9 P.M.
लंदन का ' ओरिएंटल गोल्डन स्टार ' शिप मुंबई के बंदरगाह पर एक घंटा पहले लग चुका था और लगभग सभी यात्री सैर सपाटे के लिए जहाज पर से कूच कर चुके थे । यह एक यात्रीवाहक जहाज था । जीत डैक पर दांये - बांये निगाह दौड़ाते हुए आगे की तरह बढ़ा तभी कैप्टन ने उसे नाम लेकर पुकारा ।
जीत छ फुट से भी ऊपर कद का खूब मोटा व्यक्ति था । वह अभी केवल छब्बीस वर्ष का था लेकिन वजन मे वह एक सौ किलो से भी अधिक था । उसके विशाल आकार की वजह से लोग उसे रोलरोवर , बुलडोजर भी कहते थे ।
" चौबीस घंटे " - कैप्टन बोला - " सिर्फ चौबीस घंटे रूकने वाला है हमारा जहाज इस बंदरगाह पर ।"
" मुझे मालूम है " - जीत बड़े अदब से बोला।
" अभी मालूम है । लेकिन विस्की का गिलास हाथ आते ही सब भूल जाओगे ।"
" ऐसा नही होगा सर ।"
" पिछली बार की तरह इस बार मै तुम्हारा इन्तजार नही करने वाला । इसलिए याद रखना सिर्फ चौबीस घंटे । इसी वक्त रात को नौ बजे जहाज यहां से रवाना हो जाएगा। "
" यस सर। "
" आइन्दा इस दरम्यान तुम शराब पीते हो या उसमे गोते लगाते हो , यह तुम्हारा जाती मामला है लेकिन कोशिश करना इतना होश रहे कि टाइम पर जहाज पर पहुंच सको। "
" यस सर। "
जीत भारतीय मूल का लंदन निवासी था । उसकी मां का देहांत उसके बचपन मे ही हो गई थी । उसके पिता ने तब दूसरी शादी कर ली थी । उसके पिता लंदन के एक बड़ी कंपनी के बोर्ड आफ डायरेक्टर्स मे से एक थे । जीत इश्क मे खता खाया हुआ नौजवान था। एक लड़की ने ऐसा दिल तोड़ा कि वो अपनी जान दे देना चाहता था। किसी तरह खुद को तो सम्भाला पर अपने जेहन से उसे निकाल नही सका। फिर उसने शराब का सहारा लिया लेकिन यह भी कारगर सिद्ध न हुआ। आखिर उसने अपने पिता के सिफारिश पर उनके एक रईस दोस्त की शिपिंग कंपनी मे नौकरी ज्वाइन कर लिया। उसे लगता था कि जहाज की नौकरी मे खुद को व्यस्त भी रख सकेगा और देश - दुनिया का भ्रमण कर लड़की की यादों को कुछ हद तक मिटा भी देगा।
वैसे जहाज जब सफर पर होता था तो वहां की रौनक मे उसका दिल लगा रहता था। जहाज बंदरगाह पर लगता था तो फिर उसके कदम बंदरगाह पर पड़ते ही - फिर होती थी बोतल उसके हाथ मे और वो बोतल मे।
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10 P.M.
जीत अबतक के चार साल की नौकरी मे यह बखूबी जान चुका था कि हर बंदरगाह के इलाके मे बार बहुतायत मे होते है। ऐसा ही एक बार बंदरगाह कुछ दूर वह तलाश कर चुका था।
उस बार का नाम डिमेलो बार था और उस वक्त वह ग्राहको से खचाखच भरा हुआ था। सिगरेट के धूंए और शोर - शराबे से वह पुरी तरह रचा बसा था। ये उसके पसंद की जगह निकली थी। चेतना पर हावी हो जाने वाला शोर- शराबा । तन्हाई का दुश्मन शोर । किसी गम, किसी याद को घोलकर पी जाने के लिए हासिल शराब।
कोई आठ पैग विस्की पी चुका था।
भयंकर नशे की तरफ वह निरंतर अग्रसर हो रहा था।लेकिन फिर भी उसको देखकर यह कहना मुहाल था कि वह नशे मे था।
जीत के बगल की मेज पर तीन आदमी किसी बात पर बहस कर रहे थे। कभी-कभार उनकी आवाज बहुत ऊंची हो जाती थी। ऐसे ही एक अवसर पर उनकी आवाज से आकर्षित होकर जीत ने उनकी तरफ देखा तो पाया कि एक भारी भरकम लेकिन ठिगना व्यक्ति था और दूसरा दुबला - पतला, बांस जैसा लम्बा था। तीसरा व्यक्ति एक साधारण कद काठ का लगभग साठ वर्षीय व्यक्ति था। उनके वार्तालाप से जीत ने यह भी जाना था कि पतले से व्यक्ति का नाम टोनी , मोटे का भीमराव और बुजुर्ग का नाम जीवनलाल था।
जीत को अचानक सिगरेट की तलब महसूस हुई । उसने अपने कोट के जेब मे हाथ डाला तो पाया कि सिगरेट तो मौजूद था पर लाइटर वहां नही था।
" शायद जहाज पर ही रह गया है " जीत ने सोचा और फिर वो बगल वाले मेज पहुंच कर बोला - " भाई साहब , आपलोगों मे से किसी के पास लाइटर है क्या ? मेरा लाइटर शायद जहाज पर छूट गया है। "
तीनो ने चौंककर उसकी तरफ देखा । उसकी वर्दी उसके सेलर होने की बयां कर रही थी।
" जाओ अपना काम करो!" - टोनी सख्ती से बोला।
" ठीक है "- जीत तनिक आहत भाव से बोला और फिर उसने उनकी तरफ से पीठ फेर ली।
तभी जीवनलाल ने उसे रोका और अपने जेब से लाइटर निकाल कर दे दिया।
" थैंक्यू भाई । मै अभी वापस करता हूं " जीत कृतज्ञता पूर्वक बोला।
" कोई बात नही। तुम इसे रख सकते हो "- जीवनलाल ने मुस्कराते हुए कहा।
जीत अपनी सीट पर वापस लौटा , सिगरेट सुलगाया और अपनी शराबखोरी मे मशगूल हो गया । और कई पैग पी चुकने के बाद उसने बगल के मेज पर सरसरी निगाह दौड़ाई तो पाया कि वो मेज खाली था। उसे ख्याल ही नही आया कि तीनो ने कब वहां से पलायन किया।
वो पेमेंट कर बार से बाहर निकला। आखिर उसे एक होटल भी ढूंढना था जहां अपनी रात गुजार सके।
11.30 P.M.
वह झूमता हुआ बार से बाहर निकला तभी एक लड़की उससे टकराई । " स..सारी "- जीत बिना लड़की की तरफ निगाह उठाए होठों मे बुदबुदाया और सड़क पर आगे बढ़ गया।
लड़की अपने फोन से किसी को काॅल कर रही थी । उधर से " हैलो" की आवाज आते ही बोली -
" हेल्लो राज , मै वर्षा बोल रही हूं। "
" वर्षा !"- दूसरी ओर से आवाज आई -" इस वक्त कहां से बोल रही हो ?"
