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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

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What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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दोनो ही अपडेट बहुत ही शानदार और लाज़वाब है
अनुराधा और वैभव की कहानी की नई शुरुआत हो गई है अब वैभव को भी आगे बढ़ना होगा अनुराधा अपनी की गई गलती पर बहुत ही ज्यादा पछता रही है उसकी इस व्यथा का वैभव और भुवन दोनो को पता है देखते हैं अनुराधा को अपना प्यार मिलता है या नही
Dekhiye dono ki kismat me kya hai...
ठाकुर साहब का साहूकारो के घर जाना माफी मांगना और फूलमती का कुसुम का हाथ मांगना कहानी में गजब का ट्विस्ट है ठाकुर साहब को अपनी गलती का एहसास है इसलिए वे साहूकारो के घर गए लेकिन साहूकारो को अपनी गलती का एहसास नहीं है हां ये सही है कि बड़े ठाकुर ने गलत किया लेकिन ठाकुर ने उनके साथ कोई गलत नही किया था उनसे माफी भी मांग ली थी लेकिन साहूकार उस बात का नाजायज फायदा उठा रहे हैं लगता है इनके दिमाग अभी भी कुछ खुपारात चल रही है
Bure log itna jaldi kaha sudharte hain bhai...
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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लगता है साहूकारों की कमान अब फुलवती मैडम के हाथों आ गया है। कुछ भी नही बदला है । सबकुछ पहले जैसा ही है। फर्क सिर्फ ये आ गया है कि पहले मर्दों की चलती थी और अब औरतों की चलने लगी है।
और यही हाल मुंशी और उसके पिल्ले का भी है। पता नही , क्यों इनकी बली नही चढ़ी ! ये जब तक जिंदा रहेंगे ठाकुरों के खिलाफ षडयंत्र करते रहेंगे।
:laughing: Sahukaro ka pet bhar chuka hai is liye unhone ab apni aurto ko kamaan de di hai, kadachit ye soch kar hi ab wahi naiya paar laga sakti hain... :D

Agar aap munshi ki ya uske bete ki Bali chadhi Hui dekhna chahte hain to chinta mat kijiye....aapki khushi ke liye koi prabandh karte hain :hug:
न साहूकार बदले हैं और न ही उनका दलाल मुंशी और उसका छोरा । न ही सफेदपोश का राज खुला है और न ही कोई प्रपंच रचना बंद हुआ है । न ही अनुराधा के दिल को चैन मिला है और न ही रूपा अपने दिलों के अरमान पुरा कर पाई है ।
बदला है कुछ तो भाभी श्री का । पहले सुहागन थी और अब बेवा हो गई है।
Ye sab agar itna jaldi band ho jayega to kahani ka the end bhi to jaldi ho jayega. Btw aisa kyo prateet ho raha hai jaise aap jald se jald in logo ka kriya karm ho Jana dekhna chahte hain... :D

Sahi kaha, sabse zyada nuksan Ragini ka hi hua hai...Ragini naam ki aurto ka yahi bhagya hai kya? Kamdev bhaiya ki moksh me aaj bhi Ragini didi apni suhagrat ke intzaar me baithi hain aur yaha to khair vidhwa hi ho gai bechari...

Mazaak ki baat nahi hai....jisse meri shadi lagi thi uska bhi naam Ragini hi tha, usko to upar wale ne apne paas hi bula liya :verysad:
कहानी अभी बहुत बाकी है।
बहुत ही खूबसूरत अपडेट शुभम भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग।
Thanks
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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शुभम भाई, बढ़िया अपडेट दिए आपने।

एक ओर जहां दादा ठाकुर ने अपनी खानदानी निर्दयिता दिखाते हुए लगभग पूरे साहूकार खानदान के मर्दों को समाप्त कर दिया, वहीं वापस से अपनी सहृदयता से वापस खुद को छलवाने उन्ही साहूकारों के पास गए हैं, और उनकेकदमों में बिछ भी रहे हैं।
Dada thakur ne jab nirdayta dikhaai tab unki mansikta alag thi aur ab alag hai, bas yahi baat hai. Wo ek bhale insaan hain is liye itna kuch hone ke baad bhi sahukaro ka bhala chahte hain aur unse rishte behtar banane ki khud hi pahal karne aaye. Warna unke jaise takatwar aadmi ko bhala kya zarurat thi khud ko is tarah se chhota banane ki...
वहीं फूलमती ही लगता है अब साहूकारों की मुखिया और ठाकुरों के खिलाफ षण्यंत्र रचने वाली बनेगी, जिसका परिचय उसने कुसुम को अपने घर की बहु बनाने के प्रस्ताव जैसी कुटिल चाल से ही दे दिया है।
Sahi kaha, filhaal to yahi kah sakte hain ki foolwati hi ab bagdor samhalegi... :approve:
मुंशी तो वैसे ही घोषित रूप से अपनी दुश्मनी चला रहा है, और वो नकाबपोश भी नही मिला।
Nakabposh itna jaldi milega bhi nahi...haan kisi ittefaak se ya wo apni badkismati se pakad me aa jaye to alag baat hai...
मतलब इतना सब गवां कर भी नतीजा वही ढाक के तीन पात है।

इनमे सबसे ज्यादा को भाभी और साहूकारों के घर की औरतें ही पीसी हैं, और शायद आगे भी यही हाल होगा।
Aurto ka pisna to aadi kaal se hi chala aa raha hai. Purusho ne apne matlab ke liye athw akhushi ke liye jane kya kya kiya hai...
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Bahot hi sandar update..kahani me fir se jaan agai hai ..lag raha tha nafrat aur badle ki aag ab sant hogai hai lekin..ye aag to abhi bhi sulag rahi hai. Dekhte hain aage hota kya hai
Ye badle ki aag abhi aur logo ki bali maagti hai...maybe :?:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अध्याय - 81
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



मेरी बात सुन कर भाभी ने खुद को सम्हाला और अपने आंसू पोंछ कर बिना कुछ कहे ही कमरे से बाहर निकल गईं। इधर मुझे अपने आप पर बेहद गुस्सा आ रहा था कि मैंने उनसे ऐसी बात ही क्यों कही जिसके चलते उन्हें रोना आ गया? ख़ैर अब क्या हो सकता था। मैं वापस पलंग पर जा कर लेट गया और मन ही मन सोचने लगा कि अब से मैं सिर्फ वही काम करूंगा जिससे भाभी को न तो तकलीफ़ हो और ना ही उनकी आंखों से आंसू निकलें।


अब आगे....


"ये क्या कह रहे हैं आप?" पिता जी की बातें सुनते ही मां ने चकित हो कर उनकी तरफ देखा____"मणि शंकर भाई साहब की पत्नी ऐसा बोल सकती हैं? हमें यकीन नहीं हो रहा लेकिन आप कह रहे हैं तो सच ही होगा। वैसे आपको उनके घर जाना ही नहीं चाहिए था।"

"ऐसा क्यों कह रही हैं आप?" पिता जी ने कहा____"क्या आप नहीं चाहतीं कि सब कुछ भुला कर हम उनसे अपने रिश्ते बेहतर बना लें?"

