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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Naik

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Update-22

बैलगाड़ी घने जंगल में दनदनाती हुई आगे बढ़ती जा रही थी, सुबह की शीतल ठंडी हवा चेहरे पर लगकर ताजगी का अहसास करा रही थी, उदयराज बैलों को हाँके जा रहा था, रजनी, काकी और सुलोचला पीछे बैठी हुई थी, काकी और रजनी बार बार सर घुमा घुमा कर जंगल में विचित्र लंबे लंबे पेड़ों को देख रही थी, कुछ पेड़ ऐसे थे जिनकी प्रजाति अभी तक उन्होंने कहीं देखी नही थी।

तभी सुलोचना उठकर उदयराज के बिल्कुल पीछे बैठ गयी ताकि वो उसको आगे का short रास्ता बता सके।

कभी अचानक तेज हवा चलने लगती तो कभी वातावरण बिल्कुल शांत हो जाता, कभी किसी पेड़ की डालियां एकदम हिलने लगती जैसे उन्हें कोई झकझोर रहा हो, कभी जानवरों की आवाज़ें आने लगती कभी सब शांत हो जाता।
रजनी और काकी यही सब देखकर चकित थी पर डर उन्हें लेश मात्र भी नही छू पाया था, अभी सुबह का ही वक्त था, उदयराज भी ये सब देखता हुआ बैलगाड़ी चलता जा रहा था, तभी रजनी को एकाएक एक बहुत बड़ा बरगद के जैसा बिल्कुल पीला वृक्ष दिखाई दिया।

रजनी- काकी वो पेड़ देखो बरगद जैसा एकदम पीला है और कितना बड़ा है।

काकी- हां बेटी ये तो बिल्कुल पीला है।

सुलोचना- उस पेड़ की तरफ ज्यादा मत देखो, ऐसे ही कई मायावी पेड़ हैं इस जंगल में जो बार बार रंग बदलकर आकर्षित और सम्मोहित करते हैं।

काकी- हां बहन ठीक है, तम ठीक कह रही हो हमे अपने रास्ते और मंजिल पर सीधा ध्यान रखना चाहिए न कि इधर उधर।

रजनी- हां बिल्कुल। हमे तो बैलों पर और बैलगाड़ी चलाने वाले पर ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि वही तो हमे मंजिल तक ले जाएंगे। क्यों बाबू? (रजनी हंसते हुए उदयराज को छेड़ते हुए बोली)

उदयराज ने पलट कर रजनी को देखा तो रजनी मुस्कुरा दी, उदयराज बोला- हां क्यों नही, घर भी तो जल्दी पहुचना है अब। उदयराज ने ये बोलते हुए एक बार फिर रजनी को देखा।

रजनी को बात का मतलब समझ आते ही शर्म आ गयी और उसने काकी और सुलोचना की नजरें बचा कर थोड़ा सा जीभ निकाल कर उदयराज को फिर चिढ़ाया, मानो कह रही हो कि तब तक तो बस सब्र करो।

उदयराज ने भी मौका देखके इशारा किया मानो कह रहा हो कि बस मौका मिलने दे बताता हूँ फिर।

रजनी हंस दी, उदयराज भी मुस्कुरा दिया।

सुलोचना उदयराज के पीछे बैठे बैठे रात के लिए मशाल बनाने लगी और बोली- एक बार अपने अपने ताबीज़ को ठीक से जांच लो और अच्छे से बांध लेना, यह मायावी जंगल इसी के सहारे पार किया जा सकता है।

उदयराज अब तेजी से बैलों को हांकने लगा उसे बस अब एक ही धुन सवार थी कि कैसे भी जल्दी काम खत्म करके बस घर पहुचना है।

जैसे जैसे सुलोचला रास्ता बताये जा रही थी वो बैलगाडी उसी रास्ते पर दौड़ाता जा रहा था।

ऐसे ही रास्ता कटता जा रहा था दोपहर हो गयी तभी रजनी ने काकी के कान में कहा- काकी मुझे पेशाब करना है, तेज से लगी है, कब से रोककर बैठी हूँ।

काकी- अरे पगली ये भी कोई रोकने की चीज़ है, बोल देती न। उदय ओ उदय जरा बैलगाडी कहीं रोकेगा की बस ऐसे ही दौड़ाता जाएगा। रुक जरा


उदयराज- क्यों क्या हुआ काकी? उदयराज ने बैलगाडी रोक दी।

सुलोचना- क्या हुआ बहन?

काकी- अरे वो रजनी को जोर से पेशाब लगी है, कब से दबाए बैठी है।

उदयराज ने रजनी की तरफ देखा तो रजनी ने आंखों के इशारों से मिन्नत सी की, कि जरा रोको बाबू।

उदयराज ने बैलगाडी रोक दी

सुलोचला- लेकिन पुत्री रुको

रजनी- क्या हुआ अम्मा।

सुलोचला- ऐसे मायावी जंगल में यूं ही पेशाब करना खतरनाक हो जाएगा, क्योंकि प्रेत, मानव स्त्री के मूत्र की गंध से और प्रेतनी मानव पुरुष के मूत्र की गंध से तुरंत आकर्षित हो जाते है और वो फिर उसका पीछा करने लगते है अभी तो तुमने ताबीज़ पहना हुआ है तो कोई परेशानी नही है पर वो तुम्हारे मूत्र की गंध को अपने अंदर समाहित करके हमेशा तुम्हारे पीछे लगे रहेंगे जैसे ही ये ताबीज़ हटी फिर वो तुम पर हावी हो जाएंगे। तो उन्हें मूत्र को सूंघने से ही रोकना पड़ेगा।

रजनी को जोर पेशाब लगी थी वो तो कसमसा रही थी

काकी- तो फिर कैसे होगा, अब पेशाब तो किसी को भी लग सकती है, हमने तो इसके बारे में चलने से पहले सोचा ही नही था, कितना खतरनाक है ये जंगल, तो कैसे होगा बहन, अब रजनी को तो लगी है न जोर से।

सुलोचला- हल है न, मैं किसलिए हूँ तुम्हारे साथ, देखो मानव मूत्र पर प्रेत या प्रेतनी की छाया पड़ने से पहले अगर मनुष्य योनि के विपरीत लिंग का मूत्र उसपर पड़ जाए तो उस मूत्र पर उसके बाद उसपर पड़ने वाले मूत्र का अधिकार हो जाता है मतलब वह अकेला नही रहता और फिर ऐसी बाधा नही आ पाती।

काकी- मैं समझी नही

रजनी और उदयराज भी असमंजस की स्थिति में सुलोचना को देखने लगे। रजनी तो बार बार अपनी जांघों को भीच ले रही थी, काफी देर से उसने पेशाब दबा रखा था।

सुलोचला- अरे, बहन जैसे कि रजनी के पेशाब करने के बाद अगर कोई पुरुष उसपर पेशाब कर दे तो रजनी सुरक्षित हो जाएगी, उसपर उस पुरुष का अधिकार स्थापित हो गया।

काकी- तो पुरुष तो हमारे साथ केवल इस वक्त उसके बाबू ही हैं।

सुलोचला- हाँ तो क्या हुआ, वो ही करेंगे इसमें क्या हर्ज है अपनी बेटी की रक्षा के लिए करना पड़ेगा।

