सुबह की पहली किरणें जंगल के तंबुओं पर धीरे-धीरे फैल रही थीं, ठंडी हवा में ओस की बूंदें पत्तियों पर चमक रही थीं। दूर कहीं पक्षियों की चहचहाहट हवा में घुली हुई लग रही थी। कैंपफायर की राख अभी हल्की गर्म थी, उससे उठती धुएं की हल्की महक सबके नथुनों को सहला रही थी – लकड़ी की कड़वाहट और रात की नमी का मिश्रण। रवि तंबू से बाहर निकला, आंखें थकी हुईं लेकिन मन में वो बेचैनी जो रात भर सुलगती रही। नींद अधूरी थी, लेकिन आज का दिन... कुछ वैसा ही था जैसा वो कल्पना करता रहा। वो जानता था, रमा उसकी "गर्लफ्रेंड" थी – बस इतना ही। माँ-बेटे का वो राज़ अभी छिपा हुआ था, लेकिन हवा में तैर रहा लगता था।
रमा तैयार हो चुकी थी। लाल साड़ी उसके बदन से चिपकी हुई थी, जैसे कोई नरम लिफाफा जो हर कर्व को सहलाता हो। ब्लाउज का गहरा नेक उसके भारी स्तनों को उभार रहा था – गोल, नरम, हर सांस के साथ हल्के से हिलते हुए, जैसे कोई लयबद्ध नृत्य। निप्पल्स की हल्की आउटलाइन ब्लाउज के नीचे झलक रही थी, पीली ब्रा की कगार से वो रहस्यमयी छाया। कमर नंगी, पेट की मुलायम चमड़ी पर नाभि की गहराई हल्की सी चमक रही, जैसे कोई गुप्त निमंत्रण दे रही हो । साड़ी का पल्लू थोड़ा सरका हुआ था, जो उसके चौड़े कूल्हों को और उभार रहा – मोटी, गोल गांड हर कदम पर हल्की लहर की तरह मटक रही। उसके मोटे होंठ लाल लिपस्टिक से चमक रहे थे, नरम और रसीले, बोलते समय हल्के से कांपते। बाल खुले, काले घने लहराते हुए कंधों पर बिखरे, और परफ्यूम की वो मादक गंध – गुलाब की मिठास और चंदन की गर्माहट – हवा में फैल रही थी , जैसे कोई अदृश्य स्पर्श। वो जानती थी, ये लुक... खतरे से भरा था। लेकिन अंदर की वो सुलगती आग उसे रोकने न दे रही।
सब इकट्ठा हो रहे थे। अजय और विक्की नक्शा फैलाए झुककर कुछ बुदबुदा रहे, रोहन और मनीष चाय के क्विक ब्रेकफास्ट को सेट कर रहे – प्लास्टिक के कपों में भाप उठ रही थी । "अरे यार, चलो आज झरना हिट करते हैं। रास्ता छोटा सा है, लेकिन व्यू... कमाल का होगा," अजय ने उत्साह से चिल्लाया, नक्शे पर उंगली रखते हुए। रवि मुस्कुराया, लेकिन उसकी नजरें रमा पर अटकीं। वो रोहन के पास खड़ी थी, हल्की हंसी के साथ बात कर रही थी । रोहन ने चाय का कप बढ़ाया, उंगलियां हल्के से छुईं – वो स्पर्श जानबूझकर था, लेकिन इतना हल्का कि सिर्फ वो दोनों ही महसूस करें। "रमा... सुबह-सुबह ही तू तो कयामत लग रही है। ये साड़ी... जैसे तेरे लिए ही सिली हो। लेकिन जंगल में सावधान रहना, कांटे हैं ना... तेरी ये खूबसूरती को खरोंच न लग जाए," रोहन की आवाज गहरी थी, आंखों में शरारत की चमक, लेकिन नीचे कहीं एक सच्ची तलब छिपी। वो जानता था, रमा सिर्फ एक चेहरा नहीं, एक पूरा रहस्य थी।
रमा ने कप लिया, मोटे होंठों से चाय का धीरा घूंट भरा – गर्मी उसके गले में उतरी, होंठ हल्के से कांपे। वो शरमाई, गालों पर हल्की लाली चढ़ी, लेकिन आंखें मिलाईं: "रोहन... तू तो हमेशा यही करता है न, ऐसे मीठे-मीठे जाल बुनता। जैसे कोई पुराना दोस्त... लेकिन आज जंगल में... थोड़ा अकेले घूमने का मन है। रवि तो व्यस्त रहेगा नक्शे में, तू... साथ चलेगा न? बस थोड़ी देर... इन रास्तों से डर लगता है मुझे।" उसकी आवाज नरम थी, लेकिन कशमकश भरी – शब्दों में हिचकिचाहट, जैसे वो खुद से लड़ रही हो। अंदर की उथल-पुथल... प्यार, डर, और वो लालसा जो शब्दों से बाहर थी। वो सोच रही थी, "ये सब गलत है... लेकिन ये स्पर्श... रवि की तरह ही गर्म क्यों लगता है? क्या मैं इतनी कमजोर हो गई हूं?"
