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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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354
अध्याय - 74
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"आप जानती थी न कि मुझे सब पता है?" रूपा ने कहा____"इसी लिए तो आपने मुझे मेरे कमरे में बंद कर दिया था ताकि मैं यहां ना आ सकूं और किसी को सच न बता सकूं? आख़िर क्या सोच कर अब आप सब सच को छुपा रही हैं मां? क्या आप सब ये चाहती हैं कि जो ज़िंदा बचे हुए हैं उनकी भी हत्या हो जाए?"

रूपा की बात सुन कर ललिता देवी कुछ न बोल सकी। बस अपने दांत पीस कर रह गईं। यही हाल उनकी जेठानी और बाकी देवरानियों का भी था। फिर सहसा जैसे उन्हें किसी बात का एहसास हुआ तो एक एक कर के सभी चेहरों के भाव बदलते नज़र आए।



अब आगे....


"मुझमें अब यहां से कहीं जाने की हिम्मत नहीं है रूप बेटा।" पास ही के जंगल में एक पेड़ के नीचे बैठे गौरी शंकर ने असहाय भाव से कहा____"मुझे समझ आ गया है कि हम अपनी मौत से दूर नहीं भाग सकते। मेरे भाई मेरे बच्चे सब मर चुके हैं और अब मैं भी जीना नहीं चाहता।"

"बदला लिए बिना हम मर नहीं सकते काका।" रूपचंद्र ने गुस्से से कहा____"हिसाब तो बराबर का करना ही पड़ेगा। उन्होंने हमारे इतने सारे अपनों की जान ली है तो उनमें से भी किसी को ज़िंदा रहने का हक़ नहीं है।"

"नहीं रूप बेटा।" गौरी शंकर जाने किस चीज़ की कल्पना से कांप उठा था, बोला____"अब ऐसा सोचना भी मत। हमने अपने सभी लोगों को खो दिया है। खानदान का वंश बढ़ाने के लिए अब सिर्फ तुम ही बचे हो मेरे बच्चे। इस लिए अब अपने ज़हन में बदले का कोई भी ख़याल मत लाओ।"

"ये आप कैसी बातें कर रहे हैं काका?" रूपचंद्र ने चीखते हुए कहा____"नहीं, हर्गिज़ नहीं। मैं उनमें से किसी को भी ज़िंदा नहीं छोडूंगा। जैसे हमारा खानदान पूरी तरह से मिटा दिया है दादा ठाकुर ने उसी तरह मैं उसके भी खानदान का नामो निशान मिटा दूंगा। हवेली के ज़र्रे ज़र्रे में करुण क्रंदन गूंजेगा।"

"नहीं बेटा ऐसा मत कह।" गौरी शंकर बेबस भाव से कह उठा____"तुझे मरे हुए हमारे अपनों की क़सम है। तू ऐसा कुछ भी करने का नहीं सोचेगा। हमारी स्थिति अब बेहद कमज़ोर हो गई है बेटा। तू अकेला उनका कुछ नहीं कर सकेगा, उल्टा होगा ये कि तू भी बाकी सबकी तरह अपनी जान से हाथ धो बैठेगा। अगर ऐसा हुआ तो खानदान का वंश ही नष्ट हो जाएगा। मेरी जांघ में गोली लगी है जिसके चलते अब मैं अपाहिज सा हो गया हूं। एक तू ही है जिसे अब अपने पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी उठानी पड़ेगी। तेरी मां, तेरी चाचियां, तेरी भाभी और तेरी बहनें उन सबका ख़याल रखना होगा तुझे। सोच अगर तुझे कुछ हो गया तो उन सबका क्या होगा? हमारी बेसहारा बहू बेटियों का जीवन नर्क सा हो जाएगा बेटा। इस लिए कहता हूं कि अब अपने अंदर किसी से भी बदला लेने का ख़याल मत ला।"

रूपचंद्र को पहली बार एहसास हुआ कि उसकी और उसके परिवार की स्थिति वास्तव में कितनी गंभीर और दयनीय हो गई है। ये एहसास होते ही उसके चेहरे पर मौजूद आक्रोश और गुस्सा किसी झाग की तरह बैठता नज़र आया।

"हमें बिल्कुल भी ये अंदाज़ा नहीं था कि अचानक से ऐसा भी कुछ हो जाएगा।" गौरी शंकर ने बेहद गंभीरता से कहा____"जो सोचा था वैसा बिल्कुल भी नहीं हुआ। शायद ऊपर वाला हमेशा से ही हमारे खिलाफ़ रहा है या फिर हकीक़त यही है कि हमने बेवजह ही इतने वर्षों से अपने अंदर उनके प्रति दुश्मनी को पाले रखा था।"

"ये आप क्या कह रहे हैं काका?" रूपचंद्र ने हैरत से गौरी शंकर को देखा।

"तुझे तो बताया ही था हमने कि वर्षों पहले बड़े दादा ठाकुर की वजह से ये सब शुरू हुआ था।" गौरी शंकर ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"उसी की वजह से हमने हमारी बहन गायत्री को खोया था। उसने हमारी बहन को अपनी हवस का शिकार बनाया और फिर उसे अपने ही एक किसान के साथ जाने कहां भेज दिया। अपने कुकर्म को छुपाने के लिए उसने हर तरफ ये ख़बर फैला दी थी कि साहूकारों की बहन एक किसान के साथ भाग गई। उस समय बड़े दादा ठाकुर की तूती बोलती थी। वो खुद तो ताकतवर और जल्लाद था ही किंतु उसके ताल्लुक बड़ी बड़ी हस्तियों से भी थे। ये उसके ख़ौफ का ही असर था कि बाद में सब कुछ जान लेने के बाद भी हम उसका कुछ नहीं बिगाड़ सके थे। हालाकि एक बार पिता जी अपनी इस ब्यथा को ले कर उसके पास गए भी थे लेकिन उसने स्पष्ट रूप से उन्हें धमकी दे कर कहा था कि अगर उन्होंने इस बारे में ज़्यादा हो हल्ला करने की हिमाकत की तो इसका अंजाम उनकी सोच से भी कहीं ज़्यादा उन्हें भुगतना पड़ जाएगा। बस, उसके बाद पिता जी कभी हवेली की दहलीज़ पर नहीं गए। हम लोग भी इतने परिपक्व अथवा ताकतवर नहीं थे जिसके चलते हम अपनी बहन के साथ हुए इस जघन्य अत्याचार का बदला ले लेते। वो तो अच्छा हुआ कि उस कुकर्मी को ऊपर वाले ने ही सज़ा दे दी। ऊपर वाले ने उसे ऐसा बीमार किया कि बड़ा से बड़ा वैद्य भी उसका इलाज़ न कर सका। उसके बाद उनकी गद्दी पर उनका बड़ा बेटा प्रताप सिंह बैठा। आश्चर्य की बात थी कि इतने बड़े कुकर्मी और जल्लाद का बेटा प्रताप सिंह अपने पिता की सोच और विचारों से बिल्कुल उलट था। हालाकि उसका भाई जगताप थोड़ा गुस्सैल स्वभाव का ज़रूर था किंतु ये सच है कि उसमें भी अपने पिता जैसे गुण नहीं थे। दोनों ही भाई अपनी मां पर गए थे।"

"जब प्रताप सिंह दादा ठाकुर की गद्दी पर बैठा तो हमें फिर से इस बात का ख़ौफ होने लगा कि गद्दी में बैठने के बाद कहीं प्रताप सिंह की भी मानसिकता न बदल जाए।" कुछ पल रुकने के बाद गौरी शंकर ने कहा____"सत्ता और ताक़त का नशा ही ऐसा होता है बेटे कि अच्छे अच्छे शरीफ़ और संस्कारी लोग गिरगिट की तरह अपना रंग बदल लेते हैं। हालाकि ऐसा कुछ हुआ नहीं और ये हमारे लिए आश्चर्य की बात तो थी ही किंतु हम ये भी समझते थे कि प्रताप सिंह बहुत ही धीर वीर और गंभीर प्रकृति का इंसान है। उस दिन तो हम सबको और भी ज़्यादा आश्चर्य हुआ जब प्रताप सिंह दादा ठाकुर बनने के कुछ दिन बाद ही हमारे घर खुद ही आया और हमारे पिता जी से अपने पिता के द्वारा किए गए कुकर्म के लिए माफ़ी मांगी। वो मेरे पिता जी के पैरों को पकड़ के माफ़ियां मांग रहा था और यही कह रहा था कि अब से ऐसा कुछ भी नहीं होगा बल्कि दोनों ही परिवारों के बीच गहरा प्रेम भाव रहे ऐसी वो हमेशा कोशिश करेगा। प्रताप सिंह पिता जी से माफ़ी मांग कर और ये सब कह कर भले ही चला गया था लेकिन इसके बावजूद हमारे अंदर से हवेली में रहने वालों के प्रति घृणा न गई। हवेली में रहने वाले लोग हमें कभी पसंद ही नहीं आए और यही वजह थी कि हमने अपने बच्चों के अंदर भी हवेली वालों के लिए ज़हर ही भरा। आज इतना कुछ हो जाने के बाद एहसास हो रहा है कि हमें ऐसा नहीं करना चाहिए था। हमारे गुनहगार तो बड़े दादा ठाकुर थे और उसने जो कुकर्म किए थे उसकी सज़ा ऊपर वाले ने खुद ही दे दी थी उसे। यानि हमारा प्रतिशोध उसके मर जाने पर ही ख़त्म हो जाना चाहिए था। उसके बेटे ने या उसके भाई ने तो कभी हमारे साथ कुछ बुरा नहीं किया था। अगर वो सच में अपने पिता की तरह होता तो दादा ठाकुर की गद्दी पर बैठने के बाद वो खुद हमारे घर आ कर हमारे पिता जी से माफ़ी नहीं मांगता। ख़ैर शायद ये हमारा दुर्भाग्य ही था कि हम कभी अपने अंदर से उनके प्रति गहराती घृणा को नहीं निकाल पाए जिसका नतीजा आज हमें इस रूप में देखने और भोगने को मिला है।"

"माना कि हम अपने अंदर से उनके प्रति घृणा को नहीं निकाल पाए काका।" रूपचंद्र ने कहा____"लेकिन ये घृणा भी तो उन्हीं के द्वारा मिली थी हमें? अगर यही सब उनके साथ हुआ होता तो क्या वो इतने वर्षों तक चुप बैठे रहते? नहीं काका, वो तो पहले ही हमारा क्रिया कर्म कर चुके होते। हमने मान लिया कि हमसे ग़लती हुई लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि उस ग़लती के लिए हमारे पूरे खानदान को ही मिटा दिया जाए? ये कैसा न्याय है काका?"

