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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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S_Kumar

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रजनी के ससुराल वाले इतने नेक और भले इंसान थे कि जब उसके भाई की मौत हुई तो उन्होंने रजनी को अपने मायके में ही रहने को बोल दिया था ताकि रजनी के पिता को कोई दिक्कत या परेशानी न हो, उनको एक सहारे की जरूरत थी, और बाप को एक बेटी से अच्छा सहारा कौन दे सकता है, आप लोग तो जानते ही हैं कि बेटियां बाप की लाडली होती है। बेटियां बाप से ज्यादा गहराई से जुड़ी होती है अक्सर बेटे के मुकाबले।

बेटे अमन की मौत के बाद उदयराज बहुत अकेला हो गया था, उनको एक सहारे की जरूरत थी इसलिए रजनी के ससुराल वालों ने रजनी को इतनी छूट तक दे दी कि वो चाहे तो उम्र भर अपने मायके में रहकर अपने पिता की देखभाल करे।

रजनी के ससुराल में भी कम ही लोग थे, उसके सास-ससुर, (रजनी के ससुर का नाम बलराज था), देवर देवरानी और उनका एक बेटा (जो बड़ी ही मुश्किल से कई मन्नतों के बाद पैदा हुआ था)।

जब रजनी के भाई की मृत्यु हुई और उसके मायके में ससुराल में हर जगह गमहीन माहौल था, और उसके पिता उस वक्त बिल्कुल अकेले रह गए थे तो एक दिन उसके ससुर ने घर के आंगन में शाम को जब सब लोग बैठे थे, रजनी को बुलाकर ये बात कह दी-

बलराज- बहू, बड़ी बहू जरा इधर आना बेटी, तुमसे कुछ बात कहनी है।

(कुछ देर इंतजार करने के बाद भी जब बहू नही आई तो उन्होंने बगल में बैठी अपनी पत्नी से कहा)

बलराज- लगता है बहू ने सुना नही, जरा तुम जाकर आवाज लगा देना, किसी काम में व्यस्त है क्या शायद?

बलराज की पत्नी- हां लगता तो है, घर के पीछे की तरफ जानवरों को चारा तो नही डाल रही, रुको मैं बुला कर लाती हूं।


फिर रजनी की सासु उसे बुला कर लायी और बलराज ने सभी के सामने उससे ये कहा कि बेटी देखो तुम्हारे पिता मेरे समधी होने के साथ साथ एक परम मित्र भी हैं, तो मेरा ये फर्ज बनता है कि मुसीबत की घड़ी में मैं उनके काम आऊं,अब जब तुम्हारा भाई भी इस दुनियां में नही है तो वो बहुत अकेले पड़ गए हैं, उन्हें एक सहारे की बहुत जरूरत है, ये तो तुम जानती ही हो।
उन्होंने आगे कहा- देखो बेटी कोई भी पिता या माँ कभी भी अपनी बेटी के ससुराल में रहकर जीवन नही बिताना चाहेगा और न ही बिताता है वार्ना मैं उनको यहीं बुला लेता।


(रजनी सिर नीचे करके चुपचाप सुन रही थी, बगल में उसके देवर देवरानी भी बैठे थे, बस उसका पति ही वहां नही था, वो कहाँ था अभी थोड़ी देर में बताऊंगा)

बलराज आगे बोला- तो मेरी प्रिय बड़ी बहू मैने और तुम्हारी सास ने यहां तक कि तुम्हारे देवर देवरानी ने भी यही सोचा है कि अगर तुम चाहो तो उम्र भर अपने मायके में रहकर अपने पिता की सेवा कर सकती हो और उनका ख्याल रख सकती हो, क्योंकि हम लोग उनका दर्द बहुत अच्छे से महसूस कर रहे है और तुम भी कर ही रही होगी, आखिर बेटी हो तुम उनकी।

