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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–42





वायु संरक्षण भेदकर हर वेंडिगो हमला कर रहा था। ऐसा लग रहा था हर वेंडिगो काट मंत्र के साथ हमला कर रहा हो। एक–दो सहायक के नाक में काला धुवां घुसा और उसके प्राण लेकर बाहर निकला। वहां पर तांत्रिक उध्यात और ऐडियाना का प्रकोप चारो ओर से घेर–घेर कर हमला शुरू कर चुका था। सिद्ध पुरुष ओमकार नारायण ने भी मोर्चा संभाला। एक साथ 5 संन्यासी और दोनो सिद्ध पुरुष के मुख से मंत्र इस प्रकार निकल रहे थे, जैसे कोई भजन चल रहा हो। हर मंत्र के छंद का अंत होते ही १० सहायक एक साथ अपने झोले से कुछ विभूति निकालते और भूमि पर पटक देते।


भूमि पर विभूति पटकने के साथ ही नाना प्रकार की असंख्य चीजें धुवां का रूप लेकर निकलती। किसी धुएं से असंख्य उजले से साये निकल रहे थे। उनका स्वरूप ऐडियाना के आसमान से ऊंची आकृति को एक साथ ढक रही थी। आस–पास मंडराते काले साये को पूरा गिल जाते। किसी विभूति के विस्फोट से असंख्य उजले धुएं के शेर निकले। अनगिनत शेर एक बार में ही इतनी तेजी से उस बर्फ के मैदान पर फैले, की पूरा मैदान में वेंडिगो उस साये वाले शेर से उलझ गये। देखते ही देखते वेंडिगो की संख्या विलुप्त हो रही थी। रक्त, पुष्प, जल, मेघ, बिजली और अग्नि सब उस विभूति की पटक से निकले और तांत्रिक के अग्नि, बिजली और श्वेत वर्षा को शांत करते उल्टा हमला करने लगे.…


आर्यमणि और निशांत के लिए तो जैसे कोई पौराणिक कथा का कोई युद्ध आंखों के सामने चल रहा हो। दोनो ने अपने हाथ जोड़ लिये। "हमे भी कुछ करना चाहिए आर्य, वरना हमारे यहां होने का क्या अर्थ निकलता है"…. "हां निशांत तुमने सही कहा। उनके पास मंत्र शक्ति है और मेरे पास बाहुबल, हम मिलकर आगे बढ़ते है।"


निशांत:– मेरे पास भ्रमित अंगूठी है, और ट्रैप करने का समान। देखता हूं इनसे क्या कर सकता हूं।


अगले ही पल पर्वत को भी झुका दे ऐसी दहाड़ उन फिजाओं में गूंजने लगी। एक पल तो दोनो पक्ष बिलकुल शांत होकर बस उस दहाड़ को ही सुन रहे थे... दहाड़ते हुए बिजली की तेजी से आर्यमणि बीच रण में खड़ा था और उसके ठीक सामने थी महाजनिका। 1 सिद्ध पुरुष 5 और संन्यासियों को लेकर आर्यमणि के ओर रुख किया।


मंत्र से मंत्र टकरा रहे थे। चारो ओर विस्फोट का माहोल था। वेंडिगो साये के बने शेर के साथ भीड़ रहे थे। हर शेर वेंडिगो को निगलता और विजय दहाड़ के साथ गायब हो जाता। ऐडियाना का भव्य साया, असंख्य उजले साये से बांधते हुये धीरे–धीरे छोटा होने लगा था। तांत्रिक अध्यात और उसके हजार चेले भी डटे हुये थे। मंत्र से मंत्र का काट हो रहा था। इधर सिद्ध पुरुष के १० सहायकों में से एक सहायक की जान जाती तो उधर अध्यात के २०० चेले दुनिया छोड़ चुके होते।


२०० चेलों की आहुति देने के बाद भी तांत्रिक अध्यात अपने पूरे उत्साह में था। क्योंकि उसे पता था कि आगे क्या होने वाला है। उसे पता था कि फिलहाल १० हाथियों की ताकत के साथ जब महाजनिका आगे बढ़ेगी तब यहां सभी की लाश बिछी होगी। और कुछ ऐसा शायद हो भी रहा था। आर्यमणि, महाजनिका के ठीक सामने और महाजनिका मुख से मंत्र पढ़ती अपने सामने आये आर्यमणि को फुटबॉल समझकर लात मार दी। आर्यमणि उसके इस प्रहार से कोसों दूर जाकर गिरा। न केवल आर्यमणि वरन एक सिद्ध पुरुष जो अपने 5 संन्यासियों के साथ महाजनिका के मंत्र काट रहा था। उनका काट मंत्र इतना कमजोर था कि मंत्र काटने के बाद भी उसके असर के वजह वह सिद्ध पुरुष मिलो दूर जाकर गिरा। शायद उस साधु के प्राण चले गये होते, यदि आर्यमणि अपने हाथ की पुर्नस्थापित अंगूठी उसके ऊपर न फेंका होता और वह अंगूठी उस साधु ने पकड़ी नही होती।


सिद्ध पुरुष जैसे ही गिरा मानो वह फट सा गया, लेकिन अगले ही पल वह उठकर खड़ा भी हो गया। एक नजर आर्यमणि और सिद्ध पुरुष के टकराये और नजरों से जैसे उन्होंने आर्यमणि का अभिवादन किया हो। लेकिन युद्ध के मैदान में जैसे महाजनिका काल बन गई थी। एक सिद्ध पुरुष का मंत्र जाप बंद क्या हुआ, अगले ही पल महाजनिका अपने मंत्र से पांचों संन्यासियों को मार चुकी थी। 5 संन्यासियों और 10 सहायकों के साथ ओमकार नारायण दोनो ओर का मोर्चा संभाले थे। लेकिन महाजनिका अपने खोये सिद्धि और कम बाहुबल केl साथ भी इन सब से कई गुणा खतरनाक थी, जिसका परिणाम यह हुआ कि महाजनिका अकेले ही सभी मंत्रो को काटती हुई आगे बढ़ी और देखते ही देखते पर्वत समान ऊंची हो गई। उसका स्वरूप मानो किसी राक्षसी जैसा था। विशाल विकराल रूप और एक ही बार में ऐसा हाथ चलाई की उसकी चपेट में सभी आ गये। जमीन ऐसा कांपा की उसकी कंपन मिलो दूर तक मेहसूस हुई।


आर्यमणि कुछ देख तो नहीं पाया लेकिन वह सिद्ध पुरुष को अपने पीठ पर उठाकर बिजली समान तेजी से दौड़ लगा चुका था। उसने साधु को ऐडियाना के कब्र के पास छोड़ा और दौड़ लगाते हुए महाजनिका के ठीक पीछे पहुंचा। यूं तो आर्यमणि, महाजनिका के टखने से ऊंचा नही था, लेकिन उसका हौसला महाजनिका के ऊंचाई से भी कई गुणा ज्यादा बड़ा था। शेप शिफ्ट नही हुआ लेकिन झटके से हथेली खोलते ही धारदार क्ला बाहर आ गया। और फिर देखते ही देखते क्षण भर में आर्यमणी क्ला घुसाकर पूरे तेजी से गर्दन के नीचे तक पहुंच गया। आगे से तो महाजनिका बहुत हाथ पाऊं मार रही थी। मंत्र उच्चारण भी जारी था। पास खड़ा तांत्रिक अध्यात भी अब अपने मंत्रों की बौछार आर्यमणि पर कर रहा था। आर्यमणि जब ऊपर के ओर बढ़ रहा था तब बिजली बरसे, अग्नि की लपटे उठी, लेकिन कोई भी आर्यमणि की चढ़ाई को रोक न सका। जब आर्यमणि, महाजनिका के गर्दन के नीचे पहुंचा, फिर दोनो मुठ्ठी में महाजनिका के बाल को दबोचकर, एक जोरदार लात उसके पीठ पर मारा। पीठ पर वह इतना तेज प्रहार था कि महाजनिका आगे के ओर झुक गई, वहीं आर्यमणि बालों को मुट्ठी में दबोचे पीछे से आगे आ गया और इस जोड़ का बल नीचे धरातल को ओर लगाया की महाजनिका के गर्दन की हड्डियों से कर–कर–कर कर्राने की आवाज आने लगी। जोर इतना था की गर्दन नीचे झुकते चला गया। शायद टूट गई होती यदि वह घुटनों पर नही आती। महाजनिका घुटनों पर और उसका सर पूरा बर्फ में घुसा दिया।


क्या बाहुबल का प्रदर्शन था। महाजनिका अगले ही पल अपने वास्तविक रूप में आयि और सीधी खड़ी होकर घूरती नजरों से आर्यमणि को देखती... "इतना दुस्साहस".. गुस्से से बिलबिलाती महाजनिका एक बार फिर अपना पाऊं चला दी। पता नही कहां से और कैसे नयि ऊर्जा आर्यमणि में आ गई। आर्यमणि एक कदम नहीं चला। जहां खड़ा था उसी धरातल पर अपने पाऊं को जमाया और ज्यों ही अपने ऊपरी बदन को उछाला वह हवा में था। १० हाथियों की ताकत वाली महाजनिका, आर्यमणि को फुटबॉल की तरह उड़ाने के लिए लात चलायि। लेकिन ठीक उसी पल आर्यमणि एक लंबी उछाल लेकर कई फिट ऊपर हवा में था। और जब वह नीचे महाजनिका के चेहरे के सामने पहुंचा, फिर तो महाजनिका का बदन कोई रूई था और आर्यमणि का क्ला कोई रूई धुनने की मशीन। पंजे फैलाकर जो ही बिजली की रफ्तार से चमरी उधेरा, पूरा शरीर लह–लुहान हो गया। महाजनिका घायल अवस्था में और भी ज्यादा खूंखार होती अपना 25000 किलो वजनी वाला मुक्का आर्यमणि के चेहरे पर चला दी।


आर्यमणि वह मुक्का अपने पंजे से रोका। उसके मुक्के को अपने चंगुल में दबोचकर कलाई को ही उल्टा मरोड़ दिया। कर–कर की आवाज के साथ हड्डी का चटकना सुना जा सकता था। उसके बाद तो जैसे कोई बॉक्सर अपनी सामान्य रफ्तार से १०० गुणा ज्यादा रफ्तार में जैसे बॉक्सिंग बैग पर पंच मारता हो, ठीक उसी प्रकार का नजारा था। हाथ दिख ना रहे थे। आर्यमणि का मुक्का कहां और कब लगा वह नही दिख रहा था। बस हर सेकंड में सैकड़ों विस्फोट की आवाज महाजनिका के शरीर से निकल रही थी।


वहीं कुछ वक्त पूर्व जब दूसरे सिद्ध पुरुष के हाथ में जैसे ही पुनर्स्थापित अंगूठी आयि, उसने सबसे पहले अपने सभी साथियों को ही सुरक्षित किया। जिसका परिणाम यह हुआ कि महाजनिका के चपेट में आने के बाद भी वह सभी के सभी उठ खड़े हुये और इसी के साथ यह भेद भी खुल गया की पुर्नस्थापित अंगूठी कब्र में नही है। तांत्रिक अध्यात समझ चुका था कि वह युद्ध हार चुका है। लेकिन इस से पहले की वह भागता, महाजनिका, आर्यमणि के साथ लड़ाई आरंभ कर चुकी थी। मंत्र उच्चारण वह कर रही थी, लेकिन सिद्ध पुरुष उसके मंत्र को काट रहे थे और आर्यमणि अपने बाहुबल से अपना परिचय दे रहा था। कुछ देर ही उसने महाजनिका पर मुक्का चलाया था और जब आर्यमणि रुका महाजनिका अचेत अवस्था में धम्म से गिरी।


तांत्रिक अध्यात और उसके कुछ साथी पहले से ही तैयार थे। जैसे ही महाजनिका धरातल पर गिरी ठीक उसी पल ऐडियाना के मकबरे से बहरूपिया चोगा और बिजली की खंजर हवा में आ गयि। हवा में आते ही उसे हासिल करने के लिए दोनो ओर से लड़ाई एक बार फिर भीषण हो गयि। सबका ध्यान ऐडियाना की इच्छा पर थी और इसी बीच तांत्रिक अध्यात एक नया द्वार (पोर्टल) खोल दिया। वस्तु खींचने का जादू दोनो ओर से चल रहा था। एक दूसरे को घायल करने अथवा मारने की कोशिश लगातार हो रही थी। ठीक उसी वक्त आर्यमणि थोड़ा सा विश्राम की स्थिति में आया था। तांत्रिक अध्यात का इशारा हुआ और महाजनिका लहराती हुई निकली।


इसके पूर्व निशांत जो इस पूरे एक्शन का मजा ले रहा था, उसे दूर से ही तांत्रिक अध्यात की चालबाजी नजर आ गयि। उसने भी थोड़ा सा दौड़ लगाया और हवा में छलांग लगाकर जैसे ही खुद पर सुरक्षा मंत्र पढ़ा, वह हवा में उड़ गया। तेजी के साथ उसने भागने वाले रास्ते पर छोटे–छोटे ट्रैप वायर के मैट बिछा दिये और जैसे ही नीचे पहुंचा सभी किनारे पर कील ठोकने वाली गन से कील को फायर करते हर मैट को चारो ओर से ठोक दिया।


महाजनिका जब द्वार के ओर भाग रही थी तभी उसे रास्तों में बिछी ट्रैप वायर दिख गई। वह तो हवा में लहराती हुई पोर्टल में घुसी और घुसने के साथ खींचने का ताकतवर मंत्र चला दी। नतीजा यह निकला कि पोर्टल में घुसते समय बिजली की खंजर उसके हाथ में थी और बहरूपिया चोगा दो दिशाओं की खींचा तानी में फट गया। महाजनिका तो भाग गयि लेकिन तांत्रिक और उसके गुर्गे भागते हुए ट्रैप वायर में फंस गये। एक तो गिरते वक्त मजबूत मंत्र उच्चारण टूटा और छोटे से मौके को सिद्ध पुरुष ओमकार नारायण भुनाते हुये एक पल में ही तांत्रिक को उसके घुटने पर ले आये। नुकसान दोनो ओर से हुआ था। कहीं कम तो कहीं ज्यादा। महाजनिका जब भाग रही थी, तब उसके पीछे आर्यमणि भी जा रहा था, लेकिन उसे दूसरे सिद्ध पुरुष ने रोक लिया।


माहोल बिलकुल शांत हो गया था। बचे सभी तांत्रिक को बंदी बनाकर ले जाने की तैयारी चल रही थी। एक द्वार (portal) सिद्ध पुरुष ने भी खोला। वहां केवल एक संन्यासी जो आर्यमणि से शुरू से बात कर रहा था, उसे छोड़कर बाकी सब उस द्वार से चले गये। जाते हुये सभी आर्यमणि को शौर्य और वीरता पर बधाई दे रहे थे और उसकी मदद के लिये हृदय से आभार भी प्रकट कर रहे थे। उस जगह पर अब केवल ३ लोग बचे थे। संन्यासी, आर्यमणि और निशांत।


निशांत:– यहां का माहोल कितना शांत हो गया न...


संन्यासी:– हां लेकिन एक काम अब भी बचा है। जादूगरनी (ऐडियाना) को मोक्ष देना...


निशांत:– क्या उसकी आत्मा अब भी यहीं है।


संन्यासी:– हां अब भी यहीं है और ज्यादा देर तक बंधी भी नही रहेगी। मुझे कुछ वक्त दो, फिर साथ चलते हैं...


संन्यासी अपना काम करने चल दिये। सफेद बर्फीले जगह पर केवल २ लोग बचे थे.… "आर्य क्या तुमने यह जगह पहले भी देखी है?"


आर्यमणि:– नही, ये रसिया का कोई बर्फीला मैदान है, जहां बर्फ जमी है। मैने रसिया का बोरियाल जंगल देखा है। वैसे तूने क्या सोचा...


निशांत:– किस बारे में...


आर्यमणि:– खोजी बनने के बारे में...


निशांत:– अगर मुझे ये लोग उस लायक समझेंगे तब तो मेरे लिए खुशकिस्मती होगी...


"किसी काम की तलाश में गये व्यक्ति को जितनी नौकरी की जरूरत होती है। नौकरी देने वाले को उस से कहीं ज्यादा एक कर्मचारी की जरूरत होती है। और अच्छे कर्मचारी की जरूरत कुछ ऐसी है कि रात के १२ बजे नौकरी ले लो.… क्या समझे"....


निशांत:– यही की आप संन्यासी कम और कर्मचारी से पीड़ित मालिक ज्यादा लग रहे।


सन्यासी:– मेरा नाम शिवम है और कैलाश मठ की ओर से हम, तुम्हे अपना खोजी बनाने के लिए प्रशिक्षित करना चाहते हैं? राह बिलकुल आसन नहीं होगी। कर्म पथ पर चलते हुए हो सकता है कि किसी दिन तुम्हारा दोस्त गलत के साथ खड़ा रहे और तुम्हे उसके विरुद्ध लड़ना पड़े? तो क्या ऐसे मौकों पर भी तुम हमारे साथ खड़े रहोगे?


निशांत:– हां बिलकुल.... आपके प्रस्ताव और आपके व्याख्या की हुई परिस्थिति, दोनो के लिए उत्तर हां है।


संन्यासी:– जितनी आसानी से कह गये, क्या उतनी आसानी से कर पाओगे...


निशांत:– क्यों नही... वास्तविक परिस्थिति में यदि आर्यमणि मेरे नजरों में दोषी होगा, तब मैं ही वो पहला रहूंगा जो इसके खिलाफ खड़ा मिलेगा। यदि आर्य मेरी नजर में दोषी नहीं, फिर मैं सच के साथ खड़ा रहूंगा... क्योंकि गीता में एक बात बहुत प्यारी बात लिखी है...


