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Written by- Deep The Rainbow
Coronavirus- "A Human Mistake"
आज मैं उस स्थिति में पहुंच गया हूं । जहां से सिर्फ एक ही रास्ता शेष बचता है। वो हैं अंतिम रास्ता, जिस पर चलकर मुझे अपनी अंतिम यात्रा पूर्ण करनी हैं। बड़े बुजुर्गों को कहते सुना हैं, कि जब इंसान मिरुत्तु सईया पे लेटा होता हैं तो उसे अपने द्वारा किए हर अच्छे-बुरे कर्म याद आने लगता हैं । परंतु मेरे संग ऐसा कुछ नहीं हो रहा हैं। अगर कुछ हो रहा हैं तो वो ये कि में आपने आस -पास चल रही गतिविधि को देखकर हैरान, परेशान, और हताश हूं।
मैं हैरान इसलिए हुं कि मुझें जिस कमरे में रखा गया हैं। उसकी वातावरण और स्थिति मेरे रहने अनुकूल नहीं हैं, फिर भी मुझे यहां रखा गया हैं। परेशान होने का कारण मेरा खुद का ही शरीर हैं। जी पल-पल मुझे असहनीय पीड़ा का अनुभव करा रहीं हैं। मेरा शरीर मुझे पल-पल मौत के करीब ले जाने का अहसास करा रही हैं, और हताश इसलिए हूं कि मेरे वो शुभचिंतक , परिवार और प्रियजन जो मेरे सुखद पलों में हमेशा बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया करते थे आज मेरे दुखद घड़ी मे मेरे पास नहीं है।
मुझे अस्पताल की जिस कमरे में रखा गया हैं। वहां से सीलन की सुगंध कहो या दुर्गन्ध भरपूर मात्रा में आ रहीं हैं। दीवारों की जर्जर हालत, जिसमें फफूंदी के हरे, काले और पीले धब्बें ये बया कर रहीं हैं। जैसे अभी-अभी रंगो का त्योहार होली मनाई गई हो और इंसानी शरीर को छोड़ कर, होली के रंगों से इन दीवारों को ही रंग दिया गया हैं। जिस बेड पर मैं लेटा हूं,उसका हल बुजुर्ग व्यक्ति के दांतों की तरह हैं जो उम्र के इस पड़ाव में उसका साथ "धीरे-धीरे","धीरे-धीरे" छोड़ रहा हैं।
मुझे ठहराए गए कमरे की दशा देखकर मैं। भलीभाती जान गया हूं कि मैं वर्तमान में मुंसीपाल्टी की किसी थर्ड क्लास अस्पताल की किसी थर्ड क्लास कमरे में पड़ा हूं। मैं जितना हैरान कमरे को देखकर हुआ उससे कही ज्यादा हैरान अपने आस -पास चल रहीं गतिविधि को देखकर हुआ। मेरे अलावा उस कमरे में तीन मरीज और थे । ओर हमारा बैंड कमरे के चार कोने में लगे हुए थे। हमारे चारों ओर एक पारदर्शी परत या कवर चढ़ा हुआ हैं। जिसमें गोलाकार छेद, इतने बड़े बने हुऐ हैं कि उसमे से हाथ आरपार किया जा सकें। इन छेदों को देखकर एक बात मेरे मस्तिष्क में कीड़े की तरह कुलबुला उठा कि इससे कुछ बड़े आकार के छेद हम कमरे के दीवारों में रोशनदान के तौर पर बनाया करते हैं। परन्तु इसमें रोशनदान की क्या जरूरत है? यहां तो पहले से ही इतनी पारदर्शी हैं की इसमें से रोशनी स्वतः ही आरपार हो रहा हैं फिर रोशनदान की क्या जरूरत है।
मेरे मस्तिष्क में उछाल रही कीड़ा उस छेद की उपयोगिता देखकर स्वतः ही शांत हों गई। जब एक डॉक्टर ने हमारे कमरे में परवेश किया और इन्हीं छेदों में से हाथ डाल, एक मरीज का परीक्षण करने लगा। कुछ देर परीक्षण करने के बाद डॉक्टर ने जो बोला उसे सुनकर मेरी सदमे से ह्रदय गति रुकते - रुकते रहा गई। डॉक्टर जी ने अपने साथ आई नर्स से बोला इनकी कोरोना वायरस टेस्ट रिपोर्ट कैसा हैं? एवं इनको कोविड-19 की कौन सी वेरिएंट हैं।
डॉक्टर और नर्स बहन जी ने आपस में कुछ कुसरपुशर कि उसके बाद डॉक्टर के चेहरे पर जो सिकन आई उसे देखकर में समझ गया की हालत बहुत ही गम्भीर है। एक-एक कर डॉक्टर और नर्स बहन जी ने हम चारों मरीजों को देखा। हमे देखने के बाद डॉक्टर के चेहरे पर एक जैसा भाव आया। डॉक्टर साहब के हाव-भाव को देखकर में समझ गया की हमारी हालत कुछ ज्यादा ही खराब हैं और हमारे पास गिनती के कुछ दिन बचे हैं। खैर डाक्टर साहब और नर्स बहनजी हमारे परीक्षण के बाद हमारे कमरे से निकल गए। निकलकर कहा गए ये में तो देख नहीं पाया पर जहां भी गाएं होंगे अच्छी जगह ही गाएं होंगे।
बरहाल में अपनी जिंदगी के बाचे गिने चुने दिनों को कैसे कटे जाए। इसी के बारे में सोचते हुए मैं अपने बीते जिंदगी के सुनहरे दिनों को याद कर रहा था। याद करते-करते मुझे वो पल याद आया जब मैं कोरोना वायरस की जांच पड़ताल करने घर से निकला था। इस पल को याद करते ही मेरे मुखमंडल पर एक मीठी सी मुस्कान आई ओर मैं उन यादों में खोता चला गया……..
फ्लैशबैक…….
मैं इस समय घर पर मौजूद हूं। मैं पेशे से एक न्यूज़ रिपोर्टर हूं। जो की सेवानिवृत्त (Retired) हो चुका हूं। इस समय मेरा पूरा परिवार, मेरे साथ घर पर मौजूद हैं। हालांकि ऐसा बहुत ही कम होता है। जब मैं और मेरा पूरा परिवार एक साथ, एक ही छत के नीचे, एक ही वक्त में हों। अगर ऐसा हुआ है तो वो सिर्फ और सिर्फ कोरोना वायरस की वजह से । जहां लोग कोरोना वायरस को अपशब्द और बुरा कह रहे हैं। वहीं लोग कोरोना वायरस की अच्छाई को नहीं देख पा रहे हैं।
कोविड-19 के फैलने की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ हैं। लॉकडाउन लगने की वजह से सारे काम धंधे और ऑफिस बंद हैं। सब कुछ बंद होने की वजह से लोग अपने अपने घरों में परिवार के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड कर रहे हैं। इसलिए में भी अपने परिवार के साथ समय बिता रहा हूं और इसके लिए हमें कोरोना वायरस को धन्यवाद कहना चाहिए ।
मैं अपने कमरे में बैठे-बैठे बोर हो रहा था तो सोचा चलकर बैठक में बैठकर परिवार के साथ टीवी देखने का आनंद लिया जाए। ताकि पता तो चले न्यूज़ चैनल वाले कौन सा न्यूज़ फ़्लैश कर रहें हैं। या फिर देश की दशा कोविड-19 की वजह से कितनी खराब हैं, ये बड़ा चढ़ा कर दिखा
रहें हैं ।
बैठक में पहुंच कर वहां की दशा देखकर ही मैं सोच में पड़ गया कि वास्तव में ये मेरा ही घर हैं। वहां कि दशा ऐसी हैं। जैसे अभी-अभी हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच बहुत ही भीषण युद्ध हुआ हों और मालवा के रूप में तकिए के खोल और उसमे भरी हुईं रूई हर तरफ फैली हुई हैं। इतना भीषण युद्ध मेरे घर के ये सिपाही कर सकते हैं तो ये सब यहां किया कर रहे हैं । इनको तो हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बॉर्डर पर होना चाहिए। इनके हाथ में बंदूक के जगह तकिए थमाकर कहना चाहिए जाओ मेरे सुरवीरो दुश्मन पर फतह हासिल करके ही आना।
वहां की दशा देखकर एक बार को तो मैंने सोचा छोड़ो यार टीवी को जाओ भूल ओर अपने कमरे में जाकर मनोरंजन का कोई दूसरा विकल्प ढूंढते हैं। अभी मैंने वापस जाने का मन बनाया ही था की मेरे घर की सबसे छोटी सदस्य मेरी तीन साल की पोती दौड़ती हुईं मेरे पास आईं और अपनी टूटी -फूटी तोतली बोली से... दाता जी, दाता जी गोती में नो न । मैंने भी उसकी बोली सुनके मुस्कुराकर कहा मैं तो गुड़िया को गोदी मे नहीं लूगा। मेरे ऐसा कहते ही वहीं पर लोट-पोट करते हुए रोने लगा। उसको रोता हुआ देखकर जल्दी से उसे उठाकर गोद में ले लिया। मेरे गोद में आते ही फिर से अपनी टूटी-फूटी बोली से बोलने लगी…. अपने तो कहा था आप मुझे गोती नही लोगो फिर क्यों लिया बोलो ।
मेरे पास उसके इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। मैंने उसकी तरफ देखकर, दिल की गहराई से मीठी सी मुस्कान के साथ उसकी माथे को चूम कर अपने सीने से लगा लिया। हम दोनों के इस क्रियाकलाप को हमारे घर के बाकी सदस्य ऐसे देख रहे हैं। जैसे टीवी पर भरत मिलाप का छीन चल रहा है। क्या देख रहे हो ... मेरे पूछते ही सब ने दुबारा अपना रुख टीवी की तरफ कर ली। मैं भी जाकर, एक आरामदायक जगह देख कर बैठ गया।
किया देख रहें हो …… मेरे पूछते ही। सहसा मुझे लगा की मैं अपने घर पर नहीं मछली बाजार आया हूं और सभी दुकानदार मुझे अपना माल बेचने के लिए तरह -तरह के प्रलोभन दे रहे हैं। मैंने अपने मस्तिष्क को सही जगह लाकर बिठाया और थोड़ा तेज आवाज, डटने के लहजे में कहा। आप सब चुप करिए और एक-एक करकर बोलिए। तभी मेरे एकमात्र जानेजीगर, अर्धांगनी, धर्मपत्नी जी बोल पढ़ती हैं कि मुझे तो रामायण देखना हैं। रामायण में सीता हरण का पाठ आने वाला हैं। में मन ही मन बोला यहां अपना सब कुछ, इस कोरोना वायरस की वजह से हरण होने वाला हैं ओर इनको सीता हरण देखने की पड़ी हैं।
