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Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
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🍁🍁🌼🌻चरित्रहीन🌻🌼🍁🍁

🌀🌀🌀🌀🌪️🌪️🌀🌀🌀🌀
Prefix- Non- Erotica
रचनाकार- Mahi Maurya
(6995 - शब्द)

💢💢💢💢💖💢💢💢💢
करमजली, कुलटा, पहले तो मेरे पवन को खा गई और अब मेरे समीर पर घिनौना इलजाम लगा रही है। अभी पवन के चिता की राख भी ठंडी नहीं हुई और तूने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए। निकल मेरे घर से। तुझ जैसी चरित्रहीन और बदचलन औरत के लिए मेरे घर में कोई जगह नहीं।

लड़की- नहीं माँजी। मैं कोई गलत इलजाम नहीं लगा रही हूँ। देवरजी ने मेरी इज्जत लूटने की कोशिश की। आप मुझे घर से मत निकालिए मैं कहाँ जाऊँगी।

सास- कहीं भी जा कर मर, लेकिन अब मैं तुझे एक मिनट भी अपने घर में बरदास्त नहीं कर सकती। जो लड़की शादी के एक महीने में ही मेरे एक बेटे को खा गई और दूसरे बेटे पर इलजाम लगा रही है। वो लड़की पता नहीं आगे क्या क्या गुल खिलाएगी। निकल जा मेरे घर से अभी-के-अभी।

इतना कहकर लड़की की सास ने उसे धक्के मारकर घर से बाहर निकाल दिया। वो रोती रही, गिड़गिड़ाती रही, लेकिन उन्होंने उसकी बात नहीं सुनी। समीर एक कमीनी मुस्कान के साथ उसे जाते हुए देखता रहा।


नयनतारा(नयन), उम्र 21 वर्ष, माँ- मालती, पिता- जगदीश, बड़ी बहन- कुसुम(शादीशुदा), जुड़वा बहन(दो मिनट छोटी)- सरिता और छोटा भाई- राज

नयनतारा बहुत ही खूबसूरत, तीखे नैन नक्श, शांत स्वभाव वाली मध्यमवर्गीय लड़की। जगदीश और मालती रूढ़िवादी विचारों वाले इंसान। अभी लगभग महीने भर पहले ही नयनतारा की शादी कारोबारी पवन से हुई थी। पवन एक शांत, सुलझा हुआ इंसान जो अपनी माँ और छोटे भाई समीर के साथ रहता था। खुद का कारोबार था तो पैसे की कोई कमी नहीं थी। समीर ज्यादा लाड-प्यार के कारण बदतमीज और बिगड़ैल हो गया था। जब से नयनतारा की शादी पवन से हुई थी, तब से समीर की गंदी नजर अपने ऊपर महसूस करती थी, लेकिन भ्रम समझकर नजरअंदाज कर देती थी।

शादी के सोलहवें दिन ही एक सड़क दुर्घटना में पवन की मौत हो गई जिसका जिम्मेदार उसकी सास ने नयनतारा को ठहराया। पवन की मौत के 7वें दिन रात को समीर नयनतारा के कमरे में पहुँच गया और उससे जोर-जबरदस्ती करने लगा। कमरे में शोर की आवाज सुनकर जिस समय नयनतारा की सास उसके कमरे में पहुँची, उसी समय समीर ने चालाकी से नयनतारा को अपने ऊपर खीच लिया और “भाभी क्या कर रही हो छोड़ दो मुझे मैं आपका देवर हूँ” कहकर चिल्लाने लगा। नयनतारा की सास जो पहले ही पवन की मौत का जिम्मेदार उसे मानती थी वो ये देखकर भड़क कई और नयनतारा को धक्के मारकर घर से बाहर निकाल दिया।


घर से बाहर निकाले जाने के बाद नयनतारा खूब रोई। उसने बाहर बैठकर किसी तरह रात बिताई। सुबह होते ही अपने मायके के लिए निकल गई। जब वो अपने मायके पहुँची तो पास-पड़ोस की औरतें उसे देखकर कानाफूसी करने लगी। आखिर औरतें ही औरतों की दुश्मन होती हैं। कोई कहता कि इसके साथ गलत हुआ भरी जवानी में ही विधवा हो गई। कोई कहता कि इसमें ही कोई दोष है नहीं तो ससुराल जाते ही अपने पति को नहीं खा जाती।

नयनतारा अपनी माँ के गले लगकर खूब रोई। हफ्ते तक वह अपने कमरे में बंद रही। खाना भी अपने कमरे में ही खाती थी। सरिता और राज हमेशा उसके साथ रहते। उसके दिल बहलाने की कोशिश करते रहते थे। नयनतारा औरतों के लिए गोसिप तो जवान मर्दों के लिए एक अवसर नजर आने लगी। पिछले कुछ दिनों से नयनतारा ने ये महसूस किया कि उसके प्रति उसके माँ-बाप को रवैया बदल रहा है। समाज के ताने एवं रुढ़िवादी विचारों के कारण अब वो नयनतारा से कटने लगे थे।

समय अपनी गति से बढ़ता रहा। समाज के ताने सुन और उसे अपनी नियति मानकर नयनतारा अब सामान्य हो गई और उसने अपने आपको घर के कामों में झोंक दिया। एक दिन नयनतारा राज के साथ बैठी। राज ने कोई चुटकुला सुनाया तो नयनतारा को हँसी आ गई और वो जोर-जोर से हँसने लगी। ठीक उसी समय पड़ोस में रहने वाली माया उसके घर आई। नयनतारा का इसतरह हँसना रास नहीं आया। उसने मालती से शिकायत की।

माया- अभी पति को मरे हुए 3 महीने भी नहीं हुए हैं और ये ऐसे हँस रही है। ये सब भले घर की लड़कियों को शोभा नहीं देता।

ये कहकर माया चली गई लेकिन मालती को उसकी बात चुभ सी गई। उसने नयन को लगभग आदेश देते हुए कहा।

मालती- देख नयन अब तू सुहागन नहीं है तो कुछ चीजों का ख्याल रखना पड़ेगा। समाज को भी मुँह दिखाना है। अभी सरिता की भी शादी करनी है। मुझे तो उसकी बहुत चिंता हो रही है। न जाने तेरे पापा कैसे करेंगे ये सब अकेले। और कोई सहारा भी तो नहीं है।

मालती की बात सुनकर नयनतारा ने सिर हाँ में हिला दिया, लेकिन उसे अपनी माँ की बात बहुत बुरी लगी।

मालती तो अपनी बात कहकर चली गई लेकिन नयन को एक गहरी सोच में छोड़ गई। नयन ने काफी सोच-विचार कर एक फैसला लिया। अगले दिन नयनतारा तैयार हो रही थी जो मालती को अजीब लगा। नयनतारा तैयार होकर अपने शैक्षणिक दस्तावेज लेकर बाहर जाने लगी तो जगदीशजी ने कहा।

जगदीशजी- कहाँ जा रही हो नयन।

सूरज- पापा दीदी मेरे स्कूल में पढ़ाने वाली हैं। सरिता दीदी ने कुछ दिन पहले ही मेरे स्कूल के प्रधानाचार्य से बात की थी, उन्होंने दीदी को बुलाया है।

इतना सुनते ही जगदीशजी की त्यौरियाँ चढ़ गई। उन्होंने कहा।

जगदीशजी- कहीं नहीं जाना। नाक कटाने की ठान ली है क्या तुम लोगों ने मेरी। पति को मरे हुए अभी 3 महीने ही हुए हैं और ये बन-ठनकर ऐसे बाहर जाएगी। देखो नयन तुम ये सब नहीं करोगी। जाओ अंदर।

मालती- हाँ वही तो मैं भी कह रही थी। अब खाने और सोने के अलावा इसका काम ही क्या है।

माँ-पापा की बातों से नयनतारा आहत हो चुकी थी। इतना दुःख तो उसे तब नहीं हुआ था जब उसकी सास ने उसे चरित्रहीन कहा था।

सरिता- माँ-पापा कौन से जमाने में हो आप दोनो। जमाना बदल गया है अब ऐसा नहीं होता, दीदी बाहर जाएँगी चार लोगों के बीच रहेंगी तो उनका भी मन लगा रहेगा। क्यों आप दोनों उन्हें पागल करने पर तुले हुए हो।

जगदीश- (फटकारते हुए)दो चार किताबें क्या पढ़ ली तुम लोगों ने तो मुझे ही ज्ञान देने लगे। चुपचाप अपने काम पर ध्यान दो तो अच्छा है।

जगदीशजी और मालती वहाँ से चले गए तो सरिता ने नयनतारा को सब ठीक होने का दिलासा दिया। उस दिन के बाद नयनतारा और गुमसुम रहने लगी। अब वो घर की नौकरानी बन गई थी। मालती ने सारे घर की जिम्मेदारी नयनतारा को सौंप दी थी। भले ही वो इस घर की बेटी थी लेकिन माँ-बाप की नजर में अब वो पहले जैसी नहीं रह गई थी।

बीच-बीच में मोहल्ले वालों के ताने भी सुनने को मिलता नयन सारी बातें सुनलेती, आँसू बहाती और अपना काम करती रहती। इसके अलावा वो कर ही क्या सकती थी।

कुछ दिन बाद सरिता के लिए एक अच्छा रिश्ता आया। मालती ने नयनतारा को लड़कों वालों के सामने आने से सख्ती से मना कर दिया था। तय समय पर लड़के वाले आ गए। नयन उस समय रसोईघर में चाय बना रही थी। लड़का किचन के पास वासबेसिन में हाथ धोने गया तो उसने नयन को देख लिया। औपचारिक बात-चीत के बाद लड़के वाले चले गए।

अगली सुबह घर में कोहराम मचा था। माँ-पापा दोनों उससे बात नहीं कर रहे थे। नयनतारा को कुछ समझ नहीं आया कि बात क्या है। नयनतारा ने सरिता से पूछा।

नयनतारा- क्या हुआ सरिता सब मुझसे नाराज क्यों हैं।

सरिता- दीदी कल जो लड़का मुझे देखने आया था उसने मुझे नहीं आपको पसंद किया है।

नयनतारा- क्या।

सरिता- हाँ दीदी। मैं तो माँ-पापा से कह रही थी कि अगर लड़के ने आपको पसंद किया है तो आपकी ही शादी कर देते। अभी आपकी उमर ही क्या है।

नयनतारा- चुप कर सरिता। ऐसी बातें नहीं करते। तू नहीं समझती कुछ।

सरिता- क्यों दीदी, इसमें क्या बुराई है। पत्नी के मरते ही पति दूसरी शादी कर लेता है तब कोई कुछ नहीं कहता फिर औरतों को ही क्यों। मैं सब समझती हूँ। वह लड़का मुझे आपके लिए सही लगा। लेकिन पापा ने इस रिश्ते के लिए मना कर दिया।

उसके बाद बात आई-गई हो गई। अपने माँ-बाप के उदासीन व्यवहार से नयनतारा तंग आ गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।

कुछ दिन बाद सरिता के लिए एक अच्छा रिश्ता और आया और उसकी शादी भी तय हो गई। नयनतारा सरिता के लिए बहुत खुश थी और शादी की तैयारियों में खुशी-खुशी हाथ बटा रही थी। लेकिन उसका इस तरह खुश रहना किसी को भी रास नहीं आ रहा था। जो भी उसे इस-तरह हँसता मुस्कुराता देखता उसे नसीहत देकर चला जाता। किसी को उसके गम से मतलब नहीं था। नयनतारा इन सब में घुट-घुट कर जी रही थी।

आखिरकार शादी का दिन भी आ गया और सभी लोग तैयार होकर मैरिज हॉल चले गए। नयनतारा का भी बहुत मन था सरिता कि शादी में शामिल होने का, लेकिन लड़के वालों के विशेष आग्रह पर मालती ने नयनतारा को घर में ही रहने की सख्त हिदायत दी। नयनतारा को बहुत बुरा लगा लेकिन वो चुप रही।

रातमें नयनतारा अपने कमरे में सो रही थी। उसे लगा कि कोई दरवाजा खटखटा रहा है। वह अपने कमरे से बाहर आई और पूछा तो पता चला कि उसके जीजाजी(कुसुम का पति) बाहर खड़े हैं। नयनतारा ने दरवाजा खोला तो विनोद नशे में झूम रहा था। नयन ने उसे इस हाल में देखा तो उसे अंदर ले आई और उसके लिए पानी लेने रसोईघर में गई। अभी वो फ्रिज से पानी निकाल रही थी कि विनोद ने उसे पीछे से पकड़ लिया। नयन घबरा गई और उसने विनोद को धकेल दिया। विनोद बेहयाई और हवसी नजरों से नयन को देखते हुए बोला।

विनोद- अरे साली साहिबा, कैसे रहती हो तुम भरी जवानी में बिना किसी मर्द के। बुरा नहीं लगता जब बिस्तर पर अकेले सोती हो। तुम्हें एक मर्द की जरूरत है जो तुम्हारी इस गदराई जवानी को रगड़कर तुम्हारी गर्मी को शांत कर सके।

नयनतारा(गुस्से से)- ये क्या वाहियात बातें कर रहे हैं आप। मेरी बहन के पति हैं आप। बहन समान हूँ मैं आपकी। आपको ऐसी घटिया बातें करते हुए शर्म नहीं आती।

विनोद- अरे वाह, देखो तो सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली। पति की मौत के बाद जब तूने अपने देवर के साथ रंगरेलियाँ मनाई थी तब तुझे शर्म नहीं आई। तो मुझसे क्यों शरमा रही है।

इतना कहकर विनोद ने नयनतारा का हाथ कसकर पकड़ लिया। नयनतारा ने अपने दूसरे हाथ के नाखून से उसका चेहरा नोच लिया और उसे धक्का देकर अपने कमरे में भाग गई और रोने लगी। वो रोते हुए बोली।

नयनतारा- ये सब क्या हो रहा है मेरे साथ। मुझसे आपकी क्या दुश्मनी है भगवान, दुनिया के सारे दुःख केवल मेरी ही झोली में क्यों। इससे अच्छा तो मैं मर जाती।

रोते-बिलखते, शिकायत करते, किस्मत को कोसते कब रात बीत गई, सरिता की बिदाई हो गई उसे पता ही नहीं चला। दरवाजे पर हुई दस्तक उसे होश आया और उसने दरवाजा खोला। मालती और कुसुम को देखकर वो कुछ बोलने को हुई कि एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा। मालती ने नयनतारा के बाल पकड़कर झंझोड़ते हुए कहा।

मालती- अरे करमजली। कुछ तो शरमकर लेती। वो तेरे जीजाजी थे। तुझे ऐसा करते हुए लाज भी नहीं आई।

नयनतारा- माँ मेरी बात तो सुनो। मैंने कुछ.......

कुसुम- तू कहना क्या चाहती है कि तेरे जीजाजी झूठ बोलेंगे। अपने कुकर्मों का ठीकरा मेरे पति पर मत फोड़ो तेरा तो साया ही खराब है। पहले अपने पति को खा गई फिर अपने देवर पर डोरे डाले, सरिता की शादी तुड़वाई और अब मेरा परिवार बरबाद करने पर तुली है।

नयनतारा(चीखते हुए)- सच्चाई जाकर अपने कमीने पति से पूछो। क्या करने आए थे वो रात में घरपर।

विनोद(आते हुए)- मुझसे क्या पूछना। कल माँ ने ही मुझे किसी काम से घर पर भेजा था। मैं अपनी मरजी से नहीं आया था।

नयनतारा- मेरा विश्वास करो माँ जीजाजी झूठ बोल रहे हैं।

मालती- चुप कर करमजली। पहले अपने पति को खा गई और अब अपनी बहन के पति पर डोरे डाल रही है। तू इतनी चरित्रहीन कैसे हो गई।

ये कहकर मालती वहाँ से चली गई। कुसुम तिरस्कार भरी नजर नयनतारा पर डालकर चली गई। इस हादसे ने नयन को पूरी तरह तोड़ दिया। जिस वक्त उसे अपनों के सहारे की जरूरत थी उस समय उसके साथ कोई नहीं था। पहले ससुराल में चरित्रहीन का तमगा और अब मायके में चरित्रहीन साबित होने पर नयनतारा पूरी तरह हिल गई थी और जिसने ये सब किया उसे दामादजी बोलकर उसके तलवे चाट रहे थे।

उस दिन नयनतारा अपने कमरे में ही बंद रही, रोती रही, बिलखती रही और अपने आने वाले भविष्य के लिए सोच-विचार करती रही। काफी सोच-विचार के बाद उसने एक निर्णय लिया। अगले दिन नयनतारा तैयार होकर अपने शैक्षणिक दस्तावेज लेकर भगवान के सामने हाथ जोड़कर खड़ी हुई।

नयनतारा- हे भोलेनाथ, आज से मैं अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करना चाहती हूँ। दुनिया मुझे चाहे जो भी समझे आप तो सबके मन की जानते हैं। मैंने कोई गलती नहीं की फिर क्यों मैं ही दोषी। भोलेनाथ बस जो हुआ वो हुआ अब मैं एक नई शुरुआत करना चाहती हूँ। आप अपना हाथ मेरे सिर पर बनाए रखना।

प्रार्थना कर नयनतारा बाहर जाने लगी तो सभी की भौंहें तन गई। कई व्यंग-बाण कुसुम ने उसके चरित्र पर छोड़े। जगदीशजी ने दहाड़ते हुए कहा।

जगदीशजी- खबरदार जो एक कदम भी घर से बाहर निकाला तो। अरे करमजली तूने हमारे माथे पर कालिख पोतने की कमस खा ली है क्या। किस बात की कमी है तुझे यहाँ। सुबह-शाम दो कौर खा और पड़ी रह। विधवा के लिए यही जिंदगी होती है।

नयनतारा- विधवा को कैसे रहना है और कैसे नहीं ये कहने वाले आप होते कौन हैं पापा। क्या सारी रोक-टोक सिर्फ औरतों के लिए ही होती है। मैंने फैसला ले लिया है। आप मुझे मत रोकिए।

जगदीशजी- खबरदार जो एक कदम भी घर से बाहर निकाला। नहीं तो इस घर के दरवाजे तेरे लिए हमेशा के लिए बंद हो जाएँगे। कोई रिश्ता नहीं रहेगा हमारे बीच।

नयनतारा- ठीक है अगर आप यही चाहते हैं तो यही सही।

नयनतारा घर से निकल गई। आस-पास की औरतों को बड़ा मजा आ रहा था यह सब देककर। नयनतारा अपने किस्मत का फैसला समझकर उस जंजाल से निकल चुकी थी, लेकिन इस बात से अनजान कि उसकी जिंदगी में कितना बड़ा बवंडर आने वाला है। आगे ऐसे-ऐसे तूफान आने वाले थे जिससे बचना उसके बस में नहीं था।

घर से निकल जाना एक बात है पर जब ये पताही न हो कि घर से निकलकर जाना कहाँ है तो होश ठिकाने आते हैं। नयन घर से तो निकल गई थी पर उसे पता नहीं था कि वो कहाँ जाए। सबसे पहले उसे काम की जरूरत थी। नयन ने तो अभी अपना स्नातक भी पूरा नहीं किया था। शादी के बाद जिंदगी के झंझावातों ने उसे पढ़ने का मौका ही नहीं दिया।

उसने कई जगह नौकरी के लिए कोशिश की लेकिन उसे कोई काम नहीं मिला, तभी एक स्कूल के चपरासी ने उसे एक कार्ड देते हुए कहा कि उसे इस जगह नोकरी मिल सकती है। नयनतारा वहाँ पहुँची तो पता चला कि उसे बार काउंटर पर खड़े होकर ग्राहकों को ड्रिंक सर्व करनी थी। पहले तो वो इसके लिए मना करना चाहती थी, लेकिन उसे नौकरी की जरूरत थी तो उसने काफी सोचने के बाद हाँ कर दिया।

नौकरी मिलने के बाद रहने के लिए घर की समस्या थी। उसने कई जगह कोशिश की घर के लिए लेकिन उसे घर नहीं मिला। रात गहरी हो रही थी तो उसे अपनी सहेली मीरा की याद आयी जो शादी के बाद इसी शहर में रहती थी। नयनतारा मीरा के यहाँ पहुँच गई। दोनों सहोलियाँ मिलकर बहुत खुश हुई। मीरा से मिलने के बाद उसके रहने की भी व्यवस्था हो गई थी।

आने वाली कठिनाईयों से अनजान नयनतारा आगे की जिंदगी जीने लगी। नयनतारा जिस बार में काम करती थी वहाँ अधिकतर महिलाएँ ही थी। डेविड(बार मालिक) ने अपने बार में महिलाओं को इसलिए रखा था ताकि अधिक-से-अधिक ग्राहक उसके बार में आएँ। नयनतारा को शुरू-शुरू में अपनी नौकरी में परेशानी हुई, लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे उसे आदत पड़ने लगी।

नयनतारा बार में काम करती है ये बात मीरा को अच्छी नहीं लगी। साथ ही पास-पड़ोस में भी उसे लेकर तरह-तरह की बातें होने लगी जिसके कारण मीरा के मन में नयनतारा को लेकर जहर घुलने लगा, लेकिन वह कुछ बोल नहीं रही थी।

नयनतारा की किस्मत इतनी भी अच्छी नहीं थी कि खुशियाँ उसके दामन में टिक सकें। एक सुबह मीरा का पति रमन जो घर से बाहर रहता था, वह घर आया।

उस समय नयनतारा रसोईघर में चाय बना रही थी और मीरा बाहर गई हुई थी। रमन ने नयनतारा को मीरा समझकर पीछे से अपनी बाहों में भर लिया नयनतारा चौंक कर पीछे मुड़ी तो रमन भी चौक गया और तुम कौन हो बोलकर उसे छोड़ दिया।

उसी समय मीरा भी किचन में आ गई और सबकुछ देख लिया। पहले पास-पड़ोस की बातें फिर आज की घटना ने मीरा के मन में चिंगारी लगा दी थी उसने नयनतारा को घर से भगाने का निर्णय कर लिया। शाम को रमन से बात करने के बाद उसने नयनतारा को समाज की दुहाई देकर घर से चले जाने के लिए कह दिया।

यह सुनकर नयनतारा की आँखों में आँसू आ गए पर उसने कुछ नहीं कहा। जब अपनों ने ही उसका साथ छोड़ दिया था तो गैरों से क्या गिला करती वो। उसने अपना सामान लिया बच्चे को दुलार किया और घर से बाहर निकल गई।

वहाँ से निकलकर वो एक सस्ते से होटल में रुक गई। दिनभर की भागदौड़ से वह थक गई थी, इसलिए लेटते ही उसे नींद आ गई। रात को शोर-शराबे और दरवाजा पीटने से उसकी आँख खुली। उसने दरवाजा खोला तो पुलिस उसे पकड़ने लगी।

नयनतारा- मैंने क्या किया है।

कांस्टेबल- साली, कुतिया। यहाँ देह व्यापार करते हुए तुझे शर्म नहीं आई। अब नाटक करती है। चल थाने।

नयनतारा मना करती रही लेकिन पुलिस उसे पकड़कर थाने ले गई। उसके साथ 10-12 लड़कियाँ और भी थी। आज नयनतारा एक धन्धेवाली के तमगे के साथ थाने में बैठी थी।

सुबह तक नयनतारा को छोड़कर सभी लड़कियों की जमानत हो गई । पुलिस के कहने पर नयनतारा ने कुछ सोचकर डेविड को फोन किया और उसे सारी बात बताई। डेविड थाने जाकर उसकी जमानत करवाई और अपने घर ले जाने लगा। नयनतारा उसके घर जाने से घबरा रही थी, लेकिन अभी उसके पास कोई और रास्ता नहीं था।

उधर सुबह के अखबार में नयनतारा की फोटो धन्धेवाली के रूप में छपी थी। जिसे देखकर जगदीशजी ने नयनतारा को फोन किया और उसे चरित्रहीन, पैदा होते ही मर क्यों नहीं गई, करमजली आदि शब्दों नवाजा, उसकी फोटो पर माला पहनाई और नयनतारा का श्राध कर दिया।

नयनतारा रोते बिलखते डेविड के घर आई। डेविड ने उसे पानी दिया और बोला।

डेविड- देखो नयनतारा जो कुछ भी हुआ है उससे अब तुम पहले की तरह काम तो कर नहीं पाओगी, क्योंकि हर जगह तुम्हारी थू-थू हो रही है। अब या तो तुम ये शहर छोड़ दो या फिर........मुझसे शादी कर लो। मैं तुम्हें खुश रखूँगा।

नयनतारा- (आश्चर्य से)लेकिन आप तो शादीशुदा है।

डेविड- तो क्या हुआ। अच्छे से सोच लो फिर बताना।

यह कहकर डेविड चला गया, लेकिन उसके शब्द नयनतारा के कानों में गूँज रहे थे। पिछली बातें सोचकर नयनतारा खूब रोई। अभी वह ढंग से 25 की भी नहीं हुई थी वो अपने से दोगुने उम्र के इनसान के साथ शादी का सोच ही नहीं सकती थी। उसने निर्णय लिया कि वह यह शहर छोड़ देगी, लेकिन अब सवाल ये था कि वह जाएगी कहाँ।

नयनतारा ने एकबार फिर से अंधे कुएँ में छलांग लगाने का ठान लिया था। उसने सोच लिया था कि लोग उसके बारे में कुछ भी सोचे जब उसने कुछ किया ही नहीं तो अपनी नजरों में हमेशा के लिए गिरने से अच्छा है जब तक जिए लड़ कर जिए।

डेविड ने होटल से नयनतारा का सामान मँगवा दिया था। नयनतारा ने रसोईघर में जाकर कुछ खाने का सामान लिया और उसे अपने बैग में भरकर उसके घर से बाहर निकल गई। अब वह कहाँ जाएगी उसे कुछ भी पता नहीं था। उसके पास पैसे भी नहीं थे। उसने अपने कान की बाली बेची और रेलवे स्टेशन पहुँचकर टिकट लेकर मुम्बई की गाड़ी में बैठ गई। गाड़ी के लगभग हर मर्द उसे खा जाने वाली नजरों से देख रहे थे। नयनतारा खिड़की से बाहर देखने लगी।

आज पहली बार उसे लगा कि घर से बाहर निकलकर उसने कितनी बड़ी गलती कर दी। वो उस पंछी की तरह थी जिसको बचपन से बड़े होने तक पिंज़रे में पाला जाता है जिससे वो खुले आसमान में उड़ना भूल जाता है। और जब पिंजरा खोलकर पंछी को आसमान में छोड़ा जाता है तो पंछी या तो मर जाता है या किसी का शिकार हो जाता है।

यही हाल आज नयन का भी था वो उसी पंछी की भाँति अपने पिंजरे से निकल तो आई थी पर अब खुले आसमान में उड़ने का न हुनर था और न ही वो जानती थी कि आसमान के नीचे शिकारी उसके लिए घात लगाए बैठे हैं।

बहरहाल नयन मुम्बई पहुँच चुकी थी, लेकिन अब आगे क्या करना है उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्योंकि इनसान हर जख्म सहन कर सकता है परंतु पेट की भूख नहीं सहन कर सकता, नयन के पास ज्यादा पैसे भी नहीं बचे थे। उसे जल्द-से-जल्द काम की जरूरत थी। वह स्टेशन पर ही बैठ गई और थके होने के कारण उसकी आँख लग गई। नयन की नींद खुली तो देखा उसके सामने एक औरत सजधजकर खड़ी है। नयन उसे देखते ही जान गई कि ये धन्धा करने वाली है। उस औरत ने कहा।

औरत- अगर तू चाहे तो मुझे अपना दुःख बता सकती है। मैं भी ऐसे ही स्टेशन पर खो गई थी, लेकिन तू तो भले घर की लग रही है।

औरत ने इतने अपनेपन से पूछा था कि नयनतारा अपनी कहानी उसे सुनाती चली गई। औरत जिसका नाम चंपा था पूरी कहानी सुनने के बाद उसने कहा।

चंपा- देखो नयन, मैं तेरे को कुछ ज्यादा तो नहीं दे सकती पर हाँ तू चाहे तो मेरी खोली में रह सकती है। ये दुनिया न हम औरतों को जीने नहीं देती। तू सही करेगी तब भी उँगली उठाएगी और गलत करेगी तब भी, पर अगर ये सब सोचने बैठेगी तो जी नहीं पाएगी। चल मेरे साथ अगर स्टेशन पर रही तो कोई-न-कोई तुझे अपना शिकार बना लेगा। यहाँ किस चेहरे के पीछे भेड़िया छिपा है तेरे को नजर नहीं आएगा।

नयन को कहीं तो जाना ही था इसलिए वो चंपा के साथ ही चली गई। वहाँ चंपा की तरह और कई महिलाएँ थी जो मजबूरी में अपने जिस्म का सौदा करती थी। भले ही चंपा का काम निहायत ही गिरे दर्जे का था पर उसका दिल उन तमाम अमीरजादों से अच्छा था जिनकी नजर में इंसानियत का कोई मोल नहीं था।

अगले दिन नयनतारा ने एक नई दुनिया देखी जिसमें उसकी जिंदगी का दर्द कुछ भी नहीं था। लाचारी, गरीबी, संघर्ष ये सब नयन की आँख खोलने वाली थी। जब खाने के लिए भोजन और पीने के लिए पानी न हो तो इंसान सबकुछ बेच सकता है फिर वो जिस्म ही क्यों न हो।

दो दिन तक नयन चंपा के यहाँ रही, फिर उसने फैसला किया कि वो भी कुछ काम करेगी। अगले दिन वह नौकरी के लिए निकल गई और एक शोरूम में उसे सेल्सगर्ल की नौकरी मिल गई। तनख्वाह ज्यादा नहीं थी लेकिन नयन के लिए यही काफी था। उसने ऑफिस के आस-पास ही घर लेने का सोचा। उसने चंपा को लेकर घर की खोज की लेकिन चंपा को देखकर कोई भी उसे घर देने को तैयार नहीं होता।

चंपा- ये वही इज्जतदार लोग हैं नयन जो रात को तो हमारे पास आने के पैसे देते हैं और दिन में हमारी शक्ल से नफरत करते हैं। तू अपनी जिंदगी में आगे बढ़ नयन। कभी-कभार मिलने आजाया करना।

न चाहते हुए भी नयनतारा को चंपा की बात माननी पड़ी। ऑफिस के पास ही नयन ने कमरा ले लिया। जिस शोरूम में नयन काम करती थी वहाँ के मैनेजर वरुण की नजर नयन के यौवन पर थी। वह किसी भी तरीके से नयन के यौवनरूपी सागर में गोते लगाना चाहता था। नयन इन सब बातों से अनजान अपने काम में व्यस्त रहती। उसे पता ही नहीं था कि कोई उसपर अपनी कुदृष्टि डाल चुका है। कुछ ही समय में नयन के मिलनसार स्वभाव के कारण उसकी कुछ लड़कियों से दोस्ती हो गई थी।

क्रिसमस के अवसर पर वरुण ने अपने घर पर पार्टी रखी थी और ऑफिस के कुछ कर्मचारियों के साथ उसने नयन को भी निमंत्रण दिया। रात को सब वरुण के घर डिनर के लिए गए। घर काफी अच्छा था और उसकी पत्नी मालिनी बहुत खूबसूरत महिला थी। सबने अच्छे से डिनर किया और चले गए।

अगले दिन ऑफिस पहुँचने पर सब नयनतारा को बधाई देने लगे। उसे पता चला कि उसका प्रमोशन हो गया तो उसे यकीन नहीं हुआ। वरुण ने भी उसे बधाई दी।

वरुण- मिस नयनतारा। आपके काम से हमें काफी फायदा हो रहा है। आपके कस्टमर से डील करने की स्किल काफी अच्छी है इस वजह से आप को प्रमोट किया गया है।

नयनतारा- धन्यवाद सर।

नयनतारा अपने काम में लग गई। लेकिन कुछ सीनियर लड़कियों ने नयनतारा के चरित्र पर उँगली उठानी शुरू कर दी।

पहली- हम तो यहाँ कई सालों से काम कर रहे हैं, लेकिन हमारा प्रमोशन तो नहीं हुआ। कल की आई लड़की ने ऐसा क्या जादू कर दिया कि इसको प्रमोशन मिल गया।

दूसरी- अरे जादू क्या। अपने हुश्न के जाल में फाँस लिया होगा वरुण सर को। उनका बिस्तर गरम किया होगा तभी इतनी जल्दी प्रमोशन पा लिया।

अब जितने मुँह उतनी बाते हो रही थी। नयनतारा को यह सब बहुत बुरा लग रहा था, क्योंकि अतीत फिर से अपने आप को दोहरा रहा था। काम खत्म हो जाने के बाद वो घर जाने लगी तो वरुण ने उसे लिफ्ट दी। पहले तो उसने मना कर दिया, लेकिन वरुण के फोर्स करने पर वह मना नहीं कर पाई और उसकी गाड़ी में बैठ गई। वरुण ने उसके काम के साथ-साथ उसकी खूबसूरती की भी तारीफ की जो लड़कियों की सबसे बड़ी कमजोरी होती है।

समय के साथ-साथ वरुण और नयनतारा में दोस्ती हो गई। नयनतारा की तरफ से तो ये बस दोस्ती ही थी, लेकिन वरुण की तरफ से कुछ और ही था जो नयनतारा समझ नहीं पाई थी। दोनों का साथ ऑफिस में गोसिप का मुद्दा बन गया था। जितने मुँह उतनी बातें हो रही थी। उन्हीं में से एक लड़की ने दोनों की साथ में कई फोटो भी निकाल ली।

धीरे-धीरे 2 महीने बीत गए। उनकी दोस्ती और ज्यादा गहरी हो गई। नयनतारा अब वरुण को अपना हमदर्द समझने लगी थी। अब वरुण नयन के घर भी जाने लगा था। एक रविवार शाम को वरुण खतरनाक इरादे के साथ नयनतारा के घर गया और बहाने से उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करने लगा तो नयन ने उसे चाँटा मार दिया और घर से बाहर भागी।

जैसे ही उसने दरवाजा खोला सामने मालिनी खड़ी थी। नयनतारा के अस्तव्यस्त कपड़े देख और कमरे में वरुण को देख वो आगबबूला हो गई।

नयनतारा- आआआपपपप.

