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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
भाग:–4




इसके पूर्व आर्यमणि गार्ड्स की आंखों में धूल झोंककर सीधा जंगल पहुंचा। बहुत देर तक वो मैत्री के कत्ल की सुराग ढूंढने की कोशिश करता रहा। उसे बहुत ज्यादा जानकारी हाथ तो नहीं लगी, लेकिन मैत्री का बैग जरूर मिला, जिसमे उसकी कई सारे सामान के साथ एक डायरी थी, और हर पन्ने पर आर्यमणि के लिए कुछ ना कुछ था। और उसी बैग से आर्यमणि के हाथ कुछ ऐसा भी लगा जिसे वह नजरंदाज नहीं कर सकता था.…


पूरे गंगटोक में मैत्री और आर्यमणि के बीच के भावनात्मक जुड़ाव को सब जानते थे। यूं तो आर्यमणि बहुत ही सीमित बात करता था, लेकिन जिस दिन मैत्री यहां से जर्मनी गई थी, आर्यमणि ने 3 महीने बाद अपने माता-पिता से बात किया था, और सिर्फ एक ही बात… "उसे भी जर्मनी भेज दे।"..


मैत्री की वो डायरी पुराने दर्द को कुरेद गई। मैत्री ने जैसे पन्नो पर अरमान लिखे थे... "एक बार आर्य को अपने परिवार के साथ देखना चाहती हूं। कितना हसीन वो पल होगा जब हर दूरी समाप्त होगी। आर्य हमारे साथ होगा। एक दिन... शायद कभी..."


कुछ दिन बाद...


आर्यमणि श्रीलंका के एक बीच पर था। मैत्री के बैग पर श्रीलंका के होटल का टैग लगा था, जिसके पीछे आर्यमणि यहां तक पहुंचा था। दिल के दर्द अंदर से नासूर थे, बस एक सुराग की जरूरत थी। सुरागों की तलाश में आर्यमणि श्रीलंका पहुंच तो गया लेकिन यहां उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।


3 दिन बेकार बिताने के बाद चौथे दिन आर्यमणि के होटल कमरे के बाहर शुहोत्र खड़ा था। आर्यमणि बिना कोई भाव दिए कमरे का दरवाजा पूरा खोल दिया और शूहोत्र अंदर। अंदर आते ही शुहोत्र कुछ–कुछ बोलने लगा। वह जो भी बात कर रहा था, उसमे आर्यमणि की रुचि एक जरा भी नहीं थी। बहुत देर तक उसकी बातें बर्दास्त करने के बाद, जब आर्यमणि से नही रहा गया, तब वह शुहोत्र का कॉलर पकड़कर.… "लंगड़ा लोपचे की कहानी यदि भूल गए हो तो मैं तुम्हारा दूसरा टांग तोड़कर उन यादों को फिर से ताजा कर दूं क्या?"…


शुहोत्र:– तुम्हारी उम्र और तुम्हारी बातें कभी मैच ही नहीं करती। और उस से भी ज्यादा तुम्हारी फाइट... इतनी छोटी उम्र में इतना सब कर कैसे लेते हो..


आर्यमणि:– सुनो लोपचे, यदि जान बचाने के बदले मेरे बाप की तरह तुम भी मेरे फिक्रमंद बनते रहे और मुझे घर लौटने की सलाह देते रहे, तो कसम से मैं ही तुम्हारी जान निकाल लूंगा। यदि मैत्री के कातिलों के बारे में कुछ पता है तो बताओ, वरना दरवाजे से बाहर हो जाओ..


शुहोत्र:– मैत्री के कातिलों की यदि तलाश होती फिर तुम यहां नही, बल्कि नागपुर में होते। क्यों उसके कातिलों को ढूंढने का ढोंग कर रहे?


आर्यमणि:– अब तेरा नया चुतियापा शुरू हो गया...


शुहोत्र:– क्यों खुद को बहला रहे हो आर्य। तुम्हारा दिल भी जनता है कि मैत्री को किसने मारा...


आर्यमणि:–शुहोत्र बेहतर होगा अब तुम मुझे अकेला छोड़ दो... इस से पहले की मैं अपना आपा खो दूं, भागो यहां से...


शुहोत्र:– तुम मुझसे नफरत कर सकते हो लेकिन मैत्री मेरी बहन थी और मैं उसका भाई, ये बात तुम मत भूलना। तुमसे बात करने की एक ही वजह है, और वो है मैत्री की कुछ इच्छाएं, जिस वजह से तुम्हे सुन रहा हूं, वरना जान तो मैं भी ले सकता हूं।


आर्यमणि बिना कुछ बोले पूरा दरवाजा खोल दिया और हाथ के इशारे से शुहोत्र को जाने के लिए कहने लगा। शुहोत्र दरवाजे से बाहर कदम रखते.… "मैत्री की डायरी में मैने ही श्रीलंका का टैग लगाया था। उसके अरमान उस डायरी के कई पन्ने पर लिखे है। यदि मैत्री की एक अधूरी इच्छा पूरी करनी हो तो कमरा संख्या २०२१ में चले आना।


शुहोत्र अपनी बात कह कर निकल गया। आर्यमणि झटके से दरवाजा बंद करके सोफे पर बैठा और मैत्री की डायरी को सीने से लगाकर, रोते हुए मैत्री, मैत्री चिल्लाने लगा। डायरी के कई ऐसे पन्ने थे, जिसपर मैत्री के मायूस अरमान लिखे थे... "तुम यहां क्यों नहीं... हम भारत में नही रह सकते, कम से कम तुम तो यहां आ सकते हो। अपने पलकों में सजा लूंगी, तुम सीने में कहीं छिपा लूंगी। यहां हम सुकून से एक दूसरे के साथ रहेंगे। एक बार आर्य को अपने परिवार के साथ देखना चाहती हूं। कितना हसीन वो पल होगा जब हर दूरी समाप्त होगी। आर्य हमारे साथ होगा। एक दिन... शायद कभी..."