"हम ये मानते हैं कि जीवन में कभी भी किसी से बैर भाव नहीं रखना चाहिए।" मां ने गंभीरता से कहा____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि ऐसे व्यक्ति से रिश्ता बनाना भी बेकार है जो किसी शर्त के आधार पर रिश्ता बनाने की बात करे। हमारे साथ तो अपराध करना उन्होंने ही शुरू किया था जिसका बदला अगर हमने इस तरह से ले लिया तो कौन सा गुनाह कर दिया हमने? फिर भी मान लेते हैं कि आपने उनके साथ अपराध किया है तो इसका मतलब ये नहीं कि वो आपको नीचा दिखाने के लिए आपसे कुछ भी कहने लगें।"

"क्या आपको सच में ऐसा लगता है कि वो हमसे ऐसा कह कर हमें नीचा दिखाने की कोशिश कर रहीं थी?" पिता जी ने कहा।

"और नहीं तो क्या।" मां ने दृढ़ता से कहा____"उनके ऐसा कहने का यही मतलब है। वो आपकी नर्मी को आपकी दुर्बलता समझ रही हैं और इसी लिए उन्होंने आपसे बेहतर रिश्ते बनाने के लिए ऐसी शर्त रखी। हमें तो हैरानी हो रही है कि उनकी हिम्मत कैसे हुई हमारी फूल जैसी बेटी के साथ अपने बेटे के रिश्ते की बात कहने की?"

"वैसे अगर ये रिश्ता हो भी जाता है तो इसमें कोई बुराई तो नहीं है।" पिता जी ने मां की तरफ देखते हुए कहा____"हमें लगता है कि इस तरह से दोनों परिवारों के बीच काफी गहरा और मजबूत रिश्ता बन जाएगा।"

"इसका मतलब आप भी चाहते हैं कि हमारी फूल जैसी बेटी का ब्याह उनके बेटे से हो जाए?" मां ने आश्चर्य से पिता जी को देखा____"हमें बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि आप ऐसा चाहते हैं।"

"क्या आप नहीं चाहतीं?" पिता जी ने पूछा।

"नहीं, बिल्कुल भी नहीं।" मां ने पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"हम अपनी बेटी का ब्याह उस घर में कदापि नहीं करेंगी जिस घर के लोगों की मानसिकता इतनी गिरी हुई हो। आप एक बात अच्छी तरह समझ लीजिए कि हमारे संबंध उनसे बेहतर हों या ना हों लेकिन हमारी बेटी का ब्याह उस घर में किसी भी कीमत पर नहीं होगा।"

मां का एकदम से ही तमतमा गया चेहरा देख पिता जी ख़ामोश रह गए। उन्हें बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि उनकी धर्म पत्नी ऐसे रिश्ते की बात सुन कर इस तरह से गुस्सा हो जाएंगी।

"एक बार आप इस बारे में मेनका से भी पूछ लीजिएगा।" पिता जी ने धड़कते हुए दिल से मां से कहा____"हो सकता है कि उसे इस रिश्ते से कोई आपत्ति न हो।"

"आपको क्या हो गया है आज?" मां ने हैरानी से पिता जी को देखा____"आप क्यों उनसे हमारी बेटी का रिश्ता करवाना चाहते हैं? क्या आपको अपनी बेटी से प्यार नहीं है? क्या आपको उसके सुखों का ख़याल नहीं है?"

"बिल्कुल है सुगंधा।" पिता जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"आप ऐसा कैसे कह सकती हैं कि हमे हमारी बेटी से प्यार नहीं है अथवा हमें उसके सुखों का ख़याल नहीं है? वो इस हवेली की इकलौती बेटी है। हम सबकी जान बसती है उसमें। फिर भला हम कैसे उसके लिए कोई ग़लत फ़ैसला कर सकते हैं अथवा उसके भविष्य को बिगाड़ सकते हैं?"

"साहूकारों के घर में अपनी बेटी का ब्याह करना मतलब उसके भविष्य को बिगाड़ देना ही है ठाकुर साहब।" मां ने कहा____"क्या आपको इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी एहसास नहीं हुआ है कि वो किस तरह की सोच और मानसिकता वाले लोग हैं? इतना कुछ हो जाने के बाद भी उन्हें अपनी ग़लतियों का एहसास नहीं है, बल्कि वो तो यही समझते हैं कि सिर्फ हमने ही उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है। ख़ैर अगर वो सच में दोनों परिवारों के बीच बेहतर संबंध बना लेने का सोचते तो इसके लिए वो ऐसी शर्त नहीं रखते और ना ही आपको नीचा दिखाने की कोशिश करते।"

"हां हम समझते हैं सुगंधा।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"किंतु किसी को तो झुकना ही पड़ेगा ना। वो भले ही खुद को दोषी अथवा अपराधी न समझते हों किंतु हम तो समझते हैं न कि हम उनके अपराधी हैं इस लिए उनके सामने हमें ही झुकना होगा।"

"बेशक आप झुकिए ठाकुर साहब।" मां ने स्पष्ट रूप से कहा____"लेकिन अपने साथ किसी और को इस तरह से मत झुकाइए। अगर आप समझते हैं कि आप उनके अपराधी हैं और उनके साथ किए गए अपराध के लिए आप प्रायश्चित के रूप में उनके लिए कुछ करना चाहते हैं तो सिर्फ वो कीजिए जिसमें सिर्फ आपका ही हक़ हो। कुसुम आपके छोटे भाई की बेटी है। भले ही हम उसे उसके मां बाप से भी ज़्यादा प्यार करते हैं मगर उसके लिए कोई फ़ैसला करने का हक़ हमें नहीं है। एक और बात, अपने बेटे को भी मत भूलिए। अगर उसे पता चला कि आपने उसकी लाडली बहन का ब्याह साहूकारों के यहां करने का मन बनाया है तो जाने वो क्या कर डालेगा?"

