1998 इंदरबाग,बंगाल
*स्क्रीचचच*
एक गाड़ी आ कर रुकी जिसमे से एक औरत ने उतरते हुए कहा
"अरे क्या आप भी चलिए उतरिए अब पोहोच गए हम "इंदरबाग"
उस व्यक्ति ने गाड़ी से उतरते हुए हस कर कहा जिसका नाम 'सरमेंद्र शर्मा' था "अरे हां उतर रहा हु,लेकिन ये सजय कहा रह गया"
सरमेंद्र की बात सुनकर उसकी पत्नी 'विभाषा' ने भी हँसी में शामिल होते हुए कहा,
विभाषा: "अरे, समय लगेगा थोड़ा,आ जायेंगे कलकत्ता से आ रहे है हमारी तरह गांव से नहीं।"
सरमेंद्र शर्मा ने एक हंसी की झलक दे कर कहा, "अरे वो देखो आ ही गए वो लोग"
*स्क्रीचचचच*
एक गाड़ी आकर रुकती है और उसमे से एक आदमी और औरत निकलते है जिनके साथ एक लड़का भी था जो आकर सरमेंद्र के पैर छू कर प्रणाम करते हुए बोलता है
"पापा जी जानते हो मैं कितना परेशान हो गया,इतने धीरे धीरे गाड़ी चला रहे थे जीजा जी की क्या ही कहू"
उसने ये कहते हुए जाकर विभाषा के पैर छुए। तभी पीछे से वो आदमी आगे बढ़ते हुए बोला "पापा जी गांव से आने में आपलोगो को कोई दिक्कत तो नहीं हुई न?"
सरमेंद्र ने जवाब देते हुए आगे बोला
"नहीं, खैर ये सब छोड़ो सजय ये कोठी इतनी शांत इलाके में लेना जरूरी था क्या,कितना सन्नाटा पसरा हुआ है यहां"
संजय ने कोठी की ओर देखते हुए कहा जो हल्के कोहरे के कारण धुंधला सा दिख रहा था
"ये कोठी बोहोत बेहतरीन है पापा जी, शहर से दूर और तो और पास में ही गांव भी है एक। यहां बोहोत शांत माहौल है जो आप सबको चाहिए भी था"
तभी उसके बगल में वो औरत आकार सरमेंद्र शर्मा को प्रणाम कर उनके गले लग जाती है।
"सदा खुश रहो मीना बिटिया और बताओ सजय परेशान तो नहीं करता न"
मीना ने सजय की ओर देखते हुए कहा
"नहीं पापा जी"
"अच्छा-अच्छा चलो कोठी के अंदर और हा सुन शशी सबका सामान लेकर आना" सरमेंद्र ने अपने ड्राइवर से कहकर ये बात चल पड़े आगे
जहा आगे सजय कोठी के गेट के पास पहुंचते ही वहा आवाज लगाई तो एक काका भाग कर आए और गेट खोला जो पुरानी हो चुकी थी और जर्जर हो गई थी,गेट खुलते ही उन्हें उनकी कोठी का बगीचा दिखा जो अंधेरी चादर ओढ़े सोया हुआ था जहा,वो पुरानी बल्ब की पीली रोशनी में कोठी का गेट गहरा असर छोर रहा था, मानो वो अंदर बुला रहा हो।
सजय के साथ वाला लड़का कोठी की तरफ आगे बढ़ा जिसे सजय ने पीछे से आवाज लगाते हुए बोला
"दिनेश रुको" और बोला
"तुम जाओ सामान लेकर आने में शशि की मदद कर दो"
सजय की बात सुन दिनेश वहा से चला गया और सजय कोठी की ओर।कोठी के अंदर प्रवेश करते ही सजय की नजरें अपने चारों ओर घूमीं।
वहाँ रोशनी में झूलती हुई उसकी निगाहें कोठी की दीवारों को निहार रही थी मानो कुछ पुराने ख्यालात पढ़ रहा हो।
वो दीवारों पर लगे पुरानी तस्वीरों को अभी वो देख ही रहा था की शशि की मदद करते हुए दिनेश भी पीछे से आ गया कोठी के अंदर, जहा उसने कोठी की खूबसूरती देख जोर से बोला
"क्या खूब बनाया होगा इस कोठी को जिसने भी बनवाया होगा यार"
सबने उसकी बातो पर हामी भरी और कोठी के देखभाल करने वाले काका से उनके कमरे पूछने लगे।
वही सजय अपनी दृष्टि लिए उस बेहद सुंदर आंगन में आ गया जहाँ वो फूलो का वो बाग, सुकून और शांति थी उस जगह में।
जहां चांद की आती वो रोशनी और उस कोठी में जले बल्ब की पीली रोशनी एक अलग ही अद्वित्य दृष्य दिखा रही थी।
खिड़कियों से आ रही ठंडी हवा से सजय ने कुछ अलग ही महसूस किया,
जो उसे यहां कोठी की बेरंग कहानियां सुनानी चाह रही थी मानो।
सभी थके हुए थे तो उन्होंने जल्दी खाना खाया जो काका ने बनाया था उसके बाद सभी अपने कमरे की ओर चल दिए सोने।
सजय हाथ मुंह धोकर खिड़की के पास आकर खड़ा था की तभी पीछे से मीना उससे लिपटते हुए खुशी से कहती है
"यहाँ की वातावरण में एक अलग ही शांति है।"
सजय ने मुस्कुराते हुए कहा
"कुछ और महसूस नहीं हो रहा"
सजय की बात सुन उसने हल्का मुक्का मारते हुए कहा "अब क्या महसूस करु तुम्ही बताओ"
सजय पीछे घूमते हुए अपने बाहों में उसे लेते हुए बोला "मेरे जज़्बात तो समझो मेरी गुलाब की पंखुड़ी"
ये कहते ही मीना बोलने को हुई की सजय ने पीछे से उसकी गांड मसलनी शुरू कर दी जिससे उसकी कामुक आवाज़ ने कमरे को मंत्रमुग्ध करना शुरू कर दिया।
"अरे ये क्या कर रहे हो इतनी जोर से क्यू मसल रहे हो दुख रहा है" "आह...अहअअहह..आ... उह आराम से"
सजय उसे गोद में उठाकर बिस्तर पर पटक दिया और उसकी दोनो टांगो को उठा कर उसकी सारी धीरे से हाथो से नीचे करते हुए उसकी सारी की गाठ को कमर से खींचते हुए ढीला कर दिया और उसकी लबों की ओर बढ़ते हुए उसकी आंखो पे जुबान फिराने लगा मानो उसकी जुबान प्यासी हो,