रजनी के पेशाब करने के बाद उसके बाबू उसपर पेशाब करके उसमें अपना पेशाब मिला देंगे तो रजनी खाली नही रहेगी इसपर उदयराज का अधिकार साबित हो जाएगा और इसके अलावा मैं पानी में मंत्र मारकर और एक फूल दे देती हूँ रजनी और उदयराज थोड़ा दूर जाकर एक साथ खड़े हो जाये फिर रजनी हाथ में पानी लेकर अपने और उदयराज के चारों ओर एक गोला बना लेगी और लोटा उदयराज को देखकर दक्षिण दिशा में विपरीत मुँह करके पेशाब कर लेगी और फिर उसके बाबू भी दक्षिण दिशा में रजनी के पेशाब में अपना पेशाब मिला देंगे फिर दोनों गोले से बाहर आकर जहां पर गोला बंद किया था वहां फूल रख देंगे मैं मंत्र से उसको बंद कर दूंगी। फिर कोई दिक्कत नही है।

उदयराज- लेकिन मुझे तो पेशाब आ ही नही रही अम्मा (उदयराज ने ये कहते हुए रजनी की तरफ देखा तो रजनी कसमसाते हुए झेप गयी)

सुलोचना- अरे बेटा नही आ रहा तो पानी पी ले एक लोटा, लेकिन तू दो बूंद भी अपना पेशाब उसके पेशाब में मिला देगा तो वो सुरक्षित हो जाएगी।

उदयराज- माता मैं तो मज़ाक कर रहा था मैं अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।

सुलोचना- जानती हूं बेटा, जो इंसान पूरे गांव की सुरक्षा के लिए अपने पूरे परिवार को लेके जिसमे एक छोटी सी बच्ची भी है इतने जोखिम भरे रास्ते पर निकल सकता है उसके लिए तो ये कुछ भी नही, पुत्र तुझे इसका फल अवश्य मिलेगा।

और फिर सुलोचना ने एक लोटे में जल लेकर उनमे मंत्र फूंका और रजनी को दे दिया रजनी उसे लेकर बैलगाडी से उतरी उसके पीछे उदयराज भी चलने लगा, कुछ दूर जाकर रजनी ने पलटकर देखा और बोली यहीं ठीक है बाबू थोड़ा ओट भी है।

रजनी ने बताये अनुसार हाथ में जल लेकर अपने और उदयराज के चारों ओर एक घेरा बना दिया फिर लोटा उदयराज को देकर बोली- अब तुम उधर मुह करो पीछे मत देखना बाबू, ठीक है।

उदयराज- किधर?

रजनी- उधर

उदयराज- अरे उधर किधर?

रजनी- दक्षिण दिशा की तरफ, नही उत्तर दिशा की तरफ।

उदयराज- हे भगवान इतना तेज पेशाब लगा है कि कुछ समझ नही आ रहा मेरी बेटी को।

रजनी- हाँ लगी है न बाबू, अब उधर मुँह करो, काकी और अम्मा दोनों इधर ही देख रही है।

उदयराज- देखने दो मैं क्या डरता हूँ उनसे (उदयराज ने मस्ती करते हुए कहा)

रजनी- बाबू करने दो न, अब, मान भी जाओ मेरे बाबू

उदयराज- इससे भी सुरक्षित तरीका सुझा है मुझे।

रजनी- क्या?

उदयराज- इससे अच्छा तो तुम मेरे मुँह में ही पेशाब कर देती, न जमीन पर गिरता न ऐसी ऐसी आफत आती, मेरे मुँह में वो सुरक्षित रहता।

रजनी (जोर से हंसते हुए) - हे भगवान! बदमाश! गंदे!, बहुत बदमाश होते जा रहे हो बाबू तुम, मेरे पेशाब मुँह में लिए फिरोगे, बोलोगे कैसे? तुम न दीवाने होते जा रहे हो बस, अब बाबू धुमो न उधर मुझे करने दो न।


उदयराज- तुम हो ही इतनी हसीन, क्या करूँ।

रजनी- बदमाश!

उदयराज- अच्छा ठीक है पहले बोलो मुझे पिलाओगी न।

रजनी- क्या? दुद्धू, वो तो तुम्हारा ही है मेरे बाबू, क्यों नही पिलाऊंगी (बहुत प्यार से बोला रजनी ने)

उदयराज- वो नही, वो तो मैं पियूँगा ही, मुझे तो ये भी पीना है।

रजनी- क्या?

उदयराज (धीरे से)- अपनी शादीशुदा बेटी का पेशाब

रजनी का मुँह खुला का खुला रह गया-hhaaaiii dddaaaiiiyaa, dhhaaattt, गंदे! हे भगवान बाबू, ये गंदा होता है न

उदयराज- कुछ भी हो मुझे तो पीना है थोड़ा सा ही सही

रजनी शर्म से लाल हो गयी

उदयराज- बोलो न, तभी उस तरफ घूमूंगा!

रजनी- बहुत बदमाश हो तुम बाबू, अच्छा ठीक है पर घर पे और बस थोड़ा सा और पीना नही है बस मुँह में लेकर फिर थूक देना, ठीक

उदयराज- ठीक


रजनी- चलो अब उधर देखो मुझे बहुत जोर से लगी है बर्दाश्त नही होता अब।


और उदयराज उत्तर दिशा की ओर मुह करके खड़ा हो गया, रजनी का किया हुआ वादा सोचके उसका लन्ड फ़नफना उठा पर जल्द ही उसने adjust कर लिया क्योंकि काकी और सुलोचना ज्यादातर इस तरफ ही देख रही थी

रजनी दक्षिण की तरफ घूमी और जल्दी से अपनी साड़ी को थोड़ा सा उठा के उसके अंदर हाथ डाल के पेंटी को घुटनों तक साड़ी के ही अंदर नीचे सरकाया फिर नीचे बैठ गयी और पेशाब की धार छोड़ दी, पेशाब की धार की शीटी सी आवाज उदयराज के कानों तक पड़ी तो उसका मन मचल उठा, रजनी इतना तो समझ गयी कि बाबू पेशाब की धार की आवाज तो सुन ही रहे हैं, रजनी की मखमली बूर की फांकों के बीच से एक मोटी पेशाब की धार जमीन में इतनी तेज लग रही थी की वहां हल्का सा गढ्ढा हो गया, आखिर उसे पेशाब लगा ही इतना तेज था, काफी देर से दबाए हुए थी, पेशाब की धार छोडते ही उसने राहत की सांस ली।

अभी पेशाब करते हुए उसे कुछ सेकंड ही हुए होंगे कि पास के पेड़ की डाल काफी जोर से हिली जैसे किसी ने झकझोर दिया हो

काकी- ये क्या हुआ बहन।

सुलोचला- आ गए हरामजादे, स्त्री का पेशाब सूंघने, अगर अभी ये गोला न बनाया होता तो टूट पड़ते पेशाब पर, और अगर ताबीज़ न बंधी होती तो हावी वो जाते, उदयराज और रजनी ने भी हिलती हुए डाली को देखा पर डरे नही।

काकी- कितना खतरनाक है ये जंगल वाकई में।

रजनी करीब 30 सेकंड तक मूतती रही फिर उठ गई उसकी मखमली मुलायम बूर से निकला हुआ काफी सारा पेशाब जमीन पर था उसने शर्माते हुए उदयराज को देखा और लोटा ले लिया, उदयराज की नज़र जब रजनी के मूत पर पड़ी तो वो उसे मदहोशी से देखने लगा।

