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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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Golu

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भाग:–80






रात काफी हो गयी थी। ओशुन मेरा हाथ थामे चल रही थी। उस पेड़ को स्पर्श करने के बाद मै हर स्पर्श को जैसे मेहसूस कर सकता था। काफी सौम्य और बिल्कुल नाजुक हथेली थी ओशुन की। जैसे ही अचानक फिर ख्याल आया पानी का… "ओशुन टॉप नीचे करो और मुझे अपने स्तन दिखाओ।"..


ओशुन:- क्या ?


मै:- टॉपलेस हो जाओ..


ओशुन मेरे आखों में झांकी, कुछ पल खामोशी से वो मेरे अंदर तक झांकने की कोशिश करती रही। फिर आहिस्ते से अपने स्ट्रिप को खिसकाकर अपनी ड्रेस को नीचे जाने दी। उसके स्तन की वास्तविक हालत देखकर मै सिहर गया।… "क्या मै इनपर हाथ रख सकता हूं।"… ओशुन इस तरह से हंसी मानो मुझे बेवकूफ कह रही हो। उसने पलकें झुकाकर अपनी रजामंदी दी और मैं अपना हाथ उसके स्तन पर उसी सौम्यता से रखा जैसे उस मृग अथवा पेड़ पर रखा था और ओशुन की पीड़ा को मेहसूस करने लगा।


मैं आंख खोलकर ओशुन के चेहरे को देखने लगा। उसके चेहरे पर असीम सुकून के भाव थे, जो चेहरे से पढ़ा जा सकता था। धीरे-धीरे मेरे नब्ज में ओशुन का उतरता दर्द सामान्य होने लगा। वह अपने अंदर पुरा सुकून मेहसूस करती गहरी श्वांस खींची और मेरे हाथ को अपने सीने से हटाकर सीधा मेरे ऊपर पुरा वजन दे दी, मानो कह रही थी प्लीज अब मुझसे खड़ा नहीं रहा जा सकता। और मेरे ऊपर पुरा भार देकर वो सुकून से श्वांस लेने लगी।


कुछ देर तक ओशुन अभूतपूर्व सुकून को मेहसूस कर रही थी, मानो किसी ने उसके हृदय की धड़कन को पुनर्जीवित कर दिया हो, जो एक लंबे समय से धड़क तो रही थी, लेकिन अंदर वो ऊर्जा नहीं थी। ओशुन अपने सुकून के पल में इस कदर खोई की उसे एहसास तक ना रहा की कब सुबह भी हो गयी। दूर से आती वुल्फ साउंड सुनकर ओशुन गहरी नींद से जागी। जब वो अपने आसपास का माहौल देखी, "ओह नो" उसके होटों पर थी और प्यारी सी मुस्कान चेहरे पर। वो खड़ी होकर मुझे देख रही थी और मुस्कराते चेहरे पर थोड़ी सी अफ़सोस की भावना थी।


तभी मै झुका और उसके ड्रेस को उसके पाऊं से ऊपर किया और कंधे तक चढ़ाया। मुझे देखकर वो मुस्कुराई और मुड़कर अपने कदम बढ़ा रही थी। मैं भी मुस्कुराते हुये झोपड़ी के ओर कदम बढ़ा दिया। मै भी मुस्कुराया वो भी मुस्कुराई, शायद मैं भी उसे नजर भर देखना चाहता था और शायद उसके दिल की भी यही इक्छा थी। हम दोनों ही पलटे। एक दूसरे को देखकर चेहरा खिला हुआ था और नजरे एक दूसरे पर बनी हुई।


तभी ओशुन अपने कदम बढ़ाकर अपनी ऐरियों को ऊपर की, अपने हाथ मेरे कांधे पर डाली और अपने होंठ को मेरे होंठ से स्पर्श करती अपनी आंखे मूंद ली। बिल्कुल ठंडा और मुलायम स्पर्श था, जो दिल में हलचल मचा गया। उस स्पर्श को मेहसूस करने के लिये दिल कबसे ना जाने व्याकुल हो। आहिस्ते से मैंने भी अपने होंठ उसके होंठ से स्पर्श किये। ठंडे और मुलायम होटों के स्पर्श और चेहरे पर टकराती गर्म श्वांस, दिल में प्यारी सी बेचैनी दे रही थी। हम दोनों के जज्बात लगभग एक जैसे थे। तभी कानो में फिर से वुल्फ साउंड गूंजी, और ओशुन किस्स को तोड़ती थोड़ी झुंझलाई.. "ऑफ ओ, हनी मै जारा इन्हे शांत करके आयी, तब तक प्लीज तुम झोपड़ी में ही रहना।"..


"मै बोर हो जाऊंगा ओशुन"… "ठीक है एक काम करो झील के उस पार कम से कम 20 किलोमीटर दूर जब जाओगे एक छोटी सी बस्ती दिखेगी। बस वहीं आस पास टहलना, मै वहीं आकर मिलती हूं।"… इतना कहकर ओशुन मुड़ गयी लेकिन एक कदम आगे गयी होगी की वो फिर पलटी और मेरे होटों पर अपने होटों का छोटा सा स्पर्श देती… "मै जल्दी आयी"


ओशुन शायद वहां कुछ और देर रुकती तो वो जा नहीं पाती इसलिए शायद इस बार जब मुड़ी तो बिजली की रफ्तार पकड़ ली। मै भी उल्टी दिशा में दौड़ लगा दिया। कुछ ही पल में मै उस बस्ती के पास था। बस्ती तो वहां थी, लेकिन वहां कोई इंसान नहीं था। मुझे थोड़ी हैरानी हुई और जिज्ञासावश एक झोपड़ी में घुसा।


दरवाजा को खोलने के लिये दरवाजे पर मैंने हथेली रखा ही था कि वो स्पर्श मुझे विचलित कर गयी। मैंने अपनी हथेली दरवाजे से टिकाकर अपनी आंख मूंद लिया और फिर झटके से अपने हाथ पीछे खींच लिया। उस दरवाजे पर जैसे किसी के आतंक की कहानी लिखी हुई थी। दरवाजा खोलकर जैसे ही मैं अंदर पहुंचा लगा कि कोई है, लेकिन ये मेरा भ्रम मात्र था। ओशुन जिस झोपड़ी में रहती थी और यह झोपड़ी, दोनो की बनावट लगभग एक सी थी। केवल फर्क सिर्फ इतना था कि यहां की खाली झोपड़ी में किसी के होने का विचलित एहसास था, जबकि वहां सुकून था।


मै एक-एक करके हर झोपड़ी के दरवाजे पर हाथ रखा और हर दरवाजे पर लगभग एक जैसा ही अनुभव था। हर झोपड़ी के अंदर, वहां के आस–पास के खुले माहोल, हर चीज में कुछ तो ऐसा था, जो मुझे किसी के होने का एहसास तो करवाता, किन्तु वहां कोई होता नहीं। मै वहां से निकलकर बाहर आया। विचलित मन में कई सारे सवाल उठ रहे थे। मै बैठकर मुसकुराते हुये बस इतना ही सोच रहा था कि…. "क्या बदलाव इतना विचलित करता है। मै पहले दिन से ही जैसे ब्लैक फॉरेस्ट की दुनिया में उलझता सा जा रहा हूं। मैंने तो इस जगह का नाम ही पजल लैंड रख दिया, क्या हो रहा था, क्यों हो रहा था, कुछ भी समझ में आने वाला नही।"


फिर दिखी एक परी। ओशुन सामने से चली आ रही थी। उसका हुस्न जैसे दिल में उतर रहा था। लहराती हुई चली आ रही थी। खुद को अच्छे से संवारा था। पहले से कुछ अलग लेकिन काफी दिलकश दिख रही थी। ओशुन के शरीर से लिपटा गहरे नीले रंग का कपड़ा, उसके मनमोहक रूप को और भी निखार रहा था। मेरे करीब वो पहुंची, और मुझे खड़ा होने के लिये कहने लगी। मै उसके आखों में देखते खड़ा हो गया। हम दोनों ही खड़े थे और दोनो की नजरें एक दूसरे से मिल रही थी। वो मेरा हाथ थामकर नीचे घुटनों पर बैठ गयी। जब वो बैठी हम दोनों ही समझ गये की क्या होने वाला है। दोनो के ही चेहरे पर मुस्कान छाई हुई थी।


ओशुन अपने घुटने पर बैठकर धीमे से कहने लगी… "अपनी नजरे मुझ पर से हटाओ वरना मेरी धड़कने इतनी बेकाबू हो जाएगी की मै तुम्हारी तरह शेप शिफ्ट कर चुकी रहूंगी।"..


अनायास ही मुझे आभाष हुआ कि मेरी धड़कने इतनी बढ़ चुकी है कि मै, मै ना होकर एक वुल्फ में तब्दील हो चुका था। मुझे अंदर ही अंदर अफ़सोस सा होने लगा। मेरे दैत्याकार हाथ जो इस वक़्त ओशुन के हाथ में था, उसमें मानो कोई जान नहीं बची हो। वो बेजान होकर बस लद गया। ओशुन शायद मेरी दिल की भावना समझ चुकी थी, वो फिर भी मेरा हाथ थामे रही। खुद की हालात जब बुरी लगी तो धड़कने भी काबू में थी और शरीर भी। हाथ बिल्कुल सामान्य दिखने लगा था, किन्तु भावनाएं पहली जैसी नहीं रही। लेकिन ये तो केवल मेरे दिल के हाल था। ओशुन मेरी कलाई थामे अब भी अपने घुटनों पर बैठी थी, वही प्यारी सी मुस्कान उसके मासूम से छोटे चहरे पर थी और अपने होंठ से मेरी कलाई चूमती… "आई लव यू"..


शायद कुछ गलत सुना क्या, मेरी आखें बड़ी हो गयी। आश्चर्य से मै ओशुन के ओर देखने लगा। "हीही".. की मीठी ध्वनि मेरे कानों में पड़ी। ओशुन एक बार फिर से कही। लेकिन इस बार खुल कर और चिल्लाकर कहने लगी… "मिस्टर आर्य, तुम्हे देखकर दिल जोड़ों से धड़कता है। आई लव यू।"..


