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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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S_Kumar

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निलम का पती हिलाता रह गया
देखते है महेंद्र को चुदाई करने को मिलती है या बापू ही हाथ मार लेता है अपनी सगी बेटी निलम पर
जबरदस्त और धमाकेदार अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
देखते हैं क्या होता है,

शुक्रिया भाई, बहुत बहुत शुक्रिया
 

S_Kumar

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Superb Kumar Ji 3 Din Me Hi Aapki Abtak Likhi Kahani Padh Li Jitni Taareef Ki Jaye Kam Hai Ji Aakhir Ab Lambe Intezaar Ke Baad Rajni Ko La Hi Rhe Ho Story Me....
सिर्फ 3 दिन में ही......सलाम है आपको तो।
हां रजनी को तो लाना ही था, आखिर नायिका है वो इस कहानी की। देखते जाइये आगे क्या क्या होता है, ऐसे ही comments करते रहिए।

Thank you so much
 
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S_Kumar

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बहुत खूबसूरत कहानी है यार.... साला लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा... कल दोपहर में पढ़ना शुरू किया और 24 घंटे में पूरा पढ़ डाला... अगला अपडेट जल्दी दो...
हाहाहा, बैठने का नाम ही नही ले रहा,
और पूरी कहानी 24 घंटे में ही पढ़ ली, बहुत बड़ी बात है ये इस कहानी के लिए, आप सभी रीडर्स का बहुत बहुत शुक्रिया।
 
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Reactions: kamdev99008

Soniya7784

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सिर्फ 3 दिन में ही......सलाम है आपको तो।
हां रजनी को तो लाना ही था, आखिर नायिका है वो इस कहानी की। देखते जाइये आगे क्या क्या होता है, ऐसे ही comments करते रहिए।

Thank you so much
Hanji Bilkul Aap Kahani Likhte Rahiye Hum Apke Sath Bane Rahenge.... Maine Bhi Ek Kahani Suru Ki Hai Choti Si Koshish Kr Rahi Hu... Dekhiyega Samay Nikal Kar Thoda...!!! Maa Aur Beti
 

S_Kumar

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Update- 64

नीलम भागते हुए रजनी के घर की तरफ गयी, दोपहर के 1 बज रहे थे। रास्ते में ही उसे काकी मिल गयी

काकी- अरे अरे....नीलम, कहाँ उड़ी जा रही है पतंग जैसे? रुक जरा, सांस तो ले ले।

नीलम- अरे काकी सांस गयी भाड़ में, रजनी कहाँ है?

काकी- क्या हुआ, कुछ बताएगी भी। वो तो अभी सो रही है?

नीलम- सो रही है.....इस वक्त.....क्यों? ये भी कोई सोने का वक्त है।

काकी- हाँ वो रात भर सो नही पाई न, बच्ची उसकी काफी परेशान कर रही थी रात में, इसलिए अभी दोपहर में सो गई।

(काकी ने जानबूझ कर नीलम को नही बताया कि रात भर रजनी और उदयराज बाहर थे, दरअसल अच्छे से तो काकी को भी नही पता था कि किस वजह से रजनी और उदयराज रात भर बाहर थे और उन्होंने वहां किया क्या, पर काकी को शक तो था, लेकिन काकी रजनी के पक्ष में ही थी)

नीलम- बच्ची ठीक है न उसकी, क्या हुआ उसे?