डायरी में लिखे चंद लाइंस आर्यमणि को बार–बार याद आ रहे थे। अंत में आंसुओं को पोंछ कर आर्यमणि शुहोत्र के साथ सफर करने चल दिया। चल दिया मैत्री के उस घर, जहां मैत्री उसे अपने परिवार के साथ देखना चाहती थी।


सुहोत्र और आर्यमणि फ्लाइट में थे.... शूहोत्र आर्यमणि को देखकर… "एक भावनाहीन लड़के के अंदर की भावना को भी देख लिया आर्यमणि। जिस हिसाब से तुम्हारे बारे में लोगों ने बताया, मुझे लगा तुम मैत्री को भुल चुके होगे? लेकिन मैं गलत था।और वो लोग भी जो ये कहते थे कि तुम मैत्री को कबका भूल चुके होगे। इतनी छोटी उम्र में कितना प्यार करते थे उससे।"..


आर्यमणि:- अब इन बातों का क्या फायदा, बस वो जहां रहे हंसती रहे।


शूहोत्र:- उस रात तुम जंगल में क्यों आए थे?


आर्यमणि अपने आखों पर पर्दा डालकर बिना कोई जवाब दिए हुए सो गया। उसे देखकर शूहोत्र खुद से ही कहने लगा…. "जर्मनी में ये सरदर्द देने वाला है।"


जर्मनी का फ्रेबुर्ग शहर, जहां का ब्लैक फॉरेस्ट इलाका अपनी पर्वत श्रृंखला और बड़े–बड़े घने जंगलों के लिए मशहूर है। रोमन जब पहली बार यहां आए थे तब इन जंगलों में दिन के समय में भी सूरज की रौशनी नहीं पहुंचती थी और चारो ओर अंधेरा ही रहता था। तभी से यहां का नाम ब्लैक फॉरेस्ट पर गया।


शूहोत्र जब आर्यमणि को लेकर उस क्षेत्र की ओर बढ़ने लगा, वहां का चारो ओर का नजारा बिल्कुल जाना पहचाना सा लग रहा था। फ्रेबूर्ग शहर के सबसे शांत क्षेत्र में था शूहोत्र का निवास स्थान, जहां दूर-दूर तक कोई दूसरा मकान नहीं था। मकान से तकरीबन 100 मीटर की दूरी से शुरू हो जाता था जंगल का इलाका।


शूहोत्र के लौटने की खबर तो पहले से थी, लेकिन उस बंगलो में रहने वाले लोगों को जारा भी अंदाजा नहीं था कि वो अपने साथ एक मेहमान लेकर आएगा। अजीब सा वह बंगलो था, जिसका नाम वुल्फ हाउस था। दरवाजे से अंदर जाते ही एक बहुत बड़ा हाल था,लगभग 1000 फिट का। पूरे हॉल को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे यहां पर्याप्त रौशनी नहीं है। हल्का अंधेरा सा, जैसे कोई शैतान को पूजने की जगह हो। अजीब सी बू चारो ओर फैली थी। और एक बड़ा सा डायनिंग टेबल जिसपर बैठकर आराम से 80–90 लोग खाना खा सकते थे।



तकरीबन 60–70 लोग थे उस हॉल में जब आर्यमणि वहां पहुंचा। सभी मांस पर पागल कुत्ते की तरह झरप कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने अजनबी को देखा सब सीधे होकर बैठ गए। वहां मौजूद हर कोई आर्यमणि को ही देख रहा था। उन्ही लोगों में से एक कमसिन, बला की खूबसूरत, नीले आंखों वालि लड़की आर्यमणि के नजदीक जाकर उसके गर्दन की खुशबू लेने लगी…. "उफ्फ ! ये तो दीवाना बना रहा है मुझे।"..


शूहोत्र उस लड़की को धक्का देकर पीछे धकेलते हुए… "रोज, जाकर अपनी जगह पर बैठ जाओ।"..


रोज, उसे घूरती हुई जाकर अपनी जगह पर बैठ गई…. शूहोत्र आर्य से.… "सॉरी आर्य वो मेरी कजिन रोज थी, बाद में तुम्हे मै सबसे परिचय करवाता हूं। अभी तुम थक गए होगे जाकर आराम करो।".. शूहोत्र, आर्य अपने साथ बाहर लेकर आया और गेस्ट रूम के अंदर उसे भेजकर खुद बंगलो में आ गया।


शूहोत्र के पिता जीतन लोपचे, सुहोत्र को अपनी आंखें दिखाते…. "किसे साथ लाना चाहिए किसे नहीं, ये बात भी मुझे सीखानी होगी क्या? पहले ही इस लड़के की वजह से हम बहुत कुछ झेल चुके है।"


शूहोत्र:- इस लड़के की वजह से हमने कुछ नहीं झेला है पापा। हम अपनी गलतियों का दोष किसी और पर नहीं दे सकते। आपकी जिद की वजह से लोपचे कॉटेज की घटना हुई थी और आपके बेवजह रुल की वजह से मैत्री मारी गई। मैं भी लगभग मरा ही हुआ था, यदि आर्य सही वक़्त पर नहीं आया होता।


उस घर की मुखिया और जीतन कि दूर की रिश्तेदार… ईडन, शूहोत्र की आखों में झांककर देखती हुई…. "वो लड़का तुम्हारा बिटा है।"..