वो अपनी भावना का इजहार करती हुई खड़ी हो गयी और अपने बांह मेरे गले में डालकर, मुस्कुराती वो मुझे देखती रही। "आहहह" क्या फीलिंग थी बिल्कुल अलग और रोमांचकारी। कमर में हाथ डालकर मैंने ओशुन को अपने ओर खींचा। अब वो बिल्कुल मुझ से चिपक चुकी थी। उसके वक्ष मेरे सीने से लगे थे। धड़कन की आवाज कानों में सुनाई दे रही थी। चेहरा हल्का पीछे था और उसका खिला रूप दिल में बस रहा था… "धक–धक.. धक–धक".. की जोड़ की आवाज मेरे सीने से आ रही थी। बेख्याली में मेरे आंख बंद होने लगे। श्वांस बिखरने सी लगी थी और उसके होंठ के नरम एहसास अपने होंठ से छूने के लिए दिल मचलने लगा था।


तभी ओशुन अपनी एक उंगली मेरे होंठ से टिका कर मेरे बढ़ते होंठों पर थोड़ा विपरीत फोर्स लगाई। मै रुककर सवालिया नजरो से उसे देखने लगा। मेरी नजरो को पढ़कर एक बार धीमे से हंसी… "हनी पहले तुम्हारे शेप शिफ्ट का कुछ करना होगा। अब मुझे नीचे उतारो।"..


मैंने फिर से खुद की हालात पर गौर किया। किन्तु इस बार अफ़सोस नहीं था बल्कि ओशुन की बात सुनकर मै मुसकुराते हुए उसे नीचे उतार दिया। मुझे इस रूप में मुस्कुराते हुये देखकर ओशुन खुलकर हसने लगी। उसकी हसी कितनी प्यारी थी ये बयां कर पाना मुश्किल होगा। बस वो खुलकर हंस रही थी और मै उसे देखे जा रहा था।


"हनी जायंट शेप में तुम्हारी स्माइल कातिलाना थी। एक दम फाड़ू। सॉरी मै खुद को रोक नहीं पायी।"… ओशुन हंसती हुई अपनी बात रखी।


उसकी बात सुनकर मै फिर से मुस्कुरा दिया। कुछ समय हमलोग ने एक दूसरे में खोकर बिता दिया। हम दोनों जब बैठकर बातें कर रहे थे तब मै बार-बार ओशुन का चेहरा देख रहा था। मुझे पहली बार यह एहसास हो रहा था कि इंसान इस पृथ्वी के किसी भी कोने में क्यों ना रहते हो, भावनाएं हर किसी में होती है। हालांकि सुपरनैचुरल कल्चर प्रायः सब जगह एक जैसा ही होता है..


जैसे कि खुले विचार। ओपन सेक्स, अपने हिसाब से पार्टनर चुनना और पैक के साथ बंधकर रहना। लेकिन भारत की सभ्यता और जर्मनी की सभ्यता में काफी अंतर पाया जाता है। यूरोप के परिवेश में पले लड़के-लड़कियां और भारतीय परिवेश में पले बढ़े लड़के-लड़कियों में सभ्यता का अंतर तो होता ही है। वहां कितने भी ओपन ख्याल क्यों ना हो रिश्ते छिपाने पड़ते है। लेकिन यहां ऐसी बात नहीं थी। तो मन में कहीं ना कहीं ये भी था कि यहां भावनात्मक जुड़ाव, प्यार मोहब्ब्त ये सब थोड़े कम होते होंगे।


लेकिन जब आप वास्तव में इन इलाकों में रहते है तो कुछ अलग ही तस्वीर नजर आती है। बस ढोने वाले रिश्ते और रिश्ते में आयी दरार को ये बचाने कि ज्यादा कोशिश नहीं करते। लेकिन बाकी हर किसी की फीलिंग एक जैसी ही होती है। मै अब तक यहां कुछ लोगो से मिलकर काफी प्रभावित हुआ था। मैक्स, था तो एक शिकारी लेकिन मुसीबत में फसे इंसानों को वो अपने घर ले जाकर सेवा करता और उन्हें सुरक्षित निकालता। वहीं उसकी पत्नी थिया, जिसने पहली मुलाकात में ही मेरी काफी मदद की। उसके बाद उसका दोस्त बॉब, जिसे मैंने लगभग जान से ही मार दिया था, लेकिन फिर भी वो मेरे पीछे आया, और वो भी अपने अतीत के एक टूटे रिश्ते के कहने पर।


ओशुन के बारे में मै क्या बताऊं। शुरवात के दिनों में मै जब यहां आकर जहालत झेल रहा था, पता ना बेहोशी में उसने मेरे लिए क्या-क्या किया हो। ये उसने मुझे आज तक कभी नहीं बताया। मै तो यहां लोगो की मानसिकता का भनक भी नहीं लगा पाता, यदि ओशुन ने मुझे सब बताया ना होता। ना ही कभी मैक्स, थिया और बॉब से मिलता।


ओशुन के साथ बात करते-करते मै इन्हीं सब बातो में डूब सा गया। तभी वो मुझे ख्यालों से बाहर लाती हुई पूछने लगी… "क्या हुआ कहां खो गए।"..


मै:- कुछ नहीं, तुम बताओ तुमने मुझे यहां क्यों भेजा।


ओशुन:- ब्लैक फॉरेस्ट का वुल्फ गांव। वुल्फ हाउस से पहले यहां यही था। मेरा गांव। प्यारा गांव..


ओशुन अपनी बात कहते थोड़ी ख़ामोश दिख रही थी। मुझे उसके अंदर का दर्द कुछ-कुछ समझ में आ रहा था लेकिन मै उसका इतिहास पूछकर और दर्द में नहीं डालना चाहता था, इसलिए उसका हाथ थामकर मै वहां से चल दिया।


कुछ देर बाद हम उस छोटे से झोपड़ी में थे, जो इस वक़्त हमारा आशियाना था। मैंने जब उस झोपडी को अंदर से देखा तो देखकर खिल गया। एक लड़की जो प्यार में है फिर अपनी भावनाए दिखाने के लिए कितनी छोटी-छोटी चीजों पर काम करती है। वो झोपड़ी अंदर से बिल्कुल हमारी तरह खिली हुई थी। मानो ओशुन ने झोपड़ी के अंदर जान डालकर अपनी भावना मुझसे बयां कर रही हो।


झोपड़ी के अंदर जारा भी धूल के निशान नहीं, चारो ओर उजाला फैला हुआ था। धूल, मिट्टी और अंधेरे के कारण ना दिखने वाले दीवारों का रंग बिल्कुल श्वेत और उसके पर्दे गहरे हरे रंग के। हर दीवार के कोने में कुछ फूल टंगे हुए थे, जो चारो ओर प्यारी खुशबू बिखेर रही थी। मै वहां की खुशबू अपने जहन में उतारकर, दोनो बाहें फैलाये लेट गया। ओशुन भी मेरे साथ लेटती, मेरी ओर करवट ली और मेरे सीने से अपने सर को लगाकर सोने लगी।


रात भर का मै भी जगा था। उसपर इस वक़्त का एहसास काफी आनंदमय और सुखद था। मैं आंख मूंदकर ओशुन को खुद में मेहसूस करने लगा। उसे मेहसूस करते कब मेरी आंख लग गयी, मुझे पता ही नहीं चला। जब मेरी आंख खुली तब हल्का अंधेरा हो रहा था। ओशुन तो मेरे पास नहीं थी लेकिन उसका एक पत्र मेरे पास पड़ा था, जिसमें उसने मेरे लिए संदेश था।..

"मै वुल्फ हाउस जा रही हूं। बिस्तर पर तुम्हारे लिये कपड़े पड़े है, नहाकर ये कपड़े पहन लेना और प्लीज बाहर मत निकालना। मै चांद निकलने से पहले तुम्हारे पास आ जाऊंगी।"


शाम ढल चुकी थी, और मै नहाकर तैयार हो चुका था। बिस्तर पर बैठकर मै ओशुन के बारे में कुछ सोचूं, उससे पहले ही वो दरवाजा खोल कर अंदर। उफ्फ क्या क़यामत लग रही थी वो। ऐसा लग रहा था कोई जहरीली जादूगरनी अपने नीली आखों से मेरा कत्ल करने वाली है। उसपर से उसके गहरे लाल रंग वाला वो पतला सा कपड़ा, जिसके ऊपर उसके कंधे खुले थे और बीचोबीच एक छोटा सा नेकलेस लटक रहा था। उस नेकलेस के आखरी में लगा सितारों के एक पत्थर, काफी मनमोहक लग रहा था जो रह-रह कर मेरा ध्यान खींच रहा था।


"क्या देख रहे हो।" .. ओशुन मुसकुराते हुये मेरे करीब आकर बैठी और मुझसे पूछने लगी। मैं उसके नेकलेस में लगे सितारे को अपने हाथो में लेकर… "बहुत प्यारा लग रहा है ये।"…


ओशुन:- मेरी मॉम का है। ये जगह छोड़ने से पहले उन्होंने मुझे दिया था।


मै:- तुम्हारी मॉम तुम्हे छोड़कर चली गयी?


ओशुन:- हां मेरे पापा अपने पैक के साथ रुक गये, मेरी मॉम अपने पैक के साथ चली गयी। बस जाते–जाते मुझे ये निशानी देकर गयी।


हम दोनों की बातें अभी शुरू ही हुई थी, ठीक उसी वक़्त ऐसा लगा जैसे मेरे पूरे शरीर में खिंचाव सा हो रहा है। फिर भी मै उन खिंचाव पर ज्यादा ध्यान ना देते हुए… "तुम्हारी मॉम भी तुम्हारी तरह खुएबूरत होंगी।"..


ओशुन:- हीहीही.. और मेरे डैड बदसूरत थे क्या?


मै:- कोई बेवकूफ और अड़ियल होगा, जो इतनी सुन्दर बीवी को जाने दिया।..


