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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Nasn

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Update-8

रजनी ने जल्दी जल्दी दाल पीसी और आगे का काम करने लगी कुछ देर बीत गए एकदम उसे याद आया कि अरे तौलिया तो देना भूल ही गयी, याद आते ही वो तुरंत बारामदे में भागती हुई गयी और खूंटी में टंगी तौली उठाकर घर से बाहर आ गयी।

बाहर आ कर उसने देखा कि काकी तो खाट के पास है ही नही, उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई तो देखा कि काकी बच्ची को लेकर बगल वाले आम के बाग में टहल रही थी।

वो तौली लेकर तेज कदमों से कुएं की तरफ बढ़ने लगी, शाम का वक्त था 7:30 हुए होंगे थोड़ा अंधेरा छाने लगा था, जैसे ही वो कुएँ के पास पहुंची सामने का नज़ारा देख ठिठक सी गयी और अपने दोनों हाँथ कमर पर रखकर थोड़ा बनावटी गुस्से से अपने मन में ही बोली- ये लो, अभी तक बाबू जी मेरे न जाने क्या सोचते बैठे हैं, अभी तक तो इनको गर्मी लग रही थी, अब न जाने कौन सी दुनिया में खोए हैं

दरअसल उदयराज कुएं से पानी निकालकर लोटा भरकर बगल में रखकर कुछ सोचने लगा और उस सोच में ही डूब गया था, उसका मुंह सड़क की तरफ था और रजनी उसके पीछे थी अभी वो कुएं की सीढ़ियां चढ़ी नही थी।

रजनी को एकदम शरारत सूझी, वो दबे पांव सीढियां चढ़कर चुपके से अपने बाबू के बिल्कुल पीछे आ गयी और बगल में रखा पानी से भरा लोटा उठा कर अपने बाबू के सर के ऊपर करीब 1 फ़ीट तक ले गयी और सर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्ररर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर बोलते हुए पानी की धार छोड़ दी और उसकी हंसी छूट गयी, लगी खिलखिला के हंसने।

उदयराज चौंक गया हड़बड़ाहट में उठा तो उसका सर लोटे से लगा, लोटा रजनी के हाँथ से छूट कर कुएं के फर्श पर गिरा और टन्न... टन्न..... टन्न....की आवाज करता हुआ नीचे क्यारियों में चला गया।

रजनी को मानो खुशियों का खजाना मिल गया हो, वो खिलखिलाकर हंसती हुई क्यारियों में उतर गई और लोटा उठा कर लायी जो मिट्टी से सन गया था और उसे धोते हुए बोली- ऐसे नहाओगे आप, बाबू जी मेरे, मै तो भागी भागी आयी तौली लेके, सोचा कि बाबू जी नहा लिए होंगे कहीं देरी न हो जाये और आके देख रही हूं तो जनाब न जाने किस सोच में डूबे हैं, किस सोच में डूबे थे मेरे बाबू?

इतने प्यार और मनोहर तरीके से पूछते हुए रजनी फिर हंसने लगी

उदयराज सम्मोहित सा उसकी अदाओं को देखते हुए खुद भी हंस दिया और बोला- बेटी तूने तो मुझे डरा ही दिया था, अरे वो मैं खेती बाड़ी के बारे में सोचने लगा था तो सोचता ही राह गया।

रजनी- सच, खेती बाड़ी के बारे में ही सोच रहे थे न, कहीं मेरी माँ की याद तो नही सता रही थी मेरे बाबू को।

उदयराज- अब तू आ गयी है तो भला क्यों सताएगी उनकी याद। (उदयराज ये बात तपाक से बोल गया पर बाद में पछता भी रहा था कि मैं ये क्या बोल गया)

रजनी- हां बिल्कुल मैं हूँ न आपका ख्याल रखने के लिए, चलो अब जल्दी से नहा लो।

उदयराज- बेटी एक बात के लिए मुझे माफ़ कर देना।

रजनी- (उदयराज के करीब आते हुए) अरे बाबू आप ऐसे क्यों बोल रहे है, ऐसा क्या किया अपने जो आप ऐसा बोल रहे हैं।

उदयराज- वो अभी 4 बजे के आस पास जब तू मेरे लिए पानी लेकर आई थी पीने के लिए तो खाट पर मैंने तुझे बाहों में ले लिया था, मुझे ऐसा नही करना चाहिए था कोई देखा लेता तो क्या सोचता, और काकी ने तो देख ही लिया था, आखिर जो भी हो रिश्ते की एक मर्यादा होती है, हर चीज़ की एक उम्र, सही तरीका और कायदा होता है, दरअसल बेटी मैं अकेलेपन की वजह से अपनो के लिए तरस गया था इसलिय.......

