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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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Death Kiñg

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Are Apan ne ek Star Trek ka episode dekha tha, usme sala pura planet hi ladkiyo se bhara hua tha, vo dusre planet se aane vale surway team ke ladko ke dimag me nakli yade trans plant kr deti hai or jb Vo banda us planet pr pahuchta hai to vo Ladkiya uske sath itna suhagraat mnati hai ki banda sukh jata hai Jaise mummy hoti hai, yah sab hota hai ladkiyo ki bread (sankhya) bdhane ke liye... Vahi bhejna chah rha tha apne 11 ster fan bhai ko :D
Kabhi humen bhi mile aisa koyi planet to jeevan sarthak naa ho jaaye.. :dazed:
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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Kabhi humen bhi mile aisa koyi planet to jeevan sarthak naa ho jaaye.. :dazed:
Aapko bhi kisi planet me teleport karte hai... :D bs ek baar ban jaye Vo...
 
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काफी कम्पलिकेटेड अपडेट था सैंतीस वाला । लोपचे का भटकता मुसाफिर...एडियाना का मकबरा....पारियान... जादूगरनी एडियाना....एडियाना की तीन लालसाएं... जादुगर महाकाश्वर सब कुछ दिमाग के नशें हिला देने वाला था ।

मुझे जो समझ में आया वो यह कि -
रसियन जादूगरनी एडियाना तीन ऐसी शक्तियों की तलाश में थी जिससे वो धरती की सर्वशक्तिशाली बन जाती ।
पहला - बिजली का खंजर , एक ऐसा खंजर जिससे किसी भी व्यक्ति और वस्तु को सेकेंड मात्र में ही चीर कर रख दे । मनुष्य भले ही खुद को मंत्र तंत्र से सुरक्षित ही क्यों न कर लिया हो ।
दूसरा - बहरूपिया चोगा , ऐसा वस्त्र जिसके इस्तेमाल से व्यक्ति किसी का भी रूप धारण कर ले । यहां तक कि उस व्यक्ति की आत्मा से भी खुद को कनेक्ट कर ले ।
तीसरा - पुनर्स्थापित अंगूठी , काफी करामाती है यह अंगूठी । अगर किसी व्यक्ति के शरीर के चिथड़े चिथड़े भी हो जाए फिर भी अंगूठी धारण करने वाला व्यक्ति पुनः अपने शरीर को प्राप्त कर ले और जीवित हो उठे ।

एडियाना की लालसा , लालसा मात्र बनकर रह गई क्योंकि उसने एक कपटी भारतीय जादुगर महाकाश्वर पर विश्वास कर लिया था । तीनों चीजें प्राप्त करने के बाद महाकाश्वर ने एडियाना को मार दिया और उसी के मकबरे में वो अद्भुत चीजें छुपा दी । इसका वजह जरूर शक्तिशाली पारियान लोपचे ही रहा होगा । जो शायद आज भी हिमालय के पहाड़ियों में मौजूद है ।

लेकिन आर्य को पता है कि उस मकबरे से बिजली का खंजर गायब है । जरूर गंगटोक के घने जंगलों में उसने कुछ ऐसा देखा या पाया जिससे उसके पास यह जानकारी आई होगी । हो यह भी सकता है कि भटकता मुसाफिर से उसकी मुलाकात भी हो गई हो ।

बहुत ही विचित्र और करिश्माई चीजें इस अपडेट में देखने को मिला । निशांत ने सच ही कहा रीछ की ताकत का अंदाजा नहीं है प्रहरियों को । आसान नहीं उस पर काबू पाना । शायद तीन शक्तियों में कोई एक भी उन्हें प्राप्त हो जाए तो यह सम्भव हो सकता है ।


इसके पहले अध्याय में पाठक और शुक्ल परिवार के कुछ ऐसे हस्तियों से हमारी मुलाकात हुई जो इसके पहले नहीं हुई थी । जिनमें सबसे प्रमुख और महत्वाकांक्षी और धुर्त धीरेन स्वामी जी थे । स्वामी जी सच में ही काफी पहुंचे हुए स्वामी निकले । अपने पालनहार सज्जन पुरुष देवगिरी पाठक जी को बुद्धु बनाया जो अब तक जारी है । सारे प्रहरियों को बेवकूफ बनाया । भुमि के साथ धोखा किया । भारद्वाज फेमिली की जड़ें काटता रहा । और मुझे विश्वास है वो अपनी पत्नी भारती को भी छल रहा होगा ।

देवगिरी साहब की सगी बेटियां , मुझे लगता है उन्हीं के समान पाक और निष्छल प्रवृत्ति की होनी चाहिए । लेकिन आरती मैडम जो उनकी सगी औलाद नहीं है , की संस्कार उनसे बिल्कुल ही मेल नहीं खाती ।

दोनों अपडेट्स बहुत ही खूबसूरत थे नैन भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट ।
 
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Sk.

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भाग:–37

प्रणा




नागपुर शहर.... मीटिंग खत्म होने के ठीक एक दिन बाद…..


सुकेश की बुलावे पर बड़ी सी महफिल सजी हुई थी। जहां प्रहरी और आर्यमणि दोनो साथ बैठे थे। जिस गरज के साथ पलक प्रहरी सभा में बरसी थी, उसपर पुरा घर रह-रह कर गर्व महसूस कर रहा था। लेकिन बोलने के बाद अब करने का वक्त था और जरूरी था पलक खुद को साबित करके दिखाये। पलक की अगुवाई में चल रही रीछ स्त्री की खोज भी पूरी हो चुकी थी, और उसे धर–दबोचने की तैयारी में यह सभा रखी गयि थी।


सुकेश:– बहुत ज्यादा वक्त न लेते हुये मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं। वाकी वुड्स में क्या हुआ था इस बात से सभी भली भांति परिचित होंगे। पलक जब विशेष जीव साखा की अध्यक्ष बनी, तभी उसने मुझे रीछ स्त्री को दूंढने का काम सौंपा। मैने इस काम में अपने कुछ खास सहयोगियों को लगाया था और अब हमारे पास रीछ स्त्री की पक्की खबर है...


पूरी सभा लगभग एक साथ... "कहां है वह अभी"…


सुकेश:– खबरों की माने तो वह रीछ स्त्री सतपुरा के घने जंगलों के बीच, वहां स्थित पर्वत श्रृंखला के एक मांद में छिपी है। आसपास के लगभग 5 किलोमीटर का दायरा उसका विचरण क्षेत्र है, जिसके अंदर कोई नही जा सकता।


भूमि:– कोई नही जा सकता, यह कैसे पता चला? क्या अंदर घुसने की कोशिश में किसी पर हमला हुआ या जान से मार दिया गया?


सुकेश:– पूरी जानकारी तो मुझे भी नही। खबरियों द्वारा जो खबर मिली उसे बता रहा हूं। जबतक वहां छानबीन के लिये नही जायेंगे, पूरी बात पता नही चल सकती। हां पर खबर पक्की है कि रीछ स्त्री वहीं है।


भूमि:– हां तो देर किस बात की है। हम कुछ टुकड़ी के साथ चलते हैं और उस रीछ स्त्री को पकड़ कर ले आते हैं।


पलक:– भूमि दीदी जाने से पहले थोड़ा यह जान ले की हम किसके पीछे जा रहे। यह कोई साधारण सुपरनेचुरल नही बल्कि काफी खरनाक और दीर्घायु सुपरनैचुरल है। सोचो कितना उत्पात मचाया होगा, जो इसे विष मोक्ष श्राप से बंधा गया था। इसका दूसरा मतलब यह भी निकलता है कि उस दौड़ में विकृत रीछ स्त्री को मार नही पाये होंगे इसलिए मजबूरी में कैद करना पड़ गया होगा।


भूमि:– ठीक है तुम इंचार्ज हो, तुम्ही फैसला करो...


पलक:– पैट्रिक और रिचा की टीम तेजस दादा के नेतृत्व में काम करेगी। सुकेश काका, बंगाल की मशहूर जादूगरनी ताड़का और उसके कुछ चेलों के साथ अपनी एक टुकड़ी लेकर जायेंगे। आर्यमणि के अल्फा पैक के साथ मैं एक टुकड़ी लेकर जाऊंगी। आज शाम ही हम सब सतपुरा जंगल के लिये निकलेंगे। हम सबसे पहले सतपुरा के पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचेंगे और वहां से अलग–अलग दिशाओं से जांच करते हुये, ठीक 7 दिन बाद, चंद्र ग्रहण से ठीक एक दिन पूर्व, रीछ स्त्री के उस 5 किलोमीटर वाले दायरे के पास एकत्रित होंगे। वहां हम पूरी रणनीति बनायेंगे और चंद्र ग्रहण की रात उस रीछ स्त्री को बांधकर नागपुर प्रहरी कार्यालय में कैद करेंगे।


भूमि:– मेरी नेतृत्व वाली सभी टुकड़ी को ले जा रहे और मुझे ही अगुवाई का मौका नहीं मिल रहा...


पलक:– दीदी आप यहां आराम करें और आपकी टुकड़ी में जो बेहतरीन शिकारी है उसे भी ऊपर आने का मौका दें।


भूमि, पलक के इस जवाब पर केवल मुस्कुरा कर अपनी प्रतिक्रिया दी। सभा में सभी फैसले लेने के बाद सभा स्थगित हो गया और सब शाम में निकलने की तैयारी करने लगे। तैयारी में तो आर्यमणि भी लग गया। जहां एक ओर लोगों को शिकारी होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था, वहीं आर्यमणि और निशांत २ ऐसे नाम थे जो पैदा ही शिकारियों के गुण के साथ हुये थे। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण तो लोपचे का खंडहर था, जहां कई माहिर शिकारी को दोनो चकमा देकर सुहोत्र को ले उड़े। आर्यमणि भला जंगल के इस मिशन में निशांत को साथ क्यों नही लेता। बाकी सब अपनी रणनीति में और दोनो दोस्त अपनी...


निशांत:– मजा आयेगा आर्य, लेकिन ये तो बता की हमे वहां करना क्या होगा?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नही। शायद जंगल के अंदर कुछ छानबीन और उस विकृत रीछ स्त्री को पकड़े कैसे?



निशांत, थोड़ा आश्चर्य में... "यानी जिसे पकड़ने जा रहे उसके विषय में कोई ज्ञान नहीं?"


आर्यमणि:– इतना चौंक क्यों रहा है?


निशांत:– यार ये तो आत्महत्या करने जैसा है। इतिहास के सबसे शक्तिशाली मानव प्रजाति जो हजारों वर्ष तक जिंदा रह सकते थे। जिनके शक्तियों का विस्तृत उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक है। जिसका एक योद्धा जम्बत जी का उल्लेख सतयुग से लेकर द्वापरयुग तक मिलता है। और यदि इस रीछ स्त्री की बात करे तो वह गवाह होगी द्वापर युग की। जो स्त्री महाभारत के समकालीन है और कलयुग में आज तक जिंदा है। उसे बस ऐसे हवा–हवाई रणनीति से पकड़ने जा रहे। उसे पकड़ने भी जा रहे हो या उसके पैरों में गिड़कर उसका चेला बनना है? क्योंकि ऐसी रणनीति का तो यही निष्कर्ष निकलता है कि किसी तरह पता करो की वह शक्तिशाली रीछ स्त्री कहां है ताकि उसके पैरों में गिरकर उसे अपने ओर मिला ले और अपनी भी मनचाही मनोकामना पूर्ण हो जाए...


आर्यमणि:– तो क्या करे, न जाएं...


निशांत:– हम जायेंगे लेकिन इन फालतू प्रहरी के भरोसे नहीं जायेंगे... हमे अपने जंगल (गंगटोक के जंगल) के बारे में पता था कि वहां हमारा सामना किस जानवर और किन–किन विषम परिस्थितियों से हो सकता था। इसलिए संकट कितना भी अचानक क्यों न आये हमे समस्या नहीं होती। हम यहां भी ठीक वैसा ही करेंगे...


आर्यमणि:– हम्मम.. ठीक है हम खरीदारी करते हुये डिस्कस कर लेंगे, लेकिन सबसे पहले मैं तुम्हे कुछ दिखाना चाहता हूं...


इतना कहकर आर्यमणि अपने कमरे का दरवाजा बंद किया। बिस्तर के नीचे पड़ा अपना बैग निकाला। यह लाइफ सपोर्टिंग बैग था। ऐसा ही एक बैग निशांत के पास भी हमेशा रहता है। आर्यमणि उसके अंदर से सभी समान बाहर निकलने के बाद आखरी में सबसे नीचे से एक पोटली निकाला... पोटली को देखते ही निशांत की आंखें बड़ी हो गई... "लोपचे का भटकता मुसाफिर। आर्य, इसे साथ लेकर घूम रहे"…


आर्यमणि:– ऐडियाना का मकबरा कहां है...


निशांत:– मध्य भारत के जंगल में..


आर्यमणि:– मैप में देखकर बताओ की मध्य भारत का जंगल कहां है?


निशांत:– बताना क्या है... वही सतपुरा का जंगल.. लेकिन तुम दोनो बातों में क्या समानता ढूंढ रहे हो?..


आर्यमणि:– लोपचे के भटकते मुसाफिर की माने तो एडियाना के मकबरे में 3 चीजों का उल्लेख है, जो हर किसी को पता है... पुर्नस्थापित अंगूठी (restoring ring), बिजली की खंजर और...


निशांत उसे बीच में ही रोकते.… "और बहरूपिया चोगा... यानी वो रीछ स्त्री मध्य भारत के जंगल में इन्हे ही ढूंढने निकली है।"..


आर्यमणि:– दोनो ही बातें है, हो भी सकता है और नही भी। रीछ स्त्री अपने कैद से बाहर निकलने के बाद जो भी अपना लक्ष्य रखे, उसके लिए सबसे पहले उसे खुद के अंदर क्षमता विकसित करनी होगी। जिसके लिए उसे कम से कम 500–600 दिन तो चाहिए। यदि उसे ये सब जल्दी निपटाना हो तब...


निशांत:– तब तो उसे कोई जादू ही चाहिए। और ऐसा ही एक जादू वहां के जंगल में भी है... पुर्नस्थापित अंगूठी... हाहाहाहाहा..


आर्यमणि:– हाहाहाहाहा.. और उस गधी को पता नही होगा की वहां तो लोपचे के भटकते मुसाफिर ने लोचा कर दिया था...


