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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

vakharia

Supreme
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174
Uffffff Sheela ki aisi ghamasa chudai padh kar kya hi kahu...

waha Sheela ki gaand aur muh mein jiva aur raghu ne tyaagpatr diya aur yhaan hamara tyaagpatr nikal gaya.... 😂😂
aur ye ek naya twist aya... Anu Mausi.... jisne ye sab sun liya.....dekhte hain aagey kya hoga
Thanks💕❤️💕
 

vakharia

Supreme
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एक ही दिन में शीला और रेणुका एकदम खास सहेलियाँ बन गई.. रात को दोनों ने ब्लू फिल्म की डीवीडी देखते हुए लेस्बियन सेक्स का मज़ा लिया.. फिर एक ही बिस्तर पर नंगी होकर दोनों पड़ी रही.. एक दूसरे के अंगों से खेलते हुए देर तक बातें करती रही.. समाज की.. घर की.. पति की.. पड़ोसियों की.. बातें करते करते एक दूसरे की बाहों में कब सो गई दोनों को पता ही नहीं चला..

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सुबह पाँच बजे जब रसिक दूध देने आया तब शीला की आँख खुली.. नंगे बदन पर फटाफट गाउन पहनकर शीला दूध लेने बाहर आई.. रसिक शीला को देखकर हमेशा तुरंत उत्तेजित हो जाता.. उसने शीला के स्तनों को छेड़ते हुए दबा दिया और बोला "आज बहोत मन कर रहा है करने का भाभी.. क्या माल लग रही हो आप आज तो!!" शीला के गाउन के अंदर हाथ डालकर उसके स्तन मसलते हुए उसने कहा "अंदर आ जाऊ भाभी?"

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शीला: "आज नहीं रसिक.. आज घर में मेहमान आए हुए है.. "

रसिक: "आप भी ना भाभी.. कभी कभी ही आपसे करने के लिए बोलता हूँ और आप मना कर रही हो"

शीला: "धीरे बॉल रसिक.. मेहमान अंदर सो रहे है.. जाग जाएंगे तो मुसीबत आन पड़ेगी.. वरना मैंने तुझे कभी मना किया है कभी.. ?? आज नहीं हो पाएगा.. तू निकल जल्दी से"

रसिक उदास होकर शीला के स्तन दबाता रहा.. उसका लंड खड़ा हो गया था.. वो चुपचाप खड़ा रहा पर उसने शीला के स्तन नहीं छोड़े..

शीला: "ठीक है.. तू रुक यहाँ " शीला बेडरूम में जाकर देख आई.. रेणुका गहरी नींद में सो रही थी। वो दबे पाँव वापिस आई

शीला: "देख रसिक.. अंदर डालने का सेटिंग तो नहीं हो पाएगा.. मैं तेरा हिला देती हूँ"

शीला ने रसिक की धोती में हाथ डालकर उसका लंड बाहर निकाल लिया.. लोहे के सरिये जैसा सख्त लंड हाथ में लेकर शीला हिलाने लगी.. रसिक शीला के गाउन को उठाकर उसकी चुत में उंगली घिसने लगा.. एक ही मिनट तक ये खेल चला और रसिक के लंड ने पिचकारी छोड़ दी.. शीला की चुत रसिक की उंगली के स्पर्श से पानी पानी हो गई थी.. शीला ने झुककर रसिक के झड़े हुए लंड को चूम लिया और उसे धोती के अंदर रख दिया.. रसिक चला गया

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शीला दूध की पतीली को गेस पर गरम करने रखकर रेणुका की बगल में लेट गई.. उसने गहरी नींद सो रही रेणुका की नंगी चूचियों को ध्यान से देखा.. उसकी हर सांस के साथ चूचियाँ ऊपर नीचे हो रही थी.. शीला ने उन सुंदर स्तनों को हाथ में लिया.. रसिक के स्पर्श से गीली हो चुकी चुत को सहलाते हुए वो रेणुका के स्तनों को मींजने लगी.. तीन उँगलियाँ अपनी भोस में डालकर रसिक मे मर्दाना लंड को याद करते हुए शीला झड़ गई.. रेणुका अब भी नींद में थी.. ऑर्गैज़म का सुख प्राप्त करते ही शीला की आँख लग गई.. जब वो जागी तब रेणुका बिस्तर पर नहीं थी.. शीला ने सोचा की रेणुका बाथरूम में गई होगी.. तभी उसे याद आया.. अरे बाप रे.. दूध गरम करने रखा था वो तो भूल ही गई.. !!! वो भागकर किचन में आई.. रेणुका वहीं खड़ी थी.. चाय बना रही थी.. चाय को छान रही रेणुका को पीछे से बाहों में भर लिया शीला ने और कहा "गुड मॉर्निंग रेणुका.. !!"

पीछे झुककर शीला के स्तनों को दबाकर रेणुका ने भी गुड मॉर्निंग कहा.. "तुम सो रही थी इसलिए मैंने जगाया नहीं.. किचन में आकर देखा तो दूध उबल रहा था.. थोड़ी ओर देर हो जाती तो सारे दूध का सत्यानाश हो जाता.. "

रेणुका के स्तनों को हाथों से मलते हुए शीला ने कहा "थैंक्स रेणुका.. तुझे नींद तो ठीक से आ गई थी ना ??"

रेणुका: "हाँ हाँ.. एकदम घर जैसी नींद आ गई थी मुझे तो.. " चाय छान कर किटली में भरते हुए कहा

दोनों ने ब्रश किया और चाय पीकर एकदम आराम से बैठ गई.. सिर्फ एक ही दिन में शीला का सारा अकेलापन दूर हो गया.. नहा-धो कर दोनों फ्रेश हो गई और बातें करने लगी.. शीला ने रेणुका को चेतना के बारे में बताया.. रेणुका ने भी दिल खोलकर अपनी सारी बातें शीला को बताई

रेणुका: "शीला.. मेरे पड़ोस में एक आदमी रहता है.. वो मुझे रोज ताड़ता है.. मैं जब तक बाहर कपड़े सुखाती हूँ.. वो घर के बाहर खड़ा मुझे देखतय ही रहता है.. मेरे घर के अंदर जाने के बाद ही वो हटता है.. उसका देखना मुझे अच्छा भी लगता है.. इस उम्र में भी कोई हमें देखता है ये जानकर दिल खुश हो जाता है.. "

शीला: "वो तो है.. वैसे तेरी उम्र इतनी ज्यादा भी नहीं है.. उम्र तो अब मेरी हो चली है.. "

रेणुका: "फिर भी इस उम्र में आप सेक्स में इतनी एक्टिव हो ये ताज्जुब की बात है.. वरना आप के उम्र की औरतें भजन कीर्तन करते हुए मरने के इंतज़ार में बैठी रहती है.. सच में.. आपकी फुर्ती और एनर्जी की दाद देनी पड़ेगी.. "

शीला: "देख रेणुका.. मैं और मेरा पति बड़ी ही स्वस्थ विचारधारा रखते है.. वो कहते है की हमारा शरीर बूढ़ा हो जाएँ वो प्रकृति का नियम है.. पर हम मन से चाहे तब तक जवान रह सकते है.. और जहां तक मन से जवान है तब तक संभोग का पूरा आनंद लेते रहना चाहिए.. "

शीला की बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी रेणुका.. उसे ये तो अंदाजा लग ही गया था की शीला कोई साधारण स्त्री नहीं थी.. उसके अंदर कुछ ऐसी विशेषता थी जो अपने संग जुड़े सब को जवान बनाए रखने के लिए काबिल थी..

रेणुका: "तेरी बात बिल्कुल सही है शीला.. हम मन से कितने भी जवान क्यों न हो.. हमारा पार्टनर भी सहयोग देना चाहिए ना!! मेरी जिंदगी तो मेले के चक्कर जैसी है.. मेरा पति और मैं कभी साथ होते ही नहीं है.. !! क्या करू मैं??"

शीला: "रेणुका, मर्द को तैयार करना ये हमारा बाएं हाथ का खेल है.. तुझे पता है.. १००० साल की विश्वामित्र की तपस्या का भंग रंभा ने कैसे किया था?? पति को उत्तेजित करने के लिए जो भी करना पड़े वो सब करना है.. पूरे इन्टरेस्ट के साथ.. पति थका हुआ हो सकता है.. लेकिन उसका लंड तो तैयार कर ही सकते है ना!! और हमें तो उसका ही काम है.."

रेणुका: "अब क्या बताऊँ तुम्हें.. मैं उनका सहलाती हूँ.. तो उनका लंड खड़ा तो हो जाता है.. पर तब तक तो उनके खर्राटें शुरू हो जाते है.. फिर क्या मतलब सारी मेहनत का!!"

शीला हँसते हुए: "बड़ा आसान है.. समस्या तो तब आती है जब पति जाग रहा हो और लंड खर्राटे लेकर सो रहा हो.. वो भले ही सो गए हो.. तू ऊपर चढ़कर चुदवा ले.. हमें तो लंड से मतलब है ना!! वो हमें सामने से मिले या हम खुद ही ले ले.. क्या फरक पड़ता है!! अपनी आग बुझाने से हमें मतलब है.. बाकी दुनिया जाएँ भाड़ में.. !!"

दोनों बातों में उलझी हुई थी तभी शीला के घर कविता आई..

कविता: "कैसे हो भाभी? आप तो जैसे मुझे भूल ही गए.. कहीं मेरी सास ने तो मना नहीं किया है ना आपको?"

शीला: "ओहह कविता.. बैठ ना.. " शीला ने रेणुका से परिचय करवाया कविता का.. "महिला मण्डल से खींचकर लाई हूँ इसे.. अपने मण्डल में शामिल करने को.. अच्छा किया ना मैंने!!"

कविता: "हाई रेणुका.. कैसी हो आप?"

कविता की जवान छाती.. और स्टार्च की हुई चादर जैसी कडक कोरी जवानी को रेणुका अहोभाव से देखती रही.. कविता भी रेणुका के भरे हुए जोबन को ललचाई नजर से देखते हुए सोफ़े पर बैठ गई..

शीला: "कैसे आना हुआ कविता??"

कविता: "कुछ नहीं भाभी.. घर का काम निपटा लिया था.. बैठे बैठे बोर हो रही थी.. सोचा आप से मिल लूँ.. आप तो मुझे भूल गई पर मैं आपको भूलने थोड़े ही दूँगी" वह खिलखिलाकर हंसने लगी..

रेणुका इस प्यारी सी कोमल नाजुक कन्या को देखती रही.. जब कविता झुकती थी तब उसके टॉप में से छोटे छोटे दो स्तनों के बीच की सुंदर लकीर रेणुका के मन को भा गई.. लकीर कोई भी हो.. दो स्तनों के बीच.. कमर की चर्बी के बीच या फिर दो पैरों के बीच.. हमेशा आकर्षित करती है.. स्त्री का सौन्दर्य ढंका हुआ रखकर ज्यादा आनंद देता है.. रेणुका तो कविता के बात करने के लहजे से खुश हो गई..मंदिर की घंटी जैसी सुमधुर आवाज थी कविता की.. रेणुका कविता से अब तक खुलकर बात नहीं कर रही थी.. बस उसका निरीक्षण कर रही थी.. उसे भला ये कहाँ मालूम था की शीला ने इस कविता को भी अपनी जाल में लपेट रखा है!! वैसे कविता और शीला तो खुलकर बातें कर रही थी पर रेणुका की मौजूदगी से कविता भी थोड़ी सी झिझक महसूस कर रही थी.. और वो स्वाभाविक था क्योंकी वह दोनों पहली बार मिल रही थी..

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पिछली रात शीला और रेणुका ने मस्त लेस्बियन सेक्स का आनंद लिया हुआ था इसलिए दोनों शांत बैठी थी.. और दो दिन पहले कविता ने भी बड़े मजे किए थे.. कविता और शीला एक डाल के पंछी थे.. और उसी डाल पर अब रेणुका नाम का पंछी बैठने जा रहा था..

कविता ने शीला से कहा: "मैं आपसे एक बात करने आई हूँ"

शीला: "हाँ बोल ना.. क्या बात है?"

