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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–37






नागपुर शहर.... मीटिंग खत्म होने के ठीक एक दिन बाद…..


सुकेश की बुलावे पर बड़ी सी महफिल सजी हुई थी। जहां प्रहरी और आर्यमणि दोनो साथ बैठे थे। जिस गरज के साथ पलक प्रहरी सभा में बरसी थी, उसपर पुरा घर रह-रह कर गर्व महसूस कर रहा था। लेकिन बोलने के बाद अब करने का वक्त था और जरूरी था पलक खुद को साबित करके दिखाये। पलक की अगुवाई में चल रही रीछ स्त्री की खोज भी पूरी हो चुकी थी, और उसे धर–दबोचने की तैयारी में यह सभा रखी गयि थी।


सुकेश:– बहुत ज्यादा वक्त न लेते हुये मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं। वाकी वुड्स में क्या हुआ था इस बात से सभी भली भांति परिचित होंगे। पलक जब विशेष जीव साखा की अध्यक्ष बनी, तभी उसने मुझे रीछ स्त्री को दूंढने का काम सौंपा। मैने इस काम में अपने कुछ खास सहयोगियों को लगाया था और अब हमारे पास रीछ स्त्री की पक्की खबर है...


पूरी सभा लगभग एक साथ... "कहां है वह अभी"…


सुकेश:– खबरों की माने तो वह रीछ स्त्री सतपुरा के घने जंगलों के बीच, वहां स्थित पर्वत श्रृंखला के एक मांद में छिपी है। आसपास के लगभग 5 किलोमीटर का दायरा उसका विचरण क्षेत्र है, जिसके अंदर कोई नही जा सकता।


भूमि:– कोई नही जा सकता, यह कैसे पता चला? क्या अंदर घुसने की कोशिश में किसी पर हमला हुआ या जान से मार दिया गया?


सुकेश:– पूरी जानकारी तो मुझे भी नही। खबरियों द्वारा जो खबर मिली उसे बता रहा हूं। जबतक वहां छानबीन के लिये नही जायेंगे, पूरी बात पता नही चल सकती। हां पर खबर पक्की है कि रीछ स्त्री वहीं है।


भूमि:– हां तो देर किस बात की है। हम कुछ टुकड़ी के साथ चलते हैं और उस रीछ स्त्री को पकड़ कर ले आते हैं।


पलक:– भूमि दीदी जाने से पहले थोड़ा यह जान ले की हम किसके पीछे जा रहे। यह कोई साधारण सुपरनेचुरल नही बल्कि काफी खरनाक और दीर्घायु सुपरनैचुरल है। सोचो कितना उत्पात मचाया होगा, जो इसे विष मोक्ष श्राप से बंधा गया था। इसका दूसरा मतलब यह भी निकलता है कि उस दौड़ में विकृत रीछ स्त्री को मार नही पाये होंगे इसलिए मजबूरी में कैद करना पड़ गया होगा।


भूमि:– ठीक है तुम इंचार्ज हो, तुम्ही फैसला करो...


पलक:– पैट्रिक और रिचा की टीम तेजस दादा के नेतृत्व में काम करेगी। सुकेश काका, बंगाल की मशहूर जादूगरनी ताड़का और उसके कुछ चेलों के साथ अपनी एक टुकड़ी लेकर जायेंगे। आर्यमणि के अल्फा पैक के साथ मैं एक टुकड़ी लेकर जाऊंगी। आज शाम ही हम सब सतपुरा जंगल के लिये निकलेंगे। हम सबसे पहले सतपुरा के पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचेंगे और वहां से अलग–अलग दिशाओं से जांच करते हुये, ठीक 7 दिन बाद, चंद्र ग्रहण से ठीक एक दिन पूर्व, रीछ स्त्री के उस 5 किलोमीटर वाले दायरे के पास एकत्रित होंगे। वहां हम पूरी रणनीति बनायेंगे और चंद्र ग्रहण की रात उस रीछ स्त्री को बांधकर नागपुर प्रहरी कार्यालय में कैद करेंगे।


भूमि:– मेरी नेतृत्व वाली सभी टुकड़ी को ले जा रहे और मुझे ही अगुवाई का मौका नहीं मिल रहा...


पलक:– दीदी आप यहां आराम करें और आपकी टुकड़ी में जो बेहतरीन शिकारी है उसे भी ऊपर आने का मौका दें।


भूमि, पलक के इस जवाब पर केवल मुस्कुरा कर अपनी प्रतिक्रिया दी। सभा में सभी फैसले लेने के बाद सभा स्थगित हो गया और सब शाम में निकलने की तैयारी करने लगे। तैयारी में तो आर्यमणि भी लग गया। जहां एक ओर लोगों को शिकारी होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था, वहीं आर्यमणि और निशांत २ ऐसे नाम थे जो पैदा ही शिकारियों के गुण के साथ हुये थे। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण तो लोपचे का खंडहर था, जहां कई माहिर शिकारी को दोनो चकमा देकर सुहोत्र को ले उड़े। आर्यमणि भला जंगल के इस मिशन में निशांत को साथ क्यों नही लेता। बाकी सब अपनी रणनीति में और दोनो दोस्त अपनी...


निशांत:– मजा आयेगा आर्य, लेकिन ये तो बता की हमे वहां करना क्या होगा?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नही। शायद जंगल के अंदर कुछ छानबीन और उस विकृत रीछ स्त्री को पकड़े कैसे?



निशांत, थोड़ा आश्चर्य में... "यानी जिसे पकड़ने जा रहे उसके विषय में कोई ज्ञान नहीं?"


आर्यमणि:– इतना चौंक क्यों रहा है?


निशांत:– यार ये तो आत्महत्या करने जैसा है। इतिहास के सबसे शक्तिशाली मानव प्रजाति जो हजारों वर्ष तक जिंदा रह सकते थे। जिनके शक्तियों का विस्तृत उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक है। जिसका एक योद्धा जम्बत जी का उल्लेख सतयुग से लेकर द्वापरयुग तक मिलता है। और यदि इस रीछ स्त्री की बात करे तो वह गवाह होगी द्वापर युग की। जो स्त्री महाभारत के समकालीन है और कलयुग में आज तक जिंदा है। उसे बस ऐसे हवा–हवाई रणनीति से पकड़ने जा रहे। उसे पकड़ने भी जा रहे हो या उसके पैरों में गिड़कर उसका चेला बनना है? क्योंकि ऐसी रणनीति का तो यही निष्कर्ष निकलता है कि किसी तरह पता करो की वह शक्तिशाली रीछ स्त्री कहां है ताकि उसके पैरों में गिरकर उसे अपने ओर मिला ले और अपनी भी मनचाही मनोकामना पूर्ण हो जाए...


आर्यमणि:– तो क्या करे, न जाएं...


निशांत:– हम जायेंगे लेकिन इन फालतू प्रहरी के भरोसे नहीं जायेंगे... हमे अपने जंगल (गंगटोक के जंगल) के बारे में पता था कि वहां हमारा सामना किस जानवर और किन–किन विषम परिस्थितियों से हो सकता था। इसलिए संकट कितना भी अचानक क्यों न आये हमे समस्या नहीं होती। हम यहां भी ठीक वैसा ही करेंगे...


आर्यमणि:– हम्मम.. ठीक है हम खरीदारी करते हुये डिस्कस कर लेंगे, लेकिन सबसे पहले मैं तुम्हे कुछ दिखाना चाहता हूं...


इतना कहकर आर्यमणि अपने कमरे का दरवाजा बंद किया। बिस्तर के नीचे पड़ा अपना बैग निकाला। यह लाइफ सपोर्टिंग बैग था। ऐसा ही एक बैग निशांत के पास भी हमेशा रहता है। आर्यमणि उसके अंदर से सभी समान बाहर निकलने के बाद आखरी में सबसे नीचे से एक पोटली निकाला... पोटली को देखते ही निशांत की आंखें बड़ी हो गई... "लोपचे का भटकता मुसाफिर। आर्य, इसे साथ लेकर घूम रहे"…


आर्यमणि:– ऐडियाना का मकबरा कहां है...


निशांत:– मध्य भारत के जंगल में..


आर्यमणि:– मैप में देखकर बताओ की मध्य भारत का जंगल कहां है?


निशांत:– बताना क्या है... वही सतपुरा का जंगल.. लेकिन तुम दोनो बातों में क्या समानता ढूंढ रहे हो?..


आर्यमणि:– लोपचे के भटकते मुसाफिर की माने तो एडियाना के मकबरे में 3 चीजों का उल्लेख है, जो हर किसी को पता है... पुर्नस्थापित अंगूठी (restoring ring), बिजली की खंजर और...


निशांत उसे बीच में ही रोकते.… "और बहरूपिया चोगा... यानी वो रीछ स्त्री मध्य भारत के जंगल में इन्हे ही ढूंढने निकली है।"..


आर्यमणि:– दोनो ही बातें है, हो भी सकता है और नही भी। रीछ स्त्री अपने कैद से बाहर निकलने के बाद जो भी अपना लक्ष्य रखे, उसके लिए सबसे पहले उसे खुद के अंदर क्षमता विकसित करनी होगी। जिसके लिए उसे कम से कम 500–600 दिन तो चाहिए। यदि उसे ये सब जल्दी निपटाना हो तब...


निशांत:– तब तो उसे कोई जादू ही चाहिए। और ऐसा ही एक जादू वहां के जंगल में भी है... पुर्नस्थापित अंगूठी... हाहाहाहाहा..


आर्यमणि:– हाहाहाहाहा.. और उस गधी को पता नही होगा की वहां तो लोपचे के भटकते मुसाफिर ने लोचा कर दिया था...


लोपचे के भटकते मुसाफिर यानी की पारीयन लोपचे, सुपरनैचुरल के बीच काफी प्रसिद्ध नाम है। इसे खोजी वुल्फ भी कहा जाता है। पहला ऐसा लोन वुल्फ, जो अपनी मर्जी से ओमेगा था। कई साधु, संत, महात्मा, और न जाने कितने ही दैत्य दानव से वह मिला था। उस दौड़ के योगियों का चहेता था और किसी भी प्रकार के खोज में, खोजी टुकड़ी के अगुवाई पारीयान लोपचे ही करता था। उसके इसी गुण के कारण से पारीयान लोपचे को लोपचे का भटकता मुसाफिर कहा जाता था। अपने खोज के क्रम में वह साधु, योगियों और आचार्य का इतना चहेता हो चुका था कि गुरुओं ने उसे सिद्ध की हुई भ्रमित अंगूठी (illiusion ring) दिया था।


सुनने में भले ही यह जादू कला की छोटी सी वस्तु लगे लेकिन यह वस्तु उस चींटी के भांति थी, जो किसी हांथी के सूंड़ में घुसकर उसे धाराशाही कर सकती थी। कहने का अर्थ है, बड़े से बड़ा दैत्य, काला जादूगर, शिकारी, वीर, फौज की बड़ी टुकड़ी, कोई भी हो.… उन्हे किसी को मारने के लिए सबसे जरूरी क्या होता है, उसका लक्ष्य। सामने लक्ष्य दिखेगा तभी उसको भेद सकते हैं। यह भ्रमित अंगूठी लक्ष्य को ही भटका देती थी। यदि सामने दिख रहे पारीयान पर कोई तीर चलता तो पता चलता की वह तीर जैसे किसी होलोग्राफिक इमेज पर चली। कोई काला जादूगर यदि उसके बाल को लेकर, किसी छोटे से प्रतिमा में डालकर, उसका जादुई स्वरूप तैयार करके मारने की कोशिश करता, तब पता चलता की यह काला जादू भी बेअसर। क्योंकि भ्रमित अंगूठी पारीयान के अस्तित्व तक को भ्रमित कर देती थी।


उसी दौड़ में कुख्यात जादूगर महाकाश्वर और एडियाना की जोड़ी काफी प्रचलित हुई थी। इन्होंने अपने तंत्र–मंत्र और शातिर दिमाग से सबको परेशान कर रखा था। लेकिन कहते हैं ना आस्तीन का सांप सबसे पहले अपने को ही डस्ता है। जादूगर महाकाश्वर ने भी एडियाना के साथ वही किया। पहले छला... फिर उसकी ताकत हासिल की और एडियाना की ताकत हासिल करने के बाद, उसकी तीन इच्छाओं के साथ उसके मकबरे में दफन कर दिया। ये वही तीन इच्छा थी जिसके छलावे में एडियाना फंसी थी। एडियाना बर्फीले रेगिस्तान (रूस के बर्फीला इलाका) की खौफनाक शैतान कही जाती थी, जो अपने लाखों सेवक विंडीगो सुपरनेचुरल के साथ राज करती थी। ऐडियाना एक कुशल जादूगर तो थी लेकिन मध्य भारत के जादूगर महाकाश्वर की उतनी ही बड़ी प्रशंसक भी।


अभी के वक्त में जो तात्कालिक मंगोलिया है, उस जगह पर जादूगर की एक सभा लगी थी। उसी सभा मे महाकाश्वर की मुलाकात एडियाना से हुई थी। यूं तो जादूगरों की यह सभा साथ मिलकर काम करने के लिए बुलाई गई थी, लेकिन जहां एक ओर एडियाना अपनी बहन तायफा से मिलने पहुंची थी। वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसी तायफ़ा को मारने पहुंचा था। जीन–जिन को भ्रम था कि वह दिग्गज जादूगर है, वह सभी २ पाटन के बीच में पिस गए। एक ओर एडियाना अपनी बहन को बचा रही थी, वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसे मारने का प्रयास कर रहा था।


जादूगरों का गुट २ विभाग में विभाजित हो गया, जहां मेजोरिटी लेडीज के पास ही थी। लेकिन महाकाश्वर के लिए तो भाड़ में गए सब और ठीक वैसा ही हाल एडियाना का भी था। दोनो लगातार लड़ते रहे। उस लड़ाई में वहां मौजूद सभी जादूगर मारे गए फिर भी लड़ते रहे। जिसके लिए लड़ाई शुरू हुई, तायफा, वो भी कब की मर गई। लेकिन इनका लड़ाई जारी रहा। एडियाना बर्फ की रानी थी, तो महाकाश्वर आग का राजा। एडियाना भंवर बनाती तो महाकाश्वर पहाड़ बन जाता। कांटे की टक्कर थी। मंत्र से मंत्र भीड़ रहे थे और आपसी टकराव से वहां के चारो ओर विस्फोट हो रहा था, लेकिन दोनो पर कोई असर नहीं हो रहा था।


एडियाना ने फिर एक लंबा दाव खेल दिया। अपने सुपरनैचुरल विंडिगो की पूरी फौज खड़ी कर दी। लाखों विंडिगों एक साथ महाकाश्वर पर हमला करने चल दिए। किसी भी भीड़ को साफ करना महाकाश्वर के लिए चुटकी बजाने जितना आसान था। लेकिन एडियाना के अगले दाव ने महाकाश्वर के होश ही उड़ा दिए। महाकाश्वर ने विंडिगो की भीड़ को साफ करने के लिए जितने भी मंत्र को उनपर छोड़ा, विंडिगो उन मंत्रो के काट के साथ आगे बढ़ रहे थे। महाकाश्वर को ऐसा लगा जैसे एडियाना एक साथ सभी विंडिगो में समा गई है, जो मंत्र काटते आगे बढ़ रहे। कमाल की जादूगरी जिसके बारे में महाकाश्वर को पता भी नही था। हां लेकिन वो विंडिगो से खुद की जान तो बचा ही सकता था। महाकाश्वर ने तुरंत पहना बहरूपिया चोगा और अब हैरान होने की बारी एडियाना की थी।


बहरूपिया चोगा से भेष बदलना हो या फिर किसी रूप बदल मंत्र से, लेकिन जो महाकाश्वर ने किया वह अद्भुत था। जादू से किसी का रूप तो ले सकते थे लेकिन जिसका रूप लिया हो, खुद को उसकी आत्मा से ही जोड़ लेना, यह असंभव था। और यह असंभव होते एडियाना देख रही थी। एडियाना पहले तो बहुत ही आशस्वत थी, और रूप बदलने जैसे छल पर हंस रही थी। लेकिन जैसे ही पहले विंडिगो का निशान महाकाश्वर के शरीर पर बना, ठीक वैसा ही निशान, उसी जगह पर एडियाना के शरीर पर भी बना। अगले ही पल दोनो की लड़ाई रुक गई और दोस्ती का नया दौड़ चालू हो गया।


अब इच्छाएं किसकी नही होती। ठीक वैसी ही इच्छाएं एडियाना की भी थी। उसे एक चीज की बड़ी लालसा थी... बिजली का खंजर। महाकाश्वर भी यह पहली बार सुन रहा था, लेकिन जब उसने सुना की यह खंजर किसी भी चीज को चीड़ सकती है, तब वह अचरज में पड़ गया।


थोड़े विस्तार से यदि समझा जाए तो कुछ ऐसा था.… सबसे मजबूत धातु जिसे तोड़ा न जा सकता हो, उसका एक अलमीरा बना लिया जाए। अलमीरा के दीवार की मोटाई फिर चाहे कितनी भी क्यों न हो, 20 फिट, 40 फिट... और उस अलमीरा के अंदर किसी इंसान को रखकर उसे चिड़ने कहा जाए। तब इंसान को चिड़ने के लिए अलमीरा खोलकर उस आदमी को निकालने की जरूरत नहीं, क्योंकि बिजली की यह खंजर उस पूरे अलमीरा को ऐसे चीड़ देगी जैसे किसी ब्लेड से कागज के 1 पन्ने को चीड़ दिया जाता है। अलमीरा तो एक दिखने वाला उधारहन था। लेकिन अलमीरा की जगह यदि मंत्र को रख दे, तब भी परिणाम एक से ही होंगे। कितना भी मजबूत मंत्र से बचाया क्यों न जा रहा हो, यह खंजर इंसान को मंत्र सहित चीड़ देगी।


एडियाना की दूसरी सबसे बड़ी ख्वाइश थी कि यदि कोई ऐसा विस्फोट हो, जिसमे उसके चिथरे भी उड़ जाए तो भी वह जीवित हो जाय। जबकि दोनो को ही पता था कि एक बार मरने के बाद कोई भी मंत्र शरीर में वापस प्राण नही डाल सकती। और एक नई ख्वाइश तो एडियाना को महाकाश्वर से मिलने के बाद हुई, वह था बहरूपिया चोगा।

महाकाश्वर कुछ दिन साथ रहकर एडियाना की इच्छाएं जान चुका था। और उसकी जितनी भी इच्छाएं थी, कमाल की थी। महाकाश्वर ने एडियाना से कमाल के शस्त्र, "बिजली का खंजर" के बारे पूछा, "की अब तक वह इस शस्त्र को हासिल क्यों नही कर पायि"। जवाब में यही आया की इस शस्त्र के बारे में तो पता है, लेकिन वह कहां मिलेगा पता नही। महाकाश्वर ने एडियाना से सारे सुराग लिए और बड़ी ही चतुराई से पूरी सूचना लोपचे के भटकते मुसाफिर तक पहुंचा दिया। फिर क्या था, कुछ सिद्ध पुरुष और क्षत्रिय के साथ पारीयान निकल गया खोज पर। महाकाश्वर और एडियाना को तो छिपकर बस इनका पिछा करना था।


लगभग ३ वर्ष की खोज के पश्चात लोपचे के भटकते मुसाफिर की खोज समाप्त हुई। वह खंजर यांग्त्जी नदी के तट पर मिली जो वर्तमान समय में संघाई, चीन में है। जैसे ही यह खंजर मिली, एडियाना के खुशी का ठिकाना नहीं रहा। महाकाश्वर ने अपने छल से वह खंजर तो हासिल कर लिया, लेकिन इस चक्कर में एडियाना और महाकाश्वर दोनो घायल हो गए। घायल होने के बाद तो जैसे एडियाना पागल ही हो गई थी। वह तो सबको मारने पर उतारू थी, लेकिन महाकाश्वर उसे लेकर निकल गया। लोपचे के भटकते मुसाफिर से लड़ाई करना व्यर्थ था, यह बात महाकाश्वर जनता था। बस उसे डर था कि कहीं एडियाना भ्रमित अंगूठी के बारे में जान जाती, तो उसे अपनी तीव्र इच्छाओं में न सामिल कर लेती। यदि ऐसा होता फिर तो इन दोनों की जान जानी ही थी। क्योंकि पारीयान इन दोनो (महाकाश्वर और एडियाना) के अस्त्र और शस्त्र से मरता नही, उल्टा योगी और सिद्ध पुरुष के साथ मिलकर इनके प्राण निकाल लेता।


एडियाना की दूसरी इच्छा का उपाय तो महाकाश्वर पहले से जानता था। उसे हासिल कैसे करना है वह भी जनता था। लेकिन उसे हासिल करने के लिए महाकाश्वर को अपने जैसा ही एक कुशल जादूगर चाहिए था। हिमालय के पूर्वी क्षेत्र में एक अलौकिक और दिव्य गांव बसा था। हालांकि उस गांव को तो किसी ने पहले ही पूरा ही उजाड़ दिया था, लेकिन उस गांव के गर्भ में एक पुर्नस्थापित अंगूठी थी, जो उस पूरे गांव के ढांचे की शक्ति संरचना थी। इसके विषय में खुद गांव के कुछ लोगों को ही पता था। ऊपर से इतनी सिद्धियों के साथ उसके गर्भ में स्थापित किया गया था कि २ सिद्ध जादूगर मिलकर भी कोशिश करते तो भी एक चूक दोनो की जान ले लेती।


लेकिन महाकाश्वर आश्श्वत था। इसलिए खतरों को बताए बिना वह एडियाना के साथ उस गांव में घुसा और कड़ी मेहनत के बाद दोनो पुर्नस्थापित अंगूठी को हासिल कर चुके। सबसे पहला प्रयोग तो महाकाश्वर ने खुदपर किया। एडियाना ने अपने मंत्र से महाकाश्वर के चिथरे उड़ा दिए, लेकिन अगले ही पल एक हैरतअंगेज कारनामे आंखों के सामने था। महाकाश्वर के शरीर का एक–एक कण देखते ही देखते जुड़ गया।


तीनों इच्छाओं को तो महाकाश्वर मूर्त रूप दे चुका था। अब बारी थी एक बहुत बड़े चाल कि। इसके लिए स्थान पहले से तय था, जरूरी सारे काम किए जा चुके थे। एडियाना भी पूरे झांसे में आ चुकी थी। पहले तो कुछ दिनों तक उसे आतंक मचाने के लिए छोड़ दिया गया। कुछ ही वक्त में सकल जगत को महाकाश्वर और एडियाना का नाम पता चल चुका था। हर कोई जानता था कि महाकाश्वर और एडियाना कौन सी शक्तियां हासिल कर चुके। मंत्रों से कोई भी योगी अथवा सिद्ध पुरुष संरक्षित हो नही रहे थे। उसे बिजली की खंजर का स्वाद मिल ही जाता। कितना भी दोनो को मंत्र से बेजान करने की कोशिश क्यों न करो, उनका शरीर पहले जैसा ही हो जाता। उल्टा बहरूपिया चोगा के प्रयोग से एडियाना पर प्राणघाती हमला उल्टा चलाने वाले पर भी हो जाता। एडियाना पुर्नस्थापित अंगूठी से तो बच जाती लेकिन उनके प्राण अपने ही मंत्र ले चुके होते।


एडियाना, महाकाश्वर के पूरे झांसे में आ चुकी थी और अब वक्त था आखरी खेल का। महाकाश्वर, एडियाना के साथ सतपुरा के जंगल में चला आया। थोड़े भावनात्मक पल उत्पन्न किए गए। एडियाना के हाथ को थाम नजरों से नजरें चार हुई। महाकाश्वर के बातों में छल और बातों के दौरान ही उसने एडियाना के मुंह से उगलवाया उसकी इच्छाएं, जिसे महाकाश्वर ने पूरे किये थे। एडियाना ने अपनी इच्छाएं बताकर जैसे ही स्वीकार कर ली कि उसकी सारी इच्छाएं महाकाश्वर ने पूरी कि है, ठीक उसी पल एडियाना का शरीर बेजान हो गया और उसकी सारी सिद्धियां महाकाश्वर के पास पहुंच गई। अब या तो महाकाश्वर, एडियाना को उसकी इच्छाओं के साथ दफना दे या फिर 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाओं को उस से अलग कर दे। अपनी पूरी शक्ति और साथ में जान खोने के बाद, एडियाना अपने मकबरे में दफन हो गई। और उसे दफनाने वाला महाकाश्वर ने उसके तीन इच्छाएं, पुर्नस्थापित अंगूठी, बिजली की खंजर और बेहरूपिया चोगा के साथ एडियाना को दफना दिया।


जादूगर महाकाश्वर अपने 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाएं वापिस हासिल कर लेता। लेकिन अनुष्ठान पूर्ण होने के पहले ही लोपचे का भटकता मुसाफिर जादूगर महाकाश्वर तक पहुंच चुका था। उस जगह भीषण युद्ध का आवाहन हुआ। एक लड़ाई जादूगर महाकाश्वर और योगियों के बीच। एक लड़ाई एक लाख की सैन्य की टुकड़ी के साथ अगुवाई कर रहे सुपरनैचुरल वेयरवोल्फ पारीयान और विंडिगो सुपरनेचुरल के बीच। 2 किलोमीटर के क्षेत्र को बांध दिया गया था। केवल जितने वाला ही बाहर जा सकता था और सामने महायुद्ध। बिना खाये–पिये, बिना रुके और बिना थके 4 दिनो के तक युद्ध होता रहा। 4 दिन बाद ऐडियाना के मकबरे से पुर्नस्थापित अंगूठी लेकर केवल एक शक्स बाहर निकला, वो था लोपचे का भटकता मुसाफिर।


पारीयान ने पूरे संवाद भेजे। युद्ध की हर छोटी बड़ी घटना की सूचना कबूतरों द्वारा पहुंचाई गई। एडियाना का मकबरा और वहां दफन उसकी 3 इच्छाओं का ज्ञान सबको हो चुका था। पारीयान के लौटने की खबर भी आयि लेकिन फिर दोबारा कभी किसी को पारीयान नही मिला। न ही कभी किसी को एडियाना का मकबरा मिला। न जाने कितने खोजी उन्हे मध्य भारत से लेकर हिमालय के पूर्वी जंगलों में तलासते रहे, किंतु एक निशानी तक नही मिली। खोजने वालों में एक नाम सरदार खान का भी था जिसे सबसे ज्यादा रुचि बिजली के खंजर और पुर्नस्थापित अंगूठी में थी।


किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।
 
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Parthh123

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Wah nain bhai ab suru hua hai safar es story ka ab tk to doodh bhat chal rha tha ab tak abodh balak ke bdhte hue sarir aur uski mst shaitaniyo ki trh thi story aur ab wahi balak school jana suru ho gya hai jaise jaise wo class se dusri fir teesri fir chauth....... Bdhta ja rha hai waise hi maza aur knowledge dono bdte ja rhe hI. Adbhut update pichle 2-3 update kafi khas rhe hai story ke. Thank you keep writing keep posting.
 