यह तुम्हारी इच्छा पर निर्भर करता है तुम यहाँ रहना चाहो तो यहां रहो और अपने पिता जी के पास रहना चाहो तो वहां रह सकती हो उम्र भर। लेकिन ऐसा अपने मन में कभी गलती से भी मत सोचना की यहां की धन दौलत, जमीन जायदाद तुम्हे नही मिलेगा, जो हिस्सा तुम्हारा है वो तुम्हारा ही है तुम चाहे यहां रहो या न रहो, क्योंकि गलत तो कभी इस गांव में सदियों से नही हुआ और आगे भी नही होगा शायद, बेटी शायद शब्द मैंने इश्लिये लगाया क्योंकि भविष्य का किसी को नही पता, पर तुम्हारे साथ कभी गलत नही होगा जब तक मैं जिंदा हूं।

अब तुम्हारे पति को ही देख लो हमे क्या पता था कि ये नालायक निकलेगा, जिसको अपने परिवार की कोई फिक्र नही, अपनी पत्नी की कोई फिक्र नही, वो कहाँ है, कब आएगा, सही सलामत है भी या नही कुछ नही पता, उसकी नालायकी और बेफिक्री के कारण ही मैंने जमीन जायदाद का जो तुम्हारे हिस्से का है वो पहले ही तुम्हारे नाम कर दिया है, मुझे उस पर विश्वास नही, उसको मैं अपना बेटा नही मानता, जब उसने मेरी फूल जैसी बहू को, हम सबको इतना दुख दिया है, तो मैं भी उसे अब अपना बेटा नही मानता। तुम खुद ही देखो पिछले 8 9 महीने से बिना किसी को कुछ बताये कहाँ चला गया पता नही, कुछ सूत्रों से सुनने में मिला कि शहर भाग गया है।




(इतना सुनते ही रजनी की आंखों से आंसू बहने लगे, वो घूंघट किये हुए थी, वो अपने आपको संभाल न सकी और जब ये सुना कि उसका पति शहर भाग गया तो आंसू बह निकले, हालांकि वो बहुत हंसमुख स्वभाव की थी, धैर्यवान थी पर ऐसी खबर सुनके इंसान रो ही पड़ेगा न)

उसकी सास ने उठकर उसे गले से लगा लिया और बोली- न बेटी न, रोना नही मेरी बेटी, और उसके सिर को सहला सहला कर चुप कराने लगी

बलराज- बेटी तू फिक्र मत कर उसको उसके किये की सजा तो ईश्वर देगा ही, ये मेरा दिल कहता है कि आने वाले वक्त में तुझे भरपूर सुख मिलेगा, तू चिंता मत कर, बस इस वक्त जो पहाड़ हम सबके सिर पे टूटा है उससे संभालना है। यह मेरा घर है और इस घर में जब तक मैं जिंदा हूँ मेरी ही चलेगी, बेटी तू पूरी तरह आजाद है अपनी मनमर्जी की जिंदगी जीने के लिए, तेरे ऊपर कोई बंधन नही है तू चाहे जहां रह सब तेरा ही है।

मैं अपने मित्र उदयराज से बात कर लेता हूँ कि तू अब उसके साथ ही मायके में रहेगी, उनकी सेवा करेगी, देखभाल करेगी, नही मानेंगे तो मैं मना लूंगा सब समझा के, क्योंकि यहां तो तेरी सास है, देवरानी है देवर है, उनके पास कौन है कोई नही, तुझे उनके पास होना चाहिए। मैं बात करता हूँ उनसे पर तु कुछ बोल तो सही बस रोये जा रही है, अपनी मन की बात तो बता बेटी।

इतना सुनते ही रजनी रोते हुए अपने ससुर के पैरों में पड़ गयी और बोली- मैं धन्य हूं जो आप जैसे पिता समान ससुर मुझे मिले, जिन्होंने मुझे इतनी छूट दे दी कि मैं उम्र भर भी अपने मायके में अपने बाबू जी के साथ रहूं तो भी उन्हें कोई परेशानी नही, मैं धन्य हूँ पिताजी।