कविता: "भाभी.. पीयूष जहां नौकरी करता है वहाँ से उसे निकाल दिया गया है.. वो बहोत उदास है.. सुबह से कुछ खाया भी नहीं है उसने.. आप पीयूष को कुछ समझाइए ना प्लीज.. मम्मीजी ने भी कहलवाया है.. चिंता हो रही है उसे इस तरह देख कर.. " उसके खूबसूरत चेहरे पर चिंता की रेखाएं स्पष्ट नजर आ रही थी

शीला: "टेंशन क्यों ले रही है पगली.. !! एक नौकरी गई तो दूसरी मिल जाएगी.. चिंता मत कर.. सब ठीक हो जाएगा.. तेरा पीयूष लाखों में एक है.. ऐसे होनहार लड़के को दूसरी नौकरी मिलने में देर नहीं लगेगी"

रेणुका इन दोनों की बातों के बीच में टोकना नहीं चाहती थी इसलिए चुप रही.. पर उसके मन में स्त्री सहज सहानुभूति जागृत हुई कविता के लिए

कविता: "मैं भी वहीं बोल रही हूँ पीयूष को पर मानता ही नहीं है.. बिना खाएं पियें कमरे में पड़ा हुआ है"

शीला: "अभी कहाँ है वोह?"

कविता: "कहीं बाहर निकला अभी.. इसीलिए मैं आपके पास आई.. भाभी, आप उसे फोन कीजिए ना!!"

शीला: "तू चिंता म यात कर.. जहां भी गया होगा वापिस आ जाएगा.. रेणुका, जरा मुझे वहाँ पड़ा कॉर्डलेस फोन तो देना!!"
कविता से नंबर पूछकर शीला ने फोन लगाया

कविता: भाभी आप फोन स्पीकर पर रखिए ताकि मैं भी सुन सकूँ" शीला ने स्पीकर ओन कर दिया

दस बारह रिंग के बाद पीयूष ने फोन उठाया

"हैलो कौन?"

"मैं शीला भाभी.. आपकी पड़ोसन बोल रही हूँ पीयूष जी.. आप कहाँ हो?" शीला इस तरह औपचारिकता से इसलिए बात कर रही थी ताकि पीयूष को अंदाजा लगे की उसके साथ कोई ओर भी है जो सुन रहा है

पीयूष: "अरे शीला भाभी आप? कैसी है? मैं यहीं बाजार में आया हूँ"

शीला: "तुम अभी यहाँ आ सकते हो मेरे घर?"

पीयूष: "पर भाभी.. अभी दिन के समय.. कहीं मम्मी या कविता ने देख लिया तो? ऐसा करता हूँ.. रात को जब कविता सो जाएँ उसके बाद चला आऊँगा.. ठीक है?"

कविता और रेणुका पीयूष की बात सुनकर चौंक गई.. शीला के भी पसीने छूटने लगे

शीला: "अरे पर तुम मेरी बात तो सुन लो पूरी"

शीला की बात को आधे में ही काटकर पीयूष ने कहा "कोई बात नहीं भाभी.. आपने कहा तो मैं अभी आ जाता हूँ आपके घर.. आप तैयार रहना.. भाभी मैं एक बार आपके साथ तसल्ली से करना चाहता हूँ.. पर लगता है ऐसा आराम से करने का मौका मिले ना मिले.. क्या करें.. अब पड़ोस में ही रहते है तो ये सारी तकलीफ तो उठानी ही पड़ेगी. मैं आ रहा हूँ.. आप फोन चालू रखिए"

कविता और रेणुका का चेहरा देखने लायक था.. शीला को इतनी शर्म आई की बात ही मत पूछो.. वो पीयूष का मन शांत करने के लिए बात करने बुला रही थी और वो बेवकूफ ये समझा की शीला उसे चोदने के लिए बुला रही है..

शीला: "तुम मेरी बात सुनो ठीक से.. बिना मेरी बात सुने कुछ भी मत बोलो.. कविता यहाँ मेरे बगल में बैठी है.. तुम यहाँ आओ तुम्हारी नौकरी के बारे में बात करनी है"

पीयूष: "कहीं उसने हमारी बात सुन तो नहीं ली भाभी? अरे हाँ.. मैं तो भूल ही गया.. आप ने लेंडलाइन से फोन किया है.. उसमें कहाँ स्पीकर होता है!! और सुन भी लिया होगा तो क्या हर्ज है.. मैंने भी उसे मूवी के दौरान उसके बगल में बैठे अनजान लड़के के साथ मस्ती करते हुए देखा था.. पर मैं जानबूझकर कुछ नहीं बोला था" पीयूष ने सारे भंडे एक साथ फोड़ दिए आज तो.. कविता को ये सुनकर चक्कर सा आने लगा

शीला: "किसी ने भी कुछ नहीं सुना.. तुम यहाँ आ जाओ बस.. मैं फोन काट रहीं हूँ" शीला ने फोन रख दिया.. रेणुका उसके सामने विचित्र ढंग से देख रही थी.. पीयूष की बात सुनकर उसे इतना तो पता चल ही गया की शीला और पीयूष के बीच कोई खिचड़ी जरूर पक रही थी

थोड़ी देर में पीयूष शीला के घर आ पहुंचा.. वहाँ कविता और रेणुका को देखकर वो सकपका सा गया.. उसने मन ही मन माथा पीट लिया.. क्या सोचकर आया था और क्या निकला!! कहीं कविता ने उनकी बातें सुन ली होगी तो? सुनी हो तो भी क्या?? उसे पता ही है की मुझे शीला भाभी कितने पसंद है !!

शीला: "पीयूष, मैंने सुना की तुम्हारी नौकरी छूट गई है.. सुनकर दुख हुआ पर तुम चिंता मत करना.. दूसरी मिल जाएगी.. कहीं और बात की है तुमने नौकरी के लिए?"

पीयूष: "चल तो रही है.. उसी सिलसिले में बाहर था अभी.. "

रेणुका: "पीयूष, तुम किस तरह का कामकाज जानते हो?"

पीयूष: "मैं कंप्यूटर एकाउंटिंग का काम जानता हूँ" पीयूष इस अनजान औरत को देखता रहा

रेणुका: "मेरे पति का बड़ा बिजनेस है और उन्हे इस तरह के आदमी की जरूरत भी है.. फिलहाल अगर तुम्हारे पास को नौकरी न हो तो मैं उनसे तुम्हारी बात कर सकती हूँ.. अगर बात जम जाएँ तो प्रॉब्लेम सॉल्व हो जाएगा.. "

कविता: "पीयूष, ये रेणुकाजी है.. शीला भाभी की सहेली.. रेणुका जी.. ये मेरे पति है पीयूष" कविता ने दोनों का परिचय करवाया

दोनों ने एक दूसरे का नमस्ते से अभिवादन किया

शीला: "रेणुका तू अपने पति से इस बारे में बात ही कर ले अभी"

रेणुका ने अपने ब्लाउस से मोबाइल निकाला.. निकालते वक्त उसके एक स्तन का उभार दिख गया.. पीयूष ने सूचक नजर से शीला को देखा.. शीला ने उसे आँख मारी.. पीयूष मुस्कुराकर नीचे देखने लगा

रेणुका: "हैलो.. कहाँ हो आप?"

सामने रेणुका का पति राजेश था

राजेश: "मैं अभी जरूरी मीटिंग में हूँ.. जल्दी बता क्या काम था?" राजेश ने थोड़े से क्रोध के साथ कहा

रेणुका ने उसे पीयूष के बारे में बताया

राजेश: "ठीक है.. तुम उन्हे कल या परसों अपनी ऑफिस पर दोपहर के समय भेज देना.. और कुछ?"

रेणुका: "और तो कुछ नहीं.. सब ठीक है.. पर तुम जल्दी वापिस आ जाओ.. मैं अकेले बोर हो रही थी तो २ दिन के लिए अपनी सहेली शीला के घर रहने आई हूँ.. तुम आज शाम को तो लौट आओगे ना?"

राजेश: "सोच तो रहा हूँ की लौट आउ.. आज रात को शायद निकलूँगा तो आते आते देर हो जाएगी.. तू आराम से अपनी सहेली के घर रुक.. और मजे कर.. और हाँ.. अपनी सहेली के पति के साथ फ़्लर्ट करना शुरू मत कर देना.. तेरी आदत मैं जानता हूँ.. हा हा हा हा.. !!"

रेणुका ने कृत्रिम क्रोध के साथ कहा "क्या कुछ भी बोल रहे हो!!! मैंने कब किसी के साथ फ़्लर्ट किया है कभी !! तुम जैसा मेरी मम्मी के साथ फ़्लर्ट करते हो वैसा तो मैंने कभी किसी के साथ नहीं किया.. छोड़ो वो सब.. और जल्दी घर आ जाओ.. बात फ्लर्टिंग से आगे बढ़ जाए उसके पहले"

रेणुका ने फोन रख दिया और कविता के पास बैठकर कहा "मेरी बात हो गई है.. पीयूष तुम परसों इस पते पर पहुँच जाना और मेरे पति राजेश से मिल लेना.. सब ठीक हो जाएगा.. चिंता करने की कोई बात नहीं है"

कविता: "सच !! आप कितनी अच्छी हो रेणुका जी... पीयूष चल अब.. खाना कहा ले.. तेरे भूखे रहने से कुछ नहीं होने वाला"

शीला: "कविता, तू और पीयूष आज यहीं हमारे साथ खाना खाने आओ.. मैं बना दूँगी.. मैं तेरी सास को बता देती हूँ.. तब तक तू किचन में जाके सब्जी काट.. फिर हम साथ में बाकी काम निपटाएंगे.. तब तक मैं और रेणुका तेरी सास को बोलकर आते है."

रेणुका और शीला अनुमौसी से मिलने गए.. पीयूष और कविता अब अकेले थे.. कविता से पीयूष का दुखी चेहरा देखा नहीं जा रहा था.. उसने पीयूष को अपनी बाहों में कसकर पकड़ लिया.. वो किसी भी तरह पीयूष को मूड में लाना चाहती थी.. अपने सुंदर होंठों से पीयूष को चूमते हुए उसने उसका लंड पकड़ लिया

पीयूष: "क्या कर रही है ये तू?? अभी वो रेणुका भाभी और शीला भाभी आती होगी"

कविता ने शरारत करते हुए कहा "ओहो.. रेणुका भाभी.. वो तेरी भाभी कब से बन गई?? अभी वो ब्लाउस से मोबाइल निकाल रही थी तब तू कैसे उनकी छाती को देख रहा था !!"

पीयूष: "वो.. वो.. वो तो मैं वहाँ नहीं देख रहा था" पीयूष की चोरी पकड़ी गई

कविता: "तो और किसकी छातियाँ देख रहे थे ? शीला भाभी की ? अरे हाँ.. मैं तो भूल ही गई.. शीला भाभी के होते हुए तू किसी और की तरफ कभी देखता ही कहाँ है !!"

पीयूष: "तू मेरी बात का गलत मतलब निकाल रही है.. " पीयूष आगे कुछ बोलत उससे पहले कविता ने अपने स्तनों को पीयूष की छाती से रगड़ दिया.. पीयूष का लंड सख्त हो गया..

कविता: "सच सच बता.. तुझे ये रेणुका भाभी कैसी लगी? मेरा तो ठीक है.. मैं तो काम्पिटिशन में ही नहीं हूँ.. पर शीला भाभी और रेणुका भाभी में से तुझे कौन ज्यादा पसंद आया?"

पीयूष: "वो तो बिना देखे कैसे पता लगेगा मुझे !!"

कविता: "साले हलकट.. अपनी बीवी के सामने दूसरी के बबले देखने की बात कर रहा है !! तेरी तो मैं.. " कविता हँसते हुए पीयूष का हाथ मरोड़ने लगी.. पीयूष अपना हाथ छुड़ाकर घर के बाहर निकल गया और दीवार फांदकर अपने घर में घुसा.. कविता शीला के किचन में खाना बनाने पहुंची

पीयूष जब अपने घर पहुंचा तब उसे कुछ विचित्र आवाज़ें सुनाई दी.. अनुमौसी का कमरा बंद था.. पर जिस प्रकार की आवाज़ें आ रही थी वो सुनकर पीयूष चोंक गया

पीयूष घर के बाहर बरामदे से.. अनुमौसी के कमरे की पीछे की तरफ जा पहुंचा.. खिड़की बंद थी पर अंदर की बातें यहाँ से सुनाई पड़ रही थी.. वो चुपके से उनकी बातें सुनने लगा.. जैसे जैसे वो सुनता गया उसका आश्चर्य और बढ़ता गया

अनुमौसी: "शीला हरामी.. उस दिन पिक्चर देख के आने के बाद तू मेरे पीयूष के साथ क्या कर रही थी ? मैंने खिड़की से सबकुछ देखा था..