मालिनी- क्यों तुम्हें उम्मीद नहीं थी कि मैं यहाँ आऊँगी। शर्म नहीं आती तुम्हें यू एक शादीशुदा इनसान के साथ रंगरेलियाँ मनाते हुए। और वरुण तुम, तुम्हें एक बार भी मेरे और बच्चों का ख्याल नहीं आया। इस धन्धेवाली के लिए तुमने मुझे धोखा दिया।

नयनतारा- जबानसंभाल कर बात कीजिए मालिनी जी आपकी हिम्मत.......

मालिनी- (अखबार दिखाते हुए) जो तुम हो मैंने वही कहा है। शुक्र मनाओ कि मैंने पुलिस को नहीं बुलाया।

वरुण मालिनी के पैरों में गिर पड़ा और माफी माँगने लगा। मालिनी उसे खीचकर बाहर ले जाती है। मकानमालिक ने नयन को घर से निकाल दिया। नयन के लिए ये सबसे बड़ा झटका था। जिसे उसने अपना हमदर्द समझा था उसी ने उसके साथ ऐसा किया।

नयन का दिल अब दुनिया से फट चुका था वह अब जीना नहीं चाहती थी। वह अपना सामान लेकर सड़क पर चलने लगी तभी एक जोरदार टक्कर से नयन बेहोश हो जाती है। सुबह जब उसकी आँख खुलती है तो अपने आपको एक आलीशान घर में पाती है। नयन ने उठने की कोशिश की तो उसे दर्द हुआ।

लेटी रहिए मोहतरमा। एक 30-32 साल का आदमी जो रईस लग रहा था नयन के पास कुर्सी पर आकर बैठ गया।

नयनतारा- मैं यहाँ कैसे।

आदमी- दिमाग पर ज्यादा जोर मत दीजिए। बस इतना समझ लीजिए कि जिस इरादे से आप बदहवास होकर सड़क पर निकली थी वो पूरा नहीं हुआ। वैसे मुझे कबीर खन्ना करते हैं। क्या मैं जान सकता हूँ कि आप मरने के लिए इतनी उत्साहित क्यों हैं।

नयनतारा ने कोई जवाब नही दिया। तभी एक लड़की(डाँली) कमरे में आई और नयन को कॉफी देते हुए बोली।

डॉली- मैं और कबीर भाई-बहन है तुम कल रात हमारी कार से टकरा गई थी।

दोनों ने नयन से उसका नाम पूछा और उसे आराम करने के लिए कहकर चले गए। डॉली और कबीर अपनी कास्टिंग एजेंसी चलाते थे यही उनका रोजगार था।

कुछ देर सोने के बाद नयनतारा उठी और जाकर फ्रेस हुई। शॉवर के पानी के साथ उसके आँसू भी बाहर निकल रहे थे। जब वह वाशरूम से बाहर निकली तो सामने डॉली खड़ी थी। उसने नयनतारा की आखों में देखते हुए कहा।

डॉली- देखो नयनतारा मुझे नहीं पता कि तुम खुदखुशी करने क्यों गई थी और तुम्हारे साथ क्या हुआ है। पर नयन इस दुनियामें किसी की भी जिंदगी आसान नहीं है। किसी को पैसे की दिक्कत है तो किसी को परिवार की। किसी के बच्चे नहीं है तो किसी का पति। पर इंसान जीना तो नहीं छोड़ देता न। भगवान के दिए जीवन को रोते हुए बरबाद करने से अच्छा है अपने लिए जिए। अगर तुम चाहो तो मुझे अपने बारे में बता सकती हो।

डॉली की बातों में अपनापन देखकर नयनतारा ने अपना दिल उसके सामने खोलकर रख दिया। डॉली ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया।

डॉली- नयन हिम्मत मत हारो। हम औरतों की जिंदगी में बचपन से ही संघर्ष होता है। हर पुरुष एक समान नहीं होता नयन पर तुम्हारा दुर्भाग्य कि जो पुरुष तुम्हारी जिंदगी में आए सब कमीने निकले। जो तुम्हारे साथ हुआ है न नयन मैं भी इसकी भुक्तभोगी हूँ।

मेरी शादी भी 19 वर्ष की उम्र में हो गई थी पर मेरे पति मरे नहीं थे, बल्कि लड़का न दे पाने के कारण उन्होंने मुझे 24 वर्ष की उम्र में ही छोड़ दिया। शादी के 5 सालों तक मैंने नरक यातना भुगती। जैसे आज तुम सड़क पर मौत की आशा में निकली थी वैसे मैं भी अपनी जीवन लीला समाप्त करने के लिए घर से बाहर निकली थी।

मैंने अपने पति को छोड़ दिया, पर मेरे लिए मायके के दरवाजे भी बंद हो चुके थे। वो तो अच्छा हो कबीर का जिसने मुझे उस रात उन दरिंदो से बचाया और अपने घर में शरण दी। उसने मुझे पढ़ने में खुद नौकरी करने में मदद की। आज मैं जो कुछ भी हूँ सिर्फ कबीर की वजह से हूँ। नयन ये सब समझाने का मेरा बस एक मकसद था कि दुनिया का हर पुरुष गलत नहीं है। हाँ कुछ की गलती से पूरा समाज बदनाम हो जाता है।

देखो नयन मैं तुम्हारी बहन जैसी हूँ इसलिए तुम परेशान मत हो और अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करो। यही सही मायनों में थप्पड़ होगा उन तमाम लोगों के लिए जो हम जैसी अकेली स्त्रियों को चरित्रहीन करते जरा नहीं शर्माते जबकि खुद अंदर से अपने चरित्र को नहीं देखते।

नयनतारा को अब पुरुषों पर भरोसा नहीं रह गया था, लेकिन डॉली एक लड़की थी नयनतारा उसपर भरोसा कर सकती थी। डॉली की बात सुनकर नयनतारा को हौंसला मिला। तो उसने भी आगे बढ़ने का फैसला कर लिया, लेकिन क्या इतना आसान था नयनतारा के लिए अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना। अभी तो उसके जीवन में असली तूफान आना बाकी था।

नयनतारा भी डॉली और कबीर के साथ बहुत हदतक अपने गम भुलाकर आगे बढ़ रही थी। एक दिन कबीर से मिलने के लिए कोई फोटोग्राफर आया। दरवाजा नयन ने खोला। दरवाजे पर एक 26-27 वर्ष का आकर्षक नौजवान खड़ा था। लड़के ने जब नयनतारा को देखा तो बस देखता ही रह गया। उसकी नजरें नयनतारा से हट ही नहीं रही थी। पहली नजर का प्यार हो गया था उसे नयनतारा से।

नयनतारा के बार-बार पुकारने पर भी वो अपने होश में नहीं आया और अपलक नयनतारा को देखता रहा। नयनतारा असहज महसूस करने लगी थी। तभी डॉली नहाकर बाहर आई और लड़के को देखकर बोली।

डॉली- अरे करन। आओ अंदर आओ। नयन अंदर आने दो करन को।

नयन एक तरफ हट गई तो करन अंदर आया। डॉली ने करन और नयनतारा का परिचय करवाया। कुछ देर बाद जब नयनतारा वहाँ से चली गई तो करन ने कहा।

करन- यार डॉली ये लड़की काफी खूबसूरत है। एक काम करो मैं एक इंडियन साडी की सूट कर रहा हूँ इसे मॉडल की जगह ले सकते हैं।

डॉली- मुझे उससे बात करनी पड़ेगी करन।

करन- अच्छा मैं चलता हूँ तुम एक बार उससे बात जरूर कर लेना शायद वो मान जाए।

करन डॉली के यहाँ से चला गया लेकिन उसके दिल-दिमाग में नयनतारा की सूनी आँखें ही शोर मचाती रही। करन के जाने बाद डॉली नयनतारा के पास गई और उसे करन के प्रपोजल के बारे में बताया तो उसने मना कर दिया। क्योंकि नयनतारा चरित्रहीन की तोहमत से, परिवार वालों की बेरुखी से वैसे ही परेशान थी। वो नहीं चाहती थी कि उसके ऐसा करने से फिर से लोगों को कुछ कहने का मौका मिल जाए। डॉली के बहुत समझाने के बाद आखिरकार नयनतारा इसके लिए तैयार हो गई।

डॉली ने करन से बात करने के लिए रात डिनर के लिए उसे घर बुलाया। करन खुद नयनतारा से मिलने के लिए उत्सुक था। तो वह रात में डिनर के लिए डॉली के घर गया। दरवाजा नयनतारा ने खोला। दोनों की आँखें चार हुई तो नयनतारा ने अपनी नजरें झुका ली और साइड हट गई। डिनर करते हुए करन बस नयनतारा को ही देख रहा था। जिसे नयनतारा भी महसूस कर असहज हो रही थी।

डिनर के बाद करन ने हफ्ते भर बाद का फोटोसूट कहकर चला गया। हफ्ते भर नयनतारा अपने आपको इस फोटोसूट के लिए तैयार करती रही। आखिर वह दिन आ ही गया। आज नयनतारा का फोटोसूट था और नयन ने एक दो गलतियों के बाद बहुत अच्छे से फोटोसूट करवाया। करन भी नयनतारा की छोटी-छोटी बातों का ख्याल रख रहा था। कहीं न कहीं नयनतारा को करन का व्यवहार अच्छा भी लग रहा था, लेकिन अपने अतीत के कारण वह सजग थी।

ऐसे ही कुछ समयांतराल पर करन और नयनतारा की फोटोसूट के दौरान मुलाकात होती रही और नयनतारा उसके दिल की गहराइयों में उतरती रही। नयनतारा भी उसका प्यार महसूस कर पा रही थी, लेकिन वो अब कोई भी गलती नहीं करना चाहती थी।

एक दिन फोटोसूट के दौरान करन ने नयनतारा को प्रपोज कर दिया।

करन- नयनतारा मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। जब से मैंने तुम्हें देखा है मेरा दिल मेरे बस में नहीं है। दिन-रात सिर्फ तुम ही नजर आती हो। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। देखों प्लीज मना मत करना।

जिस बात का डर नयनतारा को था वही हुआ। करन की बात सुनकर वो बिना कुछ बोले ही चली गई। नयनतारा की चुप्पी करन को परेशान कर गई। दो दिन बाद करन डॉली से मिला। उससे नयन के बारे में बात की और अपने प्यार के बारे में उसे बताया। डॉली ने कहा।

डॉली- ये प्यार-व्यार सब झूठ होता है करन। उसका सच जानते ही तुम्हारे प्यार का भूत उतर जाएगा।

करन- प्लीज डॉली, मेरे प्यार का मजाक मत उड़ाओ और जो भी कहना है साफ-साफ कहो।

डॉली- ठीक है तो सुनो। वो एक विधवा है।

करन- क्या।

डॉली- उसके ससुराल वाले और उसके घरवालों ने उसपर बदचलन और चरित्रहीन होने का आरोप लगाया है।

करन- (आश्चर्य से) क्या

डॉली- उसपर धन्धा करने का आरोप है। कई मर्दों ने उसे धोखा दिया है। इसका साथ तो उसके परिवारवालों ने नहीं दिया तो तुम क्या दोगे।

करन- मुझे तुम्हारी बातों पर विश्वास नहीं है। फिरभी अगर ये सच भी है तो मुझे उसके अतीत से कोई मतलब नहीं है। मैं उससे प्यार करता हूँ यही वर्तमान की सच्चाई है।

करन की बात से डॉली को बहुत खुशी हुई। करन के जाने के बाद डॉली ने नयनतारा से बात की और उसे समझाया। महीनों तक नयनतारा ने इसपर गौर किया। महीने भर में करन के व्यवहार और प्यार ने आखिरकार नयनतारा ने करन के प्यार को स्वीकार कर लिया। आज नयनतारा के पास कबीर और डॉली जैसे दोस्त और करन का प्यार था।

एक हफ्ते बाद करन नयनतारा को अपने भैया-भाभी से मिलवाने अपने घर ले गया। नयनतारा बहुत नर्वस थी। करन नयनतारा को लेकर घर के अंदर आया और अपनी भाभी को बुलाने चला गया। अंदर नयनतारा ने कुछ ऐसे देखा कि उसकी आँखें फटी रह गई। सामने वरुण खड़ा था। उसने नयनतारा से कहा।

वरुण- तुम। तुम यहाँ क्या करने आई हो।

तबतक करन मालिनी के साथ बाहर आ गया।

करन- भाभी ये है नयनतारा। मैं इसी की बात कर रहा था और नयन ये हैं मेरे भैया वरुण और भाभी मालिनी।

नयनतारा को लगा कि एक बार फिर से उसे ठग लिया गया है। वो जड़वत हो गई थी। वो क्या बोले कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी मालिनी नयन के पास आई और उसके गालों को इधर-उधर करते हुए बोली।

मालिनी- ऐसा क्या जादू है भाई तुममें कि दोनों भाई तुम्हारी तरफ आकर्षित हो गए। कोई जादू-वादू जानती हो क्या। वैसे नाम भी तुम्हारा नयनतारा है।

करन- ये आप क्या कह रही हैं भाभी। ये नयनतारा है इसी से तो मैं शादी...........

वरुण-(थप्पड़ मारकर)क्या बकवास कर रहा है तू। जानता भी है ये क्या क्या गुल खिला चुकी है। अरे ये धन्धा करती है धन्धा।

करन-(चिल्लाकर)भैया।

वरुण- तू मासूम है करन। इस बेगैरत औरत ने तुझे भी बरगला दिया है। इससे कोई क्या शादी करेगा जो हर रात अपना पति बदलती है।

नयन की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे।

करन- ये आप क्या कह रहे हैं भैया। भगवान के लिए चुप हो जाइए। मुझे नयन के बारे में सब पता है। आप उसके बारे में ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं।

मालिनी- (बीचमें)ये लड़की वही है जिसे मैंने तेरे भैया के साथ रंगे हाथों पकड़ा था और आज तू भी।

करन- क्या

करन भौचक्का होकर जमीन पर बैठ गया। इससे ज्यादा नयनतारा के लिए सुनना मुश्किल था। वह रोते हुए घर से बाहर भाग गई। वो रोती हुई बेतहाशा भागी जा रही थी तभी सामने से आती हुई कार से टकरा गई। कारवाला भला मानुष था तो उसने तुरंत उसे अस्पताल पहुँचाया और नयन के फोन से डॉली को फोन किया। डॉली भागी हुई अस्पताल पहुँची। डॉली के पूछने पर नयनतारा ने सबकुछ उसे बता दिया।

डॉली- (शाक्ड) अब इसमें करन तो अपने भाई की ही सुनेगा। ऐसे उदास मत हो और जिंदगी में आगे बढ़ो अगर करन तुम्हें सच्चा प्यार करता होगा तो वो जरूर तुम्हारे पास आएगा और अगर उसे तुम्हारे जिस्म की चाह होगी तो अच्छा हुआ वो तुमसे दूर हो गया।

डॉली के समझाने के बाद नयनतारा थोड़ी संभल गई। डॉली ने करन को फोन किया तो वरुण ने फोन उठाया डॉली ने नयनतारा की हालत के बारे में करन को बताने के लिए कहा। दो दिन अस्पताल में बीत गए लेकिन करन नयनतारा से मिलने नहीं आया। नयनतारा ने भी इसे अपनी किस्मत मान लिया कि शायद प्यार और सुख उसकी किस्मत में हैं ही नहीं।

अस्पताल से वापस आने के तीन दिन बाद डॉली उसे किसी से मिलाने का बोल रही थी। उसका कहना था कि घर में पड़े रहने से अच्छा है बाहर निकलो और अपने काम पर फोकस करो। डॉली ने नयनतारा को तैयार होने भेज दिया और फोन पर बात करने लगी। नयनतारा तैयार होकर डॉली को बुलाने उसके कमरे में गई, लेकिन उसने जो बात सुनी उससे उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि डॉली उसके साथ इस तरह का धोखा करेगी।

डॉली- (फोन पर) अरे तुम चिंता मत करो। उस लड़की को मैंने अच्छी तरह शीशे में उतार लिया है। अब वो मुझसे खुद से ज्यादा भरोसा करती है।

कोई किसी की मदद फ्री में नहीं करता। हर चीज की कीमत होती है। मेरा तो काम ही है भोली-भाली और मजबूर लड़कियों को अपने जाल में फँसाना।

आज तक कबीर को नहीं पता चला मेरे इस काम के बारे में तो उसे कैसे पता चलेगा कि मैं उसका फायदा उठाकर पैसा कमाना चाहती हूँ। अब तो करन भी उसके साथ नहीं है। बस 5-6 साल और उसकी जवानी है उसक बाद कौन उसे पूछेगा।

मैं जल्द-ही उसे तुम्हारे पास भी लेकर आऊँगी। फिलहाल तो मिस्टर राठौड़ को कई लड़कियों को फोटो दिखाई थी, लेकिन उन्हें आज इस लड़की को चखना है। अच्छा अब फोन रखती हूँ।

नयनतारा का तो बस रोने का मन कर रहा था। जिसको उसने अपना समझा उसी ने उसके पीठ में छूरा घोंपा। अब तो उसका इंसानियत से भरोसा ही उठ गया था, लेकिन उसने किसी तरह खुद को संयत किया। वो भाग-दौड़ करके थक गई थी इसलिए उसने खुद इस स्थिति से निपटने का निर्णय लिया।

नयनतारा डॉली के साथ राठौड़ के यहाँ पहुँची और नजर बचाकर कैमरे की रिकार्डिंग ऑन कर उसे एक सुरक्षित जगह छिपा दिया। आवभगत के बाद डॉली फोन का बहाना बनाकर कमरे से बाहर चली गई तो राठौड बातों-बातों में नयनतारा के साथ छेड़खानी करने लगा। नयनतारा ने पास रखा गमला उठाकर उसके सिर पर दे मारा और अपना फोन लेकर कमरे का दरवाजा खोला तो करन पुलिस के साथ खड़ा था। डॉली को गिरफ्तार कर लिया गया था। करन को देखकर नयनतारा उसके गले लगकर फूट-फूट कर रोने लगी। पुलिस डॉली, राठौड़ और फोन लेकर वहाँ से चली गई।

करन ने नयनतारा को चुप करवाया और अपने साथ घर ले गया। नयनतारा ने कहा।

नयनतारा- अगर आज तुम सही समय पर नहीं आते तो पता नहीं क्या हो जाता।

करन- कुछ नहीं होता तुम्हें। आज तुमने बहुत बहादुरी दिखाई। अच्छा हुआ जो तुमने सही समय पर मुझे फोन करके डॉली की असलियत के बारे में बता दिया।

मुझे माफ कर दो जो मैं इतने दिन तुमसे मिलने नहीं आ सका। मैं भैया-भाभी को अपनी शादी के लिए मना रहा था, लेकिन वो नहीं माने। मैं तुमसे आज भी उतना ही प्यार करता हूँ जितने पहले करता था। क्या तुम मुझसे शादी करोगी।

करन की बात सुनकर नयनतारा की आँखों में आँसू आ गए और वो हाँ बोलकर करन के गले लग गई।
[/JUSTIFY]



समाप्त



 

Love 1994

1000 years of death jutsu
Supreme
14,621
13,135
229

The 14th Feb


"Come on raaj I am tired now abhi aur kitna chalna padega yahi camp laga lete hain na wese bhi ham kafi andar tak aagaye hai"

Thaki hari Neha ne samne chalte huwe apne bf raaj se kaha jiske reply me raaj ne piche mud ke muskurate huwe jawab diya

Raaj - bas kuch dur aur chalna hai fir dekhna tumhari sari thakaan kaise dur ho jayegi

Neha - aisa kya hai jo dekhne ke liye ham jangal ke itne andar tak jaa rahe hai

Raaj - jab pahuch jayenge to khud dekh lena agar bata diya toh valentine's day ka mera gift spoil ho jayega

Neha - huh dekhte hain kya dikhana chahte ho tum, agar mujhe pasand nahi aaya to dekh lena 14th Feb hamara break-up day banjayega

Neha ne ye baat raaj ke samne aate huye muh bana ke kahi to thi lekin baad me wo jis speed se uske aage aage chal rahi thi wo dekh kar raaj man me hi hasne laga

Kuch 15 min aur chalne ke baad wo dono raaj ki batai hui jagah pe they
Jise dekh kar neha fuli nahi sama rahi thi
Use aisa lag raha tha jaise wo koi jannat me aagayi ho

Thik uske samne ek chota sa waterfall tha jiske ird gird kai tarha ke fulo ke bel aur paudhe lage huwe they
Neha ke pairo ke niche ki wo mulayam ghans aur Waterfall se girte huwe saaf pani me wo asmaan ka reflection aisa pratit kar raha tha ki jaise dharti aur asmaan yahi aake ek dusre se milte ho

Neha - wow... It's really beautiful raaj, mai soch bhi nahi sakti thi ki itni pyari jagah yaha bhi ho sakti hai you were right about......

Isse aage wo kuch bol hi nahi pai kyu ki jab wo piche mudi to raaj uske piche apne ghutno pe baitha tha apne hath me ring leke use propose kar raha tha


Raaj - dekho mujhe is chiz ke liye jitna romantic mahol banana sahi laga wo maine kiya bas, iske aage agar tum koi romantic dialogue ka wait kar rahi ho to bata deta hu mera bas naam raaj hai mai koi SRK nahi hu..

Raaj ki baat sunke neha jo lagbhag rone hi wali thi wo na chahte huye bhi has di

Neha ( aage badh ke raaj ko pyar se marte huye )- you duffer tum kabhi nahi sudhroge

Raaj (uska hath pakad ke ring ungli ke pass lake) - dekhlo jaldi jawab do warna agli baar kisi aur ko leke aunga yaha bata raha hu

Neha (khud hi apni ungli ring me dalte huye) - laake to dikhao tumhe kaat ke na khaya to mera bhi naam neha nahi dekh lena

Raaj (use apni baaho me jakadke) - achha batao to ab kaise katogi

Neha - aise...

Ye bolte huwe wo raaj ke honto pe tut padi..
Pehle to 5 sec usne unko khub kanta aur fir apne pyar ka marham lagane lagi
Isme raaj bhi kaha piche rehne wala tha
Wo bhi marham lagwate huye neha ko aur jakadne laga

Kuch der aur kiss karne ke baad jab aisa lagne laga ki ab rukna mushkil hai to raaj ne neha ko waise hi apne baho me utha liya aur aage badh ke dhire dhire chalte huye usko jharne ke niche le gaya....


Shaam dhal chuki thi aur andhera ho gaya tha aur abhi raaj aur neha ne jharne ke niche apni thakawat dur karne ke baad paas me hi mulayam ghass pe apna camp lagaya tha

Camp ke bahar aag jala ke uske samne ek dusre ke baho me bahe dale dono apne aage aane wali jindagi ke sapno ko bun rahe they

Neha - finally 4 saal ke relationship ke baad ab ham apne pyar ke akhri mukam tak pohochne wale he raaj and I am so happy for this

Raaj - 4 saal nahi keh sakte kyu ki maine to jab 1st time tumhe dekha tha tabhi soch liya tha ki bas tum aur sirf tum hi banogi is dil ki dhadkan warna aur koi nahi


Neha raaj ko aur jakadte huwe - achha jii

Raaj - haan jiii..

Uski is tarha kehne se dono bhi hasne lagte hai

Raaj - achha maine toh apna gift de diya ab tum bolo kya gift dene wali ho mujhe

Neha - mister puri ki puri mai mil gai hu yaha pe aur tumhe abhi bhi gift hi chahiye kya, haan....

Raaj - achha aisi baat hai toh kyu na ek shadi se pehle wala mini honeymoon yahi mana le

Neha (usse dur hote huwe) - what..! No! bilkul nahi yaha kuch bhi nhi karenge


Raaj - kyu yaar dekho to kitna romantic mahol hai aur tum na bol rahi ho

Neha - yaha kitna khula khula he raaj pagal ho kya mujhe yaha ye sab nahi karna hai baad me dekhenge


Raaj - pagal ladki maine ye tent kis liye lagaya hai ab to little honeymoon hoke rahega dekhna


Ye kehte huwe raaj neha ko baho me utha leta hai

Neha - raaj please chodo mujhe... suno to.. ham baad me kar lenge yaar


Lekin raaj uski ek bhi nahi sunta aur use tent me lake lita deta hai

Neha - raajj....


Raaj - shhhh.... Bas ab kuch mat bolna

Ye kehte huwe raaj niche jhuk ke neha ke honto ko chumne lagta hai
Jiske kuch der baad neha bhi uska bakhubi sath dene lagi

Ji bhar ke ek dusre ko kiss karne ke baad raaj aur neha ne sans lene ke liye kiss toda lekin raaj kaha maan ne wala tha
Usne apna aage ka kaam shuru kar diya is baar usne neha ki sabse sensitive jagah pe chumnaa shuru kiya jo thi uski surahi dar gardan jisse neha machal ke reh gai

"aahhh raaaajjj" bas yahi ek lafz nikal paya uske muh se kyu ki agle hi pal raaj ka hath uske dusre sensitive part pe tha

Raaj bhi aise moment par neha ko kaise handle karna hai bakhubi janta tha aur abhi wo wahi kar raha tha

Neha ke gardan ko chumte huye uske ek boob ko dabate huwe wo lagbhagh use charam ke stage pe leke hi aaya tha ki neha ek dam se use dhakka dete huye alag ho gayi
Raaj Neha ki is harkat par use hairani se dekhne laga kyu ki aise waqt pe wo kabhi bhi mana nahi karti thi

Neha ne apni sanse smbhalte huye kaha - tum.. tumne wo awaj suni ?

Raaj - (hairani se) kaisi awaj? Kya hua?

Neha - pata nahi bahut dhire se thi jaise koi chilla raha ho

Raaj - hehe stop kidding neha yaha jangal me kon chillane laga bhala

Neha - nahi raaj sach me aise laga jaise koi chilla raha ho

Raaj (serious hote huye) - dekho neha tumhe nahi karna ye sab to thik hai lekin ye bakwas to mat karo atleast

Neha - no raaj I am serious maine sach me awaj suni thi.


Raaj (gussa hote huye) - thik he ruko fir mai dekh ke aata hu

Ye kehte huwe raaj uth khada hua aur bahar jaane laga

Neha - kaha jaa rahe ho raaj ruko to

Lekin raaj ne uski nahi suni aur bahar chala gaya

Jab raaj kafi der tak wapas nahi aaya to neha pareshan ho gayi


Neha - raaj ??

Lekin koi reply nahi aaya jisse usne aur 2-3 baar awaj di lekin tab bhi reply nahi aaya to wo aur bhi jyada pareshan ho gayi use laga shayad raaj gussa hoke sach me to dekhne nahi gaya

Isliye wo jaldi se khadi hui aur use dekhne ke liye tent se bahar aayi

Jaise hi wo bahar aayi wese hi jor se "bhooo" karte huwe raaj uske samne kud pada

Jisse dar ke neha ki cheekh nikal gai lekin jab apne samne raaj ko haste huye paya to gusse me use marne lagi

Neha - pagal ho kya raaj koi is tarha darata hai kya


Raaj - hahaha kyu mujhe pagal bana rahi thi tab aur maine jara sa majak kiya to dekho to darr se muh kaisa ho gaya hai tumhara


Neha (gusse me) - huh tumhe to bolna hi bekar hai

Raaj - achha baba chalo gussa mat karo

Ye kehte huye raaj use apne pass khich ke hug karne wala hota hai ki neha use jhatak ke dur ho jati hai

Neha - don't touch me.. pure 1 week ke liye hath bhi mat lagana ab

Raaj - whaattt!! ye kya baat hui bhala


Neha - yess aur karo silly prank mujhe dara rahe they na tum ab bhugto

Ye bolte huwe neha wapas tent me aake let gai
Wese wo nahi chahti thi raaj ka mood bigadna lekin raaj ne use daraya tha to us wajah se use thoda satana chahti thi..

Aage aur raaj ko kaise sateye yahi wo soch rahi thi ki use realise hua ki raaj abhi tak andar nahi aaya tha

Neha - raaj hath lagane se mana kiya hai bahar sone ke liye nahi

Lekin bahar se raaj ne koi response nahi diya

Neha - raaj ajao andar warna dekho mai aur gussa ho jaungi aur abhi ke abhi wapas chali jaungi


No response..


Neha - raaj ??

Again no response...

Ab neha ko sach me gussa aane laga tha aur wo gusse me kuch bolti ki...

Raaj ki karah te huye awaj aayi - nehaaa runn...

Neha (gusse me) - tum sudhroge nahi hai na ruko tumhe abhi batati hu


Ye kehte huwe wo bahar aai lekin jab bahar ka najara usne dekha to uske hosh hi ud gaye
Camp ke bahar jal rahi aag ke us paar khoon me lathpath raaj apni jaan bachane ki koshish kar raha tha aur uske upar attack kar raha wo janwar use kafi jagah se jakhmi kar chuka tha

Jab raaj ne neha ko bahar dekha to ek baar wo fir chillaya - "neha runnnn"

neha ko uske awaj se koi fark nahi pada wo ek jagah jam chuki thi
Lekin raaj pe attack kar rahe us janwar ko neha ke bare me pata chal gaya tha


Aur neha ko apna shikar banane ke liye wo jab wo janwar uski taraf muda tab raaj ne apni puri taqat laga ke use rokne ki koshish ki lekin us janwar ne apne ek panje se raaj ko gale se pakda aur upar utha kar use jor se samne jal rahi aag pe patka aur fir apne pichle dono pairo pe khade ho kar jor se gurraya...


Ye sab dekh kar finally neha apne senses me aai aur use raaj ke wo shabd bhi sunai de gaye jo wo usse keh raha tha

Lekin uske liye ab bahut der ho gayi thi uske kuch karne se pehle hi wo janwar uspe jhapat chuka tha aur dekhte hi dekhte yaha apne pyar ko amar banane aaye 2 premi khud amar ho gaye they.....

.....




...




"Hatt lodu kya jhant story sunata hai be sari daru utar gai"

Rohit ke story sunane pe Aakash use gali dete huye bol padta hai


Rohit - story nahi hai be gandu sachhi ghatna hai jo aaj se thik 3 saal pehle yaha hui thi

Aakash - lund mera sach hai bc yuhi gf ke samne cool banne ke liye kuch bhi bak raha hai

Teena (jo rohit ki gf thi) - yaha girls bhi he Aakash kya tum thik se baat nahi kar sakte

Aakash - bilkul kar sakta hu bas tum mere pass aake baitho fir dekho kitna achhe se karta hu mai, baat :wink2:

Teena - koi jarurat nahi hai mai yahi thik hu

Shweta jo itne der se chup reh ke dekh rahi thi


Shweta (apne bf se) - acha varun mujhe batao ham dono couple hai thik, wese hi teena aur rohit bhi couple hai ham yaha apne apne tent me sath rahenge lekin Aakash ka kya wo bechara to single he wo kya karega...

Ye baat usne Aakash ko chidhane ke liye kahi thi lekin.....


Aakash - wo kya hai na shweta mere pass ek chiz hai jise camera kehte hai aur jab tum couple log tambu me bambu khel rahe honge na tab me iska pura upyog karne wala hu you know naughty camping 💋 so do it better.. :sex:


Aakash ki baat pe shweta aur teena dono usko galiya dene lagti hai jiska use koi fark nahi padta ulta wo unko aur kuch na kuch bolte hi rehta hai

Iske ulat varun aur rohit use kuch bhi nhi bolte kyu ki unko pata tha Aakash ke sath jitna bhi tum ulajhne jaoge tumhare sath wo utni hi bakchodi karega

Thodi der aise hi chalne ke baad dono ne apne apne gf ko chup karaya aur fir raat ki dher sari daru pike aur khana khane ke baad sab apne apne tent me sone ke liye jane lage

Aakash (shweta ko dekh kar) - nobody nobody does it better :winkiss:

Basterd..! Bas Isse jyada aur kuch nahi bol payi wo


Iske baad jaise ki hona chahiye tha wahi hua matlab Aakash camera leke nahi gaya :D
Bas thodi der baad use baki tent me se siskiyo ki awaje aane lagi

Aakash - bc inse majak kya kiya ye to aawaj aise nikalne lagi jaise Mia khalifa andar ghus gai ho inke Hatt!! cheeeeee yuck...

Ye bolke usne apna earphone kaan me daal liye aur volume full karne ke baad mast so gaya

.....

