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Mak

Recuérdame!
Divine
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Story: SURAJ

Written by: Black


A dark-themed story based on incest and adultery, which would be better if posted in the Story Section. This wasn't meant for the contest and the reason I am saying this is because almost all your characters are in the lead. A reader has to dwell on their different feelings throughout the story and you don't feel connected if every character doesn't get proper time and words to be described.

This could be a very good plot for a long story. A few parts of the story were unnecessary, had to skip it. Anyway, a good attempt but it could be improved a lot, don't want to get too much into it.

Best of Luck for the contest!
 

Sanki Rajput

Abe jaa na bhosdk
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Last Journey
कहानी के कर्ता धर्ता: आकाश

कहानी में सस्पेंस और डर का माहौल अच्छे से बनाया गया था जो मुझे अच्छा भी लगा। अर्णव का कैरेक्टर कुछ अलग सा लगा :D खैर उसकी गलती से शुरू होने वाले सफर की कहानी को आगे बढ़ाया गया लेखक द्वारा और कहानी में ट्विस्ट और अप्रत्याशित घटनाओ को निचोड़ कर पाठकों को पीने के लिए थमा दिया गया, और पाठको को जुड़े रखने में सबसे ज्यादा मदद इसी चीज ने की लेखक को। बातचीत और स्थितियों के माध्यम से सस्पेंस को बनाए रखने का प्रयास किया गया जो एकतरह से अच्छा रहा।

एक ब्लॉगर,जिसका अजीब गाँव में फंस जाना।
गाँव की अजीब घटनाएँ, वाइब तो अच्छी दिला रहीं थी पढ़ते वक्त और खास तौर पे अंतिम के वो अध्याय :chinki:

मेरी तरफ से कुछ गलतियां जो लेखक ने की :?:
• कहानी में कुछ जगहों पर डिटेल ओवरलोड रहा, अगर मैं गलत हु तो मुझे बताना।

• कहानी में संघर्षमयता की कमी रही, शायद से लेखक ने जल्दबाजी में तो नहीं लिखा न?


कहानी की खूबी:
• प्लॉट्स बहुत अच्छे लगे मुझे।
• सस्पेंसफुल नैरेटिव और अप्रत्याशित ट्विस्ट्स से पाठकों को जुड़ाए रखना :applause:

•अर्णव का कैरेक्टर को रियल और विश्वसनीय बनाया गया ऐसा लगा।

• बातचीत की वितरण ने कहानी में बहाव सा डाल दिया था।

• क्लाइमेक्स और क्लिफहैंगर एंडिंग ने पाठकों को गुस्सा तो दिलाया होगा जिसमे मैं शामिल हु :D

सब मिला कर कहे तो,ये कहानी एक रोचक थ्रिलर थी :?: जो पाठकों को सस्पेंसफुल यात्रा पर अपने साथ ले गई। कुछ गलतियाँ हैं लेकिन कहानी का प्रभाव कम नहीं करतीं वो। अगर प्लॉट को और संविधानित किया जाए तो यह एक बेहतरीन कहानी बन सकती है।

एक और अच्छी कहानी उभरते हुए पाठको के बीच:applause:
 

Mak

Recuérdame!
Divine
11,617
11,504
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Story: EVEN SO I BELIEVE MY FRIEND

Written by:
Flame Boy

Loved the story buddy, especially that conversation between friends made me relate to my friends. Maybe the sequences of scenes could have been presented in a little better way. Apart from that story seems pretty good. Also, I loved that you have tried to present that Bihari accent (तनी आउर बढ़िया से लिखल जा सकत रहे! ;) )

Best of Luck for the contest!
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
20,908
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Story: गहरी साजिश
Writer: rohnny4545

Story Plot: एडल्ट्री पर आधारित ये कहानी दो दोस्तों के बीच है, जिसमे कैसे दोनो एक दूसरे के मां से संबंध बना लेते हैं।

Treament: कहानी का फ्लो अच्छा था, और पेस भी बराबर बना रहा, कहीं भी अतिशयोक्ति नहीं लगी। पहले तो कहानी बहुत साधारण सी लगी जैसी इस फोरम में भरमार है। लेकिन सेक्स न लिख कर और आखिरी में जो ट्विस्ट दिया है आपने वो इस कहानी को पढ़ने के काबिल बनाता है।

Positive Points: बिना मतलब का सेक्स सीन नही है, बहुत ही अच्छे से चलती है कहानी, और आखिरी का ट्विस्ट बहुत ही बढ़िया है।

Negative Point: इस कहानी में कुछ लेखन की लगतियां है, लेकिन ओवर ऑल वो इग्नोर करने के लायक है।

Sugesstion: आपको पढ़ना अच्छा लगा, हालांकि ये कहानी इस पोटेंशियल की लगी नही मुझे की कंपटीशन में कई कहानियों से कंपीट कर पाए, लेकिन आशा है की अगली कहानी में आप कुछ नया ले कर आयेंगे, जो सब्जेक्ट वाइस बहुत शानदार हो।

Rating: 8/10
 

Black

From India
Prime
18,683
37,574
259
Story: SURAJ

Written by: Black

A dark-themed story based on incest and adultery, which would be better if posted in the Story Section. This wasn't meant for the contest and the reason I am saying this is because almost all your characters are in the lead. A reader has to dwell on their different feelings throughout the story and you don't feel connected if every character doesn't get proper time and words to be described.

This could be a very good plot for a long story. A few parts of the story were unnecessary, had to skip it. Anyway, a good attempt but it could be improved a lot, don't want to get too much into it.

Best of Luck for the contest!
This could be a very good plot for a long story



are you comedy me
Maathe pe itni story adhuri chhodne ka kalank hai
Tam ek aur story ko story section mein daalne ko keh re ho
Tam nahi jaante humara record
Long kab adhuri reh jaati hai
Pata hi nahi chalta

Aur rahi baat ki contest waali story nahi thi
Tamhein itna deeply penetrate karne ki jarurat na hai
aur kaunsa part unnecessary tha
pehle yeh batao

Bade aaye filmi Indian ke khoye hue bhai

Phir bhi koi baat nahi
Thanks for reading the story...
 
Last edited:

manu@84

Well-Known Member
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Riky007
स्टोरी :: "Experience"


दिल्ली की लड़कियों और मौसम के हाल चाल फोन पर पूछते हुए ढलती हुई जवानी की ओर अग्रसर पुराने दोस्तों की कहानी शुरु होती हैं, भाई साहब हमेशा याद रखे...!


" दिल्ली की कुड़ियों की एक ही खास बात, तीन चार बॉयफ्रेंड होना ये तो आम बात है "


ढलती हुई जवानी की ओर अग्रसर पुराने दोस्त काफी समय बाद मिलते है, अपने अपने राज बताते है... और सोमु के राज के साथ कहानी की शुरुआत होती हैं। सोमु अपने स्कूल टाइम में उर्वशी से attract होता है जो की खेली खाई लड़की थी। इस पूरे वाक्या को आपने बहुत ही बेहतर तरीके से लिखा.... मुझे बहुत कुछ बीता हुआ कल याद आ गया।


"तीस के बाद औरतो की सुंदरता 4 गुना और मर्दो का ठरकपन 8 गुना बढ़ जाता है "


सोमु जब 30 की उम्र बाद उर्वशी से मिला तो ठरकी हो चुका था, मजे लेना चाहता था मगर मुफ्त में.... लेखक महाशय मुफ्त में मूत नही मिलता तो सोमू को चू..... कैसे मिल सकती थी...?? मनपसंद स्त्री के साथ भोजन और चोदन के मामले में पैसे की कंजूसी करना अच्छी बात नही है। 😜


कहानी के अंत में उर्वशी को सड़क पर बुरी हालत में बैठे होने का कारण शायद वो जिस्म के सौदे के साथ साथ नशे की भी शिकार हो गयी होगी, नशा ही उसकी इस हालत का जिम्मेदार रहा होगा।


" ये दृश्य एक मसहूर् हीरोइन परवीन बॉबी की याद दिलाता है, वो भी इसी तरह सड़क पर महेश भट्ट साहब को मिली थी "


कहानी शुरु से लेकर अंत तक बहुत ही तेजी से चलती है, पाठको को बांधने में सफल रहती है, शॉर्ट स्टोरी में कम शब्दो में कहानी को मुकाम पर पहुँचना कठिन होता है, राइटर ने इस कार्य को बखूबी किया है।


निष्कर्ष :: मै प्रोफेसर हू, और आपने मेरी कोचिंग में मुझसे private ट्यूशन नही ली है, इसलिए नम्बर वगेरा भूल जाओ। नम्बर चाहिए तो एक साल की फीस एडवांस मे जमा कर क्लास जॉइन करिये 😔


अतः कहानी पर नम्बरों को देने का कार्य जूरी, पूरी ईमानदारी से करेगी...।


धन्यवाद....
 

manu@84

Well-Known Member
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Review
Story - कामावतार
Writer - manu@84

Plot - ek gareeb aur kam padhai likha ladka jainendra, jo ek tarah se jivan ke har makam par asafal hai aur kam vasna me lipt hai, uska jivan ek din bhagya se badalta hai jab uski mulakat KD se hoti hai, jiske baad vo apne rajya ka Jonny sins (gigolo - purush vaishya) ban jata hai.

