भाग:–36
कुछ ही देर में पूरी सभा समाप्त हो गई। हाई टेबल की हाई बैठक में आज तो पलक ने सबकी बोलती बंद कर दी। इतने बड़े फैसले उसने इतने आसानी से सुना दिए जिसका अंदाज़ा तो भारद्वाज परिवार में भी किसी को नहीं था।
शुक्ला, महाजन और पाठक ये तीनों परिवार भी वैधायन के साथ शुरू से जुड़े थे। भारद्वाज खानदान के उलट इनका जब वंश आगे बढ़ा तो उनके वंश का हर सदस्य तरक्की की ऊंचाई पर था। लगभग 6 पीढ़ियों का इतिहास तो सबका है, जिसमें इन तीनों की बढ़ती पीढ़ी इतनी विस्तार कर गई की इनका पूरे प्रहरी समुदाय पर लगभग कब्जा था।
हां लेकिन एक बात जो सत्य थी। जबतक सुकेश भारद्वाज सत्ता में था तब भी इनकी नहीं चली। जब उज्जवल भारद्वाज सत्ता में रहा तब इनकी नहीं चली और जब भूमि भारद्वाज थी पहले, बाद मे देसाई बनी, वो जब अस्तित्व मे आयी तब इनकी जड़ें खोद डाली। और आज पलक ने तो अविश्वसनिय काम कर दिया था। प्रहरी के 40 में से 30 हाई टेबल इन्हीं परिवारों के पास थी और पलक ने उनमें से 22 टेबल एक मीटिंग में खाली करवा दी।
शुरू से इन तीनों परिवार, शुक्ल, महाजन और पाठक, के कुछ लोग लॉबी करते थे। अंदरुनी साजिश और प्रहरी समुदाय में भारद्वाज का दबदबा समाप्त करने की इनकी कोशिश लंबे समय से जारी थी। इन्हीं के पूर्वजों कि कोशिश की वजह से कभी भारद्वाज खानदान विकसित होकर अपना वंश वृक्ष मजबूती से आगे नहीं बढ़ा पाया।
इन्हीं लोगों के कोशिशों का नतीजा था कि भारद्वाज के साथ उनके करीबियों को भी समय समय पर लपेट लिया जाता था, जिसकी एक कड़ी वर्धराज़ कुलकर्णी भी थे। जबसे इन लोगों को पता चला था कि कुलकर्णी खानदान का एक लड़का काफी क्षमतावान है जिसका प्रारंभिक जीवन अपने दादा की गोद में, उसके ज्ञान तले बढ़ा, तब से इन लोगों का मुख्य निशाना आर्यमणि ही था।
हालांकि शुक्ल, महाजन और पाठक के वंश वृक्ष की हर साखा पर धूर्त नहीं थे। उनमें से बहुत ऐसे पूर्वजों की पीढ़ी भी आगे बढ़ी थी जो प्रहरी के प्रति पूर्ण समर्पित और संस्था को पहली प्राथमिकता देते थे।
प्रहरी हाई टेबल मीटिंग के समापन के तुरंत बाद ही इन परिवारों के एक लीग कि अपनी एक मीटिंग, उसी दिन मुंबई में हुई। जिसमे हंस शुक्ल, रवि महाजन और भाऊ की बेटी आरती मुले सामिल थी। इनके साथ प्रहरी के कई उच्च सदस्य भी थे।
हंस:- मेरा ससुर (भाऊ, देवगिरी पाठक) पागल हो गया है वो तो इन भारद्वाज के तलवे ही चाटेगा।
आरती:- कास बाबा इस लीग का हिस्सा होते जो भारद्वाज को गिरता देखना चाहते है और पुरा प्रहरी समुदाय अपने नाम करना चाहते है। लेकिन वैधायन के पाठक दोस्तों के 4 बेटे में से, बाबा को पुष्पक पाठक का ही वंसज होना था।
अमृत पाठक, भाऊ का भतीजा, और उसकी संपत्ति पर अपनी चचेरी बहन और भाऊ की बेटी आरती के साथ नजर गड़ाए। क्योंकि भाऊ की मनसा सम्पत्ति को लेकर साफ थी, उनकी सम्पत्ति का वारिस एक योग्य प्रहरी होगा जो इस संपत्ति को आगे बढ़ाए और प्रहरी के काम में पूर्ण आर्थिक मदद करे। इसलिए उसने कभी बेटे की ख्वाहिश नहीं किया। उनकी 2 बेटियां ही थी, बड़ी सुप्रिया शुक्ल जिसकी शादी हंस शुक्ल से हुई थी। छोटी भारती, जिसकी शादी धीरेन स्वामी से हुई थी। एक मुंह बोली बेटी भी थी, जिसकी शादी प्रहरी के बाहर मुले समुदाय में हुई थी, और वह आरती मुले थी।
अमृत पाठक:- जो लॉबिंग महाजन, शुक्ल और पाठक के वंशज करते आ रहे थे, वह सभी भारद्वाज के दिमाग के धूल के बराबर भी नहीं। नई लड़की के सामने एक ही मीटिंग मे 22 हाई टेबल खाली करवा आए। शर्म नहीं आती तुम सबको। जाओ पहले कोई दिमाग वाला ढूंढो और धीरेन स्वामी को मानने की कोशिश करो। क्योंकि वाकई तुम लोगो पर भारद्वाज का काल मंडरा रहा है।
आरती:- अमृत मेरे बाबा कहीं अपनी प्रॉपर्टी बिल ना बनवा रहे हो पलक भारद्वाज के नाम। मुझे तो यही चिंता खाए जा रही है।
अमृत:- बड़े काका जो भी बिल बनवा ले, बस उनको मरने दो, फिर आराम से ये सम्पत्ति 2 भागो में विभाजित होगी। मै इसलिए नहीं काका का काम देखता की उनकी सम्पत्ति भिखारियों में दान दे दी जाए। …
तभी उस महफिल में एंट्री हो गई एक ऐसे शक्स की जिसकी ओर सबका ध्यान गया… प्रहरी के इस भटके समूह का दिमाग, यानी धीरेन स्वामी पर। धीरेन स्वामी का कोई बैकग्राउंड नहीं था। एक बार शिकारियों के बीच धीरेन फसा था, जहां उसने अपनी आखों से सुपरनैचुरल को देखा था।
खैर, उसे कभी फोर्स नहीं किया गया कि वो प्रहरी बने। उसे कुछ पैसे दे दिए गए, ताकि वो खुश रहे और बात को राज रखे। छोटा सा लड़का फिर देवगिरी पाठक के पास पहुंचा और उनके जैसा काम सिखन की मनसा जाहिर किया। देवगिरी ने कुछ दिनों तक उसे अपने पास रखकर प्रशिक्षित किया। उसके सीखने की लगन और काम के प्रति मेहनत को देखकर देवगिरी उसे प्रहरी समुदाय में लेकर आया।