अभी मैं अपनी धर्मपत्नी की बातो पर विचार कर ही रह था की मेरे घर की दोनों बहुएं एक साथ बोल पड़ी। हमे तो धारावाहिक देखना हैं। ये रिश्ता किया कहलाता हैं । जैसी ही ये नाम मेरे कर्ण पटल से होते हुए मेरे मस्तिष्क तक पहुंचा। बैसे ही बारूद के ढेर को चिंगारी मिली। चिंगारी मिलते ही बारूद का ढेर भड़ाम्म से फट पड़ा….. ये बही धारावाहिक हैं न जो पिछले पंद्रह सालों से भी ज्यादा समय से चल रहा हैं। पाता नहीं इस धारावाहिक में आप महिलाओं को कौन सी घुट्टी पिने को मिलता हैं। जिसे पीने को आप हर वक्त लालायित रहती हैं । मेरे तो इस धारावाहिक का कुछ पल्ले नहीं पड़ता ।
मेरे ऐसा बोलते ही दोनों बहुओं के चेहरे का रंग फीका पड़ गया। उनकी मानो दशा समझ कर मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ। मैं अपनी ग्लानि से पर पाने की कोशिश कर ही रह था की मेरे गोद में बैठी मेरी पोती बोल पड़ीं। दाता जी, दाता जी नुझे ना नार्टन देखना हैं। मैंने तुरंत ही रिमोट उठाया ओर कार्टून चैनल लगा दिए। कार्टून चैनल लगाते ही ऐसे खुश हो गया मानो उसे उसका पसंदीदा खिलौना मिल गया हो।
टीवी पर कार्टून प्रोग्राम चलता देख कर घर के बाकी सदस्य एक- एक कर अपने-अपने कमरे में चले गए। मैं अपनी पोती के संग कार्टून प्रोग्राम का मजा लेने लगा। कुछ समय पश्चात मेरी पोती टीवी देखते-देखते मेरे गोदी में ही सो गई। उसको सोता हुआ देख कर मैंने चैनल को बदला और न्यूज़ चैनल लगाकर आज के गरमा- गर्म और मसालेदार खबर देखने लगा। सभी टीवी चैनल अपनी-अपनी टीआरपी बढ़ाने में लगे हुए हैं। इसी जद्दोजहद मे न्यूज़ चैनल वाले जो न्यूज़ फ्लैश कर रहें हैं उसे देखकर मैं खुद हैरान हुं। मैं खुद एक बहरीन पत्रकार हूं। आज के ये पत्रकार जिस तरह का न्यूज़ जुटा रहें हैं। ये इनके अथक प्रयास का नतीजा हैं या सच्चाई कुछ और ही हैं।
दरासल टीवी पर कुछ इस तरह का न्यूज़ चलाया जा रहा हैं। कभी किसी को मसीहा, कभी किसी को दरिन्दा दिखाया जा रहा हैं। मैं अपने सोच के अथाह सागर में डूबकर गहन विचार विमर्श में लगा हुआ था की मेरे बेटा मुझसे कहता हैं । आप इतनी गहराई से किया सोच रहें हैं। मुझे कुछ जवाब न देता देखकर मुझे इस तरह हिलाया डुलाया जाता हैं। जैसे मैं कोई जमीन में शक्ति से गाढ़ा हुआ कोई खुटा हूं। जिसे वर्षों बाद हिला डुला कर बाहर निकाला जा रहा हो। बरहाल जो भी हो मैं इसी हिल ढुल की वजह से अचंभित होकर वर्तमान में लौट आता हु।
मुझे इस तरह अचंभित होता देखकर बेटा मुझसे पूछता हैं आप ऐसे क्यू रिएक्ट कर रहे हैं। मैं भी तैश में आकर बोल देता हूं मैं कुछ भी रिएक्ट करू तुम्हे उससे किया। लेकिन तुम मुझे ऐसे क्यू हिला डुला रहें थे जैसे मैं…… "अरे वो आप बिल्कुल स्टेचू के माफिक बैठे थे न आपकी शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही थी न आप पलकें झपका रहें थे। आप का मुंह खुला हुआ था। आप टीवी की तरफ देख रहें थे तो मैंने सोचा आप को हार्ट अटैक आया होगा ओर आप….."तो तुम ने सोचा मैं तो हार्ट अटैक से निकल लिया मेरा तो ऊपर का टिकट कट चुका हैं। कहीं यमराज जी मुझे लेना तो नहीं भूल गाए हां, हां, हां"।
किया पापा आप भी ना मजाक करने की आदत अपकी अभी तक नहीं गया। बेटा यही तो वो पल हैं जो जिंदगी को और हसीन बनाती हैं। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में इन छोटे-छोटे लम्हों को हम जीना ही भूल गए। किया पापा आप भी किन बातो को लेकर बैठ गए हैं। छोड़िए इन सब बातों को आप ये बताओ आप टीवी देखते हुए क्या सोच रहे थे ? आज कल के बच्चे कुछ ज्यादा ही समझदार हो गए हैं। ये इन सब बातों को तवज्जो ही नहीं देते। कोई नहीं जब ये मेरे उम्र में आएंगे तब इन्हे समझ में आएगा।
मैं भी अपनी बातों को ज्यादा तूल न देते हुए । उसके द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देना ही ठीक समझा। अरे बेटा जी इन पत्रकारों को अपना काम ईमानदारी से करता हुआ देखकर मेरे अंदर का खोजी कीड़ा कुलबुला रह है और मैं सोच रहा हु कि….. आप न आपने सोच को यहीं विराम दो और आपके अंदर कुलबुला रहें खोजी कीड़े को जहर देकर मार दो हां, हां, हां। वाह बेटा वाह मुझे टोकते हो और खुद ही मजाक करते हों। "आप ये सब छोड़िए और ये बताए की आप सोच किया रहें थे।" "मैं तो ये सोच रहा हु की अपने खोजी कीड़े को जहर दे ही दू मतलब की में सोच रहा हु की दुनिया में चल रहीं भयंकर महामारी, इस संकट की घड़ी में मैं भी अपना कुछ योगदान दू।
अच्छा आप क्या योगदान देंगे? बेटा मैं सोच रहा हूं की ये जो कुछ भी टीवी पर दिखाया जा रहा हैं। ये सब सच में हों रहा हैं या फिर हो कुछ ओर रहा हैं, और दिखा कुछ और रहा है। "मतलब की आप सच्चाई का पता करना चाहते हैं। तब तो आप को बाहर जाना पड़ेगा। परंतु बाहर जाना बंद हैं। लॉकडाउन जो लगा हैं। जो भी लॉकडाउन में बाहर जा रहे हैं। पुलिस वाले उसके शरीर पर आपने दंडात्मक अस्त्र से वो कहर बरसा रहें हैं। की कहीं दिनों तक ये कहर उसे न उठने दे रहा हैं न बैठने दे रहा हैं और तासरीफ की तो वो हालत कर रहें हैं कि नित्य कर्म करना दूभर हो रहा है। समझे मरे खोजी कीड़े वाले पत्रकार महाशय।
अरे बेटा जी आप समझे नहीं वो ऐसा हैं की इन्होंने कुछ स्पेशल लोगों को छूट दे रखी हैं। शायद उन्हें कोरोना नहीं हो सकता । वो लोग कहीं भी बिना रोक टोक के आ जा सकते हैं। अपना काम भी मौज मस्ती करते हुए कर सकते हैं। आप का न पिताजी उम्र के साथ-साथ लगता हैं। अपके स्मरण यंत्र का स्क्रू ढीला होकर कही गिर गया हैं। ऐसा कैसे हो सकता हैं की बाहर घूमने से कुछ लोगों को कोविड -19 का असर होगा और कुछ लोगो को नहीं होगा।
अब कुछ भी हो देखने में तो यहीं आ रहा हैं। शायद जो लोग बाहर घूम रहें हैं। वो लोग कोविड-19 के वंशज हो। इसलिए उन्हें कोरोना नही हो रहा हैं। मुझे भी बाहर जाकर देखना चाहिए। मेरे बाहर जाने से कोरोना वायरस मुझे होता हैं तो ये पक्का हो जायेगा की वो लोग कोरोना वायरस के वंशज हैं। मैं नहीं।
ठीक हैं पापा आपको जो करना हैं कीजिए मैं आप को रोकूंगा नहीं परंतु जाने से पहले बाकी घर वालो से एक बार पूछ लो वो किया कहते हैं। मेरे बाहर जानें की बात से मेरे परिवार के सभी सदस्य अपना एक मत नहीं बना पा रहें हैं। इस गहमागहमी को देखकर एक बार तो मुझे लगा की मेरे बाहर जाने की प्रस्ताव को कही यूएनओ में न ले जाना पड़े। अरे ये वही यूएनओ हैं जहां पाकिस्तान बार-बार कश्मीर मुद्दा लेकर जाता हैं। ओर बार-बार कहता हैं की बरखुरदार ये हिन्दुस्तान को रोकिए ये हर बार दिल्ली से एक ही चप्पल फेंक कर मरता हैं। दूसरा भी फेंककर मरे जिससे मुझे पहनने और खाने के लिए एक जोड़ी चप्पल तो मिलेगा।
खैर मेरे मुद्दा यूएनओ तक नहीं ले जाना पड़ा। मेरे घर में ही इस मुद्दे का हल निकल आया। मेरे घर की मुखयाईन द्वारा कुछ शर्तों के साथ बाहर जाने की अनुमति दे दी गई। जिस दिन मुझे जाना था। वहां दिन नजदीक आते ही मैं अपने सारे साजो सामान और जरूरी पिरिकॉशन (जो मुझे कोरोना वायरस के प्रकोप से बचाएगा) लेकर मैं घर से निकलने के लिए तैयार हो गया। जाते समय मेरे परिवार के सभी सदस्य मुझे ऐसे बिदा कर रहें थे। जैसे मैं कोई जंग लड़ने जा रहा हूं और कभी लौटकर घर ही नहीं आऊंगा।
बरहाल मैं सब से विदा लेकर अपने प्राइवेट प्रॉपर्टी से निकल कर जैसे ही सरकारी प्रापर्टी में कदम रखा वैसे ही उज्जठ खाकर नीचे गिर पड़ा। गिरते ही मैं सोचने लगा किसकी इतनी हिम्मत जो मेरे टांग में टांग अड़ा कर गिरा दिया। मैं दुनिया को हिला देने वाला पत्रकार हूं। ये किसकी गुस्ताखी हैं जो मुझे ही हिला डाला। ये सोच कर मैं उस शख्स को देखने के लिए खड़ा हुआ । खड़ा होते ही जो मुझे दिखा उसे देखकर खुद पर ही हंसी आ गई की इन महाशय ने मुझे हिला डाला ।
दरअसल हुआ ये की मैं घर से निकल कर रोड पर पहुंचते ही मेरे पैर के नीचे एक रोड़ा आया। जिससे फिसल कर मैं गिर गया। गिरते ही मैं पूरा का पूरा हिल गया। हम चांद पर तो पहुंच गए, मंगल के भी चक्कर लगा लिए परंतु हमारे देश की ये सड़के जिनकी खस्ताहाल ये बयां करती हैं की इनका हमारे जीवन में कोई औचित्य ही नही हैं। हम दूसरे ग्रह में खड्डा खोदने से पहले अपने देश की सड़को पे मौजूद खड्डों को ही बार लेते।
इन सब बातो के बवांडार को वही छोड़ कर में आगे को बढ़ चला। जैसे-जैसे मैं आगे को बढ़ने लगा वैसे-वैसे दृश्य बड़ा ही विहंगम होने लगा। सड़के सुनसान हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ हैं। ऐसा दृश्य देखकर एक बरगी तो मुझे लगा शायद धरती पर कोई अकाल पड़ा हो और सब कुछ तहस-नहस कर दिया हो। मैं इस सन्नाटे को चीरता हुआ अपनी मंजिल की तरफ़ बढ़ता रहा। सुबह का चला हूं अब तो दोपहर भी हों गईं परंतु मुझे कोई ऐसा न मिला जिससे मैं कुछ पूछ सकू।