"वहां पर कोई है शायद।" रूपचंद्र की बात पर गौरी शंकर अभी कुछ बोलने ही वाला था कि तभी एक मर्दाना आवाज़ सुन कर चौंक पड़ा। उसके साथ रूपचंद्र भी चौंक पड़ा था।

"लगता है उन्होंने हमें खोज लिया है काका।" रूपचंद्र ने एकदम से आवेश में आते हुए कहा____"हमें फ़ौरन ही यहां से निकल लेना चाहिए।"

"नहीं बेटा।" गौरी शंकर ने शांत भाव से कहा____"अब हम कहीं नहीं जाएंगे। अगर यहां से हमने भागने की कोशिश की तो संभव है कि वो लोग हम पर गोली चला दें जिससे हम दोनों ही मारे जाएं। बेहतर यही है कि हम खुद को उनके सामने आत्म समर्पण कर दें।"

"आत्म समर्पण करने से भी तो वो हमें मार ही डालेंगे काका।" रूपचंद्र के चेहरे पर एकाएक ख़ौफ के भाव उभरते नज़र आए____"क्या आपको लगता है कि वो हमें जीवित छोड़ देंगे?"

"सब ऊपर वाले पर छोड़ दो बेटा।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ली____"अब जो होगा देखा जाएगा। आत्म समर्पण करने से बहुत हद तक संभव है कि हमारे साथ वैसा सलूक न हो जैसा हमारे अपनों के साथ हुआ है।"

"वो रहे।" तभी दाएं तरफ से एक आदमी की आवाज़ आई____"घेर लो उन दोनों को किंतु सम्हल कर।"

गौरी शंकर ने जब महसूस किया कि आवाज़ एकदम पास से ही आई है तो वो अपनी जगह से किसी तरह उठा और पेड़ के पीछे से निकल कर बोला____"गोली मत चलाना, हम खुद को आत्म समर्पण करने को तैयार हैं।"

अगले कुछ ही देर में गौरी शंकर और रूपचंद्र को गिरफ़्त में ले लिया गया। शेरा के साथ पांच आदमी और थे जिन्होंने दोनों को रस्सियों में जकड़ लिया था। तलाशी में शेरा के हाथ एक पिस्तौल लगी जो रूपचंद्र के पास थी। शेरा के इशारे पर बाकी लोग दोनों चाचा भतीजे को ले कर चल पड़े।

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जैसे ही गौरी शंकर और रूपचंद्र को लिए शेरा हवेली के विशाल मैदान में लगी पंचायत के सामने पहुंचा तो लोग बड़ी तेज़ी से तरह तरह की बातें करने लगे। उधर दोनों चाचा भतीजे को देख साहूकारों के घर की औरतें और बहू बेटियों के चेहरे देखने लायक हो गए। उन सभी के चेहरों पर डर और घबराहट साफ दिखाई देने लगी थी। ज़ाहिर है उन सभी को ये एहसास हो गया था कि उनके घर के अंतिम बचे हुए मर्द भी अब मौत के मुंह में आ गए हैं।

वातावरण में एक सनसनी सी फैल गई। मंच पर बैठे महेंद्र सिंह के कहने पर गौरी शंकर और रूपचंद्र को बेड़ियों से आज़ाद कर दिया गया। दोनों चाचा भतीजे सिर झुकाए खड़े थे। ये अलग बात है कि इसके पहले वो दोनों एक एक कर के वहां उपस्थित सभी का चेहरा देख चुके थे।

"गौरी शंकर सिंह।" मंच में कुर्सी पर बैठे ठाकुर महेंद्र सिंह ने अपनी भारी आवाज़ में गौरी शंकर को देखते हुए कहा____"क्या तुम क़बूल करते हो कि तुमने मुंशी चंद्रकांत के साथ मिल कर हवेली में रहने वालों के ख़िलाफ़ गहरी साज़िश रची और फिर उसी साज़िश के तहत ठाकुर जगताप सिंह और बड़े कुंवर अभिनव सिंह की हत्या की? इतना ही नहीं चंदनपुर में अपने आदमियों को भेज कर ठाकुर साहब के छोटे बेटे वैभव को भी जान से मारने का प्रयास किया था?"

"नहीं नहीं।" गौरी शंकर की बीवी सुनैना सिंह तेज़ी से भागती हुई गौरी शंकर के पास आई, फिर उसे देखते हुए लगभग रोते हुए बोली____"कह दीजिए कि आप पर लगाए गए ये सारे आरोप झूठ हैं। बता दीजिए सबको कि आपने किसी के भी साथ मिल कर न तो कोई साज़िश रची है और ना ही किसी की हत्या की है।"

सुनैना की बातों को सुन कर गौरी शंकर ने सख़्ती से अपने होठ भींच लिए। चेहरे पर कई तरह के भाव उभरते और लोप होते नज़र आए। तभी मंच पर बैठे ठाकुर महेंद्र सिंह ने सख़्त भाव से सुनैना देवी से कहा____"आप एक तरफ हट जाएं, हमने जिससे सवाल किया है उसे जवाब देने दें।"

सुनैना देवी तब भी न हटीं। वो अपने पति को आशा भरी नज़रों से देखती रहीं। उधर कुछ पलों की ख़ामोशी के बाद गौरी शंकर ने कहा____"हां, मैं क़बूल करता हूं ठाकुर साहब कि मुंशी चंद्रकांत के साथ मिल कर हमने ही ये सब किया है।"

"नहीं.....नहीं।" सुनैना देवी पूरी ताक़त से चिल्ला उठी____"ये सच नहीं हो सकता। कह दीजिए कि ये सब झूठ है। कह दीजिए कि आपने कुछ नहीं किया है।"

सुनैना देवी कहने के साथ ही वहीं घुटनों के बल बैठ कर फूट फूट कर रोने लगी। यही हाल उनके घर की बाकी औरतों और बहू बेटियों का भी था। गौरी शंकर ने जब अपनी बीवी को यूं सरे आम फूट फूट कर रोते देखा तो उसका कलेजा हिल गया। अपने अंदर उमड़ उठे भयंकर तूफ़ान सतत को उसने अपनी आंखें बंद कर के जज़्ब करने की कोशिश की। उधर रूपचंद्र का चेहरा अजीब तरह से सख़्त नज़र आ रहा था।

"क्यों? आख़िर क्यों?" मंच पर बैठे ठाकुर महेंद्र सिंह तेज़ आवाज़ में बोले____"पंचायत ही नहीं बल्कि यहां उपस्थित सब लोग भी ये जानना चाहते हैं कि ऐसा क्यों किया तुमने?"

"हम चारो भाई।" गौरी शंकर ने अजीब भाव से कहा____"अपने अंदर से वर्षों पहले पैदा हुई नफ़रत को कभी मिटा नहीं पाए ठाकुर साहब। वर्षों पहले जो ज़ख्म बड़े दादा ठाकुर ने हमें हमारी बहन गायत्री को बर्बाद कर के दिया था वो ज़ख्म कभी भरा ही नहीं बल्कि हर गुज़रते वक्त के साथ वो नासूर ही बनता चला गया। बहुत कोशिश की हमने हवेली में रहने वालों के प्रति अपनी नफ़रत को दूर करने की मगर कभी कामयाब न हो सके। ये उसी का नतीजा है ठाकुर साहब कि हमारे द्वारा ये सब हो गया और हमारे साथ भी इतना कुछ हो गया।"

"तुम जिस ज़ख्म की बात कर रहे हो गौरी शंकर।" पिता जी ने कहा____"उसका पहले भी हमें बेहद दुख और अफ़सोस था और उसके लिए हमारे पिता भले ही खुद को गुनहगार न समझते रहे हों मगर हम ज़रूर समझते थे। तभी तो उनके बाद जब हम दादा ठाकुर की गद्दी पर बैठे तो हम खुद तुम्हारे घर आए और उनके द्वारा किए गए जघन्य अपराध के लिए तुम्हारे पिता जी से हमने माफ़ी मांगी थी। इतना ही नहीं ये वचन भी दिया था कि अब से कभी भी हमारे द्वारा तुम में से किसी के भी साथ बुरा नहीं होगा। ऊपर वाले की क़सम खा कर कहो कि क्या हमने अपने इस वचन को नहीं निभाया? बच्चों के लड़ाई झगड़े की बातें छोड़ो क्योंकि बच्चे तो अक्सर झगड़ते ही हैं लेकिन क्या कभी किसी ने उस नीयत से तुम्हारे साथ बुरा किया कभी?"

"माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" गौरी शंकर सहसा घुटनों के बल बैठ गया____"ये हमारा दुर्भाग्य ही था कि हम चारो भाई उस बात को कभी अपने दिल से निकाल नहीं सके और हमेशा आपसे नफ़रत करते रहे। ऐसा शायद इस लिए भी कि इतने वर्षों की खोज के बाद भी जब हमें हमारी बहन कहीं नहीं मिली तो मन में हवेली में रहने वालों के प्रति नफ़रत में और भी इज़ाफा होता गया। एक ही तो बहन थी हमारी। वर्षों से हम चारो भाइयों की कलाइयां सूनी थी। जब भी रक्षाबंधन का पावन त्यौहार आता था तो बहन की याद आती थी और अपनी अपनी कलाइयां देख कर हम चारो भाइयों के अंदर टीस सी उभरती थी। बस, जिस ज़ख्म को भरने की कोशिश करते थे वो ये सब सोच कर फिर से हरा हो जाता था। ज़हन में बस यही सवाल उभरते थे कि आख़िर क्या कसूर था हमारी बहन का? क्यों वो बड़े दादा ठाकुर की हवस का शिकार हो गई और क्यों उसे इस तरह से गायब कर दिया गया कि आज इतने वर्षों बाद भी उसका कहीं कोई पता तक नहीं है? वो इस दुनिया में कहीं है भी या उसे जान से ही मार दिया गया? दादा ठाकुर, कहने के लिए अक्सर लोग बड़ी बड़ी बातें करते हैं मगर जिनके साथ गुज़रती है उसका दर्द वही जानते हैं।"

"माना कि तुम्हारी बहन के साथ गुनाह ही नहीं बल्कि संगीन अत्याचार हुआ था।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने कहा____"लेकिन किसी और के द्वारा किए गए गुनाह के लिए किसी दूसरे की हत्या कर देना क्या उचित था?"

"उचित तो ये भी नहीं था न ठाकुर साहब कि हमने जो किया वही दादा ठाकुर ने भी कर दिया।" गौरी शंकर ने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"मान लिया मैंने कि हम चारो भाइयों ने किसी और के द्वारा किए गए अपराध के चलते बदले की भावना में मझले ठाकुर और बड़े कुंवर की हत्या कर दी। मगर इन्होंने जो किया क्या वो सही था? अगर इन्हें सच में पता चल गया था कि हमने ही वो सब किया था तो क्या इन्हें इतना जल्दी नर संघार ही कर देना चाहिए था? क्या इन्हें एक बार भी ये नहीं सोचना चाहिए था कि हमें भी अपनी बात रखने का मौका देना चाहिए? ये तो मुखिया हैं ठाकुर साहब और सिर्फ इसी गांव बस के ही नहीं बल्कि आस पास कई गावों के भी। इसके बावजूद इन्होंने इस मामले का फ़ैसला किसी पंचायत में नहीं बल्कि जंग के मैदान में कर डाला। क्या ये अन्याय और अपराध नहीं है?"