रजनी ने आगे बढ़कर अपने बाबू के होंठो पर उंगली रखते हुए बोला- अब बस करो, और ये क्या बोले जा रहे हो आप, आपकी बेटी हूँ मैं कोई परायी नही, क्या जब मैं छोटी थी तब आप मुझे गोद में नही लेते थे, तो अगर आज मैं बड़ी हो गयी तो क्या आप मुझे अपने उस प्यार से वंचित कर देंगे, सिर्फ इसलिये की आज मैं बड़ी हो गयी हूँ, और अगर मुझे खुद आपकी गोदी में सुकून मिलता हो तो फिर क्या कहेंगे आप? मैं आपकी बेटी हूँ, आपके सिवा कौन है मेरा, आपके बिना नही रह सकती मैं इसलिए उम्र भर आपकी सेवा के लिए आपके पास आ गयी हूँ, अगर आप भी मुझे गोद में लेकर बाहों में भरकर प्यार और दुलार नही करेंगे तो मुझे मेरी माँ की कमी कौन पूरा करेगा (इतना कहते हुए रजनी की आंखें नम हो गयी) और वो आगे बोली- बाप बेटी का प्रेम तो हमेशा निष्छल रहता है इसमें ये कहाँ से आ गया बाबू की कोई क्या सोचेगा, जो कोई जो सोचेगा सोचने दो, कोई भी चीज़ गलत तब होती है जब जबरदस्ती हो, जब मुझे आपकी बाहों में सुख मिलता है तो आप मुझे इससे वंचित न करो।

उदयराज को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसकी मन की ग्लानि भी छूमंतर हो गयी उसने अपनी बेटी को अपनी बाहों में भर लिया, अंधेरा थोड़ा बढ़ गया था अब, रजनी अपने बाबू की बाहों में समा गई और अपनी बाहें उनकी नंगी पीठ पर लपेट दी और लपेटते ही न जाने क्यों उसकी हल्की सी सिसकी निकल गयी, ये उदयराज ने बखूबी महसूस किया फिर उदयराज उसके आंसुओं को पोछता हुआ बोला- तूने मेरी मन की उलझन दूर कर दी बेटी, मैं तुझे कभी अपने से दूर नही जाने दूंगा क्योंकि मैं भी तेरे बिना नही रह सकता, मैं भी क्या क्या सोचने लगता हूँ।

रजनी बोली- हाँ वही तो कह रही हूं सोचते बहुत हो आप, अब चलो नहा लो जल्दी।


इतना कहते ही वो फिर कुछ ध्यान आते ही चौंकी और बोली- हे भगवान मेरी कड़ाही, वो तो चूल्हे पर लाल हो गयी होगी। फिर वो अपने को उदयराज की बाहों से छुड़ा कर इतना कहते हुए भागी, उदयराज नहाते हुए अपनी बेटी को देखने लगा, भागते वक्त उसके चौड़े नितम्ब अनायास ही ध्यान खींच रहे थे, वह एक टक लगा के जब तक वो घर में चली नही गयी उसके भरपूर गुदाज बदन को देखता रहा, जाने क्यों नज़रें हटा नही पाया और इस बार उसे न जाने क्यों ग्लानि भी नही हुई। एक अजीब सी तरंग उसके बदन में दौड़ गयी, ये सब क्या था वो समझ नही पा रहा था।

नहा कर वो घर में आया और कपड़े पहने फिर मंदिर में दिया जलाने गया तो देखा की दिया पहले से ही जल रहा था, समझ गया कि रजनी ने ही जलाया होगा, मन खुश हो गया उसका ये सोचकर कि मेरे घर की लक्ष्मी आ गयी है अब, भले ही बेटी के रूप क्यों न हो, और पूजा करके बाहर आ गया, बाहर पड़ी खाट पर लेट गया, मस्त हवा चलने लगी और उसकी आंख लग गयी

तब तक काकी बाग़ से वापिस आ गयी और बच्ची को पालने में लिटा दिया और घर में गयी ये देखने की खाना बना या नही।
लाजबाब कामुक,, अपडेट,.......
 

Nasn

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इतना विस्तार से एक एक पॉइंट जीवन्त
घटनाक्रम......

शुद्ध हिंदी में और वाक्य में कोई भी त्रुटि नहीं
लगता है......

आप कोई बहुत ही पहुंचे हुए लेखक हो....

