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is thread me kuchh short stories likhunga jo ki 1 se 15 update tak ki hongi ...
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nice story ...bhakti ki shakti dikha di dono bhai behen ne ??..हवस से प्रेम तक
डराने वाली रात थी , पास में बहती हुई नदी भी डरावनी लग रही थी , बारिश तेज होने लगी और दोनों का जिस्म उस बारिश में बुरी तरह से भीग चूका था ,
तूफ़ान की तेज हवाओ ने पूरी झोपड़ी को ही तहस नहस कर दिया था , फिर भी हरिया और सुनीता ने हिम्मत नहीं हारी थी , वो जैसे तैसे एक पेड़ का सहारा लेकर अपने आशियाने को बर्बाद होता देख रहे थे, सुनीता के पास यही तो बस एक साड़ी थी जो उसे पिछले साल सेठानी जी ने दी थी , पुरानी साड़िया भी झोपड़े के साथ हवाओ में उड़ चुकी थी, लेकिन अब भी सुनीता को उन साड़ियों की नहीं बल्कि अपने मंदबुद्धि भाई की चिंता थी जो उसके पास खड़ा हुआ काँप रहा था।
"तू ठीक तो है ना हरिया ?"
हरिया कांपते हुए अपनी बहन के निकट आया और उसके जिस्म से चिपक गया , सुनीता ने भी अपने भाई को अपने जिस्म से चिपका लिया और वही पेड़ के निचे सिमट कर बैठ गई।
"सुनीता ये तूफान कब रुकेगा ,और हम अब कहा रहेंगे "
हरिया के प्रश्न ने सुनीता के दिल को दहला दिया था
ऐसे तो हरिया उससे उम्र में २ साल बड़ा था लेकिन बचपन से ही मंदबुद्धि का था , उनकी मानसिक उम्र किसी बच्चे की तरह थी ,सुनीता का बाप तो बचपन में चल बसा था और माँ ने भी ज्यादा साथ नहीं दिया, सुनीता अभी जवान ही हुई थी की उसकी माँ ने भी उसका साथ छोड़ दिया और साथ छोड़ दिया हरिया की जिम्मेदारी।
जिस उम्र में वो नए सपने बुनती और अपना घर बसती उस उम्र में वो लोगो के घरो में काम कर अपने और अपने भाई का गुजरा करती थी, गांव के बाहर एक छोटा सा झोपड़ा उसकी माँ ने बनाया था बस वही सुनीता का सहारा था ,भाई तो बस पास के ही माता के मंदिर में पड़ा रहता वंहा रहने वाले बाबा की सेवा करता और बदले में वो उसे कुछ खाने को दे देते।
ऐसे गांव के लोग सुनीता के दर्द को जानते थे , उसकी सेठानी जी भी उसे खाने पिने का सामान देती रहती थी लेकिन जंहा अच्छे लोग होते है वंहा बुरे भी तो होते है , और सुनीता की जवानी भी तो ऐसी थी की किसी भी मर्द में हवस की चिंगारी को आग बना दे।
इन्ही में एक सेठ का बेटा आनंद भी था,सेठानी को भी पता था की आनंद दिन भर सुनीता पर डोरे डालता है, उसे छेड़ता है लेकिन सेठानी के रहते आनंद की इतनी हिम्मत नहीं थी की वो सुनीता से कोई बत्तमीजी कर सके, सुनीता की जवानी को सेठानी जी ने अभी तक बचा कर रखा था वरना गांव के भेड़िये तो उस मादक जिस्म को कब का नोच कर खाने को आतुर खड़े रहते थे।
