"हैलो.. !!"
"शीला.. मैं रेणुका बोल रही हूँ"
"अरे.. कैसी हो रेणुका!! इतनी रात को कॉल किया?? कुछ काम था क्या?"
रेणुका: "बिस्तर पर अकेली पड़ी थी.. सोचा सब सहेलियाँ तो अपने पति की बाहों में होगी.. एक तुम ही अकेली हो तो सोचा तुम्हें फोन करू.. गलत टाइम पर तो फोन नहीं किया ना मैंने?"
शीला: "नहीं नहीं.. मैं भी बिस्तर पर ही थी.. अकेले रहकर जो काम करना पड़ता है वहीं कर रही थी.. " शीला ने इशारे से बता दिया की वह मूठ मार रही थी
"मैं भी वही कर रही हूँ" सिसकी भरते हुए रेणुका ने कहा
शीला: "क्या बात है.. तुम यहाँ क्यों नहीं आ जाती!! दोनों साथ में करते है.. तू आटा गूँदना और मैं रोटियाँ बनाऊँगी.. तुझे आज पानी में भीगी हुई देखने के बाद मुझे कब से कुछ कुछ हो रहा है.. " शीला ने गुगली बॉल फेंका "आज पानी में बहुत मज़ा आया.. है ना.. !!"
रेणुका: "हाँ यार.. सच में मज़ा आ गया आज तो.. उफ्फ़ शीला.. अभी मैं नजदीक होती तो जरूर तेरे घर पहुँच जाती.. पर क्या करू!! एक काम करती हूँ.. कल आती हूँ तेरे घर.. ऐसे ही निठल्ली बैठी रहती हूँ पूरा दिन घर पर.. मेरे पति काम के सिलसिले में कलकत्ता गए हुए है.. एक हफ्ते बाद लौटेंगे.."
शीला: "अच्छा ये बात है.. !! तो तू एक काम कर.. अपने २-३ जोड़ी कपड़े साथ लेकर ही आना.. हाय रेणुका.. तू जल्दी आ जा.. ऐसे मजे करेंगे की तू अपने पति को भी भूल जाएगी.. "
रेणुका: "क्या सच में शीला?? फिर तो मैं कल पक्का तेरे घर आ जाऊँगी.. वैसे भी मैं इस ज़िंदगी से ऊब चुकी हूँ.. चल रखती हूँ.. कल मिलते है"
रेणुका ने फोन कट कर दिया
शीला को पता चल गया.. रेणुका भी उसकी तरह अकेलेपन से झुँझ रही थी.. रात के ११:३० बजे दो दो भूखे भोसड़े अपने घर में तड़प रहे थे.. पर उनके अलावा दो और चूतें भी थी जो फड़फड़ा रही थी.. रूखी और चम्पा मौसी की
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अनुमौसी कपड़े बदलकर चिमनलाल की बगल में लेट गई.. चिमनलाल ने अनुमौसी को खींचकर अपने ऊपर लेकर दबा दिया.. अनुमौसी चौंक गई.. इनको क्या हो गया आज अचानक!! कहीं आज बिन बादल बरसात तो नहीं होनेवाली??
चिमनलाल ने अनुमौसी को उत्तेजना से मसल दिया.. ऐसा मसला की अनुमौसी का बूढ़ा ढीला भोसड़ा भी पानी पानी हो गया.. मौसी ने चिमनलाल के पाजामे के अंदर हाथ डालकर उनके लंड का मुआयना किया.. कमीना ऐसे ही मिसकॉल तो नहीं मार रहा है ना!! खाते में बेलेन्स है भी या बिना रिचार्ज के लगा हुआ है!! अरे बाप रे.. ये क्या.. आज इनका लंड खड़ा कैसे हो गया.. ?? क्या कारण होगा?
बिना एक भी पल गँवाए.. अनुमौसी ने चिमनलाल के ग्राउन्ड-फ्लोर पर कब्जा कर लिया.. और बहोत सालों के बाद सख्त हुए चिमनलाल के लंड को चूसना शुरू कर दिया.. चिमनलाल भी अनुमौसी के विशाल चूतड़ों पर हाथ फेरते हुए गांड और भोस दोनों के छेदों को कुरेदने लगा.. जैसे पहली बारिश में मोर पंख फैलाकर नाचता है.. वैसे ही अनुमौसी की चुत नाचने लग गई.. और डबल जोर से चिमनलाल की ह्विसल को चूसने लगी..