" डिमेलो बार के बगल से ।आज एक इमर्जेंसी मिटिंग की वजह से देर हो गई। अब लौटने मे दिक्कत आ रही है। कोई टैक्सी भी नजर नही आ रही है। शुक्र है तुम फोन पर मिल गए। अब बराय मेहरबानी तुम अपनी कार पर यहां आकर मुझे ले जाओ। "
" वर्षा , तुम ऐसा करो , बार के सामने ही एक गली है, तुम उस गली को पार कर मेन रोड पर आ जाओ। "
" वहां क्यों?"
" क्योंकि जहां पर तुम हो , वहां आजकल सड़क मरम्मत के लिए रास्ता बंद है। मुझे काफी लम्बा चक्कर काट कर आना पड़ेगा। तुम वह जरा सी गली पार करके एम जी रोड पर आओगी तो हम जल्दी घर पहुंच जाएंगे। "
" ठीक है । मै आती हूं। "
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टोनी और भीमराव बंदरगाह इलाके के छटे हुए बदमाश थे। चोरी , डकैती , स्मगलिंग इनका मेन धंधा था। जीवनलाल से दोस्ती इनकी ताजा ताजा हुई थी। जीवनलाल मुंबई के अंडरवर्ल्ड के एक बड़े डाॅन का एक साधारण सा बंदा था जिसका काम ड्रग्स खपाने का था। वो अमूमन रोजाना चार पांच लाख रुपए का ड्रग्स कैरी करता और उसे बेचने का प्रयास करता। लेकिन संयोगवश आज की रात उसके पास करीब बीस लाख रुपए का ड्रग्स मौजूद था और इसके लिए टोनी और भीमराव ने उसे एक मालदार आसामी से सौदा कराने का आश्वासन दिया था।
जबकि टोनी और भीमराव के इरादे कुछ और ही थे और वो बहुत ही खतरनाक थे।
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वर्षा गली के मध्य मे पहुंच गई तो उसे लगा कि वह गली का एकलौता राहगुज़र नही थी। अपने पीछे से किसी के कदमो के आवाज उसे निरंतर सुनाई दे रही थी। उस सुनसान गली मे उसके पीछे निश्चय कोई था।
उसने एक बार सावधानी से घूमकर अपने पीछे निगाह दौड़ाई तो उसे अंधेरी गली मे कोई दिखाई नही दिया।
जरूर उसे पीछे घूमता पाकर वह किसी पेड़ के पीछे छुप गया था। उसने जल्दी जल्दी गली पार कर जाना ही मुनासिब समझा। उसके दोबारा चलना शुरू करते ही पीछे से कदमो की आहट फिर से सुनाई देने लगी।
वह और भी भयभीत हो उठी। उसने एक बार फिर घूम कर पीछे देखा। उसी क्षण पीछे आता व्यक्ति एक स्ट्रीट लाइट के नीचे से गुजरा ।
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जीवनलाल के साथ टोनी और भीमराव जब खंडहर इमारत मे दाखिल हुआ तो जीवनलाल सकपकाते हुए बोला -" यह तुम कहां ले आए हो मुझे?"
" कस्टमर के पास "- टोनी बोला।
" यहां ? इस खंडहर मे?"
" उसने मिलने के लिए यही जगह चुनी थी। "
" वह भीतर है?"
" हां। "
" मुझे तो नही लगता भीतर कोई है। "
" वह पिछवाड़े मे है। "
जीवनलाल को अब खतरे का अंदेशा लगने लगा था।
वह एक कदम पीछे हटा और वापिस घूमा।
" मोटे "- टोनी सांप की तरह फुंफकारा -" पकड़ हरामजादे को। "
भीमराव ने फौरन उसे दबोच लिया।
टोनी के हाथ मे कोई एक फुट का लोहे का रड प्रकट हुआ। उसका हाथ हवा मे उठा और फिर वह गाज की तरह जीवनलाल की खोपड़ी पर गिरा।
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वर्षा ने देखा कि वह एक हाथी जैसा विशालकाय व्यक्ति था। वह घबराकर आगे बढ़ी। सर्वत्र सन्नाटा छाया हुआ था। कहीं कोई आवाज नही थी सिवाय उन कदमो की आहट के जो वर्षा को अपने पीछे से आ रही थी।
सामने कोने मे एक खंडहरनुमा इमारत थी। किसी अज्ञात भावना से प्रेरित होकर आगे बढ़ने के स्थान पर वह इमारत के कंपाउंड के टूटे फाटक के भीतर दाखिल हो गई। दबे पांव वह इमारत के बरामदे तक पहुंची और स्तब्ध खड़ी पंजो के बल उचक कर बाहर गली मे देखने लगी।
साया गली मे उसके सामने एक साया प्रकट हुआ।
वर्षा हड़बड़ाकर भीतर गलियारे मे सरक गई।
इमारत के सामने साया ठिठका। वह सहमकर दो कदम पीछे हट गई। साया अनिश्चित सा गली मे खड़ा आंधी मे हिलते ताड़ के पेड़ की तरह झूम रहा था।
तभी इमारत के भीतर कहीं हल्की सी आहट हुई। वर्षा को अपनी सांस रूकती सांस महसूस हुई।
क्या भीतर भी कोई था? अब उसे इमारत मे कदम रखना अपनी महामूर्खता लगने लगी थी।
कौन था भीतर ? कोई जानवर या...
उसे दहशत होने लगी।
भीतर फिर आहट हुई। वह आंखे फाड़ फाड़कर गलियारे मे देखने लगी। यह उसकी खुशकिस्मती थी कि गलियारे मे वह दो कदम और आगे नही बढ़ आई थी वर्ना जीवनलाल के साथ साथ उसका भी काम तमाम हो जाना था।
जहां वो खड़ी थी, उस गलियारे के सिरे पर विशाल हाल था और हाल से पार फिर गलियारा था। उस परले गलियारे मे वर्षा को एक साया दिखाई दिया।
" हो गया काम "- पिछले गलियारे से एक दबी हुई आवाज आई।
" हां। "
" तो फिर हिलता क्यों नही यहां से?"
