• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery हवेली

Shetan

Well-Known Member
11,865
30,253
259
Late aane ka fayda huaa. Ek sath bahot sare updates padhne mile. Par ab to bekarari or jyada badh gai.

Ab to update ka muje bhi besabri se intjar rahega

Update please.
 

parkas

Prime
22,995
52,891
258
#१९



निर्मला की बात में दम था पर एक खामोश ईमारत जो वक्त की मार से जूझ रही थी अपनी चारदीवारी में भला ऐसा क्या छिपाए हुए थी जिसने मेरे वर्तमान को ठोकर मार दी थी , जब से मुझे अपने वजूद की तलाश के बारे में मालूम हुआ था मैं बेहद परेशान था एक ऐसी तलाश जिसका न कोई ओर था ना कोई छोर , उन किरदारों की तलाश जिन्हें मरे हुए मुद्दत हो चुकी थी.



पर मैंने भी ठानी थी की इस राज की बात चाहे कितनी भी गहराई में दबी हो उस को खोद निकालूँगा. मैंने एक सूची बनाई तमाम लोगो की जिसमे सबसे पहला नाम सोलह साल से कोमा में पड़े सक्श ठाकुर शौर्य सिंह का था . उसके तीन मर चुके बेटे, गायब बहु और बेटी. और दो नौकर जिसमे से एक अभी हाल ही में मरा और एक गाँव के बाहर तंगहाली में जी रही थी . और सबसे बड़ा सवाल की सरपंच जी का हवेली से क्या रिश्ता था , क्यों पाला उन्होंने मुझे . मैंने अपने प्राथमिक सवाल बना लिए थे बस अब इनके जवाब चाहिए थे मुझे और मैं जानता था की जवाब अगर कहीं है तो बस उसी हवेली में ही है .

एक बार फिर मैं कुवे पर बने उसी कमरे में मोजूद था ,इतना तो मैं जान गया था की यही पर ठाकुर लोग चुदाई करते थे पर किसकी हो सकता था गाँव की बहन-बेटियों की पर यहाँ बिखरे खून के सूख चुके कतरे मुझसे जैसे कह रहे थे की हमारी तरफ भी देख ले जरा. अगर किसी को यहाँ पर मारा गया था तो फिर उसके लिए ये जगह मुरीद नहीं थी , शौर्य सिंह चाहते तो किसी को दिन दिहाड़े मार सकते थे तो फिर ऐसे छुपा कर ये काम क्यों किया गया . टांड पर पड़ी ब्रांडेड ब्रा मेरी गाँव की किसी औरत की चुदाई की थ्योरी को मुह चिढ़ा रही थी , वो सच जिसे मैं मानना नहीं चाहता था वो सच ये था की यहाँ हवेली की ही कोई औरत चुदती थी .



मैं हवेली में घुसने के लिए भूषण की झोपडी के पास पहुंचा ही था की मुझे लगा अन्दर कोई है मैं दबे पाँव उस तरफ पहुंचा तो देखा की चंदा पूरी नंगी अलसाई सी पड़ी है , उसकी आँखे बंद थी, विशाल छतिया साँस लेने की वजह से ऊपर निचे हो रही थी .उसके पैर हलके से खुले और मेरी नजर उसकी गहरे झांटो से भरी चूत पर पड़ी जिस से रिस कर पानी जैसी बूंदे जांघो पर जम गयी थी . मामला साफ़ था थोड़ी देर पहले ही इसने चुदाई करवाई थी . और मैं बड़ी शिद्दत से ये जानना चाहता था की वो कौन था .



“खुले में ऐसे भोसड़ा खोल कर पड़ी रहोगी तो किसी का भी दिल करेगा न तुम्हारे ऊपर चढ़ने का ” मैंने उसकी तरफ निहारते हुए कहा .

चंदा ने झट से अपनी आँखे खोली पर वो मुझे देख कर चौंकी नहीं , उसने आराम से अपनी साडी उठाई , पहनी नहीं बस उस से बदन को ढक लिया और बोली- तुम यहाँ कैसे

मैं- यही बात मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ .

चंदा- तुम क्या मेरे लोग हो जो तुमको बताऊ , अकेली औरत को जीने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है ये सब भी उनमे से एक ही है .