"बेशक है।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने कहा____"और यकीन मानो हर अपराधी को उचित दंड दिया जाएगा, फिर चाहे वो खुद दादा ठाकुर ही क्यों न हों।"

"हमें हमारे अपराध के लिए मिलने वाली सज़ा से इंकार नहीं है।" पिता जी ने कहा____"किंतु उससे पहले हम कुछ और भी जानना चाहते हैं। अभी भी कुछ ऐसा बाकी है जिसे हमारे लिए ही नहीं बल्कि सबके लिए जानना ज़रूरी है।"

"आपके मन में अगर अभी कुछ सवाल हैं तो बेशक पूछ सकते हैं।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने कहा____"हम भी उत्सुक हैं ये जानने के लिए कि इस मामले में अभी और क्या शेष है?"

"ये तो समझ आया कि अपनी नफ़रत के चलते अथवा ये कहें कि बदले की भावना के चलते गौरी शंकर ने अपने भाइयों सहित हमारे मुंशी चंद्रकांत के साथ गठजोड़ कर के ये सब किया।" पिता जी के कहा____"किंतु हम इन लोगों से ये भी जानना चाहते हैं कि इन लोगों ने अपने साथ किसी सफ़ेदपोश का ज़िक्र क्यों नही किया? जबकि शुरू से ही वो रहस्यमय आदमी हमारे छोटे बेटे वैभव को जान से मारने की फ़िराक में रहा है और इतना ही नहीं कई बार उसने उसके ऊपर जान लेवा हमला भी किया। और तो और अभी पिछली रात वो हमारी हवेली के बाहर बने कमरे से मुरारी के भाई जगन को भी छुड़ा ले गया।"

"मैं किसी सफ़ेदपोश को नहीं जानता ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने कहा____"बल्कि ये जान कर तो अब मैं खुद ही हैरान हो गया हूं कि हमारे अलावा भी कोई ऐसा था जो हवेली के किसी व्यक्ति को जान से मारना चाहता था।"

"तो आप ये कहना चाहते हैं कि ऐसे किसी सफ़ेदपोश को आप नहीं जानते?" पिता जी ने कहा____"और ना ही उससे आपका कोई ताल्लुक है?"

"अगर जानता तो क़बूल करने में मुझे भला क्या आपत्ति होती ठाकुर साहब?" गौरी शंकर ने कहा____"जब इतना सब क़बूल कर लिया है तो उसके बारे में भी क़बूल कर लेता।"

"तुम्हारा क्या कहना है उस सफ़ेदपोश के बारे में?" पिता जी ने मुंशी की तरफ पलट कर उससे पूछा____"क्या तुम्हें भी उसके बारे में कुछ नहीं पता?"

"हाहाहाहा।" पिता जी के पूछने पर मुंशी पहले तो ज़ोर से हंसा फिर बोला____"वैसे तो मैं ऐसे किसी सफ़ेदपोश के बारे में नहीं जानता और ना ही मेरा उससे कोई संबंध है लेकिन इस बात से मैं खुश ज़रूर हूं कि हमारे बाद भी अभी कोई है जो हवेली में रहने वालों से इस क़दर नफ़रत करता है कि उनकी जान तक लेने का इरादा रखता है। ख़ास कर इस वैभव सिंह की। ये तो कमाल ही हो गया, हाहाहा।"

मुंशी चंद्रकांत जिस तरीके से हंस रहा था उसे देख मेरा खून खौल उठा। गुस्से से मेरी मुट्ठियां भिंच गईं। जी किया कि अभी जा के उसकी गर्दन मरोड़ दूं मगर फिर किसी तरह अपने गुस्से को पी कर रह गया।

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Sanju@

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अध्याय - 73
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"ख़ैर।" पिता जी ने गहरी सांस ली____"उसके बाद तुम दोनों ने मिल कर क्या क्या किया?"
"उसका और मेरा क्योंकि एक ही मकसद था इस लिए मैंने उसे ये बताया ही नहीं कि असल में मेरी आपसे या आपके परिवार के किसी सदस्य से क्या दुश्मनी है?" मुंशी ने कहा____"सिर्फ़ इतना ही कहा कि बदले में ज़मीन का कुछ हिस्सा मुझे भी मिलना चाहिए।"



अब आगे....


रूपा अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी आंसू बहा रही थी। उसे इस बात का बेहद दुख था कि उसके पिता के साथ साथ उसके ताऊ चाचा और भाईयों की हत्या कर दी गई किंतु वो ये भी जानती थी कि इसके लिए वो खुद ही ज़िम्मेदार थे। कहते हैं कि अपने लाख बुरे हों लेकिन होते तो वो अपने ही हैं। खून के रिश्तों से जुड़ाव अलग ही होता है और जब अपनों की इस तरह से हत्याएं हो जाएं तो कलेजा हाहाकार कर उठता है।

अब तक रूपा जाने कैसे कैसे विचारों के मंथन से गुज़र चुकी थी। एक तरफ वो ये भी सोच रही थी कि उसके ये वही अपने थे जिन्होंने वैभव के चाचा और भाई की हत्या की थी। उसे बखूबी एहसास था कि जब किसी के अपनों के साथ ऐसा होता है तो कैसा महसूस होता है।

रूपा के घर की सभी औरतें और सभी बहू बेटियां आज हवेली में होने वाली पंचायत में गई हुईं थी किंतु उसे कोई अपने साथ नहीं ले गया था। बल्कि बड़ी ही सख़्ती के साथ उसको उसके ही कमरे में क़ैद कर दिया गया था। उसकी देख रेख के लिए सिर्फ उसकी भाभी कुमुद ही घर पर थी। यूं तो कुमुद उसकी भाभी से कहीं ज़्यादा उसकी सहेली जैसी थी किंतु अब वो भी उसके खिलाफ़ हो गई थी। सुबह से लाखों बार उसने उसे पुकारा था किंतु कुमुद ने उसकी तरफ देखा तक नहीं था। रूपा ये बात समझ गई थी कि उसकी मां और ताई चाची वगैरह उसे अपने साथ हवेली की पंचायत में क्यों नहीं ले गईं। शायद कुमुद ने उन्हें सारी बात बता दी थी और अब वो ये समझती थीं कि रूपा अपने परिवार के खिलाफ़ जा सकती है। आख़िर वो दादा ठाकुर के लड़के वैभव सिंह से बेहद प्रेम जो करती है। प्रेम में पड़ा व्यक्ति अपने परिवार से कहीं ज़्यादा अपने प्रेम और प्रेमी को ही अहमियत देता है। ज़रूरत पड़ने पर वो अपने ही परिवार से बगावत कर बैठता है। शायद यही सब सोच कर उसे उसके ही कमरे में बंद कर दिया गया था।

जैसे जैसे समय गुज़र रहा था रूपा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी और साथ ही एक भय उसके अंदर घर करता जा रहा था। उसने अपनी भाभी कुमुद को आवाज़ें लगा कर दरवाज़ा खोल देने की बहुत मिन्नतें की मगर कुमुद ने दरवाज़ा खोलना तो दूर जवाब में एक लफ्ज़ भी अपने मुंह से नहीं निकाला था। रूपा को ये सोच कर रोना आ जाता था कि उसकी सहेली इतनी कठोर कैसे हो सकती है?

रूपा अचानक ही अपने बिस्तर से उठी। उसके चेहरे पर किसी दृढ़ निश्चय जैसे भाव नुमायां होते नज़र आए। उसने कमरे में चारो तरफ निगाहें दौड़ाना शुरू कर दिया। एकाएक ही उसकी नज़र खिड़की पर जा कर ठहर गई। वो एक झटके में बिस्तर से उठी और खिड़की के पास जा पहुंची। उसने खिड़की को खोल कर बाहर की तरफ झांक कर देखा। ये वही खिड़की थी जहां से एक समय वैभव उससे मिलने उसके कमरे में आया करता था। रूपा ने झांक कर देखा नीचे की ज़मीन क़रीब आठ दस फीट नीचे थी। उसके जिस्म में सिहरन सी दौड़ गई। वो एकदम से पलटी और बिस्तर में पड़े कपड़ों को समेटने लगी। कुछ ही देर में उसने कपड़ों को जोड़ जोड़ कर एक रस्सी बना ली। उस रस्सी को ले कर वो खिड़की के पास आई। कपड़े की रस्सी के एक सिरे को उसने खिड़की के बीचो बीच लगे लकड़ी के मोटे डंडे पर बांधा और दूसरे सिरे के साथ साथ बाकी सारी रस्सी को उस पार उछाल दिया। रस्सी लहराते हुए जल्दी ही नीचे की ज़मीन तक पहुंच गई।

रूपा एक बार फिर से पलट कर अपने बिस्तर के पास आई और बिस्तर के सिरहाने के पास पड़े अपने दुपट्टे को उठा कर उसे अपने सीने पर डाल लिया। उसके बाद वो तेज़ी से खिड़की के पास आ गई। खिड़की के उस पार रस्सी के सहारे झूल जाने के ख़याल ने एकदम से उसके जिस्म में सर्द लहर पैदा कर दी। उसने आंख बंद कर के गहरी गहरी सांसें ली और साथ ही मन ही मन खुद को तैयार करने लगी।

रूपा आंखें खोल कर आगे बढ़ी और खिड़की के बीच लगे लकड़ी के मोटे डंडे को पकड़ते हुए उस पार जाने का प्रयास करने लगी। ये निश्चित था कि उसकी ज़रा सी चूक उसे सीधा नीचे ला कर पटक सकती थी जिसके चलते उसके साथ कुछ भी हो सकता था। रूपा को अंदर से भय और घबराहट तो बहुत हो रही थी किंतु उसने ठान लिया था कि वो यहां से निकल कर हवेली ज़रूर जाएगी।

रूपा ने खिड़की के उस पार आने के बाद कपड़े की रस्सी को मजबूती से थाम लिया और फिर धीरे धीरे झूल गई। जैसे ही वो झूली तो कपड़े की रस्सी उसके हाथ से फिसलने लगी जिससे उसकी जान हलक में आ कर फंस गई। मारे डर के उसकी चीख निकलते निकलते रह गई। अपनी पकड़ को जल्दी ही उसने मजबूत बनाया ताकि कपड़े की रस्सी उसकी मुट्ठियों से फिसले न। रस्सी को पकड़े झूले रहना उसके लिए बेहद मुश्किल साबित हो रहा था। उसकी लाख कोशिश के बाद भी उसकी मुट्ठी से रस्सी थोड़ा थोड़ा कर के फिसलती ही जा रही थी। दूसरी तरफ अपने वजन को थामे रखना भी अब उसे भारी लगने लगा था। दीवार पर कभी उसके पैर टकरा जाते तो कभी उसके जिस्म का कोई दूसरा हिस्सा। आख़िर बड़ी मेहनत के बाद वो किसी तरह नीचे पहुंच ही गई। नीचे कच्ची ज़मीन पर आ कर उसने राहत की सांस ली। उसके बाद उसने पहले चारो तरफ निगाह घुमाई और फिर तेज़ी से एक तरफ को बढ़ती चली गई।