लोपचे के भटकते मुसाफिर यानी की पारीयन लोपचे, सुपरनैचुरल के बीच काफी प्रसिद्ध नाम है। इसे खोजी वुल्फ भी कहा जाता है। पहला ऐसा लोन वुल्फ, जो अपनी मर्जी से ओमेगा था। कई साधु, संत, महात्मा, और न जाने कितने ही दैत्य दानव से वह मिला था। उस दौड़ के योगियों का चहेता था और किसी भी प्रकार के खोज में, खोजी टुकड़ी के अगुवाई पारीयान लोपचे ही करता था। उसके इसी गुण के कारण से पारीयान लोपचे को लोपचे का भटकता मुसाफिर कहा जाता था। अपने खोज के क्रम में वह साधु, योगियों और आचार्य का इतना चहेता हो चुका था कि गुरुओं ने उसे सिद्ध की हुई भ्रमित अंगूठी (illiusion ring) दिया था।


सुनने में भले ही यह जादू कला की छोटी सी वस्तु लगे लेकिन यह वस्तु उस चींटी के भांति थी, जो किसी हांथी के सूंड़ में घुसकर उसे धाराशाही कर सकती थी। कहने का अर्थ है, बड़े से बड़ा दैत्य, काला जादूगर, शिकारी, वीर, फौज की बड़ी टुकड़ी, कोई भी हो.… उन्हे किसी को मारने के लिए सबसे जरूरी क्या होता है, उसका लक्ष्य। सामने लक्ष्य दिखेगा तभी उसको भेद सकते हैं। यह भ्रमित अंगूठी लक्ष्य को ही भटका देती थी। यदि सामने दिख रहे पारीयान पर कोई तीर चलता तो पता चलता की वह तीर जैसे किसी होलोग्राफिक इमेज पर चली। कोई काला जादूगर यदि उसके बाल को लेकर, किसी छोटे से प्रतिमा में डालकर, उसका जादुई स्वरूप तैयार करके मारने की कोशिश करता, तब पता चलता की यह काला जादू भी बेअसर। क्योंकि भ्रमित अंगूठी पारीयान के अस्तित्व तक को भ्रमित कर देती थी।


उसी दौड़ में कुख्यात जादूगर महाकाश्वर और एडियाना की जोड़ी काफी प्रचलित हुई थी। इन्होंने अपने तंत्र–मंत्र और शातिर दिमाग से सबको परेशान कर रखा था। लेकिन कहते हैं ना आस्तीन का सांप सबसे पहले अपने को ही डस्ता है। जादूगर महाकाश्वर ने भी एडियाना के साथ वही किया। पहले छला... फिर उसकी ताकत हासिल की और एडियाना की ताकत हासिल करने के बाद, उसकी तीन इच्छाओं के साथ उसके मकबरे में दफन कर दिया। ये वही तीन इच्छा थी जिसके छलावे में एडियाना फंसी थी। एडियाना बर्फीले रेगिस्तान (रूस के बर्फीला इलाका) की खौफनाक शैतान कही जाती थी, जो अपने लाखों सेवक विंडीगो सुपरनेचुरल के साथ राज करती थी। ऐडियाना एक कुशल जादूगर तो थी लेकिन मध्य भारत के जादूगर महाकाश्वर की उतनी ही बड़ी प्रशंसक भी।


अभी के वक्त में जो तात्कालिक मंगोलिया है, उस जगह पर जादूगर की एक सभा लगी थी। उसी सभा मे महाकाश्वर की मुलाकात एडियाना से हुई थी। यूं तो जादूगरों की यह सभा साथ मिलकर काम करने के लिए बुलाई गई थी, लेकिन जहां एक ओर एडियाना अपनी बहन तायफा से मिलने पहुंची थी। वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसी तायफ़ा को मारने पहुंचा था। जीन–जिन को भ्रम था कि वह दिग्गज जादूगर है, वह सभी २ पाटन के बीच में पिस गए। एक ओर एडियाना अपनी बहन को बचा रही थी, वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसे मारने का प्रयास कर रहा था।


जादूगरों का गुट २ विभाग में विभाजित हो गया, जहां मेजोरिटी लेडीज के पास ही थी। लेकिन महाकाश्वर के लिए तो भाड़ में गए सब और ठीक वैसा ही हाल एडियाना का भी था। दोनो लगातार लड़ते रहे। उस लड़ाई में वहां मौजूद सभी जादूगर मारे गए फिर भी लड़ते रहे। जिसके लिए लड़ाई शुरू हुई, तायफा, वो भी कब की मर गई। लेकिन इनका लड़ाई जारी रहा। एडियाना बर्फ की रानी थी, तो महाकाश्वर आग का राजा। एडियाना भंवर बनाती तो महाकाश्वर पहाड़ बन जाता। कांटे की टक्कर थी। मंत्र से मंत्र भीड़ रहे थे और आपसी टकराव से वहां के चारो ओर विस्फोट हो रहा था, लेकिन दोनो पर कोई असर नहीं हो रहा था।


एडियाना ने फिर एक लंबा दाव खेल दिया। अपने सुपरनैचुरल विंडिगो की पूरी फौज खड़ी कर दी। लाखों विंडिगों एक साथ महाकाश्वर पर हमला करने चल दिए। किसी भी भीड़ को साफ करना महाकाश्वर के लिए चुटकी बजाने जितना आसान था। लेकिन एडियाना के अगले दाव ने महाकाश्वर के होश ही उड़ा दिए। महाकाश्वर ने विंडिगो की भीड़ को साफ करने के लिए जितने भी मंत्र को उनपर छोड़ा, विंडिगो उन मंत्रो के काट के साथ आगे बढ़ रहे थे। महाकाश्वर को ऐसा लगा जैसे एडियाना एक साथ सभी विंडिगो में समा गई है, जो मंत्र काटते आगे बढ़ रहे। कमाल की जादूगरी जिसके बारे में महाकाश्वर को पता भी नही था। हां लेकिन वो विंडिगो से खुद की जान तो बचा ही सकता था। महाकाश्वर ने तुरंत पहना बहरूपिया चोगा और अब हैरान होने की बारी एडियाना की थी।


बहरूपिया चोगा से भेष बदलना हो या फिर किसी रूप बदल मंत्र से, लेकिन जो महाकाश्वर ने किया वह अद्भुत था। जादू से किसी का रूप तो ले सकते थे लेकिन जिसका रूप लिया हो, खुद को उसकी आत्मा से ही जोड़ लेना, यह असंभव था। और यह असंभव होते एडियाना देख रही थी। एडियाना पहले तो बहुत ही आशस्वत थी, और रूप बदलने जैसे छल पर हंस रही थी। लेकिन जैसे ही पहले विंडिगो का निशान महाकाश्वर के शरीर पर बना, ठीक वैसा ही निशान, उसी जगह पर एडियाना के शरीर पर भी बना। अगले ही पल दोनो की लड़ाई रुक गई और दोस्ती का नया दौड़ चालू हो गया।


अब इच्छाएं किसकी नही होती। ठीक वैसी ही इच्छाएं एडियाना की भी थी। उसे एक चीज की बड़ी लालसा थी... बिजली का खंजर। महाकाश्वर भी यह पहली बार सुन रहा था, लेकिन जब उसने सुना की यह खंजर किसी भी चीज को चीड़ सकती है, तब वह अचरज में पड़ गया।


थोड़े विस्तार से यदि समझा जाए तो कुछ ऐसा था.… सबसे मजबूत धातु जिसे तोड़ा न जा सकता हो, उसका एक अलमीरा बना लिया जाए। अलमीरा के दीवार की मोटाई फिर चाहे कितनी भी क्यों न हो, 20 फिट, 40 फिट... और उस अलमीरा के अंदर किसी इंसान को रखकर उसे चिड़ने कहा जाए। तब इंसान को चिड़ने के लिए अलमीरा खोलकर उस आदमी को निकालने की जरूरत नहीं, क्योंकि बिजली की यह खंजर उस पूरे अलमीरा को ऐसे चीड़ देगी जैसे किसी ब्लेड से कागज के 1 पन्ने को चीड़ दिया जाता है। अलमीरा तो एक दिखने वाला उधारहन था। लेकिन अलमीरा की जगह यदि मंत्र को रख दे, तब भी परिणाम एक से ही होंगे। कितना भी मजबूत मंत्र से बचाया क्यों न जा रहा हो, यह खंजर इंसान को मंत्र सहित चीड़ देगी।


एडियाना की दूसरी सबसे बड़ी ख्वाइश थी कि यदि कोई ऐसा विस्फोट हो, जिसमे उसके चिथरे भी उड़ जाए तो भी वह जीवित हो जाय। जबकि दोनो को ही पता था कि एक बार मरने के बाद कोई भी मंत्र शरीर में वापस प्राण नही डाल सकती। और एक नई ख्वाइश तो एडियाना को महाकाश्वर से मिलने के बाद हुई, वह था बहरूपिया चोगा।

महाकाश्वर कुछ दिन साथ रहकर एडियाना की इच्छाएं जान चुका था। और उसकी जितनी भी इच्छाएं थी, कमाल की थी। महाकाश्वर ने एडियाना से कमाल के शस्त्र, "बिजली का खंजर" के बारे पूछा, "की अब तक वह इस शस्त्र को हासिल क्यों नही कर पायि"। जवाब में यही आया की इस शस्त्र के बारे में तो पता है, लेकिन वह कहां मिलेगा पता नही। महाकाश्वर ने एडियाना से सारे सुराग लिए और बड़ी ही चतुराई से पूरी सूचना लोपचे के भटकते मुसाफिर तक पहुंचा दिया। फिर क्या था, कुछ सिद्ध पुरुष और क्षत्रिय के साथ पारीयान निकल गया खोज पर। महाकाश्वर और एडियाना को तो छिपकर बस इनका पिछा करना था।


लगभग ३ वर्ष की खोज के पश्चात लोपचे के भटकते मुसाफिर की खोज समाप्त हुई। वह खंजर यांग्त्जी नदी के तट पर मिली जो वर्तमान समय में संघाई, चीन में है। जैसे ही यह खंजर मिली, एडियाना के खुशी का ठिकाना नहीं रहा। महाकाश्वर ने अपने छल से वह खंजर तो हासिल कर लिया, लेकिन इस चक्कर में एडियाना और महाकाश्वर दोनो घायल हो गए। घायल होने के बाद तो जैसे एडियाना पागल ही हो गई थी। वह तो सबको मारने पर उतारू थी, लेकिन महाकाश्वर उसे लेकर निकल गया। लोपचे के भटकते मुसाफिर से लड़ाई करना व्यर्थ था, यह बात महाकाश्वर जनता था। बस उसे डर था कि कहीं एडियाना भ्रमित अंगूठी के बारे में जान जाती, तो उसे अपनी तीव्र इच्छाओं में न सामिल कर लेती। यदि ऐसा होता फिर तो इन दोनों की जान जानी ही थी। क्योंकि पारीयान इन दोनो (महाकाश्वर और एडियाना) के अस्त्र और शस्त्र से मरता नही, उल्टा योगी और सिद्ध पुरुष के साथ मिलकर इनके प्राण निकाल लेता।


एडियाना की दूसरी इच्छा का उपाय तो महाकाश्वर पहले से जानता था। उसे हासिल कैसे करना है वह भी जनता था। लेकिन उसे हासिल करने के लिए महाकाश्वर को अपने जैसा ही एक कुशल जादूगर चाहिए था। हिमालय के पूर्वी क्षेत्र में एक अलौकिक और दिव्य गांव बसा था। हालांकि उस गांव को तो किसी ने पहले ही पूरा ही उजाड़ दिया था, लेकिन उस गांव के गर्भ में एक पुर्नस्थापित अंगूठी थी, जो उस पूरे गांव के ढांचे की शक्ति संरचना थी। इसके विषय में खुद गांव के कुछ लोगों को ही पता था। ऊपर से इतनी सिद्धियों के साथ उसके गर्भ में स्थापित किया गया था कि २ सिद्ध जादूगर मिलकर भी कोशिश करते तो भी एक चूक दोनो की जान ले लेती।


लेकिन महाकाश्वर आश्श्वत था। इसलिए खतरों को बताए बिना वह एडियाना के साथ उस गांव में घुसा और कड़ी मेहनत के बाद दोनो पुर्नस्थापित अंगूठी को हासिल कर चुके। सबसे पहला प्रयोग तो महाकाश्वर ने खुदपर किया। एडियाना ने अपने मंत्र से महाकाश्वर के चिथरे उड़ा दिए, लेकिन अगले ही पल एक हैरतअंगेज कारनामे आंखों के सामने था। महाकाश्वर के शरीर का एक–एक कण देखते ही देखते जुड़ गया।


तीनों इच्छाओं को तो महाकाश्वर मूर्त रूप दे चुका था। अब बारी थी एक बहुत बड़े चाल कि। इसके लिए स्थान पहले से तय था, जरूरी सारे काम किए जा चुके थे। एडियाना भी पूरे झांसे में आ चुकी थी। पहले तो कुछ दिनों तक उसे आतंक मचाने के लिए छोड़ दिया गया। कुछ ही वक्त में सकल जगत को महाकाश्वर और एडियाना का नाम पता चल चुका था। हर कोई जानता था कि महाकाश्वर और एडियाना कौन सी शक्तियां हासिल कर चुके। मंत्रों से कोई भी योगी अथवा सिद्ध पुरुष संरक्षित हो नही रहे थे। उसे बिजली की खंजर का स्वाद मिल ही जाता। कितना भी दोनो को मंत्र से बेजान करने की कोशिश क्यों न करो, उनका शरीर पहले जैसा ही हो जाता। उल्टा बहरूपिया चोगा के प्रयोग से एडियाना पर प्राणघाती हमला उल्टा चलाने वाले पर भी हो जाता। एडियाना पुर्नस्थापित अंगूठी से तो बच जाती लेकिन उनके प्राण अपने ही मंत्र ले चुके होते।


एडियाना, महाकाश्वर के पूरे झांसे में आ चुकी थी और अब वक्त था आखरी खेल का। महाकाश्वर, एडियाना के साथ सतपुरा के जंगल में चला आया। थोड़े भावनात्मक पल उत्पन्न किए गए। एडियाना के हाथ को थाम नजरों से नजरें चार हुई। महाकाश्वर के बातों में छल और बातों के दौरान ही उसने एडियाना के मुंह से उगलवाया उसकी इच्छाएं, जिसे महाकाश्वर ने पूरे किये थे। एडियाना ने अपनी इच्छाएं बताकर जैसे ही स्वीकार कर ली कि उसकी सारी इच्छाएं महाकाश्वर ने पूरी कि है, ठीक उसी पल एडियाना का शरीर बेजान हो गया और उसकी सारी सिद्धियां महाकाश्वर के पास पहुंच गई। अब या तो महाकाश्वर, एडियाना को उसकी इच्छाओं के साथ दफना दे या फिर 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाओं को उस से अलग कर दे। अपनी पूरी शक्ति और साथ में जान खोने के बाद, एडियाना अपने मकबरे में दफन हो गई। और उसे दफनाने वाला महाकाश्वर ने उसके तीन इच्छाएं, पुर्नस्थापित अंगूठी, बिजली की खंजर और बेहरूपिया चोगा के साथ एडियाना को दफना दिया।


जादूगर महाकाश्वर अपने 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाएं वापिस हासिल कर लेता। लेकिन अनुष्ठान पूर्ण होने के पहले ही लोपचे का भटकता मुसाफिर जादूगर महाकाश्वर तक पहुंच चुका था। उस जगह भीषण युद्ध का आवाहन हुआ। एक लड़ाई जादूगर महाकाश्वर और योगियों के बीच। एक लड़ाई एक लाख की सैन्य की टुकड़ी के साथ अगुवाई कर रहे सुपरनैचुरल वेयरवोल्फ पारीयान और विंडिगो सुपरनेचुरल के बीच। 2 किलोमीटर के क्षेत्र को बांध दिया गया था। केवल जितने वाला ही बाहर जा सकता था और सामने महायुद्ध। बिना खाये–पिये, बिना रुके और बिना थके 4 दिनो के तक युद्ध होता रहा। 4 दिन बाद ऐडियाना के मकबरे से पुर्नस्थापित अंगूठी लेकर केवल एक शक्स बाहर निकला, वो था लोपचे का भटकता मुसाफिर।


पारीयान ने पूरे संवाद भेजे। युद्ध की हर छोटी बड़ी घटना की सूचना कबूतरों द्वारा पहुंचाई गई। एडियाना का मकबरा और वहां दफन उसकी 3 इच्छाओं का ज्ञान सबको हो चुका था। पारीयान के लौटने की खबर भी आयि लेकिन फिर दोबारा कभी किसी को पारीयान नही मिला। न ही कभी किसी को एडियाना का मकबरा मिला। न जाने कितने खोजी उन्हे मध्य भारत से लेकर हिमालय के पूर्वी जंगलों में तलासते रहे, किंतु एक निशानी तक नही मिली। खोजने वालों में एक नाम सरदार खान का भी था जिसे सबसे ज्यादा रुचि बिजली के खंजर और पुर्नस्थापित अंगूठी में थी।


किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।
भाग:–37






नागपुर शहर.... मीटिंग खत्म होने के ठीक एक दिन बाद…..


सुकेश की बुलावे पर बड़ी सी महफिल सजी हुई थी। जहां प्रहरी और आर्यमणि दोनो साथ बैठे थे। जिस गरज के साथ पलक प्रहरी सभा में बरसी थी, उसपर पुरा घर रह-रह कर गर्व महसूस कर रहा था। लेकिन बोलने के बाद अब करने का वक्त था और जरूरी था पलक खुद को साबित करके दिखाये। पलक की अगुवाई में चल रही रीछ स्त्री की खोज भी पूरी हो चुकी थी, और उसे धर–दबोचने की तैयारी में यह सभा रखी गयि थी।


सुकेश:– बहुत ज्यादा वक्त न लेते हुये मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं। वाकी वुड्स में क्या हुआ था इस बात से सभी भली भांति परिचित होंगे। पलक जब विशेष जीव साखा की अध्यक्ष बनी, तभी उसने मुझे रीछ स्त्री को दूंढने का काम सौंपा। मैने इस काम में अपने कुछ खास सहयोगियों को लगाया था और अब हमारे पास रीछ स्त्री की पक्की खबर है...


पूरी सभा लगभग एक साथ... "कहां है वह अभी"…


सुकेश:– खबरों की माने तो वह रीछ स्त्री सतपुरा के घने जंगलों के बीच, वहां स्थित पर्वत श्रृंखला के एक मांद में छिपी है। आसपास के लगभग 5 किलोमीटर का दायरा उसका विचरण क्षेत्र है, जिसके अंदर कोई नही जा सकता।


भूमि:– कोई नही जा सकता, यह कैसे पता चला? क्या अंदर घुसने की कोशिश में किसी पर हमला हुआ या जान से मार दिया गया?