संन्यासी:– क्या?


निशांत:– जो मेरे लिये सच है वही किसी और के लिये सच हो, जरूरी नहीं… एक लड़का पहाड़ से गिरा... मैं कहूंगा आत्महत्या है, कोई कह सकता है एक्सीडेंट है... यहां पर जो "मरा" वो सच है... लेकिन हर सच का अपना–अपना नजरिया होता है और हर पक्ष अपने हिसाब से सही होता हैं।


संन्यासी शिवम:– और यदि इसी उधारहण में मैं कह दूं की लड़का अपने आत्महत्या के बारे में लिखकर गया था।


निशांत:– मैं कह सकता हूं कि जरूर किसी की साजिश है, और पहाड़ी की चोटी से धक्का देकर उसका कत्ल किया गया है। क्योंकि वह लड़का आत्महत्या करने वालों में से नही था।


संन्यासी:– ठीक है फिर कल से तुम्हारा प्रशिक्षण शुरू हो जायेगा। जब हम अलग हो रहे हो, तब तुम अपनी पुस्तक ले लेना निशांत।


निशांत:– क्यों आप भी हमारे साथ कहीं चल रहे है क्या?


संन्यासी:– नही यहां आने से पहले आर्यमणि के बहुत से सवाल थे शायद। बस उन्ही का जवाब देते–देते जहां तक जा सकूं...


आर्यमणि:– संन्यासी शिवम जी, अब बहुत कुछ जानने या समझने की इच्छा नही रही। इतना तो समझ में आ गया की आपकी और मेरी दुनिया बिलकुल अलग है। और आप सब सच्चे योद्धा हैं, जिसके बारे में शायद ही लोग जानते हो। अब आप सबके विषय में अभी नहीं जानना। मेरा दोस्त है न, वो बता देगा... बस जिज्ञासा सिर्फ एक बात की है... जिस रोचक तथ्य के किताब में मुझे रीछ स्त्री मिली, वह पूरा इतिहास ही गलत था।


संन्यासी शिवम:– "वहां लिखी हर बात सच थी। किंतु अलग–अलग सच्ची घटना को एक मुख्य घटना से जोड़कर पूरी बात लिखी गयि है। और वह किताब भी हाल के ही वर्षों में लिखी गयि थी। जिस क्षेत्र में रीछ स्त्री महाजनिका बंधी थी, उस क्षेत्र को तो गुरुओं ने वैसे भी बांध रखा होगा। एक भ्रमित क्षेत्र जहां लोग आये–जाये, कोई परेशानी नही हो। यदि कोई प्रतिबंधित क्षेत्र होता तब उसे ढूंढना बिलकुल ही आसान नहीं हो जाता"

"तांत्रिक अध्यात, ऐसे घराने से आता है जिसका पूर्वज रीछ स्त्री का सेवक था। महाजनिका को ढूंढने के लिये इनके पूर्वजों ने जमीन आसमान एक कर दिया। हजारों वर्षों से यह तांत्रिक घराना रीछ स्त्री को ढूंढ रहे थे। पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी संस्कृति, अपना ज्ञान और अपनी खोज बच्चों को सिखाते रहे। आखिरकार तांत्रिक अध्यात को रीछ स्त्री महाजनिका का पता चल ही गया।"


आर्यमणि:– बीच में रोकना चाहूंगा... यदि ये लोग खोजी है, तो खोज के दौरान इन्हे अलौकिक वस्तु भी मिली होगी? और जब वो लोग रीछ स्त्री की भ्रमित जगह ढूंढ सकते है, फिर उन्हे पारीयान का तिलिस्म क्यों नही मिला?


संन्यासी शिवम:– मेरे ख्याल से जब पारीयान की मृत्यु हुई होगी तब तक वो लोग हिमालय का पूरा क्षेत्र छान चुके होंगे। रीछ स्त्री लगभग 5000 वर्ष पूर्व कैद हुई थी और पारीयान तो बस 600 वर्ष पुराना होगा। हमारे पास पारीयान का तो पूरा इतिहास ही है। तांत्रिक सबसे पहले वहीं से खोज शुरू करेगा जो हमारा केंद्र था। और जिस जगह तुम्हे पारीयान का तिलिस्म मिला था, हिमालय का क्षेत्र, वह तो सभी सिद्ध पुरुषों के शक्ति का केंद्र रहा है। वहां के पूरे क्षेत्र को तो वो लोग इंच दर इंच कम से कम 100 बार और हर तरह के जाल को तोड़ने वाले 100 तरह के मंत्रों से ढूंढकर पहले सुनिश्चित हुये होंगे। इसलिए पारीयान का खजाना वहां सुरक्षित रहा। वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी तांत्रिक मिल गयि होती तो तुम सोच भी नही सकते की महाजनिका क्या उत्पात मचा सकती थी।
 

Zoro x

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भाग:–6



"कॉलेज में नाबालिक लड़की के साथ छेड़छाड़, बीच बचाव करने पुलिस पहुंची तो उसपर भी हमले। 4 कांस्टेबल और एक एस.आई घायल।"..

"नेशनल कॉलेज में एक और रैगिंग का मामला। पीड़ित ने अपनी प्राथमिकता दर्ज करवाई।"

"दिन दहाड़े 2 बाइक सवार ने एक महिला के गले से उसके मंगलसूत्र उड़ा कर फरार हो गए। पुलिस अभियुक्तों कि तलाश में जुटी।"

"दो गुटों में झड़प, मुख्य मार्ग 6 घंटे तक रहा जाम। डीएम मौके पर पहुंचकर मामले का संज्ञान लिए और दोनो पक्षों को शांत करवाकर वहां से हटाया।"

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कमिश्नर कार्यालय, नागपुर… महाराष्ट्र होम मिनिस्टर और नागपुर के नए पुलिस कमिश्नर राकेश नाईक की बैठक।


तकरीबन 3 घंटे की बैठक और बढ़ते क्राइम को देखते हुए लिया गया अहम फैसला। मंत्री जी के जाने के बाद कमिश्नर राकेश नाईक की प्रेस मीटिंग। प्रेस कॉन्फ्रेंस के मुखातिर होते हुए, कमिश्नर साहब रिपोर्टर्स के सभी सवालों पर विराम लगाते… "हम लोग जिला एसपी का कार्यभार बदल रहे है, आने वाले एक महीने में इसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल जाएंगे।"


तकरीबन 3 दिन बाद, नागपुर पुलिस एसपी ऑफस का मीटिंग हाल। सामने 28 साल के बिल्कुल यंग आईपीएस, राजदीप भारद्वाज। जिले के सभी थाना अधिकारी सामने कुर्सी पर बैठे हुए। छोटी सी जान पहचान कि फॉर्मल मीटिंग।


राजदीप, छोटी सी फॉर्मल मीटिंग करने के बाद…. "यहां पहले क्या होता था वो मै नहीं जानता। लेकिन अब से मेरे कानो में केवल एक ही बात आनी चाहिए, नागपुर पुलिस बहुत सक्रिय है। और ये बात आपमें से किसी को बताने की जरूरत नहीं है, लोगों के दिल से निकलनी चाहिए ये बात। जो भी इस सोच के साथ काम करना चाहते है उनका स्वागत है। और जो खुद को बदल नहीं सकते, उनके लिए केवल इतना ही, जल्द से जल्द नई नौकरी ढूंढ़ना शुरू कर दो।"


एसपी ऑफिस से बाहर निकलते वक़्त लगभग सभी थाना अधिकारी ऐसे हंस रहे थे, मानो एसपी ऑफिस से कोई कॉमेडी शो देखकर निकले हैं। हां शायद यही सोच रहे हो, अकेला एसपी कर भी क्या सकता है। लेकिन वो भुल गए की उस 28 साल के लड़के के पास आईपीएस का दिमाग है। उसी शाम चैन स्नैचिंग के लगभग 800 मामले को राजदीप ने अपने हाथ में लिया। अपनी अगुवाई में टीम बनाई जिसमें 20 एस आई और 200 सिपाही थे। सभी के सभी फ्रस्ट्रेट पुलिस वाले जिनका सर्विस बुक में इन डिसिप्लिन होने का दाग लगा हुआ था।


4 दिन की कार्यवाही, और जो ही चोर उचक्कों को पुलिस ने दौरा-दौरा कर मारा। यहां तो केवल राजदीप ने 800 मामले को अपने हाथ में लिया था और जब पुलिस की ठुकाई हुई तो 1800 मामलों में इनका नाम आया। पूरे नागपुर में 12 चैन स्नेचर की गैंग और 108 लोगो की गिरफ्तारी हुई थी। इसके अलावा 17 दुकानों को चोरी का माल खरीदने के लिए सील कर दिया गया था और उनके मालिकों को भी हिरासत में ले लिया गया था।


आते ही हर सुर्खियों में केवल राजदीप ही राजदीप छाए रहे। जिस डिपार्टमेंट को काम ना करने की आदत सी पड़ चुकी थी। जिनकी लापरवाही और मिली भगत का यह नतीजा था कि क्रिमिनल थाने के सामने से चोरी करने से नहीं कतराते थे, उन सब पुलिस वालों पर गाज गिरना शुरू हो गया था। नौकरी तो बचानी ही थी अपनी, इसलिए जो भी क्रिमिनल अरेस्ट होते थे सब के सब पुखते सबूतों के साथ।


एक महीने के पूरी ड्यूटी के बाद तो जैसे नागपुर शहर का क्राइम ग्राफ ही लुढ़क गया हो। जितने भी टपोरी थे या तो उन्होंने धंधा बदल लिया या शहर। जो समय कमिश्नर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिया था, उसके खत्म होते ही उन्होंने फिर एक कॉन्फ्रेंस किया, लेकिन इस बार सवाल कम और तारीफ ज्यादा बटोर रही थी नागपुर पुलिस।


सुप्रीटेंडेंट साहब जितने मशहूर नागपुर में हुए, उतने ही अपने परिवार के भी चहेते थे। पिताजी हाई स्कूल में प्रिंसिपल के पोस्ट से रिटायर किए थे और माताजी भी उसी स्कूल में शिक्षिका थी। राजदीप का एक बड़ा भाई कमल भारद्वाज जो यूएस में सॉफ्टवेर इंजिनियर है अपने बीवी बच्चों के साथ वहीं रहता था।


दूसरा राजदीप जो सुप्रीटेंडेंट ऑफ पोलिस है। राजदीप से छोटी उसकी एक बहन नम्रता, जो पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद पीएचडी करना चाह रही थी, लेकिन राजदीप के नागपुर पोस्टिंग के बाद अपने दोस्तों को छोड़कर यहां के यूनिवर्सिटी में अप्लाई करना पड़ा। और सबसे आखरी में पलक भारद्वाज, 1 साल की तैयारी के बाद अपने इंजीनियरिंग एंट्रेंस टेस्ट देकर उसके परिणाम का इंतजार कर रही थी।


शुरू से ही घर का माहौल पठन-पाठन वाला रहा, इसलिए राजदीप को पढ़ने का अनुकूल माहौल मिला और वो 24 साल की उम्र में अपना आईपीएस क्लियर करके ट्रेनिंग के लिए चला गया। ट्रेनिंग के बाद उसे 26 साल में पहली फील्ड पोस्टिंग मिली थी, और 2 साल बाद ही महाराष्ट्र के प्रमुख शहर नागपुर की जिम्मेदारी।


रविवार की सुबह थी। राजदीप बाहर लॉन में बैठकर पेपर पढ़ रहा था, उसकी पहली छोटी बहन नम्रता चाय लेकर उसके पास पहुंची… "क्या पढ़ रहे हो दादा, अखबार में तो केवल आपके ही चर्चे हैं। अब एक काम करो शादी कर लो।"..


राजदीप:- कितने पैसे चाहिए।


नम्रता:- क्या दादा, आपको क्यों ऐसा लग रहा है कि मै आपसे पैसे मांगने आयी हूं।


राजदीप:- फिर क्या बात है।


नम्रता:- दादा पलक ने नेशनल कॉलेज में एडमिशन ले लिया है, वो तो पता ही होगा ना।


राजदीप:- हां पता है, उसने इंट्रेस में टॉप मार्क्स मिले थे, मैंने अपने साथियों में मिठाई भी बंटवाई थी।


नम्रता:- दादा वो कॉलेज रैगिंग के लिए मशहूर है और मुझे बहुत डर लग रहा है। आप तो पलक को जानते ही हो, इसलिए क्या आप पुरा हफ्ता उसे कॉलेज ड्रॉप कर सकते हैं?


राजदीप:- नम्रता वो कॉलेज है, वहां पुलिस का क्या काम। देखो मै पलक को केवल वहां एक हफ्ते छोड़ने जाऊंगा, लेकिन वो अगले 4 साल उस कॉलेज में जाने वाली है। थोड़ा बहुत रैगिंग से जूनियर्स, सीनियर्स के पास आते हैं, वो जायज है। हां उसके ऊपर जब जाए तब मैं हूं, चिंता मत करो। कल पहला दिन है तो मै ही चला जाऊंगा। वैसे ये रहती कहां है आजकल।


नम्रता:- घर में ही होगी जाएगी कहां, रुको बुला देता हूं।


राजदीप:- नहीं रहने दे, उसका यहां बैठना और ना बैठना दोनो एक जैसा होगा। मुझे तो कभी-कभी लगता है आई–बाबा का एक बच्चा हॉस्पिटल में बदल गया था।


नम्रता:- क्या दादा, सुनेगी तो बुरा लगेगा।


राजदीप:- हां लेकिन गुस्सा तो हो, झगड़ा तो करे। वो बस इतना ही कहेगी हर किसी का स्वभाव एक जैसा नहीं होता और बात खत्म।


अगले दिन सुबह-सुबह राजदीप पलक के साथ नेशनल कॉलेज के लिए निकला।..


राजदीप:- सो क्या ख्याल चल रहे है पहले दिन को लेकर।


पलक:- कुछ नहीं दादा, थैंक्स आप साथ आए।


राजदीप:- हद है, अब भाई को भी थैंक्स कहेगी। अच्छा सुन कोई रैगिंग करे तो मुझे बताना।


पलक:- हां बिल्कुल।


राजदीप कुछ दूर आगे चला होगा तभी उसे लंबा जाम दिखा।… "पलक 2 मिनिट गाड़ी में बैठ मै अभी आया।".. लगभग 200 मीटर जाम को पार करने के बाद राजदीप जैसे ही चौराहे पर पहुंचा, वहां का माहौल देखकर वो दंग रह गया। ऊपर से जब वो आगे बढ़ने लगा, तभी एक आदमी उसके सीने पर हाथ रखते… "साले तेरेको दिख नहीं रहा, भाई इधर धरना दे रयले है।"


राजदीप ने ऐसा तमाचा दिया कि उसके गाल पर पंजे का निशान छप गया। कुछ देर तक तो उसका सर नाचने लगा और तमाचा इतना जोरदार था कि वहां तमाचा की आवाज गूंज गई। सभी गुंडे उठकर खड़े हो गए। इसी बीच थाने और कंट्रोल रूम से पुलिस का भारी जत्था पहुंच गया। राजदीप एक कार के बोनट पर अपनी तशरीफ़ को टिकाते हुए, अपने आखों पर चस्मा डाला…. "जबतक रुकने के लिए ना कहूं, ठोकते रहो इनको।"


चारो ओर से घिरे होने के कारण भाग पाना काफी मुश्किल हो रहा था। इसी बीच पुलिस की टीम ने आदेश मिलते ही जो ही डंडे बरसाने शुरू किए, तबतक नहीं रुके जबतक राजदीप ने रुकने का इशारा नहीं किया।… "इसके गैंग लीडर को सामने लेकर आओ"…


सामने लोकल एरिया का मशहूर गुंडा और यहां के लोकल एमएलए का खास आदमी, इमरान कुरैशी को लाकर खड़ा कर दिया… "साले ज्यादा फिल्मी हो रहा है। अगली बार कहीं सड़क जाम करता हुआ दिखा ना तो किसी काम का नहीं छोडूंगा। इंस्पेक्टर यहां का ट्रैफिक क्लियर करो और इन सबको हॉस्पिटल लेकर जाओ।"


राजदीप जाम क्लियर करवाकर वापस अपने गाड़ी में आया और पलक के साथ उसे कॉलेज छोड़ने के लिए चल दिया। कॉलेज का कैंपस देखकर राजदीप कहने पर मजबूर हो गया… "ये लोग कॉलेज चला रहे है या 5 स्टार होटल। तभी आजकल इंजिनियरिंग इतनी मेंहगी हो गई है।"..


पलक:- दादा आप जाओ, मै अपना क्लास ढूंढ लूंगी।


राजदीप:- क्या है पलक, मै यहां तेरे लिए आया हूं और तू है कि मुझे ही भगा रही है। चल आज मै तुम्हारी हेल्प कर देता हूं।


पलक:- ठीक है दादा।


राजदीप वहां से ऑफिस गया और ऑफिस से पलक के सारे क्लास का पता लगाकर उसे दोबारा रैगिंग के विषय में समझाकर, वहां से वापस अपने ऑफिस पहुंचा। राजदीप जैसे ही अपने केबिन में पहुंचा ठीक उसके पीछे संदेशा भी पहुंचा… "एमएलए साहब मिलना चाह रहे थे।"..


राजदीप कुछ फाइल पर साइन करने के बाद एमएलए आवास पर पहुंचा। सामने से उसे सैल्यूट करते हुए… "सर आपने मुझे यहां बुलाया।"..