दोपहर की ये चिलचिलाती धूप और गर्मी ने मेरा हाल बेहाल कर रखा हैं। मैं हताश-निराश छाव और पानी की तलाश में हाईवे पर सरपट दौड़े जा रहा हु कि कहीं तो मुझे थोड़ी छाव और पानी मिले। जिससे मुझे इस उमस भरी गर्मी से थोड़ी राहत मिले। एका-एक मेरे दिमाग का घोड़ा दौड़ा कि मुझे हाईवे पर कुछ नहीं मिलने वाला। मुझे हाईवे छोड़ कर कोई बस्ती या गांव का रास्ता ढूंढना होगा। दिमाग के घोड़े को इस तरह दौड़ता देख मैं भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। चलते-चलते मैं एक चौराहे पर पहुंचा।
चौराहे की नजारे देख कर मैं गहन विचार करने पर विवश हो गया कि ये हमारे देश का वो महकमा हैं। जिसपे हमेशा भ्रष्ट होने का टैग लगा रहता हैं। इन्हे अपनी जेब भरने की पढ़ी रहती हैं। चाहें कुछ भी हो जाए बस अपनी तोंद बढ़ना चाहिए बाकि सब भाड़ में जाए। इस मुस्तैदी से पुलिस वालों को काम करता हुए देखकर मेरा दिल बल्लियां उछलने लगा कि चलो ये लोग इस विपदा की घड़ी मे अपनी तोंद बढ़ने कि न सोच कर लोगों की भलाई के बारे में सोच रहे हैं ।
हुआ ये की पुलिस वालो ने कुछ गाड़ी वालों को रोक रखा हैं। शायद ये लोग सरकार द्वारा निर्धारित नियम का उल्लंघन कर शहर के अंदर प्रवेश कर रहें थे और इनको पोलिस वालो ने पकड़ लिया। सिर्फ पकड़ा ही नही उनपे भरी जुर्माना भी लगाया। कुछ नटवर लाल बनने की कोशिश कर रहे थे तो पुलिस वालो ने उनके चरण पादुका से लेकर कमर बंद तक की बहुत अच्छे से खबर ली। इस बीच एक पुलिस वाले की नज़र मुझपे पड़ीं … ,"अरे पत्रकार बाबू आप कहा चले आप को यहां कोई तड़कता-भड़कता न्यूज़ नही मिलेगा उसके लिए आप को कही और जाना पड़ेगा।"
मुझे कुछ तो मिला हैं लेकिन वो नहीं मिला जो मैं ढूंढ रहा हो… "ऐसा कौन सा मुक्ता माणिक ढूंढ रहे हैं जो आप को नहीं मिला अरे हां अभी यहां जो कुछ हुआ वो आपने रिकॉर्ड तो नहीं किया न अगर किया हो तो उसे टीवी पर प्रदर्शित न कीजियेगा नहीं तो वरना….. अरे-अरे ठहरिए मैंने यहां का कुछ भी रिकॉर्ड नही किया हैं।…. चलो अच्छा हुआ पुलिस वाला थोड़ा मुस्कुरा कर बोला। पुलिस वालो के पास बैठ कर थोड़ी देर आराम किया पानी पिया और आगे की सफर पर निकल पड़ा।
कई दिन हो गए मुझे चलते हुऐ लेकिन ये कोरोना वायरस का कहीं कुछ पता नहीं चल रहा है। चले भी तो कैसे वो कोई इंसान या कोई जानवर तो हैं नही जो मुझे ऐसे ही दिख जाए। वो तो एक न दिखने वाला वायरस हैं। जो सिर्फ सुक्ष्म दर्शी यन्त्र से ही देखा जा सकता हैं। मैंने ये तय किए की कुछ दिन और कोरोना वायरस को ढूंढूंगा। इस बिच मिला तो ठीक और न मिला तो भी ठीक मैं आपने घर लौट जाऊंगा। इसी फैसले के संग मैं चाल पड़ा। चलते-चलते मैं एक ऐसी जगह पहुंचा जहां से एक बहुत ही घना और खुबसूरत जंगल शुरू होता हैं।
इतना सुंदर वादी शांत वातावरण यहां पहुंच कर मेरा अशांत मन शीतल जल की तरह ठंडा हो गया। मैं शहर की इमारतों वाली जंगल से दूर प्रकृति की गोद में आकर मैं सब कुछ भूल गया की में किस लिए घर से निकला,कौन सा काम करने निकला था, किस को ढूंढने मैं निकला था। जिसे ढूंढते-ढूंढते मैं यहां आ पहुंचा। मैं दोनों हाथ फैलाए सर को ऊपर उठाए , शीतल मन्द-मंद चल रही वायु को महसूस करती हुई दौड़े जा रहा हूं। जैसे वर्षों बाद दो प्रेमी मिले हो और सब कुछ भूल कर एक दूसरे के बाहों में समा जाना चाहते हों।
मैं बदहवास बावला सा दौड़े जा रहा हु कि सहशाह मेरे कानों में एक आवाज गूंगी…." रुक जाओ तुम्हारा यहां आन वर्जित हैं"। आ रही आवाज को नजर अंदाज कर मैं बढ़ता रहा। फिर से दोबारा वही आवाज गूंजा मुझे न रुकता हुआ देखकर शायद उसे गुस्सा आ गया और मुझपर कुछ फैंक कर मारा जिससे मैं गिर गया। मुझे गिरा हुआ देखकर वहां मरे पास आया और बोला आप को एक बार बोलने पर समझ नही आता किया। मैं खड़ा होता हुआ बोल पडा कि ये जंगल हैं और यहां आने पर पाबंदी क्यू? यहां तो कोई भी आ जा सकता हैं।
"हां यहां कोई भी आ जा सकता हैं। परंतु तुम इंसान नहीं आ सकते हो" पर हम इंसान क्यू नही आ सकते इतनी सुंदर वादी में, मैं थोड़ा हैरानी जताते हुऐ बोला। वहां थोड़ा मुस्कुरा के बोला "तुम इंसानों के कदम यहां पढ़ते ही तुम इंसान हैवान बन जाओगे और इस सुंदर वादी को उजाड़ कर वीरान कर देंगे। यहां मौजूद पशु-पक्षी पेड़-पौधों और किट-पतंगों को उनके घर से बेघर कर दोगे। मैं उसकी बातों को सुनकर सोचा ये कह तो सही राह हैं। हम इंसान अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकते हैं। अच्छा-अच्छा ठीक हैं मैं अंदर नहीं जाता। परंतु आप अपना परिचय तो बता दीजिए।
"वह ठहाका मारकर हंसते हुए बोला तुम इंसान भी ना उससे ही उसका परिचय पूछ रहे हो। जिसकी वजह से पूरी दुनियां परेशान हैं।" उसकी बातों को सुनकर मैंने अपनी दिमाग का घोड़ा दौड़ाया…. ओ तेरी ये तो कोरोना वायरस हैं जिसे ढूंढने के लिए मैं इतने दिन से भटक रहा हूं। मैंने अपने दिमाग के घोड़े की लगाम को खींचा और उनसे बोला तो आप वहीं हो जिनसे सारी दुनियां को पिंजरे में बंद करवा दिया इस डर से की आप उनके शरीर मैं न घुस जाओ यानी के आप ही हो वो कोरोना वायरस, वो कोविड-19 जिसने पूरी दुनिया मैं हाहाकार मचा रखी हैं।
"हां भाई हां मैं ही वो सुरमा कहो या नमूना हुं जिसने दुनिया में तांडव मचा रखी हैं"।
मैं कब से आपको ढूंढ रहा हूं और आप मिले भी तो कहा इस वीरान जगह। मेरी बातों को सुनकर कोरोना वायरस को गुस्सा आया होगा इसलिए वो थोड़ा अलग ही टोन में बोला "अच्छा ये जगह वीरान तो फिर वो जगह किया हैं जिस जगह से तुम आए हों और यहां की सौंदर्य को देखकर किस तरह मुग्ध होकर वावले की तरह भाग रहे थे"। उनको इस तरह बोलता हुआ देखकर मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ और मैंने उनसे अपनी गलती की माफी मांगी।
फिर उन्होंने मुझसे पूछा "चलो अपने आने का कारण बताओ। दुनिया मुझसे डरकर अपने-अपने घरों में दुबक गए या उन्हें दुबकने पर मजबूर किया जा रहा हैं। तुम किस मिट्टी के बने हों जो मुझे अपनी मौत को डुंडते हुए मुझ तक पहुंच गए।"
मौत का डर अब मुझे नहीं रहा। वैसे भी मेरे जिंदगी के अब दिन ही कितने बचे जितना जीना था जी लिया। अब अगर मार भी गया तो कोई अफसोस नहीं। थोड़ा मजाकिया लहजे में मैने ये बातें कहीं और अंत में अपने आने का करण बताया कि मुझे आप से कुछ सवालों के जवाब चाहिए।
"बड़ा ही गजब के बंदे हो लोग मुझसे पीछा छुड़ाने के लिए पता नही किया-किया जुगाड लगा रहे हैं। एक आप हों खुद ही अपने मौत को ढूंढते हुए उसके पास पहुंच गए हों। बड़ा ही दिलेर और बहादुर बंदे हो। तुमसे मिलकर ये बंदा खुश हूं। वैसे मैं किसी के सवाल का जवाब देना जरूरी नहीं समझता। फिर भी मैं तुम्हारे एक सवाल का जवाब दूंगा। तो जो भी पूछना सोच समझ कर ही पूछना"।
"अपने सही कहा हम इंसान बड़े जुगाड़ू होते हैं। परेशानी कितनी भी बडी हो और कितनी ही जटिल हो। कुछ न कुछ जुगाड लगाकर उससे निकलने का रस्ता ढूंढ ही लेते हैं। मैं भी कुछ न कुछ जुगाड लगाकर आपसे अपने सारे सवालों का जवाब ले ही लुंगा"।
"अच्छा-अच्छा ठीक हैं जो जुगाड भिड़ना हैं भिड़ा लेना और जल्दी से अपना सवाल पूछो। आखिर मुझे अपना काम भी तो करना हैं। जिस काम को करने के लिए मुझे बनाया गया हैं। भले ही तुम इंसान अपना काम ईमानदारी से करो चाहे न करो, परन्तु मुझे अपना काम ईमानदारी से करना हैं"।
"ठीक हैं मैं पूछता हूं। ये तो नाइंसाफी हैं। आपसे कितना कुछ पूछना हैं वो भी एक ही सवाल में तोड़ा तो सोचने का समय दो"।
"ठीक हैं सोच लो मैं तुम्हें दस मिनट का समय देता हू। जितना अच्छे से सोच सकते हो सोच लो"।
उनकी बातों को सुनकर मैंने अपने दिमाग के घोड़े को दौड़ना शुरू किया। उसकी लगाम को मैने खींच कर पकड़ ली और उसे सरपट दौड़ाने लगा क्यू की मुझे बहुत ही कम समय में बहुत कुछ सोचना। और उन्हें सीमित शब्दों में एक सवाल का रूप देना था। अपने दिमाग के घोड़े को सरपट दौड़ाने के बाद एक जगह रोककर एक चंचल मुस्कुराहट के साथ मैंने अपना सवाल उनसे किया।
"आप जैसा खतरनाक बीमारी, जो महामारी का रूप ले चुका हैं, इसके फैलने के पीछे किसकी गलती हैं"?