Raat ko jane kis paher jab pet me pressure jyada badh gayi to Aakash ki nind kharab ho gayi

Kano me abhi bhi full volume me song baj raha tha
Jise usne band kiya to bahar ek dam sannata tha aur halki halki thand bhi badh rahi thi

Aadhi nind me Aakash uth ke bahar gaya aur pressure dur karne ke baad jab wo wapis aaya to tents ke bich me jo fire lagi hui thi waha khade reh ke raat ke samay chand ki chandni me chandi se chamakte huwe us chote se jharne ki khubsurti ko dekhne laga

Raat ke is waqt sach me wo jagah aur bhi kai guna jyada khubsurat ban gai thi
Sath hi fulo se aati hui wo khushbu kisi ko tarotaza karne ke liye kafi thi

Aise hi us najare ka anand lete huwe Aakash idhar udhar dekh raha tha ki uski najar rohit aur teena ke tent pe padi jaha use kuch dikha

Aakash - betichod nashe me aisa kya ghamasan khela be jo itna bada tent hoke bhi inke hath bahar aarahe hai, Koi sanp bichhu kaat gaya to lawda ilaj hoga is jangal me

Ye bolte huwe wo aage badh ke apne pair se teena ka hath andar sarka deta hai aur mood ke apne tent me jane lagta hai ki tabhi use kuch realize huwa

Jab usne teena ke hath ko sarkaya tab use aisa bilkul laga nahi ki hath andar sarka raha hai balki aisa laga jaise usne koi bejaan cheej apne pair se sarkai ho

Aakhir ye kya tha is soch se hi wo seham gaya ek anjana dar uske jehan me daudne laga lekin fir bhi apni shanka ko dur karne ke liye apne mobile ki torch jala ke usne us tent ke andar dekha to andar ka najara dekh ke dar se do kadam piche hoke gir pada

Andar dono ki lash is halat me padi thi ki sharir ka konsa hissa kiska hai ye bata pana mushkil tha

Ye sab dekh kar Aakash ko wahi ulti agai kaise bhi karke khud ko sambhal ke wo varun aur shweta ke tent ke taraf gaya to andar se use ajib si awaje arahi thi jisse wo wahi thehar gaya

Thodi himnat karke andar dekha to Aakash ki himmat wahi jawab de gai kaise bhi karke wo apni jaan bachane ke liye puri taqat se bhaga

kis taraf bhag raha tha use ye bhi pata nahi tha lekin apni jaan bachane ke liye wo bhagta raha
Na jane andhere me wo kitni baar gira lekin wo bhagta raha tab tak bhagta raha jab tak sharir thak ke niche na gir pada

Darr se abhi tak body kaanp rahi thi usne jo dekha tha wo agar koi kamjor dil wala dekhta to usi jagah parlok sidhar chuka hota

Torch ke roshni se chamakte huwe wo hari ankhe kisi janwar ki bilkul nahi ho sakti thi
Khoon se sana huwa us janwar ka muh aur apne dosto ke mans ko chabate huwe uske bade bade dant ke bare me soch kar hi usko ek baar fir se wahi ultiya ho gai

Sharir me jaan nahi bachi thi lekin khud ki jaan bachane ke liye wo kaise bhi karke ped ke sahare uth khada hua
Badi badi sanse leke khud ko sambhala aur aage badhne ke liye jaise hi aankhe kholi to samne us janwar ko khade dekh ke Aakash darr se wahi but ban gaya

Samne se gurrate huye Aakash ki taraf aate huye us janwar ne apne pichle pairo pe chalna shuru kiya

Jisse ab wo pura sadhe saat fit ka DANAV lag raha tha
Usne aake Aakash ke muh ke pass gurraya aur apne panje ke ek war se Aakash ka heart bahar nikal liya



End......
 

Sanki Rajput

Abe jaa na bhosdk
5,713
14,451
174
Khel Waqt Ka


Sahero ki katti hui wo jindagi kise nhi pasand sab uss jindagi ko apni pahchan se jodne ka sapna tak rakh chalte hai aur kuch ussi saher me apna ek chota sa ghar aur sukh bhari jindagi jine ka aalam rakhte hai par sayad hi kinhi logo ke jindagi se ye sukh aur dukh ka mahtva unhe smjh aaye.Jindagi ki shuruwat dard se yaa khushi ya unn panapti hui unn numayisho se hoti hai jin bhavnao ko hum apne janm lete hi apne dimag aur dil me rakhte chale jate hai aur apne aas pass ke har uss vyakti se ek lagav sa bana lete hai aur hamari badhti hui mahatvakancha hamare umar ke sath hi unn bhavnao ko ek alag hi mod de dalti hai jo jindagi ka ek pahiya saja dalta hai hamare liye.



Khair inhi bato se likhit ek choti rachna ki shuruwat yaha karta hu.........





Chali thi hasrate uss school ke phle din se socha tha ki wo din kuch naye manzar layengi par pata nhi tha ki yahi wo samay tha jo jindagi ki raah ek alag modd ko lejayegi. Dikhne ko sahmati dost ki thi par sayad school ki dosti yahi se thi.Dost milte gaye wo samay bhi thahra nhi chalta chala gaya. Waqt ke sath samay apne aur paraye ka gyan bhi deta chala gaya, din tha wo mere class ka, garmiyo ki wo kankanahat si subah,class ka wo pal jo aaj bhi yaad kar dil ek alag hi muskan bharna chah deta hai,wo pal aa bhi gaye jab uuss nami bhari muskan ko dekh pasij sa gaya dil, dil ka wo har kona bhi jaise aaj likhte waqt uss pal me dubb jata hai njane kyu uss waqt kii numayish har waqt ye dil kar baithta hai.



Wo pyari si mukan ki chahat chalti hui aayi ander jab dil ka dhyan hata nhi ustak se to chutki si awaj uss muskan bhari adaye se aayi jaise hadbada sa gaya wo dil mera, sayad kho sa jata agar usse najar hatne ko chahta na meri ankhe. Uski unn muskan se hi din kata mera jaise taise na chahh kar bhi ghar pohochne par dil laga nhi mera.Agli subah jab school pohoncha mai uss muskan bhari khubsurati ko dekhne ki chahat itni thi ki mai budhu bag tak na le aaya tha saath,iss bewkoofi ko aaj bhi yaad jab karta hu mai to hassi ki kilkilahat gunj jati hai dil me,Wapas lekr aaya bag mai dikhi nhi wo uss waqt ki meri dil ki numaish sayad sun li rab ne wo dikhi aati hui,jaha uski aaj lataye uske kano se hote hue piche latkane ki ada kya hi lamha tha jab uss manzar me kisi ki gungunahate gunj uthi mere zehen me aise ki mano ye pal aur tham jaye yaha par wo pal tuta aise mano jaise shishe par pattharo ki barsaat kar dil ko bhatkane ka kaam kar dala ho kisi ne.Jab nazar gayi bagal me to hadbada sa gaya mera dil mano chori pakdi gayi uski, sangeet ki teacher ka gunguna jari tha mujhe ghurte hue, dastak unki jari thi jinke harkat ne to mano sharm ya kaho chahkna mere dil ka ki wo dil bhi khil sa gaya tha,njane kaisi khushi thi uss dil ki mano jaise dil ka mujhe bahkana tha mujhe.



Class ke ander ghuste hi jab nazre ek baar fir judi uski nazro se to njane kaise meri muskan badh gayi uske uss muskan ko dekh jo usne dekh mujhe bhari thi mano aisa laga uski muskan jaise ki ye uske chehere par aise hi rahe jaise wo chand raat me apni shitalta ke sath rahta hai.Har bitte samay mujhe uski baate aur khilkhilahat uski ore khich si rahi thi mano uska aksh mujhe bula raha tha.Fir aaya wo waqt jab jazbaat khulne ko the mere jab chalti hui wo mere row me ghusi meri dil ki dhadkane mano rukk si gayi ho,jab wo aakar mere pass apni vani ka jadu aisa cheda ki kahne ko to dil kuch na kah raha tha na soch raha tha uss waqt par dimag ki njane kya matbhed thi meri uss se ki usne mujhe chutiya kahne pe utawla ke diya tha jiske manne anusar maine mann hi man uss pal apne aap ko "Chutiya" hi kaha tha haa wo waqt wo lamha mai chutiye ki tarah ghur hi raha tha usse mai pagal tha ki uss nazakat ko khubsurati ki nakshiyate tak na de paa raha tha usse.



"Hii,mai Pragati"

Uski awazz ne mujhe soch se bahar laya



"H-hii !! M-mmai Arush"

Maine haklate hue jald hi bol pada.



Usne dubara bolna shuru kiya

"Mai class me nayi hu aur mujhe help chahiye thi iss liye aayi thi tumhare pass"



Uske sidhe muh baat sun mai kuch 2-second ankho me jhankta raha mai



"M-matlab I mean kaisi H-help ?"



Usne mujhe sawal puchta dekh ek nazar apne piche khade apni dost ko dekha jo usse hath se puchne ka ishara kar rahi thi.



"W-wo wo,mai"



Uske ye bol sunn to mai ghabra raha tha dil me ek tees uthi padi hui thi meri dhadkane raftaar bhai ke gaane ki tarah tezz gati se chal rahi thi mano abhi faad ke bahar aajaegi jo mere bagal me baitha ladka arun ne bhi sunn ki thi usne mujhe aise ghura mano mai koi bp ka patient tha.



"Wo mai....wo baat ye hai ki"



Mai to uski haklahat aur har boli par rukawate sunn to lag raha tha ki abhi mujhe ye heart attack dilwa ke manegi.Jaha meri halat aisi thi wahi mere piche uss row me piche baithe mere dost to aur muh fade aise sunne ka intezar kr rahe the ki bhandare ka timing pata chalne wala ho.



Tabhi uske piche se uski dost shreya aayi aur mujhse bol padi



Shreya :-Arush dekh ye pragati hai naam to bataya hoga aur tu janta bhi hoga to baat ye hai ki isse tujhse help chahiye.



Maine uss nakchadi ki baat sunn chidh gaya par pragati ko dekh mai waha pighal gaya.Uski ankhe mai kya bolu ek tarashi hui moti thi uss samundar me jo mano ek jheel me daal di ho kisi ne aisa pratit ho raha tha mujhe.Idhar shreya bole jaa rahi thi aur mai to bhul jao mai tha kisi ki ankho ki kasti ko pirone me haye iss waqt nazar na lag jaye meri usse.



Ki tabhi shreya ne dekha ki mai kuch response hi na de raha hu usne meri nigahon ka picha kiya to mano usse gussa aur hassi dono aayi ho aisi expression liye usne mujhe awazz diya.



"Oye Arush !! Oye sun raha hai."



Mai kisi mimiati bakri ki awazz se bhatka aur sidha bol pada.



"Kyu mimiya rahi hai."



Apni beizzati sunn to shreya boriya bistar leke wahi baith gayi aur mic lekr aise chilane lagi mano mujhpar ki maine uski vidayi bailgadi se krwayi ho.



Mere piche khade dost jaha khilkhila ke hass rahe the wahi Pragati piche khadi muh daba ke hass rahi thi,wo hassi control karne ki koshish kr rahi thi par bechari ki muskan aur wo labon ki gustakhiya usse inkar kar rahi thi, wo uss samay bohot hi jyada pyari lag rahi thi.



"Tujhe chodunga nhi tere aunty se bolungi mai tu-tu dekh"



Uss shreya ki firing mujhse aur nhi sahi gayi aur mai bol pada



"Are rukk meri maa aunty ke pass nhi school ki bate ghar tak nhi,chal-chal sorry ab bol kya hua bol bhi de."



Shreya:-Anish hai n wo IDS school wala."





Anish ki baat sunn jaha mere piche khade dost jo baithe the wo khade ho gaye the.



Mai:-Kya hua hai baat par aa tu."



Shreya:-Wo Pragati ko pareshan kar raha hai yaar wo bhi kam nhi bohot jyada.Pragati parso shift hui hai yaha hamare colony me hi aur meri cousin hai ye.



"Kyaaaa !?"



Mai aisa shock hua ki khada hi ho gaya bench se mai aur mere chilahat sun to mere dosto ki to halat kharab sayad wo mere achanak awaz aane se shock hogaye the.



Maine khud ko aise shant kiya mano aag me pani aur baithate hue.



Mai:-Puri baat bata.



Shreya:-Wo pahle din jab wo shift hui to sham ko hum park wale jagah golgappe khane gaye the wahi usne mujhe dekh to kuch nhi kaha par pragati ko dekh aakr pareshan karne laga,pahle to halke fulke hi tease kar raha tha jise hamne ignore kar diya par fir kal raat ko market me jab mai,didi aur pragati ke sath mall gayi thi to wo dosto ke sath wahi mila aur ajjib-ajjib comment pass kr raha tha.Aur aaj to usne subah ko bus stop par Double meaning baate pragati par kr rah...!??



Shreya aage bolti ki Pragati ne piche se usse rok liya uska hath pakad ke sayad usse hesitation feel ho raha tha jo mai bhanp gaya tha aur mera gussa aisa badha tha ki meri muthi kaste hi niche bench ke keel me jod se de maari jiski gunj self period ki ending bell se kuch had tak dabb gayi.Kuch second waha shanti rahi ki piche se kaha ek dost ne.



"Tumne ghar par nhi bataya tha kya ?."



Shreya:- maine bataya tha parso hi raat ko jispar dada ne kaha ki kal se sham ko bahar na jau aur unhone anish ke colony walo se complaint bhi ki thi par wo log bole ki anish to bohot acha ladka hai wo aisa nhi kar sakta jispar unki bate dada ko hi sharminda hona pada iss liye unhone hame hi danta ki aisi to koi baat nhi hai ho sakta hai misunderstanding hui hogi hamne dusri din raat wali baat nhi batayi didi ne mana kar diya ki bahar ki baat bahar hi rahane do par aaj subah bohot jyada ho gaya tha uska yaha tak ki pragati ne ro bhi diya th....!!



Ki tabhi piche se students ki good morning sir wagerah bolne ki awaze aane lagi to shreya ne pragati ko leke apne row me chali gayi.



Idhar mera gussa dil dabane ki jagah hadd paar karwa raha tha,mere bagal me baitha dost mujhe mera hath bench par karta dekh mujhe jabardasti khada karwa kar sir se bol mujhe office ke side ke gaya aur first aid krwaya mera.



School ki chuti hui aur mai jald hi apne bagal me baithe dost Arun ke sath ghar ki ore jaa raha tha hum colony me enter hue the ki hume anish ke school bus uske colony me jate dikhayi di,haa anish school bus se hi jata tha.Khair hum ghar pohoche aur mai apne room me jate hi bed par pasar gaya has aaj mai had se jyada frustrated tha jiski limit aise to na kam hogi bilkul na.



Jaha Shreya mere hi colony me mere ghar ke just samne uska ghar tha hum dost the bohot ache aur arun isi colony me antim ghar tha uska.



Mai sham me utha fresh hua kapde badle aur ek santra lekr khate-khate mai nikal gaya bahar park ki tarf jaha pohoch maine dekha ki Arun kabaddi khel raha tha aur mujhe dekh Arun bhag ke aaya mere pass aur mere hath se se santra ka piece lekr bhag gaya khelne mai bhi wahi baith gaya pass me bench par aur unlogo ko khelte hue dekhne laga.



Kuch 10 mint. hue the ki idhar bahar se awaze aane lagi shorgul type maine gaur se suna to ye shreya ki thi mai bhaga bahar ki ore aur bahar aaya to dekha to thodi bhid thi aur bache log aur kuch naujavan shreya aur udhar uss anish ko jhadne se rok rahe the.Mera gussa sach me chadha mai waha pohochte hi uss naujavan ladke ko side kar ek punch sidha jadd diya Anish ke jabde pe.



Punch ka pressure itta bhayanak pada ki wo sidha niche *dhabaakk* karte hue gira aur meri chhavi dikhi uss bhid me unn logo ko.



Maine usi hath se mara tha jis hath me chot aayi hui thi mujhe jisme se khun bandage par se bahar ki ore aaraha tha.



Uss naujavan ladke ne mujhe aage badhne se roka aur jaha wo Anish khada ho raha tha apne dost ke sahare.Khade hote hi wo bol utha



Anish:- Bahenchod, teri toh Arush aaj tu gaya bhosdk.



Uski gali sun mera para chadhne ko tha par piche se uss ladke ne mujhe pakad hua tha maine mundi ghuma ke dekhi to ye Shivu bhaiya the pass me hi inka canteen tha sayad apni gf ke sath aaye honge aur maine dekha bhi unki gf wahi Pragati ko kandhe se thami hui thi jaha uski ankhe bhog chuki thi puri mano royi ho wo,uski ankhe dekh meri nazre sakht lahje me pravartit ho rahi thi sach kahu to aisa laga ki mere dil ko kisi ne chata maara ho aur kaha ho ki

"dhikar hai tum par"

Ye sab soch to mera para chadhte hi maine na aav dekha na taav Shivu bhaiya ke pakd ko chudane ke liye unke pair par ek laat maari aur pakd dhili hote hi hath ki kalai pakd side ki ore ghasit di jiska parinam ye hua ki wo piche ki ore ho gaye aur apna hath jhadne lage.



Mai aage badhte hi sidha jaakr Anish ke pet me puncho ki barsaat karni shuru kar di jo abhi kisi ko phone lagane ki koshish kar raha tha.Mere punch bohot jordar pad rahe the uske muh se pani aur thuko ka ghut bahar ki ore uske muh se aaraha tha.Mujhe Anish ke dosto ne piche se pakd ke lejane ki koshish karne lage jisse Arun ne piche se unko last mari aur mujhe churaya aur maine dekha unmen se ek Anish jo niche baith khas aur ulti kar raha tha uske pass jaa raha tha usse mari maine ek elbow apni uske naak par sale ki naak gayi thi aur piche mudte hi arun ke piche se ek ladka jo usse pakd khichne me laga hua tha usse maine dono hathon se gala pakd piche ki ore ghsit te hue pheka jo ludhak kar piche ki ore gira muh ke bal aur abhi mai anish ki ore fir badha hi tha ki udhar Shivu bhaiya aur kuch logo ne mujhe jald liya aur piche ki ore legaya.



Shivu:- Arush shant ho ja bhai shant ho ja dekh uncle ko phone kiya hai maine tu shant rah bhadak mat.



"Are Shivu beta Arun ko dekh uske pass jaa tu"



Ek uncle ne ye baat boli jo sahi bhi thi arun waha khas raha tha sayad pakde jane se hua tha.



Maine dum lagana band kar diya to unn logo ne mujhe aur arun ko bagal me baitha kr ek uncle ko chor Anish ko dekhne chale gaye jiski halat bohot buri thi wo khase hi jaa raha tha aur pani to uss se piya bhi nhi jaa raha tha wahi Shreya Pragati ke pass thi usse sambhal rahi thi jaha jab maine Pragati ke chehre ko dekha to uski nazre mujhpar hi thi wo mujhe hi dekh rahi thi njane wo kya soch rahi thi aur mai kya sayad alag lahje ki soch ek dil se aur dusre ki soch uske lafzo se bayan karna hi thik tha uss waqt mai nhi gaya uske pass tabhi udhar papa aate hue dikhai diye mujhe unke sath arun aur Shreya ke Dada bhi the kyunki shreya ke papa yaha nhi rahte the wo dubai me job par the.



Sari baate jab sab clear hui to Anish ke pita bhi gussa hue Anish par but uss se jyada wo gussa mujhpar the aur wo chehra to nhi par unki ankhe sab bayan kar rahi thi unhone gusse me papa ko bhi bhala bura bola jo mai sah nhi paya aur ek jhanatedar raipat uski kanpati pe sidha jadd diya aisa jada ki pura mahol shant tha jo pahle wo samsaan jaisa ho gaya jaha sirf chidiyon ki awaze arahi thi jo paktu kutte log apne sath park me laye the wo bhi shant pad gaye the.



*Chatakkk*

*Chatakkk*

Aur fir wahi hua uska ulta newton ka third law mere sath papa ne bhi thappad mujhe jadd diya wo aage aur marte mujhe ki shreya ke dada ne unhen rok liya aur unhen samjhane lage khair wo Anish ka baap waha se gusse me tilmilate hue waha se chala gaya aur dhamkate hue bhi gaya khair ghar laute jaha hum sab shreya ki familyArun ke papa aur wo aur meri family shreya ke ghar me hall me baithe the to kuch shant khade the jaha papa aur dada phone pe baat kr rahe the sayad pragati aur shreya ke papa se.



Mai wahi baithe apni soch me gum tha ki kisi ne nimbu-pani lakar mere samne kar diya maine bina upar dekhe bola nhi pina hai shreya jaa tu.



"Nimbu-pani hai pi lo mood thik ho jayega."



Maine awazz sun nazre upar ki to wo masoom sa chehra dikha mujhe jo kuch der pahle murjhaya hua lag raha tha par abhi mano gulab ki pankhudiyon ki tarah jo abhi khul rahe ho mano,kasam uss kudrat ki agar ye waqt aur lamha iss masoomiyat par agar sirf mera ye attraction hai to mai fir bhi iss masoomiyat ko dil me baithane ki chhah nhi chorunga balki iss lamhe ko apni chhah aur mohabbat me apne dil jubani se shamil karna chahunga.



Maine glass liya uski hatho se aur pine laga ki tabhi dadi boli shreya ki



Dadi:- thik kiya Arush beta tune mujhe khushi hai ki uski achi maramat hui aur uske baap ki bhi.



Dada:- are chup kro tum



Dadi:- mai kya chup kru,mai to pahle hi kahti thi ki wo ladka dikhta kuch aur hai kuch aur dekh hi liya n uss Anish ki kartut aur uska baap uske bare me to bolna hi nhi mujhe.



Mujhe aaj yaha kahi Pragati ki maa nhi dikhi I mean unko Pragati ke sath ya waha dekha nhi maine to mujhe laga sayad uncle ke sath bahar job par hi hongi jaha pragati ke papa government job karte hai jaha mujhe ye bhi pata chala ki agale sal uncle aarahe hai transfer idhar lekr.



Khair hum sab ghar laute papa ne kuch nhi kaha mujhse khana hum wahi shreya ke ghar se kar ke aaye the,khair mai jate hi so gaya aur subah utha apne chote bhai ke jagane se jo school ja raha tha,uski life mast thi na koi tension aur na koi padhai ki dikkat mast mauj-masti.



Mai bhi fresh hua,taiyar hua aur Arun ke sath school pohocha aur aaj pragati ne baat ki mujhse jiski khushi meri muskaan saaf bayan kr rahi thi khair har din ab uski bate mujhse badhti gayi aur njane badhti hi chali gayi,hum to class me aise baate karte mano class me teacher ki koi value hi na ho.Hum ek best buddy jaise ho gaye the jiski karta dharta shreya thi.



11 mahine hamari besties ka rukh humne thama hua tha njane uski ore mujhe kyu lagta tha ki mai attract hu sirf na ki pyar par mera dil har bar mujhe chante maar deta tha meri soch par.



Khair ek din hum park me hi the mai aaj kal kuch jyada hi ajib harkate kar raha tha jispar sawal daga tha Pragati ne mujhpar mai hadbada sa gaya tha uske sawali ko sun par dil bhi ek kone me chup kar mujhe galiya dete hue aage kuch kah e ko bol raha tha aur yaha Pragati mujhe.



Mai bich majhadhar me uss mor ki tarah fasa hua tha jab wo mor barish ke mausam me barish ke jagah dhup dekh raha ho aur mausam aur uss kudrat ke iss nazakat ko thukrne se ghabraya hua ho.Meri halat ussi mor ke pankhon jaise the jo mano chahte the ki abhi wo khule aur mai apne lafzo ki jubani samne wali ke dil par chor du par kya wo waqt mera sath dega,kya wo dil mera sath dega jiske kone me baitha wo meri samne khadi uss pankhudi ko apne dil me ek naya bagh ugane ki bhavana bandh rakha hai.Kash mai unn jazabato aur unn lafzo ko apne mukh se usse bayan kr pata par nhi ye waqt mujhe chin sakta tha usse kya pata wo waqt usse mujhse, nhi ye mohabbat ho ya attraction kuch bhi isse apne dil ke diwaron tak hi rakhna sahi tha hamare liye.



Mujhe awazz lagate hue pragati ne soch aur dil ke jazabato se bahar nikala aur mujhse bol uthi fir se



Pragati:-Tum bol rahe ki nhi Arush dekho agar nahi bole to dekh lena mai baat na karne wali"



Mai:-acha bol raha hu yaar mai kaha kuch disturb kuch nhi hua hai mujhe bas tere birthday ke baare me soch raha tha aur kya sochunga.



Pragati apni birthday ki baat sun udaas si ho gayi mano kuch soch rahi thi wo.



Mai:- kya hua ab,pahle hi bol de raha hu jhut bilkul nhi meri kasam tujhe.



Usne mujhe dekha aur fir nazre suraj ke dhalte drishya ko dekhte hue mujhse boli



Pragati:- meri maa ki barsi bhi ussi din hai Arush,mai uss din ko kabhi nhi bhul sakti.



Uske ye bolte hi wo to padi thi itne waqt baad usse mai rote dekh raha tha mere dil par kisi ne khanjar rakh chir diya ho aisa mujhe laga uski ankho me ansu aate dekh.



Achanak mere mukh se nikal pade



Samay hai ye dost,

Sayad tumhe waqif krne me bhul hui ho isse,

Par ye samay ka pahiya hai iss pahiye me har kisi ki jivani basi hai,

Chahe wo tum,mai ya ye tumhara aur mera pariwar,

Har kisi ke dard,pyar,dosti,lamhe,aur wo jazbaat isi samay ke pahiye par tike hai,

Jo har waqt ke sath hamari chize,hamare jazbaat aur hamari kismat hame lautati rahti hai,

Chahe tum ya mai ye kisi ko nhi chorti ye aur na thamti hai,

Kudrat ka karishma ye samay nhi wo kudrat iss samay ki vani hai !!



Jab ye sab mai bolte hue ruka to 2-second ke baad hi wo bol padi.



"Kismat ne mujhse sab china hai, na maa ka pyar mila na pita ka pyar, Bachpan ki ruwashi aaj nhi thamti mere kati hui rato me,wo din wo raat jab mere papa mujhe bas padhayi aur khane se related hi bate karte the.Par ye jindagi jo inn 11 mahino me maine jee hai mine wo mere liye dil ki chhah puri hone jaisi hai aur ye pal,ye lamhe jo maine tumhare sath bitaye hai n Arush ye mai apne antim waqt me bhi kabhi nhi bhulungi bhale tum mujhe bhul jao par mai kabhi nhi."



Mai uski bato me dard ko mahsus karne ko chhah raha tha par mujhe uske jazabaat apne dil ko chirte hue lag rahe the maine kuch nhi bola uski bato par bas apni mundi uski ore ki jo mujhe dekh rahi thi.



Khair humne jyada rona dhona nhi kiya hum frank hue thode fir aur ghar laut aaye aur mai room me jake bas yahi soch raha tha ki

Pragati ne sahi me bohot kuch saha hai,haa sach me bohot kuch uska ek aur sapna tha doctor ka jo wo dil se pura karna chahti thi usne mujhe ek baar bataya bhi tha ki uske papa ka sapna tha ye ki wo doctor bane aur uska bhi lekin uss waqt usne mujhe apni mas ke bare me nhi bataya tha haa sach kahu to shock to bohot hua tha mai par apne jazbaat kholna nhi chahta tha taki wo aur udasi uske chehre par na dekh saku mai.



Ye 2-3 din baad hi pragati ke pita aagaye par unhone transfer nhi liya tha njane kyu khair aaj Pragati ka birthday tha jisse humne bohot ache se celebrate kiya jaha Pragati aaj kuch udaas to lag rahi thi parujhe mauka bilkul nhi mil raha tha usse se baat karne ke liye jispar mujhe khud par gussa aaraha tha par maine usse disturb nhi kiya wo apne pariwar me busy thi mai chup chap ghar aakr so gaya.



Subah utha mai to aaj Monday tha,hamare exams bhi ho chuke the to koi tension mujhe nhi tha.Mai casual dress me ready hua aur niche aaya hi tha ki dekha bahar shreya ke ghar ke pass car lagi hui hai maine Pragati ke pita ji ko waha shreya ke pita se baat karte dekha jo laut aaye the mujhe laga wo aaye honge car se par mai galat nikla jab maine saman ke sath tayaar Pragati ko aate dekha mai kaanp sa gaya uss waqt aisa mano dil bahar kar diya tha kisi ne mera uss waqt mai shant aur stabdh murti bana khada tha ki Pragati ki nazre mujhpar padi aur wo mere pass aate hue meri aankho me jhankte hue boli



"Arush !? Arushhh !!"



Mai hosh me aate hi bol pada



Mai:- t-tum kahi jaa r-rahi ho kya



Pragat:- haa medical college 5 years ke liye aage ki padhayi krne ke liye bataya to tha tumhe pahle hi



Mai abhi kuch kadam piche jane ko tha par maine apne dil par mano jazbato ko hi patak diya ho aisi muskan chhupate hue usse bol pada



Mai:- Congratulation !! Yaar dekh pahle hi bol de raha party chahiye mujhe doctor banne ke baad chahe kuch bhi ho mai to lekr rahunga. Dekh ye himachal hai yaha ki hawa mat bhul jana waha jaakr aur sun nhi-nhi kuch nhi bas apna khyal rakhna aur jab bhi jarurat pade to apne iss dost ko jarur yaad karna aur-aur bhul mat jana hame.



Mai muskan liye ye sab baate bol raha tha jaha meri palke bhig chuki thi aur maine usse saaf bhi kr liya tha chupke se par sayad kisi ke dil ke rukh se wo chup na paya tha wo.



Khair Pragati aur uske papa ko chorne station shreya ke papa aur mere papa gaye the,maine mana kar diya tha jane se.



Mai uske jane bhar se hi ek kamre ki kokh me band ho gaya tha.Meri jindagi bas kat rahi thi meri shanti se ya unn lamho se jo mai lekr jee raha tha par haa inn katte dino aur mahine bhar me hi mai smjh gaya tha ki mai mohabbat ke uss galib ke rup me tha jaha dard aksh ki nhi rukh se hoti thi dilo ke jazbato ki hoti thi aur unn beete lamho ki hoti thi jaha pyar ki khoj karna numayisho se jyada aasan tha.



Inn kuch mahino me maine ek baar bhi phone nhi pick kiya tha uska,haa shreya lekr aati thi call par mai baat krne se mana kar deta kuch na kuch bahane aur betuke bahano se, njane shreya bhi smjh chuki thi mai usse ignore kr raha hu par sayad mai ye jazbaat liye apne dil me tha ki kash ye waqt badh jaye aur uss samay ki drishya uske dil se jodd jaye jaha mai uske khwabon ko pura hue dekh saku uski ankho me khushi ke jazbaat baki unn gum ke jo aaj tak usne dekha tha.



Din bite mahine bite saal se saal bite 5 saal aaj pure hone jaa raha tha jaha mai aaj apne bistar par soya hua tha jaha mere room ki halat kabarkhane se kam nhi thi idhar udhar beer aur vodka ke bottle ludhake hue the.Mai inn beete salo me bewra Ashiq ya pyar ka wo piyakar nhi bana tha jo gum me beeta rahta tha hamesha na bilkul na mai ye sab bas uss samay se rubaru nahi hone ke liye pita raha tha taki wo samay meri palke,mere jazbaat aur mere dil ke uss kone ko kamjor na kar sake jis kone me aaj bhi mai uske khwabon ko apni ankho se pura hota dekhna chahta tha.



Mai bed se utha alarm bajane se aur fresh hote hi bahar khadi bike utha kar station pohocha jaha aaj wo aane ko thi.Uske aane ka samay 9:00 bahe ka tha delhi ke train se par mai bewra pagal 4:05 me pohocha hua tha ye pagal panti dil se lagi thi.



Samay wo katte 5 mint. jaise ki salo ka khatinama ho jaise,

Rukh badal gaye saalo me aise ki kuch mint. bhi meri aksh me base the aise mano saanse le raha hu mai,

Waqt ye bada lamba sa lag raha tha aaj,

Jo na badha aur na ghata tha unn 5 salo me aise,

Ki ye waqt jazbato ke khel me ghulne laga tha iss kadar,

Ki aankho ki kasti band na hoti to sayad ye budhape ka sanket hota,

Na chahte hue bhi ankhe band hogayi meri,

Jo sayad waqt bhi meri numayish jaan gaya ho jaise !!(2)



"Didi kaisi ho"

"Thik hu choti"

"Chachi kaisi ho"

"Thik hu meri bachi"

"Shreya tu kaisi hai"



"Uncle aunty kaise hai aap"

" Sab thik hai beta aapko bohot-bohot badhayi ho apki samridhi ke liye"





Pragati:- shreya ye ye A-arush kaha hai



Shreya:- hoga kahi wo bewra,usse kya pata hoga ki tu aa bhi rahi hai



Pragati:- khair chal mai usse mil lungi wahi



Aage jate hue abhi wo badhi hi thi ki tabhi uski nazar platform par side me bench par leta koi jana pahchana chehra dikha wo bhag ke pohoch padi waha aur ghutne par aakr uske chehre tham wo bol uthi



"Haye ye tera dastur tujhe kis mod pe le aaya, Ye samay ka pahiya kis hod me tujhe le chala aaya"





"Meri ankhe uski jubani,

Chahe bhi fir kyu na meri dil ki kurbani,

Aksh bhar jate hai samay ke sath,

Par wo bite lamhe khured se dete hai wo dard bhari raat !!"



Ye awaz waha gunj uthi uss fiza me jo ki mere bol the



Tabhi Pragati ne apne labo ki milavat mere lab se aise ki mano gudd ko chinni me bhigo rahi ho aur kuch seconds me hi wo labon ki bandh tuti aur dono ek sath bol uthe



**Lafz bolne ki chah thi,

Samay ne wo pahiya ghuma rakha tha,

Hamare milne ki chah bana rakhi thi uss kudrat ne,

Tabhi to samay ne hume yaha iss modd par bandh rakha tha !!**



Dono ke lab dubara judd gaye ekdusre ki chasni me.
 

Rekha rani

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शुरुआत : एक अंत की (एक इंसेस्ट स्टोरी)

रेखा एक 38 साल की शादीशुदा महिला, पेशे से वकील अपने इक्लौते 18 साल के बेटे मनिश के साथ रोहतक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट
परिसर में दाखिल हुयी और कोर्ट में बने चैंबर में जाकर उसने अपने बदन पर काला कोट डाला और अपने हाथो में case फाइल लेकर कोर्ट रूम की ओर जाने लगी। अगली सुनवाई मनीष की ही थी।


कोर्ट रूम के बाहर एक लड़की और एक आदमी वकील (जैन साहब) के साथ खड़ी थी।


अंदर से एक आदमी आवाज लगाता है.... Case no. 420/2022 मनीष बनाम मानशी हाजिर हो।


जज साहब -- शुरु कीजिये.....??