मै अपनी बात कह तो रहा था ओशुन से, लेकिन मुझे अंदर से कुछ अजीब, और दिल में ऐसी भावना जाग रही थी कि मै खतरे में हूं, ओशुन खतरे में है। वो दरिंदे ईडन के लोग हम पर हमला करने आ रहे है और मुझे किसी भी तरह से ओशुन की बचाना हैं। मै खुद में काफी विचलित मेहसूस करने के बावजूद, किसी तरह खुद को काबू किये हुये था और ओशुन का मुस्कुराता चेहरा इसमें मेरी पूरी मदद कर रहा था। शायद पहले पूर्णिमा का असर हो रहा था।


ओशुन:- मेरे डैडी बेवकूफ है और इस वक़्त तुम क्या कर रहे हो?


मै:- कुछ समझा नहीं..


ओशुन:- कुछ समझे नहीं या समझकर भी समझना नहीं चाहते। क्या तुम्हे यहां की खुशबू मेहसूस नहीं हो रही।


मै:- ओशुन सच कहूं तो इस वक़्त मुझे अजीब सी बेचैनी मेहसूस हो रही है। मेरा जी कर रहा है उस ईडन का मै गला धर से अलग कर दूं। उस लोपचे के शरीर के 100 टुकड़े करके पूछूं की मैत्री को क्यों उसने अकेले इंडिया जाने दिया। मुझे क्यों एक बार भी सूचना नहीं दिया।


मुझे ये एहसास ही नहीं हुआ कि कब मैंने अपना शेप शिफ्ट कर लिया और एक वेयरवुल्फ में तब्दील हो गया। ओशुन मेरी बात सुनकर मुस्कुराई और मेरा हाथ थामकर बोलने लगी… "अब भी मैत्री तुम्हारे दिल में है ना, इसलिए तुम मुझ से भावनात्मक जुड़ना नहीं चाहते। तालाब में केवल मेरे बदन को देखकर तुम एक्साइटेड हो गये थे।"..


ओशुन की बात सुनकर मै बिल्कुल ख़ामोश हो गया। मेरे अंदर की बेचैनी और घुटन एक किनारे और ओशुन का वो मुस्कुराता चेहरा दूसरी ओर, जो मुझसे ये जानने को इक्कछूक़ थी कि क्या मै उससे भावनाओ के साथ जुड़ा हूं, या केवल मेरी उत्तेजना थी जो तालाब के ओर मुझे खींच ले गयी थी?
Shandar update bhai
Aary to sabse phle jis trike se ooshun se top less hone ka bola uske baad uske sabhi jakhmo ko heel Kiya shandar anubhav
Wahi ooshun ne bhi apne pyar ke baare me batay aur izhar bhi kar di aur ab aary bs kisi tarah se lopche ko wolf house ja kar marna chahta hai bs ooshun kisi tarah se abhi roke huwe hai
 

Golu

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भाग:–81






ओशुन की बात सुनकर मै बिल्कुल ख़ामोश हो गया। मेरे अंदर की बेचैनी और घुटन एक किनारे और ओशुन का वो मुस्कुराता चेहरा दूसरी ओर, जो मुझसे ये जानने को इक्कछूक़ थी कि क्या मै उससे भावनाओ के साथ जुड़ा हूं, या केवल मेरी उत्तेजना थी जो तालाब के ओर मुझे खींच ले गयी थी?


मै अपनी उलझनों में खोया हुआ था और तभी ओशुन बिल्कुल मेरे गोद में चढ़कर अपने होंठ मेरे होंठ से लगाती हुई किस्स करना शुरू कर चुकी थी। मै असमंजस की स्तिथि में उसका साथ नहीं दे पाया। वो अपने होंठ मेरे होंठ से हटाकर… "क्या हुआ।"..


नज़रों में सवाल, चेहरे पर मुस्कान, मै उसकी ओर देखते हुये कहने लगा… "मैत्री दिल से गयी नहीं, इसका अर्थ ये नहीं की तुम दिल में नहीं हो ओशुन। बस तुम्हे यकीन कैसे दिलाऊं वो समझ में नहीं आ रहा। इस वक़्त मेरा दिल ना जाने कितने रफ्तार से धड़क रहा है। अपने ऊपर हुये हर जिल्लत का बदला लेने के लिये मेरा दिल कह रहा है उठो, अभी उठो.. उस ईडन और उसके तमाम लोगो को मार डालो। लेकिन दिल में उतरता ये तुम्हारा चेहरा कहीं मेरे नजरो से ओझल ना हो जाये इसलिए मै बदला को दबा कर अपने प्यार पर ध्यान दे रहा हूं।"..


"सीईईईईईईईईईईईईईईईई"…. बिल्कुल खामोश। जानते हो इस वक़्त मेरा दिल क्या कह रहा है।"… ओशुन अपनी बात कहती मुस्कान से भरे चेहरे पर थोड़ी शरारत लाती, मेरे दोनों हाथ अपने स्तन पर रख कर मुझे आंख मार दी, और वापस से मेरे होटों को चूमने लगी।


उसके होटों का स्पर्श ऐसा था कि मदहोशी के आलम में मै सब भुल सा गया। बेखयाली ऐसी थी कि मेरे हाथ उसके स्तनों को कभी मिज रहे थे तो कब उसे प्यार से सहला रहे थे और वो लगातार किस्स को बीच बीच में तोड़कर "आंह आंह" करती रही।


मेरे आंख व्याकुल हो चुके थे उसके जवान योबन को देखने के लिये। उसके स्तन भींचते हुये उसके नये कपड़े को खींचता रहा। तभी वो अपना किस्स तोड़ती मेरे आखों में देखकर मुकुराई। मेरे कान को दांत में दबाकर मेरे उपर से हटी और मुझे धक्के देकर लिटा दिया।


उत्तेजना में मै अपने पीठ को उठाकर ओशुन को देखने की कोशिश करता रहा और वो मुझे बार-बार लिटाकर ना जाने क्या कर रही थी। "आह्हहहहहहहहहहह" की आवाज अचानक से मेरे मुंह से निकली। मेरे उत्तेजना की आग पूरे चरम पर पहुंच गई। और जब मै उत्तेजना में उठकर ओशुन को देखने की कोशिश कर रहा था मुझे पता भी नहीं चला कब उसने मेरे नीचे के कपड़े निकालकर मुझे नंगा कर दिया था।


उत्तेजना में जलते मेरे लिंग पर उसके हाथ बिल्कुल बर्फ से ठंडे और मक्खन से मुलायम। लिंग पर ओशुन के नरम हाथ गहरा मादक लहर का सृजन कर रहा था। मै गहरी आवाज़ निकालने पर मजबूर हो गया और ओशुन.. "हिहि".. करती अपनी शरारत दिखाने लगी थी। उसके ठंडे मुलायम हाथ मेरे लिंग को पूरा शक्त बाना चुके थे, जान तो तब निकल गई जब उसने मेरे लिंग को अपने मुंह में लिया, और मुंह में लेकर वो चूसने लगी। लिंग का कुछ हिस्सा ओशुन के मुंह में था और नीचे उसका हाथ ऐसे सरसराते हुए रेंग रहा था कि मै पुरा छटपटा गया। मेरे कमर ख़ुद व खुद हिलने लगे।


मैं उठकर बैठ गया और उसके बाल को अपनी मुट्ठी में लेकर, अपने लिंग पर उसके सर को तेजी में आगे पीछे करता हुए पुरा अंदर तक डालकर कर रुक गया। उफ्फफफ क्या रोमांच था। मै उत्तेजना के पंख लगाए उड़ रहा था। "ऊम्मममममममम, ऊम्मममममममम" .. की दबी सी आवाज आने लगी, और ओशुन मेरे कमर के ऊपर तेज-तेज हाथ मारने लगी। "ईईईई .. ये क्या हो गया".. अपनी उत्तेजना में थोड़ा गुम हो गया और जब मैंने ओशुन के बाल छोड़े खांसती हुई वो किसी तरह अपने स्वांस को काबू करने लगी। उसके पुरा मुंह गीला हो गया था और मुंह से झाग निकल रहे थे।


ओशुन मेरे ऊपर कूदकर आयी और मेरा गला पकर कर गुस्से में… "जंगली पहली बार सेक्स कर रहा है क्या?"..


उसकी बात सुनकर मुझे हंसी आ गई। पूरे जोश से मैंने उसे उल्टा घुमा दिया। बिस्तर पर वो बाहें फैलाए लेटी हुई थी और मेरा शरीर ऊपर से उसे पुरा कवर किए हुए था। उसके दोनो हाथ मेरे हाथो के नीचे दबे थे और मै उसके नरम होंठ पर जीभ फेरते हुए उसकी आंखो में देखकर कहने लगा… "मेरा सेक्स करने का पहला अनुभव है और सेक्स देखने का जीरो।"..


मेरी बात सुनकर ओशुन खुलकर हसने लगी और मेरे कमर में अपने पाऊं फंसाकर अपने होंठ ऊपर करके मेरे होंठ छूने की कोशिश करने लगी। मुझे देख कर ये अच्छा लगा और मै अपने होंठ उसके होंठ से लगाकर चूमने लगा। हम दोनों पागलों कि तरह एक दूसरे को चूमे जा रहे थे। उत्तेजना में ओशुन अपने नाखून पुरा मेरे पीठ में घुसाए जा रही थी। तभी बीच से उसने अपना पाऊं मोड़कर अपने कपड़े को कमर तक चढ़ा ली और पाऊं से पैंटी को निकलकर मेरे लिंग को अपने योनि के थोड़ा अंदर घुसकर तेजी से घिसने लगी।


योनि पर लिंग घुसते वक़्त वो इतना तेज श्वांस ले रही थी कि उसका स्तन मेरे सीने को छूते हुए ऊपर तक दब जाते। एक लय में ये लगातार हो रहा था जो मुझे पागल बनाये जा रहा था। लिंग पर योनि का स्पर्श से मेरे शरीर में लहर दौरने लगा और मैंने पुरा झटका देकर लिंग को योनि के अंदर पुरा जड़ तक घुसाकर अपने कमर अटका दिया… ओशुन के हाथ बाहर थे जो मेरे चूतड़ को पूरी मुट्ठी में दबोचे थी और लिंग के अंदर जाते ही "ऊम्मममममममममम ऊम्ममममममममम".. की घुटती आवाज अंदर से आने लगी।