पिता जी कुछ न बोले। बस गहरी सोच में डूबे नज़र आने लगे। इतना तो वो भी समझते थे कि कुसुम का रिश्ता साहूकारों के यहां करना उचित नहीं है किंतु वो ये भी चाहते थे कि सब कुछ बेहतर हो जाए। एकाएक ही उनके चेहरे पर गहन चिंता के भाव उभरते नज़र आने लगे।

✮✮✮✮

सरोज ने जब दरवाज़ा खोला तो बाहर भुवन पर उसकी नज़र पड़ी और साथ ही उसके पीछे खड़े वैद्य जी पर। भुवन तो ख़ैर रोज़ ही आता था उसके घर लेकिन इस वक्त उसके साथ वैद्य को देख कर उसे बड़ी हैरानी हुई।

"भुवन बेटा तुम्हारे साथ वैद्य जी क्यों आए हैं? सब ठीक तो है न?" फिर उसने उत्सुकतावश पूछा।

"फ़िक्र मत करो काकी।" भुवन ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"अंदर चलो सब बताता हूं तुम्हें।"

सरोज एक तरफ हुई तो भुवन दरवाज़े के अंदर आ गया और उसके पीछे वैद्य जी भी अपना थैला लटकाए आ गए। सरोज दरवाज़े को यूं ही आपस में भिड़ा कर उनके पीछे आंगन में आ गई। इस बीच भुवन ने खुद ही बरामदे से चारपाई निकाल कर आंगन में बिछा दिया था। बारिश होने की वजह से आंगन में कीचड़ हो गया था।

भुवन ने वैद्य जी को चारपाई पर बैठाया और सरोज से उनके लिए पानी लाने को कहा। सरोज अपने मन में तरह तरह की बातें सोचते हुए जल्दी ही लोटा ग्लास में पानी ले आई और वैद्य जी को पकड़ा दिया। आंगन में लोगों की आवाज़ें सुन कर अनुराधा भी अपने कमरे से निकल कर बाहर बरामदे में आ गई। भुवन के साथ वैद्य जी को देख उसे कुछ समझ न आया।

"काकी बात असल में ये है कि अनुराधा जब मेरे पास गई थी तो वो बारिश में बहुत ज़्यादा भीग गई थी।" भुवन ने एक नज़र अनुराधा पर डालने के बाद सरोज से कहा____"और फिर मेरे मना करने के बाद भी बारिश में भींगते हुए ये घर चली आई। कह रही थी कि तुम गुस्सा करोगी इस पर। उस समय मेरे पास छोटे कुंवर भी थे, जब ये मेरे मना करने पर भी चली आई तो वो बोले कि कहीं ये भींगने की वजह से बीमार न पड़ जाए इस लिए मैं वैद्य जी को ले कर यहां आ जाऊं।"

"हाय राम! ये लड़की भी न।" सारी बातें सुन कर सरोज एकदम से बोल पड़ी____"किसी की भी नहीं सुनती है आज कल। अभी कुछ देर पहले जब ये भीगते हुए यहां आई थी तो मैं भी इसे डांट रही थी कि बारिश में भीगने से बीमार पड़ जाएगी तो कैसे इलाज़ करवाऊंगी? वो तो शुक्र है छोटे कुंवर का जो उन्होंने वैद्य जी को तुम्हारे साथ भेज दिया। जब से अनू के बापू गुज़रे हैं तब से हमारा हर तरह से ख़याल रख रहे हैं वो।"

सरोज एकदम से भावुक हो गई। उधर अनुराधा ये सोचे जा रही थी कि भुवन ने कितनी सफाई से बातों को बदल कर सच को छुपा लिया था। उसे इस बात से काफी शर्मिंदगी हुई किंतु ये सोच कर उसे रोना भी आने लगा कि वैभव ने उसकी सेहत का ख़याल कर के भुवन के साथ वैद्य जी को यहां भेज दिया है। एक बार फिर से उसकी आंखों के सामने वो दृश्य उजागर हो गया जब वैभव छाता लिए उसके पास खड़ा था और उससे बातें कर रहा था। अनुराधा के कानों में एकाएक ही उसकी बातें गूंजने लगीं जिससे उसके दिल में एकदम से दर्द सा होने लगा।

"मेरी बहन बारिश में भींगने से बीमार तो नहीं हुई है ना?" भुवन ने अनुराधा की तरफ देखते हुए कहा____"इधर आओ ज़रा और वैद्य जी को दिखाओ खुद को।"

मजबूरन अनुराधा को बरामदे से निकल कर आंगन में वैद्य जी के पास आना ही पड़ा। वैद्य जी ने पहले उसके माथे को छुआ और फिर उसकी नाड़ी देखने लगे।

"घबराने की कोई बात नहीं है।" कुछ पलों बाद वैद्य जी ने अनुराधा की नाड़ी को छोड़ कर कहा____"बस हल्का सा ताप है इसे जोकि भींगने की वजह से ही है। हम दवा दे देते हैं जल्दी ही आराम मिल जाएगा।"

वैद्य जी ने अपने थैले से दवा निकाल कर उसे एक पुड़िया बना कर सरोज को पकड़ा दिया।

"वैद्य जी बारिश का मौसम शुरू हो गया है तो सर्दी जुखाम और बुखार की दवा थोड़ी ज़्यादा मात्रा में दे दीजिए।" भुवन ने कहा____"आपको भी बार बार यहां आने की तकलीफ़ नहीं उठानी पड़ेगी।"

वैद्य जी ने अपने थैले से एक एक कर के दवा निकाल कर तथा उनकी पुड़िया बना कर सरोज को पकड़ा दिया। ये भी बता दिया कि कौन सी पुड़िया में किस मर्ज़ की दवा है। भुवन ने सरोज से सभी का हाल चाल पूछा और फिर वो वैद्य को ले कर चला गया।

"अब तुझे क्या हुआ?" अनुराधा को अजीब भाव से कहीं खोए हुए देख सरोज ने पूछा____"और तेरे पांव में तो मोच आई थी ना तो तू यहां क्यों खड़ी है? जा जा के आराम कर।"

अनुराधा तो मोच के बारे में भूल ही गई थी। मां के मुख से मोच का सुन कर वो एकदम से घबरा गई। उसने जल्दी से हां में सिर हिलाया और फिर लंगड़ाने का नाटक करते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ चली।

"अच्छा ये तो बता कि आज कल तू किसी की बात क्यों नहीं मानती है?" अनुराधा को जाता देख सरोज ने पीछे से कहा____"भुवन तुझे अपनी छोटी बहन मानता है और तेरे लिए इतनी फ़िक्र करता है फिर भी तूने उसकी बात नहीं मानी और बारिश में भींगते हुए यहां चली आई। वहां उसके पास वैभव भी था, तेरी ये हरकत देख कर क्या सोचा होगा उसने कि कैसी बेसहूर लड़की है तू।"

अनुराधा अपनी मां की बात सुन कर ठिठक गई किंतु उसने कोई जवाब नहीं दिया। असल में वो कोई जवाब देने की हालत में ही नहीं थी। उसे तो अब जी भर के रोना आ रहा था। वैभव की बातें अभी भी उसके कानों में गूंज रहीं थी।

"वैसे काफी समय से वैभव हमारे घर नहीं आया।" सरोज ने जैसे खुद से ही कहा____"पहले तो दो तीन दिन में आ जाता था हमारा हाल चाल पूछने के लिए। माना कि उसके परिवार में बहुत दुखद घटना घट गई थी लेकिन फिर भी वो यहां ज़रूर आता। भुवन ने बताया कि वो उसके पास ही उसके नए बन रहे मकान में था। फिर वो यहां क्यों नहीं आया?"

