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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३० -कौन है चुम्मन ? पृष्ठ ३४७

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Sanju@

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गुड्डी -रीत और आनंद
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रीत अपने नितम्ब रगड़ रही थी, सिसक रही थी, मुझे कसकर अपने बांहों में भींचे थी, उसके लम्बे नाखून मेरी पीठ में गड़े हुए थे।


ड्राइव मी क्रेजी। माई नेम इज शीला,

नो बडी हैज गाट बाडी लाइक मी।


“एकदम…” मैंने अपनी कैट के, के कान में कहा और कसकर चूम लिया। मेरे हाथों ने अब उसके उभारों को ब्रा से आजाद कर दिया था।
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तभी आवाज आई- “कहाँ हो। आप लोग?”

गुड्डी बुला रही थी।

मैंने तुरंत उसकी थांग सरका दी। रीत ने झट से उठकर अपनी पाजामी बांध ली। मैंने ब्रा ठीक करके वापस कुरता नीचे कर दिया। हम दोनों उठ गए। उसके चेहरे पे कुछ खीझ, कुछ फ्रस्ट्रेशन। कुछ मजा झलक रहा था। मुझे लगा कहीं वो गुस्सा तो नहीं।

लेकिन रीत तो रीत, बाकी बनारसवालियों को भी मेरे मन की बात सोचने से पहले मालूम हो जाती थी, चाहे गुंजा हो या चंदा भाभी, और ये तो मेरी गुड्डी की भी बड़ी दी,

वो मुड़ी, कस के मुझे बाहों में जकड़ा और अपने दोनों नुकीले उभार, बरछी की तरह मेरी छाती में उतार दिए, कस के रगड़ते हुए उसकी पजामी का सेंटर मेरे खड़े खूंटे पे और क्या रगड़ा है उसने, उसका एक हाथ मेरी पीठ पर और दूसरा नितम्बों पर और बाल झटक के गाती हुयी मुड़ गयी,


" अभी तो पार्टी शुरू हुयी है, अभी तो बस शुरुआत है "
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अपने रसीले नितम्ब मटकाते वो बाहर निकल पड़ी।

पीछे-पीछे मैं।

बाहर निकलते ही गुड्डी ने पूछा- “तुम लोग कर क्या रहे थे? मैंने तीन बार आवाज दी…”

रीत- “अरे यार म्यूजिक सिस्टम ठीक कर रहे थे। फिर सीडी मिल गई तो लगाकर चेक कर रहे थे। तुम्हीं ने तो कहा था की गाने वाने का। गाने की आवाज में कैसे सुनाई देता?” रीत ने ही बात सम्हाली।


गुड्डी बोली- “हाँ गाने की आवाज तो आ रही थी। सलीम की गली वाला। एकदम लेटेस्ट हिट। तो बाहर छत पे लगाओ न…” और उन दोनों ने मिलकर 5 मिनट में म्यूजिक सिस्टम बाहर सेट कर दिया।

रीत बोली, मैं नीचे से जाकर अपने सीडी भी ले आती हूँ, मेरे पास असली भोजपुरी वाले भी हैं, ठेठ बनारसी, "

और वो सीढ़ी से नीचे उतर गयी, और रीत के सीढ़ी पे जाते ही गुड्डी अपने असली बनारसी रूप में आ गयी, बरमूडा फाड़ते मेरे खड़े खूंटे को वो देख रही थी और रीत की पीठ हम लोगों की ओर होते ही, उसने बारमूडा के ऊपर से ही उसे कस के दबोच लिया और साफ़ साफ़ पूछ लिया,

" कुछ हुआ की नहीं, "
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" बस थोड़ा बहुत, " किसी तरह से मैंने बोला और गुड्डी सीधे मुद्दे पर, हाथ अंदर बारमुडे के और बोली,

" साफ़ साफ़ बोल न, अंदर घुसा की नहीं, पानी गिराया की नहीं "

और मेरे कुछ बोलने के पहले ही वो समझ गयी की कुछ ज्यादा नहीं हुआ और एकदम अपनी मम्मी की बेटी वाले रूप में,

" स्साले, तेरी माँ की,... कितना समझाउंगी तुझे, तेरी ससुरालवालियाँ है सब की सब, और समझ तो मैं पहले ही गयी थी जब देखा सिग्नल डाउन नहीं हुआ, ...एक बात समझ ले, अगर यहाँ से तुम भूखे प्यासे गए न तो रात में भी कुछ नहीं मिलेगा, और यहाँ अगर, … तो तेरे मायके में भी रोज दावत दूंगी और क्या पता जिंदगी भर का इसका जुगाड़ हो जाए, "
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और ऐसे लाइफ टाइम ऑफर के आगे रीत और गुंजा क्या, लेकिन तब तक रीत के सीढ़ी पर से आने की आवाज आयी, और गुड्डी का हाथ बाहर और वो थोड़ी दूर खड़ी।

अब गुड्डी रीत के पीछे पड़ गयी, - “हे तुम लोग बातें क्या कर रहे थे?”



रीत ने मुश्कुराकर मेरी ओर शरारत से देखा और फिर गुड्डी की पीठ पे कसकर एक धौल जमाते हुए बोली- “अरे यार। तेरा ये ‘वो’ ना इत्ता सीधा नहीं है जित्ता तुम कहती है वो…”


मेरा दिल धक्-धक् होने लगा कहीं ये?

लेकिन गुड्डी ही बोली- “ये मेरे। ‘वो’ थोड़े ही…”

लेकिन उसकी बात काटकर रीत बोली- “चल दिल पे हाथ रखकर कह दे। ये तेरे ‘वो’ नहीं हैं…”
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गुड्डी पहले तो शर्माई फिर पैंतरा बदल के बोली- “आप भी ना। बताइये न…”


तब तक चन्दा भाभी किचेन से बाहर निकलकर आई, हँसती। और इशारे से मुझे अपने साथ अपने कमरे में चलने को कहा। उनके हाथ में एक पीतल का बड़ा सा डब्बा था। मैं चल दिया।

मुझे डब्बा दिखाकर उन्होंने अलमारी खोली-

“आज सुबह से तुम्हारे लिए बना रही थी। 22 हर्ब्स पड़ती हैं इसमें। साथ में शिलाजीत, अश्वगंधा, मूसली पाक, स्वर्ण भस्म, केसर, शतावर, गाय के घी में बनाया है इसको। सम्हालकर रख रही हूँ याद करके जाने के पहले ले जाना साथ में और उससे भी ज्यादा, आज रात को एक खा लेना…”


मैंने देखा की करीब दो दर्जन लड्डू थे नार्मल साइज से थोड़े ही छोटे। मैंने पूछा- “एक अभी खा लूं?”

चंदा भाभी- “एकदम। वैसे भी तुमने कल रात इतनी मेहनत की थी। इतना तो बनता ही है। मुझे तो लगता था की अब तुम्हारी सारी मलाई निकल गई लेकिन, ससुराल में हो होली का मौका है क्या पता?अरे साली हैं, सलहज है, छोड़ना मत किसी को, वरना मेरी रात की सब पढ़ाई बेकार, ये कोई बुरा मानने वाली नहीं है, और सबसे खुश तेरी वाली होगी, सब बोलेंगी न उससे अरे यार तेरा वाला तो एकदम, ”

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ये कहकर उन्होंने एक लड्डू मुझे खिला दिया और डब्बा अलमारी में रखकर बंद कर दिया।

चंदा भाभी फिर बोली- “चलो बाहर चलो वरना वो सब न जाने क्या सोच रही होंगी?”