" मै देख रहा था कि इसका क्या हाल है?
" अब इसका हाल इसका बनाने वादा देखेगा। इसे छोड़ और चल यहां से।"
भीतर से टोनी और भीमराव बरामदे मे प्रकट हुए और वर्षा के बहुत करीब से गुजरते हुए फाटक से बाहर निकले।
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" भाई साहब!"
दोनो चौंके।
जीत , जो वहीं नीचे बैठा हुआ था, उन्हे देखकर खड़ा हुआ और झूमता हुआ उन दोनो के करीब पहुंचा।
टोनी का हाथ तत्काल कोट की जेब मे पड़े लोहे की रड से लिपट गया।
" भाई साहब "- जीत की जुबान नशे से लड़खड़ा रही थी और बड़ी कठिनाई से बोल पा रहा था -" आप कहां है?"
" क्या मतलब "- टोनी तीखे स्वर मे बोला।
" मेरा मतलब , मै "- जीत ने झूमते हुए एक हाथ से अपनी छाती ठोंकी -"मै कहां हूं?"
" यह टुन्न है "- भीमराव फुसफुसाया -" इसे छोड़ो , इसे इस वक्त खुद की खबर नही ।"
" तुम "- टोनी बोला-" जमीन के ऊपर हो और आसमान के नीचे हो ।"
" जमीन कहां है, भाई साहब ?"
" जमीन आसमान के नीचे है और आसमान जमीन के ऊपर है और तुम दोनो के बीच हो। "
" वाह! वाह, भाई साहब! क्या पता बताया है आपने। मेहरबानी आपकी। एक आखिरी बात और बताते जाइए। "
" पूछो। "
" यह "- जीत ने खंडहर इमारत की तरफ संकेत किया-" कोई होटल है ?"
" हां "- टोनी बोला-" यह होटल ताज है ।"
भीमराव ने टोनी को बांह पकड़कर घसीटा और वहां से चलते बना।
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गली खाली हो गई तो वर्षा की जान मे जान आई। तभी पीछे इमारत से एक अजीब आवाज आई। किसी के कराहने की आवाज थी। कराह मे ऐसी बेवसी थी कि फौरन वहां से भाग निकलने को तत्पर वर्षा के पांव जड़ हो गए। भीतर जो कोई था , बहुत तकलीफ मे था।
वह वापस गलियारे मे दाखिल हुई । अंधेरे मे अन्दाजन चलते हुए गलियारे के पीछे एक कमरे मे पहुंची । उसने बहुत गौर से देखा तो पाया कि वह एक इंसानी जिस्म था।
" कौन है ?"- वो आतंकित भाव से बोली।
कोई उत्तर नही मिला। फर्श पर पड़ा व्यक्ति मर चुका था।
फिर एकाएक वर्षा की सारी हिम्मत दगा दे गई । वो चिखती - चिल्लाती तुफानी रफ्तार से खंडहर के मलवे और कुडे करकट से उलझती , गिरती - पड़ती वापिस भागी ।
जब ही वो मेन रोड पर पहुंची तो वहां राज को कार मे बैठे पाया।
" राज "- वर्षा के मुंह से चैन की सांस निकली।
" क्या हुआ?"- राज बोला।
" उस..उस खंडहर इमारत मे..एक आदमी मरा पड़ा है ।"
" आदमी मरा पड़ा है ! तुम्हे कैसे मालूम?"
" मैने उसे देखा था। "
राज ने उसे हैरत भरी नजरो से देखा ।
" तुम वहां क्या करने गई थी ?"
वर्षा ने सबकुछ बताया कि क्या हुआ था। राज के जोर देने पर वो पैदल खंडहर इमारत पर वापिस लौटे लेकिन वहां कोई लाश नही थी ।
राज ने अपने लाइटर की रोशनी फर्श पर डाली ।
" यहां खून तो दिखाई दे रहा है "- राज धीरे से बोला -" खून ताजा भी है ।" - वह एक क्षण ठिठका और फिर बोला-" वर्षा, वह शख्स मरा नही होगा, वह सिर्फ घायल हुआ होगा और तुम्हारे यहां से कूच करने के बाद यहां से उठकर चला गया होगा । कोई मुर्दा यहां से आनन फानन गायब नही हो सकता ।"
वर्षा खामोश रही।
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" माई डियर फ्रैंड "- नशे मे धूत जीत कह रहा था-" विस्की खतम हो गई। अफसोस है। लेकिन कहीं तो और मिलती होगी। अबी तलाश कर लेंगे दोनो शराबी भाई। तुम जरा संभलकर चलो। मेरे ऊपर ही मत गिरते जाओ "
जीवनलाल की एक बांह जीत की गर्दन के गिर्द थी और जीत की बांह उसकी कमर मे लिपटी हुई थी । एक तरह से जीत उसे उठाए उठाए गली मे चल रहा था।
नशे मे जीत खंडहर इमारत मे दाखिल हुआ था जिसके बारे मे अभी कोई भला आदमी उसे बताकर गया था कि वह ताजमहल होटल था। वहां कमरे मे उसने जीवनलाल को अचेत पड़ा देखा था । नीचे एक पर्स भी पड़ा था जिसे उठा कर अपने जेब मे डाल लिया और फिर जीवनलाल को वहां से उठाया और उसे यह समझाता हुआ पिछवाड़े के रास्ते से बाहर गली मे ले आया था कि यह कोई होटल नही था , जरूर उसी की तरह किसी ने उसके साथ भी मजाक किया था ।
" घबराओ नही, मेरे भाई "- जीत फिर उसे आश्वासन देने लगा-" अभी हम कोई अच्छा-सा होटल तलाश कर लेंगे और फिर दोनो शराबी भाई वहां पड़ जायेंगे। "
उस वक्त वह एक अंधेरे मैदान से गुजर रहा था जहा कई खस्ताहाल गाड़ियां खड़ी थी।
" अब अपने आप चल, मेरे भाई। "- जीत रूका और उसने जीवनलाल की कमर से बांह निकाल ली।
जीवनलाल धड़ाम से जमीन पर गिरा।
" अरे!"- जीत फिर उसे उठाने का उपक्रम करने लगा-" तु..तो अपने पैरो पर खड़ा भी नही हो सकता। इतनी क्यों पीता है, मेरे भाई? क्या तुने भी कलेजे पर चोट खाई है? किसी छोकरी ने दिल तोड़ा तेरा ! तु बोलता क्यों नही दोस्त? मत बोल! मै जानता हूं । जरूर यही बात है। तभी तो इतना पीता है। मेरे भाई, हम दोनो एक ही राह के राही है इसलिए मै तुझे यूं बेसहारा नही छोड़ सकता। मै तेरी मदद करूंगा। तु उठ। उठकर खड़ा हो। इधर आराम से बैठ जा। "
जीत ने उसे एक टूटी हुई, बिना दरवाजे की, कार की पिछली सीट पर ढेर कर दिया।
" घबराना नही "- जीत उसे आश्वासन देता हुआ बोला-" मै होटल की तलाश मे जाता हूं और तेरे लिए एक कमरा ठीक करके वापिस आता हूं। घबराना नही डियर, मै गया और आया। "