चिमनलाल: "अरे यार.. खा जाएगी क्या? तू तो ऐसे टूट पड़ी जैसे पहली बार लंड देखा हो.. जरा धीरे धीरे.. !!"
पर अनुमौसी फूलफॉर्म में थी.. और चिमनलाल की बात सुनने के मूड में नहीं थी.. भूखी शेरनी की तरह वो चिमनलाल के लंड पर टूट पड़ी थी.. और लंड के साथ उनके आँड भी चूस रही थी.. चिमनलाल ने भी एक साथ चार चार उँगलियाँ मौसी के भोसडे में दे दी.. और अंदर बाहर करने लगे..
बेचारा चिमनलाल.. मौसी के आक्रमण के आगे और टीक नहीं पाया.. और उनके मुंह में ही झड गया..
चिमनलाल: "बस अब छोड़ भी दे.. दर्द हो रहा है मुझे.. तेरी भूख अब भी शांत नहीं हुई क्या?"
अनुमौसी: "आप हमेशा ऐसा ही करते हो.. जब मुझे ठंडा करने की ताकत नहीं है तो गांड मराने गरम करते हो मुझे!! अब मैं कहाँ जाऊ?? इसे ठंडा कौन करेगा.. तुम्हारा बाप??" अपने भोसड़े की ओर इशारा करते हुए मौसी बोली.. हवस की गर्मी बर्दाश्त ना होने के कारण अनाब शनाब बकने लगी थी वो..
चिमनलाल ने एक शब्द भी नहीं कहा और करवट बदलकर सो गया.. मौसी को इतना गुसा आया.. उनका मन कर रहा था की अभी चिमनलाल का गला घोंट दे.. मौसी गाउन पहनकर खड़ी हुई.. किचन में गई और नया खरीदा हुआ मोटा बेलन वहीं खड़े खड़े अपनी भोस में अंदर बाहर करने लगी..
अंधेरे में खड़ी हुई मौसी की आँखें तब चौंधिया गई जब किसी ने अचानक किचन की लाइट चालू कर दी.. वो कविता थी.. एकदम नंगी.. किचन में पानी पीने आई थी.. उसे अंदाजा नहीं था की इस वक्त किचन में कोई होगा.. अपनी सास को खड़ी देख वो शरमाकर अपने बेडरूम में भागकर चली गई.. फटाफट गाउन पहना और वापिस आई.. वो शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी.. ये क्या हो गया मुझसे!! सासुमाँ ने मुझे नंगा देख लिया.. वो क्या सोच रही होगी मेरे बारे में.. ये कमबख्त पीयूष रोज रात को मुझे नंगी ही सुलाने की जिद करता है.. !!
अनुमौसी भी सहम गई.. अच्छा हुआ की उन्होंने गाउन पहना हुआ था और जब कविता अंदर आई तब उनकी पीठ उसकी तरफ थी.. वरना वो क्या सोचती?? कविता गाउन पहनकर वापिस आई तब तक मौसी आँखें झुकाकर अपने कमरे में चली गई..
अपनी सास के जाने के बाद, कविता ने पानी पिया.. तभी उसकी नजर प्लेटफ़ॉर्म पर पड़े बेलन पर गई.. ये बेलन कहाँ से आया?? सारे बर्तन तो धोकर अंदर रखे थे.. बेलन हाथ में लेते ही कविता को पता चल गया की सासुमाँ क्या कर रही थी.. वो पानी पीकर हँसते हँसते बेलन लेकर अपने कमरे में आई.. और सो रहे पीयूष के नाक के आगे उस बेलन को पकड़ रखा.. पीयूष नींद में था.. पर चुत के क्रीम की विशेष गंध अच्छे अच्छों को उत्तेजित कर देती है.. फिर वो सांड हो या हाथी.. इस गंध को परखकर पीयूष जाग गया... और आँखें खोलकर देखने लगा..