उसकी जुबान से रिसता हुआ वो पानी सीधा आंखो के लटो को भिगो रहा था।
मीना ऐसे बर्ताव से तड़प रही थी पर उसे ये नया अनुभव भा रहा था मानो भौरा फूलो के लटो से खेल रहा हो।
सजय की फिरती हुई जुबान उसके गुलाबी गालों से होते हुए उसके लबों पर आ कर रुक गए तब उसने आंख खोला तो देखा कि सजय की आंखे उसकी ही आंखों की ओर देख रही थी मानो कह रही हो अब आपकी लबों की भीगने की बारी है।
मीना तो मानो शरमा सी गई थी इस अदा से,जैसे ही उसके भाव उसके चेहरे पर उतरने को थे, सजय के लबों ने उसकी लबों को अपने कैद में लेते ही चूसना चालू कर दिया उसकी एक लबों को पकड़ चूसते हुए उसकी आंखो में देखते हुए सजय उसकी कमर पर हाथ चला रहा था वो और ऊपर उसकी लबों को अपने लबों से किसी भौरे की तरह रसपान कर रहा था।
मीना की सांसे फूलने सी हो गई थी की तभी सजय ने अपने लबों को ढील दे जिससे हांफते हुए मीना ने अपने चेहरे को एकतरफ कर लिया और फिर सजय की तरफ देखती हुए बोली "खा जाओगे क्या मुझे आज"
जो सुन सजय अभी कुछ बोलता की बाहर से कुछ गिरने की आवाज आई तो उनका ध्यान उस ओर चला गया तो सजय ने जाकर गेट खोला तो पाया कि कोई नही था,जब बाहर निकल देखा तो खिड़की पे रखा हुआ मिट्टी का दिया गिरा हुआ था जिसे नजरंदाज कर वो अंदर आकर दरवाजा बंद कर लिया।
वही बाहर दिनेश जो अपने कमरे में भाग के अभी आया था
"बाल-बाल बच गया आज,क्या बवाल आदमी है वो"
ये कहते हुए वो बिस्तर पर पसर गया।
सुबह सजय उठा तो उसके चेहरे पर तेज धूप आ रही थी, उसने उठकर बाहर आंगन में आया तो देखा सभी सोफे पे बैठ चाय पी रहे थे,और रसोई की ओर देखा तो मीना रसोई में काम कर रही थी। वो अपने कमरे में चला गया वापस नहाने।
दिनेश कोठी के बाग में घूम रहा था और काका से बात कर रहा था
"काका ये गांव यहां से कितनी दूर है"
काका ने खांसते हुए कहा
"अरे नहीं बिटवा यही पे ही है लगभग इधर से दाए सौ कदम"
दिनेश उस ओर चल दिया,कुछ देर बाद उसे धीरे धीरे दुकानें दिखने लगी और कुछ दूर जाते ही उसे एक चक्की दिखी जिसके पास में एक छोटी सी किराने की दुकान थी जहा जाकर वो बीड़ी पीने लगा,वहा बैठे लोग उसके लिए नए थे और वहा के लोगो के लिए भी वो नया था।
तभी वहां आग ताप रहे बूढ़े ने आवाज लगाई दिनेश को
"अरे ओ शहरी बाबू जरा इधर आइए"
दिनेश ने जाते ही पूछा "बोलिए ?"
बूढ़े ने अपने आंखो के ऊपर हाथ रखते हुए ठीक से दिनेश को देखते हुए बोला "अरे आप ही वो कोठी में आए है क्या"
दिनेश ने उचक के बोला "हा हम ही आए है उस कोठी में"
बूढ़े ने उसकी बर्ताव पर थोड़ा हस्ते हुए बोला "अच्छा,अच्छी बात है वैसे कितने लोग है आप लोग ? या अकेले ही.."
दिनेश चिढ़ते हुए बोला "वो क्यू बताऊं आपको ?"
उसके बगल में बैठे तीनों बूढ़े भी थोड़ा हसने लगे उसको चिढ़ते देख,जिन्हे देख दिनेश चिढ़ सा गया और कोठी की तरफ चल दिया।
दोपहर में मीना अकेले कोठी में थी सरमेंद्र और विभाषा बाहर गांव में घूमने गए थे और दिनेश बाहर गया हुआ था सजय के साथ। मीना कोठी घूम रही थी तो उसे कोठी का दूसरा मंजिला दिखा जो कल वो घूम नहीं पाई थी इसलिए घूमने का ख्याल कर मीना कोठी के दूसरे मंज़िल पर जाने लगती है सीढ़ियों पे लगी पुरानी लकड़ियों की नकाशी को हाथो से महसूस करते हुए वो ऊपर पोहोच जाति है जहां उसे पाँच बंद कमरे दिखते है। उन कमरों को वो खोल कर देखने लगी जिनमे से तीन कमरे पूरे खाली था कोई सामान नहीं था वहा जैसे मानो कुछ रखा ही ना गया हो कभी, फिर उसने दूसरे मंज़िल के अंतिम के दो कमरों में जाकर देखा तो वो स्तब्ध सी रह गई बहुत सारे पुरानी तस्वीरें देख कर। कुछ तस्वीरें भारतीयों के थे तो उसमे कुछ अंग्रेजो और भारतीयों दोनो के साथ में भी तस्वीरे थी, वो सब वकील,पत्रकार या लेखक लग रहे थे।
मीना को ये सब देखकर थोड़ा अजीब सा लगता है। उसने सोचा, "ये तस्वीरें इतने सालों से यहाँ क्यों हैं? क्या ये कोठी जिसने बनवाया था उसका है ?"
उसके दिमाग में ये सवाल चल ही रहे थे जब उसने एक ख़ास तस्वीर देखी। तस्वीर किसी परिवार का लग रहा था जिसमे एक व्यक्ति वकील लग रहा था, लेकिन उसने ये फोटो कही तो देखा था, उसे याद नहीं आ रहा था। अंततः नीचे से आवाज आता देख वो तस्वीर रख के वो नीचे आ गई जहां सरमेंद्र और विभाषा बात कर रहे थे सोफे पे बैठ कर।
सरमेंद्र बोल रहा होता है
"गांव वाले बहुत ढीट किस्म के है"
विभाषा ने जवाब देते हुए बोला
"मुझे तो लग रहा है हम दिक्कत होगी यहां"नहीं
फिर से विभाषा थोड़ा धीमी आवाज में बोलती है "शशि को समझा दिया है न?"