शीला: "क्या मौसी कुछ भी बोल रही हो !! पीयूष तो मेरे देवर समान है.. आप सोच रही हो ऐसा कुछ भी नहीं था.. "

अनुमौसी: "तू मुझे मत सिख.. समझी ना.. !! ये बाल मैंने धूप में सफेद नहीं किए है.. सब जानती हूँ मैं"

रेणुका: "मौसी अभी पीयूष शीला के घर आया तब.. कैसे कहूँ मैं.. शर्म आती है.. शीला की छातियों को ऐसे घूर रहा था वो !! दाल में कुछ काला तो जरूर है "

अनुमौसी: "शीला, तू मेरे बेटे के संसार में आग मत लगाना.. तेरे रूप का जलवा ही कुछ ऐसा है.. उस दिन जब तू मेरे घर खाना खाकर गई उसके बाद मेरे वो.. उनका ऐसा खड़ा हो गया था की पूछ ही मत.. सच बता.. कहीं मेरे उनके साथ भी तूने कुछ किया तो नहीं था ना !!"

शीला: "मौसी, कब से आप कुछ भी बके जा रही हो.. मैं क्या दोनों बाप बेटे के साथ फ्लर्ट करूंगी?? पीयूष तो जवान है.. पर चिमनलाल तो मेरे बाप के उम्र के है"

अनुमौसी: "शीला, तू हकीकत में क्या चीज है ये मेरे मुंह से मत बुलवा.. मुझे भी भगवान ने आँखें दी है.. सब दिखता है मुझे.. समझी.. रोज सुबह उस रसिक से दूध लेते समय क्या क्या करती है.. वो सब मालूम है मुझे.. साला वो रसिक तेरी जाल में कैसे फंस गया ? मेरे सामने तो कभी देखता तक नहीं है"

शीला: "तो उसे दिखाकर आपको करना क्या है.. मौसी आपकी उमर हो चली है .. शांति से बैठकर भजन कीर्तन कीजिए"

अनुमौसी: "सच कहूँ शीला.. वैसे तो मेरा मन ही उठ गया था इन सब बातों से.. पर तेरे और रसिक के बीच उस सुबह जो कुछ भी देखा उसके बाद मेरे अंदर नए अरमान जाग गए.. वरना मेरे पति का तो १० सालों से खड़ा भी नहीं होता.. तूने ही मेरे अंदर ये सारी हवस जागा दी ही.. आज कल कविता भी बहोत खुश नजर आती है.. सच सच बताना.. कहीं तूने उसे भी रसिक या जीवा के साथ तो नहीं मिलवा दिया ना !! तेरा कोई भरोसा नहीं है.. तू कुछ भी कर सकती है"

सुनकर पीयूष का दिमाग चकराने लगा.. माय गॉड !! मेरी कविता किसी और के साथ !!!! नहीं नहीं.. ऐसा नहीं ओ सकता.. वरना इस बात का मुझे जरूर पता चलता..

अनुमौसी: "देख शीला.. अब तुझसे क्या छुपाना !! तूने मेरे जीवन में नए उमंग जागा दिए है.. मेरे पति ने कभी अपने शरीर का ध्यान नहीं रखा.. पहले उनमें कितना जोश और ताकत थी.. मुझे याद है.. शादी के दूसरे ही साल जब हम महाबलेश्वर गए थे.. !!" मौसी ने दीर्घ सांस छोड़कर बात वहीं पर अटका दी.. रेणुका की मौजूदगी के कारण वह थोड़ी झिझक रही थी.. रेणुका समझदार थी.. उसे महसूस हुआ की उसकी वजह से मौसी अपना दिल हल्का नहीं कर पा रही है.. थोड़ी देर सोचने के बाद उन्होंने तय किया की वो शीला के घर जाकर कविता को खाना बनाने में मदद करेगी..

रेणुका: "आप दोनों बातें कीजिए.. मैं कविता की मदद करने जा रही हूँ.. जब खाना तैयार हो जाएगा तब बुला लूँगी.. " कमरे का दरवाजा खोलकर वो बाहर निकली तब उसे खयाल आया.. शीला के घर तो पीयूष और कविता अकेले होंगे और न जाने क्या कर रहे होंगे.. !! क्यों बेकार में उनके कबाब में हड्डी बनना.. !! ये सोचकर वो शीला के घर नहीं गई.. अब क्या करें?? सोचा यहाँ अनुमौसी के कंपाउंड और बरामदे में चल लिया जाए.. थोड़ी सी वॉक हो जाएगी.. घर का चक्कर लगाते हुए उसने पीछे से पीयूष को खिड़की पर कान लगाकर सुनते हुए देखा.. अरे बाप रे!! ये यहाँ क्या कर रहा है!! रेणुका के पसीने छूट गए.. कहीं वो हम सब की बातें तो छुपकर नहीं सुन रहा !! मर गए.. !! पीयूष ने अब तक रेणुका को नहीं देखा था क्योंकी वो उसकी पीठ के तरफ थी..

अंदर चल रही बातें सुनकर पीयूष गरम हो गया था और उत्तेजना के मारे अपना लंड सहला रहा था.. ये देखकर रेणुका की चुत में झटका लगा.. दोपहर का समय था और रविवार का दिन था.. सब अपने घरों में आराम करते हुए छुट्टी का लुत्फ उठा रहे थे.. इसलिए आजू बाजू कोई भी नहीं था.. कंपाउंड की दीवार भी काफी ऊंची थी इसलिए बाहर गुजर रहे व्यक्ति को अंदर का द्रश्य दिखाई नहीं पड़ता था.. रेणुका को अब ये जानने में दिलचस्पी थी की पीयूष आगे क्या करता है !! इस पर से अंदाजा लग जाएगा की अंदर कैसी बातें हो रही है.. और पता नहीं भी चलेगा तो आखिर शीला तो बाद में बता ही देगी .. !!

पीयूष की हरकतें देखकर रेणुका को इतना पता तो चल ही गया की अंदर कुछ जबरदस्त गरम बातें हो रही थी.. रेणुका वापिस घर के अंदर आ गई.. और जिस कमरे में शीला और अनुमौसी बैठे थे उसके दरवाजे पर कान लगाकर सुनने लगी.. रेणुका को अनुमौसी की सिसकियाँ सुनाई पड़ रही थी

अनुमौसी: "ओहह शीला.. ये तूने क्या कर दिया.. आह्ह.. ऐसा मज़ा तो पहले कभी नहीं आया मुझे.. आहह आहह शीला.. जल्दी कर.. कहीं वो रेणुका वापिस आ गई तो मेरा अधूरा रह जाएगा.. ओह्ह मर गई.. आईईई.. !!"

रेणुका समझ गई की अंदर शीला और मौसी के बीच जबरदस्त लेस्बियन सेक्स चल रहा है.. अब वो वापिस दौड़कर पीयूष जहां था वहाँ चली गई.. वो देखना चाहती थी की पीयूष अब क्या कर रहा है!! पीयूष का लंड अभी अभी वीर्य की पिचकारी मारकर ठुमक रहा था.. नीचे टाइल्स पर उसके वीर्य की बूंदें पड़ी हुई थी.. पीयूष की शर्ट के दो बटन खुले थे.. और उसके जीन्स की चैन भी.. और दीवार का सहारा लेकर.. आँखें बंद कर वो हांफ रहा था.. उसका पतला पर सख्त लंड झटके खाते हुए हिल रहा था.. दोपहर की धूप में उसका लाल सुपाड़ा और वीर्य की बूंदें चमक रही थी..

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पीयूष को इस अवस्था में देखकर रेणुका अपने आप को रोक न पाई और पीयूष के सामने आकर खड़ी हो गई.. बंद आँखों के आगे अंधेरा महसूस होते ही पीयूष ने आँखें खोल दी.. सामने खड़ी रेणुका उसे देखकर मुस्कुरा रही थी.. पीयूष पसीने से तरबतर हो गया था.. रेणुका ने पल्लू से उसके चेहरे के पसीने को पोंछ लिया.. पल्लू हटाते ही रेणुका के गुलाबी ब्लाउस के अंदर छुपे टाइट सुंदर स्तनों को देखकर.. अभी अभी झड़ा हुआ पीयूष का लंड फिरसे अंगड़ाई लेकर जाग गया.. रेणुका ने उसका लंड अपनी मुठ्ठी में पकड़ लिया.. और नीचे झुक के जितना हो सकता था उतना अंदर अपने मुंह में ले लिया..

स्तब्ध होकर पीयूष.. ऐसा महसूस कर रहा था जैसे दोपहर में सपना देख रहा हो.. इस अवर्णनीय पल को पूरे आनंद के साथ महसूस कर रहा था.. रेणुका ने पीयूष का हाथ पकड़कर अपने स्तन पर रख दिया.. झुककर लंड चूस रही रेणुका के पल्लू के आरपार वी-नेक ब्लाउस से उभर कर बाहर दिख रही.. सफेद दूध जैसी दो चूचियों के बीच की गहरी लकीर देखकर पीयूष पागल सा हो गया.. उसने अपने हाथों से दोनों स्तन दबाए.. सिर्फ ४५ सेकंड में.. बिना लंड को ज्यादा अंदर बाहर किए.. केवल रेणुका के मुंह की गर्मी और उसकी नटखट कारीगरी के कारण.. पीयूष के लंड ने उलटी कर दी.. मुंह में वीर्य छोड़ते वक्त उसने स्तनों को इतने जोर से दबाया की रेणुका को दर्द होने लगा..

पीयूष का लंड जब रेणुका के मुंह से बाहर निकला तब पतला तीन इंच का ही रह गया था.. एक मिनट पहले फटने को तैयार एटमबॉम्ब को रेणुका ने डिफ्यूज़ कर दिया था.. अपने पल्लू से पीयूष के लंड को पोंछकर साफ करते हुए रेणुका ने उसे वापस पीयूष की पतलून के अंदर रख दिया.. और फिर पेंट की चैन बंद कर दी..

रेणुका की इस अदा पर पीयूष फिदा हो गया.. इतना ही नहीं.. पल्लू के जिस हिस्से से उसने लंड को पोंछा था उस हिस्से को सूंघकर रेणुका ने अपना चेहरा पोंछा.. पीयूष तो कायल हो गया रेणुका पर.. !!

उसने रेणुका को अपनी बाहों में लेकर एक जबरदस्त किस कर दी.. दोनों आपस में काफी देर तक एक दूसरे के होंठों को चूसते रहे.. संतुष्ट होने के बाद पीयूष ने कहा "भाभी.. मुझे आपके स्तनों को चूसना है.. "

"अभी नहीं पीयूष.. पता है ना तेरी मम्मी और शीला अंदर बैठे है? फिर कभी.. " कहते हुए रेणुका जाने लगी.. पर पीयूष ने उसका हाथ पकड़ लिया

"प्लीज भाभी.. मेरा बहुत मन कर रहा है.. पता नहीं फिर कभी मौका मिले ना मिले... सिर्फ एक बार चूसने दो मुझे"

"जिद मत कर पीयूष.. मैं तुझे पक्का चूसने का मौका दूँगी.. पर अभी नहीं"

"नहीं भाभी.. अभी करने दो ना प्लीज.. जल्दी से एक बाजू का बॉल बाहर निकाल लो.. मैं दो मिनट से ज्यादा वक्त नहीं लूँगा.. बहुत मन कर रहा है मेरा.. जब शीला भाभी के घर आपने ब्लाउस से मोबाइल निकाला था तब से मैं आपके बबलों का दीवाना हो गया हूँ "

रेणुका सोचकर बोली "अभी मुमकिन नहीं है पीयूष.. मैं घर जाने से पहले कुछ सेटिंग जरूर करूंगी.. पर अभी नहीं.. बहोत रिस्क है तू समझ.. " कहते हुए रेणुका ने अपना पल्लू ठीक किया और जाने लगी.. जाते जाते रेणुका ने पीयूष को गाल को प्यार से सहलाया और पीयूष ने रेणुका के चूतड़ को थपथपाया..