भूमि और धीरेन की सीक्षा लगभग एक साथ ही शुरू हुई थी। दोनो जैसे-जैसे आगे बढ़े प्रहरी समुदाय मे काफी नाम कमाया। दोनो दूर-दूर तक शिकार के लिए जाते थे और निर्भीक इतने की कहीं भी घुसकर आतंक मचा सकते थे। दोनो ही लगभग एक जैसे थे दिमाग के बेहद शातिर और टेढ़े तरीके से काम निकालने में माहिर। बस एक चीज में भूमि मात खा गई, धीरेन टेढ़े दिमाग के साथ टेढ़ी मनसा भी पाल रहा था, इस बात की भनक उसे कभी नहीं हुई।
दोनो के बीच प्रेम भी पनपा और जश्मानी रिश्ते भी कायम हुए, लेकिन धीरेन केवल भूमि की सोच को समझने के लिए और प्रहरी का पुरा इतिहास जानने के लिए उसके साथ हुआ करता था। उसे इस बात की भनक थी, यदि भूमि उसके साथ हुई, तो वो अपनी मनसा में कभी कामयाब नहीं हो पाएगा, और यहां उसकी मनसा कोई पैसे कमाने का नहीं थी, बल्कि उससे भी ज्यादा खतरनाक थी। ताकत का इतना बड़ा समुद्र उसे दिख चुका था कि वो सभी ताकतों का अधिपति बनना चाहता था।
इसी बीच धीरेन भूमि की मनसा पूरा भांप चुका था। भूमि प्रहरी समुदाय में चल रहे करप्शन की जड़ तक पहुंचने की मनसा रखती थी। भूमि जिस-जिस पॉइंट को लेकर शुक्ल, महाजन और पाठक के कुछ लेग को घसीटने वाली होती, समय रहते धीरेन ने उन्हें आगाह कर दिया करता और वो इस खेमे मे सबसे चहेता बन गया।
भूमि से नजदीकियों को दूर करने के लिए धीरेन की शादी भारती से करवाई गई, ताकि ये मुंबई आ जाए और भूमि से दूर हो जाए। धीरेन को भी कोई आपत्ति नहीं थी। भूमि से केवल भावनात्मक दिखावा किया था धीरेन ने और भाऊ का कर्ज उतारने के लिए यह शादी कर रहा, भूमि से जताया। भूमि खून का घूंट पीकर रह गई। कुछ दिनों के लिए भूमि सब कुछ भूलकर विरह में भी जी थी। तब भूमि को जयदेव का सहारा मिला। जयदेव हालांकि भूमि के गुप्त रिश्ते के बारे में नहीं जानता था, उसे केवल इतना पता था कि भूमि धीरेन के साथ छोड़ने से हताश है।
जयदेव बहुत ही शांत प्रवृत्ति का प्रहरी था, जो चुप चाप अपना काम किया करता था। भूमि के अंतर्मन को ये बात झकझोर गई की अपने अटूट रिश्ते के टूटने कि कहानी बताये बिना यदि वो जयदेव से शादी कर ली, तो गलत होगा। इसलिए शादी के पूर्व ही उसने जयदेव को सारी बातें बता दी। जयदेव, भूमि के गम को सहारा देते हुए अपनी कहानी भी बयान कर गया जो कॉलेज में एक लड़की के साथ घटा था और वो बीमारी के कारण मर गई थी।
शायद दोनो ही एक दूसरे के दर्द को समझते थे इसलिए एक दूसरे से शादी के बाद उतने ही खुश थे। आज ना तो भूमि और ना ही जयदेव को अपनी पिछली जिंदगी से कोई मलाल था क्योंकि दोनो ने एक दूसरे के जीवन में जैसे रंग भर दिए हो। इधर धीरेन अपनी शादी के बाद मुंबई सैटल हो गया। एक जिम्मेदार प्रहरी और भाऊ का वो उत्तराधिकारी था। इसलिए अरबों का बिजनेस उसे सौगात में मिली थी, जिसे उसकी पत्नी भारती देखती थी। धीरेन सबकी मनसा जानता था लेकिन धीरेन की मनसा कोई नहीं। समुदाय में भटके परिवार को यही लगता रहा की धीरेन स्वामी धन के लिए ही काम कर रहा था। जब उसे भाऊ की सम्पत्ति का एक हिस्सा मिला, तब अपने दिमाग और भारती की कुशलता की मदद से, उसने इतनी लंबी रेखा खींच दी, कि बाकियों के नजर में धीरेन स्वामी अब खटकने लगा। जिसका परिणाम हुआ, मुंबई के प्रहरी इकाई ने धीरेन को प्रहरी समुदाय छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। धीरेन के समुदाय छोड़ने ही, उसे अपनी 70% सम्पत्ति प्रहरी समुदाय को लौटानी पड़ी थी और इन लोगो के सीने में बर्णोल लग गया था।
बीते दौड़ में भूमि नामक तूफान से धीरेन ने उन सबको निकाल लिया था। उसके बाद तो सभी लोग यही सोचते रहे की भारद्वाज का अब कौन है, जो भूमि के बराबर दिमाग रखता हो और हमारी जड़े हिलाए। बस इस एक सोच ने उन्हें आज ऐसा औंधे मुंह गिराया की धीरेन के पाऊं पकड़कर मीटिंग में आने के लिए राजी किया गया था।
धीरेन स्वामी जैसे ही अंदर पहुंचा, आरती उसे बिठती हुई… "कैसे है छोटे जमाई।"
धीरेन, हंसते हुए… "सब वक़्त का खेल है। कभी नाव पर गाड़ी तो कभी गाड़ी पर नाव।"..
अमृत:- धीरेन भाऊ अब गुस्सा थूक भी दो, और इनकी डूबती नय्या को पार लगा दो।
धीरेन:- अमृत, मुझे केवल अपने परिवार के लोग से बात करनी है। बाकी सब यहां से जा सकते है।
अमृत, आरती और हंस उसके पास बैठ गए और बाकी सभी बाहर चले गए।… "दीदी मै सिर्फ आप दोनो को बचा सकता हूं, बाकी मामला अब हाथ से निकल गया है। वो भी आपको इसलिए बचना मै जरूरी समझता हूं क्योंकि आपके बारे में जानकर मेरी पत्नी को दर्द होगा, और उसे मै दर्द में नहीं देख सकता। वो परिवार ही क्या जो बुरे वक़्त में अपने परिवार के साथ खड़ा ना हो, भले ही उस परिवार ने मुझसे मेरी सबसे प्यारी चीज छीन ली हो।"..