ऐसा नहीं था की उन्होंने कोशिस नहीं की थी ,लेकिन सुनीता हर बार ही बच जाती , कभी सेठानी के कारण तो कभी मंदिर वाले बाबा के कारण।
मंदिर वाले बाबा भी सुनीता के झोपड़े के पास ही पीपल के पेड़ के पास आकर सोया करते थे और काम से आने के बाद सुनीता उनके लिए खाना बना ले जाती ,अब वही उनके लिए पितातुल्य थे वो दोनों भाई बहनो को अपने पास बिठा कर कहानिया सुनाते की कैसे माँ की भक्ति से लोगो का जीवन सफल हुआ है , सुनीता के भाई हरिया को भी बस इसी का सहारा था की एक दिन माँ उनके जीवन की कठिनाइयों को भी दूर कर देगी ,
आज सुनीता के आँखों में पानी था , तूफ़ान और बारिश ने उनके एक मात्रा सहारे को भी बर्बाद कर दिया था , बाबा आज तूफान के कारण नहीं आये थे हरिया काँप रहा था ,सुनीता को डर था की कहि उसे बुखार ना हो जाये , वो उसे अपने जिस्म से चिपका कर सिमटी हुई बैठी थी,उसके मन में कई सवाल थे की आखिर उसका भविष्य क्या होगा।
जंहा ये बारिश और तूफान किसी के लिए दर्द और बेबसी का सबब बन गई थी तो वही दूसरी और कोई इसमें मौज में था
"आज तो मजा ही आ गया ,बारिश में विस्की अपना ही मजा देती है "
आनंद 4 दोस्तों के साथ अपने खेतो में बने घर में बैठा विस्की और गर्म गर्म मुर्गे का आनंद ले रहा था ,
"हा भाई लेकिन इसके साथ कोई गर्म गर्म माल भी हो जाये तो मजा दुगुना हो जाये,बारिश में किसी गदराई माल को नंगी कर दौड़ा दौड़ा कर करने का मजा ही अलग है "
सभी दोस्त हंस पड़े थे
"मुझे तो बस एक जिस्म चाहिए लेकिन साली कभी हाथ ही नहीं लगती , कितना बहलाया फुसलाया पैसे का लालच दिया लेकिन "
आनंद बस इतना बोल कर रुक गया
लेकिन उसके दोस्त समझ चुके थे की वो किसकी बात कर रहा है
"अरे तो उठा लाते है साली को "
मंगलू बोल उठा , मंगलू ऐसे भी औरतो के नाम से बदनाम था, कई बलात्कार के आरोप उसपर लग चुके थे लेकिन राजनितिक ताकत ने हमेशा ही उसे बचा लिया था ,
"अबे तुम लोग समझते नहीं मेरी माँ मुझे मार डालेगी "
आनंद की बात सुनकर सभी हँस पड़े
"साले अपनी माँ से इतना क्यों डरता है ,उस साली के ऊपर तो मेरी भी नजर है लेकिन साली हाथ ही नहीं लगती आज मौका है और दस्तूर भी है ,ऐसा गायब करेंगे उसे की किसी को पता भी नहीं लगेगा ,बोल देंगे की साली का अपने ही भाई के साथ चक्कर था "
मंगलू की शैतानी हंसी निकल पड़ी
"लेकिन मंदिर वाले बाबा ?"
आनंद अभी भी डरा हुआ था
"इस तूफान और बारिश में वो बुढ्ढा कहा पेड़ ने निचे सोने जायेगा ,रहा उसका भाई तो उससे हम निपट लेंगे , बारिश में सुनीता के भीगे नंगे जिस्म से आज रात भर खेलेंगे और उसे उठा कर मंत्री जी के फॉर्महाउस में फेक आएंगे ताकि जब मन करे तब उसके जिस्म का स्वाद ले सके "
मंगलू की बात से सभी की आंखे चमक गयी थी..