वास्तव में रीत और गुड्डी की निगाहें बाहर दरवाजे पे ही लगी थी।
गुड्डी ने तो कबाब में हड्डी का काम कर दिया नही तो आज मैदान ए जंग हो जाती वो भी नए मैदान पर नए हथियार से।गुड्डी को भी बुरा लगा गुड्डी ने हथियार को हाथ लगा कर चेक कर लिया कि हथियार अभी तक यूज नही हुआ है उसने फिर आनंद को हड़का दिया है
चंदा भाभी ने अपने देवर की मर्दांगी बनाए रखने के लिए जड़ी बूटियों से लड्डू बना दिया है अब इन लड्डूओ की जरूरत पड़ने वाली है रात में जो मेहनत की थी उसकी भरपाई के लिए एक डोज तो दे दिया है
 

komaalrani

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भाग १ फागुन की फगुनाहट पृष्ठ ११

भाग २ रस बनारस का --चंदा भाभी - पृष्ठ १९

भाग ३ फगुनाई शाम बनारस की-------पृष्ठ ३८

भाग ४ चंदा भाभी और होली का राशिफल पृष्ठ ५८
भाग ५ चंदा भाभी की पाठशाला पृष्ठ ७२
भाग ६ - चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी पृष्ठ ८१
भाग ७ - गुड्डी -गुड मॉर्निंग पृष्ठ ९०
भाग ८ - चिकनी चमेली, पृष्ठ १२०
भाग ९ रीत की रीत रीत ही जाने पृष्ठ १३२
भाग १० रीत -मस्ती, म्यूजिक, डांस - पृष्ठ १४६
भाग ११ आज रंग है - रस की होली पृष्ठ १६०
भाग १२ - पहले रंगाई फिर धुलाई पृष्ठ १६३
भाग १३ - होली का धमाल - पृष्ठ १७५



 

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रिश्तों की झुरमुट
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“मैंने सुना है की कुछ लोगों को आज एक नया देवर और किसी को नई सेक्सी भाभी मिल गई…” भाभी ने पहले रीत और फिर मुझे देखते हुए हँसकर कहा।


“एकदम…” हँसकर रीत बोली और कहा- “मैं वही कह रही थी की भाभी का हक देवर पे सबसे पहले होता है…”

“अरे वो तो है ही। उसमें कुछ पूछने की बात है। फिर अभी तो इसकी शादी नहीं हुई है इसलिए भाभी का तो पूरा हक है और तुम्हारी भी शादी नहीं हुई है। इसलिए इसका भी हक बटाने वाला कोई नहीं है। लेकिन तुम्हारा इसका एक और रिश्ता है…”चंदा भाभी बोली

रीत हंस के बोली, मालूम है और अब वही रिश्ता पक्का, गुड्डी मेरी छोटी बहन तो उस रिश्ते से, मैं साली, भले ही बड़ी सही, पर साली तो साली और होली में जीजा की रगड़ाई करने का साली का पूरा हक़ है, मैं बड़ी साली और गुंजा छोटी साली, हम दोनों पहले चेक वेक करके देख लेंगे,जम के मजे ले लेंगे, एक एक बूँद रस निचोड़ लेंगे फिर इस बेचारी का नंबर आएगा,
गुड्डी को चिढ़ाती वो खंजननयन बोली
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साली वाला रिश्ता मुझे भी सुहाता था, इसलिए नहीं की साली के ताले में ताली लगाने का मौका मिलेगा, वो बात तो थी ही, लेकिन उससे भी बड़ी बात, उससे मेरे और गुड्डी के ' उस रिश्ते' पे मुहर लगती थी, जिसके लिए मैं कुछ भी कर सकता था, पक्का वाला, जिंदगी भर का। उसकी डांट खाने का मौक़ा ।

और चंदा भाभी ने एकदम सपोर्ट किया, " एकदम, सलहज तो बहुत हैं, अब दो साली भी हो गयीं तो आज तो जबरदस्त रगड़ाई होगी इनकी, लेकिन मैं एक और रिश्ते की बात कर रही थी। "

मेरे कान भी खड़े हो गए

रीत के चेहरे पे प्रश्नवाचक चिन्ह बन आया।

“अरे ये बिन्नो का देवर है…” चन्दा भाभी बोली।

रीत ने कहा- “वो तो मुझे मालूम है उनसे कित्ती बार मिली हूँ। मेरी बड़ी दीदी की तरह हैं इसलिए तो ये मेरे देवर हुए…”

“हाँ लेकिन एक बात और मुझे कल पता चली…” चन्दा भाभी बोली।
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मेरे भी समझ में नहीं आया की चंदा भाभी क्या इशारा कर रही है।

“क्या?” रीत और गुड्डी साथ-साथ बोली।

“अरे बिन्नो की एक ननद है, गुड्डी के साथ की। “ चन्दा भाभी बोली।

” ग्यारहवे में हैं “ बिना सोचे समझे मैं बोला।


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“देखा। कैसे प्यार से याद कर रहे हैं उसे? ये। तुम्हारे देवर कम जीजा ज्यादा …” चंदा भाभी रीत से बोली।

फिर बात आगे बढ़ाई-


“कैसे बोलूं? वो इनसे, बल्की ये उससे फँसे हैं। अब ये बिचारे सीधे साधे। कोई इस उम्र की, जोबन की, तो कोई कैसे मना करेगा। है न?”
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दोनों समझ गई थी की भाभी मुझे खींच रही हैं, और दोनों ने एक साथ हुंकारी भरी- “एकदम सही…”

चंदा भाभी ने फिर रीत से पूछा- “तो वो अगर बिन्नो की ननद लगी तो तुम्हारी भी तो ननद लगेगी…”

“एकदम…” वो बोली और मुझे देखकर मुश्कुरा दी।

“और ये, जो तुम्हारी ननद के यार, बोलो…” चंदा भाभी ने रीत को उकसाया।

“नंदोई…” वो शैतान बोली।

“और तुम क्या लगोगी इनकी…” चंदा भाभी ने फिर टेस्ट लिया।

लेकिन रीत भी रिश्ते जोड़ने में दक्ष हो गई थी, कहा-

“मैं, उस रिश्ते से तो इनकी सलहज लगूंगी। ये मेरे नंदोई और मैं इनकी सलहज और वो रिश्ता तो भाभी से भी ज्यादा। और जीजा साली भी फिर तो ट्रिपल धमाका…” रीत हँसते हुए बोली।

रीत ने अपनी कटीली मुस्कान से जुबना उभार के और जोड़ा,

" तो ये देवर, कम जीजा कम नन्दोई को तो तीन तीन कोट रंग हर जगह लगाना पडेगा, एक बार साली की तरह, एक बार भाभी की तरह और एक बार सलहज की तरह, और इस बात पर तो एक दहीबड़ा और बनता है "





अब तक मैं दहीबड़े का असर देख चुका था लेकिन गुड्डी ने हड़काया " हे मेरी दी दे रही हैं और तुम लेने में सोच रहे हो " और गुड्डी की बात, दहीबड़ा मेरे मुंह में