हंस:- हम बहकावे में आ गए थे स्वामी, आज भी आरती ने भरी सभा में तुम्हारा नाम लिया था।
धीरेन:- और आप.… आपको मै याद नहीं आया जो आपके बाबा को और यहां बैठे ना जाने कितने प्रहरी को मुसीबत से निकाला था। मै केवल और केवल आरती के साथ मीटिंग करूंगा, इसके अलावा कोई और दिखा तो मै कोई मदद नहीं करने वाला।
आरती:- मुझे मंजूर है।
स्वामी उस सभा से उठते हुए… "मेरे कॉल का इंतजार करना आप, और आगे से ध्यान रखिएगा पैसे की चाहत अक्सर ले डूबती है।"..
स्वामी के वहां से जाते ही…. "हंस 2 टॉप क्लास मॉडल का इंतजाम करो, नई शुरवात के नाम।"..
हंस:- हम्मम ! समझ गया…
स्वामी उस दरवाजे से बाहर निकलते ही अंदर ही अंदर हंसा…. "एक बार गलत लोगों पर भरोसा करके मैं अपने लक्ष्य से कोसों दूर चला गया था, तुमने क्या सोचा इस बार भी वही होगा। बस अब तमाशा देखते जाओ।"..
स्वामी कुछ दूर चलते ही उसने अपना फोन निकला, कॉल लगा ही रहा था कि उसे ध्यान आया…. "भूमि ने अब तक तो सरदार खान पर सर्विलेंस लगा दिया होगा। सरदार खान को फोन करने का मतलब होगा फसना। सॉरी सरदार तुझे नहीं बचा पाया, लेकिन तू खुद बच जाएगा मुझे यकीन है।"
देवगिरी पाठक का बंगलो…
मीटिंग की शाम देवगिरी पाठक और विश्वा देसाई की बैठक हो रही थी। दोनो शाम की बैठक में स्कॉच का छोटा पेग उठाकर खिंचते हुए…
देवगिरी:- विश्वा दादा आज तो उस पलक ने दिल जीत लिया।
विश्व:- देव तुम शुरू से बहुत भोले रहे हो। जानते हो मै यहां क्यों आया हूं?
देवगिरी:- क्यों दादा..
विश्वा:- आज की मीटिंग में जब आर्यमणि का पैक बनाना, वुल्फ से दोस्ती और उनके क्षेत्र कि जांच हो ऐसी मांग उठी, तो मुझे वर्धराज गुरु की याद आ गई। किसी ने उस समय जो साजिश रची थी, इस बार भी पूरी साजिश रचे थे। लेकिन भारद्वाज की नई पीढ़ी अपने दादाओं कि तरह बेवकूफ नहीं है। शायद हमने वर्धराज गुरु के साथ गलत किया था...
देवगिरी:- दादा आपने बहुत सही प्वाइंट पकड़ा है। अरे करप्शन कि जड़ है ये शुक्ल, महाजन और मेरा पाठक परिवार। हमेशा इन लोगो ने पैसों को तबोज्जो दिया है।
विश्वा:- मुझे पलक की बात जायज लगी। सबको रीसेट करते है और धन का बंटवारा बराबर कर देते है। किसी के पास अरबों तो किसी के पास कुछ नहीं...
देवगिरी:- कैसे करेंगे दादा? अब जैसे स्वामी को ही ले लो। उसे मैंने 400 करोड़ का सेटअप दिया था। 4 साल में उसने 1200 करोड़ बनाया और प्रहरी छोड़ते वक़्त उसने 840 करोड़ समुदाय को दे दिया। 360 करोड़ से उसने धंधा चलाया। 6 साल में वो कुल 1600 करोड़ पर खड़ा है। क्या कहूं फिर 70% दे दो।
"हां फिर 70% ले लो। बुराई क्या है।"… धीरेन स्वामी अंदर आते ही दोनो के पाऊं छुए।
देवगिरी:- दादा इसको पूछो ये यहां क्या करने आया है?
धीरेन स्वामी:- अपने ससुर का ये 6 साल से इन-डायरेक्ट बात करने का सिलसिला तोड़ने। मुझे गुप्त रूप से नियुक्त कीजिए और जांच का प्रभार सौंप दीजिए। काम खत्म होने के बाद मुझे स्थाई सदस्य बनाना ना बनना आप सब की मर्जी है, लेकिन मै वापस आना चाहता हूं। बोर हो गया हूं मै ऑफिस जाते-जाते।
देवगिरी:- क्या मै सच सुन रहा हूं या तुझे आज फिर से भारती ने डांटा है?
धीरेन:- भाऊ हे काय आहे, मै सच कह रहा हूं।
विश्वा:- देवगिरी मैंने दे दिया प्रभार, तुम भी दो।
देवगिरी, अपने दोनो हाथ स्वामी के गाल को थामते… "मेरा बेटा लौट आया।" इतना कहकर देवगिरी ने बेल बजाई, उधर से एक अत्यंत खूबसूरत 28 साल की एक लेडी एक्सक्यूटिव की पोशाक में वहां पहुंची…. "सैफीना सभी एम्प्लॉयज में 2 महीने की सैलरी बोनस डलवा दो।"
धीरेन:- हेल्लो सैफीना..
सैफीना:- हेल्लो सर..