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"वाह! बहुत खूब।" मुंशी चंद्रकांत की बात सुनते ही पिता जी बोल उठे____"ख़ैर हमारे भाई जगताप और बेटे अभिनव की हत्या कैसे की तुम लोगों ने जबकि वो दोनों अपने साथ काफी सारे आदमी ले कर गए थे? हमें पूरा यकीन है कि उन लोगों पर तुमने अचानक से तो हमला नहीं कर दिया होगा बल्कि यकीनन पहले से ही रणनीति बना कर उनके आने की ताक में रहे होगे।"

"चंदनपुर में मिली नाकामी के बाद।" चंद्रकांत ने कहा____"हम लोग अपने आदमियों पर ही नहीं बल्कि खुद पर भी बेहद गुस्सा थे। मेरा बेटा रघुवीर तो खुद ही चंदनपुर जा कर वैभव की हत्या करना चाहता था लेकिन मणि शंकर ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया था। शायद वो नहीं चाहता था कि हम में से किसी की ज़रा सी भी चूक अथवा लापरवाही के चलते हमारा भेद आप सबके सामने खुल जाए। यही वजह थी कि वैभव की हत्या करने के लिए हमने अपने ऐसे चुनिंदा आदमियों को चंदनपुर भेजा था जो ऐसे कामों को अंजाम देने में सक्षम थे। जब हमारे आदमी चंदनपुर में वैभव की हत्या करने में नाकाम हो गए तो हमें बड़ी निराशा हुई और साथ ही हम ये सोच कर हैरान भी हुए कि चंदनपुर में वैभव की सुरक्षा के लिए अचानक से इतने सारे लोग कहां से और कैसे आ गए थे? बाद में हमने सोचा कि वैभव की सुरक्षा के लिए इतने सारे लोग तभी वहां पहुंच सकते थे जब उन्हें पहले से ही पता हो कि वैभव के साथ ऐसा कुछ होने वाला है। हमारे लिए ये बड़ी हैरानी की बात बन गई थी कि ये बात उन्हें कैसे पता चल गई होगी जबकि वैभव की हत्या करने की योजना हमने अपने सामने बेहद ही गुप्त तरीके से बनाई थी।"

"ये शेर तो तुमने भी सुना ही होगा कि मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है।" पिता जी ने अजीब भाव से कुछ सोचते हुए कहा____"कहने का मतलब ये कि जिस समय तुम लोगों ने ये योजना बनाई थी उसके कुछ ही समय बाद हमें इस बात की ख़बर मिल गई थी। रात के वक्त हमसे मिलने दो औरतें हवेली आईं थी और उन्होंने ही हमें इस मामले में ये बताया था कि कुछ लोग अगली सुबह हमारे बेटे वैभव की हत्या करने के लिए चंदनपुर जाने वाले हैं। वैसे बड़े आश्चर्य की बात है कि हमारे ज़हन में उन औरतों के संबंध में ये ख़याल उसी समय क्यों नहीं आया था?"

"क...कौन सी औरतें हैं??" मुंशी चंद्रकांत हैरत से पिता जी की तरफ देखते हुए पूछ बैठा था।
"हमने उन्हें वचन दिया था कि उनके बारे में कभी किसी को कुछ नहीं बताएंगे।" पिता जी ने कहा____"बस इतना समझ लो कि वैभव का जीवन उन्हीं की बदौलत बच सका है और उन्हें हवेली में रहने वालों के भले का ख़याल था।"

पिता जी की बातें सुन कर मैं खुद भी बड़ा हैरान हुआ और साथ ही सोचने लगा कि मेरी सलामती की चाह रखने वाली वो दोनों औरतें कौन रही होंगी? बहुत सोचा मगर ऐसी किसी औरत का ख़याल मेरे ज़हन में न आ सका।

"चंद्रकांत जी।" सहसा फिज़ा में ठाकुर महेन्द्र सिंह की भारी आवाज़ गूंजी____"आप सबको ये बताइए कि ठाकुर जगताप सिंह और कुंवर अभिनव सिंह के साथ साथ उनके साथ मौजूद उनके उतने सारे आदमियों की हत्या कैसे की आप लोगो ने?"

"हम तो असल में अभिनव की हत्या करने का ही सोचे हुए थे।" चंद्रकांत ने कहा____"हमारी योजना थी कि एक तरफ चंदनपुर में वैभव का किस्सा ख़त्म करेंगे और यहां पर इसके बड़े भाई का। मझले ठाकुर की हत्या करने की कोई योजना नहीं थी बल्कि उनका नंबर तो बाद में आना था। ख़ैर जब हमारे मुखबिर ने हमें बताया कि अभिनव अपने चाचा तथा कई सारे आदमियों के साथ हवेली से निकल पड़ा है तो हम लोग अपने काम को अंजाम देने के लिए तैयार हो गए। हमने अंदाज़ा लगाया था कि हो न हो मझले ठाकुर अपने भतीजे तथा कई सारे आदमियों के साथ चंदनपुर ही जा रहे होंगे। इस लिए हम भी उनके पीछे लग जाना चाहते थे और फिर मौका देख कर रास्ते में ही उनका किस्सा ख़त्म कर देना चाहते थे।"

"कई बार की नाकामियों के बाद इस बार हम हर हाल में अपने मकसद में पूरी तरह से सफल होना चाहते थे।" चंद्रकांत ने दो पल रुकने के बाद कहा____"इस लिए हमने भी बहुत से आदमियों को इकट्ठा किया और फिर उनके पीछे लग गए। जल्दी ही हमारा काफ़िला मझले ठाकुर के क़रीब पहुंच गया। हमें अपने पीछे आते देख वो दोनों चाचा भतीजे बड़ा हैरान हुए और साथ ही सतर्क भी हो गए थे। इधर हमने पहले ही योजना बना ली थी कि सब कुछ कैसे करना है। जब हम सब मझले ठाकुर के काफ़िले के कुछ पास पहुंच गए तो हमने उन्हें आवाज़ दे कर ये बताया कि हम सब भी उनकी मदद करने के लिए चंदनपुर जाना चाहते हैं। हमारी बातें सुन कर मझले ठाकुर और बड़े कुंवर पहले तो बड़ा हैरान हुए फिर खुश दिखाई देने लगे। उसके बाद वो पूरी तरह से बेफ़िक्र हो कर हमारे आगे आगे चलने लगे। हम समझ गए कि उन्होंने हम पर भरोसा कर लिया है, तभी तो इतनी बेफ़िक्री से चल पड़े हैं।"

"योजना के अनुसार हमें यहीं पर अब आगे का काम करना था।" मुंशी के चुप होते ही रघुवीर ने कहा____"हमने पहले ही सबको सब कुछ समझा दिया था इस लिए गौरी शंकर का इशारा मिलते ही हम सबने एक साथ अपनी अपनी बंदूकों का मुंह खोल दिया। मझले ठाकुर या अभिनव को हमसे इस तरह अचानक हमला कर देने की ख़्वाब में भी उम्मीद नहीं थी इस लिए जब तक वो सम्हल पाते तब तक देर हो चुकी थी। हमने अपने आदमियों को उनके आदमियों को ढेर करने का काम दे दिया था और इधर मैं बापू और गौरी शंकर ने मझले ठाकुर और अभिनव को ख़त्म करने का काम ले रखा था। सबने बचने की बहुत कोशिश की और जवाब में गोलियां भी चलाई मगर कोई फ़ायदा नहीं हुआ। अंततः मझले ठाकुर अपने भतीजे अभिनव के साथ हमारे द्वारा मारे ही गए। इधर एक दो आदमी हमारे भी मरे मगर उसका हमें कोई अफ़सोस नहीं था। बल्कि इस बात की खुशी थी कि हम अपने दुश्मन को मार डालने में आख़िर कामयाब हो गए। उसके बाद हम जल्दी ही वहां से निकल लिए। हमें डर था कि गोलियां चलने की आवाज़ों को सुन कर आस पास के गांव के लोग हमारी तरफ न आ जाएं। इस लिए हमने अपने मारे गए आदमियों को लिया और फिर वहां से निकल गए।"

"हम सब जानते थे कि जब इस हत्याकांड की ख़बर आपके पास पहुंचेगी।" रघुवीर सांस लेने के लिए रुका तो चंद्रकांत ने बात आगे बढ़ाई____"तो हर तरफ तहलका मच जाएगा। गौरी शंकर और मणि शंकर का कहना था कि इस हत्याकांड का आरोप उन पर ही लगाया जाएगा। इतना ही नहीं बल्कि दूर दूर तक के लोग भी यही मानेंगे कि उन्होंने ही चाचा भतीजे की हत्या की है। ऐसे में पूरी तरह संभव था कि आपका क्रोध और आक्रोश दोनों ही उनके लिए घातक हो जाएगा इस लिए उन्होंने फ़ैसला किया कि वो अपने सभी भाइयों और बच्चों को ले कर कहीं छुप जाएंगे। जब मामला थोड़ा ठंडा हो जाएगा तब वो आपके सामने आ कर अपनी बेगुनाही की सफ़ाई दे देंगे।"

"बहुत खूब।" दादा ठाकुर ने कहा____"और हम ये मान भी लेते कि उन्होंने हमारे जिगर के टुकड़ों की हत्या नहीं की है बल्कि वो तो गंगा जल की तरह निर्दोष और पाक हैं, है ना?"