सुकेश:– पूरी जानकारी तो मुझे भी नही। खबरियों द्वारा जो खबर मिली उसे बता रहा हूं। जबतक वहां छानबीन के लिये नही जायेंगे, पूरी बात पता नही चल सकती। हां पर खबर पक्की है कि रीछ स्त्री वहीं है।


भूमि:– हां तो देर किस बात की है। हम कुछ टुकड़ी के साथ चलते हैं और उस रीछ स्त्री को पकड़ कर ले आते हैं।


पलक:– भूमि दीदी जाने से पहले थोड़ा यह जान ले की हम किसके पीछे जा रहे। यह कोई साधारण सुपरनेचुरल नही बल्कि काफी खरनाक और दीर्घायु सुपरनैचुरल है। सोचो कितना उत्पात मचाया होगा, जो इसे विष मोक्ष श्राप से बंधा गया था। इसका दूसरा मतलब यह भी निकलता है कि उस दौड़ में विकृत रीछ स्त्री को मार नही पाये होंगे इसलिए मजबूरी में कैद करना पड़ गया होगा।


भूमि:– ठीक है तुम इंचार्ज हो, तुम्ही फैसला करो...


पलक:– पैट्रिक और रिचा की टीम तेजस दादा के नेतृत्व में काम करेगी। सुकेश काका, बंगाल की मशहूर जादूगरनी ताड़का और उसके कुछ चेलों के साथ अपनी एक टुकड़ी लेकर जायेंगे। आर्यमणि के अल्फा पैक के साथ मैं एक टुकड़ी लेकर जाऊंगी। आज शाम ही हम सब सतपुरा जंगल के लिये निकलेंगे। हम सबसे पहले सतपुरा के पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचेंगे और वहां से अलग–अलग दिशाओं से जांच करते हुये, ठीक 7 दिन बाद, चंद्र ग्रहण से ठीक एक दिन पूर्व, रीछ स्त्री के उस 5 किलोमीटर वाले दायरे के पास एकत्रित होंगे। वहां हम पूरी रणनीति बनायेंगे और चंद्र ग्रहण की रात उस रीछ स्त्री को बांधकर नागपुर प्रहरी कार्यालय में कैद करेंगे।


भूमि:– मेरी नेतृत्व वाली सभी टुकड़ी को ले जा रहे और मुझे ही अगुवाई का मौका नहीं मिल रहा...


पलक:– दीदी आप यहां आराम करें और आपकी टुकड़ी में जो बेहतरीन शिकारी है उसे भी ऊपर आने का मौका दें।


भूमि, पलक के इस जवाब पर केवल मुस्कुरा कर अपनी प्रतिक्रिया दी। सभा में सभी फैसले लेने के बाद सभा स्थगित हो गया और सब शाम में निकलने की तैयारी करने लगे। तैयारी में तो आर्यमणि भी लग गया। जहां एक ओर लोगों को शिकारी होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था, वहीं आर्यमणि और निशांत २ ऐसे नाम थे जो पैदा ही शिकारियों के गुण के साथ हुये थे। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण तो लोपचे का खंडहर था, जहां कई माहिर शिकारी को दोनो चकमा देकर सुहोत्र को ले उड़े। आर्यमणि भला जंगल के इस मिशन में निशांत को साथ क्यों नही लेता। बाकी सब अपनी रणनीति में और दोनो दोस्त अपनी...


निशांत:– मजा आयेगा आर्य, लेकिन ये तो बता की हमे वहां करना क्या होगा?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नही। शायद जंगल के अंदर कुछ छानबीन और उस विकृत रीछ स्त्री को पकड़े कैसे?



निशांत, थोड़ा आश्चर्य में... "यानी जिसे पकड़ने जा रहे उसके विषय में कोई ज्ञान नहीं?"


आर्यमणि:– इतना चौंक क्यों रहा है?


निशांत:– यार ये तो आत्महत्या करने जैसा है। इतिहास के सबसे शक्तिशाली मानव प्रजाति जो हजारों वर्ष तक जिंदा रह सकते थे। जिनके शक्तियों का विस्तृत उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक है। जिसका एक योद्धा जम्बत जी का उल्लेख सतयुग से लेकर द्वापरयुग तक मिलता है। और यदि इस रीछ स्त्री की बात करे तो वह गवाह होगी द्वापर युग की। जो स्त्री महाभारत के समकालीन है और कलयुग में आज तक जिंदा है। उसे बस ऐसे हवा–हवाई रणनीति से पकड़ने जा रहे। उसे पकड़ने भी जा रहे हो या उसके पैरों में गिड़कर उसका चेला बनना है? क्योंकि ऐसी रणनीति का तो यही निष्कर्ष निकलता है कि किसी तरह पता करो की वह शक्तिशाली रीछ स्त्री कहां है ताकि उसके पैरों में गिरकर उसे अपने ओर मिला ले और अपनी भी मनचाही मनोकामना पूर्ण हो जाए...


आर्यमणि:– तो क्या करे, न जाएं...


निशांत:– हम जायेंगे लेकिन इन फालतू प्रहरी के भरोसे नहीं जायेंगे... हमे अपने जंगल (गंगटोक के जंगल) के बारे में पता था कि वहां हमारा सामना किस जानवर और किन–किन विषम परिस्थितियों से हो सकता था। इसलिए संकट कितना भी अचानक क्यों न आये हमे समस्या नहीं होती। हम यहां भी ठीक वैसा ही करेंगे...


आर्यमणि:– हम्मम.. ठीक है हम खरीदारी करते हुये डिस्कस कर लेंगे, लेकिन सबसे पहले मैं तुम्हे कुछ दिखाना चाहता हूं...


इतना कहकर आर्यमणि अपने कमरे का दरवाजा बंद किया। बिस्तर के नीचे पड़ा अपना बैग निकाला। यह लाइफ सपोर्टिंग बैग था। ऐसा ही एक बैग निशांत के पास भी हमेशा रहता है। आर्यमणि उसके अंदर से सभी समान बाहर निकलने के बाद आखरी में सबसे नीचे से एक पोटली निकाला... पोटली को देखते ही निशांत की आंखें बड़ी हो गई... "लोपचे का भटकता मुसाफिर। आर्य, इसे साथ लेकर घूम रहे"…


आर्यमणि:– ऐडियाना का मकबरा कहां है...


निशांत:– मध्य भारत के जंगल में..


आर्यमणि:– मैप में देखकर बताओ की मध्य भारत का जंगल कहां है?


निशांत:– बताना क्या है... वही सतपुरा का जंगल.. लेकिन तुम दोनो बातों में क्या समानता ढूंढ रहे हो?..


आर्यमणि:– लोपचे के भटकते मुसाफिर की माने तो एडियाना के मकबरे में 3 चीजों का उल्लेख है, जो हर किसी को पता है... पुर्नस्थापित अंगूठी (restoring ring), बिजली की खंजर और...


निशांत उसे बीच में ही रोकते.… "और बहरूपिया चोगा... यानी वो रीछ स्त्री मध्य भारत के जंगल में इन्हे ही ढूंढने निकली है।"..


आर्यमणि:– दोनो ही बातें है, हो भी सकता है और नही भी। रीछ स्त्री अपने कैद से बाहर निकलने के बाद जो भी अपना लक्ष्य रखे, उसके लिए सबसे पहले उसे खुद के अंदर क्षमता विकसित करनी होगी। जिसके लिए उसे कम से कम 500–600 दिन तो चाहिए। यदि उसे ये सब जल्दी निपटाना हो तब...


निशांत:– तब तो उसे कोई जादू ही चाहिए। और ऐसा ही एक जादू वहां के जंगल में भी है... पुर्नस्थापित अंगूठी... हाहाहाहाहा..


आर्यमणि:– हाहाहाहाहा.. और उस गधी को पता नही होगा की वहां तो लोपचे के भटकते मुसाफिर ने लोचा कर दिया था...


लोपचे के भटकते मुसाफिर यानी की पारीयन लोपचे, सुपरनैचुरल के बीच काफी प्रसिद्ध नाम है। इसे खोजी वुल्फ भी कहा जाता है। पहला ऐसा लोन वुल्फ, जो अपनी मर्जी से ओमेगा था। कई साधु, संत, महात्मा, और न जाने कितने ही दैत्य दानव से वह मिला था। उस दौड़ के योगियों का चहेता था और किसी भी प्रकार के खोज में, खोजी टुकड़ी के अगुवाई पारीयान लोपचे ही करता था। उसके इसी गुण के कारण से पारीयान लोपचे को लोपचे का भटकता मुसाफिर कहा जाता था। अपने खोज के क्रम में वह साधु, योगियों और आचार्य का इतना चहेता हो चुका था कि गुरुओं ने उसे सिद्ध की हुई भ्रमित अंगूठी (illiusion ring) दिया था।


सुनने में भले ही यह जादू कला की छोटी सी वस्तु लगे लेकिन यह वस्तु उस चींटी के भांति थी, जो किसी हांथी के सूंड़ में घुसकर उसे धाराशाही कर सकती थी। कहने का अर्थ है, बड़े से बड़ा दैत्य, काला जादूगर, शिकारी, वीर, फौज की बड़ी टुकड़ी, कोई भी हो.… उन्हे किसी को मारने के लिए सबसे जरूरी क्या होता है, उसका लक्ष्य। सामने लक्ष्य दिखेगा तभी उसको भेद सकते हैं। यह भ्रमित अंगूठी लक्ष्य को ही भटका देती थी। यदि सामने दिख रहे पारीयान पर कोई तीर चलता तो पता चलता की वह तीर जैसे किसी होलोग्राफिक इमेज पर चली। कोई काला जादूगर यदि उसके बाल को लेकर, किसी छोटे से प्रतिमा में डालकर, उसका जादुई स्वरूप तैयार करके मारने की कोशिश करता, तब पता चलता की यह काला जादू भी बेअसर। क्योंकि भ्रमित अंगूठी पारीयान के अस्तित्व तक को भ्रमित कर देती थी।


उसी दौड़ में कुख्यात जादूगर महाकाश्वर और एडियाना की जोड़ी काफी प्रचलित हुई थी। इन्होंने अपने तंत्र–मंत्र और शातिर दिमाग से सबको परेशान कर रखा था। लेकिन कहते हैं ना आस्तीन का सांप सबसे पहले अपने को ही डस्ता है। जादूगर महाकाश्वर ने भी एडियाना के साथ वही किया। पहले छला... फिर उसकी ताकत हासिल की और एडियाना की ताकत हासिल करने के बाद, उसकी तीन इच्छाओं के साथ उसके मकबरे में दफन कर दिया। ये वही तीन इच्छा थी जिसके छलावे में एडियाना फंसी थी। एडियाना बर्फीले रेगिस्तान (रूस के बर्फीला इलाका) की खौफनाक शैतान कही जाती थी, जो अपने लाखों सेवक विंडीगो सुपरनेचुरल के साथ राज करती थी। ऐडियाना एक कुशल जादूगर तो थी लेकिन मध्य भारत के जादूगर महाकाश्वर की उतनी ही बड़ी प्रशंसक भी।


अभी के वक्त में जो तात्कालिक मंगोलिया है, उस जगह पर जादूगर की एक सभा लगी थी। उसी सभा मे महाकाश्वर की मुलाकात एडियाना से हुई थी। यूं तो जादूगरों की यह सभा साथ मिलकर काम करने के लिए बुलाई गई थी, लेकिन जहां एक ओर एडियाना अपनी बहन तायफा से मिलने पहुंची थी। वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसी तायफ़ा को मारने पहुंचा था। जीन–जिन को भ्रम था कि वह दिग्गज जादूगर है, वह सभी २ पाटन के बीच में पिस गए। एक ओर एडियाना अपनी बहन को बचा रही थी, वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसे मारने का प्रयास कर रहा था।


जादूगरों का गुट २ विभाग में विभाजित हो गया, जहां मेजोरिटी लेडीज के पास ही थी। लेकिन महाकाश्वर के लिए तो भाड़ में गए सब और ठीक वैसा ही हाल एडियाना का भी था। दोनो लगातार लड़ते रहे। उस लड़ाई में वहां मौजूद सभी जादूगर मारे गए फिर भी लड़ते रहे। जिसके लिए लड़ाई शुरू हुई, तायफा, वो भी कब की मर गई। लेकिन इनका लड़ाई जारी रहा। एडियाना बर्फ की रानी थी, तो महाकाश्वर आग का राजा। एडियाना भंवर बनाती तो महाकाश्वर पहाड़ बन जाता। कांटे की टक्कर थी। मंत्र से मंत्र भीड़ रहे थे और आपसी टकराव से वहां के चारो ओर विस्फोट हो रहा था, लेकिन दोनो पर कोई असर नहीं हो रहा था।


एडियाना ने फिर एक लंबा दाव खेल दिया। अपने सुपरनैचुरल विंडिगो की पूरी फौज खड़ी कर दी। लाखों विंडिगों एक साथ महाकाश्वर पर हमला करने चल दिए। किसी भी भीड़ को साफ करना महाकाश्वर के लिए चुटकी बजाने जितना आसान था। लेकिन एडियाना के अगले दाव ने महाकाश्वर के होश ही उड़ा दिए। महाकाश्वर ने विंडिगो की भीड़ को साफ करने के लिए जितने भी मंत्र को उनपर छोड़ा, विंडिगो उन मंत्रो के काट के साथ आगे बढ़ रहे थे। महाकाश्वर को ऐसा लगा जैसे एडियाना एक साथ सभी विंडिगो में समा गई है, जो मंत्र काटते आगे बढ़ रहे। कमाल की जादूगरी जिसके बारे में महाकाश्वर को पता भी नही था। हां लेकिन वो विंडिगो से खुद की जान तो बचा ही सकता था। महाकाश्वर ने तुरंत पहना बहरूपिया चोगा और अब हैरान होने की बारी एडियाना की थी।


बहरूपिया चोगा से भेष बदलना हो या फिर किसी रूप बदल मंत्र से, लेकिन जो महाकाश्वर ने किया वह अद्भुत था। जादू से किसी का रूप तो ले सकते थे लेकिन जिसका रूप लिया हो, खुद को उसकी आत्मा से ही जोड़ लेना, यह असंभव था। और यह असंभव होते एडियाना देख रही थी। एडियाना पहले तो बहुत ही आशस्वत थी, और रूप बदलने जैसे छल पर हंस रही थी। लेकिन जैसे ही पहले विंडिगो का निशान महाकाश्वर के शरीर पर बना, ठीक वैसा ही निशान, उसी जगह पर एडियाना के शरीर पर भी बना। अगले ही पल दोनो की लड़ाई रुक गई और दोस्ती का नया दौड़ चालू हो गया।


अब इच्छाएं किसकी नही होती। ठीक वैसी ही इच्छाएं एडियाना की भी थी। उसे एक चीज की बड़ी लालसा थी... बिजली का खंजर। महाकाश्वर भी यह पहली बार सुन रहा था, लेकिन जब उसने सुना की यह खंजर किसी भी चीज को चीड़ सकती है, तब वह अचरज में पड़ गया।


थोड़े विस्तार से यदि समझा जाए तो कुछ ऐसा था.… सबसे मजबूत धातु जिसे तोड़ा न जा सकता हो, उसका एक अलमीरा बना लिया जाए। अलमीरा के दीवार की मोटाई फिर चाहे कितनी भी क्यों न हो, 20 फिट, 40 फिट... और उस अलमीरा के अंदर किसी इंसान को रखकर उसे चिड़ने कहा जाए। तब इंसान को चिड़ने के लिए अलमीरा खोलकर उस आदमी को निकालने की जरूरत नहीं, क्योंकि बिजली की यह खंजर उस पूरे अलमीरा को ऐसे चीड़ देगी जैसे किसी ब्लेड से कागज के 1 पन्ने को चीड़ दिया जाता है। अलमीरा तो एक दिखने वाला उधारहन था। लेकिन अलमीरा की जगह यदि मंत्र को रख दे, तब भी परिणाम एक से ही होंगे। कितना भी मजबूत मंत्र से बचाया क्यों न जा रहा हो, यह खंजर इंसान को मंत्र सहित चीड़ देगी।


एडियाना की दूसरी सबसे बड़ी ख्वाइश थी कि यदि कोई ऐसा विस्फोट हो, जिसमे उसके चिथरे भी उड़ जाए तो भी वह जीवित हो जाय। जबकि दोनो को ही पता था कि एक बार मरने के बाद कोई भी मंत्र शरीर में वापस प्राण नही डाल सकती। और एक नई ख्वाइश तो एडियाना को महाकाश्वर से मिलने के बाद हुई, वह था बहरूपिया चोगा।