अब वो रिश्ते जोड़ने में एक्सपर्ट हो गई थी खास तौर से अगर रिश्ता रंगीन हो- “लेकिन एक खास बात और। गुड्डी जा रही है ना इसके साथ आज। तो वो गुड्डी की भी तो अब…” बात चन्दा भाभी ने शुरू की थी, लेकिन पूरी रीत ने की।

रीत- “हाँ। मुझे मालूम पड़ गया है। वो तो अब इसकी भी ननद लगेगी…” रीत चिढ़ाने का मौका क्यों चूकती।
रीत ने तो आनंद के साथ अपने कई रिश्ते बना लिए पहले देवर फिर जीजा और फिर नंदोई अब तो तीनो रिश्तों में तीन बार तो रगड़ाई तो बनती है साथ ही आनन्द के पास भी तीन रिश्ते और तीन राउंड
तीनो रिश्तों में ही दोनो का रगड़ाई का पक्का वाला हक बनता है
 

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आनंद की बहना बिके कोई ले लो,

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गुड्डी कुछ शर्माई, कुछ झिझकी, कुछ खुश हुई। लेकिन बात अब भी मेरे समझ में नहीं आ रही थी।

तो गुड्डी लौटेगी तो उसको भी साथ ले आएगी। अब उसके भैया कम यार तो ट्रेनिग पे चले जायेंगे। वहां वो बिचारी कहाँ ढूँढ़ेगी। और मन तो करेगा ही जब उसको एक बार स्वाद लग जाएगा…” चन्दा भाभी अब फुल फार्म पे थी।

“तभी तो। गर्मी की छुट्टी भी है। एक महीने रह लेगी, नहीं होगा तो गाँव भी ले चलेंगे उसको…” गुड्डी भी मेरे खिलाफ गैंग में जवाइन हो गई थी।


भाभी- “एकदम आम के बगीचे, अरहर और गन्ने के खेत का मजा और जानती हो रीत वो बिचारी बड़ी सीधी है। किसी को मना नहीं करती, सबके सामने खोलने को तैयार। तो फिर जित्ते तुम्हारे भाई हों या और जो भी हों सबको अभी से बता दो…”
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“ये तो बहुत अच्छी बात बताई आप ने भाभी। थोड़ी बिलेटेड होली मना लेंगे वो। उसका भी स्वाद बदल जाएगा। वेरायटी भी रहेगा…वैसे माल है कैसा, इस स्साले का, "

रीत ने गुड्डी को उकसाया और गुड्डी को मौका मिल गया,

" एकदम मस्त, टनाटन, रसभरी जलेबी ऐसी, बड़ी बड़ी आँखे, चिकने चिकने गाल, रसीले होंठ और सबसे बड़ी बात बहुत सीधी है किसी को मना नहीं करती"



" अच्छा अब याद आया, वही न जिसकी तारीफ़ कल आप लोग कर रही थीं, आनंद की बहना बिके कोई ले लो, नीचे तक सुनाई पड़ रहा था, भाभी आप ने सही कहा जब उसपे सारे बनारस वाले चढ़ेंगे तो ये तो फिर स्साले ही हुए "

रीत ने और जले पर नमक छिड़का, आयोडीन युक्त , रीत दुष्ट।


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लेकिन गुड्डी उससे भी एक हाथ आगे। गुड्डी बोली- “अरे राकी भी तो है अपना, वो भी तो भाई की तरह है…”

“और क्या चौपाया है तो क्या हुआ। है कितना तगड़ा, जोरदार…और हम लोगो की रक्षा करता है तो इस लिहाज से भाई ही तो हुआ”

रीत आँख नचाकर मुझे देखती बोली।

तब मेरी समझ में आया की दूबे भाभी का एक लाब्राडोर कुत्ता। कल शाम को भी उसका नाम लगाकर चन्दा भाभी ने एक से एक जबरदस्त गालियां सुनाई थी।


“लेकिन वो ना माने तो, नखड़ा करे तो?” गुड्डी ने शंका जताई।

“अरे तो हम लोग किस मर्ज की दवा हैं। अपने भाई से नैन मटक्का और हम्मरे भाइयों से छिनालपना? साली को जबरदस्ती झुका देंगे घुटनों के बल। हाथ पैर बाँध देंगे और पीछे से राकी। एक-दो बार हाथ पैर पटकेगी। लेकिन जहाँ तीन-चार दिन लगातार। आदत पड़ जायेगी उसको…और ये कातिक वातिक वाली बात मत बोलना की कैसे, ...अगर कातिक में कुतिया गर्माती हैं, तेरा माल तो बारहो महीना गरमाया रहेगा, और हमारे रॉकी को दिन महीना का फरक नहीं है, एकदम टनाटन, ... वो तेरा माल घोंट लेगी न सीधे से या जबरदस्ती, गाँठ बन गयी तो खुदे, ”

रीत ने समझाया।
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“और क्या पूरे 8” इंच का है उसका और एक बार जब अन्दर घुसाके मोटी गाँठ पड़ जायेगी अन्दर। हाथ पैर खोल भी दोगी, लाख चूतड़ पटकेगी, निकलेगा थोड़ी। दो-चार बार के बाद तो राकी को खुद ही आदत लग जायेगी। जहां उसको निहुराया। आगे वो खुद सम्हाल लेगा…”

चंदा भाभी फगुना रही थी।

एक का जवाब देना मुश्किल था, यहाँ तो तीनों एक साथ। मैं चुपचाप मुश्कुराता रहा।
रीत को तो मौका मिल गया था मुझे छेड़ने, रगड़ने का, मेरी ठुड्डी छू के मेरा चेहरा उठाते हुए बोली,

" जिज्जू कम स्साले ज्यादा, एकदम मत घबड़ाना अपनी जानेमन के लिए, मैं रहूंगी न, वैसे भी रॉकी को मैं ही देखती हूँ, अरे कितने लोग आते हैं अपनी अपनी कुतीया को ले कर, बस मैं, आँगन में एक चुल्ला लगा है, उसी में कुतीया की चेन बाँध देती हूँ, थोड़ी देर तो उछल कूद करेगी, भौजी कल आप लोग इनके माल का क्या नाम लगा के गुणगान कर रही थीं,

" एलवल वाली " चंदा भाभी और गुड्डी दोनों साथ साथ बोली, उस के मोहल्ले का नाम,

और रीत चालू हो गयी,

" हाँ तो उसी तरह से निहुरा के, सीधे से नंही मानेगी तो मैं और गुंजा रहेंगी न, जबरदस्ती, एकदम कुतीया की तरह, उसी चेन से बाँध देंगी बस। और जो कुतिया आती हैं थोड़ी देर तो खूब उछल कूद करती हैं लेकिन संमझ जाती हैं की अब ये चेन छूटने वाली नहीं, और फिर रॉकीआता है, थोड़ी देर पीछे से चाटता है तो एकदम गरमा जाती हैं। तो उस एलवल वाली को, तेरे माल को, उसी तरह चाट चूट के गरम कर देगा , देखना तेरी वो बहना, खुद टाँगे फैला देगी, फिर मैं रॉकी को एक बार चढ़ा दूंगी, और एक बार घुस गया तो बस सटासट, सटासट, और असली मजा तो तब आएगा जब गाँठ बन जाएगी अंदर, तुम्हारी मुट्ठी से भी मोटी,"