Itachi_Uchiha

अंतःअस्ति प्रारंभः
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भाग:–36






कुछ ही देर में पूरी सभा समाप्त हो गई। हाई टेबल की हाई बैठक में आज तो पलक ने सबकी बोलती बंद कर दी। इतने बड़े फैसले उसने इतने आसानी से सुना दिए जिसका अंदाज़ा तो भारद्वाज परिवार में भी किसी को नहीं था।


शुक्ला, महाजन और पाठक ये तीनों परिवार भी वैधायन के साथ शुरू से जुड़े थे। भारद्वाज खानदान के उलट इनका जब वंश आगे बढ़ा तो उनके वंश का हर सदस्य तरक्की की ऊंचाई पर था। लगभग 6 पीढ़ियों का इतिहास तो सबका है, जिसमें इन तीनों की बढ़ती पीढ़ी इतनी विस्तार कर गई की इनका पूरे प्रहरी समुदाय पर लगभग कब्जा था।


हां लेकिन एक बात जो सत्य थी। जबतक सुकेश भारद्वाज सत्ता में था तब भी इनकी नहीं चली। जब उज्जवल भारद्वाज सत्ता में रहा तब इनकी नहीं चली और जब भूमि भारद्वाज थी पहले, बाद मे देसाई बनी, वो जब अस्तित्व मे आयी तब इनकी जड़ें खोद डाली। और आज पलक ने तो अविश्वसनिय काम कर दिया था। प्रहरी के 40 में से 30 हाई टेबल इन्हीं परिवारों के पास थी और पलक ने उनमें से 22 टेबल एक मीटिंग में खाली करवा दी।


शुरू से इन तीनों परिवार, शुक्ल, महाजन और पाठक, के कुछ लोग लॉबी करते थे। अंदरुनी साजिश और प्रहरी समुदाय में भारद्वाज का दबदबा समाप्त करने की इनकी कोशिश लंबे समय से जारी थी। इन्हीं के पूर्वजों कि कोशिश की वजह से कभी भारद्वाज खानदान विकसित होकर अपना वंश वृक्ष मजबूती से आगे नहीं बढ़ा पाया।


इन्हीं लोगों के कोशिशों का नतीजा था कि भारद्वाज के साथ उनके करीबियों को भी समय समय पर लपेट लिया जाता था, जिसकी एक कड़ी वर्धराज़ कुलकर्णी भी थे। जबसे इन लोगों को पता चला था कि कुलकर्णी खानदान का एक लड़का काफी क्षमतावान है जिसका प्रारंभिक जीवन अपने दादा की गोद में, उसके ज्ञान तले बढ़ा, तब से इन लोगों का मुख्य निशाना आर्यमणि ही था।


हालांकि शुक्ल, महाजन और पाठक के वंश वृक्ष की हर साखा पर धूर्त नहीं थे। उनमें से बहुत ऐसे पूर्वजों की पीढ़ी भी आगे बढ़ी थी जो प्रहरी के प्रति पूर्ण समर्पित और संस्था को पहली प्राथमिकता देते थे।


प्रहरी हाई टेबल मीटिंग के समापन के तुरंत बाद ही इन परिवारों के एक लीग कि अपनी एक मीटिंग, उसी दिन मुंबई में हुई। जिसमे हंस शुक्ल, रवि महाजन और भाऊ की बेटी आरती मुले सामिल थी। इनके साथ प्रहरी के कई उच्च सदस्य भी थे।


हंस:- मेरा ससुर (भाऊ, देवगिरी पाठक) पागल हो गया है वो तो इन भारद्वाज के तलवे ही चाटेगा।


आरती:- कास बाबा इस लीग का हिस्सा होते जो भारद्वाज को गिरता देखना चाहते है और पुरा प्रहरी समुदाय अपने नाम करना चाहते है। लेकिन वैधायन के पाठक दोस्तों के 4 बेटे में से, बाबा को पुष्पक पाठक का ही वंसज होना था।


अमृत पाठक, भाऊ का भतीजा, और उसकी संपत्ति पर अपनी चचेरी बहन और भाऊ की बेटी आरती के साथ नजर गड़ाए। क्योंकि भाऊ की मनसा सम्पत्ति को लेकर साफ थी, उनकी सम्पत्ति का वारिस एक योग्य प्रहरी होगा जो इस संपत्ति को आगे बढ़ाए और प्रहरी के काम में पूर्ण आर्थिक मदद करे। इसलिए उसने कभी बेटे की ख्वाहिश नहीं किया। उनकी 2 बेटियां ही थी, बड़ी सुप्रिया शुक्ल जिसकी शादी हंस शुक्ल से हुई थी। छोटी भारती, जिसकी शादी धीरेन स्वामी से हुई थी। एक मुंह बोली बेटी भी थी, जिसकी शादी प्रहरी के बाहर मुले समुदाय में हुई थी, और वह आरती मुले थी।


अमृत पाठक:- जो लॉबिंग महाजन, शुक्ल और पाठक के वंशज करते आ रहे थे, वह सभी भारद्वाज के दिमाग के धूल के बराबर भी नहीं। नई लड़की के सामने एक ही मीटिंग मे 22 हाई टेबल खाली करवा आए। शर्म नहीं आती तुम सबको। जाओ पहले कोई दिमाग वाला ढूंढो और धीरेन स्वामी को मानने की कोशिश करो। क्योंकि वाकई तुम लोगो पर भारद्वाज का काल मंडरा रहा है।


आरती:- अमृत मेरे बाबा कहीं अपनी प्रॉपर्टी बिल ना बनवा रहे हो पलक भारद्वाज के नाम। मुझे तो यही चिंता खाए जा रही है।


अमृत:- बड़े काका जो भी बिल बनवा ले, बस उनको मरने दो, फिर आराम से ये सम्पत्ति 2 भागो में विभाजित होगी। मै इसलिए नहीं काका का काम देखता की उनकी सम्पत्ति भिखारियों में दान दे दी जाए। …


तभी उस महफिल में एंट्री हो गई एक ऐसे शक्स की जिसकी ओर सबका ध्यान गया… प्रहरी के इस भटके समूह का दिमाग, यानी धीरेन स्वामी पर। धीरेन स्वामी का कोई बैकग्राउंड नहीं था। एक बार शिकारियों के बीच धीरेन फसा था, जहां उसने अपनी आखों से सुपरनैचुरल को देखा था।


खैर, उसे कभी फोर्स नहीं किया गया कि वो प्रहरी बने। उसे कुछ पैसे दे दिए गए, ताकि वो खुश रहे और बात को राज रखे। छोटा सा लड़का फिर देवगिरी पाठक के पास पहुंचा और उनके जैसा काम सिखन की मनसा जाहिर किया। देवगिरी ने कुछ दिनों तक उसे अपने पास रखकर प्रशिक्षित किया। उसके सीखने की लगन और काम के प्रति मेहनत को देखकर देवगिरी उसे प्रहरी समुदाय में लेकर आया।


भूमि और धीरेन की सीक्षा लगभग एक साथ ही शुरू हुई थी। दोनो जैसे-जैसे आगे बढ़े प्रहरी समुदाय मे काफी नाम कमाया। दोनो दूर-दूर तक शिकार के लिए जाते थे और निर्भीक इतने की कहीं भी घुसकर आतंक मचा सकते थे। दोनो ही लगभग एक जैसे थे दिमाग के बेहद शातिर और टेढ़े तरीके से काम निकालने में माहिर। बस एक चीज में भूमि मात खा गई, धीरेन टेढ़े दिमाग के साथ टेढ़ी मनसा भी पाल रहा था, इस बात की भनक उसे कभी नहीं हुई।


दोनो के बीच प्रेम भी पनपा और जश्मानी रिश्ते भी कायम हुए, लेकिन धीरेन केवल भूमि की सोच को समझने के लिए और प्रहरी का पुरा इतिहास जानने के लिए उसके साथ हुआ करता था। उसे इस बात की भनक थी, यदि भूमि उसके साथ हुई, तो वो अपनी मनसा में कभी कामयाब नहीं हो पाएगा, और यहां उसकी मनसा कोई पैसे कमाने का नहीं थी, बल्कि उससे भी ज्यादा खतरनाक थी। ताकत का इतना बड़ा समुद्र उसे दिख चुका था कि वो सभी ताकतों का अधिपति बनना चाहता था।


इसी बीच धीरेन भूमि की मनसा पूरा भांप चुका था। भूमि प्रहरी समुदाय में चल रहे करप्शन की जड़ तक पहुंचने की मनसा रखती थी। भूमि जिस-जिस पॉइंट को लेकर शुक्ल, महाजन और पाठक के कुछ लेग को घसीटने वाली होती, समय रहते धीरेन ने उन्हें आगाह कर दिया करता और वो इस खेमे मे सबसे चहेता बन गया।


भूमि से नजदीकियों को दूर करने के लिए धीरेन की शादी भारती से करवाई गई, ताकि ये मुंबई आ जाए और भूमि से दूर हो जाए। धीरेन को भी कोई आपत्ति नहीं थी। भूमि से केवल भावनात्मक दिखावा किया था धीरेन ने और भाऊ का कर्ज उतारने के लिए यह शादी कर रहा, भूमि से जताया। भूमि खून का घूंट पीकर रह गई। कुछ दिनों के लिए भूमि सब कुछ भूलकर विरह में भी जी थी। तब भूमि को जयदेव का सहारा मिला। जयदेव हालांकि भूमि के गुप्त रिश्ते के बारे में नहीं जानता था, उसे केवल इतना पता था कि भूमि धीरेन के साथ छोड़ने से हताश है।


जयदेव बहुत ही शांत प्रवृत्ति का प्रहरी था, जो चुप चाप अपना काम किया करता था। भूमि के अंतर्मन को ये बात झकझोर गई की अपने अटूट रिश्ते के टूटने कि कहानी बताये बिना यदि वो जयदेव से शादी कर ली, तो गलत होगा। इसलिए शादी के पूर्व ही उसने जयदेव को सारी बातें बता दी। जयदेव, भूमि के गम को सहारा देते हुए अपनी कहानी भी बयान कर गया जो कॉलेज में एक लड़की के साथ घटा था और वो बीमारी के कारण मर गई थी।


शायद दोनो ही एक दूसरे के दर्द को समझते थे इसलिए एक दूसरे से शादी के बाद उतने ही खुश थे। आज ना तो भूमि और ना ही जयदेव को अपनी पिछली जिंदगी से कोई मलाल था क्योंकि दोनो ने एक दूसरे के जीवन में जैसे रंग भर दिए हो। इधर धीरेन अपनी शादी के बाद मुंबई सैटल हो गया। एक जिम्मेदार प्रहरी और भाऊ का वो उत्तराधिकारी था। इसलिए अरबों का बिजनेस उसे सौगात में मिली थी, जिसे उसकी पत्नी भारती देखती थी। धीरेन सबकी मनसा जानता था लेकिन धीरेन की मनसा कोई नहीं। समुदाय में भटके परिवार को यही लगता रहा की धीरेन स्वामी धन के लिए ही काम कर रहा था। जब उसे भाऊ की सम्पत्ति का एक हिस्सा मिला, तब अपने दिमाग और भारती की कुशलता की मदद से, उसने इतनी लंबी रेखा खींच दी, कि बाकियों के नजर में धीरेन स्वामी अब खटकने लगा। जिसका परिणाम हुआ, मुंबई के प्रहरी इकाई ने धीरेन को प्रहरी समुदाय छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। धीरेन के समुदाय छोड़ने ही, उसे अपनी 70% सम्पत्ति प्रहरी समुदाय को लौटानी पड़ी थी और इन लोगो के सीने में बर्णोल लग गया था।


बीते दौड़ में भूमि नामक तूफान से धीरेन ने उन सबको निकाल लिया था। उसके बाद तो सभी लोग यही सोचते रहे की भारद्वाज का अब कौन है, जो भूमि के बराबर दिमाग रखता हो और हमारी जड़े हिलाए। बस इस एक सोच ने उन्हें आज ऐसा औंधे मुंह गिराया की धीरेन के पाऊं पकड़कर मीटिंग में आने के लिए राजी किया गया था।


धीरेन स्वामी जैसे ही अंदर पहुंचा, आरती उसे बिठती हुई… "कैसे है छोटे जमाई।"


धीरेन, हंसते हुए… "सब वक़्त का खेल है। कभी नाव पर गाड़ी तो कभी गाड़ी पर नाव।"..


अमृत:- धीरेन भाऊ अब गुस्सा थूक भी दो, और इनकी डूबती नय्या को पार लगा दो।


धीरेन:- अमृत, मुझे केवल अपने परिवार के लोग से बात करनी है। बाकी सब यहां से जा सकते है।


अमृत, आरती और हंस उसके पास बैठ गए और बाकी सभी बाहर चले गए।… "दीदी मै सिर्फ आप दोनो को बचा सकता हूं, बाकी मामला अब हाथ से निकल गया है। वो भी आपको इसलिए बचना मै जरूरी समझता हूं क्योंकि आपके बारे में जानकर मेरी पत्नी को दर्द होगा, और उसे मै दर्द में नहीं देख सकता। वो परिवार ही क्या जो बुरे वक़्त में अपने परिवार के साथ खड़ा ना हो, भले ही उस परिवार ने मुझसे मेरी सबसे प्यारी चीज छीन ली हो।"..


हंस:- हम बहकावे में आ गए थे स्वामी, आज भी आरती ने भरी सभा में तुम्हारा नाम लिया था।


धीरेन:- और आप.… आपको मै याद नहीं आया जो आपके बाबा को और यहां बैठे ना जाने कितने प्रहरी को मुसीबत से निकाला था। मै केवल और केवल आरती के साथ मीटिंग करूंगा, इसके अलावा कोई और दिखा तो मै कोई मदद नहीं करने वाला।


आरती:- मुझे मंजूर है।


स्वामी उस सभा से उठते हुए… "मेरे कॉल का इंतजार करना आप, और आगे से ध्यान रखिएगा पैसे की चाहत अक्सर ले डूबती है।"..


स्वामी के वहां से जाते ही…. "हंस 2 टॉप क्लास मॉडल का इंतजाम करो, नई शुरवात के नाम।"..


हंस:- हम्मम ! समझ गया…


स्वामी उस दरवाजे से बाहर निकलते ही अंदर ही अंदर हंसा…. "एक बार गलत लोगों पर भरोसा करके मैं अपने लक्ष्य से कोसों दूर चला गया था, तुमने क्या सोचा इस बार भी वही होगा। बस अब तमाशा देखते जाओ।"..


स्वामी कुछ दूर चलते ही उसने अपना फोन निकला, कॉल लगा ही रहा था कि उसे ध्यान आया…. "भूमि ने अब तक तो सरदार खान पर सर्विलेंस लगा दिया होगा। सरदार खान को फोन करने का मतलब होगा फसना। सॉरी सरदार तुझे नहीं बचा पाया, लेकिन तू खुद बच जाएगा मुझे यकीन है।"


देवगिरी पाठक का बंगलो…


मीटिंग की शाम देवगिरी पाठक और विश्वा देसाई की बैठक हो रही थी। दोनो शाम की बैठक में स्कॉच का छोटा पेग उठाकर खिंचते हुए…


देवगिरी:- विश्वा दादा आज तो उस पलक ने दिल जीत लिया।


विश्व:- देव तुम शुरू से बहुत भोले रहे हो। जानते हो मै यहां क्यों आया हूं?


देवगिरी:- क्यों दादा..


विश्वा:- आज की मीटिंग में जब आर्यमणि का पैक बनाना, वुल्फ से दोस्ती और उनके क्षेत्र कि जांच हो ऐसी मांग उठी, तो मुझे वर्धराज गुरु की याद आ गई। किसी ने उस समय जो साजिश रची थी, इस बार भी पूरी साजिश रचे थे। लेकिन भारद्वाज की नई पीढ़ी अपने दादाओं कि तरह बेवकूफ नहीं है। शायद हमने वर्धराज गुरु के साथ गलत किया था...


देवगिरी:- दादा आपने बहुत सही प्वाइंट पकड़ा है। अरे करप्शन कि जड़ है ये शुक्ल, महाजन और मेरा पाठक परिवार। हमेशा इन लोगो ने पैसों को तबोज्जो दिया है।


विश्वा:- मुझे पलक की बात जायज लगी। सबको रीसेट करते है और धन का बंटवारा बराबर कर देते है। किसी के पास अरबों तो किसी के पास कुछ नहीं...


देवगिरी:- कैसे करेंगे दादा? अब जैसे स्वामी को ही ले लो। उसे मैंने 400 करोड़ का सेटअप दिया था। 4 साल में उसने 1200 करोड़ बनाया और प्रहरी छोड़ते वक़्त उसने 840 करोड़ समुदाय को दे दिया। 360 करोड़ से उसने धंधा चलाया। 6 साल में वो कुल 1600 करोड़ पर खड़ा है। क्या कहूं फिर 70% दे दो।


"हां फिर 70% ले लो। बुराई क्या है।"… धीरेन स्वामी अंदर आते ही दोनो के पाऊं छुए।


देवगिरी:- दादा इसको पूछो ये यहां क्या करने आया है?


धीरेन स्वामी:- अपने ससुर का ये 6 साल से इन-डायरेक्ट बात करने का सिलसिला तोड़ने। मुझे गुप्त रूप से नियुक्त कीजिए और जांच का प्रभार सौंप दीजिए। काम खत्म होने के बाद मुझे स्थाई सदस्य बनाना ना बनना आप सब की मर्जी है, लेकिन मै वापस आना चाहता हूं। बोर हो गया हूं मै ऑफिस जाते-जाते।


देवगिरी:- क्या मै सच सुन रहा हूं या तुझे आज फिर से भारती ने डांटा है?


धीरेन:- भाऊ हे काय आहे, मै सच कह रहा हूं।


विश्वा:- देवगिरी मैंने दे दिया प्रभार, तुम भी दो।


देवगिरी, अपने दोनो हाथ स्वामी के गाल को थामते… "मेरा बेटा लौट आया।" इतना कहकर देवगिरी ने बेल बजाई, उधर से एक अत्यंत खूबसूरत 28 साल की एक लेडी एक्सक्यूटिव की पोशाक में वहां पहुंची…. "सैफीना सभी एम्प्लॉयज में 2 महीने की सैलरी बोनस डलवा दो।"


धीरेन:- हेल्लो सैफीना..


सैफीना:- हेल्लो सर..


धीरेन:- 2 मंथ नहीं 3 मंथ की सैलरी बोनस के तौर पर दो और मै जब जाने लगूं तो एक मंथ का बोनस चेक मुझसे कलेक्ट कर लेना।


सैफीना "येस सर" कहती हुई वहां से चली गई। उसके जाते ही… "भाऊ आप कहते थे ना मै अपनी सारी संपत्ति किसी ऐसे के नाम करूंगा जो इस धन को आगे बढ़ाए और प्रहरी समुदाय में किसी को आर्थिक परेशानी ना होने दे तो वैसा कोई मिल गया है।"


देवगिरी:- हां मै भी उसी के बारे में सोच रहा था, पलक भारद्वाज।


धीरेन:- नहीं गलत। आर्यमणि कुलकर्णी।


देवगिरी:- लेकिन वो तो प्रहरी नहीं है और जहां तक खबर लगी है कि वो बनेगा भी नहीं।


धीरेन:- हा भाऊ, लेकिन उसकी सोच पूरे प्रहरी समुदाय से मिलती है, या फिर उससे भी कहीं ज्यादा ऊंची। ना तो वो आपके पैसे को कभी डूबने देगा और ना ही किसी गलत मकसद मे लगाएगा। उल्टा वर्षों से जो हम अनदेखी करते आएं है वो उसकी भरपाई कर रहा है। देखा जाए तो प्रहरी के गलती का निराकरण, वुल्फ को सही ढंग से बसाकर। मेरे हिसाब से तो आपको उसी को उत्तरदायित्व देना चाहिए।


देवगिरी:- मेरा दिल पिघल गया तेरी बातों से। कल ही बिल बनवाता हूं। 42% में ३ बेटी का हिस्सा। 18% अमृत को और बचा 40% आर्यमणि को। जबतक रिटायरमेंट नहीं लेता, सब मेरे कंट्रोल में और सबको जल्दी धन चाहिए तो मेरा कत्ल करके ले लेना।


धीरेन:- 100% की बात करो तो सोचूं भी कत्ल करने का ये 14% के लिए कौन टेंशन ले। इतना तो मै 4 साल में अपने धंधे से अर्जित कर लूंगा।


देवगिरी:- ले ले तू ही 100%। कल से आ जा यहां, मै घूमने चला जाऊंगा।


धीरेन:- भाऊ आपकी बेटी मुझे चप्पल से मारेगी और सारा पैसा अनाथालय को दान कर देगी। रहने दो आप, गृह कलेश करवा दोगे। मैंने अपने दोनो बेटे के लिए पर्याप्त घन छोड़ा है। पहले से सोच लिया है, 2000 करोड़ अपने दोनो बेटे मे, उसके आगे का आधा घन प्रहरी समुदाय को और आधा अनाथालय को।


देवगिरी:- ये है मेरा बच्चा। आज तो नाचने का मन कर रहा है।..