रजनी उत्तर की तरफ मुँह करके खड़ी हो गयी फिर उदयराज रजनी के पेशाब के पास बैठ गया और अपना पहले से ही सख्त हो चुके करीब 9 इंच लंबा 3 इंच मोटा काला लंड निकालकर मूतने लगा, उदयराज के लंड से भी पेशाब को धार सुर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर की आवाज के साथ निकलने लगी और रजनी के पेशाब में जा मिली, जैसे ही रजनी ने अपने बाबू के पेशाब की धार की आवाज सुनी और ये सोचा कि मेरे बाबू का पेशाब मेरे पेशाब से मिल गया, उसके तन बदन में मीठी तरंगे दौड़ गयी, आज ये पहली बार हुआ था , बदन गनगना गया उसका। मन ही मन वो सोचने लगी कि बाबू का लंड कैसा होगा? ये सोचते ही शर्म की लालिमा उसके चेहरे पर दौड़ गयी।

उदयराज मूत चुका था वो अब उठ गया, लंड उसने धोती के अंदर करके कुछ इस तरह एडजस्ट किया कि रजनी को भी इसका अहसास न हो कि वो खड़ा है, वो सारे पत्ते एक ही बार में खोलना नही चाहता था।

फिर रजनी और उदयराज उस गोले के बाहर आ गए और रजनी गोले के मुह पर जब फूल रखने लगी तो सुलोचना ने मंत्र पढ़कर उसको बांध दिया

रजनी ने एक नज़र पेशाब पर डाली, अपने पेशाब में अपने बाबू का मिला हुआ पेशाब देखकर उसकी बूर थोड़ी गीली सी हो गयी और अजीब सी गुदगुदी का अहसाह हुआ, फिर उसकी नज़र अपने बाबू पर गयी जो उसे ये देखते हुए देख रहे थे तो वो शर्मा गयी।

उदयराज बोला- लो अब तुम हो गयी मेरी, तुम पर हो गया मेरा अधिकार।

रजनी- वो तो मैं आपकी बचपन से हूँ, मेरे ऊपर आप ही का हक़ है बाबू। अब चलो

उदयराज और रजनी बैलगाडी तक आ गए।

काकी- अब मिली शांति

रजनी- हां काकी, देखो न कितना सुकून है मेरे चेहरे पर।

सब हंस पड़े

काकी- अब जब यहां रुके ही हैं तो खाना पीना खा के थोड़ा आराम करके फिर चलते हैं।

सुलोचना- ठीक है

फिर सबने कुछ दूर एक घने पेड़ के नीचे खाना खाया और कुछ देर आराम करने लगे

कुछ देर आराम करने के बाद उदयराज फिर बैलगाडी सुलोचना के बताए अनुसार चलाने लगा और शाम हो गयी।

सुलोचला - यहां से लगभग तीन किलोमीटर का रास्ता और है फिर पहुंच जाएंगे, यहां पर अब भूत प्रेतों का खतरा नही है क्योंकि अब हम महात्मा पुरुष के स्थान की परिधि में प्रवेश कर गए हैं

उदयराज, काकी और रजनी ने देखा कि वहां से बड़े बड़े पहाड़ शुरू हो गए थे, सुलोचना ने बनाये हुए मशाल जलाकर बैलगाडी के side में लगी मशालदानी में लगा दिए, जंगल में कुछ दूर तक रोशनी फैल गयी।
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Naik

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Update-23

कुछ ही पलों में जलती हुई मशाल की जगमगाती रोशनी के साथ बैलगाडी पहाड़ों से भरी हसीन वादियों में प्रवेश कर गयी। बैलगाड़ी में बैठी रजनी, काकी और उदयराज को एक असीम शक्ति, और सुकून का अहसास हुआ, पहाड़ों के बीच होते हुए बैलगाडी एक ऐसे दो बड़े बड़े पहाड़ों के पास पहुँची, वहां पर कुछ आदिवासी घूम रहे थे उनके हाथ में भी मशाले थी। सामने दो पहाड़ों के बीच एक छोटी सी गुफा थी उसके द्वार पर दो आदिवासी पहरा दे रहे थे, आस पास चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़ थे जिनमें और भी गुफायें थी।

सुलोचना- पुत्र बैलगाडी रोको, हम पहुँच गए हैं यही वो जगह है, वो सामने की गुफा के अंदर उन महात्मा का वास है।

उदयराज ने बैलगाड़ी रोक दी।

रजनी और काकी चकित होकर देख रहे थे, वहां के वातावरण में एक अजीब ही चुम्बकीय शक्ति थी जो अत्यंत ऊर्जा का अहसास करा रही थी।

सुलोचना बैलगाड़ी से उतरी और लाठी के सहारे उस मुख्य गुफा द्वार तक गयी उसे देखते ही वहां पर पहरा दे रहे आदिवासी ने सुलोचना को झुक कर अभिवादन किया, ये देखकर उदयराज, रजनी और काकी चकित रह गए।

सबको बड़ा गर्व हुआ कि वह एक ऐसे इंसान के साथ हैं जिसकी यहां पर इतनी इज़्ज़त है। उदयराज सुलोचना के प्रति खुद को मन ही मन बहुत आभारी और कृतज्ञ महसूस करने लगा। उसने मन ही मन खुद से ये प्रण किया कि वह जिस भी तरह से सुलोचना के काम आ सकता है जरूर आएगा। सुलोचना के इस तरह निस्वार्थ रूप से उसकी मदद करना उसके दिल को गहराई तक छू गया।

सुलोचना ने उस आदिवासी से कुछ बात की फिर पीछे मुड़कर सबको बैलगाडी से उतरकर आने के लिए कहा।

उदयराज ने बैलगाडी एक पेड़ से बांध दी, सुलोचना के इशारे पर एक आदिवासी ने बैलों के चारे के इंतजाम कर दिया, सबलोग गुफा के द्वार पर गए, आदिवासी ने सबको झुककर अभिवादन किया और सब गुफा के अंदर प्रवेश कर गए।

अंदर जाकर उन्होंने देखा कि कई कक्ष बने हुए थे जिसमें से एक में सुलोचना उन्हें ले गयी और बोली- अभी यहीं बैठो।

गुफा के अंदर काफी बड़े बड़े चट्टानो को काटकर बैठने के लिए और लेटने के लिए बनाया हुआ था, सब बैठ गए, तभी एक आदिवासी उनके लिए बांस की बनी बड़ी गिलास में कुछ पेय पदार्थ पीने के लिए लाया।

उस आदिवासी ने सुलोचना से कुछ कहा फिर सुलोचना ने बोला- लो ये पियो, थकान उतर जाएगी।

सबने दिव्य रस पिया और वाकई में उन्हें पीने के बाद काफी ऊर्जा महसूस हुई, उस वक्त शाम के 7 बज चुके थे, बाहर अंधेरा हो गया था, गुफा के अंदर व बाहर मशाले जल रही थी।

सुलोचना ने एक आदिवासी को कुछ बोलकर अंदर भेजा।

उदयराज- माता ऐसा जान पड़ता है ये लोग आपको बहुत अच्छे से जानते हैं।

सुलोचना- हां बिल्कुल, इन लोगों के साथ मैं कुछ महीने रही हूं जब मैं मन्त्र सीख रही थी। ये लोग मुझे बहुत इज़्ज़त देते हैं और बात मानते हैं।