महाकाश्वर कुछ दिन साथ रहकर एडियाना की इच्छाएं जान चुका था। और उसकी जितनी भी इच्छाएं थी, कमाल की थी। महाकाश्वर ने एडियाना से कमाल के शस्त्र, "बिजली का खंजर" के बारे पूछा, "की अब तक वह इस शस्त्र को हासिल क्यों नही कर पायि"। जवाब में यही आया की इस शस्त्र के बारे में तो पता है, लेकिन वह कहां मिलेगा पता नही। महाकाश्वर ने एडियाना से सारे सुराग लिए और बड़ी ही चतुराई से पूरी सूचना लोपचे के भटकते मुसाफिर तक पहुंचा दिया। फिर क्या था, कुछ सिद्ध पुरुष और क्षत्रिय के साथ पारीयान निकल गया खोज पर। महाकाश्वर और एडियाना को तो छिपकर बस इनका पिछा करना था।


लगभग ३ वर्ष की खोज के पश्चात लोपचे के भटकते मुसाफिर की खोज समाप्त हुई। वह खंजर यांग्त्जी नदी के तट पर मिली जो वर्तमान समय में संघाई, चीन में है। जैसे ही यह खंजर मिली, एडियाना के खुशी का ठिकाना नहीं रहा। महाकाश्वर ने अपने छल से वह खंजर तो हासिल कर लिया, लेकिन इस चक्कर में एडियाना और महाकाश्वर दोनो घायल हो गए। घायल होने के बाद तो जैसे एडियाना पागल ही हो गई थी। वह तो सबको मारने पर उतारू थी, लेकिन महाकाश्वर उसे लेकर निकल गया। लोपचे के भटकते मुसाफिर से लड़ाई करना व्यर्थ था, यह बात महाकाश्वर जनता था। बस उसे डर था कि कहीं एडियाना भ्रमित अंगूठी के बारे में जान जाती, तो उसे अपनी तीव्र इच्छाओं में न सामिल कर लेती। यदि ऐसा होता फिर तो इन दोनों की जान जानी ही थी। क्योंकि पारीयान इन दोनो (महाकाश्वर और एडियाना) के अस्त्र और शस्त्र से मरता नही, उल्टा योगी और सिद्ध पुरुष के साथ मिलकर इनके प्राण निकाल लेता।


एडियाना की दूसरी इच्छा का उपाय तो महाकाश्वर पहले से जानता था। उसे हासिल कैसे करना है वह भी जनता था। लेकिन उसे हासिल करने के लिए महाकाश्वर को अपने जैसा ही एक कुशल जादूगर चाहिए था। हिमालय के पूर्वी क्षेत्र में एक अलौकिक और दिव्य गांव बसा था। हालांकि उस गांव को तो किसी ने पहले ही पूरा ही उजाड़ दिया था, लेकिन उस गांव के गर्भ में एक पुर्नस्थापित अंगूठी थी, जो उस पूरे गांव के ढांचे की शक्ति संरचना थी। इसके विषय में खुद गांव के कुछ लोगों को ही पता था। ऊपर से इतनी सिद्धियों के साथ उसके गर्भ में स्थापित किया गया था कि २ सिद्ध जादूगर मिलकर भी कोशिश करते तो भी एक चूक दोनो की जान ले लेती।


लेकिन महाकाश्वर आश्श्वत था। इसलिए खतरों को बताए बिना वह एडियाना के साथ उस गांव में घुसा और कड़ी मेहनत के बाद दोनो पुर्नस्थापित अंगूठी को हासिल कर चुके। सबसे पहला प्रयोग तो महाकाश्वर ने खुदपर किया। एडियाना ने अपने मंत्र से महाकाश्वर के चिथरे उड़ा दिए, लेकिन अगले ही पल एक हैरतअंगेज कारनामे आंखों के सामने था। महाकाश्वर के शरीर का एक–एक कण देखते ही देखते जुड़ गया।


तीनों इच्छाओं को तो महाकाश्वर मूर्त रूप दे चुका था। अब बारी थी एक बहुत बड़े चाल कि। इसके लिए स्थान पहले से तय था, जरूरी सारे काम किए जा चुके थे। एडियाना भी पूरे झांसे में आ चुकी थी। पहले तो कुछ दिनों तक उसे आतंक मचाने के लिए छोड़ दिया गया। कुछ ही वक्त में सकल जगत को महाकाश्वर और एडियाना का नाम पता चल चुका था। हर कोई जानता था कि महाकाश्वर और एडियाना कौन सी शक्तियां हासिल कर चुके। मंत्रों से कोई भी योगी अथवा सिद्ध पुरुष संरक्षित हो नही रहे थे। उसे बिजली की खंजर का स्वाद मिल ही जाता। कितना भी दोनो को मंत्र से बेजान करने की कोशिश क्यों न करो, उनका शरीर पहले जैसा ही हो जाता। उल्टा बहरूपिया चोगा के प्रयोग से एडियाना पर प्राणघाती हमला उल्टा चलाने वाले पर भी हो जाता। एडियाना पुर्नस्थापित अंगूठी से तो बच जाती लेकिन उनके प्राण अपने ही मंत्र ले चुके होते।


एडियाना, महाकाश्वर के पूरे झांसे में आ चुकी थी और अब वक्त था आखरी खेल का। महाकाश्वर, एडियाना के साथ सतपुरा के जंगल में चला आया। थोड़े भावनात्मक पल उत्पन्न किए गए। एडियाना के हाथ को थाम नजरों से नजरें चार हुई। महाकाश्वर के बातों में छल और बातों के दौरान ही उसने एडियाना के मुंह से उगलवाया उसकी इच्छाएं, जिसे महाकाश्वर ने पूरे किये थे। एडियाना ने अपनी इच्छाएं बताकर जैसे ही स्वीकार कर ली कि उसकी सारी इच्छाएं महाकाश्वर ने पूरी कि है, ठीक उसी पल एडियाना का शरीर बेजान हो गया और उसकी सारी सिद्धियां महाकाश्वर के पास पहुंच गई। अब या तो महाकाश्वर, एडियाना को उसकी इच्छाओं के साथ दफना दे या फिर 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाओं को उस से अलग कर दे। अपनी पूरी शक्ति और साथ में जान खोने के बाद, एडियाना अपने मकबरे में दफन हो गई। और उसे दफनाने वाला महाकाश्वर ने उसके तीन इच्छाएं, पुर्नस्थापित अंगूठी, बिजली की खंजर और बेहरूपिया चोगा के साथ एडियाना को दफना दिया।


जादूगर महाकाश्वर अपने 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाएं वापिस हासिल कर लेता। लेकिन अनुष्ठान पूर्ण होने के पहले ही लोपचे का भटकता मुसाफिर जादूगर महाकाश्वर तक पहुंच चुका था। उस जगह भीषण युद्ध का आवाहन हुआ। एक लड़ाई जादूगर महाकाश्वर और योगियों के बीच। एक लड़ाई एक लाख की सैन्य की टुकड़ी के साथ अगुवाई कर रहे सुपरनैचुरल वेयरवोल्फ पारीयान और विंडिगो सुपरनेचुरल के बीच। 2 किलोमीटर के क्षेत्र को बांध दिया गया था। केवल जितने वाला ही बाहर जा सकता था और सामने महायुद्ध। बिना खाये–पिये, बिना रुके और बिना थके 4 दिनो के तक युद्ध होता रहा। 4 दिन बाद ऐडियाना के मकबरे से पुर्नस्थापित अंगूठी लेकर केवल एक शक्स बाहर निकला, वो था लोपचे का भटकता मुसाफिर।


पारीयान ने पूरे संवाद भेजे। युद्ध की हर छोटी बड़ी घटना की सूचना कबूतरों द्वारा पहुंचाई गई। एडियाना का मकबरा और वहां दफन उसकी 3 इच्छाओं का ज्ञान सबको हो चुका था। पारीयान के लौटने की खबर भी आयि लेकिन फिर दोबारा कभी किसी को पारीयान नही मिला। न ही कभी किसी को एडियाना का मकबरा मिला। न जाने कितने खोजी उन्हे मध्य भारत से लेकर हिमालय के पूर्वी जंगलों में तलासते रहे, किंतु एक निशानी तक नही मिली। खोजने वालों में एक नाम सरदार खान का भी था जिसे सबसे ज्यादा रुचि बिजली के खंजर और पुर्नस्थापित अंगूठी में थी।


किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।
प्रणाम मित्र

अबतक के हर अनुच्छेद में कुछ मिला हैं तो वो हैं बेहतरीन रोमांच
हृदय बहुत ही व्याकुल है अगले अनुच्छेद मैं क्या होगा
अद्भुत लेखन मित्र 🙏
 

Rudransh120

The Destroyer
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भाग:–37






नागपुर शहर.... मीटिंग खत्म होने के ठीक एक दिन बाद…..


सुकेश की बुलावे पर बड़ी सी महफिल सजी हुई थी। जहां प्रहरी और आर्यमणि दोनो साथ बैठे थे। जिस गरज के साथ पलक प्रहरी सभा में बरसी थी, उसपर पुरा घर रह-रह कर गर्व महसूस कर रहा था। लेकिन बोलने के बाद अब करने का वक्त था और जरूरी था पलक खुद को साबित करके दिखाये। पलक की अगुवाई में चल रही रीछ स्त्री की खोज भी पूरी हो चुकी थी, और उसे धर–दबोचने की तैयारी में यह सभा रखी गयि थी।


सुकेश:– बहुत ज्यादा वक्त न लेते हुये मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं। वाकी वुड्स में क्या हुआ था इस बात से सभी भली भांति परिचित होंगे। पलक जब विशेष जीव साखा की अध्यक्ष बनी, तभी उसने मुझे रीछ स्त्री को दूंढने का काम सौंपा। मैने इस काम में अपने कुछ खास सहयोगियों को लगाया था और अब हमारे पास रीछ स्त्री की पक्की खबर है...


पूरी सभा लगभग एक साथ... "कहां है वह अभी"…


सुकेश:– खबरों की माने तो वह रीछ स्त्री सतपुरा के घने जंगलों के बीच, वहां स्थित पर्वत श्रृंखला के एक मांद में छिपी है। आसपास के लगभग 5 किलोमीटर का दायरा उसका विचरण क्षेत्र है, जिसके अंदर कोई नही जा सकता।


भूमि:– कोई नही जा सकता, यह कैसे पता चला? क्या अंदर घुसने की कोशिश में किसी पर हमला हुआ या जान से मार दिया गया?


सुकेश:– पूरी जानकारी तो मुझे भी नही। खबरियों द्वारा जो खबर मिली उसे बता रहा हूं। जबतक वहां छानबीन के लिये नही जायेंगे, पूरी बात पता नही चल सकती। हां पर खबर पक्की है कि रीछ स्त्री वहीं है।


भूमि:– हां तो देर किस बात की है। हम कुछ टुकड़ी के साथ चलते हैं और उस रीछ स्त्री को पकड़ कर ले आते हैं।


पलक:– भूमि दीदी जाने से पहले थोड़ा यह जान ले की हम किसके पीछे जा रहे। यह कोई साधारण सुपरनेचुरल नही बल्कि काफी खरनाक और दीर्घायु सुपरनैचुरल है। सोचो कितना उत्पात मचाया होगा, जो इसे विष मोक्ष श्राप से बंधा गया था। इसका दूसरा मतलब यह भी निकलता है कि उस दौड़ में विकृत रीछ स्त्री को मार नही पाये होंगे इसलिए मजबूरी में कैद करना पड़ गया होगा।


भूमि:– ठीक है तुम इंचार्ज हो, तुम्ही फैसला करो...


पलक:– पैट्रिक और रिचा की टीम तेजस दादा के नेतृत्व में काम करेगी। सुकेश काका, बंगाल की मशहूर जादूगरनी ताड़का और उसके कुछ चेलों के साथ अपनी एक टुकड़ी लेकर जायेंगे। आर्यमणि के अल्फा पैक के साथ मैं एक टुकड़ी लेकर जाऊंगी। आज शाम ही हम सब सतपुरा जंगल के लिये निकलेंगे। हम सबसे पहले सतपुरा के पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचेंगे और वहां से अलग–अलग दिशाओं से जांच करते हुये, ठीक 7 दिन बाद, चंद्र ग्रहण से ठीक एक दिन पूर्व, रीछ स्त्री के उस 5 किलोमीटर वाले दायरे के पास एकत्रित होंगे। वहां हम पूरी रणनीति बनायेंगे और चंद्र ग्रहण की रात उस रीछ स्त्री को बांधकर नागपुर प्रहरी कार्यालय में कैद करेंगे।


भूमि:– मेरी नेतृत्व वाली सभी टुकड़ी को ले जा रहे और मुझे ही अगुवाई का मौका नहीं मिल रहा...


पलक:– दीदी आप यहां आराम करें और आपकी टुकड़ी में जो बेहतरीन शिकारी है उसे भी ऊपर आने का मौका दें।


भूमि, पलक के इस जवाब पर केवल मुस्कुरा कर अपनी प्रतिक्रिया दी। सभा में सभी फैसले लेने के बाद सभा स्थगित हो गया और सब शाम में निकलने की तैयारी करने लगे। तैयारी में तो आर्यमणि भी लग गया। जहां एक ओर लोगों को शिकारी होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था, वहीं आर्यमणि और निशांत २ ऐसे नाम थे जो पैदा ही शिकारियों के गुण के साथ हुये थे। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण तो लोपचे का खंडहर था, जहां कई माहिर शिकारी को दोनो चकमा देकर सुहोत्र को ले उड़े। आर्यमणि भला जंगल के इस मिशन में निशांत को साथ क्यों नही लेता। बाकी सब अपनी रणनीति में और दोनो दोस्त अपनी...


निशांत:– मजा आयेगा आर्य, लेकिन ये तो बता की हमे वहां करना क्या होगा?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नही। शायद जंगल के अंदर कुछ छानबीन और उस विकृत रीछ स्त्री को पकड़े कैसे?



निशांत, थोड़ा आश्चर्य में... "यानी जिसे पकड़ने जा रहे उसके विषय में कोई ज्ञान नहीं?"


आर्यमणि:– इतना चौंक क्यों रहा है?


निशांत:– यार ये तो आत्महत्या करने जैसा है। इतिहास के सबसे शक्तिशाली मानव प्रजाति जो हजारों वर्ष तक जिंदा रह सकते थे। जिनके शक्तियों का विस्तृत उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक है। जिसका एक योद्धा जम्बत जी का उल्लेख सतयुग से लेकर द्वापरयुग तक मिलता है। और यदि इस रीछ स्त्री की बात करे तो वह गवाह होगी द्वापर युग की। जो स्त्री महाभारत के समकालीन है और कलयुग में आज तक जिंदा है। उसे बस ऐसे हवा–हवाई रणनीति से पकड़ने जा रहे। उसे पकड़ने भी जा रहे हो या उसके पैरों में गिड़कर उसका चेला बनना है? क्योंकि ऐसी रणनीति का तो यही निष्कर्ष निकलता है कि किसी तरह पता करो की वह शक्तिशाली रीछ स्त्री कहां है ताकि उसके पैरों में गिरकर उसे अपने ओर मिला ले और अपनी भी मनचाही मनोकामना पूर्ण हो जाए...


आर्यमणि:– तो क्या करे, न जाएं...


निशांत:– हम जायेंगे लेकिन इन फालतू प्रहरी के भरोसे नहीं जायेंगे... हमे अपने जंगल (गंगटोक के जंगल) के बारे में पता था कि वहां हमारा सामना किस जानवर और किन–किन विषम परिस्थितियों से हो सकता था। इसलिए संकट कितना भी अचानक क्यों न आये हमे समस्या नहीं होती। हम यहां भी ठीक वैसा ही करेंगे...


आर्यमणि:– हम्मम.. ठीक है हम खरीदारी करते हुये डिस्कस कर लेंगे, लेकिन सबसे पहले मैं तुम्हे कुछ दिखाना चाहता हूं...


इतना कहकर आर्यमणि अपने कमरे का दरवाजा बंद किया। बिस्तर के नीचे पड़ा अपना बैग निकाला। यह लाइफ सपोर्टिंग बैग था। ऐसा ही एक बैग निशांत के पास भी हमेशा रहता है। आर्यमणि उसके अंदर से सभी समान बाहर निकलने के बाद आखरी में सबसे नीचे से एक पोटली निकाला... पोटली को देखते ही निशांत की आंखें बड़ी हो गई... "लोपचे का भटकता मुसाफिर। आर्य, इसे साथ लेकर घूम रहे"…


आर्यमणि:– ऐडियाना का मकबरा कहां है...