रेणुका के जाने के बाद पीयूष ने अपने कपड़े ठीक किए और शीला के घर गया जहां कविता किचन में बीजी थी.. पीयूष ने सोफ़े पर बैठकर टीवी ओन किया.. पर किसी भी चेनल पर कुछ देखने लायक नहीं था.. टीवी बंद कर वो किचन में आया और कविता से शीला के बारे में अलग अलग तरीकों से पूछताछ करने लगा.. कविता भी शीला की पक्की शिष्या थी.. उसने पीयूष को कुछ भी खास नहीं बताया.. पर उसे संदेह जरूर हुआ की अचानक पीयूष शीला के बारे में ये सब क्यों पूछ रहा था !! आज से पहले तो उसे कभी ऐसी जिज्ञासा नहीं हुई थी.. कहीं शीला भाभी ने सब कुछ बता तो नहीं दिया पीयूष को !! नहीं नहीं.. शीला भाभी ऐसा कभी नहीं कर सकती.. पर फिर भी कुछ बोल नहीं सकते.. कविता के नार्को टेस्ट में पीयूष को कुछ खास पता नहीं चला

तभी अनुमौसी, शीला और रेणुका.. तीनों घर पहुंचे.. पीयूष अपनी माँ का बहुत सम्मान करता था पर आज उसे उनका एक नया ही रूप देखने को मिला.. या यूं कहिए की सुनने को मिला.. आधे घंटे पहले.. जिस तरह उसकी माँ सिसक रही थी.. वह अब भी उसके कानों में गूंज रही थी.. पीयूष ने इंटरनेट पर लेस्बियन सेक्स के अनगिनत फ़ोटो और विडिओ देखे हुए थे.. पर वो सोचता था की ऐसा सब पश्चिमी देशों में होता होगा.. लेकिन आज उसने जो सुना उसके बाद पीयूष की सोच ही बदल गई..

मेरी मम्मी लेस्बियन कैसे हो सकती है!! क्या पापा के साथ उनकी पटती नहीं होगी ? अगर ऐसा होता तो मम्मी किसी अन्य पुरुष के साथ भी सेक्स कर सकती थी.. अगर मम्मी पापा से संतुष्ट नहीं थी तो शीला भाभी के पास जाने का क्या मतलब? मदन भाई की गैरमौजूदगी में भाभी को चुदाई के लिए साथी की जरूरत हो सकती है.. तो फिर खिड़की से शीला भाभी की सिसकियाँ क्यों नहीं सुनाई दी ? आवाज तो सिर्फ मम्मी की ही आ रही थी.. तो क्या शीला भाभी मम्मी की चुत चाट रही होगी? छी छी.. मैं भी क्यों ऐसा गलत सोच रहा हूँ मम्मी के बारे में !!

पीयूष अनुमौसी से आँख तक नहीं मिला पाया.. वैसे देखा जाएँ तो इस घटना में वो प्रत्यक्ष या परोक्ष किसी भी तरह से जुड़ा नहीं था.. फिर भी उसे अफसोस हो रहा था की उसने अपनी ही माँ की जातीय ज़िंदगी में दाखल दी.. वह अपनी मर्जी की मालिक थी.. और अपनी इच्छा अनुसार कुछ भी कर सकती थी..

पीयूष को एक ही चिंता थी.. अभी तो मामला शीला भाभी तक सीमित था इसलिए कोई समस्या नहीं थी.. कल जब मदन भाई लौट आएंगे और शीला भाभी उनके साथ व्यस्त हो जाएगी तब मम्मी का क्या होगा? कहीं अपनी आग बुझाने के चक्कर में वो किसी लोफ़र लफंगे मर्द के चंगुल में फंस गई तो !! पर मैं इस बारे में और कर भी क्या सकता हूँ !! पीयूष बड़ी ही असमंजस में फंस गया था

पीयूष के मन में अब भी संवाद चल रहा था .. तू क्यों इसमें कुछ नहीं कर सकता..? और तू नहीं करेगा तो और कौन ध्यान रखेगा? किसी को कानों कान खबर हुई तो पूरे खानदान की इज्जत की माँ चुद जाएगी.. नहीं नहीं.. मम्मी का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा.. मुझे लगता है की मम्मी पहले ऐसी नहीं थी.. शीला भाभी के संग ज्यादा घुलमिल जाने के बाद ही ज्यादा एक्टिव हो गई थी.. मम्मी तो ठीक पर कविता भी आज कल शीला भाभी के साथ ज्यादा संपर्क में रहती है.. कहीं कविता भी शीला भाभी के साथ लेस्बियन....!!!! माय गॉड.. शीला भाभी इतनी खूबसूरत और एक्टिव है.. मदन भाई के बगैर.. दो सालों से बिना सेक्स के वो कैसे रह पाती होगी... !! जरूर उन्हों ने कोई न कोई लंड का जुगाड़ किया ही होगा अपनी प्यास बुझाने के लिए.. कहीं कविता भी भाभी के संग किसी और मर्द के साथ तो नहीं चुदवा रही होगी.. नहीं नहीं.. मेरी कविता ऐसा नहीं कर सकती.. पर कहीं कविता और मेरी मम्मी ही एक दूसरे के साथ तो...... !!!!!

अनुमौसी: "क्या सोच रहा है पीयूष? नौकरी गई तो गई.. इसमें इतना क्या चिंता करना.. !! और वैसे भी.. रेणुका के पति से तेरी बात हो गई है ना!! तू चिंता मत किया कर बेटा" पीयूष के सर को सहलाते हुए मौसी ने कहा "चल अब खाना खा ले" पीयूष का हाथ पकड़कर उसे डाइनिंग टेबल पर बैठा दिया मौसी ने

पीयूष मशीन की तरह बैठ गया और बिना कुछ बोले खाना खाने लगा.. थाली में सब्जी परोसते वक्त अनुमौसी का पल्लू नीचे गिर गया.. पीयूष ने अपनी नजर फेर ली.. छी छी.. ऐसे गंदे विचार मुझे क्यों आ रहे है आज!! वह खाना खाने लगा और फिर अपने घर चला गया.. कल रेणुका भाभी के पति राजेश से मिलने जाना है.. पीयूष घर पहुंचकर अपने सारे कागज ठीक करने लगा..

पीयूष के जाने के बाद कविता, शीला और मौसी टेबल पर बैठकर खाने लगे। रेणुका ने सबसे पहले खाना खतम कर लिया

शीला: "तूने कुछ खाया क्यों नहीं रेणुका? इतनी हड़बड़ी में खतम किया.. आराम से खाना था.. "

रेणुका: "मुझे जितनी भूख थी उतना खा लिया है मैंने.. तू चिंता मत कर" कहते हुए रेणुका उठकर जाने लगी

अनुमौसी: "कहाँ जा रही है तू रेणुका?"

रेणुका: "आप शांति से खाना खाइए.. मैं अभी आती हूँ" कहते हुए रेणुका भागकर अनुमौसी के घर पहुंची.. और पीयूष के कमरे में गई.. पीयूष कागज बिछाकर फ़ाइल कर रहा था.. रेणुका ने कमरे का दरवाजा बंद किया और ब्लाउस के दो हुक खोलकर अपना बायाँ स्तन बाहर निकालकर बोली


"जल्दी कर पीयूष.. वो तीनों खाना खा रहे है इसलिए बड़ी मुश्किल से बचकर आई हूँ.. मैंने तुझे वादा किया था इसलिए पूरा कर रही हूँ.. जल्दी जल्दी कर.. उनके आने से पहले मुझे भागना पड़ेगा.. "

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vakharia

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शाम के पाँच बज रहे थे... धोबी का लड़का कपड़े देने आया था.. उसे देखकर शीला का दिल किया की उसे पटाकर ठुकवा ले.. पर उसका सुककड़ शरीर देखकर शीला की सारी इच्छाएं मर गई। जाते जाते वह पापड़तोड़ पहलवान भी शीला के बबलों को घूर रहा था। शीला भी भूखी नागिन की तरह उसे देख रही थी... फिर उसने सोचा की यह २० साल का लौंडा भला कैसे बुझा पाएगी मेरी चुत की प्यास!!!

शीला को चाहिए था एक मजबूत मर्द.. ऐसा मर्द जिसके बोझ तले शीला पूरी दब जाए... जो बिना थके शीला के भोसड़े की सर्विस कर सके... पर ऐसा मर्द कहाँ मिलेगा.. यह शीला को पता नही था

दिन तो जैसे तैसे गुजर जाता था... पर रात निकालनी बड़ी मुश्किल थी। इतने बड़े मकान में वह अकेली... पूरी रात करवटें बदल बदल कर बिताती थी।

५५ वर्ष की अधेड़ उम्र की शीला की कामेच्छा अति तीव्र थी। ऊपर से उसके पति मदन ने उसे ऐसे ऐसे अनोखे आसनों में चोदा था की अब उसे सीधे साधे सेक्स में मज़ा ही नही आता था। रोज रात को वह मादरजात नंगी होकर.. अलग अलग स्टाइल में मूठ मारकर सोने की कोशिश करती। पर जो मज़ा असली लोडे में है.. वह अगर गाजर, ककड़ी या शक्करकंद में होता तो लड़कियां शादी ही क्यों करती!!!

स्त्री का जन्म तभी सफल होता है जब मस्त लंड उसकी चुत में जाकर भरसक चुदाई करता है। मूठ मारना तो मिसकॉल लगाने जैसा है.. कोशिश तो होती है पर सही संपर्क नही होता...

सुबह ५ बजे, फिरसे डोरबेल बजी और शीला की आँख खुल गई। खुले स्तनों को गाउन के अंदर ठूंस कर, एक बटन बंद कर वह दूध लेने के लिए बाहर आई। दरवाजा खोलते ही उसका मूड खराब हो गया। आज रसिक की पत्नी दूध देने आई थी।

RUKHI3
"क्यों री, आज धूध देने तू आ गई? तेरा मरद नही आया?" शीला ने पूछते तो पूछ लिया फिर उसे एहसास हुआ की इसका दूसरा अर्थ भी निकल सकता था। गनीमत थी की वह गंवार औरत को ज्यादा सूज नही थी वरना जरूर पूछती की आपको दूध से मतलब है या मेरे मरद से!!!

"वो तो पास के गाँव गया है.. नई भेस खरीदने.. ग्राहक बढ़ते जा रहे है और दूध कम पड़ रहा है... साले जानवर भी चालक बन गए है... जितना खाते है उस हिसाब से दूध नही देते है.. " दूधवाले की पत्नी ने कहा

शीला हंस पड़ी "क्या नाम है तेरा?"

"मेरा नाम रूखी है" उसने जवाब दिया

RUKHI5
शीला ने सर से लेकर पैर तक रूखी का निरीक्षण किया... आहाहाहा इन गांवठी औरतों का रूप गजब का होता है..!! शहर की पतली लौंडियो का इसके रूप के आगे कोई मुकाबला ही नही है... ज़ीरो फिगर पाने के चक्कर में.. आजकल की लड़कियों के आम सुखकर गुटलियों जैसे बन जाते है। और नखरे फिर भी दुनिया भर के रहते है। असली रूप तो इस रूखी का था.. उसके बबले शीला से बड़े और भारी थे.. असली फेटवाला दूध पी पी कर रूखी पूर्णतः तंदूरस्त दिख रही थी। उसकी छाती पर लपेटी छोटी सी चुनरी उन बड़े स्तनों को ढंकने में असमर्थ थी। गेंहुआ रंग, ६ फिट का कद, चौड़े कंधे, लचकती कमर और घेरदार घाघरे के पीछे मदमस्त मोटी मोटी जांघें.. झुककर जब वह दूध निकालने गई तब उसकी चोली से आधे से ज्यादा चूचियाँ बाहर निकल गई..

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शीला उस दूधवाली के स्तनों को देखती ही रह गई.. वह खुद भी एक स्त्री थी... इसलिए स्तन देखकर उत्तेजित होने का कोई प्रश्न नही था.. पर फिर भी इस गाँव की गोरी की सुंदरता शीला के मन को भा गई। ध्यान से देखने पर शीला ने देखा की रूखी की चोली की कटोरियों पर सूखा हुआ दूध लगा हुआ था.. शीला समज गई.. की उसके स्तनों में दूध आता है.. उसने थोड़े समय पहले ही बच्चे को जनम दिया होगा!! दूध के भराव के कारण उसके स्तन पत्थर जैसे सख्त हो गए थे... उन्हे देखते ही शीला को छूने का दिल किया. वैसे भी शीला १ नंबर की चुदैल तो थी ही..!!