"ये क्या कर रही है तू कविता?"
कविता: "ये देख पीयूष.. तेरी माँ के कारनामे!!"
पीयूष: "क्यों.. क्या हुआ??"
कविता: "अभी मैं पानी पीने रसोई में गई तब अंधेरे में मम्मीजी इससे मूठ मार रहे थे.. बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम.. इस उम्र में भी उन्हे ये सब सूझता है!!"
पीयूष ने कविता को अपनी बाहों में जकड़ लिया.. और उसके छोटे छोटे उरोजों को दबाते हुए उसे चूमकर.. बेलन हाथ में ले लिया.. और उसे कविता के चूतड़ों को थपथपाने लगा.. जैसे सवार घोड़े को चाबुक लगा रहा हो.. कविता ने टांगें फैलाई.. और अपनी चुत के होंठों पर पीयूष का लाल सुपाड़ा रख दिया.. पीयूष ने बेलन का एक फटका और लगाया.. और कविता घोड़ी की तरह हिनहिना कर लंड पर उछलने लगी.. पहले धीरे धीरे और फिर तेज गति से वो लंड पर कूद रही थी.. सारी दुनिया से बेखबर ये पति-पत्नी का जोड़ा मदमस्त चुदाई में व्यस्त था..
बेलन के जिस छोर पर अपनी माँ की चुत की गंध आ रही थी.. उस छोर को पीयूष ने कविता के मुंह में दे दिया.. अपनी सास के कामरस को चाटते हुए कविता.. पीयूष के लंड से चुदवा रही थी.. कविता के अमरूद जैसे स्तनों को मसलते हुए पीयूष अपनी गांड उछाल उछालकर कविता को चोद रहा था
"ओह्ह.. पूरा अंदर तक चला गया है पीयूष.. बहोत मज़ा आ रहा है.. उफ्फ़.. आहह.. आज तो बहोत गरम हो गया है तू!!"
अपने कामुक शब्दों से वो पीयूष को ओर उत्तेजित करने लगी.. उसने पीयूष के हाथों से बेलन छिन लिया.. बिखरे हुए बाल और लाल आँखों वाली कविता बेहद सेक्सी लग रही थी.. हर उछाल के साथ उसके स्तन लयबद्ध तरीके से ऊपर नीचे हो रहे थे.. पीयूष ने हाथ पीछे ले जाकर उसके कूल्हों को पकड़ लिया.. और दोनों हाथों से चूतड़ों को चौड़ा कर.. कविता के लाल रंग के गांड के छिद्र को दबाया..
"उईई.. माँ.. क्या कर रहा है यार.. मुझे दर्द हो रहा है... ओह्ह!!" कविता पसीने से तरबतर हो गई थी.. उसकी सांसें अनियंत्रित हो गई थी.. १५ मिनट हो गए पर पीयूष झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था.. उसने कविता को अपनी छाती से दबा दिया.. और उसके होंठों को चूमते हुए.. गांड के अंदर उगनली डाल दी.. कविता दर्द से कराहने लगी.. पर पीयूष ने उसके होंठ इतनी मजबूती से पकड़ रखे थे की वह बेचारी बोल नहीं पा रही थी
बरसों से तैयार ओवरब्रिज.. जिसका किसी बड़े नेता के हाथों उद्घाटन होना था.. वो किसी मामूली मजदूर के हाथों खोल दिया जाएँ.. ऐसा हाल हुआ.. कविता अपनी कच्ची कुंवारी गांड का पिंटू के लंड से कौमार्यभंग करवाना चाहती थी.. पर पीयूष की उंगली ज्यादा किस्मत वाली थी.. पीयूष बेहद उत्तेजित हो गया.. और कविता के कामरस का झरना अब तूफ़ानी समंदर का रूप धारण कर चुका था.. दोनों एक दूसरे के अंगों को मसल रहे थे.. मरोड़ रहे थे.. कुरेद रहे थे.. कविता बड़े ही हिंसक तरीके से अपने चूतड़ों को पीयूष के लंड पर पटके जा रही थी..