काफी मादक और मनमोहक आवाज़ थी जो मेरे अटके कमर में भूचाल लाने के लिए काफी थे। मेरे तेज-तेज झटको से पुरा पलंग "हूंच हुंच" की आवाज निकाल रहा था। "ऊम्ममममममममममम आह्हहहहहहहहहहह " की लगातार आवाज़ ओशुन के बंद मुंह से आ रही थी, जिसे मेरे होटों ने जकड़ रखा था। और मै धक्के पर धक्का मारते जा रहा था। हर धक्के में अपना अलग ही कसीस था और चरम सुख भोगने का अपना ही मजा।

वेयरवोल्फ बनने में पहले पूर्णिमा में मैं भी पूरे मज़े में अपना पहला सेक्स एन्जॉय कर रहा था। योनि के अंदर लिंग डालने का सुख ही कमाल का था और लगातार धक्के मार-मार कर वो सुख की प्राप्ति कर रहा था। फिर तो ऐसा लगा जैसे आखों के आगे अंधेरा छा गया हो। मेरे रोम-रोम से मस्ती की चिंगारी निकलने वाली हो। बदन पुरा अकड़ता जा रहा था श्वांस फुल सी गई और धक्के कि रफ्तार बिल्कुल चौगुनी। "आहहहहहहहहहहह" की तेज आवाज के साथ ही मैंने अपना सारा वीर्य निकालकर उसके पास ही निढल पर गया।


ऐसा लगा मानो पुरा शरीर हल्का हो गया हो। इतने आनंद में था कि अपना हाथ तक उठाने का मन नहीं कर रहा था। श्वांस धीरे-धीरे सामान्य होती चली गई और मै गहरी नींद में चला गया।


ऐसा लग रहा था मै कई दिनों बाद इतनी गहरी नींद में सोया था। जब जगा तो मीठी सी अंगड़ाई लेने लगा और हल्की सी रात की झलकियां मेरे दिमाग में चल रही थी। वो झलकियां याद आते ही जैसे अंग अंग में सुरसुरी दौड़ गयी हो। चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गयी और ओशुन से मिलने की चाहत बढ़ सी गई थी।


मैंने अपनी आंखें खोली और फटाफट उठ गया। दरवाजा खोला ही था कि झलकियों में एक बार देखे बिस्तर ने मेरा ध्यान खींच लिया। मै जितनी तेजी से बाहर जाने की सोच रहा था उतनी ही उदासीनता के साथ दरवाजे से अपना हाथ हटाया और बिस्तर के ओर देखने लगा।


आश्चर्य से मेरी आखें बड़ी हो गई। कलेजा बिल्कुल कांप गया। मै अपने सर को पकड़ कर वहां बिस्तर पर फैले खून, चिथरे हुये ओशुन के कपड़े और पास ही फैले तकिये के रूई को देखने लगा। मैंने आंख मूंद कर अपना कांपता हाथ बिस्तर के ऊपर रखा… "आह्हः ये हैवानियत थी।"…


तस्वीर धीरे-धीरे साफ हो रही थी जिसमे मुझे साफ दिख रहा ओशुन के ऊपर मै किसी चादर की तरह था जिसके नीचे वो कहीं दिख ही नहीं रही। मेरे पंजे ने उसके पूरे जिस्म को नोचा, पुरा लहूलुहान शरीर। उसकी हालत पर मै कांप रहा था और खुद की दरिंदगी को मै मेहसूस कर सकता था।


एक जानवर का खून जब बहता है तो मेरी आह निकलती थी, आज मै खुद को ही खून बहाने वाला जानवर मेहसूस करने लगा था। एक ओर ओशुन का वो प्यारा मुस्कुराता सा चेहरे, जिसमें ना जाने कितनी हसरतें और अरमान नजर आती थी, एक ओर दर्द से बेचैन उसका चेहरा जिसके ऊपर मैंने दर्द की कहानी जब लिखनी शुरू की तो ना जाने कब तक दर्द देता रहा।


घृणा, और केवल घृणा। खुद के लिए इस से ज्यादा कुछ नहीं बचा था।.. मै पागलों कि तरह चिल्लाया, घर की दीवार पर पूरी रफ्तार से अपना सर दे मारा। सर फट चुका था, खून बहना शुरू हो गया। मुझे अच्छा लगा। बस बुरा जो लग रहा था वो ये कि अब तक खड़ा कैसे है ये हैवान, मरा क्यों नहीं।


फिर से एक और तेज रफ्तार से मैंने अपना सर दीवार से दे मारा। कहां कितना फटा वो तो कुछ भी याद नहीं लेकिन आखों के आगे अंधेरा छा गया। चेहरे पर पानी गिरने से मेरी आखें खुली। आखें जब खुली तो सामने बॉब था, और मेरा सर ओशुन के गोद में।


"आप जाओ बॉब, मै हूं यहां। उठना भी मत लेटे रहो।"… ओशुन बॉब को वापस जाने के लिए जब कह रही थी तब मै उठने कि कोशिश कर रहा था, जिसकी प्रतिक्रिया में ओशुन मुझे डांटती हुई कहने लगी।" मै बस बॉब के जाने के लिये कह रही थी।"


बॉब:- तुम्हे पक्का यकीन है तुम दोनो को मेरी जरूरत नहीं।


आगे पीछे से लगभग हम दोनों साथ ही कहने लगे… "हां, आप जाओ।"..


बॉब उठकर वहां से चला गया। हम दोनों ही उसे कुछ दूर जाने की प्रतीक्षा करने लगे। जब लगा की वो दूर निकल गया होगा फिर मै तेजी से खड़ा हुआ और अपनी हैवानियत का नजारा देखने लगा। ओशुन के होंठ बीच से फटे थे जिस पर दांत के इस पार से उस पार निकलने का निशान थे। पूरा बदन फर वाले कपड़े से ढका हुआ था, समझते देर नहीं लगी कि अंदर खून अब भी रिश रहा होगा। उसके गुप्तांगों के भाग का ख्याल आया, जिसे सेक्स कि उत्तेजना में मैंने ना जाने कितने घंटो तक रौंदा था।


ख्याल विचलित करने वाले थे और इस वक़्त वहीं विचार दोबारा पूरे जोड़ से उफान पर था… "ये हैवान अब तक खड़ा क्यों है।".. तभी मेरे गालों पर लगातार थप्पड़ पड़ने लगे। इस थप्पड़ में ना तो कोई जोड़ था और ना ही कोई ताकत बस किसी तरह हाथ उठ रहा था और मेरे गाल से लग रहा था।


ओशुन खड़ी नहीं हो पा रही थी, लेकिन वो किसी तरह खड़ी थी। वो अपने फटे होंठ के दर्द से बोल नहीं पा रही थी, लेकिन फिर भी हिम्मत करके उसने बोलना शुरू किया। और सिर्फ बोली ही नहीं बल्कि चिल्लाती हुई बता रही थी….


"तुम्हे इतना बचाया है मरने के लिये। किसने कहा ये सब बेवकूफी करने, हां। तुम्हे यहां कुछ भी समझ में आता है या नहीं, या फिर सोच कर ही आये हो मेरी जिंदगी को तहस-नहस करके जाने की। तुम्हे समझ में नहीं आता की मै तुमसे कितना प्यार करती हूं बेवकूफ। या फिर अक्ल पर पर्दा पड़ा है।"…


ओशुन इतने दर्द में होने के बावजूद भी खुद के दर्द की परवाह किए बगैर मुझ पर चिल्ला रही थी। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसे खुद में समेटकर उसके पीठ पर हाथ फेरने लगा। तभी हल्की सी उसकी दर्द भरी सिसकी निकला गयी। मै उसे खुद से अलग करते… "प्लीज मुझे माफ़ कर दो।".. इतना कहकर मैं उसके ऊपर से वो फर वाले कपड़े उतारने लगा।


ओशुन एक कदम पीछे हटती… "मुझे कोई हील नहीं होना। कल के अंजाने में दिये जख्म मुझे कहीं ज्यादे प्यारे है, तुम्हारे जान बूझकर कलेजा चिर देने वाले जख्म से। मै सभी परिणाम सोचकर ही आगे बढ़ी थी, वरना उत्तेजित तो तुम 2 रात पहले भी थे। लेकिन तुम्हे यह बात क्यों समझ में आयेगी।"..


मैं उसकी बात सुनकर मुस्कुराया, उसके दोनो कंधे पकड़कर… "बस मुझे गलती समझ में आ गयी है अब तुम ज्यादा नाटक मत करो। जितना गुस्सा करना हो या चिल्लाना हो वो मेरे काम खत्म होने के बाद कर लेना।"..


मेरी बात सुनकर वो भी हल्का मुस्कुराई। मुंह से "ही ही" की वहीं जानी पहचानी आवाज़ निकलने वाली लेकिन दर्द से केवल उसकी सिसकी निकल रही थी। मैंने उसके कपड़े उतारे और कल जिस ख्याल से वो मेरे साथ रहने का मन बनाकर आयी थी वो ख्याल भी देख लिया। शायद यह कहना ग़लत होगा रूही की ओशुन ने अपने शरीर पर होने वाले अत्याचार के बारे में नही सोचा होगा। क्योंकि पहली बार मैंने जिस तरह से उसके स्तन को निचोड़ था और जख्मी किया था, उस हिसाब से वो पूरी गणना करके आयी थी।


पूरा बदन पर गहरे नाखून के खरोच थे, जो 2–3 सेंटीमीटर अंदर घुसाकर खरोच था। उसके गुप्तांगों के पास खरोच थे जबकि अंदर की पिरा का ज्ञान मुझे तब हुआ जब मैंने अपना हाथ लगाया। ओशुन इतने दर्द में थी कि राहत से छटपटा गयी। उसका दर्द जैसे-जैसे मेरे रगों में दौड़ रहा था मेरे आंसू बाहर आने लगे।


"कोई कैसे किसी का इतना दिये दर्द के बावजूद उससे प्यार कर सकती है। एक हैवान के लिए अपनी भावनाएं जाता सकती है।" मै बस इन्हीं बातों पर सोच था। उधर ओशुन अपने बदन से दर्द को उतरता मेहसूस कर दबी सी आवाज में राहत भरी लंबी "आह्हहहह" भर रही थी। जब सब सामान्य हुआ तब ओशुन गहरी श्वास ले रही थी। आंनद के भाव उसके चेहरे पर थे जिसे वो आंख मूंदकर मेहसूस कर रही थी। उसे सुकून में आखें मूंदे देख मै भी राहत के श्वांस लेने लगा। वो पूर्णतः हील हो चुकी थी लेकिन उसके बदन पर गहरे पंजे के निशान रह गये थे।


मुझे अफ़सोस सा हो रहा था। इतने खूबसूरत और मखमली बदन पर इतने सारे खरोच के निशान मैंने बाना दिए। मै गौर से ओशुन का चेहरा देखने लगा, कहीं चेहरे पर कोई दाग तो नहीं दे दिया, लेकिन शुक्र है वहां कोई निशान नहीं थे। हां दो दांत के निशान जरूर पड़े थे होठों पर लेकिन वो अंदर के ओर से थे जो बाहर से बिल्कुल भी नजर नहीं आते।


"घन घन घन".. टैटू नीडल मशीन के चलने की आवाज जैसे ही आयी, ओशुन अपनी सुकून कि गहराइयों से बाहर आती, उठने की कोशिश करने लगी। मैंने उसे लेटे रहने के लिए कहने लगा। 6 घंटे तक उसे जबरदस्ती लिटाये रखा। मेरा काम जब खत्म हुआ तब मैंने वापस से स्किन को हील किया… "लो हो गया।"..


