हंस:- मेरा ससुर (भाऊ, देवगिरी पाठक) पागल हो गया है वो तो इन भारद्वाज के तलवे ही चाटेगा।
आरती:- कास बाबा इस लीग का हिस्सा होते जो भारद्वाज को गिरता देखना चाहते है और पुरा प्रहरी समुदाय अपने नाम करना चाहते है। लेकिन वैधायन के पाठक दोस्तों के 4 बेटे में से, बाबा को पुष्पक पाठक का ही वंसज होना था।
अमृत पाठक, भाऊ का भतीजा, और उसकी संपत्ति पर अपनी चचेरी बहन और भाऊ की बेटी आरती के साथ नजर गड़ाए। क्योंकि भाऊ की मनसा सम्पत्ति को लेकर साफ थी, उनकी सम्पत्ति का वारिस एक योग्य प्रहरी होगा जो इस संपत्ति को आगे बढ़ाए और प्रहरी के काम में पूर्ण आर्थिक मदद करे। इसलिए उसने कभी बेटे की ख्वाहिश नहीं किया। उनकी 2 बेटियां ही थी, बड़ी सुप्रिया शुक्ल जिसकी शादी हंस शुक्ल से हुई थी। छोटी भारती, जिसकी शादी धीरेन स्वामी से हुई थी। एक मुंह बोली बेटी भी थी, जिसकी शादी प्रहरी के बाहर मुले समुदाय में हुई थी, और वह आरती मुले थी।
अमृत पाठक:- जो लॉबिंग महाजन, शुक्ल और पाठक के वंशज करते आ रहे थे, वह सभी भारद्वाज के दिमाग के धूल के बराबर भी नहीं। नई लड़की के सामने एक ही मीटिंग मे 22 हाई टेबल खाली करवा आए। शर्म नहीं आती तुम सबको। जाओ पहले कोई दिमाग वाला ढूंढो और धीरेन स्वामी को मानने की कोशिश करो। क्योंकि वाकई तुम लोगो पर भारद्वाज का काल मंडरा रहा है।
आरती:- अमृत मेरे बाबा कहीं अपनी प्रॉपर्टी बिल ना बनवा रहे हो पलक भारद्वाज के नाम। मुझे तो यही चिंता खाए जा रही है।
अमृत:- बड़े काका जो भी बिल बनवा ले, बस उनको मरने दो, फिर आराम से ये सम्पत्ति 2 भागो में विभाजित होगी। मै इसलिए नहीं काका का काम देखता की उनकी सम्पत्ति भिखारियों में दान दे दी जाए। …
तभी उस महफिल में एंट्री हो गई एक ऐसे शक्स की जिसकी ओर सबका ध्यान गया… प्रहरी के इस भटके समूह का दिमाग, यानी धीरेन स्वामी पर। धीरेन स्वामी का कोई बैकग्राउंड नहीं था। एक बार शिकारियों के बीच धीरेन फसा था, जहां उसने अपनी आखों से सुपरनैचुरल को देखा था।
खैर, उसे कभी फोर्स नहीं किया गया कि वो प्रहरी बने। उसे कुछ पैसे दे दिए गए, ताकि वो खुश रहे और बात को राज रखे। छोटा सा लड़का फिर देवगिरी पाठक के पास पहुंचा और उनके जैसा काम सिखन की मनसा जाहिर किया। देवगिरी ने कुछ दिनों तक उसे अपने पास रखकर प्रशिक्षित किया। उसके सीखने की लगन और काम के प्रति मेहनत को देखकर देवगिरी उसे प्रहरी समुदाय में लेकर आया।
भूमि और धीरेन की सीक्षा लगभग एक साथ ही शुरू हुई थी। दोनो जैसे-जैसे आगे बढ़े प्रहरी समुदाय मे काफी नाम कमाया। दोनो दूर-दूर तक शिकार के लिए जाते थे और निर्भीक इतने की कहीं भी घुसकर आतंक मचा सकते थे। दोनो ही लगभग एक जैसे थे दिमाग के बेहद शातिर और टेढ़े तरीके से काम निकालने में माहिर। बस एक चीज में भूमि मात खा गई, धीरेन टेढ़े दिमाग के साथ टेढ़ी मनसा भी पाल रहा था, इस बात की भनक उसे कभी नहीं हुई।
दोनो के बीच प्रेम भी पनपा और जश्मानी रिश्ते भी कायम हुए, लेकिन धीरेन केवल भूमि की सोच को समझने के लिए और प्रहरी का पुरा इतिहास जानने के लिए उसके साथ हुआ करता था। उसे इस बात की भनक थी, यदि भूमि उसके साथ हुई, तो वो अपनी मनसा में कभी कामयाब नहीं हो पाएगा, और यहां उसकी मनसा कोई पैसे कमाने का नहीं थी, बल्कि उससे भी ज्यादा खतरनाक थी। ताकत का इतना बड़ा समुद्र उसे दिख चुका था कि वो सभी ताकतों का अधिपति बनना चाहता था।