काकी- हां वो तो दिख ही रहा है बहन, पर मान लो आप हमारे साथ न होती तो हम कैसे इनकी भाषा समझते और कैसे आगे बढ़ते। आप तो जैसे वरदान बनकर आयी हैं हमारे लिए।

सुलोचना- नही बहन ये तो मेरा फ़र्ज़ है, अपनी प्रतिज्ञा से मैं बंधी हूँ, जन मानस की सेवा करना ही मेरा धर्म है, इसलिए ही मैंने अपने पति की अधूरी इच्छा को पूरा करने के लिए ये सब सीखा और कई वर्षों से मैं यही कर रही हूँ। अच्छा बहन क्या घर से घर का कुछ चावल लायी हो हमे हवन में उसकी जरूरत पड़ेगी।

उदयराज- हां माता हम घर से कुछ अनाज लाये थे, उसमे चावल भी है।

सुलोचना- ठीक है वो निकाल कर थोड़ा सा एक पोटली में ले लो।

काकी ने वैसा ही किया।

तभी वह आदिवासी आया और उसने सुलोचना से कुछ कहा।

सुलोचना- आओ चलो अब मेरे साथ।

सब सुलोचना के पीछे चल दिये, वो गुफा के अंदर आगे आगे लाठी लिए चल रही थी और उसके पीछे काकी और फिर रजनी और सबसे पीछे उदयराज।

गुफा के अंदर एक छोटी सुरंग थी वो लोग उसी में से आगे बढ़ रहे थे, ये सुरंग अंदर ही अंदर एक बड़ी सी गुफा में जा कर मिलती थी उस गुफा के चारो तरफ भी कई छोटे कक्ष बनाये गए थे।

आखिर वो उस गुफा तक पहुचे जहां वह महात्मा विराजमान थे। उनकी आभा देखते ही बनती थी, उनके अगल बगल एक आदिवासी सेवक और एक सेविका खड़ी थी जो उन्हें मोरपंख से बने पंखे से हवा कर रहे थे। उस गुफा में कई तरह की जड़ीबूटियां, फूल और सुगंधित मालाएं लगी थी। महात्मा के ठीक सामने एक छोटा सा हवन कुंड था, दीवारों पर मशालें जल रही थी लेकिन धुवां नाममात्र भी नही था।

सुलोचना ने उनको प्रणाम किया साथ ही उदयराज और रजनी तथा काकी ने भी प्रणाम किया। सब महाराज के सामने बैठ गए।

महात्मा सुलोचना को देखते ही बोले- आओ पुत्री, कैसी हो?

सुलोचना- महात्मन मैं ठीक हूँ। आपकी कृपा है।

महात्मा- जीती रहो पुत्री।

महाराज ने उदयराज के ऊपर दृष्टि डाली कुछ पल उसे देखा फिर आंखें बंद की, कुछ मंत्र बोले और फिर आंखें खोल कर बोले- विक्रमपुर के मुखिया उदयराज सिंह!, बोलो पुत्र इस वीरान घने जंगल में अपनी पुत्री के साथ कैसे आना हुआ, क्या कष्ट है?

सुलोचना को छोड़कर सब भौचक्के रह गए, क्योंकि सुलोचना उनकी महिमा जानती थी, उदयराज का मुँह खुला का खुला रह गया यह सोचकर कि बिना बताये मंत्रों की शक्ति से ही महात्मा ने उसका नाम, गांव, संबंध सब जान लिया, वह बहुत प्रभावित हुआ, वह समझ गया कि अब उसकी समस्या का समाधान मिल जाएगा। इतना दिव्य महात्मा उसने आज तक नही देखा था और बोली उनकी कितनी सरल है, न कोई घमंड न कोई गुरूर। यही सही सच्चे महात्मा का व्यक्तित्व होता है।

वह हाँथ जोड़कर बोला- महात्मा, ये हमारा सौभाग्य है कि माता सुलोचना की कृपा से आज हमे आपके दर्शन मिले। आपने अपनी शक्ति से स्वयं ही मेरा नाम और गांव जान लिया।

महात्मा- जीते रहो पुत्र, सब ईश्वर की शक्ति और उन्ही की माया है, बताओ क्या कष्ट है?

उदयराज- महात्मा, विक्रमपुर गांव में कई पीढियों से एक ऐसी समस्या चली आ रही है जिसका हल न तो हमारे पूर्वज खोज पाए और न ही हम, हमारे गांव की जनसंख्या पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ने की बजाय घट रही है, कई सौ सालों पहले जहां 1000-2000 घर थे आज वो सिमटकर 100-200 ही रह गए हैं, जन्मदर और मृत्युदर में बहुत ही बड़ा अंतर आ गया है, बच्चे जल्दी नही होते है और होते भी हैं तो ज्यादातर कम उम्र में ही खत्म हो जाते हैं।

उदयराज ने आगे कहा- लोग बीमार पड़ते है, इलाज़ कराओ तो मर्ज का पता ही नही लगता और कुछ दिन बाद मौत हो जाती है, धीरे धीरे करके कितने परिवार पूरे के पूरे साफ हो गए उनका अब नामो निशान नही, हर मौजूदा परिवार में लोगों ने अपनो को खोया है और जो परिवार पूरे के पूरे साफ हो गए वो तो हो ही गए। मैन खुद अपनी पत्नी और बेटे को खोया है, ये मेरे साथ मेरी काकी हैं जिन्होंने अपने पति और बेटे को खोया है, महात्मा जी अगर किसी मर्ज का पता हो तो समस्या का हल निकले पर यहां तो कुछ पता ही नही चलता। इस तरीके से तो एक दिन ऐसा आएगा कि हमारा और हमारे कुल का ही नामो निशान मिट जाएगा, कोई बचेगा ही नही। आखिर हमने किसी का क्या बिगाड़ा है

जबकि हम और हमारे कुल के लोग निहायत ही सीधे साधे हैं, न किसी से कोई बैर न किसी से कोई झगड़ा, कभी किसी का अहित नही सोचते, किसी के साथ ग़लत नही करते, ऐसा कोई काम नही करते जिससे किसी का दिल भी दुखे, और ये आज से नही पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है। बहुत ईमानदार, शरीफ, भोले भाले सच्चे लोग हैं हमारे कुल में, हमारे गांव में।

बाहरी दुनियां में देखो, कितना अधर्म, कुकर्म, अनैतिक कार्य, कितना ही गलत-गलत काम होता है पर मजाल क्या है हमारे यहां कभी ऐसा कुछ हुआ हो, गलत हम सोच ही नही सकते और न कर सकते हैं, यही हमारी रीति है यही हमारा स्वभाव है और यही हमारी पहचान और मूल है। जो मान मर्यादा हमारे पूर्वजों द्वारा बनाई गई है उसकी लाज का पालन आज भी हमारे कुल का एक एक शख्स कर रहा है और करता रहेगा।

बाहरी दुनियां से तो हमने अपने आप को पीढ़ियों से ही अलग कर रखा है ताकि हमारे कुल के लोगों पर कभी पाप, कुकर्म, अनैतिक, गलत काम, अधर्म की छाया भी न पड़े, और हमे मोक्ष प्राप्त हो।