वकील (जैन साहब) -- जनाब मासूम सा दिखने वाला कटघरे में खड़ा लड़का मनीश जिसने भोली भाली लड़की को अपने प्रेम जाल में फँसाया, उसे होटल में बुलाकर उसके साथ रेप किया, और उसकी नंगी फिल्म बनाकर उसे बदनाम किया। मेरी आपसे गुजारिश है इसको कड़ी से कड़ी सजा दी जाये।


रेखा खामोश थी, उसके बेटे पर लगाई गयी धारा संगीन थी सजा होनी निश्चित थी। उसकी नजरे कभी कटघरे में खड़े अपने बेटे के ऊपर कभी कोर्ट रूम के दरवाजे पर जा रही थी, उसे किसी का इंतजार था, किसी सबूत का जो उसके बेटे को इंसाफ दिला सके।


जज-- रेखा जी आपको कुछ कहना है??
वकील (जैन साहब)-- चुटकी लेते हुए बोले जनाब रेखा जी क्या बोलेगी... वो तो खुद आपके फैसले का इंतजार कर रही है।


तभी रेखा के असिटेंट एडवोकेट गुप्ता एक लिफ़ाफ़े में कुछ एविडेंस लेकर रेखा के पास आये और उन्हे देते हुए उनके कान में कुछ खुसर फुसर करने लगे।


तत्पश्चात रेखा -- जनाब मै उस घटना असली वीडियो फोर्नसिक रिपोर्ट के साथ आपको एक बार देखने का आग्रह करती हूँ।
जज-- परमिशन ग्रांटेड।


रेखा अपने सगे बेटे का संभोगरत वीडियो लैपटॉप में देखने लगी। रेखा खड़ी होकर के वीडियो के दृश्य को बड़े ही रोमांच के साथ निहार रही थी एक एक दृश्य उसे कामुकता का एहसास करा रहा था। लेकिन जैसे ही उसकी नजर मनीष के कमर के नीचे वाले हिस्से पर गई तो वहां का नजारा देखकर वह दंग रह गई उसके बदन में एकाएक उत्तेजना का संचार बड़ी तेजी से होने लगा। उसके मुंह से दबी आवाज में सिसकारी के साथ बस इतना ही निकल पाया।


बाप रे बाप,,,,,,,,,


( रेखा के मुंह से यह अचानक निकला था उसे खुद समझ में नहीं आया कि उसके मुंह से आखिर ऐसा क्यों निकल गया)


वीडियो में उसका बेटा मनीश कमरे के बेड पर नंगा लेट गया, और एक 18-19 साला निहायत ही खूबसूरत लड़की उसके लंड को अपनी चूत में डाले ज़ोर-ज़ोर से ऊपर नीचे हो कर अपनी फुद्दि की प्यास बुझा रही थी।

लड़की मुंह से तो सिसकारीयो की जैसे की फुहार छूट रही थी,,,,, ससससहहहहह,,,,, आााहहहहहह,,,,,, मेरे राजा और जोर जोर से चोदो मुझे,,,,, अपने लंड को मेरी बुर में पेलो,,,,आहहहहहहह,,,,,


रेखा यह मंज़र देख कर समझ गयी कि उसका शिकार कमरे के अंदर मौजूद है।
वीडियो बंद कर रेखा जिरह के लिए अब पूरी तरह से तैयार थी।


रेखा--- जनाब इस वीडियो में संभोग करती हुयी लड़की की सिसकारियो से साफ पता चलता है, कि ये संभोग जोर जबरदस्ती से नही बल्कि दोनों की मर्जी से हुआ है, संभोगरत् लड़की संभोग के दोरान परमानंद से गुजरती है तभी ऐसी आवाज निकलती है। कामोतजना जब सर चढ़ कर बोलती है, तभी एक औरत ऐसी आवाजे निकालती है।


वीडियो में लड़की साफ साफ कह रही है......मेरे राजा और जोर जोर से चोदो मुझे,,,,, आहहहह जोर से,,,,,,


ये कोई जबरदस्ती की आवाज नही है, बल्कि ये मस्ती की आवाजें है, ये हर स्त्री/औरत का वो मीठा दर्द है जिसे पाने के लिए वो हर रात तरसती है। ऐसे लिंग का स्पर्श हर औरत के नसीब में नही होता हैं, (आखिर लाइन बोलते हुए रेखा थोड़ी झिझकी और मेज पर से बोतल उठा कर पानी पीने लगी।)


"कटघरे में खड़ा मनीष अपनी मम्मी की बातें कोई जानबूझकर नही सुन रहा था वो तो अपनी पेशी कर रहा था मगर कुछ अल्फ़ाज़ ऐसे होते हैं कि आदमी चाह कर भी उन्हे नज़रअंदाज़ नही कर सकता, खास कर अगर वो अल्फ़ाज़ अपनी सग़ी माँ के मुँह से सुन रहा हो तो. "ये हर स्त्री/औरत का वो मीठा दर्द है जिसे पाने के लिए वो हर रात तरसती है। ऐसे लिंग का स्पर्श हर औरत के नसीब में नही होता हैं," ऐसे लफ़्ज थे जो इस ओर इशारा कर रहे थे कि उसकी मम्मी के पास भी एक चूत है जो लंड के लिए तड़प रही है. बस..


जज-- रेखा जी आप ठीक है... तो शुरु कीजिये।
रेखा-- जी जनाब. "इस दर्द का मजा मर्द के नसीब में नही...." हा कुछ मर्दो (गे) को छोड़कर क्यो जैन साहब सही कहा ना... रेखा जैन वकील को व्यंग भरा कटाक्ष कर हस्ती हुई बोली। हाहा हाहा हाहा


दूसरा आरोप जो ये वीडियो बनाने का लगाया गया है वो भी बिल्कुल गलत है क्योकि बिस्तर पर लड़के और लड़की के मोबाइल रखे है तो वीडियो किसके कैमरे से बनाया गया और पूरे वीडियो में हर दृश्य में लड़की कैमरे की ओर देखकर कुछ इशारे कर रही है, जिससे साफ पता चलता है कि वीडियो बनाकर लड़के को बदनाम करने वाला शक्स और इस लड़की का आपस में कोई कनेशन है, और जिसे मेरे काबिल दोस्त जैन साहब रेप कह रहे है वो रेप नही हनी ट्रैप (पैसे उगाही का धंधा) है।
That's solve.


जज--- हा जी जैन साहब आपको कुछ कहना है....???
जैन साहब -- बस एक लाइन जनाब
"" मां से बड़ा योध्दा दुनिया में कोई नही होता ""


जज साहब--- आखिरी फैसला पढ़ते हुए "" ये कोर्ट आदेश देती है कि मनीष पर लागाये गये सारे आरोप बेबुनियाद है, और उसके लिए वो मान हानि का case दाखिल कर सकता है।


मानशी जो case की फरियादी है कोर्ट उसे झूठे आरोप लगाने और हनी ट्रैप में फंसाने के लिए दस हजार का जुर्माना और एक साल की सजा देती।


होटल शेल्टर जिसमें ये वीडियो बनाया गया उसके खिलाफ जाँच के आदेश देती हैं।


रेखा अपने बेटे के साथ खुशी खुशी कोर्ट रूम से निकलती हुई अचानक रुक गई और मानशी के पास जाकर बोली...


"जिस्म के सौदे में अक्सर सजाये मिलती है"

इधर जैन साहब रेखा के पास आकर...
बधाई हो रेखा जी मै आपको एक सलाह देता हूँ क्योकि आप अपने क्लाइंट कि माँ भी है तो उस पर थोड़ा ध्यान दीजिये पढाई की उम्र में चुदाई करेगा तो दोबारा यहाँ आना पड़ेगा जैन साहब रेखा को व्यंग मारते हुए हँसकर बोले...... हाहा हाहहाहा


कुछ देर बाद दोनों माँ बेटे पार्किंग परिसर में खड़ी मोटर साइकिल के पास पहुँच गए।


मनीष ने ज्यों ही अपना मोटर साइकल को स्टार्ट किया। तो उस की मम्मी रेखा खामोशी से अपने बेटे के पीछे उस की मोटर साइकल पर आन बैठी।


रेखा ज्यों ही मोटर साइकल पर बैठी। तो उस का एक पावं तो मोटर साइकल के पायदान (फुट रेस्ट) पर रख लिया और दूसरा पावं हवा में झूलने लगा। और अपने हाथ को अपने बेटे की कमर में लपेट दिया।
इस तरह अपना हाथ लपेटने से रेखा का जिस्म पीछे से अपने बेटे की कमर के साथ चिपकता चला गया।


जिस की वजह से रेखा के तरबूज़ की तरह बड़े बड़े मम्मे उस के बेटे की पीठ से लग कर चिपक गये।


"उफफफफफफफफफफ्फ़ मेरी मम्मी का बदन कितना नरम है और उन के जिस्म में
जिस्म में कितनी गर्मी भरी हुई है" ज्यों ही रेखा पीछे से अपने जवान बेटे से टकराई। तो मनीष के दिल में पहली बार अपनी मम्मी के मुतलक इस तरह की बात आई।


"मनीष कुछ तो शरम कर ये तुम्हारी सग़ी मम्मी हैं " दूसरे ही लम्हे मनीष की इस गंदी सोच पर उस के ज़मीर ने उसे शर्मिंदा किया।

आम हालत में मनीष अपनी मम्मी के लिए इस तरह की बात अपने ज़हन में लाने की सोच भी नही सकता था।

मगर कुछ देर पहले अदालत में कही हुई अपनी अम्मी की बात ने उस के लंड को उस की पॅंट में खड़ा कर दिया था।

उधर रेखा भी ज्यों ही अपने जवान बेटे की कमर में अपना हाथ डाल उस के साथ पीछे से चिपकी। तो उसे भी अपने बेटे के जिस्म की मज़बूती और उस के जिस्म में मौजूद जवानी की गर्मी का फॉरन ही अहसास हो गया। जिस की वजह से रेखा की चूत में अपने बेटे के लंड की लगी हुई आग फिर से सुलगने लगी।

अभी दोनो माँ बेटा एक दूसरे के जज़्बात से बे खबर हो कर अपने अपने जिस्मो की आग को संभालने की ना काम कोशिश कर रहे थे। कि इतनी देर में वो अपनी कॉलोनी के अंदर दाखिल हो गये।

कॉलोनी की सेक्यूरिटी गेट से रेखा के घर का फासला कुछ ज़्यादा तो नही था। मगर सोसाइटी की रोड्स पर जगह जगह बने हुए स्पीड ब्रेकर्स की वजह से मनीष को अपनी मोटर साइकल बहुत ही आहिस्ता स्पीड में चलानी पड़ रही थी।

मनीष अभी अपनी गली से कुछ दूर ही था। कि वो रोड पर माजूद आख़िरी स्पीड ब्रेक पर ध्यान नही दे पाया।

बे शक मनीष की मोटर साइकल की स्पीड बहुत कम थी। लेकिन इस के बावजूद मोटरो साइकल को एक झटका लगा।

इस अचानक झटके की वजह से अपने बेटे के पीछे सीट पर बैठी रेखा एक दम से अनबॅलेन्स हुई। तो मनीष की कमर के गिर्द लिपटा हुआ रेखा का हाथ एक दम से स्लिप हो हर मनीष की पॅंट के अंदर उस की टाँगों के दरमियाँ, मनीष के अभी तक सख़्त और खड़े हुए लंड पर आ पहुँचा।

यूँ अचानक अपने बेटे के लंड से अपना हाथ टच करते ही रेखा के होश उड़ गये । और उस ने एक दम से अपने हाथ को पीछे खैंच लिया।

हालाकी रेखा के हाथ ने अपने बेटे के जवान लंड को एक ही सेकेंड के लिए यूँ पहली बार छुआ था।

मगर रेखा के तजुर्बेकार हाथों ने इस एक ही लम्हे में अपने बेटे के लंड की सख्ती और गर्मी का ब खूबी अंदाज़ा लगा लिया था।

उधर दूसरी तरफ अपनी अम्मी के हाथ का आभास अपने मोटे और बड़े लंड पर महसूस करते ही मनीष की तो बोलती ही जैसे एक दम से बंद हो गई। और उस ने भी घबरा कर एक दम से मोटर साइकल का आक्सेलरेटर दबा दिया।

मनीष का घर चूँकि अगली ही गली में था। इसीलिए दूसरे ही लम्हे दोनो माँ बेटा अपने घर के गेट तक पहुँच गये।

रेखा अपने बेटे के लंड से अपने हाथ के यूँ अचानक छू जाने से इतनी शर्मिंदा हुई। कि उस में अपने बेटे से आँख मिलाने की हिम्मत ना रही। और ज्यों ही मनीष ने घर के बाहर मोटर साइकल को रोका। तो रेखा जल्दी से सीट से उतर कर घर के गेट की तरफ चल पड़ी।

रात के 10:30 बज रहे थे रेखा डाइनिंग टेबल पर खाना लगा कर पत्नी धर्म निभाते हुए अपने पति संजय (पुलिस इंस्पेक्टर) का इंतजार कर रही थी,,, मनीष खाना खाकर अपने रुम में जा चुका था।

रेखा को संजय का इंतजार करते करते 11:00 बज गए उसे नींद की झपकी भी आ रही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी,,,,,, रेखा उठकर दरवाजा खोली तो संजय ही था,,,,, रेखा दरवाजे को बंद करते हुए बोली,,,,,,,

आप हाथ मुंह धो लीजिए मैं खाना लगा चुकी हूं जल्दी से खाना खा लीजीए,,,,,,

लेकिन संजय रेखा को ताना मारते हुए आखिर बरी (आजाद) करवा ही दिया अपने बलात्कारी बेटे को जिसने पूरे खानदान की इज्जत मिट्टी में मिला दी।

खाना लग गया है, रेखा संजय की बात काटते हुए बोली।

देखो मैं थक चुका हूं और वैसे भी मैं बाहर से खाना खाकर ही आया हूं मुझे भूख नहीं है तुम खा लो। रेखा की आंख भर आई अपने पति के द्वारा इस तरह के व्यवहार उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी,,, और वह अपने पति को कमरे की तरफ जाते हुए देखती रह गई,,,,,, उसकी भूख मर चुकी थी,,,, वह भी बिना कुछ खाए थोड़ी देर डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठी रहीं और बैठे-बैठे अपनी किस्मत को कोसते रहि। वह मन ही मन हे भगवान मैं तंग आ गई हूं अपनी जिंदगी से जल्द से जल्द इसका कोई उपाय दिखाओ भगवान् या तो मुझे अपने पास बुला लो,,,,,,

थोड़ी देर बाद अपने आप को शांत करके वह अपने कमरे की तरफ जाने लगी,,,, इतना कुछ होने के बावजूद भी मन में ढ़ेर सारी आशाएं लेकर के वह अपने कमरे में दाखिल हुई,,,

रेखा कमरे का दरवाजा बंद करके धीरे धीरे चलते हुए आईने के सामने जाकर खड़ी हो गई,, कुछ पल के लिए अपने रुप को निहारने लगी, आईना ऐसी जगह पे लगा हुआ था कि जहां से बिस्तर पर बैठा हुआ इंसान आईने में नजर आता था और बिस्तर पर बैठ कर भी आईने में सब कुछ देख सकता था।

रेखा जानबूझकर अपनी कलाइयों में पहनी हुई रंग बिरंगी चूड़ियां खनका रही थी कि शायद चूड़ियों की खनखनाहट से संजय का ध्यान इधर हो,,, और सच में ऐसा हुआ अभी संजय का ध्यान माफियाओं की फाइल से हटकर एक पल के लिए आईने पर चला गया, संजय की नजर आईने पर देखते ही रेखा एक पल भी गंवाएं बिना वह धीरे-धीरे अपने साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट को खोलने लगी,, फिर अपने दोनों हाथों को पीछे ले जाकर अपनी ब्रा की हुक को खोलने लगी,,,, और अगले ही पल उसकी ब्रा भी उसकी दोनों चुचियों को आजाद करते हुए टेबल पर पड़ी थी।

संजय को रिझाने के लिए वह अपने दोनों हाथों से एक बार अपनी बड़ी बड़ी छातियों को हथेली में भरकर हल्के से दबाई और फिर छोड़ दी। संस्कारी रेखा की यह हरकत बड़ी ही कामुक थी और इसका असर संजय पर भी हुआ वह एकटक अपनी नजरें आईने पर गड़ाए हुए था।

रेखा का दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था। उत्तेजना और उन्माद के मारे उसका गला सूख रहा था। अगले ही पल रेखा ने धीरे-धीरे पैंटी को घुटनों से नीचे सरका दी,,,, और पैरों से बाहर निकाल दी। अब रेखा के बदन पर कपड़े का एक रेशा भी नहीं था वह पूरी तरह से निर्वस्त्र हो चुकी थी। पूरी तरह से नंगी,, ट्यूबलाइट की दुधीया प्रकाश में उसका गोरा बदन और भी ज्यादा निखरकर सामने आ रहा था जिसकी चकाचौंध में संजय की आंखें चौंधिया जा रही थी।

आज उसे लगने लगा था कि दबी हुई प्यास आज जरूर बुझेगी,,,,, इसलिए वह मदमस्त अंगड़ाई लेते हुए बालों के जुड़े को खोल दी जिससे उसके रेशमी काले घने बाल खुलकर हवा में लहराने लगे। खुले बालों की वजह से उसकी खूबसूरती में चार चांद लग रहे थे।

आईने में अपने रूप और नंगे बदन की खूबसूरती को देखकर खुद से रेखा शर्मा गयी और ज्यादा देर तक इस अवस्था में खड़ी ना रह सकी,,,, और वह बिस्तर पर जाकर करवट लेकर के लेट गई। रेखा की पीठ संजय की तरफ थी। और वह इंतजार कर रही थी कि संजय कब ऊसके बदन को स्पर्श करता है। और इसी उम्मीद की वजह से उसके बदन में अजीब प्रकार की गुदगुदी हो रही थी,,,,।

रेखा की नंगी जांघ को देख कर संजय से रहा नहीं गया और उसकी जांघों को फैला कर बिना प्यार कीए ही अपने खड़े लंड को सीधे रेखा की बुर पर रखकर अंदर ही डाल दिया। संजय रेखा की प्यासी और दहकती हुई गरम बुर की दीवारों की रगड़ को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पाया और एक बार फिर से अपना हथियार नीचे रख दिया।

रेखा के अरमान की स्याही जो की बुर से बह रही थी वह सुख चुकी थी,,, इसलिए संजय की इस हरकत की वजह से इस बार भी बिना कुछ बोले आंखों से आंसू बहाते हुए और अपने किस्मत को कोसते हुए सो गयी।

अगली सुबह रेखा जल्दी से बिस्तर पर से उठ कर सीधे बाथरूम में चली गई वहां जाकर के ठंडे पानी से स्नान करके अपने मन को कुछ हद तक हल्का कर ली ।
नहाने के तुरंत बाद संजय को रसोई घर से बाहर आता हुआ दिखा तो रेखा उससे बोली।

इस तरह से आप अपने हाथ से लेकर के खाते हैं अच्छा नहीं लगता आखिर मेरे होते हुए आप अपने हाथ से काम करें।

हा,,,,,, हां,,,,,,, ठीक है मुझे जल्दी जाना था तो,,,,,, इसलिए अपने हाथ से ले लिया।

ऐसा आपको क्या जरूरी काम है,रेखा बोली।

देखो क्या जरूरी है क्या नहीं जरूरी है मैं तुम्हें बताना उचित नहीं समझता और दो दिन के लिए मै बाहर जा रहा हूँ, संजय शर्ट की बटन को बंद करते हुए बोला, रेखा उदास होकर के रसोईघर में चली गई और संजय कोतवाली के लिए निकल गया।


"खूबसूरत औरत सारे मर्दों को इग्नोर करके
अपने पसंदीदा मर्द से इग्नोर होती है"


इधर जब मनीष ने रेखा को रसोई में देखा तो उसे उसकी उपस्थिती में बेचैनी सी महसूस होने लगी. उसे थोड़ा अपराध बोध भी महसूस हो रहा था, कि उसका बेटा उसकी अंतरंग दूबिधा को जान गया था और उसे इस बात की कोई जानकारी नही थी. वो शायद इसे सही ढंग से बता तो नही सकता मगर उसके अंदर कुछ अहसास जनम लेने लग थे.


मनीश को अपनी मम्मी के ख़याल बैचैन कर रहे थे और वो ठीक से कह नही सकता कि उसे किस बात से ज़यादा परेशानी हो रही थी, इस बात से कि मम्मी को मात्र एक मम्मी की तरह देखने की वजाय एक सुंदर, कामनीय नारी के रूप में देखने का बदलाव उसके लिए अप्रत्याशित था . ऐसा लगता था जैसे एक परदा उठ गया था और जहाँ पहले एक धुन्ध था वहाँ अब वो एक औरत की तस्वीर सॉफ सॉफ देख सकता था.


मनीष को लग रहा था उसकी माँ की कुछ इच्छाएँ मन की गहराइयों में कहीं दबी हुई थीं जो कोर्ट मे यह सुनने के बाद उभर कर सामने आ गयी थी कि "ऐसे लंड का स्पर्श हर औरत के नसीब में नही होता". मम्मी जैसे बदल कर कोई और हो गयी थी । जहाँ पहले उसे उसके मम्मो और उसकी जाँघो के जोड़ पर देखने से अपराधबोध, झिजक महसूस होती थी, अब आज गुजर रहे दिन के साथ वो उन्हे आसानी से बिना किसी झिजक के देखने लगा था बल्कि जो भी वो देखता उसकी अपने मन में खूब जम कर उसकी तारीफ भी करता. उसे नही मालूम उसकी मम्मी ने इस बदलाव पर कोई ध्यान दिया था या नही।


जेठ का महिना रात के 11 का वक्त था मनीष टीवी देख रहा था, उसे मम्मी के कदमो की आहट सुनाई दी. उस समय उसे सोते होना चाहिए था मगर वो जाग रही थी. वो ड्रॉयिंग रूम में उसके पास आई. उसके हाथ में जूस का ग्लास था.


"मैं भी तुम्हारे साथ टीवी देखूँगी?" वो छोटे सोफे पर बैठ गयी जो बड़े सोफे से नब्बे डिग्री के कोने पर था जिस पे मनीष बैठा हुआ था. रेखा नाइटी पहनी हुई थी जिसका मतलब था वो सोई थी मगर फिर उठ गई थी.


"नींद नही आ रही" मनीष ने पूछा. उसके दिमाग़ में उसकी मम्मी की अदालत वाली बातचीत गूँज उठी जिसमे उसने कहा था कि
"ऐसे लंड का स्पर्श हर औरत के नसीब में नही होता". मनीष सोचने लगा क्या इस समय भी उसकी मम्मी की वो ही हालत है, कि शायद वो काम की आग यानी कामाग्नी में जल रही है और उसे नींद नही आ रही है, इसीलिए वो टीवी देखने आई है. इस बात का एहसास होने पर कि मैं अती कामोत्तेजित नारी के साथ हूँ उसका बदन सिहर उठा.


रेखा वहाँ बैठकर आराम से जूस पीने लगी , उसे देखकर लगता था जैसे उसे कोई जल्दबाज़ी नही थी, जूस ख़तम करके वापस अपने बेडरूम में जाने की. जब उसका ध्यान टीवी की ओर था तो मनीष चोरी चोरी उसके बदन का मुआइना कर रहा था. उसके मोटे और ठोस मम्मों की ओर मनीष का ध्यान पहले ही जा चुका था मगर इस बार उसने गौर किया उसकी मम्मी की टाँगे भी बेहद खूबसूरत थी. सोफे पे बैठने से उसकी नाइटी थोड़ी उपर उठ गयी थी और उसके घुटनो से थोड़ा उपर तक उसकी जाँघो को ढांप रही थी.


शायद रात बहुत गुज़र चुकी थी, या टीवी पर आधी रात को विद्या बालन के दिलकश जलवे देखने का असर था, मगर मनीष को माँ की जांघे बहुत प्यारी लग रहीं थी. बल्कि सही लफ़्ज़ों में बहुत सेक्सी लग रही थी. सेक्सी, यही वो लफ़्ज था जो उसके दिमाग़ में गूंजा था जब वो दोनो टीवी देख रहे थे या टीवी देखने का नाटक कर रहे थे.


असलियत में उसकी मम्मी का यह ख़याल उसके दिमाग़ में घूम रहा था कि वो इस समय शायद वो बहुत कामोत्तेजित है.


रेखा काफ़ी समय वहाँ बैठी रही, अंत में बोलते हुए उठ खड़ी हुई "ओफफ्फ़! रात बहुत गुज़र गयी है. मैं अब सोने जा रही हूँ"


मनीष कुछ नही बोला. क्योंकि उसके दिमाग़ में रेखा के कामुक अंगो की धुंधली सी तस्वीरें उभर रही थीं. वो एक हल्का सा अच्छी महक वाला पर्फ्यूम डाले हुए थी जिसने मनीष की दिशा, दशा और भी खराब कर दी. वो उत्तेजित होने लगा था.


वो उसे मूड कर रूम की ओर जाते देखता रहा. उसका सिल्की, सॉफ्ट नाइट्गाउन उसके बदन के हर कटाव हर मोड़ हर गोलाई का अनुसरण कर रहा था. वो उसकी गान्ड के उभार और ढलान से चिपका हुआ उसके चुतड़ों के बीच की खाई में हल्का सा धंसा हुआ था.


"मम्मी कितनी सुंदर है, कितनी सेक्सी है" वो खुद से दोहराता जा रहा था. मगर उसकी सुंदरता किस काम की! वो आकर्षक और कामनीय नारी हर रात मेरे पापा के पास उनके बेड पर होती थी मगर फिर भी उनके अंदर वो इच्छा नही होती थी कि उस कामोत्तेजित नारी से कुछ करें. उसे पापा के इस रवैये पर वाकाई में बहुत हैरत हो रही थी.


मनीष को इस बात पर भी ताज्जुब हो रहा था कि मम्मी अचानक से मुझे इतनी सुंदर और आकर्षक क्यों लगने लगी थी. वैसे ये इतना भी अचानक से नही था मगर यकायक मम्मी मेरे लिए इतनी खूबसूरत, इतनी कामनीय हो गयी थी इस बात का कुछ मतलब तो निकलता था. क्यों मुझे वो इतनी आकर्षक और सेक्सी लगने लगी थी? मुझे एहसास था कि इस सबकी शुरुआत मुझे मम्मी की अपूर्ण जिस्मानी ख्वाहिशों की जानकारी होने के बाद हुई थी, लेकिन फिर भी वो मेरी मम्मी थी और मैं उसका बेटा और एक बेटा होने के नाते मेरे लिए उन बातों का ज़्यादा मतलब नही होना चाहिए था. मम्मी की हसरतें किसी और के लिए थीं, मेरे लिए नही, मेरे लिए बिल्कुल भी नही.


मगर फिर वो मम्मी की ख्वाहिश क्यों कर रहा था? क्या वाकाई वो मेरी खावहिश बन गयी थी? उसके पास किसी सवाल का जवाब नही था. यह बात अलग है कि वो कभी कभी बहुत उत्तेजित हो जाती थी और यह बात कि उसकी जिस्मानी हसरतें पूरी नही होती थीं,

इसी बात ने मम्मी के प्रति मनीष के अंदर कुछ एहसास जगा दिए थे. यह बात कि वो चुदवाने के लिए तरसती है, मगर उसका पिता उसे चोदता नही है, इस बात से मनीष के दिमाग़ में यह विचार आने लगा कि शायद इसमे मैं उसकी कुछ मदद कर सकता था. मगर हमारा रिश्ता रास्ते में एक बहुत बड़ी बाधा थी, इसलिए वास्तव में उसके साथ कुछ कर पाने की संभावना उसके लिए ना के बराबार ही थी. मगर दिमाग़ के किसी कोने में यह विचार ज़रूर जनम ले चुका था कि कोशिस करने में कोई हर्ज नही है. उस संभावना ने एक मर्द होने के नाते मम्मी के लिए उसके जज़्बातों को और भी मज़बूत कर दिया था चाहे वो संभावना ना के बराबर थी.

वहाँ कुछ देर खड़ा रहने के पश्चात मनीष अपने कमरे में चला गया. बत्ती बंद की और चादर लेकर बेड पर सोने की कोशिश में करवटें बदलने लगा. उसकी आँखो मैं नींद का कोई नामोनिशान नही था मगर वो जागना भी नही चाहता था.

उस वक़्त रात काफ़ी गुज़र चुकी होगी जब मनीष ने दरवाजे पर हल्की सी दस्तक सुनी. पहले पहल तो उसने ध्यान नही दिया, मगर तीसरी बार दस्तक होने पर उसे जबाब देना पड़ा. उसे नही मालूम था उसे कमरे में अंधेरा ही रहने देना चाहिए या बेड के साथ लगे साइड लंप को जला देना चाहिए. वो उठ गया और बोला, "हां मम्मी, आ जाओ"

रेखा ने धीरे से दरवाजा खोला और धीरे से फुसफसाई " अभी तक जाग रहे हो?"

"हां मम्मी, मैं जाग रहा हूँ. अंदर आ जाओ" उसे लगा उन हालातों में लाइट्स बंद रखना मुनासिब नही था. इसीलिए उसने बेड की साइड स्टॅंड की लाइट जला दी.

रेखा एक गाउन पहने थी जो उसे सर से पाँव तक ढके हुए था--- शायद मनीष के लिए उसमे एक गेहन इशारा, एक ज़ोरदार संदेश छिपा हुया था.

रेखा ने कंप्यूटर वाली कुर्सी ली और उस पर थोड़े वक़्त के लिए बैठ गयी. उसकी नज़रें उसके पाँवो पर जमी हुई थी, वो उन अल्फाज़ों को ढूँढने का प्रयास कर रही थी जिनसे वो अपनी बात की शुरूआर् कर सकती. मनीष चुपचाप उसे देखे जा रहा था, इस विचार से ख़ौफज़दा कि वो मुझे क्या बताने आई है..?

वो खामोशी आसेहनीय थी.

अंततः, बहुत लंबे समय बाद, मनीष ने खांस कर अपना गला सॉफ किया और बोला : "मम्मी क्या तुम मुझसे नाराज़ हो?"

रेखा असल में उसके सवाल से थोड़ा हैरत में पड़ गयी थी मगर जवाब देने से पहले वो सोचने के लिए एक पल रुकी.

आख़िरकार वो बोली : "नाराज़? नही मैं तुमसे बिल्कुल भी नाराज़ नही हूँ" इसके साथ ही उसने यह भी जोड़ दिया "भला मैं तुमसे नाराज़ क्यों होउँगी ?"

"मुझे लगा, मुझे लगा शायद .........." मनीष ने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया. वो मम्मी की परेशानी की वजह समझ गया था. उनके मन मैं ज़रूर कुछ और भी था और वो जानना चाहता था कि वो क्या था.

"शायद क्या .....?" रेखा ने उसे उकसाया.

वो दूबिधा में था. उसे अच्छी तरह से मालूम था वो किस बारे में बात कर रही है मगर वो मम्मी के मुख से सुनना चाहता था कि उसका इशारा किस ओर है.

खामोशी के वो कुछ पल कुछ घंटो के बराबर थे, रेखा ने अपना चेहरा उपर उठाया और मनीष की ओर देखा; “क्या यह संभव है कि तुम वाकाई में नही जानते मैं किस बारे में बात कर रही हूँ?!” उसकी आँखे में बहुत गंभीरता थी. बल्कि उसकी आँखो मैं एक अंजना डर भी था कि वो उस बात को बहुत बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रही है,

जबकि मनीष इस बात से अंजान था दूसरे लफ़्ज़ों में कहिए तो, वो उस मुद्दे को तूल दे रही थी जिसे छेड़ने की उसे कोई आवश्यकता नही थी. उसे अपनी सांसो पर काबू रखने में दिक्कत हो रही थी.

मनीष उस सवाल का जवाब नही देना चाहता था. मगर अब जब मम्मी ने सवाल पूछा था तो उसे जवाब देना ही था. “मैं जानता हूँ तुम किस बारे में बात कर रही हो.” उसने बिना कुछ और जोड़े बात को वहीं तक सीमित रखा.

रेखा चुपचाप बैठी थी, बॅस सोचती जा रही थी. उसके माथे की गहरी शिकन बता रही थी कि वो कितनी गहराई से सोच रही थी. वो किसी विचार को जाँच रही थी मगर उसे कह नही पा रही थी. वो उसे कहने के सही लफ़्ज़ों को ढूँढने की कोशिश कर रही थी. आख़िरकार, उसने एक गहरी साँस ली ताकि अपने दिल की धड़कनो को काबू कर सके और चेहरे पर अपार गंभीरता लिए पूछा: “तो बताओ मैं किस बारे में बात कर रही थी?”


उसने सीधे सीधे मनीष को मौका दिया था अब वक़्त आ गया था कि जो भी चल रहा था उस पर खुल कर बात की जाए क्योंकि उसने बहुत सॉफ सॉफ पूछा था


मनीष को कुछ समय लगा एक उपयुक्त ज्वाब सोचने के लिए, और जब अपना जवाब सोच लिया तो उसकी आँखो में आँखे डाल कर देखा और कहा: “बात पूरी तरह से सॉफ है कि हम दोनो मैं से कोई भी पहल नही करना चाहता.”

रेखा की प्रतिक्रिया स्पष्ट और मनीष की उम्मीद के मुताबिक ही थी: “क्या मतलब तुम्हारा? किस बात के लिए पहल?”

मनीष बेहिचक सॉफ सॉफ लफ़्ज़ों में बयान कर सकता था मगर माँ बेटे के बीच जो चल रहा था उसके साथ एक ऐसा गहरा कलंक जुड़ा हुआ था, वो इतना शरमशार कर देने वाला था कि उस पल भी जब सब कुछ खुले में आ चुका था वो दोनों उसे स्वीकार करने से कतरा रहे थे. इतना ही नही कि माँ बेटे मे से कोई भी पहला कदम नही उठाना चाहता था बल्कि माँ बेटे मे से कोई भी यह भी स्वीकार नही करना चाहता था कि किस बात के लिए पहल करने की ज़रूरत थी.