निशांत:– मध्य भारत के जंगल में..


आर्यमणि:– मैप में देखकर बताओ की मध्य भारत का जंगल कहां है?


निशांत:– बताना क्या है... वही सतपुरा का जंगल.. लेकिन तुम दोनो बातों में क्या समानता ढूंढ रहे हो?..


आर्यमणि:– लोपचे के भटकते मुसाफिर की माने तो एडियाना के मकबरे में 3 चीजों का उल्लेख है, जो हर किसी को पता है... पुर्नस्थापित अंगूठी (restoring ring), बिजली की खंजर और...


निशांत उसे बीच में ही रोकते.… "और बहरूपिया चोगा... यानी वो रीछ स्त्री मध्य भारत के जंगल में इन्हे ही ढूंढने निकली है।"..


आर्यमणि:– दोनो ही बातें है, हो भी सकता है और नही भी। रीछ स्त्री अपने कैद से बाहर निकलने के बाद जो भी अपना लक्ष्य रखे, उसके लिए सबसे पहले उसे खुद के अंदर क्षमता विकसित करनी होगी। जिसके लिए उसे कम से कम 500–600 दिन तो चाहिए। यदि उसे ये सब जल्दी निपटाना हो तब...


निशांत:– तब तो उसे कोई जादू ही चाहिए। और ऐसा ही एक जादू वहां के जंगल में भी है... पुर्नस्थापित अंगूठी... हाहाहाहाहा..


आर्यमणि:– हाहाहाहाहा.. और उस गधी को पता नही होगा की वहां तो लोपचे के भटकते मुसाफिर ने लोचा कर दिया था...


लोपचे के भटकते मुसाफिर यानी की पारीयन लोपचे, सुपरनैचुरल के बीच काफी प्रसिद्ध नाम है। इसे खोजी वुल्फ भी कहा जाता है। पहला ऐसा लोन वुल्फ, जो अपनी मर्जी से ओमेगा था। कई साधु, संत, महात्मा, और न जाने कितने ही दैत्य दानव से वह मिला था। उस दौड़ के योगियों का चहेता था और किसी भी प्रकार के खोज में, खोजी टुकड़ी के अगुवाई पारीयान लोपचे ही करता था। उसके इसी गुण के कारण से पारीयान लोपचे को लोपचे का भटकता मुसाफिर कहा जाता था। अपने खोज के क्रम में वह साधु, योगियों और आचार्य का इतना चहेता हो चुका था कि गुरुओं ने उसे सिद्ध की हुई भ्रमित अंगूठी (illiusion ring) दिया था।


सुनने में भले ही यह जादू कला की छोटी सी वस्तु लगे लेकिन यह वस्तु उस चींटी के भांति थी, जो किसी हांथी के सूंड़ में घुसकर उसे धाराशाही कर सकती थी। कहने का अर्थ है, बड़े से बड़ा दैत्य, काला जादूगर, शिकारी, वीर, फौज की बड़ी टुकड़ी, कोई भी हो.… उन्हे किसी को मारने के लिए सबसे जरूरी क्या होता है, उसका लक्ष्य। सामने लक्ष्य दिखेगा तभी उसको भेद सकते हैं। यह भ्रमित अंगूठी लक्ष्य को ही भटका देती थी। यदि सामने दिख रहे पारीयान पर कोई तीर चलता तो पता चलता की वह तीर जैसे किसी होलोग्राफिक इमेज पर चली। कोई काला जादूगर यदि उसके बाल को लेकर, किसी छोटे से प्रतिमा में डालकर, उसका जादुई स्वरूप तैयार करके मारने की कोशिश करता, तब पता चलता की यह काला जादू भी बेअसर। क्योंकि भ्रमित अंगूठी पारीयान के अस्तित्व तक को भ्रमित कर देती थी।


उसी दौड़ में कुख्यात जादूगर महाकाश्वर और एडियाना की जोड़ी काफी प्रचलित हुई थी। इन्होंने अपने तंत्र–मंत्र और शातिर दिमाग से सबको परेशान कर रखा था। लेकिन कहते हैं ना आस्तीन का सांप सबसे पहले अपने को ही डस्ता है। जादूगर महाकाश्वर ने भी एडियाना के साथ वही किया। पहले छला... फिर उसकी ताकत हासिल की और एडियाना की ताकत हासिल करने के बाद, उसकी तीन इच्छाओं के साथ उसके मकबरे में दफन कर दिया। ये वही तीन इच्छा थी जिसके छलावे में एडियाना फंसी थी। एडियाना बर्फीले रेगिस्तान (रूस के बर्फीला इलाका) की खौफनाक शैतान कही जाती थी, जो अपने लाखों सेवक विंडीगो सुपरनेचुरल के साथ राज करती थी। ऐडियाना एक कुशल जादूगर तो थी लेकिन मध्य भारत के जादूगर महाकाश्वर की उतनी ही बड़ी प्रशंसक भी।


अभी के वक्त में जो तात्कालिक मंगोलिया है, उस जगह पर जादूगर की एक सभा लगी थी। उसी सभा मे महाकाश्वर की मुलाकात एडियाना से हुई थी। यूं तो जादूगरों की यह सभा साथ मिलकर काम करने के लिए बुलाई गई थी, लेकिन जहां एक ओर एडियाना अपनी बहन तायफा से मिलने पहुंची थी। वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसी तायफ़ा को मारने पहुंचा था। जीन–जिन को भ्रम था कि वह दिग्गज जादूगर है, वह सभी २ पाटन के बीच में पिस गए। एक ओर एडियाना अपनी बहन को बचा रही थी, वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसे मारने का प्रयास कर रहा था।


जादूगरों का गुट २ विभाग में विभाजित हो गया, जहां मेजोरिटी लेडीज के पास ही थी। लेकिन महाकाश्वर के लिए तो भाड़ में गए सब और ठीक वैसा ही हाल एडियाना का भी था। दोनो लगातार लड़ते रहे। उस लड़ाई में वहां मौजूद सभी जादूगर मारे गए फिर भी लड़ते रहे। जिसके लिए लड़ाई शुरू हुई, तायफा, वो भी कब की मर गई। लेकिन इनका लड़ाई जारी रहा। एडियाना बर्फ की रानी थी, तो महाकाश्वर आग का राजा। एडियाना भंवर बनाती तो महाकाश्वर पहाड़ बन जाता। कांटे की टक्कर थी। मंत्र से मंत्र भीड़ रहे थे और आपसी टकराव से वहां के चारो ओर विस्फोट हो रहा था, लेकिन दोनो पर कोई असर नहीं हो रहा था।


एडियाना ने फिर एक लंबा दाव खेल दिया। अपने सुपरनैचुरल विंडिगो की पूरी फौज खड़ी कर दी। लाखों विंडिगों एक साथ महाकाश्वर पर हमला करने चल दिए। किसी भी भीड़ को साफ करना महाकाश्वर के लिए चुटकी बजाने जितना आसान था। लेकिन एडियाना के अगले दाव ने महाकाश्वर के होश ही उड़ा दिए। महाकाश्वर ने विंडिगो की भीड़ को साफ करने के लिए जितने भी मंत्र को उनपर छोड़ा, विंडिगो उन मंत्रो के काट के साथ आगे बढ़ रहे थे। महाकाश्वर को ऐसा लगा जैसे एडियाना एक साथ सभी विंडिगो में समा गई है, जो मंत्र काटते आगे बढ़ रहे। कमाल की जादूगरी जिसके बारे में महाकाश्वर को पता भी नही था। हां लेकिन वो विंडिगो से खुद की जान तो बचा ही सकता था। महाकाश्वर ने तुरंत पहना बहरूपिया चोगा और अब हैरान होने की बारी एडियाना की थी।


बहरूपिया चोगा से भेष बदलना हो या फिर किसी रूप बदल मंत्र से, लेकिन जो महाकाश्वर ने किया वह अद्भुत था। जादू से किसी का रूप तो ले सकते थे लेकिन जिसका रूप लिया हो, खुद को उसकी आत्मा से ही जोड़ लेना, यह असंभव था। और यह असंभव होते एडियाना देख रही थी। एडियाना पहले तो बहुत ही आशस्वत थी, और रूप बदलने जैसे छल पर हंस रही थी। लेकिन जैसे ही पहले विंडिगो का निशान महाकाश्वर के शरीर पर बना, ठीक वैसा ही निशान, उसी जगह पर एडियाना के शरीर पर भी बना। अगले ही पल दोनो की लड़ाई रुक गई और दोस्ती का नया दौड़ चालू हो गया।


अब इच्छाएं किसकी नही होती। ठीक वैसी ही इच्छाएं एडियाना की भी थी। उसे एक चीज की बड़ी लालसा थी... बिजली का खंजर। महाकाश्वर भी यह पहली बार सुन रहा था, लेकिन जब उसने सुना की यह खंजर किसी भी चीज को चीड़ सकती है, तब वह अचरज में पड़ गया।


थोड़े विस्तार से यदि समझा जाए तो कुछ ऐसा था.… सबसे मजबूत धातु जिसे तोड़ा न जा सकता हो, उसका एक अलमीरा बना लिया जाए। अलमीरा के दीवार की मोटाई फिर चाहे कितनी भी क्यों न हो, 20 फिट, 40 फिट... और उस अलमीरा के अंदर किसी इंसान को रखकर उसे चिड़ने कहा जाए। तब इंसान को चिड़ने के लिए अलमीरा खोलकर उस आदमी को निकालने की जरूरत नहीं, क्योंकि बिजली की यह खंजर उस पूरे अलमीरा को ऐसे चीड़ देगी जैसे किसी ब्लेड से कागज के 1 पन्ने को चीड़ दिया जाता है। अलमीरा तो एक दिखने वाला उधारहन था। लेकिन अलमीरा की जगह यदि मंत्र को रख दे, तब भी परिणाम एक से ही होंगे। कितना भी मजबूत मंत्र से बचाया क्यों न जा रहा हो, यह खंजर इंसान को मंत्र सहित चीड़ देगी।


एडियाना की दूसरी सबसे बड़ी ख्वाइश थी कि यदि कोई ऐसा विस्फोट हो, जिसमे उसके चिथरे भी उड़ जाए तो भी वह जीवित हो जाय। जबकि दोनो को ही पता था कि एक बार मरने के बाद कोई भी मंत्र शरीर में वापस प्राण नही डाल सकती। और एक नई ख्वाइश तो एडियाना को महाकाश्वर से मिलने के बाद हुई, वह था बहरूपिया चोगा।

महाकाश्वर कुछ दिन साथ रहकर एडियाना की इच्छाएं जान चुका था। और उसकी जितनी भी इच्छाएं थी, कमाल की थी। महाकाश्वर ने एडियाना से कमाल के शस्त्र, "बिजली का खंजर" के बारे पूछा, "की अब तक वह इस शस्त्र को हासिल क्यों नही कर पायि"। जवाब में यही आया की इस शस्त्र के बारे में तो पता है, लेकिन वह कहां मिलेगा पता नही। महाकाश्वर ने एडियाना से सारे सुराग लिए और बड़ी ही चतुराई से पूरी सूचना लोपचे के भटकते मुसाफिर तक पहुंचा दिया। फिर क्या था, कुछ सिद्ध पुरुष और क्षत्रिय के साथ पारीयान निकल गया खोज पर। महाकाश्वर और एडियाना को तो छिपकर बस इनका पिछा करना था।


लगभग ३ वर्ष की खोज के पश्चात लोपचे के भटकते मुसाफिर की खोज समाप्त हुई। वह खंजर यांग्त्जी नदी के तट पर मिली जो वर्तमान समय में संघाई, चीन में है। जैसे ही यह खंजर मिली, एडियाना के खुशी का ठिकाना नहीं रहा। महाकाश्वर ने अपने छल से वह खंजर तो हासिल कर लिया, लेकिन इस चक्कर में एडियाना और महाकाश्वर दोनो घायल हो गए। घायल होने के बाद तो जैसे एडियाना पागल ही हो गई थी। वह तो सबको मारने पर उतारू थी, लेकिन महाकाश्वर उसे लेकर निकल गया। लोपचे के भटकते मुसाफिर से लड़ाई करना व्यर्थ था, यह बात महाकाश्वर जनता था। बस उसे डर था कि कहीं एडियाना भ्रमित अंगूठी के बारे में जान जाती, तो उसे अपनी तीव्र इच्छाओं में न सामिल कर लेती। यदि ऐसा होता फिर तो इन दोनों की जान जानी ही थी। क्योंकि पारीयान इन दोनो (महाकाश्वर और एडियाना) के अस्त्र और शस्त्र से मरता नही, उल्टा योगी और सिद्ध पुरुष के साथ मिलकर इनके प्राण निकाल लेता।


एडियाना की दूसरी इच्छा का उपाय तो महाकाश्वर पहले से जानता था। उसे हासिल कैसे करना है वह भी जनता था। लेकिन उसे हासिल करने के लिए महाकाश्वर को अपने जैसा ही एक कुशल जादूगर चाहिए था। हिमालय के पूर्वी क्षेत्र में एक अलौकिक और दिव्य गांव बसा था। हालांकि उस गांव को तो किसी ने पहले ही पूरा ही उजाड़ दिया था, लेकिन उस गांव के गर्भ में एक पुर्नस्थापित अंगूठी थी, जो उस पूरे गांव के ढांचे की शक्ति संरचना थी। इसके विषय में खुद गांव के कुछ लोगों को ही पता था। ऊपर से इतनी सिद्धियों के साथ उसके गर्भ में स्थापित किया गया था कि २ सिद्ध जादूगर मिलकर भी कोशिश करते तो भी एक चूक दोनो की जान ले लेती।


लेकिन महाकाश्वर आश्श्वत था। इसलिए खतरों को बताए बिना वह एडियाना के साथ उस गांव में घुसा और कड़ी मेहनत के बाद दोनो पुर्नस्थापित अंगूठी को हासिल कर चुके। सबसे पहला प्रयोग तो महाकाश्वर ने खुदपर किया। एडियाना ने अपने मंत्र से महाकाश्वर के चिथरे उड़ा दिए, लेकिन अगले ही पल एक हैरतअंगेज कारनामे आंखों के सामने था। महाकाश्वर के शरीर का एक–एक कण देखते ही देखते जुड़ गया।


तीनों इच्छाओं को तो महाकाश्वर मूर्त रूप दे चुका था। अब बारी थी एक बहुत बड़े चाल कि। इसके लिए स्थान पहले से तय था, जरूरी सारे काम किए जा चुके थे। एडियाना भी पूरे झांसे में आ चुकी थी। पहले तो कुछ दिनों तक उसे आतंक मचाने के लिए छोड़ दिया गया। कुछ ही वक्त में सकल जगत को महाकाश्वर और एडियाना का नाम पता चल चुका था। हर कोई जानता था कि महाकाश्वर और एडियाना कौन सी शक्तियां हासिल कर चुके। मंत्रों से कोई भी योगी अथवा सिद्ध पुरुष संरक्षित हो नही रहे थे। उसे बिजली की खंजर का स्वाद मिल ही जाता। कितना भी दोनो को मंत्र से बेजान करने की कोशिश क्यों न करो, उनका शरीर पहले जैसा ही हो जाता। उल्टा बहरूपिया चोगा के प्रयोग से एडियाना पर प्राणघाती हमला उल्टा चलाने वाले पर भी हो जाता। एडियाना पुर्नस्थापित अंगूठी से तो बच जाती लेकिन उनके प्राण अपने ही मंत्र ले चुके होते।


एडियाना, महाकाश्वर के पूरे झांसे में आ चुकी थी और अब वक्त था आखरी खेल का। महाकाश्वर, एडियाना के साथ सतपुरा के जंगल में चला आया। थोड़े भावनात्मक पल उत्पन्न किए गए। एडियाना के हाथ को थाम नजरों से नजरें चार हुई। महाकाश्वर के बातों में छल और बातों के दौरान ही उसने एडियाना के मुंह से उगलवाया उसकी इच्छाएं, जिसे महाकाश्वर ने पूरे किये थे। एडियाना ने अपनी इच्छाएं बताकर जैसे ही स्वीकार कर ली कि उसकी सारी इच्छाएं महाकाश्वर ने पूरी कि है, ठीक उसी पल एडियाना का शरीर बेजान हो गया और उसकी सारी सिद्धियां महाकाश्वर के पास पहुंच गई। अब या तो महाकाश्वर, एडियाना को उसकी इच्छाओं के साथ दफना दे या फिर 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाओं को उस से अलग कर दे। अपनी पूरी शक्ति और साथ में जान खोने के बाद, एडियाना अपने मकबरे में दफन हो गई। और उसे दफनाने वाला महाकाश्वर ने उसके तीन इच्छाएं, पुर्नस्थापित अंगूठी, बिजली की खंजर और बेहरूपिया चोगा के साथ एडियाना को दफना दिया।


जादूगर महाकाश्वर अपने 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाएं वापिस हासिल कर लेता। लेकिन अनुष्ठान पूर्ण होने के पहले ही लोपचे का भटकता मुसाफिर जादूगर महाकाश्वर तक पहुंच चुका था। उस जगह भीषण युद्ध का आवाहन हुआ। एक लड़ाई जादूगर महाकाश्वर और योगियों के बीच। एक लड़ाई एक लाख की सैन्य की टुकड़ी के साथ अगुवाई कर रहे सुपरनैचुरल वेयरवोल्फ पारीयान और विंडिगो सुपरनेचुरल के बीच। 2 किलोमीटर के क्षेत्र को बांध दिया गया था। केवल जितने वाला ही बाहर जा सकता था और सामने महायुद्ध। बिना खाये–पिये, बिना रुके और बिना थके 4 दिनो के तक युद्ध होता रहा। 4 दिन बाद ऐडियाना के मकबरे से पुर्नस्थापित अंगूठी लेकर केवल एक शक्स बाहर निकला, वो था लोपचे का भटकता मुसाफिर।


पारीयान ने पूरे संवाद भेजे। युद्ध की हर छोटी बड़ी घटना की सूचना कबूतरों द्वारा पहुंचाई गई। एडियाना का मकबरा और वहां दफन उसकी 3 इच्छाओं का ज्ञान सबको हो चुका था। पारीयान के लौटने की खबर भी आयि लेकिन फिर दोबारा कभी किसी को पारीयान नही मिला। न ही कभी किसी को एडियाना का मकबरा मिला। न जाने कितने खोजी उन्हे मध्य भारत से लेकर हिमालय के पूर्वी जंगलों में तलासते रहे, किंतु एक निशानी तक नही मिली। खोजने वालों में एक नाम सरदार खान का भी था जिसे सबसे ज्यादा रुचि बिजली के खंजर और पुर्नस्थापित अंगूठी में थी।


किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।
Bahot hi badiya update he bhai

Ab dekhna ye he ki Aary aur Palak ki team richh stri ki aatma ko kese kaid karte he aur ye makbare ke bare mme unhe kya milta hai...
 