सरोज की ये बातें अनुराधा के कानों में भी पहुंच रहीं थी। जो सवाल उसकी मां के मुख से निकले थे उनके जवाब भले ही सरोज के पास न थे किंतु अनुराधा के पास तो यकीनन थे। उसे तो पता ही था कि वैभव उसके घर क्यों नहीं आता है। एकाएक ही ये सब सोच कर उसके अंदर हूक सी उठी। इससे पहले कि उसे खुद को सम्हाल पाना मुश्किल हो जाता वो जल्दी से अपने कमरे में दाखिल हो गई। दरवाज़ा बंद कर के वो तेज़ी से चारपाई पर आ कर औंधे मुंह गिर पड़ी और तकिए में मुंह छुपा कर फूट फूट कर रोने लगी।

"तुम्हारी आंखों में आसूं अच्छे नहीं लगते।" अचानक ही उसके कानों में वैभव द्वारा कही गई बातें गूंज उठी____"इन आंसुओं को तो मेरा मुकद्दर बनना चाहिए। यकीन मानो ऐसे मुकद्दर से कोई शिकवा नहीं होगा मुझे।"

"न...नहीं....रुक जाइए। भगवान के लिए रुक जाइए।"
"किस लिए?"
"म...मुझे आपसे ढेर सारी बातें करनी हैं और...और मुझे आपसे कुछ सुनना भी है।"

"मतलब?? मुझसे भला क्या सुनना है तुम्हें?"
"ठ...ठकुराइन।" उसने नज़रें झुका कर भारी झिझक के साथ कहा था____"हां मुझे आपसे यही सुनना है। एक बार बोल दीजिए न।"

"क्यों?"
"ब...बस सुनना है मुझे।"

"पर मैं ऐसा कुछ भी नहीं बोल सकता।" उसके कानों में वैभव की आवाज़ गूंज उठी____"अब दिल में चाहत जैसी चीज़ को फिर से नहीं पालना चाहता। तुम्हारी यादें बहुत हैं मेरे लिए।"

अनुराधा बुरी तरह तड़प कर पलटी और सीधा लेट गई। उसका चेहरा आंसुओं से तर था। उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। सीधा लेट जाने की वजह से उसके आंसू उसकी आंखों के किनारे से बह कर जल्दी ही उसके कानों तक पहुंच गए।

"ऐसा क्यों कर रहे हैं आप मेरे साथ?" फिर वो दुखी भाव से रोते हुए धीमी आवाज़ में बोल पड़ी____"मेरी ग़लती की और कितनी सज़ा देंगे मुझे? क्यों मुझे आपकी इतनी याद आती है? क्यों आपकी बातें मेरे कानों में गूंज उठती हैं और फिर मुझे बहुत ज़्यादा दुख होता है? भगवान के लिए एक बार माफ़ कर दीजिए मुझे। पहले की तरह फिर से मुझे ठकुराईन कहिए न।"

अनुराधा इतना सब कहने के बाद फिर से पलट गई और तकिए में चेहरा छुपा कर सिसकने लगी। उसे ये तो एहसास हो चुका था कि उसकी उस दिन की बातों का वैभव को बुरा लग गया था किंतु उसे इस बात का ज्ञान नहीं हो रहा था कि उसको वैभव की इतनी याद क्यों आ रही थी और इतना ही नहीं वो उसको देखने के लिए क्यों इतना तड़पती थी? आखिर इसका क्या मतलब था? भोली भाली, मासूम और नादान अनुराधा को पता ही नहीं था कि इसी को प्रेम कहते हैं।

✮✮✮✮

शाम का धुंधलका छा गया था। चंद्रकांत की बहू रजनी दिशा मैदान करने के लिए अकेली ही घर से निकल कर खेतों की तरफ जा रही थी। उसकी सास की तबीयत ख़राब थी इस लिए उसे अकेले ही जाना पड़ गया था। उसकी ननद कोमल रात के लिए खाना बनाने की तैयारी कर रही थी। रघुवीर कहीं गया हुआ था इस लिए उसे अकेले घर से निकलने में समस्या नहीं हुई थी। हालाकि उसका ससुर चंद्रकांत बाहर बैठक में ज़रूर बैठा था मगर उसने उसे अकेले जाने से रोका नहीं था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि अब उसे ये यकीन हो गया था कि उसकी बहू कोई ग़लत काम नहीं करेगी।

रजनी हल्के अंधेरे में धीरे धीरे क़दम बढ़ाते हुए जा रही थी। बारिश की वजह से हर जगह कीचड़ और पानी भर गया था इस लिए उसे बड़े ही एहतियात से चलना पड़ रहा था। जब उसने देखा कि इस तरफ कोई नहीं आएगा और ये ठीक जगह है तो उसने ज़मीन पर लोटा रखने के बाद अपनी साड़ी को ऊपर कमर तक उठा लिया और फिर हगने के लिए बैठ गई।

कुछ समय बाद जब वो वापस आने लगी तो सहसा रास्ते में उसे एक जगह अंधेरे में एक साया नज़र आया। साए को देख उसके अंदर भय व्याप्त हो गया और उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं। अब क्योंकि रास्ता सिर्फ वही था इस लिए उसे उसी रास्ते से जाना था। इस लिए वो ये सोच कर डरते डरते आगे बढ़ी कि शायद कोई आदमी होगा जो उसकी ही तरह दिशा मैदान के लिए आया होगा। जल्दी ही वो उस साए के पास पहुंच गई और तब उसे उस साए की आकृति स्पष्ट रूप से नज़र आई। उसे पहचानते ही रजनी पहले तो चौंकी फिर एकदम से उसके अंदर थोड़ी घबराहट पैदा हो गई।

"बड़ी देर लगा दी तूने आने में।" साए के रूप में नज़र आने वाला व्यक्ति जोकि रूपचंद्र था वो उसे देख बोल पड़ा____"मैं काफी देर से तेरे लौटने का इंतज़ार कर रहा था।"

"क...क्यों इंतज़ार कर रहे थे भला?" रजनी ने खुद की घबराहट पर काबू पाते हुए कहा____"देखो अगर तुम किसी ग़लत इरादे से मेरा इंतज़ार कर रहे थे तो समझ लो अब ऐसा कुछ नहीं हो सकता।"

"क्यों भला?" रूपचंद्र धीमें से बोला____"देख ज़्यादा नाटक मत कर। तेरे साथ मज़ा किए हुए काफी समय हो गया है। इस लिए आज मुझे मना मत करना वरना तेरे लिए ठीक नहीं होगा।"

"रस्सी जल गई मगर बल नहीं गया।" रजनी ने थोड़ा सख़्त भाव अख़्तियार करते हुए कहा____"तुम लोगों का दादा ठाकुर ने समूल नाश कर दिया फिर भी इतना अकड़ रहे हो? और हां, अगर इतनी ही तुम्हारे अंदर आग लगी हुई है ना तो जा कर अपनी बहन के साथ बुझा लो।"

"मादरचोद तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसा बोलने की?" रूपचंद्र बुरी तरह तिलमिला कर गुस्से से बोल पड़ा____"रुक अभी बताता हूं तुझे।"

"ख़बरदार।" रजनी ने एकदम से गुर्राते हुए कहा____"अगर तुमने मुझे हाथ भी लगाया तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा। अभी तक तो मैंने किसी को तुम्हारे बारे में बताया नहीं था लेकिन अगर तुमने मुझे हाथ लगाया तो चीख चीख कर सारे गांव को बताऊंगी कि तुमने ज़बरदस्ती मेरी इज्ज़त लूटने की कोशिश की है। मुझे अपनी इज्ज़त की कोई परवाह नहीं है लेकिन तुम अपने बारे में सोचो। पंचायत के फ़ैसले के बाद जब लोग तुम्हारे इस कांड के बारे में जानेंगे तो क्या होगा तुम्हारे साथ?"