रजनी ने आगे बोला- कौन बेटी नही चाहेगी की वो अपने बाबूजी के साथ रहे बस मुझे यही चिंता होती थी कि आप लोगों की सेवा का फल मुझे नही मिल पायेगा।

बलराज- नही बेटी ऐसा नही है इतने दिन तूने हमारी सेवा तो कर ली न अब वहां उनको तेरी जरूरत है, हम धन्य है तेरी सेवा से, और तेरी जैसी बहू किसी को सौभाग्य से ही मिलती है, बस ये मेरा बेटा ही नालायक निकला।


(इतने में रजनी की देवरानी बोली)

रजनी की देवरानी- दीदी आप फिक्र मत कीजिये हम सब है यहाँ, संभाल लेंगे, कोई परेशानी नही होगी, आप वहां देखिए और संभालिये।

बलराज- ठीक है बेटी मैं कल ही उदयराज से बात कर लेता हूँ


(और फिर रजनी की सास उसकी देवरानी भावुक होकर एक दूसरे से लिपटकर रोने लगी, और काफी देर बाद जाकर एक दूसरे को सांत्वना देकर चुप हुई, रजनी के ससुर और देवर भी भावुक होकर वहां से उठकर बाहर चले गए)

(अगले दिन बलराज ने उदयराज से अपने मन की बात कही, काफी न नुकुर के बाद उसने उदयराज को मना लिया और रजनी उसके अगले ही दिन अपनी बेटी के लेकर अपने मायके अपने बाबूजी के पास आ गयी उनके साथ रहने, उनकी सेवा करने)

(रजनी ने इस वक्त अपने पति के बारे में क्या सोचा, की वह उनके बगैर कैसे रहेगी और वो आ गया तो क्या होगा, रजनी ने अपना ससुराल छोड़कर अपने मायके में अपने पिता के साथ रहने का निर्णय लेने में देरी क्यों नही की, और रजनी के ससुर ने ऐसा क्यों बोला कि "मेरा दिल कहता है कि आने वाले वक्त में तुझे भरपूर सुख मिलेगा" इसके बारे में अगले अपडेट में)
 

S_Kumar

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Update-4

पिछला-
(रजनी ने इस वक्त अपने पति के बारे में क्या सोचा, की वह उनके बगैर कैसे रहेगी और वो आ गया तो क्या होगा, रजनी ने अपना ससुराल छोड़कर अपने मायके में अपने पिता के साथ रहने का निर्णय लेने में देरी क्यों नही की, और रजनी के ससुर ने ऐसा क्यों बोला कि "मेरा दिल कहता है कि आने वाले वक्त में तुझे भरपूर सुख मिलेगा" इसके बारे में अगले अपडेट में)

अब आगे-

रजनी ने अपने मायके जाते वक्त अपने पति के बारे में, उनके निर्णय के बारे में इंतजार नही किया और न ही कुछ सोचा क्योंकि इनके पीछे कुछ कारण थे :

1.घर में उनके पति की कोई अहमियत नही रह गयी थी, ये उसके पति की खुद की करतूतों की वजह से हुआ था। जिस इंसान ने कभी अपने घर के लोगों की कोई परवाह न कि हो, हमेशा अपने मन की किया हो, एक वक्त ऐसा आता है कि उसकी अहमियत कम हो जाती है।

2. वो खुद 8 9 महीने से बिना किसी से कुछ बताये लापता हो गया था, कुछ सूत्रों से पता लगा था कि वो इस गांव के नियम कानून, उसकी सदियों से चली आ रही प्रतिष्ठा को दरकिनार करके, अपने घरवालों को छोड़कर, अपने पत्नी और बेटी को छोड़कर सदा के लिए बाहरी सांसारिक दुनिया में जीने के लिए चला गया था, जहां हर तरह के गलत काम होते थे और उनमे उसको मजा आने लगा, कुछ पता नही था कि वो कहाँ है और आएगा भी या नही।