Kahani jis vishay par likhi gyi hai vo purana hokar bhi naya tha, aisi kahani aksar sirf ek stree vaishya ke najariye se dekhi hai, ek purush vaishya par kuch naya tha.

Jis tarah kahani me metaphors aur muhavaro ka istemal karke likhi gyi hai vo bhi kafi acha tha.
Jaise - "

Kahani ka narration bhi kafi acha hai. Writing jod ke rakhti hai.
Ek baar me writer ne jyada se jyada experience jo kisi male prostitute ko ho sakte hai unhe dalne ki koshish ki hai aur kuch hadd tak usme kamyab bhi hue ho.

Overall I liked the story bas kahani ki ending uske sath insaf nahi kar pati, vo mujhe kuch khas pasand nahi aayi.

Good story

8/10
देर से आये, लेकिन दुरुस्त आये...... बहुत बहुत शुक्रिया आपने अपना वक्त निकाल कर मेरी इस कृति को दिया। मुझे बहुत खुशी हुयी मेरी लेखनी पाठकों के ह्रदय तक पहुँच रही है, आप विश्वास नहीं करेंगे मैने कहानी के माध्यम से खुद को भी लिखने का प्रयास किया है। जो लाइन आपको सबसे ज्यादा पसंद आई वो.. मैने खुद के ऊपर ही लिखी है।

कहानी का अंत शुरवात से भी बेहतर लिखा गया था, लेकिन 1000 शब्दो का अतिरिक्त भार प्रतियोगिता के नियमो का नही झेल सका। और मुझे सब मिटाना पड़ा। मैने इस संदर्भ में lucifer और अन्य लोगों से चर्चा की थी कि कहानी को दो पार्ट में लिख कर पूर्ण कर दू। किंतु अनुमति नही मिली। जिसका दुःख आज मुझे हो रहा है। क्योकि मेरे पाठक कहानी के अंत से संतुष्ट नही हो पा रहे है।

आपके रिव्यू के लिए बहुत बहुत आभार धन्यवाद 🙏
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Riky007
स्टोरी :: "Experience"


दिल्ली की लड़कियों और मौसम के हाल चाल फोन पर पूछते हुए ढलती हुई जवानी की ओर अग्रसर पुराने दोस्तों की कहानी शुरु होती हैं, भाई साहब हमेशा याद रखे...!


" दिल्ली की कुड़ियों की एक ही खास बात, तीन चार बॉयफ्रेंड होना ये तो आम बात है "


ढलती हुई जवानी की ओर अग्रसर पुराने दोस्त काफी समय बाद मिलते है, अपने अपने राज बताते है... और सोमु के राज के साथ कहानी की शुरुआत होती हैं। सोमु अपने स्कूल टाइम में उर्वशी से attract होता है जो की खेली खाई लड़की थी। इस पूरे वाक्या को आपने बहुत ही बेहतर तरीके से लिखा.... मुझे बहुत कुछ बीता हुआ कल याद आ गया।


"तीस के बाद औरतो की सुंदरता 4 गुना और मर्दो का ठरकपन 8 गुना बढ़ जाता है "


सोमु जब 30 की उम्र बाद उर्वशी से मिला तो ठरकी हो चुका था, मजे लेना चाहता था मगर मुफ्त में.... लेखक महाशय मुफ्त में मूत नही मिलता तो सोमू को चू..... कैसे मिल सकती थी...?? मनपसंद स्त्री के साथ भोजन और चोदन के मामले में पैसे की कंजूसी करना अच्छी बात नही है। 😜


कहानी के अंत में उर्वशी को सड़क पर बुरी हालत में बैठे होने का कारण शायद वो जिस्म के सौदे के साथ साथ नशे की भी शिकार हो गयी होगी, नशा ही उसकी इस हालत का जिम्मेदार रहा होगा।


" ये दृश्य एक मसहूर् हीरोइन परवीन बॉबी की याद दिलाता है, वो भी इसी तरह सड़क पर महेश भट्ट साहब को मिली थी "


कहानी शुरु से लेकर अंत तक बहुत ही तेजी से चलती है, पाठको को बांधने में सफल रहती है, शॉर्ट स्टोरी में कम शब्दो में कहानी को मुकाम पर पहुँचना कठिन होता है, राइटर ने इस कार्य को बखूबी किया है।


निष्कर्ष :: मै प्रोफेसर हू, और आपने मेरी कोचिंग में मुझसे private ट्यूशन नही ली है, इसलिए नम्बर वगेरा भूल जाओ। नम्बर चाहिए तो एक साल की फीस एडवांस मे जमा कर क्लास जॉइन करिये 😔


अतः कहानी पर नम्बरों को देने का कार्य जूरी, पूरी ईमानदारी से करेगी...।


धन्यवाद....
2 बातें शेयर करना चाहूंगा।

स्टोरी का बैकड्रॉप दिल्ली नही है। दूसरा, स्टोरी लगभग 25 साल पुरानी है। और दिल्ली से दूर उस समय दिल्ली बहुत दूर हुआ करती थी। बाकी बातों से सहमत हूं, और उनको क्लियर भी किया है।
 

Shetan

Well-Known Member
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" चौबीस घंटे "


9 P.M.

लंदन का ' ओरिएंटल गोल्डन स्टार ' शिप मुंबई के बंदरगाह पर एक घंटा पहले लग चुका था और लगभग सभी यात्री सैर सपाटे के लिए जहाज पर से कूच कर चुके थे । यह एक यात्रीवाहक जहाज था । जीत डैक पर दांये - बांये निगाह दौड़ाते हुए आगे की तरह बढ़ा तभी कैप्टन ने उसे नाम लेकर पुकारा ।
जीत छ फुट से भी ऊपर कद का खूब मोटा व्यक्ति था । वह अभी केवल छब्बीस वर्ष का था लेकिन वजन मे वह एक सौ किलो से भी अधिक था । उसके विशाल आकार की वजह से लोग उसे रोलरोवर , बुलडोजर भी कहते थे ।

" चौबीस घंटे " - कैप्टन बोला - " सिर्फ चौबीस घंटे रूकने वाला है हमारा जहाज इस बंदरगाह पर ।"
" मुझे मालूम है " - जीत बड़े अदब से बोला।
" अभी मालूम है । लेकिन विस्की का गिलास हाथ आते ही सब भूल जाओगे ।"
" ऐसा नही होगा सर ।"
" पिछली बार की तरह इस बार मै तुम्हारा इन्तजार नही करने वाला । इसलिए याद रखना सिर्फ चौबीस घंटे । इसी वक्त रात को नौ बजे जहाज यहां से रवाना हो जाएगा। "
" यस सर। "
" आइन्दा इस दरम्यान तुम शराब पीते हो या उसमे गोते लगाते हो , यह तुम्हारा जाती मामला है लेकिन कोशिश करना इतना होश रहे कि टाइम पर जहाज पर पहुंच सको। "
" यस सर। "

जीत भारतीय मूल का लंदन निवासी था । उसकी मां का देहांत उसके बचपन मे ही हो गई थी । उसके पिता ने तब दूसरी शादी कर ली थी । उसके पिता लंदन के एक बड़ी कंपनी के बोर्ड आफ डायरेक्टर्स मे से एक थे । जीत इश्क मे खता खाया हुआ नौजवान था। एक लड़की ने ऐसा दिल तोड़ा कि वो अपनी जान दे देना चाहता था। किसी तरह खुद को तो सम्भाला पर अपने जेहन से उसे निकाल नही सका। फिर उसने शराब का सहारा लिया लेकिन यह भी कारगर सिद्ध न हुआ। आखिर उसने अपने पिता के सिफारिश पर उनके एक रईस दोस्त की शिपिंग कंपनी मे नौकरी ज्वाइन कर लिया। उसे लगता था कि जहाज की नौकरी मे खुद को व्यस्त भी रख सकेगा और देश - दुनिया का भ्रमण कर लड़की की यादों को कुछ हद तक मिटा भी देगा।
वैसे जहाज जब सफर पर होता था तो वहां की रौनक मे उसका दिल लगा रहता था। जहाज बंदरगाह पर लगता था तो फिर उसके कदम बंदरगाह पर पड़ते ही - फिर होती थी बोतल उसके हाथ मे और वो बोतल मे।