कमरे मे छाई गंभीरता की प्रबलता अविश्वसनीय थी. माँ बेटे अपनी उखड़ी सांसो पर काबू पाने के लिए अपने मुख से साँस ले रहे थे. माँ बेटे दोनों की दिल की धड़कने भी बेकाबू हो रही थी दोनों ही जवाब के लिए उपयुक्त लफ़्ज़ों का चुनाब कर रहे थे. माँ बेटे दोनो हर बात से पूरी तरह अवगत थे, कि हममें से किसी एक को मर्यादा की उस लक्षमण रेखा को पार करना था, मगर यह करना कैसे था, यह एक समस्या थी.

उसके सवाल का जवाब देने की वजाय मनीष ने अपना एक विचार रखा: “तुम जानती हो मम्मी जब हम दोनो इस बारे में बात नही करते थे तो सब कुछ कितना आसान था, कोई भी परेशानी नही थी”


रेखा ने राहत की लंबी सांस ली और उसके चेहरे पर मुस्कराहट छा गयी. अपना बदन ढीला छोड़ते हुए उसने ज्वाब दिया : “हूँ, तुम्हारी इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ.

एक बात तो पक्की थी कि माँ बेटे के बीच बरफ की वो दीवार पिघल चुकी थी. उनके बीच जो कुछ चल रहा था उस पर अप्रत्याशिस रूप से माँ बेटे दोनो सहमत थे और दोनो जानते थे कि हम अपरिचित और वर्जित क्षेत्र में दाखिल हो चुके हैं.

माँ बेटे वहाँ चुपचाप बैठे थे, मनीष की नज़र उस की मम्मी पर जमी हुई थी और उसकी मम्मी की नज़र फर्श पर जमी हुई थी. माँ बेटे अपने विचारों और भावनाओ में ध्यांमग्न बीच बीच में गहरी साँसे ले रहे थे ताकि खुद को शांत कर सके. दोनों को नही मालूम था अब हमे क्या करना चाहिए.

आख़िरकार कुछ समय पश्चात, जो कि अनंतकाल लग रहा था रेखा धीरे से फुसफसाई: “क्या यह संभव है”

वो इतने धीरे से फुसफसाई थी कि मनीष उसके लफ़्ज़ों को ठीक से सुन भी नही पाया था. वो कुछ नही बोला. वो उस सवाल का जबाब नही देना चाहता था.


फिर से एक चुप्पी छा गयी जब वो बेटे के जबाव का इंतेज़ार कर रही थी. जब बेटे ने कोई जबाव नही दिया तो उसने नज़र उठाकर देखा और इस बार अधीरता से पूछा: “ बेटा क्या हमारे बीच यह संभव है”

रेखा ने लगभग सब कुछ सॉफ सॉफ कह दिया था और अपनी भावनाओं और हसरतों को खुले रूप से जाहिर कर दिया था.

अब मनीष की तरफ से संयत वार्ताव उसके साथ अन्याय होता. उसने मम्मी की आँखो में झाँका और अपनी नज़र बनाए रखी. अपने लफ़्ज़ों में जितनी हसरत भर सकता था, भर कर कहा: “तुम्हे कैसे बताऊ मम्मी, मेरा तो रोम रोम इसके संभव होने के लिए मनोकामना करता है

माँ बेटे दोनो फिर से चुप हो गये थे. उनकी घोसणा और स्वीकारोक्ति की भयावहता माँ बेटे दोनो को ज़हरीले नाग की तरह डस रही थी. दोनों यकायक बहुत गंभीर हो गये थे. सब कुछ खुल कर सामने आ चुका था और माँ बेटे एक दूसरे से क्या चाहते थे इसका संकेत सॉफ सॉफ था मगर फिर भी चुप चाप बैठे थे, दोनो नही जानते थे आगे क्या करना चाहिए.

खामोशी इतनी गहरी थी कि आख़िरकार रेखा ने ही माँ बेटे की दूबिधा को लफ़्ज़ों में बयान कर दिया; “अब?.......अब क्या?” वो बोली.

हूँ, मैं भी यही सोचे जा रहा था: अब क्या? माँ बेटे नामुमकिन के मुमकिन होने के इच्छुक थे और अब जब वो नामुमकिन मुमकिन बन गया था, माँ बेटे यकीन नही कर पा रहे थे कि यह वास्तविक है, सच है. माँ बेटे समझ नही पा रहे थे कि हम अपने भाग्य का फ़ायदा कैसे उठाएँ, क्योंकि दोनों के पास आगे बढ़ने के लिए कोई निर्धारित योजना नही थी.


अंत में मनीष ने पहला कदम उठाने का फ़ैसला किया. एक गहरी साँस लेकर, अपनी चादर हटाई और द्रड निस्चय के साथ बेड की उस तरफ को बढ़ा जिसके नज़दीक मम्मी की कुर्सी थी. वो संभवत बेटे का ही इंतेज़ार कर रही थी, वो बेड के किनारे पर चला गया और अपने हाथ उसकी ओर बढ़ा दिए. यह बेटे का उसकी मम्मी का “अब क्या?” का जवाब था.

रेखा पहले तो हिचकिचाई, मनीष के कदम का जबाव देने के लिए वो अपनी हिम्मत जुटा रही थी. धीरे धीरे उसने अपने हाथ आगे बढ़ाए और उसके हाथों में दे दिए.

वो माँ बेटे का पहला वास्तविक स्पर्श था।
माँ बेटे का स्पर्श रोमांचक था ऐसा कहना कम ना होगा, ऐसे लग रहा था जैसे एक के जिस्म से विधुत की तरंगे निकल कर दूसरे के जिस्म में समा रही थी. यह स्पर्श रोमांचकता से उत्तेजना से बढ़कर था, यह एक स्पर्श मात्र नही था, उससे कहीं अधिक था.

माँ बेटे ने उंगलियों के संपर्क मात्र से एक दूसरे से अपने दिल की हज़ारों बातें को साझा किया था. माँ बेटे एक दूसरे के सामने खड़े थे; हाथों में हाथ थामे एक दूसरे की गहरी सांसो को सुन रहे थे.

दोनों के होंठ आपस में परस्पर जुड़ गये, माँ बेटे के अंदर कामुकता का जुनून लावे की तरह फूट पड़ने को बेकरार हो उठा.


माँ बेटे एक दूसरे को थामे चूम रहे थे. कभी नर्मी से, कभी मजबूती से, कभी आवेश से, कभी जोश से. माँ बेटे ने इस पल का अपनी कल्पनाओं में इतनी बार अभ्यास किया था कि जब यह वास्तव में हुआ तो यह एकदम स्वाभिवीक था. उनके होंठ एक दूसरे के होंठो को चूस रहे थे और जिभें आपस में लड़ रही थी. बल्कि दोनों ने एक दूसरे की जिव्हा को भी बारी बारी से अपने मुख से मन भर कर चूसा उसे अपनी जिव्हा से सहलाया.

जब माँ बेटे ने अपनी भावुकता, अपनी व्याग्रता, अपने जोश को पूर्णतया एक दूसरे को जता दिया तो खुद को आलिगन से अलग किया और एक दूसरे को देखने लगे. अब मनीष रेखा को एक नारी की तरह देख सकता था ना कि एक मम्मी की तरह. फिर वो धीरे से रेखा के कान में फुसफसाया " मम्मी! मैं तुम्हे नंगी देखना चाहता हूँ"

एक बार फिर से रेखा जवाब देने में हिचकिचा रही थी. मनीष ने उसके गाउन की डोरियाँ पकड़ी और उन्हे धीरे से खींचा. गाउन की डोरियाँ खुल रही थी. एक बार डोरियाँ पूरी खुल गयी तो उसने उन्हे वैसे ही लटकते रहने दिया. वो अपनी बाहें लटकाए अपने बेटे के सामने बड़े ही कामोत्तेजित ढंग से खड़ी थी. उसका गाउन सामने से हल्का सा खुल गया था. अगले पल उसने अपना गाउन अपने कंधो से सरका दिया और उसे फर्श पर गिरने दिया. वो अपने सगे बेटे के सामने खड़ी थी, पूरी नग्न, कितनी मोहक, कितनी चित्ताकर्षक और अविश्वशनीय तौर से मादक लग एही थी.


तब मनीष ने जो देखा........उसे देखकर विस्मित हो उठा. उसे उम्मीद थी मम्मी ने गाउन के अंदर पूरे कपड़े पहने होंगे, मगर
वो उस गाउन के अंदर पूर्णतया नग्न थी. उसने वास्तव में अपने बेटे के कमरे में आने के लिए कपड़े उतारे थे, इस बात के उलट के उसे कपड़े पहनने चाहिए थे. यह विचार अपने आप में बड़ा ही कामुक था कि वो बेटे के कमरे में पूरी तरह तैयार होकर एक ही संभावना के तहत आई थी, और यह ठीक वैसे ही हो भी रहा था जैसी उसने ज़रूर उम्मीद की होगी- या योजना बनाई होगी- कि यह हो.


सबसे पहले मनीष की नज़र उसके सपाट पेट पर गयी. पेट के नीचे उसकी जाँघो के जोड़ पे बिल्कुल छोटे छोटे से बालों का एक त्रिकोना आकर दिखाई दिया उसके बाद उसकी जांघे और उसकी टाँगे पूरी तरह से उसकी नज़र के सामने थी.

मनीष जानता था मम्मी के मम्मे बहुत मोटे हैं, मगर जब वो अपना रूप विखेरते पूरी शानो शौकत में गर्व से तन कर खड़े थे, तो वो उनकी सुंदरता देख आश्चर्यचकित हो उठा. वो भव्य थे, मादकता से लबरेज. वो एकदम से बैसब्रा हो उठा और तेज़ी से हाथ बढ़ा कर उन्हे पकड़ लिया.


उसके मम्मे दबाते ही रेखा ने एक दबी सी सिसकी भरी जिसने मनीष के कानो में शहद घोल दिया. उसे अपने बेटे के स्पर्श में आनंद मिल रहा था और बेटे को मम्मी के मममे स्पर्श करने में आनंद मिल रहा था. जल्द ही उसके हाथ पूरे मम्मों पर फिरने लगे.

बेटे की इस हरकत से रेखा अपना तवज्जो खो बैठी और बिस्तर पर कमर के बल गिरती चली गईl


उसके यूँ बिस्तर पर गिरते ही मनीष उसके जिस्म के उपर आया और साथ ही साथ उस का एक हाथ मम्मी की नंगी टाँगो के दरमियाँ आया और जिस्म के निचले हिस्से को अपने काबू में कर लिया।


अपने पति से दूरी की सुलगती हुई आग को उसके बेटे के हाथ और जिस्म ने भड़का तो दिया ही था। अब उस आग को शोले की शकल देने में अगर कोई कसर रह गई थी। तो वह रेखा के जिस्म के निचले हिस्से को मसल्ने वाले हाथ ने पूरी कर दी थी।


रेखा मम्मी होने के साथ साथ आख़िर थी तो एक जवान प्यासी औरत। जब उसका बेटा भूखो की तरह चूमे, चूसे जा रहा था, उसका जिस्म इतनी उत्कंठा से उसका छेद ढूँढ रहा था, उसने अपना हाथ नीचे करके अपने बेटे का लंड अपनी उंगलियों में पकड़ लिया और उसे अपनी चूत का रास्ता दिखाया.


और जब रात की गहराई में उसके अपने घर में उसके अपने ही सगे बेटे ने उसके जिस्म के नाज़ुक हिस्सो के तार छेड़ दिए. तो फिर उसके ना चाहने के बावजूद उसका जिस्म उसके हाथ से निकलता चला गया।


मां बेटे को होश उस वक़्त आया। जब मां बेटे अपनी हवस की दास्तान एक दूसरे के जिस्म के अंदर ही रख कर के पसीने से शरा बोर एक दूसरे की बाहों के पहलू में पड़े गहरी साँसे ले रहे थे।


होश आने पर जब मां बेटे को अहसास हुआ कि जवानी के जज़्बात में बह कर हम दोनों कितनी दूर निकल चुके हैं। तो मां बेटे के लिए एक दूसरे से आँख मिलाना भी मुस्किल हो गया।


रेखा अपने इस गुनाह से इतनी शर्मिंदा हुई कि वह खामोशी से अपने कपड़े पहन कर कमरे से बाहर निकल गयी।


मगर जब सुबह माँ बेटे दोनों का फिर आमना सामना हुआ। तो माँ बेटे दोनों ही एक दूसरे को रोक ना पाए और जज़्बात की रूह में बहक कर फिर दुबारा रात वाली ग़लती दुहरा बैठे। उस रात के एक वाकीया ने दोनों माँ बेटे की ज़िन्दगी बदल कर रख दी।


अब तक रेखा ने इतना टाइम अपने पति के साथ नहीं गुज़ारा जितना अपने ही बेटे के साथ गुज़ार चुकी थी।


रेखा के हालातो पर एक शेर याद आ गया कि; " में ख़्याल हूँ किसी और का, मुझे सोचता कोई और है"।


मगर उसके बेटे मनीष के शब्दों में तो वह शायद कुछ यूँ हो गा कि; " तू चूत है किसी और की, तुझे चोदता कोई और है" ।
हाहा हाहा हाहा


माँ बेटे ज़्यादातर अपनी मुलाकात अकेले में मोका मिलने पर अपने घर ही करते थे।


दो महीने बाद रेखा की नन्द और उस के बच्चे घर आए हुए थे। जिस वज़ह से माँ बेटे को आपस में कुछ करने का चान्स नहीं मिल रहा था।


हवस और वासना की आग ने माँ बेटे को अंधा कर दिया, ना चाहते हुए भी अपने बेटे के बहुत मनाने पर मनहूस होटेल शेल्टर में पहली बार जाना पड़ा।


उधर संजय थाने के कमरे में कि इतने में एक सिपाही ने आ कर उसे ख़बर दी। एक क्रिमिनल शेल्टर होटेल में इस वक़्त एक रंडी के साथ रंग रेलियों में मस्त है।


यह ख़बर सुनते ही संजय ने चन्द कोन्सेतबलेस को साथ लिया और होटेल पर रेड करने चल निकला।

क़ानून के मुताबिक़ तो संजय को रेड से पहले लिखित आदेश लेना लाज़िमी था।

मगर हमारे मुल्क में आम लोग क़ानून की पेरवाह नहीं करते।जब कि संजय तो ख़ुद क़ानून था और "क़ानून अँधा होता है"

इसलिए संजय ने डाइरेक्ट ख़ुद ही जा कर होटेल में छापा मारा और अपने मुजरिम को गिरफ्तार कर लिया।

संजय के साथ आए हुए पोलीस वालों ने अपना मुलज़िम पकड़ने के बाद होटेल के बाक़ी कमरों में भी घुसना शुरू कर दिया। ता कि वह कुछ और लोगों को भी शराब और शबाब के साथ पकड़ कर अपने लिए भी कुछ माल पानी बना सके.

संजय ने भी होटेल के कमरों की तलाशी लेने का सोचा और इसलिए वह एक कमरे के दरवाज़े पर जा पहुँचा। और दरवाज़े पर ज़ोर से लात मारी तो कमरे का कमज़ोर लॉक टूट गया और दरवाज़ा खुलता चला गया।

ज्यों ही संजय कमरे का दरवाज़ा तोड़ते हुए कमरे के अंदर दाखिल हुआ। तो उसके साथ साथ कमरे के अंदर मौजूद संभोग करते हुए औरत और लड़के के भी होश उड़ गए...... क्योकि वो दोनों कोई और नही बल्कि संजय की पत्नी रेखा और बेटा मनीष था।

अपने बेटे के लंड पर बैठी हुई रेखा एक दम से चीख मार कर उस के उपर से उतरी और बिस्तर पर लेट कर बिस्तर की चादर को अपने ऊपर लपेट लिया।

संजय को देखते ही रेखा की आँखों में हैरत और डर की एक लहर-सी दौड़ गई.

अपने जिस्म को चादर में छुपाने के बाद वह अभी तक संजय को टकटकी बाँधे देखे जा रही थी। मनीष ने भी अपने तने हुए लंड पर एक दम हाथ रख कर उसे अपने हाथो से छुपाने की कोशिश करते हुए डर से काँप रहा था।

संजय अपने सामने बैठे नग्न पत्नी, बेटे के चेहरों का जायज़ा ले रहा था और उस के दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया था, उसकी आँखों में गुस्सा था...... उसने अपनी कमर में लटकी पिस्टल निकालकर उन दोनों पर तानते हुए बोला बस एक सवाल का जबाब दो...ऐसा क्यो किया...??

रेखा-- " क्योकि.... तुम्हारे जैसा मर्द औरत से अदाये तवायफ् वाली और वफ़ाएँ कुत्तों वाली चाहता है......!!

तीन गोलियों की चलने की आवाज आती है...
धांय धांय धांय...

समाप्त......
 

IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
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कमबख्त इश्क
Kallegiya-Ishk.jpg



कालेज के दिन भी क्या थे. वैसे तो कालेज में न जाने कितने दोस्त थे, लेकिन सलीम और रजत के बिना न तो कभी मेरा कालेज जाना हुआ और न ही कभी कैंटीन में कुछ अकेले खाना.

सलीम दूसरे शहर का रहने वाला था. एक छोटे से किराए के कमरे में उस का सबकुछ था जैसे कि रसोईर् का सामान, बिस्तर और चारों तरफ लगीं हीरोइनों की ढेर सारी तसवीरें. हुआ यह कि एक दिन अचानक अपनी पूरी गृहस्थी साइकिल पर लादे मेरे घर आ गया. मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘यार हुआ क्या, मकान मालिक से कहासुनी हो गई. मैं ने कमरा खाली कर दिया. चलो, कोई नया कमरा ढूंढ़ो चल कर,’’ उस ने जवाब दिया तो मैं ने कहा, ‘‘इतनी सुबह किस का दरवाजा खटखटाएं. तुम पहले चाय पियो, फिर चलते हैं.’’

सुबह 10 बजे मैं और सलीम नया कमरा ढूंढ़ने निकले. ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ा, पड़ोसी इरफान चाचा का कमरा खाली था. इरफान चाचा पहले तैयार नहीं हुए तो मैं ने अपने ट्यूशन वाले इफ्तियार सर से कहा, ‘‘सर, मेरे दोस्त को कमरा चाहिए.’’ उन की इरफान चाचा से जान पहचान थी. उन के कहने पर सलीम को इरफान चाचा का कमरा मिल गया.’’

कुछ दिनों बाद सलीम ने बताया ‘‘यार, इरफान चाचा बड़े भले आदमी है, कभीकभी उन की बेटियां खाना दे जाती हैं.’’ मैं ने उस से कहा, ‘‘यार चक्कर में मत पड़ जाना.’’

‘‘यार मुझे कुछ लेनादेना नहीं, पढ़ाई पूरी हो जाए अपने शहर वापस चला जाऊंगा,’’ सलीम बोला.

महीना भर बीता होगा सलीम को इरफान चाचा के यहां रहते हुए, एक सुबह वह फिर पूरी गृहस्थी साइकिल पर लादे मेरे घर आया. मैं ने पूछा, ‘‘अब क्या हुआ, तुम तो फिर बेघर हो गए?’’

उस ने कहा, ‘‘रुको, पहले मैं साइकिल खड़ी कर दूं, फिर बताता हूं. पिछले हफ्ते इरफान चाचा और उन की बेगम खुसरफुसुर कर रहे थे. मैं ने दरवाजे से सट कर उन की बातचीत सुनी. वे कह रहे थे, ‘लड़का तो अच्छा है अपनी जैनब के लिए सही रहेगा. इसे घर में ही खाना खिला दिया करो. जल्द ही निकाह कर देंगे.‘’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘यार इस में कमरा छोड़ने की कौन सी बात है. तुम्हारी बिना मरजी के कोई भला शादी कैसे कर देगा.’’

सलीम ने कागज का एक टुकड़ा निकाल कर पढ़ा जो कि उर्दू में था, ’आप तो बड़े जहीन हैं. मुझे तो पता ही नहीं चला कि मैं कब आप को दिल दे बैठी. अब्बू कह रहे थे, लड़का बहुत भला है, खयाल रखा करो. कल आप का इंतजार करती रही और आप हैं कि आप को अपने दोस्तों से फुरसत नहीं. वैसे जो आप का बड़े बालों वाला दोस्त है वह तो इसी महल्ले में रहता है. अब्बू कह रहे थे. अपनी शादी में उसे भी बुलाना. आज आप के लिए मेवे वाली खीर बनाऊंगी, मुझे पता है. आप को बहुत पसंद हैं.

‘तुम्हारी जैनब.’

खत पढ़ने के बाद सलीम ने कहा, ‘‘तुम्हें पता है, ये खत किस ने लिखा है.’’ ‘‘जैनब ने लिखा होगा,’’ मैं ने कहा.

‘‘नहीं, यह जैनब ने नहीं लिखा. मुझे पता है कि जैनब को उर्दू लिखनी नहीं आती. मैं ने यह भी पता कर लिया है कि इसे किस ने लिखा है.’’

‘‘अगर तुम्हें पता है तो बताओ किस ने लिखा है,’’ मैं ने अचरज से पूछा.

सलीम ने कहा, ‘‘इसे जैनब के अब्बू ने खुद लिखा है.’’

‘‘वो तुम्हें कैसे पता?’’

सलीम ने बताया, ‘‘इरफान चाचा के 4 बेटियां हैं और उन्होंने एक को भी नहीं पढ़ाया. मैं उन्हें अब हिंदी वर्णमाला सिखा रहा हूं. उर्दू सिर्फ उन की बेटियों को रटी हुई है थोड़ीबहुत लेकिन वे लिख नहीं पातीं.’’

मैं ने कहा, ‘‘तो अब क्या करें?’’

सलीम बोला,’’ कुछ नहीं, पुराने मकान मालिक के पास जा रहा हूं, माफी मांग लूंगा वहीं रहूंगा.’’

पहला साल था हमारा ग्रेजुएशन का. रजत शहर का ही रहने वाला था. एक दिन जैसे ही मैं इकोनौमिक्स की क्लास में घुसा, मेरे होश उड़ गए. ब्लैकबोर्ड पर लिखा था ‘आई लव यू अंजुला.’ नीचे मेरा नाम लिखा था, ‘तुम्हारा राहुल’ और अंजुला नाम की जो लड़की क्लासमेट थी, उस की मेज पर गुलाब का फूल रखा था और साथ में एक लैटर, जिस में लिखा था, ‘अंजुला, आज मैं पूरी क्लास के सामने यह स्वीकार करता हूं कि मैं तुम्हे बेइंतहा प्यार करता हूं.’

ये सब देख कर और लैटर पढ़ कर मेरा हाल बेहाल था. क्लास में रजत मुझे मिला नहीं. वह ये सब कर के निकल चुका था. क्लास में सब से पहले अंजुला ही आई और ये सब देख कर फूटफूट कर रोने लगी. मैं तो मेजों के नीचे से निकल कर कालेज के पिछले दरवाजे से भाग कर घर आ गया. मैं 7 दिनों तक कालेज गया ही नहीं.

ग्रेजुएशन का दूसरा साल था. लंबी छुट्टी के बाद कालेज खुला. सलीम अपने शहर से वापस आ गया. सलीम और मैं हमेशा क्लास की आगे की पंक्ति में बैठते थे. ऐडमिशन चल रहे थे, एक दिन सलमा नाम की लड़की क्लास में आई. उस ने क्लास में पढ़ा रहे सर से कहा, ‘‘सर, मेरा नाम रजिस्टर में लिख लीजिए, मेरे पापा जिला जज हैं. उन का यहां ट्रांसफर हुआ है. सर ने लिख लिया. वह हमारे साथ ही क्लास की अगली पंक्ति में बैठती थी.

सलीम की निगाहें अकसर सलमा की तरफ ही रहती थीं, एक दिन सलीम ने मुझ से कहा, ‘‘तुम ने देखा, सलमा मेरी तरफ देखती रहती है.’’

मैं ने कहा, ‘‘अबे ओए तेरी अक्ल घास चरने गई. कहां राजा भोज कहां गंगू तेली. वह तेरी तरफ नहीं, मुझे देखती है.’’

सलीम ने तुरंत बात काटते हुए कहा, ‘‘नहीं, वह तुम्हारी तरफ बिलकुल नहीं देखती, वह मेरी तरफ ही देखती है और तुम्हें एक बात और बता दूं, अमीर लड़कियों को गरीब लड़कों से ही प्यार होता है. हिंदी फिल्मों में भी तो यही दिखाया जाता है.’’

मैं ने कहा,’’चलो, छोड़ो यार पिछले साल हम लोगों के नंबर कम आए थे, इस बार मेहनत कर लो, पता चले इन बातों के चक्कर में ग्रेजुएशन 3 की जगह 4 साल का हो जाए.’’

एक दिन सलीम का भ्रम टूट ही गया जब उस ने मुझे बताया, ‘‘यार, वह न मेरी तरफ देखती है और न तुम्हारी तरफ. आज मैं कौफी शौप गया तो मैं ने देखा जो अपने क्लास का सुहेल है, उस के साथ सलमा हाथ में हाथ डाले एक ही कप में कौफी पी रही थी.’’

मुझे हंसी आ गई. मैं ने पूछा, ’’फिर तुम्हारी गरीब लड़का और अमीर लड़की वाली फिल्म का क्या होगा?’’

सलीम ने झेंपते हुए कहा, ‘‘मेरी फिल्म फ्लौप हो गई.’’

लेकिन उस ने भी मुझ से पूछ लिया, ‘‘तुम भी तो कह रहे थे, वह तुम्हारी तरफ देखती है. तुम भी तो रेल सी देखते रह गए?’’

मैं ने कहा ‘‘छोड़ो यार, हमारी दोस्ती सब से बढ़ कर है.’’

कुछ दिनों से रजत की अजीब किस्म के शरारती लड़कों से दोस्ती हो गई थी. जब भी कोई सर क्लास में पढ़ाने आते, रजत अपने शरारती दोस्तों के साथ क्लास के बाहर कसरत करने लगता.

एक दिन सर ने चिल्ला कर पूछा, ‘‘यह हो क्या रहा है, तुम पढ़ते समय ये हरकतें क्यों करते हो?’’

रजत अकड़ कर बोला, ’’सर, इसे हरकत मत बोलिए. जैसे आप किसी विषय को क्लास में पढ़ाते हो वैसे ही मैं इन्हें कसरत कर के शरीर हृष्टपुष्ट रखने की ट्रेनिंग देता हूं.’’

रजत की हरकतों से सर गुस्से में पैर पटकते क्लास छोड़ कर चले गए, ‘‘बेकार है पढ़ाना, यह पढ़ाने ही नहीं देगा.’’

मैं ने रजत से कहा, ‘‘यार, कभीकभी तो क्लास लगती है, उस पर भी तुम ड्रामा कर देते हो.’’

रजत बोला, ‘‘तुम्हें ज्यादा पढ़ाई सूझ रही है तो घर पर पढ़ा करो. हमें तो पहले शरीर हृष्टपुष्ट करना है, फिर पढ़ाई.’’

एक दिन तो हद हो गई, सर इकोनौमिक्स पढ़ा रहे थे. रजत और उस के दोस्त शेख की वेशभूषा में क्लास में घुसे और सर से बोले, ’’ए मिस्टर, हमें आप से बात करनी है. हमारे अरब में सौ तेल के कुएं हैं, और हम आप को अपना बिजनैस पार्टनर बनाना चाहते हैं.’’

सर आगबबूला हो गए. उन्होंने प्रिंसिपल से तुरंत शिकायत की. प्रिंसिपल ने पुलिस बुला दी. सभी शेख पिछला दरवाजा फांद कर नौ दो ग्यारह हो गए.

कालेज की लाइब्रेरी में नीचे का फ्लोर लड़कों के बैठने के लिए था और ऊपर का फ्लोर लड़कियों के लिए. लाइब्रेरियन लड़कों से तो बड़े खुर्राट तरीके से बात करता लेकिन जब कोई लड़की बात करने आती तो उस की बातें ही खत्म नहीं होतीं. यह दूसरी बात थी कि लड़कियां ही उस से कम बात किया करती थीं.

एक दिन जब मैं, रजत और सलीम साथ में लाइब्रेरी में घुसे, सलीम ने लाइब्रेरियन से कोई मैगजीन मांगी. उस ने मैगजीन दी ही नहीं और वही मैगजीन जब एक लड़की ने मांगी तो उसे दे दी. सलीम को बड़ा गुस्सा आया. उस ने लाइब्रेरियन से गुस्से में कहा, ‘‘यह बताओ, हमारे में क्या कांटे लगे हैं. तुम्हें सिर्फ लड़कियां ही दिखाई देती हैं.’’

मोनू सिंह और उस की बहन भी हमारे बैचमेट थे. दोस्ती तो नहीं थी, हां, कभीकभार बातचीत हो जाती थी. एक दिन मैं, सलीम, रजत लाइब्रेरी में बैठे पढ़ रहे थे. अचानक ताबड़तोड़ गोलियों की आवाज आनें लगी, बाद में पता चला कि मोनू सिंह की बहन का किसी ने दुपट्टा खींच दिया था. गांव से उस के साथ आए लोगों ने गोलियां चलाई थीं. खैर, मोनू सिंह और उन की बहन सैकंड ईयर में ही घर वापस चले गए.

पता ही नहीं चले कालेज के 2 साल कब फुर्र से उड़ गए. तीसरे साल में सलीम ने मुझे बताया, ‘‘यार, मुझे एक लड़की से प्यार हो गया है.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारी एक मुहब्बत पहले भी फ्लौप हो चुकी है. चुपचाप पढ़ाई करो, वैसे भी यह थर्ड ईयर है.’’ लेकिन सलीम के ऊपर जैसे मुहब्बत का भूत सवार था. मैं ने पूछा, ‘‘बताओ कौन है वह लड़की?’’

‘‘अरे वही गुलनाज जो पीछे बैठती है.’’ गुलनाज कभीकभार सलीम से बात कर लेती थी.

एक दिन मैं कालेज नहीं गया. सलीम शाम को घर आया,’’यार, तुम तो कालेज गए नहीं लेकिन तुम्हारे लिए किसी ने लैटर दिया है. लो, पढ़ लो.’’

लैटर में यों लिखा था-

‘डियर राहुल, मुझे पता है जीसीआर (गर्ल कौमन रूम) के सामने खड़े हो कर तुम सिर्फ मुझे ही देखते हो. बड़ी अच्छी बात है. तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो, लेकिन क्या करूं, मुझे शर्म लगती है तुम से बात करने में. इसीलिए आज तक हम कोई बात नहीं कर पाए. वैसे, मिलना या बातें करने से भी ऊंचा है हमारा प्यार. कल तुम गांधीजी की मूर्ति के पास जो बैंच है, उस के पास अपने हिस्ट्री के नोट्स रख देना, मैं उन्हें उठा लूंगी.

‘ढेर सारा प्यार. तुम्हारी ममता.’

लैटर में ढेर सारी गुलाब की पंखुडि़यां रखी थी. लैटर पढ़ने के बाद सलीम बोला, ‘‘बधाई हो. कालेज जाते कई दिन हो गए, ममता ने कभी उड़ती नजर से भी मेरी तरफ नहीं देखा.’’

मैं ने सलीम से पूछा, ‘‘यार, लैटर लिखने के बाद उस ने एक बार भी मेरी तरफ नहीं देखा.’’ सलीम ने बड़ी गंभीरता से कहा, ’’तुम ने पढ़ा नहीं. लैटर में उस ने खुद लिखा है उसे शर्म लगती है.

कालेज के दिन पता ही नहीं चले, कब वसंत के दिनों में पेड़ों पर आए बौर की तरह चले भी गए. आखिर ग्रेजुएशन के थर्ड ईयर की ऐग्जाम डेट्स आ गई. जब सभी पेपर हो गए, एक दिन शाम को सलीम घर पर मिलने आया. उस ने कहा, ‘‘आज तुम्हें एक राज वाली बात बतानी है.’’

‘‘बताओ.’’

सलीम ने लंबी सांस भरते हुए कहा, ‘‘ममता वाला लैटर मैं ने खुद लिखा था.’’

मैं ने अचरज से पूछा, ‘‘क्यों?’’ तो उस ने कहा, ‘‘मुझे डर था कि कहीं सलमा की तरह हमारीतुम्हारी एकतरफा मुहब्बत की तरह गुलनाज भी कौमन मुहब्बत न बन जाए.’’

मैं ने कहा, ‘‘ओह, तो क्या गुलनाज तुम से प्यार करती है?’’ वह बोला, ‘‘नहीं यार, गुलनाज की सगाई लतीफ से हो गई है.’’ और हमेशा की तरह, गृहस्थी साइकिल पर लादे सलीम ने उसी रात महल्ला नहीं, बल्कि शहर ही छोड़ दिया.
 

Amresh Puri

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Apna Desh Apna Hota Hai

ajay samet charon bhai bahan apni maa ki ankhon ke taare the. sabse bada ajay tha, usse 1 saal chhoti puja, puja se 2 saal chhoti radha, radha se 2 saal chhota rohit. ajay ke pita ji ka dehant ho chuka tha. 4 acre ki zameen thi,
padhai likhai, ghar ka kharcha, zindagi kisi na kisi tarah se chal rahi thi. sukh zayada nahi the, par dukh koi bhi nahi tha.

maa har samay bhagwan ka shukar ada karti rahti thi. bhagwan jitna de raha tha, utne me khush thi. zayada ki hawas nahi thi. bas youn hi umar bhar khushiyan milti rahen. bachhe khush aur salamat rahen. isse badhkar kuch nahi chahiye tha.

par ajay ki soch maa ke jaisi nahi thi.

ajay samet sabhi bhai bahan samjhdar the, intellegent the. maa kam padhi likhi thi, par samjhdar bohut thi. apne bachhu ko santosh ka paath padhati rahti thi. par ajay nashukra ladka tha. uske khawab unche the. baki sab bache apni maa ki baaton par dhayan dete. par ajay ek kan se sunkar dusre kaan se nikal deta. han apni maa se kabhi aisa vaisa nahi bola tha.

ajay ke vichar jaise bhi thi. apni maa se bohut mohabbat thi ajay ko. bohut samman deta tha apni maa ko..

jaise jaise samay beetta gaya, uski inner demand badhti chali gayi. achha khana, achha pahnna, achhe juto ki chah badhne lagi.

