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कहानी- पूर्ण अपूर्ण
रचनाकार- avsji महोदय
बहुत ही बेहतरीन, लाजवाब, शानदार, दमदार, उम्दा और जो भी शब्द तारीफ के लिए बने हैं वो सबकुछ इस कहानी के लिए कहे जा सकते हैं। संजू सर के बाद दूसरी कहानी है ये जिसने मन मोह लिया है हमारा। जितनी भी तारीफ की जाए वो भी कम ही है।
जब इंसान किसी से शादी करता है तो उसकी कुछ उम्मीदें होती हैं लेकिन जब उसकी उम्मीद टूटती है तो उसे बहुत बुरा लगता है और अगर पत्नी ऐसा इल्जाम लगा दे जो बहुत घिनौना हो तो पति का तो पत्नी नामक प्राणी से विश्वास ही उठ जाता है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पल्लवी के साथ गलत हुआ था, उसकी शादी जबरन हुई थी, लेकिन पल्लवी ने जो मनीष के साथ किया वो गलत ही नहीं अन्याय था, क्योंकि मनीष ने पल्लवी के साथ कुछ भी बुरा नहीं किया लेकिन सजा उसे जिंदगी भर के दाग के रूप में मिली।
प्यार का असली स्वरूप मनीष, शोभा और चित्रा के रूप में आपने बहुत अच्छी तरह से दर्शाया है। प्यार कब कहां और किससे हो जाए ये कोई नहीं जानता, चित्रा के साथ भी ऐसा ही हुआ, उसे खुद नहीं पता कि उसे कब मनीष से प्यार हो गया, ये जानते हुए भी कि मनीष उसकी बुआ को देखने आया है। मनीष की शादी उसकी बुआ से होनी है और उम्र में भी वो उससे बड़ा है। मनीष एक अंतर्द्वंद्व में आकर खड़ा हो गया जब उसे पता चला कि उसके दिल में भी चित्रा के लिए जज्बात जन्म ले चुके हैं।
तारीफ यहां पर मनीष और चित्रा की भी बनती है। अगर मनीष संस्कारी नहीं होता और चित्रा की अच्छी परवरिश नहीं होती तो दोनो कबका घर छोड़कर भाग चुके होते। मनीष और चित्रा ने बहुत समझदारी का परिचय दिया। मनीष ने अपने जज्बात दिल में दबाकर शोभा से शादी की और चित्रा ने अपने प्यार की कुर्बानी देकर अपनी बुआ की खुशियों को चुना।
बहुत बहुत धन्यवाद मित्र

आपकी टीका बड़ी सटीक है। उसके लिए पुनः धन्यवाद।
अपना प्रयास यही रहता है कि अच्छे किस्म की कहानियां बाँची जाएं। जब यह प्रयास सफल होता है, तो बड़ा आनंद मिलता है - पाठकों को भी, और मुझे भी।