एमएलए:- सुना है सड़क पर तुमने आज खूब एक्शन दिखाया।


राजदीप:- गलत सुना है सर। आज अपनी बहन को कॉलेज ड्रॉप करने गया था तो थोड़ा जल्दी में था इसलिए केवल वार्निग देकर छोड़ा दिया, कहीं वर्दी में होता तो उसे काल के दर्शन करवाता।


एमएलए:- जवान खून हो और तन पर सुप्रीटेंडेंट की वर्दी। नतीजा तो ऐसा ही होना है। तुम्हे पता है महाराष्ट्र के असेम्बली में मेरा क्या योगदान है। मेरे 72 एमएलए सपोर्ट के साथ ये असेम्बली चल रही है, इधर मैंने अपना हाथ खींचा और उधर इलेक्शन शुरू। तू जानता नहीं मै क्या करवा सकता हूं?


राजदीप:- आराम से बैठकर बातें करें या अपनी कुर्सी का सॉलिड अकड़ है?


एमएलए:- पॉलिटिक्स में अकड़ नहीं बल्कि अक्ल काम आती है, आओ मेरे साथ।


दोनो एमएलए के प्राइवेट चैंबर में बैठते हुए… "हां अभी कहो।"..


राजदीप:- सुनो कृपा शंकर गोडबोले, मुझे शहर कि सड़कें साफ चाहिए। आम जनता परेशान होते नजर नहीं आने चाहिए। मर्डर मतलब उस क्राइम को रिवर्स नहीं किया जा सकता, किसी की जिंदगी नहीं लौटाया जा सकती, इसलिए किसी का मर्डर नहीं चाहिए। ड्रग्स जैसे कारोबार नहीं चाहिए। इसके अलावा कुछ भी करो मै कुछ नहीं कहने आऊंगा। बात समझ में आ गई हो तो 10 करोड़ के एनुअल बजट के साथ डील फाइनल करो वरना बौधायन भारद्वाज के वंशज के बारे में एक बार पता कर लेना।


एमएलए, ने जैसे ही बौधायन भारद्वाज का नाम सुना, राजदीप को आंखे फाड़कर देखते, "उज्ज्वल भारद्वाज के बेटे हो क्या?"… राजदीप ने जैसे ही हां मे सर हिलाया, एमएलए... "मुझे माफ़ कर दो, मै तुम्हे पहचान नहीं पाया। मुझे तुम्हारी हर शर्त मंज़ूर है। लेकिन 10 करोड़ थोड़ा ज्यादा नहीं लग रहा, अब थोड़े बहुत काम से मै कितना पैसा बना पाऊंगा। इसे 5 करोड़ कर दो प्लीज।"


राजदीप:- कृपा शंकर सर, ये चिंदी काम से आपका पेट थोड़े ना भरता है। मुझे मजबूर ना करे अपने रिस्ट्रिक्शन के दायरे बढ़ाने में वरना फिर मै पहले मिलावटी चीजों पर ध्यान दूंगा। फिर शिकंजा बढ़ेगा बैटिंग पर। फिर दायरा बढ़ेगा ब्रांडेड प्रोडक्ट्स के पायरेसी के धंधे पर। और वो जो नेशनल कॉलेज को चकाचक करवाकर जो इतना डोनेशन कमा रहे, उस जैसे फिर ना जाने कितने सरकारी कॉलेज है, जहां तुमने एडवांस फीचर्स के नाम पर बैक डोर से मोटी रकम वसूली है, और वसूलते रहोगे...


एमएलए:- आप तो ज्ञानी है प्रभु। ठीक है डील तय कर दिया, आज से पुरा नागपुर आपका। जो आप कहेंगे वहीं होगा।


राजदीप:- मै तो पूरे भारत में जो कहूंगा वो होगा, लेकिन वो क्या है ना कृपाशंकर, हम यदि अपनी मांगे नाजायज रखेंगे तो अपना वैल्यू ही खत्म हो जाएगा। बाकी पुलिस और पॉलिटिक्स में तो पॉलिटीशियन को इतनी सेवा पुलिस की करनी ही पड़ती है।


एमएलए:- हव साहेब.. आप जैसा बोलो।


राजदीप:- ठीक है सर अब मै चलता हूं, आपके वाहट्स ऐप पर मैंने अपनी बहन की तस्वीर भेज दी है, आपकी छत्र छाया वाले कॉलेज में है, देखिएगा कोई हरासशमेंट का केस ना आए, बाकी छोटी मोटी रैगिंग के लिए मै पढ़ने वालों को परेशान नहीं करता।


एमएलए:- आप जाइए राजदीप सर, कॉलेज में इन्हे कोई परेशानी नहीं होगी।


शाम को ऑफिस से लौटते वक़्त राजदीप अपनी बहनों के लिए कुछ खरीदारी करता हुआ चला। वो जब रास्ते में था तभी कमिश्नर राकेश का फोन आ गया… "जी सर कहिए।"


राकेश:- क्यों रे मैंने सुना है आज एमएलए से मिलकर आया। ये तो कमाल ही हो गया। मतलब हम कमिश्नर ऑफिस में और तू पॉलिटीशियन की गोद में। वो भी पॉलिटीशियन कौन तो कृपाशंकर।


राजदीप:- मै आता हूं ना सर आपके घर।


राकेश:- छोड़ मै ही आता हूं तेरे घर। वैसे भी आजकल डीसी ऑफिस से ज्यादा तो एसपी ऑफिस छाया हुआ है नागपुर में।


राकेश:- जैसा आप सही समझो साहेब। मै भी ऑफिस से निकल गया।


राजदीप अपना सारा प्लान कैंसल करते हुए, नागपुर के सबसे मशहूर रेस्त्रां से मटन, नान और नाना प्रकार के व्यंजन पैक करवाकर सीधा घर पहुंचा। रात के ठीक 8 बजे नए प्रमोटेड कमिश्नर साहब अपने पूरे परिवार के साथ राजदीप के घर पहुंचे।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 

Zoro x

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भाग:–7


जैसे ही वो घर पहुंचे राजदीप समेत उसकी दोनो बहने जाकर उनके पाऊं छू ली। इधर राकेश और उसकी पत्नी निलांजना भी जाकर राजदीप के माता पिता से मिलने लगे। राजदीप की मां और राकेश की पत्नी दोनो सगी बहने थी और कमिश्नर साहब राजदीप के मौसा जी। पुलिस का काम ऐसा था कि पूरे परिवार का मिल पाना नहीं हो पता था, हां लेकिन फोन पर अक्सर ही बातें हुआ करती थी। राजदीप अपने मौसा से ही इंस्पायर्ड होकर आईपीएस को तैयारी करने गया था। बड़े से डाइनिंग टेबल पर दोनो परिवार बैठा हुए था। चित्रा और निशांत भी वहीं बैठे हुए थे और खामोशी से सबकी बातें सुन रहे थे।…


नम्रता, खाने का प्लेट लगाती…. "दादा फोन पर तो ये निशांत और चित्रा आधा घंटा कान खा जाते थे, आज दोनो मूर्ति बनकर बैठे है। चित्रा, निशांत सब ठीक तो है ना।"…


राकेश:- इन दोनों को कुलकर्णी कीड़े ने काटा है, इसलिए कुछ नहीं बोल रहे।


राजदीप:- कौन वो डीएम केशव कुलकर्णी।


राकेश:- हां उसी का नकारा बेटे के सोक में दोनो सालों से पागल हुए जा रहे है।


राजदीप की मां अक्षरा भारद्वाज…. "छी छी, उस घटिया परिवार से तुमलोग रिश्ता भी कैसे रख सकते हो।"


"पापा हमे ये सब सुनाने के लिए लाए थे। तुझे मटन का स्वाद लेना है तो लेते रह निशांत, मै जा रही।"… चित्रा गुस्से में अपनी बात कहकर खाने के टेबल से उठ गई। उसी के साथ निशांत भी खड़ा होते.… "रुक चित्रा मै भी चलता हूं।"..


पलक:- "बैठ जाओ दोनो आराम से। जिस बात की वजह नहीं जानते उस बात को पहले पूछ लो। पीछे की कहानी जान लो, ताकि तुम्हे उसमे अपना कुछ विचार देना हो तो विचार दे दो और फिर ये कहकर उठो की आप बड़े है, मै उल्टे शब्दों में आपको जवाब नहीं दे सकता इसलिए मजबूरी में उठकर जाना पड़ रहा है।"

"देखा जाए तो तुमने आई की बात का जवाब इसलिए नहीं दिया, क्योंकि तुम्हे रिश्ते ने खटास नहीं चाहिए, लेकिन ऐसे उठकर चले गए तो तुम्हारे पापा को बेज्जती झेलनी होगी। उनसे सवाल किए जाएंगे कि कैसे संस्कार दिए अपने बच्चो को। तुमने इज्जत के कारण उठकर जाने का निर्णय लिया, किन्तु यहां बात कुछ और हो जाएगी। इसलिए आराम से बैठ जाओ और सवाल करो, जवाब दो, फिर विनम्रता से उठकर चले जाना।"


पलक की बात सुनकर दोनो भाई बहन बैठ गए। और निशांत अपनी मासी को सॉरी कहते हुए कहते पूछने लगा… "मासी आप उस परिवार के बारे में क्या जानते है।"..


अक्षरा भारद्वाज:- "बेटा उस केशव कुलकर्णी की पत्नी जो है ना जया, उसकी एक बड़ी बहन है यहीं नागपुर में रहते है, मीनाक्षी भारद्वाज और उसके पति का नाम है सुकेश भारद्वाज। सुकेश भारद्वाज जो है वो और राजदीप के बाबा उज्जवल दोनो खास चचेरे भाई है।"

"तेरे 3 मामा है। जिसमें से तेरे जो सबसे छोटे वाले मामा थे, उनकी मौत का कारण वही उसकी बहन जया है। तेरे छोटे मामा और जया का लगन तय हो गया था, लेकिन शादी के एक दिन पहले उसकी बड़ी बहन मीनाक्षी ने अपनी बहन जया को भगा दिया। तेरे छोटे मामा बेज्जती का ये घूंट पी नहीं पाए और उन्होंने आत्महत्या कर ली। नफरत है हमे उस परिवार से। उसका नाम सुनती हूं तो तेरे छोटे मामा याद आ जाते है।"


चित्रा:- पलक तुम्हारा धन्यवाद, तुमने सही वक़्त पर बिल्कुल सही बातें बताई। मासी आपको जो मानना है वो आप मानती रहे, और यहां बैठे जितने भी लोग है। मै इसपर कुछ नही कहूंगी, नहीं तो आप सबकी भावनाओ को ठेस पहुंचेगा। आर्यमणि हमारा दोस्त है और जिंदगी भर हमारा दोस्त रहेगा।


राजदीप:- सिर्फ दोस्त ही है ना..


चित्रा:- हमे साथ देखकर शायद आपको कन्फ्यूजन हो सकता है लेकिन हम दोनों के बीच कोई कन्फ्यूजन नहीं है भईया। वैसे हमने एक बार सोचा था रिलेशनशिप स्टेटस बदलने का। लेकिन फिर समझ में आया, हम पहले ही अच्छे थे।


राजदीप:- अच्छा हम से तो वजह जान लिए तुम बताओ कि तुम दोनो उसके लिए इतने मायूस क्यों हो?


निशांत:- मेरे पापा गंगटोक के अस्सिटेंट कमिश्नर रह चुके है, उनसे पूछ लीजिएगा डिटेल कहानी आपको पता चल जाएगा। हमारा दोस्त आर्यमणि बोलने में विश्वास नहीं रखता, केवल करने में विश्वास रखता है।


खाने के टेबल पर फिर बातों का दौड़ चलता रहा। काफी लंबे अरसे के बाद दोनो परिवार मिल रहे थे। सब एक दूसरे से घुलने मिलने लगे। चित्रा और निशांत के मन का विकार भी लगभग निकल चुका था, वो भी अपने मौसेरे भाई बहन से मिलकर काफी खुश हुए।


बातों के दौरान यह भी पता चला की पलक, निशांत और चित्रा तीनों एक ही कॉलेज में एडमिशन लिए है। जहां पलक और निशांत दोनो मैकेनिकल इंजिनियरिंग कर रहे है वहीं चित्रा कंप्यूटर साइंस पढ़ रही थी।


रात के लगभग 12 बज रहे थे। चित्रा, निशांत के कमरे में आकर उसके बिस्तर पर बैठ गई… "सालों बित गए, आर्यमणि ने एक बार भी फोन नहीं किया।"


निशांत:- कल अंकल (आर्यमणि के पापा) ने फोन किया था, रो रहे थे। आर्यमणि जबसे गया, किसी से एक बार भी संपर्क नहीं किया।


चित्रा:- कमाल की बात है ना निशांत, आर्य नहीं है तो हम सालों से झगड़े भी नहीं।


निशांत:- मन ही नहीं होता तुझे परेशान करने का चित्रा। अंकल बता रहे थे मैत्री के मरने का गहरा सदमा लगा था उसे।


चित्रा:- कहीं वो सारे रिश्ते नाते तोड़कर विदेश में सैटल तो नहीं हो गया। निशांत एफबी प्रोफाइल चेक कर तो आर्य की। कहीं कोई तस्वीर पोस्ट तो नहीं किया वो?


निशांत:- कर चुका हूं, नहीं है कोई पिक शेयर। वैसे एक बात बता, केमिकल इंजीनियरिंग के लिए तुमने आर्य का माइंड डायवर्ट किया था ना?


चित्रा:- नहीं मै तो केमिकल इंजिनियरिंग लेने वाली थी, उसी ने मुझसे कहा कि कंप्यूटर साइंस करते है। तकरीबन 5 महीने तक मुझे समझता रहा मै फिर भी नहीं मानी।


निशांत:- फिर क्यों ले ली..


चित्रा:- एक छोटा सा सरप्राइज। बस इसी खातिर ले ली।


निशांत:- तू भी ना पूरे पागल है।


चित्रा:- हां लेकिन तुम दोनो से कम… वो अजगर वाला वीडियो लगा ना.. उसका एक्शन देखते है।


दोनो भाई बहन फिर एक के बाद एक ड्रोन कि रेकॉर्डेड वीडियो देखने लगे। वीडियो देखते देखते दोनो को कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। दोनो भाई बहन सुबह-सुबह उठे और आराम से नेशनल कॉलेज के ओर चल दिए। कैंपस के अंदर कदम रखते ही चारो ओर का नजारा देखकर… "हाय इतनी सारी तितलियां.. सुन ना चित्रा एक हॉट आइटम को अपनी दोस्त बना लेना और उससे मेरा इंट्रो करवा देना।"


चित्रा:- मै भी उस आइटम से पहले इंक्वायरी कर लूंगी उसका कोई भाई है कि नहीं जिसने उससे भी ऐसा ही कुछ कहा हो। थू, कमीना…


निशांत:- जा जा, मत कर हेल्प, वैसे भी यहां का माहौल देखकर लगता नहीं कि तेरे हेल्प की जरूरत भी होगी।


चित्रा:- अब किसी को हर जगह जूते खाने के शौक है तो मै क्या कर सकती हूं। बेस्ट ऑफ लक।


दोनो भाई–बहन बात करने में इतने मशगूल थे कि सामने चल रहे रैगिंग पर ध्यान ही नहीं गया, और जब ध्यान गया तो वहां का नजारा देखकर… "ये उड़ते गिरते लोग क्या कर रहे है यहां।"..


निशांत:- इसे रैगिंग कहते है।


चित्रा, निशांत का कांधा जोर से पकड़ती… "भाई मुझे ये सब नहीं करना है, प्लीज मुझे बचा ले ना।"..


निशांत:- अब तू आज इतने प्यार से कह रही है तो तेरी हेल्प तो बनती है। चल..


चित्रा:- नहीं तू आगे जाकर रास्ता क्लियर कर मै पीछे से आती हूं।


निशांत:- चल ठीक है मै आगे जाता हूं तू पीछे से आ।


निशांत आगे गया, वहां खड़े लड़के लड़कियों से थोड़ी सी बात हुई और उंगली के इशारे से चित्रा को दिखाने लगा। चित्रा को देखकर तो कुछ सीनियर्स ध्यान मुद्रा में ही आ गए। निशांत, चित्रा को प्वाइंट करके फिर आगे निकल गया। जैसे ही चित्रा, निशांत को वहां से निकलते देखी… "कितना भी झगड़ा कर ले, लेकिन निशांत मेरे से प्यार भी उतना ही करता है।"… चित्रा खुद से बातें करती हुई आगे बढ़ी। तभी वहां खड़े लड़के लड़कियां उसका रास्ता रोकते… "फर्स्ट ईयर ना"..


चित्रा:- येस सर


एक लड़का:- चलो बेबी अब जारा बेली डांस करके दिखाओ..


"हांय.. बेली डांस, लेकिन निशांत ने तो सब क्लियर कर दिया था यहां"… चित्रा अपने मन में सोचती हुई, सामने खड़े लड़के से कहने लगी… "सर जरूर कोई कन्फ्यूजन है, अभी-अभी जो मेरा भाई गया है यहां से, उसने आपसे कुछ नहीं कहा क्या?"


एक सीनियर:- कौन वो चिरकुट। हम तो उससे भी रैगिंग करवा लेते लेकिन बोला मै यहां थोड़े ना पढ़ता हूं, अपनी बहन को छोड़ने आया हूं। वो तुम्हारे क्लास वाइग्रह देखने गया है अभी। चल अब बेली डांस करके दिखा।


चित्रा अपनी आखें बड़ी करती… "कुत्ता कहीं का, इसे तो घर पर देखूंगी।"..