4 acre se ghar chal raha tha. sabhi ki padhai likhai ka kharcha pura kiya ja raha tha. ek admi tha gaon ka, jo kheti bari me sath dia karta tha. kuch paise uske hise me aate to baki sare ajay ki maa ke hath me. utne paison se jitna ho sakta tha, maa ghar bhi chala rahi thi aur sabki zaruraten bhi puri kar rahi thi.

maa bohut samjhati ajay ko, par ajay jaise kuch samjhna hi nahi chahta tha. ajay apne gaon ke, dusre gaon ke, shahar ke ladkon ko dekh dil hi dil me apni gurbat par kudhta rahta. ajay ne pakka irada kar liya tha, jitna padh saka, wo padhega, fir ek din kaise bhi karke wo india se nikal jaayega. ajay ne samjh liya tha, india me sivaye gurbat aur depression ke kuch nahi.

ajay college me dakhil hua to maaldar ladke ladkiyon ko nayi aur latest bikes aur gadiyon me dekh wo aur bhi complex ka shikar hone gaya.

rahi sahi kasar hollywood movies ne puri kar di. junun ki hadh tak shok tha ajay ko hollywood movies dekhne ka. jo ajay apne doston ke sath unke gharon me dekha karta tha, cinema me dekha karta tha. movies me foriegn countires ke haseen dil fareb manazar, chamchamati gadiyan, paisa udate, mauj masti karte ladke ladkiyan,befikri aur laparwahi ki ek aisi dunya jisme ek naya jahan dekhne ko milta tha.

ye dekh ajay bhi fikr me rahne laga, ki wo bhi london, paris, new york ya aise hi kisi zindagi se bharpur desh me pohnch jaye. wahan ja kar khub aish kare, apni maa aur bhai bahno ko bhi karwaye.

ajay jab bhi ghar hota, aisi hi baaten karta. pahle pahl to sab ajay ki aisi baaten sunkar hasa karte the. ajay ki baaten jinti ajib hua karti thi. utni hi mazedar lazzatdar bhi hoti thi. sab sunkar khub lutf uthaya karte. par dhire dhire jab sabne mahsus kiya ki ajay ke sar par abroad ka bhoot sawar ho gaya ha to chhote rohit ko chhod baki sab chinta me rahne lage.

maa ajay ko bade pyar se samjhaya karti thi.

maa:- ajay beta apna desh apna hota. abhi tum padh rahe ho, jab padh likh jaoge to achhi naukri mil jayegi tumhe. naukri mil gai to apne sare sapne pure kar lena.

ajay khuli ankhon se khud ko london, paris, newyork me dekhta hua khawab ke se andaz me bola

ajay:- dekhna maa, main ek din america jaunga, wahan itna paisa kamaunga, har mehange se mehanga khana, kapda, juta gadi main ek minat me kharid lunga. main kabhi wapis nahi aaunga, balki aap sab ko bhi wahin bula lunga. wahin hum sab milkar aish ki zindagi jiyenge.

maa ajay ko afoss se dekhne lagi. ajay par uski baton ka jaise koi asar hi nahi ho raha tha.

maa:- ajay beta, tu mere dil ka tukda ha, aisi baaten mat kiya kar, jisse mere dil ki dhadkan ruk jaaye. tu padh likh ja, mujhe bhagwan par pura vishwas ha, tujhe achhi naukri zarur milegi. fir tere sath sath hum sab ke dil dard door ho jayenge.

ajay has pada.. ajay ki hasi me tanz tha.

ajay:- naukri! naukri ka to maa aap aise kah rahi ha, jaise mujhe kisi multinational company me job mil jayegi.

maa thak chuki thi ajay ko samjha sambha kar. par ajay ke mann ko, vicharon ko badal nahi saki. maa ke paas bass ab ek hi kam tha, wo din raat bhagwan se pararthana karti, uske bete ke sath kuch galat na ho. kuch aisa ho, uske vichar badal jayen, uske dil me desh prem jaa jaaye. usay desh ki mitti ki khushbu ka ahsas ho jaye. apne desh ki mitti ki keemat malum pad jaaye. jo wo bahar ja kar karne ki soch raha ha, apne desh me rah kar sab hasil karne ke kaabil ban jaye.



ajay ne jaise taise karke Bsc ka exams diye aur fir bahar jaane ki tayariyon me lag gaya. apne doston se salah mashwara karke, ek do se karz lekar, jise jald lauta bhi dega, lekar usne visa ke liye apply kar dia..

maa jab ajay ko samjha kar thak haar bethi to ajay ki maante hue uske shok ko pura karne me lag gayi. bahar jaana itna bhi asan nahi hota. dheron paisa lagta ha. maa ne 4 acre me se 2 acre zameen bech di...

jab biradari walun ko khabar mili to ek hungama mach gaya. sab ajay ke pagalpan se pareshan to the hi, par ye nahi jante the, nobat zameen bechne tak aa pohnchegi. ajay se koi kuch bolta, puchta, maa ne sab ko khamosh kara diya..

ajay ki khushi ka koi thikana nahi raha tha. usay uske khawabon ki manzil mil rahi thi. amreica to wo nahi ja saka tha. london uske nasib me likh dia gaya.

ajay sabko rota bilatka chhod london ja pohncha. london jaane se pahle ajay maa se milkar bola tha.

ajay:- maa ajay ka har shok aap par kurban maa. ajay kuch bhi ban jaaye. par aap sab ko kabhi nahi bhulega. din raat mahnat karke itne paise kamayega, ek shaandar zindagi jiyega. aur us shandar zindagi me aap sab mere sath honge.

maa ajay ke bholepan par kuch nahi bol saki. janti thi, lalach aur hawas ka parinam kabhi bhi achha nahi hota. par wo aisa kuch bhi ajay ko nahi bol saki. bass dil masoos kar rah gai. dil hi dil me bhagwan se pray kar rahi thi, uske pagal bete ki raksha kare. uske mann, vicharon ko badal de.

ajay london pohncha to maare khushi ke uske paun zameen par nahi tik rahe the.
ab sabse pahle masla rehayesh ka tha, london me ajay ka koi bhi jaanne wala nahi tha, na uska aur na hi uske kisi dost ka..

4 din tak ajay ko footpath par sona pada. jitne paise wo laya tha, ajay kisi hotel me ghus kar wo sare paise waste nahi karna chahta tha. in 4 dino me ajay ne kai jaga naukri ke liye bhi bhaag daud ki par yahan uski kismat khoti nikli. usay kahin naukri nahi mili.

4 din ajay ke liye bohhut peedan bhare the. par london ki surur se bhari fizaon ka nasha abhi uske ang ang me daud raha tha. isliye jitni bhi peedan usay hui, wo haste haste sahn karta chala gaya.

agle 4 dino me ajay ke pairon me chhale pad gaye. jahan bhi jata, ajay se uski study baare jaan kar ajay ko hari jhandi dikha deta. ab sahi maano me ajay ko study ki importance ka pata chala. wo Bsc karke samjh raha tha, itne padhe likhe ko london, paris kya kisi bhi desh me achhi naukri mil jayegi. par wo galat nikla..

adhik 1 week aur mara mara firta raha, par kahin koi sasta thikana ya naukri nahi mili. paison ko dar dar kar kharch kar raha tha, janta tha, ab ghar walun se bhi nahi le sakta. piche wo kuch chhod kar aaya bhi kya tha, 4 acre ki zameen thi, usse me do ko bechne pad gaye the uske shok aur lalach ke chalte.

ghar wale kaise guzara kar rahe honge, aise vichar bhi ajay me mann me aane lage. sochkar hi ajay larzne lagta. pahle 4 acre ki zameen thi to kuch hisse me aa jata tha, ab do bech diye the toh income bhi adhi ho gai thi. soch soch kar ajay ka dil kudhne laga, upar se goro ka disrespectful behavior, ajay ka dil khun khun hone laga. par kuch kar nahi sakta tha, majburan hi sahi, par ajay sab sahn karne par majbur tha. goro ke desh me tha, apne desh me hota to ab tak kaiyon ki dhulai kar chuka hota.


do mahine bohut hi peedan bhare guzre. jo socha tha, wo to nahi hua. jo nahi soha tha, wo ho raha tha. paisa khatam ho gaya tha, pet ke narg ko bujhane ke liye ghatiya se ghatiya kaam karne laga. aise kaam, jinke baare me umar bhar kabhi socha bhi nahi tha. chhota mota koi kam mil jata, wo karta, kabhi jute palish to kabhi kisi hotel ke washroom ki safai. kabhi kisi shopping mall ke poche bhi lagane pad jaate. gadiyon ke sheeshe clean karke pet bharne ke liye paison ka jugad karta.

apne hi desh se illegal tarike se aaye kuch ladkon se ajay ki mulaqat ho gai. aise me ajay ko teen mahine baad sahi, par ek ganda badbudar kamra rahne ko mil gaya.

din bhar begano ke is desh me dar dar bhatak kar 4 paise kamata, sham ko kamre par aata, pet bharta aur hasrat o yaas ki tasveer bana chhat ko takte hue apne bare me apne parivar ke bare me sochne lagta. kabhi kabhi ajay ki ankhon me ansu bhi nikal aate. ajay ko apni adhuri chhoti study ka dukh to tha hi, apne parivar ki na maanne par, unka dil dukhane par, unse door ho jane par ajay ki ankhon ka namkeen pani jab bahna shuru hota to fir rukne ka naam hi na leta. ghar ki daal roti is begane desh ke har khane se hazaron guna badhkar swadisht thi. ab ajay ko ahsas ho pa raha tha. apni maa ke hathu, apni bahno aur apne bhai ke hathu se khaye niwale jab bhi ajay ko yaad aate, ajay ansu bahata jhatke se uth bethta, kamre me koi nahi hota to bilak bilak kar rota. unhe yaad karta, apni bhul par shama mangta. dil dukhane, unhe rulane par shama mangta. jo waade kabhi nahi the unke saamne, wo unki nazron se hazaron mile door rahte hue karne lagta.

dhang se kaam ka na milna, dhand se khane ko na milna, chain se sone ko na milna, upar se pachhtawe ki aag, ajay dino me hi bimar pad gaya. koi uska haal puchhne wala nahi tha.. uska apna ghar tha, na apna desh, na paas maa thi, na bhai ya bahne, jo uska sar god me liye uske khayal rakhti, usse pyar karti, usay hosla deti, bimari se ladne me madad deti. kamre me rah rahe ladke khud illegal tarike se aaye the. wo bhi ajay ke jaise maare maare fir kar paisa kama rahe the. aise me wo ajay ke liye kya kar sakte the. bade bade khawab sanjoye sab london aaye the. aise me sabke sapne kaanch ki deewar sabat hue to sab ek dusre se begane hote chale gaye.

ajay bimar kya hua, kisi ko jaise koi parwa hi nahi hui. usi bimari ki halat me ajay apna pet bharne ke liye, apne ilaj ke liye kaam karne par majbur tha. upar se jis kamre me wo rahta tha, uska karaya dena bhi uske liye ek badi pareshani thi.. kaise bhi karke ajay ne kamre ke karaye ke liye paise ikathe kiye. is beech wo apne ilaj par paise sahi se kharach nahi kar saka tha. kam khana aur fir bimari ajay 3 mahino me hi hadiyon ka dhancha ban gaya.

sakht halat ke chalte ghar fone bhi kai kai dino baad karta. halat ne kuch aisa nichoda ajay ko wo sochne par majbur ho gaya. apna desh apna hota ha. jahan rookha sookha khane me, saste kapde, jute pahnne, kam kamane par zillat nahi milti. zillat kya hoti ha, ajay in 3 mahino me bohut achhe se jaan chuka tha.


last ke 20 din se ajay itne paise bhi nahi kama paya tha, ki kha pi kar kuch paise bacha kar ghar call kar sake.. is bar kai jaga bathroom tak saaf karke ajay ne itne paise bacha liye ki ghar call kar sake.

jab ajay ghar apni maa se baat kar raha tha. to baat karte karte phoot phoot kar rone laga. maa ka dil dahl utha. bhai bahne bhi jan kar maa ke sath ajay ke dard me tadapte hue ansu bahane lage.

ajay phoot phoot kar rota hua.."maa mujhe ghar aana ha, maa mujhe apne desh lautna ha. maa kaise bhi karke mujhe wapis bula lo maa.. maa main yahan mar jaaunga maa.. mujhe bacha lo maa.. mujhe wapis bula lo maa"

ajay ka dil dahla dene wale shabd aur andaz jaan kar maa ka kaleja phatne ko aa gaya. wo roti, ansu bahati ajay ko dilasa dene lagi. puja, radha aur rohit bhi ajay ko dilasa dene lage.

maa ka dil khun ke ansu ro raha tha. apne bete ke aise halat jaan kar tadap raha tha. par maa khush bhi thi, bhagwan ne uski sun li thi. jo baat wo barson se apne bete ko samjha nahi pai thi. desh ki mitti ki keemat ka ahsas nahi kara payi thi. samay ne usay achhe se samjha dia tha. bahar ki zillat bhari zindagi ne uske bematlab ke sapno ko chakna choor kar dia tha..

pardes me lachar, bebas pade ajay ko samay ne ek hi thokar me samjha dia tha, ki apne apne hote han, apna desh apna hota ha.

ek maa ke liye uski kul property uske bache hua karte han. jab baat bachhu par aati ha to fir maa us hadh tak chali jati ha, jis hadh baare koi soch bhi nahi sakta.

maa ne ek acre zameen aur beech di. aur ajay ko wapis laane ki koshishon me lag gayi. ajay ka mamu aur bhanja bhaag daud karne lage.

dedh mahine ki adhik zillat,mentally torture, dard bardasht karne ke baad ajay ne apne desh ki dharti par kadam rakhe.. jaise hi ajay ne plane se nikal kar apni dharti maa ko chhua.. ajay rota hue niche jhuka aur dharti maa ko chum kar muthi bhar mitti apni ankhon ke saamne karta hua bola.

ajay:- der se hi kahi, par mujhe teri khushbu ki kadro keemat malum pad gai ha. mujhe shama kar de, jo main tujhe dhutkar kar tujhse door chala gaya tha. maine tera apman bhi kiya ha. par ab mai kasam khata hon, tujhse itna prem karunga, tere sare gile shikwe door ho jayenge... jaise mujhe tujhpar garv ha, aise hi ek din tu bhi mujhpar garv karegi, MERI DHARTI MAA..


ajay ko lene uski maa apne bhai aur bhanje ke sath aai thi. maa ne sabko sakhti se samjha dia tha, ajay se koi kuch nahi kahega.

par jab maa ne ajay ki halat dekhi, ajay adhe se bhi adha hokar lauta tha. maa tadap kar ajay ko gale se laga gai..

ajay bilak kar rota hua:- maa mujhe maaf karde.. main aapka bohut dil dukhaya ha. main aapka achha beta nahi hon maa. maa mujhe shama karde, bohut badi bhul hui mujhse maa.. maaf karde apne pagle bete ko maa..

maa:- nahi mujhe to khushi ha, tu khara sona bankar aaya ha. tujhe aisa bane dekhne ki chah to barson se mere dil me thi. der se hi sahi, par bhagwan ne meri sun li. to bata bahar se kya seekh kar aaya ha.


ajay maa ki ankhon me dekhta hua sar utha kar bola:- maa apna desh apna hota ha. mere desh ke jaisa koi desh is puri dunya me nahi.


maa ne apne bhai aur bhanje ko dekha... maa ki ankhen bol rahi thi. dekha maine 3 acre zameen kho kar bete ko pa liya. us bete ko, jispar hazaron acre kurban.






ajay ne kuch kasmen london me khaai thi, ek kasam plane se bahar aate hi dharti maa ko chumte hue khaai thi, ek waada aur maaa se kiya tha, fir ek kasam ajay ne apni ek acre bachi zameen ko dekh jar khaai.. 3 acre kho kar wo kai aur acre zameen banayega, aisi khasam khai ajay ne..


aane wale samay me ajay ne sabat kar dikhaya. jo kaha tha, sach kar dikhaya tha. jo kasmen khai thi, puri kar ke dikhai thi. ek mahine me hi desh ki azad fizaon ne ajay ko wapis se pahle jaisi sahat bakhsh di. ajay ne apni adhuri padhai firse shuru ki. tution padha kar ghar aur apni padhai ke sath sath apne bhai bahno ki padhai ka kharcha pura karne laga..

ajay din raat mann laga kar padhne laga. pahle hi genius tha, par sapno ki dunya me kho kar usay grahn lag chuka tha. agriculture me master's kiya ajay ne. jis university se ajay ne agriculture me master's kiya tha. usi uni me ajay ko as a prof job bhi mil gayi.

tab tak ajay ke bhai bahan bhi biradri me, college, uni me khub naam bana chuke the. puja ka medical me last year chal raha tha. radha apne bhai ke jaise agriculture me master kar rahi thi. rohit ka mann puja ke jaise doctor banne ka tha.

maa apne bachhu ko kamyab insan bante dekh khush thi. bhagwan par unka vishwas aur bhi adhik badh chuka tha. desh se prem aur bhi adhik badh chuka tha.

ajay ko job mili to jo khawab abroad me rah kar pure karna chahta tha, wo apne hi desh me pure hone lage. par ab ajay ek down to earth person ban chuka tha. uske khawab the to bass desh ke logo ko desh se prem ka paath padhana. sabhi ko ye batana ki




APNA DESH APNA HOTA HA....



desh ke liye jio, desh ke liye maro. jo bhi sapne pure karne han, desh me rah kar pure karo. kuch aise andaz me pure karo, desh vasiyon ke sapno ko apne sapno ke sath jod do.. tumhare sapno ke pure hote hi pure honge unke sapne.. ek sath kaiyon ko khushiyan milegi, ek sath kai dil khushi se jhum uthenge, kai parivar khushhaal ho jayenge.

yahi ha prem, apnu se bhi aur desh se bhi.. kyunki

APNA DESH APNA HOTA HA.. AUR DESH ME BASNE WALE BHI APNE HOTE HAN..
 

Sandeep singh nirwan

Jindgi na milegi dobara....
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Angel change Devils heart


Ek badi ship par ek kamre mai ek jaduyi choti chidiya leti huvi sab dekh rahi thi 100 saal ke baad uska akar ab insani choti ladki ke jaisa ho gaya tha sundar choti choti ankhe aur chahre par masumiyat aur hath mai ek khilone ki tarah chij thi jo bilkul kisi queen ke magical throne jaisa tha aur uske dono taraf golden wings bane huve the uski safety mai 100 warriors white clothes mai ship par mojud the..abhi wo bolna nahi sikhi thi ….. wo apni ankho se room mai bani drawings ko dekhti aur muskarane lagtii Tabhi bahar se jor jor se ladne ki awaaje ane lagi…..choti chidiya ladki ke pass khada yodha …..apni sword ko kaskar pakad leta h aur ladayi ke liye taiyar ho jata h…. bahar ek behad khubsurat ladka blue transparent sword liye khada tha jiske chahre pe muskaan aur sword se khoon tapak raha tha …….wo sabko bina mouka diye maare ja raha tha ….cheekho ki ati awaj soon choti chidiya ladki bahut dar rahi thi…..tabhi yodha ne choti chidiya ladki ke sir par hath fera aur muskara bola sab tikh h my queen ….. choti chidiya ladki apnni choti ankho se tukur tukur youdha ko dekhne lagti h…fir wo youdha apni sword pakad kar darwaja khol deta h.bahar ek pani ki shakti se bani blue whale choti chidiya ko apni aur aati dikhayi deti h choti chidiya ladki buri tarah dar kar simat jati h

Bahar youdha blue whale wale ladke se ladayi karne lagta h par kuch he Palo mai wo ek koune mai khunse lathpath hokar gir jata h. khubsoorat ladka sword lekar uske samne bina kisi expression ke khada tha uski nighaye band darwaje par he thi…niche gire youdha ne muu se khun thuka aur muskarate huve samne khade ladke ko dekha khoobsurat ladke ke chare ka rang bandalne lag gaye par wo jab tak wo samaj pata usai pahle he youdha ne apne ek hath ko ghumaya toh andar choti chidiya ki tokri puri band ho gayi aur ek tez jhatke se wo dur samundra mai jakar Giri andar usi waqt youdha ne dusre hath se pass mai pade barood mai aag laga di boooom ki awaj se puri ship fat gayi.



2 din baad



Samudra ke kinare Khoobsurat ladke ki ankhe khuli toh wo dekhta h ki wo choti chidiya ladki usai apni Power se heal kar rahi thi uski choti choti hatheli se white energy nikal rahi thi…aur phir wo behose hokar pass mai gir gayi.... khoobsurat ladke ne usai marne ke liye apni sword uthayi par uska Masum chehra dekh kar chaha kar bhi usai maar nahi paya usne dubara puri taakat lagayi par maar nahi paya uska dil aur choti chidiya ladki masoomiyat usai rok rok rahi thi…ab khoobsurat ladka dekhta h ki wo dono samundra ke bich ek tapu par fans gaye h



3 Din baad



Khoobsurat ladka paper ki ships banakar samundra mai fenk raha hota h aur Choti chidiya ladki pass mai he uchal kudh kar rahi hoti h.phir khubsurat ladka samundra ke kinare paidaal chal raha hota h aur uska picha choti chidiya ladki khusi khusi kar rahi hoti h wo behad khus thi wo asmaan ko dekhti kabhi samundra ko usai khoobsurat ladka bahut acha lagne laga..phir ladka lakdiya ikhatti karke lakdiyo ka ghar banane lagta h tab choti chidiya dur se uchalti kudhte ati h uske hath mai chote chote rangbirange phool the wo lakdiyo pe lagati jati h tabi khoobsurat ladka in lakdiyo ke niche se apna sir uncha karta h toh uske sir par bhi ek chota phool laga huva tha …..wo choti chidiya ko dekhta h jo khusi se choti frock mai uchal kudh kar phool laga rahi thi uske chare par tirchi muskaan aajati h kuch he dair mai barish hone lagti h khoobsurat ladka ghar banate huve bigne lagta h par wo rukta nahi h tabhi usai mahsus hota h ki us par barish ki bunde nahi gir rahi h wo upar dekhta h toh choti chidiya ladki apne chote hatho mai ek bada sa patta pakde huve chahre pe masumiyat bhari muskaan liye choti choti ankho se palke jhapkaye usai dekh rahi thi khubsurat ladka ke dil mai choti chidiya ke liye emotions ki lahar paida hone lagti h phir raat ko wo samundra se ek fish pakadta h aur usai bhoonta h choti chidiya ladki fire se dar kar dur se he dekhti h khubsoorat ladka ye dekhta h toh wo machli uski taraf fenk deta h ….choti chidiya ladki usai dekhti h aur phir wo machli ko dheere dheere maje se khane lagti h khubsurat ladka choti chidiya ladki ke chahre par ayi khushi mai kho sa jata h.raat mai khubsoorat ladka hajaro kale sayo se lad raha hota h par kale saye andhere ki tarah usai andhere ke daldal mai khinche le ja rahe the uski har kosis naakamyaab hoti ja rahi thi ant mai wo haar maanne he wala hota h tabhi usai ujale ki kiran dikhayi deti h aur ek hath uske hath ko tham kar usai andhere se ujale mai le ata h wo nind se jag jata h uske chahre se pasine ki bunde tapak rahi thi wo dekhta h ki uska hath choti chidiya ladki ne pakad rakha h uska kathore dil pighal uthta h uski kali jindgi mai Usai ek ujale ki kiran dikhayi deti h



Subhe ke waqt



Aasmaan mai dhunwa faila huva tha choti chidiya ladki samundra ki taraf khelte huve dekhti h tabhi uske tikh samne ek 7 fit ka admi ajata h jisai wo dar kar piche bhagne ki kosis karti h par wo black dress youdha pakad leta h aur ussai uska golden wings throne khilona chin leta h phir wo youdha us ladki ko niche fenk deta h par wo dekhta h choti ladki ne goldan wings throne wapas apni taraf power se khinch liya h.wo sword nikalkar usai marne lagta h choti chidiya ladki uski taraf ghabraahat se dekhti h ..tabhi usai youdha ke piche se ek blue colour ki pani se bani shark tezi se ati dikhayi deti h uski ankhe dar aur hairani se badi ho jati h aur usai ship wali ghatna yaad ati h par wo whale Achanak khubsoort ladke mai badal talwar ko rok leti h khubsoorat ladka ladki ki taraf dekhta h jiski ankho mai dar hota wo piche ko taraf bhagne lagti h black youdha ke sath ke hajaro warriors bhi ajate h jinke sath khoobsurat ladka ladne lagta h wo ek ek kar sabko marta ja raha tha par khud bhi buri tarah ghayal ho gaya tha wo dekhta h piche choti chidiya ladki ko wo black youdha marne wala h toh wo sabko chod akhri baar apni sword ko piche ki taraf fenkta h aur blue shark mai badal kar tezi se choti ladki ki taraf udta huva youdha aur uske bich ajata h choti chidiya ladki apni ankh kholti h toh dekhti h khoobsurat ladke ke pith se sword nikalkar pait se par ho gayi h khoobsurat ladka pahli baar jindgi mai choti chidiya ladki ki taraf pyar se muskarata h aur apni talwar nikal ek waar piche ko taraf karta h aur choti chidiya ladki ko apni banho mai uthakar blue shark bankar choti ship se dur samundra mai bhag jata h



Dur samundra mai choti ladki apni Power se ghav bharne ki kosis kar rahi thi par choti hone ki wajah se wo heal nahi kar pa rahi thi wo phir se dono hatho se golden light nikal kar heal karne ki kosis karti h par naakamyaab hoti h wo rone lagti h




5 saal baad ab choti ladki thodi badi ho gayi thi uska khilona udne wala goldan wing throne ban gaya tha khoobsurat ladka upar choti chidiya ladki ko muskurate huve dekhta h aur choti ladki udkar uski banho mai ajati h aur apna fruit khane lagti h aur papa papa papa bolne lagti h
 

Dirty banda

Member
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Chudai wala bhoot

aaj suraj sharma apne pariwar ke sath ek antic haveli dekhne ek gao me aaye h

Suraj Sharma is haveli ko ek hotel banana cahte h
sharma pariwar me is_waqt malti (wife of suraj) unki bahu neha beti dolly or sath me ek kutta tuffy hai

Neha ka pati usa me h

dolly - wao papa ye haveli to bahut badi h

Suraj - hahahaha tabhi to hamne ye khareedi h

Bhaw bhaw bhaw bhaw

dolly - ary kya hua tuffy

malti - bhuka hoga chal kuch khilade ise

sharma family is_haveli me aa to gyi bina ye jane ki unhone kya afat molli h

suraj sharma abhi haveli ke 3rd flor par the woh sabhi rooms khol khol kar unhe dekh rahe the

khaaatttt

suraj - kon h........

is_waqt malti room set karne me lagi hui thi ki


aaahhhhhh

unhe kisi ne piche se pakad liya

malti - kya karte ho ji... Ummmmm

malti kuch bolti usse pahle hi suraj ne uske hontho par apne hoth rakh diye

malti - kya karte ho ji aapko to ye sab passand nahi tha naa

jitni der me malti apni baat puri karti utni der me mr_sharma uski sadi ko uper karke penty utar chuke the

Malti - aaaaahhhhh marr gyi sukha hi daal diya itne salo baad kar rahe ho thoda to taras khao

aaahhh aaaahhhh kya karte ho ji

likin aaj jaise Mr Sharma kuch sunne ke mood me hi nahi the

suraj - ye lee sali aaaahhhh salo se pyaasa hu me aaaahhhh

likin malti ji ko to hosh hi nahi tha woh itne salo baad mile is dard or maze ko zada der sah naa saki or jhad gyi

par aaj jaise mr_sharma rukne ke mood me hi nahi the ye khel 40 min chala jisme malti ki halat kharaab ho gyi

malti - aaahhh choddi jiye ji mujhe mujhe dard ho raha h me aapke aage hath jodti hu

suraj - hatttt sali tu kisi kaam ki nahi h

ye bol kar mr_sharma bahar chale jate h or malti_ji itna thak chuki thi ki woh wahi so jati h

(Bhoot ki jubani)

me us budhi ghodi ko chhod kar bahar nikal gya sala itne salo se pyaasa tha par is_chutiye insaan ki biwi me dum nahi nikla

me abhi iska sharir chodne hi wala tha ki meri nazar kitchen me kaam karti ek jawan ghodi par padi

me chupke se uske piche gya or

ummmmmm

mene uska muh dabaya woh salwar suit me thi mene uski salwar kholi or uski chut sahlane laga
sali bahut chat_pata rahi thi par jaldi hi garam ho gyi

mene apna lund nikala ek to is_insaan ka bas 4 inch ka hi tha mene chut par lund rakha or

aaahhhhh me dhake par dhake lagane laga thodi hi der me uski chut bhi pani pani ho gyi

mene uska muh chod diya
pahle to woh us_insaan (suraj) ko dekh kar heran hui par fir maze se chudne lagi

neha - aaahhh chodo papa_ji aahhhh kya chodte ho aap uuuffff mere bhosde ko rone par majboor kar diya aapne

me - haaa sali tu sahi rand mili h mujhe ye le aaahhh

neha - haa papa mujhe pata hota aapke budhe lund me abhi bhi itna dum h to kabka aapke niche aa gyi hoti aaaahhh or tez mee aayi papajiiiiii

Neha ko chod kar me wapas 3rd flor par gya or suraj ke sharir me se bahar nikal gya

raat ho gyi thi mujhe nahi pata mere nikalne ke baad suraj ke sath kya hua

Par raat ko mera man fir_se chudai ka karne mene dubara suraj ke andar jake chudai karne ka socha

me abhi suraj ke pass jaa hi raha tha ki

aaahhhh baby kash tum yaha hote

mene dekha ki ye suraj ki beti thi jo phone par baat karti hui apna bhosda sahla rahi thi

bhaww bhaww

Me kuch karne ka soch hi raha tha ki is kutte ne mujhe dekh liya
mujhe kutte bilkul passand nahi

( Dolly ki jubani )

me apne boyfriend se baat kar rahi thi aaj mene jo kuch dekha uske baad meri chut ka rona ruk hi nahi raha tha

jab tuffy bhokne laga to mujhe disturb hone laga

me - no tuffy meri baat sunkar tuffy shant ho gya or me firse apni chut sahlane lagi

boyfriend - koi nahi bas man me sochle ki me teri chut chat raha hu

me - aaaaahhhhh or meri aankhain hairat me fail gyi kyuki sach me koii meri chut chat raha tha jab mene dekha to ye tuffy tha

bf - kya hua

me - ku ku kuch nahi bas feel le rahi thi

asal me to tuffy ke chut chatne me mujhe alag hi maza aane laga tha

me ohhhh my boy suck it suck it babbyyy

u are my cute boy

aaahh aahhhh

tuffy meri chut bahut acche se chat raha tha ayisa aaj tak kisi ne nahi chati thi

me ( man'me ) kya tuffy mujhe chod bhi sakta h

ye khayaal aate hi meri chut me sansanahat hone lagi or me turant hi kutiya wale pose me aa gyi

or herani wali baat ye thi ki tuffy turant hi meri baat samajh gya

mere kutiya bante hi tuffy bhi mere uper chad gya
Or uska lund meri chut me

me - ohhh my boy fuck fuck fuck me aaahhhh baby

bf - aahhhh bahanchod aaj to zada hi garam ho rahi h

me - haaa haaa haaa ayise hi chodo chodo or aaahhhh ohh my love

bf - ye me madarchod kitni garam chut h teri

hamara ye khel 10 min chala mera bf me or tuffy 3no ek sath hi jhade par mere bf ko nahi pata tha ki me itni der se jo sab bol rahi thi woh tuffy ke liye tha naa ki uske liye

(Bhoot ki jubani)

dusre din sharma pariwar chala gya likin is bich mene ek baar or uski uski garam bahu ko choda

or suraj ke dimag me ghus_kar mujhe pata chala ki woh yaha hotel kholne wala h

me - hahahahahah ab hogi chut hi chut
 
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यादें..