लंड के लिए तरसती शीला.. रूखी का भरपूर जोबन देखकर सिहर गई.. उसका मन इस सौन्दर्य का रस लेने के लिए आतुर हो गया.. और योजना बनाने लगा..

कहते है ना... की प्रसव से उठी हुई और बारिश में भीगी हुई स्त्री के आगे तो इंद्रलोक की अप्सरा भी पानी कम चाय लगती है..!!

"रूखी.. मुझे तुझसे एक बात करनी है.. पर शर्म आ रही है... कैसे कहूँ?" शीला ने पत्ते बिछाना शुरू किया

"इसमें शर्माना क्या? बताइए ना भाभी" रूखी ने कहा

"तू अंदर आजा... बैठ के बात करते है.. "

"भाभी, अब सिर्फ दो चार घरों में ही दूध पहुंचना बाकी है.. वो निपटाकर आती हूँ फिर बैठती हूँ.. थकान भी उतार जाएगी और थोड़ी देर बातें भी हो जाएगी"

"हाँ.. हाँ.. तू दूध देकर आ फिर बात करते है... पर जल्दी आना" शीला ने कहा

"अभी खतम कर आई.. आप तब तक चाय बनाकर रखिए" रूखी यह कहती हुई निकल गई

चाय बनाते बनाते शीला सोच रही थी.. की अगर रूखी के साथ थोड़े संबंध बढ़ाए जाए तो उसके बहाने रसिक का आना जाना भी शुरू हो जाएगा... और फेर उससे ठुकवाने का बंदोबस्त भी हो पाएगा... एक बार हाथ में आए फिर रसिक को गरम करना शीला का बाये हाथ का खेल था.. एक चुची खोलकर दिखाते ही रसिक का लंड सलाम ठोकेगा..

रसिक के लंड का विचार आते ही शीला की जांघों के बीच उसकी मुनिया फिर से गीली होने लगी... खुजली शुरू हो गई.. किचन के प्लेटफ़ॉर्म के कोने से अपनी चुत दबाकर वह बोली "थोड़े समय के लिए शांत हो जा तू.. तेरे लिए लंड का इंतेजाम कर ही रही हूँ.. कुछ न कुछ जुगाड़ तो करना ही पड़ेगा" रूखी को सीढी बनाकर रसिक के लंड तक पहुंचना ही पड़ेगा!!

क्या करूँ... क्या करूँ.. वह सोच रही थी... रूखी अभी आती ही होगी

उसका शैतानी दिमाग काम पर लग गया.. एक विचार मन में आते ही वह खुश हो गई... "हाँ बिल्कुल ऐसा ही करूंगी" मन ही मन में बात करते हुए शीला ने एक प्लेट में थोड़ा सा दूध निकाला और अलमारी के नीचे रख आई.. अब इंतज़ार था रूखी के आने का!!

थोड़ी ही देर में रूखी आ गई... शीला ने उसे अंदर बुलाया और मुख्य दरवाजा बंद कर दिया।

"कहिए भाभी, क्या काम था?" रूखी ने पूछा

५-५ लीटर के कनस्तर जैसी भारी चूचियों को शीला देखती ही रही..

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शीला ने संभालकर धीरे धीरे बाजी बिछाई

"रूखी, बात दरअसल ऐसी है की आँगन में रहती बिल्ली ने ३ बच्चे दिए है... बड़े ही प्यारे है.. छोटे छोटे... अब कल रात किसी कमीने ने गाड़ी की पहिये तले उस बिल्ली को कुचल दिया" शीला ने कहा

"हाय दइयाँ.. बेचारी... उसके बच्चे अनाथ हो गए.. " भारी सांस लेकर रूखी ने कहा

"अब में उस बिल्ली के बच्चों के लिए दूध रखती हूँ... पार वह पी ही नही रहे... भेस का दूध उन्हे कैसे हजम होगा? अभी दो दिन की उम्र है बेचारों की.. "

"माँ के दूध के मुकाबले और सारे दूध बेकार है भाभी.. बोतल का दूध पियेंगे तो मर जाएंगे बेचारे" रूखी ने करुणासभर आवाज में कहा

"इसीलिए आज भगवान ने तुझे भेज दिया... अब मुझे चिंता नही है.. वह बच्चे बच जाएंगे" शीला ने कहा

"वो कैसे?" रूखी को समझ नही आया

"देख रूखी... तेरी छाती से दूध आता है... अगर तो रोज अपना थोड़ा थोड़ा दूध निकालकर देगी... तो वह बिचारे बच जाएंगे.. नही तो १-२ दीं में ही मर जाएंगे... और पाप तुझे लगेगा.." शीला की योजना जबरदस्त थी


"अरे, उसमें कौन सी बड़ी बात है!! मुझे तो इतना दूध आता है की मेरे लल्ला का पेट भर जाने के बाद भी बच जाता है"
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है शीला अपनी जवानी की आग में रोज तड़प रही है उसे इस आग को बुझाने वाला चाहिए
शीला अपने लिए लन्ड का जुगाड कर रही है वह रूखी को पटा कर उसके पति तक पहुंचना चाहती है देखते हैं वह कहा तक कामयाब होती है
 
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Rajizexy

❣️and let ❣️
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एक ही दिन में शीला और रेणुका एकदम खास सहेलियाँ बन गई.. रात को दोनों ने ब्लू फिल्म की डीवीडी देखते हुए लेस्बियन सेक्स का मज़ा लिया.. फिर एक ही बिस्तर पर नंगी होकर दोनों पड़ी रही.. एक दूसरे के अंगों से खेलते हुए देर तक बातें करती रही.. समाज की.. घर की.. पति की.. पड़ोसियों की.. बातें करते करते एक दूसरे की बाहों में कब सो गई दोनों को पता ही नहीं चला..

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सुबह पाँच बजे जब रसिक दूध देने आया तब शीला की आँख खुली.. नंगे बदन पर फटाफट गाउन पहनकर शीला दूध लेने बाहर आई.. रसिक शीला को देखकर हमेशा तुरंत उत्तेजित हो जाता.. उसने शीला के स्तनों को छेड़ते हुए दबा दिया और बोला "आज बहोत मन कर रहा है करने का भाभी.. क्या माल लग रही हो आप आज तो!!" शीला के गाउन के अंदर हाथ डालकर उसके स्तन मसलते हुए उसने कहा "अंदर आ जाऊ भाभी?"

bb
शीला: "आज नहीं रसिक.. आज घर में मेहमान आए हुए है.. "

रसिक: "आप भी ना भाभी.. कभी कभी ही आपसे करने के लिए बोलता हूँ और आप मना कर रही हो"

शीला: "धीरे बॉल रसिक.. मेहमान अंदर सो रहे है.. जाग जाएंगे तो मुसीबत आन पड़ेगी.. वरना मैंने तुझे कभी मना किया है कभी.. ?? आज नहीं हो पाएगा.. तू निकल जल्दी से"

रसिक उदास होकर शीला के स्तन दबाता रहा.. उसका लंड खड़ा हो गया था.. वो चुपचाप खड़ा रहा पर उसने शीला के स्तन नहीं छोड़े..

शीला: "ठीक है.. तू रुक यहाँ " शीला बेडरूम में जाकर देख आई.. रेणुका गहरी नींद में सो रही थी। वो दबे पाँव वापिस आई

शीला: "देख रसिक.. अंदर डालने का सेटिंग तो नहीं हो पाएगा.. मैं तेरा हिला देती हूँ"

शीला ने रसिक की धोती में हाथ डालकर उसका लंड बाहर निकाल लिया.. लोहे के सरिये जैसा सख्त लंड हाथ में लेकर शीला हिलाने लगी.. रसिक शीला के गाउन को उठाकर उसकी चुत में उंगली घिसने लगा.. एक ही मिनट तक ये खेल चला और रसिक के लंड ने पिचकारी छोड़ दी.. शीला की चुत रसिक की उंगली के स्पर्श से पानी पानी हो गई थी.. शीला ने झुककर रसिक के झड़े हुए लंड को चूम लिया और उसे धोती के अंदर रख दिया.. रसिक चला गया

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शीला दूध की पतीली को गेस पर गरम करने रखकर रेणुका की बगल में लेट गई.. उसने गहरी नींद सो रही रेणुका की नंगी चूचियों को ध्यान से देखा.. उसकी हर सांस के साथ चूचियाँ ऊपर नीचे हो रही थी.. शीला ने उन सुंदर स्तनों को हाथ में लिया.. रसिक के स्पर्श से गीली हो चुकी चुत को सहलाते हुए वो रेणुका के स्तनों को मींजने लगी.. तीन उँगलियाँ अपनी भोस में डालकर रसिक मे मर्दाना लंड को याद करते हुए शीला झड़ गई.. रेणुका अब भी नींद में थी.. ऑर्गैज़म का सुख प्राप्त करते ही शीला की आँख लग गई.. जब वो जागी तब रेणुका बिस्तर पर नहीं थी.. शीला ने सोचा की रेणुका बाथरूम में गई होगी.. तभी उसे याद आया.. अरे बाप रे.. दूध गरम करने रखा था वो तो भूल ही गई.. !!! वो भागकर किचन में आई.. रेणुका वहीं खड़ी थी.. चाय बना रही थी.. चाय को छान रही रेणुका को पीछे से बाहों में भर लिया शीला ने और कहा "गुड मॉर्निंग रेणुका.. !!"

पीछे झुककर शीला के स्तनों को दबाकर रेणुका ने भी गुड मॉर्निंग कहा.. "तुम सो रही थी इसलिए मैंने जगाया नहीं.. किचन में आकर देखा तो दूध उबल रहा था.. थोड़ी ओर देर हो जाती तो सारे दूध का सत्यानाश हो जाता.. "

रेणुका के स्तनों को हाथों से मलते हुए शीला ने कहा "थैंक्स रेणुका.. तुझे नींद तो ठीक से आ गई थी ना ??"

रेणुका: "हाँ हाँ.. एकदम घर जैसी नींद आ गई थी मुझे तो.. " चाय छान कर किटली में भरते हुए कहा

दोनों ने ब्रश किया और चाय पीकर एकदम आराम से बैठ गई.. सिर्फ एक ही दिन में शीला का सारा अकेलापन दूर हो गया.. नहा-धो कर दोनों फ्रेश हो गई और बातें करने लगी.. शीला ने रेणुका को चेतना के बारे में बताया.. रेणुका ने भी दिल खोलकर अपनी सारी बातें शीला को बताई

रेणुका: "शीला.. मेरे पड़ोस में एक आदमी रहता है.. वो मुझे रोज ताड़ता है.. मैं जब तक बाहर कपड़े सुखाती हूँ.. वो घर के बाहर खड़ा मुझे देखतय ही रहता है.. मेरे घर के अंदर जाने के बाद ही वो हटता है.. उसका देखना मुझे अच्छा भी लगता है.. इस उम्र में भी कोई हमें देखता है ये जानकर दिल खुश हो जाता है.. "

शीला: "वो तो है.. वैसे तेरी उम्र इतनी ज्यादा भी नहीं है.. उम्र तो अब मेरी हो चली है.. "

रेणुका: "फिर भी इस उम्र में आप सेक्स में इतनी एक्टिव हो ये ताज्जुब की बात है.. वरना आप के उम्र की औरतें भजन कीर्तन करते हुए मरने के इंतज़ार में बैठी रहती है.. सच में.. आपकी फुर्ती और एनर्जी की दाद देनी पड़ेगी.. "

शीला: "देख रेणुका.. मैं और मेरा पति बड़ी ही स्वस्थ विचारधारा रखते है.. वो कहते है की हमारा शरीर बूढ़ा हो जाएँ वो प्रकृति का नियम है.. पर हम मन से चाहे तब तक जवान रह सकते है.. और जहां तक मन से जवान है तब तक संभोग का पूरा आनंद लेते रहना चाहिए.. "

शीला की बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी रेणुका.. उसे ये तो अंदाजा लग ही गया था की शीला कोई साधारण स्त्री नहीं थी.. उसके अंदर कुछ ऐसी विशेषता थी जो अपने संग जुड़े सब को जवान बनाए रखने के लिए काबिल थी..