मैं- मानता हूँ बस उत्सुकता है

चंदा- उत्सुकता की बत्ती बनाओ और अपने पिछवाड़े में डाल लो, मेरे घर में मेरे सामान की तलाशी लेकर तुमने अपनी औकात दिखाई है . मुझसे ही पूछ लेते क्या चाह थी तुमको

मैं- गलती थी मेरी , मैं बस जानना चाहता था की कहीं तुम ही तो वो औरत नहीं थी जो खेत वाले कमरे में ठाकुरों संग चुदती थी . तुम्हारे बक्से में रखे सामान ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया .

चंदा- हवेली बर्बाद हुई तो बहुत से लोगो के हिस्से में काफी कुछ आया , किसी के हिस्से में धन आया किसी के जमीन मेरे हिस्से में वो सब सामान आया .

मैं- हवेली में उस रात हुआ क्या था ये बताती क्यों नहीं तुम और तुम किस संग सो रही हो

चंदा- उस रात मौत आई थी हवेली में और मैं जिसके साथ भी सो रही हूँ ये मेरा निजी मामला है , मैं तुमको एक सलाह देती हूँ अपनी जिन्दगी जियो हवेली की दीवारों पर सर पटकने का कोई फायदा नहीं है .

मैं- मेरी जिन्दगी हवेली से ही जुडी है अब , मैं अपने वजूद की तलाश कर रहा हूँ

मेरी बात चुन कर चंदा उठी और थोडा झुक कर उसने मिटटी उठाई अपने हथेली में , जब वो ऐसा कर रही थी तो झुकने की वजह से उसकी गांड का घेराव मेरी आँखों से होते हुए सीने में आग को सुलगा गया . मैंने अपनी पेंट में हलचल मचते हुए महसूस की , पर अगले ही पल उसने अपनी हथेली में उठाई मिटटी को फूंक मार कर उड़ा दिया और बोली- ये है तुम्हारा वजूद . तुमको क्या लगता है की तुम हवेली के वारिस हो सकते हो रुपाली या कामिनी के बेटे . पर तुम ज्यादा से ज्यादा ठाकुरों का पाप हो सकते हो जिसे न जाने किसकी चूत में छोड़ दिया गया था . तुम्हे पालने की वजह तो मैं नहीं जानती पर दुआ करुँगी की ये खुमारी जल्दी ही उतर जाए .

मैं- जिस आदमी से तुम चुदती हो वो हवेली से ही जुड़ा है न , कहीं वो चांदनी के पिता तो नहीं


चंदा- अगली बार जब मुझे उसके साथ देखे तो उसी से पूछ लेना पर तेरी बात में मुझे दम लगता है क्योंकि मैं भी इस बारे में सोचती हूँ क्योंकि अगर सरपंच जी ने तुझे पाला तो बात गहरी रही होगी पर तू समझ नहीं पाया क्योंकि तुझमे वो काबिलियत नहीं है सरपंच जी ठाकुर इन्दर सिंह भाई थे रुपाली ठकुराइन के ...........................
Bahut hi badhiya update diya hai HalfbludPrince bhai....
Nice and lovely update....
 

Sushilnkt

Well-Known Member
2,885
5,226
143
निर्मला के साथ जिसका भी चक्कर होता है उसे बाकी सबका पता चल ही जाता है............ फौजी को भी बहुत पहले से पता है निर्मला से आपके चक्कर का :D


वैसे मुबारकबाद आपको............. आपका NKT अब जिला बन गया :congrats:
आपका शुक्रिया

वैसे ये फौजी कुछ छोड़ तब निर्मला मिले अपने को

ये हर जगह डाका मार देता है

एक वादा किया था।

वो पूरा नही करता
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
2,625
10,566
159
#१९



निर्मला की बात में दम था पर एक खामोश ईमारत जो वक्त की मार से जूझ रही थी अपनी चारदीवारी में भला ऐसा क्या छिपाए हुए थी जिसने मेरे वर्तमान को ठोकर मार दी थी , जब से मुझे अपने वजूद की तलाश के बारे में मालूम हुआ था मैं बेहद परेशान था एक ऐसी तलाश जिसका न कोई ओर था ना कोई छोर , उन किरदारों की तलाश जिन्हें मरे हुए मुद्दत हो चुकी थी.