शूहोत्र, अपनी नजरें चुराते…. "मुझे बचाने के क्रम में गलती से उसके हथेली पर पूरी बाइट दे दिया, और वो लड़का पूरी बाइट झेल गया, मरा नहीं।"..


रोज:- ओह तभी उससे मिश्रित खून की बू आ रही थी। बहुत आकर्षक खुशबू थी वैसे।


शूहोत्र:- क्या यहां किसी को मैत्री के जाने का गम नहीं है?


ईडन:- तुम नियम भुल रहे हो। मैत्री से पहले ही कही थी, अकेली वो जिंदा नहीं रह सकती, मारी जाएगी। उसी ने हमसे कहा था यहां रोज-रोज मरने से अच्छा है कि एक बार में ही मर जाऊं। उसने अपनी मौत खुद चुनी, और तुम खुशकिस्मत हो जो बिना अपने पैक के बच गए। आज रात जाने वाले के लिए जश्न होगा और हम अपने नए सदस्य का स्वागत करेंगे।


ईडन के को सुनने के बाद शूहोत्र की फिर हिम्मत नहीं हुई कुछ बोलने कि। शूहोत्र चुपचाप अपने कमरे में चला गया और अपनी बहन के साथ ली गई तस्वीरों को भींगे आंख देखने लगा।


रात का वक़्त होगा। हॉल में पार्टी जैसा माहौल था और कई घबराए से मासूम जानवर जैसे कि खरगोश, हिरण, जंगली सूअर बंधे हुए थे। मैत्री की बड़ी सी एक तस्वीर लगी थी और तस्वीर के नीचे टेबल पर एक बड़ा सा नाद रखा हुआ था। आर्यमणि जैसे ही हॉल में पहुंचा, वहां का अजीब माहौल देखकर वो अंदाज़ा लगा पा रहा था कि वो किन लोगों के बीच है।


एक लड़की आर्यमणि के करीब आकर खड़ी होती हुई… "तुम आर्य हो ना।"..


आर्यमणि उसे गौर से देखने लगा… लगभग न बताने लायक कमसिन उम्र। आकर्षक बदन जिसपर ना चाहते हुए भी ध्यान खींचा चला जाए। उसे देखने का अजीब ही कसिस थी। नीली आखें, ब्लोंड बाल, और चेहरा इतना चमकता हुआ कि रौशनी टकराकर वापस चली जाए। आर्यमणि खुद पर काबू पाकर गहरी श्वांस लिया… "तुम व्हाइट फॉक्स यानी कि ओशुन हो ना।"..


ओशुन, मुस्कुराकर अपने हाथ उसके ओर बढ़ती…. "पहचान गए मुझे। मैत्री ने तुम्हारे बारे में मुझे बताया था। उसकी चॉइस पर मुझे अब जलन हो रही है।"


आर्यमणि:- तुमने यहां सम्मोहन किया है क्या? मै खुद में बेबस सा मेहसूस कर रहा हूं। तुम्हे वासना भरी नजरो से देखने से खुद को रोक नहीं पा रहा।


ओशुन:- अभी तो ठीक से मैत्री की अंतिम विदाई भी नहीं हुई और तुम अपने लवर के बेस्ट फ्रेंड के बारे में ऐसे विचार पाल रहे हो।


आर्यमणि उसकी बात सुनकर वहां से थोड़ा दूर किनारे में अलग आकर खड़ा हो गया और सामने के रश्मों को देखने लगा। जैसे ही ईडन वहां पहुंची माहौल में सरगर्मी बढ़ गई। जाम के गलास को टोस्ट करते हुए ईडन कहने लगी… "हमारे बीच हमारी एक साथी नहीं रही, जाने वाले को हम खुशी-खुशी अंतिम विदाई देंगे।" ईडन ने आन्नाउंसमेंट किया और सबसे पहले मैत्री के पिता उसकी तस्वीर के सामने खड़े हो गए। अपने हथेली को चीरकर कुछ देर तक खून को नादी में गिरने दिया उसके बाद अपनी हथेली ईडन के ओर बढ़ा दिया।..