इधर
"बोल ना सुनीता अब हम कहाँ रहेंगे "
हरिया ने अपना प्रश्न फिर से दोहराया
"माँ सब ठीक करेगी भईया "
सुनीता ने अपने भाई के बालो में हाथ फेरा
"हा माँ सब ठीक करेगी , सबका करती है तो हमारा भी करेगी ,क्यों नहीं करेगी ,मैं रोज उनकी पूजा जो करता हु, वो जल्दी ही तेरी शादी अच्छे घर में करवाएगी "
अपने बड़े भाई की इस भोली बातो को सुनकर सुनीता इस दर्द में भी मुस्कुरा उठी थी ,
"मेरी शादी की बड़ी चिंता है तुम्हे "
उसने मजाक किया
"मैं तेरा बड़ा भाई जो हु आखिर तेरी शादी की जिम्मेदारी मुझपर ही है ना "
सुनीता उसकी बात को सुनकर हँसते हुए भी रो पड़ी थी।
शादी जैसी चीजे उस जैसी अभागन के लिए नहीं थी ,लेकिन वो अपने भाई को कुछ बोलकर दुखी भी नहीं करना चाहती थी ,
तभी एक कार की तेज लाइट दोनों पर पड़ी , तूफ़ान तो हम हो चूका था लेकिन बारिश अभी भी हो रही थी ,
"हाय क्या भीगा हुआ जिस्म है साली का "
एक बोल उठा सभी की नजर सामने पेड़ के नीचे बैठी हुई सुनीता पर गयी , सुनीता पूरी तरह से भीग चुकी थी और उसके यौवन का हर एक कटाव उसके उस पुरानी साड़ी से साफ़ साफ़ झलक रहा था ,
"साला इस मादरचोद हरिया के ही मजे है देख कैसे अपनी बहन से लिपटा हुआ बैठा है "
एक फिर बोला और सभी हंस पड़े ,
"भाई आसपास देख लो कोई है तो नहीं "
आनंद ने डरते हुए कहा
"साले डरपोक कोई होगा भी तो क्या बिगाड़ लेगा "
मंगलू ने हाथो में अपनी पिस्तौल थाम ली थी ,गाड़ी रोक कर सभी उतर गए
गाड़ी की तेज रौशनी ने सुनीता को थोड़ी देर के लिए चौका दिया लेकिन वो जल्द ही समझ गयी की ये आनंद की गाड़ी है , एक अनजाना डर उसके मन में समा गया था
"भईया यंहा से चलो हम मंदिर में जाते है "
सुनीता तुंरत ही खड़ी हो गयी थी ,लेकिन तब तक सभी लोगो ने उन्हें घेर लिया था
"अरे मेरी रानी कहा चली ,आओ तुम्हे गाड़ी में छोड़ देते है "
मंगलू सुनीता के पास आने लगा
"तुम लोग यंहा क्या कर रहे हो "
सुनीता घबराई जरूर थी लेकिन आज तक के जीवन ने उसे थोड़ा हिम्मतवाला भी बना दिया था,ऐसी परिस्थितियो का उसने कई बार सामना किया था जब हवस के प्यासे उसके जिस्म के मोह में उसे पाने के लिए सुनीता पर दबाव बनाये ,लेकिन आज परिस्थिति कुछ लग थी आज उसने खुद को अकेला महसूस किया था , ये दिन नहीं था ये रात थी और उसे बचाने वाले उससे दूर थे ,लेकिन सुनीता जानती थी की अगर उसने हिम्मत खोई तो इसका जुर्माना उसे अपनी आबरू को लुटा कर देना होगा।
"हम तो बस तुम्हारी सलामती देखने आ गए "
किसी ने कहा
"हम ठीक है तुम लोग जाओ यंहा से "
सुनीता ने थोड़े दृढ़ आवाज में कहा ,लेकिन उसकी बात सुनकर मंगलू जोरो से हँस पड़ा था