Chutiyadr

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भाग:–26





अरुण, चिढ़ते हुए एक बार जया को देखा, इसी बीच उसकी पत्नी कहने लगी… "मुझे तो पहले से पता था कि हम रोड पर भी आ जाए तो भी ये हमारी मदद नहीं करेंगे। जान बूझकर हमे यहां अटकाकर रखे है।"..


सुकेश:- जया ने अपने भाई से कुछ कहा है, इसमें इतना आवेश में आने की क्या जरूरत है। तुम लोगों ने भी तो जया को बेवजह बहुत कुछ सुनाया था। इतने सालों के रिश्ते में तुम्हे हमारी तब याद आयि जब पैसों की जरूरत हुई। जया का सच सामने आने के बाद भी एक जरा शर्म आई, जो झूठे मुंह माफी ही मांग लेते... भूमि सुनो...


भूमि:- हां बाबा..


अरुण:- जीजाजी क्या है ये पुरा घर का संचालन बेटी के हाथ में दे दिए हो।


वैदेही:- मामाजी हमने पुरा घर का संचालन भूमि के हाथ में नहीं दिया है बल्कि घर में अलग-अलग मामलों के लिए अलग-अलग लोग है।


भूमि:- छोड़ो ना भाभी। बाबा मैंने पता किया है मामाजी ने हर किसी से गलत डील किया है, जिस कारण फसे है। जिस मॉल के केस में ये उलझे है, ठीक उसी वक़्त इन्होंने अपना लगभग पैसा..


भूमि अपनी बात कह ही रही थी ठीक उसी वक़्त आर्यमणि भूमि के कान में कुछ कहा। कुछ शब्द एक दूसरे से कहे गए और उसके बाद… "आपको कितने पैसे चाहिए मामा जी।"..


अरुण:- 500 करोड़।


सुकेश:– 500 करोड़... एक बार जरा फिर से कहना...

प्रीति:– इन्होंने 500 करोड़ कहा...

सुकेश:– इतने सालों बाद हमारे घर आये। चलो मान लिया की भूमि और तेजस बड़े हो गये है, लेकिन घर में तेजस के बच्चे तो है। उनके लिए तो 5 रुपए की टॉफी तक नही लाये, और हमसे 500 करोड़ की उम्मीद रखे हो। जया ने तुम्हे स्वार्थी कहा है तो कुछ गलत नही कहा...

अरुण:- जीजाजी 500 करोड़ कोई बहुत बड़ी रकम नहीं आपके लिए। धंधे में कहीं फसा हूं इसलिए परेशान हूं। और यही वजह है कि इस वक्त मुझे कुछ सूझ नही रहा, वरना मैं अपने भांजे के बच्चों के लिए कुछ न करता। वैदेही के लिए कुछ न लेकर आता। यदि आप मेरी परिस्थिति को सोचते तो बच्चों की बात बीच में न लाते। चलो प्रीति तुम सही कही थी, हमारा दिन बर्बाद किया।


भूमि:- मामाजी पैसे और परिवार को अलग ही रखो तो अच्छा है। 5 करोड़ या 10 करोड़ नहीं आप मांग रहे है कि किसी तरह अरेंज करके से दिए जाए।


प्रीति:- 700 करोड़ का शॉपिंग मॉल तो अपनी दूर की चहेती बहन नम्रता को गिफ्ट कर आयी हो और तुम हमे ऐसी बात कह रही।


भूमि:- हां मै वहीं कल्चर आगे बढ़ा रही हूं जिस कल्चर में मै पली हूं। काका (उज्जवल भारद्वाज) ने जब मुझे अपना उतराधिकारी बनाया था तब उन्होंने नागपुर के बीचोबीच पुरा जमीन का टुकड़ा और साथ ने 180 करोड़ कैश गिफ्ट किए थे। ताली एक हाथ से नहीं बजती मामीजी।


अरुण:- अच्छा ऐसी बात है क्या? यदि मेरी जगह जया दीदी का बेटा होता फिर भी तुम लोग ऐसी ही बातें करते क्या?


मीनाक्षी:- तू घर का सदस्य होता तो जया का बेटा नही बल्कि आर्य कहता। और दिया तो तुझे भी है, लेकिन तेरे आंख में पानी नहीं है। बांद्रा में बाबा ने मेरे और जया के नाम से जो प्लॉट लिया था उसे तुझे ही दी, ना की आर्य को दे दी। भूमि बांद्रा में 10000 स्क्वेयर फीट जगह की कीमत क्या होगी बताओ जरा।


भूमि:- आई मुंह मांगी कीमत। कम से कम हजार करोड़ तो दे ही देंगे।


मीनाक्षी:- अब बोल अरुण। तूने तो हमसे रिश्ता तोड़ लिया था तब भी तेरे एक बुलाए पर हम दोनों बहन पहुंची थी रजिस्ट्रेशन करवाने। यहां आर्य का लगन तय कर दिया, तूने तो होने वाली बहू को आशीर्वाद तक नहीं दिया। तुझे देते रहे तो ठीक है, दूसरों को कुछ दे तो तेरे आंख में खटकता है कि ये धन दूसरे को क्यों दे रही मुझे ही दे दे। भूमि ये स्वार्थी सबके बीच आया है मदद मांगने, जानती हूं ये बेईमान है, लेकिन फिर भी का इसकी मदद कर दे।


भूमि:- ठीक है इनसे कह दो भाऊ से जाकर मिल लेंगे। लेकिन भाऊ के साथ डील में गड़बड़ होगी, तो ये जाने और इनका काम।


मीनाक्षी:- सुन लिया ना तुम दोनो मिया बीवी ने।


अरुण:- जी सुन लिया। कम से कम 5 साल का वक़्त बोलना देने, ताकि मै सब सैटल कर सकूं।


सुकेश:- जब इतना कर रहे है तो ये भी कर लेंगे। अरुण दोबारा फिर कभी अपने उलझे मामले लेकर मत आना, परिवार से मिलने आना।


अरुण:- जी जीजाजी। अब हम चलते है, सारा काम हमारा रुका हुआ है।


सुकेश:- ठीक है जाओ।


अरुण के जाते ही मीनाक्षी और जया, दोनो के आंखो में आंसू आ गए। सुकेश दोनो को चुप करवाते हुए… "हर इंसान एक जैसा नहीं होता। शायद ये तुम दोनो के भाई कहलाने के लायक नहीं।"..


मीनाक्षी:- थैंक्स भूमि, क्या करूं एक ही भाई है ना।


भूमि:- बस भी कर आई, मासी तुम भी चुप हो जाओ। हमने मामा का प्रॉब्लम सैटल कर दिया है। अच्छा अब तुम सब सुनो, मै आर्य को ले जा रही हूं।


मीनाक्षी:- जा ले जा, मेरी बहन है ना यहां। सुनो जी केशव बाबू का ट्रांसफर नागपुर करवाओ। ये लोग अपने परिवार से बहुत दिन दूर रह लिये।


सुकेश:- जी हो जाएगा, और कोई हुकुम।


मीनाक्षी:- नहीं और कोई हुक्म नहीं।


वैदेही:- आई, बाबा ने वो काम कल ही कर दिया था, बस कह रहे थे भूमि को नहीं बताने, वरना आर्य के मोह में ये मौसा जी का ट्रांसफर नहीं होने देंगी।


जया:- नाना हम यहां भी रहे तो भी आर्य भूमि के पास ही रहेगा, और जिला अध्यक्ष आवास यहां, दीदी के घर।


भूमि:- बच गई मासी, वरना नागपुर की जगह कोल्हापुर का ट्रांसफर लेटर आता।


सभा समाप्त होते ही हर कोई अपने अपने काम के लिए निकल गए। डॉक्टर ने भी आर्यमणि की रिकवरी को देखते हुए उसे कॉलेज जाने की अनुमति दे दी थी, इसलिए वो भी कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रहा था, तभी उसके कमरे बाहर निशांत और चित्रा शोर मचाते हुए पार्टी, पार्टी चिल्लाने लगे। दोनो की जोश से भरी जोरदार आवाज सुनकर आर्यमणि हंसता हुआ बाहर आया।


चित्रा वेसल बजाती... "पार्टी–पार्टी".. और ठीक वैसे ही निशांत भी कान फाड़ वेसल बजाते... "पार्टी–पार्टी"


आर्यमणि, हंसते हुए.… "हां ले, लेना पार्टी, अब सिटी बजाना बंद भी करो"…


आर्यमणि की बात सुनकर, निशांत और चित्रा दोनो उसे घेरकर, उसके कानो में वेसल बजाते... "पार्टी–पार्टी"…


आर्यमणि:– अब क्या कान फाड़ोगे? ऐसे पार्टी–पार्टी चिल्लाओ नही... कहां, कब और कैसी पार्टी चाहिए...


चित्रा:– हमे ऐसी वैसी नही, एक यादगार एडवेंचरस पार्टी चाहिए...


निशांत:– हां चित्रा ने सही कहा...


भूमि, जो इनका शोरगुल कबसे सुन रही थी.… "वैसे मेरे विचार से रसिया के बोरियल जंगल में तुम लोग पार्टी ले सकते हो। आखिर आर्यमणि ने उस जंगल को पैदल पार किया था, चप्पे चप्पे से वाकिफ भी है और बेस्ट लोकेशन को जनता भी होगा।


भूमि अपनी बात कहकर मुस्कुराती हुई आर्यमणि को देखने लगी। मानो कह रही हो, तुम्हारी कहानी को एक बार हम भी तो क्रॉस चेक कर ले। आर्यमणि, भूमि के इस तिकरम पर हंसते हुए.… "जमा देने वाली ठंड का यदि मजा लेना चाहते हो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं। प्लान कर लो कब चलना है।"


निशांत और चित्रा दोनो अपने दोस्त के हाथ में अपना हाथ फसाकर.… "फिलहाल हम कॉलेज चलते हैं। भूमि दीदी आप करते रहो आर्य के बीते ४ साल को क्रॉस चेक, पार्टी तो हम अपने हिसाब से लेंगे। चले आर्य..."



दोनो भाई बहन एक लय से एक साथ अपनी बात कही और दोनो आर्यमणि के साथ कॉलेज के लिए निकल गये। इधर कल रात पलक इतनी थकी थी आकर सीधा अपने कमरे में गई और बिस्तर पर जाकर लेट गई। पलक के कानो में वो बात मिश्री की तरह घोल रही थी… "मैं सबको दिल से चाहता हूं और साथ में पलक को भी"… कितना गुदगुदाने वाला एहसास था। रात भर गुदगुदाते ख्याल आते रहे। कॉलेज का मामला पहले से ही सैटल, ऊपर से आर्यमणि ने वादे के मुताबिक बिना दोनो के बारे में जाहिर किये रिश्ता भी तय करवा दिया। अब ना जाने तब क्या होगा जब वो दोनो अकेले में होंगे।


खैर, सुबह का वक़्त था। आर्यमणि, चित्रा और निशांत के साथ कॉलेज पहुंचा। उन दोनो को विदा कर आर्यमणि, रूही को मैसेज करके लैब बुला लिया। रूही जल्दी से लैब पहुंची और आते ही अपना टॉप निकाल दी। आर्यमणि, उसके हाव–भाव देखकर.… "जलते तवे पर बैठी हो क्या, जो कपड़े भी काटने दौड़ रहे।"


रूही:- अभी अंदर का जानवर हावी है जो मुझसे चिंखकर कह रहा.… "कौन सा जानवर कपड़े पहन कर घूमता है बताओ।"


आर्यमणि:- टॉप पहन लो। मुझे अभी सेक्स में इंट्रेस्ट नहीं, बल्कि सवालों के जबाव में इंट्रेस्ट है।


रूही:- वो तो हर धक्के के साथ भी अपना सवाल दाग सकते हो आर्य।


आर्यमणि:- मै अपना पैक बनाने का इरादा छोड़ रहा हूं, तुम पैक में रही तो मुझे ही अपनी रानी से दूर होना पर जायेगा।


रूही:- ऐसे अकड़ते क्यों हो। तुम तो खुद से आओगे नहीं, इसलिए साफ-साफ बता दो कि कब मेरे अरमान पूरे करोगे..


आर्यमणि:- आज रात तुम्हारे घर में, तुम्हारे ही बिस्तर पर… अब खुश..


रूही:- ठीक है मै बिस्तर सजा कर रखूंगी। हां पूछो क्या पूछना है।


आर्यमणि:- अपने बाप को डूबता क्यों देखना चाहती हो।


आर्यमणि, रूही के साथ अपनी पहली मुलाकात को ध्यान में रखकर बात शुरू किया, जब उसने जंगलों में रूही की जान किसी दूसरे पैक के वेयरवुल्फ से बचाया था.…


रूही:- तुम अनजानों की तरह सवाल ना करो। सरदार खान मुझे मारकर अपनी ताकत बढ़ाय, उस से पहले मै उसे मारकर अल्फा बन जाऊंगी।


आर्यमणि:- सरदार खान को मारकर तुम अल्फा नहीं फर्स्ट अल्फा बनोगी। इसका मतलब उस रात तुम पर 2 अल्फा ने हमला किया था ना?


रूही:- हां लेकिन 2 अलग-अलग मामले मे तुम कौन सा संबंध ढूंढ रहे?


आर्यमणि:- तुम्हारी दूरदर्शिता को समझ रहा हूं। 2 अल्फा वेयरवुल्फ जब एक साथ हो, तब कोई वूल्फ पैक उसे हाथ नहीं लगा सकता। मै तो फिर भी अकेला था। जैसे ही मैंने उन दोनों को मारा, तुम समझ गई कि मैं एक फर्स्ट अल्फा हूं। एक फर्स्ट अल्फा दूसरा फर्स्ट अल्फा मार सकता है, तुमने यही सोचकर मुझपर जाल बिछा रही। ताकि मै और तुम्हारे बाबा भिड़े और जब वो कमजोर पर जाय तब तुम उसे मारकर उसकी जगह लेलो।"


रूही:- हां तो वो कोई संत है क्या? हर साल किसी ना किसी वूल्फ पैक के कई बीटा को खा जाता है। 20 वूल्फ पैक की पूरी बस्ती है, जिसमें केवल 6 वूल्फ पैक के पास अल्फा बचा है। वो तो 12 अल्फा को भी खा चुका है। तुम्हे क्या पता वो क्या है.. वो एक बीस्ट से कम नहीं है आर्य। उसकी ताकत अद्भुत है। वो अकेला चाह ले तो बस्ती क पूरे पैक को खत्म कर सकता है। कमीना साला, हवस और बदन नोचने के मामले में भी वो जानवर है। वो अपनी बस्ती में कहीं भी, किसी के साथ भी संभोग कर सकता है। अपनी ताकत बढ़ाने के लिए बच्चा पैदा करता है, ना की उसे अपने बच्चों से कोई इमोशन है।


आर्यमणि:- तुम्हे एक अल्फा बनना है, या तुम्हे फर्स्ट अल्फा बनना है, ये बताओ?