उफ्फ ये मंजर। जिसे आज तक पौराणिक कथाओं में सुना था। जिसके अस्तित्व लगभग ना के बराबर आर्यमणि ने मान लिया था। शक तो उसे उस रात से था जबसे उसने मैत्री का वो लॉकेट हटाया और उसका शरीर भेड़िया जैसे दिखने लगा। सुहोत्र का मुंह बंद करने के क्रम में, नुकीले दांत अंदर हथेली फाड़ कर घुस जाना, और छोटे रास्ते से लौटते वक़्त शूहोत्र का उन लोमड़ी को कंट्रोल करके रखना, जो खून की प्यासी थी।


किन्तु अब तक जो भी हुआ उसे आर्यमणि एक दिमागी उपज मानकर ही खुद को समझता रहा था। उसे लग रहा था कि वो कुछ ज्यादा ही वेयरवुल्फ की कहानियों के बारे में सोच रहा है। लेकिन जितन का हाथ जैसे ही ईडन के चेहरे के पास गया, ईडन की आखें काली से लाल हो गई। उसके शरीर में बदलाव आने लगा और अपने हाइट से 4 फिट लंबी हो गई।


हाथ किसी भेड़िए के पंजे में तब्दील हो गए। दो बड़ी–बड़ी नुकीली दातों के के बीच में कई सारे छोटे–छोटे नुकीली दांत, अपना बड़ा सा मुंह फाड़कर हथेली का कटा हुआ हिस्सा उसने मुंह में लिया और जैसे ही चूसना शुरू कि, जीतन की तेज चिंख नकल गई। उसकी भी आंखे लाल हो गई, बड़े–बड़े नाखूनों वाले पंजे आ गए, और वो बड़ी ही बेचैनी के साथ चिल्ला रहा था।


थोड़ी देर खून चूसने के बाद जैसे ही ईडन ने जीतन का हाथ छोड़ा वो लड़खड़ाकर नीचे गिरने लगा। लोगो ने उसे सहारा देकर बिठाया। ऐसे ही एक-एक करके सबने किया, पहले नादी में खून गिराया फिर खून चूसने दिया। यहां का अजीब खूनी खेल देखकर आर्यमणि को अजीब लगने लगा, और वो समारोह को छोड़कर बाहर जाने लगा।


वह गेट के ओर 2 कदम बढ़ाया ही था कि तेजी के साथ ओशुन उसके करीब पहुंचती…. "समारोह छोड़कर जाने का अर्थ होगा ईडन का अपमान। मत जाओ यहां से।"


आर्यमणि:- क्या मै यहां एक कैदी हूं?


ओशुन:- नहीं, यहां कोई कैदी नहीं, बस नियम से बंधे एक सदस्य हो। तुम्हे यदि यहां का माहौल अच्छा नहीं लग रहा तो मूझपर कन्सन्ट्रेट करो। और हां मेरे स्किन से एक अरोमा निकलती है जो आकर्षित करती है, इसलिए खुद में गिल्ट फील मत करना।


आर्यमणि:- हम्मम ! यहां और कितनी देर तक रश्में होगी।


ओशुन:- तुम आखरी होगे, उसके बाद जश्न होगा।..


आर्यमणि:- क्या मै भी तुम लोगों में से एक हूं।


ओशुन, उसे देखकर मुस्कुराती हुई…. "तुम्हे पता है इस हॉल में बैठे हर सदस्य, यहां तक कि मैत्री के मां बाप भी उसके मरने का जश्न मना रहे है। यहां केवल 2 लोग हैं और तुम्हे शामिल कर लिया जाए तो 3, जिसे मैत्री के जाने का गहरा सदमा है। पहला शूहोत्र, दूसरी मै, और तीसरे तुम।"


आर्यमणि:- ऐसा क्यों?


ओशुन:- क्योंकि मैत्री यहां सबसे खास थी, और यही वजह थी कि तुम्हारा साथ होना उसके पापा को जरा भी पसंद नहीं था। लेकिन फिर भी मैत्री ने तुम्हे चुना था, इसका मतलब साफ है कि तुम हम जैसे नहीं हो, बल्कि कुछ खास हो। लेकिन क्या है ना, अकेला वुल्फ कितना भी खास क्यों ना हो, शिकार बन ही जाता है। जबतक अपने पैक के साथ हो तबतक ज़िन्दगी है।


आर्यमणि:- हम्मम !


तभी माहौल में ईडन कि आवाज़ गूंजी। वह तालियों से अपने दल में सामिल हुए नए सदस्य का स्वागत करने के लिए कहने लगी। ओशुन उसका हाथ थामकर खुद लेकर पहुंची। जैसे ही उसके हथेली से वो पट्टी हटाई गई, कमाल हो चुका था। जख्म ऐसे गायब थे जैसे वो पहले कभी थे ही नहीं।


ओशुन ने चाकू से हथेली का वो हिस्सा काट दिया जहां शूहोत्र ने उसे काटा था। कुछ बूंद खून नीचे टपकाने के बाद, आर्यमणि से कहने लगी…. "अपने कपड़े निकलो"..


आर्यमणि उसकी बात सुनकर अपने सारे कपड़े निकाल दिया। पीछे से वहां मौजूद कई लड़कियां उसे देखकर हूटिंग करने लगी। तरह-तरह के कमेंट पास होने लगे। ईडन अपने हाथ उठाकर सबको ख़ामोश रहने का इशारा की। फिर ईडन एक नजर ओशुन को देखी और ओशुन खून से भरी नाद आर्यमणि के ऊपर उरेल दी।


रक्त स्नान हो रहा हो जैसे। रक्त में सराबोर करने के बाद ऒशुन ने आर्य का हाथ ऊपर, ईडन के मुंह के ओर बढ़ा दी। जैसे ही ईडन ने खून चूसना शुरू किया, आर्यमणि को लगा उसकी नसें फट जायेगी और खून नशों के बाहर बहने लगेगा। काफी दर्द भरि चींख उसके मुंह से निकली और उसकी आखें बंद हो गई।
 