मेरे सवाल को सुनकर कोरोना वायरस के चेहरे पर जो मुस्कान आई उसे देखकर मैं ये तय नहीं कर पा रहा हूं कि इसके पिछे किया वजह हैं। ये मेरे सवाल से हैरान, परेशान या फिर खुश हैं। उनकी बातों को सुनकर मरे चेहरे पे आई मुस्कान ऐसे गायब हुई जैसे गधे के सर से सिंग। उनकी बातों ने तो मेरे ही तोते उड़ा दिए।
"कोरोना वायरस से पूछे सवाल का जवाब"
तुम इंसान क्या समझते हो अपने आप को बहुत होशियार, बहुत बुद्धिमान या फिर तुम ये समझते हो की तुम जो कर सकते हो वो कोई और नहीं कर सकता। तुम जाना चाहते हों न की मेरे फैलने के पिछे की वजह किया है और गलती किसकी हैं। तो सुनो अगर गलती किसी की हैं तो वो हो तुम इंसान हां तुम इंसान की गलती की वजह से ही मैं फैला हूं और इतनी बडी महामारी का रूप ले चुका हूं।
"Yes mr. Riporter Coronavirus- A Human Mistake"
आज मैं तुम इंसानों को तुम्हारी गलती का एहसास कराऊंगा। तुम लोग इंसान कहलाने के लायक नहीं हों। तुम लोगो ने अपने फायदे के लिए मुझे बनाया और फैलाया। तुम इंसान समझते हो की तुम्हारी साइंस बहुत तरक्की कर चुके हैं। तुम्हारे यही साइंस की तरक्की ही तुम्हारे लिए वरदान नहीं अभिशाप बन चुका हैं।
जितना तुम्हारा ये साइंस विकसित होता गया उतना ही तुम इंसान कुरूर, अभद्र और अमानवीय व्यवहार करने लगें। ठीक हैं तुमने अपनी साइंस को विकसित किया अच्छी बात हैं और होना भी चाहिए क्योंकि धरती पर मानव ही वो प्राणी हैं। जो अच्छे बुरे कर्मो में फर्क करना जानता हैं। हर तरह की भावनाओं को जान व समझने के काबिल हैं। तुम लोगो ने किया, किया अपनी संबेदनाओ को कही छुपा दिए और कृत्रिम यन्त्र की तरह व्यवहार करने लगें।
तुम्हारे विकसित साइंस का प्रयोग जन कल्याण के लिए काम अपने फायदे के लिए करने लगें। तुमने इसी फायदे के चलते अपने ही शरीर में जहर के वृक्ष वो लिए जो तुम्हे पल-पल असाध्य रोगों की तरफ लिए जा रहा हैं। जिसमें थोड़ा सा योगदान मैंने भी दे दिए तो किया बुरा किया। आखिर मुझे बनाया भी तो तुम इंसानों ने ही हैं। मैं ही अपना काम सही ढंग से नहीं करूंगा तो मुझमें और तुम इंसान रूपी दानव में किया फर्क रह जाएगा।
कोरोना वायरस की ये बातें तरकश से निकले उस तीर की तरह मुझे चुभ रहा हैं और ऐसा जख्म दे रहा हैं। जिससे मैं मरूंगा तो नहीं लेकिन ये जख्म लंबे समय तक मेरे शरीर में अपने होने का एहसास कराता रहेगा। मैं शर्म से नज़रे झुकाएं उनकी बातों पर विचार विमर्श कर ही रहा था की एक बार फ़िर उनके तरकश से निकले तीर मेरे शरीर पर गहरे घाव देने लगे।
किया हुआ इतनी सी बातों से ही नज़रे झुक गई। अभी तो तुम इंसानों के कुकर्मों सूची इतनी लंबी हैं की में सब चाहकर भी तुम्हें बता नहीं सकता लेकिन मैं तुम्हे तब तक बताता रहूंगा। जब तक की तुम अपने मूंह से न कहो की बस रुक जा मेरे बाप और कितना अपना ये एफएम रेडियो चैनल बजाता रहेगा अब अल्प नहीं पूर्ण विराम ले ले।
तुम मानवों ने सारे काम दानवों वाले किया। जहां मन किया वहां अपने ऐशो आराम के साधन बनते गाए। इसी तरह पैर पशार्ते हुऐ। जंगलों को बिल्कुल तहस नहस कर दिए। विचारे पशु-पक्षी कीट-पतंगें और पेड़-पौंधें जिनका घर ये जंगल हुआ करता था। तुम इंसान रूपी दानवों ने इन विचारों का घर ही छीन लिए। अगर तुम यही रुक जाते तो कितना अच्छा होता लेकिन नहीं तुम रुकने वालों में से थोड़ी हो।
तुम आगे को बढ़ते गए और अपने रास्ते में आने वाले हर उस चीज को तहस-नहस करते गए जो तुम्हारे तरक्की के रास्ते का रोड़ा बना। तुमने विचारे इन पशु-पक्षी, किट-पतंगों और पेड़-पौंधों को भी नहीं छोड़ा। इन्हे मारकर और काटकर बड़े ही चाव से ऐसे खाने लगें जैसे तुम्हे जीवन में कभी खाना नसीब ही नहीं हुआ। तुम मानव इन पर इस तरह टूट पड़े की विचारे या तो विलुप्त हो गए या विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए।
तुम मानवों ने पिछे मुडकर देखना और रुककर चलना शायद ही कभी सीखा हों। अगर थोड़ा रुककर पिछे मूढ़कर देखते तो तुम्हे पता चलता की तुम मानवों ने ओर अधिक पाने की चाह में धरती का कितना विनाश और धरती के अधिकांश हिस्से को बंजर कर दिया हैं। तुम मानवों ने धरती पर जहां तहां कचड़ा फैला रखा हैं। तुम सब ने धरती पर इतना कचरा फैलाया हैं कि पूरा धरती ही कचड़ा घर बन गया हैं। जहां रहकर तुम मानव भी कचड़ा ही बन गए हों।
मेरे इस तरह फैलकर महामारी बनाने के पिछे भी तुम मानवों की ही गलती हैं। जब तुम्हें पता चल गया था कि मुझे पूरी दुनियां को बीमार करने के लिए कुछ दानवीय प्रवृत्ति वाले लोगों ने अपने फायदे के लिए मेरा इस्तेमाल किया जा रहा हैं। फिर भी तुम मानवों ने उसके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया। जो भी ऐक्शन लिया वो भी आंशिक रूप से लिया क्यूंकि तुम मानवों को इसमें अपना ही फायदा दिखा। तुम्हे महामारी का समय एक बिज़नेस opportunity के रूप में दिख। तुम मानवों को लगा की यहीं वो समय हैं जब तुम ज्यादा से ज्यादा पैसे कमा सकते हैं।
तुम मानव अपने आप को टार्जन या फ़िर खाली महाबिल समझते हो किया। जो कि ये बीमारी तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ सकता। इसलिए बिना किसी प्रिक्यूशन के छीना चौड़ा किए बाहर घूम रहें हों । तुम लोगों ने अपनी ही गलती से बीमारी को महामारी का रूप दे दिए। तुम खुद तो मारने के कगार पर पहुंच रहें हो संग में दूसरे को भी ले जा रहें हों। सम्हाल जाओ इंसानों और कब तक दानवों जैसा व्यवहार करेंगे।
कोरोना वायरस की ये जली कटी बाते जो पूर्ण तह सत्य हैं। जिसे सुनकर मेरा सर शर्म से झुका जा रहा हैं। मैं किया खोजने निकला था और मुझे मिला किया। सच में हम इंसान ने अपने फायदे के लिए बहुत गलतियां की हैं। इन गलतियों की भरपाई करना शायद ही संभव हों और इन गलतियों की भरपाई करने की कोशिश की जाए तो सादिया बीत जाएंगी भरपाई करते करते फिर भी पूरा न हों।
मैं और नहीं सुन पा रहा था। मेरी भावनाएं जबाव दे चुकी थीं। मेरी आत्मा क्षत विक्षत होकर ग्लानी से भर चुका था। मैं दोनों हाथ जोड़कर, घुटनों के बाल बैठकर, बिनती पूर्ण स्वर में, हे महाशय थोड़ा रहम कीजिए और कृपया करके रुक जाइए। मुझे अपने प्रश्नों का जवाब मिल चुका हैं कि कोरोना वायरस फैलने के पिछे हम मानवों की ही गलती हैं। "Coronavirus- A Human Mistake"
मुझे नहीं पता की हम मानवों ने जो गलतियां की हैं। उसकी हम कितनी भरपाई कर पाएंगे या फिर भरपाई ही नही कर पाएंगे। परंतु अब आप मुझे जाने की अनुमति दे। मुझे अपने प्रश्नों का सही और सटीक उत्तर मिल चुका हैं।
"अच्छा ठीक हैं। मैं अपने वादे के अनुसार रुक जाता हूं। तुम्हारे कहने पर परंतु जानें से पहले तुम मुझे अपने साथ तो लेते जाओ। वरना तुम लोगो से कहते फिरोगे की तुम कोरोना वायरस के वंशज हो जिस वजह से तुम पर कोरोना वायरस का कोई प्रभाव नहीं हुआ।"
कोरोना वायरस को अपने शरीर में धारण कर अपने घर की ओर निकला। रास्ते में जब कोरोना वायरस का प्रभाव मेरे शरीर मैं बड़ गया तो मैं मूर्छित होकर गिर गया। जब मैं होश में आया तो मैं एक हॉस्पिटल में था। जहां पर लेटे-लेटे मैं अपने संग घाटी घटनाओं के बारे में सोचते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि"Coronavirus- A Human Mistake" की वजह से फैला हैं और ये बीमारी किसी के सगे नही होते। ये किसी को भी अपने चपेट में ले लेते हैं।
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Written by- Deep The Rainbow
Coronavirus- "A Human Mistake"
आज मैं उस स्थिति में पहुंच गया हूं । जहां से सिर्फ एक ही रास्ता शेष बचता है। वो हैं अंतिम रास्ता, जिस पर चलकर मुझे अपनी अंतिम यात्रा पूर्ण करनी हैं। बड़े बुजुर्गों को कहते सुना हैं, कि जब इंसान मिरुत्तु सईया पे लेटा होता हैं तो उसे अपने द्वारा किए हर अच्छे-बुरे कर्म याद आने लगता हैं । परंतु मेरे संग ऐसा कुछ नहीं हो रहा हैं। अगर कुछ हो रहा हैं तो वो ये कि में आपने आस -पास चल रही गतिविधि को देखकर हैरान, परेशान, और हताश हूं।