धीरेन:- आप दोनो नाचो मै जबतक यहां के काम काज को देखता चलूं।


धीरेन जैसे ही बाहर निकला। साइड में रिसेप्शन पर बैठा एक लड़का… "सर सैफीना मैम ने वो चेक के बारे में कहा था याद दिला देने।"


स्वामी:- ओह हां। कहां है वो अभी। बोलो यहां आकर कलेक्ट कर ले।


रिसेप्शनिस्ट, कॉल लगाकर बात करने के बाद… सर वो अपने चेंबर में है। आपको ही बुला रही है। बोली एक फाइल को आप जारा चेक करते चले जाइए।


ठीक है कहता हुए वो ऑफिस में घुसा… "कौन सी फाइल चेक करनी है मैडम।"..


सैफीना अपने कुर्सी से उतरकर आगे अपने डेस्क कर टांग लटकाकर बैठ गई और अपने शर्ट के बटन खोलते… "फाइल मै ओपन करके दूं, या खुद ओपन करोगे।"..


"तुम बस सिग्नेचर करने वाली पेन का ख्याल रखो, बाकी सब मै अपने आप कर लूंगा।"…


बदन से पूरे कपड़े उतर गए और दोनो अपने काम लीला में मस्त। एक घंटे में मज़ा के साथ-साथ सारी इंफॉर्मेशन बटोरते हुए धीरेन ने सैफीना को उसके पसंदीदा ऑडी की चाभी थमाई और वहां से चलता बाना।


अगले दिन कि मीटिंग में, जान हलख में फसे लोग बाहर इंतजार करते रहे और स्वामी, आरती के साथ मीटिंग में व्यस्त था। इसी बीच 2 हॉट क्लास मॉडल उसकी सेवा में पहुंच गई। स्वामी का मन उनको देखकर हराभरा तो हुआ, लेकिन धीरेन इस वक़्त इनके झांसे में नहीं ही फंस सकता था। धीरेन स्वामी, आरती के माध्यम से सबको आश्वाशन दिया और सबको आराम से 2 महीने शांत बैठने के लिए कहने लगा।
Ye sale tino kul wale to bahut bade kamine nikle Matlb inko bas paise se matlab hai. Aur in sub kamino ka bhi baap hai ek dhiren. Iske bare me to padh kar bas itna hi kahne ka man kar raha hai sun me jo bhumi ko chla de to uske bare me kya hi kahna. Bas mai to itna cahta hu apna aary iska pool sbke samne khole aur isko saja bhumi ke hatho mile. Bahut maje kiye hai na bhumi ke sath jab wo saja degi to bhi maja aayega dekhne me.
Aur aary jo ki bhumi ko itna manta hai mere khyal se use iske bare me kafi kuch pata hoga aur bhumi ke sath dhoka karne wale ko to wo aisi maut dega ki dekhne sunane wale bhi kabhi aisa karne se pahle 1000 time sochenge. Aur is dhiren ne to such me her jagah apna jaal sa bun rakha hai abhi tak mujhe ek bhi banda nahi dikha jo isake khilaf ho. Aur baat bhi sahi hai wo paise ke piche nahi power ke piche hai. Dekhte hai aage kya hota hai ? nain11ster bhai bahut hi jabardast Update.
भाग:–37






नागपुर शहर.... मीटिंग खत्म होने के ठीक एक दिन बाद…..


सुकेश की बुलावे पर बड़ी सी महफिल सजी हुई थी। जहां प्रहरी और आर्यमणि दोनो साथ बैठे थे। जिस गरज के साथ पलक प्रहरी सभा में बरसी थी, उसपर पुरा घर रह-रह कर गर्व महसूस कर रहा था। लेकिन बोलने के बाद अब करने का वक्त था और जरूरी था पलक खुद को साबित करके दिखाये। पलक की अगुवाई में चल रही रीछ स्त्री की खोज भी पूरी हो चुकी थी, और उसे धर–दबोचने की तैयारी में यह सभा रखी गयि थी।


सुकेश:– बहुत ज्यादा वक्त न लेते हुये मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं। वाकी वुड्स में क्या हुआ था इस बात से सभी भली भांति परिचित होंगे। पलक जब विशेष जीव साखा की अध्यक्ष बनी, तभी उसने मुझे रीछ स्त्री को दूंढने का काम सौंपा। मैने इस काम में अपने कुछ खास सहयोगियों को लगाया था और अब हमारे पास रीछ स्त्री की पक्की खबर है...


पूरी सभा लगभग एक साथ... "कहां है वह अभी"…


सुकेश:– खबरों की माने तो वह रीछ स्त्री सतपुरा के घने जंगलों के बीच, वहां स्थित पर्वत श्रृंखला के एक मांद में छिपी है। आसपास के लगभग 5 किलोमीटर का दायरा उसका विचरण क्षेत्र है, जिसके अंदर कोई नही जा सकता।


भूमि:– कोई नही जा सकता, यह कैसे पता चला? क्या अंदर घुसने की कोशिश में किसी पर हमला हुआ या जान से मार दिया गया?


सुकेश:– पूरी जानकारी तो मुझे भी नही। खबरियों द्वारा जो खबर मिली उसे बता रहा हूं। जबतक वहां छानबीन के लिये नही जायेंगे, पूरी बात पता नही चल सकती। हां पर खबर पक्की है कि रीछ स्त्री वहीं है।


भूमि:– हां तो देर किस बात की है। हम कुछ टुकड़ी के साथ चलते हैं और उस रीछ स्त्री को पकड़ कर ले आते हैं।


पलक:– भूमि दीदी जाने से पहले थोड़ा यह जान ले की हम किसके पीछे जा रहे। यह कोई साधारण सुपरनेचुरल नही बल्कि काफी खरनाक और दीर्घायु सुपरनैचुरल है। सोचो कितना उत्पात मचाया होगा, जो इसे विष मोक्ष श्राप से बंधा गया था। इसका दूसरा मतलब यह भी निकलता है कि उस दौड़ में विकृत रीछ स्त्री को मार नही पाये होंगे इसलिए मजबूरी में कैद करना पड़ गया होगा।


भूमि:– ठीक है तुम इंचार्ज हो, तुम्ही फैसला करो...


पलक:– पैट्रिक और रिचा की टीम तेजस दादा के नेतृत्व में काम करेगी। सुकेश काका, बंगाल की मशहूर जादूगरनी ताड़का और उसके कुछ चेलों के साथ अपनी एक टुकड़ी लेकर जायेंगे। आर्यमणि के अल्फा पैक के साथ मैं एक टुकड़ी लेकर जाऊंगी। आज शाम ही हम सब सतपुरा जंगल के लिये निकलेंगे। हम सबसे पहले सतपुरा के पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचेंगे और वहां से अलग–अलग दिशाओं से जांच करते हुये, ठीक 7 दिन बाद, चंद्र ग्रहण से ठीक एक दिन पूर्व, रीछ स्त्री के उस 5 किलोमीटर वाले दायरे के पास एकत्रित होंगे। वहां हम पूरी रणनीति बनायेंगे और चंद्र ग्रहण की रात उस रीछ स्त्री को बांधकर नागपुर प्रहरी कार्यालय में कैद करेंगे।


भूमि:– मेरी नेतृत्व वाली सभी टुकड़ी को ले जा रहे और मुझे ही अगुवाई का मौका नहीं मिल रहा...


पलक:– दीदी आप यहां आराम करें और आपकी टुकड़ी में जो बेहतरीन शिकारी है उसे भी ऊपर आने का मौका दें।


भूमि, पलक के इस जवाब पर केवल मुस्कुरा कर अपनी प्रतिक्रिया दी। सभा में सभी फैसले लेने के बाद सभा स्थगित हो गया और सब शाम में निकलने की तैयारी करने लगे। तैयारी में तो आर्यमणि भी लग गया। जहां एक ओर लोगों को शिकारी होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था, वहीं आर्यमणि और निशांत २ ऐसे नाम थे जो पैदा ही शिकारियों के गुण के साथ हुये थे। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण तो लोपचे का खंडहर था, जहां कई माहिर शिकारी को दोनो चकमा देकर सुहोत्र को ले उड़े। आर्यमणि भला जंगल के इस मिशन में निशांत को साथ क्यों नही लेता। बाकी सब अपनी रणनीति में और दोनो दोस्त अपनी...


निशांत:– मजा आयेगा आर्य, लेकिन ये तो बता की हमे वहां करना क्या होगा?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नही। शायद जंगल के अंदर कुछ छानबीन और उस विकृत रीछ स्त्री को पकड़े कैसे?



निशांत, थोड़ा आश्चर्य में... "यानी जिसे पकड़ने जा रहे उसके विषय में कोई ज्ञान नहीं?"


आर्यमणि:– इतना चौंक क्यों रहा है?


निशांत:– यार ये तो आत्महत्या करने जैसा है। इतिहास के सबसे शक्तिशाली मानव प्रजाति जो हजारों वर्ष तक जिंदा रह सकते थे। जिनके शक्तियों का विस्तृत उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक है। जिसका एक योद्धा जम्बत जी का उल्लेख सतयुग से लेकर द्वापरयुग तक मिलता है। और यदि इस रीछ स्त्री की बात करे तो वह गवाह होगी द्वापर युग की। जो स्त्री महाभारत के समकालीन है और कलयुग में आज तक जिंदा है। उसे बस ऐसे हवा–हवाई रणनीति से पकड़ने जा रहे। उसे पकड़ने भी जा रहे हो या उसके पैरों में गिड़कर उसका चेला बनना है? क्योंकि ऐसी रणनीति का तो यही निष्कर्ष निकलता है कि किसी तरह पता करो की वह शक्तिशाली रीछ स्त्री कहां है ताकि उसके पैरों में गिरकर उसे अपने ओर मिला ले और अपनी भी मनचाही मनोकामना पूर्ण हो जाए...


आर्यमणि:– तो क्या करे, न जाएं...


निशांत:– हम जायेंगे लेकिन इन फालतू प्रहरी के भरोसे नहीं जायेंगे... हमे अपने जंगल (गंगटोक के जंगल) के बारे में पता था कि वहां हमारा सामना किस जानवर और किन–किन विषम परिस्थितियों से हो सकता था। इसलिए संकट कितना भी अचानक क्यों न आये हमे समस्या नहीं होती। हम यहां भी ठीक वैसा ही करेंगे...


आर्यमणि:– हम्मम.. ठीक है हम खरीदारी करते हुये डिस्कस कर लेंगे, लेकिन सबसे पहले मैं तुम्हे कुछ दिखाना चाहता हूं...


इतना कहकर आर्यमणि अपने कमरे का दरवाजा बंद किया। बिस्तर के नीचे पड़ा अपना बैग निकाला। यह लाइफ सपोर्टिंग बैग था। ऐसा ही एक बैग निशांत के पास भी हमेशा रहता है। आर्यमणि उसके अंदर से सभी समान बाहर निकलने के बाद आखरी में सबसे नीचे से एक पोटली निकाला... पोटली को देखते ही निशांत की आंखें बड़ी हो गई... "लोपचे का भटकता मुसाफिर। आर्य, इसे साथ लेकर घूम रहे"…


आर्यमणि:– ऐडियाना का मकबरा कहां है...


निशांत:– मध्य भारत के जंगल में..


आर्यमणि:– मैप में देखकर बताओ की मध्य भारत का जंगल कहां है?


निशांत:– बताना क्या है... वही सतपुरा का जंगल.. लेकिन तुम दोनो बातों में क्या समानता ढूंढ रहे हो?..


आर्यमणि:– लोपचे के भटकते मुसाफिर की माने तो एडियाना के मकबरे में 3 चीजों का उल्लेख है, जो हर किसी को पता है... पुर्नस्थापित अंगूठी (restoring ring), बिजली की खंजर और...


निशांत उसे बीच में ही रोकते.… "और बहरूपिया चोगा... यानी वो रीछ स्त्री मध्य भारत के जंगल में इन्हे ही ढूंढने निकली है।"..


आर्यमणि:– दोनो ही बातें है, हो भी सकता है और नही भी। रीछ स्त्री अपने कैद से बाहर निकलने के बाद जो भी अपना लक्ष्य रखे, उसके लिए सबसे पहले उसे खुद के अंदर क्षमता विकसित करनी होगी। जिसके लिए उसे कम से कम 500–600 दिन तो चाहिए। यदि उसे ये सब जल्दी निपटाना हो तब...


निशांत:– तब तो उसे कोई जादू ही चाहिए। और ऐसा ही एक जादू वहां के जंगल में भी है... पुर्नस्थापित अंगूठी... हाहाहाहाहा..


आर्यमणि:– हाहाहाहाहा.. और उस गधी को पता नही होगा की वहां तो लोपचे के भटकते मुसाफिर ने लोचा कर दिया था...


लोपचे के भटकते मुसाफिर यानी की पारीयन लोपचे, सुपरनैचुरल के बीच काफी प्रसिद्ध नाम है। इसे खोजी वुल्फ भी कहा जाता है। पहला ऐसा लोन वुल्फ, जो अपनी मर्जी से ओमेगा था। कई साधु, संत, महात्मा, और न जाने कितने ही दैत्य दानव से वह मिला था। उस दौड़ के योगियों का चहेता था और किसी भी प्रकार के खोज में, खोजी टुकड़ी के अगुवाई पारीयान लोपचे ही करता था। उसके इसी गुण के कारण से पारीयान लोपचे को लोपचे का भटकता मुसाफिर कहा जाता था। अपने खोज के क्रम में वह साधु, योगियों और आचार्य का इतना चहेता हो चुका था कि गुरुओं ने उसे सिद्ध की हुई भ्रमित अंगूठी (illiusion ring) दिया था।


सुनने में भले ही यह जादू कला की छोटी सी वस्तु लगे लेकिन यह वस्तु उस चींटी के भांति थी, जो किसी हांथी के सूंड़ में घुसकर उसे धाराशाही कर सकती थी। कहने का अर्थ है, बड़े से बड़ा दैत्य, काला जादूगर, शिकारी, वीर, फौज की बड़ी टुकड़ी, कोई भी हो.… उन्हे किसी को मारने के लिए सबसे जरूरी क्या होता है, उसका लक्ष्य। सामने लक्ष्य दिखेगा तभी उसको भेद सकते हैं। यह भ्रमित अंगूठी लक्ष्य को ही भटका देती थी। यदि सामने दिख रहे पारीयान पर कोई तीर चलता तो पता चलता की वह तीर जैसे किसी होलोग्राफिक इमेज पर चली। कोई काला जादूगर यदि उसके बाल को लेकर, किसी छोटे से प्रतिमा में डालकर, उसका जादुई स्वरूप तैयार करके मारने की कोशिश करता, तब पता चलता की यह काला जादू भी बेअसर। क्योंकि भ्रमित अंगूठी पारीयान के अस्तित्व तक को भ्रमित कर देती थी।


उसी दौड़ में कुख्यात जादूगर महाकाश्वर और एडियाना की जोड़ी काफी प्रचलित हुई थी। इन्होंने अपने तंत्र–मंत्र और शातिर दिमाग से सबको परेशान कर रखा था। लेकिन कहते हैं ना आस्तीन का सांप सबसे पहले अपने को ही डस्ता है। जादूगर महाकाश्वर ने भी एडियाना के साथ वही किया। पहले छला... फिर उसकी ताकत हासिल की और एडियाना की ताकत हासिल करने के बाद, उसकी तीन इच्छाओं के साथ उसके मकबरे में दफन कर दिया। ये वही तीन इच्छा थी जिसके छलावे में एडियाना फंसी थी। एडियाना बर्फीले रेगिस्तान (रूस के बर्फीला इलाका) की खौफनाक शैतान कही जाती थी, जो अपने लाखों सेवक विंडीगो सुपरनेचुरल के साथ राज करती थी। ऐडियाना एक कुशल जादूगर तो थी लेकिन मध्य भारत के जादूगर महाकाश्वर की उतनी ही बड़ी प्रशंसक भी।


अभी के वक्त में जो तात्कालिक मंगोलिया है, उस जगह पर जादूगर की एक सभा लगी थी। उसी सभा मे महाकाश्वर की मुलाकात एडियाना से हुई थी। यूं तो जादूगरों की यह सभा साथ मिलकर काम करने के लिए बुलाई गई थी, लेकिन जहां एक ओर एडियाना अपनी बहन तायफा से मिलने पहुंची थी। वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसी तायफ़ा को मारने पहुंचा था। जीन–जिन को भ्रम था कि वह दिग्गज जादूगर है, वह सभी २ पाटन के बीच में पिस गए। एक ओर एडियाना अपनी बहन को बचा रही थी, वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसे मारने का प्रयास कर रहा था।


जादूगरों का गुट २ विभाग में विभाजित हो गया, जहां मेजोरिटी लेडीज के पास ही थी। लेकिन महाकाश्वर के लिए तो भाड़ में गए सब और ठीक वैसा ही हाल एडियाना का भी था। दोनो लगातार लड़ते रहे। उस लड़ाई में वहां मौजूद सभी जादूगर मारे गए फिर भी लड़ते रहे। जिसके लिए लड़ाई शुरू हुई, तायफा, वो भी कब की मर गई। लेकिन इनका लड़ाई जारी रहा। एडियाना बर्फ की रानी थी, तो महाकाश्वर आग का राजा। एडियाना भंवर बनाती तो महाकाश्वर पहाड़ बन जाता। कांटे की टक्कर थी। मंत्र से मंत्र भीड़ रहे थे और आपसी टकराव से वहां के चारो ओर विस्फोट हो रहा था, लेकिन दोनो पर कोई असर नहीं हो रहा था।


एडियाना ने फिर एक लंबा दाव खेल दिया। अपने सुपरनैचुरल विंडिगो की पूरी फौज खड़ी कर दी। लाखों विंडिगों एक साथ महाकाश्वर पर हमला करने चल दिए। किसी भी भीड़ को साफ करना महाकाश्वर के लिए चुटकी बजाने जितना आसान था। लेकिन एडियाना के अगले दाव ने महाकाश्वर के होश ही उड़ा दिए। महाकाश्वर ने विंडिगो की भीड़ को साफ करने के लिए जितने भी मंत्र को उनपर छोड़ा, विंडिगो उन मंत्रो के काट के साथ आगे बढ़ रहे थे। महाकाश्वर को ऐसा लगा जैसे एडियाना एक साथ सभी विंडिगो में समा गई है, जो मंत्र काटते आगे बढ़ रहे। कमाल की जादूगरी जिसके बारे में महाकाश्वर को पता भी नही था। हां लेकिन वो विंडिगो से खुद की जान तो बचा ही सकता था। महाकाश्वर ने तुरंत पहना बहरूपिया चोगा और अब हैरान होने की बारी एडियाना की थी।


बहरूपिया चोगा से भेष बदलना हो या फिर किसी रूप बदल मंत्र से, लेकिन जो महाकाश्वर ने किया वह अद्भुत था। जादू से किसी का रूप तो ले सकते थे लेकिन जिसका रूप लिया हो, खुद को उसकी आत्मा से ही जोड़ लेना, यह असंभव था। और यह असंभव होते एडियाना देख रही थी। एडियाना पहले तो बहुत ही आशस्वत थी, और रूप बदलने जैसे छल पर हंस रही थी। लेकिन जैसे ही पहले विंडिगो का निशान महाकाश्वर के शरीर पर बना, ठीक वैसा ही निशान, उसी जगह पर एडियाना के शरीर पर भी बना। अगले ही पल दोनो की लड़ाई रुक गई और दोस्ती का नया दौड़ चालू हो गया।


अब इच्छाएं किसकी नही होती। ठीक वैसी ही इच्छाएं एडियाना की भी थी। उसे एक चीज की बड़ी लालसा थी... बिजली का खंजर। महाकाश्वर भी यह पहली बार सुन रहा था, लेकिन जब उसने सुना की यह खंजर किसी भी चीज को चीड़ सकती है, तब वह अचरज में पड़ गया।


थोड़े विस्तार से यदि समझा जाए तो कुछ ऐसा था.… सबसे मजबूत धातु जिसे तोड़ा न जा सकता हो, उसका एक अलमीरा बना लिया जाए। अलमीरा के दीवार की मोटाई फिर चाहे कितनी भी क्यों न हो, 20 फिट, 40 फिट... और उस अलमीरा के अंदर किसी इंसान को रखकर उसे चिड़ने कहा जाए। तब इंसान को चिड़ने के लिए अलमीरा खोलकर उस आदमी को निकालने की जरूरत नहीं, क्योंकि बिजली की यह खंजर उस पूरे अलमीरा को ऐसे चीड़ देगी जैसे किसी ब्लेड से कागज के 1 पन्ने को चीड़ दिया जाता है। अलमीरा तो एक दिखने वाला उधारहन था। लेकिन अलमीरा की जगह यदि मंत्र को रख दे, तब भी परिणाम एक से ही होंगे। कितना भी मजबूत मंत्र से बचाया क्यों न जा रहा हो, यह खंजर इंसान को मंत्र सहित चीड़ देगी।


एडियाना की दूसरी सबसे बड़ी ख्वाइश थी कि यदि कोई ऐसा विस्फोट हो, जिसमे उसके चिथरे भी उड़ जाए तो भी वह जीवित हो जाय। जबकि दोनो को ही पता था कि एक बार मरने के बाद कोई भी मंत्र शरीर में वापस प्राण नही डाल सकती। और एक नई ख्वाइश तो एडियाना को महाकाश्वर से मिलने के बाद हुई, वह था बहरूपिया चोगा।

महाकाश्वर कुछ दिन साथ रहकर एडियाना की इच्छाएं जान चुका था। और उसकी जितनी भी इच्छाएं थी, कमाल की थी। महाकाश्वर ने एडियाना से कमाल के शस्त्र, "बिजली का खंजर" के बारे पूछा, "की अब तक वह इस शस्त्र को हासिल क्यों नही कर पायि"। जवाब में यही आया की इस शस्त्र के बारे में तो पता है, लेकिन वह कहां मिलेगा पता नही। महाकाश्वर ने एडियाना से सारे सुराग लिए और बड़ी ही चतुराई से पूरी सूचना लोपचे के भटकते मुसाफिर तक पहुंचा दिया। फिर क्या था, कुछ सिद्ध पुरुष और क्षत्रिय के साथ पारीयान निकल गया खोज पर। महाकाश्वर और एडियाना को तो छिपकर बस इनका पिछा करना था।


लगभग ३ वर्ष की खोज के पश्चात लोपचे के भटकते मुसाफिर की खोज समाप्त हुई। वह खंजर यांग्त्जी नदी के तट पर मिली जो वर्तमान समय में संघाई, चीन में है। जैसे ही यह खंजर मिली, एडियाना के खुशी का ठिकाना नहीं रहा। महाकाश्वर ने अपने छल से वह खंजर तो हासिल कर लिया, लेकिन इस चक्कर में एडियाना और महाकाश्वर दोनो घायल हो गए। घायल होने के बाद तो जैसे एडियाना पागल ही हो गई थी। वह तो सबको मारने पर उतारू थी, लेकिन महाकाश्वर उसे लेकर निकल गया। लोपचे के भटकते मुसाफिर से लड़ाई करना व्यर्थ था, यह बात महाकाश्वर जनता था। बस उसे डर था कि कहीं एडियाना भ्रमित अंगूठी के बारे में जान जाती, तो उसे अपनी तीव्र इच्छाओं में न सामिल कर लेती। यदि ऐसा होता फिर तो इन दोनों की जान जानी ही थी। क्योंकि पारीयान इन दोनो (महाकाश्वर और एडियाना) के अस्त्र और शस्त्र से मरता नही, उल्टा योगी और सिद्ध पुरुष के साथ मिलकर इनके प्राण निकाल लेता।