धीरेन:- 2 मंथ नहीं 3 मंथ की सैलरी बोनस के तौर पर दो और मै जब जाने लगूं तो एक मंथ का बोनस चेक मुझसे कलेक्ट कर लेना।
सैफीना "येस सर" कहती हुई वहां से चली गई। उसके जाते ही… "भाऊ आप कहते थे ना मै अपनी सारी संपत्ति किसी ऐसे के नाम करूंगा जो इस धन को आगे बढ़ाए और प्रहरी समुदाय में किसी को आर्थिक परेशानी ना होने दे तो वैसा कोई मिल गया है।"
देवगिरी:- हां मै भी उसी के बारे में सोच रहा था, पलक भारद्वाज।
धीरेन:- नहीं गलत। आर्यमणि कुलकर्णी।
देवगिरी:- लेकिन वो तो प्रहरी नहीं है और जहां तक खबर लगी है कि वो बनेगा भी नहीं।
धीरेन:- हा भाऊ, लेकिन उसकी सोच पूरे प्रहरी समुदाय से मिलती है, या फिर उससे भी कहीं ज्यादा ऊंची। ना तो वो आपके पैसे को कभी डूबने देगा और ना ही किसी गलत मकसद मे लगाएगा। उल्टा वर्षों से जो हम अनदेखी करते आएं है वो उसकी भरपाई कर रहा है। देखा जाए तो प्रहरी के गलती का निराकरण, वुल्फ को सही ढंग से बसाकर। मेरे हिसाब से तो आपको उसी को उत्तरदायित्व देना चाहिए।
देवगिरी:- मेरा दिल पिघल गया तेरी बातों से। कल ही बिल बनवाता हूं। 42% में ३ बेटी का हिस्सा। 18% अमृत को और बचा 40% आर्यमणि को। जबतक रिटायरमेंट नहीं लेता, सब मेरे कंट्रोल में और सबको जल्दी धन चाहिए तो मेरा कत्ल करके ले लेना।
धीरेन:- 100% की बात करो तो सोचूं भी कत्ल करने का ये 14% के लिए कौन टेंशन ले। इतना तो मै 4 साल में अपने धंधे से अर्जित कर लूंगा।
देवगिरी:- ले ले तू ही 100%। कल से आ जा यहां, मै घूमने चला जाऊंगा।
धीरेन:- भाऊ आपकी बेटी मुझे चप्पल से मारेगी और सारा पैसा अनाथालय को दान कर देगी। रहने दो आप, गृह कलेश करवा दोगे। मैंने अपने दोनो बेटे के लिए पर्याप्त घन छोड़ा है। पहले से सोच लिया है, 2000 करोड़ अपने दोनो बेटे मे, उसके आगे का आधा घन प्रहरी समुदाय को और आधा अनाथालय को।
देवगिरी:- ये है मेरा बच्चा। आज तो नाचने का मन कर रहा है।..
धीरेन:- आप दोनो नाचो मै जबतक यहां के काम काज को देखता चलूं।
धीरेन जैसे ही बाहर निकला। साइड में रिसेप्शन पर बैठा एक लड़का… "सर सैफीना मैम ने वो चेक के बारे में कहा था याद दिला देने।"
स्वामी:- ओह हां। कहां है वो अभी। बोलो यहां आकर कलेक्ट कर ले।
रिसेप्शनिस्ट, कॉल लगाकर बात करने के बाद… सर वो अपने चेंबर में है। आपको ही बुला रही है। बोली एक फाइल को आप जारा चेक करते चले जाइए।
ठीक है कहता हुए वो ऑफिस में घुसा… "कौन सी फाइल चेक करनी है मैडम।"..
सैफीना अपने कुर्सी से उतरकर आगे अपने डेस्क कर टांग लटकाकर बैठ गई और अपने शर्ट के बटन खोलते… "फाइल मै ओपन करके दूं, या खुद ओपन करोगे।"..
"तुम बस सिग्नेचर करने वाली पेन का ख्याल रखो, बाकी सब मै अपने आप कर लूंगा।"…
बदन से पूरे कपड़े उतर गए और दोनो अपने काम लीला में मस्त। एक घंटे में मज़ा के साथ-साथ सारी इंफॉर्मेशन बटोरते हुए धीरेन ने सैफीना को उसके पसंदीदा ऑडी की चाभी थमाई और वहां से चलता बाना।
अगले दिन कि मीटिंग में, जान हलख में फसे लोग बाहर इंतजार करते रहे और स्वामी, आरती के साथ मीटिंग में व्यस्त था। इसी बीच 2 हॉट क्लास मॉडल उसकी सेवा में पहुंच गई। स्वामी का मन उनको देखकर हराभरा तो हुआ, लेकिन धीरेन इस वक़्त इनके झांसे में नहीं ही फंस सकता था। धीरेन स्वामी, आरती के माध्यम से सबको आश्वाशन दिया और सबको आराम से 2 महीने शांत बैठने के लिए कहने लगा।
Ye sale tino kul wale to bahut bade kamine nikle Matlb inko bas paise se matlab hai. Aur in sub kamino ka bhi baap hai ek dhiren. Iske bare me to padh kar bas itna hi kahne ka man kar raha hai sun me jo bhumi ko chla de to uske bare me kya hi kahna. Bas mai to itna cahta hu apna aary iska pool sbke samne khole aur isko saja bhumi ke hatho mile. Bahut maje kiye hai na bhumi ke sath jab wo saja degi to bhi maja aayega dekhne me.
Aur aary jo ki bhumi ko itna manta hai mere khyal se use iske bare me kafi kuch pata hoga aur bhumi ke sath dhoka karne wale ko to wo aisi maut dega ki dekhne sunane wale bhi kabhi aisa karne se pahle 1000 time sochenge. Aur is dhiren ne to such me her jagah apna jaal sa bun rakha hai abhi tak mujhe ek bhi banda nahi dikha jo isake khilaf ho. Aur baat bhi sahi hai wo paise ke piche nahi power ke piche hai. Dekhte hai aage kya hota hai ?
nain11ster bhai bahut hi jabardast Update.
भाग:–37
नागपुर शहर.... मीटिंग खत्म होने के ठीक एक दिन बाद…..
सुकेश की बुलावे पर बड़ी सी महफिल सजी हुई थी। जहां प्रहरी और आर्यमणि दोनो साथ बैठे थे। जिस गरज के साथ पलक प्रहरी सभा में बरसी थी, उसपर पुरा घर रह-रह कर गर्व महसूस कर रहा था। लेकिन बोलने के बाद अब करने का वक्त था और जरूरी था पलक खुद को साबित करके दिखाये। पलक की अगुवाई में चल रही रीछ स्त्री की खोज भी पूरी हो चुकी थी, और उसे धर–दबोचने की तैयारी में यह सभा रखी गयि थी।
सुकेश:– बहुत ज्यादा वक्त न लेते हुये मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं। वाकी वुड्स में क्या हुआ था इस बात से सभी भली भांति परिचित होंगे। पलक जब विशेष जीव साखा की अध्यक्ष बनी, तभी उसने मुझे रीछ स्त्री को दूंढने का काम सौंपा। मैने इस काम में अपने कुछ खास सहयोगियों को लगाया था और अब हमारे पास रीछ स्त्री की पक्की खबर है...
पूरी सभा लगभग एक साथ... "कहां है वह अभी"…
सुकेश:– खबरों की माने तो वह रीछ स्त्री सतपुरा के घने जंगलों के बीच, वहां स्थित पर्वत श्रृंखला के एक मांद में छिपी है। आसपास के लगभग 5 किलोमीटर का दायरा उसका विचरण क्षेत्र है, जिसके अंदर कोई नही जा सकता।
भूमि:– कोई नही जा सकता, यह कैसे पता चला? क्या अंदर घुसने की कोशिश में किसी पर हमला हुआ या जान से मार दिया गया?
