भाग:–82
शुद्ध भाषा में कहा जाये तो मेरी झांटें सुलग रही थी और इस लड़की को अपने सोशल मीडिया पर बस सेक्सी, हॉट बेब और ना जाने किस किस तरह के कमेंट की भूख थी।
भूख से एक बात और याद आ गयी। 6 घंटे से मै टैटू बना रहा था। उसके पहले ना जाने कितनी देर से मेरे पास बैठी थी। इसे भूख ना लगी थी क्या? एक बात जो उस वक़्त पता चल गयी, लड़कियां सोशल मीडिया का ध्यान खींचने के चक्कर में कितने देर भी भूखे प्यासे रह सकती है। उसका तो पता नहीं लेकिन मुझे तो भूख लगी थी, इसलिए मैंने ही पूछ लिया… "ओशुन तुम्हे भूख नहीं लगी क्या?"..
मै उसके कंधे से लदा था और वो अपने होंठ मेरे होंठ से लगाकर छोटा सा किस्स करती… "हनी, आज तुम्हारे साथ ही खाना खा लूंगी, जल्दी से हम दोनों के लिये कुछ टेस्टी और गरमागरम पका दो ना।"..
शुक्र है उन कपल की तरह इसने नहीं कहा "मेरे लिये पका दो ना। ये मेरे मां के साथ रही तो मै पक्का ही पीस जाऊंगा। भगवान इसे भारत में रहने लायक कुछ सद्बुद्धि दो, वरना ये ब्लैक फॉरेस्ट के थ्रिल तो आज ना कल संभाल ही लूंगा, लेकिन ओशुन की चाहत में यदि इसे घर ले गया तो फैमिली थ्रिल नहीं संभलने वाला।"
जैसे ही घर की बात सोची, मुझे घर की याद आने लगी। मां की, पापा की, निशांत, चित्रा, भूमि दीदी सब मुझे याद आने लगे। कैसे होंगे वो? मुझे लेकर परेशान तो नहीं होंगे? मै इन्हीं सब बातो में खोया, चोरी से उनका सोशल प्रोफाइल देखने लगा। आखों में तब आशु आ गये जब चित्रा का वो पोस्ट देखा.. "घर वापस आ जा आर्य, अब कितना रूठा रहेगा।"..
"क्या हुआ आर्य, तुम ठीक तो हो ना।"… ओशुन मुझे टोकती हुई पूछने लगी।
मैं बस खामोशी से कहा कुछ नहीं, और किचेन के ओर जाने लगा। मेरे पीछे–पीछे वो भी आ गयी।… "तुम आराम से किचेन स्लैब पर बैठो, मै खाना पकाती हूं।"
मै:- नहीं रहने दो, मै पका लेता हूं।
ओशुन:- कही ना बैठ जाओ। सॉरी मुझे कुछ बातो का ध्यान बाद में आया।
मै:- कौन सी बात..
ओशुन:- मैत्री अक्सर यू ट्यूब से तरह-तरह के साकहारी डिशेज बनाना सीखती थी। जब मै पूछती की इन सब की क्या जरूरत है? तब वो कहती कि तुम नहीं समझोगी, किसी के लिये पकाना कितना अच्छा लगता है। जब भी आर्य अपनी मां के हाथ का बना खाना मुझे खिलाता, ऐसा लगता था दुनिया जहां के सारे लजीज खाने उसके आगे फिके है। अक्सर हम दोनों की बहस इस बात के लिये भी हो जाती, जब मै उसे कुछ सेक्सी पोज में तस्वीर पोस्ट करने कहती, वो हमेशा ना कह दिया करती थी। पूछने पर वही जवाब, आर्य को अच्छा नहीं लगेगा। मुझे ये नहीं समझ में आता की किसी की आज़ादी को छीनकर दूसरो को क्या मज़ा आता होगा? पता नहीं क्यों मै भी अपनी आज़ादी को खोते हुये मेहसूस कर रही हूं, लेकिन मुझे जारा भी बुरा नहीं लग रहा।