--

10 P.M.

जीत अबतक के चार साल की नौकरी मे यह बखूबी जान चुका था कि हर बंदरगाह के इलाके मे बार बहुतायत मे होते है। ऐसा ही एक बार बंदरगाह कुछ दूर वह तलाश कर चुका था।
उस बार का नाम डिमेलो बार था और उस वक्त वह ग्राहको से खचाखच भरा हुआ था। सिगरेट के धूंए और शोर - शराबे से वह पुरी तरह रचा बसा था। ये उसके पसंद की जगह निकली थी। चेतना पर हावी हो जाने वाला शोर- शराबा । तन्हाई का दुश्मन शोर । किसी गम, किसी याद को घोलकर पी जाने के लिए हासिल शराब।
कोई आठ पैग विस्की पी चुका था।

भयंकर नशे की तरफ वह निरंतर अग्रसर हो रहा था।लेकिन फिर भी उसको देखकर यह कहना मुहाल था कि वह नशे मे था।

जीत के बगल की मेज पर तीन आदमी किसी बात पर बहस कर रहे थे। कभी-कभार उनकी आवाज बहुत ऊंची हो जाती थी। ऐसे ही एक अवसर पर उनकी आवाज से आकर्षित होकर जीत ने उनकी तरफ देखा तो पाया कि एक भारी भरकम लेकिन ठिगना व्यक्ति था और दूसरा दुबला - पतला, बांस जैसा लम्बा था। तीसरा व्यक्ति एक साधारण कद काठ का लगभग साठ वर्षीय व्यक्ति था। उनके वार्तालाप से जीत ने यह भी जाना था कि पतले से व्यक्ति का नाम टोनी , मोटे का भीमराव और बुजुर्ग का नाम जीवनलाल था।

जीत को अचानक सिगरेट की तलब महसूस हुई । उसने अपने कोट के जेब मे हाथ डाला तो पाया कि सिगरेट तो मौजूद था पर लाइटर वहां नही था।
" शायद जहाज पर ही रह गया है " जीत ने सोचा और फिर वो बगल वाले मेज पहुंच कर बोला - " भाई साहब , आपलोगों मे से किसी के पास लाइटर है क्या ? मेरा लाइटर शायद जहाज पर छूट गया है। "
तीनो ने चौंककर उसकी तरफ देखा । उसकी वर्दी उसके सेलर होने की बयां कर रही थी।

" जाओ अपना काम करो!" - टोनी सख्ती से बोला।
" ठीक है "- जीत तनिक आहत भाव से बोला और फिर उसने उनकी तरफ से पीठ फेर ली।
तभी जीवनलाल ने उसे रोका और अपने जेब से लाइटर निकाल कर दे दिया।
" थैंक्यू भाई । मै अभी वापस करता हूं " जीत कृतज्ञता पूर्वक बोला।
" कोई बात नही। तुम इसे रख सकते हो "- जीवनलाल ने मुस्कराते हुए कहा।

जीत अपनी सीट पर वापस लौटा , सिगरेट सुलगाया और अपनी शराबखोरी मे मशगूल हो गया । और कई पैग पी चुकने के बाद उसने बगल के मेज पर सरसरी निगाह दौड़ाई तो पाया कि वो मेज खाली था। उसे ख्याल ही नही आया कि तीनो ने कब वहां से पलायन किया।
वो पेमेंट कर बार से बाहर निकला। आखिर उसे एक होटल भी ढूंढना था जहां अपनी रात गुजार सके।

11.30 P.M.

वह झूमता हुआ बार से बाहर निकला तभी एक लड़की उससे टकराई । " स..सारी "- जीत बिना लड़की की तरफ निगाह उठाए होठों मे बुदबुदाया और सड़क पर आगे बढ़ गया।

लड़की अपने फोन से किसी को काॅल कर रही थी । उधर से " हैलो" की आवाज आते ही बोली -
" हेल्लो राज , मै वर्षा बोल रही हूं। "
" वर्षा !"- दूसरी ओर से आवाज आई -" इस वक्त कहां से बोल रही हो ?"
" डिमेलो बार के बगल से ।आज एक इमर्जेंसी मिटिंग की वजह से देर हो गई। अब लौटने मे दिक्कत आ रही है। कोई टैक्सी भी नजर नही आ रही है। शुक्र है तुम फोन पर मिल गए। अब बराय मेहरबानी तुम अपनी कार पर यहां आकर मुझे ले जाओ। "
" वर्षा , तुम ऐसा करो , बार के सामने ही एक गली है, तुम उस गली को पार कर मेन रोड पर आ जाओ। "
" वहां क्यों?"
" क्योंकि जहां पर तुम हो , वहां आजकल सड़क मरम्मत के लिए रास्ता बंद है। मुझे काफी लम्बा चक्कर काट कर आना पड़ेगा। तुम वह जरा सी गली पार करके एम जी रोड पर आओगी तो हम जल्दी घर पहुंच जाएंगे। "
" ठीक है । मै आती हूं। "

---


टोनी और भीमराव बंदरगाह इलाके के छटे हुए बदमाश थे। चोरी , डकैती , स्मगलिंग इनका मेन धंधा था। जीवनलाल से दोस्ती इनकी ताजा ताजा हुई थी। जीवनलाल मुंबई के अंडरवर्ल्ड के एक बड़े डाॅन का एक साधारण सा बंदा था जिसका काम ड्रग्स खपाने का था। वो अमूमन रोजाना चार पांच लाख रुपए का ड्रग्स कैरी करता और उसे बेचने का प्रयास करता। लेकिन संयोगवश आज की रात उसके पास करीब बीस लाख रुपए का ड्रग्स मौजूद था और इसके लिए टोनी और भीमराव ने उसे एक मालदार आसामी से सौदा कराने का आश्वासन दिया था।
जबकि टोनी और भीमराव के इरादे कुछ और ही थे और वो बहुत ही खतरनाक थे।

--

वर्षा गली के मध्य मे पहुंच गई तो उसे लगा कि वह गली का एकलौता राहगुज़र नही थी। अपने पीछे से किसी के कदमो के आवाज उसे निरंतर सुनाई दे रही थी। उस सुनसान गली मे उसके पीछे निश्चय कोई था।
उसने एक बार सावधानी से घूमकर अपने पीछे निगाह दौड़ाई तो उसे अंधेरी गली मे कोई दिखाई नही दिया।
जरूर उसे पीछे घूमता पाकर वह किसी पेड़ के पीछे छुप गया था। उसने जल्दी जल्दी गली पार कर जाना ही मुनासिब समझा। उसके दोबारा चलना शुरू करते ही पीछे से कदमो की आहट फिर से सुनाई देने लगी।
वह और भी भयभीत हो उठी। उसने एक बार फिर घूम कर पीछे देखा। उसी क्षण पीछे आता व्यक्ति एक स्ट्रीट लाइट के नीचे से गुजरा ।

---

जीवनलाल के साथ टोनी और भीमराव जब खंडहर इमारत मे दाखिल हुआ तो जीवनलाल सकपकाते हुए बोला -" यह तुम कहां ले आए हो मुझे?"
" कस्टमर के पास "- टोनी बोला।
" यहां ? इस खंडहर मे?"
" उसने मिलने के लिए यही जगह चुनी थी। "
" वह भीतर है?"
" हां। "
" मुझे तो नही लगता भीतर कोई है। "
" वह पिछवाड़े मे है। "

जीवनलाल को अब खतरे का अंदेशा लगने लगा था।
वह एक कदम पीछे हटा और वापिस घूमा।

" मोटे "- टोनी सांप की तरह फुंफकारा -" पकड़ हरामजादे को। "
भीमराव ने फौरन उसे दबोच लिया।
टोनी के हाथ मे कोई एक फुट का लोहे का रड प्रकट हुआ। उसका हाथ हवा मे उठा और फिर वह गाज की तरह जीवनलाल की खोपड़ी पर गिरा।