रेणुका: "तेरी बात बिल्कुल सही है शीला.. हम मन से कितने भी जवान क्यों न हो.. हमारा पार्टनर भी सहयोग देना चाहिए ना!! मेरी जिंदगी तो मेले के चक्कर जैसी है.. मेरा पति और मैं कभी साथ होते ही नहीं है.. !! क्या करू मैं??"

शीला: "रेणुका, मर्द को तैयार करना ये हमारा बाएं हाथ का खेल है.. तुझे पता है.. १००० साल की विश्वामित्र की तपस्या का भंग रंभा ने कैसे किया था?? पति को उत्तेजित करने के लिए जो भी करना पड़े वो सब करना है.. पूरे इन्टरेस्ट के साथ.. पति थका हुआ हो सकता है.. लेकिन उसका लंड तो तैयार कर ही सकते है ना!! और हमें तो उसका ही काम है.."

रेणुका: "अब क्या बताऊँ तुम्हें.. मैं उनका सहलाती हूँ.. तो उनका लंड खड़ा तो हो जाता है.. पर तब तक तो उनके खर्राटें शुरू हो जाते है.. फिर क्या मतलब सारी मेहनत का!!"

शीला हँसते हुए: "बड़ा आसान है.. समस्या तो तब आती है जब पति जाग रहा हो और लंड खर्राटे लेकर सो रहा हो.. वो भले ही सो गए हो.. तू ऊपर चढ़कर चुदवा ले.. हमें तो लंड से मतलब है ना!! वो हमें सामने से मिले या हम खुद ही ले ले.. क्या फरक पड़ता है!! अपनी आग बुझाने से हमें मतलब है.. बाकी दुनिया जाएँ भाड़ में.. !!"

दोनों बातों में उलझी हुई थी तभी शीला के घर कविता आई..

कविता: "कैसे हो भाभी? आप तो जैसे मुझे भूल ही गए.. कहीं मेरी सास ने तो मना नहीं किया है ना आपको?"

शीला: "ओहह कविता.. बैठ ना.. " शीला ने रेणुका से परिचय करवाया कविता का.. "महिला मण्डल से खींचकर लाई हूँ इसे.. अपने मण्डल में शामिल करने को.. अच्छा किया ना मैंने!!"

कविता: "हाई रेणुका.. कैसी हो आप?"

कविता की जवान छाती.. और स्टार्च की हुई चादर जैसी कडक कोरी जवानी को रेणुका अहोभाव से देखती रही.. कविता भी रेणुका के भरे हुए जोबन को ललचाई नजर से देखते हुए सोफ़े पर बैठ गई..

शीला: "कैसे आना हुआ कविता??"

कविता: "कुछ नहीं भाभी.. घर का काम निपटा लिया था.. बैठे बैठे बोर हो रही थी.. सोचा आप से मिल लूँ.. आप तो मुझे भूल गई पर मैं आपको भूलने थोड़े ही दूँगी" वह खिलखिलाकर हंसने लगी..

रेणुका इस प्यारी सी कोमल नाजुक कन्या को देखती रही.. जब कविता झुकती थी तब उसके टॉप में से छोटे छोटे दो स्तनों के बीच की सुंदर लकीर रेणुका के मन को भा गई.. लकीर कोई भी हो.. दो स्तनों के बीच.. कमर की चर्बी के बीच या फिर दो पैरों के बीच.. हमेशा आकर्षित करती है.. स्त्री का सौन्दर्य ढंका हुआ रखकर ज्यादा आनंद देता है.. रेणुका तो कविता के बात करने के लहजे से खुश हो गई..मंदिर की घंटी जैसी सुमधुर आवाज थी कविता की.. रेणुका कविता से अब तक खुलकर बात नहीं कर रही थी.. बस उसका निरीक्षण कर रही थी.. उसे भला ये कहाँ मालूम था की शीला ने इस कविता को भी अपनी जाल में लपेट रखा है!! वैसे कविता और शीला तो खुलकर बातें कर रही थी पर रेणुका की मौजूदगी से कविता भी थोड़ी सी झिझक महसूस कर रही थी.. और वो स्वाभाविक था क्योंकी वह दोनों पहली बार मिल रही थी..

brp
पिछली रात शीला और रेणुका ने मस्त लेस्बियन सेक्स का आनंद लिया हुआ था इसलिए दोनों शांत बैठी थी.. और दो दिन पहले कविता ने भी बड़े मजे किए थे.. कविता और शीला एक डाल के पंछी थे.. और उसी डाल पर अब रेणुका नाम का पंछी बैठने जा रहा था..

कविता ने शीला से कहा: "मैं आपसे एक बात करने आई हूँ"

शीला: "हाँ बोल ना.. क्या बात है?"

कविता: "भाभी.. पीयूष जहां नौकरी करता है वहाँ से उसे निकाल दिया गया है.. वो बहोत उदास है.. सुबह से कुछ खाया भी नहीं है उसने.. आप पीयूष को कुछ समझाइए ना प्लीज.. मम्मीजी ने भी कहलवाया है.. चिंता हो रही है उसे इस तरह देख कर.. " उसके खूबसूरत चेहरे पर चिंता की रेखाएं स्पष्ट नजर आ रही थी

शीला: "टेंशन क्यों ले रही है पगली.. !! एक नौकरी गई तो दूसरी मिल जाएगी.. चिंता मत कर.. सब ठीक हो जाएगा.. तेरा पीयूष लाखों में एक है.. ऐसे होनहार लड़के को दूसरी नौकरी मिलने में देर नहीं लगेगी"

रेणुका इन दोनों की बातों के बीच में टोकना नहीं चाहती थी इसलिए चुप रही.. पर उसके मन में स्त्री सहज सहानुभूति जागृत हुई कविता के लिए

कविता: "मैं भी वहीं बोल रही हूँ पीयूष को पर मानता ही नहीं है.. बिना खाएं पियें कमरे में पड़ा हुआ है"

शीला: "अभी कहाँ है वोह?"

कविता: "कहीं बाहर निकला अभी.. इसीलिए मैं आपके पास आई.. भाभी, आप उसे फोन कीजिए ना!!"

शीला: "तू चिंता म यात कर.. जहां भी गया होगा वापिस आ जाएगा.. रेणुका, जरा मुझे वहाँ पड़ा कॉर्डलेस फोन तो देना!!"
कविता से नंबर पूछकर शीला ने फोन लगाया

कविता: भाभी आप फोन स्पीकर पर रखिए ताकि मैं भी सुन सकूँ" शीला ने स्पीकर ओन कर दिया

दस बारह रिंग के बाद पीयूष ने फोन उठाया

"हैलो कौन?"

"मैं शीला भाभी.. आपकी पड़ोसन बोल रही हूँ पीयूष जी.. आप कहाँ हो?" शीला इस तरह औपचारिकता से इसलिए बात कर रही थी ताकि पीयूष को अंदाजा लगे की उसके साथ कोई ओर भी है जो सुन रहा है

पीयूष: "अरे शीला भाभी आप? कैसी है? मैं यहीं बाजार में आया हूँ"

शीला: "तुम अभी यहाँ आ सकते हो मेरे घर?"

पीयूष: "पर भाभी.. अभी दिन के समय.. कहीं मम्मी या कविता ने देख लिया तो? ऐसा करता हूँ.. रात को जब कविता सो जाएँ उसके बाद चला आऊँगा.. ठीक है?"

कविता और रेणुका पीयूष की बात सुनकर चौंक गई.. शीला के भी पसीने छूटने लगे

शीला: "अरे पर तुम मेरी बात तो सुन लो पूरी"

शीला की बात को आधे में ही काटकर पीयूष ने कहा "कोई बात नहीं भाभी.. आपने कहा तो मैं अभी आ जाता हूँ आपके घर.. आप तैयार रहना.. भाभी मैं एक बार आपके साथ तसल्ली से करना चाहता हूँ.. पर लगता है ऐसा आराम से करने का मौका मिले ना मिले.. क्या करें.. अब पड़ोस में ही रहते है तो ये सारी तकलीफ तो उठानी ही पड़ेगी. मैं आ रहा हूँ.. आप फोन चालू रखिए"

कविता और रेणुका का चेहरा देखने लायक था.. शीला को इतनी शर्म आई की बात ही मत पूछो.. वो पीयूष का मन शांत करने के लिए बात करने बुला रही थी और वो बेवकूफ ये समझा की शीला उसे चोदने के लिए बुला रही है..

शीला: "तुम मेरी बात सुनो ठीक से.. बिना मेरी बात सुने कुछ भी मत बोलो.. कविता यहाँ मेरे बगल में बैठी है.. तुम यहाँ आओ तुम्हारी नौकरी के बारे में बात करनी है"

पीयूष: "कहीं उसने हमारी बात सुन तो नहीं ली भाभी? अरे हाँ.. मैं तो भूल ही गया.. आप ने लेंडलाइन से फोन किया है.. उसमें कहाँ स्पीकर होता है!! और सुन भी लिया होगा तो क्या हर्ज है.. मैंने भी उसे मूवी के दौरान उसके बगल में बैठे अनजान लड़के के साथ मस्ती करते हुए देखा था.. पर मैं जानबूझकर कुछ नहीं बोला था" पीयूष ने सारे भंडे एक साथ फोड़ दिए आज तो.. कविता को ये सुनकर चक्कर सा आने लगा

शीला: "किसी ने भी कुछ नहीं सुना.. तुम यहाँ आ जाओ बस.. मैं फोन काट रहीं हूँ" शीला ने फोन रख दिया.. रेणुका उसके सामने विचित्र ढंग से देख रही थी.. पीयूष की बात सुनकर उसे इतना तो पता चल ही गया की शीला और पीयूष के बीच कोई खिचड़ी जरूर पक रही थी

थोड़ी देर में पीयूष शीला के घर आ पहुंचा.. वहाँ कविता और रेणुका को देखकर वो सकपका सा गया.. उसने मन ही मन माथा पीट लिया.. क्या सोचकर आया था और क्या निकला!! कहीं कविता ने उनकी बातें सुन ली होगी तो? सुनी हो तो भी क्या?? उसे पता ही है की मुझे शीला भाभी कितने पसंद है !!

शीला: "पीयूष, मैंने सुना की तुम्हारी नौकरी छूट गई है.. सुनकर दुख हुआ पर तुम चिंता मत करना.. दूसरी मिल जाएगी.. कहीं और बात की है तुमने नौकरी के लिए?"

पीयूष: "चल तो रही है.. उसी सिलसिले में बाहर था अभी.. "

रेणुका: "पीयूष, तुम किस तरह का कामकाज जानते हो?"

पीयूष: "मैं कंप्यूटर एकाउंटिंग का काम जानता हूँ" पीयूष इस अनजान औरत को देखता रहा

रेणुका: "मेरे पति का बड़ा बिजनेस है और उन्हे इस तरह के आदमी की जरूरत भी है.. फिलहाल अगर तुम्हारे पास को नौकरी न हो तो मैं उनसे तुम्हारी बात कर सकती हूँ.. अगर बात जम जाएँ तो प्रॉब्लेम सॉल्व हो जाएगा.. "

कविता: "पीयूष, ये रेणुकाजी है.. शीला भाभी की सहेली.. रेणुका जी.. ये मेरे पति है पीयूष" कविता ने दोनों का परिचय करवाया

दोनों ने एक दूसरे का नमस्ते से अभिवादन किया

शीला: "रेणुका तू अपने पति से इस बारे में बात ही कर ले अभी"

रेणुका ने अपने ब्लाउस से मोबाइल निकाला.. निकालते वक्त उसके एक स्तन का उभार दिख गया.. पीयूष ने सूचक नजर से शीला को देखा.. शीला ने उसे आँख मारी.. पीयूष मुस्कुराकर नीचे देखने लगा

रेणुका: "हैलो.. कहाँ हो आप?"

सामने रेणुका का पति राजेश था

राजेश: "मैं अभी जरूरी मीटिंग में हूँ.. जल्दी बता क्या काम था?" राजेश ने थोड़े से क्रोध के साथ कहा

रेणुका ने उसे पीयूष के बारे में बताया

राजेश: "ठीक है.. तुम उन्हे कल या परसों अपनी ऑफिस पर दोपहर के समय भेज देना.. और कुछ?"

रेणुका: "और तो कुछ नहीं.. सब ठीक है.. पर तुम जल्दी वापिस आ जाओ.. मैं अकेले बोर हो रही थी तो २ दिन के लिए अपनी सहेली शीला के घर रहने आई हूँ.. तुम आज शाम को तो लौट आओगे ना?"