रीत से भी ज्यादा मजा चंदा भाभी ले रही थीं, बोलीं

" और क्या एक बार गांठ बन गयी, फिर तो चेन छोड़ भी देंगी तो निकाल नहीं पाएगी खुल के, रीत एकदम सही कह रही है, तेरी असली साली है, तेरे साथ तेरी बहन का भी फायदा सोच रही है। "

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रीत को तो मौका चाहिए था उसने चंदा भाभी की बात को आगे बढ़ाया,

" अरे फायदे तो बहुत होंगे तेरी उस एलवल वाली को, देख एक तो डॉगी पोज की प्रैक्टिस हो जाएगी, तुम्हारा भी फायदा जब मन करे बहन को निहुरा के, दूसरा एक बार उसकी चम्पा चमेली को गाँठ की आदत पड़ जायेगी, फिर तो कितना भी मोटा होगा, आराम से निगल लेगी न तेल क खर्चा न वेस्लीन की जरूरत।

“लेकिन मैं ये कह रही थी की जब इसकी बहन पे तुम्हारे सारे भाई चढ़ेंगे। तो ये क्या लगेगा तुम्हारा…” चन्दा भाभी ने बात पूरी की।

दोनों बड़े जोर से खिलखिलायी, रीत मुझे देखकर हँसकर बोली- “साले. बहनचो…”


बात और शायद बढ़ती लेकिन चंदा भाभी ने पहली बार मेरे चेहरे को ध्यान से देखा और बड़े जोर से मुश्कुरायीं। मेरे पास आकर उन्होंने अपनी उंगली से मेरी ठुड्डी पे रखकर मेरा चेहरा उठाया और गौर से देखने लगी। हाथ फेरकर गाल पे उनकी उंगली मेरी नाक के नीचे भी गई और मुश्कुराकर वो बोली-

“चिकनी चमेली…”


गुड्डी की ओर उन्होंने प्रशंशा भरी नजरों से देखा। उसका भी चेहरा दमक उठा। भाभी ने नीचे मेरे बर्मुडा की ओर देखा, फिर गुड्डी की ओर। गुड्डी ने बड़ी जोर से हामी में सिर हिलाया। चंदा भाभी ने मेरे गालों पे एक बार फिर से हाथ फिराया, प्यार से सहलाया,

और रीत की ओर देखा,
लगता है चंदा भाभी आनन्द की बहन को रॉकी से रगड़वाए बिना नहीं मानेगी ??
 

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खेलूंगी मैं रस की होली,
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रीत समझ गयी बोली, भाभी अब आगे का काम हम दोनों का, ऐसा सुन्दर सिंगार करेंगे इस दुलहिनिया का,

और चंदा भाभी किचन में, छत पर सिर्फ हम तीनो, लेकिन रीत ने गुड्डी से अपने मन का डर बताया,

" ये स्साला, जिसकी बहन पे हमारा रॉकी चढ़ेगा, ज्यादा उछल कूद करे तो, "

और उसका हल गुड्डी के पास था।

“वो जिम्मेदारी मेरी…”
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गुड्डी अधिकार पूर्वक बोली और जोर से कहा स्टैचू।

ये गेम हम पहले खेलते थे और दूसरा हिल नहीं सकता था। अब मेरी मजबूरी। गुड्डी का हुकुम। मैं सपने में भी नहीं सोच सकता था हिलने को। मैं मूर्ति बनकर खड़ा हो गया। पीछे से गुड्डी ने अपने नाजुक हाथों से मेरी कलाई पकड़ ली। कभी कच्चे धागे हथकड़ियों से भी मजबूत हो जाते हैं।


उधर रीत मुझे दिखाती हुई, हँसती हुई तरह-तरह की पेंट की ट्यूब उसने निकाली और अपनी गोरी-गोरी हथेली पे मिलाने लगी। पहले बैगनी, फिर काही, फिर स्लेटी। एक से एक गाढ़े रंग। फिर वो मेरे कान में गुनगुनाई-

“बहुत हुई अब आँख मिचौली…”

मेरे पूरे बदन में सिहरन दौड़ गई। रीत का बदन मेरी पीठ को पीछे से सहला रहा था। मेरी पूरी देह में एक सुरसुरी सी होने लगी। उसके उभार कसकर मुझे पीछे से दबा रहे थे। एक आग सी लग गई। ‘वो’ भी अब 90° डिग्री पे आ गया।

उसने फिर मेरे कान में गाया, गुनगुनाया और उसके गुलाबी रसीले होंठ मेरे इअर लोब्स से छू गए। बहुत हुई अब आँख मिचौली। जीभ की टिप कान को छेड़ रही थी। उन्चासो पवन चलने लगे। काम मेरी देह को मथ रहा था और जब उसकी मादक उंगलियां मेरे गालों पे आई। बस लग रहा था मेरे पीछे कैट ही खड़ी है।

बहुत हुई अब आँख मिचौली, खेलूंगी मैं रस की होली,

खेलूंगी मैं रस की होली, रस की होली, रस की होली।
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उसकी उंगलियां मुझे रस में भिगो रही थी। रस में घोल रही थी देह की होली, तन की होली, मन की होली। मैं सिहर रहा था भीग रहा था, बस लग रहा था कटरीना की वो प्यारी उंगलियां। पहले तो हल्के-हल्के फिर कसकर मेरा गाल रगड़ने लगी।


मैंने आँखें खोलने की कोशिश की तो बड़ी जोर से डांट पड़ी- “आँखें बंद करो ना…”

फिर तो उंगलियों ने पहले पलकों के ही ऊपर और फिर कस-कसकर गालों को मसलना, रगड़ना। हाँ वो एक ओर ही लगा रही थी और होंठों को भी बख्श दिया था। शायद उसे मेरे सवाल का अहसास हो गया था। कान में बोली-

“दूसरा गाल तेरे उसके लिए।"


दोनों हाथों का रंग एक ही गाल पे। कम से कम पांच-छ कोट और एक हाथ जो गाल से फिसला तो सीधे मेरे सीने पे। मेरे निपलों को पिंच करता हुआ।

मेरे मुँह से सिसकी निकल गई।

रीत- “अभी से सिसक रहे ही। अभी तो ढंग से शुरूआत भी नहीं हुई…”

और ये कहकर मेरे टिट्स उसने कसकर पिंच कर दिए और मुझे गुड्डी को आफर कर दिया-

“ले गुड्डी अब तेरा शिकार…” और ये कहकर उसने मेरे गाल पर से हाथ हटा लिया।

मैंने आँखें खोलकर शीशे में देखा- “उफफ्फ। ये शैतान। कौन कौन से पेंट। काही, स्लेटी। चेहरा एकदम काला सा लग रहा था और दूसरी ओर अब गुड्डी अपने हाथ में पेंट मल रही थी। एक वार्निश के डिब्बे से सीधे। सिलवर कलर का। चमकदार।


गुड्डी रीत से बोली- “हे मैंने कसकर पकड़ रखा था जब आप लगा रही थी तो अब आप का नंबर है। कसकर पकड़ियेगा जरा भी हिलने मत दीजिएगा…”
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“एकदम…” रीत ने पीछे से मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए। लेकिन वो गुड्डी से दो हाथ आगे थी। उसने हाथ पकड़कर सीधे अपनी पाजामी के सेंटर पे ‘वहीं’ लगा दिए और अपने दोनों पैरों के बीच मेरे पैरों को फँसा दिया।