मनीष करीब सरका आया, पीछे से कमर पर हल्का हाथ रखा – वो दबाव इतना सूक्ष्म था कि बाहर से दोस्ताना लगे, लेकिन अंदर जलन पैदा कर दे। "अरे रमा, रोहन अकेला? मैं भी तो हूं ना। तू अकेली मत घूम... हम दोनों हैं ना, संभाल लेंगे। देख न, तेरी ये... कमर कितनी नाजुक है। साड़ी में लहरा रही, जंगल में अगर फिसली तो... हम पकड़ लेंगे। लेकिन वादा कर... रवि को मत बताना, वरना वो जलन से तड़प जाएगा। तू उसकी गर्लफ्रेंड है न... लेकिन हम... तेरे पुराने दोस्त।" मनीष की सांसें उसके कान पर लगीं, गर्म और हल्की नमकीन – पसीने की वो हल्की गंध जो उत्तेजना बढ़ा दे। रामा सिहर उठी, स्तन हल्के से हिले, ब्लाउज में वो दबाव महसूस हुआ। "मनीष... शशश... चुप कर ना, सब सुन लेंगे। लेकिन हां... थोड़ा डर तो लगता ही है। रास्ता इतना कांटेदार... जैसे मेरी ये जिंदगी। रवि के साथ तो खुशी है, लेकिन कभी-कभी... ये अकेलापन सताता है। तुम्हारे जैसे दोस्त... बस, अच्छा लग जाता है। हाथ... मत छोड़ना बस।" लेकिन नीचे उत्साह की चमक – वो कबूल कर रही थी, धीरे-धीरे: "मैं... औरत हूं रोहन, मनीष। भूखी सी। लेकिन रवि... वो मेरा सबकुछ। ये राज़... कभी न खुलना चाहिए।"
रोहन ने उसका हाथ पकड़ा, उंगलियां धीरे से आपस में उलझाईं – वो गर्माहट धीरे-धीरे फैली, जैसे कोई धारा। "रमा... तेरी ये आंखें... सब बयान कर रही हैं। डर मत... हम तेरी रखवाली करेंगे। लेकिन सोच तो... झरने के पास, पानी की उस ठंडी धार में... अगर हम तीनों... थोड़ा खो जाएं। तेरे ये मोटे होंठ... पानी से भीगे... एक बार छू लूं? बस धीरे से, जैसे कोई अधूरा सपना। रवि तो दूर नक्शे में उलझा रहेगा, तू... हमारे साथ कुछ पल की हो जाए।" मनीष ने पीछे से गांड पर हल्का थप्पड़ मारा – चटाक की वो हल्की आवाज जंगल की सरसराहट में घुल गई, लेकिन साड़ी के नीचे जलन फैल गई। "हां रमा... ये... कितनी नरम, मोटी। दबा दूं? लेकिन वादा... चुप रहना। तेरी ये साड़ी... पानी में उतार दूं? वो भारी... आजाद हो जाएं। तू चिल्लाएगी शायद... लेकिन वो मजा? स्वर्ग सा।" रमा की सांसें तेज हो गईं, नीचे सिहरन दौड़ी – वो हंसकर बोली, लेकिन आवाज कांप रही: "तुम दोनों... पागल हो गए हो क्या? लेकिन हां... थोड़ा रोमांस... क्यों न हो? रवि व्यस्त तो रहेगा। चलो... निकल पड़ें।"