फेस्टिवल और शादी-ब्याह के सीजन होने की वजह से दिल्ली से यू पी और बिहार जाने वाली ट्रेन मे काफी रश था। पुरा फ्लैट फार्म खचाखच भरा हुआ था। रिजर्वेशन कन्फर्म नही होने के कारण मेरा दिल काफी घबराया हुआ था। मुझे समझ नही आ रहा था कि मै क्या करूं ! कैसे ट्रेन मे चढूं और कैसे कोई सीट पाऊं ! मेरे लड़के की तबीयत खराब न होती तो मै जाती ही नही। यहीं से वापस डैड और भाई के घर चली जाती।
ट्रेन फ्लैट फार्म पर लग चुकी थी लेकिन दरवाजे अभी तक खोले नही गए थे। जनरल कम्पार्टमेंट के सामने पैसेंजर की काफी लम्बी कतार लगी हुई थी। मै यह जानते हुए भी कतार मे खड़ी हो गई कि सीट तो किसी हाल मे भी नही मिलना है।
लाइन मे लगे कुछ देर ही हुए थे कि एक कुली मेरे पास आया और कहा - " सीट चाहिए "
मै आशा भरी नजरो से उसे देखते हुए कही - हां , प्लीज "
" आप वहां बैठो , आप को सीट मिल जाएगा " - एक खाली चेयर की तरह इशारे करते हुए वो बोला।

कुछ समय बाद वो आया और मुझे अपने साथ ले ट्रेन के जनरल कम्पार्टमेंट मे प्रवेश किया। यह देखकर चैन मिला कि उसने मेरे लिए खिड़की के बगल वाला सीट का जुगाड़ किया है। मैने उसे पांच सौ रुपए के नोट पकड़ाते हुए " थैंक्यू " कहा। वो नोट लेकर मेरे ठीक बगल वाले सीट पर एक रूमाल रखा और वहां से चलते बना।
मुझे लगा कि किसी और ने भी सीट के लिए उससे मदद मांगी होगी।
कुछ देर बाद जब ट्रेन चलने लगी तभी एक अच्छे कद काठ का इंसान भीड़ से रास्ते बनाते हुए वहां आया और मेरे बगल मे रखी रूमाल को हटाकर बैठ गया।
मैने सरसरी तौर पर उसपर निगाह फेरी। और उसे देखते ही मै हक्की बक्की हो गई। मेरे दिल की धड़कनो ने जैसे धड़कना ही बंद कर दिया। मै बिना पलक झपकाए आश्चर्यचकित नजरो से उसे देखे ही जा रही थी।

वो चुपचाप बैठा मोबाइल पर खोया हुआ था। शायद बीस साल बाद देखा था मैने उसे। कमबख्त आज भी वैसा ही दिखता था जितना बीस साल पहले लगता था। वही खुबसूरती , वही घुंघराले बाल , वही स्मार्टनेस , वही पर्सनलटी । और और वही अरमान।
लेकिन इस ने मुझे पहचाना क्यो नही ! क्या मेरी सूरत बदल गई है ! क्या मै मोटी हो गई हूं !
नही नही , हां थोड़े-बहुत चेंजेज आए है और थोड़ी भारी भी हो गई हूं , चेहरे मे थोड़ा-बहुत बदलाव भी आया है लेकिन फिर भी ऐसा नही कि मुझे पहचाना ही न जा सके !
वो यह कैसे भूल सकता है कि कभी हम एक दूसरे से बेइंतहा प्यार करते थे। कभी हमने कालेज के कैंटीन मे तो कभी बाग बगीचे मे तो कभी रेस्टोरेंट मे कितने हसीन दिन बिताए है ! कितने अच्छे अच्छे गाने गाए थे मेरे लिए।

मै खिड़की से बाहर देखती यादों मे खो गई ।

कालेज मे वर्षा अपनी कार पार्क कर रही होती है कि कोई आकर कार को ठोक देता है।
वर्षा गुस्से से बिफरते हुए - " कौन है बे , दिख नही रहा " - यह बोलते हुए पीछे पलटती है तो देखती है कि फिर से किसी ने उसकी गाड़ी ठोक दी।
वो चिल्लाते हुए कहती है - " अंधे हो क्या ? दिख नही रहा है ?"
लड़का - " अरे गलती से हो गया। "
वर्षा - " तुम लड़कों को बाइक चलाना नही आता तो फिर चलाते क्यों हो ?"
लड़का मोबाइल पर अपने किसी दोस्त से बातें कर रहा था - " रूक अरूण , मै बात करता हूं। देखिए मिस.."
वर्षा गुर्राते हुए - " क्या देखू मै ! हैं , नही , क्या देखूं , जरा बताना , एक तो मेरी गाड़ी का नुकसान कर दिया , ऊपर से बात ऐसे कर रहे है जैसे कुछ हुआ ही नही है "
लड़का - " देखो मिस , मै कह रहा हू न गलती से हो गया ।क्यों बात का बतंगड़ कर रही हो ?"
वर्षा - " बत..बतंगड़ कर रही हूं , चपड़गंजू , ज्यादा जबान नही चल रही है तुम्हारी ! एक तो गलती करो और ऊपर से कहते हो बात को बतंगड़ बना रही हूं। "
लड़का - " ऐ चपड़गंजू किसे बोल रही हो , तुम छिपकली कहीं की , ज्यादा जुबान तुम्हारी चल रही है। इन्फैक्ट कैंची से भी ज्यादा। और हां , गलती नही है मेरी। "
वर्षा - " तुम्हारी ही गलती है। सड़े बैगन के भरते। "
लड़का - " तुम क्या हो , छिपकली और मेंढकी ।"
वर्षा - " तुम कनकजूरे कहीं के। तुम्हारी आवाज से लगता है मेरी कान के पर्दे फट जाएंगे। "
लड़का कुछ बोलने ही वाला था कि इतने मे कालेज के प्रिसिंपल की आवाज आती है।
प्रिसिंपल - " क्या हो रहा है यहां , और यहां पर इतनी भीड़ क्यों है ?"
प्रिसिंपल संदिग्ध भाव से दोनो को देखते बोली - " तुम दोनो ऐसा क्या कर रहे थे कि इतने लोगो की भीड़ इकठ्ठा हो गई है ?"
लड़का वर्षा को गले लगाकर - " सर , यह मेरी बचपन की फ्रैंड है। और हम आपस मे मिले तो इतने एक्साइटेड हो गए कि लोग हमे ऐसे घूरने लगे। "
वर्षा घबराते हुए - " यस सर , यह बिल्कुल सही बोल रहा है। "

अचानक पानी के चंद बूंद चेहरे पर पड़ते ही वो ख्यालों से बाहर आई। मौसम ने रूख बदल लिया था। हल्की हल्की बूंदा बांदी शुरू हो गई थी।

उसी वक्त टीटी वहां आया और सभी की टीकटें चेक करने लगा। मेरा टीकट देखने के बाद वो अरमान से मुखातिब हुआ - " आप की टीकट ?"
" सर , जल्दबाजी मे टीकट लेने का समय नही मिला। आप मेरी टीकट बना दो " - अरमान खड़े होते हुए बोला।
" फाइन भी देना होगा ।"
" कोई बात नही , आप टीकट बनाओ। "
टीटी ने अपनी बुक्स और कलम निकालते हुए पुछा - " कहां की टीकट बनाऊं?"
" ट्रेन कहां तक जायेगी ?"
" ये ट्रेन पटना तक जायेगी। "
" आप पटना तक का टीकट बना दो। "
टीटी ने उसे अचरज भरी दृष्टि से देखा और फिर टीकट बनाकर एवं पैसे लेकर दूसरे पैसेंजर की ओर बढ़ चला।
तभी ट्रेन झटका खाकर रूक गई। मैने खिड़की के बाहर देखा। कोई स्टेशन था। स्टेशन देखकर मुझे याद आया कि मैने न तो पीने के लिए पानी का बोतल लिया है और न ही खाने की कोई चीज। मै अपना पर्स उठा कर खड़ी होने ही वाली थी कि वो बोल उठा - " आप बैठिए , मै पानी ले आता हूं। "
वो बाहर चला गया और मै फिर से यादों मे खो गई।

उस घटना के बाद धीरे धीरे हमारे बीच दोस्ती हुई और फिर यह दोस्ती कब प्यार मे बदल गई हमे पता ही न चला। साथ जीने और साथ मरने की कसमे खाई हमने। घंटो एक साथ वक्त बिताते। उसके घर मे बिधवा मां के सिवाय और कोई भी नही था। मरहूम पिता जी का पेंशन और अरमान के पार्ट टाइम ट्यूशन की कमाई ही उनके जीवन का सहारा थी। उसकी मां बहुत ही अच्छी और भोली भाली महिला थी। उनसे मै कुछेक बार मिल चुकी थी।
लेकिन हमारी प्रेम कहानी भी हैसियत मे फर्क की वजह से बली चढ़ा दी गई। पिता और भाईयों की झूठी अहंकार और धन दौलत की गुमान ने एक और प्रेम कहानी को जमीन मे दफन कर दिया। मेरे डैड और भाई नही चाहते थे कि उनकी रइस लाड़ली की शादी उस लड़के से हो जो दो वक्त की भोजन का भी जुगाड़ नही कर सकता। डैड ने मेरी शादी अपने एक दोस्त के बेटे से तय कर दी।
मुझे याद है , जब मै ब्याह कर अपने घर से विदा हो रही थी और वो थोड़ी दूर एक नीम के पेड़ के पीछे खड़ा मुझे हसरत भरी नजरो से निहारे जा रहा था। उसकी आंखे नम थी और मै गाड़ी मे बेठे घूंघट की आड़ मे बिलखते हुए अपने अधूरे प्रेम का मातम मना रही थी।


ट्रेन के चलते चलते वो पानी का बोतल , स्नैक्स , केक , थोड़े स्विट्स और कोल्ड ड्रिंक लेकर आ गया ।

" बड़ी देर से पहचाना ! " - मैने व्यंग्यपूर्ण कहा।
" पहचान तो देहली स्टेशन पर ही गया था " - पहली बार वो मुस्कराया था लेकिन उसकी मुस्कान फिकी ही लगी मुझे।
तभी मेरे ज्ञान चक्षु खुले। इसका मतलब वो मुझे फ्लैट फार्म पर कतार मे लगे हुए भी देख चुका होगा। इसका मतलब कुली का मेरे पास आना और सीट का बंदोबस्त करना अरमान का ही काम था।

" कुली को तुमने भेजा था मेरे पास ?"
" हां , मै एक दोस्त को छोड़ने आया था। तुम्हे जनरल कम्पार्टमेंट के सामने खड़े देखा तो अपने आप को रोक न पाया। "

हमने नास्ता करना शुरू किया। रात हो चुकी थी। बाहर बारिश जोर पकड़ ली थी।
" मां कैसी है ?" - मैने नाश्ते के दरम्यान पूछा।
" तुम्हारी शादी के छ महिने बाद ही वो चल बसी। "

" ओह! " यह सुनकर मै काफी दुखित हुई।
" बाल बच्चे ?" - मैने फिर अगला सवाल पूछ दिया।
" शादी होती तो न बच्चे होते ! " - वो मुस्कराते हुए कहा।
मै हैरान उसे देखते रही।
" शादी नही की लेकिन क्यों ?"
" शादी कर के क्या फायदा जब पत्नी को अपने दिल मे जगह ही नही दे सकता " - वो अपनी नजरे चुराते हुए बोला।
मेरा दिल भर आया। एक मै थी जो शादी कर के अपने परिवार और गृहस्थी मे व्यस्त हो गई हूं और एक ये है कि अपनी सारी जवानी मेरे नाम कर गया। "
" तुम्हारी शादी के बाद मां भी हमेशा के लिए चली गई। जीवन से कोई लोभ रहा ही नही। फिर बाद मे सोचा क्यों न अपनी बाकी जीवन देश के नाम लिख दूं। इसलिए फौज ज्वाइन कर लिया। "

मेरे मुंह से एक शब्द भी न निकल सका। मै खुद को उसकी गुनाहगार मान रही थी।

" तुमने अपने बारे मे कुछ नही बताया ! " - मेरी आंखो मे देखते हुए वो बोला।
" शादी के बाद हाउस वाइफ बनकर जिंदगी कट रही है। डैड और भाई गांव छोड़कर दिल्ली बस गए और मै बनारस ब्याह कर चली गई। एक लड़का और एक लड़की है। लड़का बी टेक कर रहा है और लड़की अभी हायर सेकंडरी मे है। "
" वाह , लड़की जरूर तुम्हारी तरह नकचढ़ी और छिपकली होगी ।"
मैने देखा , वो मुस्करा रहा था। उसकी बाते सुन मुझे हंसी आ गई।
" क्या मै नकचढ़ी और छिपकली जैसी हूं " - मैने बनावटी गुस्से से कहा और मेरी आंखे डबडबा गई - " आज भी पुरानी बातें याद है , है न ।"
" यह यादें ही तो मेरी सम्पति है , धरोहर है। "
मेरा दिल लरजने लगा था। आंखे भारी होती जा रही थी। मै चाहकर भी उसके लिए कुछ नही कर सकती थी। काश , वो शादी-ब्याह करके अपने बीबी बच्चो के साथ खुश रहा होता।


लगातार बारिश ने मौसम को सर्द कर दिया था। मेरे शरीर मे सिहरन सी दौड़ने लगी थी। यह देख वो तुरंत खड़ा हुआ और अपना कोट निकाल कर मुझे देते हुए कहा - " पहन लो , ठंड ज्यादा बढ़ गया है और मै जानता हूं तुम्हे ठंड बर्दाश्त नही होता। "
मै कोट पहनते हुए बोली - " पटना मे कहां जाना है ? "
" तुम कहां तक जाओगी ?" - वो बोला।
" बोला तो , बनारस ।"
" ओके , मै तुम्हे तुम्हारे घर तक छोड़कर वहीं से वापस दिल्ली लौट जाऊंगा। मुझे दो दिन बाद काश्मीर ड्युटी पर जाना है। "

कुछ देर तक बातें करने के बाद मुझे नींद आने लगी। मैने अपने सर को उसके कंधो पर टिका दिया और आंखे बंद कर ली।
थोड़ी देर बाद उसने मेरे सिर को अपने कंधे से हटाकर अपने चौड़े सिने पर रख दिया और मेरे बालों को धीरे धीरे सहलाने लगा।
ऐसा शकुन मुझे कभी अपने पति के सानिध्य मे नही महसूस हुआ। ऐसी शांति कभी महसूस ही नही हुई मुझे। ऐसा सुरक्षा होने का एहसास कभी न तो मायके मे महसूस किया था और न ही अपने ससुराल मे। काश , ऐसे ही अरमान के सिने से लगे शकुन की नींद सोती रहूं।

जब नींद खुली उस वक्त सुबह के चार बज गए थे। ट्रेन बनारस पहुंचने वाली थी। मैने अरमान के चेहरे पर नजर फेरी। वो जगा हुआ था। शायद पुरी रात ही वो जगा हुआ था। बिना करवट लिए मुझे अपने सिने से लगाए ऊपर की ओर नजरे किए हुए।


बनारस , ससुराल से चंद फासले पूर्व उसे मैने अपना घर दिखाया तो वो वहीं खड़ा हो गया और बोला - " अब तुम घर जाओ , मै भी निकलता हूं ।"
मैने कातर दृष्टि से उसे देखते हुए कहा - " क्यों , घर नही चलोगे?"
" क्या परिचय दोगी मेरा ? मेरा सफर यहीं तक का है " और वो मुझे वहीं छोड़ पलटकर जाने लगा।
" अरमान ! " - मैने उसे आवाज लगाई।
वो पलटकर मुझे प्रश्न भरी नजरों से देखा। मै उसके पास गई और धीरे से बोली - " प्लीज अरमान , मेरे एक बात मान लो। शादी कर लो। "
यह सुनकर वह धीरे से हंसा और कहा - " इस उम्र मे शादी ! वैसे मेरी शादी तो हो चुकी है। एक यादों से और एक वतन से। तुम खुश हो , मेरे लिए इससे बढ़कर और क्या होगी !"

मैने उदास मन से कहा- " मुझे अच्छा नही लगता है तुम्हे इस हाल मे देख कर ।"
" क्या हुआ ! देख लो भला चंगा हूं और जिंदा भी । मै ठीक हूं। तुम्हे बिल्कुल ही उदास नही होने का मेंढ़की " - वो मुस्कराते हुए और मेरी नाक को दबाते हुए कहा।
" अच्छा जाते जाते एक गीत तो सुना दो। कालेज मे कितना सुंदर गाते थे तुम ! "
" मेरी आवाज और गीत दोनो ही बीस साल पहले दम तोड़ चुकी है। लेकिन तुमने कभी कुछ कहा और मैने ना कहा , ऐसा कभी हुआ ही नही। मै गीत गाने लायक तो रहा नही लेकिन गीत के बोल तो कह ही सकता हूं -
" बिते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी।
ख्वाबो ही मे हो चाहे मुलाकात तो होगी ।।"

और वो चला गया। मै तबतक उसे जाते देखते रही जब तब वो मेरी आंखो से ओझल न हो गया। इस गीत को ही सुनकर तो मै दिवानी हो गई थी उसकी। मै अपनी आंखो से आंसू पोंछते हुए घर की तरफ निकल पड़ी।


शायद सात आठ दिन हो गए थे इस घटना को जब एक दिन सुबह के अखबार मे उसकी तस्वीर नजर आई। मैने तुरंत न्यूज पढ़ा।
न्यूज था ' लेफ्टिनेंट अरमान की आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ मे मौत। '

पढ़ते ही ऐसा महसूस हुआ कि मेरे कलेजे के दो टुकड़े कर दिए गए हों। दिमाग शुन्य हो गया और मै अखबार को हाथों से भिंचे घूटनो के बल जमीन पर आ गिरी। मै चिख चिख कर रोना चाहती थी लेकिन मेरे मुंह ही जैसे बंद हो गए थे। मेरे गले से आवाज नही निकल रही थी।

एक साल बाद -

आज भी मै दिल्ली से बनारस जा रही थी। आज मै जानबूझकर जनरल कम्पार्टमेंट से सफर कर रही थी। खिड़की के पास बैठे बार बार मेरी नजर आसपास ढूंढ रही थी कि वो फिर आएगा और मेरे लिए पानी , स्विट्स , केक , स्नैक्स , कोल्ड ड्रिंक ले आएगा। उससे फिर से घंटो बात करूंगी। फिर से उसके सिने से लगकर सो जाऊंगी। लेकिन इस बार की नींद ऐसी होगी कि फिर कभी खुले ही न।

दूर कहीं एक गीत बज रहा था
" ये लम्हे , ये पल, हम बरसों याद करेंगे
ये मौसम चले गए तो हम फरियाद करेंगे। "
 

manu@84

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"अर्ध नारी" (Adultry + lesbion)


हमें अक्सर वो कहानिया पसंद आती है, जिन कहानियों में हम खुद को थोड़ा ढूंढ पाते है। ये कोई कहानी नही, बल्कि ये वास्तविक किस्सा है। आज के दौर में हमारे देश के बहुत से राज्य जैसे हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान के छोटे छोटे शहरों और गाँवों में सबसे बड़ी समस्या लड़को की शादी की। शहर और गाँव अविवाहित लड़को से भरे पड़े है, युवा धीरे धीरे अधेड़ होते जा रहे है, लेकिन उनका विवाह नही हो रहा। शादी के लिए लड़कियों का तो जैसे अकाल सा पड़ गया है।

अपने परिवार का वंश आगे बढ़ाने के लिए लोग पैसा देकर दलालों के माध्यम से अपने बेटो का विवाह कर रहे हैं लेकिन ये दलाल कभी कभी सीधे साधे लोगों के साथ धोखा भी कर देते है। इसी धोखे से हुए विवाह/शादी के बाद उस लड़के के साथ क्या हुआ उसी पर आधारित ये कहानी है।

मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में विशाल उम्र 35 साल, अपनी बहन शिल्पा उम्र 25 साल के साथ रहता है। विशाल ने दलाल के माध्यम से शादी की। सुहाग रात की रात संभोग के दोरान उसे पता चला कि जिस लड़की (कृति) के साथ लड़की समझ कर उसने शादी की वो एक ट्रांसजेंडर थी। विशाल एक समझ दार युवक था, उसने रात भर बिना कोई हंगामा किये सुबह होने का इंतजार किया।

सुबह जब अपनी बहन और रिश्तेदारों के बीच उसने अपनी पत्नी के बारे में सभी को बताया तो किसी के पास कोई जबाब नही था, वो दलाल जिसने शादी कराई थी उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उसे समझ नही आ रहा था अपनी पत्नी कृति के साथ वो क्या करे.... साथ रखे या छोड़ दे..???

विशाल समझदार था उसने कोई भी फैसला जल्दबाजी में ना लेते हुए कुछ दिन बीत जाने का इंतजार किया देखते देखते एक महिना निकल गया...... शिल्पा जानती थी कि उसके भाई ने एक ट्रांसजेंडर से शादी की है. शुरू शुरू में तो उसे थोडा अजीब लगा था पर उसकी कृति भाभी इतनी प्यारी थी कि धीरे धीरे उसने अपने भाई और कृति के रिश्ते को स्वीकार कर लिया था. अब उसे अपने भैया-भाभी के बीच सिर्फ पति-पत्नी का प्यार दिखाई देता था… उनके लिंग नहीं.
आखिर होना भी ऐसा ही चाहिए. पर समाज को ये बात समझने में थोडा समय लग जाता है.

भले कृति एक ट्रांसजेंडर थी पर किसी साधारण पत्नी की ही तरह थी वो. आखिर एक औरत थी वो. फर्क तो देखने वाले की नज़र में होता है. कृति के बूब्स पहले ही काफी बड़े थे और कृति का फिगर भी आकर्षक था, विशाल की नज़र में कृति का लिंग एक स्त्री का ही लिंग था… और विशाल को कृति के लिंग को छूकर हिलाना, चूमना और चूसना भी पसंद था. यदि घर में शिल्पा न होती तो विशाल तो शाम को काम से घर आते ही अपनी पत्नी की साड़ी उठाकर और उसकी पतली सी लेस वाली पेंटी उतारकर उसके साथ सेक्स करने लगते. विशाल कृति को एक संपूर्ण स्त्री मान चुका था. वो कृति को पूरा सम्मान देता था जो समाज में एक पत्नी को मिलना चाहिए. कृति भी अपने पति के व्यवहार से खुद को बड़ी भाग्यशाली मानती थी.

पति के जाने के बाद भी एक गृहिणी के लिए घर में बहुत से काम होते है… कृति को भी बहुत कुछ करना था. सबसे पहले तो शिल्पा के लिए टिफ़िन पैक करना था. इसलिए कृति शिल्पा के कमरे की ओर बढ़ चली ताकि उससे पूछ सके कि आज कितने बजे जॉब के लिए निकल रही है वो.

शिल्पा के कमरे के बाहर से ही कृति ने आवाज़ दी… “शिल्पा”.

“अन्दर आ जाओ भाभी”, शिल्पा ने जवाब दिया. जिसे सुनकर कृति दरवाज़ा खोलकर अन्दर आ गयी. अन्दर आते ही उसने देखा कि शिल्पा सिर्फ पेंटी पहनी हुई है और पूरी तरह से नग्न है. उसे ऐसी हालत में देखते ही कृति पीछे मुड गयी और बोली, “ओहो शिल्पा… कितनी बार तुझसे कहा है कि कपडे पहन कर रहाकर.”

पर शिल्पा ने मुडती हुई कृति का तुरंत हाथ पकड़ा और अपनी बांहों में खिंच लायी. शिल्पा के नग्न स्तन उसकी भाभी के स्तनों से अब लग रहे थे. “भाभी अब तुमसे क्या शर्माना. हम दोनों औरतें ही तो है. और वैसे भी मेरे बूब्स और आपके बूब्स में ज्यादा फर्क कहाँ है?”

“चल हट. बहुत बेशर्म हो गयी है तू. औरतों के बीच भी कुछ मर्यादा होती है.”, कृति ने शिल्पा को अपने से दूर धकेलते हुए कहा जिससे शिल्पा के स्तन कृति के हाथो से और दब गए.

“भाभी तुम भी न बहुत शर्माती हो. रुको मैं एक मिनट में कपडे पहनती हूँ.”, शिल्पा बोली और अपनी ब्रा पहनने लगी. और फिर उसने एक छोटी सी स्कर्ट पहनी और ऊपर से एक सेक्सी टॉप जिसमे उसका क्लीवेज काफी गहरा लग रहा था.

“आज ऑफिस नहीं जाओगी?”, कृति ने पूछा.

“नहीं भाभी. आज तो मैं अपने बॉयफ्रेंड के साथ सिनेमा जाऊंगी.”, शिल्पा मुस्कुराते हुए बोली.

शिल्पा तैयार हो चुकी थी. लिप ग्लॉस लगाये आज उसके होंठ बेहद रसीले लग रहे थे. काफी बिंदास स्वाभाव की लड़की थी शिल्पा. तैयार होकर वो अपनी ट्रांसजेंडर भाभी के करीब आई और उसका हाथ पकड़ कर बोली, “भाभी तुम यदि शरमाओ न तो एक बात का जवाब दोगी?”

“क्या सवाल है?”, कृति तो सवाल सुनने के पहले ही घबरायी हुई थी.

“क्या तुम लंड चुस्ती हो?”, शिल्पा ने बेझिझक अपनी भाभी की आँखों में देखते हुए पूछा.

“छी… ऐसा नहीं बोलते”, कृति ने शिल्पा से मुंह फेर कर अपनी साड़ी के पल्लू को पकड़ कर घुमाने लगी. वो अब भी नर्वस थी.

“ठीक है.. ठीक है.. तो ये बताओ क्या आप मेरे भैया को ब्लो जॉब देती हो?”, शिल्पा हँसते हुए बोली.

“बहुत बदतमीज़ हो गई है तू शिल्पा.”, कृति ने बिना शिल्पा की ओर देखे कहा.

“अरे भाभी… प्लीज़ बताओ न…

“हाँ, चुस्ती हूँ मैं उनका लंड.”, थोड़ी शर्माती थोड़ी मुस्काती कृति ने अपनी साड़ी से मुंह छिपाते हुए कहा. तो शिल्पा भी मुस्कुरा दी. “… पर तू क्यों पूछ रही है?”, कृति ने शिल्पा से पूछा.

“भाभी… मैं सोच रही हूँ कि अब से अपने बॉयफ्रेंड को खुश करने के लिए उसके लंड को चुसू. आखिर इससे गर्भवती होने का डर नहीं रहता न?”

“शिल्पा… शादी से पहले ये सब ठीक नहीं है.”, कृति ने एक भाभी के नज़रिए से कहा.

“ओहो भाभी.. अब तुम भी बुड्डी आंटियों की तरह लेक्चर न दो.

शिल्पा की बात सही थी इसलिए कृति चुप रह गयी.

“अच्छा भाभी… आप मुझे सिखाओगी कि लंड कैसे चूसते है?”, शिल्पा ने पूछा. तो कृति ने नटखट आँखों से उसकी ओर देखा और बोली, “चुप कर… कुछ भी कहती रहती है. मैं नहीं सिखाने वाली तुझे.”

“भाभी… क्यों इतने नखरे दिखा रही हो? ज़रा सिखा दोगी तो तुम्हारा कुछ बिगड़ जाएगा क्या?”, शिल्पा ने कृति का हाथ पकड़ते हुए कहा और कृति ने बिस्तर पर बैठकर अपने आँचल को संवारा और आँखें बंद कर बोली, “ठीक है तो तू सुन…”

“पर आँखें क्यों बंद कर रही हो भाभी?”

“मैं आँखें खोलकर तेरे सामने नहीं कह सकती. तुझे सुनना है तो सुन.”, कृति बोली.

“ठीक है. तुम आँखें बंद कर के ही सिखा दो.”, और शिल्पा अपनी भाभी से चिपक कर बैठ गयी.

“सबसे पहले उनके बेहद करीब जाना… इतने करीब कि तुम्हारे बूब्स उनके सीने से लग जाए. फिर उनकी बांहों को अपने दोनों हाथो से पकड़ कर उनके तन से लगकर खड़ी हो जाना. और फिर उनकी नजरो में देखते हुए उनके होंठो को चूमना”

कृति की बात सुन शिल्पा ने कृति की ब्लाउज की आस्तीन पर से उसकी दोनों बांहों को पकड़ा और उसे बिस्तर से उठाया और कृति के सीने से चिपक गयी. कृति की आँखें अब भी बंद थी और उसे समझ नहीं आया कि शिल्पा क्या कर रही है. पर शिल्पा अपनी भाभी के बूब्स से अपने बूब्स दबाकर बेहद करीब आ गयी और अपनी भाभी के मुलायम होंठो पर अपने होंठो से हल्का सा चुम्बन देकर बोली, “ऐसे?”

शिल्पा की गर्म सांसें और बूब्स को अपने सीने पर महसूस कर कृति एक बार फिर नर्वस होने लगी. और वो अपनी आँखें बंद की रही. शिल्पा अपनी भाभी के साथ कुछ ऐसा वैसा तो नहीं करेगी? ऐसे विश्वास के साथ कृति गहरी सांसें लेने लगी.

“इसके बाद क्या करना है भाभी?”, शिल्पा ने जब कहा तो कृति जैसे वापस होश में आते हुए बोली, “… और फिर… और फिर… धीरे धीरे उनके तन पर हाथ फेरते हुए उनकी पेंट के उस हिस्से पर ले जाना और उसे ऊपर से ही पकड़ने की कोशिश करना. इस वक़्त उनका लंड धीरे धीरे कर खड़ा होने की कोशिश करेगा.”

तो शिल्पा भी अपनी भाभी की साड़ी पर से ही उनके तन पर हाथ फेरते हुए उनकी कमर के निचे उस हिस्से तक ले गयी जहाँ प्लेट के पीछे कृति का लंड छुपा हुआ था. उसके ऊपर हाथ फेरते हुए शिल्पा ने धीरे से कृति के लंड को साड़ी के ऊपर से ही पकड़ने की कोशिश की. कृति भाभी का लंड इस वक़्त मुलायम से थोडा सख्त होने लगा था. “और आगे भाभी…”, शिल्पा आंहे भरती हुई बोली.

“… और फिर धीरे धीरे अपने बूब्स को उनके तन से दबाकर पूरे शरीर को छूते हुए निचे अपने घुटनों पर चली जाना.” और शिल्पा ने वैसा ही किया कृति की साड़ी पर शिल्पा के फिसलते हुए बूब्स धीरे धीरे उसके लंड के पास पहुच गए.

अब उनके लंड को फिर से अपने हाथो से उनकी पेंट के ऊपर से ही सहलाना.. जब तक वो थोडा और सख्त न हो जाए.” भाभी की बात सुन शिल्पा ने एक बार फिर भाभी की साड़ी की प्लेट के बीच हाथ डाला और ऊपर से ही उनके लंड को सहलाने लगी. कृति का लंड अब और सख्त हो चला था. आज तक कृति को इसके पहले किसी लड़की ने इस तरह छुआ नहीं था. वो तो हमेशा से ही अपने पति की ही थी. पर उसकी ननद शिल्पा आज उसे बेहद उकसा रही थी. शिल्पा को भी अपनी भाभी की सैटिन साड़ी को छूने में मज़ा आ रहा था. वो भी उत्सुक थी जानने के लिए कि उसकी भाभी का लंड आखिर कैसा है. छूने पर तो कृति का लंड शिल्पा को बड़ा ही लग रहा था पर उसने अब तक उसे देखा नहीं था. वो तो जैसे उसे देखने को बेताब हो रही थी. साड़ी में उसकी भाभी के लंड की उभरती हुई आकृति उसे उकसा रही थी.

कृति और शिल्पा… इन दोनों औरतों को एहसास ही नहीं रहा कि ये जो वो कर रही थी उन्हें इस तरह मदहोश करने लगेगा. इसके पहले न कभी कृति का और न ही शिल्पा का किसी औरत में इंटरेस्ट था… फिर भी दोनों इस तरह मदहोश हो रही थी.

शिल्पा ने कृति कीकमर पर हाथ फेरा और फिर साड़ी हटाकर अपने होंठो से उनकी नाभि को चूम लिया और फिर अपने दोनों हाथो से भाभी की कमर को पकड़कर उन्हें बिस्तर पर लिटा उनके ऊपर चढ़ने लगी.
जहाँ उसने अपनी भाभी की नाभि और थिरकती कमर को खूब चूमा.

कृति ने अपने लंड के इतने पास शिल्पा को चुमते हुए महसूस किया तो वो और मचल उठी… और खुद अपने हाथो से अपने ब्लाउज पर से अपने बूब्स को मसलने लगी.

अब उनके पेंट की ज़िप खोलकर उनके लंड को धीरे से बाहर निकालना.”, कृति आगे शिल्पा को बताती रही.

कृति भाभी ने तो पेंट पहनी नहीं थी इसलिए शिल्पा उनकी साड़ी के निचे से हाथ ले जाते हुए उनकी साड़ी को ऊपर उठाने लगी और उनके मखमली पैरो को छूने लगी और फिर उनकी जांघो पर अपने हाथ फेरने लगी. कृति अब पूरी तरह मचल उठी थी… वो तड़प रही थी कि कब शिल्पा उसके उफनते हुए लंड को पकडे पर शिल्पा अपनी भाभी को और उकसाती रही. कुछ देर जांघो को छूने के बाद शिल्पा ने कृति की साड़ी को और ऊपर उठाया और उनकी पेंटी पर उभरे हुए लंड को अपने हाथो से छूने लगी. अब तो उनके लंड का आकर उस पेंटी में साफ़ दिख रहा था. शिल्पा खुद अब उसे निकाल कर छूने को बेचैन हो गयी थी. उसने अपनी भाभी की पेंटी को निचे कर अपनी भाभी का लंड बाहर निकाल दिया… जिसे देखकर शिल्पा की आँखों में चमक आ गयी.

ये लंड बेहद ख़ास था… गुलाबी और साफ़ सुथरा.. जिसके आसपास एक भी बाल न था. चमकदार, गुलाबी, और बेहद सुन्दर लंड था वो… इतना साफ़ तो उसे कोई कृति की तरह की औरत ही रख सकती थी. शिल्पा उसे तुरंत चूस लेना चाहती थी पर उसे तो अभी अपनी भाभी को और तडपाना था.

“अब वो लंड तुम्हारे होंठो के लिए बेताब हो रहा होगा. पर तुम उसे कुछ देर अपने हाथो से छूना…” कृति बंद आँखों से मदमस्त होते हुए बोली और अपने होंठो को खुद ही कांटने लगी.

शिल्पा ने भी वैसा ही किया और उसकी आँखों के सामने वो लंड और मचलने लगा.

उफ़… शिल्पा के लिए खुद को उस लंड को चूसने से रोक पाना बेहद मुश्किल हो रहा था पर उसने सिर्फ उसे चूमा. तो वो लंड और मचलकर हिलोरे मारने लगा.

शिल्पा खुद बेचैन हो गयी थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो खुद को उकसा रही है या भाभी को? “.. अब अपने हाथो से उसे पकड़ कर अपनी गर्म सांसें उस पर छोड़ना और फिर धीरे धीरे अपने होंठो को उस पर लपेट देना. और फिर अपने होंठो को धीरे धीरे उस लंड को अपने मुंह में लेना शुरू करना…. पर सिर्फ ऊपर का हिस्सा… एक अच्छी औरत अभी उस लंड को इसी तरह से और उकसाती है.”