दादा ठाकुर के इस तरह कहने पर चंद्रकांत कुछ न बोला। विशाल मैदान में लोगों की इतनी भीड़ के बाद भी सन्नाटा सा छा गया था। ये अलग बात है कि अगले कुछ ही पलों में लोग आपस में खुसुर फुसुर करने लगे थे।

"ये सब झूठ है।" मणि शंकर की पत्नी फूलवती एकदम से चिल्ला उठी____"ना मेरे पति ने कुछ किया है और ना ही मेरे देवरों ने। सब कुछ इन दोनों बाप बेटों का ही किया धरा है। पकड़े गए तो अब ये हमारे घर के मर्दों पर ही आरोप लगा रहे हैं। जबकि ऐसा कुछ है ही नहीं। ये सच है कि हमारे घर के मर्द और बच्चे हवेली में रहने वालों से ईर्ष्या और बैर रखते थे लेकिन फिर उन्हें भी लगने लगा था कि उनका इस तरह से ईर्ष्या या बैर रखना ठीक नहीं है। हमारे साथ तो बड़े दादा ठाकुर ने बुरा किया था, लेकिन वो तो अब रहे नहीं। उनके बाद भी अगर हवेली में रहने वाला कोई हमारे साथ बुरा करता तो हमारा ईर्ष्या या बैर रखना जायज़ है। यही सब सोच कर हमने दादा ठाकुर से अपने रिश्तों को सुधार लिया था और अपने अंदर से हर तरह का बैर भाव निकाल दिया था। आपका ये मुंशी हमारे घर के मर्दों और बच्चों पर झूठा आरोप लगा रहा है दादा ठाकुर, हमारा यकीन कीजिए।"

"मैं किसी पर झूठा आरोप नहीं लगा रहा हूं ठाकुर साहब।" मुंशी ने मंच में सिंहासन पर बैठे महेंद्र सिंह की तरफ देखते हुए कहा____"बल्कि मेरा कहा गया एक एक शब्द सच है। आप खुद सोचिए कि अगर इनके घर के मर्द और बच्चे इतने ही पाक साफ थे तो अपनी अपनी जान बचाए रखने के लिए छुपते क्यों फिर रहे थे? अगर सच में उन्होंने कोई अपराध नहीं किया था तो वो सब दादा ठाकुर के सामने आने की बजाय रातों रात कहीं भाग क्यों गए थे? ये कहती हैं कि उन्होंने दादा ठाकुर से अपने रिश्ते सुधार लिए थे तो आप ही बताइए कि ये किस तरह का रिश्तों में सुधार किया था उन्होंने कि मझले ठाकुर और बड़े कुंवर की हत्या की बात सुन कर भी दादा ठाकुर का दुख बाटने उनके पास नहीं आए? सच तो यही है ठाकुर साहब कि वो भी उतने ही अपराधी हैं जितना कि मैं और मेरा बेटा। मैं पहले ही बता चुका हूं कि मुझे अपने किए का कोई अफ़सोस नहीं है। अतः आप मुझे और मेरे बेटे को जो भी सज़ा देंगे वो मुझे मंज़ूर होगा मगर दूसरी तरफ उन्हें निर्दोष मान कर छोड़ देना मेरे साथ नाइंसाफी होगी।"

"फ़िक्र मत करो।" महेंद्र सिंह ने अपनी भारी आवाज़ में कहा____"हर अपराधी को उसके किए की सज़ा मिलेगी किंतु हमारा ख़याल ये है कि साहूकारों को भी यहां मौजूद होना चाहिए। उनकी मौजूदगी में उनसे ही पूछा जाएगा कि उनका इस मामले में कोई हाथ है अथवा नहीं। इस लिए इस पंचायत के पंच होने के नाते हम ये आदेश देते हैं कि साहूकारों में जो जीवित बचे हैं उन्हें जल्द से जल्द खोज कर यहां पर हाज़िर किया जाए।"

"साहूकारों में से अब दो ही लोग बचे हैं ठाकुर साहब।" दादा ठाकुर ने कहा____"गौरी शंकर और हरि शंकर का बेटा रूपचंद्र। हमारे आदमी उन दोनों को खोजने में लगे हुए हैं। जल्दी ही वो यहां नज़र आएंगे।"

"हमने तो आपको देवता समझा था दादा ठाकुर।" फूलवती ने दुखी हो कर कहा____"मगर आपने पिछली रात जो किया उससे आपने साबित कर दिया है कि आप में और आपके पिता बड़े दादा ठाकुर में कोई अंतर नहीं है। वो भी जल्लाद थे और आप भी जल्लाद बन ग‌ए। अपने अहंकार और गुस्से के चलते आप इतने अंधे हो गए कि आपने हमारे घर की औरतों के सुहाग ही नष्ट कर दिए। एक झटके में हमें अनाथ और असहाय बना दिया। इसकी भयंकर बद्दुआ लगेगी आपको।"

"हमें बद्दुआ मंज़ूर है भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"मगर ये भी सच है कि उन सबको उनके किए गए कर्मों की ही सज़ा दी है हमने। उनकी हत्या होने पर अब आप ऐसे आरोप लगा कर हमें ऐसी बातें कह रहीं हैं जबकि आपकी तरह हम भी यही कह सकते हैं कि आपके पति और देवरों ने हमारे भाई और बेटे की हत्या कर के कौन सा महान काम कर दिया था? एक मां बाप से उनका बेटा छीन लिया, एक पत्नी से उसका पति छीन लिया। बच्चों से उसका पिता छीन लिया। क्या आपको ये एहसास नहीं है कि हमारी तरह जल्लाद तो वो भी थे? हम पूछते हैं कि आख़िर हमारे भाई और बेटे ने किसी के साथ क्या बुरा कर दिया था जिसके लिए उन दोनों की इस तरह से हत्या कर दी आपके घर वालों ने? बदले में अगर हमने भी वही कर दिया तो अब आप हमें बद्दुआ लगने की बात कह रही हैं?"

"हमें आपके भाई और बेटे की हत्या हो जाने का दुख है दादा ठाकुर।" फूलवती ने कहा____"मगर हम ये नहीं मान सकते कि उनकी हत्या हमारे घर के मर्दों ने आपके मुंशी के साथ मिल कर की है। ये हमारे घर वालों पर झूठा आरोप लगा रहे हैं।"

"आप उमर में मेरी मां से बड़ी हैं।" सहसा मैंने फूलवती के क़रीब जाते हुए कहा____"इस लिए आपको बड़ी मां कह सकता हूं। यकीन मनाइए मेरे दिल में आप में से किसी के लिए भी कोई ग़लत भावना अथवा बैर भाव नहीं है। मैं आपसे ये कहना चाहता हूं कि दुनिया में हर किसी को अपने बच्चे और अपने घर वाले दूसरों से कहीं ज़्यादा अच्छे और पाक साफ लगते हैं। आप कहती हैं कि आपके घर के मर्दों ने कुछ नहीं किया है जबकि मैं कहता हूं कि इसका सबूत मैं इसी वक्त आपको दे सकता हूं।"

मेरी बात सुनते ही फूलवती की आंखें फैल गईं और सिर्फ उसी की ही क्यों बल्कि बाकी सबकी भी। इधर फूलवती और उसके घर की बाकी बहू बेटियां मुझे इस तरह देखने लगीं थी जैसे मेरे सिर पर अचानक से ही सींग उग आए हों।

"ये तुम क्या कह रहे हो वैभव?" मंच पर बैठे महेंद्र सिंह ने कहा____"क्या सच में तुम ऐसा कोई सबूत यहां सबके सामने पेश कर सकते हो?"

"हां।" मैंने बेझिझक हो कर कहा____"किंतु उससे पहले ये जान लीजिए कि मेरे पास वो सबूत आया कैसे? असल में जब यहां से कुछ लोग मुझे जान से मारने के इरादे से चंदनपुर गए थे तो शायद उन लोगों को ये बिल्कुल भी नहीं पता था कि वहां पर भी मेरी रक्षा करने के लिए मेरे कई सारे आदमी मौजूद होंगे जिनसे उनका टकराव हो जाएगा। ख़ैर टकराव हुआ और अच्छा खासा हुआ। आख़िर में मुझे जान से मारने के इरादे से आए हुए लोग मारे गए और एक दो भाग गए लेकिन एक आदमी मेरे हाथ भी लगा। मेरे ये पूछने पर कि मुझे जान से मारने के लिए उसे किसने भेजा है उसने कोई जवाब नहीं दिया। उल्टा मुझसे ये कहने लगा कि मैं उसका या किसी का भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। उस नामुराद को पता ही नहीं था कि वो किससे ऐसी बात कह रहा था। ख़ैर फिर मैंने अपने तरीके से उससे सच उगलवा ही लिया। ये अलग बात है कि सच बोलने से पहले उसे अपने एक कान से हाथ धोना पड़ गया था। उसने बताया कि वो ये सब करने के लिए मजबूर था और उसे मजबूर करने वाले कोई और नहीं बल्कि हमारी इन्हीं बड़ी मां के देवर गौरी शंकर काका थे। गौरी शंकर काका ने उसे धमकी दे रखी थी कि अगर उसने उनके कहे अनुसार काम नहीं किया तो वो अपना कर्ज़ तो उससे वसूलेंगे ही साथ में उसके बीवी बच्चों को भी जान से मार देंगे। ज़ाहिर है, आदमी अपने बीवी बच्चों की जान बचाने के लिए कुछ भी करने के लिए मजबूर हो जाएगा।"

"पंचायत के सामने उस आदमी को पेश करो वैभव।" महेंद्र सिंह ने कहा____"इस मामले में सारी बात उसके मुख से ही सुनी जाएंगी। तुम्हारे इस बयान का न तो कोई मतलब है और ना ही वो इस पंचायत में मान्य होगा।"

"जैसा आपका हुकुम।" मैंने अदब से सिर नवाते हुए कहा और फिर अपने एक आदमी को इशारा कर दिया।

कुछ ही देर ने मेरा आदमी उस आदमी को ले कर आ गया जिसे मैंने चंदनपुर में पकड़ा था और उसे वहीं पर रखे हुए था। सबकी नज़रें उस आदमी पर ठहर गईं। उसका एक कान मैंने काट दिया था इस लिए इस वक्त उसके उस कान में पट्टी लगी हुई थी। सबके सामने आते ही वो बेहद घबराया हुआ नज़र आने लगा था। फूलवती और उसके घर की बाकी बहू बेटियां भी उसे देख रहीं थी। सहसा मेरी निगाह कुछ ही दूरी पर अपनी मां के साथ खड़ी अनुराधा पर पड़ गई। इसे इत्तेफ़ाक कहूं या कुछ और लेकिन ये सच है कि वो अब भी मुझे ही देखे जा रही थी। मैंने जल्दी ही उससे नज़रें हटा ली। मेरे अंदर एक बेचैनी सी पैदा होने लगी थी।

"कौंन हो तुम?" तभी फिज़ा में महेंद्र सिंह की आवाज़ गूंजी____"और किस गांव के रहने वाले हो और ये भी बताओ कि तुम यहां पर इस हाल में क्यों हो?"