रवि झाड़ी के पीछे छिपा था, सब देख रहा। दिल में जलन की आग सुलग रही – लेकिन साथ ही वो उत्तेजना, जो लंड को सख्त कर रही। "वो मेरी है... लेकिन ये... मेरा ही राज़।" वो चुपके से पीछा करने लगा
दोपहर की धूप जंगल को चीर रही थी, पेड़ों की लंबी छांवें जमीन पर बिखरीं, हवा में पत्तों की सरसराहट और दूर झरने की धीमी गूंज जैसे कोई लय बना रही। लंच के बाद सब थकान में डूबे थे – अजय और विक्की तंबू में हल्की नींद ले रहे थे रवि नक्शे में उलझा सा व्यस्त था। लेकिन रमा... वो अकेली घूमने निकली, वही लाल साड़ी अब पसीने से चिपकी हुई – स्तन ब्लाउज में दबे, लेकिन हर कदम पर हल्के से दबाव महसूस हो रहा। मोटे होंठ सूखे लेकिन रसीले, गांड मटकते हुए रास्ता काट रही थी। परफ्यूम अब पसीने की हल्की नमकीन गंध से घुला, और भी मादक लग रहा था। अंदर की बेचैनी सुबह की फुसफुसाहटों से और भड़क रही थी। "क्यों ये सब? रवि के साथ तो शांति है... लेकिन इनकी नजरें... मुझे जिंदा कर देती हैं, जैसे कोई पुरानी भूख जागी हो।"
रोहन और मनीष चुपके से सरक आए – रोहन ने हाथ पकड़ा, मनीष ने कमर पर हल्का दबाव डाला। "रमा... अकेली क्यों? चल, हम ले चलें और गहराई में। झरना तो देख लिया, अब... असली मजा होगा। रवि सो रहा है न, कोई फर्क न पड़ेगा," रोहन की आवाज कांप रही थी – उत्साह में, लेकिन नीचे वो सम्मान जो उसे रोक रहा। "तू सिर्फ... खूबसूरत नहीं रमा। तेरी वो मुस्कान... मुझे अपना सा बना देती। लेकिन आज... थोड़ा बुरा बनूं? तू... तैयार तो है न?" रामा सिहर उठी, हाथ हल्का सा पीछे खींचा लेकिन ना न कही: "रोहन... डर तो लग रहा है। रवि... वो मेरा प्यार है, सबकुछ। लेकिन तुम्हारी ये गर्माहट... मुझे इतना कमजोर क्यों कर देती? ले चलो... लेकिन धीरे से, कोमलता से। अगर बुरा किया तो... मैं टूट जाऊंगी।" मनीष ने कान में फुसफुसाया, सांसें गर्म और करीब: "रमा... सुबह से तेरी ये... घूर रहा हूं। बुरा? हां, करूंगा। थप्पड़ मारूंगा, दबाऊंगा। लेकिन क्यों? क्योंकि तू भी तो चाहती है न... वो दर्द जो सुख में बदल जाए। रवि कभी ऐसा न करेगा। वादा कर... चिल्लाएगी, लेकिन रुकेगी नहीं। तेरे ये होंठ... मेरे पर लपेटेगी?"