महात्मा जी, सुलोचना, रजनी, और काकी सब ध्यान से सुन रहे थे।

उदयराज ने आगे कहा
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Naik

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Update-24

उदयराज ने अपनी समस्या बताते हुए आगे कहा- हे महात्मा हमारी रक्षा कीजिये, नही तो हमारा नाश हो जाएगा, बाहरी दुनियां में पाप, दुराचार, अधर्म सब कुछ हो रहा है, परंतु फिर भी पूरी दुनियां आगे बढ़ रही है, जनसंख्या बढ़ रही है एक संतुलन बना हुआ है, मृत्य हो रही है तो जन्म भी हो रहे हैं, लोग गलत करके भी खुश है, परंतु हम लोग डर और दुख के साये में जी रहे है, आगे हमारे कुल, हमारी सभ्यता का क्या होगा, हमारा तो अस्तित्व ही खतरे में आ गया है, महात्मा हमारी जान बचाइए, कोई रास्ता बताइए जिससे ये पता लगे कि ऐसा क्यों है, क्यों हमारी संख्या अनायास ही घट रही है, क्यों हमारा संतुलन बिगड़ गया है, और इसका हल क्या है? यह कैसे सुधरेगा? इसके लिए क्या करना होगा? इतना सबकुछ विस्तार से बताते-बताते उदयराज की आंखें नम हो गयी थी, महात्मा को इसका अहसास था, अन्य लोग भी काफी उदास हो गए।

महात्मा ने उन्हें सांत्वना दी और बोले- चिंता मत करो हर समस्या का हल होता है, क्या तुम अपने घर से कुछ चावल के दाने लाये हो।

सुलोचना- हाँ महात्मा लाये हैं और सुलोचना ने वह छोटी चावल की पोटली महात्मा को दे दी।

महात्मा ने अपने सामने बने हवन कुंड में कुछ लकड़ियां रखकर जला दी, उसमे कुछ जड़ी बूटियां डाला फिर एक सुगंधित द्रव्य डाला और उदयराज के घर के चावल के कुछ दाने उसमे डाल दिए और बाकी बचे हुए दाने उन्होंने उदयराज, काकी और रजनी को देते हुए कहा इसको मुट्ठी में बंद कर लो और सुलोचना को छोड़कर आप लोग अपने कुल देवता या कुल वृक्ष को आंखें बंद कर ध्यान करो।

उदयराज, काकी और रजनी ने आंखें बंद कर अपने कुलवृक्ष को ध्यान किया।

महात्मा ने मंत्र पढ़ना शुरू किया और ध्यान लगाया, कुछ देर बाद आंख खोला और बोले- ह्म्म्म तो ये बात है।

सबने आँखे खोल दी

महात्मा- मैं जो बताने जा रहा हूँ अब ध्यान से सुनो

ये जो तुम्हारे गांव में बरगद जैसा कुलवृक्ष है वो 500 साल पुराना है।

उदयराज- हां महात्मा लगभग, बहुत पुराना हमारा कुलवृक्ष है वो।

महात्मा- उसी वृक्ष के नीचे बैठकर तुम्हारे एक समकालीन पूर्वज महात्मा ने जो उस वक्त मुखिया भी थे, एक यज्ञ किया था और अपने सम्पूर्ण कुल को मोक्ष दिलाने के लिए बाहरी दुनियाँ से अलग कर बांध दिया था, उन्होंने पहले अपने मंत्र की शक्ति से तुम्हारे कुल के सभी लोगों के अंदर से अधर्म, पाप, गलत सोच, गलत काम का नाश कर उनको पूर्ण स्वच्छ किया और सबकी नीयत को साफ कर पूर्ण कुल को बांध दिया और ये बंधन आज भी लगा हुआ है, उन्होंने ऐसा सोचा कि जब हम लोगों के मन में गलत नीयत होगी ही नही तो हम गलत करेंगे ही नही, बस ईश्वर के बनाये हुए नियम पर चलेंगे, प्रकृति के हिसाब से चलेंगे और बाहरी दुनिया से हमे कोई मतलब ही नही होगा तो हम सब के सब मोक्ष को प्राप्त होंगे, उन्होंने ये सब सम्पूर्ण कुल की भलाई के लिए किया पर ये धीरे धीरे उल्टा पड़ता चला गया और ऐसी स्थिति आ गयी कि संतुलन बिगड़ गया, अब क्योंकि वो महात्मा सिद्ध पुरुष थे तो उनके मंत्र की काट किसी के पास तुम्हारे कुल में नही है और उनके बाद न ही कभी कोई ऐसा सिद्ध पुरुष आया जो इसको समझ पाता और इसको तोड़ पाता। धीरे धीरे जीवन मरण का संतुलन बिगड़ता गया और आज ये स्थिति है कि तुम्हारे कुल के एक तिहाई परिवार खत्म हो चुके हैं।

उदयराज, रजनी और काकी चकित रह गए ये जानकर और अचंभित थे कि कैसे कुछ ही पलों में महात्मा ने उनके कुल की सारी जन्म पत्री खोल कर रख दी थी

उदयराज- तो महात्मा जी क्या जो लोग मर चुके हैं उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ होगा।

महात्मा- नही

उदयराज का अब माथा ठनका।

उदयराज- पर क्यों महात्मा, हम तो सदैव ईश्वर और प्रकृति के बनाये हुए नियम के हिसाब से चल रहे हैं।

महात्मा- जिसकी अकाल मृत्यु हो उसे कभी मोक्ष प्राप्त नही होता, पहले वो प्रेत योनि में भटकता है और जैसा की तुमने बताया कि तुम्हारे गांव में लोग बीमार पड़ते हैं और मर जाते हैं तो ये एक अकाल मृत्यु हुई, और अकाल मृत्यु पाने वाले को मोक्ष प्राप्त नही होता, अकाल मृत्यु का अर्थ है जब कोई जीव अपनी पूर्ण आयु जिये बिना बीच में ही किसी भी कारणवश मर जाये। ऐसे में वो प्रेत योनि में चला जाता है और जब तक उसकी तय आयु पूरी न हो जाये वो वहीं भटकता रहता है, तुम्हारे पूर्वज ने अपनी तरफ से तो अच्छा ही करने की कोशिश की पर वह ये भूल गए कि कोई कितना भी बड़ा महात्मा या सिद्ध पुरुष हो, कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, ईश्वर के बनाये हुए नियम से छेड़छाड़ नही कर सकता और अगर जानबूझ कर करता है तो वह विनाशकारी ही होता है, तुम्हारे पूर्वज ने सोचा कि हम गलत करेंगे ही नही तो सब के सब मोक्ष को प्राप्त होंगे पर नियति ने फिर अकाल मृत्यु देना शुरू कर दिया, और नियमानुसार मोक्ष प्राप्ति विफल हो गयी, क्योंकि मोक्ष प्राप्ति के लिए ईश्वर के बनाये नियमों का सही से पालन करते हुए पूर्ण आयु को प्राप्त होना होता है तभी वह मिलता है पर कुछ विशेष वजह से यह फिर भी नही मिलता, मोक्ष प्राप्ति इतना आसान नही जितना तुम्हारे पूर्वज द्वारा समझा गया और उनकी इस भूल की वजह से कितनो की जान चली गयी।

उदयराज महात्मा का मुंह ताकता रह गया।

महात्मा- नियति कभी भी अपने बनाये हुए नियम में होने वाले छेड़छाड़ के मकसद से बनाये गए नियम को पूर्ण नही होने देती, सोचो अगर यह इतना ही आसान होता तो दुनियां के सब लोग इसका ऐसे ही पालन करके मोक्ष प्राप्त कर लेते और जीवन मरण के झंझट से मुक्त हो जाते, सब लोगों को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती और फिर तो नरक भी खाली हो जाता और मृत्यलोक भी, ये संसार ही खत्म हो जाता, जरा सोचो उदयराज सोचो, क्या होगा अगर सब लोग इतनी आसानी से मोक्ष की प्राप्ति कर स्वर्ग को चले जाएं तो?