"इसीलिए तो मैं इसे रोंदना चाहता हु ,साली के तेवर तो देखो , जब इसे रगड़ेंगे और ये चिल्लायेगी तो बड़ा मजा आएगा "
मंगलू की बात सुनकर जंहा सुनीता कांप उठी वही बाकि के दरिंदे जोरो से हँस पड़े
सुनीता की नजर आनंद पर पड़ी जो अभी भी चुप था
"सेठ जी आप कुछ बोलते क्यों नहीं , अगर सेठानी जी को ये पता चला तो "
सुनीता ने आनंद को डराते हुए कहा लेकिन उसने बस अपनी नजरे नीची कर ली
"अरे ये क्या बोलेगा इसी ने हमे यंहा लाया है "
सुनीता ने एक बार गुस्से से आनंद की ओर देखा , वो उसका जिस्म चाहता है ये तो सुनीता जानती थी लेकिन इसके लिए वो इतना गिर जायेगा ये उसने नहीं सोचा था
"मेरी बहन को अकेला छोड़ दो "
हरिया चिल्लाया लेकिन उससे सभी और भी जोरो से हँस पड़े
"साले तू जैसे अपनी बहन से चिपका हुआ था हमें भी बस वैसे ही चिपकना है "
मंगलू बोल कर हँस पड़ा ,और उसने सभी को इशारा किया
"नहीं नहीं "सुनीता चिल्लाती रही और वो लोग उसके ऊपर टूट पड़े।
बारिश और तेज होने लगी थी ,हरिया अपनी बहन को बचाने के लिए उनसे भीड़ गया
लेकन 5 लोगो के सामने उसकी एक ना चली ,उन्होंने हरिया पर डंडे से वार कर दिया ,हरिया के सर से खून बहने लगा था,लेकिन वो फिर भी भिड़ा रहा
"पहले इस मादरचोद को मारो "
मंगलू चिल्लाया और सभी ने हरिया पर डंडे बरसाने शुरू कर दिए , हरिया जमीन में पड़ा बेसुध हो चूका था,मंगलू ने अपनी पिस्तौल हरिया के ऊपर तान दी
"नहीं इसे छोड़ दो "
सुनीता अपने भाई को बचाने की गुहार लगाने लगी
लेकिन हरिया ने पिस्तौल लोड कर ली
"पहले तो इस मादरचोद को मरूंगा "
मंगलू चिल्लाया
"नहीं नहीं ऐसा मत करो मैं हाथ जोड़ती हु "
सुनीता रोने लगी थी , हरिया का दर्द उससे देखा नहीं जा रहा था ,मंगलू समझ चुका था की सुनीता की कमजोरी क्या है
"अगर अपने भाई को जिन्दा देखना चाहती है तो जो बोल रहे है वो चुप चाप कर "
सुनीता के पास अब इनके बात को मानने के सिवा कोई चारा नहीं बचा था
"जो बोलोगे वो करुँगी लेकिन इसे छोड़ दो "
सुनीता गिड़गिड़ाने लगी ,वो घुटनो के बल हरिया के पास ही बैठ गयी
उसी बेबसी देख कर सभी के होठो में मुस्कान आ गयी थी
मंगलू ने उसकी साडी का पल्लू उसके सीने से हटा दिया ,सुनीता के ब्लाउस में कसे यौवन के उभार अब सभी के हवस की आग को हवा देने लगे थे , सुनीता अब जिन्दा लाश सी बस अपने भाई को देख रही थी जो उसे बचाने के कारण अभी बेसुध पड़ा था,
आँखों में बेबसी के आंसू थे,
अब बारिश में भीगा जिस्म ठंडा हो चूका था लेकिन फिर भी माथे पर पसीने की बुँदे आ गयी थी
"वाह सच में क्या माल है , बारिश में भीगा हुआ जिस्म चखने में मजा ही आ जायेगा "
एक बोल उठा और सभी ने अपने होठो पर अपनी जीभ फेर ली