---


वर्षा ने देखा कि वह एक हाथी जैसा विशालकाय व्यक्ति था। वह घबराकर आगे बढ़ी। सर्वत्र सन्नाटा छाया हुआ था। कहीं कोई आवाज नही थी सिवाय उन कदमो की आहट के जो वर्षा को अपने पीछे से आ रही थी।

सामने कोने मे एक खंडहरनुमा इमारत थी। किसी अज्ञात भावना से प्रेरित होकर आगे बढ़ने के स्थान पर वह इमारत के कंपाउंड के टूटे फाटक के भीतर दाखिल हो गई। दबे पांव वह इमारत के बरामदे तक पहुंची और स्तब्ध खड़ी पंजो के बल उचक कर बाहर गली मे देखने लगी।

साया गली मे उसके सामने एक साया प्रकट हुआ।
वर्षा हड़बड़ाकर भीतर गलियारे मे सरक गई।

इमारत के सामने साया ठिठका। वह सहमकर दो कदम पीछे हट गई। साया अनिश्चित सा गली मे खड़ा आंधी मे हिलते ताड़ के पेड़ की तरह झूम रहा था।

तभी इमारत के भीतर कहीं हल्की सी आहट हुई। वर्षा को अपनी सांस रूकती सांस महसूस हुई।

क्या भीतर भी कोई था? अब उसे इमारत मे कदम रखना अपनी महामूर्खता लगने लगी थी।
कौन था भीतर ? कोई जानवर या...
उसे दहशत होने लगी।

भीतर फिर आहट हुई। वह आंखे फाड़ फाड़कर गलियारे मे देखने लगी। यह उसकी खुशकिस्मती थी कि गलियारे मे वह दो कदम और आगे नही बढ़ आई थी वर्ना जीवनलाल के साथ साथ उसका भी काम तमाम हो जाना था।

जहां वो खड़ी थी, उस गलियारे के सिरे पर विशाल हाल था और हाल से पार फिर गलियारा था। उस परले गलियारे मे वर्षा को एक साया दिखाई दिया।
" हो गया काम "- पिछले गलियारे से एक दबी हुई आवाज आई।
" हां। "
" तो फिर हिलता क्यों नही यहां से?"
" मै देख रहा था कि इसका क्या हाल है?
" अब इसका हाल इसका बनाने वादा देखेगा। इसे छोड़ और चल यहां से।"
भीतर से टोनी और भीमराव बरामदे मे प्रकट हुए और वर्षा के बहुत करीब से गुजरते हुए फाटक से बाहर निकले।

---

" भाई साहब!"

दोनो चौंके।
जीत , जो वहीं नीचे बैठा हुआ था, उन्हे देखकर खड़ा हुआ और झूमता हुआ उन दोनो के करीब पहुंचा।
टोनी का हाथ तत्काल कोट की जेब मे पड़े लोहे की रड से लिपट गया।

" भाई साहब "- जीत की जुबान नशे से लड़खड़ा रही थी और बड़ी कठिनाई से बोल पा रहा था -" आप कहां है?"
" क्या मतलब "- टोनी तीखे स्वर मे बोला।
" मेरा मतलब , मै "- जीत ने झूमते हुए एक हाथ से अपनी छाती ठोंकी -"मै कहां हूं?"
" यह टुन्न है "- भीमराव फुसफुसाया -" इसे छोड़ो , इसे इस वक्त खुद की खबर नही ।"
" तुम "- टोनी बोला-" जमीन के ऊपर हो और आसमान के नीचे हो ।"
" जमीन कहां है, भाई साहब ?"
" जमीन आसमान के नीचे है और आसमान जमीन के ऊपर है और तुम दोनो के बीच हो। "
" वाह! वाह, भाई साहब! क्या पता बताया है आपने। मेहरबानी आपकी। एक आखिरी बात और बताते जाइए। "
" पूछो। "
" यह "- जीत ने खंडहर इमारत की तरफ संकेत किया-" कोई होटल है ?"
" हां "- टोनी बोला-" यह होटल ताज है ।"

भीमराव ने टोनी को बांह पकड़कर घसीटा और वहां से चलते बना।

--

गली खाली हो गई तो वर्षा की जान मे जान आई। तभी पीछे इमारत से एक अजीब आवाज आई। किसी के कराहने की आवाज थी। कराह मे ऐसी बेवसी थी कि फौरन वहां से भाग निकलने को तत्पर वर्षा के पांव जड़ हो गए। भीतर जो कोई था , बहुत तकलीफ मे था।

वह वापस गलियारे मे दाखिल हुई । अंधेरे मे अन्दाजन चलते हुए गलियारे के पीछे एक कमरे मे पहुंची । उसने बहुत गौर से देखा तो पाया कि वह एक इंसानी जिस्म था।

" कौन है ?"- वो आतंकित भाव से बोली।

कोई उत्तर नही मिला। फर्श पर पड़ा व्यक्ति मर चुका था।
फिर एकाएक वर्षा की सारी हिम्मत दगा दे गई । वो चिखती - चिल्लाती तुफानी रफ्तार से खंडहर के मलवे और कुडे करकट से उलझती , गिरती - पड़ती वापिस भागी ।
जब ही वो मेन रोड पर पहुंची तो वहां राज को कार मे बैठे पाया।

" राज "- वर्षा के मुंह से चैन की सांस निकली।
" क्या हुआ?"- राज बोला।
" उस..उस खंडहर इमारत मे..एक आदमी मरा पड़ा है ।"
" आदमी मरा पड़ा है ! तुम्हे कैसे मालूम?"
" मैने उसे देखा था। "
राज ने उसे हैरत भरी नजरो से देखा ।
" तुम वहां क्या करने गई थी ?"

वर्षा ने सबकुछ बताया कि क्या हुआ था। राज के जोर देने पर वो पैदल खंडहर इमारत पर वापिस लौटे लेकिन वहां कोई लाश नही थी ।

राज ने अपने लाइटर की रोशनी फर्श पर डाली ।

" यहां खून तो दिखाई दे रहा है "- राज धीरे से बोला -" खून ताजा भी है ।" - वह एक क्षण ठिठका और फिर बोला-" वर्षा, वह शख्स मरा नही होगा, वह सिर्फ घायल हुआ होगा और तुम्हारे यहां से कूच करने के बाद यहां से उठकर चला गया होगा । कोई मुर्दा यहां से आनन फानन गायब नही हो सकता ।"
वर्षा खामोश रही।

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" माई डियर फ्रैंड "- नशे मे धूत जीत कह रहा था-" विस्की खतम हो गई। अफसोस है। लेकिन कहीं तो और मिलती होगी। अबी तलाश कर लेंगे दोनो शराबी भाई। तुम जरा संभलकर चलो। मेरे ऊपर ही मत गिरते जाओ "
जीवनलाल की एक बांह जीत की गर्दन के गिर्द थी और जीत की बांह उसकी कमर मे लिपटी हुई थी । एक तरह से जीत उसे उठाए उठाए गली मे चल रहा था।

नशे मे जीत खंडहर इमारत मे दाखिल हुआ था जिसके बारे मे अभी कोई भला आदमी उसे बताकर गया था कि वह ताजमहल होटल था। वहां कमरे मे उसने जीवनलाल को अचेत पड़ा देखा था । नीचे एक पर्स भी पड़ा था जिसे उठा कर अपने जेब मे डाल लिया और फिर जीवनलाल को वहां से उठाया और उसे यह समझाता हुआ पिछवाड़े के रास्ते से बाहर गली मे ले आया था कि यह कोई होटल नही था , जरूर उसी की तरह किसी ने उसके साथ भी मजाक किया था ।

" घबराओ नही, मेरे भाई "- जीत फिर उसे आश्वासन देने लगा-" अभी हम कोई अच्छा-सा होटल तलाश कर लेंगे और फिर दोनो शराबी भाई वहां पड़ जायेंगे। "

उस वक्त वह एक अंधेरे मैदान से गुजर रहा था जहा कई खस्ताहाल गाड़ियां खड़ी थी।

" अब अपने आप चल, मेरे भाई। "- जीत रूका और उसने जीवनलाल की कमर से बांह निकाल ली।
जीवनलाल धड़ाम से जमीन पर गिरा।