जैसे ही मैंने "हो गया" कहा वो भागकर गयी और सुकून भरी श्वांस खींचती वाशरूम से बाहर आयी.. "यूं मैड, जबरदस्ती फंसाकर रखा था। 6 बार मै पागल की तरह बोल रही हूं रुको मुझे आने दो, लेकिन एक ये है, एक साथ पूरे काम करके उठना है।"..


ओशुन अपनी भड़ास निकाल रही थी, तभी शायद उसकी नजर टैटू पर गई होगी… "वाउ आर्य, ओह माय गॉड, ओह माय गॉड, ओह माय गॉड।"… वो खुशी से उछल रही थी। उसकी खुशी देखते बन रही थी।.. "कपड़े तो पहन लो कम से कम, और तुम्हे भूख नहीं लगी है क्या?"


ओशुन:- कपड़े पहन लिए तो टैटू कैसे दिखेंगे। मै तो अब कपड़े पहनने से ज्यादा उतारने में विश्वास रखुंगी।


मै:- हाहाहाहा… अरे अरे अरे.. मतलब ऐसे न्यूड होकर टैटू की नुमाइश।


ओशुन:- हां तो.. रुको तुम मेरी कुछ पिक्स ले लो, आज ही अपलोड करूंगी।


अपनी बात कहकर वो अपने एक हाथ से दोनो स्तन को लपेट कर छिपा ली, नीचे एक पतली सी पैंटी को केवल इतना ही हिस्सा कवर करे जो योनि का भाग हो, और तैयार हो गयी। मेरी हंसी निकल गई। हां ये भारत और जर्मनी का कल्चरल डिफरेंस था। भारत में जो अपवाद केस होते है, यहां के लिये सामान्य होता है।


बेमन, मै जला बुझा सा तस्वीर खींचने लगा… वो तरह तरह को मुद्रा (pose) में तस्वीर खींचवाने लगी। तकरीबन 100-150 तस्वीरें उसने खिंचवाई, और अपने लैपटॉप में हर तस्वीर को देखने लगी। हर तस्वीर को देखकर वो अपनी उत्साह से भरी प्रतिक्रिया देती, और मेरा दिल ये सोचकर जल रहा था कि अब सोशल मीडिया पर सब इसे घूरेंगे। शुद्ध भाषा में कहा जाये तो मेरी झांटें सुलग रही थी और इस लड़की को अपने सोशल मीडिया पर बस सेक्सी, हॉट बेब और ना जाने किस किस तरह के कमेंट की भूख थी।
Jabardast update
Kya hi kahi kya hi intimate huwe hai dono aur aarya ka wo wild ho kar wild rup ke sex shandar
Jiske baare me hosh me aane ke baad pata chala use uske baad tattoo ke liye use 6 hour jabardasti lete rhne ke liye kahna
Aur tattoo ko dekh kar ooshun ki khushi sb kuch shandar
 

Golu

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भाग:–82






शुद्ध भाषा में कहा जाये तो मेरी झांटें सुलग रही थी और इस लड़की को अपने सोशल मीडिया पर बस सेक्सी, हॉट बेब और ना जाने किस किस तरह के कमेंट की भूख थी।


भूख से एक बात और याद आ गयी। 6 घंटे से मै टैटू बना रहा था। उसके पहले ना जाने कितनी देर से मेरे पास बैठी थी। इसे भूख ना लगी थी क्या? एक बात जो उस वक़्त पता चल गयी, लड़कियां सोशल मीडिया का ध्यान खींचने के चक्कर में कितने देर भी भूखे प्यासे रह सकती है। उसका तो पता नहीं लेकिन मुझे तो भूख लगी थी, इसलिए मैंने ही पूछ लिया… "ओशुन तुम्हे भूख नहीं लगी क्या?"..


मै उसके कंधे से लदा था और वो अपने होंठ मेरे होंठ से लगाकर छोटा सा किस्स करती… "हनी, आज तुम्हारे साथ ही खाना खा लूंगी, जल्दी से हम दोनों के लिये कुछ टेस्टी और गरमागरम पका दो ना।"..


शुक्र है उन कपल की तरह इसने नहीं कहा "मेरे लिये पका दो ना। ये मेरे मां के साथ रही तो मै पक्का ही पीस जाऊंगा। भगवान इसे भारत में रहने लायक कुछ सद्बुद्धि दो, वरना ये ब्लैक फॉरेस्ट के थ्रिल तो आज ना कल संभाल ही लूंगा, लेकिन ओशुन की चाहत में यदि इसे घर ले गया तो फैमिली थ्रिल नहीं संभलने वाला।"


जैसे ही घर की बात सोची, मुझे घर की याद आने लगी। मां की, पापा की, निशांत, चित्रा, भूमि दीदी सब मुझे याद आने लगे। कैसे होंगे वो? मुझे लेकर परेशान तो नहीं होंगे? मै इन्हीं सब बातो में खोया, चोरी से उनका सोशल प्रोफाइल देखने लगा। आखों में तब आशु आ गये जब चित्रा का वो पोस्ट देखा.. "घर वापस आ जा आर्य, अब कितना रूठा रहेगा।"..


"क्या हुआ आर्य, तुम ठीक तो हो ना।"… ओशुन मुझे टोकती हुई पूछने लगी।


मैं बस खामोशी से कहा कुछ नहीं, और किचेन के ओर जाने लगा। मेरे पीछे–पीछे वो भी आ गयी।… "तुम आराम से किचेन स्लैब पर बैठो, मै खाना पकाती हूं।"


मै:- नहीं रहने दो, मै पका लेता हूं।


ओशुन:- कही ना बैठ जाओ। सॉरी मुझे कुछ बातो का ध्यान बाद में आया।


मै:- कौन सी बात..


ओशुन:- मैत्री अक्सर यू ट्यूब से तरह-तरह के साकहारी डिशेज बनाना सीखती थी। जब मै पूछती की इन सब की क्या जरूरत है? तब वो कहती कि तुम नहीं समझोगी, किसी के लिये पकाना कितना अच्छा लगता है। जब भी आर्य अपनी मां के हाथ का बना खाना मुझे खिलाता, ऐसा लगता था दुनिया जहां के सारे लजीज खाने उसके आगे फिके है। अक्सर हम दोनों की बहस इस बात के लिये भी हो जाती, जब मै उसे कुछ सेक्सी पोज में तस्वीर पोस्ट करने कहती, वो हमेशा ना कह दिया करती थी। पूछने पर वही जवाब, आर्य को अच्छा नहीं लगेगा। मुझे ये नहीं समझ में आता की किसी की आज़ादी को छीनकर दूसरो को क्या मज़ा आता होगा? पता नहीं क्यों मै भी अपनी आज़ादी को खोते हुये मेहसूस कर रही हूं, लेकिन मुझे जारा भी बुरा नहीं लग रहा।


मै ओशुन की बात सुनकर क्या कहता, ऐसा लगा जैसे नारद जी ऊपर देव लोक में बैठकर किसी नए सॉफ्टवेर का आविष्कार कर चुके हैं। इधर फरियादी ने अर्जी डाली और उधर यदि भगवान ने अर्जी ना सुनी तो नारद जी ब्रेकिंग न्यूज तीनों लोकों में चला देते होंगे। ऐसा लग रहा था कहावत ही बदल दू, और नई कहावत बाना दूं, भगवान के घर ना तो देर है और अंधेर तो कभी रहा ही नहीं।


बहरहाल वो 10 दिन मेरे लिये काफी हसीन रहे रूही। ऐसा लगा मै किसी स्वपन नगरी में हूं। हसीन लम्हात और प्यारे-प्यारे ज़ज्बात थे। हम छोटी–बड़ी खुशियां समेटे बस एक दूसरे में खोकर ब्लैक फॉरेस्ट में अपनी जिंदगी के सबसे हसीन लम्हात को मेहसूस कर रहे थे, जो वर्षों पहले मैंने मैत्री के साथ किया था।


ओशुन के साथ रहकर मैंने अपने अंदर के बदलाव को हंसकर स्वीकार किया। मैंने ब्लैक फॉरेस्ट के लगभग 1200 पेड़ को हील किया था। लगातार पेड़ों के हील करने के कारण मेरे आखों का रंग बदल कर नीला हो गया था। बॉब के अनुसार यह एक स्वाभाविक बदलाव था, जो कि बहुत सारे टॉक्सिक अपने जिस्म में समेटने के कारण हुआ था।


इसी के साथ ओशुन मुझे इक्छा अनुसार शेप शिफ्ट करना भी सीखा रही थी। मुश्किल था ये, क्योंकि शेप या तो गुस्से के कारण शिफ्ट होता या एक्साइटमेंट के कारण। इसके अलावा खुद से कितनी भी कोशिश कर लो होता ही नहीं था। गुस्से की अब कोई वजह नहीं थी और मै अपनी हैवानियत से इतना डारा हुआ था कि एक्साइटमेंट को उस दिन के बाद फिर कभी बढ़ने ही नहीं दिया।