महेंद्र सिंह के पूछने पर उस व्यक्ति ने बताया कि वो पास के ही एक गांव सिंहपुर का रहने वाला है और उसका नाम मनसुख यादव है। उसके बाद वो वही सब बताता चला गया जो उसने चंदनपुर में मुझे बताया था। उसकी बातें सुन कर भीड़ में खड़े लोग एक बार फिर से खुसुर खुसुर करने लगे। वहीं फूलवती का चेहरा देखने लायक हो गया।

"मैं नहीं मानती इस आदमी की इन बातों को।" गौरी शंकर की बीवी सुनैना ने सहसा तीखे भाव से कहा___"ज़रूर दादा ठाकुर के इस बेटे ने इस आदमी को मेरे पति के खिलाफ़ ऐसा बोलने के लिए मजबूर किया होगा। मैं अपने पति को अच्छी तरह जानती हूं। वो ऐसा कुछ कर ही नहीं सकते।"

"नहीं ठाकुर साहब।" मनसुख एकदम से बोल पड़ा____"मुझे किसी ने ऐसा बोलने के लिए मजबूर नहीं किया है। हां ये सच है कि इसके पहले छोटे कुंवर ने मुझसे सच जानने के लिए गुस्से में आ कर मेरा ये कान काट दिया था लेकिन सच यही है कि इन्होंने मुझे ऐसा बोलने के लिए मजबूर नहीं किया है। सच वही है जो मैंने अभी सबके सामने आप सबको बताया है। अगर मेरा कहा एक भी शब्द झूठ हो तो मेरे झूठ बोलने के चलते मैं अपने बच्चों का मरा हुआ मुंह देखूं।"

मनसुख की इस बात से सनसनी सी फैल गई फिज़ा में।

"क्या अब भी आपको यकीन नहीं है काकी?" मैंने सुनैना की तरफ देखते हुए कहा___"आप भी जानती हैं कि चाहे जैसी भी परिस्थिति हो मगर कोई भी मां बाप अपने बच्चों की झूठी क़सम नहीं खा सकते। इसके बावजूद अगर आपको यकीन नहीं है तो ठीक है। बहुत जल्द गौरी शंकर काका और रूपचंद्र को खोज लिया जाएगा और उन्हें यहां ला कर उन्हीं के द्वारा सच का पता चल जाएगा आपको।"

"हां हां आप सब तो चाहते ही हैं कि हमारे घर के सभी मर्द और बच्चों को सूली पर लटका दिया जाए।" सुनैना बिफरे हुए लहजे से एकाएक रोने ही लगी, बोली____"और हम सबको अनाथ, बेसहारा और लाचार बना दिया जाए।"

"ऊपर वाला ही जानता है काकी कि हम सब क्या चाहते हैं।" मैंने कहा____"मेरे जैसा इंसान भी उस दिन बड़ा खुश हुआ था जब आप लोगों से हमारे रिश्ते सुधर गए थे। ये अलग बात है कि मुझे संबंधों का इस तरह से सुधर जाना हजम नहीं हो रहा था लेकिन फिर भी ये सोच कर खुश हो गया था कि चलो दोनों परिवार अब एक साथ हो गए हैं तो दोनों मिल कर एक नए सिरे से एक नए युग का निर्माण करेंगे। जीवन बहुत छोटा होता है काकी। इंसान अपने छोटे से जीवन में न जाने किस किस के साथ कैसा कैसा बैर बना लेता है और फिर दोनों ही उस बैर के चलते अपना वही छोटा सा जीवन बर्बाद कर बैठते हैं जिस छोटे से जीवन में वो अगर प्रेम भाव से रहते तो शायद वो एक सुनहरा इतिहास ही बना डालते।"

"तुमने सही कहा वैभव।" मैं ये सब बोल कर पलटा ही था कि तभी मेरे कानों में किसी लड़की की चिर परिचित मधुर आवाज़ पड़ी। मैं बिजली की तरह वापस मुड़ा तो देखा भीड़ को चीरते हुए रूपा अपनी ताई और चाची सुनैना के बगल में आ कर खड़ी हो गई। उसको देख जहां एक तरफ मैं चौंक पड़ा था वहीं उसके घर वाले भी चौंक पड़े थे। रूपा को यहां देख जाने क्यों मेरी नज़र उससे हट कर अनायास ही अनुराधा की तरफ चली गई। मैंने देखा वो रूपा को गौर से देखें जा रही थी। ये देख मेरे अंदर अजीब तरह की हलचल शुरू हो गई।

"तुमने बिल्कुल सही कहा वैभव कि अगर दोनों ही परिवार के लोग प्रेम भाव से रहते तो एक सुनहरा इतिहास बना डालते।" उधर रूपा मेरी तरफ देखते हुए दुखी भाव से बोली____"मगर शायद ऐसा इतिहास बनाने के लिए वैसा प्रेम भाव ही नहीं था मेरे घर वालों के अंदर।"

"र...रूपा।" हरि शंकर की पत्नी और रूपा की मां ललिता देवी ने गुस्से से रूपा की तरफ देखते हुए कहा____"ये तू क्या बकवास कर रही है और....और तू यहां आई कैसे?"

"बड़े दुख की बात है मां।" रूपा की आंखों से आंसू बह चले, बोली____"कि आप सब भी ताऊ चाचा और पिता जी के जैसी ही हैं। इतना कुछ होने के बाद भी आप सब ऐसा बर्ताव कर रही हैं?"

"तू चुप होती है कि नहीं?" ललिता ने गुस्से से चीखते हुए कहा____"और तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझसे इस तरह बात करने की?"

"आप जानती थी न कि मुझे सब पता है?" रूपा ने कहा____"इसी लिए तो आपने मुझे मेरे कमरे में बंद कर दिया था ताकि मैं यहां ना आ सकूं और किसी को सच न बता सकूं? आख़िर क्या सोच कर अब आप सब सच को छुपा रही हैं मां? क्या आप सब ये चाहती हैं कि जो ज़िंदा बचे हुए हैं उनकी भी हत्या हो जाए?"

रूपा की बात सुन कर ललिता देवी कुछ न बोल सकी। बस अपने दांत पीस कर रह गईं। यही हाल उनकी जेठानी और बाकी देवरानियों का भी था। फिर सहसा जैसे उन्हें किसी बात का एहसास हुआ तो एक एक कर के सभी चेहरों के भाव बदलते नज़र आए।


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पंचायत में मुंशी और रघुवीर ने अभिनव और जगताप की हत्या साहूकारो के साथ मिलकर कैसे कि ये बताया तो साहूकारो की पत्नी ये सुनकर बिफर गई और बोला की ये झूठ है लेकिन रूपा ने आकर पूरा पासा ही पलट दिया अब इंतजार है रूपचंद और मणिशंकर के पकड़े जाने का ताकि उनकी इस हत्या के पीछे की कहानी क्या है???
 

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अध्याय - 74
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"आप जानती थी न कि मुझे सब पता है?" रूपा ने कहा____"इसी लिए तो आपने मुझे मेरे कमरे में बंद कर दिया था ताकि मैं यहां ना आ सकूं और किसी को सच न बता सकूं? आख़िर क्या सोच कर अब आप सब सच को छुपा रही हैं मां? क्या आप सब ये चाहती हैं कि जो ज़िंदा बचे हुए हैं उनकी भी हत्या हो जाए?"

रूपा की बात सुन कर ललिता देवी कुछ न बोल सकी। बस अपने दांत पीस कर रह गईं। यही हाल उनकी जेठानी और बाकी देवरानियों का भी था। फिर सहसा जैसे उन्हें किसी बात का एहसास हुआ तो एक एक कर के सभी चेहरों के भाव बदलते नज़र आए।



अब आगे....


"मुझमें अब यहां से कहीं जाने की हिम्मत नहीं है रूप बेटा।" पास ही के जंगल में एक पेड़ के नीचे बैठे गौरी शंकर ने असहाय भाव से कहा____"मुझे समझ आ गया है कि हम अपनी मौत से दूर नहीं भाग सकते। मेरे भाई मेरे बच्चे सब मर चुके हैं और अब मैं भी जीना नहीं चाहता।"

"बदला लिए बिना हम मर नहीं सकते काका।" रूपचंद्र ने गुस्से से कहा____"हिसाब तो बराबर का करना ही पड़ेगा। उन्होंने हमारे इतने सारे अपनों की जान ली है तो उनमें से भी किसी को ज़िंदा रहने का हक़ नहीं है।"

"नहीं रूप बेटा।" गौरी शंकर जाने किस चीज़ की कल्पना से कांप उठा था, बोला____"अब ऐसा सोचना भी मत। हमने अपने सभी लोगों को खो दिया है। खानदान का वंश बढ़ाने के लिए अब सिर्फ तुम ही बचे हो मेरे बच्चे। इस लिए अब अपने ज़हन में बदले का कोई भी ख़याल मत लाओ।"

"ये आप कैसी बातें कर रहे हैं काका?" रूपचंद्र ने चीखते हुए कहा____"नहीं, हर्गिज़ नहीं। मैं उनमें से किसी को भी ज़िंदा नहीं छोडूंगा। जैसे हमारा खानदान पूरी तरह से मिटा दिया है दादा ठाकुर ने उसी तरह मैं उसके भी खानदान का नामो निशान मिटा दूंगा। हवेली के ज़र्रे ज़र्रे में करुण क्रंदन गूंजेगा।"

"नहीं बेटा ऐसा मत कह।" गौरी शंकर बेबस भाव से कह उठा____"तुझे मरे हुए हमारे अपनों की क़सम है। तू ऐसा कुछ भी करने का नहीं सोचेगा। हमारी स्थिति अब बेहद कमज़ोर हो गई है बेटा। तू अकेला उनका कुछ नहीं कर सकेगा, उल्टा होगा ये कि तू भी बाकी सबकी तरह अपनी जान से हाथ धो बैठेगा। अगर ऐसा हुआ तो खानदान का वंश ही नष्ट हो जाएगा। मेरी जांघ में गोली लगी है जिसके चलते अब मैं अपाहिज सा हो गया हूं। एक तू ही है जिसे अब अपने पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी उठानी पड़ेगी। तेरी मां, तेरी चाचियां, तेरी भाभी और तेरी बहनें उन सबका ख़याल रखना होगा तुझे। सोच अगर तुझे कुछ हो गया तो उन सबका क्या होगा? हमारी बेसहारा बहू बेटियों का जीवन नर्क सा हो जाएगा बेटा। इस लिए कहता हूं कि अब अपने अंदर किसी से भी बदला लेने का ख़याल मत ला।"

रूपचंद्र को पहली बार एहसास हुआ कि उसकी और उसके परिवार की स्थिति वास्तव में कितनी गंभीर और दयनीय हो गई है। ये एहसास होते ही उसके चेहरे पर मौजूद आक्रोश और गुस्सा किसी झाग की तरह बैठता नज़र आया।

"हमें बिल्कुल भी ये अंदाज़ा नहीं था कि अचानक से ऐसा भी कुछ हो जाएगा।" गौरी शंकर ने बेहद गंभीरता से कहा____"जो सोचा था वैसा बिल्कुल भी नहीं हुआ। शायद ऊपर वाला हमेशा से ही हमारे खिलाफ़ रहा है या फिर हकीक़त यही है कि हमने बेवजह ही इतने वर्षों से अपने अंदर उनके प्रति दुश्मनी को पाले रखा था।"