जो बात सुन कर सरमेंद्र ने हल्का सा सर हा में हिलाया बस
शाम को सजय और दिनेश आ गए थे, खाना होने के बाद सब अपने कमरे में चल दिए सजय और मीना जाते ही सो गए।
वही सरमेंद्र के कमरे में
विभाषा की कामुक आवाज़ आ रही थी
"तेज धक्के लगाओ...आह उई आह... ह ह ह ह और जोर से और.. आह.. हह"
सरमेंद्र उसकी गांड पर एक थप्पड़ लगाते हुए बोला
"अरे क्या चौरी हुई पड़ी है तू मेरी जान, हा..आह गांड उठाते रह ह.. ऐसे ही गांड पीछे करते रह कमिनी"
सरमेंद्र उसकी गांड पे थप्पड़ बरसाए जा रहा था साथ ही साथ उसकी गांड को मसल भी रहा था जिससे विभाषा की कामुक आवाज और तेज हो रही थी।
"बह रही हु मै, हाए..आह..हमह..धक्के मारो जोर से ह और.. हह..आह "
सरमेंद्र उसकी चूत में आखिरी धक्का मारते हुए
"आह ले भर दी तेरी फुद्दी फिर से"
फिर सरमेंद्र ने अपने मुंह खोल के विभाषा की खुली हुई चूत पर रख कर उसे जोर जोर से चूसने लगा और सारा पानी मुंह में लेकर विभाषा के मुंह पे थूक दिया।
वही सजय की नींद खुलती है प्यास के कारण तो देखता है की मीना नही है तो उसने बाथरूम की ओर देखा तो पाया कि वो तो बंद है तो वो बाहर निकल अपने कमरे से रसोई में चला गया पानी पीने जब वो वहा पहुंचा तो वहा भी मीना नहीं थी तो वो पानी पी कर पीछे आंगन की ओर जाने लगा देखने की लेकिन तभी उसे पायल की आवाज आई जो उसके कमरे से आ रही थी तो वो जल्दी अपने रूम में गया तो देखा कि मीना बैठी हुई थी तो वो अंदर जाते हुए बोला " तुम सोई नहीं?और कहा गई थी"
मीना खड़ी होते हुए बोलती है "कही तो नही पीछे आंगन में थी नींद नहीं लग रहा था तो और आई तो देखा तुम नही थे तो तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी,कहा गए थे"
"पानी पीने गया था" ये कह कर सजय उसके बगल में आकर लेट गया और मीना को बाहों में घेर कर सो गया।
वही इधर दिनेश अपने कमरे से बाहर आया लगभग तीन बजे के करीब नींद टूटने के कारण जो गुस्से में था तो उसने सोचा बाहर घूम ही लिया जाए तो वो कोठी से निकल बाहर आया तो आज पहले की तरह ही कोहरा था,वो गांव की ओर चल दिया उसे रास्ते में बहोत से कीड़ों की आवाजे आ रही थी, उसे चले कुछ पल ही हुए होंगे की उसे जानवरों की आवाज़ आने लगी।
जो सुन के उसके कान खड़े तो हुए ही पर रोंगटे भी खड़े हो गए लाजमी है घबराहट से। उसने उस ओर देखा तो धुंधला ही दिखाई दे रहा था कोहरे के कारण। उसका दिमाग का एक कोना उसे वापस कोठी जाने को कह रहा था तो दूसरा कोना डर का महसूस कराने लगा था,खैर उसने सुना तो आवाज़ नहीं आ रही थी अब, तो वो गांव की ओर बढ़ गया जहा वो पहोचते ही देखता है तो पाता है की दुकान सब बंद है लाजमी इतनी सुबह बंद ही रहेगी। तो वो और अंदर चल दिया जहां कुछ दूर चलते ही उसे कुछ औरतों की आवाज आई तो उसने अपनी रफ्तार थोड़ी बढ़ाई और देखा तो पाया कुछ औरतें लालटेन लिए बाते करते हुए जा रही थी। उसने उनकी बाते सुनी तो
"अरे क्या री राजिया तेरे तो बड़े मजे है"
"अरे हां, देख तो आज लंगड़ के चल रही है कितना,लगता है रात में पीछे से तुड़ाई हुई है इसकी"
ये कहने की देर थी उसकी की वो सब ठहाके लगाकर हसने लगी और आगे से बाए मुड़ने लगी जो देख दिनेश थोड़ा रुक गया और धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा, उसे समझ आ गया था की वो शौच करने आई हुई है खेतो में जो भांप कर दिनेश ने भी बाए मुड़ते हुए खेत में चल दी और ध्यान से देखने की कोशिश की तो सबने अपनी-अपनी जगह पकड़ ली थी और बैठ शौच कर रही थी।
दिनेश पेड़ो की तरफ से होते हुए अंतिम छोर की ओर चल दिया,भीगे मिट्टी के कारण पत्तो की उतनी आवाज नही आ रही थी पर फिर भी वो पैर दाब कर ही चल रहा था वो तभी एक जगह रुक कर अपने आगे बैठी उस औरत को निहारने लगा और अपने लंड मसलने लगा जिसे मसलते हुए वो उसकी गांड को देख रहा था जो लालटेन की रोशनी में चमक रही थी,वो औरत उससे दो कदम की ही दूरी पर थी। तभी आवाज आई औरतों की उठने की तो वो वापस पीछे हो गया और पाया कि सब जा रही थी हाथ में लोटा लिए।
अभी दिनेश वही बैठा हुआ था की उसने एक परछाई को उल्टी दिशा में जाते हुए देखा जो बाग में जा रही थी, उसे गड़बड़ लगी वो पीछा जाने लगा बाग में तो देखा कि वो वहा किसी से बात कर रही थी।
लड़की की आवाज आती है
"तुमने बात की अपने घर हमारे बारे में"
लड़के ने जवाब दिया
"देखो मरियम, कोशिश कर रहा हु मैं,खैर तुम ये सब छोड़ो रसपान तो कराओ अपना"
ये कहते ही उसने उसको कमर से पकड़ लिया और उसको चूमने लगा जो देख दिनेश तो हक्का बक्का तो था ही पर एक कमिनी मुस्कान भी थी उसके चेहरे पर।
वो लड़का उस लड़की को आगे लेकर चल दिया अपने साथ लाई हुई लालटेन की मदद से और बाग की दूसरी ओर पहोचते हुए वहा खेत में वो उसे झोपड़ी में ले कर घुस गया।जिसके पीछे दिनेश भी भागते हुए आया और देखा तो खिड़की थी ही नहीं तो उसने जुगाड़ ढूंढना चालू किया और पीछे आ गया झोपड़ी के और नीचे से एक छोटी लकड़ी उठा कर झोपड़ी के पुवारे में लगा कर हटाने लगा जिससे कुछ जगह बन गई और उसे दिखा सामने उस लड़की की खिलखिलाती चूत,जिसे देखते ही उसकी मुस्कान बढ़ गई और उसने देखा कि लड़के ने अपना लंड सीधा उसकी चूत पर रख कर घुसाते हुए धक्के लगाने चालू किया।
"आह...धीरे तनिक धीरे करो हम्ह...हम्ह.."