काकी- हाँ वैसे तो ठीक है पर सर्दी जुकाम होने की वजह से रात भर न तो वो खुद सोई और न ही रजनी को सोने दी, मैं कोशिश करती उसको लेने की तो मेरे पास भी नही आ रही थी, इसी वजह से रात में ठीक से सो नही पाई दोनों माँ बेटी और अब सो रही हैं। पर तू बता आखिर क्या हुआ ऐसे भागती हुई आ रही है।

नीलम- अरे काकी कुछ नही बस वो चूड़ीवाली आयी थी न तो रजनी ने मुझसे बोला था कि जब कभी आएगी तो मुझे भी बताना, तो मैंने उसको अपने द्वार पे ही रुकवा रखा है, मैंने सोचा की रजनी को भी बुला लाती हूँ वो भी अपनी मनपसंद की चूड़ियां ले लेगी, खैर कोई बात नही अब वो सो रही है तो मैं उसको जगाऊंगी नही, मैं खुद ही उसके लिए खरीद लेती हूं चूड़ियां, मुझे पता है उसे कैसी पसंद आयेगी चूड़ियां।

काकी- हां ठीक है बेटी, तू ही खरीद ले अपनी भी और उसकी भी, दोनों की पसंद एक जैसी ही तो है, अभी उसको जगाना ठीक नही।

नीलम- ठीक है काकी मैं फिर जाती हूँ, जब वो उठेगी तो उसको बता देना की मैं आयी थी....ठीक है

काकी- हाँ मेरी प्यारी बिटिया बता दूंगी, और हो सके तो मैं और वो आएंगी शाम को घर पे तेरे।

नीलम- ठीक है काकी

(और इतना कहकर नीलम वापिस आ गयी)

नीलम ने फिर चूड़ीवाली से अपनी और रजनी के पसंद की चूड़ियां खरीदी और महेन्द्र ने पैसे दिए, चूड़ीवाली चली गयी, आवाज लगाती हुई वो रजनी के घर की तरफ से भी गुजरी पर काकी ने रजनी को जगाया ही नही।

नीलम ने चूड़ियां ली और महेंद्र से बोली- लो ये पहनाओ मुझे।

महेन्द्र- मेरे से टूट जाएगी तुम खुद पहन लो ।

नीलम- टूट कैसे जाएंगी आराम से पहनाओ.....पहनाओ न

महेन्द्र- ये हरी चूड़ियां तुमने अपने लिए ली हैं और ये नीली चूड़ियां अपनी सखी के लिए।

नीलम- हाँ मेरी सखी को नीली चूड़ियां पसंद हैं।

महेन्द्र- कौन सी सखी, कभी देखा नही मैंने।

नीलम- अरे यहीं थोड़ी दूर पर घर है उसका....रजनी नाम है मेरी सखी का।

महेन्द्र- रजनी

नीलम- हम्म.....रजनी.....क्यों कोई दिक्कत है नाम में

महेन्द्र- अरे दिक्कत नही, नाम तो बहुत प्यारा है...रजनी

नीलम- अच्छा जी और मेरा नाम प्यारा नही है।

महेन्द्र- तुम्हारा नाम तो क्या तुम खुद सबसे प्यारी हो।

नीलम- ह्म्म्म रहने दो....मस्का मत लगाओ.....पता है मुझे सब, किस लिए मस्का लगाया जा रहा है।

महेन्द्र- जब पता है तो दे दो न

नीलम- क्या दे दूं

महेन्द्र- वही जिसके लिए मैं यहां आया हूँ।

नीलम- अच्छा जी, मतलब मेरे लिए नही आये हो खाली उसके लिए आये हो।

महेन्द्र- अरे मेरा मतलब दोनों के लिए मेरी जान...दोनों के लिए।

नीलम- एक चूड़ियां तो तुमसे पहनाई नही जा रही, पहनाओगे तभी मिलेगी, पहले पहनाओ और देखना टूटनी नही चाहिए एक भी, एक भी टूटी तो वही रुक जाना, फिर देखना मैं अपने बाबू को बोलूंगी और देखना वो कैसे पहनाते हैं मजाल है कि एक भी चूड़ी टूट जाये।

(नीलम ने महेन्द्र के सामने जानबूझ के शर्त रखी, उसे पता था कि महेन्द्र पहना नही पायेगा चूड़ियां)