जो नई ID से बाप बेटी की इतनी जीवन्त प्रेम
कहानी अपने शब्दों में पिरो रहो हो......


की आपकी थ्रेड बार बार पड़ते रहो.........
 
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S_Kumar

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Update-9

काकी घर में आवाज़ लगाती हुई गई- रजनी! ओ रजनी बिटिया! खाना बन गया?

रजनी- हाँ काकी, लगता है आज आपको जल्दी ही भूख लग गयी। बस दाल में तड़का लगा दूँ, हो गया बस।

काकी- अरे मुझे नही री पगली! मैं तो तेरे बाबू के लिए पूछ रही थी, वो नहा के आया और बाहर खाट पे लेटे-लेटे सो गया, लगता है आज ज्यादा ही थक गया है खेतों में काम करके।

रजनी- क्या! बाबू सो गए, हे भगवान! मैं भी न, वैसे खाना बन गया है मैं उन्हें बुला कर लाती हूँ, आज मैंने उनकी पसंद का खाना बनाया तो वो सो गए जल्दी।
इतना कहते हुए वो बाहर गयी, और काकी बोली- हाँ तू बुला ला मैं दाल में तड़का लगा के निकलती हूँ खाना सबका।

रजनी- हाँ ठीक है।


रजनी बाहर आई एक नज़र अपनी बेटी पर डाला वो पालने में खेल रही थी, ठंढी हवा चल रही थी। बरामदे में लालटेन जल रही थी जिसकी हल्की रोशनी बाहर आ रही थी। अमावश्या की रात होने के कारण घाना अंधेरा था चारों तरह, एक लालटेन पशुओं के दालान के दरवाजे पर जल रही थी लेकिन उसकी रोशनी दूर तक नही थी।

रजनी अपने पिता की खाट पर बैठ गयी और उनके ऊपर झुकते हुए उनके माथे और बालों को सहलाते हुए बड़े प्यार से बोली- बाबू, ओ बाबू, तुम तो सो ही गए, चलो उठो खाना खा लो, बन गया है।

रजनी का इस तरह आधा उसके ऊपर लेटने से उसका मखमली बदन उदयराज को अंदर तक झकझोर गया, रजनी की मोटी मोटी चूचियाँ अपने पिता के सीने से दब गई, जिससे उदयराज जग गया, उसने ये सोचा भी नही था कि आज का दिन इतना खास होगा कि रजनी उसे इस तरह कामुक तरीके से उठाएगी, उदयराज इसके लिए तैयार नही था, उसका मन मयूर झूम उठा, अपनी ही सगी बेटी की भारी उन्नत चुचियाँ उसके चौड़े सीने से दबी हुई थी और उसके सख्त निप्पल उदयराज को बखूबी महसूस हुए, रजनी लगभग आधी अपने पिता पर चढ़ी हुई थी जिससे उसे न चाहते हुए भी नारी बदन से बहुत ही लज़्ज़त का अहसास हुआ और इस हरकत ने एक बार फिर बरसों से दबी हुई उसकी कामेक्छा के तार को हिला दिया, परंतु दूसरे ही छड़ उसने इस गंदे ख्याल को अपने दिमाग से झटक सा दिया और
जैसे ही उसने रजनी को स्नेहपूर्वक अपनी बाहों में भरने की कोशिश की रजनी की बेटी रोने लगी, रजनी ने झट उठकर उसे गोद में उठा लिया और उदयराज बोला- हाँ बेटी चलो, मैं हाथ मुँह धो के आता हूँ, अरे वो ठंडी हवा चल रही थी तो मेरी आँख लग गयी थी ऐसे ही, और इस गुड़िया को यहां किसने अकेले लिटा दिया।

रजनी मुस्कुराते हुए बोली- अरे वो काकी लिटा कर गयी थी पालने में। चलो आप आओ।


इतना कहकर रजनी बेटी को गोद में लेकर घर में चली गयी।

उदयराज घर में आया तो आंगन में काकी ने सबका खाना परोस दिया था, उदयराज ने देखा कि आज उसकी बेटी ने उसकी मनपसंद चीज़ बनाई है तो वो बहुत खुश हुआ और बोला- अरे वाह! आज तो मेरी बिटिया ने ये सब बना डाला।

रजनी बोली- हाँ बाबू, रोज तो मेरे ही मन का बन रहा है, तो आज मैंने सोचा कि आज वो बनाउंगी जो मेरे बाबू को पसंद है। रजनी उदयराज के बगल में बैठ गयी खाना खाने।