जंगल की गहराई में पहुंचे – घने पेड़ों के बीच नरम घास, हवा में मिट्टी की सोंधी खुशबू। रोहन ने रमा को पेड़ से सटा दिया, साड़ी का पल्लू धीरे से खींचा – वो गिरा, स्तन बाहर उभरे। "देख रमा... ये... कितने नरम, भारी। चूसूं? दांतों से हल्का काटूं?" वो झुका, निप्पल मुंह में लिया – चूसना शुरू, जोर से लेकिन धीरे-धीरे, दांत चुभाए । रमा सिसकी: "आह रोहन... दर्द... लेकिन हाय... मत रुको। दिल तो कह रहा गलत है... लेकिन बदन... कांप रहा। मनीष... तू... नीचे आ ना।" मनीष घुटनों पर बैठा, साड़ी ऊपर सरकाई – चूत नंगी, गीली चमकती। उंगली डाली, फिर दो: "रमा... कितनी सोखी। बुरा कर रहा हूं... फाड़ रहा। सोच, रवि बाहर... तू यहां... पिस रही। चिल्ला ना... 'मनीष...जोर से ... फाड़ दे कुतिया का !' और ये... थप्पड़ खाएगी।" चटाक-चटाक, हल्के थप्पड़, गांड लाल हो गई। रमा कांपी: "हाय... जलन हो रही ... लेकिन अच्छा लग रहा। तुम दोनों... मेरी कमजोरी हो। रवि को पता चला तो... सब खतम। लेकिन अब... कर लो... बुरे से, लेकिन प्यार से।"
रोहन ने लंड बाहर किया – मोटा, कड़ा, धमनियां उभरीं। चूत में धीरा धक्का लगाया : "ले रमा.कुतिया .. अंदर... तक ।" जोर-जोर से पेला, लेकिन लय में, थप्पड़ों की हल्की बरसात। मनीष मुंह में डाला: "चूस साली अंदर तक ... गला तक।" रमा बीच में फंसी – सिसकियां, सांसें टूटी। "आह... बुरा कर रहे हो... लेकिन ये... प्यार जैसा। रोहन... जोर से .. हाय... मनीष... निगल रही... वीर्य... दो ना!" वीर्य भरा – चूत में गर्म धारा, मुंह में गाढ़ा चिपचिपा। रमा लेटी रही, थकी लेकिन चमकती: "तुमने... बर्बाद तो किया... लेकिन जिंदा कर दिया। राज़... रखना, प्लीज।"
रवि पेड़ के पीछे छिपा, सब देख रहा। उत्तेजना की लहरें आ गयी उसके शरीर पर ।
रात जंगल में काली चादर ओढ़ चुकी थी – तम्बू के अंदर सब सो चुके थे – दोस्तों की खर्राटों की गूंज हल्की-हल्की आ रही, लेकिन रवि और रामा के बीच वो सन्नाटा... जो सांसों की गर्मी से भरा, पसीने और वीर्य की मिश्रित गंध जो हवा में लटक रही थी । दिन भर की थकान बदन में बसी थी – पसीने की चिपचिपाहट, चूत और लंड पर बाकी वो गीलापन जो दोस्तों की चुदाई से चिपका था, हर सांस के साथ याद दिलाता। रमा बिस्तर पर लेटी, साड़ी अभी भी उलझी हुई, पसीने की चमक उसके गालों पर, लेकिन आंखों में वो आग – दिन भर की लालसा, बेटे की जलन, और अब... अपनी ताकत, वो कंट्रोल जो उसे रानी सा महसूस करा रहा। चूत में सिहरन बाकी, वीर्य का नमकीन स्वाद जीभ पर चढ़ा, लेकिन वो मुस्कुरा रही थी अंदर से, होंठों पर वो हल्की कर्ल जो कह रही थी, "आज... तू मेरा गुलाम बनेगा, बेटा। तेरी जलन... मेरी ताकत, मेरी भूख।"