(महेंद्र के पुरुषार्थ पर बात आके टिक गई तो वो भी मर्दानगी दिखाते हुए चूड़ियां पहनाने लगा)

महेन्द्र- अच्छा बाबू तुम्हे चूड़ियां पहनाते हैं....कब से

नीलम- बचपन से ही.....और बहुत अच्छा पहना देते हैं....पता है ये सब कब से शुरू हुआ

महेन्द्र- कब से चल रहा है ये सब

नीलम- क्या मतलब तुम्हारा...कब से चल रहा है।

महेन्द्र- अरे मेरा मतलब की वो कब से तुम्हे चूड़ियां पहनाते आ रहे हैं.....तुम तो भड़क जाती हो यार बहुत जल्दी।

नीलम- अब तुम बात ही ऐसी बोलोगे तो भड़कूँगी नही, बाबू हैं वो मेरे।

महेन्द्र- हाँ तो मैंने कब कहा की सैयां हैं तुम्हारे।

नीलम- बार बार बोलोगे तो सैयां मैं उन्ही को बना लुंगी फिर हाँथ मलते रह जाना।

महेन्द्र- अच्छा तुम बनाओगी और वो बन जाएंगे।

नीलम- कोशिश करने लगूंगी उनको रिझाने की, आखिर कब तक रुकेंगे, आखिर वो एक पुरुष और मैं एक स्त्री हूँ।

(इतना कहकर नीलम मुस्कुराने लगी, महेन्द्र समझ गया कि नीलम खाली उसे छेड़ रही है)

महेन्द्र- अच्छा बाबा माफ कर दो और बताओ कि कब से वो तुम्हे चूड़ियां पहनाते आ रहे हैं।

नीलम- हम्म ये हुई न बात, अब ऐसा वैसा कुछ मत बोलना, वो मुझे बचपन से ही चूड़ी पहनाते आ रहे हैं, एक बार मेरे जिद करने पर अम्मा ने चूड़ी तो खरीद दी पर पहना नही रही थी उसको कोई और काम करना था, काफी व्यस्त थी, बोली कि शाम तक रुक मैं खेत से वापिस आऊंगी तो पहना दूंगी, पर मेरा मन मान नही रहा था, अम्मा के जाने के बाद मैं लगी खुद ही पहनने, आधी से ज्यादा चूड़ी तोड़ डाली, कुछ ही कलाई में रह गयी, लगी रोने की अब अम्मा आएगी और लगेगी मेरी पिटाई, पर इतने में बाबू कहीं बाहर से आये तो मुझे रोता देख और हांथों में कुछ चूड़ियां और नीचे गिरी टूटी हुई चूड़ियां देख सारा माजरा समझ गए, मेरे पास आये और बोले- बस इतनी सी बात के लिए मेरी प्यारी सी बिटिया रो रही है। मैं उस वक्त छोटी थी, आंखों में आंसू भरे बाबू की तरफ देखने लगी, बाबू ने मेरे आंसू पोछे और प्यार से मेरे गालों को चूमकर मुझे गोदी में उठा कर बाजार ले गए और दुबारा वैसी ही चूड़ियां खरीद कर ले आये और फिर......

महेन्द्र- फिर क्या?

नीलम- फिर क्या...सारी चूड़ियां पहनाई मुझे उन्होंने....बड़े प्यार से....पता है एक भी नही टूटी एक भी......इसे कहते है एक पिता का प्यार बेटी के लिए, तभी तो मैं अपने बाबू को अपनी जान से ज्यादा चाहती हूं।

महेन्द्र- अच्छा जी, ऐसे कैसे पहना लेते हैं कि एक भी चूड़ी नही टूटती, तेल लगा के पहनाते हैं क्या?