सीनियर:- क्या सोच रही है, चल बेली डांस कर।


चित्रा, नीचे से अपनी जीन्स 4 इंच ऊपर करती…. "सर नकली पाऊं से बेली डांस करूंगी तो मै गिर जाऊंगी, फिर लोग क्या कहेंगे। देखो पहले ही दिन कॉलेज में गिर गई।"..


एक लड़की:- तो क्या दूसरे दिन गिरेगी।


चित्रा:- मिस क्या पहला, क्या दूसरा, अब जब पाऊं ही नहीं है तो कभी भी गिरा दो क्या फर्क पड़ता है। जिस बाप को अपना सरनेम देना था उसने अनाथालय की सीढ़ियां दे दी, सिर्फ इस वजह से कि मेरा एक पाऊं है ही नहीं। जब अपना खुद का बाप एक अपाहिज का दर्द नहीं समझा तो तुम लोग क्या समझोगे। अकेला छोड़ दिया ऐसे दुनिया में जहां किसी अनाथ और खुस्बसूरत लड़की को हर नजर नोचना चाहता हो। बेली डांस के बदला ब्रेक डांस ही करवा लो, जब मेरे नकली पाऊं बाहर निकल आएंगे तो तुम सब जोड़-जोड़ से हंसना।


सामने से एक लड़का फुट फुट कर रोते हुए… "सिस्टर, दबाकी मेरा नाम है, यहां मै सबको दबा कर रखता हूं। तुम बिंदास अपने क्लास जाओ, तुम्हे पूरे कॉलेज में कोई आंख उठाकर भी नहीं देखेगा।"


इधर निशांत उन लड़कों को झांसा देकर जैसे ही आगे बढ़ा, उसे पलक मिल गईं… "कैसी हो पलक"


पलक:- अच्छी हूं।


निशांत:- तुम्हारी रैगिंग नहीं हुई क्या?


पलक:- शायद दादा ने यहां सबको पहले से वार्निग दे दिया हो। कॉलेज के गेट से लेकर यहां तक सब सलाम ठोकते ही आए है।


निशांत:- हा हा हा हा.. सुप्रीटेंडेंट साहब की बहन आयी है। वो भी कोई ऐसा वैसा पुलिस वाला नहीं बल्कि सिंघम के अवतार है राजदीप भारद्वाज।


पलक:- हेय वो तुम्हारी बहन के साथ रैगिंग कर रहे है।


निशांत:- कास रैगिंग कर पाए, मै तो विनायक को पूरे 101 रुपए की लड्डू चढ़ाऊंगा।


पलक:- ऐसा क्यों कह रहे हो, वो तुम्हारी बहन है।


निशांत:- मेरी तो बहन है लेकिन इन सबकी मां निकलेगी। इसकी रैगिंग कोई लेकर तो दिखाए।


पलक, निशांत की बातें सुनकर जिज्ञासावश सबकुछ देखने लगी। जैसे-जैसे चित्रा का एक्ट आगे बढ़ रहा था, उसकी हसी ही नहीं रुक रही थी। निशांत पीछे से पलक के दोनो कंधे पर हाथ देकर अपना चेहरा आगे लाते हुए… "देखी मैंने क्या कहा था।"..


पलक ने जैसे ही देखा की निशांत उसके कंधे पर हाथ रखे हुए है वो हंसते हंसते ख़ामोश हो गई और अपनी नजरे टेढ़ी करके निशांत की बातें सुनने लगी। निशांत को ख्याल आया कि उसने पलक के कंधे पर हाथ दिया है… "सॉरी मैंने कैजुअली कंधे पर हाथ रख दिया।"..


पलक:- कोई बात नहीं, बस मुझे दादा का ख्याल आ गया।


तभी इनके पास चित्रा भी पहुंच गई… "कमिने खुद तो मुझे छोड़ने का बहाना बनाकर बच गया, और मुझे फसा दिया। तू देख लेना यहां किसी भी लड़की से तूने बात तक की ना तो तेरी ठरकी देवदास की डीवीडी ना रिलीज कर दी तो तू देख लेना।"


पलक:- क्यों दोनो झगड रहे हो, चलो क्लास अटेंड करने। अभी तो शायद हम सब की क्लास साथ ही होगी ना।


चित्रा:- क्लास साथ हो या अलग पलक, लेकिन इसके साथ मत रहना। भाई के नाम पर कलंक है ये।


निशांत:- वो तो पलक ने भी सुना क्या-क्या साजिशें तुम कर रही। जलकुकड़ी कहीं की। तुझे इस बात से दिक्कत नहीं थी कि तेरा रैगिंग के लिए इन लोगो ने रोका। इनसे निपटने की तैयारी तो तू घर से करके आयी थी। तुझे तो इस बात का गुस्सा ज्यादा आया की मुझे क्यों नहीं रोका, मेरी रैगिंग क्यों नहीं ली?


पलक:- क्लास चले, बाकी बातें क्लास के बाद पूरी कर लेना।


तीनों ही क्लास में चले गए। पलक इन दोनों से मिलकर काफी खुश नजर आ रही थी। अंदर से मेहसूस हो रहा था चलो फॉर्मल लोग नहीं है। हालांकि एक खयाल पलक के मन में बार-बार आता रहा की आखिर मेरा भाई तो केवल एसपी है फिर किसी ने नहीं रोका, और इसके पापा तो कमिश्नर है, फिर क्यों इनकी रैगिंग हो रही है।"..
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 

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भाग:–42





वायु संरक्षण भेदकर हर वेंडिगो हमला कर रहा था। ऐसा लग रहा था हर वेंडिगो काट मंत्र के साथ हमला कर रहा हो। एक–दो सहायक के नाक में काला धुवां घुसा और उसके प्राण लेकर बाहर निकला। वहां पर तांत्रिक उध्यात और ऐडियाना का प्रकोप चारो ओर से घेर–घेर कर हमला शुरू कर चुका था। सिद्ध पुरुष ओमकार नारायण ने भी मोर्चा संभाला। एक साथ 5 संन्यासी और दोनो सिद्ध पुरुष के मुख से मंत्र इस प्रकार निकल रहे थे, जैसे कोई भजन चल रहा हो। हर मंत्र के छंद का अंत होते ही १० सहायक एक साथ अपने झोले से कुछ विभूति निकालते और भूमि पर पटक देते।


भूमि पर विभूति पटकने के साथ ही नाना प्रकार की असंख्य चीजें धुवां का रूप लेकर निकलती। किसी धुएं से असंख्य उजले से साये निकल रहे थे। उनका स्वरूप ऐडियाना के आसमान से ऊंची आकृति को एक साथ ढक रही थी। आस–पास मंडराते काले साये को पूरा गिल जाते। किसी विभूति के विस्फोट से असंख्य उजले धुएं के शेर निकले। अनगिनत शेर एक बार में ही इतनी तेजी से उस बर्फ के मैदान पर फैले, की पूरा मैदान में वेंडिगो उस साये वाले शेर से उलझ गये। देखते ही देखते वेंडिगो की संख्या विलुप्त हो रही थी। रक्त, पुष्प, जल, मेघ, बिजली और अग्नि सब उस विभूति की पटक से निकले और तांत्रिक के अग्नि, बिजली और श्वेत वर्षा को शांत करते उल्टा हमला करने लगे.…


आर्यमणि और निशांत के लिए तो जैसे कोई पौराणिक कथा का कोई युद्ध आंखों के सामने चल रहा हो। दोनो ने अपने हाथ जोड़ लिये। "हमे भी कुछ करना चाहिए आर्य, वरना हमारे यहां होने का क्या अर्थ निकलता है"…. "हां निशांत तुमने सही कहा। उनके पास मंत्र शक्ति है और मेरे पास बाहुबल, हम मिलकर आगे बढ़ते है।"


निशांत:– मेरे पास भ्रमित अंगूठी है, और ट्रैप करने का समान। देखता हूं इनसे क्या कर सकता हूं।


अगले ही पल पर्वत को भी झुका दे ऐसी दहाड़ उन फिजाओं में गूंजने लगी। एक पल तो दोनो पक्ष बिलकुल शांत होकर बस उस दहाड़ को ही सुन रहे थे... दहाड़ते हुए बिजली की तेजी से आर्यमणि बीच रण में खड़ा था और उसके ठीक सामने थी महाजनिका। 1 सिद्ध पुरुष 5 और संन्यासियों को लेकर आर्यमणि के ओर रुख किया।


मंत्र से मंत्र टकरा रहे थे। चारो ओर विस्फोट का माहोल था। वेंडिगो साये के बने शेर के साथ भीड़ रहे थे। हर शेर वेंडिगो को निगलता और विजय दहाड़ के साथ गायब हो जाता। ऐडियाना का भव्य साया, असंख्य उजले साये से बांधते हुये धीरे–धीरे छोटा होने लगा था। तांत्रिक अध्यात और उसके हजार चेले भी डटे हुये थे। मंत्र से मंत्र का काट हो रहा था। इधर सिद्ध पुरुष के १० सहायकों में से एक सहायक की जान जाती तो उधर अध्यात के २०० चेले दुनिया छोड़ चुके होते।


२०० चेलों की आहुति देने के बाद भी तांत्रिक अध्यात अपने पूरे उत्साह में था। क्योंकि उसे पता था कि आगे क्या होने वाला है। उसे पता था कि फिलहाल १० हाथियों की ताकत के साथ जब महाजनिका आगे बढ़ेगी तब यहां सभी की लाश बिछी होगी। और कुछ ऐसा शायद हो भी रहा था। आर्यमणि, महाजनिका के ठीक सामने और महाजनिका मुख से मंत्र पढ़ती अपने सामने आये आर्यमणि को फुटबॉल समझकर लात मार दी। आर्यमणि उसके इस प्रहार से कोसों दूर जाकर गिरा। न केवल आर्यमणि वरन एक सिद्ध पुरुष जो अपने 5 संन्यासियों के साथ महाजनिका के मंत्र काट रहा था। उनका काट मंत्र इतना कमजोर था कि मंत्र काटने के बाद भी उसके असर के वजह वह सिद्ध पुरुष मिलो दूर जाकर गिरा। शायद उस साधु के प्राण चले गये होते, यदि आर्यमणि अपने हाथ की पुर्नस्थापित अंगूठी उसके ऊपर न फेंका होता और वह अंगूठी उस साधु ने पकड़ी नही होती।


सिद्ध पुरुष जैसे ही गिरा मानो वह फट सा गया, लेकिन अगले ही पल वह उठकर खड़ा भी हो गया। एक नजर आर्यमणि और सिद्ध पुरुष के टकराये और नजरों से जैसे उन्होंने आर्यमणि का अभिवादन किया हो। लेकिन युद्ध के मैदान में जैसे महाजनिका काल बन गई थी। एक सिद्ध पुरुष का मंत्र जाप बंद क्या हुआ, अगले ही पल महाजनिका अपने मंत्र से पांचों संन्यासियों को मार चुकी थी। 5 संन्यासियों और 10 सहायकों के साथ ओमकार नारायण दोनो ओर का मोर्चा संभाले थे। लेकिन महाजनिका अपने खोये सिद्धि और कम बाहुबल केl साथ भी इन सब से कई गुणा खतरनाक थी, जिसका परिणाम यह हुआ कि महाजनिका अकेले ही सभी मंत्रो को काटती हुई आगे बढ़ी और देखते ही देखते पर्वत समान ऊंची हो गई। उसका स्वरूप मानो किसी राक्षसी जैसा था। विशाल विकराल रूप और एक ही बार में ऐसा हाथ चलाई की उसकी चपेट में सभी आ गये। जमीन ऐसा कांपा की उसकी कंपन मिलो दूर तक मेहसूस हुई।


आर्यमणि कुछ देख तो नहीं पाया लेकिन वह सिद्ध पुरुष को अपने पीठ पर उठाकर बिजली समान तेजी से दौड़ लगा चुका था। उसने साधु को ऐडियाना के कब्र के पास छोड़ा और दौड़ लगाते हुए महाजनिका के ठीक पीछे पहुंचा। यूं तो आर्यमणि, महाजनिका के टखने से ऊंचा नही था, लेकिन उसका हौसला महाजनिका के ऊंचाई से भी कई गुणा ज्यादा बड़ा था। शेप शिफ्ट नही हुआ लेकिन झटके से हथेली खोलते ही धारदार क्ला बाहर आ गया। और फिर देखते ही देखते क्षण भर में आर्यमणी क्ला घुसाकर पूरे तेजी से गर्दन के नीचे तक पहुंच गया। आगे से तो महाजनिका बहुत हाथ पाऊं मार रही थी। मंत्र उच्चारण भी जारी था। पास खड़ा तांत्रिक अध्यात भी अब अपने मंत्रों की बौछार आर्यमणि पर कर रहा था। आर्यमणि जब ऊपर के ओर बढ़ रहा था तब बिजली बरसे, अग्नि की लपटे उठी, लेकिन कोई भी आर्यमणि की चढ़ाई को रोक न सका। जब आर्यमणि, महाजनिका के गर्दन के नीचे पहुंचा, फिर दोनो मुठ्ठी में महाजनिका के बाल को दबोचकर, एक जोरदार लात उसके पीठ पर मारा। पीठ पर वह इतना तेज प्रहार था कि महाजनिका आगे के ओर झुक गई, वहीं आर्यमणि बालों को मुट्ठी में दबोचे पीछे से आगे आ गया और इस जोड़ का बल नीचे धरातल को ओर लगाया की महाजनिका के गर्दन की हड्डियों से कर–कर–कर कर्राने की आवाज आने लगी। जोर इतना था की गर्दन नीचे झुकते चला गया। शायद टूट गई होती यदि वह घुटनों पर नही आती। महाजनिका घुटनों पर और उसका सर पूरा बर्फ में घुसा दिया।


क्या बाहुबल का प्रदर्शन था। महाजनिका अगले ही पल अपने वास्तविक रूप में आयि और सीधी खड़ी होकर घूरती नजरों से आर्यमणि को देखती... "इतना दुस्साहस".. गुस्से से बिलबिलाती महाजनिका एक बार फिर अपना पाऊं चला दी। पता नही कहां से और कैसे नयि ऊर्जा आर्यमणि में आ गई। आर्यमणि एक कदम नहीं चला। जहां खड़ा था उसी धरातल पर अपने पाऊं को जमाया और ज्यों ही अपने ऊपरी बदन को उछाला वह हवा में था। १० हाथियों की ताकत वाली महाजनिका, आर्यमणि को फुटबॉल की तरह उड़ाने के लिए लात चलायि। लेकिन ठीक उसी पल आर्यमणि एक लंबी उछाल लेकर कई फिट ऊपर हवा में था। और जब वह नीचे महाजनिका के चेहरे के सामने पहुंचा, फिर तो महाजनिका का बदन कोई रूई था और आर्यमणि का क्ला कोई रूई धुनने की मशीन। पंजे फैलाकर जो ही बिजली की रफ्तार से चमरी उधेरा, पूरा शरीर लह–लुहान हो गया। महाजनिका घायल अवस्था में और भी ज्यादा खूंखार होती अपना 25000 किलो वजनी वाला मुक्का आर्यमणि के चेहरे पर चला दी।


आर्यमणि वह मुक्का अपने पंजे से रोका। उसके मुक्के को अपने चंगुल में दबोचकर कलाई को ही उल्टा मरोड़ दिया। कर–कर की आवाज के साथ हड्डी का चटकना सुना जा सकता था। उसके बाद तो जैसे कोई बॉक्सर अपनी सामान्य रफ्तार से १०० गुणा ज्यादा रफ्तार में जैसे बॉक्सिंग बैग पर पंच मारता हो, ठीक उसी प्रकार का नजारा था। हाथ दिख ना रहे थे। आर्यमणि का मुक्का कहां और कब लगा वह नही दिख रहा था। बस हर सेकंड में सैकड़ों विस्फोट की आवाज महाजनिका के शरीर से निकल रही थी।


वहीं कुछ वक्त पूर्व जब दूसरे सिद्ध पुरुष के हाथ में जैसे ही पुनर्स्थापित अंगूठी आयि, उसने सबसे पहले अपने सभी साथियों को ही सुरक्षित किया। जिसका परिणाम यह हुआ कि महाजनिका के चपेट में आने के बाद भी वह सभी के सभी उठ खड़े हुये और इसी के साथ यह भेद भी खुल गया की पुर्नस्थापित अंगूठी कब्र में नही है। तांत्रिक अध्यात समझ चुका था कि वह युद्ध हार चुका है। लेकिन इस से पहले की वह भागता, महाजनिका, आर्यमणि के साथ लड़ाई आरंभ कर चुकी थी। मंत्र उच्चारण वह कर रही थी, लेकिन सिद्ध पुरुष उसके मंत्र को काट रहे थे और आर्यमणि अपने बाहुबल से अपना परिचय दे रहा था। कुछ देर ही उसने महाजनिका पर मुक्का चलाया था और जब आर्यमणि रुका महाजनिका अचेत अवस्था में धम्म से गिरी।


तांत्रिक अध्यात और उसके कुछ साथी पहले से ही तैयार थे। जैसे ही महाजनिका धरातल पर गिरी ठीक उसी पल ऐडियाना के मकबरे से बहरूपिया चोगा और बिजली की खंजर हवा में आ गयि। हवा में आते ही उसे हासिल करने के लिए दोनो ओर से लड़ाई एक बार फिर भीषण हो गयि। सबका ध्यान ऐडियाना की इच्छा पर थी और इसी बीच तांत्रिक अध्यात एक नया द्वार (पोर्टल) खोल दिया। वस्तु खींचने का जादू दोनो ओर से चल रहा था। एक दूसरे को घायल करने अथवा मारने की कोशिश लगातार हो रही थी। ठीक उसी वक्त आर्यमणि थोड़ा सा विश्राम की स्थिति में आया था। तांत्रिक अध्यात का इशारा हुआ और महाजनिका लहराती हुई निकली।


इसके पूर्व निशांत जो इस पूरे एक्शन का मजा ले रहा था, उसे दूर से ही तांत्रिक अध्यात की चालबाजी नजर आ गयि। उसने भी थोड़ा सा दौड़ लगाया और हवा में छलांग लगाकर जैसे ही खुद पर सुरक्षा मंत्र पढ़ा, वह हवा में उड़ गया। तेजी के साथ उसने भागने वाले रास्ते पर छोटे–छोटे ट्रैप वायर के मैट बिछा दिये और जैसे ही नीचे पहुंचा सभी किनारे पर कील ठोकने वाली गन से कील को फायर करते हर मैट को चारो ओर से ठोक दिया।


महाजनिका जब द्वार के ओर भाग रही थी तभी उसे रास्तों में बिछी ट्रैप वायर दिख गई। वह तो हवा में लहराती हुई पोर्टल में घुसी और घुसने के साथ खींचने का ताकतवर मंत्र चला दी। नतीजा यह निकला कि पोर्टल में घुसते समय बिजली की खंजर उसके हाथ में थी और बहरूपिया चोगा दो दिशाओं की खींचा तानी में फट गया। महाजनिका तो भाग गयि लेकिन तांत्रिक और उसके गुर्गे भागते हुए ट्रैप वायर में फंस गये। एक तो गिरते वक्त मजबूत मंत्र उच्चारण टूटा और छोटे से मौके को सिद्ध पुरुष ओमकार नारायण भुनाते हुये एक पल में ही तांत्रिक को उसके घुटने पर ले आये। नुकसान दोनो ओर से हुआ था। कहीं कम तो कहीं ज्यादा। महाजनिका जब भाग रही थी, तब उसके पीछे आर्यमणि भी जा रहा था, लेकिन उसे दूसरे सिद्ध पुरुष ने रोक लिया।


माहोल बिलकुल शांत हो गया था। बचे सभी तांत्रिक को बंदी बनाकर ले जाने की तैयारी चल रही थी। एक द्वार (portal) सिद्ध पुरुष ने भी खोला। वहां केवल एक संन्यासी जो आर्यमणि से शुरू से बात कर रहा था, उसे छोड़कर बाकी सब उस द्वार से चले गये। जाते हुये सभी आर्यमणि को शौर्य और वीरता पर बधाई दे रहे थे और उसकी मदद के लिये हृदय से आभार भी प्रकट कर रहे थे। उस जगह पर अब केवल ३ लोग बचे थे। संन्यासी, आर्यमणि और निशांत।


निशांत:– यहां का माहोल कितना शांत हो गया न...