अपनी कमर को तब तक उठाती जब तक सुपाड़े तक लंड बाहर न आ जाता.. फिर एक झटके में जिस्म का सर वज़न लंड पर दे देती.. थप थप थप थप की आवाज़ें आ रही थी.. दोनों बेकाबू होकर इस काम-युद्ध को लड़ रहे थे.. कविता की चुत से रस की धाराएं.. पीयूष के आँड़ों को भिगोते हुए बिस्तर की चादर को गीली कर रही थी। उसके स्तन पत्थर जैसे कठोर हो गए थे.. गुलाबी निप्पल बंदूक की नली की तरह तनी हुई थी.. पीयूष के लंड से चुद चुद कर कविता की चुत का कचूमर निकल गया था.. पीयूष शीला को याद करते हुए कविता के कामुक जवान बदन को बेरहमी से चोद रहा था.. उसके हरेक धक्के से कविता के मुंह से "आहह आह्ह" की आवाज़ें निकल रही थी..
कविता की आँखें बंद होती देख पीयूष समझ गया.. गति को एकदम तेज करने का वक्त आ गया था.. कविता झड़ने के कगार पर थी.. उसने कविता की कमर को मजबूती से पकड़कर और जोर से धक्के लगाना शुरू कर दिया.. कविता की चुत पीयूष के लंड को निगलते हुए अपनी लार गिरा रही थी..
अपनी पत्नी की पूत्ती की ऐसी मजबूत पकड़ अपने लंड पर महसूस करते हुए पीयूष से ओर रहा नहीं गया.. उसके लंड ने वीर्य से भरपूर पिचकारी छोड़ दी.. कविता भी अपने चुत के होंठों से पीयूष के कठोर लंड को आलिंगन देते हुए झड़ गई.. और पस्त होकर पीयूष की छाती पर ढेर हो गई.. जैसे हजारों किलोमीटर की यात्रा तय करके लौटा विमान.. रनवे पर अकेले पड़े पड़े अपनी थकान उतारता है.. बिल्कुल वैसे ही कविता पीयूष के शरीर पर पड़ी रही.. पीयूष के जिस्म पर जगह जगह कविता के नाखूनों की खरोंचे दिख रही थी.. इस जबरदस्त चुदाई से तृप्त होकर दोनों बातें करने लगे.. कविता अब भी पीयूष की छाती पर पड़ी थी.. और पीयूष का लंड अब भी कविता की चुत में था.. थोड़ा सा मुरझाया हुआ.. कविता की चुत की मांसपेशियाँ अब भी उसे दुह रही थी
कविता के सूडोल स्तनों से खेलते हुए पीयूष को शीला के स्तनों की याद आ गई.. कविता की कोमल निप्पल को छेड़ते हुए वह मल्टीप्लेक्स में शीला के स्तनों के साथ किए खेल को याद करता हुआ उत्तेजित होने लगा.. कविता के चुत के सेंसर को पीयूष की उत्तेजना की भनक लग गई.. अभी अभी झड़ा हुआ लंड फिर से सख्त कैसे हो गया!!!
कविता को अचानक पिंटू की याद आ गई.. आह्ह.. पीयूष के मुकाबले पिंटू का लंड ज्यादा तगड़ा है.. सिनेमा हॉल में पिंटू का लंड चूसने की ख्वाहिश अधूरी रह गई थी.. पर पिंटू ने उसके स्कर्ट में हाथ डालकर जिस तरह दो उँगलियाँ घुसा दी थी.. आह्हहह.. और उसका लंड भी कितना सख्त हो गया था!! मैं तो डर गई थी.. की ये अब कैसे शांत होगा!!