गुड्डी ने अपने प्यारे हाथों से मेरे गाल पे सफेद सिल्वर कलर का पेंट लगाना शुरू कर दिया और मैं भी प्यार से लगवा रहा था। उसने पहले हल्के से फिर कस-कसकर रगड़ना शुरू कर दिया।

मैं गुड्डी के स्पर्श में डूबा था।

उधर रीत ने मेरी दोनों हथेलियों को अपनी पाजामी के अन्दर और जैसे ही मेरा हाथ ‘वहां’ पहुँचा। कसकर उसने अपनी गदराई गोरी-गोरी जांघों को भींच लिया। अब न तो मेरा हाथ छूट सकता था, और ना मैं उससे छुड़ाना चाहता था।
बहुत ही शानदार और मजेदार है
आनन्द बाबू के साथ भाभी,साली,सलहज और बीवी ने मस्त दुल्हनिया की तरह मस्त श्रृंगार कर के रस की होली खेल ली है रीत ने तो आनंद को ऐसे ताले में लॉक किया है कि वह वहां से अपना हाथ नही निकाल सकता है अब तो उसे रस की होली खेलनी पड़ेगी
 

Sanju@

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फागुन के दिन चार भाग ११


आज रंग है - रस की होली

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फिर तो उंगलियों ने पहले पलकों के ही ऊपर और फिर कस-कसकर गालों को मसलना, रगड़ना। हाँ वो एक ओर ही लगा रही थी और होंठों को भी बख्श दिया था। शायद उसे मेरे सवाल का अहसास हो गया था।

रीत कान में बोली- “दूसरा गाल तेरे उसके लिए। दोनों हाथों का रंग एक ही गाल पे। कम से कम पांच-छ कोट और एक हाथ जो गाल से फिसला तो सीधे मेरे सीने पे। मेरे निपलों को पिंच करता हुआ।

मेरे मुँह से सिसकी निकल गई।



रीत- “अभी से सिसक रहे ही। अभी तो ढंग से शुरूआत भी नहीं हुई…”
और ये कहकर मेरे टिट्स उसने कसकर पिंच कर दिए और मुझे गुड्डी को आफर कर दिया-

“ले गुड्डी अब तेरा शिकार…” और ये कहकर उसने मेरे गाल पर से हाथ हटा लिया।

मैंने आँखें खोलकर शीशे में देखा- “उफफ्फ। ये शैतान। कौन कौन से पेंट। काही, स्लेटी। चेहरा एकदम काला सा लग रहा था और दूसरी ओर अब गुड्डी अपने हाथ में पेंट मल रही थी। एक वार्निश के डिब्बे से सीधे। सिलवर कलर का। चमकदार।

गुड्डी रीत से बोली- “हे मैंने कसकर पकड़ रखा था जब आप लगा रही थी तो अब आप का नंबर है। कसकर पकड़ियेगा जरा भी हिलने मत दीजिएगा…”

“एकदम…” रीत ने पीछे से मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए। लेकिन वो गुड्डी से दो हाथ आगे थी। उसने हाथ पकड़कर सीधे अपनी पाजामी के सेंटर पे ‘वहीं’ लगा दिए और अपने दोनों पैरों के बीच मेरे पैरों को फँसा दिया।

गुड्डी ने अपने प्यारे हाथों से मेरे गाल पे सफेद सिल्वर कलर का पेंट लगाना शुरू कर दिया और मैं भी प्यार से लगवा रहा था। उसने पहले हल्के से फिर कस-कसकर रगड़ना शुरू कर दिया।
मैं गुड्डी के स्पर्श में डूबा था।

दुष्ट रीत, अब उसके दोनों हाथ फ्री हो गए थे और गुड्डी के साथ वो भी। पहले तो वो पीछे से गुड्डी को ललकारती रही-

“अरे कस को रगड़ ना। इत्ता इन्हें कहाँ पता चलेगा। हाँ ऐसे ही। थोड़ा नाक के नीचे। अरे मूंछ साफ करवाने का क्या फायदा अगर वो जगह बच जाय। गले पे भी…”

लेकिन कुछ देर में रीत का बायां हाथ मेरे बर्मुडा के ऊपर से।

एक तो आगे-पीछे से दो किशोरियां। एक का जोबन आगे सीने से रगड़ रहा हो और दूसरे के उभार खुलकर पीठ से से रगड़ रहे हों। ‘वो’ वैसे ही तन्नाया था। और ऊपर से रीत की लम्बी शैतान उंगलियां। पहले तो उसने बड़े भोलेपन से वहां छुआ फिर एक-दो बार हल्के से सहलाने के बाद कसकर साइड से एक उंगली से उसे रगड़ने लगी।

चन्दा भाभी दूर से उसकी शरारत देख रही थी और मुश्कुरा रही थी।

पीछे से उसने अपनी लम्बी उंगली मेरी पिछवाड़े की दरार में। पहले तो हल्के-हल्के और फिर जैसे बर्मुडा के ऊपर से ही घुसेड़ देगी। मैं थोड़ा चिहुंका। वो एक-दो पल के लिए ठहरी। फिर उसने दो उंगलियां कस-कसकर अन्दर ठेलनी शुरू कर दी।

“उईई… औउच…” मेरी आवाज निकल गई।

“अरे अभी एक-दो उंगली में ये हालात है। अभी तो तीन-चार उंगली वो भी पूरी अन्दर। आने दो दूबे भाभी को…” हँसकर रीत उंगली मेरी गाण्ड की दरार पे रगड़ती बोली।

“अरे उंगली। मजाक करती हो…” चंदा भाभी हँसकर बोली- “ऐसे मस्त लौंडे के तो पूरी की पूरी मुट्ठी अन्दर करूँगी। चीखने चिल्लाने दो साले को। इससे कम में इसे क्या पता चलेगा?”

कहकर चंदा भाभी ने रीत को और उकसाया।

“सही कहती हो भाभी अरे इनकी बहना राकी का अन्दर लेंगी। वो पूरी की पूरी गाँठ अन्दर ठेलेगा और वो छिनार। तो ये भी तो आखिर उसी के भाई है…”

और अब रीत खुलकर बर्मुडा के ऊपर से ‘उसे’ मुठिया रही थी।

“एकदम…” गुड्डी ने भी हाँ में हाँ मिलायी- “लेकिन गलती इनकी नहीं है। अपनी मायके वालियों को मोटा-मोटा घोंटते देखकर आखिर इनका भी मन मचल गया होगा…” गुड्डी फिर बोली। उसने थोड़ा सा वार्निश पेंट मेरे बालों पे भी लगा दिया।

“अच्छा अच्छा तू तो बोलेगी ही। इसकी ओर से…” चन्दा भाभी ने चिढ़ाया।

रीत का मेरे पिछवाड़े उंगली करना जारी था। वो बोली-

“अरे भाभी। कोई खास फर्क नहीं है बहन भाई में। एक आगे से लेती है और। एक पीछे से लेता है…”

“अरे बहिना छिनार। भाई गंड़ुआ है…” चंदा भाभी ने गाया।

“अरे अपनी बहिना साली का भंड़ुआ है…” रीत ने गाने को आगे बढ़ाया।



मैं समझ गया था की वो चंदा भाभी से कम नहीं है।

अब गुड्डी रंग करीब करीब लगा चुकी थी। उसका एक हाथ अब रीत के साथ बर्मुडा फाड़ते मेरे चर्म दंड पे।

जैसे दो किशोरियां मिलके मथानी चलाये, बस उसी तरह। दोनों के हाथ मिलकर। दाएं-बाएं, आगे-पीछे। आप सोच सकते हैं ऐसे फागुन की कल्पना और साथ में दोनों के उभार भी दोनों ओर हल्के-हल्के रगड़ रहे थे।



मैंने शीशे में देखा। मेरे एक ओर का चेहरा काला काही, और दूसरी ओर सफेद, चमकदार वार्निश।

“किसके साथ मुँह काला किया?” चंदा भाभी भी अब उन दोनों के साथ आ गईं थी।

रीत बोल रही थी- “और किसके साथ करेंगे? अपनी प्यारी-प्यारी मस्त सेक्सी। सबका दिल रखनेवाली…”

लेकिन उसकी बात काटकर गुड्डी बोली- “अरे यार सबका दिल रखती है तो अपने भय्या का भी रख दिया तो क्या बुरा किया?”