रजनी की बातें सुन कर रूपचंद्र का गुस्सा पलक झपकते ही ठंडा पड़ गया। उसे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि रजनी उसे इस तरह की धमकी दे सकती है। आंखें फाड़े वो देखता रह गया था उसे।

"जिसने तुम्हारी बहन के साथ मज़ा किया उसका तो तुम कुछ भी नहीं बिगाड़ पाए।" रजनी ने जैसे उसके ज़ख़्मों को कुरेदा____"और बेशर्मों की तरह यहां मुझे अपनी मर्दानगी दिखाने आए हो? मैंने पहले भी कहा था कि तुम उसके सामने कुछ भी नहीं हो और अब भी कहती हूं कि तुम आगे भी कभी उसके सामने कुछ नहीं रहोगे। असली मर्द तो वही है। एक बात कहूं, भले ही इतना सब कुछ हो गया है मगर सीना ठोक के कहती हूं कि अगर वो तुम्हारी जगह होता तो इसी वक्त उसके सामने अपनी टांगें फैला कर लेट जाती।"

"साली रण्डी।" रूपचंद्र गुस्से से तिलमिलाते हुए बोला और फिर पैर पटकते हुए वहां से जा कर जल्दी ही अंधेरे में गुम हो गया।

उसे यूं चला गया देख रजनी के होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई। उसने आंखें बंद कर के वैभव की मोहिनी सूरत का दीदार किया और फिर ठंडी आहें भरते हुए अपने घर की तरफ बढ़ चली।



━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
 

Sanjuhsr

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Awesome update ,
Thakurain ne sahi trike se dada thakur ko samjhaya aur bhavishya bhi dikha diya agar kusum ka rishta sahukaron ke ghar krte hai to, bato hi bato me vaibhav ki taraf bhi ishara kar diya usko kaise sambhalenge jabki wo to rupchamdr ko achhe se janta hai, dada thakur apne papon ke prayashchit ke liye kusum ki bali kaise chada skate hai,
Udhar anuradha vaibhav ke liye tadap rahi hai
Idhar Rajni ne rupchandr ko Sahi aina dikhaya
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
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अध्याय - 81
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मेरी बात सुन कर भाभी ने खुद को सम्हाला और अपने आंसू पोंछ कर बिना कुछ कहे ही कमरे से बाहर निकल गईं। इधर मुझे अपने आप पर बेहद गुस्सा आ रहा था कि मैंने उनसे ऐसी बात ही क्यों कही जिसके चलते उन्हें रोना आ गया? ख़ैर अब क्या हो सकता था। मैं वापस पलंग पर जा कर लेट गया और मन ही मन सोचने लगा कि अब से मैं सिर्फ वही काम करूंगा जिससे भाभी को न तो तकलीफ़ हो और ना ही उनकी आंखों से आंसू निकलें।


अब आगे....


"ये क्या कह रहे हैं आप?" पिता जी की बातें सुनते ही मां ने चकित हो कर उनकी तरफ देखा____"मणि शंकर भाई साहब की पत्नी ऐसा बोल सकती हैं? हमें यकीन नहीं हो रहा लेकिन आप कह रहे हैं तो सच ही होगा। वैसे आपको उनके घर जाना ही नहीं चाहिए था।"

"ऐसा क्यों कह रही हैं आप?" पिता जी ने कहा____"क्या आप नहीं चाहतीं कि सब कुछ भुला कर हम उनसे अपने रिश्ते बेहतर बना लें?"

"हम ये मानते हैं कि जीवन में कभी भी किसी से बैर भाव नहीं रखना चाहिए।" मां ने गंभीरता से कहा____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि ऐसे व्यक्ति से रिश्ता बनाना भी बेकार है जो किसी शर्त के आधार पर रिश्ता बनाने की बात करे। हमारे साथ तो अपराध करना उन्होंने ही शुरू किया था जिसका बदला अगर हमने इस तरह से ले लिया तो कौन सा गुनाह कर दिया हमने? फिर भी मान लेते हैं कि आपने उनके साथ अपराध किया है तो इसका मतलब ये नहीं कि वो आपको नीचा दिखाने के लिए आपसे कुछ भी कहने लगें।"

"क्या आपको सच में ऐसा लगता है कि वो हमसे ऐसा कह कर हमें नीचा दिखाने की कोशिश कर रहीं थी?" पिता जी ने कहा।

"और नहीं तो क्या।" मां ने दृढ़ता से कहा____"उनके ऐसा कहने का यही मतलब है। वो आपकी नर्मी को आपकी दुर्बलता समझ रही हैं और इसी लिए उन्होंने आपसे बेहतर रिश्ते बनाने के लिए ऐसी शर्त रखी। हमें तो हैरानी हो रही है कि उनकी हिम्मत कैसे हुई हमारी फूल जैसी बेटी के साथ अपने बेटे के रिश्ते की बात कहने की?"

"वैसे अगर ये रिश्ता हो भी जाता है तो इसमें कोई बुराई तो नहीं है।" पिता जी ने मां की तरफ देखते हुए कहा____"हमें लगता है कि इस तरह से दोनों परिवारों के बीच काफी गहरा और मजबूत रिश्ता बन जाएगा।"

"इसका मतलब आप भी चाहते हैं कि हमारी फूल जैसी बेटी का ब्याह उनके बेटे से हो जाए?" मां ने आश्चर्य से पिता जी को देखा____"हमें बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि आप ऐसा चाहते हैं।"

"क्या आप नहीं चाहतीं?" पिता जी ने पूछा।

"नहीं, बिल्कुल भी नहीं।" मां ने पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"हम अपनी बेटी का ब्याह उस घर में कदापि नहीं करेंगी जिस घर के लोगों की मानसिकता इतनी गिरी हुई हो। आप एक बात अच्छी तरह समझ लीजिए कि हमारे संबंध उनसे बेहतर हों या ना हों लेकिन हमारी बेटी का ब्याह उस घर में किसी भी कीमत पर नहीं होगा।"

मां का एकदम से ही तमतमा गया चेहरा देख पिता जी ख़ामोश रह गए। उन्हें बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि उनकी धर्म पत्नी ऐसे रिश्ते की बात सुन कर इस तरह से गुस्सा हो जाएंगी।

"एक बार आप इस बारे में मेनका से भी पूछ लीजिएगा।" पिता जी ने धड़कते हुए दिल से मां से कहा____"हो सकता है कि उसे इस रिश्ते से कोई आपत्ति न हो।"

"आपको क्या हो गया है आज?" मां ने हैरानी से पिता जी को देखा____"आप क्यों उनसे हमारी बेटी का रिश्ता करवाना चाहते हैं? क्या आपको अपनी बेटी से प्यार नहीं है? क्या आपको उसके सुखों का ख़याल नहीं है?"

