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सबसे पहले धन्यवाद कि आपने फिर से कहानी शुरू कर दी, और न ही शुरू कर दी, बल्कि बड़ी ही तीव्र गति से आगे भी बढ़ा दी। अच्छी बात है (और जैसा कि आशा थी) कि सभी पाठकों ने तुरंत ही इस पुनर्जीवित कहानी को हाथों-हाथ इसको ले भी लिया! ढेर सारे कमैंट्स और रिएक्शंस देखने को मिले! अच्छा भी लगा। इस लिहाज़ से आपकी शंका और शिकायतें बेबुनियाद साबित हुईं! हाँ, मैं ही पीछे रह गया! लेकिन उसके कई कारण थे। उस पर चर्चा कभी बाद में, या फिर कभी नहीं!
अब आते हैं कहानी के पिछले कई अपडेट्स पर मेरी प्रतिक्रिया पर!
कहानी में घटनाक्रम बड़ी तेजी से, लेकिन उम्मीद के अनुरूप ही बदले/बढ़े। ठाकुर साहब ने साहूकार परिवार के लगभग सभी पुरुषों का अंत कर दिया। और यह क़दम प्रतिशोध से प्रेरित था, न्याय से नहीं। एक पुरानी रंजिश का खामियाज़ा ठाकुरों और साहूकारों दोनों ने ही आज उठाया। मैं हमेशा से सोचता था कि कोई भीतरघाती ही है, लिहाज़ा, मुंशी को इस साज़िश के पीछे देख कर बहुत आश्चर्य नहीं हुआ। फिर भी, अगर उसकी पत्नी स्वयं को सम्हाल नहीं सकती, तो उसका परिणाम अन्य लोगों की हत्या नहीं होना चाहिए। ये निहायत ही गिरी हुई सोच है। स्वयं पर नियंत्रण न हो, और उसका दोष किसी और के मत्थे मढ़ दो! ये तो गज़ब की अदा ठहरी! फिर भी, ठाकुर साहब एक शक्तिशाली व्यक्ति थे, और उनको अपनी शक्ति का ऐसा दुरूपयोग नहीं करना चाहिए था।
फिर पता चला कि साहूकारों की नफ़रत का कारण बड़े ठाकुर द्वारा गायत्री देवी का बलात्कार और शोषण करना था। यह एक ऐसी अमिट चोट होती है, जो शायद ही कोई भुला सके। किन्तु, उसके एवज़ में वैभव के बड़े भाई और चाचा की हत्या करना न्याय-संगत नहीं है। बलात्कारी बड़ा ठाकुर था - तो हत्या भी उसी की होनी चाहिए थी। वो प्रतिशोध भी होता, और न्याय भी। किसी अन्य की हत्या अपराध करना हुआ। दादा ठाकुर ने अपने पिता के कुकृत्य के लिए साहूकारों से क्षमा भी माँगी थी, फिर भी साहूकारों ने ये सब किया! इस लिहाज़ से दादा ठाकुर की कार्यवाई सही साबित प्रतीत होती है। इन सबके बीच सफ़ेदपोश का रहस्य अभी भी ज्यों का त्यों बना हुआ है। कौन हो सकता / सकती है वो? एक मज़ेदार बात हुई कि एक गाँव में इतने सारे लोगों की हत्या हो गई, लेकिन क़ानून की सुई टस से मस नहीं हुई। न किसी को पकड़ा गया और न किसी को सज़ा हुई! ख़ैर, लगता है कि ईश्वरीय न्याय ही होगा सभी हत्यारों के साथ!
