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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354
अध्याय - 78
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



"कोई तो वजह ज़रूर है।" पिता जी ने गहरी सांस ली____"जिसके चलते वो तुम्हारे खिलाफ़ हो कर उस सफ़ेदपोश व्यक्ति का मोहरा बन गए। ख़ैर सच का पता तो अब उनसे रूबरू होने के बाद ही चलेगा। हमें जल्द ही इस बारे में कोई क़दम उठाना होगा।"


अब आगे....


आसमान में काले बादल मंडरा रहे थे। ऐसा लगता था जैसे आज बारिश ज़रूर होगी। आज कल काफी गर्मी होती थी। जिसकी वजह से अक्सर लोग बीमार भी पड़ रहे थे। मैं अपनी मोटर साईकिल द्वारा भुवन से मिलने अपने नए बन रहे मकान में आया था। मकान लगभग तैयार ही हो गया था, बस कुछ चीजें शेष थीं जोकि कुछ दिनों में पूरी हो जाएंगी। भुवन किसी काम से कहीं गया हुआ था और मैं उसी का इंतज़ार कर रहा था।

मेरे ज़हन में मकान को देखते हुए कई सारे विचार उभर रहे थे। जिसमें सबसे पहला विचार यही था कि मैंने क्या सोच कर यहां पर ये मकान बनवाया था और अब क्या हो चुका था। ऐसा क्यों होता है कि हम सोचते कुछ हैं और हो कुछ और जाता है? मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं अपने चाचा और बड़े भाई को इस तरह से खो दूंगा। यूं तो मुझे दोनों के ही इस तरह चले जाने का बेहद दुख था लेकिन सबसे ज़्यादा दुख अपने भाई के चले जाने का हो रहा था। क्योंकि उनके चले जाने से भाभी का जैसे संसार ही उजड़ गया था।

सुहागन के रूप में कितनी खूबसूरत लगती थीं वो। मैं हमेशा उनके रूप सौंदर्य पर मोहित हो जाता था। अपनी ग़लत आदतों की वजह से मैं हमेशा उनसे दूर ही रहता था। मैं ये किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि उनके रूप सौंदर्य को देख कर मेरे मन में ग़लती से भी उनके प्रति ग़लत ख़याल आ जाए। हालाकि मेरे ना चाहने पर भी ग़लत ख़याल आ ही जाते थे मगर फिर भी मैं अब तक अपनी कोशिशों में कामयाब ही रहा था और अपनी भाभी के दामन पर दाग़ लगाने से खुद को रोके रखा था। मगर ये जो कुछ हुआ है वो हर तरह से असहनीय है।

जिस भाभी के चेहरे पर हमेशा नूर रहता था उनका वही चेहरा आज विधवा हो जाने के चलते किसी उजड़े हुए चमन का हिस्सा नज़र आने लगा था। मेरा हर सच जानने के बावजूद वो मेरी परवाह करती थीं और हवेली में सबसे बड़ा मेरा मुकाम बना हुआ देखना चाहती थीं। अपने जीवन में मैंने उनके जैसी सभ्य, सुशील, संस्कारी और सबके बारे में अच्छा सोचने वाली नारी नहीं देखी थी। बार बार मेरे मन में एक ही सवाल उभरता था कि इतनी अच्छी औरत को ऊपर वाला इतना बड़ा दुख कैसे दे सकता है? मैंने उन्हें हमेशा खुश रखने का उनसे वादा तो किया था लेकिन मैं खुद नहीं जानता था कि उनके इतने बड़े दुख को मैं कैसे दूर कर सकूंगा और कैसे उन्हें खुशियां दे पाऊंगा? सच तो ये था कि मेरे लिए ऐसा कर पाना बिल्कुल भी आसान नहीं था।

अभी मैं ये सोच ही रहा था कि अचानक ही आसमान में बिजली चमकी और अगले कुछ ही पलों में तेज़ गर्जना हुई। मेरे देखते ही देखते कुछ ही पलों में बूंदा बांदी होने लगी। मकान में काम कर रहे मजबूर बूंदा बांदी होते देख बड़ा खुश हुए। फ़सल काटने के बाद की ये पहली बारिश थी जो होने लगी थी। पहले बूंदा बांदी और फिर एकदम से तेज़ बारिश होने लगी। चारो तरफ एकदम से अंधेरा सा हो गया। मैं मकान के दरवाज़े के बाहर ही बरामदे में बैठा हुआ था। बाहर जो मज़दूर मौजूद थे वो भीगने से बचने के लिए भागते हुए जल्दी ही बरामदे में आ गए। मैं दरवाज़े के पास ही एक लकड़ी के स्टूल पर बैठा हुआ था। तेज़ हवा भी चल रही थी जो बारिश में घुल कर ठंडक का एहसास कराने लगी थी। दरवाज़े के बाहर बरामदे जैसा था इस लिए बारिश के छींटे मुझ तक नहीं पहुंच सकते थे। देखते ही देखते तपती हुई ज़मीन में छलछलाता हुआ पानी नज़र आने लगा। ज़मीन से एक अलग ही सोंधी सोंधी महक आने लगी थी।

बारिश इतनी तेज़ होने लगी थी कि दूर वाले पेड़ पौधे धुंधले से नज़र आने लगे थे। एकाएक मेरी घूमती हुई निगाह एक जगह पर ठहर गई और इसके साथ ही मेरे माथे पर सिलवटें भी उभर आईं। जल्दी ही मेरी नज़र ने उस जगह पर भागते व्यक्ति को पहचान लिया। वो अनुराधा थी जो तेज़ बारिश में दौड़ते हुए इस तरफ ही आ रही थी। अनुराधा को इस तरह यहां आते देख मेरी धड़कनें बढ़ गईं। ज़हन में ख़याल उभरा कि ये यहां क्यों आ रही है?

"अरे! वो तो अनुराधा बिटिया है न रे भीखू?" बरामदे के एक तरफ खड़े एक अधेड़ मज़दूर ने दूसरे आदमी से पूछा____"ये बारिश में यहां कहां भींगते हुए आ रही हैं?"

"अपने भाई भुवन से मिलने आ रही होगी।" दूसरे मज़दूर ने कहा____"लेकिन बारिश में नहीं आना चाहिए था उसे। देखो तो पूरा भीग गई है ये।"

मज़दूरों की बात सुन कर मैं ख़ामोश ही रहा। असल में मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं? मैं तो खुद सोच में पड़ गया था कि वो यहां क्यों आ रही है, वो भी बारिश में भींगते हुए। मेरे देखते ही देखते वो जल्दी ही हमारे पास आ गई। गीली और पानी से लबरेज़ मिट्टी पर थल्ल थल्ल पैर जमाते हुए वो बरामदे में आ गई। उसकी नज़र अभी मुझ पर नहीं पड़ी थी। शायद तेज़ बारिश के चलते वो ठीक से सामने का नहीं देख रही थी। मैंने देखा सुर्ख रंग का उसका कुर्ता सलवार पूरी तरह भीग गया था। दुपट्टे को उसने सिर पर ओढ़ा हुआ था जिसे उसने बरामदे में आते ही जल्दी से सीने पर डाल लिया। भीगे होने की वजह से उसके सीने के उभार साफ नज़र आ रहे थे।

"अरे! इतनी तेज़ बारिश में तुम यहां क्यों आई हो अनुराधा?" भीखू ने उससे पूछा____"देखो तो सारे कपड़े गीले हो गए हैं तुम्हारे और ये क्या, तुम्हारा एक चप्पल टूट गया है क्या?"

"हां काका।" अनुराधा ने मासूमियत से कहा____"शायद दौड़ने की वजह से टूट गया है। वैसे उसे टूटना ही था। पुराना जो हो गया था।"

"पर तेज़ बारिश में तुम्हें यहां भींगते हुए आने की क्या ज़रूरत थी?" भीखू ने कहा____"भींगने से बीमार पड़ गई तो?"

"मुझे क्या पता था काका कि इतना जल्दी बारिश होने लगेगी।" अनुराधा ने अपने चप्पल को पैर से निकालते हुए कहा____"जब घर से चली थी तब तो बूंदा बांदी भी नहीं हो रही थी।"

"हां लगता है तुम्हारे घर से निकलने का ही ये बारिश इंतज़ार कर रही थी।" भीखू ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"ख़ैर भुवन तो यहां है ही नहीं। हमारे छोटे कुंवर भी उसी का इंतज़ार कर रहे हैं यहां।"

अनुराधा भीखू के मुख से छोटे कुंवर सुन बुरी तरह चौंकी। उसने फिरकिनी की तरह घूम कर पीछे देखा तो उसकी नज़र मुझ पर पड़ गई। उफ्फ! भीगने की वजह से कितनी प्यारी लग रही थी वो। मेरे पूरे जिस्म में सिहरन सी दौड़ गई। मैंने देखा वो अपलक मुझे ही देखने लगी थी। बारिश में भीग जाने की वजह से उसके गीले हो चुके गुलाबी होंठ हल्के हल्के कांप रहे थे। अचानक ही मुझे वस्तिस्थित का एहसास हुआ तो मैंने उससे नज़रें हटा लीं और बाहर बारिश की तरफ देखने लगा। मैंने महसूस किया कि जो लड़की इसके पहले मुझसे नज़रें नहीं मिला पाती थी वो अपलक मुझे ही देखे जा रही थी। एक अलग ही तरह के भाव उसके चेहरे पर उभरे दिखाई दिए थे मुझे।

"अरे! तुम्हें क्या हुआ बिटिया?" भीखू की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी मगर मैंने उसकी तरफ नहीं देखा। उधर वो अनुराधा से बोला____"तुम एकदम से बुत सी क्यों खड़ी हो? हमारे छोटे कुंवर को देखा नहीं था क्या कभी तुमने?"

भीखू की बात सुन कर अनुराधा जैसे आसमान से गिरी। उसने हड़बड़ा कर भीखू की तरफ देखा और फिर खुद को सम्हालते हुए बोली____"देखा था काका। पहले ठीक से पहचानती नहीं थी लेकिन अब पहचान गई हूं। पहले यकीन नहीं होता था पर अब हो चुका है।"

"ये तुम क्या कह रही हो बिटिया?" भीखू को जैसे अनुराधा की बात समझ नहीं आई, अतः बोला____"मैं समझा नहीं तुम्हारी बात को।"

"हर बात इतना जल्दी कहां समझ आती है काका?" अनुराधा ने अजीब भाव से कहा____"समझने में तो वक्त लगता है ना? ख़ैर छोड़िए, मुझे लगता है कि बारिश के चलते भुवन भैया नहीं आएंगे। मुझे भी घर जाना होगा, नहीं तो मां परेशान हो जाएगी। बारिश देख के डांटेगी भी मुझे।"

"हां पर इतनी तेज़ बारिश में कैसे जाओगी तुम?" भीखू ने हैरान नज़रों से अनुराधा की तरफ देखते हुए कहा____"ज़्यादा भींगने से बीमार हो जाओगी। कुछ देर रुक जाओ। बारिश रुक जाए तो चली जाना।"

"अरे! मैं तो पहले से ही बीमार हूं काका।" अनुराधा ने कहा____"ये बारिश मुझे भला और क्या बीमार करेगी? अच्छा अब चलती हूं। भैया आएं तो बता देना कि मैं आई थी।"

भीखू ने ही नहीं बल्कि और भी कई लोगों ने अनुराधा को रोका मगर वो न रुकी। तेज़ बारिश में जैसे वो कूद ही पड़ी और पूरी निडरता से ख़राब मौसम में वो बड़े आराम से आगे बढ़ती चली गई। इधर मैं पहले ही उसकी बातों से हैरान परेशान था और अब उसे यूं भींगते हुए जाता देखा तो और भी चिंतित हो उठा। एकाएक ही मेरे मस्तिष्क में जैसे भूचाल सा आ गया। उस दिन भुवन द्वारा कही गई बातें मेरे ज़हन में गूंज उठीं। मतलब अनुराधा ने भीखू से अभी जो बातें की थी उसमें उसका संदेश था। शायद वो ऐसी बातें मुझे ही सुना रही थी और चाहती थी कि मैं समझ जाऊं। मेरे लिए ये बड़े ही आश्चर्य की बात थी कि एक भोली भाली और मासूम सी लड़की में कुछ ही दिनों में इतना ज़्यादा परिवर्तन कैसे आ गया?

"पता नहीं आज क्या हो गया है इस लड़की को?" एक अन्य मज़दूर ने भीखू से कहा____"एकदम पगला ही गई है। देखो तो कैसे भींगते हुए चली जा रही है। देखना पक्का बीमार पड़ेगी ये। भुवन को पता चलेगा तो वो भी परेशान हो जाएगा इसके लिए।"

"अरे! हमारे पास एक छाता था न?" किसी दूसरे मज़दूर ने अचनाक से कहा____"तेज़ धूप से बचने के लिए भुवन लाया था। रुको अभी देखता हूं।"

"हां हां जल्दी ले आ।" भीखू बोल पड़ा____"वो ज़्यादा दूर नहीं गई है अभी। दौड़ कर जल्दी से उसको छाता पकड़ा के आ जाना।"

कुछ ही देर में वो मज़दूर छाता ले आया। इधर मेरे अंदर मानों खलबली सी मच गई थी। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं क्या न करूं? सहसा मेरी नज़र एक मज़दूर को छाता ले कर बरामदे से बाहर की तरफ जाते देखा तो मैं हड़बड़ा कर स्टूल से उठ कर खड़ा हो गया।

"रुको।" मैंने उसे पुकारा तो वो एकदम से रुक गया और मेरी तरफ पलट कर देखने लगा।
"इधर लाओ छाता।" मैं उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला____"मैं इसे ले कर जा रहा हूं उसके पास।"

"छ...छोटे कुंवर आप?" उसके साथ बाकी मज़दूर भी हैरानी से मेरी तरफ देखने लगे जबकि मैं उसके क़रीब पहुंचते ही बोला____"हां तो क्या हो गया? काफी दिन हो गए मुरारी काका के घर नहीं गया। इसी बहाने काकी से घर का हाल चाल भी पूछ लूंगा। भुवन आए तो कहना मैं मुरारी काका के घर गया हूं और जल्दी ही वापस आऊंगा।"

अब क्योंकि किसी में भी हिम्मत नहीं थी जो मुझसे कोई और सवाल जवाब करता था इस लिए उस मज़दूर ने फ़ौरन ही मुझे छाता पकड़ा दिया। मैंने जल्दी से छाते को खोला और बाहर हो रही बारिश में जंग का मैदान समझ कर कूद पड़ा। सच कहूं तो मेरे दिल की धड़कनें असमान्य गति से चल रहीं थी। अनुराधा मुझसे क़रीब चालीस पचास क़दम की दूरी पर पहुंच चुकी थी। मैं छाता लिए तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ने लगा। बाहर बारिश तो तेज़ हो ही रही थी लेकिन उसके साथ हवा भी चल रही थी जिसके चलते बारिश की बौछारें चारो तरफ अपना रुख बदल लेती थीं। जल्दी ही मेरे घुटने से ऊपर का भी हिस्सा बारिश की बूंदों से भीगता नज़र आया। उधर अनुराधा बिना इधर उधर देखे बड़े आराम से चली जा रही थी। मैं हैरान था कि आते समय वो भींगने से बचने के लिए दौड़ते हुए आई थी जबकि अब वो बड़े आराम से जा रही थी। ज़ाहिर था उसे बारिश से ना तो भीग जाने की परवाह थी और ना ही भीग जाने के चलते बीमार पड़ने की। सही कहा था उस मज़दूर ने कि एकदम पगला गई थी वो।

जब मैं उसके क़रीब पहुंच गया तो मैंने झिझकते हुए उसे आवाज़ दी और अगले ही पल मेरी आवाज़ का उस पर जैसे किसी चमत्कार की तरह असर हुआ। वो अपनी जगह पर इस तरह रुक गई थी जैसे किसी ने जादू से उसको एक जगह पर टिका दिया हो। मुझे समझते देर न लगी कि वो मेरे ही आने का इंतज़ार कर रही थी। तभी तो वो इतना आराम से चल रही थी वरना भला ऐसा कौन मूर्ख होगा जो तेज़ बारिश में इतना आराम से चले?