"बिल्कुल है सुगंधा।" पिता जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"आप ऐसा कैसे कह सकती हैं कि हमे हमारी बेटी से प्यार नहीं है अथवा हमें उसके सुखों का ख़याल नहीं है? वो इस हवेली की इकलौती बेटी है। हम सबकी जान बसती है उसमें। फिर भला हम कैसे उसके लिए कोई ग़लत फ़ैसला कर सकते हैं अथवा उसके भविष्य को बिगाड़ सकते हैं?"

"साहूकारों के घर में अपनी बेटी का ब्याह करना मतलब उसके भविष्य को बिगाड़ देना ही है ठाकुर साहब।" मां ने कहा____"क्या आपको इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी एहसास नहीं हुआ है कि वो किस तरह की सोच और मानसिकता वाले लोग हैं? इतना कुछ हो जाने के बाद भी उन्हें अपनी ग़लतियों का एहसास नहीं है, बल्कि वो तो यही समझते हैं कि सिर्फ हमने ही उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है। ख़ैर अगर वो सच में दोनों परिवारों के बीच बेहतर संबंध बना लेने का सोचते तो इसके लिए वो ऐसी शर्त नहीं रखते और ना ही आपको नीचा दिखाने की कोशिश करते।"

"हां हम समझते हैं सुगंधा।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"किंतु किसी को तो झुकना ही पड़ेगा ना। वो भले ही खुद को दोषी अथवा अपराधी न समझते हों किंतु हम तो समझते हैं न कि हम उनके अपराधी हैं इस लिए उनके सामने हमें ही झुकना होगा।"

"बेशक आप झुकिए ठाकुर साहब।" मां ने स्पष्ट रूप से कहा____"लेकिन अपने साथ किसी और को इस तरह से मत झुकाइए। अगर आप समझते हैं कि आप उनके अपराधी हैं और उनके साथ किए गए अपराध के लिए आप प्रायश्चित के रूप में उनके लिए कुछ करना चाहते हैं तो सिर्फ वो कीजिए जिसमें सिर्फ आपका ही हक़ हो। कुसुम आपके छोटे भाई की बेटी है। भले ही हम उसे उसके मां बाप से भी ज़्यादा प्यार करते हैं मगर उसके लिए कोई फ़ैसला करने का हक़ हमें नहीं है। एक और बात, अपने बेटे को भी मत भूलिए। अगर उसे पता चला कि आपने उसकी लाडली बहन का ब्याह साहूकारों के यहां करने का मन बनाया है तो जाने वो क्या कर डालेगा?"

पिता जी कुछ न बोले। बस गहरी सोच में डूबे नज़र आने लगे। इतना तो वो भी समझते थे कि कुसुम का रिश्ता साहूकारों के यहां करना उचित नहीं है किंतु वो ये भी चाहते थे कि सब कुछ बेहतर हो जाए। एकाएक ही उनके चेहरे पर गहन चिंता के भाव उभरते नज़र आने लगे।

✮✮✮✮

सरोज ने जब दरवाज़ा खोला तो बाहर भुवन पर उसकी नज़र पड़ी और साथ ही उसके पीछे खड़े वैद्य जी पर। भुवन तो ख़ैर रोज़ ही आता था उसके घर लेकिन इस वक्त उसके साथ वैद्य को देख कर उसे बड़ी हैरानी हुई।

"भुवन बेटा तुम्हारे साथ वैद्य जी क्यों आए हैं? सब ठीक तो है न?" फिर उसने उत्सुकतावश पूछा।

"फ़िक्र मत करो काकी।" भुवन ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"अंदर चलो सब बताता हूं तुम्हें।"

सरोज एक तरफ हुई तो भुवन दरवाज़े के अंदर आ गया और उसके पीछे वैद्य जी भी अपना थैला लटकाए आ गए। सरोज दरवाज़े को यूं ही आपस में भिड़ा कर उनके पीछे आंगन में आ गई। इस बीच भुवन ने खुद ही बरामदे से चारपाई निकाल कर आंगन में बिछा दिया था। बारिश होने की वजह से आंगन में कीचड़ हो गया था।

भुवन ने वैद्य जी को चारपाई पर बैठाया और सरोज से उनके लिए पानी लाने को कहा। सरोज अपने मन में तरह तरह की बातें सोचते हुए जल्दी ही लोटा ग्लास में पानी ले आई और वैद्य जी को पकड़ा दिया। आंगन में लोगों की आवाज़ें सुन कर अनुराधा भी अपने कमरे से निकल कर बाहर बरामदे में आ गई। भुवन के साथ वैद्य जी को देख उसे कुछ समझ न आया।

"काकी बात असल में ये है कि अनुराधा जब मेरे पास गई थी तो वो बारिश में बहुत ज़्यादा भीग गई थी।" भुवन ने एक नज़र अनुराधा पर डालने के बाद सरोज से कहा____"और फिर मेरे मना करने के बाद भी बारिश में भींगते हुए ये घर चली आई। कह रही थी कि तुम गुस्सा करोगी इस पर। उस समय मेरे पास छोटे कुंवर भी थे, जब ये मेरे मना करने पर भी चली आई तो वो बोले कि कहीं ये भींगने की वजह से बीमार न पड़ जाए इस लिए मैं वैद्य जी को ले कर यहां आ जाऊं।"

"हाय राम! ये लड़की भी न।" सारी बातें सुन कर सरोज एकदम से बोल पड़ी____"किसी की भी नहीं सुनती है आज कल। अभी कुछ देर पहले जब ये भीगते हुए यहां आई थी तो मैं भी इसे डांट रही थी कि बारिश में भीगने से बीमार पड़ जाएगी तो कैसे इलाज़ करवाऊंगी? वो तो शुक्र है छोटे कुंवर का जो उन्होंने वैद्य जी को तुम्हारे साथ भेज दिया। जब से अनू के बापू गुज़रे हैं तब से हमारा हर तरह से ख़याल रख रहे हैं वो।"

सरोज एकदम से भावुक हो गई। उधर अनुराधा ये सोचे जा रही थी कि भुवन ने कितनी सफाई से बातों को बदल कर सच को छुपा लिया था। उसे इस बात से काफी शर्मिंदगी हुई किंतु ये सोच कर उसे रोना भी आने लगा कि वैभव ने उसकी सेहत का ख़याल कर के भुवन के साथ वैद्य जी को यहां भेज दिया है। एक बार फिर से उसकी आंखों के सामने वो दृश्य उजागर हो गया जब वैभव छाता लिए उसके पास खड़ा था और उससे बातें कर रहा था। अनुराधा के कानों में एकाएक ही उसकी बातें गूंजने लगीं जिससे उसके दिल में एकदम से दर्द सा होने लगा।