मै ओशुन की बात सुनकर क्या कहता, ऐसा लगा जैसे नारद जी ऊपर देव लोक में बैठकर किसी नए सॉफ्टवेर का आविष्कार कर चुके हैं। इधर फरियादी ने अर्जी डाली और उधर यदि भगवान ने अर्जी ना सुनी तो नारद जी ब्रेकिंग न्यूज तीनों लोकों में चला देते होंगे। ऐसा लग रहा था कहावत ही बदल दू, और नई कहावत बाना दूं, भगवान के घर ना तो देर है और अंधेर तो कभी रहा ही नहीं।
बहरहाल वो 10 दिन मेरे लिये काफी हसीन रहे रूही। ऐसा लगा मै किसी स्वपन नगरी में हूं। हसीन लम्हात और प्यारे-प्यारे ज़ज्बात थे। हम छोटी–बड़ी खुशियां समेटे बस एक दूसरे में खोकर ब्लैक फॉरेस्ट में अपनी जिंदगी के सबसे हसीन लम्हात को मेहसूस कर रहे थे, जो वर्षों पहले मैंने मैत्री के साथ किया था।
ओशुन के साथ रहकर मैंने अपने अंदर के बदलाव को हंसकर स्वीकार किया। मैंने ब्लैक फॉरेस्ट के लगभग 1200 पेड़ को हील किया था। लगातार पेड़ों के हील करने के कारण मेरे आखों का रंग बदल कर नीला हो गया था। बॉब के अनुसार यह एक स्वाभाविक बदलाव था, जो कि बहुत सारे टॉक्सिक अपने जिस्म में समेटने के कारण हुआ था।
इसी के साथ ओशुन मुझे इक्छा अनुसार शेप शिफ्ट करना भी सीखा रही थी। मुश्किल था ये, क्योंकि शेप या तो गुस्से के कारण शिफ्ट होता या एक्साइटमेंट के कारण। इसके अलावा खुद से कितनी भी कोशिश कर लो होता ही नहीं था। गुस्से की अब कोई वजह नहीं थी और मै अपनी हैवानियत से इतना डारा हुआ था कि एक्साइटमेंट को उस दिन के बाद फिर कभी बढ़ने ही नहीं दिया।
मुझे आये लगभग 8 दिन हो गये थे। इन 8 दिनों में ओशुन ने मुझे वुल्फ हाउस के लोगों से पुरा छिपा कर रखा था। मेरे जेहन में वुल्फ हाउस का किस्सा मात्र एक कड़वी याद बनकर रह गयी थी, जिसे मै याद नहीं करना चाहता था। दोनो झील किनारे बैठे एक दूसरे को देख रहे थे। यहां हम दोनों किसी रोमांटिक मोमेंट में नहीं थे बल्कि मै हंस रहा था और ओशुन काफी खफा थी… "पागलों की तरह तुम्हारा ये हंसना मुझे इरिटेट कर रहा है।".. ओशुन चिढ़ती हुई मुझपर चिल्ला रही थी।
मैंने ओशुन का चेहरा पकड़ कर अपने गोद में लिया और होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगा। लेकिन वो काफी गुस्से में लग रही थी। मुझे धक्का देकर खड़ी हो गयी और घूरती हुई कहने लगी… "1-2 दिन बाद तो मुझे छोड़कर जा ही रहे हो, अभी चले जाओ ना।"
मै:- तुम अच्छी टीचर नहीं हो ओशुन, इसलिए मै अब तक शेप शिफ्ट करना नहीं सीख पाया हूं।
ओशुन:- सॉरी, मै थोड़ा ओवर रिएक्ट कर रही थी, लेकिन तुम भी कहां ध्यान दे रहे हो। शेप शिफ्ट करना ऐसा नहीं है कि तुम सोच लोगे और शेप शिफ्ट कर गया। किसी जिम्नास्टिक का अभ्यास करते लोगो को देखा है?
मै:- हां देखा है।
ओशुन:- आम इंसानों के मुकाबले उनका शरीर इतना लचीला कैसे हो जाता है?