मैं हैरान इसलिए हुं कि मुझें जिस कमरे में रखा गया हैं। उसकी वातावरण और स्थिति मेरे रहने अनुकूल नहीं हैं, फिर भी मुझे यहां रखा गया हैं। परेशान होने का कारण मेरा खुद का ही शरीर हैं। जी पल-पल मुझे असहनीय पीड़ा का अनुभव करा रहीं हैं। मेरा शरीर मुझे पल-पल मौत के करीब ले जाने का अहसास करा रही हैं, और हताश इसलिए हूं कि मेरे वो शुभचिंतक , परिवार और प्रियजन जो मेरे सुखद पलों में हमेशा बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया करते थे आज मेरे दुखद घड़ी मे मेरे पास नहीं है।
मुझे अस्पताल की जिस कमरे में रखा गया हैं। वहां से सीलन की सुगंध कहो या दुर्गन्ध भरपूर मात्रा में आ रहीं हैं। दीवारों की जर्जर हालत, जिसमें फफूंदी के हरे, काले और पीले धब्बें ये बया कर रहीं हैं। जैसे अभी-अभी रंगो का त्योहार होली मनाई गई हो और इंसानी शरीर को छोड़ कर, होली के रंगों से इन दीवारों को ही रंग दिया गया हैं। जिस बेड पर मैं लेटा हूं,उसका हल बुजुर्ग व्यक्ति के दांतों की तरह हैं जो उम्र के इस पड़ाव में उसका साथ "धीरे-धीरे","धीरे-धीरे" छोड़ रहा हैं।
मुझे ठहराए गए कमरे की दशा देखकर मैं। भलीभाती जान गया हूं कि मैं वर्तमान में मुंसीपाल्टी की किसी थर्ड क्लास अस्पताल की किसी थर्ड क्लास कमरे में पड़ा हूं। मैं जितना हैरान कमरे को देखकर हुआ उससे कही ज्यादा हैरान अपने आस -पास चल रहीं गतिविधि को देखकर हुआ। मेरे अलावा उस कमरे में तीन मरीज और थे । ओर हमारा बैंड कमरे के चार कोने में लगे हुए थे। हमारे चारों ओर एक पारदर्शी परत या कवर चढ़ा हुआ हैं। जिसमें गोलाकार छेद, इतने बड़े बने हुऐ हैं कि उसमे से हाथ आरपार किया जा सकें। इन छेदों को देखकर एक बात मेरे मस्तिष्क में कीड़े की तरह कुलबुला उठा कि इससे कुछ बड़े आकार के छेद हम कमरे के दीवारों में रोशनदान के तौर पर बनाया करते हैं। परन्तु इसमें रोशनदान की क्या जरूरत है? यहां तो पहले से ही इतनी पारदर्शी हैं की इसमें से रोशनी स्वतः ही आरपार हो रहा हैं फिर रोशनदान की क्या जरूरत है।
मेरे मस्तिष्क में उछाल रही कीड़ा उस छेद की उपयोगिता देखकर स्वतः ही शांत हों गई। जब एक डॉक्टर ने हमारे कमरे में परवेश किया और इन्हीं छेदों में से हाथ डाल, एक मरीज का परीक्षण करने लगा। कुछ देर परीक्षण करने के बाद डॉक्टर ने जो बोला उसे सुनकर मेरी सदमे से ह्रदय गति रुकते - रुकते रहा गई। डॉक्टर जी ने अपने साथ आई नर्स से बोला इनकी कोरोना वायरस टेस्ट रिपोर्ट कैसा हैं? एवं इनको कोविड-19 की कौन सी वेरिएंट हैं।
डॉक्टर और नर्स बहन जी ने आपस में कुछ कुसरपुशर कि उसके बाद डॉक्टर के चेहरे पर जो सिकन आई उसे देखकर में समझ गया की हालत बहुत ही गम्भीर है। एक-एक कर डॉक्टर और नर्स बहन जी ने हम चारों मरीजों को देखा। हमे देखने के बाद डॉक्टर के चेहरे पर एक जैसा भाव आया। डॉक्टर साहब के हाव-भाव को देखकर में समझ गया की हमारी हालत कुछ ज्यादा ही खराब हैं और हमारे पास गिनती के कुछ दिन बचे हैं। खैर डाक्टर साहब और नर्स बहनजी हमारे परीक्षण के बाद हमारे कमरे से निकल गए। निकलकर कहा गए ये में तो देख नहीं पाया पर जहां भी गाएं होंगे अच्छी जगह ही गाएं होंगे।
बरहाल में अपनी जिंदगी के बाचे गिने चुने दिनों को कैसे कटे जाए। इसी के बारे में सोचते हुए मैं अपने बीते जिंदगी के सुनहरे दिनों को याद कर रहा था। याद करते-करते मुझे वो पल याद आया जब मैं कोरोना वायरस की जांच पड़ताल करने घर से निकला था। इस पल को याद करते ही मेरे मुखमंडल पर एक मीठी सी मुस्कान आई ओर मैं उन यादों में खोता चला गया……..
फ्लैशबैक…….
मैं इस समय घर पर मौजूद हूं। मैं पेशे से एक न्यूज़ रिपोर्टर हूं। जो की सेवानिवृत्त (Retired) हो चुका हूं। इस समय मेरा पूरा परिवार, मेरे साथ घर पर मौजूद हैं। हालांकि ऐसा बहुत ही कम होता है। जब मैं और मेरा पूरा परिवार एक साथ, एक ही छत के नीचे, एक ही वक्त में हों। अगर ऐसा हुआ है तो वो सिर्फ और सिर्फ कोरोना वायरस की वजह से । जहां लोग कोरोना वायरस को अपशब्द और बुरा कह रहे हैं। वहीं लोग कोरोना वायरस की अच्छाई को नहीं देख पा रहे हैं।
कोविड-19 के फैलने की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ हैं। लॉकडाउन लगने की वजह से सारे काम धंधे और ऑफिस बंद हैं। सब कुछ बंद होने की वजह से लोग अपने अपने घरों में परिवार के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड कर रहे हैं। इसलिए में भी अपने परिवार के साथ समय बिता रहा हूं और इसके लिए हमें कोरोना वायरस को धन्यवाद कहना चाहिए ।
मैं अपने कमरे में बैठे-बैठे बोर हो रहा था तो सोचा चलकर बैठक में बैठकर परिवार के साथ टीवी देखने का आनंद लिया जाए। ताकि पता तो चले न्यूज़ चैनल वाले कौन सा न्यूज़ फ़्लैश कर रहें हैं। या फिर देश की दशा कोविड-19 की वजह से कितनी खराब हैं, ये बड़ा चढ़ा कर दिखा
रहें हैं ।
बैठक में पहुंच कर वहां की दशा देखकर ही मैं सोच में पड़ गया कि वास्तव में ये मेरा ही घर हैं। वहां कि दशा ऐसी हैं। जैसे अभी-अभी हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच बहुत ही भीषण युद्ध हुआ हों और मालवा के रूप में तकिए के खोल और उसमे भरी हुईं रूई हर तरफ फैली हुई हैं। इतना भीषण युद्ध मेरे घर के ये सिपाही कर सकते हैं तो ये सब यहां किया कर रहे हैं । इनको तो हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बॉर्डर पर होना चाहिए। इनके हाथ में बंदूक के जगह तकिए थमाकर कहना चाहिए जाओ मेरे सुरवीरो दुश्मन पर फतह हासिल करके ही आना।
वहां की दशा देखकर एक बार को तो मैंने सोचा छोड़ो यार टीवी को जाओ भूल ओर अपने कमरे में जाकर मनोरंजन का कोई दूसरा विकल्प ढूंढते हैं। अभी मैंने वापस जाने का मन बनाया ही था की मेरे घर की सबसे छोटी सदस्य मेरी तीन साल की पोती दौड़ती हुईं मेरे पास आईं और अपनी टूटी -फूटी तोतली बोली से... दाता जी, दाता जी गोती में नो न । मैंने भी उसकी बोली सुनके मुस्कुराकर कहा मैं तो गुड़िया को गोदी मे नहीं लूगा। मेरे ऐसा कहते ही वहीं पर लोट-पोट करते हुए रोने लगा। उसको रोता हुआ देखकर जल्दी से उसे उठाकर गोद में ले लिया। मेरे गोद में आते ही फिर से अपनी टूटी-फूटी बोली से बोलने लगी…. अपने तो कहा था आप मुझे गोती नही लोगो फिर क्यों लिया बोलो ।
मेरे पास उसके इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। मैंने उसकी तरफ देखकर, दिल की गहराई से मीठी सी मुस्कान के साथ उसकी माथे को चूम कर अपने सीने से लगा लिया। हम दोनों के इस क्रियाकलाप को हमारे घर के बाकी सदस्य ऐसे देख रहे हैं। जैसे टीवी पर भरत मिलाप का छीन चल रहा है। क्या देख रहे हो ... मेरे पूछते ही सब ने दुबारा अपना रुख टीवी की तरफ कर ली। मैं भी जाकर, एक आरामदायक जगह देख कर बैठ गया।
किया देख रहें हो …… मेरे पूछते ही। सहसा मुझे लगा की मैं अपने घर पर नहीं मछली बाजार आया हूं और सभी दुकानदार मुझे अपना माल बेचने के लिए तरह -तरह के प्रलोभन दे रहे हैं। मैंने अपने मस्तिष्क को सही जगह लाकर बिठाया और थोड़ा तेज आवाज, डटने के लहजे में कहा। आप सब चुप करिए और एक-एक करकर बोलिए। तभी मेरे एकमात्र जानेजीगर, अर्धांगनी, धर्मपत्नी जी बोल पढ़ती हैं कि मुझे तो रामायण देखना हैं। रामायण में सीता हरण का पाठ आने वाला हैं। में मन ही मन बोला यहां अपना सब कुछ, इस कोरोना वायरस की वजह से हरण होने वाला हैं ओर इनको सीता हरण देखने की पड़ी हैं।
अभी मैं अपनी धर्मपत्नी की बातो पर विचार कर ही रह था की मेरे घर की दोनों बहुएं एक साथ बोल पड़ी। हमे तो धारावाहिक देखना हैं। ये रिश्ता किया कहलाता हैं । जैसी ही ये नाम मेरे कर्ण पटल से होते हुए मेरे मस्तिष्क तक पहुंचा। बैसे ही बारूद के ढेर को चिंगारी मिली। चिंगारी मिलते ही बारूद का ढेर भड़ाम्म से फट पड़ा….. ये बही धारावाहिक हैं न जो पिछले पंद्रह सालों से भी ज्यादा समय से चल रहा हैं। पाता नहीं इस धारावाहिक में आप महिलाओं को कौन सी घुट्टी पिने को मिलता हैं। जिसे पीने को आप हर वक्त लालायित रहती हैं । मेरे तो इस धारावाहिक का कुछ पल्ले नहीं पड़ता ।