"मेरी बहन बारिश में भींगने से बीमार तो नहीं हुई है ना?" भुवन ने अनुराधा की तरफ देखते हुए कहा____"इधर आओ ज़रा और वैद्य जी को दिखाओ खुद को।"

मजबूरन अनुराधा को बरामदे से निकल कर आंगन में वैद्य जी के पास आना ही पड़ा। वैद्य जी ने पहले उसके माथे को छुआ और फिर उसकी नाड़ी देखने लगे।

"घबराने की कोई बात नहीं है।" कुछ पलों बाद वैद्य जी ने अनुराधा की नाड़ी को छोड़ कर कहा____"बस हल्का सा ताप है इसे जोकि भींगने की वजह से ही है। हम दवा दे देते हैं जल्दी ही आराम मिल जाएगा।"

वैद्य जी ने अपने थैले से दवा निकाल कर उसे एक पुड़िया बना कर सरोज को पकड़ा दिया।

"वैद्य जी बारिश का मौसम शुरू हो गया है तो सर्दी जुखाम और बुखार की दवा थोड़ी ज़्यादा मात्रा में दे दीजिए।" भुवन ने कहा____"आपको भी बार बार यहां आने की तकलीफ़ नहीं उठानी पड़ेगी।"

वैद्य जी ने अपने थैले से एक एक कर के दवा निकाल कर तथा उनकी पुड़िया बना कर सरोज को पकड़ा दिया। ये भी बता दिया कि कौन सी पुड़िया में किस मर्ज़ की दवा है। भुवन ने सरोज से सभी का हाल चाल पूछा और फिर वो वैद्य को ले कर चला गया।

"अब तुझे क्या हुआ?" अनुराधा को अजीब भाव से कहीं खोए हुए देख सरोज ने पूछा____"और तेरे पांव में तो मोच आई थी ना तो तू यहां क्यों खड़ी है? जा जा के आराम कर।"

अनुराधा तो मोच के बारे में भूल ही गई थी। मां के मुख से मोच का सुन कर वो एकदम से घबरा गई। उसने जल्दी से हां में सिर हिलाया और फिर लंगड़ाने का नाटक करते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ चली।

"अच्छा ये तो बता कि आज कल तू किसी की बात क्यों नहीं मानती है?" अनुराधा को जाता देख सरोज ने पीछे से कहा____"भुवन तुझे अपनी छोटी बहन मानता है और तेरे लिए इतनी फ़िक्र करता है फिर भी तूने उसकी बात नहीं मानी और बारिश में भींगते हुए यहां चली आई। वहां उसके पास वैभव भी था, तेरी ये हरकत देख कर क्या सोचा होगा उसने कि कैसी बेसहूर लड़की है तू।"

अनुराधा अपनी मां की बात सुन कर ठिठक गई किंतु उसने कोई जवाब नहीं दिया। असल में वो कोई जवाब देने की हालत में ही नहीं थी। उसे तो अब जी भर के रोना आ रहा था। वैभव की बातें अभी भी उसके कानों में गूंज रहीं थी।

"वैसे काफी समय से वैभव हमारे घर नहीं आया।" सरोज ने जैसे खुद से ही कहा____"पहले तो दो तीन दिन में आ जाता था हमारा हाल चाल पूछने के लिए। माना कि उसके परिवार में बहुत दुखद घटना घट गई थी लेकिन फिर भी वो यहां ज़रूर आता। भुवन ने बताया कि वो उसके पास ही उसके नए बन रहे मकान में था। फिर वो यहां क्यों नहीं आया?"

सरोज की ये बातें अनुराधा के कानों में भी पहुंच रहीं थी। जो सवाल उसकी मां के मुख से निकले थे उनके जवाब भले ही सरोज के पास न थे किंतु अनुराधा के पास तो यकीनन थे। उसे तो पता ही था कि वैभव उसके घर क्यों नहीं आता है। एकाएक ही ये सब सोच कर उसके अंदर हूक सी उठी। इससे पहले कि उसे खुद को सम्हाल पाना मुश्किल हो जाता वो जल्दी से अपने कमरे में दाखिल हो गई। दरवाज़ा बंद कर के वो तेज़ी से चारपाई पर आ कर औंधे मुंह गिर पड़ी और तकिए में मुंह छुपा कर फूट फूट कर रोने लगी।

"तुम्हारी आंखों में आसूं अच्छे नहीं लगते।" अचानक ही उसके कानों में वैभव द्वारा कही गई बातें गूंज उठी____"इन आंसुओं को तो मेरा मुकद्दर बनना चाहिए। यकीन मानो ऐसे मुकद्दर से कोई शिकवा नहीं होगा मुझे।"

"न...नहीं....रुक जाइए। भगवान के लिए रुक जाइए।"
"किस लिए?"
"म...मुझे आपसे ढेर सारी बातें करनी हैं और...और मुझे आपसे कुछ सुनना भी है।"

"मतलब?? मुझसे भला क्या सुनना है तुम्हें?"
"ठ...ठकुराइन।" उसने नज़रें झुका कर भारी झिझक के साथ कहा था____"हां मुझे आपसे यही सुनना है। एक बार बोल दीजिए न।"

"क्यों?"
"ब...बस सुनना है मुझे।"

"पर मैं ऐसा कुछ भी नहीं बोल सकता।" उसके कानों में वैभव की आवाज़ गूंज उठी____"अब दिल में चाहत जैसी चीज़ को फिर से नहीं पालना चाहता। तुम्हारी यादें बहुत हैं मेरे लिए।"

अनुराधा बुरी तरह तड़प कर पलटी और सीधा लेट गई। उसका चेहरा आंसुओं से तर था। उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। सीधा लेट जाने की वजह से उसके आंसू उसकी आंखों के किनारे से बह कर जल्दी ही उसके कानों तक पहुंच गए।

"ऐसा क्यों कर रहे हैं आप मेरे साथ?" फिर वो दुखी भाव से रोते हुए धीमी आवाज़ में बोल पड़ी____"मेरी ग़लती की और कितनी सज़ा देंगे मुझे? क्यों मुझे आपकी इतनी याद आती है? क्यों आपकी बातें मेरे कानों में गूंज उठती हैं और फिर मुझे बहुत ज़्यादा दुख होता है? भगवान के लिए एक बार माफ़ कर दीजिए मुझे। पहले की तरह फिर से मुझे ठकुराईन कहिए न।"