"अभी तो आधा ही देखा है "
मंगलू आगे बढ़ा और खींच कर सुनीता का वो पुराना ब्लाउज फाड़ दिया , सुनीता का रोना और भी तेज हो गया था वो अपने यौवन से भरे वक्षो को छुपाना चाहती थी लेकिन मंगलू के इशारे पर उसके एक दोस्त ने सुनीता के हाथो को पकड़ कर अलग कर दिया और सुनीता के वक्षो को जोरो से मसल दिया
"नहीं भगवान के लिए दया करो "
सुनीता अपनी बेबसी पर चिल्ला उठी लेकिन वंहा उसकी सुनने वाला कोई भी तो नहीं था
सभी उसकी इस बेबसी पर हँस रहे थे और ना सिर्फ हँस रहे थे बल्कि सुनीता की दर्द भरी आवाज ने सभी के हवस को और भी हवा दी थी
बारिश के पानी से भीगा सुनीता का जिस्म कार की लाइट में चमकने लगा था ,बारिश की बूंदो ने उसके जिस्म को और भी कोमल बना दिया था
इधर लाओ इसे
मंगलू चिल्ला उठा अब उससे सहन नहीं हो रहा था वो उस जिस्म से अपनी हवस की प्यास बुझना चाहता था जिसको पाने की ख्वाहिस उसने कई बार की थी वो वो लोग उसे घसीटते हुए कार की लाइट के सामने ले गए , सुनीता छटपटा रही थी ,दर्द में चिल्ला रही थी ,जमीन में बिछे कंकड़ पत्थर से सुनीता का जिस्म छिलता चला गया लेकिन आज उसके दर्द की परवाह किसे थी , आज तो हवस की आग ने सभी को शैतान बना दिया था
"साड़ी खोल इस रंडी की "
एक आदेश और जैसे सभी को बस इसी की तलाश थी , सभी एक साथ उसपर झपट पड़े और उसके जिस्म का हर कपडा उतार फेका।
बारिश को भी ना जाने क्या हो गया था , वो और भी तेज हो गयी थी , हवाएं तेज होने लगी थी सभी का जिस्म ठण्ड से कांपने लगा था लेकिन परवाह किसे थी , शराब का नशा और जिस्म की आग दोनों ने सभी को पागल बना दिया था , सुनीता बस किसी मुर्दे के जैसे पड़ी हुई थी और बारिश की बुँदे उसके शरीर को भिगो रही थी ,
सभी कुत्ते उस मांस से भरे जिस्म को देखकर अपनी लार टपका रहे थे और उस मांस को नोचने के लिए तैयार हो रहे थे , सुनीता के जिस्म पर हर जगह उनके हाथ और मुँह चल रहे थे सुनीता का भी विरोध ख़त्म हो चूका था , वो हालत से हार मान चुकी थी, रोना बंद हो चूका था या ये कहो की आंसू ही सुख चुके थे
तभी बिजली की एक तेज चमक से पूरा माहौल रौशनी से भर उठा और एक जोरो की गड़गड़ाहट हुई जैसे आसमान ही फट जायेगा , थोड़ी देर के लिए सभी की रूह ही काँप उठी और फिर से सन्नाटा पसर गया
“अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते । “
हरिया को पास ही खड़ा आंखे बंद कर कुछ फुसफुसा रहा था , सभी की निगाहे उसपर जा टिकी
"ये साला फिर से होश में आ गया मारो इसे "
मंगलू चिल्लाया
"भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥"
हरिया जोरो से गाने लगा
"महिषासुर मर्दिनी " आनंद की आवाज कांपने लगी थी
"क्या ??"