“तुम ना अभी से इसका इत्ता साथ दे रही है। तो आगे का क्या हाल होगा?” चन्दा भाभी बोली।




मैं शीशे में अपनी दुर्गति देख रहा था। एक ओर गुड्डी ने सफेद वार्निश से तो दूसरी ओर रितू ने गाढ़े काही, स्लेटी रंग के पेंटों से। मेरा हाथ कब का उनकी गिरफ्त से छूट चुका था। उन दोनों को इसका अंदाज नहीं था।

उधर रीत ने मेरी दोनों हथेलियों को अपनी पाजामी के अन्दर और जैसे ही मेरा हाथ ‘वहां’ पहुँचा। कसकर उसने अपनी गदराई गोरी-गोरी जांघों को भींच लिया। अब न तो मेरा हाथ छूट सकता था, और ना मैं उससे छुड़ाना चाहता था।
क्या मस्त होली है दो रसीली कन्याओं के बीच हमारे आनन्द एक आगे से रगड़ रही है और दूसरी बीच से रगड़ रही है आनंद ने साली और बीवी के साथ मुंह काला और सफेद करवा ही लिया चंदा भाभी का आनंद की बहन के बारे में बाते न करे ये हो ही नहीं सकता ।आनंद ने तो आगे से पीछे से भरपूर रगड़वा लिया लेकिन उसके हाथ रीत के खजाने पर थे लेकिन बुद्धू ने कुछ नहीं किया आजकल के लौंडे ऐसा मौका मिले और ऐसे खाली छोड़ दे मुमकिन ही नही है
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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वाह कोमल जी! पढ़ना शुरू किया, लेकिन सोचा कि बिना अपनी प्रतिक्रिया लिखे, पढ़ा नहीं जा सकता।
तो यह प्रतिक्रिया पेज #1 पर जो पढ़ा, उस पर है।

बनारस… काशी एक अलग सी ही दुनिया है। दो तीन बार जाना पड़ा वहाँ - उफ़! कुछ लिख दूँगा, तो कई लोगों की भावनाएँ आहत हो जाएँगी। इसलिए न ही सही। लेकिन फिर भी… मेरी आदतें कुत्ते की पूँछ जैसी टेढ़ी ही हैं। 🤭
तो, लीजिए…

काशी धार्मिक नगरी तो है, लेकिन विधर्मी काम करने में पीछे नहीं रही है। “पौंड्रक वासुदेव” की कहानी सुने होंगे? नहीं सुने हैं, तो बताएँ - अलग से सुना दूँगा। भगवान कृष्ण उससे इतना परेशान हो गए कि उन्होंने उसके साथ साथ पूरी काशी को दण्ड स्वरुप, अपने सुदर्शन चक्र से भस्म कर दिया था। बाद में भगवान शिव ने बचाया, और इनका उद्धार किया। आज भी वही मुरहापन वहाँ के लोगों में देखने को मिलता है।

हाँ, लेकिन यह भी है कि कला, नृत्य, संगीत, भोजन, दर्शन, लेखन, कवित्त, इत्यादि में इस नगरी का सानी नहीं। फिर भी गज़ब का विरोधाभास लिए हुए है यह नगरी! शायद ‘चिराग तले अँधेरा’ वाली कहावत इसी नगरी को देख कर कही गई हो?

ख़ैर… बात अपने मुद्दे से अलग हट गई है।

“मैं” कौन है? और गुड्डी कौन? बातों से विवाहित जोड़ा लग रहे हैं, जो शायद शादी के बाद की पहली होली मनाने गुड्डी के मायके आए हैं? फाल्गुन मास आनंद और उल्लास का माह है - सर्दी कम होती है, और गर्मी धीरे धीरे शुरू होती है! एक महीना! वसंत ऋतु का पहला महीना! और शादी के बाद की पहली होली! ससुराल में! सालियों के साथ! वाह! वाह!! बहुत बढ़िया ख़ाका खींचा है आपने कहानी का। शायद इसी पर है आधारित यह उपन्यास?

यार हाथी घूमे गाँव-गाँव जिसका हाथी उसका नाम। तो रहोगे तो तुम मेरे ही। किसी से कुछ। थोड़ा बहुत। बस दिल मत दे देना…”; “वो तो मेरे पास है ही नहीं कब से तुमको दे दिया…”; “ठीक किया। तुमसे कोई चीज संभलती तो है नहीं। तो मेरी चीज है मैं संभाल के रखूंगी।” ---- बहुत बढ़िया कोमल जी, बहुत बढ़िया!

सामने जोगीरा चल रहा था” -- बाप रे! कितने वर्ष बीत गए ये शब्द सुने! वाह! “नदिया के पार” फिल्म का “जोगी जी” गाना याद आ गया! वाह!

गुंजा! पुनः, नदिया के पार वाली हिरोइन का नाम!

ओफ़्फ़! इतना द्विअर्थी संवाद! लेकिन मैंने सुना है यह - और पूरबिया लोगों के ही मुँह से! शायद उन्ही पर अच्छी भी लगती है यह / ऐसी भाषा! और ऐसी ही होली देखी भी है। मेरी चचेरी बड़ी बहन की ससुराल उसी तरफ़ है। उस दिन दीदी की ननदों ने इतनी नंगई मचाई थी, कि अगर सभ्य बना रहता, तो नंगा कर देतीं वो! एक ननद को ज़मीन पर पटक कर उस पर चढ़ बैठा, तब जा कर पीछा छोड़ा स्सालियों ने मेरा, कि ये तो मार मार कर मलीदा बना देगा! 😂

लेकिन वो पागल हो गई थी, दहक उठी थी। दिन सोने के तार से खींचते गए।” -- अद्भुत! क्या लिखा है आपने!

अब यह उपन्यास पढ़े बिना नहीं रह सकता। पूरा करना ही पड़ेगा! धीरे धीरे ही सही। और मुझको विश्वास है कि आपकी लेखनी से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा!
 