मेरे ऐसा बोलते ही दोनों बहुओं के चेहरे का रंग फीका पड़ गया। उनकी मानो दशा समझ कर मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ। मैं अपनी ग्लानि से पर पाने की कोशिश कर ही रह था की मेरे गोद में बैठी मेरी पोती बोल पड़ीं। दाता जी, दाता जी नुझे ना नार्टन देखना हैं। मैंने तुरंत ही रिमोट उठाया ओर कार्टून चैनल लगा दिए। कार्टून चैनल लगाते ही ऐसे खुश हो गया मानो उसे उसका पसंदीदा खिलौना मिल गया हो।
टीवी पर कार्टून प्रोग्राम चलता देख कर घर के बाकी सदस्य एक- एक कर अपने-अपने कमरे में चले गए। मैं अपनी पोती के संग कार्टून प्रोग्राम का मजा लेने लगा। कुछ समय पश्चात मेरी पोती टीवी देखते-देखते मेरे गोदी में ही सो गई। उसको सोता हुआ देख कर मैंने चैनल को बदला और न्यूज़ चैनल लगाकर आज के गरमा- गर्म और मसालेदार खबर देखने लगा। सभी टीवी चैनल अपनी-अपनी टीआरपी बढ़ाने में लगे हुए हैं। इसी जद्दोजहद मे न्यूज़ चैनल वाले जो न्यूज़ फ्लैश कर रहें हैं उसे देखकर मैं खुद हैरान हुं। मैं खुद एक बहरीन पत्रकार हूं। आज के ये पत्रकार जिस तरह का न्यूज़ जुटा रहें हैं। ये इनके अथक प्रयास का नतीजा हैं या सच्चाई कुछ और ही हैं।
दरासल टीवी पर कुछ इस तरह का न्यूज़ चलाया जा रहा हैं। कभी किसी को मसीहा, कभी किसी को दरिन्दा दिखाया जा रहा हैं। मैं अपने सोच के अथाह सागर में डूबकर गहन विचार विमर्श में लगा हुआ था की मेरे बेटा मुझसे कहता हैं । आप इतनी गहराई से किया सोच रहें हैं। मुझे कुछ जवाब न देता देखकर मुझे इस तरह हिलाया डुलाया जाता हैं। जैसे मैं कोई जमीन में शक्ति से गाढ़ा हुआ कोई खुटा हूं। जिसे वर्षों बाद हिला डुला कर बाहर निकाला जा रहा हो। बरहाल जो भी हो मैं इसी हिल ढुल की वजह से अचंभित होकर वर्तमान में लौट आता हु।
मुझे इस तरह अचंभित होता देखकर बेटा मुझसे पूछता हैं आप ऐसे क्यू रिएक्ट कर रहे हैं। मैं भी तैश में आकर बोल देता हूं मैं कुछ भी रिएक्ट करू तुम्हे उससे किया। लेकिन तुम मुझे ऐसे क्यू हिला डुला रहें थे जैसे मैं…… "अरे वो आप बिल्कुल स्टेचू के माफिक बैठे थे न आपकी शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही थी न आप पलकें झपका रहें थे। आप का मुंह खुला हुआ था। आप टीवी की तरफ देख रहें थे तो मैंने सोचा आप को हार्ट अटैक आया होगा ओर आप….."तो तुम ने सोचा मैं तो हार्ट अटैक से निकल लिया मेरा तो ऊपर का टिकट कट चुका हैं। कहीं यमराज जी मुझे लेना तो नहीं भूल गाए हां, हां, हां"।
किया पापा आप भी ना मजाक करने की आदत अपकी अभी तक नहीं गया। बेटा यही तो वो पल हैं जो जिंदगी को और हसीन बनाती हैं। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में इन छोटे-छोटे लम्हों को हम जीना ही भूल गए। किया पापा आप भी किन बातो को लेकर बैठ गए हैं। छोड़िए इन सब बातों को आप ये बताओ आप टीवी देखते हुए क्या सोच रहे थे ? आज कल के बच्चे कुछ ज्यादा ही समझदार हो गए हैं। ये इन सब बातों को तवज्जो ही नहीं देते। कोई नहीं जब ये मेरे उम्र में आएंगे तब इन्हे समझ में आएगा।
मैं भी अपनी बातों को ज्यादा तूल न देते हुए । उसके द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देना ही ठीक समझा। अरे बेटा जी इन पत्रकारों को अपना काम ईमानदारी से करता हुआ देखकर मेरे अंदर का खोजी कीड़ा कुलबुला रह है और मैं सोच रहा हु कि….. आप न आपने सोच को यहीं विराम दो और आपके अंदर कुलबुला रहें खोजी कीड़े को जहर देकर मार दो हां, हां, हां। वाह बेटा वाह मुझे टोकते हो और खुद ही मजाक करते हों। "आप ये सब छोड़िए और ये बताए की आप सोच किया रहें थे।" "मैं तो ये सोच रहा हु की अपने खोजी कीड़े को जहर दे ही दू मतलब की में सोच रहा हु की दुनिया में चल रहीं भयंकर महामारी, इस संकट की घड़ी में मैं भी अपना कुछ योगदान दू।
अच्छा आप क्या योगदान देंगे? बेटा मैं सोच रहा हूं की ये जो कुछ भी टीवी पर दिखाया जा रहा हैं। ये सब सच में हों रहा हैं या फिर हो कुछ ओर रहा हैं, और दिखा कुछ और रहा है। "मतलब की आप सच्चाई का पता करना चाहते हैं। तब तो आप को बाहर जाना पड़ेगा। परंतु बाहर जाना बंद हैं। लॉकडाउन जो लगा हैं। जो भी लॉकडाउन में बाहर जा रहे हैं। पुलिस वाले उसके शरीर पर आपने दंडात्मक अस्त्र से वो कहर बरसा रहें हैं। की कहीं दिनों तक ये कहर उसे न उठने दे रहा हैं न बैठने दे रहा हैं और तासरीफ की तो वो हालत कर रहें हैं कि नित्य कर्म करना दूभर हो रहा है। समझे मरे खोजी कीड़े वाले पत्रकार महाशय।
अरे बेटा जी आप समझे नहीं वो ऐसा हैं की इन्होंने कुछ स्पेशल लोगों को छूट दे रखी हैं। शायद उन्हें कोरोना नहीं हो सकता । वो लोग कहीं भी बिना रोक टोक के आ जा सकते हैं। अपना काम भी मौज मस्ती करते हुए कर सकते हैं। आप का न पिताजी उम्र के साथ-साथ लगता हैं। अपके स्मरण यंत्र का स्क्रू ढीला होकर कही गिर गया हैं। ऐसा कैसे हो सकता हैं की बाहर घूमने से कुछ लोगों को कोविड -19 का असर होगा और कुछ लोगो को नहीं होगा।
अब कुछ भी हो देखने में तो यहीं आ रहा हैं। शायद जो लोग बाहर घूम रहें हैं। वो लोग कोविड-19 के वंशज हो। इसलिए उन्हें कोरोना नही हो रहा हैं। मुझे भी बाहर जाकर देखना चाहिए। मेरे बाहर जाने से कोरोना वायरस मुझे होता हैं तो ये पक्का हो जायेगा की वो लोग कोरोना वायरस के वंशज हैं। मैं नहीं।
ठीक हैं पापा आपको जो करना हैं कीजिए मैं आप को रोकूंगा नहीं परंतु जाने से पहले बाकी घर वालो से एक बार पूछ लो वो किया कहते हैं। मेरे बाहर जानें की बात से मेरे परिवार के सभी सदस्य अपना एक मत नहीं बना पा रहें हैं। इस गहमागहमी को देखकर एक बार तो मुझे लगा की मेरे बाहर जाने की प्रस्ताव को कही यूएनओ में न ले जाना पड़े। अरे ये वही यूएनओ हैं जहां पाकिस्तान बार-बार कश्मीर मुद्दा लेकर जाता हैं। ओर बार-बार कहता हैं की बरखुरदार ये हिन्दुस्तान को रोकिए ये हर बार दिल्ली से एक ही चप्पल फेंक कर मरता हैं। दूसरा भी फेंककर मरे जिससे मुझे पहनने और खाने के लिए एक जोड़ी चप्पल तो मिलेगा।
खैर मेरे मुद्दा यूएनओ तक नहीं ले जाना पड़ा। मेरे घर में ही इस मुद्दे का हल निकल आया। मेरे घर की मुखयाईन द्वारा कुछ शर्तों के साथ बाहर जाने की अनुमति दे दी गई। जिस दिन मुझे जाना था। वहां दिन नजदीक आते ही मैं अपने सारे साजो सामान और जरूरी पिरिकॉशन (जो मुझे कोरोना वायरस के प्रकोप से बचाएगा) लेकर मैं घर से निकलने के लिए तैयार हो गया। जाते समय मेरे परिवार के सभी सदस्य मुझे ऐसे बिदा कर रहें थे। जैसे मैं कोई जंग लड़ने जा रहा हूं और कभी लौटकर घर ही नहीं आऊंगा।
बरहाल मैं सब से विदा लेकर अपने प्राइवेट प्रॉपर्टी से निकल कर जैसे ही सरकारी प्रापर्टी में कदम रखा वैसे ही उज्जठ खाकर नीचे गिर पड़ा। गिरते ही मैं सोचने लगा किसकी इतनी हिम्मत जो मेरे टांग में टांग अड़ा कर गिरा दिया। मैं दुनिया को हिला देने वाला पत्रकार हूं। ये किसकी गुस्ताखी हैं जो मुझे ही हिला डाला। ये सोच कर मैं उस शख्स को देखने के लिए खड़ा हुआ । खड़ा होते ही जो मुझे दिखा उसे देखकर खुद पर ही हंसी आ गई की इन महाशय ने मुझे हिला डाला ।
दरअसल हुआ ये की मैं घर से निकल कर रोड पर पहुंचते ही मेरे पैर के नीचे एक रोड़ा आया। जिससे फिसल कर मैं गिर गया। गिरते ही मैं पूरा का पूरा हिल गया। हम चांद पर तो पहुंच गए, मंगल के भी चक्कर लगा लिए परंतु हमारे देश की ये सड़के जिनकी खस्ताहाल ये बयां करती हैं की इनका हमारे जीवन में कोई औचित्य ही नही हैं। हम दूसरे ग्रह में खड्डा खोदने से पहले अपने देश की सड़को पे मौजूद खड्डों को ही बार लेते।
इन सब बातो के बवांडार को वही छोड़ कर में आगे को बढ़ चला। जैसे-जैसे मैं आगे को बढ़ने लगा वैसे-वैसे दृश्य बड़ा ही विहंगम होने लगा। सड़के सुनसान हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ हैं। ऐसा दृश्य देखकर एक बरगी तो मुझे लगा शायद धरती पर कोई अकाल पड़ा हो और सब कुछ तहस-नहस कर दिया हो। मैं इस सन्नाटे को चीरता हुआ अपनी मंजिल की तरफ़ बढ़ता रहा। सुबह का चला हूं अब तो दोपहर भी हों गईं परंतु मुझे कोई ऐसा न मिला जिससे मैं कुछ पूछ सकू।