एडियाना की दूसरी इच्छा का उपाय तो महाकाश्वर पहले से जानता था। उसे हासिल कैसे करना है वह भी जनता था। लेकिन उसे हासिल करने के लिए महाकाश्वर को अपने जैसा ही एक कुशल जादूगर चाहिए था। हिमालय के पूर्वी क्षेत्र में एक अलौकिक और दिव्य गांव बसा था। हालांकि उस गांव को तो किसी ने पहले ही पूरा ही उजाड़ दिया था, लेकिन उस गांव के गर्भ में एक पुर्नस्थापित अंगूठी थी, जो उस पूरे गांव के ढांचे की शक्ति संरचना थी। इसके विषय में खुद गांव के कुछ लोगों को ही पता था। ऊपर से इतनी सिद्धियों के साथ उसके गर्भ में स्थापित किया गया था कि २ सिद्ध जादूगर मिलकर भी कोशिश करते तो भी एक चूक दोनो की जान ले लेती।


लेकिन महाकाश्वर आश्श्वत था। इसलिए खतरों को बताए बिना वह एडियाना के साथ उस गांव में घुसा और कड़ी मेहनत के बाद दोनो पुर्नस्थापित अंगूठी को हासिल कर चुके। सबसे पहला प्रयोग तो महाकाश्वर ने खुदपर किया। एडियाना ने अपने मंत्र से महाकाश्वर के चिथरे उड़ा दिए, लेकिन अगले ही पल एक हैरतअंगेज कारनामे आंखों के सामने था। महाकाश्वर के शरीर का एक–एक कण देखते ही देखते जुड़ गया।


तीनों इच्छाओं को तो महाकाश्वर मूर्त रूप दे चुका था। अब बारी थी एक बहुत बड़े चाल कि। इसके लिए स्थान पहले से तय था, जरूरी सारे काम किए जा चुके थे। एडियाना भी पूरे झांसे में आ चुकी थी। पहले तो कुछ दिनों तक उसे आतंक मचाने के लिए छोड़ दिया गया। कुछ ही वक्त में सकल जगत को महाकाश्वर और एडियाना का नाम पता चल चुका था। हर कोई जानता था कि महाकाश्वर और एडियाना कौन सी शक्तियां हासिल कर चुके। मंत्रों से कोई भी योगी अथवा सिद्ध पुरुष संरक्षित हो नही रहे थे। उसे बिजली की खंजर का स्वाद मिल ही जाता। कितना भी दोनो को मंत्र से बेजान करने की कोशिश क्यों न करो, उनका शरीर पहले जैसा ही हो जाता। उल्टा बहरूपिया चोगा के प्रयोग से एडियाना पर प्राणघाती हमला उल्टा चलाने वाले पर भी हो जाता। एडियाना पुर्नस्थापित अंगूठी से तो बच जाती लेकिन उनके प्राण अपने ही मंत्र ले चुके होते।


एडियाना, महाकाश्वर के पूरे झांसे में आ चुकी थी और अब वक्त था आखरी खेल का। महाकाश्वर, एडियाना के साथ सतपुरा के जंगल में चला आया। थोड़े भावनात्मक पल उत्पन्न किए गए। एडियाना के हाथ को थाम नजरों से नजरें चार हुई। महाकाश्वर के बातों में छल और बातों के दौरान ही उसने एडियाना के मुंह से उगलवाया उसकी इच्छाएं, जिसे महाकाश्वर ने पूरे किये थे। एडियाना ने अपनी इच्छाएं बताकर जैसे ही स्वीकार कर ली कि उसकी सारी इच्छाएं महाकाश्वर ने पूरी कि है, ठीक उसी पल एडियाना का शरीर बेजान हो गया और उसकी सारी सिद्धियां महाकाश्वर के पास पहुंच गई। अब या तो महाकाश्वर, एडियाना को उसकी इच्छाओं के साथ दफना दे या फिर 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाओं को उस से अलग कर दे। अपनी पूरी शक्ति और साथ में जान खोने के बाद, एडियाना अपने मकबरे में दफन हो गई। और उसे दफनाने वाला महाकाश्वर ने उसके तीन इच्छाएं, पुर्नस्थापित अंगूठी, बिजली की खंजर और बेहरूपिया चोगा के साथ एडियाना को दफना दिया।


जादूगर महाकाश्वर अपने 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाएं वापिस हासिल कर लेता। लेकिन अनुष्ठान पूर्ण होने के पहले ही लोपचे का भटकता मुसाफिर जादूगर महाकाश्वर तक पहुंच चुका था। उस जगह भीषण युद्ध का आवाहन हुआ। एक लड़ाई जादूगर महाकाश्वर और योगियों के बीच। एक लड़ाई एक लाख की सैन्य की टुकड़ी के साथ अगुवाई कर रहे सुपरनैचुरल वेयरवोल्फ पारीयान और विंडिगो सुपरनेचुरल के बीच। 2 किलोमीटर के क्षेत्र को बांध दिया गया था। केवल जितने वाला ही बाहर जा सकता था और सामने महायुद्ध। बिना खाये–पिये, बिना रुके और बिना थके 4 दिनो के तक युद्ध होता रहा। 4 दिन बाद ऐडियाना के मकबरे से पुर्नस्थापित अंगूठी लेकर केवल एक शक्स बाहर निकला, वो था लोपचे का भटकता मुसाफिर।


पारीयान ने पूरे संवाद भेजे। युद्ध की हर छोटी बड़ी घटना की सूचना कबूतरों द्वारा पहुंचाई गई। एडियाना का मकबरा और वहां दफन उसकी 3 इच्छाओं का ज्ञान सबको हो चुका था। पारीयान के लौटने की खबर भी आयि लेकिन फिर दोबारा कभी किसी को पारीयान नही मिला। न ही कभी किसी को एडियाना का मकबरा मिला। न जाने कितने खोजी उन्हे मध्य भारत से लेकर हिमालय के पूर्वी जंगलों में तलासते रहे, किंतु एक निशानी तक नही मिली। खोजने वालों में एक नाम सरदार खान का भी था जिसे सबसे ज्यादा रुचि बिजली के खंजर और पुर्नस्थापित अंगूठी में थी।


किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।
Matlb lopche ka bhtakta musafir apne aary aur nishant ko mila tha wahhh kya baat hai nain11ster bhai.
Aur sath me ediyan ka makbara ki bhi kya sahi kahani batati hai. Aur ye india ka jadugar to such me dimak wala nikal aakhir hmse aage kisi bhi mamle me koi kaise aage ja skta hai. Lakin mujhe sath me ye puchna hai bhai ki ye update me aapne jo bate batayi hai. Ediyan ka makbara aur wo dusra jadugar ye sirf kahani hi hai na ya hme history me aisa kuch real me mil skta hai khojne par.
Baki bhai aapka ye Update mujhe dil se bahut hi jyada acha laga. Aapke story ko read krte hue mujhe ak baat to pata chli hai. Aapke story me bahut kuch naya aur almost sabhi bate fact ke sath kahi jati hai. Places ka bhi aap bahut sahi select karte ho. Koi fake place nahi sub reality rahta hai. Bas itna hi kahunga epic bhai
 

arish8299

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भाग:–37






नागपुर शहर.... मीटिंग खत्म होने के ठीक एक दिन बाद…..


सुकेश की बुलावे पर बड़ी सी महफिल सजी हुई थी। जहां प्रहरी और आर्यमणि दोनो साथ बैठे थे। जिस गरज के साथ पलक प्रहरी सभा में बरसी थी, उसपर पुरा घर रह-रह कर गर्व महसूस कर रहा था। लेकिन बोलने के बाद अब करने का वक्त था और जरूरी था पलक खुद को साबित करके दिखाये। पलक की अगुवाई में चल रही रीछ स्त्री की खोज भी पूरी हो चुकी थी, और उसे धर–दबोचने की तैयारी में यह सभा रखी गयि थी।


सुकेश:– बहुत ज्यादा वक्त न लेते हुये मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं। वाकी वुड्स में क्या हुआ था इस बात से सभी भली भांति परिचित होंगे। पलक जब विशेष जीव साखा की अध्यक्ष बनी, तभी उसने मुझे रीछ स्त्री को दूंढने का काम सौंपा। मैने इस काम में अपने कुछ खास सहयोगियों को लगाया था और अब हमारे पास रीछ स्त्री की पक्की खबर है...


पूरी सभा लगभग एक साथ... "कहां है वह अभी"…


सुकेश:– खबरों की माने तो वह रीछ स्त्री सतपुरा के घने जंगलों के बीच, वहां स्थित पर्वत श्रृंखला के एक मांद में छिपी है। आसपास के लगभग 5 किलोमीटर का दायरा उसका विचरण क्षेत्र है, जिसके अंदर कोई नही जा सकता।


भूमि:– कोई नही जा सकता, यह कैसे पता चला? क्या अंदर घुसने की कोशिश में किसी पर हमला हुआ या जान से मार दिया गया?


सुकेश:– पूरी जानकारी तो मुझे भी नही। खबरियों द्वारा जो खबर मिली उसे बता रहा हूं। जबतक वहां छानबीन के लिये नही जायेंगे, पूरी बात पता नही चल सकती। हां पर खबर पक्की है कि रीछ स्त्री वहीं है।


भूमि:– हां तो देर किस बात की है। हम कुछ टुकड़ी के साथ चलते हैं और उस रीछ स्त्री को पकड़ कर ले आते हैं।


पलक:– भूमि दीदी जाने से पहले थोड़ा यह जान ले की हम किसके पीछे जा रहे। यह कोई साधारण सुपरनेचुरल नही बल्कि काफी खरनाक और दीर्घायु सुपरनैचुरल है। सोचो कितना उत्पात मचाया होगा, जो इसे विष मोक्ष श्राप से बंधा गया था। इसका दूसरा मतलब यह भी निकलता है कि उस दौड़ में विकृत रीछ स्त्री को मार नही पाये होंगे इसलिए मजबूरी में कैद करना पड़ गया होगा।


भूमि:– ठीक है तुम इंचार्ज हो, तुम्ही फैसला करो...


पलक:– पैट्रिक और रिचा की टीम तेजस दादा के नेतृत्व में काम करेगी। सुकेश काका, बंगाल की मशहूर जादूगरनी ताड़का और उसके कुछ चेलों के साथ अपनी एक टुकड़ी लेकर जायेंगे। आर्यमणि के अल्फा पैक के साथ मैं एक टुकड़ी लेकर जाऊंगी। आज शाम ही हम सब सतपुरा जंगल के लिये निकलेंगे। हम सबसे पहले सतपुरा के पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचेंगे और वहां से अलग–अलग दिशाओं से जांच करते हुये, ठीक 7 दिन बाद, चंद्र ग्रहण से ठीक एक दिन पूर्व, रीछ स्त्री के उस 5 किलोमीटर वाले दायरे के पास एकत्रित होंगे। वहां हम पूरी रणनीति बनायेंगे और चंद्र ग्रहण की रात उस रीछ स्त्री को बांधकर नागपुर प्रहरी कार्यालय में कैद करेंगे।


भूमि:– मेरी नेतृत्व वाली सभी टुकड़ी को ले जा रहे और मुझे ही अगुवाई का मौका नहीं मिल रहा...


पलक:– दीदी आप यहां आराम करें और आपकी टुकड़ी में जो बेहतरीन शिकारी है उसे भी ऊपर आने का मौका दें।


भूमि, पलक के इस जवाब पर केवल मुस्कुरा कर अपनी प्रतिक्रिया दी। सभा में सभी फैसले लेने के बाद सभा स्थगित हो गया और सब शाम में निकलने की तैयारी करने लगे। तैयारी में तो आर्यमणि भी लग गया। जहां एक ओर लोगों को शिकारी होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था, वहीं आर्यमणि और निशांत २ ऐसे नाम थे जो पैदा ही शिकारियों के गुण के साथ हुये थे। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण तो लोपचे का खंडहर था, जहां कई माहिर शिकारी को दोनो चकमा देकर सुहोत्र को ले उड़े। आर्यमणि भला जंगल के इस मिशन में निशांत को साथ क्यों नही लेता। बाकी सब अपनी रणनीति में और दोनो दोस्त अपनी...


निशांत:– मजा आयेगा आर्य, लेकिन ये तो बता की हमे वहां करना क्या होगा?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नही। शायद जंगल के अंदर कुछ छानबीन और उस विकृत रीछ स्त्री को पकड़े कैसे?



निशांत, थोड़ा आश्चर्य में... "यानी जिसे पकड़ने जा रहे उसके विषय में कोई ज्ञान नहीं?"


आर्यमणि:– इतना चौंक क्यों रहा है?


निशांत:– यार ये तो आत्महत्या करने जैसा है। इतिहास के सबसे शक्तिशाली मानव प्रजाति जो हजारों वर्ष तक जिंदा रह सकते थे। जिनके शक्तियों का विस्तृत उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक है। जिसका एक योद्धा जम्बत जी का उल्लेख सतयुग से लेकर द्वापरयुग तक मिलता है। और यदि इस रीछ स्त्री की बात करे तो वह गवाह होगी द्वापर युग की। जो स्त्री महाभारत के समकालीन है और कलयुग में आज तक जिंदा है। उसे बस ऐसे हवा–हवाई रणनीति से पकड़ने जा रहे। उसे पकड़ने भी जा रहे हो या उसके पैरों में गिड़कर उसका चेला बनना है? क्योंकि ऐसी रणनीति का तो यही निष्कर्ष निकलता है कि किसी तरह पता करो की वह शक्तिशाली रीछ स्त्री कहां है ताकि उसके पैरों में गिरकर उसे अपने ओर मिला ले और अपनी भी मनचाही मनोकामना पूर्ण हो जाए...


आर्यमणि:– तो क्या करे, न जाएं...


निशांत:– हम जायेंगे लेकिन इन फालतू प्रहरी के भरोसे नहीं जायेंगे... हमे अपने जंगल (गंगटोक के जंगल) के बारे में पता था कि वहां हमारा सामना किस जानवर और किन–किन विषम परिस्थितियों से हो सकता था। इसलिए संकट कितना भी अचानक क्यों न आये हमे समस्या नहीं होती। हम यहां भी ठीक वैसा ही करेंगे...


आर्यमणि:– हम्मम.. ठीक है हम खरीदारी करते हुये डिस्कस कर लेंगे, लेकिन सबसे पहले मैं तुम्हे कुछ दिखाना चाहता हूं...


इतना कहकर आर्यमणि अपने कमरे का दरवाजा बंद किया। बिस्तर के नीचे पड़ा अपना बैग निकाला। यह लाइफ सपोर्टिंग बैग था। ऐसा ही एक बैग निशांत के पास भी हमेशा रहता है। आर्यमणि उसके अंदर से सभी समान बाहर निकलने के बाद आखरी में सबसे नीचे से एक पोटली निकाला... पोटली को देखते ही निशांत की आंखें बड़ी हो गई... "लोपचे का भटकता मुसाफिर। आर्य, इसे साथ लेकर घूम रहे"…


आर्यमणि:– ऐडियाना का मकबरा कहां है...


निशांत:– मध्य भारत के जंगल में..


आर्यमणि:– मैप में देखकर बताओ की मध्य भारत का जंगल कहां है?


निशांत:– बताना क्या है... वही सतपुरा का जंगल.. लेकिन तुम दोनो बातों में क्या समानता ढूंढ रहे हो?..


आर्यमणि:– लोपचे के भटकते मुसाफिर की माने तो एडियाना के मकबरे में 3 चीजों का उल्लेख है, जो हर किसी को पता है... पुर्नस्थापित अंगूठी (restoring ring), बिजली की खंजर और...


निशांत उसे बीच में ही रोकते.… "और बहरूपिया चोगा... यानी वो रीछ स्त्री मध्य भारत के जंगल में इन्हे ही ढूंढने निकली है।"..


आर्यमणि:– दोनो ही बातें है, हो भी सकता है और नही भी। रीछ स्त्री अपने कैद से बाहर निकलने के बाद जो भी अपना लक्ष्य रखे, उसके लिए सबसे पहले उसे खुद के अंदर क्षमता विकसित करनी होगी। जिसके लिए उसे कम से कम 500–600 दिन तो चाहिए। यदि उसे ये सब जल्दी निपटाना हो तब...


निशांत:– तब तो उसे कोई जादू ही चाहिए। और ऐसा ही एक जादू वहां के जंगल में भी है... पुर्नस्थापित अंगूठी... हाहाहाहाहा..


आर्यमणि:– हाहाहाहाहा.. और उस गधी को पता नही होगा की वहां तो लोपचे के भटकते मुसाफिर ने लोचा कर दिया था...


लोपचे के भटकते मुसाफिर यानी की पारीयन लोपचे, सुपरनैचुरल के बीच काफी प्रसिद्ध नाम है। इसे खोजी वुल्फ भी कहा जाता है। पहला ऐसा लोन वुल्फ, जो अपनी मर्जी से ओमेगा था। कई साधु, संत, महात्मा, और न जाने कितने ही दैत्य दानव से वह मिला था। उस दौड़ के योगियों का चहेता था और किसी भी प्रकार के खोज में, खोजी टुकड़ी के अगुवाई पारीयान लोपचे ही करता था। उसके इसी गुण के कारण से पारीयान लोपचे को लोपचे का भटकता मुसाफिर कहा जाता था। अपने खोज के क्रम में वह साधु, योगियों और आचार्य का इतना चहेता हो चुका था कि गुरुओं ने उसे सिद्ध की हुई भ्रमित अंगूठी (illiusion ring) दिया था।


सुनने में भले ही यह जादू कला की छोटी सी वस्तु लगे लेकिन यह वस्तु उस चींटी के भांति थी, जो किसी हांथी के सूंड़ में घुसकर उसे धाराशाही कर सकती थी। कहने का अर्थ है, बड़े से बड़ा दैत्य, काला जादूगर, शिकारी, वीर, फौज की बड़ी टुकड़ी, कोई भी हो.… उन्हे किसी को मारने के लिए सबसे जरूरी क्या होता है, उसका लक्ष्य। सामने लक्ष्य दिखेगा तभी उसको भेद सकते हैं। यह भ्रमित अंगूठी लक्ष्य को ही भटका देती थी। यदि सामने दिख रहे पारीयान पर कोई तीर चलता तो पता चलता की वह तीर जैसे किसी होलोग्राफिक इमेज पर चली। कोई काला जादूगर यदि उसके बाल को लेकर, किसी छोटे से प्रतिमा में डालकर, उसका जादुई स्वरूप तैयार करके मारने की कोशिश करता, तब पता चलता की यह काला जादू भी बेअसर। क्योंकि भ्रमित अंगूठी पारीयान के अस्तित्व तक को भ्रमित कर देती थी।


उसी दौड़ में कुख्यात जादूगर महाकाश्वर और एडियाना की जोड़ी काफी प्रचलित हुई थी। इन्होंने अपने तंत्र–मंत्र और शातिर दिमाग से सबको परेशान कर रखा था। लेकिन कहते हैं ना आस्तीन का सांप सबसे पहले अपने को ही डस्ता है। जादूगर महाकाश्वर ने भी एडियाना के साथ वही किया। पहले छला... फिर उसकी ताकत हासिल की और एडियाना की ताकत हासिल करने के बाद, उसकी तीन इच्छाओं के साथ उसके मकबरे में दफन कर दिया। ये वही तीन इच्छा थी जिसके छलावे में एडियाना फंसी थी। एडियाना बर्फीले रेगिस्तान (रूस के बर्फीला इलाका) की खौफनाक शैतान कही जाती थी, जो अपने लाखों सेवक विंडीगो सुपरनेचुरल के साथ राज करती थी। ऐडियाना एक कुशल जादूगर तो थी लेकिन मध्य भारत के जादूगर महाकाश्वर की उतनी ही बड़ी प्रशंसक भी।


अभी के वक्त में जो तात्कालिक मंगोलिया है, उस जगह पर जादूगर की एक सभा लगी थी। उसी सभा मे महाकाश्वर की मुलाकात एडियाना से हुई थी। यूं तो जादूगरों की यह सभा साथ मिलकर काम करने के लिए बुलाई गई थी, लेकिन जहां एक ओर एडियाना अपनी बहन तायफा से मिलने पहुंची थी। वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसी तायफ़ा को मारने पहुंचा था। जीन–जिन को भ्रम था कि वह दिग्गज जादूगर है, वह सभी २ पाटन के बीच में पिस गए। एक ओर एडियाना अपनी बहन को बचा रही थी, वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसे मारने का प्रयास कर रहा था।


जादूगरों का गुट २ विभाग में विभाजित हो गया, जहां मेजोरिटी लेडीज के पास ही थी। लेकिन महाकाश्वर के लिए तो भाड़ में गए सब और ठीक वैसा ही हाल एडियाना का भी था। दोनो लगातार लड़ते रहे। उस लड़ाई में वहां मौजूद सभी जादूगर मारे गए फिर भी लड़ते रहे। जिसके लिए लड़ाई शुरू हुई, तायफा, वो भी कब की मर गई। लेकिन इनका लड़ाई जारी रहा। एडियाना बर्फ की रानी थी, तो महाकाश्वर आग का राजा। एडियाना भंवर बनाती तो महाकाश्वर पहाड़ बन जाता। कांटे की टक्कर थी। मंत्र से मंत्र भीड़ रहे थे और आपसी टकराव से वहां के चारो ओर विस्फोट हो रहा था, लेकिन दोनो पर कोई असर नहीं हो रहा था।


एडियाना ने फिर एक लंबा दाव खेल दिया। अपने सुपरनैचुरल विंडिगो की पूरी फौज खड़ी कर दी। लाखों विंडिगों एक साथ महाकाश्वर पर हमला करने चल दिए। किसी भी भीड़ को साफ करना महाकाश्वर के लिए चुटकी बजाने जितना आसान था। लेकिन एडियाना के अगले दाव ने महाकाश्वर के होश ही उड़ा दिए। महाकाश्वर ने विंडिगो की भीड़ को साफ करने के लिए जितने भी मंत्र को उनपर छोड़ा, विंडिगो उन मंत्रो के काट के साथ आगे बढ़ रहे थे। महाकाश्वर को ऐसा लगा जैसे एडियाना एक साथ सभी विंडिगो में समा गई है, जो मंत्र काटते आगे बढ़ रहे। कमाल की जादूगरी जिसके बारे में महाकाश्वर को पता भी नही था। हां लेकिन वो विंडिगो से खुद की जान तो बचा ही सकता था। महाकाश्वर ने तुरंत पहना बहरूपिया चोगा और अब हैरान होने की बारी एडियाना की थी।


बहरूपिया चोगा से भेष बदलना हो या फिर किसी रूप बदल मंत्र से, लेकिन जो महाकाश्वर ने किया वह अद्भुत था। जादू से किसी का रूप तो ले सकते थे लेकिन जिसका रूप लिया हो, खुद को उसकी आत्मा से ही जोड़ लेना, यह असंभव था। और यह असंभव होते एडियाना देख रही थी। एडियाना पहले तो बहुत ही आशस्वत थी, और रूप बदलने जैसे छल पर हंस रही थी। लेकिन जैसे ही पहले विंडिगो का निशान महाकाश्वर के शरीर पर बना, ठीक वैसा ही निशान, उसी जगह पर एडियाना के शरीर पर भी बना। अगले ही पल दोनो की लड़ाई रुक गई और दोस्ती का नया दौड़ चालू हो गया।


अब इच्छाएं किसकी नही होती। ठीक वैसी ही इच्छाएं एडियाना की भी थी। उसे एक चीज की बड़ी लालसा थी... बिजली का खंजर। महाकाश्वर भी यह पहली बार सुन रहा था, लेकिन जब उसने सुना की यह खंजर किसी भी चीज को चीड़ सकती है, तब वह अचरज में पड़ गया।


थोड़े विस्तार से यदि समझा जाए तो कुछ ऐसा था.… सबसे मजबूत धातु जिसे तोड़ा न जा सकता हो, उसका एक अलमीरा बना लिया जाए। अलमीरा के दीवार की मोटाई फिर चाहे कितनी भी क्यों न हो, 20 फिट, 40 फिट... और उस अलमीरा के अंदर किसी इंसान को रखकर उसे चिड़ने कहा जाए। तब इंसान को चिड़ने के लिए अलमीरा खोलकर उस आदमी को निकालने की जरूरत नहीं, क्योंकि बिजली की यह खंजर उस पूरे अलमीरा को ऐसे चीड़ देगी जैसे किसी ब्लेड से कागज के 1 पन्ने को चीड़ दिया जाता है। अलमीरा तो एक दिखने वाला उधारहन था। लेकिन अलमीरा की जगह यदि मंत्र को रख दे, तब भी परिणाम एक से ही होंगे। कितना भी मजबूत मंत्र से बचाया क्यों न जा रहा हो, यह खंजर इंसान को मंत्र सहित चीड़ देगी।