मुझे आये लगभग 8 दिन हो गये थे। इन 8 दिनों में ओशुन ने मुझे वुल्फ हाउस के लोगों से पुरा छिपा कर रखा था। मेरे जेहन में वुल्फ हाउस का किस्सा मात्र एक कड़वी याद बनकर रह गयी थी, जिसे मै याद नहीं करना चाहता था। दोनो झील किनारे बैठे एक दूसरे को देख रहे थे। यहां हम दोनों किसी रोमांटिक मोमेंट में नहीं थे बल्कि मै हंस रहा था और ओशुन काफी खफा थी… "पागलों की तरह तुम्हारा ये हंसना मुझे इरिटेट कर रहा है।".. ओशुन चिढ़ती हुई मुझपर चिल्ला रही थी।


मैंने ओशुन का चेहरा पकड़ कर अपने गोद में लिया और होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगा। लेकिन वो काफी गुस्से में लग रही थी। मुझे धक्का देकर खड़ी हो गयी और घूरती हुई कहने लगी… "1-2 दिन बाद तो मुझे छोड़कर जा ही रहे हो, अभी चले जाओ ना।"


मै:- तुम अच्छी टीचर नहीं हो ओशुन, इसलिए मै अब तक शेप शिफ्ट करना नहीं सीख पाया हूं।


ओशुन:- सॉरी, मै थोड़ा ओवर रिएक्ट कर रही थी, लेकिन तुम भी कहां ध्यान दे रहे हो। शेप शिफ्ट करना ऐसा नहीं है कि तुम सोच लोगे और शेप शिफ्ट कर गया। किसी जिम्नास्टिक का अभ्यास करते लोगो को देखा है?


मै:- हां देखा है।


ओशुन:- आम इंसानों के मुकाबले उनका शरीर इतना लचीला कैसे हो जाता है?


मै:- वो रोजाना प्रैक्टिस करते है। और माफ करना उनका कोच भी उनके अभ्यास को सही दिशा में ले जाता है।


ओशुन:- यदि ऐसा होता तो दुनिया का हर इंसान जिम्नास्टिक सीखता। कोई किसी को तबतक कुछ सीखा नहीं सकता जबतक वो खुद में जुनून ना पैदा करे।


मै:- विश्वास करो मैंने स्वीकार कर लिया है कि मै क्या हूं, और मुझे जरा भी अफसोस नहीं।


ओशुन:- गुड, सुनो हनी जिम्नास्टिक सीखनेवाले जैसे बिल्कुल खोकर अपने अंदर वो लचीलापन मेहसूस करते है और फिर कई तरह को कलाएं दिखाते है। मै चाहती हूं तुम भी वैसे ही अपने अंदर की ताकत को बस खोकर मेहसूस करो। शेप शिफ्ट के बारे में ध्यान मत दो। तुम्हे खुद से एहसास हो जायेगा की तुम्हारा शेप शिफ्ट कर गया।


ओशुन की बात पर मै हां में अपना सर हिलाया और कुछ दूरी पर खड़ा होकर अपनी आखें मूंद ली। अपने अंदर हुये बदलाव को मुस्कुराकर मेहसूस करते हुये मै अपने शरीर को ढीला छोड़कर बस अंदर रक्त के संचार को मेहसूस कर रहा था। धड़कने बिल्कुल काबू में थी और सामान्य रूप से एक लय में धड़क रही थी। कानो में दूर तक की सरसराहट सुनाई पड़ रही थी। मेरी मांसपेशियों में अजीब सा खिंचाव होते मै मेहसूस कर रहा था और हर मांसपेशी से मुझे असीम ताकत की अनुभूति हो रही थी।


खिंचाव बढ़ता चला जा रहा था और उसी के साथ मै और भी ज्यादा बढ़ती ताकत को मेहसूस कर रहा था। यह पहला ऐसा अवसर था, जब इतने दिनों में मै अपने अंदर कभी ना खत्म होने वाली एक ऊर्जा को मेहसूस कर रहा था। तभी मेरे सीने पर एक नरम हाथ पड़ने का एहसास हुआ। मै समझ चुका था ये ओशुन का हाथ था जो मेरे सीने पर रखकर मेरी बढ़ी धड़कने चेक कर रही थी। मै अपनी आंख खोलकर उसे देखा, और देखकर मुसकुराते हुए… "क्या लगता है ओशुन मै गुस्से या उत्तेजना के कारण वुल्फ में बदला हूं।"


"जान निकाल दी तुमने।"… कहती हुई ओशुन मेरे पंजे अपने छाती पर रखकर अपनी बढ़ी धड़कन को महसूस करने के लिये कहने लगी।


मै वापस से अपना शेप शिफ्ट करके अपने वास्तविक रूप में आते हुये… "लगता है आज तुम काफी उत्तेजित हो गयी हो।"


ओशुन:- काफी नहीं काफी से भी ज्यादा आर्य। क्या तुम जानते हो अभी जब तुमने शेप शिफ्ट किया तो बीस्ट वुल्फ बिल्कुल भी नहीं लगे।


मै:- हां, वो मैंने भी अपना हाथ देखा। मेरा वुल्फ शरीर आज काला की जगह चमकता उजला क्यूं दिख रहा था?


ओशुन:- क्योंकि तुम एक श्वेत वुल्फ ही हो आर्य। इससे पहले का शेप शिफ्ट बस केवल विकृत मानसिकता की देन थी, जो तुम्हारे बस में नहीं था। ये तुम्हारा असली स्वरू है। जिस चरित्र के तुम हो, ठीक वैसा ही तुम्हारा शरीर। मै तो इस कदर आकर्षित थी कि क्या बताऊं। उत्तेजना से रौंगते खड़े हो गये। प्लीज एक बार और अपना शेप शिफ्ट करो ना बहुत ही मस्त फीलिंग थी। मै तो सोच रही हूं जिस वक़्त तुम अपना शेप शिफ्ट करोगे तब मदा वूल्फ की क्या हालत होगी...


मै:- मतलब..


ओशुन:- मतलब डफर वो तो एक्साइटमेंट से पागल हो जायेगी। तुम्हारे साथ सेक्स के लिए टूट पड़ेगी।


मै:- कोई परफ्यूम का एड चल रहा है जो छोड़िया मरी जायेगी मेरे लिये।


ओशुन:- अच्छा तुम भी तो मेरे बदन पर आकर्षित हुये थे। पहली बार वुल्फ हाउस में दूसरी बार झील में।


मै:- ओह हो तो झील वाला कांड तुम्हारा किया हुआ था।


ओशुन:- ही ही.. नहीं वो मैंने जान बूझकर नहीं किया था। बस यूं समझ लो कि कुछ लोगों के पास आकर्षित करने जैसी शक्ति होती है, जैसे कि हम दोनों में है। बातें बहुत हो गयी। चलो ना शेप शिफ्ट करो। मुझे वो एक्साइटमेंट फील करना है।


मै:- नाह मै नहीं करता। मुझे अभी पेड़ को हील करना है।


ओशुन:- मै भी तड़प रही हूं, प्लीज मुझे भी हील कर दो।


मै:- ना मतलब ना..


वहां उस वक़्त हम दोनों के बीच तीखी बहस चली। मै ओशुन को छेड़ रहा था और ओशुन चिढ़ रही थी, बड़ा मज़ा आ रहा था तड़पाने में। जब लगा ओशुन कुछ ज्यादा ही नाराज हो गयी है, तब मुस्कुराते हुये उसके कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया। "आउच" की आवाज उसके मुंह से निकली और वो मेरे सीने से आकर चिपक गयी।"..


"अरे देखो तो कौन है यहां। क्या ओशुन हमारे खिलौने के साथ अकेली मज़े ले रही हो।"… वुल्फ हाउस के किसी पैक के बीटा ने हमे कहा।


ओशुन, घबराकर मुझे अपने पिछे ली। मै उसकी घबराई धड़कन को मेहसूस कर सकता था। शायद चेहरे से वो जताना नहीं चाहती थी इसलिए, खुद की घबराहट को काबू करते हुये…. "अज़रा ये मेरे और ईडन कि बीच की बात है, मै उससे बात कर लुंगी। बेहतर होगा तुम यहां से चले जाओ।"..


अज़रा यालविक, यहां वुल्फ हाउस के यालविल पैक का एक बीटा था जो अपने 3 साथियों के साथ इस ओर भटकता हुआ चला आया। ओशुन की बात सुनकर तीनों ही हंसने लगे। मेरी नजरें उन तीनों को देख रही थी। मेरा गुस्सा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। शायद ओशुन ये बात समझ रही थी, इसलिए वो मेरी हथेली जोड़ से थामी, और मेरे ओर मुड़कर, मेरे होंठ से होंठ लगाकर, पूरे सुरूर में किस्स करती अलग हुई और अपना गर्दन थोड़ा पीछे मोड़कर उनसे कहने लगी… "मेरा प्यार है ये, अब निकलो यहां से। वरना मै भुल जाऊंगी की तुम तीनों मेरे फर्स्ट अल्फा के पैक से हो। और हां किसी को यहां आने की जरूरत नहीं है। हम दोनों ही जरा अपना ये मिलन का काम, जो तुम्हारी वजह से बीच मे रोकना पड़ा था, उसे पूरा करके आते है। अब भागो यहां से।"..


ओशुन के चिल्लाते ही वो लोग वहां से भाग गये। ओशुन मेरा हाथ पकड़कर तेजी से उस ओर भागने लगी, जिस गांव में मुझे वो पहले लेकर आयी थी… "आर्य तुम यहां से ठीक सीधे, पूर्वी दिशा की ओर भागो। कुछ दूर आगे वुल्फ की सीमा है, उसके आगे ये नहीं जा पायेंगे।"


मै:- और तुम ओशुन..