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भाग:–5



रक्त स्नान हो रहा हो जैसे। रक्त में सराबोर करने के बाद ऒशुन ने आर्य का हाथ ऊपर, ईडन के मुंह के ओर बढ़ा दी। जैसे ही ईडन ने खून चूसना शुरू किया, आर्यमणि को लगा उसकी नसें फट जायेगी और खून नशों के बाहर बहने लगेगा। काफी दर्द भरि चींख उसके मुंह से निकली और उसकी आखें बंद हो गई।


आर्य के ख्यालों की गहराई मैत्री एक प्यारी सी तस्वीर बनने लगी जिसे देखकर आर्यमणि मुस्कुराने लगा…. "तुम मुझे बहुत प्यारे लगते थे आर्य, अपना ख्याल रखना।".. ख्यालों में आर्य का प्यार, उसे बड़े प्यार से देखती हुई अपना ख्याल रखने कह रही थी।


इधर आखें मूंदे आर्यमणि ख्यालों में ही था तभी उसे ऐसा लगा जैसे उसके कंधे फटकर फ़ैल रहे है। वही हाल पूरे शरीर का था और जब आखें खुली, फ्लोर पर गिरे खून की परछाई में खुद को देखा तो दंग रह गया। चौड़े पंजे बड़े–बड़े नाखून वाले। कान फैलकर लंबी हो गई, शरीर चौड़ा और पौराणिक कथाओं का वो रूप बदल इंसानी–भेड़िया के रूप में आर्यमणि खुद को देख रहा था। अंदर से पूरा आक्रमक और दिमाग में केवल और केवल खून की चाहत। आर्यमणि अपनी हथेली उठाकर सामने जो आया उसे फाड़ने की कोशिश करने लगा। पागलों की तरह चीखने और चिंघाड़ने लगा। बिल्कुल बेकाबू सा एक भेड़िया जो अपने सामने आने वाले पर हमला कर रहा था।


उसकी आक्रमता देखकर वुल्फ हाउस के सभी वुल्फ झूमने लगे, चिल्लाने लगे। सभी वेयरवोल्फ आर्यमणि के बदन से आ रही आकर्षक खून की खुशबू से, उसके बदन पर पागलों की तरह टूट पड़े। आर्यमणि एक पर हमला करता और 20 लोग उसके बदन के खून को जीभ से चाटकर साफ करते हुए, अपने दांत चुभो कर आर्यमणि का खून चूसने लग जाते। दर्द और अक्रमता का मिला जुला तेज आवाज आर्यमणि के मुंह से निकल रहा था। आर्यमणि के होश जैसे गुम थे। जो भी हो रहा था, उसपर आर्यमणि का कोई नियंत्रण नहीं था और न ही खुद के नोचे जाने को वह रोक सकता था। उसके आगे क्या हुआ आर्यमणि को नही पता। उसकी जब आखें खुली तब आसपास बिल्कुल अंधेरा था। उसके नंगे बदन पर पुरा मिट्टी चिपका हुए था। शरीर का अंग-अंग ऐसे टूट रहा था मानो उसमे जान ही बाकी नहीं हो।


कुछ देर तक तेज-तेज श्वांस अंदर बाहर करते, चारो ओर का माहौल देखने लगा। बड़े-बड़े दैत्याकार वृक्ष, चारो ओर सांझ जैसा माहोल। कहां जाना है कुछ समझ में नहीं आ रहा था। तभी उसे ऐसा लगा जैसे उसके करीब से हवा गुजरी हो, और कुछ दूर जब आगे नजर गई तो ओशुन खड़ी थी।…. "काफी हॉट लग रहे हो आर्य।"


आर्यमणि ने जब ओशुन की नज़रों का पीछा किया, तब अपने हाथ से अपना लिंग छिपाते खुद को सिकोड़ लिया… खुद की हालत पर थोड़ी शर्मिंदगी महसूस करते आर्य, ओशुन से कहने लगा.…. "क्या तुम मेरे लिए कुछ कपड़े ला सकती हो।"


ओशुन उसे देखकर हंसती हुई उसके करीब गई और कंधे से अपने ड्रेस को सरकाकर जमीन पर गिर जाने दी। ओशुन नीचे से अपनी पोशाक उठाकर आर्यमणि के ओर बढाती हुई… "लो ये पहन लो, मै ऐसे मैनेज कर लूंगी।"..


ओशुन केवल ब्रा और पैंटी में थी। उसके बदन का आकर्षण इतना कामुक था कि आर्यमणि की धैर्य और क्षमता दोनो जवाब दे रही थी, लेकिन किसी तरह खुद पर काबू रखते हुए… "नहीं, ये तुम ही पहन लो, और यहां से चलते है।"..