पर मैंने भी ठानी थी की इस राज की बात चाहे कितनी भी गहराई में दबी हो उस को खोद निकालूँगा. मैंने एक सूची बनाई तमाम लोगो की जिसमे सबसे पहला नाम सोलह साल से कोमा में पड़े सक्श ठाकुर शौर्य सिंह का था . उसके तीन मर चुके बेटे, गायब बहु और बेटी. और दो नौकर जिसमे से एक अभी हाल ही में मरा और एक गाँव के बाहर तंगहाली में जी रही थी . और सबसे बड़ा सवाल की सरपंच जी का हवेली से क्या रिश्ता था , क्यों पाला उन्होंने मुझे . मैंने अपने प्राथमिक सवाल बना लिए थे बस अब इनके जवाब चाहिए थे मुझे और मैं जानता था की जवाब अगर कहीं है तो बस उसी हवेली में ही है .

एक बार फिर मैं कुवे पर बने उसी कमरे में मोजूद था ,इतना तो मैं जान गया था की यही पर ठाकुर लोग चुदाई करते थे पर किसकी हो सकता था गाँव की बहन-बेटियों की पर यहाँ बिखरे खून के सूख चुके कतरे मुझसे जैसे कह रहे थे की हमारी तरफ भी देख ले जरा. अगर किसी को यहाँ पर मारा गया था तो फिर उसके लिए ये जगह मुरीद नहीं थी , शौर्य सिंह चाहते तो किसी को दिन दिहाड़े मार सकते थे तो फिर ऐसे छुपा कर ये काम क्यों किया गया . टांड पर पड़ी ब्रांडेड ब्रा मेरी गाँव की किसी औरत की चुदाई की थ्योरी को मुह चिढ़ा रही थी , वो सच जिसे मैं मानना नहीं चाहता था वो सच ये था की यहाँ हवेली की ही कोई औरत चुदती थी .



मैं हवेली में घुसने के लिए भूषण की झोपडी के पास पहुंचा ही था की मुझे लगा अन्दर कोई है मैं दबे पाँव उस तरफ पहुंचा तो देखा की चंदा पूरी नंगी अलसाई सी पड़ी है , उसकी आँखे बंद थी, विशाल छतिया साँस लेने की वजह से ऊपर निचे हो रही थी .उसके पैर हलके से खुले और मेरी नजर उसकी गहरे झांटो से भरी चूत पर पड़ी जिस से रिस कर पानी जैसी बूंदे जांघो पर जम गयी थी . मामला साफ़ था थोड़ी देर पहले ही इसने चुदाई करवाई थी . और मैं बड़ी शिद्दत से ये जानना चाहता था की वो कौन था .



“खुले में ऐसे भोसड़ा खोल कर पड़ी रहोगी तो किसी का भी दिल करेगा न तुम्हारे ऊपर चढ़ने का ” मैंने उसकी तरफ निहारते हुए कहा .

चंदा ने झट से अपनी आँखे खोली पर वो मुझे देख कर चौंकी नहीं , उसने आराम से अपनी साडी उठाई , पहनी नहीं बस उस से बदन को ढक लिया और बोली- तुम यहाँ कैसे

मैं- यही बात मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ .

चंदा- तुम क्या मेरे लोग हो जो तुमको बताऊ , अकेली औरत को जीने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है ये सब भी उनमे से एक ही है .

मैं- मानता हूँ बस उत्सुकता है

चंदा- उत्सुकता की बत्ती बनाओ और अपने पिछवाड़े में डाल लो, मेरे घर में मेरे सामान की तलाशी लेकर तुमने अपनी औकात दिखाई है . मुझसे ही पूछ लेते क्या चाह थी तुमको

मैं- गलती थी मेरी , मैं बस जानना चाहता था की कहीं तुम ही तो वो औरत नहीं थी जो खेत वाले कमरे में ठाकुरों संग चुदती थी . तुम्हारे बक्से में रखे सामान ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया .

चंदा- हवेली बर्बाद हुई तो बहुत से लोगो के हिस्से में काफी कुछ आया , किसी के हिस्से में धन आया किसी के जमीन मेरे हिस्से में वो सब सामान आया .

मैं- हवेली में उस रात हुआ क्या था ये बताती क्यों नहीं तुम और तुम किस संग सो रही हो

चंदा- उस रात मौत आई थी हवेली में और मैं जिसके साथ भी सो रही हूँ ये मेरा निजी मामला है , मैं तुमको एक सलाह देती हूँ अपनी जिन्दगी जियो हवेली की दीवारों पर सर पटकने का कोई फायदा नहीं है .

मैं- मेरी जिन्दगी हवेली से ही जुडी है अब , मैं अपने वजूद की तलाश कर रहा हूँ

मेरी बात चुन कर चंदा उठी और थोडा झुक कर उसने मिटटी उठाई अपने हथेली में , जब वो ऐसा कर रही थी तो झुकने की वजह से उसकी गांड का घेराव मेरी आँखों से होते हुए सीने में आग को सुलगा गया . मैंने अपनी पेंट में हलचल मचते हुए महसूस की , पर अगले ही पल उसने अपनी हथेली में उठाई मिटटी को फूंक मार कर उड़ा दिया और बोली- ये है तुम्हारा वजूद . तुमको क्या लगता है की तुम हवेली के वारिस हो सकते हो रुपाली या कामिनी के बेटे . पर तुम ज्यादा से ज्यादा ठाकुरों का पाप हो सकते हो जिसे न जाने किसकी चूत में छोड़ दिया गया था . तुम्हे पालने की वजह तो मैं नहीं जानती पर दुआ करुँगी की ये खुमारी जल्दी ही उतर जाए .

मैं- जिस आदमी से तुम चुदती हो वो हवेली से ही जुड़ा है न , कहीं वो चांदनी के पिता तो नहीं


चंदा- अगली बार जब मुझे उसके साथ देखे तो उसी से पूछ लेना पर तेरी बात में मुझे दम लगता है क्योंकि मैं भी इस बारे में सोचती हूँ क्योंकि अगर सरपंच जी ने तुझे पाला तो बात गहरी रही होगी पर तू समझ नहीं पाया क्योंकि तुझमे वो काबिलियत नहीं है सरपंच जी ठाकुर इन्दर सिंह भाई थे रुपाली ठकुराइन के ...........................


Behad shandar update he HalfbludPrince Fauji Bhai,

Chanda ne to ek naya dhamaka kar diya................

Keep posting Bhai
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,053
83,848
259
#20



चंदा की कही बात का बोझ बहुत था इतना ज्यादा की मैंने अपने घुटनों को कांपता हुआ महसूस किया. कुछ देर ख़ामोशी रही पर उस ख़ामोशी को तोडना अब जरुरी था

मैं- मैं कैसे नहीं जानता इस बात को

चंदा- क्योंकि अब कुछ बचा ही नहीं न हवेली, न रुपाली न कोई और . बस एक तुम ही हो जो पुराणी मिटटी खोद रहे हो .

मैं- जानती तो तुम बहुत कुछ हो न हवेली के बारे में पर बताओगी नहीं

चंदा- जितना जानती हूँ बताया तुमको और मैं कसम उठा सकती हूँ की मैं बिलकुल नहीं जानती की रुपाली ठकुराइन और कामिनी के साथ क्या हुआ आज वो दोनों है तो कहाँ है , बस इतना जरुर कहूँगी की तुम इस खोज में अकेले नहीं हो तुमसे पहले कोई और भी है जो उनको तलाश रहा है

मैं- कौन

चंदा- चांदनी

मैं- किसलिए

चंदा- शायद उसे भी लगता है की वो हवेली की असली वारिस है

मैं- लगने की क्या बात है , हवेली उसकी ही तो है

चंदा- यही तो बात है तुमको भी लगता है की हवेली चांदनी या उसके भाई की है पर हकीकत में हवेली की एक मात्र हक़दार, उसकी वारिस अगर कोई है तो वो है रुपाली ठकुराइन जो पिछले सोलह साल से गायब है वसीयत में उनका नाम है और वसीयत को बदलने की शक्ति रखने वाला इन्सान खुद कोमा में पड़ा है , नियति के अजीब रंग है .