यूं तो मैंने अनुराधा को वचन दिया था कि अब कभी उसके घर की दहलीज़ पर नहीं आऊंगा और कदाचित ये भी कि उससे बातें भी नहीं करूंगा मगर इस वक्त मुझे अपना ही वचन तोड़ना पड़ रहा था। ऐसा सिर्फ इस लिए क्योंकि मैं किसी भी कीमत पर ये नहीं चाहता था कि उसे कुछ हो जाए।

मैं जल्दी ही उसके क़रीब पहुंच गया और उसको छाते के अंदर ले लिया। मैंने देखा वो थर थर कांप रही थी। ज़ाहिर है बारिश में भीग जाने का असर था और उसके साथ ही शायद इसका भी कि इस वक्त वो मेरे इतने क़रीब थी। मेरी नज़दीकियों में पहले भी उसकी हालत ठीक नहीं रहती थी।

"बारिश के रुकने तक अगर वहां रुक जाती तो काकी खा नहीं जाती तुम्हें।" मैंने सामने की तरफ देखते हुए कहा____"इस तरह भींगने से अगर बीमार पड़ जाओगी तो उन्हें बहुत परेशानी होगी।"

"अ...आपको मां की परेशानी की चिंता है मेरी नहीं?" अनुराधा ने तिरछी नज़रों से मेरी तरफ देखते हुए धीमें से मानों शिकायत की।

"अगर तुम्हारी चिंता न होती तो छाता ले कर तुम्हारे पास नहीं आता।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"वैसे माफ़ करना, आज एक बार फिर से मैंने तुम्हें दिया हुआ अपना वादा तोड़ दिया। मैंने तुमसे वादा किया था कि अब से कभी भी ना तो मैं तुम्हारे घर की दहलीज़ पर क़दम रखूंगा और ना ही तुम्हारे सामने आऊंगा। कितना बुरा इंसान हूं ना जो अपना वादा भी नहीं निभा सकता।"

"न...नहीं, ऐसा मत कहिए।" अनुराधा का गला सहसा भारी हो गया____"सब मेरी ग़लती है। मैं ही बहुत बुरी हूं। मेरी ही ग़लती की वजह से आपने ऐसा वादा किया था मुझसे।"

"नहीं, तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है।" मैं सहसा आगे बढ़ा तो वो भी मेरे साथ बढ़ चली। इधर मैंने आगे कहा____"तुमने कुछ भी ग़लत नहीं किया है। तुमने तो वही कहा था जो सच था और जो मेरी वास्तविकता थी। शायद मैं वाकई में किसी के भरोसे के लायक नहीं हूं। ख़ैर छोड़ो, ये छाता ले लो और घर जाओ।"

"क...क्या मतलब??" अनुराधा ने चौंक कर मेरी तरफ देखा____"क...क्या आप नहीं चलेंगे घर?"

"तुमसे मिलने का और बात करने का वादा तोड़ दिया है मैंने।" मैंने अजीब भाव से कहा____"पर तुम्हारे घर की दहलीज़ पर क़दम न रखने का वादा नहीं तोड़ना चाहता। आख़िर अपने किसी वादे को तो निभाऊं मैं। शायद तब किसी के भरोसे के लायक हो जाऊं।"

मैंने ये कहा और अनुराधा को छाता पकड़ा कर उससे दूर हट कर खड़ा हो गया। मैंने देखा उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े थे। मुझे तकलीफ़ तो बहुत हुई मगर शायद मैं इसी तकलीफ़ के लायक था।

"तुम्हारी आंखों में आसूं अच्छे नहीं लगते।" मैंने तेज़ बारिश में भींगते हुए उससे कहा____"इन आंसुओं को तो मेरा मुकद्दर बनना चाहिए और यकीन मानो ऐसे मुकद्दर से कोई शिकवा नहीं होगा मुझे।"

"न...नहीं रुक जाइए।" मुझे पलट कर जाता देख अनुराधा जल्दी से मानों चीख पड़ी____"भगवान के लिए रुक जाइए।"

"किस लिए?" मैं ठिठक कर उसकी तरफ पलटा।
"म...मुझे आपसे ढेर सारी बातें करनी हैं।" अनुराधा बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हालते हुए बोली____"और, और मुझे आपसे कुछ सुनना भी है।"

"मतलब??" मैं सहसा उलझ सा गया___"मुझसे भला क्या सुनना है तुम्हें?"

"ठ...ठकुराईन।" अनुराधा ने अपनी नज़रें झुका कर भारी झिझक के साथ कहा____"हां मुझे आपसे यही सुनना है। एक बार बोल दीजिए न।"

"क्यों?" मैं अंदर ही अंदर चकित हो उठा था किंतु अपने भावों को ज़ाहिर नहीं होने दिया।
"ब...बस सुनना है मुझे।" अनुराधा ने पहले की भांति ही नज़रें झुकाए हुए कहा।

"पर मैं ऐसा कुछ भी नहीं बोल सकता।" मैंने खुद को जैसे पत्थर बना लिया____"अब दिल में चाहत जैसी चीज़ को फिर से नहीं पालना चाहता। तुम्हारी यादें बहुत हैं मेरे लिए।"

कहने के साथ ही मैं पलट गया और फिर बिना उसके कुछ बोलने का इंतज़ार किए बारिश में भींगते हुए अपने मकान की तरफ बढ़ता चला गया। मैं जानता था कि ऐसा कर के मैंने बिल्कुल भी ठीक नहीं किया था क्योंकि अनुराधा को इससे बहुत तकलीफ़ होनी थी मगर मेरा भी तो कोई वजूद था। मेरे अंदर भी तो तूफ़ान चल पड़ा था जिसकी वजह से मैं उसके सामने कमज़ोर नहीं पड़ना चाहता था।

मुझे जल्दी ही वापस आ गया देख बरामदे में खड़े सारे मज़दूर हैरानी से मुझे देखने लगे। शायद ऐसा उनकी कल्पनाओं में भी नहीं था मगर उन्हें भला क्या पता था कि दुनिया में अक्सर ही ऐसा होता है जो किसी की कल्पनाओं में नहीं होता।

"छोटे कुंवर आप तो बड़ा जल्दी वापस आ गए?" एक अधेड़ उम्र का मज़दूर मुझे देखते हुए बोल पड़ा____"आपने तो कहा था कि आप मुरारी के घर जा रहे हैं उस लड़की के साथ? फिर वापस क्यों आ गए और तो और भीग भी गए?"

"हां छोटे कुंवर।" भीखू बोल पड़ा____"अगर आपको अनुराधा बिटिया को छाता ही दे के आ जाना था तो ये काम तो फुलवा भी कर देता। नाहक में ही भीग गए आप।"

"अरे! मैं तो मुरारी काका के घर ही जा रहा था काका।" मैंने कहा____"मगर फिर अचानक से मुझे एक ज़रूरी काम याद आ गया इस लिए वापस आ गया। रही बात भीग जाने की तो कोई बात नहीं।"

✮✮✮✮

मेरे इस तरह चले जाने पर अनुराधा जैसे टूट सी गई थी। उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि मैं उससे इस तरह मुंह फेर कर और उसकी कोई बात बिना माने अथवा सुने चला जाऊंगा। हाथ में छाता पकड़े वो बस रोए जा रही थी। आज से पहले भी वो अकेले में रोती थी मगर उसके दुख में आज की तरह पहले इज़ाफ़ा नहीं हुआ था। मेरे चले जाने पर उसे ऐसा लगा था जैसे उसके अंदर से एक झटके में कुछ निकल गया था। उसका कोमल हृदय तड़प उठा था जिसके चलते उसके आंसू रोके नहीं रुक रहे थे। तभी आसमान में तेज़ बिजली कड़की तो वो एकदम से घबरा गई। उसके हाथ से छाता छूटते छूटते बचा। उसने एक नज़र उस तरफ देखा जिधर मैं गया था और फिर वो अपने आंसू पोंछते हुए पलट कर अपने घर की तरफ चल दी।

अनुराधा एक हाथ से छाता पकड़े बढ़ी चली जा रही थी। दिलो दिमाग़ में बवंडर सा चल रहा था। शून्य में खोई वो कब अपने घर पहुंच गई उसे पता ही नहीं चला। चौंकी तब जब एक बार फिर से तेज़ बिजली कड़की। उसने हड़बड़ा कर इधर उधर देखा तो उसकी नज़र सहसा अपने घर के दरवाज़े पर पड़ी।

दरवाज़ा खोल कर अनुराधा जैसे ही अंदर आई तो आंगन के पार बरामदे में बैठी उसकी मां की नज़र उस पर पड़ी। सरोज उसी की चिंता में बैठी हुई थी। अनुराधा को वापस आया देख वो एकदम से उठ कर खड़ी हो गई।

"हाय राम! ये क्या तू भीग कर आई है?" सरोज हैरत से आंखें फाड़ कर बोल पड़ी____"मना किया था न कि मौसम ख़राब है और बारिश कभी भी हो सकती है फिर भी चली गई अपने भाई से मिलने? ऐसा क्या ज़रूरी काम था तुझे उससे जिसके लिए तूने मेरी बात भी नहीं मानी?"

अनुराधा अपनी मां की बातें सुन कर कुछ न बोली। आंगन से चलते हुए वो बरामदे में आई और फिर छाते को बंद कर के अंदर कमरे की तरफ चली गई। उसके जाते ही सरोज जाने क्या क्या बड़बड़ाने लगी।

इधर कमरे में आते ही अनुराधा ने दरवाज़ा बंद किया और फिर दरवाज़े से ही पीठ टिका कर सिसक उठी। अपने अंदर का गुबार उससे सम्हाला न गया। आवाज़ बाहर उसकी मां के कानों तक ना पहुंचे इस लिए उसने अपने मुंह को हथेली से सख़्ती पूर्वक दबा लिया। जाने कितनी ही देर तक वो रोती रही। रोने से जब उसे थोड़ा राहत हुई तो वो आगे बढ़ी और फिर अपने गीले कपड़े उतारने लगी। उसे बेहद ठंड लगने लगी थी। कमरे में चिमनी जल रही थी इस लिए उसे कोई परेशानी नहीं हुई। जल्दी ही उसने दूसरे कपड़े पहन लिए और अपने गीले बालों को खोल कर उन्हें सुखाने का प्रयास करने लगी।

"अगर बीमार पड़ी तो देख लेना फिर।" वो जैसे ही बाहर आई तो सरोज उसे डांटते हुए बोली____"दवा भी नहीं कराऊंगी। रोज़ रोज़ तेरी बीमारी का इलाज़ करवाने के लिए पैसे नहीं हैं मेरे पास।"

"हां ठीक है मां।" अनुराधा ने संजीदगी से कहा____"मत करवाना मेरी दवा। मैं खुद चाहती हूं कि इस बार मैं ऐसी बीमार पड़ जाऊं कि कोई वैद्य मेरा इलाज़ ही न कर पाए। मर जाऊंगी तो अच्छा ही होगा। कम से कम अपने बापू के पास जल्दी से तो पहुंच जाऊंगी।"

अनुराधा की बातें सुन कर सरोज चौंकी। उसने बड़े ध्यान से अपनी बेटी के चेहरे की तरफ देखा। आज से पहले उसने कभी भी उससे ऐसी बातें नहीं की थी। अगर ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कि उसने कभी अपनी मां से ज़ुबान ही नहीं लड़ाया था। उसके चेहरे पर मौजूद संजीदगी को देख कर सरोज के मन में कई तरह के ख़याल उभरे। वो चलते हुए उसके पास आई और उसके दोनो बाजुओं को पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया उसे।

"हाय राम! तू रो रही थी?" अनुराधा की सुर्ख और नम आंखों को देख सरोज ने किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा कर पूछा____"क्या बात है अनू? क्या हुआ है तुझे? तू भुवन से मिलने गई थी न? उसने कुछ कहा है क्या तुझे?"

सरोज एक ही सांस में जाने कितने ही सवाल उससे कर बैठी। अपनी बेटी को उसने ऐसी हालत में कभी नहीं देखा था। वो बीमार ज़रूर हो जाती थी लेकिन ऐसी हालत में कभी नज़र नहीं आई थी वो। उधर मां के इतने सारे सवाल सुन कर अनुराधा एकदम से घबरा गई। उसे लगा कहीं मां को सच न पता चल जाए। उसे कोई जवाब ही नहीं सूझ रहा था।

"क्या हुआ तू चुप क्यों है अनू?" बेटी को कुछ न बोलता देख सरोज और भी घबरा गई, उसने उसे हिलाते हुए पूछा____"बताती क्यों नहीं कि क्या हुआ है? देख मेरा मन बहुत घबरा रहा है। तुझे इस हालत में देख कर मेरे मन में बहुत ही बुरे बुरे ख़याल आ रहे हैं। बता क्या हुआ है तुझे? भुवन ने कुछ कहा है क्या तुझे?"

"न...नहीं मां।" अनुराधा ने खुद को किसी हद तक सम्हालते हुए कहा____"मुझे किसी ने कुछ नहीं कहा है।"

"तो फिर तू रोई क्यों है?" सरोज का अंजानी आशंका के चलते मानो बुरा हाल हो गया____"तेरी आंखें बता रही हैं कि तू रोई है। ज़रूर कुछ हुआ है तेरे साथ। बता मेरी बच्ची।"

"तुम बेकार में चिंता कर रही हो मां।" अनुराधा ने अब तक खुद को सहज कर लिया था, अतः बोली____"मैं रोई ज़रूर हूं लेकिन उसकी वजह ये नहीं है कि किसी ने मुझे कुछ कहा है। असल में बारिश होने लगी थी तो भींगने से बचने के लिए मैं दौड़ने लगी थी। पता नहीं मेरे पैर को क्या हुआ कि मैं रास्ते में एक जगह गिर गई। बहुत तेज़ दर्द हो रहा था इस लिए रोने लगी थी।"

"तू सच कह रही है ना?" सरोज की जैसे जान में जान आई, फिर एकदम से बैठ कर अनुराधा का पैर देखते हुए बोली____"दिखा मुझे कहां चोट लगी है तुझे?"

अनुराधा ये सुन कर बौखला ही गई। उसने तो अपनी समझ में बढ़िया बहाना बनाया था मगर उसे क्या पता था कि उसकी मां उसको चोट दिखाने को बोलने लगेगी।

"क्या हुआ?" अनुराधा को ख़ामोश देख सरोज ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा____"दिखा क्यों नहीं रही कि कहां चोट लगी है तुझे?"

"चोट नहीं लगी है मां।" अनुराधा ने हड़बड़ा कर जल्दी से कहा____"शायद पैर में मोच आई है। उस समय मैंने भी यही सोच कर देखा था कि शायद चोट लग गई है मुझे मगर चोट नहीं लगी थी।"

"ऊपर वाले का लाख लाख शुक्र है कि तुझे चोट नहीं आई।" सरोज ने कहा____"अच्छा बता कौन से पैर में मोच आई है। जल्दी दिखा मुझे, मोच भी बहुत ख़राब होती है। दर्द के मारे चलते नहीं बनता आदमी से।"

अनुराधा को मजबूरन अपना एक पैर दिखाना ही पड़ा। चिमनी की रोशनी में सरोज ने बड़े ध्यान से अपनी बेटी की बताई हुई जगह पर देखा मगर उसे कुछ समझ न आया। उसने एक बार सिर उठा कर अनुराधा को देखा और फिर उसकी बताई हुई जगह पर अपनी दो उंगलियों से दबा कर पूछा____"कहां दर्द हो रहा है तुझे?"

अनुराधा ने मुसीबत से बचने के लिए झूठ मूठ का ही दर्द का नाटक करते हुए बता दिया कि हां यहीं पर दर्द हो रहा है। सरोज ने उठ कर उसे चारपाई पर बैठाया और फिर तेज़ क़दमों से अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। उसके जाते ही अनुराधा ने राहत की सांस ली। कुछ देर में जब सरोज आई तो उसके हाथ में एक कटोरी थी।

"ये शहद हल्दी और चूना है।" फिर वो अनुराधा के पैर के पास बैठते हुए बोली____"इसे लगा देती हूं जिससे तुझे जल्दी ही आराम मिल जाएगा।"

सरोज कटोरी से निकाल कर शहद हल्दी और चूने के मिश्रण को अनुराधा के पैर में लगाने लगी। उधर अनुराधा को ये सोच कर रोना आने लगा कि उसे अपनी मां से झूठ बोलना पड़ा जिसके चलते उसकी मां उसके लिए कितना चिंतित हो गई है। उसका जी चाहा कि अपनी मां से लिपट कर खूब रोए मगर फिर उसने सख़्ती से अपने जज़्बातों को अंदर ही दबा लिया।



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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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अध्याय - 79
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सरोज कटोरी से निकाल कर शहद हल्दी और चूने के मिश्रण को अनुराधा के पैर में लगाने लगी। उधर अनुराधा को ये सोच कर रोना आने लगा कि उसे अपनी मां से झूठ बोलना पड़ा जिसके चलते उसकी मां उसके लिए कितना चिंतित हो गई है। उसका जी चाहा कि अपनी मां से लिपट कर खूब रोए मगर फिर उसने सख़्ती से अपने जज़्बातों को अंदर ही दबा लिया।


अब आगे....