संन्यासी:– हां लेकिन एक काम अब भी बचा है। जादूगरनी (ऐडियाना) को मोक्ष देना...


निशांत:– क्या उसकी आत्मा अब भी यहीं है।



संन्यासी:– हां अब भी यहीं है और ज्यादा देर तक बंधी भी नही रहेगी। मुझे कुछ वक्त दो, फिर साथ चलते हैं...


संन्यासी अपना काम करने चल दिये। सफेद बर्फीले जगह पर केवल २ लोग बचे थे.… "आर्य क्या तुमने यह जगह पहले भी देखी है?"


आर्यमणि:– नही, ये रसिया का कोई बर्फीला मैदान है, जहां बर्फ जमी है। मैने रसिया का बोरियाल जंगल देखा है। वैसे तूने क्या सोचा...


निशांत:– किस बारे में...


आर्यमणि:– खोजी बनने के बारे में...


निशांत:– अगर मुझे ये लोग उस लायक समझेंगे तब तो मेरे लिए खुशकिस्मती होगी...


"किसी काम की तलाश में गये व्यक्ति को जितनी नौकरी की जरूरत होती है। नौकरी देने वाले को उस से कहीं ज्यादा एक कर्मचारी की जरूरत होती है। और अच्छे कर्मचारी की जरूरत कुछ ऐसी है कि रात के १२ बजे नौकरी ले लो.… क्या समझे"....


निशांत:– यही की आप संन्यासी कम और कर्मचारी से पीड़ित मालिक ज्यादा लग रहे।


सन्यासी:– मेरा नाम शिवम है और कैलाश मठ की ओर से हम, तुम्हे अपना खोजी बनाने के लिए प्रशिक्षित करना चाहते हैं? राह बिलकुल आसन नहीं होगी। कर्म पथ पर चलते हुए हो सकता है कि किसी दिन तुम्हारा दोस्त गलत के साथ खड़ा रहे और तुम्हे उसके विरुद्ध लड़ना पड़े? तो क्या ऐसे मौकों पर भी तुम हमारे साथ खड़े रहोगे?


निशांत:– हां बिलकुल.... आपके प्रस्ताव और आपके व्याख्या की हुई परिस्थिति, दोनो के लिए उत्तर हां है।


संन्यासी:– जितनी आसानी से कह गये, क्या उतनी आसानी से कर पाओगे...


निशांत:– क्यों नही... वास्तविक परिस्थिति में यदि आर्यमणि मेरे नजरों में दोषी होगा, तब मैं ही वो पहला रहूंगा जो इसके खिलाफ खड़ा मिलेगा। यदि आर्य मेरी नजर में दोषी नहीं, फिर मैं सच के साथ खड़ा रहूंगा... क्योंकि गीता में एक बात बहुत प्यारी बात लिखी है...


संन्यासी:– क्या?


निशांत:– जो मेरे लिये सच है वही किसी और के लिये सच हो, जरूरी नहीं… एक लड़का पहाड़ से गिरा... मैं कहूंगा आत्महत्या है, कोई कह सकता है एक्सीडेंट है... यहां पर जो "मरा" वो सच है... लेकिन हर सच का अपना–अपना नजरिया होता है और हर पक्ष अपने हिसाब से सही होता हैं।


संन्यासी शिवम:– और यदि इसी उधारहण में मैं कह दूं की लड़का अपने आत्महत्या के बारे में लिखकर गया था।


निशांत:– मैं कह सकता हूं कि जरूर किसी की साजिश है, और पहाड़ी की चोटी से धक्का देकर उसका कत्ल किया गया है। क्योंकि वह लड़का आत्महत्या करने वालों में से नही था।


संन्यासी:– ठीक है फिर कल से तुम्हारा प्रशिक्षण शुरू हो जायेगा। जब हम अलग हो रहे हो, तब तुम अपनी पुस्तक ले लेना निशांत।


निशांत:– क्यों आप भी हमारे साथ कहीं चल रहे है क्या?


संन्यासी:– नही यहां आने से पहले आर्यमणि के बहुत से सवाल थे शायद। बस उन्ही का जवाब देते–देते जहां तक जा सकूं...


आर्यमणि:– संन्यासी शिवम जी, अब बहुत कुछ जानने या समझने की इच्छा नही रही। इतना तो समझ में आ गया की आपकी और मेरी दुनिया बिलकुल अलग है। और आप सब सच्चे योद्धा हैं, जिसके बारे में शायद ही लोग जानते हो। अब आप सबके विषय में अभी नहीं जानना। मेरा दोस्त है न, वो बता देगा... बस जिज्ञासा सिर्फ एक बात की है... जिस रोचक तथ्य के किताब में मुझे रीछ स्त्री मिली, वह पूरा इतिहास ही गलत था।


संन्यासी शिवम:– "वहां लिखी हर बात सच थी। किंतु अलग–अलग सच्ची घटना को एक मुख्य घटना से जोड़कर पूरी बात लिखी गयि है। और वह किताब भी हाल के ही वर्षों में लिखी गयि थी। जिस क्षेत्र में रीछ स्त्री महाजनिका बंधी थी, उस क्षेत्र को तो गुरुओं ने वैसे भी बांध रखा होगा। एक भ्रमित क्षेत्र जहां लोग आये–जाये, कोई परेशानी नही हो। यदि कोई प्रतिबंधित क्षेत्र होता तब उसे ढूंढना बिलकुल ही आसान नहीं हो जाता"

"तांत्रिक अध्यात, ऐसे घराने से आता है जिसका पूर्वज रीछ स्त्री का सेवक था। महाजनिका को ढूंढने के लिये इनके पूर्वजों ने जमीन आसमान एक कर दिया। हजारों वर्षों से यह तांत्रिक घराना रीछ स्त्री को ढूंढ रहे थे। पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी संस्कृति, अपना ज्ञान और अपनी खोज बच्चों को सिखाते रहे। आखिरकार तांत्रिक अध्यात को रीछ स्त्री महाजनिका का पता चल ही गया।"


आर्यमणि:– बीच में रोकना चाहूंगा... यदि ये लोग खोजी है, तो खोज के दौरान इन्हे अलौकिक वस्तु भी मिली होगी? और जब वो लोग रीछ स्त्री की भ्रमित जगह ढूंढ सकते है, फिर उन्हे पारीयान का तिलिस्म क्यों नही मिला?


संन्यासी शिवम:– मेरे ख्याल से जब पारीयान की मृत्यु हुई होगी तब तक वो लोग हिमालय का पूरा क्षेत्र छान चुके होंगे। रीछ स्त्री लगभग 5000 वर्ष पूर्व कैद हुई थी और पारीयान तो बस 600 वर्ष पुराना होगा। हमारे पास पारीयान का तो पूरा इतिहास ही है। तांत्रिक सबसे पहले वहीं से खोज शुरू करेगा जो हमारा केंद्र था। और जिस जगह तुम्हे पारीयान का तिलिस्म मिला था, हिमालय का क्षेत्र, वह तो सभी सिद्ध पुरुषों के शक्ति का केंद्र रहा है। वहां के पूरे क्षेत्र को तो वो लोग इंच दर इंच कम से कम 100 बार और हर तरह के जाल को तोड़ने वाले 100 तरह के मंत्रों से ढूंढकर पहले सुनिश्चित हुये होंगे। इसलिए पारीयान का खजाना वहां सुरक्षित रहा। वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी तांत्रिक मिल गयि होती तो तुम सोच भी नही सकते की महाजनिका क्या उत्पात मचा सकती थी।
Bahut ki shandar update tha bhai...
 

B2.

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भाग:–42





वायु संरक्षण भेदकर हर वेंडिगो हमला कर रहा था। ऐसा लग रहा था हर वेंडिगो काट मंत्र के साथ हमला कर रहा हो। एक–दो सहायक के नाक में काला धुवां घुसा और उसके प्राण लेकर बाहर निकला। वहां पर तांत्रिक उध्यात और ऐडियाना का प्रकोप चारो ओर से घेर–घेर कर हमला शुरू कर चुका था। सिद्ध पुरुष ओमकार नारायण ने भी मोर्चा संभाला। एक साथ 5 संन्यासी और दोनो सिद्ध पुरुष के मुख से मंत्र इस प्रकार निकल रहे थे, जैसे कोई भजन चल रहा हो। हर मंत्र के छंद का अंत होते ही १० सहायक एक साथ अपने झोले से कुछ विभूति निकालते और भूमि पर पटक देते।


भूमि पर विभूति पटकने के साथ ही नाना प्रकार की असंख्य चीजें धुवां का रूप लेकर निकलती। किसी धुएं से असंख्य उजले से साये निकल रहे थे। उनका स्वरूप ऐडियाना के आसमान से ऊंची आकृति को एक साथ ढक रही थी। आस–पास मंडराते काले साये को पूरा गिल जाते। किसी विभूति के विस्फोट से असंख्य उजले धुएं के शेर निकले। अनगिनत शेर एक बार में ही इतनी तेजी से उस बर्फ के मैदान पर फैले, की पूरा मैदान में वेंडिगो उस साये वाले शेर से उलझ गये। देखते ही देखते वेंडिगो की संख्या विलुप्त हो रही थी। रक्त, पुष्प, जल, मेघ, बिजली और अग्नि सब उस विभूति की पटक से निकले और तांत्रिक के अग्नि, बिजली और श्वेत वर्षा को शांत करते उल्टा हमला करने लगे.…


आर्यमणि और निशांत के लिए तो जैसे कोई पौराणिक कथा का कोई युद्ध आंखों के सामने चल रहा हो। दोनो ने अपने हाथ जोड़ लिये। "हमे भी कुछ करना चाहिए आर्य, वरना हमारे यहां होने का क्या अर्थ निकलता है"…. "हां निशांत तुमने सही कहा। उनके पास मंत्र शक्ति है और मेरे पास बाहुबल, हम मिलकर आगे बढ़ते है।"


निशांत:– मेरे पास भ्रमित अंगूठी है, और ट्रैप करने का समान। देखता हूं इनसे क्या कर सकता हूं।


अगले ही पल पर्वत को भी झुका दे ऐसी दहाड़ उन फिजाओं में गूंजने लगी। एक पल तो दोनो पक्ष बिलकुल शांत होकर बस उस दहाड़ को ही सुन रहे थे... दहाड़ते हुए बिजली की तेजी से आर्यमणि बीच रण में खड़ा था और उसके ठीक सामने थी महाजनिका। 1 सिद्ध पुरुष 5 और संन्यासियों को लेकर आर्यमणि के ओर रुख किया।


मंत्र से मंत्र टकरा रहे थे। चारो ओर विस्फोट का माहोल था। वेंडिगो साये के बने शेर के साथ भीड़ रहे थे। हर शेर वेंडिगो को निगलता और विजय दहाड़ के साथ गायब हो जाता। ऐडियाना का भव्य साया, असंख्य उजले साये से बांधते हुये धीरे–धीरे छोटा होने लगा था। तांत्रिक अध्यात और उसके हजार चेले भी डटे हुये थे। मंत्र से मंत्र का काट हो रहा था। इधर सिद्ध पुरुष के १० सहायकों में से एक सहायक की जान जाती तो उधर अध्यात के २०० चेले दुनिया छोड़ चुके होते।


२०० चेलों की आहुति देने के बाद भी तांत्रिक अध्यात अपने पूरे उत्साह में था। क्योंकि उसे पता था कि आगे क्या होने वाला है। उसे पता था कि फिलहाल १० हाथियों की ताकत के साथ जब महाजनिका आगे बढ़ेगी तब यहां सभी की लाश बिछी होगी। और कुछ ऐसा शायद हो भी रहा था। आर्यमणि, महाजनिका के ठीक सामने और महाजनिका मुख से मंत्र पढ़ती अपने सामने आये आर्यमणि को फुटबॉल समझकर लात मार दी। आर्यमणि उसके इस प्रहार से कोसों दूर जाकर गिरा। न केवल आर्यमणि वरन एक सिद्ध पुरुष जो अपने 5 संन्यासियों के साथ महाजनिका के मंत्र काट रहा था। उनका काट मंत्र इतना कमजोर था कि मंत्र काटने के बाद भी उसके असर के वजह वह सिद्ध पुरुष मिलो दूर जाकर गिरा। शायद उस साधु के प्राण चले गये होते, यदि आर्यमणि अपने हाथ की पुर्नस्थापित अंगूठी उसके ऊपर न फेंका होता और वह अंगूठी उस साधु ने पकड़ी नही होती।


सिद्ध पुरुष जैसे ही गिरा मानो वह फट सा गया, लेकिन अगले ही पल वह उठकर खड़ा भी हो गया। एक नजर आर्यमणि और सिद्ध पुरुष के टकराये और नजरों से जैसे उन्होंने आर्यमणि का अभिवादन किया हो। लेकिन युद्ध के मैदान में जैसे महाजनिका काल बन गई थी। एक सिद्ध पुरुष का मंत्र जाप बंद क्या हुआ, अगले ही पल महाजनिका अपने मंत्र से पांचों संन्यासियों को मार चुकी थी। 5 संन्यासियों और 10 सहायकों के साथ ओमकार नारायण दोनो ओर का मोर्चा संभाले थे। लेकिन महाजनिका अपने खोये सिद्धि और कम बाहुबल केl साथ भी इन सब से कई गुणा खतरनाक थी, जिसका परिणाम यह हुआ कि महाजनिका अकेले ही सभी मंत्रो को काटती हुई आगे बढ़ी और देखते ही देखते पर्वत समान ऊंची हो गई। उसका स्वरूप मानो किसी राक्षसी जैसा था। विशाल विकराल रूप और एक ही बार में ऐसा हाथ चलाई की उसकी चपेट में सभी आ गये। जमीन ऐसा कांपा की उसकी कंपन मिलो दूर तक मेहसूस हुई।


आर्यमणि कुछ देख तो नहीं पाया लेकिन वह सिद्ध पुरुष को अपने पीठ पर उठाकर बिजली समान तेजी से दौड़ लगा चुका था। उसने साधु को ऐडियाना के कब्र के पास छोड़ा और दौड़ लगाते हुए महाजनिका के ठीक पीछे पहुंचा। यूं तो आर्यमणि, महाजनिका के टखने से ऊंचा नही था, लेकिन उसका हौसला महाजनिका के ऊंचाई से भी कई गुणा ज्यादा बड़ा था। शेप शिफ्ट नही हुआ लेकिन झटके से हथेली खोलते ही धारदार क्ला बाहर आ गया। और फिर देखते ही देखते क्षण भर में आर्यमणी क्ला घुसाकर पूरे तेजी से गर्दन के नीचे तक पहुंच गया। आगे से तो महाजनिका बहुत हाथ पाऊं मार रही थी। मंत्र उच्चारण भी जारी था। पास खड़ा तांत्रिक अध्यात भी अब अपने मंत्रों की बौछार आर्यमणि पर कर रहा था। आर्यमणि जब ऊपर के ओर बढ़ रहा था तब बिजली बरसे, अग्नि की लपटे उठी, लेकिन कोई भी आर्यमणि की चढ़ाई को रोक न सका। जब आर्यमणि, महाजनिका के गर्दन के नीचे पहुंचा, फिर दोनो मुठ्ठी में महाजनिका के बाल को दबोचकर, एक जोरदार लात उसके पीठ पर मारा। पीठ पर वह इतना तेज प्रहार था कि महाजनिका आगे के ओर झुक गई, वहीं आर्यमणि बालों को मुट्ठी में दबोचे पीछे से आगे आ गया और इस जोड़ का बल नीचे धरातल को ओर लगाया की महाजनिका के गर्दन की हड्डियों से कर–कर–कर कर्राने की आवाज आने लगी। जोर इतना था की गर्दन नीचे झुकते चला गया। शायद टूट गई होती यदि वह घुटनों पर नही आती। महाजनिका घुटनों पर और उसका सर पूरा बर्फ में घुसा दिया।