12.20 A.M.
पन्द्रह मिनट बाद जीत एक साधारण होटल के एक कमरे मे था। चल -चलकर थका हुआ वो थोड़ी देर के लिए पलंग पर बैठ गया। बैठा तो लेट गया। लेटा तो सो गया। सोया तो जैसे उसके लिए दीन दुनिया खत्म हो गई।
उसे याद भी न रहा कि वह वहां अपने कथित फ्रैंड के लिए रैन बसेरा तलाश करने आया था और तलाश मुकम्मल हो जाने के बाद उल्टे पांव वापिस लौटना था।
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वर्षा बंदरगाह एरिया से लगभग दो किलोमीटर दूर एक पेइंग गेस्ट के तौर पर रहती थी। वो एक मल्टीनेशनल कंपनी मे जाॅब करती थी और वहीं राज भी एक बड़ी कंपनी का एच आर था । दोनो एक दूसरे से मोहब्बत करते थे और फ्यूचर मे शादी की भी प्लानिंग थी। वर्षा के मां-बाप पूना मे रहते थे । राज की बहुत ख्वाहिश थी कि वर्षा उसके परिवार के साथ बांद्रा मे रहे लेकिन वर्षा की जिद थी कि वह एक ही बार वहां कदम रखेगी और वो शादी के बाद।
राज के साथ वर्षा जब अपने घर पहुंची तो उसने पाया कि उसका पर्स उसके पास नही था। वो मन ही मन बड़े संशक भाव से सोच रही थी कि कहीं पर्स उसी खंडहर मे तो नही गिरा आई वो । या फिर कंपनी के आफिस मे छुट गया हो।
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इधर टोनी और भीमराव ने जीवनलाल के कब्जे से हासिल हुए माल का बंटवारा कर लिया था। लेकिन भीमराव को बार-बार इस बात का डर सता रहा था कि कहीं जीवनलाल किसी करिश्मे से बच गया हो तो उनके इस कारनामे की खबर उसके बाॅस को लगनी ही लगनी थी। और फिर चौबीस घंटे के भीतर उनकी लाश मुंबई के समुद्र मे तैरते हुए नजर आयेगी।
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अगला दिन- 10.A.M.
सुबह जब जीत की नींद खुली तो उसने पाया कि पिछली रात वह ओवरकोट और जूते समेत पलंग पर ढेर हो गया था।
उसने कपड़े उतारे और बाथरूम मे दाखिल हो गया।
जब से वह जागा था, उसके भीतर से बार बार कोई पुकार उठ रही थी कि जिसे वह समझ नही पा रहा था।
कल रात उसके साथ कोई था।
कोई ऐसा शख्स जिसे उसकी मदद की जरूरत थी ।
कहां गया उसका साथी?
कहां मिला था वह उसे? कहां बिछुड़ा था वह उससे? क्यों उसे किसी की मदद की जरूरत थी? क्या हुआ था उसे?
जीत ने अपना सिर अपने दोनो हाथो मे थाम लिया और उन सवालों के जवाब सोचने लगा।
उसे कुछ भी न सूझा।
" उसे ढूंढना होगा "- उसकी अंतरात्मा कह रह थी -" उसे मेरे मदद की जरूरत थी। मुमकिन है वह अभी भी मेरा इन्तजार कर रहा हो। "
वह कमरे से फिर होटल से बाहर निकल आया।
जीत को धीरे धीरे इतना याद आ गया था कि उसने अपना अधिकतर वक्त एक ऐसे बार मे गुजारा था जो बंदरगाह इलाके के बिल्कुल करीब था। उस शिनाख्त को जेहन मे रखकर उसने बंदरगाह इलाके के हर बार मे घूमना आरंभ किया।
11 A.M.
आखिरकार वो डिमेलो बार मे पहुंचा । उस वक्त बार मे कोई दस बारह लोग ही मौजूद थे ।
वह सीधा काउन्टर पर पहुंचा और बारमैन को ड्रिंक का आर्डर दिया।
शराब पीने के दौरान वो बारमैन से सम्बोधित हुआ और इस दरम्यान वह यह जाना कि बारमैन को उसके पिछली रात के बार मे आने की खबर याद थी और इसका कारण उसका विशाल शरीर , शरीर पर सेलर की वर्दी और कई पैग विस्की पीना था । बारमैन से उसे यह भी मालूम हुआ कि वह एक बार के लिए अपने बगल के मेज पर गया था जहां पर तीन आदमी बैठे हुए थे।
जीत के पूछने पर बारमैन ने उन आदमियों का हुलिया बताया जिनमे एक मोटा और ठिगना व्यक्ति था और दूसरा लम्बा और पतला था । तीसरा शख्स साधारण कद का अधेड व्यक्ति था ।
जीत को यह याद तो नही आया लेकिन एक मोटे और एक पतले व्यक्ति का जिक्र आने से उसे कुछ कुछ याद आने लगा कि ऐसे ही दो लोगों से वो किसी उजाड़ इमारत के सामने मिला था ।
" एक अंधेरी गली । एक उजाड़ इमारत । शायद मै भटक गया हुआ था और मैने उन दोनो से रास्ता पूछा था " - जीत स्वयं से बोला ।
टोनी और भीमराव करीब ही एक मेज पर बैठे थे और कान लगाये बारमैन और जीत का वार्तालाप सुन रहे थे। जीत को उन्होने पहचान लिया था लेकिन जीत की आखिरी बात सुनकर दोनो के छक्के छुट गए ।
" वह बहुत बड़ा मकान था "- जीत कहे जा रहा था-" लेकिन खंडहर लग रहा था और..."
" यह मरवाएगा " - भीमराव घबराकर बोला-" इसे चुप कराओ। "
टोनी ने चिंतित भाव से सहमति मे सिर हिलाया।
जीत ने सिगरेट पीने के मकसद से अपने ओवरकोट के जेबों मे हाथ डाला तो उसके दायें हाथ की उंगलियां जेब मे पड़ी एक अपरिचित चीज से टकराई । उसने वह चीज बाहर निकाली तो पाया कि वह एक जनाना पर्स था।
वह अपलक उस पर्स को देखता रहा ।
उसे कुछ बातें याद आ रही थी।
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1 P.M.