सुकेश:– पूरी जानकारी तो मुझे भी नही। खबरियों द्वारा जो खबर मिली उसे बता रहा हूं। जबतक वहां छानबीन के लिये नही जायेंगे, पूरी बात पता नही चल सकती। हां पर खबर पक्की है कि रीछ स्त्री वहीं है।
भूमि:– हां तो देर किस बात की है। हम कुछ टुकड़ी के साथ चलते हैं और उस रीछ स्त्री को पकड़ कर ले आते हैं।
पलक:– भूमि दीदी जाने से पहले थोड़ा यह जान ले की हम किसके पीछे जा रहे। यह कोई साधारण सुपरनेचुरल नही बल्कि काफी खरनाक और दीर्घायु सुपरनैचुरल है। सोचो कितना उत्पात मचाया होगा, जो इसे विष मोक्ष श्राप से बंधा गया था। इसका दूसरा मतलब यह भी निकलता है कि उस दौड़ में विकृत रीछ स्त्री को मार नही पाये होंगे इसलिए मजबूरी में कैद करना पड़ गया होगा।
भूमि:– ठीक है तुम इंचार्ज हो, तुम्ही फैसला करो...
पलक:– पैट्रिक और रिचा की टीम तेजस दादा के नेतृत्व में काम करेगी। सुकेश काका, बंगाल की मशहूर जादूगरनी ताड़का और उसके कुछ चेलों के साथ अपनी एक टुकड़ी लेकर जायेंगे। आर्यमणि के अल्फा पैक के साथ मैं एक टुकड़ी लेकर जाऊंगी। आज शाम ही हम सब सतपुरा जंगल के लिये निकलेंगे। हम सबसे पहले सतपुरा के पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचेंगे और वहां से अलग–अलग दिशाओं से जांच करते हुये, ठीक 7 दिन बाद, चंद्र ग्रहण से ठीक एक दिन पूर्व, रीछ स्त्री के उस 5 किलोमीटर वाले दायरे के पास एकत्रित होंगे। वहां हम पूरी रणनीति बनायेंगे और चंद्र ग्रहण की रात उस रीछ स्त्री को बांधकर नागपुर प्रहरी कार्यालय में कैद करेंगे।
भूमि:– मेरी नेतृत्व वाली सभी टुकड़ी को ले जा रहे और मुझे ही अगुवाई का मौका नहीं मिल रहा...
पलक:– दीदी आप यहां आराम करें और आपकी टुकड़ी में जो बेहतरीन शिकारी है उसे भी ऊपर आने का मौका दें।
भूमि, पलक के इस जवाब पर केवल मुस्कुरा कर अपनी प्रतिक्रिया दी। सभा में सभी फैसले लेने के बाद सभा स्थगित हो गया और सब शाम में निकलने की तैयारी करने लगे। तैयारी में तो आर्यमणि भी लग गया। जहां एक ओर लोगों को शिकारी होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था, वहीं आर्यमणि और निशांत २ ऐसे नाम थे जो पैदा ही शिकारियों के गुण के साथ हुये थे। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण तो लोपचे का खंडहर था, जहां कई माहिर शिकारी को दोनो चकमा देकर सुहोत्र को ले उड़े। आर्यमणि भला जंगल के इस मिशन में निशांत को साथ क्यों नही लेता। बाकी सब अपनी रणनीति में और दोनो दोस्त अपनी...
निशांत:– मजा आयेगा आर्य, लेकिन ये तो बता की हमे वहां करना क्या होगा?
आर्यमणि:– मुझे भी पता नही। शायद जंगल के अंदर कुछ छानबीन और उस विकृत रीछ स्त्री को पकड़े कैसे?
निशांत, थोड़ा आश्चर्य में... "यानी जिसे पकड़ने जा रहे उसके विषय में कोई ज्ञान नहीं?"
आर्यमणि:– इतना चौंक क्यों रहा है?
निशांत:– यार ये तो आत्महत्या करने जैसा है। इतिहास के सबसे शक्तिशाली मानव प्रजाति जो हजारों वर्ष तक जिंदा रह सकते थे। जिनके शक्तियों का विस्तृत उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक है। जिसका एक योद्धा जम्बत जी का उल्लेख सतयुग से लेकर द्वापरयुग तक मिलता है। और यदि इस रीछ स्त्री की बात करे तो वह गवाह होगी द्वापर युग की। जो स्त्री महाभारत के समकालीन है और कलयुग में आज तक जिंदा है। उसे बस ऐसे हवा–हवाई रणनीति से पकड़ने जा रहे। उसे पकड़ने भी जा रहे हो या उसके पैरों में गिड़कर उसका चेला बनना है? क्योंकि ऐसी रणनीति का तो यही निष्कर्ष निकलता है कि किसी तरह पता करो की वह शक्तिशाली रीछ स्त्री कहां है ताकि उसके पैरों में गिरकर उसे अपने ओर मिला ले और अपनी भी मनचाही मनोकामना पूर्ण हो जाए...
आर्यमणि:– तो क्या करे, न जाएं...
निशांत:– हम जायेंगे लेकिन इन फालतू प्रहरी के भरोसे नहीं जायेंगे... हमे अपने जंगल (गंगटोक के जंगल) के बारे में पता था कि वहां हमारा सामना किस जानवर और किन–किन विषम परिस्थितियों से हो सकता था। इसलिए संकट कितना भी अचानक क्यों न आये हमे समस्या नहीं होती। हम यहां भी ठीक वैसा ही करेंगे...
आर्यमणि:– हम्मम.. ठीक है हम खरीदारी करते हुये डिस्कस कर लेंगे, लेकिन सबसे पहले मैं तुम्हे कुछ दिखाना चाहता हूं...
इतना कहकर आर्यमणि अपने कमरे का दरवाजा बंद किया। बिस्तर के नीचे पड़ा अपना बैग निकाला। यह लाइफ सपोर्टिंग बैग था। ऐसा ही एक बैग निशांत के पास भी हमेशा रहता है। आर्यमणि उसके अंदर से सभी समान बाहर निकलने के बाद आखरी में सबसे नीचे से एक पोटली निकाला... पोटली को देखते ही निशांत की आंखें बड़ी हो गई... "लोपचे का भटकता मुसाफिर। आर्य, इसे साथ लेकर घूम रहे"…
आर्यमणि:– ऐडियाना का मकबरा कहां है...
निशांत:– मध्य भारत के जंगल में..
आर्यमणि:– मैप में देखकर बताओ की मध्य भारत का जंगल कहां है?