क़रीब डेढ़ घंटा लगातार बारिश हुई। हर जगह पानी ही पानी नज़र आने लगा था। बारिश रुक तो गई थी लेकिन मौसम का मिज़ाज ये आभास करा रहा था कि उसका अभी मन भरा नहीं है। बिजली अभी भी चमक रही थी और बादल अभी भी गरज उठते थे। कुछ ही देर में भुवन मोटर साईकिल से आता नज़र आया।

"अरे! छोटे कुंवर आप यहां?" मुझे बरामदे में बैठा देख भुवन हैरानी से बोल पड़ा____"कोई काम था तो मुझे बुलवा लिया होता।"

"नहीं, ऐसी कोई खास बात नहीं थी।" मैंने कहा____"बस यूं ही मन बहलाने के लिए इस तरफ आ गया था। हवेली में अजीब सी घुटन होती है। तुम्हें तो पता ही है कि हम सब किस दौर से गुज़रे हैं।"

"हां जानता हूं।" भुवन ने संजीदगी से कहा____"जो भी हुआ है बिल्कुल भी ठीक नहीं हुआ है छोटे कुंवर।"

"सब कुछ हमारे बस में कहां होता है भुवन।" मैंने गंभीरता से कहा____"अगर होता तो आज मेरे चाचा और मेरे भइया दोनों ही ज़िंदा होते और ज़ाहिर है उनके साथ साथ साहूकार लोग भी। पर शायद ऊपर वाला भी यही चाहता था और आगे न जाने अभी और क्या चाहता होगा वो?"

"फिर से कुछ हुआ है क्या?" भुवन ने फिक्रमंद हो कर पूछा____"इस बार मैं हर पल आपके साथ ही रहूंगा। मेरे रहते आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।"

"तुम्हारी इस वफ़ादारी पर मुझे नाज़ है भुवन।" मैंने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा___"मैं अक्सर सोचता हूं कि मैंने तुम्हारे ऐसा तो कुछ किया ही नहीं है इसके बावजूद तुम मेरे लिए अपनी जान तक का जोख़िम उठाने से नहीं चूक रहे। एक बात कहूं, अपनों के खोने का दर्द बहुत असहनीय होता है। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम्हें कुछ हो जाए और तुम्हारे परिवार के लोग अनाथ हो जाएं।"

"मैं ये सब नहीं जानता छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"मैं तो बस इतना जानता हूं कि मुझे हर हाल में आपकी सुरक्षा करनी है। मुझे अपने परिवार के लोगों की बिल्कुल भी फ़िक्र नहीं है क्योंकि मुझे पता है कि उनके सिर पर दादा ठाकुर का हाथ है।"

"बेशक है भुवन।" मैंने कहा____"मगर फिर भी यही कहूंगा कि कभी किसी भ्रम में मत रहो। इतना कुछ होने के बाद मुझे ये समझ आया है कि जब ऊपर वाला अपनी करने पर आता है तो उसे कोई नहीं रोक सकता। उसके सामने हर कोई बेबस और लाचार हो जाता है।"

"हां मैं समझता हूं छोटे कुंवर।" भुवन ने सिर हिलाते हुए कहा____"लेकिन अगर ऐसी ही बात है तो फिर मैं भी यही सोच लूंगा कि जो कुछ भी मेरे या मेरे परिवार के साथ होगा वो सब ऊपर वाले की मर्ज़ी से ही होगा। मैं आपका साथ कभी नहीं छोडूंगा चाहे कुछ भी हो जाए।"

अजीब आदमी था भुवन। मेरे इतना समझाने पर भी मेरी सुरक्षा के लिए अड़ा हुआ था। अंदर से फक्र तो हो रहा था मुझे मगर मैं ऐसे नेक इंसान को किसी मुसीबत में नहीं डालना चाहता था। एक अंजाना भय सा मेरे अंदर समा गया था।

"ख़ैर छोड़ो इस बात को।" फिर मैंने विषय को बदलते हुए कहा____"मैं यहां इस लिए भी आया था कि ताकि तुमसे ये कह सकूं कि तुम यहां पर काम कर रहे सभी लोगों का हिसाब किताब एक कागज़ में बना कर मुझे दे देना। काफी दिन हो गए ये सब बेचारे जी तोड़ मेहनत कर के इस मकान को बनाने में लगे हुए हैं। मैं चाहता हूं कि सबका उचित हिसाब किताब बना कर तुम मुझे दो ताकि मैं इन सबको इनकी मेहनत का फल दे सकूं।"

"फ़िक्र मत कीजिए छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"कल दोपहर तक मैं इन सभी का हिसाब किताब बना कर हवेली में आपको देने आ जाऊंगा।"

"मैंने किसी और ही मकसद से इस जगह पर ये मकान बनवाया था।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"मगर ये सब होने के बाद अब हर चीज़ से मोह भंग सा हो गया है। ख़ैर जगताप चाचा के न रहने पर अब मुझे ही उनके सारे काम सम्हालने हैं इस लिए मैं चाहता हूं कि इसके बाद उन कामों में भी तुम मेरे साथ रहो।"

"मैं तो वैसे भी आपके साथ ही रहूंगा छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"आपको ये कहने की ज़रूरत ही नहीं है। आप बस हुकुम कीजिए कि मुझे क्या क्या करना है?"

"मुझे खेती बाड़ी का ज़्यादा ज्ञान नहीं है।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"इसके पहले मैंने कभी इन सब चीज़ों पर ध्यान ही नहीं दिया था। इस लिए मैं चाहता हूं कि इस काम में तुम मेरी मदद करो या फिर ऐसे लोगों को खोजो जो इन सब कामों में माहिर भी हों और ईमानदार भी।"

"वैसे तो ज़्यादातर गांव के लोग आपकी ही ज़मीनों पर काम करते हैं।" भुवन ने कहा____"मझले ठाकुर सब कुछ उन्हीं से करवाते थे। मेरा ख़याल है कि एक बार उन सभी लोगों से आपको मिल लेना चाहिए और अपने तरीके से सारे कामों के बारे में जांच पड़ताल भी कर लेनी चाहिए।"

"हम्म्म्म सही कहा तुमने।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"यहां इन लोगों का हिसाब किताब करने के बाद किसी दिन मिलते हैं उन सबसे।"

"बिल्कुल।" भुवन ने कहा____"आज बारिश भी अच्छी खासी हो गई है। मौसम का मिज़ाज देख कर लगता है कि अभी और भी बारिश होगी। इस बारिश के चलते ज़मीन में नमी भी आ जाएगी जिससे ज़मीनों की जुताई का काम जल्द ही शुरू करवाना होगा।"

"ठीक है फिर।" मैंने स्टूल से उठते हुए कहा____"अब मैं चलता हूं।"
"बारिश की वजह से रास्ते काफी ख़राब हो गए हैं।" भुवन ने कहा____"इस लिए सम्हल कर जाइएगा।"

मैं बरामदे से निकल कर बाहर आया तो भुवन भी मेरे पीछे आ गया। सहसा मुझे अनुराधा का ख़याल आया तो मैंने पलट कर उससे कहा____"मुरारी काका के घर किसी वैद्य को ले कर चले जाना।"

"य...ये आप क्या कह रहे हैं छोटे कुंवर?" भुवन एकदम से हैरान हो कर बोल पड़ा____"काका के यहां वैद्य को ले कर जाना है? सब ठीक तो है न वहां? आप गए थे क्या काका के घर?"

"नहीं मैं वहां गया नहीं था।" मैंने अपनी मोटर साइकिल में बैठते हुए कहा____"असल में मुरारी काका की बेटी आई थी बारिश में भीगते हुए। शायद तुमसे कोई काम था उसे।"

मेरी बात सुन कर भुवन एकाएक फिक्रमंद नज़र आने लगा। फिर सहसा उसके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई।

"पूरी तरह पागल है वो।" फिर उसने मेरी तरफ देखते हुए उसी फीकी मुस्कान से कहा____"पिछले कुछ समय से लगभग वो रोज़ ही यहां आती है। कुछ देर तो वो मुझसे इधर उधर की बातें करेगी और फिर झिझकते हुए आपके बारे में पूछ बैठेगी। हालाकि वो ये समझती है कि मुझे उसके अंदर का कुछ पता ही नहीं है मगर उस नादान और नासमझ को कौन समझाए कि उसकी हर नादानियां उसकी अलग ही कहानी बयां करती हैं।"

मैंने भुवन की बातों पर कुछ कहा नहीं। ये अलग बात है कि मेरे अंदर एकदम से ही हलचल मच गई थी। तभी भुवन ने कहा____"उसे मुझसे कोई काम नहीं होता है छोटे कुंवर। वो तो सिर्फ आपको देखने की आस में यहां आती है। उसे लगता है कि आप यहां किसी रोज़ तो आएंगे ही इस लिए वो पिछले कुछ दिनों से लगभग रोज़ ही यहां आती है और जब उसकी आंखें आपको नहीं देख पातीं तो वो निराश हो जाती है।"

"अच्छा चलता हूं मैं।" मैंने मोटर साइकिल को स्टार्ट करते हुए कहा____"तुम एक बार हो आना मुरारी काका के घर।"

"मुझे पूछना तो नहीं चाहिए छोटे कुंवर।" भुवन ने झिझकते हुए कहा____"मगर फिर भी पूछने की हिमाकत कर रहा हूं। क्या मैं जान सकता हूं कि आप दोनों के बीच में क्या चल रहा है? क्या आप उसे किसी भ्रम में रखे हुए हैं? कहीं आप उस मासूम की भावनाओं से खेल तो नहीं रहे छोटे कुंवर?"

"इतना सब मत सोचो भुवन।" मैंने उसकी व्याकुलता को शांत करने की गरज से कहा____"बस इतना समझ लो कि अगर मेरे द्वारा उसको कोई तकलीफ़ होगी तो उससे कहीं ज़्यादा मुझे भी होगी।"

कहने के साथ ही मैंने उसकी कोई बात सुने बिना ही मोटर साईकिल को आगे बढ़ा दिया। मेरा ख़याल था कि भुवन इतना तो समझदार था ही कि मेरी इतनी सी बात की गहराई को समझ जाए। ख़ैर बारिश के चलते सच में कच्चा रास्ता बहुत ख़राब हो गया था इस लिए मैं बहुत ही सम्हल कर चलते हुए काफी देर में हवेली पहुंचा। मोटर साइकिल के पहियों पर ढेर सारा कीचड़ और मिट्टी लग गई थी इस लिए मैंने एक मुलाजिम को बुला कर मोटर साईकिल को अच्छी तरह धो कर खड़ी कर देने के लिए कह दिया।

✮✮✮✮

दादा ठाकुर की बग्घी जैसे ही साहूकारों के घर के बाहर खुले मैदान में रुकी तो घोड़ों की हिनहिनाहट को सुन कर जल्दी ही घर का दरवाज़ा खुला और रूपचंद्र नज़र आया। उसकी नज़र जब दादा ठाकुर पर पड़ी तो वो बड़ा हैरान हुआ। इधर दादा ठाकुर बग्घी से उतर कर दरवाज़े की तरफ बढ़े। दादा ठाकुर के साथ में शेरा भी था।

"कैसे हो रूप बेटा?" दादा ठाकुर ने बहुत ही आत्मीयता से रूपचंद्र की तरफ देखते हुए कहा____"हम गौरी शंकर से मिलने आए हैं। अगर वो अंदर हों तो उनसे कहो कि हम आए हैं।"

रूपचंद्र भौचक्का सा खड़ा देखता रह गया था। फिर अचानक ही जैसे उसे होश आया तो उसने हड़बड़ा कर दादा ठाकुर की तरफ देखा। पंचायत का फ़ैसला होने के बाद ये पहला अवसर था जब दादा ठाकुर को उसने देखा था और साथ ही ये भी कि काफी सालों बाद दादा ठाकुर के क़दम साहूकारों के घर की ज़मीन पर पड़े थे। रूपचंद्र फ़ौरन ही अंदर गया और फिर कुछ ही पलों में आ भी गया। उसके पीछे उसका चाचा गौरी शंकर भी आ गया। एक पैर से लंगड़ा रहा था वो।

"ठाकुर साहब आप यहां?" गौरी शंकर ने चकित भाव से पूछा____"आख़िर अब किस लिए आए हैं यहां? क्या हमारा समूल विनाश कर के अभी आपका मन नहीं भरा?"

"हम मानते हैं कि हमने तुम्हारे साथ बहुत बड़ा अपराध किया है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"और यकीन मानो इतना भयंकर अपराध करने के बाद हम जीवन में कभी भी चैन से जी नहीं पाएंगे। हम ये भी जानते हैं कि हमारा अपराध माफ़ी के काबिल नहीं है फिर भी हो सके तो हमें माफ कर देना।"

"ऐसी ही मीठी मीठी बातों के द्वारा आपने लोगों के अंदर अपने बारे में एक अच्छे इंसान के रूप में प्रतिष्ठित किया हुआ है न?" गौरी शंकर ने तीखे भाव से कहा____"वाकई कमाल की बात है ये। हम लोग तो बेकार में ही बदनाम थे जबकि इस बदनामी के असली हक़दार तो आप हैं। ख़ैर छोड़िए, ये बताइए यहां किस लिए आए हैं आप?"

"क्या अंदर आने के लिए नहीं कहोगे हमें?" दादा ठाकुर ने संजीदगी से उसकी तरफ देखा तो गौरी शंकर कुछ पलों तक जाने क्या सोचता रहा फिर एक तरफ हट गया।

कुछ ही पलों में दादा ठाकुर और गौरी शंकर अपने भतीजे रूपचंद्र के साथ बैठक में रखी कुर्सियों पर बैठे नज़र आए। गौरी शंकर को समझ नहीं आ रहा था कि दादा ठाकुर उसके घर किस लिए आए हैं? वो इस बात पर भी हैरान था कि उसने दादा ठाकुर को इतने कटु शब्द कहे फिर भी दादा ठाकुर ने उस पर गुस्सा नहीं किया।

गौरी शंकर ने अंदर आवाज़ दे कर लोटा ग्लास में पानी लाने को कहा तो दादा ठाकुर ने इसके लिए मना कर दिया।

"तुम्हें हमारे लिए कोई तकल्लुफ करने की ज़रूरत नहीं है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने कहा____"असल में हम यहां पर एक विशेष प्रयोजन से आए हैं। हालाकि यहां आने की हम में हिम्मत तो नहीं थी फिर भी ये सोच कर आए हैं कि न आने से वो कैसे होगा जो हम करना चाहते हैं?"