रूही:- मुझे नॉर्मल होना है, बिल्कुल सामान्य इंसानों की तरह। घूट गई हूं मै अपनी ज़िंदगी से।


आर्यमणि:- बंदिश खोल दूं तो क्या तुम ये हवाई अवतार छोड़ दोगी।


रूही:- तुम्हरे आज रात के वो मेरे बिस्तर में पूरे मज़े के सेशन के बाद… जान बचाने का शुक्रिया तो कह दूं तुम्हे।


आर्यमणि:- ब्लड ओथ लो फिर, आज अपने पैक का काम शुरू करते है।


रूही:- क्यों झुटी आस दिला रहे हो। क्या तुम वाकई में मेरे साथ पैक बनाना चाहते हो?


आर्यमणि:– जब यकीन ही नहीं फिर बात खत्म करो। जाओ यहां से...


रूही, झटपट आर्यमणि के पाऊं को पकड़कर रोकती.… "क्या अकडू हो बॉस। हां मुझे यकीन है। मैं तो बस एक और बार सुनिश्चित करना चाहती थी की आप हो क्या? अभी खुद मुंह से कबूल किये कि फर्स्ट अल्फा हो जो की हो नही क्योंकि नरभक्षी और खून पीने की प्रवृत्ति तो क्या आप के वुल्फ होने के निशान दूर–दूर तक नही दिखते। फिर वुल्फ नही हो तो एक वुल्फ के साथ पैक क्यों बना रहे? हो क्या आप.. बस यही सुनिश्चित करना चाह रही हूं...

आर्यमणि:– ज्यादा सुनिश्चित के चक्कर में रहोगी तब यही हाल होना है। वक्त आने पर शायद तुम्हे पता चल जाए की मैं क्या हूं। फिलहाल फर्स्ट अल्फा ही रहने दो जो एक अल्फा का आसानी से शिकार कर लेता है। अब काम की बात कर ले। तो क्या तुम पैक में सामिल होने के लिए तैयार हो?



रूही:– बॉस क्या मैं पैक में सामिल हुई तो तुम मुझे टैटू बाना दोगे?


वेयरवुल्फ के लिए टैटू बनाना टेढ़ी खीर होती है। वुल्फ पैक का मुखिया जिसके ब्लड ओथ से पैक बना, वो टैटू का निशान दे सकता है। इसके अलावा 1 बीटा को 1 हाफ अल्फा टैटू के निशान दे सकता था। एक हॉफ अल्फा को 1 अल्फा और 1 अल्फा को फर्स्ट अल्फा टैटू का निशान दे सकते थे। वरना वेयरवोल्फ शरीर पर टैटू के निशान नहीं दिया जा सकता क्योंकि वेयरवोल्फ बहुत तेजी के साथ हील होते हैं और हील होने के बाद निशान नहीं रहता। किसी की हड्डियां तोड़ने में भी यही दूसरी सीरीज चलती है। किसी भी वेयरवुल्फ का शरीर काफी तेजी से हिल करता है। लेकिन एक पायदान ऊपर के वेयरवुल्फ का तोड़ा हील नहीं होता उसे फिर सामान्य इंसानों के तरह मेडिकल प्रोसीजर करना पड़ता है।


आर्यमणि, रूही की जिज्ञासा देखकर हंसते हुए.… "हां बनवा लेना टैटू, बस ज्यादा पेंचीदा टैटू मत कहना बनाने के लिए।"


रूही:- एक बैंड टैटू लेफ्ट हैंड में। एक हार्ट बीट कम करने वाला टैटू जो मुखिया देता है अपने बीटा को। एक अपने पैक का टैटू और एक रिचुअल टैटू।


आर्यमणि:- बस इतना ही। नाना और भी बता दो। एक काम करता हूं, पीठ पर पूरी दुनिया का नक्शा ही बना देता हूं।


रूही:- अब जब टैटू बना ही रहे रहे हो तो इतना कर दो ना, प्लीज…


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है आज रात जब मै आऊंगा तब ये टैटू का काम कर दूंगा। अब मुझे ये बताओ, उस रात बीस्ट पैक (सरदार खान का वुल्फ पैक) से कौन सा दूसरा वूल्फ पैक पंगे करने आया था?


रूही:- उस रात जंगल में मुझपर भी अचानक हमला हुआ था। एक भटका हुआ पैक जो सरदार खान से क्षेत्र के लिए लड़ने आया है। 30 वुल्फ का पैक है और ट्विन अल्फा मुखिया।


रूही जो बता रही थी वो एक प्रतिद्वंदी पैक था, जो सरदार खान के पैक पर हमला करने आया था। वूल्फ पैक के बीच ये लड़ाई आम बात होती है जहां एक वूल्फ पैक दूसरे वूल्फ पैक के इलाके में अपना निशान छोड़ते है। उन्हे लड़ने के लिए चैलेंज करते हैं।
Har pariwar me arun jaise log hote hi hai jinhe sirf kaam padne par rishtedari yaad aati hai ...
Sab to thik hai but ek chij kahna chahunga ..
IAS aur IPS ka transfer cader ke ander hi kiya ja sakta hai ..
Ya unhe cader se sidhe kendra ki service me bheja jata hai aur wanha se fir apne cader me ..
To keshaw ka aisa transfer hona mujhe ajib laga ..
Khair.. story me kuchh bhi ho sakta hai ..
Ya ye mana ja sakta hai ki ye log bahut hi powerful hai ye sab kaam karwa sakte hai :)
 

jitutripathi00

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भाग:–37






नागपुर शहर.... मीटिंग खत्म होने के ठीक एक दिन बाद…..


सुकेश की बुलावे पर बड़ी सी महफिल सजी हुई थी। जहां प्रहरी और आर्यमणि दोनो साथ बैठे थे। जिस गरज के साथ पलक प्रहरी सभा में बरसी थी, उसपर पुरा घर रह-रह कर गर्व महसूस कर रहा था। लेकिन बोलने के बाद अब करने का वक्त था और जरूरी था पलक खुद को साबित करके दिखाये। पलक की अगुवाई में चल रही रीछ स्त्री की खोज भी पूरी हो चुकी थी, और उसे धर–दबोचने की तैयारी में यह सभा रखी गयि थी।


सुकेश:– बहुत ज्यादा वक्त न लेते हुये मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं। वाकी वुड्स में क्या हुआ था इस बात से सभी भली भांति परिचित होंगे। पलक जब विशेष जीव साखा की अध्यक्ष बनी, तभी उसने मुझे रीछ स्त्री को दूंढने का काम सौंपा। मैने इस काम में अपने कुछ खास सहयोगियों को लगाया था और अब हमारे पास रीछ स्त्री की पक्की खबर है...


पूरी सभा लगभग एक साथ... "कहां है वह अभी"…


सुकेश:– खबरों की माने तो वह रीछ स्त्री सतपुरा के घने जंगलों के बीच, वहां स्थित पर्वत श्रृंखला के एक मांद में छिपी है। आसपास के लगभग 5 किलोमीटर का दायरा उसका विचरण क्षेत्र है, जिसके अंदर कोई नही जा सकता।


भूमि:– कोई नही जा सकता, यह कैसे पता चला? क्या अंदर घुसने की कोशिश में किसी पर हमला हुआ या जान से मार दिया गया?


सुकेश:– पूरी जानकारी तो मुझे भी नही। खबरियों द्वारा जो खबर मिली उसे बता रहा हूं। जबतक वहां छानबीन के लिये नही जायेंगे, पूरी बात पता नही चल सकती। हां पर खबर पक्की है कि रीछ स्त्री वहीं है।


भूमि:– हां तो देर किस बात की है। हम कुछ टुकड़ी के साथ चलते हैं और उस रीछ स्त्री को पकड़ कर ले आते हैं।


पलक:– भूमि दीदी जाने से पहले थोड़ा यह जान ले की हम किसके पीछे जा रहे। यह कोई साधारण सुपरनेचुरल नही बल्कि काफी खरनाक और दीर्घायु सुपरनैचुरल है। सोचो कितना उत्पात मचाया होगा, जो इसे विष मोक्ष श्राप से बंधा गया था। इसका दूसरा मतलब यह भी निकलता है कि उस दौड़ में विकृत रीछ स्त्री को मार नही पाये होंगे इसलिए मजबूरी में कैद करना पड़ गया होगा।


भूमि:– ठीक है तुम इंचार्ज हो, तुम्ही फैसला करो...


पलक:– पैट्रिक और रिचा की टीम तेजस दादा के नेतृत्व में काम करेगी। सुकेश काका, बंगाल की मशहूर जादूगरनी ताड़का और उसके कुछ चेलों के साथ अपनी एक टुकड़ी लेकर जायेंगे। आर्यमणि के अल्फा पैक के साथ मैं एक टुकड़ी लेकर जाऊंगी। आज शाम ही हम सब सतपुरा जंगल के लिये निकलेंगे। हम सबसे पहले सतपुरा के पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचेंगे और वहां से अलग–अलग दिशाओं से जांच करते हुये, ठीक 7 दिन बाद, चंद्र ग्रहण से ठीक एक दिन पूर्व, रीछ स्त्री के उस 5 किलोमीटर वाले दायरे के पास एकत्रित होंगे। वहां हम पूरी रणनीति बनायेंगे और चंद्र ग्रहण की रात उस रीछ स्त्री को बांधकर नागपुर प्रहरी कार्यालय में कैद करेंगे।


भूमि:– मेरी नेतृत्व वाली सभी टुकड़ी को ले जा रहे और मुझे ही अगुवाई का मौका नहीं मिल रहा...


पलक:– दीदी आप यहां आराम करें और आपकी टुकड़ी में जो बेहतरीन शिकारी है उसे भी ऊपर आने का मौका दें।


भूमि, पलक के इस जवाब पर केवल मुस्कुरा कर अपनी प्रतिक्रिया दी। सभा में सभी फैसले लेने के बाद सभा स्थगित हो गया और सब शाम में निकलने की तैयारी करने लगे। तैयारी में तो आर्यमणि भी लग गया। जहां एक ओर लोगों को शिकारी होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था, वहीं आर्यमणि और निशांत २ ऐसे नाम थे जो पैदा ही शिकारियों के गुण के साथ हुये थे। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण तो लोपचे का खंडहर था, जहां कई माहिर शिकारी को दोनो चकमा देकर सुहोत्र को ले उड़े। आर्यमणि भला जंगल के इस मिशन में निशांत को साथ क्यों नही लेता। बाकी सब अपनी रणनीति में और दोनो दोस्त अपनी...


निशांत:– मजा आयेगा आर्य, लेकिन ये तो बता की हमे वहां करना क्या होगा?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नही। शायद जंगल के अंदर कुछ छानबीन और उस विकृत रीछ स्त्री को पकड़े कैसे?



निशांत, थोड़ा आश्चर्य में... "यानी जिसे पकड़ने जा रहे उसके विषय में कोई ज्ञान नहीं?"


आर्यमणि:– इतना चौंक क्यों रहा है?


निशांत:– यार ये तो आत्महत्या करने जैसा है। इतिहास के सबसे शक्तिशाली मानव प्रजाति जो हजारों वर्ष तक जिंदा रह सकते थे। जिनके शक्तियों का विस्तृत उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक है। जिसका एक योद्धा जम्बत जी का उल्लेख सतयुग से लेकर द्वापरयुग तक मिलता है। और यदि इस रीछ स्त्री की बात करे तो वह गवाह होगी द्वापर युग की। जो स्त्री महाभारत के समकालीन है और कलयुग में आज तक जिंदा है। उसे बस ऐसे हवा–हवाई रणनीति से पकड़ने जा रहे। उसे पकड़ने भी जा रहे हो या उसके पैरों में गिड़कर उसका चेला बनना है? क्योंकि ऐसी रणनीति का तो यही निष्कर्ष निकलता है कि किसी तरह पता करो की वह शक्तिशाली रीछ स्त्री कहां है ताकि उसके पैरों में गिरकर उसे अपने ओर मिला ले और अपनी भी मनचाही मनोकामना पूर्ण हो जाए...


आर्यमणि:– तो क्या करे, न जाएं...


निशांत:– हम जायेंगे लेकिन इन फालतू प्रहरी के भरोसे नहीं जायेंगे... हमे अपने जंगल (गंगटोक के जंगल) के बारे में पता था कि वहां हमारा सामना किस जानवर और किन–किन विषम परिस्थितियों से हो सकता था। इसलिए संकट कितना भी अचानक क्यों न आये हमे समस्या नहीं होती। हम यहां भी ठीक वैसा ही करेंगे...


आर्यमणि:– हम्मम.. ठीक है हम खरीदारी करते हुये डिस्कस कर लेंगे, लेकिन सबसे पहले मैं तुम्हे कुछ दिखाना चाहता हूं...


इतना कहकर आर्यमणि अपने कमरे का दरवाजा बंद किया। बिस्तर के नीचे पड़ा अपना बैग निकाला। यह लाइफ सपोर्टिंग बैग था। ऐसा ही एक बैग निशांत के पास भी हमेशा रहता है। आर्यमणि उसके अंदर से सभी समान बाहर निकलने के बाद आखरी में सबसे नीचे से एक पोटली निकाला... पोटली को देखते ही निशांत की आंखें बड़ी हो गई... "लोपचे का भटकता मुसाफिर। आर्य, इसे साथ लेकर घूम रहे"…


आर्यमणि:– ऐडियाना का मकबरा कहां है...


निशांत:– मध्य भारत के जंगल में..


आर्यमणि:– मैप में देखकर बताओ की मध्य भारत का जंगल कहां है?


निशांत:– बताना क्या है... वही सतपुरा का जंगल.. लेकिन तुम दोनो बातों में क्या समानता ढूंढ रहे हो?..


आर्यमणि:– लोपचे के भटकते मुसाफिर की माने तो एडियाना के मकबरे में 3 चीजों का उल्लेख है, जो हर किसी को पता है... पुर्नस्थापित अंगूठी (restoring ring), बिजली की खंजर और...


निशांत उसे बीच में ही रोकते.… "और बहरूपिया चोगा... यानी वो रीछ स्त्री मध्य भारत के जंगल में इन्हे ही ढूंढने निकली है।"..


आर्यमणि:– दोनो ही बातें है, हो भी सकता है और नही भी। रीछ स्त्री अपने कैद से बाहर निकलने के बाद जो भी अपना लक्ष्य रखे, उसके लिए सबसे पहले उसे खुद के अंदर क्षमता विकसित करनी होगी। जिसके लिए उसे कम से कम 500–600 दिन तो चाहिए। यदि उसे ये सब जल्दी निपटाना हो तब...


निशांत:– तब तो उसे कोई जादू ही चाहिए। और ऐसा ही एक जादू वहां के जंगल में भी है... पुर्नस्थापित अंगूठी... हाहाहाहाहा..


आर्यमणि:– हाहाहाहाहा.. और उस गधी को पता नही होगा की वहां तो लोपचे के भटकते मुसाफिर ने लोचा कर दिया था...