निशांत:– बताना क्या है... वही सतपुरा का जंगल.. लेकिन तुम दोनो बातों में क्या समानता ढूंढ रहे हो?..
आर्यमणि:– लोपचे के भटकते मुसाफिर की माने तो एडियाना के मकबरे में 3 चीजों का उल्लेख है, जो हर किसी को पता है... पुर्नस्थापित अंगूठी (restoring ring), बिजली की खंजर और...
निशांत उसे बीच में ही रोकते.… "और बहरूपिया चोगा... यानी वो रीछ स्त्री मध्य भारत के जंगल में इन्हे ही ढूंढने निकली है।"..
आर्यमणि:– दोनो ही बातें है, हो भी सकता है और नही भी। रीछ स्त्री अपने कैद से बाहर निकलने के बाद जो भी अपना लक्ष्य रखे, उसके लिए सबसे पहले उसे खुद के अंदर क्षमता विकसित करनी होगी। जिसके लिए उसे कम से कम 500–600 दिन तो चाहिए। यदि उसे ये सब जल्दी निपटाना हो तब...
निशांत:– तब तो उसे कोई जादू ही चाहिए। और ऐसा ही एक जादू वहां के जंगल में भी है... पुर्नस्थापित अंगूठी... हाहाहाहाहा..
आर्यमणि:– हाहाहाहाहा.. और उस गधी को पता नही होगा की वहां तो लोपचे के भटकते मुसाफिर ने लोचा कर दिया था...
लोपचे के भटकते मुसाफिर यानी की पारीयन लोपचे, सुपरनैचुरल के बीच काफी प्रसिद्ध नाम है। इसे खोजी वुल्फ भी कहा जाता है। पहला ऐसा लोन वुल्फ, जो अपनी मर्जी से ओमेगा था। कई साधु, संत, महात्मा, और न जाने कितने ही दैत्य दानव से वह मिला था। उस दौड़ के योगियों का चहेता था और किसी भी प्रकार के खोज में, खोजी टुकड़ी के अगुवाई पारीयान लोपचे ही करता था। उसके इसी गुण के कारण से पारीयान लोपचे को लोपचे का भटकता मुसाफिर कहा जाता था। अपने खोज के क्रम में वह साधु, योगियों और आचार्य का इतना चहेता हो चुका था कि गुरुओं ने उसे सिद्ध की हुई भ्रमित अंगूठी (illiusion ring) दिया था।
सुनने में भले ही यह जादू कला की छोटी सी वस्तु लगे लेकिन यह वस्तु उस चींटी के भांति थी, जो किसी हांथी के सूंड़ में घुसकर उसे धाराशाही कर सकती थी। कहने का अर्थ है, बड़े से बड़ा दैत्य, काला जादूगर, शिकारी, वीर, फौज की बड़ी टुकड़ी, कोई भी हो.… उन्हे किसी को मारने के लिए सबसे जरूरी क्या होता है, उसका लक्ष्य। सामने लक्ष्य दिखेगा तभी उसको भेद सकते हैं। यह भ्रमित अंगूठी लक्ष्य को ही भटका देती थी। यदि सामने दिख रहे पारीयान पर कोई तीर चलता तो पता चलता की वह तीर जैसे किसी होलोग्राफिक इमेज पर चली। कोई काला जादूगर यदि उसके बाल को लेकर, किसी छोटे से प्रतिमा में डालकर, उसका जादुई स्वरूप तैयार करके मारने की कोशिश करता, तब पता चलता की यह काला जादू भी बेअसर। क्योंकि भ्रमित अंगूठी पारीयान के अस्तित्व तक को भ्रमित कर देती थी।
उसी दौड़ में कुख्यात जादूगर महाकाश्वर और एडियाना की जोड़ी काफी प्रचलित हुई थी। इन्होंने अपने तंत्र–मंत्र और शातिर दिमाग से सबको परेशान कर रखा था। लेकिन कहते हैं ना आस्तीन का सांप सबसे पहले अपने को ही डस्ता है। जादूगर महाकाश्वर ने भी एडियाना के साथ वही किया। पहले छला... फिर उसकी ताकत हासिल की और एडियाना की ताकत हासिल करने के बाद, उसकी तीन इच्छाओं के साथ उसके मकबरे में दफन कर दिया। ये वही तीन इच्छा थी जिसके छलावे में एडियाना फंसी थी। एडियाना बर्फीले रेगिस्तान (रूस के बर्फीला इलाका) की खौफनाक शैतान कही जाती थी, जो अपने लाखों सेवक विंडीगो सुपरनेचुरल के साथ राज करती थी। ऐडियाना एक कुशल जादूगर तो थी लेकिन मध्य भारत के जादूगर महाकाश्वर की उतनी ही बड़ी प्रशंसक भी।
अभी के वक्त में जो तात्कालिक मंगोलिया है, उस जगह पर जादूगर की एक सभा लगी थी। उसी सभा मे महाकाश्वर की मुलाकात एडियाना से हुई थी। यूं तो जादूगरों की यह सभा साथ मिलकर काम करने के लिए बुलाई गई थी, लेकिन जहां एक ओर एडियाना अपनी बहन तायफा से मिलने पहुंची थी। वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसी तायफ़ा को मारने पहुंचा था। जीन–जिन को भ्रम था कि वह दिग्गज जादूगर है, वह सभी २ पाटन के बीच में पिस गए। एक ओर एडियाना अपनी बहन को बचा रही थी, वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसे मारने का प्रयास कर रहा था।
जादूगरों का गुट २ विभाग में विभाजित हो गया, जहां मेजोरिटी लेडीज के पास ही थी। लेकिन महाकाश्वर के लिए तो भाड़ में गए सब और ठीक वैसा ही हाल एडियाना का भी था। दोनो लगातार लड़ते रहे। उस लड़ाई में वहां मौजूद सभी जादूगर मारे गए फिर भी लड़ते रहे। जिसके लिए लड़ाई शुरू हुई, तायफा, वो भी कब की मर गई। लेकिन इनका लड़ाई जारी रहा। एडियाना बर्फ की रानी थी, तो महाकाश्वर आग का राजा। एडियाना भंवर बनाती तो महाकाश्वर पहाड़ बन जाता। कांटे की टक्कर थी। मंत्र से मंत्र भीड़ रहे थे और आपसी टकराव से वहां के चारो ओर विस्फोट हो रहा था, लेकिन दोनो पर कोई असर नहीं हो रहा था।