"क...क्या मतलब?" गौरी शंकर और रूपचंद्र दोनों ही चौंके। किसी अनिष्ट की आशंका से दोनों की ही धड़कनें एकाएक ही तेज़ हो गईं।

"हम चाहते हैं कि तुम हमारी भाभी श्री के साथ साथ बाकी लोगों को भी यहीं बुला लो।" दादा ठाकुर ने कहा____"हम सबके सामने कुछ ज़रूरी बातें कहना चाहते हैं।"

गौरी शंकर और रूपचंद्र दोनों किसी दुविधा में फंसे नज़र आए। ये देख दादा ठाकुर ने उन्हें आश्वस्त किया कि उन लोगों को उनसे किसी बात के लिए घबराने अथवा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। आश्वस्त होने के बाद गौरी शंकर ने रूपचंद्र को ये कह कर अंदर भेजा कि वो सबको बुला कर लाए। आख़िर थोड़ी ही देर में अंदर से सभी औरतें और बहू बेटियां बाहर आ गईं। गौरी शंकर के पिता चल फिर नहीं सकते थे इस लिए वो अंदर ही थे।

बाहर बैठक में दादा ठाकुर को बैठे देख सभी औरतें और बहू बेटियां हैरान थीं। उनमें से किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि इतना कुछ होने के बाद दादा ठाकुर इस तरह उनके घर आ सकते हैं। बहरहाल, उन सबको आ गया देख दादा ठाकुर कुर्सी से उठे और मणि शंकर की पत्नी फूलवती के पास पहुंचे। ये देख सबकी सांसें थम सी गईं।

"प्रणाम भाभी श्री।" अपने दोनों हाथ जोड़ कर दादा ठाकुर ने फूलवती से कहा____"इस घर में आप हमसे बड़ी हैं। हमें उम्मीद है कि आपका हृदय इतना विशाल है कि आप हमें आशीर्वाद ज़रूर देंगी।"

दादा ठाकुर के मुख से ऐसी बातें सुन जहां बाकी सब आश्चर्य से दादा ठाकुर को देखने लगे थे वहीं फूलवती के चेहरे पर सहसा गुस्से के भाव उभर आए। कुछ पलों तक वो गुस्से से ही दादा ठाकुर को देखती रहीं फिर जाने उन्हें क्या हुआ कि उनके चेहरे पर नज़र आ रहा गुस्सा गायब होने लगा।

"किसी औरत की कमज़ोरी से आप शायद भली भांति परिचित हैं ठाकुर साहब।" फूलवती ने भाव हीन लहजे से कहा____"खुद को हमसे छोटा बना कर हमारा स्नेह पा लेना चाहते हैं आप।"

"छोटों को अपने से बड़ों से इसके अलावा और भला क्या चाहिए भाभी श्री?" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारे द्वारा इतना कुछ सह लेने के बाद भी अगर आप हमें आशीर्वाद और स्नेह प्रदान करेंगी तो ये हमारे लिए किसी ईश्वर के वरदान से कम नहीं होगा।"

"क्या आपको लगता है कि ऐसे किसी वरदान के योग्य हैं आप?" फूलवती ने कहा।
"बिल्कुल भी नहीं।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु फिर भी हमें यकीन है कि सब कुछ भुला कर आप हमें ये वरदान ज़रूर देंगी।"

"इस जन्म में तो ये संभव नहीं है ठाकुर साहब।" फूलवती ने तीखे भाव से कहा____"आप सिर्फ ये बताइए कि यहां किस लिए आए हैं?"

फूलवती की बात सुन कर दादा ठाकुर कुछ पलों तक उसे देखते रहे फिर बाकी सबकी तरफ देखने के बाद वापस आ कर कुर्सी पर बैठ गए। वहां मौजूद हर कोई ये जानने के लिए उत्सुक था कि आख़िर दादा ठाकुर किस लिए आए हैं यहां?

"हमने तो उस दिन भी पंचायत में कहा था कि अगर हमें मौत की सज़ा भी दे दी जाए तो हमें कोई अफ़सोस अथवा तकलीफ़ नहीं होगी।" दादा ठाकुर ने गंभीर भाव से कहा____"क्योंकि हमने जो किया है उसकी सिर्फ और सिर्फ वही एक सज़ा होनी चाहिए थी मगर पंच परमेश्वर ने हमें ऐसी सज़ा ही नहीं दी। हमें आप सबकी तकलीफ़ों का भली भांति एहसास है। अगर आप सबका दुख हमारी मौत हो जाने से ही दूर हो सकता है तो इसी वक्त आप लोग हमारी जान ले लीजिए। हमने बाहर खड़े अपने मुलाजिम को पहले ही बोल दिया है कि अगर यहां पर हमारी मौत हो जाए तो वो हमारी मौत के लिए किसी को भी ज़िम्मेदार न माने और ना ही इसके लिए किसी को कोई सज़ा दिलाने का सोचे। तो अब देर मत कीजिए, हमें इसी वक्त जान से मार कर आप सब अपना दुख दूर कर लीजिए।"

दादा ठाकुर की ये बात सुन कर सब के सब भौचक्के से देखते रह गए उन्हें। रूपचंद्र और गौरी शंकर हैरत से आंखें फाड़े दादा ठाकुर को देखे जा रहे थे। काफी देर तक जब किसी ने कुछ नहीं किया और ना ही कुछ कहा तो दादा ठाकुर ने सबको निराशा की दृष्टि से देखा।

"क्या हुआ आप सब चुप क्यों हैं?" दादा ठाकुर ने सबकी तरफ देखते हुए कहा____"अगर हमें जान से मार देने पर ही आप सबका दुख दूर हो सकता है तो मार दीजिए हमें। इतने बड़े अपराध बोझ के साथ तो हम खुद भी जीना नहीं चाहते।" कहने के साथ ही दादा ठाकुर एकाएक गौरी शंकर से मुखातिब हुए____"गौरी शंकर, क्या हुआ? आख़िर अब क्या सोच रहे हो तुम? हमें जान से मार क्यों नहीं देते तुम?"

"ठ...ठाकुर साहब, ये...ये क्या कह रहे हैं आप?" गौरी शंकर बुरी तरह चकरा गया था। हैरत से आंखें फाड़े बोला____"आपका दिमाग़ तो सही है ना?"

"हम पूरी तरह होश में हैं गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें अच्छी तरह पता है कि हम तुम सबसे क्या कह रहे हैं। हमारा यकीन करो, हम यहां इसी लिए तो आए हैं ताकि तुम सब हमारी जान ले कर अपने दुख संताप को दूर कर लो। हमें भी अपने भाई और अपने बेटे की हत्या हो जाने के दुख से मुक्ति मिल जाएगी।"

"ये...ये कैसी बातें कर रहे हैं आप?" गौरी शंकर मानो अभी भी चकराया हुआ था____"नहीं नहीं, हम में से कोई भी आपके साथ ऐसा नहीं कर सकता। कृपया सम्हालिए खुद को।"

"तुम्हें पता है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"जब हम दोनों परिवारों के रिश्ते सुधर गए थे तो हमें बेहद खुशी हुई थी। हमें लगा था कि वर्षों पहले दादा ठाकुर बनने के बाद जो हमने तुम्हारे पिता जी से माफ़ी मांगी थी उसको कबूल कर लिया है उन्होंने। मुद्दत बाद ही सही किंतु दो संपन्न परिवारों के बीच के रिश्ते फिर से बेहतर हो गए। हमने जाने क्या क्या सोच लिया था हमारे बेहतर भविष्य के लिए मगर हमें क्या पता था कि हमारी ये खुशियां महज चंद दिनों की ही मेहमान थीं। हम जानते हैं कि हमारे पिता यानि बड़े दादा ठाकुर ने अपने ज़माने में जाने कितनों के साथ बुरा किया था इस लिए उनके बाद जब हम उनकी जगह पर आए तो हमने सबसे पहली क़सम इसी बात की खाई थी कि न तो हम कभी किसी के साथ बुरा करेंगे और ना ही हमारे बच्चे। हां हम ये मानते हैं कि वैभव पर हम कभी पाबंदी नहीं लगा सके, जबकि उसको सुधारने के लिए हमने हमेशा ही उसको सख़्त से सख़्त सज़ा दी है। ख़ैर हम सिर्फ ये कहना चाहते हैं कि इस सबके बाद अगर हमें जीने का मौका मिला है तो क्यों इस मौके को बर्बाद करें? हमारा मतलब है कि आपस का बैर भाव त्याग कर क्यों ना हम सब साथ मिल कर बचे हुए को संवारने की कोशिश करें।"

"क्या आपको लगता है कि हमारे बीच इतना कुछ होने के बाद अब ये सब होना संभव हो सकेगा?" गौरी शंकर ने कहा____"नहीं ठाकुर साहब। ऐसा कभी संभव नहीं हो सकता।"

"हां ऐसा तभी संभव नहीं हो सकता जब हम खुद ऐसा न करना चाहें।" दादा ठाकुर ने कहा____"अगर हम ये सोच कर चलेंगे कि थाली में रखा हुआ भोजन हमारे हाथ और मुंह का उपयोग किए बिना ही हमारे पेट में पहुंच जाए तो यकीनन वो नहीं पहुंचेगा। वो तो तभी पहुंचेगा जब हम उसे पेट में पहुंचाने के लिए अपने हाथ और मुंह दोनों चलाएंगे।"

"हमारे बीच का मामला थाली में रखे हुए भोजन जैसा नहीं है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने कहा____"और फिर एक पल के लिए हम मान भी लें तो ऐसा क्या करेंगे जिससे हमारे बीच के रिश्ते पहले जैसे हो जाएं? क्या आप हमारे अंदर का दुख दूर कर पाएंगे? क्या आप उन लोगों को वापस ला पाएंगे जिन्हें आपने मार डाला? नहीं ठाकुर साहब, ये काम न आप कर सकते हैं और ना ही हम।"

"हम मानते हैं कि हम दोनों न तो गुज़र गए लोगों को वापस ला सकते हैं और ना ही एक दूसरे का दुख दूर कर सकते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु क्या ये सोचने का विषय नहीं है कि क्या हम दोनों इसी सब को लिए बैठे रहेंगे जीवन भर? आख़िर इस दुख तकलीफ़ को तो हम दोनों को ही भुलाने की कोशिश करनी होगी और उन लोगों के बारे में सोचने होगा जो हमारे ही सहारे पर बैठे हैं।"

"क्या मतलब है आपका?" गौर शंकर ने संदेहपूर्ण भाव से पूछा।

"तुम इस बारे में क्या सोचते हो और क्या फ़ैसला करते हो ये तुम्हारी सोच और समझ पर निर्भर करता है।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने सोच लिया है कि हम वो सब करेंगे जिससे कि सब कुछ बेहतर हो सके।"

"क...क्या करना चाहते हैं आप?" रूपचंद्र ने पहली बार हस्तक्षेप करते हुए पूछा।

"इसे हमारा कर्तव्य समझो या फिर हमारा प्रायश्चित।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"लेकिन सच ये है कि हमने इस परिवार के लिए बहुत कुछ सोच लिया है। इस परिवार की सभी लड़कियों को हम अपनी ही बेटियां समझते हैं इस लिए हमने सोचा है कि उन सबका ब्याह हम करवाएंगे लेकिन वहीं जहां आप लोग चाहेंगे।"

"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है ठाकुर साहब।" सहसा फूलवती बोल पड़ी____"हमारी बेटियां हमारे लिए कोई बोझ नहीं हैं और हम इतने असमर्थ भी नहीं हैं कि हम उनका ब्याह नहीं कर सकते।"

"हमारा ये मतलब भी नहीं है भाभी श्री कि आपकी बेटियां आपके लिए बोझ हैं या फिर आप उनका ब्याह करने में असमर्थ हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें बखूबी इस बात का इल्म है कि आप पूरी तरह सभी कामों के लिए समर्थ हैं किंतु....।"

"किंतु क्या ठाकुर साहब?" फूलवती ने दादा ठाकुर की तरफ देखा।

"यही कि अगर ऐसा पुण्य काम करने का सौभाग्य आप हमें देंगी तो हमें बेहद अच्छा लगेगा।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारी अपनी तो कोई बेटी है नहीं। हमारे छोटे भाई की बेटी है जिसका कन्यादान उसे खुद ही करना था। हम पहले भी इस बारे में बहुत सोचते थे और हमेशा हमारे ज़हन में इस घर की बेटियों का ही ख़याल आता था। जब हमारे रिश्ते बेहतर हो गए थे तो हमें यकीन हो गया था कि जल्द ही हमारी ये ख़्वाहिश पूरी हो जाएगी। हमने तो ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि ये सब हो जाएगा। ख़ैर जो हुआ उसे लौटाया तो नहीं जा सकता लेकिन फिर से एक नई और बेहतर शुरुआत के लिए अगर हम सब मिल कर ये सब करें तो कदाचित हम दोनों ही परिवार वालों को एक अलग ही सुखद एहसास हो।"

"ठीक है फिर।" फूलवती ने कहा____"अगर आप वाकई में सब कुछ बेहतर करने का सोचते हैं तो हमें भी ये सब मंजूर है लेकिन....।"

"ल...लेकिन क्या भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने उत्सुकता से पूछा। उन्हें फूलवती द्वारा सब कुछ मंज़ूर कर लेने से बेहद खुशी का आभास हुआ था।

"यही कि अगर आप सच में चाहते हैं कि हमारे दोनों ही परिवारों के बीच बेहतर रिश्ते के साथ एक नई शुरुआत हो।" फूलवती ने एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा____"तो हमारा भी आपके लिए एक सुझाव है और हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा सुझाव पसंद ही नहीं आएगा बल्कि मंज़ूर भी होगा।"

"बिल्कुल भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"आप बताइए क्या सुझाव है आपका?"

"अगर आप अपनी बेटी कुसुम का ब्याह हमारे बेटे रूपचंद्र से कर दें।" फूलवती ने कहा___"तो हमें पूरा यकीन है कि दोनों ही परिवारों के बीच के रिश्ते हमेशा के लिए बेहतर हो जाएंगे और इसके साथ ही एक नई शुरुआत भी हो जाएगी।"

फूलवती की बात सुन कर दादा ठाकुर एकदम से ख़ामोश रह गए। उन्हें सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि फूलवती उनसे ऐसा भी बोल सकती है। सहसा उन्हें पंचायत में मुंशी चंद्रकांत द्वारा बताई गई बातों का ध्यान आया जब उसने बताया था कि साहूकार लोग उनकी बेटी कुसुम से रूपचंद्र का ब्याह करना चाहते थे।

"क्या हुआ ठाकुर साहब?" फूलवती के होठों पर एकाएक गहरी मुस्कान उभर आई____"आप एकदम से ख़ामोश क्यों हो गए? ऐसा लगता है कि आपको हमारा सुझाव अच्छा नहीं लगा। अगर यही बात है तो फिर यही समझा जाएगा कि आप यहां बेहतर संबंध बनाने और एक नई शुरुआत करने की जो बातें हम सबसे कर रहे हैं वो सब महज दिखावा हैं। यानि आप हम सबके सामने अच्छा बनने का दिखावा कर रहे हैं।"

"नहीं भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"आप ग़लत समझ रही हैं। ऐसी कोई बात नहीं है।"

"तो फिर बताइए ठाकुर साहब।" फूलवती ने कुटिलता से मुस्कुराते हुए कहा____"क्या आपको हमारा सुझाव पसंद आया? क्या आप दोनों परिवारों के बीच गहरे संबंधों के साथ एक नई शुरुआत के लिए अपनी बेटी का ब्याह हमारे बेटे रूपचंद्र से करने को तैयार हैं?"

"हमें इस रिश्ते से कोई समस्या नहीं है भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"बल्कि अगर ऐसा हो जाए तो ये बहुत ही अच्छी बात होगी।"

दादा ठाकुर की ये बात सुन कर सभी हैरत से उन्हें देखने लगे। किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था कि दादा ठाकुर ऐसा भी बोल सकते हैं। उधर रूपचंद्र का चेहरा अचानक ही खुशी से चमकने लगा था। उसे भी यकीन नहीं हो रहा था कि दादा ठाकुर खुद उसके साथ कुसुम का ब्याह करने को राज़ी हो सकते हैं।



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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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दोस्तो, कहानी के दो अध्याय एक साथ पोस्ट कर दिए हैं मैने... :declare:


यहां से स्टोरी अपने अगले पड़ाव की तरफ बढ़ेगी। उम्मीद है अगला पड़ाव रोचक लगे आप सबके लिए... :D

अगर कहीं कुछ रह गया हो जिसे मैंने ध्यान न दिया हो तो आप लोग उसे यहां पर अपने विचारों के साथ बता सकते हैं। बाद में कहानी में मैं कोई सुधार नहीं करूंगा। इस लिए अपनी शंकाओं को अथवा दुविधाओं को अभी बता दें। बाद में मत कहना कि मैंने ऐसा कर दिया या वैसा कर दिया... :roll:
 

Iron Man

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अध्याय - 78
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"कोई तो वजह ज़रूर है।" पिता जी ने गहरी सांस ली____"जिसके चलते वो तुम्हारे खिलाफ़ हो कर उस सफ़ेदपोश व्यक्ति का मोहरा बन गए। ख़ैर सच का पता तो अब उनसे रूबरू होने के बाद ही चलेगा। हमें जल्द ही इस बारे में कोई क़दम उठाना होगा।"


अब आगे....