मै:- वो रोजाना प्रैक्टिस करते है। और माफ करना उनका कोच भी उनके अभ्यास को सही दिशा में ले जाता है।
ओशुन:- यदि ऐसा होता तो दुनिया का हर इंसान जिम्नास्टिक सीखता। कोई किसी को तबतक कुछ सीखा नहीं सकता जबतक वो खुद में जुनून ना पैदा करे।
मै:- विश्वास करो मैंने स्वीकार कर लिया है कि मै क्या हूं, और मुझे जरा भी अफसोस नहीं।
ओशुन:- गुड, सुनो हनी जिम्नास्टिक सीखनेवाले जैसे बिल्कुल खोकर अपने अंदर वो लचीलापन मेहसूस करते है और फिर कई तरह को कलाएं दिखाते है। मै चाहती हूं तुम भी वैसे ही अपने अंदर की ताकत को बस खोकर मेहसूस करो। शेप शिफ्ट के बारे में ध्यान मत दो। तुम्हे खुद से एहसास हो जायेगा की तुम्हारा शेप शिफ्ट कर गया।
ओशुन की बात पर मै हां में अपना सर हिलाया और कुछ दूरी पर खड़ा होकर अपनी आखें मूंद ली। अपने अंदर हुये बदलाव को मुस्कुराकर मेहसूस करते हुये मै अपने शरीर को ढीला छोड़कर बस अंदर रक्त के संचार को मेहसूस कर रहा था। धड़कने बिल्कुल काबू में थी और सामान्य रूप से एक लय में धड़क रही थी। कानो में दूर तक की सरसराहट सुनाई पड़ रही थी। मेरी मांसपेशियों में अजीब सा खिंचाव होते मै मेहसूस कर रहा था और हर मांसपेशी से मुझे असीम ताकत की अनुभूति हो रही थी।
खिंचाव बढ़ता चला जा रहा था और उसी के साथ मै और भी ज्यादा बढ़ती ताकत को मेहसूस कर रहा था। यह पहला ऐसा अवसर था, जब इतने दिनों में मै अपने अंदर कभी ना खत्म होने वाली एक ऊर्जा को मेहसूस कर रहा था। तभी मेरे सीने पर एक नरम हाथ पड़ने का एहसास हुआ। मै समझ चुका था ये ओशुन का हाथ था जो मेरे सीने पर रखकर मेरी बढ़ी धड़कने चेक कर रही थी। मै अपनी आंख खोलकर उसे देखा, और देखकर मुसकुराते हुए… "क्या लगता है ओशुन मै गुस्से या उत्तेजना के कारण वुल्फ में बदला हूं।"
"जान निकाल दी तुमने।"… कहती हुई ओशुन मेरे पंजे अपने छाती पर रखकर अपनी बढ़ी धड़कन को महसूस करने के लिये कहने लगी।
मै वापस से अपना शेप शिफ्ट करके अपने वास्तविक रूप में आते हुये… "लगता है आज तुम काफी उत्तेजित हो गयी हो।"
ओशुन:- काफी नहीं काफी से भी ज्यादा आर्य। क्या तुम जानते हो अभी जब तुमने शेप शिफ्ट किया तो बीस्ट वुल्फ बिल्कुल भी नहीं लगे।
मै:- हां, वो मैंने भी अपना हाथ देखा। मेरा वुल्फ शरीर आज काला की जगह चमकता उजला क्यूं दिख रहा था?
ओशुन:- क्योंकि तुम एक श्वेत वुल्फ ही हो आर्य। इससे पहले का शेप शिफ्ट बस केवल विकृत मानसिकता की देन थी, जो तुम्हारे बस में नहीं था। ये तुम्हारा असली स्वरू है। जिस चरित्र के तुम हो, ठीक वैसा ही तुम्हारा शरीर। मै तो इस कदर आकर्षित थी कि क्या बताऊं। उत्तेजना से रौंगते खड़े हो गये। प्लीज एक बार और अपना शेप शिफ्ट करो ना बहुत ही मस्त फीलिंग थी। मै तो सोच रही हूं जिस वक़्त तुम अपना शेप शिफ्ट करोगे तब मदा वूल्फ की क्या हालत होगी...
मै:- मतलब..