एडियाना की दूसरी सबसे बड़ी ख्वाइश थी कि यदि कोई ऐसा विस्फोट हो, जिसमे उसके चिथरे भी उड़ जाए तो भी वह जीवित हो जाय। जबकि दोनो को ही पता था कि एक बार मरने के बाद कोई भी मंत्र शरीर में वापस प्राण नही डाल सकती। और एक नई ख्वाइश तो एडियाना को महाकाश्वर से मिलने के बाद हुई, वह था बहरूपिया चोगा।

महाकाश्वर कुछ दिन साथ रहकर एडियाना की इच्छाएं जान चुका था। और उसकी जितनी भी इच्छाएं थी, कमाल की थी। महाकाश्वर ने एडियाना से कमाल के शस्त्र, "बिजली का खंजर" के बारे पूछा, "की अब तक वह इस शस्त्र को हासिल क्यों नही कर पायि"। जवाब में यही आया की इस शस्त्र के बारे में तो पता है, लेकिन वह कहां मिलेगा पता नही। महाकाश्वर ने एडियाना से सारे सुराग लिए और बड़ी ही चतुराई से पूरी सूचना लोपचे के भटकते मुसाफिर तक पहुंचा दिया। फिर क्या था, कुछ सिद्ध पुरुष और क्षत्रिय के साथ पारीयान निकल गया खोज पर। महाकाश्वर और एडियाना को तो छिपकर बस इनका पिछा करना था।


लगभग ३ वर्ष की खोज के पश्चात लोपचे के भटकते मुसाफिर की खोज समाप्त हुई। वह खंजर यांग्त्जी नदी के तट पर मिली जो वर्तमान समय में संघाई, चीन में है। जैसे ही यह खंजर मिली, एडियाना के खुशी का ठिकाना नहीं रहा। महाकाश्वर ने अपने छल से वह खंजर तो हासिल कर लिया, लेकिन इस चक्कर में एडियाना और महाकाश्वर दोनो घायल हो गए। घायल होने के बाद तो जैसे एडियाना पागल ही हो गई थी। वह तो सबको मारने पर उतारू थी, लेकिन महाकाश्वर उसे लेकर निकल गया। लोपचे के भटकते मुसाफिर से लड़ाई करना व्यर्थ था, यह बात महाकाश्वर जनता था। बस उसे डर था कि कहीं एडियाना भ्रमित अंगूठी के बारे में जान जाती, तो उसे अपनी तीव्र इच्छाओं में न सामिल कर लेती। यदि ऐसा होता फिर तो इन दोनों की जान जानी ही थी। क्योंकि पारीयान इन दोनो (महाकाश्वर और एडियाना) के अस्त्र और शस्त्र से मरता नही, उल्टा योगी और सिद्ध पुरुष के साथ मिलकर इनके प्राण निकाल लेता।


एडियाना की दूसरी इच्छा का उपाय तो महाकाश्वर पहले से जानता था। उसे हासिल कैसे करना है वह भी जनता था। लेकिन उसे हासिल करने के लिए महाकाश्वर को अपने जैसा ही एक कुशल जादूगर चाहिए था। हिमालय के पूर्वी क्षेत्र में एक अलौकिक और दिव्य गांव बसा था। हालांकि उस गांव को तो किसी ने पहले ही पूरा ही उजाड़ दिया था, लेकिन उस गांव के गर्भ में एक पुर्नस्थापित अंगूठी थी, जो उस पूरे गांव के ढांचे की शक्ति संरचना थी। इसके विषय में खुद गांव के कुछ लोगों को ही पता था। ऊपर से इतनी सिद्धियों के साथ उसके गर्भ में स्थापित किया गया था कि २ सिद्ध जादूगर मिलकर भी कोशिश करते तो भी एक चूक दोनो की जान ले लेती।


लेकिन महाकाश्वर आश्श्वत था। इसलिए खतरों को बताए बिना वह एडियाना के साथ उस गांव में घुसा और कड़ी मेहनत के बाद दोनो पुर्नस्थापित अंगूठी को हासिल कर चुके। सबसे पहला प्रयोग तो महाकाश्वर ने खुदपर किया। एडियाना ने अपने मंत्र से महाकाश्वर के चिथरे उड़ा दिए, लेकिन अगले ही पल एक हैरतअंगेज कारनामे आंखों के सामने था। महाकाश्वर के शरीर का एक–एक कण देखते ही देखते जुड़ गया।


तीनों इच्छाओं को तो महाकाश्वर मूर्त रूप दे चुका था। अब बारी थी एक बहुत बड़े चाल कि। इसके लिए स्थान पहले से तय था, जरूरी सारे काम किए जा चुके थे। एडियाना भी पूरे झांसे में आ चुकी थी। पहले तो कुछ दिनों तक उसे आतंक मचाने के लिए छोड़ दिया गया। कुछ ही वक्त में सकल जगत को महाकाश्वर और एडियाना का नाम पता चल चुका था। हर कोई जानता था कि महाकाश्वर और एडियाना कौन सी शक्तियां हासिल कर चुके। मंत्रों से कोई भी योगी अथवा सिद्ध पुरुष संरक्षित हो नही रहे थे। उसे बिजली की खंजर का स्वाद मिल ही जाता। कितना भी दोनो को मंत्र से बेजान करने की कोशिश क्यों न करो, उनका शरीर पहले जैसा ही हो जाता। उल्टा बहरूपिया चोगा के प्रयोग से एडियाना पर प्राणघाती हमला उल्टा चलाने वाले पर भी हो जाता। एडियाना पुर्नस्थापित अंगूठी से तो बच जाती लेकिन उनके प्राण अपने ही मंत्र ले चुके होते।


एडियाना, महाकाश्वर के पूरे झांसे में आ चुकी थी और अब वक्त था आखरी खेल का। महाकाश्वर, एडियाना के साथ सतपुरा के जंगल में चला आया। थोड़े भावनात्मक पल उत्पन्न किए गए। एडियाना के हाथ को थाम नजरों से नजरें चार हुई। महाकाश्वर के बातों में छल और बातों के दौरान ही उसने एडियाना के मुंह से उगलवाया उसकी इच्छाएं, जिसे महाकाश्वर ने पूरे किये थे। एडियाना ने अपनी इच्छाएं बताकर जैसे ही स्वीकार कर ली कि उसकी सारी इच्छाएं महाकाश्वर ने पूरी कि है, ठीक उसी पल एडियाना का शरीर बेजान हो गया और उसकी सारी सिद्धियां महाकाश्वर के पास पहुंच गई। अब या तो महाकाश्वर, एडियाना को उसकी इच्छाओं के साथ दफना दे या फिर 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाओं को उस से अलग कर दे। अपनी पूरी शक्ति और साथ में जान खोने के बाद, एडियाना अपने मकबरे में दफन हो गई। और उसे दफनाने वाला महाकाश्वर ने उसके तीन इच्छाएं, पुर्नस्थापित अंगूठी, बिजली की खंजर और बेहरूपिया चोगा के साथ एडियाना को दफना दिया।


जादूगर महाकाश्वर अपने 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाएं वापिस हासिल कर लेता। लेकिन अनुष्ठान पूर्ण होने के पहले ही लोपचे का भटकता मुसाफिर जादूगर महाकाश्वर तक पहुंच चुका था। उस जगह भीषण युद्ध का आवाहन हुआ। एक लड़ाई जादूगर महाकाश्वर और योगियों के बीच। एक लड़ाई एक लाख की सैन्य की टुकड़ी के साथ अगुवाई कर रहे सुपरनैचुरल वेयरवोल्फ पारीयान और विंडिगो सुपरनेचुरल के बीच। 2 किलोमीटर के क्षेत्र को बांध दिया गया था। केवल जितने वाला ही बाहर जा सकता था और सामने महायुद्ध। बिना खाये–पिये, बिना रुके और बिना थके 4 दिनो के तक युद्ध होता रहा। 4 दिन बाद ऐडियाना के मकबरे से पुर्नस्थापित अंगूठी लेकर केवल एक शक्स बाहर निकला, वो था लोपचे का भटकता मुसाफिर।


पारीयान ने पूरे संवाद भेजे। युद्ध की हर छोटी बड़ी घटना की सूचना कबूतरों द्वारा पहुंचाई गई। एडियाना का मकबरा और वहां दफन उसकी 3 इच्छाओं का ज्ञान सबको हो चुका था। पारीयान के लौटने की खबर भी आयि लेकिन फिर दोबारा कभी किसी को पारीयान नही मिला। न ही कभी किसी को एडियाना का मकबरा मिला। न जाने कितने खोजी उन्हे मध्य भारत से लेकर हिमालय के पूर्वी जंगलों में तलासते रहे, किंतु एक निशानी तक नही मिली। खोजने वालों में एक नाम सरदार खान का भी था जिसे सबसे ज्यादा रुचि बिजली के खंजर और पुर्नस्थापित अंगूठी में थी।


किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।
Sandar
Dono ko teenon chije mili hai
 

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Nainu Bhaiya Pranam ,
Congratulations New Story ke liye IK late hoon ..........

Mujhe to laga tha ki kahi apne bhavanr ka second part na start kr diya ho chalo acha hai nhi kara ............. Aur ye jo story start ki hai ye bhi meri fav genre ki hai aur Upper se Nain11ster ka touch excitement Chaar Guna ho gaya hai....
 
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Mujhe to laga tha ki kahi apne bhavanr ka second part na start kr diya ho chalo acha hai nhi kara ............. Aur ye jo story start ki hai ye bhi meri fav genre ki hai aur Upper se Nain11ster ka touch excitement Chaar Guna ho gaya hai....
Purani I'd ka password bhul gaye kya anubhav... Apasyu se mil liye... Drish se mil liye... Bhanvar part 2 ya fir uska jo ab naya naam de uske ek charecter se to mil lijiye... Aryamani :declare:
 

Lib am

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भाग:–37






नागपुर शहर.... मीटिंग खत्म होने के ठीक एक दिन बाद…..


सुकेश की बुलावे पर बड़ी सी महफिल सजी हुई थी। जहां प्रहरी और आर्यमणि दोनो साथ बैठे थे। जिस गरज के साथ पलक प्रहरी सभा में बरसी थी, उसपर पुरा घर रह-रह कर गर्व महसूस कर रहा था। लेकिन बोलने के बाद अब करने का वक्त था और जरूरी था पलक खुद को साबित करके दिखाये। पलक की अगुवाई में चल रही रीछ स्त्री की खोज भी पूरी हो चुकी थी, और उसे धर–दबोचने की तैयारी में यह सभा रखी गयि थी।


सुकेश:– बहुत ज्यादा वक्त न लेते हुये मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं। वाकी वुड्स में क्या हुआ था इस बात से सभी भली भांति परिचित होंगे। पलक जब विशेष जीव साखा की अध्यक्ष बनी, तभी उसने मुझे रीछ स्त्री को दूंढने का काम सौंपा। मैने इस काम में अपने कुछ खास सहयोगियों को लगाया था और अब हमारे पास रीछ स्त्री की पक्की खबर है...


पूरी सभा लगभग एक साथ... "कहां है वह अभी"…


सुकेश:– खबरों की माने तो वह रीछ स्त्री सतपुरा के घने जंगलों के बीच, वहां स्थित पर्वत श्रृंखला के एक मांद में छिपी है। आसपास के लगभग 5 किलोमीटर का दायरा उसका विचरण क्षेत्र है, जिसके अंदर कोई नही जा सकता।


भूमि:– कोई नही जा सकता, यह कैसे पता चला? क्या अंदर घुसने की कोशिश में किसी पर हमला हुआ या जान से मार दिया गया?


सुकेश:– पूरी जानकारी तो मुझे भी नही। खबरियों द्वारा जो खबर मिली उसे बता रहा हूं। जबतक वहां छानबीन के लिये नही जायेंगे, पूरी बात पता नही चल सकती। हां पर खबर पक्की है कि रीछ स्त्री वहीं है।


भूमि:– हां तो देर किस बात की है। हम कुछ टुकड़ी के साथ चलते हैं और उस रीछ स्त्री को पकड़ कर ले आते हैं।


पलक:– भूमि दीदी जाने से पहले थोड़ा यह जान ले की हम किसके पीछे जा रहे। यह कोई साधारण सुपरनेचुरल नही बल्कि काफी खरनाक और दीर्घायु सुपरनैचुरल है। सोचो कितना उत्पात मचाया होगा, जो इसे विष मोक्ष श्राप से बंधा गया था। इसका दूसरा मतलब यह भी निकलता है कि उस दौड़ में विकृत रीछ स्त्री को मार नही पाये होंगे इसलिए मजबूरी में कैद करना पड़ गया होगा।


भूमि:– ठीक है तुम इंचार्ज हो, तुम्ही फैसला करो...


पलक:– पैट्रिक और रिचा की टीम तेजस दादा के नेतृत्व में काम करेगी। सुकेश काका, बंगाल की मशहूर जादूगरनी ताड़का और उसके कुछ चेलों के साथ अपनी एक टुकड़ी लेकर जायेंगे। आर्यमणि के अल्फा पैक के साथ मैं एक टुकड़ी लेकर जाऊंगी। आज शाम ही हम सब सतपुरा जंगल के लिये निकलेंगे। हम सबसे पहले सतपुरा के पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचेंगे और वहां से अलग–अलग दिशाओं से जांच करते हुये, ठीक 7 दिन बाद, चंद्र ग्रहण से ठीक एक दिन पूर्व, रीछ स्त्री के उस 5 किलोमीटर वाले दायरे के पास एकत्रित होंगे। वहां हम पूरी रणनीति बनायेंगे और चंद्र ग्रहण की रात उस रीछ स्त्री को बांधकर नागपुर प्रहरी कार्यालय में कैद करेंगे।


भूमि:– मेरी नेतृत्व वाली सभी टुकड़ी को ले जा रहे और मुझे ही अगुवाई का मौका नहीं मिल रहा...


पलक:– दीदी आप यहां आराम करें और आपकी टुकड़ी में जो बेहतरीन शिकारी है उसे भी ऊपर आने का मौका दें।


भूमि, पलक के इस जवाब पर केवल मुस्कुरा कर अपनी प्रतिक्रिया दी। सभा में सभी फैसले लेने के बाद सभा स्थगित हो गया और सब शाम में निकलने की तैयारी करने लगे। तैयारी में तो आर्यमणि भी लग गया। जहां एक ओर लोगों को शिकारी होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था, वहीं आर्यमणि और निशांत २ ऐसे नाम थे जो पैदा ही शिकारियों के गुण के साथ हुये थे। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण तो लोपचे का खंडहर था, जहां कई माहिर शिकारी को दोनो चकमा देकर सुहोत्र को ले उड़े। आर्यमणि भला जंगल के इस मिशन में निशांत को साथ क्यों नही लेता। बाकी सब अपनी रणनीति में और दोनो दोस्त अपनी...


निशांत:– मजा आयेगा आर्य, लेकिन ये तो बता की हमे वहां करना क्या होगा?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नही। शायद जंगल के अंदर कुछ छानबीन और उस विकृत रीछ स्त्री को पकड़े कैसे?



निशांत, थोड़ा आश्चर्य में... "यानी जिसे पकड़ने जा रहे उसके विषय में कोई ज्ञान नहीं?"


आर्यमणि:– इतना चौंक क्यों रहा है?


निशांत:– यार ये तो आत्महत्या करने जैसा है। इतिहास के सबसे शक्तिशाली मानव प्रजाति जो हजारों वर्ष तक जिंदा रह सकते थे। जिनके शक्तियों का विस्तृत उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक है। जिसका एक योद्धा जम्बत जी का उल्लेख सतयुग से लेकर द्वापरयुग तक मिलता है। और यदि इस रीछ स्त्री की बात करे तो वह गवाह होगी द्वापर युग की। जो स्त्री महाभारत के समकालीन है और कलयुग में आज तक जिंदा है। उसे बस ऐसे हवा–हवाई रणनीति से पकड़ने जा रहे। उसे पकड़ने भी जा रहे हो या उसके पैरों में गिड़कर उसका चेला बनना है? क्योंकि ऐसी रणनीति का तो यही निष्कर्ष निकलता है कि किसी तरह पता करो की वह शक्तिशाली रीछ स्त्री कहां है ताकि उसके पैरों में गिरकर उसे अपने ओर मिला ले और अपनी भी मनचाही मनोकामना पूर्ण हो जाए...


आर्यमणि:– तो क्या करे, न जाएं...


निशांत:– हम जायेंगे लेकिन इन फालतू प्रहरी के भरोसे नहीं जायेंगे... हमे अपने जंगल (गंगटोक के जंगल) के बारे में पता था कि वहां हमारा सामना किस जानवर और किन–किन विषम परिस्थितियों से हो सकता था। इसलिए संकट कितना भी अचानक क्यों न आये हमे समस्या नहीं होती। हम यहां भी ठीक वैसा ही करेंगे...


आर्यमणि:– हम्मम.. ठीक है हम खरीदारी करते हुये डिस्कस कर लेंगे, लेकिन सबसे पहले मैं तुम्हे कुछ दिखाना चाहता हूं...


इतना कहकर आर्यमणि अपने कमरे का दरवाजा बंद किया। बिस्तर के नीचे पड़ा अपना बैग निकाला। यह लाइफ सपोर्टिंग बैग था। ऐसा ही एक बैग निशांत के पास भी हमेशा रहता है। आर्यमणि उसके अंदर से सभी समान बाहर निकलने के बाद आखरी में सबसे नीचे से एक पोटली निकाला... पोटली को देखते ही निशांत की आंखें बड़ी हो गई... "लोपचे का भटकता मुसाफिर। आर्य, इसे साथ लेकर घूम रहे"…


आर्यमणि:– ऐडियाना का मकबरा कहां है...


निशांत:– मध्य भारत के जंगल में..


आर्यमणि:– मैप में देखकर बताओ की मध्य भारत का जंगल कहां है?


निशांत:– बताना क्या है... वही सतपुरा का जंगल.. लेकिन तुम दोनो बातों में क्या समानता ढूंढ रहे हो?..


आर्यमणि:– लोपचे के भटकते मुसाफिर की माने तो एडियाना के मकबरे में 3 चीजों का उल्लेख है, जो हर किसी को पता है... पुर्नस्थापित अंगूठी (restoring ring), बिजली की खंजर और...


निशांत उसे बीच में ही रोकते.… "और बहरूपिया चोगा... यानी वो रीछ स्त्री मध्य भारत के जंगल में इन्हे ही ढूंढने निकली है।"..


आर्यमणि:– दोनो ही बातें है, हो भी सकता है और नही भी। रीछ स्त्री अपने कैद से बाहर निकलने के बाद जो भी अपना लक्ष्य रखे, उसके लिए सबसे पहले उसे खुद के अंदर क्षमता विकसित करनी होगी। जिसके लिए उसे कम से कम 500–600 दिन तो चाहिए। यदि उसे ये सब जल्दी निपटाना हो तब...


निशांत:– तब तो उसे कोई जादू ही चाहिए। और ऐसा ही एक जादू वहां के जंगल में भी है... पुर्नस्थापित अंगूठी... हाहाहाहाहा..


आर्यमणि:– हाहाहाहाहा.. और उस गधी को पता नही होगा की वहां तो लोपचे के भटकते मुसाफिर ने लोचा कर दिया था...


लोपचे के भटकते मुसाफिर यानी की पारीयन लोपचे, सुपरनैचुरल के बीच काफी प्रसिद्ध नाम है। इसे खोजी वुल्फ भी कहा जाता है। पहला ऐसा लोन वुल्फ, जो अपनी मर्जी से ओमेगा था। कई साधु, संत, महात्मा, और न जाने कितने ही दैत्य दानव से वह मिला था। उस दौड़ के योगियों का चहेता था और किसी भी प्रकार के खोज में, खोजी टुकड़ी के अगुवाई पारीयान लोपचे ही करता था। उसके इसी गुण के कारण से पारीयान लोपचे को लोपचे का भटकता मुसाफिर कहा जाता था। अपने खोज के क्रम में वह साधु, योगियों और आचार्य का इतना चहेता हो चुका था कि गुरुओं ने उसे सिद्ध की हुई भ्रमित अंगूठी (illiusion ring) दिया था।


सुनने में भले ही यह जादू कला की छोटी सी वस्तु लगे लेकिन यह वस्तु उस चींटी के भांति थी, जो किसी हांथी के सूंड़ में घुसकर उसे धाराशाही कर सकती थी। कहने का अर्थ है, बड़े से बड़ा दैत्य, काला जादूगर, शिकारी, वीर, फौज की बड़ी टुकड़ी, कोई भी हो.… उन्हे किसी को मारने के लिए सबसे जरूरी क्या होता है, उसका लक्ष्य। सामने लक्ष्य दिखेगा तभी उसको भेद सकते हैं। यह भ्रमित अंगूठी लक्ष्य को ही भटका देती थी। यदि सामने दिख रहे पारीयान पर कोई तीर चलता तो पता चलता की वह तीर जैसे किसी होलोग्राफिक इमेज पर चली। कोई काला जादूगर यदि उसके बाल को लेकर, किसी छोटे से प्रतिमा में डालकर, उसका जादुई स्वरूप तैयार करके मारने की कोशिश करता, तब पता चलता की यह काला जादू भी बेअसर। क्योंकि भ्रमित अंगूठी पारीयान के अस्तित्व तक को भ्रमित कर देती थी।


उसी दौड़ में कुख्यात जादूगर महाकाश्वर और एडियाना की जोड़ी काफी प्रचलित हुई थी। इन्होंने अपने तंत्र–मंत्र और शातिर दिमाग से सबको परेशान कर रखा था। लेकिन कहते हैं ना आस्तीन का सांप सबसे पहले अपने को ही डस्ता है। जादूगर महाकाश्वर ने भी एडियाना के साथ वही किया। पहले छला... फिर उसकी ताकत हासिल की और एडियाना की ताकत हासिल करने के बाद, उसकी तीन इच्छाओं के साथ उसके मकबरे में दफन कर दिया। ये वही तीन इच्छा थी जिसके छलावे में एडियाना फंसी थी। एडियाना बर्फीले रेगिस्तान (रूस के बर्फीला इलाका) की खौफनाक शैतान कही जाती थी, जो अपने लाखों सेवक विंडीगो सुपरनेचुरल के साथ राज करती थी। ऐडियाना एक कुशल जादूगर तो थी लेकिन मध्य भारत के जादूगर महाकाश्वर की उतनी ही बड़ी प्रशंसक भी।


अभी के वक्त में जो तात्कालिक मंगोलिया है, उस जगह पर जादूगर की एक सभा लगी थी। उसी सभा मे महाकाश्वर की मुलाकात एडियाना से हुई थी। यूं तो जादूगरों की यह सभा साथ मिलकर काम करने के लिए बुलाई गई थी, लेकिन जहां एक ओर एडियाना अपनी बहन तायफा से मिलने पहुंची थी। वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसी तायफ़ा को मारने पहुंचा था। जीन–जिन को भ्रम था कि वह दिग्गज जादूगर है, वह सभी २ पाटन के बीच में पिस गए। एक ओर एडियाना अपनी बहन को बचा रही थी, वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसे मारने का प्रयास कर रहा था।


जादूगरों का गुट २ विभाग में विभाजित हो गया, जहां मेजोरिटी लेडीज के पास ही थी। लेकिन महाकाश्वर के लिए तो भाड़ में गए सब और ठीक वैसा ही हाल एडियाना का भी था। दोनो लगातार लड़ते रहे। उस लड़ाई में वहां मौजूद सभी जादूगर मारे गए फिर भी लड़ते रहे। जिसके लिए लड़ाई शुरू हुई, तायफा, वो भी कब की मर गई। लेकिन इनका लड़ाई जारी रहा। एडियाना बर्फ की रानी थी, तो महाकाश्वर आग का राजा। एडियाना भंवर बनाती तो महाकाश्वर पहाड़ बन जाता। कांटे की टक्कर थी। मंत्र से मंत्र भीड़ रहे थे और आपसी टकराव से वहां के चारो ओर विस्फोट हो रहा था, लेकिन दोनो पर कोई असर नहीं हो रहा था।