इस बीच वैभव और भाभी के बीच होने वाले संवाद बड़े अनूठे हैं। अगर वैभव के चरित्र पर शक़ न होता, तो संभव है कि हम पाठक इस बारे में अधिक न सोचते। लेकिन, न जाने क्यों, कुछ अनगढ़ सा लग रहा है दोनों के बीच। ऐसा नहीं है कि भाभी-देवर की शादी नहीं होती। बहुत होती है, और सामाजिक तौर पर मान्य भी है। तो देखना है कि इन दोनों का क्या होता है। ख़ास कर तब, जब सफ़ेदपोश का रहस्य ख़तरा अभी भी बना हुआ है।
फिर अचानक ही नई बात आ गई... नई बात, मतलब रूपचंद और कुसुम के विवाह की सम्भावना! पढ़ते ही लगा कि इस बात में कुछ लोचा ज़रूर है। एक दूसरे के खून के प्यासे दो परिवार और वैवाहिक सम्बन्ध! न भाई! फूलवती की इस बात पर भरोसा तो नहीं होता। दोनों परिवारों में सम्बन्ध की अदला-बदली हो, तभी ख़टास में "थोड़ी" कमी आ सकती है, एक-तरफ़ा सम्बन्ध से नहीं। और वैसे भी, अभी तक के सभी अपडेट्स पढ़ कर मुझको ऐसा ही लगा कि केवल दादा ठाकुर ही अपने किए पर दुःखी हैं, साहूकार नहीं। उनमें शायद ही दुःख या पश्चाताप बचा हुआ है। ऐसे में, ठाकुरों का साहूकारों पर विश्वास करना मूर्खता है।
और अंततः आते हैं, सबसे नए, अपडेट #80 पर! सारे शक़ सही हैं मेरे - कोई भी नहीं सुधरा है! सभी नफ़रत का ज़हर जी रहे हैं और उसको अच्छे तरीके से पाल पोस रहे हैं! चंद्रकांत और रघुवीर - दोनों अभी भी वैभव की जान के पीछे पड़े हैं। फूलवती में भी वही घुन्नापन है, जो नफरती औरतों में देखने को मिलता है। कुसुम के रूप में वो अपने हाथ में ठाकुरों के विरुद्ध एक तुरुप का इक्का रखना चाहती थी शायद। लेकिन उसके इस मंसूबे पर पानी पड़ता दिख रहा है। जो एक अच्छी बात है। सफ़ेदपोश कौन है, अभी भी कोई सुराग नहीं उस रहस्य का।
वैभव और भाभी में अकेलेपन / सूनेपन / खुशियों / वैधव्य को ले कर जो बातें होती हैं, वो कहीं उन दोनों के बीच किसी नए सम्बन्ध को जन्म न दे दें! इतना तो तय है कि भाभी उसके साथ किसी नाजायज़ सम्बन्ध में नहीं पड़ने वाली। ऐसे में दोनों के बीच विवाह एक उत्कृष्ट परिणाम हो सकता है। वैसे भी, अनुराधा और रूपा इन अभूतपूर्व परिस्थितियों के कारण बाहर ही दिखाई दे रही हैं। रूपा और वैभव -- कुसुम और रूपचंद का अदला-बदली वाला सम्बन्ध हो जाए, तो अलग बात है! मैंने पहले भी लिखा था कि ठाकुर और साहूकार परिवार के बीच अगर शांति चाहिए, तो रूपा और वैभव का मेल एक वाज़िब हल है। लेकिन अगर वो न हो, तो ऐसे में केवल वैभव की भाभी ही बचती हैं।
अंत में -- बहुत बढ़िया TheBlackBlood भाई! शब्दों और रहस्यों का बढ़िया जाल बुना है आपने! लिखते रहें! आनंद से रहें!
अब आते हैं कहानी के पिछले कई अपडेट्स पर मेरी प्रतिक्रिया पर!
कहानी में घटनाक्रम बड़ी तेजी से, लेकिन उम्मीद के अनुरूप ही बदले/बढ़े। ठाकुर साहब ने साहूकार परिवार के लगभग सभी पुरुषों का अंत कर दिया। और यह क़दम प्रतिशोध से प्रेरित था, न्याय से नहीं। एक पुरानी रंजिश का खामियाज़ा ठाकुरों और साहूकारों दोनों ने ही आज उठाया। मैं हमेशा से सोचता था कि कोई भीतरघाती ही है, लिहाज़ा, मुंशी को इस साज़िश के पीछे देख कर बहुत आश्चर्य नहीं हुआ। फिर भी, अगर उसकी पत्नी स्वयं को सम्हाल नहीं सकती, तो उसका परिणाम अन्य लोगों की हत्या नहीं होना चाहिए। ये निहायत ही गिरी हुई सोच है। स्वयं पर नियंत्रण न हो, और उसका दोष किसी और के मत्थे मढ़ दो! ये तो गज़ब की अदा ठहरी! फिर भी, ठाकुर साहब एक शक्तिशाली व्यक्ति थे, और उनको अपनी शक्ति का ऐसा दुरूपयोग नहीं करना चाहिए था।
फिर पता चला कि साहूकारों की नफ़रत का कारण बड़े ठाकुर द्वारा गायत्री देवी का बलात्कार और शोषण करना था। यह एक ऐसी अमिट चोट होती है, जो शायद ही कोई भुला सके। किन्तु, उसके एवज़ में वैभव के बड़े भाई और चाचा की हत्या करना न्याय-संगत नहीं है। बलात्कारी बड़ा ठाकुर था - तो हत्या भी उसी की होनी चाहिए थी। वो प्रतिशोध भी होता, और न्याय भी। किसी अन्य की हत्या अपराध करना हुआ। दादा ठाकुर ने अपने पिता के कुकृत्य के लिए साहूकारों से क्षमा भी माँगी थी, फिर भी साहूकारों ने ये सब किया! इस लिहाज़ से दादा ठाकुर की कार्यवाई सही साबित प्रतीत होती है। इन सबके बीच सफ़ेदपोश का रहस्य अभी भी ज्यों का त्यों बना हुआ है। कौन हो सकता / सकती है वो? एक मज़ेदार बात हुई कि एक गाँव में इतने सारे लोगों की हत्या हो गई, लेकिन क़ानून की सुई टस से मस नहीं हुई। न किसी को पकड़ा गया और न किसी को सज़ा हुई! ख़ैर, लगता है कि ईश्वरीय न्याय ही होगा सभी हत्यारों के साथ!