Sanju@

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फागुन के दिन चार भाग ११


आज रंग है - रस की होली

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फिर तो उंगलियों ने पहले पलकों के ही ऊपर और फिर कस-कसकर गालों को मसलना, रगड़ना। हाँ वो एक ओर ही लगा रही थी और होंठों को भी बख्श दिया था। शायद उसे मेरे सवाल का अहसास हो गया था।

रीत कान में बोली- “दूसरा गाल तेरे उसके लिए। दोनों हाथों का रंग एक ही गाल पे। कम से कम पांच-छ कोट और एक हाथ जो गाल से फिसला तो सीधे मेरे सीने पे। मेरे निपलों को पिंच करता हुआ।

मेरे मुँह से सिसकी निकल गई।



रीत- “अभी से सिसक रहे ही। अभी तो ढंग से शुरूआत भी नहीं हुई…”
और ये कहकर मेरे टिट्स उसने कसकर पिंच कर दिए और मुझे गुड्डी को आफर कर दिया-

“ले गुड्डी अब तेरा शिकार…” और ये कहकर उसने मेरे गाल पर से हाथ हटा लिया।

मैंने आँखें खोलकर शीशे में देखा- “उफफ्फ। ये शैतान। कौन कौन से पेंट। काही, स्लेटी। चेहरा एकदम काला सा लग रहा था और दूसरी ओर अब गुड्डी अपने हाथ में पेंट मल रही थी। एक वार्निश के डिब्बे से सीधे। सिलवर कलर का। चमकदार।

गुड्डी रीत से बोली- “हे मैंने कसकर पकड़ रखा था जब आप लगा रही थी तो अब आप का नंबर है। कसकर पकड़ियेगा जरा भी हिलने मत दीजिएगा…”

“एकदम…” रीत ने पीछे से मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए। लेकिन वो गुड्डी से दो हाथ आगे थी। उसने हाथ पकड़कर सीधे अपनी पाजामी के सेंटर पे ‘वहीं’ लगा दिए और अपने दोनों पैरों के बीच मेरे पैरों को फँसा दिया।

गुड्डी ने अपने प्यारे हाथों से मेरे गाल पे सफेद सिल्वर कलर का पेंट लगाना शुरू कर दिया और मैं भी प्यार से लगवा रहा था। उसने पहले हल्के से फिर कस-कसकर रगड़ना शुरू कर दिया।
मैं गुड्डी के स्पर्श में डूबा था।

दुष्ट रीत, अब उसके दोनों हाथ फ्री हो गए थे और गुड्डी के साथ वो भी। पहले तो वो पीछे से गुड्डी को ललकारती रही-

“अरे कस को रगड़ ना। इत्ता इन्हें कहाँ पता चलेगा। हाँ ऐसे ही। थोड़ा नाक के नीचे। अरे मूंछ साफ करवाने का क्या फायदा अगर वो जगह बच जाय। गले पे भी…”

लेकिन कुछ देर में रीत का बायां हाथ मेरे बर्मुडा के ऊपर से।

एक तो आगे-पीछे से दो किशोरियां। एक का जोबन आगे सीने से रगड़ रहा हो और दूसरे के उभार खुलकर पीठ से से रगड़ रहे हों। ‘वो’ वैसे ही तन्नाया था। और ऊपर से रीत की लम्बी शैतान उंगलियां। पहले तो उसने बड़े भोलेपन से वहां छुआ फिर एक-दो बार हल्के से सहलाने के बाद कसकर साइड से एक उंगली से उसे रगड़ने लगी।

चन्दा भाभी दूर से उसकी शरारत देख रही थी और मुश्कुरा रही थी।

पीछे से उसने अपनी लम्बी उंगली मेरी पिछवाड़े की दरार में। पहले तो हल्के-हल्के और फिर जैसे बर्मुडा के ऊपर से ही घुसेड़ देगी। मैं थोड़ा चिहुंका। वो एक-दो पल के लिए ठहरी। फिर उसने दो उंगलियां कस-कसकर अन्दर ठेलनी शुरू कर दी।

“उईई… औउच…” मेरी आवाज निकल गई।

“अरे अभी एक-दो उंगली में ये हालात है। अभी तो तीन-चार उंगली वो भी पूरी अन्दर। आने दो दूबे भाभी को…” हँसकर रीत उंगली मेरी गाण्ड की दरार पे रगड़ती बोली।

“अरे उंगली। मजाक करती हो…” चंदा भाभी हँसकर बोली- “ऐसे मस्त लौंडे के तो पूरी की पूरी मुट्ठी अन्दर करूँगी। चीखने चिल्लाने दो साले को। इससे कम में इसे क्या पता चलेगा?”

कहकर चंदा भाभी ने रीत को और उकसाया।

“सही कहती हो भाभी अरे इनकी बहना राकी का अन्दर लेंगी। वो पूरी की पूरी गाँठ अन्दर ठेलेगा और वो छिनार। तो ये भी तो आखिर उसी के भाई है…”

और अब रीत खुलकर बर्मुडा के ऊपर से ‘उसे’ मुठिया रही थी।

“एकदम…” गुड्डी ने भी हाँ में हाँ मिलायी- “लेकिन गलती इनकी नहीं है। अपनी मायके वालियों को मोटा-मोटा घोंटते देखकर आखिर इनका भी मन मचल गया होगा…” गुड्डी फिर बोली। उसने थोड़ा सा वार्निश पेंट मेरे बालों पे भी लगा दिया।

“अच्छा अच्छा तू तो बोलेगी ही। इसकी ओर से…” चन्दा भाभी ने चिढ़ाया।

रीत का मेरे पिछवाड़े उंगली करना जारी था। वो बोली-

“अरे भाभी। कोई खास फर्क नहीं है बहन भाई में। एक आगे से लेती है और। एक पीछे से लेता है…”

“अरे बहिना छिनार। भाई गंड़ुआ है…” चंदा भाभी ने गाया।

“अरे अपनी बहिना साली का भंड़ुआ है…” रीत ने गाने को आगे बढ़ाया।



मैं समझ गया था की वो चंदा भाभी से कम नहीं है।

अब गुड्डी रंग करीब करीब लगा चुकी थी। उसका एक हाथ अब रीत के साथ बर्मुडा फाड़ते मेरे चर्म दंड पे।

जैसे दो किशोरियां मिलके मथानी चलाये, बस उसी तरह। दोनों के हाथ मिलकर। दाएं-बाएं, आगे-पीछे। आप सोच सकते हैं ऐसे फागुन की कल्पना और साथ में दोनों के उभार भी दोनों ओर हल्के-हल्के रगड़ रहे थे।



मैंने शीशे में देखा। मेरे एक ओर का चेहरा काला काही, और दूसरी ओर सफेद, चमकदार वार्निश।

“किसके साथ मुँह काला किया?” चंदा भाभी भी अब उन दोनों के साथ आ गईं थी।

रीत बोल रही थी- “और किसके साथ करेंगे? अपनी प्यारी-प्यारी मस्त सेक्सी। सबका दिल रखनेवाली…”

लेकिन उसकी बात काटकर गुड्डी बोली- “अरे यार सबका दिल रखती है तो अपने भय्या का भी रख दिया तो क्या बुरा किया?”