क्या बाहुबल का प्रदर्शन था। महाजनिका अगले ही पल अपने वास्तविक रूप में आयि और सीधी खड़ी होकर घूरती नजरों से आर्यमणि को देखती... "इतना दुस्साहस".. गुस्से से बिलबिलाती महाजनिका एक बार फिर अपना पाऊं चला दी। पता नही कहां से और कैसे नयि ऊर्जा आर्यमणि में आ गई। आर्यमणि एक कदम नहीं चला। जहां खड़ा था उसी धरातल पर अपने पाऊं को जमाया और ज्यों ही अपने ऊपरी बदन को उछाला वह हवा में था। १० हाथियों की ताकत वाली महाजनिका, आर्यमणि को फुटबॉल की तरह उड़ाने के लिए लात चलायि। लेकिन ठीक उसी पल आर्यमणि एक लंबी उछाल लेकर कई फिट ऊपर हवा में था। और जब वह नीचे महाजनिका के चेहरे के सामने पहुंचा, फिर तो महाजनिका का बदन कोई रूई था और आर्यमणि का क्ला कोई रूई धुनने की मशीन। पंजे फैलाकर जो ही बिजली की रफ्तार से चमरी उधेरा, पूरा शरीर लह–लुहान हो गया। महाजनिका घायल अवस्था में और भी ज्यादा खूंखार होती अपना 25000 किलो वजनी वाला मुक्का आर्यमणि के चेहरे पर चला दी।


आर्यमणि वह मुक्का अपने पंजे से रोका। उसके मुक्के को अपने चंगुल में दबोचकर कलाई को ही उल्टा मरोड़ दिया। कर–कर की आवाज के साथ हड्डी का चटकना सुना जा सकता था। उसके बाद तो जैसे कोई बॉक्सर अपनी सामान्य रफ्तार से १०० गुणा ज्यादा रफ्तार में जैसे बॉक्सिंग बैग पर पंच मारता हो, ठीक उसी प्रकार का नजारा था। हाथ दिख ना रहे थे। आर्यमणि का मुक्का कहां और कब लगा वह नही दिख रहा था। बस हर सेकंड में सैकड़ों विस्फोट की आवाज महाजनिका के शरीर से निकल रही थी।


वहीं कुछ वक्त पूर्व जब दूसरे सिद्ध पुरुष के हाथ में जैसे ही पुनर्स्थापित अंगूठी आयि, उसने सबसे पहले अपने सभी साथियों को ही सुरक्षित किया। जिसका परिणाम यह हुआ कि महाजनिका के चपेट में आने के बाद भी वह सभी के सभी उठ खड़े हुये और इसी के साथ यह भेद भी खुल गया की पुर्नस्थापित अंगूठी कब्र में नही है। तांत्रिक अध्यात समझ चुका था कि वह युद्ध हार चुका है। लेकिन इस से पहले की वह भागता, महाजनिका, आर्यमणि के साथ लड़ाई आरंभ कर चुकी थी। मंत्र उच्चारण वह कर रही थी, लेकिन सिद्ध पुरुष उसके मंत्र को काट रहे थे और आर्यमणि अपने बाहुबल से अपना परिचय दे रहा था। कुछ देर ही उसने महाजनिका पर मुक्का चलाया था और जब आर्यमणि रुका महाजनिका अचेत अवस्था में धम्म से गिरी।


तांत्रिक अध्यात और उसके कुछ साथी पहले से ही तैयार थे। जैसे ही महाजनिका धरातल पर गिरी ठीक उसी पल ऐडियाना के मकबरे से बहरूपिया चोगा और बिजली की खंजर हवा में आ गयि। हवा में आते ही उसे हासिल करने के लिए दोनो ओर से लड़ाई एक बार फिर भीषण हो गयि। सबका ध्यान ऐडियाना की इच्छा पर थी और इसी बीच तांत्रिक अध्यात एक नया द्वार (पोर्टल) खोल दिया। वस्तु खींचने का जादू दोनो ओर से चल रहा था। एक दूसरे को घायल करने अथवा मारने की कोशिश लगातार हो रही थी। ठीक उसी वक्त आर्यमणि थोड़ा सा विश्राम की स्थिति में आया था। तांत्रिक अध्यात का इशारा हुआ और महाजनिका लहराती हुई निकली।


इसके पूर्व निशांत जो इस पूरे एक्शन का मजा ले रहा था, उसे दूर से ही तांत्रिक अध्यात की चालबाजी नजर आ गयि। उसने भी थोड़ा सा दौड़ लगाया और हवा में छलांग लगाकर जैसे ही खुद पर सुरक्षा मंत्र पढ़ा, वह हवा में उड़ गया। तेजी के साथ उसने भागने वाले रास्ते पर छोटे–छोटे ट्रैप वायर के मैट बिछा दिये और जैसे ही नीचे पहुंचा सभी किनारे पर कील ठोकने वाली गन से कील को फायर करते हर मैट को चारो ओर से ठोक दिया।


महाजनिका जब द्वार के ओर भाग रही थी तभी उसे रास्तों में बिछी ट्रैप वायर दिख गई। वह तो हवा में लहराती हुई पोर्टल में घुसी और घुसने के साथ खींचने का ताकतवर मंत्र चला दी। नतीजा यह निकला कि पोर्टल में घुसते समय बिजली की खंजर उसके हाथ में थी और बहरूपिया चोगा दो दिशाओं की खींचा तानी में फट गया। महाजनिका तो भाग गयि लेकिन तांत्रिक और उसके गुर्गे भागते हुए ट्रैप वायर में फंस गये। एक तो गिरते वक्त मजबूत मंत्र उच्चारण टूटा और छोटे से मौके को सिद्ध पुरुष ओमकार नारायण भुनाते हुये एक पल में ही तांत्रिक को उसके घुटने पर ले आये। नुकसान दोनो ओर से हुआ था। कहीं कम तो कहीं ज्यादा। महाजनिका जब भाग रही थी, तब उसके पीछे आर्यमणि भी जा रहा था, लेकिन उसे दूसरे सिद्ध पुरुष ने रोक लिया।


माहोल बिलकुल शांत हो गया था। बचे सभी तांत्रिक को बंदी बनाकर ले जाने की तैयारी चल रही थी। एक द्वार (portal) सिद्ध पुरुष ने भी खोला। वहां केवल एक संन्यासी जो आर्यमणि से शुरू से बात कर रहा था, उसे छोड़कर बाकी सब उस द्वार से चले गये। जाते हुये सभी आर्यमणि को शौर्य और वीरता पर बधाई दे रहे थे और उसकी मदद के लिये हृदय से आभार भी प्रकट कर रहे थे। उस जगह पर अब केवल ३ लोग बचे थे। संन्यासी, आर्यमणि और निशांत।


निशांत:– यहां का माहोल कितना शांत हो गया न...


संन्यासी:– हां लेकिन एक काम अब भी बचा है। जादूगरनी (ऐडियाना) को मोक्ष देना...


निशांत:– क्या उसकी आत्मा अब भी यहीं है।



संन्यासी:– हां अब भी यहीं है और ज्यादा देर तक बंधी भी नही रहेगी। मुझे कुछ वक्त दो, फिर साथ चलते हैं...


संन्यासी अपना काम करने चल दिये। सफेद बर्फीले जगह पर केवल २ लोग बचे थे.… "आर्य क्या तुमने यह जगह पहले भी देखी है?"


आर्यमणि:– नही, ये रसिया का कोई बर्फीला मैदान है, जहां बर्फ जमी है। मैने रसिया का बोरियाल जंगल देखा है। वैसे तूने क्या सोचा...


निशांत:– किस बारे में...


आर्यमणि:– खोजी बनने के बारे में...


निशांत:– अगर मुझे ये लोग उस लायक समझेंगे तब तो मेरे लिए खुशकिस्मती होगी...


"किसी काम की तलाश में गये व्यक्ति को जितनी नौकरी की जरूरत होती है। नौकरी देने वाले को उस से कहीं ज्यादा एक कर्मचारी की जरूरत होती है। और अच्छे कर्मचारी की जरूरत कुछ ऐसी है कि रात के १२ बजे नौकरी ले लो.… क्या समझे"....


निशांत:– यही की आप संन्यासी कम और कर्मचारी से पीड़ित मालिक ज्यादा लग रहे।


सन्यासी:– मेरा नाम शिवम है और कैलाश मठ की ओर से हम, तुम्हे अपना खोजी बनाने के लिए प्रशिक्षित करना चाहते हैं? राह बिलकुल आसन नहीं होगी। कर्म पथ पर चलते हुए हो सकता है कि किसी दिन तुम्हारा दोस्त गलत के साथ खड़ा रहे और तुम्हे उसके विरुद्ध लड़ना पड़े? तो क्या ऐसे मौकों पर भी तुम हमारे साथ खड़े रहोगे?


निशांत:– हां बिलकुल.... आपके प्रस्ताव और आपके व्याख्या की हुई परिस्थिति, दोनो के लिए उत्तर हां है।


संन्यासी:– जितनी आसानी से कह गये, क्या उतनी आसानी से कर पाओगे...


निशांत:– क्यों नही... वास्तविक परिस्थिति में यदि आर्यमणि मेरे नजरों में दोषी होगा, तब मैं ही वो पहला रहूंगा जो इसके खिलाफ खड़ा मिलेगा। यदि आर्य मेरी नजर में दोषी नहीं, फिर मैं सच के साथ खड़ा रहूंगा... क्योंकि गीता में एक बात बहुत प्यारी बात लिखी है...


संन्यासी:– क्या?


निशांत:– जो मेरे लिये सच है वही किसी और के लिये सच हो, जरूरी नहीं… एक लड़का पहाड़ से गिरा... मैं कहूंगा आत्महत्या है, कोई कह सकता है एक्सीडेंट है... यहां पर जो "मरा" वो सच है... लेकिन हर सच का अपना–अपना नजरिया होता है और हर पक्ष अपने हिसाब से सही होता हैं।


संन्यासी शिवम:– और यदि इसी उधारहण में मैं कह दूं की लड़का अपने आत्महत्या के बारे में लिखकर गया था।


निशांत:– मैं कह सकता हूं कि जरूर किसी की साजिश है, और पहाड़ी की चोटी से धक्का देकर उसका कत्ल किया गया है। क्योंकि वह लड़का आत्महत्या करने वालों में से नही था।


संन्यासी:– ठीक है फिर कल से तुम्हारा प्रशिक्षण शुरू हो जायेगा। जब हम अलग हो रहे हो, तब तुम अपनी पुस्तक ले लेना निशांत।


निशांत:– क्यों आप भी हमारे साथ कहीं चल रहे है क्या?


संन्यासी:– नही यहां आने से पहले आर्यमणि के बहुत से सवाल थे शायद। बस उन्ही का जवाब देते–देते जहां तक जा सकूं...


आर्यमणि:– संन्यासी शिवम जी, अब बहुत कुछ जानने या समझने की इच्छा नही रही। इतना तो समझ में आ गया की आपकी और मेरी दुनिया बिलकुल अलग है। और आप सब सच्चे योद्धा हैं, जिसके बारे में शायद ही लोग जानते हो। अब आप सबके विषय में अभी नहीं जानना। मेरा दोस्त है न, वो बता देगा... बस जिज्ञासा सिर्फ एक बात की है... जिस रोचक तथ्य के किताब में मुझे रीछ स्त्री मिली, वह पूरा इतिहास ही गलत था।


संन्यासी शिवम:– "वहां लिखी हर बात सच थी। किंतु अलग–अलग सच्ची घटना को एक मुख्य घटना से जोड़कर पूरी बात लिखी गयि है। और वह किताब भी हाल के ही वर्षों में लिखी गयि थी। जिस क्षेत्र में रीछ स्त्री महाजनिका बंधी थी, उस क्षेत्र को तो गुरुओं ने वैसे भी बांध रखा होगा। एक भ्रमित क्षेत्र जहां लोग आये–जाये, कोई परेशानी नही हो। यदि कोई प्रतिबंधित क्षेत्र होता तब उसे ढूंढना बिलकुल ही आसान नहीं हो जाता"

"तांत्रिक अध्यात, ऐसे घराने से आता है जिसका पूर्वज रीछ स्त्री का सेवक था। महाजनिका को ढूंढने के लिये इनके पूर्वजों ने जमीन आसमान एक कर दिया। हजारों वर्षों से यह तांत्रिक घराना रीछ स्त्री को ढूंढ रहे थे। पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी संस्कृति, अपना ज्ञान और अपनी खोज बच्चों को सिखाते रहे। आखिरकार तांत्रिक अध्यात को रीछ स्त्री महाजनिका का पता चल ही गया।"


आर्यमणि:– बीच में रोकना चाहूंगा... यदि ये लोग खोजी है, तो खोज के दौरान इन्हे अलौकिक वस्तु भी मिली होगी? और जब वो लोग रीछ स्त्री की भ्रमित जगह ढूंढ सकते है, फिर उन्हे पारीयान का तिलिस्म क्यों नही मिला?


संन्यासी शिवम:– मेरे ख्याल से जब पारीयान की मृत्यु हुई होगी तब तक वो लोग हिमालय का पूरा क्षेत्र छान चुके होंगे। रीछ स्त्री लगभग 5000 वर्ष पूर्व कैद हुई थी और पारीयान तो बस 600 वर्ष पुराना होगा। हमारे पास पारीयान का तो पूरा इतिहास ही है। तांत्रिक सबसे पहले वहीं से खोज शुरू करेगा जो हमारा केंद्र था। और जिस जगह तुम्हे पारीयान का तिलिस्म मिला था, हिमालय का क्षेत्र, वह तो सभी सिद्ध पुरुषों के शक्ति का केंद्र रहा है। वहां के पूरे क्षेत्र को तो वो लोग इंच दर इंच कम से कम 100 बार और हर तरह के जाल को तोड़ने वाले 100 तरह के मंत्रों से ढूंढकर पहले सुनिश्चित हुये होंगे। इसलिए पारीयान का खजाना वहां सुरक्षित रहा। वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी तांत्रिक मिल गयि होती तो तुम सोच भी नही सकते की महाजनिका क्या उत्पात मचा सकती थी।
Awesome update Bhai ❤️
 

Anubhavp14

Deku Aka 'Usless'
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भाग:–39






50 दिन बीते होंगे। अब तो आर्यमणि और निशांत को यह तक पता था कि जब जगह का दृश्य बदलता है, तब कौन सा पेड़ कहां होता है। नतीजा नही आ रहा था और अब तो पहले की तरह कोशिश भी नही हो रही थी। हां लेकिन हर रोज २–३ बार कोशिश तो जरूर करते थे।


लगभग ६ महीने से ऊपर हो गए थे, एक दिन जांच के दौरान आर्यमणि को सुराग भी मिल गया। घाटी के ठीक नीचे जो इलाका पहाड़ के ओर से लगता था, वहां का भू–भाग दोनो ही सूरत में एक जैसा था। आर्यमणि ने पहले तो सुनिश्चित किया और एक बार जब सुनिश्चित हो गया फिर वह निशांत के साथ उस जगह तक पहुंचा। दोनो दोस्त थोड़े उत्सुक दिख रहे थे। वहां पहुंच कर कुछ देर छानबीन करने के बाद निशांत... "यहां बस एक ही चीज अलग है। यहां की घास थोड़ी बड़ी है। इस से ज्यादा कुछ नहीं।"... निशांत चिढ़ते हुए बोला..


आर्यमणि उसके गुस्से को समझ रहा था, फिर भी निशांत को शांत रहकर सुराग ढूंढने के लिए कहने लगा। बस १० कदम का तो वह इलाका था और १०० बार जांच कर चुके थे। निशांत से नही रहा गया और अंत में वह घास ही उखाड़ने लगा। आर्यमणि उसकी चिढ़ देखकर हंस भी रहा था और सुराग क्या हो सकता था, उसपर विचार भी कर रहा था। आधी जमीन की घास उखड़ चुकी थी। निशांत, आर्यमणि पर भड़कते हुए, इस तिलस्म का खोज को बंद करने के लिए लगातार कह रहा था।


निशांत के मुट्ठी में घास, चेहरे पर गुस्सा और चिढ़ते हुए वह जैसे ही दोनो हाथ से घास खींचा, भूमि ही पूरी हिलने लगी। जैसे ही भूमि डगमगाया, निशांत भूकंप–भूकंप चिल्लाते हुए आर्यमणि के पास पहुंच गया। जमीन की कंपन बस छणिक देर की थी। फिर तो उसके बाद जमीन फट गई और दोनो नीचे घुस गए... निशांत लगातार चिल्लाए जा रहा था, वहीं आर्यमणि खामोशी से सब देख रहा था। दोनो को ऐसा लगा जैसे किसी रेत पर गिरे हो। गिरते ही पूरी रेत शरीर में घुस गया।


अंदर पूरा अंधेरा था, रौशनी का नमो निशान तक नही... "आर्य हम कहां आ गए"..