लोपचे के भटकते मुसाफिर यानी की पारीयन लोपचे, सुपरनैचुरल के बीच काफी प्रसिद्ध नाम है। इसे खोजी वुल्फ भी कहा जाता है। पहला ऐसा लोन वुल्फ, जो अपनी मर्जी से ओमेगा था। कई साधु, संत, महात्मा, और न जाने कितने ही दैत्य दानव से वह मिला था। उस दौड़ के योगियों का चहेता था और किसी भी प्रकार के खोज में, खोजी टुकड़ी के अगुवाई पारीयान लोपचे ही करता था। उसके इसी गुण के कारण से पारीयान लोपचे को लोपचे का भटकता मुसाफिर कहा जाता था। अपने खोज के क्रम में वह साधु, योगियों और आचार्य का इतना चहेता हो चुका था कि गुरुओं ने उसे सिद्ध की हुई भ्रमित अंगूठी (illiusion ring) दिया था।


सुनने में भले ही यह जादू कला की छोटी सी वस्तु लगे लेकिन यह वस्तु उस चींटी के भांति थी, जो किसी हांथी के सूंड़ में घुसकर उसे धाराशाही कर सकती थी। कहने का अर्थ है, बड़े से बड़ा दैत्य, काला जादूगर, शिकारी, वीर, फौज की बड़ी टुकड़ी, कोई भी हो.… उन्हे किसी को मारने के लिए सबसे जरूरी क्या होता है, उसका लक्ष्य। सामने लक्ष्य दिखेगा तभी उसको भेद सकते हैं। यह भ्रमित अंगूठी लक्ष्य को ही भटका देती थी। यदि सामने दिख रहे पारीयान पर कोई तीर चलता तो पता चलता की वह तीर जैसे किसी होलोग्राफिक इमेज पर चली। कोई काला जादूगर यदि उसके बाल को लेकर, किसी छोटे से प्रतिमा में डालकर, उसका जादुई स्वरूप तैयार करके मारने की कोशिश करता, तब पता चलता की यह काला जादू भी बेअसर। क्योंकि भ्रमित अंगूठी पारीयान के अस्तित्व तक को भ्रमित कर देती थी।


उसी दौड़ में कुख्यात जादूगर महाकाश्वर और एडियाना की जोड़ी काफी प्रचलित हुई थी। इन्होंने अपने तंत्र–मंत्र और शातिर दिमाग से सबको परेशान कर रखा था। लेकिन कहते हैं ना आस्तीन का सांप सबसे पहले अपने को ही डस्ता है। जादूगर महाकाश्वर ने भी एडियाना के साथ वही किया। पहले छला... फिर उसकी ताकत हासिल की और एडियाना की ताकत हासिल करने के बाद, उसकी तीन इच्छाओं के साथ उसके मकबरे में दफन कर दिया। ये वही तीन इच्छा थी जिसके छलावे में एडियाना फंसी थी। एडियाना बर्फीले रेगिस्तान (रूस के बर्फीला इलाका) की खौफनाक शैतान कही जाती थी, जो अपने लाखों सेवक विंडीगो सुपरनेचुरल के साथ राज करती थी। ऐडियाना एक कुशल जादूगर तो थी लेकिन मध्य भारत के जादूगर महाकाश्वर की उतनी ही बड़ी प्रशंसक भी।


अभी के वक्त में जो तात्कालिक मंगोलिया है, उस जगह पर जादूगर की एक सभा लगी थी। उसी सभा मे महाकाश्वर की मुलाकात एडियाना से हुई थी। यूं तो जादूगरों की यह सभा साथ मिलकर काम करने के लिए बुलाई गई थी, लेकिन जहां एक ओर एडियाना अपनी बहन तायफा से मिलने पहुंची थी। वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसी तायफ़ा को मारने पहुंचा था। जीन–जिन को भ्रम था कि वह दिग्गज जादूगर है, वह सभी २ पाटन के बीच में पिस गए। एक ओर एडियाना अपनी बहन को बचा रही थी, वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसे मारने का प्रयास कर रहा था।


जादूगरों का गुट २ विभाग में विभाजित हो गया, जहां मेजोरिटी लेडीज के पास ही थी। लेकिन महाकाश्वर के लिए तो भाड़ में गए सब और ठीक वैसा ही हाल एडियाना का भी था। दोनो लगातार लड़ते रहे। उस लड़ाई में वहां मौजूद सभी जादूगर मारे गए फिर भी लड़ते रहे। जिसके लिए लड़ाई शुरू हुई, तायफा, वो भी कब की मर गई। लेकिन इनका लड़ाई जारी रहा। एडियाना बर्फ की रानी थी, तो महाकाश्वर आग का राजा। एडियाना भंवर बनाती तो महाकाश्वर पहाड़ बन जाता। कांटे की टक्कर थी। मंत्र से मंत्र भीड़ रहे थे और आपसी टकराव से वहां के चारो ओर विस्फोट हो रहा था, लेकिन दोनो पर कोई असर नहीं हो रहा था।


एडियाना ने फिर एक लंबा दाव खेल दिया। अपने सुपरनैचुरल विंडिगो की पूरी फौज खड़ी कर दी। लाखों विंडिगों एक साथ महाकाश्वर पर हमला करने चल दिए। किसी भी भीड़ को साफ करना महाकाश्वर के लिए चुटकी बजाने जितना आसान था। लेकिन एडियाना के अगले दाव ने महाकाश्वर के होश ही उड़ा दिए। महाकाश्वर ने विंडिगो की भीड़ को साफ करने के लिए जितने भी मंत्र को उनपर छोड़ा, विंडिगो उन मंत्रो के काट के साथ आगे बढ़ रहे थे। महाकाश्वर को ऐसा लगा जैसे एडियाना एक साथ सभी विंडिगो में समा गई है, जो मंत्र काटते आगे बढ़ रहे। कमाल की जादूगरी जिसके बारे में महाकाश्वर को पता भी नही था। हां लेकिन वो विंडिगो से खुद की जान तो बचा ही सकता था। महाकाश्वर ने तुरंत पहना बहरूपिया चोगा और अब हैरान होने की बारी एडियाना की थी।


बहरूपिया चोगा से भेष बदलना हो या फिर किसी रूप बदल मंत्र से, लेकिन जो महाकाश्वर ने किया वह अद्भुत था। जादू से किसी का रूप तो ले सकते थे लेकिन जिसका रूप लिया हो, खुद को उसकी आत्मा से ही जोड़ लेना, यह असंभव था। और यह असंभव होते एडियाना देख रही थी। एडियाना पहले तो बहुत ही आशस्वत थी, और रूप बदलने जैसे छल पर हंस रही थी। लेकिन जैसे ही पहले विंडिगो का निशान महाकाश्वर के शरीर पर बना, ठीक वैसा ही निशान, उसी जगह पर एडियाना के शरीर पर भी बना। अगले ही पल दोनो की लड़ाई रुक गई और दोस्ती का नया दौड़ चालू हो गया।


अब इच्छाएं किसकी नही होती। ठीक वैसी ही इच्छाएं एडियाना की भी थी। उसे एक चीज की बड़ी लालसा थी... बिजली का खंजर। महाकाश्वर भी यह पहली बार सुन रहा था, लेकिन जब उसने सुना की यह खंजर किसी भी चीज को चीड़ सकती है, तब वह अचरज में पड़ गया।


थोड़े विस्तार से यदि समझा जाए तो कुछ ऐसा था.… सबसे मजबूत धातु जिसे तोड़ा न जा सकता हो, उसका एक अलमीरा बना लिया जाए। अलमीरा के दीवार की मोटाई फिर चाहे कितनी भी क्यों न हो, 20 फिट, 40 फिट... और उस अलमीरा के अंदर किसी इंसान को रखकर उसे चिड़ने कहा जाए। तब इंसान को चिड़ने के लिए अलमीरा खोलकर उस आदमी को निकालने की जरूरत नहीं, क्योंकि बिजली की यह खंजर उस पूरे अलमीरा को ऐसे चीड़ देगी जैसे किसी ब्लेड से कागज के 1 पन्ने को चीड़ दिया जाता है। अलमीरा तो एक दिखने वाला उधारहन था। लेकिन अलमीरा की जगह यदि मंत्र को रख दे, तब भी परिणाम एक से ही होंगे। कितना भी मजबूत मंत्र से बचाया क्यों न जा रहा हो, यह खंजर इंसान को मंत्र सहित चीड़ देगी।


एडियाना की दूसरी सबसे बड़ी ख्वाइश थी कि यदि कोई ऐसा विस्फोट हो, जिसमे उसके चिथरे भी उड़ जाए तो भी वह जीवित हो जाय। जबकि दोनो को ही पता था कि एक बार मरने के बाद कोई भी मंत्र शरीर में वापस प्राण नही डाल सकती। और एक नई ख्वाइश तो एडियाना को महाकाश्वर से मिलने के बाद हुई, वह था बहरूपिया चोगा।

महाकाश्वर कुछ दिन साथ रहकर एडियाना की इच्छाएं जान चुका था। और उसकी जितनी भी इच्छाएं थी, कमाल की थी। महाकाश्वर ने एडियाना से कमाल के शस्त्र, "बिजली का खंजर" के बारे पूछा, "की अब तक वह इस शस्त्र को हासिल क्यों नही कर पायि"। जवाब में यही आया की इस शस्त्र के बारे में तो पता है, लेकिन वह कहां मिलेगा पता नही। महाकाश्वर ने एडियाना से सारे सुराग लिए और बड़ी ही चतुराई से पूरी सूचना लोपचे के भटकते मुसाफिर तक पहुंचा दिया। फिर क्या था, कुछ सिद्ध पुरुष और क्षत्रिय के साथ पारीयान निकल गया खोज पर। महाकाश्वर और एडियाना को तो छिपकर बस इनका पिछा करना था।


लगभग ३ वर्ष की खोज के पश्चात लोपचे के भटकते मुसाफिर की खोज समाप्त हुई। वह खंजर यांग्त्जी नदी के तट पर मिली जो वर्तमान समय में संघाई, चीन में है। जैसे ही यह खंजर मिली, एडियाना के खुशी का ठिकाना नहीं रहा। महाकाश्वर ने अपने छल से वह खंजर तो हासिल कर लिया, लेकिन इस चक्कर में एडियाना और महाकाश्वर दोनो घायल हो गए। घायल होने के बाद तो जैसे एडियाना पागल ही हो गई थी। वह तो सबको मारने पर उतारू थी, लेकिन महाकाश्वर उसे लेकर निकल गया। लोपचे के भटकते मुसाफिर से लड़ाई करना व्यर्थ था, यह बात महाकाश्वर जनता था। बस उसे डर था कि कहीं एडियाना भ्रमित अंगूठी के बारे में जान जाती, तो उसे अपनी तीव्र इच्छाओं में न सामिल कर लेती। यदि ऐसा होता फिर तो इन दोनों की जान जानी ही थी। क्योंकि पारीयान इन दोनो (महाकाश्वर और एडियाना) के अस्त्र और शस्त्र से मरता नही, उल्टा योगी और सिद्ध पुरुष के साथ मिलकर इनके प्राण निकाल लेता।


एडियाना की दूसरी इच्छा का उपाय तो महाकाश्वर पहले से जानता था। उसे हासिल कैसे करना है वह भी जनता था। लेकिन उसे हासिल करने के लिए महाकाश्वर को अपने जैसा ही एक कुशल जादूगर चाहिए था। हिमालय के पूर्वी क्षेत्र में एक अलौकिक और दिव्य गांव बसा था। हालांकि उस गांव को तो किसी ने पहले ही पूरा ही उजाड़ दिया था, लेकिन उस गांव के गर्भ में एक पुर्नस्थापित अंगूठी थी, जो उस पूरे गांव के ढांचे की शक्ति संरचना थी। इसके विषय में खुद गांव के कुछ लोगों को ही पता था। ऊपर से इतनी सिद्धियों के साथ उसके गर्भ में स्थापित किया गया था कि २ सिद्ध जादूगर मिलकर भी कोशिश करते तो भी एक चूक दोनो की जान ले लेती।


लेकिन महाकाश्वर आश्श्वत था। इसलिए खतरों को बताए बिना वह एडियाना के साथ उस गांव में घुसा और कड़ी मेहनत के बाद दोनो पुर्नस्थापित अंगूठी को हासिल कर चुके। सबसे पहला प्रयोग तो महाकाश्वर ने खुदपर किया। एडियाना ने अपने मंत्र से महाकाश्वर के चिथरे उड़ा दिए, लेकिन अगले ही पल एक हैरतअंगेज कारनामे आंखों के सामने था। महाकाश्वर के शरीर का एक–एक कण देखते ही देखते जुड़ गया।


तीनों इच्छाओं को तो महाकाश्वर मूर्त रूप दे चुका था। अब बारी थी एक बहुत बड़े चाल कि। इसके लिए स्थान पहले से तय था, जरूरी सारे काम किए जा चुके थे। एडियाना भी पूरे झांसे में आ चुकी थी। पहले तो कुछ दिनों तक उसे आतंक मचाने के लिए छोड़ दिया गया। कुछ ही वक्त में सकल जगत को महाकाश्वर और एडियाना का नाम पता चल चुका था। हर कोई जानता था कि महाकाश्वर और एडियाना कौन सी शक्तियां हासिल कर चुके। मंत्रों से कोई भी योगी अथवा सिद्ध पुरुष संरक्षित हो नही रहे थे। उसे बिजली की खंजर का स्वाद मिल ही जाता। कितना भी दोनो को मंत्र से बेजान करने की कोशिश क्यों न करो, उनका शरीर पहले जैसा ही हो जाता। उल्टा बहरूपिया चोगा के प्रयोग से एडियाना पर प्राणघाती हमला उल्टा चलाने वाले पर भी हो जाता। एडियाना पुर्नस्थापित अंगूठी से तो बच जाती लेकिन उनके प्राण अपने ही मंत्र ले चुके होते।


एडियाना, महाकाश्वर के पूरे झांसे में आ चुकी थी और अब वक्त था आखरी खेल का। महाकाश्वर, एडियाना के साथ सतपुरा के जंगल में चला आया। थोड़े भावनात्मक पल उत्पन्न किए गए। एडियाना के हाथ को थाम नजरों से नजरें चार हुई। महाकाश्वर के बातों में छल और बातों के दौरान ही उसने एडियाना के मुंह से उगलवाया उसकी इच्छाएं, जिसे महाकाश्वर ने पूरे किये थे। एडियाना ने अपनी इच्छाएं बताकर जैसे ही स्वीकार कर ली कि उसकी सारी इच्छाएं महाकाश्वर ने पूरी कि है, ठीक उसी पल एडियाना का शरीर बेजान हो गया और उसकी सारी सिद्धियां महाकाश्वर के पास पहुंच गई। अब या तो महाकाश्वर, एडियाना को उसकी इच्छाओं के साथ दफना दे या फिर 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाओं को उस से अलग कर दे। अपनी पूरी शक्ति और साथ में जान खोने के बाद, एडियाना अपने मकबरे में दफन हो गई। और उसे दफनाने वाला महाकाश्वर ने उसके तीन इच्छाएं, पुर्नस्थापित अंगूठी, बिजली की खंजर और बेहरूपिया चोगा के साथ एडियाना को दफना दिया।


जादूगर महाकाश्वर अपने 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाएं वापिस हासिल कर लेता। लेकिन अनुष्ठान पूर्ण होने के पहले ही लोपचे का भटकता मुसाफिर जादूगर महाकाश्वर तक पहुंच चुका था। उस जगह भीषण युद्ध का आवाहन हुआ। एक लड़ाई जादूगर महाकाश्वर और योगियों के बीच। एक लड़ाई एक लाख की सैन्य की टुकड़ी के साथ अगुवाई कर रहे सुपरनैचुरल वेयरवोल्फ पारीयान और विंडिगो सुपरनेचुरल के बीच। 2 किलोमीटर के क्षेत्र को बांध दिया गया था। केवल जितने वाला ही बाहर जा सकता था और सामने महायुद्ध। बिना खाये–पिये, बिना रुके और बिना थके 4 दिनो के तक युद्ध होता रहा। 4 दिन बाद ऐडियाना के मकबरे से पुर्नस्थापित अंगूठी लेकर केवल एक शक्स बाहर निकला, वो था लोपचे का भटकता मुसाफिर।


पारीयान ने पूरे संवाद भेजे। युद्ध की हर छोटी बड़ी घटना की सूचना कबूतरों द्वारा पहुंचाई गई। एडियाना का मकबरा और वहां दफन उसकी 3 इच्छाओं का ज्ञान सबको हो चुका था। पारीयान के लौटने की खबर भी आयि लेकिन फिर दोबारा कभी किसी को पारीयान नही मिला। न ही कभी किसी को एडियाना का मकबरा मिला। न जाने कितने खोजी उन्हे मध्य भारत से लेकर हिमालय के पूर्वी जंगलों में तलासते रहे, किंतु एक निशानी तक नही मिली। खोजने वालों में एक नाम सरदार खान का भी था जिसे सबसे ज्यादा रुचि बिजली के खंजर और पुर्नस्थापित अंगूठी में थी।


किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।
Shandaar, jabarjast lajawab update bhai. To ya khani hai indiyana ka makabara aur lopche ke bhatakate musafir ki.
Par aryamani ke wo potli kaisi hai ki usme pariyan lopche sama gya, ya ki pariyan lopche ki di hui potli hai wo.
 
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