इसी बीच धीरेन भूमि की मनसा पूरा भांप चुका था। भूमि प्रहरी समुदाय में चल रहे करप्शन की जड़ तक पहुंचने की मनसा रखती थी। भूमि जिस-जिस पॉइंट को लेकर शुक्ल, महाजन और पाठक के कुछ लेग को घसीटने वाली होती, समय रहते धीरेन ने उन्हें आगाह कर दिया करता और वो इस खेमे मे सबसे चहेता बन गया।
भूमि से नजदीकियों को दूर करने के लिए धीरेन की शादी भारती से करवाई गई, ताकि ये मुंबई आ जाए और भूमि से दूर हो जाए। धीरेन को भी कोई आपत्ति नहीं थी। भूमि से केवल भावनात्मक दिखावा किया था धीरेन ने और भाऊ का कर्ज उतारने के लिए यह शादी कर रहा, भूमि से जताया। भूमि खून का घूंट पीकर रह गई। कुछ दिनों के लिए भूमि सब कुछ भूलकर विरह में भी जी थी। तब भूमि को जयदेव का सहारा मिला। जयदेव हालांकि भूमि के गुप्त रिश्ते के बारे में नहीं जानता था, उसे केवल इतना पता था कि भूमि धीरेन के साथ छोड़ने से हताश है।
जयदेव बहुत ही शांत प्रवृत्ति का प्रहरी था, जो चुप चाप अपना काम किया करता था। भूमि के अंतर्मन को ये बात झकझोर गई की अपने अटूट रिश्ते के टूटने कि कहानी बताये बिना यदि वो जयदेव से शादी कर ली, तो गलत होगा। इसलिए शादी के पूर्व ही उसने जयदेव को सारी बातें बता दी। जयदेव, भूमि के गम को सहारा देते हुए अपनी कहानी भी बयान कर गया जो कॉलेज में एक लड़की के साथ घटा था और वो बीमारी के कारण मर गई थी।
शायद दोनो ही एक दूसरे के दर्द को समझते थे इसलिए एक दूसरे से शादी के बाद उतने ही खुश थे। आज ना तो भूमि और ना ही जयदेव को अपनी पिछली जिंदगी से कोई मलाल था क्योंकि दोनो ने एक दूसरे के जीवन में जैसे रंग भर दिए हो। इधर धीरेन अपनी शादी के बाद मुंबई सैटल हो गया। एक जिम्मेदार प्रहरी और भाऊ का वो उत्तराधिकारी था। इसलिए अरबों का बिजनेस उसे सौगात में मिली थी, जिसे उसकी पत्नी भारती देखती थी। धीरेन सबकी मनसा जानता था लेकिन धीरेन की मनसा कोई नहीं। समुदाय में भटके परिवार को यही लगता रहा की धीरेन स्वामी धन के लिए ही काम कर रहा था। जब उसे भाऊ की सम्पत्ति का एक हिस्सा मिला, तब अपने दिमाग और भारती की कुशलता की मदद से, उसने इतनी लंबी रेखा खींच दी, कि बाकियों के नजर में धीरेन स्वामी अब खटकने लगा। जिसका परिणाम हुआ, मुंबई के प्रहरी इकाई ने धीरेन को प्रहरी समुदाय छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। धीरेन के समुदाय छोड़ने ही, उसे अपनी 70% सम्पत्ति प्रहरी समुदाय को लौटानी पड़ी थी और इन लोगो के सीने में बर्णोल लग गया था।
बीते दौड़ में भूमि नामक तूफान से धीरेन ने उन सबको निकाल लिया था। उसके बाद तो सभी लोग यही सोचते रहे की भारद्वाज का अब कौन है, जो भूमि के बराबर दिमाग रखता हो और हमारी जड़े हिलाए। बस इस एक सोच ने उन्हें आज ऐसा औंधे मुंह गिराया की धीरेन के पाऊं पकड़कर मीटिंग में आने के लिए राजी किया गया था।
धीरेन स्वामी जैसे ही अंदर पहुंचा, आरती उसे बिठती हुई… "कैसे है छोटे जमाई।"
धीरेन, हंसते हुए… "सब वक़्त का खेल है। कभी नाव पर गाड़ी तो कभी गाड़ी पर नाव।"..