एडियाना ने फिर एक लंबा दाव खेल दिया। अपने सुपरनैचुरल विंडिगो की पूरी फौज खड़ी कर दी। लाखों विंडिगों एक साथ महाकाश्वर पर हमला करने चल दिए। किसी भी भीड़ को साफ करना महाकाश्वर के लिए चुटकी बजाने जितना आसान था। लेकिन एडियाना के अगले दाव ने महाकाश्वर के होश ही उड़ा दिए। महाकाश्वर ने विंडिगो की भीड़ को साफ करने के लिए जितने भी मंत्र को उनपर छोड़ा, विंडिगो उन मंत्रो के काट के साथ आगे बढ़ रहे थे। महाकाश्वर को ऐसा लगा जैसे एडियाना एक साथ सभी विंडिगो में समा गई है, जो मंत्र काटते आगे बढ़ रहे। कमाल की जादूगरी जिसके बारे में महाकाश्वर को पता भी नही था। हां लेकिन वो विंडिगो से खुद की जान तो बचा ही सकता था। महाकाश्वर ने तुरंत पहना बहरूपिया चोगा और अब हैरान होने की बारी एडियाना की थी।


बहरूपिया चोगा से भेष बदलना हो या फिर किसी रूप बदल मंत्र से, लेकिन जो महाकाश्वर ने किया वह अद्भुत था। जादू से किसी का रूप तो ले सकते थे लेकिन जिसका रूप लिया हो, खुद को उसकी आत्मा से ही जोड़ लेना, यह असंभव था। और यह असंभव होते एडियाना देख रही थी। एडियाना पहले तो बहुत ही आशस्वत थी, और रूप बदलने जैसे छल पर हंस रही थी। लेकिन जैसे ही पहले विंडिगो का निशान महाकाश्वर के शरीर पर बना, ठीक वैसा ही निशान, उसी जगह पर एडियाना के शरीर पर भी बना। अगले ही पल दोनो की लड़ाई रुक गई और दोस्ती का नया दौड़ चालू हो गया।


अब इच्छाएं किसकी नही होती। ठीक वैसी ही इच्छाएं एडियाना की भी थी। उसे एक चीज की बड़ी लालसा थी... बिजली का खंजर। महाकाश्वर भी यह पहली बार सुन रहा था, लेकिन जब उसने सुना की यह खंजर किसी भी चीज को चीड़ सकती है, तब वह अचरज में पड़ गया।


थोड़े विस्तार से यदि समझा जाए तो कुछ ऐसा था.… सबसे मजबूत धातु जिसे तोड़ा न जा सकता हो, उसका एक अलमीरा बना लिया जाए। अलमीरा के दीवार की मोटाई फिर चाहे कितनी भी क्यों न हो, 20 फिट, 40 फिट... और उस अलमीरा के अंदर किसी इंसान को रखकर उसे चिड़ने कहा जाए। तब इंसान को चिड़ने के लिए अलमीरा खोलकर उस आदमी को निकालने की जरूरत नहीं, क्योंकि बिजली की यह खंजर उस पूरे अलमीरा को ऐसे चीड़ देगी जैसे किसी ब्लेड से कागज के 1 पन्ने को चीड़ दिया जाता है। अलमीरा तो एक दिखने वाला उधारहन था। लेकिन अलमीरा की जगह यदि मंत्र को रख दे, तब भी परिणाम एक से ही होंगे। कितना भी मजबूत मंत्र से बचाया क्यों न जा रहा हो, यह खंजर इंसान को मंत्र सहित चीड़ देगी।


एडियाना की दूसरी सबसे बड़ी ख्वाइश थी कि यदि कोई ऐसा विस्फोट हो, जिसमे उसके चिथरे भी उड़ जाए तो भी वह जीवित हो जाय। जबकि दोनो को ही पता था कि एक बार मरने के बाद कोई भी मंत्र शरीर में वापस प्राण नही डाल सकती। और एक नई ख्वाइश तो एडियाना को महाकाश्वर से मिलने के बाद हुई, वह था बहरूपिया चोगा।

महाकाश्वर कुछ दिन साथ रहकर एडियाना की इच्छाएं जान चुका था। और उसकी जितनी भी इच्छाएं थी, कमाल की थी। महाकाश्वर ने एडियाना से कमाल के शस्त्र, "बिजली का खंजर" के बारे पूछा, "की अब तक वह इस शस्त्र को हासिल क्यों नही कर पायि"। जवाब में यही आया की इस शस्त्र के बारे में तो पता है, लेकिन वह कहां मिलेगा पता नही। महाकाश्वर ने एडियाना से सारे सुराग लिए और बड़ी ही चतुराई से पूरी सूचना लोपचे के भटकते मुसाफिर तक पहुंचा दिया। फिर क्या था, कुछ सिद्ध पुरुष और क्षत्रिय के साथ पारीयान निकल गया खोज पर। महाकाश्वर और एडियाना को तो छिपकर बस इनका पिछा करना था।


लगभग ३ वर्ष की खोज के पश्चात लोपचे के भटकते मुसाफिर की खोज समाप्त हुई। वह खंजर यांग्त्जी नदी के तट पर मिली जो वर्तमान समय में संघाई, चीन में है। जैसे ही यह खंजर मिली, एडियाना के खुशी का ठिकाना नहीं रहा। महाकाश्वर ने अपने छल से वह खंजर तो हासिल कर लिया, लेकिन इस चक्कर में एडियाना और महाकाश्वर दोनो घायल हो गए। घायल होने के बाद तो जैसे एडियाना पागल ही हो गई थी। वह तो सबको मारने पर उतारू थी, लेकिन महाकाश्वर उसे लेकर निकल गया। लोपचे के भटकते मुसाफिर से लड़ाई करना व्यर्थ था, यह बात महाकाश्वर जनता था। बस उसे डर था कि कहीं एडियाना भ्रमित अंगूठी के बारे में जान जाती, तो उसे अपनी तीव्र इच्छाओं में न सामिल कर लेती। यदि ऐसा होता फिर तो इन दोनों की जान जानी ही थी। क्योंकि पारीयान इन दोनो (महाकाश्वर और एडियाना) के अस्त्र और शस्त्र से मरता नही, उल्टा योगी और सिद्ध पुरुष के साथ मिलकर इनके प्राण निकाल लेता।


एडियाना की दूसरी इच्छा का उपाय तो महाकाश्वर पहले से जानता था। उसे हासिल कैसे करना है वह भी जनता था। लेकिन उसे हासिल करने के लिए महाकाश्वर को अपने जैसा ही एक कुशल जादूगर चाहिए था। हिमालय के पूर्वी क्षेत्र में एक अलौकिक और दिव्य गांव बसा था। हालांकि उस गांव को तो किसी ने पहले ही पूरा ही उजाड़ दिया था, लेकिन उस गांव के गर्भ में एक पुर्नस्थापित अंगूठी थी, जो उस पूरे गांव के ढांचे की शक्ति संरचना थी। इसके विषय में खुद गांव के कुछ लोगों को ही पता था। ऊपर से इतनी सिद्धियों के साथ उसके गर्भ में स्थापित किया गया था कि २ सिद्ध जादूगर मिलकर भी कोशिश करते तो भी एक चूक दोनो की जान ले लेती।


लेकिन महाकाश्वर आश्श्वत था। इसलिए खतरों को बताए बिना वह एडियाना के साथ उस गांव में घुसा और कड़ी मेहनत के बाद दोनो पुर्नस्थापित अंगूठी को हासिल कर चुके। सबसे पहला प्रयोग तो महाकाश्वर ने खुदपर किया। एडियाना ने अपने मंत्र से महाकाश्वर के चिथरे उड़ा दिए, लेकिन अगले ही पल एक हैरतअंगेज कारनामे आंखों के सामने था। महाकाश्वर के शरीर का एक–एक कण देखते ही देखते जुड़ गया।


तीनों इच्छाओं को तो महाकाश्वर मूर्त रूप दे चुका था। अब बारी थी एक बहुत बड़े चाल कि। इसके लिए स्थान पहले से तय था, जरूरी सारे काम किए जा चुके थे। एडियाना भी पूरे झांसे में आ चुकी थी। पहले तो कुछ दिनों तक उसे आतंक मचाने के लिए छोड़ दिया गया। कुछ ही वक्त में सकल जगत को महाकाश्वर और एडियाना का नाम पता चल चुका था। हर कोई जानता था कि महाकाश्वर और एडियाना कौन सी शक्तियां हासिल कर चुके। मंत्रों से कोई भी योगी अथवा सिद्ध पुरुष संरक्षित हो नही रहे थे। उसे बिजली की खंजर का स्वाद मिल ही जाता। कितना भी दोनो को मंत्र से बेजान करने की कोशिश क्यों न करो, उनका शरीर पहले जैसा ही हो जाता। उल्टा बहरूपिया चोगा के प्रयोग से एडियाना पर प्राणघाती हमला उल्टा चलाने वाले पर भी हो जाता। एडियाना पुर्नस्थापित अंगूठी से तो बच जाती लेकिन उनके प्राण अपने ही मंत्र ले चुके होते।


एडियाना, महाकाश्वर के पूरे झांसे में आ चुकी थी और अब वक्त था आखरी खेल का। महाकाश्वर, एडियाना के साथ सतपुरा के जंगल में चला आया। थोड़े भावनात्मक पल उत्पन्न किए गए। एडियाना के हाथ को थाम नजरों से नजरें चार हुई। महाकाश्वर के बातों में छल और बातों के दौरान ही उसने एडियाना के मुंह से उगलवाया उसकी इच्छाएं, जिसे महाकाश्वर ने पूरे किये थे। एडियाना ने अपनी इच्छाएं बताकर जैसे ही स्वीकार कर ली कि उसकी सारी इच्छाएं महाकाश्वर ने पूरी कि है, ठीक उसी पल एडियाना का शरीर बेजान हो गया और उसकी सारी सिद्धियां महाकाश्वर के पास पहुंच गई। अब या तो महाकाश्वर, एडियाना को उसकी इच्छाओं के साथ दफना दे या फिर 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाओं को उस से अलग कर दे। अपनी पूरी शक्ति और साथ में जान खोने के बाद, एडियाना अपने मकबरे में दफन हो गई। और उसे दफनाने वाला महाकाश्वर ने उसके तीन इच्छाएं, पुर्नस्थापित अंगूठी, बिजली की खंजर और बेहरूपिया चोगा के साथ एडियाना को दफना दिया।


जादूगर महाकाश्वर अपने 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाएं वापिस हासिल कर लेता। लेकिन अनुष्ठान पूर्ण होने के पहले ही लोपचे का भटकता मुसाफिर जादूगर महाकाश्वर तक पहुंच चुका था। उस जगह भीषण युद्ध का आवाहन हुआ। एक लड़ाई जादूगर महाकाश्वर और योगियों के बीच। एक लड़ाई एक लाख की सैन्य की टुकड़ी के साथ अगुवाई कर रहे सुपरनैचुरल वेयरवोल्फ पारीयान और विंडिगो सुपरनेचुरल के बीच। 2 किलोमीटर के क्षेत्र को बांध दिया गया था। केवल जितने वाला ही बाहर जा सकता था और सामने महायुद्ध। बिना खाये–पिये, बिना रुके और बिना थके 4 दिनो के तक युद्ध होता रहा। 4 दिन बाद ऐडियाना के मकबरे से पुर्नस्थापित अंगूठी लेकर केवल एक शक्स बाहर निकला, वो था लोपचे का भटकता मुसाफिर।


पारीयान ने पूरे संवाद भेजे। युद्ध की हर छोटी बड़ी घटना की सूचना कबूतरों द्वारा पहुंचाई गई। एडियाना का मकबरा और वहां दफन उसकी 3 इच्छाओं का ज्ञान सबको हो चुका था। पारीयान के लौटने की खबर भी आयि लेकिन फिर दोबारा कभी किसी को पारीयान नही मिला। न ही कभी किसी को एडियाना का मकबरा मिला। न जाने कितने खोजी उन्हे मध्य भारत से लेकर हिमालय के पूर्वी जंगलों में तलासते रहे, किंतु एक निशानी तक नही मिली। खोजने वालों में एक नाम सरदार खान का भी था जिसे सबसे ज्यादा रुचि बिजली के खंजर और पुर्नस्थापित अंगूठी में थी।


किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।
एक और दंत कथा और रहस्य उजागर गया। और अगर तीनो चीजे किसी के हाथ लग गई तो हो सकता है की ताकत के नशे में वो सब कुछ नष्ट कर दे। ये आर्य और निशांत भी एकदम खुराफाती दिमाग है और कही से भी कुछ भी पता कर लेते है या ढूंढ लेते है।

मगर एक बात बिलकुल सही कही निशांत ने कि बिना रीच स्त्री और उसकी शक्तियों को जाने उसका सामना करना बिल्कुल आत्महत्या की तरह ही है। अब देखना है की ये दो कांडी पुरुष क्या क्या कांड करते है। बहुत ही रोचक अपडेट।
 

Anubhavp14

Deku Aka 'Usless'
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भाग:–१





जंगल का इलाका। कोहरा इतना गहरा की दिन को भी सांझ में बदल दे। दिन के वक़्त का माहौल भी इतना शांत की एक छोटी सी आहट भयभीत कर दे। यदि दिल कमजोर हो तो इन जंगली इलाकों से अकेले ना गुजरे।


हिमालय की ऊंचाई पर बसा एक शहर गंगटोक, जहां प्रकृति सौंदर्य के साथ-साथ वहां के विभिन्न इलाकों में भय के ऐसे मंजर भी होते है, जिसके देखने मात्र से प्राण हलख में आ जाए। दूर तक फैले जंगलों में कोहरा घना ऐसे मानो कोई अनहोनी होने का संकेत दे रहा हो।



2 पक्के दोस्त, आर्यमणि और निशांत रोज के तरह जंगल के रास्ते से लौट रहे थे। दोनो साथ-साथ चल रहे थे इसलिए एक दूसरे को देख भी पा रहे थे, अन्यथा कुछ मीटर की दूरी होती तो पहचान पाना भी मुश्किल होता। रोज की तरह बातें करते हुए घने जंगल से गुजर रहे थे।


"कथाएं, लोक कथाएं और परीकथाएं। कितने सच कितने झूट किसे पता। पहले प्रकृति आयी, फिर जीवन का सृजन हुआ। फिर ज्ञान हुआ और अंत में विज्ञान आया। प्रकृति रहस्य है तो विज्ञान उसकी कुंजी, और जिन रहस्यों को विज्ञान सुलझा नहीं पता उसे चमत्कार कहते हैं।"

"ऑक्सीजन और कार्बन डाय ऑक्साइड के खोज से पहले भी ये दोनो गैस यहां के वातावरण में उपलब्ध थे। किसी वैज्ञानिक ने इन रहस्यों को ढूंढा और हम ऑक्सीजन और कार्बन डाय ऑक्साइड के बारे में जानते है। कोई ना भी पता लगता तो भी हम शवांस द्वारा ऑक्सीजन ही लेते और यही कहते भगवान ने ऐसा ही बनाया है। सो जिन चीजों का अस्तित्व विज्ञान में नहीं है, इसका मतलब यह नहीं कि वो चीजें ना हो।"..


"सही है आर्य। जैसे कि नेगेटिव सेक्स अट्रैक्शन। हाय क्लास में आज अंजलि को देखा था। ऐसा लग रहा था साइज 32 हो गए है। साला उसके ऊपर कौन हाथ साफ कर रहा पता नहीं, लेकिन साइज बराबर बढ़ रहे है। और जितनी बढ़ रही है, वो दिन प्रतिदिन उतनी ही सेक्सी हुई जा रही है।"…


दोनो दोस्त बात करते हुए जंगल से गुजर रहे थे, तभी पुलिस रेडियो से आती आवाज ने उन्हे चौकाया…. "ऑल टीम अलर्ट, कंचनजंगा जाने वाले रास्ते से एक सैलानी गायब हो गई है। सभी फोर्स वहां के जंगल में छानबीन करें। रिपीट, एक सैलानी गायब है, तुरंत पूरी फोर्स जंगल में छानबीन करे।"… पुलिस कंट्रोल रूम से एक सूचना जारी किया जा रहा था।


निशांत, गंगटोक अस्सिटेंट कमिश्नर राकेश नाईक का बेटा था। अक्सर वो अपने साथ पुलिस की एक वाकी रखता था। वाकी पर अलर्ट जारी होते ही….


निशांत:— आर्य, हम तो 15 मिनट से इन्हीं रास्तों पर है, तुमने कोई हलचल देखी क्या?"..


आर्यमणि, अपनी साइकिल में ब्रेक लगाते… "हो सकता है पश्चिम में गए हो, लोपचे के इलाके में, और वहीं से गायब हो गए हो।"


निशांत:- हां लेकिन उस ओर जाना तो प्रतिबंधित है, फिर ये सैलानी क्यों गए?


आर्यमणि और निशांत दोनो एक दूसरे का चेहरा देखे, और तेजी से साइकिल को पश्चिम के ओर ले गए। दोनो 2 अलग-अलग रास्ते से उस सैलानी को ढूंढने लगे और 1 किलोमीटर की रेंज वाली वाकी से दोनो एक दूसरे से कनेक्ट थे। दोनो लोपचे के इलाके में प्रवेश करते ही अपने साइकिल किनारे लगाकर पैदल रस्तो की छानबीन करने लगे।


"रूट 3 पर किसी लड़की का स्काफ है आर्य"…. निशांत रास्ते में पड़ी एक स्काफ़ उठाकर देखते हुए आर्य को सूचना दिया और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। तभी निशांत को अपने आसपास कुछ आहट सुनाई दी। एक जानी पहचानी आहट और निशांत अपनी जगह खड़ा हो गया। वाकी के दूसरे ओर से आर्यमणि भी वो आहट सुन सकता था। आर्यमणि निशांत को आगाह करते.…. "निशांत, बिल्कुल हिलना मत। मै इन्हे डायवर्ट करता हूं।"…


निशांत बिलकुल शांत खड़ा आहटो के ओर देख रहा था। घने जंगल के इस हिस्से के खतरनाक शिकारी, लोमड़ी, गस्त लगाती निशांत के ओर बढ़ रही थी, शायद उसे भी अपने शिकार की गंध लग गई थी। तभी उन शांत फिजाओं में लोमड़ी कि आवाज़ गूंजने लगी। यह आवाज कहीं दूर से आ रही थी जो आर्यमणि ने निकाली थी। निशांत खुद से 5 फिट आगे लोमड़ियों के झुंड को वापस मुड़ते देख पा रहा था।


जैसे ही आर्यमणि ने लोमड़ी की आवाज निकाली पूरे झुंड के कान उसी दिशा में खड़े हो गए, और देखते ही देखते सभी लोमड़ियां आवाज की दिशा में दौड़ लगा दी।… जैसे ही लोमड़ियां हटी, आर्यमणि वाकी के दूसरे ओर से चिल्लाया.…. "निशांत, तेजी से लोपचे के खंडहर काॅटेज के ओर भागो... अभी।"


निशांत ने आंख मूंदकर दौड़ा। लोपचे के इलाके से होते हुए उसके खंडहर में पहुंचा। वहां पहुंचते ही वो बाहर के दरवाजे पर बैठ गया और वहीं अपनी श्वांस सामान्य करने लगा। तभी पीछे से कंधे पर हाथ परी और निशांत घबराकर पीछे मुड़ा…. "अरे यार मार ही डाला तूने। कितनी बार कहूं, जंगल में ऐसे पीछे से हाथ मत दिया कर।"


आर्यमणि ने उसे शांत रहने का इशारा करके सुनने के लिए कहा। कानो तक बहुत ही धीमी आवाज़ पहुंच रही थी, हवा मात्र चलने की आवाज।… दोनो दोस्तों के कानो तक किसी के मदद की पुकार पहुंच रही थी और इसी के साथ दोनो की फुर्ती भी देखने लायक थी... "रस्सी निकाल आर्य, आज इसकी किस्मत बुलंदियों पर है।"..


दोनो आवाज़ के ओर बढ़ते चले गए, जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे आवाज़ साफ होती जा रही थी।… "आर्य ये तो किसी लड़की की आवाज़ है, लगता है आज रात के मस्ती का इंतजाम हो गया।".. आर्यमणि, निशांत के सर पर एक हाथ मारते तेजी से आगे बढ़ गया। दोनो दोस्त जंगल के पश्चिमी छोड़ पर पहुंच गए थे, जिसके आगे गहरी खाई थी।


ऊंचाई पर बसा ये जंगल के छोड़ था, नीचे कई हजार फीट गहरी खाई बनाता था, और पुरे इलाके में केवल पेड़ ही पेड़। दोनो खाई के नजदीक पहुंचते ही अपना अपना बैग नीचे रखकर उसके अंदर से सामान निकालने लगे। इधर उस लड़की के लगातार चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी….. "सम बॉडी हेल्प, सम बॉडी हेल्प, हेल्प मी प्लीज।"…


निशांत:- आप का नाम क्या है मिस।


लड़की:- मिस नहीं मै मिसेज हूं, दिव्य अग्रवाल, प्लीज मेरी हेल्प करो।


निशांत, आर्यमणि के कान में धीमे से…. "ये तो अनुभवी है रे। मज़ा आएगा।"


आर्यमनी, बिना उसकी बातों पर ध्यान दिए हुए रस्सी के हुक को पेड़ से फसाने लगा। इधर जबतक निशांत ड्रोन कैमरा से दिव्य की वर्तमान परिस्थिति का जायजा लेने लगा। लगभग 12 फिट नीचे वो एक पेड़ की साखा पर बैठी हुई थी। निशांत ने फिर उसके आसपास का जायजा लिया।… "ओ ओ.… जल्दी कर आर्य, एक बड़ा शिकारी मैडम के ओर बढ़ रहा है।"..


आर्यमणि, निशांत की बात सुनकर मॉनिटर स्क्रीन को जैसे ही देखा, एक बड़ा अजगर दिव्या की ओर बढ़ रहा था। आर्यमणि रस्सी का दूसरा सिरा पकड़कर तुरंत ही खाई में उतरने के लिए आगे बढ़ गया। निशांत ड्रोन की सहायता से आर्यमणि को दिशा देते हुए दिव्या तक पहुंचा दिया। दिव्या यूं तो उस डाल पर सुरक्षित थी, लेकिन कितनी देर वहां और जीवित रहती ये तो उसे भी पता नहीं था।


किसी इंसान को अपने आसपास देखकर दिव्या के डर को भी थोड़ी राहत मिली। लेकिन अगले ही पल उसकी श्वांस फुल गई दम घुटने लगा, और मुंह ऐसे खुल गया मानो प्राण मुंह के रास्ते ही निकलने वाले हो। जबतक आर्यमणि दिव्या के पास पहुंचता, अजगर उसकी आखों के सामने ही दिव्या को कुंडली में जकड़ना शुरू कर चुका था। अजगर अपना फन दिव्या के चेहरे के ऊपर ले गया और एक ही बार में इतना बड़ा मुंह खोला, जिसमे दिव्या के सर से लेकर ऊपर का धर तक अजगर के मुंह में समा जाए।


आर्यमणि ने तुरंत उसके मुंह पर करंट गन (स्टन गन) फायर किया। लगभग 1200 वोल्ट का करंट उस अजगर के मुंह में गया और वो उसी क्षण बेहोश होकर दिव्या को अपने साथ लिए खाई में गिरने लगा। अर्यमानी तेजी दिखाते हुए वृक्ष के साख पर अपने पाऊं जमाया और दिव्या के कंधे को मजबूती से पकड़ा।


वाजनी अजगर दिव्या के साथ साथ आर्यमणि को भी नीचे ले जा रहा था। आर्यमणि तेजी के साथ नीचे जा रहा था। निशांत ने जैसे ही यह नजारा देखा ड्रोन को फिक्स किया और रस्सी के हुक को सेट करते हुए…. "आर्य, कुंडली खुलते ही बताना।"


आर्यमणि का कांधा पुरा खींचा जा रहा था, और तभी निशांत के कान में आवाज़ सुनाई दी… "अभी"… जैसे ही निशांत ने आवाज़ सुनी उसने हुक को लॉक किया। अजगर की कुंडली खुलते ही वो अजगर कई हजार फीट नीचे की खाई में था और आर्यमणि दिव्या का कांधा पकड़े झुल रहा था।


निशांत ने हुक को खींचकर दोनो को ऊपर किया। ऊपर आते ही आर्यमणि जमीन पर दोनो हाथ फैलाकर लेट गया और निशांत दिव्या के सीने को पुश करके उसकी धड़कन को सपोर्ट करने लगा।… "आर्य, शॉक के कारण श्वांस नहीं ले पा रही है।"..