आसमान में काले बादल मंडरा रहे थे। ऐसा लगता था जैसे आज बारिश ज़रूर होगी। आज कल काफी गर्मी होती थी। जिसकी वजह से अक्सर लोग बीमार भी पड़ रहे थे। मैं अपनी मोटर साईकिल द्वारा भुवन से मिलने अपने नए बन रहे मकान में आया था। मकान लगभग तैयार ही हो गया था, बस कुछ चीजें शेष थीं जोकि कुछ दिनों में पूरी हो जाएंगी। भुवन किसी काम से कहीं गया हुआ था और मैं उसी का इंतज़ार कर रहा था।

मेरे ज़हन में मकान को देखते हुए कई सारे विचार उभर रहे थे। जिसमें सबसे पहला विचार यही था कि मैंने क्या सोच कर यहां पर ये मकान बनवाया था और अब क्या हो चुका था। ऐसा क्यों होता है कि हम सोचते कुछ हैं और हो कुछ और जाता है? मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं अपने चाचा और बड़े भाई को इस तरह से खो दूंगा। यूं तो मुझे दोनों के ही इस तरह चले जाने का बेहद दुख था लेकिन सबसे ज़्यादा दुख अपने भाई के चले जाने का हो रहा था। क्योंकि उनके चले जाने से भाभी का जैसे संसार ही उजड़ गया था।

सुहागन के रूप में कितनी खूबसूरत लगती थीं वो। मैं हमेशा उनके रूप सौंदर्य पर मोहित हो जाता था। अपनी ग़लत आदतों की वजह से मैं हमेशा उनसे दूर ही रहता था। मैं ये किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि उनके रूप सौंदर्य को देख कर मेरे मन में ग़लती से भी उनके प्रति ग़लत ख़याल आ जाए। हालाकि मेरे ना चाहने पर भी ग़लत ख़याल आ ही जाते थे मगर फिर भी मैं अब तक अपनी कोशिशों में कामयाब ही रहा था और अपनी भाभी के दामन पर दाग़ लगाने से खुद को रोके रखा था। मगर ये जो कुछ हुआ है वो हर तरह से असहनीय है।

जिस भाभी के चेहरे पर हमेशा नूर रहता था उनका वही चेहरा आज विधवा हो जाने के चलते किसी उजड़े हुए चमन का हिस्सा नज़र आने लगा था। मेरा हर सच जानने के बावजूद वो मेरी परवाह करती थीं और हवेली में सबसे बड़ा मेरा मुकाम बना हुआ देखना चाहती थीं। अपने जीवन में मैंने उनके जैसी सभ्य, सुशील, संस्कारी और सबके बारे में अच्छा सोचने वाली नारी नहीं देखी थी। बार बार मेरे मन में एक ही सवाल उभरता था कि इतनी अच्छी औरत को ऊपर वाला इतना बड़ा दुख कैसे दे सकता है? मैंने उन्हें हमेशा खुश रखने का उनसे वादा तो किया था लेकिन मैं खुद नहीं जानता था कि उनके इतने बड़े दुख को मैं कैसे दूर कर सकूंगा और कैसे उन्हें खुशियां दे पाऊंगा? सच तो ये था कि मेरे लिए ऐसा कर पाना बिल्कुल भी आसान नहीं था।

अभी मैं ये सोच ही रहा था कि अचानक ही आसमान में बिजली चमकी और अगले कुछ ही पलों में तेज़ गर्जना हुई। मेरे देखते ही देखते कुछ ही पलों में बूंदा बांदी होने लगी। मकान में काम कर रहे मजबूर बूंदा बांदी होते देख बड़ा खुश हुए। फ़सल काटने के बाद की ये पहली बारिश थी जो होने लगी थी। पहले बूंदा बांदी और फिर एकदम से तेज़ बारिश होने लगी। चारो तरफ एकदम से अंधेरा सा हो गया। मैं मकान के दरवाज़े के बाहर ही बरामदे में बैठा हुआ था। बाहर जो मज़दूर मौजूद थे वो भीगने से बचने के लिए भागते हुए जल्दी ही बरामदे में आ गए। मैं दरवाज़े के पास ही एक लकड़ी के स्टूल पर बैठा हुआ था। तेज़ हवा भी चल रही थी जो बारिश में घुल कर ठंडक का एहसास कराने लगी थी। दरवाज़े के बाहर बरामदे जैसा था इस लिए बारिश के छींटे मुझ तक नहीं पहुंच सकते थे। देखते ही देखते तपती हुई ज़मीन में छलछलाता हुआ पानी नज़र आने लगा। ज़मीन से एक अलग ही सोंधी सोंधी महक आने लगी थी।

बारिश इतनी तेज़ होने लगी थी कि दूर वाले पेड़ पौधे धुंधले से नज़र आने लगे थे। एकाएक मेरी घूमती हुई निगाह एक जगह पर ठहर गई और इसके साथ ही मेरे माथे पर सिलवटें भी उभर आईं। जल्दी ही मेरी नज़र ने उस जगह पर भागते व्यक्ति को पहचान लिया। वो अनुराधा थी जो तेज़ बारिश में दौड़ते हुए इस तरफ ही आ रही थी। अनुराधा को इस तरह यहां आते देख मेरी धड़कनें बढ़ गईं। ज़हन में ख़याल उभरा कि ये यहां क्यों आ रही है?

"अरे! वो तो अनुराधा बिटिया है न रे भीखू?" बरामदे के एक तरफ खड़े एक अधेड़ मज़दूर ने दूसरे आदमी से पूछा____"ये बारिश में यहां कहां भींगते हुए आ रही हैं?"

"अपने भाई भुवन से मिलने आ रही होगी।" दूसरे मज़दूर ने कहा____"लेकिन बारिश में नहीं आना चाहिए था उसे। देखो तो पूरा भीग गई है ये।"

मज़दूरों की बात सुन कर मैं ख़ामोश ही रहा। असल में मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं? मैं तो खुद सोच में पड़ गया था कि वो यहां क्यों आ रही है, वो भी बारिश में भींगते हुए। मेरे देखते ही देखते वो जल्दी ही हमारे पास आ गई। गीली और पानी से लबरेज़ मिट्टी पर थल्ल थल्ल पैर जमाते हुए वो बरामदे में आ गई। उसकी नज़र अभी मुझ पर नहीं पड़ी थी। शायद तेज़ बारिश के चलते वो ठीक से सामने का नहीं देख रही थी। मैंने देखा सुर्ख रंग का उसका कुर्ता सलवार पूरी तरह भीग गया था। दुपट्टे को उसने सिर पर ओढ़ा हुआ था जिसे उसने बरामदे में आते ही जल्दी से सीने पर डाल लिया। भीगे होने की वजह से उसके सीने के उभार साफ नज़र आ रहे थे।

"अरे! इतनी तेज़ बारिश में तुम यहां क्यों आई हो अनुराधा?" भीखू ने उससे पूछा____"देखो तो सारे कपड़े गीले हो गए हैं तुम्हारे और ये क्या, तुम्हारा एक चप्पल टूट गया है क्या?"

"हां काका।" अनुराधा ने मासूमियत से कहा____"शायद दौड़ने की वजह से टूट गया है। वैसे उसे टूटना ही था। पुराना जो हो गया था।"

"पर तेज़ बारिश में तुम्हें यहां भींगते हुए आने की क्या ज़रूरत थी?" भीखू ने कहा____"भींगने से बीमार पड़ गई तो?"

"मुझे क्या पता था काका कि इतना जल्दी बारिश होने लगेगी।" अनुराधा ने अपने चप्पल को पैर से निकालते हुए कहा____"जब घर से चली थी तब तो बूंदा बांदी भी नहीं हो रही थी।"

"हां लगता है तुम्हारे घर से निकलने का ही ये बारिश इंतज़ार कर रही थी।" भीखू ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"ख़ैर भुवन तो यहां है ही नहीं। हमारे छोटे कुंवर भी उसी का इंतज़ार कर रहे हैं यहां।"

अनुराधा भीखू के मुख से छोटे कुंवर सुन बुरी तरह चौंकी। उसने फिरकिनी की तरह घूम कर पीछे देखा तो उसकी नज़र मुझ पर पड़ गई। उफ्फ! भीगने की वजह से कितनी प्यारी लग रही थी वो। मेरे पूरे जिस्म में सिहरन सी दौड़ गई। मैंने देखा वो अपलक मुझे ही देखने लगी थी। बारिश में भीग जाने की वजह से उसके गीले हो चुके गुलाबी होंठ हल्के हल्के कांप रहे थे। अचानक ही मुझे वस्तिस्थित का एहसास हुआ तो मैंने उससे नज़रें हटा लीं और बाहर बारिश की तरफ देखने लगा। मैंने महसूस किया कि जो लड़की इसके पहले मुझसे नज़रें नहीं मिला पाती थी वो अपलक मुझे ही देखे जा रही थी। एक अलग ही तरह के भाव उसके चेहरे पर उभरे दिखाई दिए थे मुझे।

"अरे! तुम्हें क्या हुआ बिटिया?" भीखू की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी मगर मैंने उसकी तरफ नहीं देखा। उधर वो अनुराधा से बोला____"तुम एकदम से बुत सी क्यों खड़ी हो? हमारे छोटे कुंवर को देखा नहीं था क्या कभी तुमने?"

भीखू की बात सुन कर अनुराधा जैसे आसमान से गिरी। उसने हड़बड़ा कर भीखू की तरफ देखा और फिर खुद को सम्हालते हुए बोली____"देखा था काका। पहले ठीक से पहचानती नहीं थी लेकिन अब पहचान गई हूं। पहले यकीन नहीं होता था पर अब हो चुका है।"

"ये तुम क्या कह रही हो बिटिया?" भीखू को जैसे अनुराधा की बात समझ नहीं आई, अतः बोला____"मैं समझा नहीं तुम्हारी बात को।"

"हर बात इतना जल्दी कहां समझ आती है काका?" अनुराधा ने अजीब भाव से कहा____"समझने में तो वक्त लगता है ना? ख़ैर छोड़िए, मुझे लगता है कि बारिश के चलते भुवन भैया नहीं आएंगे। मुझे भी घर जाना होगा, नहीं तो मां परेशान हो जाएगी। बारिश देख के डांटेगी भी मुझे।"

"हां पर इतनी तेज़ बारिश में कैसे जाओगी तुम?" भीखू ने हैरान नज़रों से अनुराधा की तरफ देखते हुए कहा____"ज़्यादा भींगने से बीमार हो जाओगी। कुछ देर रुक जाओ। बारिश रुक जाए तो चली जाना।"

"अरे! मैं तो पहले से ही बीमार हूं काका।" अनुराधा ने कहा____"ये बारिश मुझे भला और क्या बीमार करेगी? अच्छा अब चलती हूं। भैया आएं तो बता देना कि मैं आई थी।"

भीखू ने ही नहीं बल्कि और भी कई लोगों ने अनुराधा को रोका मगर वो न रुकी। तेज़ बारिश में जैसे वो कूद ही पड़ी और पूरी निडरता से ख़राब मौसम में वो बड़े आराम से आगे बढ़ती चली गई। इधर मैं पहले ही उसकी बातों से हैरान परेशान था और अब उसे यूं भींगते हुए जाता देखा तो और भी चिंतित हो उठा। एकाएक ही मेरे मस्तिष्क में जैसे भूचाल सा आ गया। उस दिन भुवन द्वारा कही गई बातें मेरे ज़हन में गूंज उठीं। मतलब अनुराधा ने भीखू से अभी जो बातें की थी उसमें उसका संदेश था। शायद वो ऐसी बातें मुझे ही सुना रही थी और चाहती थी कि मैं समझ जाऊं। मेरे लिए ये बड़े ही आश्चर्य की बात थी कि एक भोली भाली और मासूम सी लड़की में कुछ ही दिनों में इतना ज़्यादा परिवर्तन कैसे आ गया?

"पता नहीं आज क्या हो गया है इस लड़की को?" एक अन्य मज़दूर ने भीखू से कहा____"एकदम पगला ही गई है। देखो तो कैसे भींगते हुए चली जा रही है। देखना पक्का बीमार पड़ेगी ये। भुवन को पता चलेगा तो वो भी परेशान हो जाएगा इसके लिए।"

"अरे! हमारे पास एक छाता था न?" किसी दूसरे मज़दूर ने अचनाक से कहा____"तेज़ धूप से बचने के लिए भुवन लाया था। रुको अभी देखता हूं।"

"हां हां जल्दी ले आ।" भीखू बोल पड़ा____"वो ज़्यादा दूर नहीं गई है अभी। दौड़ कर जल्दी से उसको छाता पकड़ा के आ जाना।"

कुछ ही देर में वो मज़दूर छाता ले आया। इधर मेरे अंदर मानों खलबली सी मच गई थी। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं क्या न करूं? सहसा मेरी नज़र एक मज़दूर को छाता ले कर बरामदे से बाहर की तरफ जाते देखा तो मैं हड़बड़ा कर स्टूल से उठ कर खड़ा हो गया।

"रुको।" मैंने उसे पुकारा तो वो एकदम से रुक गया और मेरी तरफ पलट कर देखने लगा।
"इधर लाओ छाता।" मैं उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला____"मैं इसे ले कर जा रहा हूं उसके पास।"

"छ...छोटे कुंवर आप?" उसके साथ बाकी मज़दूर भी हैरानी से मेरी तरफ देखने लगे जबकि मैं उसके क़रीब पहुंचते ही बोला____"हां तो क्या हो गया? काफी दिन हो गए मुरारी काका के घर नहीं गया। इसी बहाने काकी से घर का हाल चाल भी पूछ लूंगा। भुवन आए तो कहना मैं मुरारी काका के घर गया हूं और जल्दी ही वापस आऊंगा।"

अब क्योंकि किसी में भी हिम्मत नहीं थी जो मुझसे कोई और सवाल जवाब करता था इस लिए उस मज़दूर ने फ़ौरन ही मुझे छाता पकड़ा दिया। मैंने जल्दी से छाते को खोला और बाहर हो रही बारिश में जंग का मैदान समझ कर कूद पड़ा। सच कहूं तो मेरे दिल की धड़कनें असमान्य गति से चल रहीं थी। अनुराधा मुझसे क़रीब चालीस पचास क़दम की दूरी पर पहुंच चुकी थी। मैं छाता लिए तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ने लगा। बाहर बारिश तो तेज़ हो ही रही थी लेकिन उसके साथ हवा भी चल रही थी जिसके चलते बारिश की बौछारें चारो तरफ अपना रुख बदल लेती थीं। जल्दी ही मेरे घुटने से ऊपर का भी हिस्सा बारिश की बूंदों से भीगता नज़र आया। उधर अनुराधा बिना इधर उधर देखे बड़े आराम से चली जा रही थी। मैं हैरान था कि आते समय वो भींगने से बचने के लिए दौड़ते हुए आई थी जबकि अब वो बड़े आराम से जा रही थी। ज़ाहिर था उसे बारिश से ना तो भीग जाने की परवाह थी और ना ही भीग जाने के चलते बीमार पड़ने की। सही कहा था उस मज़दूर ने कि एकदम पगला गई थी वो।

जब मैं उसके क़रीब पहुंच गया तो मैंने झिझकते हुए उसे आवाज़ दी और अगले ही पल मेरी आवाज़ का उस पर जैसे किसी चमत्कार की तरह असर हुआ। वो अपनी जगह पर इस तरह रुक गई थी जैसे किसी ने जादू से उसको एक जगह पर टिका दिया हो। मुझे समझते देर न लगी कि वो मेरे ही आने का इंतज़ार कर रही थी। तभी तो वो इतना आराम से चल रही थी वरना भला ऐसा कौन मूर्ख होगा जो तेज़ बारिश में इतना आराम से चले?