इस मृत्यलोक में जीवन की उत्पत्ति तो खत्म ही हो जाएगी, लोग ईश्वर के बनाये हुए नियम पर बड़ी आसानी से चलते हुए अपनी पूरी आयु जीकर मोक्ष प्राप्त कर स्वर्ग में चले जायेंगे, नया जन्म कैसे होगा, धीरे धीरे संसार खाली, नरक के लोग भी अपनी सजा पूरी कर स्वर्ग को प्राप्त हो जाएंगे और नर्क भी खाली हो जाएगा, जब गलत काम होगा ही नही तो एक वक्त तो ऐसा आएगा न की नर्क नगरी में ताला लग जायेगा और मृत्यु लोक भी खत्म।

तो क्या ये इतना आसान है कि कोई इंसान कुछ सिद्धियां प्राप्त करके नियति को ललकारे की देख मैं कुछ छोटी मोटी शक्तियां प्राप्त करके तेरे बनाये नियम को तोड़कर वो कर लूंगा जो मैं चाहता हूँ, क्या ऐसा हो सकता है? सोचो जरा

उदयराज को बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी उसके पूर्वज द्वारा किये गए इस बेवकूफी भरे कार्य से

महात्मा ने आगे समझाया
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Naik

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Update-25

महात्मा- एक बात को समझने की कोशिश करो इस ब्रम्हांड में अगर कोई भी चीज़ है तो उसका अस्तित्व जरूर है, और सबकुछ ईश्वर ने ही बनाया है, इस संसार को चलाने के लिए सब चीज़ की जरूरत है

देखो जैसे अगर सफेद है तो काला भी है बिना काले के सफेद का अस्तित्व ही नही है

अगर पुण्य है तो पाप भी है और अगर पाप ही नही होगा तो पुण्य के अस्तित्व को पहचानेंगे कैसे? हमे कैसे पता चलेगा कि पुण्य इसको बोलते है, पुण्य का अस्तित्व पाप से है और पाप का पुण्य से

इसी तरह सिपाही का अस्तित्व चोर से है, चोर है तो सिपाही है, चोर नही तो सिपाही का क्या अस्तित्व

उदयराज महात्मा के चरणों में पड़ गया- हे महात्मा मुझे अब समझ आ रहा है कि हमारे पुर्वज ने क्या गलती की, हमने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है, हमे नियति से छेड़छाड़ नही करनी चाहिए थी।

महात्मा- पुत्र इसमें तुम्हारा कोई दोष नही, ये तुम्हारे द्वारा नही हुआ है, इसके लिए खुद को दोषी मत समझो, तुम्हारे पुर्वज ने अपने मंत्र की शक्ति से तुम्हारे कुल को बांध दिया है इसलिए तुम्हारा कोई दोष नही।

उदयराज- तो महात्मा जी इसका हल क्या है? कैसे हम इसको तोड़कर बाहर निकल सकते हैं। कैसे हम खुद को और बचे हुए लोगों को बचा सकते हैं।

महात्मा ने फिर अपनी आंखें बंद की ध्यान लगाया और आंखें खोली, उन्होंने उदयराज, रजनी और काकी को मुठ्ठी में लिए हुए चावल के दानों को हवन में विसर्जित करने के लिए बोला, सबने वैसा ही किया, महात्मा ने फिर एक मुट्ठी चावल लिया और आंखें बंद कर ध्यान लगाया, कुछ देर बाद आंखें खोल कर फिर से उदयराज, काकी और रजनी को चावल के दाने देकर मुट्ठी बंद करने को कहा, सबने वैसा ही किया और महात्मा ने आंखें बंद कर मंत्र पढ़ना शुरू किया। कुछ समय बाद उन्होंने आंखें खोली।

महात्मा- इसका हल है, इसके लिए तुम्हे उपाय और कर्म दोनों करने होंगे, उपाय तुम्हे तुम्हारे पुर्वज द्वारा लगाए गए मंत्र को काटने के लिए करना होगा और कर्म तुम्हे नियति के नियम को दुबारा स्थापित करने के लिए करना होगा जो खंडित हो चुका है इस वक्त। फिर सब धीरे-धीरे सही हो जाएगा।

उदयराज- कैसा उपाय और कैसा कर्म महात्मा जी?

महात्मा- उपाय ले लिए मैं तुम्हे मन्त्र से सुसज्जित करके चार कील दूंगा जिसको तुम्हे मेरे बताये गए जगह पर गाड़ना है?

उदयराज- बताइए महात्मा जी, जो जो आप कहेंगे मैं करने के लिए तैयार हूं।

महात्मा- पहली कील तुम्हे यहां से जाते वक्त जंगल में एक पीला वृक्ष मिलेगा उसकी जड़ों में गाड़ देना है ध्यान रहे उस पेड़ को छूना मत किसी पत्थर से उस पेड़ को बिना छुए कील को ठोककर गाड़ देना और फिर उस पर एक काम और करना है जो मैं तुम्हे और सुलोचना को एकांत में बताऊंगा।


उदयराज, काकी और रजनी को अब वो पेड़ याद आ गया जो उन्होंने आते वक्त देखा था पीले रंग का

काकी- हाँ महात्मा जी, आते वक्त हमने एक पीला बड़ा सा वृक्ष देखा था, बहुत मायावी वृक्ष जान पड़ता था वो।

महात्मा- वो एक शैतान प्रेत है जो किसी श्राप से वृक्ष रूप में वहां सजा भुगत रहा है उसकी सजा पूर्ण होते ही वह पेड़ सूख जाएगा और उसको मुक्ति मिल जाएगी। वह बहुत पुराना वृक्ष है, डरो मत वह तुम्हारा कुछ नही बिगाड़ सकता जब तक तुम सब लोगों ने सुलोचना द्वारा दी गयी ताबीज़ बांध रखी है बस उस पेड़ को छूना मत, कील गाड़ने के बाद उस पेड़ को तुम्हे कुछ अर्पित करना पड़ेगा जो मैं एकांत में उदयराज और सुलोचना को बताऊंगा, वह अर्पित करते ही वह शैतान खुश हो जाएगा और तुम्हारे पुर्वज द्वारा लगाए गए बंधन के मंत्र को काटने में मदद करेगा।

दूसरी कील तुम्हे अपने गांव की सरहद पर गाड़नी है जब यहां से जाते वक्त तुम अपने गांव के सरहद पर पहुँचो तो दूसरी कील सरहद पर गाड़कर गांव में दाखिल हो जाना, और यहां भी कील गाड़ने के बाद उस पर वही अर्पित करना होगा जो पेड़ पर किया था।