"ये आप क्या कह रहे हैं काका?" रूपचंद्र ने हैरत से गौरी शंकर को देखा।

"तुझे तो बताया ही था हमने कि वर्षों पहले बड़े दादा ठाकुर की वजह से ये सब शुरू हुआ था।" गौरी शंकर ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"उसी की वजह से हमने हमारी बहन गायत्री को खोया था। उसने हमारी बहन को अपनी हवस का शिकार बनाया और फिर उसे अपने ही एक किसान के साथ जाने कहां भेज दिया। अपने कुकर्म को छुपाने के लिए उसने हर तरफ ये ख़बर फैला दी थी कि साहूकारों की बहन एक किसान के साथ भाग गई। उस समय बड़े दादा ठाकुर की तूती बोलती थी। वो खुद तो ताकतवर और जल्लाद था ही किंतु उसके ताल्लुक बड़ी बड़ी हस्तियों से भी थे। ये उसके ख़ौफ का ही असर था कि बाद में सब कुछ जान लेने के बाद भी हम उसका कुछ नहीं बिगाड़ सके थे। हालाकि एक बार पिता जी अपनी इस ब्यथा को ले कर उसके पास गए भी थे लेकिन उसने स्पष्ट रूप से उन्हें धमकी दे कर कहा था कि अगर उन्होंने इस बारे में ज़्यादा हो हल्ला करने की हिमाकत की तो इसका अंजाम उनकी सोच से भी कहीं ज़्यादा उन्हें भुगतना पड़ जाएगा। बस, उसके बाद पिता जी कभी हवेली की दहलीज़ पर नहीं गए। हम लोग भी इतने परिपक्व अथवा ताकतवर नहीं थे जिसके चलते हम अपनी बहन के साथ हुए इस जघन्य अत्याचार का बदला ले लेते। वो तो अच्छा हुआ कि उस कुकर्मी को ऊपर वाले ने ही सज़ा दे दी। ऊपर वाले ने उसे ऐसा बीमार किया कि बड़ा से बड़ा वैद्य भी उसका इलाज़ न कर सका। उसके बाद उनकी गद्दी पर उनका बड़ा बेटा प्रताप सिंह बैठा। आश्चर्य की बात थी कि इतने बड़े कुकर्मी और जल्लाद का बेटा प्रताप सिंह अपने पिता की सोच और विचारों से बिल्कुल उलट था। हालाकि उसका भाई जगताप थोड़ा गुस्सैल स्वभाव का ज़रूर था किंतु ये सच है कि उसमें भी अपने पिता जैसे गुण नहीं थे। दोनों ही भाई अपनी मां पर गए थे।"

"जब प्रताप सिंह दादा ठाकुर की गद्दी पर बैठा तो हमें फिर से इस बात का ख़ौफ होने लगा कि गद्दी में बैठने के बाद कहीं प्रताप सिंह की भी मानसिकता न बदल जाए।" कुछ पल रुकने के बाद गौरी शंकर ने कहा____"सत्ता और ताक़त का नशा ही ऐसा होता है बेटे कि अच्छे अच्छे शरीफ़ और संस्कारी लोग गिरगिट की तरह अपना रंग बदल लेते हैं। हालाकि ऐसा कुछ हुआ नहीं और ये हमारे लिए आश्चर्य की बात तो थी ही किंतु हम ये भी समझते थे कि प्रताप सिंह बहुत ही धीर वीर और गंभीर प्रकृति का इंसान है। उस दिन तो हम सबको और भी ज़्यादा आश्चर्य हुआ जब प्रताप सिंह दादा ठाकुर बनने के कुछ दिन बाद ही हमारे घर खुद ही आया और हमारे पिता जी से अपने पिता के द्वारा किए गए कुकर्म के लिए माफ़ी मांगी। वो मेरे पिता जी के पैरों को पकड़ के माफ़ियां मांग रहा था और यही कह रहा था कि अब से ऐसा कुछ भी नहीं होगा बल्कि दोनों ही परिवारों के बीच गहरा प्रेम भाव रहे ऐसी वो हमेशा कोशिश करेगा। प्रताप सिंह पिता जी से माफ़ी मांग कर और ये सब कह कर भले ही चला गया था लेकिन इसके बावजूद हमारे अंदर से हवेली में रहने वालों के प्रति घृणा न गई। हवेली में रहने वाले लोग हमें कभी पसंद ही नहीं आए और यही वजह थी कि हमने अपने बच्चों के अंदर भी हवेली वालों के लिए ज़हर ही भरा। आज इतना कुछ हो जाने के बाद एहसास हो रहा है कि हमें ऐसा नहीं करना चाहिए था। हमारे गुनहगार तो बड़े दादा ठाकुर थे और उसने जो कुकर्म किए थे उसकी सज़ा ऊपर वाले ने खुद ही दे दी थी उसे। यानि हमारा प्रतिशोध उसके मर जाने पर ही ख़त्म हो जाना चाहिए था। उसके बेटे ने या उसके भाई ने तो कभी हमारे साथ कुछ बुरा नहीं किया था। अगर वो सच में अपने पिता की तरह होता तो दादा ठाकुर की गद्दी पर बैठने के बाद वो खुद हमारे घर आ कर हमारे पिता जी से माफ़ी नहीं मांगता। ख़ैर शायद ये हमारा दुर्भाग्य ही था कि हम कभी अपने अंदर से उनके प्रति गहराती घृणा को नहीं निकाल पाए जिसका नतीजा आज हमें इस रूप में देखने और भोगने को मिला है।"

"माना कि हम अपने अंदर से उनके प्रति घृणा को नहीं निकाल पाए काका।" रूपचंद्र ने कहा____"लेकिन ये घृणा भी तो उन्हीं के द्वारा मिली थी हमें? अगर यही सब उनके साथ हुआ होता तो क्या वो इतने वर्षों तक चुप बैठे रहते? नहीं काका, वो तो पहले ही हमारा क्रिया कर्म कर चुके होते। हमने मान लिया कि हमसे ग़लती हुई लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि उस ग़लती के लिए हमारे पूरे खानदान को ही मिटा दिया जाए? ये कैसा न्याय है काका?"

"वहां पर कोई है शायद।" रूपचंद्र की बात पर गौरी शंकर अभी कुछ बोलने ही वाला था कि तभी एक मर्दाना आवाज़ सुन कर चौंक पड़ा। उसके साथ रूपचंद्र भी चौंक पड़ा था।

"लगता है उन्होंने हमें खोज लिया है काका।" रूपचंद्र ने एकदम से आवेश में आते हुए कहा____"हमें फ़ौरन ही यहां से निकल लेना चाहिए।"

"नहीं बेटा।" गौरी शंकर ने शांत भाव से कहा____"अब हम कहीं नहीं जाएंगे। अगर यहां से हमने भागने की कोशिश की तो संभव है कि वो लोग हम पर गोली चला दें जिससे हम दोनों ही मारे जाएं। बेहतर यही है कि हम खुद को उनके सामने आत्म समर्पण कर दें।"

"आत्म समर्पण करने से भी तो वो हमें मार ही डालेंगे काका।" रूपचंद्र के चेहरे पर एकाएक ख़ौफ के भाव उभरते नज़र आए____"क्या आपको लगता है कि वो हमें जीवित छोड़ देंगे?"

"सब ऊपर वाले पर छोड़ दो बेटा।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ली____"अब जो होगा देखा जाएगा। आत्म समर्पण करने से बहुत हद तक संभव है कि हमारे साथ वैसा सलूक न हो जैसा हमारे अपनों के साथ हुआ है।"

"वो रहे।" तभी दाएं तरफ से एक आदमी की आवाज़ आई____"घेर लो उन दोनों को किंतु सम्हल कर।"

गौरी शंकर ने जब महसूस किया कि आवाज़ एकदम पास से ही आई है तो वो अपनी जगह से किसी तरह उठा और पेड़ के पीछे से निकल कर बोला____"गोली मत चलाना, हम खुद को आत्म समर्पण करने को तैयार हैं।"

अगले कुछ ही देर में गौरी शंकर और रूपचंद्र को गिरफ़्त में ले लिया गया। शेरा के साथ पांच आदमी और थे जिन्होंने दोनों को रस्सियों में जकड़ लिया था। तलाशी में शेरा के हाथ एक पिस्तौल लगी जो रूपचंद्र के पास थी। शेरा के इशारे पर बाकी लोग दोनों चाचा भतीजे को ले कर चल पड़े।

✮✮✮✮

जैसे ही गौरी शंकर और रूपचंद्र को लिए शेरा हवेली के विशाल मैदान में लगी पंचायत के सामने पहुंचा तो लोग बड़ी तेज़ी से तरह तरह की बातें करने लगे। उधर दोनों चाचा भतीजे को देख साहूकारों के घर की औरतें और बहू बेटियों के चेहरे देखने लायक हो गए। उन सभी के चेहरों पर डर और घबराहट साफ दिखाई देने लगी थी। ज़ाहिर है उन सभी को ये एहसास हो गया था कि उनके घर के अंतिम बचे हुए मर्द भी अब मौत के मुंह में आ गए हैं।

वातावरण में एक सनसनी सी फैल गई। मंच पर बैठे महेंद्र सिंह के कहने पर गौरी शंकर और रूपचंद्र को बेड़ियों से आज़ाद कर दिया गया। दोनों चाचा भतीजे सिर झुकाए खड़े थे। ये अलग बात है कि इसके पहले वो दोनों एक एक कर के वहां उपस्थित सभी का चेहरा देख चुके थे।

"गौरी शंकर सिंह।" मंच में कुर्सी पर बैठे ठाकुर महेंद्र सिंह ने अपनी भारी आवाज़ में गौरी शंकर को देखते हुए कहा____"क्या तुम क़बूल करते हो कि तुमने मुंशी चंद्रकांत के साथ मिल कर हवेली में रहने वालों के ख़िलाफ़ गहरी साज़िश रची और फिर उसी साज़िश के तहत ठाकुर जगताप सिंह और बड़े कुंवर अभिनव सिंह की हत्या की? इतना ही नहीं चंदनपुर में अपने आदमियों को भेज कर ठाकुर साहब के छोटे बेटे वैभव को भी जान से मारने का प्रयास किया था?"

"नहीं नहीं।" गौरी शंकर की बीवी सुनैना सिंह तेज़ी से भागती हुई गौरी शंकर के पास आई, फिर उसे देखते हुए लगभग रोते हुए बोली____"कह दीजिए कि आप पर लगाए गए ये सारे आरोप झूठ हैं। बता दीजिए सबको कि आपने किसी के भी साथ मिल कर न तो कोई साज़िश रची है और ना ही किसी की हत्या की है।"

सुनैना की बातों को सुन कर गौरी शंकर ने सख़्ती से अपने होठ भींच लिए। चेहरे पर कई तरह के भाव उभरते और लोप होते नज़र आए। तभी मंच पर बैठे ठाकुर महेंद्र सिंह ने सख़्त भाव से सुनैना देवी से कहा____"आप एक तरफ हट जाएं, हमने जिससे सवाल किया है उसे जवाब देने दें।"

सुनैना देवी तब भी न हटीं। वो अपने पति को आशा भरी नज़रों से देखती रहीं। उधर कुछ पलों की ख़ामोशी के बाद गौरी शंकर ने कहा____"हां, मैं क़बूल करता हूं ठाकुर साहब कि मुंशी चंद्रकांत के साथ मिल कर हमने ही ये सब किया है।"

"नहीं.....नहीं।" सुनैना देवी पूरी ताक़त से चिल्ला उठी____"ये सच नहीं हो सकता। कह दीजिए कि ये सब झूठ है। कह दीजिए कि आपने कुछ नहीं किया है।"

सुनैना देवी कहने के साथ ही वहीं घुटनों के बल बैठ कर फूट फूट कर रोने लगी। यही हाल उनके घर की बाकी औरतों और बहू बेटियों का भी था। गौरी शंकर ने जब अपनी बीवी को यूं सरे आम फूट फूट कर रोते देखा तो उसका कलेजा हिल गया। अपने अंदर उमड़ उठे भयंकर तूफ़ान सतत को उसने अपनी आंखें बंद कर के जज़्ब करने की कोशिश की। उधर रूपचंद्र का चेहरा अजीब तरह से सख़्त नज़र आ रहा था।

"क्यों? आख़िर क्यों?" मंच पर बैठे ठाकुर महेंद्र सिंह तेज़ आवाज़ में बोले____"पंचायत ही नहीं बल्कि यहां उपस्थित सब लोग भी ये जानना चाहते हैं कि ऐसा क्यों किया तुमने?"