कविता जैसे जैसे पिंटू के खयालों में खोने लगी.. उसकी बुझी हुई चुत में फिर से हरकत होने लगी.. नए सिरे से चुत का गरम गीलापन महसूस होते ही पीयूष सोच में पद गया.. पक्की रंडी हो गई है ये कविता.. चुदाई खतम हुए पाँच मिनट नहीं हुई और इसकी चुत फिरसे रिसने लगी.. शीला भाभी के बबले याद करते हुए पीयूष नीचे से अपनी गांड हिलाने लगा.. और कविता पिंटू को याद करते हुए अपनी कमर हिलाने लगी.. जिस तरह ट्रेन का इंजन धीरे धीरे स्पीड पकड़ता है.. वैसे ही दोनों के बीच ठुकाई शुरू हो गई.. अभी थोड़ी देर पहले ही खतम हुए जबरदस्त चुदाई के बाद.. दोनों में वैसी वाली ऊर्जा या उत्तेजना नहीं थी.. पर फिर भी.. अपने प्रिया पात्रों की याद और कल्पना करते हुए दोनों ने बड़े ही आनंद पूर्वक बाकी की रात गुजार दी..
अचानक कविता को ऐसा प्रतीत हुआ की उनके बेडरूम के दरवाजे की नीचे की दरार से उसने एक परछाई को गुजरते देखा.. कहीं वो सासुमाँ तो नहीं थी?? और कौन हो सकता है.. शायद रात को उनका मूठ लगाना अधूरा रह गया था.. इसलिए बेलन घुसेड़ने वापिस जागी होगी.. अरे बाप रे!! बेलन तो मैं यहाँ ले आई.. अब वो क्या सोचेगी मेरे बारे में!! पास पड़े बेलन को अपनी मुठ्ठी में दबाते हुए कविता सोच रही थी.. काफी तगड़ा मोटा बेलन है.. कैसे घुसाती होगी वो अंदर!! ऐसा डंडा अंदर घुसे तो कितना दर्द होता होगा!! या फिर मज़ा आता होगा.. !! किसे पता.. सुहागरात को पीयूष का लंड लिया था तब कितना दर्द हुआ था.. हालांकि उस रात से पहले ऐसी कोई मोटी चीज उसने चुत में डाली ही नहीं थी
कविता को अपने पुराने दिन याद आने लगे.. पहली बार उसने अपनी चुत में पेन डालकर देखा था.. और हाँ एक बार मोमबत्ती से अपनी चुत को गुदगुदाया था.. शादी के बाद पहली बार जब पीयूष का लंड देखा तब वो डर गई थी.. वैसे पिंटू के साथ हुए अनुभव से भी काफी मदद मिली थी.. सच में.. पिंटू ही मेरा सच्चा प्रेमी है.. मैंने कितनी दफा जबरदस्ती उसका लंड चुत में लेने के लिए रगड़ा था.. पर वो नहीं पिघला कभी भी.. इसी लिए तो वो कमीना इतना पसंद है मुझे.. आई लव यू पिंटू.. आखिरी चार शब्द दिमाग के बदले होंठों से निकाल गए
"क्या बोली तू?" पीयूष ने सुन लिया
"मैंने कहा.. आई लव यू पीयूष.. तुम तो कभी कहते नहीं.. पर मैं हमेशा तुम्हारे नाम की माला जपती रहती हूँ" कविता ने चालाकी से बात को मोड लिया। पिंटू खुश होकर सो गया
जान बच गई.. आज तो भंडाफोड़ हो जाता.. अगर उसने बात को घुमाया न होता..
पीयूष आँख बंद कर सोच रहा था.. कितनी भोली है मेरी कविता.. कहीं शीला भाभी के बारे में सोचकर मैं उसे धोखा तो नहीं दे रहा!! हे भगवान.. घूम फिरकर दिमाग में शीला भाभी आ ही जाते है.. ये औरत मेरा घर बर्बाद करवाकर मानेगी.. मेरे दिल और दिमाग पर कब्जा कर लिया है शीला भाभी ने.. किसी दिन चोदने का चांस मिल जाए तो अच्छा.. कुछ भी करके उसे पटाना तो पड़ेगा ही
कविता और पीयूष के बेडरूम के दरवाजे के उस तरफ.. अपने बेटे और बहु की कामुक आवाज़ें सुनकर निराश अनुमौसी गरम गरम सांसें छोड़ रही थी.. क्या करू? कहाँ जाऊ? किससे कहू? कौन समझेगा मेरे इस दर्द को??