अमृत:- धीरेन भाऊ अब गुस्सा थूक भी दो, और इनकी डूबती नय्या को पार लगा दो।
धीरेन:- अमृत, मुझे केवल अपने परिवार के लोग से बात करनी है। बाकी सब यहां से जा सकते है।
अमृत, आरती और हंस उसके पास बैठ गए और बाकी सभी बाहर चले गए।… "दीदी मै सिर्फ आप दोनो को बचा सकता हूं, बाकी मामला अब हाथ से निकल गया है। वो भी आपको इसलिए बचना मै जरूरी समझता हूं क्योंकि आपके बारे में जानकर मेरी पत्नी को दर्द होगा, और उसे मै दर्द में नहीं देख सकता। वो परिवार ही क्या जो बुरे वक़्त में अपने परिवार के साथ खड़ा ना हो, भले ही उस परिवार ने मुझसे मेरी सबसे प्यारी चीज छीन ली हो।"..
हंस:- हम बहकावे में आ गए थे स्वामी, आज भी आरती ने भरी सभा में तुम्हारा नाम लिया था।
धीरेन:- और आप.… आपको मै याद नहीं आया जो आपके बाबा को और यहां बैठे ना जाने कितने प्रहरी को मुसीबत से निकाला था। मै केवल और केवल आरती के साथ मीटिंग करूंगा, इसके अलावा कोई और दिखा तो मै कोई मदद नहीं करने वाला।
आरती:- मुझे मंजूर है।
स्वामी उस सभा से उठते हुए… "मेरे कॉल का इंतजार करना आप, और आगे से ध्यान रखिएगा पैसे की चाहत अक्सर ले डूबती है।"..
स्वामी के वहां से जाते ही…. "हंस 2 टॉप क्लास मॉडल का इंतजाम करो, नई शुरवात के नाम।"..
हंस:- हम्मम ! समझ गया…
स्वामी उस दरवाजे से बाहर निकलते ही अंदर ही अंदर हंसा…. "एक बार गलत लोगों पर भरोसा करके मैं अपने लक्ष्य से कोसों दूर चला गया था, तुमने क्या सोचा इस बार भी वही होगा। बस अब तमाशा देखते जाओ।"..
स्वामी कुछ दूर चलते ही उसने अपना फोन निकला, कॉल लगा ही रहा था कि उसे ध्यान आया…. "भूमि ने अब तक तो सरदार खान पर सर्विलेंस लगा दिया होगा। सरदार खान को फोन करने का मतलब होगा फसना। सॉरी सरदार तुझे नहीं बचा पाया, लेकिन तू खुद बच जाएगा मुझे यकीन है।"
देवगिरी पाठक का बंगलो… 
मीटिंग की शाम देवगिरी पाठक और विश्वा देसाई की बैठक हो रही थी। दोनो शाम की बैठक में स्कॉच का छोटा पेग उठाकर खिंचते हुए…
देवगिरी:- विश्वा दादा आज तो उस पलक ने दिल जीत लिया।
विश्व:- देव तुम शुरू से बहुत भोले रहे हो। जानते हो मै यहां क्यों आया हूं?