फिर सब खाना खाने लगे, उदयराज उंगलियां चाट चाट के खाना खा रहा था,

काकी बोली- आज तू बड़ा उंगलिया चाट चाट के खा रहा है हम्म और हंसने लगी।

रजनी भी हंसने लगी उसके चेहरे पर अलग ही चमक थी।

उदयराज- क्या करूँ काकी खाना ही इतना स्वादिस्ट बनाया है मेरी रानी बिटिया ने।

काकी- अच्छा क्या रोज स्वादिष्ट नही बनता क्या? (काकी ने छेड़ते हुए बोला, रजनी ने काकी की तरफ गोल गोल आंखें घुमाते हुए बड़ी अदा से देखा)

उदयराज- अरे बनता है बाबा, पर आज न जाने क्यों बहुत ही मन को भा रहा है।

रजनी- बाबू अब आपके लिए हर रोज़ मैं ऐसे ही खाना बनाउंगी।

काकी- अरे अपनी उंगलिया कम चाट, चाटना है तो उसकी उंगलियां चाट जिसने ये बनाया है (काकी ने फिर छेड़ते हुए कहा)

उदयराज- अरे हाँ काकी तूने सही कहा।

और इतना कहकर उदयराज ने बगल में बैठी रजनी का हाँथ पकड़कर चूम लिया और रजनी अपने बाबू की इस हरकत से जोर से हंस पड़ी, उसे अजीब सी गुदगुदी हुई।

रजनी- अरे मेरे बाबू, आपको इतना प्यार आ रहा है मेरे ऊपर, आपने मुझे गदगद कर दिया, लाओ अब मैं ही आपको अपने हाँथ से खिला देती हूं खाना। (रजनी ने मन में सोचा की देखो मेरे बाबू जी का अकेलापन दूर होने से वो अब कितना खुश हैं, मैं इनका साथ कभी नही छोडूंगी, ऐसे ही प्यार दूंगी)

उदयराज- (हंसते हुए) नही नही बेटी फिर कभी खिलाना अपने हाँथ से अभी तू खाना खा।


काकी भी बाप बेटी का ऐसा प्यार और उदयराज की बचकानी हरकत को देखकर हंसने लगी।

उदयराज बहुत खुश था उसकी जिंदगी में मानो जैसे बाहर सी आ गयी थी, इतना खुश काकी ने उसे काफी सालों बाद देखा था।

सबने मिलके खाना खाया और फिर बाहर आ गए, रजनी बर्तन धोने लगी और काकी ने गुड़िया को पालने में लिटा दिया।

उदयराज अपना बिस्तर उठा के कुएं के पास ले गया वहां सीधी ठंडी हवा आ रही थी।

रोज की तरह काकी ने अपना और रजनी का बिस्तर द्वार पे ही नीम के पेड़ के नीचे लगा दिया बिस्तर अक्सर रजनी ही लगती थी पर आज काकी ने लगाया।

इतने में रजनी बर्तन धो के बाहर आ गयी और अपने बिस्तर पर आके बैठ गयी और बोली- अरे बाबू अपना बिस्तर वहां कुएं के पास ले गए आज।

काकी- हां उधर सीधी ठण्डी हवा आती है न इसलिए।

रजनी ने गुड़िया को गोद में लिया और अपने बिस्तर पर लेटते हुए बोली- काकी

काकी- हम्म

रजनी- मुझे अपना शेरू नही दिखाई दिया जब से मैं आयी हूँ। कहाँ गया वो? (शेरू उदयराज के कुत्ते का नाम था जब रजनी की शादी नही हुई थी उस समय उदयराज उसे नदी के पास से ले आया था उस वक्त शेरु छोटा था जिसे रजनी ने पाला था)

काकी- क्या बताऊँ बेटी जब से तेरे बापू अकेले हुए, शेरु भी अकेला सा हो गया था फिर उसकी आदत बिगड़ गयी और वो घुमक्कड़ किस्म का हो गया है, 3-4 दिन में एक बार ही अपने घर आता है 1, 2 दिन रहेगा फिर इधर उधर घूमना चालू कर देगा। देखो क्या पता कल सुबह घूमता फिरता आये अपने घर।

रजनी- शेरु अपना कुत्ता कितना अच्छा था न, मेरे न रहने से देखो सब जैसे बेसहारा हो गए थे इतना कहके रजनी थोड़ी भावुक सी हो गयी फिर बोली अच्छा काकी उसकी कुतिया भी होगी न जो हमेशा उसके साथ रहती थी, जिससे उसके कई बच्चे हुए थे, वो सब कहाँ है?