"हाए तेरी फुद्दी क्या रस छोड़ रही है साली"
"हा...इसी तरह जोर से जोर से हा हह"
अभी आगे कुछ होता दिनेश सीधा गेट की तरफ से अंदर घुसते हुए बोला
"क्या हो रहा है यहां,अरे इधर आओ रे सब जल्दी"
दिनेश की आवाज सुनते ही वो दोनो सकपका गए,लड़का तो सीधा उठ कर दिनेश को धका दे कर भाग गया,नंगे ही।
जो देख दिनेश की हसी छूट गई और वो लड़की की ओर देखा जो अपने कपड़े से अपनी शरीर को ढक रही थी।
"अरे डरो मत जानेमन हमे भी अपना रस पान कराओ,इस नमूने के पीछे पड़ी थी तुम, जो छोर कर भाग गया"
ये कहते हुए दिनेश आगे बढ़ा ही था की वो लड़की बोली नहीं "मुझे जाने दीजिए, मैं यहां फिर नहीं आउंगी " वो हाथ जोड़ते हुए बोली, जिसे नजरंदाज कर दिनेश ने उसके पास जाते हुए उसकी ओर हाथ बढ़ाया ही था की उसने उसका हाथ झटक दिया और पीछे को सिमट गई कोने में,जो देख गुस्सा तो आया दिनेश को जिससे वो पिनिक कर उसके हाथ से कपड़े छीन कर पीछे फेक दिया और उसकी गर्दन को पकड़ कर अपने ओठो को उसके ओठो से जोर कर जबरदस्ती चूसने लगा जिसके परिणाम स्वरूप हाथ से झटकने की कोशिश तो कर रही थी वो लड़की पर नीचे से दिनेश ने उसकी चूत को सहलाना शुरू किया और जैसे ही उसने हाथ झटकना कम किया उसने उसकी चूत को उंगलियों से बिचने लगा जिससे वो तड़प उठी और धक्का देने लगी लेकिन थोड़ी ही देर में वो भी उसका साथ देने लगी।
कुछ पल बाद दिनेश ने छोड़ा उसको और उसे वैसे ही लिटाते हुए अपने पैंट को खोलते हुए लंड को उसकी चूत में सीधा उतार दिया जिससे ठंडे वातावरण में गर्म लंड उसकी चूत में जातें ही दोनो के शरीर में करंट सा दौड़ उठा और दिनेश ने ताबर तोड़ धक्के शुरू किए मारने, कुछ धको में ही वो बहने को हो ने लगी थी
"आ..आआह..अम्मी आह ह.. हमह.. आह धीरे..धीरे"
उसकी आंखों में पानी आ गए थे जो देख दिनेश ने उसकी चूचियां एक हाथ से पकड़ कर मसलने लगा और धक्के कभी धीरे करने लगा तो कभी तेज जिससे उसकी कामुक आवाज गूंज रही थी झोपड़ी में।
तभी दिनेश ने अपना लंड बाहर निकाल लिया जिससे लड़की ने आंख खोलते हुए देखा तो दिनेश गांड पर एक चपेट लगाते हुए बोला "चल घूम जा मेरी घोड़ी"
दिनेश की बात सुन वो पलटने के लिए घुटने पे आई ही थी कि दिनेश दोनो हाथो से उसके गांड को पकड़ लिया और जोर से मसलते हुए लंड को उसकी गांड में बिना देखे घुसेड़ दिया एक बार में ही जिससे उसकी चीख निकल गई, जिससे उसने जल्दी से उस भागे हुए लड़के के पजामे को मुंह में डाल कर रोका और रोने लगी,उसकी आंखों से पानी आ गए थे और उसकी गांड की छेद लाल रसीली हुई पड़ी थी जिसमे और गहराई दिनेश अपने गहरे धक्को से किए ही जा रहा था।
"ऊ.. उह.. आह... ऊ.. ममह"
वो नीचे सर किए धक्के खाए जा रही थी और पीछे दिनेश उसकी गांड को बेरहमी से मसले जा रहा था।
"आह क्या गांड है तेरी जानेमन,दीवाना हो गया मैं तो हमह ह आह बस हो ही गया"
और ये कहते ही उसने लंड को निकाल कर उसकी चूत में घुसा दिया जिसे उस बेचारी की गांड का छेद सिकुड़ सा गया और उसकी चीख निकल गई,आज अगर उसने मुंह में पजामे को ना दबाया होता तो अभी तक गांव तक आवाज चली जाती।
दिनेश ने उसकी चूत को पूरा फैला दिया था और लंड बाहर निकाल कर उसके कमर पर अपना रस छोड़ दिया था।
मरियम जो दर्द से रो रही थी वो वही पर पसर गई थी ऐसे मानो उसके पैर ही न हो।
दिनेश बोला "चलो उठ के कपड़े पहन लो"
जो सुन कर मरियम ने उसे देखा और पूछा
"आप किसी को बताइएगा तो नहीं "
जो सुन दिनेश ने जवाब दिया
"नही बताऊंगा"
जो सुन मरियम ने कोशिश की उठने की लेकिन गिर गई तो दिनेश ने उठाया और कपड़े पहनने में मदद की और बोला
"जो इंदरबाग कोठी है,वहा आ जाना जब ठीक हो जाओ, काम दिलवा दूंगा तुम्हे"
जो सुन मरियम चौंकते हुए बोली "क्या.."
दिनेश ने पूछा "क्या हुआ ?"