दोपहर की ये चिलचिलाती धूप और गर्मी ने मेरा हाल बेहाल कर रखा हैं। मैं हताश-निराश छाव और पानी की तलाश में हाईवे पर सरपट दौड़े जा रहा हु कि कहीं तो मुझे थोड़ी छाव और पानी मिले। जिससे मुझे इस उमस भरी गर्मी से थोड़ी राहत मिले। एका-एक मेरे दिमाग का घोड़ा दौड़ा कि मुझे हाईवे पर कुछ नहीं मिलने वाला। मुझे हाईवे छोड़ कर कोई बस्ती या गांव का रास्ता ढूंढना होगा। दिमाग के घोड़े को इस तरह दौड़ता देख मैं भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। चलते-चलते मैं एक चौराहे पर पहुंचा।
चौराहे की नजारे देख कर मैं गहन विचार करने पर विवश हो गया कि ये हमारे देश का वो महकमा हैं। जिसपे हमेशा भ्रष्ट होने का टैग लगा रहता हैं। इन्हे अपनी जेब भरने की पढ़ी रहती हैं। चाहें कुछ भी हो जाए बस अपनी तोंद बढ़ना चाहिए बाकि सब भाड़ में जाए। इस मुस्तैदी से पुलिस वालों को काम करता हुए देखकर मेरा दिल बल्लियां उछलने लगा कि चलो ये लोग इस विपदा की घड़ी मे अपनी तोंद बढ़ने कि न सोच कर लोगों की भलाई के बारे में सोच रहे हैं ।
हुआ ये की पुलिस वालो ने कुछ गाड़ी वालों को रोक रखा हैं। शायद ये लोग सरकार द्वारा निर्धारित नियम का उल्लंघन कर शहर के अंदर प्रवेश कर रहें थे और इनको पोलिस वालो ने पकड़ लिया। सिर्फ पकड़ा ही नही उनपे भरी जुर्माना भी लगाया। कुछ नटवर लाल बनने की कोशिश कर रहे थे तो पुलिस वालो ने उनके चरण पादुका से लेकर कमर बंद तक की बहुत अच्छे से खबर ली। इस बीच एक पुलिस वाले की नज़र मुझपे पड़ीं … ,"अरे पत्रकार बाबू आप कहा चले आप को यहां कोई तड़कता-भड़कता न्यूज़ नही मिलेगा उसके लिए आप को कही और जाना पड़ेगा।"
मुझे कुछ तो मिला हैं लेकिन वो नहीं मिला जो मैं ढूंढ रहा हो… "ऐसा कौन सा मुक्ता माणिक ढूंढ रहे हैं जो आप को नहीं मिला अरे हां अभी यहां जो कुछ हुआ वो आपने रिकॉर्ड तो नहीं किया न अगर किया हो तो उसे टीवी पर प्रदर्शित न कीजियेगा नहीं तो वरना….. अरे-अरे ठहरिए मैंने यहां का कुछ भी रिकॉर्ड नही किया हैं।…. चलो अच्छा हुआ पुलिस वाला थोड़ा मुस्कुरा कर बोला। पुलिस वालो के पास बैठ कर थोड़ी देर आराम किया पानी पिया और आगे की सफर पर निकल पड़ा।
कई दिन हो गए मुझे चलते हुऐ लेकिन ये कोरोना वायरस का कहीं कुछ पता नहीं चल रहा है। चले भी तो कैसे वो कोई इंसान या कोई जानवर तो हैं नही जो मुझे ऐसे ही दिख जाए। वो तो एक न दिखने वाला वायरस हैं। जो सिर्फ सुक्ष्म दर्शी यन्त्र से ही देखा जा सकता हैं। मैंने ये तय किए की कुछ दिन और कोरोना वायरस को ढूंढूंगा। इस बिच मिला तो ठीक और न मिला तो भी ठीक मैं आपने घर लौट जाऊंगा। इसी फैसले के संग मैं चाल पड़ा। चलते-चलते मैं एक ऐसी जगह पहुंचा जहां से एक बहुत ही घना और खुबसूरत जंगल शुरू होता हैं।
इतना सुंदर वादी शांत वातावरण यहां पहुंच कर मेरा अशांत मन शीतल जल की तरह ठंडा हो गया। मैं शहर की इमारतों वाली जंगल से दूर प्रकृति की गोद में आकर मैं सब कुछ भूल गया की में किस लिए घर से निकला,कौन सा काम करने निकला था, किस को ढूंढने मैं निकला था। जिसे ढूंढते-ढूंढते मैं यहां आ पहुंचा। मैं दोनों हाथ फैलाए सर को ऊपर उठाए , शीतल मन्द-मंद चल रही वायु को महसूस करती हुई दौड़े जा रहा हूं। जैसे वर्षों बाद दो प्रेमी मिले हो और सब कुछ भूल कर एक दूसरे के बाहों में समा जाना चाहते हों।
मैं बदहवास बावला सा दौड़े जा रहा हु कि सहशाह मेरे कानों में एक आवाज गूंगी…." रुक जाओ तुम्हारा यहां आन वर्जित हैं"। आ रही आवाज को नजर अंदाज कर मैं बढ़ता रहा। फिर से दोबारा वही आवाज गूंजा मुझे न रुकता हुआ देखकर शायद उसे गुस्सा आ गया और मुझपर कुछ फैंक कर मारा जिससे मैं गिर गया। मुझे गिरा हुआ देखकर वहां मरे पास आया और बोला आप को एक बार बोलने पर समझ नही आता किया। मैं खड़ा होता हुआ बोल पडा कि ये जंगल हैं और यहां आने पर पाबंदी क्यू? यहां तो कोई भी आ जा सकता हैं।
"हां यहां कोई भी आ जा सकता हैं। परंतु तुम इंसान नहीं आ सकते हो" पर हम इंसान क्यू नही आ सकते इतनी सुंदर वादी में, मैं थोड़ा हैरानी जताते हुऐ बोला। वहां थोड़ा मुस्कुरा के बोला "तुम इंसानों के कदम यहां पढ़ते ही तुम इंसान हैवान बन जाओगे और इस सुंदर वादी को उजाड़ कर वीरान कर देंगे। यहां मौजूद पशु-पक्षी पेड़-पौधों और किट-पतंगों को उनके घर से बेघर कर दोगे। मैं उसकी बातों को सुनकर सोचा ये कह तो सही राह हैं। हम इंसान अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकते हैं। अच्छा-अच्छा ठीक हैं मैं अंदर नहीं जाता। परंतु आप अपना परिचय तो बता दीजिए।
"वह ठहाका मारकर हंसते हुए बोला तुम इंसान भी ना उससे ही उसका परिचय पूछ रहे हो। जिसकी वजह से पूरी दुनियां परेशान हैं।" उसकी बातों को सुनकर मैंने अपनी दिमाग का घोड़ा दौड़ाया…. ओ तेरी ये तो कोरोना वायरस हैं जिसे ढूंढने के लिए मैं इतने दिन से भटक रहा हूं। मैंने अपने दिमाग के घोड़े की लगाम को खींचा और उनसे बोला तो आप वहीं हो जिनसे सारी दुनियां को पिंजरे में बंद करवा दिया इस डर से की आप उनके शरीर मैं न घुस जाओ यानी के आप ही हो वो कोरोना वायरस, वो कोविड-19 जिसने पूरी दुनिया मैं हाहाकार मचा रखी हैं।
"हां भाई हां मैं ही वो सुरमा कहो या नमूना हुं जिसने दुनिया में तांडव मचा रखी हैं"।
मैं कब से आपको ढूंढ रहा हूं और आप मिले भी तो कहा इस वीरान जगह। मेरी बातों को सुनकर कोरोना वायरस को गुस्सा आया होगा इसलिए वो थोड़ा अलग ही टोन में बोला "अच्छा ये जगह वीरान तो फिर वो जगह किया हैं जिस जगह से तुम आए हों और यहां की सौंदर्य को देखकर किस तरह मुग्ध होकर वावले की तरह भाग रहे थे"। उनको इस तरह बोलता हुआ देखकर मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ और मैंने उनसे अपनी गलती की माफी मांगी।
फिर उन्होंने मुझसे पूछा "चलो अपने आने का कारण बताओ। दुनिया मुझसे डरकर अपने-अपने घरों में दुबक गए या उन्हें दुबकने पर मजबूर किया जा रहा हैं। तुम किस मिट्टी के बने हों जो मुझे अपनी मौत को डुंडते हुए मुझ तक पहुंच गए।"
मौत का डर अब मुझे नहीं रहा। वैसे भी मेरे जिंदगी के अब दिन ही कितने बचे जितना जीना था जी लिया। अब अगर मार भी गया तो कोई अफसोस नहीं। थोड़ा मजाकिया लहजे में मैने ये बातें कहीं और अंत में अपने आने का करण बताया कि मुझे आप से कुछ सवालों के जवाब चाहिए।
"बड़ा ही गजब के बंदे हो लोग मुझसे पीछा छुड़ाने के लिए पता नही किया-किया जुगाड लगा रहे हैं। एक आप हों खुद ही अपने मौत को ढूंढते हुए उसके पास पहुंच गए हों। बड़ा ही दिलेर और बहादुर बंदे हो। तुमसे मिलकर ये बंदा खुश हूं। वैसे मैं किसी के सवाल का जवाब देना जरूरी नहीं समझता। फिर भी मैं तुम्हारे एक सवाल का जवाब दूंगा। तो जो भी पूछना सोच समझ कर ही पूछना"।
"अपने सही कहा हम इंसान बड़े जुगाड़ू होते हैं। परेशानी कितनी भी बडी हो और कितनी ही जटिल हो। कुछ न कुछ जुगाड लगाकर उससे निकलने का रस्ता ढूंढ ही लेते हैं। मैं भी कुछ न कुछ जुगाड लगाकर आपसे अपने सारे सवालों का जवाब ले ही लुंगा"।
"अच्छा-अच्छा ठीक हैं जो जुगाड भिड़ना हैं भिड़ा लेना और जल्दी से अपना सवाल पूछो। आखिर मुझे अपना काम भी तो करना हैं। जिस काम को करने के लिए मुझे बनाया गया हैं। भले ही तुम इंसान अपना काम ईमानदारी से करो चाहे न करो, परन्तु मुझे अपना काम ईमानदारी से करना हैं"।
"ठीक हैं मैं पूछता हूं। ये तो नाइंसाफी हैं। आपसे कितना कुछ पूछना हैं वो भी एक ही सवाल में तोड़ा तो सोचने का समय दो"।
"ठीक हैं सोच लो मैं तुम्हें दस मिनट का समय देता हू। जितना अच्छे से सोच सकते हो सोच लो"।
उनकी बातों को सुनकर मैंने अपने दिमाग के घोड़े को दौड़ना शुरू किया। उसकी लगाम को मैने खींच कर पकड़ ली और उसे सरपट दौड़ाने लगा क्यू की मुझे बहुत ही कम समय में बहुत कुछ सोचना। और उन्हें सीमित शब्दों में एक सवाल का रूप देना था। अपने दिमाग के घोड़े को सरपट दौड़ाने के बाद एक जगह रोककर एक चंचल मुस्कुराहट के साथ मैंने अपना सवाल उनसे किया।
"आप जैसा खतरनाक बीमारी, जो महामारी का रूप ले चुका हैं, इसके फैलने के पीछे किसकी गलती हैं"?