ओशुन, अपने बचे हुए कपड़े भी उतारकर… "मुझे कोई आपत्ती नहीं यदि यहां से मै नंगी भी जाऊं। यहां हमारे दूसरे प्रजाति के जितने भी शिकारी जानवर है, वो ऐसे ही नंगे रहते है। हां हम उनसे कुछ अलग है, तो हमे भी समझना होगा कि ये बीच की झिझक ना रहे। लेकिन तुम्हे जिस बात के लिए शर्मशार होना चाहिए, वो थी कल रात उन लोगों ने जो तुम्हारे साथ किया, ना की ये कपड़े।


आर्यमणि:- मुझे तो कुछ याद भी नहीं।


ओशुन:- हां मुझे पता है तुम्हे याद नहीं, और ना ही तुम्हे कभी याद आएगा, क्योंकि तुम इन लोगों के लिए खिलौने मात्र हो, जिससे ये हर रात अपना दिल बहलाएंगे। हर सुबह जब तुम जागोगे तो खुद को इसी तरह यूं ही बेबस पाओगे।


आर्यमणि:- हम्मम ! समझ गया। चलो वुल्फ हाउस वापस चलते है। अपने कपड़े पहन लो, तुम्हे नंगे देखकर अजीब सा लग रहा है।


ओशुन:- अजीब क्यों लगेगा, हर कोई तो हॉर्नी ही फील करता है। हां तुम जब होश में होते हो तो खुद को बहुत काबू में रखते हो, ये बात मानने वाली है।


"अब ऐसे दिन आ गए की इसके साथ संभोग करोगी, मै क्या मर गया था ओशुन। हम लोगों को तुम दूर ही फटका कर रखती हो, इस नपुंसक में तुम्हे क्या दिख गया या फिर अपना निजी गुलाम रखने का इरादा तो नहीं?"… वेयरवुल्फ के झुंड से किसी ने ओशुन पर तंज कसा...


"मत सुनो उनकी आओ मेरे पीछे"….. ओशुन अपने कपड़े पहनती हुई कही और दौड़ लगा दी।


आर्यमणि में इतनी हिम्मत नहीं की वो ढंग से चल सके, ओशुन तो क्षण भर में नज़रों से ओझल होने वाले गति में थी। आर्यमणि थका सा ओशुन की दिशा में चल रहा था। जैसे ही वो कुछ दूर आगे बढ़ा पीछे से उसे एक लात परी और वो आगे जमीन पर मुंह के बल गिर गया।


आर्यमणि खड़ा होकर अपने चारो ओर देखा, कहीं कोई नहीं था। वो फिर से आगे बढ़ने लगा। तभी उसे आभाष हुआ कि कोई सामने से आ रहा है। वो किनारे होने की कोशिश करने लगा, लेकिन तभी सामने से उसके अंडकोष पर तेज लात परी और दर्द से बिलबिलाता हुआ वो बेहोश हो गया।


आखें जब खुली तब कहीं कुछ नजर नहीं आ रहा था। चारो ओर घनघोर अंधेरा। कानो में भेड़ियों के चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी। इधर से आर्यमणि भी चिल्लाने लगा। जैसे ही सबने आर्यमणि की आवाज़ सुनी, भेड़ियों का बड़ा सा झुंड उसके समीप आकर खड़ा हो गया। फिर तो सभी भेड़िए जैसे पागल हो गए हो। हर कोई अपना फेंग (बड़े नुकीले दांत) आर्यमणि के शरीर में घुसाकर खून चूसने लगा। कुछ मनमौजी वेयरवॉल्फ आर्यमणि के पिछवाड़े कांटेदार तार में लिपटी डंडे घुसा रहे थे, तो कोई बॉटल ही घुसेड़ देता। हालत बेसुध सी थी। 20 नोचने वाले एक साथ लगे होते, तो 20 अपनी बारी आने का इंतजार करते। बिलकुल किसी खौफनाक सपने की तरह।


आर्यमणि के लिए क्या भोर और क्या सांझ। आंखे जब भी खुलती चारो ओर अंधेरा। नंगा बदन पूरा मिट्टी में लिप्त और पूरे शरीर में बस आंख की पुतलियां ही आर्यमणि हिला सकता था, बाकी इतनी जान नही बची होती की वो उंगली भी हिला सके। आंख खुलने के बाद जैसे–जैसे वक्त बीतता शरीर में कुछ–कुछ ऊर्जा का संचार होने लगता। और जैसे ही आर्यमणि उठकर खड़ा होता, फिर से वही सब दोहराने लगता।


जैसे एक चक्र सा बन गया हो। आंख खुली और लगभग 2 घंटे में पूरी ऊर्जा समेटने के बाद फिर से वेयरवोल्फ की कुरूरता शुरू। किसी एक दिन जब आर्य की आखें खुली उसके साथ एक ही अच्छी बात हुई, उसके बदन पर पानी की फुहार पड़ी, रोम-रोम खिल उठा। लेकिन ये खुशी कुछ देर की ही मेहमान थी। क्योंकि पूरे चंद्रमा अर्थात पूर्णिमा की रात थी जिसमे वेयरवोल्फ की ताकत और आक्रमता अपने चरम पर होती है। शाम ढल चुकी थी और उगते हुए चंद्रमा के साथ आर्यमणि का वुल्फ भी खुद व खुद बाहर आने लगा था।


जैसे ही उसके अंदर का वुल्फ बाहर आया वो पूरी तरह से आक्रमक हो चुका था। घनघोर अंधेरे मे भी सामने का नजारा सब कुछ साफ़-साफ़ नजर आ रहा था। चारो ओर ईडन और उसके वुल्फ तेज-तेज हंस रहे थे। आर्यमणि ने उन सब पर हमला करना शुरू कर दिया और फिर से वही नतीजा हुआ। हर कोई उसके बदन से लगा हुए था और और अपने तेज दांत चुभोकर अंदर के खून को चूसना शुरू कर चुका था।


एक बार फिर से वही सब दोहराया गया। आर्यमणि की जब आखें खुली, फिर से चारो ओर का वैसा ही नजारा था। जंगल के बीच बिल्कुल काला घनघोर माहौल। ऐसा लगा रहा था जैसे ब्लैक फॉरेस्ट में उसकी किस्मत ही ब्लैक लिखी जा चुकी है।


एक दिन जब आर्यमणि की आंखे खुली, ओशुन उसके करीब थी, लेकिन आज आर्यमणि के पास ना तो कहने के लिए कोई शब्द थे और ना ही कुछ सुनने का मन था। शायद ओशुन उसकी भावना को पढ़ चुकी थी… "तुम वही आर्यमणि हो ना जो विषम से विषम परिस्थिति में भी निकलने का क्षमता रखता है।"..