मंगलू ने आनंद को देखते हुए कहा
"ये महिषासुर मर्दिनी का स्रोत है "
आनंद फिर से कांपते हुए आवाज में बोल उठा
"तो इससे क्या होता है , मारो इसे "
मंगलू का गुस्सा तेज हो गया था लेकिन आनंद पीछे हटने लगा ,जिसे देखकर मंगलू ने अपनी पिस्तौल हरिया पर तान दी
"सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ "
हरिया और भी जोरो से बोलने लगा , कनकमंजरी छंद पर बने इस स्रोत का एक एक शब्द सभी के दिल में डर का संचार करने लगा था
तभी मंगलू ने ट्रिगर दबा दिया
"धाय " एक जोरो की आवाज गूंज उठी गोली सीधे हरिया के कंधे पर लगी थी , लेकिन वो खड़ा था रहे कोई पर्वत हो
"माँ जागो माँ... जागो माँ "
हरिया रोते हुए चिल्लाया
सुनीता के कानो में ये स्रोत गूंज गया था जो मंदिर में उसका भाई रोज गया करता था , उसका मृत जैसे शरीर में जैसे ऊर्जा का संचार होने लगा ,माथे पर पसीने की बुँदे आने लगी
सभी बस आंखे फाडे हरिया को ही देख रहे थे ,सभी का ध्यान सुनीता से हट चूका था
इधर सुनीता के कानो में मंदिर वाले बाबा की बात गूंज उठी
"बेटी जब महिषासुर नाम के असुर ने खुद को ताकतवर समझ कर अत्याचार किया तब ममतामयी माँ ने अपना रौद्र रूप दिखाया "
"लेकिन बाबा माँ कहा रहती है "सुनीता ने पूछा था
"सबके अंदर माँ है बस उन्हें जानना है अब उन्हें जगाना है "
सुनीता की आंखे झट से खुल गयी थी
"माँ जागो माँ जागो, हे महिषासुर मर्दिनी जागो "हरिया रोते हुए बोला
"बहुत हुआ साले का नाटक "
मंगलू ने निशाना सीधे हरिया के सर में जमाया , वो ट्रिगर दबाने ही वाला था की
फटाक
एक डंडा जोरो से उसके सर में पड़ा और खून की धार बह गयी
बारिश तेज थी और सुनीता का भीगा हुआ जिस्म कार की रोशनी में चमक रहा था , इस ठण्ड में भी वो बारिश के पानी के साथ साथ पसीने से भी भीगी हुई थी
वो काँप रही थी
हरिया उसे देख कर अपने घुटनो में बैठ गया था
"माँ माँ, तू जाग गयी माँ "वो हाथ जोड़े रोने लगा
सुनीता ने फिर से डंडा घुमाया इस बार फिर किसी का सर फूटा ,
तब तक सभी चौकन्ने हो गए थे सभी ने दौड़ कर अपने हथियार उठा लिए , सुनीता का नग्न जिस्म अभी भी बारिश में भीग रहा था लेकिन अब किसी के हवस को नहीं जगा रहा था , वही हरिया जोरो से स्रोत गा रहा था उसने जीवन भर माँ की भक्ति की थी और आज माँ उसके सामने साक्षात् खड़ी थी वो प्रेम में मग्न हो चूका था आल्हादित हो चूका था ,
वही सुनीता का रूप और हरिया का गया हुआ स्रोत से सभी के रूह तक काँप रहे थे , सुनीता के चेहरे में कोई डर नहीं थे वो उन लोगो को गुस्से से देख रही थी और उसकी आँखों में देखने का साहस भी किसी के पास नहीं था
"मारो इसे "
एक हिम्मत करके चिल्लाया वो लोग सुनीता की ओर दौड़े लेकिन सुनीता ने घूमकर सीधे एक के गले में वार कर दिया , उसका गला ऐसे टुटा जैसे ककड़ी हो ,
सुनीता ने पास पड़े पिस्तौल को उठा लिया और 'धाय धाय '
गोली सीधे एक के सर में लगी ,बाकि के लोग ये देख कर वही रुक गए थे , आनंद हाथ जोड़कर अपने घुटनो के बल बैठा था , मंगलू जमीन में पड़ा तड़फ रहा था सुनीता ने पिस्तौल उसकी ओर की और दो गोलिया सीधे उसके खोपड़ी को तोड़ कर अंदर चली गयी।