3. रजनी तो वैसे भी अकेली ही जीवन बिता रही थी चाहे उसका पति हो या न हो उसके जीवन में कोई रस या उमंग नही था, अब तो वो उसे छूता भी नही था, छूने की बात तो बहुत दूर थी वो रजनी को मानता ही नही था, वो तो हमेशा ही कामाग्नि में जलती रहती थी, इसलिए रजनी ने भी उसे अपने दिल से निकल दिया था पर वो अंदर से उदास रहती थी।

4. जब रजनी के सामने ये बात आई कि वह अपने बाबू जी के साथ रह सकती है तो वो अंदर ही अंदर खिल उठी। रजनी का अपने बाबू से बचपन से ही बहुत लगाव था, वो अपने पिता की लाडली थी, हमेशा से ही वो अपने पिता के लिए एक मित्र बनकर रही है। जब उसकी शादी में उसकी बिदाई हो रही थी तो उसके बाबू जी उसकी जुदाई में बेहोश हो गए थे, रजनी को भी होश नही था वो भी ससुराल में काफी दिनों तक रोती रही थी और इधर रजनी के पिता अपनी बेटी के वियोग में बीमार भी पड़ गए थे काफी झाड़ फूक के बाद जाके ठीक हुए थे।
उसके पिता भी रजनी के अंदर अपनी पत्नी की छवि देखते थे क्योंकि रजनी अपनी माँ की तरह दिखती थी पर असलियत मे वो अपनी माँ से कहीं ज्यादा सुंदर और कामुक औरत थी।

वैसे भी रजनी ससुराल में भी अकेली ही थी बिना पति के क्या ससुराल, वो मन ही मन अपने बाबू जी के पास आना चाहती थी, पर उसने कभी ये जिक्र नही किया था और जब ये प्रस्ताव उनके सामने आया तो वह मना नही कर पाई।
वैसे भी मायके में लड़कियां ज्यादा स्वछंद और खुले रूप में रह सकती है, ससुराल की तरह वहां ज्यादा कोई बंदिश नही होती, जैसे चाहो वैसे रहो, जैसा मन में आये पहनो।

रजनी को कहीं न कहीं ये अहसास था कि उसका पति वापिस नही आएगा अब, क्योंकि गांव ही उसे स्वीकार नही करेगा, वो सारे नियम क़ानून तोड़कर बाहरी दुनिया में मजे लेने गया था उसे अब कोई स्वीकार नही करेगा।

एक तरीके से वो अब विधवा सी हो गयी थी, और अगर वो आ भी गया तब भी वो ससुराल जाने वाली नही अब, अब वो ही घर जमाई बनके मायके में रहेगा अगर आएगा तो, पर ऐसा कभी होगा ही नही, इसलिए अब उसका रास्ता साफ था, वो तो अब अपने बाबू जी के ही साथ रहना चाहती थी, उसने तो शादी से पहले भी कई बार अपने बाबू से कहा था कि- मुझे नही करनी शादी वादी, मैं तो अपने बाबूजी के ही साथ रहूंगी, इस पर उसके बाबू जी हंस देते और कहते- बेटी ये तो नियम है सृष्टि का।

पर अब सब बदलने वाला था अब वो हो रहा था जो रजनी का दिल चाहता था।

इसलिए रजनी बिना ज्यादा देर किए अपने बाबू जी के पास मायके में आ गयी।

अन्य पात्र-

सुखिया काकी-
सुखिया काकी यही कोई 60 62 साल की होंगी। हालांकि वो उसकी दादी की उम्र की थी पर रजनी बचपन से ही उन्हें काकी कहती थी।
सुखिया काकी रजनी के मायके में पड़ोस में ही रहती थी हालांकि गांव में घर थोड़ा दूर दूर थे पर एक सुखिया काकी का ही घर था जो रजनी के घर के काफी नजदीक था।
सुखिया काकी के घर में केवल उसकी 2 बेटियां थी जिनकी शादी हो चुकी थी वो अब अकेली ही रहती थी, ज्यादातर वो रजनी के घर पर ही रहती थी अक्सर खाना भी उनका यहीं बन जाता था।
सुखिया काकी ने रजनी को बचपन से ही पाला पोशा था और उस वक्त जब रजनी की माँ का देहान्त हो गया था तो सुखिया काकी ने ही रजनी और उसके भाई अमन को पाल पोश के बड़ा किया था इसलिए सुखिया काकी को रजनी अपनी माँ ही मानती थी और उनसे अपने दिल की हर बात कह देती थी।