आर्यमणि:- प्लीज तुम यहां से चली जाओ। मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।


ओशुन:- तुम यदि सोचते हो कि शूहोत्र तुम्हारे पास आएगा और तुम्हे ब्लैक फॉरेस्ट से निकालकर वापस इंडिया भेज देगा तो तुम बहुत बड़े बेवकूफ हो। हां उसका लगाव मैत्री से काफी अधिक था, लेकिन इस चक्कर में वो 3 नियम तोड़ चुका है और जितनी सजा तुम्हे यहां मिल रही है, तुम्हे यहां फंसाकर वो अपनी गलती सुधार चुका है, वरना तुम्हारी जगह अभी सुहोत्र होता। अभी वो वुल्फ हाउस में बड़े मज़े की जिंदगी जी रहा है।


आर्यमणि हैरानी से ओशुन के ओर देखते हुए मानो पूछने की कोशिश कर रहा हो ऐसा क्या हो गया जो शुहोत्र ने मुझे फंसा दिया? ओशुन उसके आखों कि भाषा को समझती हुई कहने लगी…

"एक वुल्फ पैक में एक अल्फा होता है और एक हॉफ अल्फा होते है। उसके नीचे बीटा होता है। अल्फा के मिलन या बाइट से एक कमजोर बीटा पैदा होता है। वैसे मैं बता दूं कि बाइट के अलग नियम है। जिस इंसान को अल्फा वेयरवोल्फ का बाइट दिया गया हो, अगर उस इंसानी शरीर के इम्यून सिस्टम ने बाइट के बाद चेंज को एक्सेप्ट किया तभी वह वेयरवॉल्फ बन सकता है, वरना मर जायेगा।"

"जबकि एक बीटा वुल्फ कभी भी अपने बाइट से दूसरा बीटा नहीं बना सकता है। तुम्हे या तो शूहोत्र के बाइट से मर जाना चाहिए था या फिर जिंदा बच गए तो बीटा यानी शूहोत्र का काम था तुम्हे मार देना। अब सुनो सुहोत्र ने अपने पैक के कौन–कौन नियम भंग किया था। शूहोत्र की पहली गलती, सबके मना करने के बावजूद वो अकेला गया, वुल्फ पैक का सबसे बड़ा नियम टूटा। दूसरी गलती उसने अपनी बाइट तुम्हे दी, फिर चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। तीसरी गलती जब तुम उसके बाइट से जिंदा बच गए तो तुम्हे मारा क्यों नहीं?"

"अब तुम्हे जारा यहां की कहानी भी बता दू। ईडन, वुल्फ फैमिली की सबसे शक्तिशाली वुल्फ है। उसे फर्स्ट अल्फा कहा जाता है। इसके अंदर 3-4 वुल्फ पैक रहते हैं जैसे कि तुम यहां देख रहे हो। आर्य, शूहोत्र को हमदर्दी तो है तुमसे, लेकिन जब खुद की जान बचानी होती है तो लोग स्वार्थी हो जाते है।"

"पैक से निकाले गए वुल्फ को ओमेगा कहते है। एक ओमेगा की जिंदगी कितने दिनों की होती है, ये बात शूहोत्र को मैत्री के मौत के साथ ही समझ में आ चुकी थी। यहां के लोगों के लिए एक रात के मनोरंजन के लिए तुम्हे यहां लाया गया था। हर कोई यही समझ रहा था कि एक बीटा ने तुम्हे काटा है और तुम केवल जिंदा बच गए हो। तुम्हारे अंदर का ताजा खून चूसकर तुम्हे उस सभा में नोचकर मार डालने का प्लान था, लेकिन तुम्हारी किस्मत उससे भी ज्यादा खराब निकली।"

"तुम दुनिया के सबसे दुर्बल वुल्फ बने, जिसमे केवल घाव भरने की क्षमता है, इस से ज्यादा कुछ नहीं। तुम्हे खुद भी पता नहीं तुम रात को क्या खाते हो, सुबह को क्या खाते हो। जरा देखो अपनी ओर। कुछ दिनों में तुम्हरे बदन का बचा मांस भी खत्म हो जाएगा। फिक्र मत करो तुम फिर भी नहीं मारोगे। जब आखें खुलेगी तुम खुद को यहां पाओगे। बिल्कुल तन्हा, अकेला और लाचार। ना तो तुम यहां किसी से लड़ सकते हो और ना ही मर सकते हो। कल मैंने तुम्हे बाइट किया था अंदर झांकने और जानते हो क्या पाई…"


आर्यमणि:- क्या ?