मैं- देखो चंदा , न जाने क्यों मुझे लगता है की तुम इस कहानी की मजबूत कड़ी हो वो कड़ी जो इस कहानी के हर लम्हे में मोजूद थी , जिसने अपनी आँखों से इस कहानी को देखा है अगर तुम सच में मेरी मदद करोगी तो मैं तुम्हे बहुत कुछ दे सकता हूँ

चंदा- हंसी आती है तुम्हारी इस नादानी पर , न जाने तुम लोगो को क्यों लगता है की पैसे से हर चीज पाई जा सकती है . हवेली के चप्पे चप्पे से वाकिफ हूँ मैं अगर मुझे धन की चाह होती तो आज भी कहाँ कहाँ गड्डी पड़ी है मुझसे बेहतर कौन जानता है .

मैं- तो क्या चाहिए तुमको

चंदा- मैं बस जीना चाहती हूँ अपने हिस्से की शांति चाहिए मुझे

मैं- अक्सर शांति की तलाश उनको ही रहती है जिनका बहुत कुछ अशांति ने छीन लिया हो

चंदा- मेरे पास है ही क्या जो कोई छीन लेगा. ले देकर गरीब के पास इज्जत ही तो होती है जो तुम जैसे रसूखदारों के बिस्तर पर पड़ी रहती है .

मैं- कुछ घाव बहुत गहरे होते है जो आत्मा पर पड़ते है चंदा , हवेली में कुछ तो ऐसा हुआ था जिसने तुम्हारे मन में नफरत के बीज बो दिए . बेशक तुम ठाकुरों का बिस्तर गर्म कर रही थी पर हवेली के नौकरों की जेबे हमेशा भरी रहती थी . न जाने क्या रोक रहा है तुम्हे मुझे वो सब बताने को

चंदा- जिस चीज के बारे में मैं जानती ही नहीं वो कैसे बता दू तुमको .

मैं- ठाकुर इन्दर और कामिनी क्या सच में एक दुसरे से प्यार करते थे

चंदा- नहीं जानती,

मैं- हवेली की नौकरानी से ये बात छुपी भी तो नहीं रह सकती न

चंदा- मैं नहीं जानती , ठाकुर इन्दर सिंह और कामिनी दोनों स्वभाव से एक दुसरे के बहुत विपरीत थे, इन्दर का ज्यादातर समय पुरुषोत्तम के साथ शिकार खेलने में बीतता था , जबकि कामिनी ज्यादातर अपने कमरे में ही रहती थी , बहुत कम बाहर निकलती थी कभी कभी खेतो की तरफ घुमने जाती थी पर कभी कभी .

मैं- कामिनी की डायरी में शायरिया लिखी थी , मतलब साफ़ था उसके दिल में कुछ तो था किसी के लिए

चंदा- जवान लड़की थी हो सकता है . बाप भाइयो के रुतबे तले दबा उसका मन उड़ना चाहता होगा.

मैंने सर हिला कर चंदा की बात का समर्थन किया . उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और झोपडी से बाहर निकल गयी . मैं चाह कर भी चंदा के किरदार को समझ नही पा रहा था . दूसरी तरफ मैं सोच रहा था की ठाकुर इन्दर सिंह ने मुझे क्यों पाला , क्या मैं सच में कामिनी और उनका बेटा हो सकता हूँ . इस कहानी में भला मेरा क्या रोल था .



मैंने हवेली में जाने का विचार त्यागा और वापिस से अपने घर आ गया . मैंने एक बार फिर से सरपंच जी के सामान की तलाशी लेने का सोचा, डायरी में जो फ़ोन नम्बर था वो इसलिए था की दोनों परिवार आपस में रिश्तेदार थे. पर अगर रुपाली इस घर की बेटी थी तो फिर कमसेकम यहाँ पर उसकी कोई तो तस्वीर होनी चाहिए थी न , मैं उस चेहरे को तलाश कर रहा था जो कैसा दीखता था मैं जानता ही नहीं था .