तीसरी कील घर की चौखट पर रात के ठीक बारह बजे गाड़नी है और यहां पर कुछ अर्पित नही करना है केवल कील ही गाड़नी है।

उदयराज- और महात्मा जी चौथी? (बड़ी उत्सुकता से)

महात्मा- चौथी कील तुम्हे अमावस्या की रात को ठीक 12 बजे अपने कुलवृक्ष के नीचे उसकी जड़ में गाड़ना है परंतु यहां पर फिर तुम्हे वही चीज़ अर्पित करना है जो तुमने जंगल के पेड़ और गांव के सरहद पर कील के ऊपर की थी, ध्यान रहे खाली घर की चौखट पर गड़ी कील पर कुछ अर्पित नही करना, खाली तीन जगह।

उदयराज- परंतु महात्मा जी हमारा जो कुलवृक्ष है उसकी जड़ के ऊपर तो एक बहुत बड़ा चबूतरा बना हुआ है, उसकी जड़ तो बहुत नीचे है।

महात्मा- तुम कुलवृक्ष के तने में थोड़ा छुपाकर गाड़ देना उससे भी काम हो जाएगा।

उदयराज- ठीक है महात्मा जी

महात्मा- अपने मुट्ठी में लिए हुए चावल के दानों को अब हवन कुंड में डाल दो।

सबने वैसा ही किया

महात्मा ने बगल में खड़े आदिवासी से कुछ कहा और वह एक पात्र में चार कीलें ले आया।
महात्मा ने उसे बगल में रखा।

उदयराज- महात्मा जी ये तो उपाय हो गया और इनके अलावा अपने जो कर्म बताया उनमे क्या करना होगा? वो कौन सा कर्म है? जिसको करके मैं नियति की खंडित हुई व्यवस्था को पुनः स्थापित कर सकता हूँ।

महात्मा- वो मैं तुम्हे एकांत में बताऊंगा, वो कुछ अलग है क्योंकि हर चीज़ की एक मर्यादा होती है और तरीका होता है।

महात्मा ने सबको अभी पुनः थोड़ा विश्राम करने के लिए कहा और सुलोचना सबको लेके बगल के कक्ष में गयी, वहां पर एक आदिवासी ने सबको एक पात्र में कंदमूल और फल तथा दिव्य रस खाने पीने के लिए दिए।

महात्मा ने वो कीलें तैयार करना शुरू कर दिया
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S_Kumar

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Update- 26

सबने फल खाये और आराम करने लगे, उदयराज को अब बहुत सुकून था वह सोच रहा था अब जाके कितने ही सदियों बाद उन्हें उनकी समस्या का हल मिला है। वह खुद को बहुत भाग्यशाली समझ रहा था।

इतने में सुलोचना उठ कर महात्मा जी के पास गई, महात्मा जी ने वो चार कीले तैयार कर पीपल के पत्तों में बांध कर रख दी थी।

महात्मा ने सुलोचना से कहा की केवल उदयराज को उनके दूसरे कक्ष में भेजो। उदयराज गया, उस कक्ष में केवल महात्मा और उदयराज ही थे।

उदयराज- जी महात्मा जी

महात्मा- आओ बैठो, मैंने कीलें तैयार कर दी हैं, इस पीपल के पत्ते में हैं, इसे संभाल कर रखो और कील गाड़ने ले बाद उस पर जो अर्पित करना है वो है बच्चे को स्तनपान करा रही किसी स्त्री का दूध, और इस वक्त तुम्हारे साथ केवल एक ही स्त्री ऐसी है जो बच्चे को स्तनपान कराती है, वो है तुम्हारी बेटी- रजनी।

उदयराज- हां महात्मा जी इस वक्त तो वही ऐसी स्त्री है जो स्तनपान करा रही है। परंतु इसको करेंगे कैसे, और ये तो आप सिर्फ गुप्त तरीके से मुझे बता रहे हैं मैं अपनी बेटी को ये कैसे बताऊंगा?

महात्मा- जो मैं तुम्हे बता रहा हूँ वही मैं सुलोचना को बता दूंगा वो तुम्हारी बेटी को समझा देगी, और इसको करना ऐसे है कि कील गाड़ने के बाद सीधे स्तन से उसको दबाकर एक धार उसपर गिरा देनी है

उदयराज- ठीक है, और महात्मा जी वो कर्म क्या है जो मुझे करना है।

महात्मा ने एक बड़ा सा कागज जिसमे कुछ लिखा था जो गोल गोल मोड़ कर एक सुनहरे धागे से बांधा हुआ था, उदयराज को दिया और बोला- वो कर्म इसमें लिखा हुआ है इसको घर पर जाकर ही एकांत में खोलना और पढ़ना, रास्ते में बिल्कुल नही, संभाल कर रख लेना, मैंने सोचा था कि वो कर्म मैं तुम्हे जुबानी बताऊंगा पर यह उचित नही इसलिये कागज में लिखकर दे रहा हूँ, इसको पढ़ना, जैसा इसमें लिखा है उसका पालन करना, इसके साथ ये एक दिव्य तेल है ये भी मैं तुम्हे दे रहा हूँ, इसका क्या प्रयोग है इस कागज़ में लिखा है

इस कर्म को तुम्हे करना ही होगा नही तो उपाय अधूरा रह जायेगा और विफल हो जाएगा, ये दोनों उपाय और कर्म एक दूसरे के पूरक हैं, एक को भी छोड़ा तो दूसरा विफल हो जाएगा और कर्म पूरा होने के ठीक दो महीने बाद इस कागज़ को मुझे पुनः वापिस करने आना होगा।

उदयराज ने वो कागज और दिव्य तेल की शीशी ले ली और बोला- महात्मा अपने कुल के जीवन की रक्षा से बढ़कर कुछ नही, आप जो कहेंगे जैसा कहेंगे, जो भी कर्म इसमें लिखा होगा मैं उसका पालन करूँगा। परंतु मेरी एक चिंता है।

महात्मा- क्या पुत्र?

उदयराज- अगर इस कागज़ को मेरे खोलने से पहले धोखे से यह किसी के हाथ लग गया और उसने खोल लिया तो क्या होगा?

महात्मा- यह जादुई पत्र केवल तुम्हारे नाम से ही बना है अगर यह किसी के हाँथ लग भी गया और वो उसको खोल भी लेगा तो उसे कुछ लिखा हुआ दिखाई नही देगा, ऐसा ही एक जादुई पत्र मैं तुम्हारी बेटी रजनी को भी दूंगा और यही सारी बात उसे भी कहूंगा, क्योंकि यह कर्म तुम दोनों के द्वारा ही हो सकता है और किसी के नही, इसका मुख्य कारण यह है कि तुम्हारे जिस पुर्वज ने ऐसा किया था वो उस वक्त गांव का मुखिया था और इस वक्त गांव के मुखिया तुम हो, तो ये कर्म तुम्हारे द्वारा ही सम्पन्न होना चाहिए।

उदयराज- जो आज्ञा महात्मा (परंतु उदयराज मन ही मन बेचैन था कि ऐसा क्या कर्म है जिसमे मेरी बेटी का भी सहयोग आवश्यक है बिना उसके ये हो नही सकता, अब खैर जो भी हो वो तो घर पहुँच कर इस दिव्य कागज को खोलकर ही पता चलेगा, और इसको वापिस करने भी आना है)