राजेश: "सोच तो रहा हूँ की लौट आउ.. आज रात को शायद निकलूँगा तो आते आते देर हो जाएगी.. तू आराम से अपनी सहेली के घर रुक.. और मजे कर.. और हाँ.. अपनी सहेली के पति के साथ फ़्लर्ट करना शुरू मत कर देना.. तेरी आदत मैं जानता हूँ.. हा हा हा हा.. !!"

रेणुका ने कृत्रिम क्रोध के साथ कहा "क्या कुछ भी बोल रहे हो!!! मैंने कब किसी के साथ फ़्लर्ट किया है कभी !! तुम जैसा मेरी मम्मी के साथ फ़्लर्ट करते हो वैसा तो मैंने कभी किसी के साथ नहीं किया.. छोड़ो वो सब.. और जल्दी घर आ जाओ.. बात फ्लर्टिंग से आगे बढ़ जाए उसके पहले"

रेणुका ने फोन रख दिया और कविता के पास बैठकर कहा "मेरी बात हो गई है.. पीयूष तुम परसों इस पते पर पहुँच जाना और मेरे पति राजेश से मिल लेना.. सब ठीक हो जाएगा.. चिंता करने की कोई बात नहीं है"

कविता: "सच !! आप कितनी अच्छी हो रेणुका जी... पीयूष चल अब.. खाना कहा ले.. तेरे भूखे रहने से कुछ नहीं होने वाला"

शीला: "कविता, तू और पीयूष आज यहीं हमारे साथ खाना खाने आओ.. मैं बना दूँगी.. मैं तेरी सास को बता देती हूँ.. तब तक तू किचन में जाके सब्जी काट.. फिर हम साथ में बाकी काम निपटाएंगे.. तब तक मैं और रेणुका तेरी सास को बोलकर आते है."

रेणुका और शीला अनुमौसी से मिलने गए.. पीयूष और कविता अब अकेले थे.. कविता से पीयूष का दुखी चेहरा देखा नहीं जा रहा था.. उसने पीयूष को अपनी बाहों में कसकर पकड़ लिया.. वो किसी भी तरह पीयूष को मूड में लाना चाहती थी.. अपने सुंदर होंठों से पीयूष को चूमते हुए उसने उसका लंड पकड़ लिया

पीयूष: "क्या कर रही है ये तू?? अभी वो रेणुका भाभी और शीला भाभी आती होगी"

कविता ने शरारत करते हुए कहा "ओहो.. रेणुका भाभी.. वो तेरी भाभी कब से बन गई?? अभी वो ब्लाउस से मोबाइल निकाल रही थी तब तू कैसे उनकी छाती को देख रहा था !!"

पीयूष: "वो.. वो.. वो तो मैं वहाँ नहीं देख रहा था" पीयूष की चोरी पकड़ी गई

कविता: "तो और किसकी छातियाँ देख रहे थे ? शीला भाभी की ? अरे हाँ.. मैं तो भूल ही गई.. शीला भाभी के होते हुए तू किसी और की तरफ कभी देखता ही कहाँ है !!"

पीयूष: "तू मेरी बात का गलत मतलब निकाल रही है.. " पीयूष आगे कुछ बोलत उससे पहले कविता ने अपने स्तनों को पीयूष की छाती से रगड़ दिया.. पीयूष का लंड सख्त हो गया..

कविता: "सच सच बता.. तुझे ये रेणुका भाभी कैसी लगी? मेरा तो ठीक है.. मैं तो काम्पिटिशन में ही नहीं हूँ.. पर शीला भाभी और रेणुका भाभी में से तुझे कौन ज्यादा पसंद आया?"

पीयूष: "वो तो बिना देखे कैसे पता लगेगा मुझे !!"

कविता: "साले हलकट.. अपनी बीवी के सामने दूसरी के बबले देखने की बात कर रहा है !! तेरी तो मैं.. " कविता हँसते हुए पीयूष का हाथ मरोड़ने लगी.. पीयूष अपना हाथ छुड़ाकर घर के बाहर निकल गया और दीवार फांदकर अपने घर में घुसा.. कविता शीला के किचन में खाना बनाने पहुंची

पीयूष जब अपने घर पहुंचा तब उसे कुछ विचित्र आवाज़ें सुनाई दी.. अनुमौसी का कमरा बंद था.. पर जिस प्रकार की आवाज़ें आ रही थी वो सुनकर पीयूष चोंक गया

पीयूष घर के बाहर बरामदे से.. अनुमौसी के कमरे की पीछे की तरफ जा पहुंचा.. खिड़की बंद थी पर अंदर की बातें यहाँ से सुनाई पड़ रही थी.. वो चुपके से उनकी बातें सुनने लगा.. जैसे जैसे वो सुनता गया उसका आश्चर्य और बढ़ता गया

अनुमौसी: "शीला हरामी.. उस दिन पिक्चर देख के आने के बाद तू मेरे पीयूष के साथ क्या कर रही थी ? मैंने खिड़की से सबकुछ देखा था..

शीला: "क्या मौसी कुछ भी बोल रही हो !! पीयूष तो मेरे देवर समान है.. आप सोच रही हो ऐसा कुछ भी नहीं था.. "

अनुमौसी: "तू मुझे मत सिख.. समझी ना.. !! ये बाल मैंने धूप में सफेद नहीं किए है.. सब जानती हूँ मैं"

रेणुका: "मौसी अभी पीयूष शीला के घर आया तब.. कैसे कहूँ मैं.. शर्म आती है.. शीला की छातियों को ऐसे घूर रहा था वो !! दाल में कुछ काला तो जरूर है "

अनुमौसी: "शीला, तू मेरे बेटे के संसार में आग मत लगाना.. तेरे रूप का जलवा ही कुछ ऐसा है.. उस दिन जब तू मेरे घर खाना खाकर गई उसके बाद मेरे वो.. उनका ऐसा खड़ा हो गया था की पूछ ही मत.. सच बता.. कहीं मेरे उनके साथ भी तूने कुछ किया तो नहीं था ना !!"

शीला: "मौसी, कब से आप कुछ भी बके जा रही हो.. मैं क्या दोनों बाप बेटे के साथ फ्लर्ट करूंगी?? पीयूष तो जवान है.. पर चिमनलाल तो मेरे बाप के उम्र के है"

अनुमौसी: "शीला, तू हकीकत में क्या चीज है ये मेरे मुंह से मत बुलवा.. मुझे भी भगवान ने आँखें दी है.. सब दिखता है मुझे.. समझी.. रोज सुबह उस रसिक से दूध लेते समय क्या क्या करती है.. वो सब मालूम है मुझे.. साला वो रसिक तेरी जाल में कैसे फंस गया ? मेरे सामने तो कभी देखता तक नहीं है"

शीला: "तो उसे दिखाकर आपको करना क्या है.. मौसी आपकी उमर हो चली है .. शांति से बैठकर भजन कीर्तन कीजिए"

अनुमौसी: "सच कहूँ शीला.. वैसे तो मेरा मन ही उठ गया था इन सब बातों से.. पर तेरे और रसिक के बीच उस सुबह जो कुछ भी देखा उसके बाद मेरे अंदर नए अरमान जाग गए.. वरना मेरे पति का तो १० सालों से खड़ा भी नहीं होता.. तूने ही मेरे अंदर ये सारी हवस जागा दी ही.. आज कल कविता भी बहोत खुश नजर आती है.. सच सच बताना.. कहीं तूने उसे भी रसिक या जीवा के साथ तो नहीं मिलवा दिया ना !! तेरा कोई भरोसा नहीं है.. तू कुछ भी कर सकती है"

सुनकर पीयूष का दिमाग चकराने लगा.. माय गॉड !! मेरी कविता किसी और के साथ !!!! नहीं नहीं.. ऐसा नहीं ओ सकता.. वरना इस बात का मुझे जरूर पता चलता..

अनुमौसी: "देख शीला.. अब तुझसे क्या छुपाना !! तूने मेरे जीवन में नए उमंग जागा दिए है.. मेरे पति ने कभी अपने शरीर का ध्यान नहीं रखा.. पहले उनमें कितना जोश और ताकत थी.. मुझे याद है.. शादी के दूसरे ही साल जब हम महाबलेश्वर गए थे.. !!" मौसी ने दीर्घ सांस छोड़कर बात वहीं पर अटका दी.. रेणुका की मौजूदगी के कारण वह थोड़ी झिझक रही थी.. रेणुका समझदार थी.. उसे महसूस हुआ की उसकी वजह से मौसी अपना दिल हल्का नहीं कर पा रही है.. थोड़ी देर सोचने के बाद उन्होंने तय किया की वो शीला के घर जाकर कविता को खाना बनाने में मदद करेगी..

रेणुका: "आप दोनों बातें कीजिए.. मैं कविता की मदद करने जा रही हूँ.. जब खाना तैयार हो जाएगा तब बुला लूँगी.. " कमरे का दरवाजा खोलकर वो बाहर निकली तब उसे खयाल आया.. शीला के घर तो पीयूष और कविता अकेले होंगे और न जाने क्या कर रहे होंगे.. !! क्यों बेकार में उनके कबाब में हड्डी बनना.. !! ये सोचकर वो शीला के घर नहीं गई.. अब क्या करें?? सोचा यहाँ अनुमौसी के कंपाउंड और बरामदे में चल लिया जाए.. थोड़ी सी वॉक हो जाएगी.. घर का चक्कर लगाते हुए उसने पीछे से पीयूष को खिड़की पर कान लगाकर सुनते हुए देखा.. अरे बाप रे!! ये यहाँ क्या कर रहा है!! रेणुका के पसीने छूट गए.. कहीं वो हम सब की बातें तो छुपकर नहीं सुन रहा !! मर गए.. !! पीयूष ने अब तक रेणुका को नहीं देखा था क्योंकी वो उसकी पीठ के तरफ थी..

अंदर चल रही बातें सुनकर पीयूष गरम हो गया था और उत्तेजना के मारे अपना लंड सहला रहा था.. ये देखकर रेणुका की चुत में झटका लगा.. दोपहर का समय था और रविवार का दिन था.. सब अपने घरों में आराम करते हुए छुट्टी का लुत्फ उठा रहे थे.. इसलिए आजू बाजू कोई भी नहीं था.. कंपाउंड की दीवार भी काफी ऊंची थी इसलिए बाहर गुजर रहे व्यक्ति को अंदर का द्रश्य दिखाई नहीं पड़ता था.. रेणुका को अब ये जानने में दिलचस्पी थी की पीयूष आगे क्या करता है !! इस पर से अंदाजा लग जाएगा की अंदर कैसी बातें हो रही है.. और पता नहीं भी चलेगा तो आखिर शीला तो बाद में बता ही देगी .. !!

पीयूष की हरकतें देखकर रेणुका को इतना पता तो चल ही गया की अंदर कुछ जबरदस्त गरम बातें हो रही थी.. रेणुका वापिस घर के अंदर आ गई.. और जिस कमरे में शीला और अनुमौसी बैठे थे उसके दरवाजे पर कान लगाकर सुनने लगी.. रेणुका को अनुमौसी की सिसकियाँ सुनाई पड़ रही थी

अनुमौसी: "ओहह शीला.. ये तूने क्या कर दिया.. आह्ह.. ऐसा मज़ा तो पहले कभी नहीं आया मुझे.. आहह आहह शीला.. जल्दी कर.. कहीं वो रेणुका वापिस आ गई तो मेरा अधूरा रह जाएगा.. ओह्ह मर गई.. आईईई.. !!"

रेणुका समझ गई की अंदर शीला और मौसी के बीच जबरदस्त लेस्बियन सेक्स चल रहा है.. अब वो वापिस दौड़कर पीयूष जहां था वहाँ चली गई.. वो देखना चाहती थी की पीयूष अब क्या कर रहा है!! पीयूष का लंड अभी अभी वीर्य की पिचकारी मारकर ठुमक रहा था.. नीचे टाइल्स पर उसके वीर्य की बूंदें पड़ी हुई थी.. पीयूष की शर्ट के दो बटन खुले थे.. और उसके जीन्स की चैन भी.. और दीवार का सहारा लेकर.. आँखें बंद कर वो हांफ रहा था.. उसका पतला पर सख्त लंड झटके खाते हुए हिल रहा था.. दोपहर की धूप में उसका लाल सुपाड़ा और वीर्य की बूंदें चमक रही थी..