मेरे सवाल को सुनकर कोरोना वायरस के चेहरे पर जो मुस्कान आई उसे देखकर मैं ये तय नहीं कर पा रहा हूं कि इसके पिछे किया वजह हैं। ये मेरे सवाल से हैरान, परेशान या फिर खुश हैं। उनकी बातों को सुनकर मरे चेहरे पे आई मुस्कान ऐसे गायब हुई जैसे गधे के सर से सिंग। उनकी बातों ने तो मेरे ही तोते उड़ा दिए।
"कोरोना वायरस से पूछे सवाल का जवाब"
तुम इंसान क्या समझते हो अपने आप को बहुत होशियार, बहुत बुद्धिमान या फिर तुम ये समझते हो की तुम जो कर सकते हो वो कोई और नहीं कर सकता। तुम जाना चाहते हों न की मेरे फैलने के पिछे की वजह किया है और गलती किसकी हैं। तो सुनो अगर गलती किसी की हैं तो वो हो तुम इंसान हां तुम इंसान की गलती की वजह से ही मैं फैला हूं और इतनी बडी महामारी का रूप ले चुका हूं।
"Yes mr. Riporter Coronavirus- A Human Mistake"
आज मैं तुम इंसानों को तुम्हारी गलती का एहसास कराऊंगा। तुम लोग इंसान कहलाने के लायक नहीं हों। तुम लोगो ने अपने फायदे के लिए मुझे बनाया और फैलाया। तुम इंसान समझते हो की तुम्हारी साइंस बहुत तरक्की कर चुके हैं। तुम्हारे यही साइंस की तरक्की ही तुम्हारे लिए वरदान नहीं अभिशाप बन चुका हैं।
जितना तुम्हारा ये साइंस विकसित होता गया उतना ही तुम इंसान कुरूर, अभद्र और अमानवीय व्यवहार करने लगें। ठीक हैं तुमने अपनी साइंस को विकसित किया अच्छी बात हैं और होना भी चाहिए क्योंकि धरती पर मानव ही वो प्राणी हैं। जो अच्छे बुरे कर्मो में फर्क करना जानता हैं। हर तरह की भावनाओं को जान व समझने के काबिल हैं। तुम लोगो ने किया, किया अपनी संबेदनाओ को कही छुपा दिए और कृत्रिम यन्त्र की तरह व्यवहार करने लगें।
तुम्हारे विकसित साइंस का प्रयोग जन कल्याण के लिए काम अपने फायदे के लिए करने लगें। तुमने इसी फायदे के चलते अपने ही शरीर में जहर के वृक्ष वो लिए जो तुम्हे पल-पल असाध्य रोगों की तरफ लिए जा रहा हैं। जिसमें थोड़ा सा योगदान मैंने भी दे दिए तो किया बुरा किया। आखिर मुझे बनाया भी तो तुम इंसानों ने ही हैं। मैं ही अपना काम सही ढंग से नहीं करूंगा तो मुझमें और तुम इंसान रूपी दानव में किया फर्क रह जाएगा।
कोरोना वायरस की ये बातें तरकश से निकले उस तीर की तरह मुझे चुभ रहा हैं और ऐसा जख्म दे रहा हैं। जिससे मैं मरूंगा तो नहीं लेकिन ये जख्म लंबे समय तक मेरे शरीर में अपने होने का एहसास कराता रहेगा। मैं शर्म से नज़रे झुकाएं उनकी बातों पर विचार विमर्श कर ही रहा था की एक बार फ़िर उनके तरकश से निकले तीर मेरे शरीर पर गहरे घाव देने लगे।
किया हुआ इतनी सी बातों से ही नज़रे झुक गई। अभी तो तुम इंसानों के कुकर्मों सूची इतनी लंबी हैं की में सब चाहकर भी तुम्हें बता नहीं सकता लेकिन मैं तुम्हे तब तक बताता रहूंगा। जब तक की तुम अपने मूंह से न कहो की बस रुक जा मेरे बाप और कितना अपना ये एफएम रेडियो चैनल बजाता रहेगा अब अल्प नहीं पूर्ण विराम ले ले।
तुम मानवों ने सारे काम दानवों वाले किया। जहां मन किया वहां अपने ऐशो आराम के साधन बनते गाए। इसी तरह पैर पशार्ते हुऐ। जंगलों को बिल्कुल तहस नहस कर दिए। विचारे पशु-पक्षी कीट-पतंगें और पेड़-पौंधें जिनका घर ये जंगल हुआ करता था। तुम इंसान रूपी दानवों ने इन विचारों का घर ही छीन लिए। अगर तुम यही रुक जाते तो कितना अच्छा होता लेकिन नहीं तुम रुकने वालों में से थोड़ी हो।
तुम आगे को बढ़ते गए और अपने रास्ते में आने वाले हर उस चीज को तहस-नहस करते गए जो तुम्हारे तरक्की के रास्ते का रोड़ा बना। तुमने विचारे इन पशु-पक्षी, किट-पतंगों और पेड़-पौंधों को भी नहीं छोड़ा। इन्हे मारकर और काटकर बड़े ही चाव से ऐसे खाने लगें जैसे तुम्हे जीवन में कभी खाना नसीब ही नहीं हुआ। तुम मानव इन पर इस तरह टूट पड़े की विचारे या तो विलुप्त हो गए या विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए।
तुम मानवों ने पिछे मुडकर देखना और रुककर चलना शायद ही कभी सीखा हों। अगर थोड़ा रुककर पिछे मूढ़कर देखते तो तुम्हे पता चलता की तुम मानवों ने ओर अधिक पाने की चाह में धरती का कितना विनाश और धरती के अधिकांश हिस्से को बंजर कर दिया हैं। तुम मानवों ने धरती पर जहां तहां कचड़ा फैला रखा हैं। तुम सब ने धरती पर इतना कचरा फैलाया हैं कि पूरा धरती ही कचड़ा घर बन गया हैं। जहां रहकर तुम मानव भी कचड़ा ही बन गए हों।
मेरे इस तरह फैलकर महामारी बनाने के पिछे भी तुम मानवों की ही गलती हैं। जब तुम्हें पता चल गया था कि मुझे पूरी दुनियां को बीमार करने के लिए कुछ दानवीय प्रवृत्ति वाले लोगों ने अपने फायदे के लिए मेरा इस्तेमाल किया जा रहा हैं। फिर भी तुम मानवों ने उसके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया। जो भी ऐक्शन लिया वो भी आंशिक रूप से लिया क्यूंकि तुम मानवों को इसमें अपना ही फायदा दिखा। तुम्हे महामारी का समय एक बिज़नेस opportunity के रूप में दिख। तुम मानवों को लगा की यहीं वो समय हैं जब तुम ज्यादा से ज्यादा पैसे कमा सकते हैं।
तुम मानव अपने आप को टार्जन या फ़िर खाली महाबिल समझते हो किया। जो कि ये बीमारी तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ सकता। इसलिए बिना किसी प्रिक्यूशन के छीना चौड़ा किए बाहर घूम रहें हों । तुम लोगों ने अपनी ही गलती से बीमारी को महामारी का रूप दे दिए। तुम खुद तो मारने के कगार पर पहुंच रहें हो संग में दूसरे को भी ले जा रहें हों। सम्हाल जाओ इंसानों और कब तक दानवों जैसा व्यवहार करेंगे।
कोरोना वायरस की ये जली कटी बाते जो पूर्ण तह सत्य हैं। जिसे सुनकर मेरा सर शर्म से झुका जा रहा हैं। मैं किया खोजने निकला था और मुझे मिला किया। सच में हम इंसान ने अपने फायदे के लिए बहुत गलतियां की हैं। इन गलतियों की भरपाई करना शायद ही संभव हों और इन गलतियों की भरपाई करने की कोशिश की जाए तो सादिया बीत जाएंगी भरपाई करते करते फिर भी पूरा न हों।
मैं और नहीं सुन पा रहा था। मेरी भावनाएं जबाव दे चुकी थीं। मेरी आत्मा क्षत विक्षत होकर ग्लानी से भर चुका था। मैं दोनों हाथ जोड़कर, घुटनों के बाल बैठकर, बिनती पूर्ण स्वर में, हे महाशय थोड़ा रहम कीजिए और कृपया करके रुक जाइए। मुझे अपने प्रश्नों का जवाब मिल चुका हैं कि कोरोना वायरस फैलने के पिछे हम मानवों की ही गलती हैं। "Coronavirus- A Human Mistake"
मुझे नहीं पता की हम मानवों ने जो गलतियां की हैं। उसकी हम कितनी भरपाई कर पाएंगे या फिर भरपाई ही नही कर पाएंगे। परंतु अब आप मुझे जाने की अनुमति दे। मुझे अपने प्रश्नों का सही और सटीक उत्तर मिल चुका हैं।
"अच्छा ठीक हैं। मैं अपने वादे के अनुसार रुक जाता हूं। तुम्हारे कहने पर परंतु जानें से पहले तुम मुझे अपने साथ तो लेते जाओ। वरना तुम लोगो से कहते फिरोगे की तुम कोरोना वायरस के वंशज हो जिस वजह से तुम पर कोरोना वायरस का कोई प्रभाव नहीं हुआ।"
कोरोना वायरस को अपने शरीर में धारण कर अपने घर की ओर निकला। रास्ते में जब कोरोना वायरस का प्रभाव मेरे शरीर मैं बड़ गया तो मैं मूर्छित होकर गिर गया। जब मैं होश में आया तो मैं एक हॉस्पिटल में था। जहां पर लेटे-लेटे मैं अपने संग घाटी घटनाओं के बारे में सोचते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि"Coronavirus- A Human Mistake" की वजह से फैला हैं और ये बीमारी किसी के सगे नही होते। ये किसी को भी अपने चपेट में ले लेते हैं।
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Written by- Deep The Rainbow