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Non-Erotic Wo college ke din (completed)

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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पढ़ा था देखो सब लाइक किया हुआ है, रिप्लाई भी दिया था।

और एक सजेशन भी, कि एक चीज मिसिंग है, जो कॉलेज लाइफ में होती ही होती है।
Yes yad aaya. Bola to tha college life ke pyar ke liye to bola tha.. us pe bhi likhne ki soch raha hu :declare: Suggest karo likhu ki nahi.?
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Yes yad aaya. Bola to tha college life ke pyar ke liye to bola tha.. us pe bhi likhne ki soch raha hu :declare: Suggest karo likhu ki nahi.?
बिलकुल लिखो
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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बिलकुल लिखो
Bhai is kahani ka response dekh ke man nahi kar raha :nope: Achi hindi padhne wale bohot kam log hai yaha.
Sanju bhaiya ke do sabd mujhe kafi sakti Pradhan kiye waise. Aapka review aaya nahi update pe only one review .
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Bhai is kahani ka response dekh ke man nahi kar raha :nope: Achi hindi padhne wale bohot kam log hai yaha.
Sanju bhaiya ke do sabd mujhe kafi sakti Pradhan kiye waise. Aapka review aaya nahi update pe only one review .
पढ़ा ही सबसे आखिरी में, जब सारे अपडेट पोस्ट हो गए थे।

और वैसे भी आजकल मैने पढ़ना भी कम ही कर दिया है।
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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manu@84

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एक

यह राजस्थान की एक अक्टूबर की दुपहर है।

ग़मगीन! गाँव में रेवड़ चराने वाला सोलह-सत्रह साल का एक लड़का मर गया। टाँके में डूबने से। लाश अभी-अभी आई है। चारों तरफ़ मातम पसरा है। भीगी-नम आँखें एक रेखीय होकर श्मशान की तरफ़ बढ़ रही है। अंतिम क्रियाएँ हुईं। लोग लौटे, इस लौटती भीड़ का हिस्सा मैं भी था। उदास और शोकमग्न लेकिन घर पहुँचते-पहुँचते फोन में
नोटिफ़िकेशन आया। चैक किया। दिल थम गया। यह दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाख़िले का रिजल्ट था।

उस समय सूतक पर गहरा विश्वास रखने वाला लड़का भला कैसे इस रिजल्ट को चैक कर लेता! घर आया। नहाया। रिजल्ट देखा—लगा कि सपना पूरा हो गया। मनचाहे कॉलेज में एडमिशन। मनचाहा—मतलब सिर्फ़ मनचाहा। कॉलेज देखना तो दूर, मैं तब तक कभी दिल्ली भी नहीं आया था। शाम होते-होते एडमिशन कंफ़र्म हुआ। पिता ने मज़दूरी से कमाएँ कुछ हज़ार दिए। सॉरी! उनकी आय के हिसाब से ‘कुछ’ नहीं बल्कि ‘बहुत कुछ हज़ार’। ई-मित्र पर फ़ीस जमा हुई। एडमिशन कंफ़र्म! लेकिन, ऐसा भी कभी होता है कि सपने आसानी से पूरे हो जाए।
इस केस में भी ऐसा ही होना था। एक कठिनाई बाक़ी थी, जो दूसरे दिन उगते सवेरे के साथ आई। एडमिशन-पोर्टल की ओर से एक और नोटिफ़िकेशन—‘Your admission has been cancelled!’. यह परेशानी भर नहीं बल्कि आँखों में नमी का निमंत्रण भी था। आनन-फ़ानन में कॉल हुए। पँद्रह बाई दस का बड़ा मकान मेरे लिए रणभूमि बन गया।
फ़ाइनली, कॉलेज एडमिशन के इंचार्ज़ से बात हुई और फिर डिपार्टमेंट की टीआईसी से। एक डॉक्यूमेंट की कमी थी। उस दिन पहली बार मेल किया। वो भी इंग्लिश में—कॉलेज ने एडमिशन से पहले ही एक कला सिखा दी। व्हाट्सऐप से पीछे की यह कला, मुझे उस दिन व्हाट्सऐप से बहुत आगे की जान पड़ी। शाम आते-आते सब ठीक हुआ। एडमिशन हो गया।