" अरे!"- जीत फिर उसे उठाने का उपक्रम करने लगा-" तु..तो अपने पैरो पर खड़ा भी नही हो सकता। इतनी क्यों पीता है, मेरे भाई? क्या तुने भी कलेजे पर चोट खाई है? किसी छोकरी ने दिल तोड़ा तेरा ! तु बोलता क्यों नही दोस्त? मत बोल! मै जानता हूं । जरूर यही बात है। तभी तो इतना पीता है। मेरे भाई, हम दोनो एक ही राह के राही है इसलिए मै तुझे यूं बेसहारा नही छोड़ सकता। मै तेरी मदद करूंगा। तु उठ। उठकर खड़ा हो। इधर आराम से बैठ जा। "

जीत ने उसे एक टूटी हुई, बिना दरवाजे की, कार की पिछली सीट पर ढेर कर दिया।
" घबराना नही "- जीत उसे आश्वासन देता हुआ बोला-" मै होटल की तलाश मे जाता हूं और तेरे लिए एक कमरा ठीक करके वापिस आता हूं। घबराना नही डियर, मै गया और आया। "

12.20 A.M.

पन्द्रह मिनट बाद जीत एक साधारण होटल के एक कमरे मे था। चल -चलकर थका हुआ वो थोड़ी देर के लिए पलंग पर बैठ गया। बैठा तो लेट गया। लेटा तो सो गया। सोया तो जैसे उसके लिए दीन दुनिया खत्म हो गई।
उसे याद भी न रहा कि वह वहां अपने कथित फ्रैंड के लिए रैन बसेरा तलाश करने आया था और तलाश मुकम्मल हो जाने के बाद उल्टे पांव वापिस लौटना था।

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वर्षा बंदरगाह एरिया से लगभग दो किलोमीटर दूर एक पेइंग गेस्ट के तौर पर रहती थी। वो एक मल्टीनेशनल कंपनी मे जाॅब करती थी और वहीं राज भी एक बड़ी कंपनी का एच आर था । दोनो एक दूसरे से मोहब्बत करते थे और फ्यूचर मे शादी की भी प्लानिंग थी। वर्षा के मां-बाप पूना मे रहते थे । राज की बहुत ख्वाहिश थी कि वर्षा उसके परिवार के साथ बांद्रा मे रहे लेकिन वर्षा की जिद थी कि वह एक ही बार वहां कदम रखेगी और वो शादी के बाद।

राज के साथ वर्षा जब अपने घर पहुंची तो उसने पाया कि उसका पर्स उसके पास नही था। वो मन ही मन बड़े संशक भाव से सोच रही थी कि कहीं पर्स उसी खंडहर मे तो नही गिरा आई वो । या फिर कंपनी के आफिस मे छुट गया हो।

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इधर टोनी और भीमराव ने जीवनलाल के कब्जे से हासिल हुए माल का बंटवारा कर लिया था। लेकिन भीमराव को बार-बार इस बात का डर सता रहा था कि कहीं जीवनलाल किसी करिश्मे से बच गया हो तो उनके इस कारनामे की खबर उसके बाॅस को लगनी ही लगनी थी। और फिर चौबीस घंटे के भीतर उनकी लाश मुंबई के समुद्र मे तैरते हुए नजर आयेगी।

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अगला दिन- 10.A.M.

सुबह जब जीत की नींद खुली तो उसने पाया कि पिछली रात वह ओवरकोट और जूते समेत पलंग पर ढेर हो गया था।
उसने कपड़े उतारे और बाथरूम मे दाखिल हो गया।

जब से वह जागा था, उसके भीतर से बार बार कोई पुकार उठ रही थी कि जिसे वह समझ नही पा रहा था।
कल रात उसके साथ कोई था।
कोई ऐसा शख्स जिसे उसकी मदद की जरूरत थी ।
कहां गया उसका साथी?
कहां मिला था वह उसे? कहां बिछुड़ा था वह उससे? क्यों उसे किसी की मदद की जरूरत थी? क्या हुआ था उसे?

जीत ने अपना सिर अपने दोनो हाथो मे थाम लिया और उन सवालों के जवाब सोचने लगा।
उसे कुछ भी न सूझा।

" उसे ढूंढना होगा "- उसकी अंतरात्मा कह रह थी -" उसे मेरे मदद की जरूरत थी। मुमकिन है वह अभी भी मेरा इन्तजार कर रहा हो। "
वह कमरे से फिर होटल से बाहर निकल आया।

जीत को धीरे धीरे इतना याद आ गया था कि उसने अपना अधिकतर वक्त एक ऐसे बार मे गुजारा था जो बंदरगाह इलाके के बिल्कुल करीब था। उस शिनाख्त को जेहन मे रखकर उसने बंदरगाह इलाके के हर बार मे घूमना आरंभ किया।

11 A.M.

आखिरकार वो डिमेलो बार मे पहुंचा । उस वक्त बार मे कोई दस बारह लोग ही मौजूद थे ।
वह सीधा काउन्टर पर पहुंचा और बारमैन को ड्रिंक का आर्डर दिया।
शराब पीने के दौरान वो बारमैन से सम्बोधित हुआ और इस दरम्यान वह यह जाना कि बारमैन को उसके पिछली रात के बार मे आने की खबर याद थी और इसका कारण उसका विशाल शरीर , शरीर पर सेलर की वर्दी और कई पैग विस्की पीना था । बारमैन से उसे यह भी मालूम हुआ कि वह एक बार के लिए अपने बगल के मेज पर गया था जहां पर तीन आदमी बैठे हुए थे।
जीत के पूछने पर बारमैन ने उन आदमियों का हुलिया बताया जिनमे एक मोटा और ठिगना व्यक्ति था और दूसरा लम्बा और पतला था । तीसरा शख्स साधारण कद का अधेड व्यक्ति था ।
जीत को यह याद तो नही आया लेकिन एक मोटे और एक पतले व्यक्ति का जिक्र आने से उसे कुछ कुछ याद आने लगा कि ऐसे ही दो लोगों से वो किसी उजाड़ इमारत के सामने मिला था ।
" एक अंधेरी गली । एक उजाड़ इमारत । शायद मै भटक गया हुआ था और मैने उन दोनो से रास्ता पूछा था " - जीत स्वयं से बोला ।
टोनी और भीमराव करीब ही एक मेज पर बैठे थे और कान लगाये बारमैन और जीत का वार्तालाप सुन रहे थे। जीत को उन्होने पहचान लिया था लेकिन जीत की आखिरी बात सुनकर दोनो के छक्के छुट गए ।

" वह बहुत बड़ा मकान था "- जीत कहे जा रहा था-" लेकिन खंडहर लग रहा था और..."

" यह मरवाएगा " - भीमराव घबराकर बोला-" इसे चुप कराओ। "
टोनी ने चिंतित भाव से सहमति मे सिर हिलाया।

जीत ने सिगरेट पीने के मकसद से अपने ओवरकोट के जेबों मे हाथ डाला तो उसके दायें हाथ की उंगलियां जेब मे पड़ी एक अपरिचित चीज से टकराई । उसने वह चीज बाहर निकाली तो पाया कि वह एक जनाना पर्स था।
वह अपलक उस पर्स को देखता रहा ।
उसे कुछ बातें याद आ रही थी।

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1 P.M.

जीत ने वर्षा के घर के बाहर दस्तक दिया । पर्स मे से बरामद हुए पते के सहारे वो वर्षा के एड्रेस तक पहुंचा था।
दरवाजा खुला।