जीत ने वर्षा के घर के बाहर दस्तक दिया । पर्स मे से बरामद हुए पते के सहारे वो वर्षा के एड्रेस तक पहुंचा था।
दरवाजा खुला।
चौखट पर जो युवती प्रकट हुई , उसे देखते ही जीत के नेत्र फट पड़े। पलक झपकते ही उसका सारा नशा काफूर हो गया।
" शनाया!"- वह भौचक्का-सा बोला।
" शनाया "- युवती हैरानी से बीली-" कौन शनाया?"
" तुम यहां ? मुंबई मे!"
" मिस्टर, यह क्या बड़बड़ा रहे हो तुम ? किससे मिलना है तुम्हे?"
" मिलना तो मुझे मिस वर्षा गौतम से है लेकिन , शनाया, तुम यहां?"
" यहां कोई शनाया नही रहती। और मै ही वर्षा गौतम हूं। "
" तुम "- जीत मन्त्रमुग्ध-सा बोला-" शनाया नही हो। "
" नही। कहा न मेरा नाम वर्षा गौतम है। "
" कमाल है। ऐसा कैसे हो सकता है?"
" क्या कैसे हो सकता है?"
" दो सूरतों मे इतनी समानता। "
" तुम्हारा मतलब है मेरी सूरत किसी शनाया से मिलती है। "
" मिलती क्या , हूबहू मिलती है। कहीं कोई फर्क नही। "
" शनाया कौन है?"
" अगर आप शनाया नही है तो वह है कोई। "
" और तुम कौन हो?"
" मेरा नाम जीत है। जीत सिंह। जहाज पर सेलर हूं और आज रात नौ बजे तक ही मुंबई मे हूं। "
"मुझसे क्या काम था?"
जीत ने ओवरकोट की जेब मे से पर्स निकालकर उसकी तरफ बढ़ाया।
" यह तुम्हारा है?"
" हां "- वर्षा ने झपटकर पर्स उसके हाथ से ले लिया-" तुम्हे कहां मिला यह?"
" यह तो तुम मुझे बताओ?"
" मतलब?"
" जहां यह पर्स तुमने छोड़ा होगा, वहीं से मैने इसे उठाया होगा। अगर तुम मुझे बताओगी कि तुमने इसे कहां खोया था तो मुझे मालूम हो जाएगा कि कल रात मै कहां था। "
" तुम्हे नही मालूम कि कल रात तुम कहां थे?"
" नही "- जीत के स्वर मे खेद का पुट था-" दरअसल कल रात मै नशे मे था। "
" नशे मे तो तुम अब भी हो। "
" कल रात मै हद से ज्यादा नशे मे था। "
" मूझे तो याद नही कि पर्स मैने कहां गिराया था। "
" ओह!"
जीत चेहरे पर निराशा का भाव लिए अनिश्चित सा खड़ा रहा।
" वैसे तुम जानना क्यों चाहते हो कि कल रात तुम कहां थे?"
वर्षा ने उसे अंदर बुलाया और बड़े सब्र के साथ जीत की सारी कहानी सुनी।
" तुम उस आदमी को जानते नही , तुमने ठीक से उसकी सूरत तक नही देखी, तुम्हे यह तक पता नही कि वह तुम्हे कहां मिला था लेकिन तुम उसकी तलाश कर रहे हो। "
" हां। "
" क्यों?"
" क्योंकि कल रात मैने जहां उसे देखा था , वह बेचारा अभी भी वहीं पड़ा हो सकता है। वह बेचारा घायल था। चलने फिरने से लाचार था। हो सकता है अभी भी वह उसी हालत मे कहीं पड़ा हो और मेरी मदद का इन्तजार कर रहा हो। "
साधारणतया वर्षा अजनबियों से बहुत परहेज करती थी और शराबी आदमी से तो उसे वहशत होती थी । जीत मे दोनो खामियां थी लेकिन पता नही क्यों उसे वह आदमी बहुत ही नेक और शरीफ लग रहा था।
उसने कुछ क्षण सोचा और अपनी पिछली रात की सारी घटनाएं उसे सुना दी।
" खंडहर मकान !"- जीत सोचता हुआ बोला-" जिसकी सिर्फ दीवारें खड़ी थी और तकरीबन छतें गिर चुकी थी। "
" हां। "
" तुम्हारे ख्याल से वहां दो आदमी और थे। "
" हां। "
" जीत कुछ देर तक सोचता रहा। फिर बोला-" दो आदमी फिर से । हो सकता है उस खंडहर इमारत को देखकर मुझे बहुत सी भूली बातें याद आ जाए। क्या आप मुझे वो खंडहर दिखा सकती है?"
" साॅरी । यह मुमकिन नही । मैने अभी कहीं जाना है इसीलिए तो आज ड्युटी तक नही गई। "
" ओह!"- जीत ने गहरी सांस ली और उठता हुआ बोला-" तुम वहां का एड्रेस ही बता दो। "
वर्षा ने एड्रेस बताया।
वर्षा दरवाजे तक उसके साथ आई।
" पर्स लौटाने के लिए शुक्रिया "- वह बोली।
जीत केवल मुस्कराया।
इतने विशाल आदमी के चेहरे पर वह बच्चों जैसी मुस्कराहट वर्षा को बहुत अच्छी लगी।
" यह शनाया "- वर्षा बोली-" शक्ल मे जिसकी तुम्हे मै डुप्लीकेट लगी थी , तुम्हारी कोई सगे वाली है?"
जीत ने बड़े अवसादपूर्ण ढंग से इंकार मे सिर हिलाया।
" थी?"- वर्षा बोली।
" हो सकती थी लेकिन हुई नही। "
" क्यों?"
" क्योंकि वतौर पति मेरी कल्पना करने से उसे दहशत होती थी। हाथी - हिरणी या फिर गेंडा - मेमने की जोड़ी कहीं जंचती है?"
" ऐसा उसने कहा था?"
" हां। "
" कहां रहती थी?"
" लंदन मे। "
" तुम उससे प्यार करते थे?"
" बहुत ज्यादा । ऐसा जैसा किसी ने किसी से न किया होगा। "
" वो लड़की ..."