काकी- वो तो मर गयी बेटी, कई बच्चे भी मर गए, कुछ को दूसरे गांव वाले उठा ले गए पालने के लिए, अभी इस वक्त तो उसकी एक बेटी है।जिसका नाम मैंने बीना रखा है।

रजनी- अच्छा, तो वो कहाँ है, कितनी बड़ी है।

काकी- अरे वो भी तेरी तरह अपने बाप से बहुत प्यार करती है, जहां जहां शेरु जाएगा बीना भी उसके पीछे पीछे जाएगी, बीना भी अब काफी बड़ी हो गयी है, लगभग शेरु के बराबर ही हो गयी है, सफेद रंग की है।

रजनी- अच्छा, इतना प्यार है बाप-बेटी में

काकी- हम्म, और क्या, अगर शेरु को खाना दो, तो जबतक बीना आ नही जाएगी तबतक वो अकेले खाना छूता भी नही है।

रजनी को बड़ा आश्चर्य हुआ और वो उनको देखने के लिए उतावली हो गयी और काकी से बोली- देखो न काकी मेरे न होने की वजह से मेरे शेरु को भी दर-दर भटकना पड़ रहा है, सब कितना बिखर-बिखर सा गया था न, लेकिन अब मैं सब सही करूँगी।

काकी- हाँ बेटी बिल्कुल, (काकी आगे बोली) आजकल तो शेरु कुछ अलग ही शरारत करता है बीना के साथ, एक दो दिन देखा था मैंने।

रजनी- क्या? क्या शरारत करता है शेरु, कोई बाप अपनी बेटी से शरारत करेगा क्या?

काकी- अरे हाँ करता है वो।

रजनी- ऐसा क्या करता है वो (उत्सुकता से)

काकी- अरे वो बीना का पिशाब का रास्ता सूंघता है (काकी थोड़ा फुसफुसाते हुए सही शब्द का प्रयोग न करके कुछ इस तरह बोली)

रजनी- ईईईशशशशश.....क्या काकी! सच में, हे भगवान!, बेटी है वो उसकी, ऐसा क्यों करता है वो।

काकी- मुझे लगता है कि बीना अब बड़ी हो गयी है, वो यौनाग्नि में गरम हो रही है धीरे धीरे, अब ये तो जानवर हैं बेटी, इनके लिए क्या रिश्ता नाता, पर देखने में मजा आ जाता है, कैसे सूंघता है वो बीना की.....बू

रजनी जानती थी कि काकी क्या बोलने वाली है वो भी थोड़ी गरम हो गयी थी ये सुनकर तो वो बात काटते हुए बोली- कब देखा था काकी अपने?

काकी- अरे यही कोई 4 दिन पहले।
रजनी- पर काकी मुझे बड़ी हैरानी हो रही है सुनके, वो बेटी है उसकी, सगी बेटी।

काकी- बेटी ये नशा ही ऐसा होता है, जब चढ़ जाता है तो कुछ नही देखता, और फिर वो तो जानवर हैं उन्हें इस बात से कोई फर्क नही पड़ता। तुझे दिखाउंगी किसी दिन।


रजनी काफी गर्म हो जाती है ये सोचकर कि एक बाप अपनी ही सगी बेटी की बूर कैसे सूंघ सकता है, कैसा लगता होगा उस वक्त, उसकी सांसें उखड़ने सी लगती है, कितना गलत है ये, फिर भी इसमें मजा क्यों है? सोचकर ही कैसा लग रहा है। बड़ी मुश्किल से अपने को संभाल कर काकी को सोने को बोलकर खुद भी सोने लगती है और कुछ ही पल में नींद के आगोश में चली जाती है।
 
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S_Kumar

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इतना विस्तार से एक एक पॉइंट जीवन्त
घटनाक्रम......

शुद्ध हिंदी में और वाक्य में कोई भी त्रुटि नहीं
लगता है......

आप कोई बहुत ही पहुंचे हुए लेखक हो....

जो नई ID से बाप बेटी की इतनी जीवन्त प्रेम
कहानी अपने शब्दों में पिरो रहो हो......


की आपकी थ्रेड बार बार पड़ते रहो.........
आपका बहुत बहुत धन्यवाद Sir Ji, आप लोगों के प्यारे प्यारे comments मेरा उत्साह बढ़ा रहे हैं, मैंने सोचा भी नही था कि मेरी यह पहली कहानी इतनी पसंद की जाएगी, मैं कोई writer नही हूँ, और इस field में बिल्कुल नया हूँ, बस ये मेरी छोटी सी कोशिश है, मेरी पहली स्टोरी है। धन्यवाद आपका।
 
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