"हम चारो भाई।" गौरी शंकर ने अजीब भाव से कहा____"अपने अंदर से वर्षों पहले पैदा हुई नफ़रत को कभी मिटा नहीं पाए ठाकुर साहब। वर्षों पहले जो ज़ख्म बड़े दादा ठाकुर ने हमें हमारी बहन गायत्री को बर्बाद कर के दिया था वो ज़ख्म कभी भरा ही नहीं बल्कि हर गुज़रते वक्त के साथ वो नासूर ही बनता चला गया। बहुत कोशिश की हमने हवेली में रहने वालों के प्रति अपनी नफ़रत को दूर करने की मगर कभी कामयाब न हो सके। ये उसी का नतीजा है ठाकुर साहब कि हमारे द्वारा ये सब हो गया और हमारे साथ भी इतना कुछ हो गया।"

"तुम जिस ज़ख्म की बात कर रहे हो गौरी शंकर।" पिता जी ने कहा____"उसका पहले भी हमें बेहद दुख और अफ़सोस था और उसके लिए हमारे पिता भले ही खुद को गुनहगार न समझते रहे हों मगर हम ज़रूर समझते थे। तभी तो उनके बाद जब हम दादा ठाकुर की गद्दी पर बैठे तो हम खुद तुम्हारे घर आए और उनके द्वारा किए गए जघन्य अपराध के लिए तुम्हारे पिता जी से हमने माफ़ी मांगी थी। इतना ही नहीं ये वचन भी दिया था कि अब से कभी भी हमारे द्वारा तुम में से किसी के भी साथ बुरा नहीं होगा। ऊपर वाले की क़सम खा कर कहो कि क्या हमने अपने इस वचन को नहीं निभाया? बच्चों के लड़ाई झगड़े की बातें छोड़ो क्योंकि बच्चे तो अक्सर झगड़ते ही हैं लेकिन क्या कभी किसी ने उस नीयत से तुम्हारे साथ बुरा किया कभी?"

"माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" गौरी शंकर सहसा घुटनों के बल बैठ गया____"ये हमारा दुर्भाग्य ही था कि हम चारो भाई उस बात को कभी अपने दिल से निकाल नहीं सके और हमेशा आपसे नफ़रत करते रहे। ऐसा शायद इस लिए भी कि इतने वर्षों की खोज के बाद भी जब हमें हमारी बहन कहीं नहीं मिली तो मन में हवेली में रहने वालों के प्रति नफ़रत में और भी इज़ाफा होता गया। एक ही तो बहन थी हमारी। वर्षों से हम चारो भाइयों की कलाइयां सूनी थी। जब भी रक्षाबंधन का पावन त्यौहार आता था तो बहन की याद आती थी और अपनी अपनी कलाइयां देख कर हम चारो भाइयों के अंदर टीस सी उभरती थी। बस, जिस ज़ख्म को भरने की कोशिश करते थे वो ये सब सोच कर फिर से हरा हो जाता था। ज़हन में बस यही सवाल उभरते थे कि आख़िर क्या कसूर था हमारी बहन का? क्यों वो बड़े दादा ठाकुर की हवस का शिकार हो गई और क्यों उसे इस तरह से गायब कर दिया गया कि आज इतने वर्षों बाद भी उसका कहीं कोई पता तक नहीं है? वो इस दुनिया में कहीं है भी या उसे जान से ही मार दिया गया? दादा ठाकुर, कहने के लिए अक्सर लोग बड़ी बड़ी बातें करते हैं मगर जिनके साथ गुज़रती है उसका दर्द वही जानते हैं।"

"माना कि तुम्हारी बहन के साथ गुनाह ही नहीं बल्कि संगीन अत्याचार हुआ था।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने कहा____"लेकिन किसी और के द्वारा किए गए गुनाह के लिए किसी दूसरे की हत्या कर देना क्या उचित था?"

"उचित तो ये भी नहीं था न ठाकुर साहब कि हमने जो किया वही दादा ठाकुर ने भी कर दिया।" गौरी शंकर ने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"मान लिया मैंने कि हम चारो भाइयों ने किसी और के द्वारा किए गए अपराध के चलते बदले की भावना में मझले ठाकुर और बड़े कुंवर की हत्या कर दी। मगर इन्होंने जो किया क्या वो सही था? अगर इन्हें सच में पता चल गया था कि हमने ही वो सब किया था तो क्या इन्हें इतना जल्दी नर संघार ही कर देना चाहिए था? क्या इन्हें एक बार भी ये नहीं सोचना चाहिए था कि हमें भी अपनी बात रखने का मौका देना चाहिए? ये तो मुखिया हैं ठाकुर साहब और सिर्फ इसी गांव बस के ही नहीं बल्कि आस पास कई गावों के भी। इसके बावजूद इन्होंने इस मामले का फ़ैसला किसी पंचायत में नहीं बल्कि जंग के मैदान में कर डाला। क्या ये अन्याय और अपराध नहीं है?"

"बेशक है।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने कहा____"और यकीन मानो हर अपराधी को उचित दंड दिया जाएगा, फिर चाहे वो खुद दादा ठाकुर ही क्यों न हों।"

"हमें हमारे अपराध के लिए मिलने वाली सज़ा से इंकार नहीं है।" पिता जी ने कहा____"किंतु उससे पहले हम कुछ और भी जानना चाहते हैं। अभी भी कुछ ऐसा बाकी है जिसे हमारे लिए ही नहीं बल्कि सबके लिए जानना ज़रूरी है।"

"आपके मन में अगर अभी कुछ सवाल हैं तो बेशक पूछ सकते हैं।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने कहा____"हम भी उत्सुक हैं ये जानने के लिए कि इस मामले में अभी और क्या शेष है?"

"ये तो समझ आया कि अपनी नफ़रत के चलते अथवा ये कहें कि बदले की भावना के चलते गौरी शंकर ने अपने भाइयों सहित हमारे मुंशी चंद्रकांत के साथ गठजोड़ कर के ये सब किया।" पिता जी के कहा____"किंतु हम इन लोगों से ये भी जानना चाहते हैं कि इन लोगों ने अपने साथ किसी सफ़ेदपोश का ज़िक्र क्यों नही किया? जबकि शुरू से ही वो रहस्यमय आदमी हमारे छोटे बेटे वैभव को जान से मारने की फ़िराक में रहा है और इतना ही नहीं कई बार उसने उसके ऊपर जान लेवा हमला भी किया। और तो और अभी पिछली रात वो हमारी हवेली के बाहर बने कमरे से मुरारी के भाई जगन को भी छुड़ा ले गया।"

"मैं किसी सफ़ेदपोश को नहीं जानता ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने कहा____"बल्कि ये जान कर तो अब मैं खुद ही हैरान हो गया हूं कि हमारे अलावा भी कोई ऐसा था जो हवेली के किसी व्यक्ति को जान से मारना चाहता था।"

"तो आप ये कहना चाहते हैं कि ऐसे किसी सफ़ेदपोश को आप नहीं जानते?" पिता जी ने कहा____"और ना ही उससे आपका कोई ताल्लुक है?"

"अगर जानता तो क़बूल करने में मुझे भला क्या आपत्ति होती ठाकुर साहब?" गौरी शंकर ने कहा____"जब इतना सब क़बूल कर लिया है तो उसके बारे में भी क़बूल कर लेता।"

"तुम्हारा क्या कहना है उस सफ़ेदपोश के बारे में?" पिता जी ने मुंशी की तरफ पलट कर उससे पूछा____"क्या तुम्हें भी उसके बारे में कुछ नहीं पता?"

"हाहाहाहा।" पिता जी के पूछने पर मुंशी पहले तो ज़ोर से हंसा फिर बोला____"वैसे तो मैं ऐसे किसी सफ़ेदपोश के बारे में नहीं जानता और ना ही मेरा उससे कोई संबंध है लेकिन इस बात से मैं खुश ज़रूर हूं कि हमारे बाद भी अभी कोई है जो हवेली में रहने वालों से इस क़दर नफ़रत करता है कि उनकी जान तक लेने का इरादा रखता है। ख़ास कर इस वैभव सिंह की। ये तो कमाल ही हो गया, हाहाहा।"

मुंशी चंद्रकांत जिस तरीके से हंस रहा था उसे देख मेरा खून खौल उठा। गुस्से से मेरी मुट्ठियां भिंच गईं। जी किया कि अभी जा के उसकी गर्दन मरोड़ दूं मगर फिर किसी तरह अपने गुस्से को पी कर रह गया।

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और शानदार अपडेट है भाई बहुत मजा आया
भाग भाग कर गौरीशंकर और रुपचंद थक गये गौरीशंकर के मन शंका थी ही देर सबेरे वो पकडे जायेगे जो सही भी हुई
गौरीशंकर ने रुपचंद को नफरत की वजह बताते हुए उनसे हुई गलती और आगे उससे आगे परे होने की सलाह दी, परिवार की देखरेख और सावकार का वंश बढाने का बता कर मना लिया
पंचायत में सावकार ने गुनाह कबूल भी किया,वजह भी बतायी, दादा ठाकूर भी गुनाहगार है कहा
सावकारों की पत्नीया भी हतप्रथ हो गई
ये साला मुंशी बडा कमीना निकला
ईतना सब कुछ सामने आने के बाद भी ये सफेदपोश एक रहस्य ही बना रहा हैं खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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अरे, मैं कुछ दिन इधर आ न सका, तो आपने इस कहानी पर फ़टाफ़ट इतने सारे अपडेट लिख डाले?!!
फ़ुर्सत से पढ़ कर प्रतिक्रिया व्यक्त करता हूँ - उम्मीद है, कि उसके पहले कहानी का अंत नहीं होगा!
:) :)
 

kamdev99008

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अभी 1 बाकी है............... और वो सफेदपोश हवेली का ही है..................
 
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