रवि उसके बगल में सरक आया – बदन की गर्मी माँ को छू रही, लेकिन उसके हाथ कांप रहे थे, उंगलियां हवा में लटक रही जैसे कोई अनजाना डर हो। वो जानता था, दिन भर छिपकर देखा सब – रोहन का वो क्रूर धक्का जो तेरी मम्मी की चीखें निकाल रहा था, मनीष का थप्पड़ जो गांड को लाल कर रहा, विक्की-अजय की फुसफुसाहटें जो हवा में गंदी कल्पनाओं की बूंदें बिखेर रही। दिल जल रहा था, लंड कड़ा हो चुका, टिप से रस टपक रहा पैंट में, लेकिन अंदर वो बेचैनी... जैसे कोई गुलामी की जंजीर खींच रही थी , शर्म और लालसा का गंदा मिश्रण जो सांसों को भारी कर रहा था । "मम्मी. जाग ना। दिन भर... तूने... आह, क्या-क्या किया? मैं... मैंने सब देखा। तेरी चीखें... तेरी वो सिसकियां... रोहन के नीचे तू... कांप रही थी। बताना... सब डिटेल से, माँ। " उसकी आवाज धीमी थी, टूटती-टूटती, हर शब्द में लालच भरा लेकिन डर से कांपता, जैसे वो खुद से लड़ रहा हो – सांसें तेज, छाती ऊपर-नीचे, आंखें माँ के चेहरे पर अटकीं, होंठ काटते हुए।
रमा ने आंखें खोलीं, नम लेकिन ताकतवर नजर से – वो नजर जो बेटे को नंगा कर रही, अंदर की कमजोरी उघाड़ रही। होंठों पर वो मुस्कान फैली, धीरे-धीरे, जैसे कोई शिकारी शिकार को देख रहा हो। हाथ बढ़ाया, बेटे की जांघ पर रखा, नाखूनों से हल्का खरोंचा – वो खरोंच जलन पैदा कर रही थी , लेकिन गर्माहट भी, जैसे कोई आग छू रही हो। "ओह बेटा... चुप रह ना, सब सो रहे हैं। लेकिन हां... सुन ले, हर डिटेल। रोहन ने पहले मेरी कमर पकड़ी, साड़ी ऊपर सरकाई... फिर उंगली डाली चूत में, गीली थी मैं पहले से ही – तेरी दोस्तों की गंदी बातों से, उनकी नजरों से जो सुबह से मेरी गांड घूर रही थी । 'रमा रंडी... तेरी चूत कितनी भूखी लग रही,' रोहन ने फुसफुसाया, उंगली घुमाई अंदर-बाहर, रस टपकने लगा। मैं चीखी, 'रोहन... आह, धीरे... फाड़ ना मत,' मनीष आया पीछे से, दूध दबाए जोर से – निप्पल पकड़े, मुड़के काटा, दांत चुभाए। 'चूसूंगा तेरे ये बड़े दूध, कुतिया... रवि के सामने तो शरमाती, लेकिन अकेले... रंडी बनी।' आह बेटा... सोच, तू बाहर झाड़ी में छिपा देख रहा था, मैं अंदर पिस रही – चूत में उंगली, दूध पर दांत, गांड पर थप्पड़। 'चटाक-चटाक' की आवाज... और मेरी सिसकी, 'हां मनीष... दर्द दो... लेकिन अंदर तक ।' तेरी मम्मी तेरे दोस्तों की कुतिया बनी, लेकिन तेरी खुशी के लिए। अब बोल... क्या फील हो रहा? तेरा लंड... कड़ा तो है ना?" रामा की आवाज नरम लेकिन कमांडिंग थी, हर शब्द में वो कामुकता जो हवा में घुल रही, सांसें गर्म उसके कान पर लग रही, परफ्यूम की मादक गंध मिक्स होकर पसीने की नमकीन से।