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पीयूष को इस अवस्था में देखकर रेणुका अपने आप को रोक न पाई और पीयूष के सामने आकर खड़ी हो गई.. बंद आँखों के आगे अंधेरा महसूस होते ही पीयूष ने आँखें खोल दी.. सामने खड़ी रेणुका उसे देखकर मुस्कुरा रही थी.. पीयूष पसीने से तरबतर हो गया था.. रेणुका ने पल्लू से उसके चेहरे के पसीने को पोंछ लिया.. पल्लू हटाते ही रेणुका के गुलाबी ब्लाउस के अंदर छुपे टाइट सुंदर स्तनों को देखकर.. अभी अभी झड़ा हुआ पीयूष का लंड फिरसे अंगड़ाई लेकर जाग गया.. रेणुका ने उसका लंड अपनी मुठ्ठी में पकड़ लिया.. और नीचे झुक के जितना हो सकता था उतना अंदर अपने मुंह में ले लिया..

स्तब्ध होकर पीयूष.. ऐसा महसूस कर रहा था जैसे दोपहर में सपना देख रहा हो.. इस अवर्णनीय पल को पूरे आनंद के साथ महसूस कर रहा था.. रेणुका ने पीयूष का हाथ पकड़कर अपने स्तन पर रख दिया.. झुककर लंड चूस रही रेणुका के पल्लू के आरपार वी-नेक ब्लाउस से उभर कर बाहर दिख रही.. सफेद दूध जैसी दो चूचियों के बीच की गहरी लकीर देखकर पीयूष पागल सा हो गया.. उसने अपने हाथों से दोनों स्तन दबाए.. सिर्फ ४५ सेकंड में.. बिना लंड को ज्यादा अंदर बाहर किए.. केवल रेणुका के मुंह की गर्मी और उसकी नटखट कारीगरी के कारण.. पीयूष के लंड ने उलटी कर दी.. मुंह में वीर्य छोड़ते वक्त उसने स्तनों को इतने जोर से दबाया की रेणुका को दर्द होने लगा..

पीयूष का लंड जब रेणुका के मुंह से बाहर निकला तब पतला तीन इंच का ही रह गया था.. एक मिनट पहले फटने को तैयार एटमबॉम्ब को रेणुका ने डिफ्यूज़ कर दिया था.. अपने पल्लू से पीयूष के लंड को पोंछकर साफ करते हुए रेणुका ने उसे वापस पीयूष की पतलून के अंदर रख दिया.. और फिर पेंट की चैन बंद कर दी..

रेणुका की इस अदा पर पीयूष फिदा हो गया.. इतना ही नहीं.. पल्लू के जिस हिस्से से उसने लंड को पोंछा था उस हिस्से को सूंघकर रेणुका ने अपना चेहरा पोंछा.. पीयूष तो कायल हो गया रेणुका पर.. !!

उसने रेणुका को अपनी बाहों में लेकर एक जबरदस्त किस कर दी.. दोनों आपस में काफी देर तक एक दूसरे के होंठों को चूसते रहे.. संतुष्ट होने के बाद पीयूष ने कहा "भाभी.. मुझे आपके स्तनों को चूसना है.. "

"अभी नहीं पीयूष.. पता है ना तेरी मम्मी और शीला अंदर बैठे है? फिर कभी.. " कहते हुए रेणुका जाने लगी.. पर पीयूष ने उसका हाथ पकड़ लिया

"प्लीज भाभी.. मेरा बहुत मन कर रहा है.. पता नहीं फिर कभी मौका मिले ना मिले... सिर्फ एक बार चूसने दो मुझे"

"जिद मत कर पीयूष.. मैं तुझे पक्का चूसने का मौका दूँगी.. पर अभी नहीं"

"नहीं भाभी.. अभी करने दो ना प्लीज.. जल्दी से एक बाजू का बॉल बाहर निकाल लो.. मैं दो मिनट से ज्यादा वक्त नहीं लूँगा.. बहुत मन कर रहा है मेरा.. जब शीला भाभी के घर आपने ब्लाउस से मोबाइल निकाला था तब से मैं आपके बबलों का दीवाना हो गया हूँ "

रेणुका सोचकर बोली "अभी मुमकिन नहीं है पीयूष.. मैं घर जाने से पहले कुछ सेटिंग जरूर करूंगी.. पर अभी नहीं.. बहोत रिस्क है तू समझ.. " कहते हुए रेणुका ने अपना पल्लू ठीक किया और जाने लगी.. जाते जाते रेणुका ने पीयूष को गाल को प्यार से सहलाया और पीयूष ने रेणुका के चूतड़ को थपथपाया..

रेणुका के जाने के बाद पीयूष ने अपने कपड़े ठीक किए और शीला के घर गया जहां कविता किचन में बीजी थी.. पीयूष ने सोफ़े पर बैठकर टीवी ओन किया.. पर किसी भी चेनल पर कुछ देखने लायक नहीं था.. टीवी बंद कर वो किचन में आया और कविता से शीला के बारे में अलग अलग तरीकों से पूछताछ करने लगा.. कविता भी शीला की पक्की शिष्या थी.. उसने पीयूष को कुछ भी खास नहीं बताया.. पर उसे संदेह जरूर हुआ की अचानक पीयूष शीला के बारे में ये सब क्यों पूछ रहा था !! आज से पहले तो उसे कभी ऐसी जिज्ञासा नहीं हुई थी.. कहीं शीला भाभी ने सब कुछ बता तो नहीं दिया पीयूष को !! नहीं नहीं.. शीला भाभी ऐसा कभी नहीं कर सकती.. पर फिर भी कुछ बोल नहीं सकते.. कविता के नार्को टेस्ट में पीयूष को कुछ खास पता नहीं चला

तभी अनुमौसी, शीला और रेणुका.. तीनों घर पहुंचे.. पीयूष अपनी माँ का बहुत सम्मान करता था पर आज उसे उनका एक नया ही रूप देखने को मिला.. या यूं कहिए की सुनने को मिला.. आधे घंटे पहले.. जिस तरह उसकी माँ सिसक रही थी.. वह अब भी उसके कानों में गूंज रही थी.. पीयूष ने इंटरनेट पर लेस्बियन सेक्स के अनगिनत फ़ोटो और विडिओ देखे हुए थे.. पर वो सोचता था की ऐसा सब पश्चिमी देशों में होता होगा.. लेकिन आज उसने जो सुना उसके बाद पीयूष की सोच ही बदल गई..

मेरी मम्मी लेस्बियन कैसे हो सकती है!! क्या पापा के साथ उनकी पटती नहीं होगी ? अगर ऐसा होता तो मम्मी किसी अन्य पुरुष के साथ भी सेक्स कर सकती थी.. अगर मम्मी पापा से संतुष्ट नहीं थी तो शीला भाभी के पास जाने का क्या मतलब? मदन भाई की गैरमौजूदगी में भाभी को चुदाई के लिए साथी की जरूरत हो सकती है.. तो फिर खिड़की से शीला भाभी की सिसकियाँ क्यों नहीं सुनाई दी ? आवाज तो सिर्फ मम्मी की ही आ रही थी.. तो क्या शीला भाभी मम्मी की चुत चाट रही होगी? छी छी.. मैं भी क्यों ऐसा गलत सोच रहा हूँ मम्मी के बारे में !!

पीयूष अनुमौसी से आँख तक नहीं मिला पाया.. वैसे देखा जाएँ तो इस घटना में वो प्रत्यक्ष या परोक्ष किसी भी तरह से जुड़ा नहीं था.. फिर भी उसे अफसोस हो रहा था की उसने अपनी ही माँ की जातीय ज़िंदगी में दाखल दी.. वह अपनी मर्जी की मालिक थी.. और अपनी इच्छा अनुसार कुछ भी कर सकती थी..

पीयूष को एक ही चिंता थी.. अभी तो मामला शीला भाभी तक सीमित था इसलिए कोई समस्या नहीं थी.. कल जब मदन भाई लौट आएंगे और शीला भाभी उनके साथ व्यस्त हो जाएगी तब मम्मी का क्या होगा? कहीं अपनी आग बुझाने के चक्कर में वो किसी लोफ़र लफंगे मर्द के चंगुल में फंस गई तो !! पर मैं इस बारे में और कर भी क्या सकता हूँ !! पीयूष बड़ी ही असमंजस में फंस गया था

पीयूष के मन में अब भी संवाद चल रहा था .. तू क्यों इसमें कुछ नहीं कर सकता..? और तू नहीं करेगा तो और कौन ध्यान रखेगा? किसी को कानों कान खबर हुई तो पूरे खानदान की इज्जत की माँ चुद जाएगी.. नहीं नहीं.. मम्मी का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा.. मुझे लगता है की मम्मी पहले ऐसी नहीं थी.. शीला भाभी के संग ज्यादा घुलमिल जाने के बाद ही ज्यादा एक्टिव हो गई थी.. मम्मी तो ठीक पर कविता भी आज कल शीला भाभी के साथ ज्यादा संपर्क में रहती है.. कहीं कविता भी शीला भाभी के साथ लेस्बियन....!!!! माय गॉड.. शीला भाभी इतनी खूबसूरत और एक्टिव है.. मदन भाई के बगैर.. दो सालों से बिना सेक्स के वो कैसे रह पाती होगी... !! जरूर उन्हों ने कोई न कोई लंड का जुगाड़ किया ही होगा अपनी प्यास बुझाने के लिए.. कहीं कविता भी भाभी के संग किसी और मर्द के साथ तो नहीं चुदवा रही होगी.. नहीं नहीं.. मेरी कविता ऐसा नहीं कर सकती.. पर कहीं कविता और मेरी मम्मी ही एक दूसरे के साथ तो...... !!!!!

अनुमौसी: "क्या सोच रहा है पीयूष? नौकरी गई तो गई.. इसमें इतना क्या चिंता करना.. !! और वैसे भी.. रेणुका के पति से तेरी बात हो गई है ना!! तू चिंता मत किया कर बेटा" पीयूष के सर को सहलाते हुए मौसी ने कहा "चल अब खाना खा ले" पीयूष का हाथ पकड़कर उसे डाइनिंग टेबल पर बैठा दिया मौसी ने

पीयूष मशीन की तरह बैठ गया और बिना कुछ बोले खाना खाने लगा.. थाली में सब्जी परोसते वक्त अनुमौसी का पल्लू नीचे गिर गया.. पीयूष ने अपनी नजर फेर ली.. छी छी.. ऐसे गंदे विचार मुझे क्यों आ रहे है आज!! वह खाना खाने लगा और फिर अपने घर चला गया.. कल रेणुका भाभी के पति राजेश से मिलने जाना है.. पीयूष घर पहुंचकर अपने सारे कागज ठीक करने लगा..

पीयूष के जाने के बाद कविता, शीला और मौसी टेबल पर बैठकर खाने लगे। रेणुका ने सबसे पहले खाना खतम कर लिया

शीला: "तूने कुछ खाया क्यों नहीं रेणुका? इतनी हड़बड़ी में खतम किया.. आराम से खाना था.. "

रेणुका: "मुझे जितनी भूख थी उतना खा लिया है मैंने.. तू चिंता मत कर" कहते हुए रेणुका उठकर जाने लगी

अनुमौसी: "कहाँ जा रही है तू रेणुका?"

रेणुका: "आप शांति से खाना खाइए.. मैं अभी आती हूँ" कहते हुए रेणुका भागकर अनुमौसी के घर पहुंची.. और पीयूष के कमरे में गई.. पीयूष कागज बिछाकर फ़ाइल कर रहा था.. रेणुका ने कमरे का दरवाजा बंद किया और ब्लाउस के दो हुक खोलकर अपना बायाँ स्तन बाहर निकालकर बोली


"जल्दी कर पीयूष.. वो तीनों खाना खा रहे है इसलिए बड़ी मुश्किल से बचकर आई हूँ.. मैंने तुझे वादा किया था इसलिए पूरा कर रही हूँ.. जल्दी जल्दी कर.. उनके आने से पहले मुझे भागना पड़ेगा.. "
Adbhut super gazab update
👌👌👌👌👌👌👌
💯💯💯💯💯
💦💦💦
kya madak batein ki hai Shila ne auraton se, jabardast

vakharia
 
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