चौखट पर जो युवती प्रकट हुई , उसे देखते ही जीत के नेत्र फट पड़े। पलक झपकते ही उसका सारा नशा काफूर हो गया।
" शनाया!"- वह भौचक्का-सा बोला।
" शनाया "- युवती हैरानी से बीली-" कौन शनाया?"
" तुम यहां ? मुंबई मे!"
" मिस्टर, यह क्या बड़बड़ा रहे हो तुम ? किससे मिलना है तुम्हे?"
" मिलना तो मुझे मिस वर्षा गौतम से है लेकिन , शनाया, तुम यहां?"
" यहां कोई शनाया नही रहती। और मै ही वर्षा गौतम हूं। "
" तुम "- जीत मन्त्रमुग्ध-सा बोला-" शनाया नही हो। "
" नही। कहा न मेरा नाम वर्षा गौतम है। "
" कमाल है। ऐसा कैसे हो सकता है?"
" क्या कैसे हो सकता है?"
" दो सूरतों मे इतनी समानता। "
" तुम्हारा मतलब है मेरी सूरत किसी शनाया से मिलती है। "
" मिलती क्या , हूबहू मिलती है। कहीं कोई फर्क नही। "
" शनाया कौन है?"
" अगर आप शनाया नही है तो वह है कोई। "
" और तुम कौन हो?"
" मेरा नाम जीत है। जीत सिंह। जहाज पर सेलर हूं और आज रात नौ बजे तक ही मुंबई मे हूं। "
"मुझसे क्या काम था?"
जीत ने ओवरकोट की जेब मे से पर्स निकालकर उसकी तरफ बढ़ाया।
" यह तुम्हारा है?"
" हां "- वर्षा ने झपटकर पर्स उसके हाथ से ले लिया-" तुम्हे कहां मिला यह?"
" यह तो तुम मुझे बताओ?"
" मतलब?"
" जहां यह पर्स तुमने छोड़ा होगा, वहीं से मैने इसे उठाया होगा। अगर तुम मुझे बताओगी कि तुमने इसे कहां खोया था तो मुझे मालूम हो जाएगा कि कल रात मै कहां था। "
" तुम्हे नही मालूम कि कल रात तुम कहां थे?"
" नही "- जीत के स्वर मे खेद का पुट था-" दरअसल कल रात मै नशे मे था। "
" नशे मे तो तुम अब भी हो। "
" कल रात मै हद से ज्यादा नशे मे था। "
" मूझे तो याद नही कि पर्स मैने कहां गिराया था। "
" ओह!"
जीत चेहरे पर निराशा का भाव लिए अनिश्चित सा खड़ा रहा।
" वैसे तुम जानना क्यों चाहते हो कि कल रात तुम कहां थे?"

वर्षा ने उसे अंदर बुलाया और बड़े सब्र के साथ जीत की सारी कहानी सुनी।
" तुम उस आदमी को जानते नही , तुमने ठीक से उसकी सूरत तक नही देखी, तुम्हे यह तक पता नही कि वह तुम्हे कहां मिला था लेकिन तुम उसकी तलाश कर रहे हो। "
" हां। "
" क्यों?"
" क्योंकि कल रात मैने जहां उसे देखा था , वह बेचारा अभी भी वहीं पड़ा हो सकता है। वह बेचारा घायल था। चलने फिरने से लाचार था। हो सकता है अभी भी वह उसी हालत मे कहीं पड़ा हो और मेरी मदद का इन्तजार कर रहा हो। "

साधारणतया वर्षा अजनबियों से बहुत परहेज करती थी और शराबी आदमी से तो उसे वहशत होती थी । जीत मे दोनो खामियां थी लेकिन पता नही क्यों उसे वह आदमी बहुत ही नेक और शरीफ लग रहा था।
उसने कुछ क्षण सोचा और अपनी पिछली रात की सारी घटनाएं उसे सुना दी।

" खंडहर मकान !"- जीत सोचता हुआ बोला-" जिसकी सिर्फ दीवारें खड़ी थी और तकरीबन छतें गिर चुकी थी। "
" हां। "
" तुम्हारे ख्याल से वहां दो आदमी और थे। "
" हां। "
" जीत कुछ देर तक सोचता रहा। फिर बोला-" दो आदमी फिर से । हो सकता है उस खंडहर इमारत को देखकर मुझे बहुत सी भूली बातें याद आ जाए। क्या आप मुझे वो खंडहर दिखा सकती है?"
" साॅरी । यह मुमकिन नही । मैने अभी कहीं जाना है इसीलिए तो आज ड्युटी तक नही गई। "
" ओह!"- जीत ने गहरी सांस ली और उठता हुआ बोला-" तुम वहां का एड्रेस ही बता दो। "
वर्षा ने एड्रेस बताया।
वर्षा दरवाजे तक उसके साथ आई।
" पर्स लौटाने के लिए शुक्रिया "- वह बोली।
जीत केवल मुस्कराया।
इतने विशाल आदमी के चेहरे पर वह बच्चों जैसी मुस्कराहट वर्षा को बहुत अच्छी लगी।
" यह शनाया "- वर्षा बोली-" शक्ल मे जिसकी तुम्हे मै डुप्लीकेट लगी थी , तुम्हारी कोई सगे वाली है?"
जीत ने बड़े अवसादपूर्ण ढंग से इंकार मे सिर हिलाया।
" थी?"- वर्षा बोली।
" हो सकती थी लेकिन हुई नही। "
" क्यों?"
" क्योंकि वतौर पति मेरी कल्पना करने से उसे दहशत होती थी। हाथी - हिरणी या फिर गेंडा - मेमने की जोड़ी कहीं जंचती है?"
" ऐसा उसने कहा था?"
" हां। "
" कहां रहती थी?"
" लंदन मे। "
" तुम उससे प्यार करते थे?"
" बहुत ज्यादा । ऐसा जैसा किसी ने किसी से न किया होगा। "
" वो लड़की ..."
" छोड़ो । उसके जिक्र से भी मेरे दिल के जख्म हरे हो जाते है। पहले ही तुम्हारी सूरत देखकर कलेजा मुंह को आने लगा था। "
वर्षा खामोश रही।
जीत भारी कदमो से चलता हुआ वहां से विदा हुआ।

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आज राज और वर्षा का तफरीह का प्रोग्राम था। लेकिन ऐन मौके पर राज को अपनी कंपनी मे एक इमर्जेंसी मिटिंग की वजह से प्लान मुल्तवी करना पड़ा।
उसने फोन कर वर्षा को यह जानकारी दी।
इसी दौरान वर्षा ने भी उसे अपने पर्स की वापिसी की दास्तान सुनाई।
" कमाल है "- राज बोला-" उसकी किसी गर्लफ्रेंड की शक्ल तुम्हारे से मिलती थी। "
" उसके अनुसार , हूबहू मिलती थी। "
" देखने मे कैसा था वो?"
" बड़ा अच्छा , खुबसूरत, खानदानी लेकिन इतना विशाल जैसे किसी आम आदमी को मैग्नीफाइंग ग्लास मे से देखा जा रहा हो। "
" इतने गुण लेकिन बोतल का इतना रसिया कि टून्न होकर वह भूल जाता था कि वह कहां पर था?"
" लगता था जैसे बेचारा कोई गम कम करने के लिए पीता हो। मुझे तो रहम आ रहा था उसपर। "
" वैसे तुम्हे उसके साथ खंडहर इमारत जाना चाहिए था। "
" कैसे चली जाती ? तुम जो आने वाले थे। "- वर्षा आहत भाव से बोली।
" आखिर वह बेचारा तुम्हारा पर्स लौटाने आया था । अब तो हमारा प्लान भी खटाई मे पड़ गया है सो अभी भी तुम जा सकती हो। "
वर्षा खामोश रही।
" जो शख्स आपके काम आए, आपको भी उसके काम आना चाहिए। " - राज उसे प्यार से समझाया।

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2 P.M.

जीत जीवनलाल की ही दी हुई लाइटर जलाकर खंडहर इमारत के भीतर मुआयना कर रहा था ।

लेकिन उसे इस बात की जरा भी भनक नही थी कि टोनी और भीमराव उसका पीछा डिमेरो बार से ही लगातार कर रहे थे।

जीत को आधे घंटे से ऊपर हो गए पर उसे कुछ सुझ नही रहा था कि आखिर उस घायल व्यक्ति को कहां छोड़ा था उसने।
तभी किसी ने उसका नाम लेकर पुकारा।

" तुम यहां!"- जीत तनिक हैरानी से बोला।
" हां। "- वर्षा बोली-" हमारा प्लान कैंसिल हो गया है इसलिए मुझे लगा तुम्हारी मदद करनी चाहिए। "

वर्षा ने उसे बताया कि उसने उस घायल व्यक्ति को कहां देखा था। और शायद उसका पर्स भी यहीं कंही तब गिरा होगा जब वो आनन फानन बदहवास भाग रही थी।

" लेकिन तुम्हारा पर्स मेरे ओवरकोट मे कैसे पहुंच गया?"- जीत बोला।
" यह तो तुम्हे मालूम होना चाहिए। लेकिन जैसी हालत तुम अपनी पिछली रात की बता रहे हो तो हो सकता है तुमने स्वयं जमीन से पर्स उठाकर अपने जेब मे रख लिया हो और फिर नशे की हालत मे भुल गए हो। "
" शायद ऐसा ही हुआ हो "- जीत को ऐसा सम्भव लग भी रहा था -" वैसे अगर मुझे यह मालूम हो जाए कि यहां से निकलने और अपने होटल पहुंचने के बीच मै कहां-कहां गया था तो मेरा ख्याल है कि यह मिस्ट्री हल हो सकती है। "
वर्षा कुछ देर तक सोचती रही फिर निर्णयात्मक स्वर से बोली- " ओके , यहां से चलो । ढूंढते है तुम्हारे आदमी को। "