“तुम ना अभी से इसका इत्ता साथ दे रही है। तो आगे का क्या हाल होगा?” चन्दा भाभी बोली।




मैं शीशे में अपनी दुर्गति देख रहा था। एक ओर गुड्डी ने सफेद वार्निश से तो दूसरी ओर रितू ने गाढ़े काही, स्लेटी रंग के पेंटों से। मेरा हाथ कब का उनकी गिरफ्त से छूट चुका था। उन दोनों को इसका अंदाज नहीं था।

उधर रीत ने मेरी दोनों हथेलियों को अपनी पाजामी के अन्दर और जैसे ही मेरा हाथ ‘वहां’ पहुँचा। कसकर उसने अपनी गदराई गोरी-गोरी जांघों को भींच लिया। अब न तो मेरा हाथ छूट सकता था, और ना मैं उससे छुड़ाना चाहता था।
क्या मस्त होली है दो रसीली कन्याओं के बीच हमारे आनन्द एक आगे से रगड़ रही है और दूसरी बीच से रगड़ रही है आनंद ने साली और बीवी के साथ मुंह काला और सफेद करवा ही लिया चंदा भाभी का आनंद की बहन के बारे में बाते न करे ये हो ही नहीं सकता ।आनंद ने तो आगे से पीछे से भरपूर रगड़वा लिया लेकिन उसके हाथ रीत के खजाने पर थे लेकिन बुद्धू ने कुछ नहीं किया आजकल के लौंडे ऐसा मौका मिले और ऐसे खाली छोड़ दे मुमकिन ही नही है
अब मेरी बारी


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मैं झटके से मुड़ा, और बोला- “कर लिया तुम दोनों ने, जो कर सकती थी। चलो अब मेरी बारी है। ऐसा डालूँगा ऐसा डालूँगा…”

और वो दोनों हिरणियां 1- 2- 3- फुर्र। और छत के दूसरी ओर से मुझे अंगूठा दिखा रही थीं।

चन्दा भाभी भी मुश्कुरा रही थी।

मैंने बोला- “एक बार पकड़ लूंगा तो ऐसा रंगूंगा ना…”

“तो पकड़ो न…” हँसकर मेरी जान बोली।

“रंग है भी क्या? क्या लगाओगे?” कैटरीना, मेरा मतलब मस्त-मस्त चीज, रीत बोली। बात तो उसकी सोलह आना सही थी। मेरे पास तो रंग था नहीं। और पेंट की सब ट्यूबें उन दोनों ने हथिया ली थी। यहाँ तक की मेज पे रखा अबीर गुलाल भी।

“रंग चाहिये तो पैसा लगेगा…” रीत बोली।

“लेकिन पैसा भी तो बिचारे के पास है नहीं…” गुड्डी ने छत के दूसरे कोने से आवाज लगायी।

रीत बोली- “अरे यार इन्हें पैसे की क्या कमी? इनके पास तो पूरी टकसाल है। थोड़ा एडवांस पैसा ले लेंगे अपने माल का और क्या? दो दिन दो रात का 100 रूपये मैं दे दूँगी। है मंजूर?”

गुड्डी बोली- “यार तू तो रेट खराब कर देगी। अभी तो 10 रूपये में चलती होगी वो। लेकिन किसके लिए। दो दिन दो रात?”

“अरे और कौन? अपने…” और आँख नचाकर वो चुप हो गई।

मैं उसे ध्यान से देख रहा था, कि क्या बोलने वाली है। अब वो मेरे पास आ चुकी थी।

पास से रीत बोली- “ये आफर कहीं नहीं मिलेगा। दो दिन दो रात राकी के साथ। पचास आज और पचास कराने के बाद…”

वो जान गई थी की मेरे पास रंग तो है नहीं।

पर मेरा दिमाग भी ना। कभी-कभी चाचा चौधरी से भी तेज चलता है, रीत के साथ का असर ।

मैंने अपने दोनों हाथों में अपने गालों का रंग रगड़ा और जब तक रीत समझे-समझे। वो मेरी बांहों की गिरफ्त में। रंग से सनी मेरी हथेलियां उसके गुलाबी गालों की ओर बढीं। पर उस चतुर बाला ने झट से अपने कोमल कपोल अपनी हथेलियों के पीछे।

यही तो मैं चाहता था, मेरे दोनों हाथ सीधे उसके टाईट कुरते को फाड़ते जवानी के खिलौनों, उसके गदराये गोरे उभारों की ओर, और एक पल में वो मेरे मुट्ठी में थे।

वो बिचारी। अब लाख कोशिश कर रही थी पर बहुत देर हो चुकी थी। मैं जमकर दबा रहा था, बिना रगड़े मसले। सिर्फ मेरी उंगलियों का दबाव उसके कुरते पे ठीक जोबन के ऊपर।
सिर्फ चंदा भाभी मेरा मतलब समझ रही थी और मंद-मंद मुश्कुरा रही थी।

“हे छुड़ा ना क्या खड़ी-खड़ी, टुकुर-टुकुर देख रही है…” उस कातर हिरनी ने गुड्डी की ओर देखकर गुहार लगाई।



गुड्डी भी दूर खड़ी मुश्कुराती रही। वो समझ गई थी की कहीं वो नजदीक आई तो रीत को छोड़कर मैं उसे ना गड़प कर लूँ।

“आ ना मेरी माँ। क्या वहां से। देख ना तेरे यार ने कितनी कसकर दबोच रखा है। प्लीज गुड्डी। अगर ना आई ना। तो जब तेरी फटेगी ना। तो मैं भी ताली बजाऊँगी…” रीत ने फिर पुकार लगायी।

“क्या दीदी। पता नहीं कब फटेगी। अरे आपसे चिपके हैं तो आप ही। मेरी तो वैसे भी छुट्टी के दिन चल रहे हैं…” हँसकर गुड्डी बोली।

क्या मस्त उभार थे, मुझसे नहीं रहा गया और अपने आप मेरा ‘जंगबहादुर’ उसकी पाजामी के ऊपर से ही। उसके मस्त चूतड़ों के ऊपर से रगड़ने लगा। मेरी उंगली ने एक निपल को पकड़ लिया और कसकर पिंच कर दिया।

रीत जानबूझ कर चीखी और बोली- “उईईईई…” “हे अपनी बहन की समझ रखी है क्या? जा कर रहे हो ना। जाकर उसकी इस तरह से दबाना, मसलना, या वो जो सामने खड़ी खिलखिला रही है। बहुत चींटे काटते हैं उसको। जाकर उसकी…”

और जवाब में मैंने दूसरे निपल पे भी पिंच कर दिया।



अब तो रीत के मुँह से,… वो एकदम चंदा भाभी की ननद लग रही थी-

“हे। हे अच्छा, आएगी ना वो तुम्हारी बहना कम रखैल मेरी पकड़ में। ना अपने सारे भाईयों को चढ़वाया उसके ऊपर। एक निकालेगा दूसरा डालेगा। एक आगे से एक पीछे से…” उसकी गालियां भी मजे दे रही थी, लेकिन उसकी बात गुड्डी ने पूरी की।

“और एक मुँह में…” गुड्डी अब तक पास आ गई थी।

" और असली मजा तो उस छिनार को तब आएगा जब रॉकी चढ़ेगा और उसकी गाँठ बनेगी, तेरी बहना के बिल के अंदर। तेरा असली जीजा वही होगा, एक बार रॉकी चढ़ जाएगा न तो खुद उस के सामने जाके कुतिया बन के निहुरी रहेगी वो " रीत ने रगड़ाई का लेवल और बढ़ाया।
रसीली साली को देखकर आनंद का दिमाग चाचा चौधरी की तरह काम कर रहा है साली के फड़फड़ा रहे कबूतरो को पकड़ कर अच्छी तरह रगड़ दिया है
सजनी दूर खड़ी इंतजार कर रही है कि उसका नंबर कब आएगा?
 
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