ओशुन:- मै चाहकर भी कहीं नहीं जा सकती आर्य। हम ब्लड पैक से जुड़े है, जबतक ब्लड पैक नहीं टूटता तब तक हम बंधे हुये है।


ओशुन की बात सुनकर मेरी आखें फ़ैल गयी। मै उसे हैरानी से देखने लगा। शायद वो मेरे अंदर के सवाल को भांप गई…. "हां मैत्री भी ब्लड पैक में थी। वो ब्लड पैक तोड़कर गयी थी और उसकी सजा खुद उसके भाई ने दी थी। ईडन चाहती तो मैत्री को यहीं खत्म कर देती। लेकिन मैत्री जिसके लिये बगावत करके गयी थी, ईडन उसे भी मरता हुये देखना चाह रही थी। इसलिए भारत में तुम्हें ट्रैप किया गया था। सुहोत्र तुम्हे मारने की योजना बना ही रहा था, उस से पहले ही वो शिकारियों के निशाने पर आ गया। तुम्हे पता न हो लेकिन मैत्री को मारने के बाद सुहोत्र ने अपनी बहन के गम से 4 इंसानों को नोचकर खाया था। पागलों की तरह हमें बता रहा था कि इन्ही इंसानों के वजह से मैत्री की जान गयी। न उसे एक इंसान (आर्यमणि) से प्यार होता और न ही वो मरती। शिकारियों ने उसे मार ही दिया होता लेकिन यहां आना शायद तुम्हारी किस्मत थी, इसलिए अनजाने में सुहोत्र की ही जान बचा लिये। ब्लड ओथ से बंधे होने के कारण, मै तुम्हे ये सच्चाई नहीं बता पायी। लेकिन अब कोई गिला नहीं। आर्य अब तुम जाओ यहां से।"


मै:- तुम्हे छोड़कर चला जाऊं। तुम्हे मुसीबत में फंसे देखकर।


ओशुन:- "ये गांव देख रहे हो। इस गांव को ईडन ने केवल इसलिए उजाड़ दिया था, क्योंकि ईडन के पैक का एक वुल्फ मेरी मां से पागलों कि तरह प्यार कर बैठा। ईडन को प्यार और बच्चे से कोई ऐतराज नहीं था, बस जो उसके कानों में नहीं जाना चाहिए वो है पैक तोड़कर जाने की इच्छा।"

"अब तुम समझ सकते हो कीन हालातों में मेरी मॉम को यहां से भागना पड़ा होगा। उसके हाथ से 2 दिन का जन्म लिया हुआ बच्चा छीन लिया गया था। इस पूरे गांव पर ईडन नाम का कहर बरस गया। मेरी मॉम और उसके कुछ लोग किसी तरह अपनी जान बचाने में कामयाब हुये थे बाकी सब मारे गये।"

"ईडन यहां पर कहर बरसा कर जब लौटी फिर मेरे डैड को भी नहीं छोड़ा था। और मै 2 दिन के उम्र में ही ईडन से ब्लड ओथ से जुड़ गयी। मैंने किसी भी विधि से पैक तोड़ने की बात नहीं की है, इसलिए मै सेफ हूं आर्य। और यदि तुम मुझे पुरा सेफ देखना चाहते हो तो प्लीज लौटकर मत आना। नहीं तो वो ईडन हम दोनों को मार देगी। हनी लिस्टेन, मुझे यदि जिंदा देखना चाहते हो तो यहां फिर कभी लौटकर मत आना।"


उसकी बात सुनकर मै वहां से निराश होकर आगे बढ़ गया। मै जैसे ही आगे जाने के लिए मुड़ा, पीछे से मुझे तेज सरसराहट की आवाज सुनाई दी, जो करीब से दूर होते जा रही थी। ओशुन वहां से निकल गयी थी। मै भी अपने बोझिल क़दमों से चला जा रहा था।


जिस एक कत्ल (मैत्री) का दोषी मै किसी और को समझ रहा था, जिस सवाल ने मुझे भूमि दीदी को अपना दुश्मन बना रखा था। उसका जवाब मुझे मिल चुका था। शायद मेरा वुल्फ हाउस आना मैंने नहीं तय किया था, लेकिन वुल्फ हाउस से वापस जाना मै खुद तय कर सकता था। मैत्री के मौत का जवाब मिल तो गया था, लेकिन ब्लैक फॉरेस्ट की कहानी मै अधूरी छोड़कर जा रहा था।
Shandar update
Aur phle to photo shoot uske baad social media pe photos upload karne ki baat Jaan kar aarya ki jhaante sulagna kya hi feeling thi aarya ki
Uske baad waha rah ke 1200 pedo ko heel karne ke baad aarya ko apna real roop mila jo ki kala na ho ke swet aur pure wolf jo ki is samay ka iklauta
Aur yha bhi ye is black forest ko yuhi aadha kaam kar ke chor ke ja raha jaha ek baar phir se wo ooshun ke baare me kuch khaas nhi soacha ki jb pta chlega to uske baad ooshun ka kya hoga aur is baar ka natiza ooshun ka mrit sarir ab aary ko mil chuka hai jiske karan is black forest ka black day ke bare me pta chla ki survival kaisa tha aarya ka waha
 

Lib am

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एक बार फिर वीकेंड पर धोखा हुआ है हमारे साथ।

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Suniya

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भाग:–१





जंगल का इलाका। कोहरा इतना गहरा की दिन को भी सांझ में बदल दे। दिन के वक़्त का माहौल भी इतना शांत की एक छोटी सी आहट भयभीत कर दे। यदि दिल कमजोर हो तो इन जंगली इलाकों से अकेले ना गुजरे।


हिमालय की ऊंचाई पर बसा एक शहर गंगटोक, जहां प्रकृति सौंदर्य के साथ-साथ वहां के विभिन्न इलाकों में भय के ऐसे मंजर भी होते है, जिसके देखने मात्र से प्राण हलख में आ जाए। दूर तक फैले जंगलों में कोहरा घना ऐसे मानो कोई अनहोनी होने का संकेत दे रहा हो।



2 पक्के दोस्त, आर्यमणि और निशांत रोज के तरह जंगल के रास्ते से लौट रहे थे। दोनो साथ-साथ चल रहे थे इसलिए एक दूसरे को देख भी पा रहे थे, अन्यथा कुछ मीटर की दूरी होती तो पहचान पाना भी मुश्किल होता। रोज की तरह बातें करते हुए घने जंगल से गुजर रहे थे।


"कथाएं, लोक कथाएं और परीकथाएं। कितने सच कितने झूट किसे पता। पहले प्रकृति आयी, फिर जीवन का सृजन हुआ। फिर ज्ञान हुआ और अंत में विज्ञान आया। प्रकृति रहस्य है तो विज्ञान उसकी कुंजी, और जिन रहस्यों को विज्ञान सुलझा नहीं पता उसे चमत्कार कहते हैं।"

"ऑक्सीजन और कार्बन डाय ऑक्साइड के खोज से पहले भी ये दोनो गैस यहां के वातावरण में उपलब्ध थे। किसी वैज्ञानिक ने इन रहस्यों को ढूंढा और हम ऑक्सीजन और कार्बन डाय ऑक्साइड के बारे में जानते है। कोई ना भी पता लगता तो भी हम शवांस द्वारा ऑक्सीजन ही लेते और यही कहते भगवान ने ऐसा ही बनाया है। सो जिन चीजों का अस्तित्व विज्ञान में नहीं है, इसका मतलब यह नहीं कि वो चीजें ना हो।"..


"सही है आर्य। जैसे कि नेगेटिव सेक्स अट्रैक्शन। हाय क्लास में आज अंजलि को देखा था। ऐसा लग रहा था साइज 32 हो गए है। साला उसके ऊपर कौन हाथ साफ कर रहा पता नहीं, लेकिन साइज बराबर बढ़ रहे है। और जितनी बढ़ रही है, वो दिन प्रतिदिन उतनी ही सेक्सी हुई जा रही है।"…


दोनो दोस्त बात करते हुए जंगल से गुजर रहे थे, तभी पुलिस रेडियो से आती आवाज ने उन्हे चौकाया…. "ऑल टीम अलर्ट, कंचनजंगा जाने वाले रास्ते से एक सैलानी गायब हो गई है। सभी फोर्स वहां के जंगल में छानबीन करें। रिपीट, एक सैलानी गायब है, तुरंत पूरी फोर्स जंगल में छानबीन करे।"… पुलिस कंट्रोल रूम से एक सूचना जारी किया जा रहा था।


निशांत, गंगटोक अस्सिटेंट कमिश्नर राकेश नाईक का बेटा था। अक्सर वो अपने साथ पुलिस की एक वाकी रखता था। वाकी पर अलर्ट जारी होते ही….


निशांत:— आर्य, हम तो 15 मिनट से इन्हीं रास्तों पर है, तुमने कोई हलचल देखी क्या?"..


आर्यमणि, अपनी साइकिल में ब्रेक लगाते… "हो सकता है पश्चिम में गए हो, लोपचे के इलाके में, और वहीं से गायब हो गए हो।"


निशांत:- हां लेकिन उस ओर जाना तो प्रतिबंधित है, फिर ये सैलानी क्यों गए?