तलाशी में मेरी नजर एक ऐसी चीज पर पड़ी जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया , एक पुराणी तस्वीर के पीछे अख़बार की एक कटिंग को गोंद से चिपकाया गया था जिस पर छपी खबर की तारीख ने मेरे दिमाग में दर्द कर दिया .
 

ranipyaarkidiwani

Rajit singh
406
681
94
#20



चंदा की कही बात का बोझ बहुत था इतना ज्यादा की मैंने अपने घुटनों को कांपता हुआ महसूस किया. कुछ देर ख़ामोशी रही पर उस ख़ामोशी को तोडना अब जरुरी था

मैं- मैं कैसे नहीं जानता इस बात को

चंदा- क्योंकि अब कुछ बचा ही नहीं न हवेली, न रुपाली न कोई और . बस एक तुम ही हो जो पुराणी मिटटी खोद रहे हो .

मैं- जानती तो तुम बहुत कुछ हो न हवेली के बारे में पर बताओगी नहीं

चंदा- जितना जानती हूँ बताया तुमको और मैं कसम उठा सकती हूँ की मैं बिलकुल नहीं जानती की रुपाली ठकुराइन और कामिनी के साथ क्या हुआ आज वो दोनों है तो कहाँ है , बस इतना जरुर कहूँगी की तुम इस खोज में अकेले नहीं हो तुमसे पहले कोई और भी है जो उनको तलाश रहा है

मैं- कौन

चंदा- चांदनी

मैं- किसलिए

चंदा- शायद उसे भी लगता है की वो हवेली की असली वारिस है

मैं- लगने की क्या बात है , हवेली उसकी ही तो है

चंदा- यही तो बात है तुमको भी लगता है की हवेली चांदनी या उसके भाई की है पर हकीकत में हवेली की एक मात्र हक़दार, उसकी वारिस अगर कोई है तो वो है रुपाली ठकुराइन जो पिछले सोलह साल से गायब है वसीयत में उनका नाम है और वसीयत को बदलने की शक्ति रखने वाला इन्सान खुद कोमा में पड़ा है , नियति के अजीब रंग है .

मैं- देखो चंदा , न जाने क्यों मुझे लगता है की तुम इस कहानी की मजबूत कड़ी हो वो कड़ी जो इस कहानी के हर लम्हे में मोजूद थी , जिसने अपनी आँखों से इस कहानी को देखा है अगर तुम सच में मेरी मदद करोगी तो मैं तुम्हे बहुत कुछ दे सकता हूँ

चंदा- हंसी आती है तुम्हारी इस नादानी पर , न जाने तुम लोगो को क्यों लगता है की पैसे से हर चीज पाई जा सकती है . हवेली के चप्पे चप्पे से वाकिफ हूँ मैं अगर मुझे धन की चाह होती तो आज भी कहाँ कहाँ गड्डी पड़ी है मुझसे बेहतर कौन जानता है .

मैं- तो क्या चाहिए तुमको

चंदा- मैं बस जीना चाहती हूँ अपने हिस्से की शांति चाहिए मुझे

मैं- अक्सर शांति की तलाश उनको ही रहती है जिनका बहुत कुछ अशांति ने छीन लिया हो

चंदा- मेरे पास है ही क्या जो कोई छीन लेगा. ले देकर गरीब के पास इज्जत ही तो होती है जो तुम जैसे रसूखदारों के बिस्तर पर पड़ी रहती है .

मैं- कुछ घाव बहुत गहरे होते है जो आत्मा पर पड़ते है चंदा , हवेली में कुछ तो ऐसा हुआ था जिसने तुम्हारे मन में नफरत के बीज बो दिए . बेशक तुम ठाकुरों का बिस्तर गर्म कर रही थी पर हवेली के नौकरों की जेबे हमेशा भरी रहती थी . न जाने क्या रोक रहा है तुम्हे मुझे वो सब बताने को

चंदा- जिस चीज के बारे में मैं जानती ही नहीं वो कैसे बता दू तुमको .