आर्यमानी:- मुंह से हवा दो, मै सीने को पुश करता हूं।


निशांत ने मुंह से फूंककर हवा देना शुरू किया और आर्यमणि उसके सीने को पुश करके स्वांस बाहर छोड़ने में मदद करने लगा। चौंककर दिव्या उठकर बैठ गई और हैरानी से चारो ओर देखने लगी। निशांत उसके ओर थरमस बढ़ाते हुए… "ग्लूकोज पी लो एनर्जी मिलेगी।"..


दिव्या अब भी हैरानी से चारो ओर देख रही थी। उसकी धड़कने अब भी बढ़ी हुई थी। उसकी हालत को देखते हुए… "आर्य ये गहरे सदमे में है, इसे मेडिकल सपोर्ट चाहिए वरना कोलेप्स कर जाएगी।"


आर्यमणि:- हम्मम । मै कॉटेज के पास जाकर वायरलेस करता हूं, तुम इसे कुछ पिलाओ और शांत करने की कोशिश करो।


निशांत:- इसे सुला ही देते है आर्य, जितनी देर जागेगी उतना ही इसके लिए रिस्क हैं। सदमे से कहीं ब्रेन हम्मोरेज ना कर जाए।


आर्यमणि:- हम्मम। ठीक है तुम बेहोश करो मै वायरलेस भेजता हूं।


निशांत ने अपने बैग से क्लोरोफॉर्म निकाला और दिव्या के नाक से लगाकर उसे बेहोश कर दिया। कॉटेज के पास पहुंचकर आर्यमणि ने वायरलेस से संदेश भेज दिया, और वापस निशांत के पास आ गया।


निशांत:- आर्य ये मैडम तो बहुत ही सेक्सी है यार।


आर्यमणि:- मैंने शुहोत्र को देखा, लोपचे कॉटेज में। घर के पीछे किसी को दफनाया भी है शायद।


निशांत, चौंकते हुए… "शूहोत्र लोपचे, लेकिन वो यहां क्या कर रहा है। तू कन्फर्म कह रहा है ना, क्योंकि 6 साल से उसका परिवार का कोई भी गंगटोक नहीं आया है। और आते भी तो एम जी मार्केट में होते, यहां क्या लोमड़ी का शिकार करने आया है।"


"तुम दोनो को यहां आते डर नहीं लगता क्या?"… पुलिस के एक अधिकारी ने दोनो का ध्यान अपनी ओर खींचा।


निशांत:- अजगर का निवाला बन गई थी ये मैडम, बचा लिया हमने। आप सब अपना काम कीजिए हम जा रहे है। वैसे भी यहां हमारा 1 घंटा बर्बाद हो गया।


पुलिस की पूरी टीम पहुंचते ही आर्यमणि और निशांत वहां से निकल गए। रास्ते भर निशांत और आर्यमणि, सुहोत्र लोपचे और लोपचे का जला खंडहर के बारे में सोचते हुए ही घर पहुंचा। दिमाग में यही ख्याल चलता रहा की आखिर वहां दफनाया किसे है?


दोनो जबतक घर पहुंचते, दोनो के घर में उनके कारनामे की खबर पहुंच चुकी थी। सिविल लाइन सड़क पर बिल्कुल मध्य में डीएम आवास था जो कि आर्यमणि का घर था और उसके पापा केशव कुलकर्णी गंगटोक के डीएम। उसके ठीक बाजू में गंगटोक एसीपी राकेश नईक का आवास, जो की निशांत का घर था।


peh
Typical Nainu Style Update starting se hi suspense dene start kar diya .......lekin kuch bhi kaho starting to KYIHASRH ki mast thi but literally maja aya waise sachchi batao nainu bhaiya kitni kitabein ghol ke piye ho meko na apki writing skill ki kuch batein bhot pasand aati hai aur aisa lagta hai is bande me zindagi ki kitni gehri samjh hai yrrrrrrr ..........
Gangtok choose kiya hai to wajah bhi hogi sayad cold haa Werewolfs ko cold climate jayda pasand aata hai esa meko lagta hai jahan tak mene movies aur stories wgeraha me suna padha hai .....
Amazing starting thi thoda bhot action starting se hi karwa diya Aarya se aur nishant acha partner laga maje me rehna aur kaam se kaam bhi karna lekin ye logical nhi laga rope, drone aur ye chloroform leke classes jaana ya jahan se bhi aa rahe ho but jis tarha se kaam kr rahe the professional lage to sayad rakh ke rakhte ho sayad...... ye aap na character ke naam bhot sateek rakhte ho Suhotra pehli baar suna mene to ........ But Question ye uthta hai ki inke pass powers hai aur kya inhe uske baare me pata hai ? chalo dekho aage kya hota hai

भाग:–२



एसीपी और डीएम, दोनो ही अधिकारी लगभग 4 साल से यहां कार्यरत थे। इससे पहले दोनो एक साथ सिक्किम के अन्य इलाकों में भी थे। राकेश नाईक तब से केशव कुलकर्णी के पीछे था जब से वो एसपी था। 6 महीने के अंतर में दोनो का तबादला लगभग एक ही जगह पर हो जाता था। हां लेकिन एक बात जो जग जाहिर थी, कुलकर्णी जी की कभी भी नाईक के साथ नहीं बनी, जबकि उन दोनों को छोड़कर पूरे परिवार में बनती थी।


आर्यमणि और निशांत दोनो लगभग एक ही उम्र के थे और बचपन के साथी। ट्रांसफर और सुदूर इलाकों में जाने की वजह से दोनो दोस्तो के पढ़ाई पर थोड़ा असर तो पड़ा था, लेकिन घर के माहौल के कारण दोनो ही लड़के पढ़ाई में अच्छे थे। आर्यमणि जैसे ही साइकिल लगाकर अपने घर में घुसने लगा, उसकी मां जया कुलकर्णी दरवाजे पर ही उसका रास्ता रोके… "फिर आज जंगल के रास्ते वापस आए?"..


आर्यमणि, छोटी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लाते… "सही समय पर पहुंच गए इसलिए जान बच गई।"..


जया:- और मेरी जान अटक गई। कितनी बार बोली हूं कि मत ऐसे किया कर। पुलिस है, प्रशाशन है, इतने सारे लोग है, लेकिन तू है कि जबतक अपने पापा की डांट ना सुन ले, तबतक तेरा खाना नहीं पचता। मै तुझसे कुछ कह रही हूं आर्य। हद है जब कुछ कहो तो कमरे में जाकर पैक हो जाता है।


आर्यमणि अपनी मां की बात को सुनते-सुनते अपने कमरे में पहुंच गया था और आराम से दरवाजा लगा लिया। रात के वक़्त वो जैसे ही सबके साथ खाने के लिए बैठा…. "मै कल ही तुम्हे नागपुर भेज रहा हूं।".. केशव पहला निवाला लेते हुए आर्यमणि से कहा…


जया:- अभी तो 11th में गया है। हमने 12th के बाद इंजीनियरिंग के लिए प्लान किया था...


केशव:- नहीं अब वहीं पढ़ेगा। इंजिनियरिंग में एडमिशन हुआ तो ठीक, वरना नागपुर से डिग्री कंप्लीट करके अपनी आगे की जिंदगी देखेगा। और ये फाइनल है। सुना तुमने आर्य।


आर्यमणि:- 12th तक इंतजार कर लीजिए पापा, फिर नागपुर में ही एडमिशन लूंगा।


केशव:- क्यों अभी जाने में क्या हर्ज है?


आर्यमणि:- मै पहले 12th तो कर लूं...


केशव:- हां तो कल से तुम कार से जाओगे और कार से आओगे।


आर्यमणि:- पापा आप ओवर रिएक्ट कर रहे है। इस बारे में हम पहले भी बात कर चुके है।


आर्यमणि अपनी बात कहकर खाने लगा और केशव गुस्से में लगातार बोले जा रहा था। उसे शांत करवाने के चक्कर में बेचारी जया पति और बेटे के बीच में पिसती जा रही थी। आर्यमणि अपनी छोटी सी बात समाप्त कर आराम से खाकर अपने कमरे में चला गया।


रात के तकरीबन 12 बजे आर्यमणि के खिकड़ी पर दस्तक हुआ। आर्यमणि अपना पीछे का दरवाजा खोला और निशांत अंदर…. "यार उस वक़्त तूने सस्पेंस में ही छोड़ दिया। बता ना क्या तूने सच में वहां शूहोत्र को देखा।".. आर्यमणि ने हां में सर हिलाकर उसे जवाब दिया।


निशांत:- सुन, कल सीएम ने एक छोटी सी पार्टी रखी है। लगता है शूहोत्र लोपचे उसी उसी पार्टी के लिए आया हो। कुछ दिन पहले आकर अपना पैतृक घर देखने चला गया हो, जहां कभी उसका बचपन बीता था।


आर्यमणि:- नहीं, उसकी आखें अजीब थी। वहां ताज़ा खुदाई हुई थी। वो 6 साल बाद जर्मनी से यहां क्या करने आया होगा?


निशांत:- मैत्री को फोन क्यों नहीं लगा लेता?


आर्यमणि:- कुछ तो अजीब है निशांत, मैत्री 6 महीने से कोई मेल नहीं की। जबकि आखरी बार जब उससे बात हुई थी तब वो अपने इंडिया आने के बारे में बता रही थी। वो तो नहीं आयी लेकिन शूहोत्र आ गया। कल सब सीएम की पार्टी में जाएंगे ना?


निशांत:- तू कहीं जंगल जाने के बारे में तो नहीं सोच रहा।


आर्यमणि:- हां ..


निशांत:- वो सब तो ठीक है लेकिन मेरी पागल दीदी का क्या करेंगे, वो तो कल घर पर ही रहेगी। मेरा बाप तो आज ही मुझे कालापानी भेजने वाला था, मम्मी और क्लासेज ने बचा लिया। कल कहीं मेरी दीदी को भनक भी लगी और मेरे बाप से जाकर चुगली कर दी, फिर तो अपना यहां से टिकट कट जाएगा।


आर्यमणि:- मैं शाम 7 बजे निकल जाऊंगा। साथ आना हो तो मुझे जंगल के रास्ते पर 7 बजे मिल जाना। चित्रा को वैसे बेहोश भी कर सकते हो।


निशांत:- कल लगता है तूने सुली पर चढाने का इंतजाम कर दिया है। अच्छा सुन उस दिव्या मैडम से मेहनताना नहीं लिया यार। कल दिन मे उसके होटल से भी हो आते है।


आर्यमणि:- हम्मम !


निशांत:- मै जा रहा हूं, सुबह मिलता हूं।


निशांत और चित्रा 2 मिनट के छोटे बड़े, और दोनो ही एक दूसरे से झगड़ते रहते। बस इन दोनों के शांत रहने की कड़ी आर्यमणि था, क्योंकि आर्यमणि दोनो का ही खास दोस्त था। अगली सुबह चित्रा सीधा आर्यमणि से मिलने पहुंची। हॉल में उसे ना देखकर सीधा उसके कमरे में घुस गई। आर्यमणि अपने बिस्तर पर लेटा फिजिक्स की किताब को खोले हुए था। चित्रा गुस्से में तमतमाती... "कल के तुम्हारे कारनामे की वीडियो देखी, तुम्हे जारा भी अक्ल है कि नहीं।"..


आर्यमणि:- सॉरी चित्रा, जरा सी देरी होती तो उस लेडी की जान चली गई होती...


चित्रा:- दोनो क्यों जंगल से आते हो? घर के लोग इतना मना करते हैं फिर भी नहीं सुनते?


आर्यमणि:- तुम कल रात छिपकर हमारी बातें सुन रही थी?


चित्रा:- हां सुनी भी और शख्त हिदायत भी दे रही हूं... आज जंगल मत जाना। देखो आर्य, अगर आज तुमने वहां जाने की सोची भी तो मै तुमसे कभी बात नही करूंगी।


आर्यमणि:- ज्यादा स्ट्रेस ना लो। मैंने मन बना लिया है और मै जाऊंगा ही।


चित्रा:- पागलपन की हद है ये तो, आज पूर्णिमा है और तुम जानते हो आज की रात लोमड़ी कितनी आक्रमक होती है।


आर्यमणि:- हां मै जानता हूं और उसकी पूरी तैयारी मैंने कर रखी है। अब तुम जाओ यहां से और मुझे परेशान नहीं करो।


चित्रा:- ठीक है फिर ऐसी बात है तो मै तुम्हारे आज जंगल जाने की बात सबको बता ही देती हूं।


आर्यमणि:- ठीक है नहीं जाऊंगा। अब जाओ यहां से।


चित्रा:- मुझे भरोसा नहीं, खाओ मेरी कसम।


आर्यमणि:- आज शाम 7 बजे मै तुम्हारे पास रहूंगा। खुश.. अब जाओ यहां से।


चित्रा, बाहर निकलती… "मै इंतजार करूंगी तुम्हारा आर्य।"..


सुबह के लगभग 11 बजे। दिन की हल्की खिली धूप में दोनो दोस्त अपने साइकिल उठाए, शहर के सड़कों से होते हुए होटल पहुंच गए, जहां दिव्या अपने हसबैंड के साथ ट्रिप पर आयी थी। कमरे की बेल बजी और दरवाजा खुलते ही... दिव्या उन दोनों को देखकर पहचान गई… "तुम वही हो ना जिसने कल मेरी जान बचाई थी।"…. दिव्या दोनो को अंदर लेती हुई दरवाजा बंद कि और बैठने के लिए कहने लगी।


निशांत:- आप तो कल काफी सदमे में थी, इसलिए मजबूरी में मुझे आपको बेहोश करना पड़ा। अभी कैसी है आप?


दिव्या:- कैसी लग रही हूं?


निशांत, खुश होते हुए…. "बिल्कुल मस्त लग रही है।"


आर्यमणि:- कल जंगल के उस इलाके में आप क्या करने गई थी? और वहां तक पहुंची कैसे?


दिव्या:- "हमारा पूरा ग्रुप टूर गाइड के साथ कंचनजंगा के ओर जा रहे थे। तभी सड़क पर कई सारे जंगली जानवर आ गए। उन्हें देखकर ड्राइवर ने गाड़ी बंद कर दिया और हम सबको बिल्कुल ख़ामोश रहने के लिए कहा। इतने में ही एक जानवर धराम से कार के बोनट पर कूद गया और मेरी चींख निकल गई।"

"जैसे ही मै चिंखी जानवर हमारी गाड़ी पर हमला कर दिए। मै डर के मारे सड़क पर भागने के बदले उल्टा जंगल के अंदर ही भाग गई। जब मै जंगल में थोड़ी दूर अंदर गई तभी एक लोमड़ी आकर मुझ से टकरा गई, और मै नीचे जमीन में गिर गई।"

"मेरे तो प्राण हलख में आ गए। जब मै हिम्मत करके नजर उठाई तो दूर 2 जानवर लड़ रहे थे। कोहरे के करण साफ तो नहीं दिख रहा था, लेकिन हो ना हो मुझे कौन खाएगा उसकी लड़ाई जारी थी। मेरे पास अच्छा मौका था और मैंने दौर लगा दिया। दौड़ती गई दौड़ती गई, ये भी नहीं पता था कि कहां दौर रही हूं। इतने हरा भरा जंगल था कि मै तो सीधा खाई में ही आगे पाऊं बढ़ा दी। वो तो अच्छा हुए की एक टाहनी में मेरा कॉलर फस गया और मै किसी तरह पेड़ की निचली साखा पर जाकर बैठ गई।"


आर्यमणि:- हम्मम!


निशांत:- तुम्हारे पति और वो टूर गाइड कहां है।


दिव्या:- मेरे हबी का हाथ फ्रैक्चर हो गया और वो अभी हॉस्पिटल में ही है। एक हफ्ते में डिस्चार्ज मिलेगा। घर संदेश भेज दिया है, उनके डिस्चार्ज होते ही हम लौट जाएंगे। तुम दोनो को दिल से आभार। यदि तुम ना होते तो वो अजगर मुझे निगल चुका होता। देखो मै भी ना.. तुम दोनो बैठो मै तुम्हारे लिए कॉफी बुलवाती हूं। और हां प्लीज तुम दोनो मेरे हब्बी से जरूर मिलने चलना, तुम्हे देखकर वो खुश हो जाएंगे।


निशांत:- मैडम, रुकिए मै यहां कॉफी पीने नहीं आया हूं। बल्कि कल की मेहनत का भुगतान लेने आया हूं।


दिव्या:- मतलब मै समझी नहीं। क्या तुम कहना चाह रहे हो, जान बचाने के बदले तुम्हे पैसे चाहिए?...


निशांत:- नहीं पैसे नहीं अपनी मेहनत का भुगतान। देखिए मैडम आप इतना जो धन्यवाद कह रही है उस से अच्छा है मेरे लिए कुछ करके अपने एहसान उतार दीजिए और यहां के वादियों लुफ्त उठाइए।


दिव्या, निशांत को खा जाने वाली नज़रों से घूरती हुई…. "कहना क्या चाहते हो, साफ साफ कहो।"


आर्यमणि:- वो कहना चाहता है, उसने आपकी जान बचाई बदले में आप कपड़े उतारकर उसे मज़े करने दीजिए और एहसान का बदला चुका दीजिए।


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या निशांत को एक थप्पड़ लगाती हुई…. "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा सोचने की। खुद को देखो, शक्ल पर मूंछ तक ठीक से नहीं आयि है और अपनी से बड़ी औरत के साथ ऐसा करने का ख्याल, छी... कौन सी गंदगी मे पले हो। मैं तो तुम्हें अच्छा लड़का समझती थी, लेकिन तुम दोनो तो कमिने निकले।"


आर्यमणि:- दुनिया में कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं होता। हम आपके काम आए बदले में आपको हम अपना काम करने कह रहे हैं। आप नहीं कर सकती तो हंसकर माना कर दीजिए, हमे जज मत कीजिए।


दिव्या:- तुम दोनो पागल हो क्या? तुम समझ भी रहे हो तुम लोग क्या कह रहे हो? यदि मेरी जान नहीं बचाई होती तो अब तक धक्के मार कर बाहर निकाल चुकी होती।


आर्यमणि:- रुकिए !!! आराम से 2 मिनट जरा सही—गलत पर बात कर लेते है फिर हम चले जाएंगे। मुझे तुम में कोई इंट्रेस्ट नहीं इसलिए तुम मेरे सवालों का जवाब शांति से देना, तुम्हारी जान बचाने का मेंहतना।


दिव्या:- हम्मम। ठीक है..


आर्यमणि:- तुम्हारे जगह तुम्हारा पति होता और हमारी जगह कोई लड़की। और वो लड़की ये प्रस्ताव रखती तो क्या तुम्हारे पति का भी यही जवाब होता।


दिव्या, चिढ़कर… "पता नहीं।"..


आर्यमणि:- जिस पति के लिए तुम वफादार हो, यदि कल तुम मर जाती तो क्या वो दूसरी शादी नहीं करेगा या किसी दूसरी औरत के पास नहीं जायेगा?


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या कुछ सोच में पड़ गई। तभी उसने आखरी सवाल पूछ लिया… "क्या तुम्हे यकीन है, तुम्हारी गैर हाजरी में यदि तुम्हारे पति को यही ऑफर कोई लड़की देती, तो वो मना कर पाता?"..


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या ने कोई जवाब नहीं दिया। वो केवल अपने सोच में ही डूबी रही, इधर निशांत खड़ा होकर दिव्या को एक थप्पड़ मारते…

"थप्पड़ का बदला थप्पड़। कन्विंस करके हम किसी के साथ कुछ नहीं करते। ये हमारे वसूलों के खिलाफ है। बस तुमने हमे अच्छे और बुरे के तराजू में तौला इसलिए इतना आइना दिखाना पड़ा, वरना हंसकर केवल इतना कह देती सॉरी मुझेस नहीं हो पाएगा, मेरी अंतर आत्मा नहीं मानेगी। अपनी वफादारी खुद के लिए रखो, किसी दूसरे के लिए नहीं। बाय—बाय मैडम।"…


निशांत बाहर निकलते ही… "हमने कुछ ज्यादा तो नहीं सुना दिया आर्य।"..


आर्यमणि:- जाने भी दे शाम पर फोकस करते है।


शाम के लगभग 6 बजे सिविल लाइन से जैसे अधिकारियों का पूरा काफिला ही निकल रहा हो। उन लोगो के जाते ही आर्यमणि और निशांत भी अपनी तैयारियों में लग गए, साथ मे चित्रा पर भी नजर दिए हुए थे। 6.30 बजे के करीब आर्यमणि, चित्रा के कमरे में पहुंचा। चित्रा आराम से बिस्तर पर टेक लगाए अपना मोबाइल देख रही थी।


जैसे ही किसी के आने की आहट हुई, चित्रा मोबाइल के होम स्क्रीन बटन दबाई और हथेली को चेहरे पर फिरा कर अपने भाव छिपाने लगी…. "क्या मिलता है तुम्हे इरॉटिका पढ़कर, कितनी बार मना किया हूं।".. आर्यमणि भी चित्रा के हाव भाव समझते पूछने लगा...


चित्रा:- सॉरी वो घर पर कोई नहीं था तो.. मुझे ध्यान ही नहीं रहा तुम्हारा।


आर्यमणि:- हम्मम ! तुम्हारे चेहरे पर कुछ लगा है।


चित्रा:- कहां..


आर्यमणि:- लेफ्ट में थोड़ा ऊपर..


चित्रा:- कहां .. यहां..


"रुको मै ही साफ कर देता हूं।".. कहते हुए आर्यमणि ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और बड़ी सफाई से क्लोरोफॉर्म सुंघाकर चित्रा को बेहोश कर दिया। उसे बेहोश करने के बाद आर्यमणि, निशांत के साथ निकला। दोनो साइकिल लेकर जंगल वाले रास्ते पर चल दिए।


कुछ दूर आगे चलने के बाद दोनो एक मालवाहक टेंपो के पास रुक गए, जहां उस टेंपो का मालिक पिंटो खड़ा था… "तुम दोनो छोकड़ा लोग आज क्यूं रिस्क ले रहा है मैन। पूर्णिमा की रात जंगल जाना खतरनाक है। हमने तुमको गाड़ी दिया यदि तुम्हारे फादर को खबर लगी तो वो मेरी जान निकाल लेंगे।"


निशांत अपनी साइकिल टेंपो में रखते हुए… "पिंटो रात को यहां से अपनी ट्रक ले जाना, हम वापस लौटने से पहले कॉल कर देंगे।"..