इस बीच वैभव और भाभी के बीच होने वाले संवाद बड़े अनूठे हैं। अगर वैभव के चरित्र पर शक़ न होता, तो संभव है कि हम पाठक इस बारे में अधिक न सोचते। लेकिन, न जाने क्यों, कुछ अनगढ़ सा लग रहा है दोनों के बीच। ऐसा नहीं है कि भाभी-देवर की शादी नहीं होती। बहुत होती है, और सामाजिक तौर पर मान्य भी है। तो देखना है कि इन दोनों का क्या होता है। ख़ास कर तब, जब सफ़ेदपोश का रहस्य ख़तरा अभी भी बना हुआ है।
फिर अचानक ही नई बात आ गई... नई बात, मतलब रूपचंद और कुसुम के विवाह की सम्भावना! पढ़ते ही लगा कि इस बात में कुछ लोचा ज़रूर है। एक दूसरे के खून के प्यासे दो परिवार और वैवाहिक सम्बन्ध! न भाई! फूलवती की इस बात पर भरोसा तो नहीं होता। दोनों परिवारों में सम्बन्ध की अदला-बदली हो, तभी ख़टास में "थोड़ी" कमी आ सकती है, एक-तरफ़ा सम्बन्ध से नहीं। और वैसे भी, अभी तक के सभी अपडेट्स पढ़ कर मुझको ऐसा ही लगा कि केवल दादा ठाकुर ही अपने किए पर दुःखी हैं, साहूकार नहीं। उनमें शायद ही दुःख या पश्चाताप बचा हुआ है। ऐसे में, ठाकुरों का साहूकारों पर विश्वास करना मूर्खता है।
और अंततः आते हैं, सबसे नए, अपडेट #80 पर! सारे शक़ सही हैं मेरे - कोई भी नहीं सुधरा है! सभी नफ़रत का ज़हर जी रहे हैं और उसको अच्छे तरीके से पाल पोस रहे हैं! चंद्रकांत और रघुवीर - दोनों अभी भी वैभव की जान के पीछे पड़े हैं। फूलवती में भी वही घुन्नापन है, जो नफरती औरतों में देखने को मिलता है। कुसुम के रूप में वो अपने हाथ में ठाकुरों के विरुद्ध एक तुरुप का इक्का रखना चाहती थी शायद। लेकिन उसके इस मंसूबे पर पानी पड़ता दिख रहा है। जो एक अच्छी बात है। सफ़ेदपोश कौन है, अभी भी कोई सुराग नहीं उस रहस्य का।
वैभव और भाभी में अकेलेपन / सूनेपन / खुशियों / वैधव्य को ले कर जो बातें होती हैं, वो कहीं उन दोनों के बीच किसी नए सम्बन्ध को जन्म न दे दें! इतना तो तय है कि भाभी उसके साथ किसी नाजायज़ सम्बन्ध में नहीं पड़ने वाली। ऐसे में दोनों के बीच विवाह एक उत्कृष्ट परिणाम हो सकता है। वैसे भी, अनुराधा और रूपा इन अभूतपूर्व परिस्थितियों के कारण बाहर ही दिखाई दे रही हैं। रूपा और वैभव -- कुसुम और रूपचंद का अदला-बदली वाला सम्बन्ध हो जाए, तो अलग बात है! मैंने पहले भी लिखा था कि ठाकुर और साहूकार परिवार के बीच अगर शांति चाहिए, तो रूपा और वैभव का मेल एक वाज़िब हल है। लेकिन अगर वो न हो, तो ऐसे में केवल वैभव की भाभी ही बचती हैं।
अंत में -- बहुत बढ़िया TheBlackBlood भाई! शब्दों और रहस्यों का बढ़िया जाल बुना है आपने! लिखते रहें! आनंद से रहें!