पहले वो कुसुम के कमरे में पहुंची और जब उसने कुसुम के कमरे में कुसुम और मेनका को न देखा तो वो मेनका के कमरे की तरफ भागी।

कजरी जब दौड़ते हुए मेनका के कमरे में पहुंची तो उसे वहां भी कोई नज़र ना आया। ये देख चकरा सी गई वो। उसे समझ न आया कि दोनों मां बेटी अगर अपने अपने कमरे में नहीं हैं तो कहां हैं? उसने वापस आ कर सुगंधा देवी को सब कुछ बता दिया जिसे सुन कर सबके मानों होश उड़ गए। अगले ही पल वो सब हवेली में मेनका और कुसुम को खोजने लगे। कुछ ही समय में उन सबने पूरी हवेली को छान मारा लेकिन दोनों उन्हें कहीं नज़र ना आईं। सबके सब थक हार कर वापस नीचे वाले बरामदे में आ गए।

सुगंधा देवी के चेहरे पर गहन चिंता के भाव थे और साथ ही किसी अनिष्ट की आशंका के चलते वो भयभीत भी दिखने लगीं थी। किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था कि दोनों मां बेटी अचानक से कहां गायब हो गई हैं?

"धीरज से काम लीजिए दीदी।" निर्मला क्योंकि सुगंधा देवी के मायके से थी और रिश्ते में सुगंधा देवी उसकी ननद भी लगती थीं इस लिए वो उन्हें दीदी ही कहती थी, बोली____"उन्हें कुछ नहीं होगा। ज़रूर वो हमें बिना बताए वहीं गई होंगी जहां ठाकुर साहब गए हुए हैं।"

"लेकिन वहां जाने की क्या ज़रूरत थी उन्हें?" सुगंधा देवी ने हताश भाव से कहा____"रात के वक्त हवेली से नहीं जाना चाहिए था उन्हें। वो दोनों ये कैसे भूल गईं कि हमारे हालत ख़राब हैं और ऐसे वक्त में किसी के साथ कुछ भी हो सकता है।"

"शायद वो इस लिए बिना बताए चली गईं हैं ताकि वो ठाकुर साहब से उस सफ़ेदपोश को आपके सामने लाने को कह सकें।" निर्मला ने कहा____"आपने उस समय कहा था ना कि काश! वो सफ़ेदपोश आपके सामने आ जाए ताकि आप भी उसे देख सकें और उससे पूछ सकें कि उसने ये सब क्यों किया है? आपकी बात सुन कर उन्हें लगा होगा कि ठाकुर साहब कहीं वहीं पर न उस सफ़ेदपोश को मार कर फेंक आएं इस लिए वो उसको यहां आपके सामने लाने के उद्देश्य से गईं हो सकती हैं।"

"हां लेकिन इसके लिए उसे कुसुम को अपने साथ ले जाने की क्या ज़रूरत थी?" सुगंधा देवी ने उसी हताशा भरे भाव से कहा____"अपने साथ साथ उसने अपनी बेटी को भी ख़तरे में डाल दिया। हे भगवान! दोनों की रक्षा करना।"

सुगंधा देवी अपनी देवरानी और उसकी बेटी के लिए बहुत ज़्यादा चिंतित और परेशान हो उठीं थी। निर्मला उन्हें धीरज देने की कोशिश में लगी हुई थी। उधर किशोरी लाल ख़ामोश था। उसके चेहरे पर गहन सोचो के भाव उभरे हुए थे।

रात आधे से ज़्यादा गुज़र गई थी। उनमें से किसी की भी आंखों में नींद का नामों निशान तक नहीं था। सबके सब बरामदे में ही बैठे थे और दादा ठाकुर के साथ साथ बाकी सबके आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। पूरी हवेली सन्नाटे में डूबी हुई थी।




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