एडियाना ने फिर एक लंबा दाव खेल दिया। अपने सुपरनैचुरल विंडिगो की पूरी फौज खड़ी कर दी। लाखों विंडिगों एक साथ महाकाश्वर पर हमला करने चल दिए। किसी भी भीड़ को साफ करना महाकाश्वर के लिए चुटकी बजाने जितना आसान था। लेकिन एडियाना के अगले दाव ने महाकाश्वर के होश ही उड़ा दिए। महाकाश्वर ने विंडिगो की भीड़ को साफ करने के लिए जितने भी मंत्र को उनपर छोड़ा, विंडिगो उन मंत्रो के काट के साथ आगे बढ़ रहे थे। महाकाश्वर को ऐसा लगा जैसे एडियाना एक साथ सभी विंडिगो में समा गई है, जो मंत्र काटते आगे बढ़ रहे। कमाल की जादूगरी जिसके बारे में महाकाश्वर को पता भी नही था। हां लेकिन वो विंडिगो से खुद की जान तो बचा ही सकता था। महाकाश्वर ने तुरंत पहना बहरूपिया चोगा और अब हैरान होने की बारी एडियाना की थी।
बहरूपिया चोगा से भेष बदलना हो या फिर किसी रूप बदल मंत्र से, लेकिन जो महाकाश्वर ने किया वह अद्भुत था। जादू से किसी का रूप तो ले सकते थे लेकिन जिसका रूप लिया हो, खुद को उसकी आत्मा से ही जोड़ लेना, यह असंभव था। और यह असंभव होते एडियाना देख रही थी। एडियाना पहले तो बहुत ही आशस्वत थी, और रूप बदलने जैसे छल पर हंस रही थी। लेकिन जैसे ही पहले विंडिगो का निशान महाकाश्वर के शरीर पर बना, ठीक वैसा ही निशान, उसी जगह पर एडियाना के शरीर पर भी बना। अगले ही पल दोनो की लड़ाई रुक गई और दोस्ती का नया दौड़ चालू हो गया।
अब इच्छाएं किसकी नही होती। ठीक वैसी ही इच्छाएं एडियाना की भी थी। उसे एक चीज की बड़ी लालसा थी... बिजली का खंजर। महाकाश्वर भी यह पहली बार सुन रहा था, लेकिन जब उसने सुना की यह खंजर किसी भी चीज को चीड़ सकती है, तब वह अचरज में पड़ गया।
थोड़े विस्तार से यदि समझा जाए तो कुछ ऐसा था.… सबसे मजबूत धातु जिसे तोड़ा न जा सकता हो, उसका एक अलमीरा बना लिया जाए। अलमीरा के दीवार की मोटाई फिर चाहे कितनी भी क्यों न हो, 20 फिट, 40 फिट... और उस अलमीरा के अंदर किसी इंसान को रखकर उसे चिड़ने कहा जाए। तब इंसान को चिड़ने के लिए अलमीरा खोलकर उस आदमी को निकालने की जरूरत नहीं, क्योंकि बिजली की यह खंजर उस पूरे अलमीरा को ऐसे चीड़ देगी जैसे किसी ब्लेड से कागज के 1 पन्ने को चीड़ दिया जाता है। अलमीरा तो एक दिखने वाला उधारहन था। लेकिन अलमीरा की जगह यदि मंत्र को रख दे, तब भी परिणाम एक से ही होंगे। कितना भी मजबूत मंत्र से बचाया क्यों न जा रहा हो, यह खंजर इंसान को मंत्र सहित चीड़ देगी।
एडियाना की दूसरी सबसे बड़ी ख्वाइश थी कि यदि कोई ऐसा विस्फोट हो, जिसमे उसके चिथरे भी उड़ जाए तो भी वह जीवित हो जाय। जबकि दोनो को ही पता था कि एक बार मरने के बाद कोई भी मंत्र शरीर में वापस प्राण नही डाल सकती। और एक नई ख्वाइश तो एडियाना को महाकाश्वर से मिलने के बाद हुई, वह था बहरूपिया चोगा।
महाकाश्वर कुछ दिन साथ रहकर एडियाना की इच्छाएं जान चुका था। और उसकी जितनी भी इच्छाएं थी, कमाल की थी। महाकाश्वर ने एडियाना से कमाल के शस्त्र, "बिजली का खंजर" के बारे पूछा, "की अब तक वह इस शस्त्र को हासिल क्यों नही कर पायि"। जवाब में यही आया की इस शस्त्र के बारे में तो पता है, लेकिन वह कहां मिलेगा पता नही। महाकाश्वर ने एडियाना से सारे सुराग लिए और बड़ी ही चतुराई से पूरी सूचना लोपचे के भटकते मुसाफिर तक पहुंचा दिया। फिर क्या था, कुछ सिद्ध पुरुष और क्षत्रिय के साथ पारीयान निकल गया खोज पर। महाकाश्वर और एडियाना को तो छिपकर बस इनका पिछा करना था।
लगभग ३ वर्ष की खोज के पश्चात लोपचे के भटकते मुसाफिर की खोज समाप्त हुई। वह खंजर यांग्त्जी नदी के तट पर मिली जो वर्तमान समय में संघाई, चीन में है। जैसे ही यह खंजर मिली, एडियाना के खुशी का ठिकाना नहीं रहा। महाकाश्वर ने अपने छल से वह खंजर तो हासिल कर लिया, लेकिन इस चक्कर में एडियाना और महाकाश्वर दोनो घायल हो गए। घायल होने के बाद तो जैसे एडियाना पागल ही हो गई थी। वह तो सबको मारने पर उतारू थी, लेकिन महाकाश्वर उसे लेकर निकल गया। लोपचे के भटकते मुसाफिर से लड़ाई करना व्यर्थ था, यह बात महाकाश्वर जनता था। बस उसे डर था कि कहीं एडियाना भ्रमित अंगूठी के बारे में जान जाती, तो उसे अपनी तीव्र इच्छाओं में न सामिल कर लेती। यदि ऐसा होता फिर तो इन दोनों की जान जानी ही थी। क्योंकि पारीयान इन दोनो (महाकाश्वर और एडियाना) के अस्त्र और शस्त्र से मरता नही, उल्टा योगी और सिद्ध पुरुष के साथ मिलकर इनके प्राण निकाल लेता।
एडियाना की दूसरी इच्छा का उपाय तो महाकाश्वर पहले से जानता था। उसे हासिल कैसे करना है वह भी जनता था। लेकिन उसे हासिल करने के लिए महाकाश्वर को अपने जैसा ही एक कुशल जादूगर चाहिए था। हिमालय के पूर्वी क्षेत्र में एक अलौकिक और दिव्य गांव बसा था। हालांकि उस गांव को तो किसी ने पहले ही पूरा ही उजाड़ दिया था, लेकिन उस गांव के गर्भ में एक पुर्नस्थापित अंगूठी थी, जो उस पूरे गांव के ढांचे की शक्ति संरचना थी। इसके विषय में खुद गांव के कुछ लोगों को ही पता था। ऊपर से इतनी सिद्धियों के साथ उसके गर्भ में स्थापित किया गया था कि २ सिद्ध जादूगर मिलकर भी कोशिश करते तो भी एक चूक दोनो की जान ले लेती।