मरियम ने जवाब देते हुए कहा लेकिन "अम्मी ने उस कोठी के आस पास भी भटकने को मना किया है"
"और ऐसा क्यू ?" दिनेश ने पूछा
"वो नहीं पता, लेकिन, बुजुर्ग लोग कहते है गांव के की अंग्रेजी काल से कोठी के पास कोई भी जल्दी बिना काम के नहीं जाता है"
अभी वो और कुछ बोलती,दिनेश हसते हुए बोला
"ऐसा कुछ नहीं है,अफवाए है,तुम एक काम करना अपने घर बोलना की मुझे नौकरी लगी है कोठी पे अच्छी तनख्वा पर तो वो पक्का आने देंगे"
मरियम ने सर हा में हिलाया,वो अभी दर्द में थी जो बहुत मुस्किल से दबाए चल रही थी,उसे पैर फैलाते हुए चलना पर रहा था। दिनेश ने लालटेन मरियम को देते हुए गांव में छोड़ कर कोठी की ओर निकल पड़ा अपने नोकिया की बत्ती जलाते हुए,उसने समय देखा अपनी हाथ घड़ी में तो पांच बज रहे थे।
इधर सुबह करीब आठ बजे विभाषा की नींद खुलती है तो वो उठ कर फ्रेश हो कर बाहर आते ही रसोई में काम करने लगती है।पीछे से आवाज़ आती है तो पलट कर देखती है तो सजय त्यार होके आया हुआ था रसोई में तो वो बोलती है।
"जाकर बैठो बेटा थोड़े देर में नाश्ता लगा रही हु"
सजय विभाषा की बात सुन बाहर बैठ जाता है वही विभाषा काम कर रही होती है की उसने जब खिड़की खोली रसोई घर का तो उसका ध्यान वहा लगे लाल धब्बे पर गया जिसे देख साफ करने की कोशिश की तो नही होता है।
मीना आज लेट उठती है और सीधा सबके साथ नाश्ता करती है और वही बाहर सजय ने सरमेंद्र से पूछा
"पापा जी आपने कही काका को देखा कल शाम से दिखे नहीं ?"
सरमेंद्र तब हंसते हुए बोलते है "अरे होंगे यही कही गांव में"
ऐसे ही कुछ तीन हफ्ते बीत जाते सामान्य तरीके से,एक दिन रविवार के दिन मरियम से दिनेश सबको मिलवाता है और नौकरानी के लिए आराम से मना लेता है वही उस रात
"हाए तेरी चूत की गर्मी, आह" ये कहते हुए दिनेश जोरो से धक्के मारे जा रहा था मरियम की चूत में जो सामने घोड़ी बनी हुई चुद रही थी और उसकी कामुक आवाज रजाई में ही दब जा रही थी।
दिनेश ने रुकते ही अपना मुंह खोल मरियम की चूत को अपने मुंह में भर कर बेरहमी से खाने लगा मानो,मरियम की वो बालो से भरी हुई चूत से रिसता हुआ गहरा रस दिनेश को भौरे के रूप में तब्दील कर रहा था और वो उस फूल से चुस्की लेते हुए रसपान किए ही जा रहा था। उसके बदन पूरी तरह से कड़कड़ाती ठंड में भट्टी की तरह तप रही थी और उसके कमर का उभार उसके गांड में घुसते हुए दिनेश की वो जुबान अब उसके अंदर कहर धाह रही थी जैसे भट्टी का तापमान अपने पूरे उभार पर हो मानो कभी भी फट जाए।।
दिनेश के ऐसा करने से कुछ पल में ही मरियम की चूत ने फूल की भांति रस की नदिया बहा दी दिनेश के मुंह में जिसे वो चस्के से पीते हुए अपना लंड हाथ में पकड़ उसकी गांड की छेद पर रख घुसा दिया जिससे अभी भट्टी में तपी हुई आग दोनों की और भड़क गई। दिनेश की धक्के की रफ्तार और मरियम की कामुक आवाज़ की रफ्तार मानो दोनो एक ही स्तर में दौर रही थी।
दिनेश ने मरियम की गांड को दोनो हाथो से ताबरतोर थप्पड़ लगाने शुरू कर दिए। कुछ छण बाद दोनो ही बिस्तर पर पसरे हुए थे।
इधर सजय ऊपर दूसरी मंजिल पर कमरे के अंदर से आ रही आवाज़ सुन रहा था,उसका कमरा इसी के नीचे था जिसके कारण आवाज से उसकी नींद टूटी थी।उसने बगल में देखा तो खिड़की बंद थी,वो आवाज़ नहीं करना चाहता था।
इस लिए उसने खिड़की से देखना चाहा लेकिन कुछ दिख नहीं रहा था लेकिन फिर भी उसे जगह दिख गई खिड़की के कोने में जिससे अंदर उसने ध्यान से देखा तो नीचे फर्श पर लाल सा कुछ बिखरा हुआ था उसने ध्यान से देखा तो पाया कि कोई कैंची से फर्श को कुरेद रहा था तो कभी अपने ही पैरों पर घोंप रहा था। जिसे देख उसे कुछ समझ नहीं आया पर अचानक वो कैंची लिया हुआ शख्स सजय की ओर देखने लगा जो देख वो अपना मुंह दबाए पीछे को हो गया, तभी अचानक से सजय की नींद खुल गई जो पूरा पसीना से भीगा हुआ था।
दिनेश, सरमेंद्र और विभाषा पीछे आंगन में बैठ कर बात कर रहे होते है
"आज सब ठीक से हो जाना चाहिए दिनेश शशि आएगा तो"
दिनेश ने हा में सर हिलाते हुए विभाषा के बात का जवाब दिया
"ठीक है हों जाएगा आज सब"
सरमेंद्र ने दोनो को समझाते हुए कहा
"अरे चिंता मत करो सब कर रखा है तयारी हमने,आज सब झमेला उतने साल का खत्म हो जाएगा*
आज मरियम खाना बना कर सीधा घर चली गई थी। इस लिए शाम के समय, सभी लोग एक साथ बैठ कर खाना खा रहे होते है।
वही सजय आज खाने के वक्त किसी सोच में डूबा हुआ था।उसने उस कमरे में अपने आप को ही कैंची घोंपते हुए देखा था,वो उसे मात्र बुरा सपना समझ भुलने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसके दिमाग से निकल नहीं पा रहा था। आखिर खाना हो जाने के बाद सब अपने कमरे में चले जाते है।
रात के लगभग ग्यारह बजे सजय की नींद खुली तो उसने कसमसाते हुए अपनी आंखे खोली तो चांद की रोशनी अपने चेहरे पर आती हुई दिखी, उसे अपने शरीर में दबाव महसूस हो रहा था लग रहा था किसी चीज से बंधा हुआ हो,उसने हिलने की कोशिश की तो वो ठीक से नहीं हिल पा रहा था और नहीं उठ पा रहा था।
तब उसकी नजर अपने बंधे पैरों पर गई जो बंधी हुई थी और उसके हाथ पीछे बंधा हुआ था। पुरी तरह से कहो तो वो लकड़ी के कुर्सी पर बंधा हुआ था उसने आवाज़ लगाई
"मीना..मीना कहा हो तुम मीना खोलो मुझे"
....
......
"दिनेश...दिनेश.."