रवि की सांस तेज हो गई, लंड फड़क रहा पैंट में, रस की गीलापन फैल रहा, लेकिन माँ का स्पर्श... वो कमजोरी ला रहा, घुटनों में कम्पन हो गया । रामा का हाथ ऊपर सरका, बेटे के छाती पर – नाखून चुभाए, हल्का दर्द लेकिन सिहरन, जैसे कोई करंट दौड़ गया। "और सुन बेटा... विक्की ने फुसफुसाया मेरे कान में, 'रमा... तेरी चूत चाटूं? जीभ घुसाकर रस निगलूं, तेरी गांड में उंगली डालूं – मीठा रस चखूं, कुतिया। तू रवि की गर्लफ्रेंड है, लेकिन हमारी रंडी।' मैं हंसी शरम से, लेकिन चूत गीली हो गई मेरी – साड़ी भिगो दी, रस टपकने लगा जांघों पर। 'विक्की... पागल, रवि देख लेगा,' मैंने कहा, लेकिन आंखें बंद कर लीं, कल्पना में। फिर अजय ने ड्राइव में मिरर से घूरा, 'तू आग है रमा, तेरी गांड मटक रही... चोदूं? लंड डालूं पीछे से, फाड़ दूं तेरी रंडी वाली चूत?' बेटा... तेरी माँ ने सब सहा, हर स्पर्श, हर गंदी बात – तेरी जलन को और भड़काने के लिए। लेकिन अब... तू मेरी दासी बनेगा। तेरी मम्मी का गुलाम। बोल... 'हां मम्मी , मैं तेरा गुलाम हूं।' " रवि कांपा, आंसू आंखों में चमके, लेकिन लालसा जीत गई – "हां मम्मी ... मैं... तेरा गुलाम हूं। उसकी आवाज कांप रही थी , लेकिन उत्तेजना से भरी, सांसें टूटी। रमा की उंगलियां नीचे सरकीं – पैंट में लंड पकड़ा, जोर से दबाया, नाखून चुभाए टिप पर। कड़ा, गर्म, लेकिन दर्द से सिहरा, रस बाहर आया। "हाय... बेटा, तेरा लंड कितना गुलाम सा कांप रहा। दिन भर की जलन... इसे और सख्त बना रही, रस टपका रही। लेकिन आज... तू मेरे तलवों का गुलाम। चाटेगा... मेरी धूल, मेरा पसीना।"
दोनों की सांसें मिलने लगीं – तंबू में गर्मी चिपचिपी हो गई, पसीने की बदबू फैल रही, साड़ी की सिल्क हवा में सरसराती। रमा ने साड़ी का पल्लू सरकाया, स्तन उभरे लेकिन बेटे को नीचे दबाया – पैर फैलाए, जंगल की धूल से सने, पसीने वाले तलवे, दिन भर की मिट्टी और पसीने की चिपचिपाहट से चमकते। "चाट बेटा... मेरे तलवे। धीरे-धीरे, जीभ से हर कण साफ कर। तेरी माँ की गुलामी... तेरी लालसा का रस है । बोल... 'मम्मी तेरे तलवे चाटूंगा, तेरा कुत्ता बनकर।'" रवि का दिल धक् से रह गया – शर्म से गाल लाल, लेकिन लंड और सख्त, वो झुका, जीभ निकाली – गर्म, कांपती, नरम। तलवे पर लगाई, चाटने लगा। चपचप की गंदी आवाज आयी , नमकीन स्वाद – पसीना, मिट्टी, दिन भर की धूल का मिश्रण, गंदा लेकिन मादक, जैसे कोई नशा जो सिर चढ़ रहा हो । "मम्म... मम्मी , तेरा स्वाद... गंदा, नमकीन... लेकिन आह, तेरी खुशी के लिए। हर कण... चाट रहा, जीभ घुमा रहा।" रवि की आवाज मुंह भरे, लेकिन समर्पित, सांसें तलवों पर लग रही थी । रामा सिसकी भरी, पैर दबाए बेटे के चेहरे पर – नरम लेकिन जोर से, उंगलियां नाक पर दबीं। "हां बेटा... अच्छे से चाट गुलाम। जीभ के बीच से... साफ कर मेरी धूल, मेरे पसीने का रस निगल। जैसे कोई भूखा कुत्ता गांड चूसती। 'मम्मा... तेरी उंगलियां... चूस रहा, नमकीन रस... स्वादिष्ट।' बोल!" रवि तेज हुआ – तलवे चाटे, उंगलियां मुंह में लीं, चूसीं जोर से, जीभ लपेटी हर कोने पर। "मम्मा... तेरी उंगलियां... चूस रहा हूँ..