यूं तो मैंने अनुराधा को वचन दिया था कि अब कभी उसके घर की दहलीज़ पर नहीं आऊंगा और कदाचित ये भी कि उससे बातें भी नहीं करूंगा मगर इस वक्त मुझे अपना ही वचन तोड़ना पड़ रहा था। ऐसा सिर्फ इस लिए क्योंकि मैं किसी भी कीमत पर ये नहीं चाहता था कि उसे कुछ हो जाए।

मैं जल्दी ही उसके क़रीब पहुंच गया और उसको छाते के अंदर ले लिया। मैंने देखा वो थर थर कांप रही थी। ज़ाहिर है बारिश में भीग जाने का असर था और उसके साथ ही शायद इसका भी कि इस वक्त वो मेरे इतने क़रीब थी। मेरी नज़दीकियों में पहले भी उसकी हालत ठीक नहीं रहती थी।

"बारिश के रुकने तक अगर वहां रुक जाती तो काकी खा नहीं जाती तुम्हें।" मैंने सामने की तरफ देखते हुए कहा____"इस तरह भींगने से अगर बीमार पड़ जाओगी तो उन्हें बहुत परेशानी होगी।"

"अ...आपको मां की परेशानी की चिंता है मेरी नहीं?" अनुराधा ने तिरछी नज़रों से मेरी तरफ देखते हुए धीमें से मानों शिकायत की।

"अगर तुम्हारी चिंता न होती तो छाता ले कर तुम्हारे पास नहीं आता।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"वैसे माफ़ करना, आज एक बार फिर से मैंने तुम्हें दिया हुआ अपना वादा तोड़ दिया। मैंने तुमसे वादा किया था कि अब से कभी भी ना तो मैं तुम्हारे घर की दहलीज़ पर क़दम रखूंगा और ना ही तुम्हारे सामने आऊंगा। कितना बुरा इंसान हूं ना जो अपना वादा भी नहीं निभा सकता।"

"न...नहीं, ऐसा मत कहिए।" अनुराधा का गला सहसा भारी हो गया____"सब मेरी ग़लती है। मैं ही बहुत बुरी हूं। मेरी ही ग़लती की वजह से आपने ऐसा वादा किया था मुझसे।"

"नहीं, तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है।" मैं सहसा आगे बढ़ा तो वो भी मेरे साथ बढ़ चली। इधर मैंने आगे कहा____"तुमने कुछ भी ग़लत नहीं किया है। तुमने तो वही कहा था जो सच था और जो मेरी वास्तविकता थी। शायद मैं वाकई में किसी के भरोसे के लायक नहीं हूं। ख़ैर छोड़ो, ये छाता ले लो और घर जाओ।"

"क...क्या मतलब??" अनुराधा ने चौंक कर मेरी तरफ देखा____"क...क्या आप नहीं चलेंगे घर?"

"तुमसे मिलने का और बात करने का वादा तोड़ दिया है मैंने।" मैंने अजीब भाव से कहा____"पर तुम्हारे घर की दहलीज़ पर क़दम न रखने का वादा नहीं तोड़ना चाहता। आख़िर अपने किसी वादे को तो निभाऊं मैं। शायद तब किसी के भरोसे के लायक हो जाऊं।"

मैंने ये कहा और अनुराधा को छाता पकड़ा कर उससे दूर हट कर खड़ा हो गया। मैंने देखा उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े थे। मुझे तकलीफ़ तो बहुत हुई मगर शायद मैं इसी तकलीफ़ के लायक था।

"तुम्हारी आंखों में आसूं अच्छे नहीं लगते।" मैंने तेज़ बारिश में भींगते हुए उससे कहा____"इन आंसुओं को तो मेरा मुकद्दर बनना चाहिए और यकीन मानो ऐसे मुकद्दर से कोई शिकवा नहीं होगा मुझे।"

"न...नहीं रुक जाइए।" मुझे पलट कर जाता देख अनुराधा जल्दी से मानों चीख पड़ी____"भगवान के लिए रुक जाइए।"

"किस लिए?" मैं ठिठक कर उसकी तरफ पलटा।
"म...मुझे आपसे ढेर सारी बातें करनी हैं।" अनुराधा बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हालते हुए बोली____"और, और मुझे आपसे कुछ सुनना भी है।"

"मतलब??" मैं सहसा उलझ सा गया___"मुझसे भला क्या सुनना है तुम्हें?"

"ठ...ठकुराईन।" अनुराधा ने अपनी नज़रें झुका कर भारी झिझक के साथ कहा____"हां मुझे आपसे यही सुनना है। एक बार बोल दीजिए न।"

"क्यों?" मैं अंदर ही अंदर चकित हो उठा था किंतु अपने भावों को ज़ाहिर नहीं होने दिया।
"ब...बस सुनना है मुझे।" अनुराधा ने पहले की भांति ही नज़रें झुकाए हुए कहा।

"पर मैं ऐसा कुछ भी नहीं बोल सकता।" मैंने खुद को जैसे पत्थर बना लिया____"अब दिल में चाहत जैसी चीज़ को फिर से नहीं पालना चाहता। तुम्हारी यादें बहुत हैं मेरे लिए।"

कहने के साथ ही मैं पलट गया और फिर बिना उसके कुछ बोलने का इंतज़ार किए बारिश में भींगते हुए अपने मकान की तरफ बढ़ता चला गया। मैं जानता था कि ऐसा कर के मैंने बिल्कुल भी ठीक नहीं किया था क्योंकि अनुराधा को इससे बहुत तकलीफ़ होनी थी मगर मेरा भी तो कोई वजूद था। मेरे अंदर भी तो तूफ़ान चल पड़ा था जिसकी वजह से मैं उसके सामने कमज़ोर नहीं पड़ना चाहता था।

मुझे जल्दी ही वापस आ गया देख बरामदे में खड़े सारे मज़दूर हैरानी से मुझे देखने लगे। शायद ऐसा उनकी कल्पनाओं में भी नहीं था मगर उन्हें भला क्या पता था कि दुनिया में अक्सर ही ऐसा होता है जो किसी की कल्पनाओं में नहीं होता।

"छोटे कुंवर आप तो बड़ा जल्दी वापस आ गए?" एक अधेड़ उम्र का मज़दूर मुझे देखते हुए बोल पड़ा____"आपने तो कहा था कि आप मुरारी के घर जा रहे हैं उस लड़की के साथ? फिर वापस क्यों आ गए और तो और भीग भी गए?"

"हां छोटे कुंवर।" भीखू बोल पड़ा____"अगर आपको अनुराधा बिटिया को छाता ही दे के आ जाना था तो ये काम तो फुलवा भी कर देता। नाहक में ही भीग गए आप।"

"अरे! मैं तो मुरारी काका के घर ही जा रहा था काका।" मैंने कहा____"मगर फिर अचानक से मुझे एक ज़रूरी काम याद आ गया इस लिए वापस आ गया। रही बात भीग जाने की तो कोई बात नहीं।"

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मेरे इस तरह चले जाने पर अनुराधा जैसे टूट सी गई थी। उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि मैं उससे इस तरह मुंह फेर कर और उसकी कोई बात बिना माने अथवा सुने चला जाऊंगा। हाथ में छाता पकड़े वो बस रोए जा रही थी। आज से पहले भी वो अकेले में रोती थी मगर उसके दुख में आज की तरह पहले इज़ाफ़ा नहीं हुआ था। मेरे चले जाने पर उसे ऐसा लगा था जैसे उसके अंदर से एक झटके में कुछ निकल गया था। उसका कोमल हृदय तड़प उठा था जिसके चलते उसके आंसू रोके नहीं रुक रहे थे। तभी आसमान में तेज़ बिजली कड़की तो वो एकदम से घबरा गई। उसके हाथ से छाता छूटते छूटते बचा। उसने एक नज़र उस तरफ देखा जिधर मैं गया था और फिर वो अपने आंसू पोंछते हुए पलट कर अपने घर की तरफ चल दी।

अनुराधा एक हाथ से छाता पकड़े बढ़ी चली जा रही थी। दिलो दिमाग़ में बवंडर सा चल रहा था। शून्य में खोई वो कब अपने घर पहुंच गई उसे पता ही नहीं चला। चौंकी तब जब एक बार फिर से तेज़ बिजली कड़की। उसने हड़बड़ा कर इधर उधर देखा तो उसकी नज़र सहसा अपने घर के दरवाज़े पर पड़ी।

दरवाज़ा खोल कर अनुराधा जैसे ही अंदर आई तो आंगन के पार बरामदे में बैठी उसकी मां की नज़र उस पर पड़ी। सरोज उसी की चिंता में बैठी हुई थी। अनुराधा को वापस आया देख वो एकदम से उठ कर खड़ी हो गई।

"हाय राम! ये क्या तू भीग कर आई है?" सरोज हैरत से आंखें फाड़ कर बोल पड़ी____"मना किया था न कि मौसम ख़राब है और बारिश कभी भी हो सकती है फिर भी चली गई अपने भाई से मिलने? ऐसा क्या ज़रूरी काम था तुझे उससे जिसके लिए तूने मेरी बात भी नहीं मानी?"

अनुराधा अपनी मां की बातें सुन कर कुछ न बोली। आंगन से चलते हुए वो बरामदे में आई और फिर छाते को बंद कर के अंदर कमरे की तरफ चली गई। उसके जाते ही सरोज जाने क्या क्या बड़बड़ाने लगी।

इधर कमरे में आते ही अनुराधा ने दरवाज़ा बंद किया और फिर दरवाज़े से ही पीठ टिका कर सिसक उठी। अपने अंदर का गुबार उससे सम्हाला न गया। आवाज़ बाहर उसकी मां के कानों तक ना पहुंचे इस लिए उसने अपने मुंह को हथेली से सख़्ती पूर्वक दबा लिया। जाने कितनी ही देर तक वो रोती रही। रोने से जब उसे थोड़ा राहत हुई तो वो आगे बढ़ी और फिर अपने गीले कपड़े उतारने लगी। उसे बेहद ठंड लगने लगी थी। कमरे में चिमनी जल रही थी इस लिए उसे कोई परेशानी नहीं हुई। जल्दी ही उसने दूसरे कपड़े पहन लिए और अपने गीले बालों को खोल कर उन्हें सुखाने का प्रयास करने लगी।

"अगर बीमार पड़ी तो देख लेना फिर।" वो जैसे ही बाहर आई तो सरोज उसे डांटते हुए बोली____"दवा भी नहीं कराऊंगी। रोज़ रोज़ तेरी बीमारी का इलाज़ करवाने के लिए पैसे नहीं हैं मेरे पास।"

"हां ठीक है मां।" अनुराधा ने संजीदगी से कहा____"मत करवाना मेरी दवा। मैं खुद चाहती हूं कि इस बार मैं ऐसी बीमार पड़ जाऊं कि कोई वैद्य मेरा इलाज़ ही न कर पाए। मर जाऊंगी तो अच्छा ही होगा। कम से कम अपने बापू के पास जल्दी से तो पहुंच जाऊंगी।"

अनुराधा की बातें सुन कर सरोज चौंकी। उसने बड़े ध्यान से अपनी बेटी के चेहरे की तरफ देखा। आज से पहले उसने कभी भी उससे ऐसी बातें नहीं की थी। अगर ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कि उसने कभी अपनी मां से ज़ुबान ही नहीं लड़ाया था। उसके चेहरे पर मौजूद संजीदगी को देख कर सरोज के मन में कई तरह के ख़याल उभरे। वो चलते हुए उसके पास आई और उसके दोनो बाजुओं को पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया उसे।

"हाय राम! तू रो रही थी?" अनुराधा की सुर्ख और नम आंखों को देख सरोज ने किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा कर पूछा____"क्या बात है अनू? क्या हुआ है तुझे? तू भुवन से मिलने गई थी न? उसने कुछ कहा है क्या तुझे?"

सरोज एक ही सांस में जाने कितने ही सवाल उससे कर बैठी। अपनी बेटी को उसने ऐसी हालत में कभी नहीं देखा था। वो बीमार ज़रूर हो जाती थी लेकिन ऐसी हालत में कभी नज़र नहीं आई थी वो। उधर मां के इतने सारे सवाल सुन कर अनुराधा एकदम से घबरा गई। उसे लगा कहीं मां को सच न पता चल जाए। उसे कोई जवाब ही नहीं सूझ रहा था।

"क्या हुआ तू चुप क्यों है अनू?" बेटी को कुछ न बोलता देख सरोज और भी घबरा गई, उसने उसे हिलाते हुए पूछा____"बताती क्यों नहीं कि क्या हुआ है? देख मेरा मन बहुत घबरा रहा है। तुझे इस हालत में देख कर मेरे मन में बहुत ही बुरे बुरे ख़याल आ रहे हैं। बता क्या हुआ है तुझे? भुवन ने कुछ कहा है क्या तुझे?"

"न...नहीं मां।" अनुराधा ने खुद को किसी हद तक सम्हालते हुए कहा____"मुझे किसी ने कुछ नहीं कहा है।"

"तो फिर तू रोई क्यों है?" सरोज का अंजानी आशंका के चलते मानो बुरा हाल हो गया____"तेरी आंखें बता रही हैं कि तू रोई है। ज़रूर कुछ हुआ है तेरे साथ। बता मेरी बच्ची।"

"तुम बेकार में चिंता कर रही हो मां।" अनुराधा ने अब तक खुद को सहज कर लिया था, अतः बोली____"मैं रोई ज़रूर हूं लेकिन उसकी वजह ये नहीं है कि किसी ने मुझे कुछ कहा है। असल में बारिश होने लगी थी तो भींगने से बचने के लिए मैं दौड़ने लगी थी। पता नहीं मेरे पैर को क्या हुआ कि मैं रास्ते में एक जगह गिर गई। बहुत तेज़ दर्द हो रहा था इस लिए रोने लगी थी।"

"तू सच कह रही है ना?" सरोज की जैसे जान में जान आई, फिर एकदम से बैठ कर अनुराधा का पैर देखते हुए बोली____"दिखा मुझे कहां चोट लगी है तुझे?"

अनुराधा ये सुन कर बौखला ही गई। उसने तो अपनी समझ में बढ़िया बहाना बनाया था मगर उसे क्या पता था कि उसकी मां उसको चोट दिखाने को बोलने लगेगी।

"क्या हुआ?" अनुराधा को ख़ामोश देख सरोज ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा____"दिखा क्यों नहीं रही कि कहां चोट लगी है तुझे?"

"चोट नहीं लगी है मां।" अनुराधा ने हड़बड़ा कर जल्दी से कहा____"शायद पैर में मोच आई है। उस समय मैंने भी यही सोच कर देखा था कि शायद चोट लग गई है मुझे मगर चोट नहीं लगी थी।"

"ऊपर वाले का लाख लाख शुक्र है कि तुझे चोट नहीं आई।" सरोज ने कहा____"अच्छा बता कौन से पैर में मोच आई है। जल्दी दिखा मुझे, मोच भी बहुत ख़राब होती है। दर्द के मारे चलते नहीं बनता आदमी से।"

अनुराधा को मजबूरन अपना एक पैर दिखाना ही पड़ा। चिमनी की रोशनी में सरोज ने बड़े ध्यान से अपनी बेटी की बताई हुई जगह पर देखा मगर उसे कुछ समझ न आया। उसने एक बार सिर उठा कर अनुराधा को देखा और फिर उसकी बताई हुई जगह पर अपनी दो उंगलियों से दबा कर पूछा____"कहां दर्द हो रहा है तुझे?"

अनुराधा ने मुसीबत से बचने के लिए झूठ मूठ का ही दर्द का नाटक करते हुए बता दिया कि हां यहीं पर दर्द हो रहा है। सरोज ने उठ कर उसे चारपाई पर बैठाया और फिर तेज़ क़दमों से अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। उसके जाते ही अनुराधा ने राहत की सांस ली। कुछ देर में जब सरोज आई तो उसके हाथ में एक कटोरी थी।

"ये शहद हल्दी और चूना है।" फिर वो अनुराधा के पैर के पास बैठते हुए बोली____"इसे लगा देती हूं जिससे तुझे जल्दी ही आराम मिल जाएगा।"

सरोज कटोरी से निकाल कर शहद हल्दी और चूने के मिश्रण को अनुराधा के पैर में लगाने लगी। उधर अनुराधा को ये सोच कर रोना आने लगा कि उसे अपनी मां से झूठ बोलना पड़ा जिसके चलते उसकी मां उसके लिए कितना चिंतित हो गई है। उसका जी चाहा कि अपनी मां से लिपट कर खूब रोए मगर फिर उसने सख़्ती से अपने जज़्बातों को अंदर ही दबा लिया।



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अध्याय - 79
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सरोज कटोरी से निकाल कर शहद हल्दी और चूने के मिश्रण को अनुराधा के पैर में लगाने लगी। उधर अनुराधा को ये सोच कर रोना आने लगा कि उसे अपनी मां से झूठ बोलना पड़ा जिसके चलते उसकी मां उसके लिए कितना चिंतित हो गई है। उसका जी चाहा कि अपनी मां से लिपट कर खूब रोए मगर फिर उसने सख़्ती से अपने जज़्बातों को अंदर ही दबा लिया।


अब आगे....