देवगिरी:- क्यों दादा..
विश्वा:- आज की मीटिंग में जब आर्यमणि का पैक बनाना, वुल्फ से दोस्ती और उनके क्षेत्र कि जांच हो ऐसी मांग उठी, तो मुझे वर्धराज गुरु की याद आ गई। किसी ने उस समय जो साजिश रची थी, इस बार भी पूरी साजिश रचे थे। लेकिन भारद्वाज की नई पीढ़ी अपने दादाओं कि तरह बेवकूफ नहीं है। शायद हमने वर्धराज गुरु के साथ गलत किया था...
देवगिरी:- दादा आपने बहुत सही प्वाइंट पकड़ा है। अरे करप्शन कि जड़ है ये शुक्ल, महाजन और मेरा पाठक परिवार। हमेशा इन लोगो ने पैसों को तबोज्जो दिया है।
विश्वा:- मुझे पलक की बात जायज लगी। सबको रीसेट करते है और धन का बंटवारा बराबर कर देते है। किसी के पास अरबों तो किसी के पास कुछ नहीं...
देवगिरी:- कैसे करेंगे दादा? अब जैसे स्वामी को ही ले लो। उसे मैंने 400 करोड़ का सेटअप दिया था। 4 साल में उसने 1200 करोड़ बनाया और प्रहरी छोड़ते वक़्त उसने 840 करोड़ समुदाय को दे दिया। 360 करोड़ से उसने धंधा चलाया। 6 साल में वो कुल 1600 करोड़ पर खड़ा है। क्या कहूं फिर 70% दे दो।
"हां फिर 70% ले लो। बुराई क्या है।"… धीरेन स्वामी अंदर आते ही दोनो के पाऊं छुए।
देवगिरी:- दादा इसको पूछो ये यहां क्या करने आया है?
धीरेन स्वामी:- अपने ससुर का ये 6 साल से इन-डायरेक्ट बात करने का सिलसिला तोड़ने। मुझे गुप्त रूप से नियुक्त कीजिए और जांच का प्रभार सौंप दीजिए। काम खत्म होने के बाद मुझे स्थाई सदस्य बनाना ना बनना आप सब की मर्जी है, लेकिन मै वापस आना चाहता हूं। बोर हो गया हूं मै ऑफिस जाते-जाते।
देवगिरी:- क्या मै सच सुन रहा हूं या तुझे आज फिर से भारती ने डांटा है?
धीरेन:- भाऊ हे काय आहे, मै सच कह रहा हूं।
विश्वा:- देवगिरी मैंने दे दिया प्रभार, तुम भी दो।
देवगिरी, अपने दोनो हाथ स्वामी के गाल को थामते… "मेरा बेटा लौट आया।" इतना कहकर देवगिरी ने बेल बजाई, उधर से एक अत्यंत खूबसूरत 28 साल की एक लेडी एक्सक्यूटिव की पोशाक में वहां पहुंची…. "सैफीना सभी एम्प्लॉयज में 2 महीने की सैलरी बोनस डलवा दो।"
धीरेन:- हेल्लो सैफीना..
सैफीना:- हेल्लो सर..