आर्यमणि:– डरना बंद कर और प्रकाश कैसे आयेगा वह सोच...


निशांत:– अबे इतना अंधेरा है कि डर तो अपने आप ही लग जाता है... मेरे पास कुछ जलाने के लिए होता तो क्या अब तक जलाता नही। स्टन रॉड भी पास में नही।


आर्यमणि:– अब से एक लाइटर हमेशा रखेंगे..


निशांत:– वो तो जरूरी वस्तु की सूची में अब पहले स्थान पर होगा। आर्य कुछ कर.. ये अंधेरा मेरे दिल में घुसते जा रहा है। ज्यादा देर ऐसे रहा फिर मैं काला दिल वाला बन जाऊंगा।..


आर्यमणि:– बकवास छोड़ और २ पत्थर ढूंढ...


अब पत्थर भला कैसे मिले। पाऊं के नीचे तो रेत ही रेत थी। न जाने कितनी देर भटके हो। भटकते–भटकते उस जगह की किसी दीवार से टकराए हो। पत्थर की दीवार थी, और काफी कोशिश के बाद 2 छोटे–छोटे पत्थर हाथ लग गए। पत्थर से पत्थर टकराया। हल्की सी चिंगारी उठी। लेकिन उस हल्की चिंगारी में कुछ भी देख पाना मुश्किल था। फिर से पत्थर टकराए, और इस बार आर्यमणि बड़े ध्यान से चारो ओर देख रहा था। उस चिंगारी में आधा फिट भी नही देखा जा सकता था, लेकिन जितना दिखा उसमे पूरा उम्मीद दिख गया।


दीवार पर हाथ टटोलने से कुछ सूखे पौधे हाथ में आ गए। पत्थर घिसकर आग जलाई गई। आग की जब रौशनी हुई, तब पता चला कि दोनो एक खोह में है। नीचे रेत और चारो ओर पत्थर की दीवार। पत्थर की दीवार पर सूखे पौधे लटक रहे थे। आर्यमणि और निशांत उन पौधों को जलाते हुए आगे बढ़ने लगे। तकरीबन २०० मीटर आगे आए होंगे, फिर उस खोह में हल्की प्रकाश भी आने लगी। अंधेरा छंट चुका था और दोनो आगे बढ़ रहे थे। दोनो चलते–चलते एक जगह पर पहुंच गए जहां ऐसा लगा की वर्षों पहले यहां कोई रहता था।


सालों से पड़ी एक बिस्तर थी। बिस्तर के पास ही पत्थर को बिछाकर हल्का फ्लोर बनाया गया था, जिसपर बहुत सारे पांडुलिपि बिखरे हुए थे। वहीं एक किनारे पर एक बड़ा सा संदूक रखा हुआ था। दोनो दोस्त चारो ओर का मुआयना करने के बाद, निशांत संदूक के ओर बढ़ा और आर्यमणि नीचे बिखरे पांडुलिपि पर से धूल झाड़कर उन्हें समेटने लगा।


इधर निशांत ने भी संदूक के ऊपर से धूल हटाई। संदूक की लकड़ी पर संस्कृत में कुछ गुदा हुआ था। बड़े ध्यान से देखने पर वहां एक संदेश लिख था... "एक भटके मुसाफिर को दूसरे भटके मुसाफिर का सुस्वागतम। तुम्हारी अच्छाई या बुराई तुम्हे यहां तक नही लेकर आयि। बस तुम्हारा और मेरा जज्बा एक है, इसलिए तुम यहां हो। तुम्हारे आगे के सफर के लिए मेरी ढेर सारी सुभकाननाएं"


निशांत बड़े ध्यान से संदेश पढ़ रहा था। साथ में आर्यमणि भी खड़ा हो गया। दोनो ने एक साथ संदूक को खोला, और अंदर की हालत देखकर झटके में संदूक के दरवाजे को छोड़ दिया... "किसका कंकाल है ये".. निशांत ने पूछा...


"लोपचे का भटकता मुसाफिर पारीयान लोपचे का..." आर्यमणि निशांत को कुछ दस्तावेज दिखाते हुए बोला।


दोनो वहीं बैठकर पारीयान की लिखी पांडुलिपि पढ़ने लगे। उस दौड़ में, सतपुरा के जंगलों में हुई लड़ाई से पारीयान इकलौता जिंदा तो लौटा, लेकिन शापित होकर। महाकाश्वर अपनी अंतिम श्वास गिन रहा था। पारीयान मकबरे को खोल चुका था। इस एक वक्त में २ भारी भूल हो गई। पहली पारीयान बिना परिणाम जाने ऐडियाना को उसकी इच्छा से दूर कर रहा था। और दूसरा योगियों ने महाकाश्वर को पूरा नही मारा, बस मरता छोड़ दिया। महाकाश्वर जनता था ऐडियाना की इच्छा को उसके मकबरे से अलग किया गया तो क्या होगा, बस केवल पारीयान लोपचे को कुछ नही होगा।


महाकाश्वर आखरी वक्त में भी सही समय के इंतजार में था। जैसे ही पुर्नस्थापित पत्थर को पारीयान ने अपने हाथों में लिया, ठीक उसी वक्त महाकाश्वर बहरूपिया चोगा पहना और पारीयान का भेष लेकर खुद पर ही रुधिर–कण श्राप और मोक्ष–विछोभ श्राप का मंत्र पढ़ लिया। रुधिर–कण श्राप से खून की कोशिकाएं टूट कर बाहर आने लगती थी। वहीं मोक्ष–विछोभ श्राप शरीर के अंदरूनी अंग को तोड़कर अंतिम मोक्ष देता था।


जैसे शरीर से पसीना निकलता है ठीक वैसे ही महाकाश्वर के शरीर से खून बहने लगा। शरीर के हर अंग अंदर से सिकुरने लगे थे और महाकाश्वर प्राण त्यागने से पहले दर्द का खौफनाक मंजर को महसूस करते हुए मर गया। जो दर्द महाकाश्वर ने सहे वही दर्द पारीयान को भी हो रहा था। पारीयान के शरीर से भी खून पसीना के भांति निकल रहा था और अंदर के अंग सिकुड़ता हुआ महसूस होने लगा।


पारीयान असहनीय पीड़ा से बिलबिला गया। किंतु वह एक अल्फा वुल्फ था, इसलिए उतनी ही तेजी से हिल भी हो रहा था। पारीयान समझ चुका था कि महाकाश्वर चाहता तो उसे एक झटके में मार सकता था, लेकिन जान–बूझ कर उसने अंतहीन दर्द के सागर में पारीयान को डुबो दिया। प्राण तो जायेंगे लेकिन तील–तील करके। पारीयान अभी तक तो अपने दर्द से पीड़ित था लेकिन बिलबिला कर जब भागा तब उसने ऐडियाना का प्रकोप भी देखा। भ्रमित अंगूठी के कारण उसे तो मौत ने नही छुए, लेकिन वहां सबकी लाश बिछ रही थी। एक कली परछाई तेजी से अंदर घुसती और प्राण बाहर निकाल देती।


लोपचे का भटकता मुसाफिर अपने अंत के नजदीक था। सभी पत्राचार करने के बाद किसी तरह पारीयाने पूर्वी हिमालय क्षेत्र पहुंचा। वहां भ्रमित अंगूठी और पुर्नस्थापित अंगूठी को सुरक्षित करने के बाद खुद को संदूक में बंद कर लिया। पारीयान लगभग ६ महीने उस खोह में बिताया। इस दौरान उसने अपनी कई यात्राओं के बारे में लिखा। उस दौड़ का एक पूरा इतिहास आर्यमणि और निशांत पढ़ रहा था। फिर सबसे आखरी में दोनो के हाथ में एक पोटली थी, जिसके अंदर रखी थी लोपचे के भटकते मुसाफिर का खजाना।


तत्काल समय... निशांत और आर्य


आर्यमणि के हाथ में पोटली थी और निशांत की आंखें आश्चर्य से फैली... "आर्य हमने क्या फैसला किया था? तुम उस गुफा में दोबारा गए ही क्यों?"


आर्यमणि:– क्योंकि जब मैं अपने ४ साल की यात्रा में था, तब मुझे पता चला कि ऐडियाना का मकबरा और लोपचे का भटकता मुसाफिर को कौन नहीं तलाश कर रहा। यदि पोटली की दोनो अंगूठी किसी गलत हाथ में लग जाती तो तुम समझते हो क्या होता?


निशांत:– हम्मम.. तो अब क्या सोचा है...


आर्यमणि– संसार की सबसे रहस्यमयि और ताकतवर औरत के पास जा रहे। एक अंगूठी तुम्हारी एक अंगूठी मेरी।


निशांत:– मुझे दोनो चाहिए...


आर्यमणि:– ठीक है दोनो लेले...


निशांत:– हाहाहा... महादानी आर्यमणि। अच्छा चल तू बता तुझे कौन सी अंगूठी चाहिए...


आर्यमणि:– तुझसे जो बच जाए...


निशांत:– ठीक है फिर मुझे वो पुर्नस्थापित अंगूठी दे दे।


आर्यमणि:– वो अंगूठी मत ले। पुनर्स्थापित अंगूठी चुराई हुई है, उसके मालिक हम नही। शायद किसी दिन लौटानी पड़े। तू भ्रमित अंगूठी ले ले।


निशांत:– हां मैं ये बात जनता हूं। मेरे जंगल के दिन खत्म हो गए पर शायद तू बहुत से खतरों से घिरा है इसलिए तू ही भ्रमित अंगूठी रख।


आर्यमणि:– अब तू ले, तू ले का दौड़ शुरू मत कर... इस से अच्छा हम टॉस कर लेते है।


निशांत:– आज तक कभी ऐसा हुआ है, टॉस का नतीजा मेरे पक्ष में गया हो।


आर्यमणि:– तू चुतिया है...


निशांत:– तू भोसडी वाला है..

आर्यमणि:– तू हारामि है..


निशांत:– जा कुत्ते से पिछवाड़ा मरवा ले..


आर्यमणि:– तू जाकर मरवा ले। वैसे भी हर २ दिन पर कोई न लड़की तेरी मार कर ही जाती है।


निशांत, एक जोरदार मुक्का जबड़े पर मारते.…. "बीच में लड़की को न घुसेड़। वरना मैं गंभीर आर्य के रंगीन किस्से वायरल कर दूंगा..."


आर्यमणि, निशांत के गले में अपनी बांह फसाकर उसे दबाते.… "साले झूठे, एक बार झूठी अफवाह फैला चुका है। दूसरी बार ये किया न तो मैं तुझे बताता हूं।"


"लगता है २ लड़कों की रास लीला शुरू होने वाली है।"… कमरे में अचानक ही रिचा पहुंच गई। आर्यमणि और निशांत दोनो सीधे खड़े हो गए। अभी कुछ बोलते ही की उस से पहले भूमि पहुंच गई... "रिचा तुमने बता दिया"..


आर्यमणि:– क्या बताना था?


भूमि:– रिचा की टीम के साथ तुम कनेक्ट रहना। कोई खतरा लगे तब तुरंत सूचना देना...


निशांत:– ठीक है दीदी, अब हम अपनी तैयारी कर ले..


इतने में रिचा बंद पोटली अपने हाथ में उठाती... "तुम दोनो क्या कोई तंत्र–मंत्र करने वाले हो?"..


निशांत:– उस पोटली में शेरनी की पोट्टी है। जंगल के रास्ते में बिखेड़ते जायेंगे। इस से शेर भ्रमित होकर शेरनी की तलाश करने लगेंगे और हम सुरक्षित है। तुम भी एक पोटली ले आओ, तुम्हे भी दे देता हूं..


रिचा:– ईईयूयू… ऐसा कौन करता है...


आर्यमणि:– असली शिकारी...


रिचा:– तुम्हारे कहने का क्या मतलब है, हम नकली शिकारी है?


भूमि:– तुम लोगों को झगड़ने का बहुत मौका मिलेगा, अभी सब लोग जाने की तैयारी करो। रिचा तुम मेरे साथ घर चलो.. (भूमि अपने ससुराल की बात कर रही थी। इस वक्त वो अपने मायके में है)…


उन लोगों के जाते ही, आर्यमणि, निशांत को एक थप्पड़ लगाते... "तेरे बकवास के चक्कर में ये पोटली उनके सामने आ गई न"…


निशांत:– तो तू मेरी बात मान क्यों नही लेता...


आर्यमणि:– तू मेरी फिक्र छोड़ भाई... और भ्रमित अंगूठी पहन ले...


निशांत:– एक शर्त पर...


आर्यमणि:– क्या?


निशांत:– मुझे तेरा वुल्फ वाला रूप देखना है...


आर्यमणि:– तू अंगूठी पहन ज्यादा बकवास न कर...


आर्यमणि जबतक कह रहा था, निशांत अपनी उंगली में भ्रमित अंगूठी डाल चुका था और आर्यमणि के ओर पुर्नस्थापित अंगूठी को उछालते हुए... "पहन ले और चलकर शॉपिंग करते है।"…


आर्यमणि और निशांत दोनो तेजस के शॉपिंग मॉल पहुंचे। वहां से दोनो ने ढेर सारा ट्रैप वायर खरीदा। कुछ ड्रोन और नाना प्रकार के इत्यादि–इत्यादि चीजें। दोनो अपने शॉपिंग के बीच में ही थे जब भूमि ने आर्यमणि और निशांत को भी अपने घर बुला लिया। दोनो शॉपिंग के बाद सीधा भूमि के पास पहुंच गए। रिचा और उसकी टीम पहले से वहां थी। हथियारखाने से वो लोग अपने असला–बारूद अपने कार में भर रहे थे। भूमि, आर्यमणि और निशांत को भी हथियारखाने में बुलाती... "अपनी पसंद का हथियार उठा लो"…


रिचा का ब्वॉयफ्रेंड, मानस.… बच्चे हथियार चलाना भी आता है या नही"…


निशांत:– चिचा अब एक घंटे में हथियार चलाना तो नही सीखा सकते ना। और वैसे भी नौसिख्ये शिकारी को हथियार की जरूरत पड़ती है।


मानस:– तू तो अभी तक प्रहरी का अस्थाई सदस्य ही है, फिर भी खुद को बड़ा शिकारी समझता है।


निशांत:– पहली बात मैं प्रहरी समुदाय का हिस्सा नहीं। बस पलक के साथ चला गया था। दूसरी बात किसी का बड़ा शिकारी होने के लिए प्रहरी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं.…


मानस:– कभी वुल्फ से पाला पड़ा है...


निशांत:– लोपचे का पैक भूल गए क्या? वो तो उसी जंगल में रहते थे जहां हम ८ साल की उम्र में लघुसंका करने निकल जाया करते थे।


रिचा का एक साथी तेनु.… "इतनी बहसबाजी क्यूं? शिकार के लिए तो चल ही रहे है, वहीं फैसला हो जायेगा। लेकिन बच्चों को सबसे हैवी और ऑटोमेटिक राइफल देना। कल को ये न कहे की उनके मुकाबले हमारा बंदूक ज्यादा ताकतवर था।"


आर्यमणि, निशांत को अपने साथ बाहर ले जाते... "आर्मस लाइसेंस नही है हमारे पास और हम गैर कानूनी काम नही करते।"… पीछे से कुछ आवाज आई लेकिन आर्यमणि, निशांत के मुंह पर हाथ रख कर गराज चला आया.… "बता कौन सी गाड़ी से जंगल में चलेंगे"


निशांत:– रेंजर वाली जीप ही सही है... वैसे हम कितने लोग है..


आर्यमणि:– हम ५ लोग हैं। सबको उठाते हुए चलेंगे...


शाम के 5 बजे के करीब सभी टीम रवाना हो गई। तेजस की टीम ३ गाड़ियों में निकली। सुकेश की टीम भी २ गाड़ियों में निकली। वहीं इकलौती पलक की टीम थी जो १ गाड़ी में बैठी थी। सभी लोग नागपुर से छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) के रास्ते पचमढ़ी हिल स्टेशन पहुंच गए। जो होशंगाबाद जिले में पड़ती थी। इस हिल स्टेशन को सतपुरा की रानी भी कहा जाता है। रात के १ बजे के करीब सभी पचमढ़ी के एक रिसॉर्ट में पहुंच चुके थे।


सुबह सबका नाश्ता एक साथ हो रहा था। दल में २ वेयरवोल्फ रूही और अलबेली भी थी, जिन्हे सब बहुत ही ओछी नजरों से देख रहे थे। खैर सुबह के नाश्ते के बाद ही सुकेश से एक रेंजर मिलने पहुंचा, जिसने जंगल के मानचित्र पर उस जगह को घेर दिया जहां रीछ स्त्री के होने की संभावना थी। सतपुरा के उस पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचने में लगभग १२ घंटे का वक्त लगता। सभी दल ने अपना बैग पैक किया और अपने–अपने टीम के साथ निकल गए।
Update ki starting badi hi majedar thi aur ending me mujhe dukh hua :angrysad:

khair kabhi kabhi hota hai ki bhot dino se kuch ciz ke liye aap mehnat kar rahe ho aur frustate hote hi kuch esa pagalpan karte hai ki wo ciz apke saamne hoti hai ..... lekin nainu bhaiya ek question tha mtlb torch ke saath dono ko gira dete ya fir maachis ke saath itni mehnat doi pathher ko ghisna kahe nainu bhaiya kahe ?
jis tarha ka sandesh sanduk pr likha tha usse to ye lagta hai ki ye tilism jo bana tha wo aarya aur nishant ke liye nhi tha jo ye tilism tod deta usko ye anguthi mil jaati
aur agar indono ne pariyaan ki likhi paandulipi padhi fir to bhot kuch jaankari mil gyi ho sayad inhe aur Adiyana ka makbare ka rasta bhi pata ho ?
Richa ki najar gyi potli par to bhoomi didi ne kese potli pr dhyaan nhi diya ?
aur kya sahi me nishant ko aarya ke werewolf hone ke baare me pata hai ? ya fir tukka mara ?
khair koi to tha jo undono ki jasoosi me abhi bhi laga hai khaashkar aarya ki jasoosi me
ending me dukh isiliye hua ki
:angrysad: :rondu: Hoshangabad tak aaye itarsi bhi to bich me pada hi hoga nainu bhaiya mera town uska bhi zikr kar hi dete ......... i izz hurt ......
 