ओशुन:- "जंगल में जब तुम उस औरत दिव्या की जान बचाकर वहां शूहोत्र को देखे, तो 6 महीने से जिसकी कोई खबर नहीं मिली, यानी की तुम्हारा प्यार मैत्री, उसके बारे में तुम्हे कोई तो खबर मिले, बस इसी इरादे से तुम उसी वक़्त शूहोत्र से मिलना चाह रहे थे। लेकिन फिर तुम्हारी नज़र वहां के मिट्टी पर गई और तुम्हारा दिल जोड़ों से धड़का। तुम्हे ऐसा मेहसूस हुआ जैसे तुम्हारी सारी खुशियां इसी मिट्टी के अंदर दफन है।"

"इसी एहसास ने तुम्हे पागल कर दिया। लेकिन उस वक़्त पुलिस आने वाली थी और तुम वहां खुदाई नहीं कर सकते थे, बस इसी के चलते तुम्हे रात में आना पड़ा। तुमने जब मैत्री का आधा कटा धर देखा तब तुम अंदर से रोए लेकिन ऊपर आशु नहीं थे। उस लॉकेट मे कोई जादू नहीं था, बस मैत्री की रोती हुई आत्मा थी, जो तुम्हे अपना असली रूप दिखा रही थी और वहां से भागने कह रही थी। जब मै तुम्हारे रिश्ते की गहराई को समझ सकती हूं तो फिर शूहोत्र क्यों नहीं।"

"शूहोत्र के उस बाइट का नतीजा यह हुआ कि वो अपने पैक में सामिल हो गया और तुम यहां कीड़े की ज़िंदगी जी रहे हो। सुहोत्र बाइट देने के साथ ही सब कुछ प्लान कर चुका था, जबकि उस वक्त तुम उसकी जान बचा रहे थे और वो तुम्हे पूरी तरह से फसाने का प्लान बना रहा था। आर्य हर अच्छाई, अच्छा नतीजा नहीं लाती।"


आर्यमणि:- ओशुन क्या तुम मुझे यहां से निकलने में मदद करोगी?


ओशुन:- मै नियम से बंधी हूं आर्य। तुम्हे मैंने जितनी भी बातें बताई वो मै बता सकती हूं, इसलिए बताई। ना तो तुम्हे यहां अपने सवालों के जवाब मिलेगा और ना ही जिंदगी। जाते-जाते एक ही बात कहूंगी… शुहोत्र की जान बचाने के लिए, जिन शिकारीयों को उस रात तुमने चकमा दिया था, उसे यहां के 2 अल्फा पैक साथ मिलकर भी चकमा नहीं दे सकते थे। अब मै चलती हूं। अपना ख्याल रखना।


जब शरीर ही पूरा खत्म हो गया हो। निर्बलता और तृष्कार ने जहां दिमाग को सदमे में भेज दिया हो। ऐसे इंसान को कही गई बात कितनी समझ आएगी और वो कही गई बातों का कितना अर्थपूर्ण आकलन कर पाएगा। ओशुन, भंवर में फंसे आर्यमणि का चक्र तोड़कर उसे यह एहसास करवाने की कोशिश तो कर गई, "की वह क्या है और उसकी क्या क्षमता है?"


लेकिन क्या आर्यमणि के अंदर वह हौसला बचा था, जो कभी वो गंगटोक के जंगल में प्रदर्शित करता था? क्या वही आत्मविश्वास और किसी भी विषम परिस्थिति से निकलने का जोश अब भी बचा था?
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 
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nain11ster

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भाई अपडेट 😚😚😚😚

Bhai din chadke abhi dopaher ho gaya....
Update kaha hai????

Waiting bro

Chadhta din dopahar hone ko aaya 🤣

चढ़ गया दिन हो गई दुपहर, अपडेट का हमको इंतजाsssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssर 😭😭😭😭

Dophar ho gai hai bhai update

nain11ster भाई

सुबह ना आई, शाम ना आई
अब तक अपडेट की खबर ना आई

Kya huva tera vada .

nain11ster भाई दिन तो कब का चढ़ चुका ,अब तो ढलने लगा है लेकिन एक भी अपडेट न आये। इसका मतलब रात की गहराई तक ही अपडेट मिल पाएंगे

Waiting for update.....

Nain bhai dhokha de diya apne to

Din chadhne se ki bat kahi thi apne aur abhi to din dhalna suru ho gya hai aur ek bhi update na diya apne.

Waiting for update bro

ढल गया दिन
हो गई शाम
अब बस रह गई बाकी रात 😭😭😭😭😭
इंतेहा हो गई इंतजार की

Dhal Gaya din...
Ho gyi sham
Naya update
Kab aana hai.....

Rat gahrane ki suruaat ho gayi hai nain bhai ab to ap uth jao aur hmare intzar ko viram dekar reading me busy kr dijiye

Bhai ji kidhar ho aap

Waiting Bhai

भाई कितना देर और लगेगा l इन्तेहा की हद हो गयी l

लगता है nain11ster भाई ने मामू बना दिया आज तो

हाँ भाई सही कहा l

😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔इंतजार


Nain bhai ye ummid to na thi apse

Sb thik to hai?? Koi problem to nhi??

Ummid krte hai ap aur apki family me sab thik ho

Sab kuch to taiyar hi tha lekin shayad kisi ko manjoor nahi tha aaj ka update din se aana....

Kuch ghanton ke liye internet ko band kar diya gaya tha... Jaise hi service bahal hui, waise hi chala aaya.... Aap sab ke intzar ke liye bus ek hi chhoti si baat...

Kal bhi extra update aayenge...
 
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