रमा ने बेटे के बाल पकड़े, उंगलियां मुट्ठी में बंद, ऊपर खींचा – आंखों में आग, होंठ कांपते लेकिन क्रूर मुस्कान। "अब... मुंह खोल रे कुत्ते। फैलाओ होंठ... मेरी गंदगी लेने को।" रवि ने होंठ फैलाए – कांपते, गुलामी से भरे, जीभ बाहर लटकाई। रामा झुकी, थूक बनाया – गाढ़ा, चिपचिपा गोला, दिन भर के रस, वीर्य और पसीने का मिश्रण, गर्म और गंदा। धीरे से मुंह में गिराया, टपकते हुए। रवि ने निगला, गले में जलन हुई लेकिन उसको मज़ा आ गया , जीभ बाहर निकालकर दिखाया – नम, चमकदार, थूक चिपका। "माँ... तेरा थूक... अमृत सा, गाढ़ा... गंदा लेकिन प्यारा। और दो... धीरे-धीरे, मुंह भर दो।" रवि की आवाज कांपती है , लेकिन लालसा भरी, आंखें माँ के होंठों पर। राlमा हंसी, लेकिन क्रूर, गहरी सी – "हां गुलाम... ले मेरी कचरा, मेरी थूक की धार। दिन भर रोहन ने मेरी चूत भरी वीर्य से, मनीष ने मुंह... गर्म छींटे डाले, लेकिन तेरा मुंह... मेरी थूक की बाल्टी बनेगा। फिर थूक गिराया – बार-बार, मुंह भरा, चिपचिपा लसलसा, गालों से टपकता। रवि चाटता रहा, लंड फड़कता, रस बह रहा। "हाय... मम्मी , तू मेरी मालकिन है । तेरी गंदगी... मेरी लालसा है , निगल रहा है हर बूंद।"
रामा ने साड़ी ऊपर सरकाई, चूत दिखाई – गीली, चमकती, दिन भर के वीर्य से चिपचिपी, लालिमा लिए, रस टपकता जांघों पर। "अब... चाट मेरी चूत रे गुलाम। अंदर तक , जीभ घुसाकर। रोहन का वीर्य बाकी है... गाढ़ा, नमकीन – निगल ले सब। बोल... 'माँ, तेरी चूत चाटूंगा, तेरे दोस्तों का रस निगलूंगा।'" रवि झुका, होंठ लगाए – चूसने लगा, जीभ अंदर घुसाई, चपचप की गंदी आवाज, रस का स्वाद – नमकीन, गंदा, मिश्रित। रमा ने गांड उभारे, बेटे का सिर दबाया चूत पर – जोर से, बाल खींचे। "आह... हां बेटा, चाट रे कुत्ते। जीभ घुमाओ, क्लिट चूसो... 'मम्मा... रोहन का वीर्य... चाट रहा, तेरी चूत का रस... मीठा।' बोल, चिल्ला धीरे से!" रवि सिसका, मुंह भरा लेकिन बोला, जीभ बाहर-भीतर: "मम्मा... रोहन का वीर्य... चाट रहा हूँ , निगल रहा। तेरी चूत का रस... मीठा, गर्म... आह।" रमा तेज सांसें , लेकिन ताकत से, कूल्हे हिलाए: "हां... गुलाम,। कल और दोस्त चोदेंगे मुझे, तू चाटेगा उनका रस। लेकिन आज... वीर्य मत निकालना, बस चाटता रह।
रवि गले लग गया आखिर, सांसें मिलीं – गंदगी, थूक, पसीना... सब चिपका बदनों पर। "माँ... तेरी गुलाम हूँ ... हमेशा। तेरी लालसा... मेरी जिंदगी है ।" रमा मुस्कुराई, पैर फिर दबाए चेहरे पर: "हां बेटा... रात लंबी है। चाट... और चाट, मेरे कुत्ते बेटे ।