" छोड़ो । उसके जिक्र से भी मेरे दिल के जख्म हरे हो जाते है। पहले ही तुम्हारी सूरत देखकर कलेजा मुंह को आने लगा था। "
वर्षा खामोश रही।
जीत भारी कदमो से चलता हुआ वहां से विदा हुआ।
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आज राज और वर्षा का तफरीह का प्रोग्राम था। लेकिन ऐन मौके पर राज को अपनी कंपनी मे एक इमर्जेंसी मिटिंग की वजह से प्लान मुल्तवी करना पड़ा।
उसने फोन कर वर्षा को यह जानकारी दी।
इसी दौरान वर्षा ने भी उसे अपने पर्स की वापिसी की दास्तान सुनाई।
" कमाल है "- राज बोला-" उसकी किसी गर्लफ्रेंड की शक्ल तुम्हारे से मिलती थी। "
" उसके अनुसार , हूबहू मिलती थी। "
" देखने मे कैसा था वो?"
" बड़ा अच्छा , खुबसूरत, खानदानी लेकिन इतना विशाल जैसे किसी आम आदमी को मैग्नीफाइंग ग्लास मे से देखा जा रहा हो। "
" इतने गुण लेकिन बोतल का इतना रसिया कि टून्न होकर वह भूल जाता था कि वह कहां पर था?"
" लगता था जैसे बेचारा कोई गम कम करने के लिए पीता हो। मुझे तो रहम आ रहा था उसपर। "
" वैसे तुम्हे उसके साथ खंडहर इमारत जाना चाहिए था। "
" कैसे चली जाती ? तुम जो आने वाले थे। "- वर्षा आहत भाव से बोली।
" आखिर वह बेचारा तुम्हारा पर्स लौटाने आया था । अब तो हमारा प्लान भी खटाई मे पड़ गया है सो अभी भी तुम जा सकती हो। "
वर्षा खामोश रही।
" जो शख्स आपके काम आए, आपको भी उसके काम आना चाहिए। " - राज उसे प्यार से समझाया।
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2 P.M.
जीत जीवनलाल की ही दी हुई लाइटर जलाकर खंडहर इमारत के भीतर मुआयना कर रहा था ।
लेकिन उसे इस बात की जरा भी भनक नही थी कि टोनी और भीमराव उसका पीछा डिमेरो बार से ही लगातार कर रहे थे।
जीत को आधे घंटे से ऊपर हो गए पर उसे कुछ सुझ नही रहा था कि आखिर उस घायल व्यक्ति को कहां छोड़ा था उसने।
तभी किसी ने उसका नाम लेकर पुकारा।
" तुम यहां!"- जीत तनिक हैरानी से बोला।
" हां। "- वर्षा बोली-" हमारा प्लान कैंसिल हो गया है इसलिए मुझे लगा तुम्हारी मदद करनी चाहिए। "
वर्षा ने उसे बताया कि उसने उस घायल व्यक्ति को कहां देखा था। और शायद उसका पर्स भी यहीं कंही तब गिरा होगा जब वो आनन फानन बदहवास भाग रही थी।
" लेकिन तुम्हारा पर्स मेरे ओवरकोट मे कैसे पहुंच गया?"- जीत बोला।
" यह तो तुम्हे मालूम होना चाहिए। लेकिन जैसी हालत तुम अपनी पिछली रात की बता रहे हो तो हो सकता है तुमने स्वयं जमीन से पर्स उठाकर अपने जेब मे रख लिया हो और फिर नशे की हालत मे भुल गए हो। "
" शायद ऐसा ही हुआ हो "- जीत को ऐसा सम्भव लग भी रहा था -" वैसे अगर मुझे यह मालूम हो जाए कि यहां से निकलने और अपने होटल पहुंचने के बीच मै कहां-कहां गया था तो मेरा ख्याल है कि यह मिस्ट्री हल हो सकती है। "
वर्षा कुछ देर तक सोचती रही फिर निर्णयात्मक स्वर से बोली- " ओके , यहां से चलो । ढूंढते है तुम्हारे आदमी को। "
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टोनी और भीमराव उनसे कुछ दुरी बनाए , उनकी नजरो मे आए वगैर सबकुछ देख रहे थे , सबकुछ सुन रहे थे । लेकिन उन्हे लगता था अबतक पानी सिर के ऊपर नही गया है।
इसलिए वेट एंड वाच करना ही उन्हे मुनासिब लगा।
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जीत और वर्षा हर उस जगह गए जहां जीत की मौजूदगी इस दरम्यान सम्भव हो सकती थी। डाॅक , जहां जहाज खड़ा था , खंडहर के सामने वाले हिस्से से होटल तक पहुंचने के रास्ते तक । लेकिन कोई माकूल नतीजा नही निकला।
6. P.M.
इलाके के पांच बार घुम चुकने के बाद वे डिमेलो बार पहुंचे।
जीत ने अपने लिए विस्की और वर्षा के लिए कोल्ड ड्रिंक का आर्डर दिया।
जीत के तीसरे पैग पर वर्षा ने कहा-" तुम बहुत ज्यादा पीते हो। "
जीत खेदपूर्ण ढंग से मुस्कराया।
" क्यों पीते हो इतना ?"
जीत ने उत्तर नही दिया।
" उस लड़की की बेवफाई की वजह से जिसकी शक्ल मेरे से मिलती है ?"
जीत फिर भी चुप रहा।
" मुझे उसके बारे मे कुछ और बताओ?"
" यह एक लम्बी कहानी है , फिर कभी सुनाउंगा। "
" फिर कब सुनाओगे ? अब से तीन घंटे बाद तो तुम यहां से चले जाओगे और फिर पता नही जिंदगी मे वापिस मुंबई लौटेगे या नही। "
" एक बात बताओ?"
" पूछो। "
" तुम पढ़ी - लिखी, समझदार, बालिग लड़की हो, इसलिए सोच समझकर जबाव देना , मेरी भावनाओं का ख्याल करके झूठ न बोलना। "
" अच्छा। पूछो, क्या पूछना चाहते हो?"
" अगर तुम शनाया होती तो क्या तुम मेरे प्यार को सिर्फ इसलिए ठुकरा देती क्योंकि मै मोटा हूं और यह तुम्हारी मेरी जोड़ी नही जंचती ?"
" नही। "
" क्यों नही?"
" क्योंकि प्यार का रिश्ता दिल से होता है। दिल का सौदा दिल से होता है, जिस्म के आकार से नही , तुम सिर्फ मो...विशालकाय हो, प्यार करने वाले को तो अंधे, काने, लूले-लंगड़े , दरिद्र , फकीर कोई भी नामंजूर नही होते है। "
" ओह!"