ओशुन:- मतलब डफर वो तो एक्साइटमेंट से पागल हो जायेगी। तुम्हारे साथ सेक्स के लिए टूट पड़ेगी।
मै:- कोई परफ्यूम का एड चल रहा है जो छोड़िया मरी जायेगी मेरे लिये।
ओशुन:- अच्छा तुम भी तो मेरे बदन पर आकर्षित हुये थे। पहली बार वुल्फ हाउस में दूसरी बार झील में।
मै:- ओह हो तो झील वाला कांड तुम्हारा किया हुआ था।
ओशुन:- ही ही.. नहीं वो मैंने जान बूझकर नहीं किया था। बस यूं समझ लो कि कुछ लोगों के पास आकर्षित करने जैसी शक्ति होती है, जैसे कि हम दोनों में है। बातें बहुत हो गयी। चलो ना शेप शिफ्ट करो। मुझे वो एक्साइटमेंट फील करना है।
मै:- नाह मै नहीं करता। मुझे अभी पेड़ को हील करना है।
ओशुन:- मै भी तड़प रही हूं, प्लीज मुझे भी हील कर दो।
मै:- ना मतलब ना..
वहां उस वक़्त हम दोनों के बीच तीखी बहस चली। मै ओशुन को छेड़ रहा था और ओशुन चिढ़ रही थी, बड़ा मज़ा आ रहा था तड़पाने में। जब लगा ओशुन कुछ ज्यादा ही नाराज हो गयी है, तब मुस्कुराते हुये उसके कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया। "आउच" की आवाज उसके मुंह से निकली और वो मेरे सीने से आकर चिपक गयी।"..
"अरे देखो तो कौन है यहां। क्या ओशुन हमारे खिलौने के साथ अकेली मज़े ले रही हो।"… वुल्फ हाउस के किसी पैक के बीटा ने हमे कहा।
ओशुन, घबराकर मुझे अपने पिछे ली। मै उसकी घबराई धड़कन को मेहसूस कर सकता था। शायद चेहरे से वो जताना नहीं चाहती थी इसलिए, खुद की घबराहट को काबू करते हुये…. "अज़रा ये मेरे और ईडन कि बीच की बात है, मै उससे बात कर लुंगी। बेहतर होगा तुम यहां से चले जाओ।"..
अज़रा यालविक, यहां वुल्फ हाउस के यालविल पैक का एक बीटा था जो अपने 3 साथियों के साथ इस ओर भटकता हुआ चला आया। ओशुन की बात सुनकर तीनों ही हंसने लगे। मेरी नजरें उन तीनों को देख रही थी। मेरा गुस्सा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। शायद ओशुन ये बात समझ रही थी, इसलिए वो मेरी हथेली जोड़ से थामी, और मेरे ओर मुड़कर, मेरे होंठ से होंठ लगाकर, पूरे सुरूर में किस्स करती अलग हुई और अपना गर्दन थोड़ा पीछे मोड़कर उनसे कहने लगी… "मेरा प्यार है ये, अब निकलो यहां से। वरना मै भुल जाऊंगी की तुम तीनों मेरे फर्स्ट अल्फा के पैक से हो। और हां किसी को यहां आने की जरूरत नहीं है। हम दोनों ही जरा अपना ये मिलन का काम, जो तुम्हारी वजह से बीच मे रोकना पड़ा था, उसे पूरा करके आते है। अब भागो यहां से।"..
ओशुन के चिल्लाते ही वो लोग वहां से भाग गये। ओशुन मेरा हाथ पकड़कर तेजी से उस ओर भागने लगी, जिस गांव में मुझे वो पहले लेकर आयी थी… "आर्य तुम यहां से ठीक सीधे, पूर्वी दिशा की ओर भागो। कुछ दूर आगे वुल्फ की सीमा है, उसके आगे ये नहीं जा पायेंगे।"
मै:- और तुम ओशुन..