क़रीब डेढ़ घंटा लगातार बारिश हुई। हर जगह पानी ही पानी नज़र आने लगा था। बारिश रुक तो गई थी लेकिन मौसम का मिज़ाज ये आभास करा रहा था कि उसका अभी मन भरा नहीं है। बिजली अभी भी चमक रही थी और बादल अभी भी गरज उठते थे। कुछ ही देर में भुवन मोटर साईकिल से आता नज़र आया।

"अरे! छोटे कुंवर आप यहां?" मुझे बरामदे में बैठा देख भुवन हैरानी से बोल पड़ा____"कोई काम था तो मुझे बुलवा लिया होता।"

"नहीं, ऐसी कोई खास बात नहीं थी।" मैंने कहा____"बस यूं ही मन बहलाने के लिए इस तरफ आ गया था। हवेली में अजीब सी घुटन होती है। तुम्हें तो पता ही है कि हम सब किस दौर से गुज़रे हैं।"

"हां जानता हूं।" भुवन ने संजीदगी से कहा____"जो भी हुआ है बिल्कुल भी ठीक नहीं हुआ है छोटे कुंवर।"

"सब कुछ हमारे बस में कहां होता है भुवन।" मैंने गंभीरता से कहा____"अगर होता तो आज मेरे चाचा और मेरे भइया दोनों ही ज़िंदा होते और ज़ाहिर है उनके साथ साथ साहूकार लोग भी। पर शायद ऊपर वाला भी यही चाहता था और आगे न जाने अभी और क्या चाहता होगा वो?"

"फिर से कुछ हुआ है क्या?" भुवन ने फिक्रमंद हो कर पूछा____"इस बार मैं हर पल आपके साथ ही रहूंगा। मेरे रहते आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।"

"तुम्हारी इस वफ़ादारी पर मुझे नाज़ है भुवन।" मैंने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा___"मैं अक्सर सोचता हूं कि मैंने तुम्हारे ऐसा तो कुछ किया ही नहीं है इसके बावजूद तुम मेरे लिए अपनी जान तक का जोख़िम उठाने से नहीं चूक रहे। एक बात कहूं, अपनों के खोने का दर्द बहुत असहनीय होता है। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम्हें कुछ हो जाए और तुम्हारे परिवार के लोग अनाथ हो जाएं।"

"मैं ये सब नहीं जानता छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"मैं तो बस इतना जानता हूं कि मुझे हर हाल में आपकी सुरक्षा करनी है। मुझे अपने परिवार के लोगों की बिल्कुल भी फ़िक्र नहीं है क्योंकि मुझे पता है कि उनके सिर पर दादा ठाकुर का हाथ है।"

"बेशक है भुवन।" मैंने कहा____"मगर फिर भी यही कहूंगा कि कभी किसी भ्रम में मत रहो। इतना कुछ होने के बाद मुझे ये समझ आया है कि जब ऊपर वाला अपनी करने पर आता है तो उसे कोई नहीं रोक सकता। उसके सामने हर कोई बेबस और लाचार हो जाता है।"

"हां मैं समझता हूं छोटे कुंवर।" भुवन ने सिर हिलाते हुए कहा____"लेकिन अगर ऐसी ही बात है तो फिर मैं भी यही सोच लूंगा कि जो कुछ भी मेरे या मेरे परिवार के साथ होगा वो सब ऊपर वाले की मर्ज़ी से ही होगा। मैं आपका साथ कभी नहीं छोडूंगा चाहे कुछ भी हो जाए।"

अजीब आदमी था भुवन। मेरे इतना समझाने पर भी मेरी सुरक्षा के लिए अड़ा हुआ था। अंदर से फक्र तो हो रहा था मुझे मगर मैं ऐसे नेक इंसान को किसी मुसीबत में नहीं डालना चाहता था। एक अंजाना भय सा मेरे अंदर समा गया था।

"ख़ैर छोड़ो इस बात को।" फिर मैंने विषय को बदलते हुए कहा____"मैं यहां इस लिए भी आया था कि ताकि तुमसे ये कह सकूं कि तुम यहां पर काम कर रहे सभी लोगों का हिसाब किताब एक कागज़ में बना कर मुझे दे देना। काफी दिन हो गए ये सब बेचारे जी तोड़ मेहनत कर के इस मकान को बनाने में लगे हुए हैं। मैं चाहता हूं कि सबका उचित हिसाब किताब बना कर तुम मुझे दो ताकि मैं इन सबको इनकी मेहनत का फल दे सकूं।"

"फ़िक्र मत कीजिए छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"कल दोपहर तक मैं इन सभी का हिसाब किताब बना कर हवेली में आपको देने आ जाऊंगा।"

"मैंने किसी और ही मकसद से इस जगह पर ये मकान बनवाया था।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"मगर ये सब होने के बाद अब हर चीज़ से मोह भंग सा हो गया है। ख़ैर जगताप चाचा के न रहने पर अब मुझे ही उनके सारे काम सम्हालने हैं इस लिए मैं चाहता हूं कि इसके बाद उन कामों में भी तुम मेरे साथ रहो।"

"मैं तो वैसे भी आपके साथ ही रहूंगा छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"आपको ये कहने की ज़रूरत ही नहीं है। आप बस हुकुम कीजिए कि मुझे क्या क्या करना है?"

"मुझे खेती बाड़ी का ज़्यादा ज्ञान नहीं है।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"इसके पहले मैंने कभी इन सब चीज़ों पर ध्यान ही नहीं दिया था। इस लिए मैं चाहता हूं कि इस काम में तुम मेरी मदद करो या फिर ऐसे लोगों को खोजो जो इन सब कामों में माहिर भी हों और ईमानदार भी।"

"वैसे तो ज़्यादातर गांव के लोग आपकी ही ज़मीनों पर काम करते हैं।" भुवन ने कहा____"मझले ठाकुर सब कुछ उन्हीं से करवाते थे। मेरा ख़याल है कि एक बार उन सभी लोगों से आपको मिल लेना चाहिए और अपने तरीके से सारे कामों के बारे में जांच पड़ताल भी कर लेनी चाहिए।"

"हम्म्म्म सही कहा तुमने।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"यहां इन लोगों का हिसाब किताब करने के बाद किसी दिन मिलते हैं उन सबसे।"

"बिल्कुल।" भुवन ने कहा____"आज बारिश भी अच्छी खासी हो गई है। मौसम का मिज़ाज देख कर लगता है कि अभी और भी बारिश होगी। इस बारिश के चलते ज़मीन में नमी भी आ जाएगी जिससे ज़मीनों की जुताई का काम जल्द ही शुरू करवाना होगा।"

"ठीक है फिर।" मैंने स्टूल से उठते हुए कहा____"अब मैं चलता हूं।"
"बारिश की वजह से रास्ते काफी ख़राब हो गए हैं।" भुवन ने कहा____"इस लिए सम्हल कर जाइएगा।"

मैं बरामदे से निकल कर बाहर आया तो भुवन भी मेरे पीछे आ गया। सहसा मुझे अनुराधा का ख़याल आया तो मैंने पलट कर उससे कहा____"मुरारी काका के घर किसी वैद्य को ले कर चले जाना।"

"य...ये आप क्या कह रहे हैं छोटे कुंवर?" भुवन एकदम से हैरान हो कर बोल पड़ा____"काका के यहां वैद्य को ले कर जाना है? सब ठीक तो है न वहां? आप गए थे क्या काका के घर?"

"नहीं मैं वहां गया नहीं था।" मैंने अपनी मोटर साइकिल में बैठते हुए कहा____"असल में मुरारी काका की बेटी आई थी बारिश में भीगते हुए। शायद तुमसे कोई काम था उसे।"

मेरी बात सुन कर भुवन एकाएक फिक्रमंद नज़र आने लगा। फिर सहसा उसके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई।

"पूरी तरह पागल है वो।" फिर उसने मेरी तरफ देखते हुए उसी फीकी मुस्कान से कहा____"पिछले कुछ समय से लगभग वो रोज़ ही यहां आती है। कुछ देर तो वो मुझसे इधर उधर की बातें करेगी और फिर झिझकते हुए आपके बारे में पूछ बैठेगी। हालाकि वो ये समझती है कि मुझे उसके अंदर का कुछ पता ही नहीं है मगर उस नादान और नासमझ को कौन समझाए कि उसकी हर नादानियां उसकी अलग ही कहानी बयां करती हैं।"

मैंने भुवन की बातों पर कुछ कहा नहीं। ये अलग बात है कि मेरे अंदर एकदम से ही हलचल मच गई थी। तभी भुवन ने कहा____"उसे मुझसे कोई काम नहीं होता है छोटे कुंवर। वो तो सिर्फ आपको देखने की आस में यहां आती है। उसे लगता है कि आप यहां किसी रोज़ तो आएंगे ही इस लिए वो पिछले कुछ दिनों से लगभग रोज़ ही यहां आती है और जब उसकी आंखें आपको नहीं देख पातीं तो वो निराश हो जाती है।"

"अच्छा चलता हूं मैं।" मैंने मोटर साइकिल को स्टार्ट करते हुए कहा____"तुम एक बार हो आना मुरारी काका के घर।"

"मुझे पूछना तो नहीं चाहिए छोटे कुंवर।" भुवन ने झिझकते हुए कहा____"मगर फिर भी पूछने की हिमाकत कर रहा हूं। क्या मैं जान सकता हूं कि आप दोनों के बीच में क्या चल रहा है? क्या आप उसे किसी भ्रम में रखे हुए हैं? कहीं आप उस मासूम की भावनाओं से खेल तो नहीं रहे छोटे कुंवर?"

"इतना सब मत सोचो भुवन।" मैंने उसकी व्याकुलता को शांत करने की गरज से कहा____"बस इतना समझ लो कि अगर मेरे द्वारा उसको कोई तकलीफ़ होगी तो उससे कहीं ज़्यादा मुझे भी होगी।"

कहने के साथ ही मैंने उसकी कोई बात सुने बिना ही मोटर साईकिल को आगे बढ़ा दिया। मेरा ख़याल था कि भुवन इतना तो समझदार था ही कि मेरी इतनी सी बात की गहराई को समझ जाए। ख़ैर बारिश के चलते सच में कच्चा रास्ता बहुत ख़राब हो गया था इस लिए मैं बहुत ही सम्हल कर चलते हुए काफी देर में हवेली पहुंचा। मोटर साइकिल के पहियों पर ढेर सारा कीचड़ और मिट्टी लग गई थी इस लिए मैंने एक मुलाजिम को बुला कर मोटर साईकिल को अच्छी तरह धो कर खड़ी कर देने के लिए कह दिया।

✮✮✮✮

दादा ठाकुर की बग्घी जैसे ही साहूकारों के घर के बाहर खुले मैदान में रुकी तो घोड़ों की हिनहिनाहट को सुन कर जल्दी ही घर का दरवाज़ा खुला और रूपचंद्र नज़र आया। उसकी नज़र जब दादा ठाकुर पर पड़ी तो वो बड़ा हैरान हुआ। इधर दादा ठाकुर बग्घी से उतर कर दरवाज़े की तरफ बढ़े। दादा ठाकुर के साथ में शेरा भी था।

"कैसे हो रूप बेटा?" दादा ठाकुर ने बहुत ही आत्मीयता से रूपचंद्र की तरफ देखते हुए कहा____"हम गौरी शंकर से मिलने आए हैं। अगर वो अंदर हों तो उनसे कहो कि हम आए हैं।"

रूपचंद्र भौचक्का सा खड़ा देखता रह गया था। फिर अचानक ही जैसे उसे होश आया तो उसने हड़बड़ा कर दादा ठाकुर की तरफ देखा। पंचायत का फ़ैसला होने के बाद ये पहला अवसर था जब दादा ठाकुर को उसने देखा था और साथ ही ये भी कि काफी सालों बाद दादा ठाकुर के क़दम साहूकारों के घर की ज़मीन पर पड़े थे। रूपचंद्र फ़ौरन ही अंदर गया और फिर कुछ ही पलों में आ भी गया। उसके पीछे उसका चाचा गौरी शंकर भी आ गया। एक पैर से लंगड़ा रहा था वो।

"ठाकुर साहब आप यहां?" गौरी शंकर ने चकित भाव से पूछा____"आख़िर अब किस लिए आए हैं यहां? क्या हमारा समूल विनाश कर के अभी आपका मन नहीं भरा?"

"हम मानते हैं कि हमने तुम्हारे साथ बहुत बड़ा अपराध किया है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"और यकीन मानो इतना भयंकर अपराध करने के बाद हम जीवन में कभी भी चैन से जी नहीं पाएंगे। हम ये भी जानते हैं कि हमारा अपराध माफ़ी के काबिल नहीं है फिर भी हो सके तो हमें माफ कर देना।"

"ऐसी ही मीठी मीठी बातों के द्वारा आपने लोगों के अंदर अपने बारे में एक अच्छे इंसान के रूप में प्रतिष्ठित किया हुआ है न?" गौरी शंकर ने तीखे भाव से कहा____"वाकई कमाल की बात है ये। हम लोग तो बेकार में ही बदनाम थे जबकि इस बदनामी के असली हक़दार तो आप हैं। ख़ैर छोड़िए, ये बताइए यहां किस लिए आए हैं आप?"

"क्या अंदर आने के लिए नहीं कहोगे हमें?" दादा ठाकुर ने संजीदगी से उसकी तरफ देखा तो गौरी शंकर कुछ पलों तक जाने क्या सोचता रहा फिर एक तरफ हट गया।

कुछ ही पलों में दादा ठाकुर और गौरी शंकर अपने भतीजे रूपचंद्र के साथ बैठक में रखी कुर्सियों पर बैठे नज़र आए। गौरी शंकर को समझ नहीं आ रहा था कि दादा ठाकुर उसके घर किस लिए आए हैं? वो इस बात पर भी हैरान था कि उसने दादा ठाकुर को इतने कटु शब्द कहे फिर भी दादा ठाकुर ने उस पर गुस्सा नहीं किया।

गौरी शंकर ने अंदर आवाज़ दे कर लोटा ग्लास में पानी लाने को कहा तो दादा ठाकुर ने इसके लिए मना कर दिया।

"तुम्हें हमारे लिए कोई तकल्लुफ करने की ज़रूरत नहीं है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने कहा____"असल में हम यहां पर एक विशेष प्रयोजन से आए हैं। हालाकि यहां आने की हम में हिम्मत तो नहीं थी फिर भी ये सोच कर आए हैं कि न आने से वो कैसे होगा जो हम करना चाहते हैं?"

"क...क्या मतलब?" गौरी शंकर और रूपचंद्र दोनों ही चौंके। किसी अनिष्ट की आशंका से दोनों की ही धड़कनें एकाएक ही तेज़ हो गईं।

"हम चाहते हैं कि तुम हमारी भाभी श्री के साथ साथ बाकी लोगों को भी यहीं बुला लो।" दादा ठाकुर ने कहा____"हम सबके सामने कुछ ज़रूरी बातें कहना चाहते हैं।"

गौरी शंकर और रूपचंद्र दोनों किसी दुविधा में फंसे नज़र आए। ये देख दादा ठाकुर ने उन्हें आश्वस्त किया कि उन लोगों को उनसे किसी बात के लिए घबराने अथवा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। आश्वस्त होने के बाद गौरी शंकर ने रूपचंद्र को ये कह कर अंदर भेजा कि वो सबको बुला कर लाए। आख़िर थोड़ी ही देर में अंदर से सभी औरतें और बहू बेटियां बाहर आ गईं। गौरी शंकर के पिता चल फिर नहीं सकते थे इस लिए वो अंदर ही थे।

बाहर बैठक में दादा ठाकुर को बैठे देख सभी औरतें और बहू बेटियां हैरान थीं। उनमें से किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि इतना कुछ होने के बाद दादा ठाकुर इस तरह उनके घर आ सकते हैं। बहरहाल, उन सबको आ गया देख दादा ठाकुर कुर्सी से उठे और मणि शंकर की पत्नी फूलवती के पास पहुंचे। ये देख सबकी सांसें थम सी गईं।

"प्रणाम भाभी श्री।" अपने दोनों हाथ जोड़ कर दादा ठाकुर ने फूलवती से कहा____"इस घर में आप हमसे बड़ी हैं। हमें उम्मीद है कि आपका हृदय इतना विशाल है कि आप हमें आशीर्वाद ज़रूर देंगी।"

दादा ठाकुर के मुख से ऐसी बातें सुन जहां बाकी सब आश्चर्य से दादा ठाकुर को देखने लगे थे वहीं फूलवती के चेहरे पर सहसा गुस्से के भाव उभर आए। कुछ पलों तक वो गुस्से से ही दादा ठाकुर को देखती रहीं फिर जाने उन्हें क्या हुआ कि उनके चेहरे पर नज़र आ रहा गुस्सा गायब होने लगा।

"किसी औरत की कमज़ोरी से आप शायद भली भांति परिचित हैं ठाकुर साहब।" फूलवती ने भाव हीन लहजे से कहा____"खुद को हमसे छोटा बना कर हमारा स्नेह पा लेना चाहते हैं आप।"

"छोटों को अपने से बड़ों से इसके अलावा और भला क्या चाहिए भाभी श्री?" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारे द्वारा इतना कुछ सह लेने के बाद भी अगर आप हमें आशीर्वाद और स्नेह प्रदान करेंगी तो ये हमारे लिए किसी ईश्वर के वरदान से कम नहीं होगा।"

"क्या आपको लगता है कि ऐसे किसी वरदान के योग्य हैं आप?" फूलवती ने कहा।
"बिल्कुल भी नहीं।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु फिर भी हमें यकीन है कि सब कुछ भुला कर आप हमें ये वरदान ज़रूर देंगी।"

"इस जन्म में तो ये संभव नहीं है ठाकुर साहब।" फूलवती ने तीखे भाव से कहा____"आप सिर्फ ये बताइए कि यहां किस लिए आए हैं?"