माहौल में जैसे शमशान सी शांति फ़ैल गयी थी चार जिस्म सामने पड़े थे , एक का गाला टुटा था , दो की खोपड़ी में गोली लगी थी और एक की खोपड़ी डंडे से तोड़ दिया गया था जो अभी अभी तड़फता हुआ अपनी अंतिम साँस ले रहा था
सुनीता ने पिस्तौल की नोक आनंद पर टिका दी ,लेकिन आनंद घुटनो पर बैठा हुआ हाथ जोड़े माफ़ी मांग रहा था
";मुझे माफ़ कर दो माँ मुझसे गलती हो गयी , मैं हवस की आग में अँधा हो गया था मुझे माफ़ कर दो "
वो रो रहा था , सुनीता को सेठानी की याद आ गयी आनंद उनकी एकलौती औलाद थी।
थोड़ी देर तक वंहा बस सन्नाटा पसरा रहा
गोलियों की आवाज सुनकर वंहा मंदिर वाले बाबा भी आ गए थे , बिजली की तेज गड़गड़ाहट ने उनकी नींद खोल दी थी फिर गोली की आवाज सुनकर वो दौड़ पड़े थे,
****************
"मेरे बेटे की गलती के लिए मैं क्षमा मांगती हु बेटी "
सेठानी सुनीता के सामने रो रही थी ,4 मौते हुई थी लेकिन सेठ जी के पैसे और मंदिर वाले बाबा के दिमाग से इसे महज 4 लोगो का झगड़ा बना दिया गया था जिसका चश्मदीद गवाह खुद आनंद था , पुलिस से कहा गया की सुनीता और हरिया तूफ़ान के कारण मंदिर में ही रुके थे क्योकि उनकी झोपडी तूफान में बर्बाद हो गयी , वो लोग नशे में थे और वंहा सुनीता का बलात्कार करने ही आये थे आनंद ने इन सबका विरोध किया था लेकिन वो उसे भी जबरदस्ती वहाँ ले गए और वंहा पहुंचकर सब के बीच झगड़ा हो गया सभी एक दूसरे से लड़कर ही मर गए ,
सभी को पता था की सच क्या था लेकिन किसी ने भी इसपर आपत्ति नहीं जताई , ऐसे भी सभी मंगलू के उत्पात से परेशान थे ,
सेठानी को ये सब सुनकर दर्द तो हुआ वो आनंद को सजा देना चाहती थी लकिन वो उनका एकलौता बेटा था पुत्र मोह में बेचारी के पास बस सुनीता से माफ़ी मांगने के अलावा कोई रास्ता भी बचा था
"छोटे सेठ जी ऐसे नहीं है सेठानी लेकिन उन्हें बहका दिया गया था , शायद शराब का नशा , हवस की आग और जिस्म की चाह आपके दिए संस्कारो से ज्यादा ताकतवर निकल गए "
सुनीता ने अपने दिल की बात उन्हें कह दी , आनंद हमेशा से सुनीता को पाना चाहता था लेकिन सुनीता जानती थी की वो इतना भी गिर नहीं सकता था की सुनीता का बलात्कार कर दे , वो उसे पैसो का लालच दे चूका था हर समय उसे छेड़ता रहता था ,लेकिन फिर भी सेठानी के संस्कारो से बंधा हुआ था
सुनीता की बात सुनकर सेठानी ने उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा उनकी आँखों में आंसू थे
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एक साल बाद
सुनीता की शादी एक अच्छे घर में हुई , पूरा खर्च सेठ जी वहन किया था
सुनीता आज लाल जोड़े में दुल्हन बनी बैठी थी तभी हरिया वंहा आया
"देखो भईया आखिर मेरी शादी हो गयी ,और अब तुम्हारी बारी है "
सुनीता ने हरिया को छेड़ते हुए कहा जिसे सुनकर वंहा बैठे सभी हँस पड़े
"मैं मंदिर छोड़ कर कही नहीं जाऊंगा "
"अच्छा और मुझे छोड़कर ?"
सुनीता के आँखों में पानी था
"तुम तो हमेशा मेरे साथ रहती हो ,उसी मंदिर में मेरी माँ के रूप में "
हरिया की बात सुनकर सुनीता ने उसे अपने गले से लगा लिया
वही
मंदिर में आनंद हाथ जोड़े खड़ा था
"माँ , मुझे समझ आ गया है की हर औरत तेरा ही रूप है , तू ही सबमे है ,जिस्म का भोग महज मन का वहम है , अगर मन हवस के अधीन हो तो जिस्म भोग की वस्तु लगती है लेकिन तेरा प्रेम हो तो सबमे बस तू ही तू है "
समाप्त