" किसी ने मजनू से कहा था कि तेरी लैला रंग की काली है तो उसने कहा था कि देखने वालों की निगाह मे नुक्स था। "
" काश!"- जीत के मुंह से एक सर्द आह निकल गई -" जैसी समानता खुदा ने शनाया और तुम्हारी सूरत है, वैसी तुम दोनो के ख्याल मे भी बनाई होती "
वर्षा चुप रही।
" ज्यादा अफसोस की बात यह है "- जीत बड़े दयनीय स्वर मे बोला-" कि मर्द की बावत अपनी पसंद से मुझे वाकिफ कराने मे उसने दो साल लगाया। दो साल लगाया उसने मुझे यह बताने मे कि गेंडा और मेमना की जोड़ी नही चल सकती। जब मै उसे अपने दिलोजान की जीनत मान चुका था तो उसने कहा हम सिर्फ अच्छे मित्र ही बन सकते थे, जीवन साथी नही। यह बात उसने शुरुआत मे ही जता दी होती तो क्यों...क्यों. "
जीत खामोश हो गया। उसका गला रूंध गया और आंखे डबडबा आई।
" उसकी शादी हो गई?"
" हां। कब को। उसने किसी और से शादी करनी थी, इसीलिए तो मुझे ठुकराया था। "
" ओह!"
" शनाया की शादी के बाद मै लंदन छोड़ नही देता तो या तो मै पागल हो जाता या खुदकुशी कर लेता। "
उस घड़ी वर्षा के मन मे उस देव समान व्यक्ति के लिए बहुत अनुराग उमड़ा। उस वक्त जीत उसे उस अबोध शिशु की तरह लगा जिसे अपनी मां के गोद की सुरक्षा की जरूरत थी। उस घड़ी उसके मन मे जज्बात का ऐसा लावा उमड़ा कि वह घबराकर परे देखने लगी ।
क्यों उसका दिल चाह रहा था कि वह उससे कहे कि वह कितना ही बड़ा शराबी और नाकामयाब आदमी क्यों न हो, पर उसे पसंद था।
क्या उसके भीतर उस शख्स के लिए कोई प्यार मुहब्बत का जज्बा पनप रहा था !
" नही नही , ऐसा कैसे हो सकता है । "- उसने घबराकर सोचा।
जो शख्स आज ही उससे मिला था और आज रात को ही हमेशा के लिए मुंबई से रुखसत हो जाने वाला था, उसके प्रति यह सम्मोहन क्यों !
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" उठो "- वर्षा अचानक से खड़ी होती हुई बोली।
" क्या हुआ ?"- जीत हैरान होते हुए बोला।
" मुझे लगता है कि तुम खंडहर के सामने के रास्ते से नही बल्कि पिछवाड़े के रास्ते से निकले होगे । एक बार यह भी चेक कर लेते है। "
वापस वो दोनो खंडहर पहुंचे और इमारत मे प्रवेश किए।
पिछवाड़े के कमरे से होते हुए इस बार उन्होने ऐन वही रास्ता पकड़ा जिसपर अपने नशे की हालत मे पिछली रात जीत जीवनलाल को सम्भाले चला था।
रास्ते मे खस्ताहाल कारों का कब्रिस्तान लगने वाला अंधेरा मैदान भी आया लेकिन वे वहां से न होकर उसके पहलू से होकर आगे बढ़ गए। नतीजा फिर कुछ न मिला।
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7. P.M.
सिर्फ दो घंटे बाद जीत को शिप पर सवार होना था । वो सोच रहा था क्या उसका कल रात का राही और वर्षा सबकुछ पीछे रह जाएगा । क्या वो राही वास्तव मे उसे मिल पाएगा !
फिर कभी वर्षा को याद करेगा तो मृगतृष्णा के रूप मे ही याद करेगा और फिर उसे दारू पी पीकर जान दे - देने का एक नया बहाना हासिल हो जाएगा। उसकी वही सूरत शनाया जैसी लेकिन उसका कोऑपरेटिव नेचर , उसकी बातें उसे भा गई थी । वो वर्षा को चाहने लगा था ।
सिर्फ दो घंटे की बात थी। फिर वो शिप पर होगा और सबकुछ , सबकुछ पीछे छूटता जा रहा होगा ।
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दो घंटे बचे थे जहाज के छूटने की । उसे अब वापिस जहाज पर पहुंचना था।
जीत वर्षा के साथ वापिस खंडहर पहुंचा क्योंकि यहीं से एक रास्ता डिमेलो बार होते हुए बंदरगाह तक जाता था और विपरीत रास्ता मेन रोड होते हुए वर्षा के घर की तरफ ।
जीत ने भारी मन से वर्षा को अलविदा कहा और मन मन के डग भरता हुआ आगे बढ़ गया।
वर्षा वहीं खड़ी अनुराग दृष्टि से उसे देखती रही ।
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टोनी और भीमराव को बड़ी राहत हुई कि सेलर से उनका पीछा छूट गया । सेलर से अब उन्हे किसी तरह का खतरा नही था। लेकिन वर्षा को वो कैसे छोड़ सकते है ! आखिर यह उस रात की चश्मदीद गवाह जो थी ।
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जीत डिमेलो बार के नजदीक पहुंचा तो सोचा जहाज पर चढ़ने से पहले आखिरी बार एकाध ड्रिंक कर ले ।
वो बार मे प्रवेश किया और सीधे काउंटर पहुंचकर विस्की का आर्डर दिया।
उसके भीतर उस घड़ी एक तुफान उठ रहा था। उसका दिल पुकार पुकार कर दुहाई दे रहा था कि उसे वर्षा से मोहब्बत हो गई थी। लेकिन वो यह भी जानता था कि वर्षा किसी हाल मे उसकी नही हो सकती। शायद वह किसी और से मोहब्बत करती है।
तभी उसकी नजर काउंटर पर रखी आज के अखबार के ईवनिंग संस्कर के फ्रंट पेज पर पड़ी । उसकी निगाह अखबार मे छपी एक तस्वीर पर अटक कर रह गई। उस तस्वीर मे बिना दरवाजे की कार दिखाई दे रही थी ।
बिना दरवाजे की कार !!