फूलवती की बात सुन कर दादा ठाकुर कुछ पलों तक उसे देखते रहे फिर बाकी सबकी तरफ देखने के बाद वापस आ कर कुर्सी पर बैठ गए। वहां मौजूद हर कोई ये जानने के लिए उत्सुक था कि आख़िर दादा ठाकुर किस लिए आए हैं यहां?

"हमने तो उस दिन भी पंचायत में कहा था कि अगर हमें मौत की सज़ा भी दे दी जाए तो हमें कोई अफ़सोस अथवा तकलीफ़ नहीं होगी।" दादा ठाकुर ने गंभीर भाव से कहा____"क्योंकि हमने जो किया है उसकी सिर्फ और सिर्फ वही एक सज़ा होनी चाहिए थी मगर पंच परमेश्वर ने हमें ऐसी सज़ा ही नहीं दी। हमें आप सबकी तकलीफ़ों का भली भांति एहसास है। अगर आप सबका दुख हमारी मौत हो जाने से ही दूर हो सकता है तो इसी वक्त आप लोग हमारी जान ले लीजिए। हमने बाहर खड़े अपने मुलाजिम को पहले ही बोल दिया है कि अगर यहां पर हमारी मौत हो जाए तो वो हमारी मौत के लिए किसी को भी ज़िम्मेदार न माने और ना ही इसके लिए किसी को कोई सज़ा दिलाने का सोचे। तो अब देर मत कीजिए, हमें इसी वक्त जान से मार कर आप सब अपना दुख दूर कर लीजिए।"

दादा ठाकुर की ये बात सुन कर सब के सब भौचक्के से देखते रह गए उन्हें। रूपचंद्र और गौरी शंकर हैरत से आंखें फाड़े दादा ठाकुर को देखे जा रहे थे। काफी देर तक जब किसी ने कुछ नहीं किया और ना ही कुछ कहा तो दादा ठाकुर ने सबको निराशा की दृष्टि से देखा।

"क्या हुआ आप सब चुप क्यों हैं?" दादा ठाकुर ने सबकी तरफ देखते हुए कहा____"अगर हमें जान से मार देने पर ही आप सबका दुख दूर हो सकता है तो मार दीजिए हमें। इतने बड़े अपराध बोझ के साथ तो हम खुद भी जीना नहीं चाहते।" कहने के साथ ही दादा ठाकुर एकाएक गौरी शंकर से मुखातिब हुए____"गौरी शंकर, क्या हुआ? आख़िर अब क्या सोच रहे हो तुम? हमें जान से मार क्यों नहीं देते तुम?"

"ठ...ठाकुर साहब, ये...ये क्या कह रहे हैं आप?" गौरी शंकर बुरी तरह चकरा गया था। हैरत से आंखें फाड़े बोला____"आपका दिमाग़ तो सही है ना?"

"हम पूरी तरह होश में हैं गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें अच्छी तरह पता है कि हम तुम सबसे क्या कह रहे हैं। हमारा यकीन करो, हम यहां इसी लिए तो आए हैं ताकि तुम सब हमारी जान ले कर अपने दुख संताप को दूर कर लो। हमें भी अपने भाई और अपने बेटे की हत्या हो जाने के दुख से मुक्ति मिल जाएगी।"

"ये...ये कैसी बातें कर रहे हैं आप?" गौरी शंकर मानो अभी भी चकराया हुआ था____"नहीं नहीं, हम में से कोई भी आपके साथ ऐसा नहीं कर सकता। कृपया सम्हालिए खुद को।"

"तुम्हें पता है गौरी शंकर।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"जब हम दोनों परिवारों के रिश्ते सुधर गए थे तो हमें बेहद खुशी हुई थी। हमें लगा था कि वर्षों पहले दादा ठाकुर बनने के बाद जो हमने तुम्हारे पिता जी से माफ़ी मांगी थी उसको कबूल कर लिया है उन्होंने। मुद्दत बाद ही सही किंतु दो संपन्न परिवारों के बीच के रिश्ते फिर से बेहतर हो गए। हमने जाने क्या क्या सोच लिया था हमारे बेहतर भविष्य के लिए मगर हमें क्या पता था कि हमारी ये खुशियां महज चंद दिनों की ही मेहमान थीं। हम जानते हैं कि हमारे पिता यानि बड़े दादा ठाकुर ने अपने ज़माने में जाने कितनों के साथ बुरा किया था इस लिए उनके बाद जब हम उनकी जगह पर आए तो हमने सबसे पहली क़सम इसी बात की खाई थी कि न तो हम कभी किसी के साथ बुरा करेंगे और ना ही हमारे बच्चे। हां हम ये मानते हैं कि वैभव पर हम कभी पाबंदी नहीं लगा सके, जबकि उसको सुधारने के लिए हमने हमेशा ही उसको सख़्त से सख़्त सज़ा दी है। ख़ैर हम सिर्फ ये कहना चाहते हैं कि इस सबके बाद अगर हमें जीने का मौका मिला है तो क्यों इस मौके को बर्बाद करें? हमारा मतलब है कि आपस का बैर भाव त्याग कर क्यों ना हम सब साथ मिल कर बचे हुए को संवारने की कोशिश करें।"

"क्या आपको लगता है कि हमारे बीच इतना कुछ होने के बाद अब ये सब होना संभव हो सकेगा?" गौरी शंकर ने कहा____"नहीं ठाकुर साहब। ऐसा कभी संभव नहीं हो सकता।"

"हां ऐसा तभी संभव नहीं हो सकता जब हम खुद ऐसा न करना चाहें।" दादा ठाकुर ने कहा____"अगर हम ये सोच कर चलेंगे कि थाली में रखा हुआ भोजन हमारे हाथ और मुंह का उपयोग किए बिना ही हमारे पेट में पहुंच जाए तो यकीनन वो नहीं पहुंचेगा। वो तो तभी पहुंचेगा जब हम उसे पेट में पहुंचाने के लिए अपने हाथ और मुंह दोनों चलाएंगे।"

"हमारे बीच का मामला थाली में रखे हुए भोजन जैसा नहीं है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने कहा____"और फिर एक पल के लिए हम मान भी लें तो ऐसा क्या करेंगे जिससे हमारे बीच के रिश्ते पहले जैसे हो जाएं? क्या आप हमारे अंदर का दुख दूर कर पाएंगे? क्या आप उन लोगों को वापस ला पाएंगे जिन्हें आपने मार डाला? नहीं ठाकुर साहब, ये काम न आप कर सकते हैं और ना ही हम।"

"हम मानते हैं कि हम दोनों न तो गुज़र गए लोगों को वापस ला सकते हैं और ना ही एक दूसरे का दुख दूर कर सकते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु क्या ये सोचने का विषय नहीं है कि क्या हम दोनों इसी सब को लिए बैठे रहेंगे जीवन भर? आख़िर इस दुख तकलीफ़ को तो हम दोनों को ही भुलाने की कोशिश करनी होगी और उन लोगों के बारे में सोचने होगा जो हमारे ही सहारे पर बैठे हैं।"

"क्या मतलब है आपका?" गौर शंकर ने संदेहपूर्ण भाव से पूछा।

"तुम इस बारे में क्या सोचते हो और क्या फ़ैसला करते हो ये तुम्हारी सोच और समझ पर निर्भर करता है।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने सोच लिया है कि हम वो सब करेंगे जिससे कि सब कुछ बेहतर हो सके।"

"क...क्या करना चाहते हैं आप?" रूपचंद्र ने पहली बार हस्तक्षेप करते हुए पूछा।

"इसे हमारा कर्तव्य समझो या फिर हमारा प्रायश्चित।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"लेकिन सच ये है कि हमने इस परिवार के लिए बहुत कुछ सोच लिया है। इस परिवार की सभी लड़कियों को हम अपनी ही बेटियां समझते हैं इस लिए हमने सोचा है कि उन सबका ब्याह हम करवाएंगे लेकिन वहीं जहां आप लोग चाहेंगे।"

"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है ठाकुर साहब।" सहसा फूलवती बोल पड़ी____"हमारी बेटियां हमारे लिए कोई बोझ नहीं हैं और हम इतने असमर्थ भी नहीं हैं कि हम उनका ब्याह नहीं कर सकते।"

"हमारा ये मतलब भी नहीं है भाभी श्री कि आपकी बेटियां आपके लिए बोझ हैं या फिर आप उनका ब्याह करने में असमर्थ हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें बखूबी इस बात का इल्म है कि आप पूरी तरह सभी कामों के लिए समर्थ हैं किंतु....।"

"किंतु क्या ठाकुर साहब?" फूलवती ने दादा ठाकुर की तरफ देखा।

"यही कि अगर ऐसा पुण्य काम करने का सौभाग्य आप हमें देंगी तो हमें बेहद अच्छा लगेगा।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारी अपनी तो कोई बेटी है नहीं। हमारे छोटे भाई की बेटी है जिसका कन्यादान उसे खुद ही करना था। हम पहले भी इस बारे में बहुत सोचते थे और हमेशा हमारे ज़हन में इस घर की बेटियों का ही ख़याल आता था। जब हमारे रिश्ते बेहतर हो गए थे तो हमें यकीन हो गया था कि जल्द ही हमारी ये ख़्वाहिश पूरी हो जाएगी। हमने तो ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि ये सब हो जाएगा। ख़ैर जो हुआ उसे लौटाया तो नहीं जा सकता लेकिन फिर से एक नई और बेहतर शुरुआत के लिए अगर हम सब मिल कर ये सब करें तो कदाचित हम दोनों ही परिवार वालों को एक अलग ही सुखद एहसास हो।"

"ठीक है फिर।" फूलवती ने कहा____"अगर आप वाकई में सब कुछ बेहतर करने का सोचते हैं तो हमें भी ये सब मंजूर है लेकिन....।"

"ल...लेकिन क्या भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने उत्सुकता से पूछा। उन्हें फूलवती द्वारा सब कुछ मंज़ूर कर लेने से बेहद खुशी का आभास हुआ था।

"यही कि अगर आप सच में चाहते हैं कि हमारे दोनों ही परिवारों के बीच बेहतर रिश्ते के साथ एक नई शुरुआत हो।" फूलवती ने एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा____"तो हमारा भी आपके लिए एक सुझाव है और हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा सुझाव पसंद ही नहीं आएगा बल्कि मंज़ूर भी होगा।"

"बिल्कुल भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"आप बताइए क्या सुझाव है आपका?"

"अगर आप अपनी बेटी कुसुम का ब्याह हमारे बेटे रूपचंद्र से कर दें।" फूलवती ने कहा___"तो हमें पूरा यकीन है कि दोनों ही परिवारों के बीच के रिश्ते हमेशा के लिए बेहतर हो जाएंगे और इसके साथ ही एक नई शुरुआत भी हो जाएगी।"

फूलवती की बात सुन कर दादा ठाकुर एकदम से ख़ामोश रह गए। उन्हें सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि फूलवती उनसे ऐसा भी बोल सकती है। सहसा उन्हें पंचायत में मुंशी चंद्रकांत द्वारा बताई गई बातों का ध्यान आया जब उसने बताया था कि साहूकार लोग उनकी बेटी कुसुम से रूपचंद्र का ब्याह करना चाहते थे।

"क्या हुआ ठाकुर साहब?" फूलवती के होठों पर एकाएक गहरी मुस्कान उभर आई____"आप एकदम से ख़ामोश क्यों हो गए? ऐसा लगता है कि आपको हमारा सुझाव अच्छा नहीं लगा। अगर यही बात है तो फिर यही समझा जाएगा कि आप यहां बेहतर संबंध बनाने और एक नई शुरुआत करने की जो बातें हम सबसे कर रहे हैं वो सब महज दिखावा हैं। यानि आप हम सबके सामने अच्छा बनने का दिखावा कर रहे हैं।"

"नहीं भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"आप ग़लत समझ रही हैं। ऐसी कोई बात नहीं है।"

"तो फिर बताइए ठाकुर साहब।" फूलवती ने कुटिलता से मुस्कुराते हुए कहा____"क्या आपको हमारा सुझाव पसंद आया? क्या आप दोनों परिवारों के बीच गहरे संबंधों के साथ एक नई शुरुआत के लिए अपनी बेटी का ब्याह हमारे बेटे रूपचंद्र से करने को तैयार हैं?"

"हमें इस रिश्ते से कोई समस्या नहीं है भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"बल्कि अगर ऐसा हो जाए तो ये बहुत ही अच्छी बात होगी।"

दादा ठाकुर की ये बात सुन कर सभी हैरत से उन्हें देखने लगे। किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था कि दादा ठाकुर ऐसा भी बोल सकते हैं। उधर रूपचंद्र का चेहरा अचानक ही खुशी से चमकने लगा था। उसे भी यकीन नहीं हो रहा था कि दादा ठाकुर खुद उसके साथ कुसुम का ब्याह करने को राज़ी हो सकते हैं।




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Kahani jo hoti he wo lekhak ka ek tarike se man-darpan hoti he, wo uske aantarik vicharon ko darshati he. Yu to samaj me kya chal raha he wo to sabhi dekhte he par dekhne ka najariya alag alag hota he !
Iss kahani me jaha shayad 1970s-80s ka kaal dikhaya gaya he uss hisab se logon ka mindset bhi showcase kiya he lekhak ne.
Kahani ki shuruaat me Vaibhav kaisa tha, mid phase me yani bhabhi ke gaon tak wo kaisa tha aur ab wo kaisa he , isme jameen aasman ka fark he !
Ek aur character ko humne pichhe chhoda wo tha pandit jisne bade bhai ki bhavishyavani ki thi aur Vaibhav ke hath se anguthi nikal ke dusht sapno se mukt kiya tha wo ab nahi dikha, shayad shadi ke bahane bahar aaye.
Rahi bat anuradha ki to wo jaise pahle bataya ke Thakuron ke khandan se he par alag pde he to muze future me uska scope nhi dikhata !
Kusum ki bat kare to wo komal nirmal man ki he, uski he maafi ne uske dono bhaiyon ko bachaya wrna Jagtap chacha ke hathon maare jate !
Par uska vivah Rupchandra se hona uske liye shocking news he, aur Vaibhav ke liye bhi !
Kahani apne sarvottam suspense shikhar par pahunch gai he, at least mere hisab se.
 

Sanjuhsr

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Dono update bahut hi behtarin rahe
Update ka ant bahut hi shocking rha,
Dada thakur apne papon ki mafi ke liye apne divangat bhai ki beti ko aise pariwar ke hatho soupne ke liye teyar ho gaye jisne unke sath har pal chhal kiya hai, ek tarah se kusum ki bali dekar apne pap done ja rahe hai,
Itne bade mukhiya se aise nirnay ki ummid nahi thi wo apne ghar ki beti ki ichha jane bagair uski kismat ka faisala kar liya , kya vaibhav savikar krega ye faisla
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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Baki sab to thik h bhai but ye har jagah Kusum ko hi kyu la khada kar dete h sab kya kusum hi sabke liye aasan Mohra h....
 
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