धीरेन:- 2 मंथ नहीं 3 मंथ की सैलरी बोनस के तौर पर दो और मै जब जाने लगूं तो एक मंथ का बोनस चेक मुझसे कलेक्ट कर लेना।
सैफीना "येस सर" कहती हुई वहां से चली गई। उसके जाते ही… "भाऊ आप कहते थे ना मै अपनी सारी संपत्ति किसी ऐसे के नाम करूंगा जो इस धन को आगे बढ़ाए और प्रहरी समुदाय में किसी को आर्थिक परेशानी ना होने दे तो वैसा कोई मिल गया है।"
देवगिरी:- हां मै भी उसी के बारे में सोच रहा था, पलक भारद्वाज।
धीरेन:- नहीं गलत। आर्यमणि कुलकर्णी।
देवगिरी:- लेकिन वो तो प्रहरी नहीं है और जहां तक खबर लगी है कि वो बनेगा भी नहीं।
धीरेन:- हा भाऊ, लेकिन उसकी सोच पूरे प्रहरी समुदाय से मिलती है, या फिर उससे भी कहीं ज्यादा ऊंची। ना तो वो आपके पैसे को कभी डूबने देगा और ना ही किसी गलत मकसद मे लगाएगा। उल्टा वर्षों से जो हम अनदेखी करते आएं है वो उसकी भरपाई कर रहा है। देखा जाए तो प्रहरी के गलती का निराकरण, वुल्फ को सही ढंग से बसाकर। मेरे हिसाब से तो आपको उसी को उत्तरदायित्व देना चाहिए।
देवगिरी:- मेरा दिल पिघल गया तेरी बातों से। कल ही बिल बनवाता हूं। 42% में ३ बेटी का हिस्सा। 18% अमृत को और बचा 40% आर्यमणि को। जबतक रिटायरमेंट नहीं लेता, सब मेरे कंट्रोल में और सबको जल्दी धन चाहिए तो मेरा कत्ल करके ले लेना।
धीरेन:- 100% की बात करो तो सोचूं भी कत्ल करने का ये 14% के लिए कौन टेंशन ले। इतना तो मै 4 साल में अपने धंधे से अर्जित कर लूंगा।
देवगिरी:- ले ले तू ही 100%। कल से आ जा यहां, मै घूमने चला जाऊंगा।
धीरेन:- भाऊ आपकी बेटी मुझे चप्पल से मारेगी और सारा पैसा अनाथालय को दान कर देगी। रहने दो आप, गृह कलेश करवा दोगे। मैंने अपने दोनो बेटे के लिए पर्याप्त घन छोड़ा है। पहले से सोच लिया है, 2000 करोड़ अपने दोनो बेटे मे, उसके आगे का आधा घन प्रहरी समुदाय को और आधा अनाथालय को।
देवगिरी:- ये है मेरा बच्चा। आज तो नाचने का मन कर रहा है।..
धीरेन:- आप दोनो नाचो मै जबतक यहां के काम काज को देखता चलूं।
धीरेन जैसे ही बाहर निकला। साइड में रिसेप्शन पर बैठा एक लड़का… "सर सैफीना मैम ने वो चेक के बारे में कहा था याद दिला देने।"
स्वामी:- ओह हां। कहां है वो अभी। बोलो यहां आकर कलेक्ट कर ले।
रिसेप्शनिस्ट, कॉल लगाकर बात करने के बाद… सर वो अपने चेंबर में है। आपको ही बुला रही है। बोली एक फाइल को आप जारा चेक करते चले जाइए।
ठीक है कहता हुए वो ऑफिस में घुसा… "कौन सी फाइल चेक करनी है मैडम।"..
सैफीना अपने कुर्सी से उतरकर आगे अपने डेस्क कर टांग लटकाकर बैठ गई और अपने शर्ट के बटन खोलते… "फाइल मै ओपन करके दूं, या खुद ओपन करोगे।"..
"तुम बस सिग्नेचर करने वाली पेन का ख्याल रखो, बाकी सब मै अपने आप कर लूंगा।"…
बदन से पूरे कपड़े उतर गए और दोनो अपने काम लीला में मस्त। एक घंटे में मज़ा के साथ-साथ सारी इंफॉर्मेशन बटोरते हुए धीरेन ने सैफीना को उसके पसंदीदा ऑडी की चाभी थमाई और वहां से चलता बाना।
अगले दिन कि मीटिंग में, जान हलख में फसे लोग बाहर इंतजार करते रहे और स्वामी, आरती के साथ मीटिंग में व्यस्त था। इसी बीच 2 हॉट क्लास मॉडल उसकी सेवा में पहुंच गई। स्वामी का मन उनको देखकर हराभरा तो हुआ, लेकिन धीरेन इस वक़्त इनके झांसे में नहीं ही फंस सकता था। धीरेन स्वामी, आरती के माध्यम से सबको आश्वाशन दिया और सबको आराम से 2 महीने शांत बैठने के लिए कहने लगा।