(महेन्द्र ने double meaning में चुटकी ली, और हंसने लगा, नीलम को फिर लगी गुस्सा, दिखावे के गुस्सा)

नीलम- फिर तुम बहुत बोल रहे हो.....एक भी चूड़ी अभी तक तुमसे पहनाई नही गयी....बस 5 मिनिट से मेरा हाँथ ही पकड़ के तोड़ मरोड़ रहे हो इधर उधर, अगर चूड़ी नही पहना पाए न तो मिलेगी भी नही रात को देख लेना और अगर चूड़ी टूटी तो वहीं रुक जाना फिर। बड़े आये तेल लगा के पहनाते होंगे चूड़ी बोलने वाले, अगर मैं तेल भी लगा दूँ न हाँथ में तो भी तुम नही पहना पाओगे, लगा लो शर्त।

महेन्द्र- चलो ठीक है, लगाओ तेल हाँथ में, न पहनाया तो मेरा नाम भी नही, लगाता हूं मैं शर्त।

(महेंद्र जोश जोश में बोल गया)

नीलम- वो तो ठीक है, पर शर्त हार गए तो।

महेन्द्र- पहली बात तो मैं हारूँगा नही।

नीलम- इतना भरोसा।

महेन्द्र- और क्या?

नीलम- देखते हैं, और हार गए तो।

महेन्द्र- तो जो तुम बोलोगी वही करूँगा। जो तुम चाहोगी वो होगा।

नीलम- सोच लो

महेन्द्र- सोच लिया

नीलम- ठीक है

महेन्द्र ने जो इस वक्त एक चूड़ी लेकर नीलम के नरम नरम हांथों में चढ़ाने की कोशिश कर रहा था उसको छोड़ दिया।

नीलम- अभी तक ये एक भी नही पहना पाए हो, अब जा रही हूं मैं तेल लेकर आने, तुम यहीं बैठो।

महेन्द्र- पर शर्त क्या है, ये तो बता दो।

नीलम मुस्कुराने लगी फिर बोली- शर्त

महेन्द्र- हाँ और क्या, पता तो हो शर्त क्या है?

नीलम- शर्त तो यही है न कि अगर तुम हार गए तो जो मैं चाहूंगी वही होगा, जो कहूंगी वैसा ही तुम करोगे, अभी तो तुमने खुद ही बोला और इतनी जल्दी भूल गए।

महेन्द्र- हाँ ठीक है, और जीत गया तो।

नीलम- अगर तुम जीते तो जो तुम चाहोगे वो मैं करूँगी।

(नीलम को पता था कि महेन्द्र हरगिज नही जीत सकता)

महेन्द्र ये सुनकर खिल उठता है।

नीलम- सोच लो एक बार फिर अभी वक्त है।

महेन्द्र- सोच लिया...मैं भी मर्द का बच्चा हूँ, पीछे नही हट सकता अब।

नीलम- ठीक है।

नीलम घर में गयी और कटोरे में सरसों का तेल लेकर आ गयी।
 

S_Kumar

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Hanji Bilkul Aap Kahani Likhte Rahiye Hum Apke Sath Bane Rahenge.... Maine Bhi Ek Kahani Suru Ki Hai Choti Si Koshish Kr Rahi Hu... Dekhiyega Samay Nikal Kar Thoda...!!! Maa Aur Beti
जी बिल्कुल, क्यों नही, अपने प्यारे रीडर्स के लिए समय तो निकलेंगे ही।
 

S_Kumar

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Sukriya SUPERB KUMAR Ji



Ha Ji Mere Khyal Se Apka Naam Ye Hi Hona Chahiye S Kumar Ji...Superb Kumar😀😀
अरे वाह! आज आपने मुझे एक जो नया नाम दिया वह मेरे दिल को छू गया, सच में बहुत अच्छा लगा, मैं यही नाम रख लेता हूँ अब, क्या बात है, मेरे एक प्यारे रीडर ने क्या नाम दिया है मुझे- Superb Kumar, S Kumar का मतलब अब से यही है।

बहुत बहुत शुक्रिया सोनिया जी
 
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