अनुमौसी को कविता का नंगा बदन याद आ गया.. मेरी बहु कितनी नाजुक और कोमल है.. पीयूष के साथ उसका मन-मिलाप भी अच्छा है.. कितनी सुंदर जोड़ी है दोनों की.. और मेरा भी कितना खयाल रखती ही.. छोटी से छोटी बात मुझसे पूछकर ही करती है.. उस रात को शीला के घर जाना था तब भी मुझसे पूछ कर गई थी.. शीला बड़ी चालू चीज है.. कहीं मेरी कविता उसकी संगत में बिगड़ न जाए.. मौसी के मन में डर पैदा हो गया.. शीला हरामी उस रसिक के साथ पक्का गुलछर्रे उड़ाती है.. नहीं तो इतनी सुबह सुबह हररोज क्यों दरवाजे पर खड़ी रह जाती है!! कहीं मदन की गैरहाज़री में.. !! हे भगवान.. नहीं नहीं.. शीला ऐसा गंदा काम नहीं कर सकती.. तो फिर उस रात को उसके घर से आवाज़ें क्यों आ रही थी??? मुझे पक्का यकीन है की उसके घर से मर्दों की आवाज आ रही थी.. और वो एक से ज्यादा थे.. बाहर चप्पल भी दो लोगों के पड़े हुए थे.. तो क्या उन दोनों के साथ शीला.. बाप रे.. ऐसा कैसे कर सकती है वो?? दो दो मर्दों के साथ?? यहाँ एक लंड नसीब नहीं हो रहा और वो दो दो से चुदवा रही है!! कुछ भी हो जाएँ.. उन दोनों में से एक लंड का जुगाड़ मुझे कैसे भी करना ही है.. जाकर शीला को बोल दूँगी.. एक लंड मुझे दे दे.. मैं बहोत तड़प रही हूँ शीला.. मेरे लिए भी कुछ कर.. अनुमौसी मन ही मन गिड़गिड़ाने लगी.. और जैसे उनकी प्रार्थना.. शीला के दिमाग तक पहुँच गई..
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दूसरी सुबह सात बजे.. शीला के घर के बाहर एक रिक्शा आकर खड़ी हुई.. और उसमें से रेणुका बाहर आई.. भोसड़े की भूख कितनी खतरनाक होती है..!! शीला का आमंत्रण मिलते ही रेणुका सुबह सुबह पहुँच गई..
रेणुका शीला के दरवाजे तक पहुँचती उससे पहले ही ब्रश करते हुए अनुमौसी अपने घर से बाहर निकली..
ये रेणुका हरामजादी इतनी सुबह यहाँ क्या कर रही है!! क्यों आई होगी? अभी कल ही तो उसकी शीला से पहचान हुई थी.. और इतनी देर में दोस्ती भी हो गई?? जानना पड़ेगा.. कल भी वो दोनों पानी के अंदर कुछ गुसपुस कर रही थी.. जरूर दाल में कुछ काला था.. शायद उन दोनों मर्दों में से किसी एक को शीला ने रेणुका के लिए जुगाड़ा हो सकता है.. हम्म.. पर यहाँ पुरानी पड़ोसन को छोड़कर नई दोस्त के लिए जुगाड़!! ये कैसा अन्याय है!! ये रेणुका भी पक्की रांड है.. अपने एरिया में भी करवाकर आई होगी और अब मेरे इलाके में हिस्सा झपटने आ गई.. कुछ शर्म भी नहीं आती कमिनी को!!
गुस्से में अनुमौसी बाथरूम में जाकर.. जैसे तैसे नहाकर बाहर निकली.. और पहुच गई शीला के घर.. चुत की भूख अच्छी अच्छी को पागल बना देती है..