महात्मा ने फिर रजनी को बुलाया और यही सारी बातें कहते हुए एक और जादुई पत्र उसको दिया जो केवल उसके नाम था, रजनी ने उन्हें प्रणाम किया और वापिस कक्ष में आ गयी और उसने वो कागज संभाल कर रख लिया।

महात्मा ने फिर सुलोचना को बुलाया और उसको अर्पित करने वाली बात समझा कर बोला- ये बात उदयराज की बेटी को समझा दो और अभी रात के 2 बजे हैं आप लोग आराम कर लीजिए और फिर सुबह शीघ्र ही निकल जाइए।

सुलोचना ने ऐसा ही किया, सबने कुछ घंटे विश्राम किया फिर महात्मा जी को प्रणाम करके गुफा से निकल गए, सुबह के 4 बज गए थे, उदयराज ने अपनी बैलगाडी तैयार की और सब वापिस सुलोचना की कुटिया की तरफ रवाना हो गए, उदयराज बहुत खुश था पर असमंजस में भी था कि क्या कर्म है जो उसे करना होगा, यही हाल रजनी का भी था। वह तेजी से बैलगाडी चलाये जा रहा था, दोपहर हो गयी और दूसरा पहर शुरू हो गया, आखिरकार वह उस पीले पेड़ के पास पहुचे।

उदयराज ने बैलगाडी रोक दी और बोला- यही वो पेड़ है न

काकी और सुलोचना- हां यही है

वो पीला पेड़ बहुत बडा और अजीब था, रजनी को भी पता था कि मुझे अब यहां क्या करना है।

उदयराज ने रजनी को देखा तो वो मुस्कुरा पड़ी और मजाक में बोली- बाबू पहली कील यहीं ठोकनी है न

उदयराज- हां बेटी और चौथी घर पे (उदयराज ने भी मजाक में double meaning में बोला)

रजनी- चौथी नही तीसरी बाबू तीसरी, अभी से भूल गए (रजनी अपने बाबू का मतलब तो समझ गयी पर बात बदलते हुए बोली)

उदयराज- मुझे तो कील ठोकने से मतलब है चाहे तीसरी हो या चौथी।

और सब हंसने लगे

रजनी झेंप गयी

उदयराज- चलो अब मैं अपना काम करता हूँ और मेरी बिटिया रानी तुम अपना काम करो, पता है न क्या करना है।

रजनी- हां हां पता है मेरे बाबू जी, अम्मा ने सब बात दिया है। आप अपना काम तो करो पहले


उदयराज में एक कील निकाली और एक हाथ में पत्थर लिया, पेड़ की जड़ के पास गया और बिना उसको छुए कील जड़ में थोक दी, पेड़ की जड़ों के आस पास काफी झाड़ियां थी, कील ठुकते ही पेड़ की जड़ से एक पीला द्रव्य निकला और उसकी बड़ी बड़ी शाखायें काफी तेजी से हिली, हवाएं चलने लगी, ऐसा लगा पूरे जंगल में साएं सायं की आवाजें गूंज रही है अगर वो ताबीज़ न पहनी होती तो डर ही गए होते सब, उदयराज कील ठोकर वापिस आ गया

रजनी ने फिर मजे लिए- बाबू कील ठोक दी, बहुत दर्द हुआ होगा न उसको, तभी तो देखो कैसे शाखायें हिलने लगी, जैसे बेचारा फड़फड़ा रहा हो। अपने बाबू को देखते हुए बोली- बेदर्दी

उदयराज भी मजे के मूड में आ गया- असली कील ठुकती है तो ऐसे ही दर्द होता है

रजनी मतलब समझते ही मुस्कुरा दी और बैलगाडी से उतरी और बोली अब चलो मेरे साथ मुझे भी तो अपना काम करना है चलो दिखाओ कील कहाँ ठोकी है।

उदयराज ने double meaning में बोला- जहां ठोकी जाती है वहीं ठोकी है, अब क्या तुम्हारे बाबू को ये भी नही पता होगा कि कील कहाँ ठोकी जाती है।

रजनी मतलब समझते ही बुरी तरह शर्मा गयी और हंसते हुए बोली- बहुत बदमाश होते जा रहे हैं मेरे बाबू। कोई आस पास है इसका भी ख्याल नही।

और उदयराज रजनी को लेके पेड़ तक जाने लगा, सुलोचना और काकी बैलगाडी में ही बैठी देख रही थी।

उदयराज ने पेड़ के पास पहुँच के रजनी को वो कील दिखाई और बोला जो भी करना पेड़ को बिना छुए करना।

रजनी- ठीक है, पर मेरे बाबू पहले अपना मुँह उधर करो, पीछे घूमो, काकी और अम्मा इधर ही देख रही है, कहेंगी की कैसे बेशर्म पिता हैं, अपनी शादीशुदा बेटी की तरफ ऐसा करते हुए देख रहे हैं, चलो पीछे घूमो जल्दी।

उदयराज पीछे की तरफ घूम गया और धीरे से बोला- मन तो देखने का कर रहा है बहुत, कितने दिन हो गए देखे।

रजनी भी धीरे से बोली- मेरे बेसब्र बाबू, अभी दो दिन पहले ही देखा है, थोड़ा सब्र करो, सबकुछ जल्दी जल्दी करेंगे तो जल्दी घर पहुचेंगे, समझें बुध्धू।

उदयराज अपनी शादीशुदा बेटी की मंशा जानकर झूम उठा

रजनी ने पेड़ की जड़ के पास बैठकर अपने ब्लॉउज के नीचे के 3 बटन खोले और अपनी दाहिनी चूची को बाहर निकाल लिया, दूध से भरी हुई उसकी मोटी मदमस्त गोरी सी चूची उसके हांथों में नही समा रही थी, उसने निप्पल को निशाने पर लगा कर चूची को हल्के से दबाया और दूध की एक पतली धार गड़ी हुई कील पर गिरा दी, दूध लगते ही पेड़ शांत हो गया, सनसनाती हुई हवाएं चलना बंद हो गयी, ये सब देखकर सब चकित रह गए। रजनी ने चूची को अंदर कर ब्लॉउज के बटन लगा लिए और उदयराज के साथ बैलगाड़ी के पास आके अपनी जगह पर बैठ गयी

काकी- सदियों से चली आ रही समस्या के सुधार आ आग़ाज आज मेरी बेटी और मेरे उदय ने कर ही डाला।

सुलोचला- हाँ बहन बिल्कुल, हम सबका आशीर्वाद इन दोनों के साथ है।

काकी- बिना आपके आशीर्वाद के ये संभव नही था बहन, हम आपके बहुत आभारी है।

सुलोचना- ये तो मेरा फ़र्ज़ है, मेरे द्वार सदा आपके लिए खुले हैं, अब हमें शीघ्र ही चलना चाहिए ताकि शाम तक कुटिया पर पहुँच जाएं फिर एक रात मेरी कुटिया पर रुककर कल सुबह तड़के ही निकल जाना

काकी- जैसी आपकी आज्ञा

उदयराज ने बैलगाडी की डोर संभाल ली और तेजी से चलाने लगा।
 

S_Kumar

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सभी readers को प्यारे प्यारे comments करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, अपना साथ ऐसे ही बनाये रहें, कहानी आगे काफी रोमांचक होने वाली है


धन्यवाद
 
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