मैं- ठाकुर इन्दर और कामिनी क्या सच में एक दुसरे से प्यार करते थे

चंदा- नहीं जानती,

मैं- हवेली की नौकरानी से ये बात छुपी भी तो नहीं रह सकती न

चंदा- मैं नहीं जानती , ठाकुर इन्दर सिंह और कामिनी दोनों स्वभाव से एक दुसरे के बहुत विपरीत थे, इन्दर का ज्यादातर समय पुरुषोत्तम के साथ शिकार खेलने में बीतता था , जबकि कामिनी ज्यादातर अपने कमरे में ही रहती थी , बहुत कम बाहर निकलती थी कभी कभी खेतो की तरफ घुमने जाती थी पर कभी कभी .

मैं- कामिनी की डायरी में शायरिया लिखी थी , मतलब साफ़ था उसके दिल में कुछ तो था किसी के लिए

चंदा- जवान लड़की थी हो सकता है . बाप भाइयो के रुतबे तले दबा उसका मन उड़ना चाहता होगा.

मैंने सर हिला कर चंदा की बात का समर्थन किया . उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और झोपडी से बाहर निकल गयी . मैं चाह कर भी चंदा के किरदार को समझ नही पा रहा था . दूसरी तरफ मैं सोच रहा था की ठाकुर इन्दर सिंह ने मुझे क्यों पाला , क्या मैं सच में कामिनी और उनका बेटा हो सकता हूँ . इस कहानी में भला मेरा क्या रोल था .



मैंने हवेली में जाने का विचार त्यागा और वापिस से अपने घर आ गया . मैंने एक बार फिर से सरपंच जी के सामान की तलाशी लेने का सोचा, डायरी में जो फ़ोन नम्बर था वो इसलिए था की दोनों परिवार आपस में रिश्तेदार थे. पर अगर रुपाली इस घर की बेटी थी तो फिर कमसेकम यहाँ पर उसकी कोई तो तस्वीर होनी चाहिए थी न , मैं उस चेहरे को तलाश कर रहा था जो कैसा दीखता था मैं जानता ही नहीं था .


तलाशी में मेरी नजर एक ऐसी चीज पर पड़ी जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया , एक पुराणी तस्वीर के पीछे अख़बार की एक कटिंग को गोंद से चिपकाया गया था जिस पर छपी खबर की तारीख ने मेरे दिमाग में दर्द कर दिया .
Dimaag se khel rahe ho bhai tum
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
14,239
30,091
244
#20



चंदा की कही बात का बोझ बहुत था इतना ज्यादा की मैंने अपने घुटनों को कांपता हुआ महसूस किया. कुछ देर ख़ामोशी रही पर उस ख़ामोशी को तोडना अब जरुरी था

मैं- मैं कैसे नहीं जानता इस बात को

चंदा- क्योंकि अब कुछ बचा ही नहीं न हवेली, न रुपाली न कोई और . बस एक तुम ही हो जो पुराणी मिटटी खोद रहे हो .

मैं- जानती तो तुम बहुत कुछ हो न हवेली के बारे में पर बताओगी नहीं

चंदा- जितना जानती हूँ बताया तुमको और मैं कसम उठा सकती हूँ की मैं बिलकुल नहीं जानती की रुपाली ठकुराइन और कामिनी के साथ क्या हुआ आज वो दोनों है तो कहाँ है , बस इतना जरुर कहूँगी की तुम इस खोज में अकेले नहीं हो तुमसे पहले कोई और भी है जो उनको तलाश रहा है

मैं- कौन

चंदा- चांदनी

मैं- किसलिए

चंदा- शायद उसे भी लगता है की वो हवेली की असली वारिस है

मैं- लगने की क्या बात है , हवेली उसकी ही तो है

चंदा- यही तो बात है तुमको भी लगता है की हवेली चांदनी या उसके भाई की है पर हकीकत में हवेली की एक मात्र हक़दार, उसकी वारिस अगर कोई है तो वो है रुपाली ठकुराइन जो पिछले सोलह साल से गायब है वसीयत में उनका नाम है और वसीयत को बदलने की शक्ति रखने वाला इन्सान खुद कोमा में पड़ा है , नियति के अजीब रंग है .