सुखिया काकी को रजनी ने ही कहा था कि -
काकी आप यहीं रहा करो न हमारे घर, आप भी अकेली ही रहती हो अपने घर में, मेरे साथ ही रहो आपका खाना पीना तो मैं यहीं बना ही देती हूं, आप इस उम्र में क्यूं इतना काम करती हो। मेरे साथ ही रह करो अब मैं आ गयी हूं न।

तो काकी बोली- बेटी तू कहती तो सही है। मेरा भी मन करता है कि मैं तेरे साथ ही रहूं, तेरे साथ मुझे भी सुकून मिलता है मन भी लगा रहता था, पर उधर भी देखभाल तो करना ही पड़ेगा न, अब अगर उधर बिल्कुल न जाऊं तो सब खराब हो जाएगा, साफ सफाई भी करना रहता है, एक गाय है उसको भी चार पानी देना पड़ता है, पर मैं सुबह शाम तेरे पास ही तो रहती हूं, देख तू खाना भी मेरा यहीं बना देती है तो खाना खाने के लिए तो आती ही हूं।

तो रजनी बोली- अरे मेरी प्यारी काकी माँ तुमने मुझे पाल पोश ले बड़ा किया है क्या मेरा इतना भी फ़र्ज़ नही की मैं अब इस उम्र में तुम्हारा काम संभाल लूं, देखो अब मैं आ गयी हूं न तो मैं अब इस घर का और उस घर का, दोनों घर का काम संभाल लूंगी, आप बस मेरे साथ ही रहा करो,
हाँ अगर घूमे फिरने और देखभाल करने या टहलने के लिए जाना हो तो उधर चली जाया करो, पर अब मेरे साथ ही रहो, मुझे तुम्हारा और बाबूजी का साथ बहुत अच्छा लगता है।

तो काकी बोली- अच्छा मेरी बिटिया ठीक है, पर तू अकेले ही कितना काम करेगी, और मैं अगर बिल्कुल बैठ गयी तो मेरे शरीर में भी तो जंग लग जाएगा न, काम करने की तो हम गांव के लोगों को आदत होती है बेटी, इसलिए मुझे काम करने से न रोक, नही तो मैं भी जल्दी ही ऊपर चली जाउंगी बीमार होके, और रही बात तेरे साथ ही रहने की तो मैं तेरे साथ ही रहूंगी, पर अपने बाबू जी से तो पूछ लेती एक बार।

इस पर रजनी बोली- बाबू जी मेरी बात कभी नही टालते, और उन्हें इस बात से क्यों परेशानी होगी? ठीक है काकी जैसा आपको ठीक लगे आप काम करो पर ज्यादा नही।

काकी- ठीक है मेरी बिटिया।


(ऐसी है सुखिया काकी)

(रजनी के ससुर ने ऐसा क्यों बोला कि "मेरा दिल कहता है कि आने वाले वक्त में तुझे भरपूर सुख मिलेगा" इसके बारे में कहानी में आपको आगे चलकर पता लग जायेगा, इसके अलावा इस गांव पर क्या ऐसा काला साया था जो इतने ईमानदार लोग अच्छे लोग, जिन्होंने कभी कुछ गलत किया ही नही फिर भी उन लोगों के साथ इतना गलत हो रहा था कि धीरे धीरे लोग कम हो रहे थे, अपनो को खो रहे थे, जन्मदर बहुत कम था और मृत्युदर ज्यादा,
जो एक बैलेंस बिगड़ गया था उसका रास्ता क्या है?
क्या होगा इसका हल?
कैसे बचेगा इस गांव का अस्तित्व?
कहानी में आगे पता चलेगा)
 
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