फिर शिल्पा ने अपने लिप ग्लॉस लगे रसीले होंठो से उस लंड को लपेटा और फिर उसे धीरे धीरे मुंह में लेने लगी. उसकी भाभी का लंड शिल्पा के मुंह में जाने को बेताब होने लगा . इतने नर्म होंठ कभी उसने अपने लंड पर महसूस नहीं किये थे. और फिर शिल्पा ने अपनी भाभी के लंड को थोडा सा चूसकर अपने मुंह से बाहर निकाल दिया.

और अब… और अब…”, कृति बदहवास हो रही थी, “… अब अपनी जीभ से उस लंड की लम्बाई को निचे से ऊपर तक चाटना…” शिल्पा भी अपनी भाभी की मदहोशी से मचल कर उस लंड को जीभ से निचे से ऊपर तक चाटने लगी.

“… और अब… और अब… एक बार फिर….”, कृति से अपने बूब्स को मसलते हुए बोला भी न जा रहा था “… उसकी भाभी बेचैन हुए जा रही थी.

कृति की सांसें बहुत तेज़ होती जा रही थी… मचलती हुई कृति के पूरे जिस्म में आग लग चुकी थी और उसका बदन लहराने लगा… और उसके पैर भी सरकने लगी.. कमर थिरकने लगी… अब उससे रहा नहीं जा रहा था और वो उत्साह में लगभग चीख उठी..”अब चुस्ती क्यों नहीं है साली! कितना तडपाएगी मुझे…?” और उसने शिल्पा का सर पकड़ कर दबा दिया कि वो पूरे लंड को मुंह में ले ले.

भाभी को इस तरह तड़पते देख शिल्पा भी अब पूरे उत्साह से भाभी के गुलाबी लंड को चूसने लगी और अपने मुंह में अन्दर बाहर करने लगी… उसे बेहद मज़ा आ रहा था. उसके हर स्ट्रोक पर उसकी भाभी आँहें भरती और मदहोशी भरी आवाजें निकालती. इन दोनों औरतों को बेहद मज़ा आ रहा था… पर इस बेहद उत्तेजित समय का अंत भी जल्दी आता है… और जल्दी ही उसकी भाभी के लंड से रस बाहर आने लगा. शायद हॉर्मोन की वजह से उस लंड से रस कम आता था जिसे शिल्पा ने अपनी भाभी के पेटीकोट से ही पोंछ लिया. दोनों औरतें अब थक चुकी थी और ख़ुशी के मारे वहीँ एक दुसरे पर निढाल हो गयी.

थोड़ी देर बाद शिल्पा अपनी भाभी की बांहों से बाहर निकलकर बिस्तर पर उठ बैठी और भाभी की ओर मुस्कुराती हुई देख कर बोली, “भाभी अब सचमुच बहुत अच्छे से सिखाती हो.”

शिल्पा की बात सुन कृति शर्मा गयी. आज ननद और भाभी का रिश्ता ही बदल गया था. दोनों एक दुसरे की आँखों में एक चमक देख सकती थी.

“अच्छा भाभी… मैं शाम को मिलूंगी तुमसे.”, शिल्पा बिस्तर से उठने लगी तो कृति ने उसका हाथ पकड़कर रोक लिया… “इतनी जल्दी क्या है?

“भाभी… मेरा बॉयफ्रेंड मेरा इंतज़ार कर रहा है. मैं शाम को जल्दी आऊंगी… पक्का.”, शिल्पा ने कहा और झट से पर्स उठाकर कमरे से बाहर चल दी.

और कृति उस कमरे में बिस्तर में वैसे ही लेटी रही… वो सोच में पड़ गयी थी कि ये सब क्या हुआ? उसे अपने पति विशाल का ख्याल आने लगा… यदि उन्हें पता लगा तो क्या करेगी वो? इसी दुविधा में कृति वहीँ सोचती रह गयी.

बेचैन होकर उलटती पलटती कृति की दोपहर कैसे बीत गयी पता भी नहीं चला. इतनी देर बिस्तर पर बिताने के बाद भी वो थकी हुई थी. उठते ही उसने एक सफ़ेद रंग की सैटिन साड़ी निकाली जिसकी हरे रंग की बॉर्डर थी और हरे रंग के ही फुल-पत्तियों के प्रिंट थे. उस साड़ी से मैच करता हुआ एक नेट का पारदर्शी ब्लाउज था जिसके अन्दर सब कुछ दीखता था.

तैयार होकर कृति किचन आकर खाना बनाने में व्यस्त हो गयी. करीब एक घंटे बाद घर का दरवाज़ा खुला. कृति की ननंद शिल्पा दौड़ी चली आई और पूरे उत्साह के साथ आकर अपनी भाभी को पीछे से पकड़ ली. बहुत खुश लग रही थी वो.

कृति भी इस वक़्त खुश थी तो उसने पूछा, “क्या बात है? बड़ी खुश लग रही हो?”

शिल्पा ने कृति के कान के पास अपने होंठ लाकर धीमी आवाज़ में कहा, “भाभी.. धीरेन्द्र तो आज बहुत खुश हो गया.” न जाने क्यों कृति का मन एक बार फिर विचलित होने लगा. “कौन धीरेन्द्र?”, कृति ने रुखी आवाज़ में कहा.

कृति जानती थी कि धीरेन्द्र कौन है और शिल्पा ब्लो जॉब के बारे में बात कर रही थी. न जाने क्यों शिल्पा और उसके बॉयफ्रेंड के बारे में सोचकर ही कृति के मन में थोडा सा गुस्सा आने लगा. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो ऐसा क्यों सोच रही है. क्या उसे जलन हो रही थी शिल्पा को किसी और के साथ सेक्स करते हुए सोच कर? मगर क्यों? वो तो खुद अपने पति के साथ ख़ुश थी… फिर शिल्पा जिसके साथ जो चाहे करे.. उसे क्या?

शिल्पा की बात को अनदेखा कर कृति ने बड़ी बेरुखी से कहा, “जाकर खाने की मेज सजाओ. तुम्हारे भैया आ गए है और खाने का इंतज़ार कर रहे है.

शिल्पा अपनी भाभी के मुंह से ऐसी बात सुनकर आश्चर्य में थी. भाभी उसकी ख़ुशी में शामिल क्यों नहीं हो रही है? सोचते हुए शिल्पा खाना मेज पर लगाने लगी.

थोड़ी देर बाद सभी बिना ज्यादा कुछ बोले खाना खाकर अपने कमरे में चले गए.
शिल्पा को अनदेखा कर कृति अपने बेडरूम आ गयी जहाँ उसके पति विशाल उसका बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे. उनकी आँखों की आतुरता देख कृति मुस्कुराते हुए बोली, “ज़रा रुको मैं अभी आती हूँ.” और पति को तडपाती हुई कृति कमर मटकाते हुए कमरे से लगे बाथरूम चली गयी.

बाथरूम में आते ही कृति ने ब्लाउज में लगी हुई पिन को खोलकर अपने पल्लू को उतारा और फिर अपना ब्लाउज उतारने लगी. ब्लाउज को किनारे में रख कृति ने अपनी ब्रा उतार दी. और फिर से ब्लाउज पहनने लगी. ब्लाउज पहनकर कृति ने खुद को आईने में देखा. उसके हरे पारदर्शी ब्लाउज में उसके बड़े बड़े निप्पल साफ़ झलक रहे थे. फिर कृति ने अपने हाथो को ब्लाउज के अन्दर डालकर अपने स्तनों को ब्लाउज में सही तरह से एडजस्ट किया कि उसके निप्पल पॉइंट कर उभरे हुए दिखे. संतुष्ट होने पर कृति ने एक बार फिर अपनी सैटिन साड़ी के पल्लू को अपने कंधे पर चढ़ाया और फिर अपनी बिंदी को माथे पर सही जगह पर लगाया. कृति इस वक़्त बेहद हॉट दिख रही थी. और फिर उसने अपने होंठो पर लिप ग्लॉस लगाया ताकि उसके होंठ चुमते वक़्त और रसीले लगे. कृति ने एक बार फिर अपने आँचल को संभाला और मुस्कुराती हुई बाथरूम से निकल कर बेडरूम आ गयी.

बिस्तर पर अपनी लेटी हुई पत्नी की ब्लाउज में खुली हुई पीठ और सैटिन साड़ी में लिपटी हुई खुबसूरत बड़ी सी गांड देख विशाल और बेचैन हो उठे. सचमुच कृति को अपने पति को रिझाना बखूबी आता था.

विशाल अब अपने हाथ कृति के ब्लाउज पर फेरने लगे और उसके स्तन दबाने लगे. कृति भी मुस्कुराती हुई अपने हाथ पीछे कर अपने पति के सर को अपने और करीब लाने लगी ताकि वो उसे गर्दन पर अच्छी तरह चूम सके. “आज तो तुमने ब्रा भी नहीं पहनी है डार्लिंग. अब मुझसे और रुका नहीं जाएगा.”, विशाल ने कहा.

“तो आपको रोक कौन रहा है जानू… मैं तो आपकी ही हूँ.”, कृति ने मदहोशी भरी आवाज़ में कहा.

विशाल अब और उत्साह से कृति के बूब्स के बीच हाथ डालकर दबाने लगे और फिर उसकी पीठ पर चूमने लगे. धीरे धीरे उन्होंने हाथो को निचे ले जाकर कृति की साड़ी की चुन्नटो के बीच ले गए जहाँ उन्होंने कृति के लंड को पकड़ लिया और उसे सहलाने लगे.

“ कृति का लंड भी खड़ा हो रहा था पर उसके दिल में कुछ और था. वो नहीं चाहती थी कि आज विशाल उसका लंड चुसे.

विशाल अब भी कृति के लंड को उसकी साड़ी पर से ही सहला रहे थे तो कृति ने अपने एक हाथ से उसे हटाया. और अपने हाथ को अपने पीछे लिपटे हुए पति के पैजामे में डाला और उनका खड़ा लंड अपने कोमल हाथों से बाहर निकाल कर उसे हिलाने लगी. हिलते हाथो के साथ उसकी हरे कांच की चूड़ियों की खनक बेहद मोहक लग रही थी. कृति ने फिर उस लंड को अपनी गांड पर दबाया. विशाल का लंड कृति के नर्म हाथो और गांड के बीच मचल उठा…

बिना ब्रा के तो वैसे भी कृति के स्तन आज़ाद ही थे. कृति की ब्लाउज की सारी हुक खुलते ही विशाल ने उन दोनों हिलते हुए स्तनों को अपने दोनों हाथो से जोरो से मसल दिया तो कृति एक मीठे दर्द भरी आंह निकाल कर मचलने लगी. मदमस्त होती कृति ने भी अपने हाथो से विशाल के सर को अपने बूब्स पर और जोर से दबाया और उनके सर को अपने सैटिन साड़ी के आँचल से ढँक दिया.

कुछ देर तक अपनी पत्नी के स्तनों का आनंद लेने के बाद विशाल ने अपनी पत्नी को पलटाकर उठाया और उसे डौगी पोजीशन में बिस्तर में तैयार किया और खुद पत्नी की गांड के पीछे आ गए. इस वक़्त कृति के बाल बिखर गए थे, ब्लाउज खुला हुआ था जिसमे से उसके स्तन उस पोजीशन में लटक कर झूल रहे थे.

कृति तो जैसे अब मदहोश हो चुकी थी. अब वो अपनी गांड को मदहोशी में लहराने लगी और अपने पति के लंड को और तरसाने लगी. पर वो तो खुद तरस रही थी. अपनी पत्नी की तड़प देखकर विशाल ने भी झट से अपने लंड को कृति के अन्दर डाल दिया. उस एक झटके में कृति तो जैसे झूम उठी और उसके मुंह से एक आवाज़ एक आंह निकल पड़ी. कामुकता की मारी कृति अपने एक हाथ से अपने स्तनों को छूकर दबाने लगी. और विशाल भी अपने एक हाथ से कृति की डोग्गी पोजीशन में झूलते हुए स्तनों को पकड़ कर दबाने लगे. “और जोर से दबाओ न!”, कृति मदहोशी में लगभग चीख उठी. तो पत्नी की बात सुनकर विशाल और जोर से दबाने लगे और जोर जोर से अपने लंड को अन्दर बाहर करने लगे. इस दौरान कृति के मुंह से निकलने वाली आन्हें और तेज़ हो गयी थी.

अक्सर कृति ऐसी आवाजें नहीं निकाला करती थी क्योंकि उसकी ननंद शिल्पा बगल के कमरे में ही सोया करती थी. पर आज न जाने कृति को क्या हो गया था, उसे बिलकुल परवाह नहीं थी कि उसकी ये चरम उत्तेजना में निकलने वाली आवाजें किसे सुनाई देती है. विशाल अपनी पत्नी के बड़े स्तनों को और जोर जोर से मसल मसल कर उसे और आनंद दे रहे थे, और वहीँ गांड में लंड को भी बड़े तेज़ी से अन्दर बाहर कर रहे थे.

और फिर कुछ समय में पति-पत्नी के बीच की ये लीला पूरी हो गयी. दोनों के चेहरे पर एक संतुष्टि का भाव था. आज कृति बाकी दिनों के मुकाबले बहुत ज्यादा कामोत्तेजित थी. चाहे जो भी वजह थी इसके पीछे, विशाल बहुत खुश थे. पर होता है न कि अक्सर ऐसी रातें यूँ ही ख़त्म नहीं हो जाती. खासकर पति तो अपनी पत्नी को छूकर पूरी रात उकसाते रहते है. और कृति बिस्तर में ही बेचैन होकर अपने तन को काबू में करने की कोशिश करती पर दोनों के जिस्म एक दुसरे के और करीब आ जाते.

और देखते ही देखते न जाने कब सुबह हो गयी दोनों को पता भी न चला. कृति बिस्तर में अभी भी पति की बांहों में लेटी हुई थी. उसने ब्लाउज तो पहना हुआ था पर उसके हुक खुले हुए थे और स्तन बाहर निकले हुए थे. कितने सुन्दर और सुडौल लग रहे थे वो स्तन. कृति की कमर के निचे अब भी साड़ी लिपटी हुई थी. साड़ी पहनने का यह तो फायदा है कि उसे बिना उतारे ही प्यार करने का आनंद लिया जा सकता है. और फिर उस साड़ी का मोहक कपडा यदि सैटिन हो तो पति पत्नी दोनों ही उसके स्पर्श से और उत्तेजित हो जाते है.

कृति ने अपनी साड़ी जो उठकर घुटनों के ऊपर तक आ गयी थी, उसे सरकाकर निचे किया. और फिर अपने ब्लाउज के हुक लगाने लगी.

मुस्कुराती हुई कृति जब किचन पहुंची तो उसने देखा कि उसकी ननंद शिल्पा जाग चुकी थी और ब्रेड टोस्ट का नाश्ता कर रही थी.

उसने शिल्पा को अनदेखा करते हुए किचन में जाकर अपने काम करने लगी. सबसे पहले तो उसने अपने बालों को बांधकर जूडा बनाया और फिर पति के लिए चाय बनाने लगी.

इस वक़्त शिल्पा का चेहरा भी कुछ उखड़ा हुआ था.

“लगता है कल रात पति-पत्नी के बीच बहुत प्रेम लीला हुई है.”, शिल्पा ने अपनी भाभी से कहा. उसकी आवाज़ में एक गुस्सा साफ़ झलक रहा था. आखिर उसे रात को पति-पत्नी की क्रीडा के दौरान आवाजें सुनाई पड़ ही गयी थी. पर क्यों नाराज़ थी वो कृति से? आखिर कृति भाभी ने तो उसे वो सीखाया था जो कल अपने बॉयफ्रेंड धीरेन्द्र के साथ आजमा सकी थी. कल शाम को तो अपनी भाभी को ये सब बताते हुए बड़ी खुश थी वो. फिर क्यों आज वो इतनी नाराज़ थी, ये तो वो खुद भी नहीं जानती थी.

“हाँ.. हमने कल रात प्यार किया है. तुझे क्या करना है?”, कृति ने भी लगभग उखड़े स्वर में जवाब दिया.

अपनी भाभी से रुखा जवाब मिलने पर शिल्पा बिना कुछ कहे उठकर किचन से अपने कमरे की ओर चली गयी. और कृति भी अपने पति के लिए खाना बनाने में व्यस्त हो गयी.

कल दिन में जब कृति की ननंद शिल्पा ने कृति के लिंग को चूसकर ब्लो जॉब दिया था उसके बाद से ही उसके मन में एक ग्लानी थी. कल के पहले कृति के जिस्म को उसके पति विशाल के अलावा किसी ने नहीं छुआ था… न किसी आदमी ने और न ही किसी औरत ने. पर कल? कल कृति ने अपने पति के पीछे उन्हें धोखा दिया और वो भी उनकी बहन के साथ. उसके मन में ग्लानी तो होनी ही थी. पर इसके अलावा भी कुछ और बात थी.

कल तक जो ननंद भाभी के बीच एक प्यार भरा रिश्ता था वो एक बार में ही जिस्म की आग में झुलसते हुए कही बिखर गया था.

भले ही कृति एक सीधी साड़ी गृहिणी थी पर उसे भी अपने रूप पर गर्व था. शिल्पा की चिंता छोड़ कर कृति ने अपने ब्लाउज को अपनी साड़ी से ढंका और अब नहाने के लिए बाथरूम आ गयी. बाथरूम में आकर कृति ने धीरे धीरे खुद को आईने में देख अपनी साड़ी उतारनी शुरू की. और फिर उसके बाद अपनी ब्लाउज को खोलने लगी. बिना ब्रा के उसके स्तन ब्लाउज से तुरंत बाहर निकल आये. और कृति ने अपने निप्पल को पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया. जल्दी ही कृति का लंड खड़ा हो चूका था और उसकी वजह से उसका पेटीकोट उठ चूका था. आखिर उसने अन्दर पेंटी तक नहीं पहनी थी.

उत्तेजना में कृति ने अपना पेटीकोट उतारा और फिर अपने खड़े लंड को और सहलाने लगी. कठोर निप्पल और खड़े लंड के साथ वो आईने में बड़ी सेक्सी लग रही थी. खुद के लंड को देख वो बड़ी खुश हुई. गुलाबी चमचमाता हुआ और बिलकुल साफ़ सुथरा लिंग था कृति का जिसके आसपास एक बाल तक नहीं था. और फिर मुस्कुराती हुई कृति शावर में जाकर नहाने लगी. वो चाहती तो उत्तेजना में वो खुद को और सहला सकती थी. पर इतनी खुबसूरत औरत भला खुद को खुश करे? ये तो अपमान ही होगा न? जब पूरी दुनिया में कोई भी उसके जिस्म को छूकर उसे खुश करने को बेताब होगा तो वो क्यों भला खुद मेहनत करे? हंसती मुसकुराती हुई कृति नहाकर बाहर निकली और उसने एक सुन्दर सी लेस वाली ब्रा पहनी. भीगे बालो में बहुत ही सेक्सी लग रही कृति की ब्रा ने जब उसके बूब्स को अपने अन्दर कैद किया तब जाकर उसका खुद के तन पर थोडा सा वश वापस आने लगा था. और फिर कृति ने धीरे से अपने कोमल पैरो पर एक हलकी सी सैटिन पेंटी को सरकाया और खुद के चिकने पैरो को अपनी उँगलियों से छूते हुए कृति ने वो पेंटी पहन ली. और फिर उसके बाद एक मैचिंग पेटीकोट में अपनी कमर को लहराती हुई नाडा बांधकर कृति अब साड़ी पहनने को तैयार थी.

वैसे तो कृति को अपनी ब्रा के ऊपर ब्लाउज पहनना चाहिए था पर आज उसने बिना ब्लाउज के ही साड़ी पहनने की सोची. घर में वैसे भी सिर्फ शिल्पा थी आज कृति को उसके रहने न रहने से फर्क नहीं पड़ता था. और फिर कृति ने अपने बड़े बड़े कुलहो पर अपनी साड़ी को लपेटा और अपने साड़ी में एक एक प्लेट सलीके से बनाने लगी. भीगे लम्बे बालो में इतने करीने से प्लेट बनती हुई कृति को इस वक़्त कोई देख लेता तो यकीनन ही उसका खुद पर काबू नहीं रहता.

और यदि वहां शिल्पा होती तो? क्या शिल्पा अपनी भाभी के स्तनों को दबाती हुई अपने घुटनों पर बैठकर अपनी भाभी की साड़ी उठाती और उनके लंड को बाहर निकाल कर अपने रसीले होंठो से चुस्ती? हाय, ये कैसा ख्याल आ रहा था कृति के मन में? ये विचार आकर उसके जिस्म में आग लगा रहे थे.

जहाँ एक ओर कृति अपने मन से लड़ रही थी वहीँ उसकी ननंद शिल्पा की मनोदशा कुछ अलग ही थी. अपने कमरे में बिस्तर में नाइटी पहनी शिल्पा लेटी हुई थी और उसके मन में एक गुस्सा भरा हुआ था. करवटें बदलती हुई शिल्पा के मन में अपनी भाभी के प्रति क्यों इतना गुस्सा था वो खुद समझ नहीं पा रही थी. यदि उसकी भाभी ने अपने पति के साथ रात को सेक्स किया तो शिल्पा को इस बात से क्यों फर्क पड़ रहा था? आखिर वो भी तो अपने बॉयफ्रेंड के साथ सेक्स करके खुश थी? रह रह कर उसके मन में धीरेन्द्र के साथ सेक्स की जगह उसे कल दोपहर को अपनी भाभी के साथ किये सेक्स की तसवीरें आ रही थी जब वो अपनी भाभी का गुलाबी लंड चूस रही थी. ऐसा क्यों हो रहा था उसेक साथ? धीरेन्द्र को छोड़ वो भाभी के बारे में क्यों सोच रही थी? खुद के मन को शिल्पा खुद ही नहीं समझ पा रही थी. ऐसे ही न जाने क्या क्या सोचती हुई शिल्पा न तो आज नहाई थी और न आज ऑफिस गयी थी.

फिर शिल्पा बिना कुछ सोचे समझे अपनी घुटनों तक की नाइटी पहने हुए ही अपने कमरे से बाहर आ गयी. बाहर आकर उसने देखा कि उसकी भाभी सोफे पर बैठी हुई अपने घुटनों को मोड़े हुए गृहशोभा मैगज़ीन पढ़ रही थी. उसकी भाभी ने तो आज ब्लाउज भी नहीं पहना था. बस खुले पल्ले के साथ ब्रा को ढंककर साड़ी पहनी हुई उसकी भाभी उसे बेहद आकर्षक भी लग रही थी.

उसकी भाभी की गोरी कमर में सॉफ्ट सी नाभि के निचे साड़ी की खुबसूरत प्लेट्स के पीछे उसकी भाभी का लंड छुपा है, यह ख्याल उसके मन में क्यों आ रहा था? पर शिल्पा की ओर ज्यादा ध्यान न देते हुए कृति ने अपने एक पैर को दुसरे पैर पर रखा और अपनी नाभि को साड़ी से ढंकते हुए हाथ में रखी मैगज़ीन का पन्ने पलट कर देखने लगी. कृति शिल्पा को अनदेखा करने का ड्रामा कर रही थी. वो उसे सच में अनदेखा करना चाहती थी पर कर नहीं पा रही थी. इसलिए अपनी मैगज़ीन में ध्यान देने की कोशिश कर रही थी. पर वहां भी उसका दिल कहाँ लग रहा था?

अपनी भाभी की ऐसी हरकत देखकर एक बार फिर शिल्पा के दिल में गुस्सा बढ़ गया. और वो गुस्से में ही अपनी भाभी के बगल में आकर बैठ गयी. कृति की नज़र अब शिल्पा के गोरी चिकनी टांगो पर थी. उसे पता था कि बिना नहाई हुई शिल्पा के बिखरे बाल और उस नाइटी में उसकी गोरी चिकनी टाँगे सभी कुछ कृति को उकसा रही थी.

कृति ने शिल्पा को अनदेखा किया तो उससे रहा नहीं गया और वो गुस्से से अपनी भाभी पर चीख पड़ी, “क्यों भाभी रात को अपने पति के साथ बीतने के बाद भी तुम्हारे जिस्म की आग नहीं बुझी जो तुम अब भी इस तरह से अपने स्तन निकाले बेशर्मो की तरह बैठी हो?”

बहुत कडवी बात कह दी थी शिल्पा ने. तो कृति भला कैसे चुप रहती? “मेरे जिस्म की आग से तुझे क्या करना है? हाँ मैं सोयी थी अपने पति के साथ. कम से कम अपने पति के साथ ही कर रही थी न. किसी ऐरे गिरे आदमी का लंड तो नहीं चूस रही थी न मैं? और वैसे भी तुझे क्या फर्क पड़ता है कि मैं क्या करती हूँ?”, कृति ने भी गुस्से में मैगज़ीन को बंदकर पटकते हुए कहा.

“भाभी!”, “मुझे क्या फर्क पड़ता है? जानना चाहती हो मुझे क्या फर्क पड़ता है?”, शिल्पा ने और भी गुस्से में कहा तो कृति बस उसकी ओर देखते ही रह गयी. और फिर एक झटके में शिल्पा ने अपनी भाभी की बांह को जोरो से अपनी ओर ऐसे खिंचा कि दोनों के स्तन एक दुसरे से दब गए… और दोनों के चेहरे बेहद करीब आ गए. इतने करीब कि जब शिल्पा ने कृति के होंठो को जोरो से चूमा तो कृति उसे रोकने के लिए कुछ कर भी नहीं सकी. दोनों के स्तन और निप्पल तुरंत ही फूलकर एक दुसरे को दबाने लगे. शिल्पा अपनी भाभी के बालों में उंगलियाँ फेरती हुई अपनी भाभी को मदहोश होकर चूमने लगी… और एक हाथ से भाभी की साड़ी पर से उनके स्तनों को दबाने लगी.

जब दो खुबसूरत औरतों के जिस्म एक दुसरे के लिए बेकाबू हो, तब गुस्से को प्यार में बदलने में बहुत समय नहीं लगता है. अब शिल्पा के चुम्बन में गुस्सा नहीं प्यार और पैशन था. लेकिन कृति अब भी अपने दिल की बात कह देना चाहती थी. और अपने अपमान का बदला लेती हुई कृति ने शिल्पा से कहा, “तुझे लंड चूसने का बड़ा शौक है न?

तो आज अपने भाभी के लंड से चुद कर भी देख ले.” “तो तुम्हे रोक कौन रहा है भाभी?”, शिल्पा बोली और उसने अपने दोनों पैरो को फैला दिया और अपनी नाइटी उठाकर अपनी पेंटी को सरकाकर अपनी योनी को अपनी भाभी के लिए खोल दिया. उत्तेजना में कृति ने अपनी साड़ी से अपने लंड को निकाला और तुरंत ही शिल्पा की योनी में एक झटके में डाल दिया. कृति के लिए ये पहला अनुभव था पर शिल्पा की योनी के अन्दर उसके लंड के जाते ही उसे एक चरम आनंद महसूस हुआ. और कामोत्तेजना में बदहवास कृति अपने लंड को शिल्पा की योनी में अन्दर बाहर करने लगी. कृति के स्तन ऐसा करते हुए झूलने लगे और उसके लम्बे बाल शिल्पा के सीने पर लहराने लगे.

ननंद और भाभी के बीच ये पल बेहद कामुक था. दोनों कभी एक दुसरे के होंठो को जोरो से चूमती, कभी कांटती तो कभी एक दुसरे के स्तनों को दबाकर चुस्ती और फिर निप्पल को दांतों से कांटती. आखिर दोनों औरतें थी तो जानती थी कि कैसे एक दुसरे के स्तनों को मसल कर उन्हें आनंद देना है. ऐसा पल ऐसी उत्तेजना ऐसी कामुकता तो उन्होंने कभी किसी आदमी के साथ महसूस नहीं किया था. कुछ तो ख़ास था इस पल में जो इन लहराते हुए कोमल जिस्मो को इतना मादक बना रहे थे.

वहीँ कृति जीवन में पहली बार अपने लिंग का इस तरह एक औरत की योनी में कर रही थी. उसके लिए बिलकुल नया और कामुक अनुभव था ये. शिल्पा के स्तनों को दबाकर और उसकी योनी में अपने लिंग को डालकर इतना आनंद मिलेगा उसे, ऐसा तो उसने कभी सोची भी नहीं थी.

ये सच था कि उसके पति विशाल उसका लिंग कभी कभी चूसते थे, कभी खुद अपना लिंग कृति की गांड में डालते थे, उसका भी अपना मज़ा था पर ये पल तो उससे भी ज्यादा उतावला करने वाला था. और फिर लिपटते रगड़ते उन दोनों औरतों के नर्म जिस्म एक दुसरे में समाकर थोड़ी देर में शांत हो गए. दोनों औरतों के चेहरे पर एक अलग सी ख़ुशी थी. और दोनों एक दुसरे की बांहों में एक दुसरे को देखती रह गयी.

“भाभी, अब हम दोनों क्या करेंगी? इन सबका क्या मतलब है? हमारे रिश्तो का क्या होगा अब?”, शिल्पा ने अपने स्तनों पर लेटी हुई कृति के बालों को उँगलियों से सहलाते हुए पूछा. एक ही लाइन में बहुत कठिन सवाल कर दिए थे शिल्पा ने.

ये सवाल उसके मन को भी विचलित कर रहे थे. यदि कृति अपनी ननंद के साथ ये रिश्ता बनाये रखती है तो उसके पति विशाल का क्या होगा? अपने पति को छोड़कर वो शिल्पा के साथ क्या जीवन बिता सकती है? पर वो तो गलत होगा. आखिर विशाल उससे न जाने कितना ही प्यार करते है. और फिर उन्होंने उसे एक औरत होने का सम्मान दिलाया है जो शायद ही इस समाज में कृति जैसी औरत को कोई दिलाता. उसे एहसास था कि एक पत्नी होने का सौभाग्य उसे मिला है जो उसके जैसी औरतों के लिए बस एक सपना होता है. नहीं, वो विशाल को नहीं छोड़ सकती चाहे उसे शिल्पा के साथ जैसा भी लगा हो. पर शिल्पा के प्रति अपने आकर्षण का क्या करेगी वो?

“हम कुछ न कुछ करेंगे शिल्पा.” और फिर उसने शिल्पा के होंठो को अपने होंठो से चूसते हुए उसे दिलासा दिलाने की कोशिश की.

पर कृति का चुम्बन शिल्पा को दिलासा न दिला सका. कृति का लिंग अब नरम हो चूका था और अब भी शिल्पा की योनी में ही था. अपनी भाभी की साड़ी को पकड़कर उसके मखमली कपडे पर सुन्दर फूलो के प्रिंट को निहारती हुई शिल्पा भी कुछ विचारो में खो गयी थी. उसके दिल में अब एक चाहत घर कर गयी थी कि अब से उसकी भाभी सिर्फ और सिर्फ उसकी हो, किसी और की नहीं. पर वो अपने भैया के साथ ऐसा कैसे कर सकती है? जिस भाई और भाभी ने उसे इतना प्यार दिया था उन्ही का घर उजाड़ कर वो कैसे रह सकती है.

वैसे भी अपने भाई का जीवन यदि उसने बर्बाद कर दिया तो ये समाज उसके और कृति भाभी के रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा. और फिर कृति को भी समाज में इज्ज़त नहीं दिला सकेगी वो जो उसके भाई के साथ कृति को रहते हुए मिलती थी. उफ्फ.. ये कैसी स्थिति में फंस गयी थी ये दोनों औरतें. करे तो करे भी क्या ये दोनों अब? फिर भी जब तक इन सवालों का जवाब नहीं मिल जाता तब तक दोनों एक ही घर में साथ में खुश तो रह ही सकती है. शायद दोनों यही सोच रही थी और दोनों एक दुसरे की ओर मुस्कुरा कर देखने लगी.

दिन बित रहे थे और समय के साथ कृति और शिल्पा एक दुसरे के बेहद करीब आते जा रहे थे. और विशाल इन सबसे अनभिज्ञ थे. क्योंकि अपने पति के प्रति कृतज्ञ कृति अपने पति की भरपूर सेवा करती और वो सब कुछ करती जो एक पत्नी से अपेक्षित था.

शिल्पा का दिल भले धीरेन्द्र पर पूरी तरह से नहीं आया था पर वो अपनी भाभी की मजबूरी जानती थी, इसलिए जब धीरेन्द्र ने उससे शादी की बात की तो उसने हाँ कर दी थी.

कृति से बेहद प्यार करने लगी थी शिल्पा और शायद इसलिए उसने अपनी शादी के एक हफ्ते पहले एक रात उसने सुहागन के जोड़े में कृति के साथ अपनी सुहागरात मनाई थी.

पर फिर किस्मत ने भी ऐसा खेल खेला कि शिल्पा को पता चला कि वो माँ नहीं बन सकती है. डॉक्टर ने उसे बताया था कि धीरेन्द्र में ही कुछ कमी है. पर ये बात वो धीरेन्द्र को बताती तो वो तो बिलकुल टूट जाता. इसलिए उसने अपनी प्यारी कृति भाभी के साथ मिलकर तय किया कि वो कृति के अंश से अपनी कोख में बच्चा पैदा करेगी. और आखिर में उन दोनों की कोशिश रंग लायी और कृति ने अपने लंड के रस से शिल्पा को गर्भवती कर दिया था. कृति और शिल्पा को छोड़ कर इस राज़ को कोई भी नहीं जानता था.

और जब ९ महीने बाद शिल्पा ने जब एक प्यारे से बच्चे को जन्म दिया कृति ने तो सपने में भी नहीं सोची थी कि वो कभी एक माँ बन सकेगी, उसका अपना अंश उसकी गोद में खेलेगा. पर शायद किस्मत ने उसके और शिल्पा के बीच रिश्ता इसी वजह से बनाया था कि कृति एक औरत के साथ साथ एक माँ भी बन सके. कितनी भाग्यशाली थी कृति और कितना भाग्यशाली था वो बच्चा जिसकी दो मांएं थी!

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