मैं- देखो चंदा , न जाने क्यों मुझे लगता है की तुम इस कहानी की मजबूत कड़ी हो वो कड़ी जो इस कहानी के हर लम्हे में मोजूद थी , जिसने अपनी आँखों से इस कहानी को देखा है अगर तुम सच में मेरी मदद करोगी तो मैं तुम्हे बहुत कुछ दे सकता हूँ

चंदा- हंसी आती है तुम्हारी इस नादानी पर , न जाने तुम लोगो को क्यों लगता है की पैसे से हर चीज पाई जा सकती है . हवेली के चप्पे चप्पे से वाकिफ हूँ मैं अगर मुझे धन की चाह होती तो आज भी कहाँ कहाँ गड्डी पड़ी है मुझसे बेहतर कौन जानता है .

मैं- तो क्या चाहिए तुमको

चंदा- मैं बस जीना चाहती हूँ अपने हिस्से की शांति चाहिए मुझे

मैं- अक्सर शांति की तलाश उनको ही रहती है जिनका बहुत कुछ अशांति ने छीन लिया हो

चंदा- मेरे पास है ही क्या जो कोई छीन लेगा. ले देकर गरीब के पास इज्जत ही तो होती है जो तुम जैसे रसूखदारों के बिस्तर पर पड़ी रहती है .

मैं- कुछ घाव बहुत गहरे होते है जो आत्मा पर पड़ते है चंदा , हवेली में कुछ तो ऐसा हुआ था जिसने तुम्हारे मन में नफरत के बीज बो दिए . बेशक तुम ठाकुरों का बिस्तर गर्म कर रही थी पर हवेली के नौकरों की जेबे हमेशा भरी रहती थी . न जाने क्या रोक रहा है तुम्हे मुझे वो सब बताने को

चंदा- जिस चीज के बारे में मैं जानती ही नहीं वो कैसे बता दू तुमको .

मैं- ठाकुर इन्दर और कामिनी क्या सच में एक दुसरे से प्यार करते थे

चंदा- नहीं जानती,

मैं- हवेली की नौकरानी से ये बात छुपी भी तो नहीं रह सकती न

चंदा- मैं नहीं जानती , ठाकुर इन्दर सिंह और कामिनी दोनों स्वभाव से एक दुसरे के बहुत विपरीत थे, इन्दर का ज्यादातर समय पुरुषोत्तम के साथ शिकार खेलने में बीतता था , जबकि कामिनी ज्यादातर अपने कमरे में ही रहती थी , बहुत कम बाहर निकलती थी कभी कभी खेतो की तरफ घुमने जाती थी पर कभी कभी .

मैं- कामिनी की डायरी में शायरिया लिखी थी , मतलब साफ़ था उसके दिल में कुछ तो था किसी के लिए

चंदा- जवान लड़की थी हो सकता है . बाप भाइयो के रुतबे तले दबा उसका मन उड़ना चाहता होगा.

मैंने सर हिला कर चंदा की बात का समर्थन किया . उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और झोपडी से बाहर निकल गयी . मैं चाह कर भी चंदा के किरदार को समझ नही पा रहा था . दूसरी तरफ मैं सोच रहा था की ठाकुर इन्दर सिंह ने मुझे क्यों पाला , क्या मैं सच में कामिनी और उनका बेटा हो सकता हूँ . इस कहानी में भला मेरा क्या रोल था .



मैंने हवेली में जाने का विचार त्यागा और वापिस से अपने घर आ गया . मैंने एक बार फिर से सरपंच जी के सामान की तलाशी लेने का सोचा, डायरी में जो फ़ोन नम्बर था वो इसलिए था की दोनों परिवार आपस में रिश्तेदार थे. पर अगर रुपाली इस घर की बेटी थी तो फिर कमसेकम यहाँ पर उसकी कोई तो तस्वीर होनी चाहिए थी न , मैं उस चेहरे को तलाश कर रहा था जो कैसा दीखता था मैं जानता ही नहीं था .


तलाशी में मेरी नजर एक ऐसी चीज पर पड़ी जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया , एक पुराणी तस्वीर के पीछे अख़बार की एक कटिंग को गोंद से चिपकाया गया था जिस पर छपी खबर की तारीख ने मेरे दिमाग में दर्द कर दिया .
ये चंदा खेल रही है। यही सबकी असली कड़ी है

या यही तो है वो जिसकी तलाश है सबको
 
Top