वो अभी कुछ बोलता की पीछे से आवाज़ आई
"अरे वाह,जनाब तो उठ गए बड़ी जल्दी ही"
एक आदमी हाथ में सरिया लेके आया था जो और कोई नहीं सर्मेंद्र था जिसके पीछे विभाषा थी।
"पापा जी आ..आप"
"हा मैं" ये जवाब मिलते ही संजय को लगा जोरदार सरिये से कान पे जिससे सीधा नीचे गिरा,उसके कान से खून बहने लगा।
सरमेंद्र ने वापस दो तीन और मारा उसके टांगों पर जिससे चीख निकल गई उसकी। वो कराहने के आलावा कुछ नहीं कर सका, ना वो हिल पा रहा था ना अपना हाथ छुड़ा पा रहा था।
सिर्फ चिलाए जा रहा था, उसे असीम दर्द हो रहा था कान पे पैरो से ज्यादा। वो अपना कंधा बार बार उठा कर कान पे सटाने की कोशिश कर रहा था पर संभव नहीं हो पा रहा था उससे।
"क..क्यू कर..र रहे हों पापा जी ऐसा,मीना..ना कहा हो तुम"
उसकी हरकत देख सरमेंद्र हसने लगा और विभाषा से बोला "अरे शईदा देख तो साला इतनी जोरदार मार खाने के बाद भी सांसे चल रही है"
विभाषा की ओर देखते हुए सजय कर्रहाते हुए बोल उठा "श..शईदा ?"
जो सुनकर सरमेंद्र जवाब देते हुए बोला
"हा और मै धिरेस" और फिर हसते हुए बोला
"खैर मीना से मिलवाऊ क्या, अरे चिंता मत कर उसका नाम मीना ही है और बिल्कुल ठीक है वो बस तुझे ठीक नहीं रहने देगी"
शईदा कमरे से बाहर गई और कुछ देर में एक आदमी आया जो शशि था जिसके पीछे मीना भी आई और तभी दिनेश जो आते ही एक लात सजय के सर पे मारा।
मीना को देखते हुए सजय के आंख से आंसू आ गए वो बोल नहीं पा रहा था कुछ,बस सर को फर्श पर टिकाए देख रहा था।
सामने शशि बिस्तर पर बैठ गया और मीना को घीच कर उससे गोद में बैठते हुए उसकी सारी ऊपर कर दी, मीना उसके लंड को पैंट से बाहर निकाल अपने हाथ से चूत पर फिरा रही थी,और शशि मस्त होकर उसके चूचों का रसपान करे जा रहा था।
मीना शशि के लंड को धीरे धीरे अंदर बाहर किए जा रही थी जो देख दिनेश मस्त हो रहा था।
दिनेश ने शईदा को बिस्तर पर धक्का देते हुए उसकी सारी ऊपर उठाई और पैंट खोल अपना लंड उसकी चूत में घुसेड़ कर चोदने लगा और गालियां देने लगा।
"हाए मेरी रांड, क्या चौड़ी हुई पड़ी है तेरी फुद्दी... क्यू धिरेस रोज मारता था क्या इस रंडी की"
शाईदा मस्त होकर अपनी गांड पीछे करते हुए चुद रही थी और अपनी चुचियों को मसलते हुए गाली देते हुए बोलती है
"आहे.. आह आराम से हरामी आज ही फाड़ लेगा क्या पूरी"
इधर अपने सामने ऐसा दृश्य देख सजय की आंखे बस मीना पर ही टिकी हुई थी जिसके पीछे से धिरेस खड़े होकर अपना पजामा नीचे करते हुए सजय की तरफ देखते हुए कातिल मुस्कान देते हुए एक थप्पड़ मीना की गांड पे लगाते हुए उसकी गांड को दोनो हाथो से पकड़ के फैलाते हुए उसकी गांड पे थूकते हुए अपना लंड से जोरदार झटका उसकी गांड में दे डाला जिससे मीना चिल्ला उठी
"आहह....आह....मह... अह आराम से"
आगे से उसकी चूत का मजा शशि और पीछे छेद का आनंद धीरेस ले रहा था,और बीच में मीना चुद रही थी।
दिनेश ने जब ये देखा तो वो मस्त शाईदा के गांड पे जोरदार थप्पड़ लगाते हुए हसने लगा सजय को देखते हुए।
"अरे चिंता ना कर सजय, ये तो ऐसे ही चुदती है"
सजय दर्द में चिलाते हुए बोला "ऐ..ऐसा क्यू किया.. क्यू?"
धीरेस आखिर धक्का लगाते हुए बोला
"आह ले भरदी गांड तेरी"
और अपना पैंट पहनते हुए उसने बोला
"अरे सजय बाबू बात ऐसी है न की हमने ये सब तुम्हारे पैसे और इतनी बेशुमार जायदात के लिए किया है और इससे पहले बहोतो के साथ किया है ऐसा,तुम अकेले नही हो जो हमारे हाथो मरोगे"
ये सुनते ही सजय धीरेस को घूरने लगा जो देख धीरेस बोल पड़ा
"ओए दिनेश तुम लोगो की हवस शांत हो गया हो तो चलो इस नमूने का खेल खत्म करो जल्दी"
धीरेस की बात सुन दिनेश अपने कपड़े ठीक करते हुए आगे आया और सरिया उठा के जोरदार मारा कनपटी पर सजय के जिससे खून उगलता हुआ वो पसर गया,उसकी आंखों के बंद होते होते,एक आंसू की बूंद खून से सने फर्श पर गिरी।
दो घंटे बाद.....