लेकिन महाकाश्वर आश्श्वत था। इसलिए खतरों को बताए बिना वह एडियाना के साथ उस गांव में घुसा और कड़ी मेहनत के बाद दोनो पुर्नस्थापित अंगूठी को हासिल कर चुके। सबसे पहला प्रयोग तो महाकाश्वर ने खुदपर किया। एडियाना ने अपने मंत्र से महाकाश्वर के चिथरे उड़ा दिए, लेकिन अगले ही पल एक हैरतअंगेज कारनामे आंखों के सामने था। महाकाश्वर के शरीर का एक–एक कण देखते ही देखते जुड़ गया।
तीनों इच्छाओं को तो महाकाश्वर मूर्त रूप दे चुका था। अब बारी थी एक बहुत बड़े चाल कि। इसके लिए स्थान पहले से तय था, जरूरी सारे काम किए जा चुके थे। एडियाना भी पूरे झांसे में आ चुकी थी। पहले तो कुछ दिनों तक उसे आतंक मचाने के लिए छोड़ दिया गया। कुछ ही वक्त में सकल जगत को महाकाश्वर और एडियाना का नाम पता चल चुका था। हर कोई जानता था कि महाकाश्वर और एडियाना कौन सी शक्तियां हासिल कर चुके। मंत्रों से कोई भी योगी अथवा सिद्ध पुरुष संरक्षित हो नही रहे थे। उसे बिजली की खंजर का स्वाद मिल ही जाता। कितना भी दोनो को मंत्र से बेजान करने की कोशिश क्यों न करो, उनका शरीर पहले जैसा ही हो जाता। उल्टा बहरूपिया चोगा के प्रयोग से एडियाना पर प्राणघाती हमला उल्टा चलाने वाले पर भी हो जाता। एडियाना पुर्नस्थापित अंगूठी से तो बच जाती लेकिन उनके प्राण अपने ही मंत्र ले चुके होते।
एडियाना, महाकाश्वर के पूरे झांसे में आ चुकी थी और अब वक्त था आखरी खेल का। महाकाश्वर, एडियाना के साथ सतपुरा के जंगल में चला आया। थोड़े भावनात्मक पल उत्पन्न किए गए। एडियाना के हाथ को थाम नजरों से नजरें चार हुई। महाकाश्वर के बातों में छल और बातों के दौरान ही उसने एडियाना के मुंह से उगलवाया उसकी इच्छाएं, जिसे महाकाश्वर ने पूरे किये थे। एडियाना ने अपनी इच्छाएं बताकर जैसे ही स्वीकार कर ली कि उसकी सारी इच्छाएं महाकाश्वर ने पूरी कि है, ठीक उसी पल एडियाना का शरीर बेजान हो गया और उसकी सारी सिद्धियां महाकाश्वर के पास पहुंच गई। अब या तो महाकाश्वर, एडियाना को उसकी इच्छाओं के साथ दफना दे या फिर 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाओं को उस से अलग कर दे। अपनी पूरी शक्ति और साथ में जान खोने के बाद, एडियाना अपने मकबरे में दफन हो गई। और उसे दफनाने वाला महाकाश्वर ने उसके तीन इच्छाएं, पुर्नस्थापित अंगूठी, बिजली की खंजर और बेहरूपिया चोगा के साथ एडियाना को दफना दिया।
जादूगर महाकाश्वर अपने 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाएं वापिस हासिल कर लेता। लेकिन अनुष्ठान पूर्ण होने के पहले ही लोपचे का भटकता मुसाफिर जादूगर महाकाश्वर तक पहुंच चुका था। उस जगह भीषण युद्ध का आवाहन हुआ। एक लड़ाई जादूगर महाकाश्वर और योगियों के बीच। एक लड़ाई एक लाख की सैन्य की टुकड़ी के साथ अगुवाई कर रहे सुपरनैचुरल वेयरवोल्फ पारीयान और विंडिगो सुपरनेचुरल के बीच। 2 किलोमीटर के क्षेत्र को बांध दिया गया था। केवल जितने वाला ही बाहर जा सकता था और सामने महायुद्ध। बिना खाये–पिये, बिना रुके और बिना थके 4 दिनो के तक युद्ध होता रहा। 4 दिन बाद ऐडियाना के मकबरे से पुर्नस्थापित अंगूठी लेकर केवल एक शक्स बाहर निकला, वो था लोपचे का भटकता मुसाफिर।
पारीयान ने पूरे संवाद भेजे। युद्ध की हर छोटी बड़ी घटना की सूचना कबूतरों द्वारा पहुंचाई गई। एडियाना का मकबरा और वहां दफन उसकी 3 इच्छाओं का ज्ञान सबको हो चुका था। पारीयान के लौटने की खबर भी आयि लेकिन फिर दोबारा कभी किसी को पारीयान नही मिला। न ही कभी किसी को एडियाना का मकबरा मिला। न जाने कितने खोजी उन्हे मध्य भारत से लेकर हिमालय के पूर्वी जंगलों में तलासते रहे, किंतु एक निशानी तक नही मिली। खोजने वालों में एक नाम सरदार खान का भी था जिसे सबसे ज्यादा रुचि बिजली के खंजर और पुर्नस्थापित अंगूठी में थी।
किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।
कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।
Matlb lopche ka bhtakta musafir apne aary aur nishant ko mila tha wahhh kya baat hai
nain11ster bhai.
Aur sath me ediyan ka makbara ki bhi kya sahi kahani batati hai. Aur ye india ka jadugar to such me dimak wala nikal aakhir hmse aage kisi bhi mamle me koi kaise aage ja skta hai. Lakin mujhe sath me ye puchna hai bhai ki ye update me aapne jo bate batayi hai. Ediyan ka makbara aur wo dusra jadugar ye sirf kahani hi hai na ya hme history me aisa kuch real me mil skta hai khojne par.
Baki bhai aapka ye Update mujhe dil se bahut hi jyada acha laga. Aapke story ko read krte hue mujhe ak baat to pata chli hai. Aapke story me bahut kuch naya aur almost sabhi bate fact ke sath kahi jati hai. Places ka bhi aap bahut sahi select karte ho. Koi fake place nahi sub reality rahta hai. Bas itna hi kahunga epic bhai