"अरे.. तू इतनी सुबह सुबह यहाँ क्या कर रही है? "शीला के घर में घुसते ही अनुमौसी ने रेणुका से पूछा
"आइए मौसी.. चाय पीजिए.. " अपना कप मौसी को थमाते हुए शीला बोली
इधर उधर की बातें करते हुए रेणुका ने बताया की वो दो दिन के लिए रुकने वाली थी.. शीला ने झटपट घर का काम निपटा दिया और थोड़ा सा नाश्ता बना दिया.. रेणुका की पारदर्शी साड़ी से नजर आ रही उसके स्तनों की बीच की जालिम खाई को देखकर शीला को कुछ कुछ होने लगा था.. वो इस इंतज़ार में थी की कब अनुमौसी जाएँ.. और वो रेणुका के साथ अपने खेल का आरंभ करें
अनुमौसी बुजुर्ग थी.. उनकी हाजरी में कुछ भी आड़ा-टेढ़ा करने या बोलने में शीला को शर्म आ रही थी.. उसका शैतानी दिमाग काम पर लग गया.. इस बुढ़िया को किसी भी तरह जल्दी भगाना पड़ेगा यहाँ से.. दूसरी तरफ रेणुका, कल रात के बाद इतनी उत्तेजित हो चुकी थी की उसने द्विअर्थी बातें शुरू कर दी.. अनुमौसी को निशाना बना कर
"मौसी, आपकी आँखें देखकर लगता है कल रात को ठीक से सोई नहीं है.. क्या किया पूरी रात??" रेणुका ने पूछा
वैसे भी कल रात कविता के आ जाने से मुठ लगाना अधूरा छोड़ना पड़ा उस बात का गुस्सा था मौसी को.. रेणुका की बात सुनकर उनका गुस्सा उखड़ पड़ा..
"तुझे क्या जानना है ये जानकर की मैंने रात को क्या क्या किया?? तू कभी मुझे कुछ बताती है क्या??" सारा गुस्सा रेणुका पर उतार दिया मौसी ने
रेणुका: "क्या जानना है आपको? की मैंने रात को क्या किया?? तो सुनिए.. पूरी रात तकिये को रगड़ रगड़ कर काटी है मैंने"
अनुमौसी: "इसलिए सुबह सुबह दौड़कर यहाँ आ गई तू?"
शीला: "क्या अनुमौसी आप भी!! तेल-पानी लेकर चढ़ गई आप तो.. बेचारी अपना दुख हल्का करने आई है यहाँ.. पति की गैरमौजूदगी में वक्त कैसे कटता है.. ये आप हम दोनों अभागनों से पूछिए.. आपको तो चिमनलाल का सहारा है.. पर हमारा क्या!!"
चिमनलाल का नाम सुनते ही अनुमौसी का मुंह कड़वा हो गया.. "उस रंडवे का नाम मत ले मेरे सामने शीला.. उसका होना या न होना सब एक बराबर है.. पूरी रात तड़पाया है उसने मुझे.. "
शीला: "अरे, ऐसा क्या हो गया मौसी?? कहीं चिमनलाल को स्टार्टिंग ट्रबल तो नहीं है ना!!
अनुमौसी: "गाड़ी स्टार्ट तो होती है.. पर माइलेज नहीं देती.. क्या कहूँ अब तुमसे.. !!"
शीला: "समझ गई मौसी.. आप भी हिचकिचाहट छोड़कर निःसंकोच बात करोगी तो मज़ा आएगा.. मैंने और रेणुका ने रात भर ऐसी ऐसी बातें की थी फोन पर.. क्यों ठीक कहा ना मैंने रेणुका??"
रेणुका: "मुझसे तो अब रहा ही नहीं जाता शीला.. आधी रात न हो चुकी होती तो में तब के तब यहाँ तेरे पास आ जाती.. कितना सहती रहूँ? हफ्ते बाद लौटूँगा कहकर वो तो निकल पड़े.. पर पूरा हफ्ता मैं कैसे निकालूँ?? कितनी तकलीफ होती है हम बीवियों को.. मर्दों को इसका अंदाजा तक नहीं है"
रेणुका के शब्दों में अपने दर्द की झलक नजर आई अनुमौसी को.. शीला अब सही मौके के इंतज़ार में थी.. पर वो हर कदम फूँक फूँक कर रखना चाहती थी.. ताकि कोई गड़बड़ न हो.. अपने मन में वो सेक्स की शतरंज बिछा रही थी..
अनुमौसी: "अरे शीला.. आज रसिक नहीं आया दूध देने.. तेरे घर आया था क्या?"
तभी शीला को ये एहसास हुआ की आज रसिक नजर ही नहीं आया..
तभी दरवाजे की घंटी बजी..