*झझक...झझक..झझक...झझक*
धीरे-धीरे, पानी के छिट्टे से कसमसाते हुए आंखे खुली तो, दर्द की लहर शरीर में दौड़ गई उन सबके और चीख भी ना पाए। सामने का दृश्य उन्हें दिखा जो देख वो चौक गए,सामने एक शख्स खड़ा रसोई में कुछ बना रहा था,उन्हें वो जाना पहचाना लग रहा था। वो उसको देख नहीं अपने आप को ऐसे देख चौक गए थे।
तभी पीछे से उन सबको एक एक लात पड़ी,और उन्होंने गिरने के बाद बड़ी मुस्किल से पीछे देखा तो पाया कि चार बूढ़े व्यक्ति खड़े थे जिन्हे तीन लोगो ने तो पहचान लिया पर एक ने नहीं।
तभी एक आवाज ने उन सबको उसकी ओर आकर्षित किया
"अरे रे उठ गए ये,बेचारे दर्द में होंगे खैर चिंता नहीं करो खाना बनवा रहा है तुम्हारा सजय"
सजय ने हाथ में बाल्टी लिया था जिसके नीचे से खून टपक रहा था,और वो बाल्टी लेकर रसोई में जाते हुए उस शख्स से वो बोला "अरे काका ऐसे नहीं ऐसे बनाओ यार, हा और ये लो ये मस्त काट के धो रखे है पका के ले आओ जरा"
सजय उन सबके पास आते हुए
"अरे मुंह खोलो बोलने तो दो इन्हे"
एक बूढ़े ने नीचे पड़ा हुआ छुड़ा उठाया और एक के मुंह में घुसा दिया और चिर दिया। जिससे उसकी एक जोरदार चिख गुंज गई
"आआआआअआआह... ह आआआआआह.... याआह मेडा मु.. हह"
जो देख बाकी तीनों की हालत खराब हो गई, वो बंधे हुए ही हिलने लगे
"मु....मु....ववह"
"मु...म...मु...ववह"
"मु....मु...मु....ववह"
सजय ये देख बोला
"अरे नहीं रे ऐसे नहीं,मुंह से कपड़ा हटाना था बस,हमेशा के लिए आवाज नहीं"
ये कहते हुए वो आगे बढ़ दूसरे बंधे हुए शख्स के पास जाते हुए उसके मुंह से कपड़ा निकाला
"तुम ये ठीक नही कर रहे हो सजय, छोड़ो हम,हम यहां से चुपचाप चले जायेंगे"
सजय हस्ते हुए बोला
"अरे धीरेस बाबू ये दुनिया बहुत बड़ी है जिसमे रहने वाले कमीनो की कमी नहीं है,और उसी तरह हम भी एक बड़े वाले कमीने है"
सजय फिर बोला
"बस तब हिसाब बराबर हुआ की नहीं तुमने अपनी कमीनापन दिखाया और हम अब अपना दिखाना शुरू किया है"
"अरे पीछे खड़े क्यू हो बूढ़ों,मसुकाओ की खातिरदारी करो"
ये कहते हुए वो पीछे घूमते हुए बोला
"अरे काका बना की नहीं"
काका रसोई से निकल कर एक थाली लेकर आते हुए बोले "अरे बन गया, लो"
सजय ने हाथ से थाली लेकर उसने बने पकवान को मजे से खाने लगा "अरे वाह काका बड़ा लजेदार है ये तो"
तभी धीरेस पूछता है "शशी क..कहा है ?"
जो सुन सजय हस्ते हुए बोला
"अरे हां वो गूंगा क्या ? ये खाओ पक्का बताऊंगा,अरे शरमाओ नहीं खाओ बस"
ये कहते हुए धीरेस के मुंह में सजय ने ठूस दिया,जिसे जबरदस्ती खाते हुए सजय से कुछ बोलने ही वाला था की "कहा.. ह..."
उसने अचानक से अपनी नजर वापस उस पके हुए मांस पे गई और फिर सजय की ओर, तो सजय ने खाते हुए अपने सर को हा में हिलाया जो देख धीरेस ने उल्टियां करनी चालू कर दी।
वही तीनो चारो बूढ़ों ने उन दोनो औरत मीना और शाईदा के कपड़े निकाल दिए थे और दोनो को चोदना शुरू कर दिया था।
शाईदा के पीछे एक बूढ़े ने उसकी चूत मारते हुए उसके गांड पर थप्पड़ की बौछार किया हुआ था मानो ढोल हो,कभी उसकी दोनो गांड हाथो से फैलाते हुए जोरदार धक्के मारे जा रहा था। वही उसके मुंह में एक मोटी लाठी घुसाई हुई थी जिससे उसका चेहरा पूरा लाल पड़ गया था,आंखे भीग चुकी थी बहते-बहते और दोनो हाथ उसकी पीछे बंधी हुई थी जो घोड़ी की सवारी लग रही थी,जिस पर एक बूढ़ा सवार था।
वही मीना पर तीन बूढ़े, जिसमे से एक ने पीछे उसकी चूत में लंड घुसाया हुआ था तो गांड में बेचारी के अपना हाथ जो बार-बार वो अंदर बाहर किए जा रहा था,वही उसके मुंह में दो बूढ़ों ने अपना लुंड घुसाया हुआ था और उसकी चुचियों को मसल रहे थे।
तभी सजय थाली काका के हाथ में दी और वहा रखे कुल्हाड़ी को उठा कर दिनेश के पास गया जिसके मुंह से गु गु की आवाज़ आ रही थी,उसके मुंह के मांशपेशिया पूरी तरह लटकी गई थी,जिसे देख सजय ने बोला "अरे बेचारा कोई ना रुक अभि शांत हो जाएगा दर्द"
और ये बोलते ही उसने कुल्हाड़ी को उपर किया और उसके कनपटी पे दे मारा जो सीधा धस गया उसके सर में जो देख सजय चिढ़ते हुए बोला "अरे काका एक बात बताओ जब इसने मुझे सरिया मारा था तो आप उस समय कहा थे, मुझे बचाने क्यू नही आए कितना दुख रहा है यार"
काका दिनेश के फटे सर को घूरते हुए बोले
"तुम्हारा ही काम कर के आ रहा था बिटवा कलकत्ता से,जब कोठी पहुंचा तो तुम्हे फर्श पे पड़ा देखा और इनलोगो को वहा बेहोश देखा।"
सजय अपना सर खुजाते हुए बोला "मम..ह मतलब आपने मुझे नहीं बचाया तो किसने ?"
काका थोड़े घबराते हुए उन बूढों की तरफ देखते हुए बोले सजय से "नहीं वो तो..कोठी के पुराने नौकरों ने बचाया"
ये सुन सजय कुल्हाड़ी को पकड़ दिनेश के सर पे पैर रख के जोर से निकालते हुए काका की तरफ लंगड़ते हुए आ कर बोला
"तब तो सजा आपको भी मिलेगी काका, हीहिहीही"
सजय की ऐसी हरकत देख वो कांप से गए अंदर से, सजय ने कुल्हाड़ी उठाई और
**घचाकककक....**
काका स्तब्ध से खड़े ही रह गए जब उन्होंने अपने को ठीक पाया तो पलट के पीछे देखा तो उनके पैर कांप गए
सामने धीरेस के गर्दन से लेकर उसकी नाभि तक फार डाला था सजय ने कुल्हाड़ी से और वो अभी भी उसके टांगो को तो कभी कंधे को तो कभी उसके सर पर बार बार वार किए जा रहा था।
ये सब जब पीछे मीना और शाईदा की आंखो ने देखा तो उनके डर का भाव ऐसा बढ़ा की वो चिल्ला भी नहीं पाई और आंखों से आंसू बहने लगे।
सजय धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए दोनो के पास पोहोच कर दोनो को चुदते हुए देखने लगा, चारो बूढ़ों ने दोनो की चोद-चोद कर गांड फैला दिया था,उन दोनो के मुंह छिल गए थे, टांगो से होते हुए खून बहते हुए नीचे फर्श को लाल कर रही थी।
तभी मीना के पास नीचे सजय बैठ गया जिससे दोनों बूढ़े हट गए,जिससे मीना का मुंह आजाद हो गया और वो चीख उठी और दर्द में बोली "म..मु..झे माफ करदो सज.. य"
ये सुनकर सजय ने पीछे मुड़ कर खड़े काका को देख बोला "जरा वो पुरानी तस्वीर लेते आना कोठी की काका" और फिर उन पड़े हुए लाशों की तरफ इशारा करते हुए बूढ़ों को बोला
"ले जाओ इन्हे,दावत खाने के लिए त्यारी करो"
कुछ मिनट वहां सन्नाटा बिछा रहा, शाईदा बेहोश हो गई थी और चारों बूढ़े शाईदा,दिनेश और धीरेस को घसीटते हुए ले गए वहां से।
काका ने तस्वीर ला कर दिया तो सजय ने उसको मीना को दिखाते हुए बोला "इनके बारे में पता लगाना जरूरी था क्या ?"