ओशुन:- मै चाहकर भी कहीं नहीं जा सकती आर्य। हम ब्लड पैक से जुड़े है, जबतक ब्लड पैक नहीं टूटता तब तक हम बंधे हुये है।
ओशुन की बात सुनकर मेरी आखें फ़ैल गयी। मै उसे हैरानी से देखने लगा। शायद वो मेरे अंदर के सवाल को भांप गई…. "हां मैत्री भी ब्लड पैक में थी। वो ब्लड पैक तोड़कर गयी थी और उसकी सजा खुद उसके भाई ने दी थी। ईडन चाहती तो मैत्री को यहीं खत्म कर देती। लेकिन मैत्री जिसके लिये बगावत करके गयी थी, ईडन उसे भी मरता हुये देखना चाह रही थी। इसलिए भारत में तुम्हें ट्रैप किया गया था। सुहोत्र तुम्हे मारने की योजना बना ही रहा था, उस से पहले ही वो शिकारियों के निशाने पर आ गया। तुम्हे पता न हो लेकिन मैत्री को मारने के बाद सुहोत्र ने अपनी बहन के गम से 4 इंसानों को नोचकर खाया था। पागलों की तरह हमें बता रहा था कि इन्ही इंसानों के वजह से मैत्री की जान गयी। न उसे एक इंसान (आर्यमणि) से प्यार होता और न ही वो मरती। शिकारियों ने उसे मार ही दिया होता लेकिन यहां आना शायद तुम्हारी किस्मत थी, इसलिए अनजाने में सुहोत्र की ही जान बचा लिये। ब्लड ओथ से बंधे होने के कारण, मै तुम्हे ये सच्चाई नहीं बता पायी। लेकिन अब कोई गिला नहीं। आर्य अब तुम जाओ यहां से।"
मै:- तुम्हे छोड़कर चला जाऊं। तुम्हे मुसीबत में फंसे देखकर।
ओशुन:- "ये गांव देख रहे हो। इस गांव को ईडन ने केवल इसलिए उजाड़ दिया था, क्योंकि ईडन के पैक का एक वुल्फ मेरी मां से पागलों कि तरह प्यार कर बैठा। ईडन को प्यार और बच्चे से कोई ऐतराज नहीं था, बस जो उसके कानों में नहीं जाना चाहिए वो है पैक तोड़कर जाने की इच्छा।"
"अब तुम समझ सकते हो कीन हालातों में मेरी मॉम को यहां से भागना पड़ा होगा। उसके हाथ से 2 दिन का जन्म लिया हुआ बच्चा छीन लिया गया था। इस पूरे गांव पर ईडन नाम का कहर बरस गया। मेरी मॉम और उसके कुछ लोग किसी तरह अपनी जान बचाने में कामयाब हुये थे बाकी सब मारे गये।"
"ईडन यहां पर कहर बरसा कर जब लौटी फिर मेरे डैड को भी नहीं छोड़ा था। और मै 2 दिन के उम्र में ही ईडन से ब्लड ओथ से जुड़ गयी। मैंने किसी भी विधि से पैक तोड़ने की बात नहीं की है, इसलिए मै सेफ हूं आर्य। और यदि तुम मुझे पुरा सेफ देखना चाहते हो तो प्लीज लौटकर मत आना। नहीं तो वो ईडन हम दोनों को मार देगी। हनी लिस्टेन, मुझे यदि जिंदा देखना चाहते हो तो यहां फिर कभी लौटकर मत आना।"
उसकी बात सुनकर मै वहां से निराश होकर आगे बढ़ गया। मै जैसे ही आगे जाने के लिए मुड़ा, पीछे से मुझे तेज सरसराहट की आवाज सुनाई दी, जो करीब से दूर होते जा रही थी। ओशुन वहां से निकल गयी थी। मै भी अपने बोझिल क़दमों से चला जा रहा था।
जिस एक कत्ल (मैत्री) का दोषी मै किसी और को समझ रहा था, जिस सवाल ने मुझे भूमि दीदी को अपना दुश्मन बना रखा था। उसका जवाब मुझे मिल चुका था। शायद मेरा वुल्फ हाउस आना मैंने नहीं तय किया था, लेकिन वुल्फ हाउस से वापस जाना मै खुद तय कर सकता था। मैत्री के मौत का जवाब मिल तो गया था, लेकिन ब्लैक फॉरेस्ट की कहानी मै अधूरी छोड़कर जा रहा था।
Shandar update
Aur phle to photo shoot uske baad social media pe photos upload karne ki baat Jaan kar aarya ki jhaante sulagna kya hi feeling thi aarya ki
Uske baad waha rah ke 1200 pedo ko heel karne ke baad aarya ko apna real roop mila jo ki kala na ho ke swet aur pure wolf jo ki is samay ka iklauta
Aur yha bhi ye is black forest ko yuhi aadha kaam kar ke chor ke ja raha jaha ek baar phir se wo ooshun ke baare me kuch khaas nhi soacha ki jb pta chlega to uske baad ooshun ka kya hoga aur is baar ka natiza ooshun ka mrit sarir ab aary ko mil chuka hai jiske karan is black forest ka black day ke bare me pta chla ki survival kaisa tha aarya ka waha