अनुराधा इतना सब कहने के बाद फिर से पलट गई और तकिए में चेहरा छुपा कर सिसकने लगी। उसे ये तो एहसास हो चुका था कि उसकी उस दिन की बातों का वैभव को बुरा लग गया था किंतु उसे इस बात का ज्ञान नहीं हो रहा था कि उसको वैभव की इतनी याद क्यों आ रही थी और इतना ही नहीं वो उसको देखने के लिए क्यों इतना तड़पती थी? आखिर इसका क्या मतलब था? भोली भाली, मासूम और नादान अनुराधा को पता ही नहीं था कि इसी को प्रेम कहते हैं।

✮✮✮✮

शाम का धुंधलका छा गया था। चंद्रकांत की बहू रजनी दिशा मैदान करने के लिए अकेली ही घर से निकल कर खेतों की तरफ जा रही थी। उसकी सास की तबीयत ख़राब थी इस लिए उसे अकेले ही जाना पड़ गया था। उसकी ननद कोमल रात के लिए खाना बनाने की तैयारी कर रही थी। रघुवीर कहीं गया हुआ था इस लिए उसे अकेले घर से निकलने में समस्या नहीं हुई थी। हालाकि उसका ससुर चंद्रकांत बाहर बैठक में ज़रूर बैठा था मगर उसने उसे अकेले जाने से रोका नहीं था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि अब उसे ये यकीन हो गया था कि उसकी बहू कोई ग़लत काम नहीं करेगी।

रजनी हल्के अंधेरे में धीरे धीरे क़दम बढ़ाते हुए जा रही थी। बारिश की वजह से हर जगह कीचड़ और पानी भर गया था इस लिए उसे बड़े ही एहतियात से चलना पड़ रहा था। जब उसने देखा कि इस तरफ कोई नहीं आएगा और ये ठीक जगह है तो उसने ज़मीन पर लोटा रखने के बाद अपनी साड़ी को ऊपर कमर तक उठा लिया और फिर हगने के लिए बैठ गई।

कुछ समय बाद जब वो वापस आने लगी तो सहसा रास्ते में उसे एक जगह अंधेरे में एक साया नज़र आया। साए को देख उसके अंदर भय व्याप्त हो गया और उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं। अब क्योंकि रास्ता सिर्फ वही था इस लिए उसे उसी रास्ते से जाना था। इस लिए वो ये सोच कर डरते डरते आगे बढ़ी कि शायद कोई आदमी होगा जो उसकी ही तरह दिशा मैदान के लिए आया होगा। जल्दी ही वो उस साए के पास पहुंच गई और तब उसे उस साए की आकृति स्पष्ट रूप से नज़र आई। उसे पहचानते ही रजनी पहले तो चौंकी फिर एकदम से उसके अंदर थोड़ी घबराहट पैदा हो गई।

"बड़ी देर लगा दी तूने आने में।" साए के रूप में नज़र आने वाला व्यक्ति जोकि रूपचंद्र था वो उसे देख बोल पड़ा____"मैं काफी देर से तेरे लौटने का इंतज़ार कर रहा था।"

"क...क्यों इंतज़ार कर रहे थे भला?" रजनी ने खुद की घबराहट पर काबू पाते हुए कहा____"देखो अगर तुम किसी ग़लत इरादे से मेरा इंतज़ार कर रहे थे तो समझ लो अब ऐसा कुछ नहीं हो सकता।"

"क्यों भला?" रूपचंद्र धीमें से बोला____"देख ज़्यादा नाटक मत कर। तेरे साथ मज़ा किए हुए काफी समय हो गया है। इस लिए आज मुझे मना मत करना वरना तेरे लिए ठीक नहीं होगा।"

"रस्सी जल गई मगर बल नहीं गया।" रजनी ने थोड़ा सख़्त भाव अख़्तियार करते हुए कहा____"तुम लोगों का दादा ठाकुर ने समूल नाश कर दिया फिर भी इतना अकड़ रहे हो? और हां, अगर इतनी ही तुम्हारे अंदर आग लगी हुई है ना तो जा कर अपनी बहन के साथ बुझा लो।"

"मादरचोद तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसा बोलने की?" रूपचंद्र बुरी तरह तिलमिला कर गुस्से से बोल पड़ा____"रुक अभी बताता हूं तुझे।"

"ख़बरदार।" रजनी ने एकदम से गुर्राते हुए कहा____"अगर तुमने मुझे हाथ भी लगाया तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा। अभी तक तो मैंने किसी को तुम्हारे बारे में बताया नहीं था लेकिन अगर तुमने मुझे हाथ लगाया तो चीख चीख कर सारे गांव को बताऊंगी कि तुमने ज़बरदस्ती मेरी इज्ज़त लूटने की कोशिश की है। मुझे अपनी इज्ज़त की कोई परवाह नहीं है लेकिन तुम अपने बारे में सोचो। पंचायत के फ़ैसले के बाद जब लोग तुम्हारे इस कांड के बारे में जानेंगे तो क्या होगा तुम्हारे साथ?"

रजनी की बातें सुन कर रूपचंद्र का गुस्सा पलक झपकते ही ठंडा पड़ गया। उसे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि रजनी उसे इस तरह की धमकी दे सकती है। आंखें फाड़े वो देखता रह गया था उसे।

"जिसने तुम्हारी बहन के साथ मज़ा किया उसका तो तुम कुछ भी नहीं बिगाड़ पाए।" रजनी ने जैसे उसके ज़ख़्मों को कुरेदा____"और बेशर्मों की तरह यहां मुझे अपनी मर्दानगी दिखाने आए हो? मैंने पहले भी कहा था कि तुम उसके सामने कुछ भी नहीं हो और अब भी कहती हूं कि तुम आगे भी कभी उसके सामने कुछ नहीं रहोगे। असली मर्द तो वही है। एक बात कहूं, भले ही इतना सब कुछ हो गया है मगर सीना ठोक के कहती हूं कि अगर वो तुम्हारी जगह होता तो इसी वक्त उसके सामने अपनी टांगें फैला कर लेट जाती।"

"साली रण्डी।" रूपचंद्र गुस्से से तिलमिलाते हुए बोला और फिर पैर पटकते हुए वहां से जा कर जल्दी ही अंधेरे में गुम हो गया।

उसे यूं चला गया देख रजनी के होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई। उसने आंखें बंद कर के वैभव की मोहिनी सूरत का दीदार किया और फिर ठंडी आहें भरते हुए अपने घर की तरफ बढ़ चली।




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हाँ भाई - अब जा कर ठकुराईन ने ठकुराईनों जैसी बात बोली! अच्छा लगा कि किसी महिला पात्र ने इतनी मज़बूती से अपनी बात करी है।
नहीं तो ज्यादातर रोना धोना जैसा ही चल रहा था इन लोगों का।
अनुराधा की प्रेम में पड़ने - लेकिन उसको न समझने - की बेबसी अच्छी दिखाई है। वैभव की प्यार की नैया किस किनारे जा कर लगेगी वो शुभम भाई ही बताएँगे!
लेकिन लग रहा है कि एक घाट का द्वार वापस खुल गया है! बहुत बढ़िया।
 
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