उसने जब फोटो देखा तो चौक गई और काका की ओर देखने लगी तब सजय ने बोला
"उस कुत्ते को क्या देख रही है गुलाम है वो और तु उससे हमारे परिवार के बारे में पूछ रही थी, हीहीही"
"बेचारी इनसे ज्यादा बुरा हाल हुआ तेरा, वैसे काका ने तो नही बताया मैं बताऊं क्या ये फोटो में कौन है,अरे रो मत चल बताता हु"
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**1932,इंदरबाग,बंगाल**
बंगाल के इंदरबाग में, अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की आग भड़की हुई थी साल 1932 में,उसी बगावत की आग इंदरबाग से देसन परिवार ने भड़काई थी। अंग्रेजो की ताकत बंगाल में हावी थी ज्यादा जिसके फल परिणाम एक रात कोठी में मीटिंग हुई। यह मीटिंग अर्जन देसन ने रखवाई थी, जो खुद एक वकील थे और इंदरबाग के नवाब भी,और उस दिन उनके साथ कई अन्य वकील भी थे, जो अंग्रेजों के विरोध में साथी बनने के लिए इकट्ठे हुए थे।
मीटिंग के दौरान, उन्होंने अंग्रेजों के द्वारा बदले गए क़ानूनों के खिलाफ आवाज बुलंद की और साझा किया कि उन्हें अपनी अधिकारों को बढ़ाने के लिए लड़ना होगा,जो आए दिन बंगाल में बदल रही थी। इंदरबाग पूर्वी भारत से होते हुए म्यांमार जाने के लिए एक बोहोत सटीक रास्ता था और इंदरबाग में खेती बारी भी बोहोत आगे स्तर पर थी।
लेकिन, उसी रात, ऑफिसर कार्न मार्टिन ने इंदरबाग की कोठी पर हमला कर दिया और देसन परिवार के सभी सदस्य को जला कर मार दिया गया था और उस अधिकारी द्वारा उनके आवास को लेकर गलत बाते पेपर में छपवा दी गई की ये परिवार नरभक्षी थे,इन्होंने नजाने कितने लोगो को मार दिया जिसके बाद देसन परिवार मानो खत्म सा हो गया था लेकिन अर्जन देसन का बेटा रियाद देसन जिंदा था। जो मद्रास में उस वक्त अपनी आगे की पढ़ाई में व्यस्त था लेकिन जब उसे ये खबर प्राप्त हुई तो नजाने क्यू बहुत खुश हुआ और वो सीधा रवाना हो गया बंगाल।
वहा पोहोच अर्शिद के घर गया जो देसन परिवार के गुलाम थे और वो खुश थे देसन परिवार के खत्म होने के कारण लेकिन उन्हें क्या पता था कि देसन अभी जिंदा है। रियाद ने उसके घर पहुंच सारा माझरा जाना और फिर वहा से शुरू हुई नई कहानी रियाद देसन की।
इंदरबाग में रियाद के आते ही कार्न मार्टिन और उसके परिवार जो कोठी में रह रहे थे वो उसके अगले दिन से ही नही दिखे। धीरे-धीरे इंदरबाग में आ रहे हर ऑफिसर गायब होने लगे,जिससे अफवाह ये तक फैल गई की इंदरबाग कैनिबल्स का इलाका है।
जिसपर से सरकार ने अपना नजर बिलकुल ही हटा दिया।
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मीना जो ये सुन रही थी उसने सजय को देख कुछ महसूस ही नहीं हो रहा था उस पल।
तभी सजय ने उसकी तरफ देखा और खड़े होते हुए एक शरारती मुस्कान लाते हुए बोला
"रियाद देसन मेरे पिता थे"
जो सुन मीना के शरीर में करंट सी दौर गई। सजय ने चलते हुए तस्वीर को काका को देते हुए कुल्हाड़ी को नचाते हुए मीना के पीछे आया और झुक कर उसके चेहरे को पकड़ कर पीछे उठाया और उसकी आंखो में देखते हुए बोला
"एक बात और जानु,कार्न मार्टिन का इल्जाम बिलकुल सही था"
*अगले दिन,शाम,इंदरबाग कोठी*
"अरे देसाई साहब दावत कैसी थी?"
इसका जवाब देते हुए वो शख्स पीछे घूमते हुए बोला
"अरे क्या कहूं सजय जी,ऐसी दावत थी की तारीफ के लिए शब्द नही है"
सजय ने थोड़े सख्त लहजे में
घूरते हुए बोला
"शब्द खत्म हो गए या करना नहीं चाहते है"
जो सुन कर खड़े और लोगो के गले सुख गए, जिसे देख सजय हस्ते हुए बोलता है
"मजाक कर रहा हु"
तभी एक औरत पूछती है जो एक शख्स का हाथ में हाथ डाले खड़ी थी
"वैसे सजय देसन जी आपकी दावत बड़ी लाजवाब थी,ऐसी दावत का राज क्या है"
जो सुन थोड़ी शांति रही वहां और सभी उस औरत को ही घूर रहे थे जैसे उसे बेवकूफ कह रहे हो।
तभी सजय शैतानी मुस्कान भरते हुए बोला
"ये इंदरबाग है जानेमन, हम जैसों का दवातखाना और तुम्हारे जैसे हमारे यहां गुलाम होती है तो दावत तो अपने आप लजीज़ हो ही जाएगी"