जीत के जेहन मे एकाएक जैसे बिजली कौंध गई । कार की उस तस्वीर ने उसके लिए बिजली के उस स्विच जैसा काम किया था जो पहले नही चलता था और अब एकाएक चल पड़ा था और रोशनी की जगमग जगमग हो गई थी।
उसे सबकुछ याद आ गया था ।
जीत ने टाइम देखा । अब भी डेढ़ घंटे बाकी थे जहाज के रवाना होने मे।
वो तुरंत खड़ा हुआ और वापिस खंडहर इमारत के पीछे के रास्ते से उस जगह तक पहुंचने का फैसला किया जहां वो घायल व्यक्ति को एक कबाड़ी और खटारा कार के पिछ्ली सीट पर छोड़ आया था।
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जीत जैसे ही खंडहर के करीब पहुंचा , उसे एक लड़की के चीख की आवाज सुनाई दी। वो भागते हुए अंदर प्रवेश किया और पिछवाड़े मे स्थित कमरे के पास पहुंचा।
सामने जो दिखाई दिया उसे देखकर उसके क्रोध का ठिकाना न रहा । उसके आंखो मे खून उतर गए।
टोनी और भीमराव वर्षा की इज्ज़त लूटने की प्रयास कर रहे थे । वर्षा बदहवास रो रोकर उनसे अपने इज्ज़त की भीख मांग रही थी।
टोनी और भीमराव की नजर सिर्फ वर्षा के जिस्म पर थी इसलिए वो यह जान ही नही पाए कि जीत उनके ठीक पीछे आ खड़ा हुआ था। जीत ने एक हाथ से टोनी की गर्दन पकड़ा और उसे दूर फेंक दिया और फिर भीमराव को पकड़कर वापस अपनी तरफ घुमाया और एक करारा प्रहार उसके पेट पर किया। भीमराव अपना पेट पकड़कर वहीं जमीन पर लेट गया ।
वर्षा के चेहरे पर खुशी और राहत भरे भाव आए । वो जीत से लिपटकर रोने लगी ।
" ये दोनो यहीं छिपे हुए थे "- वर्षा रोते हुए बोले जा रही थी-" तुम्हारे जाते ही इन्होने मुझे धर दबोच लिया था। इन्होने ही कल रात एक आदमी का खून किया था। "
" हां , ये वही दोनो हैं । मुझे सबकुछ याद आ गया है "- जीत ने उसे ढ़ांढस देते हुए कहा।
वो वर्षा को ढांढस देने मे इतना मशगूल हो गया कि उसे पता तक नही चला कि टोनी कब खड़ा हुआ और कब उसके सिर पर सवार हो आया । टोनी ने लोहे के रड से उसके सिर पर जोरदार प्रहार किया ।
और फिर तभी भीमराव जो अपना पेट पकड़े जमीन पर पड़ा हुआ था , उठकर उसके पेट मे एक धारदार खंजर भोंक दिया ।
जीत धड़ाम से जमीन पर गिर गया ।
वर्षा हैरत और अविश्वसनीय फटी फटी आंखो से जीत को जमीन पर गिरते देख रही थी । उसकी आंखे गंगा यमुना बन गई थी।
" अब कहां से बचेगी , साली ! तुझे तो मरना ही था । कल रात के हमारे जुर्म की तू ही तो साक्षी है पर अच्छा हुआ यह साला सेलर भी खुद चलकर यहां मरने आ गया "- टोनी कहर भरे स्वर मे बोला -" मौका मिला था इसे यहां से वापस जाने का लेकिन कुता फिर भी वापस आ गया ।"
टोनी और भीमराव उसकी ओर बढ़े।
वर्षा को अपनी मौत साक्षात नजर आने लगी थी ।
वो दम लगाकर चिखी ।
चीख की तीखी आवाज से जीत की तन्द्रा टूटी । अब भी उसकी चंद सांसे बाकी थी। उसने उठने की कोशिश की तो पाया कि वह खून से नहाया हुआ था। धूंधली आंखो लिए अंधो की तरह टटोलता वह अपने पैर पर खड़ा हुआ।
अंधो की तरह टटोलता , आंखे मिचमिचाता , झूमता , लड़खड़ाता वह फिर उनके पीछे जा खड़ा हुआ और पुरी ताकत लगाकर अपनी दोनो भुजाओं से उन दोनो की गर्दनें दबोच लिया और तबतक दबाता रहा जबतक उनके प्राण पखेरू उड़ नही गए।
जैसे ही जीत की चेतना खोने लगी, दोनो भरभराकर जमीन पर गिर गए।
टोनी और भीमराव मर चुके थे।
जीत अपने होश खोने लगा था। वह कटे वृक्ष की तरह गिर पड़ा ।
वर्षा दौड़कर उसके करीब पहुंची।
" जीत "- वर्षा रूंधे स्वर मे बोली।
जीत की पलकें फड़फड़ाई। उसका खून से लथपथ चेहरा तनिक वर्षा की तरफ घूमा । उसके होंठो पर एक क्षणिक मुस्कराहट आई ।
" तुम्हे कुछ नही होगा , जीत "- वर्षा जीत को अपने सीने से लगाते हुए , रोते हुए बोली।
" तुम..ठीक. हो न.. !"- जीत के मुंह से निकला।
" हां "- वर्षा आंसुओं मे डूबे स्वर मे बोली -" मै ठीक हूं जीत और तुम्हे भी कुछ नही होने दूंगी ।"
" मेरे. जाने का वक्त.. आ गया है , वर्षा. "- जीत रूक-रूक कर , टूटे- फूटे स्वर मे बड़ी मुश्किल से बोला -" कैसा अजीब है न , नाम जीत.. पर.. जीवन मे सब समय.. हार । मां का चेहरा.. याद नही । पिता का साया.. होकर भी.. बाप का स्नेह.. प्यार नही , स्कूल..कालेज मे.. शरीर की
. वजह से कोई कदर नही , लड़की की.. मुहब्बत नसीब मे.. नही और.. आखिर मे तुम्हारा भी.. साथ नही ।"
वर्षा ने रोते हुए उसे अपने सीने से कस लिया।
जब जीत की आवाज कुछ क्षण तक नही आई तो उसने घबराकर जीत के चेहरे को देखा ।
जीत की सांसे थम चुकी थी । उसकी आत्मा परमात्मा मे विलिन हो चुकी ।
" जीत "- वर्षा पछाड़ खाकर उसके ऊपर गिर गई।
ऐन उसी वक्त राज वहां पहुंचा।
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वर्षा जीत को कभी भूल नही सकती थी । जीत नाम के फरिश्ते का नाम उसके दिल मे इतने गहरे अक्षरो मे गुद गया था कि उसकी आने वादी जिंदगी मे कोई भी उसे मिटाना तो दूर , धुंधला भी नही कर सकता था।
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9.30 P.M.
ओरिएंटल गोल्डन स्टार का कैप्टन गुस्से मे लाल पिला हुए जीत को जहान भर की गालियों से अलंकृत करते हुए बोला जा रहा था -" गधा , गैरजिम्मेदार , बर्दाश्त की भी हद होती है। अब मै जीत का और इन्तजार नही कर सकता। जहां है वहीं मरा खपा रहे । मै चला। "
जीत के अंजाम से बेखबर गोल्डन स्टार अपने इन चार सफर मे पहली बार जीत के बिना बंदरगाह छोड़ चला।