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टोनी और भीमराव उनसे कुछ दुरी बनाए , उनकी नजरो मे आए वगैर सबकुछ देख रहे थे , सबकुछ सुन रहे थे । लेकिन उन्हे लगता था अबतक पानी सिर के ऊपर नही गया है।
इसलिए वेट एंड वाच करना ही उन्हे मुनासिब लगा।

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जीत और वर्षा हर उस जगह गए जहां जीत की मौजूदगी इस दरम्यान सम्भव हो सकती थी। डाॅक , जहां जहाज खड़ा था , खंडहर के सामने वाले हिस्से से होटल तक पहुंचने के रास्ते तक । लेकिन कोई माकूल नतीजा नही निकला।

6. P.M.

इलाके के पांच बार घुम चुकने के बाद वे डिमेलो बार पहुंचे।
जीत ने अपने लिए विस्की और वर्षा के लिए कोल्ड ड्रिंक का आर्डर दिया।

जीत के तीसरे पैग पर वर्षा ने कहा-" तुम बहुत ज्यादा पीते हो। "
जीत खेदपूर्ण ढंग से मुस्कराया।
" क्यों पीते हो इतना ?"
जीत ने उत्तर नही दिया।
" उस लड़की की बेवफाई की वजह से जिसकी शक्ल मेरे से मिलती है ?"
जीत फिर भी चुप रहा।
" मुझे उसके बारे मे कुछ और बताओ?"
" यह एक लम्बी कहानी है , फिर कभी सुनाउंगा। "
" फिर कब सुनाओगे ? अब से तीन घंटे बाद तो तुम यहां से चले जाओगे और फिर पता नही जिंदगी मे वापिस मुंबई लौटेगे या नही। "
" एक बात बताओ?"
" पूछो। "
" तुम पढ़ी - लिखी, समझदार, बालिग लड़की हो, इसलिए सोच समझकर जबाव देना , मेरी भावनाओं का ख्याल करके झूठ न बोलना। "
" अच्छा। पूछो, क्या पूछना चाहते हो?"
" अगर तुम शनाया होती तो क्या तुम मेरे प्यार को सिर्फ इसलिए ठुकरा देती क्योंकि मै मोटा हूं और यह तुम्हारी मेरी जोड़ी नही जंचती ?"
" नही। "
" क्यों नही?"
" क्योंकि प्यार का रिश्ता दिल से होता है। दिल का सौदा दिल से होता है, जिस्म के आकार से नही , तुम सिर्फ मो...विशालकाय हो, प्यार करने वाले को तो अंधे, काने, लूले-लंगड़े , दरिद्र , फकीर कोई भी नामंजूर नही होते है। "
" ओह!"
" किसी ने मजनू से कहा था कि तेरी लैला रंग की काली है तो उसने कहा था कि देखने वालों की निगाह मे नुक्स था। "
" काश!"- जीत के मुंह से एक सर्द आह निकल गई -" जैसी समानता खुदा ने शनाया और तुम्हारी सूरत है, वैसी तुम दोनो के ख्याल मे भी बनाई होती "
वर्षा चुप रही।
" ज्यादा अफसोस की बात यह है "- जीत बड़े दयनीय स्वर मे बोला-" कि मर्द की बावत अपनी पसंद से मुझे वाकिफ कराने मे उसने दो साल लगाया। दो साल लगाया उसने मुझे यह बताने मे कि गेंडा और मेमना की जोड़ी नही चल सकती। जब मै उसे अपने दिलोजान की जीनत मान चुका था तो उसने कहा हम सिर्फ अच्छे मित्र ही बन सकते थे, जीवन साथी नही। यह बात उसने शुरुआत मे ही जता दी होती तो क्यों...क्यों. "
जीत खामोश हो गया। उसका गला रूंध गया और आंखे डबडबा आई।
" उसकी शादी हो गई?"
" हां। कब को। उसने किसी और से शादी करनी थी, इसीलिए तो मुझे ठुकराया था। "
" ओह!"
" शनाया की शादी के बाद मै लंदन छोड़ नही देता तो या तो मै पागल हो जाता या खुदकुशी कर लेता। "


उस घड़ी वर्षा के मन मे उस देव समान व्यक्ति के लिए बहुत अनुराग उमड़ा। उस वक्त जीत उसे उस अबोध शिशु की तरह लगा जिसे अपनी मां के गोद की सुरक्षा की जरूरत थी। उस घड़ी उसके मन मे जज्बात का ऐसा लावा उमड़ा कि वह घबराकर परे देखने लगी ।
क्यों उसका दिल चाह रहा था कि वह उससे कहे कि वह कितना ही बड़ा शराबी और नाकामयाब आदमी क्यों न हो, पर उसे पसंद था।
क्या उसके भीतर उस शख्स के लिए कोई प्यार मुहब्बत का जज्बा पनप रहा था !
" नही नही , ऐसा कैसे हो सकता है । "- उसने घबराकर सोचा।
जो शख्स आज ही उससे मिला था और आज रात को ही हमेशा के लिए मुंबई से रुखसत हो जाने वाला था, उसके प्रति यह सम्मोहन क्यों !

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" उठो "- वर्षा अचानक से खड़ी होती हुई बोली।
" क्या हुआ ?"- जीत हैरान होते हुए बोला।
" मुझे लगता है कि तुम खंडहर के सामने के रास्ते से नही बल्कि पिछवाड़े के रास्ते से निकले होगे । एक बार यह भी चेक कर लेते है। "

वापस वो दोनो खंडहर पहुंचे और इमारत मे प्रवेश किए।
पिछवाड़े के कमरे से होते हुए इस बार उन्होने ऐन वही रास्ता पकड़ा जिसपर अपने नशे की हालत मे पिछली रात जीत जीवनलाल को सम्भाले चला था।
रास्ते मे खस्ताहाल कारों का कब्रिस्तान लगने वाला अंधेरा मैदान भी आया लेकिन वे वहां से न होकर उसके पहलू से होकर आगे बढ़ गए। नतीजा फिर कुछ न मिला।

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7. P.M.

सिर्फ दो घंटे बाद जीत को शिप पर सवार होना था । वो सोच रहा था क्या उसका कल रात का राही और वर्षा सबकुछ पीछे रह जाएगा । क्या वो राही वास्तव मे उसे मिल पाएगा !
फिर कभी वर्षा को याद करेगा तो मृगतृष्णा के रूप मे ही याद करेगा और फिर उसे दारू पी पीकर जान दे - देने का एक नया बहाना हासिल हो जाएगा। उसकी वही सूरत शनाया जैसी लेकिन उसका कोऑपरेटिव नेचर , उसकी बातें उसे भा गई थी । वो वर्षा को चाहने लगा था ।
सिर्फ दो घंटे की बात थी। फिर वो शिप पर होगा और सबकुछ , सबकुछ पीछे छूटता जा रहा होगा ।

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दो घंटे बचे थे जहाज के छूटने की । उसे अब वापिस जहाज पर पहुंचना था।
जीत वर्षा के साथ वापिस खंडहर पहुंचा क्योंकि यहीं से एक रास्ता डिमेलो बार होते हुए बंदरगाह तक जाता था और विपरीत रास्ता मेन रोड होते हुए वर्षा के घर की तरफ ।

जीत ने भारी मन से वर्षा को अलविदा कहा और मन मन के डग भरता हुआ आगे बढ़ गया।
वर्षा वहीं खड़ी अनुराग दृष्टि से उसे देखती रही ।


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टोनी और भीमराव को बड़ी राहत हुई कि सेलर से उनका पीछा छूट गया । सेलर से अब उन्हे किसी तरह का खतरा नही था। लेकिन वर्षा को वो कैसे छोड़ सकते है ! आखिर यह उस रात की चश्मदीद गवाह जो थी ।