लेकिन यह क्या? क्लासेज़ तो ऑनलाइन ही होनी हैं। ख़ुशी थोड़ी कम हो गई। एक उम्मीद थी कि कभी तो कॉलेज खुलेगा। तब जाएँगे।
सबसे ख़ास बात—उस दिन पहली बार मैंने मम्मी-पापा को उदास देखा। क्यों? इसका जबाब तो आगे मिलना था।
जारी है .......
Nice start
 

manu@84

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दो

धुँध भरी सुबह। फ़रवरी का महीना।

मैं जल्दी जागा हूँ। दिन भी 14 फ़रवरी का था। अब कहूँ तो क्रश को प्रपोज़ करने का और तब कहता तो—सेटिंग को सेट करने का। मोहब्बत का बुलावा आ चुका है। आज दिल्ली निकलना है। परसों कॉलेज खुल जाएँगे। ट्रेन की टिकट किसी सीनियर ने बुक करवा दी है। मुझे तो आती नहीं। गाँव का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन अस्सी किलोमीटर दूर है। ‌वहीं से ट्रेन है। एक सस्ते से ट्रोली बैग में ठूँस-ठूँसकर सामान भरा जा चुका है।
पिता ने पास बुलाकर एक नोटों की गड्डी दी और ख़ूब सारी हिदायतें। गड्डी सँभालते हुए लगा कि बेटे की मोहब्बत सिर्फ़ बॉलीवुड फ़िल्मों में बाप को परेशानी नहीं देती। यह धोरों में भी उतनी ही प्रैक्टिकल बात है।

चूरू से दिल्ली महज़ पाँच घंटे का रास्ता है। मगर गाँव के किसी मज़दूर के घर पैदा होने वालों को शायद पीढ़ियाँ लग जाती हैं। यह रास्ता तय करने में। इन पाँच घंटों ने सिखाया कि ‘एकांत’ और ‘अकेलापन’ एक नहीं बल्कि अलग-अलग बातें हैं। अकेलापन शून्यता भरता है या ऋण-वृद्धि की ओर ले जाता है, जबकि एकांत कुछ और होता है। थोड़ा सकारात्मक और शुभ।
पाँच घंटे बीते—ट्रेन सराय रोहिल्ला उतरी। बंगाल के एक सीनियर आने वाले थे। कॉलेज-सीनियर नहीं। किसी एक भाई जी के जानकार—‘भैया’ शब्द मेरी डिक्शनरी में बाद में जुड़ा। स्टेशन की भीड़ को देखकर लगा कि इन सबको मिलाकर ‘धीरवास बड़ा’ तो नहीं पर कम से कम एक ‘धीरवास छोटा’ तो और बसाया जा सकता है।

भैया आए! रिक्शा लिया। ना साज-सज्जा। ना कोई म्यूज़िक और ऊपर से कानफोड़ू शोर के साथ जाम। मैं इन सबसे दूर किसी फ़िल्मी हीरो-सा प्रदूषण भरी हवा में बाल-उड़ाने की झूठी कोशिशें करता रहा। कमरे पर पहुँचे। गलियाँ देखीं। कल्चरल शॉक तो पता नहीं लेकिन कंस्ट्रक्शन शॉक लग चुका था।
उस रात लगा कि अगर सुबह का नाश्ता गाँव में, लंच ट्रेन में और डिनर दिल्ली में हो सकता है तो कुछ भी संभव है। सब जैसा सोचा था—वैसा नहीं है, लेकिन कर लेंगे।
ये भी बढ़िया था
 
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