आर्यमणि टेंपो चलाने लगा, और निशांत पीछे जाकर खड़ा हो गया। जंगल के थोड़ा अंदर घुसते ही… "आर्य रोक यहां।"… टेंपो जैसे ही रुकी निशांत ने पेड़ की डाल से ताजा मांस का एक टुकड़ा बांध दिया। ना ज्यादा ऊपर ना ज्यादा नीचे। ऐसे ही करते हुए निशांत ने लगभग 50 टुकड़े जंगल के अलग-अलग इलाकों मे बांधने के बाद सीधा लोपचे के पुराने कॉटेज के पास पहुंचे।


आर्यमणि टार्च लेकर आगे बढ़ा और निशांत उसके पीछे-पीछे। दोनो कॉटेज के पीछे एक जगह पर खड़े हो गए और वहां की मिट्टी को खोदना शुरू किया।…. "हां यार ये तो ताजी खुदाई है।"… दोनो जल्दी-जल्दी खोदने लगे तभी आर्यमणि ने हाथ के इशारे से काम रोकने कहा… काम रोकते ही, वहां का पूरा माहोल शांत और किसी इंसान की बिलकुल धीमी आवाज सुनाई देने लगी। कॉटेज के खंडहर से बहुत ही धीमे किसी के दर्द भरी कर्रहट सुनाई दे रही थी। आवाज सुनकर दोनो एक दूसरे को हैरानी से देख रहे थे।
Ye Majjedar update tha
Nishant ne jab pehli baar mehnatana bola to meko laga paise lene jayenge lekin bad me clear hua khair ye kuch symptoms dikha rahe hai ki ye werewolves hai kyu ki werewolf sexually bhot active hote hai to sayad ye isiliye divya se uska LABOUR CHARGES lene gaye the...... thappad aur dimaag me questions deke aa gaye aur Chitra nishant ki twin to kya isme bhi power rahegi haa sayad kyu ki same symptoms chitra me bhi dikh rahe hai aur ye Lopche Cottage ki kahani aur Suhotra ki .......... ek aur ciz divya ki kahani me do janwar lad rahe the usko lag raha tha ki wo uske liye lad rahe the lekin wo kuch aur ek liye lad rahe the aur kuch to suspense hai Suhotra ka idhr aana aur cottage ki peeche kuch gadaana Aur Maitri sayad kuch danger me hai ........ dekhte hai aage kya hota hai.......
 
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Deku Aka 'Usless'
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भाग:–३



आर्यमणि टार्च लेकर आगे बढ़ा और निशांत उसके पीछे-पीछे। दोनो कॉटेज के पीछे एक जगह पर खड़े हो गए और वहां की मिट्टी को खोदना शुरू किया।…. "हां यार ये तो ताजी खुदाई है।"… दोनो जल्दी-जल्दी खोदने लगे तभी आर्यमणि ने हाथ के इशारे से काम रोकने कहा… काम रोकते ही, वहां का पूरा माहोल शांत और किसी इंसान की बिलकुल धीमी आवाज सुनाई देने लगी। कॉटेज के खंडहर से बहुत ही धीमे किसी के दर्द भरी कर्रहट सुनाई दे रही थी। आवाज सुनकर दोनो एक दूसरे को हैरानी से देख रहे थे।


"आर्य तू खोद मैं खंडहर में देखता हूं।".. निशांत अपनी बात कहकर कॉटेज के ओर चल दिया, इधर बस 1 मिनट की खुदाई के बाद ही अंदर जो दफन था वो आंखों के सामने था... गहरा सदमा जैसे दफन था। गहरा आश्चर्य सा दफन था जैसे। आर्यमणि ने एक झलक मात्र तो देखा था और सदमे से वो चित गिड़ा। आर्यमणि को गहरा सदमा लगा। वह बेसुध होकर जमीन पर गिर गया और मुंह से बस मैत्री ही निकला.…


अंदर मैत्री की लाश थी, वो भी आधी। कमर के नीचे का पूरा हिस्सा गायब था और सीने पर वही लॉकेट रखा हुआ था जो मैत्री हमेशा पहना करती थी। आर्यमणि हैरानी से मैत्री को देखते हुए उसका चेहरे पर हाथ फेरने लगा। हाथ फेरने के क्रम में उसने वो लॉकेट जैसे ही अपने हाथ में लिया… कुछ अजीब सा नजारा आर्यमणि की आखों ने देखा। बिल्कुल सोच से परे। इससे पहले की आर्यमणि कुछ और सोचता, निशांत अंदर खंडहर से चिल्लाने लगा। आर्यमणि लॉकेट वापस रखकर गड्ढे को भड़ दिया और निशांत के पास पहुंचा।


आर्यमणि खंडहर में जैसे ही पहुंचा, वहां का नजारा भी बहुत अजीब था। एक बड़ा सा सरिया शूहोत्र के सीने में घुसा हुआ था। शूहोत्र की आंख हल्की खुली हुई और मुंह से दबी हुई दर्द भरी चींख निकल रही थी। शायद अपने दर्द पर काबू पाने की कोशिश कर रहा था। आर्यमणि शूहोत्र के सर पर हाथ रखते हुए निशांत को देखने लगा… "यार, इसे कौन यहां सुलाकर चला गया।"


दूसरी ओर निशांत अपना पूरा बैग खोल चुका था। आर्यमणि ने तुरंत शूहोत्र का ब्लड प्रेशर चेक किया… "निशांत ब्लड प्रेशर बढ़ा है, टैबलेट निकाल।"… ब्लड प्रेशर कम करने की टैबलेट निकालकर.… शूहोत्र इसे अपने जीभ के नीचे रखो, हम ये सरिया निकालने वाले है।" ..


शूहोत्र सहमति में अपना सर हिला दिया। टैबलेट उसके जीभ के नीचे डालकर, दोनो कुछ देर रुके फिर निशांत सुहोत्र का सर अपने हाथ से पकड़कर… "हम सरिया निकालने वाले है, तुम तैयार हो।"


जैसे ही शूहोत्र ने सहमति में सिर हिलाया, आर्यमणि और निशांत की नजरे भी एक दूसरे से सहमति बना रही थी। आर्यमणि शूहोत्र के मुंह में कपड़े का टुकड़ा पुरा ठूंसकर, निशांत को इशारा किया। निशांत पुरा जोड़ लगाकर सरिया को खींचने लगा। सरिया नीचे से जमीन के अंदर घुसे होने के कारण धीरे–धीरे निकल रहा था और इसी के साथ शूहोत्र की पीड़ा भी अपने चरम पर थी। ऐसा लग रहा था दर्द से उसकी आंख बाहर निकल आएगी।


शूहोत्र चिंख़ने के लिए पुरा गला फाड़ रहा था लेकिन मुंह में कपड़ा और कपड़े के बीच में आर्यमणि के हाथ होने के कारण, उसकी चींख गले में ही अटकी हुई थी। तभी अचानक शूहोत्र की आखें बिल्कुल पीली हो गई, कपड़े के बीच में घुसा हुआ आर्यमणि का टेढ़ा किया हुआ हाथ में ऐसा लगा जैसे किसी ने काफी नुकीली कील घुसाकर हथेली फाड़ दी हो।


सरिया निकालने के साथ ही शूहोत्र बेहोश हो गया और आर्यमणि तेज चिंख्ते हुए अपनी कलाई झटका और अपना हाथ शूहोत्र के मुंह से बाहर निकाला। आर्यमणि ने जैसे ही हाथ झटका खून कि बूंद निशांत के चेहरे पर गई… "आर्य तुझे चोट कैसे लगी।"..


आर्यमणि शांत रहने का इशारा करते हुए, टॉर्च की रौशनी को कलाई से ढक दिया…. "शूहोत्र को कोई मारने आया है, टॉर्च बंद कर।"…


तभी शूहोत्र आर्यमणि को खींचकर, उसका कान अपने होंठ के पास लाते…. "अभी समझने का वक़्त नहीं, यहां पुलिस बुलाओ, वरना तुम दोनो नहीं बचोगे। ये लोग प्रोफेशनल है, और अब तक पूरे जंगल में ट्रैप वायर बिछा चुके होंगे।"..


आर्यमणि:- निशांत ये लोग प्रोफेशनल है और जंगल में पुरा ट्रापवायर लगा है।


निशांत:- वायरलेस कर दे क्या?


आर्यमणि:- नहीं उन सबको खतरा हो सकता है। इसे लेकर हम छोटे रास्ते से जाएंगे। तुम बस शिकारी कुत्तों को भरमाने का इंतजाम करो।


निशांत:- समझो हो गया । तुम नीचे उतरने की व्यवस्था करो, मै इन शिकारी कुत्तों का इंतजाम करता हूं।


जंगल और यहां के शिकारियों से दोनो दोस्त काफी वाकिफ थे। इन्हे पता था कि जंगल के शिकारी, अपने शिकार के लिए शिकारी कुत्तों का इस्तमाल करते हैं जिसके सूंघने की क्षमता अद्भुत होती है।


इधर जबतक आर्यमणि ने छोटे रास्ते से जाने और 40 फिट नीचे खड़ी ढलान उतरने का इंतजाम किया, तबतक निशांत ने शिकारी कुत्तों के लिए जाल बुन दिया। कॉटेज से पीछे के ओर बढ़ने वाले पूरे रास्ते को, खून के अजीब गंध से भर दिया। जहां शूहोत्र को सरिया लगा था वहां पर भी खून को उड़ेल दिया, ताकि असली गंध शिकारी कुत्तों के नाक तक नहीं पहुंच पाए।


सब सेट हो गया था। जबतक ये दोनो शूहोत्र को लेकर निकलते, तबतक 20-25 टॉर्च की रौशनी उसी कॉटेज के ओर बढ़ रही थी। दोनो दोस्त ने उसे कंधे पर लादा और 40 फिट नीचे उतरकर, छोटे रास्ते से आगे बढ़ने लगे। खून की गंध ने उन छोटे रास्तों पर तो जैसे हलचल मचा रखा हो।


चारो ओर से आहट आने शुरू हो चुके थे। दोनो अपने साथ लाए छोटी सी मसाल जला लिए। वहां के जानवर आग और रौशनी देखकर कदम पीछे लेने लगे। लेकिन ये तो छोटे मोटे जानवर थे। रात का अंधेरा और इतना घने जंगल में जब खून कि बूंद गिरती हो तो भला शिकारी जानवरो को भनक क्यों ना लगे। देखते ही देखते तीनों को चारो ओर से लोमड़ीयां घेर चुकी थी। जैसे ही उनका पुरा झुंड ने तीनों को घेरा, लोमड़ियां तैयार हो चुकी थी हमला के लिए।


दर्द भरी आवाज़ में शूहोत्र कहने लगा…. "अंधेरा ही कर दो, और बढ़ते रहो। कोई जानवर हमला नहीं करेगा, ये मेरा वादा है। आगे एक किलोमीटर पर मेरी कार खड़ी है, जंगल से निकलकर सीधा एमजी हॉस्पिटल चलना।"


आर्यमणि ने विश्वास दिखाते हुए वहां अंधेरा कर दिया। निशांत और आर्यमणि दोनो को ऐसा लग रहा था मानो उसके साथ-साथ कई जानवर चल रहे है, लेकिन कोई हमला नहीं कर रहा।…. "कमाल है आर्य, पूर्णिमा की रात यहां की लोमड़ी आक्रमक नहीं है उल्टा हमारे साथ चल रही। ये ले एक और चमत्कार। कास कोहरे को छांटकर चांदनी की रौशनी आती तो मै देख पता कि यहां क्या हो रहा है?".. इधर शिकारियों का झुंड जैसे ही उस कॉटेज में पहुंचा, उनका मुखिया चिंखते हुए… "भाग गया वो कमीना। कैसे भी करके उसे ढूंढो। और खत्म कर दो।"


शिकारी कुत्तों को जैसे ही छोड़ा गया वो लोग दौड़ते हुए सीधा ट्रक पर पहुंच गए। वहां ट्रक को देखकर उनका मुखिया कहने लगा… "ओह तो हमारी जानकारी गलत थी, ये तो पूरी टीम के साथ आया है।"..


थोड़ी ही देर में वो लोग एमजी हॉस्पिटल में थे। शूहोत्र को इस हालत में देख तुरंत ही डॉक्टर इंड्रू गजमेर वहां पहुंची। शूहोत्र की हालत का जायजा लेकर उसे तुरंत ओटी में भेज दी और आर्यमणि के हाथ पर लगी पट्टी के नीचे बहते खून को देखती हुई कहने लगी…. "कव्या यहां आकर इस लड़के को अटेंड करो और इसकी चोट पर ड्रेसिंग करो।"… इंद्रू अपनी बात कहकर ओटी में निकल गई और काव्या, आर्यमणि को लेकर माइनर ओटी में चली आयी।


रात के तकरीबन 11.30 बज रहे थे। जैसे ही दोनो सिविल लाइन की सड़क से चलते हुए घर के ओर बढ़ रहे थे, सामने उनका रास्ता रोके चित्रा खड़ी थी…. "बाय आर्य, हम जा रहे हैं। यदि तुम मुझे बेहोश न करते तो शायद तुम्हे पता होता की पापा का ट्रांसफर हो चुका हैं। या फिर मेरे जाने का वैसे भी कोई अफसोस नहीं होता क्योंकि जब हम दोस्त ही नही तो फिर मेरे यहां रहने या ना रहने से तुम्हे क्या फक्र पड़ेगा। अब फिर कभी मैं जंगल के लिए नहीं रोकूंगी। तुम अपने मन मर्जी की करते रहो।"


चित्रा अपनी बात कहकर, निशांत का हाथ पकड़ी और वहां से सीधा अपने घर में चली गई। आर्यमणि थोड़ा मायूस जरूर हुआ सुनकर, लेकिन वो चुपचाप अपने घर चला आया। सुबह का पूरा माहौल ही कौतुहल से भरा हुआ था, जब पुलिस फोर्स एक सूचना के आधार पर जंगल पहुंची और वहां उन्हें ट्रक लगी मिली।


गंगटोक की हॉट न्यूज बनी हुई थी क्योंकि 2 आदमी के मरने कि खबर थी और मौके पर ट्रक मिली। और ट्रक में मिली आर्यमणि और निशांत की साइकिल। मामला ये नहीं था कि इनपर किसी भी तरह का खून करने का इल्ज़ाम था, बस मामला ये था कि इतनी रात को आखरी किसकी सूचना पर ये दोनो जंगल गए थे और पुलिस को क्यों नहीं इनफॉर्म किया?


आर्यमणि पूरी कहानी बनाते हुए कहा दिया… "निशांत जाने वाला था और उसकी जिद की वजह से वो जंगल गया था। जंगल जाकर उसे सिकारियों के होने का अनुभव हुआ और साथ में ये भी आभाष हुआ कि ये शिकारी पूरे जंगल में ट्रैप लगाए है, इसलिए रात को पुलिस को सूचित नहीं किया। ताकि कोई केजुअल्टी ना हो और खुद छोटे सस्ते से वापस आ गया।"..


जब क्रॉस वेरिफिकेशन हुआ तब आर्यमणि की सारी बातें सच निकली, केवल उसने शुहोत्र की पूरी कहानी को गायब कर दिया। लेकिन एक आश्चर्य की बात और हो गई जो आर्यमणि को अंदर ही अंदर खाए जा रही थी… "पुलिस को कॉटेज के पास मैत्री की लाश क्यों नहीं मिली?"..


कुलकर्णी जी ने क्या क्लास लगाई आर्यमणि की। वो तो इतने आक्रोशित थे कि गुस्से में उन्होंने 4-5 चमेट भी लगा दिया। केशव और जया को तो सोचकर ही प्राण सूखे जा रहे थे कि कल रात कुछ भी उंच–नीच हो जाती तो आर्यमणि का क्या होता? दोनो ही दंपति अब तूल गए आर्यमणि को नागपुर भेजने।


आर्यमणि:- पापा, मम्मी, आप का गुस्सा सही लेकिन मै अभी गंगटोक छोड़कर नहीं जाऊंगा।


केशव, गुस्से में उसका गला पकड़कर दबाते हुए…. "क्यों नहीं जाएगा यहां से? या फिर हमे चिता पर लिटाने के बाद तुम्हे अक्ल आएगी, की हम तुम्हारे बिना जी नहीं सकते।"..


आर्यमणि:- हां मै जानता हूं आप मेरे बिना जी नहीं सकते और मै मैत्री के बिना। ये बात आप नहीं जानते थे क्या पापा? मैंने आपसे कहा भी था मुझे जर्मनी भेज दो, तब तो आपने मुझे नहीं भेजा। तब आपका स्वार्थ, आपका प्यार, आपका बेटे के प्रति जिम्मेदारी आ गई, फिर आज क्यों मुझे भेज रहे हो?


जया, एक थप्पड़ लगाती…. "अभी इतना बड़ा हो गया है तू.… अपने पापा से ऊंची आवाज में बातें कर रहा। एक लड़की के प्यार को हमारे भावनाओं से तुलना कर रहा। एक बात मै साफ-साफ कहे देती हूं आर्य, आज ही तू यहां से भूमि के पास जाएगा।


आर्यमणि:- एक थप्पड़ क्या 10 मार लो, लेकिन मै अभी यहां से कहीं नहीं जाऊंगा। आप दोनो को पता है मै कोई ज़िद्दी नहीं, और ना ही आप लोगों को दुखी देखना चाहता हूं। लेकिन कल रात जब मै जंगल गया तो पीछे कई सारे सवाल छूट गए। जबतक मै उन सवालों के जवाब नहीं ढूंढ लेता, मै कहीं नहीं जाऊंगा।


दोनो दंपत्ति बात कर ही रहे थे, तभी हॉस्पिटल से कॉल आ गया। आर्यमणि, के पास 2 गार्ड को तैनात करके केशव उनसे साफ कहता गया, "आर्य निकलने की कोशिश करे तो सीधा पाऊं मे गोली मार देना।"


अपनी बात कहकर केशव और जया सीधा हॉस्पिटल पहुंचे। डॉक्टर इंड्रू गजमेर केशव और जया को अपने साथ लिए गई, जहां सुहोत्र एडमिट था। शूहोत्र को देखकर दोनो दंपत्ति थोड़ा हैरान होते.… "तुम यहां क्या कर रहे हो"?


शूहोत्र:- कैसी बातें करते हो, तुम्हारे बेटे ने कुछ भी नहीं बताया क्या?


जया:- क्या नहीं बताया?


शूहोत्र:- मैत्री का कत्ल हो गया और कल रात जिन 2 की लाश मैंने गिराई वो शिकारी थे। बदले मे उसने मेरे सीने मे भी सरिया घुसा दिया था।


मैत्री के मरने की खबर से ही जया और केशव के होश उड़ गए। दोनो आर्यमणि की हालत का अब पूरा अंदाजा लगा सकते थे। उसके बदले व्यवहार के पीछे का कारण समझ में आ चुका था... जया, शुहोत्र को सवालिया नजरों से देखती... "भाग्यशाली रहे जो शिकारियों के हाथ से बच निकले.….


शूहोत्र:- हां लेकिन मैत्री उतनी भाग्यशाली नहीं थी। ओह हां, अभी तो तुम दोनो का बेटा पागल बना हुआ होगा ना, मैत्री के कातिलों को ढूंढने के लिए।


जया:- अपनी जुबान संभाल कर। मैत्री ना तो तुम लोगों जैसी थी और वो ना कभी हो सकती थी। उसके कत्ल का सुनकर हमारे अंदर भी वही चल रहा है जो तुम्हारे अंदर। लेकिन आर्य को दूर ही रखो.…



शूहोत्र:- दूर रखना है तो ध्यान से सुन लो, मुझे शिकारियों से बचाकर यहां से सुरक्षित निकालो। वरना मैं तो अब किसी विधि जर्मनी निकल ही जाऊंगा, लेकिन जाने से पहले आर्यमणि को वो ज्ञान देता चला जाऊंगा, जिसके शाये से तुम अपने बेटे को दूर रखना चाहते थे।


केशव:- तुम्हे कब निकालना है?


शूहोत्र:- काफी गहरा ज़ख्म मिला है मुझे भी, लेकिन 2 दिन बाद की फ्लाइट है और मैं निश्चित जाऊंगा।


जया:- जिसने भी मैत्री को मारा है, फिर चाहे जो कोई भी हो, मेरा वादा है उसे मैं देख लूंगी। हमारा पूरा परिवार जिन मामलों से दूर है, उसमे घसीटने की कोशिश भी मत करना।


शूहोत्र:- ऐसा होता तो तुम्हारे बेटे को कल ही सरी बातें पता चल जाती। मेरी बहन को मार डाला, मै यहां पड़ा हूं, लेकिन फिर भी तुम दोनो को मैंने बुलवाया। मैं जानता हूं मैं यहां कुछ नहीं कर सकता। इसलिए जो कर सकते हैं, उन तक अपनी आवाज पहुंचा रहा हूं। मैं यहां खुद नहीं आया, मैत्री के पीछे आया था। हां लेकिन यहां से जाने से पहले इतना ही कहूंगा, मैत्री की चाहत ने उसकी जान ली है। पिछले कई सालों से मैत्री भी अपने परिवार की नहीं थी।


केशव:- हम आर्य को लेकर बहुत परेशान थे शायद यही वजह थी कि तुम्हारा दर्द देख नहीं पाए। तुम हॉस्पिटल से निकलने से पहले मुझे एक बार बता देना।


शूहोत्र:- तुमने इतना कह दिया काफी है। जाओ आर्यमणि को संभालो।


भले ही आर्यमणि खुद को कितना भी सामान्य दिखाने की कोशिश कर ले, किंतु मैत्री की लाश देखने के बाद वह बिल्कुल भी सामान्य नहीं हो सकता। मैत्री की मौत की खबर सुनने के बाद दोनो दंपत्ति जैसे बेचैन हो गए हो। क्योंकि उन्हें पता था कि आर्यमणि को पता है कि मैत्री की लाश शिकारियों ने गिराई है और वो सुराग ढूंढ कर उसके पीछे जायेगा... आर्यमणि उन शिकारियों के पीछे, जिसके शाए से भी अब तक आर्यमणि को दूर रखा गया था।


दोनो दंपत्ति हड़बड़ी में घर पहुंचे, लेकिन पता चला आर्यमणि गायब है। दोनो भागते हुए जंगल पहुंचे। 400 पुलिसवालों ने लोपचे के पूरे खंडहर को छान मारा लेकिन वहां कुछ नहीं मिला।


इसके पूर्व आर्यमणि गार्ड्स की आंखों में धूल झोंककर सीधा जंगल पहुंचा। बहुत देर तक वो मैत्री के कत्ल की सुराग ढूंढने की कोशिश करता रहा। उसे बहुत ज्यादा जानकारी हाथ तो नहीं लगी, लेकिन मैत्री का बैग जरूर मिला, जिसमे उसकी कई सारे सामान के साथ एक डायरी थी, और हर पन्ने पर आर्यमणि के लिए कुछ ना कुछ था। और उसी बैग से आर्यमणि के हाथ कुछ ऐसा भी लगा जिसे वह नजरंदाज नहीं कर सकता था.…

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Ek do suspense clear huye lekin bhot saare aur aa gaye mujhe lag to raha tha ki Cottage ki peeche jo gada hai wo Maitri se related hai lekin Maitri hi hogi ye nhi socha tha aur Maitri ko mara kisne Suhotra ya wo Shikari aur ye Suhotra ko shikariyon ne mara lekin kyu aur Suhotra ka chote raste me ye kehna ki kuch janwar hamla nhi karega sayad wo bhi Werewolf ho sayad, aur wo locket ne Aarya ko kya dikhaya aur agar Aarya ko kuch dikha us locket ke through to usne wo apne saath kyu nhi liya kyu ki us locket pr Maitri ke bad haq banta to usi ka .......... Maitri ko us halat me dekhne ke bad pehle se dukh me hoga isiliye wo chitra ki baat ka react nhi kara ...... ek baat jo me sequence ke mutabik miss kiya Aarya ka haath pr jakham aana Suhotra ke daanto se isse sayad kuch reaction ho Aarya ki body me .....Aarya ki police ko story batana aur verified hona bilkul shaq nhi tha kyu ki dono hi samjhdar aur chalak hai pehle hi baat ho gyi hogi .... Suhotra ka role abhi tak to meko side role lag raha tha lekin ab lag raha hai ki ye bhot aage tak jayega dekhte hai .....Aur Aarya ko esa kya gyaan dene ki baat kr raha tha sayad usko uski sachchai se awgat jo ki Aarya kuch had tak smjh chuka hai ....Lag hi raha tha wo shaant to bethne nhi wala kal se aaj tak to shaant reh bhi liya lekin ab to uske mapa ko bhi pata chal gaya ki wo kyu rukne ki keh rha hai ..... kya mila hoga usko dekhte hai kya hota hai
 
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