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जीत डिमेलो बार के नजदीक पहुंचा तो सोचा जहाज पर चढ़ने से पहले आखिरी बार एकाध ड्रिंक कर ले ।
वो बार मे प्रवेश किया और सीधे काउंटर पहुंचकर विस्की का आर्डर दिया।
उसके भीतर उस घड़ी एक तुफान उठ रहा था। उसका दिल पुकार पुकार कर दुहाई दे रहा था कि उसे वर्षा से मोहब्बत हो गई थी। लेकिन वो यह भी जानता था कि वर्षा किसी हाल मे उसकी नही हो सकती। शायद वह किसी और से मोहब्बत करती है।
तभी उसकी नजर काउंटर पर रखी आज के अखबार के ईवनिंग संस्कर के फ्रंट पेज पर पड़ी । उसकी निगाह अखबार मे छपी एक तस्वीर पर अटक कर रह गई। उस तस्वीर मे बिना दरवाजे की कार दिखाई दे रही थी ।

बिना दरवाजे की कार !!
जीत के जेहन मे एकाएक जैसे बिजली कौंध गई । कार की उस तस्वीर ने उसके लिए बिजली के उस स्विच जैसा काम किया था जो पहले नही चलता था और अब एकाएक चल पड़ा था और रोशनी की जगमग जगमग हो गई थी।

उसे सबकुछ याद आ गया था ।

जीत ने टाइम देखा । अब भी डेढ़ घंटे बाकी थे जहाज के रवाना होने मे।
वो तुरंत खड़ा हुआ और वापिस खंडहर इमारत के पीछे के रास्ते से उस जगह तक पहुंचने का फैसला किया जहां वो घायल व्यक्ति को एक कबाड़ी और खटारा कार के पिछ्ली सीट पर छोड़ आया था।

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जीत जैसे ही खंडहर के करीब पहुंचा , उसे एक लड़की के चीख की आवाज सुनाई दी। वो भागते हुए अंदर प्रवेश किया और पिछवाड़े मे स्थित कमरे के पास पहुंचा।
सामने जो दिखाई दिया उसे देखकर उसके क्रोध का ठिकाना न रहा । उसके आंखो मे खून उतर गए।
टोनी और भीमराव वर्षा की इज्ज़त लूटने की प्रयास कर रहे थे । वर्षा बदहवास रो रोकर उनसे अपने इज्ज़त की भीख मांग रही थी।
टोनी और भीमराव की नजर सिर्फ वर्षा के जिस्म पर थी इसलिए वो यह जान ही नही पाए कि जीत उनके ठीक पीछे आ खड़ा हुआ था। जीत ने एक हाथ से टोनी की गर्दन पकड़ा और उसे दूर फेंक दिया और फिर भीमराव को पकड़कर वापस अपनी तरफ घुमाया और एक करारा प्रहार उसके पेट पर किया। भीमराव अपना पेट पकड़कर वहीं जमीन पर लेट गया ।

वर्षा के चेहरे पर खुशी और राहत भरे भाव आए । वो जीत से लिपटकर रोने लगी ।
" ये दोनो यहीं छिपे हुए थे "- वर्षा रोते हुए बोले जा रही थी-" तुम्हारे जाते ही इन्होने मुझे धर दबोच लिया था। इन्होने ही कल रात एक आदमी का खून किया था। "
" हां , ये वही दोनो हैं । मुझे सबकुछ याद आ गया है "- जीत ने उसे ढ़ांढस देते हुए कहा।
वो वर्षा को ढांढस देने मे इतना मशगूल हो गया कि उसे पता तक नही चला कि टोनी कब खड़ा हुआ और कब उसके सिर पर सवार हो आया । टोनी ने लोहे के रड से उसके सिर पर जोरदार प्रहार किया ।
और फिर तभी भीमराव जो अपना पेट पकड़े जमीन पर पड़ा हुआ था , उठकर उसके पेट मे एक धारदार खंजर भोंक दिया ।
जीत धड़ाम से जमीन पर गिर गया ।
वर्षा हैरत और अविश्वसनीय फटी फटी आंखो से जीत को जमीन पर गिरते देख रही थी । उसकी आंखे गंगा यमुना बन गई थी।

" अब कहां से बचेगी , साली ! तुझे तो मरना ही था । कल रात के हमारे जुर्म की तू ही तो साक्षी है पर अच्छा हुआ यह साला सेलर भी खुद चलकर यहां मरने आ गया "- टोनी कहर भरे स्वर मे बोला -" मौका मिला था इसे यहां से वापस जाने का लेकिन कुता फिर भी वापस आ गया ।"

टोनी और भीमराव उसकी ओर बढ़े।
वर्षा को अपनी मौत साक्षात नजर आने लगी थी ।
वो दम लगाकर चिखी ।

चीख की तीखी आवाज से जीत की तन्द्रा टूटी । अब भी उसकी चंद सांसे बाकी थी। उसने उठने की कोशिश की तो पाया कि वह खून से नहाया हुआ था। धूंधली आंखो लिए अंधो की तरह टटोलता वह अपने पैर पर खड़ा हुआ।

अंधो की तरह टटोलता , आंखे मिचमिचाता , झूमता , लड़खड़ाता वह फिर उनके पीछे जा खड़ा हुआ और पुरी ताकत लगाकर अपनी दोनो भुजाओं से उन दोनो की गर्दनें दबोच लिया और तबतक दबाता रहा जबतक उनके प्राण पखेरू उड़ नही गए।
जैसे ही जीत की चेतना खोने लगी, दोनो भरभराकर जमीन पर गिर गए।
टोनी और भीमराव मर चुके थे।
जीत अपने होश खोने लगा था। वह कटे वृक्ष की तरह गिर पड़ा ।
वर्षा दौड़कर उसके करीब पहुंची।
" जीत "- वर्षा रूंधे स्वर मे बोली।
जीत की पलकें फड़फड़ाई। उसका खून से लथपथ चेहरा तनिक वर्षा की तरफ घूमा । उसके होंठो पर एक क्षणिक मुस्कराहट आई ।
" तुम्हे कुछ नही होगा , जीत "- वर्षा जीत को अपने सीने से लगाते हुए , रोते हुए बोली।
" तुम..ठीक. हो न.. !"- जीत के मुंह से निकला।
" हां "- वर्षा आंसुओं मे डूबे स्वर मे बोली -" मै ठीक हूं जीत और तुम्हे भी कुछ नही होने दूंगी ।"
" मेरे. जाने का वक्त.. आ गया है , वर्षा. "- जीत रूक-रूक कर , टूटे- फूटे स्वर मे बड़ी मुश्किल से बोला -" कैसा अजीब है न , नाम जीत.. पर.. जीवन मे सब समय.. हार । मां का चेहरा.. याद नही । पिता का साया.. होकर भी.. बाप का स्नेह.. प्यार नही , स्कूल..कालेज मे.. शरीर की
. वजह से कोई कदर नही , लड़की की.. मुहब्बत नसीब मे.. नही और.. आखिर मे तुम्हारा भी.. साथ नही ।"

वर्षा ने रोते हुए उसे अपने सीने से कस लिया।
जब जीत की आवाज कुछ क्षण तक नही आई तो उसने घबराकर जीत के चेहरे को देखा ।
जीत की सांसे थम चुकी थी । उसकी आत्मा परमात्मा मे विलिन हो चुकी ।
" जीत "- वर्षा पछाड़ खाकर उसके ऊपर गिर गई।
ऐन उसी वक्त राज वहां पहुंचा।

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वर्षा जीत को कभी भूल नही सकती थी । जीत नाम के फरिश्ते का नाम उसके दिल मे इतने गहरे अक्षरो मे गुद गया था कि उसकी आने वादी जिंदगी मे कोई भी उसे मिटाना तो दूर , धुंधला भी नही कर सकता था।

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9.30 P.M.

ओरिएंटल गोल्डन स्टार का कैप्टन गुस्से मे लाल पिला हुए जीत को जहान भर की गालियों से अलंकृत करते हुए बोला जा रहा था -" गधा , गैरजिम्मेदार , बर्दाश्त की भी हद होती है। अब मै जीत का और इन्तजार नही कर सकता। जहां है वहीं मरा खपा रहे । मै चला। "

जीत के अंजाम से बेखबर गोल्डन स्टार अपने इन चार सफर मे पहली बार जीत के बिना बंदरगाह छोड़ चला।
Jabardast. Amezing. Esa laga jese koi movie dekhi ho. Jeet ke jivan ke bas utne se kisse me hi puri kahani sama di. Sayad ye chije padhne se jyada dekhne me jyada romanchak lag sakti he. Par kahani padhte hue koi maind me picture bhi bana raha ho to use jabardast maza aaega. Story bhi thi comedy bhi thi aur emotion bhi tha. Jabardast maza aa gaya.
 
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