Zoro x

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भाग:–7


जैसे ही वो घर पहुंचे राजदीप समेत उसकी दोनो बहने जाकर उनके पाऊं छू ली। इधर राकेश और उसकी पत्नी निलांजना भी जाकर राजदीप के माता पिता से मिलने लगे। राजदीप की मां और राकेश की पत्नी दोनो सगी बहने थी और कमिश्नर साहब राजदीप के मौसा जी। पुलिस का काम ऐसा था कि पूरे परिवार का मिल पाना नहीं हो पता था, हां लेकिन फोन पर अक्सर ही बातें हुआ करती थी। राजदीप अपने मौसा से ही इंस्पायर्ड होकर आईपीएस को तैयारी करने गया था। बड़े से डाइनिंग टेबल पर दोनो परिवार बैठा हुए था। चित्रा और निशांत भी वहीं बैठे हुए थे और खामोशी से सबकी बातें सुन रहे थे।…


नम्रता, खाने का प्लेट लगाती…. "दादा फोन पर तो ये निशांत और चित्रा आधा घंटा कान खा जाते थे, आज दोनो मूर्ति बनकर बैठे है। चित्रा, निशांत सब ठीक तो है ना।"…


राकेश:- इन दोनों को कुलकर्णी कीड़े ने काटा है, इसलिए कुछ नहीं बोल रहे।


राजदीप:- कौन वो डीएम केशव कुलकर्णी।


राकेश:- हां उसी का नकारा बेटे के सोक में दोनो सालों से पागल हुए जा रहे है।


राजदीप की मां अक्षरा भारद्वाज…. "छी छी, उस घटिया परिवार से तुमलोग रिश्ता भी कैसे रख सकते हो।"


"पापा हमे ये सब सुनाने के लिए लाए थे। तुझे मटन का स्वाद लेना है तो लेते रह निशांत, मै जा रही।"… चित्रा गुस्से में अपनी बात कहकर खाने के टेबल से उठ गई। उसी के साथ निशांत भी खड़ा होते.… "रुक चित्रा मै भी चलता हूं।"..


पलक:- "बैठ जाओ दोनो आराम से। जिस बात की वजह नहीं जानते उस बात को पहले पूछ लो। पीछे की कहानी जान लो, ताकि तुम्हे उसमे अपना कुछ विचार देना हो तो विचार दे दो और फिर ये कहकर उठो की आप बड़े है, मै उल्टे शब्दों में आपको जवाब नहीं दे सकता इसलिए मजबूरी में उठकर जाना पड़ रहा है।"

"देखा जाए तो तुमने आई की बात का जवाब इसलिए नहीं दिया, क्योंकि तुम्हे रिश्ते ने खटास नहीं चाहिए, लेकिन ऐसे उठकर चले गए तो तुम्हारे पापा को बेज्जती झेलनी होगी। उनसे सवाल किए जाएंगे कि कैसे संस्कार दिए अपने बच्चो को। तुमने इज्जत के कारण उठकर जाने का निर्णय लिया, किन्तु यहां बात कुछ और हो जाएगी। इसलिए आराम से बैठ जाओ और सवाल करो, जवाब दो, फिर विनम्रता से उठकर चले जाना।"


पलक की बात सुनकर दोनो भाई बहन बैठ गए। और निशांत अपनी मासी को सॉरी कहते हुए कहते पूछने लगा… "मासी आप उस परिवार के बारे में क्या जानते है।"..


अक्षरा भारद्वाज:- "बेटा उस केशव कुलकर्णी की पत्नी जो है ना जया, उसकी एक बड़ी बहन है यहीं नागपुर में रहते है, मीनाक्षी भारद्वाज और उसके पति का नाम है सुकेश भारद्वाज। सुकेश भारद्वाज जो है वो और राजदीप के बाबा उज्जवल दोनो खास चचेरे भाई है।"

"तेरे 3 मामा है। जिसमें से तेरे जो सबसे छोटे वाले मामा थे, उनकी मौत का कारण वही उसकी बहन जया है। तेरे छोटे मामा और जया का लगन तय हो गया था, लेकिन शादी के एक दिन पहले उसकी बड़ी बहन मीनाक्षी ने अपनी बहन जया को भगा दिया। तेरे छोटे मामा बेज्जती का ये घूंट पी नहीं पाए और उन्होंने आत्महत्या कर ली। नफरत है हमे उस परिवार से। उसका नाम सुनती हूं तो तेरे छोटे मामा याद आ जाते है।"


चित्रा:- पलक तुम्हारा धन्यवाद, तुमने सही वक़्त पर बिल्कुल सही बातें बताई। मासी आपको जो मानना है वो आप मानती रहे, और यहां बैठे जितने भी लोग है। मै इसपर कुछ नही कहूंगी, नहीं तो आप सबकी भावनाओ को ठेस पहुंचेगा। आर्यमणि हमारा दोस्त है और जिंदगी भर हमारा दोस्त रहेगा।


राजदीप:- सिर्फ दोस्त ही है ना..


चित्रा:- हमे साथ देखकर शायद आपको कन्फ्यूजन हो सकता है लेकिन हम दोनों के बीच कोई कन्फ्यूजन नहीं है भईया। वैसे हमने एक बार सोचा था रिलेशनशिप स्टेटस बदलने का। लेकिन फिर समझ में आया, हम पहले ही अच्छे थे।


राजदीप:- अच्छा हम से तो वजह जान लिए तुम बताओ कि तुम दोनो उसके लिए इतने मायूस क्यों हो?


निशांत:- मेरे पापा गंगटोक के अस्सिटेंट कमिश्नर रह चुके है, उनसे पूछ लीजिएगा डिटेल कहानी आपको पता चल जाएगा। हमारा दोस्त आर्यमणि बोलने में विश्वास नहीं रखता, केवल करने में विश्वास रखता है।


खाने के टेबल पर फिर बातों का दौड़ चलता रहा। काफी लंबे अरसे के बाद दोनो परिवार मिल रहे थे। सब एक दूसरे से घुलने मिलने लगे। चित्रा और निशांत के मन का विकार भी लगभग निकल चुका था, वो भी अपने मौसेरे भाई बहन से मिलकर काफी खुश हुए।


बातों के दौरान यह भी पता चला की पलक, निशांत और चित्रा तीनों एक ही कॉलेज में एडमिशन लिए है। जहां पलक और निशांत दोनो मैकेनिकल इंजिनियरिंग कर रहे है वहीं चित्रा कंप्यूटर साइंस पढ़ रही थी।


रात के लगभग 12 बज रहे थे। चित्रा, निशांत के कमरे में आकर उसके बिस्तर पर बैठ गई… "सालों बित गए, आर्यमणि ने एक बार भी फोन नहीं किया।"


निशांत:- कल अंकल (आर्यमणि के पापा) ने फोन किया था, रो रहे थे। आर्यमणि जबसे गया, किसी से एक बार भी संपर्क नहीं किया।


चित्रा:- कमाल की बात है ना निशांत, आर्य नहीं है तो हम सालों से झगड़े भी नहीं।


निशांत:- मन ही नहीं होता तुझे परेशान करने का चित्रा। अंकल बता रहे थे मैत्री के मरने का गहरा सदमा लगा था उसे।


चित्रा:- कहीं वो सारे रिश्ते नाते तोड़कर विदेश में सैटल तो नहीं हो गया। निशांत एफबी प्रोफाइल चेक कर तो आर्य की। कहीं कोई तस्वीर पोस्ट तो नहीं किया वो?


निशांत:- कर चुका हूं, नहीं है कोई पिक शेयर। वैसे एक बात बता, केमिकल इंजीनियरिंग के लिए तुमने आर्य का माइंड डायवर्ट किया था ना?


चित्रा:- नहीं मै तो केमिकल इंजिनियरिंग लेने वाली थी, उसी ने मुझसे कहा कि कंप्यूटर साइंस करते है। तकरीबन 5 महीने तक मुझे समझता रहा मै फिर भी नहीं मानी।


निशांत:- फिर क्यों ले ली..


चित्रा:- एक छोटा सा सरप्राइज। बस इसी खातिर ले ली।


निशांत:- तू भी ना पूरे पागल है।


चित्रा:- हां लेकिन तुम दोनो से कम… वो अजगर वाला वीडियो लगा ना.. उसका एक्शन देखते है।


दोनो भाई बहन फिर एक के बाद एक ड्रोन कि रेकॉर्डेड वीडियो देखने लगे। वीडियो देखते देखते दोनो को कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। दोनो भाई बहन सुबह-सुबह उठे और आराम से नेशनल कॉलेज के ओर चल दिए। कैंपस के अंदर कदम रखते ही चारो ओर का नजारा देखकर… "हाय इतनी सारी तितलियां.. सुन ना चित्रा एक हॉट आइटम को अपनी दोस्त बना लेना और उससे मेरा इंट्रो करवा देना।"


चित्रा:- मै भी उस आइटम से पहले इंक्वायरी कर लूंगी उसका कोई भाई है कि नहीं जिसने उससे भी ऐसा ही कुछ कहा हो। थू, कमीना…


निशांत:- जा जा, मत कर हेल्प, वैसे भी यहां का माहौल देखकर लगता नहीं कि तेरे हेल्प की जरूरत भी होगी।


चित्रा:- अब किसी को हर जगह जूते खाने के शौक है तो मै क्या कर सकती हूं। बेस्ट ऑफ लक।


दोनो भाई–बहन बात करने में इतने मशगूल थे कि सामने चल रहे रैगिंग पर ध्यान ही नहीं गया, और जब ध्यान गया तो वहां का नजारा देखकर… "ये उड़ते गिरते लोग क्या कर रहे है यहां।"..


निशांत:- इसे रैगिंग कहते है।


चित्रा, निशांत का कांधा जोर से पकड़ती… "भाई मुझे ये सब नहीं करना है, प्लीज मुझे बचा ले ना।"..


निशांत:- अब तू आज इतने प्यार से कह रही है तो तेरी हेल्प तो बनती है। चल..


चित्रा:- नहीं तू आगे जाकर रास्ता क्लियर कर मै पीछे से आती हूं।


निशांत:- चल ठीक है मै आगे जाता हूं तू पीछे से आ।


निशांत आगे गया, वहां खड़े लड़के लड़कियों से थोड़ी सी बात हुई और उंगली के इशारे से चित्रा को दिखाने लगा। चित्रा को देखकर तो कुछ सीनियर्स ध्यान मुद्रा में ही आ गए। निशांत, चित्रा को प्वाइंट करके फिर आगे निकल गया। जैसे ही चित्रा, निशांत को वहां से निकलते देखी… "कितना भी झगड़ा कर ले, लेकिन निशांत मेरे से प्यार भी उतना ही करता है।"… चित्रा खुद से बातें करती हुई आगे बढ़ी। तभी वहां खड़े लड़के लड़कियां उसका रास्ता रोकते… "फर्स्ट ईयर ना"..


चित्रा:- येस सर


एक लड़का:- चलो बेबी अब जारा बेली डांस करके दिखाओ..


"हांय.. बेली डांस, लेकिन निशांत ने तो सब क्लियर कर दिया था यहां"… चित्रा अपने मन में सोचती हुई, सामने खड़े लड़के से कहने लगी… "सर जरूर कोई कन्फ्यूजन है, अभी-अभी जो मेरा भाई गया है यहां से, उसने आपसे कुछ नहीं कहा क्या?"


एक सीनियर:- कौन वो चिरकुट। हम तो उससे भी रैगिंग करवा लेते लेकिन बोला मै यहां थोड़े ना पढ़ता हूं, अपनी बहन को छोड़ने आया हूं। वो तुम्हारे क्लास वाइग्रह देखने गया है अभी। चल अब बेली डांस करके दिखा।


चित्रा अपनी आखें बड़ी करती… "कुत्ता कहीं का, इसे तो घर पर देखूंगी।"..


सीनियर:- क्या सोच रही है, चल बेली डांस कर।


चित्रा, नीचे से अपनी जीन्स 4 इंच ऊपर करती…. "सर नकली पाऊं से बेली डांस करूंगी तो मै गिर जाऊंगी, फिर लोग क्या कहेंगे। देखो पहले ही दिन कॉलेज में गिर गई।"..


एक लड़की:- तो क्या दूसरे दिन गिरेगी।


चित्रा:- मिस क्या पहला, क्या दूसरा, अब जब पाऊं ही नहीं है तो कभी भी गिरा दो क्या फर्क पड़ता है। जिस बाप को अपना सरनेम देना था उसने अनाथालय की सीढ़ियां दे दी, सिर्फ इस वजह से कि मेरा एक पाऊं है ही नहीं। जब अपना खुद का बाप एक अपाहिज का दर्द नहीं समझा तो तुम लोग क्या समझोगे। अकेला छोड़ दिया ऐसे दुनिया में जहां किसी अनाथ और खुस्बसूरत लड़की को हर नजर नोचना चाहता हो। बेली डांस के बदला ब्रेक डांस ही करवा लो, जब मेरे नकली पाऊं बाहर निकल आएंगे तो तुम सब जोड़-जोड़ से हंसना।


सामने से एक लड़का फुट फुट कर रोते हुए… "सिस्टर, दबाकी मेरा नाम है, यहां मै सबको दबा कर रखता हूं। तुम बिंदास अपने क्लास जाओ, तुम्हे पूरे कॉलेज में कोई आंख उठाकर भी नहीं देखेगा।"


इधर निशांत उन लड़कों को झांसा देकर जैसे ही आगे बढ़ा, उसे पलक मिल गईं… "कैसी हो पलक"


पलक:- अच्छी हूं।


निशांत:- तुम्हारी रैगिंग नहीं हुई क्या?


पलक:- शायद दादा ने यहां सबको पहले से वार्निग दे दिया हो। कॉलेज के गेट से लेकर यहां तक सब सलाम ठोकते ही आए है।


निशांत:- हा हा हा हा.. सुप्रीटेंडेंट साहब की बहन आयी है। वो भी कोई ऐसा वैसा पुलिस वाला नहीं बल्कि सिंघम के अवतार है राजदीप भारद्वाज।


पलक:- हेय वो तुम्हारी बहन के साथ रैगिंग कर रहे है।


निशांत:- कास रैगिंग कर पाए, मै तो विनायक को पूरे 101 रुपए की लड्डू चढ़ाऊंगा।


पलक:- ऐसा क्यों कह रहे हो, वो तुम्हारी बहन है।


निशांत:- मेरी तो बहन है लेकिन इन सबकी मां निकलेगी। इसकी रैगिंग कोई लेकर तो दिखाए।


पलक, निशांत की बातें सुनकर जिज्ञासावश सबकुछ देखने लगी। जैसे-जैसे चित्रा का एक्ट आगे बढ़ रहा था, उसकी हसी ही नहीं रुक रही थी। निशांत पीछे से पलक के दोनो कंधे पर हाथ देकर अपना चेहरा आगे लाते हुए… "देखी मैंने क्या कहा था।"..


पलक ने जैसे ही देखा की निशांत उसके कंधे पर हाथ रखे हुए है वो हंसते हंसते ख़ामोश हो गई और अपनी नजरे टेढ़ी करके निशांत की बातें सुनने लगी। निशांत को ख्याल आया कि उसने पलक के कंधे पर हाथ दिया है… "सॉरी मैंने कैजुअली कंधे पर हाथ रख दिया।"..


पलक:- कोई बात नहीं, बस मुझे दादा का ख्याल आ गया।


तभी इनके पास चित्रा भी पहुंच गई… "कमिने खुद तो मुझे छोड़ने का बहाना बनाकर बच गया, और मुझे फसा दिया। तू देख लेना यहां किसी भी लड़की से तूने बात तक की ना तो तेरी ठरकी देवदास की डीवीडी ना रिलीज कर दी तो तू देख लेना।"


पलक:- क्यों दोनो झगड रहे हो, चलो क्लास अटेंड करने। अभी तो शायद हम सब की क्लास साथ ही होगी ना।


चित्रा:- क्लास साथ हो या अलग पलक, लेकिन इसके साथ मत रहना। भाई के नाम पर कलंक है ये।


निशांत:- वो तो पलक ने भी सुना क्या-क्या साजिशें तुम कर रही। जलकुकड़ी कहीं की। तुझे इस बात से दिक्कत नहीं थी कि तेरा रैगिंग के लिए इन लोगो ने रोका। इनसे निपटने की तैयारी तो तू घर से करके आयी थी। तुझे तो इस बात का गुस्सा ज्यादा आया की मुझे क्यों नहीं रोका, मेरी रैगिंग क्यों नहीं ली?


पलक:- क्लास चले, बाकी बातें क्लास के बाद पूरी कर लेना।


तीनों ही क्लास में चले गए। पलक इन दोनों से मिलकर काफी खुश नजर आ रही थी। अंदर से मेहसूस हो रहा था चलो फॉर्मल लोग नहीं है। हालांकि एक खयाल पलक के मन में बार-बार आता रहा की आखिर मेरा भाई तो केवल एसपी है फिर किसी ने नहीं रोका, और इसके पापा तो कमिश्नर है, फिर क्यों इनकी रैगिंग हो रही है।"..
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 
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