आर्यमणि और निशांत दोनो एक दूसरे का चेहरा देखे, और तेजी से साइकिल को पश्चिम के ओर ले गए। दोनो 2 अलग-अलग रास्ते से उस सैलानी को ढूंढने लगे और 1 किलोमीटर की रेंज वाली वाकी से दोनो एक दूसरे से कनेक्ट थे। दोनो लोपचे के इलाके में प्रवेश करते ही अपने साइकिल किनारे लगाकर पैदल रस्तो की छानबीन करने लगे।


"रूट 3 पर किसी लड़की का स्काफ है आर्य"…. निशांत रास्ते में पड़ी एक स्काफ़ उठाकर देखते हुए आर्य को सूचना दिया और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। तभी निशांत को अपने आसपास कुछ आहट सुनाई दी। एक जानी पहचानी आहट और निशांत अपनी जगह खड़ा हो गया। वाकी के दूसरे ओर से आर्यमणि भी वो आहट सुन सकता था। आर्यमणि निशांत को आगाह करते.…. "निशांत, बिल्कुल हिलना मत। मै इन्हे डायवर्ट करता हूं।"…


निशांत बिलकुल शांत खड़ा आहटो के ओर देख रहा था। घने जंगल के इस हिस्से के खतरनाक शिकारी, लोमड़ी, गस्त लगाती निशांत के ओर बढ़ रही थी, शायद उसे भी अपने शिकार की गंध लग गई थी। तभी उन शांत फिजाओं में लोमड़ी कि आवाज़ गूंजने लगी। यह आवाज कहीं दूर से आ रही थी जो आर्यमणि ने निकाली थी। निशांत खुद से 5 फिट आगे लोमड़ियों के झुंड को वापस मुड़ते देख पा रहा था।


जैसे ही आर्यमणि ने लोमड़ी की आवाज निकाली पूरे झुंड के कान उसी दिशा में खड़े हो गए, और देखते ही देखते सभी लोमड़ियां आवाज की दिशा में दौड़ लगा दी।… जैसे ही लोमड़ियां हटी, आर्यमणि वाकी के दूसरे ओर से चिल्लाया.…. "निशांत, तेजी से लोपचे के खंडहर काॅटेज के ओर भागो... अभी।"


निशांत ने आंख मूंदकर दौड़ा। लोपचे के इलाके से होते हुए उसके खंडहर में पहुंचा। वहां पहुंचते ही वो बाहर के दरवाजे पर बैठ गया और वहीं अपनी श्वांस सामान्य करने लगा। तभी पीछे से कंधे पर हाथ परी और निशांत घबराकर पीछे मुड़ा…. "अरे यार मार ही डाला तूने। कितनी बार कहूं, जंगल में ऐसे पीछे से हाथ मत दिया कर।"


आर्यमणि ने उसे शांत रहने का इशारा करके सुनने के लिए कहा। कानो तक बहुत ही धीमी आवाज़ पहुंच रही थी, हवा मात्र चलने की आवाज।… दोनो दोस्तों के कानो तक किसी के मदद की पुकार पहुंच रही थी और इसी के साथ दोनो की फुर्ती भी देखने लायक थी... "रस्सी निकाल आर्य, आज इसकी किस्मत बुलंदियों पर है।"..


दोनो आवाज़ के ओर बढ़ते चले गए, जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे आवाज़ साफ होती जा रही थी।… "आर्य ये तो किसी लड़की की आवाज़ है, लगता है आज रात के मस्ती का इंतजाम हो गया।".. आर्यमणि, निशांत के सर पर एक हाथ मारते तेजी से आगे बढ़ गया। दोनो दोस्त जंगल के पश्चिमी छोड़ पर पहुंच गए थे, जिसके आगे गहरी खाई थी।


ऊंचाई पर बसा ये जंगल के छोड़ था, नीचे कई हजार फीट गहरी खाई बनाता था, और पुरे इलाके में केवल पेड़ ही पेड़। दोनो खाई के नजदीक पहुंचते ही अपना अपना बैग नीचे रखकर उसके अंदर से सामान निकालने लगे। इधर उस लड़की के लगातार चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी….. "सम बॉडी हेल्प, सम बॉडी हेल्प, हेल्प मी प्लीज।"…


निशांत:- आप का नाम क्या है मिस।


लड़की:- मिस नहीं मै मिसेज हूं, दिव्य अग्रवाल, प्लीज मेरी हेल्प करो।


निशांत, आर्यमणि के कान में धीमे से…. "ये तो अनुभवी है रे। मज़ा आएगा।"


आर्यमनी, बिना उसकी बातों पर ध्यान दिए हुए रस्सी के हुक को पेड़ से फसाने लगा। इधर जबतक निशांत ड्रोन कैमरा से दिव्य की वर्तमान परिस्थिति का जायजा लेने लगा। लगभग 12 फिट नीचे वो एक पेड़ की साखा पर बैठी हुई थी। निशांत ने फिर उसके आसपास का जायजा लिया।… "ओ ओ.… जल्दी कर आर्य, एक बड़ा शिकारी मैडम के ओर बढ़ रहा है।"..


आर्यमणि, निशांत की बात सुनकर मॉनिटर स्क्रीन को जैसे ही देखा, एक बड़ा अजगर दिव्या की ओर बढ़ रहा था। आर्यमणि रस्सी का दूसरा सिरा पकड़कर तुरंत ही खाई में उतरने के लिए आगे बढ़ गया। निशांत ड्रोन की सहायता से आर्यमणि को दिशा देते हुए दिव्या तक पहुंचा दिया। दिव्या यूं तो उस डाल पर सुरक्षित थी, लेकिन कितनी देर वहां और जीवित रहती ये तो उसे भी पता नहीं था।


किसी इंसान को अपने आसपास देखकर दिव्या के डर को भी थोड़ी राहत मिली। लेकिन अगले ही पल उसकी श्वांस फुल गई दम घुटने लगा, और मुंह ऐसे खुल गया मानो प्राण मुंह के रास्ते ही निकलने वाले हो। जबतक आर्यमणि दिव्या के पास पहुंचता, अजगर उसकी आखों के सामने ही दिव्या को कुंडली में जकड़ना शुरू कर चुका था। अजगर अपना फन दिव्या के चेहरे के ऊपर ले गया और एक ही बार में इतना बड़ा मुंह खोला, जिसमे दिव्या के सर से लेकर ऊपर का धर तक अजगर के मुंह में समा जाए।


आर्यमणि ने तुरंत उसके मुंह पर करंट गन (स्टन गन) फायर किया। लगभग 1200 वोल्ट का करंट उस अजगर के मुंह में गया और वो उसी क्षण बेहोश होकर दिव्या को अपने साथ लिए खाई में गिरने लगा। अर्यमानी तेजी दिखाते हुए वृक्ष के साख पर अपने पाऊं जमाया और दिव्या के कंधे को मजबूती से पकड़ा।


वाजनी अजगर दिव्या के साथ साथ आर्यमणि को भी नीचे ले जा रहा था। आर्यमणि तेजी के साथ नीचे जा रहा था। निशांत ने जैसे ही यह नजारा देखा ड्रोन को फिक्स किया और रस्सी के हुक को सेट करते हुए…. "आर्य, कुंडली खुलते ही बताना।"


आर्यमणि का कांधा पुरा खींचा जा रहा था, और तभी निशांत के कान में आवाज़ सुनाई दी… "अभी"… जैसे ही निशांत ने आवाज़ सुनी उसने हुक को लॉक किया। अजगर की कुंडली खुलते ही वो अजगर कई हजार फीट नीचे की खाई में था और आर्यमणि दिव्या का कांधा पकड़े झुल रहा था।


निशांत ने हुक को खींचकर दोनो को ऊपर किया। ऊपर आते ही आर्यमणि जमीन पर दोनो हाथ फैलाकर लेट गया और निशांत दिव्या के सीने को पुश करके उसकी धड़कन को सपोर्ट करने लगा।… "आर्य, शॉक के कारण श्वांस नहीं ले पा रही है।"..


आर्यमानी:- मुंह से हवा दो, मै सीने को पुश करता हूं।


निशांत ने मुंह से फूंककर हवा देना शुरू किया और आर्यमणि उसके सीने को पुश करके स्वांस बाहर छोड़ने में मदद करने लगा। चौंककर दिव्या उठकर बैठ गई और हैरानी से चारो ओर देखने लगी। निशांत उसके ओर थरमस बढ़ाते हुए… "ग्लूकोज पी लो एनर्जी मिलेगी।"..


दिव्या अब भी हैरानी से चारो ओर देख रही थी। उसकी धड़कने अब भी बढ़ी हुई थी। उसकी हालत को देखते हुए… "आर्य ये गहरे सदमे में है, इसे मेडिकल सपोर्ट चाहिए वरना कोलेप्स कर जाएगी।"


आर्यमणि:- हम्मम । मै कॉटेज के पास जाकर वायरलेस करता हूं, तुम इसे कुछ पिलाओ और शांत करने की कोशिश करो।


निशांत:- इसे सुला ही देते है आर्य, जितनी देर जागेगी उतना ही इसके लिए रिस्क हैं। सदमे से कहीं ब्रेन हम्मोरेज ना कर जाए।


आर्यमणि:- हम्मम। ठीक है तुम बेहोश करो मै वायरलेस भेजता हूं।


निशांत ने अपने बैग से क्लोरोफॉर्म निकाला और दिव्या के नाक से लगाकर उसे बेहोश कर दिया। कॉटेज के पास पहुंचकर आर्यमणि ने वायरलेस से संदेश भेज दिया, और वापस निशांत के पास आ गया।


निशांत:- आर्य ये मैडम तो बहुत ही सेक्सी है यार।


आर्यमणि:- मैंने शुहोत्र को देखा, लोपचे कॉटेज में। घर के पीछे किसी को दफनाया भी है शायद।


निशांत, चौंकते हुए… "शूहोत्र लोपचे, लेकिन वो यहां क्या कर रहा है। तू कन्फर्म कह रहा है ना, क्योंकि 6 साल से उसका परिवार का कोई भी गंगटोक नहीं आया है। और आते भी तो एम जी मार्केट में होते, यहां क्या लोमड़ी का शिकार करने आया है।"


"तुम दोनो को यहां आते डर नहीं लगता क्या?"… पुलिस के एक अधिकारी ने दोनो का ध्यान अपनी ओर खींचा।


निशांत:- अजगर का निवाला बन गई थी ये मैडम, बचा लिया हमने। आप सब अपना काम कीजिए हम जा रहे है। वैसे भी यहां हमारा 1 घंटा बर्बाद हो गया।


पुलिस की पूरी टीम पहुंचते ही आर्यमणि और निशांत वहां से निकल गए। रास्ते भर निशांत और आर्यमणि, सुहोत्र लोपचे और लोपचे का जला खंडहर के बारे में सोचते हुए ही घर पहुंचा। दिमाग में यही ख्याल चलता रहा की आखिर वहां दफनाया किसे है?


दोनो जबतक घर पहुंचते, दोनो के घर में उनके कारनामे की खबर पहुंच चुकी थी। सिविल लाइन सड़क पर बिल्कुल मध्य में डीएम आवास था जो कि आर्यमणि का घर था और उसके पापा केशव कुलकर्णी गंगटोक के डीएम। उसके ठीक बाजू में गंगटोक एसीपी राकेश नईक का आवास, जो की निशांत का घर था।
Superb awesome fantastic mind blowing update bhai
 
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